Hindi Kahani बड़े घर की बहू
06-10-2017, 02:22 PM,
#23
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
वो मम्मीजी के सामने से ऐसे कैसे निकलेगी बाप रे बाप क्या सोचेंगी मम्मीजी धत्त उसके दिमाग में यह बात आई क्यों नहीं वो अब सकपका गई थी दिमाग खराब हो गया था उसका उसके अंदर एक अजीब सा द्वंद चल रहा था वो खड़ी हुई और फिर से वार्ड रोब के पास पहुँच गई ताकि चेंज कर सके वापस सूट पहनकर ही चली जाए वो सूट निकाल ही रही थी कि उसका ध्यान नीचे पड़े हुए एक कपड़े पर पड़ा साड़ी से पहले का प्रिंट था वो उसे बहुत अच्छा लगता था वो एक सम्मर कोट टाइप का था (आप लोगों ने देखा होगा आज कल की लड़कियाँ पहनती है ताकि सन तन से या फिर धूल से बच सके स्कूटी चलाते समय ) रखा था 


उसके चेहरे पर एक विजयी मुश्कान दौड़ गई और वो जल्दी से उसे निकाल कर एक झटका दिया और अपनी साड़ी को ठीक करके ऊपर से उसे पहन लिया और फिर मिरर के सामने खड़ी हो गई हाँ अब ठीक है कोट के नीचे साड़ी दिख रही थी जो की बिल्कुल ठीक ठाक थी और ऊपर से कोट उसके पूरे खुले पन को ढके हुए थी अंदर क्या पहना था कुछ भी नहीं दिख रहा था हाँ… अब जा सकती है मम्मीजी के सामने से एक शरारती मुश्कान छोड़ती हुई कामया जल्दी से अपने रूम से निकली और अपने हाइ हील को जोर-जोर से पटकती हुई नीचे की ओर चली गजब की फुर्ती आ गई थी उसमें वो अब घर में रुकना नहीं चाहती थी 

वो जब नीचे उतरी तो मम्मीजी ड्राइंग रूम में बैठी थी डाइनिंग रूम पार करते हुए उसने घूमकर किचेन की ओर देखा तो पाया कि लाखा काका भी शायद वही थे और उसे देखते ही बाहर की ओर लपके पीछे के दरवाजे से भीमा चाचा कही नहीं दिखे वो ड्राइंग रूम में मम्मीजी के सामने खड़ी थी 

मम्मीजी- आअरए यह क्या पहना है 

कामया- जी वो ड्राइविंग पर जा रही थी सोचा कि थोड़ा ढँक कर जाती हूँ 

मम्मीजी- हाँ वो तो ठीक है पर यह कोट क्यों सूट भी तो ठीक था 

कामया- जी पर 

मम्मीजी- अरे ठीक है कोई बात नहीं तू तो बस चल ठीक है ध्यान से चलाना 

और कामया की पीठ पर हाथ रख कर बाहर की ओर चल दी कामया भी मम्मीजी के साथ बाहर की ओर मूडी और बाहर आके देखा कि लाखा काका कार का दरवाजा खोले खड़े है 

कामया थोड़ी सी ठिठकी पर अपने अंदर उठ रही काम अग्नि को वो ना रोक पाई और अपने बढ़ते हुए कदम को ना रोक पाई थी वो उसने मम्मीजी की ओर मुस्कुराते हुए देखा और गाड़ी के अंदर बैठ गई लाखा भी दौड़ कर सामने की सीट पर बैठ गया था और गाड़ी गेट के बाहर की ओर चल दी गाड़ी सड़क पर चल रही थी और बाहर की आवाजें भी सुनाई दे रही थी पर अंदर एकदम सन्नाटा था शायद सुई भी गिर जाए तो आवाज सुनाई दे जाए लाखा गाड़ी चला रहा था पर उसका मन पीछे बैठी हुई बहू को देखने को हो रहा था पर बहुत देर तक वो देख ना सका आज पहली बार बहू उसके साथ अकेली आई थी वो सुंदरी जिसने कि उसके मन में आग लगाई थी उस दिन जब वो पार्टी में गई थी और आज तो पता नहीं कैसे आई है 
एक बड़ा सा लबादा पहने हुए सिर्फ़ साड़ी क्यों नहीं पहने हुए है बहू लाखा ने थोड़ी ही हिम्मत करके रियर व्यू में देखने की हिम्मत जुटा ही ली देखा की बहू पीछे बैठी हुई बाहर की ओर देख रही थी गाड़ी सड़क पर से तेजी से जा रही थी लाखा को मालूम था कि कहाँ जाना है बड़े साहब ने कहा था कि ग्राउंड में ले जाना वहां ठीक रहेगा थोड़ी दूर था पर थी बहुत ही अच्छी जगह दिन में तो बहुत चहल पहेल होती थी वहां पर अंधेरा होते ही सबकुछ शांत हो जाता था पर उसे क्या वो तो इस घर का पुराना नौकर था और बहुत भरोसा था मालिको उसपर वो सोच भी नहीं सकते थे कि उनकी बहू ने उस सोए हुए लाखा के अंदर एक मर्द को जनम दे दिया था जो कि अब तक एक लकड़ी के तख्त की तरह हमेश खड़ा रहता था अब एक पेड़ की तरह हिलने लगा था उसके अंदर का मर्द कब और कहाँ खो गया था इतने सालो में उसे भी पता नहीं चला था वो बस जी साहब और जी माजी के सिवा कुछ भी नहीं कह पाया था इतने दिनों में 



पर उस दिन की घटना के बाद वो एक अलग सा बन गया था, जब भी वो खाली समय में बैठता था तो बहू का चेहरा उसके सामने आ जाता था उसके चेहरे का भोलापन और शरारती आखें वो चाह कर भी उसकी वो मुश्कान को आज तक नहीं भूल पाया था वो बार-बार पीछे की ओर देख ही लेता था पर नजर बचा के 

और पीछे बैठी कामया का तो पूरा ध्यान ही लाखा काका पर था वो दिखा जरूर रही थी कि वो बाहर या फिर उसका ध्यान कही और था पर जैसे ही लाखा काका की नजर उठने को होती वो बाहर की ओर देखने लगती और कामाया मन ही मन मुस्कुराई वो जानती थी कि लाखा काका के मन में क्या चल रहा है वो जानती थी कि लाखा काका के साथ आज वो पहली बार अकेली आई है और उस दिन के बाद तो शायद लाखा काका भी इंतजार में ही होंगे कि कब वो कामया को फिर से नजर भर के देख सके यह सोच आते ही कामया के पूरे शरीर में फिर से एक झुनझुनी सी फैल गई और वो अपने आपको समेट कर बैठ गई वो जानती थी कि लाखा काका में इतनी हिम्मत नहीं है कि वो कुछ कह सके या फिर कुछ आगे बढ़ेंगे तो कामया ने खुद ही कहानी को आगे बढ़ाने की कोशिश की 

कामया- और कितनी दूर है काका 

लाखा जो कि अपनी ही उधेड़ बुन में लगा था चलती गाड़ी के अंदर एक मधुर संगीत मई सुर को सुन के मंत्रमुग्ध सा हो गया और बहुत ही हल्के आवाज में कहा 
लाखा- जी बस दो 3 मिनट लगेंगे 

कामया- जी अच्छा 
और फिर से गाड़ी के अंदर एक सन्नाटा सा छा गया दोनो ही कुछ सोच में डूबे थे पर दोनो ही आगे की कहानी के बारे में अंजान थे दोनो ही एक दूसरे के प्रति आकर्षित थे पर एक दूसरे के आकर्षण से अंजान थे हाँ… एक बात जो आम सी लगती थी वो थी कि नजर बचा कर एक दूसरे की ओर देखने की जैसे कोई कालेज के लड़के लड़कियाँ एक दूसरे के प्रति आकर्षित होने के बाद होता था वो था उन दोनों के बीच मे .

पीछे बैठी कामया थोड़ा सा सभाल कर बैठी थी और बाहर से ज्यादा उसका ध्यान सामने बैठे लाखा काका की ओर था वो बार-बार एक ही बात को नोटीस कर रही थी कि लाखा काका कुछ डरे हुए थे और, कुछ संकोच कर रहे है वो तो वो नहीं चाहती थी वो तो चाहती थी कि लाखा काका उसे देखे और खूब देखे उनकी नजर में जो भूख उसने उस दिन देखी थी वो उस नजर को वो आज भी नहीं भुला पाई थी उसको उस नजर में अपनी जीत और अपनी खूबसूरती दिखाई दी थी अपनी सुंदरता के आगे किसी की बेबसी दिखाई दी थी उसकी सुंदरता के आगे किसी इंसान को बेसब्र और चंचल होते देखा था उसने वो तो उस नजर को ढूँढ़ रही थी उसे तो बस उस नजर का इंतजार था वो नजर जिसमें की उसकी तारीफ थी उसके अंग अंग की भूख को जगा गई थी वो नजर भीमा और लाखा में कोई फरक नहीं था कामया के लिए दोनों ही उसके दीवाने थे उसके शरीर के दीवाने उसकी सुंदरता के दीवाने और तो और वो चाहती भी यही थी इतने दिनों की शादी के बाद भी यह नजर उसके पति ने नहीं पाई थी जो नजर उसने भीमा की और लाखा काका के अंदर पाई थी उनके देखने के अंदाज से ही वो अपना सबकुछ भूलकर उनकी नज़रों को पढ़ने की कोशिश करने लगती थी और जब वो पाती थी कि उनकी नजर में भूख है तो वो खुद भी एक ऐसे समुंदर में गोते लगाने लग जाती थी कि उसमें से निकलना भीमा चाचा या फिर लाखा काका के हाथ में ही होता था आज वो फिर उस नजर का पीछा कर रही थी पर लाखा काका तो बस गाड़ी चलाते हुए एक दो बार ही पीछे देखा था उस दिन तो पार्टी में जाते समय कामेश के साथ होते हुए भी कितनी बार काका ने पीछे उसे रियर व्यू मे नजर बचा कर देखा था और उतरते उतरते भी उसे नहीं छोड़ा था आज कहाँ गई वो दीवानगी और कहाँ गई वो चाहत कामया सोचने को मजबूर थी कि अचानक ही उसने अपना दाँव खेल दिया वो थोड़ा सा आगे हुई और अपने सम्मर कोट के बटनों को खोलने लगी और धीरे से बहुत ही धीरे से अपने आपको उसकोट से अलग करने लगी 


लाखा जिसका कि गाड़ी चलाने पर ध्यान था पीछे की गति विधि को ध्यान से देखने की कोशिश कर रहा था उसकी आखों के सामने जैसे किसी खोल से कोई सुंदरता की तितली बाहर निकल रही थी उूुुुुुुुुुुउउफफफफफफफफफफफ्फ़ क्या नज़ारा था जैसे ही बहू ने अपने कोट को अपने शरीर से अलग किया उसका यौवन उसके सामने था आँचल ढलका हुआ था और बिल्कुल ब्लाउज के ऊपर था नीचे गिरा हुआ था कोट को उतार कर कमाया ने धीरे से साइड में रखा और अपने दाँये हाथ की नाजुक नाजुक उंगलियों से अपनी साड़ी को उठाकर अपनी चुचियों को ढका या फिर कहिए लाखा को चिड़ाया कि देखा यह में हूँ और आराम से वापस टिक कर बैठ गई थी 

जैसे कि कह रही हो लो लाखा मेरी तरफ से तुम्हें गिफ्ट मेरी ओर से तो तुम्हें खुला निमंत्रण है अब तुम्हारी बारी है
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RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू - by sexstories - 06-10-2017, 02:22 PM

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