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Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
प्रीत का रंग गुलाबी
दोस्तो एक और कहानी शुरू करने जा रहा हूँ आशा है सब लोग साथ देंगे
दूर दूर तक कुछ नही था सिवाय गर्म लू के जिसका बस आज एक ही इरादा था की कोई अगर चपेट में आ गया तो उसका काम तमाम कर डाले मोहन ने अपने माथे पर छलक आये पसीने को पोंन्छा और छाया की तलाश में थोडा और आगे बढ़ गया वैसे तो वो रोज ही बकरिया चराने आया करता था पर आज वो कुछ ज्यादा ही दूर आ गया था प्यास से गला सूख रहा था उसने अपने डब्बे को देखा जो की कब का खाली हो चूका था हताश नजरो से उसने नदी की तरफ देखा जिसमे अब कंकड़ और मिटटी के सिवा कुछ नहीं था कई सालो से बारिश जो नहीं हुई थी उस स्त्र की जो नदी को पुनर्जीवन दे सके
उसने बकरियों को हांका और छाया की तलाश में आगे को बढ़ गया थोड़ी दूर उसे एक देसी कीकर का पेड़ दिखा पेड़ बड़ा तो था पर छाया इतनि नहीं थी पर जेठ की इस गर्म दोपहर में इतनी छाया भी किस्मत वालो को ही मिलती है मोहन ने अपनी कमर टेकी पेड़ से और बैठ गया उसके पशु भी उसके आस पास बैठ गए मोहन ने अपनी बांसुरी निकाली और बजाने लगा जैसे ही उसके होंठो ने बांसुरी को छुआ जैसे वो वीराना महकता चला गया उस बांसुरी की तान पे
अपनी आँखे बंद किये मोहन संगीत में खोया हुआ था अब उसे गर्मी भी नहीं लग रही थी जैसे उसकी सारी थकन को मोह लिया था संगीत ने और तभी उसे ऐसा लगा की एक बेहद ठंडी हवा का झोंका उसे छू कर गया हो उसने झट से अपनी आँखे खोली हाथो पर तो पसीना था फिर कैसे उसको बर्फीला अहसास हुआ था ठण्ड से उसकी रीढ़ की हड्डी तक कांप गयी थी उसने अपना थूक गटका और अस पास देखा पर सिवाय गर्मी की झुलसन के उधर कुछ भी नहीं था कुछ भी नहीं
तभी कुछ दूर उसे लगा की कोई खड़ा है मोहन उधर गया तो उसने देखा की एक लड़की उसकी तरफ ही देख रही है मोहन ने जैसे ही उसे देखा एक पल को तो वो उसके रूप में खो सा ही गया इतनी सुंदर लड़की उसने अपने जीवन में आज से पहले कभी नहीं देखि थी चांदी सा रूप उसका एक अलग ही आभा दे रहा था
लड़की- बंसी तुम ही बजा रहे थे
मोहन-हां
वो- अच्छी बजाते हो
मोहन- तुम कौन हो इस बियाबान में क्या कर रही हो
वो- बकरिया चराने आई थी
मोहन- ओह! अच्छा
वो- पानी पियोगे
मोहन-हाँ
उस लड़की ने अपनी मश्क मोहन की तरफ बढाई मोहन ने उसे खोला और एक भीनी भीनी सी खुसबू उसकी सांसो में समाने लगी उसने कुछ घूँट पानी पिया ऐसा लगा की वो पानी ना होकर कोई शरबत हो इतना मीठा पानी मोहन ने कभी नहीं पिया था एक बार जो उसने वो स्वाद चखा खुद को रोक नहीं पाया पूरी मश्क खाली कर दी उसने
मोहन- माफ़ करना मैं सारा पानी पि गया
वो-कोइ बात नहीं प्यास बुझी ना
मोहन- हाँ
वो- थोड़ी आगे एक पानी का धौरा है अपने पशुओ को वहा पानी पिला लेना
ये बोलके वो चलने लगी
मोहन- जी अच्छा
मोहन ने अपने पशुओ को उस लड़की की बताई दिशा में हांका और वहा सच में एक पानी का धौरा था अब मोहन थोडा चकित हुआ इधर से तो वो कई बार गुजरा था पर उसे कभी ये नहीं दिखा था और वो भी जब नदी सुखी पड़ी थी तो ये धौरा कहा से आया फिर उसने अनुमान लगाया की शायद उसकी नजर में कभी आया नहीं होगा पशुओ ने खूब छिक के पानी पिया उसने भी थोडा और पानी पिया अब हुई उसे हैरत पानी बिलकुल वैसा ही जसा उस लड़की ने उसने पिलाया था
पर उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया वो वापिस उसी कीकर के पेड़ के नीछे आया और फिर से छेड़ दी बंसी की तान एक बार जो वो बंसी बजाने लगा तो फिर वो ऐसा खोया की उसे समय का कोई ध्यान रहा ही नहीं सांझ ढलने में थोड़ी देर थी की उसकी तन्द्रा एक आवाज से टूटी
“ओ चरवाहे, ये बंसी तू ही बजा रहा था क्या ”
मोहन उठ खड़ा हुआ बोला- जी हुकुम कोई गुस्ताखी हुई क्या
आदमी- चल इधर आ
कपड़ो से वो आदमी शाही सैनिक लग रहा था अब मोहन घबराया पर फिर उस आदमी के पीछे चल पड़ा थोड़ी दूर जाने पर उसने देखा की ये तो शाही काफिला था मोहन ने सभी लोगो को परनाम किया और फिर एक गाड़ी से एक महिला उतरी , जैसे ही मोहन ने उसकी तरफ देखा उसकी आँखे सौन्दर्य की पर्कास्त्ठा से चोंध गयी आज दिन में ये दूसरी बार था जब मोहन ने ऐसी सुन्दरता देखि थी ,ये इस रियासत की सबसे बड़ी महारानी संयुक्ता थी
“महारानी की तरफ नजर करता है गुस्ताख ”एक सैनिक ने कोड़ा फटकारा मोहन को वो दर्द से चीखा
“रुको सैनिक ”
महारानी मोहन के पास आई और बोली- तो तुम वो संगीत बजा रहे थे
मोहन- गुस्ताखी माफ़ रानी साहिबा गलती हो गयी
रानी- गलती कैसी कितनी मिठास है तुम्हारी बंसी की आवाज में हम यहाँ से गुजर रहे थे पर इस मधुर तान ने हम विवश कर दिया रुकने को क्या नाम है तुम्हारा और कहा के रहने वाले हो
“जी, मेरा नाम मोहन है और मैं सपेरो के डेरे में रहता हु, वहा के मुखिया चंदर का बेटा हु ”
रानी- सपेरा होकर बंसी की ऐसी मधुर तान कमाल है
वो- जी पिताजी तो बहुत गुस्सा करते है पर मेरे हाथो को बीन की जगह बंसी ही भाति है
रानी संयुक्ता को मोहन की भोली बाते बहुत अच्छी लगी वो थोडा मोहन के और पास आई और उसके बलिष्ठ शरीर को गहरी नजर से देखते हुए बोली – हम कुछ दिन के लिए जंगल के परली तरफ वाले हिस्से में रुके है आज से ठीक तीन दिन बाद तुम वहा आना हमे तुम्हारी बंसी सुनने की इच्छा है
अब मोहन की क्या औकात थी जो वो महारानी को मना कर सके संयुक्ता ने मोहन को आदेश दिया और फिर काफिला अपनी मंजिल की और बढ़ने लगा मोहन ने अपने पशुओ को इकठ्ठा किया और डेरे की तरफ चल पड़ा रस्ते भर ये सोचते हुए की अगर उसका संगीत सुनकर रानी खुश हो गयी तो उसका तो जीवन ही संवर जायेगा , वो डेरे पंहुचा , डेरा था बंजारे सपेरो का गाँव था छोटा सा पच्चीस तीस से ज्यादा घर नहीं थे मोहन ने हाथ मुह धोये और तभी उसकी बड़ी बहन उसके गले आ लगी
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RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
थोड़ी प्यास सी लग आई थी उसे ख्याल आया उस पानी की धौरे का वो गया अब वो हुआ हैरान धौरा पूरी तरह से सूखा हुआ था मोहन को विश्वास ना हुआ
“मोहिनी ने तो कहा था की यहाँ हमेशा मीठा पानी रहेगा मैं जब जी चाहू पि लू पर यहाँ तो पानी है ही नहीं शायद मोहिनी ने ऐसे ही कह दिया होगा , पर उस दिन तो पानी था ’
अपने आप से बडबडाता मोहन आगे को बढ़ा और तभी उसे अपने कानो में पानी की आवाज सुनाई दी वो झट से घुमा और क्या देखा धौरा लबालब भरा था पानी से मोहन ने छिक के पानी पिया उसने फिर से मोहिनी को आवाज दी पर वो थी ही नहीं तो कैसे जवाब देती तो वो अपने मंजिल की और बढ़ गया
अब किसकी मजाल थी की महारानी के हुक्म को ना माने पर मोहन अपनी कला की प्रशंशा पाना चाहता था इसी आस में वो आखिर महारानी के शिविर तक जैसे उन्होंने बताया था वो पहुच गया
तभी उस पर महिला सैनिको की नजर पड़ी वो चीलाई- ओये लड़क
के वही ठहर तेरी क्या हिम्मत जो तू महारानी के शिविर के स्थान पर आया
मोहन- मुझे खुद महारानी ने बुलाया है
उनमे से एक हस्ते हुए बोली- तुझे बुलाया है महारानी ने ज्यादा झूठ मत बोल और भाग जा यहाँ से वर्ना सर धड से अलग होते हुए देर न लगेगी
अब मोहन उन्हें समझाए पर वो उसकी एक न सुने आखिर में उन्होंने मोहन को लताड़ कर भगा दिया मोहन की आस टूटी अब क्या करे वो सांझ ढल गयी पर उसने भी ठान लिया की वो महारानी से मिल के ही जायेगा थोडा अँधेरा हुआ भूख भी लगी पर आस थी हताश होकर उसने अपनी बंसी निकाली और छेड़ दी एक दर्द भरी तान मोहन की हताशा दर्द बन कर वातारण में विचरण करने लगी रानी उस समय नहा रही थी सरोवर में जैसे ही उसके कानो में वो आवाज पड़ी रानी बहने लगी उस आवाज में
बुलाया बंदी को और पुछा- ये कौन बंसी बजा रहा है जान तो वो गयी थी की वो ही चरवाहा होगा
बंदी आई- हुजुर, एक लड़का है सुबह से आया है कहता है की आपने बुलाया है पर वो ठीक नहीं लगा तो हमने उसे भगा दिया था पर वो ही थोड़ी दूर बंसी बजा रहा है आपकी शान में गुस्ताखी हुई हम अभी उसे कैद में लेते है
संयुक्ता- गुस्ताख, तुम हमारे मेहमान को कैद में लोगी इस से पहले की हमारे क्रोध की जावला में तुम जल जाओ उस चरवाहे को बा अदब हमारे पास लाया जाये और साथ ही उसके भोजन की शाही व्यवस्था की जाए उसे इज्जत केसाथ लाओ अभी रानी दहाड़ी
जैसे ही मोहन को पता चला की रानी ने उसको बुलाया वो खुश होगा राजी राजी आया उसी तालाब के पास जिसमे रानी अठखेलिया कर रही थी मोहन को देख कर रानी मुस्कुराई और बोली- सबको आदेश है की जब तक हम किसी को ना बुलाये कोई नहीं आये यहाँ पर सबसे पहले इसके लिए कुछ खाने का प्रबंध करो
कुछ ही देर में मोहन के लिए तरह तरह के पकवान आ गए जिनका ना नाम सुना उसने ना कभी खाया संयुक्ता ने उसको इशारा किया मोहन ने खाना शुरू किया जल्दी ही उसका पेट भर गया रानी ने पुछा कुछ और उसने मना किया वो मुस्कुराई
संयुक्ता अभी भी पानी में ही थी गर्दन तक पानी में डूबी बोली- क्या नाम है तुम्हारा
मोहन-जी मोहन
“तो मोहन सुनाओ कोई तान जिस से मैं बहक जाऊ मेरे मन को कुछ देर के लिए ही सही एक सुकून सा मिले उस दिन जो तुम बजा रहे थे वो ही बजाओ ऐसे लगता है की जैसे तुम्हारी तान सीधे मेरे दिल में उतरती है ”
मोहन वही तालाब किनारे बैठ गया और उसने छेड़ दी ऐसी मधुर तान की जैसे कान्हा जी के बाद अगर कोई बंसी बजता था तो बस मोहन और कोई नहीं इधर जैसे जैसे मोहन का संगीत अपने श्रेष्ठ की और जा रहा था संयुक्ता की प्यास जागने लगी थी पानी की शीतलता में भी उसका बदन किसी बुखार के रोगी की तरह तपने लगा था जिस्म की प्यास फिर से उसके बदन को झुलसाने लगी थी ऐसा नहीं था की वो कोई चरित्रहीन औरत थी
पर जब से उसने मोहन को देखा था वो अपने आप में नहीं थी
पता नहीं मोहन म ऐसी कौन सी कशिश थी जिसने महारानी संयुक्ता को आकर्षित कर लिया था , रानी को भी अपनी चूत की प्यास में कई दिनों से तड़प रही थी उसने धीरे से अपने निचले होंठ को दांत से काटा और मोहन को आवाज लगाई
“पानी में आ जाओ ”
“जी मैं ” वो थोडा सा सकुचाया
“सुना नहीं हमने क्या कहा ”
अब किसकी मजाल जो राज्य की महारानी को ना करे मोहन ने अपने कपडे उतारे और पानी में आने लगा और जैसे ही संयुक्ता की नजर मोहन के लंड पर पड़ी उसकी आँखों में एक चमक आ गयी
पानी के अन्दर ही रानी ने अपने चोची को भीचा और एक आह भरी अँधेरा होने लगा था ये कैसी कसक थी कैसी प्यास थी तो रानी ने इस काम के लिए मोहन को यहाँ बुलाया था ये जिस्म की प्यास एक महारानी का दिल एक बंजारे पर आ गया था वैसे तो रानी- महारानियो के इस पारकर के शौक होते थे पर क्या एक रानी इस स्तर पर आ गयी थी की उसने एक बंजारे को चुना था चलता हुआ मोहन रानी के बिलकुल सामने ही खडा था इस समय संयुक्ता मोहन की आँखों में देखते हुए मुस्कुराई
और अगले ही पल उसने मोहन के लंड को पानी में पकड लिया मोहन थोडा सा घबराया पर रानी ने उसको आँखे दिखाई अब रानी का क्या पता कब नाराज हो जाये सर धड से अलग करवा दे मोहन चुप हो गया पानी में भी संयुक्ता ने लंड की गर्माहट को मेह्सूस कर लिया था वो बोली- कभी किसी औरत के करीब गए हो कभी किया है
मोहन- नहीं मालकिन
रानी- तो कोरे हो चलो आज तुम्हे स्वर्ग की सैर का अनुभव करवा ही देती हु देखो मोहन मैं जैसा करती हु करने देना वर्ना तुम जानते हो
मोहन से हाँ में सर हिलाया , संयुक्ता ने धीरे धीरे उसके लंड को सहलाना शुरू किया मोहन के लंड को पहली बार किसी औरत ने हाथ लगाया था तो जल्दी ही वो उत्त्जेजित होने लगा जैसे जैसे उसके लंड में तनाव आ रहा था रानी के होंठो पर कुतिली मुस्कान आ रही थी वो जन गयी थी की लंड में बहुत दम है आज वो जी भर के तरपत होंगी मोहन के लंड की मोटाई उसकी कलाई के करीब ही थी रानी अब तेज तेज हाथ चलाने लगी थी उसके लंड पर
“मोहन हमारी छातियो को चुसो ”
वो दोनों अब थोडा सा बाहर को आये पानी अब उसकी कमर था मोहन ने जैसे ही अपने हाथ रानी की चूचियो पर रखे वो तड़प गयी
“आह,थोडा सा जोर से दबाओ ”
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RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
मोहन ने भी अपने डेरे की राह पकड़ी राह में वो उसी कीकर के पेड़ के निचे रुका तो उसे मोहिनी की याद आई उसने आवाज लगाई “मोहिनी ”
पर कुछ नहीं एक पल के बाद आवाज खामोश हो गयी उसने फिर आवाज लगाई पर फिर से वो बस चलने को ही था की जैसे उसे किसी ने पुकारा “मोहन ”
उसने पलट के देखा तो मोहिनी उसकी तरफ आ रही थी चलते हुए“ मोहन को जैसे करार सा आ गया ”
“मोहिनी ”
”मोहन ”
“पुरे तीन दिन हुए तुम आये क्यों नहीं ”
“वो मैं थोडा व्यस्त था ”
“कोई बात नहीं , प्यास लगी है ”
“लगी तो है पर आज मैं तुम्हारे हाथो से पानी पियूँगा ” बोला मोहन
मोहिनी मुस्कुराई, उसकी मुस्कान सीधे मोहन के दिल में उतर गयी वो घुटनों के बल बैठा मोहिनी ने मश्क खोली और उसको पानी मिलाना शुरू किया एक बार फिर से वो ही जाना पहचाना मीठा स्वाद उसके गले उतरने लगा उसने फिर सर हिलाके बताया की बस हो गया दोनों उसी कीकर के पेड़ के निचे बैठ गए
“तुम रोज आती हो ”
“हां “
” क्या मैं तुमसे मिलने आ जाया करू ”
“मोहन, ये भी कोई कहने की बात है तुम जब चाहो मुझे मिलने आस सकते हो तुम तीन बार मुझे आवाज लगाना बस तीन बार मैं आ जाउंगी और यदि तीन बार आवाज के पश्चात् मैं ना आई तो समझ लेना उस दिन मैं इधर नहीं आई ”
“आभार ”
मोहिनी मुस्कुराई मोहन की सादगी पर ये कैसी कशिश थी जो वो खिची चली आती थी मोहन की तरफ उसकी बंसी की तान पर जैसे थिरक उठने को जी करता था
“मोहन तुम्हारे लिए कुछ लायी हु ” उसने अपने झोले से कुछ निकाला और मोहन की तरफ किया कोई मिठाई सी थी
मोहन ने जैसे ही चखा , ऐसा स्वाद तो उसने पहले कभी नहीं चखा था रानी ने उसके लिए हजारो पकवान बनाये थे पर ऐसा स्वाद तो वहा भी नहीं था पेटभर गया उसका मोहिनी के चेहरे पर सुकून था
“तुम्हारे घर में कौन कौन है मोहिनी ”
“माँ, बाबा और मैं ”
फिर मोहान ने उसे अपनेबारे में बताया और अपने डेरे के बारे में मोहिनी एकटक उसकी हर बात सुनती रही
“तो तुम बीन क्यों नहीं बजाते मोहन घरवालो की बात तो माननी चाहिए ना ”
“मेरा जी नहीं करता , मुझे तो बस अपनी इस बंसी से ही लगाव है कभी कभी खुद को बहुत अकेला महसूस करता हु तो ये ही मेरा सहारा होती है यही मेरी दोस्त है ”
मोहिनी मुस्कुराई फिर बोली- मोहन मेरे जाने का समय है गया है मैं जल्दी ही फिर मिलूंगी
मोहन ने हां कहा और उसे जाते हुए देखता रहा और फिर अपने डेरे में चला गया
“भाई , कहा गायब थे तुम हम सबको चिंता हो रही थी ”
“बताया ना की कुछ जड़ी लेने गया था ”
“पर आये तो खाली हाथ हो ”
“मिली नहीं ”
इधर संयुक्ता महल तो आ गयी थी पर उसका जी लग नहीं रहा था हर पल पल प्ल उसको बस मोहन ही दिखे मोहन का खयाल आते ही उसकी चूत में खुजली मचनी शुरू हो जाती थी महाराज नियमित रूप से उसको चोदते थे पर अब उसे बस एक ऊब होती थी उसे तो बस कुछ भी करके मोहन का लंड चाहिए था पर वो करे तो क्या करे कैसे मिले मोहन से हालाँकि उसके एक इशारे पर मोहन उसके सामने होता पर वो एक औरत होने के साथ साथ एक महारानी भी थी तो हर तरह से उसको सोचना था
ऊपर से उसके जिस्म की आग जो हर समय सुलगी रहती थी जिसे महाराज का लंड बुझा नहीं पाता था उसने महराज से बेफवाई कर ली थी अपने आस पास के हर मर्द में उसे बस मोहन ही दीखता काम पिपासी रानी संयुक्ता अगन में जलने लगी थी पल पल इधर हफ्तेभर से ऊपर हो गया था मोहिनी आई नहीं थी मोहन की बेचैनी बढ़ी हर पल उसकी आँखे बस मोहिनी को ही ढूंढें पर वो नाजाने कहा थी हार कर वापिस वो अपने डेरे में आ जाता था
इधर चकोर के बदन की गर्मी भी बढ़ने लगी थी पर वो सीधा सीधा मोहन को तो बोल नहीं सकती थी की मेरी प्यास बुझा दे हालाँकि वो अपने लटके झटके दिखा कर उसे आभास पूरा करवा रही थी सबकी अपनी अपनी प्रीत थी सबकी अपनी अपनी हवस थी आसमान में तारे खिले हुए थे पर उसकी आखो से नींद कोसो दूर थी बस मोहिनी ही उसके विचारो में थी
थोड़ी प्यास सी लग आई थी उसे वो पानी पीकर आया ही था की उसे लगा की झोपडी के पीछे कोई है वो दबे पाँव गया तो देखा की चकोर खड़ी है और खिड़की से अंदर झांक रही है वो उसके पास गया पर चकोर को कोई फर्क नहीं पड़ा उसने देखा की अंदर उसके माँ-बाप लालटेन की हलकी सी रौशनी में चुदाई कर रहे है मोहन का लंड झट से खड़ा हो गया जो सीधा चकोर के चूतडो पर जा टकराया चकोर ने अपनी गांड को थोड़ी सी पीछे किया
मोहन का शैतानी लंड चकोर की गांड पर दस्तक दे रहा था चकोर की गर्दन के पिछले हिस्से से पसीना बह चला वो अहिस्ता से अपनी गांड को मोहन के लंड पर रगड़ने लगी अन्दर का नजारा देख कर दोनों भाई बहन गरम होने लगे थे मोहन ने जीजी की कमर को थाम लिया उसके हाथ कुरते के अन्दर से होकर उसके नाजुक नर्म हलके से फुले हुए पेट को सहलाने लगे थे
चकोर मोहन की बाहों में पिघलने लगी थी मोहन की प्यास तो संयुक्ता ने भड़का दी थी वो खुद चूत के लिए तड़प रहा था दोनों की आँखे बस अपने माँ-बाप पे ही लगी थी चकोर को पता ही नहीं चला की कब मोहन उसकी छातियो को सहलाने लगा था उसके चुचक कड़े होने लगे थे होंठो से हलकी हलकी आवाज निकल रही थी
और तभी वो पलती और अपने सुर्ख होंठो को मोहन के होंठो से जोड़ दिए दोनों एक दुसरे का रस पान करने लगे चकोर किसी बेल की तरह मोहन से लिपट गयी थी चकोर ने उसे कुछ कहा और फिर दोनों चकोर की झोपडी में आ गए अन्दर आते ही मोहन ने अपनी बहन को बाँहों में भर लिया उसके बदन से खेलने लगा
उसने चकोर के होंठो को खूब चूमा फिर उसने चकोर की कुर्ती को उतार फेंका अपनी बहन की चूचियो पर टूट पड़ा वो आखिर संयुक्ता ने जो उसे ये सब सिखाया था जैसे ही अपने भाई के होंठो को चूची पर पाया चकोर किसी सूखे पत्ते की तरह कांपने लगी उसकी चूत गीली बहुत गीली होने लगी
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RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
मोहन ने चूस चूस कर उनको टमाटर की तरह लाल कर दिया अब उसने चकोर के बाकि कपडे भी उतार दिए और उसको पूरी नंगी देख कर वो जैसे पागल ही हो गया था चकोर की भरी भरी टांगे पुष्ट नितम्ब और काले घुंघराले बालो से ढकी छोटी सी हलकी लाल चूत मोहन ने चकोर को लिटाया और उसकी टांगो को फैला दिया
पर तभी चकोर की उसकी माँ की आवाज आई शायद वो इधर ही आ रही थी उसने मोहन को अपने ऊपर से हटाया और जल्दी से अपने कपडे पहने और जैसे ही माँ अन्दर आई उसने दोनों भाई बहनों को गहरी नींद में सोते हुए पाया वो भी उनके पास ही लेट गयी दोनों का दिल उस समय बहुत तेजी से धडक रहा था
दोनों की अपनी अपनी बाते थी काम बनते बनते जो रुक गया था अब सोना ही था अगली सुबह मोहन जरा देर से जागा और जल्दी ही उसकी पेशी अपने पिता के सामने थी
“मैं सुन्यो आजकल तू अजीब सो रहवे कोई परेशानी ”
“ना, बापू सा ”
“”थारी माँ बोल री तीन तीन दिन जंगल में रहबो इसी कुण सी जड़ी खोजबा ज्या सी बता जरा “
“वो बापू सा , वो बापू सा ”
“के हुई, साप सूंघ गो के ”
“कोई बात कोणी, सपेरे को बेटो से, तो जंगल में तो जानो ही पड़े, देख बेटा म्हारे बाद तू ही इ डेरा रो मलिक है अब तू जिम्मेदार बन चार रोज बाद नागपंचमी को मेलो है तो आप भी भोले बाबा रे दर्शन कर्ण वास्ते चलेंगे और मेह चाहवा की इस बार तू भी चले विशेष पूजा होनी है और के पता नागराज भी दर्शन दे दे ”
“जी बापू सा जो थारी आज्ञा ”
मोहन मुड़ा वापिस अब बापू डेरे में था तो वो मोहिनी से मिलने हबी नहीं जा सकता था एक कैद सा लगने लगा था ये डेरा उसको पर बापू के आदेश को वो अनदेखा कर दे अभी इतनी हिम्मत नहीं थी उसकी चकोर भी माँ के साथ मेले जाने की तैयारियों में लगी थी , मोहन का बापू एक माना हुआ सपेरा था ऐसा प्रचलित था की किसी पुरखे को खुद नागराज ने आशीर्वाद दिया था
चार दिन कैसे कटेंगे मोहन के वो सोच रहा था जबकि इधर ऐसा ही हाल संयुक्ता का था वो मोहन से मिलने को छटपटा रही थी पर उसका बेटा राजकुमार पृथ्वी अपनी पढाई पूरी करके नागपंचमी को वापिस आ रहा था तो म्महल को दुल्हन की तरह सजाया गया था
उसी दिन उसका राज्याभिषेक भी था तो पूरी राजधानी में जश्न का माहोल था
हर कोई खुशियों में डूबा था पर संयुक्ता के झांटो में लगी आग उसको परेशान कर रही थी उसे बेटे के आने की खुशी तो थी ही पर साथ ही वो अपनी कामुकता से जूझ रही थी सब लोग अपने अपने विचारो से जूझ रहे थे पर समय से पहले किसी को क्या मिलता है कुक भी नहीं
रात को एक बार फिर चंद्रभान और संयुक्ता संभोगरत थे दोनों का बदन पसीने से नहाया हुआ था रानी घोड़ी बनी हुई थी महाराज उसके नितम्बो को कस के पकडे उसको चोद रहे थे उत्तेजनावश संयुक्ता का चेहरा लाल हुआ पड़ा था अपनी आँखे बंद किये वो अपनी चूत पर पड़ रहे हर धक्के का भरपूर मजा ले रही थी उसकी चूत में महराज का घोडा सरपट सरपट दौड़ रहा था
“आह और जोर से महराज और जोर से ऐसे ही आः आः ”
पुरे कमरे में संयुक्ता की मद भरी आवजे गूँज रही थी महाराज दांत भीचे अपना पूरा जोर लगाते हुए रानी को मंजिल पर पहुचने की पूरी कोशिश कर रहे थे अपने होंठो को दांतों से काट रही थी वो उसकी आँखों में वासना के डोरे तैर रहे थे उसके बदन ने संकेत देने शुरू कर दिए थे की वो अपने चरम की और अग्रसर है
पर तभी महराज का दम फूल गया और वो झड गए संयुक्ता के सारे अरमान एक बार फिर से मिटटी में मिल गए जिस चेहरे पर दो पल पहले असीम आनंद था अब उस पर क्रोध था वो गुस्से में फुफ्कने लगी थी
“महाराज ”
“अब हम क्या करे संयुक्ता, हम तो अपनी तरफ से पूरा करते ही है पर तुम ना, दो रनिया और है वो तो पनाह मांगती है है पर तुम ”
“तुम क्या , अब मैं क्या करू अगर आप मेरी अगन बुझा नहीं पाते है ”
“कभी कभी तुम वेश्याओ की तरह हरकते करती हो अपनी आदतों को सुधारो संयुक्ता ”
महाराजने अपने कपडे पहने और चले गए ,जबकि रानी रह गयी सुलगते हुए वेश्या से तुलना की उसकी , उसकी ये बात उसके मन को चुभ गयी महाराज शब्दों का सहरा लेकर अपनी कमजोरी छुपा रहे थे उसी पल संयुक्ता ने निर्णय किया की अगर उसकी तुलना बेश्या से की गयी है तो वो अब कुछ भी करे अपनी प्यास बुझाने का इंतजाम खुद ही करेगी
आज से महाराज अपनी माँ चुदाय , जाये अपनी उन दोनों रानियों के पास जो उनसे पनाह मांगती है पर संयुक्ता एक शेरनी थी जिसे बस शिकार ही पसंद था उसके मन में आया की अभी के अभी मोहन को बुलवा ले पर उसका बेटा पृथ्वी आने वाला था तो वो कुछ सोच कर चुप रह गयी पर उसकी चुप्पी एक आने वाले तूफ़ान का संकेत थी जो सब कुछ बदल कर रख देने वाला था
तो दिन गुजरे आइ नागपंचमी , राजधानी का महादेव मंदिर आज से पहले कभी इतना नहीं सजा था भव्यता झलक रही थी आज पता नहीं कितनेआभूषण से बाबा का श्रंगार किया गया था ढेरो, बल्कि यु कहू की हजारो नाग आज मंदिर में थे जहा तह पर मजाल क्या जो किसी इन्सान को डर लग रहा हो सब भोले बाबा की कृपा
खुशी दुगनी इसलिए थी की आज राजकुमार पृथ्वी आ रहे थे उनका राज्याभिषेक होना था पर पहले उनको दर्शन करना था बाबा का अपने लाव-लश्कर के साथ महाराज चंद्रभान पधारे तीनो रनिया उनके साथ पर अगर बात की जाये तो संयुक्ता की आभा में बाकि दोनों रानिया जैसे कही खो सी गयी थी
अपने लोगो के साथ मोहन भी आया उसका बाप राज सपेरा था तो महाराज के बाद उसको ही नागराज को दूध पिलाना था सबने महाराज और बाकि लोगो को परणाम किया मोहन और संयुक्ता की नजरे आपस में मिली और दोनों ही तड़प से उठे महाराज ने भोग लगाया फिर मोहन के बापू ने महाराज ने मंदिर के प्रांगन से ही पृथ्वी क राज्याभिषेक की घोषणा की जो की शाम को होना था
रानी का दिल मोहन से मिलने को मचल रहा था पर महाराज के साथ वो नगर के लोगो को तोहफे बाँट रही थी अब कर तो क्या करे मोहन का बापू कुछ लोगो से मिलने चला गया तो मोहन ने सोचा की वो भी नागो को दूध पिला दे भीड़ ज्यादा थी तो अपनी बारी का इंतजार करने लगा तभी उसे अपनी आँखों पर जैसे विश्वास ही नहीं हुआ
उसने सहेलियों के साथ मोहिनी को आते देखा क्या खूब लग रही थी वो मोहन को एक बार तो जैसे विश्वास ही नहीं हुआ की मोहिनी से यु मुलाकात होगी उसकी वो इठलाते हुए उसकी तरफ आ रही थी और फिर उसने अपनी सहेलियों से कुछ कहा वो आगे बढ़ गयी मोहिनी मोहन के पास रुक गयी
“तुम यहाँ ”
“हां, मेले में आया था पर शायद किस्मत में तुमसे मिलना था ”
“अच्छा, किया ये हाथ में क्या है तुम्हारे ”
“दूध है ”
“दिखाओ जरा,”
जैसे ही मोहन ने अपना बर्तन ऊपर किया मोहिनी ने बर्तन को अपना मुह लगाया और गतागत सारा दूध पि गयी मोहन भोचक्का रह गया
“”अरे ये क्या किया “
“इच्छा हुई तो पी लिया वैसे भी किसी की भूख मिटाना से ज्यादा पुन्य मिलता है ना ”
मोहन मुस्कुरा दिया
मोहिनी- मेरे साथ सखिया है और परिवार वाले भी तो मैं ज्यादा बात नहीं कर पाऊँगी पर कल मैं तुम्हे पक्का वही मिलूंगी
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