Sex Vasna चोरी का माल
02-12-2022, 02:24 PM,
#31
RE: Sex Vasna चोरी का माल
तीन पत्ती गुलाब
भाग-17
गौरी ने एक नज़र मेरे अर्ध उत्तेजित लंड पर डाली और फिर अपनी मुंडी झुका ली। अब मैंने अपने लंड को एक हाथ की मुट्ठी में पकड़ा और उसे थोड़ा हिलाते हुए ऊपर नीचे किया। पप्पू महाराज अब अपनी निद्रा से जागने लगे थे।
“गौरी अब तुम इसे अपने हाथों में पकड़ कर इसी तरह थोड़ा हिलाओ।”
मेरे ऐसा कहने पर गौरी ने थोड़ा डरते-डरते और झिझकते हुए मेरे लंड को अपने एक हाथ से छुआ।
“डरो नहीं … ठीक से पकड़कर हिलाओ।”

गौरी अब नीचे उकड़ू होकर बैठ गई और उसने अपनी मुंडी झुकाए हुए धीरे-धीरे मेरे लिंग को अपनी अँगुलियों से पकड़ा और फिर मुट्ठी में लेकर थोड़ा सा हिलाने की कोशिश की। पप्पू महाराज ने अंगड़ाई सी लेनी शुरू कर दी। गौरी की पतली, नाजुक और लम्बी अँगुलियों के बीच दबे पप्पू का आकार अब बढ़ने लगा था। आह … क्या नाज़ुक सा अहसास था।
“शाबश गौरी! इसी तरह ऊपर नीचे करो … हाँ थोड़ा जल्दी जल्दी करो … रुको मत!”

गौरी थोड़ा झिझक जरूर रही थी पर उसने मेरे पप्पू को अब पूरी तरह से अपनी मुट्ठी में पकड़ कर ऊपर नीचे करना चालू कर दिया। जिस प्रकार गौरी इसे मुठिया रही थी मुझे लगा वह कतई अनाड़ी तो नहीं लगती। मेरा अनुभव कहता है उसने किसी का लंड भले ही ना पकड़ा हो पर इसने किसी को ऐसा करते देखा तो जरूर होगा।

पप्पू तो अब अपने पूरे जलाल पर आ गया था, बार-बार ठुमके लगा रहा था। एक-दो बार तो गौरी के हाथ से फिसल गया तो गौरी ने दोनों हाथों से उसे पकड़ लिया और फिर उसे हिलाने लगी।

मेरा मन तो कर रहा था हाथों का झंझट छोड़कर सीधा ही इसके मुखश्री में डाल दूं पर इस समय जल्दबाजी ठीक नहीं थी। चिड़िया अब पूरी तरह जाल में कैद है भाग कर कहाँ जायेगी। अंत: इसे मुंह में लेकर चूसना तो पड़ेगा ही वरना ऐसे हिलाने से तो इसकी मलाई इतना जल्दी नहीं निकलने वाली।

“वो तब नितलेगा?”
“थोड़ा समय तो लगेगा पर तुम जरा जल्दी-जल्दी और प्यार से हाथ चलाओ तो जल्दी ही निकल जाएगा।”
मैंने उसे दिलासा दिलाया। आज मेरे पप्पू का इम्तिहान था। मैंने आपको बताया था ना कि कल रात को गौरी को पढ़ाने के चक्कर में देरी हो गयी थी तो नींद नहीं आ रही थी तो मैंने पप्पू महाराज की तेल मालिश करके सेवा की थी तो आज यह इतना जल्दी झड़ने वाला नहीं लगता।

“शाबाश गौरी बहुत बढ़िया कर रही हो।”
“नितले तब बता देना प्लीज?”
“हाँ … हाँ … तुम चिंता मत करो मैं बता दूंगा तुम मुंह में … मेरा मतलब कटोरी में डाल लेना।”
गौरी ने बोला तो कुछ नहीं पर उसकी लंड हिलाने की रफ़्तार जरूर बढ़ गई।

जब हमारी नई-नई शादी हुई थी तो माहवारी के दिनों में कई बार मधुर इसी प्रकार अपने हाथों से मेरे लंड को हिला-हिला कर इसका जूस निकाला करती थी। बाद में तो उसने चूसना शुरू कर दिया था और जिस प्रकार वह लंड चूसती है मुझे लगता है अगर इस विषय में कोई ऑफिशियल डिग्री होती तो मधुर को जरूर पीएचडी की डिग्री मिलती।

“गौरी मेरी जान तुम बहुत अच्छा कर रही हो … आह … शाबाश … इसी तरह करती जाओ … गुरुकृपा से तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जायेंगे।”
गौरी अब दुगने उत्साह के साथ लंड महाराज की सेवा करने लगी। वह अपने दोनों हाथ बदल-बदल कर लंड हिला रही थी और अब तो उसने उसकी चमड़ी को ऊपर नीचे करना भी शुरू कर दिया था। जब भी वह अपनी मुट्ठी को ऊपर करती तो सुपारा चमड़ी से ऐसे बंद हो जाता जैसे किसी दुल्हन ने शर्माकर घूँघट निकाल लिया हो। और फिर जब वह मुट्ठी को नीचे करती तो लाल रंग का सुपारा किसी लाल टमाटर की तरह खिल उठता।

गौरी अब बड़े ध्यान से मेरे उफनते लंड और सुपारे को देखती जा रही थी। तनाव के कारण वह बहुत कठोर और लाल हो गया था। मेरी आँखें बंद थी और मैं हौले-हौले उसके सिर पर अपना हाथ फिरा रहा था। आज उसने पतली पजामी और हाफ बाजू का शर्ट पहना था। ऊपर के बटन खुले थे और उनमें से उसकी नारंगियाँ झाँक सी रही थी मानो कह रही हो हमें भूल गए क्या? कंगूरे तो तनकर भाले की नोक की तरह हो चले थे।

गौरी को मेरा लंड मुठियाते हुए कोई 8-10 मिनट तो हो ही गए थे पर पप्पू महाराज अपनी अकड़ खोने को तैयार ही नहीं हो रहे थे। वो तो ऐसे अकड़ा था जैसे शादी में दुल्हा किसी नाजायज़ मांग को लेकर मुंह फुलाए हुए बैठा हो।

“ये तो नितल ही नहीं रहा?” गौरी ने अपना हाथ रोकते हुए मेरी ओर देखा।
“ओहो … पता नहीं आज इसे क्या हो गया है? मधुर तो बहुत जल्दी इसका रस निकाल दिया करती है.”
“उनतो तो इसता अनुभव है।”
“गौरी एक काम करो?”
“त्या?” गौरी ने आश्चर्य से मेरी ओर देखा।
“वो थोड़ा सा नारियल का तेल इसके सुपारे पर लगा कर करो फिर निकल जाएगा?”

गौरी ने हाथ बढ़ाकर तेल की शीशी पकड़ी और थोड़ा सा तेल निकाल कर मेरे लंड के सुपारे पर लगा दिया। और फिर से पप्पू महाराज की पूजा शुरू कर दी।
“गौरी?”
“हम?”
“आज तो यह साला पप्पू लिंग देव बना है बेचारी इतनी खूबसूरत अक्षत यौवना कन्या इतनी देर से पूजा में लगी है और यह प्रसन्न होकर उसे प्रसाद ही नहीं दे रहा। इसे ज़रा भी दया नहीं आती.” कह कर मैं हंसने लगा।
“हट!”

कितनी देर बार गौरी सामान्य हुई थी। लंड तो अब ठुमके पर ठुमके लगा रहा था। और सुपारे पर प्री कम की कुछ बूँदें चमकने लगी थी। गौरी को लगा अब जरूर प्रसाद मिलने वाला है तो इसी आशा में उसने दुगने जोश के साथ पप्पू को उमेठना शुरू कर दिया।

कोई 5 मिनट तक गौरी ने हाथ बदल-बदल कर पप्पू को हिलाया, मरोड़ा और उसकी गर्दन को कसकर मुट्ठी में भींचते हुए ऊपर नीचे किया पर हठी लिंग देव प्रसन्न नहीं हुए अलबत्ता उन्होंने तो रोद्र रूप धारण कर लिया और रंग ऐसा हो गया जैसे क्रोध में धधक रहा हो।
“ये तो नितल ही नहीं लहा? अजीब मुशीबत है?” गौरी ने थक कर हाथ रोक दिए।

“गौरी हो सकता है तुम्हें थोड़ा अजीब सा लगे?”
“त्या?”
“यार … वो पता नहीं तुम मुझे गलत ना समझ बैठो?”
“नहीं … बोलो … ।”
“वो … इसे अपने मुंह में लेकर … अगर थोड़ा सा चूस लो तो … मुंह की गर्मी से 2 मिनट में ही निकल जाएगा।”

मैंने गौरी की ओर आशा भरी नज़रो से देखा। मुझे लगा गौरी ‘हट’ बोलते हुए मना कर देगी।
“पल … वो तो शहद ते साथ मिलातर मुंहासों पर लगाना है ना?”
“हाँ वही तो कह रहा हूँ मुंह में लेने से बहुत जल्दी निकल जाएगा और जब निकलेगा तब मैं बता दूंगा तुम तुरंत उसे पास रखी कटोरी में डाल लेना.”
“हओ …” गौरी को हर बात में हओ बोलने की आदत ने मेरा काम आसान कर दिया।

“एक और बात है?”
गौरी ने मेरी ओर सवालिया निगाहों से देखा।
“इसे कटोरी में डालने की कोई हड़बड़ी या जल्दबाजी मत करना वरना यह नीचे गिर जाएगा तो किसी काम नहीं आएगा। अगर गलती से थोड़ा बहुत तुम्हारे मुंह में भी चला जाए तो उसे थूकना मत। क्योंकि यह तो एक तरह की दवाई है लगाने से ज्यादा पीने पर असर करती है। तुम समझ रही हो ना?”
गौरी ने इस बार ‘हओ’ तो नहीं बोला पर सहमति में अपनी मुंडी जरूर हिला दी।

“गौरी, अब एक काम करो?”
“त्या?”
“तुम थोड़ा शहद अपनी जीभ पर भी लगा लो और थोड़ा मुझे दो मैं इसपर लगा देता हूँ फिर तुम्हें और भी आसानी हो जायेगी।”

अब गौरी कुछ सोचने लगी थी। मेरी उत्तेजना बहुत बढ़ गई थी। पप्पू महाराज जोर-जोर से उछल रहा था। जिस प्रकार गौरी सोचती जा रही थी मुझे लगा ज्यादा देर की तो साला पप्पू इस बार भी चुनाव हार जाएगा। मेरा दिल इतनी जोर से धड़कने लगा था कि मुझे तो डर लगने लगा कहीं यह बीच रास्ते में ही शहीद ना हो जाए। पप्पू तो लोहे के सरिये की तरह कठोर हो गया था।

गौरी ने एक चम्मच शहद अपने मुखश्री के हवाले किया और बाकी से मैंने अपने पप्पू का अभिषेक कर दिया।

गौरी ने पप्पू को अपने एक हाथ में पकड़ लिया। पप्पू ने जोर का ठुमका लगाया तो गौरी ने उसकी गर्दन कसकर पकड़ ली और फिर सुपारे की ओर पहले तो गौर से देखा। ओह्ह्ह … उसने इतने चिकने, मांसल और कठोर लण्ड के अधखुले सुपारे की चमड़ी ऊपर खींच कर उसे पूरा खोल दिया। गुलाबी सुर्ख सुपारा जिसके बीच में छोटा छेद और उस पर प्री कम की बूँद।

और फिर उसने अपनी जीभ उस पर लगा दी। एक गुनगुना सा लरजता गुलाबी अहसास मेरे सारे शरीर में दौड़ गया। गौरी ने पहले तो मेरे सुपारे पर अपनी जीभ फिराई और फिर पूरे सुपारे हो मुंह में भर लिया। और फिर दोनों होंठों को बंद करते हुए उसे लॉलीपॉप की तरह बाहर निकाला।

प्यारे पाठको और पाठिकाओ! मेरी जिन्दगी का यह सबसे हसीन लम्हा था। मैं सच कहता हूँ मैंने लगभग अपनी सभी प्रेमिकाओं को अपना लिंगपान जरूर करवाया है पर जो आगाज (शुरुआत) गौरी ने किया है मुझे लगता है उसका अंजाम बहुत ही अनूठा, रोमांचकारी, हसीन और अविस्मरणीय होने वाला है।

गौरी ने दो-तीन बार सुपारे पर अपनी जीभ फिराई और फिर उसे अपने मुंह में लेकर अन्दर बाहर किया। फिर उसने चूसकी (लम्बी गोल आइस कैंडी) की तरह मेरे लंड को चुसना शुरू कर दिया। मैंने उसका सिर अपने हाथों में पकड़ लिया। जिस प्रकार वह मेरे लंड को चूस रही थी मुझे शक सा होने लगा कहीं इसने ऐसा अनुभव पहले तो किसी के साथ नहीं ले रखा है?

आप सभी तो बड़े गुणी और अनुभवी हैं। आप तो जानते ही हैं लंड चूसना भी एक कला है। होठों के बीच दबा कर जीभ से दुलारना या हौले से दांत गड़ाने में बड़ा मजा आता है। या वेक्यूम क्लीनर की तरह पूरा का पूरा लंड मुंह में लपेट गले की गहराई में उतार मलाईदार दूध चखने का अपना ही मज़ा है।

पहले जमाने में तो लड़कियां अपनी नव विवाहित सहेलियों या भाभियों से उनके अनुभव सुनकर ही यह सब सीखती थी पर आजकल तो पोर्न फ़िल्में देख कर सभी लड़कियां शादी से पहले ही इस कला में माहिर हो जाती हैं। अब यह मात्र एक संयोग है या कोई दीगर बात है साली इस तोतापरी ने यह कमाल और कला कहाँ से सीखी होगी पता नहीं।

गौरी की चुस्कियों की लज्जत से मेरा लंड तो जैसे निहाल ही हो गया। मैंने उसका सिर अपने हाथों में पकड़ रखा था और मेरी कमर अपने आप थोड़ी-थोड़ी चलने लगी। इससे मेरा लंड आसानी से गौरी में मुखश्री में अन्दर बाहर होने लगा था। इस मुख चोदन का अहसास और रोमांच के मारे मेरी सीत्कार सी निकलने लगी थी।

गौरी ने अपना मुंह थोड़ा सा ऊपर करके मेरी ओर देखा था। शायद वह मेरी प्रतिक्रया देखना चाहती थी कि मुझे यह सब कितना अच्छा लग रहा है और वह ठीक से कर पा रही है या नहीं।

“गौरी मेरी जान! बहुत अच्छा कर रही हो बस थोड़ी देर और ऐसे ही सुपारे पर अपनी जीभ घुमाओ और अन्दर बाहर करो तो निकल जाएगा। नीचे गोटियों को भी दबाओ तुम्हें बहुत अच्छा लगेगा। आह … यू आर डूइंग ग्रेट!”

गौरी अपनी प्रशंसा सुनकर अब इस क्रिया को और बेहतर करने की कोशिश करने लगी थी। पहले तो वह सुपारा ही अपने मुंह में ले रही थी अब तो उसने गले तक मेरा लंड लेना शुरू कर दिया था। धीरे धीरे वो मेरे लंड को इतनी तेज़ी से चूसने और चाटने लगी कि उसका चेहरा इस तरह से नशीला नज़र आने लगा जैसे उसने दारू पी रखी हो।

उसके पतले और मखमली होंठों का स्वाद चख कर तो मेरा लंड जैसे धन्य ही हो गया। मैं सच कहता हूँ लंड चुसाई में जो लज्जत है वह चूत और गांड में भी नहीं है। इस नैसर्गिक आनन्दमयी क्रिया का कोई विकल्प तो हो ही नहीं सकता। काश वक़्त रुक जाए और गौरी इसी प्रकार मेरे लंड का चूषण और मर्दन करती रहे।

मेरे कंजूस पाठको और पाठिकाओ, आमीन तो बोल दो।

गौरी अब कुछ ज्यादा ही जोश में आ गई थी। उसने मेरे लंड को पूरा जड़ तक अपने मुंह में लेने की कोशिश कि तो सुपरा उसके हल्क तक चला गया इससे उसे थोड़ी खांसी आने लगी और फिर उसने मेरा लंड अपने मुंह से बाहर निकाल दिया।

“मेला तो गला दुखने लग गया?” गौरी ने अपना गला मसलते हुए कहा।
“गौरी जल्दबाजी मत करो धीरे-धीरे जितना आसानी से अन्दर ले सको उतना ही लो। गौरी तुम लाजवाब हो … बहुत अच्छा कर रही हो। बस निकलने ही वाला था कि तुमने बाहर निकाल दिया। अबकी बार निकल जाएगा शाबाश … इसी तरह कोशिश करो। मैं सच कहता हूँ इतना अच्छा तो मधुर भी नहीं करती।”

गौरी ने अपनी तुलना मधुर से होती देख एकबार फिर से पप्पू को दुगने जोश के साथ चूसना चालू कर दिया। मुझे लगने लगा अब मैं ज्यादा तनाव सहन नहीं कर पाऊंगा और जल्दी ही झड़ जाउंगा। मेरा मन तो कर रहा था जोर-जोर से अपने लंड को उसके मुंह में अन्दर बाहर करूं पर मुझे डर था कहीं गौरी बिदक ना जाए या उसे फिर से खांसी ना जाए। और अगर इस कारण उसे असुविधा हुई और उसने फिर आगे लंड चूसने से मना कर दिया तो आज लौड़े लगेंगे नहीं अलबत्ता झड़ जरूर जायंगे।

गौरी अपनी लपलपाती जीभ से मेरे लंड को कभी चाटती कभी चूसती कभी पूरा अन्दर लेकर बाहर तक खींचती। इस लज्जत को शब्दों में बयान करना कहाँ संभव है।
मेरे शरीर में वीर्य स्खलन से पहले होने वाले रोमांच की एक लहर सी दौड़ने लगी। मुझे लगा अब वीर्य निकलने का आखिरी पायदान नजदीक आ गया है। मैंने गौरी को कहा तो था कि जब निकलेगा मैं बता दूंगा और तुम इसका रस कटोरी में डाल लेना पर मैं अब इस लज्जत को इस प्रकार खोना नहीं चाहता था। मैं चाहता था गौरी मेरे सारे वीर्य को पूरा निचोड़कर चूस ले और इसे अपने हल्क के रास्ते उदर (पेट) में उतार ले।

दोस्तो! प्रकृति बड़ी रहस्यमयी है। हर नर अपना वीर्य मादा की कोख में ही डालना चाहता है। और वीर्य स्खलन के समय उसका हर संभव प्रयास यही रहता है कि वीर्य का एक भी कतरा व्यर्थ ना जाए और किसी भी छेद के माध्यम सीधा उसके शरीर के अन्दर चला जाए अब वह छेद चाहे चूत का हो, गांड का हो या फिर मुंह का हो क्या फर्क पड़ता है। इसीलिए स्खलन के समय नर अपनी मादा को कसकर भींच लेता है और अपने लिंग को उसके गर्भाशय के अन्दर तक डालने का प्रयास करता है।

और मेरी प्रिय पाठिकाओ और पाठको! मैं भी तो आखिर एक इंसान ही तो हूँ मैं भला प्रकृति के नियमों के विरुद्ध के जा सकता था? मुझे लगा मेरा तोता अब उड़ने वाला है तो मैंने गौरी का सिर अपने हाथों में कसकर पकड़ लिया और अपने लंड को उसके कंठ के आखिरी छोर तक ठेल दिया।

गौरी के हल्क से गूं-गूं की आवाज निकलने लगी और थोड़ा कसमसाने लगी थी। मुझे लगा वह मेरे लंड को बाहर निकाल देगी और मैं प्रकृति के इस अनूठे आनन्द को भोगने से महरूम (वंचित) हो जाऊंगा। मैं कतई ऐसा नहीं होने देना चाहता था। मैंने उसका सिर अपने हाथों में और जोर से जकड़ लिया।

“गौरी मेरी जान … प्लीज हिलो मत … प्लीज गौरी आह … मेरी जान गौरी … आह … मेरा निकलने वाला है … इसे बाहर मत निकलने देना … तुम्हें मेरी कसम … प्लीज … तुम इसे दवाई या लिंग देव का प्रसाद समझ कर पी जाओ … मेरी जान … आई लोव यू गौ …र.. र … रीईईईई … आईईईईइ …!!!

और फिर मेरे लंड ने पिचकारी मारनी शुरू कर दी। गौरी ने अपने हाथों को मेरी कमर और जाँघों पर लगाकर मुझे थोड़ा धकलते हुए अपना सिर मेरी गिरफ्त से छुड़ाने की भरसक कोशिश की पर वह इसमें सफल नहीं हो पाई। और मेरा गाढ़ा और ताज़ा वीर्य उसके कंठ में समाता चला गया। अब उसके पास इसे पी जाने के अलावा और कोई विकल्प ही नहीं बचा था। गौरी गटा-गट सारा वीर्य पी गई।

मेरा लंड 5-6 पिचकारियाँ मारकर अब फूल और पिचक रहा था। मेरी साँसें बहुत तेज़ हो गयी थी। मुझे लगा गौरी का को शायद सांस लेने में परेशानी हो रही है। उसके मुंह से अब भी गूं-गूं की आवाज निकल रही थी।
“गौरी आज तुमने मेरी शिष्या होने का अपना फ़र्ज़ पूरा कर दिया। मैं तुम्हारा बहुत आभारी हूँ मेरी जान … तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद। गौरी यू आर ग्रेट।”

मेरा लंड अब थोड़ा ढीला पड़ने लगा था और मेरी गिरफ्त भी ढीली हो गई थी। गौरी ने इसका फ़ायदा उठाया और उसने मेरा लंड अपने मुंह से बाहर निकाल दिया। और अब वह खड़ी होकर जोर-जोर से खांसने लगी और तेज़-तेज सांस लेने लगी।

मुझे लगा गौरी अब जरूर यह शिकायत करेगी कि मैंने जबरदस्ती अपना वीर्य उसके मुंह में निकाल दिया। इससे पहले कि वह संयत हो मैंने उसका सिर अपने हाथों में पकड़ कर उसके होंठों को चूमने लगा। एक शहद भरी मिठास और गुलाब की पंखुड़ियों जैसा अहसास के एकबार फिर से पुनरावृति होने लगी। फिर मैंने कई चुम्बन उसके होंठों गालों और माथे पर ले लिए।

फिर मैंने उसे अपने बाहुपाश में भरकर अपने सीने से लगा लिया। और धीरे-धीरे उसके सिर और पीठ पर हाथ फिराने लगा। उसके दूद्दू मेरे सीने से लगे थे और उसके दिल की धड़कन मैं साफ़ सुन सकता था। आह … उस दिन सुहाना के उरोज भी तो ऐसे ही मेरे सीने से लगे थे। दोनों में कितनी समानता है।

गौरी कुछ बोलने का प्रयास कर रही थी पर इससे पहले कि वह कुछ बोले या शिकायत करे मैंने कहा- गौरी, आज तुमने अपने गुरु की लाज रख ली। मैं तुम्हारा यह उपकार जीवन भर नहीं भूलूंगा। सच में गौरी आज तुमने मुझे वह सुख दिया है जो एक पूर्ण समर्पिता प्रेयसी या शिष्या ही दे सकती है। इसके बदले तुम कभी मेरी जान भी मांगोगी तो मैं सहर्ष दे दूंगा।

अब बेचारी के पास तो बोलने के लिए कुछ बचा ही नहीं था। वह तो बस बुत बनी जोर-जोर से सांस लेती मेरे सीने से लगी बहुत कुछ सोचती ही रह गई। मैंने उसके सिर, कन्धों, पीठ और नितम्बों पर ऐसे हाथ फिराया जैसे मैं उसके इस ऐतिहासिक और साहसिक कार्य पर उसे सांत्वना और बधाई दे रहा हूँ।

मेरा मन तो आज उसके साथ नहाने का भी कर रहा था। मौक़ा भी था और दस्तूर भी था पर मैंने इसे अगले सोपान में शामिल करने के लिए छोड़ दिया।
“गौरी … एक बार तुम्हारा फिर से धन्यवाद … अगर भगवान् ने चाहा तो इस दवा से बस दो दिनों में ही तुम्हारे सारे मुंहासे ठीक हो जायेंगे। मैं बाहर जा रहा हूँ पहले तुम फ्रेश हो लो, फिर मैं भी नहा लेता हूँ फिर दोनों तुम्हारी पसंद का नाश्ता करते हैं।”

आज तो बेचारी गौरी ‘हओ’ बोलना भी भूल गई थी।

मैं अपना बरमूडा पहन कर बाहर आ गया।

अथ श्री लिंग दर्शन एव वीर्यपान सोपान इति !!!

मेरे प्रिय कंजूस पाठको! आप मुझे अष्टावलेह (वायनाड) फ़तेह की बधाई भी नहीं देंगे क्या?
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02-12-2022, 02:24 PM,
#32
RE: Sex Vasna चोरी का माल
तीन पत्ती गुलाब
भाग18
आइए अब योनि दर्शन और चूषण सोपान शुरू करते हैं…
लोग सच कहते हैं भगवान जब देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है। आज सुबह-सुबह गौरी ने लिंगपान किया और ऑफिस जाते ही एक और खुशखबर मिली।
मैंने आपको बताया था ना कि मेरे प्रमोशन की बात चल रही थी। इस सम्बन्ध में मेल तो पहले ही आ गया था पर भोंसले ने अभी किसी को बताने को मना किया था तो मैंने अभी यह बात किसी को नहीं बताई थी।

आज मोर्निंग मीटिंग में भोंसले ने घोषणा कर दी कि उसका पुणे ट्रान्सफर हो गया है और अब उनकी जगह अभी भरतपुर ऑफिस का काम मि. प्रेम माथुर संभालेंगे।
उन्होंने मुझे प्रमोशन की बधाई देते हुए अच्छे भविष्य की कामना की।
उसके बाद सभी ने मुझे ओपचारिक तौर पर बधाई और शुभकामनाएं दी।

मैंने आपको ऑफिस में आये उस नताशा नामक नए विस्फोटक पदार्थ के बारे में भी बताया था ना? लगता है खुदा ने भी खूब मन लगाकर इस मुजसम्मे की नक्काशी की होगी। पतले गुलाबी होंठों पर लाल लिपस्टिक के बीच चमकती दंतावली देखकर तो लगता है इसका नाम नताशा की जगह चंद्रावल होना चाहिए था।

चुस्त पजामी और पतली कुर्ती में ऐसा लग रहा था जैसे उसकी जवानी का बोझ इन कपड़ों में कहाँ संभल पायेगा? वह तो फूटकर बाहर ही आ जाएगा। वह मीटिंग हॉल में मेरे बगल वाली कुर्सी पर बैठी थी। उसने इम्पोर्टेड परफ्यूम लगा रखा था पर उसके बदन से आने वाली खुशबू ने तो मेरे दिल और दिमाग को हवा हवाई ही कर दिया था। क्या मस्त गांड है साली की। मैं सच कहता हूँ अगर मैं भरतपुर का राजा होता तो इसको अपने महल में पटरानी ही बना देता।

सबसे पहले हाथ मिलाकर उसी ने मुझे बधाई दी थी। वाह … क्या नाजुक सी हथेली और कलाइयां हैं। लाल रंग की चूड़ियों से सजी कलाइयां अगर खनकाने और चटकाने का कभी अवसर मिल जाए तो भला फिर कोई मरने की जल्दी क्यों करे, जन्नत यहीं नसीब हो जाए।
काश! कभी इस 36-24-36 की परफेक्ट फिगर (संतुलित देहयष्टि) को पटरानी बनाकर (पट लिटाकर) सारी रात उसके ऊपर लेटने का मौक़ा मिल जाए तो खुदा कसम मज़ा ही आ जाए।

मीटिंग के बाद चाय नाश्ते का प्रबंध भी किया गया था।

बाद में भोंसले ने बताया कि मुझे अगले 2-3 दिन में चार्ज लेकर हेड ऑफिस कन्फर्म करना होगा। सितम्बर माह के अंत में मुझे बंगलुरु ट्रेनिंग पर जाने के समय कोई और व्यक्ति अस्थायी रूप से ज्वाइन करेगा।
साली यह जिन्दगी भी झांटों के जंगल की तरह उलझी ही रहेगी।

दिन में मैंने मधुर को यह खुशखबरी सुनाई। शाम को घर पर इसे सेलिब्रेट करने का जिम्मा अब मधुर के ऊपर था। वैसे मधुर ज्यादा तामझाम पसंद नहीं करती है। बाहर से तो किसी को बुलाना ही नहीं था। मैं, मधुर और गौरी फकत तीन जीव थे।

जब मैं घर पहुंचा तो मधुर और गौरी दोनों हाल में खड़ी मेरा ही इंतज़ार कर रही थी। मधुर ने वही लाल साड़ी पहन रखी थी जो आज सुबह हरियाली तीज उत्सव मनाने के लिए आश्रम जाते समय पहनी थी।

और बड़ी हैरानी की बात तो यह थी कि आज गौरी ने भी मधुर जैसी ही लाल रंग की साड़ी और मैचिंग ब्लाउज पहन रखा था। आज गौरी का जलाल तो जैसे सातवें आसमान पर था। पतली कमर में बंधी साड़ी के ऊपर उभरा हुआ सा पेडू और गोल नाभि … और गोल खरबूजे जैसे कसे हुए नितम्ब… उफ्फ्फ… क्या क़यामत लगती है।
मन करता है साली को अभी पटरानी ही बना दूं।

मैं हाथ मुंह धोकर बाहर आया तो हम तीनों हॉल के कोने में बने छोटे मंदिर के सामने खड़े हो गए और दीपक जलाकर भगवान से आशीर्वाद लिया। मधुर ने मुझे कुमकुम का टीका लगाया और फिर थोड़ी सी कुमकुम मेरे गालों पर भी लगा दी।

आज मधुर बड़ी खुश और चुलबुली सी हो रही थी। उसके बाद हम डाइनिंग टेबल के पास आ गए जहां मिठाइयाँ, केक और अन्य सामान रखा था। फिर मधुर ने मेरे गले से लगकर मुझे बधाई दी। मैंने भी उसके गालों पर एक चुम्बन लेकर उसे थैंक यू कहा। फिर मधुर ने भी मेरे होंठों पर चुम्बन लिया और फिर मेरे गालों को जोर से चिकौटी सी काटते हुए मसल दिया।

गौरी यह सब देख रही थी। फिर गौरी ने भी मुस्कुराते हुए मुझे बधाई दी- सल! आपतो प्लमोशन ती बहुत-बहुत बधाई।
“अरे … पागल लड़की?” मधुर ने बीच में ही उसे डांटते हुए कहा।
“त्या हुआ?” गौरी ने डरते-डरते पूछा।
“बधाई कोई ऐसे दी जाती है?”
“तो?” गौरी ने हैरानी से मधुर की ओर देखा।
“आज कितना ख़ुशी का दिन है गले लगकर बधाई दी जाती है।” कह कर मधुर ठहाका लगा कर हंस पड़ी।

मुझे बड़ी हैरानी हो रही थी मधुर आज तो बहुत ही मॉडर्न बनी हुई है। गौरी तो बेचारी शर्मा ही गई।
“एक तो तुम्हें शर्म बहुत आती है?” मधुर ने एक झिड़की और लगाई तो गौरी धीरे-धीरे मेरी ओर आई और फिर पास आकर अपनी मुंडी नीचे करके खड़ी हो गयी जैसे उसे अभी हलाल किया जाने वाला है।
“अरे … ठ … ठीक है … कोई बात नहीं …” मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था। भेनचोद ये क्या नया नाटक है? हे लिंग महादेव! कहीं लौड़े मत लगा देना प्लीज।
गौरी अपनी मुंडी झुकाए कातर नज़रों से मधुर की ओर देखे जा रही थी।

“अरे?” मधुर ने फिर थोड़ा गुस्से से उसकी ओर देखा तो बेचारी गौरी के पास अब मेरी ओर बढ़ने के सिवा और क्या चारा बचा था? बेचारी छुईमुई बनी थोड़ा सा मेरे और नजदीक आ गई।
“ओह … बस … बस … ठीक है … ठीक है!” कहते हुए मैंने उसे अपनी बांहों में भरते हुए कहा।

मेरा एक हाथ उसके नितम्बों पर चला गया। आह … क्या गुदाज़ कसी हुई गोलाइयां हैं। मेरी अंगुलियाँ उसके दोनों नितम्बों की दरार में चली गयी। गौरी तो चिंहुक सी उठी। शुक्र था मेरी पीठ मधुर की ओर थी और गौरी मेरे सामने थी तो मधुर मेरी इस हरकत को शायद नहीं देख पाई। अब मैंने गौरी के गालों पर एक चुम्बन लिया और उसे थैंक यू भी कहा।
बेचारी गौरी तो मारे शर्म के लाजवंती ही बन गई।

“ये गौरी भी एक नंबर की लाजो घसियारी ही है.” कह कर मधुर एक बार फिर हंस पड़ी।
“चलो आओ अब केक काटते हैं।”

फिर हम तीनों ने मिलकर केक काटा और एक दूसरे को भी खिलाया। यह बात जरूर गौर करने वाली थी कि मधुर ने मेरे गालों पर भी थोड़ा केक लगा दिया और फिर उसे चाट भी लिया।
मेरा दिल जोर से धड़का कहीं वह गौरी को भी ऐसा करने के ना कह दे!
मेरे तो मज़े हो जायेंगे पर बेचारी गौरी तो मारे शर्म के मर ही जायेगी।
पर भगवान् का शुक्र है गौरी का मरना इस बार टल गया था।

मधुर ने मुझे अपने और गौरी के बीच में करके बहुत सी सेल्फी भी ली और हैंडीकैम को एक जगह सेट करके इस उत्सव की पूरी विडियो भी बनाई। फिर हम सभी ने मिलकर नाश्ता किया। हालांकि मधुर के तो व्रत चल रहे थे तो उसने केवल एक रसगुल्ला ही खाया पर मैंने और गौरी ने तो आज जी भर रसगुल्ले उड़ाये।

उसके बाद मधुर ने मेरे साथ गले में बाहें डाल कर सालसा डांस किया और फिर बद्रीनाथ की दुल्हनिया वाले गाने पर तो दोनों खूब ठुमके लगाए।

गौरी अब जरा भी नहीं शर्मा रही थी। उसने पहले तो किसी गाने पर बेले डांस किया और बाद में एक राजस्थानी लोक गीत “म्हारे काजलीये री कोर … थानै नैणा मैं बसाल्यूं” जबरदस्त डांस किया। मधुर तो उसका डांस देखकर हैरान सी रह गई थी। मैं तो बस गौरी की इस नागिन डांस पर बल खाती कमर के लटके झटके ही देखता रह गया। एक दो बार गौरी के साथ डांस करते समय मेरा लंड उसके नितम्बों से भी टकरा गया था। गौरी ने मेरे खड़े लंड को महसूस तो जरूर कर लिया था पर बोली कुछ नहीं।

और फिर यह धूम-धड़ाका रात 11 बजे तक चला। सच कहूं तो ऐसा उत्सव तो मधुर मेरे या अपने जन्म दिन पर भी कभी नहीं मनाया था।

और फिर अगले दिन सुबह…
आज शनिवार था। थोड़ी बारिश तो हो रही थी पर मधुर स्कूल चली गई थी और गौरी रसोई में रात के जमा बर्तन साफ़ कर करने में लगी थी।

मैं रसोई में चला आया।

गौरी ने आज वही पायजामा और कमीज पहन रखा था जो पहले दिन पहना था। मेरा मन तो आज फिर से उसे उसी प्रकार बांहों में दबोच लेने को कर रहा था पर बड़ी मुश्किल से मैंने अपने आप को तसल्ली देकर रोके रखा।
“गुड मोर्निंग … इंडिया!”
“गुड मोल्निंग सल … ”

“ओह … गौरी! तुम तो बर्तनों में लगी हो तो चलो आज की चाय मैं बनाकर पिलाता हूँ।”
“अले … नहीं.. आप लहने दो … बस हो गया मैं बना दूँगी.” गौरी ने मना करते हुए कहा।
“जानी … कभी हमारे हाथ की भी चाय पी लिया करो … हम भी बहुत कमाल की चाय बनाते हैं.” मैंने फिल्म स्टार राजकुमार की आवाज की नक़ल उतारते हुए कहा तो गौरी हंस पड़ी।

और फिर मैंने चाय बनाई अलबत्ता मैं जानबूझ कर बीच-बीच में गौरी से दूध, चाय पत्ती, अदरक आदि की मात्रा के बारे में जरूर पूछता रहा।
चाय थर्मोस में डाल कर मैंने कहा- अरे गौरी!
“हओ?”
“थोड़ी सी फिटकरी मिल जायेगी क्या?”
“फिटतड़ी … ता त्या तरना है?” कुछ सोचते हुए गौरी ने पूछा।
“अरे तुम लाओ तो सही?”
गौरी ने फिटकरी ढूंड कर मुझे दे दी।

“इसे तवे पर रखकर भूनना है और फिर इसे पीस कर उस पाउडर में थोड़ा कच्चा दूध, हल्दी पाउडर, नीबू का रस और गुलाब जल मिलाकर लेप बनेगा।”
“अच्छा?” गौरी ने कुछ सोचते हुए मेरे कहे मुताबिक सभी चीजें निकाल कर रसोई के प्लेटफोर्म पर रख दी।

मैंने पहले तो फिटकरी को भूनकर उसका चूर्ण बनाया और फिर एक प्लेट में ऊपर बताई सारी चीजें और चाय वाला थर्मोस कप आदि लेकर हम दोनों बाहर हॉल में आ गए।

“गौरी उस अष्टावलेह में तो बड़ा झमेला था, आज वाला मिश्रण भी बहुत बढ़िया है.” मैंने उसे समझाते हुए कहा तो अब गौरी के पास सिवाय ‘हओ’ बोलने के और क्या बचा था।

फिर मैंने एक कटोरी में पहले तो आधा चम्मच शहद डाला और फिर उचित मात्रा में अन्य चीजें डाल कर उनका लेप सा तैयार कर लिया।
गौरी साथ वाले सोफे पर बैठी यह सब देख रही थी। मैंने उसे अपने पास आने को कहा तो वह बिना किसी ना-नुकर के मेरी बगल में आकर बैठ गई।

“गौरी तुम्हें तो इन मुंहासों की कोई परवाह और चिंता ही नहीं है. पता है मैंने कल बड़ी मुस्किल से सारे दिन नेट पर इस दूसरे नुस्खे के बारे में पता किया है.”
गौरी ने हओ के अंदाज़ में मुंडी हिलाई।

अब मैंने एक अंगुली पर थोड़ा सा लेप को लगाया और फिर गौरी के चहरे पर हुई फुन्सियों पर लगाना शुरू कर दिया। बीच-बीच में मैं उसके गालों पर भी हाथ फिराता रहा। रेशम के नर्म फोहों और गुलाब की पंखुड़ियों की तरह नाजुक गाल देख कर मेरा मन तो उन्हें चूमने को करने लगा।
“गौरी देखो एक ही दिन में ये मुंहासे थोड़े नर्म पड़ने लग गए हैं।”
“सच्ची?” गौरी ने हैरानी से मेरी ओर देखा।
“और नहीं तो क्या? तुम अगर शर्माना छोड़ दो बस दो या तीन दिन में मेरी गारंटी है यह मुंहासे जड़ से ख़त्म हो जायेंगे.”

“अच्छा? इस लेप से?”
“हाँ यह लेप तो असर करेगा ही पर … वीर्यपान का असर तो पक्का ही होता है।”
“हट!” गौरी एक बार फिर शर्मा गई। उसने अपनी मुंडी झुका ली थी।
“पता है तल मुझे तो उबताई सी आने लगी थी. मेला तो गला ही दुखने लगा था.” गौरी का इतना लंबा चौड़ा उलाहना तो लाज़मी था। उसे सुनकर मैं हंसने लगा।

“अब दवाई है तो थोड़ी कड़वी और कष्टकारक तो होगी ही!”
“पता है तित्ता दर्द हुआ … मालूम?” गौरी ने अपने गले पर हाथ फिराते हुए हुए कहा।
“सॉरी! जान पर तुम्हारे भले के लिए यह सब मुझे करना पड़ा था। पता है मुझे भी कितनी शर्म आई थी.”

और फिर हम दोनों हंसने लगे। माहौल अब खुशनुमा हो गया था।
“चलो गला तो थोड़ा दर्द किया होगा पर यह बताओ उसका स्वाद कैसा लगा?”
“थोड़ा खट्टा सा और लिजलिजा सा था.” गौरी ने मुंह बनाते हुए कहा।
“गौरी! अगर मुंहासे जल्दी ठीक करने हैं तो आज एक बार और कर लो!” मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था। मुझे लगता था गौरी जरूर मना कर देगी।
“ना … बाबा ना … मुझे नहीं तरना … आप पूला गले ते अन्दल डाल देते हो मुझे तो फिल सांस ही नहीं आता.”
“अरे यार कल पहला दिन था ना? इसलिए थोड़ा ज्यादा अन्दर चला गया होगा पर आज मैं बिलकुल सावधानी रखूंगा? तुम्हारी कसम?”

गौरी ने शर्मा कर अपनी आँखों पर हाथ रख लिए।
इस्स्स्स …
याल्लाह … सॉरी … हे लिंग महादेव तेरी ऊपर से भी जय हो और नीचे से भी। आज तो मैं ऑफिस जाने से पहले जरूर तुम्हारा जलाभिषेक भी करूंगा और सवा ग्यारह रुपये का प्रसाद भी चढ़ाउंगा।
अब मैंने गौरी को अपनी बांहों में भींच लिया। गौरी छुईमुई बनी मेरे सीने से लग गयी।
“गौरी तुम बहुत खूबसूरत हो। और पता है भगवान यह खूबसूरती क्यों देता है?”
“किच्च” गौरी ने आँखें बंद किये किये ही अपने चिर परिचित अंदाज़ में इससे अनभिज्ञता प्रकट कर दी।

“गौरी! प्रकृति या भगवान ने इस कायनात (संसार) को कितना सुन्दर बनाया है और विशेष रूप से स्त्री जाति को तो भगवान ने सौन्दर्य की यह अनुपम देन प्रदान करने के पीछे एक बहुत बड़ा रहस्य है। इसके पीछे एक कारण तो यह है कि सभी इस सुन्दरता को देखकर अपने सारे दुःख और कष्टों भूल जाए और आनंदित होते रहें। यह भगवान की एक धरोहर की तरह है इसलिए हर सुन्दर लड़की और स्त्री का धर्म होता है कि प्रकृति की इस सुन्दरता को बनाए रखे और किसी भी अवस्था में इसे कोई हानि नहीं पहुंचे और कोशिश की जाए कि यह लम्बे समय तक इसी प्रकार बनी रहे।”

आज गौरी ने बोला तो कुछ नहीं पर मुझे लगता है वह अपनी सुन्दरता को मुंहासों से बचाए रखने के लिए कल मेरे द्वारा किये गए प्रयोग पर और भी गंभीरता से विचार करने लगी थी।
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02-12-2022, 02:27 PM,
#33
RE: Sex Vasna चोरी का माल
तीन पत्ती गुलाब
भाग-19
“वो … चाय … ठंडी हो जायेगी?” गौरी ने अस्फुट से शब्दों में कहा तो सही पर उसने मेरे बाहुपाश से हटने की बिलकुल भी कोशिश नहीं की थी। उसकी साँसें बहुत तेज़ चल रही थी और आँखें अभी भी बंद थी। मैं उसके सिर, पीठ, कमर और नितम्बों पर हाथ फिराता जा रहा था और साथ में प्रवचन भी देता जा रहा था।

दोस्तो! आप सोच रहे होंगे गुरु … ठोक दो साली को … क्यों बेचारी को तड़फा रहे हो … लौंडिया तुम्हारी बांहों में लिपटी तुम्हें चु … ग्गा (चूत.. गांड) देने के लिए तैयार बैठी है तुम्हें प्रवचन झाड़ने की लगी है। आप सही सोच रहे हैं। इस समय गौरी अपना सर्वस्व लुटाने को तैयार है बस मेरे एक इशारे की देरी है वह झट से मेरा प्रणय निवेदन स्वीकार कर लेगी।

मेरे प्रिय पाठको और पाठिकाओ! मज़ा तो तब आये जब गौरी खुद कहे कि ‘मेरे प्रियतम … आज मुझे अपनी पूर्ण समर्पिता बना लो!!’
हाँ दोस्तो! मैं भी उसी लम्हे का इंतज़ार कर रहा हूँ। बस थोड़ा सा इंतज़ार!

मैंने अपना प्रवचन जारी रखा- गौरी! नारी सौन्दर्य भगवान या प्रकृति का ऐसा उपहार है जो हर किसी के भाग्य में नहीं होता। जड़ हो या चेतन भगवान ने हर जगह अपना सौन्दर्य बिखेरा है। इनमें से बहुत कम लोग भाग्यशाली होते हैं जिन्हें यह रूप और यौवन मिलता है इसलिए इसे सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी भी उसी पर आती है। भगवान ने तुम्हें इतना सुन्दर रूप और यौवन देकर तुम्हारे ऊपर कितना बड़ा उपकार किया है तुम समझ रही हो ना?

अब पता नहीं यह प्रवचन गौरी के कितना पल्ले पड़ा पर उसने अपनी आँखें बंद किये-किये ही ‘हओ’ जरूर बोल दिया था।

मैंने गौरी का सिर अपने दोनों हाथों में पकड़ लिया और हौले से अपने होंठों को उसके लरजते (कांपते) अधरों पर रख दिए।
आह … जैसे गुलाब की पंखुड़ियां शहद में डूबी हुई हों।

धीरे-धीरे मैंने उसके अधरों को चूमना और चूसना शुरू कर दिया। गौरी ने कोई आनाकानी नहीं की। उसकी साँसें बहुत तेज होने लगी थी और अब तो उसने अपनी एक बांह को मेरी गर्दन के पीछे भी कर लिया था। उसकी एक जांघ मेरी जांघ से सट गयी थी। मेरा एक हाथ उसके नितम्बों से होता हुआ उसकी जाँघों के संधिस्थल की ओर सरकने लगा। योनि प्रदेश की गर्माहट पाकर मेरा पप्पू तो छलांगें ही लगाने लगा था।

मेरी अंगुलियाँ जैसे ही उसकी सु-सु को टटोलने की कोशिश करने लगी मुझे लगा कि गौरी का शरीर कुछ अकड़ने सा लगा है।
“सल … मुझे तुच्छ हो लहा है … मेले तानों में सीटी सी बजने लगी है … सल … मेला शलील तलंगित सा हो लहा है … ओह … मा … म … मेला सु-सु … आह … लुको … ईईईईईइ …”
उसके शरीर ने दो-तीन झटके से खाए और फिर वह मेरी बांहों में झूल सी गयी।

हे भगवान … यह तो बहुत ही कच्ची गिरी निकली … लगता है आज एक बार फिर उसने ओर्गस्म (यौन उत्तेजना की चरम स्थिति) को पा लिया है।

गौरी कुछ देर इसी तरह मेरी बांहों में लिपटी पड़ी रही। थोड़ी देर बाद वह कुछ संयत सी होकर सोफे पर बैठ गई। उसने अपनी मुंडी झुका रखी थी और अब वह अपनी नज़रें मुझ से नहीं मिला रही थी। शायद उसे लगा उसका सु-सु निकल गया होगा।

पर यह तो प्रकृति का वह सुन्दरतम उपहार और परम आनंदमयी क्रिया थी जिसे पाने और भोगने के लिए सारे जीव मात्र कामना करते हैं। इसी क्रिया से तो यह संसार-चक्र चल रहा है और यही तो इस संसार को अमृत्व (अमरता) प्रदान करता है। वरना प्रकृति इस क्रिया में इतना रोमांच और आनंद क्यों भरती।

मेरे कानों में भी सांय-सांय सी होने लगी थी। लंड तो जैसे बेकाबू होने लगा था। एक बार अगर यह चश्का लग गया तो अब वह नहीं मानने वाला।

“गौरी मैं मानता हूँ तुम्हें थोड़ा कष्ट तो जरूर होगा पर मैं सच कहता हूँ अगर तुम दो-तीन दिन और इसी तरह वीर्यपान कर लो तो फिर यह लेप-वेप का झमेला भी नहीं रहेगा और मुंहासे भी जड़ से ख़त्म हो जायेंगे.”
गौरी ने अपने गले पर हाथ फिराते हुए कहा- आप गले ते अन्दल तत डाल देते हो तो बड़ी असुविधा होती है।
“ओह … सॉरी इस बार मैं कुछ नहीं करूंगा तुम जिस प्रकार करना चाहो करना … गुड बॉय प्रोमिस!”
गौरी ने मेरी ओर देखा शायद वह बाथरूम में चलने का सोच रही थी।

“गौरी आज तो कुछ गिरने या गंदा होने का डर तो है नहीं, यहीं सोफे पर ही आसानी से हो जाएगा।” बेचारी गौरी जड़ बनी वही बैठी रही। मैंने हॉल का दरवाजा और खिड़की ठीक से बंद कर दी।
और फिर वापस सोफे पर आकर मैंने अपने पायजामे का नाड़ा खोल दिया.

गौरी ने थोड़ा झिझकते हुए मेरे पप्पू को अपने नाज़ुक हाथों में पकड़ लिया। पप्पू ने बेकाबू होते हुए एक जोर का ठुमका सा लगाया तो गौरी ने कसकर उसकी गर्दन पकड़ी और फिर उसे हिलाना चालू कर दिया।
मैंने पास रखी शहद की शीशी खोल कर गौरी को पकड़ा दी। गौरी ने थोड़ा शहद पप्पू के सुपारे पर लगाया और थोड़ा अपने मुख श्री में भी डाल लिया और फिर सुपारे को मुंह में भरकर चूसने लगी।

गौरी भी सोफे पर बैठी तो बार-बार मेरा लंड उसके मुंह से फिसल रहा था तो अब वह नीचे फर्श पर उकड़ू होकर मेरे पैरों के बीच में आकर लंड को चूसने लगी। मेरी दोनों टांगों के बीच उसका ऊपर नीचे होता सिर ऐसे लग रहा था जैसे वह यस-नो बोल रहा हो।

मैंने उसके गालों, होंठों, सिर और पीठ पर हाथ फिराना चालू कर दिया। अब मेरा ध्यान उसके उरोजों पर चला गया। आज उसने कमीज और पायजामा पहना था। कमीज के आगे के दो बटन खुले थे। लंड चूसते हुए जब गौरी अपने मुंह को ऊपर करती तो लगता जैसे दोनों कबूतर गुटर गूं कर रहे हैं। कंगूरे तो आज अकड़कर पेंसिल की नोक जैसे तीखे हो चले थे। मैंने हाथ बढ़ाकर उन्हें अपनी चिमटी में लेकर धीरे धीरे मसलना चालू कर दिया। गौरी अब और भी ज्यादा जोश में आ गयी और मेरे लंड को किसी चुस्की (आइस कैंडी) की तरह चूसने लगी थी।

दोस्तो! इस लज्जत को शब्दों में बयान करना आसान नहीं है। इसे तो बस आँखें बंद करके महसूस ही किया जा सकता है। मैं अगर कोई बहुत बड़ा लेखक या कवि होता तो इस लज्जत का बहुत खूबसूरती के साथ वर्णन कर सकता था पर मैं लेखक कहाँ हूँ।

पर यह तो सच है कि गौरी जिस प्रकार लंड चूस रही है उसका कोई जवाब ही नहीं है। मेरा लंड तो जैसे धन्य ही हो गया। पता नहीं यह सब उसने कहाँ से सीखा है? लगता है उसने जरूर किसी साईट पर यह सब तसल्ली से देखा और सीखा होगा।

कोई 10 मिनट तक गौरी ने लंड चूसा होगा। फिर वह सांस लेने के लिए थोड़ी देर रुकी।
“गौरी मेरी जान! यू आर ग्रेट ! तुम बहुत अच्छा चूसती हो।”

गौरी अपनी प्रशंसा सुनकर मुस्कुराने लगी थी। आज उसने ना तो गला दुखने की बात की और ना ही वीर्य जल्दी नहीं निकलने की कोई शिकायत की। एकबार फिर से उसने थोड़ा शहद मेरे लिंगमुंड पर लगाया और थोड़ा शहद अपनी जीभ पर लगा कर फिर से चूसना चालू कर दिया।

अब वह अलग-अलग तरीकों से लंड चूसने लगी थी कभी-कभी मेरी प्रतिक्रया जानने के लिए मेरी ओर भी देखती और मेरे चेहरे पर आई मुस्कान देखकर वह इस क्रिया को और भी बेहतर ढंग से करने का प्रयाश करने लगी। कभी सुपारे को चाटना, कभी उसपर जीभ फिराना, कभी लंड को जड़ तक मुंह में लेकर चूसते हुए धीरे धीरे बाहर निकालना, कभी उसे दांतों से काटना और फिर दुलारना … कभी गोटियों को सहलाना … आह … गौरी तो आज कमाल कर रही थी।

मैं आँखें बंद किये अपने भाग्य की सराहना करता रहा।

गौरी की 8-10 मिनट की कड़ी मेहनत के बाद लिंग महादेव प्रसन्न हुए और फिर उन्होंने अपना अमृत गौरी को भेंट कर दिया। गौरी तो कब से इस अमृत की प्रतीक्षा कर रही थी। वह इस हलाहल को गटागट पीती चली गयी। उसने वीर्य रूपी प्रसाद का एक भी कतरा बाहर नहीं आने दिया।

जब मेरा लंड कुछ ढीला पड़ गया तो गौरी ने उसे अपने मुंह से बाहर निकाल दिया। फिर उसे एक हाथ में पकड़कर उस पर हल्की सी चपत लगाकर हंसने लगी। साली ये जवान लड़कियां नखरे और अदाएं तो अपने आप सीख लेती हैं।
अब मैंने उसे अपनी बांहों में भरकर अपने पास फिर से सोफे पर बैठा लिया। फिर टेबल पर रखी मीठी इलायची और सुपारी की पुड़िया खोल कर आधी गौरी के मुख श्री में डाल दी और बाकी अपने मुंह में डाल ली। गौरी को अब उबकाई वाली समस्या भी नहीं होगी।

“गौरी! मेरी जान तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद। गौरी तुम सच में इस क्रिया को बहुत अच्छे से करती हो। मधुर भी कई बार करती तो है पर इतना सुन्दर ढंग से नहीं कर पाती।” मैंने उसके सिर पर हाथ फिराते हुए कहा।

अब बेचारी गौरी क्या बोलती वह तो मेरे आगोश में सिमटी बहुत कुछ सोचती ही रह गई।
“वो … चाय नहीं पीनी त्या?”
“गोली मारो चाय को … आज तो तुम अपनी पसंद के पकोड़े बनाओ तब तक मैं नहा लेता हूँ।”
“हओ” गौरी हंसते हुए रसोई में चली गई।

कहानी जारी रहेगी.
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02-12-2022, 02:27 PM,
#34
RE: Sex Vasna चोरी का माल
(Teen Patti Gulab- Part 20
आज पूरे दिन बार-बार गौरी का ही ख़याल आता रहा। एकबार तो सोचा गौरी से फ़ोन पर ही बात कर लूं पर फिर मैंने अपना इरादा बदल लिया। अब मैं आगे के प्लान के बारे में सोच रहा था। गौरी शारीरिक रूप से तो पहले ही चुग्गा देने लायक हो गयी है और अब तो वह मानसिक रूप से भी तैयार है।
गौरी की सु-सु और नितम्बों का विचार मन में आते ही दिल की धड़कन तेज होने लगती है और मन करता है आज रात को पढ़ाते समय ही उसे प्रेम का अगला सबक सिखा दूं। पर मधुर की मौजूदगी में यह सब कहाँ संभव हो पायेगा? तो क्या कल सुबह-सुबह मधुर के स्कूल जाते ही … अगला सबक … ??? यालाह … मेरा दिल तो अभी से धड़कने लगा है। लंड तो जैसे अड़ियल घोड़ा बनकर चुग्गे के लिए हिनहिनाने लगा है।
ओह … कल तो रविवार है? लग गए लौड़े!
एक बात तो हो सकती है आज रात को पढ़ाते समय भी लिंगपान तो करवाया ही जा सकता है। मधुर तो अन्दर कमरे में सोयी हुई रहेगी और गौरी तो चुप-चाप यह लिंगपान वाला सवाल आसानी से हल कर लेगी। और फिर एक रात की ही तो बात है। अब देर करना ठीक नहीं है सोमवार को लिंग देव का दिन है। अब लिंग देव इतनी कृपा तो हम दोनों भक्तों पर कर ही देंगे।
भेनचोद यह किस्मत हमेशा हाथ में लौड़े लिए तैयार ही रहती है पर सोमवार लिंग देव इतनी कृपा तो हम दोनों भक्तों पर कर ही देंगे। सोमवार को सुबह-सुबह उसके साथ बाथरूम में नहाते हुए प्रेम का अगला सबक सिखाने का यह आईडिया बहुत ही कारगर और सुन्दरतम होगा।
शाम को घर जाते समय मैंने गौरी के लिए बढ़िया क्वालिटी की इम्पोर्टेड चॉकलेट खरीदी और उसकी पसंद के आम और लीची फ्लेवर की फ्रूटी के 8-10 पाउच भी ले लिए थे।
आज गौरी के बजाय मधुर ने दरवाजा खोला। मैंने इधर उधर नज़र दौड़ाई पर गौरी कहीं नज़र नहीं आ रही थी।
अब गौरी के बारे में सीधे मधुर से पूछना तो ठीक नहीं था तो मैंने बहाने से मधुर से कहा- मधुर आज तो कड़क चाय पीने का मन कर रहा है गौरी को बोलो ना प्लीज … बना दे।
“मैं बना देती हूँ आप फ्रेश होकर आओ?”
“वो गौरी नहीं है क्या?”
“गौरी तो घर चली गई है।” मधुर ने बम विष्फोट कर दिया।
“क … क्यों?” मैंने हकला सा गया।
“अरे … ये निम्नवर्गीय लोगों की परेशानियां ख़त्म ही नहीं होती.”
“अब क्या हुआ?”
“होना क्या है वही रोज-रोज पैसे का रोना लगा रहता है.”
“म.. मैं समझा नहीं?” मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था। क्या पता इनकी रोज-रोज पैसों की डिमांड से तंग आकर मधुर ने गौरी को काम से ही ना हटा दिया हो। मैं तो देव चालीसा ही पढ़ने लगा। हे लिंग देव प्लीज अब लौड़े मत लगा देना।
“वो … अनार है ना?” मधुर ने कुछ सोचते हुए कहा।
मेरी झुंझलाहट बढ़ती जा रही थी। ये मधुर भी पूरी बात एक बार में कभी नहीं बताती।
“हाँ?”
“इन लोगों को सिवाय बच्चे पैदा करने के कोई काम ही नहीं है। उसके तीन बच्चे तो पहले से ही हैं अब वह फिर पेट से थी तो उसका गर्भपात हो गया।”
“ओह … बहुत बुरा हुआ.” मैंने कहा।
“अनार का पति कुछ कमाता-धमाता तो है नहीं, सारी आफत बेचारी गुलाबो की जान को पड़ी है। और उसे भी सब चीजों और परेशानियों के लिए बस यही घर दिखता है.”
“फिर?”
“वो गुलाबो का फ़ोन आया था कि कुछ पैसों की जरूरत है तो गौरी के साथ थोड़े पैसे भेज दो।”
“हुम्म …” मैंने एक निश्वास छोड़ते हुए कहा।
“क्या करती पैसे देकर गौरी को भी भेजना ही पड़ा। बड़ी मुश्किल से उसका पढ़ाई में मन लगा था अब 2-3 दिन वहाँ रहेगी तो सब भूल जायेगी।”
सारे मूड की ऐसी की तैसी हो गयी। लग गए लौड़े !!! मैं मुंह हाथ धोने बाथरूम में चला गया। पता नहीं कितने पापड़ अभी और बेलने पड़ेंगे।
मेरे प्रिय पाठको और पाठिकाओ! दुनिया में दो त्रासदियाँ (ट्रेजडी) होती हैं। एक हम जो चाहते हैं वह नहीं होता और दूसरे हम जो नहीं चाहते वह अनचाहा जरूर होता है। अब वक़्त और किस्मत के आगे किसका जोर है। मैं आपसे माफ़ी चाहता हूँ। कितना खूबसूरत प्लान बनाया था पर ये किस्मत भी बड़ी बेरहम होती है। कई बार हमारे लाख चाहने के बाद भी वह नहीं होता जो हम चाहते हैं।
पर आप निराश ना हों 2-3 दिनों की ही तो बात है उसके बाद जल्दी ही वह मरहला (इवेंट) आने वाला है जिसका मुझे ही नहीं आप सभी को भी बेसब्री से इंतज़ार है।
और फिर अगले 3-4 दिन तो गौरी की याद में मुट्ठ मारते हुए ही बीते।
आज शाम को दफ्तर से जब मैं घर लौटा तो पता चला गौरी पूरे चार दिनों के बाद आज दोपहर में आ गई है। मैं जब बाथरूम से हाथ मुंह धोकर हॉल में आया तब तक गौरी ने चाय बना दी थी। मधुर मेरे पास ही बैठी हुई थी।
गौरी ने दो कपों में चाय डाल दी तो हम दोनों चाय पीने लगे।
मेरा मन तो कर रहा था गौरी भी हमारे साथ ही चाय पी ले पर मधुर के सामने मेरी और गौरी की इतनी हिम्मत और जुर्रत कैसे हो सकती थी।
रात का खाना निपटाने के बाद हम लोग टीवी देख रहे थे। मधुर मेरी बगल में सोफे पर बैठी थी। गौरी नीचे फर्श पर बैठी कभी-कभी कनखियों से मेरी ओर देख रही थी। मैंने ध्यान दिया उसके चेहरे की रंगत कुछ निखर सी गयी है और मुंहासे भी अब ठीक लगते हैं।
“अरे गौरी?” मधुर ने उसे टोका।
“हओ” गौरी ने चौंककर मधुर की ओर देखा।
“तुमने 3-4 दिन पटरानी की तरह बहुत मटरगश्ती कर ली अब थोड़ा ध्यान पढ़ाई पर दो।” मधुर ने झिड़की लगाते हुए गौरी से कहा।
बेचारी गौरी तो सकपका सी गई।
“प्रेम! इस महारानी ने 3-4 दिन बड़ा आराम कर लिया अब रात को इसकी थोड़ी देर रात तक क्लास लगाओ नहीं तो यह सब कुछ भूल जायेगी.” मधुर ने फतवा जारी करते हुए कहा।
“ओह … हाँ … ” अब अमरीशपुरी स्टाइल में मधुर के इस फतवे के आगे मैं भला क्या बोल सकता था।
मधुर सोने के लिए बेडरूम में चली गई। गौरी अपनी किताबें उठा कर ले आई। आज उसने कॉटन का टॉप और छोटे वाली निक्कर पहन रखी था। पतली पिंडलियों के ऊपर मांसल घुटने और गुदाज़ जांघें तो ऐसे लग रही थी जैसे चड्डी पहन के फूल खिला हो। चलते समय उसके गोल-गोल घूमते नितम्ब तो मेरे लंड को बेकाबू ही कर रहे थे।
पिछले 3-4 दिनों से मैं मुट्ठ मार-मार कर थक गया था। आज रात में अगर गौरी वीर्यपान वाला सवाल हल कर दे तो कसम से मज़ा आ जाए।
गौरी बेमन से अपनी किताबें टेबल पर रखकर दूसरे सोफे पर बैठ गई। उसके चेहरे पर अनमना सा भाव था।
मुझे लगता है उसे रोज-रोज की यह किताबी पढ़ाई अच्छी नहीं लग रही। वह इन सभी झंझटों और बन्धनों को छोड़ कर खुले आसमान में उड़ना चाहती है। अब तो उसे प्रेमग्रन्थ की पढ़ाई करने का मन करने लगा है।
“गौरी क्या बात है आज तुम कुछ उदास सी लग रही हो?” मैंने पूछा।
“किच्च?” गौरी मुंडी झुकाए बैठी रही।
“गौरी तुम्हारे बिना तो इस घर में रौनक ही नहीं रही। पता है मैंने तुम्हें कितना याद किया?”
अब गौरी ने मेरी ओर देखते हुए उलाहना सा दिया- आपने तो मुझे एतबाल भी फ़ोन नहीं तिया?
“वो.. वो … दरअसल ऑफिस में इतना काम रहता था कि सिर खुजाने का भी समय नहीं मिला यार।”
“यह सब तो बहाने हैं.”
“अच्छा गौरी तुम्हारे मुंहासों का क्या हाल है?”
“अब तो ठीत लगते हैं।”
“दिखाओ तो?”
गौरी मेरी बगल में आकर बैठ गई। मैंने पहले तो उसके दोनों गालों पर हाथ फिराया और फिर उसकी थोड़ी और होंठों पर। मेरे ऐसा करने से गौरी के शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई। और मेरा पप्पू तो बिगड़ैल बच्चे की तरह जोर-जोर से उछलने लगा था। मन कर रहा था उसके होंठों पर एक चुम्बन ही ले लूं पर अभी यह सब ठीक नहीं था। क्या पता मधुर अभी सोई नहीं हो और अचानक बाहर ना आ जाए।
“हम्म … !!! गौरी मैंने बोला था ना?”
“त्या?”
“देखो वीर्यपान और उस दवा से यह मुंहासे कितनी जल्दी ठीक होने लगे हैं।”
“हओ … मैंने 3-4 दिन आपती बताई दवाई दिन में तीन-चाल बाल लगाईं तब जातल ये ठीक हुए हैं?”
“तुम्हें वो नुस्खा याद रहा?”
“हाँ मैंने उसे नोट तल लिया था और आपने जो दवा बनाई थी वह साथ ले गई थी।”
“गुड … गौरी तुम बहुत ही समझदार हो। पर अभी भी ये पूरी तरह ठीक नहीं हुए लगते?”
“तो?”
“अभी वो दवा 10-15 दिन और लगानी पड़ेगी और साथ में वह उपचार भी लेना पड़ेगा नहीं तो दवा असर नहीं करेगी.” मैंने हंसते हुए कहा।
“हट!!! तित्ति बाल (कितनी बार) तो पी लिया?”
“अरे केवल दो बार ही तो पीया है। पता है इसकी कम से कम 7 खुराक जरूरी होती हैं?”
“हट …”
“तुम्हारी कसम मैं सच बोल रहा हूँ। अब अगर ये दुबारा हो गए तो फिर मुझे दोष मत देना कि मैंने पहले नहीं बताया?” मैंने गंभीर स्वर में कहा। पहले तो गौरी इसे मज़ाक समझ रही थी पर अब उसे भी लगा कि मैं सच बोल रहा हूँ।
“गौरी एक काम करते हैं.”
“त्या?”
“मुझे पता है तुम्हें ये पढ़ाई-लिखाई वाला काम थोड़ा झंझटिया (अरुचिकर) लगता है पर यह सब जरूरी भी है। आज पहले मैं थोड़ा अंग्रेजी के अगले 2-3 पाठ पढ़ा देता हूँ फिर हम थोड़ी देर बात करेंगे। कितने दिन हो गए बात किये हुए।”
“हओ” अब गौरी के चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान सी आ गई थी।
“यह पढ़ाई-लिखाई है तो झमेला ही पर यह तुम्हारे अच्छे भविष्य के लिए है तो करना लाज़मी (आवश्यक) भी है।”
गौरी ने एक बार फिर से हओ कहा और फिर मैंने उसे अंग्रेजी की किताब का एक पाठ और लैटर राइटिंग आदि सिखाया। अब तक रात के 10:30 बज गए थे। मैंने एक बार कमरे में चुपके से झाँक कर देखा कि मधुर सो गई या नहीं। मधुर के खर्राटे सुनकर लगा वह सो गई है। मैंने धीरे से कमरे के दरवाजे को बाहर से कुण्डी (सांकल) लगा दी। और फिर गौरी के पास आ गया।
गौरी तो जैसे मेरा इंतज़ार ही कर रही थी। मैंने झट से उसे बांहों में भर लिया और तड़ातड़ कई चुम्बन ले लिए।
‘ईईईईईईई … ’ गौरी कुछ कसमसाई तो जरूर पर उसने ज्यादा विरोध नहीं किया।
“गौरी पिछले 3-4 दिनों में मैंने तुम्हें बहुत मिस (याद) किया।”
“त्यों?” गौरी ने हंसते हुए पूछा।
“सच में गौरी तुम्हारे बिना इस घर में रौनक ही नहीं रही। और ऑफिस में भी किसी काम में मन नहीं लगा.”
मेरी बात सुनकर गौरी कुछ बोली तो नहीं पर वह कुछ सोच जरूर रही थी।
“गौरी, मुझे तुम्हारे मुंहासों की बड़ी फिक्र थी क्या पता ठीक हुए या नहीं?”
गौरी मेरी बांहों में लिपटी मंद-मंद मुस्कुरा रही थी। वह तो बस आँखें बंद किये सुनहरे सपनों में ही जैसे खोई हुई थी।
मैं कभी उसकी पीठ और कभी उसके नितम्बों पर हाथ फिर रहा था और मेरा लंड तो घोड़े की तरह हिनहिनाने लगा था। मन कर रहा था गुरु क्यों देर कर रहे हो सोफे पर पटक कर साली का गेम बजा डालो।
“गौरी क्या तुम्हें मेरी याद आई या नहीं सच बताना?”
“मुझे भी आपती बहुत याद आती थी पल त्या तलती वो अनाल दीदी बीमाल थी तो वहाँ लहना पड़ा।”
“अब कैसी है अनार?”
“थीत है पल तमजोल बहुत हो गई है।”
अब मैंने गौरी के नितम्बों और जाँघों पर हाथ फिराना चालू कर दिया था। गौरी की साँसें तेज होने लगी थी। और मेरा पप्पू तो जैसे पिंजरे में बंद खतरनाक शेर की तरह दहाड़ ही रहा था।
गौरी ने एक सीत्कार सी ली और उसने अपनी बाँहें मेरी कमर पर कस सी ली।
“गौरी क्या तुम्हारा मन नहीं करता कि कोई सारी रात भर तुम्हें बांहों में भरकर प्रेम करे?”
“मुझे ऐसी बातों से शलम आती है?”
“इसमें शर्माने वाली क्या बात है? मैं तो केवल पूछ रहा हूँ?” अब तक मेरा हाथ उसकी सु-सु तक पहुँच गया था।
“आईईईई … ” गौरी की मीठी सीत्कार सी निकल गई।
“गौरी मेरी एक बात मानोगी?”
“हम … ?” गौरी ने आँखें बंद किये हामी सी भरी।
“व … वो … एक बार अपनी सु-सु के द … दर्शन करवा दो ना प … प्लीज?” मैंने हकलाते हुए कहा।
मुझे लगा गौरी मना कर देगी।
“हट!”
“प्लीज गौरी अपने गुरूजी की एक बात तो मान लो प्लीज?” मैंने मिन्नत की।
“वो … दीदी तो पता चल गया तो आपतो और मेले तो जान से माल डालेगी.”
“अरे मधुर तो सोई हुई है उसे कहाँ पता चलेगा? प्लीज … गौरी मान जाओ ना … मैं तो उसकी बस एक झलक देखना चाहता हूँ?”
“नहीं … मुझे शल्म आती है.” कहते हुए गौरी ने अपनी जांघें जोर से भींच ली।
“वाह … जी और मुझे भी तो शर्म आयी थी पर मैंने भी दिखाया था ना?”
“नहीं … प्लीज … आज नहीं … बाद में … दिखा दूंगी?”
“बाद में कब?” मैंने गौरी को चूमते हुए कहा।
“आप समझते नहीं … वो … वो … मैं तल दिखा दूंगी … प्लोमिज …”
मुझे थोड़ी निराशा सी हुई। पता नहीं गौरी मधुर के होते डर रही थी या कोई और बात थी। मैं भी जबरदस्ती कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था। काश कल सुबह गौरी नहाते समय अपनी सु-सु दिखाने के लिए राजी हो जाए तो कसम से मज़ा आ जाए। उसके साथ नहाते समय उसकी सु-सु को चूमने का उत्तम विचार मन में आते ही लंड महाराज ने तो पाजामे में कोहराम ही मचा दिया और उसने प्री कम के कई तुपके छोड़ दिए। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा।
“गौरी! आई लव यू!” मैंने गौरी का सिर अपने दोनों हाथों में पकड़ लिया और उसके होंठों पर एक चुम्बन ले लिया।
“गौरी वो दवाई पीनी है क्या?” मैंने हंसते हुए पूछा।
“तोन सी?”
मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने खड़े लंड पर लगाते हुए कहा- इससे पूछ लो!
“हट!” कहते हुए गौरी ने अपना हाथ झटके से खींच लिया।
“गौरी पिछले 4-5 दिनों से यह बहुत उदास है।”
“त्यों? इसे त्या हुआ?” गौरी ने आँखें तरेरते हुए पूछा।
“इस बेचारे की किसी को परवाह ही नहीं है.” कहकर मैंने आशा भरी नज़रों से गौरी की ओर ताका।
गौरी मेरा मतलब अच्छी तरह जानती थी।
“अगल दीदी जाग गई तो?”
“वो तो कब की सो चुकी है। तुम चिंता मत करो और मैंने बेडरूम की कुण्डी लगा दी है।”
“बेचाली दीदी आपको तितना सीधा समझती हैं ओल आप?” गौरी ने हंसते हुए कहा और फिर पजामे के ऊपर से ही मेरे लंड को दबाना शुरू कर दिया।
“मेरी जान मैं तो यह सब तुम्हारे भले के लिए कर रहा हूँ.”
“मैं सब समझती हूँ … अब मैं इतनी भोली भी नहीं हूँ.” गौरी ने मंद-मंद मुस्कुराते हुए कहा और फिर मेरे तातार लंड को पाजामे के ऊपर से ही मुठियाने लगी।
फिर गौरी ने 4 दिनों के बाद लंड देव का एकबार फिर से अभिषेक करके प्रसाद ग्रहण कर लिया।
और फिर पूरी रात हम दोनों को ही उस हसीन सुबह का बेसब्री से इंतज़ार था.
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02-12-2022, 02:28 PM,
#35
RE: Sex Vasna चोरी का माल
तीन पत्ती गुलाब
भाग -21


अगले दिन सुबह जब मधुर स्कूल चली गई तो गौरी नाज-ओ-अंदाज़ से चलती हुई हॉल में आ गई। उसने आँखें मटकाते हुए इशारों में पूछा- चाय या कॉफ़ी?
“गौरी मैं तुम्हारे लिए लीची और मैंगो फ्रूटी के पाउच और इम्पोर्टेड चॉकलेट लाया था वो तुमने टेस्ट की या नहीं?”
“किच्च!! तहां रखी हैं?”
“अरे फ्रिज़ में ही तो रखी हैं. आज चाय-वाय छोड़ो दोनों फ्रूटी ही पीते हैं.”
“हओ” कहते हुए गौरी रसोई में जाकर फ्रूटी और चॉकलेट ले आई।

गौरी मेरे बगल में आकर बैठ गई। आज उसने गोल गले की टी-शर्ट और इलास्टिक लगी पतली पजामी पहन रखी थी। कमर में कसी पजामी में कैद नितम्ब तो आज कुछ ज्यादा ही नखरीले लग रहे थे और जांघें तो बस कहर ही बरपा रही थी। उसके कमसिन बदन से आती अनछुए कौमार्य और परफ्यूम की मिली जुली खुशबू तो मुझे मदहोश ही किए जा रही थी।

हम दोनों फ्रूटी पीने लगे। मेरी निगाहें तो गौरी की जाँघों से हट ही नहीं रही थी। गौरी ने इसे महसूस तो जरूर कर लिया पर बोली कुछ नहीं अलबत्ता उसने अपनी जांघें और जोर से भींच ली।
“गौरी तुमने कल एक वादा किया था?”
“त्या?”
“भूल गई ना … वो … सु-सु दिखाने का?”
“ओह … वो … ?” कहते हुए गौरी एक बार फिर शर्मा गई। उसने अपनी मुंडी नीचे झुका ली।
ईईइस्स्स्स …

मैंने गौरी को अपनी बांहों में भींच लिया। गौरी थोड़ा कसमसाई तो जरूर पर उसने कोई विरोध नहीं किया।
“गौरी प्लीज … ”
“नहीं … मुझे … शल्म आ रही है।”
“आओ बैडरूम में चलते हैं.”

अब मैं खड़ा हो गया और मैंने उसे गोद में उठा लिया। इस हालत में फूलों जैसी नाजुक और कमसिन लड़कियों का भार वैसे भी ज्यादा नहीं लगता। गौरी ने अपनी आँखें बंद कर ली और अपनी बांहें मेरे गले में डाल दी।

मैं गौरी को उठाये बैडरूम में आ गया। मैंने गौरी को धीरे से पलग पर लेटा दिया। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था। गौरी ने शर्माते हुए अपने दोनों हाथों से अपनी आँखें बंद कर ली। मेरा पप्पू तो बेकाबू ही होने लगा था। उसमें इतना तनाव आ गया था कि मुझे तो लगने लगा कहीं इसका सुपारा फट ही ना जाए।

“गौरी? मेरी जान?” मैंने उसे बांहों में भरकर उसके लरजते होंठों पर एक चुम्बन लेते हुए कहा।
“हम” गौरी ने आँखें बंद किये ही जवाब दिया। उसकी साँसें बहुत तेज़ चलने लगी थी। गालों पर जैसे लाली सी छा गई थी। रोमांच के कारण उसके शरीर के रोयें खड़े हो गए।
“आँखें खोलो मेरी जान?”
“किच्च … मुझे शल्म आ रही है?”
“प्लीज अब शर्म छोड़ो ये … ये टी-शर्ट उतार दो ना प्लीज …”

मैंने उसके गालों को चूमते हुए उसे थोड़ा सा सहारा दिया और फिर उसे थोड़ा उठाते हुए अपने हाथ बढ़ाकर मैं उसकी गोल गले वाली टी-शर्ट को उतारने लगा।
गौरी ने अपने हाथ ऊपर उठा दिए।

हे भगवान् … उसकी पतली कमर के ऊपर उभरा हुआ सा पेडू और उसके ऊपर गहरी नाभि … और उसके ऊपर दो कश्मीरी सेब जैसे उन्नत उरोज … उफ्फ्फ … क्या बला की खूबसूरती है … कंगूरे तो रोमांच के कारण भाले की नोक की तरह हो चले हैं। रोम विहीन गोरे रंग की कांख। अब पता नहीं उसने वैक्सिंग से बालों को हटाया है या कुदरती रूप से ही उसके बाल नहीं है।

हे लिंग देव! पतली कमर के नीचे जाँघों के बीच छुपे गौरी के उस अनमोल खजाना भी इसी तरह रोम विहीन होगा। मुझे तो डर सा लगने लगा है … उसे देखकर क्या पता मैं उसकी ताब ही ना सह पाऊँ और कहीं उसकी तपिश से पिंघल ही ना जाऊं?

गौरी फिर से लेट गई। मैंने उसके पेडू पर एक गहरा सा चुम्बन लिया और फिर अपनी जीभ को नुकीला करके उसकी नाभि पर फिराने लगा। गौरी की एक मीठी सीत्कार सी निकल गई और उसे एक झुरझुरी सी आ गई।
“सल … त्या तल लहे हो?”
“गौरी तुम बहुत खूबसूरत हो। मुझे जी भर कर तुम्हारे सौन्दर्य को देख लेने दो।”
कहते हुए मैंने कई चुम्बन उसके पेट और उरोजों पर भी ले लिए।

गौरी ने कसकर अपनी जांघें भींच ली। उसकी साँसें तेज़ होने लगी थी।
अब मैंने उसकी पजामी का इलास्टिक पकड़ा और उसे धीरे धीरे नीचे करने लगा। गौरी ने और जोर से अपनी जांघें भींच ली।
“सल … मुझे शल्म आ लही है … नहीं प्लीज … ”
“गौरी आज मुझे मत रोको … मुझे तुम्हारे इस हुस्न की दौलत को जी भर कर दीदार कर लेने दो … प्लीज …”

जब पजामी थोड़ी नीचे सरकने लगी तो गौरी ने अपने नितम्ब थोड़े से ऊपर उठा दिए … और मैंने उस पजामी को निकाल कर फेंक दिया। गौरी ने झट से अपना एक हाथ अपनी सु-सु पर रख लिया।
“गौरी! मेरी जान अब शर्मो हया का यह बंधन छोड़ो … कितने दिनों और मिन्नतों के बाद आज इस अनमोल खजाने के दर्शन हुए हैं … प्लीज …” कहते हुए मैंने उसका हाथ सु-सु पर से हटा दिया।
गौरी ने ज्यादा विरोध नहीं किया।

मेरा दिल धक-धक करने लगा था। दोनों जाँघों के बीच गुलाबी रंग के मोटे-मोटे पपोटे वाली सु-सु का चीरा तो मुश्किल से ढाई-तीन इंच का रहा होगा। और उस दरार के दोनों ओर कटार की धार की तरह पतली तीखी गहरे जामुनी रंग की दो लकीरें आपस में ऐसे चिपकी थी जैसे दो सहेलियां गले मिल रही हों। गुलाबी रंग की पुष्ट जांघें जिन पर हलकी हलकी पतली नीले रंग की शिरायें।

रोम विहीन गंजी बुर को देखते ही मेरा पप्पू तो दहाड़ें ही मारने लगा। झांट तो छोड़ो उसकी सु-सु पर तो एक रोयाँ भी नहीं था। मैं सच कहता हूँ ऐसी बुर तो केवल सिमरन की ही थी।

फूल सी खिली हुई बुर का लम्बा और एकदम चकुंदर सा सुर्ख चीरा झिलमिला रहा था। फांकों के शीर्ष पर मटर के दाने जितनी गुलाबी रंग की मदनमणि ऐसे लग रही थी जैसे किसी बया की चोंच हो। और उसके दांये पपोटे पर एक काला तिल जैसा उसकी ठोडी पर है … उफ्फ्फ …

गौरी का निर्वस्त्र शरीर मेरी आँखों के सामने पसरा पड़ा था। मुझे अपनी किस्मत पर यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह सब हकीकत है या मैं कोई सपना देख रहा हूँ।
हे भगवान् … मेरे जीवन मैं बहुत बार ऐसे मौके आये हैं जब मैंने अनछुई लड़कियों की बुर को देखा है पर यह मेरे जीवन का एक स्वर्णिम, हसीन और अनमोल नजारा था।

मेरा पप्पू तो बेकाबू सा होने लगा था। एक बार तो मन किया लोहा गर्म है हथोड़ा मार देता हूँ। गौरी ज्यादा ना नुकर नहीं करेगी मान जायेगी।

पर मैं यह सब इतना जल्दी करने के मूड में नहीं था। मैं सच कहता हूँ अगर मैं कोई 18-20 साल का लौंडा लपाड़ा होता तो कभी का इसे ठोक-बजा देता पर मैं इस मिलन को एक यादगार बनाना चाहता था लिहाज़ा मैंने कोई जल्द बाज़ी नहीं की।

अब मैंने उसकी बुर पर अपना हाथ फिराना चालू कर दिया था। एक रेशमी सा अहसास मुझे रोमांच से भरता चला गया। गौरी के शरीर में सिहरन सी दौड़ने लगी। उसका पूरा शरीर रोमांच से कांपने लगा था। अब मैंने अपने दोनों हाथों की चिमटी में उसके पपोटों को थोड़ा सा खोल दिया। हलकी सी पुट की आवाज के साथ रक्तिम चीरा खुल गया। गुलाब की पंखुड़ियों की मानिंद अंदरूनी होंठ (लीबिया-लघु भगोष्ट) कामरस में डूबे थे जैसे किसी तड़फती मछली ने पान की गिलोरी मुंह में दबा रखी हो।

फूली हुई तिकोने आकार की उसकी छोटी सी बुर जैसे गुलाब की कोई कली अभी अभी खिल कर फूल बनी है। मैं अपने आप को कैसे रोक पाता … मैंने अपने होंठ उसके रक्तिम चीरे पर लगा दिए।
ईईईईइ … गौरी की एक हलकी सी रोमांच भरी चीख निकल गई।

मैंने पहले तो उसे सूंघा और फिर एक चुम्बन उस पर ले लिया। अनछुए कौमार्य की तीखी गंद मेरे स्नायु तंत्र को सराबोर करती चली गई।
“सल … त्या तल लहे हो … छी … लुको … ” गौरी पैर पटकने लगी थी।

मैं उसके दोनों टांगों के बीच आ गया और थोड़ा सा अधलेटा होकर मैंने अपनी जीभ को नुकीला किया और गौरी की सु-सु के चीरे के बीच में फिराने लगा।
गौरी का शरीर अकड़ने लगा और उसने मेरे सिर को जोर से पकड़ कर अलग करने की नाकाम सी कोशिश की। मैंने जीभ के 3-4 लिस्कारे लगाए तो गौरी का पूरा शरीर ही रोमांच में डूबकर झटके से खाने लगा।

अब गौरी ने मेरे सिर के बालों को अपने हाथों में पकड़ लिया। मैंने उसकी बुर को पूरा अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगा।
“ईईईईईइ … सल … मैं मल जाऊंगी … सल … आह … मेला … सु सु … छ … छोड़ो … प्लीज …”
गौरी बड़बड़ाने सी लगी थी। अब वह मुझे परे हटाने की कोशिश भी नहीं कर रही थी अलबत्ता उसने मेरे सिर को अपने हाथों से जोर से भींच लिया और अपने पैर उठाकर मेरे कन्धों पर रख दिए।

मैंने अपनी जीभ को ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर फिराना चालू रखा। बीच बीच में मैं उसे पूरा मुंह में भर कर चुस्की सी लगाने लगा था। अब मैंने एक हाथ बढ़ाकर उसके एक उरोज की घुंडी को अपनी चिमटी में पकड़ लिया और उसे हौले-हौले दबाने और मसलने लगा। दूसरे हाथ से उसके नितम्बों का जायजा लिया।

आह … रेशम से मुलायम गोल खरबूजे जैसे कसे हुए नितम्ब और उनके गहरी खाई में मेरी अंगुलियाँ फिरने लगी। शायद गौरी ने कोई खुशबूदार क्रीम या तेल अपनी सु-सु और नितम्बों पर जरूर लगाया होगा। अब मेरी एक अंगुली उसकी महारानी (माफ़ करना इतने खूबसूरत और हसीना अंग को गांड जैसे लफ्ज से संबोधित कैसे किया जा सकता है) के छेद पर चली गई।

जैसे ही मैंने अपनी अंगुली उस छेद पर फिराई गौरी जोर-जोर से उछलने लगी- सल … मुझे तुछ हो लहा है … सल … मेला सु-सु … आआअह्ह्ह … ईईईईईइ!
मैं जानता था इस समय वह रोमांच के उच्चतम शिखर पर पहुँच गई है और उसका ओर्गस्म (स्खलन) होने वाला है। और किसी भी पल उसका कामरस निकल सकता है। मैंने उसकी सु-सु को पूरा मुंह में भर लिया और जोर-जोर से चूसने लगा।

गौरी के शरीर ने 3-4 झटके से खाए और फिर मीठी सीत्कारों के साथ उसकी सु-सु ने कामरस छोड़ दिया।
ईई ईईई ईईईइ …
गौरी ने एक मीठी रोमांच भरी चींख के साथ अपना काम रस मेरे मुंह में उंडेल दिया।

गौरी अब जोर-जोर से सांस लेने लगी थी और रोमांच के मारे उसका सारा बदन लरज रहा था। अब उसका शरीर थोड़ा ढीला पड़ने लगा था। उसने अपने पैर मेरी गर्दन से हटा कर सीधे कर लिए थे। उसके मुंह से मीठी सीत्कार सी निकलने लगी थी। पूर्ण संतुष्टि के बाद अब वह मेरे सिर पर अपना हाथ फिराने लगी थी।

मेरा लंड तो प्री-कम के तुपके छोड़-छोड़ कर बावला हुआ जा रहा था। अब धारा 357 हटाने का सही वक़्त आ गया था। मैंने अपने होंठ गौरी की सु-सु से हटा लिए और अपनी टी-शर्ट निकाल कर फेंक दी।

अचानक गौरी ने आँखें खोली और वह झट से उठी और फर्श पर खड़ी हो गई। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता गौरी ने मुझे हल्का सा धक्का देकर मेरे बरमूडा (घुटनों तक का निक्कर) जोर से खींचा और मेरे पप्पू को पकड़ कर गप्प से अपने मुंह में भर लिया। वह फर्श पर उकडू होकर बैठ गयी और मैं अधलेटा सा बेड पर पड़ा ही रह गया।
“ग … गौरी … ओह … रुको … प्लीज … ” मैंने हकलाते हुए से कहा।

गौरी ने मेरे नितम्बों को कसकर पकड़ लिया और जोर-जोर से मेरे पप्पू को चूसने लगी। उसने इशारे से मुझे हिलाने का मना कर दिया।

एक बात तो आप भी जानते हैं किसी भी पुरुष के लिए अपना लिंग चुसवाना एक दिवास्वप्न की तरह होता है। विशेषकर 35-40 की उम्र के बाद तो पुरुष की तीव्रतम इच्छा होती है कि उसके पत्नी या साथी सम्भोग से पहले उसका लंड जरूर चूसे।

नर अपना वीर्य मादा की कोख में ही डालना पसन्द करता है। मेरा मन तो इस बार वीर्य को गौरी के उदर में नहीं गर्भाशय में उंडेलने का था पर गौरी ने मेरे लंड को इतना जोर से पकड़ रखा था और जल्दी-जल्दी चूस रही थी कि मैं असमंजस में ही पड़ा रहा गया कि इसकी सु-सु में लंड डालूँ या मुंह में ही निकल जाने दूं।

जिस तरह आज गौरी मेरे पप्पू को चूस रही थी लगता है उसे लंड चूसने का बहुत बड़ा अनुभव हो गया है।

अब मैं धीरे-धीरे उठ कर खड़ा हो गया। मैंने उसका सिर अपने हाथों में पकड़ लिया और अपने लंड को उसके मुंह में आगे पीछे करने लगा। मेरा लंड अब पूरा उसके हलक तक जा रहा था।
“गौरी मेरी जान अब चूसना बंद करो … आओ … तुम्हें प्रेम का अगला पाठ तुम्हें पढ़ा दूं … प्लीज गौरी …”
गौरी ने मेरी टांगों को कसकर भींच लिया और इशारे से ऊं-ऊं की आवाज के साथ मना कर दिया।

मेरे लिए विचित्र स्थिति थी एक तरफ लंड चुसाई का आनंद और दूसरी तरफ सु-सु का भोग करने की तमन्ना? मुझे लगने लगा कि मेरे लंड में भारीपन सा आने लगा है और मैं जल्दी ही मेरा वीर्यपात हो जाएगा।

मेरे दिमाग में कई प्रश्न खड़े हो गए थे। ऐसी स्थिति में अगर मैंने गौरी को सम्भोग के लिए मनाया तो क्या पता वह राज़ी हो या ना हो? और अगर वह इसके लिए मान भी गई तो क्या पता इस दौरान मेरा वीर्य बाहर ही ना निकल जाए? मेरा तनाव अपने शिखर पर था और मुझे डर सा भी लगने लगा था कहीं अन्दर डालते ही मेरा पप्पू शहीद हो जाए तो?

मैं तो चाहता था कि गौरी के साथ मेरा प्रथम मिलन एक यादगार बन जाए और मुझे ही नहीं गौरी को भी मिलन के ये पल ता उम्र याद रहें और वह इन्हें याद करके भविष्य में भी रोमांचित होती रहे।

मैंने अपने हथियार डाल दिए। चलो कोई बात नहीं एकबार गौरी को वीर्यपान करवा देता हूँ उसके बाद थोड़ी देर रुक कर धारा 357 हटाने का अगला सोपान पूर्ण कर लेते हैं। गौरी कौन सी भागी जा रही है?
और पप्पू तो आधे घंटे बाद फिर से दहाड़ने लगेगा।

मैंने अपना लंड गौरी के मुंह में अन्दर बाहर करना चालू कर दिया। आज तो गौरी कमाल ही कर रही थी। शुरुवात में तो उसने 2-3 बार थोड़ा झिझकते और डरते हुए चूसा था पर आज तो जैसे उसकी झिझक और शर्म बिलकुल ख़त्म हो गई है। लंड को पूरा मुंह में लेकर धीरे धीरे चूसते हुए बाहर निकलना, कभी सुपारे को चूसना कभी दांतों से थोड़ा दबाना और फिर एक गहरी चुस्की लगाना और साथ-साथ नीचे गोटियों को पकड़कर सहलाने का अंदाज़ तो कमाल का था।

मैंने उसका मुख चोदन जारी रखा। अब मैं धीरे-धीरे अपने लंड को गौरी के मुंह में अन्दर बाहर करने लगा और बीच-बीच में अपने कूल्हों को हिला-हिला कर हल्के धक्के भी लगाने लगा। मैंने उसके सिर पर हाथ फिरना चालू कर दिया और बीच-बीच में उसके होंठों पर अपनी अंगुलियाँ फिरा कर देख लेता था कि वह पूरा लंड मुंह में ले पा रही है या नहीं।

गौरी ने आँखें बंद किये लंड चूसना जारी रखा।
“गौरी मेरी जान … आह … बहुत खूबसूरत हो तुम … आह … बहुत अच्छे ढंग से चूस रही हो मेरी जान … हाँ … पूरा मुंह में लेकर चूसो प्लीज …”
गौरी अब पूरे जोश में आ गयी और जोर जोर से लंड चूसने लगी। मुझे हैरानी हो रही थी आज गौरी ने मुंह दुखाने का बिलकुल भी नहीं कहा।

और फिर 15-20 मिनट की इस लाजवाब चुसाई के बाद मुझे लगने लगा मेरा तोता अब उड़ने वाला है। मेरा लंड कुछ ज्यादा ही मोटा हो गया था और अब तो वह फूलने और पिचकने लगा था। मैंने गौरी को इसके बारे में बताया तो गौरी ने आँखों के इशारे से हामी भरी कि आने दो।

मैंने गौरी का सिर अपने दोनों हाथों में कसकर भींच लिया और और गौरी ने मेरे पप्पू को अपने मुंह की गहराई तक ले गयी और चूसने लगी। और फिर एक लम्बी हुंकार के साथ मेरे लंड ने पिचकारियाँ मारनी शुरू कर दी।
गौरी तो उस अमृत को गटा-गट पीती चली गई जैसे कई बरसों की प्यासी हो। उसने एक भी कतरा बाहर नहीं जाने दिया और फिर लंड को चाटते हुए उसने नशीली आँखों से मेरी ओर देखा जैसे पूछ रही हो ‘कैसा लगा?’

मैंने उसे सहारा देकर खड़ा किया और उसके होंठों को चूमते हुए उसका धन्यवाद किया। गौरी एक बार फिर से मेरे सीने से लग गई। मैंने उसके सिर, पीठ, कमर और नितम्बों पर हाथ फिरना चालू रखा। गौरी आँखें बंद किये सुनहरे सपनों में खोयी लगती थी। वह धीरे धीरे मेरे सीने पर अपनी अंगुलियाँ फिराने लगी थी।

अचानक मोबाइल की घंटी बजी …

कहानी जारी रहेगी.  
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02-12-2022, 02:29 PM,
#36
RE: Sex Vasna चोरी का माल
तीन पत्ती गुलाब
भाग-22
भेनचोद यह किस्मत भी हाथ में लौड़े लिए हर समय तैयार ही रहती है। गौरी इस समय रोमांच के उच्चतम स्तर पर पहुँच चुकी थी और बस मेरी एक पहल पर अपना सब कौमार्य मुझे सौम्प देने के लिए आतुर थी। मैं इस सोपान को आज ही सम्पूर्ण कर लेना चाहता था बस 10-15 मिनट की बात रह गयी थी।

पर ऐन वक़्त पर इस मोबाइल की घंटी से हम दोनों चौंक पड़े.
“ओह … दीदी ता फोन तो नहीं आ गया?” गौरी मेरी बांहों से छिटक कर दूर हो गई और उसने झट से अपने कपड़े उठाए और स्टडी रूम में भाग गई।

मेरा दिल जोर-जोर से किसी अनहोनी की आशंका से धड़कने लगा था। इस समय किसका फोन हो सकता है? मैंने कांपते से हाथों से मोबाइल उठाकर देखा, यह तो ऑफिस से फ़ोन था।
जैसे ही मैंने हेलो कहा उधर से आवाज आई- प्रेम जी सर … मैं बहादुर बोल रहा हूँ अपने गोडाउन में आग लग गई है आप जल्दी आ जायें.
“ओह … कब … आग कैसे लग गई?”
“हो सकता है शोर्ट सर्किट के कारण लगी हो.”
“हाँ … हाँ मैं पहुँच रहा हूँ जल्दी … तुम फायर ब्रिगेड को फ़ोन करो.”

अचानक हुए इस घटनाक्रम से मैं एक बार तो किमकर्तव्यविमूढ़ सा बन कर रह गया। थोड़ी देर बाद कुछ संयत हुआ। मैंने दुबारा हेलो बोला तब तक फोन कट चुका था।

अब तुरंत ऑफिस जाने की मजबूरी थी। फिर पूरा दिन आग से हुए नुक्सान का अनुमान लगाने, हेड ऑफिस इन्फॉर्म करने, इन्शुरेन्स क्लेम, पुलिस रिपोर्ट जैसी मगजमारी में ही बीत गया।

खैर शाम को जब मैं घर लौटा तो मधुर को ऑफिस के उस घटनाक्रम के बारे में बताया। खाना निपटाने के बाद मधुर तो सोने चली गई और गौरी अपनी किताबें लेकर मेरे पास आ बैठी।

मेरे दिमाग में तो आज सुबह की बातें ही घूम रही थी। गौरी ने आज हाफ बाजू की शर्ट और पाजामा पहना था। कल गौरी को कुछ होम वर्क दिया तो पहले तो उसे चेक किया बाद में उसे आगे के कुछ लेसन पढ़ाये।

मैंने गौर किया गौरी आज कुछ चुप सी है; उसका ध्यान पढ़ाई में नहीं लग रहा है।
“गौरी बस आज इतना ही पढ़ाई करेंगे आओ थोड़ी देर बात करते हैं.”
“हओ” कहते हुए गौरी ने अपनी किताबें बंद कर दी। वह तो जैसे तैयार ही बैठी थी।

“गौरी, आज तो पूरा दिन ही ऑफिस की मगजमारी में बीत गया।”
“ज्यादा नुत्सान (नुक्सान) तो नहीं हुआ?” गौरी ने पूछा।
“नुक्सान तो बहुत भारी हुआ पर इन्शुरेन्स कंपनी से क्लेम मिल जाएगा। पर दूसरे नुक्सान का क्लेम पता नहीं कब मिलेगा?” मैंने हंसते हुए कहा।
“दूसरा तौन सा नुत्सान हुआ है?”
“सुबह-सुबह कितना बड़ा अनमोल खजाना मिलने वाला था … बहुत बड़ा नुक्सान हो गया।”
“हट … ” गौरी ने शर्माते हुए कहा।

मैंने गौरी को पकड़कर अपनी बांहों में भर लिया।
“गौरी आओ उस अधूरे सबक को अभी पूरा कर लेते हैं.” इने उसके गालों पर चुम्बन लेते हुए कहा।

मैंने ध्यान दिया आज गौरी ने कानों में सोने की पतली-पतली बालियाँ पहन रखी हैं। ऐसी बालियाँ तो मिक्की पहना करती थी।
“गौरी ये कानों की बालियाँ कब ली?”
“वो तल पुत्रदा एकादशी थी ना तो दीदी ने मुझे ये बालियाँ दी हैं।”

“भाई वाह … और क्या-क्या दिया?”
मैं सोच रहा था कमाल है यह साली मक्खीचूस मधुमक्खी किसी को एक फटा कपड़ा नहीं देती गौरी पर इतनी मेहरबान कैसे हो रही है? समझ से परे लगता है।
“ओल … एक नाइटी भी दी थी।”
“अच्छा? पहनकर दिखाओ ना प्लीज …”
“ना … अभी नहीं बाद में?”
“एक तो तुम आजकल मिन्नतें बहुत करवाती हो?”
“तल दिखा दूंगी … प्लोमिज”
“अच्छा उसका रंग कैसा है यह तो बता दो?”
“गुलाबी है।”
“हे भगवान्! तुम्हारे ऊपर गुलाबी रंग कितना खूबसूरत लगेगा मेरा दिल तो अभी से धड़कने लगा है.”
ईईईइ … स्स्सस्स्स्स … गौरी शर्मा गई।

“आपतो एत बात बताऊँ?”
“हओ?” मेरा दिल धक्-धक् करने लगा।
“आप दीदी को तो नहीं बताओगे ना?”
“किच्च”
“वो दीदी ने मुझे बताया था कि उन्होंने अपनी सुहागलात तो ऐसी ही नाइटी पहनी थी.” कह कर गौरी शर्मा कर गुलज़ार ही हो गई।
आईला …

साली यह मधुर मेरा ईमान तुड़वा कर ही दम लेगी। पता नहीं मधुर के मन में क्या चल रहा है। मेरा लंड तो पजामे में उछलने ही लगा था। मन कर रहा था कौन कल का इंतज़ार करे आज ही और अभी इसे पटक कर धारा 370 हटा देता हूँ।

मैंने गौरी के नितम्बों पर हाथ फिराना चालू कर दिया। गौरी की मीठी सीत्कार निकालने लगी थी।

“गौरी और क्या बताया मधुर ने अपनी सुहागरात के बारे में?”
“आपतो सब पता है.”
“प्लीज बताओ ना?”

“दीदी ने बताया कि उस रात आपने उन्हें बहुत से गज़रे पहनाये थे?”
“गौरी तुम्हें भी गज़रे बहुत पसंद हैं क्या?”
गौरी आज ‘हओ’ बोलने के बजाय शरमाकर अपनी मुंडी नीचे कर ली।

मेरा हाथ अब उसकी सु-सु के पास पहुँच गया था। उसकी गर्मी और खुशबू पाकर मेरा पप्पू तो किलकारियां ही मारने लगा था। गौरी ने कस कर अपनी जांघें भींच ली।
“वो नाइटी पहन कर दिखा दो ना? प्लीज?”
“मैंने बोला ना कल दिन में दिखा दूंगी?”
“पर कल तो सन्डे है … मधुर तो सारा दिन घर पर रहेगी?”
“अले … तल दीदी पूले दिन गुप्ताजी ते यहाँ जाने वाली हैं?”
“क्या मतलब?”

फिर गौरी ने बताया कि पड़ोस वाले गुप्ताजी की लड़की नेहा की 3-4 दिन बाद शादी है तो कल दिन में तो मेहंदी और हल्द-हाथ का प्रोग्राम होगा और फिर रात को उनके यहाँ रतजगा का प्रोग्राम होगा। नेहा ने विशेषरूप से मधुर दीदी को को पूरे फंक्शन में और रात को भी अपने साथ रहने का बोला है।

हे लिंग देव! आज तो तेरी दिन में भी जय हो और रात में भी। मैंने गौरी को एक बार फिर से अपनी बांहों में भींच लिया। मेरा हाथ उसकी सु-सु तक पहुँच गया था। जैसे ही मेरी अंगुलियाँ उसके पपोटों को टटोलने लगी गौरी उछलकर खड़ी हो गयी और मुझे धक्का सा देते हुए बोली- अब आप सो जाओ … गुड नाईट!
और फिर वह स्टडी रूम में भाग गई।

कल का दिन और रात तो हमारे ख्वाबों की हसीन रात होने वाली है। इन पलों का हम दोनों को ही कितना बेसब्री से इंतज़ार था आप समझ सकते हैं। आज की रात पता नहीं कैसे बीतेगी?

और फिर वे प्रतीक्षित पल आ गए जिसका हम दोनों ही पिछले एक-डेढ़ महीने से इंतज़ार कर रहे थे।

आज दिन में मैंने गौरी के लिए 10-15 मोगरे के गज़रे, इम्पोर्टेड चॉकलेट, एक सोने की अंगूठी और बढ़िया क्वालिटी का लेडीज पर्स और बहुत सा अल्लम-पल्लम ले लिया था।
मैं अपने इस मिलन को एक यादगार बनाना चाहता था। जिस प्रकार मधुर ने उसे अपनी सुहागरात के बारे में बताया था मुझे लगता है गौरी इस मिलन के लिए बहुत उत्साहित है।

मुझे एक बात अब भी समझ नहीं आ रही मधुर ने गौरी को अपने प्रथम मिलन के उन पलों को गौरी के साथ क्यों सांझा किया होगा? मेरे प्रिय पाठको और पाठिकाओ अगर आप कुछ बता सकें तो मैं आप सभी का आभारी रहूँगा।

रात के कोई 10 बजे हैं। खाना वाना निपटाने के बाद मधुर तय प्रोग्राम के अनुसार गुप्ताजी के यहाँ आज होने वाले रतजगा में शामिल होने चली गई है। मैंने आज सुनहरे रंग का कुर्ता और पजामा पहना है और बढ़िया परफ्यूम बजी लगाया है।

मैं हाल में बैठा गौरी का इंतज़ार कर रहा हूँ। गौरी अपने कमरे में (स्टडी रूम) में कपड़े बदलने चली गई है। मैंने उसे मोगरे वाले गज़रे पहनने के लिए भी दे दिए हैं। गौरी-प्रेम मिलन की प्रतीक्षा में मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा है। ऐसे समय में यह इंतज़ार के पल कितने लम्बे लगने लगते हैं।

अचानक स्टडी रूम का दरवाजा खुला और गौरी अपनी मुंडी झुकाए धीरे-धीरे मेरी ओर आने लगी। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था। गौरी ने गहरे गुलाबी रंग की वही नाइटी पहनी थी। पैरों में चांदी की पायल और कानों में वही सोने की बालियाँ। आज उसने बालों का जूड़ा बना रखा था और उसके ऊपर दो गज़रे भी लगा रखे थे। दोनों हाथों की कलाइयों, कोहनी के ऊपर दोनों बाजुओं पर भी गज़रे लगा रखे थे। एक गोल गज़रा उसने अपनी कमर पर भी बाँध लिया था। होंठों पर गहरे लाल रंग की लिपस्टिक आँखों में काजल और माथे पर एक छोटी सी बिंदी। मेहंदी लगे हाथों की कलाइयों में लाल और हरे रंग की चूड़ियाँ। जैसे दुष्यंत की शकुन्तला ने पुनर्जन्म ले लिया हो।

मैं तो उसे ऊपर से नीचे तक अपलक देखता ही रह गया। जैसे क़यामत अब 2 कदम दूर ही रह गई है।

गौरी आँखें बंद किये मुंडी झुकाए मेरे पास आकर खड़ी हो गई। मैं धीरे से उठा और गौरी को अपनी बांहों में ले लिया। और फिर एक हाथ नीचे करके उसे अपनी बांहों में उठा लिया। गौरी ने अपना सिर मेरे सीने से लगा दिया। मैं उसे उठाये अपने बेड रूम में आ गया।

अब मैंने गौरी को बेड पर बैठा दिया। मैं आज बाज़ार से सिन्दूर की एक डिब्बी और गज़रों के साथ दो फूलों की मालाएं भी लेकर आया था जो मैंने मधुर की नज़रों से बचा कर अपनी अलमारी में रख छोड़ी थी। मैं अब अलमारी से दोनों चीजें उठाकर ले आया।

“गौरी! मेरी प्रियतमा आओ मैं तुम्हारी मांग भर कर तुम्हें सदा-सदा के लिए अपना बना लेता हूँ ताकि तुम्हें और मुझे दोनों को ही कहीं ऐसा ना लगे कि हम दोनों कोई अपराध या अनैतिक कार्य कर रहे हैं।”

वह उठकर नीचे फर्श पर खड़ी हो गई। लाज से सिमटी गौरी के पास बोलने के लिए शायद शब्द ही कहाँ बचे थे। मैंने सिन्दूर से उसके पहले तो मांग भरी और और फिर फूलों की माला उसके गले में डाल दी और दूसरी माला मैंने गौरी को पकड़ा दी।
गौरी ने वह माला मेरे गले में डाल दी और फिर ने झुक कर मेरे पैरों को छू लिया।

अब मैंने अपनी जेब से वह सोने की अंगूठी निकाली और गौरी के दायें हाथ की अनामिका में पहना दी। मैंने गौरी के हाथ को अपने हाथ में लेकर उस पर एक चुम्बन ले लिया। गौरी लाज से सिमट गई।
“गौरी मेरी प्रियतमा! आज की रात हम दोनों के लिए सुनहरे सपनों की रात है। आओ हम दोनों इन सुनहरे ख़्वाबों को हकीकत में बदलकर जी भर कर भोग लें।”

गौरी ने अपनी बांहें मेरे गले में डाल दी। हम दोनों बिस्तर पर आ गए।

कहानी जारी रहेगी.
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02-12-2022, 02:31 PM,
#37
RE: Sex Vasna चोरी का माल
तीन पत्ती गुलाब
भाग -23[/b]

तीन पत्ती गुलाब-23​


मैंने अपनी जेब से वह सोने की अंगूठी निकाली और गौरी के दायें हाथ की अनामिका में पहना दी। मैंने गौरी के हाथ को अपने हाथ में लेकर उस पर एक चुम्बन ले लिया। गौरी लाज से सिमट गई।
“गौरी मेरी प्रियतमा! आज की रात हम दोनों के लिए सुनहरे सपनों की रात है। आओ हम दोनों इन सुनहरे ख़्वाबों को हकीकत में बदलकर जी भर कर भोग लें।”
गौरी ने अपनी बांहें मेरे गले में डाल दी। हम दोनों बिस्तर पर आ गए। Click to expand... मैंने उसके होंठों और गालों को चूम लिया। मैं धीरे-धीरे उसके बदन को सहलाने लगा। गौरी की आँखों में सुनहरे सपनों के साथ लाल डोरे से तैरने लगे थे। उसकी साँसें तेज़ होने लगी थी और दिल की धड़कन सुनाई देने लगी थी।
“गौरी प्लीज अब इन कपड़ों को उतार दो.”
“मुझे शल्म आती है पहले लाईट बंद करो.”
मैंने उठकर लाईट बंद कर दी और जीरो वाट का हल्का बल्ब जला दिया और फिर गौरी के पास आ बैठा।
“गौरी तुम बहुत खूबसूरत हो.” कहकर मैंने गौरी को फिर से अपनी बांहों में भर लिया और फिर उसके लरजते अधरों पर अपने होंठ रख दिए।
गुलाब की पंखुड़ियों की तरह नर्म मुलायम होंठ शहद की तरह मीठे लग रहे थे।
मैंने एक हाथ से उसके उरोजों को मसलना और दबाना चालू कर दिया और उसके होंठों की फांकों को मुंह में लेकर चूसने लगा।
हम दोनों 5-6 मिनट तक इसी तरह एक दूसरे को चूमते रहे और फिर मैंने उसकी नाइटी की डोरी खींच दी।
गौरी ने ज्यादा ना नुकुर नहीं की।
और फिर मैंने धीरे-धीरे उसके पेंटी भी उतार दी।
गौरी का निर्वस्त्र शरीर मेरी आँखों के सामने पसरा था … उसकी खूबसूरती देखकर तो किसी की भी आँखें ही चौंधियाँ जायें।
मैंने भी अपने कपड़े उतार दिए और गौरी को अपनी बांहों में भर लिया। मेरा लंड 90 डिग्री में जंग लड़ने को मुस्तैद किसी सिपाही की तरह खड़ा जैसे सलाम बजाने लगा था। अब मैंने अपने होंठ उसके अधरों से लगा दिए और फिर उसके पूरे बदन पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी।
उसके होंठ काँप से रहे थे और पूरा शरीर लरजने लगा था। गौरी की अब मीठी सीत्कारें निकालने लगी थी।
मैंने उसके पेट और नाभि पर चुम्बन लिया और फिर हौले-हौले अपनी जीभ उसकी सु-सु तक ले गया।
गौरी की रोमांच के मारे चीख सी निकल गई; उसने अपनी जांघें जोर से भींच ली।
मैंने अपने होंठ उसकी सु-सु के मोटे-मोटे पपोटों पर लगा दी। शायद गौरी ने आज कोई खुशबू वाली क्रीम लगाईं होगी तभी तो उसके कौमार्य और उस क्रीम के मिलीजुली भीनी-भीनी खुशबू मेरे नथुनों में समा गई।
फिर मैंने कई चुम्बन उसकी जाँघों पर लिये और फिर नीचे घुटनों और पिंडलियों पर भी अपनी जीभ फिराने लगा। गौरी तो रोमांच में डूबी इस प्रकार छटपटा रही रही जैसे कोई मछली बिना जल के तड़फ रही हो।
मेरे चुम्बन और गर्म साँसों का आभास पाते ही उसका सारा शरीर तरंगित सा होकर झनझना उठा था।
अब मैंने फिर से उसकी जाँघों को चूमते हुए जैसे ही अपनी जीभ उसकी सु-सु की फांकों पर लगाईं तो गौरी की जांघें अपने आप खुलने सी लगी और उसका रति रस बहने लगा था।
“सल … मुझे तुछ हो लहा है … आह … मैं मल जाउंगी सल … तुच्छ करो … प्लीज … आह … आह … ईईईई ईईईई …”
अब मैं गौरी के ऊपर आ गया और अँगुलियों से धीरे से उसके सु-सु को टटोला। सु-सु तो रतिरस से जैसे लबालब भरी थी। मैंने अपने एक अंगुली उसकी सु-सु के चीरे पर फिराई और फिर हौले से अपनी अंगुली थोड़ी अन्दर डालने की कोशिश की।
गौरी का शरीर थोड़ा सा अकड़ने लगा- आआअ … ईईईईई … मैं मल जाउंगी सल … आह!
“गौरी मेरी जान … तुम बहुत खूबसूरत हो … मुझे तो अपने भाग्य पर विश्वास ही नहीं हो रहा है कि मेरी प्रियतमा आज मेरी बांहों में है.”
“ईईईईई …”
“गौरी क्या तुम हमारे इस प्रथम मिलन के लिए तैयार हो?”
“मेले साजन … अब तुछ मत पूछो, जो तलना है जल्दी करो … आह …” कह कर गौरी ने अपनी बांहें मेरे गले में डाल दी और मुझे जोर से भींच सा लिया।
“गौरी एक मिनट रुको मैं निरोध लगा लेता हूँ.” मैंने बेड के ड्रावर से निरोध निकाला और अपने लंड पर लगाने लगा।
गौरी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली- मेरे साजन इसे लहने दो … मैं अपने इस प्रथम मिलन के अहसास और आनन्द को बिना तिसी अड़चन और अवरोध के महसूस तरना चाहती हूँ।
कह कर गौरी ने शर्मा कर अपने हाथ अपनी आँखों पर रख लिए।
मैंने हाथ में पकड़ा निरोध फेंक दिया और गौरी के ऊपर आ गया- गौरी, अगर कुछ गड़बड़ हो गई तो?
“तोई बात नहीं … मैं पिल्स ले लूंगी.”
अब गौरी ने तकिये के पास रखा सफ़ेद रंग का तौलिया अपनी कमर और नितम्बों के नीचे बिछा लिया। अब मैंने फिर से गौरी के ऊपर आ गया और एक हाथ उसके सिर के नीचे लगाकर उसके सिर को थोड़ा ऊपर उठाया और इसके अधरों को अपने मुंह में लेकर चूमने लगा।
मेरा खड़ा लंड उसकी सु-सु पर रगड़ खाने लगा। अब मैंने एक हाथ बढ़ाकर अपने लंड का सुपारे को उसकी फांकों पर फिराया। एक गुनगुना सा अहसास पाते ही लंड जोर-जोर से ठुमके लगाने लगा। मैंने अपने लंड को उसकी फांकों के बीच में फिराना चालू किया तो गौरी की मीठी सीत्कार निकालने लगी; उसकी जांघें अब स्वतः ही खुलने लगी थी।
“गौरी मेरी जान … क्या तुम अपने इस मिलन के लिए तैयार हो?”
“मेरे साजन अब तुछ मत पूछो … आह …”
मैंने पास रखी क्रीम की डिब्बी से थोड़ी सी क्रीम अपने सुपारे पर लगाईं और थोड़ी सी क्रीम अँगुलियों पर लगाकर गौरी की सु-सु की फांकों और चीरे पर लगा दी। अब मैंने उसकी सु-सु का छेद टटोला और उसकी फांकों को अंगूठे और अँगुलियों से थोड़ा सा चौड़ा किया धीरे से अपना सुपारा उसके छेद पर टिका दिया।
गौरी का ही नहीं मेरा दिल भी जोर जोर से धड़कने लगा था।
जब लंड छेद पर अच्छी तरह सेट हो गया तो मैंने अपना दूसरे हाथ से उसके नितम्बों के नीचे से उसकी कमर को पकड़ लिया और धीरे से एक धक्का लगाया। अब मेरा सुपारा उस स्वर्ग के दरवाजे के अन्दर दाखिल होने लगा।
“आह … धीरे … प्लीज … आह …” ऐसे लगा जैसे गौरी की आवाज डूब सी रही है। उसका सारा शरीर कांपने सा लगा था।
अब पता नहीं यह किसी डर के कारण था या रोमांच के उच्चतम शिखर पर पहुँचने के कारण था।
गौरी कुछ कसमसाने सी लगी थी। मैंने गौरी की कमर को जोर से पकड़ लिया। मैं जानता था उसके कौमार्य की झिल्ली अब टूटने वाली है तो गौरी को थोड़ा दर्द तो जरूर होगा और वह कहीं इधर-उधर होकर मेरा काम ना खराब कर दे, मैंने उसे और जोर से अपनी बांहों में भींच लिया।
“गौरी मेरी जान, आज तुम मेरी पूर्ण समर्पिता बनने वाली हो … प्रेम के इस पायदान पर तुम्हें थोड़ा कष्ट तो जरूर होगा पर मेरे लिए प्लीज … अपने इस प्रेम के लिए थोड़ा सा कष्ट सह लेना.”
“आह … मेरे साजन … मेरे प्रेम … ईईईईइ … ” गौरी इस समय रोमांच और उत्तेजना के उच्चतम स्तर पर पहुँच चुकी थी।
मैंने उसके होंठों को पूरा अपने मुंह में भर लिया और फिर एक और धक्के के साथ मेरा लंड किसी कुशल अनुभवी शिकारी की तरह सरसराता हुआ उसकी सु-सु की गहराई में उतरने लगा।
गौरी की दर्द के मारे चीख सी निकलने लगी पर मैंने उसके होंठों को मुंह में दबा रखा था तो केवल गूं-गूं की आवाज ही निकल रही थी।
गौरी को थोड़ा दर्द तो जरूर हो रहा होगा वह कसमसाने सी लगी थी पर मेरी गिरफ्त से निकल पाना अब उसके लिए कहाँ संभव था। मेरे लंड के एक और धक्के ने कौमार्य की सारी हदें पार करते हुए (फाड़ते हुए) अपनी मंजिल ए मक़सूद को पा लिया। गौरी दर्द के मारे छटपटाने सी लगी थी।
गौरी ने किसी तरह अपना मुंह थोड़ा घुमाया तो उसके होंठ मेरे मुंह से बाहर निकल गए और गौरी की एक हल्की सी चीख निकल गई- आआआ आआईईईई ईईईइ …
“बस मेरी जान … जो होना था हो गया … चिंता मत करो … यह दर्द अब मीठे अहसास में बदलने वाला है।” मैंने अब भी गौरी को अपनी बांहों में जोर से जकड़ रखा था।
गौरी अपने नितम्बों और कमर को हिलाने की कोशिश करने लगी थी पर मेरी गिरफ्त से अब वह निकल नहीं सकती थी। यह मन का नहीं तन का विरोध था। भंवरे ने अपना डंक उसकी कोमल पंखुड़ियों पर मार दिया था और शिकारी ने अपना लक्ष्य भेदन कर दिया था।
अब तो बस एक कोमल सा अहसास गौरी के पूरे शरीर में भरने लगा था। कलि अब खिलकर फूल बन गई थी और भंवरे को अपनी पंखुड़ियों में कैद किये अपना यौवन मधु पिलाने को आतुर हो रही थी।
उसके सु-सु की पंखुड़ियां ऐसे फ़ैल गई जैसे किसी तितली ने अपने पंख फैला दिए हों। उसकी सारी देह में कोई मीठा सा जहर भरने लगा था और एक मीठी कसक और जलन के साथ वह प्रकृति के इस अनूठे आनन्द को भोगने जा रही थी।
उसका सारा शरीर झनझना उठा था। आज वह एक पूर्ण समर्पिता बन चुकी थी।
मुझे लगा कुछ गर्म-गर्म सा स्त्राव मेरे लंड के चारों ओर बहने लगा है। उसके गालों पर कुछ बूँद आसुओं की ढलक आई थी।
आप सभी तो बहुत बड़े अनुभवी हैं इन सब बातों को जानते हैं कि यह कौमार्य की झिल्ली फटने से निकलने वाला खून था। गौरी ने अपना अक्षत कौमार्य मुझे सौम्प दिया था।
दर्द के अहसास को दबाये गौरी मेरी चौड़ी छाती के नीचे दबी मेरी बगलों से आती मरदाना गंध में जैसे डूब सी गई थी। आप तो जाने होंगे पुरुष की बगलों से आती पौरुष गंध स्त्री को कामातुर बना देती है और यही हाल पुरुष का भी होता है अपनी प्रियतमा की बगलों से आती कौमार्य की तीखी गंध उसे मतवाला सा बना देती है और सम्भोग के लिए प्रेरित करती है।
“गौरी मेरी प्रियतमा तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद …” कह कर मैंने उसके गालों पर आई शबनम जैसी आंसुओं की बूंदों को चूम लिया। गौरी के शरीर में एक मीठी सनसनाहट सी दौड़ गई।
“ओह … मैं मल जाऊँगी … बाहल निकालो … प्लीज” गौरी की आवाज थोड़ी मंद सी थी। मुझे लगा उसका दर्द अब असहनीय नहीं रहा है और मेरा पप्पू अपनी मंजिल पाकर अन्दर अच्छे से समायोजित हो गया है।
“गौरी बस … अब दर्द ख़त्म हो जाएगा और तुम्हें हमारा यह मिलन वो सुखद अहसास देगा जिसे तुम अपने जीवन पर्यंत याद रखोगी। गौरी मेरी स्मृतियों में भी तुम्हारा यह समर्पण ताउम्र समाया रहेगा। तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद मेरी प्रियतमा।”
मैंने हौले-हौले उसके सिर पर हाथ फिरना चालू कर दिया। गौरी का दर्द अब कुछ कम होने लगा था। अब मैंने गौरी के उरोज की फुनगी (कंगूरा) को अपने मुंह में भर लिया और पहले तो उसे चूसा और बाद में उसे दांतों के बीच लेकर दबा दिया।
गौरी की तो एक मीठी किलकारी ही निकल गयी।
मैं उसे लगातार चूमे जा रहा था। कभी एक उरोज को मुंह में भर लेता और दूसरे को हौले से मसलता और फिर दूसरे को मुंह में लेकर चूसने लग जाता।
गौरी ने एक हाथ मेरी पीठ पर रख लिया और दूसरे हाथ की अंगुलियाँ मेरे सिर पर फिराने लगी थी।
“गौरी अब दर्द तो नहीं हो रहा ना?”
गौरी अब क्या बोलती? ऐसी स्थिति में शब्द मौन हो जाते हैं और कई बार व्यक्ति चाहकर भी कुछ बोल नहीं पाता। जुबान साथ नहीं देती पर आँखें, धड़कता दिल और कांपते होंठ सब कुछ तो बयान कर देते हैं।
गौरी ने अचानक मेरा सिर अपने दोनों हाथों में पकड़ा और जोर से मेरे होंठों को अपने मुंह में लेकर अपने दांतों से काट लिया। यह उसके स्वीकृति और समर्पण की मौन अभिव्यक्ति थी।
अब मैंने अपने कूल्हे थोड़े से ऊपर किये और अपने लंड को थोड़ा सा बाहर निकला तो गौरी ने मेरी कमर पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया। उसने इशारों में मुझे हिलने से मना किया। एक हल्के धक्के के साथ लंड फिर से अन्दर समा गया।
गौरी की एक मीठी आह … सी निकल गई।
थोड़ी देर मैं इसी प्रकार बिना कोई बेजा हरकत किये अपने लंड को अन्दर डाले रहा। लंड तो अन्दर ठुमके पर ठुमके लगा रहा था। अब तो गौरी की सु-सु भी उस अनजान घुसपैठिये से परिचित हो गई लगती थी तभी तो उसने भी संकोचन चालू कर दिया था।
इस नैसर्गिक आनन्द को शब्दों में कहाँ बयान करना कहाँ संभव है। यह प्रकृति का वह आनन्द है जिसे प्राणीमात्र ही नहीं देवता भी भोगने के लिए तरसते हैं। इस दुनिया में प्रेम मिलन से आनन्ददायी कोई दूसरी क्रिया तो हो ही नहीं सकती।
गौरी अब कुछ संयत हो चुकी थी। मैंने उसके गालों और होंठों को फिर से चूमना चालू कर दिया था। जैसे ही मैंने उसके होंठों को मुंह में भरने की कोशिश की तो गौरी ने अपना मुंह थोड़ा सा घुमा लिया तो उसका कान मेरे होंठों के पास आ गया। कानों में पहनी बालियाँ जैसे मुझे ललचा रही थी। मैंने उसके कान की लोब को बाली सहित अपने मुंह में भर लिया और उसे चुभलाने लगा। बीच-बीच में उसे अपने दांतों से काटने भी लगा।
अब तो गौरी रोमांच के उच्चतम शिखर पर पहुँच गई थी। उसने अपने नितम्ब भी उचकाने शुरू कर दिए थे। उसके हिलते नितम्ब और कांपते होंठ यह इशारा कर रहे थे कि अब इसी तरह चुप मत रहो।
मैंने अब हौले-हौले अपने पप्पू को अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया था। गौरी पहले तो थोड़ा कसमसाई पर बाद में वह भी सहयोग करने लगी। उसका दर्द अब ख़त्म तो नहीं हुआ था पर लगता है असहनीय नहीं रहा तभी तो वह भी अपने नितम्ब उचकाकर मेरा साथ देने लगी थी। उसकी अब मीठी सीत्कारें निकालने लगी थी। अब उसने मेरे धक्कों के साथ अपने नितम्बों को लयबद्ध तरीके से हिलाना चालू कर दिया था और अपनी जाँघों को थोड़ा और खोलकर अपने पैर ऊपर उठा लिए थे।
ऐसा करने से मेरा पप्पू तो और भी खूंखार हो गया और अन्दर तक पैंठ जमाने लगा था। गौरी की सु-सु की कसावट और मखमली अहसास से सराबोर हुआ मेरा पप्पू तो आज मस्त होकर हिलौरें ही मारने लगा था। अब तो पूरे कमरे में सु-सु और पप्पू के मिलन का मधुर संगीत गूंजने लगा था।
मुझे हैरानी हो रही थी गौरी का यह प्रथम मिलन था पर ऐसा कतयी नहीं लग रहा था कि बिलकुल अनाड़ी या नवसिखिया है। मुझे लगता है उसने यू-ट्यूब पर इन सब चीजों को जरूर देखा होगा। यह भी संभव है मधुर ने इसे अपने मधुर मिलन की सारी बातों को रस ले लेकर बताया हो? कुछ भी हुआ हो पर मेरे लिए तो यह अतिरिक्त बोनस की तरह था।
गौरी अब पूर्ण सहयोग करने लगी थी। अब तो उसने अपनी सु-सु का संकोचन भी शुरू कर दिया था।
“गौरी तुम्हें अच्छा लग रहा है ना?”
“हट … !!”
“प्लीज बताओ ना?” कहते हुए मैंने एक धक्का जोर से लगा दिया।
“आईईई ईइच्च्च … ”
“आपने तो मुझे बिल्तुल बेशल्म बना दिया.”
“अरे मेरी जान इसमें शर्म की क्या बात है यह तो भगवान् का एक पवित्र और और नैसर्गिक कार्य है हम तो बस एक माध्यम हैं. इस मिलन की वेला में लाज और शर्म का पर्दा हटा रहने दो, बस उस आनन्द को महसूस करो.”
हमें अब तक कोई 20 मिनट तो जरूर हो गए थे। मैंने अपने धक्कों की गति अब बढ़ा दी थी। गौरी अब मीठी सीत्कारें करने लगी थी मुझे लगता था जिस प्रकार गौरी अपनी सु-सु का संकोचन कर रही थी और मेरे लंड को अन्दर उमेठ रही थी, उसका ओर्गास्म होने वाला है।
मेरी उत्तेजना का आलम यह था कि मैं जिस प्रकार धक्के लगा रहा था जैसे मैं गौरी मेरे लिए कतई नई नहीं है। साधारणतया प्रथम मिलन के समय अपनी प्रियतमा का बहुत ख़याल रखा जाता है पर पता नहीं क्यों मेरा अंतर्मन बिना किसी रहम के और जोर-जोर से धक्के लगाने को मुझे उकसा सा रहा था।
गौरी आआह … उईईइ … करने लगी थी।
अचानक गौरी की साँसें बहुत तेज हो गई और उसने मुझे कसकर अपनी बांहों में कस लिया। उसने अपनी जांघें भींच लीं और मेरे लंड को अपनी सु-सु में ऐसे कस लिया जैसे कोई बिल्ली किसी चूहे की गर्दन पकड़ लेती है।
ईईईईईईईई … गौरी की किलकारी भरी चीख पूरे कमरे में गूँज गई। गौरी का शरीर इतनी जोर से अकड़ने लगा और उसने अपनी बांहें मेरी पीठ पर कस ली। और उसके साथ ही चट-चट की आवाज के साथ उसकी कलाइयों में पहनी चूड़ियाँ चटक गई। और फिर वह किसी कटी पतंग की तरह हिचकोले खाती लम्बी-लम्बी साँसें लेती ढीली पड़ती चली गई।
मैंने सिर पर हाथ फिराना चालू कर दिया और उसके गालों और माथे पर चुम्बन लेने लगा। लगता है गौरी ने अपने जीवन का प्रथम लैंगिक ओर्गास्म पा लिया था।
थोड़ी देर बाद में गौरी संयत सी हो गई थी। इस समर्पण के बाद अब वह आँखें बंद किये सुनहरे सपनो में खोई इस मिलन के आनन्द को महसूस कर रही थी। जैसे-जैसे मैं उसके गालों, होंठों गले और उरोजों को चूमता उसका सारा शरीर तरंगित सा हो जाता।
अब मैंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिए थे। अब तो गौरी भी बिना झिझके मेरे धक्कों का प्रत्युत्तर अपने नितम्बों को उचका कर देने लगी थी। इस समय वह आनन्द के उस झूले पर सवार थी जिसकी हर पींग साथ वह आनन्द की नई ऊंचाइयां छू रही थी। उसका गदराया बदन मेरे नीचे दबा बिछा पड़ा था। मेरी हर छुवन, घर्षण और धक्का उसे हर बार रोमांच से भर रहा था।
मैंने अब थोड़ा ऊपर होकर अपने लंड को उसके सु-सु के योनि मुकुट (मदन मणि) से रगड़ना चालू कर दिया था। मेरे ऐसा रगदने से गौरी की मदन मणि फूल कर मूंगफली के दाने जितनी बड़ी हो गई थी।
अब तो गौरी का सारा बदन ही थिरकने लगा था। उसने अपने दोनों पैर उठाकर मेरी कमर पर कस लिए थे और आह … ऊंह … की आवाजों के साथ जैसे आसमान में उड़ने लगी थी जैसे कह रही हो ‘मेरे साजन मुझे बादलों के उस पार ले चलो जहां हमा दोनों के अलावा दूसरा कोई नहीं हो।’
मैंने अब उसके उठे हुए नितम्बों पर हाथ फिराना चालू कर दिया और धक्कों की गति कुछ बढ़ा दी थी। साथ ही उसके अमृत कलशों को मसलने लगा था। कभी उसके शिखरों (चूचुक) को मसलते कभी उन्हें मुंह में लेकर चूमते हुए कभी कभी दांतों से दबा रहा था।
अब मुझे भी लगने लगा था कि प्रेम की अंतिम आहुति डालने का समय आ गया है। मेरा पूरा शरीर तरंगित सा होने लगा था और लिंग में भारीपन सा आने लगा था। मेरी आँखों में जैसे सतरंगी सितारे से जगमगाने लगे थे।
मेरे हर धक्के साथ गौरी के पैरों में पहनी पायल तो किसी कोयलिया की तरह रुनझुन ही करने लगी थी। लयबद्ध धक्कों के साथ पायल झंकार सुनकर मैं उसे जोर-जोर से चूमने और धक्के लगाने लगा था।
मेरे ऐसा करने से गौरी का रोमांच और स्पंदन अब अपने चरम पर पहुँच गया था। मुझे लगा उसकी साँसें एक बार फिर से तेज होने लगी हैं और फिर से पूरी देह अकड़ने लगी है। मुझे लगा एक बार फिर से गौरी को ओर्गाश्म होने वाला है। मैं चाहता था इस बार हम दोनों एक साथ स्खलित होकर इस आनद को भोगें।
मैंने गौरी के होंठों को अपने मुंह में कस लिया और जोर जोर से धक्के लगाने लगा। मेरी साँसें भी तेज हो गई थी और पूरे बदन में पसीना सा आने लगा था।
“गौरी मेरी जान … मेरा भी अब निकलने वाला है … मेरी प्रियतमा … आज मैं तुम्हें अपनी पूर्ण समर्पिता बनाकर धन्य हो जाऊँगा … आह … मेरी सिमरन … मेरी गौरी …”
“हाँ मेले साजन … मेले प्रेम … मैं तो कब की आपके इस प्रेम की प्यासी थी … आह … मेले शलील में उबाल सा आ रहा है मेरे … सा … जा … न्नन्न … आह … ईईईईई …”
प्रेम रस में डूबी गौरी की मीठी सीत्कार निकले लगी थी और फिर से उसने मेरी कमर को कस कर पकड़ लिया।
और फिर मेरे लंड ने पता नहीं कितनी फुहारें उसकी सु-सु में निकाल दी।
अब मैं उसे हर धक्के के साथ जोर-जोर से चूमे जा रहा था और गौरी भी आँखें बंद किये तरंगित हुई इस आनन्द को भोग रही थी। सच है इस प्रेम मिलन से बड़ा कोई सुख और आनन्द तो हो ही नहीं सकता। मैं ही नहीं शायद गौरी भी यही चाह रही होगी कि हम दोनों इस असीम आनन्द को आयुपर्यंत इसी प्रकार भोगते ही चले जाएँ।
“मेरी प्रियतमा … मेरी सिमरन … मेरी गौरी … आह … मैं तुम्हें बहुत प्रेम करता हूँ!”
“मेरी जान आह … या …” कहते हुए गौरी ने मुझे अपनी बांहों में भींच लिया। वह कितनी देर प्रकृति से लड़ती, उसका भी एक बार फिर से रति रस छूट गया। और उसी के साथ ही बरसों की तपती प्यासी धरती को जैसे बारिस की पहली फुहार मिल जाए, कोई सरिता किसी सागर से मिल जाए, किसी चातक को पूनम का चाँद मिल जाए या फिर किसी पपिहरे को पी मिल जाए मेरा वीर्य और गौरी का कमरज एक साथ निकल गया।
गौरी ने अपनी सु-सु का संकोचन करना शुरू कर दिया था जैसे इस अमृत की हर बूँद को ही सोख लेगी। अचानक उसकी सारी देह हल्की हो उठी और उसके पैर धड़ाम से नीचे गिर पड़े।
मैंने 2-3 अंतिम धक्के लगाए और फिर गौरी को कस कर अपनी बांहों में भर कर उसके ऊपर ऊपर लेट गया।
गौरी की आंखें अब भी बंद थी। मेरी बांहों में लिपटी पूर्ण तृप्ति के साथ जोर-जोर से साँसें ले रही थी।
3-4 मिनट इसी प्रकार मैं उसके ऊपर लेटा रहा। अब मेरा लंड सिकुड़ कर बाहर निकलने लगा।
“उईईईईइ … मेला सु-सु निकल रहा है … प्लीज …”
मुझे हंसी सी आ गई।
लगता है गौरी जिसे सु-सु (पेशाब) समझ रही थी वह मेरे वीर्य, उसके कामरज और कौमार्य झिल्ली के फटने से निकला रक्त का मिश्रण बाहर निकालने लगा होगा।
मैं गौरी के ऊपर से हट गया। अब गौरी उठकर बैठ गई और अपनी सु-सु को देखने लगी। उसमें से तो प्रेम रस बह निकला था और गौरी की जाँघों और महारानी के छेद तक फ़ैल गया था।
अब गौरी की नज़र उस सफ़ेद तौलिये पर गई जिसे उसने अपने नितम्बों के नीचे लगा लिया था। वह तो 5-6 इंच के व्यास में पूरा गीला हो गया था और वीर्य और उसकी योनि से निकले रक्त से सराबोर हो गया था।
गौरी ने हैरानी से उस तौलिये को देखा और फिर अपनी सु-सु की फांकों को देखा। फांकें तो अब सूजकर और भी मोटी-मोटी लगने लगी थी।
मैं टकटकी लगाए उसकी सु-सु को ही देखे जा रहा था जिसमें अब भी प्रेम रस निकल रहा था।
मुझे अपनी ओर निहारते हुए देख कर गौरी ने झट से वह तौलिया उठाया और अपनी जाँघों और सु-सु पर डाल लिया।
मैंने एक बार फिर से उसे अपनी बांहों में भर लेना चाहा तो गौरी ने मुझे हल्का सा धक्का दिया और वह तौलिया और अपनी नाइटी उठाकर बाथरूम में भाग गई।
अथ श्री योनि भेदन सोपान इति!!!
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02-12-2022, 02:31 PM,
#38
RE: Sex Vasna चोरी का माल
तीन पत्ती गुलाब
भाग-24
पिछले भाग में आपने गोरी के योनि भेदन की कहानी पढ़ी.
अब आगे :

मैं कुछ कर पाता इससे पहले गौरी बाथरूम में भाग गई।
या खुदा … उसके बालों का जूड़ा खुल गया था और उसके सिर के बाल कमर तक फ़ैल गए थे। मैं बिस्तर पर बैठा हिचकोले खाते और बिजलियाँ गिराते उसके नितम्बों को ही देखता रह गया।
बिस्तर पर गुलाब और मोगरे की नाज़ुक पत्तियाँ बिखरी पड़ी थी जिनमें बहुत सी पत्तियाँ मेरे और गौरी के बदन मसली और कुचली हुई थी। आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि गौरी की क्या हालत हुई होगी!
पुरुष हमेशा ही कठोरता पसंद करता है और प्रकृति ने भी उससे जुड़ी हर चीज को कठोर बनाया है अब चाहे वह उसका शरीर हो, हृदय हो कामांग हों या भावनाएं।

इसके विपरीत स्त्री की हर चीज प्रकृति ने नाजुक और कोमल बनाई हैं अब चाहे वह उनके शरीर का कोई अंग हो, हृदय हो या भावनाएं हों सभी में एक नाजुकता और कोमलपन का अहसास भरा होता है।

पुरुष और स्त्री के प्रेम में भी यही विरोधाभास झलकता है। पुरुष छद्म प्रेम या बलपूर्वक स्त्री को पा लेना चाहता है। वह एकाधिकारी बनाना पसंद करता है वह सोचता है कि वह एक समय में बहुत सी स्त्रियों से प्रेम (दिखावा) कर सकता है पर नारी मन हमेशा ही अपने प्रियतम के लिए समर्पित रहता है।

थोड़ी देर बाद गौरी बाथरूम से वापस आ गई। शायद वह शुद्धि स्नान (नहा) करके आई थी।

हे भगवान् अगर मुझे पहले पता होता तो मैं भी गौरी के साथ शुद्धि स्नान कर लेता। शॉवर के नीचे ठन्डे पानी में गौरी के साथ लिपट कर नहाने में बारिश में भीगने जैसा आनन्द कितना अद्भुत होता मैं तो सोच कर ही रोमांच से भर गया।

उसने हाफ बाजू का कुर्ता और पाजामा पहन लिया था। उसने वह नाइटी और हमारे प्रेमरस में भीगा तौलिया समेट कर अपने हाथों में पकड़ रखा था। जिस अंदाज़ में वह अपनी टांगें चौड़ी करके चल रही थी मुझे लगता है उसे अब भी थोड़ा दर्द महसूस हो रहा होगा।

मेरा मन एक बार फिर से उसे बांहों में भर कर दबोच लेने को करने लगा था। मैं तो आज सारी रात गौरी को अपनी बांहों में भर कर प्रेम करना चाहता था। यह पुरुष मन एक बार में संतुष्ट होना ही नहीं चाहता? पता नहीं प्रकृति ने इसे इतना रहस्यमयी क्यों बनाया है?

गौरी ने वो समेटा हुआ तौलिया और नाइटी एक तरफ रख दी और बेड पर बैठ गई। मैंने भी अब तक बनियान और एंडरवीअर पहन लिया था।

“गौरी मेरी प्रियतमा!” कह कर मैंने उसे अपनी बांहों में भर लेना चाहा।
“अब त्या है?”
“गौरी आओ एक बार उस आनन्द को फिर से भोग लें प्लीज … ”
“आप तो अपना मज़ा देखते हो पता है मुझे तित्ता दर्द हुआ? तित्ता खून सारा निकला? मालूम? मेले से तो चला भी नहीं जा लहा?”
“गौरी आई एम् वैरी सॉरी?” कह कर मैंने उसे अपनी बांहों में भर लिया।

“हटो परे … मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे चाक़ू से चीर दिया हो.” गौरी ने आँखें तरेरते हुए कहा।
“गौरी ज्यादा दर्द हो रहा हो तो लाओ मैं कोल्ड क्रीम लगा देता हूँ.”
“हट … ” गौरी एक बार फिर शर्मा गई।

इस बार उसके शर्माने में उलाहने के बजाय रूपगर्विता होने का भाव ज्यादा था।
“गौरी तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद इस समर्पण के लिए!”
“दीदी आपको कितना भोला समझती ही और आपने …?”
“मैंने क्या किया?”
“अच्छा जी मेला सब कुछ तो ले लिया ओल बोलते हो मैंने त्या किया?”
“गौरी क्या तुम नाराज़ हो?” मैंने उदास स्वर में पूछा.

तो गौरी जोर-जोर से हँसने लग गई- मेले नालाज़ होने से आपको त्या फलक पड़ता है?
“ऐसा मत कहो जान … अब हम दोनों दो नहीं एक हैं तुम्हारा हर दुःख दर्द अब मेरा भी है … आई लव यू … ”
कह कर मैंने एक बार फिर से गौरी को अपने आगोश में ले लिया।

गौरी मेरे सीने से लग गई। मैंने उसके सिर और पीठ पर हाथ फिराना चालू कर दिया। मेरा मन तो एक बार फिर से हल्का होने को करने लगा था। मेरा लंड फिर से कुनमुनाने लगा था।
“गौरी तुम बहुत खूबसूरत हो … एक बार में तो मन ही नहीं भरा … प्लीज …”
“नहीं मेरे प्रियतम … आज ओल नहीं … मैं तहाँ भागी जा लही हूँ … सब तुछ तो आपतो सौम्प दिया है। मैं आज ती लात आपते साथ इन भोगे हुए सुनहली पलों ती याद ते लोमांच में बिताना चाहती हूँ। मैं यह महसूस तरना चाहती हूँ ति यह सब सपना नहीं हतीतत है। अब आप भी सो जाओ … 1 बजने वाला है।”

“और हाँ … यह चादल भी बदल देती हूँ. और आप भी नहा लो आपते भी चेहले और सीने पल मेले प्रेम की तुछ निशानियाँ रह गई हैं जिन्हें दीदी ने देख लिया तो मुझे ओल आपको जान से माल डालेगी.” कह कर गौरी जोर जोर से हँसने लगी।
अब मैं क्या बोलता? गौरी ने बेडशीट बदली और अपने कपड़े और तौलिया उठाकर सोने के लिए स्टडी रूम में चली गई।

दोस्त आप सभी सोच रहे होंगे वाह … प्रेम माथुर तुम्हारे तो मजे हो गए। एक कुंवारी अक्षत यौवना ने सहर्ष अपना कौमार्य तुम्हें इतना आसानी से सौम्प दिया।
हाँ मित्रो … आपका सोचना अपनी जगह सही है पर एक बात बार-बार मेरे दिमाग में दस्तक दिए जा रही है.

चलो गौरी के साथ मेरे प्रेम सम्बन्ध बन गए। लेकिन अगर मधुर को इसकी ज़रा भी भनक लग गई तो क्या होगा?
कई बार मुझे संदेह होता है कहीं मधुर जानबूझ कर तो हम दोनों को ऐसा करने के लिए उत्साहित तो नहीं कर रही और बार-बार इस प्रकार की स्थिति और मौक़ा तो पैदा नहीं कर रही जिससे हम दोनों की नजदीकियां बढ़ जायें?

कहीं वह गौरी के माध्यम से तो बच्चा नहीं चाह रही … हे भगवान् … मेरा दिल इस आशंका से जोर-जोर से धड़कने लगा।
मान लो गौरी प्रेग्नेंट हो जाती है सब को पता चल जाएगा … ओह तब क्या होगा?
गौरी तो अभी मासूम है उसने अभी दुनिया नहीं देखी है। वह अभी सुनहरे सपनों के घोड़े पर सवार है और इस समय मेरे या मधुर के एक इशारे किसी भी हद तक जाने के लिए सहर्ष तैयार है। यह सब किस्से कहानियों में तो बहुत आसान लगता है पर वास्तविक जीवन में इसका कानूनी पहलू भी होता है और उसे सोच कर तो मैं जैसे काँप सा उठाता हूँ।

उम्र के इस पड़ाव पर मैं किसी पेचीदगी में नहीं फंसना चाहता। मैं कोशिश करुंगा कि गौरी किसी भी तरह प्रेग्नेंट ना होने पाए। हे लिंग देव! पता नहीं भविष्य के गर्भ में क्या लिखा है? तू ही जाने?
इन्हीं विचारों में कब मेरी आँख लग गई पता नहीं।

कहानी जारी रहेगी.
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02-12-2022, 02:32 PM, (This post was last modified: 04-01-2023, 01:21 PM by desiaks.)
#39
RE: Sex Vasna चोरी का माल
तीन पत्ती गुलाब
भाग-25
कई बार मुझे संदेह होता है कहीं मधुर जानबूझ कर तो हम दोनों को ऐसा करने के लिए उत्साहित तो नहीं कर रही और बार-बार इस प्रकार की स्थिति और मौक़ा तो पैदा नहीं कर रही जिससे हम दोनों की नजदीकियां बढ़ जायें?
कहीं वह गौरी के माध्यम से तो बच्चा नहीं चाह रही … हे भगवान् … मेरा दिल इस आशंका से जोर-जोर से धड़कने लगा।
मान लो गौरी प्रेग्नेंट हो जाती है सब को पता चल जाएगा … ओह तब क्या होगा?
गौरी तो अभी मासूम है उसने अभी दुनिया नहीं देखी है। वह अभी सुनहरे सपनों के घोड़े पर सवार है और इस समय मेरे या मधुर के एक इशारे किसी भी हद तक जाने के लिए सहर्ष तैयार है। यह सब किस्से कहानियों में तो बहुत आसान लगता है पर वास्तविक जीवन में इसका कानूनी पहलू भी होता है और उसे सोच कर तो मैं जैसे काँप सा उठाता हूँ।
उम्र के इस पड़ाव पर मैं किसी पेचीदगी में नहीं फंसना चाहता। मैं कोशिश करुंगा कि गौरी किसी भी तरह प्रेग्नेंट ना होने पाए। हे लिंग देव! पता नहीं भविष्य के गर्भ में क्या लिखा है? तू ही जाने?
इन्हीं विचारों में कब मेरी आँख लग गई पता नहीं।  Click to expand...  गौरी का शुद्धि स्नान

अगले दिन लिंग देव का वार यानि सावन का अंतिम सोमवार था। मुझे इतनी गहरी नींद आई थी कि मधुर कब गुप्ताजी के घर से आई पता ही नहीं चला।

कोई 7 बजे मधुर ने मुझे चाय के साथ जगाया। शायद आज मधुर ने स्कूल से छुट्टी ले ली थी। मधुर ने फरमान जारी किया कि आज लिंग देव के दर्शन करने चलेंगे।

फिर हम तीनों कार से लिंग देव के दर्शन करने गए। आपको तो मिक्की के साथ मेरे लिंग देव के दर्शन करने वाली बातें जरूर याद होंगी। मैं तो चाहता था कि मोटर बाइक पर ही जाया जाए पर तीन व्यक्तियों के लिए बाइक पर जाना असुविधाजनक था तो हम लोग कार से ही लिंग देव के दर्शन करने गए।

मैंने और मधुर जब शिव लिंग पर जल और दूध चढ़ाने लगे तो पता नहीं मधुर ने गौरी को भी साथ में अभिषेक करने के लिए कहा।
मेरे और गौरी के लिए यह अप्रत्याशित था।

मधुर आँखें बंद किये कुछ मन्नत सी मांग रही थी तो मैंने गौरी की ओर देखा। वह मंद-मंद मुस्कुरा रही थी तो मैंने उसका हाथ जोर से भींचते हुए उसकी ओर आँख मार दी।
गौरी ने शरमाकर अपनी नज़रें घुमा ली।

आपको बताता चलूँ कि अगस्त महीने में मधुर का जन्मदिन आता है। एक लम्बे इंतज़ार के बाद सावन भी अब बस ख़त्म होने वाला है और मधुर के व्रत भी इसके साथ शायद ख़त्म हो जाए।
कुछ भी कहो इस बार सावन बहुत बरसों के बाद (याद करें सावन जो आग लगाए) मेरे जीवन में बहुत सी खुशियाँ लेकर आया है।

मेरा मन भी आज छुट्टी मार लेने को करने लगा था पर पर उस आगजनी वाली घटना के कारण ऑफिस जाने की मजबूरी थी। आज सावन का अंतिम सोमवार था तो गौरी तो मुझे पुट्ठे पर हाथ भी नहीं धरने देगी और मधुर तो जैसे सन्यासिन बनी पता नहीं किस भक्ति और तपस्या में लगी है।
चलो आज मुट्ठ मार कर ही काम चला लेंगे।

मैंने आपको ऑफिस में आये उस नए नताशा नामक मुजसम्मे के बारे में बताया था ना? आज वह पूरी पटाका नहीं एटम बम बनकर आई थी। काली जीन पैंट और लाल टॉप के कमर तक झूलते लम्बे घने काले बाल और गहरी लाल रंग की लिपस्टिक … हाथों में मेहंदी और लम्बे नाखूनों पर लिपस्टिक से मिलती जुलती नेल पोलिश … उफ्फ … पूरी छमिया ही लग रही थी।
साली की क्या मस्त गांड है … हे लिंग देव! अगर एक बार इसके नंगे नितम्बों पर हाथ फिराने का मौक़ा मिल जाए तो यह जिन्दगी जन्नत बन जाए।

उसने बताया कि आज उसका जन्मदिन है। शाम को ऑफिस में उसकी तरफ से मीटिंग हॉल में एक छोटी सी पार्टी का आयोजन किया गया।

नताशा ने बताया कि वह मेरे लिए विशेष रूप से अपने हाथों से मिठाई बनाकर लाई है।
मैंने अपने सोमवार के व्रत के बारे में बताया तो नताशा को थोड़ी निराशा सी हुई।

सभी ने उसे हैप्पी बर्थडे विश किया और उसने भी सभी से हाथ मिलाया।
वाह … क्या नाज़ुक हथेली और लम्बी अंगुलियाँ थी। मेरा मन तो उसके हाथों को चूमने को ही करने लगा था। मैंने अपने आप को कितनी मुश्किल से रोका होगा आप अंदाज़ा लगा सकते हैं। काश वह इन हाथों से मेरे पप्पू को पकड़ कर हिलाए तो मैं अपना बहुत कुछ इस पर कुर्बान ही कर दूं।

नाश्ते के बाद जब वह हम सभी के लिए कपों में चाय डाल रही थी तो उसके ढीले और खुले बटनों वाले टॉप के नीचे काली ब्रा में कैद दो कंधारी अनारों की गोलाइयां देखकर तो मेरा पप्पू अटेंशन की मुद्रा में ही आ गया था। मैं तो टकटकी ललचाई आँखों से बस उन बस दो अमृत कलसों की गोलाइयों में डूबा ही रह गया।

हे भगवान् उसने काली ब्रा पहनी है तो जरूर पैंटी भी काली ही पहनी होगी। याल्लाह … काली पैंटी में उसकी बुर (सॉरी यार अब तो बुर नहीं चूत बन चुकी है) कितनी प्यारी लगती होगी? मुझे लगता है उसने तरीके से अपनी झांटों को ट्रिम किया होगा।
आइलाआआआ …

जब पार्टी ख़त्म हो गयी तो वह मेरे केबिन में आ गई और बड़ी आत्मीयता के साथ बोली- सर आपने तो मेरी हाथ की बनी मिठाई खाई ही नहीं? आप थोड़ी मिठाई घर ले जाएँ और मैडम को भी जरूर खिलाएं फिर मुझे बताना कि मिठाई कैसी बनी है?
“भई मेरा सोमवार का व्रत है तो मजबूरी है पर हाँ … आपने अपने हाथ से बनाई है तो बहुत स्वादिष्ट ही होगी.” अपनी तारीफ़ सुनकर नताशा लजा सी गई।

“सर आज हमने अपने घर पर भी एक छोटी सी पार्टी का आयोजन किया है और मैं चाहती हूँ आप उसमें जरूर शामिल हों.”
“ओह … थैंक यू डिअर … पर मैंने बताया ना आज मेरा भी व्रत है और वैसे भी यह तो आप लोगों की घरेलू पार्टी है तो मैं क्या करूंगा?”
“क्या आप हमें अपना नहीं समझते?” नताशा ने मेरी आँखों में आँखें डालते हुए जिस प्रकार पूछा था मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था।

मेरा मन तो इस निमंत्रण को तहे दिल से स्वीकार कर लेने को करने लगा था पर मैं थोड़ा असमंजस में था।

“नताशा आपको जन्म दिन की एक बार फिर से बधाई! मैं फिर कभी जब आपके यहाँ नई ख़ुशखबरी आएगी तब जरूर शामिल होऊँगा।”

मेरी इस नई खुशखबरी की बात पर नताशा तो शरमाकर लाजवंती ही बन गई थी। उसने अपनी पलकें नीची किये हुए मुस्कुराकर जिस प्रकार धन्यवाद किया। आप मेरी हालत और मेरे पप्पू की हालत अच्छी तरह समझ सकते हैं।

“सर! आप बंगलुरु ट्रेनिंग पर कब जा रहे हैं?” उसने अपनी मुंडी नीचे झुकाए हुए पूछा।
“ओह … हाँ वो सेप्टेम्बर (सितम्बर) मिड में जाने का प्रोग्राम है। क्यों?”
“सर, बंगलुरु में मेरी एक कजिन रहती है।”
“अच्छा.”
“वो मुझे भी बंगलुरु आने का बोल रही है।””
“गुड …”

“उनके हब्बी आईटी कंपनी में काम करते हैं और उनके दो बेटियाँ ही हैं। एक इंजीनियरिंग कर रही है और छोटी वाली 12वीं में पढ़ रही है।”
“हम्म …” आप मेरी हालत का अंदाज़ा लगा सकते हैं। याल्लाह … नताशा की तरह ये दोनों भी कितनी खूबसूरत होंगी मेरा दिल तो जोर जोर से धड़कने लगा था।
“सर मैं भी सोच रही थी 4-5 दिन कजिन से भी मिल आऊँ और इस बहाने बंगलुरु भी घूमने का मौक़ा मिल जाएगा. आप छुट्टी तो दे देंगे ना प्लीज …”
“ओह … हाँ … मैं देखूंगा उस समय स्टाफ की क्या पोजीशन रहती है।”
“थैंक यू वैरी मच सर!” कहते हुए नताशा ने एक बार फिर हाथ मिलाया।

प्रिय पाठको! आपकी इस सम्बन्ध में क्या राय है? क्या मुझे नताशा को छुट्टी दे देनी चाहिए? वह तो मेरे साथ ही जाने का प्रोग्राम बना रही है और उसने मुझे घर आने का भी निमंत्रण दिया है आपको क्या लगता है? नताशा ने वैसे ही यह औपचारिकतावश मुझे निमंत्रण दिया था या कोई और बात हो सकती है?

हे लिंग देव आपकी जय हो …

सोमवार किसी तरह बीत गया। आज मंगलवार का दिन है और मधुर 2-3 दिन के बाद आज स्कूल चली गई है।

गौरी ने आज लाल रंग की टी-शर्ट और सफ़ेद निक्कर पहन रखा है। उसने अपने बालों का जूड़ा बना रखा है। वह मेरे सामने बैठी है और हम चाय की चुस्कियां लगा रहे हैं। बाहर रिमझिम बारिश हो रही है।

शादी के शुरू-शुरू के दिनों में मैं और मधुर कई बार बाथरूम में शॉवर की फुहारों के नीचे नहाया करते थे और फिर बहुत सी मिन्नतों और नाज-नखरों के बाद मधुर बाथरूम में ही घोड़ी बन कर पीछे से सम्भोग के लिए राज़ी हो जाया करती थी।

उन पलों को याद करके मेरा लंड तो फनफाने ही लगा था। काश … इस बारिश की फुहार में गौरी के साथ नहाने का मौक़ा मिल जाए तो खुदा कसम मज़ा ही आ जाए।
अचानक मेरे दिमाग में एक जबरदस्त आईडिया आया कि क्यों ना आज बाथरूम में गौरी के साथ नहाकर उन पलों का एक बार फिर से ताज़ा कर लिया जाए।

मैं तो इस विचार से झूम ही उठा।
“अरे गौरी?”
“हओ?”
“वो तुमने पिल्स ले ली थी ना?”
“किच्च …”
“गौरी इसमें लापरवाही नहीं करनी चाहिए यार?”
“मुझे पता है.”
“क्या पता है?” गौरी मंद-मंद मुस्कुराती जा रही थी और मेरी झुंझलाहट बढ़ती जा रही थी।
“उसकी जलुलत नहीं है.”
“क … कैसे … क … क्या मतलब?”
“वो 4-5 दिन बाद मेले पिलियड आने वाले हैं।”

“ओह … थैंक गोड!” मैंने राहत की सांस ली।
गौरी ने मेरी ओर ऐसे देखा जैसे मैं सचमुच का ही लड्डू हूँ। (बकौल मधुर)
“ऐ गौरी! आज तुम इतनी दूर क्यों बैठी हो? कोई नाराज़गी है क्या?”
“किच्च?”
“तो पास आओ ना? प्लीज” कहकर मैंने गौरी का हाथ पकड़कर अपने पास सोफे पर खींच लिया।

गौरी हड़बड़ाहट में मेरी गोद में गिर गई, मैंने उसके गालों पर एक चुम्बन ले लिया।
“हट! आप फिल शरारत तरने लगे?” उसने तिरछी नज़रों से मुझे देखा।
“गौरी उस दिन तुमने वादा किया था … प्लीज?”
“तौन सा वादा?”
“गौरी आओ उन पलों का एक बार फिर से आनन्द ले लें … प्लीज!”
“हट!” गौरी ने शरमाकर अपनी आँखों पर हाथ रख लिए।

“देखो आज मौसम कितना सुहाना हो रहा है बाहर रिमझिम फुहारें पड़ रही हैं। मेरा मन तो इस बारिश में नहाने को कर रहा है.”
“तो नहा लो.”
“यार अकेले में मज़ा नहीं आता? अगर तुम साथ में नहाओ तो यह जिन्दगी जन्नत बन जाए.”
“हट! किसी ने देख लिया तो हम दोनो को लैला मजनू ती तलह पत्थरों से मालेंगे.”
“तो क्या हुआ तुम्हारे लिए तो मैं पत्थर तो क्या जहर भी खा लूँगा?”
“हट!”

“ऐ गौरी प्लीज बाहर तो हम नहीं नहा सकते पर बाथरूम में शॉवर के नीचे ठंडी फुहारों में तो नहा सकते हैं ना?”
“किच्च! मुझे शल्म आती है.”
“अरे यार … एक तो पता नहीं तुम यह शर्म कब छोड़ोगी?”
“आप शरारत तो नहीं कलोगे ना?”
“किच्च … बिलकुल नहीं.” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
पता नहीं … भेनचोद ये लड़कियां जवान होते ही इतने नखरे और जानलेवा अदाएं कहाँ से सीख लेती हैं?

गौरी ने शरमाकर अपनी आँखों पर हाथ रख लिए। गौरी की मौन स्वीकृति पाकर मैंने उसे एक बार फिर कसकर अपनी बांहों में भींचते हुए चूम लिया। लंड महाराज तो पजामा फाड़कर ही बाहर आने लेगे थे।

मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया और फिर उसे लेकर बाथरूम में आ गया।

कहानी जारी रहेगी.
Reply
02-12-2022, 02:32 PM,
#40
RE: Sex Vasna चोरी का माल
तीन पत्ती गुलाब
भाग-26
गौरी ने शरमाकर अपनी आँखों पर हाथ रख लिए। गौरी की मौन स्वीकृति पाकर मैंने उसे एक बार फिर कसकर अपनी बांहों में भींचते हुए चूम लिया। लंड महाराज तो पजामा फाड़कर ही बाहर आने लेगे थे।
मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया और फिर उसे लेकर बाथरूम में आ गया। Click to expand... गौरी को गोद से नीचे उतार कर मैंने झट से अपना कुर्ता पाजामा निकाल फैंका और शॉवर चला कर अपनी मुंडी उसके नीचे लगा दी.
गौरी मुझे देखती जा रही थी। मैंने एक चुल्लू में पानी लिया और गौरी के चहरे पर फेंक दिया।
“ऐ गौरी आओ ना … इस फुहार के नीचे!” मैंने गौरी का हाथ पकड़कर फव्वारे के नीचे खींच लिया।
“अले लुको … मेले तपड़े भीग जायेंगे?”
“ऐसी की तैसी तुम्हारे कपड़ों की।” कह कर मैंने गौरी की टी-शर्ट निकाल दी।

उसने ब्रा तो पहनी ही नहीं थी। दोनों अमृत कलश आजाद होकर जैसे राहत की सांस लेने लगे थे। और कंगूरे तो भाले की नोक की तरह तीखे हो गए थे।
“गौरी यह निक्कर भी उतार दो ना!”
“हट! आप तो मुझे पूरा बेशल्म बनाकल ही छोड़ेंगे?” कह कर गौरी ने अपने दोनों हाथों से अपने उरोजों को ढक सा लिया।
“गौरी प्लीज … मान जाओ ना?” प्लीज मेरे खातिर … ”

अब मैंने उसके इलास्टिक वाले निक्कर को नीचे से पकड़ कर खींच लिया। गौरी ने ज्यादा ना नुकर नहीं की अलबत्ता उसने अपनी सु-सु को एक हाथ से ढक जरूर लिया।

अब मैंने उसका हाथ पकड़कर फिर से शॉवर के नीचे कर लिया। और फिर साबुन लेकर पहले तो अपने सिर और बदन पर लगाया और फिर अपने खड़े लंड पर साबुन लगाकर उसे धो लिया।
गौरी यह सब देख रही थी। उत्तेजना के मारे उसकी साँसें तेज होने लगी थी और उसके उरोज साँसों के साथ ऊपर नीचे होने लगे थे। उसकी आँखों में एक खुमार सा आने लगा था और होंठ कांपने से लगे थे।

मेरा लंड तो ठुमके पर ठुमके लगाने लगा था। गौरी टकटकी लगाए मेरे लंड को ही देखती जा रही थी।

अब मैं गौरी के चहरे और गले पर साबुन लगाने लगा। जब मैंने उसकी कांख (बगलों) पर साबुन लगाया तो गौरी कसमसाने सी लगी।
“आह … मुझे गुदगुदी हो लही है … मैं अपने आप लगा लूंगी.” गौरी अब भी थोड़ा शर्मा रही थी।

मैंने अब उसके उरोजों और पेट पर साबुन लगाते हुए उसकी सु-सु पर भी साबुन लगा दिया और फिर उसके चीरे में अंगुली फिरा दी।
“ईईईईईईई …” गौरी की तो एक मीठी किलकारी सी निकल गई। उसने मेरा हाथ पकड़ने की नाकाम सी कोशिश की पर ज्यादा विरोध अब उसके बस में कहाँ था।

गौरी ने 5-6 दिन पहले अपनी सु-सु को चकाचक बनाया था तो अब उसपर हल्के हल्के रोयें झलकने लगे थे। मैंने उसकी पीठ और नितम्बों पर साबुन लगाते हुए उसके नितम्बों की खाई में भी साबुन लगा दिया।
गौरी तो बस आह … ऊंह … करती ही रह गई।

अब मैंने उसे अपनी बांहों में भरते हुए शॉवर के नीचे कर लिया। ठंडा पानी हमारे बदन पर गिरने लगा और साबुन उतरती गई। मैं धीरे-धीरे गौरी के पूरे शरीर हाथ से मलने लगा। गौरी रोमांच में डूबने लगी, उसके होंठ कांपने लगे थे और उसकी साँसे बहुत तेज़ होने लग गई थी।
“गौरी एक काम करोगी?”
“हम्म …” गौरी पता नहीं किन सपनों और आनन्द में खोई थी।

“तुम अपना एक पैर इस प्लास्टिक वाली स्टूल पर रख लो” गौरी ने बिना ना नुकुर के अपना एक पैर उस प्लास्टिक की स्टूल पर रख लिया तो उसकी सु-सु के मोटे मोटे पपोटों के बीच गुलाबी छेद और उनके बीच लाल रंग की पंखुड़ियां (लीबिया-इनर लिप्स) नज़र आने लग गए।

अचानक मैं नीचे बैठ गया और उसके नितम्बों को हाथ से पकड़ कर अपने मुंह की ओर धकलते हुए उसकी सु-सु पर पहले तो 2-3 चुम्बन लिए और फिर उस पर अपनी जीभ फिराने लगा।
“ईईईईईईई … त्या तल रहो हो … ओह … छी … ओह … लुको … आआईईइ …”

मैंने उसके की सु-सु को पूरा मुंह में भर लिया और चूसने लगा। उत्तेजना के मारे गौरी का पूरा शरीर कांपने और झटके से खाने लगा था।
उसने अपने आप को छुड़ाने का हल्का सा विरोध तो जरूर किया पर उसके आह … ऊंह … और हिलते नितम्बों से लग रहा था उसका विरोध फजूल है उसे भी अब मज़ा आने लगा था।
उसने कसकर मेरा सिर अपने हाथों में पकड़ लिया और जोर जोर से सीत्कार करने लगी- मेरे साजन … आह … मैं मल जाउंगी … ईईईईईईइ …

उसके मदनमणि (योनि मुकुट) तो फूल कर अंगूर के छोटे दाने जितनी हो चली थी। मैंने उसे अपने मुंह में लिया और चुभलाने लगा। एक दो बार हल्के दांत भी उस पर गड़ा दिए।

“ईईईईईईइ … आह … मेला सु-सु निकल जाएगा … ओह … प्लीज ओल मत कलो … आह … ”
अब गौरी का विरोध ख़त्म हो गया था और उसने मेरे सिर को अपनी सु–सु की ओर जोर से दबा दिया था।

मैंने अब दो काम एक साथ किये। एक हाथ की अंगुली उसके नितम्बों की खाई में लगाते हुए उसकी महारानी (गांड) के छेद को टटोला और हल्के से अपनी अंगुली का एक पोर उस छेद पर थोड़ा सा अन्दर करते हुए फिराया और फिर उसकी सु-सु को पूरा मुंह में लेकर जोर के चुस्की लगाई।

अब बेचारी गौरी कितनी देर मेरे काम बाणों से अपने आप को बचा पाती। गौरी ने जोर कि किलकारी मारी और उसके साथ ही उसका रतिरज बहकर मेरे मुंह में समाने लगा। गौरी का शरीर झटके से खाने लगा।
मैंने अब उसकी सु-सु को मुंह से बाहर निकाला और फिर उस पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी। गौरी तो बेचारी रोमांच में डूबी और ओर्ग्श्म महसूस करती आह … ऊंह करती ही रह गई।

अब मैं खड़ा हो गया और फिर से गौरी को अपनी बांहों में भर लिया। गौरी ने भी मेरे होंठों पर चुम्बन लेने शुरू कर दिए। एक बार तो उसने मेरे होंठों को इतना जोर से काटा कि मुझे लगा इनमें खून ही निकल जाएगा।

मेरा खड़ा लंड उसकी सु-सु पर टक्कर मार रहा था। अचानक गौरी नीचे बैठ गई और मेरे लंड को मुंह में लेकर चूसने लगी। मैं आज अपना वीर्य उसे पिलाने के मूड में कतयी नहीं था। पर थोड़ी देर उसे इसी तरह चूसने देना जरूरी था। अब तो मेरा पप्पू लोहे की सलाख जैसे कठोर हो गया था।

“गौरी मेरी जान … आओ एक और अनूठे आनन्द को भोगते हैं.”
गौरी ने नज़रें ऊपर उठाकर मेरी ओर देखा।

मैंने उसे खड़े होने का इशारा किया। गौरी ने मेरा लंड अपने मुंह से बाहर निकाल दिया और खड़ी हो गई। मैंने उसे थोड़ा घुमाया और उसे पीछे से अपनी बांहों में भर लिया। मेरा लंड अब उसके नितम्बों पर दस्तक देने लगा था।

गौरी को मैंने थोड़ा सा झुकने के लिए कहा और उसके हाथ सामने लगे नल को पकड़ लेने को कहा। अब गौरी के नितम्ब खुलकर मेरे सामने आ गए थे। उसकी कमर और सिर समानांतर रूप में हो गए थे और नितम्ब कुछ ऊपर हो गए थे।
या … खुदा जैसे भरतपुर राजघराने का पूरा खजाना ही मेरी आँखों के सामने नुमाया हो चला था।

मैंने एक करारा चुम्बन उसके नितम्बों पर लिया और फिर थोड़ा सा झुककर पहले तो उसकी जाँघों को खोला और फिर सु-सु के पपोटों को चौड़ा करते हुए एक चुम्बन उस लाल गुलाबी रति द्वार पर ले लिया। गौरी ने एक बार फिर से रोमांच में डूबी किलकारी मारी।

अब मैंने अपना खड़ा लंड उसके नितम्बों के बीच लगा दिया। गौरी के शरीर में एक सिहरन सी दौड़ने लगी। मैंने हाथ बढ़ाकर सोप स्टैंड पर रखी क्रीम की शीशी लेकर जल्दी से थोड़ी क्रीम अपने पप्पू पर लगाई और फिर ढेर साड़ी क्रीम उसकी सु-सु के छेद पर भी लगा दी।
गौरी आह … ऊंह करती जा रही थी। बीच-बीच में उसका शरीर हिचकोले से खाते जा रहा था यह सब उसके तन और मन दोनों की स्वीकृति दर्शा रहा था।

अब मैंने धीरे से अपना लंड उसकी सु-सु की फांकों के बीच लगा दिया। अब तक गौरी अपने आप को इस संगम के लिए तैयार कर चुकी थी। उसने अपनी जांघें थोड़ी सी और खोल दी और मेरे पप्पू का काम आसान कर दिया।

मैंने मेरा लंड जब ठीक से सेट हो गया तो मैंने गौरी की कमर जोर से पकड़ ली और एक धक्का लगा दिया।
मेरा लंड बिना किसी रुकावट के एक ही झटके में अन्दर प्रवेश कर गया।

गौरी के एक चीख पूरे बाथरूम में गूँज उठी- उईईईईईईई … मा … आ … ओह धीरे … आह!
“बस मेरी जान तुम्हारा पप्पू पास हो गया है … अब चिंता की कोई बात नहीं है।”

गौरी ने एक हाथ अपने नितम्बों की तरफ करके मेरे लंड और अपनी सु-सु को टटोलने की कोशिश की। उसे तो जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा होगा कि इतना लंबा और मोटा लंड इतनी आसानी से पूरा अन्दर चला जायेगा।

मैं गौरी की हालत समझ सकता था। उसे आज भी थोड़ा दर्द तो जरूर हो रहा होगा पर अब वह असहनीय नहीं होगा। बस 2-4 मिनट की बात है जैसे ही लंड अपने ठिकाने में सेट हो जाएगा यह दर्द छू मंतर हो जाएगा और फिर तो गौरी खुद अपने नितम्ब हिला हिला कर चुदवायेगी।

मैंने थोड़ा नीचे होकर पहले तो उसकी पीठ पर एक चुम्बन लिया और फिर एक हाथ से उसके एक उरोज को पकड़ कर होले-होले मसलना चालू कर दिया। अब तो गौरी का पूरा शरीर रोमांच में गोते लगाने लगा।

मैंने उसकी गर्दन पर चुम्बन लेते हुए उसके बगलों को भी चूमना शुरू कर दिया। गौरी के शरीर में तो अब झुरझुरी सी दौड़ने लगी थी। मेरे लंड ने सु-सु के अन्दर एक ठुमका सा लगाया तो गौरी की सु-सु ने भी संकोचन कर उसका जवाब दिया।
मुझे लगता है अब सु-सु और लंड की गहरी दोस्ती हो गयी है।

अब मैंने अपने नितम्बों को थोड़ा सा हिलाना शुरू कर दिया। लंड थोड़ा सा बाहर आया और फिर से अन्दर चला गया। गौरी की मीठी सीत्कार निकल गई। अब यह सु-सु रवां हो चुकी … अब तो गौरी ने भी अपने नितम्ब हिलाने शुरू कर दिए थे।

मैंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिए। जैसे ही मेरी जांघें उसके नितम्बों से टकराती तो फच्च की आवाज आती और फवारे से गिरता पानी उछलने लगता।
बीच बीच में मैं उसकी पीठ और कमर पर चुम्बन भी लेता जा रहा था।

अब गौरी को भी आनन्द आने लगा था। अब उसने अपने नितम्बों को ढीला छोड़ दिया था और मेरे धक्कों के साथ सुर ताल मिलाने की कोशिश करने लगी थी।
मैंने उसके नितम्बों पर एक थपकी सी लगाईं तो गौरी की किलकारी निकल गई- आआईईई ईईईईइ …
और फिर उसने मेरे धक्कों के प्रत्युत्तर में अपने नितम्ब और जोर-जोर से उछालने शुरू कर दिए।

“गौरी मेरी जान, तुम बहुत खूबसूरत हो … आह … मेरी जान मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा मेरी जान मेरे लंड से चुद रही है?”
“हट! बेशल्म … आह … उईईईई माँ … ”

कहानी जारी रहेगी.
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