11-12-2018, 12:26 PM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 52,887
Threads: 4,447
Joined: May 2017
|
|
non veg story एक औरत की दास्तान
एक औरत की दास्तान--1
दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक ओर नई कहानी लेकर हाजिर हूँ
हँसी की राह मे गम मिले तो क्या करें,
वफ़ा की राह मे बेवफा मिले तो क्या करे,
कैसे बचाए ज़िंदगी को धोकेबाज़ों से
कोई मुस्कुरा के धोका दे जाए तो क्या करें
रेल गाड़ी राजनगर प्लॅटफॉर्म से धीरे धीरे आगे सरक रही थी.. सभी यात्री अफ़रा तफ़री मे ट्रेन की तरफ भाग रहे थे.. कोई भी आदमी उस ट्रेन को मिस करने के मूड मे नही था.. इन सब कारनो से स्टेशन पर बड़ा शोर हो रहा था..
पर उस ट्रेन पर कोई "ऐसा भी था" या यूँ कह लें कि "ऐसी भी थी" जो इन सब से अंज़ान एक खिड़की पर बैठी हुई थी.. अब हल्की हल्की बारिश शुरू हो गयी थी और ट्रेन ने अपनी पूरी रफ़्तार पकड़ ली थी.. बारिश की छोटी छोटी बूँदें उसके गोरे गालों और गुलाबी होठों को भिगो रही थी पर उसे किसी चीज़ की भी परवाह नही थी..
वो एक 25-26 साल की लड़की थी जो चेहरे से किसी अच्छे घर की मालूम होती थी.. चेहरे पर अजीब सी मासूमियत थी पर कहीं ना कहीं उसके चेहरे मे दर्द भी छुपा हुआ था.. चेहरे पर अजीब सा सूनापन था जिसे समझ पाना काफ़ी मुश्किल था..पर एक बात जो कोई भी बता सकता था ये वो था कि उसने जीवन मे बहुत से दुख देखे हैं या यूँ कहें कि धोखे खाए हैं.. ज़िंदगी से उसे कदम कदम पर ठोकर ही मिली है..
उसके चेहरे के भाव अचानक बदलने लगे.. कभी उसके चेहरे की लकीरें ख़ुसी को दर्साति तो कभी गम के बादल उसके चेहरे पर दिखने लगते.. शायद अपनी बीती हुई ज़िंदगी को याद कर रही थी वो... हां यही तो कर रही थी वो... अपनी बीती ज़िंदगी को याद...
चलते चलते रुकने की आदत होगयि है,
बीती बाते दोहराने की आदत होगयि है..
क्या खोया, क्या पाया.. कुछ याद नई,
अब तो लोगो से धोका खाने की आदत सी होगयि है...
"बेटी सुबह के 9 बज चुके हैं.. आज उठना नही है क्या..?"
"सनडे है पापा कम से कम आज भी सोने दो ना.." अपने पापा के हाथ मे पकड़ी हुई रज़ाई उनसे छीनते हुए फिर अपने ऊपर डाल ली और सो गयी..
"अरे बेटी आज तेरे कॉलेज मे कल्चरल प्रोग्रॅम्स हैं... भूल गयी क्या..? जल्दी से तैय्यार हो जाओ वरना लेट हो जाओगी.." उसके पिता ने उसे फिर उठाने की कोशिश की..
"क्या पापा सोने दो ना... अभी भी 2 घंटे बाकी हैं... प्रोग्राम 11 बजे से है" उस लड़की ने रज़ाई से अपने कानो को दबा लिया..
"अरे बेटी मैने झूठ कहा था... 10:30 बज चुके हैं अब जल्दी से तैय्यार हो जाओ.." उसके पिता ने राज़ खोला..
"आप झूठ बोल रहे हो पापा" ये बोलते हुए वो अपनी टेबल पर रखकी घड़ी की तरफ घूमी...
"ओह नो.. यहाँ तो सच मे 10:30 बज चुके हैं.." वो उछलती हुई बिस्तर से उठ गयी और टवल उठाकर सीधा बाथरूम मे घुस गयी..
जब बाथरूम से वापस आई तो पाया कि घड़ी मे अभी 9:30 ही हुए हैं... ये देखकर उसे अपने पापा की चाल समझ मे आ गयी..
वो दौड़ती हुई अपने कमरे से बाहर आई और सीढ़ियों से उतर कर हॉल मे पहुँच गयी.. हॉल मे डाइनिंग टेबल पर बैठे उसके पिता उसका इंतेज़ार कर रहे थे..
"आओ आओ बेटी.. चलो नाश्ता कर लेते हैं.." उसके पिता ने अपनी बेटी के चेहरे पर नाराज़गी को भाँप लिया था..
"क्या पापा आप भी ना, मुझे जगाने के लिए घड़ी की टाइमिंग ही चेंज कर दी..?"उसने मुह्न बनाते हुए कहा...
"तो बेटी इसमें बुरा क्या है... हमारे पुर्वज़ भी कह गये हैं... कि सुबह जागने से चार चीज़ों की प्राप्ति होती है... आयु, विद्या, यश और बल" उसके पिता ने रोज़ की तरह ही वोही शब्द दोहरा दिए जो वो रोज़ दोहराते थे...
ये सुनकर उसकी बेटी ने फिर मुह्न फूला लिया... "पापा आप भी ना मुझे सोने नही देते" उसने एक बार फिर नाराज़गी भरे स्वर मे कहा..
"अगर मेरी बेटी सोई रहेगी तो अपने पापा से बात कब करेगी.. रात को जब मैं आता हूँ तो तुम सो चुकी होती हो... यही तो एक टाइम होता है जब मैं तुमसे मिल पाता हूँ..." इतना बोलकर उसके पापा ने उसके कोमल गालों पर अपने हाथ फेरे... ये सुनकर वो अपने पिता के गले लग गयी..
"ओह पापा आइ'म सॉरी... आइ ऑल्वेज़ हर्ट यू.."
"कोई बात नही बेटा... छोटों से ग़लतियाँ तो होती रहती हैं..पर बड़ों का ये फ़र्ज़ है कि वो उसे माफ़ करें..
खैर जाने दो... चलो नाश्ता करते हैं.."
"हां चलिए पापा" ये बोलकर वो दोनो नाश्ता करने लगे और एक नौकर उन्हे खाना पारोष रहा था... बड़े ही खुश थे दोनो बाप बेटी...
"ठाकुर विला" ये नाम था उस हवेली का जिसमे वो दोनो बाप बेटी रहते थे.. ठाकुर खानदान का देश विदेश मे बहुत बड़ा कारोबार था और ठाकुर प्रेम सिंग अकेले उसे संभालते थे.. हां, उस लड़की के पिता का नाम था प्रेम सिंग और उसकी एक ही लाडली बेटी थी जिसे उसने बचपन से अपने सीने से लगाकर पाला... उसकी मा बचपन मे ही प्रसव के दौरान ही गुज़र गयी थी और अपने पीछे छ्चोड़ गयी थी इस नन्ही सी जान स्नेहा को... स्नेहा... यही तो नाम था उसकी फूल जैसी बच्ची का.. राजनगर की शान था वो खानदान... ठाकुर खानदान...
|
|
11-12-2018, 12:26 PM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 52,887
Threads: 4,447
Joined: May 2017
|
|
RE: non veg story एक औरत की दास्तान
" जिस्म के हर कोने से, खुश्बू तुम्हारी आती है..
जब भी तन्हा होता हूँ, याद तुम्हारी आती है.. "
"दिखा कर खवाब इन आँखों को, दे गये आँसू इन में तुम..
कैसे छलका दू यह आँसू, इन में भी तो रहते हो तुम.."
"हो गये तुमसे जुदा, कितने बदनसीब हैं हम..
रूठा हमसे आज मेरा खुदा, कितने फकीर हैं हम.."
"वाह वाह..वाह..वाह.. क्या शायरी अर्ज़ की है दोस्त... तुम्हें तो शायर बनना चाहिए.." वहाँ पर बैठे सारे लड़के एक साथ तालियाँ बजा उठे..
"क्या खाक शायर बनना चाहिए... ये भी कोई शायरी है... दिनभर दुख भरी शायरी करता रहता है और हमारा दिमाग़ खराब करता रहता है..हुह.. मैं सुनाता हूँ शायरी.. गौर से सुनना.."
जब चूत से लंड टकराता है, मत पूछिए क्या मज़ा आता है,
जब चूत से लंड टकराता है, मत पूछिए क्या मज़ा आता है..
टाँगों को उठा, कुच्छ चूत दिखा, मेरे लंड पर ज़रा हाथ फिरा
यह चूत खुशी में हँसती है, लंड भी हिलता है मस्ती में,
अब खोल दे अपनी चूत को तू, यह लंड मेरा फरमाता हैं,
जब चूत से लंड टकराता है, मत पूछिए क्या मज़ा आता हैं,
लंड भड़का है जैसे कोई भूत, जब से देखी है इसने चूत,
अंदर बाहर चोदे गा लंड, धक्के मारे ये ज़ोरों से
चूत भी पानी छ्चोड़े गी, लंड मेरा यही बताता हैं,
जब चूत से लंड टकराता है, मत पूछिए क्या मज़ा आता हैं.
"वाह वाह..." इतना बोलकर सारे लड़के एक साथ ठहाके लगाकर हस्ने लगे... रवि ने सबको आदाब किया...
उसकी ये शायरी सुनकर वहाँ बैठे राज को हस्ते हस्ते पेट मे दर्द होने लगा... पहली शायरी उसी ने बोली थी पर वो एक दुख भरी शायरी थी पर ये अडल्ट शायरी सुनकर वो रवि की काबिलियत की दाद दिए बिना ना रह सका...
"यार तू जब भी बोलेगा तो मुह्न से हगेगा ही.." उसने रवि की टाँग खींचते हुए कहा...
"क्यूँ बे.. तू मुझे अपनी तरह बनाना चाहता है..जो कि हमेशा दुखी रहता है... तुझे क्या लगता है... मैं तुझे नही देखता...? केयी दिनो से देख रहा हूँ.. तू बहुत खोया खोया सा रहता है... तू हर किसी से ये बात छुपा सकता है पर मुझसे नही... बता क्या बात है... बता ना यार..." रवि ने जिद्द करते हुए कहा... वो बहुत दिनो से देख रहा था कि राज कहीं खोया खोया सा रहता है... वो क्लास मे तो रहता था पर उसका दिमाग़ कहीं और रहता था.. उसने दोस्तों के बीच रहना भी कम कर दिया था... किसी से ज़्यादा बात नही करता... कोई इसका कारण पूछता तो बहाना बना देता कि कुछ दिनो से तबीयत खराब है... हर कोई उसके झूठ को मान लेता.. पर रवि उसके बचपन का दोस्त था...
दोनो साथ साथ बड़े हुए थे और हर दुख सुख मे एक दूसरे का साथ दिया था.. यहाँ तक की जब दोनो साथ होते थे तो एक ही थाली मे खाना भी खाते थे... और मज़े की बात तो ये थी कि दोनो का "फर्स्ट क्रश" भी एक ही था... और जब दोनो को ये बात पता चली कि दोनो एक ही लड़की से प्यार करते हैं तो उन दोनो ने ये कसम खाई कि कुछ भी हो जाए ..चाहे कोई भी मजबूरी हो पर एक लड़की को कभी अपनी दोस्ती के बीच नही आने देंगे.. पूरा कॉलेज उनकी दोस्ती की दाद देता था..
"अरे देख देख उधर देख... आ गयी अपने कॉलेज की ड्रीम गर्ल.. हर दिलों की धड़कन..." रवि ने राज का गला पकड़ कर उस तरफ घुमा दिया जिधर से वो लड़की आ रही थी...
अगल बगल मे बैठे सारे लड़के मुह्न फाडे उसे देख रहे थे... क्या फिगर था उसका.. क्या होंठ थे और क्या नैन नक्श... ऐसा लगता था जैसे खुदा ने उसके जिस्म के एक एक अंग को बड़ी फ़ुर्सत से बनाया है... वो कोई और नही बल्कि स्नेहा थी.. सब लोग उसकी सुंदरता के दीवाने थे.. क्या स्टूडेंट..क्या प्रोफेसर... यहाँ तक की लेडी प्रोफ़्फेसर्स की नियत भी डोल जाती थी उस मल्लिका-ए-हुस्न के दीदार से...
हुस्न परियो का और रूप चाँद का चुराया होगा
खूबसूरत फूलो से होटो को सजाया होगा
ज़ुलफ बिखरे तो घटाओ को आए पसीना
बड़ी फ़ुर्सत से रब ने तुझे बनाया होगा
राज के मुह्न से अचानक ये शायरी सुनकर रवि को कुछ हैरानी हुई... उसने राज की तरफ देखा तो पाया कि वो किन्ही ख़यालों मे गुम है... उसकी नज़रें स्नेहा पर ही टिकी हैं... उसकी पलकें एक बार भी नही झपक रही थी... अब रवि को कुछ कुछ समझ मे आने लगा था कि ये चक्कर क्या है...
हम भूल गये रे हर बात मगर तेरा प्यार नही भूले
पूरे हॉल मे लता मंगेशकर जी के गाने की ये पहली लाइन सुनते ही सन्नाटा छा गया.. सबलॉग इस आवाज़ के जादू मे मंत्रमुग्ध होकर स्टेज की तरफ देखने लगे... कितनी सुरीली थी वो आवाज़..बिल्कुल वैसी ही जैसी किसी कोयल की होती है...
जब बरसात के दिनो मे पानी की बूँदें पत्तों पर गिरकर किसी सितार की तरह सुरीली आवाज़ करती हैं... बिल्कुल वैसी थी वो आवाज़... किसी भी इंसान को सपनो की दुनिया मे ले जाने के लिए काफ़ी थी वो आवाज़... ऐसा लग रहा था कि जैसे स्वर्ग से कोई अप्सरा उतर आई हो जो अपनी मधुर आवाज़ से सबको सम्मोहित कर रही हो...
क्या क्या हुआ दिल के साथ
क्या क्या हुआ दिल के साथ..
मगर तेरा प्यार नही भूले हम भूल गये रे हर बात मगर तेरा प्यार नही भूले दुनिया से शिकायत क्या करते
जब तूने हमे समझा ही नही
दुनिया से शिकायत क्या करते
जब तूने हमे समझा ही नही..
गैरो को भला क्या समझते जब अपनों ने समझा ही नही
तूने छ्चोड़ दिया रे मेरा हाथ
तूने छ्चोड़ दिया रे मेरा हाथ
मगर तेरा प्यार नही भूले
|
|
|