bahan ki chudai बहन की इच्छा
03-22-2019, 12:23 PM,
#31
RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
"सॉरी! सॉरी!. सॉरी, दीदी! मेने मज़ाक में वैसे कहा. नाराज़ मत होना . में रियली सॉरी." ऐसा कह'कर मेने वापस उसे सीधा किया. ऊर्मि दीदी चुप'चाप सीधी हो गई और में वापस उस'का ननगपन आँखों से निरिक्षण कर'ने लगा.

"तुम आँखें क्यों नही खोल'ती, दीदी? अब और कित'ना शरमाओगी? आलरेडी तुम काफ़ी देर से मेरे साम'ने नंगी हो."

"हाँ ! मुझे मालूम है. लेकिन फिर भी.. मुझे बहुत शरम आ रही है के मेरा भाई मुझे नंगी देख रहा है इस'लिए. और अगर आँखें खोल के में निर्लज्ज की तरह तुम्हें देख'ती रही तो तुम्हें शरम आएगी मेरा ननगपन देख'ने के लिए. तुम अच्छी तरह से देख सको इस'लिए मेने आँखें बंद रखी है इस ख़याल से के मुझे कोई नही देख रहा है. जैसे बिल्ली आँखें बंद कर के दूध पीती है और उसे लग'ता है के कोई उसे नही देख रहा है. वैसे." ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी हंस'ने लगी.

"थॅंक्स, दीदी!" मेने ऊर्मि दीदी को दिल से धन्यवाद देते हुए कहा, "मुझे मालूम है. इस दूनीया की कोई भी बहन अप'ने भाई के साम'ने ऐसी नंगी नही होगी. लेकिन तुम तैयार हो गयी और तुम'ने कर के दिखाया. सिर्फ़ मेरे लिए! में हरदम तुम्हारा आभारी रहूँगा! थॅंक्स!!"

"अरे इस में थॅंक्स क्या कह'ना, सागर? उलटा मुझे अच्च्छा लगा के मेने तुम्हें खूस किया. तुम'ने मुझे दिन भर खूस रखा इस बात का थोड़ा बहुत अहसान में चुका सकी. तुम चाहे उतना सम'य ले लो. बिल'कुल बीना जीझक मुझे निहार लो. और अप'नी जिग्यासा पूरी कर लो."

क्रमशः……………………………लेट गयी. 
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03-22-2019, 12:23 PM,
#32
RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
बहन की इच्छा—8

गतान्क से आगे…………………………………..

ऐसा कह'ते ऊर्मि दीदी ने अपना दायां हाथ उप्पर किया और अप'ने सर के नीचे रखा. फिर अप'नी जांघों का अंतर थोड़ा बढ़ा के वो बिल'कुल रिलक्स हो कर पड़ी रही. उस की आँखें बंद थी, चेह'रे पर लज्जा थी. उसकी छाती का अरोला उत्तेजना से कड़क हो गया था और उसके उप्पर का निप्पल और भी लंबा हो गया है ऐसा मुझे लग रहा था. उस की साँसों की रफ़्तार बढ़ गयी थी जिस'से उसकी भरी हुई छाती उप्पर नीचे हो रही थी. उस'का पेट भी साँसों के ताल पर उप्पर, नीचे हो रहा था और नीचे होते सम'य उसके गोल नाभी में और भी गहराई महेसूस होती थी.

मेरी बहन के नंगेपन को निहार'ते हुए मेरा लंड पह'ले से ही कड़क हो गया था और जब मेने उसके जांघों के बीच मेरी नज़र जमा दी तब में काम वास'ना से पागल हो गया. उसकी चूत के इर्दगीर्द भूरे रंग के बालो का जंजाल था. मेने थोड़ा नीचे झुक के जब उसकी चूत को गौर से देखा तो उस बालो के जंगल से मुझे उसकी चूत का छेद और छेद के उप्पर का चूत'दाना चमकते नज़र आया. मेने उसके जांघों के नीचे नज़र सरकाई तो मुझे उसकी केले के खंबे जैसी गोरी गोरी और लंबी टाँगें नज़र आई.

ना जा'ने कित'नी देर तक में ऊर्मि दीदी का नन्गपन उपर से नीचे, नीचे से उप्पर निहार'ता रहा था. उस सम'य मेरी नंगी बहन मुझे स्वर्ग की अप्सरा लगा रही थी!

"क्या फिर, सागर!. तुम्हारी जिग्यासा कब पूरी होंगी?" काफ़ी देर बाद ऊर्मि दीदी ने मुझे पुछा.

"किसको मालूम, दीदी?"

"क्या मत'लब, सागर?"

"मतलब ये के मेरा जी ही नही भरता तुम्हें नंगी देख'ते. ऐसा लग'ता है जिंदगी भर में तुम्हें ऐसे ही देख'ते रहूं!"

"अच्च्छा!. भाड़ा चुका सकते हो क्या इस रूम का. जिंदगीभर??" उस'ने मज़ाक में कहा.

"मेरी बात को प्रक्तीकली मत लो, दीदी!. उसके पिछे का अर्थ समझ लो!"

"अरे वो, शहज़ादे!!.. बहुत हो गया तुम्हारा उसके पिछे का अर्थ अब. मुझे ठंड लग'ने लगी है उस एर कंडीशन की वजह से!"

"सच, दीदी? सॉरी हाँ. मेरे ध्यान में ही नही आया यह. में अभी बंद करता हूँ ए.सी.." ऐसा कह'कर मेने झट से बेड से छलान्ग लगाई और तूरन्त जाकर एर कंडीशन बंद किया.

फिर आकर में ऊर्मि दीदी के दाई तरफ लेट गया और उसकी तरफ घूम के मेरे बाएँ हाथ के सहारे अपना सर उप्पर करके उसके चह'रे को देख'ने लगा. उस'को ये महेसूस हुआ के में उसके बाजू में लेट गया हूँ. उस'ने सर घुमा के आँखें खोल दी और मेरी तरफ देखा. में उसकी तरफ देख'कर हंसा. उस'ने झट से अप'नी आँखें बंद कर ली. में मेरा मूँ'ह उसके कान के नज़दीक ले गया और मेने धीरे से उस'को पुछा,

"दीदी! में तुम्हारे होठों का एक चुंबन ले लूँ?"

"क्या???" वो लग'भाग चिल्लाई.

"प्लीज़, दीदी! सिर्फ़ एक बार."

"तुम'ने कहा था के तुम्हें सिर्फ़ नग्न स्त्री देख'नी है. उस'का चुंबन भी लेना है ऐसा कब कहा था?"

"हां ! नही कहा था. लेकिन अभी मेरे मन में ये इच्छा पैदा हुई है के में तुम्हारा एक चुंबन ले लूँ!"
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03-22-2019, 12:23 PM,
#33
RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
"तुम पागल तो नही हो गये हो, सागर? कभी तुम्हारे मन में स्त्री को नंगी देख'ने की जिग्यासा पैदा होती है तो कभी तुम्हारे मन से आवाज़ आती है के उस'का चुंबन ले लूँ. ये क्या लगा रखा है तुम'ने??"

"अब तुम्हें देख के मुझे वैसा लगा, दीदी! इस'लिए में कह रहा हूँ."

"मुझे ये बता, सागर. मुझे देख'कर तुम्हें ऐसा क्यों लगा??"

"क्योंकी.. में थोडा उत्तेजीत हो गया हूँ!"

"ऊत्तेजीत हो गये हो?. खुद के बहन की तरफ देख'कर तुम उत्तेजीत हो गये हो??"

"हां !. क्यों नही होऊँगा, दीदी? तुम इत'नी सुंदर और सेक्सी दिख'ती हो के कोई भी उत्तेजीत हो सकता है. तुम्हारा भाई हूँ तो क्या हुआ. आखीर एक पुरूष जो हूँ. तुम भी तो उत्तेजीत हो गई हो."

"में??. ऊत्तेजीत. कौन कह रहा है के में उत्तेजीत हो गई हूँ?"

"कह'ने की क्या ज़रूरत है, दीदी. मुझे समझ है सब."

"समझ है?? क्या समझ है तुम्हें?? किस बात से तुम'ने ये मतलब निकाला के में उत्तेजीत हो गई हूँ???"

"मेने तुम्हारी पॅंटीस देखी है, दीदी. वो 'उस' भाग पर गीली हो गई थी."

"पॅंटीस?? गीली हो गई?? क्या कह रहे हो तुम, सागर???"

"मुझे मालूम है, दीदी. स्त्री जब उत्तेजीत होती है तो उसके 'उस' भाग से पानी छूटता है."

"अरे बेशरम!!. किस'ने कहा ये तुझे?"

"किस'ने कहा ये जाने दो. लेकिन में जो कुच्छ कह रहा हूँ ये सच है ना, दीदी?"

"क्या सच है, सागर? किस'ने कहा तुम्हें ये?"

"मेने पढ़ा है एक किताब में."

"किताब में?. कौन सी किताब में??"

"एक काम-जीवन की किताब की कहानियों में."

"अरे बेशरम.. तुम ऐसी किताबे पढ़ते हो हां क्या नाम बताया था ?? ये धन्दे कर'ते थे तुम पढ़ाई के सम'य?"

"दीदी! में जब पढ़ता था तब नही पढ़ी मेने वो किताब. वो तो आज कल में पढ़ी है. में भी बड़ा हो गया हूँ अब! इस'लिए मेरी जान'करी बढ़ाने के लिए मेने वो किताब पढ़ी थी."

"और क्या लिखा था उस किताब में ?"

"यही के. स्त्री जब काम-उत्तेजीत हो जाती है तब उसकी योनी से काम रस बाहर निकलता है.."

"वाह. बहुत अच्छे. क्या शब्द सीख लिए है तुम'ने. काम- उत्तेजीत. योनी. काम रस.. में तो धन्य हो गई, सागर!. अरे पगले. ऐसा सफेद पानी हमारी 'उस' जगह से हमेशा निकलता रहता है. तो फिर वो 'काम-सलील' कैसे हो सकता है?"

"चलो मान लिया, दीदी!. के स्त्री के 'उस' जगह से ये पानी हमेशा निकलता रहता है लेकिन तुम'ने तो थोड़ी देर पह'ले स्नान किया था तब तुम्हारी 'वो' जगहा सुखी तो होंगी? और थोड़ी देर पह'ले जब मेने तुम्हारा सिर्फ़ गाउन निकाला था तब तुम्हारी पॅंटीस पर वो गीला स्पॉट नही था. लेकिन जब मेने तुम्हारी पॅंटीस निकाल दी तब उस'पर वो गीला स्पॉट था. इसका मतलब में जब तुम्हारे कपड़े उतार रहा था तब तुम उत्तेजीत हो रही थी. बराबर है ना, दीदी?"

"हे भगवान!. तुम धन्य हो, सागर!!" ऊर्मि दीदी ने अप'ने हाथ जोड़'कर मुझे कहा, "क्या मतलब निकाला तुम'ने इस बात का!! "

"में सही कह रहा हूँ के नही ये बता दो, दीदी. तुम उत्तेजीत हो गई थी ना? सच सच बताओ!'

"हां !. में हो गई थी थोड़ी उत्तेजीत!!" आखीर ऊर्मि दीदी ने कबूल कर के कहा, "अब थोड़ी बहुत उत्तेजना तो बढ़ेगी ही ना."

"एग्ज़ॅक्ट्ली!!. जैसे तुम थोड़ी बहुत उत्तेजीत हो गई थी वैसे में भी थोडा बहुत उत्तेजीत हो गया हूँ. इस'लिए, दीदी. प्लीज़!. मुझे तुम्हारा एक चुंबन लेने दो ना?? सिर्फ़ एक!. झट से!!"

"क्या है ये, सागर?. तुम्हारी माँगे तो बढ़'ती जा रही है."

"ऐसे भी क्या, दीदी!. सिर्फ़ एक चुंबन.. उस'से तुम्हारा क्या नुकसान होने वाला है? इत'ने में तो हो भी जाता मेरा चुंबन लेना."

"अच्च्छा ठीक है, सागर. ले लो एक चुंबन. लेकिन झट से हाँ." आखीर ऊर्मि दीदी नाखुशी से तैयार हो गई.

"थॅंक्स, दीदी! थकयू वेरी मच!"

"पहेले ले तो सही चुंबन!! फिर बोल'ना. थॅंक्स और थन्क्यू."
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03-22-2019, 12:23 PM,
#34
RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी ने वापस अप'नी आँखें बंद कर ली और वो चुप'चाप पड़ी रही. मेरी खुशीयों का तो कुच्छ ठिकाना ही ना रहा और मेरी उत्तेजना भी बढ़'ती गई. मेरी सग़ी बड़ी बहन के साथ नाजायज़ काम-संबंध रख'ने के सप'ने तो मेने सैकड़ो बार देखे थे लेकिन आज पह'ली बार उसके साथ हक़ीकत में में कुच्छ कर'ने जा रहा था. में थोड़ा आगे झुक गया. अब मेरे होंठ उसके होंठो से एक दो इंच ही दूर थे. उसे मेरी गरम साँसों का अह'सास हुआ. में दावे के साथ तो नही कह सकता लेकिन मुझे ऐसा लगा के ऊर्मि दीदी ने अपना चेह'रा थोड़ा सा उप्पर कर के अप'ने होंठ मेरे चुंबन के लिए तैयार रखे.

आगे होकर धीरे से मेने मेरे होंठ अप'नी बहन के होंठो पर रख दिए. और मेरे बदन में जैसे आग लगा गई. अप'ने आप मेरे होठों का दबाव उसके होठों पर बढ़'ने लगा और में उस'का चुंबन लेने लगा. कुच्छ पल के लिए तो ऊर्मि दीदी शांत थी लेकिन जैसे जैसे मेरे होंठो का दबाव उसके होठों पर बढ़'ने लगा वैसे उसके भी होठ हिल'ने लगे.

कुच्छ पल सिर्फ़ होठों से होठों को चूम'ने के बाद मेने धीरे से मेरे होंठ अलग किए और उसके होठों को मेरी जीभ लगा दी.

ऊर्मि दीदी के लिए ये एक अचानक सी बात थी क्योंकी मेने अनुभव किया के वो थोड़ा चौंक गई थी. मेने मेरे होठों का दबाव वैसे ही रखा और मेरी जीभ मैं उसके होठोंपर घुमाने लगा. पह'ले तो उस'ने कुच्छ नही किया और शांत पड़ी रही लेकिन जैसे जैसे में ज़्यादा ही जीभ घुमाने लगा वैसे वैसे उसके होठों का फासला बढ़ता गया. आख़िर उसके होंठ अलग हो गये और मुझे मेरे होंठो पर उसकी जीभ का स्पर्श अनुभव हुआ.

याहू!! !.. मेने ऊर्मि दीदी की चुप्पी को तोड़ दिया!! आख़िर उसे भी उत्तेजना से होठ अलग कर'ने पड़े. मेने बेसब्री से मेरी जीभ वापस उसके होंठो को लगा दी. उस'ने अप'ने अलग हो गये होंठ बंद नही किए. उसे एक इशारा समझ'कर मेने मेरी जीभ उसके होठों के बींच डाल दी. एक पल के लिए मुझे उसके विरोध का आभास हुआ लेकिन अगले ही पल उसकी जीभ ने मेरी जीभ को स्पर्श किया. तो फिर क्या.. में धीरे धीरे मेरी जीभ से उसके जीभ के साथ खेल'ने लगा. इस दौरान मेरे होठों का दबाव उसके होठोंपर कायम था.

अब हम बहेन-भाई के उस पह'ले चुंबन ने एक ऐसा मोड़ ले लिया कि लग'ने लगा जैसे चुंबन लेने के लिए ही हम दोनो का जन्म हो गया हो. कुच्छ अलग ही धुन में ऊर्मि दीदी मुझे चुंबन में साथ दे रही थी. रुक'ने का तो मेरा दिल नही कर रहा था लेकिन जैसे उसे ज़बान दी थी वैसे वो चुंबन जल्दी ख़त्म कर'ना चाहिए था वरना आगे वो किसी भी बात के लिए तैयार होने की संभावना नही थी. बड़ी मुश्कील से मेने मेरे होंठ अप'नी बहन के होठों से अलग किए.

ऊर्मि दीदी अब भी उस चुंबन के धुन में थी शायद क्योंकी उस'ने अभी तक आँखें बंद रखी थी. में उसके चह'रे को पागल की तरह देख रहा था. कुच्छ देर बाद उस'ने आँखें खोल दी. में उसे देख रहा था ये जान'कर वो शरम के मारे चूर चूर हो गई.

"अब तो में थॅंक्स कह सकता हूँ ना, दीदी?" मेने उसे पुछा लेकिन वो कुच्छ ना बोली सिर्फ़ अपना सर हिला के उस'ने 'हां' का इशारा किया. "कैसा लगा तुम्हें, दीदी?"

"सच बता दूं या झूठ बता दूं?"

"तुम्हें जो सही लगे वो बता दो!"

"तो फिर में सच बताती हूँ. पह'ले मुझे अजीब सा लगा. लेकिन बाद में में बहेक'ती गई. सच्ची! तुम'ने बहुत ही अच्छा चुंबन लिया, सागर!. में बहन होकर मेरा मन पिघल गया. तुम अगर हटाते नही तो आगे ना जा'ने क्या हो जाता??"
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03-22-2019, 12:24 PM,
#35
RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
"तो फिर में वापस तुम्हारा चुंबन ले लूँ, दीदी? फिर मुझे मालूम पड़ जाएगा के आगे क्या होनेवाला था." मेने उसे आँख मारते हुए कहा.

"हे! ज़्यादा शरारत मत करो हम, सागर.. और क्या रे. तू तो झट से चुंबन लेने वाला था ना? तो फिर इतना सम'य क्यों लगाया लेने में?"

"अब क्या बताउ, दीदी. तुम्हें तो मालूम है ना. एक बार हम दोनो चालू हो गये तो रुक ही नही सकते थे. तुम भी मेरा अच्छी तरह से साथ दे रही थी."

"साथ नही दूँगी तो क्या?? तुम'ने क्यों अप'नी जीभ मेरे होठों के बीच डाल दी? कहाँ से सीखा ये तुम'ने? उस गंदी किताब में पढ़ा होगा शायद?"

"दीदी! वो किताब गंदी नही थी. काम शास्त्र का अच्छा ज्ञान देने वाली किताब थी."

"अच्छा?. तो फिर क्या ज्ञान 'प्राप्त' किया तुम'ने उस किताब में से??"

"बहुत कुच्छ, दीदी. स्त्री को कैसे उत्तेजीत किया जाता है. स्त्री ज़्यादा काम-उत्तेजीत किस बात से होती है. उनकी कॉयम्ट्र्प्टी कैसे होती है. वग़ैरा वग़ैरा."

"अच्च्छा! तो फिर इसका मतलब तुम्हें ये सब मालूम है?"

"हां ! बता दूं तुम्हें??"

"नही! नही!. मुझे मेरा ज्ञान नही बढ़ाना है."

"बढ़ाना?? तुम्हें थोडा ज्ञान होगा तो ही तुम बढ़ाओगी ना?"

"क्या बोले तुम, सागर? खुद को क्या 'वात्सायन' समझ रहे हो तुम?? मेने कहा मेरी शादी हो गई है.. तुम्हें तो अभी मुन्छे आना चालू हुआ है!"

क्रमशः……………………………
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03-22-2019, 12:24 PM,
#36
RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
बहन की इच्छा—9

गतान्क से आगे…………………………………..

"तुम्हारी शादी हो गई है तो क्या हुआ, दीदी? इसका मतलब ये थोड़ी है के तुम्हें सब मालूम पड़ गया है?"

"अच्च्छा! तो फिर बता ही दो मुझे तुम कुच्छ. जो मेरा ज्ञान बढ़ा दे. में भी अब लाज शरम छ्चोड़ देती हूँ और सुन'ती हूँ तुम्हारे अकल के तारे तुम कैसे तोड़ते हो."

"ठीक है, दीदी! अब अगर तुम्हें कुच्छ नई बात नही बताई तो तुम्हारा भाई नही कहलाउन्गा. अच्च्छा! अब जो जो सवाल में तुम'से करूँगा उस'का सच सच जवाब देना. तुम्हें स्त्री काम्त्रिप्त कैसे होती है ये मालूम है क्या?"

"नही मालूम!!"

"नही मालूम?. मेने कहा सच जवाब देना. मेरे साथ मज़ाक नही कर'ना."

"हां ! में मज़ाक नही कर रही हूँ. सच कह रही हूँ!"

"कुच्छ भी मत कहो, दीदी! तुम्हें मालूम नही ये??"

"अब मेने कहा ना.नही? तुम्हें यकीन कर'ना है तो कर लो वारना ये बात यही ख़त्म कर दो."

"अच्च्छा ठीक है, दीदी. तुम्हें मालूम हो या ना हो लेकिन फिर भी में बताता हूँ. और मेरे मूँ'ह से कुच्छ ऐसे शब्द बाहर निकले जो तुम्हें अश्लील या गंदे लगे तो मुझे माफ़ कर देना लेकिन उन शब्दो के बगैर में तुम्हें बता नही सकता."

"ठीक है! ठीक है! चालू करो तुम."

"अच्च्छा! तो स्त्री की योनी के उप्पर एक भाग होता है जिसे शिश्नमुन्द कह'ते है."

"हा! हा! हा! इस शब्द को अश्लील कौन बोलेगा.?" ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी ज़ोर से हंस'ने लगी.

"हँसना नही, दीदी! में सीरियस्ली बता रहा हूँ."

"अच्च्छा! अच्च्छा! ठीक है. बोल आगे."

"तो ये शिश्नमुन्द कॉम्क्रीडा में जब घिस जाता है तब स्त्री ज़्यादा उत्तेजीत हो जाती है और उसकी उत्तेजना बढ़ते बढ़ते एक चरम सीमा तक पहुन्च'ती है और फिर स्त्री की काम्त्रिप्ती हो जाती है."

"झूठ! सरासर झूठ!! तुम कुच्छ भी कह रहे हो. ऐसा कुच्छ नही होता है. स्त्री को कॉम्क्रीडा से कोई आनंद नही मिलता. मिलता है तो सिर्फ़ दर्द!. तकलीफ़!."

"यानी, दीदी. तुम्हें ये मालूम नही है! अगर तुम्हें ये मालूम होता तो तुम ऐसे नही कह'ती."

"हा! ठीक है ये मुझे मालूम नही. लेकिन तुम जो कह रहे हो उस'पर मुझे यकीन नही है."

"दीदी! सचमूच तुम'ने ये सुख लिया नही है?"

"नही!"

"जीजू के साथ कर'ते सम'य तुम्हें ये मज़ा नही मिला??"

"नही!!"

"और तुम्हें मेरी बात का यकीन नही है?"

"नही! नही!! नही!! "

"अब में तुम्हें कैसे यकीन दिला दू, दीदी??. ठीक है!. तुम्हें मेरी बात'पर यकीन नही है तो में तुम्हें कर के दिखाता हूँ." ऐसा कह'ते में उठ गया और ऊर्मि दीदी के पैरो तले आ गया.

"क्या???" उर्मई दीदी ने चीखते हुए कहा, "सागर!! . क्या कर रहे हो तुम?? तुम अब हद से बाहर जा रहे हो. चलो! यहाँ आओ. ठहरो!. तुम मेरे पैरो में क्यों बैठ गये हो?.. छ्चोड़ दो!.. छ्चोड़ दो मेरे पाँव. क्या कर रहे हो?. मेरे पाँव क्यों फैला रहे हो?. छी!! . सा. सागर!!. वहाँ मूँह क्यों लगा रहे हो?. अम!!. प्लीज़, सागर!. रुक जाओ. ये क्या गंदी बात कर रहे हो तुम?. में तुम्हारी बहन हूँ. छोड़ दो मेरे पाँव. उठो तुम वहाँ से. प्लीज़!!."

ऊर्मि दीदी की बात ना सुन के में उसके पैरो के बीच में लेट गया और उसके पाँव फैला के मेने सीधा अपना मूँ'ह उसकी चूत पर रख दिया. पहेले तो मेने उसके चूत के छेद को मेरी जीभ से उप्पर नीचे थोड़ी देर चाट लिया. फिर बाद में मैं उसके छेद के उप्पर का चूत'दाना चाट'ने लगा. वो मुझे रुक'ने के लिए कह रही थी और अप'ने पाँव हिलाने की कोशीष कर रही थी लेकिन मेने उसके पाँव जाकड़ लिए थे.
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03-22-2019, 12:24 PM,
#37
RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
वो मुझसे बिन'ती कर रही थी, मेरे बाल पकड़ के मेरा सर अप'नी छूट से हटाने की कोशीष कर रही थी लेकिन में ज़रा भी ना हिलते उसकी चूत चाट रहा था. थोड़ी देर छटपटाने के बाद जब उसकी समझा में आया के मैं उस'को छोड़'नेवाला नही हूँ तब हताश होकर उस'ने मुझे छ्चोड़ दिया और वो चुप'चाप पड़ी रही. फिर में जोश के साथ मेरे बहन की चूत चाट'ने लगा और उस'का चूत'दाना चूस'ने लगा.

थोड़ी देर तो ऊर्मि दीदी चुप'चाप पड़ी रही लेकिन जैसे जैसे में उसकी चूत और दाना ज़्यादा ही जोश से चाटता गया वैसे वैसे उस'से मुझे रिस्पांस मिल'ने लगा. और क्यों नही मिलेगा?? हालत चाहे कोई भी हो लेकिन जब स्त्री की चूत का दाना घिस'ने लग'ता है तब वो ज़रूर उत्तेजीत हो जाती है. इसका मुझे प्रॅक्टिकल अनुभव था.

मेरे कॉलेज की गर्ल फ्रेंड के साथ ये तरीका मेने कई बार अज'माया था और उन्हे एक अलग ही कामसुख मेने दिया था. ऊर्मि दीदी की बातों से तो पता चला ही गया था के उस'ने ये सुख कभी लिया नही था यानी मेरे जीजू ने मेरे बहन की चूत कभी चा'टी ही नही थी. खैर! उनके जैसे पुराने ख्यालात के पुरूष 'मूख-मेंथून' जैसी चीज़ करेंगे ये उम्मीद तो थी ही नही. मुझे तो ये भी यकीन था के उन्होने ऊर्मि दीदी को कभी अपना लंड चूस'ने के लिए भी नही दिया होगा. इस'लिए दीदी को 'उस' बात का भी 'ज्ञान' नही होगा. देखेंगे.. समझ में आएगा वो भी अब थोड़ी देर में.!

में ऊर्मि दीदी का चूत'दाना अप'ने दोनो होंठो में पकड़'कर चूस'ने लगा. चुसते सम'य में अप'ने होठों से उसकी चूत'पर दबाव दे रहा था जिस'से उसके चूत दाने का अच्छी तरह से घर्षण हो रहा था. ऊर्मि दीदी के मूँ'ह से अब हल'कीसी सिसकियाँ बाहर निकल'ने लगी.

बीच बीच में वो

'सागर! मत करो ऐसे' या 'सागर! छ्चोड़ दो मुझे' ऐसे बड़बड़ा रही थी लेकिन मुझे रोक'ने का या अप'नी चूत से हट'ने का कोई भी प्रयास वो नही कर रही थी. मुझे मालूम था के अब वो विरोध कर'नेवाली नही है क्योंकी वो अब गरम हो रही थी. उसकी सोई हुई काम वास'ना अब जाग रही थी.

धीरे धीरे ऊर्मि दीदी अप'नी कमर हिलाने लगी. उसके मूँ'ह से निकल'ती हल'कीसी चींखे और सिसकियाँ साफ साफ सुनाई दे रही थी. मेने उस'का चूत'दाना चुसते चुसते नज़र उप्पर कर के उसकी तरफ देखा. वो अप'नी आँखें ज़ोर से बंद कर के अपना सर इधर उधर हिला रही थी. उसकी काम भावनाएँ अब उस'से संभाली नही जा रही थी. झट से उस'ने अप'नी आँखें खोल दी और नीचे मेरी तरफ देखा.

मुझे उसकी आँखों में काम वास'ना की आग दिखाई दी. उसकी आँखें जैसे नशा किया हो वैसी अधखुली हो रही थी. एक पल के लिए उस'ने मेरी तरफ देखा और उसके मूँ'ह से एक दबी चींख बाहर निकल गई. ज़ोर से मेरे बाल पकड़'कर वो मेरा मूँ'ह अप'नी चूत'पर दबाने लगी और नीचे से वो अप'नी कमर ज़ोर ज़ोर से हिलाते मेरे मुँह'पर धक्के देने लगी. उस'का कमर हिला'ने का जोश ऐसा था के जैसे वो नीचे से मुझे चोद रही हो.

ऊर्मि दीदी का आवेश ऐसा था के मुझे उसकी चूत'पर मूँ'ह रख'ने के लिए तकलीफ़ हो रही थी. बड़ी मुश्कील से में मेरा मूँ'ह उसकी चूत'पर दबाए हुए था और उस'का चूत'दाना चूस'ने की कोशीष मैं कर रहा था. उसके धक्कों का ज़ोर इतना ज़्यादा था के उसकी चूत की उप्परी हड्डी मेरे मूँ'ह को चुभ रही थी. मैं जब उस'का चूत'दाना चूस रहा था तब मेरी दाढ़ी का भाग उसकी चूत के छेद'पर दब रहा था और वहाँ से निकल रहा उस'का चूत'रस मेरे दाढ़ी को लग रहा था. उसकी सिस'कियाँ बढ़ गई. नीचे से उसके धक्के ज़ोर से लग'ने लगे. उसके मूँ'ह से अजीबो ग़रीब आवाज़े आने लगी. उसके धक्को का जोश अप'नी चरम सीमा पर पहुँच गया..
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03-22-2019, 12:24 PM,
#38
RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
"उहा.आहा.उहा.आहा. आइईइ. सगरा." और ऊर्मि दीदी ने आखरी चीख दे दी.. फिर उसके धक्के कम होते गये. उस'ने मेरे बाल छोड़ दिए और अपना बदन ढीला छोड़ के वो पड़ी रही. ऊर्मि दीदी काम्त्रिप्त हो गई थी!! और मेने उसे काम्त्रिप्त किया था, उसके छोटे भाई ने!! मुझे ऐसा लग रहा था के मेने बहुत बड़ा तीर मारा है! अब भी मैं उसकी चूत चाट रहा था और उसे निहार रहा था. धीरे धीरे वो शांत होती गई. उसके बदन पर पसीने की बूंदे जमा हो गई थी.

अप'नी सुधबूध खोए जैसी ऊर्मि दीदी पड़ी थी. बीच में ही उस'ने अपना हाथ उठा के मेरा मूँ'ह अप'नी चूत से हटाने की कोशीष की. मेने उसके चूत के छेद पर आखरी बार जीभ घुमा दी और मेरा सर उठा लिया. उसके चूत के निचले भाग से उस'का चूत'रस निकला था जो मेरे चाट'ने से मेरी जीभ पर आया था. मेरी बहन की चूत का वो रस चाट'कर में धन्य हो गया था!! बड़ी खुशी से मेरे मूँ'ह पर लगा वो चूत रस मेने चाट लिया.

फिर में उठा और आकर ऊर्मि दीदी के बाजू में पहेले जैसे लेट गया. में उसके चेह'रे को निहार रहा था और नीचे उसके नंगे बदन'पर नज़र डालता था. उपर से नीचे से उस'का नंगा बदन कुच्छ अलग ही दिख रहा था. उसके चह'रे पर पहेले तो थकान थी लेकिन बाद में धीरे धीरे उसके चेहरे के भाव बदलते गये. अब उसके चह'रे पर तृप्त भावनाएँ नज़र आने लगी. में काफ़ी दिलचस्पी से उसके चह'रे के बदलते रंगो को देख रहा था.

थोड़ी देर के बाद ऊर्मि दीदी ने अप'नी आँखें खोल दी. हमारी नज़र एक दूसरे से मिली. मेरी तरफ देखके वो शरमाई और दिल से हँसी. उसकी दिलकश हँसी देख'कर में भी दिल से हंसा.

"कैसा लगा, दीदी?"

"बिल'कुल अच्च्छा!! "

"ऐसा सुख पहेले कभी मिला था तुम्हें?"

"कभी भी नही!.. कुच्छ अलग ही भावनाएँ थी.. पह'ली बार मेने ऐसा अनुभाव किया है."

"जीजू ने तुम्हें कभी ऐसा आनंद नही दिया? मेने किया वैसे उन्होने कभी नही किया, दीदी??"

"नही रे, सागर!. उन्होने कभी ऐसे नही किया. उन्हे तो शायद ये बात मालूम भी नही होंगी."

"और तुम्हें, दीदी? तुम्हें मालूम था ये तरीका?"

"मालूम यानी. मेने सुना था के ऐसे भी मूँ'ह से चूस'कर कामसुख लिया जाता है इस दूनीया में."

"फिर तुम्हें कभी लगा नही के जीजू को बता के उनसे ऐसे करवाए?"

"कभी कभी 'इच्छा' होती थी. लेकिन उन'को ये पसंद नही आएगा ये मालूम था इस'लिए उन्हे नही कहा."

"तो फिर अब तुम्हारी 'इच्छा' पूरी हो गई ना, दीदी?"

"हां ! हां !. पूरी हो गई. और मैं तृप्त भी हो गई. कहाँ सीखा तुम'ने ये सब? बहुत ही 'छुपे रुस्तमा' निकले तुम!"

"और कहाँ से सीखूंगा, दीदी?.. उसी किताब से सीखा है मेने ये सब. हां ! लेकिन मुझे सिर्फ़ किताबी बातें मालूम थी लेकिन आज तुम्हारी वजह से मुझे प्रॅक्टिकल अनुभव मिला."

"उस किताब से और क्या क्या सीख लिया है तुम'ने, सागर?" ऊर्मि दीदी ने हंस'कर मज़ाक में पुछा.

"वैसे तो बहुत कुच्छ सीख लिया है. अब अगर उन बातों का प्रॅक्टिकल अनुभव तुम'से मिल'नेवाला हो तो फिर बताता हूँ में तुम्हें सब." मेने उसे आँख मार'ते हुए कहा.

"नही हाँ, सागर!. अब कुच्छ नही कर'ना. हम दोनो ने पहेले ही अप'ने रिश्ते की हद पार कर दी है अब इस'के आगे नही जाना चाहिए. मैं नही अब कुच्छ कर'ने दूँगी तुम्हें."

"मुझे एक बात बताओ, दीदी. अभी जो सुख तुम्हें मिला है वैसा जीजू ने तुम्हें कभी सुख दिया है?"

"नही. फिर भी."

"यही!. यही, दीदी!. इसी बात की कमी है तुम्हारी शादीशूदा जिंदगी में."

"क्या मतलब, सागर?" उस'ने परेशान होकर मुझे पुछा.

"मतलब ये. के जीजू थोड़े पुराने ख्यालात के है इस'लिए उन्हे पूरी तरह से कामसुख लेने और देने के बारे में मालूम नही होगा. और इसीलिए एक बच्चा होने के बाद उनकी दिलचस्पी ख़त्म हो गई. उन्हे लग'ता होगा एक बच्चा बीवी को देने के बाद उनका उसके प्रती कर्तव्य पूरा हो गया. लेकिन वैसा नही होता है. सिर्फ़ घर, खाना-पीना, कपड़ा देना यानी शादीशूदा जिंदगी ऐसा नही होता है. उन्होने तुम्हें काम-जीवन में भी सुख देना चाहिए. वो वैसा नही कर'ते है इस'लिए तुम दुखी रह'ती हो."

क्रमशः……………………………
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03-22-2019, 12:24 PM,
#39
RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
बहन की इच्छा—10

गतान्क से आगे…………………………………..

"शायद तुम ठीक कह रहे हो, सागर!. लेकिन वो ऐसा कुच्छ करेंगे नही. इस'लिए मुझे यही हालत स्वीकार कर के रहना चाहिए."

"नही, दीदी. पूरा कामसुख लेना आपका हक़ है और अगर वो तुम्हें जीजू से नही मिलता हो तो में तुम्हें दूँगा!! एक भाई होने के नाते मेरी बहन को सुखी रखना मेरा कर्तव्य है, चाहे वो कोई भी सुख क्यों ना हो."

"अरे पागले!. बहन-भाई में ऐसे संबंध बनते नही है. समाज उन्हे कबूला नही करता."

"मुझे मालूम है, दीदी. लेकिन हम समाज के साम'ने थोड़ी वैसे कर'नेवाले है? हम तो ऐसे करेंगे कि किसी को पता ना चले."

"फिर भी, सागर. हमारा बहेन-भाई का रिश्ता ही ऐसा है के हम ऐसे संबंध रख नही सकते."

"क्यों नही, दीदी??. आज सुबह से हम दोनो ने प्रेमी जोड़ी की तरह जो मज़ा कीया तब हम दोनो भाई-बहेन नही थे? अगर हम दोनो एक दूसरे के साथ इतना घुल'मील जाते है, एक दूसरे के साथ खुल'कर रहते है और एक दूसरे से हम खुशी पातें है तो फिर 'वो' खुशीया भी हम दोनो क्यों ना ले?? अब मुझे ये बताओ, दीदी. थोड़ी देर पह'ले हम'ने जो किया उस'से तुम्हें आनंद मिला के नही?"

"हम'ने नही.. तुम'ने किया, सागर! में तो विरोध कर रही थी लेकिन तुम'ने मुझे जाकड़ के रखा था."

"अच्च्छा, बाबा. मेने किया. लेकिन तुम'ने भी तो मेरा साथ दिया ना?"

"मेने कब तुम्हारा साथ दिया?" ऊर्मि दीदी ने शरारती अंदाज में कहा.

"बस क्या, दीदी?. मेने बाद में तुम्हें छ्चोड़ दिया था और फिर भी तुम'ने मुझे हटाया नही. उलटा तुम नीचे से उच्छल उच्छल'कर मेरा साथ दे रही थी.."

"तो फिर क्या कर'ती में, सागर?" उर्मई दीदी ने थोड़ा शरमा'कर हंस'ते हुए जवाब दिया,

"तुम मुझे छ्चोड़ नही रहे थे और 'वैसा' कुच्छ कर के तुम मुझे भड़का रहे थे. आख़िर कब तक में चुप रह'ती? तुम्हारी बहन हूँ तो क्या हुआ, आख़िर एक स्त्री हूँ. मेरी भी भावनाएँ भड़क उठी और अप'ने आप में तुम्हें साथ देने लगी."

"एग्ज़ॅक्ट्ली!!.. कुच्छ पल के लिए तुम्हें अजीब सा लगा होगा लेकिन बाद में तुम्हें भी मज़ा आया के नही? इस'लिए अगर तुम्हें मज़ा मिल रहा हो तो क्यों नही तुम ये सुख लेती हो?"

"सागर!. मेरे एक सवाल का जवाब दो. वैसे तुम'ने मुझे 'वहाँ पर' चाट के सुख दिया लेकिन तुम्हें उस में से कौन सा सुख मिला?"

"बिल'कुल सही सवाल पुछा, दीदी. आम तौर पे आदमी को औरतो की 'वो' जगहा चाट'कर कोई ख़ास सुख नही मिलता. इस'लिए ज़्यादातर आदमी वैसे कर'ते नही है. लेकिन औरत को पूरा सुख देना ये उस'का कर्तव्य होता है इस'लिए उस'ने वैसे कर'ना ही चाहिए. अब अगर मेरी बात करोगी तो में कहूँगा.. में हमेशा तैयार हूँ तुम्हें 'वो' सुख देने के लिए. तुम्हें सुख देने में ही मेरा सुख है, दीदी!!"
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03-22-2019, 12:24 PM,
#40
RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
"सागर, तुम्हें 'वहाँ' मूँ'ह लगाने में घ्रना नही आई?"

"क्या कहा रही हो, दीदी?. घ्रना और तुम्हारी??. मुझे क्यों तुम्हारी उस से घ्रना आएगी? उलटा मुझे बहुत आनंद मिला उस में. तुम्हें सुख देने में मुझे हमेशा आनंद मिलता है चाहे वो कैसा भी सुख हो."

"सागर, तुम कित'नी प्यारी प्यारी बातें कर'ते हो. तुम्हारी ऐसी बातें सुनके में तुम्हें किसी बात के लिए ना नही कह'ती."

"तो फिर, दीदी. अब में जो कहूँ वो करोगी क्या? मेने जैसी तुम्हारी 'चूत' चाट के तुम्हें सुख दिया वैसे तुम मुझे सुख दोगी??" मेने जान बुझ'कर 'चूत' शब्द पर ज़ोर देते हुए उसे पुछा.

"सागर!!" ऊर्मि दीदी चिल्लाई, "नालायक! बेशरम!! . तुम्हारी ज़बान को हड्‍डी बिद्दी है के नही?? बेधड़क अप'नी बड़ी बहन के साम'ने 'चूत' वग़ैरा गंदे शब्द बोल रहे हो."

"अरे उस में क्या, दीदी!" मेने बेशरमी से हंस'ते हुए जवाब दिया, "उलटा ऐसे गंदे शब्द बोलेंगे तो और ज़्यादा मज़ा आता है. ज़्यादा उत्तेजना अनुभव होती है. अभी यही देखो ना. तुम'ने भी कित'नी सहजता से 'चूत' ये शब्द बोला.. कित'नी उत्तेजीत लग रही हो तुम ये शब्द बोल के. इस'लिए अब हम ऐसे ही गंदे शब्द इस्तेमाल करेंगे.."

"छी!. में नही ऐसे कुच्छ शब्द बोलूँगी."

"अरे, दीदी. ऐसे अश्लील शब्दो में ही असली मज़ा होता है. ऐसे शब्द बोला के ज़्यादा उत्तेजना अनुभव होती है. पह'ले पह'ले तुम्हें थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन बाद में तुम अप'ने आप ये शब्द बोल'ने लगोगी."

"नही. नही. मुझे बहुत शरम आती है."

"ओहा! कम ऑन, दीदी!. तुम कोशीष तो करो. बाद में अप'ने आप आदत हो जाएगी तुम्हें."

"ठीक है, सागर. वैसे भी मुझे नंगी कर के तुम'ने बेशरम बना ही दिया है तो फिर और क्या शरमाउ में?"

"यह एक अच्छी लड़'की वाली बात की तूने, दीदी!!. तो में क्या बता रहा था. हां !.. मेने जैसी तुम्हारी 'चूत' चाट के तुम्हारी 'इच्छा' पूरी कर दी. वैसी. मेरी भी एक बहुत दिन की 'इच्छा' है. के मेरा 'लंड' कोई चाटे."

"ववा!.. अब यही एक शब्द बाकी था. बोलो. बोलो आगे. और कोई शब्द बाकी होंगे तो वो भी बोल डालो."

"देखो. आज हम एक दूसरे की 'इच्छाए' पूरी कर रहे है. है के नही, दीदी?"

"हां. बोलो आगे."

"तो फिर मेने जैसे तुम्हारी 'चूत' चाट दी वैसे तुम मेरा 'लंड' चाटोगी क्या?"

"छी!. मेने नही किया कभी वैसा कुच्छ."

"वो तो मुझे मालूम है, दीदी. जीजू ने तो कभी तुम्हें अपना लंड चाट'ने के लिए कहा नही होगा लेकिन कम से कम तुम्हें मालूम तो है ना के पुरुष का लंड चाट'कर उसे आनंद दिया जाता है?"

"मेने तुम्हें पह'ले भी कहा, सागर. मेने सुना था के ऐसे मुन्हसे चुसाइ के सुख देते है."

"फिर तुम्हें कभी जीजू को 'ये' सुख देने की 'इच्छा' नही हुई?"

"वैसी 'इच्छा' तो हुई थी दो तीन बार लेकिन वो 'वैसे' कुच्छ कर'ने नही देंगे इसका मुझे यकीन था."

"तो फिर 'वही' 'इच्छा' अब पूरी करे ऐसा तुम्हें नही लग'ता?"

"अरे लेकिन मेने कभी 'वैसा' किया नही इस'लिए मुझे सही तराहा से जमेगा के नही ये मुझे मालूम नही."

"क्यों नही जमेगा, दीदी? तुम चालू तो करो. फिर में तुम्हें 'गाइड' करता हूँ."

"तुम्हें क्या मालूम रे.. गाइड!! तुम'ने कभी किसी से 'वैसा' करवाया है क्या?"

"प्रॅकटिकॅली तो नही करवाया. लेकिन पढ़ा है 'उस' किताब में से ."

"सागर, तुम्हारी उस किताब की तो मुझे बहुत ही दिलचस्पी पैदा हो गई है. मुझे दोगे 'वो' किताब पढ़'ने के लिए? ज़रा में भी तो देखू के में कुच्छ 'ज्ञान' प्राप्त कर सक'ती हूँ क्या उस किताब से."

"क्यों नही, दीदी?. ज़रूर दूँगा में तुम्हें वो किताब. लेकिन अभी तो तुम मेरा कहा मान लो? चुसोगी मेरा लंड, दीदी??"

"अब में क्या नही बोल सक'ती हूँ तुम्हें, सागर?? तुम मुझे इतना सुख दे रहे हो, मेरी 'इच्छा' पूरी कर रहे हो. तो फिर मुझे भी तुम्हें सुख देना चाहिए, तुम्हारी 'इच्छा' पूरी कर'नी चाहिए. बोला अभी!.. में कैसे सुरुवात करूँ.."

ऊर्मि दीदी मेरा लंड चूस'ने के लिए तैयार होगी इसका मुझे यकीन था. सिर्फ़ उस कल्पना से में उत्तेजीत होने लगा. 'मेरी लाडली बड़ी बहन मेरा लंड चूस रही है' ये हज़ारो बार देखा हुआ सपना अब सच होने वाला था. में जल्दी जल्दी उठ गया और उप्पर खिसक के, तकिये के उप्पर मेरा सर रखे अध लेटा रहा. फिर मेने ऊर्मि दीदी को कहा,

"दीदी! तुम मेरे कपड़े निकाल'कर मुझे नंगा करो ना."

"में क्यों करू??. मेरी तो आद'मी को नंगा देख'ने की 'इच्छा' कब की पूरी हो चुकी है." ऊर्मि दीदी ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा.

"प्लीज़, दीदी! निकालो ना मेरे कपड़े. तुम्हें क्या तकलीफ़ है उस'में??"

"ना रे बाबा.. तुम्हें चाहिए तो तुम खुद निकालो अप'ने कपड़े." मेरी तरफ तिरछी निगाहो से देख वो हंस के बोली.

"ऐसा भी क्या, दीदी. क्यों इतना भाव खा रही हो?"

"भाव क्या खाना, सागर. भाई का 'लंड' खाने की बारी आ गई है मुझ'पर." उस'ने जान बुझ'कर 'लंड' शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा.

"जा'ने दो फिर. अगर तुम कर'ना नही चाह'ती हो तो रह'ने दो, दीदी." मेने थोड़ा मायूस होकर उसे कहा.
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