11-17-2020, 12:35 PM,
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desiaks
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RE: Gandi Kahani (इंसान या भूखे भेड़िए )
यानी दीवान सारी बात जानता था. अब कौन होगा ऐसा जो मनु के घर और ऑफीस मे अपने जासूस लगाए हो, और वो जो कोई भी था, नही चाहता कि उस रात का राज बाहर आए. काव्या जी, आप ने इतना बड़ा गेम प्लान किया था कि हमारे पास सवालों की लंबी लिस्ट थी और शक़ के दायरे मे पूरा एस.एस ग्रूप. लेकिन एक बार भी शक़ आप पर नही गया.....
एक सल्यूट तो बनता है काव्या इस गेम प्लॅनिंग के लिए. क्या दिमाग़ पाया है. जब तुम्हे लगा कि पोलीस दीवान की मौत का पता लगाते हुए नेगी और श्रमण तक पहुँच जाएगी, तुम ने तो सारे शक़ की सुई को हर्षवर्धन और अमृता पर ही घुमा दिया.
"क्या दिमाग़ पाया है, हां.... कमाल बिल्कुल. किसी को ना यकीन करने की कोई वजह ही नही दी, ऐसा खेल रचा जिस मे पूरा शक़ हर्षवर्धन और अमृता के उपर ही जाए. यहाँ तक कि मनु और स्नेहा का वीडियो भी तुम्हारे इशारे पर ही लीक हुआ.... ब्रावो"...
"अब तुम्हारे दिमाग़ मे ये आ रहा होगा कि, कंप्लीट डेड एंड के बाद भी हमे तुम्हारा पता कैसे चला. ये भी एक और संयोग. हम पुख़्ता सबूत इकट्ठा कर रहे थे, इसलिए हमने दो लोगों पर गहराई से छानबीन किया, नेगी और श्रमण...
"श्रमण तो खैर किसी काम का ही नही था. उसे तो बस इतना पता था, कि किसी ने काम कहा और उसे पूरा करना है, बदले मे उसे पैसे मिलेंगे. हालाँकि, नेगी को भी इतनी ही खबर रहती थी, लेकिन अतीत का उसके एक किए कांड ने धीरे-धीरे सारे राज खोल डाले"....
"गूव्ट. शिप्पिंग टेंडर, और नेगी का वो टेंडर लीक, जिसका सीधा फ़ायदा अग्रॉ शिप्पिंग का हुआ और वो टेंडर उसे मिल गया. हमारी कड़ियाँ लिंक हो चुकी थी. अग्रॉ शिप्पिंग के एल्लिगल धंधे मे कोई एस.एस ग्रूप का भी कोई असोसिएट शामिल है".
"अब यहाँ आ कर गुत्थी उलझी थोड़ी सी. क्योंकि जिस वक़्त वो टेंडर लीक हुआ था... हर्षवर्धन विदेश मे था और अमृता को ऑफीस से कोई मतलब ही नही. बस फिर क्या था, हमारे सोचने का नज़रिया थोड़ा चेंज हुआ, हमे लगा कि मनु और मानस की हालत के पिछे कोई तीसरा भी है, जिसने बाद मे हर्षवर्धन और अमृता को अपनी ओर मिलाया होगा".
"फिर क्या था, उस वक़्त के पुराने पन्ने हमने पलटना शुरू किया. और कमाल की बात ये थी, कंपनी से रिलेटेड हर इश्यू मे केवल एक ही नाम सामने आया, और वो था काव्या.... काव्या, काव्या, काव्या..... आख़िर ये काव्या चीज़ क्या थी".....
"फिर क्या था हमने काव्या के अतीत को भी छान डाला. समझ मे आ चुका था कि क्यों हर्षवर्धन और अमृता नफ़रत करते थे मनु और मानस से. लेकिन दोनो को देख कर लगता नही था कि ये दोनो रेप जैसी भी प्लॅनिंग कर सकते हैं. उपर से काव्या जैसा नाम सुसाइड कर ले, उफफफफ्फ़ बात कुछ हजम नही हुई"...
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RE: Gandi Kahani (इंसान या भूखे भेड़िए )
"हम फिर पहुँचे उस जगह जहाँ से ये सारा फ़साद शुरू हुआ था. 18 सेप्तेम्बर 1994, मनाली का वो एक घर, जहाँ पर मानस के उपर रेप का इल्ज़ाम लगा था. पोलीस के फाइल मे कुछ तो होगा जो हमारे काम का हो. 18 सेप्तेम्बर 1994 के सारे केस की फाइल हमने मँगवाया. मानस का केस तो था, पर वहाँ कविया के सुसाइड का कोई ज़िक्र नही था. कमाल है ना काव्या के सुसाइड की रिपोर्ट कहीं नही".
"सारी फाइल देखते-देखते हमारी नज़र एक क्लोज़ केस फाइल पर गयी, जिसमे हथियारों की तस्करी के लिए पोलीस ने जाल बिच्छाया था, जिस मे भागते हुए अपराधियों की वॅन का आक्सिडेंट हो गया और सभी मारे गये. कमाल की बात ये थी कि हादसे मे मरने वालों की लिस्ट मे एक लड़की का हुलिया और काव्या का हुलिया, लगभग सेम था. बस दोनो ही फाइल मे कोई तस्वीर नही थी".
"इंटरेस्टिंग, काव्या से जुड़ा एक और नया राज शायद हमारे हाथ लगा था. आर्म्स डीलिंग रोकने और अपराधियों को पकड़ने वाली टीम के ऑफीसर इंचार्ज से मैं मिला... उस ऑफीसर का कहना था कि, जिस वक़्त वो लोग रेड करने मौका-ए-वारदात पर पहुँचे, पोलीस के आक्षन से पहले ही उसके पास वाले घर से एक बाप और बेटी निकली जो आक्षन ले रही पोलीस के सामने खड़े हो कर रेप-रेप चिल्ला रहे थे"....
"पोलीस की टुकड़ी आगे बढ़ नही पाई और मौका देख कर वहाँ से सारे अपराधी फरार होने लगे... लेकिन पोलीस ने भी उनका पिच्छा नही छोड़ा... पिच्छा करते हुए उनकी वॅन का आक्सिडेंट हो गया और वो गहरी खाई मे गिर गये. अगले दिन हमने वहाँ से 7 जाली हुई लाशों की शिनाख्त की, जिस मे 2 फीमेल और 5 मेल थे. हमारी इन्फ़ॉर्मेशन के मुताबिक इतने ही लोग वहाँ होने चाहिए थे"....
"वूव्वववव !!!! ये थे असली कहानी मे ट्विस्ट. रेप का इल्ज़ाम मानस पर सिर्फ़ इसलिए लगा ताकि काव्या वहाँ से भाग सके. एक बार यदि वो पोलीस के हत्थे चढ़ जाती, फिर तो एस.एस ग्रूप भी गया और साथ मे जैल वो अलग से. अब जब इतनी शातिर अपराधी से हमारा पाला पड़ा हो, फिर वो भला मर कैसे सकती है. उपर से सुसाइड तो काव्या ने किया, पर क़ानूनन कोई ज़िक्र नही. मतलब सॉफ था, किसी भी वक़्त कोई भी बहाना कर के काव्या वापसी कर सकती थी".......
"अब जब यकीन हो गया कि काव्या जिंदा है तो बस अब हमे काव्या है कहाँ वो पता लगाना था. अब तो सारी कड़ी जुड़ी हुई थी, और काव्या का पता उसका पार्ट्नर तो ज़रूर जानता होगा.... फिर हमने अग्रॉ शिप्पिंग के ओनर का टूर प्रोग्राम डीटेल निकाला... और कमाल की बात ये थी काव्या हमे घाना मे मिल गयी, एक ड्रग डीलर के रूप मे, जो एक अच्छी ज़िंदगी जी रही थी".
"घाना मे हमारे लिए कोई सर्प्राइज़ नही था, बस हमे ये पता लगाना था कि जब काव्या इंडिया मे वापसी का रास्ता छोड़ कर आई थी, फिर वजह क्या थी उसे घाना मे इतने अरसे तक रुकने की. थोड़े दिन सर्व्लेन्स के बाद पता चला, काव्या घाना मे अपनी लाइफ पूरा एंजाय कर रही थी और बस इंतज़ार कर रही थी कि कब मनु सारी प्रॉपर्टी अपने नाम करवा ले.
"घाना मे ही हमे पता चल चुका था कि मनु और मानस तो असली यहाँ है, और कमाल की बात ये थी कि दोनो हू बहू वैसे ही सिग्नेचर करते थे जैसे यहाँ इंडिया मे ये दोनो भाई. असली और नकली का फ़ैसला करने के लिए हम ने इन दोनो भाई का डीयेने सॅंपल भी लिया..... एक डीयेने शम्शेर और दूसरी डीयेने हर्षवर्धन से मॅच कर गयी. काव्या का पूरा प्लान बिल्कुल क्लियर हो गया था".
"घाना मे अब हमारा क्या काम था. काव्या जी तो लौट कर ही आ रही थी. बस अब हमे काव्या के आने का स्वागत करना था. स्वागत का पहला चरण ये था कि सारी प्रॉपर्टी काव्या को दे कर भी ना दिया जाए, और दूसरी कि जब तक काव्या पहुँचे, उस के खिलाफ पुख़्ता सबूत तैयार हो.
"काव्या के खिलाफ तो अग्रॉ शिप्पिंग का ओनर ही सबूत था, अब बची प्रॉपर्टी, जिस के लालच मे काव्या इंडिया आती. मैने तुरंत नताली को इन्फर्मेशन दिया कि उसे अब आगे क्या करना है... उम्म्म्महह, नताली ... मेरी गर्लफ्रेंड... कमाल ही कर दिया उसने तो. मनु लगता है ये बिज़्नेस की भाषा तुम ही काव्या को समझा सकते हो... क्लियर कर दो कि इसकी प्रॉपर्टी कैसे इसकी नही".....
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RE: Gandi Kahani (इंसान या भूखे भेड़िए )
मनु..... छोड़ ना पार्थ, तुम और नताली तो पहुँचे खिलाड़ी निकले. साला बिना मेरी जानकारी के लगभग सारी संपत्ति अपने नाम कर ही चुके थे.
पार्थ..... लेकिन तुम्हारे बिना संभव तो नही था ना मनु. हां हम ने सारे पेपर्स तैयार कर के रखे ज़रूर थे, पर उन पेपर्स पर शम्शेर जी के सिग्नेचर ना होते तो किस काम के वो पेपर्स होते. अब भी वही बात कह रहे हो यार मनु, जब कि तुम जानते हो यदि हमारा धोका देने का भी इरादा होता तो हम नही दे पाते....
मनु.... हां सो तो है... खैर रुक जाओ पार्थ, बेचारी की मेहनत पर जो पानी फिरा उसका फाइनल चेप्टर तो बता दूं.....
"सुनो काव्या, मुझे जब बात पता चली, तब मेरे पाँव तले से ज़मीन खिसक गयी. मुझे खुद से नफ़रत होने लगी, क्योंकि मैं ग़लत के लिए लड़ रहा था, और दूसरों की संपत्ति अपने नाम करने जा रहा था. समस्या जानती हो कहाँ हो गयी, यदि सब को सच बता दिया तो तुम हाथ नही आओगी, और बिना जानकारी के हमे सारी संपत्ति ट्रान्स्फर करनी थी".....
"नताली कमाल की प्लॅनर निकली. क्या कांट्रॅक्ट था वो, 5 दिन मे 45 गॅलेन नाइट्रिक आसिड के सप्लाइ मे चाहिए थे, यदि फैल हुए तो पॅनाल्टी मे मनु के पूरी कंपनी नताली की केमिकल फॅक्टरी के नाम. दादू से कैसे सिग्नेचर लेना है वो मैं जानता था, और भला मुझे क्या ऐतराज़ होता सिग्नेचर करने मे".
"वैसे इस कांट्रॅक्ट को तुम कॅन्सल भी करवा सकती थी, यदि तुम्हारा वॅकिल चिल्ला-चिल्ला कर ये ना कहता कि..... "जितने भी कांट्रॅक्ट हुए वो असली मनु के सिग्नेचर अतॉरिटी से हुए, जिस पर फाइनल मोहर शम्शेर ने लगाया था."...
"भाई अखिल, 25 साल की इसकी मेहनत के फल का फ़ायदा इसे दे दो.... वरना कहेगी कि इतनी मेहनत की हमे फ़ायदा नही मिला".....
अखिल काव्या और उस के बेटों को हथकड़ी पहनाने के साथ-साथ 10% कंपनी के सहरे वॅल्यू वाले बॉन्ड उसके हाथ मे थमा दिए... जिस मे ये लिखा था कि 10% कंपनी मे कभी उन्हे शेर नही मिलेगा, लेकिन सज़ा काट कर आने के बाद 10 दिनो के अंदर वो अपने शेर वॅल्यू को कॅश करा कर अपना हिस्सा ले जा सकते हैं.
कांट्रॅक्ट हाथ मे देख कर काव्या बड़ी हैरानी से मनु को देखने लगी.... मनु....
"बे ईमान नही हूँ, जो तुम्हारे बच्चों का हिस्सा खा जाउ. तुम ने जैसा उन्हे सिखाया उन दोनो ने वही सीखा, पर पैत्रिक संपत्ति पर उनका भी कुछ हक़ है इसलिए ये दे दिया"......
अखिल, काव्या और उसके बेटों को ले जा कर उसकी असली जगह जैल मे डाल दिया.... उसी दिन रात को फिर से महफ़िल जमी मूलचंदानी हाउस मे. मनु ने पहले ही सारे पेपर्स रेडी कर दिया था. एस.एस ग्रूप फिर से खड़ा था, सब को उतना ही हिस्सा जितना पहले था, बस मनु और मानस के 25% बराबर बँट गये पूरी कंपनी के स्टाफ मे.
बहुत ही आश्चर्य भरा पल था जब सब को ये पता चला कि, मनु ने प्रॉपर्टी का 1 रुपया भी नही लिया... चाहता तो सारी संपत्ति खुद रख सकता था, कोई कुछ बिगाड़ नही सकता था. लेकिन उसने ऐसा नही किया.... सारी संपाति उसके मालिकों के हवाले कर के दोनो भाई खाली हाथ चल दिए....
शम्शेर...... मनु, मानस... कहाँ जा रहे हो मेरे बच्चो. हम काव्या से कभी नही बच सकते थे यदि तुम दोनो ना होते.... लौट आओ और सम्भालो अपनी बागडोर. तुम से अच्छा कोई भी एस.एस ग्रूप नही चला सकता...
मनु......
"दादू, जो चीज़ हमारी नही, उसे हम कैसे ले ले. जब मनु और मानस की पहचान ही झूठी है तो फिर और क्या सच होगा. अभी तो पहले हमे अपना एक नाम और एक पहचान बनानी है. और हां जाते-जाते आप सब के लिए एक संदेश..... मुझे उन्ही काम की बेहतर जानकारी है, जिससे मैने एस.एस ग्रूप मे संभाला.... इसलिए बी रेडी फॉर कॉंपिटेशन... सी यू इन दा फील्ड"
एंड
समाप्त
दोस्तो ये कहानी यहीं समाप्त होती है ये कैसी लगी ये कहानी आपको ज़रूर बताना आपका दोस्त राज शर्मा
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