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RE: non veg story एक औरत की दास्तान
एक औरत की दास्तान--6
गतान्क से आगे...........................
जिस दिन तू आएगा मुझे सर-ए-आम अपनाने,
उस दिन मैं खामोशी के दायरे को तोड़ दूँगी,
फास्लो पे रहकर भी हमारे जज़्बात जुड़े है मज़बूत धागे से,
जब हम होंगे साथ तो मैं अपनी सांसो की लड़िया भी तुझसे जोड़ दूँगी,
यू तो आज भी मेरे रुख़ सार तेरी ही तरफ मुड़ते है,
पर तुझे पा के मैं अपनी ज़िंदगी भी तेरी तरफ मोड़ दूँगी,
इंतेज़ार है मुझे उस पल का मेरे अजनबी..
जब थाम के तेरा हाथ मैं तन्हाई का दामन हमेशा के लिए छ्चोड़ दूँगी.........
कॉलेज जाते हुए स्नेहा के मंन मे यही बात घूम रही थी.. उसका मंन ऐसा कर रहा था जैसे वो उड़ कर जाए और राज की बाहों मे समा जाए. पर उसे सबसे ज़्यादा डर अपने पापा से लग रहा था.. हालाँकि उसने अपने दिल मे राज को जगह तो दे दी थी पर क्या ये रिश्ता उसके बाप को मंजूर होगा.. राज के बारे मे उसे कोई फिकर ना थी क्यूंकी वो जानती थी कि वो उससे बेन्तेहा प्यार करता है..
इन्ही सोचों मे डूबी हुई वो कॉलेज पहुँच गयी..
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ट्रेन पर बैठी लड़की अचानक चौंक उठी.. वो अपने सोच से बाहर आ चुकी थी.. क्यूंकी सामने जो लोग उसे दिखाई दे रहे थे उन्हे देखते ही उसकी जान निकल गयी.. वो जल्दी से अपनी सीट से उठी और भागती हुई ट्रेन मे बने बाथरूम मे घुस गयी..
"खोजो उसे.. यहीं कहीं होनी चाहिए वो लड़की.. बच के जानी नही चाहिए.. वरना हम सर को क्या जवाब देंगे.." बाहर से आवाज़ें आ रही थी. ट्रेन अभी किसी अंजान स्टेशन पर रुकी हुई थी. उससे लड़की को पता नही चल पा रहा था, कि ट्रेन कहाँ है.
उसने बाथरूम की खिड़की से आस पास देखा तो पाया कि वो एक छोटा सा स्टेशन है..जहाँ इकके दुक्के लोग ही दिखाई दे रहे थे. उसे साइड मे एक बोर्ड दिखाई दिया जिसमें छोटे अक्षरों मे रामपुर दिखाई दिया.
वो तो यूँही इस ट्रेन मे घुस गयी थी.. जहाँ उसे मंज़िल ले जाती वो वहीं जाने वाली थी.. ज़िंदगी मे अब उसके कुछ नही बचा था..
हां.. सबकुछ खो दिया था उसने.. वो भी एक ही झटके मे..
जीने की इच्छा ख़त्म हो चुकी थी.. पर खुदको मार भी तो नही सकती थी.. कैसे ख़त्म करती खुदको...?
उसके पेट मे उसके पति के प्यार का तोहफा जो पल रहा था..
तभी ट्रेन खुल गयी... शाम हो चुकी थी.. और अंधेरा घिरने को था. बाहर से आवाज़ें आनी भी बंद हो चुकी थी. उसने दरवाज़ा खोला और बाहर झाँका..पर उसे उनमे से कोई आदमी नही दिखा..ट्रेन भी अब अपनी पूरी रफ़्तार पकड़ चुकी थी.. वो अपने सीट पर वापस आई और कुछ सोचने लगी.. शायद यही सोच रही थी कि उसे पोलीस ने यहाँ तक ढूँढ लिया है तो आगे भी उसका बचना अब मुश्किल ही था.. उसने सर को झटका दिया और फिर वापस उन्ही ख़यालों मे खो गयी...
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स्नेहा कॉलेज पहुँच चुकी थी मगर राज अब भी उसे कहीं दिखाई नही दे रहा था..
"पता नही कहाँ चला गया.." वो अभी ये सोच ही रही थी कि उसे सामने से रवि आता हुआ दिखाई दिया... रवि ने दूर से ही भाँप लिया था कि स्नेहा उसी की तरफ देख रही है..बस उसके इशारे का इंतेज़ार कर रहा था.. और उसे ज़्यादा देर इंतेज़ार भी नही करना पड़ा..
स्नेहा ने हाथों के हल्के से इशारे से उसे अपने पास बुलाया ताकि कोई देख ना ले... फिर स्नेहा धीरे धीरे गार्डन की तरफ जाने लगी और रवि भी उसके पीछे पीछे गार्डन की ओर चला गया..
एक सुनसान जगह पाकर वो दोनो रुक गये...
"हां स्नेहा बोलो.. यहाँ कोने मे क्यूँ बुलाया.." रवि ने शैतानी मुस्कान के साथ कहा..
"ज़्यादा खुश होने की ज़रूरत नही है... ये बताओ राज कहाँ है...?" स्नेहा के इस तरह से पूछने से रवि ने अपने होंठों को नॉर्मल कर लिया और किसी जेंटलमॅन की तरह खड़ा हो गया पर जैसे ही स्नेहा ने राज के बारे मे पूछा तो उसकी मुस्कान फिर वापस आ गयी..
"क्यूँ बड़ी याद आ रही है राज की.. क्या बात है...?" रवि ने फिर से दाँत निकालते हुए कहा..
रवि को ऐसे दाँत निकालते देख कर स्नेहा को बड़ा गुस्सा आया और उसके सुंदर चेहरा लाल हो गया..
ये देखकर रवि भाई साहब फिर शांत हो गये..
"देखो स्नेहा.. मैं भी सुबह से राज का फोन ट्राइ कर रहा हूँ.. पर पता नही कहाँ मर गया साला.." रवि ने भी राज के प्रति गुस्से का इज़हार करते हुए कहा..
"आज सुबह तो वो मेरे घर से निकला.. पर पता नही फिर कहाँ चला गया..." अब स्नेहा के चेहरे पर उदासी का भाव आ गया..
"क्या वो तुम्हारे घर पर था..?" रवि ने ऐसा मुह्न बनाया जैसे उसे कुछ पता ही ना हो.. पर एक बात स्नेहा नोट करना भूल गयी..वो ये कि रवि ये बोलते हुए बड़ी मुश्किल से अपनी हसी को रोक पा रहा था... स्नेहा की सूरत ऐसी हो गयी..जैसे वो बस अब रोने ही वाली हो..
"कहाँ चला गया मेरा राज..?" स्नेहा अब शायद सच मे रोने लगी थी.. उसकी सिसकियाँ सॉफ सुनी जा सकती थी..
रवि ये सब देख कर मंद मंद मुस्कुराए जा रहा था.. और सामने स्नेहा के आँसू अब और तेज़ी से बह रहे थे...
तभी स्नेहा को अपने कंधों पर कुछ महसूस हुआ... उसने पीछे घूमकर देखा तो सामने राज खड़ा था.. और बड़े जोरों से हस रहा था... हस्ते हस्ते उसकी आँखों से पानी निकल आया...
स्नेहा ने जैसे उसे हस्ते देखा.. उसके आँसू गुस्से मे बदल गये और "चटाक़" की आवाज़ से पूरा गार्डन गूँज उठा.
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RE: non veg story एक औरत की दास्तान
एक औरत की दास्तान--7
गतान्क से आगे...........................
रिया की चूत मे अब बड़ा दर्द होने लगा और अचानक उसकी चूत से खून निकल आया. रिया की दर्द के मारे जान निकली जा रही थी मगर वो लड़का खून देखकर भी नही रुका औट तेज़ी से अपना लंड अंदर बाहर करता रहा. धीरे धीरे उसके धक्के बहुत ज़्यादा तेज़ हो गये. और रिया की आवाज़ भी तेज़ हो गयी. अपने धक्कों की स्पीड पूरी तेज़ करते हुए उसने एक लंबी दहाड़ मारते हुए अपना सारा माल रिया की चूत मे झाड़ दिया और धम्म से रिया की नंगी गोल मटोल चुचियों पर गिर गया. रिया भी अबतक 3-4 बार झाड़ चुकी थी. और उसकी चूत से अब खून, वीर्य और रिया का काम रस. तीनो एक साथ बाहर आ रहे थे.
कुछ देर बाद वो लड़का नॉर्मल हो गया और रिया के चूत का दर्द भी कम हो चुका था.
"मैं सच बोल रही हूँ जान. ये हमारा प्यार ही है जो मेरे पेट मे पल रहा है." रिया ने फिर से उसे मनाने की कोशिश की. मगर अब उस लड़के की शारीरिक इच्छा की पूर्ति हो चुकी थी.
"चुप कर रंडी. किसी और के पाप को मेरा प्यार मत बोल." वो लड़का बिस्तर से उठा और रिया के कपड़े उठा कर उसकी तरफ फेंक दिए. "जल्दी से पहन ले ये कपड़े और निकल जा मेरे घर से."
"प्लीज़ मेरे साथ ऐसा मत करो.मेरे घर वालों को पता चल गया तो वो मुझे मार डालेंगे." रिया ने हाथ जोड़ते हुए कहा.
"तो जा मर जा ना. मगर मेरा पीछा छ्चोड़ दे कुतिया." वो लड़का फिर चिल्लाया.
"प्लीज़" रिया ने हाथ जोड़कर सर नीचे किए हुए कहा. अब उसकी आँखों से आँसुओं की बाढ़ आ रही थी.
"लगता है तू ऐसे नही मानेगी रंडी." इतना बोलकर उस लड़के ने रिया को नंगी ही खींचकर अपने घर के बाहर ले जाकर फेंक दिया. रिया ने बहुत विनती की पर उसने रिया की एक ना सुनी. घर के बाहर रिया जल्दी से एक पेड़ के पीछे चली गयी और कपड़े डालकर चल पड़ी अपने ज़िंदगी का अंत करने.....
उधर.................................
"हां हां फिर आगे क्या हुआ.. जल्दी बता जल्दी बता ना.." रवि ये बोलते हुए काफ़ी एग्ज़ाइटेड लग रहा था..
"फिर क्या उसने गाड़ी रोकी और लगी मुझे चूमने..हहहे" राज ने हेस्ट हुए कहा... वापस आने के बाद राज गाड़ी से उतरकर सीधा रवि से मिलने आ गया था.. और स्नेहा अपने दोस्तों के पास चली गयी थी..
"अरे यार तब तो तुझे बड़ा मज़ा आया होगा.." रवि ऐसे पूछ रहा था जैसे वो कहानी सुनना नही सीधा पूरी फिल्म देखना चाहता हो..
"अरे यार मज़ा.. इतना मज़ा आया कि पूछ मत, मगर स्नेहा ने उससे ज़्यादा कुछ करने नही दिया वरना और मज़ा आता..हहहे" राज ने फिर से दाँत निकाल दिए..
"हॅट साले अनाड़ी की औलाद.. मैं तेरी जगह होता तो आज ही सब कुछ कर लिया होता.. खैर मैं चला मूतने.. तू यहाँ बैठ कर सपने देख स्नेहा को बिस्तर पर ले जाने के.. हाहाहा.." रवि ने ज़ोर से ठहाका लगाया.. ये बात सुनकर राज को गुस्सा आ गया..
"अबे जेया ना.. मैं नही जानता क्या..? तू साले बाथरूम मे मूतने नही मूठ मारने जा रहा है.. लड़की तो पटती नही बस यही कर सकता है.." राज ने मुह्न बनाते हुए कहा...
"अबे चुप.. मेरी भी ज़िंदगी मे कोई ना कोई ज़रूर आएगी.. फिलहाल मैं चला" इतना बोलकर रवि वहाँ से उठ गया.. कॉलेज की छुट्टी हो चुकी थी मगर वो दोनो अब भी कॅंटीन मे बैठकर बातें कर रहे थे..
रवि सीटी मारता हुआ बाथरूम मे गया और ज़िप खोलकर मुत्र विसर्जन करने लगा..
टाय्लेट मे साइड मे एक खिड़की लगी हुई थी जिससे रवि जिस विंग मे था उसकी छत नज़र आती थी.. रवि पेशाब करते हुए उसी तरफ देखे जा रहा था.. उसे लग रहा था कि शायद आज कोई अनहोनी होने वाली है.. पता नही क्या मगर कुछ तो होने वाला था.. रवि ने पॅंट की ज़िप बंद की और हाथ धोके बाहर आ गया.. फिर अचानक पता नही कहा से उसके मन मे ख़याल आया कि क्यूँ ना आज कॉलेज की छत पर घूमकर आया जाए..
रवि के कदम जो अभी कॅंटीन की तरफ जा रहे थे, वो सीढ़ियों की तरफ मूड गये.. रवि अपने जीन्स की पॉकेट मे हाथ डालकर मस्तमौला अंदाज़ मे सीटी बजाता हुआ एक एक सीढ़ियाँ चढ़ने लगा.. जैसे जैसे वो एक एक सीढ़ियाँ चढ़ता जा रहा था उसका मंन और भी व्याकुल होता जा रहा था.. पता नही आज क्या होने वाला था..
अचानक उसने अपने कदमों की तेज़ी बढ़ा दी और तेज़ी से ऊपर चढ़ने लगा.. और 2 मिनिट मे छत पर पहुँच गया.. वहाँ जो उसने देखा वो दिल दहला देने वाला नज़ारा था.. वहाँ और कोई नही बल्कि रिया खड़ी थी..
खड़ी नही बल्कि यूँ कहें कि वो मरने वाली थी.. रिया छत के रेलिंग पर खड़ी थी और बस छत पर से कूदने ही वाली थी की तभी रवि ने तेज़ी से दौड़ते हुए उसे अपनी तरफ खींच लिया.. ये सब करते हुए रवि का दिल बहुत ज़ोरों से धड़क रहा था कि कहीं रिया कूद ना जाए और ऐसा हो भी सकता था.. अगर रवि ने 1 सेकेंड की भी देरी की होती तो रिया आज काल की गोद मे समा गयी होती...
"पागल हो गयी हो तुम..? आर यू मॅड ओर व्हाट..? डू यू नो, व्हाट दा फक यू वर गोयिंग टू डू..?" आवेश मे आने के कारण रवि को अपने शब्दों का लिहाज़ भी नही रहा.. उसके मॅन मे जो आ रहा था बस बोलता ही जा रहा था..
"तुम्हें पता है अगर मैं टाइम पर नही आता तो तुम अभी कहाँ होती..?" रवि ने चिल्लाते हुए कहा..
"हां पता है कहाँ होती.. मर गयी होती.. इससे ज़्यादा तो कुछ नही होता ना... वैसे भी मेरी ज़िंदगी मे अब कुछ ऐसा नही है जिसके लिए मैं ज़िंदा रहूं..." रिया ने रोते हुए जवाब दिया...
"क्या बक रही हो तुम..? आख़िर अचानक हो क्या गया है तुम्हें..? कल तक तो बिल्कुल ठीक ठाक दिख रही थी.. अचानक पागल हो गयी हो क्या..?" रवि ने फिर चिल्लाते हुए कहा..
"हां हां.. पागल हो गयी हूँ मैं.. और तुम्हें कोई हक़ नही है मेरी ज़िंदगी मे दखल देने का.. होते कौन हो तुम मुझे मरने से रोकने वाले..?" रिया की ये बात रवि को किसी काँटे की तरह चुभि..
वो मंन ही मंन ना जाने कब से रिया से प्यार करने लगा था.. मगर उसकी कभी हिम्मत ना हो सकी कि वो जाके रिया को प्रपोज़ कर सके.. और अभी अचानक रवि के मुह्न से वो बात निकल गयी जो उसने कभी चाह कर भी ना कह पाई थी...
"मैं तुम्हें रोक रहा हूँ बिकॉज़ आइ लव यू.." रवि के मुह्न से ये बात निकालने की देर थी.. और "चटाक़" की आवाज़ से पूरा वातावरण गूँज उठा.. रिया का एक ज़ोरदार तमाचा रवि के गाल पर पड़ा.. रवि के कानो मे सीटी बजने लगी...
रवि को मारने के बाद उल्टा रिया घुटनो के बल बैठ गयी...और फूट फूट कर रोने लगी.. रवि ने भी उसे इस हालत मे डिस्टर्ब करना ठीक नही समझा और वो भी रिया के बगल मे बैठ गया और रिया की आपबीती सुनने की प्रतीक्षा करने लगा..
"अब कुछ बतओगि भी, कि आख़िर हुआ क्या है..? यूँ जान देने पर क्यूँ तुली हो तुम..?" काफ़ी देर तक इंतेज़ार करने के बाद अब रवि का संयम जवाब दे गया...
"क्या जानना चाहते हो तुम..? यही कि मेरी ज़िंदगी बर्बाद हो चुकी है.. अब मेरी ज़िंदगी मे कुछ नही बचा है..? यही सुनना चाहते हो ना तुम..?" रिया ने अपनी आँखों से निकल रहे आँसुओं को रोकने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा.
"ये क्या बोल रही हो तुम रिया..? मैं भला ऐसा क्यूँ चाहूँगा." इस बार रवि ने हाथ बढ़ा कर रिया की आँखों से निकल रहे आँसुओं को पोछा और उसका हाथ अपने हाथों मे ले लिया. उसका ऐसा करते ही रिया ने रवि के चेहरे की तरफ पहली बार ध्यान से देखा..
उसकी आँखों से अपने लिए प्यार ही प्यार छलकता पाया रिया ने.. मगर अब अफ़सोस करने का क्या फ़ायदा जब वो रवि के बारे मे कभी सोच ही ना पाई..
खैर रवि के समझाने पर रिया थोड़ा शांत हुई, उसे लग रहा था कि उसे एक साथी मिल गया है जिससे वो अपने दिल की बात शेर कर सकती थी.. उसने बोलना शुरू किया..
"मैं और वो कुछ साल पहले अमेरिका मे मिले थे.. अब ये मत पूछना कि वो कौन है, मैं चाह कर भी नही बता सकती उसका नाम..
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RE: non veg story एक औरत की दास्तान
.........................................................और शाम को स्नेहा के घर.........
"हां बेटा.. तो बताओ.. कैसे हो..?" ठाकुर साहब ने डाइनिंग टेबल पर अपने सामने बैठे राज से पूछा.
"ठीक हूँ अंकल.. और आप..?" ये पूछते हुए राज को ठाकुर साहब से पिछली मुलाकात वाली बात यादा आ गयी जब वो अपना खाना बीच मे छ्चोड़कर ही उठ गये थे क्यूंकी राज ने उनके सामने अपने नौकर जग्गू काका की तारीफ़ कर दी थी. उसे बुरा तो बहुत लगा था लेकिन उसने स्नेहा की खातिर कुछ नही बोला था.. उसने सर को झटकट देते हुए उस बात को अपने दिमाग़ से बाहर निकाला और ठाकुर साहब की तरफ देखने लगा..
"मैं भी ठीक हूँ बेटा, तुम्हें तो पता ही होगा कि हम ने तुम्हें यहाँ क्यूँ बुलाया है ?" ठाकुर साहब ने सीधा काम की बात पर आते हुए कहा. स्नेहा भी वहीं पर बैठी थी और ठाकुर साहब के ये सवाल करते ही उसने शर्म के मारे अपना चेहरा झुका लिया. उसकी चेहरे की लाली बता रही थी की उसकी क्या हालत हो रही है.
"जी अंकल मुझे पता है." राज ने स्नेहा की ओर देखते हुए जवाब दिया जो अब शर्म के मारे गढ़ी जा रही थी.
"तो बेटा ये बताओ, कि तुम्हारे मम्मी डॅडी तो हैं नही तो फिर तुम्हारे रिश्ते की बात किससे की जाए ?" ठाकुर साहब ने सवाल किया.
"अंकल रिश्ते की बात करने के लिए मैं हूँ ना." राज ने सीधा सा जवाब दिया.
"मगर बेटा, घर मे एक बड़े आदमी का होना ज़रूरी है ना.. दहेज मे क्या लोगे और अन्य सभी ज़रूरी बातों के लिए एक बड़े का होना तो ज़रूरी है, तुम अकेले तो पूरा काम नही संभालोगे ना..? ठाकुर साहब ना जाने क्यूँ बार बार किसी बड़े को लाने की बात कर रहे थे..
"अंकल दहेज तो मैं कभी लूँगा नही क्यूंकी मैं स्नेहा से प्यार करता हूँ और मैं दहेज के लिए इससे शादी नही कर रहा, और अगर आपको किसी बड़े से बात ही करनी है तो जग्गू काका हमेशा आपकी खिदमत मे हाज़िर होंगे." राज एक साँस मे पूरी बात बोल गया.
"मैं एक नौकर से बात करूँगा अपने दामाद के लिए..? कभी नही." ठाकुर साहब जो अब तक नर्मी से बात कर रहे थे, अचानक उनका लहज़ा कड़क हो गया.
"अंकल आप बार बार उन्हें नौकर नौकर बोलकर उनका अपमान कर रहे हैं, और ये मैं हरगीज़ बर्दाश्त नही करूँगा, वो ही मेरी मा हैं और वो ही मेरे पिता.." राज का पारा अब सांत्वे आसमान पर चढ़ गया. और वो खाना छोड़ कर उठ गया और ठाकुर विला से बाहर चला गया जहाँ उसकी बाइक लगी हुई थी, उसने बाइक स्टार्ट की और वहाँ से चला गया.
स्नेहा का मुह्न ये सब देख कर खुला का खुला रह गया.. उसे कुछ समझ मे नही आ रहा था कि वो क्या करे, अपने पिता के खिलाफ वो जा नही सकती थी और राज का साथ वो छ्चोड़ नही सकती थी.. अजीब सी कशमकश मे फँस गयी थी वो.
"पापा, ये आपने अच्छा नही किया.. इस तरह आपको जग्गू काका की बेइज़्ज़ती नही करनी चाहिए थी राज के सामने.." स्नेहा की मुह्न से अचानक ये बोल फूट पड़े और उसकी आँखों से आँसू छलक उठे.
"उस नौकर का नाम मत लो मेरे सामने." ठाकुर साहब ने गरजती हुई आवाज़ मे कहा..
"ठीक है पापा मैं नही लेती उसका नाम, लेकिन अगर मेरी शादी राज से नही हुई तो मैं अपनी जान दे दूँगी और ये मेरा आख़िरी फ़ैसला है ये.." ये बात ठाकुर साहब के ऊपर बॉम्ब की तरह गिरी.. उन्हे अपनी बेटी से प्यारा कुछ ना था.. वो भी सोचने लगे कि क्यूँ मैने बेकार मे इतनी नौटंकी कर दी.. अगर एक नौकर से अपनी बेटी के रिश्ते की बात कर ही लेता तो क्या फ़र्क पड़ जाता.. वैसे भी सारा पैसा तो राज के नाम है और वो दौलत भी अरबों(बिलियन्स) मे.. क्यूँ मैं अपने ही हाथों से अपनी बेटी की ज़िंदगी का गला घोटूं, ये सोचते हुए उसने उस तरफ देखा जिधर स्नेहा कुछ देर पहले बैठी हुई थी..
मगर अब वहाँ कोई नही था.. स्नेहा रोती हुई वहाँ से अपने कमरे मे भाग गयी थी.. ठाकुर साहब को अपने किए पर पछतावा हो रहा था.. वो उठे और अपने हाथ धोकर दरवाज़े की तरफ मुड़े और ड्राइवर को गाड़ी निकालने का आदेश दिया..
कुछ ही देर मे गाड़ी बाहर आ गयी और ठाकुर साहब उसमें चलकर बैठ गये. और ड्राइवर को "सिंघानिया मॅन्षन" की तरफ गाड़ी घुमाने का आदेश दिया और वो चल पड़े अपनी बेटी के रिश्ते की बात करने...
पूरा सहर किसी दुल्हन की तरह सज़ा हुआ था.. हर तरफ ख़ुसीया ही ख़ुसीया थी. हर तरफ लोगों की भाग दौड़ हो रही थी. गीतों की मधुर आवाज़ें पूरे वातावरण मे जैसे ख़ुसीया ही ख़ुसीया भर रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे कोई बहुत बड़ा मेला लगा हुआ हो.
आख़िर होता भी क्यूँ ना..?राजनगर के सबसे बड़े घराने की लड़की की जो शादी थी.. मेहमानो की भीड़ ऐसी कि जैसे किसी राजा महरजा के यहाँ शादी हो और वैसी ही उनकी आवभगत हो रही थी. पूरा माहौल ऐसा लग रहा था जैसे आज कोई बहुत बड़ा उत्सव हो.
उस दिन ठाकुर साहब ने जग्गू काका से मिलकर राज और स्नेहा का रिश्ता पक्का कर लिया था.. हालाँकि उन्होने दिल पर पत्थर रखकर जग्गू काका से मिलने की चेस्टा की मगर अंत मे उन्हे एक बात का सुकून मिला कि उनकी बेटी एक बड़े घर मे जा रही है, मगर उनके मंन मे क्या था ये बात शायद कोई नही जानता था. और अंत मे ये फ़ैसला हुआ था कि महीने के अंत मे जैसे ही उन दोनो की पढ़ाई ख़तम होगी और राज अपना बिज़्नेस संभाल लेगा तो उन दोनो की शादी करवा दी जाएगी.
पहले तो जग्गू काका के अपमान से क्षुब्ध राज ने थोड़ी ना नुकुर की मगर फिर काका के समझाने पर मान गया.
तभी बॅंड बाजे की आवाज़ आती सुनाई दी और इसी के साथ वहाँ खड़े सभी लोगों के बीच हलचल बढ़ गयी, स्नेहा के कोई अपने भाई बहन तो थे नही इसलिए उसके रिश्तेदारों ने ही सारा बोझ संभाला हुआ था.
जैसे जैसे बारात नज़दीक आती जा रही थी वैसे वैसे दरवाज़े पर शोर बढ़ता जा रहा था..
तभी स्नेहा अपनी सहेलियों के साथ बाल्कनी मे आकर खड़ी हो गयी.. और बारातियों के बीच राज को ढूँढने लगी मगर इस काम मे उसे देर ना लगी क्यूंकी राज बीच मे ही घोड़ी पर बैठा हुआ आ रहा था.
तभी राज ने अपना सर उठा कर ऊपर की तरफ देखा. स्नेहा को देखते ही उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा.. अब मैं इस कहानी मे और क्या बताऊ दोस्तों.. पहले ही स्नेहा के बारे मे कितना कुछ बता चुका हूँ अब वो पूरे मेकप और गहनो मे कैसी लग रही होगी ये कल्पना आपलोग खुद कर लो..
राज की हालत खराब हो गयी और पॅंट मे उसका लंड ज़ोर मारने लगा.. उसने कैसे भी अपने पप्पू को समझाया कि देख बेटा.. अभी बैठ जा वैसे भी ये माल अब तेरी ही होगी..
स्नेहा भी राज को देख कर उसकी तारीफ़ किए बिना ना रह सकी.. कितनी मासूमियत थी उसके चेहरे पर.. मगर कुछ महीनो से रवि के साथ ना होने के कारण बहुत उदास रहता था वो.. उन दोनो मे बहुत बार इस बारे मे बात भी हुई थी मगर स्नेहा ने हर बार राज को ये कहकर समझा दिया कि रवि कभी ना कभी वापस ज़रूर आ जाएगा.. मगर कोई नही जानता था कि रवि और रिया कहाँ थे और किस हालत मे थे.. मर गये थे या ज़िंदा थे..
खैर जो भी हो, बाराती नाचते गाते दरवाज़े पर पहुँच गयी. सारे रिश्तेदारों ने लड़के वालों का धूम धाम से स्वागत किया और सारे रसम निभाने के बाद लड़के को अंदर ले आए.. लड़के के पीछे सभी बाराती भी अंदर चले आए..
हर तरफ ख़ुसीया ही ख़ुसीया थी मगर राज के दिमाग़ से अब भी रवि का ख़याल निकल ही नही रहा था...
क्रमशः........................
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