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RE: Mastram अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति
दीप्ति तो उन दो उठी हुई टांगों के बीच में घुस कर उस बिचारी चूत पर भूखी शेरनी की तरह टूट पड़ी. दीप्ति का अनुभव भले ही कम था परन्तु तीव्र इच्छाशक्ति के कारण अपनी प्यारी देवरानी की चूत को जी भर के चाट सहला रही थी. अब किसी को प्यार करने के लिये कोई कायदा कानून तो होता नहीं भाई और फ़िर ये तो खेल ही अवैध संबंधों का चल रहा था.
दीप्ति के इस जोश भरे धावे को अपनी कोमल चूत पर सहना शोभा के लिये जरा मुश्किल हो रहा था. लेकिन दीप्ति जो जैसे जानवर हो गयी थी. बलपूर्वक शोभा को लिटाये रख कर क्या जांघ, क्या चूत, क्या पेड़ू सब जगह अपनी बेरहमी के निशान छोड़ रही थी.
"दीदी, जरा आराम से, प्लीज". शोभा ने याचना की.
पर दीप्ति के कान तो बन्द हो गये थे. मुहं से गुर्राहट का स्वर निकल रहा था और लपलपाती जीभ चूत के होंठों से रस पी रही थी. अपने दांतों का भी भरपूर इस्तेमाल कर रही थी लेटी पड़ी शोभा पर. पहले अन्दरुनी जांघ के चर्बीदार हिस्से को जी भर के खाया. फ़िर चूत के उभरे हुये होंठों को चबाया और तुरन्त ही घांव पर मरहम लगाने के उद्देश्य से अपनी लचीली जीभ को पूरा का पूरा उस गुलाबी सुरन्ग में घुसेड़ दिया. शोभा का दर्द और उत्तेजना के मारे बुरा हाल था. दीप्ति अगर ऐसे ही करती रही तो उसकी चूत अगले दो दिन तक किसी से चुदने के काबिल नहीं रहेगी. होंठों से थूक बहकर कान तक आ गया था. शोभा ने दोनों हाथों को ऊपर उठा, एक से टेबिल और दूसरे से सोफ़े का किनारा थाम लिया.
उधर दीप्ति भी तरक्की पर थी. शोभा ने तो दो उन्गलियाँ अन्दर डाली थी. दीप्ति ने एक साथ तीन उन्गलियां शोभा की नरम चूत में घुसेड़ दी. उन्गलियों के घर्षण के कारण एक बार के लिये शोभा की चूत में जलन मच गई और उसके मुहं से जोर से आह निकली. लेकिन दीप्ति ने इस सब की परवाह किये बगैर अपना हाथ आगे पीछे करना जारी रखा. शोभा का शरीर भी इस उन्गली चुदाई की ताल के साथ ऊपर नीचे होने लगा.
तभी दीप्ति को याद आया की कैसे छोटी ने उसकी क्लिट को चूसा था और फ़िर वो किस तरह से झड़ रही थी. उसे अपनी चूत पर वो बिन्दु भी अच्छे से याद था जो अकेला ही उसके नारी शरीर को थरथराने के लिये काफ़ी था. दीप्ति के होठों ने उसकी उन्गलियों का साथ पकड़ा और लगे शोभा कि चूत के मुहाँने को सहलाने. थोड़ी ही देर में उसे भी शोभा की चूत के ऊपर ठीक वैसा ही मटर के दाने जैसा हिस्सा मिल गया जो अब धीरे धीरे उभर कर काफ़ी बड़ा हो गया था. उन्गलियों से चूत चोदन जारी रख कर दीप्ति की जीभ उस छोटे से मांसपिण्ड पर सरकी. शोभा के मुहं से चीख फ़ूट पड़ी "दीदीईईईईईई, चुसो जोर से, मारो मेरी चूत.....", "माई गॉड, आप सच में, सच में...ओह्ह्ह मां".
"क्या सच में? हां? क्या? क्या हूं मैं? बोलो?" दीप्ति ने शोभा के ऊपर चढ़ते हुये अपना रस से सना मुखड़ा देवरानी के चेहरे के सामने किया. हरेक क्या-क्या के साथ अपनी उन्गलियां उसकी चूत में और गहरे तक मार रही थी.
"रंडी है आप दीदी, रंडीईईई...", "ओह दीदीईईई, और चूसो ना प्लीईईईज, मुझे आपकी पूरी जीभ चाहिये अपनी चूत में..." शोभा मस्ती में कराही.
"और मेरी उन्गलियां? ये नहीं चाहिये तुम्हें?" एक झटके में अपना हाथ शोभा की तड़पती चूत में से खींच लिया.
शोभा ने हाथ बढ़ा दीप्ति की कलाई को थाम लिया। "नहीं दीदी ऐसा मत करो. मुझे सब कुछ चाहिये. सब कुछ जो आप के पास है. मैं सब कुछ ले लूंगी अपने अन्दर. उससे भी ज्यादा. और ज्यादा...आह" कहते हुये शोभा ने वापिस अपनी जेठानी का हाथ अपनी उछलती चूत पर रख दिया. दीप्ति फ़िर से पुराने तरीके से शोभा की चूत मारने और चाटने लगी. परन्तु अब शोभा को और ज्यादा की चाह थी. वो उठ कर बैठ गय़ी. दीप्ति उसे बाहों में भरने के लिये बढ़ी तो शोभा ने उसे धक्का देकर नीचे लिटा दिया. और फ़िर दीप्ति के ऊपर आते हुये शोभा ने अपनी टपकती चूत दीप्ति के मुहं के ऊपर रख दी.
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RE: Mastram अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति
शोभा के दोनों हाथ दीप्ति के सिर के पास जमीन पर टिके हुये थे और गांड हवा में उठी हुई थी. धीरे से धड़ नीचे करते हुये शोभा ने अपनी चूत को दीप्ति के होठों पर स्थापित कर दिया. दीप्ति ने हाथ बढ़ा शोभा की पिछली गोलाईयों को जकड़ा और सामने से भांप निकालती चूत को अपने मुहं में भर लिया. इधर नीचे दीप्ति पूरी बेरहमी से अपनी जीभ शोभा की चूत में रगड़ रही थी और ऊपर शोभा बहुत धीरे धीरे शरीर को आगे पीछे कर के अपनी क्लिट को दीप्ति के अगले दांतों पर रगड़ा रही थी. जबर्दस्त सामंजस्य था दोनों का.
आगे जो हुआ उसका दोनों औरतों को कोई गुमान नहीं था. ना तो दीप्ति को आज तक ऐसा आर्गैज्म आया था ना ही शोभा को. लेकिन शोभा के उछलते चूतड़ों की बढ़ती गति और सिकुड़ते फ़ैलते चूत के होठों को देखकर अनुमान लगाया जा सकता था कि अब क्या होने वाला है.
जब शोभा की चूत की दीवारों से पानी छूटा वो जैसे अन्दर ही अन्दर पिघल गई वो. हरेक झटके के साथ उसका पेट भिंच जाता और फ़िर जोरों से एक हल्की सुनहरी धार चूत से फ़ूट पड़ती. अपने ही हाथों से अपने दुखते चूचों को बेदर्दी से मसल रही थी. उधर नीचे पेट में बच्चेदानी भी अपने आप ही फ़ैल सिकुड़ रही थी. शोभा का खुद पर से काबू खत्म ही हो गया. उसका झड़ना रुक ही नहीं रहा था. एक एक बाद एक लगातार आती बौछारों से दीप्ति का पूरा चेहरा भीग गया. शोभा को दिलासा देने के लिये की वो उसके नितम्बों को कस कर निचोड़ रही थी. ढेर सारा गाढ़ा द्रव्य पी लेने के कारण दीप्ति का गला अवरुद्ध हो गया पर वो लाचार थी.
दम घुटने लगा तो जोर से मुहं से सांस ली और दुबारा से एक साथ शोभा की चूत में रुका हुआ पानी उसके गले में भर गया. पर उसने चूत पर जीभ चलाना नहीं छोड़ा. शोभा का बदन अभी तक उत्तेजना और आनन्द के कारण कांप रहा था. थोड़ी देर में शोभा सुस्त हो कर दीप्ति के ऊपर ही गिर पड़ी. इस शक्तिशाली ओर्गैज्म ने उसके शरीर से पूरी ताकत निचोड़ ली थी. शोभा की चूत अभी तक दीप्ति के चेहरे पर रस टपका रही थी. दीप्ति को समझ में नहीं आ रहा था कि इतने पानी का वो क्या करे. खा पीकर ही तो शुरु की थी ये प्रणय क्रीड़ा दोनों ने और अब तो शोभा के पानी से भी उसका पेट भर गया था. उसके होठों से नकारे जाने पर वो चिकना द्रव्य दीप्ति के गालों और बालों से बहता हुआ जमीन तक आ गया और धीरे धीरे सरकते हुये उसके पैरों तक पहुंच गया. अब दोनों ही औरते एक दूसरे के रस से लथपथ हुई पड़ी थीं.
शोभा दीप्ति के शरीर पर से उतर कर जमीन पर उसके बाजु में आ गयी और उसकी तरफ़ चेहरा कर लेट गयी. दीप्ति ने शोभा की टांग उठा कर अपने ऊपर रखी और इस प्रकार दोनों औरतों की चूत एक दुसरे से चिपक गई. एक दूसरे को बाहों में लिये दोनों ही काफ़ी देर तक चुपचाप पड़ी रहीं. दोनों के जीवन में ऐसा पहले कभी ना हुआ था. दीप्ति शोभा को सहलाते पुचकारते हुये वापिस होशोहवास में आने में मदद कर रही थी.
"आपमें और मुझमें कोई मुकाबला नहीं है दीदी." शोभा बुदबुदाई. "जैसे अजय आपका है वैसे ही मैं भी आपकी ही हूं. आप हम दोनों को ही जैसे मर्जी चाहे प्यार कर सकती है. अगर ये सब मुझे आप से ही मिल जायेगा तो मैं किसी की तरफ़ नहीं देखूंगी" कहते हुये शोभा ने अपनी आंखें नीची कर ली.
शोभा के बोलों ने दीप्ति को भी सुधबुध दिलाई को वो दोनों इस वक्त हॉल में किस हालत में है. कुशन, कपड़े और फ़र्नीचर, सब बिखरा पड़ा था. इस हालत में तो दुबारा पहले की तरह कपड़े पहन पाना भी मुश्किल था. दीप्ति ने शोभा की गांड पर थपकी दी और बोली, "छोटी, हम दोनों को अब उठ जाना चाहिये. कोई आकर यहां ये सब देख ना ले".
"म्म्मं, नहीं", शोभा ने बच्चों की तरह मचलते हुये कहा और दीप्ति के एक मुम्मे को मुहं में भर लिया.
दीप्ति ने समझ बुझा कर उसे अपने से अलग किया. हॉल में बिखरे पड़े अपने कपड़ों को उठा कर साड़ी को स्तनों तक लपेट लिया और ऊपर अपने कमरे की राह पकड़ी. जाती हुई दीप्ति को पीछे से देख कर शोभा को पहली बार किसी औरत की मटकती गांड का मर्दों पर जादुई असर का अहसास हुआ.
दीप्ति ने पलट कर एक बार जमीन पर पसरी पड़ी शोभा पर भरपूर नज़र डाली और फ़िर धीमे से गुड नाईट कह ऊपर चढ़ गई.
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RE: Mastram अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति
अजय के सामने ही शोभा दीप्ति को अपने नीचे दबा एक हाथ से उनकी चूत में पांचों उन्गलियां घुसाये दे रही थी और दूसरे से दीप्ति के चूचों को निचोड़ रही थीं. चाची के होंठ दीप्ति के होंठों से चिपके हुये थे और जीभ शायद कहीं मां के गहरे गले में गोते लगा रही थी. आंख के कोने से शोभा चाची ने अजय को लन्ड मुठियाते देखा तो झटके से जेठानी की चूत को छोड़कर अजय की कलाई थाम ली. अजय का हाथ उसके लन्ड पर से खींच कर चाची दीप्ति के कानों मे फ़ुसफ़ुसाई "दीदी, देखो हमारा अजय क्या कर रहा है?"
इस प्रश्न के साथ ही शोभा ने दीप्ति और अपने बीच में चल रहा अजय का विवाद भी जैसे निपटा दिया. और यही तो उन दोनों के बीच चले लम्बे समलैंगिक संभोग का भी आधार था. जिस्मों की उत्तेजना में कुछ भी स्वीकार कर लेना काफ़ी आसान होता है.
हां, अपने बेटे के सामने दीप्ति पूरी तरह से चरित्रहीन साबित हो चुकी थी परन्तु जब उसने शोभा के हाथ को अजय के विशालकाय लंड को सहलाते देखा तो उसे शोभा में अपनी प्रतिद्वंद्धी नहीं, बल्कि अजय को उसके ही समान प्यार करने वाली एक और मां दिखाई दी.
अजय हालांकि रोज अपनी मां को चोदता था और इस तरह से उसकी शारीरिक जरुरतें सीमा में रहती थी. किन्तु मां सिर्फ़ रात में ही उसके पास आती थीं. उसके बेडरूम के बाहर वो सिर्फ़ उसकी मां थीं. अपनी मां के जाने के बाद ना जाने कितनी ही रातों को अजय ने चाची के बारे बारे में सोच सोच कर अपना पानी निकाला था. अन्जाने में ही सही, एक बार तो चाची की चूत के काफ़ी नजदीक तक उसके होंठ जा ही चुके थे और दोनों ही औरतों ने अपने मुख से उसके लण्ड की जी भर के सेवा भी की है. वो भी उन दोनों के इस कृत्य का बदला चुकाने को उत्सुक था. पर किससे कहे, दोनों ही उससे उम्र में बड़ी होने के साथ साथ भारतीय पारिवारिक परम्परा के अनुसार सम्मानीय थी. दोनों ही के साथ उसका संबंध पूरी तरह से अवैध था. अपने दिल के जज्बातों को दबाये रखने के सिवा और कोई चारा नहीं था उसके पास.
इसीलिये जब उसकी चाची ने मात्र एक चादर में लिपट कर उसके कमरे में प्रवेश किया और अपने भारी भारी स्तनों को मां के कन्धे से रगड़ना शुरु किया तो वो उन पर से अपनी नज़र ही नहीं हटा पाया. शोभा की नाजुक उन्गलियां अजय के तने हुये काले लन्ड पर थिरक रही थीं तो बदन दीप्ति के पूरे शरीर से रगड़ खा रहा था. दोनों ही औरतों के बदन से निकला पसीने खुश्बू अजय को पागल किये जा रही थी. दीप्ति ने जब अजय को शोभा के नंगे शरीर पर आंखें गड़ाये देखा तो उन्हें भी अहसास हुआ कि अजय को भरपूर प्यार देने के बाद भी आज तक उसके दिल में अपनी चाची के लिये जगह बनी हुई है. दोनों औरतों के बदन के बीच में दीप्ति की चूत से निकलता आर्गैज्म का पानी भरपूर चिकनाहट पैदा कर रहा था.
"देखो दीदी" शोभा ने अजय के फ़ूले तने पर नजरें जमाये हुए कहा. कुशल राजनीतिज्ञ की तरह शोभा अब हर वाक्य को नाप तोल कर कह रही थी. दीप्ति को बिना जतलाये उसे अजय को पाना था. अजय को बांटना अब दोनों की ही मजबूरी थी और उसके लिये दीप्ति की झिझक खत्म करना बहुत जरूरी था.
"कैसा कड़क हो गया है?" दीप्ति के चूतरस से सने उस काले लट्ठ को मुट्ठी में भरे भरे ही शोभा धीरे से बोली.
दीप्ति के गले से आवाज नहीं निकल पाई. उत्तेजना में उन्होनें शोभा के भारी नितम्बों को थाम कर उसे अपने ऊपर दबाया ताकि जलती हुई चूत की किसी से तो रगड़ मिले. शोभा ने चेहरा दीप्ति की तरफ़ घुमाया और अपने होंठ दीप्ति के रसीले होंठों पर रख दिये. दीप्ति के होंठों को चूसते हुये भी उसने अजय के लंड को मुठियाना जारी रखा. नजाकत के साथ अजय के सुपाड़े पर अंगूठा फ़िराने लगी.
"चाचीईईईईई", अजय सिसक पड़ा. अंगूठे के दबाव से लंड में खून का दौड़ना तेज हो गया.
"इन दोनों को..." दीप्ति के भरे हुये होंठों पर जीभ की नोंक फ़िराते हुये शोभा बोली "यहां होना चाहिये.". अजय लण्ड पर चाची की कसती मुट्ठी से मचल सा गया.
दीप्ति की तो जान ही निकल गई. हे भगवान, शोभा के सामने उसे अपने बेटे का लंड चूसना होगा. लेकिन उसके कुछ कर पाने से पहले ही शोभा ने उसका सिर पकड़ कर अजय के फ़ुंफ़कारते लंड से इंच भर की दूरी पर रख दिया. इन सब कामों में शोभा पूरी सावधानी बरत रही थी कि किसी को भी कुछ भी जोर जबरदस्ती जैसा ना लगे. अजय ने ऊपर को कमर झटका शोभा कि मुट्ठी को चोदने का प्रयास किया पर तब तक शोभा ने अपनी मुट्ठी खोल सिर्फ़ सहारा देने के लिये लंड को दो उन्गलियों से पकड़ा हुआ था.
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RE: Mastram अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति
शोभा का पूरा चेहरा भीग गया था. वो चिकना मिश्रण उनके गालों से बह कर गर्दन से होता हुआ दोनों चूचों के बीच में समा रहा था.
चूत अब पानी से भरकर लबलबा रही थी. उसका छूटना जरुरी था. अजय को आज बल्कि अभी इसी वक्त उनकी चूत को चाटना होगा तब तक जब तक की उन्हें आर्गेज्म नहीं आ जाता.
शोभा ने हथेलिया अजय के सीने पर जमा बाल रहित चूत को उसके मुहं के ठीक ऊपर हवा में व्यवस्थित किया. अजय ने सिर को उठा जीभ की नोंक से चूत की पंखुड़ियों को सहलाया. सामने ही दीप्ति किसी कुशल रन्डी की भांति लन्ड की चूसाई में व्यस्त थी. अब शोभा की चूत अजय के मुहं में समाने के लिये तैयार थी और उसकी आंखों के सामने दीप्ति अजय का लन्ड खाने में जुटी हुई थी.
शोभा ने अपनी टांगें चौड़ा दी ताकि नीचे बैठने में आसानी हो. अजय ने भी फ़ुर्ती दिखाते हुये चाची की नन्गी कमर को जकड़ा और सहारा दे उनकी खुली चूत को अपने मुहं के ठीक ऊपर रखा. शोभा ने धीरे ने एक नाखून पेट में गड़ा उसे इशारा दिया तो अजय ने अपनी जीभ चूत के बीच में घुसेड़ दी. आधी लम्बाई तक चाची की चूत में जीभ सरकाने के बाद अजय ने उसे चूत की फ़ूली दीवारों पर फ़िराया और फ़िर किसी रसीले संतरे के फ़ांक के जैसे शोभा की चूत के होंठों को चाटने लगा. शोभा को तो जैसे जन्नत का मज़ा आ रहा था पर अभी अजय की असली दीक्षा बाकी थी. शोभा ने दो उन्गलियों से चूत के दरवाजे को चौड़ाया और खुद आगे पीछे होते हुये अपनी तनी हुई चिकनी क्लिट को अजय की जीभ पर मसला.
"हांआआआ.. आह", शोभा ने अजय को इशारा करने के लिये आवाज़ निकाली. जब अजय की जीभ क्लिट पर से हटी तो चाची शान्त बैठी रहीं. दुबारा अजय की जीभ ने जब क्लिट को सहलाया तो "हां.." की ध्वनि के साथ शोभा ने नाखून अजय के पेट में गड़ा दिया. कुछ "हां हां" और थोड़े बहुत धक्कों के बाद अजय समझ गया कि उसकी चाची क्या चाहती हैं.
चाची की ट्रैनिंग पा अजय पूरे मनोयोग से उनकी चूत को चाटने चोदने में जुट गया. उसका ध्यान अब अपने लन्ड और दीप्ति से हट गया था.
शोभा चाची हथेलियां अजय के सीने पर जमाये दोनों आंखें बन्द किये उकड़ू अवस्था में बैठी हुई थीं. उनकी पूरी दुनिया इस समय अजय की जीभ और उनकी चूत के दाने में समाई हुई थी. अजय की जीभ में जादू था. दीप्ति की जीभ से कहीं ज्यादा. जब पहली बार आईसक्रीम चाटने की भांति अजय ने अपनी जीभ को क्लिट पर फ़िराय़ा, लम्बे और टाईट स्ट्रोक, तो शोभा की चूत बह निकली. कितनी देर से बिचारी दूसरों के आनन्द के लिये कुर्बानियां दिये जा रही थी. लेकिन अब भी काफ़ी धीरज और सावधानी की जरुरत थी. अजय जैसे कुशल मर्द तक उनकी पहुंच पूरी तरह से दीप्ति के मूड पर ही निर्भर थी.
चूत के दाने से उठी लहरें शोभा के पूरे शरीर में चींटी बन कर रेंगने लगी थीं. बार-बार अजय के सीने में नाखून गड़ा वो उसको रफ़्तार बढ़ाने के लिये उकसा रही थीं. दोनों चाची-भतीजा मुख मैथुन के मामले में अनुभवहीन थे किन्तु शोभा जो थोड़ी देर पहले ही अपनी जेठानी के साथ काम संसार के इस मजेदार रहस्य से परिचित हुई थी, जानती थी कि अगर अजय रफ़्तार के साथ छोटे स्ट्रोक से उसकी क्लिट को सहलायेगा तो वो जल्दी ही आर्गैज्म की चरमसीमा पार कर लेंगी.
"आह..और तेज..तेज!", शोभा अपने नितंबों को अजय के ऊपर थोड़ा हिलाते हुये कराही. दीप्ति के हाथ भी शोभा की आवाज सुन कर रुक गये. जब उन्होनें शोभा के चेहरे की तरफ़ देखा तो आश्चर्यचकित रह गई. दोनों आंखें बन्द किये शोभा पसीने से लथपथ जैसे किसी तपस्या में लीन थी.
शोभा ने अजय के पेट पर उन्गलियों से छोटे घेरे बना जतला दिया कि उसे क्या पसन्द है. अजय भी तुरन्त ही चाची के निर्देश को समझ गया. जैसे ही उसकी जीभ सही जगह पर आती शोभा उसके जवान भरे हुये सीने पर चिकोटी काट लेती. अपनी चूत के मजे में उन्हें अब अजय के दर्द की भी परवाह नहीं थी.
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RE: Mastram अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति
"ऊह.. आह.. आह.. उई मांआआआ... आह", शोभा के मुहं से हर सांस के साथ एक सीत्कार भी छुटती. पागलों की तरह सारे बाल खोल जोर जोर से सिर हिलाने लगी थीं. शर्मो हया से दूर शोर मचाती हुई शोभा को दीन दुनिया की कोई खबर ना थी. अभी तो खुद अगर कमरे में उसका पति भी आ जाता तो भी वो अजय के मुहं को ना छोड़ती थी.
अजय की जीभ इतने परिश्रम से थक गयी थी. क्षण भर के लिये रुका तो चाची ने दोनों हाथों के नाखून उसकी खाल में गहरे घुसा दिये "नहीं बेटा अभी मत रुक.. प्लीज...आह". बेचारा अजय कितनी देर से दोनों औरतों की हवस बुझाने में लगा हुआ था. चाची तो अपनी भारी भरकम गांड लेकर उसके चेहरे के ऊपर ही बैठ गय़ीं थीं. फ़िर भी बिना कुछ बोले पूरी मेहनत से मां और चाची को बराबर खुश कर रहा था. अजय का लन्ड थोड़ा मुरझा सा गया था. पूरा ध्यान जो चाची की चूत के चोंचले पर केन्द्रित था.
दीप्ति बिना पलकें झपकाये एकटक शोभा को अजय के मुहं पर उछलते देख रही थी. शोभा, उसकी देवरानी, इस वक्त पूरी तरह से वासना की मूर्ति बनी हुई थी. सब कुछ पूरी तरह से आदिम और पाशविक था. उसका अधेड़ मादा शरीर जैसे और कुछ नहीं जानता था. ना कोई रिश्ता, ना कोई बंधन और ना कोई मान्यता. कमरे में उपस्थित तीनों लोगों में सिर्फ़ वही अकेली इस वक्त मैथुन क्रिया के चरम बिन्दु पर थीं. उनकी इन स्वभाविक भाव-भंगिमाओं से किसी ब्लू-फ़िल्म की नायिकायें भी शरमा जायेंगी. अजय की समझ में आ गया कि अगर किसी औरत को इस तरीके से इस हद तक गरम कर दिया जाये तो वो सब कुछ भूल कर उसकी गुलाम हो सकती है. अजय के दिल में काफ़ी सालों से शोभा चाची के अलग ही जज्बात थे. चाची ने ही पहली बार उसके लंड को चूसा था और उससे चुद कर उसका कौमार्य भी भंग किया था. आज वही चाची दुबारा से उसे एक नयी काम कला सीखा रही थीं और अगर इस समय उसके कारण शोभा के आनन्द में जरा भी कमी हुई तो ये उसके लिये शर्म की बात होगी. बाद में वो शोभा को अपने दिल की बात बतायेगा कि अब उन्हें किसी और से चुदने की जरुरत नहीं है. चाचा से भी नहीं. उन्हें जो चाहिये जैसे चाहिये वो देगा. चाची की चूत को चाटने का हक अब सिर्फ़ उसका है. नादान अजय, ये भी नहीं जानता था कि चाची आज पहली बार ही मुख मैथुन कर रही है और वो ही उनकी जिन्दगी में ये सब करने वाला पहला पुरुष भी है.
अब शोभा के सब्र का बांध टूटने लगा. दो-चार बार और अजय के जीभ फ़िराने के बाद शोभा चीख पड़ी "ओहहह!.. आहहहह.. मैं झड़ रही हूं अजय.. पी ले मेरे रस को ...बेटा... आह आह.. हां हां हांआआआ" आखिरी हुम्कार के साथ ही उनकी चूत से जोरदार धार निकल कर अजय के गले में समा गई. इतना सारा चूत रस देख अजय भी चकित था और वो भी इतनी तीव्र धार के रुप में. लेकिन ये तो बस शुरुआत भर थी. फ़िर तो शोभा चाची की चूत लन्ड की तरह रस की पिचकारीयां छोड़ने लगी. अजय के मुहं में तो चूत रस की बाढ़ सी ही आ गय़ी. चाची के कीमती आर्गैज्म की एक भी बूंद व्यर्थ ना हो, यही सोच अजय ने उनकी चूत के पपोटों को अपने होंठो के बीच दबा लिया. इस तरह शोभा अपना सारा रस अजय के मुहं में उड़ेल तो रही थी पर रस की तेज धार पर उसका कोई काबू नहीं रह गया था. नाक शोभा चाची की गांड के छेद में घुसी हुई थी और मुहं चूत पर. अजय का दम घुट रहा था. इतना सारा पानी एक साथ पीना मुश्किल था. थोड़ा सा रस उसके खुले मुहं के किनारे से बाहर बहकर उसके गालों पर आ गया था.
"दीदी, दीदी..देखो", शोभा उत्तेजना के मारे चीख सी रही थी. "आपके बेटे ने....आह.. आह...मेरे साथ क्या किया.. आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह. मर गईईईईईईईईईई", शोभा का पूरा शरीर कांप रहा था.
चाची का चूत रस अजय की क्षमता से कहीं ज्यादा था। सांस लेने के लिये अजय ने अपना सिर थोड़ा सा घुमाया तो शोभा की चूत से उसकी जीभ बाहर फ़िसल गई. मारे हवस के चाची ने अपनी गांड को पीछे ढकेला तो अजय की नाक उनकी चूत की फ़ांकों में घुस गई. शोभा ने उस बिचारी नाक को भी नहीं छोड़ा और लगी अपनी तनी हुई क्लिट को नाक की हड्डी पर रगड़ने. थोड़ी पस्त हो चुकी थी सो आगे को झुकते हुये अजय के धड़ पर ही पसर गई चाची. कमर ऊपर नीचे हिलाते हुये भी कुछ बड़बड़ा रही थी. "हमारा अजय अब सब सीख गया दीदी...अब आप भी उससे अपनी चूत चटवा सकती है॥ कभी भी..आह.." हर शब्द के साथ उनकी कमर तालबद्ध होकर अजय के चेहरे पर रगड़ रही थी. आर्गैज्म की तेज धारें अब बहते पानी में बदल गई थी. अजय को भी थोड़ी राहत मिली. अपना चेहरा चाची के चिकने चर्बीयुक्त पेड़ू पर रगड़ने लगा. शोभा को तुरन्त ही चूत में ढेर सारे छोटे किन्तु शक्तिशाली आर्गैज्मों का अहसास हुआ. मानों किसी ने जलती पटाखों की लड़ी घुसेड़ दी हो. शान्त होती शोभा के चेहरे पर असीम शान्ति पसर गई. अजय को गले लगा वो उसका धन्यवाद व्यक्त करना चाहती थी.
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