07-16-2017, 10:14 AM,
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RE: Hot Sex stories एक अनोखा बंधन
66
भौजी ने मेरे लंड के ऊपर अपनी टांग रखी और मेरे होठों को अपने होठों से रगड़ने लगीं| लंड तन के खड़ा हो गया|भौजी ने मेरे होठों को अपने होठों से अलग किया और बोलीं;
भौजी: जानू... आप मुझसे सम्भोग के लिए कहने में क्यों जिझकते हो?
मैं: वो मैं...
भौजी: बोलो ना?
मैं: जब मैं शहर से आया था तब मैंने कई बार देखा है की भैया आपसे सम्भोग के लिए कहते हैं ... और कभी भी कहते हैं... किसी के भी सामने...अलग बुला के आपको कहते हैं| और चूँकि आप मुझसे प्यार करते हो तो आप हरबार मना कर देते थे| अब मेरा मन भी कभी भी ये सब करने को करे और मैं भी अगर सबके सामने आपसे इस के लिए कहूँ तो मुझ में और भैया में फर्क क्या रहा? इसलिए मैं अपना मन मार के रह जाता हूँ| पर सच कहूँ तो मुझे मजा तब आता है जब आप कहते हो!
भौजी: (मेरे लंड पे अपना हाथ रखते हुए) आप दोनों में बहुत फर्क है|मैं आपसे प्यार करती हूँ| आपकी ख़ुशी के लिए जान हाजिर है! आप जब कहो...जहाँ कहो मैं आपको कभी मना नहीं करुँगी|
अब उन्होंने मेरा पजामे में हाथ डाल के बिना उसे नीच खिस्काय लंड बाहर निकल लिया और उसे जत्थों में पकड़ उसकी चमड़ी को ऊपर-नीचे करने लगीं| उन्होंने अपना मुंह मेरी तरफ बढ़ाया और एक बार फिर मेरे होठों को अपने मुंह में भर के चूसने लगीं| हालत ऐसी थी की अब झड़ा... मैंने अपने हाथ को उनके हाथ पे रख के रुकने को कहा| भौजी समझ गईं की मैं झड़ने की कगार पे हूँ| वो उठीं और अपनी साडी जाँघों तक चढ़ाई और अपना एक घुटना मोड़ के मेरे लंड पे बैठ गईं| मैंने इशारे से उन्हें कहा भी की आपकी योनि गीली नहीं है तो वो बोलीं;
भौजी: आपको देखते ही "ये" गीली हो जाती है|
मैं: आप शिकायत कर रहे हो या प्रशंसा (compliment) दे रहे हो?
भौजी: Compliment! इसी लिए तो आपकी "रसिका भाभी" आपके पीछे पड़ी हुई है| उस कलमुही को मौका मिला तो आपको रस्सी से बाँध कर अपना मकसद पूरा करा ले!
मैं: अच्छा जी! इतनी जलन होती है आपको उससे!
अब तक भौजी ने धीरे-धीरे ऊपर नीचे होना शुरू कर दिया था| उनकी योनि इतनी गीली नहीं थी जितनी मैं चूस के कर दिया करता था| इसलिए जब लंड अंदर जाता तो वो गर्दन पीछे झटक के योनि में हो रही रगड़ के बारे में बताती थीं|
भौजी: स्स्स्स्स्स्स....अह्ह्ह्हह्ह स्स्स्स्स्स्स अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह .... उस दिन सिनेमा हॉल में भी एक लड़की थी जो आपको घूर रही थी!
मैं: अच्छा जी इसीलिए आप मुझसे चिपक के बैठ थे!
भौजी: हाँ... आअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह.......स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स ........ जब भी कोई लड़की आपको देखती है तो मैं जल-भून के राख हो जाती हूँ! अन्न्न्ह्ह्ह्ह्ह !!!
मैं: तभी आप मुझसे इतना चिपक जाते हो जैसे बता रहे हो की इस प्लाट पे आपने कब्ज़ा कर लिया है!!
भौजी: ही ही ही ही ... स्स्सह्ह्ह अह्ह्ह्ह्हन्न्न्ह्ह्ह्ह !!!
भौजी की रफ़्तार अचानक ही तेज हो गई, और उनकी योनि में हो रहा घर्षण भी कम हो गया था| लंड बड़ी आसानी से अंदर फिसल जाता था| मुझे भौजी के चेहरे के भावों को देख के लगा की अब वो किसी भी समय स्खलित होने को हैं|
मुझे डर इस बात का था की अगर भौजी स्खलित हो गईं, तो उनका रस बहता हुआ मेरे पजामे को गीला कर देगा और उसकी महक बाकियों को हमपे शक करने को मजबूर कर देगी| और अगर इतनी रात गए अगर मैं कुऐं पे पजामा साफ़ करने गया तो कोई भी पूछेगा की इतनी रात को पजामे धोने की क्यों सूझी?
मैं: प्लीज...रुको!!
भौजी ने जैसे सुना ही नहीं ... या फिर जान के अनसुना कर दिया|
मैं: प्लीज....(मैंने भौजी के हाथ पकड़ लिए|)
मुझे इस तरह रोकने से वो व्याकुल हो गईं और उन्हें चिंता होने लगी की कहीं मुझे कोई कष्ट तो नहीं हो रहा|
भौजी: क..क...क्या हुआ? दर्द हो रहा है?
मैं: नहीं... पर आप स्खलित होने वाले थे ना?
भौजी: हाँ ...तो?
मैं: आपका योनि रस मेरे पजामे को भिगो देगा और......
भौजी: तो क्या हुआ? आप भी ना..... खमा खा....रोक दिया!
मैं: आपकी योनि रस सूंघते हुए आपकी छोटी बहन रसिका आ जाएगी और कहीं हंगामा ना खड़ा कर दे!
भौजी: वो मैं नहीं जानती.... (और भौजी ने फिर से ऊपर-नीचे होना शुरू कर दिया|)
अब मुझे कुछ तो करना ही था तो मैंने कमर से जोर लगाया और उन्हें चारपाई पे पटक के उनपे चढ़ गया और तेजी से लंड अंदर पेलने लगा| बीस धक्के और ….. फिर मैं और भौजी दोनों एक साथ स्खलित हो गए| भौजी ने मेरी टी-शर्ट के कॉलर को पकड़ के मुझे अपने मुंह से सटा लिया और मेरे होठों को चूसने लगीं|| मेरे लंड की आखरी बूँद तक उनकी योनि में समां गई| दोनों की धड़कनें सामान हुईं तब उन्होंने मेरे कॉलर को छोड़ा और मैं पीछे हो के बैठ गया परन्तु मेरा लंड अब भी उनकी योनि में था| हाँ वो सिकुड़ अवश्य गया था पर जैसे बाहर नहीं आना चाहता था|
मैं: देखो "इसे" भी (लंड की ओर इशारा करते हुए) भी आपकी "इसकी" (उनकी योनि की ओर इशारा करते हुए) आदत हो गई है|
भौजी: Likewise !!!
मैं: तो अब मैं जाऊँ?
भौजी: आपका मन कर रहा है जाने का?
मैं: नहीं
भौजी: तो फिर आज मेरे साथ ही सो जाओ!
मैं: और सुबह क्या होगा?
भौजी: वो सुबह देखेंगे|
मैं: अगर अपने बच्चे का ख़याल नहीं होता तो शायद सो जाता पर.... मैं नहीं चाहता की मेरी वजह से आप पे कोई लाँछन लगाये|
भौजी: कुछ नहीं बोलीं बस थोड़ा मायूस हो गईं|
मैं: भाड़ में जाए दुनिया दारी आज तो मैं आपके पास ही सोऊँगा|
मेरी बात सुनके उनके चेहरे पे फिर से वो ख़ुशी लौट आई| मैं भी यही चाहता था और उनकी इसी एक मुस्कान के लिए किसिस से भी लड़ने को तैयार था| मैंने लंड को उन्ही के पेटीकोट से पोंछा और मुझे ऐसा करते देख वो हंसने लगीं| फिर मैंने अपना पजामा ठीक किया और भौजी की साडी ठीक की| मैं उनकी बगल में लेट गया पर मैंने इस बार भौजी को अपना दाहिना हाथ तकिया नहीं बनाने दिया| वरना रात में मैं निकल कैसे पाता| मैंने अपना हाथ उनके स्तनों पे झप्पी की तरह डाल दिया और हम सो गए| रात में मुझे मूत आया तो मैं बड़ी सावधानी से उठा ताकि कहीं वो जाग ना जायें| अब मैं अगर सामने से निकलता तो दरवाजा लॉक कौन करता और वैसे भी दरवाजे की आहात से भौजी जग जाती इसलिए अब मेरे पास सिवाय दिवार फाँदने के और कोई रास्ता नहीं था| मैंने दिवार फांदी और मूत कर अपने बिस्तर पे लेट गया|
जैसे ही मैं लेटा...नेहा ने मेरी कमर पे अपना हाथ डाल के मुझसे झप्पी डाल के लिपट गई|
मैं: मेरी गुड़िया रानी जाग रही है?
नेहा: उम्म्म ... पापा जी आप कहाँ चले गए थे?
मैं: बेटा..... मैं बाथरूम गया था| क्या हुआ ...आपने फिर से कोई बुरा सपना देखा?
नेहा ने हाँ में सर हिलाया|
मैं: सॉरी बेटा...मैंने आपको अकेला छोड़ा| I Promise आगे से आपको कभी अकेला नहीं छोड़ूँगा|
मैंने उसका मन हल्का करने को एक कहानी सुनाई और नेहा मेरी छाती से चिपकी सो गई| सुबह मेरी आँख खुली तो नेहा अब भी मुझसे चिपकी हुई सो रही थी| इतने में भौजी आ गई और उसे उठाने लगीं;
मैं: रहने दो...बिचारी कल रात बहुत डर गई थी!
भौजी: क्यों?
मैं: बुरा सपना ... मैं जब आया तो ये जाग रही थी ... जैसे ही लेटा मुझसे चिपक गई| पूछने पे बताया की बुरा सपना था|
भौजी: गुड़िया... उठो! स्कूल नहीं जाना है|
नेहा: उम्म्म्म ....
नेहा कुनमुनाई ... मैंने भौजी को हाथ से इशारा किया की आप जाओ मैं उठाता हूँ| मैंने नेहा को गोद में लिया और वो कंधे पे सर रख के लेटी हुई थी और थोड़ा टहलने लगा|
मैं: गुड़िया... ओ ...मेरी गुड़िया!! उठो ... आप को स्कूल जाना है|
नेहा अपनी आँखें मलते हुए उठी और मेरी नाक पे Kiss किया और मुस्कुरा दी और हम दोनों अपनी नाक एक दूसरे के साथ रगड़ने लगे|! भौजी मुझे इस तरह दुलार करते हुए देख रहीं थी और मुस्कुरा रहीं थी| फिर नेहा मेरी गोद से उतरी और जाके अपनी मम्मी के गले लगी और उन्हें भी Kiss किया| भौजी ने नेहा को तैयार किया और फिर मैं उसे खुद स्कूल छोड़ आया| स्कूल में हेड मास्टर साहब मिले;
हेडमास्टर साहब: अरे भई मानु साहब... हमें पता चला वहाँ अयोध्या में क्या-क्या हुआ| वाह भई वाह!
मैं: हेडमास्टर साहब ... वो सब छोड़िये! ये बताइये की मेरी गुड़िया रानी पढ़ाई में कैसी है?
हेडमास्टर साहब: भई काश हम कह पाते की "Like Father Like Daughter!” पर नेहा पढ़ने में बहुत होशियार है|
मैंने उनसे कहा कुछ नहीं बस मन में सोचा की बिलकुल अपनी माँ पे गई है| खेर मैं वहाँ से जल्दी बात निपटा के घर आ गया|अब घर पहुँचा तो घर का माहोल ऐसा था जैसे आज आर या पार की बात हो| सबसे पहले मुझे पिताजी दिखाई दिए एक कोने से दूसरी कोने तक बेसब्री से चक्कर काटते हुए!
पिताजी: आओ बेटा...बैठो! मैंने अभी ठाकुर साहब को खबर भिजवाई है वो अभी अपनी बेटी के साथ आते ही होंगे| फैसला तुम्हें करना है!
मैं: मुझे? पर घर के बड़े तो आप लोग हैं...भला मैं फैसला कैसे करूँ?
पिताजी: बेटा तुम बड़े हो गए हो... समझदार भी, मुझे पूरा यकीन है की तुम जो भी फैसला करोगे वो बिलकुल सही फैसला होगा|
अब पिताजी ने इतनी बड़ी बात कहके मुझे बाँध दिया था और वो मुझसे अपेक्षा रखते थे की मैं सही फैसला लूँ जबकि एक तरफ मेरा प्यार है और दूसरी तरफ मेरी जिंदगी|
मैंने हाँ में सर हिला के उन्हें सहमति दी की मैं सही फैसला ही लूंगा| मैं वहाँ से बिना कुछ कहे बड़े घर आ गया और तैयार हो के बैठ गया और आँगन में चारपाई पे बैठ गया और आसमान में देखते हुए सोचने लगा की मुझे क्या करना चाहिए!
इतने में रसिका भाभी मुझे बुलाने आईं|
रसिका भाभी: मानु जी... आपने दीदी को सब कुछ क्यों बता दिया?
मैं: मैं अपने मन में मैल भर के नहीं रख सकता|
रसिका भाभी: अब तो मेरा यहाँ कोई हमदर्द नहीं बचा| मुझे तो इस घर से निकाल ही देंगे| (ये कहते हुए वो मगरमच्छ के आंसूं बहाने लगीं)
मैं: ये सब आपको उस दिन सोचना चाहिए था जब आप पर हैवानियत सवार थी| खेर आप यहाँ किस लिए आय थे?
रसिका भाभी: आपको काका बुला रहे हैं|
मैं: कह दो आ रहा हूँ|
दो मिनट बाद मैं वहाँ पहुँच गया और देखा तो दो चारपाइयाँ बिछी हुई थीं| एक पर ठाकुर साहब और उनकी बेटी बैठे थे और एक पर पिताजी और बड़के दादा| मैं भी पिताजी वाली चारपाई पे बैठ गया|
ठाकुर साहब: तो कहिये भाई साहब (मेरे पिताजी) क्या शादी की तरीक पक्की करने को बुलाया है?
पिताजी: नहीं ठाकुर साहब, बल्कि कुछ बातें स्पष्ट करने को आपको बुलाया है|
ठाकुर साहब: कैसी बातें?
पिताजी: आपने हमें कहा था की आपकी लड़की सुनीता इस शादी के लिए तैयार है पर जब उसकी मानु से बात हुई तो उसने कहा की वो ये शादी नहीं करना चाहती|
ठाकुर साहब: नहीं..नहीं..ऐसे कुछ नहीं है| हमारी बेटी शादी के लिए बिलकुल तैयार है|
पिताजी: यही बात हम बिटिया के मुँह से सुन्ना चाहते हैं|
ठाकुर साहब: देखिये भाई साहब ... ये हमारी बेटी है| हमने इसे बड़े नाजों से पाला है| ये हमारी मर्जी के खिलाफ नहीं जाएगी| इसके लिए जो हमने कह दिया वही अंतिम फैसला है| शहर में जर्रूर पढ़ी है पर अपने बाप का कहना कभी नहीं टालेगी|
पिताजी: देखिये ठाकुर साहब, शादी बच्चों ने करनी है ...और आगे निभानी भी है| तो बेहतर होगा की हम इनके फसिले को तवज्जो दें ना की हमारा फैसला इनपर थोप दें| तो बेहतर होगा की सुनीता ये बताये की उसके मन में क्या चल रहा है|
मैं हैरान पिताजी की बातें सुन रहा था की जो पिताजी परिवार में दब-दबा बना के रखते थे वो आज हम बच्चों पे फैसला छोड़ रहे हैं? इसकी वजह तो पूछनी बनती है ...पर अभी नहीं|
ठाकुर साहब: ठीक है...पर पहले मैं ये जानना चाहता हूँ की क्या मेरी लड़की आपको पसंद है?
पिताजी: जी बिलकुल है... परन्तु बच्ची की बात जर्रुरी है|
ठाकुर साहब: चल भई अब तू भी बोल दे अपने दिल की?
सुनीता क दम चुप! वो बस सर झुका के चुप-चाप बैठी हुई थी| मैंने उसे थोड़ा होसला देने के लिए कहा;
मैं: डरो मत सुनीता.... बोल दो सच! मैं जानता हूँ की तुम आगे पढ़ना चाहती हो|
ठाकुर साहब: (मुस्कुराते हुए बोले) तो हमने कब मना किया है इसे पढ़ने से?
सुनीता अब भी चुप थी| फिर उसके पिताजी ने उसकी पीठ पे हाथ रखा जिससे उसके मुँह से कुछ बोल फूटे;
सुनीता: जी मुझे... कोई ऐतराज नहीं!
ठाकुर साहब: देखा भाई साहब! मैंने कहा था न हमारी लड़की हमें कभी निराश नहीं करेगी|
पिताजी: चल भई अब तू भई अपना फैसला सुना दे?
अब सारी बात मुझ पे टिक गई| अब हाँ करूँ या ना उससे एक साथ तीन जिंदगियाँ बन या बिगड़ सकती थीं| हाँ करता हूँ तो सुनीता आगे पढ़ सकेगी पर भौजी का बुरा रो-रो के बुरा हाल हो जायेगा और ना करता हूँ तो भौजी खुश रहेंगी पर सुनीता की शादी किसी और से हो जाएगी जो शायद उसे पढ़ने भी ना दे| पर एक जिंदगी और थी जो मेरे हाँ कहने से खतरे में पड़ जाती, वो थी मेरे आने वाले बच्चे की! अब मैं बुरी तरह फँस गया था| इतने में चन्दर भैया और अजय भैया भी कोर्ट का काम निपटा के लौट आये और घर में चल रही बैठक में आके शामिल हो गए| अजय भैया बिलकुल मेरे साथ बैठे थे जब की चन्दर भैया के लिए एक कुर्सी माँगा दो गई| समझ तो दोनों चुके थे की यहाँ मेरी शादी की ही बात चल रही है और शायद उम्मीद भी कर रहे थे की मैं हाँ कर दूँगा|
मैंने तिरछी नजरों से देखा तो छप्पर के नीचे भौजी समेत सभी स्त्रियां बैठी हमारी बातें सुन रहीं थीं| जब पांच मिनट तक मेरे मुँह से शब्द नहीं फूटे तो ठाकुर साहब बोले;
ठाकुर साहब: मानु बेटा... कोई परेशानी है? हम आपसे बस यही तो कह रहे हैं की शादी अभी कर लो और उसके बाद आप पढ़ते रहो और दो साल बाद गोना कर लेंगे|
अब दिमाग को बोलने के लिए सही शब्द मिल गए थे;
मैं: क्षमा करें ठाकुर साहब पर मैं अभी ये शादी नहीं कर सकता और ना ही मैं रोका करने के हक़ में हूँ| मैं अभी इतना बड़ा नहीं हुआ की दो दिन में किसी भी व्यक्ति को पूरासमझ सकूँ...उसके व्यक्तित्व को जान सकूँ| ऐसा नहीं है की सुनीता अच्छी लड़की नहीं है पर हमें उतना समय नहीं मिला की हम एक दूसरे को जान सकें| वैसे भी हम दोनों अभी और पढ़ना चाहते हैं और आपकी बात माने तो अगले दो साल में आप गोना करना चाहते हो, तो तब तक तो सुनीता और मेरा कॉलेज भी खत्म नहीं हुआ होगा| ऐसे में शादी कर लेना और फिर अपने माँ-बाप पर बोझ बनके बैठ जाना ठीक नहीं होगा| तो जब तक मैं अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता मैं शादी के बारे में सोच भी नहीं सकता|
सुनीता ने मेरी ओर देखा और हाँ में गर्दन हिला के मेरी बात का सम्मान प्रकट किया|
ठाकुर साहब: देखो बेटा... तुम्हारा जवाब बिलकुल स्पष्ट है ओर हम उसकी कदर करते हैं| हम तुम पर कोई जोर जबरदस्ती नहीं करेंगे ... यहाँ गाँव में तुम्हारी उम्र में लड़कों की शादी कर दी जाती है| इसीलिए हमने ये प्रस्ताव रखा| खेर अब तुम्हारी मर्जी नहीं है तो इसमें हमारा कोई जोर नहीं... पर यदि फिर भी तुम्हारा मन बदले तो हम अब भी इस रिश्ते के लिए तैयार हैं|
मैं: जी मैं सोच कर फैसला करता हूँ, फैसला कर के नहीं सोचता! (मेरी बातों से मेरा रवैया साफ़ झलक रहा था|)
ठाकुर साहब: जैसी तुम्हारी मर्जी बेटा! तो भाई साहब अब चला जाये?
पिताजी: अरे ठाकुर साहब पहले थोड़ा नाश्ता हो जाये|
ठाकुर साहब: जी नेकी ओर पूछ-पूछ !
सबने बैठ के नाश्ता किया और अभी जो कुछ हुआ उससे ये बात दाफ थी की ठाकुर साहब के मन में हमारे परिवार के लिए कोई मलाल नहीं था वरना वो अपनी अकड़ दिखा के चले जाते| नाश्ता शुरू होने से कुछ मिनट पहले मैं उठ के बड़े घर आ गया और छत की मुंडेर पर बैठ गया| छत की मुंडेर से नीचे दरवाजे पे कौन खड़ा है साफ़ दिख रहा था| दस मिनट बाद भौजी मुझे नाश्ते के लिए बुलाने आईं;
भौजी: चलिए नाश्ता कर लीजिये!
मैं: आपको क्या हुआ?
भौजी: कुछ नहीं...
मैं: रुको मैं नीचे आता हूँ|
नीचे आके मैंने उन्हीने इशारे से घर के अंदर बुलाया| हम बरामदे में खड़े थे....
मैं: क्या हुआ? आप मेरे फैसले से खुश नहीं?
भौजी: नहीं
मैं: पर क्यों?
भौजी: माँ-पिताजी कितने खुश थे... उन्हें सुनीता पसंद भी थी| फिर भी आपने मना कर दिया?
मैं: और आप? आपको ये शादी मंजूर थी? मुझे खोने का डर एक पल के लिए भी आपके मन में नहीं आया?
भौजी: हाँ आया था.... पर मैं इस सच से भाग भी नहीं सकती|
मैं: जानता हूँ पर कुछ सालों तक तो हम इस सच से दूर रह ही सकते हैं ना?
भौजी: तो आपने ये निर्णय स्वार्थी हो के किया? आपका मेरे प्रति मोह ने आपसे एक गलत फैसला करा दिया?
मैं भौजी के कन्धों पे अपने हाथ रखते हुए उन्हें धकेलते हुए दिवार तक ले गया और दिवार से सटा के उनकी आँखों में आँखें डालते हुए बोला;
मैं: हाँ....हूँ मैं स्वार्थी....और जब जब आपकी बात आएगी मैं स्वार्थी बन जाऊँगा| अगर स्वार्थी ना होता तो आपको भगा ले जाने की बात ना करता| आपकी एक ख़ुशी के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ...कुछ भी....
बस इसके आगे मैं उनसे और कुछ नहीं बोला और घर से बहार निकल गया|
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07-16-2017, 10:14 AM,
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RE: Hot Sex stories एक अनोखा बंधन
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मन तो कह रहा था की कहीं और चल पर तभी बड़की अम्मा आ गेन और वो नाश्ते के लिए मुझे जोर दे के अपने साथ ले गईं| करीब पंद्रह मिनट बाद भौजी वहाँ आईं... उनकी आँखें नाम थीं...जैसे अभी-अभी रो के आईं हों| मैंने नाश्ते की प्लेट भौजी की ओर बढ़ा दी, क्योंकि मैं जानता था की वो मुझे कभी मना नहीं करेंगी| भौजी ने प्लेट ले ली और नास्ते के कुछ समय बाद, ठाकुर साहब ओर सुनीता दोनों चले गए| अब घर की बैठक में हिस्सा लेने की बारी थी| मैं जानता था की अब मुझे से सवाल जवाब किया जायेगा इसलिए मैं मानसिक रूप से पूरी तरह तैयार था| एक चारपाई पे मैं बैठ था ओर मेरी ही बगल में अजय भैया ओर चन्दर भैया बैठ थे| दूसरी पे पिताजी ओर बड़के दादा| तीसरी चारपाई पे माँ, बड़की अम्मा ओर भौजी बैठ थे| हमेशा की तरह भौजी ने डेढ़ हाथ का घूँघट काढ़ा हुआ था| रसिका भाभी को इस बैठक से कोई सरोकार नहीं था इसलिए उन्होंने इसमें हिस्सा लेने की नहीं सोची| इससे पहले की बात शुरू हो, वरुण को लेने रसिका भाभी के मायके से कोई आ गया था| जाने से पहले वरुण मुझसे मिलने आया, मुझसे गले मिला ओर "बाय चाचू" कह के चला गया| हैरानी की बात ये थी की उसने किसी और को कुछ नहीं कहा ओर ना ही उसके जाने से किसी को कोई फर्क पड़ा|
वरुण के जाने के बाद बैठक शुरू हुई!
पिताजी: बेटा हम तुम्हें डांटने-फटकारने के लिए यहाँ नहीं बैठे हैं| तुम ने जो किया अपनी समझ से किया और शायद ये सही फैसला भी था...
मैं: आपकी बात काटने के लिए क्षमा चाहता हूँ पिताजी पर मुझे आपको एक बात पे सफाई देनी है|
पिताजी: हाँ..हाँ बोलो
मैं: मेरा ये फैसला पक्षपाती था ... (ये सुन के भौजी की गर्दन झुक गई| शायद वो ये उम्मीद कर रहीं थीं की मैं आज सब सच कह दूँगा|)
मैं: वो इंसान है सुनीता! वो इस शादी के लिए कतई राजी नहीं थी| केवल अपने पिताजी के प्यार में विवश होकर हाँ कर रही थी| वो आगे और पढ़ना चाहती है...और उसके पिताजी दो साल में गोना करना चाहते हैं| इसी बात को मद्दे नजर रखते हुए मैंने ना कहा|
मेरा निर्णय बदलने के लिए ये बात पूरी तरह सच नहीं थी, पर सच तो मैं बोल ही नहीं सकता था ना!!!
पिताजी: बेटा हमें तुम्हारे निर्णय पे कभी संदेह नहीं था|
बड़के दादा: रही शादी की बात तो आज नहीं तो कल ...शादी तो होगी ही|
बड़के दादा ने ये बात बड़े तरीके से बोली की सभी हँस पड़े...सिवाय मेरे और भौजी के! खेर बात ख़त्म हुई और सब अपने-अपने काम में लग गए| पर मुझे अब भी एक बात पिताजी से पूछनी थी की आखिर उनका मेरे प्रति व्यवहार ऐसे कैसे बदल गया| पिताजी के खेतों की तरफ जाते हुए दिखाई दिए;
मैं: पिताजी...आपसे कुछ पूछना था|
पिताजी: हाँ बोलो|
मैं: आज से पहले आपने कभी मुझे इतनी छूट नहीं दी की मैं अपनी मर्जी से फैसला कर सकूँ|
पिताजी: वो इसलिए बेटा की अब तुम बड़े हो गए हो...अब मैं तुम्हें बाँध के नहीं रख सकता| यदि ऐसी कोशिश भी की तो तुम नहीं मानोगे...... इसलिए अब मैं फैसले तुम पर छोड़ देता हूँ| अगर तुम कोई गलत फैसला लोगे तो मैं तुम्हें रोकूँगा अवश्य| समझे?
मैं: जी
पिताजी: मैं चलता हूँ...भाईसाहब (बड़के दादा) के साथ कहीं जाना है|
और पिताजी चले गए ...
अब मैं अकेला रह गया था...इधर नेहा की स्कूल की घंटी बजी तो मैं उसे लेने चल दिया| मैं नेहा को ले कर घर आ रहा था| आज नेहा मेरी गोद में नहीं थी बल्कि मेरी ऊँगली पकड़ के चल रही थी| हम घर पहुंचे और मैं नेहा को सीधा भौजी के घर में ले गया| उसका बैग उतार के सही जगह रखा, फिर उसके कपडे बदले और उसके बाल बना रहा था| मेरी पीठ दरवाजे की तरफ थी और नेहा का मुँह मेरी तरफ था| अचानक नेहा हंसने लगी;
मैं: क्या हुआ नेहा? क्यों हँस रहे हो? (मैंने मुस्कुराते हुए पूछा)
तो नेहा ने अपने मुँह पे हाथ रख के अपनी हंसी रोकी| इतने में पीछे से आके किसी ने मेरी छाती पे अपने हाथ रखे और मुझसे चिपक गया| जब गर्दन पे गर्म सांस का एहसास हुआ तो पता चला की ये भौजी हैं|
भौजी: चलो खाना खा लो|
मैं: हम्म्म ...
भौजी: मेरे साथ खाना खाओगे या अकेले? (ये उन्होंने इसलिए पूछा था ताकि उन्हें ये पता चले की कहीं मैं उनसे नाराज तो नहीं|)
मैं: आपके साथ
भौजी: फिर आप यहीं रुको... मैं हमारा खाना यहीं ले आती हूँ| फिर मुझे आपसे बहुत सी बातें करनी हैं|
भौजी खाना ले आईं और पहले मैंने नेहा को खिलाया और फिर हमने खाया|
खाना खाने के पश्चात भौजी और मैं अलग-अलग चारपाई पे लेट गए| बात की शुरुवात भौजी ने की;
भौजी: क्या आपको मुझसे पहले कभी किसी से प्यार हुआ है?
मैं: आज ये सवाल क्यों?
भौजी: पता नहीं बस मन ने कहा...
मैं: हाँ हुआ है... एक बार नहीं तीन बार...पर मैं नहीं जानता की वो प्यार था या.... जब मैं L.K.G में था...तब मुझे एक लड़की बहुत अच्छी लगती थी| गुड़िया जैसी ... हमेशा मुस्कुराती हुई| मेरे जीवन का पहला kiss उसी के साथ था| Sliding वाले झूले के नीचे ... मैंने उसे पहली बार kiss किया था| उसके बाद जब मैं सातवीं में आया था तब हमारी क्लास में एक नई लड़की आई थी... गोल-मटोल सी थी और उस पे क्लास के सबसे कमीने तीन लड़के मरते थे| मैं तो उसके लिए जैसे पागल था...उसके आते ही मेरा ड्रेसिंग सेंस बदल गया| सुबह मैं बड़ा सज-धज के स्कूल जाता था...नहीं तो पहले जबरदस्ती स्कूल जाया करता था| पर उसके आने के बाद...कमीज एक दम इस्त्री की हुई..क्रीज वाली इस्त्री...शर्ट ढंग से अंदर की हुई, बालों में GEL !!! बालों को रोज अलग-अलग तरीके से बनता था... उसके घर के नंबर के लिए उसके दोस्त से सिफारिश की| पर उसकी दोस्त कामिनी निकली और उसे जा के साफ़ बता दिया| और जब उसने मेरी ओर पलट के देखा तो मेरी हालत खराब हो गई| उसकी सहेलियों को कितना मस्का लगाया...खिलाया-पिलाया... पर ना...आखिर एक दिन उसका नंबर मिल ही गया| मैं उसे फ़ोन करता पर कभी हिम्मत नहीं हुई की कुछ कह सकूँ| फिर एक दिन उसके साथ बैठने का मौका भी मिला पर कुछ नहीं बोल पाया...उसके सामने मेरी नानी मर जाती थी| फिर एक दिन पता चला की वो किसी और से प्यार करती है| दिल टूट गया ...पर कुछ समय बाद भूल गया! फिर जब दसवीं में था तो एक लड़की की तरफ आकर्षित हुआ...पर इससे पहले की उसे कुछ कह पाता...बोर्ड के पेपर से एक महीना बचा था...और वो आखरी दिन था जब मैंने उसे अपने सामने देखा था... उसके बाद एक महीने तक कोई बात नहीं..मैं तो शक्ल भी भूल गया था| बोर्ड के पेपरों के दौरान उससे मिला...पर कोई बात नहीं कह पाया| उसके बाद उसने स्कूल बदल लिया| उसके बाद कान पकडे की कभी प्यार-व्यार के चक्कर में नहीं पडूंगा| पर फिर आप मिले... और आगे आप जानते हो|
भौजी: पर इकरार तो पहले मैंने किया था ना?
मैं: इसी लिए तो मर मिटा आप पर!
कुछ देर चुप रहने के बाद भौजी बोलीं;
भौजी: आप अगर बुरा ना मानो तो एक बात कहूँ|
मैं: हाँ बोलो!
भौजी: आज सुबह से मैं कुछ सोच रही थी... मैंने सिर्फ और सिर्फ आपसे प्यार किया है...जब शादी हुई तो मन में बहुत हसीं सपने थे, जैसे की हर लड़की के मन में होते हैं| पर सुहागरात में जब अपने ही पति के मुँह से अपनी ही बहन का नाम सुना तो....सारे सपने टूट के चकना चूर हो गए| पर उसके बाद हमारे बीच जो नजदीकियाँ आईं ... क्या वो गलत नहीं? नाजायज नहीं? मुझे में और आपके भैया में फर्क क्या रहा|
मैं: आपकी इस बात का जवाब मेरे पास तो नहीं...और अगर होता भी है तो...मेरे कहने से शायद उस बात के मायने बदल जाएँ! आपके सवाल का जवाब आपके ही पास है|
भौजी: वो कैसे?
मैं: आप मेरे कुछ सवालों का जवाब हाँ या ना में दो...और सोच समझ के देना|
भौजी: ठीक है|
मैं: सबसे पहले ये बताओ की आप मुझे उतना ही चाहते हो जितना आप ने शादी से पहले सोचा था की आप अपने पति से प्रेम करोगे?
भौजी: हाँ
मैं: आपके पति ने आपसे धोका किया ये जानने के बाद आपके दिल में आपके पति के प्रति कोई प्रेमभाव नहीं रहा?
भौजी: हाँ
मैं: अगला सवाल थोड़ा कष्ट दायक है, पर आपके मन की शंका दूर करने के लिए पूछ रहा हूँ वरना मैं आप पर पूरा भरोसा करता हूँ| क्या शादी से पहले आपने कभी भी किसी के साथ सम्भोग किया था?
भौजी: बिलकुल नहीं|
मैं: सबसे अहम सवाल...थोड़ा सोच समझ के जवाब देना.... अगर आपका पति आपके प्रति ईमानदार होता...मतलब उनका किसी भी स्त्री के साथ कोई भी शारीरिक या मानसिक सम्बन्ध नहीं होता तो क्या फिर भी आप मुझसे प्यार करते? मेरे इतना नजदीक आते?
भौजी: (कुछ सोचते हुए) कभी नहीं!
मैं: अब मैं आपको इस सवाल जवाब का सार सुनाता हूँ| शादी से पहले आपके मन में कुछ सपने थे की आपका पति सिर्फ आपका होगा और किसी का नहीं .... परन्तु जब शादी के बाद सुहागरात में आपने अपने ही पति के मुँह से अपनी बहन का नाम सुना वो भी तब जब वो आपके साथ सम्भोग कर रहे थे तो आपका मन फ़ट गया| आप को वो प्यार नहीं मिला जिसकी आपने अपने पति के प्रति अपेक्षा की थी| शादी से पहले भी और शादी के बाद भी आपके मन में किसी और मर्द के प्रति कोई दुर्विचार नहीं आय| परन्तु मेरे प्रति आपके आकर्षण ने आपको हद्द पार करने पर विवश कर दिया और वो आकर्षण प्यार में तब्दील हो गया| केवल आपके लिए ही नहीं मेरे लिए भी...हमने शारीरिक सम्बन्ध स्थापित किये वो भी केवल प्रेम में पड़ कर| परन्तु उससे पहले जब आप मेरे गालों पे काटते थे तो मुझे वो एहसास बहुत अच्छा लगता था| उसके आलावा मेरे मन में कभी ही आपके साथ सम्भोग करने की इच्छा नहीं हुई...होती भी कैसे उस उम्र में मुझे इसके बारे में कुछ ज्ञान भी नहीं था| परन्तु जब आप हमारे घर दूसरी दफा आये और आपने अपने प्रेम का इजहार किया तब से...तब से मेरे मन में आपके प्रति ये गलत विचार आने लगे| जो की गलत था...मेरे मन में आपके प्रति समर्पण नहीं था| परन्तु मैंने कभी भी सपने में नहीं सोचा की मैं आपके साथ किसी भी तरह की जबरदस्ती करूँ और आज तक मैंने कभी भी आपके साथ जबरदस्ती नहीं की जिसे कल रात आपने जिझक का नाम दे दिया था| पर कुछ महीना भर पहले जब हमने पहली बार सम्भोग किया तब...मेरे मन में ग्लानि होने लगी पर आपके प्यार ने मुझे उस ग्लानि से बहार निकला और मैंने खुद को आपके प्रति समर्पित कर दिया|
यदि अचन्देर भैया ने आपके साथ वो धोका नहीं किया होता...आपकी अपनी छोटी बहन के साथ वो सब नहीं किया होता तो आपका मेरे प्रति ये प्यार कभी नहीं पनपता| रही अनैतिकता की तो.... समाज में हमारे रिश्ते के बारे में कोई नहीं जानता| रसिका भाभी जानती हैं पर उनकेजैसे लोग जिनके खुद के अंदर वासना भरी है वो इसे अनैतिक ही कहेंगे, परन्तु अगर कोई सच्चा आशिक़ इस कहानी को सुनेगा तो वो इसे "प्रेम" ही मानेगा| क्योंकि प्यार किया नहीं जाता....उसके लिए दिमाग नहीं चाहिए... बस दिल चाहिए और जब दो दिल मिल जाते हैं तो उस संगम को ही एक दूसरे के प्रति "आत्मसमर्पण" कहा जाता है|
इस समय मेरी और आपकी हालत एक सामान है| हम दोनों ही नहीं चाहते की कोई तीसरा हमारे बीच आये और हम दोनों ही ये जानते हैं की एक समय आएगा जब कोई तीसरा बीच में होगा परन्तु तब....तब आपके पास मेरी एक याद होगी| (ये मैंने उनकी कोख पे हाथ रखते हुए कहा)
ये याद हम दोनों को आपस में जोड़े रखेगी|
भौजी की आँख में आंसूं छलक आये थे.. शायद उनको उनकी दुविधा का जवाब मिल गया था|मैंने उनके आंसूं पोछे और उनके होठों को चूमा|
मैं: अच्छा अब बाबा मानु जी का प्रवचन समाप्त हुआ...अब आप हमें अदरक वाली चाय पिलायें अथवा बाबा जी क्रोधित हो जायेंगे और फिर वो क्या दंड देते हैं आपको पता है ना?
भौजी: ही..ही..ही.. जो आज्ञा बाबा जी! आपके दंड से बहुत डर लगता है! आप सारा दिन हमें तड़पाते हो और फिर रात में हमें बिना मांगे ही वरदान दे देते हो| इसलिए हम आपको अभी एक कड़क चाय पिलाते हैं|
इतना कह के भौजी चाय बनाने चलीं गईं और उनके मुख पे आई मुस्कराहट ने मेरी आधी चिंता दूर कर दी थी| मैंने नेहा को जगाया और उसकी किताब खुलवाई.... किताब में जितने चित्र थे सब पर उसने क्रेयॉन्स से निशाँ बना दिए थे| उन चित्रों को देख मुझे मेरे बचपन की बात याद आ गई और मैं हँस पड़ा| भौजी अंदर अदरक लेने आइन और मुझे हँसता हुआ देख मेरी ओर देख के मुस्कुराने लगीं|
भौजी: आप हँसते हुए कितने प्यार लगते हो! प्लीज ऐसे ही मुस्कुराते रहा करो|
मैं: मेरी हंसी आपसे जुडी है...आप अगर उदास रहोगे तो मैं कैसे मुस्कुरा सकता हूँ|
भौजी मेरी बात पे मुस्कुराईं और हाँ में सर हिलाके मेरी बात का मान रखा| बातें सामान्य हो गईं थी और अब कोई शिकवा नहीं था! चाय पीने के बाद मैं नेहा को साथ ले के बाग़ तक टहलने निकला| वहाँ पहुँच के देखा तो आग में आम के पेड़ थे और उनपे कच्चे आम लगे थे| मन किया की कुछ आम तोडूं और नेहा ने भी जिद्द की तो मैंने एक पत्थर का ढेला उठाया और मारा...पर निशाना नहीं लगा| फिर नेहा ने मारा...वो तो चार फुट भी नहीं गया और गिर गया| मैं हँस पड़ा...फिर मैंने नेहा से कहा की आप मिटटी के ढेले उठा के लाओ मैं मारता हूँ| नेहा एक-एक कर ढेले मुझे देती और मैं try करता| एक आध ढेला लग भी जाता परन्तु कमबख्त आप टूटता ही नहीं| मैंने देखा झाडी में एक डंडा पड़ा था, करीब आधे फुट का होगा| मैंने उसे घुमा के मार तो एक आम गिरा, नेहा उसे उठा लाइ| वो आम आधा पका हुआ था शायद इसीलिए टूट गया| मैंने उस आम को जेब में डाला और चूँकि कुछ अँधेरा हों लगा था तो हम वापस घर की ओर चलने लगे|
इतने में बाग़ से किसी ने मुझे पुकारा, ये सुनीता थी|
मैं: Hi ! कैसे हो आप?
सुनीता: ठीक हूँ...आपको शुक्रिया कहना था|
मैं: किस लिए?
सुनीता: आपके फैसले के लिए|
मैं: मैंने आप पर कोई एहसान नहीं किया...मैं भी यही चाहता था|
इतने में सुनीता ने एक थैली मेरी ओर बढ़ा दी|
मैं: ये क्या है?
सुनीता: आम हैं|
मैं: पर मुझे मिल गया...ये देखो (मैंने सुनीता को आम दिखाया)
सुनीता: हाँ..हाँ... मैंने आपका निशाना देखा है| अर्जुन की तरह निशाना लगाते हो!
मैं: तो आप छुप के मेरा निशाना देख रहे थे!
सुनीता: हाँ
मैं: पर आप यहाँ कर क्या रहे थे...I MEAN आप जो भी कर रहे थे मैंने उसमें आपको Disturb तो नहीं किया?
सुनीता: ये हमारा बगीचा है|
मैं: ओह सॉरी!
सुनीता: किस लिए?
मैं: बिना पूछे मैं यहाँ आम तोड़ रहा था|
सुनीता: यहाँ कोई कानून नहीं है| कोई भी तोड़ सकता है..वैसे भी हम दोस्त हैं तो आपको पूछने की भी कोई जर्रूरत नहीं थी| दरअसल मैं आपके घर ही आ रही थी ये आम देने, पिताजी ने भेजे हैं सब के लिए|
मैं: तो आप ही दे दो...
सुनीता: ठीक है...वैसे आप घर ही जा रहे हो ना?
मैं: हाँ क्यों?
सुनीता: रास्ते में बात करते हुए चलते?
मैं: Sure !
मैंने नेहा को गोद में उठाया ओर उसे मेरे द्वारा तोडा हुआ आम दे दिया| नेहा से सब्र नहीं हुआ ओर वो उसे मुँह में भर के दाँतों से काटने लगी| जैसे ही उसने पहली Bite ली उसे जोरदार खटास का एहसास हुआ और वो मुँह बनाने लगी| जैसे किसी छोटे बच्चे को आप निम्बू चटा दो तो वो कैसे मुँह बनाने लगता है| नेहा को मुँह बनाते देख दोनों खिल-खिला के हंसने लगे| ये हंसी दोनों के लिए जर्रुरी थी क्योंकि सुनीता भी बहुत दबाव में थी| घर पहुँच के सुनीता ने बड़की अम्मा को आम दिए और सब बहुत खुश थे| फिर बड़की अम्मा ने भी गुड के लड्डू बनाये थे| तो उन्होंने वो लड्डू टिफ़िन में पैक कर के दिए| सुनीता ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर लौट गई और भौजी के मन में मेरे और सुनीता के बीच कुछ भी नहीं है ये देख के संतुष्टि हुई| ठाकुर साहब बुरे इंसान नहीं थे और ये बात उनके व्यवहार में साफ़ झलकती थी| कछ देर बाद पिताजी और बड़के दादा घर लौटे और उन्हें भी इस बात का पता चला और वो भी खुश थे की दोनों घरों के बीच कोई गलतफैमी या मन-मुटाव नहीं है| रात में सबने खाना खाया और सोने का समय था;
भौजी: आज मुझसे एक गलती हो गई|
मैं: क्या?
भौजी: आज मैंने आपको Good Morning Kiss नहीं दी|
मैं: (भौजी को छेड़ते हुए) आपने तो घोर पाप कर दिया! अब आपको क्या दंड दूँ?
भौजी: नहीं...नहीं... प्लीज| मैंने अपनी गलती का प्रायश्चित करना चाहती हूँ|
मैं: कैसे?
भौजी: आप थोड़ी देर बाद नेहा को लेने के लिए घर में आ जाना| वहीँ मैं प्रायश्चित करुँगी| ही..ही.. ही!!
मैं पंद्रह मिनट तक कुऐं के पास टहलता रहा फिर नेहा को आवाज देते हुए भौजी के घर में घुस गया| अंदर पहुंचा तो भौजी ने एक झटके में मेरा हाथ पकड़ के मुझे स्नान घर के पास खींच लिया|
मैं: क्या कर रहे हो?
मेरी पीठ दिवार से लगी हुई थी और भौजी मेरे ऊपर चढ़ी हुई थीं और वो मुझे बेतहाशा चूम रहीं थीं|
मैं: म्म्म्म....कोई आ जाएगा!
पर भौजी को जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था| आखिर मैंने उनके जुड़े को अपने हाथ से खींचा और उनकी गर्दन पीछे की ओर तन गई ओर मैंने उनके गले पे अपने होंठ रख दिए| भौजी के मुँह से "स्स्स्स्स्स्स...अहह" की आवाज निकली| मैं किसी Vampire की तरह उनकी गार्डन पे अपने दाँत गड़ाए उन्हें चूम रहा था..काट रहा था...चूस रहा था| फिर मैंने उनके होठों पे अपने होंठ रख दिए और उनके होंठों को बारी-बारी चूसता रहा..चूमता रहा...ओर करीब पांच मिनट बाद अलग हुआ तो हम दोनों के होठों के बीच हमारे रस की एक पतली से तार लटक रही थी और जैसे ही हम दूर हुए वो तार और खीचने लगी और फिर चानक से टूट गई| एक हिस्सा भौजी के पास रह गया और एक मेरे पास|
मैं: बस! हो गया आपका प्रायश्चित| इसके आगे बाबा अपना कंट्रोल खो देंगे|
भौजी: तो किसने रोका है|
मैं: आज घर में सब मौजूद हैं| शायद आज कुछ नहीं होगा?
भौजी: फिर मैं आपसे नाराज हो जाऊँगी|
मैं: ऐसा जुल्म मत करो! देखते हैं.... ये बताओ की नेहा कहाँ है|
भौजी: भूसे वाले कमरे में अपनी तख्ती ढूंढ रही है|
मैं: क्या? पर वहाँ तख्ती रखी किसने?
भौजी: मैंने
मैं: पर क्यों?
भौजी: ताकि हमें कुछ समय अकेले मिल जाए|
मैं: आप बहुत शारती हो|
मैं बहार आया और नेहा को उसकी तख्ती ढूंढ के दी|
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07-16-2017, 10:14 AM,
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RE: Hot Sex stories एक अनोखा बंधन
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फिर उसे गोद में लेकर सोने लगा..पर बिना कहानी के उसे कहाँ नींद आती| मैंने उसे कहानी बना के सुना दी और वो मुझसे लिपट के सो गई| मेरी आँखें भी भारी हो रही थीं और मैं भी सो गया| रात के बारह बजे भौजी मेरे कान में खुसफुसाई;
भौजी: उठो ना...
मैं: नहीं...नेहा डर जाती है रात को| कल पक्का ....
भौजी: जानू उसे तो सुला दिया आपने पर मुझे कौन सुलायेगा?
मैं: आज कैसे भी एडजस्ट कर लो ...कल से आपको पहले सुलाऊँगा|
भौजी: हुँह... कट्टी!!!
मैं: अरे सुनो...
पर भौजी कुछ नहीं बोलीं और अंदर जाके दरवाजा अंदर से बंद कर लिया| ये पहली बार था की मैंने उन्हें नाराज किया था| हालाँकि उनका गुस्सा दिखावटी था पर मुझे नींद जोर से आई थी...मैं सो गया और जब सुबह आँख खुली तो मौसम बहुत रंगीन था| आज बारिश होना तो तय था, बादल गरज रहे थे और मिटटी की मीठी सी महक हवा में जादू बिखेर रही थी| मोर की आवाज गूंज रही थी... और आज घर में पकोड़े बनने की तैयार हो रही थी|
रात में नेहा चैन से सोई थी और उसे कोई डर नहीं लगा| अभी भी वो सो रही थी और मैंने भी उसे नहीं उठाया बस उसे गोद में ले के बड़े घर आ गया क्योंकि बारिश कभी भी हो सकती थी और ऊपर से ठंडी हवाओं से मौसम थोड़ा ठंडा हो गया था| मैंने नेहा को बड़े घर के बरामदे में लिटा दिया और एक हलकी सी चादर उस पे डाल दी| मैं उसी चारपाई पे बैठ गया और ठंडी-ठंडी हवा का आनंद लेने लगा| सुबह-सुबह ठंडी-ठंडी हवा का चेहरे को छूना बड़ा मन भावन एहसास था| इतने में भौजी आ गईं;
भौजी: चलिए नहा धो लीजिये?
मैं: जाता हूँ...पहले आप बताओ की रात कैसे गुजरी आपकी?
भौजी: जानते हुए भी पूछ रहे हो?
मैं: सॉरी यार ... आज से ध्यान रखूँगा|
भौजी: रहने दो! आप बस अपनी बच्ची का ख़याल रखो| (भौजी ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा था|)
मैं: ठीक है|
भौजी: चलो नहा लो!
और भौजी नेहा को गोद में उठा के तैयार करने चलीं गईं| करीब पाँच मिनट हुए थे की बारिश शुरू हो गई| मेरे मन में एक ख्याल आया, मैं घर पे हूँ या बाहर...बारिश शुरू होते ही मेरा मन भीगने को करता है| ये ऐसा खींचाव है जिसे मैं चाह कर भी नहीं रोक पता और भीगता अवश्य हूँ| फिर चाहे कितनी ही डाँट पड़े| ये बात भौजी को नहीं पता थी..केवल माँ और पिताजी जानते थे| तो आज भी मेरा मन बारिश में भीगने को किया| मैं चारपाई से उठा और आँगन में खड़ा हो गया| मुँह ऊपर कर के आसमान से गिरती बारिश की बूंदों को देखने लगा| बारिश की बूंदें जब मुख पे गिरतीं तो बड़ा सकून मिलता| वही सकूँ जो धरती को तपने पे बारिश की बूंदों के गिरने से मिलता| मेरी पीठ प्रमुख दरवाजे की ओर थी, ओर भौजी वहाँ कड़ी मुझे देख रहीं थीं|
फिर वो बोलीं;
भौजी: जानू...सर्दी हो जाएगी..अंदर आ जाओ|
मैं कुछ नहीं बोला बस शारुख खान की तरह बाहें फैला दीं|
इस पोज़ में आसमान की ओर मुख कर के खड़ा था और भौजी मुझे अंदर आने को कह रहीं थीं पर मैं जानबूझ के उनकी बात को अनसुना कर रहा था| तभी अचानक वो भी पीछे से आके मुझ से चिपक गईं| उनके हाथ ठीक मेरे निप्पलों पर था जो टी-शर्ट के भीगने के कारन ओर ठन्डे पानी के कारन खड़े हो गए थे और टी-शर्ट के ऊपर से दिखाई दे रहे थे| मैंने भौजी के हाथों पे अपने हाथ रख दिए| शायद हमें आसमान से कोई देख रहा था जो इस दृश्य को और रोमांटिक बनाने में अपनी पूरी कसर लगा रहा था इसीलिए तो उसेन बारिश और बी तेज कर दी और अब हर बूँद जब नंगे शरीर जैसे हाथ या मुख पे पड़ती तो एक मीठी सी चोट का एहसास दिलाती|
मैं: कैसा लग रहा है भीग के?
भौजी: आपके साथ ....भीगने में और भी मजा आ रहा है|
मैं: मुझे लगा की आप नेहा को तैयार कर रहे हो?
भौजी: पिताजी (मेरे) ने मन कर दिया है की बारिश में स्कूल नहीं जाना| तो मैं यहाँ आपको देखने आई थी...मुझे पता था की आप इस बारिश में भीगने का कोई मौका नहीं छोड़ोगे!
मैं: (मैं भौजी की ओर पलटा ओर उन्होंने मुझे अब भी अपनी बाहों में जकड़ा हुआ था|) पर आपको कैसे पता की मुझे बारिश में भीगना अच्छा लगता है?
भौजी: नहीं पता था.... बस मन ने कहा!
मैं: ये संजोग ओ नहीं हो सकता की हमारा मन हमें एक दूसरे की पसंद ना पसंद और यहाँ तक की मानसिक स्थिति भी बता देता है?
भौजी: शायद हम आत्मिक रूप से भी जुड़ चुके हैं?
मैं: (भौजी की आँखों में आँखें डालते हुए) सच?
भौजी ने आँख बंद कर के सर हिलाया ओर हाँ में जवाब दिया|
अब तो माहोल बिलकुल रोमांटिक हो गया था और मैंने भौजी के चेहरे को अपने दोनों हाथों में थम और उनके होंठ जिन पे बारिश की एक बूँद ठहर गई थी उन्हें चूम लिया| भौजी भी मेरे चुम्बन का जवाब देने लगीं और मेरे होठों को पीने लगीं| मैं एक पल के लिए रुका क्योंकि मुझे डर था की कहीं कोई आ न जाए|
मैं: दरवाजा तो बंद कर लो?
भौजी: बंद नहीं कर सकते वरना अगर कोई आ गया तो शक करेगा की ये दोनों दरवाजा बंद कर के क्या कर रहे हैं?
मैं: फिर ??? (मैंने भौजी के चेहरे को अपने दोनों हाथों से छोड़ दिया)
भौजी: पर मैंने दोनों दरवाजे आपस में चिपका दिए हैं|
मैं: तो???
भौजी: Do Whatever you want to do? You don’t need my permission? और वैसे भी इतनी बारिश में कौन है जो भीगता हुआ यहाँ आये?
मैं: (भौजी के चेहरे पे आई बारिश की बूंदों को उँगलियों से हटते हुए) जान.. आप भूल रहे हो की छतरी नाम की एक चीज होती है जो भीगने से बचाती है!
भौजी: नहीं भूली जानू...पर छतरियाँ आपके कमरे में रखीं हैं तो अब यहाँ कौन आएगा भीगता हुआ?
मैं: हम्म्म...तो अब तो मौका भी है...दस्तूर भी...
ये कहते हुए मैंने उन्हें बाहों में भर लिया और उन्हें बरामदे में लगे खम्बे के सहारे खड़ा कर दिया| खम्बे की चौड़ाई तीन फुट थी और वो छत तक लम्बा था| खमब ठीक प्रमुख द्वार के सामने थे तो यदि उसकी आड़ में कोई खड़ा हो तो बाहर से कोई देख नहीं सकता की कौन खड़ा है और तो और बरामदे का वो खमबा आँगन के पास था... और हम उसके पास खड़े हो कर भी बारिश में भीग रहे थे क्योंकि अचानक हवा के चलने से पानी की बौछारें हवा के साथ बहती हुई टेढ़ी हो गईं थी और हमें भिगो रहीं थीं| बारिश में भीगे होेने के कारन भौजी की साडी, ब्लाउज, पेयिकत सब उनके जिस्म से चिपक गया था| ऊपर से उन्होंने अंदर ना ही ब्रा पहनी थी और ना ही पेंटी! उनके स्तन कपड़ों से चिपक के पूरा आकर ले चुके थे! इधर मेरे पजामे में जो उभार था वो और भी बड़ा हो रहा था| मैंने और देर ना करते हुए, भौजी बाईं टाँग को उठाया और उसे मोड़ के दिवार के साथ चिपका दिया| भौजी की साडी और पेटीकोट ऊपर उठा दिया और इधर भौजी ने मेरे पजामे का नाड़ा खोल दिया, परन्तु उसमें इलास्टिक भी लगी थी तो वो नीचे नहीं गिरा| भौजी ने पजामा थोड़ा नीहे खिसका के मेरे लंड को बहार निकला और अपनी योनि पे सेट किया| मैंने आगे बढ़ के हल्का सा Push किया और लंड धीरे-धीरे अंदर जाने लगा| परन्तु भौजी की योनि आज पनियाई हुई नक़हीं थी इसलिए अंदर काफी घर्षण था| उन्हें ज्यादा तकलीफ ना हो इसलिए मैंने कोई जल्दी नहीं दिखाई और धीरे-धीरे अंदर धकेलने लगा| भौजी को थोड़ी तो तकलीफ हो रही थी जिसके कारन वो अपने पंजों पर कड़ी हो गईं ताकि लंड को अंदर जाने से रोक सकें| इसलिए मैं रूक गया और भौजी के होठों को चूमने लगा और उनके स्तनों को हाथ से मसलने लगा| मेरी इस प्रतिक्रिया से उनकी सिसकारी फूटने लगी|
"स्स्स्स्स..अह्ह्ह्ह...जाणुउउउ...उम्म्म्म्म्म ....!" मैंने नीचे से हल्का सा और Push किया तो उनकी योनि में घर्षण कम हो चूका था और लंड आसानी से अंदर जा रहा था| अब मैं पंजों पे खड़ा हो गया ताकि लंड पूरी तरह से अंदर चला जाए और अपने शरीर का सारा भार उनके ऊपर डाल दिया|
भौज जोरों से सिसियाने लगीं थीं और उन्होंने अपने बाएं हाथ से मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द फंदा कास लिया और दायें हाथ से मेरी पीठ और कमर को सहला रहीं थी| मैंने धक्कों की रफ़्तार बढ़ा दी और भौजी के मुंह से सीत्कारियां फूटने लगीं| अचानक से भौजी ने अपने दाँत मेरी गार्डन में धंसा दिए और वो चरमोत्कर्ष पे पहुँच गईं और स्खलित हो गईं| उनके रास से उनकी पूरी योनि गीली हो चुकी थी और अब मेरे हर Push के साथ लंड फिसलता हुआ अंदर-बाहर हो रहा था| अब तो फच-फच की आवाज आने लगी थी और अब मैं भी चरमोत्कर्ष पे पहुँच गया और झड़ने लगा| झड़ने के बाद दोनों निढाल हो चुके थे और हम उसी खम्भे के सहारे खड़े थे| जब दोनों सामान्य हुए तो मैंने भौजी को चूमना शुरू कर दिया ...उनके चेहरे पे जहाँ भी पानी की बूँद पड़ती मैं उसे चूम के पी जाता| फिर मैंने अपने लंड को बहार निकला जो अब शिथिल हो गया था और उसके निकलते ही भौजी के योनि में जो हमारा बचा-खुचा रस था वो उनकी जाँघों से होता हुआ बहने लगा और बहार आ गया|
भौजी गर्दन झुका के उस रस को बहता हुआ देख रहीं थीं, तो मैंने उनके चेहरे को ठुड्डी से पकड़ा और ऊपर उठाया| भौजी की नजरें झुकी हुई थी और मैंने उनके होठों को kiss किया| फिर हम अलग हुए और मैं वापस जखुले आँगन में आ गया;
भौजी: बस?
मैं: नहीं ... अब मन Couple Dance करने का कर रहा है|
भौजी: (शरमाते हुए) पर मुझे नहीं आता Dance!
मैं: तो मुझे कौन सा आता है! मैंने TV में देखा है...एक आधे step आते हैं और आज तो बस मन कर रहा है की आपको बाँहों में लेके किसी Slow Track पे Couple Dance करूँ|
भौजी: पर Radio कहाँ है?
मैं: कोई बात नहीं बस मन में जो गाना आये उसे गुनगुनाते हैं|
मैंने भौजी को अपने पास बुलाया और उनसे नीचे दिखे गए चित्रों की तरह चिपक के धीरे-धीरे Couple Dance करने लगे|
हम इसी तरह से करीब दस मिनट तक Dance करते रहे और जो गाना हम गन-गुना रहे थे वो था "मितवा"; कभी अलविदा न कहना फिल्म का| फिर मैंने भौजी को अपने दायें हाथ की ऊँगली पकड़ा के उन्हें गोल-गोल घुमाया...भौजी बिलकुल बेफिक्र हो के घूम रहीं थीं और ठीक दो मिनट बाद तालियों की आवाज आने लगी| पीछे मुड़ के देखा तो सब खड़े थे (बड़की अम्मा, पिताजी, चन्दर भैया, अजय भैया और माँ)...बारिश की रिम-झिम बूंदें अब भी गिर रहीं थीं| ताली बजाने की शुरुवात रसिका भाभी ने की थी! सबको सामने देख के हम बुरी तरह झेंप गए ऊपर से भौजी ने घूँघट भी नहीं काढ़ा था| भौजी तो अपना मुँह छुपा के सब के बीच से होती हुई भाग गईं और मुझे वहां सबके सामने अकेला छोड़ गईं| नेहा भागती हुई आई और मेरे पाँव में लिपट गई|
माँ ने मेरी ओर तौलिया फेंका;
माँ: (गुस्से में बोलीं) ये ले.. और कपडे बदल|
मैंने तौलिया लिया और नेहा को बरामदे में जाने के लिए बोला ओर अपने कमरे में घुस के खुद को पोंछा और कपडे बदल के आ गया|
बाहर बरामदे में सब बैठे थे और मैं भी वहीँ जाके खड़ा हो गया, खम्बे का सहारा ले के|
चन्दर भैया का तो मुँह सड़ा हुआ था, माँ भी गुस्से में थीं, पिताजी हालाँकि जानते थे की मैं बड़ा ही शांत सौभाव का हूँ पर उन्हें ये पता था की मैं भौजी को दोस्त मानता हूँ और उनके साथ बड़ा Open हूँ; बड़की अम्मा मुस्कुरा रहीं थी क्योंकि एक वो ही थीं जो की मेरी गलतियों पे पर्दा डाल दिया करती थीं और सब को चुप करा दिया करती थीं और अजय भैया, वो मेरे चंचल सौभाव के बारे में थोड़ा जानते थे और बैठे हुए मुस्कुरा रहे थे|
पिताजी: क्यों रे नालायक...ये क्या हो रहा था?
माँ: हाँ ... तुझे शर्म नहीं आती...अपनी भौजी के साथ बेशर्मी से नाच रहा था?
मैं: जी...नाच ही तो रहा था!
माँ: जुबान लड़ाता है?
पिताजी: लगता है कुछ ज्यादा ही छूट दे दी इसे?
बड़की अम्मा: अरे क्या हुआ? नाच ही तो रहा था...अपनी भौजी के साथ| थोड़ी दिल्लगी कर ली तो क्या हर्ज़ है? कम से कम बहु का मुँह तो खिला हुआ था, देखा नहीं आज कितना खुश थी और भूल गए सब...डॉक्टर साहिबा ने भी तो कहा था की उसे खुश रखें| आज है तो थोड़ा लाड-प्यार करता है...कल नहीं होगा तो?
मैंने सर झुका रखा था और बड़की अम्मा की बातें सुन रहा था पर जब उन्होंने कल नहीं होगा कहा तो मेरे पाँव तले जमीन खिसक गई| इतने दिनों में मैं भूल ही गया की हमें वापस भी जाना है..और इस प्यार-मोहब्बत में एक महीने कैसे फुर्र हुआ पता ही नहीं चला| अब मेरी शक्ल पे जो बारह बजे थे वो सब देख सकते थे और पिताजी ने भी जब ये बारह बजे देखे तो उन्होंने घडी ही तोड़ डाली ये कह के;
पिताजी: जब से आया है तब से अपनी लाड़ली नेहा (जो भौजी के पास थी|) और अपनी भौजी के साथ घूम रहा है| हमारे पास बैठे तब तुझे पता चले की मैंने तेरे चन्दर भैया को पैसे दिए थे टिकट बुक करवाने के जब ये और अजय लुक्खनऊ जा रहे थे की वापसी में टिकट लेते आना|
अब मेरी हालत तो ऐसी थी जैसे ना साँस अंदर जाए ना बहार आये! अब अगर ये बात भौजी को पता चली तो वो रो-रो कर अपनी तबियत ख़राब कर लेंगी| पिछली बार जब मजाक किया था तो उन्होंने खाट पकड़ ली थी और अब तो सच में जा रहा हूँ तब तो..... अब मुझे कैसे भी ये बात उनसे आज के दिन तो छुपानी थी वरना आज जो वो थोड़ा हंसी-खेलीं हैं वो वापस गम में डूब जाएँगी| जब चन्दर भैया की ओर देखा तो लगा जैसे उनके मन में अंदर ही अदंर लड्डू फुट रहे हों| बड़ी मुश्किल से वो अपनी ख़ुशी छुपाये हुए थे! अब मुझे बहुत सोच-समझ के आजका दिन बिताना था वरना मेरे चेहरे पे उड़ रही हवाइयाँ भौजी को गम में डूबा देतीं|
बड़की अम्मा: चलो मुन्ना...तुमहिं रविवार को जाना है..तब तक मैं तुम्हें तुम्हारी मन पसंद की साड़ी चीजें खिलाऊँगी| पर पहले पकोड़े खाने का समय है|
मैं: जी!
मैं सब के साथ रसोई के पास वाले छप्पर के नीचे बैठा था...बस मन में एक ही बात खाय जा रही थी की चलो मैं खुद को जैसे-तैसे रोक लूँगा पर अगर कोई और उनके पास जाके उनसे ये कह दे की हम वापस जा रहे हैं तो? इसका बस एक ही तरीका था की मुझे साये की तरह आज उनके आस-पास रहना होगा|
खेर बड़की अम्मा ने पकोड़े बनाने शुरू किये और तेल की खुशबु पूरे घर में महक रही थी| पकोड़े बनने के बाद, गर्म-गम चाय....वाह बही वाह ! पर काश ....काश मैं ऐसा कह पाता! मैंने पनि पलटे में पकोड़े लिए और चाय की प्याली हाथ में पकडे भौजी के घर में घुस गया| भौजी कमरे में अपना मुँह छुपाये बैठी थीं| उन्हें इस तरह देख के मेरी हँसी छूट गई, मेरी हँसी सुन के भौजी ने अपने मुख से हाथ हटाया;
भौजी: जानू बड़ी हँसी आ रही है आपको? पहले तो खुद मुझे dance करने में फँसा दिया| अब घर वाले सब क्या कहते होंगे?
मैं: मैंने फँसा दिया? आप मुझे वहां सब के सामने अकेला छोड़ के भाग आये उसका क्या? (मैंने प्यारभरे लहजे में उनसे शिकायत की)
भौजी: हाय राम! क्या कहा सबने?
मैं: ये तो शुक्र है की बड़की अम्मा ने बात को संभाल लिया और इसे दिल्लगी का नाम दे दिया वरना तो....(मैंने बात अधूरी छोड़ दी)
भौजी: वैसे जानू...उन्होंने सच ही तो कहा| (भौजी ने आँख मारी)
मैं: हाँ... चलो अब ये पकोड़े खाओ|
भौजी: आप खाओ मैं और ले आती हूँ|
मैं: वहां सब बैठे हैं...अब भी जाओगे?
भौजी: हाय राम! ना बाबा ना...नेहा...सुन बीटा..जाके एक प्लेट में और पकोड़े ले आ फिर हम तीनों बैठ के खाते हैं|
नेहा बाहर भागी और एक दूसरी पलटे में और पकोड़े और एक गिलास में चाय ले आई| हम तीनों ने मजे से पकोड़े खाय और अब पलटे में आखरी पीस बचा था| हम तीनों ने एक साथ उस पे हाथ मारा और वो पकोड़ा नेहा के हाथ लगा तो हम दोनों मुँह बनाने लगे| पर वो बच्ची इतनी छोटी नहीं थी| उसने उस पकोड़े के तीन टुकड़े किये और एक मुझे दिया, एक नभौजी को और एक खुद खा गई| मैंने नेहा के सर पे हाथ फेरा और ये भी नहीं देखा की मेरे वाले टुकड़े में हरी मिर्च थी जो जैसे ही दांतों तले आई तो मेरी सीटी बज गई| मेरे मुँह से "सी..सी..सी..सी..सी.." की आवाज निकलने लगी और नेहा खिल-खिला के हँसने लगी| शुरू-शुरू में तो भौजी ने भी मेरी सी..सी..सी.. का मजा लिया पर जब उन्हें लगा की मुझे कुह ज्यादा ही तेज मिर्ची लगी है तो नाजाने उन्हें क्या सूझी और उन्होंने मेरे होठों को kiss कर लिया और अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी| उनके मुख से मुझे गोभी के पकोड़ी की सुगंध आ रही थी और करीब दो मिनट की चुसाई के बाद मेरी मिर्ची कुछ कम हुई| नेहा तक-तक़ी लगाये हमें देख रही थी और हम जब अलग हुए तो भौजी और मैं फिर एक बार झेंप गए| फिर हमने चाय पी और मैं उठ के बाहर आ गया| मैं और नेहा आँगन में खेल रहे थे ...नेहा ने बोल फेंकी और मैंने कुछ ज्यादा ही तेज शॉट मारा और बोल हवा में ऊँची गई..तभी मुझे चन्दर भैया भौजी के घर की ओर जाते हुए दिखाई इये ओर मुझे लगा की कहीं वो भौजी से सब बता ना दे! मैं भी उनके पीछे-पीछे जाने लगा इतने में फिसलन होने के कारन नेहा गिर पड़ी| मैं उनके पीछे नहीं गया ओर नेहा को उठाने के लिए भागा| मैंने नेहा को तुरंत उठाया..उसकी फ्रॉक मिटटी से सन गई थी..मैंने उसे गोद में उठाया और चूँकि वो रो रही थी तो उसे थोड़ा पुचकारा और चुप कराया फिर मैंने भौजी के घर के बहार पहुसंह के रूक गया और अंदर की बात सुनने लगा;
चन्दर भैया: (टोंट मारते हुए) मुझे नहीं पाता था की तुम्हें नाचना बड़ा अच्छा लगता है? खेर कर लो ऐश जब तक.......
इससे पहले की वो आगे कछ बोलते मैंने दरवाजे पे जोरदार मुक्का मारा और धड़धड़ाते हुए अंदर घुस गया|
मैं: उनकी कोई गलती नहीं है....मैंने उन्हें आँगन में खींच था जिससे वो भीग गईं|
चन्दर भैया ने मेरी ओर देखा ओर उनकी नजरों में चुभन साफ़ महसूस हो रही थी| अब तो मेरे और चन्दर भैया के बीच रिश्ते ऐसे थे जैसे की कभी रूस ओर अमेरिका के बीच थे| अंग्रेजी में जिसे Cold War कहते हैं| दोनों में से जो भी पहले हमला करे...जवाब देने को सामने वाल पूरी तरह से तैयार था| भैया कुछ नहीं बोले और चले गए और मैंने फ़ौरन बात घुमा दी और भौजी से नेहा के कपडे बदलने को कहा;
भौजी: अरे आप दोनों मिटटी में खेल के आरहे हो क्या?
मैं: वो हम क्रिकेट खेल रहे थे और बोल लेने को नेहा भागी और फिसल गई|
भौजी: पर आपको इसे गोद में लेने की क्या जरुरत थी? खामखा आपने अपने कपडे भी गंदे कर लिए|
मैं: आप हो ना ...
भौजी ने अपने निचले होंठ को काटा और बोलीं;
भौजी: हाँ..हाँ.. मैं तो हूँ ही आपके लिए!
जवाब में मैंने भौजी को आँख मारी और अपने कपडे बदलने चला गया|
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RE: Hot Sex stories एक अनोखा बंधन
69
अब आगे ....
मैं कपडे बदल के आया तो भौजी के मुख पे मुस्कान फ़ैल गई, क्योंकि मैंने उनकी दी हुई टी-शर्ट पहनी हुई थी और नीचे जीन्स|
भौजी: जानू कहीं आपको नजर न लग जाए| मैं आपको कला टिका लगा दूँ!
मैं: Oh Comeon ! नजर लगी भी तो आप हो ना! (ये कहते हुए मैंने अपनी बाहें खोल दी और भौजी मुझसे गले लग गईं)
मैं: अच्छा बाबा ...आज खाना नहीं बनाना है?
भौजी: हाय राम! मैं तो भूल ही गई थी....पर जाऊँ कैसे? कैसे सब से नजर मिला पाऊँगी?
मैं: जान मैं हूँ ना! मैं आपके पास ही रहूँगा|
भौजी: ठीक है...पर प्लीज मुझे अकेला छोड़ के कहीं मत जाना? प्रोमिस करो?
मैं: प्रोमिस!
तब जाके भौजी का डर कम हुआ और हुम तीनों बाहर आये| भौजी जाके रसोई में खाना बनाने लगीं और मैं नेहा को लेके छप्पर के नीचे तख़्त पे बैठ गया| अब बहा से बात करने के लिए कुछ था नहीं तो मैंने उससे उसके स्कूल और क्लास के बारे में पूछना शुरू कर दिया| उसकी क्लास में कितने बच्चे हैं? उसके दोस्त कितने हैं? उसे कौन सा सब्जेक्ट पसंद है? आदि सवाल पूछने लगा| हालाँकि ये बहुत बचपना था मेरा पर अब क्या करें चुप-चाप तो रह नहीं सकते थे|
भौजी: अरे बाबा उसके दोस्त छोटे-छोटे बच्चे हैं| कोई बॉयफ्रेंड नहीं बनाया उसने जो आप इतना परेशान हो रहे हो? ही..ही..ही...
मैं: यार ...बात करने को कुछ नहीं था तो इसलिए पूछ रहा था| जब उसकी बॉयफ्रेंड बनाने की उम्र आएगी तब तो मैं इसे अकेला ही नहीं छोड़ूंगा| और आपने अगर इसे छूट दी ना तो देख लेना!
नेहा: पापा...ये बॉयफ्रेंड क्या होता है?
भौजी: हाँ..हाँ...अब जवाब दो ही...ही...ही...
मैं: बेटा आपको पाता है ना की जो बच्चे शरारती होते हैं उन्हें दाढ़ी वाला आदमी उठा के ले जाता है, वैसा ही एक आदमी होता है जिसे हम बॉयफ्रेंड कहते हैं...दूर रहना उससे...ही..ही..ही...
भौजी: ही..ही...ही... बहुत सही definition दी है अपने ही..ही..ही...
मैं: हाँ..हाँ..उड़ाओ मजाक!
इसी तरह बातों में भौजी को लगाय रखा और उनसे अपने जाने की बात छुपाता रहा|
दोपहर के खाने के बाद हम भौजी के घर में अलग चारपाई पे लेटे हुए थे और बातें कर रहे थे;
मैं: यार मैंने कभी आप को Red Lipstick और Red साडी में नहीं देखा? (मैंने यहाँ जानबूझ के लाल को Red लिखा है क्योंकि लाल कहने की बजाय Red कहना ज्यादा seductive लगता है|)
भौजी: (कुछ सोचते हुए) हम्म्म... पर मेरे पास लाल साडी नहीं है|
मैं: कोई नहीं जब आप शहर आओगे तब मैं दिल दूँगा|
भौजी: शहर क्यों...sunday को यहाँ बाजार में खूब रौनक होती है| वहीँ चल के खरीद लेंगे?
अब मैं उन्हें कैसे बताता की Sunday को ही तो मैं जा रहा हूँ| चूँकि मुझे ये बात छुपानी थी तो मैंने हाँ में सर हिलाया और सीधा हो के उनसे नजरें चुराते हुए लेट गया|
फिर भौजी उठीं और अपने कमरे में एक सूटकेस खोल के कुछ देखने लगीं और फिर वो बाहर आईं और अपनी चारपाई मेरे नजदीक खींच के बैठ गईं|
भौजी: आप मेरा एक काम करोगे?
मैं: दो बोलो?
भौजी: नहीं बस एक... नेहा कल कह रही थी की उसे लोलीपोप चाहिए| अब चूँकि कल मेरा मूड ठीक नहीं था तो मैंने उसे टाल दिया| तो आप प्लीज उसे लोलीपोप दिलवा दो|
मैं: OK चलो नेहा आज मैं आपको लोलीपोप दिलवाता हूँ और साथ में एक हम-दोनों के लिए भी लाता हूँ|
भौजी: जानू....
मैं: हाँ बोलो जान?
भौजी: मुझे strawberry वाली पसंद है|
अब हमारे गाँव में दो दुकानें थीं...पर उनके बीच करीब बीस मिनट का फासला था| जब मैं पहली दूकान पर पहुंचा तो वहां मुझे स्ट्रॉबेरी वाली लोलीपोप नहीं मिली...तो मैंने नेहा को दो ऑरेंज और एक मैंगो वाली दिल दी| फिर वहां से हम दूसरी दूकान की ओर चल पड़े| रस्ते में नेहा ने एक ऑरेंज वाली लोलीपोप खोल ली और उसे चूसने लगी फिर उसने अपनी जूठी लोलीपोप मेरी ओर बढ़ा दी मैंने उसे मना कर दिया क्योंकि आज तो मुझे Strawberry वाली खानी थी और वासी भी मुझे मैंगो वाली ज्यादा पसंद थी| हम दूसरी दूकान पे पहुंचे और वहां मुझे स्ट्रॉबेरी वाली लोलीपोप मिल ही गई| मैंने दो लोलीपोप खरीदी और नेहा को ले के घर लौट आया| मतलब सिर्फ लोलीपोप खरीदने में मेरा आधा घंटा लग गया... गर शहर में कोई गर्लफ्रेंड मुझसे ये कहती ना तो साला पलट के ऐसे जवाब देता की जिंदगी में दुबारा कभी लोलीपोप नहीं माँगती| खेर घर पहुँचते-पहुँचते नेहा की लोलीपोप खत्म हो गई और जैसे ही मैंने भौजी के घर में घुसना चाहा तो दरवाजा अंदर से बंद था| मैंने दरवाजा खटखटाया और तभी नेहा को उसकी दोस्त दिखाई दी जो उसे खेलने के लिए बुला रही थी| नेहा मेरी गोद से उतरने को चटपटी और मैंने उसे नीचे उतार दिया| नेहा फुर्र से अपनी दोस्त के पास भाग गई| इधर मैं सोचने लगा की भला भौजी ने दरवाजा क्यों बंद किया, शायद उन्हें कपडे बदलने थे..पर फिर मैंने इस बात पर इतना ध्यान नहीं दिया और अबतक दरवाजा अंदर से खुल चूका था, परन्तु अब भी दोनों पल्ले आपस में भिड़े हुए थे| मैंने एक पल्ले को धक्का दिया और अंदर घुस गया, आँगन में कोई नहीं था...और जैसे ही मैं भौजी के कमरे में दाखिल होने लगा किसी ने मेरा हाथ पीछे से अचानक पकड़ा और मुझे दरवाजे के साथ वाली दिवार की ओर खींचा| जब मैंने उस शक्स को देखा तो देखता ही रह गया!
ये भौजी ही थीं...Red साडी में लिपटी हुईं... होठों पे Red Lipstick...बाल खुले हुए जो उनकी कमर तक लटक रहे थे... मांग में Red सिन्दूर... और तो ओर आज उनकी कमर में चांदी की कमर बंद भी लटक रही थी, साडी उनकी belly button की नीचे बंधी गई थी...साडी का पल्लू इस तरह से एडजस्ट किया गया था की बस पूछो मत! WOW !!! आँखें फटी की फटी रह गईं उन्हें इस लिबास में देख के!
भौजी: ऐसे क्या देख रहे हो जानू?
मैं: स्स्स्स.... देख रहा हूँ की आप जूठ बहुत प्यारा बोलते हो!!! इतना प्यारा की ....आप पर और भी प्यार आ रहा है| मन बईमान हो रहा है....हाय ... कोई तो रोक लो!
भौजी: हाय (भौजी ने अपनी बाहें मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द डाल दी|) क्यों रोक ले आपको कोई?
मैं: सच में आपके हुस्न की तारीफ में एक शेर कहने का मन कर रहा है|
भौजी: तो कहिये ना?
मैं: यही तो दिक्कत है...की शेर नहीं आता मुझे! ही..ही..ही..ही...ही
भौजी: आप भी ना...
मैं: मन कर रहा है आपको Kiss कर लूँ?
भौजी: पर पहले मेरी लोलीपोप?
मैं: ना....पहले Kiss फिर लोलीपोप!
भौजी: Awwww…. आप मुझे बहुत सताते हो! ठीक है पर Kiss मेरे स्टाइल से होगी!
मैं: आपका स्टाइल? हमें भी तो पता चले की आपका स्टाइल क्या है?
भौजी: वो आपको शीशे में देख के पता चलेगा! ही...ही...ही...ही!!!
भौजी दिवार के सहारे खड़ीं थीं तो वो वहां से हटीं और मुझे दिवार के सहारे खड़ा कर दिया और कहा;
भौजी: जैसे मैं कहूँ बस वैसे करना?
मैं: ठीक है!
भौजी: अब अपनी आँखें बंद करो!
मैंने अपनी आँखें बंद करीं, और भौजी मेरे चेहरे के बिलकुल सामने आ गईं| उनकी गर्म सांसें मुझे अपने चेहरे पे महसूस हो रहीं थीं| उनके सांसें की मादक खुशबु मेरे नथुनों में भरने लगी क्योंकि वो मुंह से सांस ले रहीं थीं| मेरे होंठ सूखने लगे इसलिए मैंने जीभ उन पर फेरी ताकि वो गीले हो जाएँ और जैसे ही जीभ अंदर गई भौजी ने अपने Red लिपस्टिक वाले होठ मेरे होंठों पे रख दिए! इससे पहले की मैं उनके होंठों को चूस पता उन्होंने होंठ हटा लिए|
मैं: (कुनमुनाते हुए).. म्म्म्म्म्म...
भौजी जानू बस इतना ही मिलेगा!
मुझे तो अपने होठों पे बस उस Red लिपस्टिक का मधुर स्वाद ही चखने को मिला! फिर उन्होंने मेरे दोनों गालों पे अपने होठों से Kiss किया|
भौजी: अब आँखें बंद किये हुए अपनी टी-शर्ट उतारो!
मैं: ठीक है जान...मेरा भी वक़्त आएगा.... तब देखना कैसे तड़पाता हूँ|
भौजी ने मेरी टी-शर्ट उतार के अपने पास रख ली, फिर उन्होंने मेरी गर्दन पे अपने होंठ रखे ...फिर वो नीचे आईं और मेरे दोनों निप्पलों पे Kiss किया! फिर मेरे Belly Button के ऊपर Kiss किया! मैं सोचने लगा की यार ये हो क्या रहा है? आखिर क्यों भौजी मेरे साथ ऐसा खिलवाड़ कर रहीं हैं? मेरा पूरा शरीर प्यार की आग में जलने लगा है और ये हैं की उस आग को और हवा दे रहीं हैं? तभी भौजी ने बिना कुछ कहे जीन्स पे हाथ मारा;
मैं: (आँख बंद किये हुए) क्या कर रहे हो? दरवाजा खुला है! उसे तो बंद कर लो!
भौजी: जानू...वो पहले ही बंद कर दिया था मैंने! अब आप चुप-चाप आँखें बंद किये खड़े रहो!
उन्होंने पहले बेल्ट खोली.... जिसे खोलने में उन्हें खासी मशकत करनी पड़ी...फिर जीन्स का बटन खोला...फिर ज़िप खोली....और कच्छे को नीचे खिसका कर पहले से अकड़ चुके लंड को बहार निकला और उसकी चमड़ी को आगे-पीछे करने लॉगिन| फिर उन्होंने पूरा सुपाड़ा बहार निकला और उसके मुख पे अपने Red लिपस्टिक वाले होंठ रख दिए| मैंने जान बुझ के आँख खोल ली और ये दृश्य देख के मेरी हालत ऐसी थी मानो किसी लौहार ने तप के हुए लाल लोहे को पानी की ठंडी बाल्टी में डूबा दिया हो और उस लोहे से आवाज निकली हो "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स"!!! बिलकुल ऐसी ही आवाज मेरे मुख से निकली..."स्स्स्स्स्स्स" मेरी आवाज सुन के भौजी ने मेरी तरफ देखा;
भौजी: मैंने आपसे आँखें बंद करने को कहा था? तो फिर आपने खोली क्यों?
मैं: आपने मेरे बदन में आग लगा दी है...फिल बे काबू चूका है ....चाहे तो खुद देख लो! (ये कहते हुए मैंने भौजी का हाथ अपने दिल के ऊपर रख दिया जो फुल स्पीड में धड़क रहा था|)
भौजी: जानू .... आग तो इधर भी बारे-बार लगी है पर आपने जितना मुझे तड़पाया है उतना मैं भी तड़पाऊँगी!!!
भौजी ने मेरा लंड अपने मुख में गपक लिया और उसे चूसने लगीं| मैं तो जैसे हवा में उड़ने लगा था...वो तो भौजी ने मेरे लंड को थाम हुआ था वरना शायद में उड़ के कहीं और पहुँच जाता!
मैं: हाय!!! आज तो आप मेरी जान ले के रहोगे!!!
भौजी हँसे लगीं और अगले ही पल उन्होंने गप्प से लंड फिर से अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगीं| वो लंड ऐसे चूस रहीं थीं जैसे किसी स्ट्रॉ में से कोई पेप्सी खींचता हो| अचानक से भौजी ने सुपाड़े पर अपने दाँत गड़ा दिए और में सिसिया उठा; "स्स्स्स्स्स्स...अह्ह्ह्हह्ह" फिर भौजी दुबारा उसे चूसने लगीं और करीब दस मिनट में ही मैं भौजी के मुँह में झड़ गया! भौजी उठीं और मैंने देखा की उन्होंने सारा रस गटक लिया था|
उन्होंने अपनी Red साड़ी से अपना मुँह पोछा और बोलीं;
भौजी: अब चलो मेरे साथ और नीचे मत देखना|
मैंने अभी तक अपने लंड को नहीं देखा था बस भौजी के हुस्न को ही निहार रहा था| हम भौजी के कमरे के अंदर पहुंचे और वहां दिवार पे एक लम्बा शीशा लगा हुआ था| जब मैंने उसमें खुद को देखा तो हैरान रह गया| मेरे शरीर पे भौजी के Red लिपस्टिक के निशान बने हुए थे| होठों पे...गालों पे...गले पे...छाती पे..निप्पलों पे ... Belly Button पे...और लंड...वो तो आधा लाल हो गया था| जब मैं स्खलित हुआ था तो उन्होंने सुपाड़े के चाट के साफ़ किया और उसपे भी अपनी Kiss का निशान छोड़ा था| जब ये सब मैंने देखा तो मुझे उनपे और प्यार आने लगा|
भौजी: देख ली मेरी हरकत?
मैं: हाँ देखि....पर अब इन निशानों का क्या करें?
भौजी: मैं पोंछ देती हूँ!
मैं: पोछना था तो लगाय क्यों?
भौजी: तो ऐसे ही रहने दूँ? किसी ने पूछा की होंठ लाल कैसे हैं तो?
मैं: कह दूँगा की पान खाया है|
भौजी: और गाल लाल क्यों हैं?
मैं: कह दूँगा की शर्म आ रही है!
भौजी: और गर्दन पे लाल निशान कैसे?
मैं: वो....
भौजी: बस-बस रहने दो आप .... मैं पोंछ देती हूँ!
मैं: सिर्फ गाल और गर्दन के पोछो|
भौजी: और होठों के?
मैं: वो आपके होंठ पोंछ देंगे|
ये कहे के मैंने उन्हें अपने से चिपका लिया और उनके होठों को चूसने लगा| अब तो भौजी ने भी पूरा साथ दिया और उन्होंने भी मेरे होठों को चूसना शुरू कर दिया| पांच मिनट तक हम एक दूसरे के होठों को चूमते रहे...चूसते रहे...और Red लिपस्टिक के मधुर स्वाद का भरपूर मजा उठाया| अब तो मेरे होंठ बिलकुल साफ़ हो गए थे बस भौजी के चेहरे पे Red लिपस्टिक ज्यादा फ़ैल गई थी|
भौजी: गाल तो मैंने आपके पोंछ दिए अब ये वाले (मेरी छाती और लंड पे) भी पोंछ देती हूँ|
मैं: ना....ये नहीं....कुछ देर तो इनका एहसास बना रहें दो यार| रात को पोंछ देना!
भौजी: जानू....आप बड़े नटखट हो!
मैं: आप भी तो हो...कुछ मिनटों में इतना बड़ा सुरप्रिज़े प्लान कर लिया मेरे लिए और बहाना क्या किया...की नेहा को लोलीपोप चाहिए! बहुत बड़ी नौटंकी हो आप... (मैंने अपनी टी-शर्ट पहन ली|)
भौजी: ही...ही...ही...ही... अच्छा अब आप बहार जाओ वरना सब कहेंगे की दोनों दरवाजा बंद कर्क इ क्या कर रहे हैं|
मैं: अब तक तो सब आ गए होंगे....तो दिवार कूद के चला जाता हूँ|
भौजी: ना बाबा ना.... चोट लग गई तो...आप सामने से ही जाओ| कोई देखता है तो देखने दो!
मैं: यार दिवार फांदने में जो मजा है वो सामने से निकल के जाने मैं नहीं.... लगता है की एक प्रेमी अपनी प्रेमिका से मिलने आया हो, वो भी सारी दुनिया की तमाम हदें तोड़ के ...
भौजी: अच्छा बाबा...जाओ पर प्लीज चोटिल मत हो जाना!
मैं: नहीं हूँगा...(दिवार की दोनों तरफ टांगें लटकते हुए) और हाँ अगर कोई पूछे न की आप और मैं अरवाजा बंद कर के क्या कर रहे थे तो कह देना... प्यार कर रहे थे| (ये कहके मैंने दूसरी ओर कूद पड़ा)
मैं थोड़ा चक्कर लगा के आया ओर ऐसे दिखाया जैसे मैं यहाँ था ही नहीं!
मन तो जानता था की मैं कितनी बड़ी बात उनसे छुपा रहा हूँ...और चाहे कुछ भी वो बात जुबान पे या चेहरे से नहीं झलकनी चाहिए! दस मिनट बाद भौजी कपडे बदल के और Red लिपस्टिक पोंछ के निकलीं और चाय बनाने घुस गईं| मैं छप्पर के नीचे तख़्त पे बैठा था और भौजी को देख के मुस्कुरा रहा था| वो भी मुझे देख के शरारती मुस्कराहट से मुझे मुझे घायल कर रहीं थीं| जब चाय बा गई तो वो चाय लेके मेरे पास आईं और चाय का कप मेरे हाथ में देते हुए मुझे आँख मारी!
मैं: स्स्स्सस्स्स्स अह्ह्ह्ह!
भौजी: क्या हुआ?
मैं: Too Hot !!!
भौजी: क्या?
मैं: हाँ...चाय बहुत गर्म है!
भौजी: हाँ..हाँ.. सब जानती हूँ! क्या गर्म है?
इतने में वहां बड़की अम्मा चाय लेने आ गईं;
बड़की अम्मा: क्या हुआ बहु?
भौजी: कह रहे हैं की चाय गर्म है!
बड़की अम्मा: तो ठंडा कर के दे दे| बस दो दिन.....
इससे पहले बड़की अम्मा कुछ कहतीं मैंने बात काट दी और बात बदल दी|
मैं: हाँ...देखो ना अम्मा...मैंने कहा की चाय फूक मार्के ठंडी कर दो कहतीं हैं की मेरे पास बहुत काम है!
बड़की अम्मा: जा बहु...चाय ठंडी कर दे और मेरी चाय भी यहीं ले आ|
जब भौजी रसोई में घुसीं तो बड़की अम्मा ने मुझसे बड़ी धीमी आवाज में कहा;
बड़की अम्मा: क्या हुआ मुन्ना? (उनका इशारा था की आखिर मैंने उन्हें बात पूरी क्यों नहीं करने दिया?)
मैं: अम्मा... ये बात आप उन्हें मत कहना...उनका दिल टूट जायेगा...मैं ही उनको कल बताऊँगा! अगर उनका दिल टूटना ही है तो मेरे ही करना टूटे तो बेहतर होगा|
बड़की अम्मा: ठीक है मुन्ना!
इतने में भौजी बड़की अम्मा की चाय ले आईं| उन्होंने अम्मा को एक प्याली दी और अपनी चाय नीचे रख दी और मेरी चाय को मुझे दिखा-दिखा के फूक मारने लगीं| बड़की अम्मा हमारे पास ही बैठीं थीं|
भौजी: ये लो...ठंडी हो गई!
मैं: हम्म्म थैंक यू!
जैसे ही मैंने पहला घूंट पिया मैंने जान बुझ के मुंह बनाया और कहा;
मैं: उम्म्म...अम्मा चाय बिलकुल ठंडी हो गई है...(मैंने भौजी से कहा) अब इसे गर्म कर के दो!
भौजी: देखो न अम्मा....कितना सताते हैं! पहले बोला ठंडी कर के दो फिर कहते हैं की गर्म कर के दो!
बड़की अम्मा: अरे बहु...तू जानती नहीं मुन्ना को! ये तुझसे दिल्लगी कर रहा है|
मैंने भौजी को अम्मा से नजर बचा के आँख मार दी और भौजी मुस्कुराने लगी|
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07-16-2017, 10:15 AM,
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RE: Hot Sex stories एक अनोखा बंधन
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सारी रात उल्लू की तरह जागता रहा...सोचता रहा की कैसे...आखिर कैसे उनसे ये कहूँगा! घडी देखि तो तीन बज रहे थे...और नींद थी की आने का नाम नहीं ले रही थी| धीरे-धीरे घडी की सुइयाँ चलती हुई ...टिक.टिक ..टिक..टिक..टिक..टिक..टिक..टिक..टिक..टिक.. आखिर चार बजे और मैं उठ गया| बड़के दादा अब तक उठ जाते हैं और मुझे इतनी जल्दी उठा देख के मेरे पास आये, मैंने उनके पाँव हाथ लगाये;
बड़के दादा: जीते रहो मुन्ना...अभी तो चार बजे हैं, इतनी जल्दी क्यों उठ गए? एक घंटा और सो लो!
मैं: नहीं दादा...नहा धो के फ्रेश हो जाता हूँ|
बड़के दादा: शाबाश बेटे... जाओ नहा धो लो!
बड़की अम्मा ने हमें बातें करते देखा तो वो भी मेरे पास आईं और मैंने उनके भी पाँव हाथ लागए;
बड़की अम्मा: खुश रहो .... पर मुन्ना इतनी जल्दी काहे उठ गए?
मैं: जी आज आँख जल्दी खुल गई|
हालाँकि मेरी शक्ल कुछ और कह रही थी| अब जो इंसान रात भर सो न सका हो उसके चेहरे पे कुछ तो निशान बन ही जाते हैं और ये बात बड़की अम्मा भलीं-भाँती समझ चुकीं थी पर चूँकि वहाँ बड़के दादा भी थे, इसलिए कुछ नहीं बोलीं| मैं उठा...नहा-धो के तैयार हो गया और तब तक पांच बज चुके थे| घर में सब उठ चुके थे, सिवाय नेहा के! भौजी ने जब मुझे तैयार देखा तो खुद को पूछने से रोक नहीं पाईं;
भौजी: आप इतनी जल्दी उठ गए.... ? रात भर सोये नहीं थे क्या?
मैं: नहीं यार...आँख थोड़ा जल्दी खुल गई|
भौजी: सुबह-सुबह जूठ मत बोलो...नेहा ने सोने नहीं दिया होगा| नींद में उसे होश नहीं रहता ....लात मारी होगी इस लिए आप जल्दी उठ गए|
मैं: ना यार...ऐसा कुछ नहीं हुआ| सच में नींद जल्दी खुल गई थी!
तभी वहाँ पिताजी और माँ भी आ गए और उन्हें आता देख भौजी ने फ़ट से घूँघट काढ लिया और दोनों के पाँव छुए|
पिताजी: अरे मानु की माँ...लगता है आज सूरज पश्चिम से निकला है!
माँ: हाँ... वरना ये लाड-साहब तो छः बजे के पहले बिस्तर नहीं छोड़ते थे पर जब से गाँव आएं हैं जल्दी उठने लगे हैं और आज तो हद्द ही हो गई? कितने बजे उठे हो जनाब?
मेरे जवाब देने से पहले ही वहाँ बड़की अम्मा आ गईं;
बड़की अम्मा: सुबह चार बजे!
पिताजी: हैं? क्या बात है लाड-साहब? रात में नींद नहीं आई क्या?
मैं: जी वो आँख जल्दी खुल गई| (मुझे दर था की कहीं बड़की आम कुछ कह नादें, इसलिए मैंने बात घुमाना ठीक समझा) अम्मा...चाय बन गई?
बड़की अम्मा भी उम्र में बड़ी थीं और सब समझती भी थीं इसलिए उन्होंने जान के कुछ नहीं कहा और मुझे अपने साथ रसोई घर ले गईं और मुझे सामने बैठा के चाय बंनाने लगीं|
बड़की अम्मा: मुन्ना...सच-सच कहो....तुम रात भर सोये नहीं ना?
मैं: जी नहीं...
बड़की अम्मा: क्यों? (चाय में चीनी डालते हुए)
मैं: जी...रात भर सोच रहा था की उन्हें कैसे बताऊँगा की हम रविवार को जा रहे हैं? (मुझे छप्पर के नीचे कोई खड़ा हुआ दिखाई दिया, पर जब मैंने पास जाके देखा तो वहाँ कोई नहीं था|)
बड़की अम्मा: तो बेटा मैं बता देती हूँ|
मैं: जी मैं नहीं चाहता की उनका दिल टूटे! और खासकर ऐसे मौके पर जब वो माँ बनने वालीं हैं|
आगे बात हो पाती इसे पहले ही भौजी वहाँ आ गईं और मैंने अम्मा को इशारे से बात ख़त्म करने को कहा| मैं उठ के जाने लगा तो भौजी ने अम्मा के सामने ही मेरा हाथ पकड़ लिया!
भौजी: कहाँ जा रहे हो आप?
मैं: नेहा को उठाने|
भौजी: वो उठ गई है और तैयार हो रही है| आप बैठो...वैसे भी उसने रात भर सोने नहीं दिया आपको|
एक बार को तो मन हुआ की उन्हें अभी सब बता दूँ पर सुयभ-सुबह ऐसी खबर देना जिससे वो टूट जाएं ...मुझे ठीक नहीं लगा| हम दोनों तख़्त पे बैठ गए और जब चाय बनी तो भौजी ने सब को चाय दी और फिर अपनी और मेरी चाय लेके मेरे पास बैठ गईं| अम्मा भी अपनी चाय की प्याली ले के बड़के दादा के साथ बैठ के बातें करने लगीं और जाते-जाते मुझे इशारा कर गईं की मैं भौजी को सब अभी बता दूँ| पर मैंने ऐसा नहीं किया ...अब तो भौजी को भी लगने लगा था की मैं उनसे कुछ छुपा रहा हूँ|
भौजी: जानू...क्या बात है? आप मुझसे क्या छुपा रहे हो?
मैं: कुछ भी तो नहीं...मैं आपसे नाराज हूँ! (मैंने बात पूरी तरह से बदल दी)
भौजी: क्यों?
मैं: आजकी Good Morning Kiss नहीं दी आपने इसलिए!
भौजी: अभी दे देती हूँ!
मैं: सब के सामने?
भौजी: हाँ तो... ?
मैं: यहाँ नहीं... बाद में दे देना|
इतने में नेहा तैयार हो के आगई और मेरे गाल पे kiss किया और फिर उसके दूध पीने के बाद मैं उसे लेके स्कूल चल दिया| स्कूल छोड़ के आया तो देखा की भौजी नहा धो के तैयार हो गईं थीं और सब्जी काटने बैठी थीं, मुझे बड़की अम्मा भी खेत से आती हुई दिखाई दीं और उन्होंने दूर से ही इशारा करते हुए पूछा की क्या हुआ? मैंने गर्दन हिला के कुछ नहीं का जवाब दिया| मतलब मैंने अब तक भौजी को कुछ नहीं बताया था| मैं भौजी के सामने से गुजरा पर उनसे नजरें चुराता हुआ बड़े घर के आँगन में बैठ गया| मैं चारपाई पे सर झुका के बैठा था और मेरे ठीक सामने घर का द्वार था|
करीब पंद्रह मिनट बाद भौजी पाँव पटकती हुईं आई और जब मैंने उनके मुख को देखा तो उनकी आँखों से आँसूं छलछला रहे थे और बात साफ़ हो गई की किसी ने उनसे सब कह दिया है|
भौजी: (मेरी आँखों में देखते हुए) क्यों.....आखिर क्यों इतनी बड़ी बात छुपाई मुझे से? क्यों? सब जानते हुए ....आपने मुझे कुछ नहीं बताया... क्यों? आपको सब पहले से ही पता था ना....? क्यों मुझे उस शोक से बहार निकला...पड़े रहने देते मुझे उसी दुक में की आपकी शादी हो रही है.... उस दुःख में थोड़ा और दुःख जुड़ जाता ना...बस...सह लेती पर ...पहले खुद आपने मुझे उस दुःख से निकला ये कह के की भविष्य के बारे में मत सोचो और ....फिर इस नए दुःख का पहाड़ मुझे पे गिरा दिया!!!
मेरा सर झुक गया.... पर भौजी के अंदर जो गुबार था वो कम नहीं हुआ और उन्होंने सवालों की झड़ी लगा दी और मुझे बोलने का कोई अवसर ही नहीं दिया|
भौजी: मुझे ...बिना बताये चले जाना चाहते थे? क्यों....क्यों नहीं बताया की आप मुझे छोड़ के जाना चाहते हो? मन भार गया क्या मुझसे? Answer ME!!! O समझी.....इसीलिए कल आपको इतना प्यार आ रहा था मुझ पे! है ना? क्योंकि मुझे छोड़ के जा रहे हो? मैं ही पागल थी......जो आपको अपना समझ बैठी!!! आप....आप मुझसे जरा भी प्यार नहीं करते..... बस खेल रहे थे मेरे साथ...मेरे जज्बातों का मजाक उड़ा रहे थे! और मैं पागल ...आपको अपना जीवन साथ समझ बैठी! हाय रे मेरी फूटी किस्मत! मुझे बस दग़ा ही मिला हर बार...पहले आपके भाई से....फिर आप से.... जाओ...नहीं रोकूंगी मैं आपको! और वैसे भी मेरे रोकने से आप कौन सा रूक जाओगे!
मैंने भौजी के आँसूं पोछने चाहे पर उन्होंने मुझे खुद को छूने तक नहीं दिया और पीछे हटते हुए कह दिया की;
भौजी: कोई जर्रूरत नहीं मुझे छूने की!
मैं: पर ...
भौजी बिना बात सुने पाँव पटक के जाने लगीं तो मैंने उन्हें रुकने के लिए पुकारा;
मैं: प्लीज मेरी बात तो सुन लो!
पर भौजी नहीं रुकीं! वो पाँव पटकते हुए तीन कदम आगे चलीं होंगी की उन्हें चक्कर आ गया और वो गिरने को हुईं..मैंने भाग के उन्हें अपनी बाँहों का सहारा देते हुए संभाला| भौजी बेहोश हो गईं थीं और उनकी ये हालत देख मेरी फ़ट गई! मैंने उन्हें अपनी गोद में उठाया और बरामदे में चारपाई पर लिटाया| मैं भौजी के गाल थप-थपाने लगा ...पर कोई असर नहीं...मैंने उनके सीने पे सर रखा की उनकी दिल की धड़कन सुनने लगा| दिल अब भी धड़क रहा था...मैंने फिर से उनके गाल को थप-तपाया पर वो कुछ नहीं बोलीं...मैं उन्हें पुकारता रहा पर कुछ असर नहीं हुआ| मैं उनके हथेली को छू के देखने लगा की कहीं वो ठंडी तो नहीं पड़ रही...फिर वो अब भी गर्म थी| फिर भी मैं तेजी से उनकी हथेलियाँ रगड़ने लगा| अब आखरी उपचार था C.P.R. पर फिर दिम्माग में बिजली से कौंधी और मैं स्नान घर भाग और वहाँ से एक लोटे में पानी ले कर आया और फिर कुछ छींटें भौजी के मुख पर मारी| पर भौजी के मुख पर कोई प्रतिक्रिया नहीं थी| मैंने दुबारा छीटें मारी ...अब भी कुछ नहीं...तीसरी बार छीटें मारे तब जाके भौजी की पलकें हिलीं और मेरी जान में जान आई!
भौजी ने आहिस्ते से आँखें खोलीं …
मैं: (मेरी सांसें तेज-तेज थीं और धड़कनें बेकाबू थी) आप ठीक तो हो ना?
भौजी कुछ नहीं बोलीं बस उनकी आँख में आँसू छलछला उठे|
मैं: प्लीज मेरी बात सुन लो ...बस एक बार...उसके बाद आपका जो भी फैसला हो ग मुझे मंजूर है!
भौजी बोलीं कुछ नहीं बस दुरी ओर मुंह फेर लिया....
और मैंने उनके सामने सारा सच खोल के रख दिया;
मैं: मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ...आपके लिए जान दे सकता हूँ| मैं सच कह रहा हूँ की मुझे जाने के प्लान के बारे मैं कुछ नहीं पता था| कल जब सब ने हमें Dance करते हुए देह लिया और आप मुझे अकेला छोड़ के चले गए तब बातों-बातों में पिताजी से पता चला की हमें Sunday को जान है| उन्होंने चन्दर भैया को लखनऊ जाते समय टिकट लाने के लिए पैसे दिए थे| मैं सच कह रहा हूँ की मुझे इस बारे में पहले से कुछ नहीं पता था| कल मैंने आपको इसीलिए नहीं बताय क्योंकि मैं नहीं चाहता था की जिस दुःख से मैंने आपको एक दीं पहले बहार निकला था वापस आपको उसी दुःख में झोंक दूँ| कल आप कितना खुश थे...मेरा मन आपको कल के दीं दुःख के सागर में नहीं धकेलना चाहता था | इसीलिए माने कल के दीं आपसे ये बात छुपाई... मैं आज खुद आपको ये सब बताने वाल था| पर नाज़ां आपने किस्से ये सब सुन लिया? मैंने तो बड़की अम्मा तक को ये बात कहने से रोक दिया था जब आप चाय बना रहे थे| मैं सच कह रहा हूँ ...प्लीज मेरी बात का यकीन करो|
पर मेरी बातों का उन पर कोई असर नहीं पड़ा ... उन्होंने अब तक मेरी और नहीं देखा था| मैंने हार मान ली...ज्योंकी अब मेरे पास ऐसा कोई रास्ता नहीं था जिससे मैं भौजी को अपनी बात का यकीन दिल सकूँ| इधर मेरा मन मुझे अंदर से कचोट रहा था! तभी वहाँ बड़की अम्मा की आवाज आई;
बड़की अम्मा: मुन्ना सही कह रहा है बहु?
मैंने और भौजी ने पलट के देखा तो द्वार पे अम्मा खडीन थी और उन्होंने मेरी सारी बातें सुन ली थीं|
बड़की अम्मा: आज सुबह जब मैं चाय बना रही थी तो मैंने मुन्ना से कहा था की तुम्हें सब बता दे ...पर ये कहने लगा की चूँकि तुम पेट से हो और ऐसे में ये खबर तुम्हें और दुःख देगी| एक नहीं सुबह से दो बार मैंने इसे कहा पर नहीं, इसने तुम से कुछ नहीं कहा ... यहाँ तक की मैंने कहा की मैं ही बता देती हूँ पर इसने माना कर दिया कहने लगा की अगर भौजी का दिल टूटना ही है तो मेरे हाथ से ही टूटे तो अच्छा है!
भौजी ने जब ये सुना तो वो उठ के बैठ गईं और अम्मा के सामने मुझसे लिपट के रोने लगीं| मैंने उनके बालों में हाथ फिराया और उनहीं चुप कराने की कोशिश करने लगा पर भौजी का रोना बंद ही नहीं हो रहा था|
भौजी: I'm sorry ! मैंने आपको गलत समझा!
मैं: Its alright ! मैं समझ सकता हूँ की आप पर क्या बीती होगी! अब आप चुप हो जाओ...
बड़की अम्मा: हाँ बहु...चुप हो जाओ!
भौजी चुप हो गईं पर मैं जानता था की ये उन्होंने सिर्फ अम्मा को दिखाने के लिए रोना बंद किया है|
भौजी: (सुबकते हुए) मैं ...खाना बनती हूँ|
मैं: नहीं.... आप खाना नहीं बनाओगे! अम्मा अभिओ-अभी ये बेहोश हो गईं थीं और मेरी जान निकल गई थी|
बड़की अम्मा: हाय राम! मुन्ना...तुम डॉक्टर को बुला दो|
भौजी: नहीं अम्मा...मैं अब ठीक हूँ|
बड़की अम्मा: पर बहु...
भौजी: प्लीज अम्मा...अगर मुझे तबियत ठीक नहीं लगी तो मैं आपको खुद बता दूँगी| (मेरी ओर देखते हुए उन्होंने अपनी कोख पे हाथ रखा ओर बोलीं) मेरे लिए भी ये बच्चा उतना ही जर्रुरी है जितना आप सब के लिए!
बड़की अम्मा: (आश्वस्त होते हुए) ठीक है बहु .... मैं रसिका को कह देती हूँ| वो खाना बना लाएगी|
भौजी: नहीं अम्मा...मैं अब ठीक हूँ....
मैं: मैंने कह दिया ना...आप खाना नहीं बनाओगे| (मैंने हक़ जताते हुए कहा)
बड़की अम्मा: हाँ बहु....आराम करो
भौजी: पर ये उसकी हाथ की रसोई छुएंगे भी नहीं!
मैं: नहीं मैं खा लूँगा
बड़की अम्मा: क्यों भला? क्या उसके हाथ का खाना तुम्हें पसंद नहीं?
मैं: वो अम्मा मैं आपको बाद में बता दूँगा.. . आप रसिका भाभी से कह दो वो खाना पका लें|
बड़की अम्मा: बेटा अगर उसके हाथ का खाना पसंद नहीं तो मैं बना देती हूँ?
मैं: नहीं अम्मा...ऐसी कोई बात नहीं...मैं बाद में आपको सब डिटेल ...मतलब विस्तार से में बता दूँगा|
बड़की अम्मा: ठीक है!
अब बरामदे में केवल मैं ओर भौजी ही थे| भौजी लेटी हुईं थीं और मैं उनकी बहल में बैठा हुआ था|
भौजी सिसकते हुए बोलीं;
भौजी: मैं आप पर इल्जाम पे इल्जाम लगाती रही पर आपने कुछ नहीं कहा?
मैं: आपने मौका ही नहीं दिया कुछ कहने का?
भौजी: I’m Terribly Sorry !
मैं: It’s okay! आज Friday है ..ता आज और कल दोनों दिन मैं आपके साथ रहूँगा...24 घंटे!
भौजी: सच?
मैं: बिलकुल सच? पर मेरी आपसे एक इल्तिजा है?
भौजी: हाँ बोलिए?
मैं: Sunday को आप एक बूँद आँसू नहीं गिराओगे?
भौजी ने हाँ में गर्दन हिला दी|
मैं: चलो अब मुस्कुराओ?
भौजी ने हलकी सी मुस्कान दी...जो मैं जानता था की नकली है पर कम से कम वो मेरी बात तो मान रहीं थीं| बाहर से वो पूरी कोशिश कर रहें थीं की सहज दिखें पर अंदर ही अंदर घुट रहीं थीं! जो की अच्छी बात नहीं थी! मुझे उन्हें उनकी घुटन से आजाद करना था...चाहे जो भी बन पड़े! दोपहर का खान बनने तक मैं भौजी के पास बैठ रहा और भौजी बहुत कम बोल यहीं थीं...जो बात मैंने नोट की वो थी की अब वो मुझे टक-टकी बांधे देख रहीं थीं...
मैं: क्या हुआ जान? ...कुछ बोलते क्यों नहीं...कुछ बात छेड़ो? बस मुझे देखे जा रहे हो?
भौजी: क्या बोलूं...अब तो अलफ़ाज़ ही कम पड़ने लगे हैं मेरी बदनसीबी सुनाने के लिए! बस सोचती हूँ की आपको इसी तरह देखती रहूँ और अपनी आँखों में बसा लूँ| नजाने फिर कब मौका मिले आपसे मिलने का?
मैं: ऐसा क्यों कहते हो? अभी पूरी जिंदगी पड़ी है... और मैं कौन सा विदेश जा रहा हूँ? बस एक दिन ही तो लगता है यहाँ पहुँचने में? जब मन करेगा आजाया करूँगा?
भौजी: (अपनी वही नकली मुस्कराहट झलकते हुए) नहीं आ पाओगे....
मैं: आपको ऐसा क्यों लगता है?
इतने में वहाँ अम्मा हम दोनों का खाना एक ही थाली में परोस लाईं|
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07-16-2017, 10:15 AM,
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RE: Hot Sex stories एक अनोखा बंधन
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मैं: अरे अम्मा..मुझे बुला लिया होता मैं खाना ले आता...आपने क्यों तकलीफ की?
बड़की अम्मा: मुन्ना तकलीफ कैसी...वासी भी अभी जर्रुरी ये है की तुम बहु का ध्यान रखो| एक तुम ही तो हो जिसकी बात वो मानती है| अच्छा ये बताओ की आखिर ऐसी कौन सी बात है की तुम रसिका के हाथ का कुछ भी खाना पसंद नहीं करते?
मैं: जी वो....
मेरी झिझक जायज थी...भला मैं अमा से सेक्स सम्बन्धी बात कैसे कह सकता था!
बड़की अम्मा: बेटा...मुझ से कुछ भी छुपाने की जर्रूरत नहीं है| मैं सब जानती हूँ...ये भी की तुम्हारा अपनी भौजी के प्रति लगाव बहुत ज्यादा है... पर मुझे नहीं लगता की तुम इस लगाव का कोई गलत फायदा उठाते हो! जो की एक बहित बड़ी बात है... तुम्हारी भौजी भी तुम्हें बहुत प्यार करती है...इतना जितना मैंने उसकी आँखों में अपने पति के लिए भी नहीं देखा| और शादी के बाद वो क्या बात है जिसके कारन इसका मन अपने ही पति से उखड गया...शायद मैं उसका वो कारन भी जानती हूँ| आखिर है वो नालायक मेरा ही बेटा...शादी से पहले उसकी हरकतें क्या थीं ये मैं अच्छे से जानती हूँ... मैंने सोचा की शादी के बाअद वो सुधर जायेगा...पर नहीं! तुमने गौर किया होगा की वो बार-बार अपने मां के यहाँ जाता है.... उसके पीछे जो कारन है वो ये की उसका वहाँ किसी लड़की के साथ.... (अम्मा कह्ते-कह्ते रूक गईं) जानती हूँ ये सब कहना किसी भी माँ के लिए कितना शर्मनाक है पर तुम अब छोटे नहीं हो! तुम्हारे दिल में जितना तुम्हारी भौजी के लिए प्यार है...उसे ये समाज सही नहीं मानता| पर चूँकि ये बात दबी हुई है...और ये सब मेरे ही बेटी की करनी के कारन हुआ है....तो मैं किसी को भी हमारे खानदान पे कीचड़ नहीं उछलने दूँगी| तो अब ये सब जानने के बाद भी...क्या तुम मुझसे वो बात छुपाना चाहते हो?
मैं: अम्मा वो....जब भौजी अपने मायके शादी में शामिल होने गईं थीं तबसे रसिका भाभी मेरे पीछे पड़ीं थीं....वो चाहती थीं की मैं उनके साथ हमबिस्तर हो जाऊं....पर मैंने माना कर दिया...उसके बाद आये दिन वो मुझे अकेला पा के कभी मेरे वहाँ (लंड) पे हाथ लगातीं तो कभी मुझे चूमने की गन्दी कोशिश करती रहतीं| गुस्से में दो-तीन बात मैंने उन्हें थप्पड़ भी मारे पर वो नहीं मानी...इसलिए मैं अपने कमरे में दरवाजा बंद कर के सोता था और मुझे उनसे इतनी नफरत हो गई की मैं उनके हाथ की बनी रसोई टक नहीं खाई...इसीलिए तो मैं बीमार पड़ गया था और भौजी ने डॉक्टर को बुलाया था|
बड़की अम्मा: (अपना माथा पीटते हुए) हाय दैय्या! ये छिनाल !!! पूरा घर बर्बाद कर के रहेगी| खेर चिंता मत करो बेटा...ये रसोई उसने नहीं मैंने पकाई है| आराम से खाओ और अपनी भौजी का ध्यान रखना|
अम्मा उठ के चलीं गईं और मैंने पहल करते हुए पहला कौर भौजी को खिलाया| भौजी ने फिर दूसरा कौर मुझे खिलाया...पर अभी बी कुछ था जो नहीं था! भौजी मुस्कुरा जर्रूर रहीं थीं पर वो ख़ुशी..कहीं न कहीं गायब थी| खेर हमने खाना खाया और कुछ देर आँगन में टहलने के बाद भौजी चारपाई पर लेट गईं| मैं उनके बालों में हाथ फेरने लगा;
मैं: क्या बात है जान? अब भी नाराज हो मुझसे?
भौजी: नहीं तो...आपसे नाराज हो के मैं कहाँ जाऊँगी?
मैं: तो फिर आप मुझसे बात क्यों नहीं कर रहे? क्यों ये जूठी हंसी-हंस रहे हो? क्यों अंदर ही अंदर घुट रहे हो? निकाल दो बाहर जो भी चीज आप को खाय जा रही है? आप हल्का महसूस करोगे!
भौजी कुछ नहीं बोलीं बस चुप-चाप मुझे देखती रहीं| मैं भी उनकी आँखों में आँखें डाले अपने सवाल का जवाब ढूंढने लगा| फिर उन्होंने मेरा हाथ थामा और बोलीं;
भौजी: आप रात भर इसीलिए नहीं सोये न की आप आज ये बात मुझे कैसे कहोगे?
मैं: हाँ
भौजी: तो वो चारपाई यहीं बिछा लो और मेरे पास लेट जाओ|
मैं उठ के चारपाई लेने जा ही रहा था कीमुझे याद आया की नेहा का स्कूल खत्म हुए आधा घंटा होने को आया था और हम दोनों में से किसी को भी याद नहीं आया की उसे स्कूल से लाना भी है|
मैं: आप लेटो मैं अभी आया...बस दो मिनट!
भौजी: पर आप जा कहा रहे हो?
मैं: बस अभी आया ...
और मैं इतना कहते हुए तेजी से बहार की ओर भागा| स्कूल करीब पांच मिनट की दूर पे था और मुझे नेहा अकेली कड़ी दिखाई दी| मैं तेजी से उसकी ओर भगा| मैंने उसे झट से गोद में उठा लिया और उसके माथे को चूमते हुए बोला;
मैं: I'm Sorry !!! बेटा मैं भूल गया था की आपके स्कूल की छुट्टी हो गई है| प्लीज मुझे माफ़ कर दो!
नेहा: कोई बात नहीं पापा!
मैं: Awwww मेरा बच्चा....चलो अब मेरे साथ भागो...मैं पहले आपको चिप्स दिलाता हूँ ...
हम दोनों तेजी से भागे और पहले मैंने उसे चिप्स का पकेट दिलाया और दस मिनट में हम भौजी के पास पहुँच गए| भौजी परेशान हो के बैठी हुईं थीं| जैसे ही उन्होंने नेहा को देखा तो उन्हें याद आय की आज उसे स्कूल से लाने के बारे में हम दोनों भूल गए| भौजी ने अपनी दोनों बाहें खोल दी और उसे गले लगने का आमंत्रण दिया| नेहा मेरी गोद से उतरी और जाके उनके गले लग गई| भौजी के बेचैन मन को जैसे ठंडक पहुंची|
भौजी: Sorry बेटा आज मुझे याद ही नहीं रहा की तुझे स्कूल से लाना भी है| Sorry !!!
नेहा: (चिप्स खाते हुए) कोई बात नहीं मम्मी ....देखो पापा ने मुझे चिप्स का बड़ा पैकेट दिलाया| लो (ऐसा कहते हुए उसने एक टुकड़ा भौजी के मुंह में डाला)
भौजी: तो इसलिए आप इतनी तेज भागे थे?
मैं: हाँ...Sorry मैं नेहा को स्कूल से लाना भूल गया|
भौजी: गलती मेरी है...आपकी नहीं...मेरी वजह से आप....
आगे भौजी कुछ बोल पाती इससे पहले नेहा ने अपना सवाल दाग दिया;
नेहा: मम्मी...आप की तबियत खराब है? आप बीमार हो?
भौजी: हाँ बेटा...इसीलिए आपके पापा आपको लाना भूल गए|
नेहा: क्या हुआ मम्मी आपको?
भौजी: बेटा आपके पापा...
मैंने भौजी की बात काट दी क्योंकि मैं नहीं चाहता था की वो बच्ची भी रोने लगे वो भी अभी...जब उसने कुछ खाया-पीया नहीं|
मैं: बेटा पहले आप कुछ खा लो फिर बैठ के बात करते हैं|
भौजी ने भी मेरी बात में हामी भरी|
भौजी: आप आराम करो...मैं इसे खाना खिला देती हूँ|
मैं: नहीं...आप आराम करो| मैं हूँ ना?
भौजी: पर Monday से तो मुझे ही करना है ...तो अभी क्यों नहीं|
मैं: क्योंकि अभी मैं यहाँ मौजूद हूँ|
मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसके कपडे बदल के उसे खाना खिलाया और वापस भौजी के पास ले आया| भौजी सो चुकीं थीं पर उनके चेहरे पर आँसूं की लकीर बन चुकी थी| माँ-पिताजी कुछ रिश्तेदारों से मिलने सुबह ही चले गए थे और अब उनके भी आने का समय हो गया था|
मैंने नेहा को साथ वाली चारपाई पे लिटा दिया और उसे पुचकारके सुला दिया| जब माँ और पिताजी आये तो उन्होंने मुझे भौजी और नेहा के पास बैठे देखा और इससे पहले की वो अपना सवालों से मेरे ऊपर बौछार करते बड़की अम्मा भागी-भागी वहाँ आईं और उन्हीने बिना कुछ कहे इशारे से अपने साथ ले गईं| कुछ देर बाद तीनों अंदर आये और माँ ने मुझे इशारे से अपने और पिताजी के पास बुलाया|
माँ: बेटा मैंने कहा था ना की तुझे अपनी भौजी और नेहा से दूरी बनानी होगी वरना जाते समय वो बहुत उदास होंगे...उनका दिल टूट जायेगा?
मैं: जी
माँ: फिर भी .... अब कैसे संभालेगा तू उन्हें? आज जो हुआ उसके बाद तो ...पता नहीं कैसे हम जायेंगे? या फिर यहीं बस्ने का इरादा है?
मैं: जी ... (मेरे पास शब्द नहीं थे उन्हें कहने के लिए)
बड़की अम्मा: देखो ...लड़का समझदार है...और बहु भी! रही बात नेहा की तो वो एक आध दिन में भूल जाएगी!
माँ: दीदी...आपने इसे बड़ी शय दी है|
पिताजी: देखो भाभी अगर उस दिन भी बहु का ये हाल हुआ तो? वो भी ऐसे समय पे जब बहु माँ बनने वाली है!
बड़की अम्मा: कुछ नहीं होगा..लड़का समझदार है...ये समझा लेगा| जा बेटा तू अंदर जा और सो ले थोड़ा...कल रात से जाग रहा है|
मैं बिना कुछ कहे अंदर आ गया पर सोया नहीं... नींद ही नहीं थी आँखों में| सर झुका के हाथ रखे हुए मैं Sunday के बारे में सोचने लगा| कल रात को मैं आसमान में देखते हुए अपनी परेशानी का हल ढूंढ रहा था..और आज जमीन को देखते हुए फिर से अपनी परेशानी का हल ढूंढ रहा था| वाह क्या बात है? जब आसमान ने तेरी परेशानी का हल नहीं दिया तो जमीन क्या हल देगी तेरी परेशानियों का? अभी मैं इस उधेड़-बुन में लगा था की भौजी उठ गईं;
भौजी: आप सोये नहीं? कब तक इस तरह खुद को कष्ट देते रहोगे?
मैं: जब तक आप एक Smile नहीं देते! (मैंने सोचा की शायद माहोल को थोड़ा हल्का करूँ)
भौजी: Smile ??? आप Sunday को "जा" रहे हो..... "वापस" आ नहीं रहे जो हँसूँ...मुस्कुराऊँ?
मेरा सर फिर से झुक गया...
भौजी: आपने मुझे नेहा को कुछ बताने क्यों नहीं दिया?
मैं: वो बेचारी स्कूल से थकी-हारी आई थी...खाली पेट...ऐसे में आप उसे ये खबर देते तो वो रोने लगती| जब वो उठेगी तो मैं उसे सब बता दूँगा|
भौजी: हम्म्म्म... आप सो जाओ ...थकान आपके चेहरे से झलक रही है|
मैं: नहीं... मैं Sunday को "जा" रहा हूँ..... "वापस" आ नहीं रहा जो चैन से सो जाऊँ|
मैंने फिर से उन्हें हँसाने के लिए उन्हीं की बात उन पे डाल दी...पर हाय रे मेरी किस्मत! भौजी वैसी की वैसी!
मैं: वैसे एक बात तो बताना ...आपको ये खबर दी किसने की मैं Sunday को जा रहा हूँ?
भौजी: रसिका ने....
मैं: और Exactly क्या कहा उसने? (आज मैं इतने गुस्से में था की आज रसिका भाभी के लिए मैंने "उसने" शब्द का प्रयोग किया|)
भौजी ने आगे जो मुझे बताया वो मैं आपके समक्ष डायलाग के रूप में रख रहा हूँ|
भौजी सब्जी काट रहीं थीं तभी वहाँ रसिका भाभी आ गईं और उनसे बोलीं;
रसिका भाभी: दीदी... आप बड़े खुश लग रहे हो? आपको मानु जी के जाने का जरा भी गम नहीं?
भौजी: क्या बकवास कर रही है तू! वो कहीं नहीं जा रहे!
रसिका भाभी: हाय...उन्होंने आपको कुछ नहीं बताया? सारा घर जानता है की काका-काकी रविवार को जा रहे हैं| आपको नहीं बताया उन्होंने?
भौजी: देख...मेरा दिमाग तेरी वजह से बहुत खराब है...मुझे मजबूर मत कर वरना इसी हंसिए से तेरे टुकड़े-टुकड़े कर दूँगी!
रसिका भाभी: कर देना...पर एक बार उनसे पूछ तो लो?
भौजी: हाँ...और मैं जानती हूँ की तू जूठ बोल रही है...और वापस आके तेरी चमड़ी उधेड़ दूँगी|
रसिका भाभी: अरे अब वो तुम से प्यार नहीं करते! वरना अपने जाने की बात तुम से क्यों छुपाते? यहाँ तक की अम्मा को भी माना कर दिया की आप भौजी से कुछ ना कहना! वो आपके बिना बातये जाना च्चहते थे..ये तो मैं मुर्ख निकली जिसने आपको अपना समझा और सब बता दिया और आप मुझे ही धमकी दे रहे हो! पछताओगे...बहुत पछताओगे!!!
भौजी की सारी बातें सुनने के बाद ...मेरे तन बदन में आग लग गई और अब ये आग रसिका भाभी को भस्म करने के बाद ही बुझती|
मैं: मैं अभी आया (मैंने गुस्सा दिखाते हुए कहा)
भौजी: कहाँ जा रहे हो आप?
मैं: बस अभी आया..और आपको मेरी कसम है जो आप यहाँ से हिले भी तो!
भौजी: नहीं रुको...
मैं बिना कुछ कहे वहाँ से चला आया| पाँव पटकते हुए मैं छप्पर के नीचे जा पहुँचा और रसिका भाभी को देख के जो अंदर गुस्से की आग थी वो और भड़क उठी| माँ-पिताजी उस वक़्त हमारे खेत में जो आम का पेड़ था वहाँ बैठ हुए थे| मैं गरजते हुए बोला;
मैं: रसिका!!! पड़ गई तेरे कलेजे को ठंडक? लगा दी ना तूने आग? .... तूने...तूने ही आग लगाई है मेरी जिंदगी में! क्या खुजली मची थी तुझे जो तूने भौजी को मेरे जाने की बात बताई?
मेरी ऊँची आवाज सुन के सब से पहले बड़की अम्मा भागी आईं;
बड़की अम्मा: क्या हुआ मुन्ना? क्यों आग बबूला हो रहे हो?
मैं: अम्मा...इसी औरत ने भौजी को मेरे जाने की बात बताई ...और आज उनकी जो हालत है वो इसी के कारन है? आज सुबह जब आप चाय बना रहे थे और मैं आपसे बात कर रहा था तब ये छप्पर के नीचे छुपी हमारी बातें सुन रही थी...और सब जानते हुए भी इसिने आग लगाईं?
रसिका भाभी: अम्मा...आप बताओ की भला मैं क्यों आग क्यों लगाऊँगी?
बड़की अम्मा: XXXX (अम्मा ने उन्हें गाली देते हुए कहा) मैं सब जानती हूँ की तूने हमारी गैर-हाजरी में क्या-क्या किया?
रसिका भाभी: और ये...ये भी कोई दूध के धुले नहीं हैं...ये भी तो अपनी भौजी के साथ....
आगे वो कुछ बोल पाती इससे पहले ही अम्मा ने उसके गाल पे एक तमाचा जड़ दिया और रसिका भाभी का रोना छूट गया|
बड़की अम्मा: चुप कर XXX (अम्मा ने फिर से उन्हें गाली दी) खुद को बचाने के लिए मुन्ना पे इल्जाम लगाती है! तू तो है ही XXXX शादी से पहले मुंह कला किया और अब भी.....छी..छी... निकल जा यहाँ से!
अब ये शोर-गुल सुन पिताजी और माँ भी आ गए और उन्होंने मेरे हाथ में डंडा देखा जो मैंने आते वक़्त उठा लिया था...ये सोच के की आज तो मैं रसिका की छिताई करूँगा| उन्हें लगा की मैंने भाभी पे हाथ उठाया है| पिताजी तेजी से मेरी तरफ आये और बिना कुछ सुने मेरे गाल पे एक तमाचा जड़ दिया| तमाचा इतनी तेज था की उनकी उँगलियाँ मेरे गाल पे छाप गेन और होंठ काटने से दो बूँद खून बह निकला|
आज पहली बार था की पिताजी ने मुझे थप्पड़ से नवाजा और मैं रोया नहीं...बल्कि मेरी आँखों में अब भी वही गुस्सा था|
पिताजी: यही संस्कार दिए हैं मैंने? अब तू अपने से बड़ों पे हाथ उठायगा?
मैं: ये इसी लायक है!
पिताजी ने एक और तमाचा रसीद किया;
पिताजी: इस बदतम्मीजे से बात करेगा अपने बड़ों से?
बड़की अम्मा: मुन्ना (पिताजी) ये क्या कर रहे हो? जवान लड़के पे हाथ उठा रहे हो? मानु बेटा तो जा ...मैं बात करती हूँ|
अब भी मेरे अंदर का गुस्सा शांत नहीं हुआ और अब भी वो डंडा मेरे हाथ में ही था| मन तो किया की रसिका को ये डंडा रसीद कर ही दूँ पर पिताजी के संस्कार हमारे बीच में आ गए| मैंने पिताजी को अपना गुस्सा जाहिर करते हुए डंडे को अपने पैर के घुटने से मोड़ के तोड़ दिया और ये देख के पिताजी और भी क्रोधित हो गए और मुझे मारने को लपके, तभी अम्मा और माँ ने मिल के उन्हें रोक लिया| मैं वापस बड़े घर आ गया, जब भौजी ने मेरे दोनों गाल लाल एखे और होठों पे खून तो वो व्याकुल हो गईं;
भौजी: क्यों?....
उन्होंने अपनी बाहें खोल के अपने पास बुलया, मैं जाके उनके गले से लग गया| चलो इसी बहाने कुछ तो बोलीं वो पर ये क्या मेरे होठों पे लगा खून देख उनकी आँखें छलक आईं|
मैं: Hey ! मुझे कुछ नहीं हुआ? I'm Fine ! देखो?
भौजी ने मेरे लाल गालों पे हाथ रखा और बोलीं;
भौजी: क्या हुआ? आपकी ये हालत कैसे हुई?
मैं: उसे सबक सिखाने गया था ...पिताजी आ गए और...
आगे मुझे बोलने की कोई जर्रूरत ही नहीं थी| भौजी ने अपनी साडी के पल्लू से खून पोछा और बोलीं;
भौजी: अब तो मुझे अपनी कसम से मुक्त कर दो?
मैं: क्यों? कहाँ जाना है आपको?
भौजी: First Aid बॉक्स लेने|
मैं: कोई जर्रूरत नहीं.... आप मेरे पास बैठो..ये तो छोटा सा जख्म है...ठीक हो जायगा|
पर नजाने अब भी भौजी का मन उदास था...बाहर से उनके चेहरे पे मुझे दिखाने के लिए मुस्कराहट थी पर अंदर से....अंदर से वो दुखी थीं| हम दोनों चारपाई पे बैठे थे पर खामोश थे...तभी वहाँ अजय भैया आ गए| मुझे नहीं पता की उनहीं कुछ मालूम पड़ा या नहीं ...पर वो आये और भौजी का हाल-चाल पूछा और दस मिनट बाद जाने लगे| मैंने उनहीं रोक और बहार ले जा कर उनसे बोला;
मैं: भैया...आप तो जानते ही हो की उनका मन खराब है| मैं सोच रहा था अगर आप बाजार से कुछ खाने को ले आओ तो....शायद उनका मन कुछ बल जाए|
अजय भैया: हाँ-हाँ बोला...क्या लाऊँ?
मैं: मेरे और उनके लिए दही-भल्ले, नेहा के लिए टिक्की और बाकी सब से पूछ लो वो क्या खाएंगे| और पैसे पिताजी से ले लेना...
अजय भैया: ठीक है मानु भैया ...मैं अभी ले आता हूँ|
मैं वापस आके भौजी के पास बैठ गया; पर भौजी ने कुछ नहीं पूछा| आधे घंटे तक बरामदे में खामोशी छाई रही| पंद्रह मिनट और बीते और नेहा उठ गई, अभी वो आँखें मल रही थी की भौजी ने उसे पुकारा, और मैं उठ के उसकी चारपाई पे बैठ गया;
भौजी: नेहा ..बेटा इधर आओ|
नेहा उठ के उनके पास अपनी आँख मलते-मलते चली गई|
भौजी; बैठो बेटा.... मुझे आप को एक बात बतानी है|
मैं: नहीं...अभी नहीं....
भौजी: क्यों?
मैं: कहा ना अभी नहीं...अभी-अभी उठी है... कुछ खा लेने दो उसे|
भौजी: आप क्यों व्यर्थ में समय गँवा रहे हो.... !!!
मैं: नेहा...बेटा मेरे पास आओ!
भौजी उसे जाने नहीं दे रही थी...पर नेहा छटपटाने लगी और मेरे पास आ गई| इतने में अजय भैया चाट ले के आ गए| चाट देख के नेहा खुच हो गई, भैया ने एक प्लेट भौजी को दी;
अजय भैया: लो भाभी...चाट खाओ...देखो मूड एक दम फ्रेश हो जायेगा|
भौजी: नहीं भैया...मन नहीं है|
मैं: क्यों मन नहीं है? ठीक है...मैं भी नहीं खाऊँगा...
तभी अचानक से नेहा बोल पड़ी;
नेहा: मैं भी नहीं खाऊँगी!
जिस भोलेपन से उसने कहा था, उसको ऐसा कहते देख अजय भैया की हँसी छत गई पर हम दोनों अब भी एक दूसरे की आँखों इन देखते हुए सवाल-जवाब कर रहे थे| ऐसा लग रहा था मानो भौजी पूछना चाहती हों की आखिर मैं ये सब क्यों कर रहा हूँ? जब मुझे जाना ही है...तो मैं उन्हें क्यों हँसाना चाहता हूँ, क्यों नहीं मैं उनहीं रोता हुआ छोड़ जाता? और मेरी आँखें जव्वाब ये दे रहीं थी की ...मैं वापस आऊँगा... उन्हें अकेला नहीं छोड़ अहा..ना उनकी जिंदगी से कहीं जा रहा हूँ| ये तो बस भूगोलिक फासला है...मन तो मेरा उनके पास ही रहेगा ना!
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07-16-2017, 10:16 AM,
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RE: Hot Sex stories एक अनोखा बंधन
73
इस सवाल-जवाब से बेखबर अजय भैया ने हमारी नजरों की बातें काटते हुए कहा;
अजय भैया: खा लो ना भाभी...वरना नेहा भी नहीं खायेगी और मानु भैया भी नहीं खाएंगे| कम से कम उनके लिए ही खा लो!
तब जाके भौजी ने उनके हाथ से प्लेट ली और पहला चम्मच खाया| फिर भैया ने दूसरी प्लेट मुझे दी और मैं उन्हें देखते हुए खाने लगा| अजय भैया चले गए... अब बस मैं, नेहा और भौजी ही बचे थे| जब खाना-पीना हो गया तब मैंने नेहा को गोद में लिया और निश्चय किया की अब मैं नेहा को सब बता दूँगा|
मैं: बेटा...अब ..मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ| आपक दुःख तो होगा...पर ....
मेरे पास शब्द नहीं थे...की आखिर कैसे मैं उस फूल जैसी नाजुक सी लड़की को समझाऊँ की मैं उसे छोड़ के जा रहा हूँ| इधर भौजी की नजरें अब मुझ पे टिकीं थीं और वो उम्मीद कर रहीं थीं की मैं ये कड़वी बात नेहा के सामने हर हालत में रखूँ|
मैं: बेटा... इस Sunday को ...मैं शहर वापस जा रहा हूँ!
नेहा: तो आप वापस कब आओगे? (उसने बड़े भोलेपन से सवाल पूछा)
मैं: बेटा... (मेरी बात भौजी ने बीच में काट दी)
भौजी: कभी नहीं|
इतना सुनते ही नेहा ने अपना सर मेरे कंधे पे रख दिया और रो पड़ी|
मैं: ये आप क्या कह रहे हो? किसने कहा मैं कभी नहीं आऊँगा? मैं जर्रूर आऊँगा? बेटा चुप हो जाओ...मैं आऊँगा...जर्रूर आऊँगा!
पर नेहा चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी| उसने अपनी बाँहों से मेरे गले के इर्द-गिर्द फंडा बन लिया ...जैसे मैं अभी उसे छोड़ के जा रहा हूँ|
मैं: बेटा बस...बस...चुप हो जाओ...मम्मी जूठ कह रहीं है...मैं आऊँगा...अपनी लाड़ली बेटी को ऐसे ही थोड़े छोड़ दूँगा| और मैं जब आऊँगा ना तो आपके लिए ढेर सारी फ्रॉक्स लाऊंगा... और चिप्स....और खिलोने...और ...और.... Barbie डॉल लाऊंगा| फिर हम मिलके खूब खेलेंगे..खूब घूमेंगे...
इतने लालच देने के बाद भी उसका रोना बंद नहीं हुआ...जैसे वो ये सब चाहती ही नहीं! उसे सिर्फ एक चीज चाहिए...सिर्फ मैं!
मैं: आप भी ना...क्या जर्रूरत थी ये बोलने की?
भौजी: और आपको क्या जर्रूरत है उसे जूठा दिलासा देने की? (भौजी ने शिकायत की)
मैं: मैंने कब कहा की मैं अब कभी नहीं आऊँगा.... चार महीने बाद दसहरे की छुटियाँ हैं...उन छुटियों में मैं आऊँगा...उसके बाद सर्दियों की छुटियाँ हैं... फिर अगले साल फरवरी पूरा छुट्टी है!
भौजी: और Exams का क्या? फरवरी की छुटियाँ आप हमारे साथ बिठाओगे या Exams की तैयारी करोगे? और यहाँ रह के तो हो गई आपकी तैयारी! रही बात दसहरे और सर्दी की छितियों की तो, दसहरे की छुटियाँ दस दिन की होती हैं...दो दिन आने-जाने में लग गए और बाकी के आठ दिन में क्या? सर्दी की छुटियों के ठीक बाद आपके Pre Boards हैं..उनके लिए नहीं पढोगे?
अब मेरे पास उनकी किसी भी बात का जवाब नहीं था| मैं नेहा को थप-थपाते हुए उसे चुप कराने लगा|करीब आधे घंटे बाद नेहा चुप हुई...और सो गई| मैं उसे गोद में लिए हुए आँगन के चक्कर लगाता रहा|
तभी वहाँ माँ आ गईं और भौजी से उनका हाल-चाल पूछा|
माँ: बहु, क्या हाल है? और तू..तू वहाँ क्या चक्क्र लगा रहा है? अभी तो नेहा ने कुछ खाया भी नहीं..और तू उसे सुला रहा है?
भौजी: माँ...वो नेहा बहुत रो रही थी...और अभी रोते-रोते सो गई?
माँ: रो रही थी...मतलब?
मैं: मैंने सुई अपने जाने की बात बताई तो वो रो पड़ी!
माँ: तू ना.... दे इधर बेटी को| (माँ ने नही को अपनी गोद में ले लिया) क्या जर्रूरत थी तुझे इसे कुछ बताने की| अपने आप एक दो दिन बाद सब भूल जाती|
अब मैं माँ को कैसे बताता की ये वो रिश्ता नहीं जो एक-दो दिन में भुलाया जा सके! खेर रात हुई और अब भी भौजी बहुत उखड़ी हुईं थी और मुझे अब इसका इलाज करना था वरना.... कुछ गलत हो सकता था| जब अम्मा खाने के लिए बोलने आईं तो मैंने उन्हें अलग ले जा के बात की;
मैं: अम्मा ...मुझे एक बात करनी थी आपसे| आज दिनभर इन्होने मुझसे ठीक से बात नहीं की है...मेरा मन बहुत घबरा रहा है... जब से ये अचानक बेहोश हुईं हैं तब से मेरी जान निकल रही है.... इसलिए मैं आपसे विनती करता हूँ ...की आज रात मैं इनके घर में सो जाऊँ?
अम्मा: (कुछ सोचते हुए) ठीक है बेटा| मुझे तुम पे पूरा विश्वास है|
फिर मैं अम्मा के साथ भोजन लेने रसोई पहुँच गया...भोजन माँ और आम्मा ने मिल के बनाया था| मैंने आस-पास नजर दौड़ाई तो देखा की रसिका भाभी छप्पर के नीचे चारपाई पे पड़ी थी|
मैंने एक थाली में तीनों का भोजन लिया और वापस आ गया|
मैं: चलो खाना खा लो?
भौजी: पर मुझे भूख नहीं है ....
मैं: जानता हूँ...मुझे भी नहीं है... पर अगर दोनों नहीं खाएंगे तो नेहा भी नहीं खायेगी|
इतने में माँ नेहा को लेके आ गई;
माँ: ले संभाल अपनी लाड़ली को....जब से उठी है तब से तेरे पास आने को मचल रही है|
मैंने नेहा को गोद में लिया और उसके माथे को चूमा| माँ ने देखा की खाना चारपाई पे रखा है और हम दोनों में से कोई भी उसे हाथ नहीं लगा रहा|
माँ: बहु...ऐसी हालत में कभी भूखे नहीं रहना चाहिए...इसलिए खाना जर्रूर खा लेना वरना ये नालायक भी नहीं खायेगा|
भौजी: जी माँ !
इतना कह के माँ चलीं गईं| मैंने पहला कौर भौजी को खिलाया और दूसरा नेहा को...और इधर भौजी ने पहला कौर मुझे खिलाया और मेरी आँखों में देखते हुए उनकी आँखें फिर छलछला गई| मैंने बाएं हाथ सेउनके आँसूं पोछे और फिर हम तीनों ने खाना खत्म किया|
भौजी: अब तो अपनी कसम से आजाद कर दो|
मैं: ठीक है...कर दिया!
भौजी उठीं और हाथ मुँह धोया...फिर मैंने थाली रसोई के पास धोने को रखी और भौजी के घर में पहुँच गया| आँगन में मैंने दो चारपाई दूर-दूर बिछाई और एक पे भौजी लेट गई और दूसरी पे मैं और नेहा|
इतने में वहाँ चन्दर भैया आ गए;
चन्दर भैया: तो आज मानु भैया यहीं सोयेंगे?
मैं: क्यों ....पहली बार तो नहीं है| जब भौजी की तबियत खराब थी तब भी मैं यहीं सोया था और वैसे भी मैंने अम्मा से पूछ लिया है|
जवाब सीधा था और वो अपना इतना सा मुँह लेके चले गए| भौजी हैरान हो के मेरी ओर देखने लगीं;
भौजी: आप बहार ही सो जाओ...सब बातें करेंगे?
मैं: करने दो... अम्मा को सब पता है|
अब नेहा ओर भौजी तो अपनी-अपनी नन्द दिन में ले चुके थे ...एक मैं था जो कल रात से उल्लू की तरह जाग रहा था| तो मुझे सबसे पहले नींद आना सेभविक था| नेहा को कहानी सुनाते -सुनाते मेरी आँख लग गई| रात के दो बजे मेरी आँख अचानक खुली ...मन बेचैन होने लगा| मैंने सबसे पहले नेहा को देखा...वो मुझसे चिपकी हुई सो रही थी| फिर मैंने भौजी की तरफ देखा तो वो अपने बिस्तर पे नहीं थी| अब मेरी हवा गुल हो गई..की इतनी रात गए वो गईं कहाँ| Main दरवाजा तो मैंने खुला ही छोड़ा हुआ था ताकि कोई शक न करे!
मैंने पलट के अपने पीछे देखा तो भौजी खड़ीं थीं..ओर उनकी पीठ मेरी तरफ थी| मैं एकदम से उठ बैठा और मैंने भौजी के कंधे पे हाथ रख के उन्हें अपनी तरफ घुमाया| आगे जो देखा उसे देखते ही मेरे होश उड़ गए| उनके हाथ में चाक़ू था ओर वो अपनी कलाई की नस काटने जा रहीं थीं| मैंने तुरंत उनके हाथ से चाक़ू छें लिया और उसे घर के बहार हवा में फेंक दिया| भौजी का सर झुक गया और वो आके मेरे गले लग गईं ओर फूट-फूट के रोने लगीं;
मैं: ये आप क्या करने जा रहे थे? मेरे बारे में जरा भी ख़याल नहीं आया आपको? और मुझे तो छोडो...मुझसे तो आप वैसे भी सुबह से बात नहीं कर रहे....पर नेहा...उस बेचारी का क्या कसूर है? और ये नन्ही सी जान जो अभी इस दुनिया में आई भी नहीं है और आप उसे भी..... क्या हो गया है आपको? समझ सकता हूँ की आपके मन में कितना गुबार है ...कितना दर्द है...पर उसका ये हल तो नहीं!!
भौजी को रोता देख अब मुझसे भी कंट्रोल नहीं हुआ और मेरे आँसूं बहते हुए उनकी पीठ पे जा गिरे|
भौजी: प्लीज...आप मत रोओ!
मैं: कैसा न रोओं... सुबह से खुद को रोक रहा था की मैं आपके सामने इस तरह ...पर आप....अपने तो अभी हद्द पार कर दी! अगर आपको कुछ हो जाता तो? क्या जवाब देता मैं सब को? और नेहा पूछती तो, क्या कहता उसे की कहाँ है उसकी मम्मी?
भौजी: (रोते हुए) मुझे माफ़ कर दो..... मैं होश में नहीं थी| कुछ सूझ नहीं रहा था....मैं आपके बिना नहीं जी सकती.... (और भौजी फिर से फूट-फूट के रोने लगीं|)
मैं: नहीं..नहीं...ऐसा मत बोलो! देखो...आपने कहा था न की आपको मेरी निशानी चाहिए? (मैंने उनकी कोख पे हाथ रखा) तो फिर? उसके लिए तो जीना होगा ना आपको?
हमारी आवाज सुन के नेहा भी उठ बैठी और हमें रोता हुआ देख मेरी टांगों से लिपट गई|
मैं दोनों को भौजी की चारपाई के पास ले आया और भौजी को लेटने को बोला| फिर मैं उनकी बगल में पाँव ऊपर कर के और पीठ दिवार से लगा के बैठ गया| इधर नेहा मेरी बायीं तरफ लेट गई और उसका सर मेरी छाती पे था| भौजी ने भी अपना सर मेरी छाती पे रख लिया पर उनका सुबकना और रोना बंद नहीं हुआ था| उनके आँसूं अब मेरी टी-शर्ट भीगा रहे थे|
नेहा: पापा...मम्मी को क्या हुआ? आप दोनों क्यों रो रहे हो?
भौजी: बेटा वो आपके पापा ....
मैं: (मैंने भौजी की बात काट दी) बेटा...हमने बुरा सपना देखा था...तो इसलिए... (बात को घुमाते हुए) अच्छा बेटा आप बताओ...पिछले कुछ दिनों से आपको बुरे सपने आते हैं? आप क्या देखते हो सपने में?
नेहा: मैं है न...सपना देखती हूँ ..की आप मुझे अकेला छोड़ के जा रहे हो? (अब मई नहीं जानता की ये बात सच थी भी की नहीं ...पर मन ने इस बात को बिना किसी विरोध के मान लिया था|)
मैं: बेटा...वो सिर्फ सपना था...और बुरे सपने कभी सच नहीं होते!
नेहा आगे कुछ नहीं बोली बस आपने बाएं हाथ को मेरी कमर के इर्द-गिर्द रख के सो गई|
मैं: अब आप बताओ.... क्यों मेरी जान लेने पे आमादा हो? जो भी है आपके मन में बोल दो...उसके बाद मैं बोलता हूँ!
भौजी: इन कुछ दिनों में मैंने...बहुत से सपने सजो लिए थे| कल्पनायें करने लगी थी....की आप और मैं ...हम हमेशा साथ रहेंगे| इसी तरह ... प्यार से.... और फिर वो नन्ही सी जान आएगी... जिसकी डिलिवरी के समय आप मेरे पास होगे...बल्कि मेरे साथ होगे... सबसे पहले आप उसे अपनी गोद में लोगे...उसका नाम भी आप ही रखोगे! उसे लाड-प्यार करोगे.... बस कल रात से मैंने इन्हीं ख़्वाबों में जी रही थी| परन्तु आज...आज मेरे सारे ख्वाब चकना-चूर हो गए! हम कभी भी एक साथ नहीं रह पाएंगे... आप मुझसे दूर चले जाओगे...बहुत दूर...इतना दूर की मुझे भूल ही जाओगे| फिर न मैं आपको याद रहूंगी और ना ही ये बच्चा! सब ख़त्म हो जायेगा! सब.....
मैं: ऐसा कुछ नहीं होगा... जब आपकी डिलिवरी होगी...मैं आपके पास हूँगा|
भौजी: ऐसा कभी नहीं हो सकता?
मैं: क्यों?
भौजी: डॉक्टर ने फरवरी की date दी है? और तब आप Board के exams की तैयारी में लगे होगे!
मैं: (एक ठंडी आह भरते हुए) आपने सही कहा...पर आप जानते हो ना, की मैं कभी हार नहीं मानता| डिलीवरी के समय मैं आपके साथ हूँगा...चाहे कुछ भी हो!
भौजी: तो अब क्या आप भाग के यहाँ आओगे?
मैं: नहीं... आप मेरे साथ आओगे!
भौजी: नहीं...मैंने आपको पहले ही कहा था की मैं आपके साथ नहीं भाग सकती और अब तो बिलकुल भी नहीं!
मैं: किसने कहा हम भाग रहे हैं?
भौजी: मतलब?..मैं समझी नहीं|
मैं: मैं पिताजी और माँ से मिन्नत कर के आपको आपने साथ ले जाऊँगा| मैं उन्हें ये कहूँगा की इस बीहड़ में आपकी देख-रेख कोई नहीं कर सकता.... और दिल्ली से अच्छा शहर कौन सा है जहाँ हर तरह की Medical सेवा बस एक फ़ोन कॉल जितना दूर है| ऊपर से हमारे घर के पास ही हॉस्पिटल है...वो भी ज्यादा नहीं बीस मिनट की दूरी पर| तो मुझे पूरा भरोसा है की कोई मना नहीं करेगा| सब मान जायेंगे|
भौजी: नहीं.... आप ऐसा कुछ भी नहीं कहेंगे?
मैं: पर क्यों?
भौजी: अम्मा तो पहले से ही सब जानती हैं.... और उनकी नजर में ये बस लगाव है...पर असल में तो ये अलग ही बंधन है| आप क्यों चाहते हो की आपके आस-पास के लोग इस रिश्ते को गन्दी नज़रों से देखें!?
मैं: पर ऐसा कुछ नहीं होगा?
भौजी: होगा...आप आगे की नहीं सोच रहे! मैं नहीं चाहती की मेरे कारन आप पर या माँ-पिताजी पर कोई भी ऊँगली उठाये| और वैसे भी .... आपके board exams भी तो हैं...आपको अब उनपर focus करना चाहिए|
मैं" मैं सब संभाल लूँगा...पर
भौजी: (मेरी बात काटते हुए) पर-वर कुछ नहीं... आपको मेरी कसम है..आप किसी से भी मेरे आपके साथ जाने की बात नहीं करोगे! Promise me?
मैं: Promise पर फिर आप मेरे बिना कैसे रहोगे? और कौन है जो आपका ध्यान रखेगा?
भौजी: (अपनी कोख पर हाथ रखते हुए) ये है ना ... और फिर नेहा भी तो है|
मैं: ठीक है...मैं अब इस मुद्दे पर आपसे कोई बहस नहीं करूँगा पर आपको भी एक वादा करना होगा?
भौजी: बोलो?
मैं: जब तक डिलिवरी नहीं हो जाती आप यहाँ नहीं रहोगे? आप आपने मायके में ही रहोगे? एक तो आपका मायका Main रोड के पास है ऊपर से यहाँ दो-दो शैतान हैं जो इस बच्चे को शारीरिक नहीं तो मानसिक रूप से कष्ट अवश्य देंगे!
भौजी: कौन-कौन?
मैं: एक तो चन्दर भैया...जो आपको ताने मार-मार के मानसिक पीड़ा देंगे| और दूसरी वो चुडेल रसिका ...मुझे उस पे तो कोई भरोसा नहीं...वो आपके साथ कभी भी कुछ भी गलत कर सकती है!
भौजी: ठीक है...मैं भी इस मुद्दे पे आपसे बहंस नहीं करुँगी और वादा करती हूँ की डिलिवरी होने तक मैं आपने मायके ही रहूँगी| और हाँ एक और वादा करती हूँ... की कल का आखरी दिन मैं ऐसे जीऊँगी की आपकी सारी यादें उसी एक दिन में पिरो के आपने दिल में बसा लूँ|
मैं: I LOVE YOU !!
भौजी: I LOVE YOU TOO जानू!!!!
इन वादों के बाद, भौजी ने मुझे कस के गले लगाया और मुस्कुराईं| ये वही मुस्कराहट थी जिसे देखने को मैं मारा जा रहा था| मैंने उनके होंठों पे Kiss किया और फिर मैं दिवार का सहारा लिए हुए ही सो गए और भौजी और नेहा मेरे अगल-बगल सो गए| दोनों के हाथ मेरी कमर के इर्द-गिर्द थे| जब सुबह आँख खुली तो अम्मा चुप-चाप आईं थीं और नेहा को उठा के ले जाने लगीं| मैंने जानबूझ के कुछ नहीं कहा और आँख बंद कर के सोता रहा|
सुबह छः बजे मुझे उठाया गया..वो भी भौजी द्वारा| उन्होंने मेरे मस्तक को चूमा और तब मेरी आँख खुली|
भौजी: Good Morning जानू!
मैं: हाय...कान तरस गए थे आपसे "जानू" सुनने को!
भौजी: अच्छा जी? चलो उठो...आज का दिन सिर्फ मेरे नाम है!
मैं: हमने तो जिंदगी आपके नाम कर दी!
मैंने लेटे-लेटे अंगड़ाई लेने को बाहें फैलाईं और भौजी का हाथ पकड़ के अपने पास खींच लिया|
मैं: Aren't you forgetting something?
भौजी: याद है...
फिर उन्होंने मेरे होठों को Kiss किया और उठ के जाने लगीं| जाते-जाते मुझसे पूछने लगीं;
भौजी: आपको खाना बनाना अच्छा लगता है ना?
मैं: हाँ...पर क्यों पूछा?
भौजी: ऐसे ही...जल्दी से उठो और बाहर आना मत|
मैं: पर क्यों?
भौजी: मैं अभी आई|
मैं उनके चेहरे पे मुस्कान देख के खुश था...और आज चाहे मुझसे वो कुछ भी करवा लें...भले ही गोबर के ओपले बनवा लें (जिससे मुझे घिन्न आती है) पर उनकी इस मुस्कान के लिए कुछ भी करूँगा! पर वैसे उन्होंने खाना बनाने के बारे में क्यों पूछा? मैं उठ के बैठा ही था की मुझे स्नानघर के पास मेरा टॉवल और टूथब्रश दिखा? मई सोचा उन्होंने ही रखा होगा तो मैं ब्रश करने लगा| ब्रश समाप्त ही हुआ था की भौजी आ गईं और उनके हाथ में पानी की बाल्टी थी| मैंने दौड़ के उनके हाथ से बाल्टी ले ली|
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07-16-2017, 10:16 AM,
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RE: Hot Sex stories एक अनोखा बंधन
74
मैं: जान...ये क्या कर रहे हो आप? आपको भारी सामान नहीं उठाना चाहिए!
भौजी खिल-खिला के हँसने लगी... और मैं उनकी इस मुस्कान को एक टक देखता रहा? ऐसा लगा जैसे एक अरसे बाद उन्हें खिल-खिला के हँसते हुए देख रहा हूँ|
भौजी: क्या देख रहे हो?
मैं: आपकी मुस्कान.... जाने किस की नजर लग गई थी|
भौजी: जिसकी भी थी...अब वो रो अवश्य " रो रही" होगी की उसके भरसक प्रयास के बात भी हमारे बीच कोई दरार नहीं आई| खेर...अभी वो समय नहीं आया जब गर्भवती महिलाओं को भारी सामान उठाने से मना किया जाता है|
मैं: पर अगर आप अभी से Precaution लो तो क्या हर्ज़ है?
भौजी: ठीक है बाबा! नहीं उठाऊंगी अब से! चलो अब आप नहा लो?
मैं: यहाँ...आपके सामने?
भौजी: क्यों जानू? डर लगता है? की अगर मेरा ईमान डोल गया तो.... (भौजी ने जानबूझ के मुझे छेड़ते हुए कहा)
मैं: नहीं.... मैं सोच रहा था की आप मेरे साथ ही नहाओगे!
भौजी: मैं नहा चुकी हूँ... आपके पास मौका था मुझे नहाते हुए देखने का ...पर आप सो रहे थे!
मैं: तो उठाया क्यों नहीं मुझे?
भौजी: ही..ही..ही.. आपका मौका तो गया ...पर मेरा मौका तो सामने खड़ा है!
मैं: ठीक है...
मैंने अपनी टी-शर्ट उतार उनकी ओर फेंकी! फिर अपना पजामा उतार फेंका! अब मैं सिर्फ कच्छे में था|
भौजी: ये भी तो उतारो! (उन्होंने मेरे कच्छे की ओर इशारा करते हुआ कहा|)
मैं: पर अगर कोई आ गया तो?
भौजी: इसीलिए तो मैं दरवाजे के सामने चारपाई डाल के बैठी हूँ?
मैं: ठीक है बाबा|
मैंने कच्छा भी उतार के दिवार पे रख दिया| अब मैं पूरा नंगा था और भौजी मुझे बड़े प्यार से देख रही थी|
मैं: आप बड़े प्यार से देख रहे हो? ऐसा कुछ है जो आपने नहीं देखा?
भौजी: आपको बस अपनी आँखों में बसाना चाहती हूँ!
इसके आगे मैं कुछ नहीं बोला...बस नहाने लगा| नहाते समय मैं आगे-पीछे घूम के उन्हें अपने पूरे जिस्म के दर्शन करा रहा था| बिलकुल किसी Exhibitioneer की तरह! मेरा स्नान पूरा हुआ;
मैं: मेरा टॉवल देना?
भौजी: नहीं...ये लो (उन्होंने मेरी ओर कच्छा फेंक दिया) पहले इसे पहन लो!
मैं: पर ये गीला हो जायेगा ... पानी तो पोछने दो|
भौजी ने अपना टॉवल उठाया ओर मेरा टॉवल मुझे देते हुए बोलीं;
भौजी: ये लो अपना टॉवल नीचे लपेट लो! आपके जिस्म से पानी मैं पोछूँगी|
मैं: As you wish !
मैंने अपना टॉवल कमर पे लपेट लिया| भौजी अपना तौलिया लेके मेरे पास आईं और तौलिये से मेरे बदन पे पड़ी पानी की बूँदें पोछने लगीं| सबसे पहले उन्होंने मेरी छाती पे पड़ी पानी की बूंदें पोंछीं .... पोछते समय उनकी नजरें मेरी नजरों में झाँक रहीं थीं| मैंने कुछ नहीं कहा...ना ही उन्होंने कुछ कहा बस एक प्यारी सी मुस्कान दी| उसके बाद मैं ने उनकी ओर अपनी पीठ कर दी और वो उसे भी पोछने लगीं| फिर उन्होंने मुझे अपनी तरफ घुमाया और दोनों हाथों को भी पोछ के सुखा दिया| भौजी पाँव पोंछने को झुकीं तो मैं दो कदम पीछे चला गया;
भौजी: अरे पाँव तो पोंछने दो?
मैं: आपको पता है ना मैं आपको कभी अपने पाँव छूने नहीं देता| लाओ ...मैं खुद पोंछ देता हूँ!
भौजी मुस्कुराईं और मुझे तौलिया दे दिया और मैंने अपने पाँव पोंछने के बाद उन्हें तौलिया वापस दे दिया| फिर मुझे एक शररत सूझी;
मैं: अरे...आप एक जगह पोंछनी तो भूल गए?
भौजी: कौन सी?
मैं: (अपना तौलिया उनके सामने खोलते हुए) ये !!!
भौजी: नहीं...वो नहीं... (भौजी शर्मा गईं)
मुझे उनकी ये हरकत थोड़ी अजीब लगी...क्योंकि ऐसा शर्माने जैसा तो हमारे बीच कुछ था नहीं| पर मैंने इस बात को ज्यादा तूल नहीं दी, और वैसे भी मैं खुश था की कम से कम वो खुश हैं|
मैं: अच्छा ...एक बात बताओ? आप इस तौलिये का करोगे क्या?
भौजी: संभाल के रखूंगी!
मैं: क्यों?
भौजी: क्योंकि इसमें आपकी खुशबु बसी है! जब भी मन करेगा आपसे मिलने का...तो इस तौलिये को खुद से लपेट लुंगी ...और सोचूंगी की आप मुझे गले लगाय हो!
मैं: यार... (मैं उनको कहना चाहता था की मैं हमेशा के लिए नहीं जा रहा, मैं वापस आऊँगा...एक वादे के लिए...एक वादा तोड़ के....!!!)
खेर मैं नहीं चाहता था की वो फिर से भावुक हो जाएं, तो मैंने पुनः बात बदल गई;
मैं: अच्छा ये बताओ की आपने मुझसे कैसे पूछा की मुझे खाना बनाना पसंद है या नहीं?
भौजी: मैं ये तो जानती हूँ की शहर में आप माँ की मद्द्द् करते रहते हो..खाना बनाने में बस ये जानना था की आप को वाकई में पसंद है या सिर्फ फ़र्ज़ निभाते हो! और मैंने सब से कह दिया की आजका खाना आप और मैं मिलके बनाएंगे!
मैं: Wow! That’s Wonderful! I love expermintal cooking! तो आपने सोच रखा है की क्या बनाना है? या मैं बताऊँ?
भौजी: आप बताओ?
मैं: म्म्म्म... घर पे फूल गोभी है?
भौजी: हाँ है
मैं: दही है?
भौजी: हाँ है
मैं: ठीक है.... दाल आप बनाना बस तरीका मैं बताऊंगा और ये गोभी वाली सब्जी मैं बनाऊँगा|
भौजी: मतलब आज मुझे आपसे कुछ सीखने को मिलेगा!
मैं: अगर अच्छे शागिर्द की तरह सीखोगे तो ...वरना अगर बदमाशी की...तो.... (मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा|)
मैं कपडे पहन के भर आ गया और नेहा को ढूंढने लगा;
भौजी: वो तो गई.... पिताजी (मेरे) उसे छोड़ ने गए हैं|
इतने में वहां बड़की अम्मा और माँ आ गए;
बड़की अम्मा: तो प्रधान रसोइया जी....क्या बनाने वाले हैं आप?
मैं: अम्मा...वो तो मैं आपको नहीं बताऊंगा..और हाँ...जब तक खाना बन नहीं जाता..तब तक आप लोग वहां नहीं आएंगे..कोई भी नहीं! जो चाहिए वो मांग लेना...
माँ: ठीक है...अब जल्दी जा...
मित्रों आगे जो मैं recipe लिखने जा रहा हूँ..ये मेरी खुद की है| मैंने इस सब्जी को बनाया भी है और चखा भी है...और मैं कह सकता हूँ की ये टेस्टी भी है| अब यदि आप लोगों को मैं पर्सनली जानता तो घर पे बुला के खिलता भी|
मैंने भौजी से उर्द दाल ,चना दाल ,लाल मसूर, मूँग दाल और अरहर दाल धो के लाने को कहा क्योंकि आज मैं उनसे पंचरंगी दाल बनवाने वाला था| और इधर मैं गोभी के फूल अलग कर के उन्हें धो लाया और उन्हें मखमली कपडे पे सूखने को छोड़ दिया| तब तक मैं और भौजी प्याज, टमाटर, अदरक, लस्सन और हरी मिर्च काटने लगे| अब शहर में तो मैं चौप्पिंग बोर्ड का इस्तेमाल करता था और वहां चौप्पिंग बोर्ड था नहीं...तो मुझे नौसिखिये की तरह काटना पड़ा| अब इधर भौजी टमाटर काट रहीं थीं और मेरी और देख के मुझे जीभ चिढ़ा रहीं थीं| मेरी नजर उनके चेहरे से झलक रही मासूमियत और प्यार से हट ही नहीं रही थी और इसी वजह से मेरी ऊँगली कट गई| जब भौजी ने देखा की मेरी ऊँगली कट गई है तो उन्होंने फ़ौरन मेरी ऊँगली अपने मुंह में ले के चूसने लॉगिन और मैं बस उन्हें देखे जा रहा था|
भौजी: ऐसे भी क्या खो गए थे की ये भी ध्यान नही रहा की ऊँगली कट गई है?
मैं: आपके चेहरे ...से नजर ही नहीं हट रही| तो नजरें हम क्या देखें?
भौजी: क्या बात है....बड़ा शायराना मूड है?
मैं: भई खाना बनाना एक art है...कला है... जैसा मूड होगा वैसा खाना बनेगा ....
भौजी अपनी साडी का पल्लू फाड़ के मेरी ऊँगली को पट्टी करने वाली थीं, की तभी मैंने उन्हें रोक दिया|
मैं: क्या..कर रहे हो? एक cut ही तो है...उसके लिए अपनी साडी फाड़ रहे हो| घर से एक Band-Aid ले आओ!
भौजी Band-Aid लेने गईं और तब तक मैं अकेला बैठा कुछ सोचने लगा| भौजी Band-Aid लेके आईं और मेरी ऊँगली पे लगा दी| अब मैंने उनसे दही माँगा...और उसमें कुछ मसाले डाले जैसे धनिया पाउडर, जीरा पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, थड़ा सा गर्म मसाला और दाल चीनी पाउडर| अब मैं इन मसालों को दही में mix तो कर नहीं सकता था तो मैंने भौजी से कहा; "जान...प्लीज इन सब को Mix कर दो, उसके बाद इसमें गोबी के फूल डाल के Merinate होने को छोड़ देना|" भौजी ने ठीक वैसा ही किया पर वो थोड़ा हैरान थीं..क्योंकि इस तरह से खाना पकाने के स्टाइल में वो नहीं जानती थी| अब बात आई दाल की..तो मैंने उन्हें बस इतना कहा; "आप जैसे दाल बनाते हो उसी तरह पहले इन पाँचों दालों को उबाल लो...फिर प्याज-टमाटर का छौंका लगाने से पहले मुझे बताना|" भौजी ने सर हाँ मिलाया और मुस्कुरा के अपना काम करने लगीं|
मैं: अच्छा ...अब आप मुहे एक लकड़ी का साफ़ टुकड़ा दो|
भौजी: किस लिया?
मैं: आप एक अच्छे शागिर्द की तरह गुरु की बात मानो...और सवाल मत पूछो|
भौजी ने एक लकड़ी का टुकड़ा, अच्छे से धो के ला के दिया| मैंने उस टुकड़े को अपना चोपपिणः बोर्ड बनाया और गोभी की सब्जी के लिए प्याज के लच्छे काटने लगा|
भौजी: जानू मुझे कह देते...मैं काट देती!
मैं: हाँ...पर उसमें फिर मेरा फ्लेवर नहीं आता|
भौजी: O
गोभी की सब्जी की तैयारी पूरी हो चुकी थी...अब बारी थी पंचरंगी दाल की! तो भौजी ने उसके लिए जर्रूरत का सारा सामान काट-पीट के तैयार कर लिया था| अब मैंने भौजी से कहा की आप बाहर आओ और मुझे चूल्हे के पास बैठने दो| भौजी बाहर आ गईं और मैं प्रधान रसोइये की जगह लेके बैठ गया| बारी थी गोभी की सब्जी तैयार करने की, तो सबसे पहले मैंने एक कढ़ाई चढ़ाई...उसमें तेल डाला... फिर साबुत जीरा दाल के उसे चटपट होने तक भुना...फिर प्याज के लच्छे डाले... हरी मिर्च फाड़ के डाली... और अदरक के पतले-पतले लम्बे टुकड़े डाले| जब इस मिश्रण का रंग बदला तब मैंने उसमें कटे हुए टमाटर डाले| नमक दाल के मिश्रण को पकने के लिए छोड़ दिया| एक मिनट बाद जब मिश्रण पाक गया तब मैंने उसमें गोभी जो Marinate होने को राखी थी उसे डाला| थोड़ा चलाने के बाद..उसमें गर्म मसाला... और जीरा पाउडर डाला| अब चूँकि वहाँ सिरका तो था नहीं तो मैंने उसमें थोड़ा सा चाट मसाला डाला और सब्जी पकने के बाद, ऊपर से धनिये से गार्निश किया और सब्जी को आग पर से उतार लिया| सब्जी की महक सूंघते हुए भौजी बोलीं;
भौजी: WOW जानू! इसकी खुशबु इतनी अच्छी है तो...Taste कितना अच्छा होगा?
मैं: यार..आप अभी कुछ मत कहो...जब तक सब इसकी बढ़ाई नहीं करते तब तक मैं कुछ नहीं मानूँगा!
भौजी: वैसे ...मेरे पास आपकी एक और निशानी है|
मैं: वो क्या?
भौजी: अभी दिखाती हूँ! (भौजी उठीं और अपने कमरे में कुछ लेने के लिए गईं|)
मैं: क्या है..दिखाओ भी?
भौजी ने वो चीज अपनी कमर के पीछे छुपा रखी थी| मेरे पूछने पे उन्होंने दिखाया, वो मेरी तस्वीर थी!
मैं: ये कब आई आपके पास?
भौजी: आपके घर से चुराई है!
मैं: हम्म्म.... बताओ ना किसने दी?
भौजी: माँ ने...अभी कुछ दिन पहले...वो कपडे समेत रहीं थीं..मेरे जिद्द करने पे उन्होंने दे दी!
मैं कुछ बोला नहीं बस होल से मुस्कुरा दिया!
अब बारी थी पंचरंगी दाल की! तो सबसे पहले कढ़ाई गर्म की, घी डाला... फिर जीरा...फिर हरी मिर्च काट के...फिर अदरक-लस्सन का पेस्ट ...फिर प्याज...इन सब के भुनने के बाद इसमें टमाटर मिलाये...फिर नमक...फिर मसाले मिलाये... धनिया पाउडर..लाल मिर्च पाउडर, हल्दी पाउडर ...मिश्रण को एक दो मिनट चलाने के बाद, उबली हुई दाल मिला दी| कुछ देर पकने के बाद ...ऊपर से गर्म मसाला और थोड़ा सा जीरा पाउडर मिलाया| २-३ मिनट बाद दाल तैयार हो गई| अब बारी थी आँटा गुंडने की...अब ये काम ऐसा था जो मैं ना तो कभी करना चाहता था ...न मुझे अच्छा लगता था!
भौजी: लीजिये..गुंदिये आँटा?
मैं: क्या?
इतने माँ वहाँ आ गईं..व रसोई में नहीं आईं बस बहार से ही हमारी बात सुनते हुए बोलीं;
माँ: अरे बहु..इसे नहीं आता गूंदना| एक बार गुंडा था तो अपने सारे हाथ आते में सान लिए थे!
भौजी: कोई बात नहीं माँ...मैं सीखा दूँगी|
मैं: पर कैसे...ऊँगली कट गई है ना? (मैंने अपनी ऊँगली दिखाते हुए बहाना मार)
भौजी: हम्म्म..तो आप मुझे देखो और सीखो|
भौजी आँटा गूंदने लगीं ...पर एरा ध्यान तो उनके चेहरे से हट ही नहीं रहा था| मन कर रहा था की बीएस घंटों इसी तरह बैठा उन्हें निहारता रहूँ! फिर मैंने ही बात शुरू की;
मैं: यार ये सही है... मेरी सब निशानियाँ आपके पास हैं| मेरी फोटो... मेरे बदन की महक...और तो और ये भी (मैंने उनकी कोख की ओर इशारा करते हुए कहा और भौजी मेरी बात समझ गईं और मुस्कुराने लगीं|) पर मेरे पास आपकी एक भी निशानी नहीं...ऐसा क्यों?
भौजी: अब मैं क्या करूँ...ना तो मेरे पास अपनी कोई तस्वीर है जो मैं आपको दे दूँ...और महक की बात तो आप भूल जाओ...आप सो रहे थे तो आपने अपना मौका गँवा दिया|
गर्मी के कारन भौजी आँटा गूंदते-गूंदते पसीने से तरबतर हो गईं| उनके मुख पे पसीना आने लगा और इससे पीला वो पोंछ पातीं मैंने अपनी जेब से रुमाल निकला और उनका पसीना पोंछा;
भौजी: Thank You
मैं: NO .....THANK YOU !
भौजी: पर आपने मुझे thank you क्यों कहा? पसीना तो आपने पोछा मेरा!
मैं: क्योंकि अब मैं इस रुमाल को संभाल के रखूँगा...कभी नहीं धोऊंगा....इसमें आपकी खुशबु है! (ऐसा कहते हुए मैंने रुमाल को सुंघा|)
भौजी मुस्कुराने लगीं और अब उनका आँटा गूंदने का काम भी हो चूका था| मैंने घडी में देखा तो अभी ग्यारह बजे थे...और नेहा की स्कूल की छुट्टी बराह बजे होती थी|
मैंने जानबूझ के जूठ बोला;
मैं: अरे .... नेहा के स्कूल की छुट्टी होने वाली है|
भौजी: तो आप ले आओ!
मैं: चलो दोनों साथ चलते हैं उसे लेने?
भौजी: ठीक है...मैं हाथ धो के आई|
फिर हम दोनों चल दिए नेहा को लेने| स्कूल पहुँच के मैंने उनसे कहा;
मैं: अभी एक घंटा बाकी है!
भौजी: क्या?.... मतलब आपने ....आप बहुत शरारती हो! अब एक घंटा हम क्या करें?
मैं: देखो...वहाँ एक बाग़ है...वहीँ चलके बैठते हैं| (वो बाग़ करीब पाँच मिनट की दूरी पे था)
हम बाग़ में पहुंचे...वहाँ बहुत से झुरमुट थे... घांस थी ...और बीचों बीच एक बरगद का पेड़ था| हम उसी बरगद के पेड़ के नीचे खड़े थे| बिना कुछ कहे ..हम बस एक दूसरे को देख रहे थे... मैंने आगे बढ़ कर उनका हाथ थामा और उन्हें धीरे से अपनी ओर खींचा| भौजी आ के मेरी छाती से लग गईं| मैंने आस-पास देखा..की कहीं कोई हमें देख तो नहीं रहा... और सुनिश्चित करने पे उनके होठों के पास अपने होंठ लाया ओर उन्हें Kiss करने लगा| पर भौजी ने मेरे होठों पे अपनी ऊँगली रख दी ओर बोलीं;
भौजी: प्लीज बुरा मत मानना.... This is not how I want to remember this day!
मैं: okay ... no problem !!!
भौजी: आपको बुरा लगा हो तो Sorry !
मैंने ना में सर हिलाया ओर मुस्कुरा दिया| हालाँकि मैं बस उन्हें Kiss करना चाहता था| पर मैंने ना तो आजतक उनके साथ कभी जबरदस्ती की और ना ही करना चाहता था| और ना ही मैंने इस बात को दिल से लगाया! करीभ आधा घंटे तक हम वहीँ खड़े रहे| फिर मैंने भौजी से कहा;
मैं: चलो चलते हैं|
भौजी: पर अभी तो आधा घंटा बाकी है|
मैं: तो क्या हुआ...मैं हेडमास्टर साहब से रिक्वेस्ट कर लूँगा|
पर भौजी मैंने को तैयार नहीं थीं, उनका कहना था की मैं किसी से रिक्वेस्ट क्यों करूँ? पर उनकी ख़ुशी के लिए कुछ भी कर सकता था| मैं उन्हें जबरदस्ती स्कूल तक ले आया और उनको साथ ले के हेडमास्टर साहब के पास पहुँच गया| उनके कमरे में एक लड़का बैठा था...जो उम्र में भौजी के बराबर का था| भौजी ने हालाँकि घूँघट काढ़ा हुआ था पर उस लड़के को देखते ही उन्होंने मेरा हाथ जोर से दबा दिया| मैं समझ गया की कुछ तो बात है!
खेर हमें आता देख वो लड़का खुद ही बहार निकल गया;
हेडमास्टर साहब: अरे मानु ...आओ-आओ बैठो!
मैं: जी शुक्रिया हेडमास्टर शब..दरअसल में आपसे एक दरख्वास्त करने आया था| आशा करता हूँ आप बुरा नहीं मानेंगे|
हेडमास्टर साहब: हाँ..हाँ बोलिए!
मैं: सर दरअसल कल मैं दिल्ली वापस जा रहा हूँ| नेहा मुझसे बहुत प्यार करती है...और मैं भी उसे बहुत प्यार करता हूँ| मेरे पास समय बहुत कम है..तो मैं चाहता हूँ की जितना भी समय है मैं उसके साथ गुजारूं| मेरी आपसे गुजारिश है की क्या मैं उसे अभी ले जा सकता हूँ? जानता हूँ की बस आधा घंटा ही है पर...प्लीज!
हेडमास्टर साहब: देखिये..अगर आपकी जगह कोई और होता तो मं मन कर देता पर चूँकि मैं आपको पर्सनल लेवल पे जानता हूँ तो आप लेजाइये... वैसे अब कब आना होगा आपका?
मैं: जी ...जल्द ही!
हेडमास्टर साहब: oh that's good !
मैं: सर जी... ये लड़का जो अभी यहाँ .... (मेरी बात पूरी होने से पहले ही उन्होंने जवाब दे दिया)
हेडमास्टर साहब: जी ये मेरा बेटा है, शहर से आया था...समय नहीं मिला की आपके घर आके इसे मिलवा सकूँ....अभी तो ये दुबई जा रहा है|
मैं: oh ... चलिए कोई बात नहीं...मैं चलता हूँ और एक बार और आपका बहुत-बहुत शुक्रिया|
चूँकि नेहा अभी छोटी क्लास में थी तो हेडमास्टर साहब ने जाने दिया...अगर बड़ी क्लास में होती तो मैं स्वयं ही कुछ नहीं कहता| पर जब हम बहार आये तो वो लड़का हमें चबूतरे के पास खड़ा सिगरट पीता हुआ नजर आया| मैंने भौजी से मेरे हाथ दबाने के बारे में पूछा;
मैं: क्या हुआ था? आप जानते हो उस लड़के को? (मैंने उसलड़के की ओर इशारा करते हुए उनसे पूछा)
भौजी: वो..मेरे साथ स्कूल में पढता था|
मैं: तो बात कर लो उससे....?
भौजी: पर ये पुरानी बात है... वैसे भी स्कूल में कभी उससे बात नहीं हुई| छोडो उसे...चलो नेहा को ले कर घर चलते हैं|
मैं: सच में उससे बात नहीं करनी?
भौजी: करनी तो है...पर ....आप साथ हो इसलिए!!!
अब ये सुन के मेरी बुरी तरह किलस गई!
मैं: तो आप बात करो उससे ...मैं नेहा को ले आता हूँ|
भौजी: वैसे ... He had a crush on me!!!
मैं: oh और आप...मतलब did you had a crush on him too?
भौजी: हम्म्म... That’s something I don’t wanna talk about!
साफ़ था की भौजी मेरी जलन समझ चुकीं थीं ....और मैं सोच रहा था की कल तो उन्होंने बताया था की वो मेरे अलावा किसी और से प्यार नहीं करतीं? अब तो वो आग में घी डाल-डाल के मुझे जला रहीं थीं|
मैंने उस समय तो कुछ नहीं कहा बस वो जलन बर्दाश्त कर के रह गया और नेहा की क्लास के द्वार पे खड़ा हो के अध्यापक महोदय से बात की और उन्होंने नेहा को भेज दिया| भौजी हाथ पसारे खड़ीं थीं की नेहा उनके गले लगेगी...पर वो तो आके मुझसे लिपट गई| अब दोनों माँ-बेटी एक दूसरे को जीभ चिढ़ाते रहे और मैं उस लड़के से जलन करने लगा|हम घर आ गए और रास्ते में मैंने भौजी से कोई बात नहीं की..और वो भी समझ चुकीं थी की मैं अंदर ही अंदर जल रहा हूँ| घर आके भौजी रोटी बनाने लगीं, अब चूँकि मुझे ये काम आता नहीं था तो मैं रसोई के पास ही बैठा था| जब भी मैंने रोटी बनाने की कोसिह की तो वो कभी रूस तो कभी अमरीका का नक्शा ही बानी है इसलिए मैं इस काम से दूर ही रहता हूँ!
भौजी: तो...आपने पूछा नहीं उस लड़के का नाम क्या है?
मैं: तो आप ही बता दो!
भौजी: रमेश
मैं: तो आपको उसका नाम भी याद है?
भौजी: अजी नाम क्या...हमें तो उसका जन्मदिन भी याद है!
मैं: वैसे आपको मेरा जन्मदिन याद है?
भौजी: अम्म्म ...Sorry भूल गई!
मैं: हाँ भई हमें कौन याद रखता है!
भौजी: जलन हो रही है?
मैं: मैं क्यों जलूँगा?
भौजी: अच्छा बाबा...चलो अब सबको बुला लो..खाना खाने के लिए|
मैं: जाता हूँ|
मैं जा के सब को बुला लाया और सब के सब आके छप्पर के नीचे बैठ गए| पिताजी, बड़के दादा, चन्दर भैया और अजय भैया| माँ और बड़की अम्मा बैठीं पँखा कर रही थीं और मैं सब को खाना परोस के दे रहा था|
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07-16-2017, 10:20 AM,
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RE: Hot Sex stories एक अनोखा बंधन
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सबने खाने को प्रणाम किया और उनके कमेंट्स कुछ इस तरह थे;
बड़के दादा: मुन्ना..खुशबु तो बहुत अच्छी आ रही है!
पिताजी: लाड-साहब ये तो बातो की बनाया क्या है?
बड़की अम्मा: जो भी है...पर खुशबु इतनी अच्छी है तो स्वाद लाजवाब ही होगा|
मैं: जी पंचरंगी दाल और ये मानु स्पेशल गोभी है!
अजय भैया: भई पहले तो मैं ये गोभी चख के देखता हूँ| म्म्म्म...बढ़िया है!
चन्दर भैया: वाकई में खाना बहुत स्वाद है! (मैं हैरान था की इनके मुंह से मेरे लिए तारीफ निकली?)
बड़के दादा: मुन्ना...ये लो (उन्होंने अपनी जेब से सौ रूपए निकाल के दिए)
मैं: जी (मैं पिताजी की तरफ देखने लगा) पर...
पिताजी: रख ले बेटा...भाई साहब खुश हो के दे रहे हैं|
बड़के दादा: अपने बाप की तरफ मत देख..और रख ले...मैं ख़ुशी से दे रहा हूँ| खाना बहुत स्वादिष्ट है...सच में ऐसा खाना खाए हुए अरसा हुआ|
बड़की अम्मा: मुन्ना ये खाना बनाना तुमने अपनी माँ से सीखा?
माँ: कहाँ दीदी...अपने-आप पता नहीं क्या-क्या बनाता रहता है| कभी ये मिला...कभी वो मिला...पता नहीं इसमें इसने क्या-क्या डाला होगा?
मैं: जी गोभी को दही में Merinate किया था|
बड़की अम्मा: वो क्या होता है?
मैंने बड़े प्यार से उन्हें सारा तरीका समझाया और Recipe के इंग्रेडिएंट्स और विधि सुन के तो अम्मा का मुंह खुला का खुला रह गया?
बदकिा अम्मा: अरे मुन्ना...और क्या-क्या बना लेते हो?
मैं: अम्मा ...मुझे Experiment Cooking पसंद है| मुझे ये दाल-रोटी पकाना सही नहीं लगता| कुछ हट के करता हूँ मैं! (और सही भई था...आखिर मेरी पसंद अर्थात भौजी भई तो हट की ही थीं!!!)
अब चूँकि अम्मा को Experiment Cooking का मतलब नहीं पता था तो मैंने उन्हें विस्तार में सब समझाया|
पिताजी: तू भी बैठ जा बेटा और खाना खा ले!
मैं: जी मैं परधान रसोइया हूँ..सब के खाने के बाद ही खाऊँगा!
अजय भैया: अगर हमसे कुछ बच गया तो ना!
उनकी बात सुन के सब ठहाके मारके हँसने लगे| इधर भौजी मेरी तारीफ सुन के बहुत खुश थीं पर इस बातचीत के दौरान कुछ बोलीं नहीं बस रसोई में बैठीं गर्म-गर्म रोटियाँ सेंक रहीं थीं|
जब सब का भोजन हो गया तब उन्होंने एक थाली में हमारे दोनों के लिए भोजन परोसा और मुझे खाने के लिए पूछा;
भौजी: चलिए जानू...खाना खाते हैं|
मैं: मेरा मन नहीं है| (भौजी जानती थीं की मेरी नारजगी का कारन वही लड़का है|)
भौजी: क्यों नहीं खाना? नाराज हो मुझसे?
मैं: नाराज तो रमेश होगा... की आपने उससे मेरे चक्कर में बात नहीं की| (मैंने सीधा कटाक्ष किया)
भौजी: O .... समझी... अच्छा मेरी बात सुनो?
मैं: नहीं सुन्ना मुझे कुछ...
और मैं उठ के जाने लगा तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ के रोक लिया और मुझे अपनी और घुमाया| और इससे पहले वो कुछ कहतीं मैंने ही कहा;
मैं: Answer me, Did you had a crush on him?
भौजी: No खुश?
पर मैं संतुष्ट नहीं था...
भौजी: अपने बच्चे की कसम! (उन्होंने अपनी कोख पे हाथ रखते हुए कहा|) मेरे मन में सिवाय आपके और किसी का विचार ना कभी आया और ना आएगा| स्कूल के दिनों में मैं इन चीजों से दूर ही रहती थी और वो समय भई ऐसा था की लड़के-लड़कियां इतने Frank नहीं होते थे| वैसे भी मेरा मन पढ़ाई में ज्यादा लगता था| घर से स्कूल और स्कूल से घर...बस यही दुनिया थी मेरी|
अब तो मैं 100% संतुष्ट हो गया था| मैं मुस्कुराया और इस ख़ुशी को जाहिर करने के लिए मैंने उनके चेहरे को अपने दोनों हाथों से थाम लिया और उन्हें Kiss करने ही वाला था की मेरी नजर उनके चेहरे पे पड़ी...उन्हें देखते ही याद आया की वो ये सब नहीं चाहतीं| मैंने उनके चेहरे को छोड़ दिया और उनसे नजरें चुराई और इधर-उधर देखने लगा|
मैं: Sorry ! मैं...वो... भूल गया था!
भौजी: No .....I'm Sorry !
मतलब वो भी मन ही मन खुद को कोस रहीं थीं की आखिर क्यों वो मुझे बार-बार Kiss करने से रोक रहीं हैं! खेर हमने खाना खाने के लिए आसन ग्रहण किया और नेहा आके मेरी गोद में बैठ गई|
आज सबसे पहला कौर भौजी ने मुझे खिलाया और फिर जब खुद खाने लगीं तो पहला कौर खाते ही बोलीं;
भौजी: Delicious !!! इसके आगे तो Resturant का खाना फीका है| अगर पहले पता होता तो....मैं आपसे ही खाना बनवाती!
मैं: Thanks पर मैं शौक केलिए कुकिंग करता हूँ...जब भी मैं उदास होता हूँ या बहुत ज्यादा प्रसन्न होता हूँ तो कुकिंग करता हूँ|
भौजी: तो आज आप किस मूड में थे?
मैं: खुश भी और उदास भी..... खुश इसलिए की आज आप मुस्कुरा रहेहो! और उदास इसलिए की कल कल से मैं आपको मुस्कुराता हुआ नहीं देख पाउँगा!
भौजी चुप हो गईं और मुझे भी लगने लगा की यार तुझे ये कहने की क्या जर्रूरत थी| फिर बात को संभालते हुए मैंने कहा;
मैं: आपने दाल तो टेस्ट ही नहीं की?
भौजी: ओह! मैं तो भूल ही गई थी!
फिर जब भौजी ने दाल टास्ते की तो बोलीं;
भौजी: WOW !!! Seriously ! Amazing .... घी का फ्लेवर और महक बिलकुल ....उम्म्म Awesome ! अब तो आप मुझे complex दे रहे हो! अब तो घर वालों को मेरे हाथ का खाना अच्छा नहीं लगेगा... ही..ही..ही..
मैं: यार टांग मत खींचो...
भौजी: अरे जानू अगर मैं जूठ बोल रही हूँ तो आप ही बताओ की आपके बड़के दादा ने आपको खुश हो के पैसे क्यों दिए?
मैं: अच्छा याद दिलाया आपने| ये आप रखो... (मैंने पैसे उनको दे दिए)
भौजी: पर किस लिए?
मैं: आप अपने पास रखो...मेरी निशानी के तौर पे!
भौजी: पर ये तो आपको ....
मैं: आईडिया आपका था की खाना मैं बनाऊँ! और प्लीज अब बहंस मत करो|
भौजी: ठीक है...आप कहाँ मानते हो मेरी!
मैंने वो पैसे भौजी की किसी और मकसद से दिए थे| दरअसल मेरी ख्वाइश थी की मैं अगर पैसे कामों तो सबसे पहले उन्हें दूँ...मतलब मेरी कमाई के पैसे! शायद उस दिन मुझे आगा की मुझे ये मौका न मिले...इसलिए मैंने उन्हें वो पैसे दिए... हालाँकि वो मेरी कमाई नहीं थी पर फिर भी....
शायद भौजी भी ये बात समझ चुकीं थीं क्योंकि आगे चलके हमारी इस बारे में बात हुई थी|
खाना खाने के बाद भौजी ने बर्तन रख दिए और हम तीनों हाथ-मुंह धो के भौजी के घर में वापस बैठ गए| मुझे बोला गया था की मैं, नेहा और भौजी तीनों छप्पर के पास नहीं भटकेंगे...कारन ये की आज सभी बड़े वहां बैठ के रसिका भाभी के मुद्दे पे बात कर रहे थे| नेहा सो चुकी थी और हम भी इसी बात पे चर्चा कर रहे थे;
भौजी: आप क्या कहते हो?
मैं: मेरे कहने से क्या होता है? करेंगे तो सब वही जो उन्हें ठीक लगेगा|
भौजी: पर फिर भी आपका opinion क्या है?
मैं: मेरा ये कहना है की वो जो भी निर्णय लें उससे पहले वो मेरी तीन बातों के बारे में सोच लें;
१. मुझे नहीं पता की रसिका के माँ-बाप किस तरह के लोग हैं...क्या उन्हें पता भी था की उनकी बेटी पेट से है? अगर था और ये जानते हुए भी उन्होंने जान-बुझ के शादी की तो...ऐसे में अगर Divorce की नौबत आती है तो वो लोग हमें परेशान करने से बाज नहीं आएंगे?
२. इस सारे फसाद में बिचारे वरुण की कोई गलती नहीं है| वो तो मासूम है! उसे थोड़े ही पता है की उसकी माँ कैसी है? तो घर के बड़े कोई भी निर्णय लें उसका बुरा असर वरुण पे ना पड़े|
३. तीसरी बात थोड़ी अजीब है..और मैं उस बात पे यकीन नहीं कर सकता पर अनदेखा भी नहीं कर सकता| वो ये की उसदिन जब अजय भैया और रसिका में झगड़ा हुआ था और मैं बीच में पद गया था तब बातों-बातों में रसिका ने कहा की अजय भैया उसे शारीरिक रूप से खुश नहीं कर पाते| या तो उसके अंदर की आग इतनी बड़ी है की कोई भी उसे शांत...
(आगे की बात मैंने पूरी नहीं की क्योंकि उसे कहने मुझे भी शर्म आ रही थी|)
भौजी: हम्म्म.... उस जैसी ..... (भौजी ने उसके लिए अपशब्द कहने से खुद को रोका) औरत का विश्वास कोई कैसे करे? रही बात उसके घरवालों की, तो मैं भी उनके बारे में कुछ नहीं जानती| शादी के बाद ये बात सामने आई की वो इतनी जल्दी घरभवति कैसे हो गई, तो घरवालों ने उसके घर वालों को बुलाया था और उन्हें बहुत बुरी तरह जलील किया था| तब से ना वो लोग यहाँ आते हैं और ना ही कोई उनके घर जाता है| पैसे तौर पे देखा जाए तो वो काफी अमीर हैं...मतलब काफी जमीन है उनके पास| सुनने में आया था के वरुण के नाना ने अपनी सारी जमीन-जायदाद वरुण के नाम कर दी है| खेर उसेन शादी से पहले जो भी किया मुझे उससे कोई सरोकार नहीं, मुझे तो गुस्सा इस बात का है जो उसने मेरी गैरहाजरी में किया| अगर उसने आप साथ किया वो किया होता...तो मैं उसे जान से मार डालती!
मैं: Hey ! शांत हो जाओ! कुछ नहीं हुआ ऐसा...और अपना वादा भूलना मत...मेरे जाने के बाद एक दिन भी आप यहाँ नहीं रुकोगे! उस उलटी खोपड़ी की औरत को मैं आपके आस-पास भी नहीं चाहता|
भौजी: मैंने आपको Promise किया है..उसे कैसे तोड़ सकती हूँ!
मैं: अच्छा इससे पहले मैं भूल जाऊँ...मुझे आप अपने घर का नंबर दे दो| ताकि मैं पहुँचते ही आपको फ़ोन कर सकूँ! और आप मेरा नंबर भी लिख लो...पर ये नम्बर पिताजी के पास होता है| तो आप मुझे या तो सुबह छ बजे तक या फिर रात में सात बजे के बजे बाद कभी फ़ोन कर लेना|
भौजी ने मुझे अपना नंबर दे दिया और मेरा नंबर भी लिख लिया|
करीब आधा घंटे बाद मुझे पिताजी ने बुलाया और भौजी भी मेरे साथ आईं और मेरे साथ खड़ी हो गईं;
पिताजी: बेटा...तुम हमे ये बातें पहले क्यों नहीं बताई? तुम्हें पता है की मुझे कितना दुःख हुआ जब भाभी (बड़की अम्मा) ने मुझे सारी बात बताई| मुझे बहुत ठेस पहुंची की मैंने अपने बेगुनाह बच्चा पे हाथ उठाया|
पिताजी मुझे गले लगाने को हाथ खोल दिए और मैं भी उनके गले लग गया|
मैं: पिताजी...मैं नहीं जानता था की मैं आपसे ये बात कैसे कहूँ? मुझे बहुत शर्म आ रही थी| इसलिए मैंने ये बात सिर्फ इन्हें (भौजी की तरफ इशारा करते हुए) बताई| इन्होने भी कहा की मैं ये बात सब को बता दूँ...पर मेरी हिम्मत नहीं पड़ी!
पिताजी: बेटा..तुम बड़े हो गए...और कहते हैं की जब बेटे का जूता बाप के पाँव आने लगे तो वो बेटा नहीं रहता.. दोस्त बन जाता है| वादा करो आगे की तुम मुझसे कोई बात नहीं छुपाओगे?
मैं: जी!
मैंने ‘जी’ कहा था...वादा नहीं किया था!!! वरना मुझे उन्हें अपने और भौजी के बारे में सब बताना पड़ता! खेर शाम हुई..सब ने चाय पी, किसी ने भी फैसले के बारे में नहीं बताया और ना ही मुझे उसकी कोई पड़ी थी| मैं तो बस ये मना रहा था की कैसे भी कल का दिन कभी ना आये! रात का भोजन मुझे बने के लिए नहीं बोला गया था तो मैं नेहा के साथ बैठ के खेल रहा था... और इधर रसिका से सब ने किनारा कर लिया था..और मुझे थोड़ा बुरा भी लग रहा था... ! क्यों ये मैं नहीं जानता पर मेरे मन में उसके प्रति सिर्फ सहनुभूति थी ....और कुछ नहीं| ये सब नहीं होता अगर उसने ये जानने के बाद के मैं उसके साथ कुछ नहीं करना चाहता वो मुझसे दूर रहती और मुझसे जबरदस्ती नहीं करती| रात का भोजन मैंने सब के साथ किया...क्योंकि कल तो जाना था...पर मैंने पूरा भोजन नहीं किया...ताकि मैं थोड़ा सा भोजन भौजी के साथ भी कर सकूँ| सभी पुरुष सदस्य उठ के चले गए मैं फिर भी अपनी जगह बैठा रहा;
पिताजी: बेटा सोना नहीं है क्या? या अभी और भूख लगी है?
मैं:जी आप सब के साथ तो भोजन कर लिया पर बड़की अम्मा के साथ भोजन करना तो रह गया ना| इसलिए आप सोइये मैं अम्मा के साथ भी बैठ के थोड़ा खा लेता हूँ...फिर सोजाऊंगा|
पिताजी: बेटा ज्यादा देर जागना मत... सुबह जाना भी है?
पिताजी के जाने के बाद भौजी अपना और मेरा खाना एक ही थाली परोस लाईं और अम्मा और माँ भी हमारे पास आके बैठ गईं|
अम्मा ने मेरी बात सुन ली थी तो वो बोलीं;
अम्मा: बेटा.. ये तुमने सही किया की हमारे साथ भी बैठ के भोजन कर रहे हो| अरे बहु वो दोपहर की गोभी वाली सब्जी बची है? बहुत स्वाद थी!
भौजी: जी अम्मा...ये रही| ( भौजी ने अम्मा को सब्जी परोस दी)
अम्मा: वाह....बेटा...क्या स्वाद बनाई है!
माँ मेरी तारीफ सुन के खुश हो रहीं थी...
मैं: सुन लो माँ...अम्मा आपको पता है माँ को मेरा खाना बनाना बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता|
अम्मा: क्यों छोटी?
माँ: दीदी ...पता नहीं क्या-क्या अगड़म-बगड़म डालता रहता है| हमें आदत है सादा खाना खाने की और ये है की पता नहीं ...शाही पनीर...कढ़ाई पनीर...और पता नहीं क्या-क्या बनाने को कहता है| अब पनीर हो या कोई भी सब्जी हो...बनती तो कढ़ाई में है तो उसे कढ़ाई पनीर कहेंगे!!
माँ की बात सुन हमसब हँस पड़े! अब थी सोने की बारी तो आज गर्मी ज्यादा होने के कारन सभी स्त्रियां बड़े घर के आँगन में सोने वालीं थीं| मेरी और भौजी की चारपाई आस-पास ही थी| पर मुझे नींद नहीं आ रही थी...और इधर भौजी चारपाई पर लेट चूंकिं थीं| नेहा को मैंने पहले ही सुला दिया था| मैं चुप-चाप उठा और छत पे जाके एक कोने पे दिवार का टेक लगा के नीचे बैठ गया| टांगें बिलकुल सीढ़ी पसरी हुईं थीं और हाथ बंधे थे| कुछ देर बाद वहां भौजी आ गईं;
भौजी: जानती थी आप यहीं मिलोगे? क्या हुआ नींद नहीं आ रही?
मैं: नहीं
भौजी: मुझे भी नहीं आ रही|
और भौजी आके मेरी दोनों टांगों के बीच आके बैठ गईं और अपना सर मेरे सीने पे रख दिया| मैंने अपने हाथ उठा के उनको अपनी आगोश में ले लिया| मेरा मुंह ठीक उनकी गर्दन के पास था और मेरी गर्म सांसें उन्हें अपनी गर्दन पे महसूस हो रही थी|
भौजी: आपने मुझे वो पैसे क्यों दिए थे मैं समझ गई.... आप उसे अपनी कमाई समझ के मुझे दे रहे थे ना?
मैं: हाँ
भौजी: I Love You !
मैं: I Love You Too !
भौजी: जानू...मैंने आज सारा दिन आपके साथ सही नहीं किया?
मैं: अरे...यार आपने कोई पाप नहीं किया...कुछ गलत नहीं था... मुझे जरा भी बुरा नहीं लगा| हाँ बस आपने जब जलाने की कोशिश की तब...थोड़ा बुरा लगा था...मतलब मैं जल गया था!
भौजी: मैं सारा दिन आपको अभी के लिए रोक रही थी....
उनकी बात सुन के मेरी आँखें चौड़ी हो गईं? मतलब ये सब उन्होंने प्लान किया था?
भौजी: जितना मन आपका था...उतना ही मेरा भी...पर मैं चाहती थी की बस एक बार...एक आखरी बार हम दिल से प्यार करें ना की वहशियों की तरह सारा दिन एक दूसरे के बदन से लिपटे रहे|
मैं: यार ...मेरे पास शब्द नहीं हैं ...कहने को... आप इतना ...इतना प्यार करते हो मुझसे?
भौजी मेरी तरफ मुड़ीं और मैंने उनके रसभरे होठों को चूम लिया| भौजी मेरा पूरी तरह से साथ दे रहीं थीं और जब हमारे होंठ एक दूसरे से मिले तो लगा जैसे बरसों की प्यास बुझा दी हो किसी ने| मन ये भी जानता था की आज आखरी दिन है...आखरी कुछ घंटे...आखरी कुछ लम्हें....किन्हें हम दोनों एक साथ... बिता पाएंगे!
मैं बड़े प्यार से अपनी जीभ को उनके होठों पे फिराने लगा...फिर उन्होंने भी अपनी जीभ बहार निकली और हम दोनों की जीभ एक दूसरे को प्यार से छेड़ने लगी..पीयर करने लगी| मैंने उनके होठों को बारी-बारी से चूसना शुरू कर दिया और भौजी ने अपना डायन हाथ मेरे बालों में फिरना शूरु कर दिया| दस मिनट तक हम ऐसे ही एक दूसरे के होठों का रसपान करते रहे| फिर हम अलग हुए तो दोनों की आँखों में प्यास थी... चाहा थी...परन्तु हमारे पास जगह नहीं थी| नीचे सब सो रहे थे और ऊपर छत पे कोई बिस्तर था नहीं! तो अब करें तो करें क्या?
मैंने देखा की छत पे अम्मा ने आम सुखाने को रखे थे| वो आम दो छद्रों पर बिछे हुए थे| मैंने एक चादर के आम उठा के दूसरी पे रख दिए और भौजी को अपने पास बुलाया| भौजी को उस चादर पे लिटा के मैं उनकी दोनों टांगों के बीच अ गया और उनके होठों को फिर से चूमने लगा| भौजी ने अपने दोनों हाथों से मेरा चेहरा थाम हुआ था और वो अपनी गार्डन ऊपर उठा-उठा के मुझे चूम रहीं थीं| फिर मैंने स्वयं वो चुम्बन तोडा और नीचे खिसकता हुआ उनकी योनि के ऊपर पहुँच गया| उनकी साडी उठाई और कमर तक उठा दी| मैंने उनकी योनि छटनी शुरू ही की थी की मुझे याद आया की हम 69 की पोजीशन try करते हैं| मैंने भौजी को सब समझाया और वो ख़ुशी-ख़ुशी मान भी गईं| मैं नीचे लेता था और वो मेरे ऊपर| जैसे ही उनके होठों ने मेरे लंड को छुआ मेरे शरीर में करंट दौड़ गया| भौजी ने एक ही बारी में पूरा लंड अंदर भर लिया और उनके मुंह से निकलती गर्म सांसों से सुपाड़े को सुरक लाल कर दिया| इधर मुझे इतनी तेजी से जोश आया की मैंने उनकी योनि को पूरा अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगा| मैंने उँगलियों की सहायता से उनकी योनि के कपालों को खोला और अपनी जीभ अंदर घुसा दी और गर्दन को आगे पीछे करते हुए अपनी जीभ को लंड की तरह उनकी योनि में अंदर-बहार करने लगा| इधर भौजी ने मेरे सुपाड़े पे अपने होंठ रख दिए और जीभ की नोक से सुपाड़े के छेद को कुरेदने लगीं| जोश में आके मैंने कमर को उसकाना शुरू कर दिया| अब मैंने भी उनकी योनि पे अपना प्रहार किया और उनके Clit को अपने मुंह में भर के जीभ की नोक से छेड़ने लगा| भौजी ने अपनी कमर हिलाना शुरू कर दिया क्योंकि वो अब मेरे इस हमले से मचलने लगीं थीं|
भौजी ने अपने दांत मेरे सुपाड़े पे गड़ा दिए और मैं एकदम से चरमोत्कर्ष पे पहुँच गया और उनके मुंह में ही झड़ गया| जब मैं थोड़ा शांत हुआ तो मई भौजी की योनि में अपनी ऊँगली और जीभ दोनों से दुहरा वार किया और भौजी इस वार को सह नहीं पाइन और वो भी स्खलित हो गईं| उनका सारा रस बहता हुआ मेरे मुंह में आ गया और मैं वो नमकीन काम रस पी गया| पाँच मिनट तक हम दोनों ऐसे ही रहे...लंड अब सिकुड़ चूका था...पर मन ....मन अब भी प्यासा था| भौजी मेरे साथ लिपट के लेट गईं...कुछ देर बाद मैंने उनके होठों को फिरसे चूसना शुरू कर दिया| हमदोनों के मुख में एक दूसरे का कामर्स था...और ये उत्तेजना हम दोनों को बहुत उत्तेजित कर रही थी| मैं भौजी के ऊपर आ गया और उनसे ओनका ब्लाउज उतारने का आग्रह किया| भौजी ने अपना ब्लाउज उतार दिया...और स्वयं ही अपनी साडी भी उतार दी| पेटीकोट का नाड़ा मैंने अपने दाँतों से खोल दिया और उसे निकाल के अलग रख दिया| अब मैंने बिना उनके कुछ कहे अपने कपडे स्वयं उतार दिए और हम दोनों अब पूरी तरह नग्न अवस्था में थे और एक दूसरे के जिस्म से लिपटे हुए एक दूसरे के अंगों से खेल रहे थे| जब मैंने भौजी की आँखों में झनका तो मुझे एक तड़प महसूस हुई! भौजी समझ गईं की मैं क्या चाहता हूँ;
भौजी: आप क्यों पूछ रहे हो?
मैंने अपना सिकुड़ा हुआ लंड जो की अब थोड़ा सख्त हो चूका था उसे उनकी योनि के अंदर पिरो दिया! उस समय उन्हें ज्यादा कुछ मसहूस नहीं हुआ..पर जसिए ही लंड को अंदर की गर्मी और तड़प का एहसास हुआ तो वो सख्त होता चला गया| भौजी योनि जो बही स्खलित होने से सिकुड़ चुकी थी उसमें जब लंड के अकड़ने से तनाव पैदा हुआ तो भौजी की मुंह से चीख निकली; "आह" इसके पहले की वो आगे कुछ कहतीं मैंने उनके होठों को अपने होठों से ढक दिया और उनकी चीख मेरे मुंह में दफन हो गई| मैंने नीचे से धीरे-धीरे push करना शुरू कर दिया| लंड पूरा जड़ तक उनकी योनि में समा रहा था और भौजी की योनि मेरे लंड को गपा-गप निगले जा रही थी| मैंने थोड़ा ज्यादा Push किया तो लंड उनकी बच्चेदानी से टकराया| जैसे ही लंड टकराया भौजी एक दम से ऊपर को उचक गईं|
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