Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
10-04-2018, 11:35 AM,
#11
RE: Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
मनिका ने उठ कर दरवाज़ा खोला, सामने रूम-सर्विस वाला वेटर एक फ़ूड-ट्राली लिए खड़ा था,

'योर ऑर्डर मैम.' उसने अदब से मुस्कुरा कर कहा.

मनिका एक तरफ हट गई और वह ट्राली को धकेलता हुआ अन्दर आ गया. मनिका ने उसके पीछे से आते हुए कहा,

'लीव इट हेयर ओनली, वी विल मैनेज.'

'येस मैम.' लड़के ने इधर-उधर नज़र घुमा कर कहा. वह मनिका को देख मुस्कुरा रहा था, मनिका ने भी उसे एक हल्की सी स्माइल दे दी. लेकिन वह फिर भी वहीँ खड़ा रहा.

मनिका को समझ आ गया कि वो टिप लेने के लिए खड़ा है. उसे बेड-साइड पर रखा जयसिंह का पर्स नज़र आया, वो गई और पर्स से पाँच सौ रूपए निकाल कर वेटर की तरफ बढ़ा दिए. लेकिन वेटर ने नोट न लेते हुए कहा,

'ओह नो मैम थैंक-यू वैरी मच. आई ऑलरेडी एंजोएड माय टिप दिस मॉर्निंग, इट वास् अ प्लेज़र.' और एक कुटिल मुस्कान बिखेर दी.

मनिका उसका आशय समझते ही शर्म से लाल हो गई, ये वही वेटर था जो सुबह जयसिंह को चाय देने आया था जब वह उनकी बगल में अधनंगी पड़ी हुई थी. वेटर के जाने की आहट होने के कुछ देर बाद तक भी मनिका की नज़र उठाने की हिम्मत नहीं हुई थी. कुछ पल बाद वह जा कर बेड पर बैठ गई. 'कैसा कमीना था वो वेटर...हाय, साला कैसी गन्दी हँसी हँस रहा था, कुत्ता.' मनिका ने उस वेटर की हरकत पर गुस्सा करते हुए सोचा 'ओह गॉड कितना एम्बैरेसिंग है ये...ये आदमी सब गन्दी सोच के ही होते हैं...नहीं-नहीं पर मेरे पापा वैसे नहीं है. कितने कूल हैं वो...उन्होंने एक बार भी नज़र उठा कर नहीं देखा मेरी तरफ और एक ये वेटर था जो...थैंक गॉड मुझे इतने अच्छे पापा मिले हैं.' उसका यह सोचना हुआ कि जयसिंह भी नहा कर निकल आए.

'हेय पापा!' मनिका उन्हें देख प्यार से बोली, वह उन्हीं के बारे में सोच रही थी इसिलिए उन्हें देख उसके मुहँ से उसके मन की बात निकल आई थी.

'हैल्लो मनिका.' जयसिंह ने भी उसी अंदाज़ में कहा 'आ गया खाना?' उनकी नज़र फ़ूड-ट्राली पर पड़ी.

'हाँ पापा.' मनिका उस वेटर की याद को मन से झटककर बोली.

'तुमने कर लिया ब्रेकफास्ट?' उन्होंने पूछा.

'नो पापा आपके बिना कैसे कर सकती हूँ.' मनिका ने मुहँ बनाते हुए कहा.

'जैसे हर काम तुम मेरे साथ ही करती हो...' जयसिंह के मुहँ से अचानक फूट निकला था, अपने बोलने के साथ ही उन्हें अपनी गलती का एहसास हो गया था और वे रुक गए.

'पापा! ऐसे क्यों बोल रहे हो आप?' मनिका ने हैरत से पूछा. जयसिंह अब तक संभल चुके थे और उन्होंने माफ़ी मांगने में ही अपनी भलाई समझी.

'ओह मनिका सॉरी...मेरा मतलब तुम्हें हर्ट करने का नहीं था. मजाक कर रहा था भई.'

'क्या पापा आप भी हर वक़्त मेरी लेग-पुल करते रहते हो.' मनिका ने मुहँ बनाया 'एंड डोंट से सॉरी ओके.' उसने अब मुस्का कर कहा. जयसिंह की किस्मत ने फिर उन्हें एक मुश्किल घड़ी से बचा लिया था.

जयसिंह और मनिका ने साथ में नाश्ता किया और फिर नीचे हॉटेल की लॉबी में आ गए. जयसिंह ने रिसेप्शन पर जा कर अपनी बुक की हुई कैब मंगवाई और फिर मनिका को साथ लेकर हॉटेल की ड्राइव-वे में जा पहुँचे. उनके पहुँचने के साथ ही उनकी कैब भी आ गई, ड्राईवर ने उतर कर उनके लिए पीछे का दरवाज़ा खोला और झुक कर उन्हें सलाम किया. जयसिंह ने मनिका की तरफ मुस्कुरा कर देखा और उसे कार में बैठने का इशारा किया. मनिका की आँखों में ख़ुशी और उत्साह चमक रहा था.

'पापा...ईईई...' मनिका जयसिंह के साथ पीछे की सीट पर बैठी थी, वह उनके पास खिसकते हुए फुसफुसाई 'बी.एम.डब्ल्यू!' जयसिंह ने कैब के लिए बी.एम.डब्ल्यू बुक कराइ थी.

वैसे तो जयसिंह के पास भी बाड़मेर में स्कोडा थी लेकिन मनिका के उत्साह का कोई ठिकाना नहीं था.
'हाहाहा...' जयसिंह हलके से हँस दिए.

'पापा मेरी फ्रेंड्स तो जल-भुन मरेंगी जब मैं उन्हें इस ट्रिप के बारे में बताउंगी.' मनिका खुश होते हुए बोली.
'अभी तो बहुत कुछ बाकी है मनिका...' जयसिंह ने रहस्यमई अंदाज़ में कहा, इस बार वे आश्वस्त थे की मनिका को उनकी बात नहीं खटकेगी.

'हीहीही...’ मनिका उनके कंधे पर सिर रख खिलखिलाई.

जयसिंह ने कैब के ड्राईवर से उन्हें साईट-सीइंग के लिए लेकर चलने को कहा था. ड्राईवर ने उस दिन उन्हें दिल्ली की कुछ मशहूर इमारतों की सैर कराई, बीच में वे लोग लंच के लिए एक पॉश-रेस्टोरेंट में भी गए. मनिका ने अपने मोबाइल से ढेर सारी फोटो क्लिक करीं थीं;जिनमे वह और जयसिंह अलग-अलग जगहों पर पोज़ कर रहे थे. वे लोग रात ढलते-ढलते वापिस मेरियट पहुँचे, जयसिंह ऊपर रूम में जाने से पहले रिसेप्शन पर अगले दो हफ्ते के लिए अपने लिए कैब की बुकिंग करने को बोलकर गए थे.

जब मनिका और जयसिंह पूरे दिन के सैर-सपाटे के बाद थके-हारे अपने रूम में पहुँचे तो उन्होंने रूम में ही डिनर ऑर्डर किया और एक-एक कर नहाने घुस गए. जब जयसिंह नहाने घुसे हुए थे तभी एक बार फिर से रूम-सर्विस आ गई थी, मनिका ने धड़कते दिल से दरवाज़ा खोला था लेकिन इस बार सुबह वाला वेटर ऑर्डर लेकर नहीं आया था. मनिका ने एक राहत की साँस ली थी और उसे टिप देकर चलता कर दिया था.

उस रात जब मनिका नहा कर निकली तो जयसिंह को कुछ भी देखने को नहीं मिला, आज उसने पायजामा-टी-शर्ट पहन रखे थे जिनसे उसका बदन अच्छे से ढंका हुआ था. डिनर कर वे दोनों बिस्तर में घुस गए और कुछ देर दिल्ली में साथ बिताए अपने पहले दिन की बातें करते हुए सो गए.

जयसिंह और मनिका के अगले तीन दिन इसी तरह घूमने-फिरने में निकल गए. इस दौरान जयसिंह ने पूरे धैर्य के साथ मनिका के मन में सेंध लगाना जारी रखा, वे उसे अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से बहलाते-हँसाते रहते थे और उसकी तारीफ करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. एक-दो बार उन्होंने उसे अपनी माँ से उनके इस घूमने-फिरने का जिक्र न करने को भी कह दिया था जिस पर मनिका ने हर बार उन्हें यही कहा था कि क्या उन्हें उस पर भरोसा नहीं है. दूसरा दिन ख़त्म होते-होते जयसिंह को अपनी मेहनत का पहला फल भी मिल गया; जब वे शाम को क्नॉट-प्लेस में घूम रहे थे तो उन्होंने वहाँ आए लड़के-लड़कियों के जोड़ों को एक दूसरे की बाहँ में बाहँ डाल घूमते देखा था; उस रात वे हॉटेल पहुँचे तो लॉबी में थोड़ी भीड़ थी, कोई बिज़नस-डेलीगेशन आया हुआ था, सो मनिका जयसिंह के थोड़ा करीब होकर चल रही थी. जब वे एलीवेटर के पास पहुँचे तो वहाँ पहले से ही कुछ लोग खड़े थे, जयसिंह और मनिका खड़े हो कर अपनी बारी का वेट करने लगे, तभी जयसिंह को अपनी बाहँ पर किसी के हाथ का एहसास हुआ, उन्होंने अपना सिर घुमा कर देखा तो पाया कि मनिका ने अपनी बाहँ उनकी बाहँ में डाल उनका सहारा ले रखा था (जयसिंह ने सहानुभूति दिखाते हुए उस से पूछा था कि क्या वह बहुत ज्यादा थक गई है तो मनिका ने धीरे से न में सिर हिलाया था). अगले दिन जब वे घूमने निकले तो मनिका ने कैब से उतरते ही उनकी बाहँ थाम ली थी. उसके इस छोटे से जेस्चर से जयसिंह के मन में लडडू फूट पड़े थे.

मनिका और जयसिंह अपने दिल्ली भ्रमण के पाँचवें दिन की शाम अपने हॉटेल लौटे थे. आज वे दिल्ली का पुराना किला देख कर आए थे. पिछले दो दिनों से हॉटेल की लॉबी से होकर उनके रूम तक जाते हुए भी मनिका उनके बाजू में उनकी बाहँ थामे चलती थी. पर आज जयसिंह कुछ ज्यादा ही उत्साहित थे. हुआ यूँ था कि, रोज़ जब वे घूमने निकलते थे तो आस-पास आए दूसरे पर्यटकों या लोगों को अपना मोबाइल दे कर एक-दूसरे के साथ अपना फोटो खिंचवा लेते थे, आज पुराने किले के सुनसान गलियारों में उन्हें ज्यादा लोग नहीं मिले थे और एक जगह जब मनिका ने फोटो लेने के लिए मोबाइल निकाला तो उनके आस-पास कोई भी न था. जयसिंह ने उसका फोटो क्लिक कर दिया था और फिर उसने उनसे भी पोज़ करने को कह उनकी फोटो ले ली थी.

'क्या पापा...यहाँ तो कोई है ही नहीं जो अपना साथ में फोटो ले दे. कितनी ब्यूटीफुल जगह है ये...और डरावनी भी.' मनिका ने जयसिंह के पास बैठते हुए कहा था. जयसिंह एक पुराने खंडहर की दीवार पर बैठे थे.

'अरे तो तुम फ्रंट-कैमरा ऑन कर लो न.' जयसिंह ने सुझाया था.

'हाँ पर पापा उसकी फोटो इतनी साफ़ नहीं आती.' मनिका ने खेद जताया.

'देखो फोटो न होने से तो फोटो होनी बेहतर ही होगी चाहे साफ हो या नहीं. अब यहाँ तो दूर-दूर तक कोई नज़र भी नहीं आ रहा.' जयसिंह मुस्कुरा कर बोले थे, मनिका ने उनके पास बैठ उनकी बाहँ जो थाम ली थी.

'हाँ पापा...आप भी कभी-कभी फुल-ऑन ज्ञानी बाबा बन जाते हो बाय-गॉड.' मनिका ने हँस कर कहा था और अपने मोबाइल का फ्रंट-कैमरा ऑन कर जयसिंह के साथ फोटो लेने लगी.

जब कुछ देर वह कशमकश में लगी रही तो जयसिंह ने मनिका से पूछा था कि अब वह क्या करने की कोशिश कर रही है? तो उसने बताया कि कैमरे के फ्रेम में वे दोनों अच्छे से नहीं आ रहे थे. जयसिंह और मनिका कुछ देर तक अपनी पोजीशन अडजस्ट कर फोटो लेने का प्रयास करते रहे,, पर जब बात नहीं बनी थी तो जयसिंह ने थोड़ी सतर्कता से मनिका को सुझाव दिया,

'ऐसे तो खिंच गई हम से तुम्हारी फोटो...व्हाए डोंट यू कम एंड सिट इन माय लैप.' उनके दिल की धड़कन मनिका की प्रतिक्रिया के बारे में सोच बढ़ गई थी 'इस तरह कैमरा में हम दोनों फिट हो जाएंगे.' मनिका के हाथों-हाथ जवाब नहीं देने पर उन्होंने आगे कहा था.

'ओह ओके पापा.' मनिका ने एक पल रुक कर कहा था. मनिका जयसिंह के साथ से वैसे तो बहुत खुश थी लेकिन दिल्ली आने से पहले कभी उसने उनके साथ इतनी आत्मीयता भरा वक्त नहीं बिताया था सो वह बस एक छोटे से पल के लिए ठिठक गई थी.

जयसिंह मनिका के जवान बदन को अपनी गोद में पा कर उत्तेजना और उत्साह से भर उठे थे, उन्होंने एक हाथ अपनी जांघ पर बैठी मनिका के कंधे पर रख रखा था, उसके कसे हुए बदन को अपने इतने करीब पा उनके लंड ने भी सिर उठाना शुरू कर दिया था. उधर मनिका को उनके कपट का अंदाजा तक नहीं था.

फोटो बुरी नहीं आई थी, आउटडोर एनवायरमेंट होने की वजह से फ्रंट-कैमरे से भी फोटो साफ़ खिंच गई थी. उसके बाद तो जैसे जयसिंह की लॉटरी निकल गई, उन्होंने वहाँ काफी सारी सेल्फी-पिक्स खींची. बाद में जब वे एक थीम-रेस्टोरेंट में लंच करने गए थे तो वहाँ आस-आस लोगों के होने के बावजूद मनिका ने अपने-आप उठकर उनकी गोद में बैठ एक फोटो खींची थी.

सो उस दिन शाम को जयसिंह बहुत अच्छे मूड में हॉटेल लौटे थे, पिछले पाँच दिनों में वे मनिका का काफी भरोसा और आत्मीयता प्राप्त करने में कामयाब रहे थे. ऊपर से उनके द्वारा खुले हाथ किए जा रहे खर्च ने भी मनिका की उनकी कही अटपटी बातों, जो वह शायद अपने अंतर्मन में कहीं महसूस करती थी, को नज़रंदाज़ कर देने की प्रवृति को बढ़ावा दिया था.

उस पहली रात के बाद जयसिंह ने रात में सोती हुई मनिका को छूने की कोशिश अभी तक दोबारा नहीं करी थी. अब पूरे-पूरे कपड़े पहनने के बाद मनिका भी कम्बल लेकर नहीं सोती थी. पर उस रात जब वे सोने गए तो पूरे दिन की उत्तेजना से भरे जयसिंह अपने आप को रोक न सके. जब उन्हें लगा कि मनिका सो चुकी है तो उन्होंने धीरे से करवट ले अपना चेहरा उसकी तरफ किया, मनिका की करवट भी उनकी ओर थी. सोती हुई मनिका को निहारते हुए जयसिंह के लौड़े में तनाव बढ़ना शुरू हो गया था. मनिका का खूबसूरत चेहरा उनकी बेचैनी बढ़ाने लगा, धीमी रौशनी में मनिका के दमकते गोरे-चिट्टे चेहरे पर उसके मोटे-मोटे गुलाबी होंठ रस से भरे प्रतीत हो रहे थे, 'मनिका?', जयसिंह ने धीरे से कहा पर मनिका गहरी नींद में थी. उन्होंने हौले से अपना हाथ ले जा कर उन दोनों के बीच रखे उसके हाथ पर रखा, कुछ पल जब फिर भी मनिका ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो जयसिंह ने उसके हाथ को हल्का-हल्का सहलाना शुरू कर उसकी निंद्रा की गहराई का अंदाज़ा लेने की कोशिश की, मनिका सोती रही.

अब जयसिंह थोड़े आश्वस्त हो गए थे, वे सरक कर मनिका के थोड़ा करीब आ गए और अपना हाथ अपनी सोती हुई बेटी की पतली कमर पर रख लिया. वे अपने हर एक्शन के बाद दो-चार पल रुक जाते थे ताकि मनिका के उठ जाने की स्थिति में जल्दी से पीछे हट सकें. उन्होंने धीरे-धीरे उसकी टी-शर्ट का कपड़ा ऊपर करना शुरू कर दिया. मनिका की यह वाली टी-शर्ट पूरी लम्बाई की थी सो जयसिंह को उसे ऊपर कर उसकी गोरी कमर को उघाड़ने में कुछ मिनट लग गए थे पर अब मनिका की गोरी कमर और पेट एक तरफ से नज़र आने लगे थे, दूसरी तरफ से टी-शर्ट अभी भी मनिका के नीचे दबी हुई थी. लेकिन जयसिंह को उनकी सौगात मिल चुकी थी, 'साली की हर चीज़ क़यामत है.' मनिका ने लो-वेस्ट पायजामा पहना हुआ था. जयसिंह ने देखा कि मनिका ने पायजामा काफी नीचे बाँध रखा था, ठीक टांगों और कमर के जॉइंट पर सो उसके पायजामे का एलास्टिक उसके जॉइंट की बोन पर था. उसके करवट लिए होने से जॉइंट-बोन पर स्ट्रेच हुए एलास्टिक व उसके पेट के निचले हिस्से के बीच कुछ जगह बनी हुई थी और मनिका की टी-शर्ट आगे से हट जाने से उन्हें उसकी भींची हुई टांगों के बीच योनि की 'V' आकृति एक बार फिर नज़र आ रही थी. जयसिंह का बदन गरम होने लगा. कुछ देर रुके रहने के बाद उन्होंने हिम्मत की और गर्दन उठा कर अपना चेहरा मनिका के पेट के पास ले गए. मनिका के जिस्म से भीनी-भीनी गंध आ रही थी. लघभग मदहोश सी हालत में उन्होंने अपनी दो अंगुलियाँ मनिका के पायजामे के एलास्टिक और उसके जिस्म बीच के गैप में डाली और आगे की तरफ खींचा.
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10-04-2018, 11:36 AM,
#12
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जयसिंह ने जिस हाथ से मनिका के पायजामे का एलास्टिक पकड़ रखा था वह उत्तेजनावश कांप रहा था, नाईट-लैंप की धीमी रौशनी में वे अपनी बेटी के पायजामे में झाँक रहे थे. उनका सामना एक बार फिर मनिका की पहनी हुई एक छोटी सी पैंटी से हुआ, 'उह्ह..’उन्होंने दम भरा, उन्हें एहसास नहीं हुआ था कि इतनी देर से वे अपनी साँस थामे हुए थे. 'रांड की कच्छियों ने ही जब ये हाल कर दिया है तो साली की चिकनी चूत तो लगता है जिंदा नहीं छोड़ेगी.' जयसिंह ने मन में सोचा, उन्होंने पहली बार मनिका की योनि का विचार किया था 'ओह..' फिर अचानक उन्होंने एक और तथ्य पर गौर किया, मनिका के बदन की एक बात जो उन्हें उकसाती थी पर जिस पर उनका ध्यान अभी तक नहीं गया था वह थी उसके जिस्म पर बालों का न होना. मनिका के पायजामे के भीतर भी उन्हें उसकी रेशम सी चिकनी स्किन पर बाल दिखाई नहीं दे रहे थे. 'देखो साली को क्या वैक्सिंग कर रखी है हरामन ने...पता नहीं मेरा ध्यान पहले किधर था. पहली रात को इसकी नंगी गांड देख कर ही समझ जाना चाहिए था यह तो मुझे...क्या अदा है यार तेरी मनिका...’वे अपने विचारों में इसी तरह डूबे हुए थे की मनिका थोड़ी सी हिली, जयसिंह ने झट से अपना हाथ उसके पायजामे से हटा लिया और सीधे लेट कर आँखें मींच ली, घबराहट से उनका दिल तेजी से धड़क रहा था.

मनिका ने करवट बदली और दूसरी ओर घूम कर सो गई. जयसिंह चुपचाप लेटे रहे. कुछ वक्त बीत जाने पर जयसिंह एक बार फिर थोड़ा हिम्मत करके मामूली से टेढ़े हुए और हल्की सी आँख खोल मनिका की तरफ देखा. मनिका का मुहँ अब दूसरी तरफ था और पीठ उनकी ओर, 'हे भगवान् कहीं जाग तो नहीं गई ये..’जयसिंह ने आशंकित होकर सोचा. उन्होंने थोड़ा और इंतजार किया पर मनिका की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. जयसिंह ने डरते-डरते अपना हाथ ले जा कर उसकी पीठ से छुआया, वे एक बार फिर उत्तेजित होने लगे थे. जब मनिका ने उनके स्पर्श पर कोई हरकत नहीं की तो वे थोड़ा और बोल्ड हो गए और अपना हाथ मनिका की गोल-मटोल गांड पर ले जा रखा. जयसिंह के आनंद की सीमाएं टूट चुकी थीं. पहली रात तो उन्होंने बस मनिका की गांड को थोड़ा सा छुआ भर था लेकिन आज उन्हें मनिका के पायजामे के कपड़े में से उसकी माँसल गांड की कसावट अपने हाथ पर महसूस हो रही थी. उनकी हिम्मत बढ़ती ही जा रही थी, अब वे धीरे-धीरे उसकी टी-शर्ट को दूसरी तरफ से भी ऊपर खिसकाने लगे और जब मनिका की दूध सी कमर दोनों तरफ से उघड़ कर उनके सामने आ गई तो वे उसकी कमर की नंगी त्वचा पर हाथ रख सहलाने लगे, बीच-बीच में वे अपना हाथ उसकी गांड पर भी ले जाते थे.

जयसिंह की हिमाकतों से बेख़बर मनिका सोती रही. जयसिंह ने अब एक और कारवाई शुरू कर दी थी, वे मनिका के पायजामे का कपड़ा पकड़ उसे हौले-हौले नीचे की तरफ खीँच रहे थे. अब उन्हें मनिका की नीली पैंटी का एलास्टिक नज़र आने लगा था. उन्होंने पैंटी को भी पायजामे के साथ-साथ नीचे करने के लिए मनिका की गांड की दरार की सीध में अपनी अँगुली घुसाई और नीचे खींच दिया. पायजामे और पैंटी दोनों को एक साथ खींचने में जयसिंह को थोड़ी मुश्किल पेश आई, कुछ नीचे होने के बाद बाकी का कपड़ा मनिका के नीचे दबा होने की वजह से उन्हें रुकना पड़ा. पर मनिका की गांड की दरार का ऊपरी हिस्सा अब उन्हें नज़र आने लगा था, जयसिंह के बदन में उत्तेजना भरी लहर दौड़ गई थी, लेकिन फिर इस से ज्यादा आगे बढ़ने की जुर्रत उनसे नहीं हुई, क्यूँकि वे जानते थे कि अगर वे यह खतरनाक खेल जीतना चाहते हैं तो उन्हें सब्र से काम लेना होगा और इस वक्त उनका दीमाग हवस के हवाले था जिससे कि उनका बना-बनाया दाँव बिगड़ सकता था.

उन्होंने मनिका की गांड की दरार पर धीरे से अँगुली फिराई और एक ठंडी आह भर सीधे हो कर सोने की कोशिश करने लगे.

अगली सुबह जयसिंह की आँख हमेशा की तरह मनिका से पहले खुल गई थी. उन्होंने अपनी सेफ-साइड रखने के लिए उसका पायजामा थोड़ा ठीक कर दिया हालांकि सुबह-सुबह एक बार फिर उनका लंड मनिका को देख कर खड़ा हो गया था. जब मनिका उठ गई तो एक बार फिर वे रोज़ की तरह तैयार होकर घूमने निकल गए. अगले दो दिन फिर इसी तरह निकल गए व जयसिंह ने भी मनिका को रात को सो जाने के बाद छेड़ने से परहेज किए रखा था. वे अपनी अच्छी किस्मत को इतना भी नहीं अजमाना चाहते थे कि कहीं किस्मत साथ देना ही छोड़ दे.

मनिका और उनके बीच अब काफी नजदीकी बढ़ चुकी थी. चौबीस घंटे एक-दूसरे के साथ रहने और बातें करने से बातों-बातों में मनिका अब उनके साथ फ्रैंक होने लगी थी, वह उनसे अपनी फ्रेंड्स और उनके कारनामों का भी जिक्र कर देती थी, कि फलां का चक्कर उस लड़के से चल रहा है और फलां लड़की को उसके बॉयफ्रेंड ने क्या गिफ्ट दिया था वगैरह-वगैरह. जयसिंह भी उसकी बातों में पूरा इंटरेस्ट लेकर सुनते थे जिस से मनिका और ज्यादा खुल कर उनसे बतियाने लगती थी. जाने-अनजाने ही मनिका जयसिंह के चक्रव्यूह में फंसती चली जा रही थी.

उनके दिल्ली स्टे की आठवीं शाम जब वे अपने हॉटेल रूम में लौटे थे तो जयसिंह आ कर काउच पर बैठ गए थे. मनिका बाथरूम जा कर हाथ-मुहँ धो कर आई थी, जयसिंह ने उससे पूछा,

'तो फिर आज डिनर में क्या मँगवाना है?'

'मेन्यु दिखाओ...देखते हैं.' मनिका मुस्काते हुए उनके पास आते हुए बोली, मेन्यु जयसिंह के हाथ में था.

मनिका ने उनके पास आ कर मेन्यु लेने के लिए हाथ बढाया था. जयसिंह ने उसे मेन्यु न दे कर उसका हाथ थाम लिया और उस से नज़रें मिलाई, फिर हौले से उसका हाथ खींचते हुए आँखों से अपनी जांघ पर बैठने का इशारा किया और अपनी टांगें थोड़ी खोल लीं व साथ ही मुस्कुरा कर बोले,

'चलो फिर देखते हैं...'

'हाहाहा पापा...चलो.' मनिका उनकी गोद में बैठते हुए बोली.

जयसिंह की ख़ुशी का कोई ठिकाना न रहा था. उन्होंने अँधेरे में एक तीर चलाया था जो ठीक निशाने पर जा लगा था और अब २२ साल की मनिका उनकी गोद में बैठी मेन्यु के पन्ने पलट रही थी. जयसिंह उसके बदन के कोमल स्पर्श से मंत्रमुग्ध हो उठे थे, उसके घने बाल उनके चेहरे को छू रहे थे और उसकी गर्दन पर अभी भी, उसके मुहँ धो कर आने के बाद, कुछ पानी की बूंदे चमक रहीं थी. उन्होंने मनिका के हाथों पर अपने हाथ रखते हुए मेन्यु पकड़ लिया था और ख़ुशी-ख़ुशी उसकी सुझाई चीज़ों के लिए हाँ में हाँ मिला रहे थे. कुछ देर बाद उन्होंने मनिका की पसंद का डिनर ऑर्डर किया, जो कि वे रोज ही किया करते थे, और जब तक रूम-सर्विस नहीं आई वे वैसे ही बैठे बातें करते रहे. मनिका ने मेन्यु एक ओर रख दिया था और अपना एक हाथ जयसिंह के गले में डाल उनकी तरफ मुहँ कर बैठ गई थी, वहीँ जयसिंह का एक हाथ उसके पीछे उसकी पीठ पर था जिसे वह थोड़ी-थोड़ी देर में ऊपर से नीचे तक फेर दे रहे थे.

मनिका अपना दूसरा हाथ अपनी जांघ पर रखे बैठी थी और जयसिंह भी, कुछ देर बाद जब रूम-सर्विस वाले ने गेट पर नॉक किया तो मनिका उठी और दरवाज़ा खोल उसे अन्दर बुलाया. वेटर अन्दर आ कर उनका खाना लगा गया.

'मजा आ गया आज तो...साली ने बिलकुल ना-नुकुर नहीं की...' जयसिंह और मनिका डिनर वगैरह कर के बिस्तर में घुस चुके थे और जयसिंह लेट कर ख़ुशी-ख़ुशी अपनी सफलता के ख्वाब देख रहे थे.

मनिका भी जग रही थी 'मेरी लाइफ कितनी हैपनिंग हो गई है डेल्ही आ कर...पूरी लाइफ में मैंने इतनी मस्ती नहीं की होगी जितनी यहाँ एक वीक में कर चुकी हूँ...ओह हाहाहा ये तो कुछ ज्यादा हो गया, पर फिर भी आई एम हैविंग सो मच फन विद पापा...और ये सब पापा की वजह से ही पॉसिबल हो पाया है नहीं तो अभी घर पे बैठी वही बोरिंग लाइफ जी रही होती...गॉड पता ही नहीं चला कब ऐट (आठ) डेज निकल गए...और पापा तो अब मेरे फ्रेंड जैसे हो गए हैं...इवन बेस्ट-फ्रेंड जैसे, कितना ख्याल रख रहे हैं मेरा. आई होप कि पापा वापस घर जाने के बाद भी ऐसे ही कूल बने रहें...कितना कुछ शेयर कर चुके हैं हम एक-दूसरे से...और मम्मी को खबर ही नहीं है कि हम यहाँ कितनी मस्ती कर रहे हैं...हेहे...पर घर पे सच में मुझे केयरफुल रहना पड़ेगा कहीं भूले-भटके कुछ मुहँ से निकल गया तो पापा बेचारे फँस जाएँगे. कनि (कनिका) और तेसु (हितेश) से भी सीक्रेट रखना होगा...एंड फ़ोन से हमारी पिक्स भी निकाल कर रखनी होगी कहीं उन्होंने देख लीं तो और गड़बड़ हो सकती है. यहाँ से जाने से पहले ही लैपटॉप में ट्रान्सफर कर के हाईड कर दूँगी...हम्म.' वह अपने पिता से ठीक उल्टे विचारों में खोई थी.
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10-04-2018, 11:36 AM,
#13
RE: Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
मनिका हमेशा से ही फिल्मों और टी.वी. सीरियलों में दिखाए जाने वाले मॉडर्न परिवारों को देख कर सोचा करती थी कि काश उसके घर में भी इस तरह थोड़ी आज़ादी हो, हालाँकि जयसिंह ने हमेशा उसे लाड़-प्यार से रखा था लेकिन एक छोटे शहर में पली-बढ़ी मनिका ने अपने चारोँ ओर ऐसे ही लोगों को देखा था जो हर वक्त सामाज के बने-बनाए नियमों पर चलते आए थे और अपने बच्चों पर भी अपनी सोच थोपने से नहीं चूकते थे, जिनमें भी खासतौर पर लड़कियों को तो हर कदम पर टोका जाता था. सो जब जयसिंह ने मनिका को इस नई तरह की ज़िन्दगी का एहसास कराया, जैसा अभी तक उसने सिर्फ सिनेमा में ही देखा था और अपने लिए चाहा था, तो वह अपने-आप ही उनके रचाए मायाजाल में फँसने लगी थी.

दोनों बाप-बेटी अगली सुबह के लिए अलग-अलग सपने सँजोते हुए सो गए.

जयसिंह और मनिका जब अगली सुबह आ कर कैब में बैठे तो कैब ड्राईवर ने उनसे कहा कि वह उन्हें दिल्ली की लगभग सभी पॉप्युलर साइट्स दिखा चुका है सो आज वो उन्हें कोई खास सैर नहीं करा सकेगा (ड्राईवर उनसे थोड़ा घुल-मिल चुका था क्यूँकि रोज़ वही उनके लिए कार लेकर आता था और जयसिंह की जेनेरस टिप्स की वजह से वह उनकी इमदाद थोड़ी ज्यादा ही करने लगा था), इस पर मनिका का उत्साह ज़रा फीका पड़ गया,

'अब क्या करें पापा?' मनिका ने कुछ निराश आवाज़ में जयसिंह से पूछा.

'अरे भई पूरी दिल्ली घूम डाली है अब और क्या करना है? घर चलते हैं...’जयसिंह ने मजाक करते हुए कहा.

'नो पापा.' मनिका फटाक से बोली 'अभी तो हमारे पास आधे से ज्यादा वीक पड़ा है. डोंट जोक एंड बी सीरियस ना.'
जयसिंह मनिका के जवाब से बहुत खुश हुए, 'हाहाहा... ठीक है ठीक है. दिल्ली में करने के लिए कामों की कमी थोड़े ही है.'

'तो वही तो मैं पूछ रही हूँ ना सजेस्ट करो कुछ, ड्राईवर भैया ने तो हाथ खड़े कर दिए हैं आज.' मनिका ने फ्रस्ट्रेट हो कर कहा.

उसकी बात सुन ड्राईवर ने कुछ खिसिया कर फिर कहा था कि उसे जितना पता था वो उन्हें घुमा चुका है.

'हाहाहा...अरे मनिका तुमने तो मूड ऑफ कर लिया.' जयसिंह हंस कर बोले 'चलो तुम्हारा मूड ठीक करें, अपन ऐसा करते हैं आज कोई मूवी चलते हैं और फिर तुम उस दिन कह रहीं थी न कि तुम्हे कुछ शॉपिंग करने का मन है?'

मनिका अगले ही पल फिर से चहकने लगी थी. 'ओह पापा यू आर सो वंडरफुल.' वह ख़ुशी से बोली 'आप को ना मेरा मूड ठीक करना बड़े अच्छे से आता है...और आपको याद थी? मेरी शॉपिंग वाली विश...हाऊ स्वीट. मुझे लगा भूल गए होंगे आप और मुझे फिर से याद कराना पड़ेगा.'

'कोई बात मिस की है तुम्हारी आज तक मैंने मनिका?' जयसिंह ने झूठे शिकायती लहजे में कहा.

'ऑ पापा. नहीं भई कभी नहीं की...’मनिका ने होंठों से पाऊट करते हुए कहा.

मनिका की इस अदा ने जयसिंह के मन में लगी आग में घी डालने का काम किया था 'देखो साली कैसा प्यार जता रही है. इन्हीं मोठे होंठों ने तो जान निकाल रखी है मेरी...चिनाल खुश तो हो गई चलो.' उन्होंने मन में सोचा और ड्राईवर से बोले,

'चलो ड्राईवर साहब पी.वी.आर. चलना है आज.'

जब ड्राईवर उन्हें लेकर चल पड़ा था तो कुछ देर बाद मनिका ने जयसिंह से कहा था,

'एक बार तो डरा दिया था आपने मुझे...'

'हैं? अब मैंने क्या किया?' जयसिंह हैरान हो बोले.

'आप बोल रहे थे ना कि घर चलो वापस.' मनिका मुस्काते हुए बोली थी.

'हाहाहा.' जयसिंह ने ठहाका लगाया और बोले 'क्यूँ घर नहीं जाना तुम्हें?'

'नहीं...' मनिका ने आँखें मटका कर कहा था. जयसिंह मुस्का दिए और उसके गले में अपना हाथ डाल उसे अपने साथ लगा कर बैठा लिया.
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10-04-2018, 11:36 AM,
#14
RE: Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
'हाहाहा.' जयसिंह ने ठहाका लगाया और बोले 'क्यूँ घर नहीं जाना तुम्हें?'

'नहीं...' मनिका ने आँखें मटका कर कहा था. जयसिंह मुस्का दिए और उसके गले में अपना हाथ डाल उसे अपने साथ लगा कर बैठा लिया.

ड्राईवर उन्हें कनॉट-प्लेस में बने पी.वी.आर. प्लाजा ले गया था. मनिका पहली बार मल्टीप्लेक्स में फ़िल्म देखने आई थी. उसने वहाँ रखा मूवी टाइमिंगस् का कार्ड उठाया.

'पापा!' कार्ड देखते ही मनिका का उत्साह दोगुना हो गया था.

'क्या हुआ इतना एक्साईटमेंट?' जयसिंह ने भौंऐ उठा कर पूछा.

'पापा, "जाने तू या जाने ना" रिलीज़ हो गई! मैं तो भूल ही गई थी यहाँ आ कर कि ये इसी मंथ रिलीज़ होने वाली है. आई सो वांट टू वॉच इट.' मनिका की आँखों में ख़ुशी चमक रही थी.

'अच्छा तो चलो फिर यही देखेंगे हम भी...' जयसिंह ने मुस्कुरा कर कहा. उन्होंने जा कर टिकट्स ले लीं और मनिका के साथ हाथों में हाथ डाले थिएटर के अंदर चल दिए.

मनिका ने पहली बार इतना अच्छा मूवी-हॉल देखा था, उनके बाड़मेर में तो ले देकर एक-दो सिनेमा थे जिनमें सिर्फ बी-ग्रेड फ़िल्में लगा करतीं थी. एक दो बार अपनी मौसी के यहाँ जयपुर जाने पर जरूर उसने थिएटर में फ़िल्में देखीं थी पर इस जगह की तो बात ही कुछ और थी. वहाँ का क्राउड भी मॉडर्न और टॉप-क्लास था. वे अपनी सीट्स पर जा बैठे,

'कितना मजा आ रहा है ना पापा?' उत्साह भरी मनिका ने जयसिंह से जानना चाहा.

'अभी तो फ़िल्म शुरू ही नहीं हुई...खाली लाल पर्दा देख कर ही मजा आ रहा है तुम्हें?' जयसिंह ने आदतवश् मनिका को चिढ़ाया.

'ओह पापा क्या है...मुझे तो बहुत अच्छा लग रहा है यहाँ.' मनिका ख़ुशी-ख़ुशी इधर-उधर नज़रें दौड़ते हुए बोली.

कुछ देर बाद फ़िल्म शुरू हो गई. फ़िल्म चले थोड़ा ही वक़्त हुआ था कि पी.वी.आर. स्टाफ का एक बन्दा उनसे खाने-पीने के लिए स्नैक्स का ऑर्डर लेने आ गया. मनिका पर उनकी सर्विस का इम्प्रैशन और बढ़ गया था. उन्होंने पॉपकॉर्न, कोल्डड्रिंक और नाचोस् ऑर्डर किए. कुछ देर बाद खाने का सामान भी आ गया. मनिका को बहुत मजा आ रहा था और ऊपर से फ़िल्म भी अच्छी थी.

जयसिंह को पॉपकॉर्न और मसाले भरे नाचोस् खा लेने से प्यास लग आई थी, उन्होंने कोल्डड्रिंक भी नही मँगवाई थी. उन्होंने फ़िल्म देखने में डूबी मनिका को हौले से बताया कि वे पानी पीने जा रहें हैं जिस पर मनिका ने उन्हें अपनी कोल्डड्रिंक ऑफर कर दी. जयसिंह एक पल ठिठके और फिर मनिका के हाथ से ग्लास ले ली. मनिका की जूठी स्ट्रॉ (पाइप) पर मुहँ लगा कर उन्होंने कोल्डड्रिंक का सिप लिया. मनिका के होंठों से निकली स्ट्रॉ ने उनके लिए कोल्डड्रिंक की मिठास और बढ़ा दी थी.

इंटरवल हो जाने पर जयसिंह ने मनिका को यह कहकर एक कोल्डड्रिंक और ले दी थी कि उसकी पहली कोल्डड्रिंक तो आधी उन्होंने ही ख़त्म कर दी थी और बाद में जब मनिका ने एक बार फिर उन्हें कोल्डड्रिंक ऑफर की तो उन्होंने ख़ुशी-ख़ुशी हाथ बढ़ा दिया था.

जयसिंह मनिका के साथ कनॉट-प्लेस एक कैफ़े में बैठे थे. मनिका ने फिल्म के दौरान स्नैक्स खा लेने के बाद लंच लेने में असमर्थता जाहिर की थी सो वे आज हल्का-फुल्का खाना खाने आए थे. मनिका को फिल्म बहुत पसंद आई थी और बाहर आने के बाद से वह जयसिंह से उसी के बारे में बातें कर रही थी.

'पापा मूवी कितनी अच्छी थी ना?' मनिका ने उनसे पूछा.

'हाँ बहुत अच्छी थी.' दो कोल्डड्रिंक उसके साथ पीने के बाद जयसिंह को तो फिल्म अच्छी लगनी ही थी.

'कितना अच्छा कॉन्सेप्ट था ना?' मनिका बोल रही थी 'सच अ स्वीट मूवी.'

'हम्म...आई एम ग्लैड के तुम्हें मूवी अच्छी लगी मनिका.' जयसिंह ने हामी भरी.

मनिका वह रोमेंटिक फिल्म देखने से जरा भावुक हो रही थी, जयसिंह की बात सुन कर उसके मन में एक सवाल आया जो एक-दो बार पहले भी उसके मन में उठ चुका था.

'पापा?'

'हम्म?'

'एक बात पूछूँ?' मनिका ने अपनी कॉफ़ी में चम्मच घुमाते हुए कहा.

'हाँ क्या बात है बोलो..?' जयसिंह ने कौतुहल से पूछा.

'आजकल आप मुझे मेरे नाम से ही क्यूँ बुलाते हो?' मनिका ने उनकी तरफ देखा.

'हैं? तो और किसके नाम से बुलाऊं तुम्हें..?’जयसिंह उसका आशय समझ गए थे पर उन्होंने जानबूझकर उसे बहलाने की कोशिश की थी.

'अरे मेरा मतलब है आप मुझे मनिका-मनिका कह कर बुलाते हो, पहले तो मेरे निकनेम मणि से बुलाया करते थे?' मनिका ने हल्की से मुस्कान के साथ सवाल किया था.

जयसिंह को इस तरह के सवाल की उम्मीद नहीं थी. वे एक पल के लिए थोड़ा घबरा गए थे पर उन्होंने उसे यह जाहिर नहीं होने दिया. 'उम्म्म...' उन्होंने जल्दी से अपने दीमाग के घोड़े दौड़ाए. सच बोलने में ही उनकी भलाई थी 'वैल...'
जब जयसिंह ने कुछ पल बाद भी सवाल का जवाब नहीं दिया था तो मनिका का भी कौतुहल जाग गया.

'बताओ ना पापा क्या रीज़न है?' वह अब उनकी आँखों में आँखें डाले हुए थी.

'वैल तुम्हारी बात तो सही है कि आजकल मैं तुम्हें मनिका कहने लगा हूँ...मे-बी इसलिए...' जयसिंह थोड़े रुक-रुक कर बोल रहे थे.

'क्या पापा? इतना क्या मिस्टीरियस रीज़न है?' मनिका अब पूरी तरह से इंटरेस्टेड थी उनका जवाब सुनने में.

'अह्...रीज़न शायद यही है कि यहाँ आने से पहले हम एक-दूसरे से इतना घुले-मिले नहीं थे, आई मीन ऑब्वियस्ली हम घर पर साथ ही रहते हैं लेकिन...आफ्टर कमिंग हेयर हम...' जयसिंह उसे बताने का स्ट्रगल कर रहे थे जब मनिका ने उनकी मुश्किल खुद ही हल कर दी,

'येस पापा आई क्नॉ आप क्या कहना चाह रहे हो. यहाँ आने के बाद से वी हैव बिकम लाइक फ्रेंड्स...है ना?'

'एग्सैक्टली.' डूबते हुए जयसिंह को बस एक तिनके का सहारा काफी था 'सो इसीलिए मैं तुम्हें मनिका बुलाने में थोड़ा ज्यादा कम्फ़र्टेबल फील करता हूँ क्यूँकि तुम्हें मणि कहने पर फिर मुझे भी तुम्हें, एक पैरेंट की तरह, रोकना-टोकना पड़ेगा ऐसा फील होता है.'

जयसिंह ने बहुत ही शानदार तरीके से अपने शब्दों को पिरोया था और साथ ही इस पूरे वार्तालाप के बीच उन्होंने न तो एक बार भी मनिका को सीधे-सीधे अपनी बेटी कहा और ना ही अपने आप को उसका पिता. उन्होंने देखा मनिका भी हाँ में सिर हिला रही थी,

'ओह पापा. यू आर सच अ कूल पर्सन यू क्नॉ...मैं भी कल यही सोच रही थी कि हाओ वेल यू हैव ट्रीटेड मी...आई मीन आपने हमेशा मेरा ख्याल रखा है पर यहाँ आने के बाद यू हैव बिकम अ फादर एंड अ फ्रेंड टू मी...’मनिका ने चेहरे के साथ-साथ हाथों से भी अपने भाव प्रकट करते हुए कहा.

'हाहाहा... नॉट अ फादर मनिका.' जयसिंह ने मनिका को आँख मारी ' नहीं तो चलो घर वापस मणि.' उन्होंने बात मजाक करने के अंदाज़ में कही थी पर उनका इरादा उसे दोबारा ऐसा कहने से रोकने का था.

'ओह नो पापा... यू प्लीज कॉल मी मनिका ओनली.' मनिका ने भी मजाक-मजाक में झूठी चिंता जता कर कहा.
'हाहा...' जयसिंह हँस दिए.

'पापा यू क्नॉ व्हॉट? मेरे माइंड में एक बात आई अभी...’मनिका मुस्कुराई, उसकी आँखों में चमक थी.
'अब क्या?' जयसिंह ने झूठ-मूठ का डर दिखाया.

'ओह पापा स्टॉप एक्टिंग ओके...मैं सोच रही थी की वी हैव बिकम फ्रेंड्स लाइक जय एंड अदिति इन द मूवी वी सॉ...और इट्स सो फनी कि आपका नाम भी जय है...हाहा...' मनिका ने हँसते हुए कहा.

'हाहा...एक तो तुम्हारा मूवी का भूत नहीं उतर रहा कबसे...' जयसिह मन ही मन खुश हो बोले.

'हेहे...आई क्नॉ पापा. मुझे बहुत अच्छी लगी मूवी बताया ना आपको.' उसने दोहराया.

बातें करते हुए उन्होंने अपनी डाइट खत्म कर ली थी. जयसिंह ने उठ कर मनिका की तरफ अपना हाथ बढ़ाया और टोह लेते हुए कहा,

'चलो मणि, अभी तुम्हारी शॉपिंग तो बाकी ही पड़ी है.'

मनिका ने उनका हाथ थाम उठते हुए मुहँ बनाया और इस बार आग्रहपूर्वक कहा था, 'पापा प्लीज कॉल मी मनिका ना...’और उनके साथ कैफ़े से बाहर निकल चली.
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10-04-2018, 11:36 AM,
#15
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जयसिंह ने कैब ड्राईवर से उन्हें किसी अच्छे शॉपिंग मॉल में ले चलने को कहा था पर ड्राईवर ने उन्हें दिल्ली का साउथ-एक्स मार्केट जाने की सलाह दी और उनके हाँ कहने पर उन्हें वहाँ ले जा छोड़ा था.

मनिका जैसे उस पॉश मार्केट को देख स्वप्न-लोक में पहुँच गई थी. चारों तरफ चका- चौंध भरे डिस्प्ले में तरह-तरह के फैशनेबल कपड़े, मेकअप का सामान और दुनिया जहान की चीज़ें थी वहाँ, 'वाओ पापा...’मनिका ने खुश होते हुए कहा था.

वे लोग अब एक-एक कर शोरूम्स में सामान देखने लगे. कुछ देर बाद घूमते-घूमते वे एक कपड़ों और असेसरीज (बेल्ट, पर्स, घड़ीयां इत्यादि) के मेगा-स्टोर लाईफ-स्टाइल में जा पहुँचे, जहाँ हर ब्रैंड के कपड़े मिलते थे. स्टोर में जब एक सेल्स-बॉय ने उनसे पूछा कि वे क्या लेना पसँद करेंगे तो जयसिंह ने मनिका की तरफ इशारा कर दिया था, कि वह उसके लिए कपड़े देखने आए हैं. उसने उन्हें विमेंस-सेक्शन की तरफ जाने को कहा था जो की स्टोर में पीछे की तरफ था.

जयसिंह ने मनिका से कहा,

'जाओ भई देख लो और पसंद से लेलो जो लेना है...'

'आप नहीं आ रहे हो पापा?' मनिका ने सवालिया निगाहों से उन्हें देखा.

'मैं क्या करूँगा वहाँ, लड़कियों का सामान होगा सब.'

'तो क्या हुआ पापा सजेस्ट तो कर ही सकते हो ना मुझे, आओ ना आई नीड योर हेल्प.' मनिका ने जिद की, जयसिंह कैसे न जाते.

विमेंस-सेक्शन में रखा कलेक्शन देख मनिका की बांछें खिल उठीं थी, वहाँ सब नए और लेटेस्ट डिज़ाइनस के कपड़े थे, जो उनके शहर में हमेशा पुराने हो जाने के बाद ही पहुँचा करते थे. वह उत्साह से कभी इधर तो कभी उधर जा-जा कर कपड़े उलट-पलट कर देख रही थी.

'पापा इतना अच्छा कलेक्शन है यहाँ पर.' मनिका ने जयसिंह से आँखें मटका कर कहा. उसका आशय साफ़ था कि क्या वह शॉपिंग कर सकती है?

'हाँ तो कर लो न पसंद...' जयसिंह ने उसे फिर कहा.

'हाँ पापा...' मनिका बोली और फिर नज़रें नीची कर आगे बोली 'लेकिन यहाँ के रेट्स तो देखो...'

'मनिका...' जयसिंह बोले.

'हाँ पापा?' मनिका ने उनकी तरफ देखा, जयसिंह उसे देखते रहे पर कुछ बोले नहीं. एक-दो सेकंड ही बीते थे कि मनिका उनका इशारा समझ गई और हँसते हुए बोली 'हीही पापा मैं समझ गई...कि पैसों की चिंता नहीं करनी है.'

जयसिंह ने उसका गाल थपथपाया और बोले, 'वैरी गुड.' आधा घंटा बीतते-बीतते मनिका ने तीन जीन्स और चार-पाँच टॉप्स पसंद कर लिए थे और सेल्स-गर्ल से उन्हें एक तरफ रखने को बोल दिया था. जयसिंह साइड में खड़े शॉपिंग करती हुई मनिका को ऑब्सर्व कर रहे थे; मनिका अब वहाँ रैक पर रखीं शॉर्ट्स और स्कर्ट्स को उठा कर देख रही थी, कुछ देर बाद वह धीरे-धीरे आगे बढ़ती हुई पार्टी-वियर ड्रेसेस के पास पहुँची फिर आगे बढ़ते हुए उसने कुछ और टॉप्स उठा कर देखे थे और इस तरह घूमते हुए वह असेसरीज के सेक्शन में से होती हुई घूम कर वापस उनकी तरफ आ गई थी,

'क्या हुआ? देख लिया सब कुछ?' जयसिंह ने पूछा.

'कहाँ पापा. इतना कुछ है यहाँ कि पूरा दिन लग जाए मेरा तो.' मनिका ने मुस्का कर कहा.

'और कुछ पसंद आया तुम्हें?'

'पसंद तो पूरा स्टोर ही आ गया है पापा...पर क्या करूँ...आज के बाद कहीं आप फिर कभी मुझसे पैसों की चिंता ना करने को नहीं बोले तो...' मनिका ने शरारत भरी नज़र से उन्हें देखते हुए कहा.

'हाहाहा...अच्छा तो ये बात है. बड़ी सयानी हो तुम भी.' जयसिंह ने हँस कर कहा.

'वो तो मैं हूँ ही...' मनिका इठलाई.

'लेकिन अभी तो और चीज़ें ले सकती हो अगर तुम्हारा मन है तो. उधर क्या है, कुछ पसंद नहीं आया तुम्हें?' जयसिंह ने जिस तरफ से वो घूम कर आई थी उधर हाथ से इशारा करते हुए पूछा था.

'ओह उधर?' मनिका ने एक रहस्यमई मुस्कान बिखेरते हुए कहा 'वो आप देखोगे तो लेने से मना कर दोगे.'

'क्यूँ? ऐसा क्या है.' जयसिंह अनजान बनते हुए बोले.

'है तो कपड़े ही पापा...कपड़ो के स्टोर में टमाटर थोड़े ही होंगे...' मनिका ने होशियारी दिखाते हुए कहा था 'लेकिन आप को पसंद नहीं आएँगे. वो थोड़े छोटे-टाइप्स हैं...’उसने दोनों हाथों से हवा में छोटा होने का हाव बनाकर कहा.

'अरे ऐसा कुछ नहीं है, तुम को जो पसंद है वो चीज़ ले सकती हो तुम ओके?' जयसिंह ने थोड़ा गंभीर हो उससे कहा.

'हाँ पापा आई क्नॉ दैट.' मनिका ने उन्हें आश्वासन दिया.

'हाँ तो फिर बाय (खरीद लो) जो भी तुम्हें लेना हो, ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलेगा.' जयसिंह ने उसकी पीठ पर थपकी देकर कहा.

'हाहाहा...पापा अब आप इतना इंसिस्ट कर रहे हो तो ले ही लेती हूँ.' मनिका ने शरारत भरी स्माइल फिर से देकर कहा. उसके मन में लडडू फूट रहे थे.

मनिका ने दोबारा शॉर्ट्स और स्कर्ट्स वाले सेक्शन में जा सेल्स-गर्ल से बात की जिसके बाद सेल्स-गर्ल ने उसे काउंटर पर फिर से कपड़े दिखाने शुरू कर दिए. जयसिंह वहीँ लगे एक सोफे पर बैठ कर उसका इंतज़ार करने लगे. काफी देर बाद मनिका वापस आई, जयसिंह ने उसे फिर से हर एक सेक्शन में जाते हुए देखा था 'आज पहली बार क्रेडिट-कार्ड का पूरा सही इस्तेमाल होगा.' जयसिंह ने बैठे हुए सोचा था और मुस्कुरा उठे थे.

'हेय पापा.' मनिका ने उनके पास आते हुए कहा.

'हाँ भई? हो गई शॉपिंग पूरी?' उन्होंने पूछा.

'हाँ पापा डन.' मनिका ख़ुशी-ख़ुशी बोली.

'ले लिया सब कुछ या अभी और कुछ बाकी है?' जयसिंह ने उठते हुए पूछा.

'हेहेहे पापा वो तो आपको बिल देख कर पता चल जाएगा.' मनिका ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा 'वैसे आपको मम्मी के लिए कुछ लेना हो तो ले सकते हो. वहाँ आगे की तरफ ट्रेडिशनल क्लोथ्स का भी सेक्शन है.'

'उसे तो मैं लक्ष्मी क्लॉथ स्टोर से दिला दूंगा.' जयसिंह ने अपने शहर की सूट-साड़ियों की एक दूकान का नाम लेकर कहा.

'ईहहहहहाहा पापा!' उनकी बात सुन कर मनिका की जोर की हँसी छूट गई थी. वह कुछ देर तक वैसे ही खड़ी हुई हंसती रही. इधर-उधर खड़े लोगों का ध्यान भी उसकी तरफ आकर्षित हो गया था. कुछ लोग उन्हें देख कर मुस्कुरा भी रहे थे.

'अरे अब बस करो मनिका...लोग देख रहें हैं कि कहीं पागल तो नहीं है ये लड़की.' मनिका की रह-रह छूटती हँसी को देख कर जयसिंह ने कहा.

'ओह पापा यू आर सो सो फनी...रियली...' मनिका ने आखिर अपनी हँसी पर काबू पाते हुए कहा.

'अरे भई अगर मधु को कपड़े दिलाने होते तो उसे न लेकर आता यहाँ, वैसे भी ज़िन्दगी भर दिलाता आया हूँ उसे तो...आज तुम्हारी बारी है.' जयसिंह ने भी शरारती लहजे में कहा.

'ऊऊओह्हह्हह रियली पापा...' मनिका ने अपनी हसीन अदा से पूछा.

'और नहीं तो क्या..?' जयसिंह उसे निहारते हुए बोले.

'पर पापा आपने तो मुझे कुछ दिलाया ही नहीं...' मनिका ने भोला सा चेहरा बना कर कहा.

'हैं? तो फिर ये सब शॉपिंग जो तुमने की है इसका बिल क्या...’जयसिंह बोलते हुए रुक गए. वे कहने वाले थे कि बिल क्या तुम्हारा बाप भरेगा. लेकिन मनिका समझ गई थी,

'हिहाहा हाँ पापा...वही भरेगा.' उसने उन्हें छेड़ा.

'अब मुझे लग रहा है कि गलत ले आया मैं तुम्हें शॉपिंग कराने.' जयसिंह भी कहाँ पीछे रहने वाले थे.

'हेहे पापा. बट मेरा वो नहीं था मतलब. आई मीन के आप तो सिर्फ पे कर रहे हो इस सब के लिए. आपने अपनी पसंद से तो मुझे कुछ दिलाया ही नहीं...’ मनिका ने उन्हें समझाते हुए कहा.

'ओह तो ऐसा क्या?' जयसिंह के मन में लडडू फूटा.

'हाँ ऐसा.' मनिका ने उनकी नक़ल करते हुए कहा था.

जयसिंह ने कुछ पल सोच कर कहा 'तो क्या दिलाऊं फिर मैं तुम्हें?'

'अगर मैं ही बताउंगी तो फिर सेम ही बात रहेगी ना पापा.' मनिका ने मजे लेते हुए कहा.

'ह्म्म्म...'

'सोचो-सोचो कुछ अच्छा सा.' मनिका उन्हें उकसा कर खुश हो रही थी.

'अच्छे बुरे से तुम्हें क्या मतलब, मेरी पसंद की चीज़ होनी चाहिए ना, न की तुम्हारी पसंद की.' जयसिंह ने मनिका का ही तीर वापस उस पर चलाते हुए कहा और आगे बोले, 'चीज़ तो मैंने सोच ली है बट उसे कहते क्या हैं ये मुझे नहीं पता...और हो सकता है तुम वो पहले ही खरीद चुकी हो.'

'मुझे डिसकराईब करके बताओ...आई विल हेल्प यू आउट.' मनिका ने उत्सुकता से कहा.

'अरे वही पेंट जो तुम घर से पहन कर निकली थी...' जयसिंह बोल ही रहे थे कि मनिका ने ठहाका लगा कर उनकी बात काट दी,

'हाहाहा नॉट पेंट पापा! आपको तो सच में कुछ नहीं पता.' मनिका बोली 'लेग्गिंग्स...दे आर कॉल्ड लेग्गिंग्स और मैंने वो नहीं ली है सो आप मुझे दिला सकते हो.' और फिर से खिलखिलाने लगी.
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10-04-2018, 11:36 AM,
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जब मनिका ने कहा कि उन्हें तो कुछ भी नहीं पता तो जयसिंह के मन में विचार आया था 'पता तो मुझे तेरी कच्छी के रंग का भी है जानेमन.' पर उन्होंने मुस्का कर उसे कहा,

'तो आओ चलो मेरी पसंद की लेग्गिंग्स लेते हैं तुम्हारे लिए...' जयसिंह मनिका को लेकर फिर से सेल्स-गर्ल के पास पहुँचे और उसे लेग्गिंग्स दिखाने को कहा. सेल्स गर्ल ने मनिका की तरफ देख कर पूछा,

'फॉर यू मैम?'

'येस.' मनिका ने हाँ भरी.

'सेम साइज़ मैम? आई एम् सॉरी व्हाट वास इट अगैन? ‘सेल्स-गर्ल ने पूछा. मनिका ने पहले उससे कपड़े लेते वक्त उसे साइज़ बताया था.

मनिका उसका सवाल सुन सकपका गई. जयसिंह पास खड़े सुन रहे थे कि वह क्या जवाब देती है. जब सेल्स-गर्ल उसे सवालिया नज़रों से देखती रही तो मनिका ने धीमे से सकुचा कर कहा,

'थर्टी-फोर...' मनिका ने यह बिलकुल नहीं सोचा था कि उसे अपने फिगर का माप बताना पड़ेगा, उसका उत्साह थोड़ा ठंडा पड़ गया था.

'आह चौंतीस...मुझे लग ही रहा था कुतिया की गांड है तो भरी-भरी...' जयसिंह के मन में मनिका का कहा सुनते ही हिलोरे उठे थे.

'बट मैम आई रेकेमेंड की आप ३० (तीस) या ३२ (बत्तीस) साइज़ में लेग्गिंग्स देख लें.' सेल्स-गर्ल बोली.

'क्यूँ? वो छोटी नहीं रहेंगी?' मनिका से तो कुछ कहते बना नहीं था पर जयसिंह ने सवाल उठा कर मनिका की तरफ देखा था, उसकी नज़रें काउंटर पर गड़ी थी.

'एक्चुअली सर लेग्गिंग्स आर मेड ऑफ़ वैरी स्ट्रेचेबल मटेरियल सो मैम के बिलकुल फिट आएँगी.' सेल्स-गर्ल ने उन्हें समझाया.

'हम्म ओके. आप ३० साइज़ में ही दिखा दीजिए फिर तो...’जयसिंह बोले. मनिका ने एक नज़र उनकी तरफ देखा था फिर वापिस नज़रें झुका खड़ी रही. जयसिंह द्वारा उसके कमर और अधोभाग के नाप के बारे में ऐसे बात करने ने उसे एम्बैरेस कर दिया था और वह अब सोच रही थी कि काश उसने अपना मुहँ बंद रखा होता और चुपचाप जयसिंह को बिल चुकाने जाने दिया होता, 'वैसे भी मैंने इतनी शॉपिंग तो कर ही ली है...’उसने अफ़सोस करते हुए सोचा. उसका उत्साह अब पूरी तरह ठंडा पड़ चुका था.

सेल्स-गर्ल लेग्गिंग्स दिखाने लगी. जयसिंह ने उनमें से सबसे झीने कपड़े वाली एक लेग्गिंग मनिका को दिखा कर पूछा था कि उसे वह कैसी लगी. वहाँ से जल्दी हटने के मारे मनिका ने बिना अच्छे से देखे ही कहा था कि आप दिला दो जो भी आपको पसंद है. जयसिंह ने मंद-मंद मुस्का कर मनिका को देखा और वह लेग्गिंग सेलेक्ट कर ली थी.

मनिका ने आखिर चैन की साँस ली थी और जयसिंह के साथ बिलिंग डेस्क पर जाने के लिए मुड़ी,

'मैम?' पीछे से सेल्स-गर्ल की आवाज आई.

'येस?' मनिका ने वापस मुड़ कर जानना चाहा कि वह क्या कहना चाहती है. जयसिंह भी रुक गए थे.

'वी हैव अ न्यू लॉनजुरे (सेक्सी ब्रा-पैंटी और नाइटी) कलेक्शन दैट जस्ट केम इन वुड यू लाइक टू हैव अ लुक.' सेल्स-गर्ल ने पूछा.

सेल्स-गर्ल्स को तो यही ट्रेनिंग दी जाती है कि जब कपल्स आएं तो उन्हें ज्यादा से ज्यादा लुभा कर रोके रखने की कोशिश किया करें. मनिका को लेग्गिंग्स दिलाते जयसिंह को देख उस बेचारी सेल्स-गर्ल को क्या पता चलता की वे उसके पिता हैं. मनिका की तो काटो तो खून नहीं ऐसी हालत हो चुकी थी.

'व्हॉट..?' उसके मुहँ से निकला था.

'येस मैम, ब्रा एंड पैंटी कलेक्शन इन लेस एंड सिल्क.' सेल्स-गर्ल ने समझा था की वह पूछ रही है की क्लेक्शन में क्या-क्या है?

यह सुनते ही मनिका का मुहँ जयसिंह की तरफ घूमा, यह देखने को कि क्या उन्होंने सब सुन लिया था? ऑब्वियस्ली उन्होंने सुन लिया था, वे उसके बगल में ही तो खड़े थे. मनिका का चेहरा शर्म से लाल हो गया,

'न...नो...’ उसने सेल्स-गर्ल को जरा तल्खी से कहा था.

'ले लो मनिका अगर चाहिए तो...' जयसिंह थे.

मनिका को जैसे चार सौ वॉल्ट का झटका लगा, उसे विश्वास नहीं हो पा रहा था की जयसिंह ने ऐसा कह दिया था 'उसके पिता उसे ब्रा-पैंटी लेने को कह रहे थे.'

आखिर जयसिंह की किस्मत जवाब दे ही गई थी. वे लोग अपने हॉटेल रूम में लौट चुके थे और जयसिंह एक तकिया लेकर काउच पर अधलेटे हुए सोए पड़े थे. मनिका बेड पर अकेली कम्बल से अपने-आप को ढंके हुए थी. दोनों सोने का नाटक कर रहे थे पर नींद उनके आस-पास भी नहीं थी.

जयसिंह के मन में निराशा की उथल-पुथल मची हुई थी 'अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली मैंने...'

जयसिंह के मनिका से ब्रा-पैंटी लेने को कहते ही मनिका का बदन शॉक से अकड़ गया था. उसने एक क्षण रुकने के बाद मुड़ कर उनकी तरफ देखा था और जयसिंह उसकी नज़र से ही समझ गए थे कि उनके किए-धरे पर पानी फिर चुका है. उसकी आँखों में शर्म, गुस्से और नफरत का मिला-जुला सैलाब उमड़ रहा था. जयसिंह कुछ न बोल सके थे और मनिका तेज़ क़दमों से चलती हुई वहां से बाहर निकल गई थी.

जब वे बिल चुका कर मनिका के खरीदे सामान के साथ उसे ढूँढ़ते हुए वापस कार पार्किंग में पहुंचे तो पाया कि वह आकर कैब में बैठ चुकी है, उन्होंने ड्राईवर से डिक्की में सामान रखवाया था और चुपचाप कार में ड्राईवर के बगल में आगे की सीट पर बैठ उसे हॉटेल चलने को बोला था. हॉटेल पहुँच कर भी वे दोनों बिना कोई बात किए चलते हुए अपने कमरे तक आए, आज मनिका उनसे अलग होकर चल रही थी. जयसिंह ने कमरे में घुस कर अपने हाथों में उठाए शॉपिंग-बैग्स एक तरफ रखे ही थे कि मनिका का गुस्सा फट पड़ा था,

'बदतमीज़ी की भी कोई हद होती है!' मनिका ने ऊँची आवाज़ में कहा था. जयसिंह ने सीधे हो कर उसकी तरफ अपराधबोध से भरी नज़रों से देखा. 'आप होश में तो हो कि नहीं? क्या बके जा रहे थे वहाँ...आपको जरा भी शर्म नहीं आई मुझसे ऐसी बात कहते हुए पापा?' मनिका अब तैश में आ गई थी.

जयसिंह क्या जवाब देते. एक-एक कर उनके बनाए हवाई-महल उनके आस-पास ध्वस्त हो गिर रहे थे.

'आई एम् यौर डॉटर फॉर गॉड्स सेक! कोई अपनी बेटी से इस तरह...’मनिका आगे की बात कह न सकी थी और आगे बोली 'डोंट यू टॉक टू मी, आई एम् सिक् ऑफ़ यू...' और लगभग भागती हुई बाथरूम में घुस गई थी. उसकी आँखों में शर्म और गुस्से के आँसू थे.

जयसिंह बेड के पास हक्के-बक्के से खड़े थे.

मनिका ने बाथरूम में जा कर कुछ देर तक ठन्डे पानी से अपना मुहँ धोया, आज तक उसे इतनी शर्म और जिल्लत कभी महसूस नहीं हुई थी. उसने जब मुहँ धोने के बाद सामने लगे आईने में देखा था तो उसे अपना रंग उड़ा हुआ चेहरा नज़र आया, 'ओ गॉड. ये क्या हो रहा है मेरे साथ?' उसने धड़कते दिल से सोचा था, उसे एहसास हुआ कि जयसिंह की बदतमीजी के बाद से ही उसके दिल की धड़कने बढ़ी हुईं थी. 'पापा ऐसा कैसे कह सकते हैं कि लॉनजुरे चाहिए तो...अब कैसे उनके साथ कभी नॉर्मल हो सकूँगी मैं...शायद कभी नहीं...अभी तक तो वे भी कुछ बोले नहीं है बस चुप्पी साधे खड़े थे...वैसे भी कुछ बोलना बाकी तो रह नहीं गया है...'

बाहर जयसिंह भी अपनी हार को बर्दाश्त करने की कोशिश कर रहे थे, उनकी अंतरात्मा भी एक बार फिर से सिर उठाने लगी थी, 'यह तो सब खेल चौपट हो गया. मेरी भी मत मारी गई थी जो मैंने संयम से काम नहीं लिया...लेकिन वैसे भी बुरे काम का अंत तो हमेशा बुरा ही होता आया है...अगर कहीं उसने घर पे यह बात जाहिर कर दी तो..?' जयसिंह को भी अब अपने किए को लेकर तरह-तरह की अनिश्चिताओं ने घेर लिया था 'पता नहीं क्या सोच कर मैंने ये कदम उठाए थे...मनिका और मेरे बीच ऐसा कुछ हो सकता है यह सोचना ही मेरी सबसे बड़ी गलती थी...अपने ही घर में आग लगा ली मैंने...साली की जवानी देख कर बहक गया यह भी नहीं सोचा कि कितनी बदनामी हो सकती है...' जयसिंह अपनी पराजय के बाद अब खुद पर ही दोष मढ़ रहे थे आखिर ये सब उन्हीं की हवस से उपजा था.

मनिका जब बाथरूम से बाहर निकली तो पाया कि जयसिंह तकिया लिए हुए काउच पर लेटे थे, उसके आने पर उन्होंने एक नज़र उठा उसे देखा था पर मनिका की हिकारत भरी नज़रों से अपनी नज़र नहीं मिला पाए और फिर से आँखें नीची कर लीं थी.

असल में जयसिंह द्वारा मनिका के लिए लेग्गिंग्स लेने के दौरान ही उसके मन में बेचैनी और असहजता जग चुकीं थी और उनके द्वारा कही अगली बात ने उसको भड़काने का काम कर दिया था. इस तरह जयसिंह ने अपनी इतने दिन की चालाकियों और जुगत लगा जीता हुआ मनिका का भरोसा दो पल में ही खो दिया था. जो मनिका कुछ घंटे पहले तक उनकी तारीफों के पुल बांधती नहीं थकती थी वह अब उनकी शक्ल देख कर भी खुश नहीं थी.

मनिका को भी जयसिंह के ऊपर भरोसा करने पर मिला विश्वासघात बेहद गहरा लगा था. उसने सपनों में भी नहीं सोचा था कि एक पिता अपनी जवान बेटी से इस तरह का निर्लज्ज व्यवहार कर सकता है.
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10-04-2018, 11:36 AM,
#17
RE: Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
अपने-अपने टूटे हुए सपने लिए वे दोनों ही देर तक जागते रहे थे पर आखिर सुबह होते-होते उनकी आँखें लग हीं गई.
अगली सुबह जयसिंह की जाग थोड़ी देर से खुली थी, रात भर काउच पर सोने की वजह से उनका शरीर को भी अच्छे से आराम नहीं मिल पाया था, उन्होंने बेड की तरफ देखा तो पाया कि मनिका अभी भी लेटी हुई थी. कुछ देर वैसे ही लेटे रहने के बाद जयसिंह धीरे से उठे, मनिका बेड पर जिस ओर करवट ले कर सो रही थी उसी तरफ उनका लगेज भी पड़ा था. जयसिंह दबे पाँव अपने सामान के पास गए और अपनी अटैची से अपने कपड़े निकालने लगे. जब वे अपने कपड़े ले कर वापस जाने लगे थे तो उनकी नज़र मनिका के चेहरे पर चली गई थी, उन्होंने देखा कि उसने जल्दी से अपनी आँखें मीचीं थी.

जयसिंह बिना कुछ बोले चुपचाप बाथरूम में घुस गए थे. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करें या कहें. उनके जाने के बाद मनिका ने उठकर कमरे में रखी पानी की बोतल से पानी पिया था. वह भी, अपने और जयसिंह के बीच बढ़ी दूरियों का सामना कैसे करे, इस उलझन में थी. जयसिंह जल्दी ही नहा कर बाहर निकल आए थे. उन्होंने मनिका को बिस्तर में बैठे पाया, मनिका ने तय किया था कि वह पीछे नहीं हटेगी और इसीलिए अब वह सोई होने का नाटक नहीं कर रही थी.

जयसिंह बाथरूम से निकल कर आए ही थे कि कमरे में रखे फोन की घंटी बजने लगी. जयसिंह और मनिका के बीच एक तनाव भरा माहौल बन गया था, दोनों ही अपनी-अपनी जगह जड़वत् हो गए थे, कुछ देर जब फोन बजता रहा तो आखिर जयसिंह ने जा कर फोन उठाया,

'हैल्लो?' जयसिंह की आवाज़ भर्रा कर निकली थी.

फोन रिसेप्शन से था, उनकी कैब का ड्राईवर नीचे आ चुका था और उनका वेट कर रहा था. जयसिंह ने उनसे कहा कि अब उन्हें कैब की जरुरत नहीं रहेगी सो वे उनकी बुकिंग कैंसिल कर दें और फ़ोन रख दिया था. मनिका को उनकी बातों से समझ आ गया था कि फोन कहाँ से आया है.

जयसिंह ने फोन रख अपने पिछले दिन पहने कपड़े (रात वे बिना चेंज किए ही सो गए थे) समेट कर अपनी अटैची में रखे और फिर बिना एक बार भी मनिका की तरफ देखे कमरे से बाहर चले गए.

उनके चले जाने के बाद मनिका बेड से निकली थी और नहा धो कर अपनी ज़िन्दगी में आए इस तूफ़ान के बारे में सोचते हुए बेड पर पड़े-पड़े ही पूरा दिन बिताया था. बीच में भूख लग आने पर उसने रूम-सर्विस पर कॉल कर खाने के लिए एक दो चीज़ें ऑर्डर कीं थी पर जब वेटर खाना लेकर आया तो उसने थोड़ा सा खाकर छोड़ दिया था और वापस बेड पर जा लेटी थी. जयसिंह का सुबह से कोई अता-पता न था.

रात को होते-होते मनिका को नींद की झपकी आ गई थी जब उसे कमरे का गेट खुलने का आभास हुआ. मनिका ने कमरे की लाइट बुझा रखी थी, अँधेरे में किसी ने राह टटोलते हुए आ कर लाइट जलाई. जयसिंह ही थे.

मनिका ने बेड से सिर उठा कर उनींदी आँखों से उन्हें देखा और अजीब सा मुहँ बनाया, फिर वह उठ कर बैठ गई, जयसिंह एक बार फिर अपना पायजामा कुरता ले कर बाथरूम में घुस रहे थे.

'मुझे यहाँ एडमिशन नहीं लेना है.'

मनिका की आवाज़ सुन जयसिंह ठिठक कर खड़े हो गए थे.

'मुझे घर जाना है.' मनिका आगे बोली.

जयसिंह ने उसकी तरफ देखा, मनिका ने भी दो पल उनसे नज़र मिलाए रखी और घूरती रही. जयसिंह ने नज़र झुका ली,

'दो-चार दिन की बात है...इतने दिन से यहाँ हम आपके एडमिशन के लिए ही रुके हुए है. हमारे वहाँ वैसे भी कोई ढंग के कॉलेज नहीं है.' उन्होंने धीरे-धीरे बोलते हुए कहा 'देख लो अगर रुकना है तो...नहीं फिर मैं कल टिकट्स करवा आऊँगा.' और वे बाथरूम में घुस गए.

मनिका ने पूरे दिन यही सोचते हूए बिताया था कि वह जयसिंह से वापस चल-चलने को कहेगी, उसे उनके भरोसे अब नहीं रहना है पर जयसिंह के सधे हुए जवाब में तर्क था और फिर बाड़मेर वापस जाने पर उसे घर पर ही रहना पड़ता जहाँ उनसे उसका रोज सामना होता, पर यह बात वह जयसिंह से नहीं कहना चाहती थी सो उनके बाथरूम से वापस बाहर निकल आने के बाद भी मनिका ने उनसे कुछ नहीं कहा था और बेड पर लेटी रही. जयसिंह ने भी और कुछ नहीं कहा और लाइट बुझा अपने काउच पर जा लेटे थे.

अगले दिन फिर सवेरे-सवेरे ही जयसिंह कमरे से नादारद हो गए. मनिका ने उन्हें उठ कर कमरे में खटर-पटर करते हुए सुना था और फिर उनके चले जाने और कमरे का दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई थी. उनके जाते ही वह उठ गई थी.
मनिका की फिर वही दिनचर्या रही, उसने आज फिर खाना थोड़ा ही खाया था. उसके मन में रह-रह कर जयसिंह की बात आ जाती थी और उसके विचारों का चक्र फिर से शुरू हो जाता था. आखिर उसने दिल बहलाने के लिए उठकर टी.वी चालू किया और बैठी-बैठी चैनल बदलने लगी. कुछ देर बाद मनिका एक इंग्लिश मूवी चैनल जा कर रुक गई थी; उस पर एक कॉमेडी फिल्म चल रही थी. मनिका का पूरा ध्यान तो उसमें नहीं था पर फिर भी वह वही देखने लगी.
कुछ देर बाद फिल्म में एक सीन आया जिसमें एक परिवार बीच (समुद्र किनारे) पर पिकनिक मनाने जाता है. उस परिवार में माँ-पिता और उनके दो जवान बेटा-बेटी साथ होते हैं. बीच पर पहुँच कर वे अपनी पिकनिक एन्जॉय कर रहे होते हैं कि वहाँ पास ही एक और फैमिली आ जाती है और वे आपस में घुलने-मिलने लगते हैं. पहली फैमिली वाला आदमी एक-एक कर के दूसरी फैमिली से अपने परिवार का इंट्रोडक्शन करवा रहा होता है. जब वह अपनी बेटी का नाम लेता है तो वो वहाँ नहीं होती, सो वह आवाज़ लगा कर उसका नाम पुकारता है, इस पर उसकी बेटी उनकी वैन के पीछे से निकल कर आती है, उसने एक लाल बिकिनी पहनी होती है, उसे देख दूसरी फैमिली में दिखाए लड़के का मुहँ खुला रह जाता है, इस तरह वो सीन आगे बढ़ता रहता और फिल्म चलती रहती है जिसमे कुछ देर बाद दोनों परिवार एक साथ पिकनिक मना रहे होते हैं और कुछ हास्यपद घटनाएं घटती हैं.

मनिका का ध्यान उस सीन को देखने के बाद फिल्म से पूरा ही हट गया था. 'यह फोरेनरस (अंग्रेज) भी कितने पागल होते हैं...बेटी को बाप के सामने बिकिनी पहने दिखा दिया बताओ...' मनिका का दीमाग तो वैसे ही अपने पिता के व्यवहार से ख़राब हो रखा था, अब उसने जब फिल्म में ऐसा सीन देखा तो उसके मन में फिर ख्याल उठने लगे थे. 'कैसे वह लड़की आकर अपने माँ-बाप के सामने खड़ी हो गई थी और उसका बाप हँस-हँस कर उसका इंट्रोडक्शन और करवा रहा था...यहाँ तो मेरे पापा के...ओह यह मैं क्या सोचने लगी...नहीं बाहर ऐसा चलता होगा, गलती तो पापा की ही थी...पर ये अंग्रेज इतने फ्रैंक क्यूँ होते हैं? कोई कल्चर नहीं है क्या इनका, बेटी बाप के सामने अधनंगी खड़ी है बोलो...'(मनिका ने दो दिन से खाना ठीक से नहीं खाया था सो उसका तन और मन वैसे ही थोड़ा कम काम कर रहे थे. अब उसके विचलित मन में ऐसे विचार उठ रहे थे जिन पर वह चाह कर भी लगाम नहीं लगा पा रही थी) 'तुम भी तो कुछ दिन पहले पापा के साथ अधनंगी हो कर पड़ी थी...' मनिका के अंतर्मन ने उसे याद कराया था 'हाय ये मैं क्या...पर मैंने जान-बूझकर थोड़े ही किया था वो...' मनिका ने अपने आप को सफाई पेश करते हुए सोचा. 'और पापा ने मुझे कुछ बोला भी नहीं था क्यूँकी..? ये तो मैंने सोचा ही नहीं आई मीन उस वक़्त मुझे लगा था कि वे भी मुझे ऐसे देख कर एम्बैरेस होंगे बट...परसों उन्होंने कहा था कि वे एक पैरेंट की तरह मुझे रोक-टोक कर मेरा ट्रिप ख़राब नहीं करना चाहते...एंड उस मूवी में भी तो वो फैमिली पिकनिक पर जाती है...और उस लड़की को उसके घरवाले बिकिनी पहनने के लिए कुछ नहीं कहते...क्यूंकि बीच पर सब वही पहनते हैं और एन्जॉय करते हैं...पापा ने भी तो कहा था कि ही वांटेड मी टू एन्जॉय दिस हॉलिडे...’मनिका का दीमाग उसे अलग ही राह पर ले जाता जा रहा था.

वह अब बेड पर थोड़ा पीछे हो बेड-रेस्ट के साथ टेक लगा कर बैठ गई और टी.वी. ऑफ कर दिया, उसका मन और दिल दोनों बेचैन थे, 'हाओ केयरिंग ऑफ़ पापा टू ट्रीट मी लाइक दिस...और मैंने...मैंने क्या किया...उनके मुझे ब्रा-पैंटी लेने को कहने पर...हाँ तो गलती उन्हीं की तो थी...’मनिका कुछ देर गहरी सोच में डूबी रही 'पर क्या सच में? उन्होंने डायरेक्टली तो कुछ भी नहीं कहा था...वो तो उस कमीनी सेल्स-गर्ल ने अपनी सेल बढाने के चक्कर में बक दिया था...पर पापा ने भी तो...नहीं उन्होंने इतना ही तो कहा था कि...चाहिए तो ले लो..ओ गॉड कितना एम्बैरेसिंग था...हम्म...बट उन्हें उस सेक्शन में लेकर भी तो मैं ही गई थी...गलती मेरी भी तो है...’इन खुलासों से मनिका की बेचैनी बढती जा रही थी हालाँकि कुछ बातें उसने गलत एज्यूम (मान) कर लीं थी पर जयसिंह के इरादों पर शक करने का ख्याल अभी भी उसके मन में नहीं आया था. वह तो बस उनकी कही बात से खफा हो गई थी और अब उसे अपनी नाराजगी के पीछे के कारण भी कम होते नज़र आ रहे थे.

'तो क्या गुस्से में मैंने ओवर-रियेक्ट कर दिया है...पापा भी दो दिन से कितने अपसेट लग रहे हैं...पता नहीं कहाँ जाते होंगे? वे मेरे साथ इतने कूल-ली पेश आ रहे थे और मैंने इतनी सी बात का बतंगड़ बना दिया...दो दिन से हमारी बात भी नहीं हुई है...कल थोड़ी सी बात हुई थी जिसमें भी वे मुझे आप कह कर बुला रहे थे...ओह शिट...आई एम सच अ फूल...अब क्या करूँ...’मनिका ने समय देखा, रात के नौ बज रहे थे, पिछली रात जयसिंह ग्यारह बजे करीब लौट कर आए थे.

मनिका उठी और अपना तन और मन कुछ तरोताज़ा करने के लिए नहाने घुस गई. बाथरूम में मन ही मन वह अपने पापा से क्या कह उनके बीच हुई गलतफ़हमी को मिटाए इस उधेड़बुन में लग गई थी. अपने हाथों से अपना नंगा बदन सहलाते हुए उसने शावर चला ठन्डे पानी से नहाना शुरू किया, उसके चेहरे पर अब पहले सी उदासी नहीं थी.

जब जयसिंह उस रात कमरे में लौटे तो कमरे पाया कि कमरे की लाइट जल रही थी और मनिका सोई नहीं थी लेकिन बिस्तर पर बैठी हुई थी, एक तरफ मेज पर खाना रखा हुआ था. उन्होंने एक बार फिर अपने रात के कपड़े लिए थे और बाथरूम में चले गए, मनिका ने एक बार नज़र उठा कर उनकी तरफ देखा था पर कुछ बोली नहीं थी,

'धत्त...कैसे बात शुरू करूँ पापा से?' मनिका ने उनके बाथरूम में चले जाने पर अफ़सोस से सोचा, उनको देखते ही उसकी आवाज़ जैसे गले में ही अटक गई थी.

जयसिंह ने बाथरूम में जा कर अपने कपड़े उतार एक तरफ टाँगे और शावर में घुस पानी चलाने के लिए हाथ बढ़ाया था; और जड़वत रह गए. शावर के नल पर मनिका की ब्रा-पैंटी लटक रही थी, जयसिंह को मनाने के ख्यालों में डूबी मनिका अपने उतारे हुए अंतवस्त्र धो कर (तौलिए के नीचे छिपाकर) सुखाना भूल गई थी.

जयसिंह को जैसे खड़े-खड़े लकवा मार गया था और उनका चेहरा तमतमा कर गरम हो गया था.

लेकिन जयसिंह ने नज़र फेर ली और पीछे हट कर शावर का पर्दा लगा दिया, शावर में फर्श और पर्दे पर गिरे पानी से वे समझ गए थे की मनिका नहाई थी और शायद अपने अंतवस्त्र वहाँ भूल गई थी. वे मुड़े और नहाने के लिए बाथटब में बैठ कर पानी चला लिया. उन्होंने अपने लंड की तरफ एक नज़र देखा, उनका लंड बिल्कुल शांत था.
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10-04-2018, 11:36 AM,
#18
RE: Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
जब जयसिंह नहा कर बाहर निकले तो मनिका को अभी भी जगे हुए पाया, वे जा कर काउच पर बैठने लगे,

'पापा?' मनिका ने सधी हुई आवाज़ में कहा.

'जी..?' जयसिंह ने भी उसी लहजे में पूछा और मन में सोचा 'लगता है जो सोचा था वो आज ही करना पड़ेगा.'

'क्या हम बात कर सकते हैं?' मनिका ने बेड से थोड़ा उठते हुए कहा.

'आई एम सो सॉरी मणि...' जयसिंह ने सिर झुकाते हुए कहा.

दो दिन से जयसिंह अपने-आप से संघर्ष कर रहे थे. पहले तो उन्हें अपना प्लान बिगड़ जाने का बहुत अफ़सोस हुआ था लेकिन धीरे-धीरे उनकी अंतरात्मा ने उन्हें लताड़-लताड़ कर अपनी सोच पर शर्मिंदगी का एहसास दिला ही दिया था. आज वे अपने किए का पश्चाताप करने और मनिका से माफ़ी मांगने का सोच कर ही कमरे में आए थे पर मनिका की तरह उनसे भी पहले बात करने की हिम्मत नहीं हुई थी और वे बाथरूम में यह सोच कर घुस गए थे कि शायद उनके बाहर आने तक वह सो चुकी हो और उन्हें हिम्मत जुटाने के लिए कल सुबह तक का वक़्त और मिल जाए (और इसीलिए बाथरूम में पड़े उसके अंतवस्त्रों को देख वे उत्तेजित नहीं हुए थे). लेकिन अब मनिका के संबोधन ने उनके मन का गुबार निकाल दिया था,

मनिका का चेहरा भी लाल हो गया था.

'पता नहीं क्या सोच मैंने आपसे ऐसा कह दिया...आई एम रियली...' जयसिंह बोलते जा रहे थे.

'नो!' मनिका ने अपनी आवाज़ ऊँची कर कहा. जयसिंह ने उसकी इस प्रतिक्रिया पर अपना सिर उठाया और आगे कहने की कोशिश की, उन्हें लगा था की मनिका को उनके माफ़ी मांगने पर यकीन नहीं हुआ था, पर मनिका ने अपनी ऊँची आवाज़ से उनकी बात काट दी,

'पापा डोंट से सॉरी...माफ़ी तो मुझे आपसे माँगनी चाहिए. आप क्यूँ सॉरी बोल रहे हो...आफ्टर ऑल द थिंग्स यू डिड फॉर मी...मैंने आपकी एक बात पर ही इतना ओवर-रियेक्ट कर दिया. सो आई एम सॉरी पापा...प्लीज़ फोर्गिव मी..?’ मनिका ने एक ही साँस में बोलते हुए उनसे मिन्नत की.

जयसिंह के कुछ समझ नहीं आ रहा था. उन्होंने असमंजस भरी नज़रों से मनिका की आँखों में देखा और फिर कहने की कोशिश की,

'आपने ओवर-रियेक्ट नहीं किया था मणि. मैंने बात ही ऐसी कह दी थी के आप हर्ट हो गए. प्लीज़ लिसेन (सुनो) टू मी फॉर अ सेकंड.'

'नहीं पापा...मैं नहीं सुनूंगी...आपने मुझे हर्ट नहीं किया ओके? मैं ही आपको नहीं समझ सकी...आप ने मुझे एक फ्रेंड की तरह बल्कि उस से भी बढ़कर ट्रीट किया और इस ट्रिप पर इतना ख्याल रखा मेरा ताकि आई कैन एन्जॉय माय लाइफ जबकि आप मुझे वापस घर ले जा सकते थे...सबसे झूठ बोला सिर्फ मेरे लिए...और मैंने आपको एक छोटी सी बात के लिए इतना बुरा-बुरा कह दिया...सो आई शुड बी सेयिंग सॉरी...’मनिका जयसिंह की कोई बात सुनने को राज़ी नहीं थी.

'छोटी सी बात नहीं थी वो...' जयसिंह ने फिर कहने का प्रयास किया.

'पापा नो...डोंट से अ वर्ड...सिर्फ कपड़े लेने की ही तो बात थी...' मनिका ने फिर से उनकी बात काट दी. अब जयसिंह चुप हो गए. वे समझ नहीं पा रहे थे कि अचानक मनिका को यह क्या हो गया था और उसके तेवर बदल कैसे गए थे. वह ब्रा-पैंटी को अब सिर्फ कपड़े (ही तो थे) कह रही थी.

'पापा?' मनिका ने इस बार उन्हें दुलार कर कहा.

'मणि..?' जयसिंह ने उसकी बदली आवाज़ सुन सधी हुई सवालिया नज़र से उसे देखा.

'प्लीज़ बिलीव मीं...विश्वास करो मेरा, आई एम रियली सॉरी ना...आपकी कोई गलती नहीं थी.' मनिका उनके करीब आ खड़ी हो गई थी. बैठे हुए जयसिंह ने अपनी नज़र उठा उसकी आँखों में देखा और एक पल बाद धीमे से हाँ में हिला दिया.

'ओके मणि.' जयसिंह ने हौले से कहा.

मनिका ने उनकी बात सुन उनकी ओर अपना हाथ बढ़ाया और मुस्का दी, जयसिंह ने भी धीमे से मुस्कुरा कर थोड़े संकोच के साथ उसका हाथ थाम लिया जिसपर मनिका आगे बढ़ उनकी गोद में बैठ गई.

'आई मिस्ड टॉकिंग टू यू पापा...एंड आई एम रियली सॉरी.' मनिका ने प्यार से मुहँ बना कर उनसे अपनी माफ़ी का इज़हार एक बार फिर कर दिया 'प्लीज़ फोर्गिव मी?'

'आई मिस्ड टॉकिंग टू यू टू डार्लिंग.' जयसिंह ने कहा, पर मनिका ने उनके संबोधन पर कोई आपत्ति नहीं जताई थी 'प्रॉमिस करो कि फिर मुझसे कभी नाराज़ नहीं होओगी.' उसका बर्ताव देख वे उसे अपने से सटाते हुए आगे बोले.

'आई प्रॉमिस पापा...' मनिका ने मुस्कुरा कर हाँ भर दी थी और उधर जयसिंह का लंड खुश हो एक बार फिर उछल कर खड़ा हो गया.

***

'खाना खाया आपने?' मनिका ने बड़े प्यार से जयसिंह से पूछा था. वह अभी भी उनकी गोद में बैठी थी.

जयसिंह से बातें करते हुए उसे आधे घंटे से ज्यादा हो गया था जिसमें वह एक-दो बार और उन्हें सॉरी बोल चुकी थी. जयसिंह ने जब उसे पूछा कि क्या वह सचमुच उनसे बिल्कुल भी नाराज़ नहीं थी? तो उसने उन्हें बताया था कि किस तरह उसने रिएलाइज़ किया था कि वह गलत थी और उनसे माफ़ी मांगने के लिए ही लाइट ऑन कर बैठी थी. जयसिंह ने अपनी फिर से जगी हुई किस्मत को मन ही मन धन्यवाद दिया था 'अगर कहीं मैंने पहले माफ़ी मांग ली होती तो रांड हाथ से निकल जाती..’ जयसिंह अपने मन की आवाज़ को फिर से अँधेरे में धकेल चुके थे. 

मनिका ने उन्हें वह फ़िल्म के सीन वाली बात नहीं बताई थी जिस से की उसका हृदय-परिवर्तन शुरू हुआ था, बल्कि ऐसे जताया कि उसे अपने-आप ही अपनी गलती का एहसास हो गया था. जयसिंह उसकी पीठ सहलाते हुए उसकी बाते सुन अंदर ही अंदर आनंदित हो रहे थे. तभी मनिका को याद आया था कि उसने जयसिंह के लिए खाना भी ऑर्डर किया था जो वहाँ मेज पर रखा था और उसने उनसे वह सवाल पूछा था.

'नहीं खाया तो नहीं है.' जयसिंह ने कहा.

'मैंने आपके लिए ऑर्डर किया था पापा बट अब तक तो सब ठंडा हो चुका होगा.' मनिका ने खेद प्रकट किया.

'कोई बात नहीं. मुझे भूख नहीं है वैसे भी...’ वे बोले और फिर मन में सोचा 'पर साली तूने मुझे तो गरम कर दिया है...'

'क्यूँ नहीं है?' मनिका ने फिर सवाल किया. अभी-अभी उनकी सुलह हुई होने के कारण वह जयसिंह को थोड़ा ज्यादा ही प्यार दिखा रही थी.

'आप जो वापस आ गईं मेरे पास...' जयसिंह ने भी डायलाग दे मारा.

'हाहाहा...पापा मैं कोई खाने की चीज़ हूँ क्या?' मनिका ने हँसते हुए कहा.

जयसिंह ने कुछ ना कहते हुए उसे रहस्यमई अंदाज़ से मुस्का कर देखा भर था. वह भी मुस्का दी और आगे बोली,

'और ये आपने क्या मुझे आप-आप कहना शुरू कर दिया है, ऐसे मत बोलो मैं आपसे छोटी हूँ न...मुझे ऐसे फील हो रहा है जैसे मैं कोई आंटी हूँ.'

'हाहाहा अच्छा भई अब नहीं कहूँगा.' जयसिंह भी हंस पड़े और पूछा 'क्या तुमने खाया खाना?'

'नहीं पापा मुझे भी भूख नहीं लगी है.' मनिका ने उन्हीं का जवाब देते हुए कहा.

'क्यूँ?' जयसिंह ने भी सवाल कर दिया.

'आपसे बात करने की ख़ुशी से ही पेट भर गया.' उसने शरारत से कहा.

'हम्म तो ये बात है...' जयसिंह ने उसके गाल पर अपना दूसरा हाथ रख उसका चेहरा अपनी तरफ मोड़ कर कहा.

'हाँ पापा आई एक सो हैप्पी.' मनिका ने गहरी साँस भर के कहा था.

मनिका ने स्ट्रॉबेरी-फ्लेवर की लिप-ग्लॉस (एक तरह की लिपस्टिक) लगा रखी थी और उनके चेहरे इतने करीब थे की उन्हें उसके होठों की खुशबू आ रही थी जिसपर उनके लंड ने एक अंगड़ाई ली थी.

'पापा?' मनिका एक बार फिर सवाल करने से पहले बोली.

'ह्म्म्म...' जयसिंह उसके हिलते हुए गुलाबी होंठ देख मंत्रमुग्ध से बोले.

'आपको नींद नहीं आ रही?' उसने पूछा.

'तुम्हें आ रही लगती है...है ना?' जयसिंह मनिका के सवाल का आशय समझ गए थे.

'हाँ...आपको कैसे पता?' मनिका ने मानते हुए कहा.

'बस पता है...तुम्हारी जो बात है...' जयसिंह वापस अपनी फॉर्म में आ चुके थे.

'हाहा...दो दिन से अच्छे से नींद ही नहीं आई पापा...' मनिका बोली.

'क्यूँ?' जयसिंह ने फिर पूछा.

'आपको पता तो है...' मनिका ने उनकी तरफ भोली सी निगाहों से देख कर कहा.

'मुझे कैसे पता होगा?' जयसिंह ने अज्ञानता जाहिर की.

'आपसे लड़ाई कर ली थी इसलिए ना...' मनिका ने नज़र झुका अपना अपराध-बोध जाहिर किया.

जयसिंह ने भी उसे और नहीं सताया और कहा, 'चलो फिर सोते हैं.'

मनिका उनकी गोद से उतरते हुए बोली, 'ओके पापा' और बेड की तरफ चल दी. बेड पर चढ़ कर उसने देखा जयसिंह काउच पर ही सोने लगे हैं. 'पापा! आप क्या कर रहे हो?' मनिका ने बुरा सा मुहँ बनाते हुए कहा.

'अरे भई मणि अभी तुमने ही तो कहा सोने को...’ जयसिंह ने शरारती मुस्कुराहट बिखेर दी.

'पापा...यहाँ आ जाओ चुपचाप और मुझे मणि मत बुलाया करो ना...' मनिका ने उनींदी हो कहा.

'सोने के लिए बुला रही हो या ऑर्डर दे रही हो?' जयसिंह टस से मस न होते हुए बोले 'प्यार से बुलाओगी तो आऊँगा.'

'जाओ मैं नहीं बुलाती.' मनिका ने भी नखरा दिखाया.

जयसिंह ने कोई जवाब नहीं दिया और अपनी आँखें मूँद ली. मनिका कुछ पल उन्हें देखती रही फिर नखरा छोड़ मुस्काते हुए कहा,

'पापा?'

'हाँ मनिका?' जयसिंह ने झट से आँखें खोलते हुए कहा.

'पापा मेरे प्यारे पापा यहाँ बेड पर मेरे पास आ कर सो जाओ ना?' मनिका ने आँखे टिमटिमा कर कहा.

जयसिंह मुस्कुराते हुए उठ खड़े हुए और जा कर मनिका के साथ बिस्तर में घुस गए. जयसिंह ने बत्ती बुझा नाईट-लैंप जला दिया. उन दोनों ने एक दूसरे की तरफ करवट ले रखी थी. मनिका की आँखें अभी खुलीं थी और उसके चेहरे पर भी मुस्कान तैर रही थी, कमरे की उस मद्धम रौशनी में वे दोनों एक-दूसरे को निहारते हुए लेटे थे. जयसिंह ने अपना हाथ थोड़ा आगे किया जिसपर मनिका ने भी अपना हाथ आगे बढ़ा उनका हाथ थाम लिया और वे हौले-हौले उसके हथेली सहलाने लगे. कुछ देर बाद दोनों की आँख लग गई, दोनों अभी भी हाथ पकड़े हुए थे.
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10-04-2018, 11:37 AM,
#19
RE: Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
जयसिंह मुस्कुराते हुए उठ खड़े हुए और जा कर मनिका के साथ बिस्तर में घुस गए. जयसिंह ने बत्ती बुझा नाईट-लैंप जला दिया. उन दोनों ने एक दूसरे की तरफ करवट ले रखी थी. मनिका की आँखें अभी खुलीं थी और उसके चेहरे पर भी मुस्कान तैर रही थी, कमरे की उस मद्धम रौशनी में वे दोनों एक-दूसरे को निहारते हुए लेटे थे. जयसिंह ने अपना हाथ थोड़ा आगे किया जिसपर मनिका ने भी अपना हाथ आगे बढ़ा उनका हाथ थाम लिया और वे हौले-हौले उसके हथेली सहलाने लगे. कुछ देर बाद दोनों की आँख लग गई, दोनों अभी भी हाथ पकड़े हुए थे.

अगली सुबह जब मनिका उठी तो सब कुछ उसे बहुत अच्छा-अच्छा लग रहा था. आँख खुलने के कुछ पल बाद पास लेटे जयसिंह को देख उसे रात की बातें याद आईं और वह अपने पापा से फिर से दोस्ती हो जाने का ख्याल करते ही ख़ुशी से चहकी,

'पापा! आप अभी तक सो रहे हो? देखो आज मैं आपसे पहले उठ गई...'

'उन्ह्ह हम्म...' उनींदे से जयसिंह ने आँखें खोलीं, दो दिन से काउच पर आराम से न सो पाने की वजह से आज उन्हें काफी गहरी नींद आई थी.

'उठो ना पापा...क्या आलस बिखरा रहे हो...' मनिका ने उन्हें हिला कर कहा.

मनिका जयसिंह को उठा कर ही मानी थी, वे दोनों बाथरूम जा कर आ चुके थे और ब्रेकफ़ास्ट ऑर्डर कर दिया था. जयसिंह एक बार फिर अखबार में स्टॉक-मार्केट की ख़बरें देख रहे थे. मनिका भी उनके पास ही बैठी रुक-रुक कर उनसे बातें करते हुए एक मैगज़ीन के पन्ने पलट रही थी जब रूम-सर्विस आ गई. मनिका ने जा कर गेट खोला,

'गुड मॉर्निंग मैम.' उसके सामने वह पहले दिन वाला ही वेटर खड़ा था.

'म...म...मॉर्निंग' मनिका उसकी कुटिल मुस्कान भूली नहीं थी.

वेटर अंदर आ गया और उनका नाश्ता टेबल पर लगाने लगा. मनिका जयसिंह के पास बैठ गई थी पर अब उसकी नज़र फर्श पर टिकी थी. वेटर ने खाना लगा दिया और एक मंद सी मुस्कुराहट लिए खड़ा रहा, जयसिंह ने उसे टिप देते हुए फारिग कर दिया. उसने अदब से झुक कर जयसिंह से कहा था,

'थैंक्यू सर.' और फिर मनिका से मुख़ातिब हो बोला 'थैंक्यू मैम...' मनिका की नज़र उससे मिली थी, वेटर के चेहरे पर फिर वही मुस्कान थी.

वेटर के चले जाने के बाद मनिका ने जयसिंह से कहा,

'आई डोंट लाइक हिम.'

'क्या? हू?' जयसिंह ने अखबार से नजर उठा कर पूछा.

'अरे यही जो अभी गया है...वो वेटर...' मनिका ने बताया.

'हैं? क्यूँ क्या बात हुई...?’जयसिंह ने अखबार साइड में रखते हुए पूछा.

'ऐसे ही बस...अजीब सा आदमी है वो...' मनिका भी उन्हें क्या बताती.

'हाहाहा...पता नहीं क्या हो जाता है तुम्हें चलते-चलते, अब बताओ मैडम को वेटर भी पसंद का चाहिए.' जयसिंह हँस कर बोले.

'क्या है पापा डोंट मेक फन ऑफ़ मी. चलो ब्रेकफास्ट करते हैं.' मनिका ने मुहँ बनाते हुए कहा था.

जब जयसिंह और मनिका ने नाश्ता कर लिया था तो मनिका ने पूछा था कि आज वे क्या करने वाले हैं? जिस पर जयसिंह ने आज-आज रूम में ही रहकर रेस्ट करने की इच्छा जताई थी. मनिका भी मान गई और बोली कि वह नहाने जा रही है. जयसिंह ने उसे मुस्कुरा कर देखा भर था, उनके मन में ख़ुशी की लहर दौड़ गई थी.

जब मनिका नहा कर वापस निकली तो जयसिंह को काउच पर सुस्ताते पाया. दरअसल वे लेट कर नाटक कर रहे थे ताकि मनिका को नहा कर निकलते हुए देख सकें. मनिका ने बाहर आते ही उनकी और देखा था और उन्हें सोता समझ अपने सूटकेस के पास जा कर कपड़े रखने लगी.

'नहा ली मनिका?' जयसिंह ने थोड़ा सा सिर उठा उसकी तरफ देखते हुए कहा.

'हाँ पापा.' मनिका पीछे मुड़ बोली. जयसिंह ने पाया कि उसकी आवाज़ में पहले जैसी चहक नहीं थी.

कुछ देर बाद मनिका आ कर काउच के पास रखी सोफेनुमा कुर्सी पर बैठ गई. जयसिंह उसके चेहरे के भाव देख समझ गए कि वह कुछ कहना चाह रही है पर चुपचाप लेटे रहे और आँखें बंद कर फिर से सोने का नाटक करने लगे.

'आप नहीं ले रहे बाथ?' मनिका ने उनसे पूछा.

'म्मम्म...अभी थोड़ी देर में जाता हूँ... आज तो रूम पर ही हैं ना हम...' जयसिंह ने झूठा आलस दिखाया.

'पापा?' मनिका अपना तकियाकलाम संबोधन इस्तेमाल कर बोली.

'हम्म्?' जयसिंह ने नाटक जारी रखते हुए थोड़ी सी आँख खोल उसे देखा.

'पापा कल रात को...रात को आप शावर से नहाए थे क्या?' मनिका ने पूछा, उसकी नज़रें जमीन पर टिकीं थी और चेहरे पर लालिमा झलक रही थी.

मनिका ख़ुशी-ख़ुशी नहाने घुसी थी पर जैसे ही उसने शावर का पर्दा हटाया था उसे वह नज़र आया जिसने पिछली रात जयसिंह को साँप सुंघा दिया था, उसकी ब्रा और पैंटी जो नल पर लटक रही थी. मनिका एक बार तो सकपका गई, 'ये यहाँ कैसे पहुँची..?’ फिर उसे याद आया कि कल रात नहाने के बाद उसने उन्हें वहीँ छोड़ दिया था. वह उन्हें उठाने को हुई थी जब उसे याद आया कि जयसिंह ने रात को आकर बाथ लिया था 'ओह शिट...’ और इसलिए उसने बाहर निकल कर जयसिंह से टोह लेते हुए पूछा था कि क्या वे शावर में गए थे.

जब मनिका ने उनसे कहा था कि वह नहाने जा रही है तो जयसिंह को शावर में पड़े उसके अंतवस्त्रो का ख्याल आ गया था और वे मन ही मन प्रसन्न हो उठे थे. रात को अचानक मनिका के माफ़ी मांग लेने से यह बात उनके दीमाग से निकल गई थी. अब उन्होंने बिना कोई भाव चेहरे पर लाए कहा,

'नहीं तो, बाथटब यूज़ किया था मैंने तो...क्यूँ क्या हुआ?'

'ओह...अच्छा. कुछ नहीं पापा ऐसे ही पूछ रही थी.' मनिका ने राहत भरी साँस खींची. 'पापा ने कुछ नहीं देखा थैंक गॉड...’ उसने मन ही मन सोचा.

'ऐसे ही?' जयसिंह ने सवाल पर थोड़ा जोर दे पूछा.

'हाँ पापा.' मनिका ने दोहराया.

'अच्छा भई मत बताओ...' जयसिंह ने खड़े होते हुए कहा और मनिका की तरफ देखा 'मैं नहा कर आता हूँ चलो...'

'ओके पापा.' मनिका ने उनकी आधी बात का ही जवाब दिया.

जयसिंह खड़े हो जिस कुर्सी पर वह बैठी थी उसके पास से गुजरते हुए रुक गए और मनिका के कँधे पर हाथ रखा,

'मनिका?'

'हम्म...हाँ पापा...?' मनिका अब पहले सी चहक कर बोली.

जयसिंह ने अपने चेहरे पर एक शरारत भरी मुस्कान लाते हुए कहा 'कपड़े ही तो हैं...हैं ना?' और आगे बढ़ नहाने चले गए.

जयसिंह नहाने घुस गए, पर वे मनिका के मन में शरमो-हया के ज्वार उठा गए थे. उन्होंने पिछली रात की उसी की कही बात को इस तरह से कह दिया था कि मनिका न चाहकर भी मुस्का उठी थी 'हाआआआ...पापा ने देख लीं मेरी अंडरवियर..! हाय राम...’मनिका ने अपना चेहरा दोनों हाथों से छुपा कर सोचा 'और तो और कैसे बन रहे थे...मैंने तो बाथटब यूज़ किया था...झूठे ना हों तो...' मनिका शरम से कुर्सी में गड़ी जा रही थी 'कल तक तो मैंने इतना बखेड़ा खड़ा किया हुआ था और अब अपनी ही बेवकूफी से बेइज्जती हो गई है...क्या सोचा होगा पापा ने भी...कि कैसी बेशरम हूँ मैं... हाय फूटी किस्मत...'

थोड़ी देर बाद जयसिंह नहा कर निकल आए. मनिका, जो कुर्सी पर ही बैठी थी, ने उठते हुए कहा,

'पापा...आई एम् सो एमबैरेस्ड...'

जयसिंह ने उसकी तरफ झूठे असमंजस से देखा. इस पर मनिका ने आगे सफाई पेश की,

'मैं भूल गई थी...कल जल्दी में...' मनिका अटकते हुए इतना ही कह पाई.

अब जयसिंह ने सीरियस सा अंदाज इख़्तियार कर लिया और उसके पास आ गए 'मनिका तुम इतना क्या सोचने लगी? कल रात तो बड़ा बड़प्पन दिखा रहीं थी; कि कपड़े ही तो हैं, अब ये अचानक क्या हुआ?'

मनिका से कुछ पल कुछ कहते ना बना पर जयसिंह के उसे ताकते रहने पर उसने धीरे से कहा, 'हाँ आई क्नॉ पापा...पर शरम तो आती ही है ना...आपने भी क्या सोचा होगा...कि कैसी बेशरम हूँ मैं...'

'ओह गॉड मनिका ये तुम क्या बोले जा रही हो..? मैं ऐसा क्यूँ सोचूँगा भला?' जयसिंह अब अचरज जता रहे थे 'कल जब तुमने मुझे अपना सॉरी बोलने का रीज़न दिया था तब तक मैं अपने आप को ही गलत मान रहा था...पर जब तुमने कहा कि अंडरवियर भी कपड़े ही तो होते हैं तो मुझे भी तुम्हारी बात की सच्चाई का इल्म हुआ, एवरीवन हैस अंडरवियर इसमें क्या एमबैरेसमेंट?...लेकिन अब तुम खुद ही अपनी बात काट रही हो...इस मतलब से तो फिर मैं ही गलत था...’जयसिंह ने मनिका को भावनाओं और तर्क के जाल में फंसाते हुए आगे कहा था.

'नो पापा ऐसा नहीं है...आप सही कह रहे हो बट आप भी समझो ना...अपने पापा से शरम नहीं आएगी क्या? इसीलिए इट्स सो एमबैरेसिंग फॉर मी...’मनिका ने सकुचाते हुए दलील दी.

'ओके मनिका...आई मीन मणि...इट्स ओके...' जयसिंह ने अपना ब्रह्मास्त्र चलाया.

मनिका की आनाकानी पर ब्रेक लग गया था 'पापा ऐसे तो मत कहो...'

'तो कैसे कहूँ?' जयसिंह ने जरा रूखी आवाज़ में कहा.

'प्लीज मेरी बात समझो ना...प्लीज?' मनिका ने मिन्नत की.

जयसिंह समझ गए थे कि अब उनका सामना अपने प्लान के सबसे आखिरी और जटिल हिस्से से हो रहा था. मनिका भले ही उनके साथ कितनी भी फ्रैंक हो चुकी थी पर अभी भी उसके मन में सामाज के नियम-कायदों का एहसास मजबूत था और अगर उन्होंने जबरदस्ती उसे बदलने की कोशिश की तो उनको कुएँ के पास आकर भी प्यासा लौटना पड़ सकता है. सो उन्होंने अभी के लिए पीछे हटना ही उचित समझा,

'ओके मनिका आई अंडरस्टैंड...पर जो हो गया सो हो गया. मैंने उस बात को बिल्कुल माइंड नहीं किया और बस इतना चाहता हूँ कि तुम भी उस पर इतनी फ़िक्र ना करो...कैन यू डू थैट?'

'ओके पापा...' मनिका ने हौले से कहा.

'देन गिव मी अ स्माइल...ऐसे उदासी नहीं चलेगी...' जयसिंह ने मुस्काते हुए उसे उकसाया.

'हेहे...पापा. मैं कहाँ उदास हूँ...’कह मनिका हँस दी.

'गुड़ गर्ल.' जयसिंह ने उसे स्माइल देते देख कहा था और फिर अपने सूटकेस की तरफ चले गए थे.

'हाय...पापा तो लिटरली कुछ ज्यादा ही फ्रैंक हैं...इतना तो मैंने भी नहीं सोचा था. मैंने तो उन्हें मनाने के लिए कहा था बट उन्होंने तो मेरी बात का कुछ और ही मतलब निकाल लिया...अफ्टेरॉल वो हैं तो मेरे पापा ही, उन्हें नहीं तो मुझे तो लाज आएगी ही...बट पापा तो इतना कूल एक्ट कर रहें हैं और मजाक में ले रहे हैं...और यहाँ मैं शरम से मरी जा रही हूँ...क्यूँकि बात सिर्फ अंडरवियर की नहीं है, आई वियर थोंगस् (छोटी और सेक्सी पैंटी)...इसलिए और ज्यादा एमबैरेस हो रही हूँ...’जयसिंह को स्माइल दे कर भी मनिका अपनी दुविधा में फंसी बैठी थी.

'मनिका जरा रूम-सर्विस पर कॉल करके लॉन्ड्री वाले को बुलाना. मेरे सारे कपड़े धोने वाले हो रहे हैं.' जयसिंह की आवाज़ सुन मनिका का ध्यान टूटा.
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10-04-2018, 11:37 AM,
#20
RE: Mastram Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
जयसिंह और मनिका को दिल्ली आए आज बारह दिन हो चले थे और उनके साथ लाए कपड़े एक-दो बार पहन लेने और दिल्ली के प्रदूषण भरे वातावरण के कारण अब धुलाई योग्य हो गए थे. मनिका को भी अपनी कुछ पोशाकें धुलने देने का ख्याल आया था. सो उसने कुर्सी से उठ, अपने मन की उलझन को एक ओर कर, जयसिंह के कहे अनुसार लॉन्ड्री वाले को बुलाने के लिए कॉल किया.

थोड़ी देर में लॉन्ड्री से एक लड़का आया और उनके कपड़े अगली शाम तक ड्राई-क्लीन कर वापस देने का बोल ले गया. अब जयसिंह और मनिका को बाकी का दिन साथ ही बिताना था और अभी तो उनका ब्रेकफास्ट भी नहीं हुआ था. जयसिंह ने सजेस्ट किया क़ि वे नीचे रेस्टॉरेंट में जा कर नाश्ता करें और मनिका को लेकर नीचे चल दिए.

रेस्टॉरेंट में जा उन्होंने ऑर्डर किया और बैठे बतियाने लगे. जयसिंह ने मनिका को याद दिलाया क़ि उसके इंटरव्यू का दिन करीब आ चुका था और उसे थोड़ी तैयारी कर लेनी चाहिए जिस पर मनिका बुरा मानते हुए बोली थी क़ि वे उसकी इंटेलिजेंस की कोई कद्र ही नहीं करते और उसे सब आता है. दरअसल मनिका के मामा कॉलेज में प्रोफेसर थे और उन्होंने उसे बहुत अच्छे से तैयारी करवाई थी सो मनिका का ओवर-कॉन्फिडेंट होना लाजमी था.

खैर इस तरह बातें करते हुए अब उन्हें एहसास हुआ कि उनका वापस घर जाने का समय भी आने वाला था. मनिका और जयसिंह की पिछली रात ही फिर से बढ़ी आत्मीयता और सुबह कमरे में हुई बातचीत ने मनिका को इमोशनली थोड़ा सेंसिटिव कर दिया था और घर वापस जाने की बात आने पर उसने वहाँ बैठे-बैठे जयसिंह से अपने मन की कुछ बातें शेयर कर दी थी, कि कैसे उसे उनके इतने खुले विचारों पर अचरज होता है और उनका उसे एक बच्चे की तरह नहीं बल्कि एक समझदार एडल्ट की तरह ट्रीट करना कितना अच्छा लगता है. उसने उन्हें यह भी बताया कि कैसे उसने सोचा था कि काश घर वापस जाने के बाद भी उनके बीच का ये बॉन्ड न टूटे लेकिन वह ये भी समझती थी कि घर जा कर उनके बीच कुछ दूरी आ ही जाएगी क्यूँकि वहाँ का माहौल अलग था व वे अपनी-अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या में लगें होंगे.

मन ही मन खुश होते जयसिंह ने सोचा था 'साली कुतिया इतनी भोली भी नहीं है जितना मैंने समझा था. बस इसपर यह दोस्ती का भूत इसी तरह चढ़ा रहे तो आखिरी बाजी भी जीती जा सकती है.' और फिर उसे आश्वाशन दिया था कि वे बिल्कुल नहीं बदलेंगे और उनके बीच का यह दोस्ती का रिश्ता नहीं टूटने देंगे बशर्ते कि वह भी उन पर भरोसा बनाए रखे.
इसपर मनिका ने बहुत खुश हो कर उन्हें आश्वस्त किया था कि वह भी यही चाहती थी. जयसिंह ने उसे एक और दफा अपनी मम्मी के सामने थोड़ा सोच-समझ कर रहने की हिदायत दी थी. उनका वही पुराना तर्क था कि उसकी माँ मधु सोचती है कि उन्होंने अपने लाड़-प्यार से मनिका को बिगाड़ दिया था, जिसपर मनिका ने भी उनसे हाँ में हाँ मिलाई थी. उनके यूँ बातें करते-करते उनका खाना भी आ गया था.

जयसिंह ब्रेकफास्ट के बाद मनिका को लेकर कुछ देर हॉटेल के गार्डन में घूमने निकल गए थे. एक बार फिर मनिका अब उनकी बाहँ थामे चल रही थी. जब वे गार्डन में घूम कर वापस लौट रहे थे तो मनिका की नज़र एक तरफ लगे बोर्ड पर गई. जिसपर हॉटेल के विभिन्न हिस्सों और फैसिलिटीज़ के नाम और डायरेक्शन लिखे हुए थे. उनमें से एक नाम ने उसका ध्यान आकर्षित किया था 'ब्यूटी एंड स्पा'.

एक-दो दिन से नहाते वक़्त मनिका ने पाया था कि उसके बदन पर फिर से वैक्सिंग करने की जरुरत थी, उसके बदन पर हलके रोएँ आने लगे थे. मनिका ने जवानी की देहलीज पर कदम रखने के साथ ही अपने बदन के सौंदर्य का अच्छे से ख्याल रखना शुरू कर दिया था और इस मामले में उसने कभी भी लापरवाही नहीं बरती थी. घर पर तो उसके पास अपना वैक्सिंग किट था लेकिन यहाँ दिल्ली में अपने पिता के साथ सिर्फ दो दिन का कार्यक्रम बना कर आई होने की वजह से वो उसे लेकर नहीं आई थी. फिर जयसिंह के साथ रूम शेयर करते हुए वह वैसे भी उसका इस्तेमाल नहीं कर सकती थी. सो जब उसने वह साईन-बोर्ड देखा तो जयसिंह से बोली,

'पापा आज तो हम हॉटेल में ही हैं ना?'

'हाँ हैं तो...कहीं बाहर घूमने का मन है तुम्हारा?' जयसिंह ने पूछा.

'नहीं पापा...वो मैं इसलिए पूछ रही थी कि वहाँ पीछे -ब्यूटी एंड स्पा- का बोर्ड लगा था और मैं सोच रही थी कि हेयर-कट और फेशियल करा लूँ.' मनिका जयसिंह से वैक्सिंग का तो कैसे कहती सो उसने बाल कटवाने की बात कही थी, वैसे दोनों ही स्थितियों में कटने तो बाल ही थे.

'हाँ तो करा लो न...' जयसिंह ने कहा.

सो मनिका जयसिंह से उनका क्रेडिट-कार्ड ले उस सैलून में चल दी. जयसिंह, जो उसे गेट तक छोड़ने साथ आए थे, वहाँ से मुड़ कर अपने कमरे में चले गए और मनिका के वापस आने का इंतज़ार करने लगे. उधर मनिका ने सैलून के काउंटर पर जा वैक्सिंग, हेयर-कटिंग और ब्यूटी-फेशियल के लिए पूछा था, काउंटर मैनेज कर रही लड़की ने एक ब्यूटिशियन को बुला दिया था जो मनिका को अंदर ले गई थी.
जयसिंह कमरे में आ बेड पर लेट गए थे. मनिका ने उनसे कहा था कि उसे आने में थोड़ा वक़्त लग जाएगा सो उन्होंने सोचा कि वे थोड़ी देर सुस्ता लेंगे. वैसे भी टी.वी. देखने का उनका मन नहीं था और अब तो बस उनको मनिका को लेकर ख्याली पुलाव पकाने में ही मजा आता था. सो वे बिस्तर पर लेट मनिका की कही बातों और अपने आगे के क़दमों के बारे में सोच रहे थे. यह सब सोचते-सोचते वे उत्तेजित होने लगे और उनका लंड खड़ा हो गया. उन्होंने उसे हौले से दबा कर करवट बदली, सामने बेड के पास नीचे मनिका का सूटकेस पड़ा था. जयसिंह बेड से उठ खड़े हुए. 
वे उठ कर मनिका के सूटकेस के पास पहुँचे और उसे उठा कर बेड पर रख खोल लिया. सूटकेस में नंबर-लॉक सिस्टम था और मनिका ने उसे लॉक नहीं कर रखा था. जयसिंह के दिल की धड़कने बढ़ गईं थी. सूटकेस खोलते ही उन्हें मनिका के कपड़ों में से उसके परफ्यूम और तन से आने वाली भीनी खुशबू का एहसास हुआ था. वे सूटकेस में उसके कपड़े टटोलने लगे, लेकिन जो वे ढूँढ़ रहे थे वो उन्हें नहीं मिला.

वे थोड़े असमंजस में पड़ गए, आखिर उन्हें होना तो यहीं चाहिए था. अब उन्होंने जरा ध्यान से सूटकेस में रखी चीज़ें चेक करना शुरू की, उसमें मनिका के कुछ कपड़े थे जो उन्होंने उसे अभी तक पहने नहीं देखा था, बाकी तो आज उसने उनके साथ ही लॉन्ड्री में दिए ही थे. एक दो डिब्बों में झुमके-रिबन-बालों की क्लिप-बैंड इत्यादि सामान था. एक छोटा मेकअप किट भी उनके हाथ लगा. फिर उन्होंने सूटकेस के ऊपर वाले पार्टीशन में देखना शुरू किया. वहाँ भी मनिका के कुछ कपड़े और एक कपड़े व नायलॉन से बना किट रखा था. जयसिंह ने पाया कि उसने पहली रात जो शॉर्ट्स और गन्जी पहनी थी वे वहाँ रखे हुए थे. पहली रात के मनिका के हुस्न के दीदार की याद आते ही उनका कुछ शांत होता लंड फिर से उछल पड़ा था. अब उन्होंने वह किट बाहर निकाला, उसके साइड में ज़िप लगी हुई थी और वह एक बक्से की तरह खुलता था. जयसिंह ने उसे खोला और उन्हें अपने मन की मुराद मिल गई, उसमें मनिका के अंतवस्त्र थे. उस किट के अंदर लगे एक लेबल से जयसिंह को पता चला कि वह एक लॉनजुरे कैरिंग-केस था. जिसमे ब्रा रखने के लिए अलग से स्तननुमा जगह बनी हुई थी ताकि उनके कप मुड़े ना, और साइड में छोटी-छोटी पॉकेट्स थीं जिनमें मनिका ने बड़े करीने से अपनी पैंटीज़ समेट कर डाल रखीं थी.

'कैसी-कैसी चीज़ें है इस रंडी के पास देखो जरा...ब्रा और कच्छियों के लिए भी अलग से केस...वाह'.

अपनी जवान बेटी के अंतवस्त्र हाथ में लेने का मौक़ा जयसिंह एक बार गँवा चुके थे लेकिन इस बार उन्होंने एक पल भी सोचे बिना मनिका की ब्रा-पैंटीयों को निकाल-निकाल कर देखना शुरू किया. कुल मिलाकर उसमे तीन जोड़ी रंग-बिरंगी ब्रा-पैंटीयाँ थीं (ब्रा: पर्पल, गुलाबी और सफ़ेद, पैंटी: पर्पल, हरी और स्काई-ब्लू). मनिका के ये सभी अंतवस्त्र बेहद छोटे-छोटे थे. जयसिंह मनिका की छोटी सी और कोमल पर्पल पैंटी को अपने हाथ में लेकर देख रहे थे. उसकी तीनों ही पैंटी थोंग स्टाइल की थीं 'और एक गुलाबी वाली जो चिनाल ने पहन रखी होगी' उन्होंने सोचा था. जयसिंह की पैंट में अब तक उनका लंड उनके अंडरवियर में छेद करने पर उतारू हो चुका था. जयसिंह रह नहीं सके और मनिका की पैंटी अपने नाक के पास ले जा कर उसकी गंध ली थी. पैंटी धुली हुई थी लेकिन फिर भी उसमें से एक हल्की मादा गंध आ रही थी 'आह्ह्ह...’ एक जोरदार आह भर जयसिंह ने अपनी पैंट की ज़िप खोल अंडरवियर के अँधेरे से अपने लंड को आज़ाद किया. लंड उछल कर बाहर आ उनके हाथ से टकराया था और 'थप्प..’की आवाज़ आई थी. जयसिंह ने नीचे देखा और अपने काले घनघोर लंड पर अपनी बेटी की छोटी सी पैंटी लपेट बेड पर पीछे की ओर गिर पड़े.

जयसिंह बेसुध से हो गए थे. पैंटी का कोमल कपड़ा उनके खड़े लंड को गुदगुदा कर और उत्तेजित कर रहा था और उनका लंड फ़ुफ़कारें मार-मार हिल रहा था, उनके दोनों अंड-कोषों ने भी अपने अंदर भरी आग को बाहर निकालने की कोशिशें तेज़ कर दीं थी और दर्द से बिलबिला रहे थे. लेकिन आनंद की चरम् सीमा पर पहुँचने से पहले ही जयसिंह को अपनी भीष्म-प्रतिज्ञा याद आ गई थी, कि वे मुठ नहीं मारेंगे, और उन्होंने किसी तरह अपने आप को संभाल लंड पर से हाथ हटा लिया.

कुछ देर हाँफते हुए पड़े रहने के बाद जयसिंह ने मनिका की पैंटी अपने लंड से उतारी और उसके सभी अंतवस्त्रों के साथ वापस पहले जैसे ही जँचा कर रख दीं. अब उनकी नज़र किट में ही रखे एक काले लिफाफे पर गईं. कौतुहलवश उन्होने उसे भी खोला, उसमें लड़कियोँ द्वारा पीरियड्स में लगाए जानेवाले पैड्स थे और दो कॉटन की नॉर्मल अंडरवियर भी रखी थी जिनका इस्तेमाल भी वे समझ गए 'साली की उन छोटी-छोटी पैंटीज़ में तो पैड टिकते नहीं होंगे...हम्म तो पीरियड्स का सामान अभी तक पैक पड़ा है...पर आज बारह दिन हमें यहाँ आए हो चुके हैं मतलब वक्त करीब है.' जयसिंह जानते थे कि पीरियड्स के वक्त लड़कियों के मन की स्थिति थोड़ी बदल जाती हैं और वे इमोशनल जल्दी हों जाने की प्रवृति में आ जातीं है. जयसिंह के खड़े लंड के मुहाने पर गीलापन आने लगा था.

मनिका के पास कमरे में घुसने के लिए दूसरा की-कार्ड था और उन्हें आए हुए थोड़ी देर हो चुकी थी. उसके लौट कर आने का अंदेशा होने पर उन्होंने धीरे-धीरे सारा सामान वापिस रखना शुरू किया. सामान रख जब वे सूटकेस बंद करने लगे थे तो उनकी नज़र एक बार फिर मनिका के मेकअप किट पर पड़ी. किट तो बंद था परन्तु उसके पास ही मनिका का लिप-ग्लॉस, जो वह रोज लगाया करती थी, बाहर ही रखा था. जयसिंह ने उसे उठाया और ढक्कन खोल उसकी खुशबू ले कर देखा, बिल्कुल वही खुशबू थी जो उन्होंने मनिका के होंठों से आते हुए महसूस की थी. जयसिंह ने अपने लंड के मुहाने पर आए पानी को अपने हाथ के अंगूठे पर लगाया और मनिका के लिप-ग्लॉस के ऊपर-ऊपर फैला कर ढक्कन लगा दिया. लिप-ग्लॉस और प्री-क्म दोनों में ही चिकनापन होने की वजह से किसी को भी देखने पर कोई अंतर पता नहीं लग सकता था. उन्होंने जल्दी से सूटकेस बन्द कर जस का तस रखा और फिर से बेड पर पीठ के बल गिर पड़े, अपनी उस हरकत ने उन्हें उत्तेजना से निढ़ाल कर दिया था.

कुछ पल बाद उनका अपने-आप पर कुछ काबू हुआ और उन्होंने उठ कर बाथरूम में जा अपने हाथ धोए, उनका लंड अभी भी बाहर लटक रहा था, जयसिंह ने पंजो के बल खड़े हो अपना लंड आगे कर वॉशबेसिन के नल के नीचे किया और उसे भी ठंडे पानी की धार से शांत करने लग गए. तभी कमरे का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ हुई. जयसिंह हड़बड़ा गए, बाथरूम का दरवाज़ा खुला ही था, और जल्दी से अपना लंड अंदर ठूँस ज़िप बंद कर के हाथ धोए.

'पापा? क्या कर रहे हो? ‘मनिका की आवाज़ आई.

'कुछ नहीं बस थोड़ा आलस आ रहा था तो हाथ-मुहँ धो रहा था. आ गईं तुम?' जयसिंह ने कहा.

'हाँ पापा...आ गई हूँ तभी तो आवाज़ आ रही है मेरी...' मनिका ने उनकी खिल्ली उड़ाने के अंदाज़ में कहा.

'हाहाहा... हाँ भई मान लिया...' जयसिंह बाथरूम से बाहर आते हुए बोले थे. मनिका बेड के पास अपना मोबाइल चार्ज लगा रही थी, उनकी आहट सुन वह पलटी और एक बार फिर जयसिंह के होश फाख्ता हो गए.
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