Hindi Kahani बड़े घर की बहू
06-10-2017, 03:26 PM,
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
उस कमरे में घुसते ही कामया की सांसें बंद होने लगी थी बड़ी ही मुश्किल से साँसे ले पा रही थी

मनसा- बस रानी साहिबा कुछ देर में ही ठीक हो जाएगा बस उबटन थोड़ा सा गीला हो जाए फिर स्नान को जाएँगे बस थोड़ी ही देर 

कामया के पूरे शरीर में उबटन लगा हुआ था वो अब धीरे-धीरे नरम पड़ रहा था, और थोड़ा सा ढीला भी लगा रहा था मनसा ने आगे बढ़ कर उसकी आखों पर से जो पकिंग था हटा लिया था अब वो देख सकती थी पर धुन्ध से भरे हुए कमरे में उसके और मनसा के सिवा कोई नहीं था वो एक वुडन बेंच पर लेटी हुई थी और भाप से पूरा कमरा भरा हुआ था 

कामया पहली बार स्टीम बाथ ले रही थी स्टीम से पार्लर में चेहरा जरूर साफ किया था पर कंप्लीट बाथ कभी भी नहीं लिया था पर यह एक सुखद एहसास था उसके लिए अब वो अपने शरीर को भी देख सकती थी हर कही ग्रीन कलर का कोट अब धीरे-धीरे गीला हो चुका था एक नजर उठाकर उसने मनसा की ओर देखा तो मनसा बोल उठी 

मनसा- अभी थोड़ी देर में ही यह उबटन निकल जाएगा रानी साहिबा बस थोड़ा सा और इंतजार कीजिए 
कहती हुई वो एक डोर से बाहर निकल गई थी कामया अकेली ही लेटी थी कि मनसा की पदचाप फिर से सुनाई दी थी कामया ने पलटकर उसे देखा तो मनसा हाथों में एक ग्लास लिए खड़ी थी होंठों में एक मधुर सी मुश्कान लिए वो कामया की ओर बढ़ी थी कामया की ओर वो ग्लास बढ़ाती हुई वो बोली 
मनसा- इसे पिलीजिए अच्छा लगेगा 

थकि हुई सी कामया ने उस ग्लास को लिया और बिना कुछ कहे ही धीरे से उसे अपने होंठों में लगा किया था कुछ पेय था मीठा सा पर बहुत ही गाढ़ा और शीतल सा मस्त और टेस्टी पीते ही उसके शरीर में एक नई जान भर गई थी पर सांस लेने में अब भी तकलीफ हो रही थी कामया के पेय के पीते ही मनसा ने उसके हाथों से वो ग्लास ले लिया था और साइड में खड़ी हो गई थी और अपने हाथों से उसके शरीर से उबटन को एक छोटे से कपड़े से पोछने लगी थी 

कामया उसकी ओर देखती हुई लेटी रही थी धीरे-धीरे उस पेय ने एक बार फिर से कामया के अंदर उत्साह और स्फूर्ति भर दी थी कामया एक बार फिर से मनसा के हाथों के साथ-साथ मचलने लगी थी कामया का शरीर एक बार फिर से जीवित हो उठा था हर टच का जबाब अपने शरीर को मोड़कर या फिर अंगड़ाई लेकर देती जा रही थी 





थोड़ी देर में ही कामया के शरीर से उबटन पुछ गया था और वो एक कामुक मुद्रा में लेटी हुई थी चिपका हुआ सा पेट और उसके ऊपर उठी हुई सी चूचियां और मुख को उँचा किए हुए अपनी एडी से जाँघो को उठा रखा था उसने मनसा की आवाज पर वो उठी थी और एक बार मनसा की ओर देखती हुई अपने आपको देखा था वाह क्या निखार आ चुका था उसके शरीर में अनचाहे बाल साफ और इतना साफ की हथेली रखते ही फिसल जाए कितना मेहनत करना पड़ता था पार्लर में वक्सिंग थ्रीडिंग और प्लुगिंग और ना जाने क्या-क्या 

पर यहां तो एक बार में ही सबकुछ इतनी आसानी से हो गया था तेल के कारण त्वचा में जो निखार आया था वो उबटन के बाद और भी निखर गया था मतवाली सी और गोरी सी और कयामत ढाने वाली कामया अब तैयार थी अगले स्नान के लिए कामया की बोझिल सी आखों से अब भी एक प्रश्न उछल कर आ रहा था कि आगे क्या … 

मनसा ने मुस्कुराते हुए एक बड़ा सा कपड़ा फिर से आगे कर दिया कामया जैसे समझ गई थी उसे उठना है उठ-ते ही वही चेयर लिए कुछ महिलाए वापस आ गई थी और कामया को बिठा कर फिर से उसी स्नान घर में ले आई थी पानी बदला हुआ था पर गुलाब की पखुड़िया बहुत सी बिछी हुई थी या कहिए तैरती हुई दिख रही थी पानी में कुछ बूंदे आयिल जैसी भी थी किसी रानी की तरह से आगमन था कामया का परियो की रानी सुंदर और कोमल और मदहोशी का और मदमस्त चाल की मालकिन कामया धीरे से उस चेयर से उतरती हुई ही अपने आप ही उसने अपने कपड़े को हटाकर मनसा की ओर बढ़ा दिया था और मुस्कुराती हुई कुंड में समा गई थी उफ्फ देखना था क्या अदा है क्या नजाकत है और क्या कयामत सी लग रही थी


कामया पर उबटन और तेल का कमाल उसके शरीर में अलग से छलक रहा था मद भरी आखों से देखती हुई और अधखुले होंठो की मालेकिन कामया एक सच मूच की गजब की हुश्न की मल्लिका लग रही थी क्या रंग लाएगा उसका यह हुश्न किसी को नहीं पता था नहीं ही किसी को इस बात का ही पता था कि आगे क्या होगा और क्या होगा सिर्फ़ शायद गुरुजी को ही पता था या शायद उन्हे भी कुछ ज्यादा पता नहीं या चलिए यह बात बाद में अभी तो कुंड में घुसते ही कामया का आधा शरीर पानी में डूब चुका था पानी में बैठ-ते ही उन महिलाओं ने एक-एक करके कामया को बाँट लिया था और अपने काम को अंजाम देने में जुट गई थी आराम से अपने कोमल हाथों से घिसते हुए वही आनंद का एहसास कामया के शरीर में पहुँचा रही थी 


कामया भी अब नार्मल हो चुकी थी एक बार तो हो चुका था और क्या फिर से क्या शरम आखें तक तो मिला नहीं पा रही थी यह महिलाए और सिर्फ़ अपने काम को अंजाम देने में जुटी हुई थी ना कोई जल्दी और नहीं कोई उत्साह और नहीं कोई चिंता थी उन महिलाओं के चेहरे पर 


पर हाँ काम में निपुण थी वो हाथों का खेल उन्हे बड़े ही अच्छे से आता था और किस जगह में हाथ लगाने से कामया पर क्या फरक पड़ेगा वो अच्छे से जानती थी कामया का सिर कुंड के कोने पर टिका हुआ था मनसा अब भी वही बैठी हुई थी कामया की ओर देखती हुई और अपने हाथों से उसके माथे और बालों को सहलाती हुई 

मनसा- बस रानी साहिबा कुछ देर और फिर हो गया बिल्कुल ढीला छोड़ दे अपने शरीर को और स्नान का मजा ले इस तरह का स्नान अब रोज होगा कल सुबह और शाम को आप घर जाने से पहले भी तैयार रहिएगा और अपने आपको इतना संवार लीजिए की बाहर के लोग आपका देखकर ईर्षा करने लगे और आपको देखने को भीड़ लग जाए देखिएगा एक दिन आपके साथ ऐसा ही होगा बाहर लोगों की भीड़ रहेगी सिर्फ़ आपकी एक झलक पाने को 

कामया सिर्फ़ एक मीठी सी हँसी ही हँस पाई थी और कुछ नहीं सिर को टिकाकर उन महिलाओं के हाथों का आनंद लेने लगी थी सिर और बालों पर घूमते हुए मनसा के हाथों में भी जादू था आखें बंद सी हो जाती थी शरीर का हर कोना जगा हुआ था और हर टच का जबाब देने को आतुर था टाँगो को ठीक से रख पाना एक बार फिर से मुश्किल होता जा रहा था बाहों को भी ठीक से रख नहीं पा रही थी वो सांसों की गति धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी सांसो के उतार चढ़ाव के साथ साथ उसके पेट का चिपकना और उतना ही बरकरार था लगता था कि एक बार फिर से वो उत्तेजित होने का खेल रही है और खेले भी क्यों नहीं उसे कौन रोकेगा इस खेल में अब यह महिलाए भी तो उसे उसे तरह से छेड़ रही थी कोई उसके शरीर से खेलेगा और वो कुछ नहीं करेगी 

उसका ही शरीर है उत्तेजना तो होगी ही वो भी एक औरत है और वो भी शादी शुदा उसे सब पता है वो डूबती जा रही थी धीरे से उस खेल में स्नान तो एक साइड में था उसके लिए पर उन हाथों के भेट चढ़े हुए उसे ज्यादा मजा आरहा था उसके हाथों का टच और उससे उठने वाली तरंग जो की उसके शरीर के हर कोने तक जाती थी उसके अंदर की औरत को जगा कर चुपचाप बैठ जाती थी और कामया एक ऐसी आग में धकेल देती थी कि उससे निकलने के लिए वो जी जान से कोशिश करती, और धीरे-धीरे महिलाओं का आक्रमण तेज होने लगा था तेल और उबटन के लगाने के बाद तो जैसे उसका शरीर एक कोमलता का चिकने पन की हद तक वो स्पर्श के साथ ही हर रोम रोम तक उन उंगलियों का एहसास अंदर तक पहुँचा देता था 


कामया की जाँघो पर हाथ फेरती हुई दोनों महिलाए जब उसकी योनि तक जाती थी तो कामया आगे की ओर हो जाती थी ताकि वो और आगे तक बढ़े पर जब वो वापस अपने हाथों को खींचती हुई चलो जाती थी तो कामया परेशान हो उठ-ती थी दोनों और से बैठी हुई महिलाए भी उसकी चूचियां को थोड़ा सा रगड़कर पेट और पीठ तक पहुँच आ जाति थी पर कामया चाहती थी कि उनके हाथ बस उसकी योनि और चुचियों पर ही टीके रहे और कही नहीं जो होना था वो हो चुका पहले वोा करो फिर बाद में यह सब करना पर नहीं वो उन्हें कुछ ना कह सकी हाँ… मनसा की ओर देखती जरूर थी शायद वो समझ जाए


पर मुस्कुराती हुई मनसा ठीक वैसे ही बैठी रही थी अपनी हथेलयो को बस उसके गाल और गले तक पहुँचा भर दिया था इससे क्या होगा जो चाहिए था वो करो कामया का दिल बड़े ही जोर से धड़क रहा था हर अंग एक नई कहानी लिखने को बेकरार था हर एक कोना खिल उठा था हर एक हिस्सा अलग अलग तरह की फरमाइश कर रहा था इतने सारे हाथों के रहते हुए भी कामया का शरीर खाली सा था हर अंग पर हाथों का काफिला था पर खाली सा लग रहा था वो लगभग मचल रही थी जल में रहते हुए भी जल बिन मछली की तरह इतने सारे हाथों के रहते हुए भी अपने शरीर में हाथों की कमी पा रही थी 
और ज्यादा नहीं रुक सकती थी वो उसके अंदर कुछ तो चाहिए ही था दो बार झड़ने के बाद भी उसकी उत्तेजना को देखकर लगता था कि बहुत दिनों की भूखी है और शरीर की उत्तेजना को छुपा नहीं पा रही है जैसे ही पास बैठी हुई महिला का हाथ उसके चूचो पर टकराया था उसने अपना हाथ उसके हाथों पर रख दिया था ताकि वो वापस ना खींच सके और वो वही रहे उन महिलाओं ने भी अपनी रानी की आग्या मानी थी लगता था उसका पूरा ध्यान अब कामया की चुचियों पर टिका हुआ था और कही नहीं हहतो का तरीका भी थोड़ा सा बदला था उनका अभी तक जो धीरे-धीरे सहलाने की प्रक्रिया चल रही थी वो अब धीरे-धीरे मसलने लगे थे वो शायद जानती थी कि रानी साहिबा को क्या चाहिए उनके दबाने का ढंग भी चेंज था और निपल को छेड़ने का तरीका भी नीचे बैठी हुई महिलाओं ने भी अपना तरीका बदल लिया था अब वो भी कामया की टांगों को खोलकर 
जाँघो के साथ-साथ उसके योनि तक पहुँच जाते थे और वही रुक कर उसकी योनि के अंदर तक अपनी उंगलियां पहुँचाने की कोशिश करने लगी थी 
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