RE: Antarvasna kahani रिसेशन की मार
रिसेशन की मार पार्ट--2
गतान्क से आगे..........
अप्लाइ करते करते ऑलमोस्ट 3 मंथ हो गये थे पर कही से कोई ऐसा फ्रूटफुल रिप्लाइ ही नही आया था. थोड़े बोहोत जो रीप्लाइस आते थे वो यही आते थे की वी हॅव केप्ट युवर अप्लिकेशन इन और आक्टिव फाइल, एज सून एज वी हॅव सम वेकेन्सी वी विल कॉंटॅक्ट यू. कुछ लोग तो डाइरेक्ट लिख देते थे कि पोज़िशन ईज़ ऑलरेडी फिल्ड. कुछ लिखते थे कि वी हॅव प्रमोटेड ए गाइ फ्रॉम और ऑफीस टू फिल दट पोज़िशन. कुछ कंपनीज़’ वाले लिखते के उनको एक्सपीरियेन्स्ड लड़की चाहिए. मैं तो इतनी निराश हो गयी थी के रातो मे रोने लगती के शाएद मुझे जॉब नही मिलेगा और धीरे धीरे सतीश की हेल्थ भी खराब रहने लगी थी. हमारा टाइम ही खराब चल रहा था. सतीश इतने सेल्फ़ कॉन्षियस थे के अपने पिताजी से या मेरे पिताजी से कुछ मॉनिटरी हेल्प लेने के लिए तय्यार ही नही थे. उसका ख़याल था कि यह बुरा टाइम है जो जल्दी ही ख़तम हो जाएगा और फिर वोही पुराने फुल प्रॉफिटबल बिज़्नेस आ जाएगा. सो ही वाज़ रेज़िस्टिंग बट हिज़ हेल्थ ईज़ रूयिनिंग दे बाइ दे आंड आइ आम अनेबल टू फाइंड आ जॉब फॉर माइसेल्फ. हम दोनो रातो मे रिसेशन, बिज़्नेस लॉस और जॉब के बारे मे ही डिसकस किया करते थे. हमारी सेक्स लाइफ भी तकरीबन ख़तम ही हो चुकी थी. अब सतीश का लंड जैसे एक छोटा सा लटकता हुआ यूरिन पास करने का टूल बन गया था. उसके लंड को एरेक्ट हुए पता नही कितने वीक्स हो गये थे. शुरू शुरू मे तो मेरा बोहोत मूड होता था चुदवाने का और मैं सतीश के लंड से खेलती और अपने हाथमे ले कर दबाती और कभी मूह मे ले के चूस्ति लैकिन फिर भी उसका लंड एरेक्ट नही होता था और मैं अपनी चुदवाने की भावना को अपने दिल मैं ही दबा के सो जाती. अब धीरे धीरे मेरी चूत भी गीली होना बंद हो गयी थी. दिन और रात बस जॉब का ही ध्यान लगा रहता था इसीलिए सेक्स की भावना ऑलमोस्ट ख़तम ही हो गयी थी. मेरा दिल भी अब चुदाई से हट गया था और मैं जो अपनी चूत की ऐसी अच्छी देख भाल किया करती थी अब अपनी चूत के बालो को ट्रिम करना भी छोड़ दिया था.
दिन और रात ऐसे ही निराशा भरे गुज़रने लगे. एक दिन जब मैं अपने मेल्स चेक कर रही थी तो मुझे वो गुड न्यू मिल गयी जिसका इंतेज़ार मैं ऑलमोस्ट 2 महीने से कर रही थी. मुझे इंटरव्यू कॉल आई थी आर.के. इंडस्ट्रीस, मुंबई से. आर.के. इंडस्ट्रीस को उनके मॅनेजिंग डाइरेक्टर ( एम डी ) के लिए एक पर्सनल सेक्रेटरी की ज़रूरत थी जो उनके छोटे मोटे पर्सनल अकाउंट्स भी देख सके. मेल देख कर मेरे दिल को जो खुशी मिली वो मैं बयान नही कर सकती.
मेरी आँखो मैं एक नयी चमक आ गयी, दिल इतनी ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा जैसे अभी उछल कर सीने से बाहर आ जाएगा, बदन मे खुशी से पसीना आ गया पर फॉरन ही एक दम से पता नही क्यों दिल बैठ गया के इंटरव्यू तो मुंबई मे है और पोस्ट भी वही के लिए है. मैं सतीश को छोड़ के कैसे जासकती हू और यह कोई ज़रूरी भी नही है के मैं बॅंगलुर से मुंबई जाउ और यह जॉब मुझे ही मिले पर दिल कह रहा था के थेअर ईज़ नो हार्म इन ट्राइयिंग स्नेहा चली जा ट्राइ तो कर ले भगवान की कृपा रही तो यह जॉब तुझे ही मिलेगी फिर दूसरी तरफ दिल कहता के स्नेहा सिक्रेटेरियल जॉब तो किसी लड़की को ही मिलेगी ना और तू तो एक शादी शुदा है फिर दिल कहता के यार चली तो जा एक ट्राइ करने मे किया प्राब्लम है तू भी कुछ कम ब्यूटिफुल और सेक्सी नही है बॅस थोड़ा अपने आप को मॉडर्न बना ले और ट्राइ मार ले. यह सोचते सोचते मैं घर आ गई और सतीश को इंटरव्यू का प्रिंट आउट दिखा दिया तो वो भी खुश हो गया और बोला के चली जाओ और ट्राइ कर्लो देखो क्या होता है. हम दोनो ने मिल कर डीटेल मे डिसकस किया. पहले प्रोग्राम बना के दोनो जाएगे फिर सोचा के अब इतना लंबा एक्सपेन्स करके मुंबई जाए वाहा का होटेल, बोरडिंग, लॉड्जिंग और ट्रॅन्स्पोर्टेशन का खर्चा बोहोत हो जाएगा. सतीश ने पूछा के क्या तुम अकेली जा सकती हो तो मैने बोला के मैं कभी बॅंगलुर से बाहर ही नही गई मुझे तो पता भी नही के मुंबई क्या है, कहा है, कैसी है वाहा क्या होगा एट्सेटरा एट्सेटरा. सतीश एक दो टाइम अपने बिज़्नेस के सिलसिले मे मुंबई जा चुके थे तो उनको मुंबई का एक वेग टाइप का आइडिया था लैकिन वाहा वो किसी को जानते नही थे और यह इंटरव्यू की प्लेस भी नही जानते थे कि कहा है और मुझे कुछ ख़ास गाइड भी नही कर सके बस मुंबई के लाइफ स्टाइल के बारे मे थोड़ा बोहोत जो जानते थे बता दिया. इंटरव्यू 3 दिन बाद होना था और मुझे कल ही मुंबई के लिए निकल जाना था नही तो मैं टाइम पे नही पहुँच सकती थी. बहुत आर्ग्युमेंट्स और डिस्कशन्स के बाद अल्टिमेट्ली यही डिसाइड हुआ के मुझे अकेले ही जाना पड़ेगा और मेरे पास बिल्कुल भी टाइम नही है. रात हो गई है और कल लंच टाइम तक मुझे चले जाना है. यह डिसाइड किया के प्राइवेट बस से जाना होगा क्यॉंके सब से पहले तो ट्रेन का टिकेट कॉस्ट्ली पड़ता था और बिना रिज़र्वेशन मुंबई तक का ट्रॅवेल ऑलमोस्ट इंपॉसिबल था इसी लिए बस का डिसाइड कर लिया गया.
सतीश ने मुझे समझाया के कैसे जाना है और क्या करना है और कैसे वापस आना है उसके बाद सतीश तो मेडिसिन ले के सो गये पर मुझे तो तय्यारी करनी थी इसी लिए मैं वॉशिंग मशीन मे अपने कपड़े डाल के वॉशिंग मे लग गई और शादी मे आया हुआ एक मीडियम साइज़ का सूटकेस निकाल के उसको साफ किया और कपड़े धोने के बाद आइर्निंग करने बैठ गई. अपना मेक अप बॉक्स भी रेडी कर लिया. मेरे पास कॉलेज के ज़माने का एक क्रीम बॅकग्राउंड पे पिंक फ्लवर वाला
मिद्डी टाइप का सिल्की स्कर्ट था और लाइट क्रीम कलर पे पोल्का डॉट वाली एक चोली जिसमे नीचे से नाट भी डाली जा सकती थी, यह ड्रेस मुझे बोहोत ही पसंद था तो मैं ने इंटरव्यू के लिए इस ड्रेस को ही चूज किया जिसे सतीश ने भी अप्रूव किया था और यह ड्रेस सतीश को भी बोहोत ही पसंद था. यह ड्रेस को आइरन किया और सूट केस रेडी कर लिया. जब यह सब काम कंप्लीट हो गया तो मुझे ख्याल आया के मुझे अपने आप को भी तो ठीक ठाक करना है नही तो इंटरव्यू के टाइम पे ऐसा लगेगा जैसे मैं किचन से उठ कर आ रही हू, यह ख़याल आते ही मेरे चेहरे पे एक मुस्कान आ गयी और मैं बाथरूम मे शवर लेने चली गई.
मैं अपनी झांतो भरी चूत को शेव करने लगी.
बाथरूम मे आने के बाद जब अपने कपड़े उतारे और नंगी हो गई और सामने वॉल पे लगे लाइफ साइज़ मिरर मे मुझे अपनी चूत के आगे ऐसा जंगल दिखाई दिया जिसे देख कर मैं डर गई के यह मेरी चूत की क्या हालत हो गई है और फिर मैं ने कपबोर्ड से हेर रिमूविंग क्रीम निकाल के अपनी चूत के बालो पे स्प्रेड किया और वेट करने लगी. थोड़ी देर के बाद प्लॅटिक के पीस से जब चूत के झांतो पे शेव जैसे ही किया तो चूत पे धक्की हुई झांट आसानी से निकलने लगे और जंगल जैसे बालो भरी चूत की जगह एक चमकदार, चिकनी सिल्की सॉफ्ट चूत दिखाई देने लगी जिस पर मैं प्यार से हाथ फेरने लगी और देखते ही देखते मैं सब कुछ भूल गयी मुझे इस वक़्त अपनी प्यारी चूत से ज़ियादा कुछ अछा नही लग रहा था और मैं अपनी प्यारी चिकनी चूत का बड़े प्यार से मसाज करने लगी. अपनी चूत पे हाथ फिराना मुझे बोहोत ही अछा लग रहा था, मेरे बदन मैं एक सनसनी सी फैलने लगी थी. मेरी फ्रेशली शेवन सॉफ्ट चूत को इस टाइम एक मोटे से मूसल लंड की ज़रूरत महसूस होने लगी जो मेरी गरम चिकनी चूत को चोद चोद के उसका भोसड़ा बना दे. आज कल सतीश का लंड तो एरेक्ट नही हो रहा था इसी लिए मुझे इमीडीयेट्ली अपने
कॉलेज फ्रेंड रवि का मोटा लंड याद आगेया और अब मेरी चूत की पोज़िशन ऐसी थी कि उसको एक मस्त मोटे लंड से चूत के फटने तक चुदाई चाहिए थी. मैं एक लंड के लिए बे चैन हो गई और अपनी उंगली को चूत के अंदर डाल के चोद्ते हुए मैं अपनी चूत के अंदर रवि के लंड को अपने ख़यालो मे ही अपनी चूत के अंदर महसूस करने लगी अपनी समंदर जैसी गीली चूत को अपनी उंगली से पागलो की तरह से चोदने लगी, मेरी उंगली चूत के अंदर तूफ़ानी रफ़्तार से अंदर बाहर हो रही थी और पता ही नही चला कब मेरी आँखें बंद हो गयी थी और सारे बदन मे एक नशा सा च्छा गया था, आँखें बंद हो गई, मस्ती से मेरा बदन किसी सूखे पत्ते की तरह से काँपने लगा और मैं झड़ती ही चली गई झड़ती ही चली गई पता नही कितनी देर तक झड़ती रही क्यॉंके मेरी चूत को चुदे हुए बोहोत दिन हो गये थे, मे बाथरूम के फ्लोर पे लेट गई और फिर और मेरा सारा बदन ऐसे सुन्न हो गया था जैसे किसी ने बदन मे ऐसी सन सनाहट होने लगी जैसे अनेस्तीसिया दे दिया हो और चूत के मसाज के बाद आज इतना ज़ियादा जूस निकला था कि क्या बताउ, चूत से जूस बह के जाँघो से होता हुआ नीचे फ्लोर पे भी गिर गया ऐसा लगता था जैसे मेरी चूत से मस्ती का जूस नही कोई समंदर निकला हो. मेरी चूत के अंदर इतने दिनो से सोई हुई चुदाई की वासना जागने लगी और मैं एक दम से चुदासी हो गई और मेरी चूत एक मोटे लंड से चुदने को बेचैन होने लगी और सोचने लगी के काश आज की रात सतीश का लंड उठ जाए और मुझे चोद चोद कर मेरी चूत का भोसड़ा बना दे. पर क्या करू मुझे पता था के अब इस टाइम पे उसका लंड नही एरेक्ट होगा इसी लिए अपने दिल पे पत्थर रख के बिना चुदवाये ही शवर लिया और टवल लपेट के शवर से बाहर आ गई.
अपनी झांतो भरी चूत को साफ कर के और फ्रेशली शेवन चूत का मस्त मसाज करने तक मुझे पता ही नही चला के मेरे शवर लेने मे तकरीबन एक घंटा लग गया है. मेरे शवर ले के बाथरूम से बाहर आने तक सतीश सो गये थे. मुझे उसे देख के उसपे दया आ गई और सोचने लगी के काश मुझे यह जॉब मिल जाए तो एक बार फिर से हमारे दिन पलट सकते है. सतीश का बिज़्नेस फिर से ठीक हो सकता है. एट्सेटरा एट्सेटरा, यही सोचते सोचते मैं अपने कपड़े और दूसरा समान पॅक करने लगी. एक एक चीज़ को अच्छी तरह से डबल चेक किया और सूटकेस को पॅक किया और सोने के लिए अपने बेड पे चली गई. टाइम देखा तो रात के 4 बज रहे थे.
मुझे अकेले ट्रॅवेल करने के डर से और फर्स्ट टाइम मुंबई देखने के एग्ज़ाइट्मेंट मे नींद ही नही आ रही थी. मैं बेड पे लेटी करवटें बदल बदल के सोने की कोशिश करने लगी पर कुछ नही हुआ. आख़िर सारी रात जाग जाग कर ही गुज़री बॅस अपनी आँखें बंद कर के लेटी रही. दिमागी टेन्षन की वजह से
बोहोत दीनो से रातो मे नींद नही आ रही थी कभी किसी दिन 3 घंटे कभी 4 घंटे ऐसे ही नींद होती रही थी. और आज तो रात भर नींद नही आई थी. बेड पे लेटने के बाद सारा टाइम करवटें बदलने मे गुज़र गया और बिना सोए ही सुबह उठ के शवर लिया तो थोडा फ्रेश महसूस करने लगी.
आज मुझे किसी प्राइवेट बस से मुंबई जाना था. सुबह मेरे शवर लेने तक सतीश ब्रेकफास्ट बना चुके थे. हम दोनो ने ब्रेकफास्ट लिया और सतीश बस के रिज़र्वेशन के लिए चले गये. बॅंगलुर से मुंबई जाने के लिए बोहोत प्राइवेट कंपनीज़ के बस चलते थे. हमारे घर के करीब ही एक प्राइवेट कंपनी भी थी जहा सतीश एंक्वाइरी के लिए चले गये और थोड़ी ही देर मे रिज़र्वेशन ले के वापस आ गये. बस दोपेहेर के 2 बजे बॅंगलुर से निकलती थी. लेट रिज़र्वेशन करवाने की वजह से मुझे सब से लास्ट वाली सीट मिली थी. मैं शवर ले के तय्यार हो गई. बॅंगलुर से मुंबई का जर्नी कुछ ज़ियादा ही लंबा था फिर सोचा के रास्ते मे मौसम कैसा होगा पता नही हो सकता है के ठंडी हो इसी लिए मैं ने डिसाइड किया और अपना एक डार्क ब्लू बॅकग्राउंड पे लाइट क्रीम कलर के छोटे छोटे फ्लवर और डीप नेक का शर्ट जिस्मै से मेरा दूध जैसा क्लीवेज भी नज़र आ रहा था और डार्क ब्लू कलर की मॅचिंग वाला सलवार सूट पहेन लिया. इस डार्क कलर की सलवार मे मेरा गोरा रंग बोहोत अछा लग रह था. मुझे घर मे ब्रस्सिएर और पॅंटी पहेन्ने की आदत तो थी नही और फिर मैं ने सोचा के इतना लंबा सफ़र है शाएद पॅंटी और ब्रस्सिएर मेरे बदन पे अगर टाइट हो गये तो उनको दूसरे पॅसेंजर के सामने अड्जस्ट करना भी मुश्किल हो जाएगा और फिर बस मे कौन मुझे देखने जा रहा है के मैं ने ब्रस्सिएर और पॅंटी पहनी है के नही बॅस यह सोच के मैं थोड़ा सा मुस्कुरा दी और बिना ब्रस्सिएर और बिना पॅंटी के ही सलवार सूट पहेन लिया. सलवार सूट बोहोत लाइट मेटीरियल का बना हुआ था जिसका मेरे बदन पे एहसास ही नही हो रहा था मुझे यह ड्रेस भी बोहोत ही पसंद था तो मैं ने यह पहेन लिया. सलवार पेहेन्ते पेहेन्ते देखा तो मुझे याद आया के इस सलवार सूट मे तो मेरे टेलर ने सलवार मे नाडा नही एक मोटी सी और अछी क्वालिटी का एलास्टिक लगाया हुआ था जिसके पहेन्ने से मैं बोहोत ही कंफर्टबल महसूस करती थी और अगर नाडा होता तो उसको बाँधने मे कभी टाइट हो जाता कभी ढीला तो वो एक अलग मुश्किल थी इसी लिए मैं हमेशा ही एलास्टिक हाई प्रिफर करती थी और मैं ने अपने टेलर से बोल दिया था के नेक्स्ट टाइम से मेरी सारी सलवार मे एलास्टिक ही लगाना. एक अंदर की बात बताउ, सलवार मे एलास्टिक होने की वजह से कभी भी बैठे बैठे या खड़े खड़े ऊपेर से अपना हाथ अपनी चूत मे डाला जा सकता था चाहे वो खुजाने के लिए हो या
चूत का मसाज करने के लिए. मैं यह सलवार सूट मे बोहोत ही कंफर्टबल और लाइट महसूस कर रही थी.
क्रमशः......................
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