RE: Bhabhi ki Chudai देवर भाभी का रोमांस
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चार साल बाद ....................
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आज मेरे लिए बहुत बड़ी खुशी का दिन था… क्योंकि पूरे 4 साल के बाद मे अपने घर वापस जा रहा था,
बीते 4 सालों से मे देल्ही में रहकर एलएलबी की पढ़ाई करता रहा था…, इस बीच रामा दीदी के यहाँ भी जाता रहा, लेकिन धीरे-2 वो भी बंद सा हो गया…
पिच्छले एक साल से एक जाने माने लॉयर के अंडर में मेने प्रॅक्टीस की, जिनसे मेने लॉ की बारीकियों को अच्छे से जाना था…
आज अपने गुरु प्रोफ़ेसर. राम नारायण जो उसी लॉ कॉलेज में प्रोफेसर भी हैं, उनसे पर्मिशन लेकर मे अपने घर जा रहा था…
ट्रेन में बैठा मे अपने बीते हुए दिनो को याद कर रहा था… साथ ही अपनी भाभी और प्यारी भतीजी रूचि से मिलने की एग्ज़ाइट्मेंट, …
बाबूजी और भैया का स्नेह और आशीर्वाद मिलने वाला था मुझे आज.
बीते कुछ दिनों में निशा से भी कोई बात नही हो पाई थी.., मेने कितनी ही बार उसके घर फोन किया, लेकिन लगा ही नही,
ना जाने वो क्या कर रही होगी आजकल, … फिर अचानक एक अंजानी सी आसंका ने मुझे घेर लिया…
कहीं उसके घरवालों ने उसकी शादी ना करदी हो…ये सोचकर ही मेरे शरीर में एक अंजाने डर की लहर दौड़ गयी… और मे बैचैन हो उठा…
इधर कुछ दिनो से मेरे घरवालों ने भी एक तरह से मुझसे संबंध सा ही ख़तम कर लिया था…
बस महीने के महीने मुझे खर्चा मिल जाया करता था, वो भी मनी ऑर्डर के ज़रिए….
मे जब भी फोन करता, लाइन मिलती, और मेरी आवाज़ सुनते ही कट कर दिया जाता...
जब पिछले कई महीनों से कोई खैर खबर नही मिली, तो मे बैचैन रहने लगा, जिसे प्रोफ़ेसर साब ने भाँप लिया और पुच्छ बैठे…
जब मेने सारी बात उन्हें बताई, तो उन्होने ही मुझे घर जाकर पता करने की बात कही…
फिर मेरी सोचों पर भाभी ने कब्जा कर लिया, उनके साथ बिताए वो स्वर्णिम दिन याद आने लगे, भाभी ने मेरी खुशी को कैसे अपनी जिंदगी ही बना लिया था…,
प्यार और स्नेह के साथ साथ उन्होने मुझे दुनियादारी भी सिखाई थी…, एक तरह से उन्होने ही मुझे इस काबिल बनाया था, मे उनके त्याग और ममता का ऋण कैसे उतार पाउन्गा…?
अपनी सोचों में गुम मुझे पता भी नही चला, कब मेरा स्टेशन आ गया…जब गाड़ी खड़ी हुई, तब जाकर मेरी सोचों पर भी ब्रेक लगे…
मेने लोगों से स्टेशन के बारे में पूछा.., हड़बड़ा कर मेने अपना बॅग लिया और डिब्बे से बाहर आया…
यहाँ से मुझे अपने घर तक बस से ही जाना था… जो करीब 1 घंटे बाद निकलने वाली थी…
मे जब अपने घर की चौपाल पर पहुँचा … जहाँ किसी समय बाबूजी की मौजूदगी में लोगों की जमात लगी होती थी वहीं आज सन्नाटा सा पसरा हुआ था..
बैठक का दरवाजा तो खुला था… इसका मतलव बाबूजी बैठक में हैं… लेकिन इतनी शांति क्यों है…
मे धड़कते दिल से बैठक के गेट पर पहुँचा… अंदर बाबूजी अकेले अपनी ही सोच में डूबे हुए आराम कुर्सी पर बैठे झूल रहे थे…,
वो आज मुझे कुछ थके-थके से दिखाई दिए.
मुझे सामने देखकर वो झटके से खड़े हो गये, मेने जाकर उनके पैर छुये, उन्होने मेरे सर पर हाथ फेर्कर आशीर्वाद दिया…
बाबूजी ने मुझे अपने गले से लगा लिया…, ना जाने क्यों उनकी आँखों से दो बूँद टपक कर मेरे कंधे पर गिरी…
मेने उनकी तरफ देखा… तो वो रुँधे गले से बोले… जा बेटा घर जाकर फ्रेश होले.. हारा थका आया है… थोड़ा आराम करले.. फिर बैठेंगे साथ में…
मे उनके पास से उठ कर अपना बॅग उठाए घर के अंदर पहुँचा…मेरी बिटिया रानी मेरी भतीजी… रूचि जो अब काफ़ी बड़ी हो गयी थी.. आँगन में खेल रही थी..
मुझे देखते ही दौड़कर मेरे पैरों से लिपट गयी… और चिल्लाते हुए बोली –
चाचू आ गये…. मम्मी… मौसी… देखो चाचू आ गये…
उसकी आवाज़ सुनकर भाभी और निशा दौड़ कर बाहर आई… मुझे देखते ही भाभी ने मुझे अपने कलेजे से लगा लिया… लाख कोशिशों के बाद भी उनकी रुलाई फुट पड़ी.. और उनकी आँखें बरसने लगी…
उनके पीछे खड़ी निशा भी रो रही थी…
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