Hot stories घर का बिजनिस
06-23-2017, 10:25 AM,
#1
Hot stories घर का बिजनिस
घर का बिजनिस --1

मेरे घर में हम 7 लोग रहते हैं और घर में 4 रूम और एक बैठक के अलावा एक हाल-रूम है जहाँ हम लोग खाना खाते और टीवी देखते हैं। एक रूम अम्मी और बापू का है, एक बापू की बहन (यानी फूफी) का है जो तलाक-शुदा हैं। एक मेरी बहनों का रूम है और एक मेरा रूम है जहाँ अगर कोई गेस्ट आ जाये तो मुझे वहाँ से बुआ (मतलब फूफी) के रूम में या फिर बहनों के रूम में शिफ्ट करना पड़ता है।

अब चलते हैं कहानी की तरफ:

सबसे पहले मैं आप लोगों से अपना और घर वालों का परिचय करवा दूँ। बाकी जो लोग बाहर के हैं वक़्त के साथ ही उनका भी परिचय करवा दिया करूंगा।

बापू- अमित शाह; उम्र 45 साल; किराना की दुकान है जहाँ से बड़ी मुश्किल से घर का खर्चा निकल पाता है।

अम्मी- ऊषा शाह; उम्र 42 साल; एकदम फिट और सेक्सी फीगर की मालिक; घर का सारा काम अम्मी और बुआ ही संभालती हैं।

बुआ- नीलम शाह; पापा की छोटी बहन; उम्र 31 साल; तलाकशुदा; काफी फिट और सेक्सी हैं।

दीदी- अंजली शाह; उम्र 21 साल; रंग गोरा; स्लिम & स्मार्ट जिश्म की मालिक; गाण्ड थोड़ी सी पीछे को निकली हुई, जो कि दीदी को और भी सेक्सी बना देती है।

मैं- आलोक शाह; उम्र 19 साल; कसरती जिश्म का मालिक; एफ॰ए॰ से आगे नहीं पढ़ा और अब दिन में बापू के साथ दुकान को देखता हूँ। और जबकी ये कहानी है तब तक बस एक बार ही फुद्दी ली थी लेकिन एक आंटी की।

पायल- उम्र करीब 18 साल; सेक्सी जिश्म की मालिक है और हर वक़्त हँसती मुश्कुराती रहती है।

स्वीटी- उम्र करीब 18 साल; चढ़ती जवानी; घर भर की लड़ली है क्योंकि सबसे छोटी है।\

तो दोस्तों ये था मेरा और घर वालों का परिचय। अब चलते हैं कहानी की तरफ। ये कहानी और उम्र जो मैंने लिखी है आज से 3 साल पहले की है। 

जब से मैंने बापू के साथ दुकान पे जाना शुरू किया था, तब से बापू ने दुकान पे बैठना कम कर दिया था और ज्यादा वक़्त घर में ही गुजारा करते थे।

जब से मैंने दुकान पे बैठना शुरू किया था, दुकान तो पहले की तरह ही चलती थी लेकिन पता नहीं कैसे घर का खर्चा अब खुले हाथ से पूरा होना शुरू हो गया था। मैं इसकी वजह ये ही समझा था कि शायद बापू ने अब दुकान के अलावा कहीं और भी काम ढूँढ़ लिया होगा, जिसकी वजह से मैंने कभी गौर नहीं किया।

एक दिन मैं अपनी दुकान पे ही बैठा हुआ था कि एक ग्राहक आया और मुझसे कुछ सामान माँगा। जब मैं सामान देने के लिए उठा तो देखा कि सामान खतम हो चुका है। क्योंकि ग्राहक भी हमारी ही दुकान से सामान लेता था, इसलिए मैंने उससे कहा कि आप घर जाओ, अभी सामान आता है तो मैं आपके घर भिजवा दूँगा। उसके जाने के बाद मैंने दुकान का जायजा लिया तो काफी सामान खतम हो चुका था। इसलिए मैंने बापू को काल किया तो बापू का नंबर स्विच-आफ आ रहा था।

मैंने कुछ देर सोचा और दुकान को थोड़ी देर के लिए बंद कर दिया और घर की तरफ चल पड़ा कि बापू को जाकर बता देता हूँ कि सामान खतम हो गया है जो कि मंगवाना है।
जब मैं अपनी गली में पहुँचा तो वहाँ टेंट लगे हुये थे, क्योंकि वहाँ शादी हो रही थी। इसलिए मैं दूसरी गली की तरफ मुड़ गया जो कि हमारे घर के पीछे थी। उस गली में सब घरों का पिछवाड़ा था और लोगों ने बैठकें बनाई हुई थी जिसकी वजह से वहाँ अक्सर कोई भी नहीं होता था। मैं भी इसीलिए इस तरफ आ गया था कि चलो बैठक की तरफ से घर में चला जाता हूँ। जैसे ही मैं घर की बैठक के पास गया और दरवाजे को खटखटाया तो एक आदमी ने जो कि सिर्फ़ निक्कर में ही था, दरवाजा खोला तो मैं हैरान रह गया कि ये कौन है? जो हमारे घर में इस तरह खड़ा हुआ है।

उस आदमी ने कहा- कौन हो भाई? और यहाँ क्यों आ गये हो?

मैंने कहा- ये तो आप बताओ कि आप कौन हो? और हमारे घर में क्या कर रहे हो? और इतना बोलते ही मैं अंदर दाखिल हो गया और अंदर दाखिल होते ही जो नजारा मेरी आँखों ने देखा मुझे उस पे यकीन नहीं हुआ। बैठक में बुआ बेड पे नंगी लेटी हुई थी और दरवाजे की तरफ ही देख रही थी। जैसे ही बुआ की नजर मेरे ऊपर पड़ी, बुआ घबराकर उठी और बगल से चादर उठाकर अपने ऊपर कर ली।

मुझे कुछ देर तक तो समझ में ही नहीं आया कि ये हो क्या रहा है? और मुझे करना क्या चाहिए?

तभी वो आदमी जो कि बैठक में बुआ के साथ ही था बोल पड़ा- हाँ भाई कौन है तू? और यहाँ क्यों आ मरा है?

इससे पहले कि मैं कुछ बोलता बुआ ने हल्की सी आवाज में कहा- आलोक, तुम घर में जाओ और अपनी अम्मी के पास बैठो। मैं अभी कुछ देर आती हूँ।

मैंने कहा- लेकिन बुआ, ये सब क्या है? और मैं क्यों जाऊँ यहाँ से? और ये कौन है? बताओ मुझे।

बुआ ने कहा- आलोक, अभी तुम अपनी अम्मी के पास जाओ। वो तुम्हें सब कुछ बता देंगी और अगर फिर भी मुझसे कुछ पूछना हुआ तो पूछ लेना।

मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। लेकिन मैं ये भी नहीं चाहता था कि यहाँ कोई शोर शराबा हो और लोग जमा हो जायें क्योंकि इसमें हमारे घर की ही बदनामी थी। मैं वहाँ से सीधा घर की तरफ का दरवाजा खोलकर जैसे ही घर में दाखिल हुआ कि अम्मी ने, जो कि सामने हाल में ही बैठी हुई थीं, मुझे देख लिया और एकदम से घबरा गई और बैठक की तरफ देखने लगी।

मैंने कहा- अम्मी, ये बैठक में क्या हो रहा है? और बापू कहाँ हैं?

अम्मी ने मुझे अपने पास बुलाया और कहा- तुम्हारे बापू अभी आ जाते हैं। यहाँ बैठो और बताओ कि तुम इतने गुस्से में क्यों हो?

मैंने अम्मी की तरफ देखा और कहा- क्यों अम्मी? आपको नहीं पता कि यहां बैठक में बुआ कौन से गुल खिला रही हैं?

अम्मी ने कहा- देखो आलोक, अभी तुम्हारे बापू आ जायेंगे और वो ही इस मसले पे तुम्हारे साथ बात करेंगे। प्लीज़्ज़… अभी आराम से बैठो और शोर नहीं करो।

मैंने कहा- ठीक है अम्मी, मैं आपकी बात मानकर चुप कर जाता हूँ और बापू के आने तक कुछ नहीं बोलूंगा लेकिन आप अभी उस आदमी को बाहर निकालो।

इससे पहले कि अम्मी कुछ बोलती बापू घर आ गये और मुझे अम्मी के पास बैठा देखकर समझ गये कि मुझे सब पता चल चुका है।

मैंने बापू को देखते ही कहा- बापू, यहाँ इस घर में क्या हो रहा है? आपको पता भी है कुछ?

बापू- हाँ… पता है मुझे। तुम आओ मेरे साथ रूम में वहाँ बैठकर बात करते हैं।

मैं बापू की बात सुनकर चौंक गया और हैरानी से बापू की तरफ देखने लगा और बोला- क्या आपको पता है? और फिर भी?

बापू- “आलोक चलो आ जाओ रूम में चलते हैं और वहाँ बैठकर बात करेंगे…” और रूम की तरफ चल पड़े।

मैंने भी चुपचाप बापू के पीछे उनके रूम की तरफ चल पड़ा। उस वक़्त मेरे दिमाग में आँधियां चल रही थीं और मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं?
बापू ने मुझे अपने सामने ही बेड पे बैठने को कहा और मेरे बैठते ही कहा- हाँ, अब बोलो क्या बात है? तुम इतना गुस्सा क्यों दिखा रहे हो?

मैं- बापू, आपको नहीं पता है क्या कि बुआ बैठक में क्या कर रही है?

बापू- पता है कि इस वक़्त वो वहाँ चुदवा रही है। लेकिन तुम इसमें इतना गुस्सा क्यों कर रहे हो?

बापू की बात सुनकर मैं दंग रह गया और कुछ देर के बाद बोला- क्या बापू, आपको सब पता है और आप फिर भी इस तरह आराम से बैठे हो।

बापू- तो क्या करूं? चलो तुम ही बता दो?

मैं- बापू, आपको बुआ को मना करना चाहिए। आप इस घर में बड़े हो और अगर आप ही कंट्रोल नहीं करोगे तो इस घर का क्या होगा?

बापू- देखो आलोक, तुम अब दुकान चलते हो और पैसे कमाकर घर लाते हो तो क्या मैं तुम्हें मारूं या मना करूं कि नहीं तुम्हें दुकान नहीं चलानी चाहिए?

मैं- लेकिन बापू, इस बात में मेरी और दुकान की बात कहाँ से आ गई?

बापू- आलोक, जिस तरह तुम दुकान से पैसे कमाकर घर लाते हो उसी तरह तुम्हारी बुआ लोगों से चुदवाकर पैसे कमाती है और घर चलाती है।

मैं हैरानी से बापू की तरफ देखने लगा और कुछ नहीं बोल सका।

तो बापू ने कहा- “देखो आलोक, बस आम खाओ ये नहीं देखो कि वो आ कहाँ से रहे हैं…”

मैंने कहा- नहीं बापू, ये मुझसे नहीं होगा और आपने कभी सोचा है कि लोग क्या कहेंगे और हमारे रिश्तेदार, हमारे बारे में क्या सोचेंगे?

बापू ने गुस्से से कहा- हम लोग इतने सालों से गुरबत और तंगी में ज़िंदगी गुजार रहे हैं तब तो ये लोग और रिश्तेदार कुछ नहीं बोले अब इनको क्या तकलीफ है?

मैं बापू की बात सुनकर वहाँ से उठा और सीधा अपने रूम में आ गया और दरवाजे को बंद करके लेट गया। क्योंकि अब मेरा दिल नहीं चाह रहा था कि मैं दुकान पे जाऊँ।

कुछ देर के बाद मेरे रूम के दरवाजे पे खटखट हुई तो मैंने पूछा- कौन है?

तो अम्मी ने कहा- “बेटा मैं हूँ, चलो आ जाओ और खाना खा लो…”

मैंने कहा- “मुझे भूख नहीं है आप जाओ यहाँ से और मुझे कोई भी तंग नहीं करे प्लीज़्ज़…”

उसके बाद शाम तक बाहर क्या होता रहा मुझे नहीं पता। क्योंकि ना तो मैं बाहर निकला और ना ही कोई मेरे रूम में आया और इसी तरह रात के 10:00 बज गये और मुझे किसी ने रात का खाना भी नहीं पूछा और मेरे पेट में भूख की वजह से हल्का दर्द भी हो रहा था। कोई 10:10 पे मेरे मोबाइल पे एस॰एम॰एस॰ आया। मैंने देखा तो बुआ का था। बुआ ने लिखा था- “आलोक, प्लीज़्ज़ मैं खाना ला रही हूँ दरवाजा खोल देना…”

पहले तो मुझे बड़ा गुस्सा आया लेकिन फिर ये सोचकर कि मुझे बुआ से बात तो करनी ही चाहिए। उठा और दरवाजे को खोल दिया और फिर से लेट गया। अभी दरवाजा खोले कुछ ही देर हुई थी कि मेरे रूम का दरवाजा आराम से खुला और बुआ मेरे रूम में खाना लेकर आ गई और खाने के साथ आज दूध भी था। बुआ ने खाना लाकर बेड पे मेरे पास ही रख दिया और सर झुका के खड़ी हो गई।

तो मैंने कहा- “बुआ खाना ले जाओ मुझे नहीं खाना है…”

बुआ- “आलोक, प्लीज़्ज़ खाना खा लो। पता है मैंने भी तब से कुछ नहीं खाया है…”

मैं- क्यों आपने क्यों नहीं खाया? क्या आपके ग्राहक ने खाना नहीं मँगवाया था क्या?

बुआ- “देखो आलोक, प्लीज़्ज़ मुझे जो भी बोलना है बोल लो लेकिन खाना खा लो…”

मैं- ठीक है, मैं खाना खा लूँगा लेकिन पहले आपको बताना होगा कि ये सब कब से चल रहा है और क्यों?

बुआ- आलोक, जब छुपाने के लिए कुछ बचा ही नहीं तो अब मैं सब बता दूँगी। लेकिन पहले खाना खा लो मुझे भी भूख लगी हुई है।

मैं उठकर बैठ गया और बुआ को भी बैठने के लिए बोला और कहा- चलो आ जाओ खाना मिलकर खा लेते हैं। फिर हमने खाना खाया और बुआ बर्तन किचेन में रखने के लिए चली गई और दूध साइड टेबल पे रख गईं। बुआ बर्तन रखकर वापिस आई और दरवाजा को अंदर से लाक कर दिया और मेरे पास आकर बेड पे बैठ गई और मेरी तरफ देखते हुये बोली- हाँ, अब पूछो जो पूछना है?

मैंने कहा- बुआ, आपको जरा भी शरम नहीं आई कि लोग क्या कहेंगे और ये काम जो आप कर रही हैं इसमें कितनी बदनामी है?

बुआ- “देखो आलोक, 4 साल हो गये हैं मुझे तलाक हुये और अभी मैं 31 साल की हूँ। मुझे भी अपनी ज़िंदगी जीने का हक है और ज़िंदगी गुजरने के लिए पैसा भी चाहिए होता है जो कि एक तलाक-शुदा और गरीब औरत को कौन देता है? इसी वजह से मैंने ये काम किया और अब इस काम से अपना और इस घर का खर्चा भी निकालती हूँ…”

मैं- लेकिन बुआ, बापू और अम्मी कैसे आपका साथ देने के लिए तैयार हो गये?
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06-23-2017, 10:27 AM,
#2
RE: Hot stories घर का बिजनिस
बुआ- “आलोक, असल बात मैं तुम्हें बताऊँगी नहीं, लेकिन दिखा दूँगी ये मेरा वादा है। लेकिन हाँ घर के जो हालात चल रहे थे उसमें कोई भी किसी काम भी के लिए तैयार हो सकता है…”

मैं- “ठीक है बुआ, अब आप जाओ मुझे और कुछ नहीं पूछना है आपसे…”

बुआ- क्यों आलोक? मैं इतनी बुरी हूँ कि मैं यहाँ तुम्हारे पास नहीं सो सकती?

मैं- “लेकिन बुआ, आपका तो अपना रूम भी है और आप वहीं पे सोती हो…”

बुआ- हाँ पता है मुझे, लेकिन आज मेरा दिल यहाँ तुम्हारे पास सोने को कर रहा है।

मैंने कहा- “ठीक है बुआ, लाइट बंद कर दो और सो जाओ। मुझे सुबह दुकान पे भी जाना है…” और करवट के बल लेट गया।

तभी बुआ ने कहा- आलोक, मैं ये दूध भी लाई थी तुम्हारे लिए। इसे पी लो फिर सो जाना…”

मैंने उठकर बुआ की तरफ देखा और गिलास पकड़ लिया, आधा पी लिया तो बाकी बुआ ने पकड़ लिया और पी गईं। फिर बुआ ने लाइट बंद कर दी और और बेड पे आकर मेरे साथ लेट गईं। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर आज बुआ को हुआ क्या है जो वो यहाँ मेरे रूम में सोने के लिए आ गई हैं?

अभी मैं ये सोच ही रहा था कि बुआ ने करवट ली और मुँह दूसरी तरफ कर लिया और अपनी गाण्ड मेरी गाण्ड के साथ मिला दी और हल्का सा दबा दिया। जिससे हम दोनों की गाण्ड एक दूसरे के साथ मिल गयी। बुआ की नरम और मुलायम गाण्ड को अपनी गाण्ड के साथ महसूस करके मुझे बड़ा अच्छा लगा और मेरे लण्ड को भी हल्का सा मजा आने लगा।

मुझे दोपहर की बात याद आ गई। जब बुआ को मैंने नंगा देखा था और बुआ के नंगे जिश्म को याद करके मेरा लण्ड पूरा हार्ड हो गया और मुझे एक खयाल आया कि क्यों ना मैं भी बुआ पे कोशिश करूं? हो सकता है कि काम बन जाये और मुझे भी बुआ की फुद्दी का मजा मिल जाये। लेकिन इसके साथ ही ये सोचकर चुप कर गया कि नहीं आलोक, ये मेरी फूफी हैं मैं इनके साथ ऐसा नहीं कर सकता, ये गलत है और ऐसा नहीं होना चाहिए।
लेकिन इसके साथ ही मेरे दिल की आवाज जो मेरे दिमाग पे भारी पड़ती जा रही थी, वो ये थी कि बुआ सिर्फ़ एक गश्ती है जिसको पैसे से मतलब है रिश्ते से नहीं। ये सोच जब मेरे ऊपर हावी हो गई तो मैंने बुआ की तरफ करवट ली और अपने खड़े लण्ड को जो कि 8” का है और काफी मोटा भी, बुआ की गाण्ड का साथ छुआ दिया।

मेरा लण्ड जैसे ही बुआ की गाण्ड पे लगा एक मजे की लहर सी मेरे जिश्म में दौड़ गई और मैंने अपने लण्ड को थोड़ा सा और बुआ की गाण्ड पे दबा दिया। मैं जानता था कि बुआ जाग रही है लेकिन चुप करके लेटी हुई हैं और कुछ बोल नहीं रही हैं। जिससे मेरा हौसला भी बढ़ गया और मैंने अपना हाथ बुआ के ऊपर रख दिया और आराम से आगे बढ़ना शुरू कर दिया और बुआ की चूचियां तक ले गया। जैसे ही बुआ की चूचियों पे मेरा हाथ लगा मुझे और भी मजा आने लगा।

क्योंकि बुआ ने ब्रा नहीं पहनी हुई थी और बुआ की चूचियां पूरी हार्ड हो रही थीं। मैं समझ गया कि मैं जो भी करूं, बुआ मना नहीं करेंगी। तो मेरा हौसला थोड़ा बढ़ गया और मैंने अपनी शलवार का नाड़ा खोला और लण्ड को बाहर निकाल लिया।

अब मैंने बुआ केी चूचियां से हाथ हटा लिया और बुआ की कमीज को थोड़ा ऊपर किया और बुआ की शलवार को थोड़ा नीचे खिसका दिया। जिसमें बुआ ने भी मेरी मदद की और अपनी गाण्ड को थोड़ा सा हिलाकर नीचे से भी शलवार निकालने में मदद की और इस तरह कि मैं बुआ को सोता ही समझूं। बुआ की शलवार को नीचे घुटनों तक उतारकर मैंने बुआ की गाण्ड को नंगा कर दिया और अपने नंगे लण्ड को बुआ की गाण्ड की दरार में फँसा दिया।

मेरे इस तरह करते ही बुआ के मुँह से बिल्कुल हल्की सी आहह निकल गई जिससे मैं समझ गया कि बुआ को भी इसमें मजा आ रहा है। अब मैंने बुआ की कमीज को ऊपर किया और उनकी चूचियों को भी नंगा कर दिया और हाथ से पकड़कर दबाने लगा।

और साथ ही अपने लण्ड को भी बुआ की गाण्ड के ऊपर हल्का सा रगड़ रहा था। कुछ देर इस तरह करने के बाद मैं थोड़ा सा पीछे हुआ और बुआ को सीधा लिटा दिया और बुआ की चूचियों पे अपना मुँह लगाकर चूसने लगा और दबाने लगा।

बुआ बस हल्की आवाज में आहह… उन्म्मह… की आवाज कर रही थीं, लेकिन अपनी आँखों को बंद करके लेटी रही। फिर मैं उठा और बुआ की शलवार को टाँगों से निकाल दिया और बुआ को नीचे से नंगा कर दिया और बुआ की टाँगों को खोलकर बीच में बैठ गया और अपने लण्ड को बुआ की फुद्दी पे जो कि बुरी तरह से गीली हो रही थी रगड़ने लगा।

मेरे इस तरह लण्ड रगड़ने से बुआ थोड़ा मचलने लगी और अपने होंठों को काटने लगी लेकिन बोली कुछ नहीं और ना ही अपनी आँखों को खोला। फिर मैंने अपने लण्ड को थोड़ा सा बुआ की फुद्दी के सुराख पे रखकर दबाया तो मेरे लण्ड का सुपाड़ा बुआ की चूत में आराम से घुस गया और बुआ के मुँह से आअहह की आवाज निकल गई।

बुआ की फुद्दी अंदर से बड़ी गरम किसी तंदूर की तरह थी लेकिन गीली। अब मैंने बुआ की टाँगों को थोड़ा और फैला दिया और हल्का सा झटका दिया और अपने लण्ड को थोड़ा और अंदर घुसा दिया। अब बुआ भी मेरे लण्ड की तरफ अपनी गाण्ड को हल्का सा दबा रही थीं। जिससे मैं समझ गया कि बुआ क्या चाहती है और मैंने भी एक थोड़ा तेज झटका दिया और लण्ड बुआ की फुद्दी में घुसा दिया।

लण्ड के घुसते ही बुआ के मुँह से सस्सीई की आवाज निकल गई और बुआ ने अपनी टाँगों में मुझे बुरी तरह जकड़ लिया जिससे कि मुझसे हिला भी नहीं गया। कुछ देर इसी तरह रहने के बाद बुआ ने अपनी टाँगों को ढीला छोड़ दिया और साथ ही अपनी गाण्ड को मेरे लण्ड की तरफ दबा दिया। मैं बुआ का इशारा समझ गया और अपने लण्ड को आहिस्ता से बुआ की फुद्दी में अंदर-बाहर करने लगा और साथ ही बुआ की चूचियां को भी दबाने लगा।

मुझे उस वक़्त सच में जन्नत का मजा मिल रहा था और मेरा लण्ड बड़े प्यार और आराम से बुआ की फुद्दी में घूम रहा था।

मेरा दिल तो कर रहा था कि मैं बुआ की पूरी ताकत से चुदाई करूं। लेकिन क्योंकि बुआ सोने का ड्रामा कर रही थी इसलिए मैं भी आराम से बुआ की चुदाई करता रहा और कोई 6-7 मिनट की लगातार चुदाई के बाद बुआ की फुद्दी में ही फारिग़ हो गया और इसी तरह बुआ के ऊपर ही लेट गया। पता नहीं कब मेरी आँख लगी और इसी तरह बुआ के ऊपर ही लेटा हुआ मैं सो गया।

सुबह जब मैं उठा तो सुबह के 9:00 बज चुके थे। मैं उठा तो अभी भी नंगा ही था और बुआ रूम में नहीं थीं। मैं समझ गया कि बुआ जा चुकी हैं।

अभी मैं उठकर खड़ा ही हुआ था कि रूम का दरवाजा खुला और अम्मी अंदर आ गई और मुझे इस तरह नंगा खड़ा देखकर अम्मी हल्का सा हँस पड़ी और बोली- उठ गया मेरा बेटा?

मैंने जल्दी से अपनी शलवार उठाकर अपने सामने कर ली और बोला- जी अम्मी उठ गया हूँ। आप चलो अभी मैं आता हूँ।

अम्मी हँसते हुये वापिस मुड़ गई और दरवाजे के पास जाते हुये बोली- “आलोक, इतना घबरा क्यों रहा है? मैं माँ हूँ तेरी तुझे नहलाती भी रही हूँ…” इतना बोलते हुये अम्मी मेरे रूम से निकल गईं और मैं समझ गया कि बुआ ने अम्मी को सब कुछ बता दिया होगा।

खैर मैं बाहर निकला, कपड़े पहनकर बाथरूम में घुस गया और नहाकर बाहर निकला तो अम्मी ने कहा- “चलो बेटा बैठ जाओ, मैं अभी गरम-गरम नाश्ता लेकर आती हूँ…”

मैं हाल में बैठ गया कि तभी बापू भी वहाँ आ गये। उनके चेहरा पे भी हल्की सी मुशकुराहट थी। बापू मेरे पास बैठ गये और बोले- “हाँ आलोक, रात नींद तो अच्छी तरह आई ना? नीलम ने तंग तो नहीं किया तुम्हें?

मैंने कहा- “नहीं बापू, बुआ तो आराम से सो गई थीं। उन्होंने तो रात में मुझे जरा भी परेशान नहीं किया…”

बापू ने कहा- “अभी नाश्ता करके मेरे पास रूम में आना, तुम्हारे साथ कुछ बात करनी है…”

मैंने हाँ में सर हिला दिया कि तभी अम्मी भी नाश्ता लेकर आ गई और मैं नाश्ता करने लगा। नाश्ते के बाद मैं उठा और बापू के पास उनके रूम में चला गया।

बापू ने मुझे अपने पास बेड पे ही बिठा लिया और बोले- हाँ तो आलोक बेटा, क्या सोचा तुमने फिर?

मैं- किस बारे में बापू?

बापू- “वो जो कल बात हुई थी हमारे बीच, मैं उसी के बारे में बात कर रहा हूँ…”

मैं- बापू, आप जो भी करना चाहते हो मुझे कोई ऐतराज नहीं है।

बापू थोड़ा खुश हो गये और बोले- चलो अच्छा हुआ कि तुम्हें खुद ही इस सबका पता चल गया है। वरना तुम्हें समझने में बाद में परेशानी होती…”

मैं- बापू, आपसे एक बात पूछूं? बुरा तो नहीं मानोगे?

बापू- “नहीं बेटा, पूछो जो भी पूछना चाहते हो? मैं बुरा नहीं मानूंगा क्योंकि अब तो तुम्हें भी पता चल ही गया और जो नहीं पता वो भी पता होना चाहिए…”

मैं- बापू, क्या बुआ अकेली ही ये काम करती हैं या?

बापू- “नहीं बेटा, तुम्हारी बुआ के साथ अभी तुम्हारी माँ भी करती है…”

मैं- बापू, क्या आपको बुरा नहीं लगता कि आपकी बीवी और बहन लोगों के साथ पैसों के लिए सोती हैं?

बापू- “देखो बेटा, जब तुम्हारी माँ और बुआ किसी के साथ सोती हैं तो पैसों के लिए ही सोती हैं वरना नहीं। और आज के जमाने में पैसा ही सब कुछ है…”

मैंने कहा- ठीक है बापू आप जो चाहें करें, मुझे कोई ऐतराज नहीं है। लेकिन बस आपसे एक बात बोलनी थी अगर आप बुरा नहीं मानो तो?

बापू ने कहा- “हाँ बोलो बेटा, क्या बात है? जो भी बात हो खुलकर करो। अब शरमाना किस बात का…”

मैंने कहा- बापू, आपको पता है कि रात में बुआ मेरे रूम में मेरे पास ही सोई थी?

बापू मेरी बात सुनकर हँस पड़े और बोले- अच्छा ये बात है? ठीक है, मैं उसे बोल दूँगा कि जब भी तुम्हारा दिल करे अपनी बुआ के साथ सो लिया करना। वो मना नहीं करेगी। ठीक है?

मैं बापू की बात सुनकर खुश हो गया और वहाँ से उठकर अपने रूम में आ गया। क्योंकि आज दुकान पे जाने का मूड नहीं था इसलिए मैं रूम में आ गया और बेड पे लेट गया और बुआ के बारे में सोचने लगा। क्योंकि अब मुझे इजाजत मिल ही गई थी कि बुआ की फुद्दी जब दिल चाहे मार सकता हूँ। कुछ देर बाद मैं उठा और बुआ के रूम की तरफ चल पड़ा।

तो अम्मी ने मुझे देखते हुये कहा- बेटा, कहां जा रहे हो?

मैंने सर झुका लिया और आहिस्ता से बोला- वो… अम्मी बुआ से काम था थोड़ा।

अम्मी ने कहा- “तू चल अपने रूम में, मैं कुछ करती हूँ तेरा। क्योंकि तेरी बुआ तो दो बजे तक फारिग़ नहीं हैं…”

यहाँ मैं एक बात बता दूँ कि मेरी दीदी सिलाई करना सिख रही थी और बाकी की दोनों बहनें पढ़ने जाती थीं। इसलिए 3:00 बजे तक घर में अम्मी, बापू और बुआ के अलावा घर में कोई और नहीं होता। मैं मुँह लटका कर रूम में आ गया और सोचने लगा कि चलो अभी नहीं तो क्या हुआ रात को ही चोद लूँगा बुआ को। अभी मैं ये सोच ही रहा था कि मेरे रूम का दरवाजा खुला और अम्मी अंदर आ गई।

मैं अम्मी की तरफ देखा और बोला- जी अम्मी, कोई काम था क्या?

अम्मी- बस बेटा, वैसे ही दिल किया तो मैं आ गई तुम्हारे रूम में कि चलो तुम्हारे साथ थोड़ी देर बातें ही कर लूँ। क्यों नहीं आना चाहिए था क्या?

मैं- नहीं अम्मी, आप जब दिल करे मेरे पास आ सकती हो…” और साथ ही अम्मी को बेड पे बैठने के लिए बोल दिया।

अम्मी बेड पे मेरे पास ही बैठ गईं और हल्का सा मुश्कुराते हुये बोली- अच्छा आलोक, रात में तुम इसी तरह सोते हो या फिर अपनी बुआ के साथ ही इस तरह सो गये थे?

मुझे अम्मी की बात पूरी तरह समझ में नहीं आई तो मैंने कहा- क्या मतलब? अम्मी मैं समझा नहीं?

अम्मी मुझे मुशकुराहट देते हुये बोली- मेरा मतलब था कि इसी तरह जिस तरह तुम अपनी बुआ के साथ सो रहे थे बिना कपड़ों के?

मैं- “न…नहीं अम्मी, वो बस ऐसे ही…”

अम्मी- “अच्छा चलो छोड़ो, मुझे कुछ काम था तुमसे…”

मैं- जी अम्मी बताओ ना प्लीज़्ज़… क्या काम था मेरे साथ?

अम्मी- वो बेटा, तुम्हारी बुआ तो जरा मसरूफ है और मुझे अपनी कमर की मालिश भी करवाना थी। क्या तुम कर दोगे?

मैं- “जी अम्मी, कर दूँगा…”

अम्मी- “अच्छा तुम बैठो, मैं तेल ले आती हूँ और साथ ही कपड़े भी चेंज कर आऊँ…”

मैंने हाँ में सर हिला दिया तो अम्मी मेरे रूम से उठकर बाहर चली गईं।

कुछ देर के बाद जब अम्मी तेल लेकर आई तो अम्मी ने एक पुराना और ढीला सौत पहना हुआ था। अम्मी मेरे पास आकर खड़ी हो गई और तेल एक साइड टेबल पे रख दिया और मुझे कहा- चलो उठो यहाँ से, मैं पुरानी बेडशीट डाल दूँ ताकि ये खराब ना हो जाये।

मैं उठा तो अम्मी ने अलमारी में से एक पुरानी बेडशीट निकली और बेड पे बिछा दी और बोली- “हाँ अब ठीक है…” और खुद बेड पे उल्टी होकर लेट गई और बोली- अब तुम भी बेड पे ही आ जाओ या खड़े होकर ही मालिश करोगे?

मैं अम्मी की बात सुनकर जैसे ही बेड पे बैठने लगा, अम्मी ने मेरी तरफ मुड़कर देखा और बोली- “आलोक ऐसा करो कि तुम भी ये वाले कपड़े उतार दो और कोई चादर बाँध लो ताकि इनको कहीं तेल ना लग जाये…”

मैंने अम्मी की बात सुनकर अपने कपड़े बदल लिए और चादर बाँध ली और बेड पे अम्मी के पास बैठ गया और बोला- “अम्मी अपनी कमीज को थोड़ा ऊपर कर लो तो मैं तेल लगाऊँ…”

अम्मी ने कहा- बेटा, अब मैं लेट गई हूँ इसलिए खुद ही कर लो…”

अम्मी की बात सुनकर मैंने अम्मी की कमीज का पल्लू पीछे से पकड़ लिया और ऊपर कर दिया जिसमें कि अम्मी ने भी थोड़ा ऊपर उठकर मेरा साथ दिया। जब मैंने अम्मी की कमीज को कंधों तक हटा दिया तो मुझे पता चला कि अम्मी ने ब्रा नहीं पहनी हुई है और थोड़ा ऊपर होकर फिर लेटने से अम्मी की हलब्बी साइज चूचियां थोड़ा दोनों बगलों से बाहर को निकल आई थीं। जिन्हें देखकर मेरा लण्ड थोड़ा सख़्त होने लगा था। अब मैं अम्मी की बगल में बैठा था और अम्मी की कमर पे हल्का-हल्का तेल लगाकर मलने लगा।

तो अम्मी ने कहा- “बेटा, ऐसे ठीक से नहीं हो रहा है। तुम ऐसा करो कि मेरी टाँगों पे बैठ जाओ इससे तेल ठीक से लगेगा…”

मैं अम्मी की बात सुनते ही फौरन अम्मी की रानों पे गाण्ड से थोड़ा पीछे होकर बैठ गया और अम्मी की कमर पे तेल लगाने लगा। मेरे इस तरह बैठकर तेल लगाने से मेरा लण्ड आधा खड़ा हो गया और अम्मी की नरम गाण्ड की दरार में चुभने लगा जिससे मुझे और भी मजा आने लगा। अब मैं थोड़ा सा आगे को हो गया और अपने लण्ड को पूरी तरह से अम्मी की गाण्ड में फँसाकरमालिश करने लगा।

मेरी इस हरकत पे भी जब अम्मी ने कुछ नहीं कहा तो मेरा हौसला थोड़ा और बढ़ गया और मैं अपने हाथ अम्मी की कमर से चूचियां के पास बगलों में भी तेल वाले हाथों से मालिश करने लगा जिससे मेरे हाथ अम्मी की बगल में थोड़ी निकली हुई चूचियों को छूने लगे। अब मैं भी समझ गया कि जिस तरह रात में बुआ चुपचाप मुझसे चुदवाती रही। इसी तरह मेरी ये रंडी माँ भी मुझे कुछ नहीं कहेगी।

अब मैं पूरी तरह से खुल गया और अपने हाथों को अम्मी की चूचियों के पास रोका और अपने लण्ड को अम्मी की गाण्ड पे जोर से दबा दिया और बोला- “अम्मी अगर आप थोड़ा ऊपर को हो जाओ तो मैं आपके पेट पे भी थोड़ा तेल मल दूँ…”

अम्मी ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया लेकिन अपना जिश्म इतना ऊपर उठा दिया कि मेरा हाथ अब आराम से नीचे घुस गया।

मेरे हाथ जैसे ही अम्मी की चूचियों पे लगे मैंने उन्हें अपने हाथों में जकड़ लिया और अम्मी के मुँह से आअहह की हल्की आवाज निकल गई और साथ ही अम्मी फिर से बिस्तर पे गिर गई। जिससे मेरे हाथ अम्मी के नीचे ही दब गये और मैं अम्मी के ऊपर कमर के साथ चिपक गया। अब मैंने अम्मी के नीचे से हाथ निकाल लिए और फिर से अम्मी की कमर पे मालिश करने लगा।

तो अम्मी ने कहा- “आलोक, थोड़ा नीचे भी मालिश कर दो…”

मैंने कहा- अम्मी, नीचे कहां करनी है मालिश? क्या पैरों की?

अम्मी ने कहा- “नहीं बेटा, अगर बुरा ना मानो तो बस थोड़ा मेरे चूतड़ों की भी मालिश कर देना…
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06-23-2017, 10:27 AM,
#3
RE: Hot stories घर का बिजनिस
घर का बिजनिस --3

मैंने कहा- लेकिन अम्मी, इस तरह तो मुझे आपकी शलवार को भी थोड़ा नीचे करना पड़ेगा। कर दूँ क्या?
अम्मी के मुँह से बस एक होन्न की आवाज ही निकल सकी और कुछ नहीं।

मैंने अम्मी की इसी हूँ को इकरार समझा और थोड़ा सा पीछे हट गया और अम्मी की एलास्टिक वाली शलवार को घुटनों तक नीचे कर दिया। जिससे अम्मी की सफेद और नरम गाण्ड मेरी आँखों के सामने नंगी हो गई। ये नजारा देखकर मैं पागल होने के करीब हो गया और मजे की शिद्दत से मेरा लण्ड भी झटके खाने लगा था। अब मैंने अम्मी की गाण्ड पे हल्का सा तेल गिरा दिया और थोड़ा सा तेल जानबूझकर अम्मी की गाण्ड की दरार में भी गिरा दिया और अम्मी के गोल और नरम चूतड़ों को मसलने लगा।

कुछ देर इसी तरह मालिश करने के बाद मैंने आहिस्ता से हाथ घुमाते हुये अम्मी की गाण्ड के सुराख की तरफ अपने हाथ का अंगूठा ले गया और वहीं रोक लिया और दूसरे हाथ से मालिश करने लगा। फिर मैंने अपने हाथ के अंगूठे को आहिस्ता से अम्मी के गाण्ड के सुराख पे लगा दिया और वहीं घुमाने लगा।

जिससे अम्मी आअहह की हल्की आवाज भी करने लगी।

जिससे मैं समझ गया कि लाइन क्लियर है। अब मैं अम्मी की रानों से थोड़ा ऊपर को उठा और अम्मी की रानों को थोड़ा खोल दिया जिससे मुझे अम्मी की फुद्दी भी हल्की सी नजर आने लगी जो कि अम्मी की फुद्दी से रिसने वाले पानी से बुरी तरह गीली हो रही थी।

मैंने अपना एक हाथ जो कि अम्मी की गाण्ड के सुराख को सहला रहा था वहीं रहने दिया और दूसरा हाथ अम्मी की रानों में घुसा दिया और मालिश करने लगा और साथ ही अम्मी की गीली फुद्दी को भी हल्का सा छूने लगा।

मेरे इस तरह करने से अम्मी के मुँह से आअहह… उन्म्मह… की आवाज के साथ ही- “हाँ बेटा तुम्हारे हाथ में तो जादू है। सच में मालिश का मजा आ रहा है आअहह…”

अम्मी की मुँह से निकालने वाली आवाज़ों और अल्फ़ाज को सुनकर मुझे भी थोड़ा हौसला हुआ और मैंने अपने हाथ को अचानक अम्मी की फुद्दी के ऊपर रखकर मसल दिया।

जिससे अम्मी तड़प उठी- “आअहह… आलोक उन्म्मह… ऊओ… हाँ बेटा, बड़ा आराम मिल रहा है…”

मैंने अम्मी की फुद्दी और गाण्ड से हाथ हटा लिया क्योंकि अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था और मेरा लण्ड भी फटने के करीब ही था। मैं अब थोड़ा आगे हो गया जिससे कि मेरा लण्ड अम्मी की नंगी गाण्ड तक आ गया तो मैंने जो चादर बँधी हुई थी उसे लण्ड के ऊपर से हटाकर नंगा किया और अम्मी की गाण्ड पे रखा और आगे को झुक गया कि जैसे कंधों की मालिश करने लगा हूँ।

अब मैं अम्मी के कंधों को मलने के साथ-साथ अपने लण्ड को अम्मी की तेल से चिकनी गाण्ड पे रगड़ने लगा और फिर थोड़ा सा ऊपर हो गया और अपने लण्ड को अम्मी की रानों की तरफ दबा दिया।

अम्मी समझ गई कि मैं क्या चाहता हूँ और इसके साथ ही अम्मी ने अपनी टाँगों को थोड़ा खोल दिया जिससे मेरा लण्ड स्लिप होकर अम्मी की फुद्दी के मुँह से जा लगा।

अब मुझसे और बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैंने अपने एक हाथ से लण्ड को अम्मी की फुद्दी पे सेट किया और आराम से जोर लगाने लगा। अम्मी की फुद्दी क्योंकि पहले ही काफी गीली थी और ऊपर से तेल भी लगा हुआ था जिसकी वजह से मेरा लण्ड अम्मी की फुद्दी में आराम से जाने लगा।

जैसे ही मेरे लण्ड का सुपाड़ा अम्मी की फुद्दी में घुसा अम्मी के मुँह से- “आअहह आलोक उन्हं… तुम बड़ी अच्छी मालिश करते हो मेरी जान ऊओ…”

अब मैं थोड़ा ऊपर को हुआ और अपने लण्ड पे दबाव बढ़ा दिया जिससे मेरा लण्ड अम्मी की फुद्दी में घुसता चला गया। जैसे-जैसे मेरा लण्ड अम्मी की फुद्दी में जा रहा था मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरा लण्ड किसी गरम और गीले तंदूर में घुसता जा रहा हो, जिससे मुझे मजा भी ज्यादा आ रहा था।

अब मैंने अम्मी की चूचियों की तरफ हाथ बढ़ाया और जितना भी हाथ में आया उन्हें पकड़कर मसलने लगा और साथ ही अपने लण्ड को भी अम्मी की फुद्दी में अंदर-बाहर करने लगा।

जिससे अम्मी भी अब पूरी तरह मजा ले रही थी। अम्मी भी अब थोड़ा सा खुल गई और- “हाँ आलोक, अब बहुत अच्छा लग रहा है… हाँ यहाँ से ही मसलो… उन्म्मह…”

कुछ तो इतनी देर से मैं उत्तेजित हो रहा था और कुछ अपनी माँ की फुद्दी मारने से ही मेरा बुरा हाल था जिसकी वजह से मैं जल्दी ही अम्मी की फुद्दी में ही फारिग़ हो गया।

मेरे फारिग़ होते ही अम्मी बोली- “आलोक बेटा, इसी तरह मेरे ऊपर लेटे रहो, हटना नहीं… उन्हं…” और इसके साथ ही अम्मी अपनी फुद्दी को कभी टाइट करती और कभी ढीला और फिर कुछ ही देर में मुझे अम्मी की फुद्दी में कुछ गरम महसूस हुआ और मैं समझ गया कि अम्मी भी फारिग़ हो गयीं।

फारिग़ होने के बाद हम माँ बेटा कुछ देर तक इसी तरह एक दूसरे के ऊपर ही लेटे रहे। मेरा लण्ड अब अम्मी की फुद्दी में ही सिकुड़ना शुरू हो गया था लेकिन अब मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं उठकर अम्मी का सामना कर सकूं।

अम्मी ने भी ये बात महसूस कर ली थी। तभी अम्मी ने कहा- “आलोक, अब बस करो हो गई मालिश चलो अभी मुझे घर का काम भी करना है…”


मैं अम्मी के ऊपर से हटा जिससे मेरा लण्ड अम्मी की फुद्दी से बाहर आ गया और मैंने देखा कि अम्मी की फुद्दी में से मेरा सफेद पानी निकालने लगा था।

मेरे बाद अम्मी ने भी थोड़ा सा अपपनी गाण्ड को ऊपर की तरफ उठाया और बेड पे बिछी पुरानी चादर को खींच लिया और अपनी फुद्दी को उसके साथ अच्छी तरह साफ किया और फिर अपनी शलवार को भी ऊपर की तरफ खींच लिया। अब अम्मी उठकर बैठ गई और अपनी कमीज जो कि कंधों तक ऊपर थी उसे भी नीचे कर लिया और चादर को उठाकर बाहर चली गई।

उस वक़्त ना तो अम्मी ने मेरे साथ कोई बात की और ना ही मैंने अम्मी के साथ कोई बात की।

अम्मी के जाने के बाद मैंने चादर खोली और अपने कपड़े पहन लिए और फिर से बेड पे लेट गया और आँखें बंद करके कल से अब तक होने वाले वाकियात के बारे में सोचने लगा कि क्या था और क्या हो गया है? इन्हीं सोचों के बीच कब मेरी आँख लगी पता ही नहीं चला।

और जब मेरी आँख खुली तो बुआ मुझे उठा रही थी।

मैं उठा तो बुआ ने हँसते हुये कहा- “क्यों आलोक, अपनी अम्मी की मालिश करने से थक गये हो क्या?
मैं सिर्फ़ मुश्कुराकर रह गया और कुछ नहीं बोला।

तो बुआ ने कहा- चल अब उठकर नहा ले और खाना भी खा ले।

मैं उठ गया और बुआ से पूछा- क्या बाकी लोग भी घर आ चुके हैं?

बुआ ने कहा- “हाँ, तेरी बहनें भी आ गई हैं, अब ज्यादा टाइम खराब ना कर और चल खाना खा ले…”

मैंने कहा- नहीं बुआ, अभी दिल नहीं है अब टाइम भी काफी हो गया है रात का खाना ही खाऊँगा। हाँ, अभी नहा लेता हूँ…” और उठकर नहाने चला गया।

जैसे ही मैं नहाकर बाहर आया तो सामने अम्मी और दीदी बैठी हुई थी। मुझे देखते ही अम्मी ने कहा- “आलोक, यहाँ आ जरा…”

मैंने कहा- “जी अम्मी, बोलें क्या बात है…” और इसके साथ ही मैं अम्मी के पास चला गया।

अम्मी ने दीदी की तरफ देखा और कहा- “तेरी बहन ने कुछ सामान मंगवाना है। बेटा, मुझसे तो इस वक़्त जाया नहीं जायेगा तू ही ला दे इसे जो भी चाहिये है…”

मैंने दीदी की तरफ देखा और कहा- “जी दीदी, क्या मंगवाना है बताओ मुझे? मैं ला आपको दूँगा…”

दीदी जो कि अम्मी की बात सुनकर पहले ही काफी घबरा गई थी और भी घबरा गई औरबोली- “न…नहीं भ…भाई, अभी कुछ नहीं चाहिए है, अगर जरूरत हुई तो मैं आपको बता दूँगी…”

अम्मी ने कहा- “भाई है तुम्हारा, डर क्यों रही हो? बताओ जो भी मंगवाना है…”

दीदी वहाँ से उठ गई और जाते हुये बोली- “नहीं, अम्मी नहीं… मैं बाद में मंगवा लूँगी…”

मुझे कुछ समझ में नहीं आया कि आखिर ऐसी कौन सी चीजेंन हैं जो कि बाजी को मंगवाना हैं लेकिन वो मुझे नहीं बता पा रही है? दीदी के जाने के बाद मैंने अम्मी की तरफ देखा और कहा- क्यों अम्मी? क्या चाहिए है दीदी को?

अम्मी हल्का सा हँस पड़ी और बोली- “बेटा, उसे डेट आने वाली है और उसे पैडस चाहिये हैं। जाओ लाकर अपनी बहन को दे दो…”

मैं अब समझा कि दीदी इतना शर्मा क्यों रही थी। मैं घर से निकला और अपनी दुकान पे चला गया और वहाँ से ही दीदी के लिए दो पैकेट ले आया और घर आकर अम्मी को देने लगा।

तो अम्मी ने कहा- “जाकर अपनी बहन को दे दो, उसे ही चाहिए हैं मुझे नहीं…” अम्मी ये बोलते हुये मुश्कुरा रही थीं।

मैं अम्मी के पास से दीदी की तरफ चला गया। दीदी उस वक़्त मेरे रूम की सफाई कर रही थीं। मैंने दीदी को देखते हुये कहा- “ये लो दीदी, आपका सामान आ गया है जो मँगवाते हुये आप इतना शर्मा रही थी…”

दीदी ने मेरे हाथ में पैड देखे तो दीदी का चेहरा एकदम लाल हो गया और दीदी ने मेरी तरफ देखे बिना पैड मुझसे छीन लिए और मेरे रूम से भाग गई।

मैं दीदी की इस हरकत पे हल्का सा मुश्कुरा दिया। दीदी के जाने के बाद मैं बेड पे लेट गया और अपने घर और यहाँ हो रहे काम के बारे में सोचने लगा कि तभी अचानक मेरे दिमाग में ख्याल आया कि कहीं दीदी भी तो अम्मी और बुआ की तरह गश्ती नहीं बन चुकी हैं? ये ख्याल आते ही मैं उठ बैठा और सोचने लगा कि दीदी के बारे में किस तरह पता चलाऊँ कि तभी मुझे याद आया कि आज रात बुआ ने तो आना ही है तो क्यों ना आज बुआ से पूछ लिया जाये।

ये ख्याल आते ही मैं फिर से लेट गया और अम्मी और बुआ की मस्त फुद्दियां, जिनकी मैं चुदाई कर चुका था, सोचने लगा और इसी तरह से टाइम गुजर गया और पता ही नहीं चला कि रात के 8:00 बज गये। रात के खाने के लिए स्वीटी मुझे बुलाने आई।

तो मैंने कहा- “यहाँ ही खाना दे जाओ…”
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06-23-2017, 10:27 AM,
#4
RE: Hot stories घर का बिजनिस
घर का बिजनिस --4

तो ऋतु वापिस चल पड़ी और मैं उसकी छोटी और मस्त गाण्ड को घूरने लगा जो कि अभी बहुत छोटी थी। ऋतु थोड़ी ही देर में खाना लेकर मेरे रूम में आ गई और मुझे खाना देकर चली गई और मैं खाना खाने लगा। खाने के बाद मैं फिर से लेट गया और बुआ का इंतेजार करने लगा, जो कि रात 10:00 बजे के बाद मेरे रूम में दूध का गिलास लेकर आ ही गईं।

मैंने दूध का गिलास पकड़ लिया और पी गया तो बुआ ने गिलास के साथ बाकी बर्तन भी रूम से उठा लिया और कहा- “मैं ये बर्तन रखकर आती हूँ…” और मेरे रूम से निकल गई।

बुआ के जाते ही रात में होने वाली चुदाई जो कि मैंने बुआ के साथ की थी, याद करते ही मेरा लण्ड पूरा हार्ड हो गया और मैं फौरन उठा और फिर से एक चादर बाँधकर अपने कपड़े उतार दिए। बुआ जब रूम में आई तो मुझे इस तरह चादर में लेटा देखकर मुश्कुरा दी।

और रूम का दरवाजा लाक करके और लाइट बंद करके मेरे पास बेड पे आकर लेट गई और बोली- आलोक, आज तू ने ये चादर क्यों बाँध रखी है?

मैंने कहा- “बुआ, मैं तो रोजाना ऐसे ही सोता हूँ, बस कल अपने कपड़े पहनकर सोया था…”

बुआ ने कहा- अच्छा तो ये बात है? और सुनाओ मेरे भतीजे का दिन कैसा गुजरा?

मैंने कहा- दिन बहुत ही अच्छा गुजरा है बुआ। लेकिन बुआ अगर मैं आपसे कुछ पूछूं तो मुझे सच बताओगी?
बुआ ने कहा- “हाँ पूछ, तेरे बापू और अम्मी ने भी कहा है कि तुझसे कुछ भी ना छुपाया जाये…”
मैं थोड़ा चुप रहा।

तो बुआ ने कहा- “अब क्या हुआ? आलोक, चुप क्यों हो गये हो तुम?

मैंने हिम्मत करके पूछ ही लिया- “बुआ, क्या दीदी भी आपके और अम्मी की तरह ये काम करती हैं?

मतलब… जो आप कल भी कर रही थी और आज भी?

बुआ ने कहा- “नहीं आलोक, लेकिन तेरे बापू ने कहा है कि काम को बढ़ाना है और इसके लिए तुम्हारी दीदी को भी तैयार करना होगा। क्योंकि तेरी अम्मी के तो अब कोई इतने पैसे देता नहीं है…”

मैंने कहा- बुआ, क्या दीदी इस काम के लिए तैयार हो जायेगी?

बुआ ने कहा- देखो आलोक, अब अगर जानना ही चाहते हो तो सुनो… कि अब तुम्हें ये दुकान छोड़नी होगी और बाहर कोई मकान लेना होगा जहाँ हमें कोई ना जानता हो…”

मैंने कहा- लेकिन बुआ, ये तो हमारा अपना घर है हम इसे छोड़कर कहीं और मकान क्यों लेने लगे?

बुआ ने कहा- आलोक, हम अभी यहाँ ही रहेंगे। लेकिन क्योंकि यहाँ सब हमें जानते हैं और ये काम जो हम कर रहे हैं, इसकी वजह से यहाँ बदनामी भी हो सकती है। इसलिए तुम्हें किसी और इलाके में जहाँ जरा बड़े लोग रहते हों, कोई मकान किराया पे लेना होगा, जहाँ हमें कोई ना जानता हो ताकि जिसने भी काम पे जाना हो वहाँ जाये और बाद में अपने घर आ जाये…”

मैंने कहा- बुआ, आपका मतलब है कि अब मुझे आपकी और बाकी सबके जिश्म की कमाई खानी होगी?
बुआ ने मुझे अपनी तरफ खींच लिया और मेरे होंठों पे एक किस की और बोली- आलोक, जरा सोच की जब भी तेरा अपना दिल करे, तेरे पास अपनी अम्मी और मैं और तेरी बहनें भी हों और तेरा जिसके साथ दिल करे प्यार करे और हमें और लोगों के साथ सुलाकर पैसे भी कमाए जिससे हम सब ऐश करें…”

मैंने कहा- “बुआ, मैं अभी इस बारे आपको कोई जवाब नहीं दे सकता। लेकिन हाँ कल तक मैं आपको कोई जवाब दे सकूंगा…”

बुआ ने कहा- “ठीक है, जिस तरह तुम्हारी मर्ज़ी है सुबह बता देना और अब आ जा मेरे राजा… आज मैं तुझे प्यार की इंतहा दिखाऊँ और एक औरत का असली रूप भी… कहीं भाग तो नहीं जाओगे ना डरकर…” इतना बोलते ही बुआ ने मेरे लण्ड को अपनी मुट्टी में जकड़ लिया और सहलाने लगी। बुआ बड़े प्यार से मेरा लण्ड सहला रही थी और मेरी आँखों में देख रही थी कि तभी बुआ ने अपना हाथ मेरे लण्ड से हटाया और लण्ड को चादर से बाहर निकाल दिया।

लण्ड जैसे ही चादर से बाहर निकला बुआ मेरे लण्ड को देखने लगी और फिर अचानक बुआ ने अपने होंठ मेरे लण्ड पे रख दिए और एक किस कर दी। बुआ की इस हरकत से जहाँ में हैरान हुआ वहीं मजे से पागल भी हो उठा और बुआ के सर को अपने लण्ड की तरफ पुश करने लगा।

लेकिन बुआ ने लण्ड को मुँह में नहीं लिया और उसे ऐसे ही चूमने लगी और हाथ से सहलाने लगी। बुआ की इन हरकतों से मेरे मुँह से- आअह्ह… बुआ आह्ह ये क्या कर रही हो आप?

बुआ ने कोई जवाब नहीं दिया और मेरे लण्ड को अपने मुँह में भर लिया और अंदर-बाहर करने लगी बुआ के मुँह की गर्मी और गीलापन मुझे और भी मजा देने लगा तो मैंने बुआ के सर को अपने लण्ड पे जोर से दबा दिया जिससे मेरा लण्ड बुआ के मुँह में 3” के करीब घुस गया।

कुछ देर इस तरह मेरे लण्ड को चूसने के साथ मेरे टट्टों को भी हाथ से सहलाती रही और फिर मेरे लण्ड को अपने मुँह से बाहर निकाल दिया। लण्ड का बुआ के मुँह से बाहर निकालना था कि मैं तड़प उठा और बुआ से कहा- क्या हुआ बुआ? बस क्यों कर दिया आपने?

बुआ ने कहा- क्यों यहीं पे पानी निकालने का इरादा है क्या? और कुछ नहीं करेगा मेरा बच्चा?

मैंने कहा- “लेकिन बुआ, इसमें मुझे ज्यादा मजा आ रहा था। प्लीज़्ज़ …कुछ देर और करो ना…”

बुआ ने कहा- “बाद में करेंगे…” और बेड से उठकर खड़ी हो गई और अपनी ड्रेस भी निकाल दी और बेड पे बैठ गई और बोली- “आलोक, अपनी चादर भी खोल दो…”

मैंने फौरन चादर निकाल दी तो बुआ बेड पे चिट लेट गई और अपनी टाँगों को भी थोड़ा खोल दिया जिससे मुझे बुआ की फुद्दी नजर आने लगी क्योंकि रूम में बाहर से हल्की रोशनी आ रही थी। जैसे ही मेरी नजर बुआ की साफ और चिकनी फुद्दी पे गई मैं आगे हुआ और अपने लण्ड को बुआ की फुद्दी पे टिकाने लगा।

तो बुआ ने मुझे रोक दिया और बोली- क्यों अपनी बुआ को मजा नहीं देगा क्या?

मैंने सवालिया नजरों से बुआ की तरफ देखा।

तो बुआ ने कहा- चल थोड़ा पीछे हो जा और मेरी फुद्दी को अपनी जुबान से सहला और इसे अच्छे से चाटकर मुझे मजा दे… वरना आज मैं तुझे फुद्दी नहीं दूँगी। क्या समझे?

मैंने बुआ की तरफ देखा और कहा- “नहीं बुआ, प्लीज़्ज़… ये मुझसे नहीं होगा… आप यहाँ से पेशाब भी तो करती हो ना और अभी मुझे जुबान से चाटने को बोल रही हो…”

बुआ ने कहा- क्यों तू अपने लण्ड से पेशाब नहीं करता क्या? मैंने तो उसे चाट लिया ना अब तू क्यों नखरा कर रहा है? बुआ ने इतना बोलते ही अपनी टाँगों को थोड़ा और खोल दिया।

तो मैं भी हिम्मत करके बुआ की फुद्दी पे झुक गया और अपनी जुबान को बुआ की फुद्दी के साथ लगा दिया जिसमें से हल्का साल्टी सा पानी रिस रहा था।

मेरी जुबान जैसे ही बुआ की फुद्दी को लगी बुआ ने अपने हाथों से मेरे सर को अपनी फुद्दी पे दबा दिया और सिसकी- उन्म्मह… आलोक… हाँ बेटा… चाट ले अपनी बुआ की फुद्दी को… आअह्ह…”

अब मुझे भी बुआ की फुद्दी चाटने में मजा आने लगा था और मैं अपनी जुबान को बुआ की फुद्दी के होंठों में घुमाता जा रहा था और साथ ही हल्का सा काट भी लेता जिससे बुआ और भी तड़प जाती। अभी मुझे कुछ ही देर हुई थी बुआ की फुद्दी को चाटते हुये कि बुआ ने अपने हाथों और टाँगों के बीच मेरे सर को दबाकर अपनी फुद्दी से लगा दिया।

और बोली- “आअह्ह… आलोक बेटा, मैं गई… उन्म्मह… और तेज चाटो… आलोक मेरा होने वाला है… खा जाओ अपनी बुआ की फुद्दी को…” इसेक साथ ही बुआ के जिश्म को झटके लगने लगे और बुआ की फुद्दी से गाढ़े और साल्टी टेस्ट के पानी का सैलाब सा निकल आया और मेरे मुँह पे फैल गया जो कि बुआ ने अपनी फुद्दी के साथ दबा रखा था।

बुआ फारिग़ होते ही निढाल सी हो गई और मुझे छोड़ दिया लेकिन मैंने अपना मुँह बुआ की फुद्दी से नहीं हटाया और बुआ की फुद्दी से निकलने वाला सारा पानी चाटकर साफ कर दिया। अब मैं उठा और बुआ की टाँगों को अपने दोनों तरफ करके बीच में बैठ गया और अपने लण्ड को बुआ की फुद्दी के मुँह के साथ लगाकर सेट किया और बुआ की टाँगों को पकड़कर एक झटका दिया जिससे मेरा लण्ड बुआ की फुद्दी को खोलता हुआ गहराई की तरफ घुस गया।

लण्ड घुसते ही बुआ ने अपनी आँखें खोल दीं और मेरी तरफ देखकर हल्का सा मुश्कुरा दी।

तो मैंने एक और जोर का झटका दिया जिससे मेरा पूरा लण्ड बुआ की फुद्दी में समा गया और बुआ के मुँह से स्स्सी की आवाज निकल गई। बुआ की फुद्दी उस वक़्त अंदर से बड़ी गरम हो रही थी जिससे मेरे लण्ड को और भी मजा आ रहा था। अब मैं बुआ की फुद्दी में अपने लण्ड को आराम से अंदर-बाहर करने लगा था। जैसे ही मैंने अपने लण्ड को बुआ की फुद्दी में अंदर-बाहर करना शुरू किया, बुआ ने अपनी टाँगों को मेरी कमर के साथ जकड़ लिया और अपनी गाण्ड को भी मेरे लण्ड की तरफ दबाने लगी।

बुआ के इस तरह करने से मैं समझ गया कि बुआ क्या चाहती है और मैंने अपने लण्ड को पूरा बुआ की फुद्दी से बाहर निकाला और एक ही जोरदार झटके के साथ फिर से घुसा दिया। जैसे ही मैंने अपने बड़े और मोटे लण्ड से इस तरह का झटका लगाया बुआ के मुँह से- “आअह्ह… आलोक, थोड़ा आराम से बेटा… तेरा बहुत बड़ा है… फट जायेगी मेरी फुद्दी…” निकला।

मैंने भी झटके लगाना जारी रखा और कहा- “नहीं फटेगी मेरी कंजरी बुआ… और पता नहीं कितने लण्डों से चुदवा चुकी है और मुझे बोलती है कि फट जायेगी… हाँ?”

अब बुआ भी मेरे जोरदार झटकों का साथ अपनी गाण्ड को हिलाकर दे रही थी और पूरे रूम में- “थप्प-थप्प और आअह्ह… हाँ आलोक कसम से आज मजा मिला है चुदाई का और जोर से चोदो फाड़ दो अपनी रंडी बुआ की फुद्दी को उन्म्मह… आलोक…”

बुआ उस वक़्त काफी जोर से चिल्ला रही थी जिससे मुझे डर भी लगा कि कहीं इन आवाज़ों को अम्मी और बापू के अलावा कोई और ना सुन ले। जिसका मैंने बुआ से भी कहा।

तो बुआ ने कहा- मुझे नहीं पता? आलोक कोई सुनता है तो सुन ले, बस तू चोद मुझे और फाड़ दे मेरी फुद्दी को और अपनी रंडी बना ले।

बुआ की बातों को सुनकर मैं और भी गरम हो रहा था और अपने अंत के करीब ही था और कहा- हाँ बुआ, आज मैं तेरी फुद्दी को फाड़ ही डालूंगा… ऊओ बुआ मैं गया… बुआ, आज के बाद तू मेरी रंडी ही बनकर रहेगी…” इसके साथ ही मैं बुआ की फुद्दी में फारिग़ हो गया और बुआ के ऊपर ही गिर गया।

बुआ भी क्योंकि मेरे साथ ही फारिग़ हो गई थी इसलिए हम दोनों एक दूसरे के साथ चिपकके लेटे रहे और मैंने अपना लण्ड जो कि अब सो गया था बुआ की फुद्दी से भी बाहर नहीं निकाला और लेटा रहा और बुआ भी मेरे सर के बालों में अपनी उंगलियां घुमाती रहीं।

कुछ देर तक हम ऐसे ही लेटे रहे फिर मैं उठा गया और बुआ की बगल पे लेट गया जिससे मेरा लण्ड बुआ की फुद्दी से बाहर निकल आया। जैसे ही मेरा लण्ड बुआ की फुद्दी से बाहर निकला, बुआ की फुद्दी से मेरा पानी निकलने लगा जिसे बुआ ने कपड़े से साफ कर दिया और उठकर कपड़े पहनने लगी। मैंने बुआ को कपड़े पहनते हो देखा तो बुआ का हाथ पकड़ लिया और कहा- बुआ, कहाँ जा रही हो आप?

बुआ- “अरे बेटा, अभी सोने के लिए अपने रूम में जा रही हूँ…”

मैं- “तो यहाँ ही सो जाओ ना बुआ मेरे पास…”

बुआ- “नहीं आलोक, अगर मैं यहाँ रही तो तुम फिर से शुरू हो जाओगे और मैंने दिन में भी चुदवाना होता है ताकि घर का खर्चा चल सके…”

मैंने बुआ का हाथ छोड़ दिया और कहा- “ठीक है बुआ, तुम जाओ कोई बात नहीं…”

बुआ के जाने के बाद मैंने रूम का दरवाजा लाक किया और सोने के लिए लेट गया और सोचने लगा कि बुआ सच में किसी रंडी खाने की गश्ती की तरह ही बन चुकी है। इन बातों को सोचते ही मेरा लण्ड फिर से खड़ा होने लगा। लेकिन अब क्या हो सकता था? क्योंकि बुआ तो जा ही चुकी थी और रात का टाइम होने की वजह से अम्मी के पास भी नहीं जा सकता था इसलिए सबर करके सो गया।

सुबह किसी के दरवाजा खटखटाने से मेरी आँख खुली देखा तो 7:30 का टाइम हो रहा था। मैं जल्दी से उठा और चादर बाँध ली क्योंकि रात को मैं नंगा ही सो गया था।

दरवाजा खोला तो सामने दीदी खड़ी हुई थी मुझे देखते ही बोली- “भाई, आप जल्दी से तैयार होकर नाश्ता कर लो फिर मुझे आंटी के घर छोड़ आना…”

मैंने हाँ में सर हिला दिया तो दीदी वापिस मुड़ गई और मैं वहीं खड़ा दीदी की गोल गाण्ड को निहारने लगा कि तभी अम्मी की नजर मेरे ऊपर पड़ गई और अम्मी ने हँसते हुये कहा- “चल बेटा, बाद में देख लेना अभी जल्दी से नहा ले…”

अम्मी की बात सुनते ही दीदी ने पलटकर मेरी तरफ देखा लेकिन तब तक मैं दीदी की गाण्ड से नजर हटा चुका था और अम्मी की तरफ देखने लगा था जिससे दीदी ये समझी की मैं अम्मी ही की तरफ देख रहा था। फिर मैंने रूम से अपने कपड़े उठा लिया और बाथरूम की तरफ चल पड़ा और नहाकर तैयार हो गया। फिर नाश्ता किया और दीदी को लेकर आंटी के घर की तरफ चल पड़ा जहाँ दीदी सिलाई का काम सीखती थी। सिलाई सीखना तो एक बहाना था कि दीदी को घर से कहीं बाहर रखा जा सके और घर में होने वाली चुदाई का पता दीदी को ना चल सके।

लेकिन अब बात दीदी तक भी आ पहुँची थी क्योंकि अम्मी और बापू अब खुद ये चाहते थे कि दीदी को भी इस काम में शामिल कर लिया जाये जिससे कि पैसे मिलेंगे।

रास्ते में दीदी ने हल्की सी आवाज में कहा- भाई एक बात पूछूं?

मैं- हाँ पूछो, क्या बात है?

दीदी- भाई आप 2-3 दिन से काम पे नहीं जा रहे और घर में ही घुसे हुये हो, खैरियत है ना?

मैं- “हाँ दीदी, सब ठीक है। बस मैं अभी कहीं और दुकान का इंतजाम करना चाहता हूँ जहाँ कमाई भी ज्यादा हुआ करे…”

दीदी- भाई, फिर ये दुकान कौन चलाएगा?

मैं- “अरे दीदी, अब किराने की दुकान में कमाई कहाँ बची है बंद कर देंगे इसको…”

दीदी हैरानी से मेरी तरफ देखते हुये बोली- “तो फिर भाई, अब आप कौन सी चीज की दुकान खोलने लगे हो?

मैं- “दीदी, चमड़े की दुकान खोलने लगा हूँ। बापू बता रहे थे कि इसमें बड़ा मुनाफा है…”

दीदी- “चलो अच्छा है, हमारे घर की हालत भी सुधार जायेगी…”

मैं- दीदी आपसे एक बात पूछूं? बुरा तो नहीं मानोगी?

दीदी- हाँ भाई, पूछो क्या पूछना है?

मैं- दीदी, अगर दुकान में आपकी जरूरत पड़ी तो आप मेरा और घर का साथ दोगी?

दीदी- भाई, भला आपकी दुकान पे मेरा क्या काम?

मैं बात को बदलते हुये- देखो ना दीदी, बापू तो बाहर का काम करेंगे आर्डर और सेंपल दिखाना वगैरा और मैं दुकान पे बैठा करूंगा और माल सप्लाई किया करूंगा। इसमें कभी अगर आपकी भी जरूरत पड़ी तो क्या आप हमारी हेल्प करोगी?

दीदी- “अच्छा बाबा देखूंगी? अभी पहले काम तो शुरू कर लो…” और हल्का सा मुश्कुरा दी इसके बाद सारे रास्ते हमारे बीच और कोई बात नहीं हुई।
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06-23-2017, 10:27 AM,
#5
RE: Hot stories घर का बिजनिस
घर का बिजनिस --5

और मैं दीदी को आंटी के घर छोड़कर घर वापिस आ गया। जैसे ही मैं घर में दाखिल हुआ तो बुआ ने कहा- “हाँ आलोक, छोड़ आया अपनी बहन को?

मैंने कहा- “जी बुआ छोड़ आया हूँ और अम्मी कहा हैं? नजर नहीं आ रही हैं?

बुआ ने कहा- “वो जरा बैठक में है, अभी आ जायेगी और तुम सुनाओ क्या सोचा है फिर काम के बारे में…”

मैंने कहा- बुआ, मैं भी आप लोगों के साथ हूँ जो बोलोगे मैं किया करूंगा। मुझे लगता है कि अब वक़्त आ गया है कि हमें भी अपने और अपने घर के बारे में सोचना चाहिए दुनियां का क्या है?

बुआ ने हाँ में सर हिला दिया और कहा- हाँ बेटा, सही कहा तुमने। चलो अच्छा हुआ कि अब तुम भी हमारे साथ हो…”

मैं- अच्छा बुआ, बापू कहाँ हैं?

बुआ- “बेटा, तेरे बापू काम के लिए मकान ढूँढ़ने गये हुये हैं जो तुझे बताया था ना…”

मैं- चलो ये भी अच्छा है और सुनाओ बुआ क्या आपको आज काम नहीं मिला अभी तक?

बुआ- “अरे बेटा, अभी तेरे बापू किसी ना किसी को पकड़कर ले ही आयेंगे…”

अभी हम ये बातें ही कर रहे थे कि अम्मी बैठक का घर वाला दरवाजा खोलकर अंदर आ गई और मुझे देखकर हँस पड़ी और बाथरूम की तरफ चल पड़ी। अम्मी उस वक़्त बिल्कुल नंगी थी और अपनी गाण्ड को हिलाती और मटकती हुई वाश-रूम में घुस गईं।

बुआ ने कहा- आलोक, क्या देख रहे हो?

मैंने कहा- कुछ नहीं बुआ, बस अम्मी की तरफ देख रहा था। अच्छा बुआ आपसे एक बात पूछूं बताओगी?

बुआ- हाँ आलोक, बोला तो था कि अब तुम भी हममें से हो। जो पूछना हो पूछ लिया करो, अब तुमसे क्या छुपाना?

मैं- बुआ, क्या आपने कभी अपने भाई यानी मेरे बापू के साथ भी किया है?

बुआ- हेहेहेहे… आलोक, तुम भी ना बड़े बदमाश हो?

मैं- “बताओ ना बुआ प्लीज़्ज़…”

बुआ- “हाँ आलोक, करवा चुकी हूँ…”

मैं- बुआ, क्या आपको मेरे साथ ज्यादा मजा आया या बापू के साथ?

बुआ- “आलोक, सच तो ये है कि मुझे तेरे साथ भी मजा आया लेकिन तेरे बापू के साथ ज्यादा मजा आता है…”

मैं- बुआ, क्या बापू का मेरे से बड़ा है?

बुआ- “नहीं आलोक, बड़ा तो नहीं है लेकिन बस पता नहीं क्यों जब तेरे बापू मेरे साथ करते हैं तो मैं खो सी जाती हूँ और दिल करता है कि तेरे बापू बस इसी तरह मुझे चोदते रहें…”

बुआ ने अभी इतना ही कहा था कि अम्मी भी फ्रेश होकर और अपने कपड़े पहनकर बाहर निकल आईं और हमें बातें करता देखकर हमारे पास आ गई और बोली- बुआ भतीजे में क्या हो रहा है? भाई।

बुआ ने कहा- आपका बेटा पूछ रहा है कि मुझे इसके साथ ज्यादा मजा आता है या भाई के साथ?
अम्मी ने कहा- तो फिर बता दिया मेरे बेटे को तूने हाँ?

बुआ ने कहा- “हाँ बता दिया है और तेरा बेटा भी आज से हमारे साथ ही है…”

अम्मी ने मेरी तरफ देखकर मुश्कुराई और कहा- “आखिर मैं ना कहती थी कि जब भी इसे पता चलेगा ये हमारा साथ ही देगा…”

मैंने कहा- “अच्छा अम्मी, अब आप लोगों ने दीदी का क्या सोचा है? क्योंकि आप दो से तो काम नहीं चल सकता ना…”

अम्मी ने कहा- “मैंने उसके साथ बात तो की है और उसने मुझसे सोचने के लिए टाइम माँगा है। अब देखो
क्या कहती है…” अभी हम बातें ही कर रहे थे कि बैठक की तरफ के दरवाजा पे खटखट होने लगी। अम्मी ने मेरी तरफ देखा और बोली- जा आलोक, देख तो कौन है?

मैंने जाकर दरवाजा खोला, देखा तो एक काला सा आदमी था, मुझे देखकर थोड़ा परेशान हो गया।

मैंने कहा- जी क्या काम था? किससे मिलना है?

उस आदमी ने कहा- “जी, वो… मेरा नाम आबिद है। आपके बापू से मिलना था कुछ सामान था उनके पास…”

मैंने कहा- “बापू तो नहीं हैं आप आकर बैठो मैं घर में पूछ लेता हूँ…” और उसे बैठक में बिठा दिया और घर आ गया। अंदर आकर मैंने अम्मी से कहा- “अम्मी, कोई आबिद नाम का आदमी है कह रहा है कि बापू के पास उसका कोई सामान है वो लेने आया हूँ…”

मेरी बात सुनकर बुआ हँस पड़ी और बोली- “चलो भाभी जाओ और अपनी फुद्दी में से सामान निकाल कर उसे दे आओ…”

मैंने बुआ की बात सुनकर अम्मी की तरफ देखा तो अम्मी ने हँसते हुये मुझसे कहा- “जाकर उससे पूछ कि कितना टाइम लगाना है उसने? अगर वो एक घंटे से ज्यादा बोले तो ₹1,000 माँग लेना…”

मैं समझ गया कि वो भी कोई ग्राहक ही है। मैं गया और उससे कहा- कितना टाइम लगाना है आपको?

आबिद ने मेरी तरफ देखा और हँस पड़ा और बोला- “यार, मैं तो तुम्हें देखकर डर ही गया था…”

मैंने कहा- चलो कोई बात नहीं… टाइम बताओ कितना लगाओगे?

आबिद ने कहा- “मैं यहाँ दो घंटे तक रहूंगा…”

मैंने उससे कहा- “ठीक है, लाओ निकालो ₹1,000 मैं भेजता हूँ…”

आबिद ने फौरन ₹1,000 मुझे दे दिए और मैं पैसे लेकर घर के अंदर आ गया और अम्मी की तरफ पैसे बढ़ा दिए।

अम्मी ने कहा- “रखो अपने पास, मैं चलती हूँ…” और उठकर बैठक के अंदर चली गईं।

अम्मी के जाने के बाद बुआ ने मेरी तरफ देखा और हँस पड़ी और बोली- “आलोक, क्या हुआ रख ले अपनी माँ की कमाई अपनी जेब में…”

मैं बुआ की बात पे हँस पड़ा और पैसे जेब में डाल लिए और बोला- “चलो कोई बात नहीं कभी आपकी कमाई भी आ ही जायेगी मेरे पास…”

बुआ ने हाँ में सर हिला दिया और कहा- “हाँ क्यों नहीं…” और बोली- देखोगे क्या?

मैंने कहा- क्या देखना है बुआ”

बुआ ने कहा- अपनी माँ को चुदवाते हुये और क्या?

मैंने कहा- क्या ऐसा हो सकता है?

बुआ ने कहा- “अगर तुम चाहो तो हो भी सकता है…”

मैंने कहा- नहीं बुआ, अभी नहीं। रहने दो, बाद में किसी दिन देख लूँगां पता नहीं अम्मी इस काले से कैसे चुदवाती होगी?

बुआ ने कहा- “आलोक, तेरी अम्मी बताती है कि उसका बहुत बड़ा है और टिक के मजा देता है…”
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06-23-2017, 10:30 AM,
#6
RE: Hot stories घर का बिजनिस
सारा दिन इसी तरह से गुजरा और शाम को 5:00 बजे अम्मी ने मुझसे कहा- जाकर अपनी बहन को आंटी के घर से ले आ…”

मैं उठा और दीदी को लाने चला गया और जैसे ही दीदी को लेकर घर की तरफ चला तो दीदी ने कहा- हाँ भाई सुनाओ, कैसा गुजरा सारा दिन?

मैंने कहा- दीदी, सारा दिन घर पे था, बहुत अच्छा गुजारा है…”

दीदी- भाई, एक बात पूछूं गुस्सा तो नहीं करोगे?

मैं- हाँ दीदी, पूछो क्या बात है?

दीदी- भाई, आप सारा दिन घर में थे और आप खुश हो इस सबसे?

मैं- क्या मतलब दीदी? मैं समझा नहीं आपकी बात?

दीदी- नहीं भाई, वो मेरा मतलब है कि घर में फारिग़ रहे हो ना, कोई काम नहीं (साफ पता चल रहा था कि दीदी ने बात बदल दी है)

मैं- “हाँ बाजी, मैं सारा दिन खुश रहा हूँ और अब तो मुझे नया काम भी संभालना है…”

दीदी ने मेरी बात सुनकर मेरी तरफ देखा और फिर से सर झुका लिया और घर आने तक मेरे साथ और कोई बात नहीं की और मैं भी घर आकर अपने रूम में चला गया। रूम में आकर मैं बेड पे लेट गया और आराम करने लगा।

तभी दीदी मेरे रूम में आ गई और बोली- “भाई, आपको बापू बुला रहे हैं…”

मैं उठा और दीदी के साथ बाहर निकला और बापू के रूम की तरफ चल पड़ा। जैसे ही मैं बापू के पास गया तो बापू अकेले ही बैठे हुये थे। मुझे देखते ही मुश्कुरा दिए और बोले- “आओ बेटा, बैठो यहाँ मेरे पास…”

मैं बापू के पास बैठ गया तो बापू ने मुझे एक चाभी पकड़ा दी और कहा- “ये लो बेटा, ये है मकान की चाबी जहाँ अब तुम सुबह से जाया करोगे…”

मैंने चाभी बापू के हाथ से पकड़ ली और कहा- बापू, दुकान का क्या होगा?

बापू मेरी बात सुनकर हँस पड़े और कहा- “पुरानी दुकान तो बिक गई है अब नयी को संभालो…”

मैं बापू की बात सुनकर हँस पड़ा और कहा- चलो ठीक है, कहाँ है ये दुकान?

बापू ने मुझे एक पाश एरिया के फ्लैट का, जो कि ग्राउंड फ्लोर पे ही था, पता बता दिया और कहा- “मैंने सब कुछ सेट करवा दिया है अब वहाँ कोई परेशानी नहीं होगी…”

मैं- “ठीक है बापू, मैं सुबह से वहाँ चला जाऊँगा…”

बापू- “चलो ठीक है, ऐसा करना कि खाना खाने के बाद रात को यहाँ मेरे पास आ जाना…”

मैं- क्यों बापू? कोई काम था क्या?

बापू- “हाँ बेटा, काम है इसीलिए तो बुला रहा हूँ तुम्हें…”

मैं बापू की बात सुनकर बोला- “ठीक है बापू, अब मैं चलता हूँ…” और रूम से बाहर आ गया बाहर बुआ और बाजी बैठी हुई थी।

मुझे देखते ही बुआ ने कहा- हाँ आलोक, क्या बोल रहे थे तेरे बापू?

मैंने बुआ को चाभी दिखाई और कहा- “नयी दुकान की चाबी देनी थी मुझे, बस और कुछ नहीं…”

मेरी बात सुनकर बुआ हँस पड़ी और बोली- “चलो अच्छा है, तेरी भी जान छूटी, पुरानी दुकान से…”

मैंने दीदी की तरफ देखा तो दीदी अजीब सी नजरों से मेरी तरफ देख रही थी जिसमें बे-यकीनी और दुख और हल्की सी खुशी सब कुछ था जिसको कि मैं समझ ना सका।

अब मैं वहाँ से अपने रूम की तरफ चल पड़ा और जाकर दीदी के बारे में सोचने लगा कि आखिर दीदी मेरी तरफ इस तरह क्यों देख रही थी? क्या दीदी जानती हैं कि बापू ने मुझे किस दुकान की चाबी दी है? और वहाँ कौन सा काम होना है?

खैर टाइम गुजरता गया और रात का खाना दीदी ही मेरे रूम में लेकर आई और झुक के मेरे सामने रखने लगी तो मेरी नजर दीदी की चूचियों को, जो कि ऊपर से हल्के से नजर आ रही थीं, देखने लगा क्योंकि दीदी ने ऊपर दुपट्टा नहीं लिया हुआ था।

दीदी खाना रखकर ऊपर उठी और मुझे अपनी चूचियों के अंदर घूरता हुआ देखा तो दीदी ने कहा- भाई, क्या देख रहे हो आप?

मैंने कहा- कुछ नहीं दीदी, मैं भला क्या देखूंगा?

दीदी मेरी बात सुनकर वापिस मुड़ गईं और मैं दीदी की गाण्ड की तरफ देखने लगा तो दीदी रूम के दरवाजे के पास रुकी और मुड़कर मेरी तरफ देखा और मुझे अपनी गाण्ड की तरफ देखता पाकर दीदी बाहर निकल गईं।
दीदी के जाने के बाद मैंने खाना खाया और बर्तन बगल में रख दिए और टाइम गुजरने का इंतेजार करने लगा। क्योंकि अभी मैंने बापू के रूम में भी जाना था।

रात के 10:00 बज चुके थे। अब मैं उठा और बापू के रूम की तरफ चल पड़ा, क्योंकि बापू ने मुझे बुलाया था। मैं जैसे ही बापू के रूम के बाहर पहुँचकर दरवाजे को हल्का सा दबाया तो वो खुलता चला गया और मैं रूम में दाखिल हो गया। रूम में बापू के साथ बुआ और अम्मी भी बैठी हुई थी।

मुझे आता देखकर अम्मी ने कहा- “चलो अच्छा हुआ कि तुम खुद ही आ गये वरना मैं अभी आ ही रही थी तुम्हें बुलाने के लिए…”

मैंने दरवाजे को लाक किया और जाकर बेड के करीब पड़ी चेयर पे बैठ गया और बोला- “क्यों अम्मी कोई खास बात है क्या? जो इस वक़्त आप सब यहाँ जमा हैं…”

बुआ ने कहा- “हाँ आलोक, बात तो खास ही है इसीलिए तो हम लोग जमा हुये हैं…”

मैं- “तो फिर मुझे भी बतायें कि क्या बात है? जिसने आप सबकी नींद उड़ा रखी है…”

अम्मी- “बेटा, बात ये है कि तेरी दीदी इस काम के लिए मान गई है और अब उसके लिए एक आदमी भी ढूँढ़ना था, जो कि तेरे बापू ने ढूँढ़ लिया है?

अम्मी की बात सुनकर दीदी का चेहरा मेरी आँखों के सामने घूम सा गया और मैंने कहा- तो इसमें जमा होने की क्या बात है?

बुआ- आलोक, बात ये है कि तेरी दीदी अभी तक कुँवारी है और वहाँ उसके पास भी तो किसी का होना जरूरी है ना।

मैं- बुआ, क्या जब लड़की शादी के बाद अपने पति के साथ जाती है तो वहाँ भी उसके रूम में कोई होता है क्या?

बापू मेरी बात सुनकर हँस पड़े और बोले- “यार, मैं भी इनको ये ही समझा रहा था लेकिन ये है ना जो तेरी बुआ… इसका बड़ा दिल है कि ये भी उस वक़्त अंजली के साथ ही हो…”

बुआ- “भाई, आप तो ना बस बात का बतंगड़ बना देते हो। मैं तो बस ऐसे ही बोल रही थी…”
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06-23-2017, 10:30 AM,
#7
RE: Hot stories घर का बिजनिस
घर का बिजनिस --6

मैं- “देखो बुआ, आप इस माहौल से गुजर चुकी हो। मुझे नहीं लगता कि वो आदमी जो कि दीदी की सील खोलने के पैसे दे रहा है, उस वक़्त वहाँ किसी का रुकना पसंद करेगा और अगर उसने कुछ नहीं कहा तो हो सकता है कि दीदी ही बुरा मान जाये…”

अम्मी- “अंजली भला क्यों बुरा मानेगी? वो तो मेरी अच्छी बेटी है…”

मैं- “देखो अम्मी, मैं मानता हूँ कि वो आपकी बेटी है, आपकी किसी बात से इनकार नहीं करेगी। लेकिन ये भी तो सोचो कि दीदी का पहली बार होगा और वो एक तो एक अंजान आदमी के साथ होंगी और फिर हममें से वहाँ कोई होगा तो उसे कितनी शरम आएगी…”

बापू- “लेकिन बेटा, फिर भी वहाँ उसके पास किसी ना किसी का होना तो जरूरी है ना… चाहे बाहर ही सही…”

मैं- बापू, पहले तो आप ये बताओ कि दीदी को हमने भेजना कहाँ है?

बापू- “यार कहीं बाहर नहीं जाना है… वो जो मैंने तुम्हें फ्लैट की चाबी दी है ना वहाँ अंजली ही पहला काम करेगी…”

मैं- तो फिर परेशानी किस बात की है? मैं तो वहाँ हूँगा ही… आप लोग ऐसे ही परेशान हो रहे हैं…”

अम्मी- “ठीक है बेटा, तुम ऐसा करो कि सुबह अंजली को अपने साथ ही ले जाना। मैं उसे समझा दूँगी कि वो तुम्हारे साथ जाने से पहले थोड़ा तैयार हो जाये और एक अच्छा सा सूट भी साथ में ले जाये जो कि वहाँ जाकर पहन ले। क्योंकि यहाँ से जाते हुये अंजली को ऐसे कपड़ों में अगर किसी ने देख लिया तो तरह-तरह की बातें बनाता फिरेगा…”

अम्मी की बात से सबने इत्तेफाक किया और फिर बुआ उठी और मेरा हाथ पकड़कर बोली- “चलो आलोक तुम्हारे रूम में चलते हैं…”

अम्मी- क्यों? जो करना है यहाँ ही कर लो ना? हमसे कौन सा परदा है तुम्हें?

बापू- “हाँ भाई आलोक, ऐसा करो कि आज यहाँ हमारे रूम में ही सो जाओ तुम दोनों…”

अम्मी बापू की तरफ देखते हुये बोली- “मैं तो आज काफी थक गई हूँ। मैं आलोक के रूम में जाकर सो जाती हूँ और आप लोग यहाँ सो जाओ…”

अम्मी के जाते ही बापू ने बुआ की तरफ देखा और बोले- “चलो भाई, दरवाजा तो लाक कर दो…”

बुआ उठी और जाकर दरवाजा लाक करके मेरे पास आ गई और मुझे हाथ से पकड़कर बापू के पास बेड पे ले गई और बोली- “आलोक, दिन में तुमने पूछा था ना कि मुझे किसके साथ मजा आता है तो आ जाओ आज दिखाती हूँ तुम्हें…”

बुआ के इतना बोलते ही बापू ने बुआ को हाथ से पकड़ लिया और अपनी तरफ खींच लिया जिससे बुआ बापू के ऊपर गिर सी गई और फिर दोनों बहन-भाई किस करने लगे और बापू ने किस करने के साथ ही अपना एक हाथ पीछे करके बुआ की गाण्ड पे रख दिया। ये नजारा देखकर मेरा लण्ड भी शलवार में खड़ा हो गया और मैंने भी अपना हाथ आगे बढ़ा दिया और बुआ की कमर को सहलाने लगा। कुछ देर किस करने के बाद बापू ने बुआ को थोड़ा पीछे किया और बुआ की कमीज पकड़कर उतार दी।

और मेरी तरफ देखकर कहा- “आलोक, मेरी बहन की शलवार भी निकाल दो…”

बापू की बात ने मेरे लण्ड में आग सी लगा दी और मैंने अपने हाथ आगे बढ़ा दिए और बुआ की इलास्टिक वाली शलवार खींचकर नीचे गिरा दी और बुआ को नीचे से भी नंगा कर दिया और अपने होंठ बुआ की नंगी और गोरी गाण्ड पे रखकर एक चुम्मा ले लिया।

मेरे इस तरह चूमने से बुआ सिहर उठी और आअह्ह… भाई तेरा बेटा तो बड़ा हरामी है। देखो मेरी गाण्ड को चूम रहा है।

बापू ने हँसते हो बुआ की ब्रा से उसकी चूचियां को बाहर निकाल दिया और हाथों में पकड़कर बोले- आखिर बेटा किसका है?

बुआ ने कहा- “हाँ, जैसा मेरा हरामी भाई है, वैसा ही उसका बेटा भी होगा ना हेहेहेहेहे…”

अब मैं उठा और अपने कपड़े उतार दिए और बुआ की तरह नंगा हो गया और बुआ जो कि बापू के ऊपर झुकी उनसे अपनी चूचियां चुसवा रही थी, पीछे से उनकी टाँगों को थोड़ा खोला और अपना मुँह घुसाकर बुआ की फुद्दी पे अपनी जुबान घुमाने लगा। ऐसा करते वक़्त मेरा मुँह तो बुआ की फुद्दी को चाट रहा था लेकिन मेरी नाक बुआ की गाण्ड के सुराख के ऊपर थी और उसमें से आने वाली महक मुझे और भी दीवाना कर रही थी। मेरे इस तरह बुआ की फुद्दी चाटने से बुआ और भी गरम हो गई।

बुआ सिसकी- आअह्ह… आलोक, ये क्या कर रहा है बेटा? उन्म्मह… भाई देखो तुम्हारा बेटा क्या कर रहा है?
बापू ने बुआ की चूचियों से मुँह हटाकर मेरी तरफ देखा और मुझे इस तरह बुआ की गाण्ड में घुसा देखकर बापू भी खुश हो गये और बोले- “शाबाश बेटा, ये हुई ना बात… खा जा अपनी बुआ की फुद्दी को… साली की फुद्दी में बड़ी गर्मी है…”

कुछ देर इसी तरह चाटने के बाद पता नहीं मेरे दिल में क्या आई कि मैंने अपना मुँह थोड़ा ऊपर किया और अपनी जुबान को बुआ की गाण्ड के सुराख पे घुमा दिया जिससे मुझे तो बड़ा अजीब सा महसूस हुआ लेकिन बुआ तड़प ही उठी।

बुआ की गाण्ड पे जुबान लगते ही बुआ- “ऊओ… आलोक उन्म्मह… हाँ बेटा, यहाँ ही चाटो… बड़ा अच्छा लगा है बेटा आअह्ह…”

बापू ने कहा- क्या हुआ साली? इतना क्यों चिल्ला रही है? आज हम बाप बेटा तेरी फुद्दी में लगी आग को इतना ठंडा करेंगे कि तुझे नानी याद आ जायेगी हरामजादी कुतिया…”

अब मैं बड़े जोरों से बुआ की गाण्ड और फुद्दी पे अपनी जुबान घुमाने लगा था जिससे बुआ और भी मचल रही थी- “और आअह्ह… आलोक, खा जाओ अपनी बुआ की फुद्दी और गाण्ड को… उन्म्मह… भाई मैं जाने वाली हूंन… आअह्ह… म्माआ… मैं गई…” और इसके साथ ही बुआ के जिश्म को झटका सा लगा और बुआ की फुद्दी से मनी का फावरा सा निकला जो कि कुछ तो बापू के ऊपर गिरा जो कि बुआ के नीचे लेटे हुये थे और बाकी को मैं अपनी जुबान से लप्पर-ललप्पर करके चाट गया।
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06-23-2017, 10:30 AM,
#8
RE: Hot stories घर का बिजनिस
बुआ फारिग़ होने के बाद निढाल सी हो गई तो बापू ने बुआ को बगल में लिटा दिया और खड़े होकर अपने कपड़े उतार दिए और मेरे सामने नंगे हो गये। बापू का लण्ड मुझसे काफी छोटा कोई 5½ और पतला भी था। अब बापू ने बुआ को बालों से पकड़कर उठा लिया और बुआ के मुँह में अपना लण्ड घुसा दिया और मुझसे कहा- “चल बेटा, घुसा दे अपनी इस गश्ती बुआ की फुद्दी में अपने लण्ड को…”

मैंने बापू की बात सुनी और बुआ की टांगें खोलकर बीच में आ गया और अपने लण्ड को बुआ की फुद्दी पे सेट किया और एक जोरदार झटके से लण्ड को बुआ की फुद्दी की गहराई में उतार दिया। मैंने बड़ी बुरी तरीके से बुआ की फुद्दी में लण्ड घुसाया था जिससे बुआ के मुँह से घूंन… घूवन्न… की आवाज ही निकल सकी। क्योंकि बापू ने बुआ को सर से पकड़कर उसके मुँह में अपना लण्ड घुसा रखा था और पकड़ा हुआ था जिससे बुआ के मुँह से कोई आवाज नहीं निकल सकी।

अब मैंने एक बार फिर से अपने लण्ड को सुपाड़े तक बुआ की फुद्दी से बाहर खींचा और एक तेज झटका दिया जिससे मेरा लण्ड बुआ की बच्चेदानी से जाकर जोर से टकराया क्योंकि मैंने बुआ की टाँगों को उसके कंधों के साथ दबा रखा था जिससे कि मेरा लण्ड जड़ तक बुआ की फुद्दी में घुस रहा था और बुआ तकलीफ से मचलने लगीं।

मेरे इन जोरदार धक्कों की वजह से बुआ अपने मुँह से बापू के लण्ड को बाहर निकालने की कोशिश करने लगी और घूंन… घूंन… ऊवन्न… की आवाज करने लगीं।

अब बापू ने बुआ के मुँह से अपना लण्ड निकाल लिया।

तो बुआ के मुँह से- आअह्ह… आसस्सीफफ्फ़ आराम से… फाड़नी है क्या? आराम से करो प्लीज़्ज़…”

अब बापू ने मेरे कंध पे हाथ रखा और मुझे रुकने का इशारा किया। मेरे रुकते ही बापू ने मुझे बुआ के ऊपर से हटा दिया और मुझे बेड पे लेटने को कहा। जैसे ही मैं लेटा तो बापू ने बुआ से कहा- “चल अब बैठ जा इसके लण्ड पे…”

और बुआ मेरे लण्ड पे बैठ गई तो मैंने बुआ को अपनी तरफ खींच लिया और किस करने लगा। बापू ने बुआ की गाण्ड पे थूक लगाकर अपने लण्ड को बुआ की गाण्ड पे रखकर और घुसाने लगे। तो बुआ ने मेरे साथ किस करना छोड़ दिया और सर को घुमाकर बापू की तरफ देखा और बोली- “नहीं भाई, प्लीज़्ज़… इस तरह बहुत दर्द होगा ऊओफफ्फ़…”

बापू ने बुआ की कोई बात नहीं सुनी और बार-बार अपने लण्ड को बुआ की गाण्ड में घिसते गये जिसका मुझे भी अपने लण्ड पे रगड़ से पता चल रहा था कि बापू रुक नहीं रहे हैं। बुआ का मुँह उस वक़्त लाल हो रहा था और आँखों से भी पानी निकल रहा था- “आऐ… भाईई नहीं प्लीज़्ज़ …निकालो बाहर… मेरी गाण्ड फट जायेगी भाई जान…” बापू ने बुआ की किसी बात पे कान नहीं धरा और अपने लण्ड को बुआ की गाण्ड में घुसा दिया और आहिस्ता से अंदर-बाहर करने लगे।

जिससे कि मुझे भी उतना ही मजा आने लगा जितना बापू को अंदर-बाहर में आ रहा होगा।

अब बापू बोले- “हाँ साली… अब बोल, मजा आ रहा है या माँ चुद गई है तेरी? हाँ बोल कुतिया…”

बुआ की आँखों से आँसू निकल रहे थे और बुआ- “भाईई प्लीज़्ज़… बड़ा दर्द हो रहा है मुझे… और नहीं करो… थोड़ा रुक जाओ भाईई… फट जायेगी मेरी गाण्ड…”

कुछ देर तक बापू आहिस्ता से बुआ की गाण्ड मारते रहे जिससे बुआ को थोड़ी राहत मिली और बुआ को भी मजा आने लगा जिससे बुआ बापू को- “हाँ भाईई, अब कुछ अच्छा लग रहा है। बस इसी तरह आराम से करना भाईई…”

मेरा इस तरह बुआ की फुद्दी में लण्ड घुसाकर लेटे रहने के बावजूद मजे से भी बुरा हाल था और मेरा लण्ड फटा जा रहा था और अब बापू भी फारिग़ होने के करीब ही थे तो बापू ने अब अपनी स्पीड को थोड़ा बढ़ा दिया और क्योंकि अब मुझसे भी बर्दाश्त नहीं हो रहा था जिसकी वजह से मैंने भी नीचे से अपने लण्ड को बुआ की फुद्दी में हिलाना शुरू कर दिया।

बुआ भी अब मजे से पागल हो रही थी- “हाँ भाईई… और तेज़्ज़ करो… ऊओ… भाई मैं गई… उन्हं… फाड़ दो मेरी गाण्ड और फुद्दी को कमीनो…”

बुआ की इन गालियों और सिसकियों ने हम बाप बेटे को भी पागल कर दिया था और बापू अब- “हाँ साली, ये ले… आज मैं अपने बेटे के साथ मिलकर तेरी गाण्ड और फुद्दी को फाड़ ही डालूंगा… ऊओ नीलम… मेरी बहना मैं गया…” और इसके साथ ही बापू बुआ की गाण्ड में ही फारिग़ हो गये और बगल में होकर लेट गये।

बापू के बाद मैं भी 5-6 झटके ही लगा सका और बुआ के साथ ही फारिग़ हो गया। फारिग़ होते ही बुआ मुझसे बुरी तरह लिपट गई और किस करने लगी और फिर इसी तरह मेरे ऊपर लेटकर लंबी-लंबी सांसें लेने लगी।

फारिग़ होने के कुछ देर के बाद बापू ने कहा- “चलो बेटा, अभी सो जाते हैं। काफी टाइम हो गया है सुबह तुमने अपनी बहन के साथ भी तो जाना है…”

बापू की बात सुनकर मैंने हाँ में सर हिला दिया और बुआ को अपने लण्ड से उतार दिया जो कि बुआ की फुद्दी में ही सो गया था। फिर मैं उठा और बाहर जाने के लिए कपड़े पहनने लगा तो बापू ने कहा- “आलोक कहाँ जा रहे हो? यहाँ ही सो जाओ…”

मैंने बापू की तरफ देखा और बोला- “बापू जरा नहाने जा रहा हूँ अभी आ जाऊँगा…”

बापू ने कहा- “यार सुबह ही नहा लेना। चलो अभी नींद पूरी कर लो…”

बापू की बात सुनकर मैं भी वहीं लेट गया और सोने की कोशिश करने लगा।

सुबह अम्मी के उठाने से मेरी आँख खुली तो 8:00 बज चुके थे। मैं उठा और सीधा बाथरूम में घुस गया और नहाकर बाहर निकला तो बुआ ने मुझे नाश्ता लाकर दिया। अभी मैं नाश्ते से फारिग़ ही हुआ था कि अम्मी मेरे पास आकर बैठ गई और बोली- हाँ तो बेटा रात कैसी गुजरी तुम्हारी?

मैंने अम्मी की तरफ देखा और कहा- “अम्मी, अगर आप भी हमारे साथ होती तो ज्यादा मजा आता…”

अम्मी- अच्छा ज्यादा बातें ना बना, जवान औरत की जगह मेरा भला क्या काम?

मैं- “अम्मी आप तो अभी जवान लड़कियों से भी ज्यादा प्यारी और मस्त हो…”

अम्मी- अच्छा जी, तो लगता है कि मेरे बेटे को अब मक्खन लगाना भी आ गया है…”

मैं- नहीं अम्मी, भला मैं आपको मक्खन कैसे लगा सकता हूँ? और हाँ बापू कहीं नजर नहीं आ रहे, कहाँ हैं?

अम्मी- “वो तेरे बापू जरा काम से गये हैं अभी आ जाते हैं तो तुम अंजली को लेकर निकल जाना…”

मैं- ठीक है अम्मी, दीदी कहाँ हैं? वो भी नजर नहीं आ रही?

अम्मी- “वो जरा साथ के मुहल्ले में गई है जरा बाल वगैरा सेट करवाने के लिए…”

फिर बुआ के आने के बाद हमारे बीच इधर-उधर की बातें होने लगी कि तभी बापू भी आ गये। उनके हाथ में एक पैकेट था जो कि बापू ने मुझे पकड़ा दिया और कहा- “इसे अपने साथ ले जाना…”

मैंने पैकेट पकड़ लिया और बापू से पूछा- बापू, इसमें क्या है?

बापू ने कहा- इसमें (ब्लैक डाग) है जो कि आज तुम्हें अपने साथ ले जानी है और अगर अरविंद साहब मांगें तो दे देना, ठीक है (अरविंद उस आदमी का नाम था जिसने आज मेरी बड़ी बहन को कली से फूल बनाना था)
मैंने कहा- ठीक है बापू, और कुछ?

तो बापू ने कहा- “नहीं बेटा, लेकिन देखो वहाँ जो भी हो अपने कान बंद रखना ओके…”

मैंने हाँ में सर हिला दिया और कहा- “जी बापू, मैं जानता हूँ कि दीदी का पहली बार है और उसे दर्द भी होगा, आप टेंशन नहीं लो…”
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06-23-2017, 10:30 AM,
#9
RE: Hot stories घर का बिजनिस
घर का बिजनिस --7

मैंने हाँ में सर हिला दिया और कहा- “जी बापू, मैं जानता हूँ कि दीदी का पहली बार है और उसे दर्द भी होगा, आप टेंशन नहीं लो…”

अभी हम ये बातें ही कर रहे थे कि घर का बाहर के दरवाजे पर खटखट होने लगी। बुआ उठी और जाकर दरवाजा खोला तो दीदी अंदर आ गई जिसे देखकर एक बार तो मैं भी आँखें बंद करना ही भूल गया। अम्मी दीदी को देखकर उठी और और दीदी की गर्दन पे एक काला टिका सा लगा दिया और कहा- “नजर ना लगे मेरी बच्ची को बड़ी प्यारी लग रही है…”

दीदी अम्मी की बात से थोड़ा शर्मा गई तो बापू ने कहा- चलो आलोक, तुम भी तैयार हो जाओ और अंजली बेटी, तुम भी अपने कपड़े साथ ले लो। वहाँ ही तैयार हो जाना। ठीक है?

दीदी ने बापू की बात सुनकर हाँ में सर हिला दिया और रूम की तरफ चल पड़ी और मैं भी अपने रूम में आ गया और कपड़े चेंज करने लगा। अम्मी मेरे पीछे ही रूम में आ गईं और मुझे कपड़े बदलता देखकर बोली- “आलोक, अपनी बहन का ध्यान रखना बेटा… वो बड़ी नाजुक है…”

मैंने कहा- “अम्मी आप पेरशान ना हूँ मैं हूँगा ना वहाँ… दीदी को कुछ भी नहीं होगा…” और कपड़े पहनकर अम्मी का हाथ पकड़ लिया और बाहर आ गया।

दीदी भी जल्दी ही कपड़े बदलकर आ गई तो अम्मी और बुआ ने दीदी को अपने साथ लिपटाकर प्यार किया और फिर हम दोनों बहन-भाई एक साथ घर से बाहर निकल आए। दीदी को अपने साथ लेकर जाते हुये मेरे अहसासात बड़े अजीब से थे और एक बार तो मेरा दिल किया कि मैं दीदी को वापिस ले जाऊँ और इस गंदगी में गिरने से बचा लूं। लेकिन फिर अपने घर के और अपने हालात देखकर दीदी को अपने साथ फ्लैट की तरफ ले गया।

फ्लैट में आकर मैंने दीदी की तरफ देखा और कहा- “जाओ दीदी, आप रूम में और तैयार होकर आ जाओ…”
दीदी ने बड़ी अजीब नजरों से मुझे देखा और रूम में चली गई। जब दीदी को रूम में गये हुये 15 मिनट से ज्यादा हो गये तो मैंने दरवाजा खटखटाया और कहा- दीदी, क्या आप तैयार हो गई हो?
दीदी ने कहा- “जी भाई…”

तो मैं दरवाजा खोलकर अंदर चला गया। देखा तो दीदी टाइट जीन्स और शर्ट में कोई इंडियन ऐक्ट्रेस ही लग रही थी। मैं आँखें फाड़े दीदी की तरफ देखने लगा।

तो दीदी ने कहा- “भाई, खड़े क्यों हो? आ जाओ यहाँ बैठ जाओ…”

मैं जाकर दीदी के पास ही एक चेयर पे बैठ गया और दीदी से कहा- दीदी, आप खुश तो हो ना?

दीदी- भाई, आप खुश हो क्या?

मैं- दीदी, मैंने आपसे पूछा था और उल्टा मुझसे ही पूछने लगी हो?

दीदी- हाँ भाई, मैं खुश हूँ और आप?

दीदी का जवाब दीदी की आँखों का साथ नहीं दे रहा था इसलिए मैंने कहा- “दीदी, अगर आपके साथ कोई जबरदस्ती कर रहा है तो आप अभी भी वक़्त है मना कर दो मैं आपका साथ दूँगा…”

दीदी की आँखों से मेरी बात सुनकर दो आँसू निकल गये और दीदी ने कहा- “नहीं भाई, ये सब मैं अपनी मर्ज़ी और घर की खुशी के लिए कर रही हूँ किसी के जोर देने से नहीं…”

मैं- दीदी, अगर आप अपनी मर्ज़ी से कर रही हो तो फिर आपकी आँखों में आँसू कैसे हैं?

दीदी- “भाई, ये तो इसलिए आ गये कि मेरा भाई मुझे कितना चाहता है…”

मैं- “दीदी, सच कहूं तो मैंमें आपको सच में प्यार करता हूँ…”

दीदी- “पता है मुझे…” और सर झुका के बैठ गई और फिर हमारे बीच और कोई बात नहीं हुई।

तो मैं उठा और बाहर हाल में आकर बैठ गया कि तभी बाहर की बेल होने लगी। मैं उठा और जाकर दरवाजा खोला। देखा तो कोई 40 या 45 साल का आदमी था।

वो मुझे देखकर बोला- आप ही आलोक हो?

मैंने हाँ में सर हिलाया।

तो उसने कहा- अरे भाई, अंदर नहीं आने दोगे क्या? मेरा नाम अरविंद है और मेरा ख्याल है कि तुम्हें मेरा नाम बता दिया हो गया होगा…”

मैंने बगल में होकर अरविंद साहब को अंदर आने का रास्ता दिया और उसके अंदर आते ही दरवाजे को फिर से लाक कर दिया और उसे हाल में लाकर बिठा दिया।

तो उसने पूछा- कहाँ है भा, जिसने हमारा दिल चुरा लिया है?

मैं उसकी बात को समझ गया और उठकर दीदी को रूम से बुला लाया और अरविंद साहब के पास बिठा दिया। दीदी उस वक़्त बुरी तरह शर्मा रही थी।

अरविंद ने मेरी तरफ देखा और कहा- यार, यहाँ कोई पीने का इंतजाम नहीं है क्या?

मैंने कहा- “जी मैं अभी लता हूँ… और बगल से बोतल निकाली, जो कि बापू ने मुझे लाकर दी थी, टेबल पे रखा और किचेन से एक गिलास भी ले आया।

अरविंद ने कहा- यार, एक गिलास और ले आओ…

मैं लेकर आया तो उसने कहा- इसके साथ खाने के लिए कुछ नहीं है क्या?

मैंने इनकार में सर हिला दिया तो उसने किसी को काल की और कुछ खाने के लिए बोल दिया तो कुछ ही देर में एक आदमी जो कि ड्राइवर कि वर्दी में था खाने पीने का सामान लाकर दे गया। सामान के आते ही अरविंद ने बोतल खोली और दो गिलास बनाकर एक दीदी की तरफ बढ़ा दिया और दूसरा खुद पकड़ लिया।

दीदी का चेहरा उस वक़्त रोने वाला हो रहा था।

तो अरविंद ने कहा- “पी लो जान, इससे दिल बड़ा हो जाता है और शरम भी खतम हो जाती है…”

मैंने भी दीदी की तरफ देखा और इशारा किया कि वो बात मान ले और शराब पी ले।

दीदी ने आहिस्ता से एक घूँट लगाया और बुरा सा मुँह बना लिया जिससे अरविंद हाहाहाहा करके हँसने लगा और बोला- “अरे यार पी लो, शुरू में ऐसा ही होता है। बाद में ये अपना जादू दिखाती है…”

दीदी ने अरविंद की बात सुनकर एक ही सांस में गिलास खाली कर दिया।

तो अरविंद ने कहा- “ये नमकीन वगैरा भी लो ना साथ में, मजा आएगा…”

अरविंद की बात सुनकर दीदी ने नमकीन भी ले ली और खाने लगी। तभी अरविंद ने एक गिलास और दीदी की तरफ बढ़ा दिया और बोला- “यहाँ आ जाओ और मेरी गोदी में बैठकर पियो…”

दीदी ने एक बार मेरी तरफ देखा और मैंने हाँ में सर हिला दिया।

तो दीदी उठकर उसकी गोदी में बैठ गई और इस बार बड़े आराम से गिलास खतम किया और साथ नमकीन भी खाती रही।

अब अरविंद शराब भी पी रहा था और साथ दीदी की रानों को भी सहला रहा था जिस पे दीदी ने उसे मना नहीं किया। दीदी का चेहरा शराब पीने की वजह से अब काफी लाल हो रहा था और दीदी को हल्का सा पसीना भी आने लगा था। तो अरविंद ने कहा- “चलो जान, अब रूम में चलते हैं…” और दीदी को अपने साथ रूम में ले गया लेकिन दरवाजा बंद नहीं किया।

कोई 10 मिनट तक रूम में से बस से आअह्ह… की आवाजें ही आती रहीं क्योंकि पता नहीं रूम में क्या हो रहा था? मैंने नहीं देखा। मुझे हिम्मत ही नहीं हो रही थी।

तभी अरविंद ने आवाज दी और कहा- “अरे यार, क्या नाम है तेरा? जरा बाहर से बोतल ही ला दे यार…”

मैं गिलास और बोतल के साथ जब रूम में गया तो दीदी वहाँ जमीन पे बिल्कुल नंगी बैठी हुई थी और उसके मुँह में अरविंद का लण्ड था जिसे दीदी चूस रही थी।

अरविंद ने कहा- “यहाँ रखो और जरा एक गिलास बनाकर मुझे पकड़ा दो…”

मैंने गिलास बनाकर उसे दिया।

तो उसने गिलास पकड़ लिया और बोला- यार, जरा इसको रंडी बनाने से पहले लौड़ा चूसना तो सिखा देते?

मैंने कहा- जी बस अभी नहीं आता है ना इसलिए आप ही सिखा लो… जो कहोगे, आपको मना नहीं करेगी…”

अरविंद ने कहा- हाँ यार, ये तो सच कहा तू ने…” और मुझे कहा- “तू भी अपने लिए एक गिलास बना ले…”

मैं वहाँ से हटा और एक गिलास अपने लिए भी बना लिया कि तभी अरविंद ने जोर से कहा- साली लण्ड पे काटती क्यों है? और दीदी को बालों से पकड़कर उठा लिया और बेड पे फेंक दिया और दीदी की टाँगों को उठा दिया और बोला- “अब देख कि मैं कैसे तेरी फुद्दी को चाटता हूँ…”

मैं गिलास पकड़कर वहीं खड़ा रहा और दीदी की क्लीन और कुँवारी फुद्दी का नजारा लेता रहा और दीदी भी मेरी ही तरफ देख रही थी कि तभी अरविंद ने कहा- चल अब जा यहाँ से कि यहाँ ही खड़ा रहेगा?

मैं अरविंद की बात सुनकर चुपचाप वहाँ से बाहर आ गया और बैठकर शराब पीने लगा। कुछ ही देर हुई थी कि मुझे रूम में से दीदी की दर्द में डूबी हुई- “आऐ रुको भाईई…” की आवाज सुनाई दी।

लेकिन मैं जानता था कि दीदी की आवाज क्यों आ रही है इसलिए मैं वहाँ ही बैठा रहा। कुछ देर तक दीदी- “नहीं प्लीज़्ज़… बाहर निकालो… मैं मर गई… ऊओ भाईई… मुझे बचा लो भाईई…” लेकिन उसके कोई 2-3 मिनट के बाद दीदी की मजे से- “आअह्ह… सस्स्सीई… आहिस्ता करो… उन्म्मह…” की आवाजें फ्लैट में गूँजती रही और फिर पूरे फ्लैट में सकून सा छा गया।
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06-23-2017, 10:30 AM,
#10
RE: Hot stories घर का बिजनिस
खामोशी होने के बाद मुझे अरविंद ने आवाज दी। जब मैं अंदर गया तो वो उस वक़्त रूम में खड़ा हुआ दीदी की टाँगों और बेड पे गिरे हुये खून को देख रहा था। मैंने भी जब दीदी की खून से भरी हुई फुद्दी की तरफ देखा तो एक बार परेशान हो गया। लेकिन दीदी के चेहरा पे हल्की सी मुश्कान साफ नजर आ रही थी।

मुझे अरविंद ने कहा- “यार, सच में तेरी बहन ने बहुत मजा दिया है… दिल तो कर रहा है कि अभी फिर से चोद डालूं… लेकिन नहीं मुझे अभी जाना है फिर कभी सही…” और पास ही पड़े अपने कपड़े उठाकर उनमें से ₹10,000 मुझे और ₹10,000 ही दीदी को दिए और बोला- “ये रख लो, मैं तुम्हें अपनी खुशी से दे रहा हूँ…” और कपड़े पहनकर निकल गया।

मैं भी अरविंद के पीछे ही निकला और जाकर दरवाजा लाक करके वापिस दीदी के पास आया तो दीदी अपने घर वाले कपड़े लेकर वाश-रूम में जा रही थी। दीदी के वाश-रूम में जाते ही मैंने बेड से चादर उतार दी और उसे अलमारी में रख दिया और बाकी बची हुई शराब की बोतल को उठाकर बगल में रख दिया और दीदी की वापसी का इंतजार करने लगा।

दीदी जब रूम से वापिस आई तो हल्का सा लड़खड़ा रही थी। मैं आगे बढ़ा और जाकर दीदी को एक बाजू से पकड़कर बेड तक लाया और बेड पे बिठा दिया और बोला- दीदी, आप ठीक हो ना?

दीदी मेरी आँखों में देखकर हल्का सा मुश्कुराई और बोली- “हाँ भाई, मैं ठीक हूँ…”

मैं- “दीदी, अगर आप बोलो तो मैं आपको अभी घर ले चलूं…”

दीदी- क्यों भाई? मैं यहाँ तुम्हारी दुकान पे नहीं रह सकती क्या?

मैं दीदी की बात से काफी शर्मिंदा हुआ और बोला- “क्यों नहीं दीदी? आपका जितना दिल करे यहाँ रहो…”

दीदी- “भाई, तुम मेरी बात का कोई गलत मतलब नहीं लेना। मैं आपको तना नहीं दे रही। लेकिन ये भी तो सच ही है ना कि ये आपकी दुकान है और मैं आपकी दुकान का सामान हूँ…”

मैंने दीदी की तरफ देखा जो कि मुझे ही देख रही थी बोला- “हाँ दीदी, बात तो आपकी सच ही है…”

दीदी ने मेरा हाथ पकड़कर अपने हाथ में भर लिया और दोनों हाथों से सहलाने लगी और बोली- “भाई, आप बहुत अच्छे हो…”

मैं- “दीदी, आप भी बहुत अच्छी हो और जो आपने अपने और हम सबके लिए ये जो कदम उठाया है इससे मैं और भी आपसे प्यार करने लगा हूँ…”

दीदी- “अच्छा भाई, अब मैं कुछ देर आराम कर लूँ फिर घर की तरफ चलते हैं…”

मैं- “दीदी, अगर आप कहो तो मैं आपको थोड़ा दबा दूँ इससे आपको आराम मिलेगा…”

दीदी कुछ देर तक मेरी आँखों में देखती रही और फिर दीदी ने कहा- “ठीक है, दबा दो…”

अब मैं दीदी के साथ ही बेड पे आ गया और दीदी के पैरों की तरफ बैठ गया और दीदी की टांगें दबाने लगा और दीदी ने अपनी आँखें बंद कर लीं।

कुछ देर तक मैं बारी-बारी दोनों टाँगों को दबाता रहा और फिर मैं अपने हाथ दीदी की रानों तक ले गया और दबाने से ज्यादा सहलाने लगा। दीदी ने अपनी आँखों को खोला और मेरी तरफ देखकर कहा- “भाई, अगर आप इसी तरह दबाना चाहते हो तो जरा ठहरो मैं उल्टी होकर लेट जाती हूँ आप दबा लो…”

मैं दीदी की बात से खुश हो गया और दीदी के उल्टा लेटते ही दीदी की रानों को दबाने लगा और सहलाने लगा। दीदी क्योंकि आराम से लेटी हुई थी इसलिए मैं अपने हाथों को आहिस्ता से खिसकता हुआ दीदी की नरम और गोल-गोल चूतड़ों तक ले गया और अचानक दिल को बड़ा करके दीदी की गाण्ड को भी हल्का सा दबा दिया। दीदी की गाण्ड को मैंने जैसे ही दबाया दीदी के मुँह से हल्की से उन्म्मह… की आवाज निकली जिसे सुनते ही मैं समझ गया कि दीदी भी पूरा मजा ले रही हैं।

अब मैं दीदी की गाण्ड से थोड़ा नीचे रानों के ऊपर बैठ गया और अपने लण्ड जो कि दीदी की नरम गाण्ड पे हाथ फेरने की वजह से पूरा हार्ड हो चुका था दीदी की गाण्ड के ऊपर टिका दिया और दीदी के कंधे दबाने लगा। दीदी ने भी अपनी गाण्ड को हल्का सा मेरे लण्ड की तरफ दबा दिया जिससे मुझे और भी मजा आने लगा और मैं दीदी की गाण्ड पे अपने लण्ड को इसी तरह रगड़ता रहा और दीदी को दबाता रहा।

कुछ देर के बाद दीदी ने अपना मुँह मेरी तरफ घुमाया और कहा- “भाई, अभी बस करो बाद में दबा देना अब हमें घर जाना चाहिए…”

दीदी की बात सुनकर मैं थोड़ा होश में आ गया और खड़ा हो गया जिससे दीदी को मेरा खड़ा लण्ड साफ नजर आने लगा और दीदी भी अब बिना शरम किए मेरे लण्ड को ही घूर रही थी।

मैं वहाँ से सीधा वाश-रूम में गया और मूठ लगाकर अपने लण्ड को ठंडा किया और दीदी के पास वापिस आ गया और बोला- “चलो दीदी चलते हैं…”

दीदी ने उठकर अपनी जीन्स शर्ट जो कि फर्श पे पड़ी हुई थी उठाकर अलमारी में रखी और फिर तैयार होकर मेरे साथ चल पड़ी।

मैंने कहा- दीदी, आपने अपनी ड्रेस यहाँ क्यों छोड़ दी है घर लेकर नहीं जानी क्या?

दीदी ने कहा- भाई, ये कपड़े यहाँ के लिए हैं। हमारे मुहल्ले में नहीं पहन सकते तो फिर यहाँ ही रहने दो घर लेकर जाने का क्या फायदा?

हम फ्लैट से निकले और एक रिक्सा में बैठकर घर आ गये और आते ही अम्मी ने दीदी को अपने साथ रूम में बुला लिया। क्योंकि बाकी बहनें भी उस वक़्त घर पे ही थीं।

अभी मैं जाकर रूम में बैठा ही था कि पायल भागती हुई मेरे रूम में आ गई और बोली- भाई खाना लायें आपके लिए?

मैंने कहा- “हाँ ले आओ…”

और पायल उसी तरह भागती हुई वापिस चली गई तो मैं उसके भागने की वजह और कुछ शराब के असर से अपनी छोटी बहन की गाण्ड को घूरने लगा जो कि दीदी की गाण्ड से कुछ बड़ी ही थी। ये ख्याल आते ही कि पायल की गाण्ड दीदी से बड़ी है मैं सोच में पड़ गया कि कहीं पायल किसी से चुदवा तो नहीं चुकी? ये ख्याल आया ही था तो मैं दिल में हँस पड़ा कि नहीं अभी वो बच्ची है लेकिन उसकी गाण्ड मेरे इस तसोर के लिए काफी थी

जैसे ही पायल खाना लेकर आई मैंने कहा- “बैठो यहाँ…”

और जैसे ही पायल मेरे पास बैठी तो सून्न… ससून्न… करके कुछ सूँघने लगी
मैंने कहा- “क्या हुआ बच्चे? क्या सूँघ रही हो तुम? हाँ…”

पायल ने कहा- भाई, आपको कोई अजीब सी महक नहीं आ रही है क्या?
मैं- “कैसी महक बच्चे? मुझे तो नहीं आ रही…”

पायल- लगता है कि काफी दिन हो गये आपके रूम की सफाई नहीं हुई… चलो कोई बात नहीं मैं हूँ ना, कर दूँगी…”

मैं- अच्छा, ज्यादा बातें ना बना और ये बताओ कि पढ़ाई कैसी चल रही है तुम्हारी?

पायल- भा, वो तो एकदम मस्त चल रही है लेकिन भाई?

मैं- हाँ बोलो, लेकिन क्या बात है? जो तुम मुझसे करना चाहती हो और कर नहीं पा रही?

पायल- “भाई, मुझे ना अपने कालेज़ की तरफ से एक ट्रिप के लिए जाना है। अम्मी से पूछा तो उन्होंने पापा की तरफ भेज दिया और पापा ने कहा कि अपने भाई से बात कर लो…”

मैं- अच्छा, कब जाना है तुम्हें?

“भाई, 3 दिन बाद जाना है अगर आप बोलो तो मैं सुबह हाँ बोल दूँ क्या?

मैं- नहीं, मैं कल बताऊँगा तुम्हें जाना है कि नहीं…” और तब तक मैं खाना खा चुका था और पायल को बोला- “चलो बर्तन उठा लो और जाओ यहाँ से और अम्मी को भेज देना…”

पायल के जाने के कुछ ही देर के बाद अम्मी मेरे पास आ गई तो मैंने अम्मी को दरवाजा लाक करने के लिए बोला। अम्मी दरवाजा लाक करके मेरे पास आई तो मैंने कहा- पायल आपने को मेरे पास क्यों भेजा था?

अम्मी ने कहा- बेटा, तुमने कहीं पायल को हाँ तो नहीं कर दी है क्या?

मैं- नहीं अम्मी, अभी हाँ तो नहीं की लेकिन मना भी नहीं किया है… क्यों कोई खास बात है क्या?

अम्मी- “हाँ बेटा, ऋतु ने मुझे कुछ दिन पहले ये बताया था कि पायल किसी लड़के के चक्कर में है और मुझे लगता है कि ये भी इसका कोई ड्रामा ही होगा…”

मैं- अम्मी, मैं ऐसा करता हूँ कि कल पायल के कालेज़ जाता हूँ और वहाँ से पता करता हूँ कि कोई ट्रिप है या नहीं? और अगर है तो कब की है?

अम्मी- हाँ, ये ठीक रहेगा। इस तरह कम से कम हमें पता तो चल ही जायेगा?

मैं- “ठीक है अम्मी, मैं सुबह पता करके आपको बता दूँगा और फिर जो करना हुआ आप मुझे बता देना…”
अम्मी- अच्छा ये बता, अंजली ने परेशानी तो नहीं खड़ी की वहाँ?

मैं- “नहीं अम्मी, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और दीदी ने सब कुछ आराम से कर लिया था…”

अम्मी- और तू ने कुछ नहीं किया क्या?

मैं- नहीं अम्मी, आपको तो पता है कि दीदी का पहली बार था और खून भी काफी निकला था इसलिए मैंने कोई रिस्क लेना मुनासिब नहीं समझा…”

अम्मी- चल ठीक है, तू आराम कर…” और उठकर मेरे रूम से निकल गईं। मैं भी कुछ देर के बाद उठकर घर से निकल आया और अपने दोस्तों के साथ घूमता फिरता रहा और फिल्म भी देखी और रात को 11:00 बजे घर आया और आते ही सो गया।

सुबह उठा तो पायल और ऋतु पढ़ने के लिए जा चुकी थीं। मैंने नहाकर कपड़े बदली किए और नाश्ता करके पायल के कालेज़ की तरफ निकल गया। कालेज़ पहुँचकर मैं सीधा प्रिन्सिपल के ओफिस गया और उससे पायल की क्लास का बताकर पूछा- क्या कोई ट्रिप जा रहा है कालेज़ की तरफ से?

टीचर ने हाँ में सर हिला दिया और कहा- “जी आज से ठीक 3 दिन के बाद जा रहा है…”

मैंने कहा- “थैंक्स सर… अब मुझे इजाजत दें…” और उठकर घर की तरफ चल पड़ा।

सारे रास्ते मैं ये ही सोचता रहा कि आखिर पायल ने एक दिन पहले जाने का क्यों बताया? क्या सच में वो किसी और के साथ चुदाई के लिए जाना चाहती है? या कोई और बात है?
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