Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
11-05-2018, 02:26 PM,
#11
RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
उनके जाने के बाद मुझे गहरे नींद लग गयी. नींद खुली तो फ़्रेश लग रहा था. मैंने पजामा कुर्ता पहना और बाहर आ गया. पहली बार मैं अपने कमरे से बाहर निकला था. बाहर कोई नहीं था. मैंने सोचा कहां गये ये सब! एक कमरा खुला था, उसमें गया तो मीनल का कमरा था. बिस्तर पर मीनल की एक साल की बच्ची हाथ में बोतल धरे आराम से दूध पी रही थी. पास ही मीनल के उतारे कपड़े याने साड़ी ब्लाउज़ ब्रा वगैरह पड़े थे. मैंने ब्रा उठा कर देखी, मेरा बड़ा इन्टरेस्ट रहता है ब्रा में, स्त्रियों का सबसे प्यारा अंगवस्त्र यही है. वहा सुबह वाली लाल लेस की ब्रा थी. मैंने इधर उधर देखा कि कोई है तो नहीं और फ़िर उठा कर सूंघ ली, सेंट और मीनल के बदन की खुशबू थी उसमें. लंड खड़ा होने लगा.

ध्यान बटाने को मैं सोनू को खिलाने लगा. बड़ी प्यारी बच्ची थी "हेलो सोनू ... अकेली खेल रही है .... मां कहां है ... अपनी नन्ही मुन्नी को छोड़कर मां कहां गयी ..." सोनू ने बस मुंह से ’गं’ ’गड़’ ऐसे आवाज निकाले और फ़िर दूध पीने में जुट गयी. मैंने सोचा कितनी अच्छी बच्ची है, रो रो के मां को तंग नहीं करती.

मैं कमरे के बाहर आया. सब दरवाजे बंद थे. एक दरवाजा खोला, अंदर मोटर साइकिल के पोस्टर दिखे तो सोचा ललित का कमरा है शायद. अंदर गया तो अंदर मस्त नजारा था. ललित को नीचे बिस्तर पर चित लिटा कर हमारी प्राणप्रिया लीना उसपर चढ़ी हुई थी. गाउन कमर के आस पास खोंस लिया था और आराम से मजे ले लेकर अपने छोटे भाई को चोद रही थी. उसका यह खास अंदाज है, जब बहुत देर मस्ती करना होती है तो ऐसे ही हौले हौले चोदती है मेरी रानी! और मीनल वहीं उनके बाजू में बैठी हुई थी. मीनल और लीना दोनों ने पुराना गाउन पहन रखा था, चेहरे पर ककड़ी का लेप लगा था, शायद बाहर जाने के लिये मेकप की तैयारी चल रही थी.

ललित बेचारा थोड़ा परेशान था, सच में काफ़ी नाजुक सा लगता है. मजा ले रहा था पर थोड़ा भुनभुना रहा था "दीदी ... प्लीज़ बस करो ना ... ये चौथी बार है सुबह से ... मैं सच में थक गया ... कितना तंगाती हो" वैसे ये भुनभुनाना नाम के वास्ते था, बंदा मजे ले रहा था. जीन की खुली ज़िप में से उसका खड़ा लंड निकला हुआ था, लीना जब ऊपर होती तो साफ़ दिखता था.

मुझे देखकर बेचारा चौंक गया, लीना की ओर देखने लगा कि दीदी, अब बस करो. पर लीना ने कोई परवाह नहीं की, चोदती रही. ललित ने कहा "दीदी ... अब ..." लीना ने मुड़ कर मीनल से कहा "भाभी इसका मुंह तो बंद करो, कुछ दे दो इसके मुंह में, फालतू खिट पिट कर रहा है. और ललित मैंने पहले ही कहा था तेरे से कि इतने दिन बाद दीदी की गिरफ़्त में आया है तो ऐसे ही छोड़ दूं तेरे को? और इतना शरमा क्यों रहा है? मां तो कह रही थी कि बार बार पूछता था कि दीदी और जीजाजी कब आ रहे हैं?"

मीनल ने गाउन के बटन खोले और झुक कर अपनी चूंची ललित के मुंह में ठूंस दी. उसने एक दो बार ’गों’ ’गों’ किया पर फिर चुपचाप स्तनपान करने लगा. मीनल के उन भरे गुदाज स्तनों को देखकर दिल बाघ बाघ हो गया, ललित से मुझे जलन भी होने लगी.

"क्यों जीजाजी, आराम हो गया? हम तो राह ही देख रहे थे आपके उठने की. राधाबाई आज आपको नाश्ता कराके आयीं तो इतनी थकी लेग रही थीं पर एकदम खुश थीं. हमें डांट कर कह गयीं कि जमाईराजा को आराम करने देना, उठाना नहीं. लगता है आप ने बहुत इंप्रेस कर दिया है उनको" ललित को दूध पिलाते हुए मीनल बोली.

"अब भाभी, इनसे बातें करने में क्यों वक्त जाया कर रही है? सूखी सूखी बैठी है, मुझे कह रही थी कि सुबह मन नहीं भरा अनिल के साथ, जल्दी करनी पड़ी. तो अब चढ़ जा उसे यहां लिटा कर. ये भूल जा कि ये जमाई वमाई हैं, चुदासी लगी है और लंड सामने है तो मजा कर ले. और भाभी, ललित को सारा ना पिला देना. मेरा सैंया कहेगा कि मैंने क्या पाप किया है कि मुझे यह अमरित नहीं दे रहा कोई" लीना मेरी ओर देखकर शोखी से मुस्कराते हुए बोली.

मीनल को बात जच गयी. उसने मुझे बैठने को कहा. मैं वहीं पलंग के किनारे पर बैठ गया. दो मिनिट ललित को स्तनपान करवाकर मीनल उठी और ललित को सरकने को कहा. ललित बेचारा किसी तरह लीना को अपने ऊपर लिये लिये ही सरक गया. मीनल ने मुझे वहीं उसके बाजू में लिटा दिया "मैंने कहा था ना अनिल कि तुम लोगों का खास कर तुम्हारा घंटे घंटे का टाइम टेबल हमने बना कर रखा है. अब आगे आधे घंटे का प्रोग्राम यही है"

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मीनल ने मेरे पजामे के बटन खोलकर मेरा लंड बाहर निकाला. पहले ही खड़ा था, उसके मुलायम हाथ लगते ही और टनटना गया. उसने गाउन ऊपर किया और चढ़ बैठी. लंड को चूत में खोंसते हुए बोली. "बहुत अच्छा हुआ जीजाजी कि आप उठ गये नहीं तो सब टाइम टेबल गड़बड़ा जाता. वैसे भी आधा घंटा ये ककड़ी का लेप लगा कर रखना है धोने के पहले, इस लीनाने तो इंतजाम कर लिया था आधा घंटा बिताने का, अब आप आये हो, तो मेरा भी हो गया."

उधर बेचारा ललित ’ओह’ ’ओह’ करने लगा. बेचारे का लंड शायद गर्दन झुकाने वाला था. लीना ने उसके कान मरोड़े और कहा "खबरदार ... अभी नहीं ... मार खायेगा ... अभी मेरा नहीं हुआ"

ललित सिसकने लगा "दीदी ... प्लीज़ ... प्लीज़"

मीनल ने मुझे चोदते चोदते अपना पैर आगे करके ललित को गाल को लाड़ से अपने अंगूठे से सहलाते हुए कहा "ऐसे दीदी को मझदार में नहीं छोड़ते ललित राजा. जरा मन लगा कर सेवा कर ना. जब वो नहीं थी तो उसके नाम की माला जपता था, अब वो आ गयी है तो जरा मन की कर उसके. ऐसा क्यों सिसक रहा है? दर्द हो रहा है? मजा नहीं आ रहा?"

"नहीं भाभी ... बहुत ... मजा ... आ रहा ... है .... रहा नहीं ... जाता ... दीदी बहुत ... तड़पाती है ... दीदी प्लीज़ झड़ा दो ना"

लीना बड़े वहशी मूड में थी. उसने अपना पैर उठाकर अपने पैर की उंगलियां ललित के होंठों पर रख दीं और अंगूठा और एक दो उंगलियां उसके मुंह में ठूंस दीं. बेचारा ललित ’गं’ ’गं’ करके चुप हो गया. अब वो ऐसी मस्ती में था कि और कुछ नहीं सूझा तो लीना के पैर की उंगलियां ही चूसने लगा.

लीना ने मेरी ओर देखा और मीनल से बोली "अब जरा पिला दे ने मेरे सैंया को. बचा है ना? कि सब ललित को पिला दिया? वैसे भी आज कम पड़ने ही वाला था, मैंने जो दो बार पी लिया सुबह से"

"नहीं लीना दीदी ..." मीनल इठलाते हुए बोली. "एक खाली हो गया पर दूसरा अभी भरा है. जीजाजी, आप ही देखिये" मीनल ने मेरे सिर के नीचे दो बड़े तकिये रखे कि मेरा सिर ऊपर हो जाये. फ़िर चोदते चोदते मेरे ऊपर झुक गयी. उसका स्तन अब मेरी चेहरे के सामने लहरा रहा था. मैंने गर्दन लंबी करके निपल मुंह में ले लिया और चूसने लगा. कुनकुने दूध से मुंह भर गया. मैं चुपचाप आंख बंद करके उस अमरित का पान करने लगा. जल्द ही पता चल गया कि सब मीनल के पीछे क्यों रहते थे. अजब स्वाद था इस दूध का, और स्वाद से ज्यादा किसी जवान औरत का दूध सेक्स करते करते पीने में जो मादकता का अनुभव होता था, उसका बयान करना मुश्किल है.

आधा घंटा ये मस्ती चली. दोनों चुदैलें एकदम एक्सपर्ट थीं. हमें बिना झड़ाये खुद झड़ कर अपनी अगन शांत कर ली. जब आधा घंटा हो गया तो मेकप धोने के पहले हमें चोदने दिया. मैं और ललैत पहले ही ऐसे कगार पर कि दो मिनिट भी नहीं लगे.

लीना उठकर नहाने को बाथ रूम जाते हुए बोली "अनिल, अब तैयार हो जाओ तुम भी. बड़े घर जाना है, वहां पूजा है. रात को भी वहीं रहना होगा, सीधे सुबह वापस आयेंगे. वहां जरा ठीक से अच्छे बच्चे जैसे रहना, शैतानी मत करना, तुम्हें तकलीफ़ ना हो इसलिये आज तुम्हारे लंड महाराज को पूरा तृप्त कर दिया है सबने मिलके. अब उसे जरा सुलाये रखना, नहीं तो आओगे रात को फ़िर से लप लप करते"

मैंने जरा नाराज होकर कहा "अब इतना गया गुजरा भी नहीं हूं. मान लिया कि तुम्हारा और अब ममी और मीनल भाभी का भी दीवाना हूं पर इतना कंट्रोल कर सकता हूं. पर ये जरूरी है क्या वहां जाना? कल रात को वापस भी जाना है ट्रेन से, मुझे जॉइन करना है"

लीना ने मुझे पहले ही बता रखा था. बड़ा घर याने जहां लीना के दादा दादी और बाकी सब सदस्य रहते थे. शहर के बाहर गांव में बड़ा मकान था, करीब बीस मील दूर होगा. वहां जरा कड़क डिसिप्लिन का माहौल रहता था. कोई ताज्जुब नहीं कि लीना और उसका परिवार अलग रहते थे, उनके जैसे परिवार को सबसे साथ रहना भी मुमकिन नहीं था. पर खास मौकों पर रिश्तेदारी निभाना जरूरी थी.

लीना ने मेरे कान खींचते हुए कहा "आवाज चढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है, तुम कंट्रोल ना करके देखो, तुम्हारी कैसी हालत करती हूं देखना"
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11-05-2018, 02:26 PM,
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RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
मैंने शरणागति मान ली. हाथ जोड़कर अपनी रानी से कहा "जैसा तुम कहो डार्लिंग, और कोई आज्ञा हो तो बताओ"

"वो कल बताऊंगी आने के बाद. चलो अब मुंह लटका के न बैठो" मुझे चूम के प्यार से बोली "ये रिश्ते तो निभाने ही पड़ते हैं. आज बड़े घर जाना ही है, कल पूरा दिन है फ़िर से, तब खातिरदारी करवा लेना. अब एक घंटे में तैयार हो जाओ सब फटाफट, मां तो एक घंटे पहले ही गयी भी, बोल कर गयी थी कि सब जल्दी आना"

मैं और ललित पांच मिनिट पड़े रहे, स्खलन का आनंद लेते हुए. फ़िर उठे और तैयार होने लगे.

बड़े घर में ये हड़कंप मचा था. बहुत से रिश्तेदार आये थे. मैंने कितने बड़े बूढ़ों और बूढ़ियों के पैर छुए, उसकी गिनती ही नहीं है, सब नया जमाई करके इधर उधर मुझे मिलवाने ले जा रहे थे. लीना, मीनल और ताईजी तो मुझे बहुत कम दिखीं, हां ललित दिखा जो लीना को ढूंढ रहा था, बेचारा अपनी दीदी का मारा था. हां, बाद में जब औरतों का गाना बजाना खतम हुआ तो वे तीनों दिखीं. सब इतनी सुंदर लग रही थीं. याने वे सुंदर तो थीं ही, मैंने सबकी सुंदरता इतने पास से देखी थी पर उस दिन सिल्क की साड़ियां, गहने, मेकप इन सब के कारण वे एकदम रानियां लग रही थीं. लीना तो लग ही रही थी राजकुमारी जैसी, मीनल भी कोई कम नहीं थी और सासूमां, उफ़्फ़ उनका क्या कहना, गहरी नीले रंग की कांजीवरम साड़ी में उनका रूप खिल आया था. लीना ने शायद जिद करके उनको हल्की लिपस्टिक भी लगा दी थी, उनके होंठ गुलाब की कलियों जैसे मोहक लग रहे थे और जब मैंने उनके सुबह के चुंबनों के स्वाद के बारे में सोचा तो कुरता पहने होने के बावजूद मेरा हल्का सा तंबू दिखने लगा, बड़ी मुश्किल से मैंने लंड को शांत किया नहीं तो भरी सभा में बेइज्जती हो जाती. एक बात थी, मैं कितना भाग्यवान हूं कि ऐसी सुंदर तीन तीन औरतों का प्यार मुझे मिल रहा है, ये बात मेरे मन में उतर गयी थी. पर उस समय कोई मुझे कहता कि फटाफट चुदाई याने क्विकी के लिये तीनों में से एक चुनो, तो मुश्किल होती. शायद मैं मांजी को चुन लेता!! क्या पता!!

रात को पूजा देर तक चली. फ़िर खाना हुआ. दो बज गये थे और सब वही सोय गये, वैसे सब की व्यवस्था अच्छी की गयी थी, इतना ही था कि मर्द और औरतें अलग अलग कमरों में थे. अब इतने लोगों में सबको जोड़े बनाकर कमरे देना भी मुश्किल था. सुबह उठकर बस चाय पीकर सब निकलनी लगे. हम भी निकले और नौ बजे तक घर आ गये. आते ही थोड़ा आराम किया, अब भी थकान थी. एक दो घंटे आराम के बाद नहाना धोना वगैरह हुआ. अब राधाबाई भी नहीं थी इसलिये हमने बाहर से ही खाना मंगवा लिया. दोपहर के खाने के बाद मीनल से सोनू को बोतल से दूध पिलाया. सोनू जल्द ही सो गयी. मीनल लीना की ओर देखकर मुस्करा कर बोली "अब सोयेगी चार पांच घंटे आराम से, कल भीड़ भाड़ की वजह से चिड़चिड़ा रही थी, सोयी भी नहीं ठीक से"

मैं सोच रहा था कि कल से मीनल के स्तन खाली नहीं हुए, भर गये होंगे. उसके ब्लाउज़ में से वे अब अच्छे खासे उभरे उभरे से लग रहे थे. मीनल ने मेरी नजर कहां लगी है वो देखा और मुझे आंख मार दी. फ़िर पलक जल्दी जल्दी झपका कर प्यार से सांत्वना दी कि फ़िकर मत करो, सब मिलेगा. अपना आंचल ठीक करके मीनल लीना से बोली "लीना दीदी ... आज रात को तुम दोनों जाने वाले हो? बहुत कम समय के लिये आये हो तुम लोग, देखो ना, कल का आधा दिन और पूरी रात और आज का आधा दिन ऐसे ही बेकार गया"

लीना बोली "भाभी, पूरी दोपहर और शाम है, ट्रेन तो रात की है ना, मुहब्बत करने वाले तो पांच मिनिट में भी जन्नत की सैर कर आते हैं. वैसे तुम ठीक कहती हो. ललित ... जा बाहर से ताला लगा दे और पीछे के दरवाजे से अंदर आ जा. और सब पर्दे खिड़कियां बंद कर दे. कोई आये भी तो वापस चला जायेगा सोच के कि हम वापस नहीं आये अब तक. शाम को ताला खोलेंगे."

मांजी जो अब तक चुपचाप बैठी थीं, बोलीं "तब से कह रही हूं, अब ज्यादा टाइम नहीं बचा है, कोई सुनता ही नहीं मेरी. अब देर मत करो और. लीना, तू जल्दी दामादजी को लेकर आ जा मेरे कमरे में"

मीनल हंसने लगी "मां जी को सबसे ज्यादा जल्दी हो रही है अपने दामाद के और लाड़ प्यार करने की"

सासूमां शरमा गयीं. बोलीं "चल बदमाश कहीं की. अरे अनिल का तो खयाल करो, बेचारे की पूरी रात वेस्ट कर दी हमने, चलो जल्दी करो"

मीनल बड़े नाटकीय अंदाज में बोली "और मैं और ललित क्या करें ममी? चल ललित, अपन पिक्चर चलते हैं, वो जय संतोषी मां लगी है"

ताईजी चिढ़ कर बोलीं "अब तो बहू तू मार ही खायेगी, कोई कहीं नहीं जायेगा, सब लोग जल्दी मेरे कमरे में आओ, और कैसे तैयार होकर आना है ये बताने की जरूरत नहीं है. मेरा कमरा बड़ा है, इसलिये वहां सब को आराम से ... याने ... मैं जा रही हूं, तुम लोग भी आ जाओ" फ़िर वे उठकर अपने कमरे में चली गयीं.

लीना बोली "अब सब समझे या नहीं? मां ने तैयार होकर आने को कहा है. याने और अच्छे कपड़े पहनकर बनाव सिंगार करके नहीं, कपड़े निकाल कर जाना है, एकदम तैयार होकर हमारी कामदेव की पूजा जल्द से जल्द शुरू करने के लिये. चल ललित, जा और ताला लगाकर जल्दी आ, मैं अनिल को लाती हूं"

मुझे वह अपने कमरे में ले गयी. हमने फटाफट कपड़े निकाले. लीना जब साड़ी फ़ोल्ड करके रख रही थी तब उसके गोल मटोल गोरे नितंब देखकर मैंने झुक कर उनको चूम लिया. फ़िर उनको दबाता हुआ पीछे से चिपक गया. अपना लंड उन तरबूजों के बीच की लकीर में सटा कर लीना की ज़ुल्फ़ों में मुंह छुपा कर बोला "अब डार्लिंग, इन मेरे प्यारों को मैं इतना मिस कर रहा हूं, जरा एक राउंड हो जाये फटाफट? पीछे से?"

"बिलकुल नहीं ये फटाफट होने वाली चीज नहीं है. मुझे मालूम है, मेरी गांड के पीछे पड़े कि रात भर की छुट्टी."

लीना के नितंबों को दबाता हुआ मैं बोला "बड़ी आई रात भर वाली. महने में एक बार कभी इनका आसरा मेरे लंड को मिलता है, अब आज मरा भी लो रानी प्लीज़"

"बिलकुल नहीं, अब चलो, मीनल और ललित तो आ भी गये होंगे ममी के कमरे में"

"रानी, चलो तुम ना मराओ, तुमको मैं क्या कहूं, तुम्हारा तो गुलाम हूं पर वो ... याने नाराज मत हो पर ताईजी की क्या मस्त गांड है, डनलोपिलो जैसी, अब तक ठीक से हाथ भी नहीं लगा पाया. हाथ खोले ही नहीं किसी ने कल दिन भर मेरे. और मीनल की ठीक से देखी नहीं पर मस्त कसी हुई लगती है. अगर आज अब मैं जरा ...."

लीना मेरी बात काट कर गुस्से से बोली "खबरदार. मां की गांड को बुरी नजर से मत देखना. अनर्थ हो जायेगा. डेढ़ दिन को आये हो, जरा अपनी साख मनाये रहो. मां को सच में आदत नहीं है, मीनल की मैं नहीं जानती पर आज अब टाइम भी नहीं है"

मेरे सूरत देख कर फिर वो तरस खा गयी. मेरे गाल को सहला कर बोली "आज मां और मीनल को अपने तरीके से तुम्हारी खातिरदारी करने दो, बाद में मौके बहुत मिलेंगे. अगली दीवाली भी है ना! अब चलो. ऐसे मुंह मत लटकाओ" वो जानती थी कि उसकी गांड मारने का मुझे कितना शौक था जो बस महने में एकाध बार ही मैं पूरा कर पाता था.

हम ममी के कमरे में आये. वहां बड़ा सुहाना दृश्य था. तीन नग्न बदन आपस में लिपटे हुए थे. ललित को बीच में लेकर उसकी मां और भाभी उसके लाड़ कर रहे थे. ताईजी अपने बेटे को बड़े प्यार से चूम रही थीं. उसका गोरा चिकना लंड उनकी मुठ्ठी में था. मीनल बस उसे बाहों में भरके उसका सिर अपनी ब्रा में कसे स्तनों पर टिकाये थी. वह बीच बीच में ताईजी के चुम्मे ले लेती. ललित का लाड़ प्यार जिस तरीके से हो रहा था, उसमें कोई अचरज की बात नहीं थी. वह घर का सबसे छोटा सदस्य था और जाहिर है कि सबका और खास कर अपनी मां का लाड़ला था. इस बार उसे ठीक से देखा तो मैंने गौर किया कि सच में बड़ा चिकना लौंडा था, एकदम खूबसूरत. अभी तो मां के प्यार का आनंद ले रहा था और मीनल की ब्रा खोलने की कोशिश कर रहा था.

"अरे ये क्या कर रहा है बार बार" मीनल झुंझलाई.

"पिला दो ना भाभी, कल से तरस गया हूं"

"अरे मेरे राजा, तू समझता क्यों नहीं है, रोज पीता है ना, अब एक दिन नहीं पिया तो क्या हुआ, आज ये दावत सिर्फ़ अनिल के लिये है, ठीक से पिला नहीं पायी कल से, बस थोड़ा जल्दी जल्दी में चखाया था. अब आज जरा तेरे जीजाजी को मन भरके इसका भोग लगाने दे"

ललित शर्मा गया, जैसे गलती करते पकड़ा गया हो. "सॉरी भाभी, भूल गया था." फ़िर कनखियों से मेरी ओर देखा जैसे माफ़ी मांग रहा हो.

मैंने कहा "मीनल, मेरी मानो तो सबको थोड़ा थोड़ा दे दो, मेरे हिस्से का रात को निकलने के पहले पिला देना, पर तब मैं सब पियूंगा"

लीना बोली "चल, खुश हो गया अब तो? चलो भाभी, अब जल्दी करो"

"अभे नहीं लीना, जरा भरने दे ना और. फ़िर सबको दो दो घूंट तो मिलेंगे, पहले ब्रेक के बाद मुंह मीठा कराती हूं सब का. चल ललित सो जा ठीक से" ललित को नीचे चित लिटाकर मीनल उसपर चढ़ने की तैयारी करने लगी. ताईजी भी संभल कर अपने बेटे का सिर अपनी जांघ पर लेकर बैठ गयीं.

"ये क्या हो रहा है?" लीना ने उनको फटकार लगायी. "ललित को भेजो इधर और तुम दोनों सास बहू अनिल पर ध्यान दो"

ताईजी बोलीं "अरे क्या कर रही है लीना, ललित को कब से पकड़कर बैठी है. और अनिल को भी कल से तेरे साथ ... याने मौका ही नहीं मिला. हमने सोचा कि अब तुम दोनों जरा प्यार से ..."

"वहां बंबई में ये मेरा पति मुझे जोंक जैसा चिपका रहता है चौबीस घंटे, छोड़ता ही नहीं, अब दो दिन मेरे बदन को नहीं मसलेगा तो मर नहीं जायेगा. तुम दोनों खबर लो उसकी. मुझे भी जायका बदलना है. चल ललित ..." कहकर उसने ललित को हाथ पकड़कर जल्दी उठाया और पलंग के बाजू में रखी कुरसी पर बैठ गयी. ललित को सामने बैठा कर टांगें फैलाकर बोली "चल ललित, मुंह लगा दे जल्दी, तू आज भुनभुना रहा था ना कि दीदी ने मुंह भी नहीं लगाने दिया, अब पूरा रस चूस ले अपनी दीदी का. और जरा ठीक से प्यार से स्वाद ले, दीदी को भी मजे दे देकर, तेरे इस मुसटंडे ..." ललित के खड़े लंड को पैर से रगड़कर लीना बोली " ... को बहुत मजे दिये हैं मैंने कल से, अब इस कह कि जरा सब्र करे. चल शुरू हो जा फटाफट"

ललित लीना की टांगों के बाच बैठता हुआ बोला "दीदी ... प्लीज़ चोदने भी दो ना ..."

"कल तो चोदा था अनिल के सामने, बड़े घर जाने के पहले" लीना उसे आंखें दिखाकर बोली.

"वो तो दीदी तुमने मुझे चोदा था. मैंने तुमपर चढ़ कर कहां चोदा है पिछले दो दिनों में?" ललित ने कहा तो लीना चिढ़ गयी

"तुझे नहीं चूसनी मेरी चूत तो सीधा बोल दे कि दीदी, अब मुझको तुम्हारा रस नहीं भाता. यहां बहुत हैं उसके कदरदान. मां या मीनल भाभी तो बेचारी कब से राह देख रही हैं, वो तो मैं ही प्यार से लाड़ से तेरे लिये अपनी बुर संजोये बैठी हूं कि मेरा लाड़ला छोटा भैया है, उसको मन भर के पिलाऊंगी. और अनिल को कहूं तो अभी सब छोड़ छाड़ कर आ जायेगा मुंह लगाने. तू फूट ... चल भाग ..."

ललित ने घुटने टेक दिये. याने सच में घुटने टेक कर लीना की माफ़ी मांगते हुए उसके पांव चूमने लगा. वैसे उसमें कोई बड़ा तकलीफ़ वाली बात नहीं थी, लीना के पैर हैं बहुत खूबसूरत "दीदी ... सॉरी ... माफ़ कर दो ... मेरा वो मतलब नहीं था ... तुम्हारे रस के लिये तो मैं कुछ भी कर लूं .... बस दीदी .... तुमको देखते ही ये बदमाश ..." अपने लंड को पकड़कर वह बोला "बहुत तंगाता है दीदी"

"उसको कह कि सबर करेगा तो बहुत मीठा फल मिलेगा. अब चल फटाफट" लीना आराम से कुरसी में टिकते हुए बोली. अपनी टांगें उसने ललित के स्वागत में फैला दीं. ललित ने बैठ कर मुंह लगा दिया और मन लगाकर चूसने लगा. जिस प्यास से वो अपनी बड़ी बहन की चूत चूस रहा था उससे मैं समझ गया कि बुरी तरह मरता है लीना पर. दो मिनिट बाद उसने लीना की जांघें बाहों में भर लीं और चेहरा पूरा लीना की बुर में छिपा दिया. लीना सिहरकर बोली "हं ... आह ... अब कैसा अच्छे भाई जैसा दीदी की सेवा कर रहा है ... हं .... हं ... हं ..."

मुझे भाई बहन का यह प्यार बड़ा ही मादक लगा. मैं यह भी सोच रहा था कि आखिर लीना कल से सिर्फ़ अपने छोटे भाई के पीछे क्यों पड़ी है. मुझे लगा था कि दो ही दिन को आये हैं तो मां और भाभी से भी ठीक से इश्क विश्क करने का मन होता होगा. पर मैं कुछ बोला नहीं, मैं जरा घबराता हूं उससे, पूरा जोरू का गुलाम जो ठहरा. सोचा करने दो मन की.
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11-05-2018, 02:26 PM,
#13
RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
इसलिये मैं जाकर पलंग पर बैठ गया, अपनी सास और सल्हज के प्रति अपना भक्तिभाव जताने! पहले मांजी के गाल को चूमा, फ़िर कमर में हाथ डालकर मीनल को पास खींचा. पांच मिनिट बस दोनों को बारी बारी से चुंबन लिये, अब क्या बताऊं क्या मिठास थी उन चुंबनों में, जैसे एक ही प्लेट में दो मिठाइयां लेकर बारी बारी से खा रहा होऊं. जब ताईजी का एक चुंबन जरा लंबा हो गया, याने उनके वे नरम गुलाबी होंठ इतने रसीले लग रहे थे कि मैं बस चूसे जा रहा था, तब मीनल मुझसे चिपट कर मेरे कान के लोब को दांत से काटने लगी. मैंने हाथ बढ़ाकर उसकी ब्रा के बकल खोलने की कोशिश की तो बोली "रहने दो जीजाजी, अभी वक्त नहीं है, तुम फ़िर दबाने लगोगे और सब दूध बह जायेगा, ब्रा बाद में निकालूंगी."

"फ़िर क्या आज्ञा है इस दास के लिये?" मैंने हाथ जोड़ कर कहा. "बड़ी तपस्या की होगी मैंने पिछले जनम में जो दो दो अप्सराओं की सेवा करने का मौका मिला है आज"

मांजी मुंह छुपा कर हंसने लगीं. मीनल ने बड़ी शोखी से मेरी ओर देखा जैसे मेरी बात की दाद दे रही हो. फ़िर बोली "अभी तो हमें स्टैंडर्ड सेवा चाहिये अनिल, खेल बहुत हो गये. अब हम तीनों औरतों को बेचारा ललित अकेला क्या करे, और वो राधाबाई भी थोड़े छोड़ती है उसको! अभी नया नया जवान है. अब जरा इस सोंटे का ..." मेरा लंड पकड़कर हिलाते हुए बोली " ... ठीक से यूज़ करना है. कल से तुम तो बस पड़े हो, सब मेहनत हमने की, अब हम लेटेंगे और तुम मेहनत करोगे. ताईजी अब पहले आप ..."

सासूमां शरमा कर बुदबुदाईं "अरे बहू ... मैं कहां कुछ ... याने तू ही पहले ..."

मीनल ने एक ना सुनी. एक बड़ा तकिया रखकर मांजी की कमर के नीचे रखकर उनको जबरदस्ती चित सुला दिया और उनके पास लेटकर उन्हें चूमने लगी. मुझे बोली "चढ़ जाओ जमाईराजा, अब टाइम वेस्ट मत करो, अब तुम्हारे ना तो हाथ बंधे हैं ना पांव, जैसा मन चाहे, जितनी जोर से चाहे, करो, हमारी ममीजी बेचारी सीधी हैं इसलिये खुद कुछ नहीं कहतीं पर उनका हाल मैं समझती हूं"

मैंने फिर भी संयम रखा, अच्छा थोड़े ही लगता है कि वहशी जैसा चढ़ जाऊं! मांजी की गीली तपती चूत में मैंने जब लंड पेला जो वो ऐसे अंदर गया जैसा पके अमरूद में छुरी. फ़िर थोड़ा झुककर बैठे बैठे ही हौले हौले लंड सासू मां की बुर में अंदर बाहर करने लगा.

सासूमां कितनी भी शरमा रही हों पर अब उन्होंने जो सांस छोड़ी उसमें पूरी तृप्ति का भाव था. मीनल को बोलीं "बहुत अच्छा लगा बेटी, आखिर ठीक से सलीके से मेरे दामाद से मेरा मिलन हो ही गया. कल मेरी कमर दुखने लगी थी ऊपर से धक्के लगा लगा कर. पर क्या करूं, तू जतला के गयी थी ना कि अनिल को आज बस लिटाकर रखो ... ओह ... ओह ... उई मां .... बहुत अच्छा लग रहा है अनिल बेटे ... कितना प्यारा है तू ... अं ... अं ... और पास आ ना मेरे बच्चे ... ऐसा दूर ना रह ...." कहकर उन्होंने मुझे बाहों में भींच कर अपने ऊपर खींच लिया और अपनी टांगें मेरी कमर के इर्द गिर्द लपेट लीं. मैंने भी उनको ज्यादा तंग ना करके घचाघच चोदना शुरू कर दिया, जैसा लीना को चोदता हूं. सोचा लीना को चुदवाने की जो स्टाइल पसंद है वो इन दोनों को भी जच जायेगी.

ज्यादा डीटेल में वर्णन क्या करूं, आप बोर हो जायेंगे पर अगले घंटे भर में मैंने सास बहू को अलट पलट कर मस्त चोदा. बिलकुल उनकी इच्छा पूर्ति होने तक. पहले मां जी को दस पंद्रह मिनिट चोदा, दो बार झड़ाया, खुद बिना झड़े. वे तो मस्ती से ऐसे सीत्कार रही थीं जैसे बहुत दिनों में ठीक से चुदी ना हों. दो बार लगातार झड़ीं. फ़िर मुझे ध्यान में आया कि उनका बेटा हेमन्त याने लीना का भाई दो माह से परदेस में था, ललित के बस की थी नहीं इतनी चुदाई, बेचारी चुदें तो आखिर कैसे!

चोदते चोदते मैंने मन भरके उनके मीठे गुलाबी मुंह का रस पान किया. बीच बीच में वे मेरा सिर नीचे दबाती थीं, पहले तो मुझे लगा कि क्या कर रही हैं पर फ़िर समझ में आया कि उनको मम्मे चुसवाना था. अब उनकी उंचाई मुझसे इतनी कम थी कि सिर्फ़ होंठों का चुंबन लेने के लिये ही मुझे गर्दन बहुत झुकानी पड़ती थी. फ़िर जब उनकी मंशा समझ में आयी तो भरसक मैंने गर्दन और नीची करके उनके निपल भी चूसे. गर्दन दुखने लगती थी पर उनको जैसा आनंद मिलता था, उससे उस पीड़ा को भी मैं सहता गया. लगता है उनके निपल बहुत सेन्सिटिव थे और चुसवाकर उनकी वासना और भड़कती थी. और क्यों ना हो, किसी भी ममतामयी मां के निपल तो सेन्सिटिव होंगे ही!

आखिर जब वे आंखें बंद करके लस्त हो गयीं और बुदबुदाने लगीं कि बस ... बेटा बस ... तब मैंने लंड बाहर खींचा. मीनल अब तक एकदम गरमा गयी थी. जब तक मैं ताईजी को चोद रहा था, वह बस हमसे लिपट कर जो बन पड़े कर रही थी, कभी मुझे चूमती, कभी मांजी को, कभी उनके स्तन दबाती.

अब मांजी धराशायी होते ही मीनल तैयार हो गयी. मैडम को पीछे से करवाना शायद अच्छा लगता था, डॉगी स्टाइल में. मांजी पर मैं कुछ देर पड़ा रहा, उनकी झड़ी बुर में लंड जरा सा अंदर बाहर करता रहा. उन्होंने जब आंखें खोलीं तो उनमें जो भाव थे वो देख कर ही मन प्रसन्न हो गया कि उनको मैंने इतना सुख दिया. तब तक मैं मीनल भाभी के मांसल बदन पर हाथ फिरा कर उनको और गरमा रहा था. उनकी बुर को पकड़ा तो पता चला कि एकदम तपती गीली भट्टी बन चुकी थी.

मांजी के सम्भलते ही मीनल खुद झुक कर कोहनियों और घुटनों पर जम गयी. ताईजी उठ कर बैठ गयीं और फ़िर सरककर मीनल के सामने आ गयीं. बड़े प्यार से मीनल के चुम्मे लेने लगीं "बहू ... अब ठीक से मन भरके जो कराना है करा ले अनिल से. मेरा इतना खयाल रखती है मेरी रानी, अब मेरी फिकर छोड़ और खुद आनंद लूट ले. अनिल बेटे ... बहुत अच्छी है मेरी बहू ... ये मेरा भाग्य है जो ऐसी बहू मिली है ... बेटी जैसी ... अब इसे भी खूब सुख दे मेरे लाल जैसा मेरे को दिया"
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11-05-2018, 02:26 PM,
#14
RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
"मीनल भाभी के लिये जान हाजिर है ताईजी, आप चिंता ना करें" कहके मैं मीनल के पीछे घुटने टेक कर बैठ गया और अपना तना मस्ताया लंड हाथ में ले लिया. अब क्या कहूं, आंखों के सामने जो सीन था वो ... याने .... स्वर्ग के दो दो दरवाजे एक साथ दिख रहे थे. फूली गोरी गोरी पाव रोटी जैसी बुर, काले बालों से भरी और उनमें वो लाल छेद, रिसता हुआ और उसके जरा ऊपर दो भरे गुदाज मांसल नितंबों के बीच जरा भूरा सा गुदा का छेद जो अभी एकदम बंद था. एक बार मन में आया कि डाल ही दूं सट से अंदर, बाद में जो होगा देखी जायेगी पर फ़िर लीना के गुस्से की याद आयी तो मन को काबू में किया. ऊपर वाले उस सकरे भूरे छेद लो बस एक बार हल्का सा उंगली से सहलाया और फ़िर लौड़े को बुर पर रखकर अंदर तक पेल दिया. फ़िर मीनल भाभी की कमर पकड़कर सटा सट चोदने लगा.

मीनल ने मन भर के मुझसे चुदवाया. "और जोर से अनिल ... और जोर से अनिल" ऐसा बार बार कहती. मैंने भी हचक हचक के वार करना शुरू कर दिया, ऐसी कोई चुदवाने वाली मिले तो चैलेंज लेने में मजा आता है. उसका बदन मेरे धक्कों से हिचकोले लेने लगा. अब वो मस्ती में "ममी ... ममी ... देखिये ना .... कैसा कर रहा है आपका दामाद ... ममी ममी ..." बड़बड़ाने लगी. ताईजी उसके सामने बैठ कर लगातार उसके चुंबन ले रही थीं. जब मीनल हल्के हल्के चीखने लगी तो उन्होंने अपना एक स्तन उसके मुंह में ठूंस कर उसकी बोलती बंद कर दी. मीनल अब कस कस के पीछे की ओर अपनी कमर ठेल ठेल कर मेरा लंड गहरे से गहरा लेने की कोशिश कर रही थी. आखिर आखिर में तो मैं भी इतना उत्तेजित हो गया कि करीब करीब मीनल पर पीछे से चढ़ ही गया. मीनल का भी जवाब नहीं, सुंदरता के साथ साथ अच्छा खासा मजबूत बदन था उसका, मेरे वजन को आराम से सहते हुए चुदवाती रही. आखिर जब झड़ी तो मुझे भी साथ लेकर. और रुकना मेरे लिये मुमकिन नहीं था. मीनल लस्त होकर पलंग पर लेट गयी और मैं उसकी पीठ के ऊपर.

उधर लीना ने बेचारे ललित की हवा टाइट कर रखी थी. मन भरके अपने छोटे भाई से चूत चुसवा रही थी. सनसनाते लंड से तंग होकर जब जब वो बेचारा उठने की कोशिश करता तो उसके कान पकड़कर फ़िर वो उसका मुंह अपनी बुर पर भींच लेती थी. एक दो बार ऐसा होने पर उसने अपनी जांघें ललित के सिर के इर्द गिर्द जकड़ लीं और तभी ढीली कीं जब ललित फ़िर चुपचाप उसकी चूत चूसने लगा.

मीनल को चोदते वक्त एक बात मैंने गौर की थी कि ललित बार बार नजर चुराके हमारी ओर देख रहा था. खास कर जब मीनल की चुदाई शुरू करने के पहले मैं लंड हाथ में लेकर उसके दोनों छेद देख रहा था तब उसकी नजर मेरे लंड पर जमी थी. शायद खुद के लंड से मेरे लंड की तुलना कर रहा हो. तब मैंने उसको एक स्माइल देकर फ़्रेंडली वे में आंख मारी थी कि जमे रहो. लीनाने तब उसको चपत मार कर फ़िर उसका सिर अपनी जांघों में दबोच लिया था और मेरी ओर देख कर शैतानी से हंस दी थी. उसकी हंसी के पीछे क्या सोच थी वो मैं नहीं समझ पा रहा था.

एक बात और मेरे मन में आयी. मांजी को चोदते वक्त मैं इतना मग्न था कि ललित की ओर ध्यान ही नहीं गया था. अगर देखता तो ललित के चेहरे पर क्या भाव होता? आखिर उसीके सामने मैं उसकी मां को चोद रहा था. अब भले ही ललित इस चुदैल परिवार का ही सदस्य था और खुद भी अक्सर अपनी मां को चोदता होगा पर अपने जीजाजी को अपनी मां को चोदते वक्त वह क्या सोच रहा होगा. विचार बड़ा लुभावना था और इसके बारे में सोच सोच कर मेरा लंड फ़िर से जागने लगा.

फ़िर ब्रेक हुआ. मीनलने आखिर ब्रा निकाली और सब को स्तनपान कराया. पहले मांजी और मुझे एक साथ और फ़िर लीना और ललित को. उसके स्तन खाली होते ही मैंने मीनल को बाहों में भर लिया और उसके मांसल मम्मे हथेली में लेकर दबाने लगा. कल से मेरा मन हो रहा था, पर अब मौका मिला था.

"लगता है चूंचियां मसलने का बड़ा शौक है जीजाजी को" मीनल ने लीना की ओर देखकर चुटकी ली.

"अरी तू नहीं जानती, एकदम पागल है ये आदमी उनके पीछे, मेरी तो बहुत हालत खराब करता है" लीना ने मेरी शिकायत की.

"अब मेरा क्या कसूर है, तुम लोगों ने इतनी मस्त चूंचियां उगाई ही क्यों? और मीनल रानी, तुम्हारे मम्मों को मसलने को तो कल से मरा जा रहा हूं, तुमने ही रोक लगा दी थी कि दूध बह जायेगा नहीं तो अब तक तो ..."

"कचूमर निकाल देते यही ना? तुम्हारे जैसा जालिम आदमी मैंने आज तक नहीं देखा" लीना बोली. "ललित चल लेट पलंग पर"

मांजी बड़े गर्व से बोलीं "पर ये बात सच है अनिल बेटा कि मीनल के स्तन लाखों में एक हैं, यह सुंदर तो है पर मुझे लगता है हेमन्त ने इसे पसंद सिर्फ़ इसकी छाती देखकर किया था. जिस दिन इसको हम देखने गये थे, तब क्या लो कट ब्लाउज़ पहना था इसने! वैसे हम सब को मीनल बहुत पसंद आयी थी.

मीनल शैतानी भरी आवाज में बोली "हां, मांजी सच कह रही हैं. हेमन्त को तो मैं पसंद आयी ही, ममी को भी इतनी पसंद आयी कि हमारे हनीमून पर भी ममी साथ थीं"

"चल बदमाश कहीं की" सासूमां लाल चेहरे से बोलीं "अरे अब हेमन्त ने ही मुझे कहा कि मां, तू भी साथ चल, मुझसे अकेले संभलेगी नहीं, बहुत गरम और तेज लगती है, तो मैं क्या करती?" ताईजी ने सफ़ाई दी.

मीनल मांजी के पास गयी और उनको चूम कर बोली "अरे ममी, नाराज मत होइये, मैं कंप्लेन्ट थोड़े कर रही हूं. आप साथ थीं तो मुझे भी बहुत अच्छा लगा, वो कहने को दो रूम लिये थे पर ममी हमारे साथ ही रहीं. वे दिन रात तो भुलाये नहीं भूलते, लगातार लाड़ प्यार हुआ मेरा, हेमन्त अलग होता था तो मांजी आगोश में ले लेती थीं."

इस प्यार भरी नोक झोंक से सभी फ़िर मूड में आ गये थे इसलिये अपने आप दूसरा राउंड शुरू हो गया था. ललित को नीचे लिटाकर लीना उसपर उलटी तरफ से चढ़ बैठी थी और लेट कर उसका लंड चूस रही थी. ललित ने शायद फ़िर से कहने की कोशिश की कि दीदी, अब तो चुदवा ले पर उसके पहले ही लीना ने उसके मुम्ह पर अपनी बुर सटाकर उसकी आवाज बंद कर दी थी.

उनका यह सिक्सटी नाइन देखकर मुझे भी फ़िर से मांजी का स्वाद लेने की इच्छा होने लगी. मीनल का भी ले सकता था पर उसे चोदा था और उसकी बुर में मेरा वीर्य भर गया था इसलिये खालिस स्वाद नहीं आता. और इस बार मुझे सासूमां की बुर जरा ठीक से पूरी निचोड़नी थी, अपने खास अंदाज में.

मैं पलंग के सिरहाने से टिक कर बैठ गया और ताईजी को मेरी ओर पैर करके सुला दिया. उनके पैर पकड़कर एक एक अपने दोनों कंधों पर रख लिये. उनकी महकती योनि अब मेरे मुंह के सामने थी. मैंने मुंह डाल दिया और चूसने लगा. ये आसन योनिरसपान के लिये बड़ा अच्छा है, आप चाहें तो अपनी प्रेमिका की बुर इस आसन में पूरी खा सकते हैं. मांजी दो मिनिट में असह्य आनंद में डूब गयीं. पांच मिनिट में उन्होंने दो बार झड़कर उन्होंने अपना तीन चार चम्मच अमरित भी मुझे पिला दिया. पर मैंने चूसना चालू रखा, अभी निचोड़ने की क्रिया तो बस शुरू हुई थी.

ताईजी पांच मिनिट में तड़पने सी लगीं. उनकी झड़ी बुर को मेरी जीभ का स्पर्ष सहन नहीं हो रहा था. "अनिल अब रुका ना बेटे ... आह ... उई मां ... अरे बस ... क्या कर रहे हो दामदजी ..." कहती हुई वे छूटने के लिये उठने की कोशिश करने लगीं. मैंने मीनल को आंख मारी, वो समझ गयी थी कि मैं क्या कर रहा हूं. उठकर उसके दोनों घुटने मांजी के सिर के आजू बाजू टेके और उनके मुंह पर अपनी चूत देकर बैठ ही गयी. मांजी की आवाज ही बंद हो गयी. वे हाथ मारने लगीं तो मीनल ने उनके हाथ पकड़ लिये और ऊपर नीचे होकर उनके मुंह को चोदती हुई खुद भी मजा लेने लगी. मैंने ताईजी के पैर पकड़े कि फटकार कर अलग होने की कोशिश ना करें और जीभ अंदर डाल डाल कर, उनकी पूरी बुर को मुंह में लेकर चूसता रहा. तभी छोड़ा जब अचानक उनका बदन ढीला पड़ गया, शायद सुख के अतिरेक को वे सहन न कर पाई थीं और बेहोश सी हो गयी थीं.

अब तक लीना ने भी ललित को चूस कर झड़ा डाला था और उठ कर बैठ गयी थी और मेरी करतूत देख रही थी. ललित बेचारा भी चुपचाप पड़ा था. थोड़ा फ़्रस्ट्रेटेड दिख रहा था, और क्यों ना हो, दो दिन से बेचारे को झड़ाया तो गया था पर मन भरके चोदने नहीं दिया था. मेरे भी मन में आया कि लीना उस बेचारे के पीछे क्यों ऐसी पड़ी है.

लीना मेरे पास आयी और धीरे से बोली "मेरे पर ऐसा जुल्म करते हो उससे पेट नहीं भरा क्या जो मेरी मां के पीछे पड़ गये?" फ़िर मेरा कान काट लिया. ये प्यार का उलाहना था. उसे मेरा ऐसा चूसना कितना अच्छा लगता था ये मैं जानता हूं.

"अब क्या करूं रानी, जब आम मीठा होता है तो सब रस निकल जाने पर भी कैसे हम छिलका और गुठली चूसते रहते हैं, बस वैसा ही करने का दिल हुआ ममी के साथ"

अब तक मीनल मेरे लंड को अपनी चूत में लेकर बैठ गयी थी. मैंने उसे पटक कर चोद डाला.

सब इतने मीठे थक गये कि शायद सब वैसे ही कब सो गये पता भी नहीं चला. कम से कम मुझे तो नहीं चला क्योंकि जब उठा तो शाम के सात बजने को थे. वैसे ही पड़ा रहा, बड़ा सुकून लग रहा था, मन और शरीर दोनों तृप्त हो गये थे.
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11-05-2018, 02:26 PM,
#15
RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
मैं पड़ा पड़ा सोच ही रहा था कि अब उठा जाये, पैकिंग वगैरह की जाये. तभी सासूमां कमरे में आयीं. उन्होंने शायद नहा लिया था और कपड़े बदल लिये थे. फूलों के प्रिंट वाली एक सफ़ेद साड़ी और सादा सफ़ेद ब्लाउज़ पहना हुआ था. आकर उन्होंने इधर उधर कुछ सामान ठीक ठाक किया पर मुझे लगता है कि वे आयी थीं सिर्फ़ ये देखने को कि मैं सोया हुआ हूं या जाग गया हूं.

मुझे जगा देखकर उन्होंने पहले तो आंखें चुराईं, फ़िर न जाने क्या सोच कर मेरे पास मेरे सिरहाने आकर बैठ गयीं. मेरे बालों में उंगलियां चलाते हुए बड़े प्यार से बोलीं "अनिल बेटा, आराम हुआ कि नहीं? मुझे लगता है कि हम सब ने मिल कर तुमको जरा ज्यादा ही तकलीफ़ दी है"

मैं बोला "ममीजी, अगर आप वचन दें कि ऐसी तकलीफ़ देती रहेंगी तो मैं अपना सब काम धाम छोड़ कर यहीं आकर पड़ा रहूंगा आप के कदमों में"

वे बस मुस्करायीं. उनकी मुस्कान में एक शांति का भाव था जैसे मन की सब इच्छायें तृप्त हो गयी हों. मैं सरक कर उनके करीब आया और उनकी गोद में सिर दे कर लेट गया. मैंने पूछा "और मांजी, ज्यादा तकलीफ़ तो नहीं हुई ना? याने मैंने जो दोपहर को किया? मुझे अच्छा लगता है, कभी कभी रसीले फलों को ऐसे ही चूस चूस कर खाने का जी होता है. लीना के साथ मैं कई बार करता हूं, हफ़्ते में एकाध बार तो करता ही हूं. आज तो मीनल थी मेरी मदद को, वहां अकेले में तो लीना के हाथ पैर बांध कर करता हूं, बहुत तड़पती है बेचारी पर मजा भी बहुत आता है उसको"

"मैंने पहले ही कहा है कि बड़ी भाग्यवान है मेरी बेटी. इतना तेज न सहनेवाला सुख पहले नहीं चखा मैंने कभी अनिल ... सच में पागल हो जाऊंगी लगता था. बाद में जब नींद से उठी तो बहुत आनंद सा भरा था नस नस में ... अब जल्दी जल्दी आया करो बेटे, ऐसे साल में एकाध बार आना हमें गवारा नहीं होगा" ताईजी बोलीं.

"अब आप ही आइये ताईजी हमारे यहां, सब को लेकर आइये"

"अब कैसा क्या जमता है दामादजी, वो देखती हूं. वैसे आई तो शायद अकेली ही आ जाऊंगी, वैसे भी हेमन्त और मीनल को कहां छुट्टी मिलती है. लीना को कहीं जाना हो तो आ जाऊंगी, कहूंगी कि हो आ, तेरे पति की देख रेख के लिये मैं हूं ना!" मैं उनकी ओर देख रहा था इसलिये यह कहते ही वे शर्मा सी गयीं. उनकी मेरे साथ अकेले रहने की इच्छा थी याने! मैंने भी सोचा कि यार अनिल, तेरी सास तो तेरे पर बड़ी खुश है.

"ताईजी, ये बहुत अच्छा सोचा आप ने, लीना का कुछ प्लान है अगले महने में एक हफ़्ते का, तब आप आ जाइये. बस मैं और आप रहेंगे. ना जमे तो लीना रहेगी तब भी आइये ना. आप को अष्टविनायक की यात्रा करवा दूंगा, लीना तो आयेगी नहीं, हम दोनों ही चलेंगे, आराम से चलेंगे, दो तीन दिन होटल में रहना पड़ेगा" मैंने उनकी आंखों में आंखें डाल कर कहा.

ताईजी फिर से नयी नवेली दुल्हन जैसी शरमा गयीं. मैं उनके खूबसूरत चेहरे को देख रहा था जिसको गालों की लाली ने और सुंदर बना दिया था. अचानक मेरे दिल में आया कि शायद मुझे उनसे इश्क हो गया है, याने चुदाई वाला इश्क तो पहले से ही था, परसों से था जब लीना के मायकेवालों का असली रूप मैंने देखा था. पर अब सच में वे मुझे बड़ी प्यारी सी लगने लगी थीं. लीना को भी शायद मेरे दिल का उस समय का हाल पता चलता तो एक पल को वो डिस्टर्ब हो जाती कि कहीं उसकी मां ही उसकी सौत तो नहीं बन रही है. अब जब मैंने हंसी हंसी में उनको अष्टविनायक के टूर पर ले जाने की बात की तो मैं कल्पना करने लगा कि वे और मैं रात का खाना खाने के बाद अपने कमरे में जाते हैं और फ़िर ...? मुरादों की रातें ...? बेझिझक अकेले में उनसे जो मन आये वो करने का लाइसेंस?

इस वक्त मेरे मन में दो तरह की वासनायें उमड़ रही थीं. एक खालिस औरत मर्द सेक्स वाली ... बस पटककर चोद डालूं, मसल मसल कर उनके मुलायम गोरे बदन को चबा डालूं, जहां मन चाहे वहां मुंह लगा कर उनका रस पी जाऊं ये वासना .... दुसरी ये चाहत कि उनको बाहों में भर लूं, उनके सुंदर मुखड़े को चूम लूं, उनके गुलाबी पंखुड़ी जैसे होंठों के अमरित को चखूं ...

इनमें से कौनसी वासना जीतती ये कहना मुश्किल है. पर मेरा काम आसन करने को लीना अचानक अंदर आ गयी. मैं चौंका नहीं, वैसा ही मांजी की गोद में सिर रखे पड़ा रहा. लीना भी तैयार होकर आयी थी, एक अच्छा ड्रेस पहना था. लगता था बाहर जाने की तैयारी करके आई थी. हमें उस ममतामयी पोज़ में देख कर बोली "वाह ... जमाई के लाड़ प्यार चल रहे हैं लगता है मां"

"क्यों ना करूं?" मांजी सिर ऊंचा करके बोलीं "है ही मेरा जमाई लाखों में एक. अब ये बता तू कहां चली? आज घर में ही रहेंगे, कहीं जाकर टाइम वेस्ट होगा ऐसा कह रही थी ना तू? आखिर आज रात की ट्रेन है तुम लोगों की"

"ठहरा था पर काम है जरा .... मैं और भाभी मार्केट हो कर आते हैं"

ताईजी ने लीना की ओर देखा जैसे पूछ रही हों कि ऐसा क्या लेना है मार्केट से? लीना झुंझलाकर बोली "अब मां ... भूल गयी सुबह मैं और मीनल क्या बातें कर रहे थे?"

"हां ... वो ... सच में तुम दोनों निकली हो उसके लिये? मुझे लगा था मजाक चल रहा है. ठीक है, करो जो तुम्हारे मन आये" ताईजी पलकें झपका कर बोलीं

"तू बैठ ऐसे ही और अपने जमाईसे गप्पें कर. पर अब अच्छी बच्ची जैसे रहना, कुछ और नहीं करना शैतान बच्चों जैसे" लीना आंख मार कर बोली "और ललित अपने कमरे में है, उसको डिस्टर्ब मत करना, सो रहा है" लीना जाते जाते ताईजी के गाल पर प्यार से चूंटी काट कर गयी.

मुझे लगा कि दाल में कुछ काला है. "लगता है कुछ गड़बड़ चल रहा है, लीना का दिमाग हमेशा आगे रहता है उल्टी सीधी बातों में" मैंने कमेंट किया. सोचा शायद मांजी कुछ बतायें. पर वे बस बोलीं "अब करने दो ना उनको जो करना है, मन बहलता है उनका. मैं तो पड़ती ही नहीं उन लड़कियों के बीच में"

मांजी की गोद में सिर रखे रखे अब मुझपर फिर से मस्ती छाने लगी थी. उनके बदन की हल्की सी मादक खुशबू मुझे बेचैन करने लगी थी. मैंने अपना चेहरा उनकी जांघों के बीच और दबा दिया और उस नारी सुगंध का जायजा लेने लगा. वे कुछ नहीं बोलीं, बस मेरे बालों में उंगलियां चलाती रहीं. अनजाने में मेरा एक हाथ में उनकी साड़ी पकड़कर उसको ऊपर करने की कोशिश करने लगा तो मांजी ने मेरा हाथ पकड़ लिया. मैं समझ गया कि शायद अभी मूड ना हो या वे कुछ देर का आराम चाहती हों.

पर मुझे इस समय उनके प्रति जो आकर्षण लग रहा था वह बहुत तीव्र था. मैं उठ कर बैठ गया और उनको आगोश में ले लिया. "ममी ... आप मुझे पागल करके ही छोड़ेंगी लगता है, इतनी सुंदर हैं आप" कहकर फ़िर चुंबन लेते हुए साड़ी के पल्लू के ऊपर से ही मैंने उनका एक मुलायम स्तन पकड़ लिया. इस बार उन्होंने विरोध नहीं किया.

अगले आधा घंटे बस हमारे प्यार भरे चुंबन चलते रहे. बीच बीच में एकाध बातें भी करते थे पर अधिकतर बस खामोशी से तो प्रेमियों जैसी हमारी चूमा चाटी जारी थी. उस उत्तेजना में मैंने किसी तरह उनके ब्लाउज़ के बटन खोल लिये थे और अब उनके सफ़ेद ब्रा में बंधे मांसल स्तन मेरी आंखों के सामने थे. कहने में अजीब लगता है कि ब्रा में लिपटे वे उरोज मुझे इतना आकर्षित कर रहे थे क्योंकि पिछले दो दिनों में मैंने उनको पूरा नग्न भी देखा था और तरह तरह से उनके नग्न बदन का भोग भी लगाया था, याने उनके बदन का कोई भी अंग मेरे लिये नया नहीं था फ़िर भी ब्रा के कपों में कसे हुए उन आधे खुले स्तनों की सुंदरता का जो खुमार था वो उनके नग्न उरोजों में भी नहीं आया था. मैंने बार बार उनको ब्रा के ऊपर से चूमा, ब्रा के नुकीले छोर में फंसे उनके निपलों को कपड़े के ऊपर से ही चूसा, हल्के से चबाया भी.
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11-05-2018, 02:27 PM,
#16
RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
ताईजी भी शायद मेरे दिल का हाल समझ गयी थीं क्योंकि बिना कुछ कहे वे भी अब भरसक मेरे चुंबनों का जवाब दे रही थीं. जब मैं बार बार उनकी ब्रा को चूमता या ब्रा के कपड़े पर से ही उनके निपल चूसता तो वे मेरा चेहरा अपने सीने पर छुपा लेतीं.

"बहुत अच्छे लगे ना मेरे स्तन बेटा तुम्हे?" बीच में वे भाव विभोर होकर बोलीं. मैंने बस सिर हिलाया. उन्होंने मुझे सीने से चिपटा लिया. बुदबुदाईं "बीस साल पहले देखते तो .... "

मैं उनके स्तनों में चेहरा दबा कर बोला "मुझे तो अभी मस्त लग रहे हैं मांजी ... इनके साथ क्या क्या करने का मन होता है मेरा ..."

मेरा लंड अब कस के खड़ा हो गया था. लगातार संभोग के बाद अब गोटियां थोड़ी दुख रही थीं पर फ़िर भी लंड एकदम मस्ती में आ गया था. मेरी सासूमां का जलवा ही कुछ ऐसा था. लगता है और कुछ देर हो जाती तो हमारी चुदाई फ़िर शुरू हो जाती. वैसे लीना कुछ कहती नहीं पर जिस तरह से वह हमें जतला कर गयी थी कि अब कुछ मत करना, उससे लगता था कि थोड़ा चिढ़ जरूर जाती.

फ़िर लीना की आवाज सुनाई दी. वह मीनल से कुछ बोल रही थी. शायद जान बूझकर जोर से बोल रही थी कि हम आगाह हो जायें. मैं मांजी से अलग होकर बैठ गया. ताईजी ने फटाफट अपने कपड़े ठीक किये और उठ कर एक अलमारी खोल कर उसमें कुछ जमाने लगीं.

लीना अंदर आयी. हम दोनों को ऐसा अलग अलग देख कर उसे शायद आश्चर्य हुआ पर वो खुश भी हुई. "अरे वा, दोनों कैसे आराम से बात चीत कर रहे हैं. मुझे तो लगा था कि जिस तरह से सास दामाद की आपस में मुहब्बत हो गयी है, वे न जाने किस हाल में मिलेंगे"

"चल बदमाश, तेरे को तो बस यही सूझता है" मांजी बोलीं. वैसे लीना की बात सच थी.

लीना मेरी ओर मुड़कर बोली "चलो अनिल, पैकिंग कर लें."

"तुमको जो खरीदना था वो सब मिल गया लीना बेटी?" मांजी ने पूछा.

"हां मां, बस एक दो ही चीजें चाहिये थीं, बाकी तो सब है घर में. अब जल्दी चलो अनिल"

मैं लीना के पीछे हो लिया. जाते जाते जब मुड़ कर देखा तो सासूमां मेरी ओर देख रही थीं. उनकी नजरों में इतने मीठे वायदे थे कि वो नजर एकदम दिल को छू गयी.

हमारे रूम में आकर मैंने अपना सूटकेस ऊपर पलंग पर रखा. लीना कपड़े रखने लगी. दो मिनिट बाद मुझे अचानक समझ में आया कि वो बस मेरे ही कपड़े रख रही है, खुद के नहीं. हम दोनों मिलकर बस एक बड़ी सूटकेस लाये थे.

"अपने कपड़े रखो ना डार्लिंग, या दूसरी बैग लेने वाली हो?" मैंने कहा.

लीना मेरे पास आयी और मेरे गले में बाहें डाल कर शोखी से बोली "डार्लिंग ... तुम नाराज तो नहीं होगे? ... वो क्या है कि मैं नहीं आ रही तुम्हारे साथ ... मीनल और मां दोनों चाहती हैं कि हम रुक जायें ... अब तुम्हारा तो ऑफ़िस है पर मैं सोच रही हूं कि मैं एकाध दो हफ़्ते को रुक जाती हूं"

मेरा चेहरा देख कर मुझे चूम कर बोली "सॉरी मेरे राजा ... मैं जानती हूं कि तुम्हारा एक मिनिट नहीं चलेगा मेरे बिना पर प्लीज़ ... ट्राइ करूंगी कि एक हफ़्ते में लौट आऊं. अब मां का भी तो खयाल करना है, उसके साथ मुझे टाइम ही नहीं मिला"

मैंने बेमन से कहा "ठीक है लीना रानी, अब तुम कह रही हो तो मैं कैसे मना कर सकता हूं? तुम्हारी कोई बात मैंने टाली है कभी"

लीना मुझे लिपटकर बोली "वैसे तुमको बिलकुल सूखे सूखे अकेले नहीं जाने दूंगी बंबई. लता को भेज रही हूं तुम्हारे साथ"

"लता कौन?" मैंने अचरज से पूछा?

"अरे भूल गये? कल नहीं देखा था मेरी मौसेरी बहन, बहुत कुछ मेरे जैसी दिखती है. लगता है भूल गये. खैर जाने दो, अब मिल लेना, आती ही होगी. पैकिंग हो गया तो अब चलो बाहर" हाथ पकड़कर मुझे लीना बाहर ले गयी. जाते जाते बोली "अब उसके साथ कुछ ऊल जलूल नहीं करना, सीधी है बेचारी."

"नहीं करूंगा, उतनी समझ है मेरे को. पर ऐसे क्यों भेज रही हो लता को इस वक्त मेरे साथ, वो क्या करेगी वहां, मैं तो ऑफ़िस में रहूंगा, वो बोर हो जायेगी"

"बोर क्यों? घुमाना बंबई रोज. ऑफ़िस से जल्दी आ जाया करना" वो ऐसे कह रही थी जैसे ये सब बड़ा आसान हो. मैं जरा धर्मसंकट में था. बीच में ये भी लगता कि ये फ़िर से लीना का कोई खेल तो नहीं है.



हम बाहर आये. ड्राइंग रूम में कोई नहीं था. लीना ने आवाज लगाई "भाभी कहां हो?"

मीनल के कमरे से आवाज आयी "यहां हूं ननद रानी, लता आई है, उससे जरा गप्पें लड़ा रही थी"

"अरे बाहर आओ ना. अनिल भी है यहां"

"दो मिनिट लीना. ये लता शरमा रही है अनिल के सामने आने को." मीनल की आवाज आयी.

लीना बोली "अब आ भी जाओ, अनिल कोई दूसरे थोड़े हैं. शरमाने की जरूरत नहीं है" फ़िर मुझसे बोली "फ़िर से मेकप कर रही होगी, सुंदर है ना, जरा सेन्सिटिव है, मेकप ठीक ठाक करके ही आयेगी देखना"

"अच्छा रानी पर ये तो बताओ, कि बंबई आने का ये प्लान अचानक कैसे बना? याने लता ने कहा कि मैं जाना चाहती हूं कि तुम दोनों ननद भौजी ने मिलके उसको उकसाया है?" मैंने धीमे स्वर में पूछा. लीना पर मेरा बिलकुल विश्वास नहीं है, ऐसे नटखट खेल वो अक्सर खेलती है और फ़िर मेरी परेशानी देखकर खुश होती है.

"अब क्या फरक पड़ता है? तुम बस ये देखो कि एक सुंदर कमसिन अठारह बरस की कन्या तुम्हारे साथ, अपने जीजाजी के साथ बंबई जा रही है, हफ़्ते भर अकेली रहेगी उनके साथ, अब और कोई होता तो अपनी किस्मत पर फूला नहीं समाता और तुम हो कि शंका कुशंका कर रहे हो"

मैं चुप हो गया. मन ही मन कहा कि रानी, तेरी नस नस पहचानता हूं इसलिये शंका कर रहा हूं. वैसे एक बात जरूर है, लीना ने जब जब मुझे ऐसा फंसाया है, उसका नतीजा मेरे लिये बड़ा मीठा ही निकला है हमेशा.

पांच मिनिट हो गये तो मैंने भी आवाज दी. आखिर अपना जीजापन दिखाकर उस कन्या की झेंप मिटाना भी जरूरी था. "अब आ भी जाओ भई लता, कहो तो मैं आंखें बंद कर लेता हूं"

मीनल की आवाज आयी "अनिल, मैं ले आती हूं उसको, बहुत शरमा रही है"

मीनल मुस्कराते हुए बाहर आयी. उसने एक लड़की का हाथ पकड़ रखा था और उसे खींचती हुई अपने पीछे ला रही थी. मुझे तो ऐसा कुछ दिखा नहीं कि वह ज्यादा शरमा रही हो, हां मंद मंद हंस रही थी.

लड़की सच में सुंदर थी. छरहरा नाजुक बदन था, डार्क ब्राउन कलर की साड़ी और स्लीवलेस ब्लाउज़ पहने थी. हाथों में एक एक फ़ैशन वाला कॉपर का कंगन था और एक स्लिम गोल्ड वाच थी. गोरे पैरों में ऊंची ऐड़ी के सैंडल थे. छरहरा बदन था, एकदम स्लिम, ऊंचाई लीना से तीन चार इंच कम थी. चेहरा काफ़ी कुछ लीना जैसा था, काफ़ी कुछ क्या, बहुत कुछ. बस बदन लीना के मुकाबले एकदम स्लिम था, लीना अच्छी खासी मांसल है, मोटी नहीं पर जहां मांस होना चाहिये वहां उसका एवरेज से ज्यादा ही मांस है. वजन थोड़ा ज्यादा होता और ऊंची होती तो एकदम लीना की जुड़वां लगती. हल्का मेकप किया था और होंठों पर हल्की गुलाबी लिपस्टिक थी. आंचल में से छोटे छोटे पर तन कर खड़े उरोजों का उभार दिख रहा था.

"याद आया? कल ही तो मिलवाया था बड़े घर में" लीना ने कमर पर हाथ रखकर मुझसे पूछा. मैं अचरज में पड़ गया. ऐसी सुंदर कमसिन कन्या, लीना से मिलते जुलते चेहरे की और मुझे याद ना रहे! अब क्या बोलूं ये भी नहीं समझ पा रहा था.

मेरी परेशानी देखकर मीनल आंचल मुंह में दबा कर हंसने लगी. मैंने सोचा कि कुछ तो बोलना पड़ेगा. बोला "हेलो लता. सॉरी कल जल्दी जल्दी में इतने लोगों से मिला कि ... पर चलो, अब बंबई आ रही हो तो जान पहचान हो ही जायेगी. वैसे सच में तुम चल रही हो या ये इन दोनों ने मिलकर कुछ शरारत की है" लीना और मीनल की ओर इशारा करके मैं बोला.

"पहले ये बताइये दामादजी कि हमारी लता कैसी है? बंबई की लड़कियों के मुकाबले जच रही है या नहीं?" मीनल बोली. लीना ने भी उसकी हां में हां जोड़ी. लता खड़ी खड़ी बस जरा सा शरमाते हुए सब को देख देख कर मुस्करा रही थी.

मैंने कहा "ऐसे किसी का कंपेरिज़न करने की बहुत बुरी आदत है तुमको लीना. वैसे मैं सच कहूं तो इस प्रश्न में कोई दम नहीं है. लता इज़ वेरी प्रेटी, बहुत फोटोजेनिक है"

मीनल और लीना ने पट से एक दूसरे से हाथ पर हाथ मारा जैसा आज कल का फ़ैशन है ये बताने को कि कैसे बाजी मार ली.

"सिर्फ़ सुंदर कहकर नहीं बचोगे दामादजी. अंग अंग का निरीक्षण करके डिस्क्राइब करो लता की सुंदरता. लता, जरा घूम ना, एक चक्कर तो लगा, अनिल को भी देखने दे तेरा जलवा"

अब अपने ही बड़े घर की, जहां एक अलग डिसिप्लिन चलता है, एक लड़की को ये लोग इस तरह से बोल रही थीं यह देखकर मेरा माथा ठनका कि कुछ गड़बड़ न हो जाये. लता क्या सोच रही होगी. मैंने उसकी ओर देखा तो वो भी मेरी ओर देख रही थी. कुछ शरमा कर बोली "अब ये बहुत हो गया भाभी, इस सब की क्या जरूरत है?"

बोल लता रही थी पर आवाज ललित की थी. एल पल को मैं हक्का बक्का रह गया पर फ़िर एकदम से दिमाग में रोशनी हुई. ये ललित ही था लड़की के रूप में.
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11-05-2018, 02:27 PM,
#17
RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
मैंने दाद दी मीनल और लीना की कि कितने अच्छे से सिंगार किया था. बाकी सब तो ठीक है, आसानी से किया जा सकता है पर सिर में जो विग लगाया होगा वो बड़ा खूबसूरत था, बड़े खूबसूरत नरम सिलन शोल्डर लेंग्थ बाल थे. और ललित को भी मैं मान गया, साड़ी पहनकर सबके लिये चलना आसान नहीं है पर वह इस तरह से चल कर आया था जैसे जिंदगी भर साड़ी पहन रहा हो.

उधर लीना सिर पर हाथ मारकर हंस रही थी और ललित पर चिढ़ रही थी "सत्यानाश कर दिया उल्लू कहीं के. मैंने कहा था मत बोलना, अब बोल के सब भांडा फोड़ दिया. अभी तो अनिल को हम वो घुमाते कि ... "

ललित झेंप रहा था, लीना की डांट से और मेरा क्या रियेक्शन होगा इसके डर से.

मैंने तारीफ़ की "अरे उसको क्यों बोल रही हो, उसने ए-वन काम किया है ... मुझे जरा भी पता नहीं चला. यार ललित मान गये ... हैट्स ऑफ़. वैसे लता के बजाय ललिता नाम रख लो." फ़िर लीना की ओर मुड़ कर बोला "तुम्हारा और मीनल का भी जवाब नहीं, अब बॉलीवुड में ड्रेसिंग का काम देख लो. पर ये सब किसलिये? ललित कितना सुंदर है ये दिखाने को? मैंने तो पहले ही देख लिया है, बड़ा हैंडसम क्यूट लड़का है"

"लो, ललित आखिर जीजाजी तेरे फ़ैन हो ही गये, अब तो आराम से जा तू उनके साथ, तुझे जरूर बहुत इंटरेस्ट से ये बंबई घुमायेंगे" लीना बोली. फ़िर मेरे पास आकर मेरा हाथ पकड़कर बोली "वो क्या है कि ललित का बहुत मन है बंबई घूमने का. अपने साथ आने की जिद कर रहा था. अब इतनी जल्दी रिज़र्वेशन तो मिलेगा नहीं, ये कह रहा था कि दीदी, मैं नीचे फर्श पर सो लूंगा ट्रेन में पर वो एकाध खड़ूस टीसी फंस गया तो. अब कल से मीनल और मां ये भी कह रहे हैं कि लीना, रुक जा और हफ़्ते दो हफ़्ते के लिये तो मेरे दिमाग में एक खयाल आया कि मैं रुक जाती हूं और ललित मेरी जगह पर जा सकता है. हां उसे मेरे नाम पर सफ़र करना पड़ेगा, और वो भी स्त्री वेश में. ये तैयार हो गया, वैसे भी इसे बचपन से बड़ा शौक है लड़कियों के कपड़े पहनने का. मैंने कहा कि पहन कर दिखा और अनिल के सामने जा और वो भी पहचान ना पाये तो जरूर जा बंबई"

मीनल हंस कर बोली "मैदान मार लिया ललित ने आज, क्या खूबसूरत लड़की बना है"

लीना मुझे बोली "अनिल डार्लिंग, ललित शर्मायेगा बताने में पर अब तुमसे क्या छिपाना, ये ललित बचपन में ही नहीं, अभी भी लड़कियों के कपड़े पहनने का बहुत शौकीन है. सिर्फ़ हमारे ड्रेस, सलवार कमीज़ साड़ी ही नहीं, ब्रा और पैंटी भी पहनने का बड़ा शौक है इसको. मेरी ओर लीना की जब मौका मिलता है, पहन लेता है. ये तो मां की भी ब्रेसियर पहन ले पर वो उसको थोड़ी ढीली होती है."

इतने में सासूमां कमरे में आयीं. ललित को देखा और फ़िर लीना को बोलीं "तो तुम दोनों मानी नहीं, लड़की बना ही दिया बेचारे ललित को. अब ऐसे ट्रेन में भेजने के पहले अनिल को तो पूछ लिया होता, पर तुम दोनों कहां मेरा कहा मानती हो. और देखो कैसा शर्मा रहा है मेरा बच्चा. ललित बेटे, तेरे को ऐसे नहीं जाना हो तो साफ़ कह दे, इन दोनों छोरियों के कहने में ना आ, ये तो महा शैतान हैं दोनों"

लीना ने चिढ़ कर अपनी मां को कहा "अब तू चुप रह मां. इन बातों में अपना सिर मत खपा. देखो अनिल डार्लिंग, ललित तुम्हारे साथ जायेगा, बेचारे का बहुत मन है, घुमा देना उसको बंबई. और ये इसी स्त्री रूप में जायेगा मेरी जगह, टीसी को भी कोई शक नहीं होगा, और ट्रेन सुबह तड़के दादर पहुंचती है, ठीक से सुबह होने के पहले तुम लोग घर भी पहुंच जाओगे."

ललित मेरी ओर देख रहा था, बेचारा टेंशन में था कि मैं क्या कहता हूं.

मैंने सोचा कि बेचारे को और टंगाकर रखना ठीक नहीं है. उसकी पीठ थपथपा कर मैंने कहा "जाने दो ललित, जैसा ये कहती है वैसा ही करते हैं. इनको तो ऐसे टेढ़े आइडिया ही आते हैं और हम कर भी क्या सकते हैं! सुंदर कन्याओं की हर बात मानना ही पड़ती है. चल, तू लीना बनकर ही चल, आगे मैं संभाल लूंगा" उसकी पीठ पर हाथ फेरते वक्त उसके महीन ब्लाउज़ के नीचे से ललित ने पहनी हुई टाइट ब्रा के स्ट्रैप मेरी उंगलियों को महसूस हुए, न जाने क्यों एक मादक सी टीस मेरे सीने में दौड़ गयी.

ललित की बांछें खिल गयीं. मीनल बोली "देख, तू फालतू टेंशन कर रहा था कि जीजाजी क्या कहेंगे. अरे तू उनका लाड़ला साला है, जो मांगेगा वो मिलेगा"

सासूमां बोलीं "दामादजी, तुमको जमेगा ना? तुम्हारा ऑफ़िस होगा रोज, उसमें कहां इस घुमाओगे फिराओगे?"

"आप चिंता ना करें, मैं देख लूंगा, ऑफ़िस से जल्दी आ जाया करूंगा, दो दिन छुट्टी ले लूंगा पर ललित को खुश कर दूंगा, उसे जो चाहिये, वो उसको मिलेगा"

लीना ने ललित को हाथ पकड़कर मेरे साथ सोफ़े पर बिठाते हुए कहा "अब चुपचाप बैठो यहां, मैं फोटो निकालती हूं"

हम दोनों के काफ़ी फोटो लिये लीना ने, हर तरह के ऐंगल से. फ़िर लीना रानी जरा अपनी हमेशा की शैतानी पर उतर आयी. "अब कमर में हाथ डालो अनिल ... और पास खींचो ना उसको ... अब उसे उठाकर जरा गोद में बिठा लो ... अब कस के उसको भींच लो ... अब जरा किस करो ..." बेचारा ललित ये सब करते वक्त जरा परेशान था, एक बार बोला भी "अब दीदी ... ये सब क्या कर रही हो ..." पर लीना ने डांट कर उसे चुप कर दिया. "एकदम चुप ... एक भी लफ़्ज़ कहा तो तेरी ट्रिप कैंसल ... हां चलो अनिल ... अरे हाथ जरा उसके सीने पर रखो ना ... ऐसे"

अब ये सब हो रहा था तब अनजाने में मेरा लंड सिर उठाने लगा. याने भले ही वो ललित रहा हो पर उसका कमनीय रूप, उसने लगाया सेंट ... और अपनी बांहों में महसूस हो रहा उसका जवान छरहरा चिकना बदन जो काफ़ी कुछ हद तक एक कन्या के बदन से कम नहीं था ... अब इस सब का मेरे ऊपर असर होना ही था. किसी तरह मैंने कंट्रोल किया, पता नहीं ललित ने मेरी गोद में बैठे वक्त मेरे लंड का कड़ा होना महसूस किया कि नहीं पर बोला कुछ नहीं.

फोटो सेशन खतम होने पर लीना ललित से प्यार से बोली "अब मुंह ना लटकाओ, ये सब फोटो अपने प्राइवेट हैं, घर के बाहर किसी को नहीं दिखाऊंगी"

ललित पल्लू संभाल रहा था. मैंने लीना से कहा "डार्लिंग, ललित को जरा टॉप जीन्स वगैरह पहना दो, ऐसे साड़ी संभालने में बेचारे को ट्रेन में परेशानी होगी."

लीना को बात जच गयी. "हां ललित ऐसा ही करते हैं, मैंने तो ये सोचा ही नहीं. जा, वो मेरी जीन्स और टॉप पहन ले"

ललित टॉक टॉक टॉक करते हुए मीनल के कमरे में जाने लगा. उसके सैंडल एकदम मस्त आवाज कर रझे थे जैसे लड़कियों के हाइ हील करते हैं. मेरे मन में आया कि हाइ हील पहनकर चलते हुए उसे कंफ़र्टेबल लग रहा है, जरूर जनाब घर में बहुत बार पहन कर घूमते होंगे.

मीनल बोली "अरे यहीं बदल ले ना, शरमाता क्यों है? सब एक साथ नंगे एक दूसरे से लिपटे हुए थे तब तो नहीं शरमाया तू, अब क्यों शरमा रहा है. और अंदर ब्रा और पैंटी तो है ना, एकदम नंगी भी नहीं होगा तू"

मैं समझ गया कि ललित इसी लिये शरमा रहा होगा कि उसके जीजाजी उसको ब्रा और पैंटी में देख कर क्या कहेंगे. तब तक मीनल जाकर लीना की जीन्स और टॉप ले आयी थी. ललित वहीं मीनल के कमरे के दरवाजे पर खड़ा होकर कपड़े बदलने लगा. साड़ी और ब्लाउज़, पेटीकोट निकालने के बाद ललित जीन्स पहनने लगा. उसने अभी भी विग पहना हुआ था इसलिये एकदम एक कमसिन अर्धनग्न सुंदरी जैसा लग रहा था. उसके गोरे बदन पर काली ब्रा और पैंटी निखर आयी थी. बस एक फरक था कि उसकी पैंटी में उभार था, जितना आम तौर पर मर्दों का उभार दिखता है उससे ज्यादा था. मैं मन ही मन मुस्कराया, सोचा - बेटा ललित ... मजा आ रहा है ... मस्ती चढ़ रही है औरतों के कपड़े पहनकर. फ़िर खुद की ओर ध्यान गया तो मेरा भी हाल कोई अलग नहीं था, ललित के उस चिकने बदन को ब्रा और पैंटी में देखकर आधा खड़ा हो गया था.

ललितने जीन्स और टॉप पहने. अब वह कॉलेज की छोरी जैसा कमनीय लग रहा था. मैंने भी निकलने की तैयारी करना शुरू कर दी. मीनलने जल्दी से ललित का एक बैग पैक किया. बीच में सासूमां उनसे कुछ बोल रही थीं. शायद बता रही हों कि वहां ज्यादा तकलीफ़ ना देना अनिल को. फ़िर उन्होंने ललित को सीने से लगाकर पटापट चूम डाला. आखिर लाड़ला छोटा बेटा था उनका.
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11-05-2018, 02:27 PM,
#18
RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
हम खाने बैठे. पिज़्ज़ा मंगाया गया था. खाते खाते सबको मस्ती चढ़ी थी. मीनल और लीना तो हाथ धोकर ललित के पीछे लगी थीं, ताने कस रही थीं, उल्टा सीधा कुछ कुछ सिखा भी रही थीं उसके कान में कुछ बोलकर. वह बेचारा बस झेंप कर पिज़्ज़ा खाता हुआ हंस रहा था.

निकलने के आधा घंटा पहले मीनल ने मुझे अंदर बुलाया. उसके कमरे में गया तो उसने मुझे अपने बिस्तर पर बिठाया और फ़िर गाउन के आगे के बटन खोलकर अपने भारी भारी भरे हुए मम्मे बाहर निकाले. "भूल गये क्या अनिल? आज दोपहर को ही बोले थे ना कि रात को मुझे पूरा पिला देना?"

"ऐसी बात मैं कैसे भूलूंगा मीनल, अब इतनी भागम भाग में तुमको और तंग नहीं करना चाहता था. पर जाते जाते ये अमरित मिल रहा है, एकाध दो दिन का दिलासा तो मिल जायेगा पर फ़िर ये प्यास कौन बुझायेगा मीनल?"

"अब खुद अपनी बीवी का दूध पी सको ऐसा कुछ करो." मीनल बोली और मुझे बिस्तर पर लिटाकर मेरे मुंह में अपना स्तनाग्र देकर लेट गयी. पूरा दोनों स्तनों का दूध मुझे पिलाया. दूध पीते पीते मेरा ऐसा तन्नाया कि क्या कहूं. मीनल ने उसे पैंट के ऊपर से ही पकड़कर कहा "आज रात ये तकलीफ़ देगा दामादजी. वैसे लता ... मेरा मतलब ललिता है साथ में पर अब वो पहले ट्रेन में फ़र्स्ट क्लास रहते थे वैसे कूपे भी नहीं है नहीं तो ललिता इस बेचारे को कुछ आराम जरूर देती, है ना अनिल" उसने मुझे आंख मारकर कहा.

"क्या मीनल, ऐसा मजाक मत करो. अरे आखिर मेरा साला है, भले ही लड़की के भेस में हो और लड़कियं से सुंदर दिखता हो. उसे तो मैं एकदम वी आइ पी ट्रीटमेंट देने वाला हूं"

स्टेशन जाने के लिये जब हम निकले तो लीना मुझे बाजू में ले गयी "अच्छा डार्लिंग, जरा खयाल रखना मेरे भैया का. मैं स्टेशन नहीं आ रही, फालतू हम दोनों को साथ देखकर कोई जान पहचान वाला बातें करने के लिये आ जाये तो लफ़ड़ा हो जायेगा. सिर्फ़ तुम दोनों होगे तो यही समझेंगे कि लीना अपने पति के साथ वापस जा रही है. वैसे ललित कैसा लगा ये बताओ, मेरा मतलब है ललिता कैसी लगी? अब सच बताना"

मैंने उस किस करते हुए कहा "एकदम हॉट और सेक्सी. पर तुमको आगाह करके रख रहा हूं जानेमन, तुमने शायद खुद अपनी सौत बना कर मेरे साथ भेज रही हो. अब कभी बहक कर याद ना रहे कि ये ललित है, ललिता नहीं, उसके साथ कुछ कर बैठूं तो मुझे दोष मत देना. और जरा उसको भी बता दो, नहीं तो घबरा कर चीखने चिल्लाने लगेगा"

"मैं बीच में नहीं पड़ती, दोनों एडल्ट हो, जो करना है वो करो. वैसे एक बात समझ लो कि ललित तुमसे ज्यादा बोलता नहीं इसका मतलब ये नहीं कि वो तुम्हारे साथ अनकंफ़र्टेबल है, वो बस जरा शर्मीला है. मां तो कह रही थी कि कल से कई बार तुम्हारी तारीफ़ कर चुका है मां के सामने"

फ़िर बाहर आते आते धीरे से बोली "एक बात और, उसके कपड़ों के साथ मैंने कुछ अपने खास कपड़े ..." एक आंख बंद करके हंसकर आगे बोली " ... रख दिये हैं. और घर में तो ढेरों हैं मेरे हर तरह के कपड़े. कभी उसे ललिता बनाकर डिनर को ले जा कर भी देखो, मैं बेट लगाती हूं कि कोई पहचान नहीं पायेगा. अगर मेरी बहुत याद आये कभी तो ललित को कहना कि यार ललिता बन जा और फ़िर उसके साथ गप्पें मारते बैठना."

"और अगर मन चाहे तो उसे ये भी कहूं कि ललिता बनकर मेरे बेडरूम में मेरे बिस्तर पर साथ सोने चल, लीना की बहुत याद आ रही है?"

"मुझे चलेगा, तुम लोग देखो" लीना बोली "ट्राइ करने में हर्ज नहीं है. बस उसका खयाल रखना जरा, मेरा प्यारा सा नाजुक सा भाई है"

"बिलकुल वैसा ही खयाल रखूंगा जैसा तुम्हारा रखता हूं डार्लिंग" मैंने कहा. टैक्सी में बैठते मैंने कहा.

हमने जैसा सोचा था, वैसा ही हुआ. ललित को किसी ने नहीं पहचाना कि वह लड़का है. टी सी ने भी टिकट चेक करके वापस कर दिया. रात के दस बज ही गये थे और अधिकतर लोग अपनी अपनी बर्थ पर सो गये थे. ललित पर किसी की नजर नहीं गयी. याने एक दो लोगों ने और एक दो स्त्रियों ने देखा पर बिलकुल नॉर्मल तरीके से जैसा हम किसी सुन्दर लड़की की ओर देखते हैं.

हम दोनों की बर्थ ऊपर की थी. मैं उसे चढ़ने में मदद करने लगा तो वो रुक कर मेरी ओर देखने लगा कि क्या कर रहे हो जीजाजी, मुझे मदद की जरूरत नहीं है. बोला नहीं यह गनीमत है क्योंकि उसे सख्त ताकीद दी थी कि बोलना नहीं, दिखने में वो भले लड़की जैसा नाजुक हो, उसकी आवाज अच्छी खासी नौजवान लड़के थी. मुझे उसके कान में हौले से कहना पड़ा कि यार लड़की है, ऐसा बिहेव कर ना, ऊपर चढ़ने में सहारा लगता है काफ़ी लड़कियों को. तब उसकी ट्यूब लाइट जली.

सुबह तड़के हम दादर पहुंचे. टैक्सी करके सीधे घर आये. गेट बंद था इसलिये बाहर ही उतर गये. बैग भी हल्के थे. अंदर आते आते गेट पर सुब्बू अंकल मिले. हमारी बाजू की बिल्डिंग में रहते हैं, ज्यादा जान पहचान या आना जाना नहीं है, पर हाय हेलो होता है हमेशा. सुबह सुबह घूमने जाते हैं. हमें देख कर उन्होंने ’गुड मॉर्निंग अनिल, गुड मॉर्निंग लीना’ किया और आगे बढ़ गये. ललित थोड़ा सकपका गया. ऊपर आते वक्त लिफ़्ट में मैंने उसकी पीठ पर हाथ मार कर कहा "कॉंग्रेच्युलेशन्स, सुब्बू अंकल को भी तुम लीना ही हो ऐसा लगा. याने जिसकी रोज की जान पहचान या मुलाकात नहीं है, उसे तुम्हारे और लीना के चेहरे में फ़रक नहीं लगेगा, कम से कम अंधेरे में."

फ़्लैट में आने पर हमने बैग अंदर रखे. मैंने चाय बनाई, तब तक ललित इधर उधर घूम कर फ़्लैट देख रहा था. हमारा फ़्लैट वैसे पॉश है, चार बेडरूम हैं.

"क्या ए-वन फ़्लैट है जीजाजी!" ललित बोला.

"अरे तभी तो कब से बुला रहे हैं तुम सब लोगों कि बंबई आओ पर कोई आया ही नहीं. चलो तुमसे शुरुआत तो हुई. अब मांजी, मीनल भी आयेंगी ये भरोसा है मेरे को. राधाबाई ने तो प्रॉमिस किया मुझे नाश्ता खिलाते वक्त कि वे दो महने बाद आने वाली हैं"

"हां जीजाजी, वे क्यों ना आयें, आप ने उन सब को क्लीन बोल्ड कर दिया दो दिन में" ललित बड़े उत्साह से बोला. अब वह मुझसे धीरे धीरे खुल कर बात करने लगा था. "मां तो कब से आप के ही बारे में बोल रही है"

"अच्छा? और तुम क्लीन बोल्ड हुए क्या?" मैंने मजाक में पूछा. ललित कुछ बोला नहीं, बस बड़ी मीठी मुस्कान दे दी मेरे को जैसे कह रहा हो कि अब लड़की के भेस में आपके साथ आया हूं तो और क्या चाहते हो मुझसे.

चाय पीकर मैं नहाने चला गया. ललित ने अपना सूटकेस गेस्ट बेडरूम में रखा और कपड़े जमाने लगा. मैंने नहा कर कपड़े पहने और ऑफ़िस जाने की तैयारी करने लगा. टाई बांधते बांधते ललित के कमरे में आया तो ललित चौंक गया. थोड़ा टेन्शन में था "आप कहीं जा रहे हैं जीजाजी?"

"हां ललित, मुझे ऑफ़िस जाना जरूरी है, मैंने आज जॉइन करूंगा ये प्रॉमिस किया था, नहीं तो वहीं नहीं रुक जाता सबके साथ? इसलिये आज तो जाना ही पड़ेगा. कल से देखूंगा, थोड़ा ऑफ़ या हाफ़ डे वगैरह मिलता है क्या. हो सके तो जल्दी आ जाऊंगा. फ़िर देखेंगे आगे का प्लान, घूमने वूमने चलेंगे"

ललित ने अपना विग निकाला और बाल सहला कर बोला "ठीक है जीजाजी, मैं भी कपड़े बदल लेता हूं"

मेरे मन में अब एक प्लान सा आने लगा था. वैसे वो कल से ही था जबसे अपने खूबसूरत साले को लड़की के भेस में देखा था. रात को ट्रेन में उसे मेरे बाजू वाली ऊपर की बर्थ पर सोते देखकर मेरा लंड अच्छा खासा खड़ा हो गया था जैसे भूल ही गया हो कि ये लीना नहीं, ललित है. मैंने सोचा कि इसे लड़की समझ कर वैसे ही थोड़ा फंसाने की कोशिश करने में कोई हर्ज नहीं है, देखें इस के मन में क्या है. "पर क्यों बदल रहा है? मुझे तो लगा था कि तेरे को ऐसे कपड़े पहनना अच्छा लगता है"

"बहुत अच्छा लगता है जीजाजी" ललित बड़ी उत्सुकता से बोला "पर कोई आ जाये तो ... अब आप भी नहीं हैं घर में"

"अरे मेरी जान, कोई नहीं आने वाला. अगर भूले भटके आया भी और बेल बजी तो दरवाजा मत खोलना. मैं तो कहता हूं कि अब ऐसा ही रह, मजा कर, अपने मन की इच्छा पूरी करने का ऐसा मौका बार बार नहीं मिलता"

"नहीं जीजाजी ..." ललित बोला. " ... कहीं कोई गड़बड़ ना हो जाये" लगता है थोड़ा शरमा रहा था. पर बात जच गयी थी, सारे दिन वैसे ही लड़की बनके रहने की बात से लौंडा मस्त हो गया था.

"अरे कर ना अपने मन की. यहां वैसे भी कौन तुझे पहचानता है? लीना मुझे बता रही थी कि तेरे को यह बचपन से कितना अच्छा लगता है. और ये शरमाना बंद कर, साले ...." मैंने प्यार से कहा "मेरे सामने बिना शरमाये अपनी दीदी की - मेरी बीवी की - चूत चूस रहा था ... मुझे तेरी मां और भाभी पर चढ़ा हुआ बड़े आराम से बिना शरमाये देख रहा था और अब सिर्फ़ अपना शौक पूरा करने में शरमा रहा है? लानत है यार! अरे यही तो टाइम है अपने मन की सब मस्ती कर लेने का. बस तू है और मैं हूं, और कोई नहीं है यहां"

ललित को बात जच गयी थी पर अभी भी उसका मन डांवाडोल हो रहा था. मैंने सोचा कि थोड़ा ललचाया जाये इन जनाब को "ललित डार्लिंग ..." मैंने बिलकुल उस लहजे में कहा जैसा मैं लीना को बुलाता था. "तेरे को एक इन्सेन्टिव देता हूं. एक हफ़्ते बाद लीना आने वाली है. तब तक तू अगर ऐसा ही लीना बन के रहेगा ... याने बाहर वाले लोगों के लिये लीना ... मैं तुझे ललिता ही कहूंगा ... तो जो कहेगा वह ले कर दूंगा"

"पर लोग मुझे पहचान लेंगे. घर आये लोगों से मैं क्या बोलूंगा?" ललित ने शंका प्रकट की. लड़का तैयार था पर अभी भी थोड़ा घबरा सा रहा था. "और अपने बाजू वाले फ़्लैट में जो हैं वो? वो तो जरूर बेल बजायेंगे जब पता चलेगा कि आप आ गये हैं"

"अरे वह मेहता फ़ैमिली भी अभी यहां नहीं है, एक माह को वे बाहर गये हैं. उनसे भी हमारा बस हेलो तक का ही संबंध है. वे भी सहसा बेल बजाकर नहीं आते. अरे ये बंबई है, यहां इतना आना जाना नहीं होता लोगों का. यहां लोग होटल जैसे रहते हैं. तू चिंता ना कर. मजा कर. और मैं सच कह रहा हूं. बेट लगा ले, अगर तू हफ़्ता भर लड़की बन के रहा तो जो चाहे वो ले दूंगा"

"जो चाहे याने जीजाजी ...?" लड़का स्मार्ट था, देख रहा था कि जीजाजी को कितनी पड़ी है उसे लड़की बना कर रखने की.

"स्मार्ट फोन .. टैब्लेट ... लैपटॉप ... ऐसी कोई चीज" मैंने जाल फैलाया. "बोल ... है तैयार?"

लैपटॉप वगैरह सुनकर ललित की बांछें खिल गयीं. "ठीक है जीजाजी ... पर बाहर जाते वक्त?"

"वो भी लड़की जैसा जाना पड़ेगा, ललिता बनकर, ऐसे ही सस्ते में नहीं मिलेगा तुझे स्मार्ट फोन. और यही तो मजा है कि लोगों के सामने लड़की बनकर जाओ, जैसे कल ट्रेन में आये थे. और एक बार बाहर जाने के बाद इतनी बड़ी बंबई में कौन तुझे पहचानेगा? और वैसे भी बेट यही है ना डार्लिंग कि तू सबको एक सुंदर नाजुक कन्या ही लगे. जरा देखें तो तेरे में कितनी हिम्मत है. अपने मन की पूरी करने को किस हद तक तैयार है तू? तो पक्का? मिलाओ हाथ"

साले का हाथ भी एकदम कोमल था. मैं सोचने लगा कि हाथ ऐसा नरम है तो ... फ़िर बोला "ललित, एक बार और ठीक से सब समझ ले. घर में भी लड़की जैसे रहना पड़ेगा. ऐसा नहीं कि कोई देख नहीं रहा है तो लड़के जैसे हो लिये. याने लिंगरी ... ब्रा ... पैंटी ... सब पहनना पड़ेगी"

"पर वो क्यों जीजाजी?" ललित बेचारा फिर थोड़ा सकपका सा गया.

"अरे तेरे को पहनने में मजा आता है और मुझे देखने में. इतना नहीं करेगा मेरे लिये? अरे अब लीना, मेरी वो चुदैल बीवी, तेरी वो शैतान दीदी यहां नहीं है तो उसकी कमी कम से कम मेरी आंखों को तो ना खलने दे, वो घर में बहुत बार सिर्फ़ ब्रा और पैंटी पहन कर घूमती है, तू भी करेगा तो मुझे यही लगेगा कि लीना घर में है"

ललित सोच रहा था कि क्या करूं. मैंने कहा "एक रास्ता है, ब्रा और पैंटी ना पहनना हो तो नंगा रहना पड़ेगा घर में. नहीं तो बेट इज़ ऑफ़. वैसे भी हम सब अधिकतर नंगे ही थे पिछले दो दिन तेरे घर में. तू काफ़ी चिकना लौंडा है, ब्रा पैंटी ना सही, वैसे ही देखकर शायद मेरी प्यास बुझ जायेगी. पर हां ... तेरे को नंगा देखकर बाद में मैं कुछ कर बैठूं तो उसकी जिम्मेदारी तेरी"

"नहीं जीजाजी ..." शरमा कर ललित बोला "मैं पहनूंगा ब्रा और पैंटी" उसने विग फ़िर से सिर पर चढ़ा लिया.

"शाबास. अब मैं नीचे से ब्रेड बटर अंडे बिस्किट वगैरह ले आता हूं. आज काम चला लेना. कल से देखेंगे खाने का. और तब तक तू जा और नहा ले. मैं लैच लगाकर निकल जाऊंगा. बेल बंद कर देता हूं, किसी को पता भी नहीं लगेगा कि हम वापस आ गये हैं"

सामान लाकर मैंने डाइनिंग टेबल पर रखा. गेस्ट रूम में देखा तो बाथरूम से शावर की आवाज आ रही थी. मन में आया कि अंदर जाकर उस चिकने शर्मीले लड़के को थोड़ा तंग किया जाये, पर फ़िर सोचा जाने दो, बिचक ना जाये, जरा और घुल मिल जाये तो आगे बढ़ा जाये, आखिर लीना का लाड़ला भाई था. और किसी लड़के के साथ, खूबसूरत ही सही, इश्क लड़ाने की कोशिश मेरे लिये भी पहली ही बार थी. इसलिये वैसे ही ऑफ़िस निकल गया.
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11-05-2018, 02:27 PM,
#19
RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
मैं ऑफ़िस छूटने के पहले ही ही आ गया. करीब पांच बजे थे. लैच की से दरवाजा खोला. ड्राइंग रूम में कोई नहीं था. अंदर आकर देखा तो ललित अपने बेड पर सोया हुआ था. विग पहना था और लीना की एक नाइटी भी पहन ली थी. नायलान की नाइटी में से उसकी ब्रा और पैंटी दिख रही थी. याने मैंने जो बेट लगायी थी उसकी शर्त बचारा बिलकुल सही सही पूरा कर रहा था.



और उसका एक हाथ अपनी नाइटी के अंदर और फ़िर पैंटी के अंदर था. अपना लंड पकड़कर सोया था. मुझे लगा कि मुठ्ठ मार ली होगी पर पास से देखा तो ऐसा कुछ नहीं था. हां नींद में भी उसका लंड आधा खड़ा था, एकदम रसिक मिजाज का साला था मेरा.



उसका वह रूप बड़ा रसीला था. क्षण भरको उसकी पैंटी के उभार को नजरंदाज करें तो एकदम मस्त चुदाई के लिये तैयार लड़की जैसा लग रहा था. स्किन का काम्प्लेक्शन किसी कोमल कन्या से कम नहीं था, होंठ भी मुलायम और गुलाबी थे. मेरा लंड खड़ा होने लगा. मैंने सोचा कि सच में लीना की बहन, मेरी साली होती तो कब का चख चुका होता. अब यह जानकर भी वह एक लड़का है, उसकी खूबसूरती मुझे कोई कम नहीं लग रही थी बल्कि अब उसकी वजह से मेरी चाहत में एक अजीब तरह की तीख आने लगी थी, शायद टाबू करम का अपना अलग स्वाद होता है. मुझे खुद की इस चाहत पर भी थोड़ा अचरज हुआ. अब तक काफ़ी तरह की मस्ती कर चुका था, अधिकतर लीना के साथ और कुछ उसे बिना बताये. पर अब तक उसमें दूसरे पुरुष के साथ रति का समावेश नहीं था. शायद ललित की बात ही निराली थी, लीना का छोटा लाड़ला भाई होना, मेरी कोई साली ना होना, ललित का चिकना रूप और लीना से मिलता जुलता चेहरा, ये सब बातें मिल जुलकर गरम मसाला बन गयी थीं.

किसी तरह मैंने अपने आप पर काबू किया और अपने कमरे में आकर लेट गया. ट्रेन में ठीक से सोया नहीं था इसलिये नींद आ गयी. दो घंटे बाद खुली. फ़िर मैंने भी थोड़ा सामान जमाया, घर को ठीक ठाक किया. ललित और देर से उठा. किशोरावस्था की जवानी में खूब नींद आती है. किसी का बाहर जाने का मूड नहीं था इसलिये मैंने घर पर पिज़्ज़ा मंगवा लिया.

डिनर खतम होते होते साढ़े नौ बज गये. आधे घंटे बाद लैपटॉप पर ईमेल वगैरह देखहर मैं सब कपड़े निकाल कर सिर्फ़ शॉर्ट्स में ड्राइंग रूम में बैठ गया. ये मेरी रोज की आदत है. ललित वहीं था, टी वी लगाकर प्रोग्राम सर्फ़ कर रहा था. बेचारा थोड़ा बोर हुआ सा लग रहा था. मुझे देखकर थोड़ा संभल कर बैठ गया. शायद मेरे ब्रीफ़ में आधे उठे लंड का उभार देखकर थोड़ा कतरा गया होगा. अब रात को मेरी ये हालत होती ही है. और सामने वो सुंदर सी छोकरी - छोकरा भी था. टी वी देखते देखते एक दो बार उसकी नजर अपने आप मेरे ब्रीफ़्स पर गयी.

"ललित डार्लिंग, चलेगा ना अगर मैं ऐसे बैठूं? वो क्या है कि लीना और मैं रहते हैं और ऐसे ही फ़्री स्टाइल रहते हैं ... बल्कि इससे भी ज्यादा" वैसे कहने की जरूरत नहीं थी, उसने मेरा लंड कई बार देखा था, वो भी अपनी मां और भाभी की चूत में चलते हुए.

ललित बस थोड़े शर्मीले अंदाज से मुस्करा दिया. मैंने कहा "तू भी चाहे तो फ़्री हो जा. वो नाइटी पहनने की जरूरत नहीं है. हां विग लगाये रखो मेरे राजा, क्या करूं, बड़ी प्यारी छोकरी जैसा लगता है तू विग पहन कर"

"ब्रा और पैंटी रहने दूं जीजाजी?" उसने नाइटी निकालते हुए पूछा.

"तेरी मर्जी. जैसे में मजा आता है वैसा कर. वैसे ब्रा और पैंटी पहनकर तू बिलकुल लीना जैसा लगता है. वो तो रात को हमेशा ऐसे ही बैठती है. और शादी के बाद पहली बार मैं ऐसा अकेला हूं घर में, तू है तो लीना ही यहां है ऐसा लगता है"

ललित ने नाइटी निकाली और जाकर अंदर रख आया. फ़िर मेरे सामने वाले सोफ़े पर बैठ गया. मैंने उससे कहा "ललित, कुछ भी कहो, तुम्हारे यहां सब एक से एक हैं. याने इतनी सारी सुंदर और सेक्सी औरतें एक ही फ़ैमिली में होना ये कितने लक की बात है. और ऊपर से उन सब से ये सुख मिलना याने इससे बड़ा सुख और क्या होगा. बड़ा तगड़ा भाग्य लेकर पैदा हुआ है तू. और राधाबाई भी हैं, उनके बारे में जो कहा जाये वो कम है"

ललित अब थोड़ा फ़्री हो गया था "हां जीजाजी. पर राधाबाई बड़ी मतवाली भले ही हों, मुझे तो उनसे डर लगता था पहले"

"मैं अक्सर अकेला पकड़ा जाता था घर में. मेरा स्कूल सुबह का था. लीना दीदी कॉलेज जाती थी और हेमन्त भैया और मीनल भाभी सर्विस पर. मां रहती थी पर अक्सर दोपहर को महिला मंडल चली जाती थी. बस राधाबाई मेरे को पकड़कर ... "

"क्यों? तेरे को मजा नहीं आता था? जवानी की दहलीज पर तो और मजा आता होगा."

"हां जीजाजी पर मुझे जिसमें मजा आता था उसके बजाय उनको जिसमें मजा आता था, वही मुझसे जबरदस्ती करवाती थीं"

"तुमने शिकायत की क्या उनकी कभी?"

ललित मुस्करा दिया "अब किससे शिकायत करूं, राधाबाई तो सबकी प्यारी थीं. घर की मालकिन जैसी ही थीं करीब करीब, जो वे कहतीं, उसे कोई टालता नहीं था. आपने उनकी वो स्पेशल गुझिया खाई ना?"

मैंने हां कहा "मानना पड़ेगा, दाद देनी पड़ेगी उनकी इस तरह की सोच की"

"मुझे तो हमेशा देती हैं. आजकल कॉलेज से आता हूं तो अक्सर तैयार रखती हैं. पर खिलाने के बाद आधा घंटा वसूली करती हैं."

"एक बात बताओ ललित" मैंने बड़े इंटरेस्ट से पूछा "इस सब का तुम्हाई पढ़ाई पर असर नहीं पड़ा? याने ऐसा मेरे साथ होता मेरी टीन एज में तो मैं शायद फ़ेल हो जाता हर साल."

"वो जीजाजी असल में ... याने मां बहुत स्ट्रिक्ट है इस मामले में, वैसे इतनी प्यारी और सीधी साधी है पर अगर मार्क्स कम हो जायें तो बिथर जाती है. एक बार बारहवीं में प्रीलिम में फ़ेल हो गया था तो एक हफ़्ते तक मेरा उपवास करा दिया"

"उपवास याने ...?"

"मुझे कट ऑफ़ कर दिया, न खुद पास आती थी न किसी को आने देती थी. मीनल भाभी को भी नहीं, राधाबाई को भी नहीं. एक रात को तो हाथ पैर भी बांध दिये थे मेरे. बड़ी बुरी हालत हुई मेरी, पागल होते होते बचा. तब से पढ़ाई को निग्लेक्ट करना ही भूल गया मैं"

ललित अब सोफ़े पर अपने पैर ऊपर करके घुटने मोड़ कर बड़ी नजाकत से बैठा था, लड़कियों के फ़ेवरेट पोज़ में. उसकी चिकनी गोरी छरहरी जांघें कमाल कर रही थीं. अब वह जान बूझकर कर रहा था तो बड़ी स्टडी की थी उसने लड़कियों के हाव भाव की. यदि अनजाने में कर रहा था तो शायद अब तक वह लड़की के रूप से काफ़ी घुल मिल गया था. एक क्षण को मुझे भ्रम हुआ कि यह सच में बड़ी तीखी छुरी मेरे सामने बैठी है. लंड कस के खड़ा हो गया और ब्रीफ़ के सामने का फ़ोल्ड हटा कर बाहर आ गया.

ललित का ध्यान उसपर गया तो उसके गाल लाल हो गये. पर उसने नजर नहीं हटाई. मैंने नीचे अपने तन्नाये लंड को देखा और बोला "देखो ललिता डार्लिंग, देखो, अपने रूप का कमाल देखो, एकदम बेचैन हो गया ये साला तुमको देख कर"

ललित अब लड़की के रूप में और भिनता जा रहा था. उसकी नजर नहीं हट रही थी मेरे लंड से, अगर सच में कोई गरम कन्या बैठी होती तो उसकी नजर जैसी भूखी होती वैसी ही भूख ललित की नजर में थी. मैंने अपने पास सोफ़े को थपथपा कर कहा "अब ललिता डार्लिंग, जरा यहां आ जाओ ना, ऐसे दूर कब तक बैठोगी. जरा तुमसे जान पहचान बढ़ाने का मौका तो दो"

ललित मेरे पास आ कर बैठ गया. उसकी पैंटी में अब अच्छा खासा तंबू सा बन गया था. मैंने उसकी कमर में हाथ डाला और पास खींच लिया. क्षण भर को उसका बदन कड़ा हो गया जैसे प्रतिकार करना चाहता हो, पर फ़िर उसने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया. मैंने उसके गाल चूम कर कहा "ललिता डार्लिंग ... अब मैं तुमको ललिता ही कहा करूंगा ... मेरे लिये तू अब एक बहुत खूबसूरत लड़की है ... मेरी प्यारी साली है ... बीवी से बढ़कर मीठी है ... ठीक है ना?"

उसने गर्दन डुला कर हां कहा. मैंने उसे पूछा "ललिता ... तुम्हारे हेमन्त भैया ने तुम्हारा ये रूप नहीं देखा अब तक? कभी किस किया तेरे को ... याने ऐसे?" उसकी ठुड्डी पकड़कर मैंने उसका चेहरा अपनी ओर किया और उसके मुलायम होंठों का चुंबन लिया. ललित एकदम शांत बैठा रहा. न मेरा विरोध किया न मुझे साथ दिया. किस खतम होने पर बोला "मैं सिर्फ़ भाभी या दीदी के सामने ही ब्रा पैंटी पहनता ... पहनती हूं जीजाजी"

"याने जैसे मां भाभी लीना आपस में प्यार मुहब्बत कर लेते हैं , वैसे तेरे में और तेरे भैया में कभी नहीं हुई?"

"नहीं जीजाजी. भैया को मेरे इस शौक के बारे में याने ये लिंगरी पहनना वगैरह - मालूम नहीं है. वैसे हम जब सब साथ होते हैं और चुदाई ... याने आपस में कर रहे होते हैं तब हेमन्त भैया कभी मेरी कमर पकड़कर जोर से धक्के मारना सिखाता है ... खास कर जब मैं मीनल भाभी पर चढ़ा होता हूं तो कभी मेरे गाल चूम कर और कभी पीठ पर हाथ फ़िराकर मुझे उकसाता है कि कचूमर बना दे तेरी भाभी का ... पर और कुछ नहीं करता"

मैंने फ़िर से उसका चुंबन लिया "बड़ा नीरस है तेरा भैया ... इतनी मीठी मिठाई और चखी नहीं अब तक" इस बार ललित ने भी मेरे चुंबन के उत्तर में मेरे होंठ थोड़ी देर के लिये अपने होंठों में पकड़ लिये.

फ़िर मैंने उसे उठाकर गोद में ही बिठा लिया. उसने थोड़ा प्रतिकार किया तो मैं बोला "अब मत तरसाओ ललित राजा ... मेरा मतलब है ललिता रानी. इस भंवरे को इस फूल का जरा ठीक से रसपान तो करने दो"

उसके बाद मैं काफ़ी देर उससे चूमा चाटी करता रहा. मजे की बात यह कि काफ़ी देर तक मैंने उसे कहीं और हाथ नहीं लगाया. अपने आप को मानों मैंने हिप्नोटाइज़ कर लिया था कि यह एक नाजुक लड़की है जो मेरे आगोश में है. फ़िर उसकी ब्रा पर हाथ रखा. कप अच्छे भरे भरे से थे, ठोस और स्पंज जैसे गुदाज, करीब करीब असली स्तनों जैसे. लगता है लीना और मीनल ने ब्रा और अंदर की फ़ाल्सी बड़े प्यार से समय देकर चुनी थी. मैं स्तनमर्दन करने लगा. ललित ने मेरी ओर देखा जैसे सच में उसके मम्मे मसले जा रहे हों. बड़ी प्यास थी उसकी निगाहों में, जैसे उन नकली स्तनों को दबवाकर उसे असली मम्मे दबवाने का मजा आ रहा हो.

"एकदम मस्त ललिता रानी ... एकदम रसीले फ़ल हैं तेरे ... खा जाने का मन होता है" कहकर मैंने झुक कर ब्रा की नोकों को चूम भी लिया.

ललित ने हुमककर मेरी जीभ अपने होंठों में ले ली और चूसने लगा. अब वह लंबी लंबी सांसें ले रहा था. लगता है एकदम गरमा गया था. अब भी मैंने उसकी कमर के नीचे कहीं हाथ नहीं लगाया था. आखिर शुरुआत उसी ने की. धीरे धीरे उसका हाथ सरककर मेरे लंड पर पहुंच गया. लंड को मुठ्ठी में भरके वो बस एक मिनिट बैठा ही रहा, जैसे मनचाही मुराद मिल गयी हो, मुझे जरूर पटापट चूमता रहा.

फ़िर धीरे से बोला "क्या मस्त है आपका जीजाजी ... इतना सख्त और तना हुआ"

मैंने उसके कान के नीचे चूम कर कहा "तुझे पसंद आया मेरी जान. मैं तो परसों ही समझ गया था जब तेरी नजर उसपर जमी हुई थी"

"उस दिन मां को आप चोद रहे थे तब कितना सूज गया था, ये सुपाड़ा भी लाल लाल हो गया था. और आप चोद रहे थे तो मां की चूत से कैसी पुच पुच आवाज आ रही थी ... मुझे ... मुझे एकदम से ... याने मैं तो फिदा हो गया इसपर जीजाजी" ललित धीमी आवाज में रुक रुक कर बोला. बेचारा शरमा भी रहा था और मस्ती में भी था.

"तुम्हारी मां भी तो एकदम गरम गरम रसीली चीज है मेरे राजा ... मेरा मतलब है मेरी रानी ... वो भी इस उमर में ... और ऐसी कि जवान लड़कियों को भी मात कर दे ... इतनी गीली तपती बुर हो तो फच फच आवाज होगी ही."

"जीजाजी ... मुझे तो मां पर बहुत जलन हो रही थी कि आप का लंड उसको मिल रहा है ... जीजाजी मैं इसे ठीक से देखूं?" अचानक मेरी गोद से उतरकर मेरे बाजू में बैठते हुए ललित ने पूछा. उसकी आंखों में तीव्र चाहत उतर आई थी.

जवाब में मैं हाथ उठाकर सिर के पीछे लेकर टिक कर बैठ गया "कर ले मेरी जान जो करना है ... तुझे आज जो करना है वो कर ले, जैसे खेलना है इससे वैसे खेल ले"
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11-05-2018, 02:27 PM,
#20
RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
ललित मेरे सामने सोफ़े पर बैठ गया और मेरा लंड अपनी दो मुठ्ठियों में पकड़ लिया. "कितना लंबा है जीजाजी, दो मुठ्ठियों में भी पूरा नहीं आता, सुपाड़ा ऊपर से झांक रहा है. मेरा तो बस एक मुठ्ठी में ही ..."

मैंने उसके मुंह पर अपना हाथ रख दिया. "ललिता रानी .... अब भूल मत कि तू लड़की है ... क्यों बार बार ललित के माइंडसेट में आ जाती है? जैसी भी है, तू बड़ी प्यारी है"

ललित ने एक दो बार लंड को ऊपर नीचे करके मुठियाया और फ़िर उसके सुपाड़े पर उंगली फिराने लगा. "कितना सिल्किश है जीजाजी ... एकदम चिकना ...और इतना फूला हुआ"

"तभी तो तेरी दीदी मेरे जैसे इन्सान को भी अपने साथ बहुत कुछ करने देती है नहीं तो मेरी क्या बिसात है तेरी दीदी के आगे!"

"नहीं जीजाजी, आप कितने हैंडसम हैं, नहीं तो दीदी शादी के छह महने के बाद घर आती? वो भी बार बार बुलाने पर? ये नसें कितनी फूल गयी हैं जीजाजी!" सुपाड़े के साथ साथ अब ललित उंगली से मेरे लंड के डंडे पर उभर आयी नसें ट्रेस कर रहा था.

मेरे लंड से खेलते खेलते उसने जब अनजाने में अपनी जीभ अपने गुलाबी होंठों पर फ़िरायी तो मैं समझ गया कि साला चूसने के मूड में था, चूसने को मरा जा रहा था पर हिम्मत नहीं हो रही थी. उसके वो नरम होंठ देखकर मैं भी कल्पना कर रहा था कि वे होंठ अगर मेरे लंड के इर्द गिर्द जमे हों तो? लंड और तन गया.

"कितना सख्त है जीजाजी ... जैसे कच्चा गाजर ..." उसकी हथेली अब फ़िर से मेरे सुपाड़े पर फ़िर रही थी.

मुझे भी अब लगने लगा था कि मस्ती ज्यादा देर मैं नहीं सह पाऊंगा. ललित के विग के बालों में से उंगलियां चलाते मैं बोला "तूने खाया है क्या कभी कच्चा गाजर?"

वो शरमा कर नहीं बोला. फ़िर मुझे पूछा "दीदी इसको कैसे चूसती है जीजाजी? याने जैसा मेरे को कर रही थी मुझे लिटा कर या ..."

"अरे उसके पास बहुत तरीके हैं. कभी लिटा कर, कभी मेरे बाजू में लेटकर, कभी मेरे सामने नीचे जमीन पर बैठकर ... पर बहुत देर इस डंडे से खेल खेलने का मजा लेना हो तो वो मेरी गोद में सिर रखकर लेट जाती है और घंटे घंटे खेलती है" कहते ही मुझे लगा कि गलती कर दी, यह नहीं बताना था. अब अगर ये सेक्सी छोकरा ... छोकरी वैसे कर बैठे तो? मैं घंटे भर रुकने के बिलकुल मूड में नहीं था.

पर अब पछताना बेकार था क्योंकि ललित ने मेरी बात मान ली थी. बिना और कुछ कहे वह मेरी जांघ पर सिर रखकर सो गया. फ़िर उसने लंड पकड़कर अपने गाल पर रगड़ना शुरू कर दिया. उसके नरम नरम गोरे गालों पर सुपाड़े के घिसे जाने से मुझे ऐसा हो गया कि पकड़कर उसके मुंह में पेल दूं. पर मैंने किसी तरह सब्र बनाये रखा.

अब ललित के भी सब्र का बांध टूट गया था, शर्म वगैरह भी पूरी खतम हो गयी थी. उसने लंड को पकड़कर जीभ से उसकी नोक पर थोड़ा गुदगुदाया. जैसे टेस्ट देख रहा हो. फ़िर चाटने लगा. उसकी जीभ मेरे सुपाड़े की तनी चमड़ी पर चलनी थी कि मेरी सिर घूमने लगा. सहन नहीं हो रहा था, लीना भी ऐसा करती है और मुझे आदत हो गयी है पर यहां ये चिकना लड़का था, लड़की नहीं और सिर्फ़ इस बात में निहित निषिद्ध यौन संबंध एक ऐसी शराब थी जो दिमाग में चढ़नी ही थी.

"ओह लीना रानी ... मेरी लीना .... मेरा मतलब है ललिता डार्लिंग ... मुझे अब मार ही डालोगी ..." फ़िर झुक कर ललित का गाल चूम कर मैंने कहा "एक पल को भूल ही गया था कि तू है ... वैसे अब जरा देख ललिता ... लंड थरथरा रहा है ना?"

"हां जीजाजी"

"याने अब ज्यादा देर नहीं है ... लंड को इस तरह से मस्ताने के बाद या तो उसे चूस लेना चाहिये या चुदवा लेना चाहिये" मैंने उसकी ब्रा मसलते हुए कहा.

"दीदी क्या करती है जीजाजी?"

"इस हद तक आकर तो वो चूस लेती है क्योंकि इसके बाद ज्यादा देर चुदवाना पॉसिबल नहीं है. आखिर मैं भी इन्सान हूं मेरी रानी, कोई साधु वाधु नहीं हूं कि सहता रहूं. अब तू क्या करेगी ललिता जान ... तू ही डिसाइड कर"

ललित शायद पहले ही डिसाइड कर चुका था, क्योंकि चुदवाने का ऑप्शन तो था नहीं, याने मेरे लिये था पर वो बेचारा क्या चुदवाये, कैसे चुदवाये, चूत तो थी नहीं, उसके पास बस एक ही चीज थी चुदवाने के लिये, और ये पक्का था कि वह खुद उसको ऑफ़र नहीं करेगा.

उसने मुंह बाया और मेरा सुपाड़ा मुंह में भर लिया. थोड़ा चूसा और फ़िर मुंह से निकाल दिया. उसके मुंह में सुपाड़ा जाना था कि मेरी नस नस में खुमार सा भर गया. इसलिये सुपाड़ा जब उसने निकाला तो बड़ी झल्लाहट हुई. पर मैंने प्यार से पूछा "क्या हुआ रानी? अच्छा नहीं लगा?"

"बहुत रसीला है जीजाजी, बड़ी चेरी जैसा पर ... कहीं आप को मेरे दांत ना लग जायें?" मेरी ओर देख कर ललित बोला.

"अरे तू क्यों चिंता करती है ललिता जान? नहीं लगेंगे, दुनिया में तू पहला ... पहली नहीं है जिसने लंड चूसा है. मुझे आदत है, लीना तो क्या क्या करती है इसके साथ चूसते वक्त!"

"जीजाजी ... दीदी ... मां ... भाभी जब मेरा चूसती हैं तो पूरा निगल लेती हैं, कभी थूकती नहीं ... वो अच्छा लगता होगा उनको? ... " उसको वीर्य निगलने का थोड़ा टेन्शन था. मैंने सोचा कि अभी तो समझाना जरूरी है नहीं तो बिचक गया तो मेरी के.एल.डी हो जायेगी, इतना सब करने के बाद मुठ्ठ मारनी पड़ेगी. अब तो मुझे ऐसा लग रहा था कि सीधे जबरदस्ती अपना लौड़ा उसके हलक में उतार दूं और पटक पटक कर उसका प्यारा सा मुंह चोद डालूं.

"अब ये मैं क्या बताऊं डार्लिंग ... हां ये सब मस्त चूसती हैं जैसे चासनी पी रही हों, अब अच्छा ही लगता होगा. पर तू चिंता मत कर डार्लिंग, मैं तेरे को बता दूंगा, तू तुरंत मुंह से बाहर निकाल लेना"

उसे दूसरी बार नहीं कहना पड़ा. झट से उसने मुंह खोला और मेरा पूरा सुपाड़ा मुंह में लेकर चूसने लगा.

मैंने उसके गाल सहलाये और हौले हौले आगे पीछे होने लगा, उसके मुंह में लंड पेलने लगा. फ़िर ललित का हाथ मेरे लंड की डंडे पर रखकर उसकी मुठ्ठी बंद की और उसका हाथ आगे पीछे किया. वह समझ गया कि मैं क्या चाहता हूं. सुपाड़ा चूसते चूसते वह मेरी मुठ्ठ मारने लगा.

अब रुकना मेरे लिये मुश्किल था, मैं रुकना भी नहीं चाहता था, ललित का गीला कोमल मुंह और उसकी लपलपाती जीभ - इस कॉम्बिनेशन को झेलना अब मुश्किल था. मैं जल्दी ही झड़ने की कगार पर आ गया, पर मैंने उससे कुछ नहीं कहा, बल्कि जैसे ही मैं झड़ा और मेरे मुंह से एक सिसकी निकली, मैंने कस के उसका सिर अपने पेट पर दबा लिया और लंड उसके मुंह में और अंदर पेलकर सीधा उसके मुंह में अपनी फ़ुहारें छोड़ने लगा.

बेचारा ललित एकदम हड़बड़ा सा गया. मेरे झड़ने का पता उसे तब चला जब उसके मुंह में गरम चिपचिपी फ़ुहार छूटने लगी. उसने अपना सिर हटाने की कोशिश की पर मैं कस के पकड़ा हुआ था. आखिर उसने हार कर अपनी कोशिश छोड़ दे और चुपचाप निगलने लगा. मैं बस ’आह’ ’आह’ ’आह मेरी डार्लिंग ललिता’ ’आह’ कहता हुआ ऐसे दिखा रहा था जैसे मुझे इस नशे में पता ही ना हो कि क्या हो रहा है.

ललित को पूरी मलाई खिलाने के बाद ही मैंने उसका सिर छोड़ा. आंखें खोल कर उसकी ओर देखा और फ़िर बोला "सॉरी ललित ... मेरा मतलब है ललिता ... क्या चूसा है तूने ... लीना भी इतना मस्त नहीं चूसती, मेरा कंट्रोल ही नहीं रहा"

ललित बेचारा उठकर बैठ गया. अब भी कुछ वीर्य उसके मुंह में था पर उसे समझ में नहीं आ रहा था कि निगल जाये या थूक दे. जिस तरह से वह मेरी मेरी ओर देख रहा था, मैं समझ गया कि सोच रहा है कि थूक डालूंगा तो जीजाजी माइंड कर लेंगे. इसलिये चुपचाप निगल गया.

"सॉरी मेरी जान ... सॉरी ... तुझे शायद अच्छा नहीं लग रहा टेस्ट. वो लीना का क्या है कि झड़ने के बाद भी चूसती रहती है, बूंद बूंद निचोड़ लेती है, तेरी मां और भाभी भी वही करती है, इसलिये मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि तेरी पहली बार है. अब नहीं करूंगा"
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