Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
12-14-2018, 02:28 AM,
#51
RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
"नही मज़ाक कर रहा हूँ, अबे चल जा..."
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अरुण चुपके से उठा और मिठाई का डिब्बा उठाकर वापस आया...
"अबे अरमान,बड़े भैया कही जाग तो नही रहे..."एक मिठाई अपने मुँह मे भरकर अरुण अजीब सी आवाज़ मे बोला...
"बड़े भैया,शुरू मे सोने का नाटक कर रहे थे...लेकिन पिछले 5 मिनिट्स से वो सो रहे है..इसलिए बिंदास होकर अपनी टंकी भर..."अरुण के नक्शे कदम पर चलते हुए मैने भी एक मिठाई उठाई और उसे खाते हुए अजीब सी आवाज़ मे बोला...
" ये तुझे कैसे मालूम..."अरुण ने एक और पीस उठाते हुए पुछा..

"आज से लगभग दो साल पहले एक न्यूज़ पेपर मे एक आर्टिकल आया था ,जिसमे ये बताया गया था कि आप आँख मूंद कर लेटे हुए एक शक्स को देखकर कैसे मालूम करोगे कि वो सोने का नाटक कर रहा है या सच मे सो रहा है...."मैने भी मिठाई का दूसरा पीस उठाते हुए जवाब दिया...


"कमाल है.."अबकी बार अरुण ने तीसरा पीस उठाया और कहा"मैं क्या बोलता हूँ कि अपुन दोनो ही मिलकर ये डिब्बा खाली कर देते है,वरना बड़े भैया के जाते ही लौन्डे टूट पड़ेंगे और हम दोनो घंटा हिलाते रह जाएँगे"

"एक दम करेक्ट बात बोली है तूने..."

"वो तो अपुन हमेशा बोलता है...बोल पापा इसी बात पर "

"मम्मी बोलू...ये चलेगा क्या "
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एक घंटे बाद बड़े भैया की आँख खुली और उन्होने हॉस्टिल वॉर्डन से मुलाक़ात की और मेरे बारे मे,मेरी हरकतों के बारे मे वॉर्डन से बात-चीत की...अब एक कॉलेज हॉस्टिल का वॉर्डन हॉस्टिल मे रहने वाले सभी लड़को के बारे मे कैसे जान सकता है...लेकिन हमारा वॉर्डन मेरे बारे मे बहुत कुच्छ जानता था...मेरी हरकतों के बारे मे वो मेरे भाई को सब कुच्छ बता सकता था...लेकिन उसने ऐसा नही किया और उसने ऐसा क्यूँ नही किया ,इसका रीज़न भी मैं ही था...हुआ कुच्छ यूँ कि जब से बड़े भैया ने फोन मे बताया था की वो यहाँ आकर मेरे टीचर्स से मिलेंगे तभिच से मैने सीडार को बोलकर अपने वॉर्डन को समझा दिया था कि वो मेरे बड़े भैया से मेरी कोई शिकायत ना करे...और हुआ भी वैसा ही, वॉर्डन ने बड़े भैया से कुछ नही कहा.....
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उन दिनो मेरी किस्मत भी कुच्छ ज़्यादा ही मुझपर मेहरबान चल रही थी, जहाँ कल रात मैने कॉलेज की सबसे हॉट लौंडी को उसी के घर मे उसी के बिस्तर पर चोदा था वही कल की फेरवेल पार्टी के चलते आज कॉलेज बंद था...जिससे बड़े भैया को मेरे टीचर्स से मिलने का कोई मौका नही मिला...अब मैं प्राइम मिनिस्टर का कोई रिश्तेदार तो था नही कि कॉलेज का स्टाफ मेरे विपिन भैया से मिलने के लिए आए इसलिए बड़े भैया को फिलहाल वॉर्डन के मुँह से मेरी झूठी तारीफ सुनकर ही जाना पड़ा.. 
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"आप कहो तो रेलवे स्टेशन तक छोड़ देता हूँ, बाइक का जुगाड़ है..."हॉस्टिल से बाहर निकलते वक़्त मैने कहा...

"कोई ज़रूरत नही है और बाइक कम चलाया कर..."डाँट लगाते हुए वो बोले

"बड़े भैया आपने ठीक से सुना नही शायद....मैने कहा कि मैं आपको रेलवे स्टेशन तक छुड़वा देता हूँ,मेरे किसी सीनियर के साथ..."अपनी बात को तुरंत पलट कर मैने कहा...

"वो सब छोड़ और ये बता की अरुण की कितने सब्जेक्ट मे बॅक लगी है..."

"आपके कान किसने भरे अरुण के खिलाफ वो तो टॉपर है क्लास का"पहले मैं बुरी तरह हड़बड़ाया लेकिन बाद मे संभालते हुए जवाब दिया...

मेरी बात सुनकर बड़े भैया वही रुक गये और मेरी तरफ देखते हुए बोले"अरमान, जिस दो साल पहले की आर्टिकल का हवाला देकर तू अरुण से बिंदास होकर बात कर रहा था, वो आर्टिकल मैने भी पढ़ा था और मुझे अच्छी तरह से मालूम है कि सोने की आक्टिंग कैसे करनी है...."

ये मेरी लिए करेंट के किसी झटके की तरह था..क्यूंकी यदि ऐसा था तो बड़े भैया ने फिर हमारी सारी बाते सुन ली होगी और साथ मे मैं खुद को शाबाशी भी दे रहा था कि अच्छा हुआ जो मैने उस वक़्त अपने बारे मे कोई बात नही की...वरना अभी ही मेरी टी.सी. निकल जाती....

"अब जर्मन मे बोलेगा या हिन्दी मे ही जवाब देगा..."मुझे भौचक्के खड़ा देखकर बड़े भैया ने अपना सवाल दागा...

"एक ही सब्जेक्ट मे बॅक है अरुण की..."

"और तूने वरुण नाम के सीनियर को क्यूँ पीटा था, मना किया था ना लड़ाई झगड़े के लिए..."

ये मेरे लिए पहले वाले झटके से भी बड़ा झटका था...बोले तो डबल शॉक....

ये मेरे लिए डबल शॉक इसलिए था क्यूंकी इस बारे मे मैने रूम मे अरुण से कोई डिस्कशन नही किया था लेकिन फिर भी विपिन भैया को ये मालूम चला...मतलब पक्का किसी ने अपनी काली ज़ुबान बड़े भैया के आगे खोली थी....
"उस म्सी वॉर्डन ने बताया होगा..."मैने अंदाज़ा लगाया...
"आपको ये किसने बताया..."

"जब मैं यहाँ आ रहा था तभी तेरे एक सीनियर से मेरी मुलाक़ात हुई और मैने तेरे बारे मे पुछा और जानता है क्या हुआ..."
"क्या "
"मैं अपनी बात भी ख़त्म नही कर पाया था कि वो बोल पड़ा.....आप उसी अरमान की बात कर रहे है ना जिसने वरुण वेर्मा को ठोका था...तो फिर मैने जवाब दिया कि...हां मैं उसी अरमान की बात कर रहा हूँ और मैं उसका बड़ा भाई हूँ..."

"उसके बाद क्या हुआ..."मेरी आवाज़ अब दबने लगी थी...मेरी हालत अब ऐसी थी जैसे कि मेरा बहुत बड़ा जुर्म सामने आ गया हो....

"जैसे ही तेरे उस सीनियर को पता चला कि मैं तेरा बड़ा भाई हूँ...तो वो एक दम से चुप हो गया और तुरंत ही वहाँ से खिसक लिया..."

"ऐसे ही छोटी-मोटी बहस हुई थी वरुण से...कुछ खास नही हुआ..."

"कुछ खास होना भी नही चाहिए...."मैं हाइवे से हमारे हॉस्टिल को जोड़ने वाली रोड पर आकर बड़े भैया ने कहा"देख अरमान, ये उम्र का वो दौर है,जब सारी अच्छी नसीहत खराब लगती है...बंदा ये सोचने लगता है कि ये सारे नियम ,क़ायदे-क़ानून उसे बंदिशो मे क़ैद करने के लिए बनाए गये है...लेकिन हक़ीक़त ये नही होती, हम सारी चीज़ो को तब समझते है,जब सब कुछ हमारे हाथो से निकल चुका होता है....मैं ये नही कह रहा कि तू कोई आदर्शवादी बन, कोई मिसाल कायम कर...लेकिन इस बात का भी ध्यान रख कि हम मिड्ल क्लास के लोग जिस सोसाइटी मे रहते है...वो बड़ी खराब है...यहाँ लोग अपने बारे मे सोचने से ज़्यादा दूसरो की बुराई करने मे ज़्यादा ध्यान देते है...यू डॉन'ट नो कि तेरे फर्स्ट सेमेस्टर मे इतने कम मार्क्स लाने से कैसी-कैसी बाते उड़ रही है...."

विपिन भैया की बाते मैं चुप-चाप सुन रहा था ,तभी मुझे दूर से सिटी बस आती हुई दिखाई दी...जिसे देखकर बड़े भैया ने बॅग मेरे हाथ से अपने हाथ मे लिया और बोले...
"एक आख़िरी बात अरमान...एंजाय युवर लाइफ फुल्ली..लेकिन इतना नही कि अदर्स एंजाय ऑन युवर लाइफ....बाइ,"
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विपिन भैया के जाने के बाद भी उनकी बात मेरे कानो मे मंदिर के घंटो की तरह रही...मैं अपने ख़यालो मे डूबा हुआ ही हॉस्टिल आया और अपने रूम मे घुसते ही अरुण से पुछा की एग्ज़ॅम्स की डेट कब से है....और इस साल ये पहला मौका था जब मैने एग्ज़ॅम के पहले बुक खोलकर पढ़ने की जहमत की थी...लेकिन मेरे खास दोस्त अरुण को शायद ये पसंद नही आया इसीलिए वो बार-बार खाने के समान का पॅकेट ज़ोर से खोलते हुए मेरा कॉन्सेंट्रेशन पढ़ाई से हटाना चाहता था...लेकिन मैं भी कोई कमज़ोर खिलाड़ी नही था...मैने कान मे हेडफोन फसाया और पढ़ाई फिर से शुरू कर दी....और सच मे बताऊ तो उस रात मुझे बहुत दिनो बाद सुकून की नींद आई..इतनी शानदार नींद तो कल रात दीपिका मॅम को चोदने के बाद भी नही आई थी....बेसिक एलेक्ट्रिकल इंजिनियरिंग सब्जेक्ट के दो चॅप्टर एक ही दिन मे पढ़ने के बाद सोते वक़्त एश के बारे मे सोचना सच मे मुझे बहुत ज़्यादा सुकून देने वाला था....
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दूसरे दिन मेरी नींद अरुण से पहले खुली, जिसका एक रीज़न शायद ये भी हो सकता था कि अरुण ने रात-भर फ़ेसबुक पर किसी लौंडिया से चाटिंग की होगी...कॉलेज के लिए देर हो रही थी,लेकिन अरुण तो भजिए तल के सो रहा था....

"जागो मोहन प्यारे, सवेरा हो गया, सुर्य आकाश मे अपनी लालिमा बिखेर रहा है और आप है कि यहाँ अपने शयन कक्ष मे चिर निंद्रा मे खोए हुए है...आज महाविद्यालय की तरफ प्रस्थान करने के बारे मे आपका क्या विचार है..."

"तूने कुछ कहा क्या..."आँखे मलते हुए वो उठा और उठने के तुरंत बाद ही बिना ब्रश किए कॉलेज जाने के लिए तैयार होने लगा....

"अबे लोडू, ब्रश तो कर ले कम से कम..."

"शेर कभी ब्रश नही करता, खून हमेशा उनके दांतो मे लगा रहता है "

"ग़ज़ब...."
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आज मैं पहली बार कॉलेज मे पढ़ने की उम्मीद लिए जा रहा था, मैने बहुत कुच्छ सोच रखा था,जैसे कि कुच्छ भी हो जाए,मैं क्लास मे एक लफ्ज़ भी अपने मुँह से नही निकालूँगा, टीचर्स जो पढ़ाएँगे वो समझ मे आए चाहे ना आए मैं फिर भी पढ़ुंगा...और हुआ भी ऐसा ही , मैने शुरू के फाइव पीरियड्स बिना किसी धमाके के निकाल लिए थे...आज किसी भी टीचर ने मुझे किसी भी बात के लिए नही टोका, और फाइनली मैं आज बहुत खुश था....सबको मेरे इस नये बर्ताव से थोड़ी हैरानी तो हुई लेकिन उन सबसे ज़्यादा हैरान और परेशान मेरा खास दोस्त अरुण था और उससे भी ज़्यादा हैरान और परेशान मैं खुद था....
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"ओये अरमान, ये क्या लौंदियो की तरह डर कर चुप चाप बैठा है...मर्द बन और पहले की तरह बक्चोदि कर..."

"अभी तो फिलहाल मुझे स्टूडेंट बनना है और मर्द तो मैं हूँ ही..."

"मेरा कहने का मतलब था रियल मर्द बन..."

"चुप कर लवडे,आज मैं पढ़ने के मूड मे हूँ..."

"क्या पढ़ेगा इस बकवास पीरियड मे,"जमहाई लेते हुए अरुण ने कहा"एक तो वैसे भी ये ग्रूप डिस्कशन सब्जेक्ट सबसे बोरिंग सब्जेक्ट है उपर से ये भावना माँ को देखकर नींद और आ जाती है...यदि तू अपने बड़े भैया की नसीहत को इस पीरियड मे छोड़ देगा तो तेरा ही फ़ायदा होगा..."

"अबे बाहर कर देगी ये मोटी..."

"घंटा बाहर करेगी, ज़रा एक नज़र पूरी क्लास मे घुमा कर देख...सब टाइम पास कर रहे है..."
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अरुण के कहने पर मैने अपनी नज़र एक बार पूरी क्लास मे दौड़ाई,वो सही बोल रहा था...जहाँ भावना माँ एक तरफ किसी टॉपिक पर लेक्चर दे रही थी वही दूसरी तरफ क्लास के सभी स्टूडेंट्स खुद का लेक्चर चला रहे थे...मैने सोचा की इस पीरियड मे अपने दिमाग़ को तोड़ा आराम दिया जाए....
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"चल आजा लड़कियो के बारे मे बात करते है..."जमहाई मरते हुए मैने कहा...

"वो सब तो ठीक है लेकिन इस फटतू नवीन को इधर से भगा...साला खुद तो डरता रहता है उपर से हमे भी डरता है..."

"रहने दे ,मैं खुद ही यहाँ से चला जाता हूँ..."हम दोनो की बक बक से परेशान होकर नवीन ने कहा....

नवीन मौका देख कर पीछे वाली सीट पर समा गया और नवीन के जाते ही मेरे और अरुण के बीच पढ़ाई की बाते शुरू हो गयी...भावना मॅम का स्लीपिंग लेक्चर अब भी चालू था...भावना मॅम की क्लास को हम दोनो ने इस कदर भुला दिया कि हमे याद तक नही रहा कि अभी हम दोनो कॉलेज मे है...

"अरुण आंड अरमान..क्या चल रहा है उधर.."

"कुछ नही...कुच्छ भी तो नही माँ.."मैने तुरंत मोबाइल बॅग मे डाला और खड़ा हो गया...

"मोबाइल लाओ इधर और होड़ के पास चलने को तैयार हो जाओ"

"सॉरी मॅम,वो किसी की कॉल आ रही थी..."

"इतना एमर्जेन्सी कॉल था तो पर्मिशन लेकर बाहर जा सकते थे,इस तरह से क्लास को चिड़िया घर बनाने की क्या ज़रूरत थी..."

"नेक्स्ट टाइम से बिल्कुल भी ऐसा नही करूँगा..."एक दम प्यार से माफी मॅगने वाले अंदाज़ मे मैने कहा...

"अच्छा ये बताओ,जो सवाल मैने पुचछा था उसका जवाब क्या होगा..."

"रिपीट दा क्वेस्चन प्लीज़ "

भावना मॅम ने क्वेस्चन रिपीट किया लेकिन सब कुछ पानी की तरह मेरे सर के उपर से गया "मॅम, एक बार ग्रूप डिस्कशन का टॉपिक बताओ ना ..."
उसके बाद भावना मॅम मुझे खा जाने वाली नॅज़ारो से देखने लगी और गुस्से से चीखते हुए बोली"निकल जाओ मेरे क्लास से..."

"म्सी चिल्ला मत, वरना एक बार लंड फेकुंगा तो पूरा खानदान चुद जाएगा..."उनकी आँखो मे देखते हुए मैने अपनी आँखो से ही कह दिया और पैर पटकते हुए क्लास से बाहर आया....

क्लास से बाहर निकाले जाने के कुच्छ ही देर बाद ही कुच्छ ऐसा हुआ कि जहाँ कुच्छ देर पहले मैं भावना मॅम को गालियाँ दे रहा था अब वही मैं उनके मोबाइल पर थॅंक यू का मेस्सेज भेजना चाहता था...थॅंक यू का मेस्सेज मोबाइल पर इसलिए क्यूंकी भावना मॅम के सामने जाकर थॅंक यू बोलने की हिम्मत नही थी 

"एश....रुक"एश जब क्लास से अकेली निकली तो मैने उसे आवाज़ दी लेकिन उसने मुझे पूरी तरह से इग्नोर किया और आगे चल दी...
"ओये चुड़ैलिन रुक..."

"क्या है "गुस्से से पलट कर वो बोली..

"तुझे भी क्लास से निकाल दिया क्या"उसे हल्का सा धक्का देते हुए मैने कहा..

.जिससे वो भड़क उठी और दूर होते हुए बोली
"माइंड युवर बिहेवियर..."
"चल चुड़ैल,ज़्यादा भाव मत खा...और ये बता कि तुझे क्लास से क्यूँ निकाला है..."
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क्लासस अभी भी चल रही थी इसलिए कॉरिडर अभी पूरा खाली था,जिसमे मैं एश को परेशान कर रहा था...और दिल ही दिल मे ये भी सोच रहा था कि आज तो मस्त मौका मिला है....

"अरमान, मेरा मूड इस वक़्त बहुत खराब है...दूर रहो मुझसे..."

"ईईईईईई....."
"क्या ईईईई.."
"कुछ नही "उदास होते हुए मैने सोचा कि शायद मैं कभी एश को आइ लव यू नही बोल पाउन्गा...साला वैसे तो बहुत शेर बनता हूँ लेकिन जब इस चुड़ैल को आइ लव यू बोलने की बारी आती है तो हवा टाइट हो जाती है....फिर मैने सोचा कि आइ लव यू बोलने की इतनी जल्दी भी क्या है अभी तो सेकेंड सेमेस्टर ही चल रहा है....

"अब मेरे पीछे मत आना..."कॉरिडर मे आगे बढ़ते हुए एश बोली...

वैसे तो एश ने मुझे उसको फॉलो करने के लिए मना किया था लेकिन मुझे ऐसा लगा जैसे कि वो मुझे अपने साथ चलने का इन्विटेशन दे रही हो....मेरी सोच सही थी या फिर मैं ग़लत था,ये मुझे नही पता...लेकिन उस दिन मैं एश के पीछे-पीछे गया...शुरू मे तो वो गुस्सा हुई लेकिन फिर चुप हो गयी और कॅंटीन के पास पहुचते ही वो मुझपर मुस्कुराने लगी....
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"तुम पर केस कर दूँगी..."हँसते हुए उसने कहा...

कॅंटीन मे वो जिस टेबल पर बैठी थी मैं भी अब वही बैठ गया था...

"तुम्हे मालूम है एश ,यू आर लाइक माइ कॅट...बोले तो एक दम सेम टू सेम.."

"तुम्हारा दिमाग़ सही नही है,तुम बिल्कुल पागल हो,मैं जा रही हूँ यहाँ से.."तुनक कर एसा वहाँ से उठी और जाने लगी...
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मैं चाहता तो एश का हाथ पकड़ कर रोक सकता था...लेकिन मेरे सिक्स्त सेन्स ने मुझसे कहा कि "बेटा फ़िल्मो की कॉपी मत कर...वरना तिलमिलाई हुई एश लाफा तो मारेगी ही साथ मे गौतम के साथ पंगा अलग...."

मैने अपने सिक्स्त सेन्स की बात मान ली और एश को एक शब्द भी नही कहा मेरे ऐसा करने की एक और वजह ये थी की....अपुन की भी कोई इज़्ज़त है, अब वो बार-बार मुँह फूलकर भागे तो भाग जाए... उसके बाद मैं लगभग आधे घंटे तक और कॅंटीन मे बैठा रहा और जो मन मे आया उसे माँगा कर खाया और पैसे सीडार के अकाउंट मे एड करा दिए....
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"आई साला...मज़ा आ गया आज तो..." हॉस्टिल वाली सड़क पर चलते हुए मैने कहा..

मैं अब हॉस्टिल जाकर सीधे सोने के मूड मे था जिससे रात को रिलॅक्स होकर पढ़ सकूँ...लेकिन उसी समय मेरा मोबाइल वाइब्रट होने लगा...

"एमटीएनएल भाई को आज मेरी याद कैसे आ गयी..."अपने पेट पर हाथ फिराते हुए मैने कॉल रिसेव की"हेलो..."

"हाई...हेलो छोड़ और ये बता बॅस्केटबॉल खेल लेता है ना..."

"एक दम झक्कास प्लेयर हूँ..."

"तो आजा बॅस्केटबॉल के ग्राउंड पर,एक प्रॅक्टीस मॅच चल रहा है..."

"अभी..."

"हां अभी..."

"लेकिन अभी तो मैं तैयार नही हूँ, एक तो मैने अभी ही जानवरो की तरह पेट भरा है और दूसरा मैं जीन्स पैंट मे बॅस्केटबॉल कैसे खेलूँगा..."

"जल्दी से इधर पहुच सब जुगाड़ है..."

"आता हूँ "
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मॅच खेलने का मन तो नही था लेकिन सीडार भाई की बात को टालना मैने मुनासिब नही समझा...बॅस्केटबॉल के ग्राउंड पर पहुचा तो मालूम चला कि मामला एक प्रॅक्टीस मॅच से कहीं ज़्यादा है....जिसकी कहानी मुझे सीडार ने बताई...हुआ कुच्छ यूँ कि हॉस्टिल के किसी सीनियर ने किसी बात पर सिटी वालो को बॅस्केटबॉल मॅच खेलने का चॅलेंज दे दिया और मॅच स्टार्ट होने के कुछ ही देर बाद हॉस्टिल वालो मे से दो प्लेयर जो की मॅच विन्नर थे वो ज़ख़्मी हो गये....इसलिए सीडार ने मुझे मॅच खेलने के लिए बुलाया....इतने लोगो मे से उसने मुझे ही कॉल किया इसकी वजह शायद ये थी कि मैने कुछ दिन पहले सीनियर हॉस्टिल मे बॅस्केटबॉल का नॅशनल प्लेयर होने की हुंकार मारी थी...

"अरमान देख कर,इन मुस्टांडो मे बहुत दम है...वो 4 पायंट्स से लीड कर रहे है..."

"ओके..."

किट पहनकर मैं बॅस्केटबॉल के कोर्ट मे एक प्लेयर को रीप्लेस करके आया और मॅच देख रहे लोगो पर एक नज़र दौड़ाई...वैसे कहने को तो ये एक प्रॅक्टीस मॅच था लेकिन मॅच सिटी वाले और हॉस्टिल वाले के बीच मे होने के चलते इसे खाम्खाम हाइपर बना दिया था...बॅस्केटबॉल कोर्ट के बाहर मॅच देखने वाले स्टूडेंट की गिनती लगातार बढ़ रही थी...जहाँ एक तरफ हमारी टीम को सपोर्ट करने के लिए हॉस्टिल के लड़के थे तो वही दूसरी तरफ कॉलेज की लड़किया सिटी वालो की टीम को सपोर्ट कर रही थी...जिसमे से एश,विभा और दूसरी खूबसूरत चुदैले भी थी....मुझे बॅस्केटबॉल खेलने का अच्छा ख़ासा एक्सपीरियेन्स था लेकिन पिछले 8 महीनो से मैने कोर्ट मे कदम तक नही रखा था इसलिए मैं थोड़ा नर्वस था....

"खेलना आता भी है या ऐसे ही अंदर आ गया...."मेरे पास आकर गौतम ने कहा"एक बात दिमाग़ मे भर ले कि तू इस कॉलेज के सबसे शानदार प्लेयर के खिलाफ खेल रहा है...."

"ओके अंकल...अब जा के मर्वाओ अपनी..."
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एक तरफ एश...गौतम का नाम लेकर उच्छल रही थी वही मैं बॅस्केटबॉल पर ग्रिप बनाने की कोशिश कर रहा था...एक दो बार मैने बॅस्केटबॉल को ड्रिब्ब्ल भी किया लेकिन बॅस्केटबॉल पर मेरी पकड़ अब पहले जैसे नही थी और जैसे ही मैं बॅस्केटबॉल को लेकर आगे बढ़ा तो बॉल मेरे हाथ से किसी रेत की तरह फिसल गयी....

"कंचे खेल घर जाकर..."गौतम मुस्कुराते हुए बोला...

"थोड़ा सा कॅल्षियम कारबनेट लाना तो..."हॉस्टिल के एक लड़के की तरफ मैने इशारा किया जिसके जवाब मे वो अपना सर खुजाने लगा....

"अबे चुना ला थोड़ा सा उल्लू

"थोड़ा सा कॅल्षियम कारबनेट लाना तो..."हॉस्टिल के एक लड़के की तरफ मैने इशारा किया जिसके जवाब मे वो अपना सर खुजाने लगा....


"अबे चुना ला थोडा सा उल्लू"
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एक तो मैं वैसे भी इतने दिन बाद खेल रहा था उपर से आस-पास जमा हो चुकी भयंकर भीड़ ने भी प्रेशर डाल दिया था और उपर से मेरा दुश्मन गौतम मुझपर कॉमेंट किए जा रहा था और हर बार उसके कॉमेंट के बाद उसकी तरफ के प्लेयर्स और उनके दिए हार्ड फँस मुझ पर हँसते हुए नज़र आते....

"तेरा हर शॉट ब्रिक होगा...जिसका बास्केट होने का दूर-दूर तक कोई चान्स नही होता..."गौतम बोला..

"तुझे भविष्यवाणी हुई क्या कि मेरा हर शॉट ब्रिक होगा,एक बार सेट हो जाने दे फिर तो मैं डीओजी लगा कर मार लूँगा तुम सबकी..."

"वो तो वक़्त ही बताएगा..."
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रेफरी बने माइनिंग ब्रांच के एक सर ने गेम दोबारा शुरू करने का इशारा किया...
"यू आर राइट,वो तो वक़्त ही बताएगा..."
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मैं चाहे गौतम से कितनी भी लड़ाई कर लूँ या फिर मैं उसे कितनी भी गालियाँ दूं पर मैं एक चीज़ कभी नही बदल सकता कि वो बॅस्केटबॉल का एक मंझा हुआ खिलाड़ी है...उसे बॅस्केटबॉल के हर तरफ खेलना आता है...मतलब कि वो बॅस्केटबॉल पास करने के साथ-साथ खुद रिंग मे बॅस्केटबॉल घुसा सकता है...उसके अंदर उस दिन मैने रिबाउंडर और डिफेंडर स्किल भी देखी...इतनी क्वालिटी बॅस्केटबॉल के ग्राउंड मे एक ही प्लेयर के पास होना बहुत बड़ी बात होती है...गौतम अपना गेम बहुत चालाकी से खेलता था,ड्रिब्ब्ल करते वक़्त वो सामने वाली टीम को बुरी तरह से चौका देता था..उस दिन कुच्छ पल के लिए मुझे ऐसा भी लगने लगा ,जैसे कि मैं गौतम के सामने नौसीखिया हूँ...उसने कयि बार मेरे हाथ से बॅस्केटबॉल अपने हाथ मे ले ली थी...वो भी बड़ी आसानी से 
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"व्हाट आ शॉट ! "जब गौतम ने कोर्ट के बीच-ओ-बीच से बोले तो हाफ कोर्ट से बॅस्केटबॉल को रिंग मे डाल दिया तो मुझे ये कहना ही पड़ा...

किसी खेल मे आप एक चीज़ नही बदल सकते और वो ये कि एक शानदार खिलाड़ी का सम्मान करना...उस मॅच के दौरान मैं गौतम के प्लेयिंग स्किल्स से ख़ासा प्रभावित हुआ था और उस 1 पॉइंट बोनस लेने वाले शॉट को देखकर मेरे मुँह से उसके लिए तारीफ के शब्द अपने आप ही निकल गये...
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लेकिन अब बारी मेरी थी ,अब तक मैं दो बार फाउल हो चुका था और साथ मे बीते दिन भी याद आ रहे थे...गौतम के पास भले ही कुच्छ अच्छी टेक्नीक्स थी लेकिन डीओजी फ़ॉर्मूला तो मेरे ही पास था...
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"मैं इस कॉलेज का बेस्ट प्लेयर हूँ और अभी तो आधा घंटा बाकी है,तू देखते जा मैं तेरा क्या हाल करता...थोड़ी ही देर मे तुझसे 5 फाउल करवा कर मॅच ख़त्म होने पहले ही तुझे मॅच से बाहर करवा दूँगा..."गौतम अपने दाँत चबाते हुए बोला...


"इंसान को कभी अपनी औकात नही भूलनी चाहिए ,तू आज तक डिस्ट्रिक्ट लेवेल से आगे नही गया होगा और मैं यहाँ एसजीएफआइ खेल कर बैठा हूँ,मेरे ख़याल से तुझे तो एसजीएफआइ का फुल फॉर्म तक नही पता होगा ,चल मैं ही बता देता हूँ एसजीएफआइ का मतलब होता है...स्कूल गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया....और एक बात तू मॅच मे खुद अच्छा खेलेगा ,इट ईज़ पासिबल...लेकिन तू मुझे अच्छा खेलने से रोक लेगा इट ईज़ नोट पासिबल..."
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12-14-2018, 02:29 AM,
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RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
मैं जानता था कि गौतम एक सॉलिड प्लेयर है लेकिन उसकी बात का जवाब देना ही था...बॅस्केटबॉल कोर्ट के अंदर ना सही बातो मे ही ठोक दो,मैने आगे कहा......
"तुझ जैसे को तो मैं बेंच प्लेयर के रूप मे भी सेलेक्ट नही करता..."


"तैयार हो जा अब तू..."गुस्से से तिलमिलाते हुए उसने कहा और अपने साथी प्लेयर्स के पास जाकर डिस्कशन करने लगा...
इधर हमारे मॅच मे ब्रेक हुआ था तो वही कॉलेज की भी छुट्टी हो चुकी थी और लगभग सभी स्टूडेंट्स बॅस्केटबॉल ग्राउंड मे आकर अपनी-अपनी पसंदीदा टीम को सपोर्ट कर रहे थे...और उसी दौरान ग्राउंड से थोड़ी दूर मे मुझे अरुण और नवीन आते हुए दिखे...

"क्या स्कोर है बे अरमान..."

"26-46"

"क्या हम लोग ट्वेंटी पायंट्स से लीड कर रहे है "

"आजा अब तू भी बचा कूचा भेजा खा ले...लवडे उनके 46 पायंट्स है और हमारे 26 "

"लेकिन तू तो खुद को नॅशनल प्लेयर बता रहा था..."

"कॉलेज के बेकार अट्मॉस्फियर की वजह से मुझे जंग लग चुका है..."

"तो जा...हिला के आ ,एक दम रिलॅक्स होकर मॅच खेलने का...और जब अपुन किसी टेन्षन मे रह ले होता है तो यहिच करता है..."बोलते हुए अरुण ने नवीन का हाथ पकड़ लिया"किधर काट रे ले हो अंकिल..."

"ये जो सिटी वाले सीनियर्स है ना वो अक्सर मेरे काम आते रहते है इसलिए मैं उनकी तरफ जा रहा हूँ..."

"मतलब तू हमारी टीम को सपोर्ट ना करके गौतम की टीम को सपोर्ट करेगा..."

"उम्म...हां"

"मैं तो भूल गया था कि तू उनका चेला है..."नवीन का हाथ छोड़ कर धमकी देते हुए अरुण बोला"चल कट ले इधर से और यदि ग़लती से भी इधर दोबारा दिखा तो मर्डर हो जाएगा..."
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मॅच फिर से शुरू हुआ....एक बहुत पुरानी थियरी है कि एवेरितिंग ईज़ फेर इन लव आंड वॉर....वॉर तो गौतम से थी और साथ मे एश से लव भी था,इसीलिए मैने बॅस्केटबॉल कोर्ट के बाहर गौतम की बेज़्जती की थी,जिससे वो गेम के दौरान सिर्फ़ मुझ तक ही सिमट कर रह जाए ,मतलब कि वो सिर्फ़ मुझे ध्यान मे रख कर खेले....
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ये सामने वाली टीम को हराने का बेहतरीन फ़ॉर्मूला है एसजीएफआइ तक के मेरे सफ़र मे कयि बार मैने इस फ़ॉर्मूला को एक दम फिट बैठते देखा है, सिंप्ली यदि कहे तो मैं गौतम को इस कदर भड़काना चाहता था कि वो मेरी पूरी टीम से नज़र हटा कर सिर्फ़ मुझे रोकने की कोशिश करे...लेकिन इसकी कोई गॅरेंटी नही थू कि ऐसा ही होगा....क्या पता वो भड़क कर और तेज़ी के साथ खेलकर हमारा खेल ही बिगाड़ दे...

अब सिर्फ़ 20 मिनिट्स ही बचे थे,जब मेरी सोच मुझ पर ही भारी पड़ गयी,गौतम एक दम गुस्से के साथ खेलते हुए 2 बार बास्केट कर चुका था....

"तुम चारो मे से एमवीपी प्लेयर कौन है..."मैने अपने साथी खिलाड़ियो से पुछा...

"एमवीपी मतलब..."

"एमवीपी मतलब मोस्ट वेलूवाल प्लेयर..."
"आइ थिंक मैं इन चारो मे सबसे अच्छा खेलता हूँ..."एक सीनियर ने अपना हाथ खड़ा किया,जिसका नाम अमर था...

"उनकी टीम से सेंटर पर एक चूतिया खड़ा है,आप वहाँ जाकर उसको कवर करना,गौतम को मैं संभाल लूँगा..."
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मैने बॅस्केटबॉल हाथ मे ली और ड्रिब्ब्ल करते हुए आगे बढ़ा और जैसा कि मुझे उम्मीद थी,गौतम मेरा वे ब्लॉक करने आया और मैने तुरंत बॉल सेंटर पर खड़े अमर को पास की और उन्होने तुरंत बॉल झपट कर बॅकबोर्ड की तरफ फेका और एक शानदार बॅंक शॉट !!!

इस शॉट ने हमे जोश मे ला दिया था, क्यूंकी मेरे इस प्लान के कामयाब होने का मतलब था कि मैं अपने डीडीजी फ़ॉर्मूला को आगे यूज़ कर सकता था....इसके बाद दो और बॅंक शॉट अमर सर ने मारा...मतलब कि बॉल बॅकबोर्ड्स से टकरा कर रिंग के अंदर चली गयी और स्कोर 32-50 पर जाकर अटक गया....

"अब तुम सब मिलकर एक काम करना...तुम लोग बस बॅस्केटबॉल मुझे पास कर देना...."लंबी-लंबी साँस भरते हुए मैने कहा...
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मैं अपनी हर सोच मे कामयाब नही हो सकता था और अपने साथी खिलाड़ियो पर पूरा भरोसा भी नही कर सकता था और बिना पूरे भरोसे की मैं डीडीजी रूल भी अप्लाइ नही कर सकता था...लेकिन मुझे ये मॅच जीतना था...हमारे इस तरह से अचानक फॉर्म मे लौटने के कारण हॉस्टिल वालो मे उम्मीद की किरण जागी और वो कलेजा फाड़ कर चिल्लाने लगे...और अरुण अपने साथी लौन्डो के साथ मिलकर मेरा नाम चिल्ला रहा था बोले तो...ग्राउंड मे इस वक़्त अरमान..नाम गूँज रहा था.....

कॉलेज की लगभग सभी माल सिटी वालो की तरफ थी और अभी शुरू हुए हॉस्टिल के लौन्डो की हुड-दन्गि से वो सब चुप हो गयी थी और गाल फूला कर कभी मेरी तरफ देखती तो कभी हॉस्टिल के लौन्डो की तरफ.....
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क्यूंकी मुझे ये मॅच जीतना था इसलिए मैने हाफ-कोर्ट से ही बास्केट करने का सोचा लेकिन मैं डर भी रहा था क्यूंकी हाफ-कोर्ट से बास्केट करने की मेरी प्रॅक्टीस छूट चुकी थी और इसी उलझन मे एक ने मेरे कहे अनुसार बॉल मुझे पास की और मैने हाफ-कोर्ट से बास्केट करने का अपना मूड चेंज किया और आगे बढ़ते हुए एक जंप-शॉट मारा जिससे बॉल डाइरेक्ट रिंग के आर-पार हो गयी....
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गेम अब पलट रहा था ,इस बीच गौतम की टीम ने भी बास्केट किया और वो वक़्त आया जब डीडीजी रूल मुझे लगाना ही पड़ा, रेफरी ने इशारे से बताया कि अब सिर्फ़ 5 मिनिट्स ही बचे है और स्कोर उस समय 40-52 था....

"मुझे बोनस पॉइंट लेना ही होगा,लेकिन इतने दिन के गॅप के बाद आइ आम नोट श्योर कि मैं लोंग डिस्टेन्स से बॅस्केटबॉल को रिंग के आर-पार कर दूँगा,...खैर कोई रास्ता भी तो नही है, नाउ टाइम टू यूज़ डीडीजी अप्लिकेशन..."
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कोर्ट के वीक साइड मे जिधर बॅस्केटबॉल नही जाती उधर मैने अमर सिर को लगाया जैसे कुछ देर पहले उन्हे सेंटर पर लगाया था और अपने टीम के शूटर को हिदायत दी थी कि उसका काम फुर्ती से सामने वाली टीम के बॅकबोर्ड के पास पहुचना है,क्यूंकी यदि अमर सर से बास्केट करने मे कोई चूक हो जाती है तो शूटर बॅस्केटबॉल झपट कर रिंग मे डाल दे...
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मेरे हाथ मे ग्रिप बनने लगी थी और जिसका नतीजा ये हुआ कि गौतम और उसकी पूरी टीम मेरे सामने नौसीखिया लगने लगी थी...मैने बॉल वीक साइड मे खड़े सीनियर को पास की क्यूंकी द्दग फ़ॉर्मूला का फर्स्ट स्टेप लागू हो चुका था...मैने जैसे ही वीक साइड मे खड़े अमर सर को बॉल पास की उन्होने डाइरेक्ट बास्केट करके 2 पायंट्स हमे दिला दिए....
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इस बार 2 पायंट्स मिलने के बाद तो हॉस्टिल के कुच्छ लौन्डे खुशी से नाचने लगे और कुच्छ लड़कियो को चिढ़ाने लगे...तो कुछ एक दो लड़की को गाली भी देने लगे गौतम का गुस्से से बुरा हाल था क्यूंकी उसकी ड्रिब्बलिंग को मैं बड़ी आसानी से तोड़ देता था...इसी बीच मैने एश को देखकर आँख भी मारी 

गुस्से से तमतमाया हुआ गौतम बॅस्केटबॉल को लेकर हमारी साइड बढ़ा लेकिन इस बार भी मैने उसके हाथ से बॉल को लेकर बॅस्केटबॉल कोर्ट के वीक साइड मे खड़े अमर सर को बॉल पास और उन्होने बॉल को रिंग की तरफ उछाला लेकिन बॉल बॅकबोर्ड से टकरा कर नीचे गिरने वाली थी कि हमारे टीम के शूटर ने जिसे मैने वहाँ पहुचने के लिए कहा था उसने जंप मारकर एक जंप शॉट ठोक दिया

इसके बाद तो हॉस्टिल के लड़को ने तबाही मचा दी,ग्राउंड के पास रखी हुई चेयर्स को ज़मीन मे औधा लिटा दिया ,कुच्छ ने अपनी खुशी व्यक्त करने के लिए ग्राउंड के बॅस लगे पौधो को तोड़ डाला....साले जानवर कही के 
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डीडीजी का फर्स्ट स्टेप कामयाब रहा था और साथ मे गौतम की टीम भी समझ गयी थी कि हम क्या कर रहे है और यदि मेरे हिसाब से देखा जाए तो मैं यही चाहता था कि वो हमारा खेल जान जाए...क्यूंकी जब तक फर्स्ट स्टेप फैल नही होता ,डीडीजी फ़ॉर्मूला का सेकेंड स्टेप यूज़ नही कर सकते...

गौतम और उसकी टीम ने सोचा कि मैं एक बार फिर से बॅस्केटबॉल अमर सर को पास करूँगा लेकिन वो ग़लत थे...मैं तो गौतम को बस अपने रास्ते से हटाना चाहता था और जब गौतम वीक साइड मे खड़े अमर सर को कवर कर रहा था तो मैं ड्रिब्बलिंग करते हुए बॉल को सीधे रिंग मे डाल दिया और एक और बेहतरीन बॅंक शॉट और रिज़ल्ट 2 पायंट्स हमारे खाते मे 
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अबकी बार गौतम वीक साइड से हटकर मेरे सामने आ गया था और अमर को कवर करने के लिए उसने दो मुस्टांडो को लगा दिया था, टाइम बहुत कम था और उनके पायंट्स हमसे ज़्यादा थे..इसलिए उनकी टीम अब डिफेन्सिव गेम खेल रही थी और अब वक़्त डीडीजी फ़ॉर्मूला का थर्ड स्टेप अप्लाइ करने का था...मेरे इस डीडीजी फ़ॉर्मूला(डी-धड़ा, डी-धड़, जी-गोल )बोले तो धड़ा-धड़-गोल नियम के फर्स्ट टू स्टेप कामयाब हुए थे और थर्ड स्टेप मैं अब यूज़ करने वाला था...
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गौतम के हाथ से बॅस्केटबॉल अपने हाथ मे लेना अब मेरे लिए कोई बड़ी बात नही थी और अबकी बार मैने जैसे ही बॅस्केटबॉल गौतम के हाथ से छीनी तो वीक साइड पर खड़े उनके दोनो प्लेयर आक्टिव हो गये और गौतम मेरे सामने आ गया...उन पाँचो चूतियो को ये नही मालूम था कि थर्ड स्टेप मे बोनस पॉइंट लिया जाता है यानी की बॉल मेरे हाथ मे आने के बाद मैं एक कदम ना तो आगे बढ़ाता और ना ही पीछे..बस जहाँ था वही से रिंग मे बॉल घुसानी थी...और मैने ऐसा किया भी, मैने हाफ कोर्ट से रिंग को निशाना बनाया और बॉल बास्केट कर दी...और इसी बास्केट के साथ हमे 3 पायंट्स मिले अब स्कोर आकर 49-52 पर पहुच चुका था....

"नाउ टाइम टू यूज़ फोर्त स्टेप ऑफ धड़ा-धड़-गोल फ़ॉर्मूला..."मैने खुद से कहा,लेकिन उसी समय...ठीक उसी समय रेफरी ने गेम ओवर कर दिया बोले तो टाइम ख़त्म.......
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और इसी के साथ मैं अपना सर पकड़ कर वही बैठ गया, मुझे बस कुछ और सेकेंड्स चाहिए थे...लेकिन टाइम ख़त्म हो चुका था....इस वक़्त दोनो टीम्स के सपोर्टर्स शांत थे...गौतम की टीम भले ही जीत गयी हो लेकिन उनकी हालत ऐसी नही थी कि वो जीत का जश्न मना सके और हम जीता-जिताया मॅच हार गये...उस वक़्त मुझे बहुत बुरा लगा ,क्यूंकी ये मेरे साथ लगातार दूसरी बार हुआ था ,मेरा डीडीजी फ़ॉर्मूला लगातार टाइम की कमी की वजह से फैल हुआ था , यानी कि एसजीएफआइ मे भी हम ऐसे ही हारे थे और आज का मॅच हारने के बाद मैं ठीक उसी तरह सर पकड़ कर ग्राउंड मे बैठा था जैसे की एसजीएफआइ मे मॅच हारने के बाद बैठा था....
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थोड़ी देर तक मैं ऐसे ही बैठा रहा, गौतम के टीम के प्लेयर्स वहाँ से जा चुके थे लेकिन मेरे टीम के प्लेयर्स मुझे घेर कर बैठे थे...एक बुरी याद का ताज़ा होना सीधे लेफ्ट साइड मे असर करता है....लेकिन जब आपके पास अरुण जैसा खास दोस्त हो तो वक़्त को बदलने मे देर नही लगती....

"शेर लोग रोया नही करते..."

"मैं रो नही रहा...बस कुच्छ बुरी याद ताज़ा हो गयी..."

"आजा मूठ मार के आते है..."

जवाब मे मैने अरुण को गुस्से से घूरा तो उसने मुझे सिगरेट की दो पॅकेट्स फ्री मे देने का इशारा किया...

"साथ मे एक बोतल दारू भी चाहिए "खड़ा होते हुए मैने कहा...

"दारू तो मेरी तरफ से..."अमर सर बीच मे बोले"वो भी भरपेट..."
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कॉलेज के माहौल ने कभी मुझे मेरी सोच पर मज़बूती से खड़े रहने नही दिया...ठीक एक दिन पहले मैने जहाँ धुआँधार पढ़ाई करने के बारे मे सोचा था वही अब मैं सीनियर हॉस्टिल मे बैठकर दारू चढ़ा रहा था....दारू पीने के बाद जब गप्पे शुरू हुई तो अमर सर ने मुझसे पुछा की मैने ये सब कैसे किया...उन्होने मेरे प्लान की ट्रिक जाननी चाही...और मैने झूठ बोलते हुए कह दिया कि बस तुक्का फिट बैठ गया...जबकि ये सही ये नही था...असलियत ये थी कि मेरे नॅशनल टीम का हिस्सा रहे मेरे साथी चार खिलाड़ी,जो कि मेरे ही स्कूल के थे...हमने एक दूसरे से वादा किया था कि धड़ा-धड़-गोल का फ़ॉर्मूला कभी भी किसी को नही बताएँगे,यहाँ तक कि अपने कोच तक को हमने डीडीजी फ़ॉर्मूला नही बताया...ये डीडीजी फ़ॉर्मूला हम पाँचो ने मिलकर बनाया था ,इसलिए हम इसे अपने तक ही सीमित रखना चाहते थे....मैं जानता था कि ये ग़लत है,लेकिन मैने फिर भी ऐसा किया...क्यूंकी जब हमारी टीम एसजीएफआइ से बाहर हुई तो हम अंदर से टूट चुके थे...हमारी कयि सालो की मेहनत रेफरी के गले मे अटकी स्टॉप . के कारण बेकार हो चुकी थी और उसके बाद जो बॅस्केटबॉल छोड़ा तो आज जाकर पकड़ा था...
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"अरमान...10 दिन बाद पेपर है बे..."अरुण मेरे कंधे का सहारा लेते हुए बोला...

हम दोनो सीनियर हॉस्टिल से दारू के नशे मे अपने हॉस्टिल आ रहे थे...आज अरुण ओवरलोड हो गया था और मैने सिर्फ़ 2 पेग मारे थे....लेकिन फिर भी मैं नशे मे था.

"होने दे,साला मैं तो यूँ चुटकी बजाते हुए सब याद कर लूँगा...."और उसके बाद मैने चीखना चाहा लेकिन आवाज़ ही नही निकली...

"आगे बोल अपुन सुनिंग..."

"ये साली आवाज़ ही नही निकल रही..."

"अबे दो पेग मे ये हाल हो गया साले तुम फिर देश की सेवा कैसे करोगे..."खीस निपोर्ते हुए अरुण बोला...

"तो इसमे कौन सी बड़ी बात है,दारू पीने के बाद देश की सेवा करेंगे..."

उसके बाद हम दोनो एक दम चुप हो गये और आगे बढ़े...
"अरमान...देख दारू पिया हूँ,झूठ नही बोलूँगा...तू लौंडिया सेट कर सकता है और आज के मॅच के बाद तो लौंडिया तुझ पर फिदा हो गयी होंगी...और क्या नाम है तेरी उस पांटर का..."

"किसकी बात कर रहा है..."हवा मे एक लात मारते हुए मैने पुछा...

"वही जिसे किसी और ने सेट कर रखा है...जो तेरे को भाव भी नही देती लेकिन तू उसके पीछे घूमता रहता है..."

"एश.."

"हां साली वही...एक नंबर की चालू लड़की है बाप...अपुन को तो शुरू दिन से ऐसा लग रेला है कि...जो वो बाहर से इतनी भोली दिखती है वो अंदर से वैसे है नही...वो तो एक दम किसी डायन के माफिक...बोले तो पागल लगती है"

"ये क्या लड़कियो का टॉपिक लेकर बैठा है तू भी...क्यूँ उतार रहा है..."

हम दोनो फिर रुके और अरुण बोला"बीसी, हॉस्टिल तो बहुत पीछे चला गया..."

"म्सी..किसने ये शरारत की हमारे साथ, बुला बोसे ड्के को अभिच साले को एस्केप वेलोसिटी से फेक्ता हूँ...साला कभी अर्त पर वापस नही आ पाएगा...."

"कमाल है...वाहह..."तालिया मारते हुए अरुण बोला"वैसे अभी मुझे एक कन्फ्यूषन है..."

"कन्फ्यूषन..."हमने डाइरेक्षन चेंज की और हॉस्टिल की तरफ चलने लगे...

"यही कि तूने अमर सर से ये क्यूँ बोला की बॅस्केटबॉल के ग्राउंड मे जो हुआ वो तो बस तेरा तुक्का था..."

"तो इसमे भेजा घुमाने वाली कौन सी बात है..सही तो कहा था मैने..."

"लवडे मुझे चोदु मत बना...दारू पीने के बाद अपुन के पास सूपर पॉवर आ जाती है...."

"तुक्का ही था बे..."

"नही,अपुन को मालूम कि वो तुक्का नही तेरी काबिलियत का नज़ारा था...."

"देख हॉस्टिल अब आ चुका है...अब चल भोपु की गान्ड मारते है..."

"हट साले गे...अपना गे-यापा बंद कर...और दूर चल मुझसे..."

"किधर जा रहा है हॉस्टिल का दरवाजा उधर नही,इधर है...और यही तो प्यार है पगले "

"आजा फिर प्यार करते है..."
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हम दोनो ने हॉस्टिल के बाहर भले ही सोचा था कि अंदर जाकर पूरे हॉस्टिल के लड़को को परेशान करेंगे लेकिन एक बार रूम मे घुसने के बाद ,हमे कुच्छ याद नही रहा....सुबह नींद खुलते ही मुझे एक जोरदार झटका लगा..क्यूंकी मैं इस वक़्त अपने हॉस्टिल की छत पर लेता हुआ था,जहाँ से यदि मैं हल्का सा भी राइट टर्न लेता तो सीधे नीचे आ गिरता......

"शुक्र है कि रात को मैने ग़लती से भी राइट टर्न नही लिया वरना आँख यहाँ नही हॉस्पिटल मे खुलती..."बड़बड़ाते हुए मैं हॉस्टिल की छत से अपने रूम पर पहुचा..."ये साला हो क्या रहा है...ये सारे कपड़े किसने ज़मीन पर फेके...बीसी कॉलेज क्या चड्डी मे जाउन्गा..."

मैने पूरे रूम पर नज़र दौड़ाई, विपेन्द्र भैया के आने के कारण जहाँ रूम कल शाम तक चमक रहा था वही आज वही चमकता रूम जर्जर हो चुका था...मेरी आलमरी खुली हुई थी और कपड़े नीचे ज़मीन पर पड़े थे...और मेरी बेड शीट को ज़मीन मे बिच्छा कर अरुण उस पर पसरा हुआ था....

"अबे उठ बोसे ड्के के...उठ नही तो मूत दूँगा..."

मेरी इस धमकी का अरुण पर कोई असर नही हुआ तो मैने उसे दो-तीन लात भी मारी और फिर एक बाल्टी पानी उसपर डाला....

"दिव्याआआ....."

"चुप साले..."

"तू है "

"ये बता इधर क्या हुआ था कल रात..."

"कल रात"पूरे रूम का जायज़ा लेने के बाद अरुण बोला"तुझे सिगरेट पीना था तो तूने अपनी आलमरी खोली और सारे कपड़े ज़मीन पर फेक दिए और फिर मुझे लात मारकर यहाँ पर गिरा दिया ,उसके बाद मुझे भी याद नही..."

"चल जल्दी कॉलेज, फर्स्ट पीरियड तो अटेंड करने से रहे...डाइरेक्ट दूसरे पीरियड मे एंट्री मारेंगे..."
Reply
12-14-2018, 02:29 AM,
#53
RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
हम दोनो कॉलेज पहुँचे , आज सॅटर्डे था इसलिए सिर्फ़ तीन पीरियड ही लगते थे, इसके बाद कुच्छ स्टूडेंट मूवी देखने जाते थे तो कुच्छ घर/हॉस्टिल जाकर सोते थे और कुच्छ जो कि कॉलेज को गेम रेप्रेज़ेंट करते थे वो ग्राउंड मे प्रॅक्टीस करते थे....मेरा विचार जाकर सोने का था..क्यूंकी मैं आज रात भर स्टडी करने के मूड मे था...लेकिन तभी सेकेंड एअर का एक सीनियर मेरे रास्ते मे टपक पड़ा....
"अरमान तू ही है ना..."उसने मुझसे पुछा...
"नही ये है अरमान ,अब बोल.."अरुण की तरफ उंगली दिखाते हुए मैने उसे अरमान बना दिया....
"मुझे चूतिया मत बना, मैं जानता हूँ कि तू ही अरमान है..."
"जब जानता था कि मैं ही अरमान हूँ तो फिर मुझसे पुछ्कर टाइम पास क्यूँ कर रहा था..."
"बॅस्केटबॉल के कोच ने बॅस्केटबॉल कोर्ट मे बुलाया है..."
"मिल लूँगा...और कुच्छ..."
"तेरा सीनियर हूँ मैं थोड़ा तमीज़ से बात किया कर..."
मैं अरुण के साथ आगे बढ़ा...मैं उस सीनियर से रूड बिहेवियर इसलिए कर रहा था क्यूंकी वो सिटी का था और इससे भी बड़ी वजह ये थी कि वो गौतम के खास दोस्तो मे से एक था....
"अरमान उसने तुझे बत्ती दी..."
"मैं भी यही सोच रहा था..."उसके बाद मैं तुरंत पीछे मुड़ा और उस सीनियर को आवाज़ देकर कहा"सुन बे घासलेट, दोबारा से ये गिव रेस्पेक्ट,टेक रेस्पेक्ट वाली शानपट्टी झड़ी तो ऐसा झाडुन्गा कि सर के बचे-कुचे बाल भी झड जाएँगे...साले टकले,अपनी औकात मे रहकर बात किया कर..."
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"एक दम मस्त झाड़ा साले को...मैं तो उसको पेलने के मूड मे आ गया था..."कुच्छ देर बाद अरुण बोला...
"अब चुप रह,बॅस्केटबॉल ग्राउंड आ चुका है और कोच पास मे ही है..."
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मेरे वहाँ पहुचते ही जहाँ गौतम और उसके दोस्तो का रंग बदल गया वही एश जो गौतम के साथ वहाँ आई थी ,उसके भी चेहरे की रंगत थोड़ी बदल सी गयी...

"3 चान्स है, बास्केट करो..."कोच , बॅस्केटबॉल मेरी तरफ फैंकते हुए बोले...
"ये तीन चान्स किसलिए, तीन बास्केट करना है क्या..."
"पहले एक तो करके दिखा..."गौतम बीच मे टपकते हुए बोल पड़ा...
"उसके लिए तीन चान्स की क्या ज़रूरत,एक ही काफ़ी है..."मैने बॅस्केटबॉल हाथ मे पकड़ी और सीधे रिंग मे घुसा दिया...
"वन्स मोर..."एक लड़की जो कि एश के पास खड़ी थी उसने रोमॅंटिक अंदाज़ मे मुझसे कहा...
"तुम शांत रहो "कोच ने उस लड़की को तेज आवाज़ मे बोला और मेरी तरफ देखते हुए बोले"यू कंटिन्यू..."
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उसके बाद मैने एक और बार बॅस्केटबॉल रिंग मे डाल दी लेकिन थर्ड टाइम मैं मिस हो गया...और इस तरह तीन चान्स मे मैं सिर्फ़ दो बास्केट ही कर पाया....मैं एक बास्केट और नही कर पाया,इस बात से गौतम और उसके दोस्त खुश थे ,लेकिन कोच का नज़रिया कुच्छ और ही था...उन्होने मेरी पीठ थपथपाई और टीम मे शामिल होने के लिए कहा....
अभी कोच ने मुझे टीम मे शामिल होने के लिए कहा ही था की गौतम बीच मे फिर टपका...
"सर...हमारे सभी प्लेयर आपके द्वारा दिए गये तीन चान्सस मे तीनो बार बास्केट कर देंगे...इसे लेने का कोई फ़ायदा नही,खाम खा इसे लेकर हम अपनी टीम को बिगाड़ देंगे...."
"गौतम...मुझे मालूम है कि तुम्हारी टीम बहुत अच्छी है,लेकिन शायद तुमने कल के मॅच मे आख़िरी के 20 मिनिट्स के खेल को ध्यान से नही देखा....मैने इस तरह का गेम,जो कि अपने आप मे एक अजीब है, कभी नही देखा...ही ईज़ वेरी टॅलेंटेड प्लेयर..."
"लेकिन सर..."
"चुप रहोगे...प्लीज़ "कोच ने मेरी तरफ़दारी की इसलिए गौतम ने बुरी शकल बना ली..
"डॉन'ट वरी गौतम...आइ आम नोट इंट्रेस्टेड टू प्ले वित यू..."मैने मुस्कुराते हुए कहा....
"मी टू..."
"तुम दोनो अब बस भी करोगे...गौतम तुम अब कुच्छ मत बोलना और अरमान तुम आज से प्रॅक्टीस शुरू कर दो..."
"सॉरी सर, पर मेरी एक शर्त है...सॉरी एक नही दो...दो भी नही तीन...सिर्फ़ तीन..."
"कैसी शर्त..."
"पहली शर्त ये कि मैं प्रॅक्टीस करने तभी आउन्गा जब मेरा मन होगा...."मेरी पहली शर्त सुनकर ही वहाँ खड़े सब लोगो के मुँह फट गये ,और मेरे खास दोस्त अरुण का मुँह भी 2 इंच फट गया,मैने आगे कहा"दूसरी शर्त ये कि ,मैं जिसे चाहूँगा उसे ही मॅच मे आप खिलाओगे और आख़िरी शर्त ये कि मैं टीम का कॅप्टन रहूँगा..."
मेरी तीसरी शर्त सुनकर सबका मुँह आधा इंच और खुल गया ,गौतम तो तीसरी शर्त सुनकर भड़क ही उठा लेकिन कोच ने अपनी आँखे बड़ी करके जब गौतम को दिखाई तो उसे शांत होना पड़ा...
"और यदि मैं तुम्हारी एक भी शर्त ना मानु तो..."
"तो फिर अरमान नेम की कीट बनवाने का आपका सपना अधूरा रह जाएगा..."
"लीव..."
"मैने पहले ही कहा था ..चल अरुण चिलम शॉट के आते है"
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अरुण का मुँह अब भी ढाई इंच खुला था...
"मुँह बंद कर ले वरना लवडा घुसा दूँगा..."
अरुण ने मुँह बंद किया और फिर कुच्छ कहने के लिए जैसे ही अपना मुँह फिर से फाड़ने लगा,तभी एक लड़की ,जो एश के साथ थी वो खुशी से उच्छलते हुए मेरे सामने आ खड़ी हुई...
"हीईीईई...अरमाआअंन्न"
"तू कौन "
"मे दिव्या..."शरमाते हुए उसने अपना नाम बताया और दिव्या नाम सुनकर मुझे आज सुबह की याद आई ,जब अरुण दिव्या का नाम लेते हुए नींद से जागा था...मैने उसकी तरफ देखा,उसका चेहरा इस वक़्त कुच्छ ऐसा था

"ये है मेरा दोस्त ,अरुण..."अरुण को सामने लाते हुए मैने दिव्या से कहा...
एश ,दिव्या से थोड़ी दूर खड़ी थी...
"आइ नो हिम..."शरमाते हुए वो बोली"हम दोनो फ़ेसबुक मे फ्रेंड्स है..."
"वो सब तो ठीक है,लेकिन ये बताओ कि इतना शर्मा क्यूँ रही हो..."
"तुम बहुत अच्छा खेलते हो..."
"तो फिर तुम क्यूँ शर्मा रही हो,शरमाना तो मुझे चाहिए ..."
"दिव्या,इसे बॅस्केटबॉल खेलना मैने सिखाया है...."अरुण ने चुपके से कोहनी मारा ,जिसका मतलब मैं समझ गया था..
"हां,ये सही बोल रहा है..."
"फिर तो तुम अरमान से भी ज़्यादा अच्छा खेलते होगे..."खुश होते उसने अपनी चेहरा अरुण की तरफ घुमाया...
"ओफकौर्स एस..."अरुण तुरंत बोला...
इसके बाद अरुण और दिव्या एक दूसरे मे भीड़ गये, दिव्या उसे बता रही थी कि उसने कल अपना एक फोटो फ़ेसबुक मे अपलोड किया है...और उसके एक हान्फते पहले भी उसने एक फोटो अपलोड किया था.....
"दिव्या..."एसा ने दिव्या को वापस आने के लिए कहा, लेकिन दिव्या तो अरुण के साथ फेस तो फेस चॅट करने मे बिज़ी थी...उसे एश की आवाज़ सुनाई ही नही दी...
खुद को मज़बूत करके मैं एश की तरफ बढ़ा....
"तुम दिव्या हो..."
"नही..."
"तो फिर तुम यहाँ क्यूँ टपक पड़े, मैने तो दिव्या को आवाज़ दी थी..."
"तुम्हारी सहेली मेरे दोस्त के साथ भिड़ी हुई है तो क्यूँ ना हम दोनो भी भीड़ जाए..."
"क्या "
"कुछ नही...कॅंटीन मे तुमने मेरी बात का ग़लत मतलब निकाल लिया था..."
"तुमने मुझे सॉरी भी नही बोला था..."
"किसलिए सॉरी बोलू..."
"तुमने मुझे कहा था कि आइ आम लाइक युवर पेट..."
"करेक्ट है...तो इसमे सॉरी बोलने वाली क्या बात...तुम बिल्कुल मेरी बिल्ली जैसी दिखती हो..."
ये सुनकर एश का पारा फिर आसमान च्छुने लगा तो मैने कहा"मेरे कहने का मतलब था कि तुम्हारी आँखे बिल्कुल मेरी बिल्ली की तरह है...एक दम मस्त भूरी-भूरी...सेक्सी...सॉरी सेक्सी नही स्वीट-क्यूट "
"तो तुम्हारा कहने का मतलब मैं तुम्हारी बिल्ली हूँ..."
"ये तो तू ही बोल रही है..."
"मैं कुउछ नही जानती,सॉरी बोलो..."
"चल फुट.."
"फिर दोबारा मुझसे बात मत करना..."
"अरे जा ना,भेजा मत खा..."
.
गुस्से से अपने पैर पटक कर एश वहाँ से जाने लगी तब मैने उसे चुड़ैल की जगह बिल्ली कहकर पुकारा जिसके बाद वो और भी जल्दी वहाँ से काट ली...अरुण और दिव्या अब भी एक-दूसरे से बात कर रहे थे....एश जब आँखो से दूर हो गयी तो मैं उन दोनो के पास पहुचा...
"अरमान...तुम मेरी फ्रेंड लिस्ट मे हो क्या..."
"याद नही..."
"आज रिक्वेस्ट भेज देना..मैं आक्सेप्ट कर लूँगी...वो क्या है ना की मैं अननोन लड़को की रिक्वेस्ट आक्सेप्ट नही करती "
"साली लेज़्बीयन..."दिव्या को देखकर मैने हां मे गर्दन घमायी...अरुण उसमे इंट्रेस्टेड था इसलिए मैं उसे झेल रहा था ,वरना कबका बेज़्जती करके भगा दिया होता...
"तुम्हारा ट्विटर पर अकाउंट है..."
"नही..."मैने रूखा सा जवाब दिया...
"तो आज जाकर ट्विटर पर ए/सी बना लेना और अरुण से मेरी ट्विटर आइडी पुच्छ कर फॉलो कर लेना...मैं बहुत अच्छे स्टेटस अपडेट करती हूँ...."

अब तक तो मैं उसे अरुण की खातिर झेल रहा था लेकिन अबकी बार मैं खुद को रोक नही पाया...
"ओये चल जा ना ,काहे को दिमाग़ का ढोकला बना रही है...कुच्छ काम-धाम नही है क्या फ़ेसबुक और ट्विटर के सिवा...तू इतनी फ्री रहती होगी लेकिन मुझे जाकर पढ़ाई भी करनी होती है....पक्का तेरी 10-12 बॅक लगी होगी...चल भाग यहाँ से..."
.
मेरे इस बर्ताव से डर कर दिव्या ने उसी वक़्त पतली गली पकड़ ली और अब अरुण मेरा भेजा खा रहा था...वो मुझे गालियाँ बक रहा था क्यूंकी मैने उसकी फ़ेसबुक पर दिव्या के पीछे किए गये घंटो की मेहनत पर पानी फेर दिया था....
"मालूम नही, मैं जब भी बॅस्केटबॉल कोर्ट मे आता हूँ तो कुच्छ हो सा जाता है..."
"हुआ कुच्छ नही है ,तू साले आज ज़्यादा उड़ रहा है...कोच के सामने भी तू बहुत उचक रहा था..."
"वो तो सिर्फ़ बहाना था खुद को बॅस्केटबॉल से दूर रखने का और अब रीज़न मत पुच्छ लेना..."
"नो प्राब्लम , चल चलकर फोटो खिचवाते है...एग्ज़ॅम फॉर्म की कल लास्ट डेट है ...."
.
सेकेंड सेमेस्टर के एग्ज़ॅम ,फर्स्ट सेमेस्टर से लाख गुना अच्छे गये...क्यूंकी इस बार थोड़ी बहुत तैयारी पहले से थी...लेकिन एग्ज़ॅम के दौरान जिन दो सब्जेक्ट मे एक-एक हान्फते की छुट्टी मिली,उसी मे लटकने का डर था...लेकिन एक बात का सुकून था कि इस बार मेरे मार्क्स इनक्रीस होने वाले थे...
एग्ज़ॅम के बाद दो हफ्ते की छुट्टी मिली लेकिन मैं एक हफ्ते बाद ही वापस हॉस्टिल आ गया था...और घर मे ये बहाना मारा था कि एक ही हफ्ते की छुट्टी है...ऐसा करने वाला मैं अकेला नही था कयि लड़के तो मुझसे भी पहले वापस हॉस्टिल आ गये थे और अरुण तो घर ही नही गया था

हम कभी एक जैसे नही रह सकते और ना ही हमारे हालत हमेशा एक रहते है...वक़्त के साथ सब कुच्छ धीरे-धीरे बदलने लगता है और हमारा जीवन वक़्त के अनेक रंग वाले शिला पर चलने लगता है.....मैं ज़िंदगी के इस परिवर्तन का किसी भी तरह से विरोध नही कर रहा और ना ही मैं इसके खिलाफ हूँ...लेकिन जब धरती ,आकाश और आकाश ,धरती मे बदल जाए तो ये परिवर्तन बहुत बड़ा झटका देता है...क्यूंकी हम हमेशा होने वाले परिवर्तन का विरोध करते है और यही हम इंसानो की फ़ितरत है...हम यही चाहते है कि सब कुच्छ...सारी चीज़े वैसी ही रहे जैसे हम चाहते है,लेकिन ऐसा नही होता और ना ही कभी ऐसा होगा 
.
"भू कहा है बे, घर से नही आया अभी तक..."कॉलेज के लिए तैयार होते हुए मैने अरुण से पुछा,

आज हमे थर्ड सेमेस्टर मे कॉलेज जाते हुए एक हफ्ते से भी ज़्यादा समय हो गया था लेकिन भू अभी तक घर से नही लौटा था....
"तुझे नही पता क्या..."
"क्या नही पता और तू मुँह तो ऐसे फाड़ रहा है जैसे हमारे जंगल का राजा भोपु स्वर्ग सिधार गया हो..."
"ऐसा ही कुच्छ समझ..."
"आबे सीधी तरह बोल..."मैने सीरीयस होते हुए कहा...
"वो अब इस कॉलेज मे नही पढ़ेगा...उसने अपना ट्रान्स्फर करा लिया है..."
"क्या बोला तूने कि उसने अपना कॉलेज बदल लिया है अबे ये स्कूल नही है जो जब मन आए ट्रान्स्फर करा लिया..."
"सरकारी. तो सरकारी. कॉलेज मे आफ्टर वन एअर ये सुविधा है...."और फिर उसने भू के न्यू कॉलेज का नाम,पता भी बता...
"ओह ! मैं ये नही जानता था...लेकिन उसने ऐसा क्यूँ किया...सब ठीक-ठाक तो है.."
"दुनिया मे बहुत तरह के लोग होते है अरमान सर..."
अरुण सच कह रहा था, मैं अभी तक नही समझ पा रहा था कि भूपेश ने ऐसा क्यूँ किया...क्यूंकी जिस कॉलेज मे वो अब था वो कॉलेज हमारे कॉलेज से अच्छा नही था एक्सेप्ट बिल्डिंग , और ना ही उसका वहाँ होमटाउन था,जो घर के मोह मे वो यहाँ से वहाँ चला गया हो...खैर बात जो भी हो ये सच था कि अब भू कभी हमारे साथ क्लास मे नही बैठेगा.....एक और चीज़ जो बदली वो ये कि नवीन अब हम दोनो से अलग हो गया था...उसकी ब्रांच माइनिंग थी इसलिए सेकेंड एअर से उसकी क्लास अलग हो गयी थी....मुझे ज़्यादा तो नही थोड़ा बुरा लगा ,क्यूंकी मैने उसके साथ एक साल का वक़्त एक ही क्लास मे गुज़ारा था और अब वो हमारे साथ नही था....सेकेंड एअर मे बहुत लंबे-चौड़े परिवर्तन होते है ,जैसे कि टीचर्स का चेंज हो जाना....एक तरफ जहाँ हमे "आप फिज़िक्स के खिलाफ नही जा सकते..."डाइलॉग के जन्मदाता कल्लू कुर्रे से इस साल मुक्ति मिली वही दंमो रानी हमे मॅतमॅटिक्स-3 पढ़ाने के लिए अब भी हमारे साथ थी...एक और चीज़ जो बदली वो ये कि इस बार हमारे टीचर्स मे सिर्फ़ 1 मेल था बाकी सब फीमेल थी....लेकिन माल एक भी नही शुरू-शुरू के दिनो मे रिसेस के वक़्त नवीन हमारी क्लास मे आता और हम तीनो बकर्चोदि करते हुए अपने पिछले दिनो को याद करते,....लेकिन जैसे-जैसे वक़्त बीता नवीन ने हमारी क्लास मे आना कम कर दिया, उसने अपने ब्रांच मे ही कयि दोस्त बना लिए थे और अब वो उन्ही के साथ घूमता था...उसको देखकर हम दोनो ने भी डिसाइड किया कि अब हमे भी कुच्छ धमाल मचाना चाहिए, अभी तो तीन साल बाकी है...इसे हमलोग ऐसे ही नही गवाँ सकते...और वो सेमेस्टर ऐसा था,जिसने मुझे दोस्तो के साथ मस्ती करने का असली मतलब समझाया....या फिर कहे कि मैं ,मेरे ज़िंदगी के सबसे अच्छे लौन्डो से मिलने वाला था...जिनमे से कुच्छ ऐसे थे जो हमारे क्लास के टॉपर तक को क्लास के दौरान पानी पिला देते थे तो कुच्छ इतने रिलॅक्स लड़के थे कि एग्ज़ॅम मे पासिंग मार्क्स के आन्सर लिख कर एग्ज़ॅम हॉल से बाहर आ जाते थे,भले ही उनसे आगे के सारे क्वेस्चन्स के आन्सर आते हो....उनमे से एक शायर भी था..जो अक्सर वेलकम और फेरवेल की पार्टी मे हमारा नाम एड करके अपनी पोयम्स बनाता था....
.
एक तरफ जहाँ मैं काई नये दोस्त बनाने वाला था वही काई पुराने दोस्तो से मेरा साथ छूटने भी वाला था,जिसका मुझे अंदाज़ा तक नही था....
.
"कुल मिलाकर आप सबको 5 प्रेक्टीकल कॉपी बनानी है वर्कशॉप की...5 से कम प्रेक्टिकल कॉपी जो भी जमा करेगा उसके 5 नंबर पर कॉपी के हिसाब से काटेंगे..ईज़ दट क्लियर..."
"यस सर..."आर्मी के जवान की तरह हमने एक साथ जवाब दिया...
"खा-पी के नही आए हो क्या...ज़ोर से बोलो.."
"यस सर..."वर्कशॉप मे एक बार फिर हमारी आवाज़ गूँजी....
"ग्रूप बाँट दे रहा हूँ, 3-3 स्टूडेंट्स का ग्रूप होगा और सब जाकर अपना जॉब कंप्लीट करेंगे...."
"यस सर..."हम एक बार फिर चीखे 
"और एक बात ,कोई भी मेरे पास अपना ग्रूप चेंज करवाने नही आएगा...चाहे वो लड़का हो या लड़की..."
"यस सर..."इस बार भी मैं चीखा,लेकिन सारे लौन्डे अबकी बार शांत रहे और पता नही सबको मेरी उस "यस सर"वाली आवाज़ मे क्या कॉमेडी दिखी कि ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे...शेरीन को कुच्छ ज़्यादा ही हँसी आ रही थी...
"ज़्यादा मत हँस,वरना थोबड़ा निकल कर सामने वाले टेबल पर गिर जाएगा..."उसके बाद मैने धीरे से कहा"साली रंडी,म्सी"
"और एक बात....सबको एक-एक डाइयग्रॅम एक दम करेक्ट डाइमेन्षन मे बनाना होगा...ना एक इंच छोटा और ना ही एक इंच बड़ा...ना एक इंच लंबा और ना ही एक इंच चौड़ा...ईज़ दट क्लियर..."
"यस सर..."इस बार मुझे छोड़ कर सबने नारा लगाया...
"और शुरुआत तुमसे होगी...क्या नाम है तुम्हारा..."
"अरमान..."
"क्या.."
"अरमान..."मैने आवाज़ उची करके कहा...
"तुम अपना नाम नही बता पा रहे ,देश की सेवा क्या करोगे..."
"ये तो हमारा तकिया कलाम था..."मैने खुद से कहा और फिर ज़ोर से आर्मी वाली स्टाइल मे बोला..."नेम-अरमान, रोल नंबर.11 ,फ्रॉम मेकॅनिकल सेकेंड एअर..."
"अभी तुम किस बटालियन मे हो..."जोश मे आते हुए उन्होने पुछा..लेकिन फिर अपनी ग़लती का अहसास होने पर दोबारा कहा"आइ मीन ,तुम इस वक़्त किस शॉप पर हो..."
"टर्निंग शॉप पर...सर.."
"वेरी गुड, तुम जाओ और दुश्मनो को अंदर मत घुसने देना..."

"हााईयईईईन्न्णणन् "
"आइ मीन , अपने जॉब पर एक भी ग़लती मत करना..."
Reply
12-14-2018, 02:29 AM,
#54
RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
. टर्निंग शॉप का हेड मुझे उस दिन बहुत चूतिया लगा...साला खुद को आर्मी का लेफ्टीनेंट समझ रहा था उसकी कहानी मुझे बाद मे मालूम चली...हुआ ये था कि हमारे टर्निंग शॉप का हेड बहुत बड़ा देशभक्त था...और ये इन्फर्मेशन मुझे मेरे ही हॉस्टिल एक लड़के ने दी थी...उस वक़्त मैं ये नही जानता था कि ये इन्फर्मेशन देने वाला मेरा दोस्त सौरभ मेरा खास दोस्त बनेगा....लेकिन ये हुआ पूरे इतमीनान के साथ हुआ...

"अब क्या हुआ यार तुझे..."
"तुमने कहा था आज बताओगे...तू तुमने क्या सोचा..."
"किस बारे मे..."मैं जानता था कि निशा किस बारे मे पुच्छ रही है,लेकिन फिर भी मैने अंजान बनते हुए पुछा...और उसने तुरंत कॉल डिसकनेक्ट कर दी,लेकिन थोड़ी देर बाद उसने फिर कॉल किया...
"अरमान, अब मेरे मोम-डॅड मुझपर नज़र रखने लगे है...वो बोलते है कि अब मैं घूमना बंद कर दूं..."
"तो सही तो बोल रहे है...तुम्हारी शादी को सिर्फ़ दो हफ्ते बाकी है, इसलिए ज़्यादा मत घूमो ,काली हो जाओगी..."
"तुम्हे मज़ाक सूझ रहा है..."
"ना..ये तो मैं दिल से बोल रहा हूँ..."
"मैं तुमसे मिलना चाहती हूँ,लेकिन मेरे अकेले घर से निकलने मे पाबंदी लगा रखी है...कहते है,जहाँ भी जाओ तो ड्राइवर के साथ जाओ..."
"सही है..."
"क्या सही है..."
"कुच्छ नही ,वो मैं अपने दोस्त से बात कर रहा था...हां बोलो क्या बोल रही थी..."
"यही कि अब मैं घर से अकेली नही निकल सकती..."
"एक मिनिट..."अपने दिमाग़ को टटोलते हुए मैं कोई आइडिया ढूँढने लगा"एक काम करो निशा..."
"कैसा काम, एक तो मैं पहले से ही परेशान हूँ उपर से तुम्हारा काम भी करूँ...क्या तुम्हे नही मालूम कि मेरे मोम-डॅड मुझे कही भी अकेले जाने नही देते,इसपर मैं तुम्हारा काम कैसे करूँगी...और वैसे भी अपना काम खुद करना चाहिए...."
"पहले मेरी बात तो सुन ले डायन..."निशा को बीच मे रोक कर मैं बोला"कल एक माल मे हम गये थे...याद है..."
"हां..."
"ड्राइवर के साथ वही पहुचो और जब ड्राइवर कार पार्क करने जाएगा तो तुम कार से निकलकर माल के अंदर आ जाना,मैं तुम्हे उधर ही मिलूँगा..."
"ओके..."
.
निशा से बात करने के बाद मैने वरुण से उसके कार की चाबी माँगी तो वो बोलने लगा कि उसे आज उसकी फेमिली के पास उसे जाना है...

"उस लौंडिया को मैने कल माल मे दो लड़को के साथ देखा था...दूर ही रह तू उससे"मैने वरुण की कार लेने के लिए अपना जाल फेका...

"क्या बोल रहा है यार..."वरुण एक दम से शॉक्ड होकर बिस्तर पर सीधे बैठ गया"वो तो बोल रही थी कि उसकी लाइफ मे मेरे सिवा और कोई लड़का नही है..."

"अबे झूठ बोल रही है वो...मैने कल माल मे उसे दूसरे लड़को के साथ देखा था...."
"सच..."
"तेरी कसम..."
"भाड़ मे गयी साली, मुझे चूतिया बनाने चली थी...मैं तो आज उसे नेकलेस गिफ्ट करने वाला था...अच्छा हुआ जो तूने उसकी असलियत बता दी...वरना मैं तो खामख़ाँ पप्पू बन जाता"आँखो मे अँगारे भरकर वरुण उठा और मुझे कार की चाभी देकर थॅंक्स भी बोला....

"अब थॅंक्स मत बोल यार "जब मेरे द्वारा फेके गये जाल मे चाभी फस गयी तो मैने कहा"एक और बात ,साली का फोन आए तो बिल्कुल भी रिसीव मत करना....मैं चलता हूँ..."
.
वरुण की कार लेकर मैं माल की तरफ निकल पड़ा ,माल पहुचने मे मुझे मुश्किल से आधा घंटा ही लगा होगा लेकिन निशा का इंतज़ार करते हुए मुझे एक घंटे से भी ज़्यादा समय हो गया था....

"एक कप कॉफी देना..."ऑर्डर देते हुए मैने एक और बार निशा का नंबर डाइयल किया और पिछले कयि बार की तरह इस बार भी उसका नंबर स्विच ऑफ बता रहा था...

"इसने अपना मोबाइल क्यूँ बंद करके रखा है..."

इसके बाद आधा घंटा और बीता लेकिन ना तो निशा आई और ना ही उसका नंबर ऑन हुआ...जिस टेबल पर मैं बैठा था उसके सामने वाले टेबल पर कुच्छ लड़के बैठ कर किसी मूवी के बारे मे बात कर रहे थे...

"महीनो हो गये कोई मूवी देखे हुए...आज देख लेता हूँ..."

मैने वहाँ का बिल पे किया और सिनेमाहोल की तरफ बढ़ा...अब पहले जैसा मैं नही रहा था,जो किसी मूवी के रिलीस होने के पहले ही उसके बारे मे डीटेल मालूम कर लूँ, मैने बाहर लगे मूवी के पोस्टर देखे और फिर टिकेट काउंटर पर जाकर उसे मूवी का नेम बताया....
"इस शो की सारी टिकेट बिक चुकी है..."
"तो किसी और मूवी का ही टिकेट दे दे..."
"किस फिल्म का टिकेट सर..."
जहाँ पर मूवी के पोस्टर्स लगे हुए थे उसी के बगल मे टिकेट काउंटर था, मैं एक बार फिर वापस आकर पोस्टर्स को देखने लगा और उसके बाद जैसे ही मुड़ा तो नीचे वाले फ्लोर पर मुझे निशा दिखाई दी लेकिन साथ मे उसके पेरेंट्स भी थे...
"कमाल है मैं इधर डेढ़ घंटे से कॉफी पी-पी कर उसका इंतज़ार कर रहा हूँ और ये इधर फॅमिली शॉपिंग कर रही है...अभी बताता हूँ इस डायन को..."
बोलते हुए मैं लिफ्ट से नीचे आया लेकिन तब तक निशा अपने पेरेंट्स के साथ ब्राइडल वेअर शॉप के अंदर चली गई और उनके पीछे-पीछे मैं भी अंदर जा पहुचा...

ब्राइडल वेअर का शॉप बहुत बड़ा था और वहाँ भीड़ भी बहुत थी,लेकिन उस भीड़ मे निशा को मैने बहुत जल्दी ढूँढ लिया...वो कुच्छ ले नही रही थी बस इधर से उधर घूम-फिर रही थी...उसके पेरेंट्स उससे थोड़ी दूर मे थे....वो जब अपने पेरेंट्स से थोड़ी और दूर मेरी तरफ आ गयी तो मैं उसके सामने गया और उसका हाथ पकड़कर वहाँ से बाहर ले आया....
"अरमान तुम यहाँ..."
"मैं यहाँ दो घंटे से हूँ,..."
"सॉरी अरमान, मेरे मोम-डॅड ने मुझसे पुछा कि मैं माल क्या करने जा रही हूँ तो मैने ऐसे ही कह दिया मूवी देखने...और फिर वो भी मेरे साथ आ गये..."
"और तेरा नंबर क्यूँ बंद है... "
"डॅड ने मेरी पुरानी सिम तोड़कर फेक दी यहाँ से आने के पहले...मैं अपना न्यू नंबर दूं..."
"अभी रहने दे...चुप चाप चल मेरे साथ..."
"कहाँ..."लिफ्ट के अंदर आते हुए वो बोली"मोम-डॅड गुस्सा करेंगे...."
"तेरे मोम-डॅड की तो...."जब निशा ने मुझे घूरा तो मुझे बीच मे ही रुकना पड़ा....
"मैं कार लेकर आया हूँ ,वही चलकर बात करते है..."
"कार मे... "
"क्या हुआ..."
"कार मे क्यूँ..."
"रेप करने के मूड मे हूँ,अब चले"
.
"मोबाइल स्विच ऑफ कर दे और जब वापस जाए तो ये बहाना मार देना कि बाथरूम गयी थी..."
"ओके..."
"हां बोल,क्यूँ मिलना था मुझसे..."
"मैं यही बोलना चाह रही हूँ कि हालत बिगड़ते जा रहे है...हमे भाग जाना चाहिए..."
"अच्छा...और भाग कर कहाँ जाना चाहिए...स्विट्ज़र्लॅंड चले या फिर यूएसए या फिर जापान या इंग्लेंड या चाइना "
"कहीं भी भाग जाएँगे...ये दुनिया बहुत बड़ी है..."अपने दोनो हाथ को फैलाते हुए वो खुशी से बोली...
"एक थप्पड़ मारूँगा तो सारा फिल्मी जूनूर सर से उतर जाएगा..."
अब मैं उसे कैसे बताता कि मैं तो खुद घर से भागकर यहाँ आया हुआ हूँ और अब यहाँ से भागकर कहा जाउ...
"तो फिर तुमने क्या सोचा..."
"मुझे कुच्छ दिन का टाइम दो, मैं कुच्छ सोच लूँगा...अब मोबाइल ऑन कर ले और जा...तेरे घरवाले हंगामा मचा रहे होंगे..."
"तो मैं जाऊ..."
"हां..."
"पक्का मे जाऊ..."
"हां जा ना..."
"सच मे जाऊ..."
"अरे ये जाऊ-जाऊ क्या लगा रखा है,अब मोबाइल मे मेस्सेज करू क्या...चल कल्ती हो जा..."
"एक चुम्मी दो ना..."
"ओ तेरी "


निशा को एक किस देने के बाद मैने कार अपने फ्लॅट की तरफ घुमाई...अब निशा और मेरा मामला बहुत सीरीयस हो गया था जो आने वाले दिनो मे और भी भयानक होने वाला था...मुझे डर बस इसी बात का था कि जिस दिन उसके बाप को मालूम चलेगा कि मैं उसकी बेटी के साथ उसी के घर मे क्या करता हूँ तो यक़ीनन वो मुझे उसी वक़्त गायब कर देगा और मेरा वो हश्र करेगा जो मैं सोच भी नही सकता...मुझे निशा से सॉफ कह देना चाहिए था कि वो अपना रास्ता नापे और आज के बाद मुझे कॉंटॅक्ट ना करे ,इसी मे मेरी भलाई थी...लेकिन मैने ऐसा कुच्छ भी नही किया,मैने ऐसा कुच्छ करने की कोशिश तक नही की....जिसकी वजह ये हो सकती थी कि शायद मैं भी वही चाहता हूँ जो निशा चाहती है...लेकिन मैं हंड्रेड पर्सेंटेज श्योर नही था,इसलिए मैने खुद को अभी तक रोक रखा था....लेकिन अब वक़्त रुकने का नही था क्यूंकी मेरे पास अब सिर्फ़ उंगलियो मे गिने हुए दिन ही बाकी थे...


निशा अब मुझे अच्छी लगने लगी थी ,इसमे कोई दो राय नही थी, पिछले कुच्छ दिनो मे मैने निशा का एक अलग ही रूप देखा था, उसका ये नया रूप ठीक वैसा ही था जैसा कि मुझे एक लड़की मे पसंद था...वो मुझसे प्यार करती थी ,अच्छा ख़ासा बोर यानी की पकाती भी थी और मेरे द्वारा डायन कहने पर वो गुस्सा भी नही होती थी....पिछले कयि दिनो मे कयि बार मेरा लेफ्ट साइड भी निशा के लिए धड़का था और यदि इस वक़्त मेरे सामने उसका बाप ना होता और मैं अच्छी-ख़ासी नौकरी कर रहा होता तो बिना एक पल गवाए उससे शादी कर लिया होता...पर सच ये था कि ऐसा कुच्छ भी नही था...उपर से मेरा दिमाग़ निशा के उस बात पर अटका हुआ था जिसमे वो बोली थी कि मेरे सिवा और किसी के साथ उसने आज तक सेक्स नही किया था.....निशा के इस भारी-भरकम और दिल की धड़कनो को तेज़ कर देने वाले स्टेट्मेंट को चेक करने के लिए मुझे फ्लश-बॅक मे जाना था ,जहाँ वो अक्सर सेक्स करते वक़्त कुच्छ लड़को के नाम बताया करती थी......
.
मैं अपने रूम तक पहुच चुका था और फ्लश बॅक मे जाने की तैयारी कर रहा था,मैने आँखे बंद की और निशा के साथ उसके बिस्तर पर बिताए गये गरम लम्हो को याद करने लगा....निशा के साथ अपनी पिछली यादो को ताज़ा करने के बाद मुझे याद आया कि वो एक लड़के का नाम बहुत बार लिया करती थी और इसके लिए याददाश्त का तेज़ होना बहुत ज़रूरी था, जो की मेरी बहुत पहले से थी
"विष्णु.."नाम याद करते हुए मैने कहा...
"नही विष्णु नही कुच्छ और नाम था उसका...विशाल..ये भी नही....कुच्छ अलग ही नाम था...क्या था उस घोनचू का नाम...
याद आया, विश्वकर्मा...इसी नाम को वो बार-बार लेते हुए गाली बकती थी....
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"अरमान तू आज उपर आ..."बाल्कनी से अपना गला फाड़ते हुए वरुण ने मुझे धमकी दी....

"इतना ज़्यादा प्यार तो इसे मुझपर पहले कभी नही आया...कही इसे मालूम तो नही चल गया कि मैं इसे एडा बनाकर इसकी कार ले गया था...."

"तूने साले मुझसे झूठ बोला कि मेरी फॅंटी दो-दो लड़को के साथ सेट है...ताकि तू अपनी फॅंटी से मिलने के लिए मेरी कार ले जा सके..."

"ह्म्म्म्म ....हां "रूम के अंदर आते हुए मैने कहा...

"देखा वरुण मैने सही कहा था.."अरुण बीच मे बोला"कि ये साला बहुत चकमा देता है, अच्छा हुआ जो मैने तुझे इसके बारे मे बता दिया,वरना आज ही तेरी सेट्टिंग टूट जाती..."

"मेरे जाने के बाद हुआ क्या..."

"मैं बताता हूँ..."मेरी गर्दन दबाते हुए अरुण बोला"तेरे जाने के बाद वरुण बहुत उदास था कि उसकी आइटम ने उसको धोका दिया और उसने ये भी बताया कि उसे इस धोखे की खबर तूने कार माँगते वक़्त दी...तभिच अपुन सब समझ गया और मैने वरुण अंकल को उसकी आइटम से बात करने को कहा...जानता है हमे क्या मालूम चला..."
"क्या..." 
"यही कि वो दो दिन से आउट ऑफ सिटी थी और आज ही नागपुर आई है...बेटा तेरी रग-रग से वाकिफ़ हूँ ,अपुन के साथ ज़्यादा शान-पट्टी नही करने का...अब तू ये बता कि तू वरुण की कार लेकर कहाँ उड़ रहा था..."
"एक प्राब्लम है यार..."
"कैसी प्राब्लम..."
"निशा की दो हफ्ते बाद मॅरेज है और वो मुझसे भागने के लिए कह रही है..."
"दिमाग़ सठिया गया है क्या तेरा "मुझे नीचे गिराकर अरुण ने कहा
"अबे गधे, उसके बाप के बारे मे नही मालूम क्या...गान्ड तोड़ देगा तेरी..."वरुण गुस्से मे बोला..
"इसीलिए मैने उसे उसी वक़्त मना कर दिया था जब उसने मुझसे ये बात कही थी..."
"गुड..."
"लेकिन मैने निशा से ये भी कहा था कि मैं कुच्छ ना कुच्छ जुगाड़ निकाल लूँगा..."
"कैसा जुगाड़ "
"अपन दोनो की शादी का...लेकिन उससे पहले एक काम करना है..."ग्लास मे पानी डालते हुए मैं बोला"निशा के बारे मे कुच्छ पता करना है..."
"बीसी, खुद का ठिकाना नही और शादी करने चला है..."मेरे हाथ से पानी का ग्लास छीन कर अरुण बोला"इस लौंडिया से मिला तो मुझे ,अभी साली को दवाई दे देता हूँ,बड़ी आई शादी करने वाली...वैसे वो एक काम कौन सा है..."
"काम नही प्राब्लम है वो भी एक नही तीन-तीन...पहला ये कि वो एक क्रिस्चियन है ,दूसरा उसका रहीस बाप और तीसरा मुझे ये मालूम करना है कि निशा ने मुझसे जो कुच्छ भी कहा वो सच है या नही..."
"क्या कहा उसने..."
"वो मैं तुझे क्यूँ बताऊ...बस तू एक काम कर,मैं एक लड़के का नाम बताता हूँ तू फ़ेसबुक मे उसके नेम के आगे नागपुर लिखकर सर्च मार..."
"नाम बता..."अरुण अपना मोबाइल निकालते हुए बोला...
"विश्वकर्मा,नागपुर..."
"20 से ज़्यादा लौन्डे है इस यूज़र नाम के..."
"तो उनमे से सबकी आइडी खोल और एक कॉलेज का नाम बताता हूँ वो देख..."निशा के कॉलेज का नाम बताते हुए मैने कहा और रिज़ल्ट मे हमे दो विश्वकर्मा मिले....

"एक ने अपना अड्रेस तक दिया है लेकिन एक की आइडी ब्लॅंक है...बोले तो ना फोटो ना कोई डीटेल्स..बस कॉलेज का नाम लिख रखा है चूतिए ने..."

"पहले वाले का अड्रेस देना तो..."
.
अरुण ने उसका अड्रेस मेरे मोबाइल पर मेस्सेज किया और मुझसे पुछा कि ये विश्वकर्मा कौन है और मैं उससे क्यूँ मिलने जा रहा हूँ....

"वो मेरा गे पार्ट्नर है...उसे छोड़ने जा रहा हूँ ,तू चलेगा मेरे साथ..."

"बिल्कुल नही..."

"तो अब अपनी बक बक बंद कर और मुझे आराम करने दे..."

"ओये हेलो...आगे की स्टोरी क्या पॅपा जी सुनने वाले है...."वरुण चादर खीचता हुआ बोला...

"अभी नही यार..."

"पर मेरा मूड है और यदि तूने ऐसा नही किया तो मैं कल सुबह निशा के बाप को जाकर सारी सच्चाई बता दूँगा..."
मुझे मालूम था कि वरुण ऐसा कुच्छ भी नही करता लेकिन फिर भी मैं उठकर बैठ गया.....
.
अब सब कुच्छ बदलने लगा था...अब ना ही हमारे क्लास मे दीपिका मॅम थी और ना ही कुर्रे सर...सीडार की इंजिनियरिंग कंप्लीट हो चुकी थी,इसलिए वो चला गया और उसी साल उसकी ड्रीम गर्ल विभा भी चली गयी लेकिन वरुण इस साल भी कॉलेज मे था...एश और गौतम का प्यार समय के साथ धीरे-धीरे बढ़ रहा था और मेरे पास इस बारे मे सोचने का टाइम नही था....
"टाइम नही था का क्या मतलब..."वरुण ने मुझे बीच मे रोका...
"मतलब की सुबह 9 बजे उठकर शाम के 5 बजे तक कॉलेज मे सडना...उसके बाद सीधे हॉस्टिल आकर सो जाना और फिर रात को थोड़ी बहुत कॉलेज वर्क करना..."

"तो फाइनली तूने थर्ड सें से पढ़ाई शुरू कर दी..."

"पढ़ाई नही ,सिर्फ़ लिखाई और वर्कशॉप के मशीन्स के ड्रॉयिंग बनाना...मैं पूरी रात यही करता था, ताकि वर्कशॉप की नेक्स्ट क्लास के पहले तक मेरा काम पूरा हो जाए...वरना साला वो फ़ौजी अटेंडेन्स नही देता था...."

"घंटा...इसका मतलब एश से तू प्यार नही करता था ,वो सब तेरा अट्रॅक्षन था..."

"अट्रॅक्षन ईज़ दा रूट ऑफ लव...अंकल जी...वरना हमारे आस-पास के अट्मॉस्फियर मे ऐसे कई एलिमेंट्स और फोर्सस थे जो रिपल्षन का काम करते थे और इतने रिपल्सिव फॅक्टर्स के होने के बावजूद मैं एश से जुड़ा रहा...इसका मतलब कुच्छ तो ऐसा था जो मुझे उससे बँधे रखता था...."

"चल आगे बता "
Reply
12-14-2018, 02:30 AM,
#55
RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू

एमटीएल भाई के कॉलेज जाने का बाद एफेक्ट हम हॉस्टिल वालो पर पड़ा, क्यूंकी सीडार हमारी ताक़त था और उसके कॉलेज मे ना होने का मतलब था कि एक बहुत बड़ा परिवर्तन...जिस सीनियर ने फर्स्ट सेमेस्टर मे मेरी रॅगिंग ली थी वो सीडार के जाने के बाद फिर से उठ खड़ा हुआ था, जिसकी जानकारी मुझे अमर सर ने दी ,जो कि अब फाइनल एअर मे थे....उन्होने बताया कि वरुण अपना बदला लेने के लिए कुच्छ तैयारी कर रहा है और उसके निशाने पर मैं हूँ इसलिए मैं थोड़ा संभाल कर रहूं....वरुण के साथ गौतम भी था, पिछले एक साल मे मैं गौतम के बारे मे बहुत कुच्छ जान चुका था जैसे कि उसका बाप डॉन टाइप का था और उसकी इस डॉनगिरी मे गौतम का अंकल उसका बखूबी साथ देता था...हमारे रिपोर्टर भू के ज़रिए मुझे ये भी मालूम चला कि गौतम के अंकल ने केयी लड़कियो का रेप भी किया है...लेकिन उस इलाक़े मे उसकी पकड़ होने के कारण वो आज तक बचता रहा....गौतम का बॅकग्राउंड पूरा जानने के बाद मैने डिसाइड किया कि अब मुझे ज़्यादा नही उड़ना है वरना बेकार मे मार दिया जाउन्गा....तू सोच भी नही सकता कि इस सेमेस्टर मे क्या-क्या हुआ....कुच्छ अच्छे पल भी थे जिनकी यादें आज भी सीने मे मौज़ूद है और उन अच्छी यादों के साथ कुच्छ बुरी यादें ,भयानक पल भी थे जिन्हे मैं कभी भुला नही पाया और शायद कभी ना भुला पाऊ....
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बॅस्केटबॉल कोर्ट मे मेरे बुरे बर्ताव का नतीजा ये निकला कि कोच ने मुझे दोबारा बॅस्केटबॉल के कोर्ट मे बुलाने की जहमत नही उठाई...सच कहूँ तो जब से सीडार गया था मैं कुच्छ डरा-डरा सा रहने लगा था और अपने काम से काम रखता था...कुच्छ दिनो तक मेरी लाइफ मे लड़कियो के नाम पर मेरी क्लास की वो मोटी भैसी शेरीन और उसकी बदसूरत चमगादड़ जैसे मुँह वाली फ्रेंड्स ही थी...फर्स्ट एअर के लौन्डे और माल आ चुके थे और उनके आने के साथ ही वरुण अपनी आदत अनुसार उनकी रॅगिंग लेने मे लग गया था...इस सेमेस्टर मे बहुत कुच्छ चेंज हो गया था लेकिन एक चीज़ जो अभी तक नही बदली थी वो ये कि एसा अब भी मेरे लेफ्ट साइड मे बस्ती थी...अकेलेपन मे कभी-कभी वो मुझे याद आ जाती...
"रात के 11 बजे फ़ेसबुक पर क्या कर रही है बिल्ली..."फ़ेसबुक पर एश को ऑनलाइन देखकर मैने एक मेस्सेज टपकाया...


मैने एश को मेस्सेज तो कर दिया था लेकिन मैं जानता था की वो रिप्लाइ नही करने वाली...और साथ मे मैं ये भी जानता था कि वो रिप्लाइ कैसे करेगी....
"प्यार मे मेरी दीवानगी देखना तुम...
यदि खुद को ना मिटा दिया तो कहना..."
"इसका मतलब क्या हुआ अरमान "उसने तुरंत रिप्लाइ किया...
"कुच्छ नही..वो तो मैं किसी दूसरी लड़की को भेज रहा था ,ग़लती से तुम्हे पहुच गया...."
"इट'स ओके..."
मैने सोचा था कि एश अब मुझसे उस लड़की का नाम पुछेगि ,लेकिन उसने ऐसा नही किया...सच मे लड़कियो के बारे मे सारी थियरी ग़लत हो जाती है 
"क्या कर रेली है इस वक़्त..."
"वो मैं तुम्हे क्यूँ बताऊ..."
"क्यूंकी....ईईईईई"
"ह्म्म्म."
"कुच्छ नही..."
"लॉल ! "
"डबल लॉल "
"ट्रिपल लॉल..."
"ये लॉल-लॉल खेलने के मूड मे है..."मैने सोचा और फिर "लॉल का स्क्वेर "लिखकर सेंड किया और जवाब मे उसने"स्क्वेर ऑफ लॉल का स्केर"भेजा...
"लॉल इन्फिनिट...अब आगे बढ़ा "
"लॉल इन्फिनिट+ 1 लॉल...."
"अब बंद कर ये सब " 
"पहले बोलो कि तुम हार गये..."
"ओके मेरी माँ..इस लॉल-खोल के गेम मे तू जीती मैं हारा...अब खुश"
"याअ...ई वॉन..."
"वॉरल्डकूप भी दूं क्या..."
"लॉल..."
"वैसे तुमने बताया नही की तू इस वक़्त किससे भिड़ी थी फ़ेसबुक पर..."
"स्कूल की एक फ्रेंड थी मेरी..."
"लड़की है "
"हां...लेकिन ये तुम क्यूँ पुच्छ रहे हो..."
"सेट्टिंग करवा ना..."
"शट अप...."
"मैं तो ऐसे ही बोल रहा था...दिल पर मत ले...मुँह मे ले..."
"अरमान, आइ डॉन'ट लाइक दिस किंडा मज़ाक...क्क्क"
"नोट क्क्क..."
"सीसी ,गुडनाइट..."
"कितना जल्दी इसपर भूत सवार हो जाता है..."एश के ऑफलाइन होने के बाद मैं बड़बड़ाया और उसी वक़्त अरुण ,सौरभ के साथ रूम मे दाखिल हुआ...
"कहाँ घूम रहा है बे..."मैने अरुण से पुछा...
"पानी पीने गया था...रास्ते मे सौरभ मिल गया...तो सोचा आज रात टाइम पास हो जाएगा..."
"लवडा मेरा टाइम पास..."सौरभ ताव मे आकर बोला"मैं वर्कशॉप की कॉपी लेने आया हूँ..."
अरुण से वर्कशॉप की कॉपी लेने के बाद सौरभ वहाँ से जाने लगा लेकिन फिर पीछे पलट कर बोला कि बॉलीवुड के जिस-जिस गाने मे जुदाई वर्ड है ,उसके जगह पर चुदाई वर्ड लगाकर हम दोनो टाइम पास कर सकते है....
"एग्ज़ॅंपल दे दो एक..."
"एग्ज़ॅंपल...ह्म्म्मम,...जैसे कि...चार दिनो का प्यार-ओ-रब्बा...लंबी चुदाई..लंबी चुदाई..."
सौरभ के जाने के बाद अरुण कुच्छ देर तक बॉलीवुड के गानो की गान्ड मारता रहा और मैं सो गया....
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दूसरे दिन सुबह मुझे कुच्छ ज़्यादा ही नीद आ रही थी इसलिए मैने अरुण को कह दिया कि वो अकेले कॉलेज चला जाए,मैं डाइरेक्ट दूसरे पीरियड मे आउन्गा....और जब मैं दूसरा पीरियड अटेंड करने कॉलेज गया तो गेट के पास ही मुझे विभा दिख गयी....
"कुच्छ काम-वाम से आई होगी,साली...या फिर वरुण से चूत मरवाने आई होगी..."मैने ऐसा सोचा और विभा को फुल्ली इग्नोर मारते हुए आगे बढ़ा....

"अरमान...तुम आज फर्स्ट पीरियड मे नही थे...राइट ! "

"हां...तो उसमे कौन सी बड़ी बात है...वो तो अक्सर होता रहता है..."पीछे पलटकर मैने विभा को जवाब दिया...

"अब तुम अपने बात करने का लहज़ा सुधार लो और आज से हर दिन फर्स्ट पीरियड मे दिखना...क्यूंकी फर्स्ट पीरियड फ्लूईड मेकॅनिक्स की है..."
"हेलो...हर लड़की प्रतिभा पाटिल नही होती,जो मैं उसकी बात मनाता फिरू..."

"आइ आम युवर न्यू टीचर ऑफ फ्लूईड मेकॅनिक्स..."

"ओ तेरी ये कब हुआ...कैसे हुआ...क्यूँ हुआ..."

"ये कल हुआ और मेरी ब्रिलियेन्स के कारण हुआ....क्यूंकी तुम्हारे सीसी के पुराने टीचर का ट्रान्स्फर दूसरे कॉलेज मे हो गया है..."

विभा पहले जो भी रही हो लेकिन अब वो मेरी टीचर थी...यानी कि बहुत सारा नंबर उसके हाथ मे था...इसलिए मैने विभा को उसी वक़्त गुड मॉर्निंग कहा और क्लास के अंदर घुसा....
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"ये बीसी ,कैसो-कैसो को टीचर रख लेते है,हमारे कॉलेज मे...सालो ने हमारे कॉलेज को आगनबाड़ी का स्कूल बना दिया है...अब विभा हमे सीसी पढ़ाएगी..."अपनी मंडली मे शामिल होते ही मैं चीखा...चिल्लाया...
"उसकी *** चोद दूँगा...बीसी ज़्यादा उचक रही थी क्लास मे, खुद तो हर 5 मिनिट मे बुक देखती थी और मैने जब उसके एक क्वेस्चन पर किताब पलट ली तो साली की झान्टे सुलग गयी..."मेरे वहाँ बैठते ही अरुण भी चीखा...चिल्लाया और उसकी आवाज़ से जनवरो की तरह चिल्ला रही सारी क्लास एक दम से शांत होकर अरुण के तरफ देखने लगी....

"मुँह मे घुसा दूँगा,यदि किसी ने मेरी तरफ देखा तो..."अरुण एक बार फिर ज़ोर से चीखा...
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जब क्लास का महॉल नॉर्मल हुआ और सारे स्टूडेंट्स फिर से जनवरो की तरह हल्ला मचाने लगे तो मैने अरुण से कहा कि थोड़ा ध्यान से बे,लड़किया भी है यहाँ...

"सब...सब साली रंडी है...लड़की के नाम पर कलंक है,इनको देखकर सारी औरत जात से नफ़रत होने लगती है और विभा तो महा म्सी है...साली कुतिया,छिनार,लवडा का बाल, कुकुर की झाट, गेंदे का सपूर्म,घोड़े की गान्ड...है वो..."

"अग्री...जा हिला के आ,रिलॅक्स हो जाएगा..."

"ये आइडिया मुझे क्यूँ नही आया...मैं अभी आता हूँ हिला के...चल तू भी चल.."

"मैं एक घंटे पहले ही ये कर चुका हूँ,तू जा..."

"बोसे ड्के,मूठ मारने के लिए क्लास बंक करता है..."मुझे गरियाते हुए अरुण क्लास से निकल गया....

"किसी ने मेरी प्रॉक्सी मारी क्या बे या फिर आपसेंट चढ़ गया..."

"मैने कोशिश की थी,लेकिन पकड़ा गया..."सुलभ ने अपना हाथ खड़ा करके कहा..."तेरे साथ-साथ मेरा भी अटेंडेन्स कट..."
"कोई बात नही, नयी-नयी टीचर बनी है तो कुच्छ जोश ज़्यादा है..."
"सीडार के बारे मे मालूम चला..."सुलभ जो कि मेरे बगल मे बैठा था उसने मुझसे पुछा...
"नही.."
"सीडार इसी शहर मे रहेगा.. एनटीएफसी मे उसकी जॉब लग गयी है..."
"क्या बात कर रहा है... तब तो एमटीएल भाई से पार्टी लेनी पड़ेगी..."
"या..ट्रू.."सुलभ ने कहा...
सुलभ हाइट और हेल्त-वेल्त मे मुझसे काम था लेकिन दिमाग़ के मामले मे वो मुझसे कहीं आगे था...यदि कोई टीचर अपना लेक्चर ख़त्म करने के बाद अपना घिसा-पिटा डाइलॉग मारते हुए बोले कि"इसे कोई समझा पाएगा पूरी क्लास को..."तो सबसे पहला हाथ सुलभ का उठता था...और वो टीचर्स के लेक्चर्स को मॉडिफाइ करके बहुत ही शालीनता से समझता....या फिर ये कहे कि सुलभ की कॅचिंग पॉवेर बहुत जबरदस्त थी...
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मुझे ये जानकार थोड़ी खुशी हुई की सीडार इसी शहर मे है और उससे भी बड़ी खुशी तब हुई,जब उन्होने पार्टी के लिए हां कर दिया...
"यार भूख लगी है...आना कुच्छ खा-पी कर आते है..."अपने पेट पर हाथ फिराते हुए अरुण बोला...
"चलो..."मैं,सुलभ और सौरभ...वहाँ से उठे और कॅंटीन की तरफ चल दिए....
फर्स्ट एअर मे हॉस्टिल के जिस सीनियर ने मेरी रॅगिंग ली थी वो अब एक साल के बाद मुझे दिखने लगा था...वो मुझसे एक शब्द भी नही बोलता लेकिन उसकी आँखे बहुत कुच्छ कह जाती थी...वो कुच्छ सोच रहा था,शायद मेरे बारे मे या फिर अपने बदले के बारे मे....और इस वक़्त वो कॅंटीन मे मेरे सामने वाली चेयर पर वरुण के साथ बैठा हुआ था....
"अरमान ये साला तुझे घूर रहा है...तू बोल तो अभी साले को चाउमीन फेक के मारता हूँ..."
अरुण ने हॉस्टिल के उस सीनियर को घूरते हुए कहा...
"काहे को फालतू मे लड़ाई कर रहा है...तू अपना टंकी जैसा पेट भर..."
"जैसी तेरी मर्ज़ी..."
दिल तो मेरा भी कर रहा था कि हॉस्टिल के उस आस्तीन के साँप का मैं मुँह कुचल दूं...लेकिन मैने ऐसा कुच्छ नही किया,क्यूंकी मेरे सिक्स्त सेन्स ने मुझे बहुत बड़े लफडे की चेतावनी दे डाली थी...जिसमे मेरी हार हुई थी..जो फिलहाल मैं नही चाहता था....
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"एक-एक प्लेट समोसा मस्त बना के देना बे...."अरुण ने कॅंटीन मे सॉफ-सफाई करने वाले एक छोटे लड़के से कहा....
"वो देख सामने...तेरे फेव. कपल.."सौरभ कॅंटीन के गेट की तरफ इशारा करते हुए बोला...

"ये तो एश और गौतम है..."

"देख...कैसे चिपकी रहती है एश ,गौतम से...मेरी बात मान अभी वक़्त है, उसको छोड़ और दूसरी ढूँढ...फर्स्ट एअर मे इस बार धांसु माल आई है..."

"चुप कर बे...यही तो प्यार है पगले.."

"क्या घंटा का प्यार है...एश ने तुझे एक नज़र उठा कर नही देखा..."

"हां यार, उसने तो टोटली इग्नोर मार दिया..."कहते हुए मैने अपने चेहरे पर हाथ से टेक लगाई और एश को देखने लगा....जो की गौतम को पसंद नही आया, वो अपनी जगह से उठा और सीधे मेरी तरफ बढ़ने लगा....

"हां यार, उसने तो टोटली इग्नोर मार दिया..."कहते हुए मैने अपने चेहरे पर हाथ से टेक लगाई और एश को देखने लगा....जो कि गौतम को पसंद नही आया, वो अपनी जगह से उठा और सीधे मेरी तरफ बढ़ने लगा....

गौतम को अपनी तरफ आता देख मेरे अंदर एक हाल चल सी मच गयी और अपने दोस्तो के सामने इस हलचल को छुपाने के लिए मैने सिगरेट का ऑर्डर दे दिया.....

"ये कॉलेज कॅंटीन है ,तेरा घर नही...जो तू यहाँ बीड़ी-सिगरेट की फरमाइश करेगा तो तुझे मिल जाएगी..."

"कुच्छ देर बाद मैं तो दारू का ऑर्डर देने वाला था..."

"बकवास बंद कर और ये बोल कि बॅस्केटबॉल प्रॅक्टीस करने का क्या लेगा...."हमारे सामने एक खाली चेयर पर बैठकर गौतम बोला"ये मत समझ लेना कि ये सब मैं कह रहा हूँ या फिर मैं चाहता हूँ कि तू हमारी टीम मे आए...ऐसा तो कोच ने कहा है....पता नही उन्हे क्या दिख गया तुझमे...जबकि हमारे पाँचो मेन प्लेयर्स अच्छा खेलते है..."

"अच्छा खेलना अलग बात है और मॅच जीतना अलग बात है...तुम सब बेशक कोर्ट मे दमदार खेल खेलकर अपनी टीम को आगे रख सकते हो ,लेकिन तुम इससे मॅच जीत नही पाओगे..."

"तो तेरे कहने का मतलब तू वो प्लेयर है..."

"99 % ,शुवर हूँ.."

"तो फिर आज सबके सामने एक-एक मॅच हो जाए...जिसमे सिर्फ़ मैं और तू रहेंगे...."

"सॉरी...नोट इंट्रेस्टेड..."बोलते हुए मैने कॅंटीन मे ऑर्डर सर्व करने वाले उस छोटे से लड़के को इशारे से अपने पास बुलाया...

"बोल ना डर गया..."

"अरमान क्यूँ इसको झेल रहा है...तू बोल तो अभी इसको पेल दूं..."अपने दाँत चबाते हुए अरुण ने कहा....

"चल शुरू हो जा..."वरुण, जो कि सामने वाली एक टेबल पर बैठा था ,वहाँ से उठकर सीधे हमारी तरफ आया और साथ मे हॉस्टिल का वो सीनियर भी....

"हां बोल ,क्या बोल रहा था..."अरुण की तरफ नज़र गढ़ाकर वरुण ने पुछा और सुलभ को वहाँ से जाने के लिए कहा...क्यूंकी सुलभ सिटी मे रहता था और वरुण के कुच्छ दोस्तो से उसकी दोस्ती भी थी....

"अब बोल,चॅलेंज आक्सेप्ट करेगा या नही.."गौतम अब भी अपनी बात पर अटका हुआ था....

"मैं तुझे अपना फाइनल रिज़ल्ट बताऊ ,उससे पहले एक कहानी सुन....जब मैं 7थ क्लास मे था तब मेरे स्कूल का प्रिन्सिपल मुझे बहुत परेशान किया करता था...साला क्लास मे हर उच-नीच का ज़िम्मेदार मुझे ठहराता था और फिर मारता भी बहुत था...उस वक़्त ना तो मुझे वो प्रिन्सिपल पसंद था और ना ही वो स्कूल...मैं चाहता था कि वो मुझे खुद स्कूल से निकाल दे...इसलिए मैने एक दो बार बहुत बड़े-बड़े कांड भी किए...लेकिन मुझे स्कूल से निकालने की बजाय उसने मुझे सिर्फ़ मारा-पीटा और फिर घर पर शिकायत भेजी...उससे परेशान होकर मैने एक दिन अपने स्कूल के प्रिन्सिपल की बेटी को जाकर सीधे यही कहा कि ""क्या वो मुझे अपनी चूत देगी..."" और उसके बाद प्रिन्सिपल ने तुरंत मुझे स्कूल से निकाल दिया...."

"इस कहानी की बत्ती बनाकर पिछवाड़े मे भर ले.."

"ये कहानी सुनकर मैं तुम सबको ये समझाना चाहता था कि यदि मुझे जो चीज़ पसंद हो तो उसे हासिल करने से तुम सबका बाप भी नही रोक सकता...और जो चीज़ मैं पसंद नही करता ,उसके लिए मेरा बाप भी कुच्छ नही कर सकता...."

"क्या तूने आज कॉलेज आने से पहले ये सोचा था कि आज तेरी ठीक वैसी ही पेलाइ होगी...जैसे कि फर्स्ट एअर मे हुई थी..."

"अरुण , डांगी अंकल को फोन लगा कर बोल कि कुच्छ लड़के मुझे धमका रहे है..."

"डांगी कौन...एस.पी. "

"हां..."

"तू उसे जानता है..."

"अक्सर शाम की चाय उन्ही के बंग्लॉ पर पीता हूँ...यकीन ना हो तो जाकर किसी से भी पुछ लेना...या फिर लास्ट एअर सीडार के हाथ से ठुकाई होने वाले इस गान्डुल से पुच्छ ले..."
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उस दिन कॅंटीन मे पक्का कोई लफडा हो जाता यदि मैने आईं वक़्त पर एस.पी. का नाम ना लिया होता तो...एस.पी. का नाम सुनकर वो तीनो पीछे लौट गये और हम तीनो बड़े आराम से निकले....अरुण मुझसे हमेशा पुछ्ता रहता था कि मैं ये सब कैसे सोच लेता हूँ...एक दम अचानक से ऐसे धाँसू आइडियास मेरे भेजे मे कैसे आ जाते है....जिसका जवाब मैने उसे बस एक स्माइल देकर दिया लेकिन सच ये था कि ये सब सिचुयेशन्स मेरे दिमाग़ मे बहुत पहले से छप चुकी थी...मैं अपने मन से ही खुद को किसी परेशानी मे डाल कर उससे बाहर आने का तरीका ढूँढा करता था....और आज जो कुच्छ हुआ ये तो बहुत नॉर्मल सी बात थी...यदि आज कॅंटीन मे 20 लोग भी मुझे मारने के लिए आए होते तो मैं उन सबसे निपट लेता....आप चाहे तो मुझे एरोप्लेन से नीचे फेक दे या फिर बीच समुंदर मे शिप से नीचे उतार दे...मैं वहाँ भी आपको ज़िंदा रहने के काई तरीके बता सकता हूँ...क्यूंकी मैने ऐसी प्रॉब्लम्स मे खुद को कयि बार ख्वाब मे फसाया और निकाला है...जिसमे गूगल महाराज की भी बहुत बड़ी कृपा रही है....लेकिन मेरे द्वारा यूज़ किए गये टेक्नीक्स की कोई गॅरेंटी नही होती कि वो हमेशा फिट ही बैठेगी...क्या पता मेरी ही टेक्नीक कभी मेरी जान बचाने की बजाय मुझे और कमजोर बना दे.....
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"अरमान आज दारू पीते है..."

"वो वर्कशॉप का फ़ौजी,हमारे उपर मशीन चढ़ा देगा...यदि आज कॉपी चेक नही करवाई तो..."

"*** की चूत उसकी....साले का लंड तोड़कर लेथ मशीन से काट दूँगा"

"चुप कर बे...एक तो ये दमयंती बोर कर रही है,उपर से तू और... तू जाकर कही और बैठ ना..."

"भाड़ मे जाए तू और तेरा वो फ़ौजी और तेरी माल दमयंती....अपुन तो दारू और दिव्या से ही खुश हूँ..."

"दमयंती मेरी माल 
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"और ज़ोर लगा...अबे बक्चोद उल्टा क्यूँ धकेल रहा है...पीछे से धक्का दे...."अरुण रूम के बाहर किसी को गरियाते हुए कुच्छ समझा रहा था....

"थका दिया बे तूने..."सौरभ अंदर आते हुए बोला....

और मेरी नज़र रूम के अंदर अभी-अभी घसीट कर लाए हुए आल्मिराह पर पड़ी...

"अबे ये किसकी आल्मिराह चुरा के लाए हो..."

"सौरभ की है..."कमर पर हाथ रखकर हान्फते हुए अरुण ने जवाब दिया....

"तो इसे यहाँ क्यूँ लाया है..."

"अब मैं भी इसी रूम मे रहूँगा..."बोलकर सौरभ ने अरुण को उठाया और अपना बिस्तर उठा कर लाने के लिए अरुण को पकड़ के ले गया.....

"साले दोनो गे है...मुझे तो दोनो को पहली बार देखते ही शक़ हो गया था.. "
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"तूने अपना रूम चेंज क्यूँ किया...मतलब कि यहाँ ऑलरेडी दो थे और अब तीसरा....तू.."सौरभ का बेड जब मेरे बेड के बगल मे शिफ्ट हो गया तो मैने पुछा...

"वो मेरा रूम पार्ट्नर लफडा करता है साला...रात को 10 बजे लाइट बंद करने को कहता है और बोलता है कि वो सुबह उठेगा....इसलिए मेरी पढ़ाई जो थोड़ी-बहुत रात को होती है...वो नही हो पाती....दूसरा साला रोज सुबह-सुबह उठकर लाइट जला देता है और ज़ोर-ज़ोर से रट्ता मारता है,इस वजह से मेरी नींद पूरी नही हो पाती..."

"अरमान...तेरे मोबाइल मे नेट चल रहा है ना..."अरुण अपने मोबाइल मे कुच्छ देखते हुए बोला..
"हां..."
"ला दे...दिव्या ऑनलाइन है, अभी उसका मेस्सेज आया है..."
"लेकिन मैं बीएफ डाउनलोड कर रहा हूँ..."
"अबे पॉज़ मार उसको..."
डाउनलोडिंग रोक कर मैने मोबाइल अरुण को दिया और फिर आज कॉलेज मे जो पढ़ाया था उसपर एक नज़र मारी...इस बीच सौरभ अपना समान शिफ्ट करने मे और अरुण दिव्या से चॅट करने मे भिड़ा रहा...
"अबे यार, आधा घंटा तो हो गया है, अब तो मोबाइल दे... "
"रुक जा दो मिनिट...गुडबाइ बोल देता हूँ....."
दिव्या को गुड बाइ बोलने के बाद अरुण ने मोबाइल मुझे दिया और सौरभ के साथ नेट पॅक डालने चला गया....

"मैं भी थोड़ी देर फ़ेसबुक चलाता हूँ क्या पता एश ऑनलाइन मिल जाए..."

मैने फ़ेसबुक खोला तो उसमे अरुण की आइडी लोग इन थी, वो लोग आउट करना भूल गया था...दिव्या और अरुण क्या बात करते है ये जानने के लिए मैने उनके मेसेजिज पढ़ना शुरू कर दिया..
दिव्या-हाई..
अरुण-हेलो डियर...
दिव्या-हाउ आर यू ?
अरुण-मज़े मे...
दिव्या-तुमने मेरा न्यू स्टेटस लाइक नही किया ?
अरुण-अभी देखा नही...
दिव्या-कॉमेंट भी कर देना...
अरुण-ठीक है
दिव्या-आज जो ड्रेस पहन कर मैं आई थी वो कैसी थी...
अरुण-एक दम झक्कास....और सूनाओ क्या चल रहा है...
दिव्या-कुच्छ नही..
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"साले दोनो कितना बोरिंग बाते करते है "मैने अरुण की आइडी लोगआउट की लेकिन जैसे मुझे कुच्छ याद आया और मैने तुरंत लॉगिन करके दिव्या की आइडी ओपन की.....

"दिव्या श्रिवस्तव....इसका सरनेम श्रिवस्तव है...ये तो फिर भी ठीक है...लेकिन जो मैं सोच रहा हूँ,वो ना हो " लेकिन मेरी सारी तब बेकार हो गयी जब दिव्या की आइडी मे मैने फॅमिली ऑप्षन मे गौतम(ब्रदर) की आइडी देखी....

"गये बेटा काम से...दिव्या तो गौतम की बहन है ,ये अरुण भी एक नंबर का चूतिया है,जो गौतम की बहन को सेट कर रहा है....पिटेगा साला..."

उसके बाद मैने दिव्या की सारी फोटोस देख मारी, कयि फोटो मे वो गौतम के साथ थी...
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"अबे चोदु, जानता है दिव्या कौन है..."अरुण और सौरभ के आते ही मैं अरुण पर चिल्लाया...
"कौन है..."
"गौतम की बहन है दिव्या..."
"तो क्या हुआ..."
"जब उसका बाप तेरी गान्ड मे डंडा डालेगा ,तब बोलना क्या हुआ..मैं बोलता हूँ अभी साली को अनफ्रेंड कर दे..."
"शेर लोग कभी नही डरते और वैसे भी जब तू गौतम की माल पर नज़र डाल सकता है तो मैं दिव्या को लाइन क्यूँ ना मारू...."

अरुण की इस बात का मेरे पास कोई जवाब नही था और मैने सौरभ की तरफ देखकर अरुण को समझाने के लिए कहा....
"अभी अपुन बहुत मेहनत करके आ रेला है...अपुन को सोने का है...भाड़ मे जाओ तुम दोनो और तुम दोनो की आइटम और गौतम...."
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"सही है..."
"क्या सही है बे...जब लात खाएगा तब मत बोलना कि मैने तुझे नही समझाया था..."मैने आख़िरी कोशिश की...

"देख बे अरमान, मैने भी कोई कच्ची गोलियाँ नही खेली है...जब तू एश के पीछे पागल हो सकता है तो मैं दिव्या के पीछे क्यूँ नही..."

"पहली बात ये कि एश मेरे लेफ्ट साइड मे है और दूसरी बात ये कि मैं...मैं हूँ....मतलब की मैं सिचुयेशन्स को संभालना जानता हूँ..."

"तो तेरे कहने का मतलब ये है कि तू मुझसे ज़्यादा होशियार है..."
"अफीशियली यस..."
"तो तेरे कहने का मतलब ये है कि मैं सिचुयेशन नही संभाल सकता..."
"बिल्कुल..."
"तो तेरे कहने का मतलब ये है कि तू मुझसे ज़्यादा स्मार्ट है..."
"हां "
"तो तू ये कहना चाहता है की तू मुझसे ज़्यादा हॅंडसम है..."
"तेरी तो..चुप कर साले..जैसे तेरी वो माल दिव्या बोर करती है वैसे ही तू भी भेजा ख़ाता है....अब गान्ड मरा, मुझे कोई मतलब नही तुझसे और तेरी उस महा पकाऊ, बेवकूफ़ दिव्या से...."
"एश से तो होशियार ही है..."
"अग्री अंकल, अब चुप हो जाओ..."

मेरे और गौतम या फिर कहे की मेरे और वरुण के बीच सिचुयेशन और भी ज़्यादा हाइपर होने वाली थी...क्यूंकी एक तरफ जहाँ अरुण,गौतम की बहन को पटाने मे तुला हुआ था ,वही मैं गौतम से उसकी माल छीन रहा था...बोले तो डबल अटॅक....इसका नतीज़ा काफ़ी भयानक होने वाला था ,जिसकी खबर मेरे सिक्स्त सेन्स ने मुझे उसी दिन दे दिया था,जब मुझे मालूम चला था कि दिव्या, गौतम की बहन है....लेकिन मज़े की बात ये थी कि मुझे एक साल बाद मालूम चला कि गौतम की बहन भी इस कॉलेज मे पढ़ती है और वो एश की खास दोस्तो मे से है...यूँ तो एश को घूरते वक़्त,कॉलेज मे उसका पीछा करते वक़्त दिव्या को मैने कयि बार देखा था लेकिन कभी उसपर ध्यान नही दिया और ना ही क्लास के लौन्डो ने मुझे कभी बताया,जबकि क्लास के हर लड़के को पता था,अब मुझे फर्स्ट एअर के कुच्छ फ्लश बॅक भी याद आने लगे ,जब रिसेस के वक़्त गौतम ,जहाँ फर्स्ट एअर की क्लास लगती है, वहाँ आया करता था....अब मुझे रिसेस मे गौतम के आने का कारण समझ मे आ रहा था...एक तो वो एश से मिलने आता था और दूसरा वो दिव्या की निगरानी करता था कि उसके पीछे कोई लड़का तो नही पड़ा है...मैं ये सच्चाई जानकार बेहद ही शॉक्ड हुआ था, क्यूंकी भू ने भी मेरे सामने कभी दिव्या के बारे मे ज़िकरा नही किया....
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"मे आइ कम इन मॅम..."मैने क्लास मे एंटर होने के लिए विभा से पर्मिशन माँगी....
"क्लास स्टार्ट हुए ऑलरेडी ट्वेंटी मिनिट्स हो चुके है...कहाँ थे तुम तीनो..."
"वो मॅम हॉस्टिल का पानी ख़त्म हो गया था..."मैं कुच्छ बोलता उसके पहले ही सौरभ बोल पड़ा"तो पानी ख़त्म होने के कारण लेट हो गये..."
"यहाँ हॉस्टिल का और कौन-कौन है..."विभा ने क्लास मे बैठे स्टूडेंट्स से पुछा तो आधा दर्जन लड़को और लड़कियो ने अपने हाथ गर्व से खड़े कर दिए....
"मॅम ,ये लोग नहा कर नही आए होंगे , "और फिर सौरभ ने एक लड़के को जिसने अभी तक हाथ खड़ा किया हुआ था उसकी तरफ उंगली दिखाकर बोला"मॅम,ये तो कभी नहाता ही नही और ना ही कभी कपड़े सॉफ करता है..."

"ओके...ओके, अंदर आ जाओ...सबकी पॉल खोलने की कोई ज़रूरत नही है..."

"थॅंक यू मॅम..."हम तीनो ने कहा और अंदर आकर सबसे पीछे वाली बेंच मे लड़कियो के पीछे जाकर बैठ गये....
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12-14-2018, 02:30 AM,
#56
RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
अरुण ने जो अड्रेस मेरे मोबाइल पर मेस्सेज किया था ,वहाँ पहूचकर मैने एक रूम का दरवाज़ा खटखटाया और जब एक लड़का बाहर निकला तो मैने उससे विश्वकर्मा के बारे मे पुछा....
"आप कौन हो..."
"मैं विश्वकर्मा का दोस्त हूँ...विश्वकर्मा कहाँ है..."
"मालूम नही है क्या, विश्वकर्मा सर यहाँ दो महीने पहले रहते थे...अब उनकी पढ़ाई कंप्लीट हो गयी है तो ये रूम छोड़ कर जा चुके है..."
"उनका कोई नंबर वगेरह है क्या..."उसके रूम पर नज़र डालते हुए मैने कहा....
जिस रूम मे विश्वकर्मा रहता था ,वो एक छोटा सा रूम था,जैसा कि अक्सर बाहर पढ़ने वाले लड़के को होता है...दीवारो पर एक तरफ कयि बिकनी पहने हुए लड़कियो की फोटोस लगी हुई थी तो दूसरी तरफ एक बड़े से दिल मे विश्वकर्मा और निशा का नाम लिखा हुआ था....
"एक नंबर है...दूं क्या"
मैने हां मे सर हिलाया तो उसने विश्वकर्मा का नंबर मुझे दे दिया और जब मैं वहाँ से वापस जाने लगा तो वो लड़का बोला...
"लेकिन ये नंबर तो एक साल से बंद है..."

"फिर मैं इस नंबर का क्या आचार डालूँगा...कोई दूसरा नंबर दे ,जो चालू हो..."

"वो मेरे रूम पार्ट्नर के पास होगा,लेकिन वो अभी है नही....एक काम करो आप कल आकर मिलो..."

"ये सही रहेगा..."मैने कुच्छ सोचा और फिर अपना नंबर उस लड़के को देकर कहा "सुन ना यार,ये मेरा नंबर है...यदि तेरा वो दोस्त आ जाए ,जिसके पास विश्वकर्मा का नंबर है तो...प्लीज़ उसे बोल देना कि वो विश्वकर्मा का नंबर मुझे सेंड कर दे..."

"ठीक है बोल दूँगा...और कुच्छ..."

मेरी नज़र एक बार फिर दीवार पर ठीक उसी जगह पड़ी,जहाँ पर बड़े से दिल के अंदर विश्वकर्मा और निशा का नाम लिखा हुआ था....

"ये विश्वकर्मा के साथ किस लड़की का नाम लिखा हुआ है..."

"इसको बारे मे मत पुछो भाया...जोश आ जाता है..."

"ठीक है,मैं चलता हूँ...और ध्यान से अपने दोस्त को बोल देना..."


.
उस लड़के से मिलने के बाद मैं पूरे दिन बीच-बीच मे अपना मोबाइल चेक करता रहा कि कही कोई मेस्सेज तो नही आया है...लेकिन मेरी इस मेहनत का रिज़ल्ट ज़ीरो निकला...ना ही किसी का कॉल आया और ना ही कोई मेस्सेज....
"पक्का भूल गया होगा उल्लू..."

फ्रस्टेशन मे मैने कहा और बाल्कनी के पास आकर एक सिगरेट जलाई....सिगरेट के कश मारते हुए मैने एक नज़र निशा के घर की तरफ डाली....पूरे कॉलोनी मे निशा का घर अलग से ही दिख रहा था, उसके घर का स्ट्रक्चर ही कॉलोनी के दूसरे फ्लॅट से अलग और बड़ा था...जिस वजह से यदि कोई उस तरफ से गुज़रे तो उसकी नज़र निशा के आलीशान घर पर पड़ ही जाती थी.खानदानी रहीस होना भी बहुत सुकून देता है...ना तो कोई टेन्षन और ना ही कोई डिप्रेशन की मेरा फ्यूचर क्या होगा...मैने अपनी ज़िंदगी के चार साल इसी डिप्रेशन मे गुज़ारे थे कि इंजिनियरिंग कंप्लीट होने के बाद मैं क्या करूँगा....लेकिन निशा के साथ ऐसा नही था वो तो अपने माँ-बाप की पूरी जयदाद की अकेली वारिस थी....
.
"अबे तू कब आया..."वरुण ने रूम के अंदर आते ही पुछा...

"बस अभी 2-3 घंटे हुए होंगे आए हुए "उसके हाथ मे पॅक किए हुए खाने की तरफ देखते हुए मैने कहा....

"काम हुआ..."

"1 % हुआ ,99 % बाकी है..."

"मतलब..."

"मतलब कि ये वही विश्वकर्मा है,जिसकी तालश मुझे थी...लेकिन वो अब ये शहर छोड़ कर जा चुका है..."
"तो अब आगे क्या..."

"एक लड़के के पास नंबर है विश्वकर्मा का...उसी के मेस्सेज का इंतज़ार कर रहा हूँ..."

"मैं क्या बोलता हूँ..."खाने की पॅकेट्स को खोलते हुए अरुण ने कहा"पहले खाना खा लेते है..."

"और खाना खाने के बाद सो जाते है और सोने के बाद सब कुच्छ भूल जाते है...है ना ,साले भुक्कड़ "

"अबे मेरी पूरी बात तो सुन...पहले खाना खाइंग देन गोयिंग टू उस चूतिया के रूम देन माँगिंग उससे विश्वकर्मा का मोबाइल नंबर देन कॉलिंग विश्वकर्मा को और अट दा एंड कॉलिंग विश्वकर्मा आंड आस्किंग अबाउट निशा...क्या बोलता है अरमान ,सॉलिड प्लान है ना..."

"खाने मे क्या है..."एक चेयर खीचकर अरुण के बगल मे बैठते हुए मैने पुछा....
.
खाना खाने के बाद हम तीनो वरुण की कार मे सवार होकर ,विश्वकर्मा के अड्रेस की तरफ बढ़े , उसके रूम का दरवाज़ा बंद था और जब मैने दरवाज़ा खटखटाया तो एक दूसरे लड़के ने दरवाज़ा खोला.....
"यस..."
"विश्वकर्मा का नंबर है ना आपके पास..."
"हां..लेकिन आप कौन..."
"मैं उसके कॉलेज का दोस्त हूँ...मुझे उसका नंबर देना तो..."

उस लड़के से विश्वकर्मा का नंबर लेने के बाद मैने उसे थॅंक्स कहा और वापस वरुण की कार मे बैठकर अपने फ्लॅट की तरफ चल पड़े....मुझसे अब एक पल का भी इंतज़ार नही हो रहा था इसलिए मैने कार मे बैठे-बैठे ही विश्वकर्मा को कॉल किया...
.
"हेलो..."

"हेलो..विश्वकर्मा जी बोल रहे है क्या..."

"यस...आप कौन..."दूसरी तरफ से आवाज़ आई...

"आपसे कुच्छ पुछना था..."
"क्या..."
"निशा के बारे मे..."
निशा के बारे मे सुनकर दूसरी तरफ कुच्छ देर तक खामोशी छाइ रही...
"हू आर यू..."
"आक्च्युयली मैं आपसे आगे बात करूँ उसके पहले मैं कुच्छ पॉइंट क्लियर कर देना चाहता हूँ...जैसे कि मेरी निशा से शादी होने वाली है लेकिन मुझे वो पसंद नही और मैं कुच्छ ऐसा करना चाहता हूँ,जिससे कि निशा से मेरी शादी टूट जाए....अब आप समझ ही गये होंगे कि मैं किस बारे मे बात कर रहा हूँ..."

कुच्छ देर तक विश्वकर्मा फिर शांत हो गया और मैं इधर हेलो...हेलो की धुन चिल्लाता रहा....

"हां मैं सुन रहा हूँ..."
"तो बताओ फिर..."
"क्या बताऊ..."
"अपने और निशा के बारे मे..."
"ह्म्म...एक नंबर की रापचिक आइटम है वो बीड़ू...शादी कर ले उससे मस्त चोदने मे मज़ा आएगा..."
"मेरा सवाल कुच्छ दूसरा था..."थोड़ा वजन देकर मैने कहा...
"अब क्या बताऊ यार तेरे को,तू उसका होने वाला हज़्बेंड है...तू मत ही पुच्छ तो बेटर रहेगा..."
"मैं चाहता हूँ कि उससे मेरी शादी ना हो...तो प्लीज़ कोई ऐसी बात बताओ,जिसको सुनने के बाद मेरा काम हो जाए..."
..
विश्वकर्मा फिर कुच्छ देर तक चुप रहा और मैं एक बार फिर कुच्छ देर तक हेलो...हेलो का राग गाता रहा....
"सब बता दूं..."
"हां ..."
"तो सुनो मेरे लाल...जिससे तेरी शादी होने वाली है ना निशा...उसको अपुन ने सेट किया था और उसकी सील कॉलेज के बाथरूम मे तोड़ी थी...साली बहुत नखरे करती थी..मुझपर हुकुम चलाती थी....कुच्छ महीनो तक मुझे जब भी मौका मिलता तो मैं उसे रगड़ता...लेकिन फिर बाद मे वो नाटक करने लगी...अकेले मे मैं जब भी उसके दूध और चूत सहलाता तो गुस्सा हो जाती...और एक लड़के का नाम लिया करती कि वो उसे बहुत अच्छा लगता है..."
"किस लड़के का..."
"मालूम नही..कुच्छ अरखान..अर्जन करके नाम था उस लौन्डे का..."
"अरमान...."मैने उसकी याददाश्त को सही करने के लिए अपना नाम बताया...

"हां...हां यही नाम था उस लड़के का जिसका ज़िकरा निशा हमेशा करती थी...लेकिन तेरे को उसके बारे मे कैसे मालूम..."
"ठीक वैसे ही जैसे तेरे बारे मे मालूम...आगे बता..."
"तो आगे ये हुआ कि,साली वो कुच्छ-कुच्छ पागल होने लगी...बिस्तर पर अचानक ही वो अरमान नाम लेकर मुझे पुकारती और फिर एक दिन उससे मेरा ब्रेक अप हो गया..."
"उसके बाद..."
"उसके बाद क्या...मैने उसे पूरे कॉलेज मे बदनाम कर दिया कि वो सबसे चुदवाती रहती है...मैने ये तक कॉलेज मे बोला कि उसको तो उसका बाप भी चोदता है....बोले तो एक दम उस साली की गान्ड फाड़ दी..."
"उसके बाद..."मैने कहा...
ये सब सुनते हुए मेरे बॉडी का टेंपरेचर बढ़ने लगा था और यदि विश्वकर्मा इस वक़्त मेरे सामने होता तो वरुण की पूरी कार उसके पिछवाड़े मे घुसा देता.....

"उसके बाद क्या...साली पागल हो गयी और जब तक मैं कॉलेज मे रहा उसकी बराबर लेता रहा...आलम तो ये था मेरे लाल कि पूरा कॉलेज उसे रंडी तक कहने लगा था...."

"और तूने कुच्छ नही किया..."

"ना...मैं क्यूँ कुच्छ करूँगा...मुझे तो ये सब देखकर बहुत मज़ा आता था....मेरा मन करता था कि साली को सबके सामने नंगा करके बेल्ट से खूब मारू और फिर उसके मुँह मे मूठ मार दूं....वैसे तेरा नाम क्या है..."

"अरमान...और सुन बे बीसी यदि दोबारा ये सब किसी और से कहा तो तेरे बॉडी मे जहाँ-जहाँ छेद दिखेगा वही चोदुन्गा...फोन रख म्सी ,"
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कॉल डिसकनेक्ट करने के बाद मैं थोड़ा उदास हो गया था क्यूंकी एक तरफ निशा झूठी साबित हो गयी थी तो वही दूसरी तरफ उसने इतना कुच्छ झेला...मुझे यकीन नही हो रहा था....एक तरफ मैं उसपर बहुत गुस्सा था तो दूसरी तरफ उसके अतीत के बारे मे जानकार दिल छल्ली हुआ जा रहा था....एक तरफ दिल निशा से ये पुछने के लिए बेचैन था कि उसने मुझसे झूठ क्यूँ बोला तो दूसरी तरफ उसके ज़ख़्मो को फिर से हरा करने का डर मुझे ऐसा करने से रोक रहा था....
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"चलता है यार,रिलॅक्स...बी आ मॅन"अरुण ने कहा....

"रिलॅक्स और इतना सब कुच्छ जानने के बाद..."

"मेरे पास एक आइडिया है...जा मूठ मार के आ..."

"अब यदि तूने कुच्छ और कहा तो मैं तुझे मार दूँगा..."

"मैने क्या किया "

कुच्छ देर तक हम तीनो मे से कोई कुच्छ नही बोला...अरुण और वरुण अंदर बैठकर एक-दूसरे के बारे मे एक-दूसरे से पुछते रहे और मैं सिगरेट का पॅकेट उठाकर बाल्कनी पर खड़ा हो गया और निशा के घर की तरफ देखने लगा....इस वक़्त दिल और सिगरेट दोनो साथ-साथ जल रहे थे....
.
"मेरे पास एक आइडिया है,अरमान.... अतीत के समुंदर मे चलकर मज़े करते है...बोले तो, कहानी आगे बढ़ा ...इस तरह तेरा माइंड भी रिलॅक्स हो जाएगा "

"मेरे पास एक आइडिया है,अरमान.... अतीत के समुंदर मे चलकर मज़े करते है...बोले तो, कहानी आगे बढ़ा...इस तरह तेरा माइंड भी रिलॅक्स हो जाएगा "
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"सर जॉब कंप्लीटेड..."टर्निंग शॉप के फ़ौजी की तरफ देखकर मैने कहा...
"क्या..."
"सर जॉब कंप्लीटेड..."मैं एक बार और चीखा...
"नेटवर्क खराब है, पास आकर बोलो...ओवर..."
"ये साला खुद को आर्मी का सिपाही समझता है..."टर्निंग शॉप वाले बूढ़े को गाली बकते हुए मैने अरुण को उसके पास जाने के लिए कहा....
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"सर हमारा एक्सपेरिमेंट कंप्लीट हो गया..."उसके पास जाकर अरुण बोला और जॉब उसके सामने वाली टेबल पर रख दिया....

टर्निंग शॉप वाले फ़ौजी की उम्र और उसके आँख मे नंबर वाला चश्मा देखकर मैने सोचा था की थोड़ी-बहुत माइनर मिस्टेक वो नही देख पाएगा...लेकिन जब अरुण ने जॉब उसको दिखाया तो वो एक दम ताव से उठा...
"यहाँ का मोर्चा संभाले रखना मैं गन लेकर आता हूँ..."
"तेरी *** की चूत, तेरी *** का भोसड़ा"साइलेंट मोड मे अरुण ने अपना मुँह चलाया....
.
कुच्छ देर तक वो फ़ौजी ना जाने अंदर क्या ढूंढता रहा और फिर जब वापस आया तो उसके हाथ मे एक स्केल थी...जिसमे सेंटिमेटेर के काई यूनिट घिस चुके थे...उसके स्केल की जर्जर हालत देखकर मेरे खास दोस्त अरुण ने अपनी नयी-नवेली स्केल उसकी तरफ बढ़ाई...जिससे वो फ़ौजी भड़क गया...
"दुश्मनो और उनके हथियारो पर कभी यकीन नही करना चाहिए...दो कदम पीछे हट..."

"तेरी *** की चूत, तेरी *** का भोसड़ा..."अरुण एक बार फिर साइलेंट मोड मे आ गया....
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मेरा अनुमान था कि फ़ौजी हमे गुड वर्क कहकर यहाँ से जाने देगा,लेकिन हमारे जॉब की डाइयामीटर को अपनी जर्जर स्केल से नापते हुए वो ना जाने कहाँ खो गया..वो कभी बाहर जाकर डाइयामीटर चेक करता तो कभी वहाँ लगे बल्ब की रोशनी मे चेक करता....और 15-20 मिनिट्स की कशमकश के बाद उसने अरुण को घूरा...
"डाइयामीटर 1 मिल्लीमीटर ज़्यादा है.."
"इतना तो चलता है सर..."
"जंग के मैदान मे 1 मिल्लीमीटर से निशाने का चूक जाना मतलब जंग हार जाना..."

"समझ गया सर "बोलते हुए अरुण ने उसके हाथ से जॉब लिया और मेरी तरफ आया,...
.
जैसे-जैसे दिन बीत रहे थे फर्स्ट एअर के स्टूडेंट्स की रॅगिंग भी परवान चढ़ रही थी...कुच्छ सीनियर गार्डन मे तो कुच्छ रिसेस के वक़्त क्लास मे....कुच्छ कॅंटीन मे तो कुच्छ सिटी बस मे....मुझे इन सब चूतिया कामो मे कोई इंटेरेस्ट नही था,इसलिए फिलहाल तो मैं इस चूतियापे से दूर था...लेकिन मेरे खास दोस्त अरुण की राय इस मामले मे कुच्छ अलग ही थी और ख़तरनाक भी...अलग इसलिए क्यूंकी वो हॉस्टिल के लड़को से ना भीड़कर सिटी के स्टूडेंट्स की रॅगिंग लेता था और ख़तरनाक इसलिए क्यूंकी ये एक नये कॉंबॅट की नीव रख रहा था...अरुण जानता था कि यदि मुझे उसकी इस हरकत के बारे मे मालूम चलेगा तो मैं उसे बहुत पेलुँगा इसीलिए काई दिन तक तो अरुण की इस हरकत का मुझे कोई खबर नही थी और फिर एक दिन....
"अरमान...लोचा हो गया है,चल जल्दी कॅंटीन मे..."
"अभी नही..."बीएफ को एग्ज़िट मारते हुए मैने कहा,ताकि जब वो मेरे पास आए तो ये ना जान पाए कि मैं बाथरूम को स्पर्म डोनेट करने की तैयारी मे लगा था 

"अबे मज़ाक का टाइम नही है...लड़ाई हो गयी फर्स्ट एअर के एक लड़के से..."

"तो जाना पेल दे उसे..."

"वो सिटी का है और कहता है कि गौतम को वो जानता है..."
"चल..."
हॉस्टिल से बाहर कॅंटीन की तरफ आते हुए मैने अरुण को गालियाँ दी की उसने इन सबकी शुरुआत ही क्यूँ की...
"मैने सिर्फ़ कॅंटीन मे उसे देखकर उसका नाम पुछा तो साले ने अकड़ कर मुझे आँख दिखाई..."
"फिर..."
"फिर मैने साले को एक झापड़ पेल दिया...तो रिप्लाइ मे उसने मुझे ज़ोर से धक्का दिया..."
"और धक्का खाने के बाद तू यहाँ मेरे पास आ गया, क्या सोच कर आया था कि सरदार बहुत खुश होगा "
"अबे 7-8 लौन्डे खड़े हो गये उस वक़्त उसके साथ..."

"और ये तू मुझे अभी बता रहा है बक्चोद...पहले बताया होता तो और लौन्डो को साथ मे ले आता..."बोलते हुए मैने अरुण के साथ कॅंटीन मे एंट्री मारी....
.
वहाँ बैठे स्टूडेंट्स को देखकर मैं तुरंत समझ गया कि वो 7-8 लड़के कौन है...वो सब एक ही टेबल पर बैठे थे और अरुण की तरफ देखकर हंस रहे थे....

"अबे ये तुझे देख कर हँस रहे है क्या..."मैने अरुण से पुछा...
"हां..."
इसके बाद जब उन लड़को ने अरुण को हाथ से गंदा इशारा किया...तो अरुण उनकी तरफ जाने लगा....
"अरुण तू कुच्छ मत करना..."
"*** चोद दूँगा सालो की..."
"फिर मैं जाऊ... आख़िरी बार बोल रहा हूँ ,शांत ही रहना..."
.
वो लड़के मुझे देखकर भी बिंदास बैठे हँस रहे थे,..मैने बगल वाली टेबल से एक चेयर खिसकाई और उन्ही के पास बैठ गया....
"बहुत उचक रहे हो बे..."
"अब तू हमारी रॅगिंग लेने आया है..."
"रॅगिंग नही मैं तो तुम लोगो से रिश्ता बनाने आया हूँ...आओ कौन बनेगा करोड़पती खेलते है..तो पहला सवाल ये रहा आपके थोबडे के सामने...
तुम सब गौतम के दम पर उचक रहे हो या फिर वरुण के..."
"खुद के दम पर..."उनमे से एक ने जवाब दिया...
"ये समझ लो कि अभी जो मैने क्वेस्चन पुछा वो 1 करोड़ का है..तो प्लीज़ अपने उस आन्सर को एक्सप्लेन करोगे..."
"आक्च्युयली बात ये है बेटे कि ठीक एक साल पहले एक अरमान नाम के लड़के ने फोर्त एअर के कयि सीनियर्स को ठोका था ,तो हम लोग उसी से इन्स्पाइयर्ड होकर ये सब कर रहे है..हम 7-8 लड़को का ग्रूप ने डिसाइड किया है कि यदि कोई भी सीनियर हमारी रॅगिंग लेने आएगा तो हम उसकी ही रॅगिंग लेंगे....साथ मे गौतम का थोड़ा सपोर्ट भी है ,इसलिए सिटी के सीनियर्स हमे कुच्छ नही बोलते..लेकिन हॉस्टिल के सीनियर्स की गान्ड मे कीड़ा मचल रहा है,जिसे हम मार कर रहेंगे..."

"सही जवाब...अगला सवाल आपके थोबडे के सामने ये रहा....क्या तुम लोग अरमान को जानते हो या फिर उसे कही देखा है..."
"नही.."इसका भी जवाब उसी लड़के ने दिया जिसने मेरे पहले सवाल का जवाब दिया था"हम लोगो को आए हुए दो-तीन दिन ही हुए है...इसलिए हम उसे नही जानते..."

"अरुण....इधर आकर बता तो तुझे धक्का किसने दिया था..."
.
जिस टेबल पर मैं उन 7-8 लड़को के साथ बैठा था ,वहाँ आकर अरुण ने एक लड़के की तरफ इशारा किया और मैने अरुण को कहा कि वो जोरदार मुक्का उसके चेहरे मे मारे....

"अबे ओये,बाप का राज है क्या...निकल ले वरना तुझे भी धक्के मार के निकाल दूँगा..."उनमे से एक खड़ा होते हुए बोला...
"पहली बात तो ये बेटा कि ,दोबारा मुझे कभी बेटा मत बोलना."ताड़ से एक झापड़ मारते हुए मैने उसकी कॉलर पकड़ ली"दूसरी बात ये की जिससे तुम इनस्पाइर होकर वो सब कर रहे हो...वो मैं ही हूँ...."

मैं अरमान हूँ ये जानकार उन लड़को का सारा जोश ठंडा पड़ गया और फिर अरुण को सॉरी बोलकर वो वहाँ से खिसक लिए....
.
कॅंटीन मे ये सब करते वक़्त मुझे ये अंदाज़ा नही था कि मेरी ये हरकत इतना बड़ा रूप लेने वाली है...लेकिन उसके दूसरे दिन जब दंमो रानी क्लास मे खुद की तारीफ कर रही थी तो कॉलेज के पीयान ने आकर मेरा और अरुण का नाम लिया और कहा कि हम दोनो को प्रिन्सिपल ने बुलाया है....प्रिन्सिपल का बुलावा मिलने के तुरंत बाद ही मैं समझ गया कि हो ना हो ये कल कॅंटीन वाली हरकत का नतीजा है....और यदि हम दोनो रॅगिंग मे फसे तो फिर प्रीसिपल हमारा सेमेस्टर बॅक लगा सकता था,जैसा कि उसने पिछले कयि साले से कयि लड़को के साथ किया था.....
.
सेमेस्टर बॅक...ये एक ऐसा शब्द था जिसने उस वक़्त हम दोनो को अपने डर के साए मे जकड रखा था, दिल पूरी तरह दहल रहा था कि यदि सेमेस्टर बॅक लगा तो मैं क्या करूँगा....घरवाले तो जान ही ले लेंगे, और अरुण का इनस्पेक्टर बाप तो हम दोनो को गोली ही मार देगा....यहाँ एग्ज़ॅम मे एक सब्जेक्ट पास करने मे पसीने छूट रहे है और ये प्रिन्सिपल डाइरेक्ट सेमेस्टर बॅक लगा रहा है.... घर पर कितनी बदनामी होगी, मेरे फर्स्ट सेमेस्टर के रिज़ल्ट के बाद जिन लोगो के मुँह खुल चुके थे वो और भी खुल जाएँगे...

दिल और दिमाग़ की इस अधेड़बुन मे फसे हुए मैं और अरुण प्रिन्सिपल ऑफीस के अंदर दाखिल हुए...और जैसा कि मैने क्लास से निकलते वक़्त सोचा था,ठीक वैसा ही हुआ....दो-तीन लड़के प्रिन्सिपल सर के सामने बैठे हुए थे.....
"जैल जाने की तैयारी कर लो तुम दोनो...क्यूंकी इन्होने तुम दोनो के खिलाफ एफ.आइ.आर. कर दी है..."

"व्हाट दा हेल..."मैं अंदर ही अंदर चीखा ,चिल्लाया....क्यूंकी वहाँ बैठे दोनो लड़को मे से एक के सर मे तो एक के हाथ मे पट्टी बँधी हुई थी....

"दोनो ने बहुत लंबे से फसाया है...अब तो पक्का घरवालो को खबर होगी..."
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अभी प्रिन्सिपल के कॅबिन मे खड़े ही थे कि दो पोलिसेवाले अंदर आए और हम सबको पोलीस स्टेशन चलने के लिए कहा.....

हमारी हिन्दी फ़िल्मो मे अक्सर ये डाइलॉग सुनने को मिलता है कि "हमारे खानदान मे आज तक किसी ने पोलीस स्टेशन का मुँह तक नही देखा और तू वहाँ बंद था..."

मेरे साथ भी कुच्छ-कुच्छ ऐसा ही हो रहा था...मेरे खानदान मे कितनो ने पोलीस स्टेशन देखा है...देखा भी है या नही, ये तो मैं जानता...लेकिन मैं पहली बार किसी पोलीस स्टेशन को अंदर से देखने वाला था...जब मैं और अरुण ,उन दोनो फर्स्ट एअर के लौन्डो के साथ पोलीस की गाड़ी मे बैठे थे,तब मुझे यही डर सता रहा था कि कही हमारी पिटाई ना हो...पोलीस के डंडे का ख़याल आते ही मैं अंदर तक कांप गया...और ये एक ऐसी सिचुयेशन थी जिसकी मैने कभी कल्पना तक नही की थी...जब पोलीस की गाड़ी कॅंपस से निकल रही थी तो सब हमे बड़े ध्यान से देख रहे थे...उस समय सबका मुझे यूँ देखना मुझे बहुत खराब लग रहा था, मैं बहुत ज़्यादा ही डिप्रेस्ड हो गया और मेरा दिल कर रहा था कि अपने हाथ से अपने चेहरे को छिपा लूँ...अरुण मेरे बगल मे शांत बैठा हुआ शायद यही सोच रहा था कि उसने ये सब शुरू ही क्यूँ किया....पोलीस की जीप जब कॉलेज के मेन गेट से बाहर निकली तो वही वरुण अपनी बाइक पर बैठा हुआ मुस्कुरा रहा था...जिसके जवाब मे फर्स्ट एअर के लड़को ने भी जब मुस्कुराया तो मुझे समझते देर नही लगी कि ये सब वरुण का किया धरा है...लेकिन सवाल ये नही था...सवाल ये था कि अब हम दोनो बचे कैसे...क्यूंकी यदि रॅगिंग जुर्म हम दोनो पर साबित हो गया तो हमारा करियर ही लगभग ख़त्म हो जाएगा....उपर से हमारी मिड्ल क्लास सोसाइटी के ताने....
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"तुम दोनो वहाँ बैठ जाओ..."टी.आइ. ने फर्स्ट एअर के दोनो लड़को को एक तरफ बैठने का इशारा किया और हम दोनो को खड़े रहने के लिए कहा....
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पोलीस स्टेशन के अंदर जाकर मैं हर एक जगह को बड़े ध्यान से देखने लगा और जो पोलीस स्टेशन फ़िल्मो मे दिखाया जाता है उससे कंपेर करने लगा...

"क्यूँ बे ज़्यादा गुंडागर्दी का भूत सवार है तुझपर"अरुण को बत्ती देते हुए टी.आइ. बोला" शर्ट का बटन बंद कर..."

टी.आइ. का बोलना ही था कि अरुण ने फटाफट अपने शर्ट के सारे बटन बंद कर लिए और मैं पोलीस स्टेशन के अंदर लॉक अप की तलास करने लगा....मैने देखना चाहता था कि उसके अंदर के कैदी कैसे रहते है...उनकी हालत क्या होती है....और जब मुझे वहाँ लॉकप नही दिखा तो मैने अपनी गर्दन टेढ़ी करके पोलीस स्टेशन के अंदर बनी एक गली की तरफ अपनी नज़र घुमाई....
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"सीधे खड़े रह..."अबकी बार टी.आइ. मुझे धमकाते हुए बोला और मैं एक दम से सीधा खड़ा हो गया....
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लगभग आधे घंटे तक हम दोनो को टी.आइ. ने यूँ ही खड़ा करवा के रखा...आधे घंटे बाद फर्स्ट एअर के कुच्छ स्टूडेंट्स और एक टाइपिंग करने वाला एक बंदा अपना समान लेकर अंदर आया....टाइपिंग करने वाले को टी.आइ. ने अपने से थोड़ी दूर पर रखी एक टेबल पर बैठने के लिए कहा और फर्स्ट एअर के जो स्टूडेंट्स अभी आए थे उन्हे टी.आइ. ने अपने पास खड़ा करवाया....
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"तुम तीनो उस वक़्त कॅंटीन मे ही थे,जब ये सब हुआ..."
"जी सर..."
"नेम बोल..."
"राजश्री पाटीदार..."एक ने जवाब दिया...
उस लड़के का नेम राजश्री है,ये सुनकर टी.आइ. ने उसे घूरा और फिर टाइपिंग वाले को राजश्री का नेम और स्टेट्मेंट लिखने के लिए बोला....
"क्या हुआ था कल कॅंटीन मे..."
राजश्री ने एक बार अपने दोनो घायल दोस्तो को देखा और फिर टी.आइ. की तरफ देखकर बोला"सर हम कुच्छ दोस्त कॅंटीन मे बैठकर चाय पी रहे थे उसके बाद हमने समोसा का ऑर्डर दिया तो लखन ने कहा कि वो डोसा खाएगा...लेकिन रिसेस का टाइम ख़त्म होने वाला था इसलिए मैने कहा कि डोसा मत खा...उसमे टाइम लग जाएगा...लेकिन लखन नही माना और डोसा खाकर ही दम लिया और उसके बाद अरुण-अरमान वहाँ आए और उन्होने भी डोसा का ऑर्डर किया...और फिर हम सब क्लास मे आ गये..."

"ये हुआ था कॅंटीन मे..."टी.आइ. ने आवाज़ उची करके पुछा...जिससे राजश्री की सिट्टी-पिटी गुम हो गयी और उसने डरते हुए हां मे जवाब दिया...
.
राजश्री पाटीदार का स्टेट्मेंट टाइप करते हुए टाइपिंग वाला हँसने लगा और स्टेट्मेंट बनाकर टी.आइ. को दे दिया....जिसके बाद टी.आइ. ने दूसरे को बुलाया...
"सर,मैं लखन...मैं भी कल वही था सिर..और जैसा कि राजश्री ने बताया सब वहाँ बैठकर समोसा खा रहे थे...लेकिन मुझे समोसा नही पसंद था इसलिए मैने डोसा का ऑर्डर दिया और जल्दी-जल्दी से खाकर क्लास की तरफ भागा ,क्लास लग चुकी थी...लेकिन मैं फिर भी अंदर गया और लब अटेंड करने के बाद 5 बजे घर चला गया था..."
टाइपिंग वाला लखन का भी स्टेट्मेंट सुनकर हँसने लगा..
"फिर इन दोनो को किसने मारा..."टी.आइ. ने पीछे की तरफ बैठे फर्स्ट एअर के उन दोनो लड़को की तरफ इशारा करके पुछा...जिन्होने हम पर रॅगिंग का केस ठोका था....

"इन दोनो को कहीं देखा है..."अपने दिमाग़ पर ज़ोर डालते हुए राजश्री को अचानक कुच्छ याद आया और वो बोला"इन दोनो का कल आक्सिडेंट हो गया था कॉलेज के बाहर...सर इन दोनो ने चोरी की बाइक भी खरीदी है और फुल स्पीड से चलाते है...इनका कोई भरोसा नही कि ये कब ,किसको टक्कर मार दे..."
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12-14-2018, 02:30 AM,
#57
RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
इतना सुनते ही टी.आइ. खुद पर काबू नही कर पाया और तीसरे लड़के का स्टेट्मेंट लिए बिना ही उन तीनो को भगा दिया और बाद मे हम दोनो को भी जाने के लिए कहा...
"ये चमत्कार तूने किया है क्या बे.."मुझे एक मुक्का मारते हुए अरुण ने पुछा...

"ये चमत्कार किसी और का है..."मैने डबल पवर के साथ मुक्का मारते हुए कहा...

"किसका..."उसने इस बार ट्रिपल पवर के साथ मुक्का मारा...

"वो तो कॉलेज जाकर ही पता चलेगा.."बोलते हुए मैने उसे एक लात मारी और खुशी के मारे पैदल ही कॉलेज की तरफ बढ़ गये...जबकि कॉलेज 5 कीलोमेटेर डोर था 


5 किलोमेटेर पैदल चलने के कारण हम दोनो पसीने से तर-बतर हो गये थे और जब पसीने से नहाए हुए कॉलेज पहुँचे तो लंच का बिगुल बज चुका था...
"क्या हुआ बे..."क्लास के अंदर हमारे घुसते ही सौरभ ने पुछा....
"टी.आइ. की फाड़ कर आ रहा हू, साले ने मुझे सॉरी तक बोला..."ताव से बोलते हुए अरुण ,सौरभ के साइड मे बैठ गया....
"मालूम नही यार...कुच्छ चमत्कार टाइप का हुआ पोलीस स्टेशन मे..."दूसरे साइड मे बैठकर मैं बोला"उसके दोस्तो ने ऐन वक़्त पर अपना बयान बदल दिया और हम दोनो को टी.आइ. ने जाने के लिए कह दिया...
"और उन लड़को का क्या हुआ,जिन्होने तुझपर केस किया था..."
"दोनो को टी.आइ. ने कहा कि ये कैसे गवाह लाए थे उन्होने...जो स्टेट्मेंट देने के वक़्त पलट गये...और फिर उन दोनो को भी टी.आइ. ने पोलीस स्टेशन से चलता किया...."
"इस बार तो बच गये बेटा अगली बार ज़रा ध्यान से..."
"मुझे नही इस बक्चोद को बोल..."अरुण को एक मुक्का मारते हुए मैं बोला"इसी को ज़्यादा जोश है रॅगिंग लेने का...."
"अबे वो दोनो के क्या मैने हाथ-पैर तोड़े थे,जो मुझे बोल रहा है....सालो ने फुल प्लॅनिंग से हमे फसाया था..."
"बात तो सही है, लेकिन फिर उसके दोस्त ही उसके खिलाफ क्यूँ हो गये..."
"मुझसे पुछ तो ऐसे रहा है,जैसे मैं कही का अंतर्यामी हूँ "
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आज सीसी की लॅब थी बोले तो विभा मॅम की और जब हम सीसी की लॅब मे पहुँचे तो विभा वहाँ पहले से मौजूद थी और साथ मे एक असिस्टेंट भी था.....
"फाइल कंप्लीट है..."
"नही..."सबसे पहले अरुण ने अपना हाथ खड़ा किया....
"गुड, तुम लॅब से बाहर जा सकते हो...और किसकी-किसकी फाइल इनकंप्लीट है..."
"मॅम, मेरी भी इनकंप्लीट है..."अब मैने हाथ उपर उठाया....
"तुम भी बाहर जाओ...और किस-किस ने काम पूरा नही किया है..."
विभा मॅम का बोलना था कि एक के बाद एक 6-7 लड़को ने अपने हाथ खड़े कर दिए....तो विभा मॅम गुस्से से सुलग उठी...
"तुम सब अपना नाम एक पेपर मे लिखो और प्रिन्सिपल सर से इसपर साइन करा कर लाओ...."
"ये क्या मॅम...ये सब तो स्कूल मे होता है..."
"मैं कुच्छ नही जानती, जैसा बोला है...वैसा करो..."उसके बाद विभा ने अपना गोरा बदन लड़कियो की तरफ घुमाकर उनसे पुछा"गर्ल्स, तुम मे से किसकी फाइल इनकंप्लीट है..."

और जब लड़कियो मे से किसी ने अपना हाथ खड़ा नही किया तो विभा बोली"गुड...ये होती है स्पिरिट..."
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"मॅम, आज वैसे ही एक केस हो चुका है....यदि प्रिन्सिपल ने मुझे दोबारा अपने कॅबिन मे देख लिया तो मेरी ऐसी-तैसी कर देगा...."

"सो व्हाट...तुम्हे ये सब पहले सोचना चाहिए था..."
जिनकी फाइल कंप्लीट थी...वो सब एक्सपेरिमेंट करने के लिए वहाँ से आगे बढ़ गये और इस वक़्त हम 6-7 लड़के ही वहाँ पर खड़े होकर विभा से मिन्नते कर रहे थे कि वो हमारा नाम प्रिन्सिपल तक ना भेजे और यदि भेजे भी तो मेरा और अरुण का नाम उसमे से मिटवा दे.....
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"तुमने फाइल कंप्लीट क्यूँ नही की ,रीज़न बताओ..."
"मॅम ,मेरी फाइल कंप्लीट थी और मैने अरुण को दी थी और इसने मेरी फाइल कल रात सौरभ को दी और सौरभ ने अपने रूम पार्ट्नर को....और आज सुबह मेरी फाइल नही मिली "

"सॉरी...मैं तुम्हारी कोई हेल्प नही कर सकती..."

"तेरी *** की चूत ,साली रंडी,कुतिया...छिनार..."उसकी आँखो मे देखते हुए मैने आँखो से ही कह दिया और वहाँ खड़े सभी लड़को की तरफ देखकर उची आवाज़ मे कहा"चलो रास्ते मे मैं तुम सबको आ वॉक टू दा जंगल....की कहानी सुनाउन्गा...."
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साली बहुत हवा मे उड़ रही थी...मैं उसे बोल-बोल कर थक चुका था कि यदि प्रिन्सिपल आज मुझे फिर अपनी कॅबिन मे देखेगा तो मेरा भजिया तल देगा...लेकिन साली विभा थी कि टीचर बनने की अकड़ मे उसे कुच्छ समझ ही नही आ रहा था,इसीलिए मैने ए वॉक टू दा जंगल की अपनी और विभा की कहानी दोस्तो को सुनाने की सोच ली......

"अरमान...." आवाज़ देकर विभा ने हमे वापस बुलाया और लॅब की नेक्स्ट क्लास तक फाइल कंप्लीट करने को बोलकर हमे एक्सपेरिमेंट करने दिया.....

उस दिन सीसी की लॅब मे विभा मुझसे कुच्छ बात करना चाहती थी...लेकिन वहाँ बहुत से लड़को के होने के कारण वो चुप ही रही....

"अब आ गयी ना औकात पर..."लास्ट मे एक्सपेरिमेंट की रीडिंग चेक करते वक़्त मैने धीमे से कहा"तुम्हे कभी नही भूलना चाहिए कि मैं अरमान हूँ और जो ये बात भूल जाते है मैं उन पर आटम बॉम्ब गिरा देता हूँ...."
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सीसी की लब ख़त्म होने के बाद अब मेरा सबसे पहला काम ये था कि पोलीस स्टेशन मे झूठा बयान देने वाले उन तीन लड़को को पकड़ कर असलियत मालूम करू...मैने जब अरुण को साथ चलने के लिए कहा तो वो बोला कि उसे अब इस सबसे कोई मतलब नही है और वो सौरभ के साथ सीधे हॉस्टिल की तरफ निकल गया और मैं ,जहाँ फर्स्ट एअर की क्लास लगती थी वहाँ गया.....
"इधर आओ मित्रो..."वो तीनो जब क्लास से निकले तो मैने उन्हे आवाज़ दी...मुझे अपनी क्लास के बाहर देखकर तीनो जहाँ खड़े थे,वही जम गये....
"डरो मत,इधर आओ..."
लेकिन नतीजा पहले वाला ही रहा...वो तीनो अब भी वही जमे हुए थे...
"अबे इधर आओ,वरना ठोक दूँगा..."
"व...वो..वो सब हमने सीडार के कहने पर किया..."उन तीनो मे से एक बोला"जब हमे कॅंटीन मे मालूम चला कि आप ही अरमान हो तो हमारी फट गयी थी..."
"ठीक है तुम तीनो जाओ...मैं सीडार से सारी कड़ी जान लूँगा..."
"गुड ईव्निंग सर.."
"गुड ईव्निंग...."
उन तीनो के जाने के बाद सीडार से बात करने का सोचकर मैने अपना मोबाइल जेब से निकाला ही था कि ,विभा का नंबर स्क्रीन पर दिखा....
"चल भाग साली..."उसकी कॉल को रिजेक्ट करते हुए मैने कहा और उसका नंबर रंडी के नाम से सेव कर लिया....
सीडार से बात करने पर पता चला कि वो जिस फ्लॅट मे रहता है वहाँ तीन फर्स्ट एअर के भी लड़के रहते है....और वो तीन लड़के हम पर केस ठोकने वाले फर्स्ट एअर के उन दो लौन्डो के दोस्त थे....कल रात जब सीडार उनके साथ था तभी उन दो लड़को मे से एक ने उन्हे फोन किया और पोलीस स्टेशन मे अपने पक्ष मे गवाही देने के लिए कहा...लेकिन जब ये बात सीडार को मालूम चली तो उसने सारा खेल ही बदल दिया ,सीडार ने उन तीनो लड़को से मेरे और अरुण के फेवर मे स्टेट्मेंट देने के लिए कहा और वैसा ही हुआ....जिसका नतीजा ये हुआ कि मैं और अरुण रॅगिंग के इस झमेले मे फसे बिना ही इस झमेले से निकल गये....
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"थॅंक्स एमटीएल भाई..."मैने कहा...
"कोई बात नही और अगली बार से कुच्छ करने से पहले अपने 1400 ग्राम का दिमाग़ यूज़ कर लेना....क्यूंकी मैं हर बार तुझे नही बचा पाउन्गा...समझा"
"सब समझ गया एमटीएल भाई..."
उसके बाद मैने कॉल डिसकनेक्ट की और हॉस्टिल की तरफ बढ़ा....अरुण ने पूरे हॉस्टिल मे ये किस्सा फैला दिया था कि टी.आइ. उसकी सोर्स से डर गया और उसे जाने दिया...उसके बाद हमने दोस्तो के रूम मे जाकर गप्पे लड़ाई ,खाना खाया और अपने-अपने रूम पर आ गये...रात के 11 बजे जब मैं सोने की तैयारी कर रहा था तो एक बार फिर विभा का कॉल आया, मैं जानता था कि वो किस बारे मे बात करना चाहती है...इसलिए पहले की तरह मैने उस बार भी उसकी कॉल डिसकनेक्ट कर दी....

विभा की कॉल मैने रिसीव तो की लेकिन अगले ही पल फिर से कॉल कट कर दी....विभा की कॉल डिसकनेक्ट करने के बाद विभा के बारे मे ही सोचते हुए एक सिगरेट निकाली और हॉस्टिल की छत पर आ गया...
पिछले कुच्छ दिनो की भयंकर घटनाओ,जैसे कॅंटीन मे मेरी और गौतम की बहस और फिर आज पोलीस स्टेशन मे हुए ड्रामे से मैं ये भूल चुका था कि कुच्छ हफ्ते पहले मैने सेकेंड सेमेस्टर का एग्ज़ॅम दिया था...जिसका रिज़ल्ट कुच्छ दिनो मे आने वाला था, लेकिन जैसे मैं उस वक़्त ये भूल चुका था...लेकिन मेरे कॉलेज मे पढ़ने वाले 2318 स्टूडेंट्स नही भूले थे और ना ही हमारी यूनिवर्सिटी और ना ही मेरे हॉस्टिल मे रहने वाले लफंगे स्टूडेंट्स.....इसलिए रिज़ल्ट अपने सही टाइम पर आया और मैं उपर हॉस्टिल की छत पर खड़ा सिगरेट पी रहा था.....
"कहाँ है..."सौरभ ने कॉल किया..
"हॉस्टिल की छत पर..."
"अबे रिज़ल्ट आ गया है..."
"एक मिनिट....आगे कुच्छ मत बोलना,वरना मर्डर कर दूँगा..."
रिज़ल्ट आ गया ये सुनते ही मेरे दिल की धड़कने एक दम से तेज़ हो गयी , मैं वही हॉस्टिल के छत के उपर खड़ा सोच-विचार करने लगा कि इस बार फैल होऊँगा या पास...मेरी आँखो के सामने वो वक़्त छाने लगा जब मैं एग्ज़ॅमहोल मे बैठकर एग्ज़ॅम दे रहा था....

"4 सब्जेक्ट मे तो निकल ही जाउन्गा..."मैने खुद से कहा और आधी जली सिगरेट को वही फेक दिया....

"4 मे नही 5 मे पक्का एसी है..."खुद को दिलासा देते हुए मैने एक बार फिर से कहा....

"अरमान,बी आ रियल मर्द...."तीसरी बार खुद को दिलासा देते हुए मैं नीचे आया और हॉस्टिल वॉर्डन के रूम मे गया ,जहाँ पीसी था और रिज़ल्ट प्रिनटाउट करवाने की सुविधा भी थी...

"रोल नंबर बताओ..."मुझे देखते ही वॉर्डन ने कहा और मैने धीरे-धीरे करके अपने रोल नंबर का एक-एक डिजिट बताया और कंट्रोल वॉर्डन के हाथ से अपने हाथ मे ले लिया....

रिज़ल्ट मेरे सामने कंप्यूटर स्क्रीन पर था और मैने डाइरेक्ट उस जगह नज़र घमायी,जहाँ पास या फैल लिखा रहता है.....
"पास..."खुशी से मैं उछल पड़ा और वहाँ खड़े बाकी लड़को से गले मिला...मेरा सीपीआइ इस बार 7.7 के करीब था, इसके बाद मैने अरुण और सौरभ का रिज़ल्ट देखा..पिछली बार की तरह अरुण का इस बार भी बॅक लगा था और बॅक लगाने का कारनामा सौरभ ने भी किया था....लेकिन उनके एसपीआइ लास्ट सेमिस्टर. की तरह इस बार भी मेरे से ज़्यादा था....

"साले पढ़ेंगे नही तो बॅक ही लगेगी ना "मैने ऐसा कहा जैसे पूरे सेमेस्टर मेरे हाथ से एक पल के लिए भी बुक ना छूटी हो....
"तेरा क्या हुआ बे..."प्रिनटाउट निकलवाने के बाद मैने वही खड़े एक लड़के से पुछा...
"3 सब्जेक्ट मे लुढ़क गया..."
"और तेरा..."मैने दूसरे से पुछा..
"दो मे बॅक..."
"देखो बेटा, पास होने के लिए पढ़ना पड़ता है...दिन भर फ़ेसबुक मे ऑनलाइन रहने से कुच्छ नही होता...अगली बार से मेहनत करना तभी पास हो पाओगे वरना सब सब्जेक्ट मे फैल....साले उल्लू..."
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जिन-जिन लड़को की बॅक लगी थी उन्हे सुनाकर मैं अपने रूम आया...वहाँ सौरभ और अरुण बार-बार अपने रिज़ल्ट इस उम्मीद मे देख रहे थे की शायद उनसे देखने मे ग़लती हो गयी हो....
"तुम दोनो फिर से फैल हो गये "उनके जले पर नमक छिड़कते हुए मैने कहा...
"बोसे ड्के तू खुश हो रहा है..."
"नही यार, मैं तो बहुत दुखी हूँ...चेहरे पर मत जा, मैं अंदर से बहुत ज़्यादा दुखी हूँ..."

"ये साले,म्सी मुझे ही हर बार क्यूँ लुढ़का देते है...इनकी *** को चोदु साले हरामी,बीसी..."अरुण चिल्लाते हुए बोला...
"इसी बात पर बाथरूम को स्पर्म डोनेट करके आ..."उदास होने का नाटक करते हुए मैं बोला....

"अरुण रुक, मैं भी चलता हूँ..."अपना मोबाइल एक तरफ गुस्से से फेक कर सौरभ बोला...

"तू किधर चला बे..."

"साले मेरी भी बॅक लगी है...मैं भी स्पर्म डोनेट करने जा रहा हूँ..."
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जिस दिन रिज़ल्ट आया,उस दिन हॉस्टिल कुच्छ शांत था, जिसके भी रूम मे जाओ सब अपने रिज़ल्ट का प्रिनटाउट हाथ मे लिए देख रहे थे कि उन्हे किस सब्जेक्ट मे कितना नंबर मिला है....कुच्छ अपने घर फोन लगाकर खुशी से अपना रिज़ल्ट बता रहे थे तो कुच्छ फोन पर ही गालियाँ खा रहे थे....मेरे रूम मे खुद इस वक़्त मायूसी का महॉल था,इसलिए खुशी के महॉल की तालश मे मैं पूरे हॉस्टिल मे घूमता रहा और रात के 1 बजे पूरे हॉस्टिल का चक्कर मार कर अपने रूम लौटा तो देखा की अरुण ,सौरभ गहरी नींद मे है.....रात के 1 बजे विभा की कॉल फिर आई...

"हां बोलो..."कॉल रिसीव करके मैं बोला...
"रिज़ल्ट आ गया तुम लोगो का, मालूम चला या नही..."
"रात के 1 बजकर 3 मिनिट पर तुमने ये बताने के लिए कॉल किया है..."
"नही...कुच्छ और भी बात करनी है..."
"तो डाइरेक्ट पॉइंट पर आने का, "
"देखो अरमान..."बोलकर वो चुप हो गयी...
"हां दिखाओ..."
"देखो अरमान, तुम मुझे ब्लॅकमेल नही कर सकते..."
"ये पाप मैने कब किया...मॅम"
"सीसी की लॅब मे तुम अपने दोस्तो से क्या बोल रहे थे कि उन्हे तुम आ वॉक टू दा जंगल ,की कहानी बताओगे..."
"हां,तो उसमे बुरा क्या है..."
"आज के बाद वो सब भूल जाओ और किसी से उस बारे मे कुच्छ मत कहना..."
"वो क्या है कि मैं निहायत ही सारीफ़ और सच बोलने वाला इंसान हूँ....मुझे झूठ बर्दाश्त नही होता,इसलिए यदि कोई मुझसे पुछेगा तो सच बताना ही पड़ेगा ना...विभा मॅम"
"रेस्पेक्ट युवर टीचर्स..."
"दिल पे मत ले, मुँह मे ले...आसानी होगी"
"तुम शायद भूल रहे हो कि ,तुम्हारा सीसी सब्जेक्ट का नंबर मेरे हाथ मे है..."

"और तू शायद भूल रही है कि तेरी इज़्ज़त मेरे एल पर है...जिसे मैं जब चाहू तब उतार सकता हूँ...इसलिए अपना रौब उसपर झड़ना ,जो उस काबिल लगे...मेरे सामने यदि दोबारा कभी ऐसी हरकत की तो मैं डाइरेक्ट फ़ेसबुक पर स्टेटस डाल दूँगा और उस दिन ग्राउंड पर जो हुआ उसकी पिक्स भी...जिसमे मैने वरुण और उसके दोस्तो की पेलाइ की और तू भी वहाँ मौज़ूद थी..."
"मैं कॉल रख रही हूँ..."

"तो रख दे, मैं कौन सा इंट्रेस्टेड हूँ तेरी जैसी लौंडिया से बात करने मे....तेरी जैसी को तो मैं चुसता भी नही..."और उसके बाद आदतन अनुसार मेरे मुँह से विभा के लिए बीसी निकल गया 
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मेरे ऐसे जवाब से विभा समझ गयी थी कि उसके कपड़े मेरे हाथ मे है,जिसे मैं जब चाहू उतार सकता हूँ....लेकिन फिलहाल मैं ये सब करने के मूड मे नही था,क्यूंकी अक्सर मैने न्यूज़ पेपर और लोगो के मुँह से सुना था कि,लड़कियो की इज़्ज़त करनी चाहिए....और वैसे भी मैं विभा के साथ कुच्छ दूसरा ही काम करने का मूड बना रहा था और यदि मैं ऐसी हरकत करता तो मेरा वो काम शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो जाता... दीपिका मॅम के मेरे लाइफ से चले जाने के बाद मुझे उसके बराबर ही हॉट लड़की चाहिए थी और मेरे फॅंटेसी ये भी थी कि वो एक टीचर हो..ऐसा नही था की विभा,दीपिका बाद एकलौती सेक्सी मेडम थी...कॉलेज मे और भी हॉट टीचर्स थी,लेकिन उनको पटाने मे टाइम लगता जो कि अपने पास नही था...इसलिए मैने विभा को चुना...,विभा के केस मे मेरे दो फ़ायदे भी थे ,पहला ये की उसकी चूत ,दीपिका से थोड़ी टाइट होगी ,ऐसा मैने अंदाज़ा लगाया और दूसरा ये कि वो मेरे कंट्रोल मे रहेगी....लेकिन ऐसा सोचते वक़्त मुझे ये नही मालूम था कि मेरी ये सोच,मेरी ये हरकत...एक नयी लड़ाई की बुनियाद रख रही है और इस बुनियाद का नतीजा अब तक के नतीजो मे सबसे बुरा और भयंकर होगा....यहाँ तक की जानलेवा भी ,लेकिन मैं नही रुका...क्यूंकी मुझे जल्द से जल्द विभा को चोदना था...मुझे ये काम फर्स्ट एअर मे ही कर देना चाहिए था लेकिन फर्स्ट एअर मे दीपिका मॅम जैसी हॉट आइटम के सामने विभा को मैने इग्नोर मारा पर अब विभा मुझे माल लगने लगी थी...जिसे मैं जल्द से जल्द चोदना चाहता था...
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विभा को जाल मे फसाने के लिए सबसे पहला काम ये करना था कि मेरे इस अरमान की भनक किसी को ना लगे...मतलब की जैसे मैने दीपिका मॅम को रात-ओ-रात चोदा और सुबह होते ही बात आयाराम-गयाराम हो गयी...वैसी ही सिचुयेशन मैं विभा के केस मे भी अप्लाइ करना चाहता था....इसलिए मैने अपने इस अरमान की भनक अरुण और सौरभ तक को नही लगने दी...दूसरा काम मुझे जो करना था वो ये की विभा पर काबू पाना...ताकि वो मेरी बात ताल ना सके और तीसरा काम उसे ठोकना....ताकि मुझे हर दिन स्पर्म बाथरूम को डोनेट ना करना पड़े....पहला काम तो अंडर प्रोसेसिंग था और इसकी भनक मेरे दोस्तो को तो दूर ,खुद विभा को ये नही मालूम था कि उसको लेकर मेरे अरमान क्या है...दूसरा काम था उसे कंट्रोल करना, जो मैं कल से शुरू करने वाला था और विभा को कंट्रोल करने का मेरा रामबाण ये था की जितना हो सके विभा को इग्नोर किया जाए...ताकि वो मुझसे बात करने के लिए तरस जाए...
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"अबे ओये रुक"वरुण ने एक जोरदार पंच मेरे हाथ मे मारते हुए बोला"क्यूँ बे साले...इस बीच मे एश कहाँ खो गयी...उसे पटाने के लिए तो तूने कोई प्लान नही बनाया और विभा की चूत के लिए बहुत बड़े-बड़े कारनामे किए तूने...."

"और तो और साले ने दीपिका को भी अकेले खाया और विभा को भी...हम सब तो लंड पकड़ कर रह गये..."दूसरे हाथ मे दूसरा पंच जड़ते हुए अरुण बोला....

"अच्छा हुआ,सौरभ और सुलभ नही है...वरना एक-एक पंच वो भी मारते..."अपने दोनो हाथ को अपने ऑपोसिट हाथ की हथेली से सहलाते हुए मैं बोला"अबे सालो दर्द होता है..."

"मुझे तो शक़ है कि तू एश से प्यार भी करता था या नही..."एक और बार जोरदार मुक्का मारते हुए वरुण बोला...
"देख मुंडा खराब मत कर...तुम लोगो को क्या लगा कि मैने कभी एश के लिए प्लान नही बनाया...अबे गधो एश का मामला अलग था, उसका एक बाय्फ्रेंड था जिसका बाप एक गुंडा था...तो सोचो कि यदि मैं सबके सामने उसपर लाइन मारता तो क्या मैं आज तक ज़िंदा बचता..."

"लेकिन फिर भी अपुन को तेरे लव मे फॉल्ट नज़र आ रहा है..."

"एश के लिए मैने जो प्लान बनाया था उसपर मैं खुद श्योर नही था कि मेरा वो प्लान कामयाब होगा या नही...क्यूंकी ना तो मैं ढंग से एश को जानता था और ना ही उसकी पसंद...मैं ये तक नही जानता था कि उसका घर कहाँ है, वो कॉलेज से जाने के बाद क्या करती है,किनसे मिलती है....बोले तो मैं एक ऐसी लड़की से प्यार करता था जो मेरे लिए बिल्कुल नयी थी...."

"फिर तूने उसके लिए जाल कैसे बुना,जो तेरे लिए किसी एलीयन के माफिक थी"

"दिल से किया पगले...मैने उसे दिल से समझा...दिल से ही उसके बारे मे सोचा और दिल से ही प्लान बनाया..."

"घंटा बनाया,चोदु मत बना मुझे..."एक और मुक्का मुझे जड़ते हुए अरुण बोला"ले बता तो अपने दिल का प्लान..."

"अबे तुम दोनो ने मुझे ढोलक समझ लिया है क्या,जो बजाते ही चले जा रहे हो..."ताव मे आकर मैं उठा और अरुण को तीन-चार नोन-स्टॉप पंच जड़ कर बोला"एक बात बता, तुम मे से किस-किस ने एश को फ़ेसबुक पर रिक्वेस्ट भेजी थी..."
"सबने...मतलब कि मैने,तूने,सुलभ,सौरभ,भू,नवीन...लगभग सभी ने उसे फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी थी..."
"और आक्सेप्ट कितनो की हुई "
"सिर्फ़ तेरी..."दिमाग़ को उथल पुथल करते हुए अरुण ने कहा...

"तो बेटा यही तो था मेरा प्लान जो स्लो पाय्सन की तरह एश के दिल मे उतर रहा था...चल बोल पापा "

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नेक्स्ट डे फर्स्ट पीरियड विभा का ही था और वो अपनी आदतन सज-सवार कर क्लास मे आई और एक-एक स्टूडेंट्स को खड़ा करके उनके सेकेंड सेमेस्टर का रिज़ल्ट पुछने लगी....
"7.7 ,एसी"खड़े होकर मैने जवाब दिया...
मेरे मुँह से एसी वर्ड सुनकर सब हँसने लगे,साले ये सोच रहे थे कि मैं फेंक रहा हूँ....
"कीप साइलेन्स..."विभा ने सबको शांत करते हुए कहा"अरमान ,क्या सच मे तुम पास हो गये..."
"नही ,सब मे बॅक है "
"ओके...ओके,डॉन'ट गेट आंग्री..."
"तेरी *** की चूत..."विभा को गाली देते हुए अरुण उठा"एक मे बॅक है मॅम..."
"लास्ट सेमिस्टर मे भी तुम्हारा बॅक था ना..."
"वो निकल गया..."
"गुड..."
उसके बाद बरी आई सौरभ की...
"सेम हियर मॅम..."
"मतलब.."
"मतलब की अरुण की तरह मैं भी एक मे लटक गया हूँ..."
"ओके,सीट डाउन..."
"8.2,...क्लिनिक ऑल क्लियर..."सुलभ एक झटके मे खड़ा हुआ और दूसरे झटके मे बैठ गया...बोले तो वेरी फास्ट प्रोसेस....
सबका रिज़ल्ट पुछने के बाद विभा ने अपना पकाऊ लेक्चर चालू किया, अरुण की आज तबीयत कुच्छ ढीले-ढीले सी थी, सुबह उसने कॉलेज आते वक़्त बताया भी था की उसे बुखार टाइप से लग रहा है...सेकेंड सेमेस्टर मे बॅक लगने से वो बहुत ज़्यादा ही अपसेट था,जबकि सौरभ पहले की तरह मस्त था....
"दुनिया ने चोद के रख दिया है यार, "पीछे वाली बेंच पर अपने दोनो हाथ टिकते हुए अरुण बोला...
"अबे बॅक तो लगती रहती है...इसमे उदास होने की क्या ज़रूरत है..."
"लेकिन हर बार मैं ही क्यूँ,व्हाई मे...इस साले अरमान की तो बॅक नही लगती...ज़िंदगी झंड हो चुकी है मेरी,लगता है कि छत से कूदकर स्यूयिसाइड कर लूँ...लेकिन डरता हूँ कि यदि छत से कूद कर भी नही मारा तो फिर मेरे पॅपा जी ही मुझे मार देंगे...."
"अबे चोदु,तूने वो कहावत तो सुनी ही होगी की...
स्मूद रोड्स नेवेर मेक गुड ड्राइवर्स!


स्मूद सी नेवेर मेक्स गुड सेलर्स!


क्लियर स्काइस नेवेर मेक गुड पाइलट्स!


प्राब्लम फ्री लाइफ नेवेर मेक्स आ स्ट्रॉंग & गुड पर्सन!


बी स्ट्रॉंग एनफ टू आक्सेप्ट दा चॅलेनजर्स ऑफ लाइफ.


डॉन’ट अस्क लाइफ


“व्हाई मी?”


इनस्टेड से


“ट्राइ मी!”....."
"एक लाइन मे इसका मतलब समझा ना "
"मतलब कि बिना बॅक लगे आप एक सॉलिड इंजिनियर नही बन सकते बोले तो बॅक लगनी चाहिए..."मैने कहा...
"तो फिर तू हर बार एसी क्यूँ हो जाता है..."सुलभ ने ताना मारा...
"मेरा तो हर बार खराब पेपर जाता है...लेकिन ये यूनिवर्सिटी वाले पास कर देते है तो इसमे मेरी क्या ग़लती..."
Reply
12-14-2018, 02:30 AM,
#58
RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
"सुलभ,सौरभ..अरुण-अरमान,क्या बात-चीत चल रही है तुम लोगो के बीच...."विभा ने चॉक का एक छोटा सा टुकड़ा हमारी तरफ फेक कर हमे खड़े होने के लिए कहा"अरमान क्या बाते चल रही है उधर..."

विभा के पुछने के साथ ही मैने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया...मैं तो ये अपने प्लान के लिए कर रहा था,लेकिन मेरे तीनो खास दोस्त भी मेरी कॉपी करेंगे ,ये मुझे नही मालूम था...सौरभ और अरुण बीच मे बैठे थे और चेहरा घुमाते वक़्त(--> <--)दोनो का सर एक दूसरे से टकराया भी था....

"मैने तुम चारो से कुच्छ पुछा है,उसका जवाब दो..."कुच्छ देर तक विभा इस इंतज़ार मे रही कि हम मे से कोई कुच्छ बोलेगा ,लेकिन जब हम चारो चुप रहे तो उसने सामने वाले बेंच पर बैठे एक लड़के से एक पेज माँगा और उसपर हम चारो का नेम लिखकर बोली"जाओ इस पर प्रिन्सिपल से साइन करा कर लाओ..."

"मैने सुना नही ठीक से..आपने क्या बोला.."विभा को आँखो से ब्लॅकमेल करते हुए मैं मुस्कुराया जिसके बाद विभा हड़बड़ा गयी और पनिशमेंट के तौर पर एक-एक असाइनमेंट का हथौड़ा हमारे सर पर दे मारा.....
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"मॅम यहाँ पास ज़ीरो कैसे आया..."हमारे क्लास के टॉपर ने खड़े होकर विभा पर अपना सवाल दागा और सवाल सुनते ही विभा ढेर हो गयी..

वो 10 मिनिट्स तक पहले बुक पर झाँकती रही और फिर अपने नोट्स पर...लेकिन सिचुयेशन पहले के माफिक गुरु-घन्टाल ही रही....उस क्वेस्चन के आन्सर के लिए विभा ने अपनी चूत और गान्ड एक कर डाली ,लेकिन चूत और गान्ड को एक करने के बाद भी उसे जब आन्सर नही मालूम चला तो उसने क्लास के ब्रिलियेंट स्टूडेंट्स की तरफ ये सवाल फेक दिया...और क्लास के उन ब्रिलियेंट स्टूडेंट्स मे से सिर्फ़ एक का हाथ उपर उठा,जो सही मायने मे ब्रिलियेंट था.....

"यस सुलभ...यहाँ आकर समझाओ..."विभा ने रिक्वेस्ट की...

विभा की उस गान्ड-चूत को एक कर देने वाली रिक्वेस्ट पर हमारे सुलभ बाबू का बिहेवियर कुच्छ रूखा-रूखा सा था...वो बोले"मॅम ,मुझे इसका आन्सर तो पता है ,लेकिन मुझे इंटेरेस्ट नही है..."

"क्या मतलब इंटेरेस्ट नही है..."

"मतलब की इसका कोई मतलब नही है...बस मैं आन्सर देने मे इंट्रेस्टेड नही हूँ..."

"अरे मुझे भी इसका आन्सर मालूम करना है, इनको नही बताना चाहते तो मत बताओ...पर मुझे तो बताओ..."और उसके बाद विभा ने बड़ा सा प्लीज़ ! कहा....
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सुलभ भी क्या करता, आख़िरकार वो भी तो एक आम लड़का था,जिसका लंड खड़ा होता था, और विभा मॅम की इस सेक्सी रिक्वेस्ट को रिजेक्ट कैसे करता,इसलिए सुलभ अपनी बेंच से उठा और चॉक उठाकर उस क्वेस्चन से रिलेटेड एक लंबा-चौड़ा फ़ॉर्मूला लिखा ,उस फ़ॉर्मूले मे कॉस@ भी था, उसके बाद हमारे सुलभ महाशय सुलभ प्रदर्शन करते हुए @ के प्लेस पर 90 डिग्री रखा और बोले" सभी जानते है कि कॉस90 की वॅल्यू ज़ीरो होती है...प्राब्लम सॉल्व्ड "
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"वेरी गुड ,सुलभ...तुम्हारा असाइनमेंट कॅन्सल और तुम तीनो का भी"

"थॅंक यू मॅम "हम चारो एक साथ चीखे.....
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रिसेस मे क्लास के बाहर खड़े होकर हम सब बक्चोदि कर रहे थे कि हॉस्टिल मे रहने वाले फर्स्ट एअर के लौन्डे उधर से गुज़रे...
"अबे सुन..."एक को पकड़कर अरुण बोला"जा कॅंटीन मे देख कर आ कि दिव्या है या नही..."

"लेकिन मैं तो हॉस्टिल जा रहा हूँ और कॅंटीन उसके रॉंग डाइरेक्षन मे है..."

"जाके कॅंटीन मे देखकर आ, वरना छोड़ूँगा...समझा,अब जा..."

उस लड़के को कॅंटीन की तरफ भेजकर अरुण फिर से हमारे साथ बक्चोदि करने लगा...

"दिव्या कॅंटीन मे है..."हान्फते हुए फर्स्ट एअर के लड़के ने कहा...

"धन्यवाद ,चल अरमान..."

"घंटा जाएगा मेरा...."

"अबे चल ना,तेरी भाभी बैठी है कॅंटीन मे..."

"बोला ना एक बार ना..."

"वैसे दिव्या के साथ एश भी है अरमान भैया...."मुस्कुराते हुए फर्स्ट एअर के उस लड़के ने कहा....

"सच और कौन-कौन है वहाँ..."

"दोनो अकेली बैठी है...जब मैं वहाँ गया तो दिव्या किसी लड़के से बहस कर रही थी...पता नही क्या लफडा है..."

"ऐसा क्या, अच्छा ये बता गौतम भी है क्या उधर..."

"नोई..."

"अरुण चल,आज तेरी माल पर हाथ सॉफ करके आते है..."

"क्या बोला बे "

"बोले तो उसपर हाथ सॉफ करके आते है,जो तेरी माल से उलझ रहा है..."

हम दोनो कॅंटीन की तरफ बढ़े ही थे कि सौरभ और सुलभ ने हमे पकड़ कर पीछे खीचा और बोला"दो से भले चार..."

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"चार से भले दो..."उन दोनो को रोक कर अरुण बोला"वहाँ माल हम दोनो की फसि है और बचाने तुम दोनो जाओगे और वैसे भी झुंड मे कुत्ते आते है और हम शेर है ,चलो अभिच फुट लो इधर से ,दिखना मत इधर अब..."

सौरभ और सुलभ को वापस भेजने के बाद हम दोनो कॅंटीन की तरफ तेज़ी से भागे,

ना जाने मैं क्या-क्या सोच कर आया था...मैने सोचा था कि मेरे उल्लू दोस्त अरुण की तरह किसी दूसरे उल्लू का दिल दिव्या पर आ गया होगा और वही लफडा चल रहा होगा या फिर किसी ने गान्ड कॉमेंट उन दोनो को देखकर मार दिया होगा,या फिर किसी ने उनका सबके सामने मज़ाक उड़ाया होगा...या फिर ऐसा ही कुच्छ दूसरा कांड हुआ होगा,लेकिन जब हम वहाँ पहुँचे तो दूसरा ही नज़ारा देखने को मिला....एश आराम से अपनी जगह पर बैठकर कोल्ड ड्रिंक की चुस्किया ले रही थी और दिव्या उससे दूर काउंटर पर खड़ी होकर कॅंटीन मे काम करने वाले लड़के से लड़ाई कर रही थी....

"ये चिप्स बाहर 15 मे मिलता है तो फिर यहाँ 20 मे क्यूँ..."दिव्या जोरदार आवाज़ मे बोली..

"वो सब मेरे को नही मालूम,अपने को तो 20 मे देने को कहा गया है,इसलिए अपुन तो 20 ही लेगा..."

"ऐसे कैसे 20 लेगा..."उस लड़के को घूरते हुए दिव्या चीखी...

"वो तो अपुन लेकर ही रहेगा..."वो लड़का भी दिव्या को घूरते हुए चीखा...
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"अरुण,जा 5 तू अपनी तरफ से दे दे और मामला ख़त्म कर "

"लेकिन मेरे पास खुल्ले नही है यार..."

"अबे तो 10 का नोट दे देना बक्चोद..."

"ठीक है..."बोलकर अरुण दिव्या की तरफ बढ़ा और मैं अपनी गोरी बिल्ली की तरफ जा पहुचा....
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"हाई..."जहाँ एश बैठी थी ,वही उसके पास बैठकर मैने कहा..

"हाई.."कुच्छ देर के लिए उसने अपने मुँह से स्ट्रॉ निकाला और मुझे ही बोलकर वापस कोल्ड ड्रिंक पीने लगी...

"सुन तो.."उसकी तरफ थोड़ा झुक कर मैं बोला...

"क्या है..."वो भी मेरी तरफ झुकी...

"तुम दोनो के रहीस बाप 20 भी नही देते क्या,जो तेरी वो चुहिया फ्रेंड 5 के लिए उस कॅंटीन वाले से लड़ रही है...और तू उसे समझाने की जगह बोतल मे स्ट्रॉ डालकर दारू के शॉट मारे जा रही है...इसलिए मैं तुझे बिल्ली बोलता हूँ..."

"आँख फुट गयी है क्या,ये दारू नही पेप्सी है...और तुम्हे क्या मतलब कि हमे घर से कितने मिलते है..."

"कंजूस होंगे तुम दोनो के पप्पा..क्यूँ "उसके शोल्डर पर अपने शोल्डर से हल्का सा धक्का देकर मैने कहा,जिससे वो खांसने लगी और दिल किया कि उसकी पीठ सहला कर मस्त फिल्मी सीन बनाऊ...लेकिन मेरे सिक्स्त सेन्स और वहाँ मौज़ूद बहुत से स्टूडेंट्स के कारण मैने ऐसा बिल्कुल भी नही किया...

"तुमने मुझे धक्का क्यूँ दिया..."वो बोली और फिर खांसने लगी...

"कितनी नज़्जूक़ है तू डर है कि कही कोई तुझे फूल से ना मार दे...

कितनी प्यारी है तेरी आँखे,डर है कि इन्हे कोई प्यार से ना मार दे..."

"मतलब..."

"कुच्छ नही मैं तो बस मॅतमॅटिक्स का फ़ॉर्मूला याद कर रहा था...."बोलते हुए मैने अरुण की तरफ नज़र घुमाई ,

दिव्या अब भी उस कॅंटीन वाले लड़के से भिड़ी हुई थी और अरुण,दिव्या को बार-बार शांत करने का असफल प्रयास कर रहा था....
"तू जा के उस चुहिया को समझाती क्यूँ नही,फालतू मे लोचा कर रेली है..."

"अभी तो ये शुरुआत है,तुम देखना अभी वो इस छोटी सी बात को कन्ज़्यूमर फोरम तक ले जाने की बात करेगी..."एक प्यारी सी मुस्कान के साथ एश बोली...

और हुआ भी वैसा ही...दिव्या ने उस लड़के को धमकी दी"यदि तूने इस चिप्स पॅकेट के 5 अधिक लिए तो मैं कन्ज़्यूमर फोरम मे केस कर दूँगी..."

"ग़ज़ब,मेरी तरह तेरा भी सिक्स्त सेन्स काम करता है..."एक बार फिर से उसके शोल्डर पर धक्का देकर मैने कहा...

"ये तुम मुझे बार-बार धक्का क्यूँ दे रहे हो..."खिसियाते हुए उसने अपनी पूरी ताक़त के साथ मेरे शोल्डर पर प्रहार किया और जवाब मे मैं मुस्कुरा दिया...

"ये कौन सा पोलीस स्टेशन है..."उस लड़के ने दिव्या से पुछा...

"उपभोक्ता मंच..."अरुण ने उस लड़के को कन्ज़्यूमर फोरम का हिन्दी मे मतलब बताया...

"ठीक है ,15 ही दो...तुम भी क्या याद रखोगी.."दिव्या से परेशान होकर वो लड़का बोला....
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दिव्या ने चिप्स का बिल पे किया और फिर आकर एश के सामने वाली टेबल पर बैठ गयी....वो अब भी गुस्से मे थी..
"ब्लडी करप्षन, यू नो एश...ऐसे ही करप्टेड लोगो के कारण हमारा देश बर्बाद है..."

"हंड्रेड पर्सेंट करेक्ट..."मैं बीच मे ही बोल पड़ा...

"ओह ! अरमान...हाई..."मुझे देखकर दिव्या बोली"तुम्हारा वो दोस्त है ना अरुण ,वो भी करप्षन मे इन्वॉल्व है...वो तो मुझे बोल रहा था कि मैं उस कॅंटीन वाले को 20 दे दूं..."

"और उसे ये आइडिया इन महाशय ने ही दिया था..."एश बोली...जिसके बाद दिव्या का चेहरा एक बार फिर से लाल हुआ और मैने वहाँ से चुप-चाप खिसकने मे ही अपनी भलाई समझी....सच मे लड़कियो के पास दिमाग़ नही होता...साली हरदम मस्त तरीके से बोर करती रहती है...

मैं और अरुण कॅंटीन मे मामला सुलझाने गये थे लेकिन दिव्या के सच्चे देशभक्त होने के चलते हम दोनो ही सुलझ गये और खाली हाथ कॅंटीन से वापस आए.....
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"मेरी वाली एक दम सारीफ़ है बे,.."

"और बेवकूफ़ भी अब तू ही देख 5 के चलते उसने कितना बड़ा तमाशा खड़ा कर दिया..."

"बाकलोल है क्या...दिव्या सच तो बोल रही थी कि वो 5 अधिक क्यूँ दे और वो अपने मज़बूत इरादे पर कायम रही,जिसका नतीजा तूने भी देखा."अपना सीना चौड़ा करते हुए अरुण बोला..."इसमे तुझे वो बेवकूफ़ कहाँ से दिख गयी..."

"तूने अभी का नतीजा देखा,लेकिन मैने उसके इस कारनामे से आने वाले कल का नतीजा देखा...अब जानता है जब वो कल कॅंटीन मे अपना पेट भरने जाएगी तो क्या होगा..."

"क्या होगा..."

"होगा ये मेरे लल्लू लाल की कॅंटीन वाला उसे एक ग्लास पानी तक नही देगा और फिर वो यहाँ से कयि किलोमेटेर दूर सिर्फ़ एक कोल्ड ड्रिंक पीने जाएगी..."

"सत्य के रास्ते मे चलने पर ऐसी मुश्किलो का सामना करना पड़ता है बे..इसमे वो तुझे बेवकूफ़ कहाँ से दिख गयी"

"उसे बेवकूफ़ मैने इसलिए कहा क्यूंकी वो उस लड़के से लड़ाई कर रही थी,जिसकी औकात कॅंटीन मे सिर्फ़ टेबल सॉफ करने की है,यदि उसे सच मे करप्षन मिटाना है तो डाइरेक्ट कॅंटीन के मालिक से बात करना था,जो कि उसने नही किया,चल ये सब छोड़ और ये बता की आज लब किस सब्जेक्ट की है..."

"मेरे ख़याल से सी प्रोग्रामिंग की..."

"मुझे भी कुच्छ ऐसा ही लग रहा है..."

वहाँ से थोड़ी दूर आगे जाने के बाद हम दोनो एक दूसरे पर चिल्लाए"लवडे,हमारी क्लास तो पीछे छूट गयी..."

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सी प्रोग्रामिंग की लॅब मे एक 5 फ्ट की पतली-दुबली लेडी टीचर कंप्यूटर को कमॅंड पे कमॅंड दिए जा रही थी और इधर मैं कन्फ्यूज़ पे कन्फ्यूज़ हुए जा रहा था कि ये लोडी कर क्या रही है...क्लास के कुच्छ होशियार स्टूडेंट्स ,जो कि यहाँ के लोकल थे और घर मे दिन भर कंप्यूटर से चिपके रहते थे ,उन्हे ही सब समझ आ रहा था, मैं तो इस सब्जेक्ट मे वर्जिन था इसलिए फिलहाल तो मैं चुप होकर उन सबको देख रहा था.....

"अरमान लंड, तुझे कुच्छ समझ आया क्या.."अरुण बेचैन होते हुए मुझसे पुछा...

"पूरा समझ गया, बता तुझे क्या बताऊ "

"तेरी भी हालत मेरी तरह है..."

अरुण ने इस बार सौरभ को पकड़ा और उससे पुछने लगा कि कंप्यूटर के अंदर ये कैसा जादू चल रहा है....

"मैं वर्जिन हूँ इस मामले मे..."सौरभ बोला..

"और तू सुलभ,क्या तू बता सकता है कि ये जादू जो कंप्यूटर के अंदर चल रहा है ,उसका राज़ क्या है..."

"मी टू वर्जिन इन दिस माइंड फक्किंग ,लवडा टेकिंग आंड गान्ड मे बवासीर होइंग ,सब्जेक्ट..."

"साले सब देहाती हो,किसी को कुच्छ नही आता..."

"टेन्षन कैकु ले रहा है बावा, दूसरे की कॉपी से कॉपी करने का..."सामने कंप्यूटर के अंदर हो रये जादू को देखकर सौरभ ने कहा...

"तब तक क्या लंड हिलाऊ, 2 अवर्स के लॅब मे कुच्छ तो करने माँगता,जिससे अपना टाइम मक्खन के माफिक कट जाए..."

"अब तो साला हमारे साथ जंगल का राजा भू भी नही है,जो लॅब के खाली टाइम मे पूरे कॉलेज की न्यूज़ सुनाए..."मॅम ने जब एक और जादू किया तो उसे देखते हुए मैं खिसिया गया और भू को याद करने लगा...

"एक आइडिया है..."मोबाइल निकाल कर सौरभ बोला"वाईफ़ाई से नेट चलकर कुच्छ डाउनलोड करते है..."

"सॉलिड आइडिया है...2 घंटे मे तो गान्ड फाड़ बीएफ डाउनलोड कर लेंगे..."

"मेरे ख़याल से हमे सी प्रोग्रामिंग का वीडियो डाउनलोड करके ,देखना चाहिए...क्या पता इस जादू की कोई ट्रिक समझ मे आ जाए.."सुलभ ने कहा और हम तीनो शांत होकर उसे देखने लगे...
Reply
12-14-2018, 02:31 AM,
#59
RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
सुलभ सच कह रहा था, यदि हम उस वक़्त सी प्रोग्रामिंग का वीडियो डाउनलोड करते तो कुच्छ ना कुच्छ तो भेजे मे घुसता ही...लेकिन हमने ऐसा नही किया,हम चारो ने ऐसा नही किया....
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"अब क्या लवडा दिन भर पढ़ाई ही करेंगे,थोड़ा टाइम तो हमे खुद के लिए निकालना चाहिए..."सुलभ को एक मुक्का जड़कर अरुण बोला..

"बोसे ड्के ,बोल तो ऐसे रहा है...जैसे शाम को 5 बजे हॉस्टिल जाने के बाद से लेकर सुबह के 9 बजे तक बुक खोलकर बैठा रहता है..."सुलभ बोला और अपना हाथ सहलाने लगा...

"जो-जो सी प्रोग्रामिंग का वीडियो डाउनलोड करना चाहता है ,वो अपना लंड खड़ा करे...मतलब कि हाथ"मैने कहा और सुलभ के सिवा किसी और ने अपना हाथ खड़ा नही किया...

"अब वो लोग अपना लंड खड़ा करे जो दूसरी ज्ञान देने वाली चीज़े डाउनलोड करना चाहते है..."

और इस बार हम चारो मे से मैने,सौरभ और अरुण ने अपना-अपना हाथ खड़ा किया और तय ये हुआ कि हम सी प्रोग्रामिंग का ब्वासीर वीडियो डाउनलोड ना करके कुच्छ ज्ञान देने वाली अदर फाइल्स डाउनलोड करेंगे....

"मैं सारी अपकमिंग मूवी के ट्रैलोर डाउनलोड करता हूँ..."सौरभ ने कहा और काम मे लग गया..

"मैं कुच्छ मूवीस डाउनलोड करता हूँ..."किसी हारे हुए शक्स की तरह सुलभ बोला और वो भी काम मे लग गया...

"मैं एचडी मे पॉर्न वीडियो डाउनलोड करता हूँ और फिर बाथरूम को स्पर्म डोनेट करेंगे..."बोलते हुए मैं भी काम मे लग गया...

"मैं क्या करूँ..."

"तू.....ह्म्म्म्..."कुच्छ सोचकर सुलभ बोला"तू सी प्रोग्रामिंग का वीडियो डाउनलोड कर ले..."

सुलभ के मुँह से एक बार और सी प्रोग्रामिंग वर्ड सुनकर हम तीनो ने उसे खा जाने वाली नज़र से देखा और इशारा किया कि यदि उसने एक बार फिर यदि इस जादुई वर्ड का नेम लिया तो उसे बहुत पेलेंगे.....

"अबे मैं क्या करू..."अरुण ने एक बार फिर पुछा...

"तू....फ़ेसबुक से लड़कियो की फोटो डाउनलोड कर..."

"घंटा..."फिर जैसे ही अरुण को कुच्छ याद आया वो बोला"मैं हवेली डाउनलोड करता हूँ..."
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हम लोग इधर दबी मे कॉलेज की वाईफ़ाई का फुल उसे करके अपना काम निकल रहे थे और उधर वो 5 फुट की दुबली-पतली मॅम अब भी कमॅंड पर कमॅंड दिए जा रही थी और लौन्डो के दिमाग़ मे बवासीर फैला रही थी......

जब लॅब ख़त्म हुआ तो हम चारो हॉस्टिल पहुँचे,जहाँ से अपने मोबाइल का सारा मेटीरियल अमर सिर के लॅपटॉप मे डाला और फिर अपने-अपने मोबाइल मे लिया....

"अरमान एक मस्त न्यूज़ है..."अपना बॅग टाँग कर सुलभ बोला

"चल सुना.."

"एक शर्त पर...पहले बोल कि कल कॅंटीन मे मेरा सारा खर्चा कल तू उठाएगा..."

"रहने दे फिर..."

"एश के बारे मे है...सोच ले"

"चल ठीक है...न्यूज़ बता"

"गौतम बॅस्केटबॉल टूर्नमेंट मे जा रहा है,इसलिए 3-4 दिन तक एश तुझे कॉलेज मे दिव्या के साथ ही दिखेगी..."

"परसो मैं तेरे कॅंटीन का बिल दूँगा..."अरुण बोलते हुए बिस्तर से नीचे गिर गया...

"चल पहले मेरे ऑटो का किराया दे,ताकि मैं अपने रूम तक पहुच जाऊ..."
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सुलभ के जाने के बाद सारा दिन कॉलेज के वाईफ़ाई से डाउनलोड किए गये वीडियो को देखने मे बीता और रात के 12 बजे अरुण के दिमाग़ मे ना जाने फर्स्ट एअर के हॉस्टिल जाने का विचार कहाँ से आ गया...हम दोनो फर्स्ट एअर के हॉस्टिल गये और वहाँ अरुण ने अपने दोस्तो को एचडी क्वालिटी मे डाउनलोड की गयी वीडियो दी, वहाँ से हमे एक बहुत ही रोचक इन्फर्मेशन मिली और वो इन्फर्मेशन ये थी कि दीपिका मॅम आज कल फर्स्ट एअर के एक लड़के पर कुच्छ ज़्यादा मेहरबान है...वो अक्सर रिसेस के वक़्त उस लड़के को कंप्यूटर लॅब मे बुलाती है...ये सब जानकार मुझे समझने मे कोई परेशानी नही हुई कि रिसेस मे दीपिका मॅम और उस लड़के के बीच मे क्या होता है....हॉस्टिल के जिस लड़के पर दीपिका मॅम आजकल मेहरबान थी मुझे उससे थोड़ी जलन भी हुई की वो लड़का अब मेरी जगह ले रहा है...खैर कोई बात नही ,क्यूंकी मुझे मालूम था कि दीपिका मॅम मेरे कारनामे को कभी नही भूलेगी और ना ही मुझे...क्यूंकी वो लड़का भले ही मुझसे ज़्यादा हॅंडसम और वेल मेच्यूर हो,वो भले ही सेक्स आर्ट मे मुझसे माहिर हो,लेकिन वो ऐसा लड़का नही था,जैसा कि मैं....मतलब कि वो मुझसे ज़्यादा पॉपुलर नही था और ना ही उसने अपने फर्स्ट एअर के दौरान 7 साल से इंजिनियरिंग कर रहे अपने सूपर सीनियर को मारा था और जहाँ तक मेरा अंदाज़ा है उस लड़के मे इतनी हिम्मत नही थी कि वो एक डॉन के बेटे से बार-बार पंगा ले और उसकी गर्लफ्रेंड को अपने लेफ्ट साइड मे बसा ले..इसलिए मेरी जलन दूसरे पल ही कूलिंग रिक्षन के कारण बुझ गयी...जिसकी(कूलिंग रिक्षन) एक वजह ये भी थी कि मुझे फर्स्ट एअर से ही मालूम था कि दीपिका मॅम और मेरा साथ महज कुच्छ दिनो का है....
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मैं अपने अतीत के पन्ने खोलने मे तुला हुआ था कि हमारे फ्लॅट पर किसी ने दस्तक दी...जिसे देखकर वरुण तुरंत गेट की तरफ भागा....
"अरे सोनम ,तुम यहाँ...ऐसे अचानक..."वरुण हड़बड़ा कर बोला...वरुण की हालत देखकर कोई भी कह सकता है कि जो लड़की इस वक़्त हमारे रूम के दरवाजे पर खड़ी है,उसे यहाँ देखने की कल्पना वरुण ने कभी नही की होगी....

"वरुण, हाउ आर यू..."

"फाइन...लेकिन तुम यहाँ कैसे..."

"पहले दरवाजे से तो डोर हटो..."वरुण को धक्का देकर रेड स्कर्ट और ब्लू जीन्स मे चमचमाती हुई एक लड़की ने अंदर कदम रखा,जिसे देखकर अरुण का मुँह 2 इंच फट गया और मैं रूम मे इधर-उधर पड़ी दारू की बोतल को छिपाने मे लग गया....

"अरे बताओ तो कि तुमने अचानक अपने दर्शन कैसे दे दिए..."

"पहले ये बताओ कि ये दो नमूने कौन है.."और फिर अरुण की तरफ इशारा करते हुए सोनम बोली"इसे बोलो कि मुझे लाइन मारना बंद करे..."

"इसने हम दोनो को नमूना बोला..."गुस्से मे मैने अरुण से कहा...लेकिन मेरी आवाज़ इतनी धीमी थी कि सिर्फ़ अरुण ही सुन पाए...

"रंडी है साली,चुदने आई होगी..."अरुण भी धीरे से चीखा...
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"सोनम,बाल्कनी मे चलते है..."हम दोनो के सामने वरुण ने उस रेड स्कर्ट वाली लड़की का हाथ पकड़ा लेकिन उस रेड स्कर्ट वाली लड़की ने तुरंत वरुण का हाथ झड़कर दूर कर दिया....

"वरुण , तुम नही जानते कि इस कॉलोनी मे मेरी एक फ्रेंड भी रहती है और मेरी उसी फ्रेंड ने मुझे आज सुबह कॉल किया और बोली कि मैं एक लड़के से मिलकर अपनी उस फ्रेंड का मेस्सेज उसके प्रेमी को दे दूं..."

"तो इसमे मैं क्या कर सकता हूँ..."

"असल मे हम दोनो की बात पूरी नही हो पाई और जब मेरी वो दोस्त मुझे उस लड़के का अड्रेस दे रही थी तो कॉल डिसकनेक्ट हो गयी..."

"क्या नेम है उन दोनो प्रेमी जोड़े का..."

"मेरी फ्रेंड का नेम है ,निशा...और उस लड़के का नेम..."

"अरमान..."मैने बीच मे बोला...

"या,राइट...लेकिन तुम्हे कैसे पता, कही तुम कोई तांत्रिक तो नही..."

"वो लड़का मैं ही हूँ...जिसे तुम ढूँढ रही है..."

"ओह ! दट'स ग्रेट,तो तुम ही हो निशा के वो चंपू बाय्फ्रेंड..."

"हां ,मैं ही हूँ निशा का वो चंपू बाय्फ्रेंड..तो चल बता छछुन्दर क़ी निशा ने क्या मेस्सेज दिया है... "

सोनम के द्वारा मुझे चंपू कहने पर मैं भड़क उठा ,जिसका अंदाज़ा सोनम को भी तब हो गया,जब मैने उसे छछुन्दर कहा...साली खुद को बड़ी होशियार समझ रेली थी, लेकिन उसे मालूम नही था कि मैं कौन हूँ....बोले तो उसे इसका ज़रा सा भी अंदाज़ा नही था कि अरमान क्या चीज़ है

"निशा ने फोन पर कहा कि मैं तुम्हे उसकी ईमेल आइडी दे दूं और तुम उससे ईमेल पर बात करो..."मेरे द्वारा छन्छुन्दर बोले जाने पर वो जल-भुन कर बोली...

"ये तुम लड़कियो के पास दिमाग़ नही होता क्या...अब ईमेल-ईमेल खेलने का कौन सा जुनून निशा को सवार हो गया है..."

"लड़कियो के पास तुम लड़को से ज़्यादा दिमाग़ होता है और निशा ने ऐसा इसलिए कहा क्यूंकी उसके डॅड ने उसपर पाबंदी लगा रखी है, वो अब ना तो किसी से बात कर सकती है और ना ही किसी से मिल सकती है...मेरा अंदाज़ा सही था ,यू आर आ चंपू "

"उस डायन की ईमेल आइडी क्या मुझे सपने मे आएगी..."

"आइ हॅव हर ईमेल आइडी..."अपना छाती चौड़ा करते हुए सोनम ऐसे बोली जैसे ओलिंपिक मे गोल्ड मेडल जीत लिया हो और ना चाहते हुए भी मेरी नज़र उसके सीने पर जा पड़ी...

"वरुण,तुम्हारा दूसरा दोस्त भी मुझे लाइन मार रहा है...."

"क्या अरमान,एक तो ये तेरी मदद करने आई है और उसपर तू इसे अनकंफर्टबल कर रहा है..."सोनम और मेरे बीच खड़े होकर वरुण ने मुझे घूरा...

"मैं इसे अनकंफर्टबल कर रहा हूँ या ये मुझे अनकंफर्टबल कर रही है..."

"हे मिस्टर. मैं कोई ऐसी वैसी लड़की नही हूँ ,समझे..."वरुण को सामने से धक्का देकर सोनम ने मेरी आँखो मे आँखे डालते हुए फाइयर किया....

"वैसे मेरा सवाल ये था कि निशा की ईमेल आइडी मैं कहाँ से लाऊ..."मैने तुरंत टॉपिक चेंज किया और मुद्दे पर आया...

"मैने कहा ना कि उसकी ईमेल आइडी मुझे मालूम है..."सोनम भी मुद्दे पर आते हुए बोली"आक्च्युयली...उसकी ईमेल ईद मैने ही बनाई थी..."

निशा की ईमेल आइडी सोनम ने बनाई है ये जानकार मैं थोड़ी देर तक इंतज़ार करता रहा कि अब वो मुझे निशा की ईमेल आइडी देगी...लेकिन वो चुप चाप खड़ी मुझे देखती रही और जब कुच्छ देर तक और वो एक लफ्ज़ तक नही बोली तो मैं खीज उठा...
"निशा की ईमेल आइडी बताने का क्या लोगि"

"ओह , सॉरी..मैं भूल ही गयी थी.."

"अपुन का स्टाइल ही कुच्छ ऐसा है कि लड़किया मुझे देखकर सब कुच्छ भूल जाती है..."

"ऐसा कुच्छ भी नही है..."एक कागज पर निशा की ईमेल आइडी लिखकर सोनम बोली"अब मैं चलती हूँ..."

"सोनम...रूको,कुच्छ बात करनी है तुमसे...अकेले मे"

"कैसी बात करनी है तुझे"वहाँ मौज़ूद टीने हमान ने मुझसे पुछा...सोनम भौचक्की थी,अरुण ,सोनम को देखकर लार टपका रहा था और वरुण आँखो मे अँगारे लिए बस सोनम के जाने का इंतज़ार कर रहा था,ताकि वो मेरी ठुकाई कर सके....

"वरुण,वैसा कुच्छ भी नही है मेरे भाई,जैसा तू सोच रहा है "वरुण को एक कोने मे लेजा कर मैने समझाया कि मैं सोनम से निशा के बारे मे कुच्छ पुछना चाहता हूँ,जिससे जो उलझन इस समय मेरे दिमाग़ मे है ,वो सुलझ जाए....
.
"कब से निशा को जानती हो..."बाल्कनी मे आने के बाद मैने सोनम से पहला सवाल किया...

"लगभग तब से जबसे हम दोनो ने स्कूल जाना शुरू किया,वी आर चाइल्डहुड फ्रेंड्स..."

"तब तो ,तुम मुझे निशा के बारे मे बहुत कुच्छ या फिर ये कहे कि सब कुच्छ बता सकती हो..."

"और तुम्हे ऐसा क्यूँ लगता है कि मैं ऐसा करूँगी..."मेरे ठीक बगल मे खड़े होकर वो बोली"मैं निशा के बारे मे सबकुच्छ जानती हूँ,लेकिन इसका मतलब ये नही कि मैं तुम्हे उसके बारे मे कुच्छ बताने वाली हूँ....तुम्हारा ये घटिया प्लान फ्लॉप है..."

"यहाँ बात फ्लॉप ,हिट,सुपेरहित,ब्लॉकबसटर,ऑल टाइम ब्लॉकबसटर की नही है...यहाँ बात निशा की है..तुम्हे अंदाज़ा भी नही है कि इस वक़्त निशा किस हालत मे है,इसलिए मुझे उसके बारे मे सबकुच्छ जानना ज़रूरी है..."

सोनम कुच्छ देर तक वहाँ चुप चाप खड़ी सोचती रही और फिर दीवार की तरफ जाकर नाख़ून से दीवार को खरोचने लगी....
.
"पुछो...क्या पुछना चाहते हो..."मेरी तरफ पलट कर उसने कहा..

"सबसे पहले ये बताओ कि क्या तुम अब भी निशा के घर जाकर उससे मिल सकती हो..."

"नो...यदि मैने ऐसा किया भी तो उसके माँ-बाप मेरी खटिया खड़ी कर देंगे..."

"मैने ठीक ऐसा ही सोचा था,अब ये बताओ कि क्या तुम सोनम के साथ कॉलेज मे पढ़ती थी..."

"हां,हम दोनो एक दूसरे के बेस्ट फ्रेंड थे..."

"तो फिर मुझे ये बताओ कि विश्वकर्मा और निशा का क्या रीलेशन था..."

"तुम विश्वकर्मा को जानते हो..."

"कल ही उसे जाना है..."

"निशा हमेशा से ही अकेली रही थी,उसके माँ-बाप सिर्फ़ नाम के माँ-बाप थे...वो अक्सर मुझसे कहती कि उसे कोई प्यार नही करता...जबकि उसने किसी के साथ कभी ज़रा सा भी ग़लत नही किया और फिर उसकी ज़िंदगी मे विश्वकर्मा नाम का एक तूफान आया ,जिसने पहले शांति से निशा को अपने जाल मे फसाया और फिर निशा को बदनाम करने लगा...उसने पूरे क्लास के सामने निशा को रंडी कहा था, विश्वकर्मा के धोखे से निशा लगभग पूरी तरह मर चुकी थी...लेकिन कॉलेज के आख़िरी दिनो मे कुच्छ चमत्कार सा हुआ, निशा को देखकर ऐसा लगने लगा...जैसे कि उसे जीने की कोई वजह मिल गयी है,जैसे कि उसने अपने लिए एक सहारा ढूँढ लिया हो,वो सहारा तुम थे अरमान...यदि तुम निशा से ना मिले होते तो शायद वो अब तक ज़िंदा नही बचती...यदि तुम उसकी ज़िंदगी मे नही आए होते तो शायद अबतक वो घुट-घुट कर मर गयी होती या फिर स्यूयिसाइड कर लेती..."

"फिर उसने मुझसे झूठ क्यूँ कहा कि उसकी ज़िंदगी मे मैं पहला लड़का हूँ..."निशा के अतीत ने जब मेरे दिल को चीर डाला तब मैने अपना अगला सवाल किया...

"अरमान,कोई शक्स नही चाहेगा कि उसकी एक ग़लती की वजह से उसके आज और आने वाला कल पर बुरा प्रभाव पड़े और शायद इसीलिए निशा ने तुमसे ऐसा कहा...विश्वकर्मा,निशा की ज़िंदगी की सबसे बड़ी ग़लती थी जिसकी सज़ा वो भुगत चुकी है...और अब वो नही चाहेगी कि उसकी ज़िंदगी का सबसे बुरा दौर उसके आज के अच्छे दौर को ख़त्म कर दे..."

"थॅंक्स,अब तुम जा सकती हो..."बाल्कनी के बाहर आसमान की तरफ देखते हुए मैने सोनम को जाने के लिए कहा...

"अरमान..."वहाँ से जाते हुए सोनम बोली"यदि तुमने ज़िंदगी मे कभी कोई ग़लती की होगी तो तुम्हे इसका अहसास ज़रूर होगा...आगे तुम्हारी मर्ज़ी..."
.
सोनम के जाने के बाद मैं बहुत देर तक आसमान को निहारता रहा...आज बहुत दिन बाद सूरज ने अपने दर्शन दिए थे,बादलो को भेदती सूरज की किरण मेरे अंदर एक नया जोश ,एक नया उत्साह भर रही थी...मैने टेबल पर रखे उस कागज को उठाया जिसपर निशा का ईमेल अड्रेस था और तुरंत निशा को मैल कर दिया कि, मैं सोनम से मिल चुका हूँ.....

अब मुझे वो सब बीते पल याद आ रहे थे,जब निशा हर वक़्त मेरे पीछे पागलो की तरह पड़ी रहती थी...मैं समझ चुका था कि उसका वो रुबाब सिर्फ़ एक दिखावा,सिर्फ़ एक छलावा था...ताकि मैं ये ना जान पाऊ कि वो मुझे दिल-ओ-जान से प्यार करती है...शायद उसे डर था कि कही मैं उसकी मज़बूरी का विश्वकर्मा की तरह फ़ायदा ना उठाऊ...लेकिन मैं ऐसा नही था..बेशक मुझमे कयि बुराई है लेकिन मैं दूसरो के अरमानो की कद्र करना जानता हूँ..इसीलिए शायद मेरा नाम अरमान पड़ा या फिर यूँ कहे कि मेरा नाम अरमान होने की वजह से मैं इस शब्द की परिभाषा,इस अरमान शब्द का मतलब समझ पाया...और मुझे मालूम ही नही बल्कि इसका अहसास भी है कि अधूरे अरमानो का गम क्या होता है.... पहले जहाँ मैं निशा की कॉल को इग्नोर करता था वही अब मैं चाहता था कि अब वो मुझे एक कॉल करे तो मैं उसकी आवाज़ सुन लूँ...पहले जहाँ मैं किसी ना किसी बहाने निशा के मेस्सेज को टाल देता था अब मैं वही कंप्यूटर स्क्रीन के सामने पिछले एक घंटे से अपनी ईमेल आइडी खोलकर उसके मेस्सेज का इंतज़ार कर रहा था...मैं देखना चाहता था कि वो अपनी खुशी को शब्दो मे कैसे बयान करती है...मेरे लिए अपने लेफ्ट साइड मे धड़क रहे दिल की धड़कनो को वो किस तरह शब्दो मे उतारती है...और यदि इन शॉर्ट कहे तो "नाउ,आइ आम मॅड्ली लव हर "

.
निशा के रिप्लाइ के इंतज़ार मे एक और घंटा बीता लेकिन मेरा इनबॉक्स अब तक खाली था, मैने टेबल पर एक साइड रखा हुआ वो कागज का टुकड़ा उठाया ,जिस पर निशा की ईमेल आइडी लिखी हुई थी,और उसे पढ़ने लगा....
"निशा_लव_अरमान@लाइव.कॉम" पढ़ते हुए मेरे होंठो पर एक मुस्कान छा गयी और मैने एक और ईमेल निशा को टपका दिया.....
.
"अबे ओये,4 घंटे हो गये कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठे हुए...बोल तो तुझे ही मैल कर दूं..."एक चेयर खीचकर वरुण मेरे बगल मे बैठा और खाने की प्लेट मेरे सामने रख दी"ले भर ले.."

"मैं तो खाना खाने के बारे मे भूल ही गया था..."खाने की प्लेट को लपक कर मैने कहा"अरुण कहाँ है..."

"पता नही,वो बोला कि कुच्छ ज़रूरी काम आ गया है..."

"सिगरेट-दारू लेने गया होगा साला..."

"अरुण को गाली बकना बंद कर और सामने देख ,शायद उसने रिप्लाइ कर दिया है..."

मैने तुरंत प्लेट नीचे रख कर कंप्यूटर स्क्रीन पर नज़र गढ़ाई..निशा ने रिप्लाइ कर दिया था....
"जैल मे कैसा लग रहा है,जानेमन..."

"बहुत अच्छा,मैं तो इतनी ज़्यादा खुश हूँ कि बता नही सकती...तुम सूनाओ "

"अपुन तो बस मज़े मे है...वैसे तुम्हारा नाम क्या है..."

"मेरी ईमेल आइडी मे मेरा नाम है..."

"अरे मैं तो ओरिजिनल नाम पुच्छ रहा हूँ...डायन"

"फ़ेसबुक पर आइडी है तुम्हारी..."

"नही..मैं तो अनपढ़ गावर हूँ,मेरी आइडी फ़ेसबुक मे कैसे होगी..."

"लिंक मैल करो..."

"कुच्छ लफडा है,लोग इन करते वक़्त कुच्छ एरर आता है..."

"नो प्राब्लम, अरमान मुझे तुमसे कुच्छ बात करनी है..."

"हां बोलो..."
"मेरा मोबाइल छीन लिया गया है..."

"तो मैल कर दे...लड़कियो का दिमाग़ हमेशा घुटनो मे क्यूँ रहता है "

"नही..मुझे बात करनी है..."

"तेरा वो हिट्लर बाप गला दबा देगा मेरा यदि मैं उसे तेरे आस-पास दिख भी गया तो..."

"कोई नही...रात को 12 बजे जब सब सो जाएँगे तब मैं कॉल करूँगी ,मेरे पास एक एक्सट्रा मोबाइल है अभी के लिए बाइ..."

"डायन रुक जा किधर काट रेली है"मैने जल्दी से उसे मेस्सेज भेजकर उसके रिप्लाइ का इंतज़ार करने लगा...लेकिन उसके बाद निशा का कोई मेस्सेज नही आया...और वो रात को कॉल करेगी इस उम्मीद मे मैने कंप्यूटर शट डाउन किया और बिस्तर पर लेट गया....मैं चाहता था कि जल्द से जल्द रात के 12 बजे और निशा का कॉल आए...अभी रात के 8 ही बजे थे कि मुझसे थोड़ी दूर रखा मेरा मोबाइल बजने लगा और मैं लपक कर मोबाइल के पास जा पहुचा और कॉल रिसीव की...

"हां मुर्गियो के अन्डो का सिर्फ़ एक ट्रक पहुचा है ,दूसरा अभी तक नही आया,भाई देखो माल कहाँ फसा पड़ा है..."

"रॉंग नंबर..."मैने कहा और कॉल डिसकनेक्ट कर दी...लेकिन उसके अगले ही पल एक बार फिर उसी नंबर से कॉल आया....

"अरे यार देखो माल कहाँ फसा है, यदि दोनो ट्रक नही आए तो मैं तेरी बीवी को आकर चोदुन्गा..."

"*** चुदा अपनी तू,बीसी यदि दोबारा कॉल किया तो फोन के अंदर घुसकर गान्ड मारूँगा,साले हरामी ,बक्चोद..."गालियाँ बकते हुए मैने मोबाइल बिस्तर पर पटक दिया...

"बेटा अभी तो चार घंटे बाकी है...मुझे तो डर है कि 12 बजे तक कही तू पागल ना हो जाए..."एक पैर बिस्तर से नीचे हिलाते हुए अरुण बोला

"टाइम पास कैसे करू..."

"अपुन के पास एक सुझाव है..."बीच मे वरुण बोला...

"ना..नही....नेवेर..."वरुण का इशारा समझ कर मैने कहा..

"हां...अभी...इसी वक़्त..."

"अबे हर टाइम तुझे मैं कहानी सुनाते रहूं क्या...साले मैं भी इंसान हूँ...बोलते-बोलते मेरा भी मुँह थक जाता है"

"यही तो प्यार है पगले..."
.
मन थोड़ा भारी था और बेचैन भी...इसलिए एक स्माल पेग मारकर मैं बिस्तर पर बैठा और मेरे अगल-बगल अरुण-वरुण तकिये पर टेक देकर पसर गये...
Reply
12-14-2018, 02:31 AM,
#60
RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
गौतम के टूर्नामेंट मे जाने के बाद एक बहुत बड़ा कांड हुआ...ऐसा कांड जिसने मुझे एक पल के लिए दोतरफ़ा बाँट दिया था,मतलब कि मेरे शरीर के दो हिस्से...मैं कुच्छ पॅलो के लिए कन्फ्यूज़ हो गया था कि किसका साथ दूं और किसका साथ छोड़ू......

गौतम अब भी टूर्नमेंट के चलते बाहर था और मैं ,अरुण के साथ कॅंटीन मे बैठा हुआ था....अरुण अपनी वाली को लाइन दे रहा था और मैं अपनी वाली को...फरक सिर्फ़ इतना सा था कि अरुण वाली अरुण को मस्त रेस्पोन्स दे रही थी और मेरी वाली मुझे देख तक नही रही थी.....

"वो देख पास वाली टेबल खाली हो गयी,चल उधर चलते है..."अरुण का हाथ पकड़कर मैने कहा और उसे उठाने लगा...

"अबे मरवाएगा क्या..."अपना छुड़ा कर अरुण बोला...

"डर मत आजा.."

"अबे चल जा..."

"आना ना कुत्ते.."

"नही आउन्गा कमीने.."

"लवडा मुँह मे दे दूँगा,आजा नही तो..."

"मैं गान्ड मार लूँगा तेरी...चुप चाप बैठ जा नही तो..."

"भूल मत कि मैं अरमान हूँ..."

"और तू भी मत भूल की मैं अरुण हूँ"

"तेरी तो....कैकु खा रेला है ,चल ना...तेरा बिल मैं भर दूँगा..."

"क्या सच मे "

"माँ कसम "

"अब रुलाएगा क्या पगले,चल आजा..."

और फिर हम दोनो उठे और कॅंटीन पर इधर-उधर नज़र मारकर एश के पास वाली टेबल पर बैठ गये....

"वेटर दो प्लेट समोसा, दो पेप्सी और दो पानी पाउच लाना जल्दी से..."ताव देकर अरुण चीखा...

अरुण के चीखने के बाद मैं कुच्छ ऐसा सोचने लगा जिससे एश मेरी तरफ देखे और मुझसे लड़ाई करे...

"यार अरुण,तूने मेरी बिल्ली देखी है क्या..."

"अब ये बिल्ली कौन है..."

"अबे वही,जिसका रंग गोरा है...बात-बात पर गुस्सा हो जाती है..."मैने हँसते हुए कहा और आँखे तिरछि करके एश पर नज़र डाली...उसके चेहरे का रंग इस समय गुस्से से लाल हुआ जा रहा था...

"तुमने कहा था कि यदि मैं तुम्हारी फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट आक्सेप्ट कर लूँगी तो तुम मुझे परेशन करना बंद कर दोगे...और मुझे बिल्ली भी नही कहोगे..."

"मैं आजकल ग़ज़नी बन गया हूँ,सब कुच्छ बहुत जल्द भूल जाता हूँ..."उसके सामने बैठते हुए मैने कहा....

"तू एश को बिल्ली बोलता है "ज़ोर ज़ोर से हँसते हुए अरुण भी वहाँ से उठा और जाकर दिव्या के साइड मे बैठ गया....

अरुण को हँसता देख ,दिव्या भी हंस पड़ी और फाइनली एश की हालत देखकर मैं भी मुस्कुरा उठा...जब तक अरुण हंस रहा था,जब तक दिव्या हंस रही थी...तब तक तो एश शांत थी...लेकिन जैसे ही मैं हंसा तो उसके अंदर मानो ज्वालामुखी फूट गया और वो गुस्से मे बोली...

"मैं बिल्ली तो तुम बिल्ला..."

"चल आजा फिर कोंटे मे "

आगे एश कुच्छ कहती या फिर मैं कुच्छ कहता ,उसके पहले ही हॉस्टिल के 3र्ड एअर का एक लड़का अपने कुच्छ दोस्तो के साथ वहाँ आया और एक झटके मे टेबल पर रखे पानी के ग्लास को उठाकर दिव्या के मुँह पर पूरा पानी डाल दिया....एक पल के लिए तो मैं जैसे सकते मे आ गया कि ये क्या हुआ......

"तेरी माँ की....."दिव्या की ये हालत देखकर अरुण उस लड़के की तरफ पलटा,जिसने ये हरकत की थी...."नौशाद सर,आप...."हॉस्टिल मे रहने वाले सीनियर को देखकर अरुण बोला....उसका गुस्सा नौशाद को देखकर एक पल मे ठंडा हो गया था,...

"तू चल अभी जा यहाँ से,मुझे अपना प्राइवेट मॅटर सुलझाना है..."अरुण को खड़ा करके नौशाद उसकी जगह बैठ गया और हॉस्टिल के दूसरे सीनियर्स ने मुझे भी वहाँ से जाने के लिए कहा....

"भीगे होंठ तेरे...प्यासा दिल मेरा..."गुनगुनाते हुए नौशाद ने अपना हाथ दिव्या की तरफ बढ़ाया...

"सर...वो मेरी दोस्त है,.."नौशाद का हाथ पकड़ कर अरुण बोला...

इस वक़्त दिव्या और एश का भी चेहरा फीका पड़ चुका था, दोनो की आँखो मे डर की एक लहर दौड़ रही थी...जिसका अंदाज़ा मैने लगा लिया....

"तेरी दोस्त है तो क्या अपुन को थप्पड़ मारेगी...आज तो मैं इसको नही छोड़ूँगा...साले दोनो भाई-बहन अपने बाप के दम पर बहुत उचकते है..."नौशाद ने अपना हाथ छुड़ाकर अरुण को आँखे दिखाई
.
कॅंटीन मे मामला बिगड़ते देख ,वहाँ काम करने वाले बीच-बचाव के लिए आगे आए,लेकिन उन सबको नौशाद के दोस्तो ने वापस भगा दिया और कॅंटीन मे मौजूद सभी स्टूडेंट्स को वहाँ से जाने के लिए कहा....

"आज तो रेप होकर रहेगा...वो भी एक का नही दो-दो का..."कहते हुए नौशाद ने दिव्या का हाथ पकड़ कर उसे अपनी तरफ खीच लिया.


.
यदि इस वक़्त वहाँ नौशाद की जगह कोई दूसरा लड़का होता तो मैं तुरंत उससे भिड़ जाता,लेकिन यहाँ सिचुयेशन अलग थी...नौशाद हॉस्टिल मे रहता था और साथ मे मेरा सीनियर भी था और बरसो से चले आ रहे रूल के अनुसार मुझे नौशाद का साथ देना चाहिए था...भले ही ग़लती किसकी भी हो....

नौशाद के चंगुल से दिव्या खुद को छुड़ाने की कोशिश करती रही,लेकिन वो कामयाब नही हो पाई...

"इतना फुदक मत,अभी तेरी सारी गर्मी उतारता हूँ..."

"ये ग़लत है..."हिम्मत करके मैने नौशाद को दिव्या से दूर किया...

"तेरी माँ की...तू होता कौन है बे मुझे सही-ग़लत समझाने वाला...शायद तू भूल रहा है कि मैं तेरा सीनियर हूँ...चल जा यहाँ से वरना मैं भूल जाउन्गा कि तू अरमान है और मेरे हॉस्टिल मे रहता है..."कहते हुए नौशाद ने मेरा कॉलर पकड़ लिया...

"नौशाद भाई...आख़िर बात क्या है..."शांत लहजे मे मैने नौशाद से पुछा...

"मैने आज सुबह इसका हाथ क्या पकड़ लिया,साली ने सबके सामने एक जोरदार तमाचा मेरे गाल पर दे मारा...लवडी बहुत उचक रही थी.." धक्का देकर नौशाद ने मुझे वहाँ से जाने के लिए....

"चलो बेटा..अरुण-अरमान ,दोनो बाहर जाओ...ये हमारा मॅटर है..."हॉस्टिल के दूसरे सीनियर्स जो वहाँ नौशाद के साथ आए थे,उन्होने हमे जबर्जस्ति पकड़ कर कॅंटीन से बाहर कर दिया...

जब मुझे और अरुण को हॉस्टिल के सीनियर्स कॅंटीन से धक्का देकर बाहर कर रहे थे,तब एक वक़्त के लिए मेरी नज़रें एश से मिली...वो इस वक़्त अंदर तक डरी हुई थी,लेकिन कुच्छ बोलने,कुच्छ कह पाने की हिम्मत उसमे नही थी...जब मुझे ढककर देकर कॅंटीन से बाहर निकाला जा रहा था तो एश की आँखे मुझसे मदद की गुहार लगा रही थी...उसकी सफेद सूरत लाल रंग की मूरत मे तब्दील होने लगी थी...मैने कभी कल्पना तक नही की थी कि मैं एश को इस हालत मे देखूँगा...और मैने जब कुच्छ नही किया तो उसके आँख से आँसू की कुच्छ बूंदे उसके गाल को भिगोति हुई उसके होंठो से होते हुए ज़मीन पर गिर पड़ी....लेकिन मैं फिर भी कुच्छ नही कर पाया,क्यूंकी इससे हॉस्टिल के लड़के ही मेरे खिलाफ हो जाते और ये नौशाद वही लड़का था जिसने वरुण को मारने मे मेरी मदद की थी...मेरे दिल के इस वक़्त दो टुकड़े हो चुके थे,एक हिस्सा मुझसे कह रहा था कि मैं नौशाद की बात मानकर चुप-चाप यहाँ से चला जाऊ..तो दिल का दूसरा हिस्सा मुझे धिक्कार रहा था,मेरे दिल के दूसरे कोने से आवाज़ आ रही थी कि कॅंटीन मे जो कुच्छ हो रहा है,जो कुच्छ होने वाला है,उससे दो ज़िंदगिया बर्बाद हो जाएगी और उस बर्बादी का ज़िम्मेदार मैं रहूँगा...इसलिए मैं उन दोनो की मदद करू.....
.
मैं एक रूल के लिए ये सब कुच्छ नही होने दे सकता था और ये कंडीशन ऐसी थी कि मेरा 1400 ग्राम का ब्रेन भी ठप्प पड़ा हुआ था...मुझे कोई तरक़ीब सोचने के लिए कुच्छ वक़्त लगता पर कम्बख़्त वक़्त ही तो नही था मेरे पास....उसपर से मेरी कही हुई चन्द लाइन्स जो मैने खुद एश से कही थी वो मुझे याद आ गयी....

"तेरे इश्क़ मे यदि कोई मेरे सीने मे खंजर खोप दे....
या फिर दिल निकाल कर उसे अंगरो के बीच रख दे,
मुझे इसकी परवाह नही,लेकिन यदि तेरी आँखो से...
आँसू का एक बूँद भी निकला तो वो मेरे लिए कयामत है...."
.
"अरमान,कुच्छ कर ना,वरना आज जो होने वाला है उसका अंजाम बहुत बुरा होगा..."

"वेल...पहले एक बात बता, तू मार खाने से डरता तो नही..."

"कोशिश करूँगा..."

"तो चल आजा,एक प्लान है मेरे पास..."

"कैसा प्लान..."

"प्लान ये है कि एश और दिव्या को कैसे भी करके कॅंटीन से निकलना है और सीनियर्स पर हाथ भी नही उठाना है और तो और हमे इसका भी ख़याल रखना है कि उन दोनो आइटम्स मे से कोई भी बाहर जाकर नौशाद और उसके दोस्तो की शिकायत ना करे.."

"क्या ये मुमकिन है..."

"ओफ़कौर्स ,याद है मैने क्या कहा था कि कभी ये मत भूलना की मैं अरमान हूँ"

"भैया जी,अपनी बढ़ाई बाद मे करना,पहले ये बताओ की प्लान क्या है..."

मैने अरुण को पकड़ा और कॅंटीन के गेट पर जो कि आधा खुला हुआ था उसपर पूरी ताक़त से अरुण को धकेल दिया...गेट से टकराने के कारण एक जोरदार आवाज़ हुई...

"बीसी,तुझे यहाँ से जाने के लिए कहा था ना...."अरुण को कॅंटीन के अंदर देख नौशाद ने अपने दोस्तो को गालियाँ भी बाकी की उन्होने कॅंटीन का गेट क्यूँ बंद नही किया...

"मैं भी हूँ इधर..."कॅंटीन के अंदर किसी हीरो की तरह एंट्री मारते हुए मैने कहा..."साला जब भी आक्षन वाला सीन होता है, मेरा गॉगल्स मेरे साथ नही रहता...:आंग्री :"

"वैसे तेरा प्लान क्या है,मुझे अब तक नही पता..."कपड़े झाड़ते हुए अरुण खड़ा हुआ...

"प्लान ये है कि तू जाके नौशाद के उपर कूद पड़,मैं बाकियो को देखता हूँ..."

"साले,मैने कभी सपने मे भी नही सोचा था कि तू इतना घटिया प्लान भी बनाता है...नौशाद तो आज मेरा कचूमर बना देगा..."लंबी साँस भरते हुए अरुण ने कहा और सीधे जाकर नौशाद के उपर कूद पड़ा...

अरुण के द्वारा किए गये अचानक इस हमले से नौशाद ने अपना कंट्रोल खो दिया और एक तरफ गिर पड़ा...नौशाद के गिरने के साथ ही दिव्या भी एक तरफ गिर पड़ी और मैने तुरंत जाकर दिव्या को सहारा देकर उठाया और एश के साथ उसे वहाँ से भाग जाने के लिए कहा.....लेकिन इस वक़्त मेरे सामने हॉस्टिल के तीन सीनियर्स खड़े थे....

"दो को तो मैं रोक लूँगा,एक को तुम दोनो संभाल लेना...."

"लेकिन कैसे..."हान्फते हुए दिव्या बोली...

"तुम दोनो के उपर का माला खाली है क्या, इतने सारे ग्लास ,प्लेट टेबल पर रखे है...सब फोड़ देना उसके उपर..."

"ठीक है..."
और मैने ऐसा ही किया...दो को मैने बड़ी मुश्किल से संभाला और तीसरे के सर पर दिव्या और एश ने काँच की ग्लास फोड़ डाली और वहाँ से भाग गयी....दोनो को भागते देख मैं भी वहाँ से उठा और बाहर जाकर उन दोनो से कहा कि...वो दोनो ये बात किसी को ना बताए और जाकर पार्किंग मे खड़ी अपनी कार पर आराम करे मैं ,थोड़ी देर मे उनसे मिलता हूँ....
.
वैसे उन दोनो पर यकीन करना कि वो दोनो वैसा ही करेंगी जैसा कि मैने उन्हे कहा है...इस पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल था...खैर इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता भी तो नही था...खुद को मजबूत करके मैं वापस कॅंटीन मे घुसा...जहाँ नौशाद और हॉस्टिल के तीनो सीनियर अरुण की ठुकाई करने के लिए तैयार खड़े थे...

"लिसन...जेंटल्मेन आंड जेंटल्मेन..."पहले मैने अपने हाथो की उंगलियों को चटकाया और फिर गर्दन...उसके बाद मैने अपने शर्ट का कॉलर खड़ा किया ,जिससे उन सबको ऐसा लगने लगा कि मैं उनसे भिड़ने के लिए तैयार हूँ...लेकिन मेरा प्लान कुच्छ दूसरा था..मैने एक बार और अपनी उंगलियो को दूसरे आंगल से फोड़ा और फिर कहा"नौशाद भैया,हम दोनो मार खाने के लिए तैयार है "
.
मुझे अंदाज़ा था कि अब नौशाद और उसके दोस्त हम दोनो बहुत जमकर कुटाई करेंगे...उनके गुस्से को देखकर भी यही लग रहा था...लेकिन उन्होने ऐसा नही किया,उन्होने हमे ज़्यादा नही सिर्फ़ दो-तीन थप्पड़ और चार-पाँच घुसे ही मारे और धमकी दी की वो लोग आज रात मे हम दोनो को जान से मार देंगे....

"चल उठ,अभी प्लान का एक और हिस्सा बाकी है..."अरुण को ज़मीन से उठाते हुए मैने कहा...

"गान्ड मराए तू ,और तेरा प्लान...बोसे ड्के,हाथ मत लगा मुझे..."कराहते हुए अरुण उठकर बैठ गया"साले ये कॅंटीन वाले भी महा म्सी है,जो लफडा शुरू होते ही यहाँ से खिसक लिए..."

"लड़की चाहिए तो मार खाना ही पड़ता है..."

"अरे लंड मेरा...साले तुझे कॉलर उपर करते देख मैने सोचा था कि तू अब इन सबको मारेगा लेकिन तू तो एक नंबर का फटू निकला...हाए राम! उस बीसी नौशाद ने सीधे एक लात पेट पर दे मारी है...लगता है मेरे लिवर फॅट चुके है...तू आज के बाद मुझसे बात मत करना..."

"अबे इतना भी नही मारा उन लोगो ने,जो तू ऐसे लौन्डियो की तरह रो रहा है...साले तू देश की सेवा कैसे करेगा फिर,देश के लिए तू जान क्या देगा जो इतनी सी मार ना सह सका..."

"अरे भाड़ मे जाए देश...लवडे जब तू दिव्या और एश को लेकर यहाँ से भागा था,तभी उन चारो ने मिलकर मुझे जमकर ठोका,...."

"ले पानी पी ,शाम को दारू पिलाउन्गा...और तू कहे तो अभी ,इसी वक़्त दिव्या से भी बात करता हूँ..."

"दारू-पानी छोड़,पहले दिव्या से बात करवा...जिसके लिए मैने इतनी मार खाई है..."मेरे कंधे के सहारे खड़ा होते हुए अरुण कराहते हुए बोला"वैसे ये बता कि अब दिव्या मुझसे इंप्रेस तो हो जाएगी ना..."

"बेटा दिव्या इंप्रेस तब हुई होती ,जब तू पिट कर नही पीट कर आया होता...."

"तू साले दोस्त के नेम पर कलंक है..."

"और ये कलंक ज़िंदगी भर नही छूटेगा..."
.
वहाँ से हम दोनो पार्किंग की तरफ बढ़े और मैं रास्ते भर यही दुआ करता रहा कि एश ,दिव्या के साथ वही मौजूद हो...क्यूंकी ये मेरे 1400 ग्राम के दिमाग़ मे उपजे प्लान का हिस्सा था और यदि ऐसा नही हुआ तो फिर एक बहुत भयानक तूफान आने वाला था,जिसे मैं चाहकर भी नही रोक पाता...पर मेरी किस्मत ने यहाँ पर मेरा साथ दिया ,जैसा कि अक्सर देती थी....कभी-कभी तो मुझे शक़ होने लगता कि मैं किस्मत का गुलाम हूँ या किस्मत मेरी गुलाम है....
.
"बिल्ली दरवाजा खोल..."कार के शीशे पर नॉक करते हुए मैने कहा और अरुण को वही खड़ा कर दिया लेकिन उसके अगले पल ही अरुण ज़मीन मे बिखर गया,उससे अपने पैरो पर खड़ा भी नही हुआ जा रहा था....
.
"शरीर का जो एक-दो हिस्सा सही-सलामत है,तू उसका भी भरता बना डाल..."ज़मीन पर पड़े-पड़े वो मुझपर चीखा...

"सॉरी यार,मैने ध्यान नही दिया..."

मैने अरुण को सहारा देकर वापस उठाया और कार के अंदर उसे बैठने के बाद मैं खुद भी कार के पीछे वाली सीट पर बैठ गया...

"चलो..."कार के अंदर बैठकर मैने दिव्या से कार चलाने के लिए कहा...

"कहाँ चलें..."पीछे पलट कर एश बोली...

"अमेरिका चल,जापान चल,चीन चल,पाकिस्तान चल...जहाँ मर्ज़ी हो वहाँ चल...लेकिन इस वक़्त यहाँ से चल...बिल्ली कही की,दिमाग़ तो है ही नही "

दिव्या ने कार स्टार्ट की और कार को कॉलेज के मेन गाते की तरफ तेज़ी से दौड़ाने लगी...

"अबे तूने इन दोनो को तो बचा लिया,लेकिन अब सवाल ये है कि नौशाद और पूरे हॉस्टिल से हमे कौन बचाएगा....अब तो ना घर के रहे ना घाट के...मतलब कि ना सिटी वालो के रहे और ना हॉस्टिल वालो के...जहाँ जाएँगे थूक कर आएँगे...अरमान तूने तो मुझे जीते जी मार दिया.."

"क्या यार तू भी ऐसे तूफ़ानी सिचुयेशन मे ऐसा सड़ा सा डाइलॉग मार रहा है...और हॉस्टिल वालो की फिकर छोड़ दे ,क्यूंकी अभिच मेरे भेजे मे एक न्यू प्लान आएला है..."
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