Hindi Kahani बड़े घर की बहू
06-10-2017, 03:26 PM,
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
कामया अपने रूप को निहारती हुई और अपनी नई काया को निहारती हुई तैयार हो चुकी थी वैसा ही कपड़ा बाँधा था उसने जैसा कि यहां अश्राम में कहा गया था पर मनसा ने उसे पिन और क्लिप से इतना तरीके से ढँका था और कमर पर एक मोटी सी गोल्ड की कमरबन्द से कस दिया था कि देखने में वो एक धोती के साथ आँचल लिए हुए दिखती थी पूरा वाइट और गोल्डन कलर से सजा दिया था उन महिलाओ ने उसे और फिर एक सफेद कलर के कपड़े की चप्पल उसके पैरों में पहना दिया था सज कर कामया ने जब अपने आपको आईने में देखा था तो सिर्फ़ देखती ही रह गई थी रूप था की बदल कर सोना हो गया था आखें बड़ी-बड़ी और गहरी हो गई थी मादकता लिए हुए और बोझिल सी देखने में थी शरीर का हर हिस्सा कस गया था और बिना हील के भी उसके नितंब बाहर की ओर निकले हुए थे बिना ब्रा के भी उसके स्तन तने हुए थे यह कमाल सिर्फ़ और सिर्फ़ तेल की मालिश और उबटन का ही था कि आज उसे बिना ब्रा के बाहर जाने में कोई दिक्कत नहीं हुई थी एक गजब का कान्फिडेन्स डेवेलप हो चुका था उसके अंदर एक पूर्ण विस्वास से खड़ी थी वो 

मनसा- क्या देख रही है रानी साहिबा 

कामया- नहीं कुछ नहीं बस ऐसे ही 

मनसा- देखना भैया जी देखते ही टूट पड़ेंगे आप पर 

कामया- धात कैसी बातें करती हो तुम 

मनसा- क्यों रानी साहिबा शादीशुदा हो पति के साथ भी तो रहोगी ना 

कामया के अंदर वो आग फिर से जल उठी थी एक नयापन जीवंत सा हो गया था और योनि के अंदर तक हलचल मच गया था जाँघो को जोड़ कर किसी तरह से अपने आप को शांत करते हुए मनसा से नजर चुरा लिया था उसने और आगे की ओर बढ़ चली थी मनसा भी मुस्कुराते हुए उसके पीछे-पीछे बाहर किया ओर चल ने लगी थी कामया उसी रास्ते से बाहर की ओर निकल रही थी जहां से कल प्रवेश किया था कुछ भी चेंज नहीं था पर उसका देखने का तरीका बदल गया था वो सब जो वो पहले देखा था तो एक आश्चर्य हुआ था पर अब नहीं बहुत बड़े से हाल को पार करते ही बाहर एक लंबी सी गाड़ी खड़ी थी मनसा ने आगे बढ़ कर उसका डोर खोलकर खड़ी हो गई थी 

मनसा- आइए रानी साहिबा ड्राइवर आपको छोड़ देगा 

कामया- क्यों तुम नहीं चलोगी 

मनसा- नहीं रानी साहिबा आज नहीं आज आप अपने घर जा रही है कल से में जब आप फिर यहां आएँगी में जरूर आपके साथ रहूंगी अभी चलिए नहीं तो गाधुलि बेला से पहले नहीं पहुँच पाएँगी 

कामया को समझ नहीं आया कि क्या कह रही है पर जल्दी से गाड़ी में बैठ गई थी सामने ड्राइवर था कौन था नहीं मालूम पर वही सफेद ड्रेस में सीधे बैठा हुआ और सामने की ओर देखता हुआ नजर पीछे की ओर भी नहीं किया था उसने डोर के बंद होते ही मनसा ने गाड़ी को आगे जाने का इशारा किया था और गाड़ी धीरे से अश्राम के बाहर की ओर सरकने लगी थी 

आज दो दिन बाद वो आश्रम से निकली थी पर लगता था कि सालो बाद वो इस जगह को देख रही है बदला कुछ नहीं था पर कामया की नजर बदल गई थी उसके देखने का तरीका बदल गया था उसे सबकुछ बड़ा गंदा सा लग रहा था देखने में एक अजीब सी बदबू आ रही थी इससे पहले उसे कभी ऐसा नहीं हुआ था इन रस्तो पर वो कई बार निकली थी पर आज कुछ अलग था बदबू से भरी हुई लगती थी उसे यह जगह गाड़ी अपनी रफ़्तार से उसके घर के ओर दौड़ रही थी कोई भी आवाज नहीं थी अंदर सिवा एंजिन के थोड़ा सा शोर और बाहर की कोई आवाज अंदर तक नहीं आ रही थी पर कामया का मन नहीं लग रहा था लगता था कि कितना लंबा सफर है कुछ देर बाद ही उसे अपना घर दिखाई देने लगा था वही घर जहां वो विवाह के बाद आई थी 

वही घर जहां वो इतने सालो तक रही थी वही घर जहां से उसने अपना शादीशुदा जिंदगी का सफर शुरू किया था 

गेट के अंदर गाड़ी घुसते ही वो अपने आपको वापस असल जिंदगी में खींचकर ले आई थी घर के बाहर बहुत सजा हुआ था और मम्मी जी भी हाथों में थाली लिए खड़ी थी गाड़ी के रुकते ही कामया के लिए किसी महिला ने गेट खोला था कामया ने धीरे से अपने घर के आँगन में कदम रखा था बाहर खड़ी महिलाओं में एक उत्सुकता थी कामया को देखने की कामया के बाहर आते ही एक हमम्म्मममममम और वाह की आवाज गूँज उठी थी कामया एक मद मस्त कर देने वाली मुश्कान फैलाती हुई अपनी मम्मी जी के सामने खड़ी थी मम्मी जी भी आखें फाडे हुए उसे देखती ही रह गई थी हाथों में थाली लिए हुए वो मंत्र मुग्ध सी खड़ी हुई कामया को देख रही थी 

कामया- क्या हुआ मम्मी जी 

मम्मी जी ऐसे नींद से जागी थी 
मम्मी जी- नहीं एयेए अंदर आ 

और थाली से आरती कर कामया को सहारा दिए घर के अंदर ले आई थी कामया ने मम्मी जी के साथ-साथड्राइंग रूम में प्रवेश किया था घर बड़ा सजा हुआ लगता था पर वही घर जहां वो इतने दिनों तक रही थी और अपने सपनो को पूरा करने के रह देखती थी वही घर अब उसे अपरिचित सा लग रहा था बहुत छोटा और घुटन भरा लग रहा था फिर भी कामया मुस्कुराती हुई सभी लोगा का मन मोह रही थी और मम्मी जी के साथ बैठी हुई उनकी बातों को ध्यान से सुन रही थी बैठी बैठी कामया को थकन सी होने लगी थी वही चेयर और सोफे पर वो आज से दो दिन पहले बैठती थी तो अच्छा लगता था गद्दे दार लगता था पर अब वही सोफा और चेयर उसे चुभ रहे थे अचानक ही मम्मी जी ने भी 
मम्मी जी- चलो बहुत हो गया चलो बहू तुम्हारा बेग कमरे में रखवा दिया है खाना खा लो और फिर आराम कर लो कामेश और तुम्हारे पापा जी तो गुरु जी के काम से बाहर गये है जो भी जरूरत पड़े बताना और कहती हुई कामया के साथ-साथ सभी खड़े हो गये थे कामया भी क्या करती मुस्कुराती हुई खड़ी हुई और एक नजर हाल के चारो ओर फेर कर मम्मी के साथ उन लोगों को विदा करने लगी थोड़ी देर में ही सब खाली हो गया था सभी लोग चले गये थे और बचे थे सिर्फ़ मम्मी जी और कामया खाली सा कमरा और हाल और डाइनिंग स्पेस से होते हुए कामया वही सीढ़ियो के पास जाकर खड़ी हो गई थी ऊपर की ओर जाते हुए सीढ़ियो को देखती हुई कामया ने एक बार मम्मी की ओर देखा था 

मम्मी जी मुस्कुराती हुई 


मम्मी जी- जा जा कर आराम करले सिर्फ़ आज का दिन ही तुझे इस घर में रहना है फिर तो कल से वही अश्राम में रहना होगा फिकर ना कर हम भी वही आ रहे है कामेश और तेरे पपाजी को आने दे फिर ठीक आई और मुस्कुराती हुई कामया के सिर पर अपने हाथ फेरती हुई कामया की ओर देखती रही कामया ने देखा था मम्मी जी के चहरे पर बहुत प्यार था बहुत सा स्नेह उसके आखों पर से चालक रह आता कामया ने नजर पलटा ली और सीढ़ियो की और बढ़ चली थी धीरे-धीरे वो अपने कमरे में भी पहुँच गई 

वही कमरा जहां वो शादी के बाद से ही अपने पति के साथ रहती आई थी कितना परिचित सा था वो कमरा कामया लिए पर आज कितना पराया सा लग रहा था छोटा सा समान से भरा हुआ किसी कबाड़ खाने से कम नहीं लग रहा था कमरे में हवा और सांस लेने में भी परेशानी हो रही थी उसे जल्दी से कमरे की विंडो खोलने को गई थी वो पर रुक गई थी एसी ओन था पर फिर भी कमरा अच्छा नहीं लग रहा था खाली सा बिस्तर जमीन से लगा हुआ लग रहा था बेड पर बैठी थी वो सख्त और चुभ सा रहा था उसे दो दिन में ही क्या वो इतना बदल गई थी क्या उसे अश्राम की हवा लग चुकी थी 


उसे यह घर में रहने की बिल्कुल इच्छा नहीं कर रही थी बेड पर उसका बेग रखा था यह बेग उसका है क्या है इस बैग में देखने को उठी थी वो और खोलकर देखा था कुछ खास नहीं एक सोने से पहले पहनने का छोटा सा कपड़ा था और एक बड़ा सा और साथ एक छोटा सा ग्लास की बोतल थी उसमें वही पेय पदार्थ भरा हुआ था जो अब तक वो वहां पीते आई थी बस और कुछ नहीं मनसा ने पॅक कर दिया होगा चलो ठीक है एक बार घूमकर उसने बाथरूम को देखा उबकाई सी आने लगी थी उसे इतना सुंदर बाथरूम भी उसे गंदा सा लग रहा था बहुत ही छोटा और घुटन भरा था वेंटिलेशन होते हुए भी बदबू सी लग रही थी उसे इतने में इंटरकम की घंटी बजी थी 

कामया- जी 

मम्मी जी- आज बहू खाना खा ले फिर आराम करना 

कामया- जी 

और कुछ सोचती हुई वो नीचे की ओर चल दी थी 

मम्मी जी- अरेतूने चेंज नहीं किया 

कामया- जी वो अश्राम में यही कपड़े पहनने पड़ते है बिना सिले हुए इसलिए 

मम्मी जी- पर क्या यही पहनकर सोएगी 

कामया कुछ कहती इतने में भीमा किचेन से नजर झुकाए निकला था हाथों में प्लेट और ट्रे लिए कामया उसकी ओर देखती पर मम्मी जी के रहते वो ऐसा ना कर पाई थी पर एक नजर उसे पता था कि भीमा देख जरूर रहा था एक बिजली सी दौड़ गई थी उसके शरीर में वही नजर थी उनकी जो आज से बहुत दिनों पहले उसने दिखी थी वही आकर्षण वही उत्तेजना कामया के शरीर में फिर से दौड़ गई थी भीमा चाचा का नजर चुरा कर उसे देखना और फिर नजर बचा कर मम्मी जी को देखते हुए उसे फिर देखना कामया के लिए काफी था वो एक उत्तेजित सी और न संभलने वाली स्थिति में पहुँच चुकी थी इतने दिनों तक अपने पति और अपने शरीर को किसी पुरुष के हाथों में ना पाकर जो स्थिति बनी थी आज वो उस स्थिति से लड़ने को बिल्कुल तैयार नहीं थी 
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