RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
"सागर, तुम्हें 'वहाँ' मूँ'ह लगाने में घ्रना नही आई?"
"क्या कहा रही हो, दीदी?. घ्रना और तुम्हारी??. मुझे क्यों तुम्हारी उस से घ्रना आएगी? उलटा मुझे बहुत आनंद मिला उस में. तुम्हें सुख देने में मुझे हमेशा आनंद मिलता है चाहे वो कैसा भी सुख हो."
"सागर, तुम कित'नी प्यारी प्यारी बातें कर'ते हो. तुम्हारी ऐसी बातें सुनके में तुम्हें किसी बात के लिए ना नही कह'ती."
"तो फिर, दीदी. अब में जो कहूँ वो करोगी क्या? मेने जैसी तुम्हारी 'चूत' चाट के तुम्हें सुख दिया वैसे तुम मुझे सुख दोगी??" मेने जान बुझ'कर 'चूत' शब्द पर ज़ोर देते हुए उसे पुछा.
"सागर!!" ऊर्मि दीदी चिल्लाई, "नालायक! बेशरम!! . तुम्हारी ज़बान को हड्डी बिद्दी है के नही?? बेधड़क अप'नी बड़ी बहन के साम'ने 'चूत' वग़ैरा गंदे शब्द बोल रहे हो."
"अरे उस में क्या, दीदी!" मेने बेशरमी से हंस'ते हुए जवाब दिया, "उलटा ऐसे गंदे शब्द बोलेंगे तो और ज़्यादा मज़ा आता है. ज़्यादा उत्तेजना अनुभव होती है. अभी यही देखो ना. तुम'ने भी कित'नी सहजता से 'चूत' ये शब्द बोला.. कित'नी उत्तेजीत लग रही हो तुम ये शब्द बोल के. इस'लिए अब हम ऐसे ही गंदे शब्द इस्तेमाल करेंगे.."
"छी!. में नही ऐसे कुच्छ शब्द बोलूँगी."
"अरे, दीदी. ऐसे अश्लील शब्दो में ही असली मज़ा होता है. ऐसे शब्द बोला के ज़्यादा उत्तेजना अनुभव होती है. पह'ले पह'ले तुम्हें थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन बाद में तुम अप'ने आप ये शब्द बोल'ने लगोगी."
"नही. नही. मुझे बहुत शरम आती है."
"ओहा! कम ऑन, दीदी!. तुम कोशीष तो करो. बाद में अप'ने आप आदत हो जाएगी तुम्हें."
"ठीक है, सागर. वैसे भी मुझे नंगी कर के तुम'ने बेशरम बना ही दिया है तो फिर और क्या शरमाउ में?"
"यह एक अच्छी लड़'की वाली बात की तूने, दीदी!!. तो में क्या बता रहा था. हां !.. मेने जैसी तुम्हारी 'चूत' चाट के तुम्हारी 'इच्छा' पूरी कर दी. वैसी. मेरी भी एक बहुत दिन की 'इच्छा' है. के मेरा 'लंड' कोई चाटे."
"ववा!.. अब यही एक शब्द बाकी था. बोलो. बोलो आगे. और कोई शब्द बाकी होंगे तो वो भी बोल डालो."
"देखो. आज हम एक दूसरे की 'इच्छाए' पूरी कर रहे है. है के नही, दीदी?"
"हां. बोलो आगे."
"तो फिर मेने जैसे तुम्हारी 'चूत' चाट दी वैसे तुम मेरा 'लंड' चाटोगी क्या?"
"छी!. मेने नही किया कभी वैसा कुच्छ."
"वो तो मुझे मालूम है, दीदी. जीजू ने तो कभी तुम्हें अपना लंड चाट'ने के लिए कहा नही होगा लेकिन कम से कम तुम्हें मालूम तो है ना के पुरुष का लंड चाट'कर उसे आनंद दिया जाता है?"
"मेने तुम्हें पह'ले भी कहा, सागर. मेने सुना था के ऐसे मुन्हसे चुसाइ के सुख देते है."
"फिर तुम्हें कभी जीजू को 'ये' सुख देने की 'इच्छा' नही हुई?"
"वैसी 'इच्छा' तो हुई थी दो तीन बार लेकिन वो 'वैसे' कुच्छ कर'ने नही देंगे इसका मुझे यकीन था."
"तो फिर 'वही' 'इच्छा' अब पूरी करे ऐसा तुम्हें नही लग'ता?"
"अरे लेकिन मेने कभी 'वैसा' किया नही इस'लिए मुझे सही तराहा से जमेगा के नही ये मुझे मालूम नही."
"क्यों नही जमेगा, दीदी? तुम चालू तो करो. फिर में तुम्हें 'गाइड' करता हूँ."
"तुम्हें क्या मालूम रे.. गाइड!! तुम'ने कभी किसी से 'वैसा' करवाया है क्या?"
"प्रॅकटिकॅली तो नही करवाया. लेकिन पढ़ा है 'उस' किताब में से ."
"सागर, तुम्हारी उस किताब की तो मुझे बहुत ही दिलचस्पी पैदा हो गई है. मुझे दोगे 'वो' किताब पढ़'ने के लिए? ज़रा में भी तो देखू के में कुच्छ 'ज्ञान' प्राप्त कर सक'ती हूँ क्या उस किताब से."
"क्यों नही, दीदी?. ज़रूर दूँगा में तुम्हें वो किताब. लेकिन अभी तो तुम मेरा कहा मान लो? चुसोगी मेरा लंड, दीदी??"
"अब में क्या नही बोल सक'ती हूँ तुम्हें, सागर?? तुम मुझे इतना सुख दे रहे हो, मेरी 'इच्छा' पूरी कर रहे हो. तो फिर मुझे भी तुम्हें सुख देना चाहिए, तुम्हारी 'इच्छा' पूरी कर'नी चाहिए. बोला अभी!.. में कैसे सुरुवात करूँ.."
ऊर्मि दीदी मेरा लंड चूस'ने के लिए तैयार होगी इसका मुझे यकीन था. सिर्फ़ उस कल्पना से में उत्तेजीत होने लगा. 'मेरी लाडली बड़ी बहन मेरा लंड चूस रही है' ये हज़ारो बार देखा हुआ सपना अब सच होने वाला था. में जल्दी जल्दी उठ गया और उप्पर खिसक के, तकिये के उप्पर मेरा सर रखे अध लेटा रहा. फिर मेने ऊर्मि दीदी को कहा,
"दीदी! तुम मेरे कपड़े निकाल'कर मुझे नंगा करो ना."
"में क्यों करू??. मेरी तो आद'मी को नंगा देख'ने की 'इच्छा' कब की पूरी हो चुकी है." ऊर्मि दीदी ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा.
"प्लीज़, दीदी! निकालो ना मेरे कपड़े. तुम्हें क्या तकलीफ़ है उस'में??"
"ना रे बाबा.. तुम्हें चाहिए तो तुम खुद निकालो अप'ने कपड़े." मेरी तरफ तिरछी निगाहो से देख वो हंस के बोली.
"ऐसा भी क्या, दीदी. क्यों इतना भाव खा रही हो?"
"भाव क्या खाना, सागर. भाई का 'लंड' खाने की बारी आ गई है मुझ'पर." उस'ने जान बुझ'कर 'लंड' शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा.
"जा'ने दो फिर. अगर तुम कर'ना नही चाह'ती हो तो रह'ने दो, दीदी." मेने थोड़ा मायूस होकर उसे कहा.
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