Hindi Kahani बड़े घर की बहू
06-10-2017, 03:20 PM,
#93
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
उसकी सांसें जो कि थोड़ी सी कंट्रोल में थी एक बार फिर से धमनियो से टकराने लगी थी आआहए सी निकलने लगी थी खड़े-खड़े काँपने लगी थी हाथ में रखा हुआ फूल उसे नहीं दिखा था और नहीं उसके हाथों में बोतल ही और नहीं उसे अपने कपड़ों का ध्यान था हाँ ध्यान था तो सिर्फ़ एक बात का उसके सामने खड़ा हुआ वो जानवर जो कि उसके शरीर का प्यासा है, जो की उसकी प्यास बुझा सकता था गला क्या उसके सारे शरीर में जो प्यास है उसे वो बुझा सकता है हाँ… कामेश नहीं है पर उसे अपने शरीर की प्यास के लिए कुछ करना ही था तो यह गुंडा क्यों नहीं और फिर वो तो उसका नौकर ही है उसकी खिदमत करना तो उसका फर्ज़ है वो खड़ी हुई सोच ही रही थी कि भोला एकदम उसके पास आके खड़ा हो गया और अपने सीधे हाथों को एक बार उसके लेफ्ट चुचे के ऊपर से घुमाकर उसके चहरे पर ले आया और उसके चहरे से बालों के गुच्छे को हटा कर उसकी आँखो में देखता रहा और बहुत ही धीरे से अपनी नजर को उसके सीने से लेकर उसके पूरे शरीर पर घुमाकर वापस उसकी आखों पर डाल कर उसके नजदीक चला गया 

कामया- आआअह्ह 
पर भोला की आवाज नहीं निकली निकली तो सिर्फ़ उसकी जीब जो कि कामया गले से लेकर उसके सीने पर जहां जहां पानी गिरा था उसके साथ-साथ घूमती हुई उसके ब्लाउसको चूमती हुई और उस गिरे हुए पानी को पीते हुए फिर से ऊपर की र उठने लगी थी 

कामया- आअह्ह उूउउम्म्म्मम प्लीज़्ज़ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज 

भोला- मेमसाहब चलिए आपको सुला दूं 

और अपने होंठों को एक बार कामया के गालों को छूते हुए अपनी दोनों बाजू को उसके गले और जाँघो के नीचे लेजाकर एक झटके में ही उसके तन को अपनी बाहों में उठा लिया था कामया जब तक संभालती तब तक तो हवा में थी और एक मजबूत गिरफ़्त में थी एक अंजाने भय के चलते एकदम से भोला की टीशर्ट पर उसकी उंगलियां कस्स गई थी और उसके पीठ पर जो बाँहे थी उसके सहारे अपने सीने को उँचा करके आखें बंद किए आगे की होने वाली घटना को सहेजती हुई कामया ने अपने शरीर को एकदम ढीला छोड़ दिया था 


एक मदहोश करने वाली गंध उसके नथुनो को अब भी भेदने में लगी थी और एक आपरिचित सी गंध भी शायद वो शराब की थी जो की भोला की सांसों से आ रही थी और उसके शरीर से भी पर कामया की मजबूरी ही थी की वो ना चाहते हुए भी उसकी गिरफ़्त में थी और नहीं जानती थी कि क्या करे पर हर स्थिति को जानती हुई भी एक अंजान सी बनी हुई उसकी बाहों के सहारे अपने कमरे की ओर चल दी थी 


उसकी पकड़ अब भी भोला की टी-शर्ट पर कसी हुई थी और नहीं जानती थी कि भोला की नजर कहाँ है पर सांसों के छोड़ने से जो गंध उसकी नाक में जा रही थी उससे तो लगता था कि उसे ही देख रहा होगा पर कामया में इतनी शक्ति नहीं थी कि वो अपने को ढँक सके खाली पेट और सीने पर पड़ती हुई ठंडक को झेलते हुए उसे यह तो अंदाज़ा था ही कि वो अपने कपड़ों का ध्यान नहीं दे रही थी और एक संपूर्ण आमंत्रण सा दे रही थी भोला को और भोला भी उस मौके का पूरा फायदा उठा रहा था 

उसे कामग्नी में जल रही नारी को जो कि उसके जीवन की सबसे ज्यादा तपस्या का फल था आज उसकी बाहों में थी और वो उसे उसी के कमरे में ले जा रहा था एक उमंग के साथ-साथ एक बड़ा ही नाटकीय सा मोड़ आ गया था उसके जीवन में ना जाने क्यों भोला भी इस औरत के लिए इतना क्यों बेकरार था और जाने क्यों वो अब तक इससे जबरदस्ती नहीं कर पाया था चाहता तो लाखा काका के बाद ही वो इस औरत को अपने नीचे लिटा सकता था पर नहीं किया था उसने और आज जब सबकुछ उसके हाथों में था एक झिझक थी उसमें क्या करे या कहाँ से शुरू करे, या फिर कुछ और था जो भोला को रोके हुए था वो तो इस औरत को छू चुका था और वहां भी ऋषि के घर में भी तो उसे इशारा करके ही बुलाया था ना कि मिन्नत करके कैसे आ गई थी यानी वो भी जानती है कि और चाहती ही होगी फिर क्यों वो पीछे हटेगा आज नहीं हटेगा कुछ भी हो 



और उधर कामया अपने आपको अंदर की ओर ले जाती हुई भोला की चाल को गिन रही थी उसकी पकड़ में अपने आपको विचलित सी होती हुई अपने नाखूनों को और भी ज्यादा तेजी से उसकी टी-शर्ट पर गाढ़ती हुई अपने को सहारा दिए हुए अपने कमरे पर पहुँच गई थी और अपने को नीचे की ओर होते हुए भी एहसास किया था और अपने को बेड पर टच भी होते हुए पाया था पर उसकी गिरफ़्त उसके टी-शर्ट पर से ढीली नहीं हुई थी 


कामया को लिटा कर भोला एक बार तो उससे दूर जाने की कोशिश करता है पर कामया की पकड़ उसके टीशर्ट पर इतनी मजबूत थी कि वो हट नहीं पाया थोड़ा सा रुक कर उसपरम सुंदरी को एक बार निहारता हुआ अपने दोनों हाथों को उसके नीचे की ओर से निकालने लगा था निकालते समय कामया के शरीर के हर हिस्से को लगातार छूते हुए और एक गहरा एहसास लेते हुए निकालता चला गया आखें कामया के शरीर के हर हिस्से को निहारती रही और अपने अंदर उठ रही हवस की आग को ठंडा करने की कोशिश करता रहा पर कामया की पकड़ के सामने वो हार गया और अपने सीधे हाथ से एक बार फिर से कामया के शरीर के हर मोड़ पर और हर अंग को शहलाने की इच्छा को वो रोक ना पाया कमर के चिकने पन से लेकर कोमलता और उसके गदराए हुए नितंबों तक वो अपने हाथों को घुमाते हुए ले चला था हर हिस्सा उसके तन में एक आग को जनम दे रहा था दूसरे हाथ से वो कामया की चुचियों पर अपने उतावलेपन को दर्शा रहा था कितनी सुंदर और सुडोल है मेमसाहब कितनी कोमल और नशीली सी और किस तरह से अपने आप में ही तड़प रही थी 


कामया अपने शरीर मे उठ रही ऐंठन को नहीं रोक पा रही थी अपने आपको सिकोड़ती हुई और तन्ती हुई भोला की टी-शर्ट पर अपनी पकड़ अब तक ढीली नहीं की थी और भोला भी धीरे-धीरे अपने हाथों को चलाते हुए उसके शरीर के हर हिस्से को सहलाता हुआ कभी ऊपर और तो कभी नीचे की ओर जा रहा था पर हर बार ही उसे लगता था कि कही कुछ छूट तो नहीं गया और फिर से वो उन्हीं जगह पर घुमाने लगता था कामया के शरीर पर घूम रहे भोला के सख़्त और कठोर हाथ उसके अंदर एक नई आग को जनम दे रहे थे आज तक किसी ने उसे इतने प्यार से नहीं सहलाया था थोड़ी देर में ही वो जंगली हो उठ-ता था और उसपर टूट पड़ता था पर यहां भोला कुछ अलग था उसके हाथों को कोई जल्दी नहीं थी और उसके हाथों के घुमाने से ही लगता था कि वो कामया के हर हिस्से को ठीक से और अच्छे से देख लेना चाहता था कामया के शरीर पर से उसकी साड़ी एक तरफ हो गई थी और जो जगह ढकनी चाहिए वो अब खुली हुई थी काले कलर की साड़ी के अंदर का हर वो पहनावा अब बिल्कुल साफ था भोला के सामने ब्लाउज के अंदर से उसकी चूचियां आधे से ज्यादा बाहर आ गई थी और हर बार उसकी सांसें लेने से वो और भी बाहर की ओर आ जाती थी कामया के मुख से सांसों के साथ-साथ कई आवाजें भी निकलती जा रही थी जो की उस समय उस कमरे में एक अजीब से महाल को जनम दे रही थी भोला की आखें पथरा सी गई थी अपने सामने इस तरह से कामया को तड़पते देखकर उसकी साड़ी को कंधे से नीचे होते ही जब वो झटके से उसकी ओर पलटी तो सिर्फ़ ब्लाउज के अंदर का हिस्सा उसके सामने था और पेटीकोट से बँधी हुई उसकी साड़ी और वो गहरी सी नाभि भी अपनी उंगलियों से उसके पेट को छूते हुए उसकी नाभि को उंगलियों से उसके आकार और प्रकार का जाएजा लेता हुआ भोला उस काम अग्नि में जल रही कामया को एकटक देख रहा था दूसरे हाथ से उसके चहरे से बालों को साफ करते हुए उसके चेहरे को ध्यान से देखता रहा पर कामया की आखें बंद थी और जोर-जोर से सांसें लेती हुई अब तो भोला को टी-शर्ट पकड़कर अपनी ओर खींचने लगी थी उसकी उत्तेजना को देखकर लगता था कि भोला को उसकी जरूरत कम थी और कामया को उसकी जरूरत ज्यादा थी उत्तेजना में हालत खराब थी कामया की पर भोला तो जैसे मंत्र मुग्ध सा अपने हाथों में आई उस हसीना के एक एक अंग को ठीक से तराशते हुए अपने हाथों को उसके जिश्म पर घुमा रहा था उस नरम और कोमल चीज के हर हिस्से को छू लेना चाहता हो जैसे कामया के तड़पने से उसकी पेटीकोट उसकी जाँघो तक आ गई थी और भोला की आखें जैसे पथरा गई हो 
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