Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
10-04-2018, 11:42 AM,
#31
RE: Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
उन दोनों की नज़रें मिली. जयसिंह उसकी निगाहों को ताड़ चुके थे और मुस्काए, मनिका भी क्या करती सो वह भी मुस्का दी. जयसिंह को जैसे कोई छिपा हुआ इशारा मिल गया था, वे खिसक कर मनिका के बिलकुल करीब आ गए. इस तरह उनके अचानक पास आ जाने से मनिका असहज सी हो गई पर उसका शरीर उस एक पल के लिए जड़ हो गया था. जयसिंह ने उसके करीब आ कर अपना हाथ उसकी कमर में डाल लिया और अपना चेहरा उसके चेहरे के बिलकुल पास ले आए, उधर मनिका से हिलते-डुलते भी नहीं बन रहा था.

'गुड-नाईट डार्लिंग!' जयसिंह ने धीरे से कहा.

'ओह...गुड-नाईट पापा...' मनिका उनकी इस हरकत का आशय समझ थोड़ी सहज होने लगी.

जयसिंह ने मुस्का कर उसकी कमर पर रखा हाथ उठा कर एक बार फिर उसकी ठुड्डी पकड़ी और अगले ही पल अपना मुहँ उसके चेहरे की तरफ बढ़ा दिया; 'पुच्च' मनिका कुछ समझ पाती उस से पहले ही उन्होंने उसके गाल पर एक छोटा सा किस्स कर दिया था और पीछे हो कर लेट गए.

मनिका की नज़रें उठाए नहीं उठ रहीं थी. जयसिंह के यकायक किए इस बर्ताव ने उसे स्तब्ध कर दिया था. किसी तरह उसने एक पल को उनकी तरफ देखा था और झट-पट नज़र झुका ली, जयसिंह को इतना इशारा काफी था,

'वैसे तुमसे एक शिकायत भी है मुझे अब...' वे बोले.

'क्या पापा?' मनिका ने हैरानी से पूछा, उसकी नज़र फिर से उठ गई थी.

'यही कि मैंने तुमसे ये एक्स्पेक्ट नहीं किया था कि तुम मुझे इतना पराया और गलत समझोगी...' जयसिंह के चेहरे से मुस्कुराहट हट चुकी थी.

'पापा! मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती...कभी नहीं...आप ऐसा क्यूँ बोल रहे हो?' मनिका ने भावुक हो कर कहा और उठ बैठी.

'वैसे ही कह रहा हूँ, हो सकता है मैं गलत होऊं पर जब से तुमने बताया है तब से सोच रहा हूँ अगर तुम्हें मुझ पर भरोसा होता तो पहली रात के बाद तुम नाईट-ड्रेस चेंज करके रोज यह अभी वाले कपड़े न पहन कर सोती.' जयसिंह ने चेहरे पर ऐसा भाव प्रकट किया जैसे वे बहुत दुखी व विचलित हों.

'नहीं ना पापा ऐसा मत कहो...ऐसा बिल्कुल नहीं है!' मनिका ने अपने तर्क की सच्चाई जताने के लिए थोड़ा सा उनकी तरफ झुकते हुए कहा 'वो तो...मुझे शर्म...शर्म आती है इसलिए नहीं पहनती...प्लीज़ ना पापा आप मुझे मिसअंडरस्टैंड मत करो...'

'हम्म...' जयसिंह ने सोचते हुए प्रतिक्रिया की.

'पापा! प्लीज..?’मनिका ने हाथ बढ़ा कर उनका हाथ थाम कर मिन्नत की.

'ओके ओके...मान ली तुम्हारी बात भई.' जयसिंह ने मुस्का कर उसकी तरफ देखा.

'ओह पापा.' मनिका ने राहत की साँस ली 'ऐसा मत सोचा करो आप...'

'ठीक है...' जयसिंह बोले 'चलो अब यहाँ आओ और मुझे मेरी गुड-नाईट किस्स दो...'

मनिका एक पल के लिए ठिठकी और उसकी नज़र फिर से जयसिंह के लिंग पर चली गई फिर उसने धीरे से आगे झुक कर जयसिंह के गाल पर पप्पी दे दी 'पुच्च'.

अब मनिका पीछे हट कर फिर से अपनी जगह पर लेट गई. जयसिंह ने लाइट बुझा कर नाईट-लैंप जला दिया और वे दोनों एक-दूसरे की तरफ करवट लिए सोने लगे. पर कुछ-कुछ पल में ही कभी मनिका तो कभी जयसिंह आँख खोल कर देख रहे थे और जब कभी दोनों की आँखें साथ में खुल जाती थी तो दोनों झट से आँखें मींच लेते थे.

यूँ तो जब से वे दोनों दिल्ली आए थे मनिका और जयसिंह दुनिया-जहान की बातें कर चुके थे और कभी-कभी जयसिंह की चालाकी से उनके बीच की बातचीत ने कुछ रोचक मोड़ भी ले लिए थे परन्तु अभी तक उन्होंने अपने रिश्ते के दायरों का उलंघन नहीं किया था. लेकिन आज जिस तरह से जयसिंह ने बात घुमाते-घुमाते मनिका के सामने हर रिश्ते की परिभाषा को एक मर्द और औरत के बीच समाज की खड़ी की दीवारों के रूप में पेश किया था उसने मनिका के मन को अशांत और आतंकित कर दिया था. मनिका लेटी हुई सोच रही थी,

'ओह पापा भी कैसी अजीब बातें सोचते हैं...सबसे डिफरेंट...मर्द-औरत...लड़की...सोसाइटी के बनाए हर रूल से उलट..! वैसे वे भी कुछ गलत तो नहीं कह रहे थे...आई मीन (मेरा मतलब) अगर हम अपनी लाइफ अपने हिसाब से जीना चाहते हैं तो उससे सोसाइटी और लोगों को क्यूँ दिक्कत होती है? एंड उन फूहड़ लोगों का भी अपना लाइफ स्टाइल है वो चाहें मूवी में हूटिंग करें या कुछ और...बात तो तब गलत होगी जब वे किसी और को जान-बूझ कर परेशान करें या छेड़ें.' मनिका ने अब आँख खोल-खोल कर जयसिंह की ओर देखना बंद कर दिया था 'एंड पापा ने कहा कि मैं भी तो मम्मी से बातें छुपाने लगी हूँ...हाँ क्यूंकि वे हमेशा मुझसे चिढती रहती हैं...पापा ने भी तो कहा कि सब बातें हर किसी को बताने की नहीं होती...पहले भी तो मैंने यह सोचा था कि अगर मम्मी को पता चले कि हम यहाँ दिल्ली में ऐश कर रहे थे तो कितना बखेड़ा खड़ा हो जाएगा...हमें तो ज़िन्दगी भर ताने सुनने पड़ें शायद...और अगर...ओह गॉड! अगर किसी तरह मम्मी को हमारे बीच होने वाली इंटरेक्शन (मेल-जोल, बातें) का पता चल गया तो फिर तो गए समझो...कैसे हम दोनों एक ही रूम में इतने दिनों से रह रहे हैं और...वो अंडरर्गार्मेंट्स वाली बात पर हुई लड़ाई...पापा ने कहा कि अगर उनकी जगह कोई और होता तो मैं शायद इतना रियेक्ट नहीं करती...क्या सच में? कभी किसी ने ऐसी बात तो कही नहीं है मुझसे...पर हाँ शायद इतना बड़ा इशू (बतंगड़) नहीं बनता...आखिर मूवीज में ये सब कॉमन है. पर पापा थे इसलिए...सुबह उनसे फिर से सॉरी कहूँगी...पापा कितने मैच्योर (समझदार) हैं और कितने कूल भी...उन्होंने कहा कि वे सच में मुझे एक एडल्ट की तरह ट्रीट करते हैं...हाँ वो तो है!' सोचते हुए मनिका ने करवट बदल ली.

उधर जयसिंह लेटे हुए उसे देख रहे थे, उसके करवट बदलने पर उन्होंने अच्छे से आँखें खोल कर उसकी तरफ देखा था, 'आज तो पता नहीं क्या-क्या बोल गया मैं...पर कुतिया ने ज्यादा विरोध नहीं किया...साली के मन में पता नहीं क्या चल रहा होगा. कैसी मचकी थी चिनाल जब पैर पे लंड महसूस हुआ था...पर फिर भी सब लग तो सही ही रहा है वरना चुम्मा ना देती इतने आराम से...देखो कल कितना काम आता है ये ज्ञान...’जयसिंह ने सोचते हुए मनिका की तरफ एक नज़र और डाली; वे जानते थे कि आज उनके बीच जिस तरह की बातें हुई थी वे आज से पंद्रह दिन पहले तक नामुमकिन थी और ये उनके रचे चक्रव्यूह का ही कमाल था कि मनिका अब उनके चंगुल में फंसती चली जा रही थी. उन्होंने पूरे समय मनिका के साथ एक कदम आगे बढ़ने के बाद दो कदम पीछे खींचे थे और उनकी यह स्ट्रेटेजी कामयाब रही थी. एक पल तो वे मनिका को शर्मिंदगी के कागार पर पहुंचा देते और फिर अगले ही पल खुद ही उसे आश्वस्त कर देते कि उनके बीच होनेवाली बातों में कुछ भी गलत नहीं था और मनिका उनकी और ज्यादा कायल हो जाती थी. वैसे भी २२ साल की मनिका जयसिंह जैसे मंझे हुए व्यापारी के साथ क्या होड़ कर सकती थी? उन्होंने देखा कि मनिका ने अपना हाथ उठा कर अपने नितम्ब पर रखा हुआ था और एक बार उसे हल्के से सहलाया था. उनके चेहरे पर एक लम्बी मुस्कान तैर गई और ख़ुशी से उन्होंने एक पल को आँखें बंद कर ली थी.

'और मम्मी ने मुझे आज तक इस तरह अच्छे से ट्रीट नहीं किया है...छोड़ो मम्मी की किसे जरूरत है?' मनिका के विचार भी अभी बराबर चल रहे थे 'अगर उन्हें पता चले कि पापा ने मेरी ब्रा-पैंटी देख ली थी तो...हाहाहा हाय! पापा ने कैसा सताया था...और मैंने जो उनका डिक...देख लिया था? पापा बार-बार कहते हैं कि हमें घर पर सावधान रहना होगा...और ये बात तो किसी से शेयर भी नहीं कर सकती...कितना बड़ा है पापा का! हाय...कैसे खिसिया जाते हैं जब उनको सताती हूँ उन मूवी वाली हिरोइन्स के नाम पर...क्या उनके छोटे-छोटे कपड़े देख कर पापा टर्न-ऑन (उत्तेजित) हो जाते हैं..? और उनका डिक इरेक्ट (खड़ा)...हाय... बोल रहे थे कि उन्होंने उस रात मुझे नोटिस किया था...शॉर्ट्स में...पर कुछ कहा नहीं था ताकि मुझे बुरा ना लग जाए...कितने केयरिंग है पापा...बट कितना अडौर (तारीफ) कर रहे थे आज मुझे...कि आई वास् लुकिंग वैरी ब्यूटीफुल...सब कुछ देख लिया था उन्होंने सुबह-सुबह मतलब...शॉर्ट्स तो पूरी ऊपर हुई पड़ी थी...ही सॉ माय नेकेड बम्स (नंगी गांड)...ओह गॉड और बोले की मैं मम्मी से भी ज्यादा खूबसूरत हूँ...तो क्या उनको इरेक्शन हुआ होगा मुझे देखने के...नहीं-नहीं वो तो पापा हैं मेरे ऐसा थोड़े ही सोचेंगे...पर पापा तो कहते हैं कि सब रिश्ते समाज ने बनाए हैं! मैंने भी तो उन्हें बताया था कि सब मुझे उनकी गर्लफ्रेंड समझते हैं...कैसे मजाक बनाते हैं उस बात का भी वे...यहाँ आने से पहले तो कभी मैं उनकी गोद में नहीं बैठी...आई मीन बड़ी होने के बाद से...पर अब तो मुझे अपने लैप में ही बिठाए रखते हैं...और दो-तीन बार तो मुझे डार्लिंग भी कह चुके हैं...मनिका डार्लिंग...ये तो मैंने सोचा ही नहीं था...और जो मेरे बम्स पर उन्होंने हाथ से...पहले किसी ने नहीं टच किया मुझे वहाँ पर...पापा ने...कैसी आवाज़ आई थी उनके स्लैप (थपकी) की...हे भगवान मैं क्या सोचती जा रही हूँ आज ये..?’मनिका याद कर-कर के सम्मोहित होती जा रही थी, उसे अचानक अपनी गांड में एक स्पंदन का एहसास होने लगा था और उसने हाथ से वहाँ पर सहलाया था जहाँ उसके पिता ने उसे छुआ था. यही देख जयसिंह की बाँछें खिल उठी थीं. उधर मनिका के मन में लगी आग ने ज्वाला का रूप धारण कर लिया था.

'घर जाने के बाद तो मैं और पापा यह सब नहीं कर पाएंगे...सिर्फ एक-दो दिन और हैं हम यहाँ फिर तो जाना ही पड़ेगा...तब देखती हूँ कितना डार्लिंग-डार्लिंग करके बुलाते हैं मुझे...पर वो तो वे प्यार से कहते होंगे...मैं भी गलत-सलत सोच रही हूँ बेफालतू...' मनिका ने अपने ख्यालों को विराम देने की कोशिश की पर विफल रही 'और आज तो गुड-नाईट किस्स...मुझे तो एक बार लगा कि पापा इज गोइंग टू किस्स माय लिप्स (होंठ)...जैसा उस मूवी में था...उनकी पकड़ कितनी मजबूत है, चेहरा घुमा तक नहीं सकी थी मैं...उस दिन भी तो उनकी बाहों में...सबके सामने मुझे अपनी बाहों में भर लिया था...उह्ह.'

इसी तरह के विचारों में उलझी मनिका की आँख लग गई थी पर जयसिंह सोए न थे.

जयसिंह जानते थे कि आज मनिका इतनी जल्दी नहीं सो पाएगी सो वे देर तक आँखें मूँदे पड़े रहे थे. 'आहा आज तो मजा आ गया. साली का दीमाग पलटने में अगर कामयाबी मिल जाती है तो उसके बाद तो कुतिया के बचने का सवाल ही पैदा नहीं होता...जल्दी से सो जाए तो थोड़ा मजा कर लूँ काफी दिन हो गए...उम्म्म...अब तो वापसी का वक़्त भी करीब आ गया है.' करीब दो घंटे तक जयसिंह ने कोई हरकत नहीं की थी. जब उन्हें लगा कि अब तो मनिका गहरी नींद सो ही चुकी होगी तो उन्होंने अपनी आँखें खोलीं और अपनी बेटी की तरफ देखा.

मनिका की करवट उनकी तरफ थी. कमरे में हमेशां की तरह नाईट-लैंप की रौशनी फैली हुई थी. मनिका बेफिक्र नींद के आँचल में समाई हुई थी. एक पल के लिए उसके मासूम-खूबसूरत चेहरे को देख जयसिंह को अपने इरादों पर शर्मिंदगी का एहसास हो आया था पर फिर हवस का राक्षस उन पर दोगुनी गति से सवार हो गया 'रांड चिनाल कुतिया...छोटी-छोटी कच्छियाँ पहनती है मेरे पैसों से! ऐश करती है मेरे पैसों से...और मजे लेगा कोई और? हँह!'
'मनिका!' जयसिंह ने उसे पुकारा. उन्होंने अपनी आवाज़ भी नीची नहीं की थी. मनिका सोती रही.

जयसिंह की हिमाकत अब इस हद तक बढ़ चुकी थी कि वे अब बेख़ौफ़ खिसक कर मनिका के करीब हो लेट गए और अपने हाथ से उसके गाल को एक दो पल सहलाने के बाद अपने हाथ का अँगूठा मनिका के गुलाबी होंठों पर रख कर उन्हें मसलने लगे. मनिका के रसीले होंठों को मसलते-मसलते उन्होंने अपना अँगूठा उसके मुंह में डाल दिया, मनिका के होंठों पर लगे लिप-ग्लॉस की खुशबू उसकी साँसों के बाहर आने पर जयसिंह तक पहुँच रही थी. उनकी उत्तेजना बढ़ने लगी, परन्तु जयसिंह का इरादा सिर्फ मजे लेने का नहीं था.

मनिका जयसिंह की तरफ करवट लिए इस तरह लेटी थी कि उसका एक हाथ उसने मोड़ कर अपने सिर के नीचे रखा हुआ था और दूसरा उसकी छाती के आगे से मोड़ कर बेड पर रखा हुआ था. अब जयसिंह ने मनिका के बेड पर रखे हाथ को पकड़ कर धीरे-धीरे सहलाया, फिर जब वे थोड़ा आश्वस्त हो गए तो उन्होंने उसका हाथ धीरे से उठाया और खिसक कर उसके बिलकुल करीब हो गए व उसका हाथ अपनी कमर पर रख लिया. जयसिंह और मनिका के बीच अब सिर्फ कुछ ही इंच की दूरी थी. एक बार फिर जयसिंह ने कुछ पल का विराम लिया.
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10-04-2018, 11:42 AM,
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थोड़ा वक्त गुजरने के बाद जयसिंह ने अब अपना हाथ भी मनिका की कमर पर रख लिया था और धीरे से अपना दूसरा हाथ नीचे से मनिका की कमर और बेड के बीच घुसाने लगे. कुछ पल की कोशिश के बाद उन्हें सफलता मिल गई, वे फिर थोड़ा रुक गए. अब उन्होंने मनिका की कमर पे रखे अपने हाथ को उसकी पीठ पर ले जा कर हौले से दबाया और उसके नीचे दबे अपने हाथ से उसकी कमर को थाम लिया. जब मनिका की तरफ से उनकी इन हरकतों की कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली तो वे खिसक कर उसके साथ चिपक गए और फिर एकदम से बेड पर पीछे हो करवट बदल कर सीधे लेट गए.

जयसिंह ने मनिका को कस कर थामे रखा था और उनके सीधे होते ही वह भी उनके साथ ही खिंच कर बेड पर उनकी साइड पर आ गई थी. मनिका के थोड़ा ऊपर होते ही उन्होंने उसके नीचे दबा अपना हाथ ऊपर ले जा कर उसकी बगल में डाल लिया था. अब मनिका आधी उनकी बगल में और आधी उनकी छाती पर लगी हुई सो रही थी. जयसिंह के इस कारनामे ने मनिका की नींद को थोड़ा कच्चा कर दिया था और वह थोड़ा हिलने-डुलने लगी. जयसिंह ने जड़वत हो आँखें मींच ली थी ताकि उसके उठ जाने की स्थिति में बचा जा सके लेकिन मनिका ने थोड़ा सा हिलने के बाद अपना सिर उनकी छाती पर एडजस्ट किया और अपनी एक टांग उठा कर उनकी जांघ पर रख कर सोने लगी. जयसिंह को अपनी जांघ की साइड पर सटी अपनी बेटी की उभरी हुई योनि का आभास मिलने लगा था और वे दहक उठे थे.

***

अब जयसिंह ने अपना हाथ, जो मनिका की पीठ पर था, उसे नीचे ले जा कर उसकी टी-शर्ट का छोर पकड़ा और ऊपर उठाने लगे. क्यूंकि उनका एक हाथ आज मनिका के नीचे था, सो टी-शर्ट ऊपर करने में उन्हें ज्यादा वक्त नहीं लगा, और कुछ ही देर में वे अपनी बेटी की टी-शर्ट उसकी कमर से ऊपर कर उसकी पीठ तक उघाड़ चुके थे, पीछे से ऊपर होती टी-शर्ट आगे से भी ऊपर हो गई थी और मनिका की नाभी से भी ऊपर तक उसका बदन अब नग्न था. जब जयसिंह के हाथ पे मनिका की ऊपर हुई टी-शर्ट के नीचे उसकी ब्रा का एहसास हुआ तो वे एक पल के लिए रुक गए. उनकी धड़कनें उनका साथ छोड़ने को हो रहीं थी, उन्होंने अब मनिका की टी-शर्ट को छोड़ा और धीरे-धीरे उसकी नंगी कमर और पीठ सहलाने लगे.

मनिका के नीचे दबे होने की वजह से वे अपना सिर उठा कर उसका नंगापन तो पूरी तरह से नहीं देख सकते थे, लेकिन अब उनके हाथ ही उनकी आँखें बने हुए थे. उन्होंने अब एक कदम और आगे बढ़ते हुए, मनिका का लोअर (पजामी) भी नीचे करना शुरू कर दिया. लेकिन कुछ पल बाद उन्हें रुकना पड़ा क्यूंकि पजामी मनिका के नीचे दबी हुई थी. फिर भी उन्होंने अपनी सोती हुई बेटी की गांड का उपरी हिस्सा उसके लोअर से बाहर निकाल ही लिया था. मनिका की पैंटी का इलास्टिक और उसके नितम्बों के बीच फंसा पैंटी का डोरीनुमा पिछला भाग अब उघड़ चुके थे. जयसिंह हौले-हौले मनिका की गांड से लेकर पीठ तक हाथ चला रहे थे. मनिका के मखमली स्पर्श ने उनके लंड को तान दिया था और वह अब मनिका के जांघ के नीचे दबा हुआ कसमसा रहा था.

जयसिंह ने अपना हाथ मनिका की अपने ऊपर रखी जांघ के नीचे डाला और अपने लंड को सीधा कर थोड़ा आज़ाद किया. वे अपना हाथ वापस ऊपर निकालने लगे पर उनकी उत्तेजना चरम पर थी, और उन्होंने अपना हाथ बाहर न खींच कर, मनिका की टांगों के बीच दे दिया और उसकी जवान योनि पर रख लिया. उनके बदन में गर्माहट का एक सैलाब सा उठने लगा था. मनिका की योनि उनके हाथ में किसी तपते अंगारे सी महसूस हो रही थी, कुछ ही पल में आनन्द से वे निढाल हो गए, और बरबस ही अपनी बेटी की कसी हुई चूत को दबाने लगे.

मनिका को उनकी हरकतों का आभास होने लगा था, परन्तु वह जागी नहीं थी, यह ठीक वैसा ही था जैसा हमें कभी-कभी सपने में अपने आस-पास की चीज़ों का आभास होने लगता है और जग जाने पर हम उन्हें वास्तविक पाते हैं.

"मनिका एक अँधेरे कमरे में थी, और उसके मन में एक अजीब से भय और उत्तेजना का मिलाजुला रूप उठ रहा था, वह अंधेरे में इधर-उधर टटोलते हुए आगे बढ़ रही थी कि उसका पैर किसी सख्त चीज़ से टकराया, मनिका ने हाथ बढ़ा कर देखा तो पाया कि वह एक पलंग था, कमरे में जैसे हल्की सी रौशनी हो गई थी, उसे पलंग का एक हिस्सा नज़र आने लगा था. तभी जैसे आवाज़ आई, 'मनिका, आओ बिस्तर में आ जाओ.' मनिका ने गौर से देखा तो पाया के उसके पापा बेड की दूसरी ओर लेटे हुए थे. वह मुस्कुरा कर बेड पर चढ़ गई, लेकिन उसका दिल जैसे जोरों से धड़कने लगा था. उसके पापा ने एक कम्बल ओढ़ रखा था, 'पापा.' मनिका ने कहा, 'हाँ डार्लिंग?' उसके पापा मुस्कुरा कर बोले, मनिका से उसके पापा ने हमेशा प्यार से बात की थी, उनका ख्याल आते ही उसके मन में उनका वह प्यार भरी मुस्कान वाला चेहरा आ जाता था. लेकिन अब जो मुस्कान उसके पिता ने उसे दी थी उसमें कुछ अलग था, एक ऐसा भाव जिसने उसके मन में स्नेह की जगह एक अजीब सी सनसनी पैदा कर दी थी. जयसिंह ने अब हाथ बढ़ा कर उसका हाथ पकड़ लिया था, उनकी पकड़ में भी एक मजबूती थी, एक ऐसी पकड़ जिसमें आक्रमकता थी, एक किस्म की जबरदस्ती. वे अभी भी मुस्कुरा रहे थे, मनिका भी मुस्का कर उन्हें देख रही थी, फिर उन्होंने मनिका को अपनी ओर खींचा. मनिका अपने डर और आशंकाओं के बावजूद उनका प्रतिरोध नहीं कर सकी और उनके करीब हो गई. आचानक से उसे आभास हुआ के उसके पापा ने ऊपर कुछ भी नहीं पहन रखा था. मनिका का मन और अशांत हो उठा, उधर जयसिंह अभी भी वही अजीब सी मुस्कान लिए थे, मनिका ने अपना हाथ पीछे खींचना चाहा लेकिन उसके पापा ने उसे कसकर थाम रखा था. उनकी आँखों में एक चमक थी, जिसमें प्यार नहीं, एक भूख झलक रही थी. 'पापा, छोड़ो ना मुझे...' मनिका ने मिन्नत की. 'क्यूँ?' जयसिंह ने पूछा, मनिका के पास कोई जवाब न था. 'रात हो गई है, सोना नहीं है?' उसके पापा ने आगे कहा. 'हाँ पापा, मैं सोने जा रही हूँ अपने रूम में.' मनिका ने फिर से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की. 'लेकिन जानेमन, यह तुम्हारा ही तो रूम है.' जयसिंह बोले. मनिका ठिठक गई, क्या पापा ने उसे अभी 'जानेमन' कहा था, उसने गौर से आस-पास देखा तो पाया कि जयसिंह सही कह रहे थे, कमरे में जैसे और रौशनी हो गई थी, यह तो उसी का कमरा था. 'पर पापा आप यहाँ क्यूँ सो रहे हो?' मनिका ने उपाह्पोह भरी आवाज़ में पूछा. 'मैं तो यहीं सोता हूँ रोज़, तुम्हारे साथ.' जयसिंह मुस्का के बोले. 'पर मम्मी..?' मनिका ने अचम्भे से कहा. 'वह अपने कमरे में है. बहुत बातें हो गईं चलो अब आ भी जाओ...' कह उसके पापा ने कम्बल एक तरफ कर दिया. 'पापाआआअह्हह्हह...आप...!' मनिका की कंपकंपी छूट गई, उसके पापा कम्बल के अन्दर पूरे नंगे थे. उनका काला लंड खड़ा हो कर मचल रहा था. उसने एक झटके से जयसिंह से हाथ छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन जयसिंह ने मनिका को दोगुनी ताकत से अपने साथ कम्बल में खींच लिया. मनिका सिहर उठी, उसने अपने आप को छुड़ाने की कोशिश में कहा 'पापा, ये गलत है, आप ये क्या कर रहे हो? मैं आपकी बेटी हूँ, आपने कुछ नहीं पहना हुआ! आप...आप...नंगे हो.' जयसिंह ने मनिका को अपनी गिरफ्त से थोड़ा आज़ाद किया, पर वे अब भी उसे कस कर अपने बदन से लगाए हुए थे और मनिका उनके बलिष्ठ शरीर की ताकत के आगे बेबस थी. 'पर तुम भी तो नंगी हो मेरी जान...' जयसिंह ने उसी कुटिल मुस्कान के साथ कहा. 'ह्म्म्प...मैं...मैं भी!' मनिका को यकायक एहसास हुआ कि उसके पिता सही कह रहे थे, वह भी पूरी तरह से नंगी थी, अगले ही पल उसका कलेजा मुहं में आने को हो गया, उसने पाया कि उसने अपने हाथ से अपने पापा का लंड कस कर पकड़ रखा था."

'आह्ह्ह्हह्ह...नाआआअ...' मनिका की आँखें एक झटके से खुल गईं, उसके माथे पर पसीने की बूँदें छलक आईं थी. एक पल के लिए उसे समझ नहीं आया कि वह कहाँ है. कुछ पल बाद उसे याद आया कि वे लोग डेल्ही में थे और एहसास हुआ कि वह एक डरावना सपना देख रही थी, और फिर अगले ही पल उस पर एक और गाज गिरी. वह अपने पिता से लिपट कर सो रही थी.

मनिका ने जयसिंह से अलग होने के लिए पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन पाया कि उनका एक हाथ उसकी कमर में था, और इस से भी ज्यादा भयावह यह था कि उसकी टी-शर्ट ऊपर हो रखी थी. इस से वह उबर पाती उस से पहले ही उसे अपने लोअर की स्थिति का भी एह्सास हो गया, मनिका का बदन अब सचमुच कांपने लगा था, उसने फिर से हिलने की कोशिश की और इस बार तो जैसे उसका खून ही सूख गया, उसके हिलने पर उसे आभास हुआ की उसके पापा का हाथ उसकी योनि पर स्पर्श कर रहा था.

अब निढाल होने की बारी मनिका की थी, हर एक पल के साथ उसे अपने पिता के स्पर्श का एक और पहलू नज़र आ रहा था, अब उसे अपनी जांघ के नीचे दबे जयसिंह के लंड का भी आभास हो गया था, 'पपाज़ डिक!! इट इज़ अंडर माय थाईज़!' यह सोचते ही मनिका ने अपना पैर पीछे हटाया, पर उसके पैर पीछे करते ही जयसिंह का हाथ जो उसकी योनि पर रखा था, पूरी तरह से उसकी टांगों के दबाव में आ कर भिंच गया. मनिका की आँखों के आगे अँधेरा छा गया था, उसके पापा का हाथ अब उसकी योनि पर कसा हुआ था. 'पापाज हैंड इज़ ऑन माय पुसी (योनि)!!!'

मनिका ने सिहरते हुए हिम्मत की और अपने हाथ से जयसिंह के हाथ को अपनी नंगी कमर से निकाला, और तेज़ी से उनसे अलग हो कर बिस्तर की दूसरी ओर पहुँची. उसके कांपते हाथ बड़ी ही तीव्रता से अपने कपड़ों को सही कर रहे थे पर उसकी नज़र सोते हुए जयसिंह पर ही गड़ी थी. जयसिंह उसके अलग होने पर थोड़ा हिले-डुले थे, पर फिर शांत हो गए थे. 'क्या पापा उठ गए? और मैं उनकी तरफ कैसे पहुँच गई?' सोच-सोच कर मनिका का दिल दहल रहा था. अब उसे वह सपना भी याद आने लगा था जिसकी वजह से उसकी आँख खुल गई थी. 'तो क्या मैं उस ड्रीम की वजह से पापा के पास पहुँच गई थी? ओह गॉड...पापा वाज़ नेकेड (नंगे थे)...एंड मी टू (और मैं भी)...एंड वी वर स्लीपिंग टोगेदर (हम साथ में सो रहे थे)...और हम सच में भी साथ ही सो रहे थे! पापा का हाथ...हाय...' मनिका की नज़र अब जयसिंह के लंड पर चली गई, उनका बरमुडा अभी भी तम्बू बना हुआ था. 'इतना बड़ा डिक है पापा का...और मैंने उसे पकड़ रखा था...नहीं-नहीं इट वाज़ अ ड्रीम (वो एक सपना था)...' मनिका ने अपने आप को भींचते हुए सोचा. 'पर उस दिन तो मैंने पापा का डिक सच में देखा था, इट इज़ सो बिग! (वह कितना बड़ा है!)' मनिका ने बरबस ही आँखें मींच ली थी.

अब उसे वह सपना रह-रह कर याद आ रहा था, 'पापा मुझे कैसे देख रहे थे, जैसे मैं उनकी बेटी नहीं बल्कि...जैसे ही वांटेड मी टू बी हिज़ गर्लफ्रेंड (कि वे मुझे अपने गर्लफ्रेंड बनाना चाहते हों)...नहीं, उनकी आँखों में वैसा प्यार भी नहीं था, इट वाज़ लस्ट...ओह गॉड (उनकी नज़रों में हवस थी)...' मनिका अपने विचारों को रोकने में असमर्थ थी, उसने एक बार फिर आँखें खोल अपने पिता की तरफ देखा, जयसिंह की साइड का नाईट-लैंप जल रहा था इसलिए वह उन्हें साफ़ देख पा रही थी. उनके चेहरे को देखते ही मनिका की जैसे आँखें खुल गईं, 'ओह गॉड, पापा...जब से हम यहाँ आए हैं, पापा सिर्फ मुझे उसी नज़र से तो देखते हैं...' मनिका का गला भर आया था. फिर उसे सपने में उनका जबरदस्ती उसका हाथ पकड़ना भी याद आ गया, 'और अब भी तो पापा मुझे अपनी गोद में इशारा कर के बैठने को कहते हैं...यहाँ आने के बाद से मैं हमेशा उनके लैप में ही बैठती हूँ...ओह शिट...ही इज़ ऑलवेज टचिंग मी (वे हमेशा मुझे छूते भी रहते हैं)...और वो मेरे बम्स (नितम्बों) पर स्लैप (चपत) लगाना...! आई ऍम ग्रोन अप नाउ (मैं बड़ी हो गई हूँ)...और पापा मुझे इस तरह हाथ लगाते रहते हैं...मैं ये सब पहले क्यूँ नहीं देख पाई!?'

मनिका की अंतरात्मा जैसे एक पल में ही जाग उठी थी, उसे जयसिंह की हर वो हरकत याद आने लगी थी जिसके बहाने से उन्होंन उस के साथ अमर्यादित व्यवहार किया था और उसने उनकी नादानी समझ कर अनदेखा कर दिया था. और फिर तो उन्होंने उसे मर्द-औरत के रिश्तों और ऐसी ही बातों में लगा कर किस तरह यह एहसास भी नहीं होने दिया था कि उनके मन में क्या है.
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#33
RE: Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
मनिका के दिल की धड़कने अपना वेग कम करने का नाम ही नहीं ले रहीं थी. पर अब उसे हौले-हौले एक और आभास भी होने लगा था, 'क्या सच में मुझे पापा के बिहेवियर (बर्ताव) में बदलाव का पता नहीं चला?' वह सोचने लगी, 'पर मैंने भी तो सब बातें नोटिस की थीं, लेकिन फिर भी कभी पापा को ना नहीं किया...पापा...ओह. उनको पापा कहने पर आई फील सो गुड (कितना अच्छा लगता है उन्हें पापा कहना)...एंड इट्स नॉट लाइक हाउ आई फेल्ट बिफोर (और उस तरह नहीं जैसे पहले लगता था)...बट लाइक ही इज़...पता नहीं कैसे एक्सप्लेन करूँ...ऐसा पहले कभी नहीं लगता था. पर जब वो मुझे देखते हैं, क्या मुझे पता रहता है कि वो मुझे...क्या वो मुझे अपनी डॉटर समझते हैं?' मनिका के रोंगटे खड़े हो गए थे. 'और क्या सचमुच मैं उन्हें अपने पापा समझती हूँ..? उनकी बॉडी कितनी पावरफुल है...और वे कहते हैं कि सिर्फ मर्द ही लड़कियों को खुश...उनका डिक...पापा का डिक...ओह इतना बड़ा डिक है...पापा का...पापा...' मनिका ने अपने आप को रोकने की कोशिश की लेकिन उसके ख्याल थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. 'पापा ने कहा किसी को न बताने को...ओह गॉड, अगर किसी को पता चल जाए तो..? ये सब गलत है...पाप है, अब ऐसा नहीं होने दूँगी...' मनिका ने करवट बदल ली और अपने मन से विचारों को निकालने की कोशिश करने लगी. उसके पूरे बदन में एक करंट सा दौड़ रहा था, एक पल के लिए उसे अपने पिता का हाथ अपनी योनि पर महसूस हुआ, और उसने सिसक कर आँखें मींच ली.

उधर जयसिंह मनिका के मन में मची उथल-पुथल से अनजान घोड़े बेच कर सो रहे थे. दरअसल जब तक मनिका की आँख खुली थी, उसके पिता उसके जिस्म से खेलते-खेलते सो चुके थे. मनिका के आतंकित-आशंकित मन ने उसे थकाने का का काम किया था और थोड़ी देर बाद उसकी भी आँख लग गई.

उस दिन जब जयसिंह की आँख खुली तो उन्होंने पाया कि मनिका उनसे पहले उठ चुकी है. वह सोफे पर बैठी थी और उसकी पीठ उनकी तरफ थी. वे तकिये से टेक लगा कर उठ बैठे और बोले,

'अरे, आज तो तुम बड़ी जल्दी उठ गई.'

'हूँ.' मनिका की तरफ से जवाब आया.

जयसिंह ने मनिका से ऐसी प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं की थी, और उनसे कुछ बोलते न बना. फिर उन्हें याद आया कि पिछली रात उन्होंने किस तरह मनिका को अपने साथ ले कर उसकी मर्यादा पर हाथ डाला था. वे सतर्क हो गए 'क्या आज आखिरी दिन पर आकर बात बिगड़ गई है? मैंने भी सब्र नहीं किया कल...' जयसिंह कुछ पल सोचते रहे फिर बिस्तर से बाहर निकल, अपना तौलिया उठा कर बाथरूम की तरफ बढे.

'मनिका, मैं बाथरूम हो कर आता हूँ, जरा कुछ ब्रेकफास्ट ऑर्डर कर लो.' जयसिंह ने एक नज़र अपनी बेटी पर डालते हुए कहा. मनिका ने उनके उठने की आहट होते ही अपना चेहरा फिर एक बार घुमा लिया था और जयसिंह ने जब उसकी तरफ देखा था तो पाया कि उसका मुहं दूसरी तरफ था. मनिका ने कोई जवाब नहीं दिया.

जयसिंह भी बिना कुछ बोले बाथरूम में घुस गए.

जब जयसिंह नहा कर बाहर आए तो देखा की मेज़ पर ब्रेकफास्ट लगा था और मनिका अभी भी वहीँ बैठी थी, जयसिंह ने अपने कपड़े वगरह अटैची में रखे और आ कर मनिका के सामने सोफे पे बैठ गए. उनके बैठते ही मनिका उठ खड़ी हुई और बेड की तरफ जाने लगी.

'क्या हुआ मनिका? ब्रेकफास्ट नहीं करना..?' जयसिंह ने पूछा. वे नार्मल एक्ट कर रहे थे लेकिन मनिका का बर्ताव पल-पल उनकी बेचैनी बढ़ाता जा रहा था.

'मैंने कर लिया.' बोल कर मनिका बेड पर जा बैठी. उसका चेहरा अब झुका हुआ था और उसके बालों की ओट में छुपा हुआ था.

जयसिंह ने जैसे-तैसे नाश्ता ख़तम किया. उन्होंने उठ कर रूम-सर्विस को कॉल कर टेबल साफ़ करने को बोला. मनिका ने उनके उठ जाने पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी, उन्होंने एक बार फिर से बात करने की कोशिश की.

'तो फिर क्या प्लान है आज का?' उन्होंने मनिका से मुखातिब हो पूछा.

'कुछ नहीं...' मनिका की आवाज में कोई भाव न था.

'अरे आज हमारा लास्ट डे है डेल्ही में...भूल गईं? और तुम कह रही हो के कुछ नहीं?' जयसिंह ने आवाज में झूठा उत्साह लाते हुए कहा.

'नहीं.' मनिका ने सिर्फ एक शब्द का जवाब दिया.

जयसिंह समझ गए की गड़बड़ शायद हो चुकी है. फिर भी उन्होंने चुप रहना मुनासिब नहीं समझा. वे चल कर मनिका के पास पहुंचे और उसकी बगल में बैठ गए. मनिका ने एक पल के लिए ऐसे रियेक्ट किया था मानो वह उठ खड़ी हो रही हो, लेकिन बैठी रही.

'क्या हुआ मनिका? आज मूड ऑफ लग रहा है तुम्हारा..?'

'नहीं.' मनिका ने फिर से एक ही लफ्ज़ में जवाब दिया था.

जयसिंह ने अब अपना हाथ बढ़ा कर मनिका के झुके हुए चेहरे को ठुड्डी से पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया, मनिका ने हल्का सा प्रतिरोध किया था. जयसिंह ने उसका चेहरा देखा तो पाया कि उसकी नज़रें झुकी हुईं थी.

'क्या हुआ मनिका?' जयसिंह ने फिर पूछा.

'कुछ भी नहीं...' मनिका बोली.

'कहीं आज हमारा यहाँ आखिरी दिन है इसलिए तो मेरी जान उदास नहीं है?' जयसिंह ने फैसला कर लिया था कि जब तक मनिका उनका साफ़-साफ़ प्रतिरोध नहीं करेगी वे भी पीछे नहीं हटेंगे. उन्होंने अब मनिका का गाल सहलाते हुए आगे कहा, 'डोंट वरी डार्लिंग, वापस जा कर भी वी विल हैव फन.'

उनके ऐसे कहने पर मनिका की नज़र एक पल के लिए उनसे मिली और फिर से झुक गई, पर उसने कुछ नहीं कहा.

'अरे भई, अभी भी उदासी?' जयसिंह ने झूठा व्यंग्य करते हुए कहा, 'कम हियर (इधर आओ).' और मनिका का हाथ पकड़ उसे रोज़ की तरह अपनी गोद में लेने का प्रयास किया.

पर मनिका ने इस बार उनका प्रतिरोध किया और बैठी रही. 'नो पापा!' उसने थोड़ा उचक कर कहा था.

जयसिंह भी कहाँ हार मानने वाले थे, आज उनके लिए आर या पार की लड़ाई थी. वे उठ खड़े हुए, उन्होंने अभी भी मनिका का हाथ पकड़ रखा था, लेकिन अब उन्होंने उसका हाथ छोड़ते हुए उसकी बगल में हाथ डाला और दूसरा हाथ उसकी जाँघों के नीचे डाल कर एक ही पल में उसे उठा लिया.

'पापाआआअ..! व्हाट आर यु डूइंग?' मनिका ने तीखी आवाज़ में कहा, 'छोड़िये मुझे!'

लेकिन जयसिंह ने उसकी एक न सुनी और उसे लेकर सोफे की तरफ चल दिए. मनिका कसमसा रही थी. जयसिंह सोफे पे बैठ गए और मनिका को अपनी गोद में ले लिया. मनिका ने उठने की कोशिश की थी लेकिन जयसिंह ने उसे कस कर पकड़ रखा था.

'पहले बताओ क्या हुआ?' जयसिंह ने उसे पूछा.

'कुछ नहीं...लेट मी गो (मुझे जाने दो).' मनिका ने दबी सी जुबान में कहा.

'नो.' जयसिंह की आवाज़ में एक सख्ती थी. 'व्हाट हैपनड मनिका?'

'नथिंग...हाउ मैनि टाइम्स शुड आई टेल यू?' मनिका बोली. उसने नज़र झुका ली थी और अब जयसिंह का प्रतिरोध भी नहीं कर रही थी.

'तो फिर ठीक है जब तक तुम नहीं बताओगी, मैं भी तुम्हें जाने नहीं दूंगा.' जयसिंह बोले. मनिका चुप रही.

अब जयसिंह ने एक बार फिर मनिका के चेहरे पर हाथ रख लिया था और उसका गाल सहला रहे थे. रोजाना तो जयसिंह की गोद में बैठने पर उसके पैर ज़मीन पर होते थे लेकिन आज जयसिंह ने उसे अपनी गोद में इस तरह रखा था की उसकी दोनों टांगें सोफे के ऊपर थी और अपने एक हाथ से जयसिंह ने उसे जकड़ रखा था. मनिका ने अपने पिता की ताकत के आगे घुटने टेक दिए थे और चुपचाप नज़र झुकाए उनकी गोद में लेटी रही. जयसिंह हौले-हौले उसका गाल सहलाते-सहलाते अब उसकी गर्दन पर भी हाथ फिरा रहे थे और कभी-कभी हाथ के अंगूठे से उसके गुलाबी होंठों को भी धीरे से मसल दे रहे थे.

'पापाआआअ..!' मनिका ने कुछ देर बाद एक लम्बी आह के साथ कहा. 'प्लीज मुझे छोड़ दीजिए...'

'पहले बताओ क्या बात है, तुम इस तरह क्यूँ बिहेव कर रही हो?' जयसिंह ने पूछा. वे मनिका के ऊपर झुके हुए थे.

'कुछ नहीं पापा...ऐसे ही पापा...' मनिका थोड़ा अटकते हुए बोली.

'देन स्माइल फॉर मी डार्लिंग...' जयसिंह ने मनिका से कहा.

मनिका की नज़र उनसे मिली, उसके चेहरे पर एक अंतर्द्वंद झलक रहा था. एक पल के लिए उसने अपनी आँखें मींच ली, और फिर आँखें खोलते हुए मुस्का दी. जयसिंह ने उसके मुस्काते ही उसे खींच कर अपनी बाहों में भर लिया था. मनिका भी उनसे लिपट गई.

मनिका को जयसिंह के आगोश में समाए दस मिनट से भी ज्यादा हो गए थे, जयसिंह ने उसे कस कर सीने से लगा रखा था, हर एक दो पल में वे उसे अपने शक्तिशाली बाजुओं में भींच लेते थे. मनिका भी उनसे लिपट कर उनकी पीठ को अपने दोनों हाथों से जकड़े हुए थी.

सुबह जब मनिका उठी थी तो उसने तय किया था कि वह अब अपने पिता के जाल में नहीं आएगी. इसीलिए उसने उन्हें सुबह से ही इग्नोर (नज़रंदाज़) करना चालु कर दिया था. उसे लगा कि जयसिंह भी उसकी तल्खी की वजह अपने आप समझ कर उस से दूर हो जाएँगे. लेकिन जैसे-जैसे उसने उन्हें निराश करने की कोशिश की थी, जयसिंह बार-बार उसके करीब आते रहे. अभी-अभी जवान हुई मनिका का यह जयसिंह जैसे मर्द से पहला सामना था और उस को यह नहीं मालूम था कि भय और प्रतिबंधित सीमाओं के उल्लंघन का पुराना वास्ता है. जितना अधिक एक व्यक्ति अपने-आप को नियम-कायदों में बांधता जाता है और उनको तोड़ने से डरता है, उसकी उन्हें तोड़ने की इच्छा भी उसी अनुपात में बढती भी जाती है.

जब जयसिंह उसके रोकने से भी नहीं रुके और उसे उठा कर अपनी गोद में बिठा लिया, तो मनिका भी उनके गंदे मंसूबों को भांप कर उत्तेजित होने लगी थी. अपने बदन में पिछली रात हुए उस सनसनीखेज़ एहसास को वह भूली नहीं थी, और अब जब उसके पिता उसे इस तरह अपनी गोद में जकड़ कर बैठे थे तो उसके मन में प्रतिरोध की जगह कुछ और ही ख्याल चल रहे थे, 'ओह्ह गॉड...पापा तो रुक ही नहीं रहे...कितने गंदे हैं पापा...मुझे जबरदस्ती पकड़ कर अपनी लैप में बिठा लिया है...अपने डिक (लंड) पर...ओह्ह, कितना बड़ा डिक है पापा का...ओह गॉड! आई कैन फील इट अंडर मीईईई...' उधर जयसिंह के उसके गाल और गर्दन पर चलते हाथ ने उसे और अधिक उत्तेजित करने का काम किया था, और आखिर में न चाहते हुए भी मनिका ने समाज के बनाए नियमों को ताक पर रख दिया था, वह अपने पिता की कामेच्छा के आगे बेबस हो कर उनसे लिपट गई थी.
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10-04-2018, 11:48 AM,
#34
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इस तरह अपनी गोद में जकड़ कर बैठे थे तो उसके मन में प्रतिरोध की जगह कुछ और ही ख्याल चल रहे थे, 'ओह्ह गॉड...पापा तो रुक ही नहीं रहे...कितने गंदे हैं पापा...मुझे जबरदस्ती पकड़ कर अपनी लैप में बिठा लिया है...अपने डिक (लंड) पर...ओह्ह, कितना बड़ा डिक है पापा का...ओह गॉड! आई कैन फील इट अंडर मीईईई...' उधर जयसिंह के उसके गाल और गर्दन पर चलते हाथ ने उसे और अधिक उत्तेजित करने का काम किया था, और आखिर में न चाहते हुए भी मनिका ने समाज के बनाए नियमों को ताक पर रख दिया था, वह अपने पिता की कामेच्छा के आगे बेबस हो कर उनसे लिपट गई थी.

अपने पिता के साथ आलिंगनब्ध मनिका गरम-गरम साँसें भर रही थी. जयसिंह अपनी छाती से लगा कर उसके वक्ष का मर्दन जारी रखे हुए थे, और उनकी जकड़ की तीव्रता के बढ़ने के साथ ही मनिका के बदन में जैसे एक तड़पा देने वाली सी चुभन उठ रही थी. उसका मुहं जयसिंह के कान के पास था,

'पापाआआआअह्हह्हह्ह...पापाआआआअम्मम्मम्मम...' वह हौले-हौले उनके कान में फुसफुसाती जा रही थी. जयसिंह ने भी अब उसकी पीठ और कमर को सहलाना शुरू कर दिया था. पर इस से पहले की दोनों बाप-बेटी अपने रिश्ते कि देहलीज़ लांघने की गलती कर पाते, उनके कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई और आवाज़ आई,

'रूम सर्विस, सर.'

जयसिंह ने मनिका को एक आखिरी बार अपनी छाती से भींचा और फिर धीरे से उसे अपनी गिरफ्त से आज़ाद कर दिया. उनकी नज़र मिली और मनिका के चेहरे पर लाली फ़ैल गई. जयसिंह ने आवाज़ दी,

'येस, कम इन...'

मनिका उनकी गोद से उठने को हुई पर जयसिंह ने उसे हल्के से पकड़ कर बैठे रहने का इशारा किया. तब तक रूम सर्विस वाला वेटर अन्दर आ चुका था. जयसिंह ने अपना एक हाथ तो पहले ही मनिका की कमर में डाल रखा था, अब उन्होंने अपना दूसरा हाथ मनिका की जांघ पर रख लिया. मनिका शर्म से तार-तार हो रही थी. उसने आज जानबूझकर एक सूट पहना था, लेकिन उनके आवेश भरे आलिंगन के दौरान मनिका की कुर्ती ऊपर हो गई थी और उसकी चूड़ीदार पजामी में लिपटी मांसल टांगें नज़र आने लगी थी. जयसिंह उन्हें सहलाने लगे.

वेटर टेबल साफ़ करके जाने में काफी वक्त लगा रहा था. आखिर वह भी कितनी देर बहाना करता, उसने टेबल से नाश्ते का बचा-खुचा सामान लिया और चलता बना. जयसिंह ने उसे कहा था की वे टिप अगली बार देंगे, अभी थोड़े बिजी हैं, और मनिका को देख मुस्का दिए थे. मनिका ने उनकी छाती में मुहं छुपा लिया था, और वेटर भी एक कुटिल मुस्कान के साथ चला गया था.

गेट बंद होने के बाद जयसिंह और मनिका कुछ देर उसी तरह बैठे रहे, मनिका का दिल धौंकनी सा धड़क रहा था. उसे एहसास हुआ कि उसके पापा उसे ही निहार रहे हैं, उसने हिम्मत कर के उनकी तरफ देखा, लेकिन उनकी नज़रों के आवेग के आगे न टिक सकी और शरमाते हुए फिर से नज़र झुका ली. जयसिंह उसे ही देखते रहे.

जब काफी देर हो गई और जयसिंह ने उसपर से नज़र नहीं हटाई और न ही कुछ बोले, तो मनिका ने खिसिया कर हौले से कहा,

'पापाआआ...'

'क्या हुआ मेरी जान...' जयसिंह ने मनिका के बोलते ही अपने हाथ से उसका हाथ पकड़ लिया और उसकी अँगुलियों में अपनी अंगुलियाँ डाल सहलाने लगे.

'उन्हह...' मनिका कुछ न बोल पाने की स्थिति में थी.

'लुक एट मी डार्लिंग.' जयसिंह ने कहा.

मनिका ने किसी तरह उनसे नज़र मिलाई, पर ज्यादा देर तक उनसे नज़रें बाँध कर न रख सकी और एक बार फिर शर्म से लाल होते हुए सर झुका लिया. जयसिंह तो जैसे स्वर्ग में थे.

पर उनका ये स्वर्ग ज्यादा देर नहीं टिक सका, अबकी बार उनका फोन बज उठा था. उन्होंने देखा की माथुर का कॉल आ रहा था. बात करने पर पता चला कि उन्हें फिर एक मीटिंग में बुलाया गया है. उनके बात करने के लहजे से मनिका को भी आभास हो गया था के वे बाहर जा रहे हैं. फोन रख चुकने के बाद जयसिंह कुछ पल चुप रहे, फिर उन्होंने कहा,

'जाना पड़ेगा, कुछ जरूरी काम आ गया है.'

'जी.' मनिका ने धीरे से उठते हुए कहा, जयसिंह ने भी उसे नहीं रोका. मनिका उठ कर उनके पास ही खड़ी थी. जयसिंह भी उठने लगे, 'आह...' वे अचानक कराह उठे.

उनका लंड अपने प्रचंड रूप में खड़ा था और उसके पेंट और अंडरवियर में कैद होने की वजह से उनकी आह निकल गई थी. मनिका के चेहरे पर एक पल के लिए चिंता का भाव आया था, लेकिन जयसिंह ने अपना हाथ मनिका की नज़रों के सामने ही अपनी पेंट के अगले हिस्से पर रख कर अपने लंड को थोड़ा सीधा कर दिया था, मनिका शर्म के मारे पलट गई.

'हाहाहा...' जयसिंह ठहाका लगा कर हंस दिए.

'ठक्क', दरवाजा बंद होने की आवाज़ आई. जयसिंह तैयार होकर मीटिंग के लिए चले गए थे. जाने से पहले उन्होंने मनिका को एक बार फिर बाहों में भर लिया था और कहा था,

'आई विल ट्राई तो कम बैक एज सून एज पॉसिबल.' मनिका शरमा गई थी.

उनके जाते ही मनिका भाग कर औंधे मुहं बेड पर जा गिरी. 'ओह शिट, ओह गॉड...पापाआआअ...पापा एंड मी...हमने अभी ये सब क्या किया! पापा ने मुझे अपनी बाहों में लेकर...उह्ह ही इज़ सो स्ट्रांग...वी वर हग्गिंग (गले मिलना) लाइक लवर्स...और उस वेटर के सामने पापा मेरी थाईज़ पर हाथ फिरा रहे थे...ओह गॉड...मुझे डार्लिंग और जान कह रहे थे...हाय...' मनिका ने तकिए को बाहों में कसते हुए सोचा. 'और पापा का डिक...उनसे तो खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था...क्यूंकि...इश्श...क्यूंकि उनका डिक खड़ा था...ईहिहिही...आई कुड फील इट अंडर माय बम्स...हाय राम...पापा कितने गंदे हैं...और मैं भी...ओह गॉड, पर कितना अच्छा लग रहा था...उफ्फ्फ, ये क्या हो रहा है मेरे साथ.' मनिका उत्तेजना से कांपती हुयी बिस्तर पर पड़ी-पड़ी यही सब सोचती रही.

उधर जयसिंह का मन शांत था. जयसिंह ने अपनी हर कामयाबी को बहुत ही शांत तरीके से स्वीकार किया था और यही उनकी लम्बी सफलता का राज़ था. और अभी मनिका के साथ उन्हें सफलता पूरी तरह से मिली भी कहाँ थी. पर फिर भी आज की सुबह ने उनके चेहरे पर एक मंद मुस्कुराहट ला दी थी और वे हल्के मन से अपनी मीटिंग अटेंड करने जा रहे थे.

एक ही पल में मनिका के जीवन में आया यह सबसे बड़ा बदलाव था. मनिका ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि फ़िल्में और कहानियों में देख-देख कर जो उसने अपने होने वाले प्रियतम के सपने संजोए थे, वे इस तरह चकनाचूर हो जाएंगे. रह-रह कर उसे अपने पिता जयसिंह की गन्दी हरकतें याद आ रहीं थी, और जितना वह उनसे नफरत करने का सोचती, उतना ही अधिक उसका आकर्षण उनकी तरफ बढ़ता जा रहा था. मनिका का दिल और दीमाग दोनों ही मानो जल रहे थे, एक बार फिर उसे सुबह-सुबह हुई अपनी मानसिक जागृति का ध्यान आने लगा, कि किस तरह उसके पिता ने उसे अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से साध लिया था.

लेकिन उसे हैरानी इस बात पर हो रही थी कि अब जब वह सब कुछ जान चुकी थी फिर भी उसका पापा के सामने कोई बस नहीं चल रहा था. उसने बेड पर पड़े-पड़े भी दो-तीन बार सोचा था कि वह अपने आप को जयसिंह से दूर रखेगी, लेकिन मानो कुछ ही पलों में वह अपने प्रण को भूल कर फिर से अपने पिता के सम्मोहन ने फंस जाती थी. जहाँ जयसिंह ने मनिका को 'जान' और 'डार्लिंग' जैसे संबोधनों से पुकारना शुरू कर दिया था, वहीँ मनिका के लिए उसके ख्यालों में भी उनका एक ही नाम था, 'पापा'. न जाने क्यूँ उन्हें 'पापा' कहना उसके पूरे बदन को गुदगुदा देता था. शायद यह शब्द उसे उन दोनों के बीच के पावन रिश्ते की याद दिलाता था, और समाज से छुप कर यूँ अपने पिता के साथ बन रहे इस नापाक सम्बन्ध के बारे में सोचने पर वह उत्तेजित हो उठती थी. इसीलिए जब जयसिंह ने उसे अपनी बाहों में भींच रखा था तब भी वह मदहोश सी होकर सिर्फ 'पापाआआ-पापा' कह कर ही पुकारती रही थी. इसी तरह मदहोश पड़ी मनिका को वक्त बीतने का एहसास ही नहीं हुआ था, अपने फ़ोन की रिंगटोन सुन आखिर उसकी तन्द्रा टूटी.

'पापा' का ही फोन था. मनिका की तो जैसे साँस गले में ही अटक गई थी.

'हेल्लो.' उसने फोन उठा हौले से कहा.

'क्या कर रही हो जानेमन?' उसके पिता ने चहक कर पूछा.

'कुछ नहीं पापा...उह्ह.' मनिका के चेहरे पर उनको पापा कहते ही लालिमा छा गई थी और उसकी आह निकल गई. 'देखो तो मुए, कैसे मुझे जानेमन बुला रहे हैं...' उसने मन ही मन सोचा.

'हम्म...मुझे मिस (याद) नहीं कर रही?' जयसिंह ने नाटकीय अंदाज़ में पूछा.

'इह...' मनिका के मुहं से इतना ही निकल सका था.

'बोलो न डार्लिंग, मुझे मिस कर रही हो या मैं चला जाऊं...' जयसिंह तो किसी मनचले लड़के की तरह रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

'मत जाओ...' मनिका ने धीमे से कहा.

'हाहाहा...मतलब मिस तो कर रही है मुझे मेरी मनिका...' जयसिंह खिलखिलाकर बोले.

'हूँ...' मनिका ने धीमे से कहा.

'चलो फिर रेडी हो कर नीचे आ जाओ लंच करने. मैं भी १० मिनट में पहुँच रहा हूँ.' जयसिंह ने बताया.

फोन रखने से पहले जयसिंह ने एक बार फिर उस से पूछा था कि क्या वह आ रही है, और मनिका ने हौले से कहा था, 'हाँ पापा...' और सिहर गई थी. अब वह उठी, घड़ी में देखा तो शाम के पांच बजने को थे, 'हे भगवान, टाइम का पता ही नहीं चला...' उसने अपने कपड़े जरा ठीक किए, और फिर हल्का सा मेकअप कर, नीचे होटल के रेस्टोरेंट में पहुँची. जयसिंह अभी आए नहीं थे, धड़कते दिल से मनिका ने एक कार्नर सीट पर बैठ अपने पिता के आने का इंतज़ार शुरू किया.

'पापा ऐसे मत देखो ना.' मनिका ने मन ही मन कहा. उसके पिता जयसिंह आ चुके थे और वे आमने-सामने बैठ कर लंच कर रहे थे. मीटिंग में बिजी होने के कारण जयसिंह ने भी खाना नहीं खाया था. जयसिंह और मनिका की नज़र बार-बार मिल रही थी और, जहाँ जयसिंह के चेहरे पर एक उन्माद भरी कुटिल मुस्कान तैर रही थी वहीँ उनकी बेटी मनिका ह्या से बोझिल उनकी मुस्कान का जवाब दे रही थी.

जब शर्म की मारी मनिका ने कुछ देर उनकी तरफ नहीं देखा था तो जयसिंह ने टेबल के नीचे उसकी टांग पर अपने पैर से हल्का सा छुआ था. मनिका ने घबरा कर अपनी बड़ी-बड़ी आँखें उनसे मिलाई और एक बार फिर शर्म से लाल होते हुए मुस्का दी.

जब वे खाना खा चुके तो जयसिंह ने सुझाया कि कुछ देर होटल में ही बने पार्क में घूमा जाए, और फिर मनिका का हाथ अपने हाथ में ले उसके साथ बाहर चल दिए. मनिका को उनके स्पर्श से ही जैसे करंट लग रहा था, और वह यंत्रवत उनके साथ चल दी थी. कुछ देर पार्क में टहलते रहने के बाद जयसिंह और मनिका अपने रूम में आ गए थे, उन दोनों के बीच कोई बात भी नहीं हुयी थी, वे बस मंद-मंद मुस्काते घूमते रहे थे. उस वक्त शाम के करीब सात ही बजे थे.

कमरे में आने के बाद मनिका थोड़ी असहज हो गई थी, और जयसिंह आगे क्या करने वाले हैं यह सोच-सोच कर उसका दिल जोरों से धड़क रहा था.
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10-04-2018, 11:48 AM,
#35
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जयसिंह ने जानबूझकर मनिका को बाहर पार्क में घूमने चलने को कहा था, ताकि उसे यह न लगे के वे उसके जिस्म के पीछे पागल हैं. मनिका ने तो यही सोच रखा था कि वे इतना लेट (देरी से) लंच करने के बाद रूम में ही जाएंगे. लेकिन जयसिंह के प्रस्ताव ने उसे भी सरप्राइज कर दिया था. किन्तु उनके साथ घूमते-घूमते उसे बड़ा मजा आ रहा था और हर एक पल ने उसकी तृष्णा को बढ़ाने का ही काम किया था. अब वह रूम में आने के बाद थोड़ी सहमी सी लग रही थी और सोफे के पास खड़ी हुई कुछ-कुछ देर में उनसे नज़र मिला कर शरम से मुस्का दे रही थी.

जयसिंह ने कमरे में आकर अपने मीटिंग के दस्तावेज़ संभाल के रखे, वे यूँ जता रहे थे जैसे सब कुछ नार्मल ही था. फिर वे चल कर मनिका के पास आ कर खड़े हो गए व उसके दोनों हाथों को अपने हाथों में ले लिया. मनिका ने सकुचाते हुए नज़र ऊपर उठाई.

'ह्म्म्म...' जयसिंह ने हुंकार भरते हुए कहा, 'खुश है मेरी जान?'

'हूँ...ज..जी...' मनिका ने हामी में सर हिलाते हुए कहा.

'अच्छा है, अच्छा है...' जयसिंह ने मुस्कुराते हुए कहा, फिर अपना स्वर जरा नीचे कर बोले, 'आज बिस्तर में जरा जल्दी चलें...कल तो सुबह ट्रेन है ही, हम्म?'

मनिका उनके सवाल से तड़प उठी थी, 'पापा को तो बिलकुल भी शरम नहीं है..!', उस से कुछ कहते न बना, बस उसने अपना शरम से लाल मुहं झुका लिया था. जयसिंह ने इसे उसकी हाँ समझ आगे कहा,

'मैं तो आज सिर्फ नाईट-ड्रेस में चेंज करने के मूड में हूँ...तुम देख लो क्या करना है.' और मनिका का हाथ छोड़ एक पल रुके रहे फिर मुस्का कर अपने सूटकेस से अपना बरमुडा और टी-शर्ट लेकर बाथरूम में चले गए. मनिका धम्म से सोफे पर बैठ गई थी. पर इस से पहले कि वह अपने आप को इस नई परिस्थिति में ढाल पाती, जयसिंह कपड़े बदल कर बाहर भी आ चुके थे.

उसने उनकी तरफ देखा, वे मुस्कुरा रहे थे, फिर उसकी नज़र बरबस ही उनके लंड पर चली गई, बरमुडे का तम्बू बना हुआ था. उसने एक पल जयसिंह की तरफ देखा और पाया कि वे यह सब देख रहे थे, उसकी जान गले में अटक गई थी, वह तेज़ क़दमों से चलती हुयी अपने बैग के पास पहुँची और अपनी नाईट-ड्रेस निकालने लगी.

मनिका बाथरूम के गेट के पास खड़ी थी, वह नहा ली थी और कपड़े बदल लिए थे. लेकिन अब बाहर जाने की हिम्मत जुटाने की कोशिश कर रही थी. कुछ देर खड़ी रहने के बाद उसने हुक पर से अपना पहले पहना हुआ सूट उतरा और अपनी नाईट-ड्रेस उतार उसे पहन लिया और जा कर वॉशबेसिन पर मुहं धोने लगी. लेकिन कुछ वक्त और बीत गया और वह फिर भी बाहर न निकली, और एक बार फिर सूट उतार कर नाईट-ड्रेस पहन ली. एक दो बार ऐसा रिपीट करने के बाद भी जब उससे कोई फैसला न हो सका. वह अब नाईट-ड्रेस में थी. यंत्रवत सी मनिका ने बाल्टी में पानी चलाया और इस बार सूट को हुक पर टांगने की बजाय बाल्टी में डाल दिया. उसके हाथ कांप रहे थे. अब एक बार फिर वह बाथरूम में लगे शीशे के सामने जा खड़ी हुई और अपने साथ लाया छोटा किट (बैग) खोला.

'कहाँ मर गई कुतिया?' जयसिंह ने झुंझलाते हुए सोचा. वे बेड पर लेटे हुए थे, कमरे की लाइट जल रही थी. जयसिंह अपना फोन हाथ में लिए ऐसा जता रहे थे कि वे उसमे व्यस्त हैं, ताकि मनिका के बाहर निकलने पर उन्हें ऐसा न लगे कि वे बस उसे ही तवज्जो देने के लिए बैठे हैं.

'खट' बाथरूम के दरवाजे की कुण्डी खुलने की आवाज़ आई.

जयसिंह ने झट नज़रें मोबाइल में गड़ा लीं थी. पर कनखियों से उन्हें मनिका के सधे हुए क़दमों से कमरे में आने का आभास हुआ, और एक ही पल में वे आश्चर्य से भर उठे थे. उन्होंने मनिका की तरफ देखा.

जब वे लोग दिल्ली आए थे एक वह दिन था और एक आज का दिन था. मनिका ने वही शॉर्ट्स और गंजी पहन रखी थी जो वह उनकी साथ बिताई पहली रात को पहन कर आई थी. जयसिंह आवाक रह गए थे.

***
मनिका हौले से बेड के उपर चढ़ी, कम्बल उसी की तरफ तह करके रखा था, मनिका ने धीरे से उसे खोला और ओढ़ कर लेट गई. उसने अपने पिता की तरफ एक नज़र देखा तो पाया के वे अपना फोन बेड-साइड टेबल पर रख रहे थे, उसकी नज़र उनके अर्धनग्न बदन पर फिसलती हुई उनके बरमुडे पे जा टिकी. पापा का लंड तन चुका था. मनिका ने बरबस ही आँखें मींच लीं.

'मनिका?' जयसिंह की आवाज़ आई. मनिका ने आँखें खोलीं, उसके पिता ने अब उसकी तरफ करवट कर रखी थी और खिसक कर उसके करीब आ गए थे. मनिका उन्हें इतना करीब पा असहज हो उठी, उसने अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से एक पल के लिए जयसिंह को देखा और फिर नज़र नीची कर ली. नीचे देखते ही उसने अपने आप को अपने पिता के बरमुडे में फनफनाते लंड से मुखातिब पाया, उसकी कंपकंपी छूट गई.

जयसिंह ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर मनिका के कंधे पे रखा और सहलाने लगे. 'क्या हुआ मनिका? चुप-चुप कैसे हो?' उन्होंने बात बनाने के बहाने से पूछा. मनिका से कुछ बोलते नहीं बन रहा था, उसे अहसास हुआ के जयसिंह का हाथ धीरे-धीरे उसके कंधे से कम्बल को नीचे खिसका रहा था.

'हूँ?' जयसिंह ने अपने सवाल का जवाब चाहा.

'कुछ नहीं पा..?' मनिका ने हौले से मुहं नीचे किये हुए ही जवाब दिया.

'पैकिंग वगैरह कर ली तुमने?' जयसिंह ने पूछा, कम्बल अब मनिका की बगल से थोड़ा नीचे तक उतर चुका था.

'जी पापा.' मनिका ने बिल्कुल मरी सी आवाज़ में कहा. उसे अपने बदन से उतरते जा रहे कम्बल के आभास ने निश्चल कर दिया था. जयसिंह ने अब कम्बल उसकी कमर तक ला दिया था.

मनिका का दिल जैसे उसके मुहं में आने को हो रहा था. यकायक उसे अपने फैसले पर अफ़सोस होने लगा, 'हाय ये मैंने क्या कर लिया. क्यूँ पहन ली मैंने ये बेकार सी नाईट-ड्रेस..? पापा तो रुक ही नहीं रहे, कम्बल हटा कर ही छोड़ेंगे...' मनिका ने अपने आप को कोसा, फिर उसने धीरे से अपने हाथ से कम्बल पकड़ कर ऊपर करने की कोशिश की.

जयसिंह मनिका की मंशा ताड़ गए थे, जैसे ही मनिका ने कम्बल को धीरे से पकड़ कर ऊपर खींचने की कोशिश की जयसिंह ने अपना हाथ ऊपर उठा लिया और साथ ही उसमे कम्बल का एक सिरा भी फंसा लिया था. एक ही पल में मनिका अब अपने पिता के साथ अर्धनग्न अवस्था में पड़ी थी.

'उन्ह...' मनिका के गले से घुटी सी आवाज़ निकली.

जयसिंह ने कम्बल एक तरफ़ कर दिया. मनिका की नज़र उठने को नहीं हो पा रही थी. उसने अपनी टाँगे भींच कर अपनी मर्यादा बचाने की कोशिश की. पर जयसिंह का पलड़ा आज भारी था. उन्होंने अपना हाथ अपनी बेटी की कमर पर रखा और उसे ऊपर से नीचे तक देखने लगे, जब मनिका ने एक पल के लिए नज़र उठा उनकी तरफ़ देखा तो पाया के वे उसके वक्श्स्थ्ल को ताड़ रहे थे. मनिका की नज़र उठते ही जयसिंह ने भी उसके चेहरे की तरफ़ देखा और मुस्कुराते हुए अपना हाथ उसकी कमर से उठा कर उसके गले पर ले आए और सहलाते हुए कहा,

‘क्या बात है मनिका, आज तो दिल जीत लिया तुमने.’ मनिका क्या कहती, जयसिंह ही आगे बोले, ‘आज ये वाली नाइट ड्रेस कैसे पहन ली?’

मनिका एक बार फिर नज़र झुकाए रही तो जयसिंह थोड़ा उसके ऊपर झुक आए, उनके ऐसा करते ही, मनिका ने पाया के उसके पिता का लंड भी उसे छूने को हो रहा था. ‘बोलो ना?’ जयसिंह ने हमेशा की तरह उसपर दबाव बनाने के लिए पूछा.

‘वो…वो…आपने कहा न पापा कल…’ मनिका ने अटकते हुए कहा.

‘काश पहले पता होता…कि मेरे कहने पर तुम इस तरह…तो पता नहीं कब का कह देता.’ जयसिंह की आवाज़ पूरी तरह बदल गयी थी, उसमें सिर्फ़ हवस और वासना थी.

‘क्या…आह्ह…क्या बोल रहे हो आप पापा…’ मनिका उनके इस रूप से सहम गयी थी.

‘यही कि काफ़ी जवान हो गयी हो तुम…’ जयसिंह ने एक बार फिर उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा, और अपना हाथ अपनी बेटी की नंगी जाँघ पर ले जा कर सहलाने लगे, ‘पर आज तो मज़ा नहीं आया उतना.’

‘पापा आप ऐसे क्यूँ बोल रे हो? क्या…क्या…मज़ा नहीं आया…?’ मनिका ने और ज़्यादा सहमते हुए कहा. दरअसल मनिका ने अभी तक सिर्फ़ जयसिंह की हरकतों को एक दीवाने इंसान की हरकतों की तरह ही देखा था. लेकिन अब उनके अंदर की हवस को पूरी तरह बाहर आते देख उसकी सिट्टी-पिट्टि गुम हो गयी थी.

जयसिंह ने इस बार सीधे जवाब न देकर पहले उसकी जाँघ को अपने हाथ से पकड़ कर दबाया, और फिर अपना मुँह उसके चेहरे से सटाते हुए भरभराती आवाज़ में बोले, ‘अरे डार्लिंग, पिछली बार तो अंदर बिना ब्रा-पैंटी पहने आई थी तू…या वो भी मैं कहूँगा तो उतारेगी आज…हूँ?’

मनिका की सारी इज़्ज़त तार-तार हो गयी थी. उसने एकदम से अपने उन्मादी बाप को धक्का दिया और पीछे खिसकते हुए तेज़ी से बिस्तर से उतर कर बाथरूम की तरफ़ भागी. जयसिंह को उसकी इस प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी, परंतु वे क्या समझते, वासना ने एक बार फिर उनकी बुद्धि को मात दे दी थी. लेकिन मनिका को इस तरह भागते देख वे भी उसके पीछे लपके थे और बेड से नीचे उतर कर मनिका जैसे ही सीधी होकर भागने लगी थी, जयसिंह ने एक ज़ोरदार थप्पड़ मनिका की अधनंगी गाँड पर जड़ दिया था.

‘तड़ाक’ जयसिंह के हाथ के मनिका की गाँड पर लगते ही एक तेज़ आवाज़ हुयी.

मनिका एक पल लड़खड़ाई थी और उसके मुँह से कराह निकली थी, ‘आह्ह्ह्ह…’ और फिर अगले ही पल वह बाथरूम में जा घुसी और एक सिसकी के साथ दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई.

‘आऽऽऽऽ…हाए माऽऽऽऽ…’ मनिका अपने हाथों में मुँह छुपाए रो रही थी. हर एक पल बाद उसका अधनंगा जिस्म भय और शर्म से कंपकंपा जाता था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या सोच कर उसने अपने आप को इस स्थिति तक आने दिया था. जब उसे साफ़ पता चल चुका था कि उसके पिता के इरादे नेक नहीं है, फिर भी उसने उनका प्रतिकार करने के बजाय उनको उकसाया था. अपनी इस लाचार अवस्था पर विचार कर-कर के बार-बार उसकी रूलाई फूट रही थी. उसे अपने पिता, जयसिंह, पर भी बेहद ग़ुस्सा आ रहा था. उन्होंने अपने धर्म का निर्वाह करने के बजाय उसके साथ इस तरह का कुकर्म करने की कोशिश की थी. आख़िर में तो सब उन्हीं की चालबाज़ी का नतीजा था.

‘बस किसी तरह घर वापस पहुँच जाऊँ, सब बता दूँगी मम्मी को.’ मनिका बैठी हुई ख़ैर मना रही थी, ‘कितने कमीने हैं पापा, कितनी गंदी बात बोल रहे थे मुझे, और मेरेको कैसे गंदा टच कर रहे थे.’ मनिका ने सिहरते हुए सोचा, ‘हे भगवान, ये क्या हो रहा है मेरे साथ? पापा को तो मैं कितना अच्छा समझती थी, कितना प्यार करते थे मुझे वे घर पे…और अब तो मुझे सिर्फ़ गंदी नज़रों से देखते हैं…’ मनिका के दिमाग़ में एक के बाद एक ख़याल आते जा रहे थे, ‘पर मैंने भी तो उनको बढ़ावा दिया…पता नहीं मेरा भी कैसे माथा ख़राब हो गया था…हाय…आज के बाद उनसे कभी बात नहीं करूँगी…ऐसा बाप किसी को न दे भगवान…’

जयसिंह की पाप की लंका का दहन हो चुका था, कुछ पल तो वे अपनी वासना के उन्माद से ऊबर ही न सके थे, लेकिन फिर उन्हें अपनी परिस्थिति की नाजुकता जा अंदाज़ा होने लगा. वे उठ कर बिस्तर पर बैठ गए, उनका लिंग भी अब शांत हो कर सुस्त पड़ गया था. कुछ देर बैठे रहने के बाद वे उठ कर दबे पाँव बाथरूम के दरवाज़े के पास गए. अंदर से मनिका के सिसकने की आवाज़ आ रही थी, वे कुछ पल सुनते रहे और फिर वापस बिस्तर पर जा बैठे. उनका सिर झुका हुआ था और वे हार मान चुके थे.

‘पता नहीं क्या होगा, यह तो सब दाँव उलटे पड़ गए…साली मनिका इस तरह पलटी मार जाएगी, यह तो मेरे दिमाग़ में ही नहीं आया.’ वे अपनी हार पर निराशा और भय से भर चुके थे, ‘कहीं इसने किसी के सामने मुँह खोल दिया तो मैं तो कहीं का नहीं रहूँगा…हे भगवान मेरी भी मत मारी गयी थी, इतने मौक़े आए जब मैं संभल सकता था लेकिन इस वासना के भूत ने मुझे बर्बाद करके ही छोड़ा…’

सुबह होते-होते मनिका की आँख लग गयी थी, वह बाथरूम के ठंडे फ़र्श पर ही निढ़ाल हो कर पड़ी हुई थी.*उधर जयसिंह भी अपनेआप को कोसते-कोसते सो गए थे. वह तो शुक्र था कि उनकी ट्रेन का रेज़र्वेशन होटेल के फ़्रंट-डेस्क वालों ने कराया था, क़रीब सवा-सात बजे उन्होंने वेक-अप कॉल किया. जयसिंह हड़बड़ा कर उठ खड़े हुए.

‘हेल्लो?’ उन्होंने रिसीवर उठाते हुए कहा.

‘सर, होटेल फ़्रंट-डेस्क, दिस इज अ वेक अप कॉल फ़ोर योर कन्वीन्यन्स.’ उधर से आवाज़ आयी.

‘ओह! थैंक-यू…थैंक-यू.’ कहते हुए जयसिंह ने फ़ोन रख दिया.

अब जयसिंह को पिछली रात की अपनी करतूत के सही मायने समझ आने लगे थे. वे अब अपनी बेटी से बात करने लायक भी नहीं रहे थे. वे कुछ देर इसी असमंजस में बैठे रहे कि मनिका को बाथरूम से बाहर आने को कैसे कहें. उनकी ट्रेन सवा-नौ बजे की थी. जब घड़ी में पौने-आठ होने लगे, तो उन्होंने किसी तरह हिम्मत जुटायी और बाथरूम के गेट के पास गए.

जयसिंह ने एक पल रुक कर दरवाज़ा खटखटाया.

मनिका अंदर सोई पड़ी थी ‘वह अपने घर की गली में थी, और एक आदमी उसका पीछा कर रहा था. मनिका ने अपनी चाल तेज़ कर दी, उसका घर अभी भी थोड़ी दूरी पर था. एक बार फिर जब उसने पलट कर उसका पीछा कर रहे इंसान को देखना चाहा तो पाया कि वह बहुत क़रीब आ चुका था और उसे पकड़ने ही वाला था. मनिका का कलेजा मुँह में आने को हो गया, यकायक ही वह दौड़ पड़ी. उसका घर अब कुछ ही क़दम की दूरी पर रह गया था, लेकिन वह आदमी भी अब उसके पीछे भागते हुए आ रहा था. मनिका भागते हुए अपने घर में जा घुसी और मुड़ कर देखा — वह आदमी अभी भी नहीं रुका और उसकी ओर आता चला जा रहा था, मनिका अब भाग कर घर के अंदर जा पहुँची, उसने पाया कि घर में कोई नहीं था. डर के मारे उसकी टाँगें काँप रही थी, वह धड़धड़ाते हुए सीढ़ियाँ चढ़ अपने कमरे में जा पहुँची और दरवाज़ा बंद कर लिया. कुछ पल की शांति के बाद, अचानक दरवाज़ा कोई दरवाज़ा खटखटाने लगा.’ मनिका एक झटके के साथ उठ बैठी. कोई बाथरूम का दरवाज़ा खटखटा रहा था.

सपना टूटने के साथ ही मनिका को अपनी इस अवस्था में होने का कारण भी याद आ गया था. वह बिना बोले बैठी रही.

‘ट्रेन का टाइम हो गया है.’ जयसिंह की आवाज़ आयी और दरवाज़े पर खटखटाहट बंद हो गयी.

अब असमंजस में पड़ने की बारी मनिका की थी. क्या करे कैसे बाहर जाए, वह अभी भी पिछली रात वाली अधनंगी हालत में थी. एक सूट था जो उसने बालटी में भिगो दिया था. उसने उठ कर बाथरूम के शीशे में देखा, रोने की वजह से उसका मेक-अप उसके चेहरे को बदरंग कर चुका था. फिर उसने पीछे घूम कर शॉर्टस को नीचे करने का व्यर्थ प्रयास किया - उसने देखा कि उसके एक कूल्हे पर लाल निशान पड़ गया था, जयसिंह के ज़ोरदार थप्पड़ को याद कर उसके रोंगटे खड़े हो गए थे. थोड़ी देर इसी तरह खड़ी-खड़ी वह अपने आँसू रोकने की कोशिश करती रही, पर कब तक वह बाथरूम में छुपी रहती, आख़िर बाहर तो निकलना ही था.
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10-04-2018, 11:48 AM,
#36
RE: Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
जयसिंह बाहर बैठे सोच ही रहे थे कि रेज़र्वेशन कैन्सल करवाएँ या क्या करें जब बाथरूम का दरवाज़ा खुला. उन्होंने ऊपर देखा तो पाया कि मनिका अपने हाथों से अपनी योनि छुपाए बाहर निकली थी.

‘मेरे पास मत आना!’ मनिका ने उन्हें देखते ही चेतावनी दी, और एक पल उन्हें घूरा, जब जयसिंह उसी तरह जड़वत बैठे रहे, तो वह तेज़ी से अपने सामान के पास गयी और कुछ कपड़े लेकर भाग कर वापस बाथरूम में घुस गयी. इस पूरे वाक़ये में कुछ दस से पंद्रह सेकंड ही लगे होंगे.

जब वह वापस बाहर आयी तो पाया के जयसिंह अपना सूट्केस ले कर कमरे के गेट के पास खड़े हैं, उनकी नज़र झुकी हुई थी. मनिका ने बाथरूम में घुस कर कपड़े बदल लिए थे, अब उसने भी अपने कपड़े बैग में रखे, और अपने भीगा सूट जो वह निचोड़ कर लायी थी, एक प्लास्टिक के लिफ़ाफ़े में डाल कर पैक कर लिया. उसने देखा कि जयसिंह अभी तक अपनी जगह से हिले भी नहीं थे. उसने अपना बैग और सूट्केस लिया और दरवाज़े की तरफ़ थोड़ा सा बढ़ी, जयसिंह की इतनी भी हिम्मत नहीं हो रही थी की अपनी बेटी की तरफ़ देख सकें, वे मुड़ कर दरवाज़े से बाहर निकलने को हुए.
‘अगर आपने मुझे हाथ भी लगाने की कोशिश की तो ठीक नहीं होगा!’ मनिका की तल्ख़ आवाज़ उनके कानों में पड़ी. वे बिना कुछ बोले बाहर निकल गए.

मनिका एक पल वहीं खड़ी हुयी ग़ुस्से और दर्द से काँपती रही थी.

बाहर होटेल का हेल्पर उनका सामान लेने आ गया था, जयसिंह ने उसे अंदर से सामान ले आने को कहा और नीचे चले गए. कुछ देर बाद मनिका भी रूम से बाहर आयी और नीचे होटेल की लॉबी की तरफ़ चल दी.

होटेल से वापस राजस्थान तक के सफ़र में मनिका और जयसिंह के बीच एक लफ़्ज़ की भी बातचीत नहीं. कैब से रेल्वे-स्टेशन पहुँचने और अपने ए.सी. फ़र्स्ट-क्लास के कम्पार्ट्मेंट में, वे दोनों एक दूसरे से दूरी बनाए रहे थे. आज न तो उन्हें भूख लग रही थी न ही प्यास — एक तरफ़ मनिका जयसिंह को मन ही मन कोस रही थी और दूसरी तरफ़ जयसिंह ख़ुद अपने पाप की आग में जल रहे थे.

आख़िरकार सफ़र का अंत आ गया, जब ट्रेन बाड़मेर स्टेशन में घुसने लगी, तो लोग उठ-उठ कर अपना सामान दरवाज़ों के पास जमा करने लगे. जयसिंह ने उठ कर अपना सूट्केस बर्थ के नीचे से निकाला, और फिर मनिका के सामान की तरफ़ हाथ बढ़ाया.

‘कोई ज़रूरत नहीं है एहसान करने की…’ मनिका बेरुख़ी से बोली.

वे रुक गए.

‘अभी घर जाते ही सब को बताऊँगी कि आप का असली रूप क्या है!’ मनिका ने रुआंसी हो कर कहा.

जयसिंह ने एक दफ़ा उसकी तरफ़ मिन्नत भरी नज़रों से देखा, पर उनसे कुछ कहते न बना. तभी ट्रेन एक झटके के साथ रुक गयी. 

स्टेशन पर मनिका का पूरा परिवार उन्हें रिसीव करने आया हुआ था. मनिका पहले बाहर निकली थी, और अपने छोटे भाई-बहन को देख उसके चेहरे पर भी एक मुस्कान आ गयी थी. फिर वह थोड़ा सकुचा कर अपनी माँ की तरफ़ बढ़ी,

‘आ गये वापस आख़िर तुम दोनों…’ मनिका की माँ ने मुस्कुरा कर कहा, लेकिन उनकी आवाज़ में हल्का सा व्यंग्य भी था, ज़ाहिर था कि वे मनिका का व्यवहार भूली नहीं थी.

मनिका का दिल भर आया, उसने अपनी माँ को कितना ग़लत समझा था. वह आगे बढ़ी और मधु के गले लग गयी,

‘ओह, मम्मा…’ उसने अपने माँ को बाँहों में भरते हुए कहा, ‘आइ एम सो सॉरी…’

‘अरे…’ मनिका की माँ उसके बदले स्वरूप से अचंभे में थी, फिर संभल कर मुस्कुराई और उसे फिर से गले लगाते हुए बोली, ‘कोई बात नहीं…कोई बात नहीं, चलो भी अब, घर नहीं चलना?’

जयसिंह का यह डर के मनिका घर पहुँच कर उनकी सारी पोल खोल देगी, ग़लत साबित हुआ. हालाँकि शुरू के चार-पाँच दिन तो वे धड़कते दिल से रोज़ घर से अपने ऑफ़िस जाया करते थे, लेकिन फिर धीरे-धीरे वे थोड़ा आश्वस्त हो चले कि अगर मनिका से आगे छेड़-छाड़ न की तो शायद वह किसी से कुछ ना बोले. उधर मनिका ने भी अपना इरादा बदल लिया था, उसने सोचा तो था कि वह अपनी माँ से सब सच-सच बोल देगी, लेकिन जब उसने घर पर इतनी ख़ुशी का माहौल देखा तो उस से कुछ कहते न बना. और बात टलते-टलते टल गयी. जयसिंह का अंदाज़ा सही था, मनिका ने सोच लिया था कि अगर जयसिंह आगे कोई भी गंदी हरकत करेंगे तो वह सबकुछ उगलने में एक पल की भी देरी नहीं करेगी. मनिका को एक और बात भी खल रही थी, उसका अड्मिशन तो दिल्ली में हो गया था लेकिन अब वह जयसिंह के पैसों से वहाँ पढ़ना नहीं चाहती थी. परंतु इस बात पर काफ़ी गहरायी से सोचने के बाद उसने दिल्ली ही जाने का फ़ैसला कर लिया - उसका तर्क था कि वहाँ जा कर एक तो वह हर वक़्त जयसिंह का सामना करने से बच सकेगी - उसे अब वे फूटी आँख नहीं सुहाते थे - और दूसरा, ग़लती जयसिंह की थी और अगर उनका पैसा ख़र्च होता भी है तो अब उसे फ़र्क़ नहीं पड़ना चाहिए, यह उसका हक़ था कि जयसिंह से दूर रहे, भले ही इसके लिए उनका ख़र्चा हो रहा हो.

दो एक हफ़्ते बाद, मनिका के फिर से दिल्ली जाने का समय आ गया. इस बार जयसिंह ने अपनेआप ही उसके साथ जाना यह कह कर टाल दिया के ऑफ़िस में पहले ही काफ़ी काम बाक़ी पड़ा है, सो वे नहीं जा सकेंगे. उधर मनिका ने भी अपनी माँ को इस बात की फ़िक्र में देख उन्हें आश्वासन दिया कि अब उसे दिल्ली में कोई परेशानी नहीं होगी, उसने सभी ज़रूरत की जगहें देख लीं है और वह आराम से आने-जाने में समर्थ है. घर में इस बात को लेकर काफ़ी दिन डिस्कशन चला परंतु अंत में यही तय हुआ कि मनिका अकेले ही दिल्ली जाएगी. वापस आने के बाद से ही मनिका और उसकी माँ में घनिष्टता बढ़ गयी थी, और उसकी माँ ने कई बार उसके समझदार हो जाने कि दाद दी थी. इसी तरह, कुछ अपनों का प्यार और कुछ अपने कल के बुरे अनुभवों से बाहर निकलने के सपने लिए मनिका दिल्ली के लिए रवाना हो गयी.

उस दिन भी, जयसिंह काम का बहाना ले कर, उसे रेल्वे-स्टेशन छोड़ने नहीं आए थे.

एक साल बीत चुका था. मनिका को दिल्ली रास आ गयी थी, उसके बहुत से नए दोस्त बन गए थे और पढ़ाई में तो वह अव्वल रहती ही थी. कॉलेज शुरू होने के बाद से वह वापस बाड़मेर नहीं गयी थी. घर से फ़ोन आता था तो वह कोई न कोई बहाना कर के टाल जाती, बीच में एक दफ़ा मनिका की माँ और उसके भाई-बहन उसके मामा के साथ दिल्ली आ कर उस से मिल कर गए थे. परंतु न तो जयसिंह उनके साथ आए न ही उनसे उसकी कोई बात हुयी. अगर उसकी माँ कभी फ़ोन पर उस से पूछ भी लेती कि ‘पापा से बात हुई?’ तो वह झूठ बोल देती कि हाँ हुई थी. उधर जयसिंह भी इसी झूठ को अपनी बीवी के सामने दोहरा देते थे कि मनिका से बात होती रहती है. मनिका के बिना कहे ही उसके अकाउंट में हर महीने पैसे भी वे जमा करवा देते थे और अगर मनिका को किसी और ख़र्चे के लिए पैसे चाहिए होते थे तो वह अपनी माँ से ही कहती थी.

कॉलेज का पहला साल ख़त्म हो चुका था, लेकिन मनिका एक्स्ट्रा-क्लास का बहाना कर दिल्ली में ही रुकी हुयी थी. उसके कॉलेज के हॉस्टल में कुछ विदेशी स्टूडेंट्स भी रहती थी, सो हॉस्टल पूरे साल खुला रहता था.

आज मनिका का जन्मदिन था.

मनिका ने अपनी माँ से कुछ दिन पहले ही कुछ पैसे भिजवाने को कहा था, लेकिन वे भूल गयी थी. मनिका ने अपनी कुछ लोकल फ़्रेंड्ज़ को पार्टी के लिए बुलाया था. पर जब उसने अपने अकाउंट में बैलेन्स चेक किया तो पाया कि पैसे अभी तक नहीं आए थे. हालाँकि उसके पास पैसे पड़े थे लेकिन वे उसके महीने के नॉर्मल ख़र्चे वाले पैसे थे. ‘शायद मम्मा भूल गयी, चलो कोई बात नहीं, उनसे बाद में डिपॉज़िट कराने को कह दूँगी.’ मनिका ने सोचा और पार्टी करने फ़्रेंड्ज़ के साथ साकेत मॉल चल दी.

उन्होंने उस दिन काफ़ी मज़ा-मस्ती की. मनिका की सहेलियाँ उसके लिए एक केक लेकर आयीं थी —अपना फ़ेवरेट चोक्लेट केक देख वह बहुत ख़ुश हुई. पूरा दिन इसी तरह हँसते-खेलते और शॉपिंग करते बीत गया, कब शाम हो गयी उन्हें पता भी न चला. वे सब अब अपने-अपने घर के लिए निकलने लगीं. आख़िर में मनिका और उसकी फ़्रेंड रश्मि ही रह गए.

‘आर यू नॉट लीविंग?’ मनिका ने रश्मि को जाने का नाम न लेते देख पूछा. वह आज की पार्टी की होस्ट थी सो उसने सोचा था सब के चले जाने के बाद हॉस्टल के लिए निकलेगी.

‘या या…यू गो मणि, आइ विल गो बाय मायसेल्फ़.’ रश्मि बोली.

‘अरे, हाउ केन आइ गो लीविंग यू हियर?’ मनिका बोली, ‘तुम सब सेफ़्ली घर चले जाओ उसके बाद ही मैं जाऊँगी…’

‘हाहाहा…आइ एम नॉट गोइंग होम सिली (बेवक़ूफ़).’ रश्मि ने खिखियाकर कहा.

‘वट डू यू मीन?’ मनिका ने आश्चर्य से पूछा.

‘अरे यार, राजेश आ रहा है मुझे लेने, मैंने घर पर तेरे बर्थ्डे का बहाना किया है और बोला है कि आज तेरे पास रुकूँगी…’ रश्मि ने मनिका को आँख मारते हुए कहा. राजेश उसका बॉयफ़्रेंड था.

‘हैं…’ मनिका ने बड़ी-बड़ी आँखें कर के पूछा, ‘तुम उसके साथ रहोगी रात भर?’

‘हाहाहा…हाँ भयी हमारी बाड़मेर की सावित्री…वी विल हैव सम फ़न टुनाइट…’ रश्मि ने उसे फिर आँख मारी. सब जानते थे कि मनिका का कोई बॉयफ़्रेंड नहीं था.

‘हे भगवान…’ मनिका से और कुछ कहते न बना.

तभी रश्मि का फ़ोन बज उठा, राजेश बाहर आ गया था. रश्मि मुस्कुराते हुए उठ खड़ी हुयी,

‘ओके मणि, थैंक्स फ़ोर द ओसम ट्रीट. अब तुम जा सकती हो…बहुत मज़ा आया आज…काफ़ी पैसे भेजे लगते हैं तुम्हारे पापा ने उड़ाने के लिए इस बार.’

‘हुह…’ अपने पिता का ज़िक्र सुन मनिका ने मुँह बनाया, फिर मुस्का कर बोली, ‘थैंक्स फ़ोर कमिंग रशु.’

रश्मि के जाने के बाद मनिका ने अपने गिफ़्ट्स समेटे और एक कैब लेकर अपने हॉस्टल आ गयी. रास्ते में वह यही सोच रही थी कि रश्मि कितनी चालू निकली, अपने बॉयफ़्रेंड के साथ ‘फ़न’ करेगी मेरा बहाना लेकर. ‘चलो जो भी करे मुझे क्या करना है.’ तब तक उसका हॉस्टल आ गया था.

मनिका ने अपने रूम में पहुँच कर कपड़े बदले और हाथ-मुँह धो कर बेड पर जा बैठी व एक-एक कर अपने गिफ़्ट देखने लगी. सब लड़कियों को अमूमन मिलने वाली ही चीज़ें थी — दो स्कर्ट्स थे, जो अदिति लायी थी, एक मेक-अप किट था, रवीना की तरफ़ से, और एक क्रॉप-टॉप था, रश्मि की तरफ़ से. ‘अपने जैसा ही गिफ़्ट लाई है मुयी.’ मनिका ने क्रॉप-टॉप देख कर सोचा.

तभी उसका फ़ोन बज उठा. देखा तो उसकी माँ का फ़ोन था.

‘हाय मम्मा..’ मनिका ने उत्साह से फ़ोन उठाते हुए कहा.

‘कैसा रहा बर्थ्डे?’ उसकी माँ ने पूछा.

‘बहुत अच्छा मम्मा…’ मनिका उन्हें दिन भर की बातें बताने लगी.

कुछ देर माँ-बेटी की बातें चलती रहीं. तभी मनिका को याद आया,

‘माँ, आपको पैसे ट्रान्स्फ़र के लिए बोला था ना बर्थ्डे के लिए? आपने भेजे ही नहीं…सारी पार्टी अपने नॉर्मल वाले बैलेन्स से करी है आज मैंने…’

‘अरे, तेरे पापा को बोला था, कुछ याद नहीं रहता इन्हें भी, ले तू ही बोल दे…’ उसकी माँ ने कहा.

मनिका कुछ बोल पाती उस से पहले ही दूसरी तरफ़ से फ़ोन किसी और के पकड़ने की आवाज़ आयी. मनिका की धड़कनें बढ़ गयी थी.

‘हेल्लो?’ उसके पिता की आवाज़ आइ.

मनिका कुछ नहीं बोली.

‘अच्छा हाँ, हैपी बर्थ्डे वन्स अगैन मणि…हाँ हाँ सॉरी, वो पैसे मैं सुबह ही भेज देता हूँ.’ जयसिंह मधु के सामने झूठ-मूठ ही बातें कर रहे थे. ‘लो हाँ भयी, मम्मी से बात कर लो.’

उसके पिता ने बड़ी ही चतुरायी से फ़ोन वापस उसकी माँ को दे दिया था.

मनिका की माँ ने कुछ देर और बातें करने के बाद फ़ोन रख दिया था. मनिका अपना सामान एक ओर रख बेड पर लेटी हुयी थी, उसके मन में एक उथल-पुथल मची हुयी थी. आज एक अरसे बाद जयसिंह की आवाज़ सुनी थी, उन्होंने उसे ‘मणि’ कह कर पुकारा था. मनिका ने उस भयानक रात के बाद काफ़ी वक़्त यह सोचते हुए बिताया था, कि आख़िर क्यूँ, कब और कैसे उसके पिता ने उसे बुरी नज़र से देखना शुरू किया था. उसे एहसास हुआ कि जब से जयसिंह ने उसे मनिका कह कर बुलाना शुरू किया था, तभी से उनके आचरण में बदलाव आ गया था. और आज उनका उसे उसके घर के नाम से बुलाना उसे थोड़ा विचलित कर गया था — ‘क्या पापा अपने किए पर शर्मिंदा हैं?’ उसने मन ही मन सोचा. धीरे-धीरे उसे पुरानी बातें याद आने लगीं, जिनके बारे में सोचना वह छोड़ चुकी थी — कि कैसे जयसिंह उस रात के बाद उस से दूर रहने लगे थे और उस से आँखें तक नहीं मिलते थे. लेकिन उनसे सामना हुए एक साल बीत चुका था — ‘तो क्या पापा सच में बदल गए हैं?’ मनिका ने ख़ुद से एक और सवाल किया. सोचते-सोचते उसने करवट बदली और उसकी नज़र सामने कुर्सी पर रखे उस क्रॉप-टॉप पर गयी जो आज उसे गिफ़्ट में मिला था.

‘रश्मि भी ना ज़्यादा मॉडर्न बनती है…क्या कह रही थी आज, बाड़मेर की सावित्री…एक बॉयफ़्रेंड क्या बना लिया. सब मुझे इसी तरह चिढ़ाते हैं…उन्हें क्या पता मेरे साथ क्या हो चुका है, मेरे अपने पापा ने मुझे…हाय…कितनी बेवक़ूफ़ थी मैं, सब जान कर भी अनजान बनी रही…और पापा ने कितना फ़ायदा उठाया मेरा. स्कूल की सब फ़्रेंड्ज़ तो पापा को मेरा बॉयफ़्रेंड तक कहती थीं…और यहाँ सब सोचतीं है कि मुझे कुछ पता नहीं लड़कों के बारे में…उन्हें क्या पता है..? उनके ऐसे गंदे पापा जो नहीं है…जो उन्हें अपने साथ रूम में सुला कर गंदी हरकतें करते हों और अपना…डिक…दिखाते हों…हाय राम, कितना बड़ा और काला डिक था पापा का…और वे मुझे दिखा दिए…ज़रा भी शर्म नहीं आइ. कैसे चमक रहा था उनके पैरों के बीच, और पापा के बॉल्ज़ (टट्टे) भी कितने बड़े-बड़े थे…’ मनिका को एहसास भी नहीं हुआ था कि कब यह सब सोचते-सोचते उसने अपनेआप को अपनी बाँहों में कस लिया था और अपनी टाँगें भींच ली थी. अचानक उसकी तन्द्रा टूटी, उसके पूरे बदन में एक अजीब सी लहर उठ रही थी. कुछ पल तक उसने हिलने-डुलने की कोशिश की, लेकिन उसपर एक मदहोशी सी छाने लगी थी और थोड़ी ही देर में वह गहरी नींद के आग़ोश में समा गयी.

उधर जयसिंह ने आज अपनी बीवी के अचानक से उन्हें फ़ोन पकड़ा देने पर बड़ी ही होशियारी से स्थिति को संभाल लिया था. वे यही सोचते-सोचते सो गए थे कि कहीं मनिका बुरा न मान गयी हो और यह न सोच ले कि उन्होंने जान-बूझकर फ़ोन लिया था.

अगली सुबह जब मनिका उठी, तो कुछ पल के लिए वह समझ नहीं पाई कि वह इतनी विचलित क्यूँ है. पर फिर उसे पिछली रात की बातें याद आने लगी, उसने कल एक साल में पहली बार अपने गंदे बाप की आवाज़ सुनी थी. और यही सोचते-सोचते उसकी आँख लग गयी थी, वह अब उठने को हुई, लेकिन कॉलेज की तो छुट्टियाँ चल रहीं थी, आलस के मारे उसने फिर आँखे मींच ली और सुस्ताने लगी. धीरे-धीरे उसके अवचेतन मन में फिर से वही बातें आने लगीं — ‘सब को लगता है, बॉयफ़्रेंड ही सबकुछ होते हैं…क्या तो बॉयफ़्रेंड है रश्मि का, राजेश, न कुछ काम करता है न कुछ और…बस बाइक लेकर आवारगर्दी करता है पूरे दिन…उस पर इतना इतराती और है, और मुझे ताने मारती है…सब पता है मुझे इन मर्दों का, पापा ने भी तो यही कह कर फँसाया था…कि वो मेरे बॉयफ़्रेंड हैं, क्यूँकि मैंने उनको बता दिया कि मेरी बेवक़ूफ़ फ़्रेंड्ज़ उनके लिए ऐसा बोलती हैं…तो क्या तभी से वे मुझे गंदी नज़र से देखने लगे होंगे? हो सकता है…पर वे तो कहते थे कि बॉयफ़्रेंड्ज़ और मर्दों में डिफ़्रेन्स होता है…मे बी…मर्द काम करते हैं, सकक्सेस्फुल होते हैं, बॉयफ़्रेंड्ज़ की तरह आवारा नहीं होते…जैसे राजेश है…कितना इम्प्रेस हो गये थे वे लोग पापा से जिनके साथ हमने पूल खेला था…और रश्मि अवेंयी इतना इतराती है राजेश पर…क्या बोल रि थी कल, वी विल हेव सम फ़न?…उस लंगूर का क्या तो फ़न करेगी…उसका तो किसी मर्द जितना बड़ा भी नहीं होगा…पापा के डिक जैसा…ओह गॉड…कैसे हिलाया था पापा ने उसे…मुझे तो लगा था कि उछल कर मुझे टच करने वाला है…इतना लम्बा…’ मनिका बिस्तर में पड़ी-पड़ी कसमसा उठी थी और उलटी हो कर लेट गयी, पर उसके अंतर्मन की बातें फिर भी चलती रहीं, ‘आइ ईवेन ड्रीम्ड अबाउट ईट…कैसे पापा मेरे रूम में बेड पर आ गये थे…और मुझे बोले कि मैं तो नंगी हूँ…और पापा भी नंगे थे…मुझे कैसे अपनी बाँहों में दबा-दबा कर…ओह्ह्ह्ह…एंड आइ वास होल्डिंग हिज़ डिक…हाथ में पूरा ही नहीं आ रहा था…कैसे दबा रही थी मैं उसको…पापा का बड़ा सा डिक…कैसा गंदा बोल रहे थे फिर…जवान हो गयी हो…एंड मेरे बूब्स को घूर रहे थे, एंड हिज़ हैंड वास ऑन माई नेकेड थाइज़. बोले ब्रा और पैंटी उतार दो…बरमूडा शॉर्ट्स में से ही उनका डिक मुझे टच कर रहा था…’

‘उन्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह…’ एक ज़ोरदार सिसकी के साथ मनिका ने अपना अधोभाग ऊपर उठाया था, ‘उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़…’ एक दो बार और उसका शरीर थरथर्राया और फिर वह शांत हो गयी, उसकी गाँड अभी भी ऊँची उठी हुयी थी.

जब थोड़ी देर बाद मनिका होश में आयी तो उसके होश फ़ाख्ता हो गए, ‘ओह गॉड, ये अभी मैंने क्या किया…?’ वह थोड़ा सा हिली तो उसे अपने पैरों के बीच कुछ गीलापन महसूस हुआ. ‘ओफ़्फ़्फ…डिड आइ जस्ट केम?’ (क्या मैं अभी-अभी झड़ गयी हूँ?)

मनिका जल्दी से उठने को हुई लेकिन उसके बदन में जैसे बुखार आ गया था. वह निढ़ाल हो कर फिर से बिस्तर पर गिर पड़ी.
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10-04-2018, 11:51 AM,
#37
RE: Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
जब थोड़ी देर बाद मनिका होश में आयी तो उसके होश फ़ाख्ता हो गए, ‘ओह गॉड, ये अभी मैंने क्या किया…?’ वह थोड़ा सा हिली तो उसे अपने पैरों के बीच कुछ गीलापन महसूस हुआ. ‘ओफ़्फ़्फ…डिड आइ जस्ट केम?’ (क्या मैं अभी-अभी झड़ गयी हूँ?)

मनिका जल्दी से उठने को हुई लेकिन उसके बदन में जैसे बुखार आ गया था. वह निढ़ाल हो कर फिर से बिस्तर पर गिर पड़ी.

शाम होते-होते मनिका का आवेग थोड़ा कम हुआ, वह बिस्तर से निकली और अपना कमरा ठीक करने लगी, लेकिन उसके दिमाग़ में सिर्फ़ एक ही बात थी — ‘आइ केम थिंकिंग अबाउट पापा…एंड हिज़ डिक.’ जयसिंह के लंड का ख़याल आते ही मनिका नए सिरे से सिहर उठती थी. वह जैसे-तैसे करके नीचे हॉस्टल के डाइनिंग हॉल में जा कर डिनर कर के आइ और वापस आ कर फिर से लेट गयी. कुछ देर लेटे रहने के बाद उसने अपने सिरहाने रखे फ़ोन को टटोला. उसने पाया कि दो नए मेसेज आए हुए थे, एक तो बिलेटेड हैपी बर्थ्डे विश का था और दूसरा उसके बैंक से था. उसके अकाउंट में बीस हज़ार रुपए जमा हुए थे, एक बार फिर उसका बदन तप उठा, उसने तो अपनी माँ से सिर्फ़ पाँच हज़ार के लिए कहा था, ‘तो क्या पापा ने…?’

मनिका को उस रात देर तक नींद नहीं आयी, और सुबह होते-होते वह एक बार फिर अपने पिता के काले-मोटे लंड के ख़यालों में खो गयी थी. अगले कुछ दिन मनिका की हालत बेहद ख़राब रही, अचानक अपने अंदर जगी इस आग को बुझाने का उसका हर प्रयत्न विफल रहा था. हर बार वह अपने आप को कोसते हुए अगली बार ऐसा ना होने देने का प्रण करती और हर बार अपनी इच्छाओं के सामने बेबस हो जाती. इसी तरह एक रात जब उसकी कामिच्छा अपने चरम पर थी तो वह मस्ती में सिसकती-सिसकती बोल पड़ी,

‘उम्ह्ह्ह्ह्ह पापाऽऽऽऽऽऽऽ…..पापाऽऽऽऽऽऽऽ…योर डिक पापा…स्स्स्स्स्स्साऽऽऽऽ सो बिग…’

और जब उसे होश आया तो उसकी ग्लानि की कोई सीमा नहीं थी. ‘ओह गॉड, ये मुझे क्या होता जा रहा है? पापा का डिक…उम्मम्म…क्यूँ मैं उसके बारे में ही सोचती रहती हूँ?’

इधर मनिका का कॉलेज शुरू होने में कुछ ही दिन बचे थे, वह नए समेस्टर की फ़ीस वगरह जमा करवाने के बाद ज़्यादातर वक़्त अपने कमरे में ही बिताने लगी थी. उसने जयसिंह के साथ बितायी आख़िरी रात के बाद ही अपने लैप्टॉप से उनकी सारी फ़ोटोज डिलीट कर दी थी. पर फिर एक दिन उसने ऑनलाइन सर्च किया कि डिलीट हुयी फ़ाइल्ज़ कैसे वापस लाई जा सकती है. थोड़ा ढूँढने पर उसे एक प्रोग्राम मिला जिस से डिलीट कर हुआ डेटा रिकवर किया जा सकता था. धड़कते दिल से उसने वो प्रोग्राम चलाया, लेकिन उसे अपने पिता की फ़ोटोज डिलीट किए काफ़ी अरसा हो गया था, सो प्रोग्राम से सिर्फ़ एक दो फ़ोटो ही रिकवर हो सके. पर मनिका के हाथ तो मानो सोना लगा गया था, जो फ़ोटो उसने रिकवर किए थे, उनमे से एक फ़ोटो तो ऐसे ही था जिसमें जयसिंह की पीठ उसकी तरफ़ थी और वह सेल्फ़ी ले रही थी, लेकिन दूसरे तब का था जब उसने रूम में अपनी नयी-नयी ड्रेसेज़ पहन कर उन्हें दिखाई थी और इस में वह वो बदन से चिपकी काली ड्रेस पहन कर उनकी गोद में बैठी थी. फ़ोटो को देखते ही मनिका, बेड पर उलटी लेट गयी और लैप्टॉप अपने सिरहाने रख उस फ़ोटो को देख-देख मस्ताने लगी. ‘उम्मम्म पापा…उम्मम्म…’ करते हुए उसने लैप्टॉप स्क्रीन पर ही एक दो किस कर दिए थे.

मनिका का कॉलेज शुरू हो गया था. लेकिन पिछले समेस्टर की तरह इस बार न तो मनिका क्लास में फ़र्स्ट-बेंच पर बैठी दिखायी देती थी और ना ही उसकी पढ़ाई की पर्फ़ॉर्मन्स इतनी अच्छी थी. एक दो बार जब किसी प्रोफ़ेसर ने उसे टोका भी, तो उसने अनसुना कर दिया था. कुछ दिन बाद उसने कॉलेज से बंक मारना भी शुरू कर दिया और अपने कमरे में ही ज़्यादातर वक़्त बिताने लगी. यूँ ही करते-करते सितम्बर का महीना आ गया. ९ सितम्बर को जयसिंह का जन्मदिन था.

आठ की रात को मनिका धड़कते दिल के साथ जगी हुई थी. उसके मन में एक उपाहपोह की स्थिति थी, कि क्या वह अपने पिता को बर्थ्डे विश करे या न करे. जब रात के १२ बजने में कुछ ही मिनट रह गए तो मनिका ने कांपते हाथों से अपने फ़ोन में एक मेसिज टाइप किया,

“Happy Birthday Papa”

पर फिर जब उसने कुछ देर सोचा तो उसे लगा कि हो सकता है उसके पापा यह रिप्लाई कर दें,

“Thank You Mani”

यह सोच कर उसका मन थोड़ा खिन्न हो गया था, उसने एक दो बार फिर ट्राई किया और आख़िर एक मेसेज लिखा,

“Happy Birthday My Dear Papa
From: Manika”

उस मेसेज को पढ़-पढ़ कर ही मनिका की अंगड़ाई टूट रही थी. बारह बजने में सिर्फ़ कुछ ही सेकंड बचे थे, मनिका ने डर के मारे एक बार मेसेज एप बंद कर दिया. पर फिर हड़बड़ाते हुए जल्दी से एप वापस खोला और सेव हुए मेसेज के सेंड बटन को दबा दिया. सिर्फ़ इतना सा करने के साथ ही मनिका एक बार फिर तड़पते हुए तकये में मुँह दबा कर आनंदित चीतकारें मारने लगी,

‘पापाऽऽऽऽऽऽ, उम्ममा…हैपी बर्थ्डे फ़्रम योर मनिका…हैपी बर्थ्डे टू योर बिग डिक पापा…उन्ह्ह्ह्ह…’

जयसिंह जगे हुए थे. उनकी बीवी और बच्चे पहले ही उन्हें उठा चुके थे. घर में ख़ुशी का माहौल था. वे भी अपने परिवार को गले लगा कर उन्हें बर्थ्डे विश के लिए धन्यवाद कह रहे थे. पर क्यूँकि रात काफ़ी हो चुकी थी, और जन्मदिन अगले दिन मनाना था, तो कुछ देर बाद वे सब अपने-अपने कमरे में सोने चले गए.

जयसिंह अपने कमरे में आ कर लेट गए. मधु बाथरूम में थी. तभी उनकी नज़र अपने फ़ोन पर गयी, जिसकी नोटिफ़िकेशन लाइट जल रही थी. यह सोच कर कि देखें किस-किस मेसेज किए हैं उन्होंने फ़ोन उठा कर देखा. सिर्फ़ एक ही मेसेज था.

मेसेज पढ़ते ही जयसिंह का बदन शोला हो उठा था. वे कुछ समझ नहीं पा रहे थे क्या करें, उनके माथे पर पसीने की बूँदें छलक आयीं थी. तभी मधु बाथरूम से निकल आयी, जयसिंह ने आनन-फ़ानन में फ़ोन एक तरफ़ रख दिया और लेट गए.

मधु आकर उनके बग़ल में लेट गयी. उनका जन्मदिन था सो मधु ने अपने पति को कुछ सुख देने का सोचा था, लेकिन एक दो बार जब जयसिंह ने मधु के उकसावे का जवाब नहीं दिया तो वह चुपचाप लेट कर सोने लगी. तीन बच्चे हो जाने के बाद अब उनके बीच कभी-कभार ही गहमा-गहमी होती थी, वरना दोनों आपसी समझ से सो जाया करते थे.
कुछ देर बाद जब जयसिंह आश्वस्त हो गए कि उनकी बीवी सो चुकी है तो उन्होंने एक बार फिर अपनी जवान बेटी का रूख किया. उनका लंड अब तन चुका था. मनिका का मेसेज काफ़ी उत्तेजक था, जयसिंह मेसेज देखते ही यह तो नहीं समझ सके थे कि मनिका ने ऐसा मेसेज क्यूँ किया लेकिन उसके पीछे दबी बात उनके समझ ज़रूर आ गयी थी. लेकिन वे इस बार अंधेरे में कोई तीर नहीं चलाना चाहते थे सो उन्होंने मनिका को रिप्लाई किया,

“Thank You Mani Dear”

मनिका फ़ोन के पास पड़ी आहें भर रही थी जब जयसिंह का रिप्लाई आया. उसने झट फ़ोन उठा कर देखा, और उसका सारा नशा उतार गया. उसके पापा ने उसे मणि कह कर बुलाया था. ‘क्या पापा सच में बदल चुके है? और मैं ही ऐसी गंदी बातें सोचने लगी हूँ?’ मनिका अंतर्द्वंद्व से घिर चुकी थी, उसने अपने आप को ऐसा क़दम उठाने के लिए कोसा और शर्म से पानी-पानी हो गयी.

अगला दिन मनिका का पिछले कुछ महीनों का पहला ऐसा दिन था जब उसने एक बार भी अपने पिता के बारे में ग़लत नहीं सोचा था. वह आत्मग्लानि से भरी काफ़ी दिन बाद आज कॉलेज भी आई थी. पूरे दिन पश्चाताप की आग में जलने के बाद वह अपने हॉस्टल रूम में लौट आई. उसका मन भारी था, जिस पाप के लिए उसने अपने पिता को नकारा था, आज वही पाप उसके ख़ुद करने का एहसास उसे दबाता जा रहा था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे वह इतने महीनों से इस उन्माद का शिकार हो गयी थी.

अगला दिन मनिका का पिछले कुछ महीनों का पहला ऐसा दिन था जब उसने एक बार भी अपने पिता के बारे में ग़लत नहीं सोचा था. वह आत्मग्लानि से भरी काफ़ी दिन बाद आज कॉलेज भी आई थी. पूरे दिन पश्चाताप की आग में जलने के बाद वह अपने हॉस्टल रूम में लौट आई. उसका मन भारी था, जिस पाप के लिए उसने अपने पिता को नकारा था, आज वही पाप उसके ख़ुद करने का एहसास उसे दबाता जा रहा था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे वह इतने महीनों से इस उन्माद का शिकार हो गयी थी.

इधर रात में जयसिंह भी ये सोचकर परेशान था कि "मनिका ने ऐसा मेसेज क्यों किया? हो सकता कि समय के साथ मनिका के मन मे मेरे लिए नफ़रत थोड़ी कम हो गई हो। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि वो बस मेरे जन्मदिन की वजह से बस मुझे विश कर रही हो। पर उसने मेसेज में अपने आपको मनिका क्यों कहा ? उसे अपना नाम लिखने की क्या जरूरत थी? "

इस तरह सोचते सोचते ही जयसिंह की आंखे भारी होने लगी थी। पर कोई फैसला न कर पाने की वजह से आखिरकार हारकर वो चुपचाप सो गए थे। 

जब से मनिका के साथ उनका वो दिल्ली वाला कांड हुआ था, जयसिंह उदास उदास रहने लगा था। वो घर मे किसी से ज्यादा बात भी नही करता ।उसने अपने आपको पूरा व्यापार में झोंक दिया था। उसकी पीड़ा और ग्लानि उसको मन ही मन खाये जा रही थी।

उसे लगभग एक साल हो गया था मनिका से मिले हुए। यहां तक कि उसने उससे बात भी नही की थी। वो मनिका के गुस्से को जानता था। उसको पता था कि शायद मनिका उसे कभी माफ न करे। इस बात का दुख हमेशा उसके मन मे रहता । कभी कभी वो सोचता कि उसे कभी दिल्ली जाना ही नहीं चाहिए था। ना वो दिल्ली जाता और ना उसके मन मे मनिका के लिए कोई बुरा ख्याल आता।


पर होनी को कौन टाल सकता था। जो हुआ सो हुआ। पर अब जयसिंह ने मन ही मन ये निश्चय कर लिया कि वो अपनी गलती का पश्चाताप करेंगे। वो मनिका से जितना दूर हो सकता है, रहेंगे।

और इसीलिए अब वो मनिका से ना कभी बात करने की कोशिश करता और ना ही उसे कभी मेसेज करता।बस जब कभी उसे पैसो की जरूरत होती, तो उसके एकाउंट में डलवा देता।
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10-04-2018, 11:51 AM,
#38
RE: Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
जयसिंह अब घर कम ही आता था। उसने अपने ऑफिस में ही ज्यादा वक्त बिताना शुरू कर दिया था। रात रात भर वही रुकता. इसका एक फायदा तो ये हुआ कि उसका बिज़नेस दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रहा था। पर नुकसान ये कि अब वो पहले जैसा हसमुंख इंसान नही रहा था। 

जयसिंह की पत्नी मधु भी उसकी उदासी का कारण नही जान पायी।जब वो कभी उससे उदासी की वजह पूछती तो जयसिंह बस बिज़नेस का बहाना बना देता। दिल्ली वाली घटना के बाद से ही जयसिंह ने मधु के साथ कभी भी शारीरिक संम्बंध नहीं बनाए थे। हालांकि वो लोग पहले भी महीने में एक या दो बार ही सेक्स करते थे पर अब तो वो भी बिल्कुल बन्द हो चुका था। मधु अपनी तरफ से भी कभी कोशिश करती तो भी जयसिंह का ठंडा रेस्पांस देखकर वो भी ठंडी हो जाती। वो सोचती की शायद बिज़नेस की वजह से जयसिंह की रुचि सेक्स में कम हो गयी है पर उसे क्या पता था कि जयसिंह कौनसी चोट खाये बैठा है।

उधर लाख कोशिशों के बाद भी मनिका के मन मे जयसिंह के प्रति प्रेम दिनोदिन बढ़ता ही गया। उसकी वासना ने उसके दिमाग को पूरी तरह से वश में कर लिया था।

परन्तु उसके मन मे डर था कि

"" उसने इतने महीने तक अपने पिता के साथ जैसा सलूक किया, उसके लिए वो उसे माफ करेंगे ? कहीं इतने महीनों में पापा सब कुछ भूल तो नही गए? कहीं वो बिल्कुल बदल तो नही गए?
क्योंकि अगर वो बदल चुके हैं, और मुझे अब एक बेटी के रूप में देखते है तो मैं किस तरह उनका सामना कर पाऊंगी जबकि मेरा मन उन्हें अपना मानने लगा है ... मैं कैसे उनके सामने जा पाऊंगी, कैसे उनसे बात कर पाऊंगी, कहीं उन्होंने मुझे ठुकरा दिया तो, नहीं नहीं मैं बर्दास्त नही कर पाऊंगी.....मैं किसी भी हाल में अपने पापा को दोबारा पाकर रहूंगी" मनिका यही सब सोचती रहती।

दिनों दिन मनिका की वासना बढ़ती जा रही थी। मनिका 1 साल से अपने घर नही गयी थी ताकि उसे अपने पापा का सामना न करना पड़े। पर अब वो जल्द से जल्द घर जाना चाहती थी। लेकिन उसे मौका ही नही मिल पा रहा था।
दिन ऐसे ही कटते गए,पर न तो मनिका को घर जाने का मौका मिला और ना ही इस दौरान उसकी जयसिंह से बात हो पाई। उसने एक दो बार कोशिश भी की जयसिंह से बात करने की पर मोबाइल में नम्बर डायल करने के बाद भी कभी वो कॉल न कर पाती और तुरन्त काट देती।

दिसम्बर के महीने में उसके सेमेस्टर एग्जाम थे। इस बार उसका ध्यान पढ़ाई पे कम ही था, इसलिए उसके एग्जाम भी ज्यादा अच्छे नहीं हुए पर उसे इस बात की ज़रा सी भी परवाह नही थी। वो तो ये सोचकर खुश थी अब उसकी 1 महीने की छुट्टियाँ पड़ने वाली थी।

उसने लास्ट पेपर खत्म होते ही होस्टल जाकर सीधा मोबाइल निकाला और अपनी मम्मी को फ़ोन किया- 

मनिका - हेलो, मम्मी ,मैं मनिका बोल रही हूं

मधु - हां मणि , कैसी है बेटा, आज तेरा लास्ट पेपर था ना, कैसा हुआ पेपर ?

मनिका - पेपर तो ठीक ही हुआ है मोम

मधु - अच्छा तो अब दोबारा कब शुरू होगी तेरी क्लासेस

मनिका - क्या मम्मी ,अभी तो पेपर खत्म हुए है और आप अभी से मुझे दोबारा क्लासेज के बारे मे पूछ रहे हो।

मधु - तो क्या करूं, तुम तो घर आती नही जो मैं तुमसे छुट्टियों के बारे में पूछुं। तुम तो दिल्ली जाकर ऐसी रम गई हो कि घर आना ही नही चाहती

मनिका - सॉरी मम्मी, पर इस बार मैं आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगी


मधु(खुश होते हुए) - मतलब तू घर आ रही है

मनिका - हाँ मम्मी , और इस बार मैं एक महीना रुकने वाली हूं.

मधु ने जब ये सुना तो वो तो खुशी के मारे फुले ना समाई।

मनिका - मम्मी आप मेरी कल की ही ट्रेन की टिकट करा दो,

मधु - हाँ बेटा, मैं अभी तुम्हारे पापा से कहकर टिकट करवाती हूँ
और तू कल आराम से आना, मैं तुझे लेने तेरे पापा को भेज दूंगी।

मनिका - ok मम्मी, bye


जब मनिका ने अपने पापा का नाम सुना तो उसके बदन ने एक जोर की अंगड़ाई ली और उसका शरीर गरम होने लगा।
इसे अपनी पेंटी थोड़ी गीली सी महसूस हुई। 
वो मन ही मन सोचने लगी कि वो अपने पापा का नाम सुनकर ही गीली हो गई तो जब कल वो उसे लेने स्टेशन पर आएंगे तो क्या होगा।
वो अपनी ही सोच से शर्मा उठी। अब बस उसे कल का इंतज़ार था।

रात को जब जयसिंह घर आया तो डिनर की टेबल पर मधु उससे बोली

मधु - सुनिए, आज मणि के सारे पेपर खत्म हो गए है, उसकी 1 महीने की छुट्टियां हैं, इसलिए वो घर आ रही है , मैन आपको दिन में फ़ोन किया था ,पर आपका फ़ोन बन्द आ रहा था, इसलिए मैंने खुद ही उसकी ट्रैन की टिकर कर कर उसे मेसेज कर दिया है।

जयसिंह ने जब ये सुना कि मनिका 1 साल बाद कल घर आ रही है, तो उसके मुंह का निवाला गले मे ही अटक गया, और वो जोर जोर से खांसने लगा।

मधु ने उसे पानी दिया और बोली

मधु - मुझे लगता है कि मणि के आने की बात सुनकर खुशि से आपका निवाला गले मे ही अटक गया है,

और ये बोलकर वो हसने लगी। उसके साथ साथ उसकी छोटी बेटी कनिका ओर बेटा भी हसने लगे।

उनको यूँ हसता देख जयसिंह भी बेमन से मुस्कुरा दिया पर उसके मन मे एक अजीब सा डर बैठ गया था।


वो सोचने लगा " मैं मणि का सामना कैसे कर पाऊंगा, कैसे मैं उससे अपनी नज़रे मिला पाऊंगा, अब तक तो मैं मधु को झूठ बोलता था कि मैं मणि से बातें करता रहता हूँ पर उसके सामने मैं कैसे उससे बातें कर पाऊंगा, मेरी पुरानी गलती की सज़ा मैं अब तक भुगत रहा हूँ, मैं अपनी ही बेटी की नज़रों में गिर गया हूँ, अगर अब कुछ गलत हो गया तो कहीं मैं सबकी नजरों में न गिर जाऊं, नहीं नहीं मैं ऐसा नहीं होने दूंगा, मैं मणि से जितना दूर हो सके रहूंगा ताकि मुझसे कहीं दोबारा कोई गलती न हो जाये "

जयसिंह यही सोचते सोचते पहले ही परेशान था कि मधु ने उस पर एक और बम फोड़ा

मधु - आप कल मणि को रिसीव करने स्टेशन चले जाना, उसकी ट्रैन शाम 5 बजे यहां पहुंच जाएगी

अब जयसिंह को मारे डर के पसीना निकलने लगा, वो तो मणि के सामने आने से भी बचना चाहता था और अब मधु तो उसे स्टेशन भेज रही थी मणि को पिक अप करने

जयसिंह सकपका कर बोला - नही मधु, मैं नही जा सकता, कल मेरी बहुत ज़रूरी मीटिंग है, तुम खुद ही उसे रिसीव करने चली जाना

मधु - आप तो हमेशा ही बिज़ी रहते हो, कभी तो घर परिवार का ख्याल किया करो, पैसे बनाने के चक्कर मे आप तो हमे जैसे भूल ही गये हो

जयसिंह - plz मधु समझा करो ना ,ये सब मैं तुम लोगो के लिए ही तो कर रहा हूँ

मधु - पर ऐसा भी क्या बिज़नेस की घर परिवार को ही समय न दे सको, पहले भी तो अच्छा चलता था बिज़नेस, पर पहले आप कितने खुशमिज़ाज़ हुआ करते थे और अब तो बिल्कुल ही.....
मधु को सचमुच गुस्सा आने लगा था

बात आगे बढ़ती इससे पहले ही जयसिंह वहां से उठा और हाथ धोकर सोने के लिए चला गया।मधु भी बेचारी हारकर चुप हो गई।

इधर मनिका अपने होस्टल में कल के लिए पैकिंग कर रही थी । वो बड़ी खुश थी कि " कल उसके पापा उसे स्टेशन पर लेने आएंगे। वो उन्हें 1 साल के बाद देखेगी, पर उनसे कहेगी क्या ?"

"वो सब बाद में देखा जाएगा" मनिका खुद ही अपने सवाल का जवाब देते हुए सोचने लगी।

वो पैकिंग कर ही रही थी कि उसकी नज़र अपनी अलमारी में रखे उन ब्रा पेंटी पर पड़ी जो उसके पापा ने उसे दिलाये थे, नफरत ओर गुस्से की वजह से उसने आज तक इनको पहना ही नहीं था, पर आज इनको सामने देखकर उसका रोम रोम रोमांचित हो उठा,
वो उन ब्रा पैंटी को अपने हाथों में लेकर सहलाने लगी, धीरे धीरे उसका शरीर गरम होने लगा, उसने तुरंत अपनी स्कर्ट उठाकर अपनी प्यारी सी पुसी पर अपनी अंगुलियां घुमाना शुरू कर दी।
वो मन ही मन उस पल को सोचने लगी जब उसने जयसिंह के काले लम्बे डिक को पहली बार देखा था, ऐसे ही सोचते सोचते उसके शरीर मे एक सिहरन सी दौड़ गयी और वो " ओह्हहहहहह पापा , आई लव यू" कहते हुए भलभला कर झड़ गयी।

कुछ देर बाद उसके वासना का तूफान शांत होने के बाद उसने शरम के मारे अपने मुंह को अपने हाथों से छिपा लिया। उसने वो ब्रा पैंटी भी अपने बैग में डाल ली।

जब उसकी पैकिंग खत्म हो गयी तो वो कल जयसिंह से मिलने के सपने संजोते हुए नींद के आगोश में चली गई।
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10-04-2018, 11:51 AM,
#39
RE: Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
अगले दिन सुबह जल्दी ही मनिका को ट्रैन पकड़नी थी। वो जल्दी से तैयार होकर स्टेशन के लिए रवाना हो गयी। ट्रैन में बैठकर उसने अपनी मम्मी को मैसेज कर दिया कि वो ट्रैन में सही सलामत बैठ गयी है।

उसकी मम्मी ने उसे अब तक नहीं बताया था कि उसके पापा उसे लेने नही आएंगे। मधु खुद ही उसे रिसीव करने जाने वाली थी। 

इधर पूरे रस्ते मनिका अपने और जयसिंह के बीच दिल्ली में हुई घटनाओं के बारे में सोच सोच कर गरम होती रहती, "कैसे उसके पापा ने उसे पहली बार मनिका कहकर बुलाया था, कैसे वो उसे अपनी गर्लफ्रैंड की तरह ट्रीट करते थे, कैसे बहाने से उन्होंने अपना लंबा डिक उसे दिखाया था, "
मनिका के शरीर मे अकड़न सी हो जाती और वो बार बार अंगड़ाई लेती रहती।

" ये सफर भी कितना लंबा लग रहा है"मनिका मन ही मन उदास सी हो जाती।

" कब ये सफर खत्म होगा और कब मैं अपने प्यारे पापा से मिल पाऊंगी, जब वो मुझे स्टेशन पे देखेंगे तो क्या कहेंगे, कहीं वो मुझे मणि कहकर तो नही बुलाएंगे, नहीं नहीं " पल पल मनिका के चेहरे के भाव बदल रहे थे, कभी वो खुश होती तो कभी वो जयसिंह के बदलने की बात सोचकर खिन्न हो जाती।

यही सब सोचते सोचते उसका सफर लगभग खत्म होने वाला था। शाम के 4.30 हो चले थे। मनिका ने अपना सारा सामान सम्भाला। 
अचानक उसको न जाने क्या सूझी की उसने बैग में से अपना मेकअप किट निकाला और उसमें से थोड़ा सा मेकअप का सामान लेकर बाथरूम में चली गयी, मनिका ऐसे सज रही थी जैसे वो घर नही अपने बॉयफ्रेंड से मिलने जा रही हो, उसने फटाफट अपना मेकअप फिनिश किया।
वो तो अब बला की खूबसूरत लग रही थी।

"पापा मुझे ऐसे देखेंगे तो उनके दिल पे तो छुरियाँ ही चल जाएगी " मनिका मन ही मन खुश होती हुई बोली।

आखिरकार लास्ट स्टेशन आ ही गया, उसका दिल अब जोर जोर से धड़कने लगा, उसने अपना बैग उठाया और ट्रैन से नीचे उतरी, उसने इधर उधर नज़र दौड़ाई , पर उसे जयसिंह नज़र नही आ रहा था, वो अपना सामान लेके मेन गेट की तरफ बढ़ने लगी, वहां पर काफी लोग अपने रिश्तेदारों को रिसीव करने आये हुए थे, मनिका उन चेहरों में अपने पापा का चेहरा तलाशने लगी, उसकी हार्टबीट बढ़ती ही जा रही थी,

"मणि, बेटा इधर देख, मैं इधर हूँ" अचानक मनिका को अपने कानों में आवाज़ सुनाई दी

उसने जब एक कोने में देखा तो वहाँ उसकी मम्मी उसकी ओर हाथ उठाकर इशारे कर रही थी, वो तुरंत अपनी मम्मी की ओर तेज़ गति से बढ़ने लगी, उसे लगा कि शायद उसे रिसीव करने उसके मम्मी पापा दोनों आये होंगे, पर अब भी उसे जयसिंह कहीं नजर नही आ रहा था, जैसे जैसे वो अपनी मम्मी के नज़दीक जा रही थी, उसका दिल बैठने लगा, जिसके लिए वो इतना सज धज कर आई वो तो उसे लेने ही नही आया, ये सोचकर ही मनिका को दुख सा होने लगा,पर उसने इसे अपनी मम्मी पर ज़ाहिर नहीं होने दिया।

"आ गई मेरी बेटी, कैसी है तू, सफर में कोई तकलीफ तो नही हुई" ये कहते हुए मधु ने उसे अपने गले लगा लिया।

"मैं बिल्कुल ठीक हूँ, और सफर भी बिल्कुल अच्छा रहा मम्मी" मनिका की आंखे अभी भी जयसिंह को ढूंढ रही थी।

"शायद वो कार में होंगे, पार्किंग की जगह नही मिली होगी, इसलिए बाहर गाड़ी में ही हमारा इंतेज़ार कर रहे होंगे" मनिका मन ही मन खुद को दिलासा देते हुए सोचने लगी।

"अरे कहाँ खो गयी बेटा, देख 1 साल में कितनी दुबली हो गयी है, वहाँ तुझे खाना नही देते क्या वो लोग" मधु बोली

"कहाँ दुबली हो गयी हूँ मम्मी, आप तो बस ऐसे ही मेरी टांग खींचते रहते हो" मनिका थोड़े मुस्कुराते हुए बोली

"तू घर चल, इस बार 1 महीने में तुझे खिला पिला कर तन्दरुस्त न कर दिया तो बोलना" ये बोलकर मधु और मनिका दोनों हसने लगी।


अब मनिका और मधु पार्किंग की तरफ बढ़ने लगे, जब वो लोग अपनी कार के पास पहुंचे, तो अब मनिका की आखरी आस भी टूट गयी, कार में कोई नही था, उसका दिल भर आया,

" शायद पापा मुझसे नाराज़ हैं , मैंने 1 साल तक उन्हें इतना परेशान किया, इसीलिए मुझे रिसिव करने नही आये, वरना पापा ही हमेशा सबको रिसिव करने आते है, अब मैं कैसे उन्हें अपने दिल की बात बता पाऊंगी, शायद वो बिल्कुल बदल गए है, नहीं नहीं मैं अपने पापा को अपने से दूर नहीं जाने दूंगी, नहीं जाने दूंगी " मनिका अपने अन्तर्मन को समझा ही रही थी कि मधु बोली
" अरे अब यहीं खड़े रहना है या फिर घर भी चलोगी "

मनिका - हां मम्मी, चलो
मधु - तो बैठो न गाड़ी में
फिर वो दोनों कार में बैठकर घर की तरफ रवाना हो गयी।

"मम्मी, आप तो बोल रही थी कि पापा मुझे रिसिब करने आएंगे" मनिका ने ये पूछने के लिए अपनी पूरी हिम्मत लगा दी थी

"बेटा, उनकी कोई जरूरी मीटिंग थी आज, इसलिए वो नही आ पाए, रात को शायद डिनर पे आ जाएं" मधु ने बड़े ही सामान्य तरीके से जवाब दिया।

उसके बाद मनीका और मधु ऐसे ही गप्पे लड़ाते हुए घर पहुंच गई।

घर पर मनिका की छोटे भाई बहन ( कनिका और हितेश) उसका बेसब्री से इंतेज़ार कर रहे थे, 1साल बाद अपनी बड़ी बहन से मिलकर वो दोनों बहुत खुश हुए, उन्होंने आते ही मनिका को बातो में लगा लिया, वो उससे दिल्ली के बारे में पूछने लगे, मनिका भी बड़े प्यार से उनको शहर की चमक धमक के बारे में बताती, 

मनिका ने फ्रेश होकर दोबारा उनसे बातें करना शुरू कर दिया, मधु डिनर की तैयारियों में लग गई थी, मनिका अपने छोटे भाई बहन के लिए कुछ गिफ्ट्स लायी थी, गिफ्ट्स पाकर वो दोनों बड़े खुश हो गए, मनिका बाहर से तो बड़ी खुश थी पर उसकी आंखे अभी भी अपने पापा को देखने के लिए तरस रही थी, 
( यहां मैं आप लोगो को उनके घर की बनावट बता देता हूँ।

उनका दो मंज़िल का शानदार घर था, दोनों मंज़िल पर तीन - तीन कमरे थे, हर कमरे में अटैच लेट-बाथ था, किचन नीचे ही था, एक बड़ा सा हॉल, जो सुख सुविधाओं की सभी चीज़ों से सम्पन्न था

ग्राउंड फ्लोर पर कोने के कमरे में जयसिंह और मधु रहते थे, दूसरे कमरे में कनिका और लास्ट वाले में हितेश रहता था,

मनिका पहले कनिका के साथ ही रहा करती थी पर बाद में उसने अपना सामान ऊपर वाली मंजिल पे शिफ्ट कर लिया था, ऊपर बीच वाला कमरा स्टोर रूम और सबसे लास्ट वाला गेस्ट रूम था )

मनिका अपने अपने भाई बहन से बातें कर तो रही थी पर उसका मन तो अपने पापा को देखने मे अटका था, जब उससे रहा न गया तो उठ कर किचन में अपनी मम्मी के पास चली गई,

" आज खाने में क्या बना रही हो ममा" मनिका बात शुरू करते हुए बोली

" बेटा, आज मैं तेरी मनपसन्द चीज़े बना रही हूं, मटर पनीर की सब्जी, राजमा ,पूड़ी और मीठे में खीर भी बना रही हूं" मधु ने जवाब देते हुए कहा

" वाव मम्मी, मुझे तो अरसा हो गया है अच्छा खाना खाएं, आज तो मैं जी भर के खाऊँगी" मनिका चहकते हुए बोली

" तू चिंता मत कर, तू जितने दिन यहां है मैं तुझे रोज़ अच्छी अच्छी चीज खाने को दूंगी, देखना एक महीने में तुझे बिल्कुल तन्दरूस्त न कर दिया तो बोलना" ये बोलकर दोनों हसने लगी।

"अच्छा मम्मी, पापा कब तक आएंगे" आखिर कार मनिका ने अपने दिल की बात पूछ ही ली 

"शायद डिनर के टाइम तक आ जाएंगे, चल अब तू बाहर जा, मुझे बहुत से कम बाकी है" ये बोलते हुए मधु वापस खाना बनाने में बिजी हो गई।

मनिका सीधा अपने रूम में गई, उसने सोचा कि पापा के आने से पहले नहाकर रेडी हो जाती हूँ, मनिका ने अपना टॉवल लिया, और अलमारी में से अपनी ब्रा पैंटी ढूंढने लगी।

तभी उसके दिमाग मे एक आईडिया आया, उसने तुरंत अपने बैग में खोजना शुरू किया और थोड़ी ही देर में उसके हाथों में वो ब्रा पैंटी थी जो उसके पापा ने उसे दिलाई थी। वो तुरन्त उनको लेकर अपने बाथरूम में घुस गई। 

उसने पलक झपकते ही अपनी टीशर्ट और नाइटी उतार दी, ब्रा पैंटी में समाए अपने गोरे बदन को देखकर वो शर्मा ही गई, धीरे धीरे उसका शरीर गरम होने लगा, अब उसने हल्के से अपनी काली ब्रा के हुक खोलना शुरू कर दिया, ब्रा की कैद से आज़ाद होते ही उसके छोटे छोटे दोनों उरोज स्पंज की भांति उछलकर बाहर आ गये, वो अपने हाथों से उनको पकडर सहलाने लगी, बीच बीच में वो अपने नाखूनों से अपने ब्राउन कलर के निप्पलों को कुरेद देती, 

"ओह्हहहहहह पापाअअअअअ, मसलो इन्हें,,,, " मनिका मन ही मन कल्पना करने लगी कि उसके पापा ही उसके उरोज़ो को हाथों में लेकर मसल रहे हैं, 

धीरे धीरे मनिका की उत्तेजना चरम पर पहुंचती जा रही थी, उसने अपनी पैंटी के इलास्टिक को पकड़ा और एक झटके में पैंटी को अपने पैरों के चंगुल से मुक्त कर दिया, अब उसका एक हाथ उसके उरोजों को मसल रहा था तो दूजा हाथ उसकी पुसी की क्लीट को,

"ओह यस्सससस, ओह्हहहहहह पापा
उन्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह… एक ज़ोरदार सिसकी के साथ मनिका जोर जोर से अपनी उंगलिया चलाने लगी

"उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस"
मनिका के शरीर ने एक जोर की अँगड़ाई ली, उसके बदन में एक आनन्द की एक लहर दौड़ गई और थोड़ी ही देर में उसकी टांगो के बीच एक सैलाब सा आ गया, उसके पैरों की हिम्मत जवाब दे गई और वो वही बाथरूम में ज़मीन पर बैठ गई,
थोड़ी देर बाद उसने अपनी बिखरी हुई सांसो को समेटा और अपने बाथ टब में जाके लेट गई, उसका चेहरे पर अब सन्तुष्टि के भाव झलक रहे थे

उसने जल्दी से बाथ लिया और फिर एक वही ब्रा पैंटी पहनी,उसने एक बहुत ही महीन सिल्की टीशर्ट पहनी ओर उसके नीचे एक कैपरी डाल ली, ध्यान से धन पर उसकी ब्रा की स्ट्रिप्स को उसकी टीशर्ट में से महसूस किया जा सकता था, उसने फिर हल्का सा मेकअप किया और फिर नीचे हॉल में आकर कनिका और हितेश से बाते करने में मशगूल हो गई।
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10-04-2018, 11:51 AM,
#40
RE: Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
मनिका के शरीर ने एक जोर की अँगड़ाई ली, उसके बदन में एक आनन्द की एक लहर दौड़ गई और थोड़ी ही देर में उसकी टांगो के बीच एक सैलाब सा आ गया, उसके पैरों की हिम्मत जवाब दे गई और वो वही बाथरूम में ज़मीन पर बैठ गई,
थोड़ी देर बाद उसने अपनी बिखरी हुई सांसो को समेटा और अपने बाथ टब में जाके लेट गई, उसका चेहरे पर अब सन्तुष्टि के भाव झलक रहे थे

उसने जल्दी से बाथ लिया और फिर एक वही ब्रा पैंटी पहनी,उसने एक बहुत ही महीन सिल्की टीशर्ट पहनी ओर उसके नीचे एक कैपरी डाल ली, ध्यान से धन पर उसकी ब्रा की स्ट्रिप्स को उसकी टीशर्ट में से महसूस किया जा सकता था, उसने फिर हल्का सा मेकअप किया और फिर नीचे हॉल में आकर कनिका और हितेश से बाते करने में मशगूल हो गई।

उधर जयसिंह सुबह से ही मनिका के आने की खबर से परेशान सा था, उसने मधु को किसी तरह बहाने से स्टेशन जाने से तो मना कर दिया पर अब उसे घर पर तो जाना ही पड़ेगा, और घर जाते ही उसे मनिका से सामना करना पड़ेगा,

" मैं घर जाकर मनिका से कैसे नज़रें मिला पाऊंगा, क्या उसने मुझे माफ़ किया होगा, नहीं नहीं वो बचपन से ही गुस्सा करने वाली लड़की रही है, और मैने जो किया उसके लिए तो वो मुझे कभी माफ कर ही नही सकती, अगर मैं उसके पास गया और उसने मेरे साथ कहीं अजीब व्यवहार किया तो मधु को पक्का शक हो जाएगा, वो जरूर मनिका से इसकी वजह पूछेगी, अगर मनिका ने उसे सब कुछ बता दिया तो, मेरा बसा बसाया घर बर्बाद न हो जाये, कहीं मधु बच्चो को लेकर मुझे छोड़ कर चली गयी तो, नहीं नहीं मैं ऐसा नही होने दूंगा, मैं मनिका के सामने ही नही जाऊंगा,, लेकिन घर भी तो जाना पड़ेगा ,, अब मैं क्या करूँ " - जयसिंह दिन भर इसी उधेड़बुन में लगा रहा, पर लाख कोशिशों के बावजूद भी वो किसी निष्कर्ष पर ना पहुंच सका,

अब शाम के 8:00 बजने को आये थे, जयसिंह के घर जाने का समय भी हो गया था, उधर मनिका पलकें बिछाए अपने पापा का इंतजार कर रही थी और इधर जयसिंह घर जाने या ना जाने की ऊहापोह स्तिथि में फंसा हुआ था।
आखिरकार हारकर जयसिंह अपनी कार में बैठा और घर की तरफ रवाना हो गया, 

घर पर मधु ने खाना तैयार कर लिया था, उसने सोचा कि एक बार जयसिंह को फ़ोन करके पूछ लेती हूँ कि वो कब तक आएंगे, उसने अपना फोन निकाला और जयसिंह का नम्बर डायल करके कॉल लगा दिया, 

इधर जयसिंह ने जब फोन की स्क्रीन पर मधु का नम्बर देखा तो उसका दिल जोरो से धड़कने लगा

" मैं मधु से क्या कहूँ, मुझे घर जाना चाहिए या नहीं, अगर मैं काम का बहाना बना दूँ तो, नहीं नहीं कल ही मधु ने मुझसे काम की वजह से झगड़ा किया था, और आज तो मनिका भी घर आ गई है, ऐसे में अगर मैंने घर जाने से मना किया तो मधु जरूर मुझसे गुस्सा हो जाएगी, पर अगर घर गया तो मनिका का सामना कैसे करूँगा " जयसिंह इसी असमंजस की स्तिथि में फंसा था, पर अब तक उसे कोई हल नही सूझ रहा था। आखिर उसने डरते डरते फ़ोन उठाया


जयसिंह - हेलो,
मधु - क्या हुआ, इतना टाइम क्यों लगाया फ़ोन उठाने में

जयसिंह - वो वो अम्म्म मैं ममम ड्राइव कर रहा था इसलिए जल्दी नही उठा पाया

मधु (खुश होते हुए)- अरे वाह, इसका मतलब आज आप टाइम पर घर आ जाओगे , कितना अच्छा लगेगा आज सब लोग साथ मे खाना खाएंगे

जयसिंह(घबराते हुए) -- अरे नहीं अम्म्म मधु , मैं कार में जरूर हूँ पर मैं घर नही आ रहा, जरासल मुझे एक क्लाइंट से मिलने जाना तो अभी उसी के घर जा रहा हूँ, मुझे घर आते आते देर हो जाएगी, तुम लोग खाना खा लो, मैं घर आकर बाद में खा लूंगा,

मधु (गुस्से में) - काम,काम,काम बस आपको तो काम ही सूझता है, हम लोगो के लिए तो आपके पास वक्त ही नहीं है, घर पे बेटी साल भर बाद आई है और आप है कि मिलने के बजाय बाहर बिज़ी रहते है, 

" अब मधु को कैसे समझाऊं की मनिका की वजह से ही घर नही आ रहा " जयसिंह मन ही मन सोचता है

मधु - अब चुप क्यों हो गए जवाब दो
जयसिंह - plz मधु समझा करो ना, अगर ज़रूरी काम ना होता तो मैं जरूर आ जाता, पर क्या करूँ क्लाइंट से आज मिलना ज़रूरी है

मधु (गुस्से से)- ठीक है फिर, खाना भी बाहर ही खा लेना, यहां तो अगर खाना बचा भी तो मैं डस्टबिन में फेंक दूंगी,

जयसिंह - मधु सुनो तो सही, हेलो, hellllo......

मधु ने गुस्से से फ़ोन बीच मे ही काट दिया, मधु हमेशा उसे खाना फेंकने की धमकी देती थी, पर ये जयसिंह भी जानता था कि वो ऐसा कभी नही करती, क्योंकि गुस्सा शांत होने पर मधु को समझ आ जाता था कि ये सब वो उनके लिए ही कर रहा है, इसलिए जयसिंह थोड़ा निश्चिन्त हो गया और वापस गाड़ी को आफिस की तरफ मोड़ दिया,उसने सोचा था कि सबके सोने के बाद घर चला जायेगा और सुबह मनिका के उठने से पहले ही वापस आफिस आ जायेगा, 

इधर मधु का मूड खराब हो चुका था, पर वो कर भी क्या सकती थी,

"मणि , हितेश, कनिका , आओ सब लोग खाना खाने का टाइम हो गया है " उसने बच्चों को आवाज़ लगाई

तीनो लोग मनिका के रूम में बैठकर बाटे कर रहे थे, मधु की आवाज़ सुनकर तीनों एक स्वर में बोले - "अभी आये मम्मी"


कनिका और हितेश तो तुरंत नीचे भाग गए पर मनिका अब भी अपने रूम में थी,

मनिका को लगा कि शायद पापा आ गए है, तभी मम्मी उन्हें खाना खाने बुला रही है, ये सोचकर ही मनिका के मन मे सिहरन सी उठ गई, 

"आज साल भर बाद मैं पापा से मिलूंगी, हाय कितना मज़ा आएगा उनसे मिलकर, बहुत सताया है मैंने अपने पापा को, पर अब मैं उनकी सारी शिकायत दूर कर दूंगी" मनिका मन ही मन सोचने लगी,

वो जल्दी से उठी और आईने में खुद को निहारने लगी, उसने अपने गुलाबी होंठों पर हल्की सी ग्लास लिपिस्टिक लगाई और बालों को थोड़ा सा संवारा,
और एक हल्की सी मुस्कुराहट उसके चेहरे पर फैल गयी,

अब वो धीरे धीरे कमरे से बाहर निकलकर सीढ़ियों पर नीचे की ओर जाने लगी,उसका दिल जोरो से धड़कने लगा, उसकी नज़रें झुकी हुई थी और उसकी चाल ऐसी लग रही थी मानो कोई नई नवेली दुल्हन अपनी सुहागरात की सेज की तरफ बढ़ रही हो,

पर जैसे ही उसने अपनी नज़र उठाकर हॉल की ओर देखा , उसके सारे अरमान धरे के धरे रह गए, वहां डाइनिंग टेबल पर सिर्फ मनिका ओर हितेश बैठे थे और मधु वहां पर खाने की प्लेट्स लगा रही थी, 


मनिका को जैसे जोर का झटका लगा हो, जयसिंह को वहां ना पाकर तो जैसे उसके पैर वहीं के वहीं जम गए हों, उसने न जाने कैसे कैसे सपने संजोये थे, पर उसके सारे सपने उसे मिट्टी में मिलते नज़र आ रहे थे,

अब वो भारी कदमों से नीचे की ओर बढ़ रही थी, 

उसको नीचे आते देख मधु बोली- आजा मणि जल्दी आ, देख तेरी पसन्द की सारी चीज़ें बना दी है, ज़रा टेस्ट करके तो बता की कैसी बनी है?

अब मनिका उसको क्या जवाब देती, उसकी तो जैसे भूख ही मर गयी थी, वो भारी मन से टेबल पर आकर बैठ गयी।

मधु ने उसके लिए एक प्लेट लगाई और फिर उसमें सारी डिशेज़ सर्व कर दी।

कनिका और हितेश तो खाने का लुत्फ उठा रहे थे, पर मनिका बिल्कुल धीरे धीरे खा रही थी, 

उसको ऐसे कहते देख मधु बोली - क्या हुआ मणि, खाना अच्छा नही बना क्या

मनिका - नहीं मम्मी, ऐसी कोई बात नहीं, खाना तो बहुत ही स्वादिष्ट बना है

मधु - तो फिर ऐसे धीरे धीरे क्यों कहा ल है, पहले तो कैसे फटाफट खाना खाती थी, और अब देखो कैसे स्लो मोशन में खाना खा रही है

उसकी बात सुनकर कनिका और हितेश भी हसने लगे, 

मनिका - ऐसा तो कुछ नही है मम्मी

मधु - मुझे लगता है कि तेरा ध्यान कहीं और है, कहीं तू अपने पापा के बारे मव तो नहीं सोच रही हो

मधु की बात सुनकर तो मनिका को इस लगा जैसे मधु ने उसकी कोई चोरी पकड़ ली हो, वो घबरा सी गई।

मनिका (घबराते हुए) - नही म्म्म्मम्म मम्मी, ऐसी तो कोई बात नहीं 

मधु - झूट मत बोल, मैं जानती हूँ कि मुझसे ज्यादा तू तेरे पापा को ही प्यार करती है, और वो अब तक तुझसे मिलने घर नही आये, इसलिये तू परेशान है

प्यार की बात सुनकर एक बार तो मनिका घबराई फिर उसे लगा कि मम्मी तो बाप बेटी वाले प्यार की बात कर रही है।

मनिका थोड़े शांत होते हुए बोली - पर मम्मी पापा अभी तक आये क्यों नहीं

मनिका ने ये सवाल पूछ तो लिया था पर शायद वो उसका जवाब पहले से जानती थी, उसे पता था कि उसके पापा शायद उसकी वजह से घर नहीं आ रहे है। अब उसे पक्का भरोसा हो गया था कि " पापा उसके सामने आने से कतरा रहे है, वो बदल चुके है और अपने किये पर सचमुच शर्मिंदा है, पर अब मैं उनके बिना नहीं रह सकती, मैं अपने पापा को वापस पाकर रहूंगी, चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े" मनिका ने मन ही मन कुछ निश्चय कर लिया था।

जयसिंह वापस अपने ऑफिस की तरफ चल पड़ा, वो मन ही मन बड़ा खुश था कि अब उसे मनिका का सामना नहीं करना पड़ेगा, ऑफिस पहुंचकर वो वही थोड़ी देर टाइम पास करने लगा,

मनिका खाना खाकर वापस अपने रूम में आ चुकी थी, वो अंदर से बहुत दुखी थी।

" मैंने अपने पापा को बहुत दुःख दिए ,इसीलिए मुझे ये सज़ा मिल रही है, मुझे कुछ भी करके अपने पापा को वापस अपने करीब लाना होगा, पर कैसे, मैं ये कैसे करूंगी, दिल्ली में हम दोनों अकेले थे , पर यहां तो सब लोग हैं " मनिका अंदर ही अंदर बड़ी बैचैन सी होने लगी,

लेकिन कुछ भी हल ना निकलता देख वो थक हारकर लेट गई, सफर की थकान की वजह से वो जल्दी ही नींद के आगोश में चली गई,

रात के लगभग 11:00 बज चुके थे, जयसिंह को लगा की अब तक घर मे सब लोग सो चुके होंगे, उसने अपनी गाड़ी निकली और घर की तरफ चल पड़ा, 

जल्दी ही वो घर पहुंच गया, चूंकि वो अक्सर लेट ही आता था, इसलिए उसके पास घर की डुप्लीकेट चाबी रहती थी, उसने हल्के से दरवाज़ा खोला ताकि उसकी आवाज़ सुनकर कोई जाग न जाये,

उसे बड़े जोरों की भूख लग रही थी, वो सीधा किचन में गया और वहीं सिंक में हाथ धोकर अपने लिए प्लेट में खाना डाल लिया, प्लेट लेकर वो डाइनिंग टेबल की ओर बढ़ ही रह था कि उसे लगा की इस वक्त हॉल की लाइट जलाना सही नही होगा,
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