और मुझे लेकर बेडरूम में आ गयी. मुझे विश्वास नहीं हो रहा था की ये सच है या सपना. ये और बात है की मैं इस घडी का दिन रात सपना देखता था लेकिन मन के किसी कोने में मैं जानता था की ये होना संभव नहीं है. पर तभी आंटी ने मेरा लंड कर दबा दिया तो मैं हकीकत की दुनिया में आ गया. आंटी बोली "लगता तो बच्चे जैसा ही है."
मैंने कहा "अभी तो बाहर से देखा है."
फिर आंटी धीरे से अपना हाथ मेरे कपड़ो के अंदर डाल कर लण्ड को सहलाने लगी. मैंने कभी कुछ किया तो था नहीं बस देखा ही था ओम को करते हुए. मैंने ओम जैसा ही आंटी को किस करने की कोशिश की पर आंटी ने मुझे रोक दिया. फिर भी मैंने भी उनके शरीर को इधर उधर छूना शुरू कर दिया. उनके शरीर से साबुन की भीनी भीनी सुगंध आ रही थी और उनका हाथ मेरे लंड को सहला रहा था. इन दोनों बातों का असर जल्द ही मेरे लंड पर दिखने लगा और लंड पूरा खड़ा हो गया. अब मैं वासना से मस्त होकर आंटी के मम्मे दबाने लगा.
आंटी ने हाथ बाहर निकाला और अपने ब्लाउज़ के हुक खोल कर उसे उतर दिया और वापस मेरे लण्ड के साथ खेलने में मस्त हो गयी. मैंने उनके मम्मे को ब्रा से बाहर निकल कर नंगा कर दिया और उससे खेलने लगा. मेरा एक हाथ उनके मम्मे पर और दूसरा हाथ उनकी साड़ी के ऊपर से उनकी चूत रगड़ रहा था. अचानक आंटी रुकी और उन्होंने मेरे सारे कपडे उतार दिए. फिर उन्होंने अपनी साड़ी भी उतार दी. अब हम दोनों लगभग पूरे नंगे थे सिर्फ आंटी की ब्रा उनके कंधो पर लटक रही थी. उसको उतारने का शुभ काम मैंने किया और उनके एक मम्मे को मुँह में ले कर कस कर चूसने लगा. इतने में आंटी की सिसकारियाँ शुरू हो गई. आंटी भी अब बहुत गर्म हो चुकी थी. फिर आंटी ने मेरा लंड ध्यान से देखा और बोली, "हम्म्म. इतना बच्चा भी नहीं रहा तू. तेरे अंकल से तो बड़ा ही है. अच्छा है. मैंने धीरे से पूछा. "क्या मैं आपकी चूत चाट सकता हूँ?"
तो वो बोली "अब पूछ मत जो मन करे वो कर."
मैंने धीरे से आंटी की चुत को छुआ. उनकी चूत गीली थी और झांटे तो उन्होंने अभी आधे घंटे पहले ही साफ़ की थी. मैंने ओम जैसा करता था वैसे ही अपनी जीभ उनकी चूत पर लगाई तो उन्हें तो जैसे करंट लग गया हो. उन्होंने एक जोर का झटका लिया और मैं उनकी चूत का स्वाद लेने लगा. उन्होंने कहा दाने को चाटो दाने को. मैं दाने को चाटने की जगह हल्का सा काट बैठा. वह कसमसा कर बोली "उफ्फ्फ. जान लोगे क्या" और तेज तेज सिसकारियाँ लेने लगी. मैं अपनी जीभ उनकी चूत के अंदर बाहर करने लगा, उनकी सिसकारियाँ और तेज होती गई और 2 मिनट के बाद आंटी झड़ गई.
एक मिनट आंटी वैसे ही पड़ी रही फिर बोली, "ला. तेरा भी चूस देती हूँ." मैंने अपना लण्ड आंटी के मुँह के पास ले गया और आंटी उसे चूसने लगी. मुझे तो लगा की मैं तो जैसे जन्नत में पहुच गया.
आंटी कस कस कर मेरे लंड को चूस रही थी. मैं भी अब थोडा निश्चिन्त होकर उनके मम्मों को कस कस कर दबा रहा था. बीच बीच में उनके निप्पल भी नोच रहा था. जब मैं उनके निप्पल नोचता तब वो वो मेरे लंड पर अपने दांत गडा देती. मुझे बहुत मज़ा आ रहा था.
कुछ देर के बाद मैं झड़ने वाला था तो मैं आंटी से बोला "मेरा निकलने वाला है"
आंटी और जोर जोर से मेरा चूसने लगी और मैंने आंटी के मुँह में अपना पूरा पानी छोड़ दिया. आंटी ने मस्त होकर पूरा लण्ड साफ कर दिया और बोली अब थोड़ी देर तक तो ये किसी काम का नहीं है. मेरा लण्ड थोड़ा ढीला हो गया था पर मैंने देखा था की ओम के झड़ने के बाद जब वो उसका लंड चूसती है तो वो फिर से खड़ा हो जाता है. मैंने उनसे कहा आप चूसती रहो. ये फिर से तैयार हो जायेगा.
वो हंसी और फिर से लंड मुह में लेकर चूसने लगी. कुछ देर में लंड फिर खड़ा हो गया. आंटी बोली वाकई बच्चा नहीं है तू. अब न मुझसे सबर हो रहा था न ही आंटी से. मैंने आंटी को नीचे लिटाया और खुद उनके ऊपर आ गया और उनकी चूत में अपना लंड डालने की कोशिश की पर लंड बाहर ही फिसल गया. आंटी हंस पड़ी और बोली की अभी हरकतें बच्चो वाली ही है. आंटी ने एक तकिया उठा कर अपने चुतर के नीचे लगाई और फिर मेरा लंड पकड़ कर अपनी चूत के मुहाने पर लगाया और बोली अब डालो. मैंने धीरे से अपने लंड को उनकी चूत में डाल दिया. उफ्फ्फ मुझे लगा की मेरा लंड एक आग की भट्टी में घुस गया है.
आंटी बोली अब अन्दर बाहर करो. जल्दीई हान्न्न आआईईईईऐऐअ ऐसे ही आआआअ.
मैंने धीरे धीरे झटके लगाने शुरू कर दिए और आंटी ने भी चुतर उछालने शुरू कर दिए. मुझे अच्छा लगा की आंटी को भी अच्छा लग रहा है. मैं आंटी के ऊपर उनके मम्मों को चूस रहा था और लंड अन्दर बाहर कर रहा था. मैं अपनी जिंदगी की पहली चुदाई कर रहा था. मैं उत्तेजना से पागल ही हो गया था और जोर जोर से झटके लगाने लगा. अचानक मेरे लंड में दर्द सा उठा. पर मस्ती के आगे दर्द की किसी को क्या परवाह. मेरी गति तेज़ होती गई, फिर मैं और आंटी साथ में झड गए. मैं कुछ देर आंटी के ऊपर लेटा रहा. ढीला लंड आंटी की चूत में ही था और मैं आंटी को खूब चूम रहा था. साथ में उनके मम्मे दबा रहा था. फिर आंटी ने मुझे हटाया और उठा कर कपडे पहनने लगी. मैंने कहा मेरे लंड में कुछ दर्द सा हो रहा है शायद खून निकल रहा है...
आंटी ने लंड हाथ में लेकर देखा और मुस्कुरा कर बोली "तुम्हारा टोपा खुल गया. अब कुछ दिन इसकी ठीक से साफ़ सफाई करना वरना इन्फेक्शन हो जायेगा. कल आना तो एक दावा भी दूँगी. यहाँ लगा लेना. अब 4-५ दिन इससे ज्यादा छेड छाड़ मत करना. अब कपडे पहनो और जाओ." मैं जब कपडे पहन कर निकलने लगा तभी आंटी बोली "और सुनो जो हुआ उसका किसी से जिक्र मत करना. अपने किसी दोस्त से नहीं."
"ओम से?" मैंने पुछा.
"ओम से तो ख़ास तौर पर नहीं. समझे." आंटी ने कहा और मैं वापस घर चला आया. आंटी ने कहा तो था की 4-5 दिन लंड से छेद छाड़ मत करना पर जब शेर के मुह खून लग जाता है तो फिर कण्ट्रोल कहाँ होता है और वैसे भी जब मयंक और रुची वापस आ जायेंगे तब तो बहुत छुट्टियों तक आंटी को दुबारा चोदना मुश्किल होगा तो रात भर तो मैंने आंटी को ख्वाब में चोदा और अगले ही दिन फिर पहुच गया आंटी के घर. आंटी नहाने जा रही थी, मुझे देख कर मुस्कुराते हुए बोली "मैं नहाने जा रही हूँ तू थोड़ी देर बाद आना फिर तुझे दूँगी."
मैंने भी शरारत से पुछा "क्या?" आंटी बोली "तेरे लंड के लिए दवा और क्या?" मैंने कहा आंटी की चूत की तरफ इशारा करके कहा "आंटी इसकी दवा तो बस एक ही है" आंटी हँसने लगी और बोली "क्यों कल तो कह रहा था बहुत दर्द हो रहा है, अब दर्द ठीक हो गया." मैंने कहा "दर्द तो कल रात तक ही ठीक हो गया था. वैसे दर्द का भी तो अपना ही मज़ा है" आंटी ने कहा "अच्छा बच्चू तो चल कपडे उतर और मेरे साथ बाथरूम में चल, जरा मेरी पीठ साफ़ करवा देना. कई दिन से तेरे अंकल से कह रही हूँ पर उनके पास टाइम ही नहीं है."
मैंने ख़ुशी ख़ुशी कपडे उतार दिए. मेरा लंड तो आंटी को देखते ही खड़ा हो गया था. कपडे उतारते ही लहराने लगा. आंटी मेरा खड़ा लंड देख कर मुस्कुराई और कमर बलखाते हुए बाथरूम की तरफ चल दी और मैं भी उनके पीछे चल दिया. बाथरूम में पहुच कर आंटी ने अपना नाईट गाउन उतार दिया और अब वो सिर्फ नीले रंग की ब्रा पैंटी थी. फिर आंटी शावर के नीचे चली गयी और शावर ऑन कर दिया. मैं आगे बढ़ा तो आंटी बोली "वो लिक्विड सोप स्पोंज में डाल कर ले आओ और मेरी पीठ पर ठीक से लगा दो." मैंने तुरंत आंटी के हुक्म की तामील की और साबुन उनकी पीठ पर लगाने लगा. आंटी का मखमली बदन साबुन की खुशबु से और महक गया. मैंने कहा "आंटी आप कहिये तो पुरे बदन पर ही अच्छे से साबुन लगा देता हूँ." आंटी ने शावर बंद किया और ब्रा उतारते हुए बोली "ठीक है लगा दे". आंटी के ब्रा उतारते ही आंटी के मम्मे उछल कर बाहर आ गए और मैंने फ़ौरन उन पर हमला बोल दिया और साबुन लगाने के बहाने उनको मसलने लगा. आंटी भी अब आहें भरने लगी थी. थोड़ी देर आंटी के मम्मे मसलने के बाद मैंने आंटी की पैंटी भी उतार दी और उनकी चूत को मसलने लगा. धीरे धीरे मैंने अपनी तीन ऊँगलिया आंटी की चूत में डाल दी. हाथ में साबुन होने की वजह से उंगलिया आराम से अन्दर बाहर हो रही थी और साथ ही साथ मैंने आंटी की नाभि में अपनी जबान घुसा दी. इस चौड़ी नाभि में जबान डाल के मैं उसे घुमाने लगा. आंटी सिसकिया भर रही थी और मेरे माथे को पीछे से पकड़ के अपनी नाभि पर दबाने लगी. आंटी की गांड पर हाथ रख के मैंने अब नाभि में और भी जोर से उसे चाटना चालू कर दिया. आंटी की मस्ती भी अब चरम पर पहुच गयी थी. उनकी चूत में मेरी उंगलिया अन्दर बाहर हो ही रही थी. आंटी बोली, अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्हह आह्ह्हह्ह उईईइ बड़ा मस्त लगा अह्ह्ह्ह आह्ह्ह्ह. फिर मैंने आंटी की नाभि से जबान हटा कर उनकी चिकनी चूत में घुसा दी और उनके चूत के दाने को चूसने लगा. आंटी उत्तेजना के चरम पर तो थी ही मेरे इस पैतरे से आंटी का पानी छुट पड़ा जिसे मैंने पी लिया. मैंने आंटी से कहा अब मेरा भी चूसिये न तो आंटी ने कहा अभी तो तुम मुझे चोदो. आज टाइम थोडा कम है.
और आंटी वही घोड़ी बन गयी और बोली अब जल्दी से डाल दो. मैंने ये पोजीशन ब्लू फिल्मो में देखी थी. मैंने थोडा पानी और साबुन ले लिया और उसकी चूत और गांड पर झाग कर दिया. फिर मैंने जब लंड को चूत पर रख दिया. आंटी की चूत में लंड एकदम आराम से घुस गया साबुन की चिकनाहट की वजह से. आंटी ने कहा, आह्ह्हह्ह अह्ह्ह्हह. मैंने गांड पकड के एक झटके से पुरे लंड को अन्दर उतारा. साबुन की वजह से पूरा लंड चूत में बैठ गया. अब मैंने अपने हाथों को आगे किया और आंटी के बूब्स पकड़ के चोदने लगा. आंटी को भी बड़ा मस्त लग रहा था और वो आह आह कर के अपनी गांड को हिला के चुदवा रही थी. साबुन की वजह से चिकनाहट बहुत थी और मुझे भी अलग अनुभव मिल रहा था. मेरा दिल आंटी की नरम गांड को देख कर दोल रहा था. मैंने आंटी की गांड के छेद पर थोडा लिक्विड सोप डाल दिया और उनकी चूत मारने के साथ साथ उनकी गांड में ऊँगली भी डालने लगा. साबुन की वजह से ऊँगली आराम से गांड में जा रही थी. मुझे लगा शायद आंटी ने ओम से भी गांड मरवाई होगी. जब आंटी की गांड काफी चिकनी हो गयी तो मैंने लंड उनकी चूत से निकाल के गांड में डालना चाहा. मेरा लंड आराम से आंटी की गांड में घुस गया. मुझे लगा शायद आंटी रोकेगी पर आंटी को भी गांड मरवाने में बहुत मज़ा आता होगा तभी तो वो अपने कुल्हे हिला हिला के मेरा लंड गांड में ले रही थी.
थोड़ी देर बाद मैं झड़ने लगा और मैंने आंटी की गांड में ही अपना वीर्य निकाल दिया. जब मैंने लंड को बाहर निकाला तो उनकी गांड के अन्दर से वीर्य की बुँदे बहार टपक रही थी. मैंने आंटी से पुछा "कैसा लगा आंटी मुझसे गांड मरवा के?" आंटी ने "मस्त लगा बेटा. अब जल्दी से नाहा कर कपडे पहनो और जाओ." मैंने कहा "ऐसी भी क्या जल्दी है. थोडा लंड चूस दीजिये तो आपकी चूत को भी शांत कर दूं." आंटी बोली "अभी नहीं. उसके लिए ओम आने वाला है. अब जल्दी तैयार हो कर भागो." आंटी के मुह से ये सुन कर की अभी ओम आंटी को चोदने आने वाला है मेरा मन उन दोनों की चुदाई देखने का करने लगा. पर मैंने आंटी से नहीं कहा क्योंकि वो मना कर देती. इसीलिए मैंने चुपचाप आंटी के साथ नहाया और बाहर आकर कपडे पहन लिए और छत पर आकर ओम के आने का इंतज़ार करने लगा.
मुझे ज्यादा इन्तेजार नहीं करना पड़ा. ५ मिनट बाद ही आंटी के घर का दरवाजा खुला और बंद हो गया. मैंने कन्फर्म करने के लिए छत से नीचे झाँका तो ओम आंगन में आंटी को अपनी बाँहों में उठा कर आंटी के बेडरूम में जा रहा था. मुझे एहसास हुआ की जितना मजा मुझे आंटी को चोदने में आता है उतना ही मजा जब ओम आंटी को चोदता है उसे देखने में आता है. वही मजा लेने के लिए मैं दबे कदमो से सीढ़ियों से नीचे उतर आया पर मेरे साथ klpd हो चुकी थी. आंटी ने सीढियों का दरवाजा जो आंगन में खुलता था वो बंद कर लिया था. शायद वो जानती थी की अब जब मुझे पता है की ओम उन्हें चोदने आने वाला है तो मैं जरूर उन्हें देखने की कोशिश करूंगा. मुझे बड़ा अफ़सोस हुआ की मुझे पहले ही आंटी से जिद करके उनके बेडरूम में छिप जाना चाहिए था. मैंने सोचा अगर मैं जोर जोर से दरवाजा ठोकू तो ओम और आंटी को दरवाजा खोलना ही पड़ेगा. अगर मैं देख नहीं सकता तो उन्हें चुदाई करने भी नहीं दूंगा. फिर मैंने सोचा की अगर आंटी नाराज हो गयी तो मुफ्त में जो चूत मिल रही है वो भी हाथ से जाएगी और मैं मन मार कर वापस अपने घर आ गया. जैसे ही मैं नीचे उतर कर आया रश्मि दीदी ने मुझे पकड़ लिया और पूछने लगी की इतनी गर्मी में मैं छत पर क्या करने गया था. उनकी बातों से मुझे अंदाजा लग गया की उन्होंने मुझे ऊपर जाते नहीं देखा था तो उनको ये नहीं पता था की मैं कितनी देर पहले छत पर गया था. इसी बात का फायदा उठाते हुए मैंने बोल दिया "मैं आंटी से पूछने गया था की मयंक और रुची वापस कब आएंगे पर उनका सीढ़ियों का दरवाजा बंद था तो मैं वापस आ गया."
ये सुन कर दीदी बोली, "मयंक सोमवार को वापस आ जायेगा. रुची बाद में आयेगी."
मैंने सोचा इनको बड़ी खबर है मयंक की. मैंने दीदी से पुछा "तुमको कैसे पता."
"मेरी कल मयंक से फोन पर बात हुई थी तभी उसने बताया था." दीदी ने जवाब दिया और फ़ौरन ही बात को संभाला "वो दरअसल रुची को मुझसे कुछ पूछना था तो उसी ने मयंक से फ़ोन करवाया था. उनकी नानी के घर में फ़ोन नहीं है न तो कहीं दूर जाकर फ़ोन करना पड़ता है." रुची अभी वापस नहीं आयेगी ये सुन कर मेरा मूड ख़राब हो गया. आज बुधवार था मतलब सिर्फ 4 दिन बाद मयंक वापस आ जायेगा. सन्डे को अंकल घर में रहते है और शनिवार को जल्दी आ जाते हैं. मैंने सोच लिया की बचे दोनों दिन मैं आंटी की चूत और गांड जरूर मारूंगा और अगले दिन जैसे ही अंकल ऑफिस के लिए निकले मैं भी फ़ौरन तैयार होकर घर से निकल गया. दीदी को मैंने बोल दिया की मुझे अपने दोस्त से मिलने जाना है. आज मैं छत से नहीं गया वरना अगर दीदी देख लेती तो उनको शक हो सकता था. मैं सामने से भी नहीं जा सकता था क्योंकि आंटी ओम के सामने मुझे घर के अन्दर नहीं बुलाती. मैं ये सब सोच कर अपने घर के पीछे वाली गली में गया. वो गली बहुत गन्दी रहती थी इसीलिए उसे कोई यूज़ नहीं करता था पर सबके घरों में पीछे गली में एक दरवाजा जरूर बना था. मैं मना रहा था की काश वो दरवाजा खुला हो तो मजा आ जाये. गली में जाकर मैंने देखा की हर तरफ सन्नाटा था.
मैंने आंटी के घर का दरवाजा खोलने की कोशिश की पर दरवाजा अन्दर से बंद था. मैंने इधर उधर देखा और दरवाज़े के ऊपर से कूद कर अन्दर चला गया. पीछे आंटी ने एक बहुत ही खूबसूरत गार्डन बना रखा था. अब मैंने सोचा की अन्दर तो आ गया अब सामने के सारे दरवाजे तो बंद है क्या करूं. तभी किस्मत ने साथ दिया और आंटी किचन में कुछ करने आई. किचन की खिड़की पीछे आंगन में खुलती थी तो मैंने खिड़की पर हलकी सी दस्तक दी. आंटी ने चौंक कर खिड़की की तरफ देखा और मुझे देखते ही उनके चेहरे पर वोही मुस्कान दौड़ गयी. वो खिड़की के पास आई और बोली "क्या हुआ मनीष. यहाँ क्या कर रहे हो." "बस आपसे मिलने चला आया. दरवाजा तो खोलिए" मैंने चिड़ते हुए जवाब दिया. आंटी को अच्छे से पता था की मैं यहाँ क्यों आया हूँ. "अन्दर कैसे आये. दरवाजा तो बंद है" आंटी ने मुझे अनसुना करते हुए फिर पुछा. "कितना ऊँचा दरवाजा है. कूद कर आ गया. अब खोलिए भी" मैंने बेसब्री से कहा. "कभी छत कूद कर आ जाते हो कभी दरवाजा कूद कर. अंकल से बोल कर दरवाजा ऊँचा करवाना पड़ेगा." आंटी ने मुझे और चिढाया. मैंने बोला "देखिये दरवाजा खोलना है तो बोलिए वरना मैं चला अपने घर." "ओहो. नाराज हो गया मेरी चूत का पिस्सू. हा हा हा" आंटी ने हँसते हुए किचेन का दरवाजा खोल दिया. आंटी ने मुझे चूत का पिस्सू बोला मुझे इस बात पर गुस्सा नहीं आया बल्कि इस बात पर आया की उन्होंने दरवाजा खोलने में इतनी देर क्यों लगा दी. मैं फ़ौरन किचन में घुसा और आंटी को पीछे से पकड़ लिया. मैंने आंटी की दोनो चुचियों को अपनी हथेली में भर लिया और जोर जोर से दबाने लगा. आंटी आहे भरने लगी. अआह धीरे ईईई दर्द होताआ हाईईईईई मनीष. मैंने आंटी पर कोई रहम नहीं किया और उनके कान को अपने होठो से चुभलाते हुए पुछा "अगले हफ्ते मयंक आ रहा है, मुझे बताया क्यों नहीं. अब हम चुदाई कैसे किया करेंगे." "ओह्ह इसीलिए इतना गुस्सा आआआअ है. ओफ्फूऊ अरे मयंक तो इसलिए वापस आ रहा है क्योंकि उसकी कोचिंग शुरू हो जाएगी. समझे आआआ अब तो धीररे आआअह्ह्ह करूऊऊऊ. वो १० से 2 पढने चला जायेगा तब एक दिन तुम और एक दिन ओम समझे ना."
"और कल सीढियों का दरवाजा क्यों बंद किया था. हैं. मुझे ओम और तुम्हारी चुदाई देखनी थी." मैंने आंटी की चुचियों को और जोर से दबाते हुए कहा. "आऐईईईई बस करो. अरे मार ही डालोगे क्या. उफ्फ्फ्फ़ दरवाजा इसीलिए बंद किया था की कहीं तुम वापस आ गए और ओम ने तुमको देख लिया तो? बस्सस्सस्सस." आंटी ने जवाब दिया. "मैं इतने दिनों से देख रहा हूँ कभी तूम लोगो को पता चला. अगर आज के बाद कभी दरवाजा बंद किया तो ओम को बता दूंगा की मैं भी तुम्हे चोदता हूँ. और तुम तो जानती ही को वो कितना हरामी है. इस बात का पता चलते ही वो तुम्हे कोठे पे बिठा देगा. लोगो से पैसे लेकर चुदवाने लगेगा तुमको. समझी और आज और कल के लिए तुम सिर्फ मेरी हो. तुम्हारी चूत गांड सिर्फ मैं ही मारूंगा ओम वोम को भूल जाओ.." मैंने आंटी को धमकाते हुए बोला." "अच्छा बाबा ठीक है. अब तो थोडा आराम से दबाओ. जान ही निकाल दी तुमने." आंटी के राजी होते ही मैंने उनको घुमाया और उनके होठो पर अपने होठ रख दिए. आंटी को एक ताबड़ तोड़ किस देने के बाद मैंने आंटी के कपडे उतारने शुरू किये. आंटी ने कहा "चलो बेडरूम में चलते है." मैंने कहा "नहीं. मैंने कई फिल्मो में देखा है की लोग किचेन में सेक्स करते है. आज हम दोनों भी करेंगे. ये किचन स्लैब बहुत काम की चीज है मेरी जान."
हम दोनों पागलो की तरह एक दुसरे को किस करने लगे. हम दोनों काफी गरम हो गए थे. मैंने फिर से उनके बूब्स को दबाना शुरू कर दिया और फिर एक हाथ से उनके नीचे सहलाने लगा. उनकी चूत पानी छोड़ रही थी. मैंने उनको स्लैब पर बिठाया और आंटी की चूत को चाटना शुरू कर दिया. वो बस आँखे बंद करके बैठी थी और मेरा सर अपनी चूत में दबा रही थी. मैंने आंटी को स्लैब से उतार कर उनके दोनों हाथ सलब पर रखवा दिए अब वो डोगी पोज़ में मेरा लंड लेने के लिए तैयार थी. मैंने लंड उनकी चूत के मुहाने पर लगा कर हल्का से पुश किया तो उन्होंने थोड़ा अहहाह अहहह अहहाह की आवाज़ निकाली और मैंने अपना पूरा अन्दर डाल दिया. वो बोली जोर से करो मनीष. मैंने स्पीड बड़ा दी और पुरे १० मिनट तक उनको चोदा फिर जब मुझे लगा की मैं झड जाऊँगा तो वापस उनको स्लैब पर लिटा दिया और अपनी जीभ को आंटी की चूत में डाल कर चाटने लगा. आंटी झड़ने लगी तो मैंने आंटी का पूरा रस पी लिया. अहहाह अहः अहः अहः ऊओहोहोह की आवाज़े उनके मुह से निकल रही थी. फिर मैंने आंटी की चुचियो को पीना शुरू कर दिया. थोड़ी देर उनकी चुचिया चूसने के बाद मैंने अपना लंड आंटी के मुह में डाल दिया और आंटी उसे पुरे मज़े से चूस रही थी. आज मैं आंटी को बहुत देर तक चोदना चाहता था इसीलिए बार बार पोजीशन बदल लेता था. जब मुझे लगा की मैं आंटी के मुह में झड जाऊँगा तो मैं अपना लंड उनके मुह से निकाल लिया और उनको पलटा कर उनकी गांड चाटने लगा.
थोड़ी देर उनकी गांड चाटने के बाद मैंने पास में रखा हुआ तेल उठाया और अपने लंड पर लगा दिया और उसको चिकना कर लिया और फिर उनकी गांड पर लगा कर सेट किया. मैं तो पहले भी आंटी की गांड मार चूका था तो मैंने एक बार में ही पूरा लंड अन्दर डाल दिया. आंटी हलके से चीख पड़ी और बोली मजा तो आ रहा हैं मनीष पर जरा धीरे से करना. कल तुम्हारे बाद ओम ने भी गांड मारी थी तो हल्का दर्द अभी भी है. मैं हलके हलके उनकी गांड मरने लगा. अब आंटी को बहुत मज़ा आ रहा था. आंटी पुरे जोश में चुद रही थी. करीब १० मिनट की चुदाई के बाद मैंने पूरा का पूरा पानी उनकी गांड में डाल दिया. उनकी पूरी बॉडी को किस करता रहा और मदहोश होकर मज़े ले रही थी. आंटी ने कहा आज बहुत मजा आया. मैंने भी आंटी को मक्खन मारते हुए आई लव यू कहा. फिर वो और मैं उनके बेडरूम में चले गए और उन्होंने मेरा लंड चूस कर फिर से खड़ा किया. मैंने इस बार उनकी चूत को तृप्त किया. हम दोनों ही कुछ देर के लिए सो गए. करीब ३ बजे आंटी ने मुझे जगाया और कहा "मनीष अब तुम जाओ. आज तुम्हारे चक्कर में मैं नहाई भी नहीं. मैं तैयार हो जाऊं और अभी मुझे खाना भी तो बनाना है." मैंने कहा "चलिए आंटी मैं ही आपको नेहला देता हूं." आंटी जानती थी की अगर मैं उनको नहलाने ले गया तो चुदाई जरूर होगी. इसीलिए उन्होंने मुझे कहा की अभी तुम जाओ और कल भी १२ बजे आ जाना. बाकी की मस्ती कल करेंगे. पर अगले दिन अंकल की तबियत कुछ ख़राब हो गयी तो वो ऑफिस नहीं गए. ये बात आंटी ने मुझे फ़ोन करके बता दी थी. मुझे लगा चलो कोई बात नहीं आंटी ने तो कह ही दिया है की मयंक के आने के बाद भी वो हफ्ते में ३ दिन मुझसे चुदवायेंगी ही.
सोमवार को मयंक वापस आ गया और मेरा उसके और रश्मि दीदी के ऊपर नज़र रखने का सिलसिला फिर से शुरू हो गया. जैसा आंटी ने कहा था जब मयंक कोचिंग चला जाता तो वो मुझे बुला लेती और मैं फुर्सत से उनको चोद लेता था. मैं ओम पर भी पूरी नज़र रखता था. जैसे ही वो दुकान बंद करके अन्दर जाता मैं भी उसकी और आंटी की चुदाई देखने पहुच जाता था. वैसे आंटी को चोद चोद कर मेरा कॉन्फिडेंस काफी बढ़ गया था पर ओम चोदने के समय कुछ न कुछ नया करने की कोशिश करता ही था. मैं उसके तरीको को ध्यान से देखता और बाद में आंटी के साथ मैं भी वैसा ही करने की कोशिश करता था. आंटी को भी इसमें काफी मजा आता था. ऐसे ही १५-२० दिन और निकल गए और अब ३-4 दिन में रुची के वापस आने का समय भी हो रहा था. मैंने सोच रखा था की कॉलेज खुलने से पहले रुची को चुदने के लिए राजी करना ही है. कल मैंने आंटी को चोदा था और आज ओम का टर्न था. १२.३० बज रहे थे. मैं सोच ही रहा था की जाकर देखूं की ओम ने अपनी दुकान बंद की या नहीं की तभी रश्मि दीदी ने आकर पुछा "कहीं बाहर जा रहा है क्या". "नहीं तो दीदी. क्यों? कुछ काम था क्या?" मैंने कहा. "नहीं. मैं जरा अपनी एक फ्रेंड के यहाँ जा रही हूँ. शाम तक वापस आऊंगी." ये कह कर दीदी बाहर चली गयी. मुझे लगा चलो अच्छा है. आज आराम से छत से जाकर आंटी और ओम की चुदाई देखेंगे. दीदी के जाने के बाद मैंने बाहर जाकर देखा तो ओम ने अभी तक अपनी दुकान बंद नहीं की थी. मुझे लगा की अब तक इसको अन्दर घुस जाना चाहिए था. मैं वापस अन्दर आ गया. करीब १५-२० मिनट बाद मैं फिर से बाहर गया और मैंने पाया की ओम ने दुकान बंद कर दी थी. मैं जल्दी से दरवाजा बंद करके अन्दर आया और छत पर जाकर कूद कर नीचे चला गया. दबे कदमो से जब मैं आंटी के बेडरूम में पंहुचा तो देखा की अन्दर तो कोई नहीं था. तभी मुझे हसने की आवाज सुनाई दी. ये आवाज तो मयंक के कमरे से आ रही थी. मैं चुप चाप मयंक के कमरे की तरफ बढ़ा और खिड़की से अन्दर देखने की कोशिश करने लगा. खिड़की पर एक मोटा सा पर्दा पड़ा था पर किनारे से मयंक का बेड दिख रहा था. अन्दर का नज़ारा देख कर मेरे होश उड़ गए. बेड पर रश्मि दीदी ब्लैक कलर की ब्रा और पैंटी में लेती हुई थी. उनकी सलवार कुरता जमीन पर पड़े थे और मयंक भी सिर्फ अंडरवियर में उनके बगल में बैठा उनके बदन को सहला रहा था.
दीदी हंस रही थी और मयंक से कह रही थी की बस करो गुदगुदी हो रही है. दीदी को ब्रा पैंटी में देख कर मेरा दिमाग ख़राब हो रहा था पर साथ ही साथ मेरा लंड भी खड़ा हो रहा था. मेरी बड़ी बहन किसी ब्लू फिल्म की हीरोइन लग रही थी. मैं समझ गया की वो अपने दोस्त के यहाँ जाने को बोल कर पीछे वाले दरवाजे से मयंक के यहाँ आ गयी है. पर आंटी कहाँ चली गयी और ओम दुकान बंद करके कहाँ गायब हो गया ये मुझे नहीं समझ आ रहा था. इन सवालों के जवाब मुझे थोड़ी ही देर में मिल गए. मुझे लगा की फ़ौरन अन्दर जा कर मयंक को रोकना चाहिए पर पता नहीं क्यों मैंने ऐसा किया नही और चुपचाप दीदी के बदन को घूरते हुए मैं उन दोनों की बात सुनने लगा.
मयंक दीदी से बोला "उतारो न डार्लिंग ये भी". दीदी ने कहा "नहीं तुम्हारे कहने से मैंने सलवार कुरता उतार दिया बस अब जो करना है ऐसे ही कर लो." "रश्मि मेरी जान तुम भी कितना डर रही हो. क्या तुम्हे मेरे ऊपर भरोसा नहीं है." मयंक ने दीदी की नाभि चाटते हुए कहा. "भरोसा न होता तो मैं आती ही नहीं. लेकिन तुमने कहा था की हम बातें करेंगे और फिर ये सब शुरू कर दिया." दीदी ने मचलते हुए जवाब दिया. "देखो रश्मि मैंने तुम्हे फ़ोन पर ही बताया था की रुची को बुखार आने की वजह से अचानक आंटी अंकल उसको लेने चले गए है. हो सकता है कल शाम तक वापस भी आ जाये. मैं अपने कोचिंग के टाइम पर सामने वाले गेट से निकला था और वहां ताला लगा कर पीछे के गेट से वापस आ गया तो सबकी नज़रों में इस वक़्त घर में कोई नहीं है. तुमको भी यहाँ आते किसी ने नहीं देखा. फिर ऐसा सुनेहरा मौका हम दोनों को नहीं मिलेगा. सोच लो." मयंक ने दीदी की चुंचिया ब्रा के ऊपर से सहलाते हुए कहा. "आह. मान जाओ न. कुछ हो रहा है. मत करो." दीदी चुचिया मसले जाने से थोडा मस्त हो गयी तो मयंक ने दीदी के होठो के ऊपर अपने होठ रख दिए और बेतहाशा दीदी को चूमने लगा, दीदी भी बिना किसी विरोध के मयंक का साथ देने लगी और उसके मुह के अन्दर अपनी जबान डाल दी. मैं समझ गया था की दीदी शर्म का नाटक कर रही है और अन्दर से चुदने के लिए तैयार है और चुदने का मन न होता तो अकेले में यहाँ मयंक के पास क्यों आती. मयंक ने दीदी को चूमने के साथ ही दोनों हाथ दीदी के नीचे डाले और दीदी की ब्रा का हुक खोलने की कोशिश करने लगा. थोड़ी देर कोशिश करने पर भी जब वो ब्रा नहीं खोल पाया तो दीदी को चूमना छोड़ कर पूरी कोशिश ब्रा खोलने की करने लगा. दीदी उसकी इस हरकत से हंस पड़ी और उसके हाथ हटाते हुए अपने हाथ पीछे ले जाकर ब्रा का हुक खोल कर ब्रा निकाल दी.
ब्रा के हटते ही दीदी की दूध जैसी सफ़ेद चूचिया उछल कर बाहर निकल आई. दीदी की चुन्चियो का शेप एकदम गदराये आम जैसा था. ऊपर के निप्पल आंटी के निप्पलों की तरह भूरे नहीं बल्कि गुलाबी थे. मयंक ने फ़ौरन दीदी की एक चूंची को अपने मुह में भर लिया और जोर जोर से चूसने लगा. दीदी के मुह से एक सिसकी निकल गयी "आःह्ह्ह मयंक धीरे से. ओह्ह्ह्ह" पर मयंक के ऊपर तो चूत का भूत सवार था. वो पूरे जोश से दीदी की एक चुन्ची को चूस रहा था और दूसरी को दबा रहा था. फिर मयंक ने रश्मि दीदी की चुन्ची को हल्का सा काटा तो दीदी एकदम से चिल्ला पड़ी. मयंक को बहुत मजा आया तो उसने फिर से दीदी की दूसरी चूंची पर काटा. इस बार दीदी हल्की सी चीखी. मैं सोच में था की क्या करूं. दीदी की चूंचियो को नंगा देख कर मुझे मजा तो बहुत आ रहा था पर साथ ही ये भी लग रहा था की अगर मैंने कुछ न किया तो ये साला मेरी सगी बहन की चूत फाड़ देगा. पर साथ ही मुझे लग रहा था की अभी थोड़ी देर में ये दीदी की पैंटी भी उतार देगा तो दीदी की चूत देखने को भी मिल जाएगी.
मैंने तय किया की जब तक मयंक दीदी की पैंटी नहीं उतार देता तब तक मैं कुछ नहीं करूंगा. उधर मयंक को दीदी को तडपाने में बहुत मजा आ रहा था. फिर उसने दीदी के दोनों चूंचियो को अपने एक-एक हाथों से पकड़ा और जोर जोर से दबाने लगा. दीदी की मस्ती से बुरी हालत हो रही थी. मेरा लंड भी बहुत अकड गया था तो मैंने अपना पेंट खोल कर लंड बाहर निकाल लिया. मयंक फिर से दीदी के निप्पलों को मुँह में लेकर चूसने लगा. अब वो पागलों की तरह चूसे जा रहा था. उसने फिर से एक निपल को अपने मुँह में लिया और काटा तो दीदी फिर से हल्की चिल्लाई. अब मयंक पागल हुए जा रहा था और बार-बार दोनों चूंचियो पर काटे जा रहा था और दीदी चिल्लाए जा रही थी.
फिर वो घडी आ ही गयी जिसका मुझे इंतज़ार था. मयंक ने दीदी चुन्चियों को छोड़ा और जल्दी से दीदी की पैंटी को उतारने की कोशिश करने लगा. वो इतना उत्तेजित हो गया था की उसने दीदी की पैंटी उतारने की बजाय फाड़ ही डाली और अपना मुह दीदी की चूत में घुसा दिया. पैंटी फटने पर भी दीदी कुछ न बोली और मस्ती से सिसकी लेती रही. मयंक दीदी की चूत चाट रहा था. दीदी ने शायद आज ही मयंक के लिए अपनी चूत के बाल साफ़ किये थे और बिना बालों के उनकी चिकनी गुलाबी चूत को मयंक ऐसे चाट रहा था जैसे जन्मो का भूखा हो. अब मैंने अपना लंड जोर जोर से हिलाना शुरू कर दिया और वही दीदी की चूत को देखते हुए मुठ मार कर झड गया. मैंने जल्दी से वापस पेंट पहनी और कमरे के दरवाजे की तरफ चला. मैं जानता था की अब मैंने देर की तो मयंक का लंड दीदी की चूत का भोसड़ा बना डालेगा. मैंने जाकर कमरे के दरवाजे पर एक लात मारी. दरवाजा अन्दर से लॉक नहीं था बस ऐसे ही बंद किया हुआ था. दरवाजा भड़ाम की आवाज के साथ खुल गया. अचानक मयंक और दीदी मुझे देख कर घबरा गए. मयंक तो अभी भी अंडरवियर में था पर दीदी तो पूरी नंगी थी. दीदी ने जल्दी से बेड की चादर उठाई और अपने ऊपर डाल ली. मैंने चिल्लाते हुए कहा "क्या रंडापा हो रहा है ये. दीदी तुम तो अपनी सहेली के यहाँ जा रही थी और साले मयंक दोस्त दोस्त बोल कर दोस्त की बहन के साथ ये क्या कर रहा है. बोल साले कमीने".
दीदी को तो साप सूंघ गया था. उनके मुह से तो एक शब्द नहीं निकला पर मयंक तो जन्मजात हरामी था. उसकी शैतानी खोपड़ी में कोई आईडिया आया और उसने जल्दी से मुझे पकड़ा और बोला "एक मिनट मेरी बात तो सुनो" और मुझे कमरे से बाहर ले आया. "मैंने अपनी आँखों से जो देख लिया है उसके बाद अब सुनने सुनाने को क्या रह गया है." मैंने चिल्लाते हुए कहा. मेरे चिल्लाने का मयंक पर कोई असर नहीं हुआ. वो शांति से बोला "सुनो यार. क्यों नाराज़ होते हो. मैं तुम्हारी बहन के साथ वही कर रहा था जो तुम मेरी बहन के साथ करना चाहते हो. मेरी बात मानोगे तो तुम्हारा भी बहुत फायदा होगा." "साले मैंने रुची को किस तक नहीं किया और तुम मेरी बहन को पूरा नंगा करके उसकी चूत चाट रहे थे." अब मैंने भी अपनी आवाज धीमी कर ली. "वही तो मैं कह रहा हूँ. तुम अभी यहाँ से चले जाओ और मुझे मेरा काम पूरा करने दो. कल रुची वापस आ जाएगी और तुम्हारा काम करवा दूंगा." मयंक ने मुझे ऑफर दिया. "मुझे तुम्हारे ऊपर भरोसा नहीं है. तुम तो दीदी को अभी चोद डालोगे और बाद में रुची को नहीं चुदवाया तो मैं क्या कर लूँगा." मैंने मयंक से कहा. "यार तुम अगर हल्ला करोगे तो मेरे साथ साथ तुम्हारी बहन की भी तो बदनामी होगी सोचो. भाई मेरे ऊपर भरोसा रखो. देखो मैंने तुम्हारी रुची से दोस्ती करवाई थी न. अब तक तो तुमको अपने आप ही कुछ न कुछ कर लेना चाहिए था. अब जाओ न. मेरा लंड रश्मि की चूत के लिए तड़प रहा है. मैं एक हफ्ते के अन्दर कैसे भी तुम्हारा काम करवा दूंगा और वैसे भी मैं आज पहली बार रश्मि को चोद रहा हूँ आखिरी बार नहीं." मयंक ने मुझे समझाते हुए कहा. मैंने सोचा की साला कह तो सही रहा है और मेरे अन्दर कहीं दीदी को चुदते हुए देखने की इच्छा भी जाग गयी थी. मैंने कहा "ठीक है पर मैं यहाँ खिड़की से देखूँगा की तुम दीदी को ज्यादा परेशान तो नहीं करते. जाओ और इस बार दरवाजा बंद कर लेना." मयंक ने ख़ुशी से मुझे गले लगा लिया और जल्दी से रूम में जाकर दरवाजा बंद कर लिया. मैं वापस खिड़की के पास अपनी पुरानी पोजीशन में पहुच गया. अन्दर दीदी ने ब्रा वापस पहन लिया था. पर चूँकि मयंक ने पैंटी फाड़ दी थी इसीलिए वो उसे पहन नहीं पा रही थी और पैंटी को बाँध कर पहनने की कोशिश कर रही थी. तब तक मयंक वापस आ गया था और दीदी को बोला "क्या हुआ डार्लिंग. कपडे क्यों पहन रही हो." दीदी नाराज़ होकर बोली "इसको फाड़ दिया अब कैसे पहनू इसे. मना कर रही थी कुछ मत करो पर तुम मानते कहा हो. देख लिया न मनीष ने हमको. वो मम्मी पापा से कहेगा तो वो मेरा क्या हाल करेंगे." "ओफ्फो. रश्मि मेरी जान तुम फालतू में परेशान हो रही हो. देखो न मैंने मनीष को समझाया की हम दोनों सच्चा प्यार करते है और वो समझ कर वापस चला गया. उसने मुझसे प्रॉमिस किया है की वो हमारी बात किसी को नहीं बताएगा. और एक तरह से अच्छा ही हुआ अब हमें मनीष से डरने की कोई जरूरत नहीं रहेगी." मयंक ने दीदी को बाँहों में लेते हुए कहा और उनके गालों को चूमने लगा. दीदी ने कहा "छोड़ो भी. जाओ रुची की कोई पैंटी ले आओ. मैं कपडे पहन कर वापस जा रही हूँ वरना मनीष क्या सोचेगा."
"सोचेगा क्या? यही की हम दोनों मोहब्बत कर रहे होंगे. यार एक बात बताओ जब लड़की की शादी होती है तब उसके सारे घर वाले जानते है की वो चुदने जा रही है. जब वो नहीं शर्माती तो तुम क्यों शर्मा रही हो." अब मयंक दीदी के सामने चोदने चुदवाने की बात बोल रहा था पर दीदी ने कोई रिएक्शन नहीं दिया. दीदी ने कहा "उसकी शादी हो जाती है इसलिए नहीं शर्माती है पर मेरी तो अभी शादी नहीं हुई है". "तो बोलो शादी करनी है. अभी चलो कर लेते है." मयंक ने कहते हुए दीदी को फिर से चूमने की कोशिश की पर दीदी ने कहा "छोड़ो भी. अब मूड नहीं रहा." मयंक ने दीदी से कहा "मूड तो अभी बना देते है" और दीदी को धक्का देकर वापस बेड पर लिटा दिया और दीदी पर टूट पड़ा. फिर उसने दीदी की फटी हुई पैंटी को फिर से फाड़ कर निकाल दिया और अपना मुँह दीदी की चूत पर रख दिया और दीदी कि चूत को चूसने लगा. दीदी पहले तो न न करती रही लेकिन जब मयंक ने अपनी जीभ दीदी की चूत के अन्दर घुसा दी तो दीदी फिर से गरम हो गयी. मयंक भी दीदी की चूत को चूसे ही जा रहा था. अब दीदी बार-बार कभी अपने हाथ मयंक के सिर पर रखती तो कभी अपने हाथ पीछे कर लेती तो कभी अपनी टाँगे फैला लेती लेकिन अब मयंक बिना रुके उसकी चूत को बुरी तरह चूसे जा रहा था अब काफ़ी देर तक चूसने के बाद दीदी का बदन झटके खाने लगा. वो झड रही थी और मयंक उनके चूत से निकली क्रीम को चाटे जा रहा था. रश्मि दीदी झड़ने के बाद ठंडी होकर लेट गई थी. अब मयंक उठा और उसने अपना अंडरवेयर निकालकर फेंक दिया. उसका लंड पूरा तना हुआ था और करीब ७ इंच का और काफ़ी मोटा भी था. उसने पास की टेबल से एक बोतल उठा कर अपने लंड के ऊपर कुछ स्प्रे किया फिर वो दीदी की दोनों टांगो के बीच में बैठा और उनकी टांगो को उठा कर अपने कंधे पर रख लिया. अपने लंड को मयंक ने रश्मि दीदी की चूत के मुह पर रख दिया और दीदी के ऊपर झुक कर दीदी के होंठो को अपने होंठो से लॉक कर दिया और अपने लंड को अंदर दबाने लगा.