Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
11-05-2018, 02:15 PM,
#1
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मेरी ससुराल यानि बीवी का मायका 


written by kaluppenz



मैं और लीना शुक्रवार रात बारा बजे लीना के घर याने मेरी ससुराल पहुंचे. जब हम टैक्सी से स्टेशन से घर की ओर जा रहे थे तब मैंने लीना का हाथ पकड़कर कहा "अब तो खुश हैं ना रानी साहिबा?"

लीना मुस्कराई "हां मेरे राजा. और अब देखना यहां आकर तुम कितने खुश हो जाओगे. पता है, यहां अपने दामाद के स्वागत की, खातिरदारी की जम के तैयारी की गयी होगी"

"देखते हैं. वैसे तुम्हारे ससुराल वालों ने पहले ही मुझे ये जन्नत की परी ..." उसकी कमर में चूंटी काट कर मैं बोला. " ... गिफ़्ट में दी है, अब उससे अच्छी और क्या खातिर करेंगे मेरी?"

लीना बस मुस्करा दी जैसे कह रही हो कि देखते जाओ अभी तो!

***

इस ट्रिप का बैकग्राउंड ऐसा था.

लीना और मैं क्या क्या गुल खिलाते हैं, सिर्फ़ आपस में ही नहीं, बल्कि जो कोई पसंद आ जाये और मिल जाये उसके साथ, यह यहां नहीं बता सकता, वह अलग कहानी है, बल्कि कहानियां हैं. मेरे दूर के रिश्ते के चाचा चाची और मौसा मौसी के साथ हमने क्या क्या किया, इसकी अलग कहानी है. और मेरे दो तीन दोस्त और उनकी बीवियां हैं ही! बहुत खास किस्म के दोस्त. हर महने कम से कम एक बार सब का ग्रूप जमता है किसी के यहां शनिवार रविवार को. उस वक्त कौन किसका पति है या कौन किसकी बीवी है यह सब कोई मायने नहीं रखता.

बस इसी सब चक्कर में मैं और लीना मस्त रहते हैं, जवानी का पूरा लुत्फ़ उठाते हैं, कहीं जाने आने की इच्छा नहीं होती. इस वजह से शादी के छह महने हो गये फिर भी लीना के घर याने मेरी ससुराल को शादी के बाद हम अब तक नहीं गये थे.

लीना के मायके से बार बार फोन आते थे, लीना की मां के, लीना की भाभी के. लीना पिछले एक महने से मेरे पीछे लगी थी कि अब छुट्टी लो और मेरे मैके चलो. अकेली वो जाती नहीं थी, मेरे जैसा उसकी बुर का गुलाम वो कैसे पीछे छोड़ कर जाती. यहां उसके खिलाये (और मुझे खिलवाये) गुल देखकर मैं कई बार उससे पूछता था कि लीना, जब शादी के पहले अपने घर रहती थी तू तो तेरे जैसी गरमा गरम चुदैल लड़की का गुजारा कैसे होता था तो बस हंस देती और आंख मार के कहती कि जब मेरे घर चलोगे तभी पता चलेगा. मैं मन ही मन उसके बारे में अंदाजा बांधता और कुछ अंदाजे तो इतने हरामीपन के होते कि मेरा कस के खड़ा हो जाता. लीना से खोद खोद के पूछता तो वो टाल जाती या मेरा मुंह अपने किसी रसीले अंग से बंद कर देती.

दीवाली की तो मुझे छुट्टी मिली नहीं पर उसके बाद शनिवार रविवार को आखिर हम ने जाने का फैसला कर लिया. एक दिन की छुट्टी मैंने और किसी तरह ले मारी. और इस तरह हम ससुराल में मेरी पहली ट्रिप के लिये पहुंचे.

***

खैर, टैक्सी घर के आगे रुकी और हम उतरे. सब इंतजार कर ही रहे थे. खास कर लीना की मां, जिन्हें सब ताईजी कहते थे, उनकी खुशी देखते नहीं बनती थी. लीना की भाभी मीनल और छोटा भाई ललित भी बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे, क्योंकि टैक्सी रुकते ही वे दौड़ कर बाहर आ गये थे. बस लीना का बड़ा भाई हेमन्त, मीनल का पति नहीं था, छह महने के लिये विदेश गया था.

अंदर जाकर हम बैठे, ताईजी ने कॉफ़ी बनाई. शुरुआत जरा फ़ॉर्मल बातों से हुई. आखिर मैं पहली बार आया था. मैं नजर बचाकर जितना हो सकता है, लीना के उन घरवालों को देख रहा था. शादी हमारी रजिस्टर्ड हुई थी इसलिये तब किसी से ज्यादा मिलने जुलने का मौका नहीं मिला था. मीनल दिखने में बड़ी आकर्षक थी, याने कोई ब्यूटी क्वीन नहीं थी लीना की तरह, पर फिर भी उसको देखते ही मन में और दूसरे अंगों में भी गुदगुदी सी होती थी. इस समय सलवार कमीज पहने थी, बिना ओढनी, के जिसमें से उसका सुडौल मांसल बदन खिल कर दिख रहा था. टाइट कमीज में उसके जवान उरोज मचल मचल कर बाहर आने को कर रहे थे. फिर याद आया कि अभी एक साल पहले ही वो मां बनी थी तो उसका भी एफ़ेक्ट पड़ा होगा उसकी ब्रा साइज़ पर. थी भी अच्छी ऊंची पूरी, लीना से एकाध इंच लंबी ही होगी, कम नहीं.

ताईजी ने तो मुझे मंत्रमुग्ध कर डाला. वैसे भी मुझे उमर में बड़ी औरतों से खास लगाव है, ज्यादा पके फ़लों जैसी वे ज्यादा ही मीठी लगती हैं. और ताईजी तो एकदम माल थीं. लीना की मां - मेरी सास के बारे में वैसे मुझे ऐसा सोचना नहीं चाहिये ऐसा मेरे मन में आया पर मन पर काबू करना बड़ा मुश्किल था. चेहरा बड़ा खूबसूरत था, लीना से थोड़ा अलग था पर एकदम स्वीट. बदन भरा पूरा था, मोटा नहीं था, पर कद में छोटी थीं, करीब पांच फुट की होंगी और इस वजह से बदन थोड़ा खाया पिया दिखता था पर उनके बदन में मांसलपन भले हो, सिठानी जैसा मुटापा नहीं था. और एकदम गोरी चिट्टी थीं, उनका पेट और बाहें जो दिख रही थीं, उससे उनकी स्किन कितनी चिकनी है ये दिख रहा था. बाकी तो ज्यादा कुछ दिखा नहीं क्योंकि वे अपना आंचल अपने बदन में लपेटी हुई थीं. मेरे मन में आया कि इनको सिर और पैरों से पकड़कर छह इंच खींच दिया जाये और कमर के नीचे के याने चौड़े भरे हुए भारी भरकम कूल्हों को दो हाथों के बीच रखकर थोड़ा पिचका दिया जाये तो एकदम मॉडल लगेंगी.

ललित को देखते ही कोई भी कह देता कि वो लीना का भाई था, एकदम हू बहू वही चेहरा था उसका. उंचाई में लीना पर न जाकर शायद अपनी मां पर गया था - लीना अच्छी खासी पांच फुट सात इंच लंबी है - ललित का कद बस पांच फुट एक या दो इंच ही था. अब तक दाढ़ी मूंछे आने के भी कोई निशान नहीं थे. इसीलिये जूनियर कॉलेज में होने के बावजूद किसी सातवीं आठवीं के लड़के जैसा चिकना दिखता था. लगता था ताईजी के ज्यादा अंश आये होंगे उसके जीन में. लड़कों के बारे में हम कहते हैं कि हैंडसम है, या स्मार्ट है पर ललित के बारे में बस कोई भी होता तो यही कहता कि कितना सुंदर या खूबसूरत लड़का है! जरा शर्मीला सा था. मेरी ओर देख रहा था पर कुछ बोल नहीं रहा था.

शायद मीनल का मूड था गप्पों का पर कॉफ़ी खतम होते ही ताईजी ने सब को जबरदस्ती उठा दिया "चलो सब, अरे तुम लोग दिन भर आराम किये हुए हो, अनिल और लीना ट्रेन में थक गये होंगे. उनको अब सोने दो. बाकी गप्पें अब कल सुबह"

मीनल मुस्करा कर बोली "जीजाजी, सिर्फ़ गप्पों से मन नहीं भरेगा हमारा. दो दिन को तो आये हो आप, हमने तो घंटे घंटे का टाइम टेबल बनाया है आप के लिये, और वो तो असल में अभी से बनाया था, आपके यहां पहुंचने के टाइम से, पर अब नींद के ये कुछ घंटे वेस्ट जायेंगे, है ना ताईजी" फिर वो लीना की मां की ओर देखकर मुंह छुपा कर हंसने लगी. लीना के चेहरे पर भी बड़ी शैतानी झलक रही थी, जैसे उसे सब मालूम हो कि क्या प्लान बन रहे हैं.

ताईजी ने मीठी फटकार लगाई "अब वो सब रहने दो, देखा नहीं कितने थक गये हैं दोनों, उनको आराम करने दो पहले, नहीं तो सब गप्पों का मजा ही किरकिरा कर दोगी तुम लोग. और मीनल, जीजाजी जीजाजी क्या कर रही है तू, अनिल तुझसे छोटे हैं, तेरी ननद के पति हैं, तेरे ननदोई हुए ना!"

"ताईजी, मैं तो जीजाजी ही कहूंगी. अच्छा लगता है, साली जीजा का रिश्ता आखिर कौन निभायेगा." मीनल ने शैतानी भरी नजरों से मेरी ओर देखते हुए कहा. "या फिर सीधे अनिल कहूंगी"

मेरी सासूमां बोलीं "तू मानेगी थोड़े! लीना बेटी जा, नहा धो ले, नींद अच्छी आयेगी, मैं खाना वहीं भिजवाती हूं"

लीना बोली "मां, अब खाना वाना रहने दो, भूख नहीं है, बस नहा कर थोड़ा हॉट चॉकलेट पियेंगे, फिर सोऊंगी मैं तो"

मीनल बोली "लीना ... वो दूध?"

लीना उसकी ओर देखकर मुस्कराने लगी. ताईजी थोड़ी चिढ़ सी गयीं "तुम दोनों नहीं मानोगी. मीनल तू भी जा, दूध मैं गरम कर लूंगी"
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11-05-2018, 02:16 PM,
#2
RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
नहा धोकर हमने हॉट चॉकलेट पिया और फिर सो गये. लीना को बिना चोदे मुझे कहां नींद आती है! तो मैं जब मेरी रानी को पास खींचने लगा तो उसने कस के मुझे चूंटी काटी और धकेल दिया "अब मुझे तंग मत करो, अब जो करना है वो कल" फिर मेरे मुंह को देखकर तरस खाकर बोली "कल से तुम्हारा एकदम टाइट प्रोग्राम है, उसके लिये जरा फ़्रेश रहना, आज सो लो, नहीं तो थके हारे ससुराल में जम्हाई लेते हुए फ़िरेंगे जमाई राजा, तो कुछ अच्छा दिखेगा क्या!" 

सुबह नींद खुली, लंड मस्त खड़ा था जैसा सब मर्दों का होता है, बस फरक ये था कि कोई उसे पजामे के ऊपर से ही पकड़कर मुझे जगाने के लिये हिला रहा था. पहले लगा लीना है, वह मुझे ऐसे ही जगाती है. पर फिर आंखें खोली तो देखा मीनल भाभी नाइटी पहने एक हाथ में चाय का कप लेकर झुक कर खड़ी थी और दूसरे हाथ से मेरे लंड को पकड़ कर हिला रही थी. झुके झुके उसने नाइटी के गले में से मुझे अपने मोटे मोटे स्तनों का दर्शन करा दिया जो बिना ब्रा के नाइटी के अंदर पके आमों जैसे लटक रहे थे. लीना का कहीं पता नहीं था.

"उठिये जीजाजी, आप सो रहे हैं पर ये तो कब से जग रहा है बेचारा" मुस्कराते हुए मीनल बोली.

मैं उठ कर बैठ गया और मीनल के हाथ से चाय का कप लिया. "भाभी, शायद यह बेचारा आप की राह देख रहा था. कितना सुहाना तरीका है आपके यहां किसी को जगाने का"

"हमारे यहां तो बहुत से सुहाने तरीके हैं हर चीज के लिये, अब आप उठेंगे तब तो पता चलेगा" मीनल भाभी मेरी आंखों में आंखें डाल कर बड़े मीठे अंदाज में बोलीं.

उतने में लीना बाथरूम से निकली. टॉवेल से मुंह पोछते बोली "भाभी, आज बैंक नहीं जाओगी क्या? मुझे लगा था कि तुम तो तैयार हो गयी होगी अब तक"

मीनल बोली "अरे आज तू और अनिल आये हैं तो सोचा कम से कम एक घंटा देरी से तो जाऊं, मुझे तो छुट्टी ही चाहिये थी पर मिली नहीं, बड़ा खूसट मैनेजर है हमारा. अनिल चाय पी रहे हैं तब तक मैं जाकर ऑफ़िस के लिये तैयार होती हूं"

मैंने मुंह धोया और फिर चाय पी. लीना मेरे पास बैठकर मेरे लंड से खेल रही थी. कल रात खुद नखरा करके मुझे दूर धकेला था, अब शायद अपने रोज के खिलौने के बगैर रहा नहीं जा रहा था. सोच रहा था कि मीनल के मुझे जगाने के तरीके के बारे में बताऊं या नहीं. कहा "ये मीनल भाभी बड़ी नटखट हैं, आज मुझे जगाने आयीं तो ..."

"और तुमने उन्हें ऐसे ही जाने दिया? कैसे हो जी? बड़े प्यार दुलार से जगाने आयी होगी मीनल. ऐसे ही सूखे सूखे वापस भेज दिया भाभी को? सलीके से थैंक यू भी नहीं बोला?" मुझे ही डांट लगाते हुए वो बोली. आंखों में ऐसी शैतानी भरी थी जैसे कोई एक नंबर की बदमाश बच्ची कुछ उल्टा सीधा करने जा रही हो. फिर मेरे लंड को मुठ्ठे में लेकर ऊपर नीचे करने लगी.

मेरा लंड तन्ना गया. मैंने लीना को पकड़कर बिस्तर पर खींचा तो हंसते हुए छूट कर खड़ी हो गयी. मैं मुंह बना कर बोला "क्या यार, यहां अपने मायके आकर ऐसे के.एल.डी कराओगी क्या? दावत के बजाय तो उपवास करना पड़ रहा है मेरे को" तो बोली "लेटे रहो, आराम करो, जरा तरीके से रहो. आखिर दामाद हो, पहली बार ससुराल आये हो. मैं जाकर देखती हूं कि मां और भाभी ने आज सुबह का क्या प्रोग्राम बनाया है."

टाइम पास करने को लेटा लेटा मैं मीनल ने सुबह दिखाये अंदाज के बारे में सोचता हुआ अपने लंड को पुचकारने लगा. कम से कम मीनल भाभी मुझपर मेहरबान होंगी ये पक्का था. लीना कैसे मुझे ही डांट रही थी कि तुमने उनको ऐसे ही वापस भेज दिया. नाइटी में मीनल की वो मतवाली चूंचियां कैसी दिख रही थीं ये याद करके साला लंड ऐसा तन्नाया कि मेरे पजामे की अधखुली ज़िप को टन्न से खोलकर बाहर आ गया और लहराने लगा. सोच रहा था कि शायद मीनल यह तो एक्सपेक्ट कर ही रही होगी कि मैं एक किस लूंगा जो मैंने नहीं किया, एक लल्लू जैसा बिहेव किया. अपने आप को कोसते हुए मैं पड़ा रहा.

लंड का सीना तान के खड़ा होना था कि अचानक मीनल कमरे में आ गयी. बिलकुल ऑफ़िस जाने की तैयारी करके आयी थी. गुलानी साड़ी और मैचिंग ब्लाउज़ पहना था और लाल लिपस्टिक लगायी थी. गुलाबी ब्लाउज़ में से लाल ब्रा की झलक दिख रही थी. एकदम स्मार्ट और तीखी छुरी लग रही थी.

मैं हड़बड़ा गया. चादर ओढ़ने के लिये खींची तो मीनल बोली. "रहने दो जमाईजी. आप तैयार हैं ये बड़ा अच्छा हुआ. टाइम वेस्ट नहीं होगा. वैसे भी लीना ने कहा था मेरे को कि भाभी तुम तैयार हो जाओ, मैं अनिल को तैयार करके रखूंगी तेरे लिये"

मीनल मेरे पास आकर बैठ गयी. फिर मेरा लंड मुठ्ठी में भरके हिलाने लगी. "एकदम रसीला और मोटा ताजा गन्ना है. तभी मैं कहूं कि लीना ने शादी के बाद मायके आने का नाम ही नहीं लिया. बदमाश है, इस गन्ने को बस खुद के लिये रखना चाहती थी. ऐसे थोड़े ही होता है. अब ये भी तुम्हारा घर है तो सब घरवालों का भी हक इस मिठाई पर है या नहीं?"

मैंने कहा "मीनल भाभी, आपके घर आये हैं, अब आप जो चाहें वो कर लें. समझ लीजिये आपकी गुलामी करने आये हैं" मीनल से नोक झोक करते वक्त मन में सोच रहा था कि मीनल तो बड़ी फ़ॉरवर्ड निकली, सीधे असली मुद्दे पर हाथ डाल रख दिया. ट्रेलर इतना नशीला है तो मेन पिक्चर कैसी होगी.

मीनल साड़ी धीरे धीरे बड़ी सावधानी से ऊपर करते हुए पलंग पर चढ़ गयी. "गुलाम नहीं अनिल जी, आप हमारे खास मेहमान हैं, इस घर के दामाद हैं, हमारे घर की प्यारी बेटी के पति हैं, उसके चेहरे पर से ही दिख रहा है कि उसको आपने कितना खुश रखा है. अब हमारे यहां आये हैं तो हम सब का फ़र्ज़ है कि आपको खुश रखें. अब आप लेटे रहो जीजाजी. हमें स्वागत करने दो ठीक से. जल्दी भी है मेरे को, ऑफ़िस को लेट हो जाऊंगी तो मुश्किल होगी. पर आखिर घर की बहू हूँ, आपका ठीक से स्वागत करना तो मेरा ही फ़र्ज़ है ना! इसलिये तैयार होकर ही आई कि फिर सीधे ऑफ़िस निकल जाऊंगी."

मीनल ने साड़ी उठाई और मेरी टांगों के दोनों ओर अपने घुटने टेक कर बैठ गयी. उसने पैंटी नहीं पहनी थी. इसलिये घने काले बालों से भरी उसकी चूत मेरे को दो सेकंड को साफ़ दिखी. लंड ने तन कर मेरी सल्हज के उस खजाने को सलाम किया. मीनल थोड़ा ऊपर उठी और मेरे लंड को पकड़कर अपनी चूत में खोंस लिया. फिर मेरे पेट पर बैठकर उसने साड़ी नीचे की और ऊपर नीचे होकर मुझे चोदने लगी. लगता है मीनल चुदाई के लिये एकदम तैयार होकर आयी थी, चूत बिलकुल गीली और गरमागरम थी.

"वैसे सॉरी जीजाजी, आप को जल्दी उठा दिया, मस्त गहरी नींद सोये थे आप. ननदजी भी कह रही थी कि उनको कुछ और सोने दो, फिर दिन भर बिज़ी रहेंगे बेचारे. पर ऑफ़िस जाने में देर होने लगी तो नहीं रहा गया मुझसे. ऐसे ही चली जाती बिना घर की बहू का फ़र्ज़ निभाये तो ऑफ़िस के काम में क्या दिल लगता मेरा? वैसे कैसा लग रहा है जीजाजी? अच्छा लगा?"

"भाभीजी .... अब क्या कहूं आप को, आपने तो मेरे होश उड़ा दिये. बहुत सुंदर लग रही हो आप मीनल भाभी, साड़ी एकदम टॉप है और साड़ी के अंदर का माल तो और टॉप है" मैंने हाथ बढ़ाकर साड़ी के ऊपर से ही उसके स्तन पकड़ने की कोशिश की तो उसने मेरे हाथ को पकड़कर बाजू में कर दिया. "अभी नहीं जमाईजी, साड़ी में सल पड़ जायेंगे. बदलने को टाइम नहीं है मेरे को. लेटे रहो चुपचाप"

पर मैं क्या चुप रहता! उस कामिनी को पास खींचकर उसके वे लिपस्टिक लगे लाल लाल होंठ अगर नहीं चूमे तो क्या किया! मैं फिर से उसकी कमर में हाथ डालकर उसे नीचे खींचने लगा तो मीनल ने मेरे हाथ पकड़े और चिल्लाई. "ताईजी ... ताईजी .... जल्दी आइये ... देखिये जीजाजी क्या गुल खिला रहे हैं. मान ही नहीं रहे, मुझपर जबरदस्ती कर रहे हैं"
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11-05-2018, 02:16 PM,
#3
RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
मैं थोड़ा घबरा कर बोला "अब मांजी को क्यों बीच में लाती हैं मीनल भाभी! सॉरी अब नहीं हाथ लगाऊंगा"

ताईजी की आवाज आयी बाजू के कमरे से "आयी बेटी. बस आ ही रही हूं"

मीनल ने फिर चिल्ला कर कहा "वो स्ट्रैप्स भी ले आइये. मैंने कहा था ना कि इनके बिना काम नहीं होगा"

दरवाजा खुला और मेरी सासूमां अंदर आयीं. लगता है अभी अभी नहा कर पूजा करके आई थीं, क्योंकि उन्होंने बदन पर बस एक साड़ी लपेट रखी थी, और कुछ नहीं पहना था. न ब्रा न पेटीकोट न ब्लाउज़. बाल गीले थे और खुले छोड दिये थे. साड़ी जगह जगह गीली हो गयी थी और उनके बदन से चिपक गयी थी. जहां जहां वो चिपकी थी, वहां उनके गोरे गोरे बदन के दर्शन हो रहे थे. छाती पर तो साड़ी इतनी गीली थी कि उनकी लटकती चूंचियां और उनपर के गहरे भूरे निपल साड़ी को एकदम चिपक गये थे.

"ये ले, ले आई वो स्ट्रैप्स. तकलीफ़ दे रहे हैं जमाईजी? मैंने पहले न कहा था मीनल बिटिया तुझसे कि पहले उनको सोते में ही बांध देना और फिर अपना काम करना. मेरे को मालूम है उनका स्वभाव, लीना सब बताती थी मेरे को फोन पर. चलो कोई बात नहीं, अब बांध देते हैं हमारे दामाद को. अनिल बेटा, हाथ ऊपर करो" ताईजी ने बड़े प्यार से मुझे आज्ञा दी. मैंने चुपचाप हाथ उठा दिये. हाई कमान के आगे और क्या कहता! ताईजी ने मेरे हाथ पलंग के सिरहाने के रॉड से उन वेल्क्रो स्ट्रैप से बांध दिये. फिर मेरे पैरों को नीचे वैसे ही पलंग के पायताने के रॉड से कस दिया. "मीनल, चल अब जल्दी निपटा. तेरी बस चली जायेगी तो फिर चिड़ चिड़ करेगी"

"चली जाये मेरी बला से, मैं तो जीजाजी से टैक्सी के पैसे वसूल कर लूंगी, वो भी कूल कैब के" मीनल अब मुझे जोर जोर से चोदने लगी. ताईजी ने बड़े लाड़ से अपनी बहू के कारनामे दो मिनिट देखे, फिर वापस जाने लगीं.

"अब आप कहां चली मांजी?" मीनल ने ऊपर नीचे होते हुए उनसे सवाल किया.

"अरे सोचा देख आऊं, लीना बेटी को कुछ चाहिये क्या. शादी के बाद पहली बार मायके आई है मेरी बेटी" ताईजी बोलीं.

"लीना ठीक है ताईजी, कुछ नहीं चाहिये उसको. वो ललित के कमरे में है. ललित को भी ग्यारा बजे ट्यूशन को जाना है. इसलिये लीना बोली कि तब तक जरा ठीक से छोटे भाई से मिल लूं, इतने दिनों बाद हाथ आया है. इसीलिये लीना ने मुझे कहा था कि मुझे ललित के साथ टाइम लगेगा, तुम तब तक अनिल का दिल बहलाओ ... और ताईजी .... जरा मेरे बेडरूम से मेरी पैंटी ले आइये ना, मैं जल्दी में वैसे ही आ गयी ... और बस अब मेरा होने ही वाला है ..."

"अभी लाई बेटी" कहकर ताईजी बाहर गयीं. मैं कमर उचकाने लगा कि मीनल की तपती गीली म्यान में अपना लंड जरा गहरा घुसेड़ सकूं तो चुदाई का और मजा आये..

"लेटे रहो जीजाजी चुपचाप ... अभी आप का वक्त नहीं आया, जरा धीरज तो रखो" मीनल ने मुझे डांट लगायी और फिर अपनी चूत ढीली छोड़कर मेरे पेट पर बैठकर सुस्ताने लगी. मैं झड़ने के करीब आ गया हूं ये उस शैतान को पता चल गया था.

"अब ठीक है? शुरू करूं फिर से?" दो मिनिट बाद मीनल भाभी बोली. "देखो कंट्रोल रखना अनिल नहीं तो ऐसे ही झड़ जाओगे, तुमको भी पूरा स्वाद नहीं आयेगा लंबी चुदाई का और मुझे भी फिर से साफ़ होना पड़ेगा. ऑफ़िस में पक्का लेट हो जाऊंगी. ठीक है? प्रॉमिस?" मैंने जब मुंडी हिला कर हां कहा तभी उसने फिर मुझे चोदना शुरू किया. जब तक ताईजी मीनल की पैंटी लेकर वापस आयीं, मीनल अपनी स्पीड अच्छी खासी बढ़ा चुकी थी. ऊपर नीचे उछलते हुए कस के मुझे चोद रही थी. उसकी मस्ती भी छलक छलक रही थी, अपने होंठ दांतों तले दबाये वो अब मुझे ऐसे चोद रही थी कि सौ मीटर की रेस दौड़ रही हो.

ताईजी ने पैंटी बिस्तर पर रखी और मीनल के चेहरे की ओर देखा. उसके तमतमाये चेहरे को देख कर उन्होंने अपनी बहूका सिर अपने हाथों में ले लिया. फिर बड़े प्यार से मीनल के होंठ चूमने लगीं. उनका एक हाथ अब मीनल की बुर पर था और उंगली से वे मीनल के क्लिट को रगड़ रही थीं. मीनल ने उनकी आंखों में देखा और उनके होंठ अपने होंठों में दबा लिये. सास बहू का ये प्यार देख कर मेरा लंड ऐसा उछलने लगा कि जैसे मीनल के पेट में घुस जाना चाहता हो. पर मैंने वायदा किया था, किसी तरह अपने लंड को झड़ने से बचाता उन दोनों का लाड़ दुलार देखता रहा.

अपने दबे मुंह से एक हल्की चीख निकालकर मीनल अचानक झड़ गयी. मेरा लंड एकदम भीग गया. मीनल लस्त होकर जोर जोर से सांस लेती मेरे पेट पर बैठी रही और ताईजी बड़े प्यार से उसके चुम्मे लेती रहीं. मीनल की पाठ थपथपा कर बोलीं "हो गया तेरा? बुझ गयी मन की प्यास? कब से कह रह थी कि अनिल और लीना जब घर आयेंगे तो ये करूंगी, वो करूंगी"

मीनल अब तक थोड़ी शांत हो गयी थी. मेरे लंड को अपनी गीली चूत से निकालकर उठते हुए बोली "हां मांजी, अगन थोड़ी शांत हुई मेरी. पर ये तो शुरुआत है, अभी इतनी आसानी से थोड़े छोड़ूंगी जीजाजी को! एकदम मतवाला लंड है, कड़क और लंबा. अंदर तक जाता है मुआ! मेरा रुमाल कहां गया? इतनी गीली हो गयी है बुर, पोछे बिना पैंटी भी नहीं पहन सकती"

"रुमाल ये रहा तेरा पर फिर दूसरा रुमाल लाना पड़ेगा. चल मैं पोछ देती हूं, बैठ इस कुरसी में जल्दी" ताईजी ने मीनल को बिस्तर से उतरने में मदद करते हुए कहा.

मीनल साड़ी ऊपर करके कुरसी में बैठ गयी "वैसे कायदे से जीजाजी ने अपनी जीभ से मेरी चूत साफ़ करना चाहिये, ये पानी सब उन्हींने निकाला है आखिर सजा उन्हीं को मिलनी चाहिये."

मैं बोला "अगर आप ऐसी सजा रोज देने की प्रॉमिस करें तो जनम भर आपका कैदी बन कर रहूंगा भाभीजी"

मीनल ने मुसकराकर बड़ी शोखी से मेरी ओर देखा और फिर बोली "सजा तो दे देंगे दामादजी को बाद में पर अब अगर मैं उनके मुंह पर बैठी तो फिर दस बीस मिनिट उठ नहीं पाऊंगी, और पानी छोड़ूंगी, फिर उनको और चाटना पड़ेगा, फिर ऑफ़िस को गोल मारना पड़ेगा"

ताईजी मीनल के सामने नीचे बैठ गयीं और बड़े लाड़ से मीनल की बुर और उसकी गीली जांघें चाटने लगीं. मीनलने अपनी टांगें और खोल कर उनके सिर को जगह दी कि ठीक से सब जगह उनकी जीभ पहुंच सके. ताईजी जब तक जीभ से उसकी टांगों पर बह आया रस पोछ रही थीं, मीनल शांत बैठी थी और मेरी तरफ़ देख रही थी. मैं बड़े इंटरेस्ट से सास बहू का ये अनोखा लाड़ प्यार देख रहा था. यह देख कर उसने मुझे मुंह चिढ़ाया जैसे कह रही हो कि लो, ये अमरित आज आपके भाग में नहीं था. फिर अपनी सास के खुले बालों में उंगलियां फिराती प्रेम से बोली "और मांजी, बाल सुखा कर ही जूड़ा बांधियेगा, गीला बांध लेंगी हमेशा जैसे और सर्दी हो जायेगी"

"हां मेरी मां, जैसा तू कह रही है वैसा ही करूंगी. अब तू जा, अब सच में देर हो गयी है" ताईजी ने उठते हुए कहा. मीनल ने पैंटी पहनी, साड़ी नीचे करके ठीक ठाक की और फिर निकलते वक्त मेरा एक लंबा गहरा चुम्मा लिया. जाते जाते बोली "आज अब आपकी खैर नहीं जीजाजी, हम तो बस आपको ऐसी ही मीठी सूली पर लटकाने वाले हैं दिन भर. वो तो मांजी अच्छे वक्त आ गयीं और मेरी मदद की नहीं तो मैं बस चढ़ी रहती आप पर और जरूर लेट हो जाती. अब शाम का देखती हूं आने पर आपकी क्या खातिर क्या जाये. ताईजी, अब आप रसोई में मत जाना, राधाबाई आने वाली है, वो सब संभाल लेगी. आप सिर्फ़ अनिल की ओर ध्यान दो, जरा देखिये उसको आप के लिये कैसा मस्त तैयार करके जा रही हूं. हां सोनू के लिये दूध की बोतल भर के रखी है, वो पिला देना उसको"
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11-05-2018, 02:16 PM,
#4
RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
"ठीक है, वो तो मैं कर दूंगी पर तेरे दूध का क्या? ललित को पिलाने वाली थी ना? उसको स्तनपान कराया?"

"नहीं मांजी, आज लीना ने सब खतम कर डाला. सुबह सुबह आई थी नंबर लगाने कि और किसी को न मिल जाये. कहती थी कि ललित तो रोज पीता है भाभी का दूध, अब एक दो दिन सब्र करे"

"चलो ठीक है. वैसे मेरा भी रह गया देख. दिन में एक बार कम से कम तो मुझे अपना अमरित चखा दिया कर, मन नहीं भरता बेटी उसके बिना" ताईजी मीनल को बिदा करते हुए बोलीं.

"अब दो दिन तो आपको उपवास करना ही पड़ेगा. देखिये ना, अब सोनू को पिलाना भी बंद कर दिया, वो बच्ची बोतल से दूध पीने लगी है, फ़िर भी मेरा दूध कम पड़ता है. और ताईजी, इनको - हमारे अनिल जी को - जरा ऐसे ही गरम रखियेगा. मिन्नत करें तो भी मत छोड़ना. अपने घर में मन चाहे वैसा मजा लेते होंगे, अब यहां इनका फ़र्ज़ है कि हमें भी मजा लेने दें." मीनल ने मेरी ओर देखा और मुंह बना कर चिढ़ाया कि अरे अरे, कितनी तकलीफ़ हो रही है, पर क्या करें मजबूर हैं. फिर चली गयी.

मेरा कस के खड़ा था. मीठी मीठी अगन हो रही थी जो सहन नहीं हो रही थी. मैंने अपनी सासूमां से मिन्नत की "ताईजी, बड़ी तकलीफ़ हो रही है, लगता है पागल हो जाऊंगा. ये मीनल भी अजीब है, मेरे को ऐसे स्वर्ग की सीढ़ी पर चढ़ाया और अब लटका कर भाग गयी. जरा छोड़िये ना मेरे हाथ पैर. और लीना को भेजिये ना जरा, जरा कहिये कि उसके इस गुलाम को कैसी तकलीफ़ हो रही है, आकर जरा कृपा कर दे मेरे ऊपर. ऐसा रहा तो मैं तो पागल हो जाऊंगा"

"अनिल बेटा, लीना बहुत दिन बाद मिली है ललित से, बड़े लाड़ करती है अपने छोटे भाई के, अब टाइम तो लगेगा ही, और उसके सुख में खलल डालने की जरूरत नहीं है बेटा, हम सब तो हैं तुम्हारी सेवा करने को. मेरे होते तुम ऐसे तड़पो ये ठीक नहीं है. एक मिनिट बेटे, ये साड़ी गीली हो गयी है, जरा बदल लूं, और बाल भी भीगे हैं, वो क्या है पूजा मैं ऐसे ही भीगे बदन से करती हूं ना." कहकर ताईजी ने साड़ी खोल दी और पूरी नंगी हो गईं. फिर उसी साड़ी से अपने बाल सुखाने लगीं.

उनका गोरा गोरा पके फ़ल जैसा बदन मैं देखता रह गया. जगह जगह बदन थोड़ा नरम हो गया था, याने जवानी जैसा कसा हुआ नहीं था पर गजब की कोमलता थी उनके उस उमर हो चले शरीर में. दोनों उरोज छोटे छोटे पके पपीतों जैसे लटक रहे थे. पेट के आस पास मांस का मुलायम टायर बन गया था, गोरी गोरी जांघें अच्छी खासी मोटी और तंदुरुस्त थीं. जांघों के बीच के रेशम जैसे बालों के जंगल में बीच में एकाध सफ़ेद बाल भी दिख रहा था.

ताईजी ने बाल पोछ कर उन्हें एक ढीले जूड़े में बांध लिया, फिर एक चोली और साड़ी अलमारी में से निकाली. उसे लपेटते हुए मेरी ओर देखा, फिर मेरी आंखों के भाव देखे, तो साड़ी लपेटने के बाद ब्लाउज़ वैसा ही कुरसी पर रख दिया और मेरे पास आकर बैठ गईं. प्यार से मेरे बाल सहलाये. फिर मुझपर झुक कर मेरा लंबा चुंबन लिया. उनके मुलायम गीले होंठ जब मेरे होंठों से मिले और उनके मुंह का स्वाद मैंने चखा तो मन हुआ कि उनको बाहों में भींच लूं और बेतहाशा चूमूं पर हाथ बंधे होने से बस मैं चुपचाप पड़े पड़े बस उनके प्यार भरे चुम्मों के जवाब में मुझसे हो सकता था उतने चुंबन ही दे सकता था.

उहोंने मेरे होठों, गालों और आंखों के खूब सारे चुंबन लिये. जब उनके होंठ मेरे होंठों से मिलते तो मैं बड़े डेस्परेटली उनके मुख रस का पान करने लगता. मन भर के मेरे लाड़ करने के बाद वे नीचे को सरकीं. मेरी छाती और पेट का चुम्मा लिया, बोलीं "बड़ा गठीला बदन पाया है अनिल बेटा, बिलकुल मेरी लीना के जोबन के लायक है."

"जरा और ठीक से चुंबन दीजिये ना ताईजी - प्लीज़ - आप तो बस जरा सा चखाती हैं और मुंह मोड़ लेती हैं"

ताईजी बस हंसीं और फिर मेरे लंड को उंगलियों से पकड़कर इधर उधर फ़िराकर चाटने लगीं. "कितना रस लगा है अभी तक. हमारी मीनल की जवानी भी आजकल पूरे जोरों पर है, मां बनने के बाद तो और गरमा गयी है मेरी बहू, रस तो बहता ही रहता है आजकल उसके बदन से. और अभी हेमन्त भी नहीं है. आज जल्दी में ऑफ़िस गई बेचारी, नहीं तो मेरे साथ कम से कम आधा घंटा बिता कर ही जाती है बहू रानी, उसे थोड़ा शांत कर देती हूं कि ठंडे दिमाग से ऑफ़िस तो जा सके." फिर उन्होंने चाट चाट कर मेरा पूरा लंड साफ़ किया. मेरे मन में मीठी सिहरन दौड़ गयी. कभी ऐसा भी दिन आयेगा कि मेरी पूज्य सासूमां मुझे इस तरह से प्यार कर रही हॊंगी, ये साल भर पहले कोई बताता तो मैं उसे पागल कह देता. अब जिस तरह से वे मेरा लंड चाट रही थीं, बस दो मिनिट और चाटें तो मैं जरूर झड़ जाऊंगा, ये उम्मीद मन में पैदा हो गयी. अनजाने में मैंने अपनी कमर उचका कर उनके मुंह में और लंड पेलने की कोशिश की.

पर मेरा अंदाजा गलत निकला. मेरे लंड पर और मेहरबान होने के बजाय वे फिर से वापस मेरे सिर के पास आकर बैठ गयीं. उनको शायद पता चल गया था कि मैं झड़ने की कगार पर आ गया हूं. लगता है बड़ा लाड़ आ रहा था अपने जमाई पर. जैसे हम प्यार से बच्चों के गाल दबाते हैं, बस वैसे ही मेरे गाल अपनी उंगलियों से पिचकाकर मेरे सिर को इधर उधर हिला कर बोलीं "कितना प्यारा शोना मोना गुड्डा ढूंढा है मेरी लीना ने, जोड़ी लाखों में एक है. पर दामादजी, ये बताओ कि तुमको खुश रखती है ना मेरी लाड़ली? बड़ी हठीले स्वभाव की है, किसी का सुनती नहीं है यहां, एकदम लड़ियाई हुई है"

"ताईजी, मेरी लीना याने अप्सरा है अप्सरा. रोज स्वर्ग दिखाती है मेरे को" मैंने ताईजी की उंगलियों को चूमते हुए कहा जो अब तक मेरे गालों से खेल रही थीं. "और अब मुझे इस स्वर्ग में ले आयी है जहां आप और मीनल जैसी अप्सरायें और देवियां हैं. वो हमेशा बातों बातों में कहती थी कि मेरी मां और भाभी इतनी सुंदर हैं; आज देखा तब यकीन आया." उनकी सब साड़ियां शायद एकदम पतले कपड़े की थीं क्योंकि इस साड़ी के आंचल में से भी उनके प्यारे प्यारे उरोज साफ़ दिख रहे थे.

ताई जी बोलीं "मैं तो शादी के बाद से ही कह रही थी कि लीना बेटी, अब महना हो गया तेरे हनीमून को, अब तो अपने पति को लेकर आ जा हमसे मिलवाने को पर वो सिरफ़िरी लड़की कभी मानती है मेरा कहा? बोली कि अब तो दीपावली पर ही आऊंगी. तब तक अनिल सिर्फ़ मेरा है. वहां लाई तो तुम सब मिलकर उसे निचोड़ डालोगी. अब तुम ही बताओ अनिल बेटा, हमारा भी कुछ अधिकार बनता है या नहीं अपने इस सजीले जमाई पर?"

"आपका तो अब से ज्यादा अधिकार है ताई जी ... पर ममी ... ममीजी ... मुझपे जरा मेहरबानी कीजिये, मुझे पागल होने से बचा लीजिये ... मेरे हाथ खोल दीजिये ना ... लीना नहीं है तो आप ही उसकी जगह ले लीजिये. आपका जोबन देख कर सहा नहीं जा रहा, आप को कस के बाहों में लेकर प्यार करने का जी हो रहा है, लगता है इस रूप को इस लावण्य को पूरा भोग लूं ..." मैंने उनसे प्रार्थना की. मेरा लंड अब मुझे बहुत सता रहा था.

"अभी नहीं अनिल बेटा, ये छोड़ कर कुछ भी बोलो. मैंने तुम्हें खोला तो ये दोनों छोकरियां ... लीना और मीनल ... मुझे चीर फाड़ कर खा जायेंगीं. आज मीनल मुझे बार बार कह कर गयी है कि तुमको ऐसे ही बंधा रखूं. पर और कुछ मेरे करने लायक हो तो जरूर बताओ बेटे." ताईजी बोलीं. "लीना के आने तक तो कम से कम तुम्हारी तकलीफ़ शायद मैं कुछ कम कर सकूं. वैसे इन दो जवान लड़कियों के आगे भला मेरे अधेड़ बदन से क्या लगाव होगा तुम जैसे नौजवान लड़के को"

"ममीजी ... आपके ये मम्मे ... इतने प्यारे गोल कोमल स्तन ... ऐसा लगता है कि हाथ में ले लूं, कबूतर की तरह हथेली में भर लूं, हौले हौले सहलाऊं, सच में कितने मतवाले रसीले फल हैं ताई जी ... जरा ठीक से देखने दीजिये ना फिर से, आपने तो फिर साड़ी लपेट ली" मैंने शिकायत की.

"इतने भा गये बेटे मेरे स्तन तुमको!" ताईजी का चेहरे पर एक असीम सा सुख झलक उठा. "वैसे अभी तुम्हारे हाथ नहीं खोल रही मैं इसलिये मन छोटा ना करो बेटा, अभी तो दो दिन हो ना तुम, तब तक तो खूब खेल लोगे इनके साथ ... और अभी इस हाल में भी मेरे स्तन तुमको भा गये तो जवानी में मुझे देखते दामादजी तो पता चलता कि ... खैर ... अब क्या बताऊं ....लीना जैसे ही थे ... सुडौल ... भरे और तने हुए, अब उमर से लटक गये हैं थोड़े." अपना आंचल गिराते हुए वे बोलीं. उनकी नंगी गोरी गोरी चूंचियां फिर से मेरे सामने थीं. 
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11-05-2018, 02:16 PM,
#5
RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
उन मस्ताने उरोजों को हाथ में लेने के लिये मेरे हाथ नहीं खुलेंगे ये मैंने जान लिया. कसमसा कर बोला "ताईजी ... लटके भले हों पर और मीठे लग रहे हैं ... पके आमों जैसे या ज्यादा पकी हुई बिहियों जैसे .... अब हाथ में नहीं लेने देतीं ये फल तो जरा स्वाद ही चखा दीजिये ना इन आमों का ..."

"आओ ना बेटा ... मेरे सीने से लग जाओ ... भले मेरे दामाद हो पर हो तो मेरे बेटे जैसे ... एक मां अपने बेटे को सीने से तो लगा ही सकती है ..." कहकर ताईजी ने मेरे गाल थपथपाये और मुझपर झुक कर मुझे अपने सीने से लगा लिया. मेरा सिर उनकी नरम नरम चूंचियों के बीच दब गया. मैं सिर इधर उधर करके उनको चूमने लगा. ताईजी ने मेरी खटपट देखी तो अपना एक निपल मेरे मुंह में दे दिया. मैं आंखें बंद करके चूसने लगा. थोड़ी देर से उन्होंने निपल बदल दिया "अब इसे चूसो दामादजी" वे अब करीब करीब मेरे ऊपर ही सो गयी थीं. मेरे गालों पर दबा वो नरम नरम मांस का गोला खा जाने लायक था. मैंने मुंह खोला और निपल के साथ काफ़ी सारा मांस भी मुंह में ले लिया. ताईजी ने सांस ली और अपना आधा मम्मा मेरे मुंह में घुसेड़ दिया.

"बड़ा अच्छा लड़का है तू अनिल. कितने प्यार दुलार से मेरा स्तनपान कर रहा है" वे बोलीं और मेरा सिर कस के सीनेसे भींच लिया. "मुझे बड़ा अच्छा लगता है बेटा जब कोई ऐसे मेरी छाती पीता है. आखिर मां हूं ना, मां जिंदगी भर मां रहती है, भले बच्चे बड़े हो जायें"

मैं अब जोर से सांसें ले रहा था. ताईजी ने पूछा "ये ऐसे क्यों सांस ले रहे हो बेटा, आराम से तो पड़े हो बिस्तर पे. सांस लेने में तकलीफ़ हो रही है क्या ... अच्छा समझी ... मैं भी अच्छी पागल हूं कि तुम्हारा दम घोट रही हूं अपने स्तन से" मेरे मुंह से अपनी चूंची निकालकर वे बोलीं.

"आपका मम्मा क्यों मुझे तकलीफ़ देगा मांजी, मेरा बस चले तो एक साथ दोनों मुंह में भर लूं. वो तो खुशबू आई तो सूंघ रहा हूं मांजी. "

"ऐसी कौनसी खुशबू है दामादजी? मुझे तो नहीं आ रही" ताईजी फिर से अपना निपल मेरे मुंह में देने की कोशिश करते हुए बोलीं.

"गुलाब के फ़ूल को अपनी खुशबू थोड़े आती है ताईजी. एकदम खास खुशबू है, दुनिया की सबसे मादक सुगंध. ये सुगंध है कामरस की. कोई नारी बड़ी बेहाल है कामवासना से, उसकी योनि में से रस निकल रहा है जिसकी मादक खुशबू अब यहां फ़ैल गयी है? अब कौन हो सकता है ताईजी? वैसे है बिलकुल मेरी लीना जैसी खुशबू, पर वो तो यहां है नहीं" मैंने सासूमां की मीठी चुटकी लेते हुए कहा.

अब ताईजी एकदम शर्मा सी गयी "दामादजी ... अब क्या बताऊं ... मेरा हाल आज जरा ठीक नहीं है ... आजकल हेमन्त भी नहीं है ... ललित थोड़ा कच्चा पड़ता है, अभी अभी तो जवान हुआ है बेचारा ... कब से तुम्हारे आने की राह देख रही थी, अब तुम आ गये हो बेटा और ऐसे मेरी बाहों में हो तो ये शरीर आखिर मुआ कहां काबू में रहने वाला है, जरा ज्यादा ही गरमा गयी हूं मैं"

"अब ऐसे शरमाइये नहीं ताईजी ... वैसे शरमा कर आप बला की खूबसूरत लगती हैं ... भगवान करे आपके बदन से ये खुशबू हमेशा आती रहे. पर आप तो बहुत जुल्म कर रही हैं मुझपर, हाथ भी नहीं खोलतीं, मुझे अपने बदन से लिपटने भी नहीं देतीं, कम से कम चखा ही दीजिये ना ये अमरित अपने गुलाम को."

"सच चखना चाहते हो अनिल बेटे?" ताईजी ने पूछा. अब वे धीरे धीरे मेरे बदन पर पड़ी पड़ी ऊपर नीचे हो रही थीं. अपनी टांगों के बीच उन्होंने मेरी जांघ को कस के पकड़ लिया था और मेरी जांघ पर गीलापन महसूस हो रहा था.

"हां ताईजी .., आपका यह आशिर्वाद मुझे दे ही दीजिये या यूं समझ लीजिये कि भक्त प्रसाद मांग रहा है. मेरे हाथ पैर खोल दीजिये तो मैं खुद ले लूंगा, आप को तकलीफ़ नहीं होगी" मैंने एक बार फिर उनको मख्खन लगाने की कोशिश की कि शायद मान जायें.

"वो नहीं होगा जमाई राजा, ऐसे बार बार मत कहो मेरे को, लीना और मीनल तभी मुझे आगाह करके गयी थीं. मुझे भी बार बार मना करना अच्छा नहीं लगता. पर आखिर मेरे जमाई हो, दीपावली पर पहली बार घर आये हो, तुम्हारी सास होने के नाते यहां ससुराल में तुम्हारी हर इच्छा पूरी होना चाहिये, ये मेरे को ही देखना है. वैसे तुम्हारे मन की इच्छा पूरी करने के लिये हाथ खोलने की जरूरत नहीं है बेटा" ताईजी उठ कर सीधी हुईं. फिर अपनी एक टांग मेरे बदन पर रखकर बैठीं, हिल डुल कर सीधी हुईं और फिर दोनों घुटने मेरी छाती के दोनों ओर जमाकर मेरी छाती पर बैठ गयीं.

"माफ़ करना बेटा, मेरे वजन से तकलीफ़ हो रही होगी पर अब मुझे समय लगता है ऐसी कसरतें करते वक्त, पहले जैसी जवान तो हूं नहीं कि फुदक कर इधर उधर हो जाऊं. बस अभी सरकती हूं"

"मांजी, आप जनम भर भी ऐसे मेरे ऊपर बैठ जायें तो आपका वजन मैं खुशी खुशी सहता रहूंगा. पर जरा ऊपर सरकिये ना"

"समझ गयी तुम क्या कह रहे हो अनिल बेटे, बस वही कर रही हूं." कहकर ताईजी थोड़ा ऊपर होकर आगे सरकीं और अपनी साड़ी उठा ली. अब उनकी महकती बुर ठीक मेरे मुंह पर थी. मैं लेटे लेटे वो मस्त नजारा देखने लगा. काले रेशमी बालों के बीच गहरे लकीर थी और दो ढीले से संतरे की फाकों जैसे पपोटे खुले हुए थे. उनमें लाल कोमल मखमल की झलक दिख रही थी. वहां इतना चिपचिपा शहद इकठ्ठा हो गया था कि बस टपकने को था. इसके पहले कि मैं ये नजारा मन भरके देख पाऊं, ताईजी ने थोड़ा नीचे होकर अपनी चूत मेरे मुंह पर जमा दी. "लो बेटे, तुम्हारे मन जैसा हो गया ना?"

मैं लपालप उस गीले चिपचिपे रस के भंडार को चाटने लगा. फिर जीभ निकालकर उस लाल छेद में डाली और अंदर बाहर करने लगा. ताईजी अचानक अपना वजन देकर मेरे मुंह पर ही बैठ गयीं और मेरे होंठों पर अपनी चूत रगड़ने लगीं. उनकी सांस अब जोर से चल रही थी. मेरी पूरा चेहरा उस बालों से ढके मुलायम गीले मांस से ढक गया था. उन्होंने अपनी साड़ी फिर नीचे कर दी थी और अब मेरा सिर उनकी साड़ी के अंदर छिप गया था. हाथ बंधे होने से मन जैसा मैं जरूर नहीं चाट पा रहा था पर जैसा भी जम रहा था वैसा मैं मुंह मार रहा था. जब वे थोड़ी हिलीं और उनकी बुर के पपोटे मेरे होंठों से आ भिड़े तब मैंने उनके चूत ही मुंह में भर ली और कैंडी जैसा चूसने लगा. एक मिनिट में वे ’अं’ ’अं’ करके उचकने लगीं और उनकी योनि ने भलभला कर अपना ढेर सारा रस मेरे मुंह में उड़ेल दिया. फिर वे थोड़ी लस्त हो गयीं और मेरे मुंह पर थोड़ी देर बैठी रहीं. मैं लपालप उस रस का भोग लगाता रहा.

थोड़ी देर में सासूमां बोलीं "कितनी जोर से चूसता है तू बेटा! लगता है काफ़ी देर का प्यासा है. मेरे को लग रहा है जैसे किसी ने निचोड़ कर रख दिया मुझे. पर बहुत प्यारा लगा मुझे तेरा ये तरीका" फिर ताईजी उठीं और सीधी हुईं. मैंने कहा "ताईजी, एकदम अमरित चखा दिया आपने. ऐसा रस किसी फल से निकले तो उसे तो चबा चबा कर खा ही जाना चाहिये"
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11-05-2018, 02:25 PM,
#6
RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
वे सुनने को बेताब थी हीं कि आखिर उनके दामाद को उनके बदन का रस कैसा लगा. मेरी तारीफ़ से वे गदगदा गईं "मुझे लग ही रहा था दामादजी कि अपनी सास बहुत भा गई है आपको. कितने प्यार से जीभ डाल डाल कर चाट रहे थे बेटे, लीना वैसे हमेशा तुम्हारी इस कला के बारे में फोन पर बताती थी, याने तुम जैसे स्वाद ले लेकर रस पीने वाले कम ही होते हैं. आज खुद जान लिया मैंने अपने दामाद का कौशल. कितने दिनों बाद इतना आनंद मिला है, थोड़ा हल्का लग रहा है" फिर घुटने टेक कर वे मेरे ऊपर से उठने लगीं.

मैंने कहा "ममीजी .... ऐसा जुल्म मत कीजिये ... अभी तो बस स्वाद लगा है मुंह में ... मन कहां भरा! जरा मुझे खोल देतीं तो आपकी कमर पकड़कर ठीक से चूसता"

"बस वही कर रही हूं दामादजी. याने आपका मन भर जाये इसकी व्यवस्था कर रही हूं. ऐसे मुंह पर बैठना ठीक है क्या? मेरा इतना वजन है, अपने बेटे जैसे दामाद को तकलीफ़ दी मैंने. पर क्या करूं, उमर के साथ मेरे घुटने दुखते हैं, ज्यादा देर ऐसे घुटनों पर नहीं बैठा जाता मुझसे"

"मांजी, आप दिन भर बैठें तो भी मुझे तकलीफ़ नहीं होगी, बस मुंह में ये अमरित रिसता रहे, और मुझे कुछ नहीं चाहिये. पेट भरके पीने का दिल करता है"

ताईजी मेरे ऊपर से उतर कर बाजू में बैठ गयीं. "ये लीना नहीं आयी अभी, आ जाती तो तुम्हें उसके सुपुर्द कर देती, तुमको ऐसे तड़पाना अच्छा नहीं लग रहा बेटे."

मैंने उनको समझाया "मुझे चलेगा ताईजी, बस आप ऐसे ही मेरे लाड़ करती रहें तो ये सब तकलीफ़ बर्दाश्त कर लूंगा मैं."

सासूमां बोलीं "तुम्हारे लाड़ नहीं करूंगी तो किसके करूंगी बेटा. खैर वो शैतान लड़की अभी आयेगी भी नहीं, जब ललित क्लास चला जायेगा तभी आयेगी. तब तक मैं ऐसे करवट पर सोती हूं. और तुम भी करवट पर आ जाओ अनिल. फिर आराम से चखते रहना तुम्हें जो पसंद आये"

पलंग के रॉड से बंधे मेरे हाथ उन्होंने खोले और बोलीं "अब हाथ पीछे करो बेटा"

मैं चाहता तो अब कुछ भी कर सकता था. उनको पकड़कर दबोच लेता और उनके उस गुदाज बदन को भींच कर उनको नीचे पटक कर चोद डालता तो वे कुछ कर नहीं पातीं. पर मैंने किया नहीं. अपनी सास के आगे बंधकर उनका गुलाम बनकर उनके मन जैसा करने में जो आनंद मिल रहा था वो खोना नहीं चाहता था. मैंने हाथ चुपचाप पीछे किये और ताईजी ने वे मेरी पीठ पीछे वेल्क्रो स्ट्रैप से बांध दिये. फिर पलंग के नीचे वाले रॉड से बंधे मेरे पैर खोले और उनको आपस में बांध दिया. अब मैं बंधा हुआ तो था पर पलंग पर इधर उधर लुढ़क सकता था.

"अब ठीक है. अब मैं और तुम दोनों आराम से लेट सकते हैं, और मैं तुमको जितना तुम चाहो, जितने समय तक चाहो, पिला सकती हूं." ताईजी अपनी करवट पर लेटते हुए बोलीं. करवट पर लेट कर उन्होंने साड़ी कमर के ऊपर की और एक टांग उठा दी. उनकी रसीली बुर पूरी तरह खुल कर मेरे सामने आ गयी. "मेरे प्यारे दामादजी, अब मेरी जांघ को तकिया बना कर सो जाइये. अरे ऐसे नहीं, उलटी तरफ़ से आइये, मुझे भी तो मन बहलाने के लिये कोई खिलौना चाहिये या नहीं?"

मैं उनके पैरों की ओर सिर करके लेट गया और उनकी मोटी गुदाज जांघ पर सिर रख दिया. उन्होंने मेरे सिर को पकड़कर मेरा मुंह अपनी चूत पर दबा लिया और एक सुकून की सांस ली. "अब चूसो अनिल जितना जी चाहे चूसो, ये कहने का मौका नहीं दूंगी अब कि मन भरके रस नहीं चखाया मेरी सास ने. तुम थक जाओगे पर ये रस नहीं खतम होगा." उनकी आवाज में एक बड़ा प्यारा सा गर्व था जैसा सुंदर स्त्रियों को अक्सर होता है जब वे जानती हैं कि लोग कैसे उनको देखकर मरते हैं.

मैंने मस्त भोग लगाया, बहुत देर तक ताईजी के गुप्तांग के चिपचिपे पानी का स्वाद चखा. बूंद बूंद जीभ से सोख ली, बीच बीच में मैं उनकी पूरी बुर को ही मुंह में लेकर आम जैसा चूसता. बिलकुल ऐसा लगता जैसे आम चूस रहा होऊं, उनकी झांटें मुंह में जातीं तो ऐसा लगता जैसे आम की गुठली के रेशे हों. ताईजी ने अब अपनी उठाई हुई टांग नीचे कर ली थी, आखिर वे भी कितनी देर उठा कर हवा में रखतीं. मेरे सिर को उन्होंने अपनी दोनों जांघों की कैंची में पकड़ रखा था और अपनी कमर हिला हिला कर मेरे मुंह पर स्वमैथुन कर रही थीं. मुझे लगता है कि दो तीन बार तो वे झड़ी होंगी क्योंकि कुछ देर बाद अचानक उनका बदन कड़ा हो जाता और वे ’अं’ ’अं’ करने लगतीं. मेरे मुंह में रिसने वाला पानी भी अचानक बढ़ जाता.

उधर ताईजी मेरे लंड से लगातार खेल रही थीं. उसको मुठ्ठी में भरके दबातीं, रगड़तीं, कभी सुपाड़े की तनी चमड़ी पर उंगली से डिज़ाइन बनातीं. वो तो चूस भी लेतीं या कम कम से मुंह में ले लेतीं पर मेरा बदन उनसे काफ़ी दूर था, उनकी बुर चूसने को जो आसन मैंने बनाया था, उसमें मेरी कमर उनके पास ले जाने की गुंजाइश नहीं थी, हम दोनों के बदन एक दूसरे से समकोण बना रहे थे. कभी लंड में होती मिठास जब ज्यादा हो जाती तो मैं अपनी कमर हिला कर उनकी मुठ्ठी में अपना लंड जोर से पेलने की कोशिश करने लगता. पर मेरी सासूजी होशियार थीं, पहचान लेतीं कि मैं झड़ना चाहता हूं तो लंड पर से अपना हाथ ही हटा लेतीं.

ये जुगलबंदी कितनी देर चलती क्या पता, हम दोनों इस खेल में मग्न थे. पर अचानक लीना कमरे में आयी. उसने बस अपनी एक पारदर्शक एकदम छोटी वाली स्लिप पहन रखी थी. स्लिप उसके घुटनों के भी फ़ुट भर ऊपर थी और उसकी मतवाली जांघें नंगी थीं. ऊपर स्लिप के पारदर्शक कपड़े में से उसके भरे हुए गर्व से खड़े उरोज और मूंगफलीके दाने जैसे निपलों का आकार दिख रहा था. तुनक कर वो अपनी मां से बोली "क्या मां, अभी भी लगी हुई है, मुझे लगा ही था कि एक बार शुरू होगी तो बस बंद नहीं होगा तुझसे. मीनल भाभी को जाकर भी एक घंटे से ज्यादा हो गया और तू यहीं पड़ी है. चल अब खतम कर अपने जमाई के लाड़ प्यार. वो राधाबाई आकर बैठी है, आते ही मुझे पकड़ लिया लीना बिटिया बिटिया करके, मुझे छोड़ ही नहीं रही थी, गोद में लेकर क्या क्या कर रही थी, नहीं तो मैं जल्दी आ जाती"

ताईजी ने अपनी टांगें खोलीं और मेरा सिर अपनी जांघ पर से हटाकर नीचे बिस्तर पर रखा. उठकर साड़ी ठीक करके बोलीं "अरे बेटी, तेरा ये पति ही हठ करके बैठा था, उसे के इस हठ को पूरा कर रही थी. भूखा प्यासा है वो, आखिर कब तक उसे ऐसा रखती, तुम दोनों तो गायब हो गयीं. तब तक मेरे जमाई का खयाल तो मुझे ही रखना था ना! तू जा और राधाबाईकी मदद कर, उनको कहना कि अपने लाड़ प्यार को जरा लगाम दें, पहले अनिल के लिये नाश्ता बनायें. मैं बस आती ही हूं. बेटी, अब तक तो बस अनिल की इच्छा पूरी कर रही थी, अब मेरे मन में जो आस है, उसे भी तो थोड़ा पूरा कर लूं, अनिल के साथ फिर कब टाइम मिलेगा क्या पता"

"क्यों मां? तुम सास हो उसकी, जैसा तुम कहोगी वैसा वो करेगा." कहकर लीना मेरे बाजू में बैठ गयी और मेरा चुंबन ले कर बोली "क्यों डार्लिंग? हमारी माताजी - अपनी सासूजी अच्छी लगीं? और हमारी मीनल भाभी - उनके बारे में क्या खयाल है आपना?"

मैंने कुछ नहीं कहा, बस अपनी रानी का जोर से चुम्मा लिया, उसके होंठों का स्वाद आज ज्यादा ही मीठा लग रहा था. उसने आंखों आंखों में मेरा हाल जान लिया और कस कस के मेरे चुंबन लेने लगी. उसके चुम्मों का जवाब देते देते मैंने अपनी कमर सरकाकर ताईजी के बदन से अपना पेट सटा दिया और फिर कमर हिला हिला कर अपना लंड उनकी जांघों पर रगड़ने की कोशिश करने लगा. लीना ने अपनी मां की ओर देखा और मुस्करा दी, शायद आंखों आंखों में कुछ इशारा भी किया. ताईजी फिर से बिस्तर पर मेरे बाजू में लेट गयीं और मेरा लंड अपने मुंह में ले लिया.

"चलो, अब कुछ रिलीफ़ मिलेगा मेरे सैंया को. मां को भी जल्दी हो रही है अब तुम्हारी जवानी का स्वाद लेने की. अब ये बताओ कि तुमको मजा आया कि नहीं? ऐसे खुद को बंधवा कर प्यार कराने में ज्यादा लुत्फ़ आया कि नहीं ये बोलो"

मैं धक्के मार मार के ताईजी के मुंह में लंड पेलने की कोशिश कर रहा था. वे आधा लंड मुंह में लेकर चूस रही थीं. "मेरी हालत पर से ही तुम समझ जाओ रानी कि ममीजी ने मुझे किस स्वर्ग में ले जाकर पटक दिया है. बस अब न तो सहन होता है न ये सुख झेला जाता है. पर तुम बताओ मेरी मां कि मुझे इस रेशमी जाल में फंसाकर तुम कहां गायब हो गयीं सुबह सुबह? मैं तो पागल हुआ जा रहा था यहां"

"गुस्सा मत करो मेरे राजा, मैं ललित के साथ थी. इतने दिन बाद मिली अपने लाड़ले छोटे भैया से. वो भी बस चिपक गया दीदी दीदी करके, छोड़ ही नहीं रहा था. मैंने भी उसे अच्छा कस के रगड़ा घंटे भर, तब जरा जान में जान आयी. ललित को भी क्लास में जाना था इसलिये छोड़ना पड़ा. बीच में बीस मिनिट मीनल भाभी की मदद कर रही थी ऑफ़िस जाने के लिये तैयार होने में"

"अब ये कुछ समझ में नहीं आया...याने जरा समझाओ मेरे को ... मीनल भाभी क्या नर्सरी जाती छोटी बच्ची है कि तैयार होने में, कपड़े पहनाने में, मदद करनी पड़ती है?

"कुछ भी जो मन आये वो मत बको, तुमको मालूम है कि मैं कैसी मदद कर रही थी. शादी के पहले रोज उसको कौनसी ब्रा पहननी है वो मैं ही चुन कर देती थी. उसकी सब ब्रा अधिकतर टाइट हैं, उनका बकल उससे अकेले से नहीं लगता, वो भी मैं लगाती थी, आज बड़े दिनों के बाद फिर से मैंने लगा कर दिया उसको. और उसके पहले मीनल भाभी मुझे ब्रा और पैंटी पहन पहन कर दिखा रही थी, तुमको नहीं मालूम, मैं लाई थी साथ में ब्रा पैंटी के तीन चार जोड़, उसे बहुत शौक है नयी नयी लिंगरी का, अब ब्रा पहनाते पहनाते वो मुझे बता भी रही थी कि आज कल उसके स्तनों में कितनी तकलीफ़ होती है उसको, सूजे सूजे रहते हैं हमेशा"

मैं समझ गया. अनजाने में जरा जोर से लंड फिर पेला ताईजी के मुंह में. इस बार उन्होंने मुंह खोल कर मेरा लंड पूरा ले लिया और फिर अपने होंठ मेरे लंड की जड़ पर बंद करके चूसने लगीं. मैंने हौले हौले धक्के मारना जारी रखा और लीना से बोला "वो मीनल भी कुछ कह रही थी, दूध के बारे में, सोनू को बोतल से पिला देना, फिर ये कि आज सुबह तू आई थी सबसे पहले लाइन लगाने. याने ये सब क्या चल रहा है रानी?"

"अब भोंदू मस्त बनो, सब समझते हो. मैंने भाभी की दोनों चूंचियां खाली कर दीं पेट भर के पिया, इतने दिन बाद फिर वो मीठा दूध मिला, मैं तो तरस गयी थी. वो सोनू अब एक साल की हो गयी है ना, उसको अब ऊपर का दूध चलता है, बोतल से पिला देते हैं. पर भाभी का लैक्टेशन मस्त जोरों पर है. डॉक्टर बोले कि एकाध साल और चलेगा. तब तक हम सब मिल बांट कर चख लेते हैं ये अमृत. सब ललचाते रहते हैं और सब को बस दो दो घूंट मिलता है. मैंने सोचा अब मेरी शादी हो गयी है, मायके आई हूं तो अपना हक जता लूं पहले"

ये सब सुन कर मेरा लंड ऐसा सनसनाया कि मैं कस के धक्के लगाने लगा. उधर ताईजी भी शायद अब जल्दी में थीं ऐसा मस्त जीभ रगड़ रगड़कर चूसा कि मैं एकदम से उनके मुंह में झड़ गया. इतनी देर खड़ा रहने के बाद झड़ने से वो सुख मिला कि चक्कर सा आ गया. उधर ताईजी ने मेरी कमर पकड़कर मन लगाकर मेरा लंड और उससे निकलती मलाई चूस डाली.
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11-05-2018, 02:25 PM,
#7
RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
मेरे पूरे झड़ने तक तो लीना चुप रही, फिर तुनक कर बोली "क्या मां ... झड़ा दिया ना ... अरे और देर खड़ा रखके मजा लेनी थी. मैं तो चार पांच घंटे इसको टांग कर रखती हूं ऐसे, मिन्नतें करता है, रिरियाता है, पैर पड़ता है फिर भी नहीं मानती, क्या मजा आता है जब ये मर्द ऐसे नाक रगड़ते हैं हमारे सामने. और मेरे अनिल को भी मजा आता है इसमें. खैर तूने स्वाद तो ले लिया अपने मन का, पर मीनल भाभी ने जो इसके इस सोंटे का इस्तेमाल किया, वो तूने भी कर लेना था ना, कितना मस्त खड़ा था अनिल का."

"मुझे ऐसे ऊपर से करना नहीं जमता बेटी, ज्यादा देर ऐसे बैठो या उचको तो कमर दुखने लगती है. अच्छा, अनिल के हाथ पैर खोल देती तो वो बेचारा खुद कर देता, मुझे कुछ नहीं करना पड़ता, वो तो कह भी रहा था पर तुम दोनों जता कर गयी थीं कि उसके हाथ पैर ना खोलूं तो मैं भी क्या करती! और अब मुझपर चिढ़ रही हो" ताईजी ने थोड़ा चिढ़ कर कहा.

फ़िर मेरी ओर मुड़ कर बोलीं "वैसे अब आगे करा लूंगी जमाईजी से. मेरा हेमन्त कितनी अच्छी तरह से करता है, ललित भी सीख रहा है. वैसे ही प्यार दुलार से मेरे दामादजी भी मुझे तृप्त कर देंगे, सच कह रही हूं ना अनिल बेटा?"

"ताईजी, आप बस आज्ञा कीजिये, आप जो कहेंगी, जहां कहेंगी, जैसे कहेंगी, जितनी देर कहेंगी वैसी आपकी सेवा कर दूंगा" मैं बोला.

"चल लीना बेटी, अब अनिल को स्नान करा दें" ताईजी बोलीं. "इस बार वो दीपावली की सुबह वाला स्नान कराना रह ही गया अनिल बेटे, तुम दोनों आये ही नहीं दीपावली को. खैर अब एक हफ़्ता देर से सही, पर वो शगुन वाला स्नान तुमको कराना जरूरी है ससुराल में. वैसे बिलकुल तड़के उठाने वाली थी मीनल, पर दामादजी इतनी गहरी नींद सोये थे, वो तरस खा गयी. उसीने मेरे को कहा कि ऑफ़िस जाने के पहले जीजाजी को मैं जगा कर जाऊंगी पर उबटन लगाकर नहला तुम दोनों देना."

"मां, तुमने तो नहा लिया ना? " लीना ने पूछा.

"हां बेटी, वो पूजा करने के पहले नहाया था मैंने"

"फ़िर तुम क्यों वापस गीली होती हो? मैं स्नान करा देती हूं अनिल को"

"नहीं बेटी, मैं भी आती हूं, फिर गीली हो गयी तो क्या बड़ी बात हुई? साल में एक बार तो आती है दीपावली. और आज तो तुम दोनों की पहली दीपावली है यहां घर में, मैं तो आऊंगी" ताईजी दृढ़ निश्चय के स्वर में बोलीं. फिर वे बाथरूम में चली गयीं. "चलो, जल्दी आओ तुम दोनों, मैं हीटर ऑन करती हूं. उबटन भी मीनल बना कर गयी है"

लीना ने दो मिनिट और लाड़ प्यार किया मेरे साथ. मेरे हाथ पैर खोले और मेरे कपड़े निकाले. फिर लंड से पकड़कर मुझे बाथरूम में ले गयी. वहां मांजी गरम पानी बालटी में भर रही थीं. उन्होंने साड़ी निकाल दी थी और फिर एकदम नंगी हो गयी थीं. लीना ने अपनी स्लिप निकालकर रॉड पर टांगी और फिर मां बेटी ने मुझे नहलाना शुरू किया.

मुझे नहलाने का ये कार्यक्रम करीब बीस पच्चीस मिनिट चला. वो भी इसलिये कि राधाबाई नाश्ता बनाकर मुझे खिलाने को तैयार बैठी थीं और उनको नाराज करने का किसी का मूड नहीं था. नहीं तो जिस मूड में ये मां बेटी थीं एक घंटे में भी हमारा यह स्नान होने वाला नहीं था. पहले दोनों मिलकर मुझे नहलाने में लग गयीं. मेरे सारे बदन को उबटन लगाया गया. उबटन लगाने के लिये दोनों ने मेरे बदन के हिस्से कर लिये. लीना कमर के ऊपर मुझे उबटन लगा रही थी और ताईजी कमर के नीचे. लीना ने बस एक दो बार प्यार भरे चुंबन लेते हुए दो मिनिट में अपना काम खतम कर लिया पर मांजी बस लगी रहीं, और सब से ज्यादा वक्त उन्होंने मेरे लंड को उबटन लगाने में लगाया. चारों तरफ़ से लगाया, बार बार लगाया, घिसा, रगड़ा और खूब मला. उस चक्कर में दस मिनिट पहले ही झड़ा मेरा लंड आधा खड़ा भी हो गया.

उसके बाद मांजी लीना से बोलीं कि चल बेटी, अब तुझे नहला दूं. लीना को उबटन लगाने में मैं मदद करने लगा तो उन्होंने मुझे रोक दिया. "रहने दो ना बेटे तुम, तुम तो रोज नहाते होगे इसके साथ. आज इतने दिनों बाद बिटिया सामने है, तो मुझे जरा मन भरके उसे नहलाने दो."

लीना के पूरे बदन की उन्होंने मालिश की. स्तनों पर उबटन लगाते वक्त ताईजी उनको दबा दबाकर बोलीं "अनिल ने बड़ी मेहनत की है लगता है, देख कैसे बड़े हो गये हैं. दामादजी, इनकी बहुत खबर लेते हो लगता है?"

लीना तिरछी नजर से मेरी ओर देखकर बोली "खबर क्या लेते हैं मां, मसलते कुचलते हैं बेरहमी से, लगे रहते हैं भोंपू जैसे बजाने में" अब ये सच नहीं है, लीना के सुंदर स्तनों पर मैं फ़िदा हूं, बहुत प्यार करता हूं उनको पर उसका ये मतलब नहीं है कि उनको मसलता कुचलता रहता हूं. हां पर कभी कभी मस्ती में आकर उनको पूरा पूरा भोगने का मन तो होगा ही ना!

मेरी ओर देखते हुए ताईजी हंस कर बोलीं "है ही मेरी बिटिया इतनी सुंदर, फिर क्यों वो पीछे ना लगे इनके" उसके बाद वे लीना के पेट और जांघों पर उबटन लगाने लगीं. जब उनका हाथ लीना की बुर पर चलने लगा तो लीना ने ’अं’ करके अपनी टांगें आपस में चिपका लीं और अपनी मां का हाथ अपनी जांघों के बीच जकड़ लिया. ताईजी ने हाथ वैसे ही रहने दिया पर जब मैंने ठीक से देखा तो उनकी एक उंगली लीना की बुर की लकीर में आगे पीछे हो रही थी. दो मिनिट लीना वैसे ही रही, फिर अचानक अपनी मां से लिपट गयी और चूमने लगी. मैं समझ गया कि मेरी रानी साहिबा के बुर ने एक झड़ास का मजा तो ले लिया है.

लीना फिर मां से अलग हुई और बोली "चलो मां, अब तुम्हें नहला दें"

ताईजी नखरा करने लगीं "अब मैं क्या छोटी हूं जो मुझे नहलाओगे, ये दीपावली का स्नान तो बड़ी औरतें अपने से छोटों को कराती हैं"

"अब फालतू नखरे मत दिखा मां. मुझे याद है कि पिछले साल मीनल भाभी ने तुमको नहलाया था. अच्छा घंटे भर चल रहा था नहाना, जब मैं बुलाने आयी तब उसने नहलाना और तुमने नहाना छोड़ा था"

अब सासूमां एकदम शर्मा गयीं. झेंप कर बोली "अब मेरी बहू जिद कर रही थी तो कैसे मैं मना करती"

"तो आज तुम्हारे बेटी और दामाद जिद कर रहे हैं. अनिल डार्लिंग, आ जाओ और मेरी मदद करो" लीना मांजी के हाथ पैरों को उबटन लगाने लगी, मौके की जगहें मेरी रानी ने मेरे लिये छोड़ दी. मैंने उनकी छाती से ही शुरुआत की. मुठ्ठी भरके उबटन लिया और उनके उन मुलायम स्तनों को चुपड़ने लगा. पहली बार सासूमां की चूंचियों को मैं हाथ लगा रहा था, अब तक तो सिर्फ़ मुंह लगा पाया था. मैंने ठीक से पूरे उरोजों को उबटन लगाया.

"बस हो गया? इतनी जल्दी? अरे जरा ठीक से मलो ना. कैसे दामाद हो, अब अपनी सास की सेवा का मौका मिला है तो ठीक से मन लगा कर तो करो" लीना ने मेरे को ताना मारा. "और छातियों के बीच भी लगाओ, छातियों को अलग करके" लीना ने हुक्म दिया. मांजी के उन मुलायम मांस के गोलों को मैं अब दबाने और मसलने लगा. उन्हें एक हाथ से अलग किया और उनके बीच उबटन लगाया. फिर दोनों हाथेलियों में एक एक चूंची भरके कायदे से उनको मसलने लगा. ताईजी बस आंखें बंद करके ’सी’ ’सी’ करती हुई आनंद ले रही थीं. थोड़ी देर बाद आंखें खोल कर लीना से बोलीं "बेटी, अब पता चला कि शादी के बाद तेरी छाती इतनी कैसे भर आयी है"

उसके बाद लीना अपनी मां की पीठ मलने लगी और मैं उनके पैरों और जांघों पर आ गया. उन भरी हुई मोटी जांघों की मालिश की और फिर उनके बीच हाथ रखकर घुंघराले रेशमी बालों से भरे उस खजाने में उबटन चुपड़ने लगा. उबटन की स्निघ्धता के साथ साथ मुझे ताईजी के खजाने के अंदर के भाग की चिपचिपाहट महसूस हो रही थी. मैंने लीना ने किया था वैसे ही उंगली बुर की खाई में चलाने लगा. उंगली जब आगे पीछे चलती थी को एक कड़क चना सा उंगली पर घिसता महसूस होता था. ताईजी ने आंखें बंद कीं और चुपचाप बैठी रहीं, बस अपनी जांघें सटा लीं और मेरे हाथ को उनमें पकड़ लिया. लीना ने इशारा किया कि बहुत अच्छे, चलने दो ऐसा ही.

थोड़ी देर बाद ताईजी का बदन थोड़ा अकड़ सा गया और फिर दो मिनिट में उन्होंने आंखें खोलीं. बड़ी संतुष्ट लग रही थीं. लीना बोली "देख तेरे दामाद ने कितने अच्छे से उबटन लगाया तेरे को"

ताईजी कुछ बोली नहीं बस मुस्करा दीं. फिर उन्होंने मग से मेरे ऊपर पानी डालना शुरू किया, हम तीनों ने नहाया और तौलिये से एक दूसरे का अंग पोछने लगे.

मैंने अपना तना लंड लीना को दिखाया और इशारों में पूछा कि अब क्या करूं इसका? मांजी की ओर इशारा करके आंखों आंखों में पूछा कि चढ़ जाऊं क्या तो लीना ने आंखें दिखा कर मुझे डांट दिया.

हम बाहर आये तो मांजी बोलीं "बेटी जरा मेरी एक साड़ी और चोली दे दे उस अलमारी से. वो जा कर देखती हूं कि राधाबाई ने कैसा नाश्ता बनाया है"

"क्या मां तू भी! अब उसके लिये तेरे को कपड़े पहनने की क्या आ पड़ी? वहां राधाबाई ही तो है सिर्फ़ किचन में, घर में और कोई नहीं है. और राधाबाई तो घर की ही हैं ना, उनके सामने कैसी शरम? ऐसे ही चली जाओ"

"अरे ऐसे ही बिना कपड़ों की गयी तो मेरे को पकड़कर बैठ जायेगी बाई, फिर कब छोड़ेगी क्या पता, अब मेरे से उनकी इतनी पुरानी ... याने ... पहचान है कि मना भी नहीं कर सकती. इसलिये बेटी, साड़ी दे दे जल्दी से, और वो सफ़ेद वाली ब्रा और पैंटी भी"

लीना जाकर मां के कपड़े ले आयी. पहनाने में भी मदद की, खास कर ब्रा. ब्रा पहनाते पहनाते लीना ने अपनी मां के स्तन हाथ में लिये और दबा कर देखे, फिर झुक कर निपल भी चूस लिया कुछ देर. फिर सीधी होकर बोली "मां, कितनी नरम और मांसल हो गयी है तू, लगता है तेरा वजन थोड़ा बढ़ गया है"

"हां बेटी, वो क्या है कि महने भर से हमारा वो महिला मंडल भी बंद है, पैदल जाती आती थी तो चलना हो जाता था, वो बंद हो गया"

"चलेगा अम्मा, फ़िकर मत कर, हमें तू ऐसी ही गोल मटोल अच्छी लगती है गुड़िया जैसी" लीना प्यार से बोली.

कपड़े पहनकर ताईजी बोलीं. "लीना, तुझे मार्केट जाना था ना? जा हो आ, तब तक मैं अनिल के नाश्ते का देखती हूं"

लीना उत्सुकता से बोली "मां, मैं भी रुकती हूं, मार्केट बाद में चली जाऊंगी. आज राधाबाई ने वो स्पेशल वाली गुझिया बनाई होगी ना अनिल के लिये?" फिर मेरी ओर मुड़कर बोली "डार्लिंग, राधाबाई क्रीम रोल जैसे लंबी लंबी गुझिया बनाती है, एकदम ए-वन. और मूड में हों तो शहद लगाकर देती हैं खाने को"

"शहद?" मैं चकरा गया.

"शहद, चासनी, घी कुछ ऐसा ही समझ लो. क्यों मां?" लीना ने अपनी मां से पूछा. चेहरा भले ही भोला भाला बनाकर बोल रही थी मेरी लीना पर न जाने मुझे क्यों लगा कि ये जो कह रही है उसमें जरूर कोई शैतानी भरी हुई है.

पर ताईजी ने लीना को अब भगाया. करीब करीब धक्का मार कर बाहर निकाला. "अब तू जा, अनिल को मत सता. राधाबाई ने कहा है ना कि वो खुद अनिल को नाश्ता करवायेंगी. तुझे मालूम है कि उन्हें ऐसे वक्त साथ में कोई हो यह जरा नहीं गवारा होता."

लीना जरा तनतनाती ही गई, जाते वक्त मुझे जीभ निकाल के चिढ़ा कर गई. मांजी ने उसकी ओर अनदेखा करते हुए वो वेल्क्रो स्ट्रैप हाथ में उठाये. मुझे लगा कि वे वापस रखने के लिये ले जाएंगी. पर वे मेरे पास आईं और मुझे कहा "चलिये दामादजी ... हाथ पीछे कीजिये"

मैं चकरा गया, हाथ पीछे करते हुए बोला "अभी भी ये खेल शुरू है ताईजी? मुझे लगा कि अब नाश्ता करते वक्त कम से कम मेरे हाथ खुले रहेंगे. और वो ... याने लीना ने मेरे कपड़े नहीं दिये सूटकेस में से, अब मैं ऐसा ही नंगा कैसे ..."

"चलता है बेटा, अब यहां हो तबतक शायद ही तुमको कपड़े पहनने का मौका मिले, हां बाहर जाना हो तो ठीक है. और नाश्ते की चिंता मत करो, उसके लिये तुमको कोई कष्ट नहीं करना पड़ेगा बेटे, राधाबाई प्यार से अपने हाथ से और ... याने खुद नाश्ता करवा देंगी तुमको. वे भी तो आस लगाये बैठी थीं कि लीना कब तुमको लेकर आती है."

मेरे हाथ पीछे करके उन्होंने बांध दिये और फिर मुझे पलंग पर बिठा दिया. मुझे लगा कि वे अब जायेंगी पर वे मेरे पास बैठ गईं. उसके बाद दस मिनिट तक मेरा लाड़ प्यार चलता रहा. मेरे चुंबन लिये, मेरे लंड को मुठ्ठी में लेकर सहलाया, ऊपर नीचे किया, थोड़ा चूसा भी. आखिर जब तन्नाया हुआ लंड लेकर मैं उठने लगा तो मुझे बिठा कर वे बोलीं "अब बंद करती हूं बेटा नहीं तो बैठी ही रहूंगी, तुमको छोड़ने का दिल नहीं करता. तुम यहीं बैठो बेटे, मैं राधाबाई को भेजती हुं. वो क्या है कि उनका ये स्पेशल नाश्ता खाने के पहले ऐसे मूड में आना जरूरी है, उससे स्वाद दुगना हो जाता है. वैसे खाना भी राधाबाई बहुत अच्छा बनाती है. आज जरा देर हो गयी बेटा नाश्ते में, वो लीना के साथ जरा देर लगायी राधाबाई ने, बहुत दिनों से मिली ना, लीना पर उनका खास प्यार है बचपन से"

ताईजी ने एक बार फिर मुझे आराम से बैठे रहने को कहा और कमरे के बाहर जाने लगीं.

मैंने उनसे कहा "ताईजी ... मुझे अकेला मत छोड़िये ... आप भी रहिये ना यहां" न जाने क्यों राधाबाई के बारे सुन सुन कर में मेरे मन में एक मीठी सी दहशत पैदा हो गयी थी.

"घबराओ नहीं अनिल बेटे." ताईजी बोलीं "राधाबाई भी तो अकेली ही आयेगी. अपनों के बहुत लाड़ प्यार करती है. और तुम्हारी तो कब से राह देख रही हैं वे, आखिर लीना पर उनकी बचपन से खास मर्जी है"

ताईजी जाने के बाद पांच मिनिट में राधाबाई आईं. उन्होंने एक गाउन पहन रखा था. शायद मीनल का होगा इसलिये बहुत टाइट सा था. अच्छी ऊंची पूरी थीं, खाये पिये तंदुरुस्त बदन की. सांवली थीं पर खास दमक थी चेहरे पर. माथे पर बड़ी सी बिंदी थी और गले में सोने की काले मणियों वाली माला. हाथों में खूब सारी चूड़ियां पहने थीं. दिखने में ठीक ठाक ही थीं पर होंठ बड़े रसीले थे, थोड़े मोटे और फ़ूले हुए, बिना लिपस्टिक के भी एकदम गुलाबी थे.

मेरी ओर उन्होंने पैनी नजरों से देखा और फिर बोलीं "दामादजी, भूख लगी होगी ना?"

"हां राधाबाई, सुबह से भूखा हूं यहां अपनी ससुराल में, वैसे भी और वैसे भी. याने बिलकुल भूखा नहीं हूं, ताईजी और मीनल भाभी आकर दिलासा बंधा कर गयीं पर किसी ने ठीक से पूरा तृप्त नहीं किया मेरे को. देखिये ना ऐसे बंधा हुआ हूं सुबह से"

"नाराज न होइये दामादजी, मैंने भी मालकिन से कहा था कि जरा भूखे भूखे रखना उनको, तब तो नाश्ते का असली स्वाद आयेगा. और मैंने ठान रखी थी कि तुमको अपने हाथ से नाश्ता कराये बिना नहीं जाऊंगी गांव, असल में मुझे कल ही जाना था पर रुक गयी जब ये पता चला कि लीना अपने पति के साथ आ रही है. अब शाम को जाऊंगी" वे मेरे पास आकर बैठीं और मेरे बदन पर हाथ फ़ेरने लगीं. मेरी छाती, बाहें और जांघों पर हाथ फ़िराया. बोलीं "बड़े सजीले हो बेटा, मेरी लीना को ऐसा ही मर्द मिलना था."

उठ कर राधाबाई गाउन निकालने लगीं. "बस दो मिनिट जमाईराजा. जरा तैयारी कर लूं तुम्हें कलेवा कराने की." गाउन निकाल कर उन्होंने बाजू में रख दिया. अंदर वे ब्रा वा कुछ नहीं पहनी थीं, हां पैंटी जरूर थी. एकदम भरा हुआ बदन था उनका, हाथ लगाओ उधर नरम नरम माल! ये बड़ी बड़ी छतियां, एक हथेली में न समायें ऐसी. ये मोटी मोटी केले के पेड़ के तने सी सांवली चिकनी जांघें. "चलो उठो बेटा" उन्होंने कहा. मैं चुपचाप उठ खड़ा हुआ छोटे बच्चे जैसा, उनके भरे पूरे बदन के आगे मैं बच्चे जैसा ही महसूस कर रहा था.

"आओ और मेरी गोद में बैठो. मेरे लिये तो तुम इन सब बच्चों जैसे ही बच्चे हो लाला. शादी में नहीं थी मैं नहीं तो गोद में लेकर तुम दोनों को शक्कर तो खिलाती जरूर. अब लीना नहीं है अभी, पर तुमको मैं अपने हाथ से प्यार से खिलाऊंगी."

मुझे उन्होंने किसी छोटे बच्चे की तरह अपनी गोद में बिठा लिया और फिर मेरे गाल पिचका कर बोलीं. "बड़ा प्यारा गुड्डा पाया है लीना बेटी ने. इस गुड्डे से ठीक से खेलती है कि नहीं मेरी बच्ची दामादजी?"

मैं बोला "बहुत खेलती है राधाबाई, मैं थक जाता हूं पर वो नहीं थकती"

"है ही हमारी बेटी ऐसी खिलाड़ी! मैं तो बचपन से मना रही थी कि उसे उसके रूप की टक्कर का जवान मिले ..." मेरे लंड को मुठ्ठी में पकड़कर दबाती हुई बोलीं "एकदम बांस सा कड़क है ... उसके लायक. अब बेटा देखने में तो गुड्डा अच्छा है हमारी बिटिया का और बहुत मीठा भी लगता है, पर देख के स्वाद कैसे पता चलेगा? स्वाद लेना पड़ेगा कि नहीं?"

"हां बाई ... वो ... तो ..." राधाबाई ने मेरे मुंह पर अपने होंठ रखकर मेरी बोलती बंद कर दी और मेरा चुंबन लेने लगीं. थोड़ी देर मेरे होंठ चूसे, फिर बोली "मीठे मीठे हो जमाई राजा. अब बाद में जरा ठीक से चखूंगी पर अब तुमको नाश्ता करा दूं, तुमको और ज्यादा भूखा रखकर पाप नहीं सर लेना मेरे को. ये लो ..."
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11-05-2018, 02:25 PM,
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RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
उन्होंने एक चकली मेरे को खिलाई और फिर चम्मच से हलुआ खिलाने लगीं. एकदम मस्त हलुआ था, घी और बादाम से सराबोर. मैं खाने लगा.

"अच्छा है ना दामादजी?" उन्होंने पूछा. मेरे मुंह में हलुआ भरा था इसलिये मैंने हाथ से इशारा किया कि एकदम फ़र्स्ट क्लास!

वे मुस्करा कर बोलीं "वो क्या है बेटा, जल्दी जल्दी में बनाया इसलिये खुद चख नहीं पायी कि कैसा बना है" उन्होंने मेरे सिर को पकड़कर पास खींचा और मेरे मुंह पर मुंह रख दिया. जबरदस्ती मेरा मुंह अपने होंठों से खोल कर उन्होंने मेरे मुंह में का हलुआ अपने मुंह में ले लिया और खाने लगीं. "हां अच्छा है बेटा. वैसे अच्छा बना होगा पर शायद तेरे इस प्यारे प्यारे मुंह का स्वाद लगकर और मीठा हो गया है ..."

वे प्यार से मेरे को हलुआ खिलाती रहीं. बीच में मैंने पूछा "बाई, वो लीना कह रही थी कि आप गुझिया बड़ा अच्छा बनाती हैं, जरा खिलाइये ना, यहां प्लेट में तो दिख नहीं रहा है"

"चिंता मत करो दामादजी, खास बनाई हैं आप के लिये. धीरज रखो. ये लीना बिटिया भी बड़ी शैतान है, मैंने जताया था उसको कि आप को कुछ ना कहे इस बारे में पर वो सुनती है कभी किसी की? ये लो हलुआ और लो"

"नहीं राधाबाई .... बहुत खा लिया"

"फ़िर लड्डू खाओ बेटा ... कम से कम एक तो चखो" उन्होंने प्लेट में से एक लड्डू लेकर अपने होंठों में दबा लिया और प्यार से मेरे मुंह के पास अपना मुंह ले आयीं. फिर हथेली में लंड ले कर ऊपर नीचे करने लगीं. मैंने उनके मुंह से मुंह लगाकर अपने दांतों से आधा लड्डू तोड़ा और खाने लगा.

राधाबाई जो नाश्ता मुझे करा रही थीं, वह बहुत स्वादिष्ट था. मेरी सास सच बोली थीं कि वे खाना अच्छा बनाती हैं. पर उससे ज्यादा जो गजब का स्वाद मुझे आ रहा था, वो नाश्ता कराने के इस उनके अनूठे ढंग का था. मैं जब तक आधा लड्डू खा रहा था, राधाबाई ने बचा हुआ लड्डू अपने मुंह में ही रखा. फिर अपने मुंह से सीधे मेरे मुंह में दे दिया. मेरा सिर उनकी बड़े बड़े छातियों पर तकिये जैसा टिका हुआ था. उनके कड़े तन कर खड़े निपल मेरे गालों पर चुभ रहे थे. मेरे लंड को वो इतने मस्त तरीके से मुठिया रही थीं कि अनजाने में मैं ऊपर नीचे होकर उनकी हथेली को चोदने की कोशिश करने लगा. थोड़ा सिर तिरछा करके मैंने उनके बड़े बड़े मम्मों का नजारा देखा और मन में आया कि लड्डू खाने के पहले इन मम्मों का स्वाद ले लेना था.

मेरे मुंह का लड्डू खतम होने के बाद राधाबाई ने अपने मुंह में पकड़ रखा आधा लड्डू भी एक चुम्मे के साथ मेरे मुंह में दे दिया. अब मुझे बस यही सूझ रहा था कि उनको चोद डाला जाये, लंड इतना मस्त खड़ा था कि और कुछ करने का सबर नहीं बचा था.

पर राधाबाई तैयार हों तब ना. लड्डू खतम होते ही मैं उठने लेगा तो मुझे पकड़कर उन्होंने वापस गोद में बिठा लिया और एक निपल मुंह में ठूंस दिया "इतनी जल्दी क्यों कर रहे हो बेटा? तब से देख रही हूं कि बार बार मेरी छतियों पर निगाह जाती है तुम्हारी. अच्छी लगीं तो चूस लो ना, मेरे लिये तो खुशी की बात है"

मैं आराम से मम्मे चूसने लगा. मन में आया कि ऐसे सूखे चूसने के बजाय इनमें कुछ मिलता तो मजा आता.

लगता है राधाबाई को मेरे मन की बात पता चल गयी क्योंकि प्लेट नीचे रखकर बोलीं " बेटा, असल में तेरे को दूध पिला सकती तो मुझे इतना सुकून मिलता कि ... पांच साल पहले भी आते तो पेट भरके स्तनपान कराती तुमको. लीना बिटिया को तो कितना पिलाया है मैंने. स्कूल और कॉलेज जाने के पहले और कॉलेज से आकर मेरे पास आती थी वो. उसमें और ललित में तो झगड़ा भी होता था इस बात को, ललित को तो बेचारे को मारकर भगा देती थी वो. फिर मैंने दोनों का टाइम बांध दिया, सुबह लीना और शाम को ललित"

मेरा लंड अब मस्त टनटना रहा था. उसको मुठ्ठी में पकड़कर दबाते हुए राधाबाई ने ऊपर नीचे करके सेखा और बोलीं. "इसका भी तो स्वाद चखना है मेरे को. पर दामादजी, अभी काफ़ी टाइम है अपने पास, इसीलिये मैंने मालकिन को कहा था कि मुझे कम से कम एक घंटा लगेगा दामादजी को ठीक से दीवाली का नास्ता कराने में. अब गुझिया खा लो पहले, याने नाश्ते का काम मेरा खतम. फ़िर आराम से जरा लाड़ प्यार करूंगी आपके"

मुझे बाजू में करके राधाबाई खड़ी हो गयीं और जाकर कुरसी में बैठ गयीं. फ़िर अपनी पैंटी निकाली और पैर एक दो बार खोले और बंद किये. मैं देख रहा था. एकदम मोटी फ़ूली हुई चिकनी बुर थी. बाल साफ़ किये हुए थे. मुझे तकता देख कर बोलीं "अब ऐसे घुघ्घू जैसे क्या देख रहे हो बेटे? गुझिया चाहिये ना? फ़िर आओ इधर जल्दी"

"पर गुझिया किधर है राधाबाई? दिख नहीं रही" मैंने कहा जरूर पर अब तक मैंने ताड़ लिया था कि राधाबाई अपनी वो फ़ेमस गुझिया कैसे लाई थीं मुझे चखाने को. उनकी इस रंगीन तबियत को मेरे लंड ने उचक कर सलामी दी.

"ये क्या इधर रही. एक नहीं दो लाई हूं" अपनी जांघें फैला कर उंगली से अपनी चूत खोल कर राधाबाई बोलीं. मैं उनके सामने नीचे उनके पैरों के बीच बैठ गया और मुंह लगा दिया. हाथ बंधे थे इसलिये जरा ठीक से मुंह नहीं लगा पा रहा था, नहीं तो मन हो रहा था कि उनकी कमर पकड़कर अपना मुंह ही घुसेड़ दूं उस खजाने में.

पर राधाबाई ने मेरी मुश्किल आसान कर दी. मेरे सिर को पकड़कर मेरा मुंह अपनी बुर पर दबा लिया "ललित को तो बहुत अच्छी लगती है. कहता है कि बाई, तुम्हारे घी में सनी गुझिया याने क्या बात है. अब इतनी बार सब को खिलाना पड़ता है इसलिये बाल साफ़ रखती हूं नहीं तो मुंह में आते हैं. अब खाने में बाल तो अच्छे नहीं लगते ना!"

राधाबी की चूत में से गुझिया निकलने लगी. उन्होंने उसे क्रीमरोल के शेप में बनाया था. "इसको ऐसा लंबा केले जैसा बनाती हूं बेटे, नहीं तो वो गोल गुझिया अंदर जाती नहीं ठीक से. वैसे ललित को केले खाना भी बहुत अच्छा लगता है इसी तरह से"

मैंने मन लगाकर उस दावत को खाया. गुझिया वाकई में बड़ी थी, और ऊपर से राधाबाई की बुर के चिपचिपे घी से और सरस हो गयी थी. एक खतम करने के बाद मैं मुंह हटाने वाला था कि दूसरी भी बाहर निकलना शुरू हो गयी. मैंने मन ही मन दाद दी, क्या कैपेसिटी थी इस औरत की.

"अच्छी लगीं दामादजी?"

"एकदम फ़ाइव स्टार राधाबाई. अच्छा ये बताइये कि इतनी देर आपके घी में डूबने के बाद भी अंदर से इतनी कुरकुरी हैं? इतनी देर अंदर रहकर तो उनको नरम हो जाना था?"

"वो कितनी देर पहले अंदर रखना है, इसका अंदाजा अब मेरे को हो गया है. कम देर रखो तो ठीक से स्वाद नहीं लगता, ज्यादा रखो तो भीग कर टूटने लगती हैं. आज तो मैंने बिलकुल घड़ी देख कर टाइम सेट किया था. वैसे केले हों तो टाइम की परवा नहीं होती. मैं तो चार चार घंटे केले अंदर रखकर फ़िर ललित को खिलाती हूं"

मुझे ललित से, अपने उस साले से जरा जलन हुई. क्या माल मिलता था उसको रोज. वैसे राधाबाई की रंगीन तबियत देखकर ये भी अंदाजा हो गया था कि वे पूरा वसूल लेती होंगी ललित से.
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11-05-2018, 02:26 PM,
#9
RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
गुझिया निकलने के बाद अब उनकी बुर से रस टपक रहा था. मैंने भोग लगाना शुरू कर दिया. राधाबाई एकदम खुश हो गयीं. मेरा सिर पकड़कर मुझसे ठीक से चूत चटवाते हुए बोलीं. "शौकीन हो बेटे, बड़ी चाव से चख रहे हो. मुझे लगा था कि गुझिया खतम होते ही मेरे ऊपर चढ़ने को बेताब हो जाओगे"

"बाई, ये घी तो असला माल है, इसको और मैं छोड़ूं! वैसे आप ठीक कह रही हैं, मन तो होता है कि आप पर चढ़ जाऊं और पटक पटक कर ... याने आपके इस खालिस बदन का मजा लूं पर आप जो ऐसे मुझे हाथ बांधकर तड़पा रही हैं ... उसमें भी इतनी मिठास है कि ..." राधाबाई ने मेरा मुंह अपनी बुर में घुसेड़कर मेरी आवाज बंद कर दी और आहे पीछे होकर मेरे मुंह को चोदने लगीं. उनकी सहूलियत के लिये मैंने अपनी जीभ अंदर दाल दी. "ओह .. हाय राम ... मर गई मैं ..." कहकर उन्होंने अपना पानी मेरे मुंह में छोड़ दिया.

थोड़ी देर तक वे दम लेने को बैठी रहीं, फ़िर मुझे उठाकर बिस्तर पर ले गयीं "सचमुच रसिया हो बेटे, इतने चाव से बुर का शहद चाटते हो. असली मर्द की पहचान है यह कि बुर का स्वाद उसको कितना भाता है. चलो, तुमको जरा आराम से चटवाती हूं. और मुझे भी तो ये गन्ना चूसना है"

"राधाबाई ... अब तो इस दास के हाथ खोल दीजिये. आपके इस गदराये बदन को बाहों में भींचना चाहता हूं. आपको पकड़कर फ़िर कायदे से आपका रसपान करूंगा, अब रसीला आम चूसना हो तो हाथ में तो लेना ही पड़ता है ना"

"बस, अभी छोड़ती हूं बेटा, बोलते बड़ा मीठा हो तुम" राधाबाई ने मेरे हाथ खोले और उलटी तरफ से मुझे अपने नरम नरम गद्दे जैसे बदन पर सुला लिया. मैंने उनके बड़े बड़े गुदाज चूतड़ बाहों में भरे और सिर उनकी जांघों के बीच डाल दिया. राधाबाई ने मेरा गन्ना निगला और दोनों शुरू हो गये. पांच मिनिट में मुझे घी और शहद मिल गया और उनको क्रीम.

हांफ़ते हुए हम कुछ देर पड़े रहे. फ़िर उठ कर मैं सीधा हुआ और बाई से लिपट गया. "बाई, पहले ही हाथ खोल देतीं तो गुझिया खाने में आसानी नहीं होती मेरे को?"

"नहीं दामादजी, बल्कि जल्दबाजी में मजा किरकिरा हो जाता. मेरे को मालूम है, सब मर्द कैसे हमेशा बेताब रहते हैं, इस गुझिया का असली मजा वो धीरे धीरे खाने में ही है. मेरे को भी ज्यादा मजा आता है और खाने वाले को भी. इसलिये तो हाथ बांधना चालू किया मैंने. सब को बता रखा है कि गुझिया खाना हो, तो हाथ बंधवाओ. खाने वाले को अपने होंठों से मेरी चूत खोलनी पड़ती है, उसमें मुंह डाल कर जीभ से गुझिया का सिरा ढूंढना पड़ता है, फ़िर दांत में पकड़ पकड़कर उसे धीरे धीरे बाहर खींचना पड़ता है, मुझे क्या सुख मिलता है, आप को नहीं मालूम चलेगा" फ़िर वे बेतहाशा मेरे चुंबन लेने लगीं. चूमा चाटी करके फ़िर एक निपल मेरे मुंह में दिया और मुझे कसकर सीने से लगा लिया.

दो मिनिट में मुझे नीचे सुलाकर वे मेरी कमर के पास बैठ गयीं. मेरा मुरझाया शिश्न हाथ में लेकर बोलीं "जाग रे मेरे राजा, तेरा असली काम तो तूने अब तक किया ही नहीं, जब तक नहीं करेगा, तब तक तेरे को नहीं छोड़ूंगी"

"बाई, वो बेचारा दो बार मेहनत कर चुका है सुबह से. अब थोड़ा टाइम तो लगेगा ही. पर आप तब तक मेरे साथ गप्पें मारिये ना, आपकी बातें सुनने में बड़ा मजा आता है. कोई अचरज नहीं कि लीना को आप से इतनी मुहब्बत है"

"वो तो है. पर बेटा, एक बात कहूंगी, तुम बिलकुल वैसे निकले जैसा मेरे को लगता था. लीना के बारे में हमेशा मुझे चिंता लगी रहती थी. उसे रूप की गर्मी सहन कर सके ऐसा मरद मिले ये मैं मनाती थी. अब देखो कितनी खुश है. और तुम इसकी चिंता ना करो" मेरे लंड को पकड़कर वे बोलीं. "इसको मैं देखती हूं, मेरी स्पेशल मालिश शुरू होने दो, तुरंत जाग जायेगा बदमाश"

मुझपर झुक कर उन्होंने मेरी लुल्ली अपनी उन बड़ी बड़ी छतियों के बीच दबा ली और फ़िर खुद अपनी चूंचियों को भींच कर ऊपर नीचे करते हुए मेरे लंड की मालिश करने लगीं. जब लंड ऊपर होता तो बीच बीच में जीभ निकालकर सुपाड़े को चूम लेतीं या जीभ से रगड़तीं. मैंने हाथ बढ़ाया और उनकी बुर में दो उंगलियां डाल कर घुमाने लगा. अभी भी घी टपक रहा था, आखिर एक बढ़िया कुक थीं वे.

उन मुलायम गुब्बरों ने मेरे लंड को पांच मिनिट में कड़क कर दिया. "देखिये दामादजी, जाग गया ना? अब इसे जरा मेहनत कराइये, बहुत देर सिर्फ़ मजा ले रहा है ये" वे बिस्तर पर लेट गयीं और मुझे ऊपर ओढ़ लिया.

उनके गरम घी के डिब्बे में अपना बड़ा चम्मच डालता हुआ मैं बोला "बाई, मेरे को लगा कि तुम भी मेरे को लिटाकर ऊपर से चोदोगी. आज सब मेरे साथ यही कर रहे हैं. हाथ पैर बांधकर डाल देते हैं और मुझपर चढ़ कर चोद डालते हैं, जैसी चाहिये वैसी मस्ती कर लेते हैं"

"अब नाराज ना हो बेटा, ये सब तुम्हारे भले के लिये ही किया है उन्होंने. तुमको सांड जैसे खुला छोड़ देते तो अब तक चार पांच बार झड़कर लुढ़के होते कहीं. उसके बाद वे क्या करते? मेरे नाश्ते का क्या होता? तुमको दिन भर मजा लूटना है बेटा, इसलिये सब्र करना जरूरी है. वैसे मैं तुमपे चढ़ भी जाती तो ये मुआ बदन मेरे को ज्यादा देर कुछ करने देता? थक कर चूर हो जाता"

"अपने बदन को भला बुरा मत बोलो बाई. मस्त भरा पूरा मांसल मुलायम मैदे का गोला है. इसको बाहों में लेने वाले को स्वर्ग सुख मिलता है" मैंने धीरे धीरे लंड उनकी बुर में चलाते हुए तारीफ़ की.

"आपको अच्छा लगेगा अनिल बाबू ये मेरे को विश्वास था, आखिर इस घर में मेरे जो सब चिपकते हैं उसकी कोई तो वजह होगी. पर सच में बेटा, आज कल मेरा सांस फूल जाती है इसलिये जवानी जैसी चुदाई अब कहां कर पाती हूं, तब देखते, एक एक को पटक कर ऐसी रगड़ती थी मैं ... खैर जाने दो बेटा, अब तुम मेरे को अपनी जवानी दिखाओ, चोद डालो हचक हचक कर ... मैं तो राह ही देख रही थी अपने जमाई राजा की" मुझे नीचे से कस के बाहों में बांधती राधाबाई बोलीं. "वो बात क्या है बेटा, अभी यहां ज्यादातर सब औरतें ही हैं. वैसे वे सब भी मेरा बहुत खयाल रखती हैं, मेरे अंग लगती हैं मेरे को दिलासा देने को, मीनल बिटिया तो आफ़िस जाने के पहले पंधरा मिनिट मुझे अपने कमरे में बुलाती ही है, मालकिन तो हमेशा ही रहती हैं घर में, हर कभी मेरे साथ लग जाती हैं, अब लीना बिटिया आ गयी है तो वो तो मेरे को छोड़ती ही नहीं. पर बुर रानी की कूट कूट कर ठुकाई करने के लिये सोंटा चाहिये, वो कहां से आयेगा. अब हेमन्त भैया भी बाहर रहे हैं इतने दिनों से. और मेरी इस बेशरम चूत को तो आदत है कि दो तीन घंटे ठुकाई ना हो तो बेचैनी होने लगती है ... तो बेटे अब जरा अपनी इस बाई को खुश कर दो आज"

"चिंता ना करो बाई, आज तुम्हारी बुर को ऐसे सूंतता हूं कि दो तीन दिन चुप रहेगी. पर बाई, ये समझ में नहीं आया कि ललित तो है ना यहां. याने सब औरतें नहीं हैं, एक तो जवान छोकरा है ना. तुम्हारा लाड़ला भी है, वो इसकी खबर नहीं लेता?" मैंने बाई की बुर में धक्के लगाते हुए चोदना शुरू करते हुए कहा.

"कहां अनिल बाबू, वो भी कहां ज्यादा घर में रहता है, अब वो स्कूल में थोड़े ही है, कॉलेज में गया है, बहुत पढ़ाई करना पड़ती है. पिछले साल बोर्ड की परीक्षा थी. अब उस बेचारे का जितना टाइम है, वो मालकिन और मीनल बिटिया को ही नहीं पूरा पड़ता तो मैं कहां बीच में घुसने की कोशिश करूं? हेमन्त भैया थे तब बात अलग थी. और अब तो कुछ ना पूछो. लीना बेटी तो एक मिनिट नहीं छोड़ती उसको, आखिर अपनी दीदी का लाड़ला है. आज सुबह से तो दिखा भी नहीं मेरे को, लीना ने अपने कमरे से बाहर ही नहीं आने दिया उसको ... हां ... आह ... आह ... बस ऐसा ही धक्का लगाओ मेरे राजा ... उई मां ... कितनी जोर से पेलते हो बेटा ... लगता है मेरे पेट में घुस गया ... हाय ... चोद डाल मेरे बेटे ... चोद डाल ..." मस्ती में बेहोश होकर राधाबाई नीचे से कस कस के धक्के लगाती हुई बोलीं.

आखिर जब मैं झड़ने के बाद रुका, तब तक राधाबाई की बुर को ऐसा रगड़ दिया था कि वे तृप्त होकर बेहोश सी हो गयी थीं. आज पहली बार मुझे ठीक से चोदने मिला था, उसका पूरा फायदा मैंने ले लिया था. मेरे खयाल से वे दो तीन बार झड़ी थीं. उन्होंने इतना बढ़िया नाश्ता कराया था, उसका भी कर्जा उतारना था मेरे को.
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11-05-2018, 02:26 PM,
#10
RE: Incest Kahani ससुराल यानि बीवी का मायका
संभलने पर राधाबाई ने पड़े प्यार से मेरा चुंबन लिया. फ़िर उठकर मुझे बचा हुआ बादाम का हलुआ जबरदस्ती खिलाया "अब खा लो चुपचाप. इतनी मेहनत की, आगे भी करनी है, पाव भर बादाम डाले हैं मैंने इसीलिये. पेट भर खा लो और थोड़ा आराम भी कर लो, मैं सबको बता देती हूं कि दो तीन घंटे कोई परेशान नहीं करेगा अब."

फ़िर कपड़े पहन रही थीं तब बोलीं " अब कब दर्शन दोगे जमाईराजा? मैं तो गांव जा रही हूं, वापस आऊंगी तब तक तुम जा चुके होगे. अगले साल मिलोगे ऐसा बोलने का जुलम मत करो बेटा. जल्दी आओ. अभी तो कितनी मौज मस्ती करनी है तुम्हारे साथ, इतने खेल थे जो तुम्हारे साथ खेलने में मजा आता"

"बाई, तुमने बंबई देखी है?" मैंने पूछा. "नहीं ना, मुझे लगा ही था. फ़िर ऐसा करो, तुम ही बंबई आ जाओ. दो हफ़्ते रहो. बंबई भी दिखा देंगे और खेल भी लेंगे जो खेल तुमको आते हैं"

राधाबाई की बांछें खिल गयीं. "हां मैं आऊंगी बेटा. लीना बिटिया को बोल कर रखती हूं कि दो माह बाद ही मेरा टिकट बना कर रखे. अब चलती हूं, घर जाकर तैयारी करना है, गांव की बस छूट जायेगी.

"पर गांव क्यों जा रही हो बाई, बाद में चली जाना, रुक जाओ दो दिन"

"नहीं बेटा, मेरा छोटा भाई और उसकी बहू मेरी राह देख रहे हॊंगे. दीवाली में नहीं जा पाई तो बड़े नाराज हैं. वो बहू तो कोसती होगी मेरे को. वो क्या है, मैं उसके बहुत लाड़ करती हूं, बचपन से जानती हूं ना. समझ लो जैसी लीना बिटिया यहां है, वैसे वहां वो है. छोटे भैया की शादी भी उससे मैंने ही कराई थी. और मेरा भाई भी बड़ा दीवाना है मेरा, बिलकुल अपने ललित जैसा. बस जैसे यहां का हाल वैसा ही समझ लो. इसलिये मेरे को भी नहीं रहा जाता, साल में तीन चार बार हो आती हूं"

मुझे पलंग पर धकेल कर उन्होंने फ़िर से मेरा कस के चुम्मा लिया "छोड़ा तो नहीं जा रहा तुमको पर ... अब आप सो जाओ दामादजी"
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