Hindi Kahani बड़े घर की बहू
06-10-2017, 02:36 PM,
#52
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
कामेश थोड़ा सा पलटकर कामया को अपनी बाहों में भिचता हुआ 
कामेश- क्या बातें करनी है 
और अपने हाथों को कामया की चूचियां पर रखता हुआ उन्हें छेड़ने लगा था 

कामेश के हाथों में अपनी चूचियां के आते ही कामया के मुख से एक लंबी सी आह निकली और वो कामेश से और भी सट गई थी कामेश के छूते ही वो अपने आप पर काबू नहीं रख पाती थी यह बात उसे पता थी वो कामेश के चेहरे को अपने होंठों से चूमती जा रही थी और उसे और भी उत्तेजित करने की कोशिश करती जा रही थी 

कामेश तो बेसूध सिर्फ़ कामया के कहने पर ही पलटा था और एक दो बार उसकी चुचियों को दबाने के बाद फिर से नींद के आगोश में चला गया था उसे कामया को अपने चेहरे को चूमते हुए देखना और भी अच्छा लग रहा था पर उसकी थकान उसपर ज्यादा हावी थी 

पर कामया तो अपनी उत्तेजना कोठंडा करना चाहती थी वो कामेश के लगभग ऊपर चढ़ि जा रही थी और उसे और भी उकसा रही थी पर कामेश के ठंडे पन ने उसे एकदम से निराश कर दिया और वो अपने होंठों को उसके चेहरे पर से आजाद करते हुए कामेश को एकटक देखती जा रही थी पर कामेश तो कही का कही पहुँच गया था 

कामया ने गुस्से में आके एक धक्का कामेश को दिया और पलटकर सो गई 

धक्के से कामेश फिर से जागा और कामया की कमर को खींचकर अपने से भिच लिया और फिर से अपने दोनों हाथों को उसके गोल गोल चुचियों पर रखते हुए फिर से नींद के आगोश में चला गया 

कामया को नींद कहाँ उसकी चूचियां अब भी कामेश की दोनों हथेली में थी और वो कामया को अपने से चिपका कर सो गया था उसके कंधों पर कामेश की सांसें पड़ रही थी जो कि लगभग बिल्कुल समान्तर थी वो सो चुके थे गहरी नींद उनके शरीर की गर्मी वो महसूस करसकती थी जो कि उस पतले से गाउनको भेदती हुई उसके शरीर के अंदर तक जा रही थी 
कामया सेक्स की भूख की भेट चढ़ती जा रही थी वो अपने को उस आग में जलने से नहीं बचा पा रही थी उसका शरीर अब कामेश की बाहों में ही कस मसाने लगा था वो ना चाहते हुए भी कामेश के सीने से सटी जा रही थी और अपनी कमर को जितना पीछे ले सके ले जा रही थी पर कामेश पर कोई भी असर होते हुए वो नहीं देख रही थी 

वो अब भी सो रहा था और कामया के कसमसाने के साथ ही उसकी पकड़ कामया पर से ढीली पड़ने लगी थी वो भी अब चित लेट गया था और थोड़ी देर बाद दूसरी ओर पलट गया था कामया भी चित लेटी हुई थी और सीलिंग की ओर देखती हुई सोच रही थी 

आखिर क्यों कामेश उसे अवाय्ड कर रहा है अगर वो उसे अवाय्ड ना करे तो और अगर पहले जैसा ही रोज प्यार करे तो कितना मजा है जीने में कितना अच्छा और कितना प्यारा है उसका पति कही से कोई कमी नहीं है रुपया पैसा हो या शानो शौकत हो या फिर दिखने में हो या फिर स्टाइल में हो सब में अच्छा है वो पर क्यों नहीं उसे समझ में आता की कामया को क्या चाहिए 

क्यों नहीं रोज उसपर टूट पड़ता वो चाहे सुबह हो या शाम हो या दिन हो या रात हो वो तो कभी भी कामेश को सेक्स के लिए मना नही किया था और कामेश को भी तो कितना इंटेरेस्ट था लेकिन अब अचानक क्या हो गया क्यों वो रुपये पैसे के चक्कर में पड़ गया और उसे भूल सा गया क्या रुपया पैसा ही उसके जीवन का उद्देश् है और क्या कामया कुछ भी नहीं 
पर कभी-कभी तो वो उसके लिए क्या नहीं करता और तो और उसके नाम से कॉंप्लेक्स और साइन प्लेक्ष भी बनवा रहा था और उसे पता भी नहीं दूसरे कोई होते तो शायद अपनी दादी या फिर मम्मी या फिर गुरुजी या फिर कोई देवी देवता के नाम से पर यहां तो मामला ही उल्टा था ना उसे किसी ने बताया ना ही उसे बताने की ही जरूरत समझी और नाम करण भी हो गया और कोई एहसान भी नहीं जताया किसी ने 

क्या यार सबकुछ तो ठीक ठाक है पर कामेश ऐसा क्यों हो गया वो क्यों नहीं उसे छेड़ता या फिर उसे प्यार करता वो तो रोज उसका इंतजार करती है उसे भी तो किसी चीज की जरूरत होती है बाजार में मिलने वाली चीजो से तो कोई भी अपना मन भर ले पर जो चीज घर की है वो ही उसे नजर अंदाज करती जा रही है यह तो गलत है पर क्या करे कामया क्या वो रोज कामेश से झगड़ा करे या फिर उसे उकसाए या फिर सब कुछ छोड़दे 

या फिर जो कर रही है वो ठीक है क्यों अपने पति को उस चीज के लिए जिसके लिए उसके पास टाइम नहीं है क्यों वो उस चीज का इंतजार करे जिस चीज का उसके पास आने का समय वो बाँध नहीं सकती या फिर क्यों वो उस गाड़ी की सवारी करे जो गाड़ी उसके इशारे पर नहीं चले 

नहीं बाकी सब तो ठीक है वो जेसे चल रही है वो ही ठीक है उससे उसे भी परेशानी नहीं और नहीं कामेश को और नहीं घर में किसी को किसी की भी टाइम को खोटी नहीं करना पड़ेगा और नहीं ही किसी को किसी की चिंता ही करनी पड़ेगी हाँ अब वो वही करेगी जो वो चाहती है और क्या सभी तो इस घर में वैसा ही कर रहे है कोई बंदिश नहीं और नहीं कोई चिंता 

क्यों वो आख़िर कार सभी की तरफ देखती रहती है कि कोई उसकी सुने या फिर कोई उसकी इच्छा के अनुसार चले चाहे वो उसका पति हो या फिर मम्मीजी या फिर पापाजी 

वो एकदम से उठ गई बिस्तर से और घूमकर कामेश की ओर देखा जो कि गहरी नींद में था और उसकी सांसों को देखकर लगता था कि बहूत थी गहरी नींद में था कामया बेड से उतरी और सेंडल पैर में पहनते हुए धीरे से मिरर के सामने खड़ी हो गई कोई आहट नहीं की उसने और नहीं कोई फिक्र नहीं कोई सोच थी उसके मन में थी तो बस एक ही इच्छा उसके शरीर की उसके अंदर जो आग लगी हुई थी उसे बुझाने की 

अपने को मिरर में देखते ही क्माया के शरीर में एक फूरफुरी सी दौड़ गई और एक मुश्कान उसके होंठों में वो जानती थी भीमा चाचा उसके इस शरीर के साथ क्या करेंगे वो चाहती भी थी कि उसके इस शरीर के साथ कोई खेले और खूब खेले प्यार करे और उसके पूरे जिस्म को चाटे चूमे और अपनी मजबूत हथेलियो से रगडे और खूब प्यार करे वो खड़ी-खड़ी मिरर में अपने को देखती रही और धीरे से मुस्कुराती हुई अपने कंधे पर से एक स्ट्रॅप को थोड़ा सा नीचे खिसका दिया और मुस्कुराती हुई मूडी और धीरे-धीरे कमरे के बाहर जाने लगी 

कामया जब, अपने कमरे से बाहर निकली तो पूरा घर बिल्कुल शांत था और कही भी कोई आवाज नहीं थी वो थोड़ी देर रुकी और अंदर की ओर देखा कामेश चुपचाप सोया हुआ था कामया ने धीरे से डोर बंद किया और सीढ़ियो पर से ऊपर चढ़ने लगी वो एक बार फिर से भीमा चाचा की खोली में जा रही थी आज खुद से उस दिन तो चाचा उसे उठा ले गये थे पर आज वो खुद ही जा रही थी उसके पैर काप रहे थे पर अंदर की इच्छा को वो रोक नहीं पा रही थी वो धीरे-धीरे चलते हुए पूरे घर को देखते हुए और हर पद चाप के साथ अपने को संभालती हुई वो भीमा चाचा के कमरे के सामने पहुँच गई थी अंदर बिल्कुल शांत था शायद चाचा भी सो गये थे पर अंदर एक डिम लाइट जल रही थी और उसकी रोशनी बाहर डोर के गप से आ रही थी 

कामया ने डरते हुए धीरे से डोर को धकेला जो कि खुला हुआ था शायद भीमा को कोई दिक्कत नहीं थी तो डोर बंद क्यों करे इसलिए वो खुला रखकर ही सोता था सो डोर को धकेलने से वो थोड़ा सा खुला अंदर भीमा चाचा नीचे बिस्तर पर सोए हुए थे और एक हाथ उनके अपने माथे के ऊपर था पूरा शरीर नंगा था और कमर से नीचे तक एक चदडार से ढँका हुआ था कामया ने दरवाजे को थोड़ा सा और खोला तो डोर धीरे से खुल गया अंदर की डिम लाइट बाहर कारिडोर में फेल गई कामया ने अपने कदम आगे बढ़ाया और अंदर चाचा के कमरे में घुस गई 

कमरे में घुसते ही उसने भीमा चाचा के शरीर में एक हल्की सी हलचल देखी वो वही रुक गई और डिम लाइट में चाचा की ओर देखने लगी 
भीमा- दरवाजा बंद कर्दे बहू 

मतलब भीमा चाचा भी उसका इंतजार कर रहे थे और एक कामेश है जो कि उसके पहले ही सो जाता है 
कामया ने धीरे से दरवाजा को बोल्ट किया और हल्के कदमो से चलते हुए चाचा के करीब पहुँची चाचा अब भी नीचे बिस्तर पर वैसे ही लेटे थे पर हाँ उसके आने की और समीप आने का इंतजार कर रहे थे वो धीरे से भीमा चाचा के समीप जाके रुक गई उसकी सांसें बहुत तेज चल रही थी आज का कदम उसे कहाँ ले जाएगा वो नहीं जानती थी हाँ एक बात वो जरूर जानती थी कि वो अपने तन की भूख के आगे झुक गई है और वो उसे शांत करने के लिए अब कोई भी कदम उठा सकती है उसके बिस्तर के पास पहुँचते ही भीमा अपने आप ही उठकर बैठ गया और एक हाथ से उसने कामया के घुटनों को पकड़कर उसे थोड़ा सा और पास खींचा कामया को तो कोई दिक्कत ही नहीं थी वो और आगे हो गई वो लगभग अब भीमा चाचा के बिस्तर पर ही खड़ी थी भीमा चाचा अब धीरे-धीरे कामया के रूप के दर्शन करने के मूड में थे आज पहली बार बहू उसके कमरे में बिना बुलाए आई है वो जानते थे कि बहू को क्या चाहिए और वो भी इसके लिए पूरी तरह से तैयार थे जब बहू ने खाने के बाद उससे पूछा था कि जल्दी सो जाते है क्या तभी से अपने अंदर की आग को किसी तरह से अपने में समेटे हुए थे और जब बहू उसके पास खड़ी थी तो वो कहाँ रुकने वाले थे अपने हाथों से बहू के गाउनके ऊपर से ही उसके टांगों को अपने हाथों से सहलाते हुए उस डिमलाइट में बहू की ओर देख रहे थे 
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