Hindi Kahani बड़े घर की बहू
06-10-2017, 03:05 PM,
#75
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
From Back up

कहते है कि इंसान अपनी भूख से नहीं लड़ सकता चाहे वो पेट की हो या पेट के नीचे की हो

वही हालत कामया की थी बड़ी ही मुश्किल से बाहर तक आई थी और मिरर के सामने खड़ी होकर अपने आपको संवारने लगी थी पहले बालों पर ड्राइयर चलाकर बालों को सूखाया फिर वारड्रोब से एक पतली सी महीन सा गाउन निकाल कर पहन लिया जो कि उसके कंधों के सहारे ही था पतली सी दो डोरी के सहारे वो कामया की चूची के 3्4 साइज़ को उजागर करते हुए जाँघो के आधे में ही ख़तम हो जाता था नशे की हालत में चलते हुए वो बेड के किनारे में जाकर बैठ गई थी और अपनी टांगों को हिलाकर जमीन की ओर देखते हुए कार्पेट को अंगूठे की नोक से खोदने की कोशिश करने लगी थी इतने में ही पास में रखे उसके मोबाइल पर कामेश का फोन आया नजर घुमाकर एक बार हैंडसेट की ओर देखा और हाथ बढ़ाकर उसे उठा लिया
कामया- हाँ…
कामेश- सो गई क्या
कामया- नहीं
कामेश- नाराज हो क्या
कामया- नहीं
कामेश- अरे यार दो दिन में तो आ जाऊँगा फिर मजे करेंगे ना असल में तुम्हारी याद आ रही थी इसलिए फोन कर दिया
कामया- क्यों याद आ रही थी
कामेश- अरे यार रात हो गई ना इसलिए ही ही ही हाँ… हाँ…
कामया-
एक आह सी निकली कामया के मुख से
कामेश- हेलो
कामया- जी
कामेश- नींद आ रही है चलो सो जाओ कल फोन करूँगा ओके… गुड नाइट
कामया- गुडनाइट
फोन कट गया पर कामया हाथों में फोन लिए चुपचाप बैठी हुई जमीन की ओर ही देख रही थी जाँघो को जोड़ जोड़ कर बार-बार वो अपने आपको कही और ही भूलने की कोशिस करती रही पर नहीं हुआ उससे बार बार वो हास्पिटल के बेड के पास का सीन नहीं भुला पा रही थी भोला के लिंग का स्पर्श उसे हाथों में अब तक था गरम और सख्त और मुलायम और मोटा सा लिंग अब तक उसके जेहन में उसके शरीर के हर हिस्से को एक आग में झुलसा रहा था वो मजबूर थी ना चाहते हुए भी बार-बार उसके जेहन में यह बात घर किए हुए थी अब तो उसका सिर भी घूमने लगा था


वो धम्म से बेड पर गिर पड़ी चित होकर अपने हाथों को फैला कर उसने बेड के चारो ओर एक बार देखा कि वो ठीक है कि नहीं और फिर से वो अपनी दुनियां की सैर करने लगी थी कितना मजबूत था भोला और निडर भी किसी बात की चिंता नहीं की उसने अगर उस समय कामेश या कोई और ही आ जाता तो और वो भी बिना किसी डर के बाद में उसका साथ देने लगी थी सोचते सोचते वो फिर से अपने आपको उसी आग में झौंकने लगी थी जिसे वो निरंतर खामोश करने की कोशिश कर रही थी पर हर बार वो कोशिश उसके शरीर को और भी उस आग में धकेल रहा था जिस आग से वो भाग रही थी
हर एक पहलू उसे उस ओर धकेल रहा था जिससे वो भागने की कोशिश कर रही थी लेटे लेटे वो बहुत देर तक अपने बारे में सोचती रही और अपने को कही और ही ले जाने की कोशिश करती रही पर हर बार वो लौट कर वही आ जाती थी जहां से चली थी अपने को संभालते हुए वो एक बार फिर से खड़ी हुई और अपने बेड को ठीक करने लगी थी वो नहीं सोचना चाहती थी उस बारे में नहीं वो अब और इस दलदल में नहीं फँसेगी नहीं वो अब नहीं बहकेगी हाँ… अब वो ठीक से सोच पा रही थी बिल्कुल ठीक कामया ने एक ही झटके में अपने बेड की ठीक करते हुए लाइट बंद करके चुपचाप लेट गई कमरे में बिल कुल सन्नाटा पसर गया था हल्की सी नाइट लैंप की रोशनी थी पूरे कमरे में बहुत ही मध्यम सी सिर्फ़ और सिर्फ़ कामया के सांसों की चलने की आवाज आ रही थी और कुछ नहीं


कामया बेड पर पहले तो फेल कर सोई हुई थी फिर अपने को सिकोड़ कर फिर और भी सिकोड़ कर सोने की कोशिश करती रही आखें बंद करती तो वही भोला का चेहरा उसे याद आता कैसे आखें बंद किए हुए था उस समय जब वो उसके लिंग को सहला रही थी किसी पत्थर की तरह सख्त था आआआआआआह्ह उूुुुुुुुुुुुुुउउफफफफफफफफफफफफफफ्फ़
कामया झट से उठ बैठी नहीं और नहीं सह सकती यह कामेश की गलती है वो क्या करे उसका पति ही उसका साथ नहीं देता तो वो क्या करे शादी के बाद औरत हर एक इच्छा के लिए अपने पति पर ही निर्भर रहती है और वो हमेशा ही उसे अनदेखा करता है क्यों चला गया वो खाने से लेकर हर चीज़ उसे अपने पति से ही चाहिए होता है पर वो तो सिर्फ़ खाने और पहनने तक ही सीमित था असल समय में ही गायब हो जाता था नहीं अब और नहीं सह सकती वो उससे कुछ करना ही पड़ेगा, नहीं तो वो मर जाएगी उसे कोई चाहिए कोई भी उसके तन की आग को बुझाने को कोई भी चलेगा पर चाहिए अभी ही कामया के शरीर में जाने कहाँ से एक फुर्ती सी आ गई थी वो एक झटके से अपनी चादर को अपने शरीर से अलग करके नीचे पड़े हुए सँडल पर अपने पैरों को घुसा लिया और खड़ी हो गई वो अपने रूम से बाहर जाना चाहती थी



उसे इस रूम में घुटन ही रही थी यहां अगर वो ज्यादा देर रहेगी तो पागल हो जाएगी नहीं नहीं उसे बाहर ही जाना है वो धीरे से अपने रूम का दरवाजा खोलकर बाहर आकर खड़ी हो गई सीढ़ियो के ऊपर जाने वाले रास्ते को एक बार देखा नहीं अंदर से एक हल्की सी आवाज आई वो थोड़ा सा रुक गई नहीं वो ऊपर नहीं जाएगी फिर वो धीरे-धीरे चलते हुए नीचे की ओर जाने लगी थी वो एक बात बिल कुल भूल चुकी थी कि वो क्या पहेने हुए थी सिर्फ़ एक छोटा सा शमीज टाइप का गाउन जो कि उसके अंदर का हर हिस्सा साफ-साफ दिखाने की कोशिश कर रहा था ना पैंटी और नहीं ब्रा बस एक हल्का सा गाउन था वो या कहिए एक महीन सा कपड़ा भर था उसके शरीर पर पर वो अपने आपसे नहीं लड़ पा रही थी शायद आज की पूरी रात ही वो अपने आपसे लड़ते हुए गुज़ार देगी सीढ़ियो से नीचे उतरते हुए उसे अपने पूरे घर के सन्नाटे को भी देखती हुई वो बिल्कुल धीमे कदमो से चलती हुई किचेन की ओर बढ़ रही थी किचेन में हल्की सी रोशनी थी


एक-एकदम सन्नाटा कोई नहीं था वहाँ भीमा चाचा अपना काम खतम करके ऊपर चले गये होंगे हाँ… उसने आगे बढ़ कर फ्रीज खोला और एक बोतल निकाल कर धीरे धीरे एक-एक घुट पानी पीने लगी खड़ी हुई एक बार पूरे किचेन की ओर देखा फिर एक घुट फिर थोड़ा इधर उधर फिर एक बोतल रख ही रही थी कि उसे पीछे से एक आहाट सुनाई दी वो थोड़ा सा डरी पर हिम्मत नहीं हुई पलटने की आवाज रुक गई थी फ्रीज का दरवाजा अब भी खुला था और वो झुकी हुई थी झुके झुके ही उसने पलटकर किचेन से बाहर की ओर देखा कामया की सांसें फिर से फूलने लगी थी बिना पीछे पलटे ही खड़ी हुई और फ्रीज के दरवाजे को बहुत ही धीरे से बंद करके वही फिर से खड़ी हो गई उसे नहीं पता था कि पीछे कौन था खड़ी ही हुई थी कि पीछे से दो हाथों ने उसकी कमर से चलते हुए धीरे-धीरे से उसकी चूची को अपनी गिरफ़्त में ले लिया कामया के मुख से एक लंबी सी आआह्ह निकली थी उसने उसे रोकने को कोशिश नहीं की अपने अंदर के द्वंद से वो थक चुकी थी वो नहीं गई थी किसी के पास अगर कोई उसे शांत करना चाहता है तो अब उसे क्यों रोके वो वैसे ही खड़ी रही बल्कि उसके हाथों को अपने हथेलियो से और कस कर पकड़ लिया था अपनी गर्दन को पीछे की ओर धकेल कर उसके कंधों पर टिका लिया था उसे सहारे की जरूरत थी एक बहुत ही मजबूत सहारे की अपनी चूची को बहुत ही धीरे-धीरे दब्ते हुए पा रही थी वो बहुत ही प्यार से
कामया- आअह्ह जोर से दबाओ

- क्यों अपने आपको तकलीफ देती है बहू हाँ…
और एक लंबा सा चुंबन उसके गालों को गीलाकर गया था हल्की हल्की दाढ़ी के सख्त बाल उसके कोमल और नाजुक से गालों को छू रहे थे वो और भी ज्यादा उसकी काम अग्नि को बढ़ा रहे थे वो अब अपने आप में नहीं थी अब तो वो उसके हाथों में थी और सबकुछ न्योछावर था सबकुछ

- इस घर में तेरे गुलामों के रहते क्यों

और एक लंबा सा चुंबन होंठों को होंठों से जोड़ गया और आवाजें एक के अंदर एक गुम हो गई कमाया का गाउन उसकी कमर के ऊपर की ओर उठ गया था पीछे खड़े सख्स के हाथों के कारण उसके हाथ अब उसकी चूची को अच्छे से दबा रहे थे कामया को जरा भी दर्द नही हो रहा था बल्कि बहुत अच्छा लग रहा था पीछे से उस सख्स के लिंग का अहसास भी उसे हो रहा था शायद लूँगी के अंदर था पर साफ-साफ पता था कि वहां कुछ है और बहुत ही उतावला है क्योंकी हर बार वो एक झटका जरूर लेता था कामया का एक हाथ अपने आप पीछे की ओर चला गया था और वो उस लिंग को अपने हाथों में लेना चाहती थी वो लिंग जो उसकी आग को शांत करना चाहता था उसके हाथों के पीछे पहुँचने से पहले ही पीछे खड़े सख्स ने जैसे उसकी मन की बात भाप ली हो एक ही झटके में उसकी धोती नीचे थी और कामया के नितंबों में गरम-गरम और तगड़ा सा लिंग अपने आपको आ जादी से स्पर्श करते हुए पाया उसका हाथ पीछे की ओर गया ही था कि उससे रहा नहीं गया और झट से उसने लिंग को अपनी गिरफ़्त में ले लिया और बड़े ही उतावले पन के साथ उसे मसलने लगी थी पीछे खड़े सख्स को भी पता था कि कामया को क्या चाहिए वो भी कामया को धकेलते हुए पास में ही प्लॅटफार्म पर झुका कर खड़ा किया और अपने उतावले लिंग को उसके रास्ते पर चलने को छोड़ दिया लिंग अपने आप ही कामया की योनि के द्वार पर अपने सिरे को टिकाए हुए अपने आपको अंदर जाने के धक्के का इंतजार करता तब तक तो कामया ने भी अपनी जाँघो को थोड़ा खोलकर उसे रास्ता दे दिया और एक ही धक्के में लिंग अपने रास्ते चल निकला
कामया- आआआआआआह्ह,

- धीरे बहू कोई सुन लेगा

और बहू के ऊपर झुकते हुए उसके होंठों को ढूँढ़ कर अपने कब्ज़े में किया ताकि उसके मुख से निकलने वाली आवाज बाहर तक नहीं जा सके लेकिन कामया तो जैसे अपने अंदर उस लिंग को पाकर पागल हो गई थी उस सख्स के हर धक्के का साथ क्या दे रही थी बल्कि उसे पीछे की ओर ही धकेल देती थी हर धक्के के साथ वो इतना झुक जाती थी कि उस सख्स का लिंग उसके अंदर तक बिना किसी तकलीफ के बहुत ही अंदर तक समा जाता था

वो सख्स भी शायद पहले से ही बहुत उतेजित था या कहिए कामया के इस तरह से वर्ताव करने से ही, वो बहुत ही जल्दी अपने मुकाम पर पहुँचने वाला था कामया का भी यही हाल था बहुत देर से जो आग उसके शरीर में लगी थी वो हर झटके में उसके हाथों से निकलती जा रही थी उसकी योनि के अंदर एक बहुत ही तेज और बड़ा सा समुंदर का सा जोर बनने लगा था वो जाने कब और कितनी देर तक उसका साथ दे पाएगी वो नहीं जानती थी पर, जो जंगली खेल दोनों खेल रहे थे उसमें कोई भी एक दूसरे का साथ छोड़ने को तैयार नहीं था हाँ पर एक दूसरे से दूर जाने को भी तैयार नहीं थाथे पीछे के हर धक्कों को झेलते हुए वो एक असीम समुंदर में एक झटके से गोते लगाने लगी थी उसके होंठ अब आजाद थे वो एक लंबी सी चीत्कार करते हुए अपनी कमर को और भी तेजी से पीछे की ओर करती जा रही थी और उस सख्स के हर धक्के का जबाब भी दे रही थी वो सख्स भी अपनी सीमा को लगने ही वाला था उसकी पकड़ इतनी कस गई थी, थी कामया की कमर के चारो तरह कि कामया लो लगा था कि उसकी कमर की हड्डी ही टूट जाएगी पर जैसे ही वो सख्स झडा धीरे-धीरे उसकी पकड़ ढीली पड़ती गई और वो उसकी पीठ के ऊपर अपनी जीब और चेहरा घिसते हुए शांत हो गया पर जाने क्या हुआ कि जैसे ही वो सख्स शांत हुआ और अचानक ही उससे दूर भी हो गया पर एक दूसरी जोड़ी हाथों की गिरफ़्त में वो पहुँच गई थी
- बहू थोड़ा और रुक जा पागल कर दिया रे तूने

और फिर से एक लिंग उसकी योनि में धड़-धड़ाते हुए बिना किसी चेतावनी के ही सरसराते हुए घुस गया और फिर एक भयानक सी तेजी और वहशीपन वाला खेल चालू हो गया था और कामया को कुछ समझ में आता तब तक तो शायद वो फिर से गरम-गरम सा महसूस करने लगी थी अपनी योनि में शायद उसे और भी चाहिए था शायद वो इतनी गरम हो चुकी थी कि एक के बाद एक और होने से भी उसे कोई फरक नहीं पड़ता था और वो और भी झुक कर उस सख्स के लिंग को और भी अंदर तक ले जाने की कोशिस करने लगी थी उसके हाथ अब भी प्लॅटफार्म के ऊपर ही थे और पीछे के सख्स ने उसकी चुचियों को जोर से अपनी हथेलियो की गिरफ़्त में ले रखा था वो उन्हें मसलता हुआ लगातार झटके पर झटके दे रहा था हर झटके में कामया के मुख से एक लंबी और सुख के सागर में गोते लगाते हुए एक लंबी सी चीख निकलती थी जो किसी भी आदमी को और भी उत्तेजित कर सकती थी या फिर कहिए कि मुर्दे में भी जान डाल सकती थी पीछे के सख्स के लगातार होने वाले आक्रमण को कामया बिना किसी तकलीफ के झेलती चली गई और अपने मुकाम की ओर फिर से दौड़ लगाने लगी थी हर धक्के में वो चिहुक कर अपनी कमर को और भी मोड़ लेती या पीछे कर देती ताकि वो उस लिंग का कोई भी हिस्सा को मिस नहीं करे जिस तरह से वो खेल चल रहा था उसे देखकर कोई भी कह सकता था कि दोनों बहुत दिनों से भूखे है और किसी तरह से अपनी आग को ठंडा करना चाहते है और वो ही कर रहे थे कामया को अचानक ही अपने अंदर के ज्वार को योनि की ओर आते हुए पाया वो फिर से झरने वाली थी और जैसे ही वो झरने लगी थी पीछे वाले सख्स ने भी अपने लिंग से ढेर सारा वीर्य उसकी योनि में छोड़ दिया और कस कर उसे अपनी बाहों में भर लिया कामया तो जैसे निढाल सी हो गई थी थकी हुई तो पहले से ही थी और अब तो दो बार उसके शरीर के साथ जो वो चाहती थी हो चुका था लगभग लटक चुकी थी उस सख्स की बाहों में अपने आपको प्लॅटफार्म के सहारे अपने हाथों को रखकर लंबी-लंबी सांसें छोड़ती हुई वो अपने को नार्मल करने की कोशिश कर रही थी उसकी योनि में अब तक उस सख्स का लिंग घुसा हुआ था और बीच बिच में जोर का एक झटका दे देता था इतने में एक जोड़ी हाथों ने उसे फिर से सहारा दिया और उसके कंधों को पकड़कर उसे उँचा किया और सामने से उसे अपनी बाहों में भर लिया और कस कर उसके होंठों पर फिर से टूट पड़ा वो कामया के होंठों को अपने होंठों में दबाए उसे चूसता जा रहा था कामया में इतनी हिम्मत नही थी कि उसे मना करती और वो मना करना भी नहीं चाहती थी क्योंकी उसे यह अच्छा लग रहा था उसका शरीर तो ठंडा दो चुका था पर जैसे ही उस सख्स ने अपने होंठ उसके होंठों पर रखे वो एक बार फिर से उसका साथ देने लगी थी अपने जीब को खोलकर उसके मुख के अंदर तक पहुँचा चुकी थी एक आआआआह्ह सी निकली उसके मुख से शायद उस सुख के लिए थी जो उसे उस सख्स से मिल रहा था एक बार उसने अपनी आँखें खोलकर देखा वो भीमा चाचा थे यानी भीमा चाचा ही वो पहले सख्स थे जिन्होने उसके तन को सुख पहुँचाया था या यह कहिए फिर से उसे उस गड्ढे में धकेल दिया था जिससे वो बच रही थी पर कोई बात नहीं वो अगर नहीं करती तो शायद आज वो पागल हो जाती और जो पीछे है वो लाखा काका है जो अब तक उसे कस कर पकड़कर अपने मुरझाए हुए लिंग को बाहर निकाल चुके थे और उसे ढीला छोड़ दिया था भीमा चाचा के लिए वो अब पूरी तरह से भीमा चाचा की बाँहों में थी और वो कामया को चूमते हुए धीरे-धीरे उसके पूरे शरीर का जाया जा ले रहे थे ऊपर से नीचे तक यानी उसके नितंबों तक जहां तक उनका हाथ पहुँच पा रहा था कभी कभी पीछे से एक और हाथ भी उसकी पीठ पर से रैन्गता हुआ नीचे की ओर आता और उसके नितंबों को छूता हुआ ऊपर की ओर उठ जाता शायद लाखा काका का मन अभी भरा नहीं था और नहीं भीमा चाचा का तभी उसे पीछे से लाखा काका की आवाज सुनाई दी


लाखा- भीमा यहां से चल कमरे में बहू के ले चलते है
और अचानक ही कामया के होंठों को अपने होंठों में सिले हुए वो एक झटके में भीमा चाचा की बाहों में हवा में उठ गई वो अब भीमा चाचा के दोनों हाथों के सहारे थी और किसी मरे हुए शरीर की तरह वो उसे अपनी गोद में उठाए हुए उसके होंठों को चूमते हुए सीढ़िया चढ़ रहे थे कामया अपने अगले राउंड के लिए फिर से तैयार थी उसे आज कोई आपत्ति नहीं थी वो आज शायद एक पूरी फूट बाल टीम को भी खुश कर सकती थी वो अपनी बाहों को कस कर भीमा चाचा के गले के चारो ओर घेर कर अपने होंठों को और भी उनके होंठों के अंदर की ओर घुसाती जा रही थी साथ में चल रहे लाखा काका भी कभी-कभी उसके गोल गोल नितंबों को सहलाते हुए उनके साथ ही ऊपर चढ़ रहे थे कामया दोनों के हाथों का खेलोना थी


आज एक-एक बार उससे खेलने के बाद दोनों ही अपने अंदर के उत्साह को दबा नहीं पा रहे थे और जैसा मन हो रहा था वो वैसा ही उसके साथ करते जा रहे थे थोड़ी देर सीढ़िया चढ़ने के बाद एकदम से भीमा चाचा रुक गये और कामया को लाखा काका के हाथों में सौंप दिया अब कामया लाखा काका की गोद में थी और वो फिर से सीडीयाँ चढ़ने लगे थे अब कामया के होंठ लाखा काका के सुपुर्द थे और वो कामया को गोद में लिए अपने बाहों को कामया के चारो ओर कसे हुए धीरे-धीरे ऊपर चढ़ते हुए उसके होंठ का रस्स पान करते जा रहे थे कामया को कभी-कभी भीमा चाचा के हाथों का स्पर्श भी होता था जाँघो में या फिर टांगों में या फिर अपने नितंबों में पर उसे कोई आपत्ति नहीं थी वो थी ही उनके लिए आज वो उसके खेलने का समान थी जी भर के खेलने का


और वो पूरा साथ दे रही थी अचानक ही वो अपने आपको एक नरम से बिस्तर पर टिकते हुए पाया यानी कि वो अब अपने कमरे में पहुँच गई है और दोनों को अपने दोनों ओर पाया एक के बाद एक उसके होंठों को अपने लिए छीनते जा रहे थे और अपने लार से उसके मुख के अंदर तक भिगाते जा रहे थे उनके हाथ उसके शरीर में जहां तहाँ भाग रहे थे चुचियों से लेकर जाँघो तक और टांगों तक पर कामया को कोई चिंता नहीं थी वो जानती थी कि आज कितनी भी कोशिश करे वो आज अपनी कामग्नी को शांत करके ही मानेगी आज के बाद वो कभी भी आज की स्थिति को नहीं दोहराएगी वो अपने शरीर की भूख के आगे झुक गई थी वो जानती थी कि वो अब कामेश के आलवा भी उसे कोई ना कोई चाहिए जो हमेशा ही उसे शांत कर सके चाहे वो भीमा हो या लाखा या फिर भोला हाँ… भोला क्यों नहीं वो ही तो आज का कल्प्रिट है उसी की वजह से ही तो आज वो इस स्थिति में पहुँची थी उसके दिमाग में जैसे ही भोला का ख्याल आया वो और भी उत्तेजित हो उठी उसकी योनि में एक अजीब सी गुड गुडी होने लगी चाहे वो इन दोनों की हरकत की वजह से हो या फिर भोला के बारे में सोचने की वजह से हो पर वो फिर से पागल सी होने लगी थी वो अपनी जाँघो को जोड़े रखना चाहती थी पर भीमा और लाखा बार-बार उसे अपनी जाँघो को खोलकर अपनी जीब को उसकी दोनों जाँघो को चूमते हुए और चाट-ते हुए उसके ऊपर से नीचे तक चले जा रहे थे इतने में
कामया- प्लीज़ छोड़ो मुझे बाथरूम जनाअ हाईईइ
भीमा तो रुक गया पर लाखा नहीं वो कामया के होंठों को कस कर अपने मुख में दबाए हुए झट से उसे अपनी बाहों में भर लिया

भीमा- छोड़ बहू को कहीं भागी नही जा रही है बाथरूम से हो आने दे 
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