Kamukta Story बदला
08-16-2018, 02:17 PM,
#81
RE: Kamukta Story बदला
"इस से तो ये साबित होता है की दोनो मे पॅक्का कुच्छ चक्कर था.",कामिनी
को 1 पल लगा ये समझने मे की देविका & शिवा की बात कर रहे थे उसके गुरु.

"वो कैसे?"

"वो ऐसे..",उन्होने 1 धक्के मे लंड को थोडा और अंदर ठेला,"..की अगर कोई
चक्कर नही होता तो देविका शिवा को पोलीस के हवाले कर देती.अभी उसे डर है
की कही शिवा बचने के लिए ये राज़ ना खोल दे इसलिए उसने ऐसा नही
किया.",कामिनी 1 बार फिर उसी मीठे दर्द का एहसास कर रही थी.पूरा बदन ऐंठ
रहा था & उसे बस अब झड़ने का इंतेज़ार था,"..लेकिन तुम्हारी बात सही है
की अब और सावधानी की ज़रूरत है.शिवा अब ज़्यादा ख़तरनाक है."

"जैसा की तुमने सोचा है..",कामिनी ने महसूस किया की चंद्रा साहब के धक्को
की शिद्दत भी अब गहरी हो चली थी & उनकी किस मे भी अब दीवानगी बढ़ी नज़र आ
रही थी.अपने गुरु की मदहोशी समझते ही कामिनी का जिस्म भी और भड़क उठा &
बेचैनी मे उसकी कमर अपनेआप हिलने लगी.

"..शिवा अब सबकी नज़रो से ओझल है & वो इस ज़िल्लत का बदला ज़रूर लेने की
कोशिश करेगा.",कामिनी की आहे तेज़ होती देख चंद्रा साहब ने अपनी बात पूरी
की & उसके होंठो को अपने होंठो से सील दिया.कामिनी अब मस्ती मे मचलते हुए
बदन हिला रही थी.चंद्रा साहब की उंगली उसके दाने को रगड़ उसके बदन मे
मस्ती की बिजलिया छ्चोड़े जा रही थी.चंद्रा साहब को भी अपने आंडो मे उबल
रहा लावा उनके लंड से बाहर निकलने को मचलता महसूस हुआ & उन्होने उसके उपर
लगाई रोक हटा दी.

उनके & सोफे के बीच दबा कामिनी का बदन झटके खा रहा था,अगर चंद्रा साहब के
होंठ उसके होंठो पे ना होते तो उसकी आहे उस कमरे मे क्या पूरे बंगल मे
गूँज रही होती.वो झाड़ रही थी & जानती थी की बगल के कमरे मे टीवी देख रही
मिसेज़.चंद्रा के उन्हे पकड़ने का ख़तरा अभी भी बरकरार है.इस बात ने
हुमेशा की तरह उसके मज़े को और बढ़ा दिया & वो पागलो की तरह छट-पटाती हुई
झड़ने लगी.उसने महसूस किया की उसके होंठो को खामोश किए उस से चिपके उसके
गुरु भी झाड़ रहे हैं.उनका बदन झटके खा रहा है & उसकी गंद मे उनका विर्य
भरता चला जा रहा है.

"शिवा से सावधान रहने के अलावा मुझे लगता है की सहाय परिवार को किसी और
से भी ख़तरा है मगर तुम्हारी ही तरह मुझे भी उसके बारे मे कुच्छ समझ नही
आ रहा.",चंद्रा साहब ने अपनी पॅंट की ज़िप चढ़ाई.

"तो क्या करना चाहिए?",कामिनी अपने ब्लाउस के बटन लगा रही थी.

"बस वीरेन & देविका को आगाह कर दो.आगे वो खुद समझदार हैं फिर उनके वकील
होने की हैसियत से तुम उन्हे केवल सलाह दे सकती हो क्यूकी इस बात की फीस
मिलती है तुम्हे मगर उन्हे वो सलाह मानने के लिए मजबूर नही कर
सकती.",चंद्रा साहब ने उसे बाहो मे भरा तो दोनो 1 दूसरे को किस करने लगे.

"ठीक है.जैसा आप कहें.",दोनो 1 दूसरे से अलग हुए & हॉल मे टीवी देख रही
मिसेज़.चंद्रा के साथ आके बैठ गये.

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क्रमशः.........
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08-16-2018, 02:18 PM,
#82
RE: Kamukta Story बदला
गतान्क से आगे...
देविका ने शिवा की धोखाधड़ी के बाद अपने गम को भूलने के लिए खुद को काम
मे डूबा दिया था.वो 9 बजे दफ़्तर पहुँच जाती & देर शाम तक वही बैठी
रहती.उसने इंदर को नये सेक्यूरिटी मॅनेजर के आने तक उस काम को देखने की
ज़िम्मेदारी दे दी थी & इस वजह से दफ़्तर के सभी लोगो के जाने के बाद भी
बस वही दोनो वाहा बैठे काम करते नज़र आते थे.देविका को इंदर की ईमानदारी
& नएक्दिली के नाटक ने पूरी तरह से अपने झाँसे मे ले लिया था.इंदर भी
हमेशा ये दिखाता की वो बस अपने काम से मतलब रखता है.उसके प्लान का आगला
हिस्सा था देविका के करीब आना मगर इस तरह की देविका को ये ना लगे की इंदर
उसके करीब आना चाहता है बल्कि वो खुद ही इंदर की तरफ खींच गयी है.इंदर के
शातिर दिमाग़ ने सारी तरकीबेन सोच ली थी & उनपे अमल कर रहा था.

देविका को काम करते वक़्त कॉफी पीने की आदत थी & इधर कुच्छ दीनो से वो
कुच्छ ज़्यादा ही कॉफी पीने लगी थी.उस शाम भी 7 बजे उसका नौकर बंगल से
कॉफी का फ़्लास्क ले आया & उसके डेस्क पे रख दी.देविका ने कंप्यूटर पे
नज़र गड़ाए हुए फ़्लास्क खोल सीधा उसे अपने मुँह से लगाया & 1 घूँट भरा &
पीते ही बुरा सा मुँह बनाया,"ये क्या ले आए हो?!",गुस्से & हैरानी से
उसने पुचछा.नौकर घूम के कुच्छ जवाब देता की उसके पहले ही इंदर वाहा आ
पहुँचा & उसे बाहर जाने का इशारा किया.

"इसने मेर कहने से ऐसा किया है..",इंदर ने 2 फाइल्स उसके सामने रखी & 1
कुर्सी पे बैठ गया,"..आप दिन भर बस कॉफी पीटी रहती हैं & ये आपकी सेहत के
लिए नुक़सानदायक हो सकता है इसलिए मैने नौकर को आपको अभी कॉफी की जगह
फ्रूट जूस देने को कहा.इस बात के लिए मैं आपसे माफी माँगता हू,मॅ'म मगर
प्लीज़ आप अपनी सेहत पे ध्यान दीजिए क्यूकी ये एस्टेट की बेहतरी के लिए
बहुत ज़रूरी है.",देविका ने उसकी बात का कोई जवाब नही दिया & उन फाइल्स
पे दस्तख़त कर उन्हे इंदर की ओर बढ़ा दिया.

"आपने फाइल्स पढ़ी नही मॅ'म?"

"तुमने पढ़ ली ना इंदर."

"मॅ'म,आप मुझपे इतना भरोसा करती हैं,ये मेरे लिए खुशी & फख्रा की बात है
मगर प्लीज़ मॅ'म आप बिना पढ़े कही भी दस्तख़त ना किया करें चाहे वो
काग़ज़ कोई बी लेके आया हो.आप प्लीज़ 1 बार इन फाइल्स को पढ़
लें.",देविका ने इंदर को देखा & फाइल्स देखने लगी.इंदर तब तक अपने साथ
लाई 1 तीसरी फाइल पलटने लगा.फाइल पढ़ती देविका ने फाइल के उपर से इंदर को
देखा....ये इंसान बहुत ही ईमानदार & उतना ही मेहनती था...शिवा भी तो ऐसा
ही था मगर उसने कभी भी उसे काम के मामले मे ऐसे सलाह नही दी थी.अपने
डिपार्टमेंट के बारे मे वो उसे बस बताता था की क्या करने वाला था वो,कभी
उस से पुछ्ता नही था जबकि ये इंदर हर बात,हर फ़ैसला बिना उसकी इजाज़त के
नही लेता था..ऐसा नही था की ये ज़रूरी था मगर इंदर का मानना था की ये भी
1 नौकर फ़र्ज़ था की वो अपने मालिक को हर बात चाहे वो कितनी भी मुख़्तसार
क्यू ना हो,के बारे मे इत्तिला दे....बस भगवान उसे ऐसा ही बनाए रखें..जूस
भिजवा के उसने अपनी फ़िक्र जताई थी मगर जहा शिवा उसके इश्क़ या अब जब उसे
सच्चाई पता चली थी उसके जिस्म की हवस मे उसके साथ ये हरकते करता था, इंदर
केवल भलमांसाहत के चलते ऐसा कर रहा था.कोई मतलब नही था इसमे उसका..

"फाइल पढ़ ली मॅ'म?",इंदर ने देविका को खुद को देखता पाया.

"ह-हन..ये लो.",देविका को लगा जैसे उसकी चोरी पकड़ी गयी हो.इंदर ने
फाइल्स ऐसे ली जैसे उसे कुच्छ एहसास ही ना हुआ हो.वो कॅबिन से बाहर निकला
& उसके होंठो पे शैतानी मुस्कान खेलने लगी.उसका प्लान बिल्कुल ठीक काम कर
रहा था.देविका पे उसकी अच्छाई का असर हो रहा था बस सब कुच्छ ऐसे ही चलता
रहे.

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"देविका जी,आपने बहुत अच्छा किया.",कामिनी ने देविका के हाथ से 1 काग़ज़
लिया.दोनो औरते कामिनी के दफ़्तर मे बैठी थी,"..देखिए,ज़्यादा कुच्छ तो
है नही.ये काम बस आधे घंटे मे हो जाएगा."

"रश्मि..",उसने इंटरकम से अपनी सेक्रेटरी को बुलाया,"..ये लो & मुकुल के
साथ मिलके जल्दी से इस वसीयत को टाइप करके यहा लाओ.",वो रश्मि के जाते ही
देविका से फिर मुखातिब हुई,"बुरा ना माने तो 1 बात पुच्छू देविका जी?"

"ज़रूर कामिनी जी."

"कुच्छ दिन पहले एस्टेट से आपका 1 एंप्लायी आया था अख़बार मे नोटीस
छप्वाने के सिलसिले मे.",देविका का चेहरा संजीदा हो गया.शिवा के जाने के
बाद उसने अख़बार मे कामिनी के ज़रिए 1 नोटीस छप्वाया था की अब उसका
एस्टेट से कोई लेना-देना नही था & अगर कोई उस से किसी भी तरह का कारोबारी
ताल्लुक रखता है उसमे एस्टेट किसी भी तरह से ज़िम्मेदार नही होगी,कामिनी
उसी बारे मे बात कर रही थी.

"देखिए,देविका जी मैने आपको पहले बाते नही मगर जब ये बात हुई तो मुझे लगा
की आपको & वीरेन को आगाह कर देना ज़रूरी है."

"क्या बात है,कामिनी जी?",देविका के माथे पे बाल पड़ गये.

"आपको वो दवा याद है देविका जी जिसकी डिबिया मैने आपके बेडरूम मे देखी
थी.",देविका को याद करने की कोशिश करते देख कामिनी ने उसकी मदद की,"..वो
नारंगी वाली डिबिया."

"हां-2."देविका को याद आया.ये तो वही दवा थी जो उसके पति उसे चोदने से
पहले लेटे थे.कामिनी ने उसे बताया की अगर सुरेन जी लगभग रोज़ दवा ले रहे
थे तो दवा की डिबिया नयी कैसे हो गयी थी?

"आपका कहना है की.."

"जी साज़िश की बू तो है मगर किसकी ये समझ नही आता."

"आपको शिवा पे शक़ है."

"शक़ के दायरे मे तो सभी हैं ,देविका जी..",कामिनी देविका के चेहरे के
भाव को गौर से देख रही थी,"..सुरेन जी को छ्चोड़ सभी."

"आपका मतलब है मैं भी?"

"आप थी देविका जी मगर शिवा के जाने के बाद & ये वसीयत जो बाहर मेरी
सेक्रेटरी & असिस्टेंट आपके लिए तैय्यार कर रहे हैं जिसमे आपने वही किया
है जो आपके मरहूम पति की ख्वाहिश थी,ने आपको उस दायरे से बाहर निकाल दिया
है.",कामिनी ने देखा की देविका का चेहरा गुस्से से तन्तनाया हुआ है.वो
अपनी कुर्सी से उठी & डेस्क के दूसरी ओर आ देविका के बगल मे दूसरी कुर्सी
पे बैठ गयी,"मैं जानती हू आपको कितना गुस्सा आ रहा है.",उसने देविका का
हाथ थाम लिया,"..मुझे आपके पति लाए थे एस्टेट का वकील बनाके,देविका जी.आप
मुझे फीस देती हैं तो मेरा भी फ़र्ज़ है ना कि मैं अपना काम पूरी
ईमानदारी से करू."

"मेरी बात समझ रही हैं ना आप फिर भी आप बुरा मान गयी तो माफी चाहती हू."

"अरे नही कामिनी जी ऐसा मत बोलिए!",देविका ने भी उसके हाथ को थाम
लिया,"गुस्सा तो सच मे बहुत आया की जिस पति को मैने अपना सब कुच्छ माना &
पूरी ज़िंदगी उसी की होके बिता दी अब उसकी मौत का इल्ज़ाम मुझपे लगाया जा
रहा है लेकिन आपकी बात समझ गयी मैं.आगे कहिए तो क्या शिवा ने किया ये
सब?",देविका को लगा की कही शिवा ने उसके जिस्म की हवस मे पागल हो ये काम
तो नही किया था.

"कुच्छ समझ नही आता.देखिए,अगर शिवा करता तो वो दवा की डिबिया पूरी गायब
ही नही कर देता केवल बदलता क्यू?जहा तक मुझे अंदाज़ा है वो आपके पति के
साथ साए की तरह लगा रहता था तो उसे ये भी पता होगा की दवा क्या काम करती
है फिर वो दवा को बदलेगा भी तो बहुत ध्यान से.उसकी खोटी नियत जानने के
बाद भी मुझे पूरा यकीन नही हो रहा की दवा के साथ उसने छेड़-छाड़ की है.अब
अगर वो दवा की डिबिया जो आपके पति इस्तेमाल कर रहे थे तो शायद कुच्छ
सुराग मिले मगर जिसने डिबिया बदली उसने उसे तो ठिकाने लगा दिया होगा."

"मगर दवा बदली क्यू?जैसा आप कह रही हैं वो डिबिया गायब भी कर सकता था."

"शायद इसलिए की वो ये ना चाहता हो की किसी का ध्यान दवा पे जाए भी.अगर
दवा गायब हो जाती तो हो सकता है किसी का ध्यान उसपे चला जाता.अब जब दवा
उसी जगह पे रखी रहती तो किसी का भी ध्यान नही जाता की उस दवा का भी कुच्छ
लेना-देना है सुरेन जी की मौत से."

"तो फिर कौन हो सकता है इसके पीछे कामिनी जी?"

"ये बात तो मुझसे बेहतर शायद आप पता लगा लें.",रश्मि दस्तक दे वसीयत का 1
ड्राफ्ट लेके आई जिसमे कामिनी ने कुच्छ ग़लतिया सही की & रश्मि को उसे
फिर से तैय्यार करके लाने को कहा,"..देविका जी,ज़्यादा घबराईए मत बस
सावधान रहिए.अब जब ये वसीयत तैय्यार है तो आपको नुकसान पहुचने की वजह भी
ख़तम हो जाती है क्यूकी किसी को कुछ हासिल नही होने वाला आपको नुकसान
पहुँचा के.मैं आपके साथ हू & हम दोनो ज़रूर ही उस इंसान का पता लगा लेंगे
जो आपके परिवार पे बुरी नज़र डालता है.",रश्मि वसीयत का फाइनल ड्राफ्ट ले
आई थी जिसे देविका ने दस्तख़त कर कामिनी के पास हिफ़ाज़त से रखवा दिया.

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क्रमशः..............
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08-16-2018, 02:18 PM,
#83
RE: Kamukta Story बदला
गतान्क से आगे...
देविका पंचमहल केवल वसीयत के काम से नही आई थी बल्कि उसका मक़सद अपने
एस्टेट के बिज़्नेस के सप्लाइयर्स & खरीदारो से भी मिलने का था.इंदर भी
उसके साथ था & जितनी देर देविका कामिनी के साथ थी उतनी देर इंदर ने कुच्छ
काम निपटा लिए थे.देविका कामिनी के दफ़्तर से निकली & इंदर के साथ अपने 1
सप्लाइयर से मिलने चली गयी.उसके दफ़्तर पहुँच जैसे ही उसने कार से नीचे
कदम रखा की उसके मोबाइल पे प्रसून का फोन आ गया,"हां,बेटा बोलो..",बेटे
से बात करने मे उसे सड़क की भीड़ का ख़याल ही नही रहा & उसे बिल्कुल भी
पता नही चला की 1 कार उसकी तरफ से तेज़ी से बढ़ रही है.जब इंदर ने उसे
पकड़ के पीछे खींचा तो उसे ख़याल आया की वो सड़क के बीचे मे खड़ी थी.

"उसकी बाई बाँह पकड़ इंदर ने पीछे खींचा तो वो लड़खड़ा गयी & गिरने लगी
तब इंदर ने उसे अपनी बाहो मे संभाल लिया था.इंदर ने अपनी दोनो बाहे पीछे
से उसके बाजुओ पे लगा उसके गिरने को रोका & जब देविका खड़ी हुई तो उसकी
पीठ इंदर के सीने से सॅट गयी थी & उसे अपनी गंद पे इंदर के लंड का एहसास
हुआ मगर बस 2-3 पॅलो के लिए.देविका का बदन सिहर उठा था.इंदर ने उसे थामे
हुए रास्ता पार कराया,"आप ठीक है ना,मॅ'म?"

"हा..हां..".इंदर ने अपने हाथ उसके बदन से हटाए.

"चलिए.",दोनो सप्लाइयर के दफ़्तर की ओर बढ़ गये.

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रात देविका अपने बेडरूम मे लेटी दिन की बाते याद कर रही थी.कामिनी की बात
ने उसे चिंता मे डाल दिया था.उसे पूरा यकीन था की हो ना हो ये सब शिवा का
किया धरा था..कितना भरोसा किया था उसने उसपे & ये सिला दिया था उसने
इसका!शिवा की याद आई तो उसके दिल को उसके साथ बिताई राते याद आ गयी &
उसकी आँखे थोड़ी गीली हो गयी.उसने अपना ध्यान उस बेवफा इंसान से हटाया &
बाकी बातो के बारे मे सोचने लगी..वसीयत ने उसके बेटे का भविश्य महफूज़ कर
दिया था.आज उसने एस्टेट के बिज़्नेस से जुड़े सभी सप्लाइयर्स & एस्टेट के
प्रॉडक्ट्स के ग्राहको से मुलाकात कर बिज़्नेस के बारे मे सब समझ लिया
था.इंदर ने इसमे बहुत मदद की थी,हर जगह उसने देविका को ही सारी बाते करने
दी थी & फिर उस इंसान के बारे मे उस से उसकी राइ पुछि थी.इंदर ने उसके
बाद ही अपनी राइ बताई थी.देविका समझ गयी थी की इस बात से 2 मक़सद पूरे हो
रहे थे-पहला तो सारे लोगो को ये लगा की अब वो ही मालकिन है & दूसरा ये की
उसे इस तरह से हर इंसान की पहचान हो गयी & बिज़्नेस की बारीकिया भी समझ आ
गयी.

1 बार फिर इंदर की भलमांसाहत ने उसे च्छू लिया था.तभी उसे वो सड़क पार
करते हुए घाटी बात याद आई & उसके होंठो पे मुस्कान खेल गयी.इंदर की
मज़बूत बाँहो का एहसास होते ही उसका दिल किया था की वो अपने बदन को उनके
हवाले कर दे....& जब उसकी गंद पे उसके लंड ने च्छुआ था...अफ!..देविका के
तजुर्बे ने उसे ये बता दिया था की इंदर का लंड काफ़ी बड़ा था.उसका दिमाग़
बस नये-2 ख़यालो मे खोता जा रहा था.दिन का काम पूरा करते ही जैसे ही वो
लोग वापस एस्टेट के लिए रवाना होने लगे थे की इंदर ने उसके बाए पैर की ओर
इशारा किया था,"ये चोट कैसे लगी आपको,मॅ'म?"

देविका को तो पता भी नही था की उसके बाए पैर के अंगूठे के पास वो खरोंच
कैसे लगी जिसमे से अभी भी खून निकल रहा था.इंदर ने फ़ौरन कार रुकवाई & 1
दवा की दुकान से कुच्छ समान खरीद वापस कार मे आ बैठा & ड्राइवर को एस्टेट
चलने को कहा.दवा की दुकान से खरीदे समान के पॅकेट मे से उसने रूई & डेटोल
निकाला & दीर रूई को डेटोल से भिंगो के देविका के पैर पे लगाया तो देविका
जला से कराह उठी.इंदर झुका & होंठो से घाव पे फूँक वाहा डेटोल से पैदा
हुई जलन को शांत करने लगा मगर उसकी इस हरकत ने देविका के अंदर दूसरी ही
जलन पैदा कर दी.इंदर उसके दाए तरफ बैठा था & देविका ने अपना बाया पैर उठा
के अपने दाए घुटने पे रख दिया था.इंदर के होंठो की फूँक उसके जिस्म को
सिहरा रही थी.इंदर जानता था की देविका पे उसकी हर्कतो का के असर हो रहा
था.उसने घाव सॉफ करने के बाद उसपे मरहम लगाया & ऐसा करते वक़्त जानबूझ कर
देविका के पाँव के उपर उसकी सारी मे से निकली गोरी टाँग पे अपना बाया हाथ
रख दिया.देविका का गला सुख गया.इंदर ने मरहम के बाद पट्टी लगाई & अपना
हाथ खींच लिया.उस पल देविका को बहुत बुरा लगा,उसका दिल कर रहा था की वो
उसके हाथ को तोड़ा वैसे ही महसूस करती रहे.उसने हल्के से सर घुमा के इंदर
को देखा तो पाया की वो उसके जज़्बातो से बेख़बर फिर से किसी फाइल मे डूब
गया था.

ये बात याद आते ही देविका के जिस्म मे कसक सी उठी.उसे लगा था की शिवा के
जाने के बाद शायद ये एहसास उसे फिर कभी महसूस नही होगा मगर इंदर ने 1 बार
फिर उसके बदन को जगा दिया था.वो आँखे बंद कर उसके हाथो के एहसास को याद
करने लगी.1 बार फिर इंदर उसके पैर को छु रहा था मगर इस बार वो केवल पैर
तक नही रुका था बल्कि उपर बढ़ रहा था उसके घुटनो की तरफ फिर उस से भी
उपर.....हाथ देविका का था मगर उसके तस्साउर मे इस वक़्त इंदर अपने हाथो
से जन्नत की सैर करा रहा था.उसकी उंगलिया तेज़ी से उसकी पॅंटी मे घुसी
उसकी चूत से खेल रही थी...उसका दूसरा हाथ भी कपड़ो के उपर से ही उसकी
चूचियो को दबा रहा था......"ओह....इंदर.....!",झाड़ते ही उसके होंठो से
उसके दिल की ख्वाहिश ज़ुबान पे आ गयी.जिस्म मे उबाल रहा लहू जब शांत हुआ
तो देविका ने करवट बदल आँखे खोली.

वो अकेली थी बिस्तर पे,वाहा इंदर नही था.....क्या कभी वो होगा वाहा उसके
साथ?....काश ऐसा हो!..लेकिन वो तो उसकी तरफ देखता भी नही!देविका के चेहरे
पे झड़ने का जो सुकून था उसपे उदासी की परच्छाई पड़ गयी.वो पागल हो गयी
थी इंदर के लिए & उसे तो खबर ही नही थी!अपनी आँखे बंद कर उसने तकिये मे
मुँह च्छूपा लिया & सोने की कोशिश करने लगी.

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इंदर अपने क्वॉर्टर मे बैठा अपने फ़्लास्क से शराब के लूंबे-2 घूँट भर
रहा था.कार मे उसने देविका के चेहरे को पढ़ लिया था.वो जानता था की बस अब
कभी भी वो उसकी बाहो मे गिर जाएगी मगर नही वो खुद आगे कदम नही बढ़ाएगा
चाहे कुच्छ भी हो जाए..देविका खुद आएगी उसके पास..उसकी बाहो मे & फिर वो
उसे बताएगा की क्या होता है किसी का हक़ छ्चीनने का नतीजा!देविका सहाय
तुम्हारी ज़िंदगी की उल्टी गिनती भी अब शुरू हो गयी है!इंदर ने 1 लूंबा
घूँट भरा & आँखे बंद कर ली.

कामिनी 1 लूंबे,सफेद,झीने कपड़े मे लिपटी अपने हाथ हवा मे उठाए अपनी दाई
बाँह मे अपना चेहरा लगाए आँखे बंद किए खड़ी थी.बारिश की वजह से थोड़ी ठंड
हो गयी थी & इस कारण कामिनी के गुलाबी निपल्स कड़े हो गये थे & झीने
कपड़े मे से उभर रहे थे.वीरेन के हाथ तेज़ी से उसके रूप को कॅन्वस पे
उतारने मे जुटे थे.

उसने 1 नज़र अपनी महबूबा पे डाली.कपड़ा ऐसे लिपटा था बदन से मानो हवा मे
उड़ता आया & कामिनी के बदन से लग गया.कपड़े बाई आधी जाँघ & दाई टांग के
घुटने तक था.वीरेन ने कुच्छ आख़िरी स्ट्रोक्स लगाए अपने ब्रश के & फिर
अपनी प्रेमिका के पास आ खड़ा हुआ.

कामिनी ने जब उसकी गर्म साँसे अपने चेहरे पे महसूस की तब उसने अपनी आँखे
खोली.वीरेन उसे बाहो मे भर रहा था.कामिनी भी उस से लिपट गयी & दोनो 1
दूसरे के होंठो का रस पीने लगे.वीरेन के बेसबरा हाथो की हर्कतो से वो
पतला सा कपड़ा तुरंत ही कामिनी के बदन से अलग हो गया & वो पूरी की पूरी
नंगी अपने प्रेमी के बाहो मे क़ैद हो गयी.

दोनो बस 1 दूसरे को ऐसे चूमे जा रहे थे जैसे की अगर चूमना छ्चोड़ दिया तो
क़यामत आ जाएगी.कामिनी भी वीरेन के कपड़े उसके जिस्म से अलग करने मे जुटी
थी.कुच्छ ही पलो मे दोनो बिल्कुल नंगे 1 दूसरे से चिपते हुए थे.वीरेन का
लंड कामिनी के पेट पे दबा हुआ था & वो उसकी छुअन से पागल हो रही थी.

सांस लेने की गरज से दोनो आशिक़ो ने अपने होंठ अलग किए,"कमरे मे चलो.आज
यहा नही.",कामिनी की फरमाइश सुनते ही वीरेन ने उसे अपने मज़बूत बाजुओ मे
उठा लिया & उसे अपने बेडरूम मे ले आया.वीरेन के बिस्तर पे करीने से लगी
चादर थोड़ी ही देर मे सलवटो से भर गयी.दोनो प्रेमी 1 दूसरे से लिपटे उस
बिस्तर पे लोट रहे थे.

"आउच!!..",कामिनी ने वीरेन के बाल खींच उसे अपने सीने से उठाया,"..दाँत
नही बदतमीज़!",वीरेन ने उसकी बाई छाती पे हल्के से काट लिया
था,"..ऊव्वव...हा...हाअ....!",वीरेन ने उसकी दाँत को अनसुना करते हुए
अबके दाई छाती पे काट लिया & फिर अपनी नाक उसके पेट मे दफ़्न कर गुदगुदी
करने लगा जिस से कामिनी की हँसी छूट गयी.

"हा....हा...रूको...",कामिनी ने बालो को पकड़ उसे अपने पेट से उठाया &
फिर उसे पलट के उसके उपर चढ़ गयी & उसकी बाहे उसके सर के उपर ले जाके
अपने हाथो मे उसकी कलाई पकड़ के बिस्तर से लगा दी फिर झुकी & अपनी नाक से
वही हरकत वीरेन के पेट मे करने लगी.अब हंस-2 के पागल होने की बारी वीरेन
की थी.हंसते हुए वीरेन ने अपनी टाँगे उठा के अपनी कमर को ऐसे मोड़ा की
कामिनी उसके पेट से नीचे बिस्तर पे गिरी.उसके गिरते ही वीरेन उसके उपर
सवार हो गया तो कामिनी ने अपनी टाँगे कस के आपस मे भींच बंद कर ली.

"खोलो ना!",वीरेन ने अपने दाए घुटने से उसकी जाँघो को अलग करने की कोशिश की.

"ना!",आज कामिनी उसे तड़पने के मूड मे थी.
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08-16-2018, 02:18 PM,
#84
RE: Kamukta Story बदला
"तड़पाव मत जानेमन.देखो कैसे मचल रहा है तुम्हारे लिए.",वीरेन ने कामिनी
का दाया हाथ पकड़ा & उसने अपने जिस्मो के बीचे कामिनी की चूत के थोडा उपर
उसके पेट के निचले हिस्से पे दबे पाने लंड पे लगाया.

"मचलने दो.बहुत शरारती हो गये हो तुम & तुम्हारा ये!",उसने लंड को हल्के
से दबाया तो वीरेन का जोश और बढ़ गया,"..थोड़ी सज़ा मिलेगी तो सही हो
जाओगे दोनो!"

"प्लीज़,जान..खोलो ना!",वीरेन ने ज़िद की.

"नही.बिल्कुल नही!",कामिनी ने उसके गाल पे प्यार भारी चपत लगाई,"पहले 1
काम की बात सुनो."

"क्या?",वीरेन ने देखा की कामिनी मानने के मूड मे नही है तो उसने सर नीचे
झुकाया & उसकी दाई चूची पे जीभ चलाने लगा.

"उम्म....मना किया है ना!",कामिनी ने उसके बाल पकड़ उसे फिर से
उठाया,"..मैने तुम्हारी भाभी से बात की थी."

"कैसी बात?"

"वही दवा वाली."

"अच्छा.क्या कहा उसने?"

जैसा मैने सोचा था इसमे उनका कोई हाथ नही.मुझे लगता है उन्हे भी शिवा पे
ही शक़ है."

"तुम्हे अभी भी लगता है दोनो के बीच कुच्छ था?",वीरेन 1 बार फिर उसके
सीने पे झुक गया.

"हां."कामिनी ने उसका सर फिर से उठाया & करवट ले उसे अपने नीचे कर
दिया,"..उसमे मुझे कोई शक़ नही मगर अब शिवा ख़तरा बन गया है.",कामिनी
वीरेन के सीने को चूमते हुए नीचे बढ़ रही थी.लंड के पास पहुँच उसने
आस-पास चूमना शुरू कर दिया.वीरेन का दिल कर रहा था की कामिनी जल्दी से
उसके लंड को हाथो & मुँह मे ले उसकी तड़प को कुच्छ तो शांत करे मगर आज
कामिनी ने उसे उसी की दवा का स्वाद चखाने की ठानी थी.

कामिनी वीरेन की झांतो के बाहर उसकी जाँघ,उसके पेट को चूमे जा रही थी मगर
उसके ठुमकते हुए लंड की जैसे उसे कोई परवाह ही नही थी,"कामिनी.."

"शिवा कहा है क्या ये पता काम सकता है,वीरेन?",कामिनी ने उसकी बात को
अनसुना करते हुए उसकी दाई जाँघ को चूमते हुए नीचे बढ़ना शुरू किया.

"दफ़्तर से उसका पर्मनेंट अड्रेस निकलवा के शुरुआत की जा सकती
है.",कामिनी चूमते हुए उसके उपर तक पहुँच गयी & वीरेन की दाई टांग को उठा
उसके पैरो की उंगलियो को 1-1 कर चूसने लगी.ऐसी हर्कतो से वीरेन उसे पागल
बनाता था मगर आज वीरेन को पता चल रहा था की ऐसी तड़प मे कितना दर्द &
कितना मज़ा च्छूपा रहता है.

"..लेकिन मुझे नही लगता की उसके आगे कुच्छ हो सकता है.बहुत मुश्किल होगी
उसे ढूँदने मे क्यूकी ..आअहह....",कामिनी उसके पैर की उंगलियो से खेलने
के बाद वापस उसके लंड के पास आई थी & उसके आंडो के बीचोबीच बहुत ही हल्के
से चूमा था-इतना हल्के की उसके होंठ बस आंडो की सिकुड़ी सी स्किन को बस
च्छू से गये थे,"..क्यूकी वो चाहता नही होगा की कोई उसे ढूंदे.अब ऐसे
आदमी का पता लगाना तो दिक्कत भर काम होगा ही."

"ना..मेरी कसम है तुम्हे मिस्टर.वीरेन सहाय..",कामिनी ने उसके हाथो को
फिर से उसके सर के उपर ले जा के बिस्तर पे रख दिया,"..जब तक मैं ना काहु
मेरे जिस्म को नही च्छुओगे."कामिनी अब दोनो घुटने उसकी कमर के दोनो ओर
टिकाए उसके लंड के उपर बैठ रही थी.जैसे ही चूत लंड के बिल्कुल करीब
पहुँची कामिनी ने बैठना रोक दिया.वीरेन पागल हो अपनी कमर उचका के अपने
प्यासे लंड को चूत मे घुसाने की नाकाम कोशिश करने लगा.

"चुपचाप लेटे रहो वरना चली जाऊंगी!",कामिनी की डाँट से तड़प्ता वीरेन
शांत हो नीचे लेट गया.कामिनी हौले-2 नीचे हुई & चूत को लंड की नोक से
च्छुउआ दिया.

"आहह..!",वीरेन आह भरता हुआ सर उठा के नीचे देखने लगा मगर कामिनी ने चूत
को और नीचे नही किया.वीरेन ने सोचा की बात बदली जाए तो शायद कामिनी का
ध्यान इस तड़प भरे खेल से थोड़ा हटे.

"आख़िर तुम उसे क्यू ढूंडना चाहती हो?"

"क्यूकी तुम्हारे परिवार को सबसे ज़्यादा ख़तरा उसी से है.अब उसे केवल
दौलत की हवस नही बल्कि बेइज़्ज़ती का गुस्सा भी होगा & वो ज़रूर बदला
लेना चाहेगा इस बात का.",कामिनी के नाख़ून वीरेन के सीने पे घूम रहे थे &
उसकी चूत अभी भी हवा मे ही थी.कामिनी झुकी & अपनी कमर हवा मे यू उठा दी
की वीरेन को उसकी चौड़ी गंद के दर्शन तो होते रहें मगर उसकी चूत उसके लंड
को ना च्छू पाए.

"ये काम कैसे होगा,कामिनी?",कामिनी ने वीरेन के सीने पे चूमते हुए अपनी
गंद बड़े मदहोशी भरे अंदाज़ मे लहराना शुरू कर दिया था.माशूक़ा की कसम से
बँधा वीरेन बस बेबस हो देख सकता था मगर अपनी जोशीली हसरातो को पूरा नही
कर सकता था.

"वो सब मुझपे छ्चोड़ो.कुच्छ सोचती हू.",कामिनी ने देखा की वीरेन के लंड
पे प्रेकुं की बूंदे चमक रही थी & वो बेचैनी से अपनी कमर बस बिस्तरे पे
गंद जमाए हुए हिला रहा था.कामिनी उसके सीने से उठी & अपने दोनो हाथ वाहा
जमा दिए & फिर से वीरेन के लंड पे बैठने लगी.इस बार उसने सू ज़्यादा नही
तडपया 7 चूत मे लंड को दाखिल होने दिया.

वीरेन के होंठो पे मुस्कान फैल गयी & आँखे मज़े मे बंद हो गयी मगर ये
सुकून बस कुच्छ ही देर के लिए था क्यूकी कामिनी उसके सूपदे से ज़्यादा
लंड को अंदर ले ही नही रही थी & बस अपनी कमर उसी पे हिला रही थी.वीरेन की
आहे कमरे मे गूँज रही थी,"ओह्ह्ह....कामिनी प्लीज़.....और नीचे हो....लंड
को पूरा अंदर लो ना!"

"लेती हू,जान.ऐसी भी क्या जल्दी है!",कामिनी ने उसे और तडपया मगर इस बार
थोड़ा और नीचे बैठ गयी,अब लंड आधा अंदर था & वीरेन नीचे से कमर हिला रहा
था.कामिनी ने अपने हाथ सीने से नीचे ला उसकी कमर के बगल मे लगाए & उसे
हिलने से रोक दिया.वीरेन की शक्ल देख के ऐसा लग रहा था की वो अब जैसे रो
देगा.

कामिनी को भी अब ज़्यादा तड़पाना ठीक नही लगा.वो और नीचे हुई & अब लंड जड
तक उसकी चूत मे था.वीरेन ने खुशी से मुस्कुराते हुए कमर हिला चुदाई शुरू
करनी चाही & अपने हाथ उसकी चूचियो की ओर बढ़ाए,"ना.अभी मैने नही कहा है."

वीरेन ने महबूबा की बात सुन हाथ पीछे खींच बिस्तर पे रख लिए & कमर भी
हिलाना रोक दिया.थोड़ी देर पहले तक उसकी ख्वाहिश थी की उसका लंड कामिनी
की नाज़ुक,कसी चूत मे जड तक धँस जाए-वो ख्वाहिश पूरी हो गयी थी मगर फिर
भी वो तड़प रहा था क्यूकी कामिनी उसके लंड को अंदर लिए बस शांत बैठी उसके
सीने के बालो मे उंगलिया फिरा रही थी जबकि वो चुदाई के लिए पागल हो रहा
था.

"प्लीज़,कामिनी...प्लीज़..मुझे चोदने दो!"

"लंड तो है ही अंदर.अब और क्या करना है.ऐसे ही कितना अच्छा लग रहा
है.",कामिनी ने अपनी बाहे उपर हवा मे ले जा अंगड़ाई ली & अपनी 38द साइज़
की कसी,मोटी चूचियो से अपने आशिक़ को ललचाया.वीरेन का दिल तो किया की
हाथो मे भर उसकी चूचियो को मसल्ते हुए वो उसे नीचे गिरा दे & फिर उसके
उपर सवार हो उसकी ऐसी चुदाई करे की वो ज़िंदगी भर याद रखे मगर वो बेबस
था-प्रेमिका ने कसम जो दे रखी थी उसे!

कामिनी ने वैसे ही हाथ उठाए हुए अपने बालो से खेलते हुए बहुत धीरे-2 अपनी
कमर हिलाई तो वीरेन को थोड़ा चैन पड़ा.उसका दिल कर रहा था की कामिनी तेज़
रफ़्तार से कमर हिलाए ताकि उसके तड़प्ते लंड को फ़ौरन सुकून मिल
जाए.
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08-16-2018, 02:18 PM,
#85
RE: Kamukta Story बदला
जाए.कामिनी ने कमर हिलाते हुए अपने बाए घुटने को बिस्तर से उठाया & बाए
पैर को वीरेन के सीने पे रख दिया,उसका दाया घुटना भी बिस्तर से उठ चुका
था मगर दाया पैर उसकी गंद के बगल मे बिस्तर पे ही पड़ा था.वीरेन को चूत
मे धंसा उसका लंड & उसपे कसी कामिनी की गुलाबी चूत की हरकते सॉफ दिख रही
थी & उसकी मस्ती हर पल बढ़ती जा रही थी.

कामिनी ने बाए पैर के अंगूठे & उंगली के बीच वीरेन के दाए निपल को दबोच
के उसपे चूटी काट ली & फिर अंगूठे से उसके सीने पे दायरे बनाते हुए
खरोंछने लगी.वीरेन के लिए ये बिल्कुल नया तजुर्बा था.आमतौर पे लड़कियाँ
बिस्तर मे उसकी कामुक हर्कतो से बेचैन हो उसके सामने हथ्यार डाल देती थी
मगर आज पहली बार किसी लड़की ने उस से हथ्यार डलवाए थे...नही 1 और
थी.....वीरेन ने सर झटका & उस लड़की का ख़याल दिमाग़ से निकाला..वो उस
बेवफा को याद कर इस हसीन,मस्त लम्हे को बर्बाद नही करना चाहता था.

कामिनी ने अपने हाथ सहारे के लिए पीछे वीरेन की मज़बूत जाँघो पे टीका
दिया थे & अपने बाए पैर से उसके सीने को मसल्ते हुए वो अब तेज़ी से कमर
हिला रही थी.इस मस्त खेल ने उसकी धड़कने भी बहुत तेज़ कर दी थी.उसकी आँखो
मे जिस्म मे पैदा हो रहे मज़े की खुमारी सॉफ झलक रही थी.जिस्मानी खेल की
मस्ती से उसकी बोझल पलके उसकी काली आँखो को बड़ी नशीली बना रही थी.वीरेन
उन नशीली आँखो की शराब अपनी आँखो से पीता हुआ अपनी कमर हिला रहा
था.कामिनी की चूत अब सिकुड के उसके लंड को और कस रही थी.वो जानता था की
वो झड़ने वाली है.उसका हाल भी उसी के जैसा था.दोनो प्रेमी आँखो के ज़रिए
1 दूसरे के दिल का हाल समझते हुए चुदाई कर रहे थे.

"आनह...ऊओवव्व...उउन्न्ह.....ऊउउउईईईईईइ......!",कामिनी की आहे बहुत तेज़
हो गयी थी & उसकी कमर की रफ़्तार भी.उसकी चूत मे वही मस्ताना तनाव बन गया
था जिसके दूर होने पे उसे वो अनोखा मज़ा हासिल होता था जिसे दुनिया झड़ना
कहती थी.वीरेन ने इस वक़्त अपने हाथो को कैसे अपने काबू मे रखा था वोही
जानता था.उसके हाथ तड़प रहे थे माशूक़ा के गदराए बदन की गोलाईयो को
मसल्ने के लिए मगर उसकी हसरातो से भी बड़ी थी महबूबा की कसम जिसे वो किसी
भी कीमत पे नही तोड़ सकता था.

कामिनी उसके हाल को बखूबी समझ रही थी & उसे बहुत प्यार आ रहा था अपने
आशिक़ पर जो उसकी कसम की इतनी इज़्ज़त कर रहा था.उसने तो खेल-2 मे ऐसा
कहा था & उसे ज़रा भी उमीद नही थी की जब जोश दोनो के सर चढ़ जाएगा उस
वक़्त भी वीरेन उसकी कसम का ख़याल रखेगा मगर वीरेन ने उसकी कसम निभा उसके
दिल मे और बड़ी जगह बना ली थी.

दिल मे महबूब के लिए उमड़ते प्यार & चूत मे धन्से उसके लूंबे,तगड़े लंड
की हर्कतो से जिस्म मे पैदा होती मदहोशी ने अपना असर दिखाया & उसकी आहे
और तेज़ हो गयी,वो वीरेन की जंघे थामे और पीछे झुक गयी & अपनी चूचिया हवा
मे उठा दी.उसकी कमर बहुत तेज़ी से हिल रही थी & उसकी चूत लंड पे अपनी
मस्तानी हरकते कर रही थी.उसकी चूत का तनाव अपनी शिद्दत पे पहुचने के बाद
कम हो रहा था & उसे वोही अनोखा एहसास हो रहा था जिसे दुनिया झड़ना कहती
है.

उसे चूत मे कुच्छ गरम सा महसूस हुआ & कानो मे वीरेन की आहे सुनाई दी.उसने
आँखे खोली तो देखा की वीरेन का बदन भी झटके खा रहा है & उसका गढ़ा वीर्या
उसकी चूत मे भर रहा है.झड़ने के बाद दोनो लंबी-2 साँसे लेते हुए 1 दूसरे
को देख रहे थे,"वीरेन....जान..मुझे छुओ.",कामिनी ने अपनी कसम वापस ली तो
जैसे वीरेन को किसी क़ैद से छुटकारा मिला.हाथ बढ़ा उसने अपनी हसीन
माशुक़ा को अपने सीने पे गिराया & फिर बाँहो मे भर करवट ले उसे अपने नीचे
दबा उसे चूमने लगा.झड़ने के बावजूद लंड पूरा मुलायम नही हुआ था.वीरेन ने
आधे सख़्त लंड से ही फिर से धक्के लगाना शुरू कर दिया.कामिनी की मस्तानी
अदाओं ने उसे पागल कर दिया था & आज वो उसकी चूत से लंड निकालना ही नही
चाहता था.कामिनी भी उसकी हालत समझ गयी थी,उसने अपनी बाहो मे उसे कसा &
अपने होंठ उस से सटा दिए & उसकी चुदाई का लुत्फ़ उठाने लगी.

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क्रमशः.......
Reply
08-16-2018, 02:19 PM,
#86
RE: Kamukta Story बदला
गतान्क से आगे...
रोमा ने अभी तक पूरा एस्टेट नही देखा था & इसके लिए देविका ने तय किया था
कि शनिवार को वो उसे प्रसून के साथ एस्टेट घुमाने ले जाएगी लेकिन उसका
इरादा बस बेटे-बहू को ले जाने का नही था उस शख्स को भी साथ ले जाने को था
जिसने उसके दिल मे जगह बना ली थी-इंदर.रात उसके नाम से चूत मे उंगली करने
के बाद देविका नेउसके बारे मे सोचा तो पाया था कि इंदर कोई ग़ज़ब का हसीन
नौजवान नही था मगर कोई बदशक्ल इंसान भी नही था & उसका जिस्म भी गाथा हुआ
था.देविका की सोई हस्रतो को उसकी शराफ़त ने जगा दिया था & उसे लगने लगा
था की शिवा के दिए ज़ख़्मो पे इंदर ही मरहम लगाएगा.

"इंदर.ज़रा मेरे कॅबिन मे आना.",इनर्ट्र्कोम से उसने उसे बुलाया.

"यस मॅ'म.",इंदर उसके कॅबिन मे दाखिल हुआ.

"इंदर,इस शनिवार मैं प्रसून & रोमा को एस्टेट दिखाने ले जा रही हू.मैं
चाहती हू की तुम भी हमारे साथ आओ."

"पर..-"

"पर-वर कुच्छ नही.तुम्हे कही जाना है?"

"नही."

"कोई काम है?"

"नही,मगर..-"

तो फिर 3 बजे के बाद घर मे ही बैठे रहोगे."

"जी."

"तो उस से अच्छा है हमारे साथ चलो."

"मॅ'म."

"इंदर,ऑर्डर नही दे रही गुज़ारिश कर रही हू,प्लीज़.",1 पल को देविका के
चेहरे पे उसके दिल के असली भाव आ गये थे जिन्हे इंदर की पैनी निगाहो ने
पढ़ लिया था.

"मॅ'म,आप तो शर्मिंदा कर रही हैं.मैं ज़रूर चलूँगा."

"थॅंक्स,इंदर."

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"रोमा..ये बिस्कट भी रख लो & ये फ्रूटी भी..ये वाली बॉटल तुम्हारी है &
ये मेरी.",ओपन टॉप जीप की पिच्छली सीट पे बैठ रही रोमा को प्रसून अपना
समान पकड़ा रहा था.जीप बंगल के अहाते मे खड़ी थी.

"और मेरी फ्रूटी प्रसून?",इंदर ने प्रसून को छेड़ा.सब तैय्यार होके आ गये
थे मगर देविका अभी तक नही आई थी.

"वो भी है,इंदर भाय्या.आपकी इस आइस-बॉक्स मे है & आपके लिए चिप्स भी लाया
हू.",प्रसून की मासूम बातो से रोमा & इंदर हंस पड़े.पूरे परिवार मे ये
अकेला था जिस से चाह के भी इंदर नफ़रत नही कर पाया था मगर इसके बावजूद
उसके मन मे ज़रा भी शुबहा नही था की जब वक़्त आएगा तो वो प्रसून को मोहरा
बनाने मे ज़रा भी नही हिचकिचाएगा.

"सॉरी,मेरी वजह से सबको इंतेज़ार करना पड़ा ना.",बंगल से बाहर निकलती
कमीज़ के आस्तीन के बटन लगाती देविका को देख इंदर का मुँह खुला का खुला
रह गया.उसने देविका को हमेशा सारी मे देखा था.आज उसने क्रीम कलर की कसी
शर्ट & बलुए रंग की कसी पॅंट जिन्हे राइडिंग ब्रीचास कहा जाता है पहनी
थी.ये ब्रीचास घुड़सवारी के वक्त पहनी जाती हैं.उन ब्रीचास के उपर से
उसने भूरे रंग के चमड़े के बेहतरीन घुटनो तक के राइडिंग बूट्स पहने थे.

इस कसे लिबास मे देविका के बदन के सभी कटाव सॉफ झलक रहे थे.उसकी चाल मे 1
कुद्रती लोच था जिस से उसकी कमर क़ातिलाना अंदाज़ मे मटकती थी.इस वक़्त
जब वो तेज़ी से चलते हुए इंदर के पास आई & फिर जीप की अगली सीट पे बैठी
तो इंदर उसकी कसी गंद की दिल ही दिल मे तारीफ किए बिना नही रह सका.

"इंदर."

"जी."

"बुरा ना मानो तो आज तुम ही जीप चलाओ."

"ज़रूर मॅ'म.इसमे बुरा मानने की क्या बात है!",इंदर सीट पे बैठ गया &
स्टियरिंग संभाल ली.जीप तेज़ी से बंगल के ड्राइववे से निकल एस्टेट के
खेतो की ओर निकल पड़ी.देविका & इंदर आगे बैठे थे & रोमा & प्रसून
पीछे.देविका & प्रसून रोमा को हर जगह के बारे मे बता रहे थे.

सब्ज़ियो के खेतो के पास से गुज़रते हुए वाहा काम कर रहे आदमियो ने उन्हे
सलाम किया & उनमे से 1 ने प्रसून को ताज़े खीरे पकड़ाए.सभी लोग
ताज़े,रसीले खीरो के ज़ायके का मज़ा उठाते हुए आगे बढ़ गये.एस्टेट के
छ्होटे से जंगल के रास्ते पे दौड़ती जीप अब वाहा की सबसे खूबसूरत जगह की
ओर बढ़ रही थी.

रास्ता थोड़ा उबड़-खाबड़ था & झटका लगता तो देविका की बाँह इंदर से च्छू
जाती.देविका को बहुत अच्छा लग रहा था & उसका दिल कर रहा था की ये असर्त
कभी ख़त्म ही ना हो मगर ये तो नामुमकिन बात थी & कोई 10 मिनिट बाद वो लोग
उसी झील के पास पहुँच गये जहा कुच्छ दिन पहले प्रसून की शादी के वक़्त
इंदर ने कामिनी & वीरेन को 1 दूसरे को चूमते देखा था.

झील पे पहुँचते ही प्रसून जीप से उतर के पानी की तरफ भागा,उसके पीछे-2
उसकी बीवी भी गयी,"अब देखना ये पानी पे पत्थर तराएएगा.",देविका अपने बेटे
को छपते पत्थर ढूंढते देख मुस्कुराइ.

"ये तो बड़ा मज़ेदार खेल है.मैं भी जाता हू.",इंदर ड्राइविंग सीट से उतरा
& उन दोनो के पास पहुँच गया.तीनो पानी पे चपते पत्थर फेंक के ये देखने
लगे की किसका पत्थर देर तक पानी पे उच्छलता है.देविका जीप से उतर उसके
बॉनेट पे बैठ गयी.इंदर ने अपनी कमीज़ की आस्तीने मोड़ ली थी & उसके
मज़बूत बाज़ू सॉफ दिख रहे थे.देविका के दिल मे कसक सी उठी....आख़िर कितना
इंतेज़ार करना पड़ेगा उसे उन बाजुओ मे क़ैद होने के लिए!

इंदर के करीब आने के ख़याल ने उसे फिर से उसके बेवफा आशिक़ की याद दिला
दी & उसके चेहरे पे उदासी की परच्छाई आ गयी..कही वो इंदर के करीब आके
वोही ग़लती तो नही दोहराएगी?....शिवा भी उसका दीवाना था & इतना उसे यकीन
था की उसने शुरू मे उसे सच्चे दिल से चाहा था मगर ना जाने कब वो चाहत
पैसो के आगे फीकी पड़ गयी....कही इंदर भी उसे आगे जाके धोखा तो नही
देगा?....लेकिन इंदर को तो उसका ख़याल ही नही है..शिवा उसकी खूबसूरती का
कायल था,ये बात देविका को उसके इश्क़ के इज़हार के पहले से पता थी,उसने
कयि बार उसे खुद को देखते पाया था मगर इंदर के लिए वो बस उसकी मालकिन थी
& कुच्छ नही....इस बार तो बात उल्टी थी,वो इंदर के करीब आना चाहती
थी....वैसे भी उसे इंदर से इश्क़ नही हुआ था....वो उसकी ईमानदारी &
अच्छाई की कायल थी मगर इश्क़...नही!

इश्क़,प्यार किताबी बाते होती हैं & वही अच्छी लगती हैं.ये बात तो वो
ज़िंदगी मे बहुत पहले समझ चुकी थी.अभी भी इंदर उसे अच्छा लगा था मगर उसके
दिल से ज़्यादा उसके बदन को उस गथिले नौजवान की ज़रूरत थी.उसे नही पता था
की कल क्या होने वाला है..हो सकता है इंदर जैसा आज है वैसा ही कल भी रहे
& हो सकता है वो बदल जाए जैसे शिवा बदला था....मगर वो ये ख़तरा उठाने को
तैय्यार थी.इंदर के करीब उसे जाना ही था आगे क्या होगा वो संभाल
लेगी..इतनी बेवकूफ़ नही थी वो की बार-2 1 ही ग़लती करे.इस बार वो अपने
आशिक़ पे आँख मूंद के भरोसा नही करेगी मगर पहले वो उसका आशिक़ बने तो!

तीनो वापस आ रहे थे,"अब कहा चलना है,मॅ'म?"

"अब टीले पे चलते हैं,इंदर भाय्या.",देयका के बोलने से पहले ही प्रसून बोल उठा.

"हां,वही चलते है नही तो अंधेरा हो जाएगा.",चारो 1 बार फिर जीप मे बैठ
गये & 1 बार फिर देविका की बाँह इंदर की बाँह से च्छू उसे मस्त करने
लगी.एस्टेट मे जो सबसे ऊँची जगह थी उसे ही टीला कहते थे.उसके उपर जाने का
रास्ता सुरेन जी ने ही बनवाया था.वाहा कुच्छ नही था बस कुच्छ पेड़ो के
सिवा मगर वाहा से पूरी एस्टेट दिखती थी & वो नज़ारा बड़ा ही दिलकश होता
था.जब प्रसून छ्होटा था तो सुरेन जी बीवी & बेटे को अक्सर वाहा पिक्निक
मनाने ले जाते थे.

1 बार प्रसून साथ गये नौकर के साथ टीले से नीचे उतर आस-पास के पौधो से
फूल इकठ्ठा करने लगा था.उस रोज़ देविका ने स्कर्ट पहनी थी & कुछ ज़्यादा
ही खूबसूरत लग रही थी.प्रसून के जाते ही सुरेन जी को मौका मिल गया &
उन्होने अपनी हसीन बीवी को गोद मे उठाया & पेड़ो के झुर्मुट के बीच ले
जाके उसे चोद दिया था.देविका को आज भी वो दोपहर याद थी.जीप टीले के उपर
खड़ी थी & उसके बेटे-बहू जीप से नीचे उतर के वाहा से एस्टेट को देख रहे
थे.

देविका पति के साथ बिताए हसीन लम्हो की याद मे खोई जीप की पिच्छली सीट पे
आ गयी थी & खड़ी हो जीप की रेल पकड़ के बेटे-बहू को देख रही थी.उस रोज़
सुरेन जी कुछ ज़्यादा ही जोश मे थे & देविका भी उनके लंड से 2-3 बार झाड़
गयी थी.उन मस्त पॅलो की याद ने देविका के जिस्म मे आग लगा दी & उसने
बेचैन हो अपनी भारी जंघे आपस मे हल्के से रगडी & अपना ध्यान हटाने के लिए
बेटे-बहू के पास जाने की गरज से जीप से उतरने को घूमी & वाहा बैठे इंदर
के घुटनो से टकरा के गिरने लगी.

उसे पता ही नही चला था की इंदर कब आके बैठ गया था.इंदर ने उसे गिरने से
रोका & अपनी बाहो मे संभाला & वो संभालते हुए उसकी गोद मे गिर गयी.इंदर
की बाई बाँह उसकी कमर के गिर्द थी & दाई उसकी बाई बाँह पे.दोनो के चेहरे
1 दूसरे के बिल्कुल करीब थे & दोनो 1 दूसरे की सांसो को महसूस कर रहे
थे.इंदर की नज़रे देविका के चेहरे से नीचे हुई & उसकी शर्ट के गले मे से
झलक रहे उसके क्लीवेज पे गयी & फिर वापस उसके चेहरे पे जिसपे देविका के
जिस्म की प्यास सॉफ दिख रही थी.देविका को अपनी गंद के नीचे दबा इंदर का
कुलबुलाता लंड महसूस हो रहा था....कितना करीब था उसका लंड उसकी प्यासी
चूत के..अफ!देविका को आज यकीन हो गया था की इंदर का लंड बहुत बड़ा
है.उसका दिल बेताब हो उठा था उस लंड से खेलने के लिए मगर अभी उसका वक़्त
नही था.
Reply
08-16-2018, 02:19 PM,
#87
RE: Kamukta Story बदला
इंदर के सीने पे & जीप की आगे की सीट पे हाथ रख वो उठी & जीप से उतर
गयी.शाम ढाल चुकी थी & सूरज अब डूबने ही वाला था.उस नारंगी सूरज की रोशनी
मे एस्टेट का नज़ारा और भी दिलकश लग रहा था.नीचे के खेतो से लौटते किसान
& मज़दूर दिख रहे थे.दूर बुंगला भी दिख रहा था & बाकी इमारतें भी मगर जो
नही दिख रहा था वो था क्वॉर्टर्स से बंगले को जाने के रास्ते के किनारे
पर झाड़ियो से कुच्छ दूरी पे पेड़ो के झुर्मुट के बीच कुच्छ ढूनदता हुआ 1
आदमी.

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बहुत अच्छा हुआ की उनलोगो ने उस शख्स को नही देखा.देविका को पता नही था
की कुच्छ ही दिन बाद उसकी ज़िंदगी मे बहुत बड़ा तूफान आने वाला है & उस
तूफान से लड़ने का माद्दा जिस शख्स मे था वो अगर आज पकड़ा जाता तो फिर
देविका को कोई भी नही बचा सकता था.

वो पेड़ो के बीच कुछ ढूनदता हुआ शख्स शिवा था.अपनी महबूबा की बेरूख़ी से
दुखी हो वो एस्टेट से चला गया था मगर उसकी फ़िक्र & इंदर से बदला लेने की
चाह उसे फिर से यहा ले आई थी.वो एस्टेट के चप्पे-2 से वाकिफ़ था & सबकी
नज़र बचाके घुसना उसके बाए हाथ का खेल था.इंदर के बारे मे सोचते हुए उसे
सुरेन जी के मौत के अगले रोज़ का वाक़या याद आया था जब इंदर ने वाहा
कुच्छ फेंका था.उसने दूसरे ही दिन आके ढूँढा था मगर कुच्छ नही मिला था
लेकिन उसने 1 आख़िरी कोशिश करने की सोची थी.पता नही क्यू उसे बार-2 ऐसा
लग रहा था कि वो चीज़ 1 बहुत अहम सुराग थी इंदर के खिलाफ & आज उसे ज़रूर
मिलेगी.

उसका दिमाग़ कहता था की ये बेवकूफी थी,इतने दीनो पहले फेंकी गयी चीज़ आज
मिलने से रही मगर उसका दिल कहता था की उसे वो चीज़ ज़रूर मिलेगी & बस
अपने दिल की आवाज़ को सुनता वो वाहा जुटा था.

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घोड़ो के स्टड फार्म के अहाते मे जली आग के पास बैठे चारो बाते कर रहे
थे.पूरी एस्टेट का चक्कर लगाके जब 8 बजे वो वाहा पहुँचे तो प्रसून ने
ज़िद की यहा आग जलाके पिक्निक मनाई जाए जैसे उसके पापा करते थे & रात को
भी यही फार्म पे रुका जाए.सुरेन जी कभी अमेरिका गये थे & वाहा के टेक्सस
राज्य मे कोई स्टड फार्म देखा था.उन्होने अपना फार्म बिल्कुल उसी अमेरिकन
फार्म की नकल मे बनाया था.घोड़ो के अस्तबल से थोड़ा हट के लकड़ी की
दोमंज़िला इमारत थी जिसमे वाहा काम करने वालो के कमरे थे.कभी-कभार वो यहा
आराम के कुच्छ पल बिताने आ जाया करते थे.आज प्रसून की फरमाइश पे सब वही
रुक गये थे.

स्टड फार्म की उपरी मंज़िल पे 2 कमरे खाली थे,वाहा के केर्टेकर ने 1 कमरा
प्रसून & रोमा के लिए & दूसरा देविका के लिए ठीक कर दिया था.निचली मंज़िल
पे 1 कमरा खाली था जो उसने इंदर के लिए ठीक कर दिया था.इंदर तो वाहा
रुकना नही चाह रहा था या यू कहा जाए की ना रुकना चाहने का नाटक कर रहा था
मगर सभी के इसरार के आगे उसे झुकना ही पड़ा.देविका ने फार्म से 1 लड़के
को बंगले पर भेज दिया था जहा उसकी नौकरानी ने सभी के लिए रात के कपड़े
भेज दिए थे.

काफ़ी देर तक चारो बाते करते रहे.काई दिन बाद देविका को भी इतना हल्का
महसूस हो रहा था.10 बजे के बाद प्रसून जमहाई लेने लगा तो देविका ने उसे &
रोमा को सोने जाने के लिए कहा मगर वो इंदर के साथ वही बैठी बाते करती
रही,"इंदर,1 पर्सनल सवाल पुच्छू तो बुरा तो नही मनोगे?"

"पर्सनल सवाल?"

"हां."

"पुछिये.अब बॉस की बात का बुरा मान के मुझे नौकरी ख़तरे मे थोड़े डालनी
है!",दोनो हंस पड़े.

"तुमने अभी तक शादी क्यू नही की?"

"कभी मौका ही नही मिला."

"ऐसा कैसे हो सकता है?"

"आप तो जानती ही हैं की मैं अनाथ हू तो कोई मा-बाप तो थे नही जोकि ये काम
करवाते & मैं.",इंदर फीकी सी हँसी हंसा,"..मैं अपने पैरो पे खड़ा होने के
चक्कर मे लगा रहा.उस जद्दोजहद मे मुझे कभी ये ख़याल ही नही आया की शादी
भी करनी है & मॅ'म..",उसने देविका की आँखो मे देखा,"..अब तो ज़रूरत महसूस
भी नही होती.मुझे अकेलापन रास आने लगा है शायद."

"ये वेहम है तुम्हारा.फ़िक्र मत करो जब कोई लड़की मिलेगी तो ज़रूरत भी
महसूस होगी & अकेलापन भी बेकार लगेगा.",देविका उठ के खड़ी हो गयी,"अब
चलती हू.गुड नाइट,इंदर."

"मॅ'म..",स्टड फार्म का केर्टेकर उसके कमरे मे खड़ा था,"..और किसी चीज़
की ज़रूरत नही है ना आपको?"

"नही.तुम कहा सोयोगे?"

"मैं तो अस्तबल के उपर वाले कमरो मे से किसी 1 मे.2-4 और वर्कर्स भी वही सोते हैं."

"ठीक है.मॅनेजर साहब के कमरे मे सब ज़रूरत का समान रख दिया ना?"

"जी,मॅ'म.बस मच्छरदानी नही रखी है क्यूकी 2 ही थी सो 1 आपको & 1 भैया को दी है."

"अच्छा.",केर्टेकर के जाते ही देविका ने बती बुझाई & मच्छरदानी उठा अपने
बिस्तर मे घुस गयी.थोड़ी ही देर मे रात का सन्नाटा च्छा गया.अस्तबल की
तरफ से भी कोई आवाज़ नही आ रही थी & बाकी कमरो से भी नही.नीचे इंदर जगा
होगा ये देविका को मालूम था.स्टड फार्म पे इस वक़्त मच्छरो का हमला होता
था & वो किसी भी क्रीम या रिपेलेंट से नही भागते थे.घोड़ो को उनसे बचाने
के लिए 1 रिपेलेंट इस्तेमाल होता था मगर उसकी बदबू ऐसी थी की इंसान उसे
इस्तेमाल नही कर पाते थे & मच्छरदानी के अलावा कोई और उपाय नही था उन खून
के प्यासे कीड़ो से बचने का.

देविका जानती थी की इंदर का उन मच्छरो ने काट-2 के बुरा हाला कर दिया
होगा.वो अपने बिस्तर से उतरी & उसके कमरे की ओर बढ़ गयी.उसने बिल्कुल ठीक
सोचा था इंदर अपने बिस्तर पे बैठा मच्छर मार रहा था,"परेशान हो गये ना?"

देविका की आवाज़ सुन वो चौंक पड़ा & दरवाज़े मे खड़ी देविका को देख वो सब
भूल गया देविका ने आज पूरे बाजुओ की काली नाइटी पहनी थी जोकि उसके सीने
पे बिल्कुल कसी थी & उसके नीचे से ढीली थी.नाइटी का गला थोड़ा बड़ा था &
देविका की बड़ी चूचियो का हिस्सा उस से झलक रहा था.

"हा..हां..बहुत मच्छर हैं."

"हूँ.",देविका मुस्कुराइ,"..मेरे साथ आओ.",इंदर उसके पीछे-2 चल
पड़ा.देविका उसे अपने कमरे मे ले आई.

"यहा सो जाओ."

"जी..मगर आप."

"मैं भी यही सोयूँगी.",देविका का दिल बहुत ज़ोर से धड़क रहा था.

"मॅ'म..ये कैसे हो सकता है?",इंदर घबराया हुआ लग रहा था.

"इंदर,बिस्तर बहुत बड़ा है & मच्छरदानी 1 ही है.अब अगर सोना चाहते हो तो
रास्ता 1 ही है की तुम & मैं ये बिस्तर शेर कर लें."

"नही,मॅ'म.मैं ऐसा नही कर सकता.ये ठीक नही लगता."

"इंदर,तुम किस बात से घबरा रहे हो?तुम्हे मुझपे भरोसा नही ये खुद पे?"

"मॅ'म..समझने की कोशिश कीजिए.बात वो नही है.लोग.."

"अच्छा.लोग!तुम उसकी फ़िक्र मत करो.कोई कुच्छ नही बोलेगा.चलो सोयो अब
मुझे भी नींद आ रही है.",इंदर ने काफ़ी नाटक कर लिया था & अब वो बेमन सा
बिस्तर मे घुस गया.दूसरी तरफ से देविका भी बत्ती बुझा के बिस्तर पे आ
गयी.इंदर उसकी तरफ पीठ करके लेटा था देविका का दिल तो कर रहा था की वो
उसे घुमा उसके उपर टूट पड़े मगर उसने अपने जज़्बातो पे काबू रखा.इंदर
जानता था की बस 1 हाथ बढ़ने की देर है,देविका अपनी टाँगे खोल उसका
इस्तेक्बाल करेगी मगर नही वो ऐसा कुच्छ नही करेगा.

तभी दूसरे कमरे से रोमा की चीख सुनाई दी & दोनो उठ बैठे,"ये क्या था?!"

इंदर बिस्तर से उतरने ही वाला था की अगली आवाज़ से दोनो को सारा माजरा
समझ आ गया,"आहह...आईयईए..आराम से प्रसून....ऊहह..इतना अंदर
नही...हाईईइ....!",देविका के गाल शर्म से लाल हो गये,उसकी बहू उसके बेटे
से चुद रही थी.उसकी हिम्मत नही हुई की वो इंदर की ओर देखे & वो लेट गयी.

रोमा की मस्ती भरी आहो ने इंदर के आज़म को भी हिला दिया था.उसका दिल तो
किया की देविका को बाहो मे भर उसके हलक से भी ऐसी ही आवाज़ा निकलवाए मगर
तभी उसके दिमाग़ ने उसे हिदायत दी..अगर उस कमरे से आवाज़ इस कमरे तक आ
सकती है तो इस कमरे से उस कमरे क्यू नही जा सकती!

उसने अपने दिल पे काबू रखा & लेट गया.प्रसून अपनी बीवी की चूत मे उंगली
घुसा रहा था & उसी के ज़्यादा अंदर जाने से वो कराह उठी थी.रोमा बिस्तर
पे पड़ी उसके लंड को हिला रही थी.पहले प्रसून को अजीब लगता था की वो उसका
लंड पकड़ती है मगर अब उसे इंतेज़ार रहता था की कब रोमा अपने मुलायम हाथो
मे उसके लंड को हिलाए,"ऊव्व....!",रोमा कमर उचकती झाड़ रही थी.प्रसून को
बहुत अच्छा लगता जब उसकी बीवी ऐसी हरकत करती.उस वक़्त उसके चेहरे पे जो
दर्द जैसे भाव आते थे वो उसे अजीब लगते मगर इसके बाद वो उसे बहुत प्यार
करती थी.

अभी भी कुच्छ ऐसा ही हुआ था,रोमा ने उसे अपने उपर खिच लिया & उसे बेतहाशा
चूमने लगी,"..ओह्ह..मी डार्लिंग...प्रसून..आइ लव यू...!"

ये सारी आवाज़े दूसरे कमरे मे सोई देविका & इंदर के कानो मे भी पड़ रही
थी.देविका इंदर की ओर मुँह कर बाई करवट पे सोई थी जबकि इंदर बिल्कुल सीधा
लेटा था.देविका की नाइटी मे 1 स्लिट था & इस वक़्त जब उसका पूरा ध्यान
अपनी बहू की मस्तानी आहो पे था उसे ये होश ही ना रहा की उसकी स्लिट जोकि
जाँघ तक आती थी,उसमे से उसकी दाई जाँघ & गोरी टांग पूरी नुमाया हो रही
है.

कमरे मे अंधेरा था & देविका को लगा की इंदर सो गया है....कुच्छ ज़्यादा
ही शरीफ था वो तो!देविका को लगा की अब उसे ही कुच्छ करना पड़ेगा.उसने
नींद मे होने का नाटक कर अपना दाया हाथ इंदर की बाई बाँह पे रख दिया.उसे
लगा की अब वो ज़रूर कुच्छ करेगा.

"ओवव.....हां....और..अंदर..प्रसून..पूरा
घुसाओ...ऊहह.....डार्लिंगगगगगग...हाऐईयईईईईई..!",सॉफ ज़ाहिर था की प्रसून
अब अपना लंड रोमा की चूत मे घुसा रहा था.इंदर का हाल बुरा था मगर उसने
अपने बदले को याद किया & अपने जज़्बातो को संभालते हुए करवट ली.ऐसा करने
से देविका का हाथ उसकी बाँह से हट गयी.

देविका को बहुत बुरा लगा..कोई लड़की भी नही थी इसकी ज़िंदगी मे फिर ये
क्यू भाग रहा था उस से?..कही गे तो नही?देविका को हँसी आ गयी.दूसरे कमरे
मे प्रसून बीवी के उपर सवार उसकी चुदाई मे लगा ताबड़तोड़ धक्के लगा रहा
था.रोमा के मज़े की तो कोई सीमा ही नही थी!

"आहह....!",लंबी आह से देविका को पता चल गया की रोमा झाड़ चुकी है.उसने
नाइटी की स्लिट को & उपर कर उसमे अपना हाथ घुसाया & अपनी उंगली से अपनी
चूत को शांत करने लगी.थोड़ी देर की खामोशी के बाद 1 बार फिर उसकी बहू की
मस्तानी आहे उसे परेशान करने लगी थी.उसकी उंगली तेज़ी से चूत मे घूम रही
थी.वो इंदर का ख़याल कर अपनी चूत मार रही थी & इस सब से बेपरवाह इंदर
उसकी ओर पीठ किए सो रहा था.

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क्रमशः.............................
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08-16-2018, 02:21 PM,
#88
RE: Kamukta Story बदला
गतान्क से आगे...
सवेरे देविका की नींद खुली तो उसने देखा की वो बिस्तर पे अकेली है.उसने
सोचा तो उसे ख़याल आया की रात वो कब सोई उसे याद ही नही था.वो उठी तो
उसने देखा की उसकी नाइटी की स्लिट उसकी कमर तक उठी थी & उसकी दाई टांग &
जाँघ कमर तक नुमाया थी.ये सोच के इंदर ने उसे ऐसे देखा होगा शर्म & खुशी
की मिली-जुली लहर उसके दिल मे दौड़ गयी.

वो कपड़े बदल बाहर आई,अब घर वापस जाने का वक़्त हो गया था.शुरू मे इंदर &
वो 1 दूसरे से नज़रे नही मिला पा रहे थे मगर थोड़ी देर बाद दोनो सहज हो
गये थे & साथ-2 बंगल पे लौट गये.

"मॅ'म,कल हमे पंचमहल जाना है.आपको याद है ना?"

"हां,इंदर.11 बजे तक चलेंगे."

"ओके,मॅ'म.",देविका बंगल के अंदर आई & कल के कपड़े धोने के लिए नौकरानी
को देने लगी.इंदर के लिए उसने प्रसून का ही नाइटसूट मंगवा दिया था & बॅग
से निकाल नौकरानी को देते हुए उसका ध्यान सूट के पाजामे पे गया जिसके
सामने 1 बड़ा सा धब्बा बना हुआ था.देविका ने धब्बे को गौर से देखा & फिर
उसे सब समझ आ गया..तो जनाब गे नही हैं!..& रात रोमा की आहो ने उनका हाल
भी बुरा कर दिया था.उसकी तरह इंदर ने भी अपने हाथ से काम चलाया था....तो
उसने उसे क्यू नही पुकारा?..वो भी तो उसी के जैसे तड़प रही थी....क्या
अच्छी नही लगती मैं उसको?..देविका नौकरानी के जाने के बाद बाथरूम मे खड़ी
अपने नंगे जिस्म को शीशे मे निहार रही थी..ऐसा तो नही था..कल जीप मे जब
उसकी गोद मे गिरी थी उस वक़्त उसकी आँखो मे उसने अपने हुस्न की तारीफ &
उसके जिस्म की करीबी से पैदा हुई बेताबी सॉफ देखी थी....उसकी शराफ़त की
कायल हो गयी वो....उस वक़्त जब दुनिया का कोई भी मर्द बड़ी आसानी से
कमज़ोर हो जाता & उसे अपनी बाहो मे खींच लेता उस वक़्त भी इंदर ने अपनी
मर्यादा नही भूली थी.अब देविका को उसके करीब जाने का ख़याल और भी महफूज़
लगने लगा.

"ओह..इंदर..थोड़े तो बदमाश बनो!!",देविका बत्टूब मे बैठ गयी.इन ख़यालो से
उसका जिस्म फिर से दुखने लगा था.उसने बाया हाथ उसके सीने पे उसकी बाई
चूची को सहलाने लगा मानो दिल को समझा रहा हो & दाया उसकी चूत के दाने
पे.1 बार फिर देविका इंदर को सोच अपने जिस्म से खेलने लगी.

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सब्ज़ियो से लदे ट्रक मे मज़दूर के कपड़े पहने शिवा एस्टेट से बाहर जा
रहा था.रात वो चोरी से बंगल मे घुसा था,उसका इरादा था बस 1 बार अपनी
जान,अपनी महबूबा किए हसीन चेहरे का दीदार करने का मगर वो वाहा नही थी.उसे
मलाल था इस बात का मगर 1 बात की खुशी भी थी.उसका दिल उसके दिमाग़ से जीत
गया था.उसने अपने कुर्ते की जेब टटोली,वो चीज़ जो इंदर ने फेंकी थी उसने
ढूंड निकाली थी.वो नारंगी रंग की डिबिया जिसका रंग & जिसकी लिखावट बारिश
& धूप सहते-2 थोड़ा धुंधले पड़ गये थे मगर जिनके अंदर की दवा हैरत्नगेज़
रूप से अभी भी महफूज़ थी.शिवा की समझ मे इंदर की चाल आ गयी थी & अब उसका
इंदर से बदले का इरादा और भी पुख़्ता हो गया था.

"मॅ'म,बहुत देर हो गयी है.मुझे नही लगता इतनी रात गये एस्टेट वापस लौटना
सेफ होगा.रास्ता लंबा & सुनसान है.",पंचमहल मे अपने कस्टमर्स से मीटिंग
करते हुए कब रात के 11 बज गये इंदर & देविका को पता भी नही चला.जब इंदर
ने अपनी घड़ी पे नज़र डाली तब उसे होश आया.

"तुम्हारी बात तो ठीक है,इंदर."

"तो आज रात किसी होटेल मे कमरे ले लेते हैं.कल सवेरे-2 निकल
पड़ेंगे.",इंदर ने देविका के लिए वार का दरवाज़ा खोला.

"होटेल की क्या ज़रूरत है,हमारा बुंगला है यहा.वही चलो.",इंदर ड्राइविंग
सीट पे बैठ गया था & चाभी इग्निशन मे डाल रहा था.

"ठीक है.रास्ता बताइए."

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"वीरेन,मुझे शिवा की 1 तस्वीर & कुच्छ डीटेल्स चाहिए होंगे जैसे उसने
एस्टेट कब जाय्न की थी,उसके पहले कहा था वग़ैरह-2.",रेस्टोरेंट मे बैठी
कामिनी ने वाहा की स्पेशल बिरयानी का 1 नीवाला चम्चे से अपने मुँह के
हवाले किया.

"हूँ..बिरयानी लाजवाब है!",वीरेन ने जैसे उसकी बात सुनी ही नही थी.

"वीरेन!",कामिनी ने अपना चमचा नीचे रखा & वीरेन की ओर गुस्से से देखा.

"सुन लिया बाबा!",वीरेन ने जल्दी से नीवाला निगला,"..मगर इसके लिए तो
देविका से बात करनी पड़ेगी.1 काम करते हैं,इस वीकेंड एस्टेट चलते
हैं.रोमा भी बार-2 फोन करती रहती है की वाहा जाके प्रसून को कुच्छ
पैंटिंग सिखाऊँ."

"ठीक है.",कामिनी के चेहरे पे अभी भी हल्के गुस्से की झलक थी.

"क्या जान!",वीरेन ने अपना चमचा नीचे रख मेज़ पे रखे कामिनी के हाथ पे
अपना हाथ रखा,"..पहले तो इतनी बढ़िया बिरयानी खिलाने ले आती हो & उसके
ज़ायके मे जब डूब जाता हू तो काम की बात छेड़ देती हो.अब तुम्हारी बात
ठीक से नही सुनी इसके लिए मुझसे क्यू इस बिरयानी से खफा हो ना!मत खाओ
इसे!",वीरेन की बात पे कामिनी को हँसी आ गयी & रहा-सहा गुस्सा भी काफूर
हो गया.

"मैं बस इतना कह रही हू,वीरेन की प्लीज़ होशियार रहो.जब तक शिवा हमे नही
मिल जाता समझो ख़तरा बना हुआ है.",कितनी ग़लत थी कामिनी!उस बेचारी को
क्या पता था की शिवा सहाय परिवार का बुरा नही चाहता था बल्कि उस से
ज़्यादा बड़ा परिवार का शुभचिंतक तो शायद कोई था ही नही.

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क्रमशः.................
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08-16-2018, 02:22 PM,
#89
RE: Kamukta Story बदला
गतान्क से आगे...
"मन्नू,कैसे हो भाई?",देविका ने बंगल के रखवाले के सलाम का जवाब दिया.

"बढ़िया हू,मालकिन.आप अचानक कैसे आ गयी?",उसने बंगल के अंदर जाने का
दरवाज़ा खोला,"..आपलोग यहा हॉल मे बैठिए तब तक मैं आपका कमरा & गेस्ट रूम
सॉफ करवाता हू.",मन्नू ने बगल के बंगल से अपने 1 दोस्त को मदद के लिए
बुलाया & दोनो कमरो की सफाई मे लग गये.

"यहा सब ठीक है ना,मन्नू?तुम्हे किसी चीज़ की ज़रूरत तो नही?",उपरी
मंज़िल पे बने दोनो कमरो की सफाई मे लगे नौकर से देविका ने पुचछा.

"नही,मालकिन.हमे तो कोई चीज़ की ज़रूरत नही लेकिन कल अपना जेनरेटर खराब
हो गया उसे ठीक करवा दीजिएगा."

"तुमने एस्टेट मे खबर नही की?"

"नही,मालकिन.सोचा था की आज करूँगा पर भूल गया.अभी आपको देखा तो याद
आया.",कमरो की सफाई हो गयी थी,देविका & इंदर खाना तो ख़ाके आए थे तो
मन्नू ने दोनो के कमरो मे पीने का पानी & 1-1 मोमबत्ती रख दी.

"और कुच्छ तो नही चाहिए,मालकिन?"

"नही,मन्नू.तुम जाके सो जाओ."

"ठीक है,मालकिन.आप दरवाज़ा अंदर से बंद कर लीजिए.सवेरे वही 8 बजे आऊँ
ना?",मन्नू पुराना नौकर था & देविका की रोज़मर्रा की आदतो से अच्छे से
वाकिफ़ था.

"हां,मन्नू.",देविका ने बंगल का मैं दरवाज़ा बंद किया & फिर सीढ़िया चढ़
उपर आने लगी की बत्ती चली गयी.घुप अंधेरे मे देविका को कुच्छ भी नही सूझ
रहा था.

"इंदर..इंदर..",सीढ़ियो के उपर पहुँच उसने इंदर को आवाज़ दी जोकि
मोमबत्ती ढूढ़ने मे लगा था.

"आया मॅ'म.",इंदर कमरे से निकला & देविका की आवाज़ की ओर बढ़ा & अपनी ओर
आती देविका से टकरा गया.देविका गिरने लगी तो इंदर ने उसे बाहो मे संभाल
लिया.ठीक उसी वक़्त कोई जानवर उनके बगल से कूद के भागा.

"ऊओवव!",देविका डर से चीखी & इंदर से चिपक गयी.इंदर ने उस बाँहो मे भरा &
उस भागते जानवर को देखा जो देविका के कमरे की बाल्कनी के खुले दरवाज़े से
कूद के भाग रहा था-वो 1 छ्होटी सी बिल्ली थी.

"बस बिल्ली थी,भाग गयी.",इंदर की बाहे देविका की पीठ को घेरे थी.दोनो का
कद लगभग 1 सा था & देविका सर झुका के उसके सीने मे मुँह च्छुपाया हुआ
था.उसने अपनी बाहे इंदर की कमर पे कसी हुई थी.इस तरह से सटे होने के कारण
देविका अपनी चूत पे इंदर का लंड-जोकि धीरे-2 तन रहा था,उसका दबाव सॉफ
महसूस कर रही थी.स्टड फार्म की रात के बाद इंदर को पूरा यकीन हो गया था
की देविका उसके करीब आना चाहती थी.आज बिल्कुल सही मौका था उसकी हसरत पूरी
करने का,अगर आज उसने ये शुभ काम नही किया तो हो सकता है देविका ये समझे
की उसे उसमे कोई दिलचस्पी नही & पीछे हट जाए.

देविका अभी भी इंदर से चिपकी हुई थी.वो चाहती थी की इंदर पहल करे & उसे
अपने से अलग करे मगर उसे क्या पता था की शातिर इंदर भी आज उसी के जैसे
ख़याल अपने दिल मे संजो रहा था.इंदर ने अपनी बाहो का दबाव थोड़ा बढ़ा
दिया जिसे महसूस करते ही देविका की आह निकल गयी & उसने अपना सर उसके सीने
से उठा दिया.

अब दोनो की आँखे अंधेरे की आदि हो गयी थी & 1 दूसरे के चेहरे को देख पा
रही थी.दोनो इस वक़्त देविका के कमरे के ठीक बाहर खड़े थे.जैसे ही देविका
ने सर उठाया इंदर ने अपने होंठ उसके होंठो से लगा दिए.देविका ने सोचा भी
नही था की इंदर ऐसा करेगा.उसे बड़ा सुखद आश्चर्या हुआ.

इंदर उसके गुलाबी होंठो को चूमे जा रहा था.देविका की खुशी का तो ठिकाना
ही नही था.उसकी बाहे भी इंदर की कमर पे और कस गयी.थोड़ी देर बाद इंदर ने
अपनी ज़ुबान को देविका के होंठो के पार उसके मुँह मे घुसाने की कोशिश
की.देविका के बदन मे आग लगी थी & इंदर की इस मस्तानी हरकत ने उस आग को और
भड़का दिया.दिल मे अरमानो का ऐसा सैलाब उमड़ा पड़ा था जोकि देविका से
संभाला नही गया & उसने बेचैन हो अपने होंठ इंदर के होंठो से अलग कर दिए &
अपना चेहरा दाई तरफ घुमा लिया.इंदर के तपते होंठ उसके बाए गाल से आ
लगे.चूमते-2 इंदर उसके दाए गॉल पे पहुँचा & मजबूरन देविका को अब अपना
चेहरा बाई ओर घुमाना पड़ा.

इंदर की किस्सस उसे बहुत प्यारी लग रही थी.लग रहा था जैसे हल्की बारिश की
फुहारे उसके प्यासे बदन को भिगो उसे सुकून पहुँचा रही थी.1 बार फिर इंदर
के होंठ देविका के खूबसूरत चेहरे पे घूमने के बाद उसके होंठो से आ
लगे.देविका समझ गयी की थी की इंदर के अंदर भी उसी के जैसे आग भड़क रही
है.ये ख़याल आते ही उसके चूमने की शिद्दत बढ़ गयी & इस बार जब इंदर ने
उसकी ज़ुबान को अपनी ज़ुबान से तलाशा तो देविका ने बड़ी गर्मजोशी से दोनो
का मिलन करवाया.

चूमते हुए इंदर के हाथ उसकी पीठ से उसकी नंगी कमर पे आ गये थे & देविका
के हाथ उसकी गर्दन के गिर्द.दोनो पागलो की तरह 1 दूसरे को चूमे जा रहे
थे.अपनी बाहो मे भर इंदर देविका को उसके कमरे के अंदर ले आया.बड़ी देर तक
दोनो 1 दूसरे को चूमते रहे.थोड़ी-2 देर पे सांस लेने के लिए दोनो के लब
अलग होते मगर फिर ऐसे जुड़ जाते जैसे की जुड़ा रहे तो ज़िंदा नही
रहेंगे.जी भर के चूमने के बाद इंदर के होंठ नीचे बढ़े & देविका की गोरी
गर्दन पे घूमने लगे.देविका मस्ती मे खो गयी थी.उसके चूत से पानी रिसना
शुरू हो गया था & वो इंदर के बालो मे बेचैनी से उंगलिया फिरा रही थी.
Reply
08-16-2018, 02:22 PM,
#90
RE: Kamukta Story बदला
दोनो की जद्दोजहद मे देविका की सारी का पल्लू उसके कंधे से नीचे गिर गया
था & अब इंदर उसके नुमाया हो चुके क्लीवेज पे लगा हुआ था.देविका की
चूचियो से मदहोश करने वाली खुश्बू आ रही थी & इंदर उसमे डूबा चला जा रहा
था.शिवा के जाने के बाद ये पहली बार था जब देविका का बदन किसी मर्द की
बाहो मे था & वो इस पल का भरपूर मज़ा उठा रही थी.इंदर उसके सीने से भी
नीचे जा रहा था.देविका अब अपने पीछे की दीवार से सॅट के खड़ी थी & इंदर
अपने घुटनो पे बैठा उसकी कमर को सहलाता उसके गोरे पेट को चूम रहा
था.देविका की सांस मानो अटकने लगी.इंदर की गर्म साँसे & तपते लब उसके पेट
को च्छू उसके दिल मे हुलचूल मचा रहे थे.इंदर का सर पकड़ उसने बेचैनी मे
उसे अपने पेट से लगा करना चाहा मगर इंदर ने उसकी अनसुनी करते हुए उसकी
नाभि मे अपनी जीभ घुसा दी & जल्दी-2 चलाने लगा.

देविका पागल हो गयी.उसका सर दीवार से सटे हुए उपर उठ गया.उसका बाया हाथ
उसके सर के उपर दीवार से लगा था & दाए से वो इंदर के बालो को पकड़े
थी.इंदर उसकी नाभि चाते जा रहा था.इंदर का मक़सद चाहे जो भी हो इस वक़्त
देविका के पूर्कशिष जिस्म का नशा उसके सर चढ़ के बोल रहा था & वो भी उस
हुसनपरी के साथ मस्ती के सागर की उन गहराइयो तक जाना चाहता था जहा वो
किसी & के साथ कभी जा नही पाया था.

इंदर की ज़ुबान देविका की गहरी नाभि से निकली & नाभि के नीचे & बँधी असरी
के उपर की कोमल जगह पे घूमने लगी.देविका इतनी मस्ती सहन नही कर पाई & फिर
बेचैन हो घूम गयी & दीवार को पकड़ अपना चेहरा च्छूपा लिया.इस से इंदर कहा
रुकने वाला था!उसने देविका की कमर की बगलो को पकड़ा & उन्हे हौले-2 दबाते
हुए उसकी कमर & निचली पीठ को चूमने लगा.देविका ने काले रंग का स्लीव्ले
ब्लाउस पहना था जोकि पीछे से काफ़ी खुला था.दिन भर तो वो सारी के आँचल को
अपने कंधो पे लपेटे रही थी तो इंदर को उसकी गुदाज़ बाँहो का दीदार नही
हुआ था मगर इस वक़्त पीछे से ऐसा लग रहा था की कमर के उपर देविका जैसे
नंगी ही हो.इंदर के गर्म हाथ उसकी कमर की बगलो पे उपर उसके ब्लाउस तक
जाते & फिर नीचे सारी तक आते.उसके होंठ उसकी कमर को दीवानो की तरह चूम
रहे थे.

देविका का बुरा हाल था.वो दीवार को पकड़े आहे भर रही थी & उसकी चूत मे
कसक उठ रही थी.वो बेचैनी मे अपनी जंघे आपस मे रगड़ रही थी.इंदर समझ गया
था की वो बहुत मस्त हो चुकी है & आज रात ये हसीन औरत उसे बहुत मज़ा देने
वाली है.वो चूमते हुए खड़ा हुआ & अब उसके होंठ ब्लाउस मे से दिख रही
देविका की उपरी पीठ पे थे.उसने अपने हाथ देविका के दीवार से लगे हाथो पे
रख दिए & अपनी उंगलियो को उसके उंगलियो मे पीछे से फँसा दिया.देविका के
जिस्म ने उसे पागल कर दिया था.चूमते हुए वो उसकी गर्दन पे आया & 1 बार
फिर उसके होंठ देविका के हसीन चेहरे से लग गये.

देविका ने अपना चेहरा दाई तरफ घुमाया तो 1 बार फिर इंदर ने अपने होंठ
उसके लरज़ते होंठो से लगा दिए.उसने देविका के दीवार पे लगे हाथो को वैसे
ही पकड़ा हुआ था.चूमते हुए उसके हाथ देविका के हाथो को छ्चोड़ उसकी कलाई
पे आए & फिर उसकी गोरी बहो पे.ऐसी गोरी & गुदाज़ बाहें इंदर ने अपनी
ज़िंदगी मे नही देखी थी.वो बस अपने उंगलियो के पोरो से उसको कोहनी से
लेके कंधे तक उन मस्त बाहो को सहलाए जा रहा था.अपने बदन की तारीफ देविका
को इंदर की हर हरकत मे दिख रही थी.उसे अपने हुस्न पे थोड़ा गुमान भी हुआ
& बहुत सारी खुशी भी & वो और शिद्दत के साथ अपने नये प्रेमी को चूमने
लगी.

थोड़ी देर तक इंदर के हाथ वैसे ही उसकी बाहो पे घूमते रहे फिर इंदर ने
अपने हाथ उसकी बाहो से उसके कंधे पे लाए & फिर उसकी पीठ की बगल से होते
हुए दोबारा उसकी कमर की बगल मे जा लगे.दोनो अभी भी वैसे ही 1 दूसरे को
चूम रहे थे.इंदर के हाथ उसकी कमर को सहलाते हुए आगे उसके पेट पे गये &
उसकी कमर मे अटकी सारी को खींच दिया.देविका के मुँह से आह निकली मगर इंदर
ने उसे चूमना नही छ्चोड़ा....अब वो नंगी हो रही थी..इंदर के सामने ..पहली
बार...देविका को इस ख़याल से शर्म आ गयी & उसके गालो मे मस्ती की लाली के
साथ शर्म का रंग भी घुल गया.इंदर के हाथो ने तेज़ी से सारी को निकाला &
फिर उसके पेटिकोट के बगल मे लगे हुक को भी खोल दिया.पेटिकोट अपनेआप ज़मीन
पे गिर गया मानो वो भी दोनो बेकरार जिस्मो के मिलन मे आड़े ना आना चाहता
हो.
क्रमशः..........
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