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RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
पिक्चर खत्म हो चुकी थी। सारे दर्शकों के दिमाग में वही भावावेश और उन्मादक उत्तेजना एक सिक्के की तरह छप गयी थी। जस्सूजी, ज्योति, सुनील और सुनीता पिक्चर के अचानक ख़त्म होते ही भौंचक्के से खड़े हो कर अपने कपडे ठीक करने में लग गए। जाहिर था की चारों अपने निकट बैठे हुए जोड़ीदार से कुछ ना कुछ हरकत कर रहे थे। कुछ भी बोलने का कोई अवसर ही नहीं था। सब एक दूसरे से नजरें बचा रहे थे या फिर दोषी की तरह खिसियाई नज़रों से देख रहे थे। वापसी में ट्रैन में कुछ भीड़ नहीं थी। सब ट्रैन में चुपचाप बैठे और बिना बोले वापस अपने घर पहुंचे। दोनों महिलाएं समय गँवाये बिना, फुर्ती से ऊपर सीढ़ियां चढ़कर अपने फ्लैट में पहुँच गयी।
निचे कर्नल साहब और सुनील बाई बाई करने के लिए और हाथ मिलाने के लिए खड़े हुए और एक दूसरे की और खिसियानी नजर से देखने लगे तब कर्नल साहब ने सुनील से कहा, "देखिये सुनीलजी, आज जाने अनजाने हमारी दोस्ती, दोस्ती से आगे बढ़कर दोस्ताना बन गयी है। हम दोनों परिवार कुछ अधिक करीब आ रहे हैं। हमें चाहिए की हमारे बिच कुछ ग़लतफ़हमी या मनमुटाव ना हो। इस लिए अगर आप दोनों में से किसी के भी मन में ज़रा सी भी रंजिश हो या आपको कुछ भी गलत या अरुचिकर भी लगे तो तो प्लीज खुल कर बोलिये और मुझे अपना मान कर साफ़ साफ़ बताइयेगा। मेरे लिए और ज्योति के लिए आप दोनों की दोस्ती अमूल्य है। हम किसी भी कारणवश उसपर आँच नहीं आने देंगे।"
सुनील ने अपना हाथ कर्नल साहब के हाथों में देते हुए कहा, "ऐसी कुछ भी बात नहीं है। हम भी आप दोनों को उतना ही अपना मानते हैं जितना आप हमको मानते हैं। हमारे बिच कभी कोई भी मनमुटाव या गलत फहमी हो ही नहीं सकती क्यूंकि हम चारों एक दूसरे की संवेदनशीलता का पूरा ख्याल रखते हैं। आज या पहले ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जो हम सब नहीं चाहते हों। जहां तक मुझे लगता है, आगे भी ऐसा नहीं होगा। पर अगर ऐसा कुछ हुआ भी तो हम जरूर आप से छुपायेंगे नहीं। हमारे लिए भी आप की दोस्ती अमूल्य है।"
दोनों कुछ चैन की साँस लेते हुए अपने फ्लैट में अपनी पत्नियों के पास पहुंचे। कर्नल साहब के घर पहुँचते ही ज्योति उनके गले लिपट गयी और कर्नल साहब के लण्ड को सहलाती हुई उनके लण्ड की और देख कर हँस कर शरारत भरी आवाज में बोली, "मेरे जस्सूजी! आज मेरे इस दोस्त को कुछ नया एहसास हुआ की नहीं?"
कर्नल साहब अपनी पत्नी की और खिसियानी नजर से देखने लगे तब ज्योति ने फिर हँस कर वही शरारती ढंग से कहा, "अरे मेरे प्यारे पति! इसमें खिसिया ने की क्या बात है?" ज्योति फिर अपने पति की बाँहों में चली गयी और बोली, "अरे मेरी प्यारी सुनीता के जस्सूजी! जो हुआ वह तो होना ही था! मैंने यह सब करने के लिए ही तो यह पिक्चर का प्लान किया था। क्या मैं अपने पति को नहीं जानती? और यह भी सुन लीजिये। तुम्हारे दोस्त सुनील भी तुमसे कुछ कम नहीं हैं। उन्होंने भी तुम्हारी तरह कोई कसर नहीं छोड़ी।"
घर पहुँच ने पर सुनीता और सुनील के बिच में कोई बातचीत नहीं हुई। सुनीता बेचारी झेंपी सी घर पहुँचते ही घरकाम (खाना बनाना, शाम की तैयारी इत्यादि) में जुट गयी। सुनील सुनीता की मनोदशा समझ कर चुप रहे। उन्हें सुनीता की झेंप के कारण का अच्छा खासा अंदाजा तो था ही। वह खुद भी तो जानते थे की जो उन्होंने ज्योति के साथ किया था शायद उससे कुछ ज्यादा कर्नल साहब ने सुनीता के साथ करने की कोशिश की होगी।
सुनीता के बैडरूम में उस रात गजब की धमाकेदार चुदाई हुई। जैसे ही सुनीता ने बैडरूम में पहुँच कर दरवाजा बंद किया की फ़ौरन दौड़ कर वह सुनील से लिपट गयीं और बोली, "सुनील डार्लिंग, देखो तुम बुरा ना मानो तो एक बात कहूं?"
सुनील कुछ ना बोला और अपना सर हिला कर उसने अपनी पत्नी सुनीता की और देखा तो वह बोली, "मैं तुमको बार बार कह रही थी की मेरे पास बैठो। पर तुमने मेरी बात नहीं मानी। आखिर में कर्नल साहब से रहा नहीं गया और आज कुछ ज्यादा ही हो गया।"
सुनील ने अपनी बीबी की जाँघों के बिच हाथ सरकाते हुए कहा, "डार्लिंग, क्या हुआ? मैंने तुम्हें कहा था ना की ज्यादा से ज्यादा क्या हो सकता था? डार्लिंग जो भी हुआ अच्छा ही हुआ। पर यह सब बातें मुझे नहीं सुननी। आज मेरा तुम्हें चोदने का बहुत मन कर रहा है। चलो तैयार हो जाओ।"
सुनीता ने शर्माते हुए कहा, "मैं भी तुम्हारा मोटा लण्ड डलवाने के लिए तड़प रही हूँ।"
सुनील ने तब अपनी पत्नी की चिबुक अपनी उँगलियों में पकड़ कर सुनीता की नजर से नजर मिलाकर पूछा, "डार्लिंग, एक बात सच सच बताओ, क्या कर्नल साहब का लण्ड वाकई में बड़ा है?"
सुनीता के गालों पर एकदम गहरी लालिमा छा गयी। वह अपने पति से नजरें चुरा कर बोली, "तुम क्या फ़ालतू बकवास कर रहे हो? मुझे क्या पता? मैं कोई उनका लण्ड थोड़े ही देख रही थी? बड़ा ही होगा। इतने हट्टेकट्टे जो हैं। लण्ड भी तो बड़ा ही होगा। अगर तुम्हें पता करना ही है, तो तुम ज्योति जी से क्यों नहीं पूछते की उनके पति का लण्ड कितना बड़ा है? अब तो तुम दोनों इतने करीब आ ही चुके हो?"
और उस रात फिर एक बार और सुनील और उसकी बीबी सुनीता ने जम कर चुदाई की। सुनीता पर तो जैसे कोई भूत ही सवार हो गया था। सुनीता सुनील के ऊपर चढ़कर उसे ऐसी फुर्ती से जोरशोर से चोदने लगी की सुनील का तो कुछ ही देर में छूट गया।
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उस दिन सुनील अपने ऑफिस के काम के सन्दर्भ में कहीं दो दिन के टूर गया हुआ था। कर्नल साहब और सुनील की पत्नी सुनीता परीक्षा की तैयारियों में लगे हुए थे। कर्नल साहब गणित के कुछ कठिन दाखिले सुलझाने के लिए और उसे अपनी शिष्या सुनीता को कैसे वह आसानी समझा पाएं उस के लिए पूरी रात जाग कर तैयारी कर रहे थे।
कर्नल साहब जानते थे कई बार परीक्षा में कोई कठिन दाखिला विद्यार्थी को विचलित कर सकता है और वह सुनीता के साथ ऐसा कुछ ना हो यह पक्का करना चाहते थे। इसी लिए कर्नल साहब ने दो दिन छुट्टी भी ले रक्खी थी। सुनीता ने अपने बैडरूम में से देखा की कर्नल साहब के स्टडी रूम की बत्ती पूरी रात जल रही थी। कई बार सुनीता ने अपने बैडरूम से कर्नल साहब को हाथ में किताब लिए कमरे में इधर उधर चहल कदमी करते हुए भी देखा।
सुनीता जानती थी की कर्नल साहब उसे दूसरे दिन पढ़ाने के लिए और वह परीक्षा में अव्वल दर्जे में सफल हो उसकी पूरी तैयारी में जुटे हुए थे। यह देख कर सुनीता समझ नहीं पायी की ऐसे इंसान के लिए क्या किया जाए। जो इंसान किसी दूसरे की सफलता के लिए ऐसे जी जान से लग जाए उसे क्या कहा जाए?
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RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
सुनीता ने भी तय किया की वह भी अपना पूरा मन लगा कर पढ़ेगी और जो अपने गुरु की इच्छा है उसे पूरा करेगी। वह कोहिश करेगी की वह अव्वल दर्जे से पास हो। कर्नल साहब का जोश देख कर सुनीता को भी जोश आ गया। वह भी पूरी रात पढ़ाई करने लगी।
जाहिर है जब दूसरे दिन कर्नल साहब ने सुनीता के सामने कुछ बड़े ही कठिन और जटिल प्रश्न रखे तो सुनीता ने कर्नल साहब से थोड़ा मार्गदर्शन लेने के बाद उन्हें बड़ी जल्दी आसानी से सुलझा दिए। वह ऐसे प्रश्न थे जिन्हे कर्नल साहब भी सावधानी से हल करने की कोशिश करते थे। यह देख कर कर्नल साहब के रोमांच और उन्माद का ठिकाना ना रहा। वह सुनीता ने लिखे हुए जवाबों को पढ़कर पागल से हो रहे थे। सुनीता ने जब अपने जवाब पत्र कर्नल साहब के हाथ में दिए और उनको पढ़ते हुए देखा तो हैरान रह गयी। कर्नल साहब की आँखों में से आँसूं बहने लगे जब वह एक के बाद एक जवाब पढ़ने लगे।
एकदम वह सुनीता के सामने उठ खड़े हुए और सुनीता को कस के अपनी बाँहों में भर लिया। सुनीता अपना सर उठा कर कर्नल साहब को देखती ही रही। कर्नल साहब सुनीता का सर, आँखें, उसके बाल, उसका कंधा और सुनीता के गाल तक चूमते हुए बोलने लगे, "मैंने अपनी जिंदगी में पहले किसी विद्यार्थी को इतना परफेक्ट जवाब देते हुए नहीं पाया।"
कर्नल साहब का ऐसा भावावेश सुनीता ने पहले कभी नहीं देखा था। कर्नल साहब का ऐसा हाल देख सुनीता की आँखों में भी आँसूं आ गए। वह कर्नल साहब से लिपट गयी और बोली, "जस्सूजी, यह मेरा नहीं आपका कमाल है। आपने मुझे जीरो से हीरो बना दिया। सच कहते हैं, गुरु भगवान् होता है। वह कुछ भी कर सकता है।"
कर्नल साहब ने कहा, "नहीं ऐसा नहीं है। गुरु तो सबको बराबर शिक्षा देता है। पर कभी कभी कोई शिष्य उसका पूरा फायदा उठा पाता है। सब नहीं उठा पाते।"
भावावेश में सुनीता ने अपने होँठ उठाये और बरबस ही कर्नल साहब के होँठ के तले रख दिए। वह अपने आप पर नियत्रण नहीं रख पा रही थी। आज उसने महसूस किया की मन का तन पर बड़ा ही अद्भुत नियंत्रण है। यदि मन ठीक नहीं होता तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता। और अगर मन होता है सब कुछ अच्छा लगता है। कर्नल साहब भी सुनीता के होँठ से अपने होँठ भींचने वाले ही थे की अचानक रुक गए। उन्होंने सुनीता के होँठ से अपने होँठ हटा लिए और सुनीता के नाक पर कस के चुम्बन किया और बोले, "डार्लिंग, भावावेश में बहने का समय नहीं है। तुम्हें बड़ी फतह करनी है। बड़ा किला जितना है। मैं चाहता हूँ की तुम गणित में अव्वल दर्जे से पास हो। तभी मुझे मेरा पारितोषिक मिलेगा।"
कर्नल साहब की बात सुनकर सुनीता भी मचल गयी। उसे कर्नल साहब पर और प्यार आया। जो इंसान इतना रोमांटिक था और जो उस पर इतना फ़िदा था, वह अपने आपको कैसे रोक पाया यह सुनीता की समझ से परे था। उसने तो एक भावावेश भरे क्षण में अपना नियंत्रण गँवा दिया था पर कर्नल साहब ने उसे सम्हाल लिया। वह मन ही मन कर्नल साहब की ऋणी हो गयी। उनके पौरुष की कायल हो गयी।
जब सुनील वापस आये तो सुनीता ने उसे सारी दास्तान कही। सुनीता ने यह नहीं छुपाया की वह खुद तो ज्यादा उत्तेजित हो गयी थी पर कर्नल साहसब ने अपने आप पर नियत्रण रक्खा और सुनीता को होँठों पर किस नहीं की। यह सुनकर सुनील बहुत खुश हुआ।
सुनील ने अपनी बीबी सुनीता को कहा, "देखा? यही सही शिक्षक की पहचान है। उनका मन तुम्हारी पढ़ाई में तुम्हारे परिणाम में इतना लग चुका है की तुम्हारे जैसी सेक्सी और खूबसूरत औरत को भी नज़र अंदाज कर दिया। हालांकि की वह तुम पर लाइन मारते रहते हैं। तुम भी तो उनको कुछ ढील देती हो।"
सुनीता ने कटाक्ष से हँस कर कहा, "ऐसी कोई बात नहीं है। अरे लाइन तो मारेंगे ही ना? मर्द जो हैं। कॉलेज में तुम मुझे लाइन नहीं मारते थे? अरे अब भी तो मैं जब सजधज के तैयार होती हूँ तो तुम भी तो सिटी बजाने लगते हो! लाइन तो कई लोग मारते थे मुझ पर, और अभी भी मारते हैं। पर असली माल तो तुम ही चुरा के ले गए ना? बाकी सारे तो हाथ मलते रह गए। पर हाँ। खैर मजाक छोडो। सीरियसली बात करें तो जिस तरह से वह हाथ धो कर मेरी पढ़ाई के पीछे पड़े हैं, मुझे लगता है जस्सूजी मुझे वाकई टॉप करा कर के ही छोड़ेंगे।"
सुनील ने पूछा, "अगर तुमको उन्होंने टॉप करवा दिया तो तुम उन्हें क्या पारितोषिक दोगी?
सुनीता ने अपनी चोटी का छोर अपने हाथों में लेकर गोल गोल घुमाते हुए कहा, "अगर वाकई में ऐसा हुआ तो वह जो मांगेंगे वह दे दूंगी।"
सुनील ने अपनी पत्नी की और गंभीरता से देखते हुए पूछा, "वह जो मांगेंगे वह दे दोगी?"
सुनीता ने कहा, "हाँ भाई। जो मांगेंगे मैं दे दूँगी। पहले तो वह बिचारे कुछ मांगेंगे ही नहीं। उन्होंने पहले ही कह दिया था की उन्हें कुछ नहीं चाहिए। फिर भी अगर मैं अव्वल आयी तो भला उससे कौनसी बात बड़ी हो सकती है? मुझे भी तो उनको गुरु दक्षिणा देनी पड़ेगी ना? तो वह मैं उन्हें जरूर दूंगी। बशर्ते की मैं अव्वल आयी तो। और वैसे भी गुरुदक्षिणा तो देनी ही पड़ेगी। तो सोचेंगे क्या देना है। एक अच्छा सा गिफ्ट उनको देंगे। मानलो हर महीने अगर हम उन्हें ५ हजार रूपये भी दें तो उनको तीन महीने के पद्रह हजार देने होंगे। चलो मानलो बिस हजार भी देने पड़ जाएँ तो भी ज्यादा नहीं है। और वह भी अगर वह मांगेंगे तो। उन्होंने तो पैसे मांगे ही नहीं है। तो इस हालात में हम पैसे ना देते हुए उनको कोई इतनी ही रकम का गिफ्ट भी दे देंगे तो हमारा कोई खजाना नहीं लूट जाएगा।"
सुनील ने कहा, "अगर वह तुम्हें मांगेंगे तो?"
सुनीता: "मुझे मांगेंगे? क्या मतलब? मैं कोई रुपिया पैसा हूँ की वह मुझे मांगेंगे?"
सुनील: "अरे बुद्धू राम। मेरा मतलब है अगर वह तुम्हारा बदन मांगेंगे तो?"
सुनीता: "अरे तुम पागल हो गए हो? वह ऐसा कोई थोड़े ही मांगेंगे? तुम अपने मन से सोचते रहो। मुझे उनपर पूरा भरोसा है।"
सुनील: "पर समझो अगर उन्होंने मांग ही लिया तो, तुम क्या करोगी? तुमने तो वचन दे दिया है की जो वह मांगेंगे वह तुम दे दोगी।"
अपने पति की बात सुनकर सुनीता कुछ धर्मसंकट में पड़ गयी और थम गयी। थोड़ी देर तक वह सोचती रही फिर बोली: "देखो, सुनील, तुम मुझे बातों में फांसने की कोशिश मत ही करो। माना की मैं रूढ़िवादी विचारों की नहीं एक आधुनिक स्त्री हूँ। मैं पार्टीयोँ में जाती हूँ और जाना पसंद भी करती हूँ। और मैं जानती हूँ की उन पार्टीयों में मर्द और औरत एक दूसरे की बीबी या पति के साथ आज कल के जमाने में थोड़ी छेड़ छाड़ करते रहते हैं। कभी कबार चुम्माचाटी भी होती है। थोड़ा संयम रखना चाहिए पर ठीक है, नशे में या उत्तेजना में कई बार हो जाता है। यह सब चलता है। मुझे भी उस पर कोई भयानक एतराज नहीं। यहां तक तो ठीक है। पर मैं राजपूतानी हूँ। मैं अपना बदन ऐसे ही किसी को नहीं सौपती। मैंने तुम्हें अपना बदन सौंपा है क्यूंकि तुमने अपनी जिंदगी मेरे नाम कर दी है। तुमने कसम खायी थी की तुम अपनी जान की बाजी लगा कर भी मेरी रक्षा करोगे। राजपूतानियाँ उनको ही अपना जिस्म सौंपतीं है जो अपनी जान की बाजी लगा कर भी उनकी रक्षा करने के लिए तैयार हों।"
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RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
सुनील अपनी बीबी की और आश्चर्य से देखने लगा। उसने कहा, "भाई यह तो सख्त नाइंसाफ़ी है। ऐसे तो कोई भी शादी शुदा मर्द या स्त्री किसी भी शादी शुदा स्त्री या मर्द से संग कर ही नहीं सकेगा। आजकल तो संसार में हर घर में यह चलता रहता है। कोई भी पत्नी या पति ऐसे नहीं होंगें, जिन्होने शादी के पहले या बाद में और किसीसे सेक्स ना किया हो? बल्कि शादी के बाद ही अपनी साली के साथ अपने देवर या जेठ के साथ कई लोगों का तिकड़म चलता ही रहता है।"
सुनीता ने कहा, "अच्छा? मैंने तो मेरे किसी देवर या जेठ के साथ ऐसा सम्बन्ध नहीं रक्खा। इसका मतलब की तुमने मेरी बहन से कुछ ना कुछ गड़बड़ जरूर की है। वह बेचारी एकदिन मुझे कह रही थी, की जीजाजी को सम्हालो उसे प्यार दो, वह इधर उधार ताँक झाँक करते रहते हैं। अब मुझे समझ में आया। सच बोलो क्या बात है?"
जब बात अपने पर आयी तो सुनील की तो बोलती ही बंद हो गयी। उसने कहा, "जानू, मैं तो यूँही मजाक कर रहा था। तुमने तो उसे सीरियसली ले लिया। अरे भाई मैं तो सिर्फ छेड़ने की बात कर रहा हूँ।"
सुनीता, "अरे मैंने कुछ सीरियसली नहीं लिया। मैं भी मजाक ही कर रही हूँ। इस बात पर तुम इतने हाइपर क्यों हो गए हो? बात मेरी और जस्सूजी की है। हम इन्हें मिलके सुलझा लेंगे। कहीं तुम जस्सूजी से जल तो नहीं रहे?"
सुनील खिसिआनि से शकल बनाकर अपनी पत्नी को देखता रहा। तब सुनीता ने शर्माते हुए कहा, "अरे भाई, अब ज्यादा सयाने मत बनो। तुम मर्द लोग हम औरतों को कहाँ छोड़ते हो? होटल में, बस में, ट्रैन में, पिक्चर में, घर में सब जगह तुम लोग तो वैसे ही हम औरतो को हमेशा छेड़ते ही रहते हो।"
ऐसी ही बातें अक्सर सुनीता और उसके पति सुनील के बिच में होती थी तो उधर ज्योति भी अपने पति कर्नल जसवंत सिंघजी को उलाहना देती रहती थी। एक बार जब कर्नल साहब काफी देर रात तक जाग कर गणित की किताबों में उलझे रहे तब उनकी पत्नी ज्योति ने कहा, "अजी कर्नल साहब, क्या बात है? अब सो भी जाओ। रात के दो बजे हैं। अपनी पड़ोसन के पीछे अपनी जान दे दोगे क्या? देखो उनके कमरे की बत्तियां बुझी हुई हैं। इस वक्त तुम्हारी पड़ोसन अपने पति की बाहों में गहरी नींद में सोई हुई होगी। और तुम हो की उसे पढ़ाने के चक्कर में रात रात भर सोते नहीं हो। अरे तुम्हारी भी तो बीबी है? वह भी तो तुम्हारी बाहों में सोने के लिए तड़पती है।"
खैर अक्सर औरतें अपने शौहर को किसी और की बीबी से ज्यादा करीब जाने से कतराती हैं। पर आखिर में सोचती हैं, अरे जाता है जाने दो। आखिर में थक हार कर आएगा तो मेरे पास ही ना?"
समय को बीतते देर नहीं लगती। देखते ही देखते सुनील की पत्नी सुनीता की परीक्षा का दिन आ ही गया। सुनीता के सारे पेपर अच्छे हुए। गणित में सुनीता ने सारे जवाब अच्छी तरह से दिए। उम्मीद थी की सुनीता के अच्छे नंबर आएंगे। करीब एक महीने के बाद रिजल्ट था। सब बड़ी ही उत्सुकता से इंतजार कर रहे थे। सब पर पूरा सस्पेंस छाया था। क्या होगा क्या होगा इसकी उत्सुकता रुके नहीं रूकती थी। करीब हर रोज क्या रिजल्ट आएगा इसकी चर्चा हो रही थी।
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RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
सुनील और कर्नल साहब पता लगाने की कोशिश कर रहे थे की रिजल्ट कब आएगा, पर जवाब एकदम वही रटा रटाया मिलता, "जैसे ही तारीख तय होगी तो आपको बता दिया जाएगा।" काफी दिनों के बीत जाने के बाद भी रिजल्ट के कोई आसार नहीं थे। करीब बिस दिन बीत गए इस बात को। एक दिन सुनील सुबह करीब साढ़े आठ बजे ऑफिस जाने की तैयारी में थे। वह डाइनिंग टेबल पर बैठ नाश्ता कर रहे थे की अचानक घर की घंटी बजी।
सुनीता ने जैसे ही दरवाजा खोला की कर्नल साहब को हाथ में एक अखबार थामे सामने खड़े हुए पाया। उनका मुंह एकदम दुखी और कुम्हलाया हुआ था। सुनीता ने जब देखा की कर्नल साहब एकदम हतोत्साहित, उदास और हाथ में अखबार लिए हुए देखा तो सुनीता की जान हथेली में आगयी। जरूर कोई बहुत दुःख भरा समाचार होगा। सुनील भी टेबल के पास खड़े हो गए और बोले, "कर्नल साहब, क्या हुआ? आप इतने उदास क्यों लग रहे हो? क्या कोई दुःख भरा समाचार है?"
यह सुनकर कर्नल साहब बड़े दुखी दिखाई दिए। वह सुनीता की और देख कर बोले, मैंने कभी ऐसा नहीं सोचा था। यह क्या हो गया?"
सुनीता की सांस रुक गयी। वह बोली, "पर जस्सूजी बताओ ना आखिर बात क्या है?"
कर्नल साहब ने दुःख भरी आवाज में कहा, "रिजल्ट आ गया है। पर सुनीता का नाम पासिंग लिस्ट में नहीं है।" ऐसा कह कर वह पास में रखे हुए सोफे पर बड़ी मुश्किल से बैठ गए। समाचार सुनकर कमरे में सन्नाटा छा गया। सुनील ने कहा, "पर ऐसा कैसे हो सकता है? सुनीता ने तो कहा था उसका पेपर बहुत अच्छा गया है?"
कर्नल साहब ने सुनील की और दुःख भरी नज़रों से देखा और कहा, "मेरी सारी महेनत पानी में गयी। अफ़सोस मैं सुनीता को गणित में पास नहीं करवा पाया।"
सुनीता एकदम कर्नल साहब के पास आयी और उनका हाथ थामा और बोली, "कोई बात नहीं कर्नल साहब। दुखी मत होइए। इस बात से जिंदगी ख़तम नहीं हो गयी। हम दूसरी बार कोशिश करेंगे।"
सुनील ने कर्नल साहब के हाथसे अखबार लिया और बोले, "ऐसा हो नहीं सकता। कहीं ना कहीं अखबार की छपाई में भी गलती हो सकती है। ऐसा कर जब सुनील ने अखबार खोला तो पाया की पहले ही पेज पर सुनीता की बड़ी फोटो छपी थी और उसके निचे लिखा था, "गणित में सबसे सर्वोत्तम अंक दिल्ली की एक शादी शुदा महिला सुनीता मडगाँव कर को।"
यह देख कर सुनील की आँखें फटी की फटी ही रह गयी। सुनील ने कर्नल साहब की और आश्चर्य से देखा तो कर्नल साहब एकदम हँस पड़े। उन्होंने आगे झुक कर सुनीता के घुटनों को दोनों हाथों में पकड़ कर ऊपर उठा लिया और बोले, "अरे पागल, तुम पास नहीं हुई, तुम पुरे देश में टॉप आयी हो!"
सुनीता को कर्नल साहब की बात पर विश्वास नहीं हुआ। उसने तुरंत अपने पति सुनील के हाथों से अखबार छीन लिया और पहले ही पेज पर अपना फोटो देख कर स्तब्ध रह गयी। कर्नल साहब की बाहों में ही रहते हुए सुनील की पत्नी सुनीता ने कर्नल साहब को नकली गुस्से भरे घूंसे मारने शुरू किये और बोली, "जस्सूजी, आपने तो मेरा हार्ट फ़ैल ही कर दिया था।"
कर्नल साहब ने कहा, "हार्ट फ़ैल हो तुम्हारे दुश्मनों का। तुम ना सिर्फ फर्स्ट आयी हो, तुमने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। सुनीता डार्लिंग आज तुमने तो कमाल कर दिया।"
सुनीता ने जस्सूजी के सर पर चुम्मा करते हुए कहा, "यह कमाल मेरा नहीं आपका है। अगर आप मुझे पढ़ाने के लिए इतनी महेनत ना करते तो मैं टॉप करने की बात ही क्या, पास भी नहीं हो पाती।"
सुनील ने कहा, "कर्नल साहब, सुनीता ठीक कह रही है। उसे गणित विषय से ही नफरत थी लेकिन आप ने उस नफरत को मोहब्बत में बदल दिया।"
सुनीता ने गाउन पहन रखा था। उस का पेट और उसके निचे का हस्सा कर्नल साहब के मुंह के पास ही था। कर्नल साहब ने सुनीता के पेट पर गाउन के ऊपर से ही चुम्मी करते हुए कहा, "ठीक है, मैंने महेनत की, पर सुनीता ने पूरा मन लगा कर पढ़ाई की और नतीजा आपके सामने है। आज मैं बहुत खुश हूँ। भाई सुनील, आज तो पार्टी हो जाए।"
सुनीता ने अपने पति सुनील की और देख कर कहा, "पार्टी कर ने का काम आप दोनों का है। मुझे तो जब आप बुलाओगे तो मैं आ जाउंगी।"
सुनील ने कहा, "अरे भाई अब तो पार्टियों का दौर चलता ही रहेगा।"
उस पुरे दिन सुनील और सुनीता ने घर का फ़ोन पुरे दिन बजता रहा। कई अखबार और टीवी चैनल्स के प्रतिनिधि आये। उस दिन सुनील और कर्नल साहब ने एक दिन की छुट्टी ले ली। हर इंटरव्यू में सुनीता ने इस सफलता का श्रेय कर्नल साहब को दिया। अखबारों में सुनीता की फोटो कर्नल साहब के साथ छपी। एक अखबार ने तो कर्नल साहब की जीवनी भी प्रकाशित कर डाली।
उस दिन शाम को सब इतने थके हुए थे की आखिरी इंटरव्यू ख़तम होते ही सुनील सुनीता और जसवंत सिंघजी अपने घर में जाकर ढेर हो गए।
जब घर का सारा काम ख़तम कर ज्योति बैडरूम में आयी तो उनके पति जस्सूजी टीवी पर समाचार देख रहे थे। हर चैनल पर थोड़ा ही सही पर कहीं ना कहीं उनकी और सुनीता की तस्वीर या इंटरव्यू जरूर आया था। ज्योति ने बिस्तरे में आते हुए अपने पति जस्सूजी को कहा, "आज तो तुमने अपना कमाल दिखा ही दिया। हर जगह तुम्हारी चेली सुनीता तुम्हारे ही गुण गाया करती थी। मानना पड़ेगा। सुनीता तुम्हारी पक्की चेली है। वह तुम्हारे अहसानों के निचे इतनी दबी है की तुम जो चाहो उससे ले सकते हो।"
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RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
जस्सूजी ने टेढ़ी नज़रों से अपनी बीबी की और देख कर पूछा, "तुम कहना क्या चाहती हो?"
ज्योति ने कहा, "अनजान मत बनो. मैं तुम्हारी बीबी हूँ। तुम्हारी नस नस पहचानती हूँ। क्या मैं नहीं जानती तुम्हारे मन में सुनीता के लिए क्या भाव हैं? अरे मुझसे मत छुपाओ। मैंने तुम्हें शादी के पहले वचन दिया था की अगर तुम्हें कोई सुन्दर औरत पसंद आ गयी तो मैं उसे तुम्हारे बिस्तर तक लाने में तुम्हारी पूरी मदद करुँगी। मैं आज भी मेरे उस वचन पर कायम हूँ। पर जस्सूजी मैं एक बात से हैरान हूँ।"
कर्नल साहब ने पूछा, "क्या?"
ज्योति ने कहा, "आजतक कई लड़कियों और औरतों को मैंने आप पर मरते हुए देखा है। इनमें से मैं भी एक हूँ। पर आज तक मैंने आपको कोई औरत के लिए इतना तड़पते हुए नहीं देखा। पर आज आपकी आँखों में सुनीता के लिए आपकी वह चाहत या यूँ कहिये कामुकता जो मैंने देखि है वैसी मैंने पहले कभी किसी औरत के लिए नहीं देखि। मैं जानती हूँ की अगर आपको मौक़ा मिलेगा तो आप उसे चोदना भी चाहेंगे। पतिदेव, सच बोलना। मेरी बात ठीक है ना? इस बात को ले कर मैं आप से कत्तई भी नाराज नहीं हूँ। जैसा की हमने एक दूसरे से वादा किया है, मैं आपकी ही बीबी रहूंगी। पर तुम्हारे मन में उस लड़की के लिए कुछ ना कुछ है ना? आखिर बात क्या है इस औरत में?"
जस्सूजी ने अपनी बीबी को अपनी बाहों में लिया और उसके बूब्स की निप्पलोँ पर अपना हाथ फिराते हुए बोले, "मैं जानता हूँ। मैं मानता हूँ की मैं सुनीता की और काफी आकर्षित हूँ। तुम्हारी बात गलत नहीं है की मैं कहीं ना कहीं मेरे मन में सुनीता के लिए सिर्फ गुरु शिष्या के ही भाव नहीं है। देखो मैं तुमसे झूठ नहीं बोलूंगा। पर मैं चाहता हूँ की वह मेरे पास अपनी मर्जी से आये। और दूसरी बात तुमने तो तुम्हारे सवाल का जवाब खुद ही दे दिया।"
ज्योति ने अपने पति की और आश्चर्य से देखा और पूछा, " वह कैसे?"
जस्सूजी, "देखो डार्लिंग, तुम मेरी पत्नी हो। तुम अगर मेरी पसंद की औरत की इर्षा करो तो यह स्वाभाविक है, और इसी लिए मैं सुनीता की तारीफ़ तुम्हारे सामने करने में डरता हूँ। पर जब तुमने पूछ ही लिया है और जब तुम यह कह रही हो की तुम्हें इर्षा नहीं होगी तो सुनो। पहली बात यह की सुनीता बेतहाशा खूबसूरत है। उसके व्यक्तित्व में ही सुंदरता झलकती है। उसके अंग अंग में से अनंग टपकता है। पर आश्चर्य तो यह है की उसे यह पता ही नहीं वह कितनी खूबसूरत है।
तुम्हारे सवाल के जवाब में मैं यह कहता हूँ की तुम ने खुद कहा नहीं की हर जगह सुनीता मेरे ही गुणगान गा रही थी? इसका मतलब यह के जो इंसान दूसरे का एहसान कभी ना भूले और अपनी काबिलियत पर अहंकार ना करे ऐसे इंसान कम होते हैं और उनकी कदर करनी चाहिए। और आखिरी बात, सुनीता का मन काँच की तरह साफ़ है। इस चीज़ से मैं बहुत आकर्षित हुआ हूँ। मैं नहीं जानता की क्या सुनीता भी मेरी और आकर्षित हुई है या फिर मरे अहसान के निचे दबी होने के कारण मुझे बर्दाश्त कर रही है?"
कर्नल साहब की पत्नी ज्योति ने अपने हाथ की ऊँगली से चुटकी बजाते हुए कहा, "मेरे लिए तो यह चुटकी बजाने वाली बात है। तुम निश्चिन्त रहो, मैं ना सिर्फ तुम्हारी प्यारी सुनीता के मनका हाल जान कर तुम्हें बताउंगी, बल्कि मैं पूरी कोशिश करुँगी की एक ना एक दिन मैं उसे तुम्हारे बिस्तर पर लाकर तुमसे चुदवाउंगी बल्कि मैं तुम दोनों के सामने खड़ी होकर तुम दोनो को चोदते हुए देखूंगी।"
सारी बातचीत सुनकर कर्नल साहब का लण्ड एक एकदम लोहे के छड़ सामान खड़ा हो गया। उन्होंने ज्योति का गाउन हटा कर उसे नग्न कर दिया। फिर उसकी बिस्तर लेटी हुई नग्न काया देख कर बोले, "हनी, आज भी तुम शादी के इतने सालों के बाद भी वैसी ही कमसिन लग रही हो जैसी मैंने तुम्हें पहली बार चोदने के पहले नंगी देखा था। शादी के इतने सालों और एक बच्चे के बाद भी तुम ज़रा भी बदली नहीं हो।"
ज्योति ने नाक सिकुड़ते हुए हँसते हुए कहा, "पर तुम्हें तो फिर भी दूसरे की थाली ही ज्यादा स्वादिष्ट लगती है। "
कर्नल साहब ने अपनी तरफ से एक गुब्बारा छोड़ते हुए कहा, "अच्छा? तो कहो तो तुम उस शाम को सिनेम हॉल में सुनील जी से चिपक चिपक कर क्या कर रही थी?"
ज्योति ने अपने पति की छाती में नकली घूंसा मारते हुए शर्मा ते हुए कहा, "चलो छोडो इन सब बातों को लगता है आज तुम्हें चोदने का बड़ा मूड है।"
कर्नल साहब अपनी बीबी की बात सुनकर ठहाका मार कर हँसकर बोले, "अरे, तुम अगर सुनीता को मेरे साथ बिस्तर पर सुलाओगी तो मैं क्या मैं तुम्हें छोडूंगा? मैं भी तुम्हारे प्यारे सुनीलजी को लाकर तुम्हारे साथ उसी बिस्तर पर ना सुलाकर तुम्हें अगर ना चुदवाया तो मेरा नाम कर्नल जसवंत सिंह नहीं।"
दोनों पति पत्नी एक लम्बी और धमाकेदार चुदाई में मग्न हो गए। जस्सूजी चोद तो ज्योति को रहे थे पर मन में सुनीता ही थी। ज्योति चुदवा तो अपने पति से रही थी पर लण्ड उसको सुनील का दिख रहा था।
दूसरे दिन सुबह कर्नल साहब की पत्नी ज्योति सुबह जब उठी तो उसे कुछ थकान सी लग रही थी। पिछली रात पति के साथ हुई धमासान चुदाई के कारण वह थोड़ी थकी हुई थी। कर्नल साहब को दफ्तर में कुछ अधिक और अर्जेंट काम था इस लिए वह जल्दी ही ऑफिस चले गए थे। ज्योतिजी अपने मन में सोच रही ही थी की वह कैसे सुनीता से बात करे की अचानक सुनीता का ही फ़ोन आया।
सुनीता ने ज्योति से कहा, "दीदी, मैं तुमसे मिलकर कुछ बात करना चाहती हूँ। आप कितने बजे फ्री होंगीं? मैं कितने बजे आऊं?"
कर्नल साहब की पत्नी ज्योति सोचने लगी आखिर सुनीता उनसे क्या बात करना चाहती होगी? वाकई में तो ज्योति को ही सुनीलजी की पत्नी सुनीता से बात करनी थी। ज्योति ने सुनीता से कहा, "सुनीता, आप जब जी चाहे आओ, पर आप जब आओ तो मेरे साथ बैठने के लिए आना। आने के बाद जाने की जल्दी मत करना। आज मेरा भी मन तुमसे बहोत बात करने को कर रहा है। मैं अभी ही उठी हूँ और थोड़ासा थकी हुई हूँ। अक्सर जब मैं थकी होती हूँ तो जस्सूजी मुझे सुबह की चाय बना के पिलाते हैं। तुम अभी ही आ जाओ ना? तुम जैसी हो वैसी ही आ जाओ। तुम्हें चेंज करने की भी जरुरत नहीं है। हम आमने सामने ही तो रहते हैं। कौनसा तुम्हें बाहर जाना है? अगर तुम्हें एतराज ना हो तो आज मैं मेरे घरमें ही तुम्हारी बनायी हुई चाय पीना चाहती हूँ।"
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09-13-2020, 12:21 PM,
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RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
ज्योति जी की बात सुनकर सुनीता का चेहरा खिल उठा। इतना बढ़िया परीक्षा का परिणाम आने के बावजूद सुनीता को कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। जस्सूजी के साथ हुई शारीरिक हरकतों के कारण सुनीता ज्योतिजी के बारेमें सोचकर थोड़ा अपने आप को दोषी महसूस कर रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था की वह कैसे ज्योति जी का सामना कर पाएगी। जब सामने चल कर ज्योतिजी ने ही इतना अपनापन दिखाया तो सुनीता की हिम्मत बढ़ गयी और वह थोड़ी ठीकठाक होकर बिना कपडे बदले तुरंत जाने के लिए निकल पड़ी।
वह गाउन पहने हुए थी। सो वह ऐसे ही कर्नल साहब की पत्नी ज्योति को मिलने के लिए चल पड़ी। सुबह के दस बजे होंगे। सब मर्द लोग अपने दफ्तर जा चुके थे। स्कूल में छुट्टियां चल रही थीं।
ज्योति उठ कर बाथरूम नहाने गयी और नहाकर बाहर निकल एक तौलिये में लिपटे हुए अपने बालों को कंघीं कर रही थी की घरकी घंटी बजी। घंटी बजने पर उन्होंने दरवाजा खोले बिना ही पूछा, "कौन है?"
जब सुनीता की आवाज सुनी तब उन्होंने दरवाजा धीरे से थोड़ा खोला और सुनीता को अंदर ले कर दरवाजा फ़टाफ़ट बंद किया।
सुनीता ने नमस्ते किया तो ज्योतिजी ने सुनीता को अपनी बाँहों में लपेट लिया और बोली, "अरे हम बहने हैं। आओ गले लग जाओ।" फिर सुनीता का हाथ पकड़ ज्योतिजी उसे अपने बैडरूम में ले गयी और खुद पलंग के एक छोर पर अपने कूल्हे टिका कर बैठी और सुनील की पत्नी सुनीता को अपने पास बैठने के लिए इशारा किया।
सुनीता तो ज्योतिजी को देखती ही रह गयी। तौलिये में लिपटी अर्धनग्न अवस्था में ज्योतिजी गजब का कमाल ढा रही थीं।
पलंग की और इशारा कर के ज्योतिजी बोली, "बैठो न? ऐसे मुझे क्या देख रही हो? तुम आयी तो मैं बस नहा कर निकली ही हूँ। सुबह सुबह दरवाजे पर कबाड़ी, सब्जी वाले, सफाई करने वाले इत्यादि मर्द लोग आ जाते हैं। तुम थी तो मैंने दरवाजा खोला वरना इस हाल मैं किसी मर्द के सामने जाकर मुझे हार्ट अटैक थोड़े ही दिलवाना है? आज ज़रा मैं थकी हुई हूँ। कल रात देर रात हो गयी थी। आज मेरा बदन थोड़ा दर्द कर रहा है।"
सुनीता समझ गयी की पिछली रात जस्सूजी ने जरूर अपनी पत्नी ज्योतिजी की जम कर चुदाई की होगी। यह सोच कर सुनीता के बदन में सिहरन फ़ैल गयी। उसने जस्सूजी का मोटा लण्ड अपनी उँगलियों में उनकी पतलून के उपरसे ही महसूस किया था। जब जस्सूजी उस लण्ड से अपनी बीबी को चोदते होंगे तो बेचारी बीबी का क्या हाल होता होगा यह सोच कर सुनील की पत्नी सुनीता काँप उठी। अरे बापरे! अगर कहीं ऐसी नौबत आयी की सुनीता को ज्योति जी के पति जस्सूजी से चुदवाना पड़े तो उसका अपना क्या हाल होगा यह सोच मात्र से ही सुनीता के रोंगटे खड़े हो गए और उसकी की चूत में से पानी रिसने लगा।
सुनीता ने पहली बार ज्योतिजी को अपने इतने करीब और वह भी ऐसे अर्ध नग्न हालत में देखा था। सुनीता ज्योतिजी को देखती ही रह गयी। शादी के इतने सालों के बाद भी ज्योतिजी जैसे ही बिन शादी शुदा नवयुवती की तरह लग रहीं थीं। वह सुनीता से करीब चार या पांच साल बड़ी होंगीं। पर क्या बदन! और क्या बदन का अनूठा लावण्य! सुनीता को ज़रा भी हैरानगी नहीं हुई की उसके अपने पति सुनील जस्सूजी की पत्नी ज्योतिजी के पीछे पागल थे।
ज्योतिजी के गीले केश उनके कंधे पर खुले फैले हुए थे। एक हाथ में कंघी ले कर घने बादलों से उनके केश को वह सँवार रहीं थीं। तौलिया ज्यादा चौड़ा नहीं था इस कारण ना सिर्फ ज्योति के उन्मत्त उरोजों का उद्दंड उभार, बल्कि उन गुम्बजोँ के शिखर के रूप में फूली हुई निप्पलोँ की भी कुछ कुछ झाँकी हो रही थीं। ज्योतिजी ने सुनीता को उनका बदन ताड़ते हुए देखा तो सुनीता को अपने करीब खींचा। एक पुतले की तरह मंत्रमुग्ध सुनीता ज्योतिजी के खींचने से उनके इतने निकट पहुंची की दोनों एक दूसरे की धमन सी आवाज करती हुई तेज साँसे महसूस कर रहे थे।
सुनीता का तो उसी समय मन किया की वह आगे बढ़कर ज्योतिजी की छाती के ऊपर स्थित फैले हुए उन दो मस्त टीलों पर अपनी हथेलियां रखदे और उनकी मुलायमता, सख्ती या लचक अपनी हाथों में महसूस करे। पर स्त्री सुलभ मर्यादा और इस डर से की कहीं ज्योतिजी सुनीता की इस हरकत को गलत ना समझले इस लिए रुक गयी।
सुनीता को ज्योतिजी के पति जस्सूजी से इर्षा हुई जो ज्योतिजी के उन उरोजों पर अपना अधिकार रखते थे की उन्हें जब चाहे थाम ले, दबाले या मसल ले। जब ज्योति जी ने सुनीता की निगाहें अपने उरोजों पर टिकी हुई पायी तो मुस्करा दीं। सुनीता ने अपनी नजर उन चूँचियों से हटा कर निचे की और देखा तो उसकी नजर ज्योति के तौलिये के दूसरे निचले छोर पर गयी।
हायरे दैया!! जिस ढंग से ज्योतिजी अपने कूल्हे पलंग के कोने पर टिका कर पलंग के निचे अपने पॉंव लटका कर बैठी थी और उसके कारण उनका तौलिया ज्योतिजी की कड़क और करारी जाँघें दोनों टाँगें जहां मिलती थीं, वहा तक चढ़ गया था और उनकी चूत अगर थोड़ा अन्धेरा सा ना होता तो जरूर साफ़ दिख जाती। फिर भी उनकी चूत की कुछ कुछ झांकी जरूर हो रही थी।
ज्योतिजी की जाँघें देखकर सुनीता से रहा नहीं गया और वह अनायास ही बोल पड़ी, "ज्योतिजी आप कितनी अद्भुत सुन्दर हो? मुझे आज आपके पति जस्सूजी की कितनी इर्षा हो रही है की आप जैसी खूबसूरत सुंदरी देवीके वह पति हैं।"
ज्योति ने थोड़ा सा आगे बढ़ कर सुनीता, जो की उनसे बिलकुल सटकर खड़ी थी, अपनी बाहों में प्रगाढ़ आलिंगन में ले लिया। सुनीता भौंचक्का सी ज्योतिजी को देखती ही रही और वह ज्योतिजी की बाहों में उनसे जुड़ गयी। सुनीता को स्वाभाविक ही कुछ हिचकिचाहट हुई तब ज्योति ने कहा, "देखो बहन, तुम मुझसे छोटी हो और शायद अनुभव में भी कम हो। हालांकि बुद्धिमत्ता में तुम मुझसे कहीं आगे हो। मैं बेबाक और खुला बोलती हूँ।
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09-13-2020, 12:21 PM,
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RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
ज्योति जी ने अपना हाथ सुनीता के बदन पर सरकाते हुए सुनीता के कँधों को सहलाना शुरू किया। ज्योति ने कहा, "देखो मैं तुमसे कुछ बातें खुल्लमखुल्ला बात करना चाहती हूँ। हो सकता है की तुम्हें मेरी भाषा अश्लील लगे। मुझे लपेड़ चपेड़ कर चिकनी चुपड़ी बातें करना नहीं आता। क्या मैं तुम्हारे साथ खुल्लमखुल्ला बात कर सकती हूँ?"
सुनीता क्या बोलती? उसने अपना सर हिला कर हामी भरी। सुनीता ने भी ऐसी बेबाक और निर्भीक लेडी को पहले कभी नहीं देखा था। वह उनको देखती ही रही। तब ज्योति बोली, "तुमने आज तक मेरे जैसी बेबाक और खुली औरत नहीं देखि होगी। मैं जो मनमें होता है वह बोल देती हूँ। मैं मानती हूँ यह मुझमें कमी है। पर मैं जो हूँ सो हूँ।"
सुनीता के हाथ में हाथ ले कर सुनीता के हाथ को सहलाते हुए पूछा, "पर पहले तो तुम यह बताओ की तुम क्या कहना चाहती थी? बताओ क्या बात है?"
सुनीता ने ज्योति के हाथ अपने हाथोँमें लेते हुए कहा, "दीदी, मेरी सफलता में कर्नल साहब का जितना योगदान है उतना ही आपका भी योगदान है। कल हम मिल नहीं पाए थे तो मैं उसके लिए आज आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करने आयी हूँ।"
ज्योति को यह सुनने की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी। ज्योति ने पूछा, "मेरा योगदान? मैंने क्या किया है?"
सुनीता तुरंत सोफे से निचे उतर गयी और ज्योति के पॉंव से हाथ लगाती हुई बोली, "दीदी, अगर आप ने मुझे अपने पति से टूशन लेने का सुझाव ना दिया होता और यदि आपने अपने पति यानी की जस्सूजी को मेरे लिए इतना समय देनेके लिए प्रोत्साहित ना किया होता तो मैं जानती हूँ, वह मुझे इतना समय ना दे पाते। और तब मैं ऐसे नंबर ना ला पाती।
मैंने अपनी खिड़की से कई बार देखा था की जब जस्सूजी रात रात भर जागते थे तो आप उन्हें आधी रात को चाय बना कर पीलाती थीं। आप भी पूरी तरह नहीं सोती थीं। दूसरा जब जस्सूजी काफी समय तक मेरे साथ अकेले होते थे तब कभी भी आपने उन्हें टोका नहीं या रोका नहीं। यह आपका बहुत बड़ा बड़प्पन है।"
ज्योति ने सुनीता को ऊपर की और उठाया और अपनी बाहों में लिया और बोली, "सुनीता, जितना तुम्हारा तन सुन्दर है, उतना तुम्हारा मन भी सुन्दर है। तुम जो नंबर लायी हो वह तुम्हारी महेनत का नतीजा है। हम ने तो बस तुम्हें रास्ता दिखाया है। देखो तुम्हारी गुरु निष्ठा और लगन ने ही तुम्हें यहाँ पहुंचाया है। अक्सर जस्सूजी तुम्हारे बारे में बोलने से थकते नहीं। तुम कितनी महेनति, कितनी बुद्धि में तेज और निष्ठावान हो यह वह हमेशा मुझे बताते रहते थे। जहां तक तुम्हारी और मेरे पति के अकेले होने की बात है तो मुझे अपने पति पर पूरा विश्वास है।"
ज्योति जी ने सुनीता को अपने और करीब खींचा और बोली, "सुनीता, तुम मेरी छोटी बहन जैसी हो। आजसे मैं तुम्हें अपनी छोटी बहन ही मानूंगी। क्या तुम्हें इसमें कोई एतराज तो नहीं?"
सुनीता ने कहा, "दीदी , मैं तो कभी से आपको मेरी दीदी ही मानती हूँ। आप कुछ कह रहे थे?"
ज्योति ने सुनीता की गोद में अपना हाथ रख कर कहा, " मैं जो कहने जा रही हूँ उसे सुनकर तुम्हें बहुत आश्चर्य हो सकता है। हो सकता है तुम्हें धक्का भी लगे। पर मैं बेबाक सच बोलने में मानती हूँ। देखो मेरी छोटी बहन सुनीता, मैं जानती हूँ की मेरे पति और तुम्हारे गुरु जस्सूजी तुम पर कुछ ज्यादा ही नरम हैं। तुम एक औरत हो और औरत मर्द की लोलुप नजर फ़ौरन पहचान लेती है। वह तुम्हें ना सिर्फ घूर घूर कर नज़ारे चुराकर देखते हैं और ना सिर्फ उन्होने कई बार तुमसे कुछ हरकतें भी की हैं, पर वह तुम्हें पाना चाहते हैं। तुम कुछ समझी?" सुनीता ने अपनी मुंडी हिलाकर ना कहा, वह कुछ नहीं समझी।
सुनीता के हाथ अपने हाथ में लेकर ज्योति बोली, "बहन एक बात कहूं? पहले तुम कसम लो की मेरी बात का बुरा नहीं मानोगी और मेरी बात पर कोई भी बखेड़ा नहीं खड़ा करोगी?"
सुनीता ने ज्योति जी की और देखा और बोली, "दीदी मैं कसम लेती हूँ। मैं ना तो बुरा मानूंगी और ना ही कुछ भी करुँगी, पर दीदी तुम क्या कहना चाहती हो?"
तब ज्योति ने सुनीता की नाक पकड़ कर कहा, "देखो बहन, मैं जस्सूजी की बीबी हूँ। और हमेशा रहूंगी। लेकिन मैंने उस दिन सिनेमा हॉल में तुम्हारे और मेरे पति के बिच हुई अठखेलियां देखीं थीं। मैं उसके लिए तुम्हें या मेरे पति को ज़रा सी भी जिम्मेवार नहीं मानती। ऐसे माहौल में ऐसी वैसी बातें हो ही जाती हैं। मैं झूठ नहीं बोलूंगी। मेरी और तुम्हारे पति के बिच उससे भी कहीं ज्यादा अठखेलियाँ हुई थीं।"
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09-13-2020, 12:21 PM,
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RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
यह सुन कर ज्योति जी ने अपने होँठ सुनीता के होँठ पर रख दिए और सुनीता के होठोँ का रस चूसती हुई बोली, "पगली! तू क्या सोचती है? यह सब मुझे पता नहीं? अरे मैंने ही तो सब के मन की बात जानने के लिए यह खेल रचा था। अब तक जो हम सब के मन में था उस दिन सब बाहर आ गया।"
सुनीता ने झिझकते हुए पूछा, "पर दीदी क्या यह सब सही है?"
ज्योति ने कहा, "देखो मेरी बहन। शादी के कुछ सालों बाद सब पति पत्नी एक दूसरे से थोड़े बोर हो जाते हैं। हमारी चुदाई में कोई नवीनता नहीं रहती। कोई अनअपेक्षित रोमांच नहीं रहता। पति और पत्नी दोनों का मन करता है की कुछ अलग हो, कुछ एक्साइटमेंट हो। इस लिए दोनों ही अपने मन में तो किसी और मर्द या औरत की कामना करते हैं पर डर के मारे या फिर सही पार्टनर ना मिलने के कारण कुछ कर नहीं पाते।
कई मर्द या औरत चोरी छुपी अपने पति पति अथवा पत्नी की पीठ के पीछे किसी और मर्द या स्त्री से रिश्ते करते हैं या चोदते हैं। यह सब स्वाभाविक है। पर इस में एक मर्यादा रखनी चाहिए की अपना पति अथवा पत्नी अपनी है और दूसरी का पति अथवा पत्नी उस की ही है। उसे हथियाने की कोशिश कत्तई भी नहीं करनी चाहिए।
बस चाह पूरी की फिर भले ही आप उसे प्यार करो पर उस पर अपना हक़ नहीं जमा सकते। यह मर्यादा अगर रख पाएं तो यह सही है। और इसमें एक और बात भी है। ऐसे में पति और पत्नी की सहमति जरुरी है, चाहे वह समझानेसे या फिर उकसाने से आये। और पति को पत्नी की सहमति तभी ही मिल सकती है जब पत्नी को अपने पति में पूरा विश्वास हो।"
ज्योतिजी ने सुनीता को होठोँ पर काफी उत्कट और उन्माद भरा चुम्बन किया। दोनों महिलाये एक दूसरे के मुंह में जीभ डालकर एक दूसरे के मुंह की लार चूस रहीं थीं।
सुनीता तब तक ज्योति के साथ काफी तनावमुक्त महसूस कर रही थी। सुनीता ने देखा की ज्योतिजी के बदन से तौलिया सरक गया था और ज्योतिजी को उसकी कोई चिंता नहीं थी। वैसे तो सुनीता को भी उस बात से कोई शिकायत नहीं थी क्यूंकि वह भी तो ज्योतिजी के करारे और उन्मादक बदन की कायल थी।
ज्योति ने सुनीता की ललचायी नजर अपने बदन पर फिसलते देखि तो वह मुस्कुरायी और सुनीता की ठुड्डी अपनी हथेली में पकड़ कर बोली, "अरे बहन देखती क्या है। महसूस कर। ज्योति ने सुनीता के सर पर हाथ दबाया जिससे सुनीता को बरबस ही आना सर नीचा करना पड़ा और उसक मुंह ज्योति जी उन्मत्त स्तनों तक आ पहुंचा। सुनीता के होँठ ज्योति जी की फूली हुई गुलाबी निप्पलोँ को छूने लगे। सुनीता के होँठ अपने आप ही खुल गए और देखते ही देखते ज्योति जी की निप्पलेँ सुनीता के मुंह में गायब हो गयीं।
सुनीता ने जैसे ही ज्योतिजी की करारी निप्पलोँ को अपने होठोँ के बिच में महसूस किया तो उसके रोंगटे खड़े होगये। सुनीता ने कभी यह सोचा भी नहीं था की कभी उसे कोई स्त्री के बदन को छूने के कारण इतनी उत्तेजना पैदा होगी। सुनीता के बदन में जैसे बिजली का करंट दौड़ गया। उसके बदन में सिहरन हो उठी। अचानक उसे ऐसा लग जैसे उस का सर घूम रहा हो। उसने महसूस किया की उसकी चूत में से स्त्री रस चू ने लगा। उसकी पैंटी उसे गीली महसूस हुई।
सुनीता ने ज्योति जी को धीरे से कहा, "दीदी, आप यह क्या कर रही हो? देखो मेरी हालत खराब हो रही है। मेरी पैंटी गीली हो रही है।
ज्योति ने कहा, "मेरी बहन सुनीता, आज मुझे भी तुम पर बहुत प्यार आ रहा है। तुम मेरी गोद में आ जाओगी?" जब सुनीता ने कोई जवाब नहीं दिया तो ज्योति ने सुनीता को ऊपर उठाकर धीरे से अपनी गोद में बिठा दिया। सुनीता भी चुपचाप उठकर ज्योति जी की गोद में बैठ गयी। सुनीता को भी अपनी दीदी पर उस दिन न जाने कैसा प्यार उमड़ रहा था।
ज्योति जी ने सुनीता के ब्लाउज में अपना हाथ डाला और बोली, "तुम्हारे बूब्स इतने मुलायम और फिर भी इतने सख्त हैं की उनपर हाथ फिरते मेरा ही मन नहीं भरता।"
ज्योति जी की हरकत देख कर सुनीता थोड़ी घबड़ा गयी। उसे डर लगा की कहीं ज्योति जी समलैंगिक कामुक स्त्री तो नहीं है?"
ज्योति जी सुनीता के मन की बात समझ गयीं और बोली, "सुनीता यह मत समझना की मैं समलैंगिक स्त्री हूँ। मुझे तुम्हारे जस्सूजी से चुदवाने में अद्भुत आनंद आता है। पर हाय री सुनीता! मैं वारी वारी जाऊं! तेरा बदन ही ऐसा कामणखोर है की मेरा भी मन मचल जाता है। क्या तुझे कुछ नहीं होता?"
सुनीता बेचारी चुपचाप ज्योति जी के कमसिन बदन को देखने लगी। ज्योति जी के उन्नत स्तन सुनीता के मुंह के पास ही थे। ज्योति जी के बदन की कामुक सुगंध सुनीता के तन में भी आग लगाने का काम कर रही थी।
ज्योति जी सुनीता के कान में अपना मुंह दबा कर बोली, "सुनीता, मेरे पति का लण्ड बहोत बड़ा है और (ज्योति जी अपनी उँगलियाँ बड़ी चौड़ी फैला कर बोली) इतना मोटा है। जो कोई उनसे एक बार चुदवाले वह उनसे चुदवाये बगैर रह नहीं सकता। अरे मैंने शादी भी तो मेरे पति का लण्ड देख कर ही तो की थी? एक बात कहूं बहन बुरा तो नहीं मानोगी?"
सुनीता ने सर हिला कर ना कहा तो ज्योति ने कहा, "मेरी बहन सुनीता! मेरे पति से तू भी एक बार अगर चुदवा लेगी ना, तो फिर तू उनसे बार बार चुदवाना चाहेगी।"
सुनीता आश्चर्य से ज्योति की और देखने लगी। ज्योति ने सुनीता का एक हाथ अपनी चूत पर रख दिया। सुनीता ने महसूस किया की ज्योतिजी की चूत से भी उनका स्त्री रस रिस रहा था। अब सुनीता की मर्यादा और झिझक का बाँध टूटने लगा था। वह अपने आप पर नियत्रण नहीं रख पा रही थी। सुनीता ने ज्योतिजी के पास पड़े तौलिये को हटाकर उनकी चूँचियों को चूसते हुए कहा, "दीदी सच बोलिये, रात को जस्सूजी और आपने मिलकर खूब सेक्स किया था ना?"
ज्योति जी ने सुनीता के भरे हुए स्तनों को सहलाते और निप्पलोँ को अपनी उँगलियों में दबाते हुए कहा, "अरे पगली बहन, सेक्स सेक्स मत बोल। पूछ की क्या तुम्हारे जस्सूजी ने मुझे जम कर चोदा था या नहीं? हाँ अरे बहन उन्होंने तो मेरी जान निकाल ली उतना चोदा। मैं क्या बताऊँ? इसी लिए तो आज सुबह से मैं थकी हुई हूँ। वह जब चोदते हैं तो माँ कसम, इतने सालों के बाद भी मजा आ जाता है। चुदाई में जस्सूजी का जवाब नहीं। पर तू बता, सुनील जी तुम्हें कैसे चोदते हैं?"
सुनीता ज्योतिजी की बात सुन कर थोड़ा असमंजस में पड़ गयी। पर तब तक वह काफी रिलैक्स्ड महसूस कर रही थी। सुनीता ने कहा, "दीदी मुझे अब भी थोड़ी सी झिझक है पर मैंने आप से वादा किया है तो मैं खुलमखुल्ला बताउंगी की सेक्स, सॉरी मतलब, चुदाई करने में सुनीलजी भी बड़े माहिर हैं। मुझे पता नहीं की उनका वह मतलब लण्ड जस्सूजी के जितना बड़ा है या नहीं, पर फिर भी काफी बड़ा है। बखूबी की बात यह है की जब वह चोदते हैं तो मैं जब तक झड़ ना जाऊं तब तक चोदते ही रहते हैं।"
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