bahan ki chudai बहन की इच्छा
03-22-2019, 12:25 PM,
#41
RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
"अले. मेले. लाड़ले." ऊर्मि दीदी ने बड़े लाड से कहा, "कित'ने जलदी नलाज होता है मेला राजा भैया. उसे मश्करी भी समझ आती नही." ऐसा कह'कर वो ज़ोर से हंस'ने लगी. में कुच्छ नही बोला और चेह'रा मायूस कर के उसे दिखाने लगा के में नाराज़ हो गया हूँ.

"अच्च्छा! अच्च्छा!. इत'नी भी नाराज़ होने की ऐकटिंग कर'ने की ज़रूरत नही है, सागर. मुझे मालूम है मन ही मन लड्डू फूट रहे होंगे तुम्हारे." उस'ने बड़ी मुश्कील से अप'नी हँसी रोकते हुए कहा और वो सुन'कर मुझे भी हँसी आई.

"देखा. देखा. कैसे दिल से हँसे तुम." ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी उठ गयी और अप'ने घुट'ने पर खड़ी होकर उस'ने मुझे उप्पर उठ'ने का इशारा किया. में झट से उठा के बैठ गया. उस'ने मेरा टी-शर्ट दोनो बाजू से पकड़ लिया और धीरे धीरे उप्पर उठाते हुए निकाल दिया. फिर उस'ने मुझे पिछे धकेल के लिटा दिया और वैसे ही अप'ने घुट'ने के बल चल के वो मेरे पैरो तले गई. फिर उस'ने मेरे -पॅंट के इलास्टीक में दोनो बाजू से अप'नी उंगलीया घुसा के उसे पकड़ लिया. उस'ने उंगलीया ऐसे घुसाई थी के शॉर्ट पॅंट के साथ उस'ने अंदर की मेरी अंडरावेअर भी पकड़ ली थी. धीरे धीरे वो उसे नीचे खींच'ने लगी.

मेरा लंड ज़्यादा कड़क नही था और नीचे की ओर पड़ा हुआ था इस'लिए पॅंट नीचे खींचते सम'य उसे मेरा लंड आड़े नही आ रहा था. मेरे लंड के उप्पर की झाँते नज़र आने लगी तो उसे हँसी आई और बड़ी मुश्कील से अप'नी हँसी दबाते हुए वो पॅंट और नीचे खींच'ती गई. जैसे जैसे मेरा लंड उसे नज़र आने लगा वैसे वैसे उसकी हँसी कम होती गई. मेरी बड़ी बहन के साम'ने मेरा लंड खुल रहा है इस ख़याल से में उत्तेजीत हो रहा था. ऊर्मि दीदी ने पॅंट मेरे घुटनो तक खींची और यकायक मेरा लंड उसकी नज़र के साम'ने खुल गया! झट से उस'ने पॅंट मेरे पैरो से खींच के निकाल दी और बाजू में डाल दी.

क्रमशः……………………………
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03-22-2019, 12:25 PM,
#42
RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
बहन की इच्छा—11

गतान्क से आगे…………………………………..

अब में ऊर्मि दीदी के साम'ने पूरा नंगा था. उसकी नज़र मेरे अध-खड़े लंड पर टिकी हुई थी. मेरी बहन के साम'ने में नंगा हूँ और वो मेरे लंड को देख रही है ये अह'सास मुझे पागल कर'ने लगा. देख'ते ही देख'ते मेरा लंड कड़ा होने लगा. उस में जैसे जान भर दी हो और एक अलग जानवर की तरह वो डोल'ने लगा और तन के खड़ा हो गया. जैसे जैसे मेरा लंड कड़ा होता गया वैसे वैसे ऊर्मि दीदी की आँखें चौंक'ती गई.

एक पल के लिए वो मेरी तरफ देख'ती थी तो अगले पल मेरे कड़े हो रहे लंड को देख'ती थी. मेरे ध्यान में आया के मेरे जल्दी जल्दी कड़े हो रहे लंड को देख'कर वो हैरान हो रही थी.

"सागर!! क्या है ये.! कित'ना जल्दी तुम्हारा लंड तन के खड़ा हो गया!! मेने ऐसे लंड को खड़े होते हुए कभी नही देखा था!"

"सच, दीदी??. ये तो तुम्हारा कमाल है, दीदी!"

"मेरा कमाल?? मेने क्या किया, सागर?"

"नही. प्रैक्टिकली तुम'ने कुच्छ नही किया. लेकिन में तुम्हारे साम'ने नंगा हूँ ना. मेरी बहन के साम'ने में नंगा हूँ इस भावना से में इतना उत्तेजीत हो गया हूँ के पुछो मत.."

"मुझे पुच्छ'ने की ज़रूरत ही नही, सागर. में देख सक'ती हूँ ये कमाल." वो अब भी मेरे लंड को हैरानी से देख रही थी.

"ये, सागर. में ज़रा तुम्हारे लंड को अच्छी तरह से देख लूँ? मेरे मन में ये बहुत दिनो की 'इच्छा' है." ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी ने मेरे दोनो पैर फैला दिए और वो मेरे पैरो के बीच में बैठ गयी.

"कमाल है, दीदी. तुम'ने कभी जीजू के लंड को अच्छी तरह से देखा नही क्या?" मेने आश्चर्य से पुछा.

"हाँ. उनके लंड को क्या अच्छी तरह से देख'ना. वो तो मुझे हाथ भी लगाने नही देते थे. और हम दोनो रात के नाइट लॅंप में सेक्स कर'ते थे इस'लिए उनका लंड कभी अच्छी तराहा से देख'ने को भी नही मिला मुझे."

"अच्च्छा!.. तो आद'मी का लंड अच्छी तरह से देख'ने को मिले ये तुम्हारी 'इच्छा' थी हाँ."

"हां. लेकिन किसी भी आद'मी का नही. सिर्फ़ तुम्हारे जीजू का लंड."

"ओहा आय सी!. लेकिन ये तो जीजू का लंड नही है, दीदी."

"हां ! डियर सागर. मुझे मालूम है वो.. मेरे पति का लंड नही तो ना सही.. मेरे भाई का लंड तो है. इसी को निहार के में अप'नी 'इच्छा' पूरी कर लूँगी.." ऊर्मि दीदी की बात सुन'कर में ज़ोर ज़ोर'से हंस'ने लगा. उस'ने चौन्क के मेरी तरफ देखा और पुछा, "ऐसे क्यों हंस रहे हो, सागर?"

"इस'लिए के. अब तुम कित'नी आसानी से 'लंड' वग़ैरा शब्द बोल रही हो और थोड़ी देर पह'ले तुम 'शी!' कर रही थी. वो मुझे याद आया और मुझे हँसी आई!" मेने हंस'ते हुए उसे जवाब दिया.

"तो फिर क्या.. ये तो तुम्हारा ही कमाल है, सागर. तुम्ही ने मुझे गंदी कर दिया है."

"अब तक तो नही." उसे सुनाई ना दे ऐसी आवाज़ में मेने धीरे से कहा.

"क्या? क्या कहा तुम'ने??" उस'ने चमक कर पुछा.

"अम?. का. कुच्छ नही, दीदी. तुम कर रही हो ना मेरे लंड का परीक्षण??" मेने बात पलट'कर उसे कहा. फिर मेने ऊर्मि दीदी को मेरे पैरो के बीच में आराम से लेट'ने के लिए कहा. वो मेरे पैरो के बीच अप'ने पेट'पर लेट गयी और उस'ने अपना चेह'रा मेरे लंड के नज़दीक लाया. कुच्छ पल के लिए मेरे लंड को उप्पर से नीचे देख'ने के बाद उस'ने धीरे से अपना हाथ बढ़ाया और मेरा लंड पकड़ लिया.

"अहहा!! !" मेरी बहन के हाथ का स्पर्श मेरे लंड को हुआ और अप'ने आप मेरे मूँ'ह से सिस'की बाहर निकल गई.

"क्या हुआ, सागर? तुम्हें दर्द हुआ कही?" ऊर्मि दीदी ने परेशानी से पुछा.

"दर्द नही. सुख. सुख का अनुभव हुआ, दीदी!." उस अनोखे सुख से आँखें बंद कर'ते मेने कहा.

"सुख का अनुभव? यानी क्या, सागर??"

"अरे, दीदी!. तुम मेरा लंड हाथ में ले लो ये मेरी बहुत दिनो की 'इच्छा' थी."

"कौन, में???"

"तुम यानी.. कोई भी लड़'की. दीदी!"
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03-22-2019, 12:25 PM,
#43
RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
"अच्च्छा!. कोई और लड़'की. वही में सोचूँ. के में तुम्हारा लंड हाथ में ले लू ऐसी 'इच्छा' तुम्हारे मन में क्यों होंगी?" अब में ऊर्मि दीदी को क्या बताऊ??. के मेरा लंड सिर्फ़ उसके हाथ में ही क्या.. और कहाँ कहाँ देने की, डाल'ने की 'इच्छा' कित'ने बरसो से मेरे मन में है. में चुप'चाप पड़ा रहा और वो मेरा लंड हाथ में लेकर उसे गौर से देख'ने लगी. उस'ने पह'ले मेरा लंड पकड़'कर उस'का आगे पिछे से परीक्षण किया.

फिर मेरा लंड मेरे पेट की तरफ दबाते मेरे लंड के नीचे के अंडकोष का परीक्षण किया. एक हाथ से मेरा लंड मुठ्ठी में पकड़'कर दूसरे हाथ से मेरी गोटीयों को सहलाया. उसके उप्पर के मेरे झान्ट के बाल अप'नी उंगली में पकड़'कर उन्हे खींच के देखा. बालों को खींच'ने से मेरी गोटीयों की चमड़ी का तनना और छोड़'ने के बाद चमड़ी का वापस पहेले जैसा होना. ये बात उसे काफ़ी दिलचस्प लगी.

मेरी गोटीयों की चमड़ी को उप्पर करके ऊर्मि दीदी उसके नीचे के भाग का परीक्षण कर'ने लगी. उसे मेरे गोटीयों के नीचे का भाग अच्छी तरह से देख'ने को मिले इस'लिए मेने मेरे पैर और फैलाए और उप्पर किए. वो अप'नी उंगली मेरी गोटीयों के निचले भाग पर घुमा रही थी. जब उसकी उंगली का स्पर्श मेरे गान्ड के हॉल को लगा तब में छिटक गया. उसे मेरी गान्ड का हॉल दिख रहा होगा इसका मुझे यकीन था लेकिन दीदी वहाँ पर उंगली लगाएगी ये मेने सोचा नही था. में आश्चर्य से उड़ गया ये देख'कर वो हंस दी और उस'ने मेरा लंड छोड़ दिया. जैसे ही उस'ने लंड छोड़ दिया वैसे ही वो तन के खड़ा हो गया.

फिर ऊर्मि दीदी ने वापस मेरा लंड सूपदे के नीचे मुठ्ठी में भर लिया और सूपदे की चमड़ी नीचे सरका के सूपड़ा खुला किया. सुपारी जैसा कड़ा और चिकना सूपड़ा देख'कर उसे रहा ना गया और उस'ने अप'नी उंगली उस'पर घुमाई. शुपाडे के उप्पर जो छेद था उस'पर भी उस'ने उंगली घुमाई. फिर दो उंगलीयो से उस'ने छेद को फैलाया और उस मूत के हॉल का परीक्षण किया. उस'ने उंगलीया हटाते ही छेद बंद हो गया और उस में से मेरे वीर्य की पानी जैसी बूँद बाहर आई.

उस बूँद को बाहर आते देख ऊर्मि दीदी खिल उठी और मेरी तरफ देख कर हंस दी. फिर नीचे देख'कर उस'ने हलके से उस बूँद को उंगली लगाई और वो बूँद उसकी उंगलीपर आया. उस'ने दोनो उंगली से उस बूँद को मसल दिया और उसके गाढ़ेपन का अंदाज लिया. पूरा समय में ऊर्मि दीदी क्या क्या कर रही थी वो में बड़े मज़े से देख रहा था. आख़िर उस'ने मेरा लंड छोड़ दिया और वो उठ के बैठ गयी.

"कुच्छ भी कहो, सागर. लेकिन. पुरुष का ये भाग कुच्छ अलग ही दिखता है!" ऊर्मि दीदी ने हंस'कर कहा.

"पुरुष का ही क्यों. तुम स्त्रियों का भी वो भाग कुच्छ अलग होता है. ना समझ'ने वाला. किसी पहेली जैसा.. उलझन जैसा."

"कौन सी स्त्री का देखा है तुम'ने, सागर? मेरा तो यक़ीनन देखा नही."

"इस'लिए तो कह रहा हूँ. किसी पहेली जैसा. क्योंकी तुम्हारा 'वो' भाग मेने सिर्फ़ उप्पर ही उप्पर देखा है. लेकिन उसे अच्छी तरह से देख'कर ये पहेली सुलझाने की कोशीष मुझे कर'नी है."

"ना बाबा ना.. में नही अप'नी पहेली सुलझाने दूँगी तुम्हें."

"वो तो देख लेंगे हम बाद में, दीदी. चलो अभी. ज़रा मेरे लंड को चूस के मुझे जन्नत की सैर करा दो." मेने हंस'ते हुए उसे कहा.

"तो फिर बताओ मुझे. में कैसे कैसे. क्या क्या कारू. मेरे 'गाइड', वत्सायन!!" उस'ने 'गाइड' शब्द पर ज़ोर देते हुए हंस'ते हंस'ते कहा.

"ओके, दीदी! अब तुम पह'ले जैसी मेरे पैरो के बीच लेट जाओ. हाँ.. ऐसे ही.. अब मेरा लंड ऐसे सीधा पकड़ लो. ऐसेच. अब. धीरे से तुम्हारे होंठो से मेरे लंड के सुपाडे को चूम लो. अहहाहा!!. ऐसेही. आहा!. थोड़ी देर ऐसे ही मेरे लंड को चूम'ती रहो.. यस!. यस!!. अब तुम्हारी जीभ बाहर निकाल'कर मेरे सुपाडे को चाट लो. ऐसे ही. यस!. बिल'कुल लालीपोप चाटते है वैसे. ऐसेही. राइट!. बिल'कुल ऐसेही. अहहा. अब मेरे लंड के सुपाडे का जो छेद है ना.. उसे अप'नी जीभ से चाटो. और खुरेद दो.. आहा!. बिलाकूल ऐसेही, दीदी!. तुम बिल'कुल सही तरह से कर रही हो. ऐसे ही कर'ती रहो. अहहा!!."

मेरे साम'ने का नज़ारा मुझे पागल कर देने वाला था. ऊर्मि दीदी, मेरी सग़ी बड़ी बहन, मेरे पैरो में लेटी थी और में उसे बता रहा था के मेरा लंड कैसे चूसे. वो मेरे लंड का सुपाडा चाट रही थी और बीच बीच में उसके उप्पर के मूत के छेद को जीभ से खुरेद रही थी. मुझे तो कुच्छ अलग ही सेंसेशन अनुभव हो रहा था. मेने मेरे लंड को अंदर से एक झटका दिया और अचानक सुपाडे के छेद से मेरे वीर्य की पतली बूँद उप्पर आई. ऊर्मि दीदी ने शरारती नज़र से मुझे देखा. और वैसे ही मेरी नज़र से नज़र मिलाकर उस'ने अप'नी जीभ से वो बूँद चाट ली. फिर जीभ अप'ने मूँ'ह में लेकर उस'ने मेरे वीर्य का स्वाद चख लिया और झट से मुझे आँख मारी.

में धन्य हो गया!!. मेरा जीवन जैसे सफल हो गया!! मेरी बहन ने मेरे वीर्य का पानी चाट लिया. और उसे उस'का स्वाद पसंद भी आया!!. इस बात से मुझे यकीन हो गया के अगर में उसके मूँ'ह में झाड़ जाउ तो वो मेरा पूरा वीर्य निगल लेगी. इस ख़याल से में खूस हो गया और उत्साह से उसे आगे क्या कर'ना है ये बताने लगा.

"अब, दीदी. तुम अपना मूँ'ह खोल दो और मेरे लंड का सिर्फ़ सुपाडा अप'ने मूँ'ह में ले लो. हाँ. ऐसेही. ओहा. अब. अप'ने होठों से सुपाडे के बेस को जाकड़ लो. और फिर अप'नी जीभ और मूँ'ह के अंदर का उप्परी भाग. इस'के बीच पकड़ा के सुपाडे को ज़ोर से चूसो. अहहाहा!. ऐसेही. ग्रेट!.. ऐसे ही कर'ते रहो. ज़्यादा ज़ोर से मत चूसो. धीरे धीरे.. हाँ. इतना ही. बराबर. चूसो. दीदी. चूसो मेरा लंड.." यकायका मेरा लंड चुसते चुसते ऊर्मि दीदी हंस'ने लगी. वो क्यों हंस रही है ये मेरी समझ में नही आया इस'लिए मेने उसे पुछा,
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03-22-2019, 12:25 PM,
#44
RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
"क्या हुआ, दीदी? तुम हंस क्यों रही हो??"

"कुच्छ नही रे, सागर." ऊर्मि दीदी ने अपना सर उठाते हुए कहा,

"तुम'ने मुझे धीरे से चूस'ने के लिए कहा तो मुझे थोड़ी देर पहेले की बात याद आई. तुम भी मेरी चूत ऐसे ही ज़ोर से चाट रहे थे और मुझे भी पह'ले पह'ले थोड़ी तकलीफ़ हुई. इस'लिए अब उस'का बदला लेने के लिए में तुम्हें ज़ोर से चूसूंगी." ऐसा कह'कर हंस'ते हंस'ते वो वापस मेरा लंड चूस'ने लगी. मेने डराते हुए उसे कहा,

"अरे नही, दीदी. वैसे ज़्यादा ज़ोर से मत चूसो.. उस से मेरे लंड को तकलीफ़ होगी. बहुत ही नज़ूक होता है लंड.. तुम्हारी चूत जैसा नही होता है."

"नही रे, सागर!. में तो मज़ाक में कह रही हूँ.. में कैसे तुम्हें तकलीफ़ दूँगी? डरो मत..! में धीरे से चूस'ती हूँ तुम्हारा लंड!!."

"ओहा "थॅंक्स, दीदी!.. अहहाहा.. ऐसेही, दीदी.. ऐसेच. क्या बताउ तुम्हें, दीदी.. कित'ना अच्छा लगा रहा है.. अब. तुम मेरा पूरा लंड. अप'ने मूँ'ह में.. लेने की कोशीष करो.. हम. ऐसेही नीचे जाओ. और नीचे. और. अप'नी नाक से साँस लो.. ज़ोर ज़ोर से. जिस'से तुम्हें आना ईज़ी फील नही होगा. जाओ. और नीचे जाओ."

मेरे लंड का लग'भाग सत्तर, अस्सी प्रतिशत भाग ऊर्मि दीदी के मूँ'ह में गायब हो गया था. अभी और थोड़ा अंदर जाना बाकी था. मेरे लंड के सुपाडे का उसके गले के उप्परी भाग को हो रहा स्पर्श में अनुभव कर रहा था. मेने उसके सर के पिछे हाथ रख और कुच्छ पल उसके बालो को सहलाया. फिर में उस'का सर मेरे लंड पर नीचे धीरे धीरे दाब'ने लगा और उसे कह'ने लगा,

"अप'नी नाक से साँसे ले लो, दीदी. अब ले लो मेरा बाकी लंड अप'ने मूँ'ह में.. ले लो.. और ले लो.. जाओ नीचे. तुम्हारा सर थोड़ा उप्पर करो. हाँ. ऐसेही. बराबर. अब दबाओ अपना मुँह और नीचे. और. मेरे लंड का सुपाडा जा'ने दो अप'ने गले में. जा'ने दो. और. बराबर. ऐसेही. और थोड़ा. एसा.. डॅट्स इट.. ग्रेट!. यू आर ग्रेट, दीदी!."

क्रमशः……………………………
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03-22-2019, 12:26 PM,
#45
RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
बहन की इच्छा—12

गतान्क से आगे…………………………………..

मुझे तो यकीन ही नही हो रहा था!! . मेरी बहन ने मेरा पूरा लंड अप'ने मूँ'ह में निगल लिया था. मेरे लंड का सुपाड़ा उसके गले में उतरा था. उसके होंठ मेरे लंड के बेस को स्पर्श कर रहे थे और वहाँ के मेरे झान्टो के बालो को गुदगूदी कर रहे थे. वो नाक से साँस ले रही थी जिस'से उसकी गरम साँसों की हवा मेरे लंड के बेस'पर मुझे अनुभव हो रही थी.

"ओह ! दीदी. मे डियर, दीदी. यू आर ग्रेट!.. तुम'ने मेरा पूरा लंड अप'ने मूँ'ह में लिया.. थॅंक्स!. थकयू वेरी मच!.. आय लव यू, दीदी.. आय लव यू वेरी मच!.." "अब. तुम्हारा मूँ'ह मेरे लंड'पर उप्पर नीचे करो. ऐसे." उस अनोखे सुख की भावना से अप'ने आप मेरी आँखें बंद हो गई और मैं उस'का ऊर्मि दीदी का सर पकड़'कर उसे मेरे लंड'पर उप्पर नीचे कर'ने लगा.

"ऐसेही. बराबर. अप'ने होठों से मेरा लंड जाकड़ के मूँ'ह में पकड़'कर रखो.. ऐसेही. हम. अब करो उप्पर नीचे ऐसेही.. डॅट्स इट!.. अब ऐसेही कर'ते रहो. बीच में ही मेरा लंड उप्पर नीचे जीभ से चाट लो. फिर मूँ'ह में लेकर चूसो.. अब सिर्फ़ सुपाड़ा चूसो. अब एक के बाद एक. ऐसे ही कर'ते रहो. जो तुम कर रही हो. एस. ऐसेही.. येस. ओहा.या."

मेरा लंड लोहे की तरह कड़ाका हो गया था. मेरी बहन अप'नी पूरे ताक़त के साथ मेरा लंड चूस रही थी. वो कुच्छ अलग ही फिलींग था!!

इत'नी अलग भावनाएँ जो मेने पह'ले कभी अनुभव नही की थी. ऊर्मि दीदी ने लंड चूसना बहुत ही जल्दी सीख लिया. मेरे बताए हुए सभी तरीक़ो का इस्तेमाल वो कर रही थी. कभी वो मेरे लंड का सुपाड़ा चाट'ती थी तो कभी उसके उप्पर के मूठ के छेद से खेल'ती थी. कभी मेरा लंड उपर से नीचे और आगे से पिछे चाट'ती थी. कभी मेरा पूरा लंड अप'ने मूँ'ह में भर'कर अप'ने गले तक लेती थी. बड़े ही प्यार से मेरी बहन मेरा लंड चाट रही थी, खा रही थी.

"अब, दीदी. अपना सर तिरछा कर के मेरा पूरा लंड चाटो. ऐसे. बराबर. उप्पर नीचे.. उप्पर नीचे. अब अप'ने होंठो में मेरा लंड पकड़ लो. अब ऐसे ही पकड़ते पकड़ते नीचे जाओ. और नीचे. और नीचे. अब मेरे बाल्स चाट लो. हाँ. इसे ही बाल्स कह'ते है, गोटीया कह'ते है.. चाटो उसे. उसकी चमड़ी अप'ने होंठो में पकड़ा लो. और खिँचो थोड़ा सा. ऐसे. अहहा!. ज़्यादा ज़ोर से नही. धीरे. धीरे. बहुत नाज़ुक होती है गोटीया.. बिल'कुल धीरे से चाटो. अब अपना पूरा मूँ'ह खोल के मेरी गोटीया मूँ'ह में भर लो. लो ना, दीदी. बैठेगी वो तुम्हारे मूँ'ह में.. ओहा या.. ऐसेही. बराबर. धीरे धीरे अब उन्हे चूसो. ओहा. यहहा. अब ज़रा उप्पर मेरी तरफ देखो, दीदी.. ऐसेही. मेरी गोटीया चुसते चुसते उप्पर देखो.. वाऊऊऊओ!. क्या सेक्सी लगा रही हो तुम, दीदी!! ."

जिंदगी में कभी नही भूलूंगा ऐसा वो द्रिश्य था!! मेने मेरा लंड अप'ने हाथ से मेरे पेट की तरफ दबाया था और उसके नीचे ऊर्मि दीदी मेरी गोटीया अप'ने मूँ'ह में भर'कर चुसते चुसते मेरी तरफ उप्पर देख रही थी. मेने इत'नी देर तक कैसे सब्र किया है इसका मुझे ताज्जुब था. वो तो खैर में बाथरूम में जाकर मूठ मार के आया था वारना जब ऊर्मि दीदी के होठों ने मेरे लंड को छुआ था तभी में झाड़ जाता था. वैसे तो मेरा लंड एक दो लड़कियो ने पह'ले भी चूसा था लेकिन जिंदगी में पह'ली बार कोई मेरा लंड इत'ने इतमीनान से चूस रही थी. और वो भी कौन चूस रही थी??? मेरे सपनो की रा'नी.

मेरी कामदेवी.. मेरी लाडली बड़ी बहन.. मेरी ऊर्मि दीदी. जो मेरा लंड चूस रही है ऐसा सपना मेने हज़ारो बार देखा था जो अब ह'कीकत में बदल गया था.

इन्ही सब ख्यालो से में लिमिट के बाहर उत्तेजीत हो गया था. मेरा सब्र अब टूट'ने लगा. मुझे लग'ने लगा के अब किसी भी सम'य मेरा पानी छूट जाएगा और में झाड़ जाउन्गा. मेने झट से ऊर्मि दीदी का सर पकड़ लिया और मेरे लंड के सुपाडे पर लाया. वो वापस मेरे लंड का सुपाड़ा चूस'ने लगी. कुच्छ पल मेने उसे चूस'ने दिया और फिर में उस'का सर अप'ने लंड पर दाब'ने लगा. वो अब सर उप्पर नीचे कर के मेरा लंड चूस'ने लगी.

धीरे धीरे में अप'नी कमर हिला'ने लगा और उसके मूँ'ह में धक्के मार'ने लगा. जैसे के में उस'का मूँ'ह चोद रहा हूँ!!

"दीदी.. ओ, दीदी. में फिनीश हो रहा हूँ. आहा. उहा.." ऐसे कुच्छ बड़बदाते मेने उस'का सर मेरे लंड पर दबा के रखा. ऊर्मि दीदी अपना सर उठा'ने की कोशीष कर'ने लगी लेकिन मेने उस'का सर ज़ोर से मेरे लंड पर दबाया था. उसके मूँ'ह में मेरा लंड था इस'लिए उसे बोलना नही आता था. वो मूँ'ह से "उम. उम." ऐसी आवाज़े निकाल'कर उसे छोड़'ने का इशारा कर'ने लगी लेकिन मेने उसकी एक ना सुनी. में पागल हो गया था. मेरे अंदर काम वास'ना की ज्वालाएँ भड़क उठी थी. मेरी कनपटिया गरम हो गई थी. में अब कमर ज़ोर ज़ोर से हिला'ने लगा और उसके मूँ'ह में धक्के देने लगा. उस'का सर तो एक जगह पर था और मेरे धक्के से मेरा लंड उसके मूँ'ह में अंदर बाहर हो रहा था. धक्के देते देते मेरा लंड तो थोड़ा ही बाहर आता था लेकिन अंदर जाते सम'य वो लग'भग पूरा उसके मूँ'ह में धसता था.
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03-22-2019, 12:26 PM,
#46
RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
अचानक मेरे लंड से वीर्य की पिच'कारी छूट गई. उस सम'य मेरा लंड बराबर ऊर्मि दीदी के गले में उतरा हुआ था इस'लिए वो पह'ली पिच'करी सीधा उसके गले में उतर गई होंगी. उस'को 'वो' अनुभाव हुआ इस'लिए वो अपना सर उप्पर कर'ने के लिए छटपटा'ने लगी. लेकिन मेरे अंदर जैसे शैतान जाग उठा था इस'लिए मेने उसे छोड़ा नही. हिच'कीया देते देते मेरा लंड मेरी बहन के मूँ'ह में झाड़'ने लगा. उसे मेरी पकड़ से छुट'कारा नही मिल रहा था इस'लिए मेरा पानी निगल'ने के सिवा उसके पास कोई चारा नही था. धीरे धीरे मेरे झाड़'ने की रफ़्तार कम होती गई. फिर मेने उस'का सर थोड़ा ढीला छोड़ दिया जिस'से वो ठीक तरह से साँस ले सके. लेकिन मेने उसे पूरी तरह से नही छोड़ा था. मेरे लंड से वीर्य की आखरी बूँद निकल'ने तक मेने उस'का सर मेरे लंड पर पकड़ के रखा था. आख़िर मेने उसे छोड़ दिया.

जैसे ही मेने ऊर्मि दीदी को छोड़ा दिया वैसे ही उस'ने अपना सर उप्पर कर के ज़ोर से साँस ली. मूँ'ह पर हाथ रख'कर वो खांस'ने लगी. फिर वो वैसे ही उठ गई और दौड़'कर बाथरूम में गई. बाथरूम में उस'ने वश बेसीन का पानी चालू कर'ने की आवाज़ आई. वो अंदर खांस रही थी, मूँ'ह में पानी भर के उल'टीया कर रही थी. कुच्छ देर बाद वो शांत हो गई और बाद में बाहर आई.

यह मैं. मेरे वीर्य पतन की धुन में था. जब में झाड़ रहा था तब मेने आँखें बंद की थी इस'लिए उस सम'य ऊर्मि दीदी की क्या हालत थी ये मेने देखा नही था. जब वो बाथरूम में खांस'ने लगी तब में होश में आया. में जब झाड़ा रहा था तब मेने ज़बरदस्ती ऊर्मि दीदी का मूँ'ह मेरे लंड पर पकड़'कर जानवरों सी हरकत की थी. और अब मुझे मेरे उस जानवरना हरकत से शरमिंदगी अनुभव होने लगी. मुझे मालूम था अब ऊर्मि दीदी गुस्सा हो जाएगी. उस'का गुस्सा कैसे निकाला जाए इस बारे में मैं सोचने लगा. वो बाथरूम से बाहर आई और बेड'पर मेरे नज़दीक आकर बैठ गई. उसके चह'रे पर कोई भाव नही थे.

"सॉरी दीदी!. मुझे होश ही नही रहा में पह'ली बार ऐसा अनुभव कर रहा था इस'लिए मुझ'से संभाला ना गया" मेने डरते डरते उसे कहा,

"ठीक है सागर. में समझ सक'ती हूँ के ये तुम्हारा पह'ला अनुभव था फिर भी तुम्हें थोड़ा तो मेरा ध्यान कर'ना चाहिए था मेरी तो जान अटक गई थी मेरे गले में." शांत स्वर में ऐसे कह'ते वो बेड'पर मेरे बाजू में लेट गई

"आइ आम एक्स्ट्रीमली सारी, दीदी!!" उस'का बोल'ने का ढंग गुस्सेवाला नही था ये जान'कर मेरी जान में जान आई और मेने आगे कहा,

"तुम बहुत अच्छी हो, दीदी!!. बड़े दिल से तुम'ने मेरी 'इच्छा' पूरी कर दी जो कोई भी बहन पूरी नही कर सक'ती और मेने उस'का ग़लत फ़ायदा उठाया तुम मेरा विरोध कर रही थी फिर भी मेने तुम्हें छोड़ा नही. नही, दीदी!. तुम मुझे सज़ा दो!. मेने ग़लत किया है और उस बात की मुझे सज़ा मिल'नी चाहिए!"

"अरे ठीक है रे, सागर!.. इस तरह शरमिंदा होने की ज़रूरत नही में गुस्सा वग़ैरा नही हूँ सिर्फ़ तुम मेरे मूँ'ह में झाड़ जाओगे इस बात के लिए में तैयार नही थी और इस'लिए में हैरान हो गई अगर तुम'ने मुझे पह'ले बताया होता तो में उस तरह से तैयार रह'ती" ऊर्मि दीदी उलटा मुझे समझा रही थी.

"नही, दीदी!. मेरी वजह से तुम्हें तकलीफ़ हुई और तुम मुझे सज़ा नही दे रही हो तो फिर मुझे ही मेरी गल'ती का प्रायश्चित कर'ना चाहिए. में क्या करू??.. हां !.. में तुम्हें कुच्छ अलग सुख दे के अपना प्रायश्चित कर लेता हूँ."
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03-22-2019, 12:26 PM,
#47
RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
"अब ये कौन सा अलग सुख है, सागर??"

"धीरे से प्यार!!. में तुम्हें धीरे से प्यार करता हूँ, दीदी!"

"अब ये क्या है?. ज़रूर उस किताब में से कुच्छ पढ़ा होगा. है ना सागर?"

"हाँ !. लेकिन पूरी तरह से किताबी बातें नही. उस में कुच्छ मेरी भी कल्पनाएं है."

"चल हट. में नही करूँगी अभी कुच्छ." ऐसा कह'ते ऊर्मि दीदी घूम गई और मेरी तरफ पीठ कर के अप'ने पेट पर लेट गई.

"तुम कुच्छ मत करो, दीदी.. तुम सिर्फ़ पड़ी रहो. जो भी कर'ना है वो में करूँगा." उसकी पीठ मेरी तरफ होने की वजह से मेने उसके भरे हुए चुत्तऱ हिलाते हिलाते उसे कहा. ऊर्मि दीदी कुच्छ ना बोली और वैसे ही पड़ी रही में फिर उसके बाजू में लेट गया और उसके नंगे बदन को यहाँ वहाँ हाथ लगा के उसे कह'ने लगा,

"बोला ना, दीदी. करू ना में तुम्हें धीरे से प्यार?. तुम्हें पसंद आएगा जो में करूँगा. और मुझे यकीन है जीजू ने तुम्हें वैसे कभी किया नही होगा."

"करो बाबा. करो. जो भी कर'ना है कर." आख़िर उस'ने कहा,

"ओह थॅंक यू, दीदी!" मेने झट से उसे कहा. ऊर्मि दीदी पेट के बल सोई थी और उस'का मूँ'ह उसके दाएँ हाथ की तरफ था में उसके बाएँ हाथ की तरफ लेटा हुआ था में उठा और घुट'ने पर बैठ गया फिर मेरा दायां हाथ उसके दाएँ कंधे के नज़दीक और बाया हाथ उसके बाएँ कंधे के नज़दीक रख'कर में उसके उप्पर झुक गया. धीरे से मेरा मूँ'ह में उसके कान के नज़दीक ले गया उसे मेरी साँसों का अह'सास हो गया और उस'ने अप'नी आँखें खोल के मेरी तरफ देखा फिर हंस'ते हंस'ते वापस उस'ने अप'नी आँखें बंद कर ली.

मेने धीरे से मेरे होठ ऊर्मि दीदी के कान के छोर पर रख दिए और उसे होंठो में पकड़ लिया. फिर में जीभ निकाल'कर उसके कान का छोर चाट'ने लगा और उस'से खेल'ने लगा बीच बीच में में उसे दाँतों में पकड़'कर धीरे से काटता था. थोड़ी देर तो ऊर्मि दीदी शांत थी लेकिन धीरे धीरे उस'ने अपना सर हिलाना चालू किया. शायद उसे गुदगूदी हो रही थी या तो वो उत्तेजीत हो रही थी लेकिन उसकी तरफ से मुझे साथ मिला'ने लगी.

"दीदी! तुम बहुत अच्छी हो. में तुम्हें बहुत पसंद करता हू." मेने धीरे से उसके कान'पर जीभ घुमाते हुए कहा

"में भी तुम्हें बहुत पसंद कर'ती हूँ, सागर!" उस'ने बंद आँखों से कहा

"में बहुत लकी हूँ, दीदी. जो मुझे तुम्हारे जैसी बहन मिली है. जो भाई के लिए कुच्छ भी कर'ती है."

"हां. और में भी बड़ी भाग्यशाली हूँ, सागर. जो मुझे तुम्हारे जैसा भाई मिला है. जो मुझे नंगा करता है. मुझे लंड चूस'ने को कहता है. और भी क्या क्या मेरे साथ करता है." उस'ने शरारत से कहा.

"हां. लेकिन तुम्हें भी अच्छा लग'ता है जो में करता हूँ. है ना, दीदी??"

"वो तो है.. इस'लिए में तुम्हें ये सब कुच्छ कर'ने देती हूँ."

"ओह ! दीदी! आई लव यू.. आय लव यू वेरी मच!! " ऐसा कह'कर मेने ऊर्मि दीदी के मुलायम गालोपर अप'ने होठ रख दिए और में उसके गालों को चूम'ने लगा. उस'को चूम'ते चूम'ते में धीरे से नीचे हुआ और उसके बदन पर लेट गया. में उसके बदन पर लेटा ज़रूर था लेकिन अब भी मेरा ज़्यादातर भार मेरे दोनो हाथों पर ही था. उसके गालों को चूम'ते चूम'ते मेने मेरे होंठ और नीचे लिए और उसके होठों को ज़ोर से चूम'ने लगा कभी में उसके होंठ ज़ोर से मेरे होठों में पकड़ता तो कभी में उन्हे हलके से काट'ता तो कभी उस'पर अप'नी जीभ घुमाता था.

क्रमशः……………………………
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03-22-2019, 12:26 PM,
#48
RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
बहन की इच्छा—13

गतान्क से आगे…………………………………..

थोड़ी देर वैसा कर'ने के बाद चूम'ते चूम'ते में पिछे आया और उसकी गर्दन को चूम'ने लगा. फिर में उसकी गर्दन दाएँ से चूम'ते चूम'ते बाई तरफ आया. ऊर्मि दीदी ने झट से अप'नी गर्दन घुमा ली और दाएँ से बाएँ तरफ मूँ'ह कर लिया जैसा मेने उसे दाएँ तरफ चूमा था वैसे ही मेने उस'का बाया गला और ज़ोर से होंठ चूम लिए.

ऊर्मि दीदी के चह'रे को चूम'ते चूम'ते में उप्पर आया और उस'का कंधा चूम'ने लगा. मेरे शरीर का भार मेरे हाथों पर था लेकिन फिर भी में ऊर्मि दीदी के नंगे बदन पर मेरा बदन जितना हो सके उतना घिस रहा था. एक के बाद एक उसके दोनो कंधो को चूम'ने के बाद में उसके हाथों की तरफ मूड गया. उसके दोनो हाथों को एक के बाद एक में चूम'ने लगा. में मेरे होठ उसके बदन पर घुमा रहा था तो कभी उस'को जीभ से चाट रहा था तो कभी उस'को दाँतों से धीरे से काट रहा था.

इस तरह मेने ऊर्मि दीदी के दोनो कंधे, दोनो हाथ और उसकी पूरी पीठ एक के बाद एक चाट ली और चूम ली. बीच बीच में ऊर्मि दीदी के बदन को हलका सा झटका लगता था. उसके मूँ'ह से सिस'कीया निकल'ती थी. कभी कभी उसके बदन पर रोंगटे खड़े हो जाते थे. इस तरह वो चुप'चाप पड़ी थी और जो कुच्छ में कर रहा था उस'का मज़ा ले रही थी.

बाद में मैं उठ गया और ऊर्मि दीदी के पाँव फैलाकर मेने उस में जगह बना ली. फिर में उसके पाँव के बीच में इस तरह अप'ने घुट'ने पर बैठ गया कि झुक'ने के बाद मेरा मूँ'ह उसके चुत्तऱ पर आए. नीचे झुक'कर मेने मेरे होठ उसके भरे हुए चुत्तऱ पर रख दिए. धीरे धीरे में उसके चुत्तऱ को चूम'ने लगा. उसके चुतडो को चूम'ते चूम'ते में उन्हे मसल रहा था. उसके गोरे गोरे चुत्तऱ मेरे मसल'ने से लाल होने लगे. थोड़ी देर उसके दोनो चुत्तऱ को अच्छी तरह से चाट'ने, चूस'ने और काट'ने के बाद में उनके बीच में सरक गया.

ऊर्मि दीदी के दोनो चुतडो के बीच में चूम'ते चूम'ते में उप्पर उसकी कमर तक गया. कुच्छ पल वहाँ चाट'ने के बाद मेने मेरी जीभ उसके चुत्तऱ के बीच वाली खाई में धकेल दी. मेरी जीभ से उसके चुत्तऱ की खाई चाटते चाटते में धीरे धीरे नीचे सर'कने लगा फिर मेने दोनो हाथों से उसके चुत्तऱ बाजू में दबाए जिस'से उसके चुत्तऱ के बीच की खाई और भी चौड़ी हो गई. कमरे की रौश'नी में वो खाई चमक रही थी थोड़ा नीचे उसकी गान्ड का छेद साफ साफ नज़र आ रहा था. मेने मेरी जीभ थोड़ी कड़ी की और उसके चुत्तऱ की वो खाई बड़े प्यार से चाट'ने लगा. चाटते चाटते में नीचे सरक गया और धीरे से मेने उसके गान्ड के छेद पर जीभ का चूमा दी.

उस'से ऊर्मि दीदी के नंगे बदन को अच्छा सा झटका लगा. उसे अनुभव हो गया के मेने उसके गान्ड के हॉल'पर जीभ लगाई है क्योंकी में जब जीभ घुमा रहा था. तब उसकी गान्ड का छेद थोड़ा सिकुड गया ऐसा मुझे अनुभव हुआ. फिर में जल्दी जल्दी उसके चुत्तऱ के बीच का भाग उप्पर से नीचे तक चाट'ने लगा. बीच बीच में जब में उसकी गान्ड के छेद को जीभ लगाता था तब वो पागल हो जाती थी. अब वो अप'ने चुत्तऱ हिलाने लगी थी उसके मूँ'ह से सिस'कीया और हल'की चींखे बाहर निकल'ने लगी थी. इसका मतलब ये था के जो कुच्छ में कर रहा था वो उसे पसंद आ रहा था और उस'से वो उत्तेजीत हो रही थी.

फिर में पूरी तरह से नीचे लेट गया और दोनो हाथों से ऊर्मि दीदी के चुत्तऱ निचोड़ते निचोड़ते उसके बीच की खाई ज़ोर से चूस'ने लगा. उस'को चुसते चुसते बाद में मैं मेरे दोनो हाथ उप्पर ले गया और उसके पीठ और छाती के साइड पर घुमाने लगा. उसकी छाती के उभार उसके बदन के नीचे दब गये थे और में उसके उभारो के साइड से उन्हे सहलाते सहलाते उसके नीचे हाथ डाल'ने लगा लेकिन उसके बदन का वजन उन उभारो पर था जिस'से में हाथ अंदर नही डाल सका.

आख़िर ऊर्मि दीदी ने समझदारी दिखाई और अप'ने हाथों पर वजन लेकर थोड़ी उप्पर उठ गई. मेने झट से मेरे हाथ नीचे से उसकी छाती के उभारो तले डाल दिए और उसके उभार पकड़'कर उन्हे निचोड़'ने लगा. मेने कई बार सपनो में देखी हुई ये एक पोज़ीशन थी ऊर्मि दीदी पेट'पर लेटी हुई है और में उसके पैरो के बीच में लेटा हुआ हूँ. में उसके चुत्तऱ के बीच में मूँ'ह डाल के उसे चाट रहा हूँ और मेरे दोनो हाथ लंबे करके में उसकी छाती दबा रहा हूँ बिल'कुल वैसे ही हो रहा था काफ़ी देर तक में वैसे उसे चाट रहा था और दबा रहा था.
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03-22-2019, 12:26 PM,
#49
RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
आख़िर में उठ गया और अरमी दीदी को पीठ'पर सीधा कर'ने लगा. वो घूम गई और अप'ने पीठ'पर सो गई. उसकी आँखें बंद थी. में उसके बाजू में लेट गया और उसके माथे पर मेने मेरे होठ रख दिए. में उसके माथे को धीरे धीरे चूम'ने लगा और नीचे सर'काने लगा. उस'का माथा, आइब्रो, आँखें, नाक, गाल. एक एक कर'ते में उसके पूरे चह'रे को चूम'ने लगा. उसकी दाढी का भाग था उसे मेने हलके से काट लिया.

उसके गालों पर मेरे गाल घिस लिए फिर में उसके होठों पर आया. थोड़ी देर उसके होठों को उप्पर ही उप्पर चूम'ने के बाद में उस'पर मेरी जीभ घुमाने लगा. फिर मेने जीभ उसके होठों के बीच डाल दी और उसके दाँत चाट'ने लगा. अप'ने आप उस'ने अपना मूँ'ह खोल दिया और उस'ने मेरी जीभ को अप'नी जीभ लगा दी.

तो फिर क्या! हम दोनो भाई-बहेन की जीभ का एक दूसरे के मूँ'ह में तांडव न्रित्य चालू हो गया और चाटना, चूमना, चूसना चालू हो गया. जित'नी देर हम भाई-बहेन फ्रेंच किसींग कर रहे थे उत'नी देर में मेरी बहन के नंगे बदन पर मेरी हल'की उंगलीया फिरा रहा था. उसके बड़े बड़े छाती के उभारो पर, उसके उप्पर के निप्पल पर, उसके पेट पर, उसकी नाभी पर, उसकी चूत पर, उसके चूत के बालो पर, उसकी जांघों पर.. सब जगह मेरी उंगलीया जादुई छड़ी की तराहा फिर रही थी जिस'से ऊर्मि दीदी का रोम रोम जाग उठा था.

ऊर्मि दीदी उत्तेजीत हो रही थी और मेरे बालों में हाथ फिरा रही थी. अचानक उस'ने मेरा सर ज़ोर से पकड़ लिया और वो मेरा ज़ोर से चुंबन लेने लगी. मेने उसकी छाती के उभारो पर मेरे हाथ लाए और में उन्हे मसल'ने लगा. हमारे चुंबन की गती बढ़ गई. मेरा उसके बदन'पर ज़ोर बढ़ गया. मेने उसकी छाती को छोड़ दिया और ज़ोर से उसे मेरी बाँहों में भर लिया. उस'ने भी मेरी गर्दन पर अपना हाथ डाल'कर मुझे ज़ोर से कस लिया.

काफ़ी देर वैसे चुंबन लेने के बाद मेने उसे छोड़ दिया और नीचे सरक गया. वो मुझे छोड़ नही रही थी लेकिन मेने मेरे होठ उसके होंठो से हटाए तो उसे मुझे छोड़ना पड़ा. अब मेने पोज़ीशन बदल दी और उसकी टाँगों के बीच लेट गया. में ऐसे लेटा था के उसकी चूत मेरे पेट के नीचे थी और मेरा मूँ'ह उसके छाती के उभारो पर था.

पह'ले तो मेने उसके दोनो उभारो के बीच की खाई को अच्छी तरह से चाट लिया और उस जगह चूम लिया फिर में उसके छाती के उभारो पर आया. में फिर उसके उभारो के उपर के अरोला को धीरे से चाट'ने लगा और उसकी गोलाई पर गोल गोल जीभ घुमाने लगा.

मेरे ऐसे चाट'ने से ऊर्मि दीदी के रोंगटे खड़े हो गये और उस'का अरोला बिल'कुल कड़क हो गया. उस अरोला के उप्पर के हलके बाल भी उत्तेजना से खड़े हो गये थे. जब में जीभ से उस'का निप्पल चाट'ने लगा तो उस'का निप्पल और अरोला और भी कड़ा हो गया. कभी में उसके निप्पल को चूमता था तो कभी चाटता था कभी उन्हे काट'ता था तो कभी होंठो में पकड़'कर दबाता था. बाद में मेरा पूरा मूँ'ह खोल के में उसके छाती का उभार अप'ने मूँ'ह में हो सके उतना भरके उसे चूस'ता रहा. हाथ से उभारो के नीचे का भाग दबाते दबाते में उप्पर का भाग चूस'ता रहा.

में ऊर्मि दीदी के दोनो छाती के उभारो का एक के बाद एक स्वाद ले रहा था. मुझे मेरे बहन की छाती को छोड़'ने का दिल नही कर रहा था लेकिन फिर भी में नीचे सरक गया उसके पेट को, उसकी नाभी को, उसकी कमर के भाग को चूम'ते चूम'ते में उसकी टाँगों पर आया. एक एक कर के मेने उसकी दोनो टाँगें, उसकी जाँघ से लेकर उसके पाँव की उंगलीयों तक चाट लिए और चूम लिए अब तक उसकी चूत को छोड़'कर मेने लग'भग उसके पूरे नंगे बदन को चूमा था, चाटा था.
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03-22-2019, 12:26 PM,
#50
RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
फिर में ऊर्मि दीदी की चूत की तरफ आ गया मेने उसके दोनो पाँव उठाए और घुट'ने मेने मोड़ के पिछे की तरफ फैलाए. इस तरह से उसकी चूत मेरे साम'ने खुल गई. फिर में उसकी चूत चाट'ने लगा.

मेरी जीभ से में उसकी चूत के दाने से लेकर उसके गांद के छेद तक लंबे लंबे स्ट्रोक लगाकर मैं उसकी चूत चाट'ने लगा. कभी कभी में उसकी चूत के अंदर अप'नी जीभ डाल'ने की कोशीष करता था तो कभी उस'का चूत'दाना ज़ोर से चूस'ता रहा. उस'से वो पागल हो गई वो मेरा मूँ'ह अप'नी चूत पर दबाने की कोशीष कर'ने लगी लेकिन मेने मेरा सर ज़ोर से उप्पर पकड़ा के रखा था जिस'से वो मुझे ज़्यादा दबा नही सक'ती थी.

मुझे ऊर्मि दीदी को तड़फाना था इस'लिए जैसा मेरा मन चाहता था वैसे ही में उसकी चूत चाट रहा था. में ऐसे कर रहा था जिस'से उसे ज़्यादा सुख ना मिले बल्की वो और तड़फ़'ती रहे. अचानक में उठ गया और ऊर्मि दीदी के बाजू में आकर लेट गया. उस'ने झट से आँखें खोल दी और मेरी तरफ हैरानी से देख'ने लगी. उसकी आँखों में काम वास'ना की आग दिख रही थी. मेरी बहन को सिर्फ़ चाट के और चूस के में काम उत्तेजीत कर सकता हूँ ये जान'कर में खूश हो गया.

"कैसा लगा रहा है, दीदी?" मेने फक्र से उसे पुछा.

"तुम रुक क्यों गये??" उस'ने थोड़ी नाराज़गी से पुछा.

"ऐसेही. तुम्हें कैसा लग रहा है ये पुच्छ'ने के लिए."

"अरे नालायक!. मेरे बदन में आग लगा दी. और बीच में ही पुच्छ रहे हो के कैसा लग रहा है?"

"अरे हां. हां. नाराज़ मत हो, दीदी!. में वापस चालू करता हूँ. सिर्फ़ मुझे इतना बताओ. कभी ऐसी भावना का अनुभव किया था तुम'ने? इतना सेंसेशन. इत'नी उत्तेजना कभी अनुभव की थी तुम'ने?"

"नही रे, सागर. कभी भी नही. जैसा तुम कर रहे हो वैसा तुम्हारे जीजू ने कभी नही किया. मेरी शादी शुदा जिंदगी में क्या कमी है इसका मुझे आह'सास होने लगा है. अब प्लीज़!. ऐसे ही कर'ते रहो. जो तुम कर रहे थे, सागर. मेरे बदन में आग सी लग गई है."

"ओह ! येस. यस. दीदी! लेकिन तुम्हारी तरह मेरे भी बदन में आग लगी है इस'लिए हम दोनो को एक दूसरे की आग बुझानी पड़ेगी." ऐसा कह'कर में उठ गया और ऊर्मि दीदी के बदन पर उलटा होकर झुक गया. उसके सर के दोनो बाजू में अप'ने घुट'ने रख दिए.

"दीदी. मुझे लग'ता है. तुम्हें क्या कर'ना चाहिए ये मुझे तुम्हें बताने की ज़रूरत नही है." ऐसा कह'कर में नीचे झुक गया और में मेरा मूँ'ह ऊर्मि दीदी की चूत पर लाया. उसी सम'य मेरा आध खड़ा लंड ऊर्मि दीदी के मूँ'ह पर हिल'ने लगा. जैसे ही मेने उसकी चूत'पर मूँ'ह रखा वैसे ही उसकी समझ में आया के क्या कर'ना है. उस'ने मेरा लंड हाथ से पकड़ लिया और अप'ने मूँ'ह में भर लिया. इस तरह से हम भाई-बाहें एक दूसरे को चाट'ने लगे. में मेरी बहन की चूत को चाट रहा था और उसी सम'य वो अप'ने भाई का लंड चूस रही थी. धीरे धीरे मेरा लंड और कड़क होने लगा. उसके नाज़ुक और मुलायम मूँ'ह के जादू से मेरा लंड फैलता गया.

मेने ऊर्मि दीदी के चुत्तऱ के नीचे से हाथ आगे ले लिए और मेने उसकी चूत को फैलाया. फिर में उसकी चूत के दोनो पटल अंदर से चाट'ने लगा. वैसे कर'ने के लिए मुझे थोड़ा और आगे झुकना पड़ा जिस'से ऊर्मि दीदी को मेरा लंड अप'ने मूँ'ह से निकालना पड़ा. तो फिर वो मेरा लंड मेरे पेट की तरफ दबाते हुए मेरी गोटीया चाट'ने लगी. में और नीचे हो गया जिस'से उसकी जीभ मेरे गोटीयो के नीचे, मेरी गान्ड के छेद को लग गई.

ऊर्मि दीदी की समझ में ये भी आया और वो बीना जीझक मेरी गोटीयो से लेकर मेरे गान्ड के छेद तक उप्पर नीचे जीभ घुमाने लगी. जब उसकी जीभ मेरे गान्ड के छेद को छुती थी तब में उत्तेजना से पागल हो जाता था. गोटीया और गान्ड के छेद का ये भाग काफ़ी नाज़ुक और संवेदनशील होता है और इस भाग'पर अगर कोई जीभ फिरा दे तो उत्तेजना से कभी भी आद'मी झाड़ सकता है. में भी उस उत्तेजना का अनुभव कर रहा था और बड़ी मुश्कील से अप'ने आप को झाड़'ने से बचा रहा था.

नीचे में ऊर्मि दीदी की चूत का पूरा ज़ायक़ा ले रहा था. मेने अब मेरी बीचवाली उंगली उसकी चूत में डाली और उसे अंदर बाहर कर'ने लगा. मेरे उंगली कर'ने से वो और भी बेताब होने लगी. अब वो अप'नी कमर हिला के मेरे उंगली से चुदवा'ने लगी. में उस'का चूत दाना भी चाट रहा था और उसकी चूत में उंगली भी अंदर बाहर कर रहा था. दीदी अब अपना सर इधर उधर कर के छटपटा'ने लगी. बीच बीच में वो मेरा लंड मूँ'ह में भर लेती थी और चूस'ती थी तो कभी वो मेरी गोटीया चाट'ती थी. मेरे दोनो चुत्तऱ उस'ने ज़ोर से पकड़ लिए थे और बीच बीच में वो मेरी जांघों पर हाथ घुमाती थी.

ऊर्मि दीदी की सह'ने की शक्ती ख़त्म हो गई! उसकी सिस'कीया. चींखे. बढ़'ती गई!!

"ओह ! सागर. आहा. उूउउइइ. अहहाहा.. सागर. अब रहा नही जाता रे.. कुच्छ करो ना. 'वहाँ' नीचे आग लगी है रे. प्लीज़. कुच्छ तो करो.. अब सब्र नही होता.. उऊहहा.. अहहा. सागर.." मुझे मालूम था ऊर्मि दीदी को क्या चाहिए. लेकिन मुझे उसके मूँ'ह से सुनना था इस'लिए मेने उसे पुछा,

"दीदी! जो कह'ना है वो साफ साफ कहो. तुम्हें क्या लग'ता है के मुझे क्या कर'ना चाहिए?. बीना जीझक साफ साफ कह दो के में क्या करू??.."

"अरे बेशरम. मुझे मालूम था तुम ऐसे ही कुच्छ पुछोगे.. इस'लिए में भी बेशरम होकर तुम्हें बताती हूँ. चोद मुझे, सागर.. मेरी चूत में तुम्हारा लंड डाल के चोद दे मुझे!! . मेरी चूत की आग अप'ने लंड से मिटा दे." यस! यस!! यस!! यही सुन'ने के लिए में तरस रहा था. यही तो सुन'ने के लिए. बरसो से में भागदौड़ कर रहा था मेरी बहन अप'ने मूँ'ह से मुझे चोद'ने के लिए कहेगी ऐसी 'इच्छा' मेरे मन में बरसो से थी जो अब पूरी हो गई.

"दीदी. तुम उठो और मेरे उप्पर आ जाओ." मेने झट से उठाते हुए उसे कहा.

"उप्पर आ जाओ?. कहाँ??" उस'ने आश्चर्य से पुछा.

"मेरे उप्पर, दीदी. में नीचे लेटता हूँ.." ऐसा कह'कर मेने उस'का हाथ पकड़'कर उसे ज़बरदस्ती उठाया और में पीठ'पर नीचे लेट गया.

"क्या कर रहे हो तुम, सागर? अब ये कौन सा नया तरीका है??" ऊर्मि दीदी ने अप'ने घुट'ने के बल खड़ी होकर पुछा.

"अरे, दीदी. इस तरीके से तुम अच्छी तरह से चुदाई का मज़ा ले सक'ती हो." ऐसा कह'कर मेने उस'का हाथ पकड़ लिया और उसे अप'ने उप्पर खींच लिया. जब मेने ऊर्मि दीदी को खींचा तब मेने उस'का एक पाँव उठाकर मेरी कमर के दूसरे बाजू रख दिया. उसकी समझ में आया कि ये कौन सा तरीका है वो हंस'ते हंस'ते मेरी कमर पर बैठ गई. मेने उसे नीचे खींचा और में उसके होंठो को चूम'ने लगा. उसी सम'य नीचे मेने मेरे एक हाथ से उस'का चुत्तऱ पकड़'कर उसे थोड़ा उप्पर उठाया और दूसरे हाथ से मेरा लंड पकड़'कर उसकी चूत पर उप्पर नीचे घिस लिया. उसकी चूत पह'ले से गीली थी जिस'से मेरे लंड का सुपाड़ा भी गीला हो गया.

क्रमशः……………………………
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