Long Sex Kahani सोलहवां सावन
07-06-2018, 01:51 PM,
#31
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
दिनेश 



पूरबी ने मुझे चिढ़ाया- “अरे दे दो ना जोबन का दान, सबसे बड़ा दान होता है ये…” 

ये तो धूप अच्छी थी, रास्ते में वह कुछ सूख गया। गनीमत था कि जब मैं घर पहुँची तो भाभी और चम्पा भाभी नहीं थी, सिर्फ बसंती थी। उसने बताया कि सब लोग पड़ोस के गांव में गये हैं और शाम के आस-पास ही 3-4 घंटे बाद लौटेंगे, मेरा खाना रखा है और उसे भी कुछ काम से जाना है। 

मैं अपने कमरे में चली गई और जल्दी से कपड़े बदले। कहीं जाना तो था नहीं इसलिये मैंने, एक टाप और स्कर्ट पहना और खाना खाने आ गयी। खाने के बाद मैं अपने कमरें में थोड़ी देर लेटी थी और बसंती सब काम समेट रही थी। तभी बसंती ने दरवाजे के पास आकर बताया कि दिनेश आया है। 

मैं चौंक कर उठ बैठी और मुश्कुराने लगी। मुझे याद आया कि जब मैंने चन्दा से दिनेश के बारे में पूछा था तो उसने हँसकर कहा था कि खुद देख लेना। और बहुत खोदने पर वो बोली- “मिलने के पहले कम से कम आधी शीशी वैसलीन की लगा लेना…” 

मैंने बसंती से कहा- “बैठाओ, मैं आ रही हूं…” 

मैंने अपने ड्रेस की ओर देखा। मेरी टाप खूब टाइट थी या शायद इधर दबवा-दबवा कर मेरे जोबन के साईज़ कुछ बढ़ गये थे, मेरे उभार… यहां तक की निपल भी दिख रहे थे। 

ब्रा तो मैंने गांव आने के बाद पहननी ही छोड़ दी थी। और स्कर्ट भी जांघ से थोड़ी ही नीचे थी। खड़ी होकर मैं ड्रेसिंग टेबल के पास गयी और लिपिस्टक हल्की सी लगा ली। सामने वैसलीन की बोतल थी, मैंने दोनों उंगलीयों में लेकर टांग फैलाकर अपनी चूत के एकदम अंदर तक लगा ली। फिर थोड़ी और लेकर चूत के मुहाने पर भी लगा ली। 

मुझे एक शरारत सूझी और मैंने हल्की सी लिपिस्टक चूत के होंठ पर भी लगा ली। 


मैं बाहर निकली तो दिनेश इंतजार कर रहा था, उसने पूछा- “क्यों भाभी नहीं हैं क्या…” 

मैंने हँसकर कहा- “नहीं, आज तो हमीं से काम चलाना पड़ेगा…” और मैंने उसको सुनाते हुए बसंती से पूछा- “क्यों भाभी लोग तो शाम को आयेंगी, तीन चार घंटे बाद…” 


बसंती काम खतम करती हुई बोली- “हां शाम के आसपास, और मैं भी जा रही हूं, दरवाजा बंद कर लेना…”


दरवाजा बंद करके मैंने मुश्कुराते हुए कहा- “चलो, अंदर कमरें में चलते हैं…” उसको लेकर चूतड़ मटकाती आगे आगे चलती मैं कमरें में आयी। उसे पलंग पर बैठाकर उसके सामने पड़ी कुरसी पर बैठकर मैंने धीरे-धीरे अपनी जांघें फैलानी शुरू कीं। उसका ध्यान एकदम मेरी स्कर्ट से साफ-साफ दिख रही भरी-भरी गोरी-गोरी जांघों की ओर ही था। बैठते समय मेरी स्कर्ट थोड़ी ऊपर चढ़ भी गयी थी। 

मैंने उसे छेड़ा- “कहां ध्यान है… तुम दिखते नहीं, कहां रहते हो… मैंने भाभी से भी पूछा कई बार…” 


“नहीं नहीं… कहीं नहीं… मेरा मतलब है…” हडबड़ा कर अब उसने अपनी निगाहें ऊपर कर लीं।

पर मैं कहां मानने वाली थी। मेरे कबूतर तो वैसे ही मेरे कसे टाप को फाड़कर बहर निकलना चाहते थे, मैंने उनको थोड़ा और उभारा। अब उसकी निगाहें वहीं चिपक गयीं थीं। मैंने अपने दोनों हाथों को उनके बेस को क्रास करके उन्हें पूरा पुश करते हुए भोलेपन से पूछा- “अच्छा… एक बात बताओ, मैं तुमको कैसी लगती हूं…” 


उसका तम्बू अब साफ-साफ तनने लगा था- “अच्छी लगती हो… बहुत अच्छी लगती हो…” 

मैंने अपने टाप के बाकी बटन भी खोलते हुये कहा- “उमस लग रही है ना, आराम से बैठो…” बटन खुलने से मेरा क्लीवेज तो अब पूरा दिख ही रहा था, मेरे रसीले जोबन भी झांक रहे थे। 

उसकी हालत एकदम बेकाबू हो रही थी पर मैं कहां रुकने वाली थी। मैंने अपने दोनों पैर मोड़ लिये और स्कर्ट को एड्जस्ट करके अच्छी तरह फैला लिया। अब तो उसे मेरी चूत की झलक भी अच्छी तरह मिल रही थी। उसकी निगाहें मेरी जांघों के बीच अच्छी तरह धंसी हुई थीं और उसका लण्ड उसके पाजामे से बाहर आने को बेताब था। थोड़ी देर वह देखता रहा फिर अचानक उठकर मैं उसके पास आकर, एकदम सटकर बैठ गयी। मैंने उसका हाथ खींचकर अपने कंधे को रख लिया और उसे अपने भरे-भरे जोबन के पास ले गयी और मेरा गोरा हाथ उसकी जांघ पे था, उसके तने हुए टेंटपोल के पास। 

“अच्छा… अगर मैं तुम्हें अच्छी लगती हूँ तो तुम मेरे पास क्यों नहीं आते…” मैंने मुश्कुराकर पूछा। 
“मुझे लगाता है… था… कि कहीं तुम बुरा ना मानो…” 

मैंने अब खींचकर उसका हाथ अपने जोबन पर रखकर हल्के से दबा दिया और बोली- 

“बुद्धू, अरे अगर किसी को कोई लड़की अच्छी लगेगी, तो वह बुरा क्यों मानेगी, उसे तो और अच्छा लगेगा…” और उसके हाथ अब खूब कस के अपने जोबन पर दबाते हुए, मेरा हाथ जो उसकी जांघ पर था, हल्के से उसके खड़े खूंटे को छूने लगा। 

मैंने अपने दहकते होंठों से उसके कान को सहलाते हुये कहा- “और मुझे तो तुम कुछ भी… कुछ भी करोगे तो बुरा नहीं लगेगा…” 
“सच… कुछ भी… करूं…” उसकी आवाज थरथरा रही थी। 
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07-06-2018, 01:52 PM,
#32
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
मजे ही मजे , बारिश में 



मैंने अपने दहकते होंठों से उसके कान को सहलाते हुये कहा- “और मुझे तो तुम कुछ भी… कुछ भी करोगे तो बुरा नहीं लगेगा…” 

“सच… कुछ भी… करूं…” उसकी आवाज थरथरा रही थी। 

मैंने अपने गुलाबी गाल उसके गाल से रगड़ते हुए कहा- “हां… कुछ भी जो तुम चाहो… जैसे भी… जितनी बार… जब भी…” 

अब उससे नहीं रहा गया और उसने खींच के मुझे अपनी दोद में बिठा लिया और मेरे गरम गुलाबी रसीले होंठों को कस-कस के किस करने लगा। उसका एक हाथ मेरा सर पकड़ के अपनी ओर खींच रहा था और दूसरा कस-कस के टाप के ऊपर से ही मेरे जोबन का रस ले रहा था। उसकी जुबान मेरे होंठों के बीच घुस गयी थी और जल्द हो उसने मेरा टाप उठाकर मेरे कबूतरों को आजाद कर दिया। 

मेरे गोरे-गोरे उठते उभारों को देख के जैसे उसकी सांस थम गयी पर बिना रुके, जैसे किसी नदीदे बच्चे को मिठाई मिल जाये और वह उसपे टूट पड़े, वह उसे दबाने मसलने लगा। उसके होंठ भी अब उसे चूम रहे थे, मेरे रसीले जोबन का रसपान कर रहे थे। और पाजामे के अंदर से उसका मोटा खड़ा लण्ड… लग रहा था कि अब मेरी स्कर्ट को भी फाड़कर मेरी चूत में घुस जायेगा। 


उसका हाथ मेरी गोरी जांघों को सहलाते सहमते-सहमते, मेरी चूत की ओर बढ़ रहा था, फिर अचानक उसने कस के मेरी चूत को पकड़ लिया। वह भी अब खूब गीली हो रही थी। लेकीन अब मेरा मन भी उसके खड़े लण्ड को देखने को कर रहा था। उसने मुझे पहले तो लिटा दिया फिर कुछ सोचकर मुझसे पेट के बल लेटने को कहा। मेरा टाप इस बीच मेरा साथ छोड़ चुका था। जब मैं पेट के बल लेट गयी, तो उसने मेरे पेट के नीचे कई तकिया लगाकर मेरे चूतड़ खूब उभार दिये। 


मेरे सर के नीचे भी उसने एक छोटी सी तकिया लगा दी और पीछे जाकर, स्कर्ट कमर तक करके मेरी टांगें भी खूब अच्छी तरह फैला दीं। कपड़ों की सरसराहट की आवाज के साथ मैं समझ गयी, कि अब उसके भी कपड़े उतर गये हैं। मुझे लगा रहा था कि अब वो अपना लण्ड मेरी चूत में डालेगा। पर मेरे पीछे बैठकर थोड़ी देर वो मेरे सेक्सी चूतड़ों को सहलाता रहा और फिर उसने एक उंगली मेरी चूत में घुसेड़ दी। मेरी चूत वैसे ही गरम हो रही थी। 


थोड़ी देर तक एक उंगली अंदर-बाहर करने के बाद, उसने उसे निकाल लिया। मैं मस्ती के मारे पागल हो रही थी

पर अब भी उसने अपना लण्ड पेलने के बजाय अपनी दो उंगलियां एक साथ घुसेड़ दीं। मैं खूब गीली हो रही थी, और वैसलीन भी मैंने अच्छी तरह चुपड़ी थी फिर भी दो उंगलियां मेरे लिये बहुत थीं और वो मेरी चूत में खूब रगड़-रगड़ के अंदर जा रही थी। 



मैं मस्ती के मारे सिसकियां भर रहीं थी- “हां दिनेश डाल दो ना प्लीज, अब और मत तड़पाओ… उह… उह्ह्ह… हां हां… करो ना… कब तक… ओह…” मस्ती के मारे मेरे चूतड़ भी हिल रहे थे। 


पर उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था और अब वह एक हाथ से मेरी झुकी हुई चूचियों को कस-कस के दबा रहा था और उसकी दोनों उंगलियां भी खूब कस के मेरा चूत मंथन कर रही थी। कभी वह तेजी से अंदर-बाहर होतीं, कभी वह उसको गोल-गोल तेजी से घुमाता। जब मेरी हालत बहुत खराब हो गयी तो उसने एक हाथ से मेरी चूत के होंठ फैलाकर अपना सुपाड़ा सटाया और कमर पकड़ के पूरी ताकत से पेल दिया। 


ओह्ह्हह्ह्हह… मेरी जान निकल गयी। मैंने अपना मुँह कस के तकिये में दबा लिया था। 


तब तक उसने फिर पूरी ताकत से दुबारा धक्का लगाया। मैं समझ गयी कि आज तो मेरी चूत फट जायेगी। पर गलती तो मेरी ही थी मैंने उसे इतना छेड़ा था। मेरी चूत पूरी तरह फैली हुई थी, पर वह रुकने वाला नहीं था, उसने फिर कस के धक्का लगाया। 


“उईईई…” मैंने कसकर अपने होंठों को दांत से काटा, पर फिर भी चीख निकल गयी। लग रहा था कि कोई लोहे का मोटा राड मेरी चूत में धंस गया हो। मैं कस-कस के अपने चूतड़ हिला रही थी, पर लण्ड एकदम अंदर तक धंसा हुआ था और बाहर निकलने वाला नहीं था। मैंने अच्छी तरह से अंदर-बाहर वैसलीन लगायी थी फिर भी मेरी चूत… चरचरा रही थी। जब उसने अगला धक्का लगाया तो मेरी तो जान ही निकल गयी। अजय, सुनील, रवी, राजीव इतने लोगों से मैंने चुदवाया, पर… 


मेरे मोटे चूतड़ को पकड़ के उसने थोड़ा रूक के और अंदर पुश किया। अब और नहीं ओह्ह्ह… मुझे लगा कि अब मैं और नहीं सह सकती, उसने थोड़ा रुककर बाहर खींचकर अपना लण्ड फिर पूरी ताकत से एक बार में अंदर ढकेला, और मैं… दर्द की ऐसी लहर उठी की मैं बेहोश सी हो उठी। कुछ देर बाद, जब दर्द कुछ कम हुआ तो मैंने गरदन मोड़कर उसकी ओर देखा। उसकी मुश्कुराहट और चेहरे की खुशी देखकर मैं भी मुश्कुरा पड़ी। अब उसने धीरे-धीरे चोदना शुरू किया। 



वह हल्के से लण्ड थोड़ा सा बाहर निकालता और फिर धीरे से उसे अंदर ढकेलता। दर्द तो अभी भी हो रहा था, पर जब चूत की दीवारों से उसका मोटा लण्ड रगड़ता तो मजा भी आ रहा था। कुछ ही देर में दर्द की टीस सी बाकी रही पर एक नये ढंग की मस्ती छा रही थी और मैं भी उसके साथ-साथ अपने चूतड़ हिलाती, चूत से उसके लण्ड को सिकोड़ती। उसको जल्द ही इस बात का अहसास हो आया और उसने फिर कस-कस के धक्के लगाकर चोदना शुरू कर दिया। मुझे दर्द के साथ एक नया नशा हो रहा था। 

अब उसने मेरी चूचियां पकड़ ली थी और उसको दबाते मसलते, कस-कस के चोद रहा था। चूत की इस जबरदस्त रगड़ाई से मैं कुछ देर बाद झड़ गयी। थोड़ी देर में उसने पोजीशन चेंज की और मुझे पीठ के बल लिटा दिया और मेरी टांगें अच्छी तरह फैलाकर, कंधे पे रखकर चोदना शुरू किया। 


अब मैंने देखा कि उसका लण्ड कित्ता मोटा था और अभी भी कुछ हिस्सा बाहर था। मैं उसे चिढ़ाना चाहती थी की… बाकी क्या अपनी बहनों के लिये बचा रखा है, पर अभी जो मेरी चूत की हालत हुई थी वो सोचकर चुप रही। वह तरह-तरह के पोज में चोदता रहा, कभी टांगें अपने कंधे को रख के, कभी मुझे अच्छी तरह मोड़ के, उसने मुझे रूई की तरह धुन दिया। मैं कितनी बार झड़ी पर जब वह झड़ा तब तक मैं पस्त हो चुकी थी। कुछ देर बाद हल्की ठंडी बयार के साथ मेरी आँख खुली। 

मेरी चूचियों पर उसके मसलने के, काटने के निशान, फैली हुई जांघों और चूत पर सफेद वीर्य, लग रहा था कि वहां से कोई तूफान गुजर गया हो। उसने मुझे सहारा देकर उठाया। 
हम लोग कुछ देर बातें करते रहे। बाहर बहुत अच्छी हवा चल रही थी। मैंने उससे कहा कि चलो बाहर चलते हैं।
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07-06-2018, 01:52 PM,
#33
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
मजा झूले पे , दिनेश के साथ 



अब मैंने देखा कि उसका लण्ड कित्ता मोटा था और अभी भी कुछ हिस्सा बाहर था। मैं उसे चिढ़ाना चाहती थी की… बाकी क्या अपनी बहनों के लिये बचा रखा है, पर अभी जो मेरी चूत की हालत हुई थी वो सोचकर चुप रही। वह तरह-तरह के पोज में चोदता रहा, कभी टांगें अपने कंधे को रख के, कभी मुझे अच्छी तरह मोड़ के, उसने मुझे रूई की तरह धुन दिया। मैं कितनी बार झड़ी पर जब वह झड़ा तब तक मैं पस्त हो चुकी थी। कुछ देर बाद हल्की ठंडी बयार के साथ मेरी आँख खुली। मेरी चूचियों पर उसके मसलने के, काटने के निशान, फैली हुई जांघों और चूत पर सफेद वीर्य, लग रहा था कि वहां से कोई तूफान गुजर गया हो। उसने मुझे सहारा देकर उठाया। 















हम लोग कुछ देर बातें करते रहे। बाहर बहुत अच्छी हवा चल रही थी। 


मैंने उससे कहा कि चलो बाहर चलते हैं। मैंने एक साड़ी ऐसे तैसे लपेट ली और आंगन में उसके साथ आ गयी। 

सफ़ेद बादल के टुकड़ों से आसमान भरा था और ठंडी पुरवाई चल रही थी। भाभी के घर के आंगन में एक बड़ा सा नीम का पेड़ था उसकी मोटी डाल पर रस्सी का एक झूला पड़ा था। मैं उसपे बैठ गयी और मैंने, दिनेश से इसरार किया कि मुझे झुलाये। 

वह मेरे पीछे जमीन पर खड़ा होकर झुला रहा था। कुछ हवा का झोंका और कुछ उसकी शरारत, मेरा आंचल हट गया और मेरे उभार एकदम खुल गये। 


मैंने उन्हें ढकने की कोशिश की पर उसने मना कर दिया और मुझे टापलेश ढंग से ही आंगन में झुलाता रहा। थोड़ी देर में सांवन बूंदियां पड़ने लगी और मैं उठ गयी पर उसने कहा नहीं झुलो ना और मेरे बची खुची साड़ी भी पकड़कर खींच दी और वैसे ही झूले पे बैठा दिया। रस्सी मेरे कोमल चूतड़ में गड़ रही थी लेकिन उसने कस-कस के पेंग देनी शुरू कर दी। मुझे याद आया कि पूरबी ने जो बताया था कि दिन में मायके आने से पहले उसने अपने साजन के साथ कैसे झूला झुला था। 


झुलाते समय कभी दिनेश मेरी चूचियां दबा देता, कभी जांघों के बीच सहला देता। 

मैंने उसको अपने मन की बात कान में बताई तो वह तुरंत मुझे हटाकर झूले पे आ गया। पानी की बूंदे अब तेज हो चुकी थीं। दिनेश जब झूले पे बैठा तो उसके टांगों के बीच, खूब लंबा मोटा, विशालकाय खूंटे जैसा, लण्ड… मेरा तो दिल धक्क से रह गया, इतना बड़ा… और कितना… मोटा पर हिम्मत करके मैंने उसे पकड़ लिया और उसे चिढ़ाया- “क्यों, ये आदमी का है, कि गधे का…” 


मुश्कुराकर वह बोला- “पसंद तो है ना…” 

मेरे किशोर गोरे-गोरे हाथों की गरमी पाकर वह एकदम खड़ा हो गया था और अब इत्ता फूल गया था कि मेरी मुट्ठी में नहीं समा पा रहा था।


मैंने उसे कस के खींचा तो ऊपर का चमड़ा हट गया और पूरा सुपाड़ा खुल गया। जैसे एकदम गुस्से में हो… लाल लाल… खूब बड़े पहाडी आलू जैसा। 

मैंने बात बदलकर पूछा- “तुम मेरे पीछे से क्यों आये… मेरा मतलब है…” 
“इसलिये मेरी जान…” मेरे गाल चूमते हुये वो बोला- “कि कहीं तुम उसे देखकर डर ना जाओ, और फिर… इसका क्या होता…” 


बात उसकी सही थी… किसी लड़की का भी दिल दहल जाता… पर एक बार लेने के बाद कौन मना कर सकता था। मैं उसका लण्ड पकड़कर सहला, मसल रही थी पर सुपाड़ा उसी तरह खुला हुआ था। 

“आओ ना…” अब वह बेताब हो रहा था। 

उसने मेरी दोनों टांगें खूब अच्छी तरह फैलाकर मुझे झूले पे अपनी गोद में बिठा लिया। मेरे चूतड़ उसकी जांघों पे थे और उसका बेताब सुपाड़ा मेरी चूत को रगड़ रहा था। 


मैंने दोनों हाथों से कसकर झूले की रस्सी पकड़ ली। उसने अपने दोनों मजबूत हाथों में पकड़कर मुझे अपनी ओर कसकर खींचा और मेरे रसीले गाल कसकर काट लिये। मेरे उभरे जोबन उसकी चौड़ी छाती से कस के दब गये थे। मेरी टांगें उसकी कमर के दोनों ओर फैलीं थी इसलिये चूत का मुँह वैसे ही थोड़ा फैला था। 


उसने अपने एक हाथ से मेरे भगोष्ठों को खूब जबरन फैलाया और फिर अपना सुपाड़ा सेंटर करके कस के मेरे चूतड़ पकड़कर धक्का दिया। मैंने भी हिम्मत करके रस्सी पकड़कर अपनी कमर को जोर से उसकी ओर पुश किया… एक हाथ कमर पे और दूसरा मेरे चूतड़ को पकड़कर उसने पूरी ताकत से धक्का दिया और दो-तीन बार में मेरी कसी चूत पूरा सुपाड़ा गप्प कर गयी। हवा तेज हो चली थी, इसलिये बौछार खूब कस-कसकर हम लोगों की देह पे पड़ रही थी। 


नीम का पेड़ भी झूम रहा था, और आंगन की उंची दीवालों के पार, हरे-हरे पेड़ खूब कसकर झूम रहे थे, घने काले बादल उमड़ घुमड़ रहे थे और मौसम की इस मस्ती में भीगते हुये, दिनेश खूब जोर से पेंग लगाता, जब झूला ऊपर जाता तो वो लण्ड थोड़ा बाहर खींच लेता और जैसे ही वह नीचे आता, वह पूरी ताकत से कस के धक्के के साथ लण्ड अंदर करता, और मैं भी अपनी ओर से धक्का लगाकर उसका पूरा साथ देती। झूले पे इस तरह झूलते, बारिश में भीगते, चुदाई का मजा लेते, हम दोनों एक दूसरे को चूम रहे थे, दबा रहे थे। 



झूला हो और कजरी ना हो, दिनेश ने मुझसे कहा और मैं मस्ती में गाने लगी-
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07-06-2018, 01:52 PM,
#34
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
कजरी 






झूला हो और कजरी ना हो, दिनेश ने मुझसे कहा और मैं मस्ती में गाने लगी- 


हमरे आंगन में, नीम पे झूला डलवाय दो, हमका झुलाय दो ना, 
अरे अपनी गोदिया में हमका बैठाय के, सजन झुलाय दो ना, 
हमार दोनों जोबना पकड़, धक्का कस के लगावा, हमका झुलाय दो ना, 
लण्ड कस के घुसावा, बुर हमरी चुदावा, चुदवाय दो ना, सजन सावन में हमका झुलाय दो ना, 



बारिश अब और तेज हो गयी थी। आंगन में पानी के बुलबुले फूट रहे थे। भाभी के मायके का आधा आंगन कच्चा था, जिसके बगल में फूलों की क्यारियां बनी थी। वहां मिट्टी गीली हो रही थी। 


दिनेश ने मुझसे पूछा- “तुमने कभी बिना झूले के झूला, झूला है…” 
मैंने कहा- “नहीं, बिना झूले के कैसे…” 

वह बात काटकर बोला- “झूलना है, तुम्हें…” 
उसके होंठ चूमते हुये, मैं बोली- “हां… जरूर…” 

अब वह मुझे लिये झूले पर से उतरा, आधे से अधिक लण्ड मेरी चूत में घुसा था। वह मुझे वैसे ही लिये वहां आया जहां आंगन कच्चा था और मुझे लिटा दिया।


मेरी दोनों टांगों अभी भी उसी तरह उसके दोनों ओर फैली थीं। उसने अपनी दोनों टांगें मेरे चूतड़ के नीचे की और फिर अचानक मेरी कमर के नीचे हाथ डालकर मुझे उठा लिया।

मैं जैसे ऊपर आती, वह पीछे मुड़ जाता और जब वह आगे आता तो… मुझे लगभग अपने हाथों के सहारे जमीन पे लिटा देता, जैसे बच्चे सी-सा खेलते हैं उसी तरह। और इसी के साथ-साथ उसका लण्ड भी खूब कस-कस के रगड़ता हुआ मेरी चूत के अंदर-बाहर हो रहा था। 


आंगन का पानी भी बहकर मिट्टी वाले हिस्से की ओर से आ रहा था और वहां पूरा कीचड़ हो रहा था। मेरे चूतड़ में भी कीचड़ थोड़ा लगा गया।

थोड़ी देर तक इस तरह झूला झूलाने के बाद उसने मुझे खींच के अपनी जांघ पे बिठा लिया और मेरे होंठों को कस के चूमते, पूछा- “क्यों कैसा लगा, झूला…” 

उसके चुम्बन का जवाब मैंने भी खूब कस के उसे चूमते हुए दिया और बोली- “बहुत मजा आया …” 


“तो लो इस तरह से भी झूलने का मजा लो…” अब वह मुझे अपनी जांघ पर बिठाकर चोदते हुये ही झूलने का मजा दे रहा था। इसमें और भी मजा आ रहा था, कभी वह मेरी कमर पकड़ के झुलाता, कभी दोनों चूंचिया पकड़ के। थोड़ी देर इस तरह से झुलाने के बाद उसने मुझे मिट्टी पर लिटा दिया।
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07-06-2018, 01:53 PM,
#35
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
कीचड़ में कमल 











थोड़ी देर इस तरह से झुलाने के बाद उसने मुझे मिट्टी पर लिटा दिया। मेरी जांघें पूरी तरह फैली हुई थीं, और उसके बीच में वह।

उसका आधे से भी ज्यादा, विशालकाय मोटा लण्ड मेरी चूत को फाड़ते हुये, उसके अंदर घुसा हुआ था। पानी की धार चारों ओर उसके शरीर से होते हुये मेरी कंचन काया पर गिर रही थी। मेरी दोनों चूचियों को पकड़ वह मेरी आँखों में प्यार से झांक रहा था। जैसे उसकी आँखें पूछ रही हों- “क्यों… डाल दूं पूरा… दर्द तो तुम्हें होगा थोड़ा… पर मेरा मन भी…” 

और मेरी आँखों ने भी जैसे मुश्कुराकर हामी भर दी हो और मैंने अपने चूतड़ उठाकर अपनी देह की इच्छा का भी अहसास करा दिया। बस अब देर किस बात की थी, उसने मेरी दोनों टांगें अब अपने कंधे को रख लीं और मेरी कोमल कमर पकड़कर अपने लण्ड को सुपाड़े तक बाहर निकाला और मेरे होंठों का रस चूमते, काटते कस के धक्का लगाया। कभी कमर पकड़ के, कभी चूंचियां पकड़के मेरी धुआंधार चुदाई चालू हो गयी थी और इसी के साथ मेरे चूतड़ भी आंगन की मिट्टी में, जो अब अच्छी तरह कीचड़ हो गआया था, रगड़े जा रहे थे। हम दोनों सब कुछ भूलकर वहशियों की तरह चुदाई कर रहे थे। 

थोड़ी देर में उसने मुझे पलट दिया। अब मेरे दोनों हाथ कोहनियों के बल मुड़े थे और उनके और घुटनों के बल मैं थी, मेरे चूतड़ उठे थे।


वो कमर पकड़ के अपना लण्ड हर धक्के के साथ सुपाड़े तक निकालकर पूरा पेल रहा था और मैं भी उसके हर धक्के का जवाब कस के दे रही थी। थोड़ी ही देर में उसके जोरदार धक्कों से मेरी कुहनी जमीन पर लग गयी और अब मेरी रसीली चूचियां कस-कस के कीचड़ में लिथड़ रही थीं, उसके हर धक्के के साथ वह बुरी तरह कीचड़ में रगड़ खा रहीं थी, मैं कभी दर्द से, कभी मजे से चिल्ला रही थी पर उसके ऊपर कोई असर नहीं था। 


सटासट-सटासट वह धक्के मारे जा रहा था और मेरी चूत भी गपागप-गपागप उसका लण्ड घोंट रही थी। बरसात भी अब तूफानी बरसात में बदल चुकी थी। 

मुसलाधार पानी के साथ तूफानी हवा भी चल रही थी, पेड़ जोर से हर हरा रहे थे। चर-चर धड़ाम की आवाज से बाहर अचानक कोई बड़ा पेड़ गिरा। और उसी समय उसके मोटे गधे की तरह लंबे लण्ड का बेस मैंने अपने चूत के मुँह पे महसूस किया। 


और मैं तेजी से झड़ने लगी। मैं ऐसे इसके पहले कभी नहीं झड़ी थी। मेरी पूरी देह जोर-जोर से कांप रही थी, मेरी चूचियां पत्थर जैसी कड़ी हो गयीं थीं और मेरे चूचुकों में भी झड़ने का सेंसेशन हो रहा था। मेरा झड़ना रुकता और फिर एक नयी लहर शुरू हो जाती। मेरी चूत में उसके लण्ड का एहसास बार-बार झड़ना ट्रिगर कर रहा था। 


जैसे किसी बहुत पतली मुँह वाली बोतल में खूब ठूंस कर कोई मोटा, बड़ा कार्क घुसेड़ दिया जाय, और बड़ी मुशिक्ल से वह घुस तो जाय पर उसका निकालना उतना ही मुश्किल हो, वही हालत मेरी हो रही थी। जब उसने आखिरी बार कस के धक्का मारा तो मैं कीचड़ में पूरी तरह लेट गयी थी और चूंचिया तो अच्छी तरह लिथडीं थीं हीं, बाकी पेट, जांघों पर भी अच्छी तरह कीचड़ लिपट गया था। 

मेरी कमर को पकड़कर ऊपर उठाकर खूब कस-कस के खींचा तो लण्ड थोड़ा, बाहर निकला। अब उसने मुझे पीठ के बल लिटा दिया। 


जब उसने मुझे, मेरे जोबन को कीचड़ से लथपथ देखा तो कहने लगा- “अरे, तेरी चूचियां तो कीचड़ में…” 


“और क्या, कीचड़ में ही तो कमल खिलते हैं, लेकिन तुम क्यों अलग रहो…”
 और मैंने अपने हाथ में बगल की क्यारी में से खूब अच्छी तरह कीचड़ ले लिया था, उसे मैंने उसके दोनों गालों पर होली में जैसे रंग मलते हैं, खूब कसकर मल दिया। 


“अच्छा, अभी लगता है थोड़ी कसर बाकी है…” और उसने ढेर सारा कीचड़ निकालकर मेरे जोबन पर रख दिया और कसकर मेरी चूचियों की रगड़ाई मसलाई करने लगा। मैं क्यों पीछे रहती मैंने भी अबकी ढेर सारा कीचड़ लेकर उसके मुंह, पीठ पर अच्छी तरह लपेट दिया। 


मुझे फिर एक आइडिया आया। मैंने उसे कस के अपनी बाहों में भींच लिया और अपनी चूंचियां उसकी चौड़ी छाती पर रगड़ने लगी और अब वह भी उसी तरह लथपथ था, जैसे हम कीचड़-कुश्ती कर रहे हों। 
“अच्छा…” कहकर उसने मेरे भरे-भरे गालों को कसकर काट लिया और जोर से काटता रहा। 

उईइइइइइ… मैं चीख पड़ी पर बारिश और तूफान में क्या सुनाई पड़ता। पर उसे कोई फरक नहीं पड़ा और कुछ रुक कर उसने दुबारा वहीं पूरी ताकत से काटा। मैं समझ गयी, गाल के ये दाग, मेरे घर लौटने के भी बहुत दिन बाद तक रहेंगे। तभी उसने, मैंने जो उसके गाल पे कीचड़ लगाया था, कसकर अपने गाल को मेरे गालों पर रगड़कर लगाना शुरू कर दिया। 
“इस मलहम से तेरे गालों का दर्द चला जायेगा…” वह हँसकर बोला। 


मैंने बदले में ढेर सारा कीचड़ उठाकर उसकी पीठ पर डाल दिया। हमारे बदन एक दूसरे को रगड़ रहे थे, लग रहा था उसके ढेर सारे हाथ और होंठ हो गये हों। कभी वह मेरी चूचियों को कस-कस के रगड़ता, मसलता, कभी क्लिट को छेड़ता, कभी उसके होंठ मेरे गाल और होंठ चूसते काटते, कभी मेरे निपल का सारा रस निकाल लेते, और उसका लण्ड तो किसी मोटे पिस्टन की तरह बिना रुके मेरी चूत के अंदर-बाहर हो रहा था, कभी वह मेरे चूतड़ पकड़ के चोदता, कभी कमर पकड़के। 


उसने अपना लण्ड सुपाड़े तक बाहर निकालकर मेरी दोनों किशोर चूंचियों को कस के पकड़ के पूछा- “क्यों गुड्डी मजा आ रहा है, चुदवाने का…” 


“हां साजन हां, ओह…” और मेरे चूतड़ अपने आप ऊपर उठ गये। मैंने अपनी दोनों टांगें उसके कमर के पीछे जकड़कर खींचा और उसने इत्ता कस के धक्का मारा कि पूरा लण्ड एक बार में अंदर हो गया। 

चोदते-चोदते कभी वह मुझे ऊपर कर लेता, उसका पूरा लण्ड मेरी चूत में और वह मेरी मस्त चूचियों को मसलता रहता, उसकी पूरी पीठ कीचड़ से लथपथ हो जाती। 

पर हम दोनों को कोई परवाह नहीं थी। वह चोदता रहा, मैं चुदवाती रही। मुझे पता नहीं कि मैं कित्ती बार झड़ी पर जब वह झड़ा तब तक मैं पस्त हो चुकी थी। बारिश धीमी हो गयी थी। हम दोनों ने जब एक दूसरे को देखा तो हंसे बिना नहीं रह सके, कीचड़ में एकदम लथपथ। आंगन के बगल की खपड़ैल जो थी उसपर से छत का पानी परनाले की तरह बह रहा था।

मैं उसे, उसके नीचे खींच के ले गयी और छोटे बच्चों की तरह, जैसे मोटे नल की धार के नीचे खड़े होकर हम दोनों नहाते रहे और मल-मल कर एक दूसरे का कीचड़ छुड़ाते रहे। फिर मैं एक तौलिया ले आयी और दिनेश को मैंने रगड़-रगड़ के सुखाया।


और वह भी मुझे रगड़ने का मौका क्यों छोड़ता। वह बार-बार पूछता- “अगली बार कब…” 


पानी लगभग बंद हो गया था। मैं उसे छोड़ने दरवाजे तक गयी। बाहर गली में दोनों ओर देखकर मैंने उसे कसकर बाहों में पकड़ लिया और उसके मुँह पर एक कसकर चुम्मा लेते हुए बोली- “तुम, जब चाहो तब…
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07-06-2018, 01:54 PM,
#36
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
अरे जरा ठीके से भरतपुर के दर्शन कराओz” चम्पा भाभी बोली.

और चन्दा ने पूरबी के साथ मिलकर मेरी जांघें फैला दीं। मैं अपनी चूत हर हफ्ते, हेयर रिमूवर से साफ करती थी और अभी कल ही मैंने उसे साफ किया था इसलिये वह एकदम चिकनी गुलाबी थी। 

“अरे ये तो एकदम मक्खन मलाई है। चाटने के लायक और चोदने के भी लायक…” कामिनी भाभी बोल पड़ी। 

“अरे तभी तो गांव के सारे लड़के इसके दीवाने हैं और लड़के ही क्यों…” चम्पा भाभी ने हँसकर कहा। 

“और मेरा देवर भी…” भाभी क्यों चुप रहतीं, बात काटकर वो बीच में बोलीं। 

मैं पूरबी के साथ बैठ गयी। कामिनी भाभी भी मेरे पास आ गयीं। उनकी आँखों में एक अजीब चमक थी। चैलेंज सा देते हुये उन्होंने पूछा- “तो तुम्हें तेज मिरच पसंद है…” 

चैलेंज स्वीकार करते हुए मैं बोली- “हां भाभी जब तक कस के नहीं छरछराये तो क्या मजा…” 

कामिनी भाभी ने मुश्कुराकर चम्पा भाभी से कहा- “तो इसको स्पेशल चटनी चटानी पड़ेगी…” 

चम्पा भाभी मुझसे बोलीं- “अरे जब एक बार वो चटनी चाट लोगी तो कुछ और अच्छा नहीं लगेगा …” 

कामिनी भाभी और कुछ बोलतीं तब तक उनकी एक ननद ने उनको चुनौती दे दी और वह उससे लोहा लेने चल पड़ीं। मैं और पूरबी बैठकर मज़ा ले रहे थे, एकदम फ्री फार आल चालू हो गया था।, पकड़ा-पकड़ी, सब कुछ चल रहा था, चन्दा के पीछे चम्पा भाभी और गीता के पीछे चमेली भाभी पड़ीं थीं। 

सुनील की छोटी बहन रीना भी थी, अभी 8वीं में पढ़ती थी, चौदहवाँ लगा था । चेहरा बहुत भोला सा, टिकोरे से छोटे छोटे उभार, फ्राक को पुश कर रहे थे, पर गाली देने में भाभी लोगों ने उसको भी नहीं बख्शा, आखिर उनकी ननद जो थी
। 







रतजगा पार्ट २











मामला एकदम गरम हो गया था। मैंने चंदा का हाथ दबा के कहा, अब खत्म होने वाला है क्या। 

मुस्कराकर , उसने मेरे गाल के डिम्पल पे जोर से चिकोटी काट ली और बोला , " जानू अभी तो शुरू हुआ है , जब तक तुझे नंगा न नचाया तब तक , .... "

लेकिन उसकी बात बीच में रह गयी। कुछ हंगामा शुरू हो गया था। पीछे वाले कमरे से कोई पंडित जी से आये थे और बसंती उनके पीछे पड़ी थी। 

धोती , लंबा ढीला कुर्ता , माथे पे चन्दन का टीका , गले में माला और एक झोला। 

बसंती पीछे पड़ी थी पंडित जी के , " अरे तनी एनकर धोतियाँ उठाय के देखा। "

मैंने चंदा से हलके से पूछा,इ कौन है , और जवाब पूरबी ने दिया ," जरा ध्यान से देखो पता चल जाएगा। "

और सच में उनकी आवाज और हंसी ने सारा राज खोल दिया , कामिनी भाभी थीं , पंडित ,ज्योतिषी बन के आई थीं। 

और अपनी किसी ननद का हाथ देख रही थीं , किसी की कुंडली बिचार रही थीं और उसकी सब पोल पट्टी खोल रही थीं। 

तब तक उनकी निगाह मेरी ओर पड़ी , और मेरी भाभी ने मुस्कराकर उन्हें बुलाया और बोला ,

" ये मेरी ननद है ,सावन में आई है अपनी ताल पोखरी भरवाने , मेरे साथ। "

कामिनी भाभी को तो बस यही मौक़ा चाहिए था। जैसे ही वो मेरे पास बैठीं , भाभी ने फिर पुछा ,

" पंडित जी ज़रा ठीक से देखियेगा , इसकी अभी फटी की नहीं और कौन कौन चढ़ेगा इस के ऊपर। "

कामिनी भाभी ने मेरी कलाई कस के पकड़ी और हाथ को खूब ध्यान से देखा , और उनकी आँखों ने जब झाँक के मेरी आँखों में देखा तो मैं समझ गयी आज मेरी पोल पट्टी खुलने वाली है। कल रात अजय के साथ , आज पहले सुबह गन्ने के खेत में सुनील के साथ , फिर शाम को अमराई में चंदा के साथ , सुनील और रवि दोनों ने मिल कर , हचक हचक कर मेरी ली थी , अभी तक मेरी बुलबुल परपरा रही थी। 

मेरी आँखों ने कुछ गुजारिश की और उनकी चुलबुली आँखों ने मांग लिया लेकिन इस बात के साथ की , बच्ची इसकी कीमत वसूलूंगी ,वो भी सूद ब्याज के साथ। 

और फिर अपनी तोप उन्होंने मेरी भाभी की ओर मोड़ दी,

" ये मस्त माल , चिकने गाल तुम्हारी ननद है की भौजाई? ऐसा मस्त जोबन , तुम्हारे तो सारे भैया इसके ऊपर चढ़ाई करेंगे। ये सिर्फ तुम्हारी नहीं सारे गाँव की भौजाई बनेगी। किसी को मना नहीं करेगी , लेकिन और ज्यादा साफ़ पता करने के लिए , मुझे इसका हाथ नहीं पैर देखना होगा तब असली हाल पता चलेगा इसकी ताल तलैया का। "

और जब तक मैं सम्ह्लू सम्ह्लू , ना ना करूँ , बसंती और पूरबी दोनों मेरे ठीक पीछे , घात लगाये , दोनों ने कसके मेरे हाथ जकड के पीछे खींच लिए और अब मैं गिर गयी थी ,हिल भी नहीं सकती थी। 

और पंडित बनी कामिनी भाभी लहीम शहीम , उनकी खेली खायी ननदे उनसे पार नहीं पा सकती थीं ,मैं तो नयी बछेड़ी थी ,

जैसे कोई चोदने के लिए टाँगे उठाये , एकदम उसी तरह से , … 

मैं छटपटा रही थी ,मचल रही थी ,लेकिन , और सारी भाभियों , ननदों का शोर गूँज रहा था था , पूरा पूरा खोलो। 

अपने आप लहंगा सरक के मेरी गोरी गोरी केले के तने ऐसी चिकनी जाँघों तक आ गया था , और गाँव में चड्ढी बनयायिन पहनने का रिवाज तो था नहीं , तो मैंने भी ब्रा पैंटी पहनना छोड़ दिया था।
कामिनी भाभी की उंगलिया ,जिस तरह मेरी खुली,उठी मखमली जाँघों पे रेंग रही थी ,चुभ रही थीं जैसे लग रहा था बिच्छू ने डंक मार दिया। जहरीली मस्ती से मेरी आँखे मुंद रही थीं बिना खोले , जांघे अपने आप फैल रही थीं। 

और और , सब भाभियाँ लडकियां चिल्ला रही थीं। 

पंडित बनी कामिनी भाभी का हाथ घुटनों से थोड़े आगे जाके रुक गया , और फिर एक झटके में लहंगा उठा के , अपना पूरा सर अंदर डाल के वो झांक रही थी , साथ में उनकी शैतान उँगलियाँ , अब आलमोस्ट मेरी बुलबुल के आसपास और एक झटके में उनकी तरजनी जहाँ ,वहां छू गयी , लगा करेंट जोर से। 

पंडित जी ने जैसे लहंगा से सर बाहर निकाला , जोर से हल्ला हुआ , क्या देखा , किससे किससे चुदेगी ये बिन्नो। 

थोड़ी देर मुस्कराने के बाद भाभी से वो बोलीं ,एक तो तेरा नंदोई है , …फिर कुछ रुक कर , कब सब लोग जोर से हल्ला करने लगे तो वो बोली , भों भों। 

मतलब जान के भी मेरी भाभी ने पूछा और कहा , पंडित जी मेरी एकलौती ननद है , खुल के बतालेकिन पंडित जी ने फिर एक चौपाया बनने का , डॉगी पोज का इशारा किया और भों भों। 

जवाब चंपा भाभी , ( मेरी भाभी की भौजाई ) ने दिया , " अरे ई रॉकी , ( भाभी के यहाँ का कुत्ता ) से चुदवाई का ". 

पंडित जी बनी कामिनी भाभी ने हामी में सर हिलाया और ये भी बोला " ई बहुत जरूरी है , नहीं तो इसके ऊपर एक ग्रह का दोष है उ तबै शांत होगा जब ई कौन कुत्ता से चुदवायेगी। हाँ लेकिन ये सीधे से नहीं मानेगी , जोर जबरदस्ती करनी पड़ेगी। दूसरे , अबकी कातिक में ही जोग है। बस एक बार चुदवा लेगी फिर तो ,"

एक बार फिर चंपा भाभी मैदान में आ गयीं और हाल खुलासा बयान करने लगी ,

" अरे कोई बात नहीं ,दो तीन महीने की बात है। और बस , आँगन में जो चुल्ला लगा है न बस उसी में बाँध देंगे , जैसे बाकी कुतिया बांधते है , सांकल से , फिर तो रॉकी खुदै चाट चुट के इसकी चूत गरम कर देगा ,और एक बार जब उसका लंड घुस के , गाँठ लग गयी बस , फिर छोड़ देंगे उसको , … "

" अरे भाभी तब तो उसको घेररा घेररा के , पूरे घर में , " कजरी बोली। 

" अरे घर में काहें पूरे गाँव में , रॉकी की गाँठ एक बार लग जाती है तो घंटे भर से पहले नहीं छूटती। " बसंती , जो भाभी के घर पे नाउन थी उसने जोड़ा। 


" अरे एक दो बार ज्यादा दर्द होगा , फिर जहाँ मजा लग गया , फिर तो खुदे निहुर के रॉकी के आगे , " चम्पा भाभी ने मेरा गाल सहलाते बोला और जोड़ा मानलो चुदवाएगी ये कातिक में लकीन चूत तो अभी चटवा लो , उसकी खुरदुरी जीभ से बहुत मजा आएगा। "

और मेरी भाभी भी वो क्यों छोड़ती मौका , चंपा भाभी से बोलीं। 

" अरे भाभी , इस बिचारी ने मना किया है , वो तो आई ही है चुदवाने चटवाने , और कातिक में दुबारा आ जाएगी। "

लेकिन तबतक पंडित बनी कामिनी भाभी ने , दुबारा लहंगे में हाथ घुसा दिया था और इस बार उनकी उँगलियों ने मेरी चुनमिया को खुल के सहला दिया। 

किसी ने उनसे पूछ लिया , " क्यों पंडित जी , घास फूस है या चिक्कन मैदान। "

" एकदम मक्खन मलाई " और उन्होंने अपनी गदोरी से हलके से मेरी सहेली को दबा दिया।
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07-06-2018, 01:54 PM,
#37
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
रतजगे का हंगामा 


किसी ने उनसे पूछ लिया , " क्यों पंडित जी , घास फूस है या चिक्कन मैदान। "

" एकदम मक्खन मलाई " और उन्होंने अपनी गदोरी से हलके से मेरी सहेली को दबा दिया। 

मैं एकदम पानी पानी हो गयी , गनीमत था उन्होंने हाथ निकाल लिया और बोली ,

" सिंपो सिंपो "

" गदहा , अरे पंडित जी , इसकी गली के बाहर ही तो ८ -१० बंधे रहते हैं , मैंने तो देखा भी है इसको ,उनसे नैन मटक्का करते। "

दो चार भाभियों ने एक साथ मेरी भाभी को सराहा , ' बिन्नो बड़ी ताकत है तेरी ननद में , कुत्ता गदहा सब का ,… "

तब तक पंडित जी ने लहंगा थोड़ा और ऊपर सरका दिया , बस बित्ते भर मुश्किल से ऊपर सरकता तो खजाना दिख जाता , और अबकी न सिर्फ उनकी गदोरी जोर जोर से मेरी बुलबुल को सहला रही थी साथ में उनके अंगूठे ने क्लिट को जोर से दबा दिया। 

बड़ी मुश्किल से मैं सिसकी रोकी। 

और पंडित बनी कामिनी भाभी ने हाथ हटा दिया। उधर पीछे से बसंती और पूरबी ने भी मेरा हाथ छोड़ दिया। किसी तरह लहंगे को ठीक करती मैं बैठी। 

और अब पंडित जी मेरी पूरी भविष्यवाणी बिचार रहे थे। 

चम्पा भाभी से वो 'बोल रहे ' थे --

" अरे यहाँ तो ई तुम्हारे देवरों का मन रखेगी , लेकिन अपने मायके पहुँच के ( मेरी भाभी की ओर इशारा करके ) सबसे ज्यादा तो इनके देवर का भी मन रखेगी ,बिना नागा।"

" मतलब यहां इनकी भौजाई , और वहां देवरानी बनेगी " चम्पा भाभी और बाकी भाभियाँ हँसते खिलखिलाते बोलीं। 

मेरी पता नहीं कब तक कामिनी भाभी रगड़ाई करती लेकिन एक भाभी ने , उन्हें पूरबी की ओर उकसा दिया। 

" अरे पंडित जी तानी एकर पत्रा बिचारा , फागुन में ई ससुरे गयी गौने के बाद , और सावन लग गया अबहीं तक गाभिन नहीं हुयी। "

पंडित बनी कामिनी भाभी ने उसका आँचर एक झटके में हटा दिया , ( और अबकी पूरबी की दोनों कलाइयां मेंरे हाथ में थीं ) , थोड़ी देर पेट सहलाया और फिर एक झटके में हाथ पेटीकोट के अंदर। 

हम सब समझ रहे थे की कामिनी भाभी का हाथ अंदर क्या कर रहा है , खूब शोर हो रहा था , पूरबी मजे ले रही थी लेकिन पैर पटक रही थी। 

चार पांच मिनट खूब मजे लेने के बाद ' पंडित जी ' ने हाथ बाहर निकाला , और बड़ा सीरियस चेहरा बना के बोलीं ,

" बहुत मुश्किल है , कौनो योग नहीं लग रहा है। "

अब चम्पा भाभी भी सीरियस हो गयीं और पूछा , अरे पंडित जी का बात है , कतौ पाहुन में कुछ , एकरे मरद में कुछ कमी तो "

" अरे नहीं , उ तो बिना नागा , लेकिन गडबड दो है , एक तो इसके मर्द को गांड मारने का शौक बहुत है , चूत से ज्यादा ई गांड में लेती ही , दूसरे जब ई चुदवाती भी तो है खुदे ऊपर रहती है , खुद चढ़ के चोदती है , तो हमें तो डर है की कही इसका मरद ही न गाभिन हो जाय। "

जोर का ठहाका लगा और इसमें सिर्फ भाभियाँ ही नहीं बल्कि लड़कियां भी शामिल थीं। 

और इसी ठहाके के बीच एक दरोगा जी , आ गए
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07-06-2018, 01:54 PM,
#38
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
दरोगा जी , 

भाभी की माँ 



और इसी ठहाके के बीच एक दरोगा जी , आ गए। 

और मैंने भी उन्हें पहचान लिया , जिस दिन हम लोग आये उसी दिन जब सोहर हो रहा था , तो वो आई थीं , मुन्ने को देखने और भाभी की माँ को खूब खुल के छेड़ रही थीं। रिश्ते में भाभी की बुआ लगती थीं , इसलिए भाभी की माँ उनकी भाभी हुईं तो फिर तो मजाक का ,

और अबकी उन्होंने फिर भाभी की माँ और चाची को ही टारगेट किया। 

रतजगा में वैसे भी कोई शरम लिहाज , उमर का कोई बंधन नहीं था। 

बल्कि बल्कि जो ज़रा बड़ी उमर की औरतें होती थीं , वो और खुल के मजाक , और बात चीत से ज्यादा हाथ पैर से , कपडे खोलने ,… और दरोगा जी ने यही किया , 

भाभी की माँ के ब्लाउज में सीधे हाथ डाल दिया , और उनका साथ भाभी की रिश्ते में लगने वाली दो भाभियाँ दे रही थीं , दोनों हाथ पकड़ के। ( बहुओं को भी मौक़ा मिलता था सास से मजा लेने का )
" साल्ली ,बेटीचोद , अभी तक तो अपनी बेटियों से धंधा कराती थी , चकला चलाती थी अब चोरी चकारी पे उत्तर आई , भोसड़ी वाली। तेरे गांड में डंडा डाल के मुंह से निकालूंगी , बोल कहाँ कहाँ से चोरी की , क्या चोरी की , "

भाभी की माँ भी अब रोल में आ गयी थीं , बोलने लगी , " नहीं दरोगा जी , कुछ नहीं चुराया। "

लेकिन उनकी रिश्ते की बहुएं ,नयी नवेली एकदम जोश में थी ,

" दरोगा जी ,ये ऐसे नहीं मानेगी , पुरानी खानदानी चोर है , नंगा झोरी लेनी पड़ेगी साली की। " वो दोनों एक साथ बोलीं। 

बुआ जी जो दरोगा की ड्रेस में थी , अपनी भौजाई के बलाउज में हाथ डाल के सबको दिखा के खूब कस कस के चूंची रगड़ मसल रही थी और फिर एक झटका मारा उन्होंने तो आधे से ज्यादा बटन ब्लाउज के टूट गए और गदराये गोरे बड़े बड़े जोबन दिखने लगे। 

उन्होंने अपनी मुट्ठी खोली ( चंदा ने मेरे कान में बोला , देख इसमे से क्या क्या निकलेगा ) और सच में कुछ अंगूठियां , कान की बाली निकली। 


उन्होंने सब को दिखाया और नए जवान 'सिपाहियों ' ( भाभी की माँ की बहुओं ) को ललकारा 

" अरे ये तो नमूना है , साल्ल्ली ने अपनी गांड और भोंसड़े में बहुत छिपा रखा है , खोल साडी। "

जब तक वो सम्हलातीं , दोनों , सिपाहियों ने पीछे से उन्हें खींच के गिरा दिया और बुआ जी उर्फ़ दरोगा ने , साडी पूरी कमर तक। 

भाभी की मातृभूमि के दर्शन सबको होगये ,खुलम खुल्ला और यही नहीं बुआ जी ने एक ऊँगली अंदर भी घुसेड़ दी , और उनकी दोनों बहुओं ने ब्लाउज की बाकी बटने भी खोलकर दोनों कबूतर बाहर। 


फिर तो आधे घंटे में एकदम फ्री फॉर आल हो गया 


बाहर बारिश बहुत तेज हो गयी थी। 

रात खत्म होने के कगार पे साढ़े तीन चार होने वाला था। 


और तबतक एक 'लड़का ' आया , दुल्हन की तलाश में , और सब लोग अपनी अपनी हरकतें छोड़ के चुप चाप बैठ गए।


हाइट करीब मेरी ही रही होगी , गोरा रंग , तीखे नाक नक्श ,बड़ी बड़ी आँखे , भरे भरे गाल और पेंट शर्ट ,कोट पहने एक टोपी लगाए। 

मैंने पहचाना नहीं , लेकिन टोपी भी उसकी लम्बे बाल जो मोड़ के खोंसे थे , मुश्किल से छुपा पा रही थी। 

थी तो कोई गाँव की लड़की , लेकिन एकदम लड़का। यहाँ तक की मूंछे भी जबरदस्त और बार वो अपने मूंछो पे हाथ , 

चंदा और पूरबी भी उसे गौर से देख रही थीं , पहचानने की कोशिश कर रही थीं , तब तक वो कजरी के पास जा के बैठ 'गया ' और उसके साथ उसकी भाभी भी थीं। 
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07-06-2018, 01:55 PM,
#39
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
रतजगा , आगे 


बाहर बारिश बहुत तेज हो गयी थी। 

रात खत्म होने के कगार पे साढ़े तीन चार होने वाला था। 


और तबतक एक 'लड़का ' आया , दुल्हन की तलाश में , और सब लोग अपनी अपनी हरकतें छोड़ के चुप चाप बैठ गए।


हाइट करीब मेरी ही रही होगी , गोरा रंग , तीखे नाक नक्श ,बड़ी बड़ी आँखे , भरे भरे गाल और पेंट शर्ट ,कोट पहने एक टोपी लगाए। 

मैंने पहचाना नहीं , लेकिन टोपी भी उसकी लम्बे बाल जो मोड़ के खोंसे थे , मुश्किल से छुपा पा रही थी। 

थी तो कोई गाँव की लड़की , लेकिन एकदम लड़का। यहाँ तक की मूंछे भी जबरदस्त और बार वो अपने मूंछो पे हाथ , 

चंदा और पूरबी भी उसे गौर से देख रही थीं , पहचानने की कोशिश कर रही थीं , तब तक वो कजरी के पास जा के बैठ 'गया ' और उसके साथ उसकी भाभी भी थीं। 

" अरे ये लड़का शहर से आया , सरकारी नौकरी है, ऊपर क आमदनी भी , लड़की देखे के लिए , … " भाभी उसकी बोल रही थीं लेकिन बसंती ने बात काटी।














दुल्हन की तलाश 










" अरे ये लड़का शहर से आया , सरकारी नौकरी है, ऊपर क आमदनी भी , लड़की देखे के लिए , … " भाभी उसकी बोल रही थीं लेकिन बसंती ने बात काटी। 

" अरे ऊपर क ना , नीचे क बात बतावा , औजार केतना बड़ा हौ , खड़ा वडा होला की ना , कतो गंडुआ तो ना हौ। " वो लड़की वाले की ओर से हो गयी थी। 
" अरे ठीक ९ महीना में सोहर होई। पक्का गारंटी। रात भर चूड़ी चुरुरमुरुर होई। " 'लड़के ' की भाभी ने बात सम्हालने की कोशिश की। 


लेकिन लड़के ने कजरी को रिजेक्ट कर दिया। 

उसकी आँखे गाँव की भौजाइयों , चाचियों ,मौसियों , बुआओ के बीच खिखिलाती , शोर मचाती दर्जनो लड़कियों के बीच कुछ तलाश कर रही थी। 


इसी बीच , भाभियाँ भी , कोई उसे चिढ़ा रहां था , कोई अपनी किसी ननद का नाम सजेस्ट कर रहा था ,

पर वह सीधे मेरी भाभी के पास , 


इसी बीच चंदा और पूरबी जो मेरे साथ बैठी थीं , दोनों ने झट पहचान लिया , " अरे ई तो मंजुआ हो। एकदमै ,… 

पता ये चला की वो जो भाभी उसके साथ थीं , शीला भाभी वो उनकी ममेरी बहन थी , और अपने को एकदम उस्ताद समझती थी , और चंदा और उसकी सहेलियों से उसकी ज्यादा नहीं पटती थी।

बात कई थी , वो पास के एक छोटे से शहर की थी , लेकिन गाँव की लड़कियों , लड़कों को एकदम गंवार समझती थी। 'ऐसे वैसे 'मजाक का एकदम से बुरा मानती तो थी , पलट के बोल देती थीं मुझे ऐसी गँवारू बातें पसंद नहीं। पिछली बार जब वो आई एक दो लड़कों ने ( जिसमें सुनील भी शामिल था ) थोड़ा लाइन मारने की कोशिश की , तो बस एकदम से अल्फफ , और दस बातें सुना दी , गंवार ,तमीज नहीं और भी ,… 

लेकिन कुछ उसमें ख़ास बात थी भी , जिससे लड़कों का मन डोलता था ,और वो था उसका गदराया जोबन। 

इस उम्र में भी खूब बड़ा बड़ा , उभरा ,मस्त एकदम जानमारु। और ऐसे टाइट कपडे पहन के चलती थी की , उभार कटाव सब पता चले. और साथ ही उसके चूतड़ , वो भी चूंचियो की तरह डबल साइज के। रंग तो एकदम गोरा था ही।

पर जिस दिन से उसने सुनील को उल्टा सीधा बोला , उस दिन से चंदा और बाकी सभी गाँव की लडकियां एकदम जली भुनी। ये सब बातें पिछले साल जाड़े की थी , जब वो यहाँ आई थी। 

जब तक उसने भाभी से बात करना शुरू किया , चंदा और पूरबी ने मुझे अच्छी तरह हाल खुलासा समझा दिया। 

और अब तो मैं भी उनके गोल की थी , और सुनील अजय तो अब मेरे भी,… भाभी भी 'उसके' पीछे पड़ी थीं , 

" कैसी लड़की चाहिए , देखने में , बाकी चीजों में , … "

" मुझे असल में ,एकदम शहर की , शहरी लड़की चाहिए , जो फैशनबल हो जींस स्कर्ट पहनती हो ,फरर फरर अंग्रेजी बोलती हो ,स्मार्ट हो " वो 'लड़का ' बोला ,

और साथ में उसके साथ अगुवाई कर रही , उसकी बहन और सबकी भाभी , शीला भाभी बोलीं। 

" हमारा लड़का भी बहुत स्मार्ट है , सब काम अंग्रेजी में करता है ",
लेकिन मेरी भाभी से पार पाना आसान नहीं था , वो बोलीं ,

" अरे शहरी माल पसंद था तो शहर के मॉल में ढूंढती , इहाँ कहाँ ,गाँव जवार में , एह जगह तो गाँव वाली गँवारन ही मिलेंगी। और फिर स्कर्ट जींस का कौन मतलब , शादी के बाद कौन लड़का अपनी दुल्हन को कपडे पहनने देता है , चाहे जींस हो या लहंगा उतर तो सब जाता है। "

और सारी भाभियों ,लड़कियों के ठहाके गूँज गए। 

और वो 'लड़का' उसकी निगाहें चारो ओर मुझे ही ढूंढ रही थी , लेकिन बसंती , चंदा ,गीता और पूरबी ने मुझे अच्छी तरह छुपा रखा था।
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07-06-2018, 01:55 PM,
#40
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
शहरी माल 



और वो 'लड़का' उसकी निगाहें चारो ओर मुझे ही ढूंढ रही थी , लेकिन बसंती , चंदा ,गीता और पूरबी ने मुझे अच्छी तरह छुपा रखा था। 
फिर तो एक के बाद एक सारी भाभियाँ , 

चंपा भाभी ने पूछा " कहो उ हो सब , काम भी अंग्रेजी में करते हो का। "

लेकिन फंसाया उसको बसंती ने , " बोली अच्छा एक शहर का माल दिखाती हूँ लेकिन एक बात है जो तुम्हारी साली सलहज है उनकी बात माननी होगी। "

और मैं उस के सामने आ गयी। 

फिर चट मंगनी पट ब्याह। 

शादी की सब रस्मे हुयी और मेरी सारी सहेलियों भाभियों ने जम के गालियां सुनाई , कोहबर की भी सब रस्में हुयी और उसमे भी खूब रगड़ाई ,… 

" शादी के बाद सुहाग रात भी होगी वो भी सबके सामने " शीला भाभी ने छेड़ा ,तो जवाब मेरी ओर से बसंती ने दिया ,

" एकदम , लेकिन लड़की की ओर से मैं चेक करुँगी , सुहागरात मनाने वाला औजार , और अगर ६ इंच से सूत भर भी कम हुआ न तो पलट के दूल्हे की गांड मार लुंगी। " और एक बार फिर ठहाके गूँज गए। 

थोड़ी देर में पहले तो ऊपर के कपडे उतरे और फिर बंसती ने चेक किया ,

औजार था , एक मोटी कैंडल पे कंडोम चढ़ाके बनाया , और ६ इंच पूरा , इसलिए बिचारे की गांड बच गयी , लेकिन शर्त मुताबिक़ , मेरी सहेलिया चंपा , गीता ,, कजरी सब ऐन मौके पे 

थोड़ी देर तक तो मैंने 'उसे ' मजे ले ने दिए लेकिन फिर थोड़ी देर में मैं ऊपर ,

" हमारे यहां की रसम है की सुहाग रात में पहले दुलहन ऊपर रहती है , " चम्पा भाभी हंस के बोली , 

उस की मोमबत्ती अब दूर हट गयी , मैंने तो सोचा था की कम से कम तीन ऊँगली डाल के ( ये सलाह बसंती की थी ) लेकिन पहली ऊँगली में ही लग गया की माल अभी कोरा है , फिर तो मुझे सुनील और गाँव के बाकी लड़कों की याद आ गयी , बस मैंने बख्श दिया , लेकिन इतनी रगड़ाई की की ,

मंजू से सबके सामने मनवा लिया की न सिर्फ सुनील से बल्कि गाँव के हर लडके से वो खुल के चुदवायेगी, और फिर कभी गाँव में किसी का मजाक नहीं बनाएगी। 

और उस बिचारी को बचाने आता भी कौन ,उसकी बहन ,शीला भाभी को मेरी भाभी , कामिनी भाभी ने दबोच लिया था और उनकी रगड़ाई तो मंजू से भी कस कस के हो रही थी। 

और तब तक सबेरा हो गया था। 

बारिश बंद हो चुकी थी। 

खपड़ैल की छत से , पेड़ों की पत्तियों अभी भी टप टप पानी की बूंदे रुक रुक के गिर रही थीं। 

हम लोग घर वापस आगये , पूरबी ने कहा था की वो कल मुझे नदी ले चलेगी नहाने , लेकिन थोड़ी देर में फिर बहुत तेज बारिश शुरू हो गयी। 

कहीं भी निकलना मुश्किल था। 

और मैं भी दो रात लगातार जग चुकी थी , एक रात अजय के साथ और कल रतजगे में। 
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