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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
रात्रि के तीन बज रहे थे।
आसमान पर उतर आया चाँद थकान से चूर हो गया लगता था और वह आसमान से पलायन करने की तैयारी कर रहा था। उसकी चांदनी फीकी-फीकी लग रही थी।
कमला बाई एक घंटा पहले सोई थी, आज उसके यहां खासी रकम आई थी – यह रकम एक नई लौंडी की नथ उतरवाई की थी, जिसे विक्रमगंज के एक साहूकार ने भेंट किया था। काफी रात गए यह सौदा हो पाया था। इस सौदे में गढ़ी के ठाकुर ने भाग नहीं लिया था। कमला बाई काफी रात गए तक ठाकुर का इंतज़ार करती रही थी।
इस समय वह थकी हारी सो गई थी, और उसे इसकी जरा भी खबर नहीं थी की मैं उसके कमरे में मंडरा रहा हूं। मेरी चमकीली आँखें उसके उफनते यौवन को निहार रही थी, एक वैश्या होते हुए भी न जाने कैसे उसने अपने रूप यौवन को संभाल कर रखा था।
उसकी आयु छब्बीस साल से अधिक नहीं लगती थी।
मैंने कमरा भीतर से बंद कर लिया था और आनन्दित होकर उसके यौवन का रसपान कर रहा था, मुर्दा चांदनी खिड़की के रास्ते झाँक रही थी। मुझे खिड़की पर बेताल के मौजूद होने का आभास हुआ, जो मेरे हुक्म की राह देख रहा था।
अचानक मैंने अपना कार्य शुरू किया।
बेताल ने उसे बिस्तरे से उठाया और धम्म के साथ फर्श पर पटक दिया। एक हलकी चीख के साथ उसकी आंख खुल गई, फिर वह बौखलाकर चारों तरफ देखने लगी।
भागकर उसने रौशनी जलाई।
उस वक़्त मैं उसके बिस्तर पर लेटा था।
उसने आश्चर्य से मुझे देखा और फिर भय से उसके नेत्र फैलते चले गये।
“शोर न मचाना कमला बाई।” मैंने कहा।
उसने चीखना चाहा, तभी वह आश्चर्यजनक ढंग से जमीन छोड़ती चली गई, उसकी चीख गले में ही अटककर रह गई। वह एकदम छत से उलटी लटक गई, उसका पेटीकोट सर की तरफ आ गया और उसके गले से नाना प्रकार की आवाजें निकलने लगी।
मैं जंगली की तरह उसे घूर रहा था।
कुछ क्षण बाद ही वह अचेत हो गई।
दूसरी बार जब उसे होश आया तो उसने अपने को जंगली झाड़ियों से घिरे एक कुन्ज में पाया।
“बोलो... अब क्या इरादा है ?” मैंने पूछा।
वह भयभीत सी मेरे पैरों में गिरकर रोने लगी।
“इससे तेरा काम नहीं बनेगा... तुझे मेरा कहा मानना होगा।”
वह सबकुछ करने के लिए तैयार हो गई।
“किसी को कुछ बताया तो ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा।”
“न...मैं किसी को कुछ नहीं बताऊंगी।” उसकी आँखों में आंसू आ गए।
“तो बता शमशेर तेरे पास कब आता है?”
“वह इस हफ्ते नहीं आया।”
“कब आएगा ?”
“पता नहीं... क्यों नहीं आ रहा है... वह तो दूसरे तीसरे रोज आ जाता था।”
“तुझे उसे जल्दी अपने पास बुलाना होगा...चाहे जो बहाना लड़ा।”
“ठ...ठीक है।”
“मैं हर रात तीन बजे तेरे पास आउंगा... तू मुझे पसंद आ गई है।”
मैं खोखली हंसी हंसा।
“आप जो कहें मुझे सब मंजूर है।”
“ठीक है... अब तो सुबह हो रही है, कल रात आउंगा...और शमशेर के दावतनामे का इंतज़ार कर, समझी।”
“जी...जी।”
“मेरी चेतावनी याद है न ?”
“है...।”
“मुझसे भागने की कोशिश न करना।”
वह चुप रही।
मैंने उसे वापिस अपने कोठे पर लौट जाने का हुक्म दिया।
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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
कमला बाई—तो कर दो ना मुझे जल्दी से नंगी….मैं भी तो पूरी तरह से नंगी होना चाहती हूँ….करो ना मुझे नंगी ..मैं बिल्कुल नंगी होना चाहती हूँ आज…
मैं — पूरी नंगी कर के ही बुर चोदने मे मज़ा आता है
कमला बाई—तुम ठीक कहते हो राजा….अब तुम जब भी यहाँ आना तो मुझे ज़रूर नंगी किया करना अपने हाथो से….फिर खूब चोदा करना अपनी इस रांड़ की बुर को…चाहो तो मुझे अपनी रखैल बना लो….बनाओगे ना अपनी कमला बाई को अपनी रखैल…? बताओ ना, …बनाओगे ना मुझे अपनी रखैल…? बोलो ना…
मैं —हां, कमला बाई आज से बल्कि अभी से ही तुम मेरी रखैल हो…और तुम भी मुझे कभी भी चोदने से, दूध दबाने से या फिर नंगी करने से कभी नही रोकोगि…चाहे मैं कभी भी, कही भी , किसी के भी सामने तुम को नंगी कर के चोदु..तुम मना नही करोगी…
कमला बाई—हां राजा, मैं तुमसे वादा करती हूँ..मैं कभी तुम्हे मना नही करूँगी….चाहे जिसके सामने नंगी कर के मेरी बुर मे लंड घुसेड देना,,,..मैं कोई विरोध नही करूँगी और ना ही रोकूंगी तुम्हे…अब जल्दी से नंगी करो ना मुझे…
कमला बाई की इतनी गरम बाते सुन कर मुझसे अब रुकना बहुत मुश्किल हो गया तो मैने एक एक कर के उसके सारे कपड़े उतार कर उसको पूरी नंगी कर दिया….उसकी झान्ट वाली बुर मेरे सामने आ गयी नंगी हो जाने पर…
मैं —वाउ…मेरी कमला बाईरखैल..नंगी बहुत मस्त लगती है
कमला बाई—मेरे राजा…मुझे मस्त होना है तुझसे चुद चुद के….बोलो ना …करोगे ना अपनी इस रांड़ की चुदाई…?
मैं —हां मेरी जान, ये दीवाना तेरी बुर मे लंड पेल पेल कर तुझे ज़रूर चोदेगा..
कमला बाई—तो फिर लंड घुसेड दो ना जल्दी से अपनी कमला बाई की बुर मे
कमला बाई ने अपने दोनो पैर उपर उठा लिए तो मैं उसकी जाँघो के बीच मे आ गया और उसकी बुर को चाटने लगा…बुर मे मूह लगते ही उसने अपने दोनो पैर फैला दिए जिससे मैं अच्छे से उसकी बर को चाट सकु…
कमला बाई—आआहह….बहुत मज़ा आ रहा है राजा….ऐसे ही..ओह्ह्ह….और चाटो अपनी कमला बाई की बुर को…खूब ज़ोर ज़ोर से चाटो मेरी बुर…साथ मे मेरे दूध भी कस कस के दबाते जाओ….अब बहुत मन कर रहा है खूब ज़ोर ज़ोर से अपने दूध दबवाने का….दबाओ ना बालम मेरे दूध खूब कस कस के…
मैने कमला बाई की बुर चूस्ते हुए उसके दोनो दूध पकड़ कर ज़ोर ज़ोर से बारी बारी से मसल्ने लगा…जिससे फुल चुदासी हो कर कमला बाई की बुर गीली हो गयी…और दूध मसले जाने से लाल पड़ गये.
कमला बाई—आआहह…राज्ज्ज्जा..ऐसे ही दबाते रहो मेरे दूध…मुझे चोद चोद कर अपने बच्चे की माँ बना दो…
मैं —क्या मस्त फूली हुई बुर है मेरी रंडी की..
कमला बाई—आआअहह….ये क्या कर रहे हो राजा….बहुत मज़ा आ रहा है….आआआआहह…और चूसो मेरी बुर को….ऐसे ही
मैं —रानी मैं तुम्हे चोदने के लिए हर दिन आया करूँगा…और तुम मुझसे चुदवा चुदवा के मस्त होती रहना..
कमला बाई—आअहह…और ज़ोर ज़ोर से खिचो मेरी बुर के दाने को…आहह….बहुत मज़ा आ रहा है….हां, मैं हर तरह से मज़ा लेने को तैयार हूँ……तुम मुझे चोद चोद कर मस्त हो जाना और मैं हर हाल मे तुम्हे खुश करती रहूंगी…
मैं उसकी बुर के दाने को लगातार खूब ज़ोर ज़ोर से खिचे जा रहा था….कमला बाई ये मज़ा बर्दास्त नही कर पाई और ज़ोर ज़ोर से झड़ने लगी….उसकी बुर से पानी निकल कर बाहर टपकने लगा….
मैं —देखा जानू आया ना मज़ा
कमला बाई(शरमाते हुए)—धत्त बेशरम…
मैं —तो क्या हुआ..? तुम की दोनो जाँघो के बीच मे ही असली मज़ा है
कमला बाई—अब मैं भी तुम्हारा लंड चुसुन्गि…घुसेड दो अपना लंड मेरे मूह मे..
मैं भी अपने भी कपड़े निकाल कर नंगा हो गया..…..मेरा खड़ा लंड देख कर कमला बाई की आँखो मे चमक आ गयी..वो अपने मूह मे मेरे लंड का सुपाडा भर के चूसने लगी.
मैं —क्या हुआ..? अब पियो ना मेरा लंड..
कमला बाई का सिर पकड़ कर मैं लंड उसके मूह मे डालने लगा…लेकिन वो लंड के सुपाडे से ज़्यादा अंदर नही ले पाई…बहुत कोशिश के बाद भी मादरचोद घुसा ही नही…अब अगर ज़बरदस्ती धक्का मार के घुसेड़ता तो शायद कमला बाई का मूह ही फट जाता…इसलिए जितना गया उतने हिस्से को ही वो चूसने लगी.
पहले तो उसे उबकाई जैसी आई परंतु धीरे धीरे उसे लंड चूसना अच्छा लगने लगा…मैने उसे 69 मुद्रा मे अपने उपर कर लिया और उसकी बुर को चूसने लगा…कुछ देर तक चूसने के बाद वो दुबारा स्खलित हो गयी लेकिन उसने लंड को पीना जारी रखा….तो मैं भी उसकी बुर को चूस्ता रहा….जब वह पुनः गरम हो गयी तो मैने घोड़ी बना दिया और उसके पीछे आ गया.
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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
इस प्रकार मैंने उस वैश्या को अपने अधिकार में कर लिया। मैं रोज रात गए उसके पास पहुँचता, अपनी प्यास बुझाता और खासी रकम निकालकर चला आता। वह खूब पैसे वाली थी।
मैं उस पर आतंक बनकर छाया हुआ था।
एक दिन उसने बताया कि उसने शमशेर सिंह को दावतनामा दे दिया हैऔर उसने स्वीकार कर लिया है। मैं उससे निपटने की तैयारी करने लगा। शमशेर ने दो रोज बाद आने का वचन दिया था और दो रोज बाद आधी रात के समय...
नशे में शमशेर... अपनी गठीली देह को हिलाता कमला बाई के कोठे से बाहर निकला। प्रांगण में एक पुराने ढंग की फिटिन खड़ी थी, कोचवान बहुत समय पहले नजदीक के एक ठेके में गया था और अब वह लौटकर आया तो मेरी लोहे की मूठ वाली लाठी का शिकार बन गया – मैंने चुपचाप उसका बेहोश जिस्म फिटिन के भीतर डाला और वहीं बैठे-बैठे उसके वस्त्र पहन लिए। उसके बाद इत्मीनान से कोचवान की जगह बैठ गया।
प्रांगण में गहरा सन्नाटा छाया हुआ था। कमला बाई उस रात अकेली थी, कोठे में और कोई नहीं था।
कमला बाई का एक मकान और था... उसने आज रात सभी को वहां भेज दिया था और स्वयं तबियत खराब होने का बहाना बना लिया था।
शमशेर के समय का नाजुक दौर तब शुरू हुआ, जब वह लड़खड़ाता हुआ फिटिन में सवार हुआ। वह इतनी पिए हुए था की बैठते ही लंबा हो गया... और बड़बड़ाते हुए मुझे चलने के लिए कहा।
मैंने दो घोड़ों वाली फिटिन गाड़ी को आगे बढाया और कुछ देर में ही तीखी हवा के कारण शमशेर का नशा इतना गहरा हो गया की उसके नेत्र मुंद गये।
फिटिन को मैं उस ढलुवा सड़क पर ले गया जो कस्बे से बाहर जाती थी। उसे इतनी सुध नहीं थी, सुध तब आई जब मैंने उसके सर पर पानी को बाल्टी उड़ेल दी। पर तब तक शमशेर के हाथ-पांव बांध चुका था और उसकी बन्दूक मेरे हाथ में थी।
उसने अपने आपको एक खण्डहर में पडा पाया...
वह कुछ देर तक आंखें फाड़-फाड़ कर मुझे देखता रहा फिर उसने बौखलाकर अपने शरीर को देखा।
“नहीं पहचाना...।” मैंने अपना जबड़ा खोला – “मेरा नाम रोहताश है।”
“र...रोहताश...हरामजादे तेरी यह मजाल।”
मैंने उसके बाल पकडे और नाक पर एक घूंसा जड़ दिया। उसका दांत टूटकर बाहर आ गया और नाक मुँह से खून बहने लगा।
“क...कमीने...जरा मेरे हाथ-पांव तो खोल...।”
“नशा उतर गया क्या...।” मैंने कहा – “तेरी यह ख्वाहिश भी पूरी किये देता हूं। मैं बेहोश और मजबूर आदमी पर वार नहीं करता... आज गढ़ी का पहला बड़ा शिकार तू मेरे हाथ आया...मुझे याद आ रहा है.... उस रात तू ही मशाल लिए मेरे मकान को जलाने को आया था... उस रात तू भाग गया... परन्तु अब गढ़ी वाले जान बचा सकते हों तो बचा लें।”
मैंने इत्मीनान के साथ उसके हाथ-पांव खोल दिए।
“तुझे अपनी बहादुरी दिखाने का मौक़ा दे रहा हूँ....भागना चाहे तो भाग ले... और मुझ पर वार करना चाहे तो खुली छूट है।“
उसने आव देखा न ताव देखा और मुझ पर छलांग लगा दी, पर मुझ तक पहुँचने से पहले ही वह बीच में इस प्रकार गिरा जैसे ठोकर खाकर गिरा हो।
मैं हंसता हुआ पत्थर पर बैठ गया।
वह दूसरी बार हमलावर हुआ – इस बार अगिया बेताल ने उसे जोरदार पटकी दी। वह चीख पड़ा, थोड़ी देर बाद वह भयभीत हो गया, शायद वह मेरी बैतालिक शक्ति से परिचित हो गया।
उसने भागना चाहा परन्तु उसका यह इरादा भी पूरा नहीं हुआ। उसके बाद वह जमीन पर पड़ा लम्बी-लम्बी सांसे लेने लगा।
“अब तो तुझे फिर से बाँध दूँ।” मैंने कहा – “क्योंकि आज मैं तुझे उसी तरह जिन्दा जलाना चाहता हूँ – जैसे तूने और तेरे आदमियों ने मुझे जिन्दा जलाने का प्रयास किया था.... आग में जलने से क्या मजा आता है यह तो तुझे मालूम होना ही चाहिये...उसके बाद तेरा भुना हुआ मांस खा लूँगा और तेरी हड्डियाँ ठाकुर को भेज दूंगा...।”
“न...नहीं.......म....मुझे मत मारो....।” वह गिड़गिड़ाया।
“बड़ा डरपोक है रे तू...।”
“म...मुझे माफ़ कर दो...।”
“अच्छा – तो मेरा कहा मानेगा...।”
“हाँ – तुम जो कहोगे, मैं करने के लिए तैयार हूँ।”
“तो बेटे – यह बता ठाकुर की गढ़ी में भैरव ने जो हंडिया गाड़ रखी है... वह कहां-कहां गड़ी है ?”
वह चुप हो गया।
“नहीं बोलेगा – बेताल इसे ज़िंदा जला दो।”
आग का एक गोला शमशेर के पास प्रकट हुआ और उसे अपनी जिन्दगी चिता बनती नजर आई।
ब...बताता हूं...।” वह फटे-फटे स्वर में बोला।
उसके बाद वह बताने लगा।
आग का गोला अब भी उसके समीप थिरक रहा था।
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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
“गेट के दायीं तरफ एक नीम का पेड़ है उससे पांच कदम दूर गुलाब की झाड़ी के पास सफ़ेद पत्थर है... एक हंडिया उसके नीचे है... दूसरी पश्चिम में नौकरों के क्वार्टरों के पीछे ठीक दीवार को छूती हुई।”
“ठीक-ठीक निशान बताते चलो... और झूठ निकला तो अन्जाम जानते ही हो...।”
वह बताता रहा और मैं गौर से नोट करता रहा। थोड़ी देर बाद मैं उसके कोचवान को घसीट कर वहां लाया। कोचवान को होश में लाया गया और उसे भी बेताल का करिश्मा दिखाया। वह कमजोर दिल का आदमी कांपती टांगों का सहारा भी ना ले सका और धड़ाम से अपने मालिक के पास आ गिरा।
“जमूरे.... अपने कपडे पहन।” मैंने कोचवान को कपड़े सौंपे – “आज बेताल तेरी गाड़ी में सफ़र करेगा...।”
“न...नहीं... वह हकलाया – “मेरे बाल बच्चों पर तरस खाओ...।”
“शमशेर इसे कह कि मेरे हुक्म का पालन करे... वरना तुम दोनों की खैर नहीं। मेरे पास वक़्त कम है।”
कोचवान मेरे पैरों में लंबा लेट गया। मैंने उसका गिरेबान पकड़ कर उठाया और उसे खींचता हुआ फिटिन तक ले गया। उसके बाद मैंने शमशेर के कपडे पहने बन्दूक उठाई और फिटिन में बैठ गया।
“चल जमूरे... चाल दिखा... अगर तूने कहीं भी देर की तो तेरा मालिक परलोक सिधार जाएगा... याद रख अगिया बेताल तेरे पीछे बैठा है... अपने बाल बच्चों की खैर मनाता चल।”
वह बुरी तरह काँप रहा था, वह बोल नहीं पा रहा था – बस दांत बज रहे थे। मेरे शब्द सुनते ही उसने मेरी आज्ञा का पालन किया और फिटिन (घोडा गाड़ी ) अपने पथ पर आगे बढ़ गई।
अब मैं गढ़ी की तरफ जा रहा था।
मैंने शमशेर से काफी कुछ जानकारी प्राप्त कर ली थी। फाटक पर दो चौकीदार होंगे... बंदूकधारी.... पर वे फिटिन को नहीं रोकेंगे – क्योंकि वे जानते है की फिटिन में कौन होगा।
गेट पार करने में कोई कठिनाई नहीं थी। उन दो के अलावा गढ़ी की चौकीदारी रात के समय में कोई नहीं करता था, सिर्फ एक आदमी ऊपरी बुर्ज पर पहरा देता था।
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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
रात अँधेरी थी।
मैं जानता था बेताल वहां मेरी मदद नहीं कर सकता, ऐसा उसने पहले ही प्रकट कर दिया था और शमशेर को अधिक देर तक कैद नहीं रखा जा सकता अन्यथा गढ़ी के लोग सचेत हो जाते और फिर ख़तरा बढ़ जाता। सुबह होने से पहले सब कुछ निपटा देना आवश्यक था, फिटिन में मैंने एक कुदाल रख ली थी, तांत्रिक के उस टोटके को निकालना साधारण इंसान के वश का रोग नहीं था। उसे कोई ऐसा व्यक्ति ही निकाल सकता था, जो तंत्र विद्या जानता हो, या कोई सिद्धि प्राप्त हो। इसलिये इस काम पर मुझे स्वयं जाना पड़ा।
आधे घंटे के भीतर-भीतर गढ़ी का फाटक आ गया। मैंने बन्दूक को मजबूती के साथ पकड़ लिया, बेताल की शक्ति यहीं तक मेरे साथ थी और अब मैं अकेला था। किसी प्रकार का भी खतरा मेरे सर पर टूट सकता था।
फाटक पर फिटिन रुक गई।
कोचवान ने फाटक का घंटा बजाया , एक छोटी-सी खिड़की खुली, जिसमें से किसी ने बाहर झांका साथ ही टॉर्च का प्रकाश कोचवान के चेहरे पर पड़ा। कुछ पल बाद ही फाटक खुल गया।
फिटिन दनदनाती हुई फाटक पार कर गई, जैसा की मेरा अनुमान था, न किसी ने रोका और न किसी ने टोका। गढ़ी का विशाल प्रांगण प्रारम्भ हो गया। पाम और यूकेलिप्टस के स्वेत दरख्तों से टकराती मदहोश हवा बह रही थी।
रजवाड़े की इस गढ़ी से आज भी वैसी ही शान झलकती थी। इसका ढांचा अभी बिगड़ा नहीं था, सिर्फ समय की पर्त चढ़ गई थी।
एक सायवान के नीचे फिटिन रुक गई। यहाँ पहले से ही एक ओर बड़ी शानदार फिटिन खड़ी थी और समीप ही अस्तबल था, जहाँ से किसी घोड़े के हिनहिनाने का स्वर उत्पन्न हुआ।
गढ़ी के एक हिस्से में मुर्दा सा प्रकाश जल रहा था। दूर-दूर बल्ब टिमटिमा रहे थे। वातावरण में गहरी खमोशी छाई हुई थी। कहीं कोई आवाज उत्पन्न नहीं होती थी।
कोचवान सहमा-सहमा सा बैठा था।
मैंने सारे वातावरण पर दृष्टिपात किया और कोचवान से नीचे उतरने के लिए कहा। वह लड़खड़ाते नीचे उतर पड़ा।
“चुपचाप मुझे रास्ता बताता चल।”
वह चल पड़ा जहाँ मैं कहता रहा मेरा मार्गदर्शन करता रहा। इस बीच वह सांस लेने में भी परेशानी महसूस कर रहा था, हम ख़ामोशी के साथ सबसे पहले पश्चिम भाग में पहुंचे और उस स्थान पर पहुँचने में अधिक समय नहीं लगा जहां भैरव तांत्रिक ने जादू की हंडियां गाड़ रखी थी। मैंने कुदाल चलाई। वह चुपचाप सहमा-सहमा सा खड़ा रहा, मैं इस बात की पूरी सावधानी बरत रहा था कि मेरे इस कार्य में किसी प्रकार की आवाज न हो। आखिर हंडियां नजर आ गई। मैंने हाथ से उसे बाहर निकालना चाहा, तभी एक सर्प मेरे हाथ पर लिपट गया – मैं एकदम हाथ खींचकर पीछे हटा... अगले ही क्षण मैंने बिना डरे सर्प का फन दबोच लिया और उसे खींचकर एक ओर फेंक दिया। उसके बाद हंडिया बाहर निकाल ली। उसे लेकर मैं कोचवान के साथ दक्षिण हिस्से में पहुंचा.... उसके बाद यहाँ मेरा स्वागत एक काले खौफनाक बिच्छू ने किया।
लेकिन बेताल ने मुझे इस प्रकार की संभावना से पहले ही अवगत करवा दिया था। डर नाम की कोई वस्तु तो अब मुझमें रही ही नहीं थी।
मैंने दोनों हांडियों को फिटिन में पँहुचाया उसके बाद शेष दो उखाड़ कर ले आया। इस बीच कोई ख़तरा पेश नहीं आया, उसका कारण यह भी था कि ये सब मुख्य इमारत से काफी दूर गड़ी थी और मैंने ऊपर से लेवल उसी प्रकार बराबर कर दिया था, ताकि खुदाई का पता न लगे।
अब मैं इन बाईस जिन्नों को उठाकर ले जा रहा था। वे मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ पा रहे थे – उसके तीर तरकस खाली हो गये थे। हालांकि उन्होंने मुझे भयभीत करने का पूरा प्रयास किया था।
उन दिनों मैं तंत्र विद्या भी सीख रहा था।
मैं उसी फिटिन में लौटा। कोचवान उस वक्त भी मेरे साथ था। मैं उसी स्थान पर लौटा जहां शमशेर अब तक बंधा पड़ा था। मैंने एक बार फिर कोचवान को घसीटा और शमशेर के पास छोड़ दिया।
“बेताल।”
“हाँ मेरे आका।”
“इन्हें तो सब कुछ मालूम हो गया है। इनका क़त्ल कर दिया जाये।”
“मैं यह काम अपने हाथों नहीं कर सकता।”
“कोई बात नहीं – मैं कर दूंगा। लेकिन एक बात सोचता हूं इनके मरने से गढ़ी का ठाकुर सचेत हो सकता है फिर भी अब कोई तरीका नजर नहीं आता।”
मेरी यह बातें सिर्फ संकेतों से हो रही थी।
“अब तो मुझे छोड़ दो।” शमशेर ने कहा।
“छोड़ दूंगा...पहले मेरे सवाल का जवाब दे।”
“पूछो... क्या पूछना है ?”
“मेरे बाप को क्यों मारा गया। और वह किस प्रकार मारा ?”
“इसकी जिम्मेदारी भैरव तांत्रिक पर है। उसी ने यह काम किया था... मैं नहीं जानता कि उसने कैसा जादू चलाया। पहले साधुनाथ पागल हो गया फिर तांत्रिक ने मूठ चला दी।”
“लेकिन गढ़ी के ठाकुर ने ऐसा क्यों किया ?”
“मुझे कुछ विशेष नहीं मालूम।”
“जितना जानते हो वह बताओ।”
“उनकी बातों से ऐसा पता लगता है कि पुराने जमाने में गढ़ी के लोग बड़े शक्तिशाली लुटेरे थे... इनकी अपनी पूरी फ़ौज होती थी और ये लोग नादिरशाह की तरह किसी भी राज्य के शहर पर धावा बोल देते थे और लूटपाट कर काले पहाड़ के खौफनाक जंगल में गायब हो जाते थे... फिर इन्होने गढ़ी का निर्माण किया... यहाँ चारों तरफ पहले बियाबान जंगल रहा होगा ऐसा मेरा अनुमान है। जब ये लोग काफी संपन्न हो गये तो इन्होने अपना राज्य बना लिया... तब से ये राजाओं के नाम से प्रसिद्द हुए... बाहर के राजाओं ने बार-बार इन पर हमले किये पर इन्हें परास्त ना कर सके... फिर एक बार एक मुग़ल लुटेरे ने यहाँ कत्लेआम किया और गढ़ी पर कब्जा कर लिया... किन्तु कुछ रोज बाद वह चला गया... तब गढ़ी के वंशज कहीं जंगलों में जा छिपे... वे फिर से लौट आये। ऐसा लगता है उन्होंने कहीं धन छिपाया था, जिसकी तलाश में यह दुश्मनी ठानी थी।
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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
ठाकुर का एक दोस्त था लखनपाल सिंह...बड़ा चतुर और धूर्त आदमी था... अब न जाने कहाँ है। दो बार मेरे हाथों मरते-मरते बचा, मैं नहीं जानता कि वह ठाकुर की कौन सी अमूल्य वस्तु चुरा कर भागा था जो ठाकुर पागलपन की सीमा लांघ गये। उन्होंने अपने उस दोस्त के समूल परिवार के सदस्यों को खोज कर क़त्ल कर दिया पर लखनपाल नहीं आया।
बताते हैं की लखनपाल ने खासी रकम खर्च करके साधुनाथ की सेवा प्राप्त कर ली और साधुनाथ उसकी रक्षा करता रहा.... फिर साधुनाथ का आतंक हवेली तक पहुँच गया। उसे गढ़ी के कई सुराग मिल गये थे और उन दिनों ठाकुर इतना चिंतित हो गया कि सारी सारी रात उन्हें नींद नहीं आती थी।
साधुनाथ पर उनका कोई शस्त्र कारगर सिद्ध नहीं होता था। उन्ही दिनों भैरव तांत्रिक आया और ठाकुर ने उससे कोई गुप्त समझौता कर लिया। बस उसके बाद भैरव तांत्रिक काले पहाड़ की तरफ चला गया।
वहां से लौटा तो उसने साधुनाथ का पूरा प्रबंध कर दिया, कुछ दिन बाद ही साधुनाथ पागल हो गया। उसके बाद वह भैरव की मूठ से मारा गया। मेरे ख्याल से वह सारा चक्कर राजवाड़े के उस गुप्त धन का है जो कहीं गड़ा है। बहुत तांत्रिक गड़े खजाने का पता लगा लेते है... साधु नाथ भी यही कर रहा था। बस मुझे इतना ही मालूम है।”
“ठाकुर के घर में औरतें कितनी है ?”
“उनकी तीन बीवियां है... एक आठ साल का बच्चा है...शेष औरतें या तो नौकरानियां हैं या....।”
“क्या भैरव तांत्रिक पहले भी काले पहाड़ पर रहता था ?”
“मुझे इस बारे में नहीं मालूम। अब तो मुझे मुक्त कर दो।”
“हां – यह काम तो बाकी रह ही गया।”
मैंने बन्दूक उठाई और उसे गोली से उड़ा दिया। एक धमाके के साथ उसकी चीख वातावरण में डूब कर रह गई। यह दृश्य देखते ही कोचवान चीख मार कर भागा। वह कांपती टांगों से सहारे दौड़ रहा था। अचानक उसे ठोकर लगी और वह गिर पड़ा।
मैंने ठहाका लगाया और उसके उठने से पूर्व गोली दाग दी। वह जमीन पर छटपटाने लगा। एक गोली और चली साथ ही उसका काम तमाम हो गया। अब उस जगह दो लाशें पड़ी थी। मेरा प्रतिशोध शुरू हो गया था। अब मैं कातिल था... क़ानून की निगाह में मुजरिम... पर समय कभी लौट कर नहीं आता। मेरे भीतर का मनुष्य तो कभी का मिट चुका था, अब मैं सिर्फ दरिंदा था, जिसके दिल में दया नाम की कोई वस्तु नहीं होती।
मेरा प्रतिशोध ठाकुर के कारनामे से कहीं अधिक भयानक था, और मैं उस दिन की प्रतीक्षा में था जब ठाकुर मेरे सामने एडियां रगड़ रहा हो... उससे पहले मैं उसे इसके लिए लाचार कर देना चाहता था कि मेरे भय से वह भागता रहे और उसे चैन न मिले।
मैंने उसकी लाशें जंगल में छोड़ दी।
मैंने अगिया बेताल को याद किया।
“बेताल !”
“हाजिर हूँ आका।”
“उन बाईस राक्षसों का क्या किया जाए ?”
“मेरे ख्याल से आप उन्हें कैद कर सकते हैं। अगर वे आजाद हो गये तो आगे चलकर हमारे रास्ते में रुकावट डाल सकते हैं।”
“तो उन्हें कहाँ कैद किया जाये ?”
“जब तक वे हमारी सीमा में जाकर कैद नहीं किए जाते, मैं उनके घेरे में नहीं जा सकता। लेकिन जब वे बेताल की सीमा में पहुँच जायेंगे तो वे दोषी मान लिए जायेंगे और हमारे सिद्धांत के अनुसार उन्हें कैद कर लिया जायेगा... इसलिए उन्हें मंगोल घाटी के जंगल में ले चलिए – जहां आप रह रहें है। आप उस गाड़ी के घोड़े पर सवारी करें...मेरी सवारी उनका बोझ नहीं ढो सकती। लेकिन याद रखें,सीमा में दाखिल होते समय वे बहुत उधम मचाएंगे इसलिए उन्हें कब्जे में रखने के लिए आपको लालच में रखना होगा... आपके पास अगर आदमी या बकरे की कलेजी रहे तो वे लालच में फंसे रहेंगे और कम उधम मचायेंगे।”
“कलेजी “
“हाँ यही उपाय है, अब मैं चलता हूँ... मैं उनके समीप अधिक देर नहीं रह सकता। अगर उन्होंने मुझे देख लिया तो मुझे घेरने का प्रयास करेंगे।”
बेताल चला गया।
अब मैं सुनसान जंगल में अकेला रह गया।
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10-26-2020, 12:53 PM,
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desiaks
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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
अब मैं सुनसान जंगल में अकेला रह गया।
मेरे सामने दो मुर्दा इंसान पड़े थे, इसलिए कलेजी की समस्या हल हो गई। इसके लिए मैंने शमशेर को चुना और एक वहशी की तरह खंजर तान कर उसके पास पहुँच गया। मेरे जीवन की यह सबसे भयानक रात थी। मैं खंजर से काट कर शमशेर का कलेजा निकलने लगा। अभी उसका खून सूखा नहीं था। शीघ्र ही मेरे हाथ में मांस का एक लोथड़ा आ गया। शमशेर का कलेजा देख कर मेरे मन में एक अजीब सी लिप्सा जाग उठी लेकिन मैंने अपने आप पर संयम रखा।
उसे एक सुर्ख कपडे में लपेट कर रख लिया।
हंडियाओं को एक साथ बाँधा... घोडा गाड़ी अलग की और घोड़े पर सवार होकर अपने रास्ते पर निकल गया। मेरा सफ़र चौबीस घंटे से कम भी नहीं था...यह अलग बात थी की बेताल की सवारी आध घंटे में ही फासला तय कर लेती थी।
मंगोल घाटी का जंगल बेतालों की नगरी थी। यहाँ वे स्वतंत्र रूप से रहते थे – हालांकि मैं अभी तक उनके ठिकाने नहीं जान पाया था, पर उनके रहने के लिए घर या महलों की आवश्यकता तो होती नहीं। उनके घर तो बरगद या पीपल के वृक्ष होते थे। वे अन्य वृक्षों का प्रयोग भी कर लेते थे।
मंगोल घाटी में पीपल और बरगद के वृक्षों की तादाद बहुत अधिक थी, उस घाटी में यही सबसे विचित्र बात थी। वहां जगह-जगह छोटी बड़ी गुफाएं भी थी। जिनमें यदा कदा मैंने शोलों का नाच देखा था। इस प्रकार के शोले चांदनी रात में अधिक नजर आते थे और पूरी घाटी घाटी में नाचते फिरते थे। बेताल ने बताया की वहां बहुत से तांत्रिक सिद्धी प्राप्त करने के लिए आते रहते है, मगर ऐसा करने वालों को भारी जोखिम उठाना पड़ता है। कभी-कभी उन्हें अपने प्राणों का विसर्जन भी कर देना पड़ता है।
बैतालिक जीवन के अनेकों रहस्य मेरे सामने खुलते जा रहे थे। इसकी भी अपनी दुनिया होती है, जहाँ हर कार्य मनुष्यों की तरह होता ही। किसी मनुष्य के संपर्क में आने के बाद इनकी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।
बेताल प्रेतों से सर्वथा भिन्न होते है। प्रेत का वास हर जगह हो सकता है... ये अभिशप्त आत्मायें आमतौर से भटकती रहती है, और ये मनुष्य योनि प्राप्त कर चुकी होती है जबकि बेताल के साथ यह आवश्यक नहीं कि वह मनुष्य योनि प्राप्त कर चुका हो। बेताल किसी मनुष्य का साथ पाकर ही अपनी सरहद से बाहर निकल कर हानि पहुंचा सकता है अन्यथा सरहद त्यागने के बाद उसका कोई अस्तित्व नहीं होता... बेतालों में शादी की रस्में भी होती है, जबकि प्रेतों में ऐसा कुछ नहीं होता। बेताल इसी दुनिया में वीरान ठिकाने तलाश करके वहां रहते है, और जहाँ रहते है, उस सीमा पर इनका पूरा अधिकार रहता है।
मैं मंगोल घाटी के लिए कूच कर चुका था जहाँ बेताल शहजादे के कारण मैं सुरक्षित था।
जब चौबीस घंटे की लागातार यात्रा के बाद मैं उस घाटी में प्रविष्ट होने लगा तो अचानक घोड़े ने साथ छोड़ दिया... वह बुरी तरह अड़ गया और पीछे हटने लगा – अंत में वह एक लम्बी डकार मार कर वहीं धराशाई हो गया।
मैंने देखा – उसकी जीभ बाहर खिंच आई है। ऐसा लगता था जैसे वह कुछ ही सेकंड में मरने वाला है। मैंने इस बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया और वह बड़ा थैला उठा लिया जिसमें उन् बाईस राक्षसों को बंद किया गया था, पर वह थैला मुझसे उठाया न जा सका। वह इतना भारी हो गया था कि उसे हिला पाना भी दुश्वार था।
मेरे माथे से पसीने छूट गये थे। मैं समझ गया था कि वे सीमा में दाखिल नहीं होना चाहते। कुछ देर तक मैं वहीं खडा रहा।
चांदनी रात में जंगल का दृश्य भयावह हो रहा था। हवा सांय-सांय करती बह रही थी।
एकाएक मुझे कुछ ध्यान आया और मैंने उन राक्षसों को दावतनामा देना उचित समझा।
मैंने न सिर्फ थैले का मुँह खोला बल्कि हंडिया भी आजाद कर दी। अचानक मुझे लगा जैसे मुझसे कोई पहाड़ सा टकराया हो... मैं हवा में उछलता हुआ काफी दूर गया। यह उनका प्रतिरोध नहीं तो क्या था, हालांकि मेरे श रीर सुन्न पड़ गया था पर मैंने उस पिटारी को गले से नहीं उतारा जिसमें मनुष्य की कलेजी और जादू-टोने का दूसरा सामान रखा था।
“कलेजी छोड़कर भाग जा..कलेजी छोड़कर भाग जा...।” मक्खियों की तरह भिनभिनाती आवाज मेरे कान में पड़ी।
मैं फ़ौरन संभला। मुसीबत मेरे सर पर थी। इस वक़्त बेताल मेरी सहायता नहीं कर सकता था, यदि मैं पिटारी छोड़ देता तो ना जाने वे कलेजी पाकर मेरा भी सफाया कर देते। अब वे समझ गये थे कि मैं उन्हें कैद करने जा रहा हूं। कलेजी खाने से उनकी शक्ति और भी बढ़ सकती थी। अब एक ही चारा था किसी तरह दौड़कर बेतालों की सरहद में पहुँच जाऊं।
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10-26-2020, 12:53 PM,
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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
उनकी सरहद आधा मील दूर उस जगह से शुरू होती थी, जहाँ विशालकाय बूढा बरगद का दरख़्त था, उसकी जानकारी मुझे थी।
मैं जी जान लगाकर उसी तरफ भाग खड़ा हुआ, अब मुझे कुछ भयानक किस्म की परछाईयां पीछा करते नजर आ रही थी। ये परछाईयां मुझे भयभीत करके घेरने का प्रयास कर रही थी... पहले इनकी रफ़्तार काफी थी और कुछ मुझसे आगे जा पहुंचे थे, ऐसा होने पर मैं तुरंत रास्ता बदल लेता था। बाद में इनकी रफ़्तार धीमी पड़ गई और एक समय ऐसा भी आया जब ये सारे के सारे रुक गये।
बरगद के वृक्ष से एक फर्लांग दूर वे सहमकर खड़े हो गये और वहीं से नाना प्रकार की अवाजें निकालने लगे।मैं जानता था ऐसी शक्तियां सिर्फ भय से इंसान को मारती है। मेरी निडरता ने ही मेरे प्राणों की रक्षा की थी।
चांदनी बहुत बेजान सी हो गई थी।
मैं हाँफता हुआ बरगद के वृक्ष के नीचे रुक गया। अब मैं बेतालों की छत्रछाया में था। वे मुझे तरह-तरह के लालच दे कर बुला रहे था।
अब मेरा काम शुरू हुआ।
मैंने खंजर की नोक से एक गोल दायरा खींचा और कलेजी उसके बीच रख दी, फिर उसके बाईस टुकड़े कर दिए, मैंने उनका हिस्सा बाँट दिया था। अब जरूरत इस बात की थी की कौन अपना हिस्सा लेने पहले आता है।
अब मैं उन्हें बुलाने लगा। वे तमाशगीर की तरह दूर खड़े थे। अचानक उनमे से एक आगे बढ़ा , तुरंत दो ने पकड़कर पीछे खींच लिया। फिर उनमे झगडा सा होने लगा, अचानक एक छूटकर भागा... और दौड़ता हुआ मेरी तरफ आया।
फिर तो एक के बाद एक सभी दौड़ पड़े।
वे उस घेरे के पास आये।
जैसे ही वे बरगद के नीचे आये, मैंने अचरज से भरा दृश्य देखा। सहसा युद्ध के नगाड़े बजने लगे और बरगद पर लटके बेताल सीमा रक्षक उन बाईसों पर टूट पड़े। आकाश पर झुरमुरों के ऊपर असंख्य शोले तैरते नज र आए जो इसी तरफ लटक रहे थे। जान पड़ता जैसे बेताल फ़ौज आ गई है।
वहां बाकायदा युद्ध शुरू हो गया और मैं अपने मार्ग पर चल पड़ा। बड़ी भयानक आकृतियां उस स्थान पर उभरती जा रही थी... तलवार भालों की चमक नजर आ रही थी। बाईसों जिन्न जमकर संघर्ष कर रहे थे।
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