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RE: Holi sex stories-होली की सेक्सी कहानियाँ
होली पर बीबी चुदी दीदी चुदी--2
दोस्तों सुबह कि एक बात में आपको कहना चाहूंगा,जीजाजी और पद्मा जब होली के मजे ले रहे थे और मेने दीदी कि आँखों में वासना के लाल डोरे देख लिए थे तब दीदी नहाने के लिए बाथ रूम में चली गयी थी तब मेने दीदी को नहाते देखने कि सोची। दीदी के साथ रहते हुए मैंने इस बात को महसूस किया की मेरी दीदी वाकई बहुत ही खूबसूरत औरत है. ऐसा नहीं था की दीदी शादी के पहले खूबसूरत नहीं थी. दीदी एकदम गोरी चिट्टी और तीखे नाक-नक्शे वाली थी. पर दीदी और मेरे उम्र के बीच फर्क था, इसलिए जब दीदी कुंवारी थी तो मेरी उतनी समझदारी ही नहीं थी की मैं उनकी सुन्दरता को समझ पाता या फिर उसका आकलन कर पाता. फिर शादी के बाद दीदी अलग रहने लगी थी. अब जब मैं जवान और समझदार हो गया था तो मुझे अपनी दीदी को काफी नजदीक से देखने का अवसर मिल रहा था और यह अहसास हो रहा था की वाकई मेरी बहन लाखो में एक हैं. शादी के बाद से उसका बदन थोड़ा मोटा हो गया था. मतलब उसमे भराव आ गया था. पहले वो दुबली पतली थी मगर अब उसका बदन गदरा गया था. शायद ये उम्र का भी असर था . उसके गोरे सुडौल बदन में गजब का भराव और लोच था. चलने का अंदाज बेहद आकर्षक और क्या कह सकते है कोई शब्द नहीं मिल रहा शायद सेक्सी था. कभी चुस्त सलवार कमीज़ तो कभी साडी ब्लाउज जो भी वो पहनती थी उसका बदन उसमे और भी ज्यादा निखर जाता था . चुस्त सलवार कुर्ती में तो हद से ज्यादा सेक्सी दिखती. दीदी जब वो पहनती थी उस समय सबसे ज्यादा आकर्षण उसकी टांगो में होता था . सलवार उसके पैरो से एकदम चिपकी हुई होती थी. जैसा की आप सभी जानते है ज्यादातर अपने यहाँ जो भी चुस्त सलवार बनती है वो झीने सूती कपड़ो की होती है. इसलिए दीदी की सलवार भी झीने सूती कपड़े की बनी होती थी और वो उसके टांगो से एकदम चिपकी हुई होती. कमीज़ थोरी लम्बी होती थी मगर ठीक कमर के पास आकर उसमे जो कट होता था असल में वही जानलेवा होता था. कमीज़ का कट चलते समय जब इधर से उधर होता तो चुस्त सलवार में कसी हुई मांसल जांघे और चुत्तर दिख जाते थे. दीदी की जांघे एकदम ठोस, गदराई और मोटी कन्दली के खंभे जैसी थी फिर उसी अनुपात में चुत्तर भी थे. एकदम मोटे मोटे , गोल-मटोल गदराये, मांसल और गद्देदार जो चलने पर हिलते थे. सीढियों पर चढ़ते समय कई बार मुझे कविता दीदी के पीछे चलने का अवसर प्राप्त हुआ था. सीढियाँ चढ़ते समय जब साडी या सलवार कमीज में कसे हुए उनके चुत्तर हिलते थे, तो पता नहीं क्यों मुझे बड़ी शर्मिंदगी महसूस होती थी. इसका कारण शायद ये था की मुझे उम्र में अपने से बड़ी और भरे बदन वाली लड़कियोँ या औरते ज्यादा अच्छी लगती थी. सीढियों पर चढ़ते समय जब दीदी के तरबूजे के जैसे चुत्तर के दोनों फांक जब हिलते तो पता नहीं मेरे अन्दर कुछ हो जाता था. मेरी नज़रे अपने आप पर काबू नहीं रख पाती और मैं उन्हें चोर नजरो से देखने की कोशिश करता. पीछे से देखते समय मेरा सामना चूँकि दीदी से नहीं होता था इसलिए शायद मैं उनको एक भरपूर जवान औरत के रूप में देखने लगता था और अपने आप को उनके हिलते हुए चूत्तरों को देखने से नहीं रोक पाता था. अपनी ही दीदी के चुत्तरों को देखने के कारण मैं अपराधबोध से ग्रस्त हो शर्मिंदगी महसूस करता था. कई बार वो चुस्त सलवार पर शोर्ट कुर्ती यानि की छोटी जांघो तक की कुर्ती भी पहन लेती थी. उस दिन मैं उनसे नज़रे नहीं मिला पाता था. मेरी नज़रे जांघो से ऊपर उठ ही नहीं पाती थी. शोर्ट कुर्ती से झांकते चुस्त सलवार में कसे मोटे मोटे गदराये जांघ भला किसे अच्छे नहीं लगेंगे भले ही वो आपकी बहन के हो. पर इसके कारण आत्मग्लानी भी होती थी और मैं उनसे आंखे नहीं मिला पाता था.
दीदी की चुत्तर और जांघो में जो मांसलता आई थी वही उनकी चुचियों में भी देखने को मिलती थी. उनके मोटे चुत्तर और गांड के अनुपात में ही उनकी चुचियाँ भी थी. चुचियों के बारे में यही कह सकते है की इतने बड़े हो की आपकी हथेली में नहीं समाये पर इतने ज्यादा बड़े भी न हो की दो हाथो की हथेलियों से भी बाहर निकल जाये. कुल मिला कर ये कहे तो शरीर के अनुपात में हो. कुछ १८-१९ साल की लड़कीयों जो की देखने में खूबसूरत तो होंगी मगर उनकी चुचियाँ निम्बू या संतरे के आकार की होती है. जवान लड़कियोँ की चुचियों का आकार कम से कम बेल या नारियल के फल जितना तो होना ही चाहिए. निम्बू तो चौदह-पंद्रह साल की छोकरियों पर अच्छा लगता है. कई बार ध्यान से देखने पर पता चल पाता है की पुशअप ब्रा पहन कर फुला कर घूम रही है. इसी तरह कुछ की ऐसी ढीली और इतनी बड़ी-बड़ी होगी की देख कर मूड ख़राब हो जायेगा. लोगो का मुझे नहीं पता मगर मुझे तो एक साइज़ में ढली चूचियां ही अच्छी लगती है. शारीरिक अनुपात में ढली में हुई, ताकि ऐसा न लगे की पुरे बदन से भारी तो चूचियां है या फिर चूची की जगह पर सपाट छाती लिए घूम रही हो. सुन्दर मुखड़ा और नुकीली चुचियाँ ही लड़कियों को माल बनाती है.
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RE: Holi sex stories-होली की सेक्सी कहानियाँ
एकदम तीर की तरह नुकीली चुचिया थी दीदी की. भरी-भरी, भारी और गुदाज़. गोल और गदराई हुई. साधारण सलवार कुर्ती में भी गजब की लगती थी. बिना चुन्नी के उनकी चूचियां ऐसे लगती जैसे किसी बड़े नारियल को दो भागो में काट कर उलट कर उनकी छाती से चिपका दिया गया है. घर में दीदी ज्यादातर साड़ी या सलवार कमीज़ में रहती थी . गर्मियों में वो आम तौर पर साड़ी पहनती थी . शायद इसका सबसे बड़ा कारण ये था की वो घर में अपनी साड़ी उतार कर, केवल पेटीकोट ब्लाउज में घूम सकती थी. ये एक तरह से उसके लिए नाईटी या फिर मैक्सी का काम करता था. अगर कही जाना होता था तो वो झट से एक पतली सूती साड़ी लपेट लेती थी. मेरी मौजूदगी से भी उसे कोई अंतर नहीं पड़ता था, केवल अपनी छाती पर एक पतली चुन्नी डाल लेती थी. पेटीकोट और ब्लाउज में रहने से उसे शायद गर्मी कम लगती थी. मेरी समझ से इसका कारण ये हो सकता है की नाईटी पहनने पर भी उसे नाईटी के अन्दर एक स्लिप और पेटीकोट तो पहनना ही पड़ता था, और अगर वो ऐसा नहीं करती तो उसकी ब्रा और पैन्टी दिखने लगते, जो की मेरी मौजूदगी के कारण वो नहीं चाहती थी. जबकि पेटीकोट जो की आम तौर पर मोटे सूती कपड़े का बना होता है एकदम ढीला ढाला और हवादार. कई बार रसोई में या बाथरूम में काम समय मैंने देखा था की वो अपने पेटीकोट को उठा कर कमर में खोस लेती थी जिससे घुटने तक उसकी गोरी गोरी टांगे नंगी हो जाती थी. दीदी की पिंडलियाँ भी मांसल और चिकनी थी. वो हमेशा एक पतला सा पायल पहने रहती थी. मैं दीदी को इन्ही वस्त्रो में देखता रहता था मगर फिर भी उनके साथ एक सम्मान और इज्ज़त भरे रिश्ते की सीमाओं को लांघने के बारे में नहीं सोचता था. वो भी मुझे एक मासूम सा लड़का समझती थी और भले ही किसी भी अवस्था या कपड़े में हो , मेरे सामने आने में नहीं हिचकिचाती थी.
खेर दीदी जिस बाथरूम में गयी थी उसमे लैट्रीन और बाथरूम दोनों को सेपरेट कर दिया गया. इसके लिए बाथरूम के बीच में लकड़ी के पट्टो की सहायता से एक दिवार बना दी गई. ईट की दीवार बनाने में एक तो खर्च बहुत आता दूसरा वो ज्यादा जगह भी लेता, लकड़ी की दीवार इस बाथरूम के लिए एक दम सही थी. लैट्रीन के लिए एक अलग दरवाजा बना दिया गया.
दीदी बाथ रूम में थी और में लेट्रीन में घुस गया ताकि दीदी को नहाते देख सकू .. दीदी शायद कोई गीत गुनगुना रही थी. लैट्रीन में उसकी आवाज़ स्पष्ट आ रही थी.
बहुत आराम से उठ कर लकड़ी के पट्टो पर कान लगा कर ध्यान से सुन ने लगा. केवल चुड़ियो के खन-खनाने और गुन-गुनाने की आवाज़ सुनाई दे रही थी. फिर नल के खुलने पानी गिरने की आवाज़ सुनाई दी. मेरे अन्दर के शैतान ने मुझे एक आवाज़ दी, लकड़ी के पट्टो को ध्यान से देख. मैंने अपने अन्दर के शैतान की आवाज़ को अनसुना करने की कोशिश की, मगर शैतान हावी हो गया था. दीदी जैसी एक खूबसूरत औरत लकड़ी के पट्टो के उस पार नहाने जा रही थी. मेरा गला सुख गया और मेरे पैर कांपने लगे. अचानक ही पजामा एकदम से आगे की ओर उभर गया. दिमाग का काम अब लण्ड कर रहा था. मेरी आँखें लकड़ी के पट्टो के बीच ऊपर से निचे की तरफ घुमने लगी और अचानक मेरी मन की मुराद जैसे पूरी हो गई. लकड़ी के दो पट्टो के बीच थोड़ा सा गैप रह गया था. सबसे पहले तो मैंने धीरे से हाथ बढा का बाथरूम स्विच ऑफ किया फिर लकड़ी के पट्टो के गैप पर अपनी ऑंखें जमा दी.
दीदी की पीठ लकड़ी की दिवार की तरफ थी. वो सफ़ेद पेटिको़ट और काले ब्लाउज में नल के सामने खड़ी थी. नल खोल कर अपने कंधो पर रखे तौलिये को अपना एक हाथ बढा कर नल की बगल वाली खूंटी पर टांग दिया. फिर अपने हाथों को पीछे ले जा कर अपने खुले रेशमी बालो को समेट कर जुड़ा बना दिया. बाथरूम के कोने में बने रैक से एक क्रीम की बोतल उठा कर उसमे से क्रीम निकाल-निकाल कर अपने चेहरे के आगे हाथ घुमाने लगी. पीछे से मुझे उनका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था मगर ऐसा लग रहा था की वो क्रीम निकाल कर अपने चेहरे पर ही लगा रही है. लकड़ी के पट्टो के गैप से मुझे उनके सर से चुत्तरों के थोड़ा निचे तक का भाग दिखाई पड़ रहा था. क्रीम लगाने के बाद अपने पेटिको़ट को घुटनों के पास से पकर कर थोड़ा सा ऊपर उठाया और फिर थोड़ा तिरछा हो कर निचे बैठ गई. इस समय मुझे केवल उनका पीठ और सर नज़र आ रहा थे. पर अचानक से सिटी जैसी आवाज़ जो की औरतो के पेशाब करने की एक विशिष्ट पहचान है वो सुनाई दी. दीदी इस समय शायद वही बाथरूम के कोने में पेशाब कर रही थी. मेरे बदन में सिहरन दौर गई. मैं कुछ देख तो सकता नहीं था मगर मेरे दिमाग ने बहुत सारी कल्पनाये कर डाली. पेशाब करने की आवाज़ सुन कर लण्ड ने झटका खाया. मगर अफ़सोस कुछ देख नहीं सकता था.
फिर थोड़ी देर में वो उठ कर खड़ी हो गई और अपने हाथो को कुहनी के पास से मोर कर अपनी छाती के पास कुछ करने लगी. मुझे लगा जैसे वो अपना ब्लाउज खोल रही है. मैं दम साधे ये सब देख रहा था. मेरा लण्ड इतने में ही एक दम खड़ा हो चूका था. दीदी ने अपना ब्लाउज खोल कर अपने कंधो से धीरे से निचे की तरफ सरकाते हुए उतार दिया. उनकी गोरी चिकनी पीठ मेरी आँखों के सामने थी. पीठ पर कंधो से ठीक थोड़ा सा निचे एक काले रंग का तिल था और उससे थोड़ा निचे उनकी काली ब्रा का स्ट्रैप बंधा हुआ था. इतनी सुन्दर पीठ मैंने शायद केवल फ़िल्मी हेरोइनो की वो भी फिल्मो में ही देखी थी. वैसे तो मैंने दीदी की पीठ कई बार देखि थी मगर ये आज पहली बार था जब उनकी पूरी पीठ नंगी मेरी सामने थी, केवल एक ब्रा का स्ट्रैप बंधा हुआ था. गोरी पीठ पर काली ब्रा का स्ट्रैप एक कंट्रास्ट पैदा कर रहा था और पीठ को और भी ज्यादा सुन्दर बना रहा था. मैंने सोचा की शायद दीदी अब अपनी ब्रा खोलेंगी मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया. अपने दोनों हाथो को बारी-बारी से उठा कर वो अपनी कांख को देखने लगी. एक हाथ को उठा कर दुसरे हाथ से अपनी कांख को छू कर शायद अपने कांख के बालो की लम्बाई का अंदाज लगा रही थी. फिर वो थोड़ा सा घूम गई सामने लगे आईने में अपने आप को देखने लगी. अब दीदी का मुंह बाथरूम में रखे रैक और उसकी बगल में लगे आईने की तरफ था. मैंने सोच रहा था काश वो पूरा मेरी तरफ घूम जाती मगर ऐसा नहीं हुआ. उनकी दाहिनी साइड मुझे पूरी तरह से नज़र आ रही थी. उनका दाहिना हाथ और पैर जो की पेटिको़ट के अन्दर था पेट और ब्रा में कैद एक चूची, उनका चेहरा भी अब चूँकि साइड से नज़र आ रहा था इसलिए मैंने देखा की मेरा सोचना ठीक था और उन्होंने एक पीले रंग का फेसमास्क लगाया हुआ था. अपने सुन्दर मुखरे को और ज्यादा चमकाने के लिए. अब दीदी ने रैक से एक दूसरी क्रीम की बोतल अपने बाएं हाथ से उतार ली और उसमे से बहुत सारा क्रीम अपनी बाई हथेली में लेकर अपने दाहिने हाथ को ऊपर उठा दिया. दीदी की नंगी गोरी मांसल बांह अपने आप में उत्तेजना का शबब थी और अब तो हाथ ऊपर उठ जाने के कारण दीदी की कांख दिखाई दे रही थी. कांख के साथ दीदी की ब्रा में कैद दाहिनी चूची भी दिख रही थी. ब्रा चुकी नोर्मल सा था इसलिए उसने पूरी चूची को अपने अन्दर कैद किया हुआ था इसलिए मुझे कुछ खास नहीं दिखा, मगर उनकी कांख कर पूरा नज़ारा मुझे मिल रहा था. दीदी की कांख में काले-काले बालों का गुच्छा सा उगा हुआ था. शायद दीदी ने काफी दिनों से अपने कांख के बाल नहीं बनाये थे. वैसे तो मुझे औरतो के चिकने कांख ही अच्छे लगते है पर आज पाता नहीं क्या बात थी मुझे दीदी के बालों वाले कांख भी बहुत सेक्सी लग रहे थे. मैं सोच रहा था इतने सारे बाल होने के कारण दीदी की कांख में बहुत सारा पसीना आता होगा और उसकी गंध भी उन्ही बालों में कैद हो कर रह जाती होगी. दीदी के पसीने से भीगे बदन को कई बार मैंने रसोई में देखा था. उस समय उनके बदन से आती गंध बहुत कामोउत्तेजक होती थी और मुझे हवा तैरते उसके बदन के गंध को सूंघना बहुत अच्छा लगता था. ये सब सोचते सोचते मेरा मन किया की काश मैं उसकी कांख में एक बार अपने मुंह को ले जा पाता और अपनी जीभ से एक बार उसको चाटता. मैंने अपने लण्ड पर हाथ फेरा तो देखा की सुपाड़े पर हल्का सा गीलापन आ गया है. तभी दीदी ने अपने बाएं हाथ की क्रीम को अपनी दाहिने हाथ की कांख में लगा दिया और फिर अपने वैसे ही अपनी बाई कांख में भी दाहिने हाथ से क्रीम लगा दिया. शायद दीदी को अपने कान्खो में बाल पसंद नहीं थे.
कान्खो में हेयर रिमूविंग क्रीम लगा लेने के बाद दीदी फिर से नल की तरफ घूम गई और अपने हाथ को पीछे ले जाकर अपनी ब्रा का स्ट्रैप खोल दिया और अपने कंधो से सरका कर बहार निकाल फर्श पर दाल दिया और जल्दी से निचे बैठ गई. अब मुझे केवल उनका सर और थोड़ा सा गर्दन के निचे का भाग नज़र आ रहा था. अपनी किस्मत पर बहुत गुस्सा आया. काश दीदी सामने घूम कर ब्रा खोलती या फिर जब वो साइड से घूमी हुई थी तभी अपनी ब्रा खोल देती मगर ऐसा नहीं हुआ था और अब वो निचे बैठ कर शायद अपनी ब्लाउज और ब्रा और दुसरे कपड़े साफ़ कर रही थी. मैंने पहले सोचा की निकल जाना चाहिए, मगर फिर सोचा की नहाएगी तो खड़ी तो होगी ही, ऐसे कैसे नहा लेगी. इसलिए चुप-चाप यही लैट्रिन में ही रहने में भलाई है. मेरा धैर्य रंग लाया थोड़ी देर बाद दीदी उठ कर खड़ी हो गई और उसने पेटीकोट को घुटनों के पास से पकड़ कर जांघो तक ऊपर उठा दिया. मेरा कलेजा एक दम धक् से रह गया. दीदी ने अपना पेटिकोट पीछे से पूरा ऊपर उठा दिया था. इस समय उनकी जांघे पीछे से पूरी तरह से नंगी हो गई थी. मुझे औरतो और लड़कियों की जांघे सबसे ज्यादा पसंद आती है. मोटी और गदराई जांघे जो की शारीरिक अनुपात में हो, ऐसी जांघे. पेटीकोट के उठते ही मेरे सामने ठीक वैसी ही जांघे थी जिनकी कल्पना कर मैं मुठ मारा करता था. एकदम चिकनी और मांसल. जिन पर हलके हलके दांत गरा कर काटते हुए जीभ से चाटा जाये तो ऐसा अनोखा मजा आएगा की बयान नहीं किया जा सकता. दीदी की जांघे मांसल होने के साथ सख्त और गठी हुई थी उनमे कही से भी थुलथुलापन नहीं था. इस समय दीदी की जांघे केले के पेड़ के चिकने तने की समान दिख रही थी. मैंने सोचा की जब हम केले पेड़ के तने को अगर काटते है या फिर उसमे कुछ घुसाते है तो एक प्रकार का रंगहीन तरल पदार्थ निकलता है शायद दीदी के जांघो को चूसने और चाटने पर भी वैसा ही रस निकलेगा. मेरे मुंह में पानी आ गया. लण्ड के सुपाड़े पर भी पानी आ गया था. सुपाड़े को लकड़ी के पट्टे पर हल्का सा सटा कर उस पानी को पोछ दिया और पैंटी में कसी हुई दीदी के चुत्तरों को ध्यान से देखने लगा. दीदी का हाथ इस समय अपनी कमर के पास था और उन्होंने अपने अंगूठे को पैंटी के इलास्टिक में फसा रखा था. मैं दम साधे इस बात का इन्तेज़ार कर रहा था की कब दीदी अपनी पैंटी को निचे की तरफ सरकाती है. पेटीकोट कमर के पास जहा से पैंटी की इलास्टिक शुरू होती है वही पर हाथो के सहारे रुका हुआ था. दीदी ने अपनी पैंटी को निचे सरकाना शुरू किया और उसी के साथ ही पेटीकोट भी निचे की तरफ सरकता चला गया. ये सब इतनी तेजी से हुआ की दीदी के चुत्तर देखने की हसरत दिल में ही रह गई. दीदी ने अपनी पैंटी निचे सरकाई और उसी साथ पेटीकोट भी निचे आ कर उनके चुत्तरों और जांघो को ढकता चला गया. अपनी पैंटी उतार उसको ध्यान से देखने लगी पता नहीं क्या देख रही थी. छोटी सी पैंटी थी, पता नहीं कैसे उसमे दीदी के इतने बड़े चुत्तर समाते है. मगर शायद यह प्रश्न करने का हक मुझे नहीं था क्यों की अभी एक क्षण पहले मेरी आँखों के सामने ये छोटी सी पैंटी दीदी के विशाल और मांसल चुत्तरों पर अटकी हुई थी. कुछ देर तक उसको देखने के बाद वो फिर से निचे बैठ गई और अपनी पैंटी साफ़ करने लगी. फिर थोड़ी देर बाद ऊपर उठी और अपने पेटीकोट के नाड़े को खोल दिया. मैंने दिल थाम कर इस नज़ारे का इन्तेज़ार कर रहा था. कब दीदी अपने पेटीकोट को खोलेंगी और अब वो क्षण आ गया था. लौड़े को एक झटका लगा और दीदी के पेटीकोट खोलने का स्वागत एक बार ऊपर-निचे होकर किया. मैंने लण्ड को अपने हाथ से पकर दिलासा दिया. नाड़ा खोल दीदी ने आराम से अपने पेटीकोट को निचे की तरफ धकेला पेटीकोट सरकता हुआ धीरे-धीरे पहले उसके तरबूजे जैसे चुत्तरो से निचे उतरा फिर जांघो और पैर से सरक निचे गिर गया. दीदी वैसे ही खड़ी रही. इस क्षण मुझे लग रहा था जैसे मेरा लण्ड पानी फेंक देगा. मुझे समझ में नहीं आ रहा था मैं क्या करू. मैंने आज तक जितनी भी फिल्में और तस्वीरे देखी थी नंगी लड़कियों की वो सब उस क्षण में मेरी नजरो के सामने गुजर गई और मुझे यह अहसास दिला गई की मैंने आज तक ऐसा नज़ारा कभी नहीं देखा. वो तस्वीरें वो लड़कियाँ सब बेकार थी. उफ़ दीदी पूरी तरह से नंगी हो गई थी. हालाँकि मुझे केवल उनके पिछले भाग का नज़ारा मिल रहा था, फिर भी मेरी हालत ख़राब करने के लिए इतना ही काफी था. गोरी चिकनी पीठ जिस पर हाथ डालो तो सीधा फिसल का चुत्तर पर ही रुकेंगी. पीठ के ऊपर काला तिल, दिल कर रहा था आगे बढ़ कर उसे चूम लू. रीढ़ की हड्डियों की लाइन पर अपने तपते होंठ रख कर चूमता चला जाऊ. पीठ पीठ इतनी चिकनी और दूध की धुली लग रही थी की नज़र टिकाना भी मुश्किल लग रहा था. तभी तो मेरी नज़र फिसलती हुई दीदी के चुत्तरो पर आ कर टिक गई. ओह, मैंने आज तक ऐसा नहीं देखा था. गोरी चिकनी चुत्तर. गुदाज और मांसल. मांसल चुत्तरों के मांस को हाथ में पकर दबाने के लिए मेरे हाथ मचलने लगे. दीदी के चुत्तर एकदम गोरे और काफी विशाल थे. उनके शारीरिक अनुपात में, पतली कमर के ठीक निचे मोटे मांसल चुत्तर थे. उन दो मोटे मोटे चुत्तरों के बीच ऊपर से निचे तक एक मोटी लकीर सी बनी हुई थी. ये लकीर बता रही थी की जब दीदी के दोनों चुत्तरों को अलग किया जायेगा तब उनकी गांड देखने को मिल सकती है या फिर यदि दीदी कमर के पास से निचे की तरफ झुकती है तो चुत्तरों के फैलने के कारण गांड के सौंदर्य का अनुभव किया जा सकता है. तभी मैंने देखा की दीदी अपने दोनों हाथो को अपनी जांघो के पास ले गई फिर अपनी जांघो को थोड़ा सा फैलाया और अपनी गर्दन निचे झुका कर अपनी जांघो के बीच देखने लगी शायद वो अपनी चूत देख रही थी. मुझे लगा की शायद दीदी की चूत के ऊपर भी उसकी कान्खो की तरह से बालों का घना जंगल होगा और जरुर वो उसे ही देख रही होंगी. मेरा अनुमान सही था और दीदी ने अपने हाथ को बढा कर रैक पर से फिर वही क्रीम वाली बोतल उतार ली और अपने हाथो से अपने जांघो के बीच क्रीम लगाने लगी. पीछे से दीदी को क्रीम लगाते हुए देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वो मुठ मार रही है. क्रीम लगाने के बाद वो फिर से निचे बैठ गई और अपने पेटीकोट और पैंटी को साफ़ करने लगी. मैंने अपने लौड़े को आश्वाशन दिया की घबराओ नहीं कपरे साफ़ होने के बाद और भी कुछ देखने को मिल सकता है. ज्यादा नहीं तो फिर से दीदी के नंगे चुत्तर, पीठ और जांघो को देख कर पानी गिरा लेंगे.
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दाहिनी तरफ घूम कर आईने में अपने दाहिने हाथ को उठा कर देखा फिर बाएं हाथ को उठा कर देखा. फिर अपनी गर्दन को झुका कर अपनी जांघो के बीच देखा. फिर वापस नल की तरफ घूम गई और खंगाले हुए कपरों को वही नल के पास बनी एक खूंटी पर टांग दिया और फिर नल खोल कर बाल्टी में पानी भरने लगी. मैं समझ गया की दीदी अब शायद नहाना शुरू करेंगी. मैंने पूरी सावधानी के साथ अपनी आँखों को लकड़ी के पट्टो के गैप में लगा दिया. मग में पानी भर कर दीदी थोड़ा सा झुक गई और पानी से पहले अपने बाएं हाथ फिर दाहिनी हाथ के कान्खो को धोया. पीछे से मुझे कुछ दिखाई नहीं पर रहा था मगर. दीदी ने पानी से अच्छी तरह से धोने के बाद कान्खो को अपने हाथो से छू कर देखा. मुझे लगा की वो हेयर रेमोविंग क्रीम के काम से संतुष्ट हो गई और उन्होंने अपना ध्यान अब अपनी जांघो के बीच लगा दिया. दाहिने हाथ से पानी डालते हुए अपने बाएं हाथ को अपनी जांघो बीच ले जाकर धोने लगी. हाथों को धीरे धीरे चलाते हुए जांघो के बीच के बालों को धो रही थी. मैं सोच रहा था की काश इस समय वो मेरी तरफ घूम कर ये सब कर रही होती तो कितना मजा आता. झांटों के साफ़ होने के बाद कितनी चिकनी लग रही होगी दीदी की चुत ये सोच का बदन में झन-झनाहट होने लगी. पानी से अपने जन्घो के बीच साफ़ कर लेने के बाद दीदी ने अब नहाना शुरू कर दिया. अपने कंधो के ऊपर पानी डालते हुए पुरे बदन को भीगा दिया. बालों के जुड़े को खोल कर उनको गीला कर शैंपू लगाने लगी. दीदी का बदन भीग जाने के बाद और भी खूबसूरत और मदमस्त लगने लगा था. बदन पर पानी पड़ते ही एक चमक सी आ गई थी दीदी के बदन में. शैंपू से खूब सारा झाग बना कर अपने बालों को साफ़ कर रही थी. बालो और गर्दन के पास से शैंपू मिला हुआ मटमैला पानी उनकी गर्दन से बहता हुआ उनकी पीठ पर चुते हुए निचे की तरफ गिरता हुआ कमर के बाद सीधा दोनों चुत्तरों के बीच यानी की उनके बीच की दरार जो की दीदी की गांड थी में घुस रहा था. क्योंकि ये पानी शैंपू लगाने के कारण झाग से मिला हुआ था और बहुत कम मात्रा में था इसलिए गांड की दरार में घुसने के बाद कहा गायब हो जा रहा था ये मुझे नहीं दिख रहा था. अगर पानी की मात्रा ज्यादा होती तो फिर वो वहां से निकल कर जांघो के अंदरूनी भागो से ढुलकता हुआ निचे गिर जाता. बालों में अच्छी तरह से शैंपू लगा लेने के बाद बालों को लपेट कर एक गोला सा बना कर गर्दन के पास छोड़ दिया और फिर अपने कंधो पर पानी डाल कर अपने बदन को फिर से गीला कर लिया. गर्दन और पीठ पर लगा हुआ शैंपू मिला हुआ मटमैला पानी भी धुल गया था. फिर उन्होंने एक स्पोंज के जैसी कोई चीज़ रैक पर से उठा ली और उस से अपने पुरे बदन को हलके-हलके रगरने लगी. पहले अपने हाथो को रगरा फिर अपनी छाती को फिर अपनी पीठ को फिर बैठ गई. निचे बैठने पर मुझे केवल गर्दन और उसके निचे का कुछ हिस्सा दिख रहा था. पर ऐसा लग रहा था जैसे वो निचे बैठ कर अपने पैरों को फैला कर पूरी तरह से रगर कर साफ़ कर रही थी क्योंकि उनका शरीर हिल रहा था. थोरी देर बाद खड़ी हो गई और अपने जांघो को रगरना शुरू कर दिया. मैं सोचने लगा की फिर निचे बैठ कर क्या कर रही थी. फिर दिमाग में आया की हो सकता है अपने पैर के तलवे और उँगलियों को रगर कर साफ़ कर रही होंगी. मेरी दीदी बहुत सफाई पसंद है. जैसे उसे घर के किसी कोने में गंदगी पसंद नहीं है उसी तरह से उसे अपने शरीर के किसी भी भाग में गंदगी पसंद नहीं होगी. अब वो अपने जांघो को रगर रगर कर साफ़ कर रही थी और फिर अपने आप को थोड़ा झुका कर अपनी दोनों जांघो को फैलाया और फिर स्पोंज को दोनों जांघो के बीच ले जाकर जांघो के अंदरूनी भाग और रान को रगरने लगी. पीछे से देखने पर लग रहा था जैसे वो जांघो को जोर यानि जहाँ पर जांघ और पेट के निचले हिस्से का मिलन होता और जिसके बीच में चूत होती है को रगर कर साफ़ करते हुए हलके-हलके शायद अपनी चूत को भी रगर कर साफ़ कर रही थी ऐसा मेरा सोचना है. वैसे चुत जैसी कोमल चीज़ को हाथ से रगर कर साफ़ करना ही उचित होता. वाकई ऐसा था या नहीं मुझे नहीं पता, पीछे से इस से ज्यादा पता भी नहीं चल सकता था. थोड़ी देर बाद थोड़ा और झुक कर घुटनों तक रगर कर फिर सीधा हो कर अपने हाथों को पीछे ले जाकर अपने चुत्तरों को रगरने लगी. वो थोड़ी-थोड़ी देर में अपने बदन पर पानी डाल लेती थी जिस से शरीर का जो भाग सुख गया होता वो फिर से गीला हो जाता था और फिर उन्हें रगरने में आसानी होती थी. चुत्तरों को भी इसी तरह से एक बार फिर से गीला कर खूब जोर जोर से रगर रही थी. चुत्तरों को जोर से रगरने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था क्योंकि वहां का मांस बहुत मोटा था, पर जोर से रगरने के कारण लाल हो गया था और थल-थलाते हुए हिल रहा था. मेरे हाथों में खुजली होने लगी थी और दिल कर रहा था की थल-थलाते हुए चुत्तरों को पकड़ कर मसलते हुए हलके-हलके मारते हुए खूब हिलाउ. चुत्तारों को रगरने के बाद दीदी ने स्पोंज को दोनों चुत्तरों की दरार के ऊपर रगरने लगी फिर थोड़ा सा आगे की तरफ झुक गैई जिस से उसके चुत्तर फ़ैल गए. फिर स्पोंज को दोनों चुत्तरों के बीच की खाई में डाल कर रगड़ने लगी. कोमल गांड की फूल जैसी छेद शायद रगड़ने के बाद लाल हो गुलाब के फूल जैसी खिल जायेगी. ये सोच कर मेरे मन में दीदी की गांड देखने की तीव्र इच्छा उत्पन्न हो गई. मन में आया की इस लकड़ी की दिवार को तोड़ कर सारी दुरी मिटा दू, मगर, सोचने में तो ये अच्छा था, सच में ऐसा करने की हिम्मत मेरी गांड में नहीं थी. बचपन से दीदी का गुस्सैल स्वभाव देखा था, गांड पर ऐसी लात मारेगी की गांड देखना भूल जाऊंगा. हालाँकि दीदी मुझे प्यार भी बहुत करती थी और मुझे कभी भी परेशानी में देख तुंरत मेरे पास आ कर मेरी समस्या के बारे में पूछने लगती थी.
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11-01-2017, 12:06 PM,
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RE: Holi sex stories-होली की सेक्सी कहानियाँ
होली पर बीबी चुदी दीदी चुदी--4
गतांक से आगे ....................................................
दीदी को नंगा देख कर मेरा लोडा खड़ा हो चूका था और मेरे पास मुठ मरने कोई चारा था,मेने अपना लोडा निकला और मूठ मारने लगा,मेरी आँखे न जाने कब दीदी कि चूत कि कल्पना करते करते बंद हो गयी और दीदी एकदम बहार निकल आयी। दीदी मुझे चिल्लाते हुए बोली रोहित ये क्या कर रहे हो?मेने कहा दीदी कुछ नही ,बस पद्मा और जीजाजी को होली कि मस्ती देख मुझे भी मस्ती चढ़ गयी ,फिर आपको नहाते देखा तो मन किया मूठ मरने का ,दीदी चिल्लाई क्या तूने मुझे नहाते देखा,हे भगवन तुझे शर्म नही आयी कि तू क्या कर रहा हे। मेने कहा दीदी अभी में मस्ती के मूड में हु और तुम्हारी चूत देखना चाहता हु। जीजाजी जो पद्मा के साथ कर रहे हे वो आपने भी देखा और मेने भी देखा ,आज होली हे आज हम दोनों भाई बहन होली मानते हे। दीदी चिल्लाते हुए बोली देखो माँ…तुमने कैसा लाडला पैदा किया है....अपनी बड़ी बहन को बुर दिखने को बोल रहा है....हाय कैसा बहनचोद भाई है मेरा....मेरी चुत देखने के चक्कर में है...उफ्फ्फ....मैं तो फंस गई हूँ...मुझे क्या पता था की मुठ मारने से रोकने की इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी...."
“दीदी की ऐसे बोलने पर मेरा सारा जोश ठंडा पर गया. मैं सोच रहा था अब मामला फिट हो गया है और दीदी ख़ुशी ख़ुशी सब कुछ दिखा देंगी. शायद उनको भी मजा आ रहा है, इसलिए कुछ और भी करने को मिल जायेगा मगर दीदी के ऐसे अफ़सोस करने से लग रहा था जैसे कुछ भी देखने को नहीं मिलने वाला. मगर तभी दीदी बोली "ठीक है मतलब तुझे चुत देखनी है...मैं दीदी के चेहरे की तरफ देखने लगा तो दीदी आँख नचाते हुए बोली "चुत ही तो देखनी है...वो तो मैं पेटिकोट उठा कर दिखा दूंगी..." फिर तेजी से बाहर निकल बाथरूम चली गई. मैं सोच में पड़ गया मैं दीदी को पूरा नंगा देखना चाहता था. मैं उनकी चूची और चुत दोनों देखना चाहता था और साथ में उनको चोदना भी चाहता था, पर वो तो बाद की बात थी पहले यहाँ दीदी के नंगे बदन को देखने का जुगार लगाना बहुत जरुरी था. मैंने सोचा की मुझे कुछ हिम्मत से काम लेना होगा. दीदी जब वापस रूम में आकर अपने पेटिकोट को घुटनों के ऊपर तक चढा कर बिस्तर पर बैठने लगी तो मैं बोला " दीदी....दीदी...मैं….चू…चू…चूची भी देखना...चाहता हूँ". दीदी इस पर चौंकने का नाटक करती बोली "क्या मतलब...चूची भी देखनी है….चुत भी देखनी है....मतलब तू तो मुझे पूरा नंगा देखना चाहता है....हाय....बड़ा बेशर्म है....अपनी बड़ी बहन को नंगा देखना चाहता है....क्यों मैं ठीक समझी ना...तू अपनी दीदी को नंगा देखना चाहता है...बोल, ...ठीक है ना...." मैं भी शरमाते हुए हिम्मत दिखाते बोला "हां दीदी....मुझे आप बहुत अच्छी लगती हो....मैं....मैं आप को पूरा...नंगा देखना....चाहता..."
"बड़ा अच्छा हिसाब है तेरा....अच्छी लगती हो.....अच्छी लगने का मतलब तुझे नंगी हो कर दिखाऊ...कपड़ो में अच्छी नहीं लगती हूँ क्या...."
"हाय दीदी मेरा वो मतलब नहीं था....वो तो आपने कहा था....फिर मैंने सोचा....सोचा...."
"हाय भाई...तुने जो भी सोचा सही सोचा....मैं अपने भाई को दुखी नहीं देख सकती....मुझे ख़ुशी है की मेरा इक्कीस साल का नौजवान भाई अपनी बड़ी बहन को इतना पसंद करता है की वो नंगा देखना चाहता है..मैं तुझे पूरा नंगा हो कर दिखाउंगी.....फिर तुम मुझे बताना की तुम अपनी दीदी के साथ क्या-क्या करना चाहते हो....".मेरी तो जैसे लाँटरी लग गई. चेहरे पर मुस्कान और आँखों में चमक वापस आ गई. दीदी बिस्तर से उतर कर नीचे खड़ी हो गई और हंसते हुए बोली "पहले पेटिको़ट ऊपर उठाऊ या ब्लाउज खोलू..." मैंने मुस्कुराते हुए कहा "हाय दीदी दोनों....खोलो....पेटिको़ट भी और ब्लाउज भी...."
"इस.....स......स....बेशर्म पूरा नंगा करेगा....चल तेरे लिए मैं कुछ भी कर दूंगी....अपने भाई के लिए कुछ भी...पहले ब्लाउज खोल लेती हूँ फिर पेटिको़ट खोलूंगी....चलेगा ना..." गर्दन हिला कर दीदी ने पूछा तो मैंने भी सहमती में गर्दन हिलाते हुए अपने गालो को शर्म से लाल कर दीदी को देखा. दीदी ने चटाक-चटाक ब्लाउज के बटन खोले और फिर अपने ब्लाउज को खोल कर पीछे की तरफ घूम गई और मुझे अपनी ब्रा का हूक
खोलने के लिए बोला मैंने कांपते हाथो से उनके ब्रा का हूक खोल दिया. दीदी फिर सामने की तरफ घूम गई. दीदी के घूमते ही मेरी आँखों के सामने दीदी की मदमस्त, गदराई हुई मस्तानी कठोर चूचियां आ गई. मैं पहली बार अपनी दीदी के इन गोरे गुब्बारों को पूरा नंगा देख रहा था. इतने पास से देखने पर गोरी चूचियां और उनकी ऊपर की नीली नसे, भूरापन लिए हुए गाढे गुलाबी रंग की उसकी निप्पले और उनके चारो तरफ का गुलाबी घेरा जिन पर छोटे-छोटे दाने जैसा उगा हुआ था सब नज़र आ रहा था. मैं एक दम कूद कर हाय करते हुए उछला तो दीदी मुस्कुराती हुई बोली "अरे, रे इतना उतावला मत बन अब तो नंगा कर दिया है आराम से देखना....ले...देख..." कहती हुई मेरे पास आई. मैं बिस्तर पर बैठा हुआ था और वो निचे खड़ी थी इसलिए मेरा चेहरा उनके चुचियों के पास आराम से पहुँच रहा था. मैं चुचियों को ध्यान से से देखते हुए बोला "हाय...दीदी पकड़े..."
"हाँ...हाँ....पकड़ ले जकड़...ले अब जब नंगा कर के दिखा रही हूँ तो...छूने क्यों नहीं दूंगी....ले आराम से पकड़ कर मजा कर......अपनी बड़ी बहन की नंगी चुचियों से खेल...." मैंने अपने दोनों हाथ बढा कर दोनों चुचियों को आराम से दोनों हाथो में थाम लिया. नंगी चुचियों के पहले स्पर्श ने ही मेरे होश उड़ा. उफ्फ्फ दीदी की चूचियां कितनी गठीली और गुदाज थी, इसका अंदाजा मुझे इन मस्तानी चुचियों को हाथ में पकड़ कर ही हुआ. मेरा लण्ड फरफराने लगा. दोनों चुचियों को दोनों हथेली में कस हलके दबाब के साथ मसलते हुए चुटकी में निप्पल को पकड़ हलके से दबाया जैसे किशमिश के दाने को दबाते है. दीदी के मुंह से एक हलकी सी आह निकल गई. मैंने घबरा कर चूची छोड़ी तो दीदी ने मेरा हाथ पकड़ फिर से अपनी चुचियों पर रखते हुए दबाया तो मैं समझ गया की दीदी को मेरा दबाना अच्छा लग रहा है और मैं जैसे चाहू इनकी चुचियों के साथ खेल सकता हूँ. गर्दन उचका कर चुचियों के पास मुंह लगा कर एक हाथ से चूची को पकड़ दबाते हुए दूसरी चूची को जैसे ही अपने होंठो से छुआ मुझे लगा जैसे दीदी गनगना गई उनका बदन सिहर गया. मेरे सर के पीछे हाथ लगा बालों में हाथ फेरते हुए मेरे सर को अपनी चुचियों पर जोर से दबाया. मैंने भी अपने होंठो को खोलते हुए उनकी चुचियों के निप्पल सहित जितना हो सकता था उतना उनकी चुचियों को अपने मुंह में भर लिया और चूसते हुए अपनी जीभ को निप्पल के चारो तरफ घुमाते हुए चुमलाया तो दीदी सिसयाते हुए बोली "आह....आ...हा....सी...सी....ये क्या कर रहा है...उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़.....मार डाला....साले मैं तो तुझे अनारी समझती थी....मगर....तू....तो खिलाड़ी निकला रे.....हाय...चूची चूसना जानता है.....मैं सोच रही थी सब तेरे को सिखाना पड़ेगा....हाय...चूस भाई...सीईई....ऐसे ही निप्पल को मुंह में लेकर चूस और चूची दबा....हाय रस निकाल बहुत दिन हो गए....."
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