Antarvasna दर्द तो होना ही था
06-30-2017, 11:10 AM,
#4
RE: Antarvasna दर्द तो होना ही था
कोई पांच मिनट बाद ही वो होश में आ गई, मुझे देखते ही वो उठ कर बैठ गई।
मैंने प्यार से उसके सर को सहलाते हुए पूछा- क्या हुआ जो तुम बेहोश हो गई?
उसने मेरे कंधे पर अपना सर रखा लेकिन मेरे किसी बात का जवाब नहीं दिया, बस एक ही शब्द बोली- यह खून कैसा?
‘तुम्हारा कुंवारापन खत्म हो गया है।’
फिर हम दोनों काफी देर तक चुप बैठे रहे, बुर की चुदाई में काफी समय बीत चुका था, लगभग आधी रात हो चुकी थी, इसलिये दोनों एक दूसरे से चिपक कर सो गये।
रात की खून भरी बुर की चुदाई के बाद दूसरे दिन मेरी नींद उसकी मधुर आवाज से खुली, वो मेरे लिये चाय बना कर लाई थी। इस समय उसने कपड़े पहन रखे थे।
मैं उसकी आवाज सुनकर उठा और बेड टी का मजा लिया।
मैं चाय पीकर यह सोचकर लेटने लगा कि तीन दिन तक अब मौज ही मौज होगी, क्योंकि प्रिया ऑफिस नहीं जायेगी और मुझे भी रूकने के लिये बोलेगी.
पर यहाँ तो उल्टा ही हो गया, जैसे मैं वापस लेटने लगा, उसने मुझे तुरन्त ही झिड़क दिया और तैयार होकर ऑफिस जाने के लिये बोली.
और वो भी खुद लंगड़ाते हुए रसोई की तरफ चल दी।
मैं उठा और उसके पीछे रसोई आ गया और दर्द के बारे में पूछा तो बोली- मजा लेने के लिये कुछ तो चुकाना ही पड़ेगा।
‘तुम ऑफिस जाओगी?’
‘हाँ बिल्कुल!’ वो बोली.
‘तो तुम भी तैयार हो जाओ, हम दोनों ही साथ चलते हैं।’
‘नहीं, तुम अकेले जाओगे और मैं अकेली!’
मैं उसकी बात समझ गया था। मैं तैयार हो गया, प्रिया ने मुझे नाशता करा दिया और टिफिन भी दे दिया।
मैं टिफिन लेकर निकल पड़ा.
करीब 1 घंटे के बाद प्रिया भी ऑफिस आ गई, हम दोनों की फॉर्मल बात चीत हुई और फिर दिन भर हम लोग अपना काम करते रहे। आज मुझे प्रिया और भी सेक्सी लग रही थी। मेरा मन काम में नहीं लग रहा था। पर मुझे किसी तरह समय बिताना था.
ऑफिस छूटने के एक घंटे पहले प्रिया अपनी किसी सहेली या फिर बहन से बात कर रही थी और उसके बाद बिना किसी को बताये ऑफिस से निकल गई।
ऑफिस छूटने के बाद जब मैं घर पहुंचा, लेकिन प्रिया घर नहीं आई थी, मेरे पास उसका नम्बर भी नहीं था।
मैं क्या करूँ?
मैं इसी उधेड़बुन में था कि प्रिया ने मुझसे बोला था कि तीन दिन तक वो घर में अकेली है और वो इसीलिये मेरे साथ मेरे घर आई थी, लेकिन क्या मेरे से कोई गलती हो गई कि वो बिना मुझे बताये कहाँ चली गई?
मेरे दिमाग में उसके घर जाने की बात आने लगी कि तभी डोर बेल बजी, दरवाजा खोला तो प्रिया बाहर खड़ी थी। उसे देखते ही मेरे मुंह से निकला- कहाँ थी तुम?
‘क्यों बहुत बैचेन हो रहे हो मेरे बिना?’ वो बोली।
‘तुम कुछ बता कर नहीं गई थी न इसलिये!’
अन्दर आकर कुर्सी पर बैठते हुए बोली- बस मैं अपनी बहन के यहाँ गई थी।
‘कोई खास कारण से गई थी वहाँ पर?’ मैंने पूछा तो उसने हाँ में सर हिलाया.
मैं उससे बात करते हुए चाय बना रहा था, मैंने उसे चाय सर्व करते हुए उसके दर्द के बारे में पूछा तो बोली- हल्की जलन सी है।
फिर हम लोग चाय पीते हुए बात करने लगे.
तभी मेरा ध्यान उसके चेहरे पर गया, काफी चिकना था और जो उसकी हल्की-हल्की मूँछें थी, वो भी बिल्कुल साफ थी और सबसे बड़ी उसके जिस्म से बहुत ही सेक्सी सुंगध आ रही थी तो मैं उसके और करीब गया और एक कुत्ते जैसे सूंघने लगा.
वो बोली- क्या कर रहे हो?
‘कुछ नहीं, तुम्हारे जिस्म से बहुत ही सेक्सी खुशबू आ रही है, इसलिये कुत्ते जैसा सूंघ रहा हूँ।’
इस समय प्रिया सफेद रंग का बॉटम और सफेद रंग की शर्ट पहनी थी और सफेद रंग की हील भी पहने हुए थी, मैंने उसके हाथ को पकड़ा और खड़े होने का इशारा किया, वो समझ गई और कुर्सी से उठ कर खड़ी हो गई, इस समय उसकी लम्बाई और मेरी लम्बाई के बराबर थी.
मैं घूमते हुए उसके पीछे गया और उसके कंधे पर अपनी ठोढ़ी टिकाकर उसके गाल से अपने गाल सटाकर बोला- प्रिया, तुम बहुत सुन्दर लग रही हो और तुम्हारे अन्दर से आती हुई महक मुझे और मदहोश करते हुए तुम्हारा दीवाना बना रही है।
प्रिया भी मेरे गालों को सहला रही थी।
मैंने उसकी कमीज के बटन खोलना शुरू किया, उसने झट से मेरा हाथ पकड़ा और बोली- ये क्या अभी से? रात में करना।
‘प्रिया मेरी गलती नहीं है, तेरे इस सेक्सी रूप ने मुझे बेकाबू कर दिया है, इसलिये… मत रोको मुझे!’
और फिर मैंने कमीज के बटन को खोलकर उसके जिस्म से अलग कर दिया और उसकी चुची ब्रा के ऊपर से दबाने लगा.
उसने अपने दोनों हाथ की माला बनाकर मेरी गर्दन पर डाल दी, मेरे हाथ जब उसकी चुची को सहलाते हुए उसकी बगल में गये तो वहां बिल्कुल भी बाल नहीं थे, मुझे उसकी बगल को सहलाने में बड़ा मजा आ रहा था।
कहाँ कल रात में झंगाड़ था बालों को, आज वो जंगल पूरी तरह से साफ था। मैंने उसकी बगल को सहलाते हुए पूछा- प्रिया, कहाँ से बनवाकर आ रही हो?
‘अपनी दीदी के यहाँ!’
मेरी मदहोशी तुरन्त ही खत्म हो गई, ‘क्या?’ मैं चौंक कर पूछा।
‘हाँ!’
‘तो उनको पता लग गया है कि तुम यहाँ पर हो?’
‘नहीं, बस कल रात जब तुम मुझसे प्यार कर रहे थे तो मुझे बड़ा अजीब लग रहा था, कि मेरे पूरे जिस्म में बाल ही बाल थे फिर भी तुम मुझे प्यार कर रहे थे, इसलिये मैंने सोचा कि आज मैं तुम्हारे लिये अच्छे से तैयार होकर आऊँगी।’
‘एक बात और बताऊँ?’ उसने मेरी आँखों में आँखें डालते हुए कहा- जब दीदी मेरी वैक्सिंग कर रही थी, तो मैं सिर्फ तुम्हारे बारे में सोच रही थी और पता नहीं कब मेरा पानी छुट गया, दीदी ने तुरन्त पूछा कि मेरी जिंदगी में कौन है?
‘तो तुमने क्या बताया?’
‘कुछ नहीं!’
अब मुझे प्रिया को देखने की बड़ी इच्छा हो रही थी, मैंने प्रिया की ब्रा को उससे अलग किया, फिर उसकी बॉटम और पेंटी को उससे अलग किया, मेरी नजर जब उसकी चिकनी चूत पर पड़ी तो मुझे लगा कि वास्तविक खजाना तो अब दिखाई पड़ रहा है।
क्या उभारदार गुलाबी रंग की चूत थी उसकी!
मैं अपने घुटने पर आ गया और मेरी उंगलियाँ उसकी चिकनी और सफाचट चूत को केवल सहला रही थी। अब बाल का नामोनिशान नहीं था… क्या मुलायम चूत लग रही थी!
मैंने प्रिया से कुर्सी पर बैठने के लिये कहा, मैं उसकी चूत को अच्छे से देखना चाहता था, कल रात तो कुछ समझ में भी नहीं आया था।
मैंने उसकी चूत की फांकों को फैलाया, उसकी लाल-लाल गहराई में उसकी चॉकलेटी कलर की पुतिया छुपी हुई थी। मैंने एक बार प्रशंसा भरी नजर से प्रिया को देखा और फिर बिना उसके उत्तर के इंतजार के मेरे होंठ उस महहोश कर देने वाली चूत से टच हो गये।
शुरू में तो मैं चूम रहा था, लेकिन कब मेरी जीभ उसकी चूत पर चलने लगी, उसकी पुतिया को होंठों के बीच फंसा कर लॉलीपॉप की तरह चूस रहा था।
मुझे तो पता ही नहीं चला कि कब मेरे दांत उसकी चूत के उभारों को काटने लगे, वासना इतनी प्रबल हो रही थी कि मैं उसकी चूत को खा जाना चाहता था.
वो मेरे बालो को सहला रही थी, लेकिन वो जल्दी ही खलास हो गई और उसका पानी मेरे मुंह में गिर रहा था।
वो शायद संकोचवश मेरे मुंह को अपनी चूत से अलग करना चाह रही थी, लेकिन वो असफल हो रही थी और फिर उसने प्रयास करना बंद कर दिया।
उसकी चूत के रस को चाटते हुए, नाभि से होते हुए उसके दूध को पीते हुए मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए, उसने कोई प्रतिरोध नहीं किया.
मैंने होंठ चूमने के बाद पूछा- प्रिया मैंने तुम्हारी मलाई चखी, मुझे बहुत पसंद आई, क्या तुम मेरी मलाई चखोगी?
वो खड़ी हुई और मेरे एक-एक कपड़े उतार कर मुझे अपनी जगह बैठाकर खुद नीचे बैठ गई और मेरे लंड को अपने मुंह में भर लिया। बहुत प्यार से वो मेरे लंड को चूस रही थी, उम्म्ह… अहह… हय… याह… कभी वो लंड को पूरा मुंह में भर लेती तो कभी सुपारे के खोल को खीचकर अग्रभाग पर अपनी जीभ चलाती तो कभी टट्टों को भी बारी-बारी से मुंह में भर लेती।
इधर मैं भी उसकी दोनों चुची से खेल रहा था।
जब उसने काफी देर मेरा लंड चूस लिया, तो मैंने उसे अपनी गोदी में उठाया और बेड पर लेटा दिया और उसकी दोनों जांघों के बीच बैठकर उसकी चूत पर लंड सेट किया, उसकी चूत अभी भी धधक रही थी, मैंने एक जोर का झटका दिया.
‘आह…’ बस उसके मुंह से निकला।
मैंने तुरन्त ही अपने आपको काबू में किया और रूक गया और फिर धीरे-धीरे करके लंड को उसकी चूत के अन्दर पेबस्त किया।
मैं उसके ऊपर लेट गया और उसकी चुची को अपने मुंह में भर लिया।
‘शक्ति, तुम बहुत अच्छे हो। मैं आज दुनिया के सब सुख पा गई!’
मुझे लगा कि ये उसके इमोशन हैं. मैंने अपना काम चालू रखा। अब मैं धीरे-धीरे अपने लंड को आगे पीछे करने लगा और धक्के की स्पीड भी धीरे-धीरे बढ़ाने लगा। एक जैसी पोजिशन में धक्के मारते मारते मैं थकने लगा तो मैं चित लेट गया और प्रिया को अपने ऊपर कर लिया और फिर उसकी चूत में लंड डालकर नीचे से अपनी कमर उठा-उठाकर उसको चोदने लगा।
प्रिया भी अब समझ चुकी थी, वो भी मुझे चोदने की कोशिश कर रही थी, हालांकि उसके इस प्रयास से उसकी चूत से लंड बाहर आ जा रहा था।
लेकिन एक बार जब वो समझ गई तो एक एक्सपर्ट की तरह वो भी मुझसे खेलने लगी।

फिर मेरे कहने से वो सीधी बैठ गई, उसके इस तरह के थोड़े प्रयास में ही मेरा लंड जवाब देने लगा था, मैंने प्रिया को अपने से नीचे उतारा और उससे बोला- अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारी चूत के बाहर अपना पानी निकाल सकता हूँ और अगर तुम चाहो तो मेरी मलाई को अपने मुंह में ले सकती हो!
मेरी बात सुनने के बाद उसने मेरे लंड को अपने मुंह में भर लिया और जब तक कि मेरी मलाई की एक एक बूंद को चाट नहीं ली तब तक उसने मेरे लंड को अपने मुंह से अलग नहीं किया।
थोड़ी देर हम दोनों चिपक कर लेटे रहे।
अब दूसरी बार प्रिया की बुर की चुदाई करके मुझे और शायद उसे भी काफी सुकून मिला.
साढ़े सात का टाईम हो रहा था, दोनों उठे, बारी-बारी से नहाने गये और फिर तैयार होने लगे, खाना खाने के हमारे पास दो विकल्प थे, एक घर में बना कर खाने का और दूसरे होटल में जाकर खाने का… मैंने प्रिया से पूछा तो होटल का तो उसने मना कर दिया, फिर हम दोनों ने मिलकर खाना बनाया और खाना खाकर छत पर चले गये।
गर्मी बहुत पड़ रही थी, हवा नहीं चल रही थी, मैंने कई बार प्रिया से वापस नीचे चलने के लिये बोला, लेकिन ‘थोड़ी देर रूको, थोड़ी देर रूको’ कह कर वो बात टाल देती थी।
मुझे गर्मी बहुत लग रही थी, तो मैंने अपनी लोअर और गंजी को उतार दिया, और एक टेबल फेन ऑन करके उसके सामने बैठ गया।
प्रिया का ध्यान जब मेरी ओर गया और उसने मुझे केवल अंडरवियर में देखा तो वो भी अपनी कुर्ती और बॉटम को उतारकर पेंटी और ब्रा में बैठ गई।
मेरे मन में मजा लेने की बात आई, मैंने प्रिया से कहा- देखो, मैं केवल जांघिये में हूँ और जबकि तुमने ऊपर और नीचे दोनों पहन रखे हैं।
वो उठी और मेरी तरफ पीठ करके बोली- लो ब्रा की हुक खोल दो, मैं भी केवल पेंटी में आ जाती हूँ।
मैंने उसकी ब्रा उतार दी और वो मेरे सामने पड़ी कुर्सी पर बैठते हुए बोली- लो, अब ठीक है?
मैं अपने पैर को उसकी जांघों के बीच में रखकर अंगूठे से उसकी बुर को कुरदते हुए बोला- हाँ अब ठीक है!
उसकी छोटी-छोटी तनी हुई चुची मुझे आमंत्रण दे रही थी कि ‘आओ और मुझे पियो।’
तभी प्रिया भी अपने अंगूठे से मेरे लंड को सहलाने का प्रयास कर रही थी। धीरे-धीरे उसके द्वारा मेरे लंड को सहलाये जाने से लंड महाराज अकड़ने लगे। इधर मैं भी उसकी बुर पर लगातार अपने अंगूठे से आक्रमण कर रहा था, जिसके ऐवज में प्रिया अपनी आँखें बन्द किये अपने होंठों को चबाने में विवश हो गई।
मेरा लंड तन चुका था, मैंने अपनी चड्डी उतारी और लंड को आजाद कर दिया, उसके बाद मैं उठकर प्रिया के पास गया, मेरे अंगूठे का टच हटने से उसने अपनी आँखें अचकचा कर खोल दी।
मेरी उंगलियां अब प्रिया की पेंटी की इलास्टिक पर फंस चुकी थी, प्रिया ने भी अपनी कमर उचका कर पेंटी उतरवाने में मेरी मदद की।
फिर हम दोनों छत पर पड़े गद्दे पर लेटे, मैं 69 की अवस्था में आना चाहता था, मैंने प्रिया के मुंह के पास अपने लंड को टिका दिया और लेटकर उसकी बुर को चूमने लगा। प्रिया मेरे लंड को चूसने लगी.
कुछ देर के बाद मैं नीचे लेट गया और प्रिया को उसी तरह से मेरे ऊपर आने को कहा, अब प्रिया की बुर मेरी तरफ थी और मुंह मेरे लंड पर था, प्रिया ने पानी छोड़ दिया था, मेरी जीभ लपलापाती हुई अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच गई, इधर प्रिया भी मेरे लंड से खेल रही थी, पूरा का पूरा लंड वो मुंह के अन्दर भर लेती, और फिर अन्दर अपनी जीभ फिराती, कभी मेरी जांघ को चाटती और अंडे को मुंह में भरती और जब लंड को वापस चूसती तो अंडे को खूब अच्छे से मलती।

काफी देर तक यह चलता रहा, फिर मैंने प्रिया को जमीन पर पटक दिया और उसके ऊपर चढ़कर लंड को बुर में डाल दिया और फिर चोदा चोदी शुरू हो गई, प्रिया उम्म्ह… अहह… हय… याह… की आवाज के साथ हिलती रहती और बीच-बीच में अपनी कमर को उठाती जाती और लंड को अपनी बुर के और भी अन्दर लेने का प्रयास करती।
अब कभी मैं उसके ऊपर चढ़कर चुदाई करता तो कभी वो मेरे ऊपर चढ़कर मेरा बाजा बजाती, इसी तरह अगले दस मिनट तक गुत्थमगुत्थी होती रही और फिर अन्त में एक बार फिर 69 की अवस्था में आकर दोनों ने एक दूसरे के रस का आनन्द लिया।
फिर वो मेरे बगल में आकर लेट गई, शायद उसका अभी मन नहीं भरा था कि वो मेरे मुंह में अपनी चूची को ठूंसती हुई बोली- शक्ति मेरा दूध पियो!
वो बारी-बारी से अपने स्तन को मेरे मुंह में भरती और मैं उसको चूसता। उसके बाद वो मेरे बगल में आकर लेट गई, हम दोनों के चेहरे एक दूसरे के सामने थे, वो बहुत खुश नजर आ रही थी, मैंने उसके गालो को सहलाना जारी रखा और वो मेरे मुरझाये हुए लंड को अपने हाथों में लेकर खेल रही थी।
तभी मैंने उसकी एक टांग को अपने कमर के ऊपर चढ़ाया और अपनी एक उंगली को उसकी गांड के अन्दर डालने का प्रयास करने लगा तो वह मेरा हाथ पकड़कर बाहर निकालते हुए बोली- क्या कर रहे हो?
मैंने कहा- कुछ नहीं, तुम्हारी गांड के छेद को ढीला कर रहा हूँ, ताकि लंड को उसके अन्दर डालूं।
तब वो कुछ नहीं बोली और मैं धीरे-धीरे उसकी गांड में उंगली डालने लगा और वो मुझसे कस कर चिपकी हुई थी। मैं पूरी स्वंतत्रता के साथ उसकी गांड में उंगली अन्दर डाले जा रहा था, बीच-बीच में वो अपने दर्द का अहसास मुझे कराती जाती थी लेकिन उसने मुझे अपनी गांड में उंगली करने से नहीं रोका, हालांकि वो भी मेरे गांड में उंगली करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसका हाथ मेरे कूल्हे तक ही आ पा रहा था।
इस तरह से काफी देर तक लगातार प्रयास करते रहने से मेरी दो उंगलियाँ उसकी गांड के अन्दर आसानी से आने जाने लगी। इधर मेरा लंड भी तैयार हो गया था, मैंने प्रिया को पट लेटने को कहा और बोला- हो सकता है कि जितना दर्द तुम्हारी बुर को हुआ था, उससे ज्यादा गांड में हो, लेकिन एक बार दर्द सहने के बाद जैसे तुम बुर का मजा पा रही हो, गांड का भी मजा पाओगी.
फिर मैंने प्रिया से उसकी गांड फैलाने को बोला, उसने अपने कूल्हे को पकड़कर गांड को फैला दिया, मैंने अच्छे से थूक उड़ेल कर उसकी गांड को गीला किया और लंड को उसकी गांड में डालने का प्रयास किया। करीब सात आठ बार टच करके निकालना और फिर अन्दर डालने की कोशिश में सुपारा भर अन्दर जा पाया था कि प्रिया बोली- काफी दर्द हो रहा है.
मेरे भी सुपारे में जलन हो रही थी तो भी मैं प्रिया को ढांढस बंधाते हुए थोड़ा बर्दाश्त करने की सलाह दे रहा था। मैं सुपारे को बाहर नहीं निकालना चाह रहा था तो थोड़ा और जोर लगाते मेरा लंड करीब एक सेंटीमीटर और अन्दर गया.
प्रिया बोली- शक्ति निकाल लो!
‘बस हो गया!’ मैं भी उसको ढांढस बंधाते हुए बोला.
अब जितना लंड अन्दर गया था उसी को मैं थोड़ा-थोड़ अन्दर बाहर करने लगा, इसी बीच उसने अपना हाथ कूल्हे से हटा लिया.
चूंकि वो विवश थी, पर थोड़ा और प्रयास करने पर लंड आधा जा चुका था और लंड ने बड़े प्यार से गांड के अन्दर अपनी जगह बना ली थी। इस तरह करते-करते मेरा पूरा लंड प्रिया की गांड के अन्दर धंस चुका था।
मैं प्रिया की पीठ पर लेट गया और उससे बोला- कैसा लग रहा है?
वो बोली- अगर निकाल लो तो मेरा दर्द खत्म हो जायेगा।
‘जान चिन्ता मत करो, जिस तरह तुम्हें बुर की चुदाई का मजा मिला है, उसी तरह तुम्हें गांड चुदाई का मजा मिलेगा।
और वास्तव में जब लंड ने पूरे गांड में जगह बना ली और आसानी से अन्दर बाहर होने लगा, तो प्रिया को भी मजा आने लगा। अब वो दर्द से चिल्लाने के बजाये आह-ओह, आह-ओह करने लगी और तब तक करती रही जब तक कि मैं उसकी गांड में झड़ नहीं गया। 
उसके बाद प्रिया मुझसे चिपक गई, उसकी गांड मेरे लंड से टच कर रही थी, उसकी पीठ मेरे सीने से और मेरे दोनों हथेलियां उसकी चूचियों पर थी.
पता नहीं कब नींद आ गई, लेकिन आधी रात को प्रिया की सिसकी और रोने की आवाज से मेरी नींद टूट गई, देखा कि प्रिया अपने घुटने को अपनी छाती से चिपकाये हुए कराह रही थी और बार बार अपनी गांड को सहला रही थी।
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RE: Antarvasna दर्द तो होना ही था - by sexstories - 06-30-2017, 11:10 AM

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