non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 12:35 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
वर्तमान अब आगे_______

रितू की पुलिस जिप्सी जिस जगह रुकी वह एक बहुत ही कम आबादी वाला एरिया था। सड़क के दोनो तरफ यदा कदा ही मकान दिख रहे थे। इस वक्त रितू जिस जगह पर आकर रुकी थी वह कोई फार्महाउस था। जिप्सी की आवाज़ से थोड़ी ही देर में फार्महाउस का बड़ी सी बाउंड्री पर लगा लोहे का भारी गेट खुला। गेट के खुलते ही रितू ने जिप्सी को आगे बढ़ा दिया, उसके पीछे गेट पुनः बंद हो गया। जिप्सी को बड़े से मकान के पास लाकर रितू ने रोंक दिया और फिर उससे नीचे उतर गई।

रितू की हालत बहुत ख़राब हो चुकी थी। बदन में जान नहीं रह गई थी। गेट को बंद करने के बाद दो लोग भागते हुए उसके पास आए।

"अरे क्या हुआ बिटिया तुम्हें?" एक लम्बी मूॅछों वाले ब्यक्ति ने घबराकर कहा___"ये क्या हालत बना ली है तुमने? किसने की तुम्हारी ये हालत? मैं उसे ज़िन्दा नहीं छोंड़ूॅगा बिटिया।"
"काका इन सबको अंदर तहखाने में बंद कर दो।" रितू ने उखड़ी हुई साॅसों से कहा__"और ध्यान रखना किसी को इन लोगों का पता न चल सके। ये तुम्हारी जिम्मेदारी है काका।"

"वो सब तो मैं कर लूॅगा बिटिया।" काका की ऑखों में ऑसू तैरते दिखे___"लेकिन तुम्हारी हालत ठीक नहीं है। तुम्हें जल्द से जल्द हास्पिटल लेकर जाना पड़ेगा। मैं बड़े ठाकुर साहब को फोन लगाता हूॅ बिटिया।"

"नहीं काका प्लीज़।" रितू ने कहा___"जितना कहा है पहले उतना करो। मैं ठीक हूॅ..बस काकी को फस्ट एड बाक्स के साथ मेरे कमरे में भेज दीजिए जल्दी। लेकिन उससे पहले इन्हें तहखाने में बंद कीजिए।"

"ये सब कौन हैं बेटी?" एक अन्य आदमी ने पूछा___"इन सबकी हालत भी बहुत खराब लग रही है।"
"ये सब के सब एक नंबर के मुजरिम हैं शंभू काका।" रितू ने कहा___"इन लोगों बड़े से बड़ा संगीन गुनाह किया है।"

"फिर तो इनको जान से मार देना चाहिए बिटिया।" काका ने जिप्सी में बेहोश पड़े सूरज और उसके दोस्तों को देख कर कहा।
"इन्हें मौत ही मिलेगी काका।" रितू ने भभकते हुए कहा___"लेकिन थोड़ा थोड़ा करके।"

उसके बाद रितू के कहने पर उन दोनो ने उन सभी लड़को को उठा उठा कर अंदर तहखाने में ले जाकर बंद कर दिया। जबकि रितू अंदर अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। थोड़ी ही देर में काकी फर्स्ट एड बाक्स लेकर आ गई। रितू के कहने पर काकी ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया।

रितू ने वर्दी की शर्ट किसी तरह अपने बदन से उतारा। काकी हैरत से देखे जा रही थी।उसके चेहरे पर चिन्ता और दुख साफ दिख रहे थे।

"ये सब कैसे हुआ बिटिया?" काकी ने आगे बढ़ कर शर्ट उतारने में रितू की मदद करते हुए कहा___"देखो तो कितना खून बह गया है, पूरी शरट भींग गई है।"

"अरे काकी ये सब तो चलता रहता है।" रितू ने बदन से शर्ट को अलग करते हुए कहा__"इस नौकरी में कई तरह के मुजरिमों से पाला पड़ता रहता है।"
"अरे तो ऐसी नौकरी करती ही क्यों हो बिटिया?" काकी ने कहा___"भला का कमी है तुम्हें? सब कुछ तो है।"

"बात कमी की नहीं है काकी।" रितू ने कहा___"बात है शौक की। ये नौकरी मैं अपने शौक के लिए कर रही हूॅ। ख़ैर ये सब छोड़िये और मैं जैसा कहूॅ वैसा करते जाइये।"

कहने के साथ ही रितू बेड पर उल्टा होकर लेट गई। इस वक्त वह ऊपर से सिर्फ एक पिंक कलर की ब्रा में थी। दूध जैसी गोरी पीठ पर हर तरफ खून ही खून दिख रहा था। ब्रा के हुक के ऊपरी हिस्से पर दाएॅ से बाएं चाकू का चीरा लगा था। जो कि दाहिने कंधे के थोड़ा नीचे से टेंढ़ा बाएॅ तरफ लगभग दस इंच का था। काकी ने जब उस चीरे को देखा तो उसके शरीर में सिहरन सी दौड़ गई।

"हाय दइया ये तो बहुत खराब कटा है।" काकी ने मुह फाड़ते हुए कहा___"ये सब कैसे हो गया बिटिया? पूरी पीठ पर चीरा लगा है।"
"ये सब छोड़ो आप।" रितू ने गर्दन घुमा कर पीछे काकी की तरफ देख कर कहा___"आप उस बाक्स से रुई लीजिए और उसमे डेटाॅल डाल कर मेरी ठीठ पर फैले इस खून को साफ कीजिए।"

"पर बिटिया तुम्हें दर्द होगा।" काकी ने चिन्तित भाव से कहा___"मैं ये कैसे कर पाऊॅगी?"
"मुझे कुछ नहीं होगा काकी।" रितू ने कहा__"बल्कि अगर आप ऐसा नहीं करेंगी तो ज़रूर मुझे कुछ हो जाएगा। क्या आप चाहती हैं कि आपकी बिटिया को कुछ हो जाए?"

"नहीं नहीं बिटिया।" काकी की ऑखों में ऑसू आ गए___"ये क्या कह रही हो तुम? तुम्हें कभी कुछ न हो बिटिया। मेरी सारी उमर भी तुम्हें लग जाए। रुको मैं करती हूॅ।"

रितू काकी की बातों से मुस्कुरा कर रह गई और अपनी गर्दन वापस सीधा कर तकिये में रख लिया। काकी ने बाक्स से रुई निकाला और उसमे डेटाॅल डाल कर रितू की पीठ पर डरते डरते हाॅथ बढ़ाया। वह बहुत ही धीरे धीरे रितू की पीठ पर फैले खून को साफ कर रही थी। कदाचित वह नहीं चाहती थी कि रितू को ज़रा भी दर्द हो।

"आप डर क्यों रही हैं काकी?" सहसा रितू ने कहा___"अच्छे से हाॅथ गड़ा कर साफ कीजिये न। मुझे बिलकुल भी दर्द नहीं होगा। आप फिक्र मत कीजिए।"

रितू के कहने पर काकी पहले की अपेक्षा अब थोड़ा ठीक से साफ कर रही थी। मगर बड़े एहतियात से ही। कुछ समय बाद ही काकी ने रितू की पीठ को साफ कर दिया। किन्तु चीरा वाला हिस्सा उसने साफ नहीं किया। रितू ने उससे कहा कि वो चीरे वाले हिस्से को भी अच्छी तरह साफ करें। क्योंकि जब तक वो अच्छी तरह साफ नहीं होगा तब तक उस पर दवा नहीं लगाई जा सकती। काकी ने बड़ी सावधानी से उसे भी साफ किया। फिर रितू के बताने पर उसने बाक्स से निकाल कर एक मल्हम चीरे पर लगाया और फिर उसकी पट्टी की। चीरे वाले स्थान से जितना खून बहना था वह बह चुका था किन्तु बहुत ही हल्का हल्का अभी भी रिस रहा था। हलाॅकि अब पट्टी हो चुकी थी इस लिए रितू को आराम मिल रहा था। उसने दर्द की एक टेबलेट खा ली थी।

"अब तुम आराम करो बिटिया।" काकी ने कहा___"तब तक मैं तुम्हारे लिए गरमा गरम खाना बना देती हूॅ।
"नहीं काकी।" रितू ने कहा___"आप खाना बनाने का कस्ट न करें। बस एक कप काफी पिला दीजिए।"

"ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी।" काकी ने कहा और रितू के ऊपर एक चद्दर डाल कर कमरे से बाहर निकल गई। जबकि रितू ने अपनी आॅखें बंद कर ली। कुछ देर ऑखें बंद कर जाने वह क्या सोचती रही फिर उसने अपनी ऑखें खोली और बेड के बगल से ही एक छोटे से स्टूल पर रखे लैण्डलाइन फोन की तरफ अपना हाथ बढ़ाया।

रिसीवर कान से लगा कर उसने कोई नंबर डायल किया। कुछ ही पल में उधर बेल जाने की आवाज़ सुनाई देने लगी।

"हैलो कमिश्नर जगमोहन देसाई हेयर।" उधर से कहा गया।
"जय हिन्द सर मैं इंस्पेक्टर रितू बोल रही हूॅ।" रितू ने उधर की आवाज़ सुनने के बाद कहा।
"ओह यस ऑफिसर।" उधर से कमिश्नर ने कहा___"क्या रिपोर्ट है?"

"सर एक फेवर चाहिए आपसे।" रितू ने कहा।
"फेवर???" कमिश्नर चकराया__"कैसा फेवर हम कुछ समझे नहीं।"
"सर सारी डिटेल मैं आपको आपसे मिल कर ही बताऊॅगी।" रितू ने कहा___"फोन पर बताना उचित नहीं है।"

"ओकेनो प्राब्लेम।" कमिश्नर ने कहा__"अब बताओ कैसे फेवर की बात कर रही थी तुम?"
"सर मैं चाहती हूॅ कि इस केस की सारी जानकारी सिर्फ आप तक ही रहे।" रितू कह रही थी___"आप जानते हैं कि मैंने विधी के रेप केस की अभी तक कोई फाइल नहीं बनाई है। बस आपको इस बारे में इन्फार्म किया था।"
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11-24-2019, 12:35 PM,
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हाँ ये हम जानते हैं।" कमिश्नर ने कहा__"पर तुम करना क्या चाहती हो ये हम जानना चाहते हैं?"
"कल आपसे मिल कर सारी बातें बताऊॅगी सर।" रितू ने कहा___"इस वक्त मैं आपसे बस ये फेवर चाहती हूॅ कि दिवाकर चौधरी के बेटे और उसके दोस्तों के बारे में अगर आपके पास कोई बात आए तो आप यही कहिएगा कि पुलिस का इस बात से कोई संबंध नहीं है।"

"क्या मतलब??" कमिश्नर बुरी तरह चौंका था__"आख़िर तुम क्या कर रही हो ऑफिसर? उस समय भी तुमने हमसे इमेडिएटली सर्च वारंट के लिए कहा था और हमने उसका तुरंत इंतजाम भी किया। लेकिन अब तुम ये सब बोल रही हो आख़िर हुआ क्या है?"

"सर मैं आपको सारी बातें मिल कर ही बताऊॅगी।" रितूने कहा___"प्लीज़ सर ट्राई टू अंडरस्टैण्ड।"
"ओके फाइन।" कमिश्नर ने कहा__"हम कल तुम्हारा वेट करेंगे आफिसर।"
"जय हिन्द सर।" रितू ने कहा और रिसीवर वापस केड्रिल पर रख दिया।

रितू ने फिर से आॅखें बंद कर ली। तभी कमरे में काकी दाखिल हुई। उसके हाथ में एक ट्रे था जिसमें एक बड़ा सा कप रखा था। आहट सुन कर रितू ने ऑखें खोल कर देखा। काकी को देखते ही वह बड़ी सावधानी से उठ कर बेड पर बैठ गई। उसके बैठते ही काकी ने रितू को काफी का कप पकड़ाया।

काफी पीने के बाद रितू को थोड़ा बेहतर फील हुआ और वह बेड से उतर आई। आलमारी से उसने एक ब्लू कलर का जीन्स का पैन्ट और एक रेड कलर की टी-शर्ट निकाल कर उसे पहना तथा ऊपर से एक लेदर की जाॅकेट पहन कर उसने आईने में खुद को देखा। फिर पुलिस की वर्दी वाले पैन्ट से होलेस्टर सहित सर्विस रिवाल्वर निकाल कर उसे जीन्स के बेल्ट पर फॅसाया तथा आलमारी से एक रेड एण्ड ब्लैक मिक्स गाॅगल्स निकाल कर उसे ऑखों पर लगाया और फिर बाहर निकल गई।

बाहर उसे काकी दिखी। उसने काकी से कहा कि वह जा रही है। काकी उसे यूॅ देख कर हैरान रह गई। उसे समझ में न आया कि ये लड़की तो अभी थोड़ी देर पहले गंभीर हालत में थी और अब एकदम से टीम टाम होकर चल भी दी।

मकान के बाहर आकर रितू पुलिस जिप्सी की तरफ बढ़ी। वह ये देख कर खुश हो गई कि काका ने जिप्सी को अच्छे से धोकर साफ सुथरा कर दिया था। रितू को काका की समझदारी पर कायल होना पड़ा। जिप्सी को स्टार्ट कर रितू मेन गेट की तरफ बढ़ चली।

"काका उन लोगों का ध्यान रखना।" रितू ने गेट के पास खड़े काका और शंभू काका दोनो की तरफ देख कर कहा___"आज रात का खाना उन्हें नहीं देना। कल मैं दोपहर को आऊॅगी।"

"ठीक है बिटिया।" काका ने कहा__"तुम बिलकुल भी चिन्ता न करो। वो अब यहाॅ से कहीं नहीं जा पाएॅगे।"
"चलो फिर कल मिलती हूॅ आपसे।" रितू ने कहने के साथ ही जिप्सी को गेट के बाहर की तरफ निकाल दिया और मेन रोड पर आते ही जिप्सी हवा से बातें करने लगी।
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फ्लैशबैक अब आगे_______

कमरे से प्रतिमा के जाने के बाद विजय सिंह वापस अपने बिस्तर पर लेट गया। उसके ज़हन में यही ख़याल बार बार उभर रहा था कि वह अपनी भाभी का क्या करे? वह स्पष्टरूप से उससे कह चुकी थी कि वो उससे प्रेम करती है और वह अपने दिल में उसके लिए भी थोड़ी सी जगह दे। भला ऐसा कैसे हो सकता था? विजय सिंह इस बारे में सोचना भी ग़लत व पाप समझता था। उधर प्रतिमा उसकी कोई बात सुनने या मानने को तैयार ही नहीं थी। वह प्रतिमा से बहुत ज्यादा परेशान हो गया था। उसे डर था कि कहीं किसी दिन ये सब बातें उसके माॅ बाबूजी को न पता चल जाएॅ वरना अनर्थ हो जाएगा। आज वो जो मुझे सबसे अच्छा और अपना सबसे लायक बेटा समझते हैं , तो इस सबका पता चलते ही मेरे बारे में उनकी सोच बदल जाएगी। वो यही समझेंगे कि वासना और हवस के लिए मैने ही अपनी माॅ समान भाभी को बरगलाया है या फिर ज़बरदस्ती की है उनसे। कोई मेरी बात का यकीन नहीं करेगा। बड़े भइया को तो और भी मौका मिल जाएगा मेरे खिलाफ ज़हर उगलने का।

विजय सिंह ये सब सोच सोच कर बुरी तरह परेशान व दुखी भी हो रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? वह अब किसी भी सूरत में प्रतिमा के सामने नहीं आना चाहता था। उसने तय कर लिया था कि अब वह देर रात में ही खेतों से हवेली आया करेगा और अपने कमरे में ही खाना मॅगवा कर खाया करेगा।

अगले दिन से विजय की दिनचर्या यही हो गई। वह सुबह जल्दी हवेली से निकल जाता, दोपहर में गौरी उसके लिए खाना ले जाती। गौरी उसके साथ खेतों पर दिन ढले तक रहती फिर वह हवेली आ जाती जबकि विजय सिंह देर रात को ही हवेली लौटत। गौरी कई दिन से गौर कर रही थी कि विजय सिंह कुछ दिनों से कुछ परेशान सा रहने लगा है। उसने उसकी परेशानी का पूछा भी किन्तु विजय सिंह हर बार इस बात को टाल जाता। भला वह क्या बताता उसे कि वह किस वजह से परेशान रहता है आजकल?

विजय सिंह की इस दिनचर्या से प्रतिमा को अब उसके पास जाने की तो बात ही दूर बल्कि उसे देख पाने तक को नहीं मिलता था। इस सबसे प्रतिमा बेहद परेशान व नाखुश हो गई थी। अजय सिंह भी परेशान था इस सबसे। उसकी भी कोई दाल नहीं गल रही थी। गौरी के चलते प्रतिमा को खेतों पर जाने का मौका ही नहीं मिलता था। ऐसा नहीं था कि वह जा नहीं सकती थी लेकिन वह चाहती थी कि वह जब भी खेतों पर जाए तो खेतों पर गौरी न हो बल्कि वह और विजय सिंह बस ही हों वहाॅ। ताकि वह बड़े आराम से विजय पर प्रेम बाॅण चलाए।

एक दिन प्रतिमा को मौका मिल ही गया। दरअसल सुबह सुबह जब गौरी अपने कमरे के बाथरूम में नहा रही तो फर्स पर उसका पैर फिसल गया और वह बड़ा ज़ोर से गिरी थी। जिससे उसकी कमर में असह पीड़ा होने लगी थी। इस सबका परिणाम ये हुआ कि गौरी खेतों पर विजय के लिए खाना लेकर न जा सकी बल्कि प्रतिमा को जाने का सुनहरा मौका मिल गया। प्रतिमा पहले की भाॅति ही पतली साड़ी और बिना ब्रा का ब्लाउज पहना और विजय के लिए टिफिन लेकर खेतों पर चली गई।

प्रतिमा को पता था कि ये मौका उसे बड़े संजोग से मिला है इस लिए वह इस मौके को खोना नहीं चाहती थी। उसने सोच लिया था कि आज वह विजय से अपने प्रेम के लिए कुछ न कुछ तो करेगी ही। उसके पास समय भी नहीं बचा था। बच्चों के स्कूल की छुट्टियाॅ दो दिन बाद खत्म हो रही थी।

नियति को जो मंजूर होता है वही होता है। ये संजोग था कि गौरी का पैर फिसला और उसने बिस्तर पकड़ लिया जिसके कारण प्रतिमा को खेतों में जाने का अवसर मिल गया और एक ये भी संजोग ही था कि आज खेतों पर फिर कोई मजदूर नहीं था। सारी रात जुती हुई ज़मीन पर पानी लगाया और लगवाया था उसने। सुबह नौ बजे सारे मजदूर गए थे। आज के लिए सारा काम हो गया था।

प्रतिमा जब खेतों पर पहुॅची तो हर तरफ सन्नाटा फैला हुआ पाया। आस पास कोई न दिखा उसे। वह मकान के अंदर नहीं गई बल्कि आस पास घूम घूम कर देखा उसने हर तरफ। न कोई मजदूर और ना ही विजय सिंह उसे कहीं नज़र न आए। प्रतिमा को खुशी हुई कि खेतों पर कोई मजदूर नहीं है और अब वह बेफिक्र होकर कुछ भी कर सकती है।

मकान के अंदर जाकर जब वह कमरे में पहुॅची तो विजय को बिस्तर पर सोया हुआ पाया। उसके मुख से हल्के खर्राटों की आवाज़ भी आ रही थी। इस वक्त उसके शरीर पर नीचे एक सफेद धोती थी और ऊपर एक बनियान। वह पक्का किसान था। पढ़ाई छोंड़ने के बाद उसने खेतों पर ही अपना सारा समय गुज़ारा था। ये उसकी कर्मभूमि थी। यहाॅ पर उसने खून पसीना बहाया था। जिसका परिणाम ये था कि उसका शरीर पत्थर की तरह शख्त था। छः फिट लम्बा था वह तथा हट्टा कट्टा शरीर था। किन्तु चेहरे पर हमेशा सादगी विद्यमान रहती थी उसके। उसका ब्यक्तित्व ऐसा था कि गाॅव का हर कोई उसे प्रेम व सम्मान देता था।

प्रतिमा सम्मोहित सी देखे जा रही थी उसे। फिर सहसा जैसे उसे होश आया और एकाएक ही उसके दिमाग़ की बत्ती जल उठी। जाने क्या चलने लगा था उसके मन में जिसे सोच कर वह मस्कुराई। उसने टिफिन को बड़ी सावधानी से वहीं पर रखे एक बेन्च पर रख दिया और सावधानी से विजय की चारपाई के पास पहुॅची।

विजय चारपाई पर चूॅकि गहरी नींद में सोया हुआ था इस लिए उसे ये पता नहीं चला कि उसके कमरे में कौन आया है? प्रतिमा उसके हट्टे कट्टे शरीर को इतने करीब से देख कर आहें भरने लगी। उसने नज़र भर कर विजय को ऊपर से नीचे तक देखा। उसके अंदर काम वासना की अगन सुलग उठी। कुछ देर यूॅ ही ऑखों में वासना के लाल लाल डोरे लिए वह उसे देखती रही फिर सहसा वह वहीं फर्स पर घुटनों के बल बैठती चली गई। उसके हृदय की गति अनायास ही बढ़ गई थी। उसने विजय के चेहरे पर गौर से देखा। विजय किसी कुम्भकर्ण की तरह सो रहा था। प्रतिमा को जब यकीन हो गया कि विजय किसी हल्की आहट पर इतना जल्दी जगने वाला नहीं है तो उसने उसके चेहरे से नज़र हटा कर विजय की धोती यानी लुंगी के उस हिस्से पर नज़र डाली जहाॅ पर विजय का लिंग उसकी लुंगी के अंदर छिपा था। लिंग का उभार लुंगी पर भी स्पष्ट नज़र आ रहा था।

प्रतिमा ने धड़कते दिल के साथ अपने हाॅथों को बढ़ा कर विजय की लुंगी को उसके छोरों से पकड़ कर आहिस्ता से इधर और उधर किया। जिससे विजय के नीचे वाला हिस्सा नग्न हो गया। लुंगी के अंदर उसने कुछ नहीं पहन रखा था। प्रतिमा ने देखा गहरी नींद में उसका घोंड़े जैसा लंड भी गहरी नींद में सोया पड़ा था। लेकिन उस हालत में भी वह लम्बा चौड़ा नज़र आ रहा था। उसका लंड काला या साॅवला बिलकुल नहीं था बल्कि गोरा था बिलकुल अंग्रेजों के लंड जैसा गोरा। उसे देख कर प्रतिमा के मुॅह में पानी आ गया था। उसने बड़ी सावधानी से उसे अपने दाहिने हाॅथ से पकड़ा। उसको इधर उधर से अच्छी तरह देखा। वो बिलकुल किसी मासूम से छोटे बच्चे जैसा सुंदर और प्यारा लगा उसे। उसने उसे मुट्ठी में पकड़ कर ऊपर नीचे किया तो उसका बड़ा सा सुपाड़ा जो हल्का सिंदूरी रंग का था चमकने लगा और साथ ही उसमें कुछ हलचल सी महसूस हुई उसे। उसने ये महसूस करते ही नज़र ऊपर की तरफ करके गहरी नींद में सोये पड़े विजय की तरफ देखा। वो पहले की तरह ही गहरी नींद में सोया हुआ लगा। प्रतिमा ने चैन की साँस ली और फिर से अपनी नज़रें उसके लंड पर केंद्रित कर दी। उसके हाॅथ के स्पर्श से तथा लंड को मुट्ठी में लिए ऊपर नीचे करने से लंड का आकार धीरे धीरे बढ़ने लगा था। ये देख कर प्रतिमा को अजीब सा नशा भी चढ़ता जा रहा था उसकी साॅसें तेज़ होने लगी थी। उसने देखा कि कुछ ही पलों में विजय का लंड किसी घोड़े के लंड जैसा बड़ा होकर हिनहिनाने लगा था। प्रतिमा को लगा कहीं ऐसा तो नहीं कि विजय जाग रहा हो और ये देखने की कोशिश कर रहा हो कि उसके साथ आगे क्या क्या होता है? मगर उसे ये भी पता था कि अगर विजय जाग रहा होता तो इतना कुछ होने ही न पाता क्योंकि वह उच्च विचारों तथा मान मर्यादा का पालन करने वाला इंसान था। वो कभी किसी को ग़लत नज़र से नहीं देखता था, ऐसा सोचना भी वो पाप समझता था। उसके बारे में वो जान चुका था कि वह क्या चाहती है उससे इस लिए वो हवेली में अब कम ही रहता था। दिन भर खेत में ही मजदूरों के साथ वक्त गुज़ार देता था और देर रात हवेली में आता तथा खाना पीना खा कर अपने कमरे में गौरी के साथ सो जाता था। वह उससे दूर ही रहता था। इस लिए ये सोचना ही ग़लत था कि इस वक्त वह जाग रहा होगा। प्रतिमा ने देखा कि उसका लंड उसकी मुट्ठी में नहीं आ रहा था तथा गरम लोहे जैसा प्रतीत हो रहा था। अब तक प्रतिमा की हालत उसे देख कर खराब हो चुकी थी। उसे लग रहा था कि जल्दी से उछल कर इसको अपनी चूत के अंदर पूरा का पूरा घुसेड़ ले। किन्तु जल्दबाजी में सारा खेल बिगड़ जाता इस लिए अपने पर नियंत्रण रखा उसने और उसके सुंदर मगर बिकराल लंड को मुट्ठी में लिए आहिस्ता आहिस्ता सहलाती रही।
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11-24-2019, 12:37 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
प्रतिमा को जाने क्या सूझी कि वह धीरे से उठी और अपने जिस्म से साड़ी निकाल कर एक तरफ फेंक दी। इतना हीं नहीं उसने अपने ब्लाउज के हुक खोल कर उसे भी अपने जिस्म से निकाल दिया। ब्लाउज के हटते ही उसकी खरबूजे जैसी भारी चूचियाॅ उछल पड़ीं। इसके बाद उसने पेटीकोट को भी उतार दिया। अब प्रतिमा बिलकुल मादरजाद नंगी थी। उसका चेहरा हवस तथा वासना से लाल पड़ गया था।

अपने सारे कपड़े उतारने के बाद प्रतिमा फिर से चारपाई के पास घुटनों के बल बैठ गई। उसकी नज़र लुंगी से बाहर उसके ही द्वारा निकाले गए विजय सिंह के हलब्बी लंड पर पड़ी। अपना दाहिना हाॅथ बढ़ा कर उसने उसे आहिस्ता से पकड़ा और फिर आहिस्ता आहिस्ता ही सहलाने लगी। प्रतिमा उसको अपने मुह में भर कर चूसने के लिए पागल हुई जा रही थी, जिसका सबूत ये था कि प्रतिमा अपने एक हाथ से कभी अपनी बड़ी बड़ी चूचियों को मसलने लगती तो कभी अपनी चूॅत को। उसके अंदर वासना अपने चरम पर पहुॅच चुकी थी। उससे बरदास्त न हुआ और उसने एक झटके से नीचे झुक कर विजय के लंड को अपने मुह में भर लिया....और जैसे यहीं पर उससे बड़ी भारी ग़लती हो गई। उसने ये सब अपने आपे से बाहर होकर किया था। विजय का लंड जितना बड़ा था उतना ही मोटा भी था। प्रतिमा ने जैसे ही उसे झटके से अपने मुह में लिया तो उसके ऊपर के दाॅत तेज़ी से लंड में गड़ते चले गए और विजय के मुख से चीख निकल गई साथ ही वह हड़बड़ा कर तेज़ी से चारपाई पर उठ कर बैठ गया। अपने लंड को इस तरह प्रतिमा के मुख में देख वह भौचक्का सा रह गया किन्तु फिर तुरंत ही वह उसके मुह से अपना लंड निकाल कर तथा चारपाई से उतर कर दूर खड़ा हो गया। उसका चेहरा एक दम गुस्से और घ्रणा से भर गया। ये सब इतना जल्दी हुआ कि कुछ देर तक तो प्रतिमा को कुछ समझ ही न आया कि ये सब क्या और कैसे हो गया? होश तो तब आया जब विजय की गुस्से से भरी आवाज़ उसके कानों से टकराई।

"ये क्या बेहूदगी है?" विजय लुंगी को सही करके तथा गुस्से से दहाड़ते हुए कह रहा था__"अपनी हवस में तुम इतनी अंधी हो चुकी हो कि तुम्हें ये भी ख़याल नहीं रहा कि तुम किसके साथ ये नीच काम कर रही हो? अपने ही देवर से मुह काला कर रही हो तुम। अरे देवर तो बेटे के समान होता है ये ख़याल नहीं आया तुम्हें?"

प्रतिमा चूॅकि रॅगे हाॅथों ऐसा करते हुए पकड़ी गई थी उस दिन, इस लिए उसकी ज़ुबान में जैसे ताला सा लग गया था। उस दिन विजय का गुस्से से भरा वह खतरनाक रूप उसने पहली बार देखा था। वह गुस्से में जाने क्या क्या कहे जा रहा था मगर प्रतिमा सिर झुकाए वहीं चारपाई के नीचे बैठी रही उसी तरह मादरजात नंगी हालत में। उसे ख़याल ही नहीं रह गया था कि वह नंगी ही बैठी है। जबकि,,,

"आज तुमने ये सब करके बहुत बड़ा पाप किया है।" विजय कहे जा रहा था__"और मुझे भी पाप का भागीदार बना दिया। क्या समझता था मैं तुम्हें और तुम क्या निकली? एक ऐसी नीच और कुलटा औरत जो अपनी हवस में अंधी होकर अपने ही देवर से मुह काला करने लगी। तुम्हारी नीयत का तो पहले से ही आभास हो गया था मुझे इसी लिए तुमसे दूर रहा। मगर ये नहीं सोचा था कि तुम अपनी नीचता और हवस में इस हद तक भी गिर जाओगी। तुममें और बाज़ार की रंडियों में कोई फर्क नहीं रह गया अब। चली जाओ यहाॅ से...और दुबारा मुझे अपनी ये गंदी शकल मत दिखाना वर्ना मैं भूल जाऊॅगा कि तुम मेरे बड़े भाई की बीवी हो। आज से मेरा और तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं...अब जा यहाॅ से कुलटा औरत...देखो तो कैसे बेशर्मों की तरह नंगी बैठी है?"

विजय की बातों से ही प्रतिमा को ख़याल आया कि वह तो अभी नंगी ही बैठी हुई है तब से। उसने सीघ्रता से अपनी नग्नता को ढॅकने के लिए अपने कपड़ों की तरफ नज़रें घुमाई। पास में ही उसके कपड़े पड़े थे। उसने जल्दी से अपनी साड़ी ब्लाउज पेटीकोट को समेटा किन्तु फिर उसके मन में जाने क्या आया कि वह वहीं पर रुक गई।

विजय की बातों ने प्रतिमा के अंदर मानो ज़हर सा घोल दिया था। जो हमेशा उसे इज्ज़त और सम्मान देता था आज वही उसे आप की जगह तुम और तुम के बाद तू कहते हुए उसकी इज्ज़त की धज्जियाॅ उड़ाए जा रहा था। उसे बाजार की रंडी तक कह रहा था। प्रतिमा के दिल में आग सी धधकने लगी थी। उसे ये डर नहीं था कि विजय ये सब किसी से बता देगा तो उसका क्या होगा। बल्कि अब तो सब कुछ खुल ही गया था इस लिए उसने भी अब पीछे हटने का ख़याल छोंड़ दिया था।

उसने उसी हालत में खिसक कर विजय के पैर पकड़ लिए और फिर बोली__"तुम्हारे लिए मैं कुछ भी बनने को तैयार हूॅ विजय। मुझे इस तरह अब मत दुत्कारो। मैं तुम्हारी शरण में हूॅ, मुझे अपना लो विजय। मुझे अपनी दासी बना लो, मैं वही करूॅगी जो तुम कहोगे। मगर इस तरह मुझे मत दुत्कारो...देख लो मैंने ये सब तुम्हारा प्रेम पाने के लिए किया है। माना कि मैंने ग़लत तरीके से तुम्हारे प्रेम को पाने की कोशिश की लेकिन मैं क्या करती विजय? मुझे और कुछ सूझ ही नहीं रहा था। पहले भी मैंने तुम्हें ये सब जताने की कोशिश की थी लेकिन तुमने समझा ही नहीं इस लिए मैंने वही किया जो मुझे समझ में आया। अब तो सब कुछ जाहिर ही हो गया है,अब तो मुझे अपना लो विजय...मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए।"

"बंद करो अपनी ये बकवास।" विजय ने अपने पैरों को उसके चंगुल से एक झटके में छुड़ा कर तथा दहाड़ते हुए कहा__"तुझ जैसी गिरी हुई औरत के मैं मुह नहीं लगना चाहता। मुझे हैरत है कि बड़े भइया ने तुझ जैसी नीच और हवस की अंधी औरत से शादी कैसे की? ज़रूर तूने ही मेरे भाई को अपने जाल में फसाया होगा।"

"जो मर्ज़ी कह लो विजय।" प्रतिमा ने सहसा आखों में आॅसू लाते हुए कहा__"मगर मुझे अपने से दूर न करो। दिन रात तुम्हारी सेवा करूॅगी। मैं तुम्हें उस गौरी से भी ज्यादा प्यार करूॅगी विजय।"

"ख़ामोशशशश।" विजय इस तरह दहाड़ा था कि कमरे की दीवारें तक हिल गईं__"अपनी गंदी ज़ुबान से मेरी गौरी का नाम भी मत लेना वर्ना हलक से ज़ुबान खींचकर हाॅथ में दे दूॅगा। तू है क्या बदजात औरत...तेरी औकात आज पता चल गई है मुझे। तेरे जैसी रंडियाॅ कौड़ी के भाव में ऐरों गैरों को अपना जिस्म बेंचती हैं गली चौराहे में। और तू गौरी की बात करती है...अरे वो देवी है देवी...जिसकी मैं इबादत करता हूॅ। तू उसके पैरों की धूल भी नहीं है समझी?? अब जा यहाॅ से वर्ना धक्के मार कर इसी हालत में तुझे यहाॅ से बाहर फेंक दूॅगा।"

प्रतिमा समझ चुकी थी कि उसकी किसी भी बात का विजय पर अब कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं था। उल्टा उसकी बातों ने उसे और उसके अंतर्मन को बुरी तरह शोलों के हवाले कर दिया था। उसने जिस तरीके से उसे दुत्कार कर उसका अपमान किया था उससे प्रतिमा के अंदर भीषण आग लग चुकी थी और उसने मन ही मन एक फैंसला कर लिया था उसके और उसके परिवार के लिए।

"ठीक है विजय सिंह।" फिर उसने अपने कपड़े समेटते हुए ठण्डे स्वर में कहा था__"मैं तो जा रही हूं यहाॅ से मगर जिस तरह से तुमने मुझे दुत्कार कर मेरा अपमान किया है उसका परिणाम तुम्हारे लिए कतई अच्छा नहीं होगा। ईश्वर देखेगा कि एक औरत जब इस तरह अपमानित होकर रुष्ट होती है तो भविष्य में उसका क्या परिणाम निकलता है??"

प्रतिमा की बात का विजय सिंह ने कोई जवाब नहीं दिया बल्कि गुस्से से उबलती हुई ऑखों से उसे देख गर वहीं मानो हिकारत से थूॅका और फिर बाहर निकल गया। जबकि बुरी तरह ज़लील व अपमानित प्रतिमा ने अपने कपड़े पहने और हवेली जाने के लिए कमरे से बाहर निकल गई। उसके अंदर प्रतिशोध की ज्वाला धधक हुई उठी थी।

हवेली पहुॅच कर प्रतिमा ने अपने पति अजय सिंह से आज विजय सिंह से हुए कारनामे का सारा व्रत्तान्त मिर्च मशाला लगा कर सुनाया। उसकी सारी बातें सुन कर अजय सिंह सन्न रह गया था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि आज इतना बड़ा काण्ड हो गया है।

"मुझे उस हरामज़ादे से अपने अपमान का प्रतिशोध लेना है अजय।" प्रतिमा ने किसी ज़हरीली नागिन की भाॅति फुंकारते हुए कहा___"जब तक मैं उससे अपमान का बदला नहीं लूॅगी तब तक मेरी आत्मा को शान्ति नहीं मिलेगी।"

"ज़रूर डियर।" अजय सिंह ने सहसा कठोरता से कहा___"तुम्हारे इस अपमान का बदला ज़रूर उससे लिया जाएगा। आज के इस हादसे से ये तो साबित हो ही गया कि वो मजदूर हमारे झाॅसे में आने वाला नहीं है। सोचा था कि सब मिल बाॅट कर खाएॅगे और मज़ा करेंगे लेकिन नहीं उस मजदूर को तो कलियुग का हरिश्चन्द्र बनना है। इस लिए ऐसे इंसान का जीवित रहना हमारे लिए अच्छी बात नहीं है। उसके रहते हम अपनी हसरतों को पूरा नहीं कर पाएॅगे प्रतिमा। वो मजदूर हमारे रास्ते का सबसे बड़ा काॅटा है। इस काॅटे को अब जड़ से उखाड़ कर फेंकना ही पड़ेगा।"

"जो भी करना हो जल्दी करो अजय।" प्रतिमा ने कहा___"मैं उस कमीने की अब शकल भी नहीं देखना चाहती कभी। साला कुत्ता मुझे दुत्कारता है। कहता था कि मैं उसकी गौरी की पैरों की धूल भी नहीं हूॅ। मुझे रंडी बोलता है। मैं दिखाऊॅगी उसे कि मेरे सामने उसकी वो राॅड गौरी कुछ भी नहीं है। उसे सबके नीचे न लेटाया तो मेरा भी नाम प्रतिमा सिंह बघेल नहीं। उसे कोठे की नहीं बल्कि बीच चौराहे की रंडी बनाऊॅगी मैं।"

"शान्त हो जाओ प्रतिमा।" अजय सिंह ने उसे खुद से लगा लिया___"सब कुछ वैसा ही होगा जैसा तुम चाहती हो। लेकिन ज़रा तसल्ली से और सोच समझ कर बनाए गए प्लान के अनुसार। ताकि किसी को किसी बात का कोई शक न हो पाए।"

"ठीक है अजय।" प्रतिमा ने कहा___"लेकिन मैं ज्यादा दिनों तक उसे जीवित नहीं देखना चाहती। तुम जल्दी ही कुछ करो।"
"फिक्र मत करो मेरी जान।" अजय ने कुछ सोचते हुए कहा___"आज से और अभी से प्लान बी शुरू। अब चलो गुस्सा थूॅको और मेरे साथ प्यार की वादियों में खो जाओ।"

ये दोनो तो अपने प्यार और वासना में खो गए थे लेकिन उधर खेतों में विजय सिंह बोर बेल के पास बने एक बड़े से गड्ढे में था। उस गड्ढे में हमेशा बोर का पानी भरा रहता था। विजय सिंह उसी पानी से भरे गड्ढे में था। उसके ऊपर बोर का पानी गिर रहा था। वह एकदम किसी पुतले की भाॅति खड़ा था। उसका ज़हन उसके पास नहीं था। बोर का पानी निरंतर उसके सिर पर गिर रहा था।

विजय सिंह के की ऑखों के सामने बार बार वही मंज़र घूम रहा था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे अभी भी उसका लंड प्रतिमा के मुह मे हो। इस मंज़र को देखते ही उसके जिस्म को झटका सा लगता और वह ख़यालों की दुनियाॅ से बाहर आ जाता। उसका मन आज बहुत ज्यादा दुखी हो गया था। उसे यकीन नहीं आ रहा था कि उसकी सगी भाभी उसके साथ ऐसा घटिया काम कर सकती है। विजय सिंह के मन में सवाल उभरता कि क्या यहीं प्रेम था उसका?

विजय सिंह ये तो समझ गया था कि उसकी भाभी ज़रा खुले विचारों वाली औरत थी। शहर वाली थी इस लिए शहरों जैसा ही रहन सहन था उसका। कुछ दिन से उसकी हरकतें ऐसी थी जिससे साफ पता चलता था कि वह विजय से वास्तव में कैसा प्रेम करती है। किन्तु विजय सिंह को उससे इस हद तक गिर जाने की उम्मीद नहीं थी। विजय सिंह को सोच सोच कर ही उस पर घिन आ रही थी कि कितना घटिया काम कर रही थी वह।

उस दिन विजय सिंह सारा दिन उदास व दुखी रहा। उसका दिल कर रहा था कि वह कहीं बहुत दूर चला जाए। किसी को अपना मुह न दिखाए किन्तु हर बार गौरी और बच्चों का ख़याल आ जाता और फिर जैसे उसके पैरों पर ज़ंजीरें पड़ जातीं।किसी ने सच ही कहा है कि बीवी बच्चे किसी भी इंसान की सबसे बड़ी कमज़ोरी होते हैं। जब आप उनके बारे में दिल से सोचते हैं तो बस यही लगता है कि चाहे कुछ भी हो जाए पर इन पर किसी तरह की कोई पराशानी न हो।

विजय सिंह हमेशा की तरह ही देर से हवेली पहुॅचा। अन्य दिनों की अपेक्षा आज उसका मन किसी भी चीज़ में नहीं लग रहा था। उसने खुद को सामान्य रखने बड़ी कीशिश कर रहा था वो। अपने कमरे में जाकरवह फ्रेश हुआ और बेड पर आकर बैठ गया।


वर्तमान अब आगे________

इंस्पेक्टर रितू उस हास्पिटल में पहुॅची जहाॅ पर रेप पीड़िता विधी को एडमिट किया गया था। विधी की हालत पहले से काफी ठीक थी। रितू के पहुॅचने के पहले ही विधी के परिवार वाले उससे मिल कर गए थे। इस वक्त विधी के पास उसकी माॅ गायत्री थी। गायत्री अपनी बेटी की इस हालत से बेहद दुखी थी।

रितू जब उस कमरे में पहुॅची तो उसने विधी के पास ही एक कुर्सी पर गायत्री को बैठै पाया। रितू ने औपचारिक तौर पर उससे नमस्ते किया और उसे अपने बारे में बताया। रितू के बारे में जानकर गायत्री पहले तो चौंकी फिर सहसा उसके चेहरे पर अजीब से भाव आ गए।

"मेरी बेटी के साथ जो कुछ हुआ है वो तो वापस नहीं लौट सकता बेटी।" गायत्री ने अधीरता से कहा___"ऊपर से इस सबका केस बन जाने से हमारी समाज में बदनामी ही होगी। इस लिए मैं चाहती हूॅ कि तुम ये केस वेस का चक्कर बंद कर दो। मैं जानती हूॅ कि इस केस में आगे क्या क्या होगा? वो सब बड़े लोग हैं बेटी। वो बड़े से बड़ा वकील अपनी तरफ से खड़ा करेंगे और बड़ी आसानी से केस जीत जाएॅगे। वो कुछ भी कर सकते हैं, वो तो जज को भी खरीद सकते हैं। अदालत के कटघरे में खड़ी मेरी फूल जैसी बेटी से उनका वकील ऐसे ऐसे सवाल करेगा जिसका जवाब देना इसके बस का नहीं होगा। वो सबके सामने मेरी बेटी की इज्ज़त की धज्जियाॅ उड़ाएंगे। ये केस मेरी बेटी के साथ ही एक मज़ाक सा बन कर रह जाएगा। इस लिए मैं तुमसे विनती करती हूॅ बेटी कि ये केस वेस वाला चक्कर छोड़ दो। हमें कोई केस वेस नहीं करना।"

"आप जिस चीज़ की कल्पना कर रही हैं आॅटी जी।" रितू ने विनम्रता से कहा__"मैं उस सबके बारे में पहले ही सोच चुकी हूॅ। मैं जानती हूॅ कि आप जो कह रही हैं वो सोलह आने सच है। यकीनन ऐसा ही होगा मगर, आप चिन्ता मत कीजिए आॅटी। विधी अगर आपकी बेटी है तो ये मेरी भी दोस्त है अब। इसके साथ जो कुछ भी उन लोगों ने घिनौना कर्म किया है उसकी उन्हें ऐसी सज़ा मिलेगी कि हर जन्म में उन्हें ये सज़ा याद रहेगी और वो अपने किसी भी जन्म में किसी की बहन बेटियों के साथ ऐसा करने का सोचेंगे भी नहीं।"

"बात तो वही हुई बेटी।" गायत्री ने कहा__"तुम उन्हें कानूनन इसकी सज़ा दिलवाओगी जबकि मैं जानती हूॅ कि उन लोगों के बाप लोगों के हाॅथ तुम्हारे कानून से भी ज्यादा लम्बे हैं। तुम उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाओगी बेटी। उल्टा होगा ये कि इस सबके चक्कर में खुद तुम्हारी ही जान का खतरा पैदा हो जाएगा।"

"मुझे अपनी जान की कोई परवाह नहीं है आॅटी।" रितू ने सहसा मुस्कुराकर कहा__"और मेरी जान इतनी सस्ती भी नहीं है जो यूॅ ही किसी ऐरे गैरे के हाॅथों शिकार हो जाएगी। खैर, मै ये कहना चाहती हूॅ कि उन लोगों को कानूनन सज़ा दिलवाने का फैसला मैने बदल दिया है।"

"क्या मतलब??" गायत्री के साथ साथ बेड पर लेटी विधी भी चौंक पड़ी थी।
"ये तो मुझे भी पता है ऑटी कि वो लोग कितने बड़े खेत की पैदाइस हैं।" रितू ने अजीब भाव से कहा___"कहने का मतलब ये कि कानूनी तौर पर यकीनन मैं उन्हें वैसी सज़ा नहीं दिला सकती जैसी सज़ा के वो लोग हक़दार हैं। इस लिए अब सज़ा अलग तरीके से दी जाएगी उन्हें। बिलकुल वैसी ही सज़ा जैसी सज़ा ऐसे नीच लोगों को देनी चाहिये।"

"तुम क्या कह रही हो बेटी मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा।" गायत्री का दिमाग़ मानो जाम सा हो गया था।
"ये सब छोंड़िये ऑटी।" रितू ने कहा__"मैं बस आपसे ये कहना चाहती हूॅ कि अगर आपसे कोई इस बारे में कुछ भी पूछे तो आप यही कहियेगा कि हमने कोई केस वगैरा नहीं किया है। ये मत कहियेगा कि मैं आपसे या विधी से मिली थी। यही बात आप विधी के डैड को भी बता दीजिएगा। मेरी तरफ से उनसे कहना कि दिल पर कोई बोझ या मलाल रखने की कोई ज़रूरत नहीं है। बहुत जल्द कुछ ऐसा उन्हें सुनने को मिलेगा जिससे उनकी आत्मा को असीम तृप्ति का एहसास होगा।"

"तुम क्या करने वाली हो बेटी?" गायत्री का दिल अनायास ही ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा था, बोली___"देखो कुछ भी ऐसा वैसा न करना जिससे पुनः मेरी बेटी पर कोई संकट आ जाए।"

"आप बेफिक्र रहिए ऑटी।" रितू ने गायत्री का हाथ पकड़ कर उसे हल्का सा दबाते हुए कहा___"मैं विधी पर अब किसी भी तरह का कोई संकट नहीं आने दूॅगी। मुझे भी उसकी फिक्र है।"
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11-24-2019, 12:38 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
गायत्री कुछ बोल न सकी बस अजीब भाव से रितू को देखती रही। बेड पर लेटी विधी का भी वही हाल था। तभी कमरे में एक नर्स आई। उसने रितू से कहा कि डाक्टर साहब उसे अपने केबिन में बुला रहे हैं। रितू नर्स की बात सुनकर गायत्री से ये कह कर बाहर निकल गई कि वह डाक्टर से मिल कर आती है अभी। कुछ ही देर में रितू डाक्टर के केबिन में उसके सामने टेबल के इस पार रखी कुर्सी पर बैठी थी।

"कहिए डाक्टर साहब।" रितू ने कहा__"किस लिए आपने बुलाया है मुझे?"
"देखो बेटा।" डाक्टर ने गंभीरता से कहा__"तुम मेरी बेटी के समान हो। मैं तुमको तुम्हारे बचपन से जानता हूॅ। ठाकुर साहब से मेरे बहुत अच्छे संबंध हैं आज भी। मुझे ये जान कर बेहद खुशी हुई है कि तुम आज पुलिस आफिसर बन गई हो। लेकिन, इस केस में जिन लोखों पर तुमने हाॅथ डालने का सोचा है या सोच कर अपना कदम बढ़ा लिया है वो निहायत ही बहुत खतरनाक लोग हैं। इस लिए मैं चाहता हूॅ कि तुम इस केस को यहीं पर छोंड़ दो। क्योंकि मैं नहीं चाहता कि तुम पर कोई ऑच आए। तुम हमारे ठाकुर साहब की बेटी हो।"

"मैं आपके जज़्बातों की कद्र करती हूॅ डाक्टर अंकल।" रितू ने कहा___"लेकिन आप बेफिक्र रहिए मैने विधी के केस की कोई फाइल बनाई ही नहीं है अब तक। क्योंकि मुझे भी पता है कि जिनके खिलाफ केस बनाना है वो कैसे लोग हैं। इस लिए आप बेफिक्र रहिए।"

"ये तो अच्छी बात है बेटी।" डाक्टर ने खुश होकर कहा__"लेकिन तुम यहाॅ पर फिर आई किस लिए हो? अगर केस नहीं बनाया है तो तुम्हारे यहाॅ पर आने का क्या मतलब है? जबकि होना तो ये चाहिये कि तुम्हें इस सबसे दूर ही रहना चाहिए था।"

"इंसानियत नाम की कोई चीज़ भी होती है डाक्टर अंकल।" रितू ने कहा___"इसी लिए आई हूॅ यहाॅ। वरना यूॅ फारमल ड्रेस में न आती बल्कि पुलिस की वर्दी में आती।"
"चलो ठीक है।" डाक्टर ने कहा__"पर ड्रेस बदल देने से तुम्हारा काम तो नहीं बदल जाएगा न। आख़िर हर रूप में तो तुम पुलिस वाली ही कहलाओगी। अब अगर आरोपी के के आकाओं को पता चल जाए कि तुम यहाॅ हो तो वो तो यही समझेंगे कि तुम केस के सिलसिले में ही यहाॅ आई हो।"

"देखिए अंकल।" रितू ने कहा___"फारमेलिटी तो करनी ही पड़ती है। वरना पुलिस की नौकरी के साथ इंसाफ नहीं हो पाएगा। और इसी फाॅरमेलिटी के तहत अभी मुझे दिवाकर चौधरी से भी मिलने जाना है। मुझे पता है कि वो पुलिस को बहुत तुच्छ ही समझेगा। इस लिए उससे मिल कर मैं भी फौरी तौर पर यही कहूॅगी कि फाॅरमेलिटी तो करनी ही पड़ती है न सर। बाॅकी आप इस बात से बेफिक्र रहें कि आपके बेटे और उसके दोस्तों का कोई केस बनेगा। और केस भी तो तभी बनेगा न जब पीड़िता या उसके घरवाले चाहेंगे। अगर वो लोग ही केस नहीं करना चाहेंगे तो भला कैसे कोई केस बन जाएगा? मेरी इन सब बातों से वो खुश हो जाएगा अंकल। वो यही समझेगा कि उसके रुतबे और डर से पीड़िता या उसके घर वालों ने उसके खिलाफ़ केस करने की हिम्मत ही नहीं कर सके।"

"ओह आई सी।" डाक्टर ने कहा___"मगर मुझे ऐसा क्यों लगता है कि असल चक्कर कुछ और ही है जिसे तुम चलाने वाली हो या फिर चलाना शुरू भी कर दिया है।"
"ये सब छोड़िये आप ये बताइये कि आपने और किस लिए बुलाया था मुझे?" रितू ने पहलू बदल दिया।

"पुलिस की नौकरी में आते ही काफी शार्प दिमाग़ हो जाता है न?" डाक्टर मुस्कुराया फिर सहसा गंभीर होकर बोला___"बात ज़रा सीरियस है बेटी।"
"क्या मतलब?" रितू चौंकी।

"विधी की रिपोर्ट आ चुकी है।" डाक्टर ने कहा___"और रिपोर्ट ऐसी है जिसके बारे में जानकर शायद तुम्हें यकीन न आए।"
"ऐसी क्या बात है रिपोर्ट में?" रितू की पेशानी पर बल पड़े___"ज़रा बताइये तो सही।"

"विधी को ब्लड कैंसर है बेटी।" डाक्टर ने जैसे धमाका किया___"वो भी लास्ट स्टेज में है।"
"क्याऽऽऽ????" रितू बुरी तरह उछल पड़ी___"ये आप क्या कह रहे हैं अंकल?"
"यही सच है बेटी।" डाक्टर ने कहा___"वो बस कुछ ही दिनों की मेहमान है। मुझे समझ नहीं आ रहा कि ये बात मैं उसके पैरेन्ट्स को कैसे बताऊॅ? एक तो वैसे भी वो अपनी बेटी की इस हालत से बेहद दुखी हैं दूसरे अगर उन्हें ये पता चल गया कि उनकी बेटी को कैंसर है और वो बस कुछ ही दिनों की मेहमान है तो जाने उन पर इसका क्या असर हो?"

रितू के दिलो दिमाग़ में अभी भी धमाके हो रहे थे। अनायास ही उसकी ऑखें नम हो गई थी। हलाॅकि विधी से उसका कोई रिश्ता नहीं था। उसने तो बस उसे दोस्त कह दिया था ताकि वह आसानी से कुछ बता सके। बाद में उसे ये भी पता चल गया कि ये वही विधी है जिससे विराज प्यार करता था। लेकिन फिर वो दोनो अलग हो गए थे। रितू के मन में एकाएक ही हज़ारों सवाल उभर कर ताण्डव करने लगे थे।

"इसके साथ ही विधी जो दो महीने की प्रेग्नेन्ट है तो उसके पेट में पनप रहे शिशु का भी पतन हो जाएगा।" डाक्टर ने कहा___"यानी एक साथ दो लोगों की जान चली जाएगी।"
"ये तो सचमुच बहुत बड़ी बात है डाक्टर अंकल।" रितू गंभीरता से बोली___"पर सोचने वाली बात है कि इतनी कम उमर में उसे ब्लड कैंसर हो गया।"

"आज कल ऐसा ऐसा सुनने को मिलता बेटा जिसकी आम इंसान तो क्या हम डाक्टर लोग भी कल्पना नहीं कर सकते।" डाक्टर ने कहा___"ख़ैर, मैंने यही बताने के लिए तुम्हें बुलाया था। अभी मुझे मिस्टर चौहान को भी इस बात की सूचना देनी होगी। वो बेचारे तो सुन कर ही गहरे सदमे में आ जाएॅगे।"

"आप सही कह रहे हैं।" रितू ने कहा___"वैसे क्या ये कैंसर वाली बात विधी को पता है??"
"पता नहीं।" डाक्टर ने कहा___"हो भी सकता है और नहीं भी।"
"अच्छा मैं चलती हूॅ अंकल।" रितू ने कुर्सी से उठते हुए कहा___"मुझे विधी से अकेले में कुछ बातें करनी है।"
"ओके बेटा।" डाक्टर ने कहा।

रितू भारी मन से डाक्टर के केबिन से बाहर निकल गई। उसे ये बात हजम ही नहीं हो रही थी कि विधी को लास्ट स्टेज का कैंसर है। उसे विधी के लिए इस सबसे बड़ा दुख सा हो रहा था। उसके मन में कई तरह की बातें चल रही थी। जिनके बारे में उसे विधी ही बता सकती थी। इस लिए वह तेज़ी से उस कमरे की तरफ बढ़ गई।
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11-24-2019, 12:38 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
विधी के कमरे में पहुॅच कर रितू ने गायत्री से बड़े ही विनम्र भाव से कहा कि उसे विधी से अकेले में कुछ बातें करनी है। इस लिए अगर आपको ऐतराज़ न हो तो आप बाहर थोड़ी देर के लिए चले जाइये। गायत्री उसकी ये बात सुन कर कुछ पल तो उसे देखती रही फिर कुर्सी से उठ कर कमरे से बाहर चली गई। रितू ने दरवाजे की कुंडी लगा दी और फिर आ कर वह गायत्री वाली कुर्सी पर ही विधी के बेड के पास ही बैठ गई। विधी उसे बड़े ग़ौर से देख रही थी। रितू भी उसके चेहरे की तरफ देखने लगी।

"तो डाक्टर ने आपको बता दिया कि मुझे लास्ट स्टेज का कैंसर है?" विधी ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा था।
"तुम्हें कैसे पता कि डाक्टर ने मुझे किस लिए बुलाया था?" रितू मन ही मन बुरी तरह चौंकी थी उसकी बात से।

"बड़ी सीधी सी बात है।" विधी ने कहा__"जब कोई ब्यक्ति मरीज़ बन कर हास्पिटल में आता है तो उसकी हर तरह की जाॅच होती है। उसके बाद ये जान जाना कौन सी बड़ी बात है कि मुझे असल में क्या है? ये तो मैं जानती थी कि यहाॅ पर मेरी जाॅच हुई होगी और जब उसकी रिपोर्ट आएगी तो डाक्टर को पता चल ही जाएगा कि मुझे लास्ट स्टेज का कैंसर है। इस लिए जब नर्स आपको बुलाने आई तो मुझे अंदाज़ा हो गया कि डाक्टर यकीनन आपको उस रिपोर्ट के बारे में ही बताएगा। इस कमरे में आते वक्त आपके चेहरे पर जो भाव थे वो दर्शा रहे थे कि आप अंदर से कितनी गंभीर हैं मेरे बारे में जान कर। इस लिए आपसे कहा ऐसा।"

"यकीनन काबिले तारीफ़ दिमाग़ है।" रितू ने कहा___"थोड़े से सबूतों पर कैसे कड़ियों को जोड़ना है ये तुमने दिखा दिया। पुलिस विभाग में होती तो जटिल से जटिल केस बड़ी आसानी से सुलझा लेती तुम।"

"आपने तो बेवजह ही तारीफ़ कर दी।" विधी ने कहा___"जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है।"
"तो इस लिए ही तुमने मेरे भाई विराज से बेवफाई की थी?" रितू के मन में सबसे ज्यादा यही सवाल उछल रहा था___"तुमको पहले से पता था कि तुम्हें कैंसर है इस लिए तुमने ये रास्ता अपनाया। है न?"

"वि विरा...ज??" विधी का चेहरा फक्क पड़ गया। लाख कोशिशों के बाद भी उसकी ज़ुबान लड़खड़ा गई____"क कौन वि..रा..ज? आप किसकी बात कर रही हैं?"
"अब भला झूॅठ बोलने की क्या ज़रूरत है विधी।" रितू ने कहा___"मुझे बहुत अच्छी तरह पता है कि तुम मेरे भाई विराज से आज भी बेपनाह मोहब्बत करती हो। बेवफाई तो तुमने जान बूझ कर की उससे। ताकि वो तुम्हारी उस ज़िंदगी से चला जाए जो बस कुछ ही समय की मेहमान थी। उसे अपने से दूर करने का यही तरीका अपनाया तुमने। जब मेरे डैड ने उसे और उसके परिवार को हवेली से निकाल दिया तब तुम्हें भी मौका मिल गया और तुमने उसी मौके में उससे ऐसी बातें कही कि उसे तुमसे नफरत हो जाए।"

"तो और क्या करती मैं?" विधी के अंदर का बाॅध मानो ज्वारभाॅटा बन कर फूट पड़ा। वह फूट फूट कर रो पड़ी। रोते हुए ही उसने कहा___"मैं उसकी ज़िंदगी में चंद महीनों की मेहमान थी। वो मुझे इतना चाहता था कि वह मेरे बिना जीवन की कल्पना भी नहीं करता था। प्यार तो मैं भी उससे उतना ही करती थी और आज भी करती हूॅ मगर, उस प्यार से क्या हो सकता था भला? हम हमेशा साथ तो नहीं रह सकते थे न। मेरी मौत पर वह टूट जाता। मैने सोचा कि उसके अंदर से अपने प्रति चाहत निकाल दूॅ किसी तरह ताकि वो किसी और के साथ अपने जीवन में आगे बढ़ने का सोच सके। मुझे जो सही लगा वो मैने किया। मैने अपने आपको पत्थर बना लिया और उससे उस तरह की दो टूक बातें की। उसके अंदर अपने प्रति नफरत पैदा करने के लिए मैने सूरज नाम के लड़के से दोस्ती भी कर ली। मैं जानती थी कि सूरज कैसा लड़का है मगर अब मेरे पास जीवन ही कहाॅ बचा था और ना ही मुझमें जीने की चाह रह गई थी। मुझे ये भी पता है कि मेरे पेट में सूरज का ही पाप है लेकिन मुझे इसकी कोई परवाह नहीं है क्योंकि इस पाप का भी मेरे साथ ही अंत हो जाएगा। सूरज ने मेरे शरीर को भोगा मगर मेरे दिल में मेरे मन में तो हर जन्म में सिर्फ विराज ही रहेगा।"

"ये सब तो ठीक है।" रितू ने कहा___"लेकिन क्या तुमने ये नहीं सोचा कि तुम्हारे ऐसा करने से विराज किस हद तक टूट कर बिखर जाएगा? तुमने तो ये सोच कर उससे बेवफाई की कि वह किसी और के साथ जीवन में आगे बढ़ जाएगा, लेकिन ये क्यों नहीं सोचा कि अगर उसने ऐसा नहीं किया तो???"

"मैने बहुत कुछ सोचा था रितू दीदी।" विधी ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___"ये दिल बड़ा ही अजीब होता है। कोई हज़ारों बार चाहे इसके साथ खिलौने की तरह खेल कर इसे टुकड़ों में बिखेर दे फिर भी ये मोहब्बत करना बंद नहीं करता। इसके अंदर हर रूप में मोहब्बत विद्यमान रहती है फिर चाहे वो नफरत के रूप में ही क्यों न हो। नफरत से पत्थर बन जाओ फिर भी मोहब्बत से पिघल जाओगे। विराज वो कोहिनूर है जिसे हर लड़की मोहब्बत करना चाहेगी और करती भी थी। मोहब्बत एक एहसास है दीदी, पत्थर भी इस एहसास से पिघल जाते हैं। आपको फिर से कब किसी से मोहब्बत हो जाए ये आपको भी पता नहीं चलेगा। मोहब्बत करने वाला पत्थर दिल में भी मोहब्बत का एहसास जगा देता है। बस यही सोच कर मैने ये सब किया था। मुझे पता था उसके जीवन में कोई न कोई ऐसी लड़की ज़रूर आ जाएगी जो अपनी मोहब्बत से उसकी नफरत को मिटा देगी और फिर से उसके टूटे हुए दिल को जोड़ कर उसे मोहब्बत करना सिखा देगी।"

"क्या पता ऐसा हुआ भी है कि नहीं?" रितू ने कहा___"क्या तुमने कभी पता करने की कोशिश की कि विराज किस हाल में है?"
"कोशिश करने का सवाल ही कहाॅ रह गया दीदी?" विधी ने कहा___"मैंने तो ये सब किया ही उससे दूर होने के लिए था। दुबारा उसके पास जाने का या ये पता करने का कि वो किस हाल में है ये सवाल ही नहीं था। क्योंकि मैने बड़ी मुश्किल से वो सब किया था, मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं अपने महबूब के उदास चेहरे को दुबारा देख पाती।"

"ख़ैर, ये बताओ कि जब तुमको पता चल गया था कि तुमको कैंसर है तो तुमने अपने माता पिता को क्यों नहीं बताया?" रितू ने पहलू बदलते हुए पूछा___"अगर बता देती तो संभव था कि तुम्हारा इलाज होता और तुम ठीक हो जाती?"
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11-24-2019, 12:38 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
"ऐसा कुछ न होता दीदी।" विधी ने कहा__"क्योंकि मेरे पिता उस हालत में ही नहीं थे कि वो मेरा कैंसर का इलाज करवा पाते। आप तो बस यही जानती हैं कि वो बड़े आदमी हैं मगर ये नहीं जानती हैं कि उस बड़े आदमी के साथ उसके बड़े भाईयों ने कितना बड़ा अत्याचार किया है? दादा जी के मरते वक्त बड़े ताऊ ने धोखे से सारी प्रापर्टी पर उनके हस्ताक्षर करवा लिया। उसके बाद दादा जी की तेरवीं होने के बाद ही अगले दिन ताऊ और उनके दोगले भाई ने मेरे माता पिता को सारी प्रापर्टी से बेदखल कर दिया। अब आप ही बताइये कि कैसे मेरे पापा मेरा इलाज करवा सकते थे?"

रितू को समझ ही न आया कि वह क्या बोले? विधी की कहानी ही ऐसी थी कि वह बेचारी हर तरह से मजबूर थी। उसके ठीक होने का कहीं कोई चाॅस ही नहीं था।

"अगर मैं अपने कैंसर की बात पापा से बताती तो वो बेचारे बेवजह ही परेशान हो जाते।" विधी कह रही थी___"जिसकी कंपनी में लोग काम करते थे और जो खुद कभी किसी का मालिक हुआ करता था वो आज खुद किसी दूसरे की कंपनी में बीस हजार की नौकरी करता है। बीस हज़ार में अपने तीन बच्चों और खुद दोनो प्राणियों का खर्चा चला लेना सोचिये कितना मुश्किल होगा? ऐसे में वो कैसे मेरा इलाज करवा पाते? इससे अच्छा तो यही था दीदी कि मैं मर ही जाऊॅ। दो चार दिन मेरे लिए रो लेंगे उसके बाद फिर से उनका जीवन आगे चल पड़ेगा।"

"इतनी छोटी सी उमर में इतनी बड़ी सोच और इतना बड़ा त्याग किया तुमने।" रितू की ऑखों में ऑसू आ गए___"ये सब कैसे कर लिया तुमने?"

रितू ने झपट कर उसे अपने सीने से छुपका लिया। विधी को उसके गले लगते ही असीम सुख मिला। भावना में बह गई वह। वर्षों से अपने अंदर कैद वेदना को वह रोंक न पाई बाहर निकलने से। वह हिचकियाॅ ले लेकर रोने लगी थी।

"मेरी आपसे एक विनती है दीदी।" फिर विधी ने अलग होकर तथा ऑसू भरी ऑखों से कहा।
"विनती क्यों करती है पागल?" रितू का गला भर आया___"तू बस बोल। क्या कहना है तुझे?"

"मु मुझे एक बार।" विधी की रुलाई फूट गई, लड़खड़ाती आवाज़ में कहा___"मुझे बस ए एक बार वि..विरा...ज से मिलवा दीजिए। मुझे मेरे महबूब से मिलवा दीजिए दीदी। मैं उसकी गुनहगार हूॅ। मुझे उससे अपने किये की माफ़ी माॅगनी है। मैं उसे बताना चाहती हूॅ कि मैं बेवफा नहीं हूॅ। मैं तो आज भी उससे टूट टूट कर प्यार करती हूॅ। उसे बुलवा दीजिए दीदी। मेरी ख़्वाहिश है कि मेरा अगर दम निकले तो उसकी ही बाहों में निकले। मेरे महबूब की बाॅहों में दीदी। आप बुलवाएॅगी न दीदी? मुझे एक बार देखना है उसे। अपनी ऑखों में उसकी तस्वीर बसा कर मरना चाहती हूॅ मैं। अपने महबूब की सुंदर व मासूम सी तस्वीर।"

"बस कर रे।" रितू का हृदय हाहाकार कर उठा___"मुझमें इतनी हिम्मत नहीं है कि मैं तेरी ऐसी करुण बातें सुन सकूॅ। मैं तुझसे वादा करती हूॅ कि तेरे महबूब को मैं तेरे पास ज़रूर लाऊॅगी। मैं धरती आसमान एक कर दूॅगी विधि और उसे ढूॅढ़ कर तेरे सामने हाज़िर कर दूॅगी। मैं अभी से उसका पता लगाती हूॅ। तू बस मेरे आने का इंतज़ार करना।"

रितू ने कर्सी से उठ कर बेड पर लेटी विधी के माॅथे को झुक कर चूॅमा और अपने ऑसू पोंछते हुए बाहर निकल गई।
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11-24-2019, 12:38 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
फ्लैशबैक अब आगे_______

विजय सिंह खाना पीना खा कर अपने कमरे में लेटा हुआ था। उसके दिलो दिमाग़ से आज की घटना हट ही नहीं रही थी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसकी माॅ समान भाभी उसके साथ इतनी गिरी हुई तथा नीचतापूर्ण हरकत कर सकती है। उसकी ऑखों के सामने वो दृश्य बार बार आ रहा था जब प्रतिमा ने उसके लंड को अपने मुह में लिया हुआ था। विजय सिंह अपनी ऑखों के सामने इस दृश्य के चकराते ही बहुत अजीब सा महसूस करने लग जाता था। उसके मन में अपनी भाभी के प्रति तीब्र घृणा और नफ़रत भरती जा रही थी।

उधर अजय सिंह और प्रतिमा को ये डर भी सता रहा था कि विजय सिंह आज की इस घटना का ज़िक्र कहीं किसी से कर न बैठे। हलाॅकि उसकी फितरत के हिसाब से उन दोनो को यही लग रहा था कि वो इस बारे में किसी से कुछ कहेगा नहीं। पर कहते हैं न कि अपराध का बोध अगर स्वयं को हो तो उसका दिमाग़ एक जगह स्थिर नहीं रह सकता। वही हाल प्रतिमा व अजय सिंह का था। दोनो ने फैसला कर लिया था कि कल ही अपने बच्चों को लेकर शहर चले जाएॅगे। जब ये घटना पुरानी हो जाएगी तो फिर उस हिसाब से देखा जाएगा।

रात को सारे कामों से फुरसत हो कर गौरी ऊपर अपने कमरे में पहुॅची। बच्चे क्योंकि अब बड़े हो गए थे इस लिए वो सब अब अलग कमरों में सोते थे। निधि हमेशा की तरह अपने भइया विराज के साथ ही सोती थी।

गौरी जब कमरे में पहुॅची तो विजय सिंह को बेड पर पड़े हुए किसी गहरी सोच में डूबा हुआ पाया। वो खद भी पिछले काफी दिनों से महसूस कर रही थी कि विजय सिंह काफी उदास व परेशान सा रहने लगा है। उसके द्वारा पूछने पर भी उसने कुछ न बताया था।

"पिछले कुछ दिनो की अपेक्षा आज कुछ ज्यादा ही परेशान नज़र आ रहे हैं आप।" गौरी ने बेड के किनारे पर बैठते हुए किन्तु विजय के चेहरे पर देखते हुए कहा___"मैं जब भी आपसे इस परेशानी की वजह पूछती हूॅ तो आप टाल जाते हैं विजय जी। क्या आप पर मेरा इतना भी हक़ नहीं कि मैं आपके मन की बातें जान सकूॅ?"

"ऐसा क्यों कहती हो गौरी?" विजय ने चौंक कर कहा था___"तुम्हारा तो मुझ पर सारा हक़ है। मेरे दिल में और मेरे मन में भी। लेकिन, कुछ बातें ऐसी भी होती हैं जिन्हें अगर ज़ुबान से बाहर निकाल दी जाएॅ तो कयामत आ जाती है। तुम्हारे पूछने पर हर बार मैं टाल देता हूॅ, यकीन मानो मुझे तुम्हारी बातों का जवाब न दे पाने पर बेहद दुख होता है। पर मैं क्या करूॅ गौरी? मैं चाह कर भी वो सब तुम्हें बता नहीं सकता।"

"अगर आप बताना नहीं चाहते हैं विजय जी तो कोई बात नहीं।" गौरी ने गंभीरता से कहा___"मैं तो बस इस लिए जानना चाहती थी कि मैं आपको इस तरह उदास और परेशान नहीं देख सकती। हर वक्त सोचती रहती हूॅ कि आख़िर ऐसा क्या हो गया है जिसकी वजह से आपके चेहरे का वो नूर खो गया है जो इसके पहले दमकता था।"

"समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता।" विजय ने गहरी साँस ली___"ये तो बदलता ही रहता है और बदलते हुए इस समय के साथ ही इंसान से जुड़ी हर चीज़ भी बदलने लगती है।"

"आपने कहा कि कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें अगर ज़ुबान से बाहर निकाल दी जाएॅ तो कयामत आ जाती है।" गौरी ने कुछ सोचते हुए कहा___"मेरे मन में ये जानने की तीब्र उत्सुकता जाग गई है कि ऐसी भला कौन सी बातें हैं जिनके बाहर आ जाने से कयामत आ सकती है? मैं तो आपकी धर्म पत्नी हूॅ, हमारे बीच आज तक किसी का कोई राज़ राज़ नहीं रहा फिर क्या बात है कि आज कोई बात मेरे सामने राज़ ही रख रहे हैं?"

"मैं जानता हूॅ गौरी कि जब तक तुम उस बात को जान नहीं लोगी तब तक तुम्हारे मन को शान्ति नहीं मिलेगी।" विजय सिंह ने गंभीरता से कहा___"इस लिए मैं तुम्हें वो सब बता ही देता हूॅ लेकिन उससे पहले तुम्हें मुझे एक वचन देना होगा।"

"वचन??" गौरी के माॅथे पर बल पड़ा___"कैसा वचन चाहते हैं आप मुझसे?"
"यही कि जो कुछ मैं तुम्हें बताने वाला हूॅ उस बात को कभी किसी से कहोगी नहीं।" विजय सिंह ने कहा___"वो सारी बात हम दोनो के बीच ही रहेगी। यही वचन चाहिए तुमसे।"

"ठीक है विजय जी।" गौरी ने कहा__"मैं आपको वचन देती हूॅ कि आपके द्वारा कही गई किसी भी बात का ज़िक्र मैं कभी किसी से नहीं करूॅगी।"

गौरी के वचन देने पर विजय सिंह कुछ पल तक उसे देखता रहा फिर एक लम्बी व गहरी साँस लेकर उसने वो सब कुछ गौरी को बताना शुरू कर दिया। उसने गौरी से कुछ भी नहीं छुपाया। शुरू से लेकर आज तक की सारी राम कहानी उसने गौरी को विस्तार से बता दी। उसके मुख से ये सब बातें सुन कर गौरी की हालत किसी निर्जीव पुतले की मानिन्द हो गई। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे उसे इन सारी बातों पर ज़रा सा भी यकीन न हो रहा हो।

"आज की इस घटना ने तो मुझे अंदर से बुरी तरह हिला कर रख दिया है गौरी।" विजय सिंह ने कहा___"समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूॅ मैं? मैं सोच भी नहीं सकता था कि वो कुलटा औरत मेरे साथ इतनी नीच और घटिया हरकत भी कर सकती थी।"

"ये सब मेरी वजह से हुआ है विजय जी।" गौरी ने नम ऑखों से कहा___"अगर मैं बीमार ना होती तो कभी भी वो औरत खेतों में आपको खाने का टिफिन देने न जा पाती। आज तो मैं खुद ही आपको खाना लेकर आने वाली थी लेकिन उसने ही मुझे जाने नहीं दिया। कहने लगी कि अभी मुझे और आराम करना चाहिये। भला मैं क्या जानती थी कि उसके मन में क्या खिचड़ी पक रही थी?"

"इसका चरित्र तो निहायत ही घटिया है गौरी।" विजय सिंह ने कहा__"ये बहुत शातिर औरत है। इसी ने मेरे भाई को अपने रूप जाल में फॅसाया रहा होगा। मेरे भइया तो ऐसे नहीं हैं। वो बस इसकी बातों में ही आ जाते हैं।"

"आपके बड़े भाई का चरित्र भी कुछ ठीक नहीं है विजय जी।" गौरी ने कहा___"हो सकता है कि आपको मेरी इस बात से बुरा लगे मगर सच्चाई तो यही है कि आपके बड़े भाई साहब खुद भी आपकी भाभी की तरह ही चरित्रहीन हैं।"

"ये क्या कह रही हो तुम गौरी?" विजय सिंह ने हैरतअंगेज लहजे में कहा___"बड़े भइया के बारे में तुम ऐसा कैसे कह सकती हो?"
"मैने आज तक आपसे उनके बारे में यही सोच कर नहीं बताया था कि आपको बुरा लगेगा।" गौरी ने कहा___"पर आज जब आपने अपनी भाभी के चरित्र का वर्णन किया तो मैंने भी आपको आपके भाई के चरित्र के बारे में बताने का सोच लिया।"

"आख़िर ऐसा क्या किया है बड़े भइया ने तुम्हारे साथ?" विजय सिंह का लहजा एकाएक ही कठोर हो गया, बोला__"मुझे सबकुछ साफ साफ बताओ गौरी।"

गौरी ने विजय सिंह को शुरू से लेकर अब तक की बात बता दी। सुन कर विजय सिंह ठगा सा बैठा रह गया बेड पर। ऑखों में आश्चर्य के साथ साथ दुख के भाव भी नुमायां हो गए थे।
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11-24-2019, 12:38 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
"पहले मुझे लगा करता था कि ये सब शायद मेरा वहम है।" गौरी धीर गंभीर भाव से कह रही थी___"पर धीरे धीरे मुझे समझ आ गया कि ये वहम नहीं बल्कि सच्चाई है। जेठ जी की नीयत में ही खोट है। वो अपने छोटे भाई की बीवी पर ग़लत नीयत से हाॅथ डालना चाहते हैं।"

"ये सब तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया गौरी?" विजय सिंह ने कहा___"भगवान जानता है कि मैंने कभी भूल से भी अपने बड़े भाई व भाभी का कभी बुरा नहीं सोचा। बल्कि हमेशा उन्हें राम और सीता समझ कर उनका मान सम्मान किया है। मगर मुझे क्या पता है कि ये दोनो राम व सीता जैसे कभी थे ही नहीं। मैं कल ही बाबू जी से इस बारे में बात करूॅगा। ये कोई मामूली बात नहीं है जिसे चुपचाप सहन करते रहें। हमारे आदर सम्मान देने को वो लोग हमारी कमज़ोरी समझते हैं। मगर अब ऐसा नहीं होगा। माॅ बाबू जी को इस बात का पता तो चलना ही चाहिए कि उनका बड़ा बेटा और बड़ी बहू कैसी सोच रखते हैं?"

"नहीं विजय जी।" गौरी बुरी तरह घबरा गई थी, बोली___"भगवान के लिए शान्त हो जाइये। आप ये सब माॅ बाबू जी से बिलकुल भी नहीं बताएॅगे। बड़ी मुश्किल से तो उन्हें ऐसा दिन देखने को मिला है जब उनके बड़े बेटे और बहू खुशी खुशी हम सबसे मिल जुल रहे हैं। इस लिए आप ये सब उनसे बताकर उन्हें फिर से दुखी नहीं करेंगे।"

"क्यों न बताऊॅ गौरी?" विजय सिंह ने आवेश में कहा___"ये ऐसी बात नहीं है जो अगले दिन खत्म हो जाएगी बल्कि ऐसी है कि ये आगे चलती ही रहेगी। जब किसी का मन इन बुरी चीज़ों से भर जाता है तो वो ब्यक्ति किसी के लिए फिर अच्छा नहीं सोच सकता। अभी तो ये शुरूआत है गौरी। जब आज ये हाल है तो सोचो आगे कैसे हालात होंगे?"

"सब ठीक हो जाएगा विजय जी।" गौरी ने समझाने वाले भाव से कहा___"आप बस उनसे दूर रहियेगा। माॅ बाबूजी से आप इस सबका ज़िक्र नहीं करेंगे।"
"ज़िक्र तो होगा गौरी।" विजय सिंह ने निर्णायक भाव से कहा___"अब तो रात काफी हो गई है वरना अभी इस बात का ज़िक्र होता। मगर सुबह सबसे पहले इसी बात का ज़िक्र होगा।"

"आप ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे।" गौरी ने कहा___"आपको हमारे राज की कसम है विजय जी आप माॅ बाबू जी से उनके बारे में कुछ भी नहीं कहेंगे।"
"मेरे बेटे की कसम देकर तुमने ये ठीक नहीं किया गौरी।" विजय सिंह असहाय भाव से कहा था।

"मुझे माफ कर दीजिए विजय जी।" गौरी ने नम ऑखों से कहा___"पर आपको भी तो सोचना चाहिए था न। सोचना चाहिये था कि इस सबसे माॅ बाबू जी पर क्या गुज़रेगी जब उन्हें ये पता चलेगा कि उनका बड़ा बेटा और बड़ी बहू क्या करतूत कर रहे हैं?"

विजय सिंह कुछ न बोला बल्कि बेड पर एक तरफ करवॅट लेकर लेट गया। गौरी को समझते देर न लगी कि विजय सिंह उससे नाराज़ हो गया है। आज जीवन में पहली बार ऐसा हुआ था कि विजय सिंह गौरी से नाराज़ हो गया था।

कुछ देर गौरी उसे एकटक देखती रही फिर वह भी उसके बगल में लेट गई। ऑखों में ऑसू थे और मन में बस एक ही बात कि मुझे माफ कर दीजिए विजय जी।

सुबह जब गौरी की नीद खुली तो बगल में विजय सिंह को न पाया उसने। वह समझ गई कि हर दिन की तरह विजय सिंह खेतों पर चले गए हैं। मगर तुरंत ही उसे रात की बायों का ख़याल आया। वह एकदम से हड़बड़ा गई। उसे आशंका हुई कि विजय सिंह कहीं अपनी कसम तोड़ कर माॅ बाबू जी से वो सब बताने तो नहीं चले गए? ये सोच कर गौरी झट से बेड से उठी। अपनी सारी को दुरुस्त करके वह बिना हाॅथ मुॅह धोए ही कमरे से बाहर निकल गई।

नीचे आकर देखा तो सब कुछ सामान्य था। उसे कहीं पर भी कुछ महसूस न हुआ कि जैसे कुछ बात हुई हो। ये देख कर उसने राहत की साँस ली। मन में खुशी के भाव भी जागृत हो गए, ये सोच कर कि विजय जी ने बेटे की कसम नहीं तोड़ी।

हवेली के मुख्य द्वार की तरफ जाकर उसने बाहर लान में देखा तो चौंक पड़ी। बाहर अजय सिंह प्रतिमा व उसके बच्चे सब कार में बैठ रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे वो लोग शहर जा रहे हों। गौरी को समझते देर न लगी कि वो लोग इतना जल्दी क्यों यहाॅ से शहर जा रहे हैं। हर बार तो ऐसा होता था कि जब भी उसके जेठ व जेठानी शहर जाते थे तब वह उनके पाॅव छूकर आशीर्वाद लेती थी। मगर आज उसने ऐसा नहीं किया। बल्कि दरवाजे से तुरंत ही पलट गई वह, ताकि किसी की नज़र न पड़े उस पर। जेठ जेठानी के लिए उसके मन में नफरत व घृणा सी भर गई थी अचानक। वह पलटी और वापस अपने कमरे की तरफ बढ़ गई।

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11-24-2019, 12:38 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
वर्तमान अब आगे________

रितू विधी से मिलने के बाद शाम को अपने घर हवेली पहुॅची। विधी की कहानी और उसकी बातों ने उसे सच में अंदर तक हिला दिया था। वह प्यार मोहब्बत जैसी चीज़ों को बकवास ही मानती थी। किन्तु विधी से मिलने के बाद उसे इस प्यार मोहब्बत की अहमियत समझ आई थी। उसे समझ आया कि कैसे लोग किसी के प्यार में इस क़दर पागल से हो जाते हैं कि अपने महबूब की खुशी के लिए वो कोई भी काम किस हद से बाहर तक कर सकते हैं। विधी से मिलकर और उसके प्यार की सच्चाई व गहराई को जानकर उसे एहसास हुआ कि आज के युग में भी अभी ऐसे लोग हैं जो प्यार के लिए क्या नहीं कर डालते?

विधी की हालत और उसके प्यार की दास्तां ने रितू के अंतर्मन को झकझोर कर रख दिया था। एक तेज़ तर्रार लड़की जो खुद को किसी भी मामले में लड़कों से कम नहीं समझती थी आज विधी की असलियत ने उसके दिल को छू लिया था। उसके हृदय में विधी के प्रति पीड़ा जाग गई थी और जिस पीड़ा ने उसकी ऑखों से ऑसू छलका दिये थे।

वह आज तक नहीं समझ पाई और ना ही कभी समझने की कोशिश की कि क्यों वह अपने चाचा चाची के लड़के विराज से नफ़रत करती थी? क्यों उसने कभी उससे बात करना ज़रूरी नहीं समझा? क्यों उसने हमेशा विराज को अपना भाई नहीं समझा? आख़िर क्या अपराध किया था उसने उसके साथ? जहाॅ तक उसे याद था जब कभी भी विराज उससे बात किया था तो बड़ी इज्ज़त से किया था। हमेशा उसे दीदी और आप कह कर संबोधित करता था।

विधी से मिलने के बाद रितू हवेली में जाकर सीधा अपने कमरे में बेड पर लेट गई थी। उसकी माॅ ने तथा उसकी छोटी बुआ नैना ने उससे बात करना चाहा था मगर उसने सबको ये कह कर अपने पास से वापस लौटा दिया था कि वह कुछ देर अकेले रहना चाहती है।

बेड पर पड़ी हुई रितू ऊपर छत के कुंडे पर लगे हुए पंखे को घूर रही थी अपलक। उसकी ऑखों के सामने विधी का वो रोता बिलखता हुआ चेहरा और उसकी वो करुण बातें घूम रही थी।

"मेरी आपसे एक विनती है दीदी।" फिर विधी ने अलग होकर तथा ऑसू भरी ऑखों से कहा।
"विनती क्यों करती है पागल?" रितू का गला भर आया___"तू बस बोल। क्या कहना है तुझे?"

"मु मुझे एक बार।" विधी की रुलाई फूट गई, लड़खड़ाती आवाज़ में कहा___"मुझे बस ए एक बार वि..विरा...ज से मिलवा दीजिए। मुझे मेरे महबूब से मिलवा दीजिए दीदी। मैं उसकी गुनहगार हूॅ। मुझे उससे अपने किये की माफ़ी माॅगनी है। मैं उसे बताना चाहती हूॅ कि मैं बेवफा नहीं हूॅ। मैं तो आज भी उससे टूट टूट कर प्यार करती हूॅ। उसे बुलवा दीजिए दीदी। मेरी ख़्वाहिश है कि मेरा अगर दम निकले तो उसकी ही बाहों में निकले। मेरे महबूब की बाॅहों में दीदी। आप बुलवाएॅगी न दीदी? मुझे एक बार देखना है उसे। अपनी ऑखों में उसकी तस्वीर बसा कर मरना चाहती हूॅ मैं। अपने महबूब की सुंदर व मासूम सी तस्वीर।"

"बस कर रे।" रितू का हृदय हाहाकार कर उठा___"मुझमें इतनी हिम्मत नहीं है कि मैं तेरी ऐसी करुण बातें सुन सकूॅ। मैं तुझसे वादा करती हूॅ कि तेरे महबूब को मैं तेरे पास ज़रूर लाऊॅगी। मैं धरती आसमान एक कर दूॅगी विधि और उसे ढूॅढ़ कर तेरे सामने हाज़िर कर दूॅगी। मैं अभी से उसका पता लगाती हूॅ। तू बस मेरे आने का इंतज़ार करना।"

ये सब बातें रितू की ऑखों के सामने मानो किसी चलचित्र की तरह बार बार चलने लगती थी। जितनी बार ये दृष्य उसकी ऑखों के सामने से गुज़रता उतनी बार रितू के अंदर एक हूक सी उठती और उसके समूचे अस्तित्व को हिला कर रख देती।

"क्या सचमुच प्यार ऐसा होता है विधी?" रितू ने सहसा करवॅट बदल कर मन ही मन में कहा___"क्या सचमुच प्यार में लोग अपने महबूब की खुशी के लिए इस हद से बाहर तक गुज़र जाते हैं? तुम्हें देख कर और तुम्हारी बातें सुन कर तो ऐसा ही लगता है विधी। तुम सच में बहुत महान हो विधी। मेरे उस भाई से तुमने इस हद तक प्यार किया जिस भाई से मैं बात तक करना अपनी शान के खिलाफ़ समझती थी। और एक वो था कि हमेशा मुझे इज्ज़त देता था, मुझे दीदी कहते हुए उसका मुह नहीं थकता था। जब भी वो मुझसे बात करने की कोशिश करता तो हर बार मैं उसे दुत्कार देती थी। मुझे याद है विधी, जब मैं उसे दुत्कार कर भगा देती थी तब उसकी ऑखों में ऑसू होते थे। जिन्हें वह ऑखों से छलकते नहीं देता था बल्कि उन्हें ऑखों में ही जज़्ब कर लेता था। मैने तेरे विराज को बहुत दुख दिये हैं विधी। हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।"

एकाएक ही रितू की ऑखों से ऑसू छलक कर उसके कपोलों को भिगोने लगे। सहसा जैसे उसे कुछ याद आया। वह तुरंत ही बेड से उठी और तेज़ी से बगल में दीवार से सटी हुई आलमारी के पास पहुॅची। उसने आलमारी का हैण्डल घुमाया लेकिन वो न घूमा। मतलब साफ था कि आलमारी लाॅक थी।

रितू दूसरी साइड रखे एक टेबल की तरफ बढ़ी और उसकी कबड को खोल कर उसमें से एक चाभी का गुच्छा निकाला। गुच्छा लेकर वह तुरंत आलमारी के पास वापस पहुॅची और गुच्छे से एक चाभी को चुन कर उसने आलमारी के की-होल पर डाल कर घुमाया। आलमारी एकदम से अनलाॅक हो गई। रितू ने हैण्डल पकड़ कर घुमाया और फिर आलमारी के दोनो फटकों को दोनो साइड खोल दिया।

आलमारी के अंदर कई सारे पार्ट्स थे जिनमें कुछ पर कपड़े व कुछ पर कुछ किताबें व फाइलें रखी हुई थी। किन्तु रितू की नज़र उन सब पर नहीं बल्कि आलमारी के अंदर मौजूद एक और लाॅकर पर थी। उसने एक दूसरी चाभी से उस लाकर को खोला। उसके अंदर भी कुछ काग़जात जैसे ही थे। एक प्लास्टिक का डिब्बा था। रितू ने उन काग़जातों को एक ही बार में सारा का सारा बाहर निकाल लिया।

उन सबको निकाल कर वह पलटी और बेड पर उन सभी काग़जातों को फैला दिया। उनमें कुछ रसीदें थी, कुछ एग्रीमेंट जैसे काग़जात थे और कुछ लिफाफे थे। रितू ने झट से एक लिफाफा उठा लिया। उसे खोल कर देखा तो उसमें कुछ फोटोग्राफ्स थे। रितू ने लिफाफे से सारे फोटोग्राफ्स निकाल लिये और फिर एक एक कर देखने लगी। पाॅच छः फोटोग्राफ्स को देखने के बाद रितू एक दम से रुक गई। एक फोटोग्राफ्स पर उसकी नज़र जैसे गड़ सी गई थी। कुछ देर देखने के बाद उसने बाॅकी सारे फोटोग्राफ्स को बेड पर गिरा दिया और बस एक फोटोग्राफ्स को लिए वह बेड पर एक साइड बैठ गई।

फोटोग्राफ्स में उसके माॅम डैड, नीलम, शिवा एवं वह खुद भी थी। किन्तु रितू की नज़र उन सबके पीछे कुछ दूरी पर खड़े विराज पर टिकी हुई थी। ये फोटोग्राफ्स कुछ साल पहले का था। हवेली में कोई कार्यक्रम था तब ही शहर से किसी फोटोग्राफर को बुलवाया गया था और ये तस्वीरें खींची गई थी। अन्य तस्वीरों में बाॅकी सबकी तस्वीरें थी लेकिन विजय सिंह गौरी व उनके बच्चों की कोई तस्वीरें नहीं थी। इस तस्वीर में भी ग़लती से ही विराज की फोटो आ गई थी। रितू को याद आया कि शिवा बार बार विराज से इस बात पर लड़ पड़ता था कि वो उसके साथ फोटो न खिंचवाए। मगर उत्सुकतावश वो आ ही जाता था।
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11-24-2019, 12:39 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
"वि..राज मेरे भाई।" रितू ने अपने एक हाॅथ से तस्वीर में विराज के चेहरे पर हाॅथ फेरा। उसकी ऑखों से ऑसू बह चले, बोली__"मैं जानती हूॅ कि तुझे भाई कहने का भी मुझे कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। मगर बस एक बार मुझे मिल जा भाई। अपनी इस दीदी के लिए नहीं बल्कि अपनी उस विधी के लिए जिसे तू आज भी उतना ही प्यार करता होगा मैं जानती हूॅ। मुझे पता है कि आज भी अगर तू मुझे मिल जाए तो तू मुझे उतनी ही इज्ज़त से के साथ दीदी कहेगा जैसे पहले कहा करता था। और सच कहूॅ तो मुझे नाज़ है तुझ पर कि मेरा भाई है। एक मेरा है जिसने मुझे इज्ज़त तो दी लेकिन उसकी उस इज्ज़त में भी कितनी इज्ज़त होती है ये मुझसे बेहतर भला और कौन जानता होगा भाई। पर ये तो मेरी सोच और मेरे नसीब की बात है मेरे भाई कि जिसने मुझे सच में इज्ज़त दी उसे मैने हमेशा दुत्कारा और जिसकी इज्ज़त में भी गंदगी भरी थी उसे अपने सीने से लगा कर भाई कहा। ख़ैर, ये सब छोड़ भाई। ये बता कि कहाॅ है तू? मुम्बई में ऐसी कौन सी जगह पर है जहाॅ से मुझे तेरा पता मिल जाए? मैने तेरी विधी से वादा किया है भाई कि मैं उसके सामने तुझे ले आऊॅगी। इस लिए भाई मुझे किसी तरह से मिल जा।"

रितू उस तस्वीर से जाने क्या क्या कहे जा रही थी मगर भला वो तस्वीर उसको विराज का पता कैसे बताती?

"मैने कभी इस बात पर ग़ौर नहीं किया भाई कि क्यों मेरे अंदर तेरे लिए ये नफ़रत थी? क्यों मैं तुझसे हमेशा मुह मोड़ लेती थी?" रितू करुण भाव से कह रही थी___"इसकी वजह शायद ये हो सकती है कि बचपन से ही मेरे माॅम डैड ने मुझे और मेरे भाई बहनों को तुझसे और तेरे माता पिता व बहन से दूर ही रहने की शिक्षा दी। वो हमेशा हमें यही बताते थे कि तुम लोग अच्छे लोग नहीं हो। बचपन से हमें यही सब सिखाया पढ़ाया गया था भाई, इस लिए हम भी उनके कहे अनुसार तुम लोगो से दूर ही रहे। और जब चाची पर वो सब इल्जाम लगा और उन्हें हवेली से निकाल दिया गया तो हम बच्चों के मन में और भी ये बात बैठ गई कि तुम लोग वाकई में अच्छे लोग नहीं हो। मगर आज जब मैंने विधी से उसके और तुम्हारे प्यार के बारे में जाना तो जाने क्यों ऐसा लगा कि तुम उतने बुरे तो नहीं हो सकते मेरे भाई जितना कि आज तक हम तुम्हें समझते आ रहे थे। अगर होते तो कोई भी लड़की तुम्हारे लिए प्यार में इस हद तक अपनी कुर्बानी नहीं देती। इंसान की बुराई कभी किसी से नहीं छिपती भाई। अगर तुम वास्तव में बुरे होते तो क्या ये बात विधी को कभी पता न चलती? ज़रूर चलती भाई, मगर ऐसा नहीं था। वो पागल तो कह रही है कि वो तुम्हारी ही बाॅहों में अपनी आख़िरी साँस लेना चाहती है। आख़िर कुछ तो खूबी होगी ही न तुझमें भाई। मैने कभी तुझे समझा ही नहीं भाई...मुझे माफ़ कर दे विराज।"

रितू उस तस्वीर को अपने सीने से लगा कर रोए जा रही थी। इस वक्त उसे इस हालत में देख कर कोई नहीं कह सकता था कि ये वही तेज़ तर्रार रितू है जो अकेले चार चार हट्टे कट्टे लड़कों धूल चटा देती है। हौंसले ऐसे बुलंद कि आसमान की बुलंदी भी क्या चीज़ है।

तभी उसका मोबाइल बजा। उसने देखा बेड के एक साइड पर रखे आईफोन की स्क्रीन पर कोई नम्बर फ्लैश कर रहा था। रितू ने फोन उठाया और काल रिसीव कर उसे कनपटी से सटा कर कहा___"हैलो।"

"..............." उधर से कुछ कहा गया।
"ये क्या कह रहे हो तुम?" रितू के चेहरे पर चेहरे पर चौंकने वाले भाव थे।
"..............." उधर से फिर कुछ कहा गया।
"पूरी बात बताओ साफ साफ।" रितू ने कहा।
".............." उधर से कुछ देर तक बताया गया।
"ओह चलो ठीक है।" रितू ने कहा__"तुमने बहुत अच्छा काम किया है। अब एक काम और तुम्हें दे रही हूॅ। और वो काम क्या है ये तुम्हें तुम्हारे फोन पर मेरे द्वारा भेजे गए मैसेज से पता चल जाएगा। सारे काम छोंड़ कर तुम्हें ये काम करना है। तुम्हारे पास सिर्फ और सिर्फ आज रात बस का समय है। कल मार्निंग में मेरी ऑख तुम्हारे फोन करने पर ही खुले। ये बात भूलना मत।"

रितू ने कहा और फोन काट दिया। उसने बेड पर बिखरे हुए काग़जातों की तरफ देखा और फिर उसकी नज़र विराज वाली तस्वीर पर पड़ी। उस तस्वीर को एक तरफ रख कर बाॅकी सारी चीज़ें उसने उठा कर वापस उसी लाॅकर के अंदर रख दी और आलमारी बंद कर दी। विराज वाली तस्वीर को तकिये के नीचे सरका वह बेड से नीचे उतरी और अपने कपड़े उतारने लगी। कुछ ही देर में वह सिर्फ पैन्टी और ब्रा में थी। कपड़े उतारने में उसे थोड़ी तक़लीफ हुई थी। क्योंकि पीठ पर चाकू का लछा चीरा आज ही का तो था। वह ब्रा पैन्टी में किसी हालीवुड की सुपर माॅडल से कम नहीं लग रही थी। उसने तुरंत ही बाथरूम की तरफ रुख़ किया। बाथरूम से फ्रेश होने के बाद वह पुनः कमरे में आई और दूसरे कपड़े पहन कर वह कमरे से बाहर निकल गई। बेड से मोबाइल फोन उठाना नहीं भूली थी वह। पीछे साइड कमर में सर्विस रिवाल्वर छुपा हुआ था उसके।

कुछ ही देर में वह डायनिंग हाल में पहुॅच कर एक कुर्सी पर बैठ गई।
"माॅम अगर खाना रेडी हो तो जल्दी से दे दीजिए मुझे।" उसने किचेन की तरफ मुह करके ज़रा ऊॅची आवाज़ में कहा था।
"बस दो मिनट बेटी।" किचेन से प्रतिमा की आवाज़ आई।

ठीक दो मिनट बाद ही रितू के सामने बड़ी सी टेबल पर एक थाली रख दी गई। थाली लाने वाली नैना थी।
"तो अकेले रहने से उकता गई हमारी पुलिस वाली रितू बेटी?" नैना ने ज़रा मुस्कुराते हुए कहा था।
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