bahan sex kahani दो भाई दो बहन
04-10-2019, 04:19 PM,
#11
RE: bahan sex kahani दो भाई दो बहन
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गतान्क से आगे.......

राज के जीब के स्पर्श ने रोमा के शरीर मे फिर हलचल पैदा कर दी

थी. उसे लगा कि जैसे उत्तेजना की ज्वाला उसकी चुचियों से होती हुई

उसकी चूत तक पहुँच चुकी है. उसे लगा की जैसे चूत मे जोरों

की खुजली मच रही है.

"तुम्हारी चूत रिस रही है जान..." राज ने कहा.

"हां शायद...."

"एक शैतानी मुस्कुराहट के साथ राज ने अपना मुँह उसकी चुचियों पर

से हटा लिया, "नही में ऐसी किसी चीज़ पर विश्वास नही करता जो

में खुद ना देख लूँ."

"ये कोई अच्छी बात नही राज!"

"नहीं में खुद देखूँगा," राज ने कहा, "लेकिन इसके बाद."

इतना कहकर राज ने फिर एक बार रोमा के निपल अपने मुँह मे ले लिए.

वो उन्हे चूमने लगा, चूसने लगा, कभी अपने दाँतों के बीच लेता

और हल्के से काट लेता.

"ओह राज क्या कर रहे हूऊओ....." रोमा मस्ती मे सिसक पड़ी.

राज का एक हाथ उसके सपाट पेट पर से होता हुआ उसकी खुली जीन्स पर

पहुँचा और उसकी उंगलियाँ उसकी पॅंटी की एलास्टिक को पकड़ ली. रोमा

ने अपने चूतड़ थोड़ा सा उँचा किए और राज ने उसकी जीन्स और पॅंटी

को नीचे खिसका दिया.

फिर उसकी उंगलियाँ चूत को सहलाते हुए उसकी फांको को अलग कर अंदर

घुसने लगी. उसने देखा कि रोमा की चूत किसी भट्टी की तरह सुलग

रही थी और पूरी तरह गीली हो चुकी थी.

"ओह राज्ज्जज्ज्ज्ज........." रोमा सिसक पड़ी, "जानते हो कितना मिस

किया मेने तुम्हे पूरे हफ्ते भर."

राज ने अपने मुँह को उसकी चुचियों से उपर कर उसके होंठ पर रख

दिए, "में तुमसे प्यार करता हूँ," और वो उसके होठों को चूसने

लगता है, "बहोत प्यार करता हूँ तुमसे...."

रोमा ने प्यार से अपनी बाहें उसके गले मे डाल दी और अपना मुँह खोल

उसकी जीब को मुँह मे ले चूसने लगी. उसने उसे ऐसे गले लगा लिए

जैसे दो प्रेमी कई महीनो बाद एक दूसरे से मिल रहे थे.

रोमा ने अपना हाथ उसकी गर्दन से निकाला और नीचे की ओर करते हुए

उसके खड़े लंड को पकड़ लिया. लंड किसी लोहे की सलाख की तरह तन

चुका था. उसे ऐसा लगा की जैसे उसने किसी जलती हुई सलाख हाथ मे

पकड़ ली हो.

राज ने अपने आपको थोड़ा हिलाया और अपनी जंघे रोमा के चेहरे पर

कर लेट गया. फिर उसकी जांघों को फैला उसकी चूत से उठती महक

को सूंघने लगा.

"तुम्हारा लंड बहोत प्यारा है...." रोमा उसके लंड को सहलाते और

उसके अंडकोषों को मसल्ते हुए बोली.

"मुझे तो बहोत भूक लग रही है," उसकी चूत को फैलाते हुए

बोला, "क्या तुम्हे नही लग रही?"

"एम्म.....बहोत ज़्यादा" कहकर उसने पहले तो उसके सूपदे पर अपनी जीब

फिराई फिर उसके लंड को अपने मुँह मे ले चूसने लगी.

अगले आधे घंटे तक दोनो एक दूसरे को तृप्त करने मे लगे रहे.

रोमा उसके लंड को अपने गले तक लेकर चूस्ति तो राज अपनी जीब को

उसकी चूत की और गहराइयों तक डाल देता. राज अपने लंड को उपर से

उसके मुँह मे डालता तो रोमा नीचे से अपने चूतड़ उठा अपनी चूत

को और उसके मुँह पर दबा देती.

रोमा की चूत ने सबसे पहले पानी छोड़ दिया, राज उसकी चूत मे अपनी

जीब के साथ साथ अपनी दो उंगलियाँ भी अंदर बाहर कर रहा था.

उसका शरीर आकड़ा और उसने अपने चूतड़ उपर को जोरों से उठा सिसक

पड़ी.......

राज उसके उपर से उठता है और रोमा को पलट कर घोड़ी बना देता

है. रोमा भी अपनी कोहनी पर झुक अपने चूतड़ उपर को उठा देती

है. राज उसके पीछे आ अपने लंड को पहले तो उसकी गीली चूत पर

घिसता है फिर धीरे से अपना लंड अंदर घुसा देता है.

"ओह राआाज तुम्हारा लंड मेरी चूत मे कितना अच्छा लग रहा

है.......ओह"

"क्या तुम्हे अब भी डर लग रहा है?" राज ने पूछा.

"नही अब इतना नही लग रहा...." कहकर रोमा कमरे के बंद दरवाज़े

की ओर देखने लगती है.

राज अब धीमे और लंबे धक्के लगा उसे चोदने लगता है. उसका लोहे

जैसा लंड उसकी चूत के अंदर बाहर हो रहा था. उनके शरीर हर

धक्के पर ऐसे मिल रहे थे जैसे सुर और ताल का संगम होता है.

थोड़ी ही देर मे राज का लंड भी उबाल खाने लगता है.

"ओह हाआआं" सिसकते हुए राज अपने लंड को उसकी चूत के अंदर

तक पेल अपना वीर्य उसकी चूत मे छोड़ देता है.

रोमा भी अपनी चूत को सिकोड उसके लंड की हर बूँद को निचोड़ने

लगती है. थोड़ी ही देर मे दोनो थके हुए एक दूसरे का हाथ पकड़े

निढाल हो लेट जाते हैं.

"अगर अचानक मम्मी कमरे मे आ जाती तो तुम क्या करती?" राज अपनी

बेहन को चिढ़ाते हुए पूछता है.

"में तो डर के मारे मार ही जाती," रोमा ने जवाब दिया, "अब इसके

पहले की हमारी सोच हक़ीकत मे बदले हमे कपड़े पहन लेने चाहिए."

पर राज था कि उसके मुलायम और नाज़ुक बदन को अपनी बाहों से छोड़ना

ही नही चाहता था, "रोमा पता है तुम्हारी इन बाहों मे कितना सकून

मिलता है मुझे, मन करता है की इसी तरह हमेशा पड़ा रहूं."

रोमा शरमा गयी, "अब उठो भी......." वो उसकी बाहों से निकलने की

कोशिश करने लगी.

लेकिन राज की बाहें ज़्यादा मजबूत थी. उसने उसे खींच कर अपने उपर

लीटा लिया, "सच सच बताओ क्या तुम्हे अच्छा नही लग रहा?"

उसके नंगे बदन से लिपट कर लेटना उसे भी अच्छा लग रहा था, मन

कर रहा था कि वो ऐसे ही लेटी रहे अपने प्यार की बाहों मे लेकिन

मम्मी के आने का डर अभी मन मे समाया हुआ था.

"नही मुझे अच्छा नही लग रहा."

"अगर मम्मी आ गयी तो क्या कहोगी?" राज ने पूछा.

"मुझे नही पता और में जानना भी नही चाहती, प्लीज़ राज मुझे

जाने दो."

आख़िर राज ने उसे छोड़ दिया. वो तुरंत अपने कपड़े पहनने लगी. राज

अपनी बेहन को कपड़े पहनते देखता रहा. रोमा ने अपने कपड़े पहने

और उसका टवल उसकी तरफ उछाल दिया. राज को लगा कि रोमा गुस्से मे

है, इसलिए उसने उसे अपनी बाहों मे भरा और चूम लिया.

"में तुमसे बाद मे मिलता हूँ," कहकर राज ने अपना टवल लपेटा और

उसके कमरे से बाहर चला गया.

"तुम पागल हो!" वो ज़ोर से पीछे से चिल्लाई.

राज एक बार तो थीट्का फिर मुस्कुराते हुए अपने कमरे के ओर बढ़ गया.

* * * * *

रात के वक़्त जब राज और जय तालाब के किनारे बढ़ रहे थे उस

समय काफ़ी कोहरा छाया हुआ था और ठंड भी बढ़ गयी थी. अलाव के

नज़दीक जाकर दोनो ने मिलकर उसमे कुछ लकड़ियाँ डाली और आग

सुलगा दी.

दोनो अलाव के सामने बैठ गये. जय ने अपनी जेब से वही नशे वाली

सिग्रेट निकाली और सुलगा ली. सिग्रेट का ज़ोर का कश लेकर उसने

अपनी छाती धुएँ से भर ली फिर धुएँ को धीरे धीरे छोड़ने

लगा.

"राज मुझे रोमा बहोत पसंद है," उसने अपने फेफड़ों मे इकट्ठा

किए हुए धुएँ को छोड़ते हुए कहा, "बहोत सुन्‍दर लगती है वो."

"इतनी भी सुन्दर नही है वो," राज ने उसकी सुंदरता को कम आँकते

हुए कहा. जय की बात सुनकर उसके मन मे जलन की भावना उमड़ पड़ी

थी, "पर मुझे नही लगता कि वो तुम्हे पसंद करती हो, अगर करती

तो मुझे ज़रूर बताती."

"पर ये उसका फ़ैसला होगा... क्यों सही है ना?" जय फिर से धुएँ को

छोड़ता हुआ बोला, "जैसे कि रिया का फ़ैसला था तुम्हे पसंद करने का

और तुम्हारे साथ चली गयी थी मुझे यहीं छोड़ कर पीछले

हफ्ते.... याद है ना तुम्हे?"

"हां वो उसका फ़ैसला था," राज ने अपने कंधे उचकाते हुए

कहा. "वैसे भी तुम जो करना चाहे करो मुझे क्या, में तो सिर्फ़ ये

कह रहा था कि अगर ऐसा कुछ होता तो वो मुझसे ज़रूर कहती."

"यार इतना क्यों नाराज़ हो रहे हो, जब रिया ने फ़ैसला किया तो में

तो नाराज़ नही हुआ था." जय ने कहा.

राज जय के कहने का मतलब समझ रहा था. जय की नज़र रोमा पर

थी ये राज समझ रहा था और ये भी जानता था कि रिया से उसके

संबंध को लेकर वो नाराज़ है.

"देखो में किसे लेकर आ रही हूँ."

दोनो लड़कों ने रोमा की आवाज़ को तुरंत पहचान लिया. दोनो ने अपनी

नज़रें घर की तरफ घूमा दी जहाँ से दो परछाईयाँ उन्ही की तरफ

चली आ रही थी. थोड़ी ही देर मे उन्हे रोमा के साथ रिया नज़र आने

लगी. पर दोनो को उमीद नही थी कि इतनी जल्दी रिया से मुलाकात

होगी.

"तुम इतनी जल्दी कैसे वापस आ गयी," जय ने चौंकते हुए पूछा.

रिया जय से नही कहना चाहती थी कि उसने कुछ ऐसा नही किया था कि

वो इतनी जल्दी वापस आ जाती लेकिन वो झगड़े के मूड मे नही थी

इसलिए बनावटी हँसी के साथ बोली, "क्या एक लड़की अपने भाई और

पुराने दोस्तों से मिलने नही आ सकती?"

"हां हां.. क्यों नही में तो बस चौंक पड़ा था तुम्हे देखकर."

जय ने कहा. पर मन ही मन उसे गुस्सा आ रहा था. वो कुछ देर के

लिए रोमा के साथ अकेले रहना चाहता था जो रिया के आने से अब

मुमकिन नही था. उसे शक था कि रिया भी रोमा के लिए ही वापस

आई है.

बुझती आग का बहाना कर जय वहाँ से उठा और अलाव मे लकड़ियाँ

डालने लगा. उसने देखा कि रोमा और रिया राज के बगल मे बैठ गये

थे. अल्लव से पड़ती रोशनी मे वो रोमा के शरीर को निहारने लगा.

शॉर्ट्स के नीचे उसकी नंगी टाँगे और जंघे हल्की रोशनी मे बहोत

ही आकर्षित लग रही थी. और उसका छोटा सा टॉप उसकी सेव जैसे

चुचियों को काफ़ी लुभावना बना रहा था.

रोमा को पाने की इच्छा और ज़ोर पकड़ने लगी. उसका असहाय लंड उसकी

पॅंट के अंदर फुदकने लगा. जितना वो उसकी पतली जाँघो को देखता

उतने ही ख़याल उसके मन मे आने लगे. अपनी कल्पना मे वो रोमा को

अपनी बाहों मे भर लेता है और उसकी शॉर्ट्स और पॅंटी को खींच

नीचे कर देता है. फिर अपने फूले हुए लंड को उसकी चूत के अंदर

घुसा देता है.

लंड मे उठते तनाव ने उसे उसके ख़यालों से बाहर निकाला. उसने

देखा कि तीनो मशगूल हो कर बातें कर रहे थे. गुस्से मे उसने

ज़ोर से लकड़ियाँ अलाव मे पटक दी.

"क्यों ना एक सिग्रेट हो जाए?" जय ने रोमा को एक सिग्रेट पकड़ाते

हुए कहा.

लेकिन रोमा ने उसे ना कर दिया तो रिया बीच मे बोल पड़ी, "क्या में

ले सकती हूँ?"

रिया ने जय के हाथों से सिग्रेट ले ली और उसके कश लेने लगी,

उसने इशारे से रोमा को उसका साथ देने के लिए कहा. दोनो लड़कियाँ

एक दूसरे के सामने मुँह कर बैठ गयी और फिर पहले तो एक दूसरे

ने कश लिया फिर होंठ से होंठ सताते हुए एक दूसरे के मुँह मे

धुआँ छोड़ने लगी फिर दोनो की जीब आपस मे मिल गयी.

जय को ये देख गुस्सा आ रहा था कि उसकी बेहन किस तरह रोमा को

बहका रही थी. और वहाँ राज था कि जो सब कुछ देखते हुए भी

अंजान बना हुआ था, "ओह आज कितनी ठंड है, मज़ा आ रहा है,"

उसने अपने आप से कहा.

रोमा और रिया के चुंबन और गहराने लगे. इतने मे रिया को अपनी

बाहों मे ले ज़मीन पर लुढ़कते हुए उन्दोनो से थोड़ी दूर चली गयी

जिससे उन्हे एकांत मिल सके. रात के अंधेरे मे जय उन दोनो को

लुढ़कते देखता रहा, वो समझ रहा था कि रिया अब रोमा के साथ क्या

करने वाली है. गुस्से मे जय ने एक और सिग्रेट सुलगा ली और गहरे

गहरे कश लेने लगा. पर हर कश के साथ उसके अंदर का गुस्सा और

रोमा को पाने की लालसा और बढ़ने लगी.

"मुझे लगता है कि तुम्हारे भाई को काफ़ी गुस्सा आ रहा है," रोमा

रिया के होठों को चूस्ते हुए बोली.

रोमा ने अपनी गर्दन हन मे हिलाई, "मरने दो उसे, अभी नासमझ

है, में हमेशा उससे अच्छीतारह बर्ताव करती हूँ और वो है की

मुझे अपनी ज़ागिर समझता है."

"रिया तुम नही जानती जब से तुम मिली हो में कब से इस दिन का

इंतेज़ार कर रही थी," रोमा ने कहा.

"उस रात पहली बार जब मेने तुम्हे देखा था तो मुझे भी यही लगा

कि तुम्हे भी किसी दूसरी लड़की के साथ सेक्स करने मे कोई ऐतराज़ नही

होगा, इसीलिए आज समय मिलते ही में तुम्हारे पास चली आई"

"ओह रिया तुम कितनी अच्छी हो?" कहकर रोमा उसे और जोरों से

चूमने लगी.

"हां, पर अभी तुमने मेरे अच्छे पन का स्वाद ही कहाँ लिया है,"

रिया मुस्कुराते हुए बोली.

रोमा एक बार तो उसकी बात को सुन चौंक पड़ी, फिर उसके गाल पर हल्का

सा थप्पड़ मारते हुए बोली, "तुम बड़ी शैतान हो?"

काफ़ी देर एक दूसरे को चूमने के बाद रिया ने अपने होंठ उसके

होंठो से नीचे करते हुए उसकी गर्दन को चूमने लगे. फिर उसके

टॉप को उपर कर उसने उसकी चुचियों को नंगा कर दिया. फिर अपनी

हथेली से उसकी चुचि को सहलाते हुए वो उसके निपल को मुँह मे ले

चूसने लगी. एक अजीब से लहर रोमा के शरीर मे दौड़ गयी.

उन दोनो के सिसकने और करहों की आवाज़ अंधेरे मे गूँज सी रही

थी. जय गुस्से मे खड़ा हो अलाव के चारो और चक्कर लगाते हुए

अपने पाँव ज़मीन पर पटक रहा था, राज ये सब क्या है? वो दोनो अपनी

मन मानी कर रहे है, और हम दोनो है जो बेवकूफो की तरह उनका

इंतेज़ार कर रहे है? क्या तुम्हे अजीब सा नही लग रहा?"

"हां लग तो रहा है, पर इसमे बुरा भी क्या है, में यहाँ पर हूँ

क्यों कि मुझे इस तरह ठंड मे तालाब के किनारे बैठना अच्छा लगता

है. अगर रिया और रोमा साथ साथ मज़े ले रहे है तो क्या हुआ तुम्हे

क्यों गुस्सा आ रहा है? आख़िर वो तुम्हारी बेहन है." राज ने कहा.

राज जय के चेहरे को देखने लगा, उसे पता था कि जिस तरह रोमा

उसकी बेहन थी रिया भी जय की बेहन थी लेकिन जय के चेहरे पर

उभरते गुस्से ने थोड़ा उसे सहमा सा दिया था.

वहीं उन दोनो से थोड़ी दूर रिया रोमा की चुचियों को चूसने के

बाद थोड़ा नीचे खिसकी और उसकी शॉर्ट्स को खोल नीचे खिसकने

लगी. साथ ही उसने उसकी गीली हुई पॅंटी भी खिसका दी. रोमा का किसी

लड़की के साथ ये पहला अवसर था इसलिए वो थोड़ा सा नर्वस थी. जब

से वो रिया से मिली थी राज के साथ साथ रिया भी उसके ख़यालों मे

थी, वो इसी दिन का इंतेज़ार कर रही थी.

क्रमशः..................
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04-10-2019, 04:19 PM,
#12
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11

गतान्क से आगे.......

जय ने जब देखा की अलाव मे लकड़ियाँ कम हो रही थी और उसने और

लकड़ियाँ डाल आग को थोड़ा तेज कर दिया. आग के भड़कने से अंधेरा

थोड़ा छांट सा गया और वो दोनो लड़कियों की दिशा मे देखने लगा.

रोमा का अक्ष उसे सॉफ दिखाई दे रहा था. उसने देखा कि उसकी बेहन

रोमा की चुचियो को चूसने के बाद उसकी जांघों के अन्द्रुनि हिस्सों

को चूम रही है, फिर उसने अपना चेहरा रोमा की चूत पर लगा

दिया. उसने रोमा के शरीर को अकड़ते देखा, गहरी सांसो की वजह से

उसकी चुचियों उठ बैठ रही थी.

रोमा की सिसकियाँ इतनी तेज थी कि राज और जय को सॉफ सॉफ सुनाई दे

रही थी. रोमा की सिसीकियाँ उसके लंड को और उत्तेजित कर रही थी,

उसका दिल कर रहा था कि रिया की जगह उसका लंड रोमा की चूत पर

हो. उसके ख़याल से रोमा अभी तक कुँवारी थी और वो चाहता था कि वो

पहला शॅक्स हो जो उसकी चूत की झिल्ली को फाड़ उसका उधागटन करे.

उसने देखा कि रोमा ने अपनी दोनो टाँगे रिया के चेहरे के इर्द गिर्द

रख दी थी और अपने हाथो से उसके चेहरे को अपनी चूत पर और

जोरों से दबा रही थी.

जय ने नज़रे घूमा कर अपने गहरे दोस्त राज की ओर देखा जो घास

पर लेटा हुआ आसमान मे तारों को निहार रहा था. उसे इस बात की

बिल्कुल भी परवाह नही थी कि उसकी सग़ी बेहन किसी दूसरी लकड़ी के

साथ शरीक सुख का आनंद उठा रही है थी. जब उसने देख की राज अपने

ही ख्यालों मे खोया हुआ है वो अपने लंड को पॅंट के उपर से मसल्ने

लगा, जब लंड पूरी तरह उत्तेजना मे भर गया तो उसने अपना पानी

छोड़ने का उपाय खोजने लगा.

जैसे जैसे रिया और रोमा की सिसकियों की आवाज़ उसके कानो मे पड़ती

उसके लंड की हालत और खराब होती जा रही थी. आज पहली बार उसे

रिया से ज़्यादा रोमा को चोदने की इच्छा मन मे हो रही थी.

इन सभी बातों से अंजान रिया अपनी नयी दोस्त रोमा की चूत मे अपनी

जीभ घूमा उसे चूस रही थी. उसने अपनी दो उंगलियाँ भी रोमा की

चूत मे डाल थी और अपनी अन्हुभवी जीब के साथ अपनी उँघलीया भी

उसकी चूत के अंदर बाहर कर रही थी.

आख़िर जब सहन नही हुआ तो जय ने अपनी ज़िप खोली और अपने लंड को

आज़ाद कर लिया, रस की कुछ बूँदें ज़मीन पर टपक पड़ी, तभी उसने

देखा कि रोमा ने करवट बदली और उसका चेहरा उसकी तरफ हो गया

था. एक अंजानी कल्पना ने उसे घेर लिया.

उसने देखा की वो उसपर झुका हुआ है और रोमा अपना मुँह खोल उसके

लंड को अपने मुँह मे ले रही है, फिर उसके लंड को उपर से नीचे

चाटते हुए वो पूरा लंड मुँह मे ले चूसने लगती है. वो उसके सिर को

पकड़ अपने लंड को उसके गले तक डाल देता है. अब वो उसके मुँह को

चोद रहा है और रोमा है कि उसके लंड को जोरों से चूस रही है.

इन्ही ख़यालों मे खोया वो अपने लंड को और जोरों से मसल्ने लगता

है, तभी उसके लंड से वीर्य की एक जोरदार पिचकारी छूट गिरने

लगती है. वो अपनी आँख खोलता है तो देखता है कि वहाँ कोई नही

है, ये सिर्फ़ एक सपना था जो उसने अभी अभी देखा था.

एक बार लंड से पानी छूटने के बाद उसे लड़कियों को देखने मे कोई

दिलचस्पी नही रह गयी थी. वो राज के पास आकर बैठ जाता है और

एक सिग्रेट सुलगा लेता है. थोड़ी ही देर बाद दोनो लड़कियाँ भी

आकर उनके साथ शामिल हो जाती है.

जय ने देखा की दोनो एक दूसरे का हाथ थामे हँसी मज़ाक कर रही

थी. रोमा ने देखा कि रिया उसके भाई राज के काफ़ी नज़दीक जाकर

बैठ गयी थी, वो भी जय के पास बैठ गयी. रोमा देख रही थी की

किस तरह रिया उसके भाई के साथ फ्लर्ट कर रही थी, पर वो कुछ कर

नही सकती थी.शुरू से ही उसे इस बात का डर था, जलन और गुस्से

को वो पी रही थी.

आख़िर रिया ने राज का हाथ पकड़ा और उसे उठाने लगी, "आओ ना राज

क्यों नखरे दीखा रहे हो?"

राज असहाय नज़रों से रोमा को देखने लगा, उसका बिल्कुल भी मन नही

था कि वो रिया का साथ दे लेकिन रिया इतनी जीद कर रही थी कि उसे

उठना पड़ा और वो दोनो भागते हुए अंधेरे मे खो गये.

"शायद ये तुम्हारी मदद करे." जय ने रोमा को एक सिग्रेट पकड़ाते

हुए कहा.

रोमा ने चुपचाप जय के हाथों से सिग्रेट ले ली. वैसे तो उसे राज

पर और अपने प्यार पर विश्वास था. पर रिया के व्यवहार और ये सोच

कि अंधेरे मे दोनो क्या कर रहे होंगे उसके दिल मे दर्द और जलन की

एक लहर पैदा कर देती है. सिग्रेट के कश ने उसे हल्का सा नशा

कर दिया था, वो जय की ओर देखने लगी.

"तुम कितनी सुंदर हो रोमा?" जय उसके और नज़दीक खिसकते हुए बोला.

"सच मे? क्या तुम्हे में सुंदर लगती हूँ." रोमा थोड़ा अस्चर्य मे

बोली.

"हां... रोमा बहोत सुन्दर लगती हो...." कहकर जय ने अपने होंठ

रोमा के होठों पर रख दिए.थोड़ी देर उसके होठों को चूसने के

बाद जय ने उसके होठों को खोल अपनी जीब उसके मुँह मे डाल दी.

किसी

भावेश मे रोमा ने भी अपने होंठ खोल किए और उसकी जीब को अपने

मुँह मे ले लिया. दोनो की जीब एक दूसरे से मिल खेलने लगी. कई देर

तक दोनो एक दूसरी के जीब को चूस्ते रहे.

"zओह.... ठंड तो बढ़ती जा रही है...." रोमा बोल पड़ी.

वैसे तो रोमा ने एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया कही थी लेकिन जय ने उसे

एक निमंत्रण सा समझ लिया. उसने रोमा को अपने और नज़दीक खींच

लिया और उसके टॉप के उपर से उसकी चुचियों को सहल्लाने लगा. जय के

छूते ही रोमा का शरीर सिहर उठा और उसके निपल तनने लगे. जय

ने अब अपना हाथ उसके टॉप के नीचे से अंदर डाल उसकी चुचि को

पकड़ लिया और मसल्ने लगा.

रोमा को काफ़ी गुस्सा आ रहा था ख़ास तौर पर रिया पर, वो जानती

थी कि रिया जैसी लड़कियाँ जो चाहती है वो पा कर रहती है, शायद

राज भी बहक जाए उसके साथ. ऐसा नही था कि उसे जय का छूना अछा

नही लग रहा था पर जिस जल्दी से वो सब कुछ कर रह था उसे वो

थोड़ा विचलित सी हो गयी थी.

"परेशान क्यों हो रही हो रोमा, आराम से माज़्ज़े लो....." जय उसकी

चुचियों को और ज़ोर से मसल्ते हुए बोला.

रोमा की समझ मे नही आ रहा था की वो क्या करे.

जय ने उसे ज़मीन पर लिटा दिया और उस पर झुकते हुए उसके होठों को

जोरों से चूस रहा था साथ ही उसकी चुचियों को भी मसल रहा

था. जब उसने अपना हाथ उसकी शॉर्ट्स पर से उसकी चूत पर रखा था

डर के मारे रोमा सिहर उठी.

जब ने उसकी शॉर्ट्स की ज़िप खोलनी चाही तो वो लगभग चिल्ला

पड़ि, "रुक जाओ जे प्लीज़ में कहती हूँ रुक जाओ........"

तभी उसने देखा कि जय जोरों से उससे दूर लुढ़क रहा था, उसने

नज़र उठाई तो राज को अपने पास खड़ा पाया. इसके पहले की जय आगे

बढ़ता रिया ने अपने आपको राज और जय के बीच खड़ा कर दिया. जय

के लिए उसकी आँखों मे नफ़रत सी थी.

"जय इस विषय मे हम बाद मे बात करेंगे, अभी फिलहाल हम घर

जा रहे हैं."रिया ने कहा.

जय तो राज से लड़ने के लिए तैयार खड़ा था लेकिन रिया को बीच मे

आते देख वो समझ गया कि वो अपनी बेहन से नही जीत सकता और

इसके पहले की राज की ओर बढ़ता रिया उसे धकेलते हुए गाड़ी की ओर ले

आई.

राज और रोमा घर पहुँचे. राज ने जब देख कि उनकी मम्मी अपने कमरे

मे जा कर सो गयी है तो वो धीरे से रोमा के कमरे मे आ गया राज

ने देखा कि अपने आप को कंबल मे छिपा रोमा धीरे धीरे सूबक

सूबक कर रो रही है, वो धीरे से कंबल हटा उसके बगल मे लेट

गया.
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04-10-2019, 04:20 PM,
#13
RE: bahan sex kahani दो भाई दो बहन
राज ने उसे अपनी बाहों मे भर लिया और प्यार से उसके बदन को

सहलाने लगा.

"मुझे अब डर लग रहा है, राज" रोमा ने काप्ति आवाज़ मे कहा.

"ये मेरी ग़लती थी मुझे तुम्हे अकेले छोड़ कर नही जाना चाहिए

था." राज ने कहा.

"पर तुम पर तो रिया के रूप का जादू चढ़ा हुआ था," रोमा ने कहा.

"पागल हो तुम,,, क्या तुम्हे भी ये दिखाई नही देता कि में तुमसे

प्यार करता हूँ." राज ने उसे ज़ोर से अपने शरीर से चिपकाते हुए कहा.

राज की बात सुनकर रोमा को थोड़ा सकुन महसूस हुआ और वो राज को कस

कर अपने से चिपकाते हुए सो गयी.

गुस्से के मारे जय का खून खौल रहा था. उसने तीर्चि निगाह से

अपनी बेहन रिया की ओर देखा जिसके कारण उसे गुस्सा आ रहा था. किस

तरह उसे अकेला छोड़ कर वो राज के साथ चली गयी थी जैसे की

उसकी कोई अहमियत ही नही थी. और एक तरफ रोमा थी जिसे देख कर

वो अपने आप पर काबू नही रख पाता था और उत्तेजित हो जाता था,

साली चीज़ भी तो कामयत है किसी का भी का ईमान डोल जाए.

उधर रिया अपने भाई के गुस्से को देख मन ही मन घबरा रही थी.

कभी कभी उसे देख कर उसे नफ़रत सी होने लगती थी, ठीक अपने

बाप के उपर के गया था, वही गुस्सा वही आदतें.

दोनो के मन मे एक तूफान सा उठा हुआ था, बहोत सी बातें थी जो वो

एक दूसरे से कहना चाहते थे किंतु चलती गाड़ी मे शायद महॉल नही

था. रिया ने तय कर लिया था कि भविश्य मे वो अपने भाई से कोई

जिस्मानी संबंध नही रखेगी. समय के साथ कितना ख़ुदग़र्ज़ हो गया

था वो, उसे किसी के जज्बातों की पड़ी ही नही थी. उसे समझ मे नही

आ रहा था कि वो ये बात अपने भाई से कैसे कहे. शायद वो खुद बा

खुद समझ जाए.

रिया ने गाड़ी को घर के पार्किंग स्लॉट मे साइड मे खड़ी की और एंजिन

और लाइट बंद कर दी. दोनो जाने गाड़ी से उतरे और चुप चाप घर

मे दाखिल हो गये. दरवाज़ा बंद करके रिया किचन की ओर बढ़

गयी, जय भी उसके पीछे पीछे किथ्चेन मे पहुँच गया.

"ये सब क्या है रिया?" सुने गुस्से मे अपनी बेहन को पूछा.

"यही बात मे तुमसे पूछना चाहती हूँ, तुम अपने आपको समझते क्या

हो जय." रिया ने अपने भाई से पूछा.

"वो मुझ पर डोरे डाल रही थी, तुम तो थी नही कि वो सब कुछ देख

सकती.... अगर राज बीच मे नही आता तो सब ठीक हो जाता." जय ने

कहा.

"राज......." रिया ने एक गहरी साँस ली.

"गोली मारो राज को.... तुम भी तो राज के साथ अंधेरे मे वही कर

रही थी जो में रोमा के साथ करने जा रहा था जय ने अपनी बेहन

से कहा.

"सच कहूँ राज मुझे अच्छा लगता है.... और जो कुछ भी हमने किया

वो मेरी मर्ज़ी से था...किंतु तुम रोमा के साथ ज़बरदस्ती कर रहे

थे, पता नही क्यों राज मे वो बात है जो आज तक मुझे किसी और

लड़के मे दिखाई नही दी." रिया ने जवाब दिया. "पता है जय वो तो

मुझसे कह रहा था कि मुझे ज़्यादा समय तुम्हे देना चाहिए... उसे

तुम्हारी इतनी फिकर है और तुम थे कि उसी वक्त उसकी बेहन के

साथ........"

जय की नज़रें शरम से झुक गयी.. वो अपनी आँखे अपनी बेहन से

मिला नही पा रहा था.... उसकी आँखों मे आँसू आ गये वो अपनी

हरकत पर काफ़ी शर्मिंदा था.

रिया ने देखा कि उसका भाई रो रहा है, आज वह पहली बार अपने

छोटे भाई जय को रोता देख रही थी.

जिस तरह का गुस्सा और व्यवहार जय ने अपने बाप का अपनाया था रिया

उससे नफ़रत सी करने लगी थी फिर भी उसे अपने भाई से प्यार था

जिसके साथ वो पली बड़ी थी.

रिया आगे बढ़ी और उसने अपने भाई को अपनी बाहों मे ले लिया फिर

उसके सिर को अपने कंधों पर रख उसे रोने दिया. वो हमेशा से ही

मजबूत इरादों की लड़की थी, और जब भी उसकी मा जय पर गुस्सा

करती या उसे मारने आती तो वो हमेशा उसे इसी तरह अपने सीने से

लगा बचा लेती थी.

"मुझे माफ़ कर दो...रिया," जय ने धीरे से कहा.

"माफी तुम्हे मुझसे नही रोमा से माँगनी चाहिए." रिया ने उसके सिर

को ठप थपाते हुए कहा.

"में क्या मुँह लेकर जाउन्गा उसके पास माफी माँगने के लिए," जय

उसके कंधे पर सिसकते हुए बोला.

"इसके पहले कि तुम रोमा से माफी माँगो जय, हमे आपस में कुछ

समझना होगा. हमारे इस रिश्ते का अंत करना होगा, जो हम आज तक

करते आए हैं वो अब नही कर सकते. तुम्हे अपने लिए कोई लड़की

ढूँढनी होगी जिसे तुम प्यार कर सको वो... तुम्हे प्यार करे.... "

रिया ने उसकी पीठ को सहलाते हुए कहा.

"पर में तुमसे प्यार करता हूँ! जय ने उसे अपनी बाहों मे भींचते

हुए कहा.

"जय एक बात अछी तरह समझ लो... जिस्मानी रिश्तों को प्यार नही

कहते.... प्यार करने के लिए किसी के साथ सोना ज़रूरी नही है. "

रिया की बात सुनकर उसकी निगाह अपनी पॅंट पर गयी जहाँ उसका लंड तन

कर पॅंट के अंदर खड़ा था.

"चलो में मानती हूँ कि प्यार मे जिस्मानी इच्छाए होती है, लेकिन

तुम्हे मुझसे वादा करना होगा कि जल्दी ही तुम अपने लिए कोई प्यारी सी

लड़की ढूंड लोगे जिसे तुम प्यार कर सको."

ठीक है कोशिश करूँगा." जय ने मुस्कुराते हुए कहा.

"अब जबकि तुम्हारा लंड पूरी तरह से खड़ा है में तुम्हे ऐसे ही

नही जाने दूँगी," कहकर रिया जय के लंड को पॅंट के उपर से

मसल्ने लगी.

आज राज ने उसकी उत्तेजना की परवाह ना करते हुए उसे ऐसे ही छोड़ दिया

था, राज की चाहत मे उसकी चूत अभी भी सुलग रही थी, चूत से

रस अभी भी बह रहा था. जय के लंड के स्पर्श ने उसके जज्बातों को

और भड़का दिया था. वो जानती थी कि अगर आज की रात उसने जय के

साथ कुछ किया तो शायद भविश्य मे वो जय को ना रोक पाए लेकिन वो

खुद चुदाई की आग मे सुलग रही थी.

"जय आज की रात हामरी साथ मे ये आखरी रात होगी." रिया ने उसे

बताया.

"हाँ में समझ रहा हूँ," जे ने धीरे से कहा.

ना जाने क्यों रिया को अपने भाई पर आज कुछ ज़्यादा ही प्यार उमड़

आया. उसने जय को धक्का दे किचन के काउंटर पर लिटा दिया और

उसकी टाँगो के बीच आ गयी. उसने उसकी पॅंट की ज़िपखोली और उसकी

शॉर्ट्स मे से उसके लंड को आज़ाद कर दिया. उत्तेजना मे बहते लंड से

वीर्य की बूँदों ने उसके मुँह मे पानी भर दिया. उसने अपने लंबे

बालों को अपने सिर के पीछे किया और झुक कर उन रस की बूँदों को

चाटने लगी. रिया को उसके लंड से बहते पानी का स्वाद अच्छा लग रहा

था, आज क्या दिन था, पहले तो रोमा की चूत का पनाई फिर अपने भाई

का वीर्य. दो अलग रिश्ते और दो अलग स्वाद.

"आज तो तुम्हारा लंड ज़्यादा ही लंबा और मोटा लग रहा है." रिया ने

उसके लंड को अपने मुँह मे लेते हुए कहा.

"रिया में तुमसे बहोत प्यार करता हूँ..." जे अपने जज्बातों का

इज़हार करते हुए नबोला, "तुमने मेरे लिए हमेशा इतना कुछ किया और

एक में हूँ कि मेने आज तक तुम्हे थॅंक यू भी नही कहा. अगर तुम

ना होती तो पता नही मेरा क्या होता."

रिया जानती थी कि उसका भाई दिल का बुरा इंसान नही है, वो हमेशा

से अपने ज़ज्बात छुपाते आया है, आज उसके शब्दों ने उसकी आँखों

मे आँसू ला दिए.

रिया अपने भाई के प्यार को समझ रही थी, वो मन ही मन सोचने

लगी कि आज तक ना जाने उसने कितने लोगों से जिस्मानी संबंध बनाए

थे लेकिन एक भी ही रिश्ता प्यार का रिश्ता नही था. क्या वो राज से

प्यार करती है या फिर सिर्फ़ जिस्मानी आकर्षण उसे उसकी ओर खींचे

ले जाता था. वो अपने भाई के प्यार और राज की तुलना करने लगी, पर

उसकी समझ मे कुछ नही आ रहा था.

"जय मुझे भी माफ़ कर दो... मुझे इस तरह राज के साथ नही जाना

चाहये था." रिया उसके लंड को जोरों से चूस्ति हुई बोली.

"पर उसे भी तो नही जाना चाहिए था, आख़िर मेरा दोस्त था वो.."

जय ने उसके सिर को अपने लंड पर दबाते हुए कहा, "लेकिन जो हुआ सो

हो गया....."

"जय मुझसे वादा करो कि आज के बाद हमारे बीच ये सब नही होगा."

रिया ने कहा.

"हां में वादा करता हूँ...." जय ने अपने लंड को उसके मुँह मे और

घुसाते हुए कहा.

इसके पहले कि वो कुछ और कहती जय ने उसके सिर को पकड़ा और अपने

लंड को उसके मुँह के अंदर बाहर करने लगा.

उस वो शाम याद आ रही थी जब पहली बार.........

गर्मी के दिन थे और शाम के वक्त वो और रिया घर के आँगन मे बने

स्वइँमिंघ पूल मे साथ साथ तेर रहे थे. जय 18 का हुआ ही था और

राज एक साल पहले अपना ग्रॅजुयेशन कर चुका था. रिया ने भी आगे की

पढ़ाई के लिए दूसरे कॉलेज मे दाखिला ले लिया था और थोड़े ही

दिनो की बात थी जिसके बाद वो चली जाएगी.

क्रमशः..................
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04-10-2019, 04:20 PM,
#14
RE: bahan sex kahani दो भाई दो बहन
12

गतान्क से आगे.......

जय को याद आ रहा था कि उस दिन वो एक पेइसे बिकिनी मे कितनी सुंदर

लग रही थी. आज जो उसने बिकनी पहनी थी उससे उसके बदन का हर अंग

दिखाई पड़ रहा था, जय था कि उसकी नज़रें अपनी बेहन की

चुचियों और कटी प्रदेश से हटे नही हट रही थी. आज रिया ने

अपने बदन पर तेल की मालिश की थी जिससे उसका बदन काफ़ी चिकना

दीख रहा था उसका बदन साथ ही धूप की रोशनी मे चमक भी

रहा था. दोनो पूल मे बॉल से खेल रहे थे. जब भी वो रिया से

बॉल छीनने जाता तो उसका बदन रिया के बदन से टकरा जाता कई बार

तो ऐसा होता कि वो उसे पकड़ने की कोशिश करता तो उसका बदन तेल

लगे होने की वजह से उसके हाथों से फिसल जाता और उसके हाथ कभी

उसकी चुचियों पर या फिर उसकी कमर पर आ कर अटक जाते.

जब भी उसका हाथ रिया की किसी अंग से टकराता तो उसके बदन मे एक

झुरझारी सी दौड़ जाती.

रिया ने देखा कि जय उसे अजीब सी नज़रों से देख रहा था, "क्या

तुमने कभी किसी लड़की को आज तक छुआ है?" रिया ने जय से पूछा.

"इतनी देर से तो तुम्हे छू रहा हू." जे ने उसे याद दिलाते हुए

कहा.

"किसी लड़की की चुचियों या कमर को हाथ लगाने को छूना नही

कहते, मेरा मतलब है कि कभी किसी लकड़ी के बदन को प्यार से छुआ

या सहलाया है?" रिया ने पूछा.

"नही पहले कभी नही." जय ने जवाब दिया.

"क्या तुम मेरे नंगे बदन का अहसास करना चाहोगे?" रिया ने कहा.

"लेकिन तुम मेरी बेहन है." जे ने कहा.

"लेकिन खेलते वक़्त जब तुम मेरी चुचियों को मसल देते होतब तो नही

सोचा तुमने ऐसे..." रिया ने कहा. "तुम्हे डर लग रहा है ना?"

सच मे जय को डर लग रहा था, लेकिन अब भी उसकी निगाह बेहन की

चुचियों पर गढ़ी हुई थी, उसका लंड जो शॉर्ट्स के अंदर तन कर

खड़ा था.... उसने डरते डरते अपने हाथ रिया की चुचियों की ओर

बढ़ाए.."

"अरे आगे बढ़ो इतना डर क्यों रहे हो?" रिया ने उसे उकसाते हुए कहा.

आख़िर हिक्किचाते हुए जय ने रिया की बिकनी को नीचे से पकड़ा और

उसके सिर के उपर उठा उसे उतार दिया. उसकी नज़रें रिया की उभरी

हुई चुचियों पर जा टिकी. गुलाबी गुलाबी उर्रोज और उसपर भूरे रंग

का निपल. पानी मे खड़ी रिया बहोत ही सुन्‍दर दिखाई दे रही थी.

उसका आधा शरीर पूल के अंदर था और उसकी चुचियों जो ठीक पानी

के सतेह पर थी ऐसा लग रहा था की जैसे उनपर तेर रही हो.

थोड़ी देर चुचियों को निहारने के बाद उसने अपनी हथेली उसकी

चुचियों के नीचे से रख उन्हे अपने हाथों मे ले लिया और अपनी

उंगली और अनूठे से उसके निपल को सहलाने लगा. फिर धीरे से अपनी

हथेली का दबाव बढ़ाते हुए वो उन्हे मसल्ने लगा. चुचि मसल्ने के

साथ वो निपल को भी भींच देता.

रिया उसके हाथो के स्पर्श का मज़ा लेते हुए सिसक रही थी. रिया को

सिसकते देख जय की हिम्मत और बढ़ गयी, वो और जोरोंसे उसकी

चुचियों को मसल्ने लगा. फिर अपने चेहरे को झुकते हुए पहले तो

उसने उसकी चुचियों को धीमे से चूमा फिर अपन जीब उसकी चुचियों

के निपल के चारों और घूमाने लगा. जीब घूमाते घूमाते उसने

अपने होंठ और खोले और निपल को मुँह मे ले चूसने लगा.

फिर अपने चेहरे को उपर उठाते हुए उसने अपने होंठ रिया के होठों

पर रख दिए और अपनी जीब से उसके होठों को खोलते हुए उसने अपनी

जीब उसके मुँह मे डाल दी. रिया भी काम विभोर हो अपने मुँह को खोल

उसकी जीब से अपनी जीब मिला उसे चूमने लगी

जय को चूमते चूमते रिया ने अपना हाथ जय की कमर पर रखा और

उसे सहलाते हुए अपने हाहत को और नीचे की और बढ़ने लगी. फिर

रिया ने अपना हाथ उसकी अंडरवेर मे फँसा अपना हाथ अंदर डाला और

उसके खड़े लंड को अपनी मुट्ठी मे पकड़ लिया. होठों की गर्मी के

साथ साथ रिया के हाथो की गर्मी ने जय को तो जैसे पागल कर दिया.

आज पहली बार किसी लड़की ने उसे इस तरह छुआ था.

"जय तुम्हे नही पता कि आज तक तुम किस चीज़ से वंचित थे..."

रिया ने उसके लंड को जोरों से मसल्ते हुए कहा.

रिया जानती थी कि उसके भाई को इसके पहले इन सब बातों का अनुभव

नही था, इसलिए वो खिलखिलते हुए उसके लंड को और मसल्ने लगी.

रिया जय को धकेलते हुए पूल के किनारे तक ले आई और जब जय की

कमर पानी के सतेह से उपर हो गयी तो उसने उसकी अंडरवेर को नीचे

खिसका दिया और अब उसके लंड को और अछी तरह अपने हाथो मे ले

मसल्ने लगी. उत्तेजना मे जय ने पूल के किनारे को पकड़ लिया और

जोरों से हुंकार भरने लगा.

रिया ने तिर्छि नज़रों से अपने भाई के चेहरे की तरफ देख, जो

उत्तेजना मे सिसक रहा था, एक प्यारी सी मुस्कान उसके चेहरे पर आ

गयी. रिया ने भी इसके पहले एक दो बार ही अपने बॉयफ्रेंड के लंड को

चूसा था, इसलिए इस क्रिया मे वो भी नयी थी.

जय को खुश होते देख वो और जोरों से उसके लंड को चूसने लगी.

अपने चेहरे को नीचे कर वो उसके लंड को अपने गले तक लेती और उपर

होते हुए उसके लंड को अपनी जीब से जोरोसे भींचती. जब उसने जय के

बदन को अकड़ता महसूस किया तो वो समझ गयी कि उसका लंड पानी

छोड़ने वाला है. जय के शरीर की सारी नसें तनने लगी और उसके

लंड एक ज़ोर की पिचकारी के साथ रिया के मुँह मे पानी छोड़ दिया. रिया

उसके लंड को चूस्ति गयी और जय पानी पर पानी उसके मुँह मे छोड़ता

गया.

"रिया में तुमसे बहोत प्यार करता हूँ," जय ने प्यार से अपनी बेहन

से कहा.

रिया तिर्छि नज़रों से अपने भाई को देखते हुए उसके लंड को जब तक

चूस्ति रही जबतक कि उसके वीर्य की आखरी बूँद भी नही बची.

रिया की चूत मे आग लगी हुई थी. वो अपने भाई के लंड को अपनी

चूत मे महसूस करना चाहती थी.

तभी रिया की आवाज़ ने जय को ख़यालों से वापस लौटा दिया.

"चलो जय कमरे मे चलते है.' रिया ने उसके लंड को मुँह से

निकलते हुए कहा.

जय रिया के पीछे पीछे उसके कमरे मे आ गया. रिया ने कमरे का

दरवाज़ा बंद किया और दोनो अंधेरे मे कपड़े उतारने लगे. फिर रिया

ने जय का हाथ पकड़ा और उसे बिस्तर पर ले आई. दोनो चादर के

नीचे एक दूसरे के साथ घुस गये.

"जय मुझे तुम्हारी और राज की दोस्ती से कभी कभी जलन होने लगती

है. में तुम दोनो को इतने सालों से देख रही हूँ. कितनी गहरी

दोस्ती है तुम दोनो के बीच. दोनो एक दूसरे की मदद करते हो, कोई

दुखी होता है तो तुम दोनो उसे हँसते हो हर काम मे सहयोग देते

हो." रिया ने अपना हाथ अपने भाई की छाती पर फिराते हुए कहा.

"तुम्हारी भी तो कई सहेलियाँ है" जय ने कहा.

"हाँ है पर ऐसी कोई नही जिसे में साची सहेली कह सकूँ, जिससे

में अपनी खुशी अपना दर्द बाँट सकूँ. तुम्हारे और राज के बीच

कुछ वैसा ही अप्नत्व है. और शायद आज की रात में ही फ़साद की

जड़ थी, मेने तुम्हारी प्राब्लम सॉल्व करना की बजाय उसे और बढ़ा

दिया." रिया ने जवाब दिया.

जय कुछ देर सोचता रहा फिर धीरे से बोला, "पर शायद आज के

बाद राज मुझसे नफ़रत करने लगेगा, हम शायद हमारे बीच पहले

जैसे दोस्ती ना हो."

"नही जय एक छोटी सी ग़लती से दोस्ती नही टूटती," रिया ने

कहा, "सुबह हम सब मिलकर सब ठीक कर लेंगे. लेकिन सबसे पहले

इसकी समस्या तो ठीक करें" रिया उसके खड़े लंड को हाथों मे लेते

हुए बोली.

थोड़ी देर उसके लंड को मसल्ने के बाद रिया बोली, "तुम्हारी कोई

ख़ास पसंद है इसे ठीक करने की?"

"शायद में जो कहूँ वो तुम्हे पसंद ना आए." जय ने जवाब दिया.

"पहले तो तुम इसे मेरी चूत मे घुसा कर मेरी चूत की आग को

ठंडा करो, बाद मे तुम्हे जो पसंद हो वो कर लेना." रिया ने उसके

लंड को जोरों से भींचते हुए कहा.

"सच मे?" जय ने पूछा.
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04-10-2019, 04:20 PM,
#15
RE: bahan sex kahani दो भाई दो बहन
रिया देख रह थी कि अजीब सी खुशी उसके छोटे भाई के चेहरे पर

छाई हुई थी.

"आज पता नही क्यो में बहोत खुश हूँ, तुम मुझसे आज कुछ भी

बाँट सकते हो, अपनी हर ख्वाइश हर ख़याल" रिया ने कहा,

"सच मे रिया आज में अपनी वो ख्वाइश पूरी करना चाहता हूँ जो पूरे

हफ्ते से में तुम्हे लेकर देख रहा हूँ."

"में कुछ समझी नही." रिया ने कहा.

"अभी समझ जाओगी." कहकर जय ने दो तकिया बिस्तर पर से उठाए

और रिया को पेट के बल लिटाते हुए वो तकिये उसके पेट के नीचे लगा

दिया. ऐसा करने से रिया की चूतड़ हवा मे उठ गये थे और उसकी

चूत और गंद का छेद सॉफ दिखाई दे रहा था.

जय उसके उपर लेट गया और धीरे से उसके कान मे कहा, "अब तुम्हे

मज़ा आएगा रिया जब तुम ये नही जानती होगी कि मेरा लंड तुम्हारी

गंद मे घुसेगा की तुम्हारी चूत मे... है ना अजीब खेल"

जय की बात सुनकर रिया के बदन मे भी एक अजीब मस्ती भर गयी. वो

सोचने लगी सही मे क्या अजीब खेल है कि उसे खुद नही मालूम होगा

की लंड कौन से छेद मे आएगा.

जय ने पहले उसकी चूत और गंद के छेद को थोड़ा सहलाया फिर अपने

लंड को उसकी चूत के द्वार पर रख कर धीर धीरे अंदर घुसाने

लगा.

"उः उईईईईई" वो सिसक पड़ी.

जय ने एक धक्का मार अपने लंड को बाहर निकाल लिया, रिया सोच मे पड़

गयी कि पता नही अब ये कौन से छेद मे घुसेगा पर जय ने वापस

अपने लंड को उसकी चूत मे घुसा दिया. उसकी चूत उत्तेजना मे बह

पड़ी, दो तीन धक्कों के बाद उसने फिर अपने लंड को बाहर खींच

लिया.

जय अब उसकी चूत से बहते रस से अपने लंड को गीला कर उसकी गंद के

छेद पर अपने लंड को रगड़ता हुआ उसके छेद को गीला कर रहा था.

रिया को लगा कि अब जय अपना लंड उसकी गंद मे डालेगा लेकिन रिया की

सोच के विपरीत उसने अपन लंड एक बार फिर उसकी चूत मे पेल दिया.

"रिया मुझे यहाँ से तो दिखाई नही देगा लेकिन तुम अपनी चुचियों

से खेलो, अपने निपल को भींचो....मेने देखना चाहता हूँ तुम्हे

अपने आपसे खेलते हुए." जय ने उसकी चूत मे धक्के मारते हुए कहा.

रिया ने खिलखिलाते हुए अपने दोनो हाथ अपनी छाती के नीचे किए और

अपने दोनो निपल को उंगलियों मे ले भींचने लगी, अब वो अपनी

चुचियों को मुठ्ठी मे भर मसल रही थी.

जय अब ज़ोर के धक्के मार रहा था. बिना रुके वो ज़ोर से और अंदर ताल

डालते हुए उसे चोद रहा था. एक नई उत्तेजना रिया के शरीर मे भरती

जा रही थी, उसका बदन अकड़ रहा था.

"ओह जय चोदो मुझे ओह हाआँ ज़ोर से और जोए से.. ओह कितना

अच्छा लग रहा है... चोडओवू और चूओड़ो

पर जय था कि आज वो रिया को पागल कर देना चाहता था, एक बार फिर

उसने अपना लंड उसकी चूत से निकाल लिया. रिया की चूत से छूटे रस

और खुद के वीर्य से भीगे अपने लंड को वो एक बार फिर रिया की गंद

पर घिसने लगा. गंद मे लंड घुसाने से वो डर रहा था...... हर

बार रिया को लगता कि वो अभी घुसाएगा... एक अजीब मस्ती उसकी चूत

और गंद मे फैली हुई थी..... उसे लगा की जय अब लंड उसकी गंद मे

घुसाएगा तो जय ने एक बार फिर अपना लंड उसकी चूत मे घुसा धक्के

मारने लगा.

लंड चूत मे घुसते हुए फिर एक नई मस्ती रिया के बदन मे दौड़

गयी. जय ने अपने हाथ रिया के बदन के नीचे किए और उसके दोनो

हाथ को पीठ पर कर पकड़ लिया. उसने रिया की हाथो को ठीक किसी

घोड़े की लगाम की तरह पकड़ रखा था. जय अब ज़ोर ज़ोर से उसकी

चूत मे धक्के मारने लगा जैसे के किसी घोड़ी की सवारी कर रहा हो.

रिया ने कई बार अपने हाथ छुड़ाने की कोशिश की पर हर बार जय ने

उसके हाथों को कस कर पकड़ लिया. रिया को पता नही क्यों ऐसा लग

रहा था कि उस पर चढ़ा इंसान उसका भाई नही कोई अजनबी है जो

बरसों से उसके सपने मे आ उसे इसी तरह चोद्ता था.

जय ने अपने लंड को एक बार फिर बाहर निकाला और उस बार उसकी गंद के

छेद पर रख ज़ोर लगाने लगा. रिया को लगा कि उसकी गंद फॅट

जाएगी....

'उउईईई माआआ" एक दर्द की सिसकारी उसके मुँह से निकली, उसे लगा

की उसकी गंद फ़ैलते हुए जय के लंड को जगह दे रही है. जय प्यार

से और धीरे धीरे अपने लंड को अपनी बेहन की गंद मे घुसा रहा

था. थोड़ी ही देर मे रिया को मज़ा आने लगा, उसे लगा कि लंड उसकी

गंद मे नही बल्कि उसकी चूत मे है.

आज उसे पता चला की गंद मराने मे भी उतना ही मज़ा आता है. जय

ने उसके हाथों को छोड़ दिया और उसके कुल्हों को पकड़ अब ज़ोर ज़ोर से

अपने लंड को उसकी गंद मे पेलने लगा.

'ओह जे हाआआं फाड़ दो मेरी गाअंड कूऊव ऑश क्या मज़ाअ आ

रहा हाईईइ ऑश हाँ और ज़ोर से ऑश फाड़ दो मेरी गंद आाज."

जय के शरीर मे उबाल आ रहा था और वो ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने

लगा. आख़िर उसने ज़ोर का धक्का आर अपना वीर्य अपनी बेहन की गंद मे

छोड़ दिया, जय तब तक धक्के मारता गया जब तक कि उसके अंडकोषों ने

वीर्य की एक एक बूँद ना उगल दी.

दोनो थक कर अलग हो गये....

"क्या तुम्हे कभी पिताजी की याद आती है?" जय ने रिया से पूछा.

"बहोत कम....." रिया ने साफ साफ जवाब दिया, "जय वो इंसान किसी

काम का नही है... उसे याद कर अपना समय बर्बाद मत करो."

रिया को जय पर गुस्सा आ रहा था वो सोने ही जा रही थी जय ने ये

सवाल पूछ लिया था. अब उसके जेहन मे फिर उस नमकूल इंसान की

छवि रहेगी और वो चाह कर भी सो नही सकेगी. एक अंजाने भय ने

उसके ख़यालों ने घेर लिया.... उसे याद आने लगा जब वो फिर से

अपने बाप से मिली थी..........

रिया को फिर एक बार जय पर गुस्सा आ रहा था, जिन बातों को वो याद

नही करना चाहती थी, जय ने फिर वही विषय छेड़ दिया था... उसके

बाप का. वो फिर उस दिन को याद करने लगी जिस दिन घर से जाने

के बाद पहली बार उसकी अपने बाप से मुलाकात हुई थी.

रिया उन दिनो हाइवे पर बने एक छोटे रेस्टोरेंट कम शॉपिंग स्टोर

मे काम कर रही थी.

"सोचा था कभी मुझसे यहाँ मुलाकात होगी." उसके पिता ने उसे वहाँ

देख कर पूछा .

उसके पिता ने एक फेडेड जीन्स और एक प्लैइन शर्ट पहन रखी थी. वो

उसके भरे और गदराए बदन को घूर रहा था. दुकान की गुलाबी ड्रेस

मे वो बहोत ही सुन्दर दिखाई दे रही थी. उसकी कल्पनाए उसके

ख़याल ज़ोर पकड़ने लगे जो वो रिया के बचपन से जवानी की दौर मे

देखता रहा था.

"पिताजी आप यहाँ," उसकी बढ़ी हुई दाढ़ी और मूछों के पीछे से

अपने पिता को पहचानते हुए उसने कहा.

"काफ़ी बड़ी हो गयी हो?" उसके पिता ने उसकी उभरी हुई चुचियों की ओर

देखते हुए कहा.

"आप यहाँ क्या कर रहे है?" उसने पूछा.

"आज कल में एक ट्रैलोर नुमा वॅन चला रहा हूँ, इससे मेरे रहने का

खर्चा भी बच जाता है. में जानता हूँ कि ये कोई बड़ा काम नही

है फिर भिग़ुज़ारा हो जाता है. मैने तुम्हारी लिए भी कुछ बचा

रखे है."

"मेरे लिए?" उसने चौंकते हुए पूछा.

"हां, तुम हमेशा आगे पढ़ने के लिए कहा करती थी ना." उसने

जवाब दिया, "में जानता हूँ कि में कभी अच्छा बाप नही बन पाया,

पर में तुम्हारे लिए हमेशा सोचा करता था, इसलिए मेने पैसे

बचाने शुरू कर दिए."

"क्या सच मे" रिया ने अस्चर्य से कहा, उसे लगा कि जो आज तक वो इस

इंसान के बारे मे सोचती रही वो कितना ग़लत था.

"तुम्हारी शिफ्ट कब ख़तम होगी?

"करीएब 25 मिनिट के बाद." रिया ने अपनी घड़ी देखते हुए कहा.

"ठीक है फिर तुम्हारी शिफ्ट के बाद हम कुछ बात कर सकते हैं."

उसने कहा.

25 मिनिट तक वो रिया को ग्राहको से बात करते और उनके ऑर्डर का

सामान देते देखते रहा. उसे विश्वास नही हो रहा था कि उसकी बेटी

इतनी बड़ी और सुंदर हो गयी थी. उसकी नज़रें उसका ही पीछा करती,

वो उसके बदन उसकी मसल टाँगे, भरी हुई चुचियों को ही घूरे जा

रहे था.

क्रमशः..................
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04-10-2019, 04:20 PM,
#16
RE: bahan sex kahani दो भाई दो बहन
13

गतान्क से आगे.......

रेस्टोरेंट मे आने वाले ग्राहक भी ये जानते थे कि वो रिया को कभी

पा नही सकते पर एक बड़ी टिप का ललाच दे वो उसे ज़्यादा से ज़्यादा

देर अपनी टेबल पर रोक लेते. और इस बात का फ़ायदा उठाते कभी उसकी

हाथों को तो कभी उसकी कमर को छू लेते. कुछ तो उसकी स्कर्ट के

नीचे हाथ डाल उसके चूतदों तक को सहला देते थे. एक ग्राहक ने

तो हद ही कर दी थी उसने उसे खींच कर गोद मे बिठा लिया और उसके

गालों को चूम लिया था.

ये सब देख कर आज़य रिया का पिता गरमा उठा. टेबल के नीचे पॅंट

के अंदर उसका लंड उसे तकलीफ़ देने लगा, और रिया को पाने की लालसा

उसके मन मे और जाग उठी.

रिया की ड्यूटी ख़तम हुई तो वो अपने पिता के टेबल की ओर बढ़ गयी,

उसने उसे बैठने के लिए कहा तो वो लकड़ी की बनी कुर्सी पर उसके

सामने बैठ गयी.

"में तुम्हे काम करते देख रहा था, बहोत ही आछे तरीके से काम

कर रही थी तुम." उसने कहा, "और लगता है यहाँ आने वाले सभी

कोई तुम्हे पसंद भी करते है."

"रिया अपनी आँखे घूमा सोचने लगी, "थॅंक्स, लेकिन में सुंदर तो

हूँ लेकिन अगर मेरी जगह कोई भी लड़की ऐसी यूनिफॉर्म मे काम करेगी

तो वो लोग उसे पसंद करेंगे."

"हो सकता है तुम सही कह रही हो. फिर भी मुझे तुम पर नाज़ है."

आज़य ने अपनी बेटी को घूरते हुए कहा.

उसकी बात सुनकर रिया मुस्कुरा दी पर वो शंकित नज़रों से अपने बाप

को देखने लगी. आज जिंदगी मे पहली बार उसने उसके लिए कोई अछी

बात कही थी, उसे डर लगने लगा कि यहाँ आने का उसका कोई और

मकसद तो नही है.

"सॉरी हम बात के विषय से हट गये," उसने कहा, "में तुम लोगों

को छोड़ कर चला गया ये सब के लिए अच्छा ही हुआ, हालत ही कुछ

ऐसे थे कि में तुम लोगों को गुड बाइ नही बोल पाया, तुम्हारी मा

ने माहॉल ही ऐसा बना दिया था घर का."

रिया को बड़ा अजीब लग रहा था कि वो इस इंसान से क्या कहे, जो एक

दिन अचानक ही उन्हे छोड़ कर गायब हो गया था और आज अचानक किसी

भूत की तरह उसके सामने आ खड़ा हो गया था.

रिया के मन मे इस इंसान के लिए कोई लगाव या अप्नत्व नही था और

जो कुछ इज़्ज़त उसके मन मे अपने बाप के लिए थी वो बरसो पहले

ख़तम हो चुकी थी. अगर उसके मन कुछ था तो वो था उसका गुस्सा और

डर जिसकी बदौलत वो घर के हर प्राणी पर हुकुम चलता था.

थोड़ी देर चुप रहने के बाद उसने अपने हाथ मे अपनी बेटी रिया का

चेहरा लिया और उसके होठों को हल्के से चूम लिया, "अपने उन्नीसवे

जनमदिन की बधाई हो. में जनता हूँ कि कुछ महीने लेट हूँ फिर

भी मुझे याद है... है ना."

उसे विश्वास नही हो रहा था कि ये बाप जिसने उसे कभी बेटी नही

समझा उसका जनमदिन भी याद रख सकता है. "थॅंक यू डॅडी."

"क्या तुमने कॉलेज जाना शुरू किया?" उसने पूछा.

"में यहाँ फुल टाइम जॉब कर रही हूँ और एक एक पैसा अपनी पढ़ाई

के लिए जमा कर रही हूँ." उसने जवाब दिया. "अगले साल में

दाखिला ले लूँगी, तब तक अच्छे पैसे जमा हो जाएँगे, यहा टिप

अच्छी मिलती है."

आज़य अपने सामने रखी कोफ़ी के सीप लेने लगा. उसने अपनी नज़रें

घूम कर रेस्टोरेंट मे बैठे ग्राहकों को देखने लगा, सभी उसकी

सुंदर बेटी को देख रहे थे. उसने अपनी नज़रें फिर रिया के सुंदर

चेहरे पर कर दी, और अपना हाथ टेबल के नीचे कर उसकी नंगी

जांघों पर रख धीरे धीरे सहलाने लगा.

एक अजीब सी सनसनी दौड़ गयी रिया के शरीर मे लेकिन उसने वो हाथ

हटाया नही, "इस बढ़ी हुई दाढ़ी मुछ मे आप कितने अलग अलग दीखते

है." जब आपने मुझे चूमा तो आपकी मुछ मुझे गढ़ रही थी."

"में इन्हे बढ़ाना नही चाहता था लेकिन अगर तुम सड़क पर हो तो

हालात मजबूर कर देते है," उसने जवाब दिया.

वो उसकी आँखों मे झाँकते हुए अपने हाथ को उपर की ओर बढ़ाता रहा

और जब उसके हाथों ने उसकी पॅंटी की एलास्टिक के अंदर हाथ डाला तो

वो उछल पड़ी, एक शीत लहर दौड़ गयी उसके शरीर मे. वो उसके

पॅंटी की एलास्टिक से खेलता रहा और उसकी मुलायम चॅम्डी को सहलाता

रहा.

दोनो एक दूसरे की आँखों मे देख रहे थे कि आज़य का हाथ उसकी

जांघों के बीच पहौन्च गया.

उसके हाथों ने जैसे उस पर कोई जादू कर दिया हो ना चाहते हुए

उसकी टाँगे अपने आप खुल गयी और उसकी उंगलियाँ उसकी चूत के किनारे

को छूने लगी.

उसे पता था कि जो रहा है वो ग़लत है, दिमाग़ के किसी कोने से

आवाज़ आ रही थी कि वो इसे रोक दे पर दिल था कि ना जाने किस भावना

मे बहा हुआ था. पिता की जुदाई कर दर्द अब भी उसके सीने मे था,

हर लड़की को अपने बाप का साथ चाहिए, और रिया को अपने बाप की

काफ़ी ज़रूरत थी.

"क्या आज भी तुम पापा की वही पुरानी रिया हो? उसने प्यार भरी आवाज़

मे पूछा.

"रिया का चेहरा खुशी से उछल पड़ा और होठों पर एक मीठी मुस्कान

आ गयी, आज वो अपने पिता के साथ थी एक इंसान के साथ, एक जानवर

के साथ नही जो वो कभी बन गया था. "हाँ डॅडी में आज भी

आपकी वही प्यारी रिया हूँ, आप कहाँ चले गये थे मुझे छोड़ कर?

"में बहोत प्यार करता हू तुमसे...." कहकर उसने रिया को अपनी ओर

खींचा और उसके होठों को एक बार फिर चूम लिया.

इस प्यार ने रिया के दिल मे एक अजीब सी खुशी भर दी थी. उसने रिया

को अपने से अलग किया, "चलो में तुम्हे अपना वॅन दिखाता हूँ,

यहीं पास मे है."

रिया के दिमाग़ ने एक बार फिर उसे आगाह किया कि अब भी समय है वो

पीछे हट जाए, पर दिल था की मानने को तैयार नही था. वो अपने

पिता के साथ रहना चाहती थी, उसके प्यार को पाना चाहती थी जिसके

लिए वो बरसों से तड़प रही थी.

आज़य ने टेबल पर बिल के पैसे छोड़े और रिया का हाथ पकड़

रेस्टोरेंट के बाहर आ गया. रिया उसके हाथो मे हाथ डाले चल रही

थी. वहाँ पर खड़ी कई ट्रक और कारों को पार करते हुए वे उसकी

वॅन के पास आ गये

आज़य ने पॅसेंजर साइड का दरवाज़ा खोला और रिया की वॅन मे चढ़ने मे

मदद करने लगा. रिया की छोटी ड्रेस उपर चढ़ते समय जब उपर

हुई तो उसकी नज़र रिया की भरे हुए चूतदों पर पड़ी और साथ ही

उसकी निगाह उसकी पॅंटी पर गयी जहाँ एक धब्बा सा बना हुआ था.

"ओह्ह्ह्ह कितना अछी तरह से डेकरेट किया हुआ अंदर से," रिया वॅन के

अंदर की सुंदरता देखते हुए बोली.

"हाँ ये मेरा घर ना होते हुए भी घर है, एक चलता फिरता घर."

उसने कहा.

थोड़ी देर वॅन का निरक्षण करने के बाद वो एक छोटे से पलंग या

दीवान की ओर बढ़ गयी. दीवारों पर कई तस्वीरे लगी हुई थी.

"डॅडी! ये तो सब मेरी तस्वीरे है," दीवारों पर टेप सी चिपकी

तस्वीरों को पहचानते हुए बोली.

"मेने तुमसे कहा था ना कि तुम मेरी प्यारी गुड़िया हो." उसने कहा.

आज़य की बातों ने जैसे उसके दिल को छू लिया था, जिस इंसान को वो

नफ़रत करती थी आज उसी के लिए उसके दिल मे प्यार उमड़ पड़ा, "सही

मे में हूँ?"

उसने एक तस्वीर की ओर इशारा किया जिसमे वो और रिया घुटनो तक पानी

मे समुद्र मे खड़े थे, लहरें उनके पावं को छू कर लौट जाती.

उसने एक बिकिनी पहन रखी थी और सूरज की चमकती धूप मे उसका

बदन चमक रहा था.

"हाँ ये उस समय की तस्वीर है जब आप हमे गोआ ले गये थे," उसने

याद करते हुए कहा, "मुझे बहोत मज़ा आया था वहाँ लेकिन पानी

कितना ठंडा था है.. ना."

"तुम उन छुट्टियों को लेकर कितनी खुश थी ना." आज़य ने उसे याद

दिलाते हुए कहा.

"आप बहोत बदल गये है?" रिया उसके मधुर जाल मे आसानी से

फस्ते हुए बोली.
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04-10-2019, 04:20 PM,
#17
RE: bahan sex kahani दो भाई दो बहन
वो अपनी गुड़िया को देखने लगा जो दीवान पर करीब करीब लेटी थी,

पीछे की ओर सिर किए उसका मासल बदन उस गुलाबी ड्रेस मे लिपटा हुआ

था और उसकी सुडौल और लंबी टाँगे कितनी अछी लग रही थी साथ ही

उसकी भारी और कड़ी चुचियाँ.

"और तुम मेरी गुड़िया एक सुन्‍दर परी बन गयी हो." उसने कहा.

उसने झुकते हुए एक बार फिर उसके होठों को अपने होठों मे लिया और

इस बार उसके होठों कोखोलते हुए अपनी जीब उसके मुँह मे डाल दी. रिया

ने भी अपनी जीब उसकी जीब से मिला दी लेकिन इस वॅन मे अकेले मे उसे

डर लग रहा था.

उसे लगा कि एक शीत लहर ने उसके निपल को तना दिया है, लेकिन ये

उसका भ्रम था आज़य की उंगलिया उसकी गुलाबी ड्रेस के उपर से उसके

निपल को दबा रही थी. मन ही मन जितना वो उससे नफ़रत करती

शरीर की काम अग्नि उसकी हरकतों का उतना ही साथ दे रही थी. उसकी

चूत मे अजीब सी हलचल मची हुई थी जो गीली होती जा रही थी.

"ये सही नही है.. छोड़ दीजिए मुझे,"

"तुम अपने पापा से प्यार करती हो ना गुड़िया..." उसने उसे जोरों से

चूमते और उसके होठों को चूस्ते हुए कहा.

उसने उसके दाएँ हाथ को पकड़ा और उसकी मुलायम और नाज़ुक उंगलियों

को अपने तने लंड पर दबा दी. रिया ने ना चाहते हुए भी उसके लंड

को पॅंट के उपर से पकड़ लिया, वो तन रहा था. वो अपना हाथ खींच

लेना चाहती थी लेकिन उसके लंड की गर्मी ने उसके हाथो को जैसे

बाँध दिया हो. उसकी उंगलिया मन्त्र मुग्ध हो उसके लंड की लंबाई और

मोटाई मापने लगी.

रिया के मुँह से खेलने के बाद उसका जीब उसके कान की ओर बढ़ी, अपनी

सांसो की गरम भाप उसने उसके कान पर छोड़ी और फिर उसके कान की लौ

को चूमने लगी. एक अजीब खुशी उसके बदन मे दौड़ गयी.

"प्लीज़ पापा रुक जाइए ये सही नही है," रिया ने कहा चाहा लेकिन

उसकी आवाज़ गले मे घूट कर रह गयी और उसकी उंगलिया अब भी अपने

पापा के लंड से खेल रही थी.

"आराम से गुड़िया.." वो धीरे से उसके कान मे पुशफुसाया, "में भी

देखूं कि मेरी गुड़िया मेरी ग़ैरहज़री मे मुझे कितना मिस करती रही

थी."

रिया की चूत मे खुजली मचनी शुरू हो गयी थी, "मुझे डर लग

रहा है पापा."

"कुछ नही होगा, इसमे डरने की क्या बात है, तुम्हे अपने पापा पर

भरोसा है ना.." उसने कहा.

उसने अपने पॅंट की ज़िप खोल कर अपनी पॅंट ढीली कर दी. रिया की

उंगलियाँ उसकी पॅंट के अंदर पहुँची और उसके नंगे खड़े लंड पर

जाकड़ गयी. जैसे ही उसकी हथेली ने तने हुए लंड को अपनी मुठ्ठी मे

लिया उसके दिल की धड़कने तेज हो गयी. वो उसके लंड को मसल्ने लगी

और वहीं उसकी चूत गीली होने लगी.

वो अपने घुटनो के बाल हो गया और रिया के चाहेरे को पकड़ अपना लंड

उसके मुँह के आगे कर दिया. रिया को जैसे ही अहसास हुआ कि वो क्या

करने जा रहा है उसने वहाँ से उठना चाहा तो रिया के चेहरे पर

उसकी पकड़ और कस गयी.

"तुम्हे मारने पर मुझे मजबूर मत करो..." उसने गुर्राते हुए कहा,

वो जानवर वापस आ गया था.

अपने बाप के गुस्से और मार का ख़ौफ़ आज भी उसके मन मे इतना था कि

रिया ने खुद को उसके हवाले कर दिया. उसने उसके होठों को अपने लंड

पर दबाया और उसका लंड रिया की खुले और गरम मुँह मे घुसता

चला गया.

उसके वीर्य की बूंदे के स्वाद ने उसके मुँह को नमकीन सा कर दिया

था, मन मे डर पर दिल मे चाहत लेते हुए रिया उसके लंड को चूसने

लगी.

"ऑश गुड़िया तुम्हारा मुँह मेरे लंड पर कितना अच्छा लग रहा है..."

वो खुशी मे सिसक पड़ा.

वो उसके सिर को पकड़े उसके सिर को अपने लंड पर उपर नीचे करने

लगा. कभी तो वह अपने लंड को उसके गले तक धकेल देता. रिया अब

मन लगाकर जोरों से उसके लंड को चूस रही थी.

"मुझे उमीद नही थी कि इस जनम मे तुमसे दुबारा मुलाकात होगी, ये

तो हमारा नसीब था कि हम टकरा गये," उसने झूट बोला, "हमे तो

मिलना ही था गुड़िया."

उसका एक हाथ उसके सिर पर से खिसक कर उसकी गर्दन पर आ गया और

उसकी गुलाबी ड्रेस की ज़िप को पीछे से नीचे तक खींचता चला

गया. रिया ने महसूस किया कि उसकी ड्रेस कुछ ढीली पड़ गयी है.

रिया उसके लंड को चूस रही थी और उसने आगे से उसकी ड्रेस को

नीचे करते हुए उसके भरी चुचियों को नंगा कर दिया. अब वो उन

चुचियों को अपने हाथों मे ले मसल्ने लगा, भींचने लगा.

"पापा की प्यारी गुड़िया अब काफ़ी बड़ी हो गयी है.." उसने कामुक भरी

आवाज़ मे कहा.

उसने अपने लंड को रिया के मुँह से निकाला और उसे थोड़ा धक्का देते

हुए पलंग पर चित लीटा दिया और खुद उसके बगल मे लेट गया.

आज़य रिया की आँखों मे झाँकने लगा जहाँ उसे डर के साथ चाहत

भी नज़र आई. वो मुस्कुराते हुए उसकी ओर बढ़ा और अपने होंठ उसके

होठों पर रख अपनी जीब उसके मुँह मे डाल दी. रिया पहले तो घबराई

लेकिन चाहत डर पर हावी हो गयी और उसने अपनी जीब उस जीब से मिला

दी और जोरों से उसकी जीब को चूसने लगी. वो उसकी खड़ी चुचियों

को मसल्ने लगा और रिया के मुँह से मादक सिसकारियाँ फूटने लगी.

"तुम्हारा शरीर कितना अछा लग रहा है," आज़य ने उससे कहा.

उत्तेजना अपने चरम सीमा पर थी. रिया उसे पाना चाहती थी, उसके

नाज़ुक हाथ उसके खड़े लंड पर जाकड़ गये और वो उसे ज़ोर से मसल्ने

लगी. चूत मे उठती गर्मी और खुजली से वो परेशान हो रही थी,

उससे रहा नही जा रहा था.

"ओह पापा मुझे चूओदिए प्लीज़ अब नही सहा जाताअ ओह पापा

अपना खड़ा लंड मेरी चूत मे डाल कर मुझे प्यार कीजिए पापा..." वो

सिसक पड़ी.

आज़य खुद पर मुस्करा पड़ा, उसे शुरू से ही पता था कि वो आज इसे पा

के रहेगा. उसकी हाथ उसकी चुचियों से खिसकते हुए नीचे की ओर

बढ़े, पहले तो उसने उसकी गुलाबी ड्रेस के उपर से उसके पेट को

सहलाया फिर अपने होठों से चूमने लगा.

फिर नीचे खिसकते हुए वो उसकी टाँगो के बीच आ गया. उसकी ड्रेस

को उसकी कमर तक उपर कर वो उसकी नंगी जांघों को चूमने लगा.

अपनी जीब से चाटने लगा, फिर अपनी हथेली उसकी गीली हुई पॅंटी के

उपर से उसकी चूत के उपर रख दी.

फिर चूत को मसल्ते हुए वो अपनी जीब पॅंटी के साइड से उसकी चूत

के किनारों पर फिराने लगा, रिया की सिसकिया तेज हो गयी. काम अग्नि

की ज्वाला उसके शरीर मे तांडव मचाने लगी. उसने अपनी टाँगे आपस

मे जोड़ी और आज़य ने उसकी पॅंटी नीचे खिसका दी. रिया ने पॅंटी को

अपने पैरों मे फँसा निकाल डी और दूर उछाल कर फैंक दी.

एक बार फिर उसने अपनी टाँगे फैला दी और आज़य का चेहरा उसकी टाँगो के

बीच आ गया. उसने अपना मुँह उसकी चूत पर रखा और उससे छूटते

शहद को पीने लगा, वो जोरों से उसकी चूत को चूस रहा था.

आज़य की जीब ने तो जैसे उसकी अग्नि को और भड़का दिया, "ओ डेडडी

हां चूसो ऐसे ही चूवसो और ज़ोर से चूसो ऑश हाआना काअतो

मेरी चूओत को ऑश."

रिया ने दोनो हाथों से उसके सिर को पकड़ा और अपनी टाँगे उसकी गर्दन

मे फँसा अपनी चूत उपर को उठाते हुए उसके मुँह को अपनी चूत

पर और दबा दिया.

"हाआँ पाप चूवसिए अपनी इस गुड़िया की चूत को ऑश हाआँ और

चूवसिए. ऑश हाआँ मेरा छूटने वाला है..हां आरू ज़ोर से

चूसिए."

सिसकते हुए उसने अपनी टाँगे और कस दी, तभी जैसे ज्वालामुखी फट

पड़ा हो उस तरह उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया. चूत की अग्नि शांत तो

हो गयी लेकिन बुझी नही थी.

आज़य एक बार फिर घुटनो के बल हुआ और उसने अपनी शर्ट उतार दी फिर

अपनी पॅंट के बकल खोले और बैठ गया, उसकी बेटी ने उसकी पॅंट को

उसकी टाँगो से अलग कर दिया. अब रिया पीछ को हो लेट गयी और अपनी

टाँगे फैला दी.

आज़य उसकी टाँगो के बीच आ गया और अपने लंड को पकड़ उसकी चूत

के मुँह पर रख दिया. फिर धक्का देते हुए उसने अपने लंड को अंदर

घुसा दिया. रिया ने भी अपनी कमर को उपर उठा उसके लंड को अपनी

चूत को जड़ तक ले लिया.

आज़य अब उसकी चुचियों को पकड़ ज़ोर ज़ोर के धक्के मार रहा था.

रिया ने अपनी टाँगे उसकी कमर मे लपेट ली और नीचे से कमर उछाल

उसके हर धक्के का जवाब दे रही थी.

'ओह पापा चूडिए अपनी गुड़िया को ऑश हाआँ और ज़ोर से पापा ऑश

हाआँ और ज़ोर से." वो सिसक रही थी और वो धक्के मार रहा था.

'हां गुड़िया ले ले मेरे लंड को आं अपनी चूत मे जाकड़ ले इसे अपनी

चूत मे हाआना ले और लीयी"

फिर आज़य ने करवट बदली और रिया को अपने उपर ले लिया. उसके

चूतदों को नीचे से पकड़ वो अपनी कमर उठा लंड को अंदर

घुसाने लगा. रिया ने अपनी टाँगो को उसकी इर्द गिर्द ठीक से रखा और

फिर उछल उछल कर वो धक्के लगाने लगी. वो उपर उठती और ज़ोर से

नीचे बैठते हुए उसके लंड को अपनी चूत की जड़ तक ले लेती.

क्रमशः..................
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04-10-2019, 04:20 PM,
#18
RE: bahan sex kahani दो भाई दो बहन
14

गतान्क से आगे.......

दोनो की साँसे तेज हो चली थी और दोनो झड़ने की कगार पर थे.

रिया नीचे झुकी और अपन चुचि को अपने पापा के मुँह मे दे दिया. आज़य

ने भी उसके निपल को मुँह मे भर चूसने लगा.

ऑश पापा हाँ खा जाइए मेरी चुचि को ऑश हां मारो मेरी चूत

ज़ोर से ऑश हाअ और अंदर तक दूऊ ऑश में तो गयी...." और उसकी

चूत ने पानी छोड़ दिया.

आज़य ने भी अपनी कमर उपर तक उठा अपने लंड को और अंदर तक

धकेलते हुए पानी छोड़ दिया. रिया की चूत से उसके पानी और पापा के

वीर्य की मिश्रित धार बह रही थी, वो उसकी छाती पर गिर गहरी

साँसे लेने लगी.

शरीर की काम अग्नि शांत हुई, दिल की चाहत ठंडी पड़ गयी और

दिमाग़ पहली बार दिल पर हावी होने लगा.

"ये मेने क्या कर डाला," उसने अपने आपसे पूछा.

"मेने इन्हे क्यों ऐसा करने दिया? वो नींद मे बड़बड़ा उठी, जय उसकी

बगल मे गहरी नींद सोया हुआ था.

"मेने इस जानवर को कैसे दुबारा अपनी जिंदगी मे दाखिल होने

दिया," उसने अपनी आँखों से बहते आँसुओं को पौंच्छा, उसे अहसास हुआ

जो कुछ उस दिन हुआ वो उसकी ग़लती नही थी. वो बकरी की खाल ओढ़े

एक भेड़िया था जिसने उसे अपनी बातों से बहका और फुसला लिया था.

आख़िर जो कुछ हुआ रिया ने उसे स्वीकार कर लिया और पक्का मन बना

लिया कि फिर वो उसे अपनी जिंदगी मे दाखिल नही होने देगी. उसने अपने

बगल मे लेटे अपने भाई जय पर निगाह घुमाई फिर अपनी आँखों से

बहते आंशुओं को पौछ सो गयी.

सुबह का सूरज उग चुका था और अपनी रोशनी चारों तरफ फैलने

लगा था. सूरज की किर्ने कमरे के पर्दों से होती हुई कमरे को उजाले

से भरने लगी जिसमे रिया और जय एक ही बिस्तर पर सो रहे थे. आज

से पहले कभी दोनो पूरी रात साथ सोकर नही गुज़ारी थी.

पीछले कई सालों मे वो एक दूसरे को अछी तरह समझ चुके थे

थे. उन्होने कभी इस बात की परवाह नही की कि उनके रिश्ते को लेकर

समझ क्या कहेगा या फिर अगर मा को पता चला तो वो क्या कहेगी.

दरवाज़े पर हुई आहट ने रिया की नींद खोल दी. उसने जल्दी से अपने

शरीर को कंबल से ढका और अपने बगल मे लेटे अपने भाई जय को

देखने लगी.

जैसे ही दरवाज़ा खुला उसकी तो जैसे सांस ही हलक मे अटक गयी.

झटके से दरवाज़ा खुला और उसकी मा हाथ मे कपड़ों के बाल्टी लिए

कमरे मे आ गयी. उसने बाल्टी को नीचे रखा और अचानक उसकी नज़र

रिया पर पड़ी.

"ये क्या है? उनकी मा अस्चर्य भरे स्वर मे कहा, "तुम यहाँ इसके

कमरे मे क्या कर रही हो?

थोड़ी ही देर मे कमरे मे बिखरे दोनो के कपड़े देख उनकी मा के

समझ मे सब आ गया. उनका चेहरा गुस्से से लाल होने लगा.

"तुम दोनो समझते क्या हो अपने आप को? कोई लाज शरम है कि नही

है, मुझे तो देख कर और सोच कर ही तुम दोनो से घृणा होने लग

रही है. " उनकी मम्मी गुस्से से बोली," तुम दोनो की आज की हरकत

देख मुझे लगता है कि तुम दोनो की इस घर मे कोई ज़रूरत नही है

निकल जाओ हमारे घर से तुम दोनो अभी की अभी और कभी लौट कर

वापस मत आना."

मम्मी की बात सुनकर रिया गुस्से से बिस्तर से उठी. "आप हमे क्या

समझती है, पहले तो पापा के साथ ऐसा व्यवहार करती रही. उन्हे

जाने से रोकने के बदले आप चुप चाप बैठी रही. आपने हमे जनम

ज़रूर दिया होगा लेकिन आप हमारी मा कभी नही बन सकी. मुझे कई

बार अपनी जिंदगी मे आपकी जारोरत पड़ी लेकिन आपको मेरे लिए समय

ही नही था. आप ने जय की मा बनने की कोशिश ज़रूर की लेकिन आप

बन ना सकी, बल्कि आपकी जगह मेने उसे मा बनकर उसका साथ दिया.

इससे पहले कि आप हमारे बारे मे कोई राई कायम करे आप अपने आप को

आईने मे देख लीजिए, ना आप पत्नी बन सकी ना ही आप अपने बच्चो

की मा बन सकी."

रिया ने ज़मीन पर बीखरे कपड़ों मे से अपने कपड़े उठाए और पहन

लिए. जय भी उठ चुका था और लेटा हुआ अपनी बेहन को और अपनी मा

को देख रहा था जो दरवाज़े पर खड़ी थी.

"जय उठो यहाँ से और अपना समान पॅक करो, अभ यहाँ पर हमारी

ज़रूरत नही है," रिया ने अपनी मम्मी की ओर देखते हुए कहा. "हम

यहाँ से कहीं दूर जाकर अपनी जिंदगी नये सीरे से शुरू करेंगे."

"में क्या कर सकती थी? उसकी मा रोते हुए बोली, "तुम्हारे पिता ने

कभी इस घर को अपना घर नही समझा, हमेशा एक अजनबी की तरह

रहे वो घर मे. उनके जानवर जैसे व्यवहार के आगे हम कर भी क्या

सकते थे?"

रिया ने अपने आँसुओं को रोकने की बहोत कोशिश की लेकिन वो रोक ना

पाई. अब भी दिल के किसी कोने से वो अपनी मा को प्यार करती थी,

लेकिन फिर भी जो कुछ हुआ उसके लिए वो अपनी मा को कभी माफ़ नही

कर सकती थी, "आख़िर तुम उन्हे रोकने की कोशिश तो कर सकती थी."

जब रिया घूम कर आल्मिराह से अपने और जय के कपड़े निकाल कर बिस्तर

पर रखने लगी तो उनकी मा वहाँ से चली गयी. जय पलंग से उठा

और वही कपड़े जो उसने रात को पहन रखे थे पहन कर तैयार हो

गया.

"जय इन सब समान को दो तीन बॅग और कार्टून मे पॅक कर लो." रिया

ने कहा.

"लेकिन हम जाएँगे कहाँ? उसने रिया से पूछा.

रिया ने अपने भाई की तरफ देखा और मुस्कुरा कर बोली, "चिंता मत

करो, सब ठीक हो जाएगा, में तुम्हारा ख्याल रखूँगी और तुम मेरा

ख्याल रखना."

थोड़ी देर बाद जय स्टोर रूम से दो बड़े कार्टून ले आया. रिया अपने

और जय के कपड़ों को अछी तरह समेटने लगी. फिर कमरे मे नज़रें

घूमाने लगी कि कहीं कुछ छूट तो नही गया.

"तुम समान पॅक करो." रिया ने कहा, "में अभी आती हूँ."

रिया अपने कमरे से निकल कर नीचे हाल आ गयी. जिस घर को उसने

बचपन से अपना समझा था पता नही क्यों आज वो एक पराए घर

जैसा लग रहा था. पुरानी यादें पुरानी बातें, इस घर मे बीताए

हुए लम्हे उसकी आँख मे फिर आँसू ले आए. उसने बहोत कोशिश की

लेकिन फिर चंद कतरे आँखेओं से बह ही गये. उसके कानो मे अपने

बाप की आवाज़ अभी गूँज रही थी.

"तुम पापा की प्यारी गुड़िया हो ना?"

रिया को लगा कि इन आवाज़ों से उसके कान फॅट जाएँगे, उसने अपने दोनो

हाथ कानो पर रख दिए और एक कुर्सी पर बैठ गयी, आँसू तर तर

उसकी आँखों से बह रहे थे.

"तुम अपने पापा से प्यार करती हो ना?"

"वो मेरी ग़लती नही थी, तुम ही वहशी जानवर बन गये थे," वो ज़ोर

से चिल्लाई जैसे की अपने कानो मे गूँजती आवाज़ को अपने से दूर

भागना चाहती हो जो चाह कर भी उसके कानो से नही जा रही थी.

"मेने कुछ पैसे तुम्हारे लिए भी बचा कर रखे है,"

"वो मेरी ग़लती नही थी," वो एक बार फिर ज़ोर से चिल्लाई. हराम जादे

वो मेरी ग़लती नही थी, तुमने मुझे इस्तामाल किया था."

अपने जज्बातों को संभाल वो वापस अपने कमरे मे आई और अपनी

आल्मिराह के लॉकर को खोल उसने वो पैसे निकाले जो वो आज तक वो जमा

करती आई थी.

"क्या तुम तैयार हो?" उसने जय को पूछा.

"हां ऐसा लगता है," जय को अब भी विश्वास नही हो रहा था कि वो

ये घर छोड़ कर जा रहे है.
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04-10-2019, 04:21 PM,
#19
RE: bahan sex kahani दो भाई दो बहन
थोड़ी देर बाद रिया की गाड़ी उस घर से दूर होने लगी. रिया ने अपना

एक हाथ जय के हाथ पर रखा और उसे सहलाने लगी.

"जय जो भी होगा अच्छे के लिए होगा, में हूँ ना तुम्हारे साथ."

* * * * * * * * * * * *

उस रात राज ने दो बार रोमा के बिस्तर से निकलने की कोशिश की लेकिन

रोमा की बाहें उसके बदन से ऐसे लिपटी थी कि वो निकल ना सका, अगर

वो उसकी बाहों को हटता तो रोमा की नींद खुल जाती जो वो नही

चाहता था.

"प्लीज़ मुझे छोड़ कर मत जाओ," रोमा नींद मे बड़बड़ाई.

राज ने रोमा को कस मे अपनी बाहो मे भर के अपने से चिपका लिया और

उसके चेहरे को चूमते हुए बोला, "डरो मत में कहीं नही जा रहा."

"अगर तुम्हारी इच्छा हो रही है तो तुम मुझे चोद सकते हो." रोमा ने

उसे चूमते हुए कहा.

"में तुमसे प्यार करता हूँ इसलिए यहाँ तुम्हारे पास हूँ ना कि

तुम्हारे शरीर के लिए," राज ने उसके कान मे फुसफुसाते हुए

कहा, "हां अगर तुम्हारी इच्छा हो रही है...."

राज अपने हाथ को उसके शरीर पर फिराने लगा, अपनी उंगलियों से उसके

बदन के नाज़ुक हिस्सों को घिसने लगा. रोमा के शरीर मे एक नई मस्ती

छाने लगी. उसे राज की हर्कतो से गुदगुदी होने लगी थी साथ ही

चूत मे हलचल भी हो रही थी.

"प्लीज़ राज मत करो ना गुदगुदी हो रही है आउच....."

गुदगुदी की वजह से उसे हँसी छूट रही थी. अपनी हँसी को रोकने के

लिए उसने अपना चेहरा तकिये में छुपा लिया, लेकिन राज था कि उसे

छेड़ता जा रहा था. उसे पता था कि रोमा के किस अंग को किस समय

छूना चाहिए.

रोमा अपनी हर कोशिश से राज को रोकने की कोशिश कर रही थी, आँख

बंद किए वो उसे मार रही थी धक्का दे रही थी लेकिन राज फिर भी

उस पर हावी था. आख़िर हंसते हंसते रोमा की साँसे उखाड़ने लगी और

आँखों मे आँसू आ गये तो राज ने अपने हाथ पीछे खींच लिए.

"तुम सच मे कभी कभी पागल हो जाते हो?" रोमा ने एक गहरी सांस

लेते हुए कहा.

राज ने कुछ कहा नही. रोमा पीठ के बल लेटी हुई थी, राज उसकी

पीठ पर लेट गया और अपना हाथ उसके नीचे करते हुए उसकी फूली

हुई चुचियो को अपने हाथ मे ले भींचने लगा. वो उसके निपल से

खेलने लगा, उसका लंड तन खड़ा रोमा की गंद पर ठोकर मारने लगा.

"अब आगे तुम्हारा क्या करने का इरादा है?" रोमा ने अपने भाई से

पूछा.

"में तो तुम्हे चोदने की सोच रहा था." राज ने उसकी चुचियों को

जोरों से भींचते हुए कहा.

"जिंदगी मे आगे क्या करने का इरादा है? में ये पूछ रही थी,"

रोमा ने कहा, "या फिर ये चुदाई, ये घर और तुम्हारी वो कहानिया

और तालाब का किनारा यही तुम्हारे लिए जिंदगी है."

"मुझे लगा कि तुम्हे मेरी कहानियाँ पसंद है." राज ने कहा.

उसकी बात सुनकर रोमा मुस्कुरा दी. "मुझे तुम्हारी कहानिया बहोत

पसंद है, लेकिन इससे तो जिंदगी नही चलेगी, आगे भी तो कुछ

करना पड़ेगा और में जानती हूँ कि जिंदगी में तुम बहोत कुछ कर

सकते हो."

राज उसके पीठ से उतर उसके बगल मे लेट गया, "लेकिन अचानक ये सब

बातें क्यों?' उसने उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा.

"मेरे फाइनल एग्ज़ॅम अगले महीने शुरू हो रहे हैं," रोमा ने उसे याद

दिलाते हुए कहा, "उसके बाद कॉलेज तो जाना नही है, तो मेने सोचा

कि क्यों ना हम साथ साथ रहें."

"तुम मुझसे बहोत प्यार करती हो ना?" रा ने पूछा.

"तुम जानते हो कि में तुमसे बहोत प्यार करती हूँ. पर क्या तुम

मुझसे इतना ही प्यार करते हो कि यहाँ से निकल मेरे साथ एक नई

जिंदगी शुरू कर सको?" रोमा ने उसके हाथ को अपने हाथ मे लेते हुए

कहा.

राज उसकी भावनाए और उसके प्यार को समझ रहा था. थोड़ी देर वो

सोचता रहा फिर बोला, "में क्या करूँ?

"कोई अछी सी नौकरी ढूंड कर कर लो." रोमा ने कहा, "साथ साथ

अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करो. कुछ ऐसा करो कि जिंदगी मे फिर

पीछे मूड कर देखने की ज़रूरत ना हो."

राज को रोमा पर झल्लाहट आने लगी थी, वो कई बार ये भाषण अपने

माता पिता के मुँह से सुन चुका था, क्या बुराई थी कि अगर वो कुछ

नही कर रहा था तो.

"राज" रोमा ने उसे पुकारा.

"क्या है बोलो, में सुन रहा हूँ." उसने खीजते हुए कहा.

"नही मुझे लगता है कि तुम मेरी बात नही सुन रहे हो" राज के इस

रूखेपण से रोमा का दिल भर आया और उसकी आँखों मे आँसू आ

गयी. "अगर तुम यहाँ रहना चाहते हो तो में तुम्हे रोकूंगी नही

लेकिन मेरे लिए रहना शायद मुश्किल हो." रोमा ने जवाब दिया.

"रोमा में तुम्हे रोकुंगा नही, तुम्हारी भी अपनी जिंदगी है." राज

ने रूखेपण से कहा.

रोमा का चेहरा गुस्से से लाल हो गया, "तुम बहोत ही मतलबी हो, क्या

तुम मेरे लिए इतना भी नही कर सकते..... तुम्हारे लिए ये तालाब का

किनारा ही सब कुछ है, में तुम्हारे लिए कुछ भी नही?"

राज रोमा की बात सुनकर कुछ बोला नही. उसके बगल मे लेटा हुआ वो

सोच रहा था कि वो क्या करे. वो सोचता रहा.

"राज" रोमा ने उसे पुकारा.

राज कुछ कहना चाहता था लेकिन उसकी आँखों मे आँसू आ गये. एक

अंजाने डर ने जैसे उसके अंदर की सारी ताक़त छीन ली थी. वो यहाँ

रहते हुए तो रोमा को जय जैसे लोगों से तो बचा सकता था. पर

समाज और दुनिया के बीच रहकर उसकी रक्षा करना उसका ख़याल

रखना, ये सब वो कैसे करे उसकी समझ मे नही आ रहा था.

"राज"

राज ने कुछ कहा नही बल्कि अपने चेहरे को उसके चेहरे से सटा दिया.

रोमा को जब राज के रोने का अहसास हुआ तो वो समझ गयी और उसने अपनी

बाहों खोल उसे अपनी बाहों मे बाँध लिया. उसकी आँखों से बहते

आँसुओं को उसने चूम लिया.

"में तुमसे बहोत प्यार करती हूँ, और बड़ी मुश्किल से तुम्हे पाया

है और में तुम्हारे प्यार को और तुम्हे खोना नही चाहती" रोमा ने

उसे चूमते हुए कहा, "अब हिम्मत से काम लो और मेरे साथ चलो,

में तुम्हारे बिना ज़्यादा दिन नही रह पाउन्गि."

"रोमा तुम्हे जिंदगी मे कोई मुझसे भी अच्छा मिल जाएगा?" राज ने

कहा.

"लेकिन तुम तो नही ना." कहते हुए उसने राज के आँसुओं से भरे

चेहरे को अपने हाथों मे लिया और उसके होठों को चूसने लगी.

राज सोचने लगा, उसकी जिंदगी कितनी आकेली और तन्हा रही थी आज

तक. जब उसके दिल मे रोमा के लिए भावनाए जनम ले रही थी, तो

वो कितना डर रहा था कि कहीं इसे पता ना चल जाए. उस समय उसे

नही पता था कि रोमा के दिल मे भी उसके लिए वही जज़्बा वही प्यार

था. पर आज जब कि दोनो एक दूसरे से अपने जज्बातों का इज़हार कर

चुके थे एक दूसरे को अपना चुके थे तो अचानक वो रोमा को खोने

के डर से कांप उठा. उसे लगा कि वो रोमा के बिना नही रह पाएगा.

"ठीक है में चलूँगा तुम्हारे साथ," राज ने आख़िर अपने दिल की

बात कह ही दी.

"सच मे, तुम आओगे मेरे साथ," रोमा को अपने कानो पर विश्वास नही

हो रहा था, "एक बार फिर से कहो की तुम आओगे."

"हां मे आउन्गा तुम्हारे साथ" उसने कहा, वो अपनी प्यारी बेहन और

प्रेमिका को खुश देखना चाहता था.

"ओह्ह्ह्ह राज में बता नही सकती कि में कितनी खुश हूँ," रोमा ने

खुशी मे कहा, "राज हम दोनो आने वाली जिंदगी मे साथ साथ

रहेंगे और एक दूसरे को खुश रखेंगे."

खुशी के मारे रोमा ने राज को अपने उपर खींच लिया. उसने अपनी टाँगे

फैला दी और अपनी टाँगे उसकी कमर मे लपेट ली, "क्या तुम तयार हो?"

इन जज्बाती बातों के बीच उसकी उत्तेजना बह गयी थी और लंड एक बार

मुरझा कर ढीला पड़ गया था, "नही." उसने धीरे से कहा.

"मुझे छुओ..... मुझे भीचो.... मुझे मस्लो...." उसने राज से

कहा, "और जब तुम्हारा लंड खड़ा और तन जाए तो मुझे प्यार

करो....... हमारी आने वाली जिंदगी के लिए हम जश्न मनाएँगे."

राज ने अपने होंठ उसके होठों पर रखे फिर उसके होठों को खोलते

हुए अपनी जीब उसके मुँह मे डाल दी. रोमा ने भी उसकी जीब से अपनी

जीब मिला दी और उसकी जीब को चूसने लगी.

क्रमशः..................
Reply
04-10-2019, 04:21 PM,
#20
RE: bahan sex kahani दो भाई दो बहन
15

गतान्क से आगे.......

राज ने अपने दोनो हाथ उसकी चुचियों पर रख उन्हे मसल्ने लगा.

कभी वो उसके निपल को भींचता तो कभी उसकी चुचियो की गोलियों

को. उसने अपना चेहरा नीचे झुकाया और उसके निपल को अपने दांतो

मे ले हौले हौले काटने लगा.

रोमा के शरीर मे उत्तेजना बढ़ने लगी, वो उन्माद मे सिसकने

लगी, 'ऑश राज्ज्जज्ज्ज ऑश हाआँ काटो मेरी चूचियों को.... ओह हन

भींच डालो इनहूओ."

उत्तेजना मे रोमा अपनी कमर उठा अपनी चूत को उसके लंड पर रगड़

रही थी.उसने महसूस किया कि राज का लंड तनने लग रहा है. उससे

रहा नही जा रहा था वो उसके लंड को अपनी चूत मे लेना चाहती

थी.

राज ने अपनी टाँगो से रोमा की टाँगे और फैला दी और अपने को इस तरह

उसके उपर कर दिया कि उसका लंड ठीक उसकी चूत के मुँह पर लगा

था, लेकिन उसे अंदर घुसाने के बजाय वो अपने लंड को धीरे धीरे

उसकी चूत पर रगड़ने लगा.

ओह राज..... क्यों तडपा रहे हूऊऊ..... प्लीज़ घुसा दो ना

अंदर.... देखो ना मुझसे अब नही रहा जाता.... प्लीज़ चोदो ना

मुझे.." रोमा सिसक पड़ी.

पर राज ने उसकी करहों पर ध्यान नही दिया और अपने लंड को उसकी

चूत पर घिसता रहा. उसका लंड रोमा की चूत से छूटे पानी से पूरा

गीला हो चुका था. फिर अपने आपको थोड़ा नीचे खिसकाते हुए उसने

उसकी एक चुचि के निपल को अपने मुँह मे ले किसी बच्चे की तरह

चुलबुलाने लगा.

रोमा उत्तेजना मे किसी पंछी की तरह फड़फदा रही थी... उसे अब

बर्दाश्त नही हो रहा था. वो राज के सिर को पकड़ जोरों से अपनी

चुचि पर दबा रही थी.

"ऑश राज क्यों तडपा रहे हूऊ.... ओह प्लीज़ चोदो ना

मुझे .... डाल दो अपने लंड को मेरी चूओत मे......" रोमा अब उत्तेजना

मे जोरों से सिसक रही थी.

लेकिन आज की रात तो राज रोमा के साथ पूरी तरह खेलने के मूड मे

था, वो उछल कर रोमा के पेट पर बैठ गया और अपने खड़े लंड को

उसकी चुचियों के बीच की घाटी मे रख दिया. फिर उसकी दोनो

चुचियो को पकड़ अपने लंड पर दबाया और अपना लंड आगे पीछे

करने लगा.

रोमा भी अपने प्रेमी के खेल को समझ गयी और जब भी राज अपने

लंड को आगे की ओर धकेल्ता तो वो पहले तो अपनी जीब से उसे चाटती

और फिर दूसरी बार अपना मुँह खुला रखती जिससे लंड सीधा उसके मुँह

मे पल भर के लिए घूस्ता और बाहर निकल जाता.

राज ज़ोर ज़ोर से रोमा की चुचियों को चोदने लगा, रोमा उसके गीले

लंड को चाटती तो कभी चूस्ति. लेकिन रोमा की उत्तेजना आपे चरम

सीमा पर पहुँच चुकी थी, और अब एक पल भी रुकना उसके लिए

मुश्किल हो रहा था.

रोमा ने राज को धक्का दिया और उसे अपने से अलग कर दिया. राज पीठ

के बल बिस्तर पर था, और इसके पहले कि वो कई और शैतानी करता

रोमा उसके उपर चढ़ गयी और अपनी टाँगों को उसके अगल बगल मे

ढंग से रख उसके लंड को अपनी चूत से लगाया और उस पर बैठती

चली गयी.

थोड़ी देर उसके लंड पर बैठ वो उसके लंड को अपनी चूत मे अड्जस्ट

करती रही फिर थोडा सा उपर उठ ज़ोर से नीचे बैठ गयी और उसके

लंड को पूरा अपनी चूत मे ले लिया.

"ओह राज तुम्हारा गरम लंड मेरी चूत मे कितना अछा लग रहा

है....."

रोमा अब उछल उछल कर उसके लंड को अपनी चूत मे ले रही थी. रोमा

जब ठप की आवाज़ से उसके लंड पर बैठती तो राज भी अब अपनी कमर

उपर कर अपने लंड को और अंदर तक घुसा देता.

राज अब उसके कुल्हों को पकड़ नीचे से धकके मार रहा था. रोमा थी

कि वो और उछल उछल कर उसे चोद रही थी. उसने झुकते हुए अपनी

चुचि राज के मुँह मे दे दी. रोमा जब उपर उठती तो राज अपनी कमर

उपर उठा अपने लंड को अंदर घुसा देता और जब उसकी कमर नीचे को

होती तो रोमा ज़ोर से उसकी कमर पर बैठ जाती. दोनो ताल से ताल मिला

चुदाई कर रहे थे.

"हां राज ऐसे ही अंदर तक घुसा कर चोदो मुझे ओह राज आअज

भर दो मेरी चूत को अपने लंड से ओह. हाां और ज़ोर से धकक्के

मारो... और ज़ोर से... हाआँ "

राज ने रोमा को कमर से पकड़ा और करवट बदल ली. उसका लंड अभी

भी उसकी चूत मे घुसा हुआ था. करवट बदाल्ते ही रोमा ने अपनी

टाँगे उसकी कमर से लपेट ली और उसे बेतहाशा चूमने लगी.

राज ने उसकी दोनो चुचियों को मसल्ते हुए ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने

लगा. हर धक्के पर वो अपने लंड को उसकी चूत की जड़ तक पेल देता.

"ऑश राज हाआँ और ज़ोर से ऑश हाआँ फाड़ दो मेरी चूऊत को ऑश

मेरा छूटने वाला है ओह हाआअँ में गयी.." सिसकते हुए रोमा

की चूत ने पानी छोड़ दिया.

राज भी झड़ने की कगार पर था. पर उसने अपना लंड को रोमा की चूत

से बाहर निकाला और उसकी पेट पर बैठ अपने लंड को उसके मुँहे मे दे

दिया.

रोमा ने भी अपना मुँह खोला और उसके लंड को चूसने लगी. राज ने दो

तीन धक्के ज़ोर के उसके मुँह मे लगाए और अपना पानी रोमा के मुँह मे

छोड़ दिया जिसे रोमा पी गयी. दोनो की साँसे उखाड़ रही थी. राज उसके

उपर से हट उसके बगल मे लेट गया.

"राज मुझे कभी छोड़ कर मत जाना." रोमा उसकी छाती पर अपना सिर

रखते हुए फुसफ्साई.

"कभी नही जाउन्गा मेरी जान." राज उसके बालों मे हाथ फेरते हुए

बोला.

"राज मुझे अपने से चिपका लो, में थोड़ी देर सोना चाहती हूँ."

* * * * *

दूसरी सुबह राज अपने किचन मे अपने लिए चाइ बना रहा था. रोमा

अभी भी सो रही थी.

तभी फोन की घंटी बजी, वैसे तो वो कभी फोन उठाता नही था,

लेकिन कई बार घंटी बजने पर उसने फोन उठाकर "हेलो" कहा.

"राज में जय बोल रहा हूँ."

जय का फोन इस समय आना उसे अच्छा नही लगा. माना कि वो उसका

ख़ास दोस्त था लेकिन अब भी उसे उस पर गुस्सा आ रहा था फिर भी

अपने गुस्से को छिपाते हुए वो बोला, "हां जय."

अपने दोस्त की बदली हुई आवाज़ से वो समझ गया कि राज अब भी गुस्सा

है फिर भी हिम्मत कर उसने कहा, देखो राज मेरा रिया और मम्मी का

झगड़ा हुआ और मम्मी ने मुझे और रिया को घर से बाहर निकाल दिया

है.....अब में सहर मे रिया के साथ हूँ.... मेने फोन इसलिए

किया जो कुछ भी उस दिन रोमा के साथ मेने किया उसके लिए में बहोत

शर्मिंदा हूँ प्लीज़ मुझे माफ़ कर देना. मेने नही सोचा था कि

बात इतनी बढ़ जाएगी... प्लीज़ मुझे माफ़ कर देना और रोमा से भी

कह देना ."

राज को जय की बात पर विश्वास नही हुआ फिर भी उसने धीरे से

कहा, "हां क्यों नही.... तो तुम आज कल रिया के साथ हो."

"हाआँ" जय ने कहा, "वैसे तो रिया की रूम मेट रानी भी उसके साथ

है..."

मुझे नही पता था कि तुम रिया के साथ सहर मे रहोगे" राज ने

कहा.

"मेने भी नही सोचा था," जय ने कहा, "पर मेरे पास दूसरा कोई

चारा भी नही था."

"ऐसा क्या हो गया कि घर छोड़ना पड़ गया? राज ने पूछा, वो जानना

चाहता था कि आख़िर हुआ क्या है जो इतनी जल्दी इतनी बड़ी बात हो

गयी.

जय ने कुछ जवाब नही दिया और विषय को बदलते हुए कहा, "तुम

दोनो खुद आकर नही जगह नही देखना चाहोगे."
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