Hindi Kahani बड़े घर की बहू
06-10-2017, 03:33 PM,
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
रूपसा और मंदिरा एक साथ गुरुजी के पास खड़ी हो गई थी और गुरु जी के हाथों को अपनी जाँघो पर महसूस करने लगी थी . रूपसा और मंदिरा एक साथ कामया की ओर पलटी थी कामया वही किसी माडेल की तरह खड़ी थी अब तक जैसे उसे किसी ने स्टॅच्यू कर दिया था पर नजर गुरु जी की हथेलियों की ओर ही थी रूपसा और मंदिरा की गोरी गोरी जाँघो को गुरुजी बहुत ही प्यार से सहलाते हुए अपनी दोनों बाहों को उनकी कमरा पर कस लिया था और अपने गाल को उसके पेट पर रखकर घिसने लगे थे कामया खड़ी-खड़ी गुरु जी को देखती रही उसके अंदर एक ईर्ष्या जाग उठी थी उसके सामने ही गुरु जी जिस प्रकार दोनों को प्यार कर रहे थे और उसे नजर अंदाज कर रहे थे वो उसे अच्छा नहीं लगा था वो तो यह सोचकर आई थी कि गुरु जी उसके साथ कुछ करेंगे पर यहां तो बात ही उल्टी निकली थी कामया खड़े-खड़े थक गई थी और जिस तरह वो खड़ी थी उसे आदत नहीं थी और अपने सामने जिस तरह का खेल गुरु जी और वो दोनों महिलाए खेल रही थी वो भी उसे अच्छा नहीं लग रहा था इतने में गुरु जी ने कहा -

गुरु जी- बैठो सखी खड़ी क्यों हो 

कामया ने एक बार आस-पास देखा पर वहाँ सिवाए गुरु जी के आसान के अलावा कुछ नहीं था और वहां तो यह खेल चल रहा था वो खड़ी-खड़ी सोच ही रही थी की 

गुरु जी- बैठो सखी यहां बैठो हमारे पास तुम अब निखर रही हो बस थोड़ा सा और जरूरत है रूपसा और मंदिरा बहुत अच्छी और कर्तव्यनिष्ठ शिष्या है 
कहते हुए गुरु जी ने अपने एक हाथ से उसकी कलाई पर कस लिया था गरम-गरम हाथों के स्पर्श से एक बार तो कामया उत्तेजित हो उठी पर हल्के से मुस्कुराती हुई गुरु जी के पास ही बैठ गई थी उसके सामने मंदिरा थी और साइड में गुरु जी गुरु जी के दूसरे साइड में रूपसा थी धीरे-धीरे दोनों के ड्रेस खुलने लगे थे एक-एक अंग निखारा हुआ था दोनों का रंग के साथ-साथ मादकता टपक रहा था उनके शरीर पर गुरु जी का हाथ जैसे-जैसे उनके शरीर पर घूम रहा था वो दोनों एक साथ गुरु जी से और ज्यादा छिपकने की कोशिश करती जा रही थी कामया अपने सामने होते इस खेल को बहुत नजदीक से ना सिर्फ़ देख रही थी और अपने अंदर की उत्तेजना को किसी तरह से दबाए हुए थी कामया के देखते-देखते वो खेल आगे बढ़ने लगा था 

गुरु जी भी जिस तरह से उन महिलाओं को छेड़ रहे थे उससे कामया के शरीर में आग भड़क रही थी रूपसा उसके बिल्कुल सामने खड़ी थी और गुरु जी के हाथ उसके सामने रूपसा के नितंबों को छूते हुए ऊपर की ओर उठ रही थी रूपसा सिसकारी भरती हुई गुरु जी की ओर मूड गई थी कामया बहुत नजदीक से रूपसा के शरीर को देख रही थी गोरा रंग और बेदाग शरीर की मालकिन थी वो बालों से भरे हुए हाथ गुरु जी के उसके शरीर के रोमो को छूते हुए ऊपर उसकी चुचियों की ओर बढ़ चले थे उसकी चूचियां भी आगे की ओर तनी हुई थी और उसकी सांसों के साथ-साथ ऊपर-नीचे हो रही थी कामया अपनी सांसों को किसी तरह से कंट्रोल किए हुए ना चाहते हुए भी उसका हाथ उठ कर रूपसा के शरीर को स्पर्श कर ही गया था उसकी कमर पर बहुत ही हल्के और नाजुक तरीके से जैसे उसे डर था कि कही उसे पता ना चल जाए पर उसके हाथ जैसे ही रूपसा की कमर पर टकराए थे गुरु जी के साथ साथ रूपसा ने भी एक बार कामया की देखा और फिर वही उत्तेजना भरी सिसकारी लेती हुई रूपसा अपने आप में घूम हो गई थी पर गुरु जी .........

गुरुजी- अपने आपको सम्भालो सखी इस खेल में आपने आपको जितना तुम कंट्रोल करोगी उतना ही तुम एश्वर्य को प्राप्त करोगी और तुम उतना ही कामुक और दर्शनीय बनोगी 

कामया- … 
कामया कुछ ना कह पाई थी पर अपने हाथों को वापस खींच लिया था और बैठी बैठी रूपसा को और पास में मंदिरा को भी देखती रही अपने मन को किसी तरह से मनाने की कोशिश करती रही पर मन के साथ-साथ शरीर भी अब जबाब देने लगा था वो अपने आपको संभालती क्या वो तो उस खेल का हिस्सा बनने को तैयार थी बस एक शरम और झीजक के रहते वो रुकी हुई थी एक नजर गुरु जी की ओर डालते ही उसका हाथ वापस रूपसा पर चला गया था उसकी कमर पर और धीरे धीरे उसे सहलाती हुई दूसरे हाथ को गुरु जी के कंधों पर भी रख दिया था और गुरु जी से सट्ने की कोशिश करने लगी थी गुरु जी की नजर एक बार कामया की ओर उठी थी और हल्के से मुस्कुराते हुए अपने खेल में लगे रहे रूपसा को तो जैसे फरक ही नहीं पड़ा था वो खड़ी हुई सिर को ऊँचा किए हुए गुरु के हाथों का मजा लेती रही और आगे बढ़ कर अपने शरीर के निचले हिस्से को गुरु जी के कंधों पर और सीने पर रगड़ने लगी थी मंदिरा का भी यही हाल था दोनों उत्तेजना से भरी हुई थी और सांसो के साथ-साथ अब तो उनके मुख से अलग अलग आवाजें भी निकलने लगी थी 

रूपसा- और करो गुरु जी आज तो आपके स्पर्श में कोई जादू हो गया है 

मंदिरा - बस गुरुजी अब और नहीं रहा जाता अब तो कृपाकर दो 
और कहते हुए मंदिरा झट से नीचे बैठ गई थी और गुरुजी की धोती को खींचती हुई अलग करने लगी थी गुरुजी के होंठों पर वही मधुर मुश्कान थी और अपने पास बैठी कामया की ओर देखते हुए अपने होंठों को उसकी ओर बढ़ा दिया था कामया एक टक मंदिरा की देख रही थी रूपसा भी अब बैठ गई थी पर अचानक उसने गुरुजी को अपनी ओर हुए देखते हुए देखा तो वो थोड़ा सा सिहर गई थी उत्तेजित तो वो थी ही पर गुरुजी की ओर देखते ही उसे गुरु जी की ओर से जो निमंत्रण मिला था वो उसे ठुकरा नहीं सकी झट से अपने होंठों को उनके होंठों पर रख दिया था और धीरे-धीरे उनके होंठो को अपने होंठों से दबाए हुए चूसती रही अपनी जीब से उनके होंठों को चूसती रही उसकी पकड़ गुरुजी के कंधों पर कस्ती रही और पास बैठी रूपसा के सिर पर भी उसकी गिरफ़्त कस गई थी रुपसा और मंदिरा अपने काम में लग गई थी गुरुजी के लिंग को पकड़कर बारी- बारी से चूसते हुए अपने चुचों को गुरु जी के पैरों पर घिसते हुए अपने हाथों को उनके सीने तक घुमाने लगी थी 

कामया अपने पूरे मन से गुरु जी के होंठों का रस पान करने में जुटी हुई थी उसे किसी बात की चिंता नहीं थी और नहीं कोई डर था वो एक बिंदास लड़की की तरह अपने काम को अंजाम दे रही थी पास बैठी हुई रूपसा और मंदिरा क्या कर रही है उसे पता नहीं था पर उसे तो सिर्फ़ गुरु जी से ही मतलब था वो चाहती थी कि गुरु जी जिस तरह से रूपसा और मंदिरा को छू रहे है उसे भी छुए पर गुरु जी के हाथ अब भी उनके सिर पर और कंधों पर घूम रहे थे कि अचानक ही उसका हाथ गुरु जी हाथों से टकराया था रूपसा के सिर पर एक ही झटके में कामया ने उनके हाथों को अपनी हाथों में दबा लियाया था और खींचती हुई अपनी जाँघो पर लाकर रख दिया था गुर जी ने भी कोई आपत्ति नहीं किया था और धीरे-धीरे कामया की जाँघो को सहलाने लगे थे 


कमी अत्ोड़ा सा आतुर हो उठी थी वो अपने दूसरे हाथों को रूपसा के सिर पर से हटते हुए गुरु के साइन पर रखती हुई उन्हें अपनी और खींचने लगी थी और धीरे-धीरे गुरु जी के दूसरे हाथ की औ र्बाद रही थी पर वो थोड़ा सा दूर था मंदिरा के शरीर का अवलोकन करते हुए पर वो हरी नहीं गुरुजी के साइन को बड़े ही प्यार से सहलाती हुई अपने होंठों को उसके होंठों से जोड़े हुए गुरु जी के साइन पर धीरे से अपने नाखून को गड़ा दिया था अचानक ही हुए इस तरीके के हमले को गुरु जी नहीं समझ पाए थे और वो हाथ जो की मंदिरा के ऊपर था उससे उन्होंने कामया के हाथों पर रख दिया था बस कामया यही तो चाहती थी झट से उस हाथ पर भी कब्जा कर लिया था उसने और खींच कर अपनी चुचियों पर ले आई थी अब उसके चुंबन का तरीका भी बदल गया था काफी उत्तेजक और अग्रेसिव हो गई थी वो नीचे बैठी हुई रूपसा और मंदिरा भी यह सब देख रही थी और एक विजयी मुश्कान थी उनके चेहरे पर कामया ने यह सब नहीं देखा था 

कामया अपने हाथों के दबाब से गुरु जी के हाथों को अपनी चुचियों से हटाने नहीं दे रही थी और एक हाथ से गुरु को खींच कर अपने होंठों से जोड़े रखा था कि उसे गुरु जी की आवाज अपने मुख के अंदर सुनाई दी थी 

गुरु जी- रूको सखी रूको इतना आतुर ना हो अभी बहुत कुछ देखना और जानना है आपको देखो रूपसा और मंदिरा भी तो है हम तो सबके है और सब हमारे है आओ तुम्हें कुछ दिखाना है कहते हुए गुरु जी ने एक बार उन दोनों की ओर देखा और इशारा किया 

गुरु जी- आओ रूपसा मंदिरा हमारी सखी को दिखाओ कि तुम क्या कर सकती हो जाओ और वो खेल खेलो 
रूपसा और मंदिरा एक झटके से उठी और अपने कपड़ों को उठाकर गुरु जी की ओर देखने लगी थी कामया अपने हाथों के बीच में गुरु जी को पकड़े हुए दोनों की ओर देखती ही रह गई थी कि गुरु जी ने भी अपनी धोती बाँध ली थी और कामया को उठने को कहा 

गुरु जी- आओ सखी तुम्हें कुछ दिखाना है 

कामया वैसी ही उठ गई थी उत्तेजना से भरी हुई थी वो उसे बड़ा ही अजीब लग रहा था कि गुरु जी आज क्या करने वाले है रूपसा और मंदिरा जो कि अभी इतनी उत्तेजित लग रही थी इतना नार्मल कैसे हो गई थी वैसे ही बिना कपड़ों के खड़ी थी कोई शरम या हया नहीं थी उनमें खड़ी-खड़ी कामया की ओर मुस्कुराती हुई देख रही थी कामया भी उठकर उनके साथ चल दी थी 

गुरजी के दोनों ओर रूपसा और मंदिरा थी और कामया पीछे थी घुमावदार गोल गोल नितंब उसके सामने बलखाते हुए चल रहे थे कितना सुंदर और कामुक सीन था वो और गुरु जी उसके दोनों कंधों पर अपनी बाँहे रखे उसे कमरे से लगे दूसरे कमरे की ओर चल दिए थे वहां अंधेरा था पर दिख रहा था बिल्कुल साफ सुथरा और कोई आवाज नहीं थी एक आसान भी था वो शायद गुरु जीके बैठने की जगह थी वो कमरे में आते ही रूपसा आगे बढ़ी और एक स्विच को ओन कर दिया था और एक परदा को खींचकर एक दीवाल से हटा दिया था पर्दे के हट-ते ही कामया की आखें फटी की फटी रह गई थीदूसरे कमरे का हिस्सा दिख रहा था 

कमरे में हल्की सी रोशनी थी और बहुत से मर्द और औरत बिल्कुल रूपसा और मंदिरा जैसी हालत में ही थे पर सिर पर मास्क चढ़ा हुआ था बस होंठों की जगह और नाक की जगह खाली थी और शायद आँखों पर भी कुछ थोड़ा बहुत ढका हुआ था क्योंकी उनको देखकर लगता था कि उन्हें साफ नहीं दिख रहा होगा पर लगे थे एक ही काम में बस जो भी हाथों में आया उसे ही चूम चाट रहे थे एक से एक तरीके की महिलाए और पुरुष थे वहां पर सुंदर सुडोल और बेढांगी भी वैसे ही मर्द भी मोटे और थुलथुले और कसे हुए शरीर के मलिक भी थे पर थे सभी बेख़ौफ़ और सेक्स में डूबे हुए एक दूसरे से गुथे हुए वही नीचे गद्दे पर और कोई बेड पर तो कोई खड़े हुए बस एक रोमन औरगी का सीन था वो पूरा का पूरा रूपसा और मंदिरा ने घूमकर एक बार कामया की ओर देखा और फिर गुरु जी को खींचकर उसके गालों और होंठों को चूमते हुए दोनों उनके सामने से चली गई थी कामया बेसूध सी खड़ी हुई कमरे के उस हिस्से को देख रही थी कि गुरु जी की आवाज उसके कानों से टकराई थी 

गुरु जी- ऐसे क्या देख रही हो सखी वो एक ऐसा खेल है जो इस संसार में र्रोज और हर कही होता है कोई बंद कमरे में करता है तो कोई खुले में कोई इच्छा से करता है तो कोई अनिक्षा से तो कोई इस खेल में इतना डूबा हुआ है कि उसे किसी की चिंता नहीं है या इस खेल की इतनी आदत लग चुकी होती है कि वो भूल जाता है की उसके हाथों में जो कोई भी आया है वो कौन है शायद यहां पर कोई अपनी ही घर वाली के साथ ही वो खेल खेल रहा है या अपनी ही किसी रिश्तेदार के साथ या जो भी हो पर हर किसी को अपने शरीर की आग को शांत करना होता है पर एक बात जो देखने लायक है वो है कि किसी का भी अपने शरीर पर नियंत्रण नहीं है तुम देखो वो थुलथुलसा आदमी देखो 
और खींचकर कामया को अपने नजदीक खड़ा कर लिया था उसके कंधों पर अपनी बाँहे रखे हुए वो कमरे के एक हिस्से में अध्लेटे से एक आधेड़ आदमी की ओर इशारा कर रहे थे 


गुरु जी- देखो उसे कितना थक गया है पर फिर भी कमरे से बाहर नहीं आना चाहता है अब भी उसे इक्षा है संभोग की कि और करे पर उसका शरीर उसका साथ नहीं दे रहा है 

इतने में उसने कमरे में रूपसा और मंदिरा को आते देखा था कमरे में आतेही जैसे जान आ गई हो एक ऊँची सी आवाज उस कमरे में गूँज गई थी और रूपसा मंदिरा का स्वागत जैसे सभी लोग उठकर करना चाहते हो उन दोनों के पीछे-पीछे कुछ पुरुष भी उस कमरे में दाखिल हुए थे बलिष्ठ और पहलवान टाइप के चेहरा कसा हुआ और सिर्फ़ एक लंबा सा कपड़ा कमर के चारो ओर बँधा हुआ था रूपसा और मंदिरा तो बिना कपड़ों के ही उस कमरे में दाखिल हुई थी और जिस तरह से दोनों ने घूमकर एक चक्कर लगाया था उस कमरे में जैसे उनको आदत थी इस तरह का करने की पीछे-पीछे उन पुरषो ने भी एक बार घूमकर उसकमरे में बैठी हुई और लेटी हुई महिलाओं की ओर देखते हुए कमरे के बीचो बीच में आके कर खड़े हो गये थे

सभी एक साथ उनकी ओर भागे थे जैसे की होड़ लगी हो कि कौन पहले पहुँचता है पुरुष तो आगे थे पर महिलाए कुछ पीछे थी पर थे सभी जल्दी में पुरषो ने रूपसा और मंदिरा को घेर लिया था और जल्दी बाजी में कुछ लोग उनको उठाकर अपने हिस्से में ले लेना चाहते थे और महिलाए एक के बाद एक करके उन पुरषो के पीछे पड़ गई थी छीना झपटी का वो खेल उन्मुखता के शिखर पर कैसे और कब पहुँच गया था देखते ही देखते पता ही नहीं चला पर हर कोई किसी तरह से अपने आपको संतुष्ट करने की होड़ में था पर एक बात जो बिल्कुल अलग थी वो थी कि कमरे में आए हुए रूपसा मंदिरा और उनके साथ आए उन चार पुरुषों की पता नहीं क्या बात थी उनमें जो हर पुरुष जो कि मंदिरा और रूपसा के पीछे पड़े थे एक-एक कर शांत होते चले गये पर रूपसा और मंदिरा के चहरे पर कोई शिकन तक नहीं थी वो अब भी अपनी आदाए बिखेरती हुई बिल्कुल पहले जैसी ही खड़ी थी और लेटी हुई थी पर उत्तेजना की लहर सिर्फ़ चेहरे के सिवा और कही नहीं दिख रहा था रूपसा और मंदिरा को उठाकर चार पाँच पुरषो ने एक बड़े से गद्दे पर लिटा लिया था और जिसे जहां किस करते बन रहा था और जिसे जो करते बन रहा था कर रहे थे और रूपसा और मंदिरा खिलखिलाते हुए हँसते हुए अपने शरीर का हर अंग उनके सुपुर्द करती जा रही थी, 


कोई भी जगह नहीं बची थी जहां उन पुरषो ने किस नहीं किया था या फिर अपनी जीब से चाट कर उसका स्वाद ना चखा हो मंदिरा और रूपसा एक के बाद एक पुरषो को अपने हाथों से अपने होंठों से और अपनी योनि के अंदर होने से नहीं रोक रही थी वो तो यहां आई ही इसलिए थी कि एक-एक करके हर पुरष को शांत कर सके और उनकी तमन्नाओं को जगा कर उनको परम सुख की अनुभूति दिला सके और वो दोनों इसकाम में निपुण थी उनका चहकने का ढंग इस तरह था कि सोया हुआ सन्यासी भी शायद जाग जाए किसी भी योगी के तप को हिला सकती थी यह दोनों अंगो को मोड़कर या दिखाकर जिस तरह से वो इस खेल में उलझी थी वो देखने लायक था कामया इस तरफ खड़ी हुई उन दोनों को और उन पुरषो को देखती हुई गुरु जी से चिपक कर खड़ी थी उसे पता भी नहीं चला था कि कब गुरुजी का हाथ उसके गोल गोल और नरम कसे हुए उभारों पर आ गये थे जो बड़े ही आराम से उन्हें सहलाते हुए कामया से कुछ कह रहे थे 
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