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RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
जिस महल को वो हमेशा से बस एक जर्जर ईमारत के रूप में देखता आ रहा था आज वो महल किसी नयी नवेली दुल्हन की तरह सजा संवरा खड़ा था रामू के पैर अपने आप रुक गए सुध बुध जैसे खो सी गयी,
अब उसे कहा इस बात का ख्याल था की थोड़ी देर पहले जहा तेज बरसात हो रही थी अब चारो तरफ धुप खिली हुई थी ढलती सांझ वापिस कडक दोपहर में बदल गयी थी पर जैसे रामू को किसी चीज़ से कोई लेना देना नहीं था
ऐसी सुन्दरता, ऐसी भव्यता उसने तो क्या उसके बाप दादा ने भी नहीं देखि होगी, रामू पर जैसे महल का सम्मोहन सा हो गया था और तभी महल का वो बड़ा सा दरवाजा खुल गया रामू ने अन्दर की तरफ देखा दरवाजे के पीछे का शानदार नजारा
एक तरफ ढेर सारे पेड़ लगे थे एक तरफ कोई सरोवर सा था , वोही सरोवर जिसमे रनिया नहाया करती थी अठखेलिया करती थी और तभी एक बकरी अन्दर को घुस गयी अब रामू का ध्यान टूटा ये क्या हुआ बकरी तो अन्दर चली गयी
उसके मन के द्वन्द चल रहा था उस पल क्या करे महल के बारे में जो सुनता आया था की इसमें भूत प्रेत है पर दूसरी तरफ महल जैसे बाहे फैला कर उसे अपनी और बुला रहा था और फिर बकरी को भी वापिस लाना था
रामू ने अपना दिल कडा किया और रख दिए कदम अन्दर की और जैसे ही वो चारदीवारी के अन्दर पंहुचा उसे अचानक से ठण्ड सी लगने लगी जैसे की कोई बर्फ छू गयी हो उसको उसने बकरी को आवाज दी पर वो उसे कही दिखाई ना दी तो वो सरोवर की तरफ चला
और फिर उसने जो देखा उसे तो यकीन ही नहीं हुआ उसकी पीठ रामू की तरफ थी पर रामू का लंड खड़ा हो गया था उस हाहाकारी नज़ारे को देख कर कमर तक पानी में डूबी वो हसीना रामू को अब कुछ होश नही रहा बस उसका हाथ अपने लंड पर चला गया और वो उसे सहलाने लगा
और तभी वो हसीना पलटी और उसकी नजर रामू पर पड़ी, दोनों की नजरे मिली और फिर वो बाहर निकली सरोवर से बिलकुल नग्न बढ़ने लगी रामू की तरफ उसकी विशाल चुचिया हिल रही थी पतली कमर और उन्नत नितम्ब रामू ने आज से पहले किसी को भी ऐसे नहीं देखा था
एक तो रामू की उत्तेजना के कारण धड़कने बढ़ी हुई थी ऊपर से अब पसीने से नाहा चूका था वो संयुक्ता उसके पास आई
रामू- कौन हो तुम
वो- एक बंजारन हु, प्यास लगी थी तो यहाँ आ गयी उसने अपने होंठो पर जीभ फेरते हुए कहा
रामू तो जैसे दिल हार बैठा उसकी इस अदा पर उत्तेजना के मारे अब उसे किसी और चीज़ का कहा ख्याल था और वैसे भी जब संयुक्ता जैसा माल वो भी नंगी उसकी आँखों के सामने खड़ी थी
रामू- तो बुझ गयी प्यास
वो- तुम आ गए हो बुझ ही जाएगी
दोनों मुस्कुराये संयुक्ता ने रामू के हाथ अपनी छातियो पर रख दिए रामू ने अपने कांपते हाथो से उन मदमस्त उभारो को छुआ तो उसे ऐसे लगा की जैसे रुई के ढेर पर हाथ रख दिए हो पर जब उत्तेजना सर पर चढ़ी हो तो बताने की जरुरत नहीं होती
रामू संयुक्ता के उभारो से खेल रहा था और उसके हाथ में रामू का लंड था जिसे वो बड़े प्यार से सहला रही थी रामू तो मस्त हो गया था उअर भूल गया था की शायद इस समय उसे इस जगह पर नहीं होना चाहिए था
पर शायद यही उसकी नियति थी यही उसकी तक़दीर थी जो उसी मौत के मुह में ले आई थी संयुक्ता उसके लंड से खेलते हुए उसके होंठो को चूस रही थी आज एक बार फिर से वो अपनी इस आग में जलने वाली थी आज एक बार फिर से वो अपनी चूत की गर्मी को ठंडा करने वाली थी
कुछ चूमा चाटी के बाद संयुक्ता वही घास पर लेट गयी और अपनी टांगो को फैला लिया उसकी बिना बालो की गुलाबी चूत रामू की आँखों के सामने थी इशारे से संयुक्ता ने उसे चाटने को कहा और मंत्र्मुघ्ध सा रामू झुक गया उसकी जांघो के बीच
संयुक्ता की चूत से आती भीनी भीनी सी खुशबु उसे जैसे पागल करने लगी थी उसकी जीभ अपने आप उस गुलाबी पंखुडियो को छू लेना चाह रही थी और जैसे ही रामू की जीभ ने संयुक्ता की चूत तो टच किया संयुक्ता की आँखे मस्ती से बंद हो गयी
उसके होंठो से आहे फूट पड़ी उसके कुल्हे ऊपर को उठने लगे और रामू की जीभ चूत के अंदरूनी हिस्से में रेंगने लगी जैसे जैसे रामू की जीभ अपना कमाल दिखा रही थी संयुक्ता का बदन जलने लगा अब उसे बस एक लंड चाहिए था जो उसकी प्यास को बुझा सके
उसने रामू को अपने ऊपर से हटाया और फिर रामू को लिटा दिया और चढ़ गयी उस पर रामू जो मन ही मन सोच रहा था की उसकी तो किस्मत ही खुल गयी जो इतनी खुबसूरत औरत उस से चुदवा रही है पर उसे क्या पता था की वो किस जाल में फास गया था
अपनी चूत में लंड को पाकर संयुक्ता को करार सा आ गया था वो पुरे जोश से रामू के लंड पर कूदने लगी और रामू भी मस्ती में चूर हो चूका था चुदाई पूरी मस्ती से चल रही थी ऊपर से संयुक्ता के सम्मोहन में जकड़ा हुआ रामू
उसे तो पता भी नहीं चल रहा था की कैसे उसके खून की एक एक बूँद वो निचोड़ रही है किसी खिलोने की तरह वो रामू के जिस्म से खेल रही थी अपनी प्यास बुझा रही थी पर उसकी प्यास अनंत थी और रामू की कुछ हदे थी
वो बस उसे इस्तेमाल करती रही जब तक की रामू के प्राण पखेरू न उड़ गए तब कही जाकर उसकी चूत की आग को चैन मिला
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RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
दोनों प्रेमी बैठे थे उसी कीकर के पेड़ के पास कहने को बहुत कुछ था पर होठ जैसे खामोश थे दिल में एक टीस थी पर ख़ुशी भी थी बुरा वक्त ख़त्म हुआ अब बस जीना था एक दुसरे की बाहों में
मोहिनी- बड़ी देर लगादी तुमने कितना तडपाया मुझे
मोहन- और मेरा क्या मोहिनी क्या मैंने इंतज़ार नहीं किया
मोहिनी- बहुत सह लिया हम दोनों ने देखो कुछ भी तो नहीं है पहले जैसा कुछ भी नहीं बचा वक़्त की रेत में बस हमतुम ही रह गए है
मोहन- हां, हमतुम है अपनी मोहब्बत है अब मुझसे इंतजार नहीं होता बस अब इंतजार नहीं होता जी करता है अभी तुम्हे अपनी बाहों में भर लू कितना तडपा हु मैं
मोहिनी ने कुछ नहीं कहा
बस हौले से मोहन के सीने से लग गयी अब मैं क्या बताऊ क्या लिखू उस लम्हे के बारे में भला दिल की बाते कहा शब्दों में बयान होती है वो तो बस दिल ही जान लेता है अपने आप कुछ ऐसा ही हाल उन दोनों का भी था
मोहन- रात होने लगी है
मोहीनी- होने दो
मोहन- मेरे साथ चलो
मोहिनी- तुम्हारे साथ ही तो हु
मोहन- मतलब मेरे घर
मोहिनी- चलूंगी, अवश्य चलूंगी पर
मोहन-पर क्या
मोहिनी- काश एक बार माँ बाबा से भी मिल पाती तो
मोहन- क्या ये मुमकिन होगा
मोहिनी- नागवंश के लोग हजारो साल जीते है पर अब मैं नाग योनी से मुक्त हो गयी हु तो ...
मोहिनी के चेहरे पर एक तडप सी देख कर मोहन का कलेजा भी पसीज गया पर वो जानता था की अब कुछ बंदिशे है , मजबूरिया है पर फिर भी उसने कुछ सोचा और कहा
“पर नागराज तो आज भी मंदिर में आते होंगे तो वहा पर मिल सकते है ”
मोहिनी- पर अब मैं नागलोक से बहिश्क्र्त हु तो मुमकिन नहीं होगा
मोहन ने उसका हाथ पकड़ा और बोला- कुछ भी असंभव नहीं
मोहिनी मुस्कुरा पड़ी , मोहन उसे ले आया जहा वो ठहरा हुआ था सबसे मोहिनी का परिचय करवाया साथ ही बहुत कुछ छुपा भी लिया , इधर महल में दिव्या बहुत क्रोध में थी मोहन आया क्यों नहीं अब तक
क्या उसे मेरी याद एक पल के लिए भी नहींआई मेरे प्रेम का बस इतना ही मिल लगाया उसने कब आएगा वो कब से मैं पलके बिछाए इंतज़ार कर रही हु तभी उसे याद आया की मोहिनी की परीक्षा भी समाप्त हुई होगी
अब उसे आया और क्रोध क्रोध में चीखने लगी वो, आसमान में जैसे तूफ़ान ही आ गया था तेज हवाए चलने लगी थी बदल गरजने लगे, बिजली कडक रही गाँव वालो ने आसमान में ऐसा कहर पहले कभी नहीं देखा था
संयुक्ता-बस अब शांत होजा बेटी शांत हो जा
दिव्या- कैसे माँ कैसे शांत हो जाऊ, देखो ना क्यों तडपा रहा है वो मुझे क्या उसको याद नहीं आइ मेरी
संयुक्ता- वो आएगा बेटी जुरूर आयेगा
दिव्या- पर कब माँ कब
शिवाय अब मोहन बन चूका था पर वर्तमान जिन्दगी में भी कुछ काम थे उसके और उसी सिलसिले में उसे आज वो महल देखने जाना था जिसका हिस्सा हुआ करता था वो खुद कभी, और फिर महल के मालिक भी उसको वही मिलने वाले थे
समय का ये कैसा फेर था जिस महल में वो कभी काम करता था आज खुद उसका मालिक बनने चला था वो ,मोहन की गाड़ी पूरी रफ़्तार से दौड़ रही थी पर किस तरफ कयामत शायद आने ही वाली थी और जब गाडियों ने ब्रेक लगायी तो जैसे सब लोगो की आँखे चुंधिया गयी
महल जगमगा रहा था , आस पास के लोगो में अचरज के साथ साथ खौफ भी था खौफ भी था एक घबराहट थी खुद मोहन भी घबरा गया था इतिहास जो जिन्दा हो गया था और जैसे ही दिव्या को मोहन के कदमों की आहट मिली झूम उठी वो तन बदन पुलकित हो गया दिल में एक आह सी भरी
तमाम लोगो ने तो अन्दर जाने से इनकार ही कर दिया पर मोहन को तो जाना ही था जैसे ही उसके पैर आगे बढे महल के दरवाजे अपने आप खुलते चले गए फूल बरसने लगे एक पल को तो मोहन भी अचंभित हो गया था
इधर दिव्या मगन थी अपने श्रृंगार में वो उसी तरह से सजी थी जैसे की वो उस दिन सजी थी जब उसे मंडप में छोड़ गया था मोहन पर आज फिर पिया से मिलने को बेताब थी वो मचल रही थी इंतजार जो ख़त्म हो रहा था
पुरे महल में अजीब सी शांति पसरी पड़ी थी मोहन के कदम इस तरह आगे बढ़ रहे थे जैसे की उसको पता था उसे कहा जाना था और फिर वो उसी जगह पहुच गया जहा वो बैठ कर दिव्या से बाते किया करता था
आज भी वो वहा जाकर बैठ गया किसलिए आया था वो सब भूल चूका था अब वो कहा वर्तमान में जी रहा था कहा था वो कुछ पता नहीं बस इतना जरुर था की इतिहास खुद को दोहरा रहा था
“बहुत देर लगाई आने में इतना भी कोई किसी को तड़पाता है क्या ”
मोहन ने उसकी तरफ देखा और उसे यकीन नहीं हुआ- तुम यहाँ पर तुम ........................... तुम तो..........
दिव्या- हां ............ पर आज भी इंतजार है तुम्हारा आज भी मोहन मुझसे रूठ कर क्यों चले गये तुम पर पुराणी बातो को छोड़ो अब तुम आ गए हो तो अब मुझे अपना लो पूरी कर दो मुझे
मोहन- दिव्या, मैं तब भी क्षमाप्रार्थी था आज भी हु मेरी हर सांस बस मोहिनी से ही जुडी है
दिव्या- तोड़ दूंगी हर उस साँस को जो मोहिनी से जुडी है मोहन तुम मेरे थे और मेरे ही रहोगे मैंने ये इंतज़ार इसलिए नहीं किया की मैं ये बाते सुनु वचन का मान तुमने नहीं रखा था महादेव के आदेश को तुमने नहीं मना किया था
मोहन- तो उसकी सजा भी मैंने ही भोगी थी तुम तब भी मेरे लिए कुछ नहीं थी मैं मोहिनी का हु और वो मेरी और ना तब कोई जुदा कर पाया था हमे ना अब मैं जा रहा हु उसे यहाँ से दूर लेकर जहा तुम तो क्या किसी भी परछाई नहीं पड़ेगी
मैं विवाह का रहा हु मोहिनी से जल्दी ही हमारे मिलन को कोई नहीं रोक सकता दिव्या, मैं हमेशा तुमहरा क्षमाप्रार्थी रहूँगा पर साथ ही कहता भी हु ये जिद छोड़ दो और आगे बढ़ जाओ इस जिद ने पहले ही सब कुछ बर्बाद कर दिया है
“कैसे रोक लू मैं खुद को तुम्हे चाहने से मोहन, कैसे रोक लू जीवन में वो तुम ही तो थे जिसने मेरे मन में प्रेम की तरंग जगाई, ये जो आग में मैं जल रही हु इसकी लौ तुमने ही तो जलाई थी ”
“मैने तो बस मित्रता की थी राजकुमारी और आज भी बस मित्र ही हु ये तो आपने मेरी मित्रता को प्रेम समझ लिया है क्या फायदा है आपने बहुत इंतज़ार किया पर आप पूर्ण हो जाइये मैं ना तब आपका था और ना अब आपका हु ”
“नहीं, मोहन नहीं ऐसी कोई ताकत नहीं जो मुझे तुम्हारी होने से रोक सके ”
“मैं तो किसी और का हो ही चूका हु राजकुमारी , मेरा आपसे निवेदन था आगे आपकी मर्ज़ी ना तब आपने किसी की सुनी थी ना अब आप बाध्य है पर मोहन और मोहिनी एक सांस, एक जान है मुझे पीड़ा है आपके लिए पर प्रेम तो बस एक बार ही होता है अब आप ही बताइए मैं क्या करू ”
“क्या है उसमे जो मुझमे नहीं मोहन, क्या मैं सुन्दर नहीं क्या मुझमे काम नहीं उस से ज्यादा सुख दूंगी तुमहे, एक बार मेरे प्रेम की स्वीकार तो करो ”
“उसके साथ दुःख में रहना मंजूर है मुझे राजकुमारी आया तो किसी और काम के लिए था पर जिंदगी मिल गयी यहाँ , मैं आज के आज ही मोहिनी को लेकर यहाँ से दूर चला जाऊंगा ”
“मैं तुम्हे नहीं जाने दूंगी मोहन, नहीं जाने दूंगी ”
“रोक के देख लो, समय बदल गया है राजकुमारी अब मैना आपका गुलाम नहीं और ना ही आपकी सत्ता है यहाँ पर ”
“मैं हर उस बंदिश को तोड़ दूंगी मोहन जो तुम्हारे और मेरे बीच आएगी तुम मेरे थे और मेरे ही रहोगे मोहन सुना तुमने ”चीखी दिव्य
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RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
पर उसने नहीं सुना बस आगे बढ़ता रहा और महल के उस बड़े से दरवाजे के पास पहुच गया
“मोहन, रुको जरा ”
वो रुका सामने संयुक्ता खड़ी थी
“महारानी आप ”””
“वक़्त का बवंडर हैं मोहन बस हम ही रुके हुए है ”
“पर क्यों महारानी ”
“दिव्या के लिए ”
अब मोहन चुप हो गया
“हम जानते है मोहन सब जानते है पर कलेजा आज भी जलता है जब अपनी पुत्री को पीड़ा में देखते है आखिर कब तक ये दर्द सहना होगा उसे ”
“तो फिर मुक्त क्यों नहीं हो जाती राजकुमारी प्रेम मन से होता है महारानी आप तो समझती है फिर क्यों ये जिद ”
“मुझे तुम दोनों ही प्रिय हो मोहन मैं खुद अटकी हुई हु तुम्हारे इस जंजाल में ”
“मैं आपकी मुक्ति के लिए कुछ करू ”
“नहीं मोहन जब तक दिव्या को चैन नहीं मिलता यही मेरी भी नियति है ”
“माफ़ी चाहूँगा, महारानी ” पर मुझे जाना होगा कोई मेरा इंतजार कर रहा है
बिना संयुक्ता के जवाब के वो महल से निकला और चला पड़ा अपनी मंजिल की और अपनी मोहिनी की और और जाते ही उसने वापिस शहर जाने की तयारी की
मोहिनी- क्या हुआ मोहन
मोहन- मोहिनी, दिव्या अभी भी है महल में
“क्या कह रहे हो ”
“हां मोहिनी वो प्रेत योनी में है एक शक्तिशाली प्रेतनी एक महा प्रेतनी हमे अभी के अभी यहाँ से जाना हो गा हम कही दूर अपनी दुनिया बसायेंगे ”
“जो तुम्हे ठीक लगे ” दरअसल मोहिनी ये बात सुन कर थोड़ी टेंशन में आ गयी थी क्योंकि एक महा प्रेतनी से टकराना अब उनके लिए थोडा सा मुश्किल था उसके माथे पर चिंता की लकीरे उभर आई
“कुछ नहीं होगा मोहिनी हमारा प्रेम दुनिया की हर किसी शक्ति से टकरा सकता है और फिर महादेव भी तो अपने ही साथ है ”
तैयारिया करते करते शाम हो चली थी आसमान में काले बादल उमड़ आये थे अँधेरा सा हो चला था एक एक बाद एक गाडियों का काफिला गाँव की गलियों से होते हुए दौड़ रहा था मोहिनी मोहन का हाथ पकडे बैठी हुई थी पर चेहरे पर चिंता की लकीरे साफ़ थी
गाँव से निकले ही थे की बरसात ने जैसे आज कहर ही ढा दिया था गाडियों के वायपर चल तो रहे थे पर पानी कम नहीं हो रहा था बादलो का ऐसा शोर जैसे की कानो के परदे फट जाए और फिर सबने जो नजारा देखा रीढ़ की हड्डी में सिरहन दौड़ गयी
सबसे आगे वाली गाडी धू धू कर के जल उठी थी बिजली गिर गयी थी उस पर
“दिव्या ” बोली मोहिनी
“सभी गाड़िया तुरंत वापिस गाँव में ”मोहन अपने वाकी-ताकि पर चिल्लाया
उसने अपने ड्राईवर को और लोगो के साथ रोका और उसी कीकर के पेड़ के पास रह गए बस दो प्रेमी जो आज इतिहास को फिर से देखने वाले थे उसने थामा अपनी जिंदगी का हाथ और चिल्लाया “तुम कुछ भी कर लो दिव्या कुछ भी कर लो अब जुदाई मंजूर नहीं हुए नहीं मंजूर हमे सुना तुमने सुना तुमने ”
और फिर बिजली गिरी और कीकर के पेड़ के पास और आग की लपटों को चीरते हुए दिव्या आई उसके पास “मोहन, मैंने कहा था ना की बस तुम और मैं बस तुम और मैं ”
“मोहन बस मेरा था और मेरा ही रहेगा दिव्या तुम अपनी सारी कोशिश कर लो पर हमे जुदा ना कर पाओगी ”मोहिनी मोहन का हाथ पकड़ते हुए बोली
“आज मैं इस मामले को सुलझा ही देती हु मोहिनी, बहुत हुआ ये बाज़ी मैं ही जीतूंगी ”””
“तुम इसे खेल समझ रही हो दिव्या पर ये खेल नहीं जिंदगी है मेरी चलो देखते है फिर ”
मोहिनी भागी दिव्या की तरफ पर रासते में ही रोका दिव्या ने उसे और उठा कर फेका मोहिनी कार के दरवाजे से टकराई जाके और उसकी चीख गूंज गयी
मोहन चिल्लाते हुए भागा उसकी और पर दिव्या ने रोका उसे और दूर उठा कर फेक दिया
“जब तू शक्तिशाली थी मोहिनी आज बाज़ी मेरे हाथ है उठ ”
दिव्य ने अपना हाथ उठाया और अगले ही पल मोहिनी हवा में उड़ कर पास के पत्थरों से जा टकराई सर फूट गया खून की धारा बह उठी
“दिव्या, मोहिनी को छोड़ दो ” चिल्लाया मोहन
“कैसे छोड़ दू मोहन, मेरी जिंदगी तबाह हो गयी इसकी बजह से नासूर बन कर चुभ रही है है ये मुझे आज इस कांटे को हमेशा के लिए निकाल फेकुंगी मैं ”
“”दिव्या, मेरी लाश पर से गुजरना होगा तुम्हे मोहिनी तक पहुचने के लिए “
पर दिव्या एक महा प्रेतनी के आगे दो इंसानों की क्या बिसात उसने फिर से फेका मोहिनी को मुह से खून की उलटी हुई किसी खिलोने की तरह वो इधर से उधर फेकती रही उसको मोहन के सब्र का बाँध टूट गया
“दिव्या बहुत हुआ बस रुक जाओ त्याग दो क्रोध को वर्ना मत बोलो महारानी संयुक्यता मेरे वचन में बंधी है मैं अपनी रक्षा के लिए उनको बुलाऊंगा ”
“हट पीछे आज मेरे रस्ते में कोई नहीं आएगा कोई नहीं आयेगा ”
“महारनी, रोकिये अपनी पुत्री को मैं वचन को पूरा करने की मांग करता हु महारानी मोहिनी की रक्षा कीजिये ”
दिल तडप उठा संयुक्ता का पर वचन की आन प्रकट हुई संयुक्ता
“महारानी रक्षा कीजिये मोहिनी की ”
हसी संयुक्ता – कैसा वचन मोहन कैसा वचन , वो वचन तो मेरी देह के साथ नस्त हो गया अब मैं तुम्हारी बाध्य नहीं बल्कि मैं तो ये ही कहूँगी की छोड़ो इस मोहिनी को और हम दोनों से आके मिलो हमारे साथ जियो
“तो आप अभी भी अपनी हवस की डोर से बंधी है महारानी अच्छा हुआ आपने याद दिया दिया कल्युग है मैं अभी भी वचन की आस लगाये बैठा था पर कोई बात नहीं आप भी अपनी कर लो ”
“मोहन मैं तुम्हे मार कर प्रेत बना लुंगी फिर तुम हमारे अधीन रहोगे, इस तरह दिव्या तुमहरा वरण करेगी ”
“ऐसा कभी नहीं होगा महारानी कभी नहीं होगा ”
सनुकता अपनी जहरीली मुस्कान हसी और उसने जकड लिया मोहन को अपने पाश में और जिस्म के हर हिस्से से खून रिसने लगा दर्द में डूबने लगा मोहन का अस्तित्व दोनों माँ बेटी की हंसी बादलो की गर्जना से भी विकराल लग रही थी
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RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
चारो तरफ घना अँधेरा छाया हुआ था और बेहोश पड़ी थी मोहिनी इधर मोहन खून में नहाया हुआ था दिव्या कुछ मन्त्र पढ़ रही थी ताकि उसकी रूह को कैद कर सके और तभी होश आया उस प्रेम दीवानी को जिसने प्रेम के लिए हर सरहद तोड़ दी थी
आंसू और पानी से भीगी आँखों से उसने देखा की मोहन कैसे पल पल मौत किट तरफ जा रहा है तो अपने आप को संभालते हुए वो उठी उसकी आँखों के आंसू सूखने लगे और वहा पर क्रोध की अग्नि जलने लगी
उसकीसांसे जलने लगी जैसे जैसे बरसात उस से टकरा रही थी बुँदे भाप बन कर उड़ने लगे उसके चांदी जैसे बाल दहकने लगे हरी आँखे क्रोध के मारे लाल हो गयी थी किसी नागिन की तरह फुफकारती हुई वो बढ़ने लगी संयुक्ता की तरफ
और उसके पास आने वाले हर पेड़ पौधे घास जल उठे थे दूर गाँव के मंदिर में घंटिया अपने आप बज उठी थी मंदिर में दीपक जल गया था मोहिनी लौट आई थी नागिन की शक्तिया लौट आई थी महा चंडालिनी नाग कुमारी मोहिनी को अपना स्वरूप मिल गया था वापिस
मोहिनी ने अपना नाग्रूप धारण कर लिया था उस अँधेरे में जैसे चांदी चमक उठी थी एक पल को दोनों माँ बेटियों की आँखे हैरत के मारे फटी रह गयी थी मोहिनी की जहरीली फुफकार पड़ी संयुक्ता के ऊपर और वो जलने लगी मोहन गिरा धरती पर
मोहिनी की आँखे क्रोध से दाहक रही थी उसने अपनी कुंदिली में जकड़ लिया महरानी की रूह को और किसी शीशे की तरह तोड़ दिया
“माँ, नहीं माँ नहीं ” दिव्या चिल्लाई
“नागिन, तो लौट आई है तेरी शक्तिया पर कोई बात नहीं आ तू और तेरी शक्तिया सबको पीस डालूंगी मैं आज ”
मोहिनी नारी रूप में आई और बोली- दिव्या, चल फिर देखते है मेरी प्रीत सच्ची है या तेरी जिद और दोनों में मल्ल युद्ध आरम्भ हो गया कभी वो भारी तो कभी वो भारी कभी शक्तिया प्रयोग करे तो कभी गाली गलौच भोर होने में कुछ हिज समय शेष था पर बाज़ी की हार जीत का फैसला अभी हुआ नहीं था
एक महाप्रेतनी और एक बल्शाली नागीन कैसे बात बने और फिर होश आया मोहन को अपनी सांसो की किसी तरह सँभालते हुए आया दोनों के बीच और बोला- रुक जाओ दोनों रुक जाओ , बंद करो ये लड़ाई बंद करो
दोनों पल भर के लिए रुक गयी
मोहन- दिव्या शांत हो जाओ , जिद छोड़ दो मेरी मित्रता का मान रखो अगर कभी भी तुमने एक पल को भी अगर मुझे अपना माना है है तो ये जिद छोड़ दो
ये क्या कह दिया मोहन ने कभी अपना माना है , मैंने तो सिर्फ तुम्हे ही अपना माना है मोहन
मोहन- तो फिर क्यों ये क्रोध दिव्या हम सब कब तक ऐसे उलझे रहेंगे माना की मैं तुम्हे प्रेम तो नहीं दे सकता पर मित्रता तो प्रेम से भी अनमोल है दिव्या और देखो अनमोल तो तुम्हरे ही पास है
“छोड़ दो ये जिद राजकुमारी कब तक इस मोह में फसी रहोगे ”
सबने मुद कर देखा तो वही साधू खड़े थे सबने हाथ जोड़ कर प्रणाम किया और उनहोंने स्वीकार किया
“देव, पर मुझे तो कुछ नहीं मिला तब भी और अब भी ”
“राजकुमारी तुमने प्रेम का मर्म कभी समझा नहीं अगर समझ जाती तो इतनी परेशानी होती ही नहीं असली प्रेम किसी को पाना नहीं बल्कि त्याग करना है ”
“परन्तु ”
“राजकुमारी, एक सहस्त्र साल तक तुमने अपने आप को सजा दी , पर अब तुम्हरे मुक्त होने का समय हो गया है मोहन और मोहिनी को एक होने दो उन्हें पूर्ण होने दो मैं तुम्हे वचन देता हु की तुम्हारा अहम् किरदार होगा इनके आगामी जीवन में , कालन्तर में तुम इनकी पुत्री के रूप में जनम लोगी ”
अब साक्षात महादेव के आगे दिव्या क्या बोलती बस हाथ जोड़ दिए और अगले ही पल वो गायब हो गयी सब शांत हो गया अब वो मुखातिब हुए प्रेमी जोड़े से
“मोहिनी, ये तुम्हारी तपस्या का ही प्रताप है की आज तुम्हरी सारी शक्तिया वापिस तुम्हे प्राप्त हो गयी परन्तु चूँकि अब तुम्हे मोहन के साथ विवाहित जीवन शुरू करना है तो आज के बाद तुम कभी नागरूप में नहीं आओगी जब तक की ऐसी कोई गहन आवश्यकता नहीं आन पड़े नान्गंश तुम रहोगी पर बस हर पच्चीस बरस में एक बार तुम इस रूप में आओगी और मोहन सदा खुश रहो आबाद रहो अगले 100 वर्षो तक तुम्हारा ये विवाहित जीवन रहेगा परन्तु मेरा वचन है की हर जनम में तुम दोनों ही एक दुसरे के जीवन साथी बनोगे काले बादल हट रहे है नया सवेरा तुम्हारा इंतजार कर रहा है ”
दोनों ने साधू के पाँव पकड़ लिए पर अगले ही पल कुछ नहीं था सिवया उन दोनों के और उनके प्रेम क साक्षी उस कीकर के पेड़ के
दोनों ने शिव मंदिर में विवाह कर लिया और महल की मरम्मत के बाद उसी में बस गए कुछ बरस बाद उनको एक बेटी हुई जिसका नाम रखा गया दिव्या
पर दिव्या का जनम दोनों के लिए एक सवाल लेकर आया था की क्या दिव्या इन्सान है या नागिन और इसका जवाब तो बस आने वाले वक़्त के पास ही था
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