02-12-2022, 02:24 PM,
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desiaks
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RE: Sex Vasna चोरी का माल
तीन पत्ती गुलाब
भाग-17
गौरी ने एक नज़र मेरे अर्ध उत्तेजित लंड पर डाली और फिर अपनी मुंडी झुका ली। अब मैंने अपने लंड को एक हाथ की मुट्ठी में पकड़ा और उसे थोड़ा हिलाते हुए ऊपर नीचे किया। पप्पू महाराज अब अपनी निद्रा से जागने लगे थे।
“गौरी अब तुम इसे अपने हाथों में पकड़ कर इसी तरह थोड़ा हिलाओ।”
मेरे ऐसा कहने पर गौरी ने थोड़ा डरते-डरते और झिझकते हुए मेरे लंड को अपने एक हाथ से छुआ।
“डरो नहीं … ठीक से पकड़कर हिलाओ।”
गौरी अब नीचे उकड़ू होकर बैठ गई और उसने अपनी मुंडी झुकाए हुए धीरे-धीरे मेरे लिंग को अपनी अँगुलियों से पकड़ा और फिर मुट्ठी में लेकर थोड़ा सा हिलाने की कोशिश की। पप्पू महाराज ने अंगड़ाई सी लेनी शुरू कर दी। गौरी की पतली, नाजुक और लम्बी अँगुलियों के बीच दबे पप्पू का आकार अब बढ़ने लगा था। आह … क्या नाज़ुक सा अहसास था।
“शाबश गौरी! इसी तरह ऊपर नीचे करो … हाँ थोड़ा जल्दी जल्दी करो … रुको मत!”
गौरी थोड़ा झिझक जरूर रही थी पर उसने मेरे पप्पू को अब पूरी तरह से अपनी मुट्ठी में पकड़ कर ऊपर नीचे करना चालू कर दिया। जिस प्रकार गौरी इसे मुठिया रही थी मुझे लगा वह कतई अनाड़ी तो नहीं लगती। मेरा अनुभव कहता है उसने किसी का लंड भले ही ना पकड़ा हो पर इसने किसी को ऐसा करते देखा तो जरूर होगा।
पप्पू तो अब अपने पूरे जलाल पर आ गया था, बार-बार ठुमके लगा रहा था। एक-दो बार तो गौरी के हाथ से फिसल गया तो गौरी ने दोनों हाथों से उसे पकड़ लिया और फिर उसे हिलाने लगी।
मेरा मन तो कर रहा था हाथों का झंझट छोड़कर सीधा ही इसके मुखश्री में डाल दूं पर इस समय जल्दबाजी ठीक नहीं थी। चिड़िया अब पूरी तरह जाल में कैद है भाग कर कहाँ जायेगी। अंत: इसे मुंह में लेकर चूसना तो पड़ेगा ही वरना ऐसे हिलाने से तो इसकी मलाई इतना जल्दी नहीं निकलने वाली।
“वो तब नितलेगा?”
“थोड़ा समय तो लगेगा पर तुम जरा जल्दी-जल्दी और प्यार से हाथ चलाओ तो जल्दी ही निकल जाएगा।”
मैंने उसे दिलासा दिलाया। आज मेरे पप्पू का इम्तिहान था। मैंने आपको बताया था ना कि कल रात को गौरी को पढ़ाने के चक्कर में देरी हो गयी थी तो नींद नहीं आ रही थी तो मैंने पप्पू महाराज की तेल मालिश करके सेवा की थी तो आज यह इतना जल्दी झड़ने वाला नहीं लगता।
“शाबाश गौरी बहुत बढ़िया कर रही हो।”
“नितले तब बता देना प्लीज?”
“हाँ … हाँ … तुम चिंता मत करो मैं बता दूंगा तुम मुंह में … मेरा मतलब कटोरी में डाल लेना।”
गौरी ने बोला तो कुछ नहीं पर उसकी लंड हिलाने की रफ़्तार जरूर बढ़ गई।
जब हमारी नई-नई शादी हुई थी तो माहवारी के दिनों में कई बार मधुर इसी प्रकार अपने हाथों से मेरे लंड को हिला-हिला कर इसका जूस निकाला करती थी। बाद में तो उसने चूसना शुरू कर दिया था और जिस प्रकार वह लंड चूसती है मुझे लगता है अगर इस विषय में कोई ऑफिशियल डिग्री होती तो मधुर को जरूर पीएचडी की डिग्री मिलती।
“गौरी मेरी जान तुम बहुत अच्छा कर रही हो … आह … शाबाश … इसी तरह करती जाओ … गुरुकृपा से तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जायेंगे।”
गौरी अब दुगने उत्साह के साथ लंड महाराज की सेवा करने लगी। वह अपने दोनों हाथ बदल-बदल कर लंड हिला रही थी और अब तो उसने उसकी चमड़ी को ऊपर नीचे करना भी शुरू कर दिया था। जब भी वह अपनी मुट्ठी को ऊपर करती तो सुपारा चमड़ी से ऐसे बंद हो जाता जैसे किसी दुल्हन ने शर्माकर घूँघट निकाल लिया हो। और फिर जब वह मुट्ठी को नीचे करती तो लाल रंग का सुपारा किसी लाल टमाटर की तरह खिल उठता।
गौरी अब बड़े ध्यान से मेरे उफनते लंड और सुपारे को देखती जा रही थी। तनाव के कारण वह बहुत कठोर और लाल हो गया था। मेरी आँखें बंद थी और मैं हौले-हौले उसके सिर पर अपना हाथ फिरा रहा था। आज उसने पतली पजामी और हाफ बाजू का शर्ट पहना था। ऊपर के बटन खुले थे और उनमें से उसकी नारंगियाँ झाँक सी रही थी मानो कह रही हो हमें भूल गए क्या? कंगूरे तो तनकर भाले की नोक की तरह हो चले थे।
गौरी को मेरा लंड मुठियाते हुए कोई 8-10 मिनट तो हो ही गए थे पर पप्पू महाराज अपनी अकड़ खोने को तैयार ही नहीं हो रहे थे। वो तो ऐसे अकड़ा था जैसे शादी में दुल्हा किसी नाजायज़ मांग को लेकर मुंह फुलाए हुए बैठा हो।
“ये तो नितल ही नहीं रहा?” गौरी ने अपना हाथ रोकते हुए मेरी ओर देखा।
“ओहो … पता नहीं आज इसे क्या हो गया है? मधुर तो बहुत जल्दी इसका रस निकाल दिया करती है.”
“उनतो तो इसता अनुभव है।”
“गौरी एक काम करो?”
“त्या?” गौरी ने आश्चर्य से मेरी ओर देखा।
“वो थोड़ा सा नारियल का तेल इसके सुपारे पर लगा कर करो फिर निकल जाएगा?”
गौरी ने हाथ बढ़ाकर तेल की शीशी पकड़ी और थोड़ा सा तेल निकाल कर मेरे लंड के सुपारे पर लगा दिया। और फिर से पप्पू महाराज की पूजा शुरू कर दी।
“गौरी?”
“हम?”
“आज तो यह साला पप्पू लिंग देव बना है बेचारी इतनी खूबसूरत अक्षत यौवना कन्या इतनी देर से पूजा में लगी है और यह प्रसन्न होकर उसे प्रसाद ही नहीं दे रहा। इसे ज़रा भी दया नहीं आती.” कह कर मैं हंसने लगा।
“हट!”
कितनी देर बार गौरी सामान्य हुई थी। लंड तो अब ठुमके पर ठुमके लगा रहा था। और सुपारे पर प्री कम की कुछ बूँदें चमकने लगी थी। गौरी को लगा अब जरूर प्रसाद मिलने वाला है तो इसी आशा में उसने दुगने जोश के साथ पप्पू को उमेठना शुरू कर दिया।
कोई 5 मिनट तक गौरी ने हाथ बदल-बदल कर पप्पू को हिलाया, मरोड़ा और उसकी गर्दन को कसकर मुट्ठी में भींचते हुए ऊपर नीचे किया पर हठी लिंग देव प्रसन्न नहीं हुए अलबत्ता उन्होंने तो रोद्र रूप धारण कर लिया और रंग ऐसा हो गया जैसे क्रोध में धधक रहा हो।
“ये तो नितल ही नहीं लहा? अजीब मुशीबत है?” गौरी ने थक कर हाथ रोक दिए।
“गौरी हो सकता है तुम्हें थोड़ा अजीब सा लगे?”
“त्या?”
“यार … वो पता नहीं तुम मुझे गलत ना समझ बैठो?”
“नहीं … बोलो … ।”
“वो … इसे अपने मुंह में लेकर … अगर थोड़ा सा चूस लो तो … मुंह की गर्मी से 2 मिनट में ही निकल जाएगा।”
मैंने गौरी की ओर आशा भरी नज़रो से देखा। मुझे लगा गौरी ‘हट’ बोलते हुए मना कर देगी।
“पल … वो तो शहद ते साथ मिलातर मुंहासों पर लगाना है ना?”
“हाँ वही तो कह रहा हूँ मुंह में लेने से बहुत जल्दी निकल जाएगा और जब निकलेगा तब मैं बता दूंगा तुम तुरंत उसे पास रखी कटोरी में डाल लेना.”
“हओ …” गौरी को हर बात में हओ बोलने की आदत ने मेरा काम आसान कर दिया।
“एक और बात है?”
गौरी ने मेरी ओर सवालिया निगाहों से देखा।
“इसे कटोरी में डालने की कोई हड़बड़ी या जल्दबाजी मत करना वरना यह नीचे गिर जाएगा तो किसी काम नहीं आएगा। अगर गलती से थोड़ा बहुत तुम्हारे मुंह में भी चला जाए तो उसे थूकना मत। क्योंकि यह तो एक तरह की दवाई है लगाने से ज्यादा पीने पर असर करती है। तुम समझ रही हो ना?”
गौरी ने इस बार ‘हओ’ तो नहीं बोला पर सहमति में अपनी मुंडी जरूर हिला दी।
“गौरी, अब एक काम करो?”
“त्या?”
“तुम थोड़ा शहद अपनी जीभ पर भी लगा लो और थोड़ा मुझे दो मैं इसपर लगा देता हूँ फिर तुम्हें और भी आसानी हो जायेगी।”
अब गौरी कुछ सोचने लगी थी। मेरी उत्तेजना बहुत बढ़ गई थी। पप्पू महाराज जोर-जोर से उछल रहा था। जिस प्रकार गौरी सोचती जा रही थी मुझे लगा ज्यादा देर की तो साला पप्पू इस बार भी चुनाव हार जाएगा। मेरा दिल इतनी जोर से धड़कने लगा था कि मुझे तो डर लगने लगा कहीं यह बीच रास्ते में ही शहीद ना हो जाए। पप्पू तो लोहे के सरिये की तरह कठोर हो गया था।
गौरी ने एक चम्मच शहद अपने मुखश्री के हवाले किया और बाकी से मैंने अपने पप्पू का अभिषेक कर दिया।
गौरी ने पप्पू को अपने एक हाथ में पकड़ लिया। पप्पू ने जोर का ठुमका लगाया तो गौरी ने उसकी गर्दन कसकर पकड़ ली और फिर सुपारे की ओर पहले तो गौर से देखा। ओह्ह्ह … उसने इतने चिकने, मांसल और कठोर लण्ड के अधखुले सुपारे की चमड़ी ऊपर खींच कर उसे पूरा खोल दिया। गुलाबी सुर्ख सुपारा जिसके बीच में छोटा छेद और उस पर प्री कम की बूँद।
और फिर उसने अपनी जीभ उस पर लगा दी। एक गुनगुना सा लरजता गुलाबी अहसास मेरे सारे शरीर में दौड़ गया। गौरी ने पहले तो मेरे सुपारे पर अपनी जीभ फिराई और फिर पूरे सुपारे हो मुंह में भर लिया। और फिर दोनों होंठों को बंद करते हुए उसे लॉलीपॉप की तरह बाहर निकाला।
प्यारे पाठको और पाठिकाओ! मेरी जिन्दगी का यह सबसे हसीन लम्हा था। मैं सच कहता हूँ मैंने लगभग अपनी सभी प्रेमिकाओं को अपना लिंगपान जरूर करवाया है पर जो आगाज (शुरुआत) गौरी ने किया है मुझे लगता है उसका अंजाम बहुत ही अनूठा, रोमांचकारी, हसीन और अविस्मरणीय होने वाला है।
गौरी ने दो-तीन बार सुपारे पर अपनी जीभ फिराई और फिर उसे अपने मुंह में लेकर अन्दर बाहर किया। फिर उसने चूसकी (लम्बी गोल आइस कैंडी) की तरह मेरे लंड को चुसना शुरू कर दिया। मैंने उसका सिर अपने हाथों में पकड़ लिया। जिस प्रकार वह मेरे लंड को चूस रही थी मुझे शक सा होने लगा कहीं इसने ऐसा अनुभव पहले तो किसी के साथ नहीं ले रखा है?
आप सभी तो बड़े गुणी और अनुभवी हैं। आप तो जानते ही हैं लंड चूसना भी एक कला है। होठों के बीच दबा कर जीभ से दुलारना या हौले से दांत गड़ाने में बड़ा मजा आता है। या वेक्यूम क्लीनर की तरह पूरा का पूरा लंड मुंह में लपेट गले की गहराई में उतार मलाईदार दूध चखने का अपना ही मज़ा है।
पहले जमाने में तो लड़कियां अपनी नव विवाहित सहेलियों या भाभियों से उनके अनुभव सुनकर ही यह सब सीखती थी पर आजकल तो पोर्न फ़िल्में देख कर सभी लड़कियां शादी से पहले ही इस कला में माहिर हो जाती हैं। अब यह मात्र एक संयोग है या कोई दीगर बात है साली इस तोतापरी ने यह कमाल और कला कहाँ से सीखी होगी पता नहीं।
गौरी की चुस्कियों की लज्जत से मेरा लंड तो जैसे निहाल ही हो गया। मैंने उसका सिर अपने हाथों में पकड़ रखा था और मेरी कमर अपने आप थोड़ी-थोड़ी चलने लगी। इससे मेरा लंड आसानी से गौरी में मुखश्री में अन्दर बाहर होने लगा था। इस मुख चोदन का अहसास और रोमांच के मारे मेरी सीत्कार सी निकलने लगी थी।
गौरी ने अपना मुंह थोड़ा सा ऊपर करके मेरी ओर देखा था। शायद वह मेरी प्रतिक्रया देखना चाहती थी कि मुझे यह सब कितना अच्छा लग रहा है और वह ठीक से कर पा रही है या नहीं।
“गौरी मेरी जान! बहुत अच्छा कर रही हो बस थोड़ी देर और ऐसे ही सुपारे पर अपनी जीभ घुमाओ और अन्दर बाहर करो तो निकल जाएगा। नीचे गोटियों को भी दबाओ तुम्हें बहुत अच्छा लगेगा। आह … यू आर डूइंग ग्रेट!”
गौरी अपनी प्रशंसा सुनकर अब इस क्रिया को और बेहतर करने की कोशिश करने लगी थी। पहले तो वह सुपारा ही अपने मुंह में ले रही थी अब तो उसने गले तक मेरा लंड लेना शुरू कर दिया था। धीरे धीरे वो मेरे लंड को इतनी तेज़ी से चूसने और चाटने लगी कि उसका चेहरा इस तरह से नशीला नज़र आने लगा जैसे उसने दारू पी रखी हो।
उसके पतले और मखमली होंठों का स्वाद चख कर तो मेरा लंड जैसे धन्य ही हो गया। मैं सच कहता हूँ लंड चुसाई में जो लज्जत है वह चूत और गांड में भी नहीं है। इस नैसर्गिक आनन्दमयी क्रिया का कोई विकल्प तो हो ही नहीं सकता। काश वक़्त रुक जाए और गौरी इसी प्रकार मेरे लंड का चूषण और मर्दन करती रहे।
मेरे कंजूस पाठको और पाठिकाओ, आमीन तो बोल दो।
गौरी अब कुछ ज्यादा ही जोश में आ गई थी। उसने मेरे लंड को पूरा जड़ तक अपने मुंह में लेने की कोशिश कि तो सुपरा उसके हल्क तक चला गया इससे उसे थोड़ी खांसी आने लगी और फिर उसने मेरा लंड अपने मुंह से बाहर निकाल दिया।
“मेला तो गला दुखने लग गया?” गौरी ने अपना गला मसलते हुए कहा।
“गौरी जल्दबाजी मत करो धीरे-धीरे जितना आसानी से अन्दर ले सको उतना ही लो। गौरी तुम लाजवाब हो … बहुत अच्छा कर रही हो। बस निकलने ही वाला था कि तुमने बाहर निकाल दिया। अबकी बार निकल जाएगा शाबाश … इसी तरह कोशिश करो। मैं सच कहता हूँ इतना अच्छा तो मधुर भी नहीं करती।”
गौरी ने अपनी तुलना मधुर से होती देख एकबार फिर से पप्पू को दुगने जोश के साथ चूसना चालू कर दिया। मुझे लगने लगा अब मैं ज्यादा तनाव सहन नहीं कर पाऊंगा और जल्दी ही झड़ जाउंगा। मेरा मन तो कर रहा था जोर-जोर से अपने लंड को उसके मुंह में अन्दर बाहर करूं पर मुझे डर था कहीं गौरी बिदक ना जाए या उसे फिर से खांसी ना जाए। और अगर इस कारण उसे असुविधा हुई और उसने फिर आगे लंड चूसने से मना कर दिया तो आज लौड़े लगेंगे नहीं अलबत्ता झड़ जरूर जायंगे।
गौरी अपनी लपलपाती जीभ से मेरे लंड को कभी चाटती कभी चूसती कभी पूरा अन्दर लेकर बाहर तक खींचती। इस लज्जत को शब्दों में बयान करना कहाँ संभव है।
मेरे शरीर में वीर्य स्खलन से पहले होने वाले रोमांच की एक लहर सी दौड़ने लगी। मुझे लगा अब वीर्य निकलने का आखिरी पायदान नजदीक आ गया है। मैंने गौरी को कहा तो था कि जब निकलेगा मैं बता दूंगा और तुम इसका रस कटोरी में डाल लेना पर मैं अब इस लज्जत को इस प्रकार खोना नहीं चाहता था। मैं चाहता था गौरी मेरे सारे वीर्य को पूरा निचोड़कर चूस ले और इसे अपने हल्क के रास्ते उदर (पेट) में उतार ले।
दोस्तो! प्रकृति बड़ी रहस्यमयी है। हर नर अपना वीर्य मादा की कोख में ही डालना चाहता है। और वीर्य स्खलन के समय उसका हर संभव प्रयास यही रहता है कि वीर्य का एक भी कतरा व्यर्थ ना जाए और किसी भी छेद के माध्यम सीधा उसके शरीर के अन्दर चला जाए अब वह छेद चाहे चूत का हो, गांड का हो या फिर मुंह का हो क्या फर्क पड़ता है। इसीलिए स्खलन के समय नर अपनी मादा को कसकर भींच लेता है और अपने लिंग को उसके गर्भाशय के अन्दर तक डालने का प्रयास करता है।
और मेरी प्रिय पाठिकाओ और पाठको! मैं भी तो आखिर एक इंसान ही तो हूँ मैं भला प्रकृति के नियमों के विरुद्ध के जा सकता था? मुझे लगा मेरा तोता अब उड़ने वाला है तो मैंने गौरी का सिर अपने हाथों में कसकर पकड़ लिया और अपने लंड को उसके कंठ के आखिरी छोर तक ठेल दिया।
गौरी के हल्क से गूं-गूं की आवाज निकलने लगी और थोड़ा कसमसाने लगी थी। मुझे लगा वह मेरे लंड को बाहर निकाल देगी और मैं प्रकृति के इस अनूठे आनन्द को भोगने से महरूम (वंचित) हो जाऊंगा। मैं कतई ऐसा नहीं होने देना चाहता था। मैंने उसका सिर अपने हाथों में और जोर से जकड़ लिया।
“गौरी मेरी जान … प्लीज हिलो मत … प्लीज गौरी आह … मेरी जान गौरी … आह … मेरा निकलने वाला है … इसे बाहर मत निकलने देना … तुम्हें मेरी कसम … प्लीज … तुम इसे दवाई या लिंग देव का प्रसाद समझ कर पी जाओ … मेरी जान … आई लोव यू गौ …र.. र … रीईईईई … आईईईईइ …!!!
और फिर मेरे लंड ने पिचकारी मारनी शुरू कर दी। गौरी ने अपने हाथों को मेरी कमर और जाँघों पर लगाकर मुझे थोड़ा धकलते हुए अपना सिर मेरी गिरफ्त से छुड़ाने की भरसक कोशिश की पर वह इसमें सफल नहीं हो पाई। और मेरा गाढ़ा और ताज़ा वीर्य उसके कंठ में समाता चला गया। अब उसके पास इसे पी जाने के अलावा और कोई विकल्प ही नहीं बचा था। गौरी गटा-गट सारा वीर्य पी गई।
मेरा लंड 5-6 पिचकारियाँ मारकर अब फूल और पिचक रहा था। मेरी साँसें बहुत तेज़ हो गयी थी। मुझे लगा गौरी का को शायद सांस लेने में परेशानी हो रही है। उसके मुंह से अब भी गूं-गूं की आवाज निकल रही थी।
“गौरी आज तुमने मेरी शिष्या होने का अपना फ़र्ज़ पूरा कर दिया। मैं तुम्हारा बहुत आभारी हूँ मेरी जान … तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद। गौरी यू आर ग्रेट।”
मेरा लंड अब थोड़ा ढीला पड़ने लगा था और मेरी गिरफ्त भी ढीली हो गई थी। गौरी ने इसका फ़ायदा उठाया और उसने मेरा लंड अपने मुंह से बाहर निकाल दिया। और अब वह खड़ी होकर जोर-जोर से खांसने लगी और तेज़-तेज सांस लेने लगी।
मुझे लगा गौरी अब जरूर यह शिकायत करेगी कि मैंने जबरदस्ती अपना वीर्य उसके मुंह में निकाल दिया। इससे पहले कि वह संयत हो मैंने उसका सिर अपने हाथों में पकड़ कर उसके होंठों को चूमने लगा। एक शहद भरी मिठास और गुलाब की पंखुड़ियों जैसा अहसास के एकबार फिर से पुनरावृति होने लगी। फिर मैंने कई चुम्बन उसके होंठों गालों और माथे पर ले लिए।
फिर मैंने उसे अपने बाहुपाश में भरकर अपने सीने से लगा लिया। और धीरे-धीरे उसके सिर और पीठ पर हाथ फिराने लगा। उसके दूद्दू मेरे सीने से लगे थे और उसके दिल की धड़कन मैं साफ़ सुन सकता था। आह … उस दिन सुहाना के उरोज भी तो ऐसे ही मेरे सीने से लगे थे। दोनों में कितनी समानता है।
गौरी कुछ बोलने का प्रयास कर रही थी पर इससे पहले कि वह कुछ बोले या शिकायत करे मैंने कहा- गौरी, आज तुमने अपने गुरु की लाज रख ली। मैं तुम्हारा यह उपकार जीवन भर नहीं भूलूंगा। सच में गौरी आज तुमने मुझे वह सुख दिया है जो एक पूर्ण समर्पिता प्रेयसी या शिष्या ही दे सकती है। इसके बदले तुम कभी मेरी जान भी मांगोगी तो मैं सहर्ष दे दूंगा।
अब बेचारी के पास तो बोलने के लिए कुछ बचा ही नहीं था। वह तो बस बुत बनी जोर-जोर से सांस लेती मेरे सीने से लगी बहुत कुछ सोचती ही रह गई। मैंने उसके सिर, कन्धों, पीठ और नितम्बों पर ऐसे हाथ फिराया जैसे मैं उसके इस ऐतिहासिक और साहसिक कार्य पर उसे सांत्वना और बधाई दे रहा हूँ।
मेरा मन तो आज उसके साथ नहाने का भी कर रहा था। मौक़ा भी था और दस्तूर भी था पर मैंने इसे अगले सोपान में शामिल करने के लिए छोड़ दिया।
“गौरी … एक बार तुम्हारा फिर से धन्यवाद … अगर भगवान् ने चाहा तो इस दवा से बस दो दिनों में ही तुम्हारे सारे मुंहासे ठीक हो जायेंगे। मैं बाहर जा रहा हूँ पहले तुम फ्रेश हो लो, फिर मैं भी नहा लेता हूँ फिर दोनों तुम्हारी पसंद का नाश्ता करते हैं।”
आज तो बेचारी गौरी ‘हओ’ बोलना भी भूल गई थी।
मैं अपना बरमूडा पहन कर बाहर आ गया।
अथ श्री लिंग दर्शन एव वीर्यपान सोपान इति !!!
मेरे प्रिय कंजूस पाठको! आप मुझे अष्टावलेह (वायनाड) फ़तेह की बधाई भी नहीं देंगे क्या?
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RE: Sex Vasna चोरी का माल
तीन पत्ती गुलाब
भाग18
आइए अब योनि दर्शन और चूषण सोपान शुरू करते हैं…
लोग सच कहते हैं भगवान जब देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है। आज सुबह-सुबह गौरी ने लिंगपान किया और ऑफिस जाते ही एक और खुशखबर मिली।
मैंने आपको बताया था ना कि मेरे प्रमोशन की बात चल रही थी। इस सम्बन्ध में मेल तो पहले ही आ गया था पर भोंसले ने अभी किसी को बताने को मना किया था तो मैंने अभी यह बात किसी को नहीं बताई थी।
आज मोर्निंग मीटिंग में भोंसले ने घोषणा कर दी कि उसका पुणे ट्रान्सफर हो गया है और अब उनकी जगह अभी भरतपुर ऑफिस का काम मि. प्रेम माथुर संभालेंगे।
उन्होंने मुझे प्रमोशन की बधाई देते हुए अच्छे भविष्य की कामना की।
उसके बाद सभी ने मुझे ओपचारिक तौर पर बधाई और शुभकामनाएं दी।
मैंने आपको ऑफिस में आये उस नताशा नामक नए विस्फोटक पदार्थ के बारे में भी बताया था ना? लगता है खुदा ने भी खूब मन लगाकर इस मुजसम्मे की नक्काशी की होगी। पतले गुलाबी होंठों पर लाल लिपस्टिक के बीच चमकती दंतावली देखकर तो लगता है इसका नाम नताशा की जगह चंद्रावल होना चाहिए था।
चुस्त पजामी और पतली कुर्ती में ऐसा लग रहा था जैसे उसकी जवानी का बोझ इन कपड़ों में कहाँ संभल पायेगा? वह तो फूटकर बाहर ही आ जाएगा। वह मीटिंग हॉल में मेरे बगल वाली कुर्सी पर बैठी थी। उसने इम्पोर्टेड परफ्यूम लगा रखा था पर उसके बदन से आने वाली खुशबू ने तो मेरे दिल और दिमाग को हवा हवाई ही कर दिया था। क्या मस्त गांड है साली की। मैं सच कहता हूँ अगर मैं भरतपुर का राजा होता तो इसको अपने महल में पटरानी ही बना देता।
सबसे पहले हाथ मिलाकर उसी ने मुझे बधाई दी थी। वाह … क्या नाजुक सी हथेली और कलाइयां हैं। लाल रंग की चूड़ियों से सजी कलाइयां अगर खनकाने और चटकाने का कभी अवसर मिल जाए तो भला फिर कोई मरने की जल्दी क्यों करे, जन्नत यहीं नसीब हो जाए।
काश! कभी इस 36-24-36 की परफेक्ट फिगर (संतुलित देहयष्टि) को पटरानी बनाकर (पट लिटाकर) सारी रात उसके ऊपर लेटने का मौक़ा मिल जाए तो खुदा कसम मज़ा ही आ जाए।
मीटिंग के बाद चाय नाश्ते का प्रबंध भी किया गया था।
बाद में भोंसले ने बताया कि मुझे अगले 2-3 दिन में चार्ज लेकर हेड ऑफिस कन्फर्म करना होगा। सितम्बर माह के अंत में मुझे बंगलुरु ट्रेनिंग पर जाने के समय कोई और व्यक्ति अस्थायी रूप से ज्वाइन करेगा।
साली यह जिन्दगी भी झांटों के जंगल की तरह उलझी ही रहेगी।
दिन में मैंने मधुर को यह खुशखबरी सुनाई। शाम को घर पर इसे सेलिब्रेट करने का जिम्मा अब मधुर के ऊपर था। वैसे मधुर ज्यादा तामझाम पसंद नहीं करती है। बाहर से तो किसी को बुलाना ही नहीं था। मैं, मधुर और गौरी फकत तीन जीव थे।
जब मैं घर पहुंचा तो मधुर और गौरी दोनों हाल में खड़ी मेरा ही इंतज़ार कर रही थी। मधुर ने वही लाल साड़ी पहन रखी थी जो आज सुबह हरियाली तीज उत्सव मनाने के लिए आश्रम जाते समय पहनी थी।
और बड़ी हैरानी की बात तो यह थी कि आज गौरी ने भी मधुर जैसी ही लाल रंग की साड़ी और मैचिंग ब्लाउज पहन रखा था। आज गौरी का जलाल तो जैसे सातवें आसमान पर था। पतली कमर में बंधी साड़ी के ऊपर उभरा हुआ सा पेडू और गोल नाभि … और गोल खरबूजे जैसे कसे हुए नितम्ब… उफ्फ्फ… क्या क़यामत लगती है।
मन करता है साली को अभी पटरानी ही बना दूं।
मैं हाथ मुंह धोकर बाहर आया तो हम तीनों हॉल के कोने में बने छोटे मंदिर के सामने खड़े हो गए और दीपक जलाकर भगवान से आशीर्वाद लिया। मधुर ने मुझे कुमकुम का टीका लगाया और फिर थोड़ी सी कुमकुम मेरे गालों पर भी लगा दी।
आज मधुर बड़ी खुश और चुलबुली सी हो रही थी। उसके बाद हम डाइनिंग टेबल के पास आ गए जहां मिठाइयाँ, केक और अन्य सामान रखा था। फिर मधुर ने मेरे गले से लगकर मुझे बधाई दी। मैंने भी उसके गालों पर एक चुम्बन लेकर उसे थैंक यू कहा। फिर मधुर ने भी मेरे होंठों पर चुम्बन लिया और फिर मेरे गालों को जोर से चिकौटी सी काटते हुए मसल दिया।
गौरी यह सब देख रही थी। फिर गौरी ने भी मुस्कुराते हुए मुझे बधाई दी- सल! आपतो प्लमोशन ती बहुत-बहुत बधाई।
“अरे … पागल लड़की?” मधुर ने बीच में ही उसे डांटते हुए कहा।
“त्या हुआ?” गौरी ने डरते-डरते पूछा।
“बधाई कोई ऐसे दी जाती है?”
“तो?” गौरी ने हैरानी से मधुर की ओर देखा।
“आज कितना ख़ुशी का दिन है गले लगकर बधाई दी जाती है।” कह कर मधुर ठहाका लगा कर हंस पड़ी।
मुझे बड़ी हैरानी हो रही थी मधुर आज तो बहुत ही मॉडर्न बनी हुई है। गौरी तो बेचारी शर्मा ही गई।
“एक तो तुम्हें शर्म बहुत आती है?” मधुर ने एक झिड़की और लगाई तो गौरी धीरे-धीरे मेरी ओर आई और फिर पास आकर अपनी मुंडी नीचे करके खड़ी हो गयी जैसे उसे अभी हलाल किया जाने वाला है।
“अरे … ठ … ठीक है … कोई बात नहीं …” मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था। भेनचोद ये क्या नया नाटक है? हे लिंग महादेव! कहीं लौड़े मत लगा देना प्लीज।
गौरी अपनी मुंडी झुकाए कातर नज़रों से मधुर की ओर देखे जा रही थी।
“अरे?” मधुर ने फिर थोड़ा गुस्से से उसकी ओर देखा तो बेचारी गौरी के पास अब मेरी ओर बढ़ने के सिवा और क्या चारा बचा था? बेचारी छुईमुई बनी थोड़ा सा मेरे और नजदीक आ गई।
“ओह … बस … बस … ठीक है … ठीक है!” कहते हुए मैंने उसे अपनी बांहों में भरते हुए कहा।
मेरा एक हाथ उसके नितम्बों पर चला गया। आह … क्या गुदाज़ कसी हुई गोलाइयां हैं। मेरी अंगुलियाँ उसके दोनों नितम्बों की दरार में चली गयी। गौरी तो चिंहुक सी उठी। शुक्र था मेरी पीठ मधुर की ओर थी और गौरी मेरे सामने थी तो मधुर मेरी इस हरकत को शायद नहीं देख पाई। अब मैंने गौरी के गालों पर एक चुम्बन लिया और उसे थैंक यू भी कहा।
बेचारी गौरी तो मारे शर्म के लाजवंती ही बन गई।
“ये गौरी भी एक नंबर की लाजो घसियारी ही है.” कह कर मधुर एक बार फिर हंस पड़ी।
“चलो आओ अब केक काटते हैं।”
फिर हम तीनों ने मिलकर केक काटा और एक दूसरे को भी खिलाया। यह बात जरूर गौर करने वाली थी कि मधुर ने मेरे गालों पर भी थोड़ा केक लगा दिया और फिर उसे चाट भी लिया।
मेरा दिल जोर से धड़का कहीं वह गौरी को भी ऐसा करने के ना कह दे!
मेरे तो मज़े हो जायेंगे पर बेचारी गौरी तो मारे शर्म के मर ही जायेगी।
पर भगवान् का शुक्र है गौरी का मरना इस बार टल गया था।
मधुर ने मुझे अपने और गौरी के बीच में करके बहुत सी सेल्फी भी ली और हैंडीकैम को एक जगह सेट करके इस उत्सव की पूरी विडियो भी बनाई। फिर हम सभी ने मिलकर नाश्ता किया। हालांकि मधुर के तो व्रत चल रहे थे तो उसने केवल एक रसगुल्ला ही खाया पर मैंने और गौरी ने तो आज जी भर रसगुल्ले उड़ाये।
उसके बाद मधुर ने मेरे साथ गले में बाहें डाल कर सालसा डांस किया और फिर बद्रीनाथ की दुल्हनिया वाले गाने पर तो दोनों खूब ठुमके लगाए।
गौरी अब जरा भी नहीं शर्मा रही थी। उसने पहले तो किसी गाने पर बेले डांस किया और बाद में एक राजस्थानी लोक गीत “म्हारे काजलीये री कोर … थानै नैणा मैं बसाल्यूं” जबरदस्त डांस किया। मधुर तो उसका डांस देखकर हैरान सी रह गई थी। मैं तो बस गौरी की इस नागिन डांस पर बल खाती कमर के लटके झटके ही देखता रह गया। एक दो बार गौरी के साथ डांस करते समय मेरा लंड उसके नितम्बों से भी टकरा गया था। गौरी ने मेरे खड़े लंड को महसूस तो जरूर कर लिया था पर बोली कुछ नहीं।
और फिर यह धूम-धड़ाका रात 11 बजे तक चला। सच कहूं तो ऐसा उत्सव तो मधुर मेरे या अपने जन्म दिन पर भी कभी नहीं मनाया था।
और फिर अगले दिन सुबह…
आज शनिवार था। थोड़ी बारिश तो हो रही थी पर मधुर स्कूल चली गई थी और गौरी रसोई में रात के जमा बर्तन साफ़ कर करने में लगी थी।
मैं रसोई में चला आया।
गौरी ने आज वही पायजामा और कमीज पहन रखा था जो पहले दिन पहना था। मेरा मन तो आज फिर से उसे उसी प्रकार बांहों में दबोच लेने को कर रहा था पर बड़ी मुश्किल से मैंने अपने आप को तसल्ली देकर रोके रखा।
“गुड मोर्निंग … इंडिया!”
“गुड मोल्निंग सल … ”
“ओह … गौरी! तुम तो बर्तनों में लगी हो तो चलो आज की चाय मैं बनाकर पिलाता हूँ।”
“अले … नहीं.. आप लहने दो … बस हो गया मैं बना दूँगी.” गौरी ने मना करते हुए कहा।
“जानी … कभी हमारे हाथ की भी चाय पी लिया करो … हम भी बहुत कमाल की चाय बनाते हैं.” मैंने फिल्म स्टार राजकुमार की आवाज की नक़ल उतारते हुए कहा तो गौरी हंस पड़ी।
और फिर मैंने चाय बनाई अलबत्ता मैं जानबूझ कर बीच-बीच में गौरी से दूध, चाय पत्ती, अदरक आदि की मात्रा के बारे में जरूर पूछता रहा।
चाय थर्मोस में डाल कर मैंने कहा- अरे गौरी!
“हओ?”
“थोड़ी सी फिटकरी मिल जायेगी क्या?”
“फिटतड़ी … ता त्या तरना है?” कुछ सोचते हुए गौरी ने पूछा।
“अरे तुम लाओ तो सही?”
गौरी ने फिटकरी ढूंड कर मुझे दे दी।
“इसे तवे पर रखकर भूनना है और फिर इसे पीस कर उस पाउडर में थोड़ा कच्चा दूध, हल्दी पाउडर, नीबू का रस और गुलाब जल मिलाकर लेप बनेगा।”
“अच्छा?” गौरी ने कुछ सोचते हुए मेरे कहे मुताबिक सभी चीजें निकाल कर रसोई के प्लेटफोर्म पर रख दी।
मैंने पहले तो फिटकरी को भूनकर उसका चूर्ण बनाया और फिर एक प्लेट में ऊपर बताई सारी चीजें और चाय वाला थर्मोस कप आदि लेकर हम दोनों बाहर हॉल में आ गए।
“गौरी उस अष्टावलेह में तो बड़ा झमेला था, आज वाला मिश्रण भी बहुत बढ़िया है.” मैंने उसे समझाते हुए कहा तो अब गौरी के पास सिवाय ‘हओ’ बोलने के और क्या बचा था।
फिर मैंने एक कटोरी में पहले तो आधा चम्मच शहद डाला और फिर उचित मात्रा में अन्य चीजें डाल कर उनका लेप सा तैयार कर लिया।
गौरी साथ वाले सोफे पर बैठी यह सब देख रही थी। मैंने उसे अपने पास आने को कहा तो वह बिना किसी ना-नुकर के मेरी बगल में आकर बैठ गई।
“गौरी तुम्हें तो इन मुंहासों की कोई परवाह और चिंता ही नहीं है. पता है मैंने कल बड़ी मुस्किल से सारे दिन नेट पर इस दूसरे नुस्खे के बारे में पता किया है.”
गौरी ने हओ के अंदाज़ में मुंडी हिलाई।
अब मैंने एक अंगुली पर थोड़ा सा लेप को लगाया और फिर गौरी के चहरे पर हुई फुन्सियों पर लगाना शुरू कर दिया। बीच-बीच में मैं उसके गालों पर भी हाथ फिराता रहा। रेशम के नर्म फोहों और गुलाब की पंखुड़ियों की तरह नाजुक गाल देख कर मेरा मन तो उन्हें चूमने को करने लगा।
“गौरी देखो एक ही दिन में ये मुंहासे थोड़े नर्म पड़ने लग गए हैं।”
“सच्ची?” गौरी ने हैरानी से मेरी ओर देखा।
“और नहीं तो क्या? तुम अगर शर्माना छोड़ दो बस दो या तीन दिन में मेरी गारंटी है यह मुंहासे जड़ से ख़त्म हो जायेंगे.”
“अच्छा? इस लेप से?”
“हाँ यह लेप तो असर करेगा ही पर … वीर्यपान का असर तो पक्का ही होता है।”
“हट!” गौरी एक बार फिर शर्मा गई। उसने अपनी मुंडी झुका ली थी।
“पता है तल मुझे तो उबताई सी आने लगी थी. मेला तो गला ही दुखने लगा था.” गौरी का इतना लंबा चौड़ा उलाहना तो लाज़मी था। उसे सुनकर मैं हंसने लगा।
“अब दवाई है तो थोड़ी कड़वी और कष्टकारक तो होगी ही!”
“पता है तित्ता दर्द हुआ … मालूम?” गौरी ने अपने गले पर हाथ फिराते हुए हुए कहा।
“सॉरी! जान पर तुम्हारे भले के लिए यह सब मुझे करना पड़ा था। पता है मुझे भी कितनी शर्म आई थी.”
और फिर हम दोनों हंसने लगे। माहौल अब खुशनुमा हो गया था।
“चलो गला तो थोड़ा दर्द किया होगा पर यह बताओ उसका स्वाद कैसा लगा?”
“थोड़ा खट्टा सा और लिजलिजा सा था.” गौरी ने मुंह बनाते हुए कहा।
“गौरी! अगर मुंहासे जल्दी ठीक करने हैं तो आज एक बार और कर लो!” मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था। मुझे लगता था गौरी जरूर मना कर देगी।
“ना … बाबा ना … मुझे नहीं तरना … आप पूला गले ते अन्दल डाल देते हो मुझे तो फिल सांस ही नहीं आता.”
“अरे यार कल पहला दिन था ना? इसलिए थोड़ा ज्यादा अन्दर चला गया होगा पर आज मैं बिलकुल सावधानी रखूंगा? तुम्हारी कसम?”
गौरी ने शर्मा कर अपनी आँखों पर हाथ रख लिए।
इस्स्स्स …
याल्लाह … सॉरी … हे लिंग महादेव तेरी ऊपर से भी जय हो और नीचे से भी। आज तो मैं ऑफिस जाने से पहले जरूर तुम्हारा जलाभिषेक भी करूंगा और सवा ग्यारह रुपये का प्रसाद भी चढ़ाउंगा।
अब मैंने गौरी को अपनी बांहों में भींच लिया। गौरी छुईमुई बनी मेरे सीने से लग गयी।
“गौरी तुम बहुत खूबसूरत हो। और पता है भगवान यह खूबसूरती क्यों देता है?”
“किच्च” गौरी ने आँखें बंद किये किये ही अपने चिर परिचित अंदाज़ में इससे अनभिज्ञता प्रकट कर दी।
“गौरी! प्रकृति या भगवान ने इस कायनात (संसार) को कितना सुन्दर बनाया है और विशेष रूप से स्त्री जाति को तो भगवान ने सौन्दर्य की यह अनुपम देन प्रदान करने के पीछे एक बहुत बड़ा रहस्य है। इसके पीछे एक कारण तो यह है कि सभी इस सुन्दरता को देखकर अपने सारे दुःख और कष्टों भूल जाए और आनंदित होते रहें। यह भगवान की एक धरोहर की तरह है इसलिए हर सुन्दर लड़की और स्त्री का धर्म होता है कि प्रकृति की इस सुन्दरता को बनाए रखे और किसी भी अवस्था में इसे कोई हानि नहीं पहुंचे और कोशिश की जाए कि यह लम्बे समय तक इसी प्रकार बनी रहे।”
आज गौरी ने बोला तो कुछ नहीं पर मुझे लगता है वह अपनी सुन्दरता को मुंहासों से बचाए रखने के लिए कल मेरे द्वारा किये गए प्रयोग पर और भी गंभीरता से विचार करने लगी थी।
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02-12-2022, 02:27 PM,
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RE: Sex Vasna चोरी का माल
तीन पत्ती गुलाब
भाग-19
“वो … चाय … ठंडी हो जायेगी?” गौरी ने अस्फुट से शब्दों में कहा तो सही पर उसने मेरे बाहुपाश से हटने की बिलकुल भी कोशिश नहीं की थी। उसकी साँसें बहुत तेज़ चल रही थी और आँखें अभी भी बंद थी। मैं उसके सिर, पीठ, कमर और नितम्बों पर हाथ फिराता जा रहा था और साथ में प्रवचन भी देता जा रहा था।
दोस्तो! आप सोच रहे होंगे गुरु … ठोक दो साली को … क्यों बेचारी को तड़फा रहे हो … लौंडिया तुम्हारी बांहों में लिपटी तुम्हें चु … ग्गा (चूत.. गांड) देने के लिए तैयार बैठी है तुम्हें प्रवचन झाड़ने की लगी है। आप सही सोच रहे हैं। इस समय गौरी अपना सर्वस्व लुटाने को तैयार है बस मेरे एक इशारे की देरी है वह झट से मेरा प्रणय निवेदन स्वीकार कर लेगी।
मेरे प्रिय पाठको और पाठिकाओ! मज़ा तो तब आये जब गौरी खुद कहे कि ‘मेरे प्रियतम … आज मुझे अपनी पूर्ण समर्पिता बना लो!!’
हाँ दोस्तो! मैं भी उसी लम्हे का इंतज़ार कर रहा हूँ। बस थोड़ा सा इंतज़ार!
मैंने अपना प्रवचन जारी रखा- गौरी! नारी सौन्दर्य भगवान या प्रकृति का ऐसा उपहार है जो हर किसी के भाग्य में नहीं होता। जड़ हो या चेतन भगवान ने हर जगह अपना सौन्दर्य बिखेरा है। इनमें से बहुत कम लोग भाग्यशाली होते हैं जिन्हें यह रूप और यौवन मिलता है इसलिए इसे सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी भी उसी पर आती है। भगवान ने तुम्हें इतना सुन्दर रूप और यौवन देकर तुम्हारे ऊपर कितना बड़ा उपकार किया है तुम समझ रही हो ना?
अब पता नहीं यह प्रवचन गौरी के कितना पल्ले पड़ा पर उसने अपनी आँखें बंद किये-किये ही ‘हओ’ जरूर बोल दिया था।
मैंने गौरी का सिर अपने दोनों हाथों में पकड़ लिया और हौले से अपने होंठों को उसके लरजते (कांपते) अधरों पर रख दिए।
आह … जैसे गुलाब की पंखुड़ियां शहद में डूबी हुई हों।
धीरे-धीरे मैंने उसके अधरों को चूमना और चूसना शुरू कर दिया। गौरी ने कोई आनाकानी नहीं की। उसकी साँसें बहुत तेज होने लगी थी और अब तो उसने अपनी एक बांह को मेरी गर्दन के पीछे भी कर लिया था। उसकी एक जांघ मेरी जांघ से सट गयी थी। मेरा एक हाथ उसके नितम्बों से होता हुआ उसकी जाँघों के संधिस्थल की ओर सरकने लगा। योनि प्रदेश की गर्माहट पाकर मेरा पप्पू तो छलांगें ही लगाने लगा था।
मेरी अंगुलियाँ जैसे ही उसकी सु-सु को टटोलने की कोशिश करने लगी मुझे लगा कि गौरी का शरीर कुछ अकड़ने सा लगा है।
“सल … मुझे तुच्छ हो लहा है … मेले तानों में सीटी सी बजने लगी है … सल … मेला शलील तलंगित सा हो लहा है … ओह … मा … म … मेला सु-सु … आह … लुको … ईईईईईइ …”
उसके शरीर ने दो-तीन झटके से खाए और फिर वह मेरी बांहों में झूल सी गयी।
हे भगवान … यह तो बहुत ही कच्ची गिरी निकली … लगता है आज एक बार फिर उसने ओर्गस्म (यौन उत्तेजना की चरम स्थिति) को पा लिया है।
गौरी कुछ देर इसी तरह मेरी बांहों में लिपटी पड़ी रही। थोड़ी देर बाद वह कुछ संयत सी होकर सोफे पर बैठ गई। उसने अपनी मुंडी झुका रखी थी और अब वह अपनी नज़रें मुझ से नहीं मिला रही थी। शायद उसे लगा उसका सु-सु निकल गया होगा।
पर यह तो प्रकृति का वह सुन्दरतम उपहार और परम आनंदमयी क्रिया थी जिसे पाने और भोगने के लिए सारे जीव मात्र कामना करते हैं। इसी क्रिया से तो यह संसार-चक्र चल रहा है और यही तो इस संसार को अमृत्व (अमरता) प्रदान करता है। वरना प्रकृति इस क्रिया में इतना रोमांच और आनंद क्यों भरती।
मेरे कानों में भी सांय-सांय सी होने लगी थी। लंड तो जैसे बेकाबू होने लगा था। एक बार अगर यह चश्का लग गया तो अब वह नहीं मानने वाला।
“गौरी मैं मानता हूँ तुम्हें थोड़ा कष्ट तो जरूर होगा पर मैं सच कहता हूँ अगर तुम दो-तीन दिन और इसी तरह वीर्यपान कर लो तो फिर यह लेप-वेप का झमेला भी नहीं रहेगा और मुंहासे भी जड़ से ख़त्म हो जायेंगे.”
गौरी ने अपने गले पर हाथ फिराते हुए कहा- आप गले ते अन्दल तत डाल देते हो तो बड़ी असुविधा होती है।
“ओह … सॉरी इस बार मैं कुछ नहीं करूंगा तुम जिस प्रकार करना चाहो करना … गुड बॉय प्रोमिस!”
गौरी ने मेरी ओर देखा शायद वह बाथरूम में चलने का सोच रही थी।
“गौरी आज तो कुछ गिरने या गंदा होने का डर तो है नहीं, यहीं सोफे पर ही आसानी से हो जाएगा।” बेचारी गौरी जड़ बनी वही बैठी रही। मैंने हॉल का दरवाजा और खिड़की ठीक से बंद कर दी।
और फिर वापस सोफे पर आकर मैंने अपने पायजामे का नाड़ा खोल दिया.
गौरी ने थोड़ा झिझकते हुए मेरे पप्पू को अपने नाज़ुक हाथों में पकड़ लिया। पप्पू ने बेकाबू होते हुए एक जोर का ठुमका सा लगाया तो गौरी ने कसकर उसकी गर्दन पकड़ी और फिर उसे हिलाना चालू कर दिया।
मैंने पास रखी शहद की शीशी खोल कर गौरी को पकड़ा दी। गौरी ने थोड़ा शहद पप्पू के सुपारे पर लगाया और थोड़ा अपने मुख श्री में भी डाल लिया और फिर सुपारे को मुंह में भरकर चूसने लगी।
गौरी भी सोफे पर बैठी तो बार-बार मेरा लंड उसके मुंह से फिसल रहा था तो अब वह नीचे फर्श पर उकड़ू होकर मेरे पैरों के बीच में आकर लंड को चूसने लगी। मेरी दोनों टांगों के बीच उसका ऊपर नीचे होता सिर ऐसे लग रहा था जैसे वह यस-नो बोल रहा हो।
मैंने उसके गालों, होंठों, सिर और पीठ पर हाथ फिराना चालू कर दिया। अब मेरा ध्यान उसके उरोजों पर चला गया। आज उसने कमीज और पायजामा पहना था। कमीज के आगे के दो बटन खुले थे। लंड चूसते हुए जब गौरी अपने मुंह को ऊपर करती तो लगता जैसे दोनों कबूतर गुटर गूं कर रहे हैं। कंगूरे तो आज अकड़कर पेंसिल की नोक जैसे तीखे हो चले थे। मैंने हाथ बढ़ाकर उन्हें अपनी चिमटी में लेकर धीरे धीरे मसलना चालू कर दिया। गौरी अब और भी ज्यादा जोश में आ गयी और मेरे लंड को किसी चुस्की (आइस कैंडी) की तरह चूसने लगी थी।
दोस्तो! इस लज्जत को शब्दों में बयान करना आसान नहीं है। इसे तो बस आँखें बंद करके महसूस ही किया जा सकता है। मैं अगर कोई बहुत बड़ा लेखक या कवि होता तो इस लज्जत का बहुत खूबसूरती के साथ वर्णन कर सकता था पर मैं लेखक कहाँ हूँ।
पर यह तो सच है कि गौरी जिस प्रकार लंड चूस रही है उसका कोई जवाब ही नहीं है। मेरा लंड तो जैसे धन्य ही हो गया। पता नहीं यह सब उसने कहाँ से सीखा है? लगता है उसने जरूर किसी साईट पर यह सब तसल्ली से देखा और सीखा होगा।
कोई 10 मिनट तक गौरी ने लंड चूसा होगा। फिर वह सांस लेने के लिए थोड़ी देर रुकी।
“गौरी मेरी जान! यू आर ग्रेट ! तुम बहुत अच्छा चूसती हो।”
गौरी अपनी प्रशंसा सुनकर मुस्कुराने लगी थी। आज उसने ना तो गला दुखने की बात की और ना ही वीर्य जल्दी नहीं निकलने की कोई शिकायत की। एकबार फिर से उसने थोड़ा शहद मेरे लिंगमुंड पर लगाया और थोड़ा शहद अपनी जीभ पर लगा कर फिर से चूसना चालू कर दिया।
अब वह अलग-अलग तरीकों से लंड चूसने लगी थी कभी-कभी मेरी प्रतिक्रया जानने के लिए मेरी ओर भी देखती और मेरे चेहरे पर आई मुस्कान देखकर वह इस क्रिया को और भी बेहतर ढंग से करने का प्रयाश करने लगी। कभी सुपारे को चाटना, कभी उसपर जीभ फिराना, कभी लंड को जड़ तक मुंह में लेकर चूसते हुए धीरे धीरे बाहर निकालना, कभी उसे दांतों से काटना और फिर दुलारना … कभी गोटियों को सहलाना … आह … गौरी तो आज कमाल कर रही थी।
मैं आँखें बंद किये अपने भाग्य की सराहना करता रहा।
गौरी की 8-10 मिनट की कड़ी मेहनत के बाद लिंग महादेव प्रसन्न हुए और फिर उन्होंने अपना अमृत गौरी को भेंट कर दिया। गौरी तो कब से इस अमृत की प्रतीक्षा कर रही थी। वह इस हलाहल को गटागट पीती चली गयी। उसने वीर्य रूपी प्रसाद का एक भी कतरा बाहर नहीं आने दिया।
जब मेरा लंड कुछ ढीला पड़ गया तो गौरी ने उसे अपने मुंह से बाहर निकाल दिया। फिर उसे एक हाथ में पकड़कर उस पर हल्की सी चपत लगाकर हंसने लगी। साली ये जवान लड़कियां नखरे और अदाएं तो अपने आप सीख लेती हैं।
अब मैंने उसे अपनी बांहों में भरकर अपने पास फिर से सोफे पर बैठा लिया। फिर टेबल पर रखी मीठी इलायची और सुपारी की पुड़िया खोल कर आधी गौरी के मुख श्री में डाल दी और बाकी अपने मुंह में डाल ली। गौरी को अब उबकाई वाली समस्या भी नहीं होगी।
“गौरी! मेरी जान तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद। गौरी तुम सच में इस क्रिया को बहुत अच्छे से करती हो। मधुर भी कई बार करती तो है पर इतना सुन्दर ढंग से नहीं कर पाती।” मैंने उसके सिर पर हाथ फिराते हुए कहा।
अब बेचारी गौरी क्या बोलती वह तो मेरे आगोश में सिमटी बहुत कुछ सोचती ही रह गई।
“वो … चाय नहीं पीनी त्या?”
“गोली मारो चाय को … आज तो तुम अपनी पसंद के पकोड़े बनाओ तब तक मैं नहा लेता हूँ।”
“हओ” गौरी हंसते हुए रसोई में चली गई।
कहानी जारी रहेगी.
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02-12-2022, 02:29 PM,
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RE: Sex Vasna चोरी का माल
तीन पत्ती गुलाब
भाग-22
भेनचोद यह किस्मत भी हाथ में लौड़े लिए हर समय तैयार ही रहती है। गौरी इस समय रोमांच के उच्चतम स्तर पर पहुँच चुकी थी और बस मेरी एक पहल पर अपना सब कौमार्य मुझे सौम्प देने के लिए आतुर थी। मैं इस सोपान को आज ही सम्पूर्ण कर लेना चाहता था बस 10-15 मिनट की बात रह गयी थी।
पर ऐन वक़्त पर इस मोबाइल की घंटी से हम दोनों चौंक पड़े.
“ओह … दीदी ता फोन तो नहीं आ गया?” गौरी मेरी बांहों से छिटक कर दूर हो गई और उसने झट से अपने कपड़े उठाए और स्टडी रूम में भाग गई।
मेरा दिल जोर-जोर से किसी अनहोनी की आशंका से धड़कने लगा था। इस समय किसका फोन हो सकता है? मैंने कांपते से हाथों से मोबाइल उठाकर देखा, यह तो ऑफिस से फ़ोन था।
जैसे ही मैंने हेलो कहा उधर से आवाज आई- प्रेम जी सर … मैं बहादुर बोल रहा हूँ अपने गोडाउन में आग लग गई है आप जल्दी आ जायें.
“ओह … कब … आग कैसे लग गई?”
“हो सकता है शोर्ट सर्किट के कारण लगी हो.”
“हाँ … हाँ मैं पहुँच रहा हूँ जल्दी … तुम फायर ब्रिगेड को फ़ोन करो.”
अचानक हुए इस घटनाक्रम से मैं एक बार तो किमकर्तव्यविमूढ़ सा बन कर रह गया। थोड़ी देर बाद कुछ संयत हुआ। मैंने दुबारा हेलो बोला तब तक फोन कट चुका था।
अब तुरंत ऑफिस जाने की मजबूरी थी। फिर पूरा दिन आग से हुए नुक्सान का अनुमान लगाने, हेड ऑफिस इन्फॉर्म करने, इन्शुरेन्स क्लेम, पुलिस रिपोर्ट जैसी मगजमारी में ही बीत गया।
खैर शाम को जब मैं घर लौटा तो मधुर को ऑफिस के उस घटनाक्रम के बारे में बताया। खाना निपटाने के बाद मधुर तो सोने चली गई और गौरी अपनी किताबें लेकर मेरे पास आ बैठी।
मेरे दिमाग में तो आज सुबह की बातें ही घूम रही थी। गौरी ने आज हाफ बाजू की शर्ट और पाजामा पहना था। कल गौरी को कुछ होम वर्क दिया तो पहले तो उसे चेक किया बाद में उसे आगे के कुछ लेसन पढ़ाये।
मैंने गौर किया गौरी आज कुछ चुप सी है; उसका ध्यान पढ़ाई में नहीं लग रहा है।
“गौरी बस आज इतना ही पढ़ाई करेंगे आओ थोड़ी देर बात करते हैं.”
“हओ” कहते हुए गौरी ने अपनी किताबें बंद कर दी। वह तो जैसे तैयार ही बैठी थी।
“गौरी, आज तो पूरा दिन ही ऑफिस की मगजमारी में बीत गया।”
“ज्यादा नुत्सान (नुक्सान) तो नहीं हुआ?” गौरी ने पूछा।
“नुक्सान तो बहुत भारी हुआ पर इन्शुरेन्स कंपनी से क्लेम मिल जाएगा। पर दूसरे नुक्सान का क्लेम पता नहीं कब मिलेगा?” मैंने हंसते हुए कहा।
“दूसरा तौन सा नुत्सान हुआ है?”
“सुबह-सुबह कितना बड़ा अनमोल खजाना मिलने वाला था … बहुत बड़ा नुक्सान हो गया।”
“हट … ” गौरी ने शर्माते हुए कहा।
मैंने गौरी को पकड़कर अपनी बांहों में भर लिया।
“गौरी आओ उस अधूरे सबक को अभी पूरा कर लेते हैं.” इने उसके गालों पर चुम्बन लेते हुए कहा।
मैंने ध्यान दिया आज गौरी ने कानों में सोने की पतली-पतली बालियाँ पहन रखी हैं। ऐसी बालियाँ तो मिक्की पहना करती थी।
“गौरी ये कानों की बालियाँ कब ली?”
“वो तल पुत्रदा एकादशी थी ना तो दीदी ने मुझे ये बालियाँ दी हैं।”
“भाई वाह … और क्या-क्या दिया?”
मैं सोच रहा था कमाल है यह साली मक्खीचूस मधुमक्खी किसी को एक फटा कपड़ा नहीं देती गौरी पर इतनी मेहरबान कैसे हो रही है? समझ से परे लगता है।
“ओल … एक नाइटी भी दी थी।”
“अच्छा? पहनकर दिखाओ ना प्लीज …”
“ना … अभी नहीं बाद में?”
“एक तो तुम आजकल मिन्नतें बहुत करवाती हो?”
“तल दिखा दूंगी … प्लोमिज”
“अच्छा उसका रंग कैसा है यह तो बता दो?”
“गुलाबी है।”
“हे भगवान्! तुम्हारे ऊपर गुलाबी रंग कितना खूबसूरत लगेगा मेरा दिल तो अभी से धड़कने लगा है.”
ईईईइ … स्स्सस्स्स्स … गौरी शर्मा गई।
“आपतो एत बात बताऊँ?”
“हओ?” मेरा दिल धक्-धक् करने लगा।
“आप दीदी को तो नहीं बताओगे ना?”
“किच्च”
“वो दीदी ने मुझे बताया था कि उन्होंने अपनी सुहागलात तो ऐसी ही नाइटी पहनी थी.” कह कर गौरी शर्मा कर गुलज़ार ही हो गई।
आईला …
साली यह मधुर मेरा ईमान तुड़वा कर ही दम लेगी। पता नहीं मधुर के मन में क्या चल रहा है। मेरा लंड तो पजामे में उछलने ही लगा था। मन कर रहा था कौन कल का इंतज़ार करे आज ही और अभी इसे पटक कर धारा 370 हटा देता हूँ।
मैंने गौरी के नितम्बों पर हाथ फिराना चालू कर दिया। गौरी की मीठी सीत्कार निकालने लगी थी।
“गौरी और क्या बताया मधुर ने अपनी सुहागरात के बारे में?”
“आपतो सब पता है.”
“प्लीज बताओ ना?”
“दीदी ने बताया कि उस रात आपने उन्हें बहुत से गज़रे पहनाये थे?”
“गौरी तुम्हें भी गज़रे बहुत पसंद हैं क्या?”
गौरी आज ‘हओ’ बोलने के बजाय शरमाकर अपनी मुंडी नीचे कर ली।
मेरा हाथ अब उसकी सु-सु के पास पहुँच गया था। उसकी गर्मी और खुशबू पाकर मेरा पप्पू तो किलकारियां ही मारने लगा था। गौरी ने कस कर अपनी जांघें भींच ली।
“वो नाइटी पहन कर दिखा दो ना? प्लीज?”
“मैंने बोला ना कल दिन में दिखा दूंगी?”
“पर कल तो सन्डे है … मधुर तो सारा दिन घर पर रहेगी?”
“अले … तल दीदी पूले दिन गुप्ताजी ते यहाँ जाने वाली हैं?”
“क्या मतलब?”
फिर गौरी ने बताया कि पड़ोस वाले गुप्ताजी की लड़की नेहा की 3-4 दिन बाद शादी है तो कल दिन में तो मेहंदी और हल्द-हाथ का प्रोग्राम होगा और फिर रात को उनके यहाँ रतजगा का प्रोग्राम होगा। नेहा ने विशेषरूप से मधुर दीदी को को पूरे फंक्शन में और रात को भी अपने साथ रहने का बोला है।
हे लिंग देव! आज तो तेरी दिन में भी जय हो और रात में भी। मैंने गौरी को एक बार फिर से अपनी बांहों में भींच लिया। मेरा हाथ उसकी सु-सु तक पहुँच गया था। जैसे ही मेरी अंगुलियाँ उसके पपोटों को टटोलने लगी गौरी उछलकर खड़ी हो गयी और मुझे धक्का सा देते हुए बोली- अब आप सो जाओ … गुड नाईट!
और फिर वह स्टडी रूम में भाग गई।
कल का दिन और रात तो हमारे ख्वाबों की हसीन रात होने वाली है। इन पलों का हम दोनों को ही कितना बेसब्री से इंतज़ार था आप समझ सकते हैं। आज की रात पता नहीं कैसे बीतेगी?
और फिर वे प्रतीक्षित पल आ गए जिसका हम दोनों ही पिछले एक-डेढ़ महीने से इंतज़ार कर रहे थे।
आज दिन में मैंने गौरी के लिए 10-15 मोगरे के गज़रे, इम्पोर्टेड चॉकलेट, एक सोने की अंगूठी और बढ़िया क्वालिटी का लेडीज पर्स और बहुत सा अल्लम-पल्लम ले लिया था।
मैं अपने इस मिलन को एक यादगार बनाना चाहता था। जिस प्रकार मधुर ने उसे अपनी सुहागरात के बारे में बताया था मुझे लगता है गौरी इस मिलन के लिए बहुत उत्साहित है।
मुझे एक बात अब भी समझ नहीं आ रही मधुर ने गौरी को अपने प्रथम मिलन के उन पलों को गौरी के साथ क्यों सांझा किया होगा? मेरे प्रिय पाठको और पाठिकाओ अगर आप कुछ बता सकें तो मैं आप सभी का आभारी रहूँगा।
रात के कोई 10 बजे हैं। खाना वाना निपटाने के बाद मधुर तय प्रोग्राम के अनुसार गुप्ताजी के यहाँ आज होने वाले रतजगा में शामिल होने चली गई है। मैंने आज सुनहरे रंग का कुर्ता और पजामा पहना है और बढ़िया परफ्यूम बजी लगाया है।
मैं हाल में बैठा गौरी का इंतज़ार कर रहा हूँ। गौरी अपने कमरे में (स्टडी रूम) में कपड़े बदलने चली गई है। मैंने उसे मोगरे वाले गज़रे पहनने के लिए भी दे दिए हैं। गौरी-प्रेम मिलन की प्रतीक्षा में मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा है। ऐसे समय में यह इंतज़ार के पल कितने लम्बे लगने लगते हैं।
अचानक स्टडी रूम का दरवाजा खुला और गौरी अपनी मुंडी झुकाए धीरे-धीरे मेरी ओर आने लगी। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था। गौरी ने गहरे गुलाबी रंग की वही नाइटी पहनी थी। पैरों में चांदी की पायल और कानों में वही सोने की बालियाँ। आज उसने बालों का जूड़ा बना रखा था और उसके ऊपर दो गज़रे भी लगा रखे थे। दोनों हाथों की कलाइयों, कोहनी के ऊपर दोनों बाजुओं पर भी गज़रे लगा रखे थे। एक गोल गज़रा उसने अपनी कमर पर भी बाँध लिया था। होंठों पर गहरे लाल रंग की लिपस्टिक आँखों में काजल और माथे पर एक छोटी सी बिंदी। मेहंदी लगे हाथों की कलाइयों में लाल और हरे रंग की चूड़ियाँ। जैसे दुष्यंत की शकुन्तला ने पुनर्जन्म ले लिया हो।
मैं तो उसे ऊपर से नीचे तक अपलक देखता ही रह गया। जैसे क़यामत अब 2 कदम दूर ही रह गई है।
गौरी आँखें बंद किये मुंडी झुकाए मेरे पास आकर खड़ी हो गई। मैं धीरे से उठा और गौरी को अपनी बांहों में ले लिया। और फिर एक हाथ नीचे करके उसे अपनी बांहों में उठा लिया। गौरी ने अपना सिर मेरे सीने से लगा दिया। मैं उसे उठाये अपने बेड रूम में आ गया।
अब मैंने गौरी को बेड पर बैठा दिया। मैं आज बाज़ार से सिन्दूर की एक डिब्बी और गज़रों के साथ दो फूलों की मालाएं भी लेकर आया था जो मैंने मधुर की नज़रों से बचा कर अपनी अलमारी में रख छोड़ी थी। मैं अब अलमारी से दोनों चीजें उठाकर ले आया।
“गौरी! मेरी प्रियतमा आओ मैं तुम्हारी मांग भर कर तुम्हें सदा-सदा के लिए अपना बना लेता हूँ ताकि तुम्हें और मुझे दोनों को ही कहीं ऐसा ना लगे कि हम दोनों कोई अपराध या अनैतिक कार्य कर रहे हैं।”
वह उठकर नीचे फर्श पर खड़ी हो गई। लाज से सिमटी गौरी के पास बोलने के लिए शायद शब्द ही कहाँ बचे थे। मैंने सिन्दूर से उसके पहले तो मांग भरी और और फिर फूलों की माला उसके गले में डाल दी और दूसरी माला मैंने गौरी को पकड़ा दी।
गौरी ने वह माला मेरे गले में डाल दी और फिर ने झुक कर मेरे पैरों को छू लिया।
अब मैंने अपनी जेब से वह सोने की अंगूठी निकाली और गौरी के दायें हाथ की अनामिका में पहना दी। मैंने गौरी के हाथ को अपने हाथ में लेकर उस पर एक चुम्बन ले लिया। गौरी लाज से सिमट गई।
“गौरी मेरी प्रियतमा! आज की रात हम दोनों के लिए सुनहरे सपनों की रात है। आओ हम दोनों इन सुनहरे ख़्वाबों को हकीकत में बदलकर जी भर कर भोग लें।”
गौरी ने अपनी बांहें मेरे गले में डाल दी। हम दोनों बिस्तर पर आ गए।
कहानी जारी रहेगी.
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02-12-2022, 02:31 PM,
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desiaks
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RE: Sex Vasna चोरी का माल
तीन पत्ती गुलाब
भाग -23[/b]
तीन पत्ती गुलाब-23
मैंने अपनी जेब से वह सोने की अंगूठी निकाली और गौरी के दायें हाथ की अनामिका में पहना दी। मैंने गौरी के हाथ को अपने हाथ में लेकर उस पर एक चुम्बन ले लिया। गौरी लाज से सिमट गई।
“गौरी मेरी प्रियतमा! आज की रात हम दोनों के लिए सुनहरे सपनों की रात है। आओ हम दोनों इन सुनहरे ख़्वाबों को हकीकत में बदलकर जी भर कर भोग लें।”
गौरी ने अपनी बांहें मेरे गले में डाल दी। हम दोनों बिस्तर पर आ गए। Click to expand... मैंने उसके होंठों और गालों को चूम लिया। मैं धीरे-धीरे उसके बदन को सहलाने लगा। गौरी की आँखों में सुनहरे सपनों के साथ लाल डोरे से तैरने लगे थे। उसकी साँसें तेज़ होने लगी थी और दिल की धड़कन सुनाई देने लगी थी।
“गौरी प्लीज अब इन कपड़ों को उतार दो.”
“मुझे शल्म आती है पहले लाईट बंद करो.”
मैंने उठकर लाईट बंद कर दी और जीरो वाट का हल्का बल्ब जला दिया और फिर गौरी के पास आ बैठा।
“गौरी तुम बहुत खूबसूरत हो.” कहकर मैंने गौरी को फिर से अपनी बांहों में भर लिया और फिर उसके लरजते अधरों पर अपने होंठ रख दिए।
गुलाब की पंखुड़ियों की तरह नर्म मुलायम होंठ शहद की तरह मीठे लग रहे थे।
मैंने एक हाथ से उसके उरोजों को मसलना और दबाना चालू कर दिया और उसके होंठों की फांकों को मुंह में लेकर चूसने लगा।
हम दोनों 5-6 मिनट तक इसी तरह एक दूसरे को चूमते रहे और फिर मैंने उसकी नाइटी की डोरी खींच दी।
गौरी ने ज्यादा ना नुकुर नहीं की।
और फिर मैंने धीरे-धीरे उसके पेंटी भी उतार दी।
गौरी का निर्वस्त्र शरीर मेरी आँखों के सामने पसरा था … उसकी खूबसूरती देखकर तो किसी की भी आँखें ही चौंधियाँ जायें।
मैंने भी अपने कपड़े उतार दिए और गौरी को अपनी बांहों में भर लिया। मेरा लंड 90 डिग्री में जंग लड़ने को मुस्तैद किसी सिपाही की तरह खड़ा जैसे सलाम बजाने लगा था। अब मैंने अपने होंठ उसके अधरों से लगा दिए और फिर उसके पूरे बदन पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी।
उसके होंठ काँप से रहे थे और पूरा शरीर लरजने लगा था। गौरी की अब मीठी सीत्कारें निकालने लगी थी।
मैंने उसके पेट और नाभि पर चुम्बन लिया और फिर हौले-हौले अपनी जीभ उसकी सु-सु तक ले गया।
गौरी की रोमांच के मारे चीख सी निकल गई; उसने अपनी जांघें जोर से भींच ली।
मैंने अपने होंठ उसकी सु-सु के मोटे-मोटे पपोटों पर लगा दी। शायद गौरी ने आज कोई खुशबू वाली क्रीम लगाईं होगी तभी तो उसके कौमार्य और उस क्रीम के मिलीजुली भीनी-भीनी खुशबू मेरे नथुनों में समा गई।
फिर मैंने कई चुम्बन उसकी जाँघों पर लिये और फिर नीचे घुटनों और पिंडलियों पर भी अपनी जीभ फिराने लगा। गौरी तो रोमांच में डूबी इस प्रकार छटपटा रही रही जैसे कोई मछली बिना जल के तड़फ रही हो।
मेरे चुम्बन और गर्म साँसों का आभास पाते ही उसका सारा शरीर तरंगित सा होकर झनझना उठा था।
अब मैंने फिर से उसकी जाँघों को चूमते हुए जैसे ही अपनी जीभ उसकी सु-सु की फांकों पर लगाईं तो गौरी की जांघें अपने आप खुलने सी लगी और उसका रति रस बहने लगा था।
“सल … मुझे तुछ हो लहा है … आह … मैं मल जाउंगी सल … तुच्छ करो … प्लीज … आह … आह … ईईईई ईईईई …”
अब मैं गौरी के ऊपर आ गया और अँगुलियों से धीरे से उसके सु-सु को टटोला। सु-सु तो रतिरस से जैसे लबालब भरी थी। मैंने अपने एक अंगुली उसकी सु-सु के चीरे पर फिराई और फिर हौले से अपनी अंगुली थोड़ी अन्दर डालने की कोशिश की।
गौरी का शरीर थोड़ा सा अकड़ने लगा- आआअ … ईईईईई … मैं मल जाउंगी सल … आह!
“गौरी मेरी जान … तुम बहुत खूबसूरत हो … मुझे तो अपने भाग्य पर विश्वास ही नहीं हो रहा है कि मेरी प्रियतमा आज मेरी बांहों में है.”
“ईईईईई …”
“गौरी क्या तुम हमारे इस प्रथम मिलन के लिए तैयार हो?”
“मेले साजन … अब तुछ मत पूछो, जो तलना है जल्दी करो … आह …” कह कर गौरी ने अपनी बांहें मेरे गले में डाल दी और मुझे जोर से भींच सा लिया।
“गौरी एक मिनट रुको मैं निरोध लगा लेता हूँ.” मैंने बेड के ड्रावर से निरोध निकाला और अपने लंड पर लगाने लगा।
गौरी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली- मेरे साजन इसे लहने दो … मैं अपने इस प्रथम मिलन के अहसास और आनन्द को बिना तिसी अड़चन और अवरोध के महसूस तरना चाहती हूँ।
कह कर गौरी ने शर्मा कर अपने हाथ अपनी आँखों पर रख लिए।
मैंने हाथ में पकड़ा निरोध फेंक दिया और गौरी के ऊपर आ गया- गौरी, अगर कुछ गड़बड़ हो गई तो?
“तोई बात नहीं … मैं पिल्स ले लूंगी.”
अब गौरी ने तकिये के पास रखा सफ़ेद रंग का तौलिया अपनी कमर और नितम्बों के नीचे बिछा लिया। अब मैंने फिर से गौरी के ऊपर आ गया और एक हाथ उसके सिर के नीचे लगाकर उसके सिर को थोड़ा ऊपर उठाया और इसके अधरों को अपने मुंह में लेकर चूमने लगा।
मेरा खड़ा लंड उसकी सु-सु पर रगड़ खाने लगा। अब मैंने एक हाथ बढ़ाकर अपने लंड का सुपारे को उसकी फांकों पर फिराया। एक गुनगुना सा अहसास पाते ही लंड जोर-जोर से ठुमके लगाने लगा। मैंने अपने लंड को उसकी फांकों के बीच में फिराना चालू किया तो गौरी की मीठी सीत्कार निकालने लगी; उसकी जांघें अब स्वतः ही खुलने लगी थी।
“गौरी मेरी जान … क्या तुम अपने इस मिलन के लिए तैयार हो?”
“मेरे साजन अब तुछ मत पूछो … आह …”
मैंने पास रखी क्रीम की डिब्बी से थोड़ी सी क्रीम अपने सुपारे पर लगाईं और थोड़ी सी क्रीम अँगुलियों पर लगाकर गौरी की सु-सु की फांकों और चीरे पर लगा दी। अब मैंने उसकी सु-सु का छेद टटोला और उसकी फांकों को अंगूठे और अँगुलियों से थोड़ा सा चौड़ा किया धीरे से अपना सुपारा उसके छेद पर टिका दिया।
गौरी का ही नहीं मेरा दिल भी जोर जोर से धड़कने लगा था।
जब लंड छेद पर अच्छी तरह सेट हो गया तो मैंने अपना दूसरे हाथ से उसके नितम्बों के नीचे से उसकी कमर को पकड़ लिया और धीरे से एक धक्का लगाया। अब मेरा सुपारा उस स्वर्ग के दरवाजे के अन्दर दाखिल होने लगा।
“आह … धीरे … प्लीज … आह …” ऐसे लगा जैसे गौरी की आवाज डूब सी रही है। उसका सारा शरीर कांपने सा लगा था।
अब पता नहीं यह किसी डर के कारण था या रोमांच के उच्चतम शिखर पर पहुँचने के कारण था।
गौरी कुछ कसमसाने सी लगी थी। मैंने गौरी की कमर को जोर से पकड़ लिया। मैं जानता था उसके कौमार्य की झिल्ली अब टूटने वाली है तो गौरी को थोड़ा दर्द तो जरूर होगा और वह कहीं इधर-उधर होकर मेरा काम ना खराब कर दे, मैंने उसे और जोर से अपनी बांहों में भींच लिया।
“गौरी मेरी जान, आज तुम मेरी पूर्ण समर्पिता बनने वाली हो … प्रेम के इस पायदान पर तुम्हें थोड़ा कष्ट तो जरूर होगा पर मेरे लिए प्लीज … अपने इस प्रेम के लिए थोड़ा सा कष्ट सह लेना.”
“आह … मेरे साजन … मेरे प्रेम … ईईईईइ … ” गौरी इस समय रोमांच और उत्तेजना के उच्चतम स्तर पर पहुँच चुकी थी।
मैंने उसके होंठों को पूरा अपने मुंह में भर लिया और फिर एक और धक्के के साथ मेरा लंड किसी कुशल अनुभवी शिकारी की तरह सरसराता हुआ उसकी सु-सु की गहराई में उतरने लगा।
गौरी की दर्द के मारे चीख सी निकलने लगी पर मैंने उसके होंठों को मुंह में दबा रखा था तो केवल गूं-गूं की आवाज ही निकल रही थी।
गौरी को थोड़ा दर्द तो जरूर हो रहा होगा वह कसमसाने सी लगी थी पर मेरी गिरफ्त से निकल पाना अब उसके लिए कहाँ संभव था। मेरे लंड के एक और धक्के ने कौमार्य की सारी हदें पार करते हुए (फाड़ते हुए) अपनी मंजिल ए मक़सूद को पा लिया। गौरी दर्द के मारे छटपटाने सी लगी थी।
गौरी ने किसी तरह अपना मुंह थोड़ा घुमाया तो उसके होंठ मेरे मुंह से बाहर निकल गए और गौरी की एक हल्की सी चीख निकल गई- आआआ आआईईईई ईईईइ …
“बस मेरी जान … जो होना था हो गया … चिंता मत करो … यह दर्द अब मीठे अहसास में बदलने वाला है।” मैंने अब भी गौरी को अपनी बांहों में जोर से जकड़ रखा था।
गौरी अपने नितम्बों और कमर को हिलाने की कोशिश करने लगी थी पर मेरी गिरफ्त से अब वह निकल नहीं सकती थी। यह मन का नहीं तन का विरोध था। भंवरे ने अपना डंक उसकी कोमल पंखुड़ियों पर मार दिया था और शिकारी ने अपना लक्ष्य भेदन कर दिया था।
अब तो बस एक कोमल सा अहसास गौरी के पूरे शरीर में भरने लगा था। कलि अब खिलकर फूल बन गई थी और भंवरे को अपनी पंखुड़ियों में कैद किये अपना यौवन मधु पिलाने को आतुर हो रही थी।
उसके सु-सु की पंखुड़ियां ऐसे फ़ैल गई जैसे किसी तितली ने अपने पंख फैला दिए हों। उसकी सारी देह में कोई मीठा सा जहर भरने लगा था और एक मीठी कसक और जलन के साथ वह प्रकृति के इस अनूठे आनन्द को भोगने जा रही थी।
उसका सारा शरीर झनझना उठा था। आज वह एक पूर्ण समर्पिता बन चुकी थी।
मुझे लगा कुछ गर्म-गर्म सा स्त्राव मेरे लंड के चारों ओर बहने लगा है। उसके गालों पर कुछ बूँद आसुओं की ढलक आई थी।
आप सभी तो बहुत बड़े अनुभवी हैं इन सब बातों को जानते हैं कि यह कौमार्य की झिल्ली फटने से निकलने वाला खून था। गौरी ने अपना अक्षत कौमार्य मुझे सौम्प दिया था।
दर्द के अहसास को दबाये गौरी मेरी चौड़ी छाती के नीचे दबी मेरी बगलों से आती मरदाना गंध में जैसे डूब सी गई थी। आप तो जाने होंगे पुरुष की बगलों से आती पौरुष गंध स्त्री को कामातुर बना देती है और यही हाल पुरुष का भी होता है अपनी प्रियतमा की बगलों से आती कौमार्य की तीखी गंध उसे मतवाला सा बना देती है और सम्भोग के लिए प्रेरित करती है।
“गौरी मेरी प्रियतमा तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद …” कह कर मैंने उसके गालों पर आई शबनम जैसी आंसुओं की बूंदों को चूम लिया। गौरी के शरीर में एक मीठी सनसनाहट सी दौड़ गई।
“ओह … मैं मल जाऊँगी … बाहल निकालो … प्लीज” गौरी की आवाज थोड़ी मंद सी थी। मुझे लगा उसका दर्द अब असहनीय नहीं रहा है और मेरा पप्पू अपनी मंजिल पाकर अन्दर अच्छे से समायोजित हो गया है।
“गौरी बस … अब दर्द ख़त्म हो जाएगा और तुम्हें हमारा यह मिलन वो सुखद अहसास देगा जिसे तुम अपने जीवन पर्यंत याद रखोगी। गौरी मेरी स्मृतियों में भी तुम्हारा यह समर्पण ताउम्र समाया रहेगा। तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद मेरी प्रियतमा।”
मैंने हौले-हौले उसके सिर पर हाथ फिरना चालू कर दिया। गौरी का दर्द अब कुछ कम होने लगा था। अब मैंने गौरी के उरोज की फुनगी (कंगूरा) को अपने मुंह में भर लिया और पहले तो उसे चूसा और बाद में उसे दांतों के बीच लेकर दबा दिया।
गौरी की तो एक मीठी किलकारी ही निकल गयी।
मैं उसे लगातार चूमे जा रहा था। कभी एक उरोज को मुंह में भर लेता और दूसरे को हौले से मसलता और फिर दूसरे को मुंह में लेकर चूसने लग जाता।
गौरी ने एक हाथ मेरी पीठ पर रख लिया और दूसरे हाथ की अंगुलियाँ मेरे सिर पर फिराने लगी थी।
“गौरी अब दर्द तो नहीं हो रहा ना?”
गौरी अब क्या बोलती? ऐसी स्थिति में शब्द मौन हो जाते हैं और कई बार व्यक्ति चाहकर भी कुछ बोल नहीं पाता। जुबान साथ नहीं देती पर आँखें, धड़कता दिल और कांपते होंठ सब कुछ तो बयान कर देते हैं।
गौरी ने अचानक मेरा सिर अपने दोनों हाथों में पकड़ा और जोर से मेरे होंठों को अपने मुंह में लेकर अपने दांतों से काट लिया। यह उसके स्वीकृति और समर्पण की मौन अभिव्यक्ति थी।
अब मैंने अपने कूल्हे थोड़े से ऊपर किये और अपने लंड को थोड़ा सा बाहर निकला तो गौरी ने मेरी कमर पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया। उसने इशारों में मुझे हिलने से मना किया। एक हल्के धक्के के साथ लंड फिर से अन्दर समा गया।
गौरी की एक मीठी आह … सी निकल गई।
थोड़ी देर मैं इसी प्रकार बिना कोई बेजा हरकत किये अपने लंड को अन्दर डाले रहा। लंड तो अन्दर ठुमके पर ठुमके लगा रहा था। अब तो गौरी की सु-सु भी उस अनजान घुसपैठिये से परिचित हो गई लगती थी तभी तो उसने भी संकोचन चालू कर दिया था।
इस नैसर्गिक आनन्द को शब्दों में कहाँ बयान करना कहाँ संभव है। यह प्रकृति का वह आनन्द है जिसे प्राणीमात्र ही नहीं देवता भी भोगने के लिए तरसते हैं। इस दुनिया में प्रेम मिलन से आनन्ददायी कोई दूसरी क्रिया तो हो ही नहीं सकती।
गौरी अब कुछ संयत हो चुकी थी। मैंने उसके गालों और होंठों को फिर से चूमना चालू कर दिया था। जैसे ही मैंने उसके होंठों को मुंह में भरने की कोशिश की तो गौरी ने अपना मुंह थोड़ा सा घुमा लिया तो उसका कान मेरे होंठों के पास आ गया। कानों में पहनी बालियाँ जैसे मुझे ललचा रही थी। मैंने उसके कान की लोब को बाली सहित अपने मुंह में भर लिया और उसे चुभलाने लगा। बीच-बीच में उसे अपने दांतों से काटने भी लगा।
अब तो गौरी रोमांच के उच्चतम शिखर पर पहुँच गई थी। उसने अपने नितम्ब भी उचकाने शुरू कर दिए थे। उसके हिलते नितम्ब और कांपते होंठ यह इशारा कर रहे थे कि अब इसी तरह चुप मत रहो।
मैंने अब हौले-हौले अपने पप्पू को अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया था। गौरी पहले तो थोड़ा कसमसाई पर बाद में वह भी सहयोग करने लगी। उसका दर्द अब ख़त्म तो नहीं हुआ था पर लगता है असहनीय नहीं रहा तभी तो वह भी अपने नितम्ब उचकाकर मेरा साथ देने लगी थी। उसकी अब मीठी सीत्कारें निकालने लगी थी। अब उसने मेरे धक्कों के साथ अपने नितम्बों को लयबद्ध तरीके से हिलाना चालू कर दिया था और अपनी जाँघों को थोड़ा और खोलकर अपने पैर ऊपर उठा लिए थे।
ऐसा करने से मेरा पप्पू तो और भी खूंखार हो गया और अन्दर तक पैंठ जमाने लगा था। गौरी की सु-सु की कसावट और मखमली अहसास से सराबोर हुआ मेरा पप्पू तो आज मस्त होकर हिलौरें ही मारने लगा था। अब तो पूरे कमरे में सु-सु और पप्पू के मिलन का मधुर संगीत गूंजने लगा था।
मुझे हैरानी हो रही थी गौरी का यह प्रथम मिलन था पर ऐसा कतयी नहीं लग रहा था कि बिलकुल अनाड़ी या नवसिखिया है। मुझे लगता है उसने यू-ट्यूब पर इन सब चीजों को जरूर देखा होगा। यह भी संभव है मधुर ने इसे अपने मधुर मिलन की सारी बातों को रस ले लेकर बताया हो? कुछ भी हुआ हो पर मेरे लिए तो यह अतिरिक्त बोनस की तरह था।
गौरी अब पूर्ण सहयोग करने लगी थी। अब तो उसने अपनी सु-सु का संकोचन भी शुरू कर दिया था।
“गौरी तुम्हें अच्छा लग रहा है ना?”
“हट … !!”
“प्लीज बताओ ना?” कहते हुए मैंने एक धक्का जोर से लगा दिया।
“आईईई ईइच्च्च … ”
“आपने तो मुझे बिल्तुल बेशल्म बना दिया.”
“अरे मेरी जान इसमें शर्म की क्या बात है यह तो भगवान् का एक पवित्र और और नैसर्गिक कार्य है हम तो बस एक माध्यम हैं. इस मिलन की वेला में लाज और शर्म का पर्दा हटा रहने दो, बस उस आनन्द को महसूस करो.”
हमें अब तक कोई 20 मिनट तो जरूर हो गए थे। मैंने अपने धक्कों की गति अब बढ़ा दी थी। गौरी अब मीठी सीत्कारें करने लगी थी मुझे लगता था जिस प्रकार गौरी अपनी सु-सु का संकोचन कर रही थी और मेरे लंड को अन्दर उमेठ रही थी, उसका ओर्गास्म होने वाला है।
मेरी उत्तेजना का आलम यह था कि मैं जिस प्रकार धक्के लगा रहा था जैसे मैं गौरी मेरे लिए कतई नई नहीं है। साधारणतया प्रथम मिलन के समय अपनी प्रियतमा का बहुत ख़याल रखा जाता है पर पता नहीं क्यों मेरा अंतर्मन बिना किसी रहम के और जोर-जोर से धक्के लगाने को मुझे उकसा सा रहा था।
गौरी आआह … उईईइ … करने लगी थी।
अचानक गौरी की साँसें बहुत तेज हो गई और उसने मुझे कसकर अपनी बांहों में कस लिया। उसने अपनी जांघें भींच लीं और मेरे लंड को अपनी सु-सु में ऐसे कस लिया जैसे कोई बिल्ली किसी चूहे की गर्दन पकड़ लेती है।
ईईईईईईईई … गौरी की किलकारी भरी चीख पूरे कमरे में गूँज गई। गौरी का शरीर इतनी जोर से अकड़ने लगा और उसने अपनी बांहें मेरी पीठ पर कस ली। और उसके साथ ही चट-चट की आवाज के साथ उसकी कलाइयों में पहनी चूड़ियाँ चटक गई। और फिर वह किसी कटी पतंग की तरह हिचकोले खाती लम्बी-लम्बी साँसें लेती ढीली पड़ती चली गई।
मैंने सिर पर हाथ फिराना चालू कर दिया और उसके गालों और माथे पर चुम्बन लेने लगा। लगता है गौरी ने अपने जीवन का प्रथम लैंगिक ओर्गास्म पा लिया था।
थोड़ी देर बाद में गौरी संयत सी हो गई थी। इस समर्पण के बाद अब वह आँखें बंद किये सुनहरे सपनो में खोई इस मिलन के आनन्द को महसूस कर रही थी। जैसे-जैसे मैं उसके गालों, होंठों गले और उरोजों को चूमता उसका सारा शरीर तरंगित सा हो जाता।
अब मैंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिए थे। अब तो गौरी भी बिना झिझके मेरे धक्कों का प्रत्युत्तर अपने नितम्बों को उचका कर देने लगी थी। इस समय वह आनन्द के उस झूले पर सवार थी जिसकी हर पींग साथ वह आनन्द की नई ऊंचाइयां छू रही थी। उसका गदराया बदन मेरे नीचे दबा बिछा पड़ा था। मेरी हर छुवन, घर्षण और धक्का उसे हर बार रोमांच से भर रहा था।
मैंने अब थोड़ा ऊपर होकर अपने लंड को उसके सु-सु के योनि मुकुट (मदन मणि) से रगड़ना चालू कर दिया था। मेरे ऐसा रगदने से गौरी की मदन मणि फूल कर मूंगफली के दाने जितनी बड़ी हो गई थी।
अब तो गौरी का सारा बदन ही थिरकने लगा था। उसने अपने दोनों पैर उठाकर मेरी कमर पर कस लिए थे और आह … ऊंह … की आवाजों के साथ जैसे आसमान में उड़ने लगी थी जैसे कह रही हो ‘मेरे साजन मुझे बादलों के उस पार ले चलो जहां हमा दोनों के अलावा दूसरा कोई नहीं हो।’
मैंने अब उसके उठे हुए नितम्बों पर हाथ फिराना चालू कर दिया और धक्कों की गति कुछ बढ़ा दी थी। साथ ही उसके अमृत कलशों को मसलने लगा था। कभी उसके शिखरों (चूचुक) को मसलते कभी उन्हें मुंह में लेकर चूमते हुए कभी कभी दांतों से दबा रहा था।
अब मुझे भी लगने लगा था कि प्रेम की अंतिम आहुति डालने का समय आ गया है। मेरा पूरा शरीर तरंगित सा होने लगा था और लिंग में भारीपन सा आने लगा था। मेरी आँखों में जैसे सतरंगी सितारे से जगमगाने लगे थे।
मेरे हर धक्के साथ गौरी के पैरों में पहनी पायल तो किसी कोयलिया की तरह रुनझुन ही करने लगी थी। लयबद्ध धक्कों के साथ पायल झंकार सुनकर मैं उसे जोर-जोर से चूमने और धक्के लगाने लगा था।
मेरे ऐसा करने से गौरी का रोमांच और स्पंदन अब अपने चरम पर पहुँच गया था। मुझे लगा उसकी साँसें एक बार फिर से तेज होने लगी हैं और फिर से पूरी देह अकड़ने लगी है। मुझे लगा एक बार फिर से गौरी को ओर्गाश्म होने वाला है। मैं चाहता था इस बार हम दोनों एक साथ स्खलित होकर इस आनद को भोगें।
मैंने गौरी के होंठों को अपने मुंह में कस लिया और जोर जोर से धक्के लगाने लगा। मेरी साँसें भी तेज हो गई थी और पूरे बदन में पसीना सा आने लगा था।
“गौरी मेरी जान … मेरा भी अब निकलने वाला है … मेरी प्रियतमा … आज मैं तुम्हें अपनी पूर्ण समर्पिता बनाकर धन्य हो जाऊँगा … आह … मेरी सिमरन … मेरी गौरी …”
“हाँ मेले साजन … मेले प्रेम … मैं तो कब की आपके इस प्रेम की प्यासी थी … आह … मेले शलील में उबाल सा आ रहा है मेरे … सा … जा … न्नन्न … आह … ईईईईई …”
प्रेम रस में डूबी गौरी की मीठी सीत्कार निकले लगी थी और फिर से उसने मेरी कमर को कस कर पकड़ लिया।
और फिर मेरे लंड ने पता नहीं कितनी फुहारें उसकी सु-सु में निकाल दी।
अब मैं उसे हर धक्के के साथ जोर-जोर से चूमे जा रहा था और गौरी भी आँखें बंद किये तरंगित हुई इस आनन्द को भोग रही थी। सच है इस प्रेम मिलन से बड़ा कोई सुख और आनन्द तो हो ही नहीं सकता। मैं ही नहीं शायद गौरी भी यही चाह रही होगी कि हम दोनों इस असीम आनन्द को आयुपर्यंत इसी प्रकार भोगते ही चले जाएँ।
“मेरी प्रियतमा … मेरी सिमरन … मेरी गौरी … आह … मैं तुम्हें बहुत प्रेम करता हूँ!”
“मेरी जान आह … या …” कहते हुए गौरी ने मुझे अपनी बांहों में भींच लिया। वह कितनी देर प्रकृति से लड़ती, उसका भी एक बार फिर से रति रस छूट गया। और उसी के साथ ही बरसों की तपती प्यासी धरती को जैसे बारिस की पहली फुहार मिल जाए, कोई सरिता किसी सागर से मिल जाए, किसी चातक को पूनम का चाँद मिल जाए या फिर किसी पपिहरे को पी मिल जाए मेरा वीर्य और गौरी का कमरज एक साथ निकल गया।
गौरी ने अपनी सु-सु का संकोचन करना शुरू कर दिया था जैसे इस अमृत की हर बूँद को ही सोख लेगी। अचानक उसकी सारी देह हल्की हो उठी और उसके पैर धड़ाम से नीचे गिर पड़े।
मैंने 2-3 अंतिम धक्के लगाए और फिर गौरी को कस कर अपनी बांहों में भर कर उसके ऊपर ऊपर लेट गया।
गौरी की आंखें अब भी बंद थी। मेरी बांहों में लिपटी पूर्ण तृप्ति के साथ जोर-जोर से साँसें ले रही थी।
3-4 मिनट इसी प्रकार मैं उसके ऊपर लेटा रहा। अब मेरा लंड सिकुड़ कर बाहर निकलने लगा।
“उईईईईइ … मेला सु-सु निकल रहा है … प्लीज …”
मुझे हंसी सी आ गई।
लगता है गौरी जिसे सु-सु (पेशाब) समझ रही थी वह मेरे वीर्य, उसके कामरज और कौमार्य झिल्ली के फटने से निकला रक्त का मिश्रण बाहर निकालने लगा होगा।
मैं गौरी के ऊपर से हट गया। अब गौरी उठकर बैठ गई और अपनी सु-सु को देखने लगी। उसमें से तो प्रेम रस बह निकला था और गौरी की जाँघों और महारानी के छेद तक फ़ैल गया था।
अब गौरी की नज़र उस सफ़ेद तौलिये पर गई जिसे उसने अपने नितम्बों के नीचे लगा लिया था। वह तो 5-6 इंच के व्यास में पूरा गीला हो गया था और वीर्य और उसकी योनि से निकले रक्त से सराबोर हो गया था।
गौरी ने हैरानी से उस तौलिये को देखा और फिर अपनी सु-सु की फांकों को देखा। फांकें तो अब सूजकर और भी मोटी-मोटी लगने लगी थी।
मैं टकटकी लगाए उसकी सु-सु को ही देखे जा रहा था जिसमें अब भी प्रेम रस निकल रहा था।
मुझे अपनी ओर निहारते हुए देख कर गौरी ने झट से वह तौलिया उठाया और अपनी जाँघों और सु-सु पर डाल लिया।
मैंने एक बार फिर से उसे अपनी बांहों में भर लेना चाहा तो गौरी ने मुझे हल्का सा धक्का दिया और वह तौलिया और अपनी नाइटी उठाकर बाथरूम में भाग गई।
अथ श्री योनि भेदन सोपान इति!!!
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