Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
12-09-2019, 02:18 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
मैने माँ की बात नही सुनी उसकी मुझे बेहद फिकर थी....माँ ने दवाइयाँ लेना शुरू किया तो उसे कुछ राहत मिली लेकिन जब भी वो किचन में ज़्यादा काम कर लेती या बर्तन वर्तन या ज़्यादा कपड़े ही धो लेती तो बस उसे कमज़ोरी आ जाती...इस वजह से दिन भर नौकरी की थकान के बाद जब घर लौटता तो माँ ढंग से खाना नही परोस पाती थी....ज्योति भाभी और राजीव दा दोनो ने कहा कि या तो क़ामवाली हाइयर कर लो या अगर ज़्यादा कोई चिंता की बात है तो फिर किसी लड़की से शादी करके उसे घर ले आओ ताकि घर की सेवा भी हो जाएगी और तुम्हारा अकेलपन भी कट जाए

पर मैं नही माना मुझे अपनी माँ को छोड़ किसी भी पराई औरत से संबंध नही बनाना था...माँ के इनकार के बाद मेरा नज़रिया पहले जैसा ही हो चुका था लेकिन माँ की मुहब्बत में कोई कमी नही थी पर यहाँ बात माँ का ध्यानरखने की थी इसलिए सच में मुझे किसी औरत की तो ज़रूरत थी ही...मैने फिर भी एक बुढ़िया सी कामवाली को हाइयर किया...लेकिन वो छुट्टिया बड़ी करने लगी तो मुझे उस पर सख़्त गुस्सा आया एक तो टाइम से पहले तनख़ाह की फरमाइश और बहुत छुट्टियाँ करती थी...

मेरी ज़िद्द के कारण ही माँ ने उसे काम पे रख रखा था वरना उसे तो कोई मन नही था....वो कपड़े धोना बर्तन मान्झ्ना तक कर देती थी उसके बाद माँ ही खाना बनाती थी जिस्दिन वो ना आए तो माँ मुझे फोन करके कहती थी...मैं भी तंग आ गया कि यार एक तो मिल नही रही? और ऊपर से इस कामवाली के नखरे...चाहता तो किसी भरपूर जवान औरत को रख लेता पर साली के भी नखरे ज़्यादा होते और राजीव दा ने तो सख़्त कहा कि इस शहर की ज़्यादातर कामवालियाँ बहुत खराब है तुम्हें लूट लेंगी या फँसा देंगी अकेला देखके....मैं बहुत डरता था इन सब चीज़ो से

उस दिन लॅपटॉप पे हिसाब कर रहा था....इतने दिनो तक माँ और मेरे बीच कोई संबंध नही बने थे....फिर भी मेरे अंदर की हवस जाग जाती थी और हम बिस्तर पे जितने भी हालात खराब हो एकदुसरे के करीब आने की कोशिश करते थे माँ ने मेरे बाज़ू को सहलाया और कहा कि उन्हें मुझसे कुछ बात करनी है

मैने लॅपटॉप बंद किया और माँ के साथ लेट गया....माँ ने नाइटी पहन रखी थी नीले रंग की जो कोलकाता से खरीदी थी उसके लिए...."बेटा मैं कह रही थी? कि देख मैं जानती हूँ तेरा किसी पराई औरत पे कोई खिचाव नही पर मेरे दिल के लिए ये बात मान ले और किसी से शादी कर ले ताकि इस घर में अकेलापन थोड़ा कम हो तू तो चला जाता है काम पे फिर मेरा क्या होगा अकेले बोल ज़रा"........माँ समझाने का प्रयत्न कर रही थी उसे सच में किसी जवान लड़की की ज़रूरत थी शायद वक़्त काटने और अपनी मज़बूरियो के चलते...मैं इतना अमीर तो नही कि 4-5 नौकर रख लून लेकिन मेरी तो यही कोशिश की थी कि हम जितने अकेले होंगे एकदुसरे के उतने ही दरमियाँ नज़दीक होंगे

आदम : देख माँ पहले भी कह चुका हूँ मुझे शादी करने का कोई मान नही

माँ : देख आदम तू एक मर्द है जवान है तेरे पास नौकरी है सबकुछ तो है तेरे पास अच्छे से अच्छी लड़की तुझे मिलेगी तेरी लाइफ में तू एक बार कोशिश तो कर

आदम : माँ तुम जानती हो? कल को अगर उस पराई लड़की ने हमारे और तेरे रिश्ते पे उंगली उठाई तो क्या होगा?

माँ : मैं सब जानती हूँ उसे पता चलने हम नही देंगे हम कुछ फ़ासले कर लेंगे अपने दरमियाँ और मेरी ये इच्छा भी तो है कि इस घर में एक सुलझी सुशील पढ़ी लिखी तुझसे मुझसे भी ज़्यादा मुहब्बत करने वाली कोई बिंगाली बहू आए देख मुझे चाहिए कि तू भी उससे मुहब्बत करे

आदम : माँ ये नही हो सकता भला तुझे छोड़के मैं किसी और से कैसे?

माँ : अपने दिल पे हाथ रखके तो सोच मेरी इस इच्छा को तू पूरी नही कर सकता बोल ज़रा मैं कब तक जवान रहूंगी अभी से तो काम करके थक जाती हूँ बीमारी हो गयी जैसे कब तक मैं तुझे संभालूंगी मैं चाहती हूँ कि मेरे बाद कोई तेरा ध्यान रखे

आदम : मामा (माँ के मेरे बाद कहने से मुझे जैसे दुख हुआ)

माँ ने मेरे चेहरे पे हाथ फेरते हुए मुझे पूचकारा मुझे लाख समझाया कि ये ज़िद्द छोड़ दे जो संभव नही वो कैसे हो सकता है?...मैने काफ़ी सोच विचार किया एक तरफ तो दिल ने कहा कर ले कब तक यूँ माँ को तरसाए रखेगा उसकी मज़बूरी तो देख....मैने माँ की तरफ निहारा...फिर मैने अपनी सहमति ज़ाहिर की...माँ ने मुझे अपने गले लगाया उसने कहा कि मुझे अगर कोई पसंद आए तो मैं उसे ज़रूर दिखाऊ एक तरह से एक माँ ने अपने बेटे को किसी पराई औरत को डेट करने का अवसर दिया था

अगले दिन राजीव दा को मैने ये बात कही वो मुझे मेन मार्केट के पोलीस थाना चौक पे चेक पोस्ट करते हुए मिले थे..."अर्रे कर ले भाई बहुत मज़े करेगा ज़िंदगी में कभी पर्मनेंट भी होना माँगता है दोस्त बस एक बार किसी औरत पे पर्मनेंट मोहर मार दे तो दिल की सारी हसरतें पूरी हो जाएगी बस जान सुनके शादी करना".........राजीव दा भी जैसे माँ की बातों से सहमत थे वो तो उल्टे यही चाह रहे थे कि मैं उनकी तरह घर बसा लूँ

मैं काफ़ी सोच विचार किए था...क्या मालूम जो माँ सोच रही है वैसा ना हो क्या मालूम घर पे आते ही उनकी बहू उन्हें कष्ट देने लगे? या फिर हमारे बीच की मुहब्बत में फासला होते होते कहीं दरार ना पड़ जाए....यही सब दिमाग़ में उल्जुलुल बातें आ रही थी मेरे और मैं अपने इरादे से लगभग मुक़रने के फिराक में था...समीर को कुछ कहा नही क्यूंकी वो सोफीया से शादी करके हँसी खुशी ज़िंदगी बिता रहा था खामोखाः वो यूँ परेशान हो जाता मेरे हालातों के चलते इसलिए उसे कुछ नही बताया...

उस दिन बाइक से घर की ओर जा रहा था....मैने पाया कि मैं लालपाड़ा से गुज़र रहा था...उफ्फ वहीं याद मुझे खीच रही थी.....मैं जानता था यहाँ सब पेशेवर रंडिया रहती थी...मुझे गुज़रते वक़्त याद आया कि वो एरिया पड़ने वाला था जहाँ मेरे दिल में बसी वो कातिल हसीना रहती थी....जिसका नाम था चंपा उफ़फ्फ़ उसकी अदा उसके पान चबाते वो होंठ वो मदमस्त अधखुली साड़ी में दिखता उसका यौवन जो अक्सर मुझे उसके घर पे खीच लाता था....

सोचते ही मेरा पूरा बदन सिहर उठा....मैने बाइक रोकी और उस गली की तरफ झाँका इतने दिनो से वापिस अपने होमटाउन आया पर एक बार भी उससे बात नही की...सोचा कि उसे कॉल भी कर लूँ पर ना जाने मन उस वक़्त क्यूँ नही माना? वो औरत जिसने मुझे सेक्स करना सिखाया...जिसके साथ कयि रातें गुज़ारी? जिसने माँ के प्रति मेरा नज़रिया बिल्कुल बदल डाला था....जिस माँ से कलतक नफ़रत करता आया? आज उसके आगोश में रहता था...उससे बेपनाह मुहब्बत करने की जो इच्छा मुझमें बसाई वो कोई और नही चंपा ही तो थी....जो मेरे दिल के इतने करीब थी उस जैसी खूबसूरत लड़की मैने अपनी पूरी ज़िंदगी में नही पाई थी काश वो उसका पेशा ना होता तो उसे ही अपने घर की बहू बना लेता मैं नही करता जात की परवाह ना ही हालातों की...

मेरे कदम अपने ही मन की कशमकशो में उलझे उस गली की तरफ बढ़ चले...जब वहाँ गया तो पाया कि कुछ नही बदला था...गली एकदम तंग हो चुकी थी भला इस बदनाम रास्ते पे अयाशों को छोड़के कदम ही कौन रखने वाला था? मैं जैसे ही चंपा के ठिकाने पे पहुचा...तो पाया वहाँ एक बड़ा सा ताला झूल रहा था..."अर्रे यार आज भी यह यहाँ नही है?"........मैं अपनी सोच में ही चुपचाप वहाँ खड़ा दरवाजे के सामने ताले को घूर्र रहा था

अभी दो कदम पीछे हटा ही था कि एक औरत को सामने खड़ा पाया...ये वहीं औरत थी जिसे चंपा काकी काकी कहती थी जिससे उसकी दोस्ती थी...उस औरत ने एक साड़ी साड़ी पहन रखी थी पेशे से तो वो भी रंडी ही थी....शायद मज़बूरी में उसने ये कदम उठाया था क्यूंकी उसके बातों में बड़ी कोमलता और मुलायमित थी...उसने मुझे आश्चर्य से घुर्रा फिर कहा

"तुम तो वहीं हो ना जो उस रात चंपा के पास आया था?".........

.मैने मुस्कुरा कर सर हां में हिलाया...

आदम : आंटी वो चंपा कहाँ है? सोचा इतने दिनो बाद यहाँ से गुज़ारा तो उससे मिलता चलूं कही कोई कस्टमर के साथ तो!

औरत : तुम्हें क्या नही पता? कि अब वो यहाँ नही रहती?

आदम : क्या? पर क्यूँ ऐसा क्यूँ हुआ? कहाँ चली गयी वो (मैने एका एक सवाली और परेशानी दोनो निगाहो से पूछा)

तो उस औरत के चेहरे पे दुख के भाव आए और फिर दुख रोने में तब्दील हो गया...मैने साफ पाया वो अपने आँसू पोंछते हुए मुझे देखके मुस्कुरा रही थी जैसे अपने दुख पर काबू करना चाह रही हो
Reply
12-09-2019, 02:18 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
आदम : क्या हुआ आंटी? आप रो क्यूँ रही है? चंपा कहाँ है? क्या उसने ये शहर छोड़ दिया (जानने को मेरा दिल बेताब था एक वहीं तो मेरे दिल के इतने पास थी)

औरत : अब वो कभी नही आएगी बाबू वो अब इस दुनिया में ही नही रही वो छोड़के चली गयी हमेशा हमेशा के लिए इस ज़ालिम दुनिया को....लेकिन गम इस बात का है कि मरी भी तो कैसी मौत? कौन था उसकी माँ और बहन के सिवाय उसका ज्सिके लिए वो अपने जिस्म को बैच बैचके पैसा इकट्ठा करती थी काश तुम होते उस वक़्त उसके बुरे वक़्त में तो शायद उसे कुछ सहनभूति तो मिलती तुम्हारा अक्सर ज़िक्र किया था उसने मुझसे कि तुम उसके लिए थे सबसे ख़ास थे उसके कस्टमर....पर थे उसके एक सच्चे दोस्त जिसे वो हर्पल याद करती थी

मैं एकदम खामोश था...चुपचाप जैसे ठहर सा गया ऐसा लगा जैसे कुछ ऐसा हो गया कि मैं होशो हवास खो बैठा था मेरी सबसे करीबी जानने वाली एक दोस्त मुझे छोड़के इस दुनिया से जा चुकी थी....मैं जानने को उत्सुक था कि आख़िर ऐसा क्या हुआ था उसके साथ? तो उस औरत ने बताया कि उसे गंदी बीमारी ने जकड लिया था जो अक्सर इस पेशे की औरतों को हो जाती है....उसकी बीमारी कब इतनी बढ़ गयी उसकी लापरवाही के चलते कि वो अपने आख़िरत को नही रोक पाई....औरत ने बताया कि उसने उसे काफ़ी सावधानी बरतने को कहा पर थी तो वो भी लापरवाह इस चलते उसे एड्स हो गया था....जो उसकी मौत का कारण बना..

मिला तो मैं भी था उससे कयि बार लेकिन कभी इस मुसीबत को मैने दावत नही दी थी.....हम दोनो एकदुसरे के बेहद इतने करीब आए थे कि जितना करीब मैं अपनी ज़िंदगी में किसी औरत के साथ भी नही कुछ ऐसा किया था...वो पल वो दृश्य वो याद सब मेरे ज़हन में बिताए उसके साथ घूम रहे थे....मुझे उसके मौत की खबर ने जैसे झींझोड़ दिया था....

आदम : इतना सबकुछ हो गया और मुझे कोई खबर भी नही लगी उफ्फ चंपा ये तू कैसा दर्द देके गयी? (मन ही मन मैं खुद को कोस्ता सा बोला)

औरत ने जब मेरी आँखो में उसके खोने के गम को देखा तो उसे आश्चर्य हुआ मैं लगता ही उसका कौन था? था तो उसके चाहने वालो में से ही एक...लेकिन मेरे उमड़ते आँसुओं को देख उसने मुझे शांत होने कहा इस बीच मैने उसे अपने आँसुओं को भी पोंछते देखा

औरत : बेटा ज़िंदगी और मौत पे किसी का बस नही...और ये तो होना ही था क्या कहा जाए? ये तो उसकी ख़ुशनसीबी कि मरने के बाद भी उसके चले जाने पे भी कोई आँसू बहा रहा है वरना हमारे लिए आँसू बहाता ही कौन है?

आदम : ऐसा नही है काकी मेरी ज़िंदगी में चंपा बहुत अहमियत रखती थी काश काश मैं वापस शहर आते ही उससे भेंट करता....पर सच पूछिए तो वक़्त की नज़ाकत ही कुछ ऐसी थी कि मैं चाह कर भी यहाँ ना आ सका मुझे बहुत दुख हुआ उसकी मौत का मुझे बेहद अफ़सोस है एक वहीं तो थी जिससे दिल-ए-हाल ब्यान करता था बस गम है इस बात का कि उसके लिए कुछ कर ना सका इतने दुख को समइते हुए भी उसने कभी उफ्फ तक नही किया मेरे सामने अगर कह कर देखती एक बार तो पक्का मेरा साथ उसे नसीब होता हर मुमकिन हर कोशिश उसकी मदद करता

औरत : बहुत देर हो चुकी है बेटा वो अब जा चुकी अब मेरी मानो तो यहाँ आना अब तुम्हारा फ़िज़ूल है शायद तुम ही रहे होंगे एक जो यहाँ आके उसके लिए इतना दुख प्रकट कर रहे हो वरना आजतक जीतनों के साथ भी वो सोई थी उनमें से किसी ने भी आके हमसे ठीक तरीके से उसके बारे में जाना तक नही मौत की खबर सुनते ही किसी और रंडी के पास चले गये होंगे भ्डवे क्यूंकी अब दिल बहलाने वाली जो नही रही

आदम : काकी प्ल्स ऐसा ना कहिए ये उसका पेशा था ज़रूरत नही...उसकी ज़रूरत तो वो पैसे थे जो मैं अक्सर उसे दिया करता था पर अफ़सोस मेरे वो पैसे भी उसके जान नही काम आए...एनीवे उनकी मदर और बहन जो थी वो कहाँ गयी?

औरत : करीब 2 महीने पहले जब वो बेहद बीमार थी तो उसने बताया कि उसकी माँ के पास उसे कॉल करने तक के लिए बॅलेन्स नही था और वो इतनी ज़्यादा कमज़ोर पड़ चुकी थी कि उस काबिल नही थी कि पैसे भेज सके उसी के पैसो पे ही तो उसकी बीमार माँ भी निर्भर थी...उसके ही पैसो पे उसकी बहन कॉलेज में पढ़ रही थी...जो करीब उसी की हम उमर थी चंपा का असल नाम तंज़िमा था...वो पस्चिम दीनयजपुर की थी बेचारी उसने इस पेशे को क्यूँ चुना? मैने मना भी किया हमारी तो मज़बूरी है तेरा क्या है तू जवान है तुझपे तो लोग पैसे बरसाएँगे पर जब कल को साथ थामने वाला कोई नही होगा....

आदम : अच्छा तो वो लोग यहाँ नही आए

औरत : आएँगे कैसे? एक माँ और बहन ही तो थी उसे हॉस्पिटल ले गयी थी डॉक्टर ने सॉफ कह दिया था इसे अड्मिट करना होगा अड्मिट करके भी क्या उखाड़ लेते वो लोग क्या उसकी बीमारी ठीक कर पाते जनरल वॉर्ड में उस सरकारी हॉस्पिटल में उसने दम तोड़ दिया कोई देखने नही आया उसे वो शूकर है मेरी सहेलियो का जो उसे काफ़ी मानती थी घर में भी उसके ये मेसेज भी हमने छोड़े थे पर वहाँ से कोई नही आया...और आते भी तो क्या मुझे तो डर है कि उसके मौत के बाद उसके परिवार का क्या हाल हुआ होगा?

मन ही मन में सच में आज मूड इतना खराब हो गया था कि कुछ कहने को नही...औरत ने बताया कि ये कमरा खाली हो चुका जो कुछ सामान भी था वो मकान मालिक ने ज़ब्त कर लिया....सुनके बेहद दुख हुआ मेरे अब वहाँ ठहरने की कोई उमीद नही थी बस अपने आँसू पोछते हुए इतना कहा

आदम : काश एक बार वो कह कर देखती बस एक फोन कॉल कर देती तो उसे कह पाता कि मुझे उसकी कितनी परवाह है? उसे हर मुमकिन मदद की कोशिश करता उसका इलाज मैं करता लेकिन शायद किस्मत में हमे जुदा होना ही लिखा था
Reply
12-09-2019, 02:19 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
मैं जाने लगा तो औरत ने मुझे रोका मैं पीछे मूड कर उनकी तरफ पलटा....तो उसने मुस्कुरा कर कहा क्या तुम उससे प्यार करते थे? ये जानते हुए कि उसकी क्या हैसियत थी वो क्या थी?....मैं भी मुस्कुराया अपने आँसू पोंछते हुए कहा बस दिल लग गया था उससे और प्यार किसी की इज़ाज़त लेके नही होता इसलिए तो प्यार अँधा होता है अब वो नही तो मेरा यहाँ क्या काम? चलता हूँ....इतना कहते हुए मैं आगे बढ़ चला वो औरत वहीं खड़ी रह गयी कशमकश में घिरी....हैरत से दूर जाते मुझे मन में आया होगा? कि कितनी खुशनसीब थी वो कि उसके पास कोई तो था उसकी परवाह करने वाला लेकिन बदनसीब थी वो जिसने अपने पेशे के चलते अपनी ज़िंदगी ही कुर्बान कर दी


खुद को कोसते हुए मैने खुदा से जैसे नाराज़गी जताई कि क्यूँ तूने ये सिला दिया मुझे एक बार तो रूपाली भाभी का दिल तोड़ा ही था...फिर माँ के इनकार के बाद ये क्या सिला मिला मुझे? क्या उस लड़की के रहने का कोई हक़ नही था मेरे जीवन में मैं उसे बदल देता काश मैं उसके लिए कुछ कर पाता? कैसा दुख दिया है तूने? कि हम एक जगह होके भी एकदुसरे से इतने दूर हो गये....मुहब्बत भी हुई तो उस पल जब साथ उसने मेरा छोड़ दिया वो मुझसे दूर हो गयी काश काश ये पेशा उसका ना होता? काश ये हालत हमारे क़ाबू में होते काश मैं कुछ कर पाता उस मासूम के लिए कुछ . क्या खुदा क्या ज़िंदगी तूने दी है? पर ये तो सच्चाई एक कड़वी सच्चाई कि क्या हाल होता है ऐसे पेशो में उतरी औरतों का ये तो शायद मेरी बदनसीबी थी जो मैं उसके लिए कुछ कर ना सका.....मैं बस अपने आँसू पोंछते हुए चुपचाप खामोश सा बुत बनके उसके बंद घर जिसके दरवाजे पे ताला झूल रहा था जहाँ हर पल मेरे खातिर वो दरवाजा खोले मेरा इंतजार कि जैसे घड़ी में ठहरी रहती थी...आज वहाँ जैसे कितनी खामोशी थी...

सच में ग़रीबी मोहताजपान किसी गाली से कम नही...ये जानते हुए कि वो कितनो के साथ सोई थी? भला मैं उसे कैसे आक्सेप्ट कर सकता था? माँ को अगर मालूम चलता कि मैं एक रंडी के लिए आँसू बहा रहा हूँ तो वो क्या सोचती? कि मुहब्बत करने को चंपा जैसी ही औरत मिली थी...मैं बाइक पे सवार हुआ और उस बदनाम गली से निकलता हुआ वापिस अपने घर लौटा...आज दिल बेहद टूट गया था...चंपा के साथ ऐसा कुछ बीत जाएगा इस्सह सोचा नही था ख्वाबो में भी... एक एक पल मैने जो उसके साथ गुज़ारे थे वो सब दिमाग़ में घूम रहे थे....

घर जब आया तो माँ गुनगुना रही थी...आज उसकी गुनगुनहट भी मुझे भा नही रही थी मूड जो इतना खराब था...मैं बहुत देर तक सोचता रहा बियर की चुस्किया लेता रहा..तो माँ नाराज़ हुई..

माँ : घर आया नही और पीने लगा..छि हाथ मुँह धोके इंसान कुछ खाता पीता है और तू इस नापाक चीज़ को पी रहा है और तो और अब तो घर लाने का सुरूर बना लिया तूने

मैने माँ की तरफ गुलाबी निगाहो से देखा वो नशा नही चंपा की मौत के दुख में हुआ था...माँ ने मेरी तरफ देखा फिर मुझे कंधे पे हाथ रखके कहा क्या बात है? मैने कहा कुछ नही बस ऐसे ही क्सिी की याद आ गयी....माँ ने मुस्कुराया और कहा मेरे बगैर भी तुझे किसकी याद आती है? कोई पसंद आ गयी क्या? मैं हँसके अपने दुख को समेटे हुए क्या कहता? कि माँ पसंद आई भी तो तुम कौन सा उसको अपना लेती? उसका हाथ पकड़ने से पहले ही वो खुदा को प्यारी हो गयी अब क्या उसका ज़िक्र करू तुझसे? मैं टालता रहा माँ मुस्कुराती रही..

मैने बियर की बोतल उठाई और उसे बाहर रखता हुआ अंदर आया...माँ आश्चर्य से मुझे देख रही थी.."आज से इन नापाक चीज़ो को हाथ लगाना बंद करता हूँ आज मैं एक तुझसे वादा करता हूँ आज से ये सब बंद आज से मैं एक भला इंसान बनके दिखाउन्गा".......मैने माँ की तरफ मुस्कुराते हुए कहा

आदम : गुस्सा थूक दूँगा ना कोई लफडा करूँगा ना झगडूँगा बस यही दुआ करूँगा कि तेरे साथ सारी ज़िंदगी बिता दूँगा अब तू जो चाहती है वो खुशिया मैं तुझे लाके दूँगा....माँ मैं राज़ी हूँ तू जिससे बोल मैं उससे शादी कर लूँगा

माँ ये सोचके मुस्कुरा उठी उसने मुझे अपने गले लगाया...फिर मेरी पीठ को सहलाया...भला कौन माँ अपने बेटे की खुशिया नही चाहती? मैं माँ के गले लगे ही रहा फिर उसे खुद से अलग किया....हमने एकदुसरे को देखके मुस्कुराया

माँ : बेटा मैं नही चाहती कि तू कोई जज़्बातो में बहके या क्सिी दबाव में आके बिना अपनी पसंद की किसी लड़की से शादी करे

आदम : नही माँ पसंद का क्या है? जो पसंद था उसे क्या अप्नाऊ अब? (चंपा के चेहरे को याद करते हुए माँ के इनकार को सोचते हुए) जब वहीं नही मिली मैं देखूँगा अगर कोई अच्छी लड़की मिली तो उसी से शादी करूँगा मुझे वक़्त दे मैं खुद तलाश करूँगा
Reply
12-09-2019, 02:19 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
माँ : वाहह मेरे लाल यही तो मैं चाहती हूँ कि तू अब अकेलेपन में कब तक जीता रहेगा? मैं जानती हूँ तू गृहस्थी और ज़िम्मेदारी संभालना नही चाहता पर संभाल तो रहा है ना मेरा बोझ

आदम : माँ खुद को बोझ ना कहना कभी तू मेरी हमदर्द मेरा सहारा मेरा सबकुछ है तू मेरी औरत है ?(माँ मेरे सीने से लग गयी तो मैने उसके माथे को चूमा फिर उसके बालों को सहलाते हुए अपने आँसुओ को पोछा)

आदम : चल खाना लगा दे मैं गुसलखाने से फारिग होके आता हूँ

माँ : अच्छा बेटा (अंजुम ने अपने बेटे पे गर्व महसूस किया अब वो भी चाहती थी कि इस घर में बहू आए और उसके बेटे को कोई उससे भी ज़्यादा मुहब्बत करे उसके साथ जीवन भर रहे और उसके बाद इस घर को संभाले )

आदम दुखी था दिल से टूटा अब तो उसे अपने आनेवाले कल में ही जीना था...शवर के नीचे भीगते उसके बदन के साथ आँसू भी जैसे छलक रहे थे...दिल और दिमाग़ पर चंपा की जैसे हँसी गूँज़ रही थी उसकी हर वो नज़ाकत से भरी बात....मन ही मन उसे चाह बैठूँगा सोचा नही था...कभी नही सोचा था....अब बस जो थी माँ थी और उसकी खुशिया जो चाह रही थी वहीं करना ठीक था...जब नहा कर फारिग होके आदम कमरे में लौटा

तो आज माँ उसकी पसंद के नमकीन चावल परोस रही थी झुक झुक के देने से उसके छातियो के कटाव सॉफ उसकी उस सेक्सी सी लाल नाइटी से दिख रहे थे...आदम ने ग्लास को होंठो से लगाया और पानी पिया तो माँ ने उसे डांटा...अभी खाना नही खाया और पानी पी लिया बेवकूफ़ लड़का माँ ने मुस्कुराते कहा तो आदम भी हंस पड़ा...

खाने से फारिग होने के बाद झींगुर की किर किर आवाज़ को सुन मैने खिड़की लगाई..."बेटा आज खिड़की खुला रहने दे बहुत गर्मी पड़ रही है"........आँगन की खिड़की को खोले आदम अंदर आया हो हो करती तेज़ सर्द हवाए जैसे घर में दाखिल हो रही थी..उसके शोर को दोनो खामोशी से सुनते हुए एकदुसरे के साथ बिस्तर पे लेटे हुए थे नींद दोनो में से किसी को ना थी...

एक हाथ आदम का माँ के कंधे पे था जो उसकी बाज़ू को सहला रहा था तो माँ की चूड़ियो वाली कलाई बेटे के खुले बदन पे थी...उसने अपने हाथ से बेटे के बालों से भरे सीने को सहलाया और उसकी तरफ मुस्कुराया...एक टाँग उसने खुद बेटे के जाँघो पे सटाया और बीच बीच में हल्का सा रगड़ भी दिया जिससे आदम का लंड फ़ौरन ही अकड़ गया....

माँ : क्या हुआ आज तू कुछ परेशान दिख रहा है?

आदम : न..नही तो

माँ : देख मुझसे झूठ मत बोल तेरी माँ हूँ तेरा सबकुछ जान सकती हूँ तुझे परेशान देखके मुझे ऐसा क्यूँ लगता है? कि क्या तू खुश नही कि तू शादी करे

आदम : नही माँ ऐसी बात नही बस फिकर है कि तू मुझसे दूरिया ना बना लेना (बात तो ज़हन में ये भी आदम के घर कर गयी थी माँ की चिंता थी उसे)

माँ : बेटा फ़ासले तो होते ही है तेरी होने वाली बीवी कल को होगी और तू अपनी माँ के साथ क्या संबंध बनाएगा? क्या उसे तू धोका देगा?

मन ही मन आदम ने बुद्बुदाया धोका तो तुझे भी तो दिया कि अपने व्याबचार रिश्तो के आड़े तेरी बहन उसकी बहू अपनी जिसे रूपाली भाभी कहता आया उसे गर्भ तेहरा मेरी वजह से उसके साथ सोया...उसकी भतीजी तबस्सुम दीदी के साथ सोया...क्या ये सब धोखा नही था जिससे वो अब तक अंजान थी?

आदम : नही माँ पर क्या मैं तुझे धोका दे सकता हूँ ?

माँ : वो तेरी बीवी है और बीवी पे हक़ उसके पति का लाज़मी तौर पे होता ही है तो फिर धोखा कैसा?

आदम : मतलब तू मुझसे दूर दूर रहेगी

माँ : बस उसे ना पता लग जाए सिर्फ़ इसलिए और मैं भी यही चाहती हूँ देख मैं अब तुझे कितना और झेल पाउन्गि मेरा शरीर भी तो साथ छोड़ देगा कल को क्या बुढ़िया नही हूँगी?
!
Reply
12-09-2019, 02:19 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
आदम : देख माँ तेरी उमर अभी हुई ही कितनी है तू अपने ससुराल में भी सब औरतों से जवान है ये सब विचार तेरे अंदर नही आने चाहिए तू मेरी है और सिर्फ़ मेरी तुझे अब भी मांसिक होते है...तू कहाँ से बुढ़िया है?

माँ : अर्रे बेटा नाराज़ क्यूँ होता है? अच्छा ठीक है मैं नही रहूंगी तुझसे दूर

आदम : इसी लिए तो कहा कि एक मज़बूरी के चलते क्या हम एक पराई औरत के लिए ऐसे दूर हो जाए

माँ आदम को समझाने का प्रयत्न कर र्रही थी....उसने बेटे से कहा कि इसमें क्या बुराई है? बस थोड़ा फासला ही तो बनाके रखना है फिर जब वो चाहेगा तब तब माँ उसके करीब होगी बेटे ने कुछ ना कहा....अंजुम ने बेटे की नाराज़गी को दूर करने के लिए उसके लिंग को उसके पाजामे के उपर से ही पाँव से घिस्सना शुरू कर डाला...

बेटे का क्रोध ज़्यादा देर तक नही रहा माँ उसके बदन से जैसे लिपट गयी बेतहाशा उसके चेहरे को चूमने लगी....आदम ने माँ की तरफ देखा...वो गरम हो चुका था...उसने माँ को खुद अपने बदन से खीचके लिपटा लिया और उसकी पीठ को नाइटी के उपर से ही सहलाने लगा...गले को चूमते हुए माँ की ज़ुल्फो में अपने चेहरे को सटाते हुए कान में उसको फुसफुसाया "क्या माँ तू मुझे छोड़के तो नही जाएगी ना कही?"..........


माँ ने बेटे के कंधे पे अपना सर रखके उसे लिपटे हल्की सी हँसी दी फिर कहा जब तक सास है तब तक तेरी ही रहूंगी मैं.....आदम जैसे भावुकता से माँ और कस कर लिपट गया और माँ भी....मन ही मन में अंजुम को ये बात छेड़ रही थी कि कही सच में उसका फासला बेटे से दूरिया ना बन जाए...पर ये तो रीत चली आ रही है...माँ के बाद बीवी ही घर को संभालती है....

माँ ने बेटे के पाजामे को खीचके नीचे कर दिया....और उसके लंड को मुँह में भर के एक बार चूस लिया....उसके इर्द गिर्द बाल उग चुके थे...शायद बेटे ने अपनी झान्टे इतने दिनो तक काम में व्यसत रहने से फारिग होके सॉफ नही की थी...उसने उन अंडकोषो को भी चूमा...फिर बेटे के सामने ही अपनी नाइटी का नाडा खोला...

डोरी के खुलते ही....वो मदरजात नंगी बेटे के सामने प्रस्तुत हो गयी....बेटे ने उसे पीठ से थामते हुए मज़बूती से अपने बाजुओं में उसे सीधा बिस्तर पे लेटा दिया....टांगे उसकी चौड़ी की और थूक उसकी चूत पे मला....लंड को चूत के मुआने पे हल्का प्रेशर देके अंदर घुसाया....तो माँ ने चीखके के बेटे के सीने को और कस कर सहलाया....आदम ने भीतर तक लंड घुसा दिया...

फिर उसकी दोनो टांगे अपनी कमर से लिपटा ली फिर हल्के 12-20 धक्के आगे पीछे करते हुए अपना कुल्हा हिलाया....लंड सतसट अंजुम की गीली सख़्त चूत की भीतरी दीवारो से घिस्सते हुए अंदर बाहर हो रही थी....माँ की चूत फाछ्ह फ़च की आवाज़ करते पानी छोड़ रही थी...

लंड जैसे उसने अपनी चूत में जकड लिया...और बेटे के सर को अपनी चुचियो पे जैसे भर लिया बेटे ने दोनो छातियो को बारी बारी से मसला....फिर उसे एक एक करके उनके ब्राउन निपल्स को चखते हुए चूस लिया..माँ मारे उत्तेजना में सर इधर उधर मार रही थी....और बेटा उसकी आहों के शोर से उसका दीवाना बनके उसकी चुदाई करने में मशगूल था..

"आहह बेटा और ना कर देरी बॅस अब और नही सहा आजाता इस्शह".......

"ओह्ह्ह माँ ओह्ह्ह माँ".........
Reply
12-09-2019, 02:19 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
.चूत में बेटे के लंड की घिसाई बढ़ गयी.....चुबन जैसे उसे किसी खुन्टे की अपने भीतर लगी....बेटे ने मारे उत्तेजना में उसे मिशनरी पोज़िशन में कुछ 10 मिनट तक और नियंत्रण पाते हुए अंदर बाहर करके चोदा....और उसी बीच माँ ने कस कर टांगे बेटे के कमर में जकड ली...बेटे ने भी माँ को पीठ से लिए अपनी गोदी में उठा लिया

अब तो जैसे माँ उसके कंधे और सीने पे सर रखके जैसे उसकी गोदी में काँप रही थी....मुँह से इसस्सह इस्सह की आवाज़ निकाल रही थी....दाँतों पे दाँत रखके चढ़ाए थे उसने तो इस बीच बेटे ने सख्ती से उसके पीठ से उसे जकड़ा और उसका लंड वीर्य की पिचकारिया उसकी चूत में लबालब भरता चला गया..."उहह उग्घ".......अपनी उखड़ती साँसों पे नाकाम कोशिश पाए दोनो माँ-बेटे थक्के चुर्र एकदुसरे पे जैसे ढह गये....चादर हो गयी फिर खराब और माँ और बेटे वैसे ही नंगे एकदुसरे से लिपटे सो गये....

माँ की नाभि को सहलाते हुए बेटे ने जब चूत के मुआने से अपना लंड बाहर खीचा तो उसे हल्की सी जलन हुई माँ की चूत उसके सुख चुके वीर्य से लगी हुई थी और उसके लंड पर भी वीर्य के सूखे धब्बे लगे हुए थे...नींद नही आ रही थी

आदम उस रात बस माँ से लिपटा हुआ सोच रहा था कि अब आनेवाले कल पे ही पूरा फोकस करूँगा.....अब माँ की खुशी और उसके आराम के लिए एक मनपसंद बहू घर में लाउन्गा...इस बीच कब आँख लगी पता नही चला

उठी तो अंजुम सुबह 3:30 बजे जब उसे कस कर पेशाब लगी उसने एक बार हाथ से अपने चूत के मुआने को टटोला जहाँ कल भी शायद बेसवरी और बदखयाली में दोनो ने सावधानी जैसे मिस कर दी...चूत वीर्य से चिपचिपी थी....अंजुम उठी और पहले वो पेशाब करने गयी वहाँ से आके उसने अपने तौलिए से गीले बदन को पोछा..फिर नंगी ही पलंग पे बेटे के पास बैठी उसने एक ग्लास पानी भरा और गोली खाई....एक बार उसने अपने खुले बाल को समेटते हुए बेटे की तरफ मूड के देखा उसकी निगाह उसके नंगे बदन पे हुई अब भी वो नंगा सो रहा था....अंजुम कुछ देर वैसे ही बैठी रही बेटे की शादी की सोच में डूबी सी...फिर उठी और बेटे के साथ लेटते हुए उसने चादर अपने और आदम दोनो के उपर ढक ली उसने एक हाथ पेट के बल लेटे बेटे के पीठ पे फेरते हुए उसके कुल्हो पे रखते हुए सहलाया उसकी पीठ को चूमा और उसे प्यार करके उसके बदन से जैसे लिपटके सो गयी...

वक़्त के साथ साथ इंसान को भी अपने आपको बदलना पड़ता है...हालत चाहे जैसे भी हो...इंसान खुद पे खुद अपने ज़ज़्बातो पर काबू पाना सीख जाता है....लेकिन कुछ घाव और दर्द चाहे दिल के हो या शरीर के वो कभी कभार तो अपने कभी होने की मज़ूद्गी का अहसास तो करा ही जाते है...कुछ वैसा ही हाल था मेरा....बीते कल को भूलके आज में जी रहा था मैं...अब ज़िंदगी को फॉर्वर्ड तरीके से ही चलानी थी...ना पिछला आ सकता था और ना ही उसे याद करके कोई पछतावा कर सकता था....जो हाथ से बीत चुका सो बीत गया....ज़िंदगी और मौत पे भी इंसान का बस नही चलता.....चंपा की मौत महेज़ एक दुर्घटना ही मानके मैं उसे भी धीरे धीरे अपने यादों से मिटा चुका था.....अब मैं एक जिन्दादिल खुशकिस्मी मिज़ाज़ खुद को बना रहा था....

अब मैं कोई लड़का नही एक ज़िम्मेदार मर्द बन चुका था....जिसने पिता से वादें किए और माँ को उनसे दूर करके उन्हें अपने संग लेके जी रहा हो....ज़िंदगी की मौज मस्ती जिसे मैं कामवासना का खेल कहता हूँ...उसका भी खूब लुफ्त उठाया मैने....हर ठोकर से ये अनुभव किया कि चाहे वो रिश्ता किसी के साथ बेपनाह प्यार करने में हो या व्याबचार रिश्तो का मज़ा लेने में उसमें मज़ा भी है तो सज़ा भी....

व्याबचार रिश्ते क्या होते है? ये मैं अनुभव कर चुका था आज इसी हसरत ने मुझे मेरी माँ के साथ संबंध बनाने में मज़बूर किया...वरना मैं जिस माँ की कल कोई इज़्ज़त नही करता था आज उससे बेपनाह मुहब्बत करने लगा था....अज़ीबो ग़रीब प्यार हो या लोगो की नज़रो में हवस या गुनाहगारी मेरे नज़र में ये वो मीठा मज़ा था....जिसकी लज़्ज़त के खातिर मैं क्या कुछ नही करने से गुज़ारा? ये हसरत ये नशा ये लुफ्त ये मज़ा हाहाहा


आदम अपने होमटाउन माँ को लेके वापिस आया भी और उसने साबित किया कि वो किसी काबिल है उसने माँ के लिए फ्लॅट लिया उसे ऐशो आराम दिया खुद को ज़िमेद्दार काबिल सबकी नज़रों में बनाया जो उसे कल नाकामयाब और नाउम्मीदी से बिगड़ता गाली गलोच करता लड़का समझते थे जिसके बाप को कल यहाँ से शर्मिंदा होके अपनी करतूतो के चलते जाना पड़ा आज उस बेज़्ज़ती का बदला आदम ने सबको अपने अहंकार और रुतबे से दिया...वो थुक्ता भी नही था उन ददिहाल वालो की तरफ जिनकी निगाहो में उसके और उसके परिवार की कोई औकात नही थी...आज वो किसी लायक हो चुका था....

हमारी रोज़ मरा की ज़िंदगी अच्छी ही बीत रही थी ऐसा लग रहा था दुख के बदल अब छन्ट चुके....धीरे धीरे खुशिया फिर हमारे जैसे घरो में दस्तक देने लगी....काम में मेरी उन्नति हो रही थी...तो राजीव दा के साथ रोज़ हँसी मज़ाक करने की एक बैठक बैठती थी साथ में ज्योति भाभी होया करती थी जिनसे मैं बिल्कुल नही शरमाता था...पीने के बाद तो राजीव दा इतने बोल्ड हो जाते थे कि वो ये तक अपनी बीवी को कह देते थे...क्या पता मैं नशे में हो जाउ? और आदम तुझे भगा ले जाए? वैसे भी अपना आदम हॅंडसम जो ठहरा और सिंगल भी ....ज्योति भाभी मज़ाक मज़ाक में कयि बार राजीव दा को कस कर लगा भी देती थी और मैं ठहाका लगाए उनका ये मज़ाक सुनके हंसता था..सच में लज्जा मुझे भी आ जाती थी

वक़्त बीतता गया और माँ की खुशी के लिए मैने लड़की ढूँढना शुरू किया गाओं वाली लड़की लेने का मेरा कोई मन नही था...इसलिए शहर में ही कोई काबिल पढ़ी लिखी सुशील लड़की ढूँढ रहा था....बस फरक इतना था कि इस बार अपनी हवस के लिए नही अपने निक़ाह के लिए कोई औरत तलाश करूँ.....बेंतिहा खूबसूरत लड़किया जैसे मुझे आस पास दिखने लगी...सोचा किसी से बात आगे शुरू की जाए..लेकिन दिल एक पे भी ना आया...हार पछताके मैने उम्मीद छोड़ दी....
Reply
12-09-2019, 02:19 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
उस दिन घर आया तो पाया माँ एक औरत के साथ बात कर रही थी....खुले बाल थे उसके जैसा बताया हूँ यहाँ की उम्रदराज औरत कामवासना की जैसे मूरत है बाल एकदम खुले हुए नाइटी पहनी हुई थी जो आमतौर पे यहाँ की घरेलू महिलाओ की पोशाक है...मुझे देखते ही उसने मुस्कुराया मैने भी उन्हें सलाम किया...माँ ने बताया कि यह पास में ही रहती है..हम बातचीत करने लगे...तो माँ को आंटी ने कहा कि क्या बात है लड़का तो आपका बड़ा सुंदर है? माँ ने कहा ऐसा कुछ नही है....आंटी ने कहा नही नही पूरा आप पर गया है हाहाहा हँसी मज़ाक का दौर था और मैं कपड़े बदलने लिविंग रूम से अपने कमरे चला आया

मुझे नही मालूम फिर क्या बात हुई? जब वापिस लौटा तो माँ ने जैसे एक खुशख़बरी सुनाई उसने अपने फोन पे किसी लड़की की तस्वीर दिखाई मालूम चला कि वो फोटो अभी कुछ देर पहले आई उस औरत की भांजी का है नाम निशा है और अभी अभी कॉलेज ग्रॅजुयेट हुई है....मैने तस्वीर दिखी आमतौर पे तो एफेक्ट लगा क्यूंकी हद से ज़्यादा गोरी दिख रही थी माँ ने बताया कि उसने कबकि ये तस्वीर ब्लूटूथ से ले ली बात आंटी ने ही छेड़ा था मुझे देखते हुए...उन्हें भी तलाश थी अपने बेटी के लिए किसी नौजवान की

आदम : माँ ये सब तो ठीक है खूबसूरत भी है बेंगल की लड़कियो से थोड़ा हटके है ना साँवली है और ना ही कही से लगे की गवार काफ़ी स्मार्ट है पर तू जानती है ना की मैं क्या कहना चाहता हूँ?

माँ : हाँ बेटा चल के देख लेते है एक बार तू मिल ले ना...इसे खाना बनाना भी आता है घर यही संभालती है अपना इसलिए तो देख माँ बौराई घूमती है इधर उधर

यक़ीनन अब सीरत पढ़ना तो आसान नही...कैसी है? क्या कोई ज़िंदगी में है या सिंगल है? आजकल की बंदी है क्या मालूम कैसा रवैया हो? नखरेबाज़ ना हो? यही सब आमतौर पे सवालात के घेरे में माँ ने मेरी खामोशी को तोड़ा और कहा कि आज शाम को चलेगा देख भी लेना इस बहाने...उसकी माँ ने तुझे देखने की इच्छा जताई है...मैने कहा तो कह दे उनसे कि आज हम आ रहे है इस बात पे मुलाक़ात भी कर लूँगा उनकी बेटी निशा से..माँ खुशी से मेरे गले लग गयी...जब उसने मुझे गले लगाया तो मुझे उसके निपल्स अपने सीने पे चुभते महसूस हुए मैने उसे अलग किया वो एक चुम्मा मेरे गाल पे देते हुए किचन चली गयी खाना बनाने...

मैं खुश तो था नही ना ही मैं दिल फेक आशिक़ था कि उसे देखके फ्लॅट हो गया था...बस सवालातो के घेरे में था जो मेरे मन में चल रहे थे...माँ की ही फिकर थी क्यूँ चाहती है कि मैं दूरिया बनाऊ? शायद यही खुदा की मर्ज़ी है किसे मालूम?

माँ ने मुझे तय्यार किया कहा कि अच्छे से बनके चल..ऑफीस के पसीनेदार कपड़ों में मैं नही गया..ये मेरा पहला अनुभव था माँ के साथ रिश्ता देखने जाना....माँ और मैं उसके घर पहुचे....तो उनके पिता ने मेरा स्वागत किया बड़े हाशमुख थे बड़े बेचैन.....मुझे बिठा कर बीवी को ज़ोर ज़ोर से चिल्लाते हुए कहे कि अर्रे आओ ना मेहमान आ गये है....आज सिर्फ़ मेरी माँ ही मेरी गार्जियन बनके लड़की देखने आई थी मेरे साथ....हम दोनो चुपचाप बैठे हुए थे पिता तो माँ से गॅप करने लगा और मेरा प्रोफेशन और दिल्ली के घर बार के बारे में जानना चाहा...मैं सवालो का जवाब बड़ी सहेजता से दे ही रहा था...कि इतने में ट्रे में दो ग्लास शरबत भर लिए.....उन हाथो में निशा शरमो हया का जैसे लिबास ओढ़े बड़ी बड़ी पर झुकी निगाहो से मेरे सामने झुकी वो कोई गवार नही थी आते ही उसने मुझसे हल्की सी नज़र मिलाई फिर मुस्कुराइ....फिर सोफा के पीछे अपने चाचा चाची के पीछे खड़ी हो गयी...हँसी मज़ाक चलने लगा बातों बातों में परिवार की बात छिड़ी....माँ ने कहा पिता है पर दिल्ली रहते है बेटे की नौकरी के चलते हम यहाँ है...तो उन्होने भी बताया कि निशा उनकी अपनी सग़ी बेटी तो ना सही पर दिलो जान से वो उनकी एक मात्र घर की चिराग थी...जिसके लिए उन्होने अपनी सारी ज़िंदगी लगाई...ज़ज़्बातो भरी बातों में मैं जैसे खामोश रहा....बीच बीच में उठती निगाहो से निशा को देखा तो वो भी मुझे ही बड़े गौर से देख रही थी

मुझे अहसास हुआ इस बीच कि जैसे मुझे देखके उसे शरम नही बल्कि ऐसा लग रहा था जैसे मैं उसे पसंद आ रहा हूँ...क्यूंकी उसकी उंगलिया अब भी ट्रे थामे हुए जो थी उस पर अपने नाख़ून जैसे खुरच रही थी..उसकी आँखे एक टक मेरी ओर देखी तो मैं मुस्कुरा दिया तो उसने भी मुस्कुराया..ऐसा लगा देख ले आदम अभी से ही

उसके चाचा ने उसे आगे बुलाया और फिर उसे मेरे साथ अंदर के कमरे में जाके बात करने को कहा..कि बेटा तुम कुछ बोलो और एकदुसरे से कुछ देर बात करो....माँ सोफे पे ही बैठी रह गयी उसने मुझे जैसे जाने की इच्छा जताई...मैं उसके साथ उठा..तो उसने हल्के से कहा "आओ ना"......बांग्ला में उसने कहा

तो मैं उसके पीछे पीछे उसके कमरे में दाखिल हुआ गुलाबी रंग की दीवारें थी सजी धजी चीज़ें आसपास मज़ूद थी बिस्तर एकदम मुलायम गद्देदार था उस पर बैठते ही वो नज़ाकत से अपने बाल खोले और मुझे एकटक देखा....वहाँ तो मैं ही थोड़ा शरमा सा गया....उसने धीरे धीरे मुझसे खुलना शुरू किया मैं नोटीस कर रहा था कि कहीं वो पहले से चुदि चुदाई तो नही थी...फिर मैने अपने गंदे दिमाग़ को झटका और सोचा फ्रॅंक्ली होना भी कोई बुराई है क्या?
Reply
12-09-2019, 02:19 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
मैं कुछ देर तक उससे बात करते रहा और वो भी....उसने बताया कि वो बी.ए ग्रॅजुयेट थी और वो एक प्रोफेशनल बिंगाली डॅन्सर है पास रखे उसने अपने घूंघुरे दिखाए...बातचीत फिर अँग्रेज़ी भाषा में होने लगी...उसे मेरी अँग्रेज़ी बड़ी पसंद आई उसे यकीन नही हो रहा था कि दिल्ली का रहने रहा लड़का ऐसे छोटे टाउन में आके बस सकता है...मेरी संघर्ष भरी कहानी को सुनके वो काफ़ी जैसे इंप्रेस हुई...फिर बातों ही बातों में जैसे उसने टाँग खीची कि कोई गर्लफ्रेंड कभी बनाई? ऐसा लग रहा था जैसे उसे मेरे फ्रॅंक्ली और शांत स्मार्ट होने से झिझकना कम हो रहा था...वो एकदम खुलके मुझसे सबकुछ जान रही थी....मैने कहा नही...झूठ ही कहूँगा ना भाई क्या यह कह दूं है ना माँ है भाभी है मौसी है दीदी है तीन बच्चो का बाइयोलॉजिकल फादर भी हूँ

ऐसा डिस्क्रिप्षन बताके तो माँ और मुझे लात मारके वहाँ से निकाल दिया जाता...और बेज़्ज़ती होती सो अलग बाप रे ये दिमाग़ क्या कुछ नही सोच उमड़ देता है ऐसे वक़्त में....मैं उस वक़्त एक कुँवारा भोला भाला लड़का था...और वहीं मेरा वजूद था....करीब आधे घंटे बात ही की थी कि हम एकदम एकदुसरे से जैसे फ्रॅंक हो गये उसने बताया कि उसके पिता काफ़ी सख़्त है इसलिए कोई लड़का देखने नही देते थे और ना ही उसे कोई इच्छा थी वो इस होमटाउन के लड़को को दोष दे रही थी की ऐसे होते है वैसे होते है? फिर इस बीच माँ आ गयी और तपाक से बोली जिससे मैं हड़बड़ाया और वो भी..."क्या बातें हो रही है?".......माँ ने हम दोनो को प्यार से कहा....

"अर्रे ना ना काकी आइए ना"........निशा ने माँ को अपने साथ बिठाया इस बीच मैने गौर किया कि उसका पाजामा जो उसने पहना था वो उसके घुटनो तक सरकता आ गया था..और मैने गौर किया कि हमारे आने से पहले ही उसने वॅक्स कराया था....फिर उसने बताया कि उसे मेक अप का बहुत शौक है और वो माँ से साज़ सिंगार की बात करने लगी

फिर माँ ने मेरी टाँग खीची और उससे मज़ाक किया..."बहुत गुस्सैला है सोच लो इसके साथ रहना मतलब आग के साथ रहना"..........

."ऐसा नही काकी मुझे तो ये बहुत चार्मिंग लगा और ऐसा लग रहा है जैसे कितने दिनो की मुलाक़ात हो"......

."ओह हो अभी से हाहाहा"......माँ उसके खुले विचारो से इंप्रेस होते हुए हंस पड़ी

मैने निशा की मुस्कुराहट नोटीस की वाक़ई काफ़ी हसीन उसकी मुस्कान थी....मैं शरमा गया


कुछ देर और बातचीत हुई फिर बाहर आके माँ आंटी से बात करने लगी तो मैं उनके पिता के पास बैठके बात करने लगा....पिता मुझे बोले कि देखो मेरी इकलौती ही बेटी है तुमसे बहुत उम्मीदी जुड़ गयी है मेरी तुम मुझे बहुत पसंद आए हो ये बात मैं दिल पे हाथ रखके कहता हूँ जो लड़का अपनी माँ को इतनी सारी खुशिया दे सकता है वो अपनी होने वाली बीवी को भी उतनी खुशी देगा".....मैं मुस्कुराया शायद माँ ने ज़ज़्बातो के सैलाब में शायद मेरे आब्सेन्स में सबकुछ जैसे बताया उनका दिल हल्का था अपना दुख सुख बताना उनके लिए आम था....

मेरी बहुत प्रशंसा हुई उन दोनो को मैं बहुत अच्छा लगा....फिर हमारी मंज़ूरी पूछी गयी खासकरके मुझसे..निशा भी जैसे इसी आस में खड़ी शरमाते लहज़े में मुझे देख रही थी शायद उसे डर हो कि मैं उसे ना पसंद करू...शादी से इनकार कर दूं...लेकिन मैने कहा कि मुझे ये बात जानके खुशी हुई कि आपने उसका इतना ख्याल रखा मेरी माँ का जो फ़ैसला वो मेरा है....माँ ने मेरी तरफ देखके मुस्कुराया फिर उसने कहा मुझे तो बहुत ही पसंद है...और मैं जानती हूँ मेरा दिल जानता है मेरा बेटा आदम भी निशा को खूब पसंद कर रहा है हाहहाहा....हम सब हंस पड़े...

मैने शादी के लिए फ़ौरन हां कह दिया...तो निशा भी हंस पड़ी...उसकी राय माँ ने ही पहल करके पूछा...तो वो सिर्फ़ शरमाई और फिर कहा कि मैं उसे बहुत पसंद हूँ....उसके चाचा चाची हंस पड़े....फिर एकदुसरे से मुबारकबाद हुई....ये मेरा पहला अनुभव था मैं एक रिश्ते में बँधने जा रहा था....

निशा तो जैसे फूली नही समाई लेकिन मैं हल्का सा उदास था...बस तसव्वुर में ना जाने क्यूँ चंपा याद आई? क्या पता निशा उसकी जगह ले सके?.यही सोच ही रहा था कि इतने में इस खुशी में उसके पिता मेरे गले लगे तो मुझे होशो हवास में होने का अहसास हुआ...

हमारे घर में अभी से जैसे उनके घर का संबंध जैसे जुड़ गया था....हम वहाँ से विदा लिए तो जाते जाते भी निशा अपने चाचा के साथ हमे बाहर छोड़ने आई....फिर उन्होने कहा कि अब हमे तारीख पक्की करने दीजिए अगर आपको कोई ऐतराज़ ना हो...तो माँ ने भी कहा कि कोई जल्दबाज़ी नही सबकुछ आराम से होना चाहिए...फिर माँ और मैं उन्हें सलाम किया घर लौटे....मैने जब मूड कर एक बार देखा तो निशा ने जैसे मुझे अज़ीब सी मुस्कुराहट दी...मैं समझ नही पाया शायद मैं कुछ ज़्यादा ही उसे भा गया था...
Reply
12-09-2019, 02:20 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
पूरे रास्ते हम माँ-बेटे बात चीत करते हुए घर लौटे...पेट भरा हुआ था उनके घर से खा पीके आए थे इसलिए एक एक ग्लास दूध लिए हम बिस्तर पे आके थकावट से ढेर हो गये...आधी रात का समय था माँ मेरे खुले बदन से चिपकी चाँदनी रात की फीकी रोशनी जो बाहर पड़ रही थी खिड़की से उधर ही देख रही थी...मैं चुपचाप था

माँ : बेटा

आदम : ह्म

माँ : तुझे कैसी लगी?

आदम : अब भी पूछ रही हो अगर हां कहा है तो अच्छी लगी होंगी ना

माँ : नही तू माँ की कसम ख़ाके कह तेरी सही इच्छा जाननी है मुझे

आदम : वैसे देखा जाए तो हटके है थोड़ी छटपटिया है थोड़ी चुलबुली है पर सुशील भी है और स्मार्ट भी

माँ : वैसे दिखावा तो नही लगा मुझे कि वो लोग हमसे कुछ छुपा रहे थे

आदम : ह्म वरना उसकी निगाहो में शरमो हया का लिबास होता..या फिर रज़ामंदी में लरखड़ाहट

माँ : ह्म सच कहा तूने मुझे तो बेहद पसंद आई है सोच ले कल उसके साथ तुझे सारी ज़िंदगी बितानी है

आदम : मुझे पसंद है माँ और मैं चाहता हूँ कि अब मैं दो औरतो को संभालू वाक़ई परिवार बड़ा ज़ज़्बाती है

माँ : हो भी क्यूँ? भांजी है और आजकल कोई किसी अनाथ घर की लड़की अपने यहाँ बहू बनाके भी नही लेता हमारी बात तो जुदा है कि हमे अच्छी लड़की चाहिए हमे परिवार नही देखना जात औकात नही देखनी हमे लड़की देखनी है

आदम : तुमने इनकार कर दिया ना कि दान दहेज में कुछ ना दे

माँ : हां बेटा मैं जानती हूँ तू ये सब पसंद नही करता अब ये तेरा पहला एक्सपीरियेन्स है तो होता है पर एक बात कहूँ तुझे एक नज़र में पसंद कर लिया उसने

आदम : आपको क्या लगता है लड़की चालू है?

माँ : मुझसे ज़्यादा परख तो तुझे है कुँवारी तो होगी ही

आदम : अगर ज़िंदगी में उसके कोई था भी तो मुझे फरक नही पड़ता पर वो बीता कल होना चाहिए आज नही

माँ : मैं जानती हूँ बेटा ऐसा होता तो उसी वक़्त रिश्ता तोड़ देती और तुझे साथ ले आती

आदम : वैसे झेल पाएगी मुझे (माँ समझ रही थी मैं क्या कहना चाह रहा था मैं अपने औज़ार की बात कर रहा था )

माँ : मैं भी तो औरत हूँ मैने कैसे दी तुझे? बस उमर का फरक है तो उसे भी धीरे धीरे आदत हो जाएगी अब पहली ही बारी में वाय्लेंट ना हो जाना तू

आदम : हाहहा (तू भोली क्या जाने? कि ज़िंदगी में आदम ने कितनी औरतो के साथ रात गुज़ारी है? वो तो बस इस लिए कह रहा था कि अगर कुँवारी रही तो झेल भी सकेगी कि नही और ये सच था उसके हथ्यार को झेलना पेशेवर औरतो का ही काम होता)

माँ बेटे के गले लग्के सो गयी.....बेटे ने जब ये अहसास किया तो वो भी सो गया....खुशी जैसे इस महोत्सव में आने सा लगा था धीरे धीरे रिश्ता अब पक्का होने सा लगा था....अब तो आना जाना जैसे होने लगा किसी को खबर नही थी सिवाय आदम के ननिहाल के की उसकी शादी तय हो चुकी थी...खबर रूपाली तक पहुचि तो दुख नही बल्कि उसे खुशी हुई कि ज़िंदगी में कुछ तो आदम ने फ़ैसला लिया..वरना उसे यही लगता कि अब भी वो रूपाली के लिए ही चिंतित है...थोड़ा सा दुख हुआ था उसे...लेकिन अब यही किस्मत की रीत थी...
Reply
12-09-2019, 02:25 PM,
RE: Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत
फिर पिता ने पूछा कि कितना लोन लिया? वग़ैरा वग़ैरा...तो मैने सब उन्हें बताया फिर उसके बाद उन्हें खुशी हुई जानके कि मेरा रिश्ता तय हो गया माँ और पिता एकदम एकदुसरे से हंस हंस के बात करने लगे....अब उनके रिश्तो में वो कड़वाहट नही रही थी शायद उमर के साथ साथ उनका गुस्सा कम हो गया हो या उनका गरम खून जैसे ठंडा पड़ सा गया हो...मैं भी क्या कहता अपना लिया? कोई बात नही चाहे हम जितना भी गुस्सा हो उनकी ही बदौलत मेरी माँ को मैं नसीब हुआ था हमारे रिश्ते जुड़े थे....

पिता जी हमारे साथ रहने लगे फिर माँ ने उन्हें ज्योति भाभी और राजीव दा से भी परिचय कराया...राजीव दा उन्हें अपने पिता की तरह मानने लगे साथ में मुझे अकेले में ज्योति भाभी के संग जहाँ माँ भी मज़ूद थी समझाया देखो पिता है कितना भी गुस्सा करे? अब इस मोड़ पे उनको ऐसे मत ठुकराओ ना निकल जाने को कहो अब उनका आगे पीछे कौन है? तुम्हारी और तुम्हारी माँ के सिवा...मैं भी कुछ नही कहा मैने पिता को अपना लिया...पिता मुझे मानने लगे थे...बोले कि कोई ज़्यादा भाग दौड़ वाला काम मत कर कोई और धंधा जमाने की इसी फील्ड में कोशिश कर...मैं भी यही विचार कर रहा था..

पिता के आने से माँ और मेरे बीच जैसे खुद ब खुद पहले जैसा दायरा बन गया था...पहले तो हम यहाँ अकेले थे 24 घंटे एकदुसरे से मिल लेते थे पर अब जैसे बंदिशे सी थी....पिता को यकीन नही हुआ कि मेरी शादी तय कर दी गयी थी....पिता ने मेरी मंगेतर उर्फ निशा से मुलाक़ात की उन्हें वो काफ़ी सुंदर और अच्छी लगी...वो भी काका काका करके जैसे उनके दिल में जगह बनाने लगी....पिता ने कहा कि तुम बस जल्द से जल्द घर आओ...इस बीच मैं थोड़ा कम बातचीत करता था अपने ससुर से क्यूंकी उन्हें मैने पर्सनली बताया था कि मेरे पिता हमारे साथ नही रहते मेरी माँ को छोड़ चुके हैं पर एकदम से उनके आने से यक़ीनन उनका मिलना भी मेरे होने वाले ससुराल वालो से वाजिब था....उनका तो पिता के साथ एकदम रिश्ता जुड़ गया....पिता जी निशा के चाचा से खूब हँसी ठट्ठा (मज़ाक) लहज़े में बात करते थे बिंगाली माहौल जैसे क्रियेट हो गया माँ तो हिन्दी बोलती थी मेरी....मैं ही बिंगाली बोलता था बस पर अब तो पिता जी भी थे...

जल्द ही रिश्तो की नीव और गहरी होती गयी....और फिर मेरे खानदान वालो को मेरी शादी के बारे में मालूम चला...वो लोग भी हमारे घर इस बीच आए काफ़ी खुश भी हुए और जले भी कि उनके परिवार से हम इतना डिस्टेन्स बनाए हुए थे और आज पिता की ही बदौलत उनका हमारे यहाँ आना जाना हुआ मैं तो बस टालमटोली करता था किसी से ठीक मुँह बात भी नही करता था अदब से बात का अदब से जवाब देता था...

माँ पिता जी के साथ दूसरे कमरे में सोती थी...मैं जानता था ऐसा क्यूँ था ताकि उन्हें हमारे रिश्ते को एक दायरा दे सके....वो मुझे आँख से ही इशारा कर देती थी कि तुम कमरे में जाओ मैं आती हूँ बाद में...पिता जी तो सो जाते थे...उनका तो अब पूरे दिन घर बैठा रहना होता था जो सनडे भी छुट्टी होती थी तो बोरियत और वक़्त नज़दीकियो का ना मिलने की वजह से मैं माँ के संग बाहर कही घूमने फिरने निकल जाता था...पिता जी कोई आपत्ति करते भी नही थे...भला एक माँ से उसके बेटे के प्रति क्या सोचेंगे?

कुछ रात को बड़ी मुस्किल से गुज़री पर कब तक अपने पे काबू रख पाता? शादी की डेट नज़दीक आ रही थी....खरीदारी और काम के प्रेशर में काफ़ी थकावट हो जाती थी जिससे सेक्स क्रीड़ा में बिल्कुल मेरी रूचि नही उठती थी....उस रात शादी ब्याह के चोच्ले से फारिग होके मैं घर पहुचा माँ ने बताया कि मेरी होने वाली सास और ससुर ने हमारे लिए वेंटकेश हॉल बुक किया है वहीं मेरा निक़ाह है मैने कहा माँ शादी थोड़ी सिंपल होती थी तो चलता ना....माँ ने कहा कौन सा तुझे बार बार शादी करनी है? बस तुझे नाच गाने से थोड़ी चिड है तो ठीक है कोई वैसा माहौल नही होगा ज़्यादा रिश्तेदार भी नही है हल्का सा सेरेमनी सा है बस...चुनिंदा लोग आएँगे

मेरा मन भी नही था कि किसी को ज़्यादा मालूम चले? खासकरके मेरी औरतों को जिनके साथ मैने किसी दिन रात गुज़ारी थी लेकिन माँ को कैसे समझता इस वजह से....माँ ने कहा कि बस तू एक आध दिन के लिए छुट्टी ले....तो मैने कहा ठीक है...ऑफीस से शादी की डेट सुनने के बाद ही मुझे सबने मुबदकबाद दी और खुद बॉस ने छुट्टी दी मुझे दो-तीन दिन की...उसके बाद मैं ऑफीस से घर लौटा उस रात...

देखा कि माँ किचन में बैठी साग को धो रही है...तो पापा कमरे में टीवी देख रहे है ....मैने पास जाके बैठी अपने माँ की नाइटी में हाथ घुसा दिया तो माँ की नरम छाती पे हाथ टच हुआ उफ्फ माँ ने ब्रा पहनी हुई थी शायद पिता की वजह से उन्होने टोका होगा तो मैने माँ के चुभते निपल सहित एक चुचि को दबाया तो माँ ने अपने स्तनों से मेरे हाथ को नाइटी के भीतर से बाहर निकालते हुए मुझे आँख दिखाई

माँ : ये क्या तरीका है बेटा

आदम : बस मन कर रहा है तूने कहा था फ़ासले जितने भी हो तू मेरे करीब जब जी करेगा आएगी

माँ : तू देख नही रहा काम कर रही हूँ तेरे पिता कमरे में मज़ूद है

आदम : अर्रे यार बोलो ना दढ़ियल जाए

माँ : हुहह वहाँ कौन सी तेरी चाची उन्हें खाना देंगी मेरे जैसा तू जा मुँह हाथ धो ले अभी नही बाद में

आदम : बाद में कब?

माँ : अब बोलो ना बाद में अभी तेरी शादी इतनी नज़दीक है वो सब छोड़के तू मेरे पीछे पड़ गया भला मैं अभी फारिग नही हूँ जा तू
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,552,367 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 550,212 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,254,307 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 948,357 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,683,514 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,105,709 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,993,933 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 14,197,086 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 4,083,919 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 289,899 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 18 Guest(s)