Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
10-22-2018, 11:24 AM,
#11
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--9

गतांक से आगे.......................

अगले दिन मैं चुप चाप उठकर घर चली आई.. मुझे पूरा विश्वास था कि तरुण अब नही आने वाला है.. फिर भी मैं टूवुशन के टाइम पर पिंकी के घर जा पहुँची.. पिंकी चारपाई पर बैठी पढ़ रही थी और मीनू अपने सिर को चुन्नी से बाँध कर चारपाई पर लेटी थी...

"क्या हुआ दीदी? तबीयत खराब है क्या?" मैने जाते ही मीनू से पूचछा...

"इनसे बात मत करो अंजू! दीदी के सिर में दर्द है!" पिंकी ने मुझे अपनी चारपाई पर बैठने की जगह देते हुए कहा.. उसका मूड भी खराब लग रहा था..

"हुम्म.. अच्च्छा!" मैने कहा और पिंकी के साथ बैठ गयी," आज पढ़ाने आएगा ना तरुण?"

पिंकी ने चौंकते हुए मेरे चेहरे को देखा.. मीनू अचानक बोल पड़ी," क्यूँ? आता ही होगा! आएगा क्यूँ नही.. तुमसे कुच्छ कहा है क्या उसने?"

"नही.. मैं तो यूँही पूच्छ रही हूँ.." मैं भी जाने कैसा सवाल कर गयी.. जैसे तैसे मैने अपनी बात को सुधारने की कोशिश करते हुए कहा," आज पढ़ाई का मंन नही था.. इसीलिए पूच्छ रही थी..."

"अब भी पढ़ाई नही की तो मारे जाएँगे अंजू! 2 दिन तो रह गये हैं.. एग्ज़ॅम शुरू होने में.. मुझे तो ऐसे लग रहा है जैसे कुच्छ भी याद नही.. हे हे.." पिंकी ने कहा और फिर कुच्छ सोच समझ कर बोली," दीदी.. अब मना ही कर देते हैं उसको.. अब तो हमें खुद ही तैयारी करनी है.. क्यूँ अंजू?"

"हुम्म.." मैने सहमति में सिर हिलाया.. मुझे पता तो था ही कि अब वो वैसे भी यहाँ आने वाला है नही...

"पिंकी!.. ज़रा चाय बना लाएगी.. मेरे सिर में ज़्यादा दर्द हो रहा है..." मीनू ने कहा...

"अभी लाई दीदी.." पिंकी ने अपनी कताबें बंद की और उपर भाग गयी...

पिंकी के जाते ही मीनू उठ कर बैठ गयी," एक बात पूछू अंजू?"

"आहा.. पूच्छो दीदी!" मैने अचकचते हुए जवाब दिया...

"वो.. देख.. मेरा कुच्छ ग़लत मतलब मत निकालना... तुमने तरुण को कभी अकेले में कुच्छ कहा है क्या?" मीनू ने हिचकते हुए पूचछा...

"म्म..मैं समझी नही दीदी!" मैने कहा..

"देख.. मैं तुझसे इस वक़्त अपनी छ्होटी बेहन मान कर बात कर रही हूँ.. पर हिचक रही हूँ.. कहीं तुम्हे बुरी ना लग जायें.." मीनू ने कहा...

"नही नही.. बोलो ना दीदी!" मैने प्यार से कहा और उसके चेहरे को देखने लगी...

मीनू ने नज़रें एक तरफ कर ली," तू कभी उस'से अकेले में.. लिपटी है क्या?"

"ये क्या कह रही हो आप..?" मुझे पता था कि वो किस दिन के बारे में बात कर रही है.. मैं मंन ही मंन कहानी बनाने लगी...

"देख.. मैने पहले ही कहा था कि बुरा मत मान जाना.. मैने सुना था.. तभी पूच्छ रही हूँ.. तुझे अगर इस बारे में बात नही करनी तो सॉरी.." मीनू अब सीधी मेरी ही आँखों में देख रही थी...

"नही दीदी.. दरअसल.. एक दिन.. तरुण ने ही मेरे साथ पढ़ते हुए ऐसा वैसा करने की कोशिश की थी.. मुझे बहलकर.. पर मैने सॉफ मना कर के उसको धमका दिया था.. आपसे किसने कहा...?' मैने बड़ी सफाई से सब कुच्छ तरुण के माथे मढ़ दिया....

मेरे मुँह से ये सुनते ही मीनू की आँखों से अवीराल आँसू बहने लगे.. अपने आँसुओं को पौंचछति हुई वह बोली," तू बहुत अच्छि है अंजू.. कभी भी उस कुत्ते की बातों में मत आना.. " कहकर मीनू रोने लगी...

"क्या हुआ दीदी? मैने चौंकने का अभिनय किया और उसके पास जाकर उसके आँसू पौंच्छने लगी," आप ऐसे क्यूँ रो रही हैं?"

मेरे नाटक को मेरी सहानुभूति जानकार मीनू मुझसे लिपट गयी," वो बहुत ही कमीना है अंजू.. उसने मुझे बर्बाद कर दिया.. ऐसे ही बातों बातों में मुझे बहलकर..." रोते रोते वा बोली...

"पर हुआ क्या दीदी? बताओ तो?" मैने प्यार से पूचछा....

"देख.. पिंकी को मत बताना कि मैने तुझे कुच्छ बताया है.." मुझसे ये वायदा लेकर मीनू ने तरुण से प्यार करने की ग़लती कुबूलते हुए योनि पर 'तिल' देखने की उसकी ज़िद से लेकर कल रात को पिंकी द्वारा की गयी उसकी धुनाई तक सब कुच्छ जल्दी जल्दी बता दिया..

और फिर बोली," अब आज वो मेरे फोटो सबको दिखाने की धमकी देकर मुझे अकेले में मिलने को कह रहा है.. मैं क्या करूँ..?"

अपनी बात पूरी होते ही मीनू की आँखें फिर छलक आई...

"वो तो बहुत कमीना निकला दीदी.. अच्च्छा हुआ मैं उसकी बातों में नही आई.. पर अब आप क्या करेंगी..?" मैने पूचछा...

"मेरी तो कुच्छ समझ... लगता है पिंकी आ रही है.. तू अपनी चारपाई पर चली जा!" मीनू ने कहा और रज़ाई में मुँह धक कर लेट गयी.... मैं वापस अपनी चारपाई पर आ बैठी.. मुझे बहुत अच्च्छा लग रहा था कि मीनू ने मुझसे अपने दिल की बात कही.....

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आख़िरकार वो दिन आ ही गया जिस'से बचने के लिए मैं हमेशा भगवान की मूर्ति के आगे दिए जलाती रहती थी.. उस दिन से हमारे बोर्ड एग्ज़ॅम शुरू थे.. वैसे मैं मंन ही मंन खुश भी थी.. मेरे लिए कितने दिनों से तड़प रहे मेरी क्लास के लड़कों को मेरे दीदार करने का मौका मिलने वाला था... मैने स्कूल की ड्रेस ही डाल रखी थी.. बिना ब्रा के !!!

पिंकी सुबह सुबह मेरे पास आ गयी.. एग्ज़ॅम का सेंटर 2-3 कीलोमेटेर की दूरी पर एक दूसरे गाँव में था.. हमें पैदल ही जाना था.. इसीलिए हम टाइम से काफ़ी पहले निकल लिए..... छ्होटा रास्ता होने के कारण उस रास्ते पर वेहिकल नही चलते थे.. रास्ते के दोनो तरफ उँची उँची झाड़ियाँ थी.. एक तरफ घाना जंगल सा था.. मैं अकेली होती तो शायद दिन में भी मुझे वहाँ से गुजरने में डर लगता...

पर पिंकी मेरे साथ थी.... दूसरे बच्चे भी 2-4; 2-4 के ग्रूप में थोड़ी थोड़ी दूरी पर आगे पिछे चल रहे थे... हम दोनो एग्ज़ॅम के बारे में बातें करते हुए चले जा रहे थे...

अचानक पिछे से एक मोटरसाइकल आई और एकद्ूम धीमी होकर हमारे साथ साथ चलने लगी.. हम दोनो ने एक साथ उनकी और देखा.. तरुण बाइक चला रहा था.. उसके साथ एक और भी लड़का बैठा था.. हमारे गाँव का ही...!

"कैसी हो अंजू?" तरुण ने मुस्कुरकर मेरी और देखा....

"ठीक हूँ.. एग्ज़ॅम है आज!" मैने कहा और रुकने की सोची.. पर पिंकी नही रुकी.. इसीलिए मजबूरन मैं भी उसके साथ साथ चलती रही....

"आओ.. बैठो! छ्चोड़ देता हूँ सेंटर पर..." तरुण ने इस बार मेरी तरफ आँख मारी और मुस्कुरा दिया...

मैने पिंकी की ओर देखा.. उसका चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था.. उसने और तेज चलना शुरू कर दिया... अगर पिंकी मेरे साथ ना होती तो मैं ये मौका कभी ना गँवाती," नही.. हम चले जाएँगे.." मैने कहा.. पिंकी कुच्छ आगे निकल गयी थी...

"अर्रे आओ ना... क्या चले जाएँगे? 2 मिनिट में पहुँचा देता हूँ...!" तरुण ने ज़ोर देकर कहा...

"पर्र.. पर मेरे साथ पिंकी भी है.. चार कैसे बैठेंगे?" मैने हड़बड़कर कहा... अंदर से मैं चलने को तैयार हो चुकी थी... पर पिंकी को छ्चोड़कर..... ना... अच्च्छा नही लगता ना!

"अर्रे किस फूहड़ गँवार का नाम ले रही है.. तुझे चलना है तो बोल..." तरुण ने ज़रा ऊँची आवाज़ में कहा.... मेरे आगे चल रही पिंकी के कदम शायद कुच्छ कहने को रुके.. पर वो फिर चल पड़ी....

"नही.. हम चले जाएँगे..." मैने आँखों ही आँखों में अपनी मजबूरी उसको बताने की कोशिश की...

"ठीक है... मुझे क्या?" तरुण ने कहा और बाइक की स्पीड थोड़ी तेज करके पिंकी के पास ले गया," आए.. तुझे याद है ना मैने क्या कसम खा रखी है..? नाम बदल लूँगा अगर एक महीने के अंदर तुझे... समझ गयी ना!" तरुण ने उसकी तरफ गुस्से से देखते हुए कहा,"और तेरी बेहन को भी तेरे साथ .. तब सुनाना तू प्रवचन... उसके फोटो दिखाउ क्या?"

गुस्से और घबराहट में कंपकँपति हुई पिंकी को जब और कुच्छ नही सूझा तो उसने सड़क पर पड़ा एक पत्थर उठा लिया.. तरुण की बाइक अगले ही पल रेत उड़ाती हुई हवा से बातें करने लगी....

पिंकी गुस्से से पत्थर को सड़क पर मारने के बाद खड़ी होकर रोने लगी.. मैने उसके पास जाते ही अंजान बनकर पूचछा..," क्या हुआ पिंकी? क्या बोल रहा था तरुण? तू रो क्यूँ रही है.. हट पागल.. चुप हो जा.. आज वैसे भी इंग्लीश का एग्ज़ॅम है.. दिमाग़ खराब मत कर अपना...."

उसने अपने आँसू पौन्छे और मेरे साथ साथ चलने लगी.. वो कुच्छ बोल नही रही थी.. मैने भी उसको ज़्यादा च्छेदना अच्च्छा नही समझा.....

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आआहाआ!.. सेंटर पर स्कूल का माहौल देखते ही मेरे अंग फड़कने लगे.... माहौल भी ऐसा की सब खुले घूम रहे थे.. ना किसी टीचर के डंडे का किसी को डर था.. और ना ही सीधे क्लास में जाकर बैठने की मजबूरी... एग्ज़ॅम में अभी एक घंटा बाकी था... लड़के और लड़कियाँ.. 5-5; 7-7 के अलग अलग ग्रूप बना कर ग्राउंड में खड़े बातें कर रहे थे.. जैसे ही मैं पिंकी के साथ स्कूल के ग्राउंड में घुसी.. चार पाँच लड़कों की उंगलियाँ मेरी और उठ गयी..

मुझे सुनाई नही दिया उन्होने क्या कह कर मेरी और इशारा किया.. पर मुझे हमेशा से पता था.. स्कूल के लड़कों के लिए में हमेशा ही पेज#3 की सेलेब्रिटी थी.. इतने दिनों तक मेरे जलवों से महरूम रहकर भी वो मुझे भूले नही थे.. मेरा दिल बाग बाग हो गया...
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10-22-2018, 11:24 AM,
#12
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"आ.. यहाँ बैठते हैं.." मैने पिंकी को ग्राउंड में एक जगह घास दिखाते हुए कहा....

"मुझे एक बार दीपाली से मिलना है.. कुच्छ पूच्छना है उस'से.. एग्ज़ॅम के बारे में... तू यहीं बैठ.. मैं आती हूँ.. थोड़ी देर में...!" पिंकी रास्ते की बातों को भूल कर सामान्य लग रही थी...

"तो मैं भी साथ चलती हूँ ना...!" मैं कहकर उसके साथ चल पड़ी...

"नही अंजू.. तू यहीं बैठ.. तेरे बहाने मैं कम से कम वापस तो आ जाउन्गि!.. वरना सब वहीं बातों में लगा लेंगी... क्या फयडा.. थोड़ी देर पढ़ लेंगे..." पिंकी ने मुझे वहीं बैठ कर उसका इंतज़ार करने को कहा और तेज़ी से मुझसे दूर चली गयी...

मैं वहीं खड़ी होकर स्कूल में पेपर देने आए चेहरों का तिर्छि नज़रों से जयजा लेने लगी... सारे लड़के मेरे स्कूल के नही थे.. शायद बाकी इस स्कूल के होंगे... पर स्कूल के थे या बाहर के.. मेरे आसपास खड़े सब लड़कों की निगाह मुझ पर ही थी...

मुझे हमेशा की तरह अपने यौवन और सौदर्य पर प्यार आ रहा था.. मैं मस्ती में डूबी हुई इधर उधर टहल रही थी की अचानक मेरे पिच्छवाड़े पर एक कंकर आकर लगा... मैं हड़बड़ा कर पलटी.. और अपना चेहरा उठाकर मेरे पिछे खड़े लड़कों की और घूरा.. 3-4 ग्रूप्स में लड़के खड़े थे.. पर एक ग्रूप को छ्चोड़ कर सभी की नज़रें मुझ में ही गढ़ी हुई थी... मैं जब आइडिया नही लगा पाई तो शर्मकार वापस पलटी और घास में बैठ गयी...

बैठते ही मुझे करारा झटका लगा.. मेरी समझ में आ गया कि कोई क्यूँ घास में नही बैठ रहा था...घास के नीचे गीली धरती थी और बैठते ही मैं शर्म से पानी पानी हो गयी........ "उफ़फ्फ़".. मैं कसमसा कर जैसे ही उठी; मेरे पिछे खड़े लड़कों की सीटियाँ बजने लगी.. मेरे नितंबों के उपर से स्कर्ट गीली हो गयी....

उस वक़्त मेरा चेहरा देखने लायक था.. लड़कों की हँसी और सीटियों से घबराकर मैने हड़बड़ाहट में क्लिपबोर्ड को अपने नितंबों पर चिपकाया और वहाँ से दूर भाग आई.. मेरे गाल शर्म और झिझक से लाल हो गये थे.. समझ में नही आ रहा था की बाकी का टाइम कैसे निकालूं... अचानक मेरी नज़र पिंकी पर पड़ी... वो सबसे अलग खड़ी हुई हमारी ही क्लास के एक लड़के से बात कर रही थी.. आनन फानन में मैं भागती हुई उसके पास गयी,"पिंकी!"

दूर से ही मुझ पर नज़र पड़ते ही पिंकी का वैसा ही हाल हो गया जैसे मेरा घास में बैठने पर हुआ था..," आ.. हां.. अंजू.. मैं तेरे पास आ ही रही थी बस.." कहते ही उसने लड़के को इशारों ही इशारों में जाने क्या कहा.. वो मेरे वहाँ पहुँचने से पहले ही उस'से दूर चला गया...

"तू तो कह रही थी कि तुझे दीपाली से मिलना है.. फिर यहाँ संदीप के पास क्या कर रही है तू?" मैं अपना पिच्छवाड़ा भूल कर उसका पिच्छवाड़ा कुरेदने में जुट गयी..

"हाआँ.. नही.. वो.. दीपाली पढ़ रही थी.. फिर ये भी तो क्लास का सबसे इंटेलिजेंट लड़का है.. मैने सोचा.. इस'से...!" पिंकी ने मेरे ख़याल से बात संभाली ही थी.. मुझे मामला कुच्छ और ही लग रहा था...

"कहीं कुच्छ.." मैने उसको बीच में ही रोक कर शरारत से उसकी और देख कर दाँत निकाल कर कहा....

"तू पागल है क्या?" उसने कहा और मैं जैसे ही संदीप को देखने के लिए पिछे घूमी वा चौंक पड़ी," ययए.. तेरी स्कर्ट को क्या हो गया....?"

मुझे अचानक मेरी हालत का ख़याल आया..," श.. मैं घास में बैठ गयी थी पिंकी.. क्या करूँ?" मैं चिंतित होकर बोली....

"ये ले.. मेरी शॉल ओढ़ ले... और इसको पिछे ज़्यादा लटकाए रखना..." पिंकी ने बड़े प्यार से मुझे अपनी शॉल में लपेटा और पिछे से उसको ठीक करते हुए बोली,"अब ठीक है.. पर ध्यान रखना इसका.. उपर नही उतनी चाहिए.. बहुत गंदी लग रही है पिछे से..."

मैं क्रितग्य सी होकर पिंकी को देखने लगी.. कितना स्वाभिमान भरा हुआ था उसके अंदर; अपने लिए भी और दूसरों के लिए भी... पर उस वक़्त तक कभी 'उस' तरह के स्वाभिमान को मैने अपने अंदर कभी महसूस नही किया था....

"एक बात पूच्छों पिंकी..?" मैने उसके चेहरे की और देखते हुए कहा...

"हां.. बोल ना!" पिंकी ने अपने साथ लाई हुई किताब के पन्ने पलट'ते हुए कहा...

"तू संदीप से क्या बात कर रही थी.. मुझे लग रहा है कि तुम्हारा कुच्छ चक्कर है...." मेरे मॅन से खुरापात निकल ही नही पा रही थी....

"हे भगवान.. तू भी ना... ये देख.. ये चक्कर था..." पिंकी ने हल्क से गुस्से से कहा और किताब का एक पेज खोल कर मेरी आँखों के सामने कर दिया..," इस क्वेस्चन की हिन्दी लिखवाई है उस'से.. थोड़ा डिफिकल्ट है.. याद नही हो रहा था.. आजा.. अब पढ़ ले... ज़्यादा दिमाग़ मत चला !"

क्रमशः ..................
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10-22-2018, 11:24 AM,
#13
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बाली उमर की प्यास पार्ट--10

गतांक से आगे.......................

उस समय उसकी बात सुनकर मैं चुप हो गयी.. पर वो कहते हैं ना.. हरियाली के अंधे को हमेशा हरा ही नज़र आता है.. मेरे पेट में उसकी दी हुई सफाई पची नही.. भला एक लड़का और एक लड़की सबसे अलग जाकर अकेले बात कर रहे हों.. और उनमें कुच्छ 'ना' हो.. ये कैसे हो सकता है?.. मैं बैठी बैठी यही सोच रही थी...

वैसे भी संदीप बहुत स्मार्ट था.. लंबा कद और गोरे चेहरे पर हुल्की मूच्च दाढ़ी उस पर बहुत जाँचती थी.. लड़कियाँ उसको देख वैसे ही आहें भरती थी जैसे मुझे देख कर लड़के...

पर सभी का मान'ना था कि वो निहायत ही शरीफ और भला लड़का है.. गाँव भर में ये बात चलती थी कि वो कभी सिर उठा कर नही चलता... स्कूल में देखो या घर में.. हमेशा उसकी आँखें किताबों में ही गढ़ी रहती थी.. लड़कियों की तरफ तो वो ध्यान देता ही नही था.. शायद इसीलिए लड़कियाँ उसको दूर से ही देख कर आहें भर लेती थी बस... कभी कोई उसके पास मुझे नज़र नही आई.. सिर्फ़ आज, इस तरह पिंकी को छ्चोड़ कर....

पर कहने से क्या होता है.. यूँ तो लोग तरुण को भी बहुत अच्च्छा लड़का मानते थे.. पर देख लो; क्या निकला! मुझे विश्वास था की पिंकी और संदीप के बीच कोई लेफ्डा तो ज़रूर है...

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खैर.. एग्ज़ॅम के लिए बेल बजी और हम सीटिंग शीट देख कर अपनी अपनी सीट पर जाकर बैठ गये... मैं एग्ज़ॅम को लेकर बहुत सहमी हुई थी.. इंग्लीश का पेपर मेरे लिए टेढ़ी खीर था.. 3-4 पर्चियाँ बनाकर ले गयी थी.. पर भरोसा नही था उसमें से कुच्छ आएगा या नही...

अचानक संदीप हमारे कमरे में आया और मेरी बराबर वाली सीट पर बैठ गया... मेरी खुशी का कोई ठिकाना ना रहा.. 'अगर ये मदद कर दे तो...' मैने सोचा और उसकी तरफ मुड़कर बोली," कैसी तैयारी है.... संदीप?"

"ठीक है.. तुम्हारी?" उसने शराफ़त से जवाब देकर पूचछा...

"मेरी? ... क्या बटाओ? आज तो कुच्छ नही आता.. मैं तो पक्का फेल हो जाउन्गि आज के पेपर में..." मैने बुरा सा मुँह बनाकर कहा...

"कुच्छ नही होता.. रिलॅक्स होकर पेपर देना... जो क्वेस्चन अच्छे आते हों.. उनका जवाब पहले लिखना... एक्षमिनोर पर इंप्रेशन बनेगा...ऑल दा बेस्ट!" उसने कहा और सीधा देखने लगा...

"सिर्फ़ ऑल दा बेस्ट से काम नही चलेगा..." मैं अब उसका यूँ पीछा छ्चोड़ने को तैयार नही थी....

"मतलब?" उसने अर्थपूर्ण निगाहो से मेरी तरफ देखा....

"कुच्छ हेल्प कर दोगे ना.. प्लीज़..." मैने उसकी तरफ प्यार भरी मुस्कान उच्छलते हुए कहा....

"मुझे अपना पेपर भी तो करना है... बाद में कुच्छ टाइम बचा तो ज़रूर..." उसने फॉरमॅलिटी सी पूरी कर दी....

"प्लीज़.. हेल्प कर देना ना... !" मैने बेचारगी से उसकी और देखते हुए याचना सी की..

इस'से पहले कि वो कोई जवाब देता... कमरे में इनविजाइलेटर्स आ गये.. उनके आते ही क्लास एकदम चुप हो गयी.. संदीप भी सीधा होकर बैठ गया... मैं मन मसोस कर भगवान को याद करने लगी....

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पेपर हाथ में आते ही सबके चेहरे खिल गये.. पर मेरे चेहरे पर तो पहले की तरह ही 12 बजे हुए थे... मैं डिफिकल्ट क्वेस्चन्स की नकल लेकर आई थी.. पर पेपर आसान आ गया... मेरे लिए तो इंग्लीश में आसान और मुश्किल; सब एक जैसा ही था...

"अब तो खुश हो जाओ... पेपर बहुत ईज़ी है.. और लेन्ग्थि भी नही..." मेरे कानों में धीरे से संदीप की आवाज़ सुनाई दी... मैने कुच्छ बोलने के लिए उसकी और देखा ही था की वह फिर से बोल पड़ा...

"मेरी तरफ मत देखो.. 'सर' की नज़रों में आ जाओगी..."

मैने अपना सिर सीधा कर के झुका लिया," मुझे नही आता कुच्छ भी इसमें से..."

काफ़ी देर तक जब उसने कोई जवाब नही दिया तो मैने अपनी नज़रें तिर्छि करके उसको देखा.. वह मस्ती से लिखने में खोया हुआ था.. मैं रॉनी शकल बनाकर कभी क्वेस्चन पेपर को कभी आन्सर शीट को देखने लगी....

पेपर शुरू हुए करीब आधा घंटा हो गया था और मैं फ्रंट पेज पर अपनी डीटेल लिखने के अलावा कुच्छ नही कर पाई थी... अचानक पिछे से एक पर्ची आकर मेरे पास गिरी... इसके साथ ही किसी लड़के की हल्की सी आवाज़.. "उठा लो.. 10 मार्क्स का है!"

मैने 'सर' पर एक निगाह डाली और उनकी नज़र से बचाते हुए अचानक पर्ची को उठाकर अपनी कछी में थूस लिया....

मुझे कुच्छ तसल्ली हुई.. कि आख़िर मेरा भी कोई 'कद्रदान' कमरे में मौजूद है... मैने पिछे देखा.. पर सभी नीचे देख रहे थे... समझ में नही आया कि मुझ पर ये 'अहसान' किसने किया है...

कुच्छ देर मौके का इंतज़ार करने के बाद धीरे से मैने अपनी स्कर्ट के नीचे अपनी कछी में हाथ डाला और पर्ची निकाल कर आन्सर शीट में दबा ली...

पर्ची को खोल कर पढ़ते ही मेरा माथा ठनक गया... मैने कुच्छ दिन पहले स्कूल में मिले लेटर का जिकर किया था ना! कुच्छ इसी तरह की अश्लील बातें उसमें लिखी हुई थी.... मैने हताश होकर पर्ची को पलट कर देखा... शुक्र था एक एसे टाइप क्वेस्चन का आन्सर था वहाँ...

ज़्यादा ध्यान ना देकर मैने फटाफट उसकी नकल उतारनी शुरू कर दी.. पर उस दिन मेरा लक ही खराब था..

शायद बाहर बरामदे की खिड़की में से किसी ने मुझे ऐसा करते देख लिया था... मैने अभी आधा क्वेस्चन भी नही किया था कि अचानक बाहर से एक 'सर' आए और मेरी आन्सर शीट को उठाकर झटक दिया.. पर्ची नीचे आ गिरी...

"ये क्या है?" उन्होने गुस्से से पूचछा... करीब 35-40 साल के आसपास की उमर होगी उनकी...

"ज्ज..जी.. पिछे से आई थी..!" मैं सहम गयी...

"क्या मतलब है पिछे से आई थी...? अभी तुम्हारी शीट से निकली है या नही..." उनका लहज़ा बहुत ही सख़्त था..

मैं अंदर तक काँप गयी..," ज्जई.. पर मैने कुच्छ नही लिखा.. आप चाहे देख लो..!"

उस 'सर' ने मुझे घूर कर देखा और पर्ची उठाकर हाथ में ले ली.. थोड़ी देर मुझे यूँ ही उपर से नीचे देखते रहने के बाद उन्होने मेरी शीट इनविजाइलेटर को पकड़ा दी," शीट वापस नही करनी है.. मैं थोड़ी देर में आकर इसका यू.एम.सी. बनौँगा" उन्होने कहा और पर्ची हाथ में लेकर निकल गये...

मैं बैठी बैठी सुबकने लगी.. अचानक संदीप ने कहा," रिक्वेस्ट कर लो.. नही तो पूरा साल खराब हो जाएगा...!"

उसके कहने पर मैं उठकर 'सर' के पास जाकर खड़ी हो गयी," सर.. प्लीज़.. सीट दे दो... अब नही करूँगी..."

"इसमें मैं क्या कर सकता हूँ भला? .. बोर्ड अब्ज़र्वर ने तुम्हारी शीट छ्चीनी है.. मैने तो तुम्हे पर्ची उठाते देख कर भी इग्नोर कर दिया था.... पर अब तो जैसा वो कहेंगे वैसा ही करना पड़ेगा... उनसे रिक्वेस्ट करके देख लो.. ऑफीस में प्रिन्सिपल मेडम के पास बैठे होंगे..." सर ने अपनी मजबूरी जाता दी...

"जी ठीक है.." मैं कहकर बाहर निकली और ऑफीस के सामने पहुँच गयी... 'वो' वहीं बैठे प्रिन्सिपल मेडम के साथ खिलखिला रहे थे....

मुझे देखते ही उन्होने अपना थोबड़ा चढ़ा लिया," हां.. क्या है?"

"ज्जई.. मेरा साल बर्बाद हो जाएगा..." मैने सहमे हुए स्वर में कहा....

"साल? तुम्हारे तीन साल खराब होंगे.. मैं तुम्हारा यू.एम.सी. बनाने जा रहा हूँ.. सारा साल पढ़ाई क्यूँ नही...?" उसकी आवाज़ उसके शरीर की तरह ही बहुत भारी थी....

"सर प्लीज़! कुच्छ भी कर लो.. पर सीट दे दो" मैने याचना की...

वह कुच्छ देर तक मेरी और देखता रहा.. मुझे उसकी नज़रें सीधी मेरी चूचियो में गढ़ी महसूस हो रही थी.. पर मैने परवाह ना की... मैं यूँही बेचारी नज़रों से उसके सामने खड़ी रह कर उसको नज़रों से अपनी जवानी का जाम पीते देखती रही..

वह कुच्छ नरम पड़ा... प्रिन्सिपल की और देख कर बोला," क्या करें मेडम?"

प्रिन्सिपल खिलखिला कर बोली," ये तो आपको ही देखना है माथुर साहब.. वैसे.. लड़की का बदन भरा हुआ हा... मेरा मतलब पूरी जवान लग रही है.." उसने पैनी नज़रों से मुझे देखते हुए कहा और उसकी तरफ बत्तीसी निकाल दी...," घर वाले भी लड़का वाडका देख लेंगे अगर पास हो गयी तो..."

"ठीक है... पीयान भेज कर सीट दिलवा दो.. मैं सोचता हूँ तब तक!" उसने मेरी जवानियों का लुत्फ़ लेते हुए कहा...

मुझे थोड़ी शांति मिली... अपनी आन्सर शीट लेकर में अपनी सीट पर जा बैठी... पर अब करने को तो कुच्छ था नही.. बैठी बैठी जितना लिखा था.. उसको पढ़ने लगी...

मुश्किल से 5 मिनिट भी नही हुए होंगे.. क्लास में पीयान आकर बोला," उस लड़की को प्रिन्सिपल मेडम बुला रही हैं.. जिसको अभी शीट मिली थी...."
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10-22-2018, 11:24 AM,
#14
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
मैं एक बार फिर मायूस सी होकर उठी और आन्सर शीट वहीं छ्चोड़ कर ऑफीस के बाहर चली आई.. पर मुझे ना तो मेडम ही दिखाई दी और ना ही 'सर'

"कहाँ हैं मेडम?" मैने पीयान से पूचछा...

"अंदर चली जाओ.. पिछे बैठे होंगे..." पीयान ने कहा....

मैने अंदर जाकर देखा.. दोनो ऑफीस में पिछे सोफे पर साथ साथ बैठे कुच्छ पढ़ रहे थे... मेरे अंदर जाते ही मेडम ने मुझे घूर कर देखा," आ जा.. पहले तो तू मेरे पास आ...!"

"जी..", मैं मेडम के पास जाकर नज़रें झुका कर खड़ी हो गयी...

"ये क्या है?" मेडम ने एक पर्ची मुझे दिखा कर टेबल पर पटक दी....

मैने देखा.. वो वही पर्ची थी जो सर मुझसे छ्चीन कर लाए थे... उन्होने टेबल पर मेरे सामने उस 'लव लेटर' को उपर करके रखा हुआ था....," ज्जी.. मुझे नही पता कुच्छ भी..." मैने शर्मिंदा सी होकर जवाब दिया.....

"अच्च्छा.. तुझे अब कुच्छ भी नही पता.. यू.एम.सी. बना दूँगा तब तो पता चल जाएगा ना...?" सर ने गुस्से से कहा....

"ज़्ज़ि.. ययए मेरे पास पिछे से आकर गिरी थी.. मुझे नही पता किसने..." मैने धीमे स्वर में हड़बड़ा कर कहा.....

"क्या नाम है तेरा?" मेडम ने पूचछा...

"जी.. अंजलि!"

"ये देख.. तेरा ही नाम लिखा है उपर.. और तू कह रही है कि तुझे कुच्छ नही पता... ऐसे कितने यार बना लिए हैं तूने अब से पहले...!" मेडम ने तैश में आकर कहा...

मुझसे कुच्छ बोला ही नही गया... मैं चुपचाप सिर झुकाए खड़ी रही...

"मैं ना कहता था मेडम.. आजकल लड़कियाँ उमर से पहले ही जवान हो जाती हैं... अब देख लो.. सबूत आपके सामने है!" सर ने मेडम को मुस्कुराते हुए मुझे देख कर कहा.. वह मेरी मजबूरी पर चटखारे ले रहा था....

"हुम्म.. और बेशर्मी की भी हद होती है.. जवान हो गयी तो क्या? हमारे टाइम में तो ऐसी गंदी बातों का पता ही नही होता था इस उमर में.. और इसको देख लो.. कैसे कैसे गंदे लेटर आते हैं इसके पास... कौन है तेरा यार.. बता!"

"जी.. मुझे सच में कुच्छ नही पता.. भगवान की कसम.." मैने आँखों में आँसू लाते हुए कहा...

"अब छ्चोड़ो मेडम.. जो करेगी वो भरेगी.. हमारा क्या लेगी...? इसकी शीट मंगवा लो.. मैं यू.एम.सी. बना देता हूँ.. तीन साल के लिए बैठी रहेगी घर.. और ये लेटर भी तो अख़बार में देने लायक है...." सर ने कहा...

"सर प्लीज़.. ऐसा मत कीजिए..!" मैने नज़रें उठाकर सिर को देखा....मेरी आँखें दबदबा गयी.. पर वो अभी भी मेरी कमीज़ में बिना ब्रा के ही तनी हुई मेरी चूचियो को घूर रहे था.....

"तो कैसा करूँ..?" उसने मुझे देख कर कहा और फिर मेडम की तरफ बत्तीसी निकाल कर हंस दिया...

"देख लीजिए सर.. अब इसकी जिंदगी और इज़्ज़त आपके ही हाथ में है...!" मेडम भी कुच्छ अजीब से तरीके से उनकी ओर मुस्कुराइ...

"पूच्छ तो रहा हूँ.. क्या करूँ ? ये कुच्छ बोलती ही नही...." उसकी वासना से भारी आँखें लगातार मेरे बदन में ही गढ़ी हुई थी...

"सर.. प्लीज़.. मुझे माफ़ कर दो.. आइन्दा नही करूँगी..." मैने अपनी आवाज़ को धीमा ही रखा....

"इसकी तलाशी तो ले लो एक बार.. क्या पता कुच्छ और भी च्छूपा रखा हो...!" सर ने मेडम से कहा....

तलाशी की बात सुनते ही मेरे होश उड़ गये.. जो पर्चियाँ मैं घर से बना कर लाई थी.. वो अभी भी मेरी कछी में ही फँसी हुई थी.. मुझे अब याद आया....

"ना जी ना.. मैं क्यूँ लूं.. ? ये आपकी ड्यूटी है.. जो करना हो करिए... मुझे कोई मतलब नही...!" मेडम ने हंसते हुए जवाब दिया..

"मैं.. मैं मर्द भला इसकी तलाशी कैसे ले सकता हूँ मेडम... वैसे भी ये पूरी जवान है! मुझे तो ये हाथ भी नही लगाने देगी..." बोलते हुए उसकी आँखें कभी मुझे और कभी मेडम को देख रही थी....

"ऐसी वैसी लड़की नही है ये.. हज़ार आशिक तो जेब में रख कर चलती होगी... इसको कोई फ़र्क नही पड़ेगा मर्द के हाथों से... और मना करती है तो आपको क्या पड़ी है.. बना दीजिए यू.एम.सी. सबूत तो आपके सामने रखा ही है... पर मैं तलाशी नही लूँगी सर!" मेडम ने सॉफ मना कर दिया...

"मैं सेंटर को देख आती हूँ सर.. तब तक आप..." मेडम मुस्कुरकर कहते हुए अपनी बात को बीच में ही छ्चोड़ कर उठी और बाहर चली गयी....

उनकी बातों से मुझे अहसास होने लगा था कि सर की नज़र मेरी जवानी पर है.. और मेडम भी इसके साथ मिली हुई है....

"अब तलाशी तो लेनी ही पड़ेगी.. समझ रही हो ना!" सर ने मेरी आँखों में देख कर कहा...

मेरा टाइम निकला जा रहा था और उन्हे मस्ती सूझ रही थी... मैं कुच्छ ना बोली.. सिर्फ़ सिर झुका लिया अपना....

"बोलो.. जवाब दो..! या मैं यू.एम.सी. बना दूँ...? सर ने कहा....

"ज्जी.. मेरे पास 2 और हैं.. मैं निकाल कर आ जाती हूँ अभी..." मैने कसमसा कर कहा....

"निकालो.. जो कुच्छ है एक मिनिट में निकाल दो.. यहीं!" सर ने कहा....

मैं एक पल को हिचकिचाई.. फिर कुच्छ सोच कर तिछि हुई और उपर से अपनी स्कर्ट में हाथ डाल लिया... वो अब भी मेरी और ही देख रहा था.. मैने और अंदर हाथ लेजकर पर्चियाँ निकाली और उसको पकड़ा दी...

"हूंम्म... " उसने अपनी नाक के पास ले जाकर पर्चियों को सूँघा.. शर्म के मारे मेरा बुरा हाल हो गया... कुच्छ देर बाद वह फिर मुझे घूर्ने लगा," और निकालो..."

"जी.. और नही है.. एक भी...!" मैने जवाब दिया....

"तुम कुच्छ भी कहोगी और मैं विश्वास कर लूँगा... तलाशी तो देनी ही पड़ेगी तुम्हे...!" उसने बनावटी से गुस्से से मुझे घूरा....

"पर सर.. आधा टाइम पहले ही निकल चुका है पेपर का...!" मैने डरते डरते कहा....

"आज के पेपर को तो भूल ही जाओ... सिर्फ़ ये दुआ करो कि तुम्हारे तीन साल बच जायें.. समझी..." उसने गुर्रकार कहा...

"सर प्लीज़..." मैने सहम कर उसकी आँखों में देखा... वह एकटक मुझे ही घूरे जा रहा था...

"तुम समझ रही हो या नही.. तलाशी तो तुम्हे देनी ही पड़ेगी अगर तुम यू.एम.सी. से बचना चाहती हो.... तुम्हारी मर्ज़ी है.. कहो तो यू.एम.सी. बना दूं..." सर ने इस बार एक एक शब्द को जैसे चबा कर कहा....

"जी..." मुझे उसको तलाशी देने में कोई दिक्कत नही थी.. ऐसी तलाशी तो स्कूल के टीचर जाने कितनी ही बार ले चुके थे.. बातों बातों में.. सिर्फ़ मुझे टाइम की चिंता हो रही थी...

"क्या जी जी लगा रखा है.. मैने तो अब तुम पर ही छ्चोड़ दिया है.... तुम्ही बोलो क्या करूँ.. तलाशी लूँ या यू.एम.सी. बनाऊँ....?"

"जी.. तलाशी ले लो... पर प्लीज़.. केस मत बनाना.." मैने याचना सी करते हुए कहा...

"वो तो मैं तलाशी लेने के बाद सोचूँगा.. इधर आ जाओ.. मेरे पास...!" सर ने मुझे दूसरी और बुलाया.....

मैं टेबल के साथ साथ चलकर सर के पास जाकर खड़ी हो गयी.. मेरा चेहरा ये सोच कर ही लाल हो गया था कि अब वह तलाशी के बहाने जाने कहाँ कहाँ हाथ मारेगा... वह मुझे यूँ घूर रहा था मानो कच्चा ही चबा जाने के मूड में हो...

थोड़ा हिचकने के बाद उसने मेरी कमर पर हाथ रख दिया," अब भी सोच लो.. मैं तलाशी लूँगा तो अच्छे से लूँगा.. फिर ये मत कहना कि यहाँ हाथ मत लगाओ.. वहाँ हाथ मत लगाओ.. तुम्हारे पास अब भी मौका है.. बीच में अगर टोका तो मैं तुरंत यू.एम.सी. बना दूँगा...."

"जी.. मैं कुच्छ नही बोलूँगी... पर आप प्लीज़ केस मत बनाना.." मैं अब थोड़ा खुल कर बोलने लगी थी...

"ठीक है.. मैं देखता हूँ.." कहकर वो मेरे नितंबों पर हाथ फेरने लगा...," एक बात तो है..." उसने बात अधूरी छ्चोड़ दी और मेरे नितंबों की दरार टटोलने लगा.....

मेरे पुर बदन में झुरजुरी सी मचने लगी.. अब मुझे पूरा यकीन हो चला था कि तलाशी सिर्फ़ एक बहाना है.. मेरे बदन से खेलने के लिए...

"मेरी तरफ मुँह करके खड़ी हो जाओ.." उसने कहा और मैं उसकी तरफ घूम गयी... मेरी पकी हुई सी गोल गोल मस्त चूचियाँ अब कुर्सी पर बैठे हुए सर की आँखों से कुच्छ ही उपर थी.. और उसके होंटो से कुच्छ ही दूर...

"एक बात सच सच बतओगि तो मैं तुम्हे माफ़ कर दूँगा..!" सर ने मेरी शर्ट स्कर्ट में से निकालते हुए कहा....

"ज्जी..." मैने आँखें बंद कर ली थी...

"तुम्हे पता है ना कि ये लेटर वाली पर्ची किसने दी है तुम्हे?" उसने मेरी कमीज़ के अंदर हाथ डाला और मेरे चिकने पेट पर हाथ फेरने लगा..

मैं सिहर उठी.. उसके खुरदारे मोटे हाथ का स्पर्श मुझे अपने पेट पर बहुत कामुक अहसास दे रहा था... मैने आह सी भरकर जवाब दिया," नही सर.. भगवान की कसम..."

"चलो कोई बात नही.. जवानी में ये सब तो होता ही है.. इस उमर में मज़े नही लिए तो कब लॉगी..? ठीक कह रहा हूँ ना...?" उसने बोलते बोलते दूसरा हाथ मेरी स्कर्ट के नीचे से ले जाकर मेरे घुटनो से थोड़ा उपर मेरी जाँघ को कसकर पकड़ लिया....

"जी.. प्लीज़.. जल्दी कर लो ना!" मैने उस'से प्रार्थना की...

"मुझे कोई दिक्कत नही है.. मैं तो इसीलिए धीरे कर रहा हूँ.. ताकि तुम्हे शर्म ना आए.. ऐसा करने से तुम गरम हो रही होगी ना..." सर ने कहा और अपना हाथ एक दम उपर चढ़ा कर कछी के उपर से ही मेरे मांसल नितंबों में से एक को मसल सा दिया...

"आआअहह.." मेरे मुँह से एकदम तेज साँस निकली.. उत्तेजना के मारे मेरा बदन अकड़ने सा लगा था.....

"कैसा लग रहा है.. मतलब कोई दिक्कत तो नही है ना?" उसने नितंब पर अपनी पकड़ थोड़ी ढीली करते हुए कहा...

"जी.. नही..." मैने जवाब दिया.. मेरी टाँगें काँपने सी लगी थी.... यूँ लग रहा था जैसे ज़्यादा देर खड़ी नही रह पाउन्गि....

"अच्च्छा लग रहा है ना.." उसने दूसरे नितंब पर हाथ फेरते हुए पूचछा...

मैने सहमति में सिर हिलाया और थोड़ी आगे होकर उसके और पास आ गयी... मुझे बहुत मज़ा आ रहा था.. सिर्फ़ पेपर की चिंता थी....

अगले ही पल वो अपनी औकात पर आ ही गया.. मेरे नितंब को अपनी हथेली में दबोचे दूसरे हाथ को वो धीरे धीरे पेट से उपर ले जाने लगा..," तुम गजब की हसीन और चिकनी हो.. तुम्हारे जैसी लड़की तो मैने आज तक देखी भी नही... तुम चिंता मत करो.. तुम्हारा हर पेपर अब अच्च्छा होगा... मैं गॅरेंटी देता हूँ... बस. तुम थोड़ा सा मुझे खुश कर दो.. मैं तुम्हारी ऐश कर दूँगा यहाँ.."

"पर.. आज का पेपर सर...?" मैने कसमसाते हुए कहा....

"ओह्हो..मैं कह तो रहा हूँ.. तुम्हे चिंता करने की कोई ज़रूरत नही अब... आज तुम्हे पेपर के बाद एक घंटा दे दूँगा... और किसी अच्छे बच्चे का पेपर भी तुम्हारे सामने रखवा दूँगा... बस.. अब तुम पेपर की बात भूल जाओ थोड़ी देर...." उसने कहा और मेरी कछी के अंदर हथेली डाल कर मेरी दरार को उंगलियों से कुरेद'ने लगा...

मैं मॅन को मिल्ली शांति और तन को मिली इस गुदगुदी से मचल सी उठी.. एक बार मैने अपनी आएडियन उठाई और और आगे हो गयी.. अब उसके चेहरे और मेरी चूचियो के बीच 2 इंच का ही फासला रहा होगा....," अयाया.. थॅंक्स सर.."

"हाए.. कितनी गरम गरम है तू.. मेरी किस्मत में ही थी तू.. तभी मुझे लव लेटर वाली पर्ची हाथ लगी.. वरना तो मैं सपने में भी नही सोच पाता कि यहाँ स्कूल में मुझे तुझ जैसी लौंडिया मिल सकती है... मज़ा आ रहा है ना..?" उसकी भी साँसें सी उखाड़ने लगी थी...

"जी.. आप जी भर कर तलाशी ले लो. बहुत मज़ा आ रहा है...!" मैने भी सिसकी सी लेकर कहा...

मेरे लाइन देते ही उसने झट से अपना हाथ उपर चढ़ा कर मेरे उरोज को पकड़ लिया... मेरी गदराई हुई चूचियाँ हाथ में आते ही वह मचल उठा," वाह.. क्या चीज़ बनाई है तू राम ने... तेरी चूचियाँ तो बड़ी मस्त हैं.. सेब के जैसी... दिल कर रहा है खा जाउ इन्हे..." वह मेरे उरोज के दाने को छेड़ता हुआ बोला.. वो भी अकड़ से गये थे....

मैं अपनी प्रशंसा सुनकर बाग बाग हो गयी.. थोड़ा इतराते हुए मैने आँखें खोल कर उसको देखा और मुस्कुरा दी..

उसने अपना हाथ निकाल कर मेरी कछी को थोड़ा नीचे सरका दिया.. गरम हो चुकी मेरी योनि ठंडी हवा लगते ही तिठुर सी उठी.. अगले ही पल वो अपनी एक उंगली को मेरी योनि की फांकों के बीच ले गया और उपर नीचे करते हुए उसका च्छेद ढूँढने लगा... मैं दहक उठी.. मेरी योनि ने रस बहाना शुरू कर दिया... उतावलेपन और उत्तेजना में मैने 'सर' का सिर पकड़ और अपनी तरफ खींच कर अपनी चूचियो में दबा लिया...

इसी दौरान उसकी उंगली मेरी योनि में उतर गयी.. मैं उच्छल सी पड़ी.. पर योनि ने उसको जल्दी ही अपने अंदर अड्जस्ट कर लिया...

"बहुत टाइट है तेरी 'ये' तो.. पहले कभी किया नही.. लगता है..!" उसने कहा और मेरी शर्ट के उपर वाले दो बटन खोल दिए... मेरी मस्तयि हुई गौरी चूचियाँ तपाक से उपर से छलक सी आई....

मेरी कमीज़ में घुसे हुए उसके हाथ से उसने एक चूची को और उपर खिसका दिया.. और चूची पर जड़े मोती जैसे गुलाबी दाने को कमीज़ से बाहर निकाल लिया.... उसको देखते ही वह पागल सा हो गया," वाह.. इसको कहते हैं चूचक.. कितना प्यारा और रसीला है.." आगे वह कुच्छ ना बोला.. अपने होंटो में उसने मेरे दाने को दबा लिया था और किसी बच्चे की तरह उसको चूसने लगा...

मैं घिघिया उठी... बुरा हाल हो रहा था... उसने अपनी उंगली बाहर निकाली और फिर से अंदर सरका दी... इतना मज़ा आ रहा था कि बयान नही कर सकती... मेरे होश उड़े जा रहे थे.. मैं सब कुच्छ भूल चुकी थी... ये भी कि मैं यहाँ पेपर देने आई हूँ...
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10-22-2018, 11:24 AM,
#15
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
उसकी उंगली अब सतसट अंदर बाहर हो रही थी.. मैने अपनी जांघों को और खोल दिया था और जमकर सिसकियाँ लेते हुए आँखें बंद किए आनंद में डूबी रही... वह भी पागलों की भाँति उंगली से रेलाम पेल करता हुआ लगातार मेरे दाने को चूस रहा था.. जैसे ही मेरा इस बार रस निकला.. मैने अपनी जांघें ज़ोर से भींच ली," बस.. सर.. और नही.. अब सहन नही होता मुझसे..."

वह तुरंत हट गया और जल्दबाज़ी सी करता हुआ बोला...," ठीक है.. जल्दी नीचे बैठ जाओ..."

मैं पूरी तरह उसका मतलब नही समझी पर.. जैसे ही उसने कहा.. मैने अपनी कछी ठीक करके शर्ट के बटन बंद किए और नीचे बैठ कर उसकी आँखों में देखने लगी....

उसने झट से अपनी पॅंट की ज़िप खोल कर अपना लिंग मेरी आँखों के सामने निकाल दिया..," लो! इसको पकड़ कर आगे पिछे करो...!"

हाथ में लेने पर उसका लिंग मुझे तरुण जितना ही लंबा और मोटा लगा... मैने खुशी खुशी उसको हिलाना शुरू कर दिया...

"जब मैं कहूँ.. अया.. अपना मुँह.... खोल देना..." उसने सिसकते हुए कहा...

मुझे मम्मी और सुन्दर वाला सीन याद आ गया," मुझे पीना है क्या सर?"

"अरे वाह.. अया.. तू तो बड़ी समझ..दार.. है... अया.. हां.. जल्दी जल्दी कर..." उसकी साँसें उखड़ी हुई थी..

करीब 2 मिनिट के बाद ही वह कुर्सी से सरक कर आगे की ओर झुक गया..," हाआँ... आआआः.. ले.. मुँह खोल..."

मैने अपना मुँह पूरा खोल कर उसके लिंग के सामने कर दिया... उसने झट से अपना सूपड़ा मेरे मुँह में फँसाया और मेरा सर पकड़ लिया..," आआआः... अयाया.. अयाया"

सुन्दर के मुक़ाबले रस ज़्यादा नही निकला था.. पर जितना भी था.. मैने उसकी एक एक बूँद को अपने गले से नीचे उतार लिया... जब तक उसने अपना लिंग बाहर नही निकाला.. मेरे गुलाबी रसीले होन्ट उसके सूपदे को अपनी गिरफ़्त में जकड़े रहे... स्वाद मुझे कुच्छ खास अच्च्छा नही लगा.. पर कुच्छ खास बुरा भी नही था....

कुच्छ देर यूँही झटके खाने के बाद उसका लिंग अपने आप ही मेरे होंटो से बाहर निकल आया... उसको अंदर करके उसने अपनी ज़िप बंद की और अपना मोबाइल निकाल कर फोन मिलाया और बोला," आ जाओ मेडम!"

"तू इस गाँव की नही है ना?" उसने प्यार से पूचछा...

"जी नही.." मैने मुस्कुरकर जवाब दिया.....

"कौन आया है तेरे साथ?"

"जी कोई नही.. अपनी सहेली के साथ आई हूँ...!" मैने जवाब दिया...

"वेरी गुड.. ऐसा करना.. पेपर के बाद यहीं रहकर सारा पेपर कर लेना.. तुझे तो मैं 2 घंटे भी दे दूँगा.. तू तो बड़े काम की चीज़ है यार... अपनी सहेली को जाने के लिए बोल देना.. तुझे मैं अपने आप छ्चोड़ आया करूँगा.. ठीक है ना...?"

"जी.." मैने सहमति में सर हिलाया...

तभी मेडम दरवाजा खोल कर अंदर आ गयी," तलाशी दी या नही.." उसने अजीब से ढंग से सर को देखा और मुस्कुराने लगी...

"ये तो कमाल की लड़की है... बहुत प्यारी है.. ये तो सब कुच्छ दे देगी.. तुम देखना..." सर ने मेडम की और आँख मारी और फिर मेरी तरफ देख कर बोले..," जा! कर ले आराम से पेपर.. और पेपर टाइम के बाद सीधे यहीं आ जाना.. मैं निकाल कर दे दूँगा तुझे वापस.. आराम से सारा पेपर करना... और ये ले.. तेरी पर्ची... इसमें से लिख लेना तब तक.. मैं तुम्हारी क्लास में कहलवा देता हूँ.. तुझे कोई नही रोकेगा अब नकल करने से..." कहकर उसने मेरे गाल थपथपा दिए....

मैं खुश होकर बाहर निकली तो पीयान मुझे अजीब सी नज़रों से घूर रहा था.. पर मैने परवाह नही की और अपने रूम में आ गयी...

"क्या हुआ?" क्लास में टीचर ने पूचछा...

"कुच्छ नही सर.. मान गये वो..." मैने कहा और अपनी सीट पर बैठ गयी.. अब आधा घंटा ही बचा था एग्ज़ॅम ख़तम होने में... मैने जैसे ही अपनी शीट खोली.. मैं चौंक गयी...

मैने संदीप की तरफ देखा.. वो मेरी तरफ ही मुस्कुरा रहा था...

"ये.. ये सब तुमने किया है....?" मैं अचरज से बोली....

"हां.. मेरा पेपर पूरा होने के करीब था.. तुम्हारी शीट यहीं पड़ी थी.. तो मैने तुम्हारा पास होने का जुगाड़ कर दिया..." वो अब भी मुस्कुरा रहा था....

मैने शीट के पन्ने पलट पलट कर देखे.. जितना पेपर उसने मेरा हाल कर दिया था.. उतना तो मैं नकल से 3 घंटे में भी ना कर पाती... मैं अजीब सी नज़रों से उसको देखने लगी.. समझ में ही नही आया की 'थॅंक्स' कैसे बोलूं.....

क्रमशः ..................
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10-22-2018, 11:24 AM,
#16
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--11

गतांक से आगे.......................

एग्ज़ॅमिनेशन रूम से बाहर निकलते ही पिंकी ने मुझे पकड़ लिया," तेरा पेपर तो हो ही नही पाया होगा यार.. तुझे इतनी देर बाद क्यूँ छ्चोड़ा उन्होने?"

मैने उसकी आँखों में देख एक पल सोचा कि संदीप के किए अहसान के बारे में बताउ या नही," ववो.. वो तो मेरा केस बनाने पर आड़े हुए थे.. बहुत रिक्वेस्ट करने के बाद ही माने.. बस इसीलिए देर हो गयी..."

तभी सर ऑफीस से बाहर निकल आए.. उन्होने इधर उधर देखा.. सभी जा चुके थे.. हमारे अलावा सिर्फ़ पीयान ही ऑफीस के बाहर बैठा था....

सर अंदर गये और थोड़ी देर बाद मेडम बाहर निकली," कृशन! बाकी कमरों को ताला लगाकर तुम चले जाओ.. हमें अभी टाइम लगेगा..."

"ठीक है मेडम!" पीयान ने कहा और चाबी उठा कर कमरे बंद करने लगा....

"हुम्म.. पर पेपर तो मेरा भी अच्च्छा नही हुआ... चल चलते हैं घर.. रास्ते में बात करेंगे...." पिंकी ने मायूस होकर कहा...

"ववो.. ऐसा कर.. तू जा.. मैं थोड़ी बाद में आऊँगी..." मैं लगे हाथों बाकी बचे पेपर को भी निपटा देना चाहती थी...

"पर क्यूँ? यहाँ क्या करेगी तू?" उसने आँखें सिकोड कर पूचछा....

"ववो.. मेरा टाइम खराब हो गया था ना.. इसीलिए सर मुझे अब थोड़ा सा टाइम देंगे.." मैने उसको आधा सच बता दिया," पर तू किसी को बोलना मत.. सर के उपर बात आ जाएगी नही तो...."

"अच्च्छा!" पिंकी खुश होकर बोली," ये तो अच्छि बात है.. कोई बात नही.. मैं तेरा इंतजार कर लेती हूँ यहीं.. तेरे साथ ही चालूंगी...!"

मैं उसको भेजने के लिए बहाना सोच ही रही थी कि सर एक बार फिर बाहर आ गये.. बाहर आकर मेरी ओर मुस्कुरा कर देखा और इशारे से अपनी और बुलाया..

"... तू जा यार.. मैं आ जाउन्गि!... एक मिनिट.... सर बुला रहे हैं..." मैने पिंकी से कहा और बिना उसका जवाब लिए सर के पास चली गयी.... पिंकी वहीं खड़ी रही...

सर ने अपने होंटो पर जीभ फिराई और पिंकी की ओर देख कर धीरे से बोले," इसको तो भेज दिया होता.. अपने साथ क्यूँ चिपका रखा है...!"

"मैने कहा है सर.. पर वो कह रही है कि मेरे साथ ही जाएगी.. अब बाकी बच्चे भी जा चुके हैं... मैं उसको फिर से बोल के देखती हूँ..." मैने नज़रें झुका कर जवाब दिया...

"हुम्म.. कौन है वो? तेरी क्या लगती है?" सर की आवाज़ में बड़ी मिठास थी अब...

"जी.. मेरी सहेली है.. बहुत अच्छि.." मैने उसकी नज़रों में देखा.. वह पिंकी को ही घूर रहा था...

"किसी को कुच्छ बता तो नही देगी ना..." सर ने मेरी चूचियो को घूरते हुए पूचछा....

यहाँ मेरी ग़लती रह गयी.. मैने समझा कि सर का ये सवाल एग्ज़ॅम टाइम के बाद मुझे पेपर करने देने के बारे में है... वैसे भी मैं यही समझ रही थी कि उनको जो कुच्छ करना था.. वो कर चुके हैं," नही सर! वो तो मेरी बेस्ट फ्रेंड है.. किसी को कुच्छ नही बताएगी..."

मैं कहने के बाद सर की प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगी... वो चुपचाप खड़े पिंकी की और देखते हुए कुच्छ सोचते रहे..

"सर...!" मैने उन्हे टोक दिया....

"हूंम्म?" वो अब भी मेरे पास खड़े लगातार पिंकी की ओर ही देख रहे थे...

"ववो.. मैं.. कह रही थी कि उसका भी पेपर खराब हुआ है... अगर आप...!" मैं बीच में ही रुक गयी.. ये सोच कर कि समझ तो गये ही होंगे...

"चल ठीक है.. बुला लो... पर देख लो.. तुम्हारे भरोसे पर कर रहा हूँ.. कहीं बाद में..." सर की बात को मैने खुश होकर बीच में ही काट दिया...

"जी.. वो किसी को कुच्छ नही बताएगी.. बुला लाउ उसको?" मैं खुश होकर बोली....

"हां.. ऑफीस में लेकर आ जाओ....!" सर ने कहा और अंदर चले गये....

मैं खुश होकर दौड़ी दौड़ी पिंकी के पास गयी," चल आजा... मैने तेरे लिए भी बात कर ली है... तुझे भी सर पेपर दे देंगे..."

"अच्च्छा.. सच! मज़ा आ जाएगा फिर तो" वा भी सुनकर खुशी से उच्छल पड़ी...

अगले ही पल हम दोनो मेडम और सर के सामने खड़े थे...

"मेडम.. प्लीज़.. आप ऑफीस का ताला लगाकर थोड़ी देर बाहर बैठ जाओ.. मेरा फोन भी लेते जाओ.. अगर कोई फोन आए तो कहना कि वो पेपर्स का बंड्ल लेकर निकल चुके हैं और फोन यहीं भूल गये...!" सर ने मेडम की तरफ अपना मोबाइल बढ़ाते हुए कहा....

"मैं तो बैठ जाउन्गि सर... पर देख लो.. ज़िंदगी भर अब आप मुझे और इस सेंटर को भूल मत जाना... अब मेरे स्कूल के किसी बच्चे का पेपर खराब नही होना चाहिए... सबको खुली छ्छूट मिलेगी ना अब तो....?" मेडम ने शिकायती लहजे में सर को कहा....

सर ने हंसते हुए अपना पूरा जबड़ा ही खोल दिया," हा हा हा.. आप भी कमाल करती हैं मेडम.. ये सेंटर और आपको कभी भूल सकता हूँ क्या? यहाँ तो मुझे तोहफे पर तोहफे मिल रहे हैं....आप बेफिकर रहें... कल से सब बच्चों को 15 मिनिट पहले पेपर मिल जाया करेगा.. और नकल की भी मौज करवा दूँगा..."

"थॅंक्स सर.. मुझे बस यही चाहिए.." मेडम ने मुस्कुरा कर कहा और बाहर निकल कर ऑफीस को ताला लगा दिया.....

"सोफे पर बैठ जाओ आराम से.. डरने की कोई ज़रूरत नही है.. अपना अपना रोल. नंबर. बता दो जल्दी... तुम्हे नही पता मैं कितना बड़ा रिस्क लेकर तुम्हारे लिए ये सब कर रहा हूँ..." सर ने हमारे रूम का बंड्ल खोलते हुए कहा....

पिंकी ने मेरी और देखा और मुस्कुरा दी और फिर सर को क्रितग्य नज़रों से देखते हुए बोली," थॅंक्स सर.."

हम दोनो ने अपने अपने रोल नंबर. सर को बताए और उन्होने हमारी शीट निकाल कर हम दोनो को पकड़ा दी...," किसी इंटेलिजेंट बच्चे का भी रोल नंबर. बता दो.. मैं निकाल कर दे देता हूँ.. जल्दी जल्दी उतार लेना उसमें से..."

"दीपाली" पिंकी के मुँह से निकला.. जबकि मेरे मुँह से संदीप का नाम निकलते निकलते रह गया.. पिंकी ने दीपाली का रोल नंबर. सर को बता दिया...

"हूंम्म.. मिल गया!" सर ने कहा और पेपर लेकर हमारे पास आए और हमारे बीच फंसकर बैठ गये..," ये लो.. जल्दी जल्दी करो!"

पिंकी ने शायद सर की मंशा पर ध्यान नही दिया था... हम दोनो ने सिर के सामने दीपाली का पेपर खोल कर रख लिया और जो क्वेस्चन हम दोनो के रहते थे...उतारने लगे...

करीब पाँच मिनिट ही हुए होंगे.. सर ने अपनी बाहें फैलाकर हम दोनो के कंधों पर रख दी," शाबाश.. जल्दी जल्दी करो..."

"तुम्हारा क्या नाम है बेटी?" सिर ने पिंकी की ओर देख कर पूचछा....

"जी..? पिंकी!" पिंकी जल्दी जल्दी लिखते हुए बोली....

"बहुत प्यारा नाम है.. अंजलि को तो सब पता ही है.. तुम भी अब किसी पेपर की चिंता मत करना.. सब ऐसे ही करवा दूँगा.. खुश हो ना?" सर पिंकी की कमर पर हाथ फेरने लगे...

मेरा ध्यान रह रह कर पिंकी पर जा रहा था.. मुझे तरुण की ठुकाई याद आ रही थी... ये सोचकर मैं डरी हुई थी.. कहीं सर पिंकी पर हाथ सॉफ करने के बारे में ना सोचने लगे हों... 'ऐसा होगा तो आज बहुत बुरा होगा..' मैं मंन ही मंन सोच रही थी.. पर कहती भी तो मैं किसको क्या कहती... मेरी एक आँख अपना पेपर करने पर.. और दूसरी पिंकी के चेहरे पर बनी रही....

"तुम अब जवान हो गयी हो बेटी.. चुननी डाला करो ना.. ऐसा अच्च्छा नही लगता ना.. देखो.. बाहर से ही सॉफ दिख रहे हैं...!" सर की इस बात पर पिंकी सहम सी गयी.. पर शायद अपना पेपर पूरा करने का लालच उसके मंन में भी था..

"ववो.. मैने आज अंजलि को दे दी सर..." पिंकी ने हड़बड़ा कर कहा....

"ओह.. हां.. इसकी तो और भी बड़ी बड़ी और मस्त हैं.. पर इसको अपनी लानी चाहिए.. देखो ना.. तुम्हारी भी तो कैसे चौंछ उठाए खड़ी हैं.. तुम ब्रा भी नही पहनती हो.. है ना?"

सर की बात सुनकर पिंकी का चेहरा सच में ही गुलाबी सा हो गया.. अब शायद उसके मंन में भी सर की बातें सुन कर घंटियाँ सी बजने लगी थी... मुझे डर था की ये घंटियाँ घंताल बनकर सर के सिर पर ना बजने लग जायें... अभी तो 5 पेपर बाकी थे....

पिंकी बोली तो कुच्छ नही पर सरक कर 'सर' से थोड़ा दूर हो गयी..

"नही पहनती हो ना ब्रा?" सर ने उस'से फिर पूचछा...," अंजलि भी नही पहनती.. तुम भी नही.. क्या बात है यार!"

अंजलि इस बार थोड़ा सा खिज कर बोली," वो.. मम्मी लाकर ही नही देती.. कहती हैं अभी तुम बच्ची हो...!" और अपना पेपर करती रही...

"मम्मी के लिए तो तुम शादी के बाद भी बच्ची ही रहोगी बेटी.. हे हे हे.." सर अपनी जांघों के बीच तनाव को कम करने के लिए 'वहाँ' खुजाते हुए बोले," पर तुम बताया करो ना.. तुम तो अब पूरी जवान हो गयी हो.. लड़कों का दिल मचल जाता होगा इन्हे यूँ फड़कते देख कर.. पर तुम्हारा भी क्या कुसूर है.. ये उमर ही मज़े लेने और देने की होती है.." सर ने कहने के बाद अचानक अपना हाथ पिंकी की जांघों पर रख दिया..

पिंकी कसमसा उठी," सर.. प्लीज़!"

"करो ना.. तुम आराम से पेपर करो.. मैं तुम्हारे लिए ही तो बैठा हूँ यहाँ.. चिंता की कोई बात नही.." सर ने उसको याद दिलाने की कोशिश की कि वो हम पर कितना 'बड़ा' अहसान कर रहे हैं... उन्होने अपना हाथ पिंकी की जाँघ से नही हटाया...

पिंकी के चेहरे से मुझे सॉफ लग रहा था कि वो पूरी तरह विचलित हो चुकी है.. पर शायद पेपर करने का लालच; या फिर उनकी उमर; या फिर दोनो ही कारण थे कि वह चुप बैठी अब भी लिख रही थी...

सर ने अचानक मेरे हाथ के नीचे से अपना हाथ निकाला और मेरा दायां स्तन अपनी हथेली में ले लिया.. मैने घबराकर पिंकी की ओर देखा.. कि कहीं उसके साथ भी ऐसा ही तो नही कर दिया.. पर अब तक गनीमत था कि उन्होने ऐसा नही किया था... वह हड़बड़ाई हुई जल्दी जल्दी लिखती चली जा रही थी....

सर ने अचानक अपने हाथ से उसकी जांघों के बीच जाने क्या 'छेड़' दिया.. पिंकी उच्छल कर खड़ी हो गयी.. मैने घबराकर उनका हाथ अपनी छाती से हटाने की कोशिश की.. पर उन्होने 'उसको' नही छ्चोड़ा...

"क्या हो गया बेटी? इतनी घबरा क्यूँ रही हो? आराम से पेपर करती रहो ना.. ये देखो.. अंजलि कितने आराम से कर रही है.." सर निसचिंत बैठे हुए थे.. ये सोच कर की मेरी 'सहेली' है.. मेरे ही जैसी होगी...

पिंकी ने मेरी और देखा और शर्म से अपनी आँखें झुका ली.. उसने मेरी छाती को 'सर' के हाथों में देख लिया था.. मैं चाहकर भी उनका हाथ 'वहाँ' से हटा नही पाई...

पिंकी का चेहरा तमतमाया हुआ था..," मुझे नही करना पेपर.. दरवाजा खुलवा दो.. मुझे जाना है...!"

तब तक मेरा भी पेपर पूरा ही हो गया था.. मैने भी अपनी आन्सर शीट बंद करके टेबल पर रख दी...," हो गया सर.. जाने दो हमें...!"

सर गुर्राते हुए बोले," अच्च्छा.. पेपर हो गया तो जाने दो.. हमें नही करना पेपर.. वा! मैं क्या चूतिया हूँ जो इतना बड़ा रिस्क ले रहा हूँ..!"

जैसे ही मैं खड़ी हुई.. सर ने मेरी कमर को पकड़ कर मुझे अपनी गोद में बैठा लिया...

मैने पिंकी के कारण गुस्सा सा होने का दिखावा किया...," ये सब क्या है सर.. छ्चोड़ दो मुझे!" मैं उनकी पकड़ से आज़ाद होने को च्चटपताई...

"अच्च्छा! साली.. दिन में तो तुझे ये भी पता था कि रस कैसे पीते हैं लौदे का.. अब तेरा काम निकल गया तो पूच्छ रही है.. ये सब क्या है...! तुम क्या सोच रही हो? मैं तुम्हे यूँही थोड़े जाने दूँगा.. बाकी के दिन तुम्हारी मर्ज़ी.. पर आज तो अपनी फीस लेकर ही रहूँगा...." मुझे ज़बरदस्ती गोद में ही पकड़े सर मेरी चूचियो को शर्ट के उपर से ही मसल्ने लगे.....
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10-22-2018, 11:24 AM,
#17
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
पिंकी बहुत डरी हुई थी.. शायद वो भी घर में ही शेर थी.. सर के सामने वो खड़ी खड़ी काँपने लगी थी...

मैं कुच्छ बोल नही पा रही थी... पर सच में मुझे बिल्कुल भी अच्च्छा नही लग रहा था उस समय.. पिंकी के कारण!

"अभी तो एक ही पेपर हुआ है.. 5 तो बाकी हैं ना.. सेंटर में इतनी सख्तयि कर दूँगा कि एक दूसरे से भी कुच्छ पूच्छ नही सकोगी.. देखता हूँ तुम जैसी लड़कियाँ कैसे पास होती हैं फिर...." सर ने गुर्राते हुए धमकी दी और मेरी कमीज़ के अंदर हाथ डाल कर मेरी चूचियो को मसल्ने लगे...

उनकी इस धमकी का पिंकी पर क्या असर हुआ.. ये तो मैं समझ नही पाई.. पर खुद मैं एकदम ढीली हो गयी.. और उनका विरोध करना छ्चोड़ दिया.. मैं मजबूर होकर पिंकी को देखने लगी... वो खड़ी खड़ी रो रही थी....

"हमें जाने दो सर.. प्लीज़.. मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ... आप कुच्छ भी कर लेना.. पर हमें अभी जाने दो.." पिंकी सुबक्ती हुई बोली....

"चुप चाप खड़ी रह वहाँ.. मैने नही बुलाया था तुम्हे अंदर.. तुम्हारी ये 'छमियिया' लेकर आई थी.. और मैं तुम्हे कुच्छ कह भी नही रहा.. अब ज़्यादा बकवास मत करो और चुपचाप तमाशा देखो..." सर ने कहा और मुझे खड़ा कर दिया... पिंकी की सूरत देख मेरी भी आँखों में आँसू आ गये..

सर आगे हाथ लाकर मेरी स्कर्ट का हुक खोलने लगे.. मैने पिंकी को दिखाने के लिए उनका हाथ पकड़ लिया..," छ्चोड़ दो ना सर! प्लीज़"

"बहुत प्ल्ज़ सुन ली तेरी.. अब चुपचाप मेरी प्लीज़ सुन ले.. ज़्यादा बोली तो पता है ना.." उन्होने कहा और झटके के साथ हुक खोल कर स्कर्ट को नीचे सरका दिया... पिंकी जैसी लड़की के सामने इस तरह खुद को नंगी होते देख मेरी आँखें एक बार फिर डॅब्डबॉ गयी... मैं अब नीचे सिर्फ़ कछी में खड़ी थी... और अगले ही पल कछी भी नीचे सरक गयी.. मेरे नंगे नितंब अब 'सर' की आँखों के सामने थे.. और योनि 'पिंकी' के सामने.. पर पिंकी ने इस हालत में मुझे देखते ही अपनी आँखें झुका ली और सुबक्ती रही.....

"अया.. क्या माल है तू भी लौंडिया!.. चूतड़ तो देखो! कितने मस्त और टाइट हैं.. एक दम गोल गोल... पके हुए खरबूजे की तरह..." सर ने मेरे नितंबों पर थपकी सी मारने के बाद उनको अलग अलग करने की कोशिश करते हुए कहा..," हाए.. बिल्कुल एक नंबर. का माल है...कितनी चिकनी चूत है तेरी... मैने तो सपने में भी नही सोचा था कि इंडिया में भी ऐसी चूते मिल जाएँगी... क्या इंपोर्टेड पीस है यार..."

पिंकी का रो रो कर बुरा हाल हो रहा था.. पर उसकी सुन'ने वाला वहाँ था कौन.. उसने अपना चेहरा दूसरी और घुमा लिया...

"चल.. टेबल पर झुक जा.. पहले तेरा रस पी लूँ..." सिर ने कहते हुए मेरी कमर पर हाथ रख कर आगे को दबा दिया... ना चाहते हुए भी मुझे झुकना पड़ा... मैने अपनी कोहनियाँ टेबल पर टीका ली....

"हां.. ऐसे.. शाबाश.. अब टाँग चौड़ी करके अपने चूतड़ पिछे निकल ले..!" सर ने उत्तेजित स्वर में कहा....

उसकी बात समझने में मुझे ज़्यादा परेशानी नही हुई.. अब पिंकी के सामने मेरी जो मिट्टी पलीत होनी थी.. वह तो हो ही चुकी थी.... मैं अब जल्द से जल्द उसको निपटाने की सोच रही थी.. मैने अपनी कमर को झुकाया और अपनी जांघें खोलते हुए अपने नितंबों को पिछे धकेल सा दिया... मेरी योनि अब लगभग बाहर की ओर निकल चुकी होगी....

"ओये होये.. मा कसम.. क्या चूत है तेरी.. दिल करता है इसको तो मैं काट कर अपने साथ ही ले जाउ!" कहकर उसने सिसकते हुए मेरे नितंबों को अपने दोनो हाथों में पकड़ा और अपनी जीभ निकाल कर एक ही बार में योनि को नीचे से उपर तक चाट गया.. मेरी सिसकी निकल गयी....

"देखा.. कितना मज़ा आया ना? इसको भी समझा.. ये भी थोड़े मज़े लेना सीख ले मुझसे.. जवानी चार दिन की होती है.. फिर पछ्तायेगि नही तो... " सर ने कहने के बाद एक बार और जीभ लपलपते हुए मेरी योनि की फांकों में खलबली मचाई और फिर बोले," कह दे ना इसको.. दो मैं तो अलग ही मज़ा आएगा.. बोल दे इसको.. मौज कर दूँगा ससूरी की.. मेरिट ना आए तो कहना..."

मैं कुच्छ ना बोली... मैं क्या बोलती..? मेरा बुरा हाल हो चुका था.. अब लगातार नागिन की तरह मेरी योनि में लहरा रही उसकी जीभ से मैं बेकाबू हो चुकी थी.. अपने आपको सिसकियाँ भरने से भी नही रोक पा रही थी...,"अया... सर्ररर... आआआः..."

"पगली.. सर की हालत भी तेरी ही तरह हो चुकी है.. कुच्छ मत बोल अब... अब तो मुझे घुसने दे जल्दी से!" बोल कर वह खड़ा हो गया...

मैं आँखें बंद किए सिसकियाँ लेती हुई मस्ती में खड़ी थी.. अचानक मुझे अपनी योनि की फांकों के बीच कुच्छ गड़ता हुआ महसूस हुआ.. समझ में आते ही मैं हड़बड़ा गयी और इसी हड़बड़ाहट में टेबल पर गिर गयी...

"अया.. ऐसे मत तडपा अब... बिल्कुल आराम से अंदर करूँगा.. मा कसम.. पता भी नही लगने दूँगा तुझे... तेरी तो वैसे भी इतनी चिकनी है कि सर्ररर से जाएगा.. आजा अंजू आजाआअ!" पगलाए हुए से सर ने मुझे कमर से पकड़ कर ज़बरदस्ती फिर से वैसे ही करने की कोशिश की... पर इस बार मैं अड़ गयी...

"नही सर.. ये नही!" मैने एक दम से सीधी खड़ी होकर कहा....

"ये क्यूँ नही मेरी जान... ये ही तो लेना है.. एक बार थोड़ा सा दर्द होगा और फिर देखना... चल आजा.. जल्दी से आजा... टाइम वेस्ट मत कर अब!" सर ने अपने लिंग को हाथ में लेकर हिलाते हुए कहा....

"नही सर.. अब बहुत हो गया.. जाने दो हमें.." मैं अकड़ सी गयी...

"ज़्यादा बकबक की तो साली की गांद में घुसेड दूँगा ये.. नौ सौ चूहे खाकर अब बिल्ली हज को जाएगी... चुपचाप मान जा वरना अपनी सहेली को बोल के चूस देगी थोड़ा सा... फिर मैं मान जाउन्गा..." सर ने कहा...

अजीब उलझन में आ फाँसी थी मैं... अगर घुस्वा लेती तो फिर मा बन'ने का डर.. पिंकी को बोलती तो बोलती कैसे? वो पहले ही मुझे कोस रही होगी... अचानक सर मेरी तरफ लपके तो मेरे मुँह से घबराहट में निकल ही गया," पिंकी.. प्लीज़..."

पिंकी ने मेरी तरफ घूर कर घृणा से देखा.. और फिर अपना चेहरा दीवार की तरफ कर लिया...

सर अब ज़्यादा मौके देने के मूड में नही थे.. उन्होने ज़बरदस्ती मुझे पकड़ कर सोफे पर गिरा लिया और मेरी टाँगें पकड़ कर दूर दूर फैला दी.. इसके साथ ही मेरी योनि की फाँकें अलग अलग होकर सर को आक्रमण के लिए आमंत्रित करने लगी...

सर ने जैसे ही घुटने सोफे पर रखे.. मैं दर्दनाक ढंग से बिलख पड़ी," पिनकयययी.. प्लीज़.. बचा ले मुझे...!"

सर ने मेरे आह्वान पर मुड़कर पिंकी को देखा तो मेरी भी नज़र उसी पर चली गयी.. पर वह चुपचाप खड़ी रही....

"ऐसी सहेलियाँ बनाती ही क्यूँ है जो तेरे सामने खड़ी होकर भी तेरी सील टूट'ते देखती रहें... ये किसी काम की नही है.. तुझे चुदना ही पड़ेगा आज..." सर ने कहा और मेरी जांघों को फैलाकर फिर से मुझ पर झुकने लगे.. मैं बिलख रही थी.. पर वो 'कहाँ' सुनते? उन्होने वापस अपना लिंग मेरी योनि पर टीकाया ही था कि अचानक खड़े हो कर पलट गये...

"क्या करना है सर?" पिंकी आँखें बंद किए उनके पास खड़ी थी.. और उसकी आँखों से आँसुओं की झड़ी लगी हुई थी......

क्रमशः ..................
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10-22-2018, 11:25 AM,
#18
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--12

गतांक से आगे.......................

"शाबाश.. मेरी पिंकी.. आजा.. तू रो क्यूँ रही है पागल..? एक बार छ्छू कर तो देख.. तुझे भी मज़ा आएगा.. आजा.. मेरे पास बैठ जेया..!" सर सिसकी सी लेकर सोफे पर बैठ गये और उसका हाथ पकड़ कर अपने तने हुए लिंग की तरफ खींचने लगे...

पिंकी अब भी सुबक रही थी.. अपने हाथ को वापस खींचने की कोशिश करते हुए बगैर उनकी तरफ देखे गिड़गिदने सी लगी," जाने दो ना सर..... प्लीज़...!"

सर ने मेरा हाथ अपने दूसरे हाथ में पकड़ा और मुझे अपने लिंग के नीचे लटक रहे 'गोले' पकड़ा दिए.. मैने हल्का सा विरोध भी नही किया और उनके 'वो' अपनी उंगलियों से सहलाने लगी.. उनका लिंग और ज़्यादा अकड़ कर झटके से मारने लगा....

सर ने ज़बरदस्ती पिंकी को खींच कर सोफे पर बैठा ही लिया," अरे देख तो सही.. अंजलि कितने प्यार से कर रही है.. तू भी करके देख.. तुझे मज़ा नही आया तो मैं तुझे छ्चोड़ दूँगा.. तेरी कसम..."

पिंकी का मुँह दूसरी तरफ था.. सर ने उसका हाथ खींच कर अपने लिंग पर रख दिया.. और उसके हाथ को पकड़े हुए अपने लिंग को आगे पिछे करने लगे," हां.. शाबाश.. कुच्छ देर करके देख.. बहुत काम की चीज़ है ये.. देख.. देख..!" कहकर जैसे ही सर ने अपना हाथ वहाँ से हटाया.. पिंकी ने तुरंत अपना हाथ वापस खींच लिया...

" बस.. अब जाने दो सर.. हमें देर हो रही है....!" उसकी आँखों के आँसू थम ही नही रहे थे....

"ठहर जा.. तू अभी ढंग से गरम नही हुई है ना.. इसीलिए बोल रही है.. वरना तो..." सर ने कहा और उसको अपनी बाहों में लेकर अपनी तरफ खींच लिया.. पिंकी छटिपाटाती रही.. पर उंनपर उसके विरोध का कोई असर नही हुआ...

"कर.. ना.. तू क्यूँ रुक गयी?" पिंकी की हालत देख मैं सर के गोले सहलाना भूल कर उसकी तरफ देखने लगी थी.. सर ने गुर्राते हुए मुझे मेरा काम याद दिलाया और पिंकी को सीधी करके अपनी बाँह के सहारे अपनी गोद में झूला सा लिया.. अब पिंकी का मुरझाया और आँसुओं में डूबा हुआ चेहरा सर के चेहरे के पास था...

मैने पिंकी की ओर देखते हुए मुझे सौंपा हुआ काम फिर से चालू कर दिया... सर ने अचानक अपना हाथ पिंकी के कमीज़ में डाला और उपर चढ़ा लिया... पिंकी तड़प उठी.. उसको सर के हाथ मजबूरी में भी अपनी छातियो पर गंवारा नही हुए... और वह घबराकर अपना पूरा ज़ोर लगा कर उठ बैठी... और अगले ही पल खड़ी हो गयी,"छ्चोड़ो मुझे.. मुझसे नही होगा ये सब..."

"तो चूतिया क्यूँ बना रही है साली.. अभी तो पूच्छ रही थी कि क्या करना है.. अब तुझसे होगा नही.. तुझे तो मैं कल देख लूँगा..." सर ने कहा और अपनी खीज मुझ पर उतार दी.. मुझे मेरे बालों से पकड़ा और उनको खींचते हुए घुटनो के बल ज़मीन पर अपने सामने बैठा लिया...," ले.. तू चूस.. बता इसको कितना मज़ा आ रहा है तुझे...." कहकर उन्होने मुझे आगे खींचा और अपने लिंग को मेरे होंटो पर रगड़ने लगे....

मैने एक बार घबरा कर उनको देखा और उनकी आँखों में देखते हुए ही अपने होन्ट खोल दिए...

सर ने सिसक कर अपने लिंग को एक दो बार मेरे खुले होंटो पर गोल गोल घुमाया और फिर अपना काले टमाटर जैसा सूपड़ा मेरे मुँह में ठूंस कर बाहर निकाला," कैसा लगा?"

मैने सहम कर पिंकी की और देखा.. वह तिर्छि नज़रों से मेरे मुँह की ओर ही घूर रही थी...

बाहर निकाल कर सर ने एक दो बार लिंग से मेरे होंटो पर थपकी सी लगाई और मेरे होन्ट खोलते ही फिर से वैसा ही किया... इस बार सूपदे से भी कुच्छ ज़्यादा अंदर करके निकाला था उन्होने... मुझे लगा जैसे उनके लिंग की गर्मी से मेरे होन्ट पिघल से गये हों.. मेरे मुँह में लार भर गयी...

"बता इसको.. कैसा लग रहा है..?" सर ने घूर कर पिंकी की और देखते हुए कहा और फिर मेरी और देखने लगे...

"जी.. अच्च्छा.. लग रहा है..!" मैने जवाब दिया और फिर से उनके मेरे होंटो पर लिंग रखते ही अपने मुँह को खोल लिया.....

"आआआआआहह... क्या चूस्ति है तू..." इश्स बार सर ने अपना लिंग मेरे गले तक थूस दिया था.. जैसे ही उन्होने बाहर निकाला.. मुझे खाँसी आ गयी... और साथ ही आँखों में आँसू भी...

सर का लिंग मेरी लार में लिपट कर चिकना और रसीला सा हो गया था....," उन्होने फिर से मेरे होंटो पर रखा और थोड़ा थोड़ा अंदर बाहर करने लगे..," अया.. इसको बोल.. जितना आज तूने किया है.. ये भी करे... अयाया.. वरना मैं तुझे चोद दून्गाआआ...."

कुच्छ देर बाद उन्होने मेरे मुँह से लिंग निकल लिया," बोल.. क्या कहती है..? इसको मनाएगी या अपनी चुदवायेगी....." उन्होने गुस्सा दिखाते हुए कहा...

मैने मजबूरी वश पिंकी के चेहरे की ओर देखा... उसकी नज़रें मेरी नज़रों से मिली.. पर उसके हाव भाव से मुझे लगा.. वह नही कर पाएगी...," मैं कर तो रही हूँ सर..!" मैने डरते डरते कहा....

"तुझे नही पता यार.. वो गाना है ना.. निगोडे मर्दों का.. कहाँ दिल भरता है... करने को तो तेरी चाची भी बहुत अच्छे से कर देती है... पर 'नये' का मज़ा कुच्छ और ही होता है.. समझी... और फिर 'नया माल नखरे करके मिले तो उसके तो कहने..." अचानक बोलते बोलते वह घबरा कर खड़े हो गये...

अगले ही पल मुझे भी उनकी घबराहट का कारण समझ में आ गया... ऑफीस के बाहर किसी की मेडम से तकरार चल रही थी... और अब आवाज़ें तेज होकर ऑफीस के अंदर तक सुनाई देने लगी.....

"आप ताला खुलवा रही हैं या मैं गाँव वालों को बुलवाऊं...." बाहर से एक मर्दाना आवाज़ सुनाई दी.....

"समझने की कोशिश करो बेटा... मेरे पास चाबी नही है.. मैं खुद चाबी के इंतजार मैं बैठी हूँ..... ंमुझे भी कुच्छ... कुच्छ निकालना है.. अंदर कोई भी नही है.. तुम लोग मेरा विश्वास क्यूँ नही कर रहे...?" मेडम की आवाज़ पूरी तरह हड़बड़ाई हुई सी लग रही थी...

"ओह माइ गॉड! कपड़े पहनो जल्दी.. और पिछे छुप जाओ..." सर की घिग्गी सी बाँध गयी.. उन्होने मेरी स्कर्ट और कछी मेरी तरफ उच्छलते हुए कहा..," बचा ले भगवान! बस आज रक्षा कर ले... वह खड़े खड़े काँप रहे थे.. और हम दोनो भी...

"ठीक है.. जा सोनू! गाँव वालों को इकट्ठा कर ले... !" बाहर से मुझे जानी पहचानी सी आवाज़ आई....

"ओके ओके.. वेट ए मिनिट.. देखती हूँ.. शायद दूसरी चाबी पर्स मैं पड़ी हो.. पर तुम शांत हो जाओ.. ऐसा करने से क्या मिलेगा तुम्हे.... बेटा.. मेरी बात तो.. हां मिल गयी... एक मिनिट.. प्लीज़ शांत रहो!" बाहर से मेडम की कंपकँपति हुई आवाज़ आई....

अगले ही पल दरवाजा भड़ाक से खुल गया... हम दोनो अलमारियों के पिछे जाकर एक दूसरे से चिपक कर सहमे हुए खड़े थे...

कोई तीन चार सेकेंड बाद हमें एक ज़ोर दार चाटे की आवाज़ सुनाई दी.. और इसके साथ ही टेबल के पलटने की...

"ययए.. क्या.. कर रहे हो.. आप लोग.. मैं तो सिर्फ़ यहाँ बंड्ल छांट रहा टीटी..त्त्था...!" सर की कंपकँपति हुई आवाज़ हमारे कानो तक आई...

"साले.. बहनचोड़.. तेरे बंड्ल तो हम छत्वयेन्गे.. हमारे गाँव की लड़कियों के साथ..." इस आवाज़ के तुरंत बाद हमें 'सर' के करहने की आवाज़ सुनाई दी...

"कहाँ हो.. पिंकी और अंजलि.. बाहर निकल आओ.. हमने सब कुच्छ देख लिया है.. बाहर निकलो वरना हम खींच कर निकालेंगे..." ये आवाज़ मैं तुरंत पहचान गयी.. तरुण की थी....

हमने एक दूसरी की आँखों में देखा और बाहर निकल कर उनके सामने चले गये... दूसरा लड़का वही था जो सुबह तरुण की मोटरसाइकल के पिछे बैठा था... हमारे गाँव का ही था.. पर मुझे उसका नाम नही पता था...

पिंकी थरथरती हुई रो रही थी... अचानक तरुण उसके पास आया और एक ज़ोर का चांटा उसके गाल पर मारा... पिंकी लड़खड़ा कर मुझसे टकरा गयी... मैने उसको संभाला.. वह सीधी खड़ी होते ही मेरे पिछे छिप गयी....

"हॅराम्जाडी.. ये सब करने के लिए ही पढ़ा रहे हैं हम तुझे..." तरुण ने कहा और गुस्से से तमतमाया हुआ सर की ओर बढ़ा...

इसके बाद तो दोनो सर पर पिल पड़े.. तीन चार मिनिट में ही उन्होने सर को लात घूसे मार मार कर नीला कर दिया... सर छ्चोड़ने के बाद भी नीचे पड़े पड़े कराहते रहे....

"बेटा.. कूल डाउन.. य्य्ये.. इस बच्ची का पेपर रह गया था.. बस.. इसीलिए.." मेडम भी डरी डरी सफाई देने की कोशिश कर रही थी कि अचानक दूसरा लड़का गरजने लगा...," चुप साली रंडी.. तू इसीलिए बोल पा रही है क्यूंकी हमने तुझे छ्चोड़ दिया.. हमने सब देखा है.. उपर इन्न रोशनदानो से.. कहो तो रेकॉर्डिंग दिखायें.. बात करती है...!"

"प्पपर मुझे कुच्छ नही पता बेटा.. सरस्वती मा की कसम.. अंदर क्या हो रहा.. था.. तुम जो चाहो करो.. मैं कुच्छ नही बोलूँगी...मंमुझे कुच्छ नही पता.." बोलकर मेडम पिछे दीवार से जा सटी...

तरुण ने हमें घूर कर देखा...," चलो अब.. या बॅंड बाजे वाले लाने पड़ेंगे..."

पिंकी खड़ी खड़ी काँप रही थी.. मैं अपना सिर झुका कर निकली तो वो भी मेरे पिछे पिछे चल दी...

पिंकी रास्ते पर चलते चलते बुरी तरह रो रही थी... मैने उसको चुप हो जाने को कहा तो उसका बिलखना और बढ़ गया... एग्ज़ॅम टाइम बंद हुए को करीब 1:30, 2 घंटे हो चुके थे... हम कुच्छ दूर ही चले होंगे की तरुण की बाइक हमारे पास आकर रुकी.. बाइक रुकते ही सोनू नीचे उतर गया और तरुण ने पिंकी को घूर कर गुस्से से कहा," बैठो!"

पिंकी की ना करने की हिम्मत ही ना हुई.. वह बाइक पर एक तरफ पैर करके बैठ गयी...

"दोनो तरफ पैर करके मुझसे चिपक जाओ.. इन्न दोनो को भी बैठना है.. समझी!" तरुण की आवाज़ इस बार भी वैसी ही रूखी थी...

पिंकी ने वैसा ही किया.. नीचे उतरी और दोबारा दोनो तरफ पैर करके बैठ गयी.... उसके बाद उन्होने मुझे बैठने को कहा... मेरे बैठते ही वो दूसरा लड़का भी मुझसे बिल्कुल चिपक कर बैठ गया और अपनी जांघों से मुझे आगे खिसका दिया..

उसके लिंग का तनाव मुझे अपने नितंबों पर सॉफ महसूस हो रहा था...

तरुण ने बाइक स्टार्ट नही की," क्यूँ साली.. मुझे थप्पड़ मारती है.. अब तेरी ऐसे मारूँगा, तुझे जिंदगी भर याद रहेगा!" तरुण ने गुस्से से नीचे थूक दिया....

पिंकी कुच्छ बोल नही पा रही थी.. बस.. अवीरल रोए ही जा रही थी.... मुझे अहसास हो चुका था कि हम आसमान से गिरकर खजूर में अटक गये हैं....

"अच्च्छा हुआ जो हम इन्हे देखते हुए स्कूल पहुँच गये... यहाँ इनका इंतजार करते रहते तो ये अपनी मरवा कर आ जाती.. और हमारे पास इतना मस्त सबूत ना होता.. इनको जी भर कर जहाँ मर्ज़ी, जैसे मर्ज़ी चोदने के लिए.... नही?" पीछे वाले ने कहा और अपने हाथ मेरे और पिंकी के बीच फँसा कर मेरी चूचियो को पकड़ लिया....

"हुम्म.. सबूत तो मस्त है.. साली को अपने कबूतर उस मास्टर से मसळवते रेकॉर्ड किया है मैने.. और उसका लंड हाथ में पकड़े हुए.. चेहरा एकदम सॉफ है इसका....." तरुण ने ये कहकर तो हमारे होश ही उड़ा दिए.....

"हुम्म.. और इसके भी तो... ये तो साली चूस ही रही थी...." उस लड़के ने मेरी करतूत का जिकर किया....

"इसका कुच्छ चक्कर नही है.. ये तो बेचारी शरीफ है.. जब माँगेंगे दे देगी... बात तो इसस्सकी थी ना...!" बोलते ही तरुण ने पिंकी के पेट में कोहनी मारी.. वह तड़प कर पिछे खिसकी और मैं उस लड़के की जांघों पर ही जा बैठी...

"छ्चोड़ यार.. अब जल्दी चल.. वरना यहाँ बैठे बैठे मेरा लौदा इसकी गांद में घुस जाएगा.. और सहन नही हो रहा मुझसे..." मेरे पिछे बैठे हुए लड़के ने कहा.....

"अब क्यूँ फिकर करता है सोनू.. अब तो इस मछ्लि को जवानी भर भी अपने जाल से निकलने नही दूँगा... बस थोड़ा सा सब्र कर... मैने कसम खाई है कि इसकी बेहन को इसके आगे चोदुन्गा और इसको इसकी बेहन के आगे चार लड़कों से इकट्ठे चुद-वाउन्गा.... साली नैतिकता की बात कर रही थी मेरे सामने... मुझको गालियाँ दे रही थी ये..." तरुण ने कहा और बाइक चला दी.....

"वो तो ठीक है.. वो सब तो चलता ही रहेगा यार... पर आज की मेहनत का फल तो ले लें.. सालियों को एक एक बार चोद लेते हैं.... यहाँ जंगल में ले जाकर..." सोनू ने बोलते हुए मेरी चूचियो को बुरी तरह मसल दिया.. उसका लिंग मेरे नितंबों की दरार में घुसता ही चला जा रहा था.....

"हुम्म.. ठीक कह रहा है.. कस्में तो बाद में भी पूरी होती रहेंगी... मेरी भी पॅंट फटने वाली है.. आगे से रास्ता जाता है एक.. जंगल के बीच वाले तालाब पर ले चलते है.. धो धो कर मारेंगे इनकी वहाँ.. इसकी फेडक तो आज ही निकाल देते हैं.. क्यूँ पिंकी.. आज दिखाना अपने तेवर साली.."

तरुण ने अपनी बात पूरी की भी नही थी कि अचानक साइड से निकलते हुए किसी बाइक वाले ने उसको आवाज़ दी," अर्रे.. तरुण बेटा!"

"पापा!" आवाज़ सुनते ही पिंकी चिल्ला पड़ी..," रोक दो बाइक.. पापा आ गये..!" उसकी आवाज़ में भय और खुशी दोनो का मिश्रण था.... वो एक बार फिर रोना शुरू हो गयी....

"सस्सला.. आज किस्मत ही खराब है.. खबरदार अगर किसी बात का जिकर किया तो.. उनको कुच्छ भी पता चला तो मैं पहले तुम्हारी रेकॉर्डिंग ही दिखाउन्गा उनको.." बुरा सा मुँह बनाए हुए तरुण ने लगभग 100 गज दूर जाने के बाद बाइक रोकी..

इसके साथ ही सोनू के नीचे उतरते ही हम दोनो भी झट से नीचे आकर खड़े हो गये.. पिंकी के पापा बाइक वापस घुमा रहे थे...

"सोच लेना तुम्हे क्या कहना है..? हम तो यही कहेंगे कि शहर से आ रहे थे तो ये अभी आते हुए मिली.. वरना तुम खुद ही सोच लेना.. किसका नुकसान है...?" तरुण ने पिंकी को धमकाते हुए सा कहा... उसने अपने आँसू पौंच्छ लिए... हालात ऐसे हो गये थे कि हमें उनसे डर लग रहा था.. और उन्हे हमसे!

तभी पिंकी के पापा ने बाइक लाकर वहाँ रोक दी.. उनका पहला सवाल हमसे ही था..," इतनी लेट कैसे हो गयी तुम दोनो.. हमें तो चिंता होने लगी थी... और ये तुम्हारी आँखें लाल क्यूँ हो रखी हैं.. तू तो रोई हुई लग रही है.. क्या बात है... बेटी?"

"पापाआ!" पिंकी अपने मंन में चल रही ग्लानि और घृणा की आँच को सहानुभूति की हुल्की सी हवा मिलते ही भड़कने से रोक ना पाई.. वह फिर से बिलख पड़ी और जाकर अपने पापा से लिपट कर फुट फुट कर रोने लगी....

उसके पापा प्यार से उसका सिर पुच्कार्ते हुए बोले..," क्या हो गया बेटी..? पेपर अच्च्छा नही हुआ क्या?" पिंकी ने जब कोई जवाब नही दिया तो उन्होने मेरी ओर देखा...

"जी चाचा.. पेपर अच्च्छा नही हुआ आज का.. इसीलिए अब तक स्कूल में बैठी हुई रो रही थी... अब मुश्किल से उठा कर लाई हूँ इसको..." मुझे चाचा की कही बात पकड़ लेना ही उचित लगा....

मेरी बात सुनते ही उन्न दोनो की जान में जान सी आ गयी," हा चाचा जी.. ये भी कोई रोने की बात है भला.. अभी हम आ रहे थे तो भी रास्ते में रोती हुई चल रही थी.... हमने बैठा लिया.. बड़ी मुश्किल से चुप करवाया था कि आपको देख कर फिर रोने लगी..." तरुण ने मेरी हां में हाँ मिलाते हुए कहा....

"चल पगली.. हो गया तो होने दे खराब.. इस पेपर में रह ही तो जाएगी.. कोई फाँसी पर तो नही लटका रहा कोई तुझे.... देख.. तू तो मेरी कितनी लाडली बेटी है.. चल घर चल.. कोई तुझे कुच्छ नही कहेगा... मैं तेरे लिए शहर से सेब लाया हूँ.. बस.. देख अब चुप हो जा... नही तो.." चाचा ने पता नही पिंकी के कान में क्या कहा कि वह एकदम खिलखिला उठी.. पर उसकी आँखों से अब भी आँसू छलक रहे थे...

"आओ बैठो..!" चाचा ने बाइक स्टार्ट करते हुए हमसे कहा और फिर तरुण से बात करने लगे," क्या बात है बेटा? घर का रास्ता ही भूल गये अचानक.. जब तक इनके पेपर चल रहे हैं.. तब तक तो पढ़ा दो! वो मीनू भी नही पढ़ती आजकल.. घर आकर खबर लो उसकी भी....."

"जी चाचा जी.. वो कुच्छ बिज़ी था... आज से आउन्गा रोज!" तरुण ने कहा और मेरी तरफ देख कर कुच्छ इशारा सा करते हुए बोला," अंजू!.. तुम भी आ जाना.. कुच्छ ज़रूरी सवाल करवा दूँगा..."

उसका इशारा समझते ही मैने नज़रें झुका ली.. मेरी तरफ से जवाब चाचा जी ने दिया," हां हां.. आ जाएगी! आएगी क्यूँ नही?" उन्होने कहा और बाइक चला कर घर की तरफ चल दिए........

"तूने कुच्छ बताया तो नही चाचा चाची को...?" मैने घर जाते ही अपने कपड़े बदले और अगले पेपर की किताबें उठा कर वापस पिंकी के घर आ गयी....

पिंकी नीचे ही अपनी किताबें खोल कर अकेली बैठी थी... मीनू शायद उपर ही होगी... मुझे देखते ही भड़क गयी," मुझे नही पता था कि तू इतनी गंदी है.. तेरी वजह से देख क्या हो गया..!"

"एम्म..मैं? मैने क्या किया है? मुझ'से किसलिए ऐसे बोल रही है तू?" मैने भी अकड़कर गरम लहजे में ही उसको जवाब दिया...

"और नही तो क्या? मैं तो ये सोच कर ऑफीस में चली गयी थी कि सर अच्छे हैं.. सिर्फ़ पेपर करने देने के लिए अंदर बुला रहे हैं.. पर तू तो सब जानती थी ना..? तूने मुझे भी..." पिंकी अपनी बात को अधूरी छ्चोड़ कर ही अपने घुटनो में सिर फँसा कर रोने लगी...

मैं उसके पास जाकर बैठ गयी और उसको सांत्वना देने की कोशिश की," सच पिंकी.. मुझे नही पता था कि वो ऐसे निकलेंगे... मैं भी यही सोच कर अंदर गयी..." बोलते हुए मैने जैसे ही उसका चेहरा उपर उठना चाहा.. उसने मेरा हाथ झटक दिया.. और रोती हुई बोली..

" अब ज़्यादा नाटक करने की ज़रूरत नही है.. मैने क्या सुना नही कि सर क्या कह रहे थे.. तूने दिन में ज़रूर उनके साथ ऐसा ही कुच्छ किया होगा.. तभी तू इतनी देर से वापस आई थी रूम में... वो कह भी तो रहे थे.. कि दिन में तो तू खुशी खुशी सब कुच्छ कर रही थी.. और मेरे सामने भी तो... बेशर्म कहीं की" कहकर पिंकी ने अपने चेहरे के आँसू पौन्छे और गुस्से से मेरी और देखने लगी...

"पर... वो मेरी मजबूरी थी पिंकी.. तू भी तो उसके पास जाकर बैठ गयी थी आराम से.. तूने भी तो उसका पकड़ लिया था...." मैने उसको याद दिलाया....

"कितनी गंदी है तू.. मैने तेरे लिए... और तू मुझे भी..." कुच्छ याद करके वो फिर बिलख उठी," वो तो.. अच्च्छा हुआ पापा आ गये हमें लेने.. नही तो पता नही क्या होता..."

ठीक ही तो कह रही थी पिंकी.. वो मुझे बचाने के लिए ही तो सर के पास गयी थी.. मुझे आवेश में अपनी कही गयी बात का बड़ा अफ़सोस हुआ," सॉरी यार.. मेरा भी दिमाग़ खराब हो गया है.." मैने बुरा सा मुँह बनाकर कहा..," अब छ्चोड़ पिच्छली बातों को.. ये बता अब क्या करें..? वो तो कह रहे हैं कि उन्होने हमारी रेकॉर्डिंग कर ली है.... "

"मैने तो सोच लिया है.. शाम को मम्मी को सब कुच्छ सच सच बता दूँगी.. जो होगा देखा जाएगा.. मम्मी पापा मुझपे पूरा विश्वास करते हैं... वो अपने आप देख लेंगे उस कमिने को...!" पिंकी की बात सुनकर ऐसा लगा.. जैसे वो फ़ैसला कर ही चुकी है...

मैं अंदर तक सिहर गयी.. उसके मम्मी पापा तो भरोसा कर लेंगे.. पर बात मेरे घर वालों तक पहुँच गयी तो मेरा क्या होगा? मेरे पापा तो," नही पिंकी.. ऐसा मत करना प्लीज़!"

"क्यूँ? अपनी मम्मी को नही बताउन्गी तो और किसको बताउन्गी.. आख़िर मम्मी पापा इसीलिए तो होते हैं.. वो अपने आप सब ठीक कर देंगे.. और उस तरुण को भी सबक सीखा देंगे...." पिंकी ने गुस्से से कहा...

"वो तो ठीक है पागल.. घर वाले तो विश्वास कर लेंगे.. पर उन्होने अगर वो रेकॉर्डिंग बाहर दिखा दी तो... बाहर वाले तो विश्वास नही करेंगे ना.. सोच.. फिर हम बाहर कैसे निकल पाएँगे...." अचानक उपर से किसी के नीचे आ रहे होने की आवाज़ आई और मुझे चुप हो जाना पड़ा...

मीनू ने आते ही मुझसे पूचछा," तेरा पेपर कैसा हुआ अंजू?"

"बस.. ठीक ही हुआ है दीदी!" मैने जवाब दिया... मुझे नही पता था कि पिंकी ने उसको कुच्छ बताया है या नही....

"पापा बता रहे थे कि तुम दोनो आज तरुण के साथ आ रही थी रास्ते में..."मीनू ने रूखी सी आवाज़ में पूचछा...

"हूंम्म..." मैने भी यूँही आनमना सा जवाब दिया....

"कुच्छ बोल रहा था क्या?" मीनू ने प्रशंसूचक निगाहों से मेरी और देखकर पूचछा ही था कि पिंकी एक बार फिर सुबकना शुरू हो गयी...

"आए... आए पागल... रो क्यूँ रही है.. बता ना बात क्या है? मुझे लगता है कि तुम्हारे साथ ज़रूर कुच्छ ना कुच्छ हुआ है... कुच्छ कहा क्या तरुण ने?" मीनू ने ज़बरदस्ती पिंकी को अपनी छाती से चिपकाते हुए पूचछा और फिर मेरी ओर देखा," बता ना अंजू.. बात क्या है? मेरा दिल बैठा जा रहा है.. पेपर की बात को तो ये इतनी सीरीयस ले ही नही सकती...."

मैं चुपचाप टकटकी बाँधे पिंकी की ओर देखती रही.. मीनू को सब कुच्छ बताने में मुझे कोई ऐतराज नही था.. आख़िर मैं भी तो उसकी हुमराज थी.. पर मैं पिंकी के इशारे का इंतजार कर रही थी....

"तू उपर जा पिंकी.. थोड़ी देर!" मीनू को विश्वास था कि कोई भी बात हो.. मैं उसको.. अकेले में ज़रूर बता दूँगी....

"नही.. बता दे अंजू! .. मैं कुच्छ नही बोलूँगी..." पिंकी ने कहा और कंबल ओढ़ कर लेट गयी.. मीनू ने मुझे बात बताने का इशारा किया...

"ववो.. स्कूल में एक सर ने हमें पेपर टाइम के बाद पेपर करने देने का लालच देकर ऑफीस में बुला लिया था...." मैने बात शुरू की ही थी की मीनू आगे की घटना को भाँप कर गुस्से से बोली," तुम पागल हो क्या? ऐसे कैसे चली गयी.. तुम्हे समझना चाहिए था कि सैकड़ों बच्चों में से उन्होने तुम्हे ही क्यूँ बुलाया..? .... फिर?" उसने निराशा भरी उत्सुकता से मेरी ओर देखा...

"नही.. ववो... पेपर टाइम में मेरे पास से उनको एक नकल मिल गयी थी.. काफ़ी देर तक उन्होने मेरा पेपर अपने पास रख लिया.. बाद में दया करके उन्होने बोला था कि मैं तुम्हे बाद में थोड़ा सा टाइम दे दूँगा.. ऑफीस में आ जाना... इसीलिए..." मैने उस पर विश्वास करने का कारण बताया...

तभी पिंकी कंबल के अंदर से ही सुबक्ती हुई बोल पड़ी..," झूठ बोल रही है ये.. दीदी! इसको पता था कि वो गंदी हरकत भी करेंगे..."

मैं उसकी बात को काट नही पाई.. नही तो पिंकी और ज़्यादा डीटेल में मेरी बे-इज़्ज़ती करती.. तभी मीनू खुद ही बोल पड़ी," तू चुप हो जा थोड़ी देर पिंकी.." और फिर मेरी और देखते हुए घबराहट से बोली," फिर.. फिर क्या हुआ?"

"फिर.. हम पेपर कर ही रहे थे कि वो बकवास करने लगे.. हमें छेड़ने लगे.. कहने लगे कि मैने इतना बड़ा रिस्क ऐसे ही नही लिया है..." मैने आगे कहा...

"ये आदमी सच में ही कुत्ते होते हैं..." मीनू जबड़ा भींच कर बोली.... और मुझसे आगे की बात सुन'ने के लिए मेरी ओर देखने लगी...

"फिर.. हमने उनसे रिक्वेस्ट बहुत की.. पर वो माने ही नही.. दरवाजा बाहर से मेडम ने बंद किया हुआ था... हम बाहर निकल ही नही सकते थे.. शोर करते तो हमे डर था कि कहीं कोई ओर ना आ जाय

मीनू पता नही क्या समझ गयी..," अपनी छाती पर हाथ रख कर 'हे भगवान' कहा और अपनी आँखों में आँसू ले आई....

"नही.. ज़्यादा कुच्छ नही हुआ.. तभी अचानक तरुण और सोनू वहाँ आ गये.. और उन्होने ताला खुलवा कर सर को बहुत पीटा..." मैं बीच की बातों को खा गयी.. मुझे पता था कि वहाँ मेरा ही कुसूर निकलेगा...

"तरुण!" मीनू की आँखें चमक उठी.. सपस्ट दिख रहा था की एक बार फिर उसकी आँखों में तरुण के लिए प्यार उमड़ आया है...," पार.. तरुण वहाँ कैसे पहुँचा?" मीनू ने आनंदित सी होते हुए पूचछा...

"पता नही.. शायद वो पेपर के बाद हमारे इंतज़ार में थे.. फिर हमें ढूँढते हुए स्कूल तक आ गये होंगे और हमारी आवाज़ें सुन ली होगी..."

"शुक्रा है... तो इसीलिए तुम दोनो उसके साथ आ रही थी... मुझे तो विस्वास ही नही हो रहा कि वो ऐसा कर सकता है..." मीनू के हाव भाव मंन ही मंन तरुण का शुक्रिया अदा कर रहे थे.. अचानक कुच्छ सोच कर वो बोल उठी," पर.. वो तुम्हारा इंतजार क्यूँ कर रहे थे?"

"पहले आप सारी बात सुन लो दीदी!" मैने सकुचाते हुए कहा....

"हां.. बोलो!" मीनू ने कहा और चुप हो गयी...

"वो.. ववो.. उसने ऑफीस के अंदर की हमारी फोटो खींच ली.. और..." मैने आगे बोलने से पहले मीनू की ओर घबराकर देखा...

"ओह्ह.. तो ये बात है! मैने सोचा कि उन्होने तुम्हे बचाया है.. कुत्ता.. कमीना... पर तुम क्यूँ घबरा रही हो.. फँसेगा तो 'वो' सर ही फँसेगा ना...!" मीनू ने हमें आश्वस्त करने की कोशिश की...

"नही.. वो कह रहे थे कि उन्होने हमारी सर के साथ गंदी तस्वीरें उतार ली हैं..." मैने हिचकते हुए कहा...

"हे भगवान.. अब क्या होगा.." मीनू चारपाई पर बैठी हुई थरथर काँपने लगी....," ऐसा क्या कर रहे.... थे वो.. तुम्हारे साथ..." मीनू का चेहरा पीला पड़ गया...

"ववो.. उसने पिंकी की कमीज़ में हाथ डाला हुआ था.. और इसके हाथ में... अपना 'वो' पकड़ा रखा था..." कहने के बाद मैने नज़रें झुका ली.. आगे कुच्छ पूच्छने की मीनू की हिम्मत ही ना हुई.. उसकी आँखों से टॅपर टॅपर आँसू बहने लगे... मीनू की सिसकियाँ सुन कर पिंकी भी बिलख उठी और उठकर मीनू से लिपट गयी..," अच्च्छा हुआ दीदी पापा आ गये.. वरना वो तो हमें जंगल में ले जाने की बात कर रहे थे...." पिंकी ने भी मेरी बात का जिकर नही किया...

मीनू अब भी थर थर काँप रही थी..," अब क्या होगा...?"

"कुच्छ नही होगा दीदी.. मैं मम्मी को सब कुच्छ बता दूँगी.. आप बताओ.. इसमें मेरी क्या ग़लती है..." पिंकी मीनू से चिपके हुए ही बोलती रही....

"ना पागल.. मम्मी को कुच्छ मत बताना.. मम्मी को मत बताना कुच्छ भी..." मीनू ने जाने क्या सोच कर मेरे मंन की बात कह दी.. शायद उन्हे साथ ही अपनी पोले खुलने का भी डर होगा...

क्रमशः ..............................

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Reply
10-22-2018, 11:25 AM,
#19
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--13

गतांक से आगे.......................

"कौन है?" जैसे ही बाहर दरवाजे पर ख़त खाट हुई.. हम सब अचानक चुप हो गये.. हमारी तरफ से ये लगभग तय हो चुका था कि हम किसी को बताए बिना ही कुच्छ तरीका निकालने की सोचेंगे.. पिंकी ने भी काफ़ी देर तक रोते रहने के बाद शायद परिस्थितियों से समझौता कर लिया था.. हम सब अब तरुण के कामीनेपन की बात कर रहे थे.. और मीनू हमें कुच्छ और बातें बताने वाली थी जो कॉलेज में उसके साथ तरुण आज कल कर रहा था...

बाहर से कोई जवाब नही आया.. कुच्छ देर बाद अचानक किसी ने फिर दरवाजा खटखटाया..

"मैं देखती हूँ..!" कहकर मीनू उठी और दरवाजे के पास जाकर फिर पूचछा..," कौन है?"

"मैं हूँ.. दरवाजा खोलो!" बाहर से आवाज़ आई...

मीनू अचानक क्रोधित सी हो गयी.. फिर अपने आप पर काबू पाते हुए घूम कर बोली,"वही है.. तरुण!"

"दरवाजा मत खोलना दीदी.. उस कामीने को घर में मत घुसने दो..!" पिंकी लगभग चिल्लाते हुए बोली...

मीनू ने एक लंबी साँस ली और गुमसूँ सी आवाज़ में बोली," अब ऐसा करने से क्या होगा..? देखें तो सही.. ये अब क्या कहेगा...?"

"नही दीदी.. आप बिल्कुल भी इस कुत्ते को अंदर मत आने दो.. मैं इसकी शकल भी देखना नही चाहती..!" पिंकी उखड़ कर खड़ी हो गयी.. और अपनी आँखों में अजीब से भाव ले आई....

"समझा करो!" मीनू ने हताश होकर कहा...

"नही दीदी.. इसको अंदर नही आने देना है.. वरना मैं अभी उपर जाकर मम्मी को सब बता दूँगी..." पिंकी मान'ने को तैयार ही ना हुई....

"ठीक है.. जैसी तुम्हारी मर्ज़ी.." मीनू वापस चारपाई पर आकर बैठ गयी," पर इस'से फायडा क्या होगा पिंकी? ये कल फिर नाटक करेगा...!"

तभी हमें तरुण की उँची आवाज़ सुनाई दी," चाची जी...! ओऊओ चाची जी!"

"हां.. कौन है? अरे बेटा तरुण!.. वो बच्चे नीचे ही पढ़ रहे हैं.. दरवाजे पर हाथ मार दो..." उपर से चाचा जी की आवाज़ आई....

"दरवाजा नही खोल रही.. सो तो नही गयी हैं वो?" तरुण ने जवाब दिया...

"अभी से कैसे सो जाएँगी... ? मैं आता हूँ..." चाचा जी ने कहा और अगले ही पल उनके कदमों की आहट हमें जीने में सुनाई दी... सब चुप होकर किताब में देखने लगे....

"अरे भाई.. दरवाजा क्यूँ नही खोल रहे तुम लोग..? बाहर तरुण खड़ा है.." चाचा जी ने आकर हमें पढ़ते देखा और दरवाजा खोल दिया...

"ववो.. हमें सुनाई ही नही दिया.." मीनू ने किताब में देखते हुए ही जवाब दिया...

"नमस्ते चाचा जी.." तरुण ने अंदर आते ही दोनो हाथ जोड़ कर मुस्कुराते हुए प्रणाम किया...

"नमस्ते बेटा तरुण! देखना कहीं कल वाला पेपर भी आज की तरह ही बेकार ना हो जाए.. आज बड़ी मुश्किल से चुप कराया है इसको..." चाचा जी ने कहा और बोले," भाई.. हम तो मूवी देख रहे हैं.. शोले.. बड़ी मस्त पिक्चर है.. मैं तो चलता हूँ... तुम लोग पढ़ लो!"

"कोई बात नही चाचा जी.." तरुण ने कहा और चाचा जी के उपर चढ़ते ही अपने असली रूप में आ गया," यहाँ मुझे भी काफ़ी अच्छि मूवी देखने को मिलेगी आज.. हे हे हे..."

हम तीनो किताबों में आँखें गड़ाए बैठे रहे.. किसी ने उसकी तरफ देखा तक नही.. सिवाय मेरे.. मैने भी बस हल्की सी नज़र उठा कर ही उसको देखा था...

"क्या बात है.. ऐसा गुस्सा तो मैने किसी को आते नही देखा... कब तक ऐसे ही बैठे रहोगे...?" तरुण ने कहा और मेरे पास आकर बैठ गया,"क्या बात है लाडो! आज तो स्कूल में ही काम चालू कर रखा था.. क्या मस्त सीन था यार..?" कहते हुए उसने मेरी जाँघ पर हाथ रख दिया और धीरे धीरे सहलाने लगा.... मैने उसकी हरकत का कोई विरोध नही किया....

"दीदी.. इस कामीने को बोल दो यहाँ से चला जाए.. वरना मैं अभी सब कुच्छ मम्मी को बता दूँगी..." पिंकी ने गुस्से से मीनू की और देखते हुए कहा और रोने सी लगी...

"अच्च्छा! ओह ले ले ले ले ले.. मम्मी को बता देगी मुनिया..." तरुण ने उसकी बात का मज़ाक सा बनाया और फिर चेहरे पर ख़ूँख़ार से भाव लाते हुए कहा,"जा! बता दे जिसको बताना है.. मुझे भी मौका मिल जाएगा बताने का.. आख़िर कब तक इतनी बड़े राज को दिल में छुपा कर रखूँगा... मैं सबूत भी साथ लाया हूँ..!" तरुण ने कहा और गंदी सी हँसी हँसने लगा....

पिंकी गुस्से में लाल पीली होती हुई तपाक से खड़ी हो गयी.. अब तक तो वह उपर जा भी चुकी होती.. अगर मीनू ने उसका हाथ ना पकड़ लिया होता," मान तो जा पिंकी.. बैठ जा आराम से.. मैं तुझसे बाद में बात करूँगी.. मान जा प्लीज़!"

"पर दीदी.. आप मुझे बताने दो ना मम्मी को.. आपको क्या फ़र्क पड़ता है.. मम्मी गुस्सा करेंगी तो मुझ पर करेंगी.. इसके चेहरे से तो नकाब हट जाएगा ना.. कुच्छ नही होगा.. आप विश्वास करो.. मम्मी हमारी ही बात का विश्वास करेंगी.. इस 'कुत्ते' की बात का नही.. छ्चोड़ दो मुझे.. बस एक बार उपर जाने दो...

"हां हां.. जाने दो ना.. क्यूँ पकड़ रखा है बेचारी को..? मम्मी तो इसकी ही बात का विश्वास करेंगी ना!" तरुण ने उत्तेजित होते हुए कहा...

"मान जा पिंकी.. प्लीज़..!" मीनू ने उसका हाथ पकड़े रखा...

"पर क्यूँ दीदी?.. मुझसे ये यहाँ बैठा हुआ देखा नही जा रहा..." पिंकी ने एक बार भी तरुण के चेहरे की ओर नही देखा था....

"इसके पास..." मीनू बोलते हुए बिलख पड़ी..," मेरे भी सबूत हैं... मैने इसकी बातों में आकर इसको लेटर लिखे थे.. कयि बार तो इसने खुद लिख कर भी मेरी राइटिंग में मुझसे कॉपी करवाए हैं.. मैं इसकी बातों में आ गयी थी पिंकी.. कयि लेटर बहुत गंदे हैं.. मान जा प्लीज़!" मीनू ने कहने के बाद पिंकी का हाथ छ्चोड़ दिया.. पर पिंकी उपर नही जा पाई और अपने कंबल में घुस कर सुबकने लगी.....

"नही नही.. फिर भी.. तुम्हारी मर्ज़ी है! मैं तो इतना ही शरीफ हूँ.. पिंकी ने थप्पड़ मारा.. मैने कुच्छ नही कहा.. अब चाचा चाची भी पीट लेंगे.. मेरा क्या जाता है?" तरुण ने चटखारा सा लेकर कहा और अपना हाथ सरकाते हुए मेरी जांघों की जड़ तक ले गया.. मैं कसमसा उठी.. पर मैने उस समय उसके हाथ को वहाँ से हटाना चाहा....

"अच्च्छा.. इनकी देखा देखी अब तू भी आँख मटकाने लगी.. तेरे से तो मैं बाद में निपट लूँगा.. बहुत अच्च्छा सोच रखा है तेरे बारे में.." उसने कहा और अपना हाथ वहाँ से हटा लिया..

"तुम..." मीनू की आँखों में आँसू उमड़ आए..," तुम चाहते क्या हो तरुण? क्यूँ हमारी जिंदगी बर्बाद करने पर तुले हुए हो.. क्या मिल जाएगा तुम्हे?"

"तुम सब जानती हो जान! फिर पूच्छ क्यूँ रही हो.. बात तो तुम्हे मान'नि ही पड़ेगी.. आज नही तो कल.. मैं तो तुम्हारे फ़ायदे के लिए ही यहाँ आया हूँ... वरना मुझे शहर में कोई जुगाड़ करना पड़ा तो जिसके कमरे पर ले जाउन्गा.. वो भी लालच करेगा.. समझ रही हो ना तुम!" तरुण ने जिस अंदाज में बात कही थी.. मैं भी सिहर उठी...

मीनू ने अपनी नज़रें झुका ली और अंदर ही अंदर सुबक्ती रही.. लग रहा था.. जैसे वो पूरी तरह टूट चुकी है," मैं.. तुम्हारी बात मान लूँगी तरुण.. मुझे बस थोड़ा सा वक़्त दो.. तुम नही जानते मुझ पर क्या बीत रही है.. जो कुच्छ भी हुआ.. उसमें मैं खुद अपनी ग़लती मान रही हूँ... मैं.. मैं ही नीच थी जो ऐसा वैसा सोचा.. तुमसे... " मीनू फफक पड़ी.. पर उसने बोलना जारी रखा," तुमसे प्यार किया.. ....तुम्हारे.... दिखाए हुए सपने...... अपनी आँखों में बसा लिए.. इसमें तुम्हारा क्या दोष है तरुण... है ना?"

"देखो.. मुझे अब एमोशनल करके और बेवकूफ़ बनाने की कोशिश मत करो.. कितने दीनो से मैं तुम्हारी यही बात सुनता आ रहा हूँ... तुम हर बार.. अपने आँसू दिखा कर मुझे मजबूर कर देती हो... आज कुच्छ मत कहो.. सिर्फ़ ये बताओ कि करना है या नही.. वरना मैं कल सारी चीज़ें अपने दोस्तों में बाँट दूँगा.. फिर करती रहना उनको इकट्ठे.. एक एक के कमरे पर जाकर..!"

पिंकी जो अब तक कंबल में लिपटी सूबक रही थी.. अचानक उठ बैठी और बिफर पड़ी," लो.. कर लो तुम्हे जो करना है.. आ जाओ.. सो जाओ मेरे साथ.. पर मेरी दीदी को कुच्छ मत कहो.. इनके सारे लेटर वापस दे दो..." पिंकी की आवाज़ में गुस्सा और तड़प दोनो ही बराबर थे... मुझे दोनो बहनो की बड़ी दया आ रही थी.. बेचारी किस उलझन में फँस गयी दोनो .. और एक तो.. मुझे अहसास था कि एक तो मेरी वजह से ही फँस गयी थी... शायद इसको ही कहते हैं 'कोयले की दलाली में मुँह काला'

पर तरुण जाने किस मिट्टी का बना हुआ था.. उसके चेहरे पर एक शिकन तक ना आई.. उल्टा बेशार्मों की तरह खिलखिलाने लगा," ये हुई ना बात! बोलो.. क्या कहती हो? शुरुआत किस'से करूँ?"

"तुम चुप हो जाओ पिंकी! तुम उपर जाकर पढ़ लो..." मीनू ने कहा..

"नही.. मैं आपको छ्चोड़ कर कहीं नही जाउन्गि.." पिंकी ने कहा और वापस लेट कर सुबकने लगी...

शायद पिंकी वाला आइडिया उसके जेहन में चढ़ गया था," ठीक है.. जो चाहो.. मेरे साथ कर लेना.. पर आज की रेकॉर्डिंग मेरे सामने डेलीट कर दो पहले... बोलो!" मीनू ने अपने आँसू पौंचछते हुए कहा...

तरुण कुच्छ देर चुप चाप उसको देखता रहा.. फिर बोला," आज नही.. कल कर दूँगा.. तुम्हारे सामने!"

"नही.. ये बात मेरी मान लो.. अभी सब कुच्छ डेलीट करो मेरे सामने... और वो सारे लेटर भी आज ही ले आओ.. मैं आज के बाद तुमसे कोई वास्ता नही रखना चाहती...!" मीनू ने थोड़ा दृढ़ होकर कहा....

"तुमने बाद में मना कर दिया तो?" तरुण ने पूचछा...

"नही करूँगी.. वादा करती हूँ.. और लेटर चाहे बाद में मुझे दे देना... पर रेकॉर्डिंग अभी डेलीट करो...."

"पर फिर मैं इस'से बदला कैसे लूँगा... ?" तरुण पिंकी को रास्ते पर आते देख खुश होते हुए बोला..

"देखो.. अब ऐसे बकवास मत करो...! इसकी तरफ से मैं तुमसे माफी माँग लेती हूँ.. और.. और ये भी माँग लेगी.. पर कम से कम इतना तो मत गिरो तरुण.. ये.. ये तुम्हे भाई कहती है... तुम क्यूँ?.प्लीज़.. जब मैं तुम्हारी हर बात मान रही हूँ तो तुम क्यूँ....?"

"ओके..." तरुण ने कुच्छ देर सोचने के बाद कहा..," आ जाओ.. तुम्हारे सामने ही डेलीट कर देता हूँ.. पर पहले इस'से बोलो की मुझसे माफी माँगे...."

मीनू तुरंत उठकर हमारे पास आकर तरुण के दूसरी और बैठ गयी...," माँग लेगी तरुण.. प्लीज़.. अब उसको तंग क्यूँ कर रहे हो..? कल इनका पेपर भी है...!"

"उसकी चिंता अब तुम मत करो.. वो मेरा काम है... साला भाग कर जाएगा तो जाएगा कहाँ...?.. ये देखो.." कह कर तरुण ने अपने मोबाइल में रेकॉर्ड की हुई वीडियो चला दी... मैने मीनू की ओर देखा.. उसने अपना सिर झुकाया हुआ था.. पर तिर्छि नज़रों से वा स्क्रीन की ओर ही देख रही थी.... तस्वीर इतनी सॉफ नही थी.. पर हम दोनो पहचाने जा सकते थे... जैसे ही मेरे सर की जांघों के बीच बैठ कर उसके लिंग को मुँह में लिए हुए होने का सीन आया.. तरुण ने मुस्कुरकर मेरी और देखा.. शायद उसके बाद मीनू ने भी.. पर तब तक मैने नज़रें झुका ली थी...

"देखा.. कितनी मस्ती से चूस रही है.. हा हा हा.. ये है मस्त लड़की.. तुम जाने क्यूँ बिदक्ति रहती हो.." तरुण ने मीनू की और देखते हुए कहा...

"लाओ.. मुझे दे दो.. मैं खुद डेलीट करूँगी.."मीनू ने कहा...

"ये लो जान.. तुम्हारे लिए तो मैं जान भी दे सकता हूँ..." तरुण ने मीनू को मोबाइल दे दिया...

"मज़ाक कर रहे हो या...!" मीनू बोल कर रुक गयी...

"कमाल है मीनू.. क्या तुम्हे नही पता मैं तुमसे कितना प्यार करता था.. वो तो..." बोलता हुआ तरुण अचानक दंग रह गया.. और साथ में मैं भी....

"मैं तुम्हे ग़लत समझ रही थी तरुण.. मुझे माफ़ कर दो प्लीज़... अब जैसा तुम कहोगे.. मैं खुशी खुशी करने को तैयार हूँ.. और हमेशा करूँगी... आइ लव यू जान..." मीनू ने अचानक तरुण को अपनी बाहों में भर लिया और उसके होंटो को अपने होंटो में लेकर चूसने लगी... मैं चौंक पड़ी.. ये अचानक मीनू को क्या हो गया....?

"लो.. यही बात थी तो पहले ही ना बोल देती.. ऐसे ही गरम होना था तो मैं एक से एक बढ़िया ब्लू फिल्म दिखा देता तुम्हे.." तरुण अपने होंटो को आज़ाद करवा कर हंसता हुआ बोला..," अभी दिखाउ क्या? .. मोबाइल में और भी हैं.. असली वाली...!"

"नही.. पर मुझे तुम्हारा ये ब्लॅकमेलिंग वाला तरीका बिल्कुल पसंद नही.. क्या मैं तुम्हे वैसे नही करने देती सब कुच्छ.. एक ना एक दिन तो मान ही जाती ना.. तुमसे सब्र ही नही हुआ..." मीनू ने उसकी छाती पर हाथ फेरते हुए कहा...

तरुण भी एकदम पिघल सा गया," मीनू की छातियों को एक एक करके अपने हाथों में लेकर देखता हुआ बोला," ववो.. तो पिंकी ने दिमाग़ खराब कर दिया था.. वरना मैने पहले कब किया ऐसा.. बोलो.. कितने दिन से तुम मुझे हाथ नही लगाने देती थी.. अगर मुझे ये तरीका उसे करना होता तो मैं पहले ही ना कर लेता..."

"फिर.. वो.. गंदे लेटर क्यूँ लिखवाए मुझसे.. बोलो!" मीनू उसकी किसी हरकत का कोई विरोध नही कर रही थी.... और तुम कह रहे थे कि उस दिन तुमने मेरे फोटो भी खींचे थे.. वो क्यूँ भला.." मीनू ने प्यार से बोलते हुए ही कहा.. मेरी समझ में नही आ रहा था की मीनू अचानक पलटी कैसे मार गयी....

तरुण हंसता हुआ थोड़ा शर्मिंदा होकर बोला..," हां.. वो मैं अपनी ग़लती मानता हूँ... पर वो सिर्फ़ आख़िरी हथियार था... मैं तुम्हारा इस कदर दीवाना हो गया हूँ कि मुझे हमेशा डर लगता था कि कहीं.. कभी.. तुम मुझसे दूर हो गयी तो.."

"ओह जान! आइ लव यू.. तुमने ऐसा सोच भी कैसे लिया.. क्या तुम्हे नही पता कि मैं तुम्हे अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार करती हूँ.. कुच्छ भी कर सकती हूँ.. तुम्हे खुश करने के लिए.....!" मीनू ने कहा और एक बार फिर उस'से लिपट गयी....

"पिंकी को उपर भेज दो.. इसका कुच्छ पता नही.. कब बखेड़ा कर दे.."तरुण ने आहिस्ता से उसके कान में कहा....

"एक बात कहूँ... तरुण... अगर बुरा ना मानो तो.."

"हां.. बोलो ना.. आज कुच्छ भी बोलो जान....!" तरुण लट्तू हो गया था.. मीनू की अदाओं पर....

"मुझे रह रह कर वो लेटर याद आ रहे हैं.. मेरा दिमाग़ खराब हो रहा है.. प्लीज़.. तुम उन्हे मेरे सामने जला दो.. फिर मैं तुम्हे ऐसा प्यार करूँगी कि तुम कभी मुझे भूल नही पाओगे...!" मीनू ने गुनगुनाते हुए बात कही...

"मेरा उल्लू बना रही हो ना?... मैं सब समझ गया.. मूवी डेलीट करवा ली.. लेटर और जला दिए तो मेरे पास क्या बचेगा...? तुम रंग बदल गयी तो.." तरुण का माथा अचानक ठनका...

"तुम्हारी यही बात मुझे सबसे ज़्यादा खराब लगती है.. इतने शक्की क्यूँ हो तुम..? मैने आज तक अपनी कोई बात पलटी है क्या?.. चलो कोई बात नही... तुम वो लेटर लाकर दिखा दो मुझे.. तीनो के तीनो.. फिर जी भर कर प्यार करने के बाद जला देना.. मुझे बहुत अच्च्छा लगेगा जान.. तुम्हे नही पता.. उस दिन के बाद से मैं ढंग से सो भी नही पाई हूँ.. प्लीज़.." कहकर मीनू ने फिर से तरुण के होंटो को अपने काबू में कर लिया...

कुच्छ देर तरुण मस्ती से मीनू के गुलाबी होंटो को चूस्ता रहा.. फिर हट कर बोला," आज तो तुम कुच्छ ज़्यादा ही गरम हो गयी हो जान.. आज तो अपने आप तुमने मेरा पकड़ भी लिया.. ठीक है.. मैं लेटर लेने जा रहा हूँ.. तुम अपना मूड मत बदलना.. देखना कितना मज़ा दूँगा मैं तुम्हे.." तरुण ने कहा और उसके हाथ से मोबाइल लेकर चला गया.....

तरुण के जाते ही पिंकी उठकर बैठ गयी," तुम बहुत गंदी हो दीदी... मुझसे बात मत करना आज के बाद!"

क्रमशः........................
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10-22-2018, 11:25 AM,
#20
RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
बाली उमर की प्यास पार्ट--14

गतांक से आगे.......................

"और मैं क्या करती पिंकी?" तरुण के जाते ही मीनू का चेहरा मुरझा गया.. उसने दरवाजा खोल कर बाहर झाँका और फिर बंद करके आ गयी..," मेरे पास कोई और रास्ता था ही नही.. उसको अपनी बातों में लेने के अलावा.. बस अब दुआ करो कि वो लेटर ले आए और यहाँ आने तक अपना मोबाइल ना देखे...!"

"क्या मतलब दीदी? तुम नाटक कर रही थी उसके साथ.." पिंकी खुश होकर बोली...

"और नही तो क्या? जो लड़का इतनी नीचे गिर सकता है कि मेरे साथ साथ तुम्हे भी अपनी हवस का शिकार बनाने के लिए ब्लॅकमेल करने की सोचे.. क्या मैं उसके बारे में ऐसा सोचूँगी...?" मीनू ने कहा और राज की बात बताते हुए बोली...," मैने उसका एमएमसीफ़ॉर्मेट कर दिया है उसके मोबाइल मैं जितनी भी वीडियो होंगी सब डिलीट हो गई होंगी

"क्या?" पिंकी से भी ज़्यादा खुशी मेरे चेहरे पर थी," ये.. एमएमसी क्या होता है?"

"मल्टी मीडीया कार्ड.. कल कॉलेज में उसने मुझे मेरे स्नॅप्स दिखाए थे.. वो भी उसी में थे.. और तुम्हारी रेकॉर्डिंग भी.. कम से कम तुम्हारा झंझट तो ख़तम हो गया अब.. अगर उसने अपने कंप्यूटर में कॉपी नही की होगी तो... आइन्दा से बच कर रहना... तुम बच्ची नही हो जो किसी की भी बातों में यूँ आ जाओ..!" मीनू ने कहा..

"ये तो कमाल हो गया..." पिंकी उठकर हमारे पास आ गयी.. अचानक उसका खिल चुका चेहरा फिर से मुरझा गया.....," पर अब अगर उसने लेटर नही दिए तो पहले.. वो तो कह रहा था कि वो 'पहले' नही देगा....."

"मैं कोशिश करके देखूँगी.. वरना.. बाद में तो मिल ही जाएँगे.. इसने मेरा जीना हराम कर दिया है कॉलेज में... मैं आज सब कुच्छ ख़तम कर देना चाहती हूँ.. चाहे वो... चाहे वो किसी भी कीमत पर हो...!" मीनू लंबी साँस लेते हुए बोली...

"एक काम करें दीदी..!" पिंकी ने मीनू के गालों पर हाथ लगा उसका चेहरा अपनी और घुमा लिया...

"क्या?" मीनू ने पूचछा..

"मैं दरवाजे के पिछे लट्ठ लेकर खड़ी हो जाती हूँ.. जैसे ही वो आएगा.. मैं ज़ोर से उसके सिर में दे मारूँगी... और आप दोनो उस'से लेटर..." पिंकी का आइडिया मुझे भी पसंद आया था.. पर मैं उनके इस खेल में शामिल होकर तरुण से दुश्मनी मोल नही लेना चाहती थी.... मैं उनको कुच्छ बहाना बनाकर घर जाने के लिए बोलने ही वाली थी कि मीनू बोल पड़ी...

"तुझे तो और कुच्छ आता ही नही.. पिच्छले जनम में तू कसाई थी क्या? अगर तुम उसको लट्ठ मरोगी तो उसकी चीख नही निकलेगी क्या? घर वाले नीचे आ गये तो सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा... और अगर वह बचकर भाग गया तो फिर मेरी खैर नही! मैं उसको प्यार से बातों में उलझा कर ही देखूँगी.. अगर बात बन गयी तो... नही तो" मीनू ने अपना सिर झुका लिया..," तू उपर चली जाना पिंकी.. प्लीज़.. तेरे आगे मुझसे नही होगा.. और मैं आज उस'से हर हालत में लेटर लेना चाहती हूँ... चाहे मुझे कुच्छ भी करना पड़े...!"

पिंकी उसके बाद कुच्छ नही बोली.. बस यूँही उदास बैठी कुच्छ सोचती रही.. अचानक मेरे मंन में ही एक सवाल कौंधा..," पर दीदी...?"

"क्या?" मीनू ने मेरी तरफ देख कर पूचछा...

"व..वो.. ऐसे तो आप.... आप के पेट में बच्चा आ जाएगा उसका...!" मैने शरमाते हुए कहा...

कुच्छ देर तो मीनू चुप रही.. फिर आह सी भरते हुए बोली," देखते हैं.. क्या होगा!"

"फिर देखोगी क्या? अगर आप ने उसके साथ 'वो' कर लिया तो फिर क्या करोगी.. फिर तो आप 'मा' बन ही जाओगी ना...!" मेरी बात पर जब मुझे नकारात्मक प्रतिक्रिया नही मिली तो मैने और खुलकर कहा...

मीनू इस बात पर हँसने सी लगी," तू बच्ची है अभी.. तुझे किसने बताया..?"

"ववो.. म्मेरी एक सहेली कह रही थी..." मैने बहाना बनाकर कहा....

"तुम्हारे आपस में यही सब बातें करती रहती हो क्या?" पिंकी ने मुझे डाँट'ते हुए कहा.. और फिर बोली," ऐसा नही होता.. ज़रूरी नही कि एक बार में ही 'ऐसा' हो जाए.. और फिर बाज़ार में इतनी दवाइयाँ भी तो आती हैं... अगर मजबूरी में मुझे करना पड़ा तो 'वो' ले लूँगी...."

"सच!" मैं चाहकर भी अपने चेहरे को खिलने से रोक ना सकी... ये बात तो मेरे तड़प रहे शरीर के लिए संजीवनी की तरह थी," सच में आती हैं ऐसी दवाई?"

"तू तो इस तरह खुश हो रही है जैसे मुसीबत मुझ पर नही.. तुझ पर आई हुई हो.. तुम दोनो तो निसचिंत हो ही जाओ.. जहाँ तक मेरा ख़याल है.. तुम्हारी रेकॉर्डिंग कॉपी नही की होगी उसने.. आज ही तो ली थी.. फिर उसका कंप्यूटर भी शहर में उसके दोस्त के पास है... पर मेरी बात ध्यान रखना.. लड़के कुत्ते होते हैं.. कभी भी इनकी बातों में मत आना...!" मीनू ने हम दोनो को समझाते हुए कहा...

"पर दीदी.. उसने आप की स्नॅप्स कॉपी कर रखी होंगी तो?" पिंकी चिंतित होकर बोली...

"आ.. देखा जाएगा.. अब करनी का फल तो भुगतना ही पड़ेगा.. मैं ही पागल थी जो उसकी बातों में आ गयी..." मीनू ने लंबी साँस लेकर कहा," चलो.. अब अपनी अपनी चारपाइयों पर बैठ जाओ.. तुम्हारे चेहरे से ये नही लगना चाहिए पिंकी की मैं नाटक कर रही हूँ.. तू तो ऐसा कर.. उपर चली जा..!"

मीनू जाकर अपनी चारपाई पर बैठ गयी.. पिंकी मेरे पास ही बैठी रही," नही दीदी.. आपको छ्चोड़ कर मैं उपर नही जाउन्गि.. मैं उसके आते ही सो जाउन्गि.. कंबल औध कर...."

हमें तरुण का इंतजार करते करते लगभग एक घंटा हो गया था... अब मीनू के दिमाग़ में तरह तरह की बातें आनी शुरू हो गयी थी...," कहीं ऐसा तो नही की उसने अपना मोबाइल देख लिया हो और वह मेरी चालाकी समझ गया हो?" मीनू ने चिंतित सी होते हुए कहा...

"फिर क्या होगा दीदी?" पिंकी का चेहरा भी मीनू जैसा ही हो गया..

"पता नही.. पर वो मुझ पर विश्वास नही करेगा आज के बाद.. मोबाइल देख लिया होगा तो शायद वो कल कॉलेज में ही बात करेगा मुझसे... 'मुझे और मौका शायद ही मिले अब.. कितने ही दीनो से उस'से प्यार से बात कर कर के टाइम मांगती आ रही हूँ... 'वो' मुझे धमकी देता है कि अगर मैने उसकी बात जल्द ही नही मानी तो वो मुझे दोस्तों के साथ..." बात अधूरी छ्चोड़ कर मीनू सुबकने लगी..," ये मैने क्या कर दिया भगवान....!"

"आप रो क्यूँ रही हो दीदी..? प्लीज़.. सब ठीक हो जाएगा.. मैं उस'से माफी भी माँग लूँगी.." पिंकी उसके पास जाकर बैठ गयी....," आप जैसा कहोगी मैं वैसा ही कर लूँगी.. आप रोवो मत प्लीज़..."

मीनू ने अपने आँसू पौंच्छ लिए.. पर तनाव उसके चेहरे पर सॉफ झलक रहा था..," कल अगर वो तुम्हे अपनी बाइक पर बैठने को कहे तो बैठना मत... बुल्की तुम बात ही मत करना... वैसे शायद वो मुझसे बात करने के लिए कॉलेज में जाएगा.. ज़रूर!"

------------------------------

------------------------------------------

अगले दिन हम अकेले नही गये.. क्लास की कयि लड़कियाँ हमारे साथ थी... स्कूल में जाने के बाद भी हम उनके साथ ही रहे.. पेपर का टाइम होने पर हम अपनी अपनी सीट पर जाकर बैठ गये....

"तुम.. कल घर लेट पहुँची थी क्या?" संदीप ने मेरे पास बैठते ही पूचछा...

अचानक आते ही किए गये इस सवाल से में सकपका गयी.," नही.. हाआँ.. वो मैं पिंकी के साथ थी.."मैने आधा सच बोलते हुए सवाल किया," तुम्हे कैसे पता?"

"तुम्हारी मम्मी शिखा से पूच्छने आई थी... मुझे तो तब घर पहुँचे 2 घंटे हो गये थे...!" संदीप ने बताया और आगे पूचछा," आज की कैसी तैयारी है..?"

मैने कोई जवाब नही दिया.. बस मुस्कुरकर रह गयी... मुझे शर्म आ रही थी उसको 'हेल्प' की कहते हुए...

वो मेरी हालत भाँपते हुए बोला," पर्ची मत करना.. मेरे पेपर से उतारती रहना साथ साथ.. मैं टेढ़ा होकर बैठ जाउन्गा..."

मैने क्रितग्य नज़रों से उसकी और देखा तो वो मुस्कुरा दिया,"तुम पैदल आती हो क्या?"

"हां.." मैने उसकी और बिना देखे कहा.. आज पहली बार मुझे लग रहा था कि वो मुझ पर कुच्छ 'ज़्यादा' ही लत्तु है...

"चाहो तो मेरे साथ चल पड़ना.. पापा की बाइक लाया हूँ मैं आज!" संदीप ने सीधा होकर कहा.. रूम में सर आ गये थे...

"न..नही.. वो पिंकी भी मेरे साथ जाएगी..." मैने सर से नज़रें बचाकर उसकी बात का जवाब दे ही दिया... अपने स्टाइल में..!

कुच्छ देर चुप बैठा रहने के बाद उसकी आवाज़ एक बार फिर मेरे कानो तक आई," कोई बात नही.. वो भी चल पड़ेगी अगर तुम चलना चाहो तो.."

"ठीक है.. मैं बात करके देख लूँगी..!" मैने जवाब दिया और आन्सर सीट मिलते ही सब बच्चे चुप हो गये.. हम दोनो भी....

---------------------------------------------------------

एग्ज़ॅम ख़तम होने के बाद मैं बहुत खुश थी.. पिंकी भी.. उसका भी पेपर बहुत अच्च्छा हुआ था.. दरअसल आज कल के मुक़ाबले सख्तयि ना के बराबर थी.. और ना ही कल वाले सर ही हमें कहीं नज़र आए... जैसे ही मैं बाहर निकली, पिंकी खुशी से अपना बोर्ड घूमते हुए मुझसे आ टकराई," मज़े हो गये आज तो!"

संदीप हमसे कुच्छ ही आगे आगे चल रहा था.. जैसे ही हम ऑफीस के सामने से निकले.. मेडम ने हमें टोक दिया," कैसा पेपर हुआ अंजू!" वो दरवाजे के पास खड़ी शायद हमारा ही इंतजार कर रही थी....

"ठीक हो गया मेडम.." मैने सिर झुका कर कहा और ठिठक गयी...

"गुड.. किसी बात की चिंता मत करना बेटा.. समझ गयी ना दोनो!" मेडम ने मुस्कुरकर कहा...

"जी.." मैं और कुच्छ बोलती.. इस'से पहले ही पिंकी ने मेरा हाथ खींच लिया.. और थोड़ी आगे जाकर बोली," आज फिर फँसने का इरादा है क्या?"

"नही.. वो सुन..." मैने उसकी बात को टालते हुए कहा," ववो.. संदीप कह रहा था कि 'वो' आज बाइक लेकर आया है.. हम दोनो को साथ लेकर चलने की कह रहा था.. बोल?"

"अच्च्छा.. पर मुझे डर लग रहा है.. कहीं.." पिंकी अपनी बात बीच में ही छ्चोड़ कर चुप हो गयी...

"देख ले.. मैं तो बस बता रही हूँ.." मैने बात अपने सिर से टाल दी...

"हुम्म.. चल ठीक है.. कहाँ है 'वो'?" पिंकी ने शायद संदीप को हमारे आगे आगे चलते देखा नही था...

"वो रहा.. शायद हमारा ही वेट कर रहा है..!" मैने संदीप की ओर इशारा करते हुए कहा...

"चल...!" उसने कहा और हम दोनो उसके पास जाकर खड़े हो गये..

"क्या सोचा..? चलना है क्या?" संदीप ने मुझसे पूचछा तो मैं पिंकी की और देखने लगी...

"चलो! जल्दी पहुँच जाएँगे और क्या?" पिंकी ने जवाब दिया....

-------------------------------------------------------------

संदीप बिके बाहर निकाल लाया और हमारे पास लाकर रोक दी.. मैं बैठने के लिए तैयार हो ही रही थी कि पिंकी मुझसे पहले ही उसके पिछे बैठ गयी.. और मुझसे बोली," आ जाओ!"

मैं मन मसोस कर पिंकी के पिछे जा बैठी.. पता नही क्यूँ.. पर मुझे लग रहा था कि मेरे और पिंकी के बीच में ज़्यादा जगह है.. और पिंकी और संदीप के बीच कम... मेरा मुँह सा चढ़ गया.. और हम चल पड़े!

अपने गाँव के स्टॅंड पर पहुँचे ही थे कि किसी ने हाथ देकर संदीप को रोक लिया..," कैसा पेपर हुआ?"

"अच्च्छा हो गया! चल घर आ जा.. आज क्रिकेट खेलने चलेंगे.. कल हिन्दी का पेपर है.." संदीप ने मुस्कुरकर कहा...

"नही यार.. आज नही.. ऐसे अच्च्छा नही लगेगा...!" उस लड़के ने संदीप से कहा...

"क्यूँ? आज क्या हो गया..?" संदीप ने उसी भाव में पूचछा...

"तुम्हे नही पता? ओह्ह.. तुम तो सुबह ही चले गये होगे पेपर देने.. वो किसी ने तरुण को मार दिया.. आज करीब 10 बजे पता लगा... किसी ने उसको कल रात में मार कर चौपाल में फैंक दिया....."

"क्याअ? कौनसा तरुण? अपने वाला?" संदीप के चेहरे का रंग अचानक सफेद हो गया... हमारी तो घिग्गी ही बाँध गयी थी.. हम दोनो डरी डरी सी आँखों से एक दूसरी को देखने लगी...

"हाँ यार.. गाँव में पोलीस आई हुई है.. बेचारा कितना शरीफ था... उस'से किसी ने क्या दुश्मनी निकाली होगी... बेचारा!"

"ओह्ह.. ये तो बहुत बुरा हुआ यार.. मैं अभी उसके घर जाकर आता हूँ.." संदीप ने कहा और पिछे देखने लगा....

"ठीक है.. हम चले जाएँगे..." पिंकी ने कहा और मेरे साथ ही नीचे उतर गयी...

"तुम्हे पढ़ाने आता था ना वो?" संदीप ने पूचछा....

"हां.." पिंकी ने सिर झुका कर कहा और बिना एक भी पल गँवाए चल दी... मैं भी डगमगाते हुए कदमों से उसके पिछे हो ली.....

"ये कैसे हुआ पिंकी?" मैने तरुण का जिकर किया...

"चुप... कुच्छ मत बोल यहाँ..." पिंकी ने कहा और हम गलियों के बीच से घर की ओर चलते रहे.....

हम जल्दी जल्दी चलते हुए पिंकी के घर पहुँच गये.. हम सीधे उपर चले गये..देखा तो मीनू भी वहीं बेड पर लेटी हुई थी.. चाचा चाची दोनो खामोश बैठे थे.. मीनू का चेहरा पीला पड़ा हुआ था...

"क्या हुआ मम्मी?" पिंकी ने सब जानते हुए भी सवाल किया...

"कुच्छ नही.. तुम नीचे जाकर पढ़ लो..!" चाचा ने कहा...

"नही.. वो गाँव में सब कह रहे हैं कि..." पिंकी ने बोला ही था कि चाचा शुरू हो गये....

"हां.. किस्मत के खेल निराले होते हैं बेटी.. कितना शरीफ था बेचारा... मुझे तो अब भी ऐसा लग रहा है कि वो नीचे से आवाज़ दे रहा है.. आख़िरी वक़्त भी ढंग से बात नही कर पाया मैं.. बड़ा पचहतावा हो रहा है.. पढ़ने में कितना तेज था.. उसके मा बाप की तो कमर ही टूट गयी होगी...." पिंकी के पापा भी बहुत दुखी लग रहे थे....

"पर.. पर ये हुआ कैसे?" मैं अपने आपको रोक नही पाई...

"कौन जाने बेटी? अब उसकी किसी से दुश्मनी भी क्या होगी? वो तो ज़्यादा बात भी नही करता था किसी से... भगवान ही जानता है क्या हुआ होगा...?" चाचा ने अपना माथा पकड़ लिया...

"अब छ्चोड़िए ना पापा.. होना था जो हो गया... आप क्यूँ बार बार..." मीनू की आँखें नम हो गयी...

"छ्चोड़ो बेटी.. छ्चोड़ो.." चाचा ने कहा और अपनी आँखें पौन्छ्ते हुए घुटने पर हाथ रखा और उठ गये..,"तू इतना छ्होटा मंन क्यूँ कर रही है.. पिंकी और अंजलि का भी तो भाई ही था 'वो'.. जब ये नही रो रही तो तू क्यूँ... सुबह से... छ्चोड़ बेटी.. होनी का लिखा कोई नही टाल सकता..."

मीनू कंबल में दुबक कर सिसक'ने लगी... मुझसे वहाँ और खड़ा ना रहा गया...," अच्च्छा चाची.. मैं चलती हूँ..!"

"ठीक है बेटी.. जा.. कपड़े बदल ले.. सुबह से कुच्छ खाया भी नही होगा..." चाची भी खड़ी हो गयी और जाकर मीनू के पास बैठ गयी...

मैं अपने घर जाने को पिंकी के घर से बाहर निकली ही थी कि एक मोटा सा थुलथुला पॉलिसिया घर के बाहर आकर खड़ा हो गया...," मीनू का घर आसपास ही है क्या?...?"

मैं हड़बड़ा गयी.. पोलीस वाला भला मीनू को क्यूँ पूच्छ रहा है..," जी.. यही है!" मैने हड़बड़ाहट में ही जवाब दिया...

"ठीक है.. धन्यवाद...!" उसने कहा और वापस हमारे घर की ओर चल दिया...

कुच्छ सोच कर मैं वापस हो ली.. अंदर सीढ़ियों पर जाकर मैने मीनू को आवाज़ दी," दीदी....."

"मीनू.. नीचे अंजू बोल रही है शायद...." उपर से चाचा की आवाज़ मेरे कानो में पड़ी....

कुच्छ देर बाद मीनू नीचे आ गयी.. मेरे पास आते ही वह फफक पड़ी..," आँखों में आँसुओं का झरना सा उमड़ पड़ा," ययए.. ये क्या हो गया अंजू..?"

"पर.. आप रो क्यूँ रही हैं दीदी.. जो हुआ सही हुआ.. हमें क्या मतलब है.. उसके कर्मों का फल मिल गया उसको..." मैने मीनू के कंधे पकड़ते हुए कहा...

"पता नही अंजू.. रह रह कर कलेजा सा फटा जा रहा है... बहुत याद आ रही है उसकी.. उसने धोखा दे दिया तो क्या हुआ.. मैने तो उस'से सच्चा प्यार किया था ना.. कल अगर उसको वापस ना भेजती तो शायद वो..." मीनू बुरी तरह कराहते हुए रोने लगी....

"ना.. दीदी.. प्लीज़.. ऐसा मत करो.. चुप हो जाओ.. मुझे आपको कुच्छ बताना है..." मैने उसके मुँह पर हाथ रख दिया... उसकी आवाज़ कुच्छ देर बाद बंद हो गयी.. पर आँसू नही थामे..,"क्या?"

"वो... एक पोलीस वाला बाहर आया था.. आपका नाम लेकर घर पूच्छ रहा था..." मैने उसके शांत होने के बाद जवाब दिया...

मीनू मेरी बात सुनते ही सुन्न रह गयी.... मुझे ऐसा लगा जैसे यूयेसेस पर एक और पहाड़ टूट पड़ा हो.. वा थरथर कांपति हुई बोली..," मेरा नाम लेकर... पर क्यूँ?"

"पता नही दीदी.. वो कुच्छ नही बोला.. पूच्छ कर वापस चला गया...!" मैने बुरा सा मुँह बना कर कहा...

"हे.. भगवान.. अब क्या होगा..." मीनू में खड़ी रहने तक की हिम्मत नही बची.. मैने उसको संभाला और चारपाई पर लिटा दिया.. अचानक वह निशब्द: सी हो गयी.. पता नही क्या हो गया उसको... मैं घबरा गयी.. मैने चाचा को आवाज़ लगाई," चाचा.. जल्दी आओ..."

मेरी आवाज़ में घबराहट को भाँप कर उपर से चाचा, चाची और पिंकी.. तीनो दौड़े दौड़े नीचे आए,"क्या हुआ?"

"पपता नही... अचानक बेहोश सी हो गयी.." मैने कहा और अलग खड़ी हो गयी...

"मीनू.. मीनू बेटी... पानी लेकर आओ जल्दी..."चाचा ने पिंकी से कहा...

कुच्छ देर बाद मीनू ने आँखें खोल दी.. आँखें खोलते ही वह चाचा से लिपट कर बुरी तरह रोने लगी....

"मान जा बेटी.. तू ऐसा करेगी तो इनका क्या होगा... बस कर.. चुप हो जा..." चाचा उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरने लगे.. कुच्छ देर बाद उसने अपनी आँखें बंद कर ली और धीरे धीरे शांत हो गयी....

थोड़ी देर बाद अचानक दरवाजे पर एक हटटा कॅटा लंबा सा पोलीस वाला प्रकट हुआ.. उसके पिछे वही थुलथुला सा पॉलिसिया खड़ा था... उन्होने अंदर देखा और बिना इजाज़त लिए ही अंदर आ गये.. चाचा, चाची और पिंकी; तीनो उन्न पोलीस वालों को देख कर हड़बड़ा से गये..

"जी कहिए?" चाचा खड़े हो गये...

"हूंम्म्म.." लंबू ने अपना सिर हिलाते हुए आगे कहा," तो........ ये मीनू है!"

"जी.. पर आप क्यूँ पूच्छ रहे हैं..?" चाचा भी उसके मुँह से मीनू का नाम सुनकर घबरा से गये.. पर मीनू आँख बंद किए लेटी रही....

पोलीस वाले ने चाचा की बात का कोई जवाब नही दिया.. चुपचाप खड़ा रहा.. फिर अचानक तेज तर्रार आवाज़ में बोला," क्या हो गया इसको?"

क्रमशः....................................
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