Long Sex Kahani सोलहवां सावन
07-06-2018, 01:41 PM,
#11
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
ठीक है, बाद में ही सही पर ये चिड़िया अब बहुत देर तक चारा खाये बिना नहीं रहेगी…” साड़ी के ऊपर से मेरी चूत को कसके रगड़ती हुई वो बोली, और मुझे हाथ पकड़के मेले की ओर खींचकर, लेकर चल दी। 

मेले में गीता के साथ पूरबी, कजरी और बाकी लड़कीयां फिर मिल गयीं। चन्दा ने आँखों के इशारे से पूछा तो गीता ने उंगली से दो का इशारा किया। 

मैं समझ गयी कि रवी से ये दो बार चुदा के आ रही है। 

पूरे मेले में खिलखिलाती तितलियों की तरह हम लोग उड़ते फिर रहे थे। हम लोगों ने गोलगप्पे खाये, झूले पर झूले, हम लोगों का झुंड जिधर जाता, पूरे मेले का ध्यान उधर मुड़ जाता और फिर जैसे मिठाई के साथ-साथ मक्खियां आ जाती हैं, हमारे पीछे-पीछे, लड़कों की टोली भी पहुँच जाती। और दुकानदार भी कम शरारती नहीं थे, कोई चूड़ी पहनाने के बहाने जोबन छू लेता तो कोई कलाई पकड़ लेता। और लड़कीयों को भी इसमें मजा मिल रहा था, क्योंकी इसी बहाने उन्हें खूब छूट जो मिल रही थी।

थोड़ी देर में मैं भी एक्सपर्ट हो गई। दुकानदार के सामने मैं ऐसे झुक जाती कि उसे न सिर्फ चोली के अंदर मेरे जोबन का नजारा मिल जाता बल्की वह मेरे चूचुक तक साफ-साफ देख लेता। उसका ध्यान जब उधर होता तो मेरी सहेलियां उसका कुछ सामान तो पार ही कर लेतीं, और मुझे जो वो छूट देता वो अलग। हम ऐसे ही मस्ती में घूम रहे थे। 
पूरबी ने गाया- 

अरे मैं तो बनिया यार फँसा लूंगी, 
अरे जब वो बनिया चवन्नी मांगे, 
अरे जब वो बनिया चवन्नी मांगे, मैं तो जोबना खोल दिखा दूंगी। 
अरे मैं तो बनिया यार फँसा लूंगी, दूध जलेबी खा लूंगी
अरे जब वो बनिया रुपैया मांगे, 
अरे जब वो बनिया रुपैया मांगे, मैं तो लहंगा खोल दिखा दूंगी। 


गुदने वाली के पास भी हम लोग गये और मैंने भी अपनी ठुड्डी पे तिल गुदवाया। तभी मैंने देखा कि बगल की दुकान पे दो बड़े खूबसूरत लड़के बैठें हैं, खूब गोरे, लंबे, ताकतवर, कसरती, गठे बदन के, उनकी बातों में मेरा नाम सुन के मेरा ध्यान ओर उनकी ओर लग गया। 

“अरे तुमने देखा है, उस शहरी माल को, क्या मस्त चीज है…” एक ने कहा। 

“अरे मैं, आज तो सारा मेला उसी को देख रहा है, उसकी लम्बी मोटी चूतड़ तक लटकती चोटी, जब चलती है तो कैसे मस्त, कड़े कड़े, मोटे कसमसाते चूतड़, मेरा तो मन करता है, कि उसके दोनों चूतड़ों को पकड़कर उसकी गाण्ड मार लूं… एक बार में अपना लण्ड उसकी गाण्ड में पेल दूं…” दूसरा बोला। 

“अरे मुझे तो बस… क्या, गुलाबी गाल हैं उसके भरे-भरे, बस एक चुम्मा दे दे यार, मन तो करता है कि कचाक से उसके गाल काट लूं…” पहला बोला। 

दूसरा बोला- “और चूची… ऐसी मस्त रसीली कड़ी-कड़ी चूचियां तो यार पहली बार देखीं, जब चोली के अंदर से इत्ती रसीली लगती हैं तो… बस एक बार चोदने को मिल जाय…” 

शायद किसी और दिन मैं किसी को अपने बारे में ऐसी बातें बोलती सुनती तो बहुत गुस्सा लगता, पर आज ये सबसे बड़ी तारीफ लग रही थी… और ये सुनके मैं एकदम मस्त हो गयी। 

जब मैंने अपनी सहेलियों की ओर निगाहें डाली तो वहां उनके साथ कई लड़के खड़े थे, जब मैं नजदीक गई तो पाया कि चन्दा के साथ सुनील, गीता के साथ रवी और कजरी और पूरबी के साथ भी एक-एक लड़का था। अजय अकेला खड़ा था। 


गीता ने अजय को छेड़ा- “अरे… सब अपने-अपने माल के साथ खड़े हैं… और तुम अकेले…” 

मैंने ठीक से सुना नहीं पर मैं अजय को अकेले देखकर उसके पास खड़ी हो गयी और बोली- “मैं हूँ ना…” 

सब हँसने लगे, पर अजय ने अपने हाथ मेरे कंधे पर रखकर मुझे अपने पास खींच लिया और सटाकर कहने लगा- “मेरा माल तो है ही…” 
थोड़ा बोल्ड बनकर अपना हाथ उसकी कमर में डालकर, मैं और उससे लिपट, चिपट गयी और बोली- “और क्या, जलती क्यों हो, तुम लोग…” 

चन्दा मुझे चिढ़ाते हुए, अजय से बोली- “अरे इतना मस्त, तुम्हारा मन पसंद माल मिल गया है, मुँह तो मीठा कराओ…” 

“कौन सा मुंह… ऊपर वाला या नीचे वाला…” छेड़ते हुए गीता चहकी। 

“अरे हम लोगों का ऊपर वाला और अपने माल का दोनों…” चन्दा मुश्कुरा के बोली। 

एक दुकान पर ताजी गरम-गरम जलेबियां छन रहीं थीं। हम लोग वहीं बैठ गये। 

सब लोगों को तो दोने में जलेबियां दीं पर मुझे उसने अपने हाथ से मेरे गुलाबी होंठों के बीच डाल दी। थोड़ा रस टपक कर मेरी चोली पर गिर पड़ा और उसने बिना रुके अपने हाथ से वहां साफ करने के बहाने मेरे जोबन पे हाथ फेर दिया। हम लोग थोड़ा दूर पेड़ के नीचे बैठे थे। उसका हाथ लगाते ही मैं सिहर गयी। 

एक जलेबी अपने हाथों में लेकर मैंने उसे ललचाया- “लो ना…” और जब वो मेरी ओर बढ़ा तो मैंने जलेबी अपने होंठों के बीच दबाकर जोबन उभारकर कहा- “ले लो ना…” 

अब वो कहां रुकने वाला था, उसने मेरा सर पकड़ के मेरे होंठों के बीच अपना मुँह लगा के न सिर्फ जलेबी का रसास्वादन किया बल्की अब तक कुंवारे मेरे होंठों का भी जमकर रस लिया और उसे इत्ते से ही संतोष नहीं हुआ और उसने कसके मेरे रसीले जोबन पकड़ के अपनी जीभ भी मेरे मुँह में डाल दिया। 

“हे क्या खाया पिया जा रहा है, अकेले-अकेले…” चन्दा की आवाज सुनकर हम दोनों अलग हो गये। 
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07-06-2018, 01:42 PM,
#12
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
सोलहवां सावन 




अब तक 

गुदने वाली के पास भी हम लोग गये और मैंने भी अपनी ठुड्डी पे तिल गुदवाया। तभी मैंने देखा कि बगल की दुकान पे दो बड़े खूबसूरत लड़के बैठें हैं, खूब गोरे, लंबे, ताकतवर, कसरती, गठे बदन के, उनकी बातों में मेरा नाम सुन के मेरा ध्यान ओर उनकी ओर लग गया। 

“अरे तुमने देखा है, उस शहरी माल को, क्या मस्त चीज है…” एक ने कहा। 

“अरे मैं, आज तो सारा मेला उसी को देख रहा है, उसकी लम्बी मोटी चूतड़ तक लटकती चोटी, जब चलती है तो कैसे मस्त, कड़े कड़े, मोटे कसमसाते चूतड़, मेरा तो मन करता है, कि उसके दोनों चूतड़ों को पकड़कर उसकी गाण्ड मार लूं… एक बार में अपना लण्ड उसकी गाण्ड में पेल दूं…” दूसरा बोला। 

“अरे मुझे तो बस… क्या, गुलाबी गाल हैं उसके भरे-भरे, बस एक चुम्मा दे दे यार, मन तो करता है कि कचाक से उसके गाल काट लूं…” पहला बोला। 

दूसरा बोला- “और चूची… ऐसी मस्त रसीली कड़ी-कड़ी चूचियां तो यार पहली बार देखीं, जब चोली के अंदर से इत्ती रसीली लगती हैं तो… बस एक बार चोदने को मिल जाय…” 

शायद किसी और दिन मैं किसी को अपने बारे में ऐसी बातें बोलती सुनती तो बहुत गुस्सा लगता, पर आज ये सबसे बड़ी तारीफ लग रही थी… और ये सुनके मैं एकदम मस्त हो गयी। जब मैंने अपनी सहेलियों की ओर निगाहें डाली तो वहां उनके साथ कई लड़के खड़े थे, जब मैं नजदीक गई तो पाया कि चन्दा के साथ सुनील, गीता के साथ रवी और कजरी और पूरबी के साथ भी एक-एक लड़का था। अजय अकेला खड़ा था। 




आगे 




गीता ने अजय को छेड़ा- “अरे… सब अपने-अपने माल के साथ खड़े हैं… और तुम अकेले…” 

मैंने ठीक से सुना नहीं पर मैं अजय को अकेले देखकर उसके पास खड़ी हो गयी और बोली- “मैं हूँ ना…” 

सब हँसने लगे, पर अजय ने अपने हाथ मेरे कंधे पर रखकर मुझे अपने पास खींच लिया और सटाकर कहने लगा- “मेरा माल तो है ही…” 

थोड़ा बोल्ड बनकर अपना हाथ उसकी कमर में डालकर, मैं और उससे लिपट, चिपट गयी और बोली- “और क्या, जलती क्यों हो, तुम लोग…” 

चन्दा मुझे चिढ़ाते हुए, अजय से बोली- “अरे इतना मस्त, तुम्हारा मन पसंद माल मिल गया है, मुँह तो मीठा कराओ…” 
“कौन सा मुंह… ऊपर वाला या नीचे वाला…” छेड़ते हुए गीता चहकी। 

“अरे हम लोगों का ऊपर वाला और अपने माल का दोनों…” चन्दा मुश्कुरा के बोली। 

एक दुकान पर ताजी गरम-गरम जलेबियां छन रहीं थीं। हम लोग वहीं बैठ गये। 

सब लोगों को तो दोने में जलेबियां दीं पर मुझे उसने अपने हाथ से मेरे गुलाबी होंठों के बीच डाल दी। थोड़ा रस टपक कर मेरी चोली पर गिर पड़ा और उसने बिना रुके अपने हाथ से वहां साफ करने के बहाने मेरे जोबन पे हाथ फेर दिया। हम लोग थोड़ा दूर पेड़ के नीचे बैठे थे। उसका हाथ लगाते ही मैं सिहर गयी। 

एक जलेबी अपने हाथों में लेकर मैंने उसे ललचाया- “लो ना…” और जब वो मेरी ओर बढ़ा तो मैंने जलेबी अपने होंठों के बीच दबाकर जोबन उभारकर कहा- “ले लो ना…” 

अब वो कहां रुकने वाला था, उसने मेरा सर पकड़ के मेरे होंठों के बीच अपना मुँह लगा के न सिर्फ जलेबी का रसास्वादन किया बल्की अब तक कुंवारे मेरे होंठों का भी जमकर रस लिया और उसे इत्ते से ही संतोष नहीं हुआ और उसने कसके मेरे रसीले जोबन पकड़ के अपनी जीभ भी मेरे मुँह में डाल दिया। 

“हे क्या खाया पिया जा रहा है, अकेले-अकेले…” चन्दा की आवाज सुनकर हम दोनों अलग हो गये।
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07-06-2018, 01:42 PM,
#13
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
अजय 



रात शुरू हो गयी थी। हम सब घर की ओर चल दिये। रास्ते में मैंने देखा कि पूरबी उन दोनों लड़कों से, जो मेरी “रसीली तारीफ” कर रहे थे, घुल मिलकर बात कर रही थी। गीता ने बताया कि वे पूरबी के ससुराल के हैं और बल्की उसके ससुराल के यार हैं। अजय का घर भाभी के घर से सटा हुआ ही था। 

जब वो मुड़ने लगा तो हँसकर मैंने कहा- “आज तुमने मुझे जूठा कर दिया…” 

शैतानी से मेरी जांघों के बीच घूरता हुआ वो बोला- “अभी कहां, अभी तो अच्छी तरह हर जगह जूठा करना बाकी है…”

मैंने भी जोबन उभारकर, आँख नचाते हुए कहा- “तो कर ले ना, मना किसने किया है…” और चन्दा के साथ घर में दाखिल हो गयी। 

चन्दा घर जाने की जिद करने लगी और मुझसे कहने लगी की, मैं भी उसके साथ चलूं। मुझे भी उससे कुछ सामान लेना था, लेकिन मैं अकेले कैसे लौटती, ये सवाल था। तभी अजय दरवाजे पे नजर गया। चन्दा ने उससे बिनती की- 

“अजय चलो ना जरा मुझे घर तक छोड़ दो…” 
पर अजय ने मुँह बनाया और कहने लगा कि उसे कुछ जरूरी काम है। 

मैंने बहुत प्यार से कहा- “मैं भी चल रही हूँ और फिर मैं अकेले कैसे लौटूंगी, चलो ना…” 

खुशी की लहर उसके चेहरे को दौड़ गयी- “हां, एकदम चलो ना मैं तो आया ही इसीलिये था…” 

चम्पा भाभी, जो मेरी भाभी के साथ किसी और काम में व्यस्त थीं, ने भी उससे कहा कि वह हमारे साथ चल चले। भाभी ने मुझसे कहा कि सब लोग पड़ोस में रतजगे में जायेंगे इसलिये मैं जब लौटूं तो पीछे वाले दरवाजे से लौटूं और बसंती रहेगी वह दरवाजा खोल देगी। 

हम तीनों चन्दा के घर के लिये चल दिये। चन्दा ने अजय को छेड़ा- “अच्छा, मैं कह रही थी तो जनाब के पास टाइम नहीं था, और एक बार इसने कहा…” 

“आखिर ये मेरा माल जो है…” और अजय ने मुझे कस के पकड़ लिया।

और मैंने भी उसकी बांहो में सिमटते हुए, चन्दा को छेड़ा- “मुझे कहीं कुछ जलने की महक आ रही है…” 

चन्दा बोली- “लौटते हुए लगाता है इस माल का उद्घाटन हो जायेगा, डरना मत मेरी बिन्नो…” 
“यहां डरता कौन है…” जोबन उभारकर मैंने कहा। 
चन्दा के यहां से हम जल्दी ही लौट आये। रात अच्छी तरह हो गयी थी। चारों ओर, घने बादल उमड़ घुमड़ रहे थे। तेज हवा सांय-सांय चल रही थी। बड़े-बड़े पेड़ हवा में झूम रहे थे, बड़ी मुश्किल से रास्ता दिख रहा था। 


मैंने कस के अजय की कलाई पकड़ रखी थी। पता नहीं अजय किधर से ले जा रहा था कि रास्ता लंबा लग रहा था। एक बार तेजी से बिजली कड़की तो मैंने उसे कस के पकड़ लिया। हम लोग उस अमराई के पास आ आ गये थे जहां कल हम लोग झूला झूलने गये थे। हल्की-हल्की बूंदे पड़नी शुरू हो गयी थीं। 


अजय ने कहा- “चलो बाग में चल चलते हैं, लगता है तेज बारिश होने वाली है…” 


और उसके कहते ही मुसलाधार बारिश शुरू हो गयी। मेरी साड़ी, चोली अच्छी तरह मेरे बदन से चिपक गये थे। जमीन पर भी अच्छी फिसलन हो गयी थी। बाग के अंदर बारिश का असर थोड़ा तो कम था, पर अचानक मैं फिसल कर गिर पड़ी। मुझे कसकर चोट लगती, पर, अजय ने मुझे पकड़ लिया। उसमें एक हाथ उसका मेरे जोबन पर पड़ गया और दूसरा मेरे नितंबों पर। मैं अच्छी तरह सिहर गयी। 


सामने झूला दिख रहा था, उसने मुझे वहीं बैठा दिया और मेरे बगल में बैठ गया। तभी बड़े जोर की बिजली चमकी और उसने और मैंने एक साथ देखा कि भीगने से मेरा ब्लाउज़ एकदम पारदर्शी हो गया है, ब्रा तो मैंने पहनी नहीं थी इसलिये मेरी चूचियां साफ दिख रही थीं। 


अजय के चेहरे पे उत्तेजना साफ-साफ दिख रही थी। उसने मुझे खींचकर अपनी गोद में बैठा लिया और मेरे गालों को चूमने लगा। उसके हाथ भी बेसबरे हो रहे थे और उसने एक झटके में मेरी चोली के सारे बटन खोल दिये। मेरी साड़ी भी मेरी जांघों के बीच चिपक गयी थी। उसका एक हाथ वहां भी सहलाने लगा। मैं भी मस्ती में गरम हो रही थी। उसका हाथ अब मेरे खुले जोबन को धीरे-धीरे सहला रहा था।
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07-06-2018, 01:42 PM,
#14
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
बरस रहा सावन 



मैं भी मस्ती में गरम हो रही थी। उसका हाथ अब मेरे खुले जोबन को धीरे-धीरे सहला रहा था। 

जोश में मेरे चूचुक पूरे खड़े हो गये थे। उसने साड़ी भी नीचे कर दी और अब मैं पूरी तरह टापलेश हो गयी थी।

जब वह मेरे कड़े-कड़े निपल मसलता तो… मेरी भी सिसकी निकल रही थी। तभी मुझे लगा की मैं क्या कर रही हूं… मन तो मेरा भी बहुत कर रहा था पर मैं बोलने लगी- “नहीं अजय प्लीज मुझे छोड़ दो… नहीं रहने दो घर चलते हैं… फिर कभी… आज नहीं…” 


पर अजय कहां सुनने वाला था, उसके हाथ अब मेरी चूचियां खूब कस के रगड़ मसल रहे थे। मन तो मेरा भी यही कर रहा था कि बस वह इसी तरह रगड़ता रहे, मसलता रहे… मेरे मम्मे। पर मैं बोले जा रही थी- “अजय, प्लीज छोड़ दो आज नहीं… हटो मैं गुस्सा हो जाऊँगी… सीधे से घर चलो… वरना…” 


और अजय मुझे झूले पर ही छोड़कर हट गया। उसकी आवाज जाती हुई सुनाई दी- “ठीक है, मैं चलता हूं… तुम घर आ जाना…” 


मैं थोड़ी देर वैसे ही बैठी रही पर अचानक ही बिजली कड़की और मैं डर से सिहर गयी। हवा और तेज हो गयी थी। पास में ही किसी पेड़ के गिरने की आवाज सुनाई दी और मैं डर से चीख उठी- “अजय… अजय… प्लीज अजय… लौट आओ… अजय…” 

पूरा सन्नाटा था, फिर किसी जानवर की आवाज तेजी से सुनाई पड़ी और मैं एकदम से रुआंसी हो गयी। मैं भी कितनी बेवकूफ हूं, मन तो मेरा भी कर रहा था, आखिर चन्दा, गीता सब तो चुदवा रही थीं और सुबह से तो मैं भी अजय को सिगनल दे रही थी- 


“अजय… अजय… अजय्य्य्यय्य्य्य्य…” मैंने फिर पुकारा, पर कोई जवाब नहीं था, लगाता है, गुस्सा होकर चला गया, लेकिन वह भी कितना… मुझे मना सकता था… कुछ ना हो तो जबर्दस्ती कर सकता था। 


आखिर इतना हक तो उसका है ही। थोड़ा वक्त और गुजर गया। मैं बहुत जोर से डर रही थी। मैं पुकारने लगी- “अजय प्लीज आ जाओ, मैं तुम्हारे पांव पड़ती हूं… तुम मुझे किस करो, जो भी चाहे करो, प्लीज आ जाओ… मैं सारी बोलती हूं… मैं तुम्हारी हूं… जो भी चाहे…” 


तब तक उसने मुझे पीछे से पकड़ लिया, और बोला- “क्यों, मैं घर जाऊँ…” 

“नहीं मैं बहुत सारी हूं…” मैं भी उसे और कस के जकड़ के बोली। 

“अच्छा, सच सच बताओ, मेरी कसम, तुम्हारा भी मन कर रहा था कि नहीं…” अजय ने मेरे होंठों को चूमते हुए पूछा।

“हां कर रहा था… बहुत कर रहा था…” मैंने अपने मन की बात सच-सच बता दी। अजय के होंठ अब मेरे रसीले गलों का रस ले रहे थे। 

“क्या करवाने को कर रहा था…” मेरे गालों को काटते हुए उसने पूछा। 

“वही करवाने को… जो तुम्हारा करने को कर रहा था…” हँसते हुए मैंने कबूला। 

“नहीं तुम्हारी सजा यही है कि आज तुम खुलकर बताओ कि तुम्हारा मन क्या कर रहा… वरना बोलो तो मैं चला जाऊँ तुम्हें यहीं छोड़कर…” और ये कहते हुये उसने कस के मेरे कड़े निपल को खीचा। 

“मेरा मन कर रहा था॰ चुदवाने का तुमसे आज अपनी कसी कुंवारी चूत… चुदवाने का…” और ये कह के मैंने भी उसके गालों पर कस के चुम्मी ले ली। 


“तो चुदवाओ ना… मेरी जान शर्मा क्यों कर रही थी, लो अभी चोदता हूँ अपनी रानी को…” और उसने वहीं झूले पे मुझे लिटाके मेरे टीन जोबन को कसके रगड़ने, मसलने, चूमने लगा। 


थोड़ी ही देर में मैं मस्ती में सिसकियां ले रही थी। मेरा एक जोबन उसके हाथों से कसकर रगड़ा जा रहा था और दूसरे को वह पकड़े हुए था और मेरे उत्तेजित निपल को कस-कस के चूस रहा था। कुछ ही देर में उसने जांघों पर से मेरे साड़ी सरका दी और उसके हाथ मेरी गोरी-गोरी जांघों को सहलाने लगे। मेरी पूरी देह में करेंट दौड़ गया। देखते-देखते उसने मेरी पूरी साड़ी हटा दी थी और चन्दा की तरह मैं भी टांगें फैलाकर, घुटने से मोड़कर लेट गयी थी।

उसकी उंगलियां, मेरे 16 सावन के प्यासे भगोष्ठों को छेड़ रहीं थी, सहला रही थी। अपने आप मेरी जांघें, और फैल रही थीं। अचानक उसने अपनी एक उंगली मेरी कुंवारी अनचुदी चूत में डाल दी और मैं मस्ती से पागल हो गयी। उसकी उंगली मेरी रसीली चूत से अंदर-बाहर हो रही थी और मेरी चूत रस से गीली हो रही थी। बारिश तो लगभग बंद हो गई थी पर मैं अब मदन रस में भीग रही थी। उसका अंगूठा अब मेरी क्लिट को रगड़, छेड़ रहा था।


और मैं जवानी के नशे में पागल हो रही थी- 

“बस… बस करो ना… अब और कितना… उह्ह्ह… उह्ह्ह… ओह्ह्ह… अजय… बहुत… और मत तड़पाओ… डाल दो ना…” 


अजय ने मुझे झूले पे इस तरह लिटा दिया कि मेरे चूतड़ एकदम किनारे पे थे। 

बादल छंट गये थे और चांदनी में अजय का… मोटा… गोरा… मस्क्युलर… लण्ड, उसने उसे मेरी गुलाबी कुंवारी… कोरी चूत पर रगड़ना शुरू कर दिया, मेरी दोनों लम्बी गोरी टांगें उसके चौड़े कंधों पर थीं। जब उसके लण्ड ने मेरी क्लिट को सहलाया तो मस्ती से मेरी आँखें बंद हो गयीं। 

उसने अपने एक हाथ से मेरे दोनों भगोष्ठों को फैलाया और अपना सुपाड़ा मेरी चूत के मुहाने पे लगा के रगड़ने लगा। दोनों चूचीयों को पकड़ के उसने पूरी ताकत से धक्का लगाया तो उसका सुपाड़ा मेरी चूत के अंदर था। 

ओह… ओह… मेरी जान निकल रही थी, लगा रहा था मेरी चूत फट गयी है- “उह… उह… अजय प्लीज… जरा सा रुक जाओ… ओह…” मेरी बुरी हालत थी। 


अजय अब एक बार फिर मेरे होंठों को चूचुक को, कस-कस के चूम चूस रहा था। थोड़ी देर में दर्द कुछ कम हो गया और अब मैं अपनी चूत की अदंरूनी दीवाल पर सुपाड़े की रगड़न, उसका स्पर्श महसूस कर रही थी और पहली बार एक नये तरह का मज़ा महसूस कर रही थी। अजय की एक उंगली अब मेरी क्लिट को रगड़ रही थी और मैं भी दर्द को भूलकर धीरे-धीरे चूतड़ फिर से उचका रही थी। 


एक बार फिर से बादल घने हो गये थे और पूरा अंधेरा छा गया था। अजय ने अपने दोनों मजबूत हाथों से मेरी पतली कमर को कस के पकड़ा और लण्ड को थोड़ा सा बाहर निकाला, और पूरी ताकत से अंदर पेल दिया। बहुत जोर से बादल गरजा और बिजली कड़की… और मेरी सील टूट गयी। 


मेरी चीख किसी ने नहीं सुनी, अजय ने भी नहीं, वह उसी जोश में धक्के मारता रहा। मैं अपने चूतड़ कस के पटक रही थी पर अब लण्ड अच्छी तरह से मेरी चूत में घुस चुका था और उसके निकलने का कोई सवाल नहीं था। दस बाहर धक्के पूरी ताकत से मारने के बाद ही वह रुका। जब उसे मेरे दर्द का एहसास हुआ और उसने धक्के मारने बंद किये। 

मेरी चूत फटी जा रही थी। अजय ने मेरी पलकों पर, फिर गालों पर धीरे-धीरे चूमा। उसका एक हाथ अब बड़े प्यार से मेरे सर के बालों को सहला रहा था। धीरे-धीरे, अब वह कसकर मेरे होंठों को चूसने, चूमने लगा था और एक हाथ से मेरे जोबन को प्यार से सहला रहा था। उसके इस प्यार भरे स्पर्श ने मेरे दर्द को आधा कर दिया।

अचानक जोबन सहला रहे उसके हाथ ने मेरे कड़े चूचुक को सहलाना, फ्लिक करना शुरू कर दिया, उसके होंठ भी मेरे दूसरे निपलस को जुबान से उसके बेस से ऊपर तक चाट रहे थे और थोड़ी देर बाद उसने मेरे कड़े गुलाबी निपल को कस-कस के चूसना शुरू कर दिया। अब एक बार फिर मस्ती की नयी लहर मेरे अंदर दौड़नी शुरू हो गयी। 


पर अजय भी… थोड़ी देर में ही, उसका एक हाथ मेरे निपल मसल, खींच रहा था और दूसरा क्लिट को छेड़ रहा था। मेरा दूसरा निपल उसके होंठों के बीच चूसा जा रहा था। मेरी चूत अभी भी दर्द से फटी जा रही थी पर मेरी देह में एक अजीब नशा दौड़ रहा था और अब अजय को भी इसका अहसास हो गया था। उसने अब एक बार फिर मेरी कमर को पकड़ के धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू कर दिये। थोड़ी देर में ही उसने धक्के की रफ्तार तेज कर दी।


पर मैं मस्ती में बोले जा रही थी- 

“ओह अजय प्लीज हां ऐसे ही… नहीं बस जरा देर रुक जाओ… ओह हां… रुको नहीं बस ऐसे करते रहो बड़ा अच्छा… ओह… दर्द हो रहा है… प्लीज…” 


कभी उसके हाथ मेरी चूचियों को मसलते, कभी क्लिट को छेड़ते, मेरी दोनों टांगें उसके कंधों पर थी और वह कभी मेरी दोनों चूचियों को पकड़कर, कभी कमर को पकड़कर और कभी मेरे चूतड़ों को पकड़कर कस-कस के धक्के लगाये जा रहा था। 
बारिश फिर तेजी से चालू हो गयी थी, और पानी उसके शरीर से होकर मेरे ऊपर गिर रहा था, तेज धार मेरे कड़े जोबनों पर सीधे पड़ रही थी। 


मस्ती से मैं अपने चूतड़ों को उठा-उठाकर मजे ले रही थी और थोड़ी देर में, मैं झड़ गयी। पर अजय की चुदाई की रफ्तार में कोई कमी नहीं आयी। मैं झड़ती रही और वह दुगुने जोश से चोदता रहा। मेरे झड़ चुकने के बाद वह रुका पर उसके होंठों और उंगलियों ने मेरे निपल को चूस-चूसकर, मेरी चूचियों को रगड़-रगड़कर और मेरे क्लिट को छेड़-छेड़ कर मेरी देह में ऐसी आग लगायी की थोड़ी ही देर में मैं फिर अपने चूतड़ उचकाने लगी। 


और अब अजय ने जो चोदना शुरू किया तो फिर उसने रुकने का नाम नहीं लिया। मेरी कमर को पकड़कर वह लण्ड लगभग पूरा बाहर निकालता और फिर अंदर ढकेल देता, जब उसका लण्ड मेरी चूत को फैलाता, कसकर रगड़ता, अंदर घुसता, मैं बता नहीं सकती कैसा मजा मिल रहा था। 


मैंने उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया और- “हां अजय… अजय… हां रुको नहीं… बस चोदते रहो… और बहुत अच्छा लगा रहा है… ओह…” 


थोड़ी देर के बाद जब मैं झड़ी तो उसके थोड़ी देर बाद अजय भी झड़ गया, लेकिन वह झड़ता रहा… झड़ता रहा देर तक…
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07-06-2018, 01:43 PM,
#15
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
सोलहवां सावन 

अब तक 




पर मैं मस्ती में बोले जा रही थी- “ओह अजय प्लीज हां ऐसे ही… नहीं बस जरा देर रुक जाओ… ओह हां… रुको नहीं बस ऐसे करते रहो बड़ा अच्छा… ओह… दर्द हो रहा है… प्लीज…” 
कभी उसके हाथ मेरी चूचियों को मसलते, कभी क्लिट को छेड़ते, मेरी दोनों टांगें उसके कंधों पर थी और वह कभी मेरी दोनों चूचियों को पकड़कर, कभी कमर को पकड़कर और कभी मेरे चूतड़ों को पकड़कर कस-कस के धक्के लगाये जा रहा था। 
बारिश फिर तेजी से चालू हो गयी थी, और पानी उसके शरीर से होकर मेरे ऊपर गिर रहा था, तेज धार मेरे कड़े जोबनों पर सीधे पड़ रही थी। 
मस्ती से मैं अपने चूतड़ों को उठा-उठाकर मजे ले रही थी और थोड़ी देर में, मैं झड़ गयी। पर अजय की चुदाई की रफ्तार में कोई कमी नहीं आयी। मैं झड़ती रही और वह दुगुने जोश से चोदता रहा। मेरे झड़ चुकने के बाद वह रुका पर उसके होंठों और उंगलियों ने मेरे निपल को चूस-चूसकर, मेरी चूचियों को रगड़-रगड़कर और मेरे क्लिट को छेड़-छेड़ कर मेरी देह में ऐसी आग लगायी की थोड़ी ही देर में मैं फिर अपने चूतड़ उचकाने लगी। और अब अजय ने जो चोदना शुरू किया तो फिर उसने रुकने का नाम नहीं लिया। मेरी कमर को पकड़कर वह लण्ड लगभग पूरा बाहर निकालता और फिर अंदर ढकेल देता, जब उसका लण्ड मेरी चूत को फैलाता, कसकर रगड़ता, अंदर घुसता, मैं बता नहीं सकती कैसा मजा मिल रहा था। 
मैंने उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया और- “हां अजय… अजय… हां रुको नहीं… बस चोदते रहो… और बहुत अच्छा लगा रहा है… ओह…” 



थोड़ी देर के बाद जब मैं झड़ी तो उसके थोड़ी देर बाद अजय भी झड़ गया, लेकिन वह झड़ता रहा… झड़ता रहा देर तक… बाहर सावन बरस रहा रहा और अंदर मेरा सोलहवां सावन। 






आगे 



प्यासी धरती की तरह मैं सोखती रही और जब अजय ने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया तो भी मैं वैसे ही पड़ी रही। अजय ने मुझे उठाकर अपनी गोद में बैठा लिया। मैंने झुक कर अपनी जांघों के बीच देखा, मेरी चूत अजय के वीर्य से लथपथ थी और अभी भी मेरी चूत से वीर्य की सफेद धार, मेरी गोरी जांघ पर निकल रही थी। 


पर तभी मैंने देखा- 

“ओह… ये खून खून कहां से… मेरा खून…” 


अजय ने मेरा गाल चूमते हुए, मेरा ब्लाउज उठाया और उसीसे मेरी जांघ के बीच लगा वीर्य और खून पोंछते हुए बोला-


“अरे रानी पहली बार चुदोगी तो बुर तो फटेगी ही… और बुर फटेगी तो दर्द भी होगा और खून भी निकलेगा, लेकिन अब आगे से सिर्फ मजा मिलेगा…” 


अजय का लण्ड अभी भी थोड़ा खड़ा था। उसे पकड़कर अपनी मुट्ठी में लेते हुए, मैं बोली- 


“सब इसी की करतूत है… मजे के लिये मेरी कुवांरी चूत फाड़ दी… और खून निकाला सो अलग… और फिर इतना मोटा लंबा पहली बार में ही पूरा अंदर डालना जरूरी था क्या…”


अजय मेरा गाल काटता बोला- 

“अरे रानी मजा भी तो इसी ने दिया है… और आगे के लिये मजे का रास्ता भी साफ किया है… लेकिन आपकी ये बात गलत है की॰ जब तुम्हें दर्द ज्यादा होने लगा तो मैंने सिर्फ आधे लण्ड से चोदा…” 

बनावटी गुस्से में उसके लण्ड को कस के आगे पीछे करती, मैं बोली- 

“आधे से क्यों… अजय ये तुम्हारी बेईमानी है… इसने मुझे इत्ता मजा दिया, जिंदगी में पहली बार और तुमने… और दर्द… क्या… आगे से मैं चाहे जितना चिल्लाऊँ, चीखूं, चूतड़ पटकूं, चाहे दर्द से बेहोश हो जाऊँ, पर बिना पूरा डाले तुम मुझे… छोड़ना मत, मुझे ये पूरा चाहिये…” 

अजय भी अब मेरी चूत में कस-कस के ऊँगली कर रहा था-

“ठीक है रानी अभी लो मेरी जान अभी तुम्हें पूरे लण्ड का मजा देता हूं, चाहे तुम जित्ता चूतड़ पटको…” 


मैंने मुँह बनाया- 

“मेरा मतलब यह नहीं था और अभी तो… तुम कर चुके हो… अगली बार… अभी-अभी तो किया है…” लेकिन अजय ने अबकी मेरे सारे कपड़े उतार दिये और मुझे झूले पे इस तरह लिटाया की सारे कपड़े मेरे चूतड़ों के नीचे रख दिये और अब मेरे चूतड़ अच्छी तरह उठे हुए थे। वह भी अब झूले पर ही मेरी फैली हुई टांगों के बीच आ गया 


और अपने मोटे मूसल जैसे लण्ड को दिखाते हुए बोला- 

“अभी का क्या मतलब… अरे ये फिर से तैयार है अभी तुम्हारी इस चूत को कैसा मजा देता है, असली मजा तो अबकी ही आयेगा…

” वह अपना सुपाड़ा मेरी चूत के मुँह पर रगड़ रहा था और उसके हाथ मेरी चूचियां मसल रहे थे। वह अपना मोटा, पहाड़ी आलू ऐसा मोटा, कड़ा सुपाड़ा मेरी क्लिट पर रगड़ता रहा।

और जब मैं नशे से पागल होकर चिल्लाने लगी- 

“अजय प्लीज… डाल दो ना… नहीं रहा जा रहा… ओह… ओह… करो ना… क्यों तड़पाते हो…” तो अजय ने एक ही धक्के में पूरा सुपाड़ा मेरी चूत में पेल दिया। 

उह्ह्ह्ह, मेरे पूरे शरीर में दर्द की एक लहर दौड़ गयी, पर अबकी वो रुकने वाला नहीं था। मेरी पतली कमर पकड़ के उसने दूसरा धक्का दिया। मेरी चूत को फाड़ता, उसकी भीतरी दीवाल को रगड़ता, आधा लण्ड मेरी कसी किशोर चूत में घुस गया। दर्द तो बहुत हो रहा था पर मजा भी बहुत आ रहा था। वह कभी मुझे चूमता, मेरी रसीली चूचियों को चूसता, कभी उन्हें कस के दबा देता, कभी मेरी क्लिट सहला देता, पर उसके धक्के लगातार जारी थे। 

मैंने भी भाभी के सिखाने के मुताबिक अपनी टांगों को पूरी तरह फैला रखा था। 

उसके धक्कों के साथ मेरी पायल में लगे घुंघरू बज रहे थे और साथ में सुर मिलाती सावन की झरती बूंदे, मेरे और उसके देह पर और इस सबके बीच मेरी सिसकियां, उसके मजबूत धक्कों की आवाज… बस मन कर रहा था कि वह चोदता ही रहे… चोदता ही रहे।


कुछ देर में ही उसका पूरा लण्ड मेरी रसीली चूत में समा गया था और अब उसके लण्ड का बेस मेरी चूत से क्लिट से रगड़ खा रहा था। 

नीचे कपड़े रखकर जो उसने मेरे चूतड़ उभार रखे थे। एकदम नया मजा मिल रहा था। थोड़ी देर में जैसे बरसात में, प्यासी धरती के ऊपर बादल छा जाते हैं वह मेरे ऊपर छा गया। अब उसका पूरा शरीर मेरी देह को दबाये हुए था और मैंने भी अपनी टांगें उसकी पीठ पर कर कस के जकड़ लिया था। 

कुछ उसके धक्कों का असर, कुछ सावन की धीरे-धीरे बहती मस्त हवा… झूला हल्के-हल्के चल रहा था। मुझे दबाये हुए ही उसने अब धक्के लगाने शुरू कर दिये और मैं भी नीचे से चूतड़ उठा-उठाकर उसका जवाब दे रही थी। 


मेरे जोबन उसके चौड़े सीने के नीचे दबे हुए थे। वह पोज बदल-बदल कर, कभी मेरे कंधों को पकड़कर, कभी चूचियों को, तो कभी चूतड़ों को पकड़कर लगातार धक्के लगा रहा था, चोद रहा था, न सावन की झड़ी रुक रही थी, न मेरे साजन की चुदाई… और यह चलता रहा। 


मैं एक बार… दो बार… पता नहीं कितनी बार झड़ी… मैं एकदम लथपथ हो गयी थी। तब बहुत देर बाद अजय झड़ा और बहुत देर तक मैं अपनी चूत की गहराईयों में उसके वीर्य को महसूस कर रही थी। उसका वीर्य मेरी चूत से निकलकर मेरी जांघों पर भी गिरता रहा। कुछ देर बाद अजय ने मुझे सहारा देकर झूले पर से उठाया। मैंने किसी तरह से साड़ी पहनी, पहनी क्या बस देह पर लपेट ली। 


घर के पास पहुँचकर अजय ने एक बार फिर मुझे अपनी बाहों में भरकर पूछा- “अब कब मिलेगा…” 

चारों ओर सन्नाटा था। मैंने भी हिम्मत से उसके होंठों को चूमकर कहा- “जब चाहो…” और घर की ओर भाग गयी। 

बसंती ने पीछे की खिड़की खोली, वह गहरी नींद में थी और भाभी, अभी रतजगे से आयी नहीं थी। मैं जल्दी से अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट गयी। अभी भी मेरी चूत में अजय का वीर्य था, और जोबन को उसके दबाने का रसभरा दर्द महसूस हो रहा था। उसकी बात सोचते-सोचते मैं सो गयी।
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07-06-2018, 01:43 PM,
#16
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
चन्दा



सुबह जब मेरी नींद खुली तो चन्दा मेरे सामने थी और मुझे जगा रही थी- “क्यों कल रात चिड़िया ने चारा खा लिया ना…” उसकी मुश्कुराहट से मुझे पता चल रहा था कि उसे रात की बात का अंदाज हो गया है। 

पर मैंने बहाना बनाया- “नहीं… ऐसा कुछ नहीं… वो तो…” 

“अच्छा, तो ये क्या है, कल रात भर ये पायल कहां बजी…” वो मेरे सामने मेरी एक पैर की घुंघरू वाली चांदी की पायल लहरा रही थी। 

अब मैं समझी, कल रात लगाता है पायल वहीं झूले पे… मैं पायल छीनने की कोशिश करते हुए बोली- “हे, तुम्हें कहां मिली… दो ना, कल रात रास्ते में लगता है…” 

मेरे जोबन दबाते हुए, चन्दा मुश्कुराई और बोली- 

“बनो मत मेरी बिन्नो, यह वहीं मिली जहां कल रात तुम चुदवा रही थी, देखूं चारा खाने के बाद ये मेरी चिड़िया कैसी लग रही है…” 


और उसने मेरे मना करते-करते, मेरी साड़ी उठाकर मेरी चूत कस के दबोच ली। उसे रगड़ते मसलते वो बोली- 

“देखो एक रात में ही घोंटने के बाद… कैसी गुलाबी हो रही है, लेकिन अब जब इसे स्वाद लग ही गया है तो इसके लिये तो रोज के चारे का इंतेजाम करना पड़ेगा…”

और मेरी ओर देखते हुए वो बोली- “और अगर तुम्हें ये पायल चाहिये ना… और तुम चाहती हो कि ये राज़ राज़ रहे तो तुम्हें एक जगह मेरे साथ चलना पड़ेगा और मेरी एक शर्त माननी पड़ेगी…” 


“ठीक है, मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है पर…” मैं नहीं चाहती थी की ये बात सब तक पहुँचे। 


“तो तुम जल्दी तैयार हो जाओ…” कहते हुए उसने मुझे पायल दे दिया। 

मैं हाथ मुँह धोकर तैयार हो गयी और एक चटक गुलाबी रंग की साड़ी और लाल रंग की कसी-कसी चोली पहन ली। मैंने सोचा कि ब्रा पहनूं फिर उसे एक तरफ रख दिया। कुछ सोचकर मैंने गाढ़े लाल रंग की लिपिस्टक भी लगा ली, और एक बड़ी सी लाल बिंदी भी। पायल पलंग पर पड़ी थी। मैंने दोनों पांवों में, जिसने मेरी कल की बात खोल दी थी, घुंघरू वाली, अपनी चांदी की पायल भी पहन ली। भाभी और चम्पा भाभी कुछ गांव की औरतों से बात करने में व्यस्त थीं। 

चन्दा ने भाभी से मुझे साथ ले जाने के लिये बोला तो भाभी बोलीं की जाओ लेकिन जल्दी आ जाना। चम्पा भाभी बोली- “लेकिन इसने कुछ खाया नहीं है…” 

“अरे, भाभी मैं इसे अच्छी तरह से खिला दूंगी, सारी, हर तरह की भूख मिटवा दूंगी…” ये कहते, हँसते हुए चन्दा मेरा हाथ खींचते घर से बाहर ले गयी। 

“कहां ले चल रही है। क्या खिलायेगी…” मुश्कुराते हुये मैंने पूछा।

पर चन्दा तेजी से मुझे खींचकर ले गयी। रास्ते में गांव के कुछ लड़के मिले। मुझे देखते ही छेड़ने लगे- “अरे छुवे दा होंठवा के होंठ से, जोबना के मजा लेवे दा…” 
दूसरे ने छेड़ा- “खिलल खिलल गाल बा, अरे ये माल बड़ा टाइट बा…” 

एक ने हँसकर कहा- “अरे हमारी ओर भी तो एक नजर डाल लो…” 

चन्दा ने हँसते हुये कहा- “अभी एडवांस बुकिंग चल रही है। लाइन में लग जाओ तुम्हारा भी नंबर लग जायेगा…” 

थोड़ी ही देर में हम लोग उस गन्ने के खेत के पास पहुँच गये थे जहां कल चन्दा सुनील के साथ… चन्दा ने मेरा हाथ पकड़कर, मुझसे बिनती करते हुए कहा- “सुन, मेरा एक काम कर दे प्लीज, सुनील ने… मेरा आज सुबह से मन कर रहा था, पर सुनील ने एक शर्त रख दी है, कि जब तक… तब तक वह मुझे हाथ भी नहीं लगायेगा, बस तू ही मुझे हेल्प कर सकती है…” 

मैं समझ तो गयी थी और ये सोच के मेरे मन में गुदगुदी भी हो रही थी कि ये लड़के मेरे कितने दीवाने हैं, पर बनावटी ढंग से मैं बोली-

“ठीक है बता ना क्या करना है, मैं तेरी पक्की सहेली हूं… कर दूंगी अगर तू कहेगी…” 

“सच… पर पहले प्रामिस कर मेरी कसम खा, मैं जो कहुंगी… सुनने के बाद मुकर तो नहीं जायेगी…” चन्दा ने लगभग विनती करते कहा।
“हां हां, ठीक है, जो तू कहेगी, करूंगी, करूंगी, करूंगी…” 


यह सुनते ही चन्दा लगभग घसीटते हुए, मुझे गन्ने के खेत के अंदर खींच ले गयी
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07-06-2018, 01:44 PM,
#17
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
गन्ने के खेत में 



अब तक 









मैं हाथ मुँह धोकर तैयार हो गयी और एक चटक गुलाबी रंग की साड़ी और लाल रंग की कसी-कसी चोली पहन ली। मैंने सोचा कि ब्रा पहनूं फिर उसे एक तरफ रख दिया। कुछ सोचकर मैंने गाढ़े लाल रंग की लिपिस्टक भी लगा ली, और एक बड़ी सी लाल बिंदी भी। पायल पलंग पर पड़ी थी। मैंने दोनों पांवों में, जिसने मेरी कल की बात खोल दी थी, घुंघरू वाली, अपनी चांदी की पायल भी पहन ली। 

भाभी और चम्पा भाभी कुछ गांव की औरतों से बात करने में व्यस्त थीं। 

चन्दा ने भाभी से मुझे साथ ले जाने के लिये बोला तो भाभी बोलीं की जाओ लेकिन जल्दी आ जाना। चम्पा भाभी बोली- “लेकिन इसने कुछ खाया नहीं है…” 

“अरे, भाभी मैं इसे अच्छी तरह से खिला दूंगी, सारी, हर तरह की भूख मिटवा दूंगी…” ये कहते, हँसते हुए चन्दा मेरा हाथ खींचते घर से बाहर ले गयी। 
“कहां ले चल रही है। क्या खिलायेगी…” मुश्कुराते हुये मैंने पूछा।

पर चन्दा तेजी से मुझे खींचकर ले गयी। 

रास्ते में गांव के कुछ लड़के मिले। मुझे देखते ही छेड़ने लगे- “अरे छुवे दा होंठवा के होंठ से, जोबना के मजा लेवे दा…” 

दूसरे ने छेड़ा- “खिलल खिलल गाल बा, अरे ये माल बड़ा टाइट बा…” 

एक ने हँसकर कहा- “अरे हमारी ओर भी तो एक नजर डाल लो…” 

चन्दा ने हँसते हुये कहा- “अभी एडवांस बुकिंग चल रही है। लाइन में लग जाओ तुम्हारा भी नंबर लग जायेगा…” 





आगे 








थोड़ी ही देर में हम लोग उस गन्ने के खेत के पास पहुँच गये थे जहां कल चन्दा सुनील के साथ… चन्दा ने मेरा हाथ पकड़कर, मुझसे बिनती करते हुए कहा- 


“सुन, मेरा एक काम कर दे प्लीज, सुनील ने… मेरा आज सुबह से मन कर रहा था, पर सुनील ने एक शर्त रख दी है, कि जब तक… तब तक वह मुझे हाथ भी नहीं लगायेगा, बस तू ही मुझे हेल्प कर सकती है…” 


मैं समझ तो गयी थी और ये सोच के मेरे मन में गुदगुदी भी हो रही थी कि ये लड़के मेरे कितने दीवाने हैं, पर बनावटी ढंग से मैं बोली- 

“ठीक है बता ना क्या करना है, मैं तेरी पक्की सहेली हूं… कर दूंगी अगर तू कहेगी…” 


“सच… पर पहले प्रामिस कर मेरी कसम खा, मैं जो कहुंगी… सुनने के बाद मुकर तो नहीं जायेगी…” चन्दा ने लगभग विनती करते कहा।

“हां हां, ठीक है, जो तू कहेगी, करूंगी, करूंगी, करूंगी…” 

यह सुनते ही चन्दा लगभग घसीटते हुए, मुझे गन्ने के खेत के अंदर खींच ले गयी- “तो चल प्लीज़ एक बार सुनील से करवा ले, उसने कहा कि मैं जब उसे… तुम्हारी दिलवाऊँगी तभी वह मेरे साथ करेगा… करवा ले ना, बस एक बार मेरी अच्छी सहेली…” 

गन्ने के घने खेत में हम बीच में पहुँच गये थे और वहां सुनील खड़ा था। मुझे देखकर, सुनील एकदम खुशी से जैसे पागल हो गया हो, वह कुछ बोल नहीं पा रहा था। 

चन्दा ने कहा- “देखो, तेरी मुराद पूरी करवा दी अब तुम हो और ये, जो करना हो करो… मैं चलती हूं…” 

मैं भी चन्दा के साथ चलने के लिये मुड़ी पर सुनील ने मुझे कसकर अपनी बांहों में जकड़ लिया। उस पकड़ा धकड़ी में मेरा आंचल नीचे गिर गया और मेरी कसी लो कट लाल चोली के अंदर तने हुए मेरे सर उठाये दोनों मस्त जोबन साफ-साफ दिख रहे थे। 


सुनील का तो मुँह खुले का खुला रह गया। वह जमीन पर बैठ गया था और मुझे पकड़कर अपनी गोद में बैठाये हुये था। वह मेरे गुलाबी रसीले होंठ बार चूम चूस रहा था, पर मेरे तने, कड़े-कड़े जोबन को देखकर उससे नहीं रहा गया और चोली के ऊपर से ही उन्हें चूमने, काटने लगा। 

“अरे इतने बेसबर हो रहे हो… ऊपर से ही…” मैंने उसे चिढ़ाया।
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07-06-2018, 01:45 PM,
#18
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
“बकरी की जान चली गयी और खाने वाला स्वाद के बारे में पूछ रहा है…” मुश्कुराते, आँख नचाते, शिकायत भरे स्वर में मैंने कहा। 

“अरे स्वाद तो बहुत आ रहा है, मेरी जान, स्वाद तो मेरे इससे पूछो…” 

और ये कह के उसने मेरे चूतड़ पकड़ के कस के अपने लण्ड का धक्का लगाया। अब वह सब कुछ भूल के गचागच गचागच मेरी चुदाई कर रहा था। मेरी चूत पूरी तरह फैली हुई थी। दर्द तो बहुत हो रहा था, पर जब उसका लण्ड मेरी चूत में अंदर तक घुसता तो बता नहीं सकती, कितना मजा आ रहा था। उसकी उंगलियां कभी मेरे निपल खींचतीं, कभी मेरी क्लिट छेड़तीं, और उस समय तो मैं नशे में पागल हो जाती। 

उसकी इस धुआंधार चुदाई से मैं जल्द ही झड़ने के कगार पर पहुँच गयी। पर सुनील को भी मेरी हालत का अंदाज़ हो गया था और उसने अपना लण्ड मेरी चूत के लगभग मुहाने तक निकाल लिया। 

मैं- “हे डालो ना, प्लीज़ रुक क्यों गये, करो ना… अच्छा लगा रहा है…” 

पर वह उसी तरह मुझे छेड़ता रहा। 

मैं- “हे डालो ना, करो ना…” मैंने फिर कहा। 
“क्या डालूं… क्या करूं… साफ-साफ बोलो…” वो बोला। 

मैं- “चोदो चोदो, मेरी चूत… अपने इस मोटे लण्ड से कस-कस के चोदो, प्लीज़…” 

“ठीक है, लेकिन आज से तुम सिर्फ इसी तरह से बोलोगी, और मुझसे एक बार और चुदवाओगी…” 

मैं- “हां, हां, जो तुम कहो एक बार क्या मेरे राजा तुम जितनी बार बोलोगे उतनी बार चुदवाऊँगी, पर अभी तो…” 

उसने पूरी ताकत से मेरे कंधे पकड़ के इतनी जोर से धक्का मारा कि उसका पूरा लण्ड एक बार में ही अंदर समा गया। और मैं झड़ गयी, देर तक झड़ती रही, पर वह रुका नहीं और धक्के मारता रहा, मुझे चोदता रहा। थोड़ी ही देर में मैं फिर पूरे जोश में आ गयी थी और उसके हर धक्के का जवाब चूतड़ उठा के देती। 

मेरे टीन चूतड़ उसके जोरदार धक्कों से जमीन पर रगड़ खा रहे थे। मेरी चूची पकड़ के, कभी कमर पकड़ के वह बहुत देर तक चोदता रहा और जब मैं अगली बार झड़ी तो उसके बाद ही वह झड़ा। सुनील ने मुझे हाथ पकड़ के उठाया और मेरे नितम्बों पर लगी मिट्टी झाड़ने के बहाने उसने मेरे चूतड़ों पर कस-कस के मारा और एक चूतड़ पकड़ के न सिर्फ दबोच लिया बल्की मेरी गाण्ड में उंगली भी कर दी। 

“हे क्या करते हो मन नहीं भरा क्या, अब इधर भी…” मैंने उसे हटाते हुये कहा। 

“और क्या, तेरे ये मस्त चूतड़ देख के गाण्ड मारने का मन तो करने लगता है…” ये कहते हुये उसने मेरे जोबन दबाते हुये गाल कसकर काट लिया। 
“उइइइइ…” मैं चीखी और उससे छुड़ाते हुए बाहर निकली।

साथ-साथ सुनील भी आया। बाहर निकलते ही मैं चकित रह गयी। चन्दा के साथ-साथ अजय भी था। सुनील ने मेरे कंधे पे हाथ रखा था, मेरी चूची टीपते हुए, अजय को दिखाकर वो बोला- 

“देख मैंने तेरे माल पे हाथ साफ कर लिया…” 


अजय कौन कम था, उसने चन्दा के गाल हल्के से काटते हुए कहा- “और मैंने तेरे पे…” 

चन्दा भी छेड़ने के मूड में थी, उसने आँख नचाकर मुझसे पूछा- “क्यों, आया मजा… सुनील के साथ…” 

मुंह बनाकर मैं बोली- “यहां जान निकल गयी और तू मजे की पूछ रही है…” 

चन्दा मेरे पास आकर मेरे नितम्बों को दबोचती बोली- “अभी चूतड़ उठा-उठाकर गपागप घोंट रही थी और… (मेरे कान में बोली) आगे का जो वादा किया है… और यहां छिनारपन दिखा रही है…” 

“हे, तूने कहां से देखा…” अब मेरे चौंकने की बारी थी। 

“जहां से तू कल देख रही थी…” मैं उसे पकड़ने को दौड़ी, पर वह मोटे चूतड़ मटकाती, तेजी से भाग निकली। मुझे घर के बाहर छोड़कर ही वह चली गयी। घर के अंदर पहुँचकर मैं सीधे अपने कमरे में गयी और अपनी हालत थोड़ी ठीक की। 
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07-06-2018, 01:46 PM,
#19
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
सोलवां सावन 



चन्दा भी छेड़ने के मूड में थी, उसने आँख नचाकर मुझसे पूछा- “क्यों, आया मजा… सुनील के साथ…” 

मुंह बनाकर मैं बोली- “यहां जान निकल गयी और तू मजे की पूछ रही है…” 

चन्दा मेरे पास आकर मेरे नितम्बों को दबोचती बोली- “अभी चूतड़ उठा-उठाकर गपागप घोंट रही थी और… (मेरे कान में बोली) आगे का जो वादा किया है… और यहां छिनारपन दिखा रही है…” 

“हे, तूने कहां से देखा…” अब मेरे चौंकने की बारी थी। 

“जहां से तू कल देख रही थी…” मैं उसे पकड़ने को दौड़ी, पर वह मोटे चूतड़ मटकाती, तेजी से भाग निकली। मुझे घर के बाहर छोड़कर ही वह चली गयी। घर के अंदर पहुँचकर मैं सीधे अपने कमरे में गयी और अपनी हालत थोड़ी ठीक की। 

कुछ देर में भाभी मेरे कमरें में आयीं और बोली- हे तैयार हो जाओ, अभी पूरबी, गीता, कामिनी भाभी और औरतें, आती होंगी, आज फिर झूला झूलने चलेंगे। और हां ये मैं अपनी कुछ पुरानी चोलियां लाई हूं, जब मैं तुमसे भी छोटी थी, ट्राई कर लेना और ये बाकी कपड़ें भी हैं…” चलते-चलते, दरवाजे पर रुक कर भाभी ने शरारत से पूछा- 


“तुम अपने आप तैयार हो जाओगी या… चम्पा भाभी को भेज दूं तैयार करवाने के लिये…” 


“नहीं भाभी मैं तैयार हो जाऊँगी…” हँसकर उनका मतलब समझते मैं बोली और मैंने दरवाजा बंद कर लिया। अच्छी तरह नहा धोकर मैं तैयार हो गयी। 


रंगीन घाघरा, पैरों में, खूब चौड़ी चांदी की घुंघरू वाली पाजेब जो जब चलूं तो दूर-दूर तक रुन झुन करे और जब… मैं सोचकर ही शर्मा गयी। हाथ में कंगन, बाजूबंद, कानों के लिये लंबे लटकते झुमके, मेरी चोटी भी मेरे नितम्बों तक लटकती थी, मैंने माथे को लाल बिंदी और गुलाबी होंठों पे गाढ़ी लिपिस्टक भी लगा ली। पर चोली जो थोड़ी फ़िट हुई वह पीले रंग की कोनिकल आकार वाली थी, और नीचे से मेरे टीन जोबन को पूरा उभार रही थी और टाइट भी बहुत थी। 


मुझे ऊपर के दो बटन खोलने पड़े पर अब मेरा गोरे-गोरे उभारों के बीच का क्लीवेज़ एकदम साफ दिख रहा था। जब मैंने दपीण में देखा तो मैं खुद शर्मा गयी। 


दरवाजे पे खटखट की आवाज सुनकर मेरा ध्यान हटा। दरवाजा खोला, तो सामने पूरबी खड़ी थी-

“हे बड़ा सजा संवरा जा रहा है, आज किधर बिजली गिराने का इरादा है…” 

फिर मुझे बांहो में भर के मेरे कानों में बोली- “यार लड़कों का कोई दोष नहीं हैं, तू चीज़ ही इतनी मस्त है, अगर मैं लड़का होती ना, तो मैं भी तुझे बिना चोदे नहीं छोड़ती…” 


वह मेरा हाथ पकड़ के बरामदे में ले गयी, जहां गीता, उसकी कुछ और सहेलियां, चमेली भाभी, चम्पा भाभी बैठी थीं और बसंती सबके पैर में महावर लगा रही थी। बसंती ने मेरा भी पैर पकड़ा, कि मुझे भी महावर लगा दे पर मैं आनाकानी कर रही थी। चमेली भाभी ने हँसकर मुझे छेड़ते हुये कहा- 

“अरे बसंती इसे तो सबसे कस के और चटख लगाना, गांव के जिस-जिस लड़के के माथे पे वो महावर लगा मिलेगा…” 


मेरे गोरे गाल उनका मतलब समझकर शर्म से लाल हो गये पर पूरबी बोली- 

“अरे भाभी, इसीलिये तो वो नहीं लगवा रही है कि चोरी पकड़ी जायेगी…” 
और बसंती से बोली- “अरे महावर लगाते लगाते, जरा अंदर का भी दर्शन कर लो…” 


“हां बसंती देख लो, अंदर घास फूस है या मैदान साफ है…” चमेली भाभी ने मुश्कुराकर पूछा। 

बसंती ने भी हँसकर मेरे घाघरे के अंदर झांकते हुए बोला- “मैदान साफ है, लगता है, घास फूस साफ करके पूरी तैयारी के साथ आयी हैं ननद रानी…” 

तब तक मेरी भाभी मेरे बगल में आकर बैठ गयीं थीं। मेरी कलाईयों की ओर देखती हुई बोलीं- “अरे तुम्हारी चूड़ियां क्या हुईं… किसके साथ तुड़वा के आयी…” 

“नहीं भाभी, बरसात है, फिसलन में गिर पड़ी थी…” मैं भोली बन के बोली। 

“गिर पड़ी थी या किसी के साथ कुश्ती लड़ रही थी…” पूरबी ने मुझे छेड़ते हुए पूछा
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07-06-2018, 01:47 PM,
#20
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
“गिर पड़ी थी या किसी के साथ कुश्ती लड़ रही थी…” पूरबी ने मुझे छेड़ते हुए पूछा। 

तब तक कामिनी भाभी आ गयीं खूब लहीम-शहीम लंबा कद, ताकतवर, पकड़ लें तो कोई तगड़ा मर्द भी न छुड़ा पाये, गोरा रंग, कम से कम 38डी जोबन लेकिन एकदम कड़े और फर्म, मजाक करने और गालियां देने में चम्पा भाभी से भी दो हाथ आगे। मैं उनसे मिली नहीं थी पर सुना बहुत था। 


मेरा चेहरा पकड़कर ध्यान से उन्होंने देखा और बोलीं- “जितना सुना था उससे भी बहुत अच्छा पाया…” 

और फिर भाभी को छेड़तीं बोलीं-

“इसको इत्ता छेड़ रही हो, पर भूल गयी। इससे कम से कम तुम दो साल छोटी रही होगी, जब श्यामू ने तुम्हारे साथ… और उसके बाद…” 

हँसते हुए, भाभी ने उन्हें रोकते हुये कहा- 

“अरे जाने दीजिये भाभी आप तो इसके सामने मेरी सारी पोल ही खोल देंगी…” 

पर मेरे गाल पर चिकोटी काटती चम्पा भाभी बोलीं- “अरे अब इससे क्या छिपाना, अब ये भी तो हमारी गोल की हो गयी है…” 


पूरबी, मुझसे थोड़ी ही बड़ी रही होगी, और वह मेरी भाभी की बहन लगती थी। तीन चार महीने पहले ही उसकी शादी हुई थी और वह शादी के बाद पहली बार सावन में अपने मायके आयी थी, और अपनी ननद को छेड़ने का कोई मौका, कामिनी या चमेली भाभी क्यों छोड़तीं। 


“इससे तो पूछ रही थी कि इसकी चूड़ी कहां… किसके साथ टूटी, तू बता… पहली रात में कितनी चूड़ियां टूटीं…” कामिनी भाभी ने पूछा। 

“भाभी सच बताऊँ, दो दरज़न पहनी थीं अगली सुबह एक दरजन बचीं…” मुश्कुराती हुई पूरबी ने कबूला। 

“अच्छा बता आने के पहले झूला झूला की नहीं…” चमेली भाभी ने पूछा
। 
पूरबी- “वो तो मैं रोज…” 

उसकी बात काटकर चम्पा भाभी बोलीं- “अरे वो तो मुझे मालुम है दिन रात चुदवाती होगी, मुझे मालूम है कि मेरी ननदों का एक दिन बिना मोटे लण्ड के नहीं कट सकता, पर आने के पहले कभी झूले पे…” 


पूरबी बोली- “धत्त… हां… यहां आने के एक दिन पहले… घर में कोई नहीं था, बादल खूब जोर से बरस रहे, और मैं, उनकी गोद में बैठी झूला झूल रही थी कि उन्होंने मेरी पहले तो चोली खोलकर जोबन दबाने शुरू किये और फिर साड़ी उठाकर करने लगे…” 

“अरे मैं तेरी साड़ी उठाकर अपना हाथ तेरी चूत के अंदर कलाई तक कर दूंगी। साफ-साफ बता… डिटेल में…” कामिनी भाभी बोलीं। 

अब पूरबी के पास कोई चारा नहीं बचा था, वह सुनाने लगी- 


“मेरी चूची दबाते-दबाते, और मेरे चूतड़ों के रगड़ से उनका लण्ड एकदम खड़ा हो गया था, उन्होंने मुझसे जरा सा उठने को कहा और मेरी साड़ी साया उठाकर कमर तक कर दिया और अपना पाजामा भी नीचे कर लिया। मेरी चूत फैलाकर मेरे चूत को सेंटर करके उन्होंने धक्का लगाया और पूरा सुपाड़ा अंदर चला गया, फिर वह मेरी चूचियां पकड़ के धक्का लगाते और मैं झूले की रस्सी पकड़ के पेंग लगाती, खूब खच्चाखच्च अंदर जा रहा था। 



वो मेरा कभी गाल काटते, कभी चूम लेते। काफी देर बाद उन्होंने मुझसे कहा कि मैं उठकर झूले पे उनकी गोद में आ जाऊँ। 

मैं उनको फेस करते हुये, उनकी गोद में बैठ गयी, उन्होंने सुपाड़े को मेरी चूत में घुसाके मेरी पीठ पकड़के कसके मुझे अपनी ओर खींचा और अबकी बार तो पूरा लण्ड जड़ तक अंदर तक घुस गया था, मेरी चूचियां उनकी छाती से दब पिस रहीं थीं, अब तक बारिश भी खूब तेज हो गयी थी और तेज हवा के चलते बौछार भी एकदम अंदर आ रही थी।

हम दोनों अच्छी तरह से भीग रहे थे, पर चुदाई के मजे में कौन रुकता। वो एक हाथ से मेरी पीठ पकड़ के धक्के लगाते और दूसरी से मेरी चूचियां, क्लिट मसलते और मैं दोनों हाथों से झूले की रस्सी पकड़ के पेंग लगाती… झड़ने के बाद भी हम लोग वैसे ही झूलते रहे…” 



औरों का तो नहीं मालूम पर ये हाल सुनके मैं एकदम गरम हो गयी थी। मेरे मुँह से निकला- 

“पर… कैसे… झूले पर… झूलते…” 

“अरे मेरी बिन्नो, आज मैं झूले पर तुम्हारे ठीक पीछे बैठूंगी, और तुम्हारे ये दोनों रसीले जोबन दबाते, जिसके इस गांव के सारे लड़के दीवाने हैं, तुम्हें अच्छी तरह ट्रेनिंग दे दूंगी…” वास्तव में मेरे जोबन कसके पकड़कर, दबाते, पूरबी बोली। 


“पूरबी सही कह रही है, देखो तुम (मेरी भाभी से वो बोलीं) पूरबी, मेरी सारी ननदें पक्की छिनाल हो, और ये तुम्हारी ननदें है तो जब ये यहां से वापस जाय तो तब तक तो दर-छिनाल हो जानी चाहिये, इसकी ट्रेनिंग तो पक्की होनी चाहिये…” कामिनी भाभी ने कहा।

“इसकी ट्रेनिंग मेरे सारे देवर देंगे…” चमेली भाभी ने हँसकर कहा- “और यहां से लौटने के बाद मेरा देवर, इसका टेस्ट लेगा, क्यों ठीक है ना…” मुझसे पूछते हुए, मेरी आँखों में आँखें डालकर, भाभी बोली। 

“हां और जब ये कातिक में वापस आयेगी ना तो फाईनल इम्तहान राकी के साथ, क्यों…” चम्पा भाभी कहां चुप रहने वालीं थीं। 

“इसकी तो ऐसी ट्रेनिंग होनी चाहिये की ऐसी छिनार कहीं ना हो, बाकी “खास” ट्रेनिंग हम तुम मिलकर दे देंगे…” अर्थ पूर्ण ढंग से मुश्कुराते हुये, कामिनी भाभी चम्पा भाभी से बोलीं। 

“दीदी, तुम कहो तो मैं भी कुछ इसकी ट्रेनिंग करवा दूं…” पूरबी मेरी भाभी से मुश्कुरा के बोली। 

“और क्या, तुम ससुराल से इत्ती प्रैक्टिस करके आयी हो, और… आखिर ये तुम्हारी भी तो ननद है…” भाभी बोलीं। 

हमलोग झूले के लिये निकलने ही वाले थे की जमकर बारिश शुरू हो गयी और हमारा प्रोग्राम धरा का धरा रह गया।
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