Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के संग
04-12-2019, 12:28 PM,
#10
RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
वो देखते ही भाभी आँखें फाड़ कर मेरे लंड की तरफ देखने लगीं और फिर दूसरी तरफ मुड़ कर दूध का पतीला रखने लगीं।
‘अब असली दूध के लिए तो थोड़ी सी मेहनत करनी पड़ेगी…!!’ भाभी ने मुड़े हुए ही दूध रखते हुए दबी आवाज़ में कहा।
मैंने उनकी बात साफ़ सुन ली और धीरे से आगे बढ़ कर उनसे पीछे से सटकर खड़ा हो गया।
ऐसा करते ही मेरे खड़े लंड ने उनकी गाण्ड की दरारों में सिल्क के गाउन के ऊपर से अपना परिचय करवा दिया।
लंड के छूते ही भाभी को एक झटका सा लगा और वो एकदम से तन कर खड़ी हो गईं। उनके ऐसा करने से मेरा लंड उनकी दरार में थोड़ा सा दब गया और एकदम टाइट हो गया।
पता नहीं मुझमें कहाँ से हिम्मत आ गई और मैंने अपने दोनों हाथों को उनके दोनों कंधों पर रख दिए और उनके कानों के पास अपने होंठ ले जाकर धीरे से बोला- हम बहुत मेहनती हैं रेणुका जी… आप कहिये तो सही कि कब और कितनी मेहनत करनी है?
रेणुका ने कुछ भी नहीं कहा और अपने बदन को धीरे धीरे ढीला छोड़ दिया। हम दोनों का कद बिल्कुल इतना था कि मेरा लिंग उनकी गाण्ड की दरारों के ठीक ऊपरी हिस्से पर टिका था और उनके गोल गोल नितम्ब मेरी जाँघों से सटे हुए थे।
हम थोड़ी देर तक वैसे ही खड़े रहे और किसी ने कुछ नहीं कहा।
मेरे हाथ अब भी उनके कन्धों पर ही थे और अपना दबाव धीरे धीरे बढ़ा रहे थे।
हम दोनों ही तेज़ तेज़ साँसें ले रहे थे और मैं रेणुका जी को अपनी तरफ खींच रहा था।
वो भी बिना कुछ कहे पीछे से मेरी तरफ सिमट रही थी और जाने अनजाने अपने चूतड़ों को मेरे लंड पर दबाती जा रही थीं।
मैंने अपने हाथों को धीरे से आगे की तरफ सरकाया और उनकी मखमली चूचियों के ऊपर ले गया।
जैसे ही मेरे हाथों का स्पर्श उनकी चूचियों पर हुआ, उन्होंने अपनी गर्दन मेरे कंधे पर टिका लीं और अपनी साँसें मेरे गले पर छोड़ने लगीं।
उफ्फ… वो मखमली एहसास उन चूचियों का… मानो रेशम की दो गेंदों पर हाथ रख दिया हो।
मैंने धीरे से उनकी दोनों चूचियों को सहलाने के लिए अपने हाथों का दबाव बढ़ाया ही था कि अचानक से किसी के आने की आहट सुनाई दी।
‘माँ… माँ… आप यहाँ हो क्या?’ वन्दना चीखती हुई दरवाज़े के बाहर आ गई।
हम दोनों को एक झटका लगा और हम छिटक कर एक दूसरे से अलग खड़े हो गए… हमें काटो तो खून नहीं।
लेकिन जल्दी ही रेणुका जी ने हालत को संभाला और रसोई में अचानक से चाय का बर्तन उठा लिया और बाहर की तरफ निकलीं…
‘अरे वन्दना तुम तैयार हो गईं क्या… देखो न समीर जी अभी अभी उठे हैं और उनकी तबियत भी ठीक नहीं है इसलिए मैं उनके लिए चाय बना रही थी।’
रेणुका जी एक कुशल खिलाड़ी की तरह उस हालात को सँभालते हुए वन्दना को समझाने लगी और मेरी तरफ ऐसे देखने लगीं मानो सच में उन्हें मेरी चिंता है और वो मेरी मदद करने जा रही थीं, मानो अभी अभी जो कुछ होने जा रहा था वो कभी हुआ ही नहीं।
मैं उनके इस खेल से बहुत प्रभावित हुआ। इतनी समझ तो बस दिल्ली की खेली खाई चुदक्कड़ औरतों में ही देखी थी लेकिन आज पता चला कि चूत रखने वाली हर औरत अपनी चुदाई के लिए हर तरह की समझदारी रखती हैं… फिर चाहे वो बड़े बड़े शहरों की लण्डखोर हों या छोटे शहरों की शर्माती हुई देसी औरतें !
‘अरे… क्या हुआ समीर जी को?’ वन्दना यह कहते हुए अन्दर आ गई और मुझे रसोई के बाहर पसीने में भीगा देखते हुए तुरन्त मेरे पास आ गई और मेरा हाथ पकड़ कर मेरी नब्ज़ टटोलने लगी मानो मेरा बुखार चेक कर रही हो।
अभी थोड़ी देर पहले ही मैं उसकी माँ की चूचियों को सहला रहा था जिस कारण से मेरा शरीर गर्म हो गया था… यह गर्मी उसने महसूस की और अपने चेहरे पर चिंता के भाव ले आई।
‘हाँ माँ, इन्हें तो सच में बुखार है।’ वन्दना ने अपनी माँ की तरफ देखते हुए कहा।
‘मैंने तो पहले ही कहा था कि इनकी तबियत ठीक नहीं है।’ रेणुका जी ने वन्दना को जवाब दिया।
‘फिर तो आप आज इनका खाना भी बना देना और देखना कि ये बिस्तर से नीचे न उतरें।’ वन्दना ने अपनी माँ को हिदायत देते हुए मेरी तरफ दुखी शक्ल बनाकर कहा।
‘तू चिंता न कर वन्दना, मैं इनका पूरा ख्याल रखूँगी… आखिर ये हमारे पड़ोसी हैं और हमारा फ़र्ज़ बनता है कि हम इन्हें कोई तकलीफ न होने दें।’ रेणुका ने वन्दना को समझाते हुए कहा।
‘अगर आज हमारा पिताजी के साथ बाहर जाने का प्लान न होता तो मैं खुद इनकी सेवा करती… ‘ वन्दना ने बड़े ही भावुक शब्दों में कहा और अपनी माँ की तरफ लाचारी भरी निगाहें डालीं।
‘कोई बात नहीं बीटा… तुम अपने पिताजी के साथ जाओ और कल शाम तक लौट आना… जब तक तुम वापस आओगी मैं समीर जी को बिल्कुल ठीक कर दूँगी।’ रेणुका जी ने वन्दना को दिलासा दिलाते हुए कहा और एक बार मेरी तरफ शरारती अंदाज़ में देख कर मुस्कुराई।
मैं मुस्कुराने लगा और वन्दना को मेरी इतनी चिंता करने के लिए धन्यवाद दिया।
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