Hindi Kahani बड़े घर की बहू
06-10-2017, 02:38 PM,
#60
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
उसे कोई फिकर नहीं थी कामया की उसे तो सिर्फ़ पैसा खर्च करना आता है या फिर पैसा कमाना आता है और कुछ नहीं पत्नी को खुश रखने के लिए वो पैसा खर्च जरूर कर सकता था पर टाइम नहीं उसके पास कामया के लिए टाइम नहीं था उसे कामया की कोई जरूरत नहीं थी थी तो बस अपनी फर्म को एस्टॅब्लिश करने के लिए एक इंसान की या फिर एक नौकर की नौकर जो कि उसके बातों में उठे और फिर उसके आनुरूप चले बस और कुछ नहीं 

अचानक ही कामया के दिमाग में नौकर भीमा चाचा की याद ताजा हो आई वो कैसे इस बात को भूल गई आज तो वो दिन में भी घर में नहीं थी दोपहर को भी भीमा चाचा के साथ उसका मिलन नहीं हुआ था और नहीं ही लाखा काका के साथ वो ड्राइविंग ही सीखने गई थी 

हन सच ही तो है वो भी कैसे इन दोनों को भूल गई वो तो हमेश ही तैयार मिलेंगे भीमा तो घर का ही आदमी है जैसे ही कामया के जेहन में यह बात आई तो उसके शरीर में एक उत्तेजना की लहर फिर से दौड़ गई जो लहर वो अब तक दब चुकी थी कामेश से गुस्सा होकर पर जैसे ही भीमा चाचा के बारे में सोचने लगी वो फिर से कामुक हो उठी वो अपने ही हाथों से अपनी चुचियों को चद्दर के नीचे दबाने लगी थी अपनी जाँघो को सिकोड कर अपने को शांत करने की कोशिश करने लगी थी अपनी सांसों को एक बार फिर से नियंत्रण में लाने की कोशिश करने लगी थी पर कहाँ जो उसने आज दिन भर नहीं किया था वो अब उसे बस लेटे ही लेटे शांत नहीं कर सकती थी उसे भीमा चाचा के पास फिर से जाना ही होगा उसे आज किसी भी हालत में अपने तन को शांत करने जाना होगा नहीं तो वो शायद पागल हो जाए उसकी जाँघो के बीच में एक अजीब सी गुदगुदी से होने लगी थी वो सोच नहीं पा रही थी कि क्या करे पर कहते है ना जब इंसान इस तरह की स्थिति में हो तो उसके पास दो ही विकल्प होते है एक कठिन और एक आसान 

उसने भी आसान तरीका ही चुना और धीरे से अपने बेड से उठी और एक नजर कामेश के सोते हुए जिश्म की ओर डाली और पैरों में अपनी सॅंडल डालकर धीरे-धीरे कमरे के बाहर की ओर चल दी वो अपने को अब नहीं रोकना चाहती थी या कहिए रुक नहीं सकती थी वो अपने आप में नहीं थी उसे एक मर्द की जरूरत थी रोज उसके शरीर को मसलने के लिए उसे मर्द चाहिए ही था वो अब ऐसी ही हो गई थी चाहे वो कामेश हो या फिर भीमा चाचा हो या फिर लाखा काका ही क्यूँ ना हो उसे तो बस एक मर्द की चाहत थी जो उसके इस नाजुक और काम अग्नि से जल रहे तन की भूख को मिटा सके 


वो एक बार पलटकर कामेश की ओर देखा और बाहर निकल गई और हाँ… आज उसने एक काम और किया बाहर जाते हुए उसने डोर बाहर से लॉक कर दिया था बाहर का एक बार उसने ठीक से जायजा भी लिया अपने कदमो को वो भीमा चाचा के कमरे की ओर ले जाने से नहीं रोक पा रही थी वो कुछ बलखाती हुई सी चल रही थी या फिर नशा शराब का था या उसके शरीर में उठने वाली सेक्स की आग का था पर उसकी चाल में एक मदहोशी थी उसके आँखें नम थी उनमें एक उम्मीद थी और एक सेक्स की भूख शायद अंधेरा ना होता तो और भी अच्छा से देखा जा सकता था वो बिल्कुल नशे की हालत में चलते हुए भीमा चाचा के कमरे के बाहर पहुँच गई थी अंदर आज अंधेरा था शायद चाचा सो गये हो या फिर जाग रहे हो 


चाहे जो भी हो वो कामेश की तरह नहीं है वा जरूर उसकी जरूरत पूरी करेंगे नहीं तो उसकी छुट्टी कल से काम बंद सोचते हुए उसने बंद दरवाजे को हल्के से धकेला जो कि धीरे से खुल गया चाचा नीचे बिस्तर पर सोए हुए थे दरवाजे की आहट से भी वो नहीं उठे पर हाँ… उनके शरीर में एक हरकत जरूर हुई वो बेधड़क अंदर घुस गई और धीरे से भीमा चाचा के पास बिस्तर के पास जाके घड़ी हो गई भीमा चाचा अब तक दूसरी तरफ चेहरा किए सो रहे थे वो खड़ी-खड़ी सोच रही थी कि आगे क्या करे कैसे उठाए इस जानवर को हाँ जानवर ही था बस अपने मन की ही करता था और जैसे चाहे वैसे उसे कामया की कोई सुध लेने की जैसे जरूरत ही नहीं होती थी पर हाँ… उनका स्टाइल उसे पसंद था जो भी करे उसे अच्छा लगता था और बहुत अच्छा उसके तन और मन को शांति मिलती थी 

वो थोड़ी देर खड़ी रही फिर अपने पैरों से धीरे से भीमा चाचा के कंधे पर हल्के से से थपकी दी 

कामया- चाचा एयेए 
चाचा एकदम से पलटे उनका चहरा उसे नहीं दिखा हाँ… पर उसके यहां होने की संभावना उन्हें नहीं थी वो झट से उठकर बैठ गये कल की तरह आज भी वो ऊपर से नंगे थे और चद्दर से अपनी कमर तक ढँका हुआ था वो जैसे ही उठे उनका हाथ कामया की टांगों से लेकर जाँघो तक फिरने लगा 

कामया- आआआआआह्ह चाचााआआआआआ हमम्म्मममममममममममम 

वो खुरदुरे हाथ और दाढ़ी वाले चहरे का उसकी जाँघो पर घिसना कामया को एक लंबी सी आअह्ह निकालने से नहीं रोक पाया वो उत्तेजना की चरम पर एक झटके में ही पहुँच गई थी उसकी जाँघो के बीच में अजीब सी गुदगुदि होने लगी थी लिप्स आपस में एक दूसरे के ऊपर होने लगे थे जीब से अपनी सांसों को और चेहरा ऊपर उठाकर वो अपने आप पर कंट्रोल करना चाहती थी उसकी सांसें कमरे में एक अजीब सी हलचल मचा रही थी नीचे भीमा चाचा अपने काम में लगे थे अपने हाथों में आई इस हसीना को अपने हाथों से घुमा-घुमाकर हर एक अंग को ठीक से तराशी हुई जगह को अपने हाथों से देख रहे थे वो कामया की कमर तक पहुँच गये थे और अपने होंठों से उन सारी जगह से जहां से वो होकर आए थे अपनी छाप छोड़ते हुए जा रहे थे अपनी होंठों से अपनी जीब से वो कामया के हर अंग को चूम रहे थे और जीब से चाट कर उसका रस सेवन कर रहे थे 

कामया का पूरा शरीर जल रहा था और अब तो चाचा ने अपनी उंगली भी उसकी योनि में फँसा दी थी एकदम से चिहुक कर कामाया ने अपनी दोनों जाँघो को थोड़ा सा अलग किया और चाचा की उंगलियों को अपने अंदर और अंदर तक जाने का न्योता दिया वो अपनी उंगलियों से चाचा के बालों खींचकर अपने पेट के चारो ओर घुमा रही थी, और जोर-जोर से सांसें ले रही थी वो अपना चहरा उठाकर सीलिंग की ओर देखती हुई नीचे हो रही हर हरकत को अपने जेहन में समाती जा रही थी कामया के होंठों से अचानक ही एक लंबी सी चीख निकल गई थी जब चाचा ने अपनी जीब उसकी योनि के ऊपर से फेरी 

कामया के हाथों में जाने कहाँ से इतना जोर आ गया था कि वो चाचा के माथे को अपनी जाँघो के पास और पास खींचने लगी थी और उधर चाचा भी कामया के इशारो को समझ कर पूरे जोश के साथ कामया की योनि पर टूट पड़े थे वो अपनी जीब से ठीक उसके ऊपर दो तीन बार घुमाकर अपनी जीब को धीरे-धीरे अंदर तक घुसाने की कोशिश में लगे थे कामया भी चाचा का पूरा साथ दे रही थी चाचा के घूमते हुए हाथों को वो भी दिशा देने की कोशिश करने लगी थी अपने नंगे बदन के हर हिस्से को चाचा के हाथों की भेट चढ़ाना चाहती थी जो सुख उसे अभी मिल रहा था वो चाचा के हाथों के स्पर्श से और भी बढ़ जाता था वो अपने आप पर काबू पाना चाहती थी पर चाचा के होंठों और जीब के आगे वो बिल्कुल अपाहिज थी उनकी हर हरकत से वो उछल पड़ती और जोर-जोर से सांसें फैंकती या फिर जोर से अपने होंठों को भिच कर अपने होंठों से निकलने वाली चीख को दबा लेती पर ज्यादा देर वो यह कर नही पाई थी चाचा की एक हरकत से वो अपनी जगह पर से हिल गई थी और अपने हाथों की पकड़ को वो चाचके माथे पर और भी सख़्त कर अपनी जाँघो के बीच में जोर से भिच लिया और एक लंबी सी चीख उसके मुख से अनायास ही निकल गई और अपनी जगह से गिरने को हुई 


पर तभी एक जोड़ी हाथों ने उसे संभाल लिया और उसकी चीख को भी अपने होंठों के अंदर दबाकर उसे कमरे से बाहर जाने से रोका अब उसके शरीर में दो जोड़ी हथेली घूम घूमकर उसके शरीर की रचना को देख रही थी कामया को इस अचानक आए इस बदलाब का अंदाजा भी नहीं लगा और वो उस स्थिति में थी वो घूमकर अपने पीछे आए उस सख्स को धकेलने की कोशिश कर रही थी जो कि अपने हाथों से उसे बड़े ही प्यार से सहला रहा था और उसके गाउनके अंदर तक अपने हाथों को पहुँचा कर, उसकी चुचियों को अपनी जकड़ में ले आया था वो अपने होंठों से कामया के होंठों को सिले हुए अपनी जीब को उसके मुख में घुमाकर उसे और भी उत्तेजित कर रहा था जब उसकी अपनी अधखुली आखो से अपने पीछे आए उस सख्स पर नज़र गई तो एक बार चौंक गई थी वो तो भीमा चाचा थे तो नीचे कौन था जो कि उसे परम आनंद के सागर में गोते लगा रहा था वो अपने मुकाम पर पहुँचने ही वाली थी वो किसी तरह से अपनी गर्दन घुमाने की कोशिश करती पर उसमें इतना जोर नहीं था 

वो दो बहुत मजबूत हाथों के गिरफ़्त में थी जो कि उसके हर अंग को छू रहे थे और और निचोड़ भी रहे थे उसके हर अंग ने अब उसका साथ देना छोड़ दिया था वो अब पूरी तरह से दोनों मर्दो के सुपुर्द थी और वो दोनों जो चाहते थे वो कर रहे थे कामया की चीखे लगातार बढ़ती जा रही थी पर वो कही चाचा के मुख के अंदर घूम हो जाती थी चाचा उसके होंठों के साथ लगता था कि उसके पूरे चहरे को ही अपने मुख के अंदर ले लेना चाहते थे नीचे बैठे उस इंसान ने तो कमाल कर दिया था उसने कामया की दोनों जाँघो को उठाकर अपने कंधों पर रख लिया था और उसके पैर अब जमीन पर नहीं थे वो गिर जाती अगर भीमा चाचा ने उसे ऊपर से कस कर जकड़ नहीं रखा होता अब वो हवा में अपनी जाँघो को उसे सख्स के कंधों पर रखे हुए अपनी कमर को उचका कर उस इंसान के मुख पर जोर-जोर से धक्के मार रही थी और अपनी छाती को आगे की और बढ़ा कर अपने शरीर को और भी धनुष जैसे करती हुई अपनी चरम सीमा की ओर आग्रसर होने लगी थी उसके पूरे शरीर में एक सिहरन के साथ एक बहुत बड़ी सी उथल पुथल मची हुई थी वो अपने एक हाथ से नीचे उस सख्स को अपनी योनि में घुसाने की कोशिश कर रही थी और एक हाथ से उसपर खड़े हुए चाचा को अपने होंठों के पास खींच कर अपनी जीब से उनके मुख का स्वाद लेने में लगी थी अचानक ही उसके शरीर मे एक जबरदस्त निचोड़ आया और वो वैसे ही हवा में अपने शरीर का साथ छोड़ कर लटक गई उसके शरीर में अब कोई जान नहीं बची थी वो एकदम निढाल हो चुकी थी 

वो दोनो मर्दों के बीच में अपने शरीर को नहीं संभाल पाई थी जाने कौन था वहाँ पर जो भी था उसने उसे वो आंजाम दिया था जिसे वो चाहती थी उसका शरीर पसीने में लत पथ भीमा चाचा के सहारे था और वो अब अपने होंठों को धीरे-धीरे कामया के होंठों से अलग भी करते और धीरे से फिर से अपने होंठों में दबा भी लेते कामाया तो जैसे जन्नत की सैर कर रही थी नीचे से वो सख्स अभी भी उसकी योनि से निकल रहे हर ड्रॉप को अपनी जीब से चाट कर अपने मुख में भर रहा था जैसे कि कोई सहद का एक भी ड्रॉप वो वेस्ट नहीं करना चाहता था उसकी मजबूत पकड़ से वो पूरी तरह से उसकी गिरफ़्त में थी और उसे कोई चिंता नहीं थी कि वो गिर जाएगी उसकी जांघे अब भी उस सख्स के कंधे पर ही थी और कमर के ऊपर का हिस्सा भीमा चाचा की गिरफ़्त में वो पूरी तरह से सुरक्षित थी हवा में भी


पर अब धीरे-धीरे नीचे वाले सख्स की पकड़ ढीली होने लगी थी और उसने धीरे से कामया की दोनों जाँघो के बीच से अपने चहरे को निकाल लिया था और किसी बहुत ही नाजुक चीज की तरह से कामया को उठाकर वही नीचे बिस्तर पर लिटाने लगा था ऊपर से भीमा चाचा भी उस इंसान का साथ दे रहा था वो भी अब धीरे से कामया को उठाकर अपने हाथों को उसकी चुचियों पर रखकर कामया को बिस्तर पर लिटाने की कोशिश करने लगा था कामाया को जैसे अपने शरीर के अंदर उठ रहे उफान को ठंडा करने वाले का चहरा देखना था आखिर कौन था वो जो चाचा के कमरे में उनके पहले से आके लेटा हुआ था पर उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी उसकी आँखें नहीं खुल रही थी उन दोनों ने उसे निचोड़ कर रख दिया था वो एक सुख के समुंदर में गोते लगा रही थी वो अब जमीन पर उस सख़्त के बिस्तर पर पड़ी हुई थी जहां उसकी नाक में सड़न की गंध भी आ रही थी और पसीने की भी वो निढाल सी लेटी हुई थी और दो सख्स का अपने पास बैठे हुए होने का एहसास भी कर रही थी कोई भी बातें नहीं कर रहा था बस दो जोड़ी हाथ एक बार फिर से उसके शरीर पर घूमने लगे थे और बहुत ही धीरे-धीरे शायद उसकी नजाकत को देखते हुए कामया का यह पहला एहसास था दो जोड़ी हाथ उसके शरीर के चारो ओर घूमते हुए उसे वो आनंद दे रहे थे कि जिसका कि उसने कभी भी अनुमान तक नहीं लगाया था वो वैसे ही निश्चल और निढाल पड़ी हुई उन हथेलियो को अपने शरीर पर घूमते हुए महसूस कर आई थी और फिर से अपने आपको एक बार फिर से काम अग्नि की भेट चढ़ाने को तैयार हो रही थी उसके हाथ पाँवो में एक बार फिर से जान पड़ने लगी थी वो अपने को फिर से उत्तेजित महसूस करने लगी थी वो कमर के नीचे बिल्कुल नंगी थी और ऊपर नाम मात्र के गाउनसे ढँकी हुई थी दो जोड़ी हाथ उसके गाउनको भी उतारने में लगे थे और उन्हें कोई नहीं रोक सकता था और जो रोक सकता था वो तो खुद उनकी इच्छा में शामिल थी वो अपनी सांसों को फिर से बढ़ने से रोकने लगी थी और शरीर की हलचल को भी धीरे-धीरे अपने अंदर तक ही समेट कर रखना चाहती थी पर वो किसी ना किसी तरह से उसके शरीर में या फिर उसकी सांसों से प्रदर्शित हो ही जाता था एक होंठ उसके होंठों से जुड़े और बहुत ही प्यार से उनको चूमकर अलग हो गये 

- कैसा लगा बहू 

कामया- हमम्म्ममम
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