bahan sex kahani दो भाई दो बहन
04-10-2019, 04:19 PM,
#8
RE: bahan sex kahani दो भाई दो बहन
8

रोमा ने अपनी एक टांग उठा कर राज के उपर रखते हुए कहा, "राज

मुझे पर एक कहानी लिखो, एक दम गंदी तुम्हारे जो दिल चाहे लिखो,

मेने तुम्हारा हर सपना हर ख़याल पूरा करूँगी."

"ज़रूर लीखूंगा रोमा....." कहकर राज ने उसे अपनी बाहों मे भर

लिया.

दोनो अंधेरे मे एक दूसरे की उखड़ी सांसो की आवाज़ को महसूस कर रहे

थे. आज वो खुस था कि अब उसे काग़ज़ पर लिख कर अपने ख़यालों को

तलब की गहेराइयों मे नही फैंकना पड़ेगा, कोई तो है जिसके साथ वो

उन ख़यालों को बाँट सकता है.

अब आगे की कहानी.................................

जय अपनी बड़ी बेहन रिया को गाड़ी की ड्राइवर सीट पर बैठते देख

रहा था. रिया आज ब्लॅक जीन्स और टॉप मे काफ़ी सुंदर लग रही थी.

उसके बगल मे पॅसेंजर सीट पर बैठते हुए उसने एक सरसरी निगाह

रिया पर डाली. उसकी स्लीवेलेस्स टॉप के बगल से उसकी चुचियों का

कटाव दिखाई दे रहा था. उसकी भारी भारी चुचियों का उभार देख

उसके दिल मे हलचल होने लगी.

"आज तो मज़ा आ गया." रिया ने गाड़ी स्टार्ट करते हुए कहा.

"हां मज़ा तो आया," जय ने कहा.

रिया ने गाड़ी राज के घर से बाहर निकाल अपने गहर की ओर बढ़ा दी.

थोड़ी देर गाड़ी मे बिल्कुल शांति छाई रही. कोई किसी से कुछ नही

कह रहा था. जय रिया की चुचियों को घूरे जा रहा था जो उसके

शरीर के साथ साथ हिल रही थी.

रिया जानती थी कि जय उसकी चुचियों को घूर रहा है पर उसने

कुछ कहा नही. उसे ये अहसास था कि आज राज के साथ जाकर उसने जय

को एक दम अकेला छोड़ दिया था शायद वो उसी बात को लेकर नाराज़

था.

"तुम और राज कहाँ गायब हो गये थे?" आख़िर मे जय ने अपनी बेहन

से पूछ ही लिया, वैसे तो वो जानता था लेकिन फिर भी वो रिया के मुँह से

सुनना चाहता था.

"हम दोनो अलाव के लिए लकड़ियाँ ढूँढने गये थे." रिया ने अपने

कंधे उचकाते हुए कहा.

"नही तुमने उससे ज़्यादा कुछ किया था," जय अपनी बात पर ज़ोर देता

हुआ बोला, "क्या हुआ वहाँ पर?"

"तुम मेरे भाई हो और भाई बनकर रहो, बाप बनने की कोशिस मत

करो. तुम्हे इससे कोई मतलब नही होना चाहिए कि मेने क्या

किया.....समझे तुम. हम दोनो एक दूसरे के साथ दो चार बार क्या सो

लिए तुम तो मुझे अपनी जागीर समझने लग गये..... मेरे और भी

कई बॉयफ्रेंड है मालूम है ना तुम्हे." रिया ने उसे डाँटते हुए कहा.

"हां....मुझे मालूम है." जय ने शिकायत करते हुए कहा, "लेकिन

राज मेरा सबसे अच्छा दोस्त है... फिर उसके साथ क्यों?"

"पता नही बस हो गया जैसे तुम्हारे और मेरे बीच पहली बार हुआ

था." रिया इससे ज़्यादा कुछ नही कह पाई. "आख़िर तुम्हारी परेशानी

क्या है?"

"आज की रात से पहले तुम पूरे हफ्ते मुझे नज़र अंदाज़ करती आई

और आज तुम राज के साथ चली गयी." जय ने अपनी परेशानी

बताई, "सुबह तुम फिर कॉलेज के लिए चली जाओगी, तुम्हे मालूम है

में तुम्हे कितना मिस कर रहा हूँ. मैने तो सोचा था कि आज की रात

हम साथ साथ रहेंगे."

रिया की समझ मे आ रहा था कि जय क्या कहना चाहता है, "मैं

माफी चाहती हूँ छोटे भैया, और में भी तुम्हे मिस कर रही थी.

लेकिन जिंदगी हमारी सोच के अनुसार तो नही चलती हमे जिंदगी के

अनुसार चलना पड़ता है."

"अब ये छोटे भैया बुलाना बंद करो समझी में कोई अब भी छोटा

बच्चा नही हूँ." जे गुस्से मे बिफर पड़ा.

"ठीक है जाई. बताओ में क्या करूँ, जिससे तुम्हे खुशी मिल सके."

रिया ने कहा.

"अभी भी मेरे पास कुछ सिग्रेट और बियर के टीन पड़े है, हम फिर

से तालाब किनारे जाकर अपनी अलग पार्टी मना सकते हैं फिर देखो

क्या होता है." जय ने कहा.

"देखो क्या होता है?" रिया ने अपने आप से पूछा. उसे पता है कि क्या

होने वाला है जो होना है वो तो उसकी पॅंटी के अंदर छुपा हुआ है.

"अगर तुम्हारा दिल चलने का है तो गाड़ी यहाँ से दाईं तरफ मोड़

लो." जय ने कहा.

"मुझे पता है कि वहाँ कैसे पहुँचा जाता है, हां एक बात और

आज की रात अच्छी तरह बिहेव करना ये रात हमारे बीच आखरी रात

होगी. दूसरी बात ये बात बात पर जलना छोड़ो और अपने लिए कोई

अछी सी गिर्ल्फ्रेंड ढूंड लो जिसे तुम जब चाहे चोद सको हर बार

अपनी बेहन के भरोसे मत रहो समझे." रिया ने लगभग उसे समझाते

हुए कहा.

रिया की बात सुनकर उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया. उसने रिया के

बालों को पकड़ा और मरोड़ने लगा.

जय की इस हरकत से रिया के हाथो से गाड़ी का बॅलेन्स बिगड़ गया,

बड़ी मुश्किल से उसने गाड़ी को संभाला.

"लगता है तुम्हे फिर से मार खाने का शौक उठा है, जब जब ऐसी

बात करोगी फिर से बेल्ट की फटकार पड़ेगी." जय उसके बालों को

मरोदते हुए बोला.

रिया को अहसास हुआ कि वो कुछ ज़रूरत से ज़्यादा ही जय को बोल गयी

थी. इसलिए उसने कुछ नही कहा और अपने नीचले दांतो को चबाते

हुए गाड़ी तालाब के किनारे रोक दी. उसने एंजिन बंद कर दिया और

लाइट भी बुझा दी. अब गाड़ी मे पूरी तरह अंधेरा था, कुछ था तो

उनकी सांसो की हल्की हल्की आवाज़.

"जय.... चलो सिग्रेट जलाओ जिससे थोड़ा नशा हो जाए..." रिया

बात को संभालने के हिसाब से बोली, किंतु जय तो कुछ और ही चाहता

था... उसने रिया की बात को अनसुना कर दिया.

"नही आज तो पहले तुम्हे तुम्हारी बातों के लिए सज़ा मिलेगी." जय ने

कहा.

जय को अपने पिताजी के बरसों पहले कही हुई बात याद आ गयी. एक

दिन जब वो खाने के टेबल पर बैठे थे तो उसके पिता ने उसके कान

मे फुसफुसाते हुए कहा था, "बेटा कभी भी जिंदगी मे किसी औरत को

अपने पर हावी मत होने देना. ये मर्दों का काम है कि औरत को उसकी

औकात बताए, औरत की जागह हमेशा पैरों मे रहती है और

रहेगी."

वैसे जे बचपन मे बहोत नरम दिल का था लेकिन उसके बाप की इस

बात ने उसे गुस्से वाला बना दिया था. लेकिन उसके पिता भी ज़्यादा दिन

उनके साथ नही रह पाए थे, उसकी मा से झगड़ा कर चले गये

कभी वापस ना आने के लिए.

"आज तुमने अपनी हद की हर सीमा को पार कर दिया है और में तुम्हे

बता के रहूँगा कि तुम्हारी सही जगह क्या है." जय ने फिर गुस्से मे

कहा.

रिया का दिल घबरा गया, उसे जय के शब्दों मे अपने बाप की छवि

नज़र आने लगी. उसे पता था क़ि जय को कैसे रोकना चाहिए पर उसने

किया कुछ नही क्योंकि यही तो उनके खेल का हिस्सा था.

जय ने गाड़ी के स्टर्रिंग व्हील को इस कदर उठा दिया कि वो उनके बीच

से थोड़ा हट जाए. फिर उसने रिया की टाँगो से पकड़ उसे सीट पर पेट

के बल लिटा दिया.

उसने अपना हाथ रिया के नीचे कर उसकी जीन्स के बटन खोले और ज़िप

को नीचे कर उसकी जीन्स के साथ साथ उसकी पॅंटी को भी नीचे

खिसका दिया. जब उसके चूतड़ पूरी तरह नंगे हो गये तो उसे रिया

की दर्द सी भरी कराहें सुनाई देने लगी.

जय ने अपने पॅंट की बेल्ट खोल कर निकाल ली. फिर उसे दोहरा कर रिया

को सज़ा देने के लिए तैयार हो गया.

"प्लीस जय ऐसा मत करो...." रिया गिड़गिदते हुए बोली, "देखो तुम जो

कहोगे में करने को तैयार हूँ, क्यों ना हम पार्टी मनाए और मस्ती

करें."

"हम मस्ती ही तो कर रहे है," जय ने उसे याद दिलाते हुए कहा.

"हां कर तो रहे है," रिया ने धीरे से कहा, वो अपने आप को कोसने

लगी कि क्यों पूरे हफ्ते भर वो जय को नज़र अंदाज़ करती रही अगर

पहले ही उस पर ध्यान दिया होता तो कम से कम आज की रात इस मार

से तो बच जाती.

रिया को अपने आप पर इस तरह गाड़ी के अंदर अपने चूतड़ नंगे किए

लेटने मे शरम आ रही थी. उसे अपने आप पर गुस्सा भी आ रहा था

कि क्यों वो अपने भाई को इस तरह उस पर ज़्यादती करने दे रही थी.

क्यों उसने शुरू से जय को नही रोका जब उसने पहली बार उसे छुआ था.

उसे लग रहा था कि दिन पर दिन जय ठीक उसके बाप की तरह ही होता

जा

रहा है, ठीक वही गुस्सा वही चिड़चिड़ा पन.

तभी जय का दायां हाथ उठा और एक हवा के झोके की तरहा उसके

चूतदों पर आया. बेल्ट के बकल की आवाज़ जोरों से गूँजी और उसके

शरीर मे एक दर्द की लहर सी दौड़ गयी. रिया ने दर्द के मारे अपने

दाँत गाड़ी की सीट मे गढ़ा दिए और दर्द से कराहने लगी. पर जय ने

फिर दूसरा वॉर किया और रिया हल्के से चीख पड़ी. वो रिया को सांस

भी लेने नही दे रहा था.

"बस जय बहोट हो गया...." रिया ने अपने भाई से कहा.

पर जय था की उसे मारता गया, रिया की आँखों से आँसू निकल रहे

थे. आख़िर जय ने तक कर बेल्ट खिड़की के बाहर फैंक दी. गुस्से मे

जय गाड़ी के बाहर आ गया उसकी खुली पंत उसके पैरों मे जेया गिरी.

"तुम बहोत गंदी हो रिया,,,,,,बहोत गंदी...." जय ने गुस्से मे

लगभग चीखते हुए कहा.

"अब क्या हुआ ये तो बताओ?" वो ज़ोर से जवाब देते बोली. वो अपनी जगह

से उठी और गाड़ी के बाहर आते हुए बोली. उसने अपनी जीन्स और पॅंटी

वापस उपर चढ़ ली और अपने सूजे हुए चूतदों को छुपा लिया.

जय फिर से एक बार उसे मारने के लिए दौड़ा, जैसे कि उसे झप्पड़ मार

देगा, रिया ने अपने आपको झुक कर बचा लिया.

"जय तुम पिताजी नही हो जो उनकी जगह लेने की कोशिश कर रहे

हो..... ना जाने तुम ऐसे क्यों बिहेव कर रहे हो मेरी तो कुछ समझ

मे नही आ रहा." रिया ने कहा.

जय ने पलट कर रिया के पीछे देखा. चाँद की रोशनी ठीक उसके

चेहरे पर पड़ रही थी जिससे उसका सुंदर चेहरा जगमगा रहा था.

उसका सुंदर चेहरे को देख उसका गुस्सा ठंडा पड़ता गया. जय उसकी

और बढ़ा तो रिया अपने आपको उससे बचाने के लिए पीछे की ओर

खिसकी लेकिन वो गाड़ी के बॉनेट से टकरा उसपर लगभग लुढ़क सी

गयी.

उसके सूजे हुए चूतड़ गाड़ी की ठंडी बॉडी से टकराए तो दर्द के मारे

उसके मुँह से कराह निकल गयी.

"क्यों कि में तुमसे प्यार करता हूँ." उसने फुसफुसाते हुए कहा और

अपने होंठ रिया के होठों पर रख उन्हे चूसने लगा.

जय ने जो कुछ किया था उससे रिया को जय से नफ़रत होने लगी थी

लेकिन उसके होठों का स्पर्श अपने होठों पर पाकर उसका दिल पिघल

गया. जय ने उसके मुँह को खोल अपनी जीभ उसके मुँह मे घुसाने की

कोशिश की तो रिया ने अपना मुँह खोल दिया और उसकी जीभ से अपनी

जीब मिला दी.

"ओह जय......." रिया जय से लिपट गयी और जोरों से उसकी जीब

और होठों को चूसने लगी. उत्तेजना गुस्से पर हावी हो गयी थी.

जैसे ही जय ने उसकी जीन्स और पॅंटी को खिसका कर नीचे किया रिया

ने पाऔ मे पहनी सॅंडल को पैरों से दूर छितका कर फैंक दिया.

रिय ने गाड़ी के बॉनेट पर लेटे हुए अपने पैर फैला दिए. चूत से

रिस्ते पानी की बूंदे उसकी काली झांतो पर चाँद की रोशनी मे किसी

ऑश की बूँद की तरह चमक रही थी.

"मेरे भाई प्लीज़ मुझे प्यार करो ना....." रिया मादकता की लौ मे

बहती हुई बोली, "मुझे तुम्हारे लंड को अपनी चूत मे महसूस करना

है जे."

"रिया जिस तरह तुम रोमा को देख रही थी ना मेने देखा था," जय

अपनी पॅंट के बटन खोलता हुआ बोला, "में जानता हूँ कि तुम भी

उसकी चूत का स्वाद उतना ही चखना चाहती हो जितना की में."

"हां.... जय बहोत इच्छा है उसकी चूत को चूसने की....बड़ी

प्यारी चूत होगी उसकी..." रिया ने कहा.

"अगली बार हम दोनो उसकी चूत का स्वाद साथ साथ चखेंगे." जय ने

कहा.

जय ने अपने खड़े लंड को अपने अंडरवेर से आज़ाद किया. रिया ने

निगाहें झुका कर अपने भाई के लंड को देखा और गाड़ी के बॉनेट पर

अच्छी तरह लेट गयी और अपनी टाँगो को और फैला दिया. जय अपनी

बेहन की टाँगो के बीच आया और अपने लंड को उसकी चूत पर घिसने

लगा. फिर उसकी चूत को अपनी उंगलियों से थोड़ा फैला उसने अपना लंड

अंदर घुसा दिया.

क्रमशः..................
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