Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के संग
04-12-2019, 12:26 PM,
#1
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नौकरी के रंग माँ बेटी के संग 

दोस्तो आपके लिए एक और मस्त कहानी पेश कर रहा हूँ आशा करता हू आपको बहुत पसंद आएगी ये कहानी मेरी पिछली कहानियों से ज़्यादा अच्छी ना हो पर बुरी भी नही होगी इसी उम्मीद के साथ कहानी पेश है दोस्तो काफ़ी दिन से देख रहा हूँ अब आप लोगो को शायद कहानियों मे इंटरेस्ट नही आता इसीलिए तो आप लोगो ने कमेंट देना बिल्कुल ही बंद कर दिया है 

भाई आप कमेंट पास करेंगे तभी तो पोस्ट करने वाले का हॉंसला बढ़ेगा और तभी आपकी ये साइट तरक्की करेगी 

दोस्तो, मैं समीर.. ऊपरवाले की मेहरबानी रही है कि उम्र और वक़्त के हिसाब से हमेशा वो हर चीज़ मिलती रही है जो एक सुखी ज़िन्दगी की जरूरत है।
इन जरूरतों में वो जरूरत भी शामिल है जिसे हम जिस्म की जरूरत कहते हैं यानि मर्दों को औरत के खूबसूरत जिस्म से पूरी होने वाली जरूरत!
मेरे लंड को वक़्त वक़्त पर हसीन और गर्मगर्म चूतों का तोहफा मिलता रहा है फिर वो चाहे कोई जवान अनाड़ी चूत हो या फिर खेली खाई तजुर्बेदार चूत!
दिल्ली है ही ऐसी जगह जहाँ समझदार लंड को कभी भी चूत की कमी नहीं रहती।
वैसे आपको बता दूँ कि मैं रहने वाला बिहार का हूँ, बिहार की राजधानी पटना में ही मेरा जन्म हुआ लेकिन मैंने दिल्ली में अपने रिश्तेदारों के यहाँ रहकर अपनी पढ़ाई पूरी की और फिर यहीं बढ़िया सी नौकरी भी मिल गई।
दिल्ली की चकाचौंध भरी ज़िन्दगी को अलविदा कहना इतना आसान नहीं होता लेकिन किस्मत का लिखा कौन टाल सकता है।
इसे मेरी ही बेवकूफी कह सकते हैं जो मैं अपने काम को कुछ ज्यादा ही अच्छे तरीके से करता रहा और मेरे कम्पनी के ऊपर ओहदे पे बैठे लोगों ने यह सब देख लिया।
दिल्ली में बस दो साल ही हुए थे और इन दो सालों में मेरे काम से मेरे अधिकारी बहुत प्रभावित थे।
आमतौर पर ऐसी स्थिति में आपको बढ़िया सा प्रमोशन मिलता है और आपकी आमदनी भी बढ़ जाती है।
मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ लेकिन इस प्रमोशन में भी एक ट्विस्ट था।
एक सुबह जब मैं अपने दफ्तर पहुँचा तो मेरे सरे सहकर्मियों ने एक एक करके मुझे बधाइयाँ देनी शुरू कर दी।
मैं अनजानों की तरह हर किसी के बधाई का धन्यवाद करता रहा और इसका कारण जानने के लिए अपनी प्यारी सी दोस्त जो हमारी कम्पनी की एच। आर। ऑफिसर थी, उसके पास पहुँच गया।
उसने मुझे देखा तो मुस्कुराते हुए मेरी तरफ एक लिफाफा बढ़ा दिया और मेरे बोलने से पहले मुझे बधाई देते हुए अपन एक आँख मार कर हंस पड़ी।
हम दोनों के बीच यह आम बात थी, हम हमेशा एक दूसरे से इस तरह की हसीं मजाक कर लिया करते थे।
जब मैंने वो लिफाफा खोला तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था क्यूंकि उस लिफाफे में एक ख़त था जिसमें लिखा था कि मुझे प्रमोशन मिली है और मेरी तन्ख्वाह डेढ़ गुना बढ़ा दी गई है।
लेकिन यह क्या… जब आगे पढ़ा तब पता चला कि यह प्रमोशन अपने साथ एक ट्विस्ट भी लेकर आया है।
हमारी कम्पनी की कई शाखाएँ हैं और उनमें से कुछ शाखाएँ अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही थीं। तो उन्हीं में से एक शाखा बिहार के कटिहार जिले में है जहाँ हमारी कम्पनी को पिछले कई सालों से काफी नुक्सान हो रहा था।
मेरी कम्पनी ने मुझे वहाँ शिफ्ट कर दिया था। मुझे समझ में नहीं आरहा था कि मैं हंसूँ या रोऊँ…
पहली नौकरी थी और बस एक साल में ही प्रमोशन मिल रहा था तो मेरे लिए कोई फैसला लेना बड़ा ही मुश्किल हो रहा था।
मैंने अपने घर वालों से बात की और दोस्तों से भी सलाह ली।
सबने यही समझाया कि पहली नौकरी में कम से कम दो साल तक टिके रहना बहुत जरूरी होता है ताकि भविष्य में इसके फायदे उठाये जा सकें।
सबकी सलाह सुनने के बाद मैंने मन मारकर कटिहार जाने का फैसला कर लिया और तीन महीने पहले यहाँ कटिहार आ गया।
कटिहार एक छोटा सा शहर है जहाँ बड़े ही सीधे साधे लोग रहते हैं। दिल्ली की तुलना में यहाँ एक बहुत ही सुखद शान्ति का वातावरण है।
मेरी कम्पनी ने मेरे लिए दो कमरों का एक छोटा सा घर दे रखा है जहाँ मेरी जरूरत की सारी चीज़ें हैं… कमी है तो बस एक चूत की जो दिल्ली में चारों तरफ मिल जाया करती थीं।
खैर पिछले तीन महीनों से अपने लंड के साथ खेलते हुए दिन बिता रहा था।
लेकिन शायद कामदेव को मुझ पर दया आ गई और वो हुआ जिसके लिये मैं तड़प रहा था।
हुआ यूँ कि एक शाम जब मैं ऑफिस से अपने घर वापस लौटा तो अपने घर के सामने वाले घर में काफी चहल-पहल देखी।
पता चला कि वो उसी घर में रहने वाले लोग थे जो किसी रिश्तेदार की शादी में गए हुए थे और शादी के बाद वापस लौट आये थे।
मैं अपने घर में चला गया अपने बाकी के कामों में व्यस्त हो गया।
रात के करीब नौ बजे मेरे दरवाजे पे दस्तक हुई…
‘कौन?’ मैंने पूछा।
‘भाई साहब हम आपके पड़ोसी हैं…’ एक खनकती हुई आवाज़ मेरे कानों में पड़ी।
मैंने झट से आगे बढ़ कर दरवाज़ा खोला तो बस एक पल के लिए मेरी आँखें ठहर सी गईं… मेरे सामने हरे रंग की चमकदार साड़ी में तीखे नयन नक्श लिए खुले हुए लहराते जुल्फों में करीब 25 से 30 साल की एक मदमस्त औरत हाथों में मिठाइयों से भरी थाल लिए मुस्कुरा रही थी।
मुझे अपनी तरफ यूँ घूरता देख कर उसने झेंपते हुए अपनी आँखें नीचे कर लीं और कहा- भाई साब… हम आपके पड़ोसी हैं… एक रिश्तेदार की शादी में गए हुए थे, और आज ही लौटे हैं।
‘जी..जी.. नमस्ते…’ मेरे मुख से बस इतना ही निकल सका।
‘ये कुछ मिठाइयाँ हैं.. इन्हें रख लें और थोड़ी देर में आपको हमारे घर खाने पे आना है…’ यह कहते हुए उन्होंने थाली मेरी तरफ बढ़ा दी।
मैंने थाली पकड़ते हुए उनसे कहा- यह मिठाई तक तो ठीक है भाभी जी, लेकिन खाने की क्या जरूरत है… आप लोग तो आज ही आये हैं और थके होंगे फिर यह तकलीफ उठाने की क्या जरूरत है?
‘अरे ऐसा कैसे हो सकता है… आप हमारे शहर में मेहमान हैं और मेहमानों की खातिरदारी करना तो हमारा फ़र्ज़ है…’ अपनी खिलखिलाती हुई मुस्कराहट के साथ उस महिला ने बड़े ही शालीन अंदाज़ में अपनी बात कही।
मैं तो बस उसकी मुस्कराहट पे फ़िदा ही हो गया।
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04-12-2019, 12:27 PM,
#2
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‘अन्दर आइये न भाभी…’ मैंने भी सभ्यता के लिहाज़ से उनसे घर के अन्दर आने का आग्रह किया।
‘अरे नहीं… अभी ढेर सारा काम पड़ा है… आप आधे घंटे में चले आइयेगा, फिर बातें होंगी।’ उन्होंने इतना कहते हुए मुझसे विदा ली और वापस मुड़ कर अपने घर की तरफ चली गईं।
उनके मुड़ते ही मेरी आँखें अब सीधे वहाँ चली गईं जहाँ लड़कों की निगाहें अपने आप चली जाती हैं… जी हाँ, मेरी आँखें अचानक ही उनके मटकते हुए कूल्हों पर चली गईं और मेरे बदन में एक झुरझुरी सी फ़ैल गई।
उनके मस्त मटकते कूल्हे और उन कूल्हों के नीचे उनकी जानदार गोल गोल पिछवाड़े ने मुझे मंत्रमुग्ध सा कर दिया।
मैं दो पल दरवाज़े पे खड़ा उनके घर की तरफ देखता रहा और फिर एक कमीनी मुस्कान लिए अपने घर में घुस गया।
घड़ी की तरफ देखा तो घड़ी की सुइयाँ धीरे धीरे आगे की तरफ बढ़ रही थीं और मेरे दिल की धड़कनों को भी उसी तरह बढ़ा रही थीं।
एक अजीब सी हालत थी मेरी, उस हसीं भाभी से दुबारा मिलने का उत्साह और पहली बार उनके घर के लोगों से मिलने की हिचकिचाहट।
वैसे मैं बचपन से ही बहुत खुले विचारों का रहा हूँ और जल्दी ही किसी से भी घुल-मिल जाता हूँ।
खैर, दिल में कुछ उलझन और कुछ उत्साह लिए मैं तैयार होकर उनके दरवाज़े पहुँचा और धड़कते दिल के साथ उनके दरवाज़े की घण्टी बजाई।
अन्दर से किसी के क़दमों की आहट सुने दी और उस आहट ने मेरी धड़कनें और भी बढ़ा दी।

दरवाज़ा खुला और मुझे एक और झटका लगा, सामने एक खूबसूरत सा चेहरा एक कातिल सी मुस्कान लिए खड़ा था।
सफ़ेद शलवार और कमीज़ में लगभग 18 साल की एक बला की खूबसूरत लड़की ने मुस्कुराते हुए मुझे नमस्ते की और अन्दर आने का निमंत्रण दिया।
मैं बेवक़ूफ़ की तरह उसके चेहरे की तरफ देखता रहा और कुछ बोलना ही भूल गया…
‘अन्दर आ जाइये…’ अन्दर से वही आवाज़ सुनाई दी यानि कि उस महिला की जो अभी थोड़ी देर पहले मेरे घर पर मुझे खाने का निमंत्रण देने आईं थीं।
उनकी आवाज़ ने मेरा ध्यान तोड़ा और मैं भी बड़े शालीनता से उस हसीन लड़की की तरफ देखते हुए नमस्ते कहते हुए अन्दर घुस पड़ा।
घर के अन्दर आया तो एक भीनी खुशबू ने मुझे मदहोश कर दिया जो शायद उस कमरे में किये गए रूम फ्रेशनर की थी।
वो एक बड़ा सा हॉल था जिसमें सारी चीज़ें बड़े ही तरीके से सजाकर रखी गईं थीं।
सामने सोफे लगे हुए थे और उस पर एक तरफ एक सज्जन करीब करीब 50-55 साल के बैठे हुए थे।
मैंने आगे बढ़ कर उन्हें नमस्ते किया और एक सोफे पर बैठ गया।
तभी भाभी भी उस लड़की के साथ आकर सामने के सोफे पर मुस्कुराते हुए बैठ गईं।
अब हमारी बातों का सिलसिला चल पड़ा और हमने एक दूसरे से अपना अपना परिचय करवाया।
बातों बातों में पता चला कि वो बस तीन लोगों का परिवार है जिसमें उस परिवार के मुखिया अरविन्द झा जी एक सरकारी महकमे में सीनियर इंजिनियर हैं और पास के ही एक शहर पूर्णिया में पदस्थापित हैं। उनकी पत्नी रेणुका जी एक सरकारी स्कूल में शिक्षिका हैंऔर उनकी इकलौती संतान यानि उनकी बेटी वन्दना बारहवीं में पढ़ रही थी।
थोड़ी देर में ही हम काफी घुल-मिल गए और फिर खाने के लिए बैठ गए।
खाने के मेज पर मैं और अरविन्द जी एक तरफ और रेणुका तथा वन्दना सामने की तरफ बैठ गए।
अरविन्द जी भी बड़े ही खुले विचारों के लगे और मुझसे बिल्कुल ऐसे बात कर रहे थे जैसे कई सालों से हमारी जान पहचान हो।
मैं भी उनसे बातें करता रहा लेकिन निगाहें तो सामने बैठी दो दो कातिल हसीनाओं की तरफ खिंची चली जाती थी… उन दोनों के चेहरे से टपकते नूर ने धीरे धीरे मेरे ऊपर एक नशा सा छ दिया था, मैं चाहकर भी उनके चेहरे से नज़रें हटा नहीं पा रहा था।
और फिर मेरी निगाहों ने अपनी असलियत दिखाई और चेहरे से थोड़ा नीचे की तरफ सरकना शुरू किया… रेणुका जी ने वही चमकदार हरे रंग की साड़ी अब भी पहन रखी थी और इतनी शालीनता से पहनी थी कि उनके गले के अलावा नीचे और कुछ भी नहीं दिख रहा था, लेकिन उनकी साड़ी ने इतना उभर बना रखा था कि एक तजुर्बेदार इंसान इतना तो समझ सकता था कि उन उभारों के पीछे अच्छी खासी ऊँचाइयाँ छिपी हुई हैं।
उनकी रेशमी त्वचा से भरे हुए गले ने यह एहसास दिला दिया था कि उनका पूरा बदन यूँ ही रेशमी और बेदाग ही होगा।
दूसरी तरफ वन्दना अपने सफ़ेद शलवार कमीज़ में अलग ही क़यामत ढा रही थी।
उसने भी अपनी माँ की तरह अपने बाल खुले रखे थे जो पंखे की हवा में लहरा रहे थे और बार बार उसके चेहरे पे आ जाते थे, जिन्हें हटाते हुए वो और भी खूबसूरत लगने लगती थी।
गहरे गले की कमीज़ उसके गोल गोल चूचियों की लकीरों की हल्की सी झलक दे रही थीं जो एक जवान लड़के को विचलित करने के लिए काफी होती हैं।
वैसे उसने दुपट्टा तो ले रखा था लेकिन अलग तरीके से यानि दुपट्टे को मफलर की तरह अपने गले में यूँ लपेट रखा था कि उसका एक सिरा गले से लिपटते हुए पीछे की ओर था और दूसरा सिरा आगे की तरफ उसकी दाहिनी चूची के ऊपर से सामने लटक रहा था।
यानि कुल मिला कर उसकी 32 साइज़ की चूचियाँ अपनी गोलाइयों और कड़ेपन का पूरा एहसास दिला रही थीं।
चूचियों की झलक और उसकी लकीरें दिल्ली में आम बात थीं… वहाँ तो न चाहते हुए भी आपको ये हर गली, हर नुक्कड़ पे दिखाई दे जाती थीं लेकिन यहाँ बात कुछ और थी।
दिल्ली की सुन्दरता थोड़ी बनावटी होती है और अभी मेरे सामने बिल्कुल प्राकृतिक और शुद्ध देसी सुन्दरता की झलक थी।
मेरा एक मित्र है जो बिहार के इसी प्रदेश का रहने वाला है और उसने कई बार बताया था कि इस इलाके की सुन्दरता हर जगह से भिन्न है और मैं वो आज महसूस भी कर रहा था।
रेणुका जी और वन्दना दोनों माँ बेटियाँ बिल्कुल दो सहेलियों की तरह एक दूसरे से बर्ताव कर रही थीं और दोनों ही बिल्कुल चुलबुली सी थीं।
कुल मिला कर वो शाम बहुत ही शानदार रही और उन सबसे विदा लेकर मैं वापस अपने कमरे पर आ गया।
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04-12-2019, 12:27 PM,
#3
RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
कमरे पर आकर मैं सोने की तैयारी करने लगा और अपनी आँखों में उन दो खूबसूरत चेहरे बसाये हुए सोने की कोशिश करने लगा।
यूँ तो मैंने कई खूबसूरत लड़कियों और औरतों के साथ वक़्त बिताया है लेकिन पता नहीं क्यूँ आज इन दो माँ बेटियों के चेहरे मेरी आँखों से ओझल ही नहीं हो रहे थे।
खुली आँखों में उनकी चमक और आँखें बंद करते ही उनकी मुस्कराहट।
बस मत पूछिए की मेरा क्या हाल था, करवट बदलते बदलते रात कट गई।
सुबह आँख खुली तो काफी देर हो गई थी।
मैं झटपट उठा और बाहर का दरवाज़ा खोला क्यूंकि दूध वाले का वक़्त था… लेकिन जब घड़ी पर नज़र गई तो मायूसी छा गई क्यूंकि काफी देर हो चुकी थी और शायद दूध वाला बिना दूध दिए वापस चला गया था।
मैं वापस मुड़ा और अन्दर जाने लगा तभी किसी ने मुझे आवाज़ लगाई… ‘समीर जी…ओ समीर जी…’ 
मैंने मुड़कर देखा तो रेणुका भाभी हाथ हिलाकर मेरी तरफ ही इशारा कर रही थीं।
उनको देखते ही मेरे चेहरे पे छाई मायूसी गायब हो गई और मैंने मुस्कुरा कर उन्हें नमस्ते की।
रेणुका जी ने मुझे ठहरने का इशारा किया और वापस अपने घर में चली गईं।
मैं कुछ समझ पाता, इससे पहले वो अपने घर से बाहर निकलीं, उनके हाथों में एक बड़ा सा पतीला था।
मेरी नज़र पहले तो पतीले पे गई फिर बरबस ही पतीले से हटकर उनके पूरे शरीर पे चली गई।
उन्होंने लाल रंग की एक मस्त सी गाउननुमा ड्रेस पहन रखी थी जो उनकी सुन्दरता पे चार चाँद लगा रही थी।
वैसे ही खुले बालों में वो मुस्कुराती हुई अपनी कमर मटकती हुई धीरे धीरे मेरी तरफ बढ़ने लगीं।
‘आप क्या रोज़ इतनी देर तक सोते रहते हैं… आपका दूध वाला आया था और कई बार आपको जगाने की कोशिश करी, लेकिन जब आप नहीं जागे तो ये दूध हमारे यहाँ देकर चला गया…’ भाभी ने मुस्कुराते हुए शिकायत भरे लहजे में कहा।
‘अरे नहीं भाभी जी… दरअसल कल रात को काफी देर हो गई थी सोते सोते, इस लिए सुबह जल्दी उठ नहीं पाया।’ मैंने मासूमियत से जवाब दिया।
‘क्यूँ कल रात को कोई भूत देख लिया था क्या… जो डर कर सो नहीं पा रहे थे आप?’ भाभी ने खिलखिलाकर हंसते हुए मजाक किया।
मैंने भी मौके पे चौका मारा और कहा- भूत नहीं भाभी, बल्कि कुछ ज्यादा ही खूबसूरत भूतनी देख ली थी इसलिए उसको याद करते करते जगता रहा।
‘अच्छा जी… जरा संभल कर रहिएगा यहाँ की भूतनियों से… एक बार पकड़ लें तो फिर कितनी भी कोशिश कर लो, जाती ही नहीं…’ भाभी ने बड़े ही मादक अंदाज़ में मेरी आँखों में अपनी चंचल आँखों से इशारे करते हुए चुटकी ली।
‘अजी अगर इतनी खूबसूरत भूतनी हो तो कोई भला क्यूँ भागना चाहेगा, हम तो बस उससे चिपक कर ही रहेंगे।’ मैंने भी उनकी आँखों में झांकते हुए शरारत भरे अंदाज़ में कहा।
‘बड़े छुपे हुए रुस्तम हो आप… हमारी खूब ज़मेगी, लगता है।’ भाभी ने इस बार मुझे आँख मार दी।
मैं समझ गया कि सच में हमारी खूब जमने वाली है क्यूंकि कल रात जब मैंने उनके पति अरविन्द जी को देखा था तभी समझ में आ गया था कि शायद कहीं न कहीं उनकी बढ़ती उम्र की वजह से भाभी की हसरतों का कोई कोना खाली रह जाता होगा और अभी उनकी इस हरकत और इन बातों ने मुझे यकीन दिला दिया था कि जो कमी पिछले तीन महीनों से परेशान कर रही थी, वो अब पूरी होने वाली है।
‘फिलहाल कोई बर्तन ले आइये और यह दूध ले लीजिये…’ भाभी ने मेरा ध्यान दूध की तरफ खींचा।
मगर मैं ठहरा कमीना और मैंने भाभी के नेचुरल दूध की तरफ देखना शुरू कर दिया।
रात को साड़ी में छिपे इन बड़े बड़े दूध कलश को उनके गाउन के ऊपर से अब मैं सही ढंग से देख पा रहा था।
बिल्कुल परफेक्ट साइज़ की चूचियाँ थीं वो।
मेरे अंदाज़े से 34 की रही होंगी जो कि मेरी फेवरेट साइज़ थी, न ज्यादा छोटी न ज्यादा बड़ी…
मुझे अपनी चूचियों की तरफ घूरता देख कर भाभी ने मेरी आँखों में देखा और अपनी भौहें उठा कर बिना कुछ कहे ऐसा इशारा किया मनो पूछ रहीं हो कि क्या हुआ।
मैंने मुस्कुराकर उन्हें अपना सर हिलाकर ‘कुछ नहीं’ का इशारा किया और अपने घर में घुस गया और दूध का बर्तन ढूंढने लगा।
सच कहूँ तो उनसे बातें करके मेरे लंड महराज ने अपना सर उठा लिया था और उनकी चूचियों के एहसास ने उसे और हवा दे दी थी।
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04-12-2019, 12:27 PM,
#4
RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
मैं रसोई में एक हाथ से अपने बरमुडे के ऊपर से अपने खड़े लंड को दबा कर बिठाने की कोशिश करने लगा और एक हाथ से बर्तन ढूंढने लगा।
‘क्या हुआ समीर जी… बर्तन नहीं मिल रहा या फिर से भूतनी दिख गई?’ रेणुका जी यह कहते हुए घर में घुस पड़ीं और सीधे रसोई की तरफ आ गईं।
मेरा हाथ अब भी वहीं था यानि मेरे लंड पे!
भाभी की आवाज सुनकर मैं हड़बड़ा गया और जल्दी से अपना हाथ हटा लिया लेकिन तब तक शायद उन्होंने मुझे लंड दबाते हुए देख लिया।
मैं झेंप सा गया और जल्दी से जल्दी दूध का बर्तन ढूंढने लगा।
‘हटो मैं देखती हूँ…’ भाभी ने मुस्कुराते हुए मुझे हटने को कहा और दूध का पतीला एक किनारे रख कर अपने दोनों हाथों से बर्तनों के बीच दूध का बर्तन ढूंढने लगी।
रैक के ऊपर के सारे बर्तन गंदे पड़े थे इसलिए वो झुक गईं और नीचे की तरफ ढूंढने लगीं।
‘उफ्फ्फ्फ़…’ बस इसी की कमी थी।
रेणुका जी ठीक मेरे सामने इस तरह झुकी थीं मनो अपनी गोल गोल और विशाल चूतड़ों को मेरी तरफ दिखा दिखा कर मुझे चोदने का निमंत्रण दे रहीं हों।
अब मुझ जैसा लड़का जिसने दिल्ली की कई लड़कियों और औरतों को इसी मुद्रा में रात रात भर चोद चुका हो उसकी हालत क्या हो रही होगी, यह तो आप समझ ही सकते हैं।
ऊपर से चूत के दर्शन किये हुए तीन महीने हो गए थे।
मेरा हाल यह था कि मेरा लंड अब मेरे बरमुडे की दीवार को तोड़ने के लिए तड़प रहा था और मैं यह फैसला नहीं कर पा रहा था कि क्या करूँ… अभी बस कल रात को ही तो हमारी मुलाकात हुई है और वो भी बड़ी शालीनता भरी। तो क्या मैं इतनी जल्दी मचा कर आखिरी मंजिल तक पहुँच जाऊँ या अभी थोड़ा सा सब्र कर लूँ और पूरी तरह से यकीन हो जाने पर कि उनके मन में भी कुछ है, तभी आगे बढूँ…
सच कहूँ तो दिल्ली की बात कुछ और थी… वहाँ इतनी झिझक न तो मर्द की तरफ से होती है और न ही औरत की तरफ से… कम से कम मुझे जितनी भी चूतें हासिल हुई थीं वो सब बेझिझक मेरे लंड को अपने अन्दर ठूंस कर चुदवाने का ग्रीन सिग्नल पहली मुलाकात में ही दे देती थीं…
लेकिन यहाँ बात कुछ और थी। एक तो यह छोटा सा शहर था और यहाँ के लोगों को मैं ठीक से समझ भी नहीं पाया था… इसलिए इस बात का डर था कि अगर पासा उल्टा पड़ गया तो लेने के देने पड़ जायेंगे।
इसी उधेड़बुन में अपना लंड खड़ा किये मैं रेणुका जी को अपनी गांड मटकाते हुए देखता रहा और धीरे से उनके पीछे से हट कर बगल में आ गया और खुद भी झुक कर उनकी मदद करने लगा।
ऐसा करने की एक वजह ये थी कि अगर मैं पीछे से न हटता तो पक्का कुछ गड़बड़ हो जाती… और दूसरा यह कि मुझे यह एहसास था की रेणुका के झुकने से उसकी चूचियों की हल्की सी झलक मुझे दिखाई पड़ सकती थी।
दिल में चोर लिए मैं उनसे थोड़ा नज़दीक होकर अपने हाथ बढ़ा कर बर्तन ढूंढने का नाटक करने लगा और जान बुझ कर उनके हाथों से अपने हाथ टकरा दिए।
अचानक हाथों के टकराने से उन्होंने थोड़ा सा घूम कर मेरी आँखों में देखा और यूँ ही झुकी हुई मुझे देखते हुए अपने हाथ चलाती रही बर्तनों की तरफ।
उनके जरा सा घूमते ही मैं खुश हो गया और उनके आँखों में देखने के बाद अचानक से नीचे उनके गाउन के खुले हुए गले पे अपनी नज़र ले गया।
उफ्फ्फ्फ़… गाउन का गला उनके झुकने से थोड़ा सा खुल गया था और उनकी बला की खूबसूरत गोरी चूचियों के बीच की लकीर मेरे ठीक सामने थी।
बयाँ नहीं कर सकता कि उन दो खूबसूरत चूचियों की वो झलक अपने अन्दर कितना नशा समेटे हुए थी।
उनकी चूचियाँ अपनी पूरी गोलियों को कायदे से सँभालते हुए गाउन में यूँ लटकी हुई थीं मानो दो खरबूजे… उन लकीरों ने मुझे यह सोचने पे मजबूर कर दिया कि गाउन के अन्दर उन्होंने ब्रा पहनी भी है या नहीं।
कुछ आधा दर्ज़न चूचियों का रसपान करने के मेरे तजुर्बे ने यह बताया कि उन चूचियों के ऊपर गाउन के अलावा और कुछ भी नहीं, तभी वो इतने स्वंतंत्र भाव से लटक कर अपनी सुन्दरता को नुमाया कर रही थी।
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04-12-2019, 12:27 PM,
#5
RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
कहते हैं कि औरतों को ऊपर वाले ने यह गुण दिया है कि वो झट से यह समझ जाएँ कि सामने वाली की नज़र अच्छी है या गन्दी…
मेरी नज़रों का निशाना अपनी चूचियों की तरफ देखते ही भाभी के गाल अचानक से लाल हो गए और वो शरमा कर खड़ी हो गईं।
मैं भी हड़बड़ा कर खड़ा हो गया और हम दोनों एक दूसरे से नज़रें चुराते हुए चुपचाप खड़े ही रहें… मानो हम दोनों की कोई चोरी पकड़ी गई हो!
‘समीर जी, आप ऐसा करें कि फिलहाल मेरे दूध का बर्तन रख लें मैं बाद में आपसे ले लूंगी…’ भाभी ने अपने शर्म से भरे लाल-लाल गालों को और भी लाल करते हुए मेरी तरफ देख कर कहा और कुछ पल के लिए वैसे ही देखती रहीं..
मैं कमीना, जैसे ही भाभी ने दूध का बर्तन कहा, मेरी नज़र फिर से उनकी चूचियों पर चली गईं जो तेज़ तेज़ साँसों के साथ ऊपर नीचे होकर थरथरा रही थीं…
अचानक मेरी नज़रें उनकी गोलाइयों के साथ घूमते घूमते चूचियों के ठीक बीच में ठहर गईं जहाँ दो किशमिश के दानों के आकार वाले उभार मेरे तजुर्बे को सही ठहरा रही थीं…
यानि रेणुका भाभी ने सचमुच अन्दर ब्रा नहीं पहनी थी।
इस बात का एहसास होते ही उनकी चूचियों के दानों को एकटक निहारते हुए मैंने एक लम्बी सांस भरी…
मेरी साँसों की आवाज़ इतनी तेज़ थी कि भाभी का ध्यान मेरे चेहरे से हट गया और उनकी आँखें नीचे झुक गईं…
यहाँ भी बवाल… नीचे हमारे लंड महाराज बाकी की कहानी बयाँ कर रहे थे।
अब तो रेणुका का चेहरा सुर्ख लाल हो गया… एक दो सेकंड तक उनकी निगाहें मेरे लंड पे टिकीं, फिर झट से उन्होंने नज़रें हटा लीं।
‘अब मुझे जाना चाहिए… आप को भी दफ्तर जाना होगा और वन्दना भी कॉलेज जाने वाली है…’ रेणुका जी ने कांपते शब्दों के साथ बस इतना कहा और शर्मीली मुस्कान के साथ मुड़ कर वापस चल दीं।
उनके चेहरे की मुस्कान ने मेरे दिल पे हज़ार छुरियाँ चला दी… मैं कुछ बोल ही नहीं पाया और बस उन्हें पीछे से देखने लगा अपनी आँखें फाड़े फाड़े!
हे भगवन… एक और इशारा जिसने मुझे पागल ही कर दिया… उनका गाउन पीछे से उनकी चूतड़ों के बीच फंस गया था… यानि…
उफ्फ… यानि की उन्होंने उस गाउन के अन्दर न तो ब्रा पहनी थी और ना ही नीचे कोई पैंटी-कच्छी…!!
मेरा हाथ खुद-ब-खुद अपने लंड के ऊपर चला गया और मैंने अपने लंड को मसलना शुरू कर दिया।
रेणुका तेज़ क़दमों के साथ दरवाज़े से बाहर चली गईं…
मैं उनके पीछे पीछे दरवाज़े तक आया और उन्हें अपने खुद के घर में घुसने तक देखता ही रहा।
मैं झट से अपने घर में घुसा और बाथरूम में जाकर अपन लंड निकाल कर मुठ मारने लगा।
बस थोड़ी ही देर में लंड ने ढेर सारा माल बाहर उगल दिया…
मेरा बदन अचानक से एकदम ढीला पड़ गया और मैंने चैन की सांस ली।
मैं बहुत ही तरो ताज़ा महसूस करने लगा और फटाफट तैयार होकर अपने ऑफिस को चल दिया। 
जाते जाते मैंने एक नज़र रेणुका भाभी के घर की तरफ देखा पर कोई दिखा नहीं।
मैं थोड़ा मायूस हुआ और ऑफिस पहुच गया।
ऑफिस में सारा दिन बस सुबह का वो नज़ारा मेरी आँखों पे छाया रहा.. रेणुका जी के हसीं उत्तेज़क चूचियों की झलक… उनकी गांड की दरारों में फंसा उनका गाउन… उनके शर्म से लाल हुए गाल और उनकी शर्माती आँखें… बस चारों तरफ वो ही वो नज़र आ रही थीं।
इधर मेरा लंड भी उन्हें सोच सोच कर आँसू बहाता रहा और मुझे दो बार अपने केबिन में ही मुठ मारनी पड़ी।
किसी तरह दिन बीता और मैं भागता हुआ घर की तरफ आया… घर के बाहर ही मुझे मेरी बेचैनी का इलाज़ नज़र आ गया।
घर के ठीक बाहर मैंने एक गोलगप्पे वाले का ठेला देखा और उस ठेले के पास रेणुका अपनी बेटी वन्दना के साथ गोलगप्पे का मज़ा ले रही थीं।
मुझे देखकर दोनों मुस्कुरा उठीं।
मैंने भी प्रतिउत्तर में मुस्कुरा कर उन दोनों का अभिवादन किया।
‘आइये समीर जी… आप भी गोलगप्पे खाइए… हमारे यहाँ के गोलगप्पे खाकर आप दिल्ली के सारे गोलगप्पे भूल जायेंगे… ‘
मेरी उम्मीदों के विपरीत ये आवाज़ वन्दना की थी जो शरारती हसीं के साथ मुझे गोलगप्पे खाने को बुला रही थी।
मैं थोड़ा चौंक गया और एक बार रेणुका जी की तरफ देखा.. मुझसे नज़रें मिलते ही वो फिर से सुबह की तरह शरमा गईं और नीचे देखने लगीं, फिर थोड़ी ही देर बाद कनखियों से मेरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगीं… 
उनकी इस अदा ने मुझे घायल सा कर दिया और मैं अन्दर ही अन्दर गुदगुदी से भर गया।
लेकिन जल्दी ही रेणुका जी की तरफ से अपनी नज़रें हटा कर वन्दना की तरफ देख कर मुस्कुराने लगा।
‘अच्छा जी… आपके यहाँ के गोलगप्पे इतने स्वादिष्ट हैं जो मुझे दिल्ली के गोलगप्पे भुला देंगे…?’ मैंने भी उसे जवाब दिया और उनकी तरफ बढ़ गया।
ठेले के करीब जाकर मैं उन दोनों के सामने खड़ा हो गया और गोलगप्पे वाले से एक प्लेट लेकर गोलगप्पे खाने को तैयार हो गया।
‘भैया इन्हें बड़े बड़े और गोल गोल खिलाना… ये हमारे शहर में मेहमान हैं तो इनकी खातिरदारी में कोई कमी न रह जाये।’ वन्दना ने मेरी आँखों में एक टक देखते हुए शरारती मुस्कान के साथ गोलगप्पे वाले को कहा।स्वंतंत्र भाव से लटक कर अपनी सुन्दरता को नुमाया कर रही थी।
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04-12-2019, 12:27 PM,
#6
RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
मैं उसकी बातों से फिर से चौंक गया और उसकी बातों तथा उसके इशारों को किसी दो अर्थी बातों की तरह समझने लगा।
मैं थोड़ा कंफ्यूज हुआ और फिर एक चांस मारने के हिसाब से बरबस बोल पड़ा- गोल गोल तो ठीक हैं लेकिन ज्यादा बड़े मुझे पसंद नहीं हैं… इतने बड़े ही ठीक हैं जो एक ही बार में पूरा मुँह में आ जाये और पूरा मज़ा दे…
मेरी बातें सुनकर दोनों माँ बेटियों ने एक साथ मेरी आँखों में देखा… मैं एक बार रेणुका जी की तरफ देखता तो एक बार वन्दना की आँखों में… 
रेणुका जी के गाल फिर से वैसे ही लाल हो गए थे जैसे सुबह हुए थे और वन्दना की आँखों में एक चमक आ गई थी जैसे किसी जवान कमसिन लड़की की आँखों में वासना भरी बातों के बारे में सुन कर आ जाती है।
मैं समझ नहीं पा रहा था कि किसे देखूं और किसके साथ चांस मारूँ।
एक तरफ माँ थी जो की बाला की खूबसूरत और चोदने के लिए बिल्कुल सही माल थी, वहीं दूसरी तरफ एक कमसिन जवान लड़की… 
मेरे लंड ने ख़ुशी से सर उठाना शुरू कर दिया।
मैं मुस्कुराते हुए उन दोनों को लाइन देने लगा और गोलगप्पे खाने लगा।
थोड़ी ही देर में हमने हंसी मजाक के साथ गोलगप्पे खाए और फिर एक दूसरे को वासना और झिझक भरी निगाहों के साथ अलविदा कह कर अपने अपने घरों में घुस गए।
रात को अब फिर से नींद नहीं आई और इस बार मैं दोनों के बारे में सोच सोच कर उनके सपने देखते हुए अपने दिल को समझाने लगा कि जल्दी ही दोनों में से किसी न किसी की चूत चोदने का मौका जरूर मिलेगा।
अगली सुबह मेरी आँख फिर से देर से खुली… घडी की तरफ देखा तो फिर से नौ बज चुके थे।
दौड़ता हुआ बाथरूम में घुसा और फटाफट फ़्रेश होने लगा।
अचानक से मेरे दिमाग में दूध का ख्याल आया और बरबस ही चेहरे पे एक मुस्कान आ गई…
कल सुबह के हालात मेरी आँखों के सामने किसी फिल्म की तरह चलने लगे।
मैं यह सोच कर खुश हो गया कि आज भी मेरे देरी से उठने की वजह से रेणुका जी ने दूध ले लिया होगा और कल की तरह आज भी वो दूध देने जरूर आएँगी।
इस ख्याल से ही मेरे लंड ने तुनक कर अपनी ख़ुशी का इजहार किया और मेरा हाथ खुद ब खुद वहाँ पहुँच गया।
मैं जल्दी से नहा धोकर निकला और बस एक छोटे से निकर में अपने घर के दरवाज़े की ओर टकटकी लगाये ऑफिस जाने की बाकी तैयारियों में लग गया।
मेरी आँखें बार बार दरवाज़े की तरफ देखतीं मानो बस रेणुका जी अपने गाउन में अपनी उन्नत चूचियों को समेटे अपनी कमर मटकाते हुए अन्दर दाखिल होंगी और मेरे दिल को उनकी सुन्दर काया के दर्शन करके आराम मिलेगा।
लेकिन काफी देर हो गई और कोई भी आहट सुनाई नहीं पड़ी।
मैं मायूस होकर अपने ऑफिस के लिए कपड़े पहनकर तैयार हो गया और अपने दरवाज़े की तरफ बढ़ा।
मैं अपने मन को समझा चुका था कि कोई नहीं आनेवाला… 
बुझे मन से दरवाज़ा खोला और बस ठिठक कर खड़ा रह गया… सामने वन्दना अपने हाथों में एक बर्तन लिए खड़ी थी जिसमें शायद दूध था।
एक पल को मैं चुप सा हो गया… कुछ बोल ही नहीं पा रहा था मैं!
‘समीर जी… यह रहा आपका दूध… शायद आप सो रहे थे तभी दूधवाले ने हमारे घर पर दे दिया।’ वन्दना ने मुस्कुराते हुए मेरी आँखों में देखकर कहा।
मैं तो बस उलझन में खड़ा उसकी बातें सुनता रहा और सच कहें तो कुछ सुन भी नहीं पाया… मैं उस वक़्त उसकी माँ का इंतज़ार कर रहा था और उसकी जगह वन्दना को देख कर थोड़ी देर के लिए ‘क्या करूँ क्या न करूँ’ वाली स्थिति में जड़वत खड़ा ही रहा।
‘कहाँ खो गए जनाब… हमें ड्यूटी पे लगा ही दिया है तो अब कम से कम यह दूध तो ले लीजिये।’ उसने शरारती अंदाज़ में शिकायत करते हुए कहा।
‘माफ़ कीजियेगा… दरअसल कल रात कुछ ज्यादा काम करना पड़ा ऑफिस का इसलिए देर से सोया…’ मैंने झेंपते हुए उससे माफ़ी मांगी और दूध का बर्तन उसके हाथों से ले लिया।
यूँ तो मेरी आँखों पे उसकी माँ रेणुका का नशा छाया हुआ था लेकिन दूध का बर्तन लेते वक़्त मेरी नज़र वन्दना के शरीर पर दौड़ गई और मैंने नज़रें भर कर उसे ऊपर से नीचे देखा।
हल्के आसमानी रंग की टॉप और गहरे भूरे रंग के छोटे से स्कर्ट में उसकी जवानी उफान मर रही थी।
टॉप के नाम पर एक रेशमी कपड़ों से बना कुरता था जिसमे से उसकी ब्रा की लाइन साफ़ दिख रही थी। उसकी 32 साइज़ की गोल गोल चूचियों की पूरी गोलाइयाँ उस रेशमी कुरते के अन्दर से एक मौन निमंत्रण सा दे रही थीं।
मेरी नज़र तो मानो अटक ही गई थीं उन कोमल उभारों पे।
कसम से मुझे अपनी दिल्ली वाली पड़ोसन नेहा की याद आ गई।
बिल्कुल वैसी ही चूचियाँ… वैसी ही बनावट… !!
‘आपने कुछ खाया पिया भी है या ऐसे ही चल दिए ऑफिस?’ वन्दना ने अचानक मेरा ध्यान तोड़ते हुए पूछा।
‘हाँ जी… मैंने खा लिया है।’ मैंने भी मुस्कुरा कर जवाब दिया।
‘कब खाया और क्या खाया… आप तो इतनी देर तक सो रहे थे और दूध भी हमारे घर पर पड़ा था तो खाया कब…?’ एक जासूस की तरह वन्दना ने मेरा झूठ पकड़ लिया और ऐसे देखने लगी मानो मैंने कोई डाका डाल दिया हो।
‘वो..वो … कुछ बिस्किट्स पड़े थे वो खा लिए हैं… ऑफिस में देर हो रही थी…’ मैंने पकड़े गए मुजरिम की तरह सफाई देते हुए कहा और मुस्कुराने लगा।
‘हमें पता था… चलिए, माँ ने आपको नाश्ते के लिए बुलाया है… उन्हें पता था कि आप ऐसी ही कोई हरकत करेंगे।’ वन्दना ने बिल्कुल आदेश देने वाले अंदाज़ में कहा और मुझे बड़ी बड़ी आँखें दिखाने लगी।
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04-12-2019, 12:27 PM,
#7
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मैंने जैसे ही यह सुना कि रेणुका जी ने ही उसे यहाँ भेजा है वो भी मुझे बुलाने के लिए तो मानो मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा।
मेरे चेहरे पे एक चमक आ गई और मेरा मन करने लगा कि मैं दौड़कर अभी रेणुका की पास पहुँच जाऊँ लेकिन तहज़ीब भी कोई चीज़ होती है…
मैंने झूठमूठ ही वन्दना से कहा- मुझे बहुत देरी हो जायेगी ऑफिस पहुँचने में! आज रहने दीजिये… फिर कभी आ जाऊँगा।
मैंने बहाना बनाते हुए कहा।
‘जी नहीं… यह हमारी मम्मी का हुक्म है और उनकी बात कोई नहीं टाल सकता… तो जल्दी से दूध का बर्तन अन्दर रख दीजिये और हमारे साथ चलिए, वरना अगर मम्मी नाराज़ हो गईं तो फिर बहुत बुरा होगा।’ वन्दना ने मुझे डराते हुए कहा।
मैं तो खुद ही उसकी मम्मी से मिलने को तड़प रहा था लेकिन मैंने उसके सामने थोड़ा सा नाटक किया और फिर दूध का बर्तन अपनी रसोई में रख कर उसके साथ चल पड़ा।
मैंने एक बात नोटिस की कि रेणुका जी का नाम सुनते ही मेरी नज़र वन्दना की जवानी को भूल गई और उसकी मदमस्त चूचियों को इतने पास होते हुए भी बिना उनकी तरफ ध्यान दिए हुए रेणुका जी से मिलने की चाहत लिए उसके घर की तरफ चल पड़ा।
शायद रेणुका जी के गदराये बदन की कशिश ही ऐसी थी कि मैं सब भूल गया।

दरवाज़े से अन्दर घुसते ही सामने रेणुका एक गुलाबी रंग की साड़ी में खड़ी खाने की मेज पर नाश्ता लगाती नज़र आई।
गुलाबी रंग में उनका रूप और भी निखर कर सामने आ रहा था।
मैचिंग ब्लाउज वो भी बिना बाहों वाली… उफ्फ्फ… उनके कोमल और भरी भरी बाहें… और उन बाहों पे कन्धों से टपकता हुआ पानी… शायद वो अभी अभी नाहा कर निकलीं थीं तभी उनके बाल भीगे हुए थे और उनसे पानी टपक कर उनके कन्धों पे उनकी ब्लाउज को आधा भिगोये जा रहा था।
उम्म्म… कमाल का सेक्सी नज़ारा था… जी में आया कि उनके कन्धों पे टपकते पानी की एक एक बूँद अपने होठों से पी लूँ… और उनकी गोरी गोरी बाँहों को अपनी हथेलियों से सहला दूँ!
मेरे पहुँचते ही उन्होंने एक नज़र मेरी तरफ देखा और फिर अपनी नज़रें झुका कर मुस्कुराती हुई मुझे बैठने का इशारा किया।
उनकी आँखों में एक अजीब सी मुस्कान और शर्म भरी हुई थी… शायद मुझे देख कर उन्हें कल सुबह की बात याद आ गई हो !!
यह ख्याल मेरे मन में भी आया और मेरे बदन में भी यह सोच कर एक सिहरन सी उठी।
मैंने बिना कुछ कहे बैठ कर चुपचाप इधर उधर देखते हुए नाश्ते की प्लेट की तरफ अपना ध्यान लगाया।
कहीं न कहीं मेरे मन में यह ख्याल भी आ रहा था कि कहीं मेरी कल की हरकतों की वजह से वो मुझे किसी गलत तरह का इंसान न समझ बैठी हो…
शायद तभी आज वो खुद दूध देने नहीं आई…!!
यूँ तो मैं दिल्ली का एक खेला खाया लड़का हूँ लेकिन कहीं न कहीं अपने बिहारी खून के अन्दर मौजूद अपने बिहारी समाज की मान मर्यादाओं का ख्याल भी है मुझे…
और वो ख्याल ये कहता है कि हर औरत एक जैसी नहीं हो सकती… हर औरत बस लंड देख कर उसके लिए पागल नहीं हो जाती और न ही उसे लेने के लिए झट से तैयार हो जाती है।
इन ख्यालों को अपने मन में बसाये मैंने कोई उलटी सीधी हरकत न करने का फैसला लिया और चुपचाप खाने लगा।
मेरे सामने वन्दना भी बैठ कर नाश्ता करने लगी और अपनी बातूनी स्वाभाव के अनुसार इधर उधर की बातें करने लगी।
मेरा ध्यान उसकी बातों पे जा ही नहीं रहा था और मैं चोर नज़रों से रेणुका जी की तरफ चुपके चुपके देख लिया करता था।
रेणुका जी भी बिल्कुल सामान्य होकर हमें खिला रही थीं और बीच बीच में रसोई से गर्मा गर्म परांठे भी ला रही थीं।
हमने अपना नाश्ता ख़त्म किया और मेज से उठ गए।
‘अरे जरा रुकिए… थोड़ा जूस पी लीजिये… सेहत के लिए अच्छा होता है।’ रेणुका जी की मधुर आवाज़ मेरे कानों में पड़ी।
जब से मैं आया था तब से उनकी एक भी आवाज़ नहीं सुनी थी… और जब सुनी तो बस अचानक से उनकी आँखों में झांक पड़ा।
उनकी आँखें मुझे बड़ा कंफ्यूज कर रही थीं… उन आँखों में एक चमक और एक प्रेम भाव था जिसे मैं समझ नहीं पा रहा था.. यह उनकी शालीनता और शराफत भरे इंसानियत के नाते दिखाई देने वाला प्रेम था या उनके मन में भी कल सुबह के बाद कुछ दूसरे ही प्रेम भाव उत्पन्न हुए थे, यह कहना मुश्किल हो रहा था।
‘उफ्फ्फ… माँ, आपको पता है न कि मुझे जूस पसंद नहीं है… मुझे देर हो रही है और मैं कॉलेज जा रही हूँ…’ वन्दना ने बुरा सा मुँह बनाया और अपना बैग उठा कर दरवाज़े की तरफ दौड़ पड़ी।
‘अरे वन्दना थोड़ा सा तो पी ले बेटा… रुक तो सही… रुक जा…’
रेणुका जी उसके पीछे आवाज़ लगाती हुई दरवाज़े तक गईं लेकिन वन्दना तब तक जा चुकी थी।
‘यह लड़की भी न… बिल्कुल तूफ़ान हो गई है… बात ही नहीं सुनती।’ रेणुका मुस्कुराती और बुदबुदाती हुई वापस आई और मेरे नज़दीक आकर खड़ी हो गईं।
‘मैं भी चलता हूँ… काफी देर हो गई है…’ मैंने उनकी तरफ देखते हुए मुँह बनाया और ऐसा दिखाया जैसे मुझे जाने का मन तो नहीं है लेकिन मज़बूरी है इसलिए जाना पड़ेगा।
‘अरे अब कम से कम आप तो मेरी बात सुन लीजिये… ये बाप और बेटी तो मेरी कभी सुनते नहीं…!!’ वन्दना ने थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा और मेरा कन्धा पकड़ कर मुझे वापस बिठा दिया।
उनका हाथ मेरे कंधे पर पड़ा तो उस नर्म एहसास ने मेरे बदन में एक झुरझुरी सी पैदा कर दी और मैं मस्त होकर बैठ गया और उनकी तरफ देख कर हंसने लगा।
रेणुका जी ने जल्दी से फ्रिज से जूस का जग निकला और गिलास में जूस भरने लगीं।
मैं एकटक उनके चेहरे और फिर उनके सीने के उभारों को देखने लगा…
वन्दना को रोकने के लिए उन्होंने तेज़ क़दमों का इस्तेमाल किया था जिसकी वजह से उनकी साँसें तेज़ हो गई थीं और उसका परिणाम मेरी आँखों के सामने था।
जूस का गिलास भरते ही उन्होंने मेरी तरफ देखा तो मेरी नज़रों को अपने उभारों पे टिका हुआ देख लिया और यह देख कर उनका चेहरा फिर से शर्म से लाल हो गया और उन्होंने अपने निचले होठों को दांतों से काट लिया।
पता नहीं इस वक़्त मेरी मर्यादाओं को कौन सा सांप सूंघ गया था जो मैं बिना अपनी नज़रें हटायें उनके चेहरे की तरफ एकटक देखता रहा…
रेणुका जी भी मेरी आँखों में देखते हुए वैसे ही खड़ी रहीं और फिर धीरे से गिलास मेरी तरफ बढ़ा दिया।
हमारी नज़रें अब भी एक दूसरे पे टिकी हुई थीं.. और इसी अवस्था में मैंने हाथ आगे बढ़ा कर गिलास पकड़ा और सहसा मेरी उंगलियाँ उनकी उँगलियों से टकरा गईं।
एक नर्म और रेशमी एहसास… साथ ही साथ एक मचल जाने वाली फीलिंग.. मेरी उंगलियों ने उनकी उँगलियों को दबा दिया।
रेणुका जी ने जैसे ही अपनी उँगलियों पे मेरी उँगलियों का स्पर्श महसूस किया वैसे ही मानो झटका लगा हो और उन्होंने अपने हाथ खींच लिए..
और शरमा कर अपनी नज़रें फेर लीं।
मैंने एक सांस में पूरा जूस का गिलास खाली कर दिया और गिलास को उनकी तरफ बढ़ा दिया।
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04-12-2019, 12:27 PM,
#8
RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
इस बार उन्होंने सावधानी से बिना उँगलियों को छुए गिलास पकड़ लिया और ऐसे मुस्कुराई मानो उन्हें पता था कि मैं उन्हें छूने की कोशिश करूँगा और उन्होंने मुझे ललचाते हुए अपने आपको छूने से बचा लिया हो।
एक पल को हमारे बीच बिल्कुल ख़ामोशी सी छाई रही मानो वो मेरी प्रेमिका हो और मैं उनसे अपने प्रेम का इजहार करना चाहता हूँ लेकिन कुछ कह नहीं पा रहा…
बड़ी ही अजीब सी भावनाएँ उठ रही थीं मेरे मन में… शायद उनके मन में भी हो!
‘कल भी देर तक सोने का इरादा तो नहीं है न… कहीं आदत न बिगड़ जाए आपकी?’ रेणुका जी ने चुप्पी तोड़ते हुए उस स्थिति को सँभालते हुए कहा।
‘अगर आप हर रोज़ कल की तरह दूध पहुँचाने आयें तो मैं रोज़ ही देर से उठा करूँगा…’ मैंने लाख कोशिश करी थी लेकिन चांस मारने की आदत से मजबूर मैं यह बोल ही पड़ा।
‘हा हा हा… फिर तो आपकी सारी आदतें ही ख़राब हो जाएँगी समीर बाबू… !!’ रेणुका जी ने हंसते हुए ठिठोली करते हुए मुझे कहा और अपनी आँखों से मुझे एक मौन सा इशारा करने लगीं।
‘कोई बात नहीं रेणुका जी… हम अपनी सारी आदतों को बिगाड़ने के लिए तैयार हैं…’ मैंने उनकी तरफ अपने कदम बढ़ाये और उनसे लगभग सटते हुए कहा।
‘सोच लीजिये, फिर यह न कहियेगा कि हमारे यहाँ आकर आप बिगड़ गए?’ एक शरारत भरी हसीं के साथ उनकी इस बात ने मुझे यह यकीन दिला दिया कि शायद आग दोनों तरफ लगी हुई है।
मैंने उनके करीब जाकर बिना किसी हरकत के उनकी आँखों में झाँका और अपने दिल में उठ रहे अरमानों का इजहार करने की कोशिश करी… लेकिन बिना कुछ कहे।
मैं उनकी तरफ से अगले कदम का इंतज़ार करने लगा… लेकिन वो बस यूँ ही खड़ी मुस्कुराती रहीं… हाँ उनकी साँसें जरूर तेज़ चलने लगी थीं और उनके उभारों को ऊपर नीचे करके मुझे यह एहसास दिला रही थीं कि शायद रास्ता साफ़ है।
पर मैं थोड़ा रुका और ये सोचा कि थोड़ी और तसल्ली कर ली जाए… कहीं यह बस मजाक न हो… और मेरी किसी हरकत का उल्टा असर न हो जाए।
‘अब मैं चलता हूँ रेणुका भाभी… ऑफिस भी जाना है और काम भी बहुत है… फिर मिलेंगे।’ मैंने उनसे अलग होते हुए कहा और वापस मुड़ने लगा।
‘ठीक है समीर जी, अब तो रोज़ ही मिलना मिलाना लगा रहेगा…’ रेणुका ने मेरे पीछे से एक मादक आवाज़ में कहा, जिसे सुनकर मैंने फिर से उनकी तरफ पलट कर देखा और उन्हें मुस्कुराता हुआ पाया।
मेरा तीर निशाने पर लग रहा था। बस थोड़ी सी तसल्ली और… 
मैं बड़े ही अच्छे मूड में ऑफिस पंहुचा और फिर रेणुका के ख्यालों के साथ काम में लग गया… लेकिन जब सामने एक मदमस्त गदराया हुआ माल आपको अपनी चूत का स्वाद चखने का इशारा कर रहा हो और आपको भी ऐसा ही करने का मन हो तो किस कमबख्त को काम में मन लगता है… 
जैसे तैसे मैंने ऑफिस का सारा काम निपटाया और शाम होते ही घर की तरफ भागा।

घर पहुँचा तो अँधेरा हो चुका था और हमारे घर के बाहर हमारे पड़ोसी यानि अरविन्द भाई साहब अपनी पत्नी रेणुका और बेटी वन्दना के साथ कुर्सियों पे बैठे चाय का मज़ा ले रहे थे।
जैसे ही मैं पहुँचा, अरविन्द जी से नज़रें मिलीं और हमने शिष्टाचार के नाते नमस्कार का आदान-प्रदान किया।
फिर मुझे भी चाय पीने के लिए बुलाया और मैं उनके साथ बैठ कर चाय पीने लगा।
सामने ही रेणुका बैठी थीं लेकिन फिर उसी तरह बिल्कुल सामान्य… मानो जो भी मैं सुबह सोच कर और समझने की कोशिश करके दिन भर अपने ख्याली पुलाव पकाता रहा वो सब बेकार था।
या फिर पति के सामने वो ऐसा दिखा रही थीं मानो कुछ है ही नहीं!
वन्दना और अरविन्द जी के साथ ढेर सारी बातें हुई और इन बातों में बीच बीच में रेणुका जी ने भी साथ दिया।
मैंने थोड़ा ध्यान दिया तो मेरी आँखों में फिर से चमक उभर आई… क्योंकि रेणुका जी ने दो तीन बार चोर निगाहों से अपनी कनखियों से मेरी तरफ ठीक वैसे ही देखा जैसे वो सुबह देख रही थीं… 
अब मेरे चेहरे पर मुस्कान छा गई और मैं थोड़ा सा आश्वस्त हो गया।
काफी देर तक बातें करने के बाद हम अपने अपने घरों में चले गए और फिर रोज़ की तरह खाना वाना खा कर सोने की तैयारी…
लेकिन आज की रात मैं थोड़ा ज्यादा ही बेचैन था।
पिछले दो दिनों से चल रही सारी घटनाओं ने मुझे बेचैन और बेकरार कर रखा था। मैं कुछ फैसला नहीं कर पा रहा था कि क्या करूँ… 
हालात यह कह रहे थे कि रास्ता साफ़ है और मुझे थोड़ी सी हिम्मत दिखा कर कदम आगे बढाने चाहिए.. लेकिन दिल में कहीं न कहीं एक उलझन और झिझक थी कि कहीं मेरा सोचना बिल्कुल उल्टा न पड़ जाए और सारा खेल ख़राब न हो जाए!
अंततः मैंने यही सोचा कि अगर सच मच रेणुका जी के मन में भी कोई चोर छिपा है तो कल सुबह का इंतज़ार करते हैं और जानबूझ कर कल उठ कर भी सोने का नाटक करूँगा। अगर रास्ता सच में साफ़ है तो कल रेणुका जी खुद दूध लेकर आएँगी और फिर मैं कल अपने दिल की मुराद पूरी कर लूँगा…
और अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर अगले इशारे का इंतज़ार करूँगा।
इतना सोच कर मैंने अपने लंड महाराज को मुठ मरकर शांत किया और सो गया।
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04-12-2019, 12:27 PM,
#9
RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
योजना के मुताबिक सुबह मैं उठ कर भी बिस्तर पर लेटा रहा और घड़ी की तरफ देखता रहा।
लगभग साढ़े नौ से पौने दस के बीच दरवाज़े पर दस्तक हुई।
मैंने भगवन से प्रार्थना करनी शुरू कर दी कि रेणुका ही हो… 
दरवाज़ा खोला तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा… सामने रेणुका जी खड़ी थीं और उनके हाथों में दूध का पतीला था… बाल खुले हुए जैसे कि मैंने उन्हें हमेशा देखा था… होठों पर एक शर्माती हुई मुस्कान… सुबह की ताजगी उनके चेहरे से साफ़ झलक रही थी।
मैं बिना पलकें झपकाए उन्हें देखता ही रहा।
‘अब यहीं खड़े रहेंगे या यह दूध भी लेंगे… लगता है आपने फिर से रात को भूतनी देख ली थी और सो नहीं आप, तभी तो अब तक सो रहे हैं…’ रेणुका जी ने शर्म और शरारत भरे लहजे में कहा।
मेरी तन्द्रा टूटी और मैंने झेंप कर मुस्कुराते हुए दरवाज़ा पूरी तरह खोल दिया और सामने से हट कर उन्हें अन्दर आने का इशारा किया।
वो बिना कुछ कहे मुझसे सट कर अन्दर आ गईं और सीधे रसोई की तरफ जाने लगीं।
मैंने अब गौर से उन्हें जाते हुए देख कर महसूस किया की आज भी उन्होंने उस दिन की तरह ही एक गाउन पहन रखा था लेकिन आज वो सिल्क या नायलॉन की तरह रेशमी लग रहा था जो उनके पूरे बदन से चिपका हुआ था।
गौर से देख कर यह पता लगाना मुश्किल नहीं हुआ कि उस गाउन के नीचे कुछ भी नहीं है क्योंकि जब वो चल रही थीं तो उनके विशाल नितम्ब सिल्क के उस गाउन से चिपक कर अपनी दरार की झलक दिखला रहे थे।
मेरे कान गर्म होने लगे और लंड तो वैसे भी अभी अभी नींद से उठने की वजह से पूरी तरह से खड़ा था जैसे हमेशा सुबह उठने के बाद होता है। 
मैं भी रसोई की तरफ लपका और जानबूझ कर उनसे टकरा गया। पीछे से टकराने की वजह से मेरे लंड ने उनकी गाण्ड को सलामी दे दी थी।
रेणुका जी एक पल को ठहरी और पीछे मुड़कर मेरी तरफ शर्माते हुए देखने लगीं… फिर वापस मुड़कर कल के अपने पतीले को देखने लगीं जिसमें कल का दूध अब भी पड़ा था।
‘यह क्या… कल का दूध अब भी पड़ा है..आपने तो पिया ही नहीं…?!’ भाभी ने मेरी तरफ देखते हुए सवालिया चेहरा बनाया।
‘दरअसल मैं कल रात को भूल गया और पेट भर गया था सो खाने की इच्छा ही नहीं हुई।’ मैंने एक सीधे साधे बच्चे की तरह उन्हें सफाई दी।
‘हम्म्म… अब इतने सारे दूध का क्या करेंगे… बेकार ही होगा न !!’ भाभी ने चिंता भरे शब्दों में कहा।
‘नहीं भाभी आप चिंता मत कीजिये, मैं दूध का दीवाना हूँ… चाहे जितना भी दूध हो मैं बर्बाद नहीं होने देता। फिर यहाँ के दूध की तो क्या कहने… जी करता है बस सारा ही पी जाऊँ…!!’ मैंने गर्म होकर फिर से उन पर चांस मारते हुए उनकी चूचियों की तरफ देखा और बोलता चला गया।
रेणुका जी ने मेरी नज़रें भांप लीं और कमाल ही कर दिया… आज उन्होंने जो गाउन पहना था उसका गला पहले वाले गाउन से कुछ ज्यादा बड़ा था और उन्होंने अपनी दोनों बाहों को इस तरह कसा कि उनकी चूचियों की आधी गोरी चमड़ी मेरी आँखों के सामने थीं।
मेरे होंठ सूख गए और मैंने एक बार उनकी तरफ देखा।
आज उनके चेहरे पर शर्म तो थी लेकिन आँखों में चमक थी जो मैंने उनकी बेटी वन्दना की आँखों में देखा था… यानि वासना भरी चमक… 
‘फिर तो यह जगह आपके लिए ज़न्नत है समीर बाबू… यहाँ तो दूध की नदियाँ बहती हैं… और दूध भी इतना स्वादिष्ट कि सब कुछ भुला देता है।’ इस बार भाभी ने अपनी आवाज़ में थोड़ी सी मादकता भरते हुए कहा और एक गहरी सांस ली।
‘अब यह तो तभी पता चलेगा न भाभी जब कोई असली दूध का स्वाद चखाए… आजकल तो दूध के नाम पर बस पानी ही मिलता है।’ मैंने भी चालाकी से बातें बढ़ाते हुए कहा और दो अर्थी बातों में उन्हें यह इशारा किया कि जरा अपनी चूचियों से असली दूध पिला दें।
वो बड़े ही कातिल अदा के साथ मुस्कुराईं और इपनी आँखों को नीचे की तरफ ले गईं जहाँ हमेशा की तरह मेरा एक हाथ अपने लंड को सहला रहा था।
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04-12-2019, 12:28 PM,
#10
RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
वो देखते ही भाभी आँखें फाड़ कर मेरे लंड की तरफ देखने लगीं और फिर दूसरी तरफ मुड़ कर दूध का पतीला रखने लगीं।
‘अब असली दूध के लिए तो थोड़ी सी मेहनत करनी पड़ेगी…!!’ भाभी ने मुड़े हुए ही दूध रखते हुए दबी आवाज़ में कहा।
मैंने उनकी बात साफ़ सुन ली और धीरे से आगे बढ़ कर उनसे पीछे से सटकर खड़ा हो गया।
ऐसा करते ही मेरे खड़े लंड ने उनकी गाण्ड की दरारों में सिल्क के गाउन के ऊपर से अपना परिचय करवा दिया।
लंड के छूते ही भाभी को एक झटका सा लगा और वो एकदम से तन कर खड़ी हो गईं। उनके ऐसा करने से मेरा लंड उनकी दरार में थोड़ा सा दब गया और एकदम टाइट हो गया।
पता नहीं मुझमें कहाँ से हिम्मत आ गई और मैंने अपने दोनों हाथों को उनके दोनों कंधों पर रख दिए और उनके कानों के पास अपने होंठ ले जाकर धीरे से बोला- हम बहुत मेहनती हैं रेणुका जी… आप कहिये तो सही कि कब और कितनी मेहनत करनी है?
रेणुका ने कुछ भी नहीं कहा और अपने बदन को धीरे धीरे ढीला छोड़ दिया। हम दोनों का कद बिल्कुल इतना था कि मेरा लिंग उनकी गाण्ड की दरारों के ठीक ऊपरी हिस्से पर टिका था और उनके गोल गोल नितम्ब मेरी जाँघों से सटे हुए थे।
हम थोड़ी देर तक वैसे ही खड़े रहे और किसी ने कुछ नहीं कहा।
मेरे हाथ अब भी उनके कन्धों पर ही थे और अपना दबाव धीरे धीरे बढ़ा रहे थे।
हम दोनों ही तेज़ तेज़ साँसें ले रहे थे और मैं रेणुका जी को अपनी तरफ खींच रहा था।
वो भी बिना कुछ कहे पीछे से मेरी तरफ सिमट रही थी और जाने अनजाने अपने चूतड़ों को मेरे लंड पर दबाती जा रही थीं।
मैंने अपने हाथों को धीरे से आगे की तरफ सरकाया और उनकी मखमली चूचियों के ऊपर ले गया।
जैसे ही मेरे हाथों का स्पर्श उनकी चूचियों पर हुआ, उन्होंने अपनी गर्दन मेरे कंधे पर टिका लीं और अपनी साँसें मेरे गले पर छोड़ने लगीं।
उफ्फ… वो मखमली एहसास उन चूचियों का… मानो रेशम की दो गेंदों पर हाथ रख दिया हो।
मैंने धीरे से उनकी दोनों चूचियों को सहलाने के लिए अपने हाथों का दबाव बढ़ाया ही था कि अचानक से किसी के आने की आहट सुनाई दी।
‘माँ… माँ… आप यहाँ हो क्या?’ वन्दना चीखती हुई दरवाज़े के बाहर आ गई।
हम दोनों को एक झटका लगा और हम छिटक कर एक दूसरे से अलग खड़े हो गए… हमें काटो तो खून नहीं।
लेकिन जल्दी ही रेणुका जी ने हालत को संभाला और रसोई में अचानक से चाय का बर्तन उठा लिया और बाहर की तरफ निकलीं…
‘अरे वन्दना तुम तैयार हो गईं क्या… देखो न समीर जी अभी अभी उठे हैं और उनकी तबियत भी ठीक नहीं है इसलिए मैं उनके लिए चाय बना रही थी।’
रेणुका जी एक कुशल खिलाड़ी की तरह उस हालात को सँभालते हुए वन्दना को समझाने लगी और मेरी तरफ ऐसे देखने लगीं मानो सच में उन्हें मेरी चिंता है और वो मेरी मदद करने जा रही थीं, मानो अभी अभी जो कुछ होने जा रहा था वो कभी हुआ ही नहीं।
मैं उनके इस खेल से बहुत प्रभावित हुआ। इतनी समझ तो बस दिल्ली की खेली खाई चुदक्कड़ औरतों में ही देखी थी लेकिन आज पता चला कि चूत रखने वाली हर औरत अपनी चुदाई के लिए हर तरह की समझदारी रखती हैं… फिर चाहे वो बड़े बड़े शहरों की लण्डखोर हों या छोटे शहरों की शर्माती हुई देसी औरतें !
‘अरे… क्या हुआ समीर जी को?’ वन्दना यह कहते हुए अन्दर आ गई और मुझे रसोई के बाहर पसीने में भीगा देखते हुए तुरन्त मेरे पास आ गई और मेरा हाथ पकड़ कर मेरी नब्ज़ टटोलने लगी मानो मेरा बुखार चेक कर रही हो।
अभी थोड़ी देर पहले ही मैं उसकी माँ की चूचियों को सहला रहा था जिस कारण से मेरा शरीर गर्म हो गया था… यह गर्मी उसने महसूस की और अपने चेहरे पर चिंता के भाव ले आई।
‘हाँ माँ, इन्हें तो सच में बुखार है।’ वन्दना ने अपनी माँ की तरफ देखते हुए कहा।
‘मैंने तो पहले ही कहा था कि इनकी तबियत ठीक नहीं है।’ रेणुका जी ने वन्दना को जवाब दिया।
‘फिर तो आप आज इनका खाना भी बना देना और देखना कि ये बिस्तर से नीचे न उतरें।’ वन्दना ने अपनी माँ को हिदायत देते हुए मेरी तरफ दुखी शक्ल बनाकर कहा।
‘तू चिंता न कर वन्दना, मैं इनका पूरा ख्याल रखूँगी… आखिर ये हमारे पड़ोसी हैं और हमारा फ़र्ज़ बनता है कि हम इन्हें कोई तकलीफ न होने दें।’ रेणुका ने वन्दना को समझाते हुए कहा।
‘अगर आज हमारा पिताजी के साथ बाहर जाने का प्लान न होता तो मैं खुद इनकी सेवा करती… ‘ वन्दना ने बड़े ही भावुक शब्दों में कहा और अपनी माँ की तरफ लाचारी भरी निगाहें डालीं।
‘कोई बात नहीं बीटा… तुम अपने पिताजी के साथ जाओ और कल शाम तक लौट आना… जब तक तुम वापस आओगी मैं समीर जी को बिल्कुल ठीक कर दूँगी।’ रेणुका जी ने वन्दना को दिलासा दिलाते हुए कहा और एक बार मेरी तरफ शरारती अंदाज़ में देख कर मुस्कुराई।
मैं मुस्कुराने लगा और वन्दना को मेरी इतनी चिंता करने के लिए धन्यवाद दिया।
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