Hindi Kahani बड़े घर की बहू
06-10-2017, 02:19 PM,
#7
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
भीमा सबकुछ भूलकर सिर्फ़ कामया के रूप का रसपान कर रहा था उसने आज तक बहू को इतने पास से या फिर इतने गौर से कभी नहीं देखा था किसी अप्सरा जैसा बदन था उसका उतनी ही गोरी और सुडोल क्या फिगर है और कितनी सुंदर जैसे हाथ लगाओ तो काली पड़ जाए वो अपनी सोच में डूबा था कि उसे कामया की खिलखिलाती हुई हँसी सुनाई दी 

कामया- अरे भीमा चाचा खाना लगा दो भूख लगी है और नल बंद करो सब पानी बह जाएगा और हँसती हुई पलटकर डाइनिंग रूम की ओर चल दी भीमा कामया को जाते हुए देखता रहा पता नहीं क्यों आज उसके मन में कोई डर नहीं था जो इज़्ज़त वो इस घर के लोगों को देता था वो कहाँ गायब हो गई थी उसके मन से पता नहीं वो कभी भी घर के लोगों की तरफ देखना तो दूर आखें मिलाकर भी बात नहीं करता था पर जाने क्यों वो आज बिंदास कामया को सीधे देख भी रहा था और उसकी मादकता का रसपान भी कर रहा था जाते हुए कामया की पीठ थी भीमा की ओर जो कि लगभग आधे से ज्यादा खुली हुई थी शायद सिर्फ़ ब्रा के लाइन में ही थी या शायद ब्रा ही नहीं पहना होगा पता नहीं लेकिन महीन सी ब्लाउज के अंदर से उसका रंग साफ दिख रहा था गोरा और चमकीला सा और नाजुक और गदराया सा बदन वैसे ही हिलते हुए नितंब जो कि एक दूसरे से रगड़ खा रही थी और साड़ी को अपने साथ ही आगे पीछे की ओर ले जा रही थी 

भीमा खड़ा-खड़ा कामया को किचेन के दरवाजे पर से ओझल होते देखता रहा और किसी बुत की तरह खड़ा हुआ प्लेट हाथ में लिए शून्य की ओर देख रहा था तभी उसे कामया की आवाज़ सुनाई दी 

कामया- चाचा खाना तो लगा दो 

भीमा झट से प्लेट सिंक पर छोड़ नल बंद कर लगभग दौड़ते हुए डाइनिंग रूम में पहुँच गया जैसे कि देर हो गई तो शायद कामया उसके नजर से फिर से दूर ना हो जाए वो कामया को और भी देखना चाहता था मन भरकर उसके नाजुक बदन को उसके खुशबू को वो अपनी सांसों में बसा लेना चाहता था झट से वो डाइनिंग रूम में पहुँच गया

भीमा- जी छोटी बहू अभी देता हूँ 

और कहते हुए वो कामया को प्लेट लगाने लगा कामया का पूरा ध्यान टेबल पर था वो भीमा के हाथों की ओर देख रही थी बालों से भरा हुआ मजबूत और कठोर हाथ प्लेट लगाते हुए उसके मांसपेशियों में हल्का सा खिचाव भी हो रहा था उससे उसकी ताकत का अंदाज़ा लगाया जा सकता था कामया के जेहन में कल की बात घूम गई जब भीमा चाचा ने उसके पैरों की मालिश की थी कितने मजबूत और कठोर हाथ थे और भीमा जो कि कामया से थोड़ा सा दूर खड़ा था प्लेट और कटोरी, चम्मच को आगे कर फिर खड़ा हो गया हाथ बाँध कर पर कामया कहाँ मानने वाली थी आज कुछ प्लॅनिंग थी उसके मन में शायद 

कामया- अरे चाचा परोश दीजीएना प्लीज और बड़ी इठलाती हुई दोनों हाथों को टेबल पर रखकर बड़ी ही अदा से भीमा की ओर देखा भीमा जो कि बस इंतजार में ही था कि आगे क्या करे तुरंत आर्डर मिलते ही खुश हो गया वो थोड़ा सा आगे बढ़ कर कामया के करीब खड़ा हो गया और सब्जी और फिर पराठा और फिर सलाद और फिर दाल और चपाती पर उसकी आँखे कामया पर थी उसकी बातों पर थी उसके शरीर पर से उठ रही खुशबू पर थी नजरें ऊपर से उसके उभारों पर थी जो की लगभग आधे बाहर थे ब्लाउज से 

सफेद गोल गोल से मखमल जैसे या फिर रूई के गोले से ब्लाउज का कपड़ा भी इतना महीन था कि अंदर से ब्रा की लाइनिंग भी दिख रही थी भीमा अपने में ही खोया कामया के नजदीक खड़ा खड़ा यह सब देख रहा था और कामया बैठी हुई कुछ कहते हुए अपना खाना खा रही थी कामया को भी पता था कि चाचा की नजर कहाँ है पर वो तो चाहती भी यही थी उसके शरीर में उत्तेजना की जो ल़हेर उठ रही थी वो आज तक शादी के बाद कामेश के साथ नहीं उठी थी वो अपने को किसी तरह से रोके हुए बस मजे ले रही थी वो जानती थी कि वो खूबसूरत है पर वो जो सेक्सी दिखती है यह वो साबित करना चाहती थी शायद अपने को ही 

पर क्यों क्या मिलेगा उसे यह सब करके पर फिर भी वो अपने को रोक नहीं पाई थी जब से उसे भीमा चाचा की नजर लगी थी वो काम अग्नि में जल उठी थी तभी तो कल रात को कामेश के साथ एक वाइल्ड सेक्स का मजा लिया था पर वो मजा नहीं आया था पर हाँ… कामेश उतेजित तो था रोज से ज्यादा पर उसने कहा नहीं कामया को कि वो सेक्सी थी कामया तो चाहती थी कि कामेश उसे देखकर रह ना पाए और उसे पर टूट पड़े उसे निचोड़ कर रख दे बड़ी ही बेदर्दी से उसे प्यार करे वो तो पूरा साथ देने को तैयार थी पर कामेश ऐसा क्यों नहीं करता वो तो उसकी पत्नी थी वो तो कुछ भी कर सकता है उसके साथ पर क्यों वो हमेशा एग्ज़िक्युटिव स्टाइल में रहता है क्यों नहीं सेक्स के समय भूखा दरिन्दा बन जाता क्यों नहीं है उसमें इतनी समझ उसके देखने का तरीका भी वैसा नहीं है कि वो खुद ही उसके पास भागी चली जाए बस जब देखो तब बस पति ही बने रहते है कभी-कभी प्रेमी और सेक्षमनियाक भी तो बन सकता है वो . 

लेकिन भीमा चाचा की नज़रों में उसे वो भूख दिखी जो कि उसे अपने पति में चाहिए थी भीमा चाचा की लालायत नज़रों ने कामया के अंदर एक ऐसी आग भड़का दी थी कि कामया एक शुशील और पढ़ी लिखी बड़े घर की बहू आज डाइनिंग टेबल पर अपने ही नौकर को लुभाने की चाले चल रही थी कामया जानती थी कि भीमा चाचा की नजर कहाँ है और वो आज क्यों इस तरह से खुलकर उसकी ओर देख और बोल पा रहे है वो भीमा चाचा को और भी उकसाने के मूड में थी वो चाहती थी कि चाचा अपना आपा खो दे और उस पर टूट पड़े इसलिए वो हर वो कदम उठा लेना चाहती थी वो

जान बूझ कर अपनी साड़ी का पल्लू और भी ढीला कर दिया ताकि भीमा को ऊपर से उसकी गोलाइयो का पूरा लुफ्त ले सके और उनके अंदर उठने वाली आग को वो आज भड़काना चाहती थी 

कामया के इस तरह से बैठे रहने से, भीमा ना कुछ कह पा रहा था और नहीं कुछ सोच पा रहा था वो तो बस मूक दर्शक बनकर कामया के शरीर को देख रहा था ओर अपने बूढ़े हुए शरीर में उठ रही उत्तेजना के लहर को छुपाने की कोशिश कर रहा था वो चाह कर भी अपनी नजर कामया की चुचियों पर से नहीं हटा पा रहा था और ना ही उसके शरीर पर से उठ रही खुशबू से दूर जा पा रहा था वो किसी स्टॅच्यू की तरह खड़ा हुआ अपने हाथ टेबल पर रखे हुए थोड़ा सा आगे की ओर झुका हुआ 


कामया की ओर एकटक टकटकी लगाए हुए देख रहा था और अपने गले के नीचे थूक को निगलता जा रहा था उसका गला सुख रहा था उसने इस जनम में भी कभी इस बात की कल्पना भी नहीं की थी कि उसके कामया जैसी लड़की एक बड़े घर की बहू इस तरह से अपना यौवन देखने की छूट देगी और वो इस तरह से उसके पास खड़ा हुआ इस यौवन का लुफ्त उठा सकता था देखना तो दूर आज तक उसने कभी कल्पना भी नहीं किया था नजर उठाकर देखना तो दूर नजर जमीन से ऊपर तक नहीं उठी थी उसने कभी और आज तो जैसे जन्नत के सफर में था वो एक अप्सरा उसके सामने बैठी थी वो उसके आधे खुले हुए चूचों को मन भर के देख रहा था 

भीमा उसकी खुशबू सूंघ सकता था और शायद हाथ भी लगा सकता था पर हिम्मत नहीं हो रही थी तभी कामया की आवाज उसके कानों में टकराई 

कमाया- अरे चाचा क्या कर रहे हो पड़ान्ठा खतम हो गया 

भीमा- जी जी यह 

और जब तक वो हाथ बढ़ा कर पड़ान्ठा कामया की प्लेट में रखता तब तक कामया का हाथ भी उसके हाथों से टकराया और कामया उसके हाथों से अपना पड़ान्ठा लेकर खाने लगी उसका पल्लू अब थोड़ा और भी खुल गया था उसके ब्लाउज में छुपे हुए चुचे उसको पूरी तरह से दिख रहे थे नीचे तक उसके पेट और जहां से साड़ी बाँधी थी वहां तक भीमा चाचा की उत्तेजना में यह हालत थी कि अगर घर में माजी नहीं होती तो शायद आज वो कामया का रेप ही कर देता पर नौकर था इसलिए चुपचाप प्रसाद में जो कुछ मिल रहा था उसी में खुश हो रहा था और इसी को जन्नत का मजा मान कर चुपचाप कामया को निहार रहा था कामया कुछ कहती हुई खाना भी खा रही थी पर उसका ध्यान कामया की बातों पर बिल्कुल नहीं था 


हाँ ध्यान था तो बस उसके ब्लाउज पर और उसके अंदर से दिख रहे चिकने और गुलाबी रंग के शरीर का वो हिस्सा जहां वो शायद कभी भी ना पहुँच सके वो खड़ा-खड़ा बस सोच ही सकता था और उसे बस वो इस अप्सरा की खुशबू को अपने जेहन में समेट सकता था इसी तरह कब समय खतम हो गया पता भी नहीं चला पता चला तब जब कामया ने उठते हुए कहा 
कमाया- बस हो गया चाचा 

भीमा- जी जी 

और अपनी नजर फिर से नीचे की और झुक कर हाथ बाँधे खड़ा हो गया कामया उठी और वाशबेसिन पर गई और झुक कर हाथ मुँह धोने लगी झुकने से उसके शरीर में बँधी साड़ी उसके नितंबों पर कस गया जिससे कि उसकी नितंबों का शेप और भी सुडोल और उभरा हुआ दिखने लगा भीमा पीछे खड़ा हुआ मंत्र मुग्ध सा कामया को देखता रहा और सिर्फ़ देखता रहा कामया हाथ धो कर पलटी तब भी भीमा वैसे ही खड़ा था उसकी आखें पथरा गई थी मुख सुख गया था और हाथ पाँव जमीन में धस्स गये थे पर सांसें चल रही थी या नहीं पता नहीं पर वो खड़ा था कामया की ओर देखता हुआ कामया जब पलटी तो उसकी साड़ी उसके ब्लाउज के ऊपर नहीं थी कंधे पर शायद पिन के कारण टिकी हुई थी और कमर पर से जहां से मुड़कर कंधे तक आई थी वहाँ पर ठीक ठाक थी पर जहां ढकना था वहां से गायब थी और उसका पूरा यौवन या फिर कहिए चूचियां जो कि किसी पहाड़ के चोटी की तरह सामने की ओर उठे हुए भीमा चाचा की ओर देख रही थी भीमा अपनी नजर को झुका नहीं पाया वो बस खड़ा हुआ कामया की ओर देखता ही रहा और बस देखता ही जा रहा था कामया ने भी भीमा की ओर जरा सा देखा और मुड़कर सीढ़ी की ओर चल दी अपने कमरे की ओर जाने के लिए उसने भी अपनी साड़ी को ठीक नहीं किया था क्यों भीमा सोचने लगा शायद ध्यान नहीं होगा या फिर नींद आ रही होगी या फिर बड़े लोग है सोच भी नहीं सकते कि नौकर लोग की इतनी हिम्मत तो हो ही नहीं सकती या फिर कुछ और आज कामया को हुआ क्या है या फिर मुझे ही कुछ हो गया है 


पीछे से कामया का मटकता हुआ शरीर किसी साप की तरह बलखाती हुई चाल की तरह से लग रहा था जैसे-जैसे वो एक-एक कदम आगे की ओर बढ़ाती थी उसका दिल मुँह पर आ जाता वो आज खुलकर कामया के हुश्न का लुफ्त लेरहा था उसको रोकने वाला कोई नहीं था कोई भी नहीं था घर पर माँ जी अपने कमरे में थी और बहू अपने कमरे की ओर जा रही थी और चली गई सब शून्य हो गया खाली हो गया कुछ भी नहीं था सिवाए भीमा के जो कि डाइनिंग टेबल के पास कुछ झुटे प्लेट के पास सीढ़ी की ओर देखता हुआ मंत्र मुग्ध सा खड़ा था सांसें भी चल रही थी कि नहीं पता नहीं भीमा की नजर शून्य से उठकर वापस डाइनिंग टेबल पर आई तो कुछ झुटे प्लेट ग्लास पर आके अटक गई कामया की जगह खाली थी पर उसकी खुशबू अब भी डाइनिंग रूम में फेली हुई थी 


पता नहीं या फिर सिर्फ़ भीमा के जेहन में थी भीमा शांत और थका हुआ सा अपने काम में लग गया धीरे-धीरे उसने प्लेट और झुटे बर्तन उठाए और किचेन की ओर मुड़ गया पर अपनी नजर को सीढ़ियो की ओर जाने से नहीं रोक पाया था शायद फिर से कामया दिख जाए पर वहाँ तो बस खाली था कुछ भी नहीं था सिर्फ़ सन्नाटा था मन मारकर भीमा किचेन में चला गया 
ओर उधर कामया भी जब अपने कमरे में पहुँची तो पहले अपने आपको उसने मिरर में देखा साड़ी तो क्या बस नाम मात्र की साड़ी पहने थी वो पूरा पल्लू ढीला था और उसकी चुचियों से हटा हुआ था दोनों चूचियां बिल्कुल साफ-साफ ब्लाउज में से दिख रहा था क्लीवेज तो और भी साफ था आधे खुले गले से उसके चूचियां लगभग पूरी ही दिख रही थी वो नहीं जानती थी कि उसके इस तरह से बैठने से भीमा चाचा पर क्या असर हुआ था पर हाँ… कल के बाद से वो बस अंदाज़ा ही लगा सकती थी कि आज चाचा ने उसे जी भरकर देखा होगा वो तो अपनी नजर उठाकर नहीं देख पाई थी पर हाँ… देखा तो होगा और यह सोचते ही कामया एक बार फिर गरम होने लगी थी उसकी जाँघो के बीच में हलचल मच गई थी निपल्स कड़े होने लगे थे वो दौड़ कर बाथरूम में घुस गई और अपने को किसी तरह से शांत करके बाहर आई 

कामया धम्म से बिस्तर पर अपनी साड़ी उतारकर लेट गई सोचते हुए पता नहीं कब वो सो गई शाम को फिर से वही पति का इंतजार या फिर मम्मीजी के आगे पीछे या फिर टीवी या फिर कमरा सबकुछ बोरियत से भरा हुआ जिंदगी था कामया का ना कुछ फन था और ना कुछ ट्विस्ट सोचते हुए कामया अपने कमरे में इधर उधर हो रही थी मम्मीजी शाम होते ही अपने पूजा घर में घुस जाती थी और पापाजी और कामेश के आने से पहले ही निकलती थी और फिर इसके बाद खाना पीना और फिर सोना हाँ यही जिंदगी रह गई थी कामया की 
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