Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
10-22-2018, 11:31 AM,
#31
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--23

गतान्क से आगे................

" हांजी.. बुखार कैसे हो गया पिंकी? एग्ज़ॅम तुम्हारे वैसे चल रहे हैं.. ध्यान रखा कर ना सेहत का...!" हॅरी पिंकी की आँखों में देख मंद मंद मुस्कान फैंकता हुआ बोला... और दो डिब्बे उतार कर उनमें से गोलियाँ ढूँढने लगा...

"ववो.. बस ऐसे ही...!" पिंकी ने अपनी बात अधूरी छ्चोड़ी और मेरे चेहरे की और देखने लगी.. मैं क्या बोलती?

"ये लो.. अभी के लिए तो ये 3 खुराक दे रहा हूँ... कल दोपहर तक आराम ना लगे तो पेपर के बाद डॉक्टर को ज़रूर दिखा लेना...!" एक पूडिया में दवाई बाँध कर देता हुआ 'वो' बोला....

पिंकी ने चुपचाप दवाई हाथ में पकड़ी और मेरी कोख में कोहनी मार कर मुझे बोलने का इशारा किया... पर पता नही क्यूँ.. मैं उसके शालीन व्यवहार को देख कर इतनी दब गयी कि मेरी ज़ुबान ही ना निकली.... गाँव का डॉक्टर तो एक नंबर. का हरामी था... उसने मेरे साथ उस'से कुच्छ दिन पहले ही इलाज के बहाने बहुत ही कामुक हरकत की थी... मैं सोच रही थी कि ये भी कुच्छ ना कुच्छ तो ज़रूर ऐसा करेगा... आख़िर जब बुड्ढे डॉक्टर ही इलाज के बहाने हाथ सॉफ कर लेते हैं तो 'वो' तो गबरू जवान था.... पर ना.. उसने तो 2 मिनिट से पहले ही गोलियाँ पिंकी के हाथ में पकड़ाई और टेबल के इस तरफ आ गया....

"क्या बात है?" उसके खुद दरवाजे के पास जाने पर भी हम अंदर ही खड़े रहे तो उसने हमारी तरफ अचरज से देखा और वापस आ गया....," बोलो?"

"कककुच्छ नही... ववो... ययए.. तू बोल दे ना!" हकलाती हुई पिंकी अचानक रोनी सूरत बना कर मेरी तरफ देखने लगी....

"ऐसी क्या बात है यार..?" हॅरी मन ही मन हंसता सा हुआ वापस टेबल के उस पार चला गया..,"ओके... बैठो..!"

मैने पिंकी की तरफ एक बार देखा और हॅरी के सामने टेबल के दूसरी तरफ वाली चेर पर बैठ गयी.. मजबूरन पिंकी को भी बैठना पड़ा.....

"कुच्छ बोलॉगी या मुझे खुद ही अंदाज़ा लगाना पड़ेगा...!" हॅरी ने हंसते हुए कहा.. वो अचानक कुच्छ ज़्यादा ही खुश नज़र आने लगा था....

"ववो...." पिंकी बार बार कोशिश करके अपनी ज़ुबान को शब्द देने का प्रयास कर रही थी... पर मैं उसकी हालत समझ सकती थी.. जब मेरे मुँह से ही कुच्छ नही निकल रहा था तो 'वो' बेचारी कैसे बोलती...

"बोल भी दो अब.. तुम ऐसे बैठी रहोगी तो मुझे हार्ट अटॅक आ जाएगा.. सच बोल रहा हूँ.. तुम्हे नही पता मेरा दिमाग़ कहाँ कहाँ घूम रहा है...." हॅरी इस बार नर्वस होकर बोला....

"ववो..." पिंकी काफ़ी देर से टेबल के किनारों को अपने नाखूनो से खुरचे की कोशिश कर रही थी..,"आई... आई पिल....."

"पिंकीईईईईई?" हॅरी के चेहरे से मुस्कान यूँ गयी जैसे गढ़े के सिर से सींग... उसके चेहरे का रंग यूँ बदल गया जैसे 'आइ पिल' 'आइ पिल' ना होकर कोई आटम बॉम्ब हो...," कुच्छ देर जड़वत सा उसके चेहरे को घूरता हुआ हॅरी बोला," ययए क्या कह रही हो पिंकी....?"

"ना ही पिंकी कुच्छ बोली और ना ही मैं... मुझसे तो अपना सिर ही नही उठाया जा रहा था जब तक की अचानक हॅरी ने फफक कर जाने क्या कहानी बनानी शुरू कर दी...

"तुम्हे पता है पिंकी...." हॅरी का चेहरा ऐसा बना हुआ था जैसे अब रोया और अब रोया.... अपनी कही हर लाइन के बाद 'वो' गहरे दुख में डूबी हुई लाबी साँस ले रहा था... कभी कभी बीच में भी... मैं उसके चेहरे की तरफ देखने लगी थी.. पर पिंकी का सिर अब भी झुका हुआ था... हॅरी की आँखें पता नही क्यूँ नम होती जा रही थी..," एक लड़की थी... बहुत प्यारी... जब भी उसको देखता... जितनी बार भी देखा... मुझे उसका चेहरा अपना सा लगता था.... उसकी मुस्कान से भी मुझे उतना ही प्यार था.. जितना उसके गुस्से से.... उसको देख कर ऐसा लगता था जैसे..... रंग बिरंगे चेहरों से सजी इस दुनिया में 'वो' एक अलग ही चेहरा है... एक नन्ही काली जैसा नादान.... एक फूल जैसी मासूम... और.. और एक बच्चे की तरह शैतान.. पर.. उसकी नादानी में; उसकी मासूमियत में.. और.. उसकी शैतानियों में.. जाने क्या बात थी कि जितनी बार भी उसको देखता.. जितनी बार भी उसके बारे में सुनता... उसके लिए मेरा प्यार बढ़ता ही जाता.... पर कभी तरीके से बोल नही पाया.. क्यूंकी..... क्यूंकी मुझे डर लगता था..... डर लगता था कि अगर 'जवाब' में इनकार मिला तो क्या होगा!.... मेरे दोस्त.. हमेशा मुझे कहते थे.. कि मुझे अपने दिल की बात दिल में नही रखनी चाहिए... बोल देनी चाहिए... गुलबो को.. कहीं ऐसा ना हो की फिर देर हो जाए.... पर मुझे विश्वास था.. अपने प्यार पर... अपने सच्चे प्यार पर... मुझे विश्वास था.. कि 'वो' इतनी भी नादान नही हो सकती कि समय से पहले ही रास्ते से भटक जाए... समय से पहले ही....." अचानक हॅरी चुप हो गया और उसने अपनी आँखें बंद कर ली.. आँखें बंद होते ही उनमें से 2 आँसू निकल कर आए और उसके गालों पर ठहर गये.... मैं हैरानी से उसकी और देख रही थी... मेरी समझ में माजरा आ ही नही रहा था...

अचानक पिंकी अपनी चिर परिचित पैनी आवाज़ में बोली," मैने क्या किया है...?"

उसके बोलते ही हॅरी ने आँखें खोल दी.. उसकी आँखें हल्की हल्की लाल हो गयी थी.. बोला तो ऐसा लगा की खून का घूँट भरकर बोला हो," ना! तुमने कहाँ कुच्छ किया है पिंकी... आज कल तो सब जगह ऐसा होता है... तुमने कहाँ ग़लत किया... ग़लत तो मैं था.. ग़लत तो मेरे विचार थे.. तुम्हारे बारे में!"

"ये... ये क्या बोल रहे हो तुम..." पिंकी उत्तेजित होकर खड़ी हो गयी..," तो तुम मेरे बारे में बोल रहे थे... ये सब... मैने कुच्छ नही किया सुन लो.. 'वो तो मुझे.... 'वो' तो किसी ने मँगवाई थी.. देनी है तो दे दो.. वरना अपना काम करो.. !"

"क्य्ाआ? तो क्या सच में तुमने... मतलब..." हॅरी की आँखों में फिर से वही चमक लौट आई.. हां.. थोड़ा शर्मिंदा सा ज़रूर लग रहा था..... बोलते हुए हॅरी को पिंकी ने बीच में ही टोक दिया," म्म..मैं तुम्हारा 'सिर' फोड़ दूँगी हां!" गुस्से से पिंकी ने कहा और जाने उसके दिमाग़ में क्या आया.. वह हँसने लगी....

"सॉरी... एक मिनिट... " हॅरी ने बॅग में से एक बड़ा सा पत्ता निकाला और उसमें से एक छ्होटी सी गोली निकाल कर दे दी..,"ये लो..... सॉरी.. मैं बस यूँही सोच गया था...."

"चल अंजू.." पिंकी ने जैसे उसके हाथ से गोली झटक ली हो..," मेरे बारे में ऐसा सोचता है..." पिंकी बड़बड़ाई और मेरा हाथ पकड़ कर बाहर निकल आई...

"पिंकी... हमने उसको पैसे तो दिए ही नही....." मेरी खुशी का कोई ठिकाना नही था.. मेरी चिंता दूर जो हो गयी थी.....

"हां.. पैसे दूँगी उसको... अगर तेरा काम ना होता तो में 'ये' गोली उसी को खिला कर आती हां!" पिंकी गुस्से से धधकति हुई बोली...

"अरे... इसमें उसकी क्या ग़लती है... तुम ऐसी चीज़ बिना बात सॉफ किए माँगोगी तो कोई भी ये बात सोच लेगा...." मैने उसको समझाने की कोशिश की....

"वो बात नही है यार!" पिंकी का मूड उखड़ा हुआ था....

"तो.. और क्या कह दिया उसने...?" मैं असमन्झस में पड़ गयी....

"अच्च्छा.. तूने सुना नही क्या? क्या प्रेमलीला छेड़ के बैठ गया था अपनी...." पिंकी मेरी तरफ देख कर तरारे से बोली....

"ओह्हो.. फिर उसने तुझे तो कुच्छ नही कहा ना...."

"तुझे नही पता... 'वो' सारी बकवास मेरे बारे में ही कर रहा था... उसने पहले भी मुझे एक दो बार गुलबो कहा है... मैने मना कर दिया था कि मेरा नाम ना बिगाड़े.... !" पिंकी बोली....

"पर... तू उस'से लड़ाई करके आ गयी... उसने किसी को बोल दिया तो...?" मैं आशंका से बोली....

"नही बोलेगा वो!" पिंकी ने आत्मविश्वास से कहा.....

"क्यूँ? तुझे कैसे पता....?"

"इतना भी बुरा नही है... हे हे हे..." पिंकी हँसने लगी.....

"तू उसको इतना कैसे जानती है?" मैने हैरत से पूचछा.. पिंकी शर्तिया तौर पर उन्न लड़कियों में से नही थी जो हर जाने अंजाने लड़के का रेकॉर्ड लेकर घूमती हो.. हरीश के बारे में तो मुझे भी सिर्फ़ इतना ही पता था कि 'वो' अच्च्चे ख़ासे घर का लड़का था.. और करीब 3 साल से हमारे गाँव में किराए पर रह रहा था.. अपने दवाइयों के 'काम' के अलावा समाज सेवा में उसकी काफ़ी रूचि थी, इसीलिए जल्द ही उसको गाँव और बाहर के बहुत से लोग जान'ने लगे थे....

"क्या? मैं 'इतना' क्या जानती हूँ...?" पिंकी ने चलते चलते पूचछा...

"आ..आन.. मेरा मतलब तुझे कैसे इतना विश्वास है कि 'वो' किसी को कुच्छ नही बताएगा....?" मेरा सवाल फ़िज़ूल नही था...

"छ्चोड़.. घर आ गया है.. बाद में बात करेंगे... ले.. ये गोली खा ले अभी... उसकी बकवास मीनू को मत बताना...." पिंकी ने घर में घुसने से ठीक पहले अपने हाथ में संभाल कर रखी हुई गोली मुझे पकड़ा दी......

मैं जल्दी से घर जाकर खा पीकर वापस पिंकी के घर आ गयी और हम दोनो अगले दिन के पेपर की तैयारी करने लगे......

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भगवान और 'संदीप' की दया से मेरा चौथा 'पेपर' भी अच्च्छा हो गया.. हालाँकि उसने मुझसे कोई बात नही की थी.. पर मैने आधे टाइम के बाद मौका देख कर खुद ही अधिकार पूर्वक अपनी आन्सर शीट उसकी ओर सरका कर उसकी शीट लगभग छ्चीन ही ली... उसने कोई प्रतिक्रिया नही दी और उतनी ही स्पीड से मेरी शीट में लिखने लगा.. जितनी स्पीड से 'वो' अपना पेपर खींच रहा था....

पेपर के बाद खुशी खुशी हम दोनो जैसे ही एग्ज़ॅमिनेशन रूम से बाहर निकले.. इनस्पेक्टर मानव को सादी वर्दी में ऑफीस के बाहर खड़ा पाकर मैं चौंक गयी..,"आए.. इनस्पेक्टर!" मैने पिंकी के कानो में फुसफुसाया....

"कहाँ?" उसने जैसे ही अपनी नज़रें उठाकर चारों और घुमाई.. उसको मानव दिखाई दे गया...

"क्या करें...? हम इसके पास चलें या नही..?" पिंकी ने असमन्झस में खड़ी होकर मेरी राइ लेने की सोची...

"वो बात नही बतानी क्या? ढोलू वाली...!" मैने कहा ही था की तभी मानव की नज़र हम पर पड़ी.. उसने इशारे से हुमको वहीं रुकने को कह दिया...

कुच्छ देर बाद ही स्कूल खाली हो गया... मेरे मंन में पहले पेपर के बाद ऑफीस में हुई मस्ती की यादें ताज़ा हो गयी... उस दिन भी मैं और पिंकी पेपर के बाद ठीक वहीं खड़े थे.. जहाँ आज!

"इधर आना एक बार..." मानव ने हमें बुलाया और फिर ऑफीस के अंदर झाँक कर बोला,"आओ.. बाहर आ जाओ!"

हमारे ऑफीस के दरवाजे तक पहुँचते पहुँचते मेडम के साथ 'वो' सर भी खिसियाए हुए से बाहर निकल आए... हम दोनो ने आस्चर्य से एक दूसरी की आँखों में देखा... '2 दिन से तो ये आ ही नही रहे थे... फिर आज कैसे?'

मेरे हाथ अपने आप ही सर और मेडम को नमस्ते कहने के लिए उठ गये.. पर पिंकी ने सिर्फ़ मानव को नमस्ते की.. 'सर' कह कर....

"हूंम्म... माथुर साहब... अब बोलो!" मानव ने 'सर' को घूर कर देखा....

"अर्रे यार.. जो बात थी.. मैं बता चुका हूँ.. आप क्यूँ खम्खा इस मामले को खींच रहे हो... मैं कोई गैर थोड़े ही हूँ.. आपके शहर का ही रहने वाला हूँ... शाम को बात करते हैं ना साथ बैठ कर.... 'कोठी' पर आ जाना..." सर ने टालते हुए कहा....

"क्यूँ? कोठी पर क्या है? यहाँ क्यूँ नही....!" मानव ने कुटिल मुस्कान उसकी और उच्छली... हम दोनो चुपचाप उनकी बातें सुनते रहे....

"अर्रे इनस्पेक्टर भाई साहब.. कामन सेन्स है.. यहाँ मैं आपकी 'वो' सेवा थोड़े ही कर सकता हूँ जो मेरे अपने घर पर हो जाएगी.. छ्चोड़ो भी अब.. जाने दो लड़कियों को...!" सर ने मानव के कंधे पर थपकी लगाकर कहा...

"तुम्हारे फ़ायडे के लिए ही बोल रहा हूँ.... तुम मुझे यहीं सब कुच्छ बता दो तो अच्च्छा रहेगा.... 'वरना' शाम को थाने में तुम्हे 'वो' इज़्ज़त नही मिलेगी जो यहाँ दे रहा हूँ.. समझ रहे हो ना बात को....!" मानव ने गुर्राते हुए कहा...

"देखो इनस्पेक्टर.. मुझे इस बारे में कुच्छ नही पता.. मुझे जो बोलना था मैं बोल चुका हूँ...." सर भी मानव की टोन देख कर खिज से गये....

मानव ने तुरंत मेरी और देखा..,"हां अंजलि.. क्या बताया था मेडम ने तुम्हे.. अगले दिन...?"

मैने सकपका कर मेडम की ओर देखा और अपना सिर झुका लिया...," ज्जई.. सर.. मेडम ने बताया था कि हमारे जाने के बाद तरुण और 'सोनू' दोनो यहाँ आए थे.... उन्होने सर से अकेले में कुच्छ बात की थी... मेडम कह रही थी कि सर में और उन्न दोनो में 'उस' दिन वाली बात को लेकर कुच्छ समझौता हुआ था...!"

"और उसी दिन तरुण को मार दिया गया.. सोनू गायब हो गया.. है ना...?" मानव ने कन्फर्म किया....

मैने सिर झुकाए हुए ही 'हां' में हिला दिया... तभी मुझे 'सर' की आवाज़ सुनाई देने लगी..,"क्या यार.. तुम 'इस' रंडी की बात पर भरोसा करोगे.. साली कुतिया.. तीन बार तो 'डी.ई.ओ. बन'ने के चक्कर में मेरी कोठी पर 'रात' बिता चुकी है.. एम.पी. साहब के साथ... और ये दोनो... इनको भी कम मत समझना.." मैने नज़रें उठा कर 'सर' को देखा.. वो हमारी ओर देख कर बातों को चबा चबा कर बोल रहा था...," ये दोनो भी पूरे मज़े से........."

सर की बात पूरी नही हो पाई.. मानव का एक झन्नाटेदार थप्पड़ 'सर' के गाल पर पड़ा और उसका सर दीवार से जा टकराया...

सर लड़खदाया और फिर सीधा खड़ा होकर अपने गाल को सहलाने लगा.. उसके साँवली सूरत पर भी 'तीन' उंगलियों के निशान सॉफ दिखाई दे रहे थे.. जैसे वहाँ खून इकट्ठा हो गया हो..," तुम मुझे जानते हो इनस्पेक्टर.. फिर भी..." सर की बाईं आँख 'लाल' हो गयी थी..

"अभी कहाँ... अभी तो मुझे बहुत कुच्छ जान'ना है... शाम को चलकर 'थाने' आ जाना.. वरना... 'ये' सिर्फ़ ट्रैलोर था...." मानव गुर्रा रहा था....

"देखो इनस्पेक्टर साहब!.. मैं बता रहा हूँ... 'वो' इनको छ्चोड़ कर वापस आए थे... उन्होने मुझसे 'ये' कहा था कि '2' और लड़कियों का ऐसे ही पेपर करवाना है... और 'एक' दिन 'इसको.." उसने पिंकी की ओर इशारा करते हुए कहा," इसको पेपर टाइम के बाद रोक कर रखना है.... कैसे भी करके... उसने कहा था कि 'वो' दो लड़कों को और साथ लेकर आएँगे.. और इसका बलात्कार...." कहकर सर अपने गाल को सहलाने लगे...

मानव ने एक गहरी साँस ली..," और.....?"

"और.. उन्होने मुझसे 1 लाख रुपए माँगे थे.. मोबाइल क्लिप दिखा कर 'वो' मुझे ब्लॅकमेल करना चाह रहे थे...." सर ने उगल दिया....

"ओह्ह.. इसीलिए तुमने तरुण को मरवा दिया... और शायद सोनू को भी...!" मानव तमतमाया हुआ था....

"नही इनस्पेक्टर... मुझे इस बात के बारे में कुच्छ नही पता... मैं तो उनको 1 लाख रुपए दे ही देता... मेरे लिए एक लाख रुपैया कोई बड़ी बात नही है..."

"शाम को थाने आ जाना..." मानव ने कहा और हमारी ओर घूम गया..," तुम जाओ अब..."

मैं कुच्छ बोलने ही वाली थी की पिंकी ने मेरा हाथ पकड़ कर खींच लिया... स्कूल के मैं गेट पर जाते ही मैं बोली," वो ढोलू वाली बात भी तो बतानी है...!"

"नही छ्चोड़... मीनू फोन पर ही बता देगी.. मुझे तो इस'से डर लग रहा है... कितना खींच के दिया उसको..." पिंकी हँसने लगी....

"तो.. हमें थोड़े ही कुच्छ कहेंगे...!" मैं बोली...

"क्या पता... उस दिन 'स्कूल' वाली बात पूच्छने लगे तो...?" पिंकी ने मुझे 'बेचारी' सी नज़रों से देखा... तभी मानव ने हमारे पास आकर अपनी बाइक रोक दी..," यहाँ क्यूँ खड़ी हो...?"

हम दोनो सकपका गये.. तभी मेरे मुँह से अचानक निकल गया..," हमे... हमे अकेले जाते हुए डर लग रहा है....!"

मानव हँसने लगा..," आओ.. बैठो.. मैं छ्चोड़ देता हूँ..."

मैने पिंकी की और घबराकर देखा.. उसका पता नही था बाद में क्या का क्या बोलने लग जाए.. पिंकी ने हताशा में मुझे बैठने का इशारा किया... हम दोनो मानव के पिछे बैठे और गाँव की तरफ चल पड़े......

जैसे ही मानव ने गाँव के स्टॅंड पर बाइक रोकी.. पिंकी फटाक से उतर गयी.. सच कहूँ तो मेरा उतरने का मन नही कर रहा था.. उसकी फौलादी पीठ से सटी मेरी एक चूची मुझे 'कल' वाला रंग बिरंगा अहसास करा रही थी.... सारी रात दुखती रही मेरी योनि अब एक बार फिर मचलने लगी थी.. उसका दर्द कम होते ही विरह वेदना से वो एक बार फिर तड़प उठी थी... एक बार में ही उसको 'मूसल' की लत लग गयी थी शायद... अब गुज़ारा होना मुश्किल था...

मुझे दुखी मन से उतरते देख कर मानव ने पूच्छ लिया..," घर यहाँ से ज़्यादा दूर है क्या?"

"नही.. हम चले जाएँगे...!" पिंकी तपाक से बोली... तो मैं कुच्छ बोल ना सकी... और उसके साथ चल पड़ी...

"एक मिनिट...!" मानव की आवाज़ आते ही हम घूम गये..

"एयेए... वो घर पर कौन कौन हैं...?" मानव ने अपने माथे को खुजाते हुए अपनी आँखों की हिचकिचाहट को छिपा लिया...

"पता नही.. सभी होंगे!" पिंकी धीरे से बोली....

"मैं घर ही छ्चोड़ आता हूँ.. आओ बैठो.." मानव के कहते ही मैं बाइक की ओर वापस चल पड़ी....

"नही.. सर.. हम चले जाएँगे...!" पिंकी ने दोहराया....

"एक कप चाय में तुम्हारा दूध ख़तम हो जाएगा क्या?" मानव खिसिया कर हँसने लगा....

पता नही मानव ने क्या सोच कर कहा और पिंकी ने क्या समझा.. पर मुझे तो जवान होने के बाद से ही 'दूध' का एक ही मतलब पता था.. मेरी चूचियो में झंझनाहट सी मच गयी...

पिंकी थोड़ी देर असमन्झस में वहीं खड़ी रही और फिर अपनी नज़रें नीची किए बाइक की और चल पड़ी... मज़ा आ गया!

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10-22-2018, 11:31 AM,
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RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
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"अच्च्छा.. मैं चलता हूँ...!" मानव ने आनमने मंन से घर के अंदर झाँकते हुए कहा..

"नही सर... अब आ ही गये हैं तो चाय पीकर जाइए ना... 'वो' आपको कुच्छ बताना भी है..."घर पहुँचने के बाद पिंकी की आवाज़ में आत्मविश्वास सा आ गया था.....

शायद मानव को तो कहने भर की देर थी.. बाइक तो उसने पहले ही बंद कर रखी थी.. पिंकी के बोलते ही उसने वहीं स्टॅंड लगाया और हल्का हल्का मुस्कुराता हुआ घर के अंदर चला आया... नीचे कोई नही था...

"मम्मी..." पिंकी ने सीढ़ियों की तरफ मुँह करके ज़ोर से आवाज़ लगाई....

"मम्मी पापा नही हैं.. शहर गये हैं... पेपर कैसा हुआ...?" उपर से नीचे आती मीनू की मधुर आवाज़ हमारे कानो में गूँजी... पिंकी ने कोई जवाब नही दिया.. और सीढ़ियों में खड़ी खड़ी मीनू को नीचे उतरते देखती रही...

"वो 'लंबू' आया था क्या स्कूल में.. इन्न्णस्पेक्टोररर्र मानव!" मीनू पर जाने कौनसी मस्ती चढ़ि थी.. 'इनस्पेक्टर' इस तरह बोला जैसे 'ट्रॅक्टर' बोल रही हो... पिंकी की सिट्टी पिटी गुम हो गयी.. उसके मुँह से तो आवाज़ ही ना निकली... और जैसे ही मीनू सीढ़ियों से उतर कर नीचे आई.. उसकी तो हालत ही पतली हो गयी..,"वववू.. ववो.." मीनू ने हकलाते हुए कुच्छ कहने की कोशिश की और बचने का सबसे आसान तरीका उसको 'वापस' उपर भागना लगा...

पर वो जैसे ही तेज़ी से पलटी... मानव ने उसको टोक दिया...,"आ.. सुनो!"

मीनू के कदम वहीं ठिठक गये... अभी अभी नाहकार आई मीनू 'बला' की हसीन कयामत लग रही थी... 'वो' अपने गीले बालों को तौलिए में लपेटे आई थी.. जो अब खिसक कर उसके कंधे पर आ गिरा था... और पानी की बूंदे 'टपक' कर उसके मादक कुल्हों को यहाँ वहाँ से पारदर्शी करती जा रही थी...हल्क सलेटी रंग के 'लोवर' के अंदर उसके मादक कसाव और मस्त गोलाई लिए हुए 'नितंबों' को क़ैद किए हुए उसकी 'पॅंटी' के किनारे बाहर से ही सॉफ नज़र आ रहे थे... अलग से ही दिख रहे उसके कहर धाते नितंबों के बीचों बीच गहरी होती 'खाई' का कटाव थोड़ी डोर जाकर 'अंधेरे' में गुम हो रहा था.... मैने चोर नज़रों से मानव की ओर देखा.. उसकी नज़रें भी वहीं जमी हुई थी...

"ज...जी सर...!" मीनू के पलटते ही उसके 'लब' थिरक उठे... मुझे मीनू उस दिन से पहले कभी इतनी खूबसूरत नही लगी थी... या फिर शायद आज मैं उसको 'मानव' की नज़रों से पढ़ने की कोशिश कर रही थी... बहुत दीनो बाद आज पहली बार मीनू मुझे 'टॉप' में नज़र आई थी... उसकी मद भरी गोल गोल चूचियो से लेकर उसके कमसिन पेट तक 'टॉप' उसके बदन से चिपका हुआ था...उसकी मांसल जांघों के बीच तिकोने आकर में उसका 'योनि' प्रदेश और नीचे की तरफ 'भगवान' की अनुपम कृति...; अबला 'नारी' को मिला ताकतवर 'मानव' को अपनी उंगलियों पर नचाने का 'पासपोर्ट' ; 'उस' लंबवत 'काम चीरे' का हल्का सा अहसास उसके लोवर के बाहर से ही हो रहा था....

काफ़ी देर तक मंत्रमुग्ध सा 'मानव' अधीर होकर मीनू को देखता ही रहा.. पिंकी भी मीनू के पिछे खड़ी इस तमाशे को समझने की कोशिश कर रही थी.... कम से कम 'डरी हुई' तो मीनू को कह ही नही सकते थे... पिंकी शायद ये समझ नही पा रही थी कि 'वो' शरमाई हुई सी क्यूँ है...

मीनू एक बार फिर से थोड़ी तिर्छि होकर बुदबुदाई..," ज्जई...."

"ववो.. इस... इन्न्णस्पेकओर्रर्ररर मानव उर्फ लंबू का एक प्याला चाय पीने का मंन कर रहा है..." बोलते हुए मानव ने ज्यों की त्यों मीनू की नकल उतारी....

"ज्ज.. ज्जई.. नही.. ववो.. मतलब.. मैं....... लाती हूँ....!" बुरी तरह झेंप कर मीनू के बदन में उपर से नीचे तक कंपन सा चालू हो गया था... उसके मदमस्त अंगों में अचानक ही थिरकन पैदा हो गयी थी....

"म्‍मैई लाती हूँ दीदी... " पिंकी ने कहा और मीनू का जवाब सुने बगैर ही उपर भाग गयी... मीनू कंपकँपति आवाज़ में बोलती रह गयी.. ,"सुन तो....!"

"बैठो तो सही यार..!" मानव ने मुस्कुराते हुए कहा...

"ज्जई.." मीनू ने बहूदे तरीके से तौलिया अपनी छातियो पर डाला और मेरे पिछे छिप कर बैठ गयी.. उसके गोरे गालों की रंगत गुलाबी हो चुकी थी....

"मुझे पता नही था तुम मेरे पिछे से मुझे 'इतनी' इज़्ज़त देती हो.. 'लंबू'.. वाह.. क्या नाम दिया है...!" मानव ने हंसते हुए कहा...

"ज्जई.. नही.. ववो तो मैं.. यूँही बोल गयी थी.." मीनू ने मिमियाते हुए इतनी धीरे बोला की शायद ही मानव को उसका जवाब सुना होगा...

"अब मेरा कुसूर भी बता दो.. यूँ नाराज़ होकर छिप कर क्यूँ बैठ गयी हो..!" मानव की आवाज़ में उल्लास था.. कामना थी.. शरारत थी!

मैं मानव का मतलब समझ कर वहाँ से उठने लगी तो मीनू ने मुझे कसकर पकड़ लिया..,"नही.." मीनू की आवाज़ भी उसके काँपते हाथों की तरह लरज रही थी...,"मैं अभी आई.." मीनू ने हड़बड़ाहट में कहा और उपर भाग गयी...

"बड़ी प्यारी है.. है ना!" मानव ने उसके जाने पर कहा तो मैने अचकचा कर उसकी तरफ देखा... ज़ालिम ने मुझ पर तो एक बार भी ध्यान नही धारा..,"आ.. सीसी..कौन.. म्मीनू..? हहान...!" मैं हड़बड़ाहट से बोली और अपनी उंगलियाँ मटकाने लगी...

तभी पिंकी चाय और नमकीन लेकर आ गयी.. आकर मेरे पास खड़ी हुई और झुक कर मेरे कान में बोली..," वो.. स्टूल रख इनके आगे...!"

मैं चारपाई से खड़ी हुई और स्टूल सरका कर मानव के आगे रख दिया.. पिंकी ने चाय और नमकीन उस पर रख दी और मेरे पास आकर बैठ गयी... थोड़ी देर बाद ही मीनू भी नीचे आ गयी.. एक अलग ही पहनावे में.. सलवार कमीज़ थी.. पर 'वो' भी उसने छांट कर ही पहनी लगती थी.. मैने उसको उस दिन से पहले 'वो' सूट डाले नही देखा था.. शायद नया सिलवाया होगा... चुननी से अपनी छातियो अच्छि तरह ढके मीनू नज़रें झुकाए हमारे पास आकर बैठ गयी...

मानव लगातार टकटकी बाँधे मीनू को देख कर मुस्कुरा रहा था.. मैने मीनू के चेहरे की ओर देखा.. अब भी लज्जा से 'लाल' चेहरा रह रह कर तिर्छि नज़रों से मानव की ओर देखने की कोशिश करता और उसको अपनी ही और देखता पाकर वापस झुक जाता... हर बार मीनू थोड़ी सी पिछे भी सरक जाती...

"ववो.. आपको एक और बात बतानी थी सर...!" मुझसे दोनो की आँखों ही आँखों में मजबूत होती जा रही 'प्रेम-डोर' रास ना आई और मैं बोल पड़ी....

"क्या? बोलो!" मानव ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा....

मैं कुच्छ सोच कर बोलती.. इस'से पहले ही मीनू ने बोलना शुरू कर दिया..,"ववो..सर्र..."

बोलती हुई मीनू को मानव ने फिर टोक दिया...,"नही.. लंबू भी अच्च्छा लगता है..!"

उसके बाद तो मीनू बोल ही नही पाई... और मुझे ही बोलना पड़ा..," सोनू का मोबाइल गाँव के एक लड़के के पास है सर..!"

"ढोलू के पास है ना!" मानव का जवाब सुनकर मैं स्तब्ध रह गयी..,"आ.. आपको कैसे पता?"

"और नही तो डिपार्टमेंट क्या हमें घास चराने के पैसे देता है....!" मानव ने अजीब से लहजे में कहा.. पर आगे कुच्छ बोला नही...

"कहीं.. सोनू को उसी ने ना...." मैं मानव को आगे ना बोलते देख कर बोली.. पर उसने मुझे बीच में ही टोक दिया...,"जाँच चल रही है... अभी कुच्छ कहना मुश्किल है.... वैसे... ढोलू भी कल से ही घर से गायब है.. पोलीस आई थी रात को उसको लेने.. पर वह पहले ही गायब हो गया था.. शायद किसी तरह से उसको भनक लग गयी थी....!"

"ओह्ह.. अच्च्छा सर!" मैने भगवान का शुक्रा मनाया मैं कल रात उसके घर नही थी..,"पर... आपको कैसे पता चला ये सब...?"

"और कोई खास बात हो तो बताओ!" मानव ने मेरी बात पर ध्यान नही दिया... मैं मन मसोस कर रह गयी.....," नही.. औ तो कुच्छ नही है...." मैने कहा....

"ठीक है.. अभी चलता हूँ..." मानव ने खड़ा होकर मीनू की ओर देखा...

मीनू चुपचाप खड़ी हो गयी.. जैसे ही मानव दरवाजे तक पहुँचा.. मीनू शरमाते हुए बोली..," सॉरी!"

"ठीक है.. शुक्र है सॉरी तो बोला..." मानव ने मुस्कुरकर कहा और बाहर निकल गया.....

मानव के जाते ही मीनू पिंकी पर पिल पड़ी... पिंकी को चारपाई पर गिराया और तकिये से उसको 'धुन'ना शुरू कर दिया....

"क्यूँ मार रही हो दीदी.... मैने क्या किया है...?" पिंकी हंसते हुए बोली....

मीनू जब हटी तो बुरी तरह हाँफ रही थी... उसके गालों की रंगत अब भी गुलाबी थी और चूचिया तेज़ी से उठ बैठ रही थी...,"मैने क्या किया है..." मीनू उसकी नकल उतार कर बोली..,"बता नही सकती थी कि नीचे मानव आया है....!"

पिंकी ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी...,"मानव नही दीदी.. लंबू इन्न्णस्पेक्टोररर्र.. बोलो... हे हे हे...."

"बोलूँगी.. तुझे क्या है... लंबू लंबू लंबू..." मीनू ने कहा और फिर बिना किसी के कुच्छ कहे ही शर्मा कर कंबल में घुस गयी.....

क्रमशः...............
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10-22-2018, 11:31 AM,
#33
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--24

गतान्क से आगे................

जब तक चाचा चाची नही आ गये, पिंकी ने उसको चिदाना नही छ्चोड़ा.. कुच्छ देर बाद मैं भी पिंकी के साथ ही मीनू को बातों ही बातों में तंग करने लगी थी.. पर चाचा चाची के बाद हमें शांत हो जाना पड़ा.. मीनू के चेहरे से ऐसा लग रहा था जैसे मानव का नाम ले ले कर उसको तंग किया जाना उसको अच्च्छा लग रहा था.. चाचा चाची के आने पर उसका मूड ऑफ सा हो गया...

"पापा.. आज में अंजू के साथ इसके घर सो जाउ क्या?" पिंकी की इस बात से मुझे भी हैरानी हुई.. मेरे आगे उसने ऐसा कुच्छ जिकर किया नही था...

"क्यूँ? यहाँ क्या दिक्कत है बेटी..? अंजलि भी तो रोज़ यहीं सोती है..." पापा ने प्यार से पूचछा....

"ययए.. ये मीनू हमें पढ़ने नही देती यहाँ...!" पिंकी ने जाने ऐसा क्यूँ कहा...

"क्यूँ..?" मीनू तरारे से बोली...," मैं क्या सींग मारती हूँ तेरे पेट में... पापा! जब से आई है इसने किताब खोल कर नही देखी.. खंख़्वाह मेरा नाम ले रही है....!"

"पिनकययययी! तू बहुत शरारती होती जा रही है आज कल... चलो किताब खोल के पढ़ाई करो...!" चाचा ने कहा और उपर चले गये....

मीनू अब भी गुस्से से अपने कुल्हों पर हाथ रखे पिंकी की ओर देखे जा रही थी.. पिंकी ने शरारत से उसकी और जीभ निकल दी और फिर हँसने लगी.....

"देख लो मम्मी अब इसको!" मीनू तुनक कर बोली....

चाची ने मीनू के लहजे पर ध्यान नही दिया...," आजा बेटी.. उपर आजा.. थोड़ी देर काम में मदद कर दे.. बहुत थक गयी हूँ....!" चाची भी कहते कहते उपर चढ़ गयी...

"वापस आने के बाद बताती हूँ तुझे...!" मीनू ने बनावटी गुस्से से पिंकी की ओर उंगली की....

"लंबू.. लंबू.. लंबू... हे हे हे!" पिंकी ने उसको जाते जाते भी छेड़ ही दिया... फिर उसके जाते ही गंभीर सी होकर बोली...,"तूने गोली.. ले ली क्या अंजू?"

"हां.. 'वो' तो मैने आते ही ले ली थी..." मैने कहने के बाद उस'से पूचछा..," तू हमारे घर चलने के लिए क्यूँ कह रही थी....

पिंकी जवाब देते हुए कहीं खो सी गयी..," आ.. नही.. बस ऐसे ही....!"

"वो.. मुझे तो अभी भी डर लग रहा है कि हरीश किसी को बोल ना दे... तूने बताया भी नही कि तू उसको इतने अच्छे से कैसे जानती है...!" मैं जाकर उसकी चारपाई पर ही बैठ गयी...

"अर्रे.. अच्छे से नही जानती पागल... पर मुझे ये पता है कि 'वो' बुरा लड़का नही है... मुझे विश्वास है कि 'वो' किसी को नही बोलेगा....!"

"पर तुझे विश्वास कैसे है..? कुच्छ तो बता ना! मुझे सच में डर लग रहा है..." मैने कहा....

"तू किसी को बताएगी तो नही ना...!" पिंकी की आवाज़ धीमी हो गयी...

"नही.. मैं पागल हूँ क्या?" मैं उत्सुकता से उसकी और सरक गयी...

"पहले मेरी कसम खा!" पिंकी अब भी कुच्छ बताने से हिचकिचा रही थी...

"तेरी कसम ले! बता ना जल्दी.. फिर मीनू आ जाएगी....!" मुझे लगने लगा था कि कुच्छ ना कुच्छ 'कपड़ों के नीचे' की ही बात है....

"ववो..." पिंकी ने इतना कहते ही मेरी आँखों में आँखें डाल कर सुनिसचीत किया कि मैं सच में ही उसकी बात को 'राज़' रखूँगी या नही.. फिर कुच्छ हिचकते हुए बोली...," ववो.. एक बार 2 गाँव के लड़कों ने मुझे अंधेरे में तालाब के पिछे वाली झाड़ियों में पकड़ लिया था... तब 'वहाँ' इसी ने मुझे उनसे बचाया था.. मुझे तब डर लग रहा था कि अब 'ज़रूर' ये बकवास करेगा.. पर 'ये' मुझे घर तक ठीक ठाक छ्चोड़ कर गया था... इसीलिए मुझे विश्वास है कि 'ये' तेरी बात भी किसी को नही बताएगा...."

मैने आस्चर्य से मुँह खोल कर पिंकी की ओर देखा..,"सच! कब हुआ था ये... पूरी बात बता ना प्लीज़....."

"नही.. मुझे शर्म आ रही है... पूरी बात नही बता सकती..." पिंकी नर्वस हो गयी...

"धात पागल.. मुझसे कैसी शर्म.. बता ना... 'कौन' थे वो लड़के...?"

"पता नही.. अंधेरे में मैं उनको पहचान नही पाई थी... और मेरी आवाज़ सुनकर हॅरी झाड़ियों में आ गया.. इसको देखते ही 'वो' मुझे छ्चोड़ कर भाग गये थे.. उसने भी उनको नही देखा...!" पिंकी ने बताया....

"पूरी बात तो बता दे.. ऐसे मेरी समझ में कैसे आएगा कि असल में हुआ क्या था... बता ना प्लीज़..." मैने ज़ोर देकर पूचछा....," और तू तालाब के पार क्या करने गयी थी.. कब हुआ था ये...?"

पिंकी कुच्छ देर चुपचाप अपना सिर लटकाए बैठी रही.. शायद वा अपनी यादों को ताज़ा कर रही थी..,"......... तू किसी को भी नही बोलेगी ना! देख मैने ये बात आज तक मम्मी को भी नही बताई है...!"

"नही बताउन्गि ना यार.. मुझ पर विश्वास नही है क्या? तेरा पास भी तो मेरा इतना बड़ा राज़ है... रुक एक मिनिट.. मैं दरवाजा बंद करके आती हूँ..", उसको राज़ी होते देख मैं उत्सुकतावश खड़ी हो गयी...

"नही रहने दे... ऐसे ही ठीक है.. दरवाजा बंद करेंगे तो मीनू को शक़ होगा... तू दूसरी चारपाई पर आकर अपनी किताब खोल ले.. बताती हूँ..", बोलते हुए पिंकी के चेहरे पर हुल्की सी उदासी सॉफ पढ़ी जा सकती थी....

"हां.. बता... अब!" मैं जाकर उसके पास वाली चारपाई पर बैठ गयी.....

पिंकी ने गहरी साँस लेने के बाद बोलना शुरू किया...,"वो.. पिच्छले अक्टोबर की बात है... पापा घर पर नही थे.. इसीलिए मुझे भैंसॉं को शाम को तालाब पर लेकर जाना पड़ा था.. " बोलकर पिंकी चुप हो गयी और मेरे चेहरे को देखने लगी...

"अच्च्छा...", मैने उत्सुकता से हुंकार भरी....

"जब मैं तालाब पर गयी तो वहाँ बहुत से लोग थे.. धीरे धीरे सब की भैंस निकालने लगी और एक एक करके सब अपने अपने घर जाने लगे.. अंधेरा होने लगा था.. पर हमारी भैंसे बाहर नही आई..." पिंकी ने आगे बोला....

"फिर?", मैने पूचछा...

"फिर मैने एक लड़के से अंदर जाकर हमारी भैंसे निकाल देने को कहा.. पर उसने पानी ठंडा होने की बात कहकर अंदर घुसने से इनकार कर दिया.. वैसे भी उनकी भैंसे बाहर निकल चुकी थी... वह भी मना करके भाग गया.. तालाब पर मैं अकेली ही रह गयी...", पिंकी बोलते हुए अब मेरे चेहरे को नही देख रही थी.. शायद वा नज़रें झुकाए पूरी तरह अतीत में खो गयी थी....

"ओह्ह.. फिर वो लड़के आए और तुझे ज़बरदस्ती झाड़ियों में ले गये.. है ना?", मुझसे अंदाज़ा लगाए बिना रहा ना गया... मेरी आँखों के सामने अभी से एक द्रिश्य तैरने लगा था जैसे दो लड़के पिंकी के बदन को नोच रहे हों....

"नही.. मैं बहुत उदास हो गयी थी.... मैने हताशा में पास पड़े पत्थर अपनी भैंसॉं की तरफ फैंकने शुरू कर दिए... उनमें से एक पत्थर हमारी भैंस की आँख के पास लग गया और वो उठ कर दूसरी तरफ चल दी... उसके पिछे पिछे बाकी दोनो भैंसें हो ली... झाड़ियों की ओर..."

"ओह्ह अच्च्छा.. फिर..?", मैने कंबल अपनी जांघों पर डाला और हाथ नीचे ले जाकर अपनी योनि को सहलाना शुरू कर दिया... 'काश.. कभी ऐसा मेरे साथ होता..' मैने मंन ही मंन सोच कर तड़प उठी थी....

"फिर क्या? ...अंधेरा होने वाला था.. अगर मैं उनके पिछे दूसरी तरफ ना जाती तो उनके खो जाने का डर था... मैं डरती डरती तालाब के किनारे किनारे दूसरी तरफ जाने लगी... बीच रास्ते में पहुँची तो 2 लड़के तालाब के किनारे पेशाब कर रहे थे... कुत्ते कामीनो ने मुझे देखते ही मेरी ओर मुँह कर लिया... बिना ज़िप बंद किए...!"

"आआआअ...!", मेरा एक हाथ आस्चर्य से खुल गये मेरे होंटो पर चला गया.. दूसरा हाथ तो 'वहीं' पर था...," तूने देख लिया..?"

"धात बेशर्म...!", पिंकी के गालों की रंगत मेरी बात सुनकर गुलाबी होने लगी..," एक बार तो मेरी नज़र 'वहाँ' चली ही गयी थी... पर मैने अपनी नज़रें तुरंत झुका ली और उनकी ओर बिना देखे उनके बीच से निकल कर आगे चली गयी..! मेरा आगे जाना ज़रूरी था ना!"

"उन्होने तुझे कुच्छ नही कहा...?", मेरी उत्सुकता चरम पर थी.. और मेरी योनि का कुलबुलाना भी....

"भौंक रहे थे कुच्छ कुच्छ.. ऐसे ही.. पर मैने ध्यान नही दिया... पर तब तक अंधेरा गहराने लगा था और डर के मारे मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा.. खास तौर से उन्न लड़कों की बकवास के कारण.... उनमें से एक लड़के की बात मुझे सॉफ सुनी थी.. 'वो' कह रहा था 'आ पकड़ लें बुलबुल को.. करारा माल है..."

"फिर...?" मैने अपनी उंगली कहने से पहले ही अंदर सरका चुकी थी... मेरी जांघों में कंपन बढ़ गया था....

"जैसे तैसे मैं दूसरी तरफ गयी तो झाड़ियों के बीच मुझे हमारी भैंसे चरती हुई दिखाई दे गयी... मैं दूसरी तरफ से उनके आगे जाकर उनको वापस मोड़ने का ख़याल बना ही रही थी कि मुझे पिछे से उन्न लड़कों के मेरी तरफ चल कर आने की आवाज़ सुनाई दी... मैं तुरंत पलट कर खड़ी हो गयी और भय के मारे थर थर काँपने लगी......"

"क्या हो गया छ्छोकरी? इस टाइम यहाँ क्या कर रही है..? तुझे डर नही लगता क्या? कोई तुझे अकेली देख कर तुझे..." "उन्होने बहुत गंदा शब्द इस्तेमाल किया था.." पिंकी उनकी बात बताते हुए बीच में रुक कर बोली..," मैं खड़ी खड़ी सिर से पाँव तक पसीना पसीना हो गयी....,"वववो.. भैया.. म्‍म्माइन.. अपनी भैंसे लेने आई हूँ... यहाँ आ गयी तालाब से निकाल कर..." "मैने थरथरते हुए अपनी भैंसॉं की तरफ इशारा किया..." पिंकी की आँखों में 'उसके' साथ गुजरा वो पल सजीव सा हो गया था...

"तू क्यूँ चिंता करती है... हम यहाँ खड़े होते हैं.. तू जाकर भैंसॉं को इधर भगा दे... हम उन्हे तेरे साथ साथ कर देंगे.. जा.. पुचह" "उन्होने कहने के बाद ऐसे किया..." पिंकी बोली....

"तू बता ना.. फिर मीनू आ जाएगी..." उत्तेजना के मारे मेरी जांघों में ऐथेन सी हो चुकी थी.....

"फिर मैं डरती डरती बार बार पिछे देखती झाड़ियों में जाने लगी तो मुझे एक लड़के की आवाज़ सुनाई दी....," देख.. कोई आ तो नही रहा..."

"उसकी आवाज़ की टोन पहचान कर मैं धक से रह गयी... मेरे पाँवों ने काम करना बंद कर दिया और मैं झाड़ियों के बीच खड़ी खड़ी काँपने लगी.... वो दोनो मुझे झाड़ियों के अंदर आते दिखाई दिए...

"ट्तूम.. इधर मत आओ... वहीं खड़े रहो..." मेरे मुँह से निकला...

"पर उनके कदम मेरी ओर बढ़ते चले गये.. एक ने कहा की भैंस उधर ना भाग जायें.. इसीलिए आगे आकर खड़े हो रहे हैं.... और पास आते ही एक ने कसकर मेरा हाथ पकड़ लिया...

"छ्चोड़ दो मुझे.. मुझे जाने दो... पापा अपने आप ले जाएँगे.. इनको..." मेरा बुरा हाल हो गया था... मैं उनकी और बिना देखे ही कुच्छ कुच्छ बोलती जा रही थी.. पर इतनी देर में तो दूसरे ने भी आकर मुझे पकड़ लिया था....

"चली जाना ... ऐसी भी क्या जल्दी है... " उन्होने उसके बाद मुझे गंदी गंदी बातें कहनी शुरू कर दी... मुझे लगने लगा था की 'वो' मेरा आख़िरी दिन है.. तभी जाने कहाँ से मेरे अंदर ताक़त आ गयी और मैं पूरा ज़ोर लगा कर चीखी... मैं दोबारा भी चीख लगाना चाहती थी.. पर इस'से पहले ही एक ने मेरा मुँह दबा लिया... और 'वो' दोनो मेरे कपड़े निकालने की कोशिश करने लगे....." बोलते हुए पिंकी मेरे सामने बैठी हुई भी काँपने लगी थी.....

"ऊओाअहह...फिर क्या हुआ?" मेरी योनि ने आगे सुने बिना ही पानी छ्चोड़ दिया था... मैने उंगली बाहर निकाल कर अपनी जांघों को एक दूसरी के उपर चढ़ा लिया....

"तभी भगवान की दया से हॅरी झाड़ियों के पास आ पहुँचा.. उसने शायद मेरी चीख सुन ली थी... पास आते ही उसने ज़ोर से कहा...," कौन है यहाँ?"

"उसकी आवाज़ सुनकर दोनो लड़के मुझे छ्चोड़ कर भाग गये..... मैं खड़ी खड़ी रोने लगी थी.. हॅरी ने पास आकर मुझसे पूचछा," कौन थे वो...?"

"उस घड़ी में मेरे लिए 'वो' किसी देवदूत से कम नही था... मैं कुच्छ बोल नही पाई.. पर जैसे ही वो मेरे पास आकर खड़ा हुआ.. मैं उस'से लिपट कर दहाड़ें मार कर रोने लगी...." पिंकी की आँखों में सच में ही आँसू आ चुके थे....

"ओह्ह.. रो क्यूँ रही है यार... कुच्छ हुआ तो नही ना..." मैने आगे होकर पिंकी के आँसू पौंचछते हुए कहा..,"फिर क्या हुआ?"

"थोड़ी देर तक मैं ऐसे ही खड़ी रोती रही और 'वो' मुझे दुलर्ता हुआ झाड़ियों से बाहर ले आया... थोड़ी शांत होने पर में छितक कर उस'से अलग हो गयी...

"यहाँ क्या कर रही हो इस वक़्त.." हॅरी ने प्यार से मुझसे पूचछा था...

"म्‍मैइन.. अपनी भैंसॉं को लेने आई थी..." बोलना शुरू करते ही मुझे फिर से रोना आ गया....

"ओह्ह.. कोई बात नही... ये हैं क्या तुम्हारी भैंसें...?" हॅरी ने पूचछा था...

"हूंम्म.." मैने रोते हुए ही जवाब दिया....

"कोई बात नही.. मैं निकाल कर लाता हूँ...!" हॅरी बड़े प्यार से बात कर रहा था.. पर मेरे दिल में उन्न लड़कों की वजह से बार बार खटका हो रहा था...,"नही.. तुम चले जाओ.. मैं अपने आप निकाल कर ले जाउन्गि...!"

"ओके.. निकाल लो.. मैं यहीं खड़ा होता हूँ..." हॅरी ने कहा...

"मैं झाड़ियों की ओर जाने लगी तो फिर से मेरे कदम ठिठक गये.. मैं मूडी और बोली,"तुम जाओ पहले.. मैं बाद में निकालूंगी..." सच कहूँ तो उस वक़्त तक मुझे हॅरी से भी डर लगने लगा था.. कि कहीं झाड़ियों में जाते ही वो भी...."

"तुम पागल हो क्या...?" मैं यहाँ खड़ा होता हूँ.. तुम निकाल कर ले आओ..." हॅरी ने मुझे धमका सा दिया था.... पर मेरी उसके होते हुए झाड़ियों में जाने की हिम्मत नही हुई.. मैं वापस आ गयी,"ठीक है.. तुम्ही निकाल दो..."

हॅरी ने मेरे हाथ से च्छड़ी ली और भैंसॉं को वापस ले आया... सच कहूँ तो उसके साथ चलते हुए मुझे इतना डर लग रहा था कि मैं रह रह कर उसकी ओर देख रही थी कि कहीं मेरे पास तो नही आ रहा.... पर उसने ऐसा कुच्छ नही किया और हम दोनो भैंसॉं के साथ गाँव तक आ गये..."

"रोशनी में आने के बाद ही मैने पहचाना कि 'वो' हॅरी था... मेरे कलेजे को इतनी शांति मिली कि मेरी आँखों से खुशी के आँसू छलक उत्ते थे... पर उसने शायद मुझे मेरी आवाज़ से ही पहचान लिया था...

"कौन थे वो?" उसने पूचछा....

"पता नही.. मैने उन्हे पहचाना नही... अब तुम जाओ.. मैं चली जाउन्गि...!" मैने कहा...

"कोई बात नही.. मैने तुम्हारे घर की तरफ से होता हुआ निकल जाउन्गा..." हॅरी मेरे साथ साथ चलता रहा था...

"कहा ना तुम जाओ!" घर नज़दीक आते ही मैं उस पर भी शेर हो गयी..." पिंकी ये कहकर हँसने लगी....

मैं मुस्कुराइ..," फिर.. चला गया बेचारा?"

"नही... पिछे रह गया था मेरे डाँटने पर... पर मैने घर आने पर देखा था.. 'वो' मेरे पिछे पिछे आ रहा था...." पिंकी ने बात पूरी की.....

"बेचारा...!" मैं लंबी साँस लेकर बोली....,"तुमने उसको क्यूँ डांटा.. उसने तो तुम्हे बचाया ही था ना...."

"हां..." पिंकी सिर हिलाते हुए बोली....,"बाद में मुझे अफ़सोस भी हुआ था..और मैने एक दिन उसको इसके लिए सॉरी भी बोला था.... पर उस दिन में बहुत डरी हुई थी...."

"हूंम्म.. फिर उसने किसी को नही बताई ये बात....!" मैने पूचछा....

"नही.. बताई होती तो अपने गाँव के लड़के इतने गंदे हैं कि ताने मार मार कर ही मेरा जीना मुश्किल कर देते... मैने उस'से पूचछा भी था.. उसने मना कर दिया था कि किसी को नही बताई बात...."

"सच में बहुत अच्च्छा है फिर तो वो..?" मैने कहा....

"नही.. इतना भी अच्च्छा नही है.. मेरा नाम निकाल दिया था उसने.. 'गुलबो!' कहने लगा कि एक ही बात होती है.. और 'वो' प्यार से बोल देता है... मैने उसको सॉफ सॉफ कह दिया.. 'ज़्यादा प्यार दिखाने की ज़रूरत नही है.. हाँ!' उसके बाद उसने कभी नही बोला.. हे हे हे.." पिंकी का चेहरा खिल उठा....

पिंकी की इस बात पर मैं ना तो ढंग से हंस पाई.. और ना ही मैने कोई प्रतिक्रिया ही दी.. मेरा मंन तो अब भी तालाब के उस पार झाड़ियों में अटका हुआ था.. कल शाम 'संदीप' के साथ खेली गयी मेरी प्रथम 'रासलीला' की झलकियाँ मेरी आँखों में वासना के 'लाल डोरे' बनकर तैरने लगी थी और अब पिंकी की बात ने तो मेरी जांघों के बीच की 'अमिट' भूख को ज्वलनांक तक ही पहुँचा दिया था... मैने तकिया सिरहाने लगाया और लेट कर कंबल औध लिया.. मैं कल्पना करके देखना चाहती थी कि अगर झाड़ियों में मेरी भैंस गयी होती और नादान पिंकी की जगह 'वहाँ' मैं होती तो आगे क्या क्या होता...!
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10-22-2018, 11:31 AM,
#34
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
पर पिंकी ने मुझे 2 पल के लिए भी चैन से लॅट्न ना दिया," आए... क्या हो गया?" पिंकी ने मुझे पकड़ कर हिला दिया...

"कुच्छ नही.. थोड़ी देर लॅट्न का मॅन कर रहा है..." मैने अपने चेहरे से कंबल हटते हुए आनमना सा जवाब दिया....

"ये लड़के ऐसे क्यूँ होते हैं अंजू.. ? अकेली लड़की को देखते ही भूखे भेड़िए क्यूँ बन जाते हैं.. हमें इस तरह डरकर ज़बरदस्ती करके क्या मिलता है इनको...?"

जाने अंजाने ही पिंकी ने मेरा पसंदीदा विषय छेड़ दिया था... मैने तुरंत तिरछि होकर अपने 'सिर' को कोहनी के सहारे टीका लिया," सब तो ऐसे नही होते ना.. हरीश ने तो तुम्हारे साथ कुच्छ ज़बरदस्ती नही की....!"

"हाँ.. सब तो नही होते.. पर ज़्यादातर ऐसे ही होते हैं.. तभी तो घर वाले लड़कियों को रात में बाहर जाने नही देते... 'ऐसे' ही कामीनो के डर से.. दुनिया में 'गंदे' लड़के नही होने चाहियें थे.. फिर तो हम भी देर रात तक घूम फिर कर आते.. जहाँ 'दिल' करता वहाँ खेलने जाते...! ऐसे लड़कों की वजह से ही हम लड़कियों का जीना हराम हो गया है.." पिंकी लड़कों को कोसने लगी....

"सब एक जैसे थोड़े होते हैं पागल! किसी को किसी काम में मज़ा आता है और किसी को दूसरे 'काम' में..." मैने जवाब दिया...

"क्यूँ? लड़की से ज़बरदस्ती करने में कैसा मज़ा? ये तो बहुत ही घटिया बात है ना...!" पिंकी तुनक कर बोली....

मुझे पिंकी की बातों की दिशा 'अजीब' ढंग से घूमती नज़र आई.. मुझे लगा जैसे वो इस बारे में और 'बात करना चाहती है.. मैं उत्साहित होकर बैठ गयी," हां.. 'वो' तो है.... पर... मैने सुना है कि लड़कियों को भी बाद में 'मज़ा' आने लगता है.. क्या पता 'वो' लड़के यही सोच कर 'लड़कियों' को छेड़ने लग जाते हों की बाद में हम अपने आप तैयार हो जाएँगी..."

"सुना क्या है? तूने तो कर भी लिया...." पिंकी मेरी आँखों में देखते हुए बोली और फिर नज़रों को झुका कर धीरे से बोली,"तुझे मज़ा आया था क्या?"

उसकी पहली बात सुनकर तो मैं सकपका ही गयी थी.. पर उसके पूच्छे सवाल ने मुझे दुविधा में डाल दिया.... मैं तब तक उसके चेहरे को घूरती रही जब तक की मेरे जवाब का इंतजार करने के बाद उसने मेरी आँखों में आँखें नही डाली..,"बोल!"

"अब क्या बताउ? 'हाँ' भी और 'नही' भी..." मैने सिक्का उच्छल दिया...

"ये क्या बात हुई? ढंग से बोल ना...!" पिंकी उत्सुकता से मेरी ओर देखती हुई बोली...

"सच बताउ?"

"हां.. सच ही तो पूच्छ रही हूँ...!" पिंकी लगातार मेरी आँखों में आँखें डाले रही.. जैसे मेरे चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रही हो....

"हां.. आया था...!" मैने सीधे सीधे बोल दिया....

मेरा जवाब सुनते ही पिंकी की गालों से लेकर उसकी आँखों तक में 'लज्जा' पसर गयी..,"तुझे... शरम नही आई क्या?"

"अब ये क्यूँ पूच्छ रही है? हां.. बहुत आई थी.. पर मज़ा भी बहुत 'आया' था.. सच्ची...!" मैने कसमसा कर कहा...

"पर.. 'ये' काम तो शादी के बाद ही करते हैं ना... पहले करना तो 'पाप' होता है..." पिंकी ने शरमाते हुए कहा....

मुझे लगा कि पिंकी 'इस' मामले में मेरी सोच से कहीं ज़्यादा समझदार है...,"वो अलग बात है... मैं तो बस 'मज़े' की बता रही हूँ... मज़ा तो आता ही है.. सच में..!"

"चल छ्चोड़.. हम भी कैसी बातें करने लग गये...!" पिंकी को शायद अभी अहसास हुआ कि 'हम' कहाँ से कहाँ पहुँच गये थे....

"अच्च्छा ये बता.. तू शादी करेगी तो कैसे लड़के से करेगी...!" मैं बात जारी रखना चाहती थी...

"छ्चोड़ ना.. ये क्या लेकर बैठ गयी तू.. अभी तो बहुत टाइम है इन्न बातों के लिए.." पिंकी थोड़ा झेंप कर बोली....

"बता ना.. बस ये आख़िरी बात...!" मैने ज़ोर देकर कहा...

"उम्म्म्मम..." पिंकी बोलते बोलते रुक कर आँखें बंद करके मुस्कुराने लगी.. उसके गोरे गालों में मुस्कुराहट के चलते गड्ढा सा बन गया.. 'वो' गड्ढा'; जो मुझे पिंकी के पास लड़कों के मर मिटने के लिए सबसे कातिल चीज़ लगता था... ऐसा लगा जैसे उसके मानस पटल पर 'कोई' तस्वीर साक्षात हो गयी हो..,"उम्म्म्म.. हॅरी..... हॅरी जैसा...!" उसने आँखें बंद किए हुए ही बोला और फिर अपने होन्ट जैसे 'सी' कर मुस्कुराती रही....

"क्या?" मेरा रोम रोम 'उसके' दिल का राज सुनकर झन्ना उठा...,"तुझे हॅरी से प्यार है..?"

"चल हट.. बेशर्म!" पिंकी के गाल गुलाबी से हो गये और 'वो' सच में ही 'गुलबो' सी लगने लगी..," मैने ऐसा थोड़े ही कहा है.. मैने सिर्फ़ 'उस' जैसा कहा है.. मैं किसी से प्यार व्यार नही करती...."

"पर मतलब तो यही हुआ ना...!" मैने खिलखिला कर उसको छेड़ते हुए कहा....

"क्यूँ..? यही मतलब कैसे हुआ... पर मुझे सच में ऐसा ही लड़का चाहिए 'जो' 'लड़की' होने की मर्यादायें जानता हो... जो उसकी भावनाओ की कद्र कर सके.. जिसको 'प्यार' का 'असली' मतलब पता हो... 'जो' लड़की के 'लड़की' होने का फ़ायडा उठना ना जानता हो...!" पिंकी भाव विभोर होकर बोली....

"पर.. हॅरी ऐसा ही तो है.. शकल में भी कितना 'क्यूट' सा है.. और जो तू कह रही है.. 'वो' सारी' बातें तो उसमें हैं ही.... हैं ना?" मैने उसको उकसाने की सोची...

"चल हट अब.. बकवास मत कर मेरे साथ... वैसे.. मानव और मीनू की जोड़ी कैसी लगती है तुझे...?" पिंकी बात को टालते हुए बोली....

"मस्त है एक दम...!" मैने दिल पर पत्थर रख कर कहा...," पर तू ऐसा क्यूँ बोल रही है.. कुच्छ बात है क्या इनकी..?" मैने पूचछा...

"पता नही.. पर मुझे लगता है कि कुच्छ ना कुच्छ तो ज़रूर है....मीनू अकेली होते ही मुझे 'मानव' की बातें कर कर के बोर करने लग जाती है... और कल मानव की बातों से भी मुझे ऐसा लगा....

तभी मीनू नीचे आ गयी..," क्या बातें हो रही हैं अकेले अकेले..!"

"लंबू की..!" पिंकी ने कहा और हम दोनो खिलखिला कर हंस पड़े...... मीनू ने आकर पिंकी की चोटी पकड़ कर खींच ली..,"तेरी पिटाई करनी पड़ेगी मुझे... अब पढ़ी क्यूँ नही तुम दोनो.. बाद में कहोगी की मैं पढ़ने नही देती.... पापा ने बोला है कि कहीं नही जाना... यहीं सोना है तीनो को!"

क्रमशः.......................
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10-22-2018, 11:31 AM,
#35
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--25

गतान्क से आगे.............

उस दिन मैने खाना भी वहीं खाया और हम तीनो अपनी अपनी किताब खोल कर बैठ गये.. उनका पता नही.. पर मैं सिर्फ़ किताब को खोले बैठी थी.. कुच्छ पढ़ नही रही थी.. वैसे भी अगले दिन संस्कृत का पेपर था और मुझे विश्वास था कि 'वो' पेपर तो 'संदीप' पूरा ही कर देगा.....

अर्रे हां.. मैं 'वो' डॉक्टर वाली बात बताना तो भूल ही गयी थी... जब हम दोनो हॅरी के पास 'वो' गोली लेने गये थे तो मुझे कतयि विश्वास नही था कि हॅरी हमसे इतनी शराफ़त से पेश आएगा.. में समझती थी कि डॉक्टर्स के पास तो इलाज के बहाने कहीं भी हाथ लगाने का लाइसेन्स होता है... और 'उस' गोली के लिए तो मुझे लग रहा था कि हॅरी मेरी सलवार भी खुलवा कर देख सकता है.. दरअसल हॅरी के पास जाने से कुच्छ दिन पहले ही मेरे साथ एक वाक़या हुआ था.....

हुआ यूँ था कि एक दिन स्कूल जाने का दिल ना होने के कारण सुबह सुबह ही मैने पेट-दर्द का बहाना बना लिया और चारपाई में पड़ी रही....

"क्या बात है अंजू? महीना लग गया क्या?" मम्मी ने 11 बजे के आसपास मेरे पास बैठ कर पूचछा..

"नही तो मम्मी... !" मैने कराहते हुए अपने पेट पर हाथ फेरा...

"तो फिर क्या हो गया...? बहुत ज़्यादा दर्द है क्या अभी भी..."

"हां.. ऐंठन सी हो रही है पेट में.. पता नही क्या बात है...?" मैने बुरा सा मुँह बनाकर जवाब दिया...

"तो ऐसा करना... छोटू के आते ही उसको साथ लेकर डॉक्टर के पास चली जाना.. मुझे खेत में देर हो रही है... तेरे पापा भूखे बैठे होंगे सुबह से..!" मम्मी ने कहा ही था की तभी सीढ़ियों से छोटू के आने की आवाज़ सुनाई दी....

"छोटू.. स्कूल से छुट्टी कर ले और अपनी दीदी को लेकर डॉक्टर साहब के पास चला जा... इसका पेट ठीक नही हुआ है.. सुबह से...!" मम्मी ने उसको हिदायत दी...

"छुट्टी का नाम सुनते ही छोटू की भी बाँच्चें खिल गयी..,"चलो.. उठो!"

मैं पहले बताना भूल गयी शायद.. छोटू उस वक़्त पाँचवी में पढ़ता था... मम्मी जा चुकी होती तो मैं उसको टरका भी देती.. पर मजबूरन मुझे खड़ी होकर नीचे उतरना ही पड़ा...

"ये लो चाबी.. और डॉक्टर साहब को अच्छे से बता देना कि कैसा दर्द हो रहा है...."मम्मी ने घर को ताला लगाकर चाबी छोटू को दी और खेत की और चली गयी.. हम अगले 15 मिनिट में गाँव के डॉक्टर की दुकान पर थे.. अनिल चाचा के घर! याद आया ना?

नीचे उनकी दुकान खाली पड़ी थी.. छोटू ने नीचे से आवाज़ दी," चाचा!"

"कौन है..?" चाची बाहर मुंडेर पर आकर बोली और हमें देखते ही उपर चले आने को कहा.. सीढ़ियों से होकर हम उपर चले गये....

अनिल चाचा खाना खा रहे थे... मुझे देखते ही उनकी तबीयत हरी हो गयी..,"क्या हुआ छोटू को, अंजू!"

"मुझे नही चाचा.. अंजू के पेट में दर्द है...!" छोटू तपाक से बोला...

सुनते ही चाचा की आँखें चमक उठी.. उन्होने मुझे उपर से नीचे तक गौर से देखा और बोले...,"ओह्ह्ह.. आजकल " पता नही उन्होने किस बीमारी का नाम लिया..," का बड़ा प्रकोप चल रहा है... चलो नीचे चलो... मैं आता हूँ..." उन्होने कहा और फिर अंदर मुँह करके अपने बेटे को आवाज़ लगाई," अरे प्रिन्स.. देख छोटू आया है.. इसको भी दिखा दे अपने वीडियो गेम्स!"

बस फिर क्या था! वीडियो गेम्स का नाम सुनते ही छोटू तो प्रिन्स के बिना बुलाए ही अंदर घुस गया.. मैने अपने पेट को पकड़े वहीं खड़ी रही...

"चलो..." चाचा ने तुरंत उठकर कुल्ला किया और मेरे साथ नीचे जाने लगे..

"ये रोटिया क्यूँ छ्चोड़ दी... आज 2 ही खाई आपने...!" चाची थाली उठाते हुए बोली...

"बस.. पता नही क्यूँ.. आज भूख नही है..." चाचा ने कहा और मेरे आगे आगे सीढ़ियों से उतरते चले गये...

"हुम्म.. पेट में दर्द हो गया अंजू बेटी?" अनिल चाचा नीचे जाकर अंदर वाले कमरे में अपनी कुर्सी पर बैठ गये और मुझे बोलते हुए इशारे से अपनी ओर बुलाया....

"जी चाचा..." मैं जाकर उनके पास खड़ी हो गयी.. अचानक ही मेरे मंन में 'वो' दिन ताज़ा हो गया जब अनिल चाचा और सुन्दर ने मम्मी का 'इलाज' किया था... उसको याद करते ही मैं थोड़ी सी झेंप सी गयी... बेशक मेरे अंदर 'काम ज्वाला' प्रचंड ही रहती थी.. पर अपनी इस कामग्नी को शांत करने के लिए मेरी अपनी पसंद जवान और कुंवारे लड़के ही थे... कम से कम अनिल चाचा तो मेरी पसंद नही ही थे!

"कब से दर्द है..?" चाचा ने प्यार से मुझसे पूचछा....

"सुबह से ही है चाचा.. जब मैं उठी थी तो पेट में दर्द था..." इस झेंपा झेंपी में मुझे याद ही नही रहा था कि मुझे 'पेट दर्द' भी है.. उनके पूच्छने पर जैसे ही मुझे याद आया.. मैने अपने चेहरे के भाव बदले और अपने पेट पर हाथ रख लिया...

"हूंम्म.. ज़रा कमीज़ उपर करना..!" चाचा ने मेरी आँखों में आँखें डाल कर कहा...

"ज्जई?" मैं अचानक उनकी बात सुनकर हड़बड़ा सी गयी...

"अरे.. इसमें शरमाने वाली क्या बात है.. डॉक्टर से थोड़ा कोई शरमाता है... वैसे भी तुम... मेरी बेटी जैसी हो.. चाचा बोलती हो ना मुझे..?" उन्होने मुस्कुराते हुए प्यार से कहा...

"जी.. चाचा..!" मेरे पास झिझकने लायक कोई कारण नही बचा था.. मैने अपनी कमीज़ का पल्लू पकड़ा और उसको समेट'ते हुए उपर उठा लिया... पर 'वो' जिस लगन से मेरा पेट देखने को लालायित होकर अपने होंटो पर जीभ फेर'ने लगे थे.. मैं अपना कमीज़ अपनी 'नाभि' से उपर नही उठा पाई.. मेरी चेहरे पर झिझक सॉफ झलक रही थी...

मेरा कमणीय और चिकना पेट देखकर चाचा को अपनी लार संभालनी मुश्किल हो गयी... असहाय से होकर 'वो' एक बार नीचे देखते और फिर अपना चेहरा उपर उठाकर मेरी आँखों में झाँकते.. मानो मेरी आँखों में 'रज़ामंदी' तलाश रहे हों... पर मैं ज़्यादा देर उनकी 'लाल लपटें' छ्चोड़ रही आँखों से आँखें मिला कर ना रख सकी.. और अपने आप ही मेरी नज़रें नीचे झुक गयी...

नीचे झुकते ही मेरी नज़र मेरी सलवार के नाडे पर पड़ी.. मैं शरम के मारे सिहर सी गयी.. नाडे का एक फूँगा बाहर लटक रहा था और डॉक्टर चाचा की नज़र वहीं टिकी हुई थी... मेरी सलवार को नाभि से काफ़ी नीचे बाँधने की आदत थी.. जिसकी वजह से मेरी आधी 'पेल्विस बोन्स' और उनके बीचों बीच नाभि से नीचे मेरे 'योनीप्रदेश' के 'ख़ाके' की शुरुआत सॉफ नज़र आ रही थी.. चाचा को इस तरह 'वहाँ' घतूरता देख मेरे बदन का रोम रोम झनझणा उठा..

मैने तुरंत कमीज़ को नीचे किया और कमीज़ के उपर से ही सलवार को नाडे से पकड़ कर उपर खींचा...

"अर्रे.. ये क्या कर रही हो अंजू...उपर उठाओ ना कमीज़.. शरमाओगी तो मैं इलाज कैसे करूँगा.. तुमने अपना पेट तो ढंग से दिखाया ही नही...!" कहने के बाद चाचा ने कमीज़ उठाने के लिए मेरे हाथों की 'पहल' होने तक की प्रतीक्षा नही की... उन्होने खुद ही कमीज़ का छ्होर पकड़ा और मुझे नाभि से भी काफ़ी उपर तक नंग धड़ंग कर दिया... व्याकुलता, शर्म और उत्तेजना के मारे मेरी टांगे काँपने लगी.. जैसे ही नज़रें झुका कर मैने नीचे देखा.. मेरी तो साँसें ही जम गयी... नाडे से पकड़ कर सलवार उपर खींचने का मेरा दाँव उल्टा पड़ गया था... खिचने की वजह से नाडा कुच्छ और ढीला हो गया था और अब मेरी 'योनि' के पेडू पर उगे हुए हल्क सुनहरी रंग के रेशमी 'फुनगे' थोड़े थोड़े मेरी सलवार से बाहर झाँक रहे थे...

"चाच्चा...." जैसे ही चाचा ने अपनी पूरी हथेली मेरे पेट पर रख कर मेरी नाभि को ढका.. मेरा पूरा बदन जल उठा....

"ओह्ह.. यहाँ दर्द है क्या?" चाचा ने मेरी 'आह' को मेरी शारीरिक पीड़ा समझ कर एक बार उपर देखा और फिर से नज़रें झुका कर सलवार और पेट के बीच की खाली दरार से अंदर झाँकने की कोशिश करते हुए उंगलियों से मेरे पेट को यहाँ वहाँ दबा दबा कर देखने लगे.....

चाचा को इलाज के बहाने मेरी योनि का X-रे उतारने की कोशिश करते देख मेरा बुरा हाल हो गया था... उत्तेजना से अभिभूत होकर मैं अपने आप पर काबू पाने की कोशिश करती हुई अपनी जांघों को कभी खोलने और कभी बंद करने लगी..

सिर्फ़ कमीज़ के कपड़े में बिना 'ब्रा' या समीज़ के मेरी चूचियो के दानो को भी मस्ताने का मौका मिल गया और उन्होने भी अकड़ कर खड़े हो 'मेरे' यौवन का झंडा बुलंद करने में कोई कसर ना छ्चोड़ी... जल्द ही बाहर से ही उनकी मक्का के दाने जैसी चौन्च नज़र आने लगी... मैं सिसकती हुई अपनी साँसों को अपने अंदर ही दफ़न करने की कोशिश करती हुई दुआ कर रही थी की चाचा की चेकिंग जल्दी ही समाप्त हो.... पर तब तो सिर्फ़ शुरुआत हुई थी....

"जा.. उपर जाकर तेरी चाची से थोड़ा गरम पानी करवा कर ला.. कहना 'दवाई' तैयार करनी है..." चाचा ने कहकर मुझे छ्चोड़ा तो मैने राहत की साँस ली...

उपर जाते ही मैने चाची को पानी गरम करने को बोला और सीधी बाथरूम में घुस गयी... नाडा खोल कर मैने योनि का जयजा लिया... उत्तेजना से फूल कर तिकोने आकर में कटी हुई पाव रोटी जैसी हो चुकी योनि धीरे धीरे रिस रही थी... मैने बैठकर पेशाब किया और उसस्पर ठंडे पानी के छींटे मारे... तब जाकर मेरी साँसें सामानया हो सकी... खड़ी होकर मैने वहाँ टँगे तौलिए से उसको अच्छि तरह पौंच्छा और 'नाडा' कसकर बाँध कर बाहर निकल आई..

बाहर एक पतीले में पानी तैयार रखा था... मैं उसको उठाकर नीचे चाचा के पास ले आई....

"शाबाश.. यहाँ रख दो.. टेबल पर...!" चाचा अभी भी कमरे के कोने में रखी कुर्सी पर ही बैठे हुए थे...

"कौनसी क्लास में हो गयी अंजू!" चाचा ने पानी को छ्छू कर देखते हुए कहा..

"10 वी में चाचा जी..." पहले की अपेक्षा अब मेरी आवाज़ में आत्मविश्वास सा झलक रहा था...

"तू तो बड़ी जल्दी जवान हो गयी.. अभी तक तो छ्होटी सी थी तू.. अब देख!" चाचा की नज़रों का निशाना मेरे उन्नत उरोज थे... उनका हाथ रह रह कर उनकी जांघों के बीच जा रहा था....

मैं उनकी बात पर कोई प्रतिक्रिया नही दे पाई...

"क्या कर रही थी तेरी चाची..?" चाचा जी ने पूचछा...

"जी.. लेटी हुई थी चाचा जी..!" मैने उनकी आँखों में आँखें डाल कर कहा.. पर उनकी नज़रें अभी भी मेरी चूचियो में ही कहीं अटकी हुई थी...

"इधर आ जा... तू तो ऐसे शर्मा रही है जैसे किसी अजनबी के पास खड़ी है.." चाचा ने कहा और मेरे थोड़ी आगे सरकते ही मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुए मुझे पहले से भी ज़्यादा करीब कर लिया...,"चल.. कमीज़ उपर उठा... शाबाश.. शरमाना नही... अरे.. और उपर करो ना.." कहते हुए चाचा ने खुद ही मेरा कमीज़ इतनी उपर उठा दिया कि उनका हाथ ज़ोर से मेरी चूचियो से टकरा गया.. मैं मस्ती से गन्गना उठी... अब कमीज़ मेरी चूचियो से एक इंच नीचे इकट्ठा हो गया था... शायद मेरी सुडौल छातिया आड़े ना आती तो कमीज़ उनसे भी उपर ही होता...

कमीज़ को इतना उपर उठाने के बाद चाचा ने मेरी आँखों में आँखें डाली.. पर में निशब्द: खड़ी रही.. मैने अपने मॅन की उथल पुथल उनके सामने प्रकट नही होने दी....

थोड़ी देर यूँही इधर उधर की हांकते हुए मेरे पुलकित उरजों का कमीज़ के उपर से रसास्वादन करने के बाद उनकी निगाह नीचे गयी और नीचे देखते ही 'वो' बनावटी गुस्से से झल्ला कर बोले," ओफ्फूह.. ये भी एक कारण है पेट दर्द का.. सलवार को इतनी कसकर क्यूँ बाँधा हुआ है.. इसको ढीला बाँधा करो.. और नीचे.. जहाँ पहले बाँधा हुआ था.. समझी.."

चाचा ने कहा और बला की तेज़ी दिखाते हुए मेरे नाडे की डोर सलवार से बाहर निकाल दी.. मैं बड़ी मुश्किल से उनका हाथ पकड़ पाई.. वरना 'वो' तो उसको पकड़ कर खींचने ही वाले थे..,"चाचा...." मैं कसमसा कर रह गयी..

"इसको खोल कर अभी के अभी ढीला करो..." मेरी आवाज़ में हल्का सा प्रतिरोध जानकर चाचा थोड़े ढीले पड़ गये और उन्होने नाडा छ्चोड़ दिया...

मैं अनमानी सी उनके चेहरे को देखती रह गयी.. 'ना' करने की मुझमें हिम्मत नही थी... सच कहूँ तो इतनी हरकत होने के बाद 'दिल' भी नही था.. 'ना' करने का...

"अरे.. ऐसे क्या देख रही हो... अपने चाचा को खा जाने का इरादा है क्या? खोल कर बांधो इसको...!"

"जी.. चाचा.." मैने कह कर अपना कमीज़ नीचे किया और मुड़ने लगी तो उन्होने मुझे पकड़ लिया..,"देख अंजू.. या तो मुझे चाचा कहना बंद कर दे या फिर ऐसे शरमाना छ्चोड़ दे... तुझे नही पता हम डॉक्टर्स को क्या क्या देखना पड़ता है... फिर तू तो मेरी प्यारी सी बेटी है..." कहकर वो खड़े हुए और मेरे गालों को चूम लिया...

"ठीक है चाचा...!" मैं हड़बड़ा कर बोली....

"ठीक क्या है..! अभी मेरे सामने ही सलवार को खोलो और ढीला करके बांधो.. मैं देखूँगा कि ठीक जगह पर बँधा है या नही..!" चाचा बोलकर वापस कुर्सी पर बैठ गये...

"पर चाचा..." मैं गहरी असमन्झस में थी...

"पर क्या? वो दिन भूल गयी जब मैं तेरी कछि नीचे करके 'यहाँ' इंजेक्षन लगता था..." चाचा ने मेरे गदराए हुए मांसल नितंबों पर थपकी मार कर कहा.. मेरी क्षणिक उत्तेजना अचानक चरम पर जा पहुँची..," तुझे एक बात बताउ?" बोलते हुए चाचा ने मुझे अपनी तरफ घूमकर अपने दोनो हाथ ही मेरे नितंबों पर रख लिए..,"इलाज के लिए तो मुझे तुझसे भी बड़ी लड़कियों को कयि बार पूरी तरह नंगी करना पड़ता है... सोचो.. उन्न पर क्या बीत'ती होगी.. पर इलाज के लिए तो शर्म छ्चोड़नी ही पड़ेगी ना बेटी...?"

"जी.. चाचा जी.." मैने सहमति में सिर हिलाया और अपने नाडे की डोर खींच दी..

"शाबाश.. अब ढीला करके बांधो इसको.." कहते हुए जैसे ही चाचा ने मेरी तरफ हाथ बढ़ाए.. मैं बोल उठी..,"म्मे.. बाँध लूँगी चाचा जी.. ढीला..."

"हां हां.. तुम्ही बांधो.. मैं सिर्फ़ बता रहा हूँ कि कितना ढीला बाँधना है..." चाचा ने कहा और मुझे अपने करीब खींच कर मेरी खुली सलवार के अंदर झाँकने लगे.. जितना जल्दी हो सका मैने अपना 'खुला दरबार' समेट लिया.. पर चाचा मेरी गोरी गदरेली योनि की एक झलक तो ले ही गये... उनकी आँखों की चमक सॉफ बता रही थी... मैं पछ्ता रही थी कि चाचा के पास आने से पहले 'कछि क्यूँ नही पहन कर आई.....

चाचा ने अपना हाथ मेरी कमर में ले जाकर मेरी सलवार समेत थोड़े से नाडे को मुट्ठी में लपेट लिया.. मैं उनके हाथ के अंदर जाने की कल्पना से सिहर उठी थी.. पर गनीमत था कि ऐसा नही हुआ...

"हां.. अब बाँध लो; जितना कसकर तुम्हे बाँधना है...!" चाचा मेरी हालत पर भी मुस्कुरा रहे थे... मैने काँपते हुए हाथों से जितना हो सका कसकर अपनी सलवार को बाँध लिया.. पर मुझे विश्वास था कि चाचा के अपनी मुट्ठी में दबाए हुए नाडे को छ्चोड़ते ही 'सलवार' अपने आप निकल ही जानी है..
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10-22-2018, 11:31 AM,
#36
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
"हुम्म.. कमीज़ उपर उठाओ.. जितना मैने उठाया था..." चाचा ने अभी मेरी सलवार को नही छ्चोड़ा था....

मुझे वैसा ही करना पड़ा... मेरी दानो की कसक एक बार फिर नंगेपन को 'नज़दीक' पाकर बढ़ गयी थी.. और 'वो' फिर से सिर उठाकर खड़े हो गये थे... मेरी छातियो से नीचे और नाभि से उपर का चिकना सपाट और गोरा बदन देख कर चाचा पूरी तरह मस्त हो चले थे और उनके दूसरे हाथ की हरकतें उनकी जांघों के बीच बढ़ गयी थी... जैसे ही उन्होने अपना हाथ वहाँ से हटाया.. 'उनके' पाजामे में तना हुआ तंबू मुझे सॉफ दिखाई देने लगा....

शर्म की हद तक शरमाने के बावजूद मुझे मज़ा भी आ रहा था और डर भी लग रहा था... अचानक 'वो' अपने हाथ को मेरे पेट पर ले आए और प्यार से 'उसको सहलाने लगे..,"मैं जगह जगह दबा कर देखूँगा.. ये बताना कि दर्द कहाँ हो रहा है.. और कहाँ नही....!"

मैने कसमसा कर अपनी जांघों को भींच लिया और सहमति में अपना सिर हिलाया.. जैसे जैसे उनका हाथ उपर जाता गया.. मेरे दिल की धड़कन बढ़ती चली गयी और चूचियो में अकड़न सी आनी शुरू हो गयी...,"अया..." मेरे मुँह से निकल ही गया...

"यहाँ दर्द है क्या?" जब मेरी सिसकी निकली तो उनका हाथ कमीज़ के अंदर घुस कर मेरी चूचियो को छ्छू गया था.. भला तब भी मैं अपनी सिसकी निकालने से कैसे रोक पाती...

उन्होने अपना हाथ वापस नही खींचा बुल्की वहीं अपनी उंगलियों को दायें बायें करके मेरी मखमली चूचियो को थिरकने से लगे.. मेरी आँखें बंद हो गयी थी और साँसें 'आहें' बनकर निकल रही थी.. उन्होने एक बार फिर पूचछा,"यहाँ दर्द है क्या अंजू बेटी...!"

"आ.. नही.. चा...चा.. नी.. छे!" मैं पूरी तरह पिघल चुकी थी....

"कितनी नीचे बेटी?" उन्होने अपना हाथ एक तरफ खिसका कर मेरी बाईं चूची को दबाना शुरू कर दिया था.....

"नीचे चाचा.. यहाँ नही...!" मैने अपना हाथ उपर उठा कर कमीज़ के उपर से ही अपनी छाती को अपने कब्ज़े में ले लिया.. नही तो तब तक पूरी छाती को उनका हाथ लपेट चुका होता....

"ठीक है.. नीचे देखते हैं..."कहकर उन्होने अपनी उंगलियाँ कमीज़ से बाहर निकाली और एक बार फिर से 'पतीले में हाथ डूबा कर देखा...,"हां.. अब ठीक हो गया है.. तेरे पेट की थोड़ी सिकाई (वॉरमिंग) कर देता हूँ...." कहकर उन्होने दूसरे हाथ से मेरी कमर में पकड़े हुए नाडे को छ्चोड़ दिया.. और तुरंत ही मेरी सलवार ढीली होकर नीचे खिसक गयी.. भला हो मेरे पहाड़ जैसे ऊँचे उठे हुए नितंबों का.. जिन्होने सलवार को घुटनो तक आने से रोक लिया.... पर इसके बावजूद आगे से मेरी योनि का पेडू लगभग आधा दिखने लगा था.. मेरी योनि का 'चीरा' मुश्किल से एक इंच नीचे ही रह गया होगा...

मैं गन्गना उठी.. पर कुच्छ कर ना सकी.. चाचा एक हाथ से मेरे दोनो हाथ पकड़े हुए थे और ललचाई आँखों से 'पेडू' को निहार रहे थे........

"नही चाचा..." उनकी नीयत भाँप कर मैं काँप उठी...

"ओह्हो.. फिर वही बात..." चाचा ने आगे कुच्छ नही कहा और अपना दूसरा हाथ गरम पानी में डुबो कर मेरी 'योनि' के पास रख दिया.... मुझे अजीब सी गुदगुदी उठी और मैं सिहर गयी.. एक दो बार और ऐसा करते ही पानी की बूँदें छ्होटी छ्होटी धाराओं का रूप धारण कर मेरी सलवार में घुसने लगी और हल्का गरम पानी टॅप टॅप करके मेरी योनि दरार में से रिसने लगा... मेरा बुरा हाल हो गया... अब मुझे यक़ीनन तौर पर दूसरे इलाज की ज़रूरत महसूस होने लगी थी...,"अया... चच्च्चाआअह्ह्ह!"

"आराम मिल रहा है ना...!" चाचा की लपलपाति जीभ और नज़रें अब सीधी मेरी आधी दिखाई देने लगी मेरी योनि की करारी फांकों पर थी.... मुझे अहसास तक नही हुआ कि कब उन्होने अपना दूसरा हाथ वापस पिछे ले जाकर मेरी सलवार को नितंबों से नीचे सरकाना शुरू कर दिया है.. और अब उनकी उंगलिया मेरे नितंबों की दरार में कुच्छ टटोल रही हैं...

और जब अहसास हुआ.. 'और' अहसास लेने की तमन्ना परवान चढ़ चुकी थी... अब मैं अपनी आँखें बंद किए हुए लगातार बिना हिचके सिसकियाँ ले रही थी.. और उन्होने भी अब सिकाई छ्चोड़ कर पिच्छले हाथ की उंगली से मेरे गुदा द्वार को और आगे वाले हाथ की उंगली से मेरे 'मदनमानी (क्लाइटॉरिस) को कुरेदना शुरू कर दिया था.....

मैने सिसकियों की हुंकार सी भरते हुए अपनी एडियो को उपर उठा लिया...

"मज़ा आ रहा है ना अंजू..! आराम मिल रहा है ना...?" चाचा ने उंगली का दबाव मेरी गुदद्वार पर बढ़ाते हुए पूचछा....

"आआहाआँ.. पूरा... मज़ा आआ.. रहा है चाचा... कुच्छ और करिए ना..!" मैने लरजते हुए लबों से कहा...

"वो वाला करूँ.. क्या?" मेरे पागलपन का अहसास होते ही चाचा ने तपाक से मेरी सलवार नितंबों से नीचे खींची और कुर्सी से नीचे बैठ कर मेरे नितंबों को कसकर अपने हाथों में दबोचे मेरी योनि को होंटो में भींच लिया...

"अया.. चाचा... मैं तो मर गयी..." सिसकते हुए मैं उनकी जीभ को अपनी योनि की फांकों में महसूस करने लगी...

"बता ना... 'वोही' इलाज करूँ क्या तेरा भी......! जो तेरी मम्मी का किया था.. तू तो 'पूरा लेने लायक हो गयी है...साली!" चाचा ने जैसे ही बोलने के लिए अपने होन्ट मेरी योनि से दूर किए.. मुझे ऐसा लगा मानो मेरी मछ्लि किसी ने जल से बाहर निकाल कर फैंक दी... मैने तुरंत चाचा के सिर को पकड़ा और वापस उनके होन्ट 'वहीं; चिपका दिए...

पर शायद चाचा को उतनी जल्दी नही थी जितनी मुझे... 'वो' मुझे तड़पति छ्चोड़ कर अलग हट गये..," तू देखती जा मैं तुझे कितने मज़े देता हूँ... आज तेरी चूत का उद्घाटन करूँगा अंजू.. बड़े प्यार से.. देखना कितने मज़े आएँगे.. तेरी मम्मी भी पूरे मज़े से चुदवा रही थी ना....?"

"जल्दी करो ना चाचा.. बीच में क्यूँ छ्चोड़ दिया..." मैं तड़प कर बोली....

"हाँ हाँ.. अभी करता हूँ ना सब कुच्छ...! जा एक बार सलवार पहन कर तेरी चाची को देख कर आ 'वो' क्या कर रही है...? फिर देता हूँ तुझे सारे मज़े...!" चाचा ने अपना लिंग निकाल कर मुझे दिखाया..," याद है ना तुझे सब कुच्छ... इस'से तेरी मम्मी ने कितने मज़े लिए थे.. याद है कि नही...?"

मैने बिना कोई जवाब दिए फटाफट अपनी सलवार पहनी और बाहर निकल गयी.. पर जैसे ही मैं सीढ़ियों में पहुँची.. मेरा दिल धक से रह गया.. चाची नीचे ही आ रही थी... मंन ही मंन भगवान को मैने कितनी बार याद किया मुझे खुद भी याद नही...

"क्या हुआ अंजू? इतनी देर कैसे लगा दी.. अभी तक तुझे दवाई नही दी उन्होने..." चाची को शायद मेरी उड़ी हुई रंगत देख कर शक हो गया होगा.. तभी वो मुझे लगातार घूरती रही....

"म्‍म्मे.. मैं तो घर चली गयी थी चाची.. अभी आई हूँ छोटू को बुलाने..." मैने बोलते हुए अपनी हड़बड़ाहट छिपाने की पूरी कोशिश की.. साथ ही नीचे आते हुए ऊँची आवाज़ में बोला ताकि चाचा भी सुन लें....

नीचे आते ही चाची चाचा पर बरस पड़ी..,"यहाँ क्या कर रहे हो जी.. उपर क्यूँ नही आए?"

"वो.. शांति.. वो मैं अख़बार पढ़ रहा था.. थोडा सा!" चाचा ने मेरी बात सुनकर पहले ही अख़बार उठा लिया था....

"देखो जी.. थोड़ा पढ़ो या ज़्यादा.. खम्ख्वह नीचे मत बैठा करो.. उपर आकर पढ़ लो जो भी पढ़ना है....!"

"ओफ्फो.. बच्चों के आगे तो सोच समझ कर बोल लिया करो... चलो.." कहते हुए चाचा अख़बार से अपने पयज़ामे के उभार को ढके हुए चाची के साथ उपर चढ़ने लगे.... मेरी उपर जाने की हिम्मत नही हुई..," छोटू को भेज दो चाची!" मैने नीचे से ही कहा और हाँफती हुई घर भाग आई....

"आअनहाआँ?" किताब खोले बैठी हुई मैं यादों के भंवर में कुच्छ इस तरह खो गयी थी कि जैसे ही पिंकी ने मेरा कंधा हिलाकर मुझे टोका.. मैं हड़बड़ा सी गयी...,"क्क्या है..?"

"नींद आ गयी क्या?" पिंकी ने पूचछा...

"न.नही तो..! पढ़ रही हूँ...!" मैं जैसे सच में ही नींद से जागी थी...

"अच्च्छा? क्या पढ़ रही है बता तो?" पिंकी ने हंसते हुए कहा...

"ये.." बोलना शुरू करते ही जैसे ही मैने नीचे देखा.. मेरी सिट्टी पिटी गुम हो गयी.. मेरी किताब तो वहाँ थी ही नही..,"क्क्या है ये पिंकी? मेरी किताब क्यूँ उठा ली??" मैने बड़बड़ाते हुए अपनी आँखें मली...

"देखा! सो गयी थी ना? तेरी किताब मीनू दीदी ने उठाकर रखी थी.. 5 मिनिट हो गये..!" पिंकी हंसते हुए बोल रही थी...

"दीदी कहाँ हैं?" मैने मीनू की चारपाई को देख कर पूचछा... 'वो' वहाँ नही थी...

"वो उपर गयी हैं.. कुच्छ काम होगा.. जाकर मुँह धो ले.. अब तो बस दो दिन की बात रह गयी.. फिर मज़े ही मज़े.. बहुत दिन की छुट्टिया होंगी..." पिंकी का चेहरा खिल उठा...

"हूंम्म.. तू क्या करेगी छुट्टियो में..?" मैने पूचछा.. यादों का खुमार दिल से उतर चुका था...

"कुच्छ नही.. मैं तो ऐश करूँगी...हे हे" पिंकी हंसते हुए बोली.. और फिर संजीदा हो गयी,"पर मीनू दीदी कह रही हैं कि कंप्यूटर सीख ले... देखूँगी!"

"कहाँ?" मैने पूचछा...

"शहर में.. दीदी अपने साथ ले जाने को बोल रही हैं...!" पिंकी ने चहकते हुए कहा...

सुनकर मैं मायूस हो गयी... मैने उस दिन देखा था.. शहर के लड़कियाँ कैसे अकेली बैठकर लड़कों के साथ गुटार-गू करती रहती हैं... मेरा भी शहर पढ़ने का बड़ा मंन था.. पर 'पापा' के रहते मेरा ये सपना कभी पूरा नही होने वाला था....

"क्या हुआ?" पिंकी ने मेरे चेहरे की मायूसी को पढ़ लिया था..,"दीदी कह रही हैं कि 'वो' तेरे लिए भी पापा से चाचा को कहलवा देंगी...!"

"पापा नही मानेंगे..! मुझे पता है..!" मैने कहा...

"अच्च्छा! क्यूँ नही मानेंगे.. कंप्यूटर तो बहुत काम की चीज़ है.. आज कल तो सबके लिए ज़रूरी हो गया है 'वो!" पिंकी ने मुझे भरोसा सा दिलाया...

"नही... पर..." मैं बोलकर खामोश हो गयी...

"बता ना! क्या बात है..?"

"पापा नही भेजेंगे.. मुझे पता है.. 'जब 'वो' गाँव के स्कूल में नही भेजते तो शहर कैसे भेज देंगे..!" मैने दुखी मंन से बोला...

"पर तुझे 'वो' स्कूल क्यूँ नही भेजते.. क्या बात हो गयी?" पिंकी आकर मेरे कंबल में घुस गयी...

"ववो.. एक दिन क्लास के किसी लड़के ने मेरे बॅग में 'गंदा' सा खत लिख कर डाल दिया था.. 'वो' पापा को मिल गया.. बस तभी से...!" मैने बोल कर अपनी नज़रें झुका ली...

"हाए राम! तूने 'वो' फाड़ कर क्यूँ नही फैंका देखते ही... एक दिन मेरे बाग में भी मुझे लेटर मिला था... मैने तो थोड़ा सा पढ़ते ही टुकड़े टुकड़े करके फैंक दिया था.....!" पिंकी मुझ पर गुस्सा होते हुए बोली...

"मुझे मिलता तभी तो... 'वो' छोटू के हाथ लग गया और उसने पापा को पकड़ा दिया.... उस दिन.." मैं बोल ही रही थी कि तभी मीनू आ गयी और मेरी आवाज़ धीमी होते होते गायब ही हो गयी....

मीनू ने हमारे पास आकर अपने दोनो हाथ कुल्हों पर टीका लिए,"आख़िर तुम्हारे बीच 'ये' चल क्या रहा है..? मेरे जाते ही तुम दोनो पास आकर ख़ुसर फुसर करने लग जाती हो... क्या चक्कर है ये?"

"कुच्छ नही दीदी.. ववो.. अंजू कह रही है कि उसके पापा उसको शहर नही जाने देंगे... यही बात थी.." पिंकी बोलते हुए थोड़ा हड़बड़ा सी गयी...

"वो बाद की बात है.. मैं देख लूँगी.. अभी तुम्हारे 2 पेपर बाकी हैं.. अलग अलग बैठ कर पढ़ाई कर लो.. मैं उपर जा रही हूँ.. 11 बजे आउन्गि.. कोई सी भी सोती मिली तो देख लेना... ठंडा पानी डाल दूँगी आते ही...!" मीनू ने कहा और अपनी किताब उठा कर जाने लगी...

"हम साथ साथ बैठ कर पढ़ रहे हैं दीदी.. एक दूसरे से 'रूप' और 'धातु' सुनकर देख रहे हैं..."पिंकी की ये बात मीनू ने अनसुनी कर दी और उपर चली गयी....

क्रमशः........................
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10-22-2018, 11:32 AM,
#37
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--26

गतान्क से आगे.............

जाने उस रात पिंकी के मॅन में कैसी उधेड़बुन चल रही थी.. करीब 10 मिनिट तक खामोशी से किताब में नज़रें गड़ाए रहने के बाद अचानक वा बोल पड़ी..,"अंजू!"

"हाँ?" मैने उसकी आँखों में देख कहा..

"वो... ऐसा क्या लिखा था लेटर में जो चाचा ने तेरा स्कूल ही च्छुड़वा दिया?"

मैं आस्चर्य से उसकी आँखों में आँखें डाले उसके मंन की इस अधीरता का कारण समझने की कोशिश करती रही.. आज से पहले तो पिंकी ने कभी इन्न बातों में इतनी रूचि नही ली जितनी 'वो' आज ले रही है.. मैं कुच्छ बोलने ही वाली थी कि उसने 'टोक' दिया,"कोई.. ऐसी वैसी बात हो तो मत बताना..!"

"हां.. बहुत गंदी बातें लिखी हुई थी.. इसीलिए तो मैने तुझे नही बताया था.. वरना 'तो' मैं पहले ही बता देती..." मैने सॉफ सॉफ कहा...

"ओह्ह!" कहने के बाद पिंकी ने एक लंबी सी साँस ली..,"जाने इन लड़कों को क्या मज़ा मिलता है.. ऐसी हरकतें करने में.. जितना नज़रअंदाज करो; उतना ही सिर पर चढ़ने की कोशिश करते हैं...!" कहकर पिंकी ने अजीब से ढंग से अपना मुँह पिचकाया..

"क्यूँ..? आजकल में फिर कुच्छ ऐसा हुआ क्या?" मैने पूचछा...

"नही.. बस 'वो'.... कल तुझे संदीप के पास देखा ना... तभी से दिमाग़ सा खराब है... कुच्छ तो सोचना चाहिए ना.. लड़कों को.. आख़िर हमारी 'इज़्ज़त' ही हमारा हथियार होती है..! और तुझ पर भी मुझे हैरत होती है.. तू फटक से अलमारी में जाकर छिप गयी.. मुझे ऐसा लगता है कि तुम.. अपनी मर्ज़ी से ही उसके पास... है ना?" पिंकी ने झिझकते हुए पूचछा...

कुच्छ देर मैं सोचती रही कि क्या कहूँ और क्या नही.. फिर मैने अपने दिल पर पत्थर रख कर बोल ही दिया..," सच कहूँ तो..."मैने बोलना बंद करके उसकी आँखों में झाँका.. वह 'सच' सुन'ने को बेचैन सी लग रही थी," बोल ना! तुम्हारी कसम कुच्छ नही कहूँगी किसी को!"

"मुझसे नाराज़ भी नही होएगी ना?" मैने पूचछा...

"नही ना यार! तू बता ना सब सच सच!" पिंकी कसमसा कर बोल उठी...

"ववो.. पहले तो 'वो' ज़बरदस्ती ही कर रहा था.. पर बाद में मुझे थोड़ा थोड़ा अच्च्छा भी लगने लगा था..." मैने जवाब दिया...

"क्या?" पिंकी बेचैन सी हो उठी थी....

"वही.. जो 'वह' कर रहा था.. उसमें से 'कुच्छ कुच्छ'!" मैने अब की बार भी पर्दे की बातें 'पर्दे' में ही रहने दी...

कुच्छ देर पिंकी अजीब से ढंग से दायें बायें देखती रही.. उसके चेहरे के भावों से मुझे सॉफ सॉफ पता चल रहा था कि 'पिंकी' 'उस बात' को भुला नही पा रही है... पर शायद 'वह' समझ नही पा रही थी कि 'शर्मीलेपान' और 'शराफ़त' का चोला उतारे बगैर कैसे 'कुच्छ कुच्छ' का मतलब पूच्छे...

"तुझे सच में 'उसकी' बातें अच्छि लग रही क्या? या तू मुझे बना रही है..?" पिंकी ने अजीब सी प्यासी नज़रों से मुझे देखते हुए कहा...

"बता तो रही हूँ.. 'कुच्छ कुच्छ' बातें अच्छि भी लग रही थी...!" मैने दोहराया...

"क्या?" पिंकी ने अपने दाँतों से अनामिका का नाख़ून चबाते हुए मेरी आँखों में देखा...

"क्या 'क्या?" मैं उसका मन्तव्य समझने के बावजूद 'अंजान' बनी रही...

थोड़ी देर की चुप्पी के बाद पिंकी ने एक लंबी साँस के सहारे अपनी बेकरारी जता ही दी..,"क्या क्या अच्च्छा लग रहा था.. बता ना प्लीज़?"

"ओह्ह.. अच्च्छा..." मैने कहा और फिर नज़रें झुका कर बोली..,"खुल कर कैसे बताउ? मुझे शर्म आ रही है..."

पिंकी ने थोड़ा आगे सरक कर अपने घुटने मेरे घुटने से मिला दिए..,"बता ना! मैं तो लड़की हूँ.. मुझसे कैसी शर्म?"

"हां.. लड़की तो तू है.. पर बड़ी ख़तरनाक लड़की है.."मैं कहने के बाद उसकी और देख कर हँसी," मेरे मुँह से कोई ऐसी वैसी बात निकल गयी तो मुझे पता है तू कैसी शकल बना लेगी... कल मुझसे बात करने से भी मना कर दिया था तूने..!"

पिंकी असहाय सी होकर मुझे देखती रही... फिर अचकचा कर बोली..,"कहा ना कुच्छ नही बोलूँगी.. किसी बात का बुरा नही मानूँगी...?"

"पर तू पूच्छना क्यूँ चाहती है..?" मैने सवाल करके उसको उलझन में डाल दिया...

"ठीक है.. नही बताना तो मत बता.. आज के बाद मेरे से बात मत करना!" पिंकी भड़क कर उठने लगी तो मैने उसका हाथ पकड़ लिया..,"बता तो रही हूँ.. रुक तो सही...!"

"ठीक है.. जल्दी बता.. फिर मीनू दीदी आ जाएगी..." पिंकी खुश होकर वापस बैठ गयी....

"वो.... उसने जब मुझे हाथ लगाया था तो पता नही क्या हो गया था.. पर बहुत अच्च्छा लगा था मुझे... शुरू में मैने बहुत मना किया पर 'उसकी' हरकतें मुझे अच्छि भी लग रही थी.. 'पता नही..' पर संदीप के हाथ लगने से मेरे शरीर में गुदगुदी सी होने लगी थी.. इसीलिए 'उसके' छ्चोड़ने के बाद भी मैं वहाँ से भाग नही पाई...!" मैने कहा...

"कहाँ...?" पिंकी ने थोडा हिचकने के बाद खुद ही 'अपना' सवाल खोल कर पूच्छ लिया..,".. मतलब... कहाँ हाथ लगाया था.. संदीप ने?"

"शुरू में तो 'बस' हाथ ही पकड़ा था...!" मैने कहा...

"फिर?"

"फिर.. फिर उसने ज़बरदस्ती करके मुझे अपनी 'गोद' में बैठा लिया.. और 'यहाँ वहाँ' छ्छूना शुरू कर दिया..!" मैं धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी...

इतना सुन'ने भर से ही पिंकी की आँखें शर्म से झुक गयी... उसके गालों की रंगत बदलने लगी थी..,"हाए राम.. तुझे शरम नही आई.. लड़के की गोद में बैठते हुए...!"

"आई थी.. पर तू 'शर्म' के बारे में पूच्छ रही है या 'मज़े' के बारे में..?" मैं खिन्न होकर बोली...

"अच्च्छा रहने दे.. मत बता.." पिंकी ने कहा और अगले ही पल बेचैनी के लबादे से लदे उसके लब थिरक उठे..,"अच्च्छा.. चल बता.... 'और' क्या हुआ..? ......कहाँ कहाँ हाथ लगाया था उसने?"

"अब सारी बात खोल कर बताउ क्या?" मैं झिझक कर बोली.. पर मैं उसके मुँह से 'हाँ' सुन'ना चाहती थी...

"नही.. खोल कर मत बता चाहे.. पर समझा तो सकती है ना!" पिंकी उत्सुकता से मेरी ओर देखने लगी....

"अम्म्म... गोद में बैठकर वह 'इनको' दबाने लगा था...." कहने के बाद मैने अपना हाथ अचानक आगे करके आकर में मेरी चूचियो से आधे उसके एक 'उरोज' को पकड़ लिया..

"आहह.. " पिंकी हड़बड़ा कर उच्छल पड़ी..,"क्या कर रही है बेशर्म? गुदगुदी हुई बड़े ज़ोर की..."

"मैं तो बस बता रही हूँ... मेरे हाथ से तो 'बस' गुदगुदी हुई है... पर अगर कोई लड़का इनको पकड़ेगा तो तुझे पता चलेगा.. असलियत में क्या होता है.. आँखें बंद होनी शुरू हो जाती हैं.. शरीर में भूचाल सा आ जाता है... खुद पर काबू नही रह पता... सच पिंकी.. बहुत मज़ा आता है..!" मैं 'संदीप' के साथ बिताए पल याद करते ही मस्ती से झनझणा उठी और जाने क्या क्या बोलने लगी..

"कोई लड़का नही पागल..."पिंकी ने कहा और फिर अपने आप में ही शर्मा कर संकुचित सी हो गयी..,"सिर्फ़ मेरा 'हज़्बेंड'! उसके अलावा किसी लड़के को मैं इन्हे छ्छूने नही दूँगी..." कहते हुए पिंकी के 'होन्ट' रस से तर हो गये...

"मतलब हरीश...!" मैने शरारत भरे लहजे में कहा...

"मैं तेरा सिर फोड़ दूँगी अगर ऐसे 'किसी' का नाम लिया तो... 'उस'से' मुझे क्या मतलब..?" पिंकी ने बोलते हुए अपने चेहरे पर 'गुस्सा' लाने की भरसक कोशिश की.. पर क्या मज़ाल जो 'लज्जा' की चादर को तनिक भी खिसका पाई हो...,"अच्च्छा.. छ्चोड़.. और बता ना!"

"और क्या बताउ..? फिर तो बस 'वह' आगे बढ़ता गया और में 'मज़े' से पागल हो उठी... पर मैं बता नही सकती कि कितना मज़ा आया था.. 'वो' तो करके देखने पर ही पता चलता है....!"

"उसने तुझे हर जगह हाथ लगाया था क्या?" पिंकी कसमसा कर बोली...

"और कैसे बताउ अब? बोल तो दिया.. उसके बाद तो जो उसका दिल किया था.. 'वो' सब किया था उसने...!"

"अच्च्छा ठीक है.. बस एक बात और पूछ लूँ..?" पिंकी अधीर हो कर बोली...

"हां.. पूच्छ..!"

"दोबारा 'वो' सब करने का मन करता है...?" पिंकी अजीब सी नज़रों से मुझे घूरती हुई बोली...

"शायद मीनू आ रही है...!" सीढ़ियों में उतरते कदमों की आहट सुनकर मेरे कान खड़े हो गये... "छ्चोड़.. बाद में बात करेंगे..." मैने कहा और हम दोनो ही बोल बोल कर पढ़ने लगे....

मीनू नीचे आई तो उसने अपने सिर पर 'चुननी' बाँधी हुई थी... वह आते ही अपनी चारपाई में लेट गयी..,"मेरे सिर में दर्द है.. थोड़ा आराम से पढ़ लो..." उसने कहा और चारपाई में घुस कर करवट ले ली...

"चल हम भी सोते हैं अब... काफ़ी रात हो गयी.. सुबह उठना भी है...!" मैने किताब बंद करके रखते हुए कहा...

"नही.. मैं अभी थोड़ी देर और पढ़ूंगी...!" पिंकी ने कहा..

"ठीक है.."मैं रज़ाई में घुसती हुई बोली..,"अपनी चार पाई पर जाकर पढ़ ले..."

"आए.. यहीं बैठ कर पढ़ने दे ना.. मेरा कंबल तो ठंडा हो गया होगा..!" पिंकी ने याचना सी करते हुए कहा...

"कोई बात नही.. पढ़ ले...!" मैने मुस्कुरकर कहा और अपना चेहरा धक लिया...

रज़ाई में दुब्के हुए आधा घंटा होने पर भी मेरी आँखों में नींद नही थी.. अनिल चाचा की 'उस' दिन की हरकतें याद करके मेरी कामुक चाहतों ने अंगड़ाई लेना शुरू कर दिया था... 2 दिन पहले संदीप ने मुझे जो 'स्वर्णिम नज़ारे' दिखाए थे.. उनकी एक और झलक पाने की आरज़ू में मेरी जांघों के बीच 'बार बार' असहनीय 'फदाक' मुझे सोने नही दे रही थी... जाने अंजाने रज़ाई में घुसते ही मेरा हाथ अपने आप ही मेरी सलवार में घुस चुका था... पर लिंग्सुख भोग कर 'फूल' बन चुकी मेरी 'योनि' को अब उंगली के 'छलावे' से बहकना मुमकिन नही था.. अब तो उसको 'मर्द' ही चाहिए था.. दोबारा बरसने के लिए; कहीं से भी!..

अचानक पिंकी का हाथ पढ़ते हुए ग़लती से मेरी जाँघ पर टिक गया और मेरा सारा बदन झंझनाहट से गड़गड़ा गया... आलथी पालती मार कर पढ़ रही पिंकी की एक जाँघ मेरे घुटने से सटी हुई थी... वह अपनी जांघों को मेरी रज़ाई मे दिए पढ़ रही थी.. उपर उसने कंबल औध रखा था... उसकी हथेली का स्पर्श अपनी जाँघ पर होते ही मेरी 'वो' टाँग कंपकंपा गयी थी.. शुक्र रहा कि उसने हाथ तुरंत हटा लिया वरना मैं कुच्छ भी सोच सकती थी...

मैने अपनी हड़बड़ाहट उस'से छिपाते हुए दूसरी ओर करवट ले ली और अपना हाथ सलवार के उपर से ही अपनी जांघों के बीच 'कसकर' दबाए लेट गयी और 2 दिन पहले संदीप के साथ बिताए पलों को याद करके तड़पने लगी... उस तड़प में भी अजीब आनंद था...

"अंजू...!" पिंकी ने सहसा अपना हाथ ठीक मेरे कूल्हे पर रख कर मुझे हूल्का सा हिलाया.. ऐसा करते हुए उसकी चारों उंगलियाँ मेरी 'पेल्विस' पर आगे योनि की ओर और उसका अंगूठा मेरे नितंब पर टिक गया था...

मैं मेरे मॅन में चल रहे 'काम प्रवाह' को तोड़ना नही चाहती थी, इसीलिए गुम्सुम लेटी रही...

"अंजू!" पिंकी की आवाज़ इस बार भी धीमी थी.. बोलते हुए इस बार उसका हाथ सरक कर थोड़ा नीचे आ गया और मुझे उसका अंगूठा मेरे नितंबों की जड़ में मेरी जांघों पर चुभता सा महसूस हुआ...

"हूंम्म्म.... क्याअ.. है.. सोने दे ना याआर..." मैं जानबूझ कर उनीनदी सी होकर बोली और ऐसे ही पड़ी रही...

"अच्च्छा... चल सो जा.. पर थोड़ी सी उधर को हो जा ना.. मेरा लेट कर पढ़ने का मंन है..." पिंकी ने याचना सी करते हुए कहा... उसके बोल में इतनी मिठास अक्सर नही होती थी....

मैं नींद में ही बड़बड़ाने की आक्टिंग करती हुई थोडा दूसरी तरफ खिसक ली.. पिंकी ने साथ वाली चारपाई से तकिया उठाकर मेरे सिरहाने के साथ लगाया और मेरे बाजू में लेट कर पढ़ने लगी...

मैं उसके बाद जल्द ही नींद के आगोश में समा कर सपनो की दुनिया में खो गयी थी..'संदीप' भी पूरी तरह नंगा था और मैं भी.. मुझे अपनी गोद में बिठाए हुए वो मेरी चूचियो को हाथों में लेकर उनको दुलार्ता हुआ बार बार मुझे अपनी टांगे खोलने को कह रहा था... पर सामने खड़ा होकर अपने 'कपड़े' निकाल रहे 'ढोलू' के कारण में शरमाई हुई थी और अपनी 'योनि' को जांघों के बीच दबाए सिसकियाँ ले रही थी...

अगले ही पल मुझे ढोलू का काला लिंग मेरी आँखों के सामने लटकता दिखाई दिया.. राक्षस की तरह हंसते हुए वो मेरे सामने आकर घुटनों के बल बैठ गया..,"ऐसे नही खोलेगी ये.. तू इसकी टाँग पकड़ कर फैला और में इसकी 'चूत' फाड़ता हूँ साली की... बहुत मस्ता रही है...!"

"नही... प्लीज़.. ऐसे नही...!" मैं गिड़गिदा कर बोली....

"सीसी..कुच्छ नही...सो जा!" ढोलू की आवाज़ रहस्मयी ढंग से बदल गयी.. अब की बार अचानक वह किसी लड़की की आवाज़ में मिमिया कर बोला था.. अचानक संदीप और ढोलू दोनो ही मेरे सपने से गायब हो गये.. और भले ही सपने में ही सही.. पर 'अपनी' तड़प का 'इलाज' इस तरह से गायब होते ही मैं भनना सी गयी..

मेरी नींद खुल गयी थी....

अचानक नींद खुलते ही मेरे आस्चर्य का ठिकाना ना रहा... मेरे साथ, मेरी ही रज़ाई में सो रही पिंकी अजीब ढंग से लंबी लंबी साँसें ले रही थी.. मैं उसको टोक कर उठाने ही वाली थी की 'मामला मेरी समझ में आ गया.. 'तो इसका मतलब लास्ट में जो मुझे सुनाई दिया 'वो' ढोलू की नही.. पिंकी की आवाज़ थी...

मैं अचरज से भरी हुई बिना कुच्छ बोले लेटी रही... पिंकी की 'साँसों' की तेज़ी तो मैं पहले ही महसूस कर चुकी थी.. पर अब मेरी कमर में गढ़ी उसकी नन्ही चूचियो की धड़कन में भी मुझे कुच्छ अजीब से 'तेज़ी' का अहसास हुआ.. उसके दिल की आवाज़ इतनी तेज थी मानो वो उसके अंदर नही बुल्की मेरे भीतर धड़क रहा हो...

उत्सुकता के मारे मेरा मन मचल उठा.. तो क्या पिंकी भी...? मेरा मन सोच कर ही गड़गड़ा गया था...

कुच्छ सोच कर मैं नींद में होने का नाटक करती हुई बुदबुदाई और करवट लेकर सीधी लेट गयी.....

काफ़ी देर तक भी जब उसकी तरफ से कोई हरकत नही हुई तो मेरा मॅन बेचैन हो उठा...

'उसकी दाहाकति हुई सी साँसें बता रही थी कि 'वो' जाग रही है.. अगर उसके मॅन में कुच्छ नही होता तो 'वो' मेरे पास क्यूँ सोती? और अगर सोना ही था तो अब तक तो 'सो' जाना चाहिए था.. ऐसे आहें भरने का क्या मतलब?'

यही सब सोचने के बाद मेरा हौंसला थोड़ा बढ़ा और मेरे मॅन में एक अजीब सी खुरापात ने जनम ले लिया.. 'जैसा कुच्छ दिन पहले मनीषा ने मेरे साथ किया था, कुच्छ वैसा ही मेरा मॅन पिंकी के साथ करने को मचल उठा... आख़िर 'कुच्छ नही' से तो 'कुच्छ ही सही' बेहतर था..

मैने पिंकी की ओर करवट ली और खुद को नींद में ही दिखाते हुए हम दोनो के चेहरों पर से रज़ाई हटा दी...

पिंकी की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नही हुई.. एक बार तो उसको देख कर मुझे ऐसा लगा जैसे 'वो' सच में ही सो रही हो.. पर उसके नथुनो से आती 'भारी' साँसों ने मुझे संशय में डाल रखा था.. कुच्छ पल की उधेड़ बुन के बाद मैने अपना हाथ उसके कंधे के पास उसकी बाँह पर रख दिया... हमारी छातिया ठीक एक दूसरी की छातिया के आमने सामने थी और 'छ्छूने' ही वाली थी...

अचानक मुझे पिंकी के कसमसने का हल्का सा अहसास हुआ... तभी उसने मेरे हाथ के नीचे से अपनी बाँह निकाली और रज़ाई को पकड़ कर उपर खींच लिया.. ऐसा करने से मेरा हाथ खुद-बा-खुद उसकी छाती की बगल में जा टीका और जैसे ही पिंकी ने अपनी बाँह वापस 'वहाँ' रखी; मेरी हथेली का दबाव उसकी छाती पर बढ़ गया...

मुझे पूरा विश्वास नही था कि वह जाग रही है या सो रही है.. और फिर उसके स्वाभाव से भी मुझे डर लगता था.. शायद इसी वजह से मैं पहल करने में हिचकिचा रही थी...

कुच्छ देर बाद ऊंघते हुए पिंकी धीरे से सीधी होकर लेट गयी.. मॅन में उसके बारे में 'गंदे ख़याल' आने के बाद मुझे डर सा लगने लगा था.. मैं अपना हाथ हड़बड़ा कर हटाने को हो गयी थी.. पर उसने करवट इतनी सफाई से और इतनी धीरे बदली थी कि मुझे भी कुच्छ देर बाद ही अहसास हो पाया कि अब उसकी 'बाई चूची' मेरी हथेली के नीचे धड़क रही है... मैने अपनी साँसें रोके हुए 'वहाँ' से हाथ ना हटाने का फ़ैसला कर लिया....

उसकी चूची पर हथेली टिकाए हुए मुझे ऐसा आभास हो रहा था जैसे मैने अपने हाथों में 'छ्होटे' आकर का कश्मीरी सेब थाम रखा हो.. बेहद मुलायम, मखमली और रेशमी अहसास लिए उसकी चूची तेज़ी से उपर नीचे होती हुई धीरे धीरे अकड़ने सी लगी और जल्द ही मुझे मेरी हथेली में उसकी चूची का 'मिश्रीदाना' महसूस होने लगा...

मैने जैसे ही अपनी हथेली का दबाव बढ़ा कर उसके 'सेब' को भींच कर देखना चाहा, पिंकी ने अपना हाथ मेरे हाथ पर रख लिया.. मुझे लगा 'वह' मेरा हाथ वहाँ से हटा देगी.. पर सुखद आस्चर्य रहा कि उसकी चूची को समेटे मेरे हाथ पर 'सिवाय' अपने हाथ का 'बोझ' रखने के; उसने कुच्छ नही किया..

उत्साहित सी होकर मैने अपनी टाँग घुटने से मोडी और उसकी जांघों पर रख ली.. 'केले' के चिकने तने जैसी उसकी गदराई जांघों पर अपनी मस्त मांसल और चिकनी जांघों से स्पर्श मुझे बहुत ही उत्तेजक लगा... जल्द ही मेरी साँसें भी अपनी 'गिनती' भूलने वाली थी....

एका एक जाने मुझे क्या हुआ.. 'वासना' की अग्नि में तो जल ही रही थी.. अचानक 'जो' होगा देखा जाएगा के अंदाज में मैने उसकी चूची कस कर दबा दी.. इसके साथ ही उसकी सिसकी निकल गयी..

"आअहह.." वह कसमसाई और मेरा हाथ दूर झटक कर करवट ले मुझसे लिपट कर आहें भरने लगी...

उसकी हालत देख कर मेरा रोम रोम गड़गड़ा उठा.. मैं अपना एक हाथ उसकी कमर पर ले जाकर कसकर अपने सीने से भींचती हुई उसके कान में फुसफुसाई,"क्या हुआ पिंकी?"

पर उसने कोई जवाब नही दिया.. शायद उसको कुच्छ भी बोलते हुए शर्म आ रही होगी.. पर 'ये' सॉफ हो चुका था कि वा जाग रही है और 'कच्ची जवानी' की उंबूझी लपटों से उसका शरीर धधक सा रहा है.. उसके बदन का बढ़ा हुया तापमान और साँसों की गर्मी सपस्ट बता रही थी कि 'वो' बुरी तरह से मचल चुकी है....

मैं उसके गालों पर चुंबन लेने को हुई तो 'वह' छितक कर मुझसे दूर हो गयी...

"क्या हुआ?" मैं तड़प कर उसके पास खिसकते हुए बोली तो उसने करवट बदल ली.. उसके करवट बदलने के दौरान जैसे ही रज़ाई थोड़ी उपर उठी.. अंदर आए प्रकाश ने मुझे उसके शर्म से लाल हो चुके गाल और खुली हुई उसकी आँखों के दर्शन करा दिए.. अब हिचकने का सवाल ही पैदा नही होता था...

मैने दुस्साहस सा दिखाते हुए अपना हाथ फिर से उसकी चूची पर रख लिया और उसको अपनी तरफ खींचते हुए बोली," मज़ा आ रहा है ना पिंकी?"

उसने जवाब दिया तो उसकी आवाज़ में कंपन सा था..," ये... ये ग़लत है अंजू!"

मैने अपनी जाँघ उठाकर उसके कुल्हों से सटा दी और पैर दूसरी तरफ से उसके घुटनो के बीच फँसा लिया..,"इसमें.. ग़लत क्या है पागल..? मज़ा आ रहा हो तो ले ले थोड़ा सा!"

करवट लिए हुए ही पिंकी ने अपना चेहरा उपर किया और एक बार फिर से उसके लब थिरक उठे..,"...पर.. ये ग़लत है.. पाप लगेगा..!" वा फुसफुसाई..

"पाप!" मैं मंन ही मंन हँसी और फिर धीरे से ही उसके कान में बोली,"पाप कैसा पागल? देख ना कितना मज़ा आ रहा है! ऐसे तो किसी बात का डर भी नही.. और ना ही किसी को पता लगेगा... मैं कोई लड़का थोड़े ही हूँ जो कुच्छ ग़लत हो जाएगा.." मैने बोलने के बाद उसके पेट में गुदगुदी सी कर दी..

"हे हे हे.." हँसी को दबाने की कोशिश में 'वो' उच्छल सी पड़ी और सीधी लेट गयी.....,"पर मुझे बहुत अजीब सा लग रहा है.. पता नही ये क्या हो रहा है मुझे..?" पिंकी फुसफुसाई..

"अच्च्छा एक बात बता! 'अच्च्छा' लग रहा है या बुरा?" मैने उसको अपने आगोश में समेट'ते हुए पूचछा...

वह भी सिकुड कर मुझसे पूरी तरह सॅट गयी," शरीर को अच्च्छा लग रहा है.. पर दिमाग़ में बुरा!"

"अच्च्छा छ्चोड़! ये बता.. जब मैने इसको दबाया था तो" मैने उसकी चूची पर हाथ रख कर बोली..,"तब कैसा लगा था?"

उसने बिना बोले ही जवाब दे दिया.. अपना हाथ फिर से मेरे हाथ पर रख कर वह धीरे धीरे खुद ही दबाने लगी.. इसके साथ ही उसकी साँसें फिर से तेज होने लगी..

"मज़ा आ रहा है ना?" मैं उसके मनोभावों को पढ़ते हुए खुश होकर बोली और अपने हाथ से बारी बारी उसकी दोनो चूचियो को सहलाने लगी...

"आ.. हाअ.. हाआअ!" उसने कसमसा कर अपनी चूचियो से मेरा हाथ हटाया और मुझसे चिपक कर सिसकने लगी...

"कैसा लग रहा है? बता ना?" मैने अलग होकर उसका हाथ पकड़ा और अपनी छातियो पर रख दिया.. वह कुच्छ देर उन्हे दबा दबा कर देखती रही.. फिर मेरा हाथ पकड़ कर अपनी छाती पर ले गयी,"आह.. तुम भी करो.. बहुत मज़ा आ रहा है अंजू.. यहाँ ऐसी क्या बात है.. खुद के हाथ से तो कभी कुच्छ नही होता.. ऐसा लग रहा है जैसे अंदर से कुच्छ खींच सा रहा है.. अयाया.."

"पता नही.. पर मज़ा बहुत आता है.. सच में...."मैने कुच्छ रुक कर फिर कहा,"और.... और नीचे तो पूच्छो ही मत...!"

"नीचे कहा?" मेरी बात सुनकर उसने मेरी छाती को कसकर भींच दिया.. मेरी भी सिसकी सी निकल गयी..

"नीचे... यहाँ.. जहाँ से हम पेशाब करती हैं..." कहने के बाद जैसे ही मैने अपना हाथ नीचे ले जाने की कोशिश की.. उसने बीच रास्ते में ही पकड़ लिया,"धात बेशर्म.. ऐसी बातें मत कर.. मैं उठकर चली जाउन्गि...!"

"ओह्हो.. तू हाथ तो लगवा कर देख एक बार.. इस'से 100 गुना मज़ा ना आए तो कहना!" मैने लगभग ज़बरदस्ती करते हुए अपना हाथ फिर से उसकी योनि की तरफ बढ़ाना शुरू कर दिया.. पर आशंका से ही उसके रोंगटे खड़े हो गये..,"नही.. तुझे मेरी कसम.. वहाँ नही.." और उसने अपनी योनि को छूने तक नही दिया...

"ठीक है..!" मैं हताश होकर बोली..,"तू करके देख ले मेरे 'वहाँ'... मैं कुच्छ नही कहूँगी..!"

"नही.. बस यहीं ठीक है.." वह मेरी चूची को दबाकर देखती हुई बोली..,"तेरी तो मीनू दीदी जैसी हो गयी अभी से.. उसने भी ऐसे ही किया था क्या?"

"किसने?" मेरी समझ में ठीक से उसकी बात नही आई...

"अरे उसने.. उसने भी ऐसे ही दबाया था क्या इनको....!"

"अच्च्छा.. संदीप ने?" मैं बोली..

"हां..!"

"बताउ?" मैं बोली..

"हां.. पूच्छ ही तो रही हूँ..."

"उसने तो..." मैं बोलते हुए रुकी और उसके समीज़ के नीचे से अपना हाथ डाल कर उपर चढ़ा लिया.. उसने कोई विरोध नही किया.. पर जैसे ही उसकी नंग-धड़ंग चूची मेरे हाथ में आई.. वह मस्ती से झंझनती हुई सिसक सी पड़ी...,"आई... ऊऊऊओईईईई..मुंम्म्ममय्ययी...!"

"क्या हुआ?" मैं उसके कान में फुसफुसते हुए मुस्कुराइ...

"आ.. बस पूच्छ मत... 'इन्न' पर उंगली मत लगा खाली.. मुझसे सहन नही हो रहा.. पूरी को पकड़ ले.."वह बोलती हुई पागल सी होकर मेरी चूची को ज़ोर ज़ोर से मसालने सी लगी...

उसकी खुमारी थोड़ी उतरी तो जाकर ही उसकी आवाज़ निकली...,"और क्या क्या किया था उसने!" पिंकी की आवाज़ में एक अजीब सी तड़प थी...

"तू बताने देगी तभी तो.. पर तू तो नीचे कुच्छ करने ही नही देती..."मैने कहते हुए उसकी एक चूची को जड़ से पकड़ कर भींच दिया...

"अयाया.. नही.. ऐसे ही बता दे...!" उसने कहा और अपना हाथ भी मेरी कमीज़ में डाल कर उपर चढ़ा लिया...

"ऐसे क्या क्या बताउ? उसने तो मेरे गालों को चूमा था.. मेरी चूचियो को ऐसे ही दबाया था और फिर इनको मुँह में लेकर चूसा था.. फिर जब मैं पागल सी हो गयी तो उसने मेरे सारे कपड़े निकाल दिए और फिर उपर नीचे सब जगह चूमा था..." मैं बताती जा रही थी और पिंकी अंदर ही अंदर पिघलती जा रही थी... अपनी ही जांघों को एक दूसरी के साथ रगड़ता देख मुझे विश्वास हो रहा था कि उसकी 'योनि' इन सब बातों की गर्मी से 'द्रवित' हो कर फदक उठी है और उसकी अपनी जांघें अब उसकी नादान योनि की गर्मी को कुचल कुचल कर बाहर निकाल देना चाह रही हैं.... मेरी हर एक लाइन के बाद उसके मुँह से एक सिसकी निकलती और मेरी चूचियो पर उसकी पकड़ बढ़ने के साथ ही उसकी जांघों के बीच हुलचल में और तेज़ी आ जाती...

अचानक उसने एक टाँग मेरी जाँघ के उपर चढ़ाई और मेरा घुटना अपनी जांघों के बीच कस कर दबाए हुए सिसकियाँ लेकर उपर नीचे होने लगी... मुझे अहसास हो चुका था कि अब ये इस लोक में नही है.. इसीलिए मैने भी बोलना बंद करके उसको कसकर पकड़ लिया... काफ़ी देर से मेरा दूसरा हाथ मेरी सलवार में होने के कारण मैं भी चरम पर पहुँचने ही वाली थी... तभी वह एक हिचकी सी लेकर मुझसे बुरी तरह लिपट गयी... और सिर नीचे करके मेरी चूची को अपने दाँतों में दबा लिया... उस आख़िरी पल में तो उसने जैसे मेरे 'दाने' को काट ही दिया होता... मैं पीड़ा से बिलबिला उठी.. पर उस पीड़ा में जो आनंद था.. 'वो' अविस्मरणीय था...

काफ़ी देर तक हम एक दूसरी से लिपटी हुई हाँफती रही.. अचानक जाने पिंकी के मंन में क्या आया.. वह झटके के साथ अलग हुई और अपनी कमीज़ ठीक करके उठने लगी... उसके बाल अस्त-व्यस्त हो चुके थे.. साँसें अभी भी उखड़ी हुई थी...

"क्या हुआ पिंकी? लेट जा ना!" मैने उसका हाथ पकड़ कर धीरे से बोला....

पर वह तो नज़रें तक नही मिला पा रही थी.. अपनी कोहनी मोड़ कर उसने हाथ छुड़ाया और रोनी सूरत बनाए तकिया उठा कर अपनी चारपाई पर जा लेटी...

क्रमशः........................
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10-22-2018, 11:32 AM,
#38
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--27

गतान्क से आगे.............

सुबह तक तो हालात और भी बिगड़ चुके थे.. उठने के बाद भी पिंकी ने मेरी और देखा नही और सीधी उपर भाग गयी.. कुच्छ हद तक उसके नज़रें चुराने का कारण मेरी समझ में आ भी रहा था.. मैने अपने बिस्तेर को लपेटा और मीनू को उठाकर तैयार होने के लिए घर चली गयी....

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नहा धोकर मैं वापस आई और हर रोज़ की तरह नीचे से ही आवाज़ लगाई.. ,"पिंकी!"

मैं रोज़ ऐसे ही आवाज़ लगती थी और जवाब में पिंकी की मधुर और पैनी आवाज़ मेरे कानो में घंटियों की तरह बजने लगती," उपर आ जा, अंजू! बस पाँच मिनिट और लगाउन्गि...!"

पर उस दिन ऐसा कुच्छ नही हुआ.. थोड़ी देर बाद मुझे पिंकी के बदले चाची की आवाज़ सुनाई दी..,"वो बस आ रही है बेटी.. तैयार हो रही है...!"

मैं मन मसोस कर वहीं बैठ गयी.. जाने क्यूँ.. पर पिंकी के बदले रंग ढंग देख कर मेरी भी उपर चढ़ने की हिम्मत नही हो पाई...

वह नीचे आई तो भी उसकी नज़रें झुकी हुई थी.. नीचे आने से पहले ही उसने अपनी छोटी छोटी उभरती हुई चूचियो को चुननी में छिपा लिया था... पहले वह नीचे आकर बाहर निकलने से पहले मेरे सामने ही अपनी 'चुननी' को दुरुस्त किया करती थी... मुझे उसका यह व्यवहार अजीब और असहनीय लग रहा था...

वह नीचे आई और बिना कुच्छ बोले बाहर निकल गयी.. उसके साथ ही नीचे आई मीनू ने हम दोनो को अजीब सी नज़रों से देखा.. मैं मीनू की और मुस्कुराइ और पिंकी के पिछे पिछे बाहर निकल गयी...

"क्या हुआ पिंकी?.... मुझसे नाराज़ है क्या?" मैने घर से थोड़ा आगे जाते ही उसका हाथ पकड़ कर पूचछा...

"नहयी.." पिंकी ने मरी सी आवाज़ में कहा और अपना हाथ छुड़ा लिया..

"तो फिर बात क्या है..? मुझसे बात क्यूँ नही कर रही तू?" मैने सब जानते हुए भी अंजान बने रहने की कोशिश की....

"............. कुच्छ नही बस... कल पेपर ख़तम हो जाएँगे.. है ना?" पिंकी ने बात घूमाते हुए कहा...

"हाँ.. पर तू ऐसा क्यूँ कर रही है यार..? मैने क्या किया है..? तू... खुद ही तो मेरे साथ लेटी थी.. और..." मुझे बोलते बोलते रुक जाना पड़ा.. उसकी मनो स्थिति का अहसास मुझे तब हुआ जब मैने उसको चेहरा दूसरी तरफ करके 'अपने आँसू' पौंचछते हुए महसूस किया...

"अच्च्छा.. सॉरी.. मेरी ही ग़लती थी.. अब खुश हो जा ना प्लीज़.. आगे से ऐसा कुच्छ नही करेंगे.. तेरी कसम... मैं..." इस बार बोलते हुए मुझे पिंकी ने ही टोक दिया....

"नही.. ऐसा क्यूँ कह रही है..? उसमें तेरी क्या ग़लती थी..? पता नही कैसे हो गया सब.. मुझे सारी रात नींद नही आई..." पिंकी ने एक बार फिर अपने गालों पर लुढ़क आए आँसू को मुझसे छिपाते हुए अपनी हथेली में समेट लिया...

"क्यूँ? नींद क्यूँ नही आई पागल? ऐसा तो कुच्छ 'ज़्यादा' भी नही किया हमने?" मैं उसको 'प्यार' से झिड़कते हुए बोली....,"छ्चोड़! भूल जा सब कुच्छ...!"

"तू... तू किसी को इस बारे में कुच्छ भी नही बोलेगी ना?" पिंकी ने याचना सी करते हुए मेरी नज़रों से नज़रें मिलाई...

"मैं? मैं क्यूँ बताउन्गि किसी को पागल? तू इसीलिए ऐसे कर रही है क्या?" मैने कहा...

"अपनी लड़ाई हो जाएगी.. तब भी नही ना?" पिंकी का चेहरा अब भी वैसे का वैसा ही था....

"नहियीईईईईईईईईईईईईईईईईईई..... तेरी कसम यार.. प्लीज़.. खुश हो जा अब...!" मैने कहा ही था कि संदीप ने बाइक लाकर हमारी साइड में रोक दी.. आज भी अकेला ही था वो...," चल रही हो क्या?"

मैं कुच्छ बोलती इस'से पहले ही पिंकी ने मानो उस पर 'हमला' सा कर दिया...,"चुप चाप भाग ले आगे.. हमारे से बात करने की कोशिश की तो ऐसी दुर्गति करूँगी कि याद रखेगा.. बड़ा आया...!"

संदीप ने खिसकने में ही भलाई समझी..,"वो.. शिखा आ गयी है.." उसने कहा और आगे निकल गया... उसकी बाइक के जाने के बाद भी काफ़ी देर तक पिंकी बड़बड़ाती रही...

"चुप हो जा पिंकी! अब उस पर गुस्सा क्यूँ निकाल रही है...?" मैं हताशा और चिड़चिड़ेपन से बोली... संदीप के नाराज़ हो जाने पर मेरी बनी बनाई बात बिगड़ने का ख़तरा था.. मेरा पेपर जो करना था उसको!

"मुझे ये...." पिंकी जबड़ा भींच कर बोली," ये बिल्कुल भी अच्च्छा नही लगता अब!"

"मतलब? ...." मैं शरारत से हंसते हुए बोली," पहले अच्च्छा लगता था क्या?"

"तू भी ना बस! वो बात नही है! पर मैं इसको दूसरे लड़कों जैसा नही समझती थी.. ये भी कमीना कुत्ता निकला!" पिंकी मुझ पर गुस्सा निकालते हुए बोली...

"अब इसमें कामीनेपन वाली क्या बात है यार.. मंन में तो सभी के होती हैं ऐसी बातें.. मौका मिलते ही बाहर तो निकलनी ही होती हैं.." मैने हल्का सा कटाक्ष करते हुए संदीप का पक्ष लिया....

"नही.. मैं नही मानती.. अच्छे लड़के भी होते हैं.. जो ये सब नही सोचते!" पिंकी ज़ोर देकर बोली...

"कोई दूध का धुला नही होता.. सारे शरीफ बाहर से ही शरीफ लगते हैं.. मुझे सब पता है..! तू एक बार किसी की तरफ मुस्कुरा देना.. दूँम हिलाता हुआ तेरे पिछे पिछे ना आ जाए तो कहना....!" मैं भी अपनी बात पर अड़ गयी...

"तूने आज तक ऐसे ही लड़के देखे हैं.. इसीलिए तू ऐसा बोल रही है... !" पिंकी तुनक कर बोली....

"चल.. तू 'एक' का भी नाम बता दे.. मैं अपने पिछे 'पागल' करके दिखाउन्गि उसको..." हमारी बहस का रुख़ पता नही किधर जा रहा था....

"हॅरी!" पिंकी के मुँह से जोश में नाम निकल गया.. फिर खुद ही हड़बड़ते हुए बोली..,"छ्चोड़ ना.. हम भी ये क्या लेकर बैठ गये...!"

"मैं शर्त लगा सकती हूँ.. हॅरी भी 'सीधा' नही है... लड़का तो कोई इतना शरीफ हो ही नही सकता.... उसको तो मैं 'यूँ' पटा सकती हूँ..."मैं अब 'छ्चोड़ने' को तैयार नही थी...

"तू.. क्या करेगी?" पिंकी ने मुझे घूरते हुए कहा....

"वो सब मुझ पर छ्चोड़ दे.. शर्त लगानी है तो लगा ले... 'हॅरी' को तो मैं 'एक' ही बार में पागल बना सकती हूँ.... बोल!" मैने गर्व से कहा...

"ठीक है.. अगर हॅरी भी ऐसा निकला तो मैं मान लूँगी तेरी बात...!" पिंकी भी तैश में आ गयी...

स्कूल अब कुच्छ कदम ही रह गया था.. मैने हमारी 'शर्त' में झंडा गाडते हुए कहा," कल का पेपर हो जाने दे.. फिर देखती हूँ तेरे 'हॅरी' को भी..

"मेरा क्यूँ बोल रही है.. तेरा होगा 'वो'?" पिंकी शरमाती हुई बोली और फिर स्कूल आ गया...

उस दिन का पेपर भी दोनो का अच्च्छा ख़ासा हो गया था... 'वो' सर आज फिर नही आए थे... मेडम हमारे कमरे तक में नही आई... पेपर देकर घर जाते हुए हम दोनो काफ़ी रिलॅक्स्ड महसूस कर रहे थे.. अब सिर्फ़ एक फिज़िकल एजुकेशन का पेपर बचा था और वो 'ना' के बराबर ही था...

जैसे ही मैं और पिंकी उसके घर पहुँचे, हमें मीनू नीचे ही मिल गयी...

"कहीं जा रही हो क्या दीदी?" पिंकी ने उसको देखते ही पूचछा...

"नही तो! अब कहाँ जाउन्गि?" मीनू बार बार दरवाजे से बाहर झाँक रही थी...

"तो फिर आपने नयी ड्रेस क्यूँ डाल रखी है?" पिंकी मीनू के कमीज़ के कपड़े को छ्छू कर देखती हुई बोली,"वैसे बहुत प्यारी लग रही हो आप इस गुलाबी सूट में.. ये मेरा फॅवुरेट कलर है...!"

"बस भी कर अब.. ज़्यादा मस्का मत लगा.." मीनू शर्मा सी गयी थी..," वो.. चल उपर चलते हैं.. मम्मी पापा भी उपर ही हैं..."

हम उपर गये तो चाचा चाची थोड़े चिंतित से बैठे थे... हमारे पेपर के बारे में पूच्छने के बाद चाचा चाची से बोले,"मेरी तो समझ में नही आ रहा कि 'वो' इनस्पेक्टर यहाँ क्या लेने आ रहा है अब...!"

"कौन?... 'वो' लंबू आ रहा है क्या?" पिंकी चहकते हुए बोली...

"कौन लंबू?" चाचा के माथे पर अब भी थयोरियाँ चढ़ि हुई थी....

"वही.. वो इंस्पेक्टोररर्र!" पिंकी हंसते हुए बोली और चाची के पास बैठ गयी...

"तुझे बोलने की भी तमीज़ नही रही पिंकी? तू जितनी बड़ी हो रही है.. उतनी ही शैतान होती जा रही है.. बड़ों को ऐसे बोलते हैं क्या?" चाची ने पिंकी को घूर कर देखा...

"आपके सामने ही तो बोला है मम्मी.. 'वो' कोई सामने थोड़े ही बैठा है..? वैसे.. वो आ रहे हैं क्या यहाँ... इनस्पेक्टर साहेब?"

"हाँ.. थोड़ी देर पहले ही उसका फोन आया था.. पता नही हमारा नंबर. किसने दे दिया उसको.. और यहाँ क्या लेने आ रहा है भला.. हमें तो खेत में जाना था.. हमें भी यहाँ बाँध कर बिठा दिया....!" चाचा ने नाराज़गी से कहा...

"तो आप जाओ ना पापा! 'वो' आए तो हम कह देंगे कि आपको खेत में जाना था.. मिलना होगा तो वहीं आकर मिल लेंगे.... आपको क्या पड़ी है...?.. और फिर क्या पता 'वो' कब तक आएँगे...?" मीनू ने अंदर कमरे में से ही कहा....

"मीनू बेटा.. तुझे किसी बात का पता सता हो तो पहले ही बता देना.. पोलीस से कोई बात छिपि नही रहती.. आज नही तो कल भेद खुल ही जाता है.. बाद में ज़्यादा समस्या आएगी...." चाचा ने अपना माथा पकड़े हुए उदासी से कहा....

"आप भी ना बस! क्यूँ चिंता कर रहे हैं खंख़्वाह.. इसको भला क्या पता होगा.. और पता होता भी तो ये कम से कम हमें तो बता ही देती ना... मुझे तो लगता है कि मीनू ठीक ही कह रही है.. हम क्यूँ उसका इंतजार करें..? उसको आना होगा तो खेत में आ जाएगा.. चलो जी, चलते हैं....!" चाची ने चाचा को समझाते हुए कहा....

"पर मेरी समझ में नही आ रहा कि उसने यहीं फोन क्यूँ किया...? मुझे तो कोई गड़बड़ लग रही है....!" चाचा ने खड़े होते हुए कहा...

शायद मीनू और पिंकी में से किसी ने भी चाचा चाची को ये बात नही बताई थी कि उनके पास इनस्पेक्टर का मोबाइल नंबर. है और 'वो' घर से उसको कयि बार फोन कर चुके हैं... मैने भी चुप रहना ही ठीक समझा....

"कोई गड़बड़ नही है जी.. हमारी बेटियों में कोई कमी निकाल कर तो दिखा दे... चलो चलते हैं खेत में.... आना होगा तो वहीं आ जाएगा 'वो'.." चाची ने कहा और उसके पिछे पिछे हो ली....

"अच्च्छा... अब समझी में....!" पिंकी मीनू को चिड़ाते हुए बोली और हँसने लगी...

"तू ज़्यादा बकवास करेगी तो मैं मम्मी को बोल दूँगी..." कहते हुए मीनू उसको मारने को दौड़ी ही थी कि नीचे गाड़ी का हॉर्न सुनकर ठिठक गयी..,"हाए राम! 'वो' अभी क्यूँ आ गया..." हम तीनो ने मुंडेर पर खड़े होकर देखा.. उन्न दोनो के साथ 2 मोटे तगड़े आदमी और थे.... चारों के चारों सादी वर्दी में थे.... उनके आते ही चाची वापस अंदर आ गयी और चाचा उनके पास ही खड़े रहे....

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10-22-2018, 11:32 AM,
#39
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
मानव ने जैसे ही अपनी नज़रें बचाकर उपर देखा.. मीनू तुरंत पिछे हट गयी.. पर हम मुंडेर पर खड़े खड़े मंद मंद मुस्कुराते रहे.. मानव ने बाकी तीनो को जीप में ही बैठने का इशारा किया और चाचा के साथ अंदर आ गया....

"अंदर आ गया दीदी!" पिंकी मीनू को छेड़ते हुए बोली...

"तो...? तो मैं क्या करूँ?" मीनू ने कहा और फिर बोली,"जा मम्मी को उपर बुला ला..!"

"नही.. मैं नही जाती.. आप चली जाओ ना?" पिंकी के बोलने का ढंग अब भी मीनू को चिडाने वाला ही था...

"तुझे तो मैं बाद में देख लूँगी..."मीनू ने गुस्से से कहा और फिर मेरी ओर देख कर बोली..,"जा... अंजू.. तू बुला ला.. चाय वग़ैरह की पूच्छ लेंगे..!"

"ठीक है.. मैं जा रही हूँ दीदी.." मैं कह कर जाने लगी तो पिंकी भी पिछे पिछे आ गयी..,"रूको.. मैं भी आ रही हूँ..."

हम नीचे गये तो चाचा और मानव आमने सामने चारपाइयों पर बैठे थे... चाची थोड़ी दूरी पर हाथ बाँधे खड़ी थी.. हम दोनो चुपचाप चाची के पास जाकर खड़े हो गये...

"इनस्पेक्टर साहब.. आने को तो आप यहाँ 100 बार आओ.. आपका ही घर है.. पर ये बार बार मीनू से अकेले में बात करने वाली आपकी ज़िद हमें चिंतित कर देती है... आख़िर ऐसी क्या बात है जो आप हमारे सामने नही पूच्छ सकते.. आख़िर हमें भी तो पता लगना चाहिए अगर हमारी बेटी से कोई ग़लती हुई है तो...!" चाचा ने रूखे स्वर में कह रहे थे...

"ववो.. दरअसल ऐसी कोई बात नही है अंकल जी!" जहाँ तक मुझे याद है.. मानव ने पहले बार चाचा को 'अंकल' कह कर संबोधित किया था...," मीनू का यूँ तो इस मामले में कोई लेना देना नही है... पर इस केस में हमें उस'से काफ़ी मदद मिल सकती है... शायद आपके सामने 'वो' खुल कर ना बोले.. बस इसीलिए..." मानव कहने के बाद चाचा की आँखों में देखने लगे...

"वो तो ठीक है... पर आपको 'जो कुच्छ भी पूच्छना है.. हमारे सामने ही पूच्छ लो.. अगर हमें लगेगा कि 'वो' हिचकिचा रही है तो हम चले जाएँगे.. पर.. ऐसे बिल्कुल अकेले.... आप तो समझ रहे हो ना.. लड़की जात है.." चाचा कुच्छ बोल ही रहे थे कि सीढ़ियों की आड़ से ही मीनू की कंपकँपति हुई आवाज़ आई..,"मम्मी... ववो...!"

चाची उस तरफ जाने लगी तो चाचा ने मीनू को नीचे ही बुला लिया..," मीनू बेटी.. आना एक बार... " और फिर पिंकी से बोले..,"जा बेटी.. तू चाय बना ले!"

मीनू नीचे आई तो, पता नही क्यूँ, थोड़ी हड़बड़ाई हुई सी थी.. वो चुपचाप आकर बिना नज़रें उठाए चाची के पिछे आकर खड़ी हो गयी," जी.. पापा!"

"देखो बेटी.. तुझे जो कुच्छ भी पता है.. सब इनस्पेक्टर साहब को बता दे आज.. इन्हे परेशान होना पड़ता है बार बार.. तू झिझक मत.. और ना ही किसी बात से डरने की ज़रूरत है.. आख़िर हम तेरे मा-बाप हैं....!" चाचा ने कहा..

"ज्जी.. क्कक्या?" शर्म से लदी मीनू की पलकें आधी ही मानव की ओर उठ पाई...

"ववो.. अभी दो चार दिन से आपके घर में ब्लॅंक कॉल आ रही हैं.. मुझे उसी बारे में कुच्छ पूच्छना था...!" मानव ने कहा....

"प्पर.. मैने तो कोई ऐसी कॉल रिसीव ही नही की..." मीनू दबे स्वर में बोली...

"ये.. ब्लॅंक कॉल क्या होती है मीनू?" चाची ने अधीरता से पूचछा...

"ववो.. मम्मी.. जब कोई फोन करके कुच्छ ना बोले....." मीनू ने सपस्ट किया..

"हां.. ऐसी कॉल तो आ रही हैं कयि दिन से... मैं ये समझ कर फोन वापस रख देती थी कि 'लाइन' खराब होगी... पर.. ये आपको कैसे पता?" चाची ने अचरज भरे लहजे में पूचछा....

मानव ने चाची की बात का जवाब नही दिया.. कुच्छ और ही छेड़ दिया..," मैं चाहता हूँ कि मीनू कुच्छ दिन हर कॉल अटेंड करे.. शायद 'वो' मीनू से ही बात करना चाहता है...!"

मानव की इस बात पर हम सब आस्चर्य से उसकी और देखने लगे... चाचा से रहा ना गया..," ये आप किसके बारे में बात कर रहे हैं इनस्पेक्टर साहब...? कौन बात करना चाहता है मीनू से? और क्यूँ?" मुझे तो लगता है मेरी बेटी बिना वजह किसी उलझन में फँस जाएगी...."

"ऐसा कुच्छ नही होगा अंकल जी.. मैं हूँ ना सब संभालने के लिए... आप किसी बात की चिंता ना करें...!" मानव ने भरोसा सा दिलाते हुए कहा...

"पर ये 'वो' है कौन? और आप हमारे घर के फोन की 'रेकॉर्डिंग' ऐसे कैसे करवा सकते हैं...?" चाचा बुरा सा मान कर बोले...

"अंकल जी... मैने आपके फोन को नही.. 'उस' फोन को सुर्विल्लंसे पर लगवाया है.. जिसस'से आपके घर ब्लॅंक कॉल्स आ रही हैं... मुझे तो 'ये' बहुत बाद में पता चला कि 'वो' आपके घर भी फोन करता है...!"

"कौन 'वो'.. कुच्छ बताओ तो सही इनस्पेक्टर साहब.. आप तो यूँही हमें अंधेरे में रखे हुए हो...!" चाचा ने फिर पूचछा....

"सॉरी अंकल जी.. अभी मैं कुच्छ नही बता सकता.. इस'से पोलीस की जाँच प्रभावित हो सकती है... और भी कुच्छ बहुत सी बातें पूच्छनी थी.. पर आपके रहते मैं ऐसा नही कर सकता... कल को अगर मीनू के साथ कुच्छ हो गया तो आप खुद ही ज़िम्मेदार होंगे..." मानव ने एक एक बात पर ज़ोर देते हुए कहा....

"ययए.. ये आप क्या कह रहे हैं इनस्पेक्टर साहब.. मीनू को क्यूँ होगा कुच्छ.. आप सॉफ सॉफ क्यूँ नही बताते..." चाचा के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई...! यही हाल कुच्छ चाची का था.....

"आप कुच्छ पता लगने देंगे तभी तो... देखिए अंकल जी.. मैं भी एक इज़्ज़तदार परिवार का बेटा हूँ और भली भाँति समझता हूँ कि लड़की की इज़्ज़त 'क्या' होती है.. यही बात मैने पहले दिन भी आपको कही थी.. अगर मुझे परवाह ना होती तो मैं बार बार यहाँ अकेले में बात करने की जहमत नही उठाता.... बाकी आपकी मर्ज़ी है...." मानव ने सपस्ट किया...

"ठीक है बेटा..." चाचा की टोन अचानक बदल गयी... हमें तो वैसे भी खेत में जाना था... 'ये' अंजू तो यहाँ रह सकती है ना?" चाचा खड़े होकर बोले...

मानव ने नज़र भर कर मेरी ओर देखा और फिर चाची के पिछे खड़ी होकर उसको ताक रही मीनू की ओर..," हां... ये रह सकती है.. !"

तभी पिंकी चाय लेकर आ गयी....

"जा बेटी.. 3 कप बाहर गाड़ी में दे आ और तू उपर जाकर पढ़ ले... मैं और तेरी मम्मी खेत में जा रहे हैं...." चाचा ने कहा और चाची के साथ अनमने मंन से बाहर निकल गये.....

चाचा बाहर जाते ही वापस आए और रूखे मॅन से मीनू की ओर देखते हुए बोले," देख मीनू! मुझे नही पता कि क्या बात है...? पर अगर कुच्छ ऐसी वैसी बात हुई तो मैं तो जीते जी ही मर जाउन्गा.. इनस्पेक्टर साहब जो पूच्छना चाहते हैं.. तू खुल कर सब बता दे इनको.. मैं इस रोज़ रोज़ के तमाशे से तंग आ गया हूँ..." चाचा ने कहा और फिर मेरी और मूड कर बोले..,"तू यहीं रहना बेटी.. ठीक है?"

"जी चाचा जी.. आप फिकर ना करें.." मैने भोली सूरत बना कर कहा...

"ठीक है.. अच्च्छा इनस्पेक्टर साहब!" चाचा ने दोनो हाथ जोड़े और बाहर निकल गये....

"उफफफ्फ़..." मानव ने चाचा के जाते ही गहरी साँस ली...,"अब मैं करूँ भी तो क्या करूँ.. अंकल के सामने मैं कुच्छ बोलना नही चाहता और 'वो' जाने क्या का क्या समझ रहे हैं...!"

"कौन करता है फोन..? हमारे घर..." मीनू ने भी लगभग मानव के ही अंदाज में पूचछा.... तभी पिंकी बाहर से आई और मेरे पास आकर खड़ी हो गयी...

"सोनू!" मानव ने नाम लेकर हमारे होश ही उड़ा दिए...

"सोनू?.. कहाँ है वो? .... और आपको कैसे पता.. ? उसका तो कुच्छ आता पता ही नही है.. घर वाले तो उसकी गुमसुद्गी की रिपोर्ट भी दर्ज़ करने गये थे...." मीनू ने असमन्झस से कहा....

"हूंम्म्म... देखो.. बताना तो खैर तुम्हे भी नही चाहिए था मुझे.. पर क्यूंकी मुझे तुम्हारी मदद की ज़रूरत है.. इसीलिए मैं चाहता हूँ कि तुम अब तक की पूरी कहानी अच्छे से समझ लो.... पर 'ये' बात अभी किसी को पता नही चलनी चाहिए... समझ गयी हो ना?"

मानव की बात पर 'हामी' भरने वाली हम तीनो में से 'पिंकी' सबसे पहली थी..,"जी.. मैं किसी को कुच्छ नही बताउन्गि!"

"तुम यहाँ मत रूको..! उपर जाकर अपनी पढ़ाई कर लो!" मानव ने संजीदा लहजे में कहा तो पिंकी अपना सा मुँह ले कर उपर चली गयी.....

"हाँ.. बैठ जाओ आराम से...!" मानव ने हम दोनो को कहा तो हम उस'से दूर बिछि चारपाई पर बैठ कर उत्सुकता से इनस्पेक्टर की ओर देखने लगे....

"वो.. दरअसल.. तुमने जो नंबर. सोनू का बताया था.. मैने उस नंबर. समेत मैने 2-3 नंबर. शक के आधार पर सुर्विल्लंसे पर लगवा दिए थे... स्कूल आने से ठीक एक दिन पहले अचानक मुझे पता चला कि उस नंबर. से किसी 'लड़की' ने किसी लड़के से बात की हैं...!" मानव ने ये कहते हुए हम दोनो को गौर से देखा तो मेरी तो घिग्गी ही बँध गयी थी....

मानव थोडा रुक कर फिर बोलने लगा," मैने एक बार फिर वो नंबर. ट्राइ किया तो फोन तुम्हारे ही गाँव के 'संदीप' ने उठाया.. उसी से मुझे पता चला कि फोन उसके भाई 'ढोलू' का है... तब मुझे उम्मीद बँध गयी थी कि कहानी के पैइंच यहीं से खुल सकते हैं... पर 'वो' ज़्यादा कुच्छ बता नही पाया.. मैने उसको जानबूझ कर कुच्छ जिकर भी नही किया था... फिर भी.. पोलीस के पहुँचने से पहले ही 'ढोलू' घर से रफूचक्कर हो चुका था....

"अगले दिन शाम को उस 'मास्टर' से मैने 'ढंग' से पूच्छ ताच्छ की तो उसने क़ुबूल लिया कि उसने ढोलू को बोलकर तरुण और सोनू को डरा धमका कर 'वो' क्लिप डेलीट करवाने को कहा था.. पर 'वो' उनके मर्डर की बात से सॉफ मना कर रहा है... उसके अनुसार सौदा उसने केवल '5000' में सेट किया था... अब अगर उसकी 'ये' बात अगर सच है तो इतना भी तय है कि '5000' के लिए कोई किसी का मर्डर नही करेगा... मैने अपने सामने ही उसको 'ढोलू' से उसी के नंबर. से बात करने को कहा... उस वक़्त ढोलू ने सॉफ सॉफ कहा कि 'इस' मामले में उसका कोई हाथ नही है और उस रात तरुण का खून होने के बाद तो उसने 'इस' पंगे से अपनी टाँग ही खींच ली थी...

उस वक़्त मैने 'मास्टर' को जाने की कहकर उसकी निगरानी की ज़िम्मेदारी एक पोलीस वाले को सौंप दी... ढोलू का अब तक कुच्छ पता नही है.. ऐसा लग रहा है कि 'वो' कुच्छ ज़्यादा ही शातिर बन'ने की कोशिश कर रहा है.. अपने नंबर. से अब 'वो' गिने चुने नंबर.स पर ही बात कर रहा है, जिनमें से ज़्यादातर क्रिमिनल्स टाइप के लोग हैं और उनका कोई पता ठिकाना भी नही है.... नंबर. भी सारे अनाप शनाप पते ठिकानो पर लिए गये हैं....ऐसे ही नंबर.स को ट्रेस करते करते मैं 'सोनू' तक पहुँच गया हूँ.. जो आज कल तरुण का मोबाइल यूज़ कर रहा है...!"

"ओह्ह... इसका मतलब..." मीनू हतप्रभ सी होकर बोली,"सोनू ने तरुण का..? ... पर आपको ये कैसे पता चला कि 'वो' तरुण का मोबाइल यूज़ कर रहा है.. आपने उसको पकड़ लिया है क्या?"

"वो सब टेक्निकल बातें होती हैं.. तुम छ्चोड़ो.. पर समस्या यही है कि इतना सब कुच्छ पता चलने के बाद भी मेरे हाथ अब तक कुच्छ नही लगा है.. समस्या यही है कि ढोलू और सोनू लगातार जगह बदल रहे हैं और अपने 'वो' नंबर.स बहुत कम यूज़ करते हैं.. 'वो' या तो आपस में बात करते हैं.. या फिर 'सोनू' तुम्हारे घर फोने करने के लिए 'उसको' ऑन करता है....

"ओह्ह.. पर 'वो' हमारे घर पर फोन क्यूँ करता है..." मीनू डर से काँप सी गयी थी...

"शायद उसके पास अभी भी कुच्छ है.. तुम्हे ब्लॅकमेल करने के लिए!" मानव गहरी साँस लेकर बोला...

मीनू का चेहरा सन्न रह गया.. कुच्छ देर रुक कर वो अटक अटक कर बोली..," पर आपको कैसे पता.. 'वो' सोनू ही है...?"

"मैने उन्न दोनो की बातें सुनी हैं.. फोन पर.. इसीलिए.. पर जब 'वो' तुम्हारे घर फोन करता है तो कुच्छ नही बोलता.. मुझे पता था कि यहाँ से 'आंटी जी' ही हर बार फोन उठाती हैं.. पर मैने जान बूझ कर तुमसे पूचछा था...." मानव ने कहा...

"अब मैं क्या करूँ...?" मेनू रुनवासी होकर बोली...

"कुच्छ ज़्यादा नही.. सिर्फ़ उस'से बात करो और पूच्छो कि 'वो' क्या चाहता है.. फिर देखते हैं क्या रास्ता निकल ता है.... " मानव मीनू को समझाते हुए बोला...

मीनू से कुच्छ कहा नही गया.. अचानक उसने सुबकना शुरू कर दिया और जल्द ही उसकी सुबाकियाँ 'मोटे मोटे' आँसुओं वाली बिलख में बदल गयी....

"तुम पागल हो क्या? ऐसे क्यूँ कर रही हो?" मानव खड़ा होकर उसके पास आने को हुआ.. फिर जाने क्या सोचकर बीच रास्ते में ही ठिठक गया...,"अब.. बस भी करो मीनू... मैं सब ठीक कर दूँगा..."

पर मीनू पर उसकी शंतवना का 'इतना' सा भी असर नही हुआ... वा यूँही बिलखती हुई बोली," मम्मी पापा का क्या होगा..? अगर उनको इस बारे में...... कुच्छ भी पता चला तो..... 'वो' तो जान दे देंगे अपनी... मैं क्या करूँ...अब?"

"ओफफो.. अब बस भी करो.. उनको कुच्छ पता नही लगेगा... बस एक बार तुम ये पता करो कि 'वो' चाहता क्या है..? जहाँ तक मेरा ख़याल है.. 'वो' तुम्हे कहीं ना कहीं मिलने को कहेगा.. और समझ लो तभी हमारा काम हो जाएगा....!" मानव आकर उसके पास बैठा तो मीनू थोड़ी सी मेरी तरफ खिसक आई....," पर मैं उस'से बात करूँगी.. तब तो घर वालों को पता लग ही जाएगा ना!"

"उसका भी इलाज है.. तुम घर वाले फोन से नही... इस नंबर. से बात करोगी..." मानव ने अपनी जेब से एक मोबाइल निकाला और मीनू को दे दिया... मैं तो मानव की इस इनायत का मतलब तुरंत समझ गयी थी... मीनू पता नही कुच्छ समझी कि नही.. उसने मोबाइल चुपचाप हाथ में पकड़ लिया और मानव की ओर देखने लगी..,"पर.. इस नंबर. का उसको कैसे पता लगेगा.. वो तो घर पर ही फोन करेगा ना...?"

" इस मोबाइल में मैने उसका नंबर. फीड कर रखा है... उसको शक नही होना चाहिए कि नंबर. मैने तुम्हे दिया है.. उसको बोलना कि तुम्हारे घर आइडी कॉलर है.. उसी से तुमने ये नंबर. निकाला.... और अपने मोबाइल से ये जान'ने के लिए उसको फोन किया है कि 'वो' कौन है... एक बार तुम उस'से बात कर लोगि तो वो दोबारा कभी 'घर वाले नंबर. पर फोन नही करेगा..." मानव ने उसको दिलासा दी....

"पर उसको तो पता है कि मेरे पास मोबाइल नही है..." मीनू ने भोली सूरत बना कर कहा....

"तुम शकल से तो बड़ी समझदार लगती हो.."मानव हंसते हुए बोला," मोबाइल लेना कोई बड़ी बात है क्या?"

"ठीक है..." मीनू ने अपनी आँखें पौंचछते हुए मानव को देख कर कहा...

"ओके.. अभी मैं चलता हूँ...!" कहकर मानव खड़ा हो गया.. वह बाहर निकलने को ही था कि तभी वापिस मुड़ा..,"इसमें मेरा भी नंबर. सेव कर दिया है मैने.. थोड़ा मेरा भी ख़याल रखना.." वह खिलखिलाया और बाहर चला गया....

मीनू कुच्छ देर तक सुंदर से 'मोबाइल' को निहारती रही और फिर मुझे देख कर बोली," पागल है ना ये लंबू..!"

क्रमशः..............................
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10-22-2018, 11:32 AM,
#40
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--28

गतान्क से आगे.............

"क्यूँ? पागल क्यूँ कह रही हो दीदी..?" मैने उसके खिले हुए चेहरे को देख कर पूचछा...

"और नही तो क्या! पागल ही है.. कितना अच्च्छा मोबाइल दे गया... फ्री में.. हे हे हे.." मीनू खुश होकर बोली...

तभी पिंकी नीचे आ टाप्की.. शायद 'वो' गाड़ी' के चलने की आवाज़ सुनकर नीचे आई होगी.. मीनू के हाथ में मोबाइल देख कर उसने आस्चर्य से आँखें फाड़ते हुए अपने मुँह पर हाथ रख लिया..,"हाआआआआआ.... दीदी....!!! दिखाना एक बार..!"

"क्या?" मीनू ने पिंकी की नज़रों की सीध जब मोबाइल पर बँधी दिखी तो उसने तुरंत मोबाइल वाला हाथ अपनी कमर के पिछे छिपा लिया.. "नही.. ये तेरे काम की चीज़ नही है!"

"दिखा दो ना प्लीज़.. सिर्फ़ एक बार दीदी..!" पिंकी गिड़गिदते हुए बोली...

"बोला ना तेरे काम का नही है.... चुपचाप अपना काम कर'ले!" मीनू ने तपाक से अपना पिच्छला जवाब दोहरा दिया...

प्यार से काम ना बनते देख पिंकी ने गिरगिट की तरह रंग बदल लिया...,"ठीक है फिर.. आने दो मम्मी को..!" पिंकी आँखें तरेर कर बोली...,"मैं तो उनके आते ही बोल दूँगी कि 'लंबू' मोबाइल देकर गया है आपकी 'शरीफ' सी बेटी को.. हाआँ!"

"ले.. मर ले...!" मीनू ने मुँह चढ़ा कर मोबाइल पिंकी के हाथ में थमा दिया..," तू तो हमेशा उल्टा ही सोचती है.. उन्होने फोन किसी खास काम के लिए दिया है.. एक दो दिन के लिए.. समझी!"

मोबाइल हाथ में लेते ही पिंकी का चेहरा खिल गया.. वह मीनू की बातों को अनसुना करके मोबाइल के बटन दबाने लगी.. कुच्छ देर यूँही मोबाइल में मस्ती से डूबी रहने के बाद वह अचानक खिलखिला उठी...,"हा हा हा हा हा... देखो अंजू.. क्या लिखा है..!" कहकर उसने मीनू से बचाकर मोबाइल का स्क्रीन मेरी आँखों के सामने कर दिया...

मेरी समझ में आते ही मेरी भी हँसी छ्छूट गयी.. कॉंटॅक्ट लिस्ट में दो ही नाम थे.. एक 'स' करके था और दूसरा 'लंबू!' मीनू ने तुरंत उसके हाथ से मोबाइल झपट लिया और 'लंबू' लिखा देख 'वह' खिज सी गयी..," तुम सबने तो मेरा 'मज़ाक' ही बना लिया.."

अगले ही पल मीनू सीरीयस हो गयी..," 'स' तो सोनू ही होगा... है ना?"

"हां.. वही होना चाहिए.. मिला कर देखो ना अभी.." मैने कहा...

"कौन सोनू दीदी?" पिंकी भी हमारा चेहरा देख कर सीरीयस होते हुए बोली...

" मैं बाद में सब बता दूँगी.. एक मिनिट चुप हो जा..." मीनू ने कहा और हम दोनो को चुप रहने का इशारा करने के बाद मीनू ने 'स' वाले नंबर. पर कॉल कर दी.. हम दोनो शांत होकर मीनू के चेहरे की ओर देखने लगे...

"काट रहा है बार बार...!" मीनू ने तीन चार बार ट्राइ करने के बाद हमें देख कर कहा....

"अंजान नंबर. होने की वजह से नही उठा रहा होगा दीदी.. आप एक बार घर वाले नंबर. से कॉल करके कह दो..." मैने आइडिया दिया...

"हाँ.. ये ठीक रहेगा.. पर मैं बोलूँगी क्या?" मीनू का चेहरा उतर गया...

"आपको क्या बोलना है? आप बस बता देना कि आप मीनू हो.. बाकी तो वो खुद ही बोल लेगा जो बोलना है... और हाँ.. ये बताना मत भूलना कि आपने उसका नंबर. कहाँ से लिया है.. इनस्पेक्टर ने समझाया था ना आपको!" मैने कहा...

"हाँ.. तुम यहीं रूको.. मैं उपर से उसको फोन करके आती हूँ..." मीनू बोलकर उठी ही थी कि मोबाइल पर कॉल आ गयी.. मीनू ने हड़बड़ा कर मोबाइल को देखा और बोली..,"पता नही किसका है?"

"उसी का होगा दीदी.. दूसरे नंबर. से किया होगा.. जानबूझ कर...!" मैने उच्छल कर कहा...

"ष्ह्ह्ह्ह्ह..." मीनू ने एक बार फिर हमें चुप रहने को कहा और कॉल रिसीव कर ली..

"आप कौन?" मीनू ने सामने वेल की आवाज़ सुनते ही पूचछा.... हमें उधर से आ रही आवाज़ सुनाई नही दे रही थी...

"जी..? सुनील तो यहाँ कोई नही है....! आप कौन बोल रही हैं..?"

"हाँ.. रॉंग नंबर. ही लग गया होगा...!" मीनू ने आगे कहा...

"मैं तो मीनू...ओह्ह्ह..." अपना नाम बताने के बाद मीनू को लगा कि उसको नाम नही बताना चाहिए था.. उसने तुरंत फोन काट दिया..," कोई लड़की किसी सुनील को पूच्छ रही थी... मैने अपना नाम बता दिया खंख़्वाह..."

इस'से पहले हम दोनो में से कोई प्रतिक्रिया देती.. एक बार फिर मोबाइल की घंटी बज उठी... इस बार नंबर. देख कर मीनू चौंक गयी...,"सोनू का है.. ! चुप हो जाओ दोनो..!" मीनू ने कहा और फोन उठा लिया...,"हेलो...!"

"ज्जई.. आप कौन बोल रहे हो..?" मीनू ने इस बार समझदारी से काम लिया...

"हाँ.. फोन तो मैने ही किया था.. पर आपने हमारे घर वाले नंबर. पर कॉल की हुई हैं.. इसीलिए मैं..." मीनू बोलते बोलते चुप हो गयी...

"हां.. म्मे.. मीनू बोल रही हूँ.. तुम कौन हो..?"

अगले ही पल मीनू की खड़े खड़े टांगे काँपने लगी..,"प्पर.. तुम हो कौन?"

"नही.. सब झूठ है.. तुम हो कौन..?" अचानक मीनू के चेहरे पर भय सपस्ट नज़र आने लगा था...

"ट्तुम.. प्लीज़ ऐसी बातें मत करो...म्मै.. मैं.." मीनू ने अपनी बात पूरी किए बिना ही फोन काट दिया... और चारपाई पर बैठ कर अपना चेहरा घुटनो में छुपा कर रोने लगी... फोन उसने चारपाई पर पटक दिया...

"क्या हुआ दीदी..? कौन था..?" हम दोनो उठकर मीनू के पास चले गये...

"पता नही...." मीनू सुबक्ते हुए ही बोली..," नाम नही बता रहा.."

"पर आप रो क्यूँ रही हो..?" मैने मीनू की बाँह पकड़ कर प्यार से पूचछा...

"ववो.. गंदी गंदी बातें बोल रहा है.. मेरे बारे में..!" और मीनू बिलख उठी...

"बस करो आप.. आप ऐसा करोगे तो इनस्पेक्टर वाला काम कैसे होगा... हमें 'यही' तो पता करना है कि 'वो' चाहता क्या है...!" मैने बोला ही था कि एक बार फिर उसी नंबर. से फोन आ गया...

"आप कैसे भी करके उस'से बात तो करो...!" मैने मोबाइल उठाकर मीनू को देने की कोशिश की...

"नही.. मुझसे ऐसी बात सुनी नही जाएँगी.. मैं नही कर सकती उस'से बात...!" मीनू ने फोन पकड़ने से इनकार कर दिया....

"एक काम करें दीदी! मैं 'मीनू' बनकर बात करूँ इस'से..." मैने कहा..

"हाँ... ठीक है.. तू ही करले बात!" मीनू की जान में जान आई...

मैं फोन लेकर कमरे के कोने की तरफ चली गयी.. मैं फोन मिलाने ही वाली थी की उसी का फोन आ गया.. मैने कॉल अटेंड करके गला सॉफ किया," हेलो!"

"कौन?" उधर से आवाज़ आई...

"म्मै ही हूँ.. मीनू!" मैने कहते हुए मीनू के चेहरे की और देखा.. पिंकी ने मीनू के गलें में बाँह डाल रखी थी और दोनो साँस रोके मुझे ही देख रही थी...

"फोन क्यूँ काट दिया था साली?" उधर से मुझे आवाज़ सुनाई दी...

"ववो.. आप.. वो.. कोई आ गया था नीचे..!" मैने धीमे स्वर में जवाब दिया...

"अभी किधर है तू?" उसने पूचछा..

"घर पर ही हूँ.. नीचे!" मैने कहा...

"और बाकी?"

च.. मम्मी पापा खेत में गये हैं.. एम्म पिंकी उपर है.." मेरे मुँह से मीनू निकलते निकलते रह गया..

"ये नंबर. किसने दिया..? कोई नया यार बना लिया क्या?" मुझे उसकी बात के साथ ही एक लड़की के हँसने की आवाज़ आई...

"प्प.. पापा लाए हैं.. मेरे लिए...!" मैने कहा..

"चलो ठीक ही किया.. तेरे जैसे 'माल' के पास तो मोबाइल होना ही चाहिए... 'वो' तेरी चूत की फोटो है मेरे पास.. क्या मक्खन मलाई जैसा 'पीस' है...! एक दम तेरे होंटो के जैसी है..." उसने कहा तो मेरी नज़रें एक पल के लिए मीनू के 'होंटो' पर ठहर गयी...

"क्कऔन हो तुम?" मैने पूचछा...

"तू छ्चोड़ इस बात को.. ये बता कब दे रही है?" उसने मेरे सवाल को नज़रअंदाज करते हुए पूचछा...

"क्या?" मैने अंजाने में ही पूच्छ लिया....

"तेरी चूत, और क्या साली? कब से मेरा लौदा तेरी चूत को चीरने के लिए फड़फदा रहा है.. रोज़ तेरी चूत की फोटो देख कर ही 'मूठ' मारता हूँ.. अब ज़्यादा बना मत.. बता कब दे रही है...?"

"म्‍मैइन.. नही... तुम..!" उसकी रंगीन बातें सुन कर मेरी 'योनि' सच में ही चिकनी हो गयी थी.. मैं हड़बड़कर कुच्छ और ही बोलती.. इस'से पहले ही मेरे कानो में उसकी कड़क आवाज़ मुझे सुनाई दी..

"चूतिया मत बना अब... तेरी चूत और गांद दोनो मारनी हैं मुझे... अगर इनकार करेगी तो तुझे 'बाज़ारू' बना दूँगा मैं... मेरे पास 'तेरी चूत' के फ़ोटॉं हैं.. एक मैं तेरा चेहरा भी सॉफ नज़र आ रहा है... अब तेरी मर्ज़ी है.. 'बोल' क्या चाहती है तू.. यहाँ तो सिर्फ़ मुझसे गांद मरवाने में तेरा काम चल रहा है.. अगर तू नही मानी तो 'गाँव के सभी लड़के तेरी चूत देख देख कर 'मूठ' मारेंगे और 'बुड्ढे' उस पर थूकेंगे.. हा हा हा... समझ में आई बात?"

"ववो.. म्‍मैइन.. थोड़ी देर बाद फोन करूँगी..!" मैने आनमने मंन से मीनू और पिंकी को देख कर कहा..

"सुन.. मेसेज कर देना.. खाली होते ही.. फोन मत करना इस पर.. और किसी भी नंबर. से फोन करूँ.. उठा कर देख लेना... अच्छि तरह सोच कर बता देना.. बाकी तुझे ये कहने की तो ज़रूरत ही नही कि किसी को बताना मत.. तू खुद समझदार है..!" उसने कहा और फोन काट दिया...

"क्या कह रहा था 'वो'?" मीनू ने डरते डरते पूचछा...

"कुच्छ नही.." मैने पिंकी की और देखा और बोली..,"बाद में बताउन्गि...!"

"गंदा बोल रहा था ना...?" मीनू ने मरी सी आवाज़ में पूचछा...

"हां.. बाद में फोन करने को कहा है मैने...!" मैने कहा...

"तू ही कर लेना प्लीज़ बात.. मुझसे नही होंगी.. 'काम' बताया उसने क्यूँ फोन कर रहा है...?" मीनू के मंन में पहले ही हड़कंप सा मचा हुआ था...

"हां..." मैने मायूसी से उसकी और देखते हुए कहा..," उसके पास 'आपके' फोटो हैं...!"

मीनू सहम सी गयी..,"क्कऔन है 'वो'?"

"बताया ही नही उसने.. मैने पूचछा तो था...!" मैने कहा...

"वो हरमज़दा 'सोनू' ही होगा..." मीनू ने मंन ही मंन उसको कोसते हुए कहा...

"पर उसके साथ तो 'कोई' लड़की भी है...?" मैने कहा...

"होगी कोई.. कुतिया!"

"अब मुझे भी बताओ ना क्या बात है?" पिंकी छ्ट-पटाते हुए सी बोली....

"चलो.. उपर चलते हैं..." मीनू नीरस चेहरा लिए उठ खड़ी हुई और बहके बहके से कदमों से उपर चढ़ने लगी.. हम भी उसके पिछे पिछे हो लिए... मैं सोनू से दोबारा बात करने के लिए मरी जा रही थी.. पर 'अब' मैं सारी बातें अकेले में करना चाहती थी.....

हम तीनो ने मिलकर सारी स्थिति पर विचार करने के बाद यही फ़ैसला किया कि हमें मानव को सारी बात बता देनी चाहिए.. पर मीनू ने तब तक ऐसा नही किया जब तक हम उसको अकेला छ्चोड़ कर नीचे नही आ गये... हमारे नीचे आने के करीब 15 मिनिट बाद वह भी नीचे आ गयी.. मानव से बात करने के बाद उसमें हल्की सी हिम्मत आ गयी थी..,

" उसने कहा है कि मैं अपनी तरफ से उसके बारे में जान'ने की जल्दबाज़ी ना दिखाउ.. उसकी सारी बातें सुनू.. और अगर वह मिलने के बारे में कहे तो ना-नुकुर करूँ.. ताकि उसके मंन में किसी तरह का शक पैदा ना हो... एक दो दिन तक ऐसे ही चलने दूँ.. उसने कहा है कि 'वो' इन्न एक दो दिन के अंदर ही उसको पकड़ने की पूरी कोशिश करेगा..."

"पर दीदी, आपको ये भी तो बताना चाहिए था कि उसने उस मोबाइल पर फोन करने से मना किया है..!" मैने कहा...

"हां.. मैने बता दिया.. कोई दिक्कत नही है.. पर उसने बोला है कि हम इस फोने से ही बात करें बस!" मीनू ने जवाब दिया...

"आपने ये बताया की फोन पर मैं बात करूँगी.. आपकी जगह?" मैने उत्सुकता से पूचछा...

"नही.. मैने ज़रूरी नही समझा.. इस'से क्या फ़र्क़ पड़ता है.. 'वो' तो तुम्हे ही 'मीनू' समझ रहा है ना..." मीनू ने कहा तो मैने स्वीकृति में सिर हिलाया..,"हां.. ये तो है.. "

"शिखा के घर चलें पिंकी..?" मैने पिंकी से पूचछा...

"नही.. और तुम्हे भी नही जाना!" पिंकी ने मुझ पर अधिकार सा जताते हुए बोला.. बड़ी प्यारी लग रही थी वो ऐसा बोलते हुए...

"पर क्यूँ? शिखा आ तो गयी है..." मैने फिर कहा...

"मैने बोल दिया ना.. उसको काम होगा तो वो खुद आ जाएगी.. हम नही जाएँगे ऐसे 'गंदे' लोगों के घर...!" पिंकी ने तपाक से जवाब दिया...

"ठीक है.. मैं घर जा रही हूँ.. रात को आउन्गि..!" मैने कहा और उठ खड़ी हुई...

"मैं भी चालूंगी..!" पिंकी ने तुरंत कहा...

"अभी एक पेपर बाकी है पिंकी.. थोड़ा बहुत तो पढ़ ले...!" मीनू ने मुझे मोबाइल पकड़ते हुए कहा....

"कल तो फिज़िकल का पेपर है दीदी.. उसमें भी क्या पढ़ना!.." पिंकी ने कहा और मेरा हाथ पकड़ कर खींच लिया..,"चलो!"

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