non veg story एक औरत की दास्तान
11-12-2018, 12:29 PM,
#11
RE: non veg story एक औरत की दास्तान
सुबह राज की आँख जैसे ही खुली तो उसने अपने सामने स्नेहा को खड़ा पाया.. पिंक कलर की सलवार कमीज़ मे वो बहुत ही ज़्यादा खूबसूरत लग रही थी.. राज का दिल तो कर रहा था कि वो उठकर उसे बाहों मे लेकर जी भरकर प्यार करे..पर वो इस वक़्त ऐसी जगह पर था जहाँ ऐसा करना उसके लिए मुमकिन नही था.. उसने रात मे ही अपने घर फोन कर के बता दिया था कि वो आज रात अपने एक दोस्त के यहाँ रुकेगा.. इसलिए जग्गू काका उसका इंतेज़ार ना करें... फिर वो दूध पीकर सो गया था.. ना जाने कितने दिनो के बाद उसे ऐसी चैन की नींद सोने को मिली थी.. उसके दिल को एक अजीब सा सुकून मिला था...

वो अभी लेटा हुआ ये सब सोच ही रहा था कि सामने खड़ी स्नेहा बोल पड़ी... "क्यूँ महाराज.. आज सोए रहना है क्या..? सुबह के 7 बज गये हैं.. पापा नीचे तुम्हें बुला रहे हैं... तुम जल्दी से फ्रेश होकर नीचे आ जाओ फिर हम इकट्ठे कॉलेज के लिए निकलेंगे.." स्नेहा ने एक साँस मे सारी बात बोल दी..

"पर वो रात मे तुम मुझसे कुछ कहना चाहती थी..जो तुम कहते कहते रुक गयी थी... क्या तुम अभी अपनी बात पूरी नही करोगी...?" राज ने उसे छेड़ते हुए कहा.. पर ये सुनकर स्नेहा के गालों पर एक बार फिर शर्म की लाली छा गयी... वो इस बार फिर वहाँ से भागना चाहती थी पर राज ने उसका हाथ पकड़ लिया...

"छ्चोड़ो ना प्लीज़..." स्नेहा ने हाथ खींचने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा...

"ये हाथ छ्चोड़ने के लिए नही पकड़ा है जी... अब तो अगले सात जन्मों तक नही छ्चोड़ूँगा ये हाथ..." राज ने मज़े लेते हुए कहा..

"अच्छा जी.. ऐसी बात है... पर मैने तो अभी तक कुछ कहा ही नही तो आपने कैसे मान लिया कि आप मेरा हाथ सात जन्मों तक पकड़ सकते हो... अब छ्चोड़ो जल्दी..." स्नेहा ने फिर से हाथ छुड़ाने की कोशिश की पर राज की पकड़ बहुत ज़्यादा मजबूत थी..

"इतनी आसानी से नही छ्चोड़ने वाला मैं ये हाथ.. पहले तुम वो बोल दो जो रात मे बोलना चाहती थी.."

"मैं भला क्या बोलना चाहती थी..?" शर्म के मारे स्नेहा ज़मीन मे गाड़ी जेया रही थी..

"यही की.... यू लव मी.." राज ने अब सीधा सीधा पॉइंट पर आना ठीक समझा.. पर उसके ऐसे करने से स्नेहा की हालत खराब हो रही थी.. वो हाथ छुड़ाने की कोशिश भी कर रही थी पर वो हर बार नाकाम हो जाता था...

"पापा...." उसने अचानक दरवाज़े की तरफ देखते हुए ज़ोर से कहा..जिससे राज का ध्यान दरवाज़े की तरफ चला गया और उसकी पकड़ स्नेहा के हाथों पर कमज़ोर पड़ गयी... इतना वक़्त स्नेहा के लिए काफ़ी था... उसने जल्दी से अपना हाथ उसकी हाथों से छुड़ाया और हस्ती हुई नीचे की तरफ भाग गयी.. राज बस उसे देखता ही रह गया... उसकी चंचलता पर वो मस्कुराए बिना ना रह सका...

उसने घड़ी की तरफ देख तो सुबह के 7:15 हो गये थे.. वो जल्दी से उठा और बाथरूम मे घुस गया.. फ्रेश होकर वो नीचे गया जहाँ ठाकुर साहब और स्नेहा डाइनिंग टेबल पर बैठे उसका इंतेज़ात कर रहे थे.. उसने पहली बार ठाकुर साहब को आमने सामने देखा था.. हालाँकि उनकी फोटो पेपर मे वो रोज़ ही देखता रहता था पर मिला उनसे पहली बार था.. राज खुद भी एक अमीर परिवार से था और उसकी कंपनी के बिज़्नेस रिलेशन्स भी थे ठाकुर साहब की कंपनी के साथ पर उसने इन सब मे कोई ज़्यादा इंटेरेस्ट नही लेता था.. वैसे भी उसका सारा काम तो जग्गू काका ही संभालते थे तो उसे इन सब की क्या ज़रूरत थी... वो सीढ़ियों से उतरता हुआ नीचे पहुँचा.. उसके शरीर मे अब भी हल्का दर्द हो रहा था पर इतना नही की वो सहेन ना कर सके...

"आओ बेटा... बैठ जाओ.." ठाकुर साहब ने राज को देखते ही उसे पास बुलाया और कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए उसे बैठने का निमंत्रण दिया... बैठते बैठते राज ने पहली बार ठाकुर साहब को ध्यान से देखा.. ठाकुर खानदान के अनुरूप ही उनका चेहरा भी रौबिला था.. चेहरे पर कड़क मूँछें थी और गंभीरता उनके चेहरे से तपाक रही थी...

"अब तबीयत कैसी है बेटा...?"

"तबीयत तो ठीक है अंकल पर एक बात कहना चाहूँगा..." इतना बोलकर राज रुक गया...

"बोलो बोलो.. डरो मत..." ठाकुर साहब ने उसे अपने बात पूरी करने को कहा...

"जी बस ये बोलना चाहता था कि.....आपके मुस्टंडे पीटते बहुत ज़ोर से हैं..." राज ने मज़किया अंदाज़ मे कहा... ये सुनकर पास बैठी स्नेहा की हसी छूट गयी...ठाकुर साहब भी बिना मुस्कुराए ना रह सके... पहली नज़र मे ही ये लड़का उन्हे पसंद आ गया था पर ये भी जानना ज़रूरी था कि ये चोरों की तरह सुबह सुबह घर मे क्यूँ घुस रहा था..

"अरे बेटा.. उनका काम ही है पीटना... इसी के तो उन्हे पैसे मिलते हैं.. पर ये बताओ कि तुम ऐसे चोरों की तरह अंदर क्यूँ घुस रहे थे... उन्हे बता कर भी तो आ सकते थे.." ठाकुर साहब ने कहा...

"अरे क्या बताऊ अंकल... तबीयत खराब होने की वजह से मैं बहुत दिनो से कॉलेज नही गया था... सुबह मॉर्निंग वॉक पर निकला तो सोचा कि क्यूँ ना स्नेहा से जाकर नोट्स ले लूँ.. इसी चक्कर मे मैं सीधा अंदर घुस गया और वॉचमन को भी बोलना भूल गया.." राज ने कहानी बनाते हुए कहा..

"कोई बात नही बेटा.. अगली बार से याद रखना.. वरना हड्डियाँ भी नही बचेंगी..." ठाकुर साहब ने भी मज़किया लहज़े मे कहा..

"अंकल जी.. आप चिंता ना करें... अगली बार से उसकी ज़रूरत ही नही पड़ेगी.. अब तो हमारा रिश्ता हो गया है... आइ मीन दोस्ती का रिश्ता..." राज ने स्नेहा की तरफ देखते हुए कहा जो अब सर नीचे झुकाए मुस्कुरा रही थी.. उसके चेहरे पर ये मुस्कुराहट इतनी अच्छी लग रही थी कि राज का मंन कर रहा था कि उठकर उसके होठों को अपने होठों मे दबा ले..पर हालत और जगह सही नही थे अभी..इसलिए उसे अपने आप पर काबू करना पड़ा..

"बेटा एक बात तो बताओ.. तुम धनराज सिंघानिया के बेटे राज सिंघानिया हो क्या...?" अब ठाकुर साहब ने उसके परिवार के बारे मे जानने की कोशिश की...

"हां अंकल मैं उन्ही का बेटा हूँ.. पर मुझे तो अब उनका चेहरा ही याद नही.. आपको तो शायद पता ही होगा उनके बारे मे..." राज का चेहरा अपने मा बाप के बारे मे सोचकर उदास हो गया था...

"हां बेटा... बड़े भले आदमी थे तुम्हारे मम्मी डॅडी... हमारे अच्छे बिज़्नेस रिलेशन्स हुआ करते थे.. बड़ा धक्का लगा था जब हम ने उनके मौत की खबर सुनी थी.. खैर छ्चोड़ो.. ये बताओ कि अब तुम किसके साथ रहते हो..?" ठाकुर साहब ने उसके मा बाप की बात को अब आगे बढ़ाना ठीक नही समझा.. उसने राज के चेहरे पर आई उदासी को भाँप लिया था...

"अंकल.. मम्मी पापा के मरने के बाद तो मेरी परवरिश जग्गू काका ने की... मैं अब भी उन्ही के साथ रहता हूँ.."

"जग्गू कौन..? वो नौकर...?" ठाकुर साहब ने राज के मा बाप के मरने के बाद अपन सारे बिज़्नेस रिलेशन्स उसकी पापा की कंपनी के साथ तोड़ दिए थे क्यूंकी उनकी नज़र मे एक नौकर इतनी बड़ी कंपनी कैसे चला सकता था पर जग्गू काका ने ना केवल वो कंपनी चलाई थी बल्कि उनकी कंपनी हमेशा प्रॉफिट मे ही रही थी..

"अंकल.. वो आपके लिए नौकर होंगे पर मेरे लिए तो वो किसी देवता से कम नही हैं.. वोही मेरी मा हैं..वोही मेरे बाप.. अगर वो ना होते तो मैं ना होता... " राज को यूँ एक नौकर का गुणगान करते देख ठाकुर साहब को अच्छा नही लगा और उन्होने वहाँ से उठना ही ठीक समझा क्यूंकी अगर वो ना उठते तो उनके मुह्न से कुछ ग़लत निकल जाता जो कि उन्हे लगा कि राज को पसंद नही आएगा..

"ठीक है.. तुम दोनो नाश्ता कर लो.. मेरा नाश्ता हो गया..." ठाकुर साहब ने नॅपकिन मे हाथ पोंछते हुए कहा और फिर कुर्सी पीछे सरका कर डाइनिंग टेबल से उठ गये और अपने कमरे की तरफ चल दिए...

"लगता है..उन्हे एक नौकर की तारीफ़ पसंद नही आई.." उनके कमरे मे जाते ही राज ने स्नेहा से कहा..

"ऐसी कोई बात नही है राज.. उनका पेट भर गया होगा इसलिए वो उठकर चले गये... तुम इतना मत सोचो इसके बारे मे.."स्नेहा को पता था कि बात यही है फिर भी उसने अपने बाप की जलन को च्छुपाने की कोशिश की..

"कोई बात नही स्नेहा.. पर एक बात याद रखना.. अगर जग्गू काका के लिए मुझे अपने प्यार को कुर्बान भी करना पड़े तो मैं वो भी करूँगा.." राज ने अपना इरादा बता दिया..

"पर तुम्हारा प्यार है कौन जो तुम उसे कुर्बान करने की बात कर रहे हो..?" स्नेहा ने बात को बदलने की कोशिश करते हुए मज़किया ढंग से कहा..

"अजी.. क्यूँ मज़ाक करती हैं मोह्तर्मा... ये आप भी जानती है और हम भी की हमारा प्यार कौन है..." राज भी अब मज़ाक के मूड मे आ गया...

"मैं क्यूँ जानने लगी भला आपके प्यार को... आपके प्यार को आप खुद जाने और आपका प्यार जाने..." स्नेहा ने भी चटखारे लेते हुए कहा..

"स्नेहा.. एक बार कह दो ना.. आइ लव यू..." राज ने फिर से सीधा पॉइंट पर आते हुए कहा.. ये सुनकर स्नेहा थोड़ा शरमाई पर उसे राज को तड़पाने मे बहुत मज़ा आ रहा था...

"मैं क्यूँ बोलूं..आइ लव यू..? वो तो आपका प्यार बोलेगा आपसे..." स्नेहा ने फिर भी तड़पाना नही छ्चोड़ा...

"बोल भी दो ना... प्लीज़..." इस बार राज ने हाथ जोड़ लिए उसके सामने... प्यार मे लोग ना जाने क्या क्या करते हैं.. स्नेहा से अब उसकी ये तड़प देखी नही जा रही थी... उसने अभी आइ लव यू बोलने के लिए मुहन खोला ही था कि ठाकुर साहब के कमरे से आवाज़ आ गयी..

"स्नेहा... बैठकर बातें ही करती रहोगी क्या... 9 बज गये हैं.. तुम्हारे कॉलेज का टाइम हो गया है..." इस आवाज़ ने राज का इंतेज़ार और बढ़ा दिया... और स्नेहा को उसे और तड़पाने का बहाना मिल गया... वो उसे मुह्न चिढ़ाती हुई डाइनिंग टेबल से उठ गयी.. और राज अपने हाथ मलता रह गया.. ये इनेत्ज़ार ख़तम होने का नाम ही नही ले रहा था... जब भी प्यार का इज़हार होने वाला होता, कोई ना कोई रोड़ा बीच मे आ ही जाता... राज को अब बहुत गुस्सा आ रहा था अपनी किस्मत पर... वो डाइनिंग टेबल से उठा और हाथ धोकर गेट से बाहर निकल गया.. उसने स्नेहा को भी नही बताया कि वो जा रहा है.. बाहर निकलते ही तीनो मुस्टंडे उसे फिर से दिख गये... इस बार उनके साथ वॉचमन भी था.. उसे देखते ही चारो ने सलाम ठोका पर राज ने इस पर कोई ध्यान नही दिया.. उसके दिमाग़ पर तो गुस्सा छाया हुआ था... उसने अपनी बाइक स्टार्ट की और फुल स्पीड के साथ कॉलेज की तरफ बढ़ा दी... अंदर स्नेहा उसे ढूँढ रही थी और जब ढूँढती हुई बाहर आई तो उसे पता लगा कि वो चला गया है.. उसे समझ आ गया कि राज उससे गुस्सा है..

क्रमशः.........................
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11-12-2018, 12:30 PM,
#12
RE: non veg story एक औरत की दास्तान
एक औरत की दास्तान--6

गतान्क से आगे...........................

जिस दिन तू आएगा मुझे सर-ए-आम अपनाने,

उस दिन मैं खामोशी के दायरे को तोड़ दूँगी,

फास्लो पे रहकर भी हमारे जज़्बात जुड़े है मज़बूत धागे से,

जब हम होंगे साथ तो मैं अपनी सांसो की लड़िया भी तुझसे जोड़ दूँगी,

यू तो आज भी मेरे रुख़ सार तेरी ही तरफ मुड़ते है,

पर तुझे पा के मैं अपनी ज़िंदगी भी तेरी तरफ मोड़ दूँगी,

इंतेज़ार है मुझे उस पल का मेरे अजनबी..

जब थाम के तेरा हाथ मैं तन्हाई का दामन हमेशा के लिए छ्चोड़ दूँगी.........

कॉलेज जाते हुए स्नेहा के मंन मे यही बात घूम रही थी.. उसका मंन ऐसा कर रहा था जैसे वो उड़ कर जाए और राज की बाहों मे समा जाए. पर उसे सबसे ज़्यादा डर अपने पापा से लग रहा था.. हालाँकि उसने अपने दिल मे राज को जगह तो दे दी थी पर क्या ये रिश्ता उसके बाप को मंजूर होगा.. राज के बारे मे उसे कोई फिकर ना थी क्यूंकी वो जानती थी कि वो उससे बेन्तेहा प्यार करता है..

इन्ही सोचों मे डूबी हुई वो कॉलेज पहुँच गयी..

************

ट्रेन पर बैठी लड़की अचानक चौंक उठी.. वो अपने सोच से बाहर आ चुकी थी.. क्यूंकी सामने जो लोग उसे दिखाई दे रहे थे उन्हे देखते ही उसकी जान निकल गयी.. वो जल्दी से अपनी सीट से उठी और भागती हुई ट्रेन मे बने बाथरूम मे घुस गयी..

"खोजो उसे.. यहीं कहीं होनी चाहिए वो लड़की.. बच के जानी नही चाहिए.. वरना हम सर को क्या जवाब देंगे.." बाहर से आवाज़ें आ रही थी. ट्रेन अभी किसी अंजान स्टेशन पर रुकी हुई थी. उससे लड़की को पता नही चल पा रहा था, कि ट्रेन कहाँ है.

उसने बाथरूम की खिड़की से आस पास देखा तो पाया कि वो एक छोटा सा स्टेशन है..जहाँ इकके दुक्के लोग ही दिखाई दे रहे थे. उसे साइड मे एक बोर्ड दिखाई दिया जिसमें छोटे अक्षरों मे रामपुर दिखाई दिया.

वो तो यूँही इस ट्रेन मे घुस गयी थी.. जहाँ उसे मंज़िल ले जाती वो वहीं जाने वाली थी.. ज़िंदगी मे अब उसके कुछ नही बचा था..

हां.. सबकुछ खो दिया था उसने.. वो भी एक ही झटके मे..

जीने की इच्छा ख़त्म हो चुकी थी.. पर खुदको मार भी तो नही सकती थी.. कैसे ख़त्म करती खुदको...?

उसके पेट मे उसके पति के प्यार का तोहफा जो पल रहा था..

तभी ट्रेन खुल गयी... शाम हो चुकी थी.. और अंधेरा घिरने को था. बाहर से आवाज़ें आनी भी बंद हो चुकी थी. उसने दरवाज़ा खोला और बाहर झाँका..पर उसे उनमे से कोई आदमी नही दिखा..ट्रेन भी अब अपनी पूरी रफ़्तार पकड़ चुकी थी.. वो अपने सीट पर वापस आई और कुछ सोचने लगी.. शायद यही सोच रही थी कि उसे पोलीस ने यहाँ तक ढूँढ लिया है तो आगे भी उसका बचना अब मुश्किल ही था.. उसने सर को झटका दिया और फिर वापस उन्ही ख़यालों मे खो गयी...

**********

स्नेहा कॉलेज पहुँच चुकी थी मगर राज अब भी उसे कहीं दिखाई नही दे रहा था..

"पता नही कहाँ चला गया.." वो अभी ये सोच ही रही थी कि उसे सामने से रवि आता हुआ दिखाई दिया... रवि ने दूर से ही भाँप लिया था कि स्नेहा उसी की तरफ देख रही है..बस उसके इशारे का इंतेज़ार कर रहा था.. और उसे ज़्यादा देर इंतेज़ार भी नही करना पड़ा..

स्नेहा ने हाथों के हल्के से इशारे से उसे अपने पास बुलाया ताकि कोई देख ना ले... फिर स्नेहा धीरे धीरे गार्डन की तरफ जाने लगी और रवि भी उसके पीछे पीछे गार्डन की ओर चला गया..

एक सुनसान जगह पाकर वो दोनो रुक गये...

"हां स्नेहा बोलो.. यहाँ कोने मे क्यूँ बुलाया.." रवि ने शैतानी मुस्कान के साथ कहा..

"ज़्यादा खुश होने की ज़रूरत नही है... ये बताओ राज कहाँ है...?" स्नेहा के इस तरह से पूछने से रवि ने अपने होंठों को नॉर्मल कर लिया और किसी जेंटलमॅन की तरह खड़ा हो गया पर जैसे ही स्नेहा ने राज के बारे मे पूछा तो उसकी मुस्कान फिर वापस आ गयी..

"क्यूँ बड़ी याद आ रही है राज की.. क्या बात है...?" रवि ने फिर से दाँत निकालते हुए कहा..

रवि को ऐसे दाँत निकालते देख कर स्नेहा को बड़ा गुस्सा आया और उसके सुंदर चेहरा लाल हो गया..

ये देखकर रवि भाई साहब फिर शांत हो गये..

"देखो स्नेहा.. मैं भी सुबह से राज का फोन ट्राइ कर रहा हूँ.. पर पता नही कहाँ मर गया साला.." रवि ने भी राज के प्रति गुस्से का इज़हार करते हुए कहा..

"आज सुबह तो वो मेरे घर से निकला.. पर पता नही फिर कहाँ चला गया..." अब स्नेहा के चेहरे पर उदासी का भाव आ गया..

"क्या वो तुम्हारे घर पर था..?" रवि ने ऐसा मुह्न बनाया जैसे उसे कुछ पता ही ना हो.. पर एक बात स्नेहा नोट करना भूल गयी..वो ये कि रवि ये बोलते हुए बड़ी मुश्किल से अपनी हसी को रोक पा रहा था... स्नेहा की सूरत ऐसी हो गयी..जैसे वो बस अब रोने ही वाली हो..

"कहाँ चला गया मेरा राज..?" स्नेहा अब शायद सच मे रोने लगी थी.. उसकी सिसकियाँ सॉफ सुनी जा सकती थी..

रवि ये सब देख कर मंद मंद मुस्कुराए जा रहा था.. और सामने स्नेहा के आँसू अब और तेज़ी से बह रहे थे...

तभी स्नेहा को अपने कंधों पर कुछ महसूस हुआ... उसने पीछे घूमकर देखा तो सामने राज खड़ा था.. और बड़े जोरों से हस रहा था... हस्ते हस्ते उसकी आँखों से पानी निकल आया...

स्नेहा ने जैसे उसे हस्ते देखा.. उसके आँसू गुस्से मे बदल गये और "चटाक़" की आवाज़ से पूरा गार्डन गूँज उठा.
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11-12-2018, 12:30 PM,
#13
RE: non veg story एक औरत की दास्तान
थप्पड़ की आवाज़ सुनकर गार्डन मे बैठे सारे लोग उसी तरफ देखने लगे कि आख़िर माजरा क्या है..

रवि भी उन दोनो की ही तरफ देख रहा था.. जिस चेहरे पर अभी तक मुस्कान थी..उसकी जगह अब खुला हुआ मुह्न था.

"क्या समझते हो तुम खुदको..?"स्नेहा ज़ोर से चिल्लाई.. आवाज़ इतनी ज़्यादा थी कि वहाँ पर खड़ा हर कोई उन्हे सुन सकता था.. कितने लड़कों को दिल ही दिल मे सुकून मिल रहा था कि आख़िर इस स्नेहा ने राज से पीछा छुड़ा ही लिया अब..

राज अपना गाल पकड़े खड़ा था और बिल्कुल स्नेहा की तरफ आखें फाडे देखे जा रहा था..उसके मुह्न से कोई आवाज़ नही निकल रही थी.. कहाँ उसने सोचा था कि वो आज अपने प्यार का इज़हार करेगा.. कहाँ उसे थप्पड़ पड़ने लगे.

"मेरी बात का जवाब क्यूँ नही देते..? क्या समझते हो तुम खुदको...?"

"ज़ोरु का गुलाम.. ओह सॉरी.. तीस मार ख़ान.. ओह फिर से सॉरी.." राज उसकी बातों को अनदेखा करते हुए फिर से मज़ाक के मूड मे आ गया था और स्नेहा ने ये भाँप भी लिया था और मंन ही मंन वो भी अपना मूड बदलना चाह रही थी मगर फिर उसने अपना मंन बदल दिया और गुस्सा होने का नाटक करने लगी...

चलो मेरे साथ तुम.. उसने राज का हाथ पकड़ा और खीच कर अपनी कार की ओर ले जाने लगी..

"छ्चोड़ो मेरा हाथ.. लोग क्या सोचेंगे..? हर जगह लड़के लड़कियों को खिचते हैं..यहाँ तुम ही मुझे खींच रही हो..." राज ने हाथ छुड़ाने की झूठी कोशिश की.. सब लोग उन दोनो को ही देख रहे थे..

जो लड़के अब तक खुश हो रहे थे उनकी धड़कनें तेज़ हो गयी कि अब क्या होने वाला है...

स्नेहा उसे खींच कर कार के पास ले गयी और कार का दरवाज़ा खोलकर उसे अंदर धक्का दे दिया... फिर खुद जाकर ड्राइवर'स सीट पर बैठी और पूरी स्पीड से कार वहाँ से भगा दी..

"कहाँ ले जा रही हो तुम मुझे...?" राज ने पूछा पर स्नेहा ने कोई जवाब नही दिया..

"बोलो ना कहाँ ले जा रही हो...?"दूसरी बार पूछने पर भी स्नेहा ने कोई जवाब नही दिया.. ऐसे ही काई बार पूछते रहने पर भी स्नेहा चुप रही..

"मैं आख़िरी बार पूछ रहा हूँ.. कहीं तुम मुझे मारने तो नही ले जा रही..?" इतने सुनते ही स्नेहा ने ब्रेक लगा दिया..और गाड़ी रोक दी.. फिर अचानक राज की तरफ झपटी और उसका चेहरा अपनी हाथों मे ले लिया.. और पल भर मे ही उसके होंठ राज के होठों से जा मिले..

क्या अद्भुत द्रिश्य था वो.. जब दो प्रेमियों के होठों का मिलन हो रहा था जो ना जाने कब से एक दूसरे के लिए तड़प रहे थे.. राज ने भी उससे अलग हटने की कोशिश नही की और दोनो के होंठ आपस मे गुत्थम गुत्था हो गये जैसे कि आज एक दूसरे को अपने अंदर समा लेना चाहते हों..

ना जाने कितनी देर तक एक दूसरे के होठों का रास्पान करते रहे दोनो और जब अंत मे उनकी साँस फूलने लगी तब जाकर दोनो अलग हुए..

"क्यूँ बताओ अब मज़ा आया..?"स्नेहा ने मुस्कुराते हुए कहा..

"ये काम हम वहाँ भी तो कर सकते थे तो तुम मुझे इतनी दूर क्यूँ लेकर आई..?" राज ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा..

"अरे बुद्धू तुम्हें इतना भी दिमाग़ नही है.. ये काम किसी सुनसान जगह पर करना चाहिए ताकि हमे कोई देख ना ले.." राज ने आस पास देखा तो पाया कि वो जगह बिल्कुल सुनसान है जैसे वहाँ कोई आता जाता ही ना हो..

"अच्छी जगह खोज रखी है इन सब कामों के लिए..?" राज ने शैतानी मुस्कान के साथ कहा..

"मैं क्यूँ खोजने लगी ये जगह..? वो जो सामने बांग्ला देख रहे हो ना वो हमारा फार्म हाउस है.. हम कभी कभी छुट्टियाँ मनाने यहाँ आते रहते हैं.." स्नेहा ने एक तरफ इशारा किया जहाँ पर एक सफेद रंग का बड़ा सा घर बना हुआ था..

"ओह अच्छा...!! तो चलो.. थोड़ी मस्ती कर लें.." राज ने फिर मज़े लेते हुए कहा.. इस पर स्नेहा का चेहरा देखने लायक हो गया.. जिसपर अब शर्म की लाली छा चुकी थी..

"ये क्या बोल रहे हो तुम..? चलो चलते हैं यहाँ से..." स्नेहा ने गाड़ी स्टार्ट करने के लिए चाबी की तरफ हाथ बढ़ाया ही था कि राज ने उसका हाथ पकड़ लिया..

"इतनी भी क्या जल्दी है..? एक बार आइ लव यू तो बोल दो..." राज ने उसका हाथ अपनी तरफ खिच लिया जिससे स्नेहा राज की बाहों मे समा गयी..

"क्यूँ तंग कर रहे हो छ्चोड़ो ना.."

"नही छोड़डूँगा.. जब तक तुम मुझे आइ लव यू नही बोलती..मैं नही छोड़डूँगा.." राज ने उसे कसकर अपनी बाहों मे जाकड़ लिया.. स्नेहा को छूटने का अब कोई रास्ता दिखाई नही दे रहा था...

"अच्छा अच्छा आइ लव यू.. बस हो गया अब छ्चोड़ दो.."

"नही ऐसे नही.. बोलो आइ लव यू राज.."

"आइ लव यू राज.." इतना बोलते ही राज ने एक बार फिर उसके होठों पर अपने होंठ रख दिए और एक दीर्घ चुंबन के बाद उसे छ्चोड़ दिया..

वो मुस्कुराती हुई उसकी बाहों से निकल गयी और गाड़ी स्टार्ट करके वापस कॉलेज की तरफ चल दी.. उसका मॅन तो था कि ज़िंदगी भर राज की बाहों मे बैठी रहे मगर वक़्त को ना कोई वापस ला सकता है और किस्मत को ना कोई बदल सकता है.. और पता नही अभी स्नेहा की ज़िंदगी मे और कितनी तूफान आने वाले थे.. और "धोखा" नाम का शब्द उसकी ज़िंदगी को नर्क बनाने वाला था.

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"मुझे एक बात कहनी है तुमसे." रिया ने अपने पास बैठे उस लड़के को कुछ बोलने के पहले उसकी इज़ाज़त लेते हुए कहा.

"हां बोलो. क्या बोलना है जान.?" वो लड़का जो अभी रिया की चुचियों के बीच हाथ घुमा रहा था अब रिया की तरफ देखने लगा.लेकिन थोड़ी देर बाद ही फिर से उसकी चुचियों को मसल्ने लगा.

"क्या तुम सुनने के लिए तैय्यार हो जो मैं तुम्हें बताने जा रही हूँ?" रिया ने फिर पूछा.

"हां जान,तुम बोलो और मैं ना सुनू.." उसने अब रिया की ब्रा उतारकर उसकी निपल को अपने मुह्न मे ले लिया था और रिया की मखमली चूत पर हाथ फिरा रहा था. जहाँ रिया ने अब भी पॅंटी डाल रखी थी..

"सोच लो." रिया ने फिर कहा..

"अब क्यूँ मेरा दिमाग़ खा रही हो. जो बोलना है जल्दी बोलो अब.." उस लड़के ने झल्लाते हुए कहा. और अपना मुह्न रिया की गोल गोल मदमस्त चुचियों पर से हटा लिया.

"मेरे पेट मे तुम्हारा प्यार पल रहा है." रिया ने उस लड़के पर बॉम्ब फोड़ा.

"क्या बकवास कर रही हो.?" वो लड़का जो अब रिया की चूत मे उंगली डाल चुका था उसने एक झटके से उंगली निकाल ली. रिया जिसने अब शीष्कारियाँ लेनी शुरू कर दी थी,अचानक ही शांत पड़ गयी.

"मैं बकवास नही कर रही हूँ..ये सच है. मैं तुम्हारे प्यार को अपने पेट मे पाल रही हूँ.. कल ही मुझे उल्टियाँ आई थी.." रिया ने अपनी बात पर ज़ोर देते हुए कहा..

"उल्टियाँ किसी और कारण से भी तो आ सकती हैं.." लड़के ने कहा.

"पर मैने डॉक्टर से चेकप करवाया..."

"तो गिरा दो इसे.. अबॉर्षन करवा लो.. डू इट आस सून आस पासिबल" लड़के ने रिया पर ज़ोर देते हुए कहा..पर हमेशा की तरह जैसा क़िस्से कहानियों मे होता है.. रिया ने भी अबॉर्षन करवाने से मना कर दिया..

"मैं नही गिराउन्गि इसे.. ये हमारे प्यार की निशानी है.." रिया की आँखों मे अब आँसू आ गये थे..मगर वो लड़का अपनी बात पर अड़ा हुआ था.. और साथ साथ ही वो रिया के जिस्म से भी खेल रहा था..और उसका लंड अब पेंट के बाहर आकर फुंफ़कार रहा था..

उसने आव देखा ना ताव सीधा अपना लंड रिया के गले मे उतार दिया और उसके बाल पकड़ कर लंड को अंदर बाहर करने लगा..

"साली रंडी.. मैने तुझे बोला था मुझसे चुदवाने को..? अब जब तेरे पेट मे किसी और का पाप आ गया तो मेरे ऊपर इल्ज़ाम लगा रही है.." अब उस लड़के ने रिया के मुह्न से लंड निकाल कर उसकी गुलाबी चूत मे डाल दिया और ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने लगा और फिर से रिया को गालियाँ देने लगा..

"साली कुतिया.. जाने कितने जगह चुदवा कर आई है तू.. और जब किसी का पाप तेरे पेट मे आ गया..तो मेरे पास आ कर बोल रही है.. ये ले.. आज तेरी चूत का वो हाल बनाउँगा कि कभी चल नही पाएगी.. और उसने धक्के और तेज़ कर दिए.. रिया की चूत मे बहुत ज़ोरों का दर्द होने लगा. वो लड़का इतने ज़ोरों से धकके लगा रहा था कि रिया की चूत की दीवारें छिल रही थी..

"मैं सच कह रही हूँ...ह...ते तुम्हारा ही खून है.. ओह्ह्ह्ह..माआअ.... आआहह.....धीरे करो... बहुत दर्द हो रहा है..." रिया ने विनती करते हुए कहा पर उस लड़के ने एक ना सुनी और अपना लंड तेज़ी से उसकी चूत मे ठोकता रहा. रिया को इतना दर्द हो रहा था कि अब उसके मुह्न से आवाज़ नही निकल रही थी..मगर वो लड़का जानवरों की तरह उसे चोद रहा था.

"आअहह..ऑश. उययययीीमाआअ...ऊऊआाआअ" रिया के सुंदर चेहरा लाल हो चुका था और उसकी आँखों से आँसू निकल रहे थे. मगर वो लड़का और ज़ोर से धक्के लगा रहा था और रिया के बालों को खींच रहा था.

क्रमशः.........................
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11-12-2018, 12:30 PM,
#14
RE: non veg story एक औरत की दास्तान
एक औरत की दास्तान--7

गतान्क से आगे...........................

रिया की चूत मे अब बड़ा दर्द होने लगा और अचानक उसकी चूत से खून निकल आया. रिया की दर्द के मारे जान निकली जा रही थी मगर वो लड़का खून देखकर भी नही रुका औट तेज़ी से अपना लंड अंदर बाहर करता रहा. धीरे धीरे उसके धक्के बहुत ज़्यादा तेज़ हो गये. और रिया की आवाज़ भी तेज़ हो गयी. अपने धक्कों की स्पीड पूरी तेज़ करते हुए उसने एक लंबी दहाड़ मारते हुए अपना सारा माल रिया की चूत मे झाड़ दिया और धम्म से रिया की नंगी गोल मटोल चुचियों पर गिर गया. रिया भी अबतक 3-4 बार झाड़ चुकी थी. और उसकी चूत से अब खून, वीर्य और रिया का काम रस. तीनो एक साथ बाहर आ रहे थे.

कुछ देर बाद वो लड़का नॉर्मल हो गया और रिया के चूत का दर्द भी कम हो चुका था.

"मैं सच बोल रही हूँ जान. ये हमारा प्यार ही है जो मेरे पेट मे पल रहा है." रिया ने फिर से उसे मनाने की कोशिश की. मगर अब उस लड़के की शारीरिक इच्छा की पूर्ति हो चुकी थी.

"चुप कर रंडी. किसी और के पाप को मेरा प्यार मत बोल." वो लड़का बिस्तर से उठा और रिया के कपड़े उठा कर उसकी तरफ फेंक दिए. "जल्दी से पहन ले ये कपड़े और निकल जा मेरे घर से."

"प्लीज़ मेरे साथ ऐसा मत करो.मेरे घर वालों को पता चल गया तो वो मुझे मार डालेंगे." रिया ने हाथ जोड़ते हुए कहा.

"तो जा मर जा ना. मगर मेरा पीछा छ्चोड़ दे कुतिया." वो लड़का फिर चिल्लाया.

"प्लीज़" रिया ने हाथ जोड़कर सर नीचे किए हुए कहा. अब उसकी आँखों से आँसुओं की बाढ़ आ रही थी.

"लगता है तू ऐसे नही मानेगी रंडी." इतना बोलकर उस लड़के ने रिया को नंगी ही खींचकर अपने घर के बाहर ले जाकर फेंक दिया. रिया ने बहुत विनती की पर उसने रिया की एक ना सुनी. घर के बाहर रिया जल्दी से एक पेड़ के पीछे चली गयी और कपड़े डालकर चल पड़ी अपने ज़िंदगी का अंत करने.....

उधर.................................

"हां हां फिर आगे क्या हुआ.. जल्दी बता जल्दी बता ना.." रवि ये बोलते हुए काफ़ी एग्ज़ाइटेड लग रहा था..

"फिर क्या उसने गाड़ी रोकी और लगी मुझे चूमने..हहहे" राज ने हेस्ट हुए कहा... वापस आने के बाद राज गाड़ी से उतरकर सीधा रवि से मिलने आ गया था.. और स्नेहा अपने दोस्तों के पास चली गयी थी..

"अरे यार तब तो तुझे बड़ा मज़ा आया होगा.." रवि ऐसे पूछ रहा था जैसे वो कहानी सुनना नही सीधा पूरी फिल्म देखना चाहता हो..

"अरे यार मज़ा.. इतना मज़ा आया कि पूछ मत, मगर स्नेहा ने उससे ज़्यादा कुछ करने नही दिया वरना और मज़ा आता..हहहे" राज ने फिर से दाँत निकाल दिए..

"हॅट साले अनाड़ी की औलाद.. मैं तेरी जगह होता तो आज ही सब कुछ कर लिया होता.. खैर मैं चला मूतने.. तू यहाँ बैठ कर सपने देख स्नेहा को बिस्तर पर ले जाने के.. हाहाहा.." रवि ने ज़ोर से ठहाका लगाया.. ये बात सुनकर राज को गुस्सा आ गया..

"अबे जेया ना.. मैं नही जानता क्या..? तू साले बाथरूम मे मूतने नही मूठ मारने जा रहा है.. लड़की तो पटती नही बस यही कर सकता है.." राज ने मुह्न बनाते हुए कहा...

"अबे चुप.. मेरी भी ज़िंदगी मे कोई ना कोई ज़रूर आएगी.. फिलहाल मैं चला" इतना बोलकर रवि वहाँ से उठ गया.. कॉलेज की छुट्टी हो चुकी थी मगर वो दोनो अब भी कॅंटीन मे बैठकर बातें कर रहे थे..

रवि सीटी मारता हुआ बाथरूम मे गया और ज़िप खोलकर मुत्र विसर्जन करने लगा..

टाय्लेट मे साइड मे एक खिड़की लगी हुई थी जिससे रवि जिस विंग मे था उसकी छत नज़र आती थी.. रवि पेशाब करते हुए उसी तरफ देखे जा रहा था.. उसे लग रहा था कि शायद आज कोई अनहोनी होने वाली है.. पता नही क्या मगर कुछ तो होने वाला था.. रवि ने पॅंट की ज़िप बंद की और हाथ धोके बाहर आ गया.. फिर अचानक पता नही कहा से उसके मन मे ख़याल आया कि क्यूँ ना आज कॉलेज की छत पर घूमकर आया जाए..

रवि के कदम जो अभी कॅंटीन की तरफ जा रहे थे, वो सीढ़ियों की तरफ मूड गये.. रवि अपने जीन्स की पॉकेट मे हाथ डालकर मस्तमौला अंदाज़ मे सीटी बजाता हुआ एक एक सीढ़ियाँ चढ़ने लगा.. जैसे जैसे वो एक एक सीढ़ियाँ चढ़ता जा रहा था उसका मंन और भी व्याकुल होता जा रहा था.. पता नही आज क्या होने वाला था..

अचानक उसने अपने कदमों की तेज़ी बढ़ा दी और तेज़ी से ऊपर चढ़ने लगा.. और 2 मिनिट मे छत पर पहुँच गया.. वहाँ जो उसने देखा वो दिल दहला देने वाला नज़ारा था.. वहाँ और कोई नही बल्कि रिया खड़ी थी..

खड़ी नही बल्कि यूँ कहें कि वो मरने वाली थी.. रिया छत के रेलिंग पर खड़ी थी और बस छत पर से कूदने ही वाली थी की तभी रवि ने तेज़ी से दौड़ते हुए उसे अपनी तरफ खींच लिया.. ये सब करते हुए रवि का दिल बहुत ज़ोरों से धड़क रहा था कि कहीं रिया कूद ना जाए और ऐसा हो भी सकता था.. अगर रवि ने 1 सेकेंड की भी देरी की होती तो रिया आज काल की गोद मे समा गयी होती...

"पागल हो गयी हो तुम..? आर यू मॅड ओर व्हाट..? डू यू नो, व्हाट दा फक यू वर गोयिंग टू डू..?" आवेश मे आने के कारण रवि को अपने शब्दों का लिहाज़ भी नही रहा.. उसके मॅन मे जो आ रहा था बस बोलता ही जा रहा था..

"तुम्हें पता है अगर मैं टाइम पर नही आता तो तुम अभी कहाँ होती..?" रवि ने चिल्लाते हुए कहा..

"हां पता है कहाँ होती.. मर गयी होती.. इससे ज़्यादा तो कुछ नही होता ना... वैसे भी मेरी ज़िंदगी मे अब कुछ ऐसा नही है जिसके लिए मैं ज़िंदा रहूं..." रिया ने रोते हुए जवाब दिया...

"क्या बक रही हो तुम..? आख़िर अचानक हो क्या गया है तुम्हें..? कल तक तो बिल्कुल ठीक ठाक दिख रही थी.. अचानक पागल हो गयी हो क्या..?" रवि ने फिर चिल्लाते हुए कहा..

"हां हां.. पागल हो गयी हूँ मैं.. और तुम्हें कोई हक़ नही है मेरी ज़िंदगी मे दखल देने का.. होते कौन हो तुम मुझे मरने से रोकने वाले..?" रिया की ये बात रवि को किसी काँटे की तरह चुभि..

वो मंन ही मंन ना जाने कब से रिया से प्यार करने लगा था.. मगर उसकी कभी हिम्मत ना हो सकी कि वो जाके रिया को प्रपोज़ कर सके.. और अभी अचानक रवि के मुह्न से वो बात निकल गयी जो उसने कभी चाह कर भी ना कह पाई थी...

"मैं तुम्हें रोक रहा हूँ बिकॉज़ आइ लव यू.." रवि के मुह्न से ये बात निकालने की देर थी.. और "चटाक़" की आवाज़ से पूरा वातावरण गूँज उठा.. रिया का एक ज़ोरदार तमाचा रवि के गाल पर पड़ा.. रवि के कानो मे सीटी बजने लगी...

रवि को मारने के बाद उल्टा रिया घुटनो के बल बैठ गयी...और फूट फूट कर रोने लगी.. रवि ने भी उसे इस हालत मे डिस्टर्ब करना ठीक नही समझा और वो भी रिया के बगल मे बैठ गया और रिया की आपबीती सुनने की प्रतीक्षा करने लगा..

"अब कुछ बतओगि भी, कि आख़िर हुआ क्या है..? यूँ जान देने पर क्यूँ तुली हो तुम..?" काफ़ी देर तक इंतेज़ार करने के बाद अब रवि का संयम जवाब दे गया...

"क्या जानना चाहते हो तुम..? यही कि मेरी ज़िंदगी बर्बाद हो चुकी है.. अब मेरी ज़िंदगी मे कुछ नही बचा है..? यही सुनना चाहते हो ना तुम..?" रिया ने अपनी आँखों से निकल रहे आँसुओं को रोकने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा.

"ये क्या बोल रही हो तुम रिया..? मैं भला ऐसा क्यूँ चाहूँगा." इस बार रवि ने हाथ बढ़ा कर रिया की आँखों से निकल रहे आँसुओं को पोछा और उसका हाथ अपने हाथों मे ले लिया. उसका ऐसा करते ही रिया ने रवि के चेहरे की तरफ पहली बार ध्यान से देखा..

उसकी आँखों से अपने लिए प्यार ही प्यार छलकता पाया रिया ने.. मगर अब अफ़सोस करने का क्या फ़ायदा जब वो रवि के बारे मे कभी सोच ही ना पाई..

खैर रवि के समझाने पर रिया थोड़ा शांत हुई, उसे लग रहा था कि उसे एक साथी मिल गया है जिससे वो अपने दिल की बात शेर कर सकती थी.. उसने बोलना शुरू किया..

"मैं और वो कुछ साल पहले अमेरिका मे मिले थे.. अब ये मत पूछना कि वो कौन है, मैं चाह कर भी नही बता सकती उसका नाम..
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11-12-2018, 12:30 PM,
#15
RE: non veg story एक औरत की दास्तान
वो एक बड़े बिज़्नेसमॅन का बेटा था जो हमारे ही कॉलेज मे पढ़ता था.. मैं भी उसी कॉलेज मे थी..

मुझे कभी लड़कों मे कोई ख़ास इंटेरेस्ट नही रहा है.. ये तो तुम जानते ही होगे.." रिया ने थोड़ी देर रुककर रवि के चेहरे की तरफ देखा जो सहमति मे सर हिला रहा था.. फिर उसने बोलना जारी रखा.

"मुझे और लड़कों की तरह ही उसमें भी कोई इंटेरेस्ट नही था जबतक की एक दिन उसने मेरी जान ना बचाई.." रिया ऐसे बोल रही थी जैसे सारा द्रिश्य उसकी आँखों के सामने चल रहा हो.. उसने आगे बोलना जारी रखा.

"एक दिन हमारे कॉलेज मे एक बहुत बड़ा फंक्षन था.. क्या इंडियन क्या अमेरिकन और आफ्रिकन..पूरा हॉल खचाखच भरा हुआ था..आख़िर वो शो भी तो अमेरिका के सबसे प्रसिद्ध कॉलेज का था.. " ये बोलते हुए उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गयी लेकिन पल भर मे ही वो मुस्कान गायब हो गयी..

"खैर प्रोग्राम की शुरुआत हुई.. एक से एक डॅन्स और गानों की बरसात से सारे दर्शक मंत्रमुग्ध हो चुके थे..

मगर एक बात मैं बताना भूल ही गयी कि उन डॅन्स प्रोग्राम्स मे एक प्रोग्राम मेरा भी था..

मगर ये इत्तेफ़ाक़ ही था कि मेरे साथी डॅन्सर्स मे एक वो लड़का भी था.. हालाँकि उस डॅन्स मे हीरो का रोल कोई और कर रहा था.. और मैं हेरोयिन का रोल कर रही थी, फिर भी ना जाने कैसे ये सब हो गया.

उस डॅन्स को करने के लिए एक बड़ा सा घर का सेट बनाया गया था जिसमें छत भी थी.. अगर एक ग़लती जो ओराग़निसेर्स ने कर दी थी कि वो पूरा सेट मोटे मोटे लकड़ी के ताकत का बनवा दिया था जिससे किसी को ऊपर जाकर डॅन्स करने मे दिक्कत ना हो...और एक सीन के दौरान मुझे छत पर चढ़ कर डॅन्स करना था और उसके नीचे हीरो को खड़े होकर मुझे डॅन्स करते हुए मानना था.. खैर वो तो बाद की बात है..

डॅन्स शुरू हो गया.. साब कुछ बिल्कुल आराम से चल रहा था और दर्शक हमारे मनमोहक न्रित्य का मज़ा उठाते हुए तालियाँ बजा रहे थे.. मगर उन्हें नही पता था कि अभी एक बड़ी घटना होने वाली है..

तभी मैने अचानक उस लड़के को छत की तरफ आते हुए देखा और इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती वो मुझे लेकर छत से नीचे कूद गया.. और फिर एक धदाम की आवाज़ के साथ पूरा सेट आगे की तरफ गिर गया.. उसस्की चपेट मे आने से सब बच गये थे और कोई छति नही हुई मगर मुझे बचाने के चक्कर मे उस लड़के की टाँग ज़रूर टूट गयी..

बाद मे उस लड़के ने मुझे बताया कि उसने सेट का बेस हिलता हुआ देखा था जैसे बस अब गिरने ही वाला हो इसलिए जल्दी से भाग कर मुझे बचाने आ गया.." इतना बोलकर रिया साँस लेने के लिए रुकी.. "फिर क्या हुआ..?"रवि से अब ज़्यादा इंतेज़ार नही हो रहा था..

"फिर..? फिर वो हुआ जो आज मेरी बरबाादी का कारण बन गया.. दोस्ती और फिर प्यार.." रिया ने सर झुकाकर अपने आँसुओं को रोकने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा.

"क्यूँ ऐसा क्या कर दिया उस लड़के ने जो आज तुम इस तरह अपनी जान दे रही थी..?" रवि ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा..

"डू यू रियली वॉंट टू नो व्हाट ही डिड टू मी..? ही यूज़्ड मी.." रिया की आवाज़ बहुत धीरे आ रही थी..

"ही यूज़्ड मी सेक्षुयली.. आंड आइ'म प्रेग्नेंट.." ये बात रवि के सर पर किसी बॉम्ब की तरह गिरी और उसने जो हाथ रिया के कंधे पर रखा था वो एक झटके से दूर कर लिया जैसे वो कोई बहुत गंदी चीज़ हो जिसे छूने से वो गंदा हो जाएगा.

"रवि..." रवि को इस तरह दूर होते देख रिया के मुह्न से बस इतना ही निकल पाया और बाकी तो उसके रोने की आवाज़ ही थी..

..............................

..........

"स्नेहा..." ठाकुर साहब की कड़क आवाज़ सुनकर स्नेहा के कदम जहाँ थे वहीं रुक गये. उसने उनकी तरफ देखा जो अभी स्नेहा की तरफ पीठ किए हुए खड़े थे.. यूँ तो ठाकुर साहब कभी भी इस तरह स्नेहा से बात नही करते थे कुछ मौकों को छ्चोड़कर मतलब जब वो गुस्से मे होते थे..

"जी पापा.. क्या बात है..?" स्नेहा ने धीरे से पूछा, उसे डर लग रहा था कि कहीं उसके पिता जी को पता ना लग गया हो..

"ये मैं क्या सुन रहा हूँ..? ठाकुर साहब ने उसी कड़क आवाज़ मे बोलते हुए स्नेहा की तरफ घूमते हुए कहा..

"क्या पापा..?" स्नेहा ने फिर डरते डरते पूछा..

"तुम अच्छी तरह जानती हो कि हम किसकी बात कर रहे हैं.. जान कर भी अंजान बनने से तुम्हारा झूठ नही छिप जाएगा.." ठाकुर साहब ने फिर से कड़क आवाज़ मे कहा.

"पापा मुझे सच मे कुछ समझ नही आ रहा कि आप क्या कहना चाहते हैं.." स्नेहा ने सर झुकाते हुए कहा.

"तुम्हें नही पता.. तो किसे पता होगा..? तुम्हारा और राज का क्या संबंध है..?" ठाकुर साहब ने ज़ोर से चिल्लाते हुए कहा जिससे उनकी पूरी हवेली गूँज उठी.

"पापा.. वो.. वो..." स्नेहा के मुह्न से आवाज़ आनी बिल्कुल बंद हो चुकी थी..

" क्या वो..वो..? हमे जवाब चाहिए.. तुम्हारे और राज के बीच क्या संबंध हैं..?"

"कोई संबंध नही है पापा.. हम तो सिर्फ़ अच्छे दोस्त हैं.." स्नेहा ने लड़खड़ाती आवाज़ मे कहा जिससे उसका झूठ सॉफ पता चल रहा था..

"सिर्फ़ दोस्त या कुछ और भी..?" ठाकुर साहब ने गूँजती हुई आवाज़ मे पूछा..

"जी कुछ और नही पापा..."

"झूठ मत बोलो हम से...क्यूंकी उसका कोई फ़ायदा नही.." स्नेहा की बात पूरी होने से पहले ही ठाकुर साहब गरज उठे..

"सच सच बताओ कि तुम दोनो के बीच क्या संबंध हैं.. हम वादा करते हैं कि हम तुम्हें कुछ नही कहेंगे.." स्नेहा जिसकी आँखों मे अब आँसू आ गये थे, उससे ठाकुर साहब ने आवाज़ नीचे करते हुए कहा..

"पापा मैं राज से प्यार करती हूँ.. वी बोथ लव ईच अदर.." स्नेहा ने रोते हुए कहा.. जिसे सुनकर पहले तो ठाकुर साहब थोड़ा मुस्कुराए लेकिन फिर अपनी गंभीर अवस्था मे आ गये..

"तुम्हें पता है कि तुम क्या कह रही हो..?" ठाकुर साहब ने पूछा..

"हां पापा.. मैं उससे प्यार करती हूँ और उसके बिना ज़िंदा नही रह सकती.. अगर आपने मुझे उससे अलग करने की कोशिश की तो मैं अपनी जान दे दूँगी.." स्नेहा की ये बात सुनकर ठाकुर साहब को झटका लगा.

"ये तुम क्या बोल रही हो बेटी.. मैने कब कहा कि मैं तुम्हें राज से अलग करूँगा..? मैं तो बस यूँ ही मज़ाक कर रहा था.." ठाकुर साहब जो अभी तक गंभीर मुद्रा मे थे अब मज़किया लहज़े मे बोल रहे थे.

"अच्छा तो कब करवा रहे हो..?" स्नेहा के आँसू अब रुक गये थे और चेहरे पर ख़ुसी आ गयी थी..

"क्या..?" ठाकुर साहब ने पूछा..

"हमारी शादी और क्या..?" स्नेहा की ये बात सुनकर एक बार फिर से ठाकुर साहब के चेहरे पर गंभीरता आ गयी..जिसे स्नेहा ने भाँप लिया और वो समझ गयी कि वो कुछ ज़्यादा ही बोल गयी..

"सॉरी पापा.. मैं कुछ ज़्यादा बोल गयी.." स्नेहा ने उदास स्वर मे कहा..

"अरे कोई बात नही बेटा.. लेकिन हां.. इतनी जल्दी शादी की सोचना बिल्कुल ठीक नही.. अभी तो तुमने पूरी पढ़ाई भी पूरी नही की.. और वैसे भी पहले मुझे उस लड़के को अच्छी तरह परख लेने दो.. फिर हम तुम्हारी शादी के बारे मे सोचेंगे.." ठाकुर साहब ने एक ही साँस मे पूरी बात कह डाली.

"पापा मुझे पक्का यकीन है कि राज आपकी परीक्षा मे ज़रूर पास हो जाएगा. वैसे भी आप उससे पहले तो मिल ही चुके हैं." स्नेहा ने चहकते हुए कहा..

"हां बेटा.. मगार मुझे एक बार फिर उससे मिलना है.. तुम्हारे रिश्ते की बात करने के लिए.." ठाकुर साहब ने मुस्कुराते हुए कहा..

"ओह पापा... तो मैं कल ही उसे बुला लूँ लंच पर..?" स्नेहा की ख़ुसी का ठिकाना नही था.

"हां बिल्कुल बिल्कुल बुला लो.. और उससे कहना मत की हम ने उसे किस लिए बुलाया है.." ठाकुर साहब ने स्नेहा के गाल पर हाथ रखते हुए कहा..

"ओह.. आइ लव यू पापा" ये बोलकर स्नेहा ठाकुर साहब के गले से लिपट गयी..

"अच्छा बेटा अब तुम जाकर फ्रेश हो जाओ.. तबतक खाना भी लगा दिया जाएगा.. जाओ.." ठाकुर साहब ने उसे अपने से अलग करते हुए कहा..

"ओके पापा.. मैं अभी फ्रेश होकर आती हूँ.." इतना बोलकर स्नेहा दौड़ते हुए सीढ़ियों पर भागती हुई अपने कमरे मे चली गयी.. मगर उसके जाते ही ठाकुर साहब एक बार फिर गंभीर मुद्रा मे चले गये और ना जाने किस गहरी सोच मे खो गये....

क्रमशः.........................
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11-12-2018, 12:31 PM,
#16
RE: non veg story एक औरत की दास्तान
एक औरत की दास्तान--8

गतान्क से आगे...........................

"भूओ" इस आवाज़ से किन्ही ख़यालों मे खोया राज हड़बड़ा गया. सर घूमाकर देखा तो पाया कि स्नेहा उधर खड़ी होकर ज़ोर ज़ोर से हस रही है.

"बहुत डराने का शौक हो गया है देवी जी आपको ?" राज ने उसका हाथ पकड़कर अपनी और खींचते हुए कहा,और उसे अपनी गोद पर बैठा लिया.

"छ्चोड़ो मुझे. कोई देख लेगा. ये हमारा घर नही कॉलेज है." स्नेहा ने उससे छूटने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा.

"अजी..इतनी आसानी से नही छ्चोड़ने वाले हम आपका हाथ. अब पकड़ा है तो मरने के बाद ही छूटेगा ये."

मरने वाली बात सुनकर स्नेहा ने उसके मुह्न पर हाथ रख दिया.

"दोबारा मरने की बात की ना तो मैं ही तुम्हें मार डालूंगी" स्नेहा ने मुह्न बनाते हुए कहा.

"अजी मार डालिए ना. आप इन हाथों से हमे मरना भी मंजूर है.

प्यार करते हैं हम आपसे, कोई मज़ाक नही." राज ने दाँत दिखाते हुए कहा.

"वाह क्या डाइलॉग मारा है. कहाँ से सीखा ये ?" स्नेहा को भी ये पंक्तियाँ पसंद आ गयी थी शायद.

"अरे यार. क्या बताउ तुम्हें. मुझे इंटरनेट का बड़ा चस्का लग गया है. वहीं पर राज शर्मा की कहानियाँ नाम की साइट पर एक कहानी पढ़ी थी. उसी मे थी ये लाइन्स. जहाँ राजू अपनी प्रेमिका पद्‍मिनी को ये पंक्तियाँ बोलता है. तुम भी ज़रूर पढ़ना ये कहानी." राज ने मुस्कुराते हुए कहा.

"ओके ज़रूर पढ़ूंगी ! बाइ दा वे तुम्हें मुझसे ये लाइन्स बोलने की कोई ज़रूरत नही है. मुझे पता है कि तुम मुझसे कितना प्यार करते हो." ये बोलकर स्नेहा ने एक चुंबन राज के होंठों पर जमा दिया.

"वैसे एक बात पूछूँ ?"अब दोनो अपनी जगह से उठ गये थे और एक गार्डन की तरफ जा रहे थे जहाँ वो अकेले मे बैठकर बातें कर सकें.

"हां. अब तुम्हें मुझसे कुछ पूछने के लिए पर्मिशन लेनी पड़ेगी ? खुल कर पूछो. क्या बताना है. कहीं मेरे शरीर के किसी अंग के बारे मे तो नही पूछना चाहती ?" राज ने दाँत दिखाते हुए कहा. जिसका मतलब समझते स्नेहा को देर ना लगी और उसने धीरे से एक प्यार भरा मुक्का उसके सीने पर जमा दिया.

"मैं कुछ और पूछना चाहती थी. मैं जब तुम्हारे पास गयी तो तुम पता नही किन ख़यालों मे खोए हुए थे. बहुत बार बोलने के बाद भी तुम जब ख़यालों से बाहर नही आए तो मुझे तुम्हें आवाज़ निकालकर डराना पड़ा. क्या सोच रहे थे तुम राज ?" स्नेहा का ये सवाल सुनकर पहले तो राज चौंक गया लेकिन फिर उसने खुदको संभाल लिया.

"अरे ऐसे ही कुछ सोच रहा था. जाने दो.." राज ने बात को टालने की कोशिश करते हुए कहा.

"ऐसे कैसे जाने दूं. जब तक तुम मुझे नही बताते मैं नही मानूँगी." स्नेहा ने ज़िद्द करते हुए कहा. राज के लाख समझने पर भी वो नही मानी.

"अच्छा तो सुनो. मैं रवि के बारे मे सोच रहा था." राज ने स्नेहा से दो कदम आगे होते हुए कहा.

"क्या सोच रहे थे रवि के बारे मे.?" स्नेहा राज को सवालिया निगाहों से देख रही थी.

"कल रवि और रिया को मैने एक साथ बाइक पर जाते हुए देखा. दोनो परेशान लग रहे थे. मैने उन्हे आवाज़ लगाई लेकिन उससे पहले ही वो दोनो निकल गये." इतना बोलकर राज साँस लेने के लिए रुका.

"तो फिर क्या हुआ ? दोनो अपने अपने घर चले गये होंगे. इसमें इतना सोचने वाली क्या बात है ?" स्नेहा ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

"इसमें सोचने वाली बात ये है स्नेहा कि वो दोनो अब तक घर नही पहुँचे. रिया के घर वालों को तो कोई टेन्षन नही क्यूंकी रिया वैसे भी घरवालों को बिना बताए अपने दोस्तों के साथ कयि कयि दिनो तक गायब रहती है.. मगर रवि. वो कहाँ गया उसके साथ ?" राज ने कंधे उचकाते हुए कहा.

"तुमने उन्हे फोन करने की कोशिश की." स्नेहा ने पूछा.

"कोशिश तो बहुत की.. मगर दोनो का फोन बंद आ रहा है. पता नही दोनो कहाँ गायब हो गये. मैने पता लगाने की बहुत कोशिश की मगर कुछ पता ही नही चला.." राज के चेहरे पर चिंता की लकीरें सॉफ देखी जा सकती थी.

"उन दोनो का कोई अफेर वाफ़्फयर तो नही चल रहा था ?" स्नेहा ने फिर पूछा.

"अरे अफेर की तो छ्चोड़ो दोनो बस एक दूसरे को चेहरे से ही जानते थे. इससे ज़्यादा कुछ नही. मगर रवि के दिल मे रिया के लिए कुछ था. और मैने ये बात बहुत बार नोटीस भी की थी." राज अब भी चिंतित था. उसका यूँ फ़िकरमंद रवैयय्या देख कर स्नेहा ने उसे धाँढस बांधने की कोशिश की.

"अरे वो दोनो कोई दूध पीते बच्चे हैं क्या ? आ जाएँगे.. अरे हां, मैं तुम्हें एक बात बताना तो भूल ही गयी." स्नेहा ने उत्साहित होते हुए कहा.

"क्या ?" राज ने सवालिया नज़रों से देखते हुए पूछा.

"अरे यही कि पापा को हमारे अफेर के बारे मे पता चल गया है." स्नेहा ने चहकते हुए कहा.

"क्या? क्या बोला उन्होने तब ?" राज पहले शॉक्ड हो गया लेकिन फिर सँभाल गया.

"पहले तो उन्होने मुझे डरा दिया था लेकिन फिर वो मान गये और कल तुम्हें लंच पर बुलाया है. आ रहे हो ना कल लंच पर ?" स्नेहा ने पूछा.

"अरे हान बिल्कुल. तुम बुलाओ और हम ना आयें, ऐसा हो सकता है क्या ?" राज ने दाँत दिखाते हुए कहा.

"अच्छा तो कल लंच पर मिलते हैं. अभी मैं लेट हो रही हूँ. बाइ " स्नेहा ने घड़ी देखते हुए कहा.

"अरे रूको तो सही" राज ने उसे रोकना चाहा मगर तबतक वो जा चुकी थी और राज मुस्कुराता हुआ उसके हिलते हुए नितंब देख रहा था.
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11-12-2018, 12:31 PM,
#17
RE: non veg story एक औरत की दास्तान
.........................................................और शाम को स्नेहा के घर.........

"हां बेटा.. तो बताओ.. कैसे हो..?" ठाकुर साहब ने डाइनिंग टेबल पर अपने सामने बैठे राज से पूछा.

"ठीक हूँ अंकल.. और आप..?" ये पूछते हुए राज को ठाकुर साहब से पिछली मुलाकात वाली बात यादा आ गयी जब वो अपना खाना बीच मे छ्चोड़कर ही उठ गये थे क्यूंकी राज ने उनके सामने अपने नौकर जग्गू काका की तारीफ़ कर दी थी. उसे बुरा तो बहुत लगा था लेकिन उसने स्नेहा की खातिर कुछ नही बोला था.. उसने सर को झटकट देते हुए उस बात को अपने दिमाग़ से बाहर निकाला और ठाकुर साहब की तरफ देखने लगा..

"मैं भी ठीक हूँ बेटा, तुम्हें तो पता ही होगा कि हम ने तुम्हें यहाँ क्यूँ बुलाया है ?" ठाकुर साहब ने सीधा काम की बात पर आते हुए कहा. स्नेहा भी वहीं पर बैठी थी और ठाकुर साहब के ये सवाल करते ही उसने शर्म के मारे अपना चेहरा झुका लिया. उसकी चेहरे की लाली बता रही थी की उसकी क्या हालत हो रही है.

"जी अंकल मुझे पता है." राज ने स्नेहा की ओर देखते हुए जवाब दिया जो अब शर्म के मारे गढ़ी जा रही थी.

"तो बेटा ये बताओ, कि तुम्हारे मम्मी डॅडी तो हैं नही तो फिर तुम्हारे रिश्ते की बात किससे की जाए ?" ठाकुर साहब ने सवाल किया.

"अंकल रिश्ते की बात करने के लिए मैं हूँ ना." राज ने सीधा सा जवाब दिया.

"मगर बेटा, घर मे एक बड़े आदमी का होना ज़रूरी है ना.. दहेज मे क्या लोगे और अन्य सभी ज़रूरी बातों के लिए एक बड़े का होना तो ज़रूरी है, तुम अकेले तो पूरा काम नही संभालोगे ना..? ठाकुर साहब ना जाने क्यूँ बार बार किसी बड़े को लाने की बात कर रहे थे..

"अंकल दहेज तो मैं कभी लूँगा नही क्यूंकी मैं स्नेहा से प्यार करता हूँ और मैं दहेज के लिए इससे शादी नही कर रहा, और अगर आपको किसी बड़े से बात ही करनी है तो जग्गू काका हमेशा आपकी खिदमत मे हाज़िर होंगे." राज एक साँस मे पूरी बात बोल गया.

"मैं एक नौकर से बात करूँगा अपने दामाद के लिए..? कभी नही." ठाकुर साहब जो अब तक नर्मी से बात कर रहे थे, अचानक उनका लहज़ा कड़क हो गया.

"अंकल आप बार बार उन्हें नौकर नौकर बोलकर उनका अपमान कर रहे हैं, और ये मैं हरगीज़ बर्दाश्त नही करूँगा, वो ही मेरी मा हैं और वो ही मेरे पिता.." राज का पारा अब सांत्वे आसमान पर चढ़ गया. और वो खाना छोड़ कर उठ गया और ठाकुर विला से बाहर चला गया जहाँ उसकी बाइक लगी हुई थी, उसने बाइक स्टार्ट की और वहाँ से चला गया.

स्नेहा का मुह्न ये सब देख कर खुला का खुला रह गया.. उसे कुछ समझ मे नही आ रहा था कि वो क्या करे, अपने पिता के खिलाफ वो जा नही सकती थी और राज का साथ वो छ्चोड़ नही सकती थी.. अजीब सी कशमकश मे फँस गयी थी वो.

"पापा, ये आपने अच्छा नही किया.. इस तरह आपको जग्गू काका की बेइज़्ज़ती नही करनी चाहिए थी राज के सामने.." स्नेहा की मुह्न से अचानक ये बोल फूट पड़े और उसकी आँखों से आँसू छलक उठे.

"उस नौकर का नाम मत लो मेरे सामने." ठाकुर साहब ने गरजती हुई आवाज़ मे कहा..

"ठीक है पापा मैं नही लेती उसका नाम, लेकिन अगर मेरी शादी राज से नही हुई तो मैं अपनी जान दे दूँगी और ये मेरा आख़िरी फ़ैसला है ये.." ये बात ठाकुर साहब के ऊपर बॉम्ब की तरह गिरी.. उन्हे अपनी बेटी से प्यारा कुछ ना था.. वो भी सोचने लगे कि क्यूँ मैने बेकार मे इतनी नौटंकी कर दी.. अगर एक नौकर से अपनी बेटी के रिश्ते की बात कर ही लेता तो क्या फ़र्क पड़ जाता.. वैसे भी सारा पैसा तो राज के नाम है और वो दौलत भी अरबों(बिलियन्स) मे.. क्यूँ मैं अपने ही हाथों से अपनी बेटी की ज़िंदगी का गला घोटूं, ये सोचते हुए उसने उस तरफ देखा जिधर स्नेहा कुछ देर पहले बैठी हुई थी..

मगर अब वहाँ कोई नही था.. स्नेहा रोती हुई वहाँ से अपने कमरे मे भाग गयी थी.. ठाकुर साहब को अपने किए पर पछतावा हो रहा था.. वो उठे और अपने हाथ धोकर दरवाज़े की तरफ मुड़े और ड्राइवर को गाड़ी निकालने का आदेश दिया..

कुछ ही देर मे गाड़ी बाहर आ गयी और ठाकुर साहब उसमें चलकर बैठ गये. और ड्राइवर को "सिंघानिया मॅन्षन" की तरफ गाड़ी घुमाने का आदेश दिया और वो चल पड़े अपनी बेटी के रिश्ते की बात करने...

पूरा सहर किसी दुल्हन की तरह सज़ा हुआ था.. हर तरफ ख़ुसीया ही ख़ुसीया थी. हर तरफ लोगों की भाग दौड़ हो रही थी. गीतों की मधुर आवाज़ें पूरे वातावरण मे जैसे ख़ुसीया ही ख़ुसीया भर रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे कोई बहुत बड़ा मेला लगा हुआ हो.

आख़िर होता भी क्यूँ ना..?राजनगर के सबसे बड़े घराने की लड़की की जो शादी थी.. मेहमानो की भीड़ ऐसी कि जैसे किसी राजा महरजा के यहाँ शादी हो और वैसी ही उनकी आवभगत हो रही थी. पूरा माहौल ऐसा लग रहा था जैसे आज कोई बहुत बड़ा उत्सव हो.

उस दिन ठाकुर साहब ने जग्गू काका से मिलकर राज और स्नेहा का रिश्ता पक्का कर लिया था.. हालाँकि उन्होने दिल पर पत्थर रखकर जग्गू काका से मिलने की चेस्टा की मगर अंत मे उन्हे एक बात का सुकून मिला कि उनकी बेटी एक बड़े घर मे जा रही है, मगर उनके मंन मे क्या था ये बात शायद कोई नही जानता था. और अंत मे ये फ़ैसला हुआ था कि महीने के अंत मे जैसे ही उन दोनो की पढ़ाई ख़तम होगी और राज अपना बिज़्नेस संभाल लेगा तो उन दोनो की शादी करवा दी जाएगी.

पहले तो जग्गू काका के अपमान से क्षुब्ध राज ने थोड़ी ना नुकुर की मगर फिर काका के समझाने पर मान गया.

तभी बॅंड बाजे की आवाज़ आती सुनाई दी और इसी के साथ वहाँ खड़े सभी लोगों के बीच हलचल बढ़ गयी, स्नेहा के कोई अपने भाई बहन तो थे नही इसलिए उसके रिश्तेदारों ने ही सारा बोझ संभाला हुआ था.

जैसे जैसे बारात नज़दीक आती जा रही थी वैसे वैसे दरवाज़े पर शोर बढ़ता जा रहा था..

तभी स्नेहा अपनी सहेलियों के साथ बाल्कनी मे आकर खड़ी हो गयी.. और बारातियों के बीच राज को ढूँढने लगी मगर इस काम मे उसे देर ना लगी क्यूंकी राज बीच मे ही घोड़ी पर बैठा हुआ आ रहा था.

तभी राज ने अपना सर उठा कर ऊपर की तरफ देखा. स्नेहा को देखते ही उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा.. अब मैं इस कहानी मे और क्या बताऊ दोस्तों.. पहले ही स्नेहा के बारे मे कितना कुछ बता चुका हूँ अब वो पूरे मेकप और गहनो मे कैसी लग रही होगी ये कल्पना आपलोग खुद कर लो..

राज की हालत खराब हो गयी और पॅंट मे उसका लंड ज़ोर मारने लगा.. उसने कैसे भी अपने पप्पू को समझाया कि देख बेटा.. अभी बैठ जा वैसे भी ये माल अब तेरी ही होगी..

स्नेहा भी राज को देख कर उसकी तारीफ़ किए बिना ना रह सकी.. कितनी मासूमियत थी उसके चेहरे पर.. मगर कुछ महीनो से रवि के साथ ना होने के कारण बहुत उदास रहता था वो.. उन दोनो मे बहुत बार इस बारे मे बात भी हुई थी मगर स्नेहा ने हर बार राज को ये कहकर समझा दिया कि रवि कभी ना कभी वापस ज़रूर आ जाएगा.. मगर कोई नही जानता था कि रवि और रिया कहाँ थे और किस हालत मे थे.. मर गये थे या ज़िंदा थे..

खैर जो भी हो, बाराती नाचते गाते दरवाज़े पर पहुँच गयी. सारे रिश्तेदारों ने लड़के वालों का धूम धाम से स्वागत किया और सारे रसम निभाने के बाद लड़के को अंदर ले आए.. लड़के के पीछे सभी बाराती भी अंदर चले आए..

हर तरफ ख़ुसीया ही ख़ुसीया थी मगर राज के दिमाग़ से अब भी रवि का ख़याल निकल ही नही रहा था...

क्रमशः........................
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11-12-2018, 12:31 PM,
#18
RE: non veg story एक औरत की दास्तान
एक औरत की दास्तान--9

गतान्क से आगे...........................

खैर धीरे धीरे शादी की सारी रस्में पूरी की जाने लगी.. राज ने स्नेहा को वरमाला पहनाया और बदले मे स्नेहा ने भी ऐसा ही किया.. इसके बाद फेरे होने लगे.. सभी लोगों ने फेरों के बाद दूल्हा दुल्हन को आशीर्वाद दिया और उनके मंगलमय जीवन की शुभकामनाएँ दी..

"कंग्रॅजुलेशन्स.. स्नेहा.." एक मर्दाना आवाज़ स्नेहा के कानो मे पड़ी जो उसने पहले भी सुन रखी थी.. उसने पीछे घूम कर देखा तो वहाँ पर वीर खड़ा था(वीर के बारे मे जानने के लिएकहानी के पहले पार्ट पढ़ें).. उसके हाथों मे एक फूलों का गुलदस्ता था और एक गिफ्ट पॅकेट था..

"अरे वीर जी.. आप..? बहुत अच्छा लगा जो आप हमारी शादी मे आए.. " स्नेहा ने वीर का धन्यवाद किया..

"अरे इसमें अच्छा लगने वाली क्या बात है, मेरे पिताजी आपके पिता जी के दोस्त हैं.. इस नाते मैं भी आपका दोस्त ही हुआ.." वीर ने मज़किया लहज़े मे कहा.. जिसका स्नेहा ने बस मुस्कुरा कर उत्तर दिया..

"बाइ दा वे, ये आपके लिए मेरी तरफ से.." वीर ने वो गुलदस्ता और गिफ्ट पॅक स्नेहा की तरफ बढ़ाया जो स्नेहा ने ख़ुसी ख़ुसी स्वीकार कर लिया..

"वैसे आप मुझे उस लकी मॅन से नही मिलवा रही जिसकी शादी आपके जैसी खूबसूरत लड़की से हुई.." वीर की ये बात सुनकर स्नेहा थोड़ा शर्मा गयी लेकिन फिर राज को भीड़ मे खोजने लगी. तभी उसे राज एक तरफ बातें करता दिख गया.. स्नेहा ने उसे इशारे से अपनी राज को अपनी ओर बुलाया और राज धीरे धीरे चलता हुआ स्नेहा के पास आ गया और उसके पास एक हत्त्ते कत्ते लड़के को खड़ा पाया..

"राज इनसे मिलो.. ये हैं हमारे पापा के दोस्त के बेटे.. वीर" स्नेहा ने इंट्रो करवाया.

"हेलो.." राज ने अपना हाथ बढ़ाया मिलाने के लिए जिसे वीर ने स्वीकार किया और उसने भी हाथ मिलाया..

"हेलो.. यू आर रियली लकी मॅन जो स्नेहा जैसी खूबसूरत लड़की तुम्हें मिली.. वरना सबको ऐसी लड़की कहाँ मिलती है ज्सिके शरीर का एक एक अंग खुदा ने फ़ुर्सत से बनाया हो.." वीर ने ये बातें डबल मीनिंग मे बोली थी जो राज को समझते देर ना लगी और उसके चेहरे का रंग बदल गया..

राज के चेहरे का बदला हुआ रंग देखकर वीर समझ गया कि वो कुछ ज़्यादा ही बोल गया है.. इसलिए उसने वहाँ से खिसकना ही ठीक समझा..

"ओके.. आप दोनो एंजाय करो मैं अंकल से मिल लेता हूँ.." ये बोलकर वीर वहाँ से निकल लिया..

" बड़ा बदतमीज़ आदमी है साला" वीर के जाने के बाद राज ने स्नेहा से कहा...

"अब जाने भी दो जानू.. आज हमारी शादी की पहली रात है, ज़्यादा टेन्षन मत लो.." स्नेहा ने राज को शांत करते हुए कहा.

"ओके.. तुम कहती हो तो" इतना बोलकर राज ने अपने होंठ स्नेहा की तरफ बढ़ाए जिसे स्नेहा ने अपने हाथों से दूर कर दिया और वहाँ से भाग गयी.

***************************

लाल जोड़े मे स्नेहा फूलों से सजे बिस्तर पर बैठी राज का इंतेज़ार कर रही थी.. उसका पूरा शरीर गहनो से लदा हुआ था और उसका घूँघट उसके चेहरे को छिपाए हुए था.. पूरे कमरे मे इत्र की ख़ूसबू कमरे के वातावरण को और भी ज़्यादा ख़ुसनूमा बना रही थी.. कमरे मे सिर्फ़ एक नाइट लॅंप जल रही थी जिसकी दूधिया रोशनी कमरे की सुंदरता मे चार चाँद लगा रही थी.. कुल मिलकर पूरा कमरा किसी स्वर्ग की तरह लग रहा था और उसके बीच मे बैठी स्नेहा स्वर्ग की अप्सरा.

तभी बाहर थोड़ी आहट हुई और कुछ औरतों के हस्ने की आवाज़ें आई जिससे स्नेहा समझ गयी कि राज अब उससे कुछ ही कदम दूर है और उन दोनो के मिलन मे अब कुछ ही पल और बाकी रह गये हैं.

तभी दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई और कदमों की आवाज़ कमरे के अंदर आ गयी.. वो दो कदम धीरे धीरे स्नेहा की ऊवार बढ़ रहे थे जिसे सुनकर स्नेहा का दिल बहुत ज़ोर से धड़कने लगा. घूँघट के अंदर छुपे उसके चेहरे पर हया की लाली छा गयी..और उसने अपने दोनो हाथ कसकर एक दूसरे मे जाकड़ लिए और अपने फूलों की पंखुड़ी जैसे कोमल होंठ दाँतों के बीच दबा लिए, और अपने दोनो टाँगों को कसकर दबा लिया जैसे कोई उसकी टाँगों के बीच से कुछ चुरा ले जाने आया हो.

तभी कदमों की आवाज़ बिस्तर के बिल्कुल पास आ गयी और कुछ ही क्षानो मे कदमों की आवाज़ आनी बंद हो गयी और किसी के बिस्तर पर बैठने की आहट स्नेहा को महसूस हुई.

"अब ये घूँघट उठा भी दो.. कब तक ये चेहरा हम से छुपा कर रखोगी..?" राज ने धीरे से कहा.

"इतना ही चेहरा देखने का मंन है तो खुद उठा लो ना मेरा घूँघट.." शरम के मारे स्नेहा के मुह्न से बहुत धीरे धीरे आवाज़ निकल रही थी.

"वो तो हम उठा ही लेंगे.." राज ने अपना हाथ बढ़ाते हुए स्नेहा का घूँघट उठाने की कोशिश की मगर स्नेहा को इतनी शरम आ रही थी कि उसने अपनी साड़ी को कसकर पकड़ लिया ताकि वो उसका घूँघट ना उठा सके.

"घूँघट उठा दे ओ सनम;

वरना मैं खा लूँगा आज एक कसम..;

कि कल से तुझे नही तेरी सहेली को कहूँगा..जानेमन जानेमन जानेमन.."

ये शायरी राज के मुह्न से निकलने की देर थी कि बस स्नेहा ने जल्दी से घूँघट उठाया और टूट पड़ी राज के ऊपर..

"फिर से ये बात बोली तो मैं तुम्हेरी जान ले लूँगी.." स्नेहा ने तकिया उठाकर उससे राज के ऊपर हमला कर दिया और तकियों की बरसात कर दी.. जवाब मे राज ने भी दूसरा तकिया उठा लिया और शुरू हो गयी तकिया लड़ाई..

बहुत देर लड़ने के बाद आख़िरकार दोनो थक गये और बिस्तर पर लुढ़क गये..

"काश आज रवि यहाँ होता.." कुछ देर यूँ ही छत की तरफ देखने के बाद राज ने कहा..

"हां जान.. मैं तुम्हारा दुख समझ सकती हूँ.. रिया भी मेरी बहुत अच्छी दोस्त थी मगर होनी को कौन टाल सकता है.." स्नेहा ये बोलते हुए राज के ऊपर चढ़ गयी..

" सही बोला तुमने अब जो हो चुका उसे तो बदला नही जा सकता.. स्नेहा.. आज हमारी शादी की पहली रात है और आज रात मैं तुमसे एक वादा करना चाहता हूँ.." ये बोलकर राज ने स्नेहा के हाथ अपने हाथों मे कसकर दबा लिया..

"चाहे ज़िंदगी मे कोई भी दुख हो या कोई भी ख़ुसी.. मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा और ये साथ तबतक बना रहेगा जबतक मेरी मौत तुम्हें मुझसे जुदा ना कर दे.." ये बोलकर राज ने स्नेहा को कसकर अपनी बाहों मे जाकड़ लिया.. और अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए.. माहौल बड़ा भावुक हो चुका था..

और हालत को समझते हुए स्नेहा भी राज का पूरा साथ दे रही थी..

आज रात वो दोनो दो जिस्म और एक जान होने वाले थे.. और होते भी क्यूँ ना.. आज उनके मिलन की रात जो थी..

राज ने हाथ बढ़कर नाइट लॅंप ऑफ कर दिया और फिर दोनो खो गये अपने मधुर मिलन की रात मे..
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11-12-2018, 12:31 PM,
#19
RE: non veg story एक औरत की दास्तान
ट्रेन अपनी पूरी रफ़्तार से आगे बढ़ रही थी.. बाहर घना अंधेरा पसरा हुआ था.. बियाबान जंगलो से होती हुई वो रैल्गाड़ी अपनी पूरी गति से चलती जा रही थी..

ट्रेन के अंदर का द्रिश्य बिल्कुल अलग था.. ट्रेन की हल्की हल्की जलती लाइट सबके चेहरों पर पड़ रही थी.. ट्रेन के खदकड़ते हुए पंखे और लोगों की खर्राटे की आवाज़ माहौल को थोड़ा अशांत कर रही थी.. सब लोग ना जाने कब्के खाना खा कर सो चुके थे..

मगर उस लड़की की आँखों मे नींद नही थी.. वो अपने बीते दिनो के ख़यालों मे ना जाने कब से खोई हुई थी और नींद इन्ही ख़यालों के कारण उसकी आँखों से कोसों दूर थी..

तभी कुछ आदमियों के उधर आने की आहट हुई..

"है तो वो इसी ट्रेन मे.. मगर मिल नही रही.. ढूँढते रहो, बच कर जाएगी कहाँ." एक रौबदार आवाज़ आई जिसे सुनकर बहुत सारे लोगों की नींद खुल गयी..

इससे पहले कि वो लड़की कुछ समझ पाती.. वो लोग उस सीट के पास पहुँच गये जहाँ वो लड़की बैठी हुई थी..

"सर मिल गयी वो लड़की.." एक हवलदार ने चिल्लाते हुए कहा..

"किधर है..?" एक लंबा चौड़ा आदमी उधर पहुँचा जहाँ वो लड़की बैठी हुई थी.. उस आदमी ने पोलीस की वर्दी पहेन रखी थी और उसके सीने मे बाई तरफ लगे नेम प्लेट मे सफेद अक्षर चमक रहे थे.. "इनस्पेक्टर जावेद ख़ान"..

"ओह.. तो मोहतारामा यहाँ छुपकर बैठी हैं.. कहाँ तक बच पाती आप..? हम पोलीस वालों को चूतिया समझा है क्या..?" उस लड़की के पास पहुँचकर इनस्पेक्टर ने ज़ोर से चिल्लाते हुए कहा..जिससे वहाँ आस पास बैठे सभी लोग जाग गये..

"क्या बात है इनस्पेक्टर साहब..? क्यूँ इतना शोर मचा रहे हो..?" पास बैठे एक यात्री ने पूछा..

"क्या बात है..? पूछो इस लड़की से कि क्या बात है..? क्यूँ भाग रही है ये पोलीस से..?" इतना बोलकर इनस्पेक्टर ने अपने साथ आई लेडी कॉन्स्टेबल को उस लड़की को गिरफ्तार कर लेने का इशारा किया.. उसका आदेश मानकर उस कॉन्स्टेबल ने उस लड़की को खीच कर सीट से उठाया और उसके हाथ मे हथकड़ी पहना दी.. वो लड़की जो अब तक बिल्कुल शांत थी.. उसकी आँखों से आँसू निकल पड़े..

"मैने कुछ नही किया इनस्पेक्टर साहब.. मैने उसे सिर्फ़ सेल्फ़ डिफेन्स के लिए मारा था.. मैं निर्दोष हूँ.. मुझे छ्चोड़ दीजिए.." उस लड़की ने गिड़गिदाते हुए कहा..

"तुम्हारा खेल ख़तम हुआ.. बहुत दौड़ाया तुमने हम लोगो को लेकिन क़ानून के हाथ से ना आजतक कोई बचा है और ना कोई बचेगा.. तो तुमने ये कैसे सोच लिया कि तुम हम से बचकर फरार हो जाओगी.. हमारे पास पक्की खबर थी कि तुम इसी ट्रेन मे हो.. और हम ने पहले तुम्हें यहाँ खोजा लेकिन तुम नही मिली.. हमे पता चल गया था कि तुम कहीं छुप गयी हो.. इसलिए हम ने भी सोचा कि क्यों ना तुम्हारे साथ भी एक खेल खेला जाए.. और हम भी शांति से ट्रेन मे बैठ गये किसी यात्री की तरह.. और अब तुम यहाँ हमारे कब्ज़े मे हो.. यू आर अंडर अरेस्ट मिस स्नेहा..

तुम निर्दोष हो या नही इसका फ़ैसला अदालत करेगी मगर मेरा काम पूरा हुआ.." तभी ट्रेन किसी बड़े स्टेशन पर रुकी.. और पोलीस वाले वहाँ उसे लेकर उतर गये.

फिर अगले दिन वो लोग उसे लेकर वापस राजनगर रवाना हो गये जहाँ पहुँचने मे उन्हे करीब 12 घंटे लग गये..

राजनगर स्टेशन पर उतरने के बाद स्नेहा के दिमाग़ मे बस ये कुछ अल्फ़ाज़ घूम रहे थे..

"ले आई ये किस मोड़ पर ज़िंदगी..,

ना इधर के रहे, ना उधर के"

स्टेशन से उसे सीधा पोलीस स्टेशन ले जाया गया.. जहाँ उससे थोड़ी बहुत पूछताछ की गयी और फिर उसे एक लॉकप मे बंद कर दिया गया.. जहाँ वो आँखों मे आँसू लिए एक बार फिर अपने अतीत की याद मे खो गयी..

*************************

बड़े अच्छे गुज़र रहे थे उन दोनो के दिन.. शादी को भी अब एक साल से ज़्यादा हो गया था.. सब कुछ अच्छा चल रहा था.. शादी के बाद दोनो हनिमून के लिए स्विट्ज़र्लॅंड गये.. इसी दौरान वो दोनो बहुत सारे देशों मे घूमे.. ज़िंदगी मे अनेक रंग भर गये थे.. उनकी ज़िंदगी ऐसी कट रही थी कि जैसे वो दोनो किसी सपनो की दुनिया मे जी रहे हों..

एक साल होने को हो रहे थे उनकी शादी को..तभी एक दिन स्नेहा ने अपने राज को ज़िंदगी की सबसे बड़ी खूसखबरी दी.. ना जाने कब से इंतेज़ार मे थे वो दोनो अपने इस प्यार के तोहफे के.. चारों तरफ ख़ुसीया ही ख़ुसीया फैल गयी थी.. इस खूसखबरी के बारे मे सुनते ही ठाकुर साहब ने भी एक बहुत बड़ी पार्टी रखकी थी जो सहेर मे हुई अभी तक की सबसे बड़ी पार्टी थी.. सब लोग काफ़ी खुस थे और उन सब मे सबसे ज़्यादा राज और स्नेहा.. मगर ना जाने किसने उनकी ख़ुसीयों को नज़र लगा दी.. और फिर उनकी ज़िंदगी मे एक ऐसा भूचाल आया जिसने सब कुछ तबाह कर दिया..

"क्या जानते हो तुम मेरे मा बाप की मौत के बारे मे..? किसने मारा उन्हे..?" राज फोन पर किसी से बातें कर रहा था और अपने ऑफीस के कॅबिन मे लगातार इधर उधर घूम रहा था.

"देखो, तुम्हें जितने पैसे चाहिए मैं देने के लिए तैय्यार हू.."

"क्या मुझे कहीं पैसे लेकर आना पड़ेगा..? कहाँ आना पड़ेगा.. जल्दी बताओ.."

"ठीक है मैं कल ही पैसे लेकर वहाँ पहुँचता हूँ.. तुम सारी जानकारी मुझे दे देना.." राज का पूरा चेहरा पसीने से लत्पत था और वो बोलते हुए हाँफ रहा था..

कुछ दिनो से लगातार उसके पास फोन आ रहे थे जिसके ज़रिए कोई आदमी रोज़ उसे लगातार उसकी मा बाप की मौत के बारे मे बोलता रहता और कहता कि उसे उसकी मा बाप की मौत के बारे मे सब पता है..

और आज पहली बार उस फोन वाले आदमी ने उसके सामने पैसों की माँग रखी थी जिसे राज ने स्वीकार कर लिया था.. मगर उसे नही पता था कि ये स्वीकृति उसे बहुत महेंगी पड़ने वाली थी.. ऑफीस से वो सीधा बॅंक चला गया ताकि वो पैसों का इंतज़ाम कर सके.. मगर शायद पैसे तो सिर्फ़ एक बहाना था राज को फसाने का..

बॅंक से उसने 5 लाख रुपीज़ निकाले और उन्हे एक बॅग मे भर कर घर की तरफ चल दिया.

"अरे वाह.. ये बॅग मे क्या भर के लाए हो जनाब.." घर पहुँचते ही स्नेहा ने राज से मज़ाक करते हुए कहा..

"इस बॅग मे पैसे हैं.." राज स्नेहा से कोई बात नही छुपाता था इसलिए उसने सीधा बता दिया..

"पर इतने सारे पैसे..? इतने सारे पैसों का क्या करोगे तुम..?" स्नेहा का ये सवाल सुनकर राज ने पूरी कहानी बता दी जो कुछ पिछले दिनो हुआ था..

"अगर ये आदमी तुम्हारे मा बाप के कातिल को जानता है तो फिर इतने सालों तक चुप क्यूँ था.. नही मुझे तो इसमें बहुत बड़ी गड़बड़ लग रही है राज.. तुम वहाँ मत जाओ प्लीज़.. तुम्हारी जान को ख़तरा भी हो सकता है." स्नेहा के चेहरे पर चिंता का भाव सॉफ देखा जा सकता था..

"मगर मुझे एक बार जान तो लेना चाहिए ना कि आख़िर ये आदमी चाहता क्या है और इतने सालों बाद अचानक कहाँ से आ टपका.. मुझे हर हाल मे इस आदमी से मिलना होगा.." राज जो अभी तक बिस्तर पर बैठा हुआ था उसने उठाते हुए कहा..

"अगर ऐसी बात है तो फिर मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी.. प्लीज़" स्नेहा ने गिड़गिदाते हुए कहा..

"तुम मेरे साथ नही आ सकती स्नेहा.. वहाँ ना जाने कौन लोग हों... और मैं नही चाहता कि मेरी वजह से तुम्हारी जान ख़तरे मे पड़े.." राज ने स्नेहा के गालों पर हाथ रखते हुए कहा..

"मगर राज..."

"चुप.. बिल्कुल चुप.." स्नेहा ने कुछ बोलने के लिए मूह खोला ही था कि राज ने उसके मुह्न पर हाथ रखकर उसे चुप करा दिया.. इसके बाद वो धीरे धीरे अपना हाथ स्नेहा की ब्लाउस पर ले गया और अपना हाथ धीरे धीरे उसके उरोजो पर चलाने लगा.. फिर उसने धीरे धीरे उसकी ब्लाउस के सारे बटन खोल दिए जिससे स्नेहा के पूरे शरीर मे सनसनाहट दौड़ गयी..और उसकी हालत खराब हो गयी.. इसके बाद राज ने धीरे धीरे उसके सारे कपड़े उतार दिए.. फिर उसने स्नेहा को बिस्तर के किनारे से उठाकर बिस्तर पर सुला दिया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए. स्नेहा और राज दोनो के शरीर की गर्मी इतनी ज़्यादा थी कि पूरे रूम के वातावरण को गरम कर रही थी..

क्रमशः........................

.
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11-12-2018, 12:31 PM,
#20
RE: non veg story एक औरत की दास्तान
एक औरत की दास्तान--10

गतान्क से आगे...........................

चुंबन लेने के क्रम मे ही राज अपना हाथ नाइट लॅंप की तरफ ले गया और लॅंप ऑफ कर दी और फिर दोनो खो गये प्यार के अनोखे सफ़र पर इस बात से अंजान की आगे क्या होने वाला है.. शायद कुछ ऐसा जिसकी बुनियाद पर आज ये काहनी लिखी जा रही है... "धोखा"

सुबह स्नेहा उठी तो उसकी नज़र सीधा घड़ी की तरफ गयी... सुबह के 9:30 बज चुके थे.. शायद रात की काम क्रीड़ा मे थकान ज़्यादा होने के कारण उसकी नींद इतनी देर से खुली थी.. उसने बिस्तर पर अपने अगल बगल देखा तो पाया कि राज वहाँ नही है.

वो जल्दी से उठी और राज को ढूँढने लगी. तभी उसे बाथरूम से पानी गिरने की आवाज़ आई..

वो बाथरूम की तरफ धीरे धीरे बढ़ने लगी.. उसने बाथरूम के पास पहुँचकर उसका दरवाज़ा खटखटाया.. पर इससे पहले कि वो कुछ समझ पाती कि एक हाथ ने बाहर आकर उसे खींच लिया..

"ओह छ्चोड़ो.. क्या कर रहे हो सुबह सुबह.." स्नेहा ने खुदको छुड़ाने की कोशिस की मगर राज की ताकतवर बाजुओं से निकल पाना उसके लिए लगभग असंभव सा था.. काफ़ी देर कोशिश करने के बाद भी जब वो खुदको ना छुड़ा पाई तो उसने हार मान ली..

"मुझे कम से कम फ्रेश तो हो लेने दो जानू.. फिर जो करना होगा कर लेना, प्लीज़.." उसने गिड़गिदाते हुए कहा..

"तो ठीक है.. मैं बाहर 5 मिनिट इंतेज़ार कर लेता हूँ.. तुम फ्रेश होकर मुझे अंदर बुला लेना.." राज ने मज़किया लहज़े मे कहा और इससे पहले कि स्नेहा कुछ बोल पाती वो बाथरूम से बाहर निकल गया..

"अरे कम से कम एक टवल तो डाल लो.." स्नेहा ने पीछे से आवाज़ लगाई पर राज ने बात अनसुनी कर दी और नंगा ही बाहर निकल गया.

स्नेहा मुस्करती खड़ी रह गयी.. राज नंगा ही बाहर आकर रूम मे टेहेल्न लगा.. और आज के अपने काम के बारे मे सोचने लगा.. उस आदमी ने उसे शाम को 5 बजे राज नगर से थोड़ा बाहर बने एक मंदिर के खंडहर मे बुलाया था.. लोगों का मानना था कि उस खंडहर मे अब भगवान नही बल्कि आत्माओं का वास था जैसा कि हमेशा होता है कि अगर कोई पुराना घर या खंडहर हो तो लोग उसे भूत बंगला बना देते हैं.. ये सब सोचते हुए वो अपने रूम के आईने के पास पहुँच गया..

वो अपने पूरे शरीर का मुआयना करने लगा.. और अपने शरीर पर तील(मोल) गिनने लगा..

"अरे वाह.. लंड पर तील.. आज पहली बार दिखा.. इतने दिन से मूठ मार रहा था और अब स्नेहा के साथ सोता हूँ.. फिर भी आज पहली बार.." वो अभी ये सब बोल ही रहा था कि तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई..

"अरे बेटवा आज तोह्के आफिसे नही जाना है का..?" जग्गू काका ने बाहर से आवाज़ लगाई जिससे राज हड़बड़ा गया.. लेकिन फिर खुदको संभालते हुए उसने जवाब दिया..

"हां काका बिल्कुल जाना है.. मैं बस आधे घंटे मे नीचे आया.. आप ऑफीस पहुँच जाओ." राज ने उन्हे जाने के लिए कह दिया..

"अच्छा ठीक है बेटा.. हम चलत हैं.." इतना बोलकर जग्गू काका पीछे मुड़कर चल दिए..

इसके बाद राज जल्दी से बाथरूम मे घुस गया.. जहाँ उसने पाया कि स्नेहा अब नहाने के लिए रेडी थी..

वो दोनो साथ साथ नहाने लगे.. और एक दूसरे के शरीर को सहलाने लगे.. ठंडा ठंडा पानी उनके शरीर पर गिरता जा रहा था मगर वो उन दोनो के तन की गर्मी को शांत करने मे असमर्थ था..

स्नेहा राज के पूरे शरीर का मुआयना कर रही थी.. और उसके लंड को बार बार अपने मुह्न मे लेकर उसकी उत्तेजना को सांत्वे आसमान पर पहुँचा रही थी..

इसके बाद स्नेहा ऊपर आ गयी और राज के आगे आकर खड़ी हो गयी..

राज ने उसे झुकने का इशारा किया जिसे समझकर स्नेहा आगे की तरफ झुक गयी..

इसके बाद राज ने अपना लंड स्नेहा की चूत पर रखा और एक ज़ोरदार धक्का मारा.. पानी गिरने के कारण लंड आराम से उसकी चूत मे चला गया.. इसके बाद दोनो मे करीब आधे घंटे तक चुदाई चलती रही..

फिर दोनो नाहकार बाहर आ गये ..

दोनो ने कपड़े पहने और नाश्ता करने नीचे चल दिए..

"तो कितने बजे जाओगे उस आदमी से मिलने..?" डाइनिंग टेबल पर स्नेहा ने राज से पूछा..

"समय तो उसने 5 बजे का दिया है.. तो ऑफीस से लौटता ही उससे मिल लूँगा.. वो जो कोई भी है.. ज़रा देखूं तो सही क्या बताता है.." राज ने ब्रेड पर बटर लगाते हुए कहा..

"ओह अच्छा.. मगर मैं भी तुम्हारे साथ जाना चाहती हूँ राज.. तुम्हारी जान को ख़तरा हो सकता है.." स्नेहा एक बार फिर कल वाली बात लेकर बैठ गयी..

"इसका फ़ैसला तो कल ही हो चुका है स्नेहा और वैसे भी तुम ही बताओ कि कौन मेरी जान लेना चाहेगा..? मेरी तो किसी से दुश्मनी भी नही है.. " 1आज ने स्नेहा के गाल पर हाथ रखते हुए कहा.

"वो तो ठीक है राज.. मगर.."

"अगर मगर कुछ नही स्नेहा.. मैं अकेला ही वहाँ जाउन्गा.. इसे अब तुम मेरी इच्छा मानो या मेरा फ़ैसला.." राज ने सीधा सा जवाब दिया.. जिसे सुनकर स्नेहा भी चुप हो गयी क्यूंकी वो जानती थी कि राज ने एक बार जो फ़ैसला कर लिया उसके बाद वो उस फ़ैसले पर अडिग रहेगा.. इसलिए स्नेहा ने उसके बाद उससे और ज़बरदस्ती नही की..
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