College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
11-26-2017, 02:00 PM,
#81
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --42

"उफ़.. कहाँ फंस गया? वीरू ने ठीक ही बोला था .. मत पड़ इन चक्करों में.. मारा जाएगा.. हे भगवन! वो मेरी चिंता कर रहा होगा.. क्या करूँ? फ़ोन ही उठा lata ..." जब बाथरूम का दरवाजा नही खुला तोह राज के mathe पर बल पड़ गए...," क्या वो ऊपर नही आ सकती.. एक बार.. कुछ भी बहाना करके.. फंसवा दिया गुसलखाने में.." चिद्चिदेपन में राज ने दीवार पर लात दे मरी.... बाहर निकलने का कोई रास्ता उसको सूझ नही रहा था ...उधर करीब घंटा भर बाद भी जब राज वापस नही आया तोह वीरेंदर को चिंता होने लगी... कुछ देर पहले ही उसने फ़ोन करके देखा था.. पर बेल राज के तकिये के नीचे बजी...वीरू ने और इन्तजार करना ठीक न समझा... अपनी शर्ट पहनी और बाहर निकल गया.. घर के सामने खड़े होकर उसने प्रिया के घर पर निगाह डाली.. कुछ देर पहले तक वहां light जली हुयी थी .. पर अब ऊपर और नीचे सब खामोश था ...," सो गए होंगे.. ये तोह.." वीरू को रत्ती भर भी विस्वास नही था की राज ऐसा कुछ सोचने का दुस्साहस कर सकता है.. कुछ पल खड़ा होने के बाद वह राज की तलाश में मार्केट की और निकल गया..'दुकाने तोह अब तक बंद हो गई होंगी.. कहाँ रह गया कमबख्त?"

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प्रिया और रिया का बुरा हाल था .. दोनों एक दूसरी की और मुंह करके आंखों ही आंखों में राज की हालत पर अफ़सोस प्रकट कर रही थी .. मम्मी पास ही बैठी टी.व्. पर न्यूज़ देख रही थी .. टी.व्. चैनल रह रह कर मुरारी के दोहरे कारनामे की धज्जियाँ उदा रहे थे .."मम्मी.. मेरी एक किताब नही मिल रही.. ऊपर देख आऊँ.. एक बार.." प्रिया ने अचानक बैठते हुए मम्मी से पूछा " तू सोयी नही अभी तक.. फ़िर सुबह उठते हुए वही drama करोगी... सुबह देख लेना.. मैं रूम लाक कर आई हूँ... आजकल चोरों का कुछ भरोसा नही.. जाने कहाँ कहाँ से घुस जाते हैं घर में.." प्रिया के दिल का चोर तोह पहले ही घर में घुसा बैठा था .. उसी को तोह nikaal कर आना था ... सिर्फ़ उस रात के लिए...," पर मम्मी बहुत जरुरी बुक है.. मुझे कल स्कूल लेकर जानी है.. अगर सुबह नही मिली तोह...चाबी दे दो.. मैं अभी देख आती हूँ..""प्रिया.. बेटी... तू इतनी बहादुर कब से हो गई.. तुझे तोह अंधेरे में बाहर आँगन में भी निकलते हुए डर लगता है... ला मुझे बता.. कौनसी किताब है.. मैं देखकर आती हूँ.." उसकी मम्मी ने खड़ी होकर टेबल की drawer से चाबी nikaali ..."नही मम्मी... ममेरा मतलब है.. आपको नही मिलेगी... हम दोनों चली जायेंगी.." प्रिया घबराकर खड़ी हो गई..."अच्छा! तोह मुझे तू anpadh समझती है .. तुझे नही मिली न.. चल नाम बता... २ मिनट में ढूंढ कर laati हूँ.." मम्मी ने हँसते हुए कहा.. प्रिया की बात को वो आत्मसम्मान का प्रशन बना बैठी...

इस बार रिया ने उसकी जान बचा ली," कौनसी किताब ढूंढ रही है तू? जेनेटिक्स वाली..??? वो तोह मेरे बैग में रखी है..."

"हाँ हाँ.. वही ढूंढ रही थी .. तेरे पास कैसे गई.. मेरी किताबों को हाथ मत लगना आज के बाद..!" प्रिया की जान में जान आई.. वरना तोह मुसीबत आने ही वाली थी ..

"अच्छा.. एक तोह बता दी.. वरना क्या होता.. पता है न...?" रिया आँखें matkaati हुयी बोली...

उनकी मम्मी ने चाबी वापस वहीँ रख दी..," अब सो जाओ चुपचाप... बहुत रात हो गई है.." कहकर उसने टीवी और लाइट दोनों बंद कर दी.. और उनके bister के साथ डाली चारपाई पर लेट गई...

"शुक्र है.. चाबी का तोह पता चला.." प्रिया ने मन ही मन कहा और मम्मी के सो जाने का इन्तजार करने लगी... उसका ध्यान अब भी बाथरूम में फंसे राज पर ही था .. 'बेचारा'

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वीरू ने पूरी मार्केट छान दी ... पर राज का कुछ पता न चला.. मार्केट तोह बंद हो चुकी थी ... उसको घोर चिंता सताने लगी... 'गया तोह गया कहाँ?' इसी सोच में डूबा हुआ वीरू जैसे ही रोड पार करने लगा... बिल्कुल नजदीक आ चुकी एक गाड़ी से उसकी आँखें चुन्ध्हिया गई... वह हिल तक नही सका... ड्राईवर के लाख कोशिश करने पर भी गाड़ी सड़क पर रपट-टी हुयी उस-से जा टकराई और divider पर लगी रेलिंग से टकरा कर रोड पर वापस आ गिरा.. गाड़ी के सामने!

गाड़ी में बैठी स्नेहा की चीख निकल गई... उसने आँखें बंद करके कसकर विक्की को पकड़ लिया.."ओह माय गोड !" विक्की ने लाख कोशिश की पर हादसा टाल न सका," तुम गाड़ी से मत निकलना.. मैं देखता हूँ.." कहकर विक्की नीचे उतर गया...वीरू सड़क पर पड़ा कराह रहा था .. उसने उठने की कोशिश की पर उठा न गया.."ठीक तोह हो..?" विक्की ने उसकी टांगें सहलाई और हाथ पकड़ कर पूछा..."आह.. मुझसे खड़ा नही हुआ जा रहा.. ओह्ह्ह्छ.. दर्द हो रहा है.. बहुत ज्यादा.." वीरू ने एक बार फ़िर खड़ा होने की कोशिश की.. पर पैरों ने साथ न दिया...विक्की ने उसके कन्धों के नीचे बांह फंसाई और अपना सहारा देकर खड़ा कर दिया.. बायीं टांग में दर्द बहुत ज्यादा था .."आओ.. गाड़ी में आ जाओ..!" विक्की उसकी बायीं तरफ़ चला गया और उसको धीरे धीरे पिछली सीट की और ले जाने लगा...वीरेंदर ने गाड़ी में बैठते ही पीछे मुड कर देख रही स्नेहा को देखा..," आः.. सॉरी भाई साहब गलती मेरी ही थी ... मेरा ध्यान कहीं और था ..." वीरू अब भी राज के बारे में चिंतित था ...

विक्की कुछ नही बोला॥ जल्दी से आगे बैठकर गाड़ी स्टार्ट की और चल पड़ा..."कहाँ.. ले जा रहे हो भाई साहब? मुझे....." वीरू ने अपनी टांग को हाथ की मदद से सीधा किया..."हॉस्पिटल में... और कहाँ..?" विक्की ने उसकी बात पूरी होने से पहले ही जवाब दिया..."नही.. मुझे घर तक छोड़ आओ pls.. सुबह अपने आप चला जाऊँगा.. अगर जरुरत पड़ी तोह..""घर कहीं भगा जा रहा है क्या भाई..! तुम्हारा हॉस्पिटल चलना जरुरी है..." विक्की ने हालाँकि गाड़ी की रफ़्तार धीमी कर दी..."नही.. इसको हॉस्पिटल ही ले चलो.. Fracture होगा तोह..?" बार बार पीछे मुड कर देख रही स्नेहा को वीरू के चेहरे पर दर्द साफ़ दिखाई दे रहा था ...

"ओह्ह्ह.. नही मैडम! मेरा दोस्त बाहर आया था .. मार्केट तक.. वापस ही नही पहुँचा.. आः.. उसी को देखने आया था .. अब अगर वो आ गया होगा तोह वो मेरी चिंता करेगा... वापस ले चलो.. यहीं पास में ही है..."

विक्की ने गाड़ी रोक दी..," घर पर किसी को बोल आते...!"

"दरअसल हम यहाँ रूम लेकर रहते हैं... घर हमारा यहाँ नही है..."

"पड़ोसी तोह होंगे यार...?" विक्की ने गाड़ी वापस घुमा दी...

"हुंह .. पड़ोसी..." वीरू की आंखों के सामने दोनों जुड़वां बहनों का चेहरा आया तोह वो मनन ही मनन बडबड़ा उठा," हो न हो.. पड़ोस में ही कुछ गड़बड़ हुयी है.. कागज भी नही दिखाया साले ने!"

"यहीं.. इसी गली से अन्दर ले लो.. हाँ... अब सीधा... आगे से बायें..."

ये गलियां विक्की की जानी पहचानी tही ... यहाँ वह कई बार thhanedar के घर आ चुका ठा... वो घर पास आते ही विक्की ने गाड़ी की स्पीड तेज कर दी....

"बस.. भाई साहब.. बस.. आगे आ गए.. वो पीछे वाला घर है..." वीरेंदर ने अपने घर की और इशारा किया...

"अब्बे मरवाएगा क्या..?" विक्की मन ही मन बोला और फ़िर प्रत्यक्ष में कहा," क्या खूब जगह घर लिया है... यार..!" और गाड़ी पीछे करके घर के सामने...लगा दी...

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घर के बाहर गाड़ी के रुकने की आवाज सुनते ही प्रिया और रिया का दिल धड़कने लगा... उनको लगा उनके पापा आ गए... जब भी उनके पापा के साथ कोई होता था तोह वो ऊपर जाकर सोते थे ..," हे भगवन.. पापा के साथ कोई नही होना चाहिय्र.." प्रिया ने हाथ जोड़ कर मन्नत मांगी... अब वह उठकर जाने की तैयारी कर ही रही थी की गाड़ी की आवाज ने उसको फ़िर से दुबक जाने पर vivas कर दिया...

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"लगता है तुम्हारा दोस्त आया नही है अभी तक... लाइट बंद है...!" विक्की ने रूम का दरवाजा खोलते हुए कहा...

"स्विच यहाँ हैं.. इस तरफ़...!"

विक्की ने लाइट ओं कर दी.. स्नेहा उसके पीछे पीछे आ गई थी ...

"तुम क्यूँ आ गई... बस चल ही रहे हैं...!" विक्की ने वीरेंदर को बिस्टर पर लिटा दिया...

"पर इसका दोस्त भी नही आया है.. उसके आने तक..." स्नेहा ने विक्की की आंखों में झांकते हुए कहा...

"आ .. हाँ.. वो मुझे तोह कोई प्रॉब्लम नही है.. अगर इसको न हो तोह.. " विक्की ने वीरेंदर को टेढा किया और हाथ लगाकर चोट का मुआयना करने लगा....

"मुझे क्या दिक्कत होगी.. भाई साहब.. पर आपको अगर janaa है तोह भी मुझे कोई इतराज नही है.. मैं रह लूँगा.. अब क्या दिक्कत होनी है...." वीरेंदर ने विक्की से कहा...

विक्की के बोलने से पहले ही स्नेहा ने अपना आदेश सुना दिया.. ," नही.. हम यहीं रुक जाते हैं.. इसके दोस्त के आने तक... ठीक है न..! हमें किस बात की जल्दी है...?"

"ठीक है.. मैं गाड़ी साइड में लगा कर आता हूँ..." और विक्की बाहर निकल गया...

"थंक्स मैडम! पर आपको चाय पानी के लिए नही पूछ सकता.. सॉरी" स्नेहा का व्यव्हार वीरू को पसंद आया था .. बाकि सब लड़कियों से अलग था ....

"ये मैडम क्यूँ बोल रहे हो? मेरा नाम स्नेहा है.. तुम्हारी उम्र की ही तोह हूँ... मुझे आती है चाय बनानी... कहते हुए वो kitchen में घुस गई......

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गाड़ी के चलने की आवाज सुन'ते ही प्रिया और रिया ने चैन की साँस ली... करीब ५ मिनट के बाद प्रिया उठी और धीरे से उसके कान में कहा..," मैं ऊपर जाकर आती हूँ.. हे भगवन.. बचाना..!"

"मैं भी चलूँ क्या?" रिया उसका हाथ पकड़ कर फुसफुसाई...

"न.. यहाँ मम्मी उठ जायें तोह संभाल लेना.. मैं जल्दी ही आती हूँ... " drawer से चाबी उसने पहले ही निकल ली थी ....

"ठीक है.. मेरी तरफ़ से भी सॉरी बोल देना...."

"मैं जाऊं क्या?" काफी देर के बाद जब प्रिया को मम्मी के खर्राटों की आवाज सुनाई देने लगी तोह उसने रिया के कान में धीरे से कहा.. चाबी उसने पहले ही निकल कर अपने पास रख ली थी ..

"मैं भी चलूँ..?" रिया भी जाग रही थी .. दोनों परेशां थी .. राज के मारे..

"उम्म्म्म.. तू रहने दे.. मैं अकेली ही चली जाती हूँ.. मम्मी उठ जाए तोह संभल लेना.." प्रिया दरी हुयी थी ..

"मेरी तरफ़ से भी सॉरी बोल देना.. बेचारा कितना परेशां हो रहा होगा.." रिया फ़िर से खुस्फुसयी..

प्रिया ने कोई जवाब नही दिया और बैठ गई.. करीब एक मिनट तक मम्मी की और देखती रही और जब उसको विस्वास हो गया की मम्मी नही जागेंगी... तोह धीरे से अपना एक पैर फर्श पर रखा और चप्पल ढूँढ़ने लगी...

"चप्पल रहने दे.. मारेगी क्या.? मम्मी की नींद का पता है न.. जरा सी आहात से उठ जायेंगी.. ऐसे ही चली जा.." रिया ने बैठ कर उसके कान में कहा..

प्रिया ने सहमती में सर हिलाया और खड़ी हो गई.. एक एक कदम बाहर की और रखते हुए उसके पाँव काँप रहे थऐ... जैसे ही वह रूम से निकली उसने अपनी चाल तेज कर दी और तेजी से सीध्हियाँ चढ़ने लगी....राज thhak हार कर सीट पर बैठ गया था ... जैसे ही उसने दरवाजे के बहार हलचल सुनी.. वह एकदम चौकन्ना हो गया और बाथरूम के दरवाजे के पीछे इस तरह खड़ा हो गया की अगर कोई बाथरूम के अन्दर आता है तोह वो दरवाजे के पीछे छिपा रहे और निकल भागने का कोई चांस अगर उसके पास हो तोह वो उसका फायदा उठा सके... उसका दिल जोरों से धड़क'ने लगा..प्रिया ने बिना एक पल भी गँवाए जल्दी से कमरे में आते ही बाथरूम का दरवाजा खोल दिया.." निकलो जल्दी.." प्रिया बहुत दरी हुयी थी .. आंखों में डर फैला हुआ था ...

मम्मी या पापा को वहां न पाकर राज ने चैन की साँस ली.. वह दरवाजे के सामने आया और बोला," प्रिया क्यूँ नही आई..?"

"कमाल है.. तुम्हे... मैं ही.. मतलब मैं आ गई न.. अब भागो जल्दी..!" प्रिया के बाल बिखरे हुए थे .. और जागने की वजह से उसकी आँखें लाल हो गई थी ..

राज अब काफी relax महूस कर रहा था .. उसने तोह 'हद से हद क्या हो सकता है '.. ये तक सोच लिया था .. फ़िर मुफ्त में पीछा छूट'ने पर वह मस्त सा गया था ," प्रिया को भेजो.. उसी की वजह से मेरी दुर्गति हुयी है.. मैं उसको सुनाये बिना नही जाऊँगा.. अब चाहे कुछ भी हो जाए.. क्या कर रही है वो..?"

"सो रही है॥ तुम्.. तुम् अपने साथ मुझे भी मरवाओगे.. please जो कुछ कहना सुन'ना है.. कल कह लेना.. स्कूल में... तुम मेरे घर वालों को नही जान'ते.. जाओ please .." प्रिया का चेहरा देखने लायक हो गया था .. उसके गुलाबी होंटों का रंग फीका पड़ गया

"अच्छा.. मुझे यहाँ बाथरूम में रुकवा कर वो मजे से सो रही है.. मैं नही जाता.. सुबह मेरे साथ तुम दोनों को भी मजा आ जाएगा.." राज को जब पता चला की प्रिया सो रही है तोह उसका गुस्सा सांतवें आसमान पर पहुँच गया..

"तुम इतने जिद्दी क्यूँ हो राज... व्वो मैं ही प्रिया हूँ.. और रिया भी जाग रही है.. तुम्हारे कारण.. पता है इतनी देर से मम्मी सोयी ही नही.. हम इंतज़ार कर रहे थे उनके सोने का... अब जाओ please.." प्रिया ने हाथ जोड़कर कहा..

राज उसको कुछ पल गौर से देखता रहा..," क्या कहा? तुम... प्रिया हो.. झूठ क्यूँ बोल रही हो... मुझे भागने के लिए..."

"सच्ची राज तुम्हारी कसम.. उस वक्त मैंने यूँ ही झूठ बोल दिया था .. मैं ही प्रिया हूँ..." प्रिया रह रह कर दरवाजे की और देख रही था .. उसको लग रहा था मम्मी बस आने ही वाली हैं...

"क्यूँ? उस वक्त तुमने झूठ क्यूँ बोला..? मैं नही मानता.. झूठ तुम अब बोल रही हो.." राज बाथरूम से बाहर निकलने को तैयार ही नही था ..

"व..वो मुझे उस वक्त डर लग रहा था .. तुम मेरे पास आ रहे थे .. इसीलिए", कहते हुए प्रिया की नजरें शर्म के मारे जमीन में गड़ गई .. उसके बाद वह कुछ न बोली.. बस अपने हाथ बांधे खड़ी रही..

"पर तुम्हे ऐसा क्यूँ लगा की ख़ुद को रिया कह देने पर मैं तुम्हारी और नही आऊंगा.. ?"

प्रिया कुछ न बोली.. जवाब उसको मालूम था .. उसको मालूम था की राज उस'से प्यार करता है.. वह ऐसे ही नजरें झुकाए खड़ी रही..."अच्छा.. बस एक बात बता दो.. अगर तुम्हे मेरे आगे बढ़ने से इतना ही डर लगता है तो फ़िर मुझे बुलाया क्यूँ..?" राज ने प्रिया को ऊपर से नीचे तक देखा.. वो रात के खुले कपडों में कामुकता का भण्डार लग रही थी ....

" मैंने बोला तोह था .. मैंने तोह अपनी फाइल मंगवाई थी .. तुम समझ क्यूँ नही रहे.. मुसीबत आ जायेगी.. please निकलो यहाँ से..!" प्रिया ने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए..

"ठीक है.. चला जाऊँगा... एक बात बता दो.." राज बाथरूम से बाहर आ गया..

"क्या?.. जल्दी बोलो!" प्रिया ने खिन्न होते हुए कहा..

"तुम्हे मैं अच्छा नही लगता क्या?" राज ने उसकी एक तरफ़ देखती हुयी आंखों में झाँका..सुनते ही प्रिया की आँखें उसकी और घूम गई.. कितना अच्छा लगा था .. उसके मुंह से ये सब सुन'ना .. अगले ही पल उसने नजरें हटा कर कुछ बोलने की कोशिश की.. पर जैसे उसकी जुबान पर ताला लग गया.. राज के बारे में वो जितना सोचती थी .. जो सोचती थी .. वो निकल ही नही पाया...

"बोलो न.. मैं तुम्हे अच्छा लगता हूँ या नही... फ़िर मैं चला जाऊँगा.. तुम्हारी कसम.." कहते हुए राज ने आगे बढ़ कर प्रिया का हाथ पकड़ लिया...

"मुझे नही पता.. मैं जा रही हूँ.. तुम्हे जब जाना हो.. चले जाना ..!" प्रिया ने ताला टेबल पर रखा और बाहर की और जाने लगी.. पर राज ने उसका हाथ पकड़ रखा था .. मजबूती से.. प्रिया ने अपना हाथ छुडाने की कोशिश की तोह राज ने उसको अपनी और खींच लिया.. प्रिया को लगा जैसे उसमें जान ही नही बची.. उसने राज के आगोश में आने से बचने की कोशिश तक नही की और अगले ही पल वो उसकी बाहों में थी .."ये क्या बदतमीजी है.. छोडो मुझे.." पता नही प्रिया के मुंह से ये बात निकली कैसे.. और कहाँ से.. न तोह उसका मन ही.. न उसका खूबसूरत और मुलायम बदन उसकी बात के samarthan में था .. प्रिया का कुंवारा बदन.. एक दम खिल सा गया था .. राज की बाँहों में आते ही.. ढीले कपड़े भी छातियों पर टाइट हो गए थे .. जो राज के सीने से छू गई थी ...

"बदतमीजी का क्या मतलब है.. मैं तोह पूछ रहा हूँ.. बता दो.. मैं तुम्हे छोड़ दूंगा... और चला जाऊँगा.." प्रिया के बदन की महक इतनी करीब से महसूस करके राज का रोम रोम बाग़ बाग़ हो गया.. प्रिया को छोड़ने की बजे उसने अपना हाथ उसकी पतली कमर में दाल लिया.. प्रिया की तेज़ हो चुकी गरम साँसों से वह उत्तेजित भी हो गया था .. उसकी आंखों के सामने गाँव वाला दृश्य जीवंत हो उठा.. वह प्रिया को भी उसी तरह देखने को लालायित हो उठा.. जैसे उसने खेतों में कामिनी को देखा था ... बिना कोई कपड़ा तन पर डाले... उसकी उंगलियाँ प्रिया की कमर पर सख्त हो चली थी .. और उसको अपनी और खींच रही थी ...

कमाल की बात तोह ये थी ki प्रिया के शरीर से इन् सबका हल्का सा भी विरोध न होने पर भी प्रिया की जुबान हार मान'ने का नाम तक नही ले रही थी .. अपनी जाँघों से थोड़ा सा ऊपर प्रिया को 'कुछ' चुभ रहा ठा.. प्रिया जानती थी की 'ये' क्या है..? उसको ऐसा लगा जैसे वो आसमान से गिर रही है.. इतना हल्का.. इतना रोमांचक.. और इतना आनंददायी.. दिल चाह रहा था की वह अपना हाथ भी राज की कमर से चिपका ले और उस'से और jyada चिपक जाए.. इस अभ्हूत्पूर्व आनंद को दोगुना करने के लिए.. पर उसकी जुबान कुछ और ही बोल रही थी ..," ये ग़लत है राज.. छोडो मुझे.. मुझे जाने दो.. मुझे डर लग रहा है.. जाने दो मुझे.. छोडो."

कहते हुए उसने प्रतिरोध करने की कोशिश की.. पर उसके बदन ने उसका साथ ही नही दिया.. वह यूँही चिपका रहा.. प्रिया अब राज की आंखों में झांक रही थी .. उसकी आंखों में सहमती भी थी .. और विरोध के भावः भी.. प्यार था और नाराजगी भी.. फंसने का डर भी था और और पास आने की तमन्ना भी... पर राज ने सिर्फ़ वही देखा जो वो देखना चाह रहा था ... इतनी देर से उसके होंटों के पास ही खिले गुलाब की पंखुडियों जैसे प्रिया के गुलाबी होंटों को नजरअंदाज करना वैसे भी असंभव था ... राज ने अपना चेहरा झुकाया और प्रिया की नामुराद जुबान को बंद कर दिया.. प्रिया रोमांच की दुनिया के इस सर्वप्रथम अहसास को sah नही पाई.. कुछ देर तक तोह उसकी समझ में कुछ आया ही नही..
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11-26-2017, 02:00 PM,
#82
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --43

. उसकी जांघें भीच गई.. जाँघों के बीच बैठी राज के सपनो की रानी तिलमिला उठी.. chhatpata उठी.. और जैसे ही उसको होश आया अपने होंटों को राज के होंटों से मुक्त किया और बरस पड़ी.. मैं तुम्हे ऐसा नही समझती थी.. राज! तुम भी दूसरो के जैसे हो.. गंदे.. छोडो मुझे..."

अब तक प्रिया के हल्के फुल्के विरोध को नजरअंदाज कर रहा राज हुक्का बक्का रह गया.. प्रिया द्वारा उसको ' दूसरो के जैसा ' बोला जन उसको बिल्कुल गंवारा नही हुआ और प्रिया को अपने बहुपास से आजाद कर दिया... पर हिला नही.. वहीँ खड़ा रहा..

प्रिया को अचानक ऐसा लगा की अभी अभी उसकी जवानी की बगियाँ में बसंती फूल खिले हों.. और अचानक पतझड़ भी आ गया हो... उसकी समझ नही आ रहा था की वो क्या करे.. सॉरी बोलकर उस'से चिपक जाए.. या सॉरी बोलकर नीचे भाग जाए.. उसने najarein उठाकर राज की आंखों में झाँका.. राज की आंखों से अब बे-इज्जत होने का निर्मम भावः टपक रहा ठा.. पर वह फ़िर भी एकटक देखता रहा.. उसकी आंखों में... हड़बड़ी में प्रिया कुछ न बोल पाई.. न 'ऐसे' सॉरी.. न 'वैसे' सॉरी.. अचानक मुडी और भाग गई.. राज को वहीँ छोड़ कर...

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नीचे बेद पर आकर वह गुमसुम सी लेट गई...

"क्या हुआ? इतनी देर क्यूँ लगा दी प्रिया। मैं तोह dari हुयी थी .." रिया प्रिया की और सरक आई...प्रिया कुछ न बोली.. उसकी आँखें नम हो गई थी ...

"प्रिया..!" रिया ने उसको पकड़ कर हिला दिया..,"क्या हुआ..? बता तोह। "

"कुछ नही..!" और प्रिया ने रिया को अपनी बाहों में जकड लिया.. पर वो 'मरदाना' अहसास यहाँ कैसे मिलता.. वो सुबकने लगी...

"बता तोह क्या हुआ..? मैं तेरी बहिन नही हूँ क्या..?" रिया को लगा 'कुछ' न 'कुछ' तोह हुआ ही है.. दोनों में..."

"मैं अभी आई..." कहते ही वह उठकर बाहर भाग गई.. इस बार उसको मम्मी का डर भी रोक नही पाया..ऊपर जाते ही वह कमरे में गई.. वहां कोई नही था .. अब जाकर उसको 'सॉरी' बोलने की akal आई थी .. चिपक कर.. उसको लगा कुछ मिलते ही खो गया.. कोई अपना सा.. कोई प्यारा सा.. वह बाथरूम में गई.. chaaron और देखा और बाहर छत पर आ गई.. और घर की मुंडेर पर खड़ी होकर इस तरह देखने लगी मनो राज दिख गया तोह अभी बुला लेगी... वापस.. कह देगी.. वो सबके जैसा नही है.. वो उसका राज है.. कह देगी की वो उससे प्यार करती है.. कह देगी की उसके शरीर की धड़कने अब सिर्फ़ उसके ही लिए हैं..पर कहीं कुछ नही मिला.. वापस कमरे में आई और तकिये को अपनी छातियों पर जोर से दबाकर उलटी लेट गई.. बेजान तकिया उसकी तड़प कहाँ से समझता....

तब तक रिया भी ऊपर ही आ गई," क्या हुआ प्रिया.. उसने कुछ ग़लत किया क्या?"

प्रिया का रुदन अपनी हमराज को सामने देखते ही सामने आ गया," मैंने ग़लत किया रिया.. मैंने उसको खो दिया.." कहकर प्रिया फ़िर से रिया से जा चिपकी...

"बता न यार.. हुआ क्या?" रिया ने उसके आंसू पौंछते हुए कहा...वह अपने प्यार का इजहार करने आया था .. मैंने ठुकरा दिया.. मैंने उसको बे-इज्जत कर दिया रिया.. मैंने उसको खो दिया..." और प्रिया ने सब-कुछ बता दिया।

"पागल! जब तुझे वो अच्छा लगता है तोह तुने ऐसा किया ही क्यूँ..?" रिया ने राज का पक्ष लिया...

"मुझे डर लग रहा ठा कहीं वो आगे न बढ़ जाए.... मुझे सब कुछ इतना अच्छा लग रहा था की मुझे लगा.. मैं उसको रोक नही पाउंगी.. मैं ख़ुद ही बहकने लगी थी रिया.. उसने पता नही क्या कर दिया था ..." प्रिया रिया के सामने रो रही थी .. अपनी हालत बयां कर रही थी ...

"पर तू आराम से भी तोह कह सकती थी .. उसको इतना बुरा भला कहने की क्या जरुरत थी ..."

"मुझे पता था .. वो नही मानेगा.. आराम से कहने से... इसीलिए.." प्रिया ने सफाई दी....

"चल कोई बात नही... सुबह देखते हैं.. आजा.. मम्मी जाग गई तोह प्रॉब्लम आ जायेगी..." रिया ने प्रिया का हाथ पकड़ कर कहा....

"तू उसको manaa लेगी न pleese ... मेरे लिए.. उसको कह देना.. अब मैं कुछ नही कहूँगी.. चाहे वो कुछ भी कर ले...." प्रिया उठते हुए बोली...

"चिंता मत कर.. तू मेरा कमाल देखना... अगर वो प्यार करता है तोह कहीं जाने वाला नही..." रिया ने बाथरूम का दरवाजा बंद करके कमरे का ताला लगाया और दोनों नीचे चल पड़ी..

नीचे आते हुए दोनों खिड़की के पास रुकी.. राज की खिड़की बंद थी .. प्रिया ने रुन्वासी सी होकर रिया की आंखों में झाँका और नीचे चली गई....

" कहाँ था तू?" राज के रूम में घुस'ते ही वीरू की आँखें एक पल को चमक उठी.. पर अगले ही पल उसको याद आ गया की साडी दुर्गति उसकी ही वजह से हुयी है," तुझे पता है यहाँ क्या हो गया?" विक्की वीरू के पास कुर्सी पर था जबकि स्नेहा उसके बिस्तर पर पालथी मरे बैठी थी.. राज के अन्दर घुसते ही वो खड़ी हो गयी।

राज को माजरा समझ में न आया.. उसके चेहरे पर तोह 12 पहले ही बजे हुए थे.. दो अनजान लोगों को कमरे में पाकर वो भोचक्का सा बारी बारी तीनो की और देखने लगा और कुछ सोचने के बाद उसने विक्की की तरफ हाथ जोड़ दिए," नमस्ते..."

"क्या नमस्ते यार.. कही जाओ तोह बता कर तो जाया करो.. वीरू तुम्हे ढूँढने गया था.. हमारी गाड़ी से इसका एक्सीडेंट हो गया.." विक्की ने सहज भावः से कहा..

"क्या?" राज के पैरों तले की जमीन खिसक गयी...," कब? ... कहाँ..?" उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया.. सचमुच आज का दिन बहुत खराब था..,"क्या हुआ?"

"क्या हुआ के बच्चे.. बात को गोलमोल मत कर... पहले बता.. गया कहाँ था तू इतनी रात को...?" वीरू ने कोहनी का सहारा लेकर उठने की कोशिश की.. पर दर्द बहुत ज्यादा बढ़ गया था.... वह कराह उठा..

"बता दूंगा भाई.. पहले बता तोह क्या हुआ.. ? यहाँ लगी है क्या चोट..?" सड़क पर घिसरने की वजह से वीरू के चेहरे पर भी खरोंच आई थी.. राज ने उस खरोंच के पास हाथ लगाते हुए पूछा...

" इसकी टांग में चोट लगी है... मैं तो कह रही थी हॉस्पिटल चलो.. ये माना ही नही.. कहने लगा राज चिंता करेगा, वापस आने पर.." वीरू के बोलने से पहले ही स्नेहा बोल पड़ी...राज ने देखने के लिए जैसे ही वीरू की जांघ को हिलाने की कोशिश की वो दर्द से बिलबिला उठा," बस कर यार.. अब तोह चैन से पड़ा रहने दे..."

"चल मेडिकल चलते हैं.. यार.. सॉरी.. मुझे बता कर जाना चाहिए था .." राज को कुछ बोलते न बन रहा था...वीरू का दर्द अब कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था.. राज के वापस आने पर अब वीरू को राज की बजाय अपनी चोट की फिकर होने लगी.. उसने नजरें घुमाकर विक्की की और देखा॥"

हाँ हाँ.. चलो यार.. स्नेहा! तुम यही रुक जाओ.. हम इसको ले जाते हैं... अगर वहां ज्यादा टाइम लगा तोह मैं वापस आ जाऊँगा..." विक्की ने स्नेहा की और देखते हुए अपनी बात ख़तम की...

"ठीक है.. ले जाओ!.. मैं तब तक यहीं रूकती हूँ.." स्नेहा को कोई ऐतराज नही था...उसके बाद दोनों वीरू को सहारा देकर गाड़ी में ले गए... स्नेहा ने अपनी ड्रेस change की और लेट गयी...

थाने में मुरारी S.H.O. साहब के शयन कक्ष में उसके बिस्तर पर लेते हुए थे .. और S.H.O. कुर्सी पर बैठा उसकी गालियाँ सुन रहा था.." बिजेंदर.... कैसे रहते हो यहाँ पर.. मेरा तोह दम निकला जा रहा है गर्मी में.. यहाँ A.C. क्यूँ नही लगवाया.. बहिन के लौडे मच्छर खा रहे हैं.. वो अलग... क्या घंटा थाना है ये... लाक up में मुजरिम कैसे रहते होंगे.. आख़िर वो भी तोह इन्सान हैं..." मुरारी के मुंह से इंसानियत का जिक्र कुछ फब नही रहा था... वो भयभीत tha कि कल उसका क्या होगा... tough के थाने में...

"क्या करें सर... ये cooler भी ऊपर की कमाई से चल रहा है... सरकार ने तोह बस ये पंखा दे रखा है..." विजेंदर ने छत की और इशारा करते हुए कहा... पंखा मुश्किल से एक मिनट में 50 चक्कर काट रहा था....

"सरकार के भरोसे रहोगे तोह ये भी नही रहेगा.. कुछ दिन बाद.. मेरे तोह चांस ख़तम ही हो गए.. पता नही किस मादरचोद ने बहलाया है मेरी बेटी को... साला सारे करियर का कबाडा हो गया... चल मेरे ऑफिस चलते हैं.. सुबह आ जायेंगे.." मुरारी ने पेट पर हाथ मारते हुए कहा...

"पर अगर किसी ने देख लिया तोह.. मेरी नौकरी जाती रहेगी.. सर.. आपको मीडिया का पता ही है.. कैसे उछालते हैं मामलों को.. कहीं ले देकर भी मामला सेट नही कर सकते..!"

"बहिन की चूत.. मीडिया वालों की.. सालों ने मेरी माँ चोद दी.. इनको तोह फांसी पर लटका देना चाहिए.. वैसे तुझे क्या लगता है..? किसकी चाल हो सकती है..?" मुरारी बैठ गया था ...

"वैसे पक्का तोह कैसे कहें.. पर हो न हो विक्की इस मामले में हो सकता है.. आजकल वो शहर में नही दिख रहा.. मुझसे मिला था तोह आपको सबक सिखाने कि बात कर रहा था.. वो मुल्तिप्लेक्स वाले इस्सुए पर.... वो हर हल में उसको खरीदना चाहता है.."

"उसकी गांड में दम नही है.. जब तक में जिन्दा हूँ.. उसको कोई नही खरीद सकता... पर वो तोह विदेश में है न.. आजकल.. उसकी पार्टी वाले तोह यही कह रहे हैं..?"

" न जी न.. कम से कम जिस दिन ये घटना हुयी.. उस रात को तोह वो इंडिया में ही था .... किसी लड़की के साथ था.. लम्बी सी.."

"तुझे कैसे पता? पहले क्यूँ नही बताया हराम के....! तेरे पास सबूत है कोई..?" मुरारी बिस्तर से उछल पड़ा...

"सबूत तोह नही है.. पर जिस होटल में वो दोनों रुके थे .. उस दिन वो भी वहीँ था .. जिसने मुझे बताया है.. मैंने सोचा आपकी लड़की लम्बी कहाँ होगी.. इसीलिए नजरंदाज कर दिया..." विजेंदर ने ५ फीट के मुरारी को सर से पाँव तक देखा.

" अबे वो 5'8" की है.. जरूर वही होगी.. कौनसा होटल था...?" मुरारी को लगा कोई रास्ता निकल सकता है...

"कोई फायदा नही.. मैंने निजी तौर पर इंकुइरी की थी.. उनका कोई रिकॉर्ड नही है.. वहां ठहरने का..." विजेंदर ने उसकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया."

साला.. मैं उसको छोडूंगा नही.. तेरे पास no. है उसका..?"

"मैंने तरी किया था .. switch ऑफ़ आ रहा है.. लगातार..!"

"मेरे ड्राईवर का भी कुछ पता नही.. कहीं वो भी तोह शामिल नही है इस गेम में?" मुरारी का दिमाग भन्ना गया..

"अभी तोह आप कल का सोचिये कुछ.. कल आपको कोर्ट ले जाना पड़ेगा.. वो इंस्पेक्टर वहीँ मिलेगा... उसके बाद में कुछ नही कर पाऊंगा..." विजेंदर ने मुरारी से कहा..

"हाँ यार.. उसका तोह कुछ करना ही पड़ेगा.. कुछ लेने देने की बात कर ले न..?" मुरारी बेचैन हो गया..."

वो तोह मैं देख लूँगा.. पर शालिनी के बयानों का क्या करूँ...?.. ये तोह आपको फंसवा ही देंगे... अगर उसने कोर्ट में बोल दिया तोह.. ले भी तोह अपने साथ ही गया कम्बखत... कुछ सोचते भी तोह.." विजेंदर ने सफाई दी।

"उसको तोह मैं देख लूँगा.. कब तक अपने साथ रखेगा साला... पर कल मेरी पुलिस कस्टडी नही होनी चाहिए... पुलिस की तरफ से.. इस माम'ले में भी.. और उसमें भी....."

"ठीक है सर! मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूँगा... आप बेफिक्र रहे..." विजेंदर ने कहा॥"

विजेंदर.. यहाँ लड़की नही आ सकती है क्या..? रात गुजारने के लिए.. बड़ी खुस्की सी हो रही है यार॥"

विजेंदर ने बुड्ढे की आंखों में गौर से देखा.. कितना कमीना था वो..," यहाँ कुछ नही हो सकता सर... आप वाला मामला न होता तोह जरुर हो जाता.. ऐसे मामलों में मीडिया वाले रात रात भर चिपके रहते हैं आसपास.. की हम कोई गलती करें और वो उसको ब्रेकिंग न्यूज़ बना दें.. कम से कम आज तोह आप काट ही लीजिये......"

मुरारी ने अपने पेट पर हाथ मारा और अपना मोबाइल निकल लिया.... कहीं डायल करके कान से लगा लिया.."हाँ.. मुरारी जी..."

"सुन बांके.. वो साला विक्की इधर ही है.. आसपास हर जगह फ़ोन कर दो.. दिख जाए तोह बिना पूछे ही उठवा लो साले को...." मुरारी ने कहा॥"

उसको तोह मैंने अभी मेडिकल की पार्किंग में देखा था...... मैं वहीँ से आ रहा हूँ.. 2517 टोयोटा थी.. ब्लैक कलर में.. अभी आधे घंटे पहले की तोह बात है... कहो तोह भेज दूँ.. बन्दों को...?"

मुरारी की आँखें चमक उठी...," पहले क्यूँ नही बताया भोस... जल्दी कर.. निकलना नही चाहिए.. कोई और भी था क्या उसके साथ...?"

"किसी और का तोह पता नही.. वो पार्क करके निकल रहा था.." बांके ने कहा.."जल्दी कर.. उस्सपर नजर रखवा कर किसी अच्छे मौके का इंतज़ार करना.. और हाँ.. अपनी लड़की उसके साथ हो सकती है.. ध्यान से.. मजबूत बन्दों को भेजना.. बहुत सख्त जान है साला..! उठवा ले.. और फ़िर मेरे पास फ़ोन करना.. उस'से पहले उसको कुछ मत कहना.. समझा...!"

"ठीक है मुरारी जी.. आप चिंता न करें.. मैं साथ ही जाऊँगा!"

"शाबाश!" कहकर मुरारी ने फ़ोन काट दिया.. वह खिल सा गया था.... की अचानक tough की याद आते ही उसका कुरूप चेहरा फ़िर से मुरझा गया...
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11-26-2017, 02:00 PM,
#83
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --44

हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा हाजिर हूँ नेक्स्ट पार्ट लेकर

"शुक्र है फ्रॅक्चर नही है! माँस फटने से सूजन आ गयी है.. ठीक होने में 10-15 दिन लग जाएँगे.. मैं कुच्छ दवाइयाँ लिख देती हून.. टाइम से लेते रहना और नेक्स्ट मंडे एक बार आकर चेक करा जाना... ओके?" हॉस्पिटल में लेडी डॉक्टर वीरेंदर और राज के पास खड़ी थी..," करते क्या हो तुम?"

"जी, पढ़ते हैं..10+2 में" दोनो एक साथ बोल पड़े...

"तुम्हारा दोस्त शरमाता बहुत है.." डॉक्टर ने राज को प्रिस्क्रिप्षन पेपर दिया और मुस्कुराते हुए वहाँ से दूसरे पेशेंट के पास चली गयी...

"क्या बात थी.. तू शर्मा क्यूँ रहा था ओये?" राज ने वीरू के कान के पास मुँह लेजाकार कहा...

"मेरी पॅंट निकलवा ली थी यार.. शरम नही आएगी क्या?" वीरू मुस्कुराया और अचानक बात पलट दी..," चलें.. सुबह होने को है.."

"एक मिनिट.. मैं भाई साहब को देखकर आता हूँ... तू यहीं लेटा रह तब तक.." राज ने वीरू से कहा..

"कहाँ गये वो..?"

"पता नही.. अभी 20 मिनिट पहले यहीं थे.. एक फोन करने की बात कहकर निकले थे.. बाहर ही होंगे.. मैं बुलाकर लाता हूँ.." कहकर राज बाहर निकल गया...

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करीब 10-15 मिनिट बाद राज वापस आया," यार वो तो कहीं दिखाई नही दिए... मैं हर जगह देख आया.."

"चले तो नही गये हैं.. स्नेहा रूम पर अकेली है ना.. वो उसको बोल भी रहे थे की देर लगी तो मैं आ जाउन्गा..!" वीरू ने राज से कहा..

"पर मैं पार्किंग में गाड़ी भी देख आया हूँ... वहीं खड़ी है.. गये होते तो गाड़ी लेकर नही जाते क्या?" राज ने सवाल किया...

"फिर तो यहीं होंगे.. इंतजार करते हैं.. और क्या?" वीरू ने राज की और देखते हुए कहा...

राज ने सहमति में सिर हिलाया और वीरेंदर के पास ही बैठ गया.....

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सवेरा हो गया था.. स्नेहा को सारी रात नींद नही आई.. यूँही करवटें बदलती हुई विकी के बारे में सोचती रही...कितना प्यारा है मोहन.. कितना अपना सा है.. 3 दिन में ही वो उस'से किस कदर जुड़ गयी थी.. उसके दूर जाते ही उसको लगता था की वो फिर से नितांत अकेली हो गयी है... मोहन ने एक साथ ही उसको कितनी सारी खुशियाँ दे दी... मोहन के लिए ही जियूंगी अब... उसके लिए मर भी जाउन्गि... स्नेहा ने मन ही मन सोचा और अंगड़ाई लेते हुए उल्टी लेट गयी.. उसका रूप निखर आया था.. अब हर अंग हर पल जैसे 'मोहन मोहन' ही पुकारता रहता था.. आज गाड़ी में ही उन्होने कितनी मस्ती की थी.. स्नेहा रह रह कर विकी से लिपट जा रही थी.. 'पल' भर की बेचैनी भी स्नेहा से सहन नही हो रही थी... मोहन ने वादा किया था.. रोहतक जाकर एक दोस्त के फ्लॅट पर रुकेंगे और वो उस'से वहाँ पहले दिन वाला ही प्यार फिर से करेगा... जी भर कर.. वो रोहतक आ भी गये थे.. पर स्नेहा से 2 पल का भी इंतज़ार नही हो रहा था.. वो रह रह कर मोहन से लिपटी जा रही थी.....

और शायद इसीलिए 'वो' हादसा हुआ.. अगर वो मोहन को इस तरह 'तंग' ना करती तो शायद मोहन हादसे को टाल भी लेता.. सोचते हुए स्नेहा ने एक लंबी आह भारी.. और करवट बदलकर फिर से सीधी हो गयी...

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करीब 10 मिनिट बाद दरवाजे पर दस्तक हुई.. स्नेहा एक दम से उठी और दरवाजे के पास जाकर पूचछा," कौन है?"

"हम हैं.. दरवाजा खोलो"

आवाज़ वीरू की थी.. स्नेहा ने झट से दरवाजा खोल दिया..," आ गये.. क्या रहा?"

"भैया यहाँ नही आए हैं क्या..?" राज ने उल्टा उसी से सवाल किया..

"क्या मतलब?" स्नेहा का दिल धक से रह गया..," कहाँ हैं वो? यहाँ तो नही आए..

"गाड़ी तो उनकी वहीं पर खड़ी है... फोन करने की कहकर निकले थे.. हमने करीब 1:30 घंटे उनका इंतज़ार किया.. फिर सोचा क्या पता यहीं आ गये हों.. इसीलिए हम आ गये..." राज ने चिंतित स्वर में उत्तर दिया...

स्नेहा बिना कुच्छ सोचे समझे ही रोने लगी...," उन्होने पहले ही कहा था की रोहतक में उनको ख़तरा है.." सुबक्ती हुई स्नेहा के गालों से मोटे मोटे आँसू बहने लगे..

राज ने वीरू को बेड पर लिटा दिया.. दोनो की समझ में नही आ रहा था की वो क्या करें; क्या कहें... कुच्छ देर बाद राज उठकर स्नेहा के पास आया," आ जाएँगे.. आप रो क्यूँ रही हैं.. हम छ्चोड़ आएँगे.. आपको जहाँ जाना है..."

स्नेहा को कहाँ जाना था.. वो अब जा भी कहाँ सकती थी... मोहन के संग सपनों का, अरमानो का जो गुलिस्ताँ स्नेहा ने अपने दिल में सहेज लिया था, उसके आलवा अब इस जहाँ में उसका बचा ही क्या था.. पापा? जिसने महज अपनी राजनीति के लिए शतरंज की बिसात पर मोहरे की तरह से उसका इस्तेमाल किया था.. उसके पास? नही.. कभी नही! अगर वो ऐसा सोचती भी तो किस मुँह से.. वा खुद उसके खिलाफ बग़ावत पर उतर आई थी.. और शालिनी वाला केस सुर्ख़ियों में आने पर तो उसको अपने 'बाप' से नफ़रत सी हो गयी थी....

"चिंता ना करें आप... लीजिए.. आप फोन कर लीजिए..." राज ने अपना फोन उठाकर स्नेहा को दे दिया...

"ओह हां.. पर उसका फोन तो ऑफ ही रहता है.. अक्सर.. चलो ट्राइ करती हूँ..!" उम्मीद की किरण नज़र आने से उसकी सुबाकियाँ कुच्छ कम हुई और उसने विकी का नंबर. डाइयल किया.. पर जैसा स्नेहा ने सोचा था वैसा ही हुआ.. फोन ऑफ था.. स्नेहा को मोहन की भी चिंता हो रही थी और अपनी भी.. वह बेड पर बैठकर अपना सिर पकड़कर रोने लगी....

"तुम रो क्यूँ रही हो.. वो थोड़ी बहुत देर में आ ही जाएँगे.... वैसे तुम्हारे पास घर का नंबर. भी तो होगा ना.. वहाँ पता कर लीजिए अगर उन्होने घर पर फोन किया हो तो.. वैसे वो भाई साहब आपके लगते क्या हैं?" वीरू बेबस था.. उसके पास आकर उसके आँसू नही पोंच्छ सकता था...

क्या बताती स्नेहा.. क्या नाम देती 2 दिन पहले बने इस दिल के रिश्ते को.. उसको डर था की अगर वो सच्चाई बताती है तो कहीं दोनो डर कर कुच्छ उल्टा सीधा ना कर दें.. मसलन पोलीस को फोन वग़ैरह.. प्रत्युत्तर में वो बिलख पड़ी..," मोहन.. कहाँ हो तूमम्म्मममम???"

स्नेहा का वो कारून प्रलाप सुनकर दोनो का दिल दहल गया.. राज उसके पास जाकर बैठ गया," आप ऐसे ना रोयें.. मैं छ्चोड़ आउन्गा आपको जहाँ जाना है... देखिए यहाँ पर हम एज ए स्टूडेंट रह रहे हैं... किसी ने आपका रोना सुन लिया तो लोग तरह तरह की बातें करेंगे.. प्लीज़.. आप सब्र से काम लें.. वो आते ही होंगे..." राज कह तो रहा था की वो आ जाएँगे.. पर चिंता उसको खुद को भी होने लगी थी.. अब तक तो उसको यहीं पर आ जाना चाहिए था.. 3 घंटे के करीब होने वेल थे उसको गायब हुए...

स्नेहा ने जैसे तैसे खुद को संभाला..," क्या मैं यहीं रह सकती हूँ.. जब तक वो नही आता?" उसने अपने आँसू पोंच्छ लिए.. सच में ही उसका रोना उन्न बेचारों को मुसीबत में डाल सकता था.. और खुद उसको भी...

" क्या?.. हां.. पर.. मेरा मतलब है कि..." राज को कोई शब्द ही ना मिला आगे कुच्छ कहने को.. कैसे रह सकती है वो यहाँ.. लड़कों के कमरे में.. राज ने प्रशन सूचक नज़रों से वीरू की और देखा...

"हां.. रह ले बहन.. जब तक तेरा दिल करे तब तक रह यहीं पर.. मैं कह दूँगा.. मेरी बेहन है.. लोगों की ऐसी की तैसी..! लोग तो बोलते ही रहते हैं.." वीरू ने फ़ैसला सुना दिया..

स्नेहा सुनकर चोंक पड़ी.. उसने अपनी जुल्फें पीछे करके नज़रें उठाकर वीरू की और देखा.. कुच्छ पल तो वो विस्मय से अपनी आँखें फाडे हुए उसको देखती रही.. बूझे हुए चेहरे पर एक मद्धय्म सी मुस्कान दौड़ गयी.. और आँसू फिर से बहने लगे.. उसको यकीन ही नही हो रहा था की उसको 'भाई' मिल गया है..

वीरू उसकी तरफ देखकर मुस्कुराने लगा तो स्नेहा से रहा ना गया.. लगभग दौड़ती हुई सी वो उसके बेड की और गयी और घुटने ज़मीन पर रखकर उसकी छाती पर सिर रख लिया.. और सुबक्ती रही...

"अब भी क्यूँ रो रही है तू.. मैं हूँ ना.. तेरा भाई.." वीरू ने उसका चेहरा अपने हाथों में लेकर उपर उठाया...

"रो नही रही भैया.. समेट नही पा रही हूँ.. रक्षा बंधन पर मिली इस अनोखी खुशी को.. मेरा कोई भाई नही था.. आज से पहले.." स्नेहा खिल उठी..

"अब तो है ना.. वीरू!" वीरू की आँखें चमक रही थी...

"मुझे क्यूँ भूल रहे हो.. मैं भी तो हूँ.." राज भी स्नेहा की बराबर में आ बैठा...

"बहती गंगा में हाथ धो रहा है.. क्यूँ? चल आजा तू भी" वीरू ने कहा और दोनो राज के चेहरे को देखकर खिलखिला उठे......

विकी के इंतज़ार में दिन के कब 7 बज गये तीनो को पता ही नही चला.. स्नेहा रह रह कर बेचैन हो जाती थी.. पर अब उसको अपनी नही सिर्फ़ मोहन की चिंता थी.. उसको तो भाई मिल गये थे.. पर मोहन का यूँ अचानक गायब हो जाना उसकी परेशानी का सबब बना हुआ था.. स्नेहा रह रह कर खामोश हो जाती और शून्या में झाँकने लगती...

"चिंता क्यूँ कर रही हो सानू.. वो कोई बच्चे थोड़े ही हैं.. आ जाएँगे.." वीरू ने स्नेहा का हाथ पकड़ कर उसका ध्यान वापस खींचा...

स्नेहा ने हां में सिर हिलाया और अपनी नम हो चली आँखों को पौंच्छ लिया...

"स्नेहा तो है ही अभी.. मैं स्कूल चला जाउ? कल भी नही जा पाए थे.." राज ने खड़े होते हुए पूचछा..

"ठीक है.. तुम नहा लो.. वैसे भी मुझे कोई खास दिक्कत तो होने नही वाली है.. नाश्ता करके नही जाओगे क्या?" वीरू बोला....

"अभी तो मैं लेट हो रहा हूँ.. आकर ही देखूँगा.. स्कूल में खा लूँगा कुच्छ.. तुम्हारे लिए लाकर दे जाता हूँ..." राज बाहर निकलने लगा...

"मेरे लिए तो मेरी बेहन बना देगी.. क्यूँ स्नेहा?" वीरू स्नेहा को देखकर मुस्कुराया....

"पर... मुझे खाना बनाना नही आता है... कभी बनाया ही नही.." स्नेहा ने नज़रें उठाकर वीरू को देखा...

"कोई बात नही.. मैं सीखा दूँगा ना.. बस तुम वैसा करती जाना जैसे में बताउन्गा.. जा राज ब्रेड और बटर ले आ..." वीरेंदर स्नेहा को व्यस्त रखना चाहता था.. जब तक विकी नही आता... उसको पता था की वो खाली रहेगी तो ज़्यादा परेशान रहेगी...

राज ने स्नेहा की और देखा.. स्नेहा मुस्कुरा पड़ी..,"ठीक है.. पर कुच्छ उल्टा सीधा बन गया तो मुझे मत बोलना बाद में.. पहले बोल रही हूँ" और हँसने लगी...

राज उसकी हँसी का जवाब हुल्की मुस्कुराहट से देकर बाहर निकल गया....

"क्या बात है भैया? राज कुच्छ परेशान सा लग रहा है..?" स्नेहा ने राज के जाते ही वीरू से पूचछा..

"हूंम्म.. वही तो मैं भी देख रहा हूँ.. कल से इसको पता नही क्या हो गया है..?" वीरू ने जवाब दिया..

"आपने इस-से पूचछा ये रात को कहाँ गया था...?"

"ना.. पर शायद मुझे पता है ये कहाँ गया होगा..?"

"कहाँ?" स्नेहा को भी उत्सुकता हुई जान'ने की...

"रहने दो.. तुम्हारे मतलब की बात नही है..." कहकर वीरू ने करवट बदल ली..

"बताओ ना भैया.. ऐसे क्यूँ कर रहे हो.. मैं फिर से रो पड़ूँगी..." स्नेहा ने उसकी बाजू पकड़ कर वापस अपनी तरफ खींच लिया....

" ठीक है.. उसको आने दो.. पहले पक्का तो कर लूँ.. मैं जो सोच रहा हूँ.. वो सही भी है या नही.." वीरेंदर ने बात पूरी की भी नही थी की राज आ गया..," ये लो.. और ये खिड़की बंद रखना.. "

"खिड़की के बच्चे.. तूने ये तो बताया ही नही की तू गया कहाँ था.. रात को..?" वीरू ने आते ही सवाल दागा...

"बता दूँगा भाई.. अभी तो लेट हो रहा हूँ...?" कहते हुए राज बाथरूम में घुसने लगा...

"उसकी मा आई थी अभी यहाँ.. तुम्हे पूच्छ रही थी..." वीरू ने पाँसा फैंका..

"क्क्याअ? पर क्यूँ?.. मेरा मतलब कौन आई थी.. किसकी मा?" राज ने हड़बड़ा कर कहा...

"जिसके घर तू रात को गया था.. उसकी मा..? वीरू के ऐसा कहते ही राज का चेहरा सफेद पड़ गया.. उसकी हालत पर दोनो पेट पकड़कर हँसने लगे...

"क्या है भाई.. खंख़्वाह डरा दिया था... तूने स्नेहा को कुच्छ बता दिया क्या?" राज ने उनको हंसता देखकर राहत की साँस ली......

"नही.. अभी तक तो नही.. पर अभी बतावँगा.. तड़का लगाकर.. तू चला जा पहले.." वीरू ने हंसते हुए कहा...

"क्या है ये...? भाई तू भी ना.. मैं नही जाता स्कूल..." राज तौलिए को पटक कर वहीं बैठ गया..

"ठीक है.. मत जा.. जो मुझे नही पता वो तू बता देना..." खिलखिलाते हुए वीरू ने स्नेहा को हाथ दिया.. स्नेहा ने भी ताल से ताल मिलाई...

"प्लीज़ भाई.. तेरे हाथ जोड़ता हूँ.. मेरी इज़्ज़त का फालूदा क्यूँ निकाल रहा है.." राज दोनो हाथ जोड़कर गिड़गिदाने की मुद्रा में आ गया...

"क्यूँ जब मुँह काला करने गया था तब नही निकला इज़्ज़त का फालूदा..." वीरू और स्नेहा ज़ोर ज़ोर से हंस रहे थे.. राज का चेहरा देखने लायक हो गया था...

"ठीक है तो फिर.. तेरी भी बात मैं बताउन्गा वापस आकर.. जितना भोला बन रहा है.. उतना नही है ये.. स्कूल में एक भी लड़की इस'से बात नही करती.. सब को डरा के रखता है.." और राज की बात दोनो की जोरदार हँसी में दब कर रह गयी.. राज को कुच्छ बोलते ना बना तो वापस बाथरूम में घुस गया...

नहा धोकर मुँह फुलाए हुए ही राज स्कूल चला गया...

"चलो.. बताओ.. अब कैसे बनेगा.. नाश्ता..?" स्नेहा ने बटर और ब्रेड उठाए और वीरू के पास आ गयी

"राज! तुम्हे सर बुला रहे हैं..!"

राज आवाज़ से ही पहचान गया.. यह प्रिया थी.. उसकी आवाज़ में एक अजीब सी मिठास थी... जबकि रिया की आवाज़ में अल्हाड़पन झलकता था....

राज क्लास से बाहर निकला.. प्रिया पहले से ही बाहर थी.. प्रिया को उनदेखा करते हुए वा कुच्छ कदम आगे बढ़ा पर फिर प्रिया की और मूड गया," कौन्से सर?" राज की आवाज़ में रूखापन था...

"ववो.. सॉरी राज.. रियली..!" प्रिया उस'से नज़रें नही मिला पा रही थी..

"कौन्से सर बुला रहे हैं..?" राज ने उसकी बात को अनदेखा करने का दिखावा किया...

"क्या तुम मुझे माफ़ नही करोगे राज? तुम्हे पता है.. मुझे एक पल के लिए भी नींद नही आई... प्लीज़ माफ़ कर दो... कर दो ना.." प्रिया इधर उधर देख रही थी.. कहीं कोई देख तो नही रहा...

"माफ़ तो तुम मुझे कर दो.. मैं भी दूसरों के जैसा हूँ ना.. बदतमीज़..!" राज का गुस्सा तो उसकी पहली रिक्वेस्ट पर ही पिघलने लगा था.. अब तो वह सिर्फ़ दिखावा कर रहा था.. प्रिया को अपने लिए तड़प्ता देख राज को बहुत सुकून मिल रहा था...

"म्मेरा वो मतलब नही था राज.. मैं डर गयी थी.. तुम्हारी कसम... आज के..."

प्रिया ने अपनी बात पूरी की भी नही थी की वहाँ रिया आ धमकी," तुम्हे पता है राज.. ये सारी रात सुबक्ती रही.. मैं भी नही सो सकी.. इसके चक्कर में.. अब इसको माफी दे भी दो..." रिया ने अपना वोट प्रिया के पक्ष में डाला...

"अगर तुम नही बता रही की कौन्से सर बुला रहे हैं.. तो मैं वापस जा रहा हूँ..!" राज ने रिया की बात का कोई जवाब नही दिया...

"मैने झूठ बोला था.. तुमसे बात करने के लिए.. मैं तुम्हारी कसम...." और प्रिया की बात अधूरी ही रह गयी.. राज वापस मूड कर क्लास में चला गया...

" तू चिंता मत कर प्रिया... ये कहीं नही जाने वाला.. मैं सब समझ रही हूँ.. ये तुमसे बदला ले रहा है बस.. चल आ क्लास में चलते हैं.. आ ना!" रिया ने प्रिया का हाथ पकड़ कर क्लास की और खींच लिया...

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" अजीब आदमी है यार तू भी.. उस लड़की को ऐसे ही छ्चोड़ आया.. अंजान लड़कों के पास?" शमशेर को विकी की बात पर बहुत गुस्सा आया...

"चिंता मत कर भाई.. निहायत ही शरीफ लड़के हैं.. उसको प्यार से रखेंगे.. 2-4 दिन की तो बात है.. तब तक मैं मुरारी को निपटा लूँगा..." विकी फोन पर शमशेर से बात कर रहा था," वैसे भी तो उसको लोहरू छ्चोड़कर ऐसा ही करने का प्लान था.. लोहरू छ्चोड़ने पर बाद में टेन्षन आ सकती थी.. उसकी समझ में कुच्छ नही आएगा.. मैने उसको समझा रखा है की मेरी जान को ख़तरा हो सकता है.. अगर कुच्छ हो जाए तो तुम किसी भी सूरत में अपने बयान मत बदलना..."

"यार तुझे बयानो की पड़ी है... वो लड़के स्कूल में पढ़ते हैं यार.. डर जाएँगे.." शमशेर ने विकी से गुस्से में कहा...

"तू चिंता क्यूँ कर रहा है भाई.. स्नेहा बहुत समझदार है.. वो संभाल सकती है अगर कुच्छ उल्टा सीधा हुआ तो..! और मैने अपना एक आदमी भी आसपास जमा रखा है.. अगर कुच्छ होने भी लगा तो वो स्नेहा को मेरा नाम लेकर ले उड़ेगा..." विकी ने शमशेर को तसल्ली देने की कोशिश की..

"पर मान लो तुझे मल्टिपलेक्स मिल भी गया.. बाद में क्या होगा... उस बेचारी का!" शमशेर स्नेहा को लेकर चिंतित था...

"होना क्या है.. ज़्यादा से ज़्यादा उसका बाप उसका खर्चा नही देगा ना.. मैं दे दूँगा.. और बोल?" विकी ने जवाब दिया...

"यार.. तेरी यही बात ग़लत है.. तू सब चीज़ों को पैसे से तोल कर देखता है.. आख़िर वो तुझसे प्यार करती है.." शमशेर के मंन में अभी भी काई सवाल थे..

"तो मैं उस'से प्यार करता रहूँगा ना.. टाइम निकाल कर.. बहुत मस्त है साली.. ऐसी बाला मैने आज तक नही देखी..." विकी ने बत्तीसी निकालते हुए कहा...

"तेरा कुच्छ नही हो सकता भाई.. तू तो पॉलिटिशियन्स से भी एक कदम आगे बढ़ गया है.. खैर जैसा तू ठीक समझे...!" शमशेर ने टॉपिक पर बात करना व्यर्थ समझा..,"वैसे कहाँ रहते हैं.. वो लड़के..?"

"एस.एच.ओ. विजेंदर के घर के ठीक सामने... तू ये बता.. टफ से बात की या नही..."

"हां.. कर ली.. वो तो कह रहा था.. इतनी सी बात मुझे नही बोल सकता था क्या? खैर.. आज रात 8:00 बजे सीधा थाने चला जाना.. टफ और मुरारी वहीं मिलेंगे.. कर लेना जो बात करनी है.. खुलकर.. मैने सब समझा दिया है..." शमशेर ने बुझे मंन से कहा...

"थॅंक यू बॉस! तुस्सी ग्रेट हो.." कहकर विकी ने खुशी खुशी फोन काट दिया था.. वो मन ही मन उच्छल रहा था.. उसके एक ही तीर ने जाने कितने शिकार कर लिए थे... पर हाँ.. एक मासूम भी उसकी चपेट में आ गयी थी... स्नेहा!

" चलो! जनाब बुला रहे हैं?" सी.आइ.ए. थाना भिवानी के एक सिपाही ने ताला खोलते हुए सलाखों के अंदर मुरझाए से बैठे मुरारी से कहा.. शाम के करीब 5 बजे थे..

"देखा.. मैने कहा था ना.. तुम्हारा जनाब ज़्यादा देर तक मुझे ऐसे नही बैठा सकता.. कोई छ्होटा मोटा आदमी नही हूँ मैं.. बाद में उस'से निपाटूंगा भी... ये 'क़ानून' छ्होटे लोगों के लिए बनते हैं... हमारे लिए नही.. आ गया होगा फोन.. उपर से उसके किसी 'बाप' का...." मुरारी ने रुमाल से अपनी गर्दन पर छलक आए पसीने और मैल की पपड़ी सॉफ करते हुए कहा और चौड़ी छाती करके बाहर निकल लिया...

"अब हमें क्या पता साहब.. हम तो हुक़ुम के गुलाम हैं.. जैसा आदेश जनाब करेंगे, मान'ना पड़ेगा.. वैसे मेरी पूरी हुम्दर्दि आपके साथ है.. अगली बार भगवान की दया से जब आप मंत्री होंगे तो मैं आपसे ज़रूर मिलूँगा.. याद रखिएगा मेरा चेहरा..." सिपाही ने मासूमियत से कहते हुए अपने नंबर. बदवा लिए.. मुरारी की नज़र में..

मुरारी ने खुश होकर उसकी पीठ ठोनकी," यहाँ कुच्छ लेन देन नही चलता क्या रे?"

"सब चलता है साहब.. हर जगह चलता है ये तो... पर ना किसी को कुच्छ उपर मिलता.. ना नीचे.. जनाब डीजीपी हरयाणा के भतीजे हैं ना... हम तो बस इंतज़ार ही करते रहते हैं.. की कब दीवाली आएगी और कब बोनस मिलेगा.. साला तनख़्वाह के अलावा एक कप चाय भी नही नसीब होती फोकट में तो... इस थाने में... मेरी बदली ज़रूर करवा देना साहब...." सिपाही ने फिर से लाइन मारी...

"तुम चिंता मत करो बेटा.. मुझे कुर्सी मिलते ही तुम्हारी प्रमोशन पक्की.. पर ये बताओ.. बात किस'से करनी पड़ेगी.. लेन देन की.." मुरारी उसके कान में फुसफुसाया...

सिपाही ने कोई जवाब नही दिया.. टफ के ऑफीस के सामने पहुँच गये थे दोनो..," चलो साहब.. बाकी बातें बाद में..."

मुरारी अंदर घुस गया.. अंदर चल रहे ए.सी. की ठंड में मुरारी को अपना ऑफीस याद आ गया.....

टफ अपनी गद्देदार कुर्सी पर आराम से टेबल के नीचे पैर फैलाए हुए अढ़लेटा सा बैठा था.. उसके सामने 30 की उमर के आसपास के 2 पहलवान से दिखने वाले अच्छे घरों के लोग खड़े थे..

"मुझे बुलाया इनस्पेक्टर?" मुरारी ने गर्दन टेढ़ी करते हुए पूछा.. रस्सी जल चुकी थी.. पर बल अभी तक नही गये थे..

टफ ने जैसे मुरारी को सुना ही नही.. वह टेबल पर आगे की और झुका और सामने खड़े लोगों से बोला," बैठो!"

जैसे ही उन्न दोनो ने बैठने के लिए टेबल के सामने खड़ी कुर्सी खींची; टफ उबाल पड़ा...," सालो.. बैठने के लिए कुर्सी चाहिए तुम्हे.. हां? उधर बैठो.. नीचे!"

"जनाब हमारी भी कोई इज़्ज़त है.. बाहर गाँव वाले आए हुए हैं.. क्यूँ नाक कटवा रहे हो..?" उनमें से एक ने हाथ जोड़कर कहा...

"हूंम्म.. इज़्ज़त.. तुम्हारी भी इज़्ज़त है.. सालो.. जब गाँव की लड़कियों को खेतों में पकड़ते हो तो तब क्या तुम्हारी इज़्ज़त गांद मरवाने चली जाती है... तुम इज़्ज़त की बात करते हो.. बहनचो..." टफ खड़ा हो गया..," कपड़े निकालो... देखता हूँ तुम्हारी इज़्ज़त कितनी गहरी है..!"

"नही.. जनाब.. ये तो पागल है.. लो बैठ गये.. आप तो माई बाप हैं.. आपके सामने नीचे बैठने में भला कैसी शरम..?" कहते हुए दूसरा टपाक से दीवार के साथ साथ कर ज़मीन पर बैठ गया.. और पहले वाले को भी खींच कर बिठा लिया...

"राजेश!" टफ ने सिपाही को आवाज़ लगाई...

"जी.. जनाब.." राजेश तुरंत दरवाजे पर प्रकट हो गया...

"लड़की के बाप को बुलाकर लाओ...!"

"जी जनाब.." राजेश तुरंत गायब हो गया और जब वापस आया तो उसके साथ एक अधेड़ उम्र का आदमी था...

"नमस्ते जनाब!" आदमी ने कहा और अंदर आ गया.. उसकी आँखें भरी हुई थी..

"बोलो ताउ! क्या करना है इनका..?" टफ ने बड़े ही नरम लहजे में बात की..

उस आदमी ने नफ़रत और ग्लानि से ज़मीन पर बैठे दोनो की और देखा और अपनी नज़रें हटा ली..," सब कुच्छ आप पर छ्चोड़ दिया है जनाब.. अब हम तो किसी को मुँह दिखाने लायक रहे नही.. हमारी बेटी.." कह कह कर बुद्धा फूट फूट कर रोने लगा.. उसका गला भर आया...

"ठीक है.. आप जाकर मुंशी के पास बिटिया के बयान दर्ज करवा दो...! मैं कल इनको कोर्ट में प्रोड्यूस कर दूँगा..."

"एक मिनिट जनाब.. क्या हम अकेले में इनसे एक बार बात कर लें... इधर आना ताउ!" दूसरे वाले आदमी ने कहा...

"आप बात करना चाहते हो ताउ?" टफ ने पूचछा..

बुड्ढे ने कोई जवाब ना दिया.. उनके बुलाने पर वो इनकार नही कर सका और बरबस ही उनकी और चला गया....

कुच्छ क्षण दोनो आदमी उसके कान में ख़ुसर फुसर करते रहे.. बुड्ढे के अंदर का स्वाभिमान जाग उठा और कसकर एक तमाचा उनमें से एक को जड़ दिया.. दोनो टफ की वजह से खून का घूँट पीकर रह गये....

"क्या हुआ ताउ? क्या कह रहे हैं ये..." टफ ने दोनो को घूरते हुए कहा..

बुद्धा फफक पड़ा..," कह रहे है.. केस वापस ले लो वरना तुम्हारी छ्होटी बेटी को भी......" इस'से आगे वो ना बोल पाया....

टफ कितनी ही देर से अपने खून में आ रहे उबाल को रोके बैठा था..," कपड़े फाडो इन्न बेहन के लोड़ों के... और नगा करके घूमाओ बाहर.. तब आएगी इनको अकल..!"

टफ के मुँह से निकालने भर की देर थी.. राजेश अपने साथ दो और अपने ही जैसे हत्ते कत्ते पोलीस वालों को लेकर अंदर आ गया...

"हमें माफ़ कर दो साहब.. हमने तो खाली चुम्मि खाई थी.. और चूचियाँ दबाई थी बस..... प्लीज़.. जनाब.. इश्स बार छ्चोड़ दो.. नही.. प्लीज़ फाडो मत.. हम निकाल रहे हैं ना.." टफ का रौद्रा रूप देखकर दोनो अंदर तक दहल गये... और साथ में मुरारी भी.. उसके चेहरे पर पसीना छलक आया था.. और रौन्ग्ते खड़े हो गये थे...

सिपाहियों के कान तो बस अपने जनाब की आवाज़ ही जैसे सुनते थे... 2 मिनिट के बाद ही वो दोनो सिर्फ़ कcचे बनियान में खड़े थे...

"इतनी बे-इज़्ज़ती सहन नही होती जनाब.. हमारी भी पहुँच उपर तक है.. सेंटर में मिनिस्टर है हमारा मौसा...!" पहले वाले आदमी झक मार रहा था..

"एक मंत्री तो ये खड़ा.. तुम्हारे सामने.. इसको भी नंगा करके दिखाऊँ क्या?" टफ ने कहा तो मुरारी को झुर्झुरि सी आ गयी.. उसकी टाँगें काँपने लगी थे खड़े खड़े...

दोनो के मुँह अचानक सिल गये.. अब तक मुरारी पर तो उनका ध्यान गया ही नही था.. मुरारी को इश्स तरह भीगी बिल्ली बने खड़ा देख उनको अपनी औकात का अहसास हो गया....

"दोनो को हवालात में डाल दो.. शाम को इनकी गांद में मिर्ची लगानी है.... चलो ताउ जी.. आप बयान दर्ज करवा दो.." टफ ने कहा और फिर मुरारी की और घूरते हुए बोला..," बैठो.. मैं आता हूँ...!

साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,

मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..

मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,

बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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11-26-2017, 02:01 PM,
#84
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --44



"शुक्र है फ्रॅक्चर नही है! माँस फटने से सूजन आ गयी है.. ठीक होने में 10-15 दिन लग जाएँगे.. मैं कुच्छ दवाइयाँ लिख देती हून.. टाइम से लेते रहना और नेक्स्ट मंडे एक बार आकर चेक करा जाना... ओके?" हॉस्पिटल में लेडी डॉक्टर वीरेंदर और राज के पास खड़ी थी..," करते क्या हो तुम?"

"जी, पढ़ते हैं..10+2 में" दोनो एक साथ बोल पड़े...

"तुम्हारा दोस्त शरमाता बहुत है.." डॉक्टर ने राज को प्रिस्क्रिप्षन पेपर दिया और मुस्कुराते हुए वहाँ से दूसरे पेशेंट के पास चली गयी...

"क्या बात थी.. तू शर्मा क्यूँ रहा था ओये?" राज ने वीरू के कान के पास मुँह लेजाकार कहा...

"मेरी पॅंट निकलवा ली थी यार.. शरम नही आएगी क्या?" वीरू मुस्कुराया और अचानक बात पलट दी..," चलें.. सुबह होने को है.."

"एक मिनिट.. मैं भाई साहब को देखकर आता हूँ... तू यहीं लेटा रह तब तक.." राज ने वीरू से कहा..

"कहाँ गये वो..?"

"पता नही.. अभी 20 मिनिट पहले यहीं थे.. एक फोन करने की बात कहकर निकले थे.. बाहर ही होंगे.. मैं बुलाकर लाता हूँ.." कहकर राज बाहर निकल गया...

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करीब 10-15 मिनिट बाद राज वापस आया," यार वो तो कहीं दिखाई नही दिए... मैं हर जगह देख आया.."

"चले तो नही गये हैं.. स्नेहा रूम पर अकेली है ना.. वो उसको बोल भी रहे थे की देर लगी तो मैं आ जाउन्गा..!" वीरू ने राज से कहा..

"पर मैं पार्किंग में गाड़ी भी देख आया हूँ... वहीं खड़ी है.. गये होते तो गाड़ी लेकर नही जाते क्या?" राज ने सवाल किया...

"फिर तो यहीं होंगे.. इंतजार करते हैं.. और क्या?" वीरू ने राज की और देखते हुए कहा...

राज ने सहमति में सिर हिलाया और वीरेंदर के पास ही बैठ गया.....

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सवेरा हो गया था.. स्नेहा को सारी रात नींद नही आई.. यूँही करवटें बदलती हुई विकी के बारे में सोचती रही...कितना प्यारा है मोहन.. कितना अपना सा है.. 3 दिन में ही वो उस'से किस कदर जुड़ गयी थी.. उसके दूर जाते ही उसको लगता था की वो फिर से नितांत अकेली हो गयी है... मोहन ने एक साथ ही उसको कितनी सारी खुशियाँ दे दी... मोहन के लिए ही जियूंगी अब... उसके लिए मर भी जाउन्गि... स्नेहा ने मन ही मन सोचा और अंगड़ाई लेते हुए उल्टी लेट गयी.. उसका रूप निखर आया था.. अब हर अंग हर पल जैसे 'मोहन मोहन' ही पुकारता रहता था.. आज गाड़ी में ही उन्होने कितनी मस्ती की थी.. स्नेहा रह रह कर विकी से लिपट जा रही थी.. 'पल' भर की बेचैनी भी स्नेहा से सहन नही हो रही थी... मोहन ने वादा किया था.. रोहतक जाकर एक दोस्त के फ्लॅट पर रुकेंगे और वो उस'से वहाँ पहले दिन वाला ही प्यार फिर से करेगा... जी भर कर.. वो रोहतक आ भी गये थे.. पर स्नेहा से 2 पल का भी इंतज़ार नही हो रहा था.. वो रह रह कर मोहन से लिपटी जा रही थी.....

और शायद इसीलिए 'वो' हादसा हुआ.. अगर वो मोहन को इस तरह 'तंग' ना करती तो शायद मोहन हादसे को टाल भी लेता.. सोचते हुए स्नेहा ने एक लंबी आह भारी.. और करवट बदलकर फिर से सीधी हो गयी...

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करीब 10 मिनिट बाद दरवाजे पर दस्तक हुई.. स्नेहा एक दम से उठी और दरवाजे के पास जाकर पूचछा," कौन है?"

"हम हैं.. दरवाजा खोलो"

आवाज़ वीरू की थी.. स्नेहा ने झट से दरवाजा खोल दिया..," आ गये.. क्या रहा?"

"भैया यहाँ नही आए हैं क्या..?" राज ने उल्टा उसी से सवाल किया..

"क्या मतलब?" स्नेहा का दिल धक से रह गया..," कहाँ हैं वो? यहाँ तो नही आए..

"गाड़ी तो उनकी वहीं पर खड़ी है... फोन करने की कहकर निकले थे.. हमने करीब 1:30 घंटे उनका इंतज़ार किया.. फिर सोचा क्या पता यहीं आ गये हों.. इसीलिए हम आ गये..." राज ने चिंतित स्वर में उत्तर दिया...

स्नेहा बिना कुच्छ सोचे समझे ही रोने लगी...," उन्होने पहले ही कहा था की रोहतक में उनको ख़तरा है.." सुबक्ती हुई स्नेहा के गालों से मोटे मोटे आँसू बहने लगे..

राज ने वीरू को बेड पर लिटा दिया.. दोनो की समझ में नही आ रहा था की वो क्या करें; क्या कहें... कुच्छ देर बाद राज उठकर स्नेहा के पास आया," आ जाएँगे.. आप रो क्यूँ रही हैं.. हम छ्चोड़ आएँगे.. आपको जहाँ जाना है..."

स्नेहा को कहाँ जाना था.. वो अब जा भी कहाँ सकती थी... मोहन के संग सपनों का, अरमानो का जो गुलिस्ताँ स्नेहा ने अपने दिल में सहेज लिया था, उसके आलवा अब इस जहाँ में उसका बचा ही क्या था.. पापा? जिसने महज अपनी राजनीति के लिए शतरंज की बिसात पर मोहरे की तरह से उसका इस्तेमाल किया था.. उसके पास? नही.. कभी नही! अगर वो ऐसा सोचती भी तो किस मुँह से.. वा खुद उसके खिलाफ बग़ावत पर उतर आई थी.. और शालिनी वाला केस सुर्ख़ियों में आने पर तो उसको अपने 'बाप' से नफ़रत सी हो गयी थी....

"चिंता ना करें आप... लीजिए.. आप फोन कर लीजिए..." राज ने अपना फोन उठाकर स्नेहा को दे दिया...

"ओह हां.. पर उसका फोन तो ऑफ ही रहता है.. अक्सर.. चलो ट्राइ करती हूँ..!" उम्मीद की किरण नज़र आने से उसकी सुबाकियाँ कुच्छ कम हुई और उसने विकी का नंबर. डाइयल किया.. पर जैसा स्नेहा ने सोचा था वैसा ही हुआ.. फोन ऑफ था.. स्नेहा को मोहन की भी चिंता हो रही थी और अपनी भी.. वह बेड पर बैठकर अपना सिर पकड़कर रोने लगी....

"तुम रो क्यूँ रही हो.. वो थोड़ी बहुत देर में आ ही जाएँगे.... वैसे तुम्हारे पास घर का नंबर. भी तो होगा ना.. वहाँ पता कर लीजिए अगर उन्होने घर पर फोन किया हो तो.. वैसे वो भाई साहब आपके लगते क्या हैं?" वीरू बेबस था.. उसके पास आकर उसके आँसू नही पोंच्छ सकता था...

क्या बताती स्नेहा.. क्या नाम देती 2 दिन पहले बने इस दिल के रिश्ते को.. उसको डर था की अगर वो सच्चाई बताती है तो कहीं दोनो डर कर कुच्छ उल्टा सीधा ना कर दें.. मसलन पोलीस को फोन वग़ैरह.. प्रत्युत्तर में वो बिलख पड़ी..," मोहन.. कहाँ हो तूमम्म्मममम???"

स्नेहा का वो कारून प्रलाप सुनकर दोनो का दिल दहल गया.. राज उसके पास जाकर बैठ गया," आप ऐसे ना रोयें.. मैं छ्चोड़ आउन्गा आपको जहाँ जाना है... देखिए यहाँ पर हम एज ए स्टूडेंट रह रहे हैं... किसी ने आपका रोना सुन लिया तो लोग तरह तरह की बातें करेंगे.. प्लीज़.. आप सब्र से काम लें.. वो आते ही होंगे..." राज कह तो रहा था की वो आ जाएँगे.. पर चिंता उसको खुद को भी होने लगी थी.. अब तक तो उसको यहीं पर आ जाना चाहिए था.. 3 घंटे के करीब होने वेल थे उसको गायब हुए...

स्नेहा ने जैसे तैसे खुद को संभाला..," क्या मैं यहीं रह सकती हूँ.. जब तक वो नही आता?" उसने अपने आँसू पोंच्छ लिए.. सच में ही उसका रोना उन्न बेचारों को मुसीबत में डाल सकता था.. और खुद उसको भी...

" क्या?.. हां.. पर.. मेरा मतलब है कि..." राज को कोई शब्द ही ना मिला आगे कुच्छ कहने को.. कैसे रह सकती है वो यहाँ.. लड़कों के कमरे में.. राज ने प्रशन सूचक नज़रों से वीरू की और देखा...

"हां.. रह ले बहन.. जब तक तेरा दिल करे तब तक रह यहीं पर.. मैं कह दूँगा.. मेरी बेहन है.. लोगों की ऐसी की तैसी..! लोग तो बोलते ही रहते हैं.." वीरू ने फ़ैसला सुना दिया..

स्नेहा सुनकर चोंक पड़ी.. उसने अपनी जुल्फें पीछे करके नज़रें उठाकर वीरू की और देखा.. कुच्छ पल तो वो विस्मय से अपनी आँखें फाडे हुए उसको देखती रही.. बूझे हुए चेहरे पर एक मद्धय्म सी मुस्कान दौड़ गयी.. और आँसू फिर से बहने लगे.. उसको यकीन ही नही हो रहा था की उसको 'भाई' मिल गया है..

वीरू उसकी तरफ देखकर मुस्कुराने लगा तो स्नेहा से रहा ना गया.. लगभग दौड़ती हुई सी वो उसके बेड की और गयी और घुटने ज़मीन पर रखकर उसकी छाती पर सिर रख लिया.. और सुबक्ती रही...

"अब भी क्यूँ रो रही है तू.. मैं हूँ ना.. तेरा भाई.." वीरू ने उसका चेहरा अपने हाथों में लेकर उपर उठाया...

"रो नही रही भैया.. समेट नही पा रही हूँ.. रक्षा बंधन पर मिली इस अनोखी खुशी को.. मेरा कोई भाई नही था.. आज से पहले.." स्नेहा खिल उठी..

"अब तो है ना.. वीरू!" वीरू की आँखें चमक रही थी...

"मुझे क्यूँ भूल रहे हो.. मैं भी तो हूँ.." राज भी स्नेहा की बराबर में आ बैठा...

"बहती गंगा में हाथ धो रहा है.. क्यूँ? चल आजा तू भी" वीरू ने कहा और दोनो राज के चेहरे को देखकर खिलखिला उठे......

विकी के इंतज़ार में दिन के कब 7 बज गये तीनो को पता ही नही चला.. स्नेहा रह रह कर बेचैन हो जाती थी.. पर अब उसको अपनी नही सिर्फ़ मोहन की चिंता थी.. उसको तो भाई मिल गये थे.. पर मोहन का यूँ अचानक गायब हो जाना उसकी परेशानी का सबब बना हुआ था.. स्नेहा रह रह कर खामोश हो जाती और शून्या में झाँकने लगती...

"चिंता क्यूँ कर रही हो सानू.. वो कोई बच्चे थोड़े ही हैं.. आ जाएँगे.." वीरू ने स्नेहा का हाथ पकड़ कर उसका ध्यान वापस खींचा...

स्नेहा ने हां में सिर हिलाया और अपनी नम हो चली आँखों को पौंच्छ लिया...

"स्नेहा तो है ही अभी.. मैं स्कूल चला जाउ? कल भी नही जा पाए थे.." राज ने खड़े होते हुए पूचछा..

"ठीक है.. तुम नहा लो.. वैसे भी मुझे कोई खास दिक्कत तो होने नही वाली है.. नाश्ता करके नही जाओगे क्या?" वीरू बोला....

"अभी तो मैं लेट हो रहा हूँ.. आकर ही देखूँगा.. स्कूल में खा लूँगा कुच्छ.. तुम्हारे लिए लाकर दे जाता हूँ..." राज बाहर निकलने लगा...

"मेरे लिए तो मेरी बेहन बना देगी.. क्यूँ स्नेहा?" वीरू स्नेहा को देखकर मुस्कुराया....

"पर... मुझे खाना बनाना नही आता है... कभी बनाया ही नही.." स्नेहा ने नज़रें उठाकर वीरू को देखा...

"कोई बात नही.. मैं सीखा दूँगा ना.. बस तुम वैसा करती जाना जैसे में बताउन्गा.. जा राज ब्रेड और बटर ले आ..." वीरेंदर स्नेहा को व्यस्त रखना चाहता था.. जब तक विकी नही आता... उसको पता था की वो खाली रहेगी तो ज़्यादा परेशान रहेगी...

राज ने स्नेहा की और देखा.. स्नेहा मुस्कुरा पड़ी..,"ठीक है.. पर कुच्छ उल्टा सीधा बन गया तो मुझे मत बोलना बाद में.. पहले बोल रही हूँ" और हँसने लगी...

राज उसकी हँसी का जवाब हुल्की मुस्कुराहट से देकर बाहर निकल गया....

"क्या बात है भैया? राज कुच्छ परेशान सा लग रहा है..?" स्नेहा ने राज के जाते ही वीरू से पूचछा..

"हूंम्म.. वही तो मैं भी देख रहा हूँ.. कल से इसको पता नही क्या हो गया है..?" वीरू ने जवाब दिया..

"आपने इस-से पूचछा ये रात को कहाँ गया था...?"

"ना.. पर शायद मुझे पता है ये कहाँ गया होगा..?"

"कहाँ?" स्नेहा को भी उत्सुकता हुई जान'ने की...

"रहने दो.. तुम्हारे मतलब की बात नही है..." कहकर वीरू ने करवट बदल ली..

"बताओ ना भैया.. ऐसे क्यूँ कर रहे हो.. मैं फिर से रो पड़ूँगी..." स्नेहा ने उसकी बाजू पकड़ कर वापस अपनी तरफ खींच लिया....

" ठीक है.. उसको आने दो.. पहले पक्का तो कर लूँ.. मैं जो सोच रहा हूँ.. वो सही भी है या नही.." वीरेंदर ने बात पूरी की भी नही थी की राज आ गया..," ये लो.. और ये खिड़की बंद रखना.. "

"खिड़की के बच्चे.. तूने ये तो बताया ही नही की तू गया कहाँ था.. रात को..?" वीरू ने आते ही सवाल दागा...

"बता दूँगा भाई.. अभी तो लेट हो रहा हूँ...?" कहते हुए राज बाथरूम में घुसने लगा...

"उसकी मा आई थी अभी यहाँ.. तुम्हे पूच्छ रही थी..." वीरू ने पाँसा फैंका..

"क्क्याअ? पर क्यूँ?.. मेरा मतलब कौन आई थी.. किसकी मा?" राज ने हड़बड़ा कर कहा...

"जिसके घर तू रात को गया था.. उसकी मा..? वीरू के ऐसा कहते ही राज का चेहरा सफेद पड़ गया.. उसकी हालत पर दोनो पेट पकड़कर हँसने लगे...

"क्या है भाई.. खंख़्वाह डरा दिया था... तूने स्नेहा को कुच्छ बता दिया क्या?" राज ने उनको हंसता देखकर राहत की साँस ली......

"नही.. अभी तक तो नही.. पर अभी बतावँगा.. तड़का लगाकर.. तू चला जा पहले.." वीरू ने हंसते हुए कहा...

"क्या है ये...? भाई तू भी ना.. मैं नही जाता स्कूल..." राज तौलिए को पटक कर वहीं बैठ गया..

"ठीक है.. मत जा.. जो मुझे नही पता वो तू बता देना..." खिलखिलाते हुए वीरू ने स्नेहा को हाथ दिया.. स्नेहा ने भी ताल से ताल मिलाई...

"प्लीज़ भाई.. तेरे हाथ जोड़ता हूँ.. मेरी इज़्ज़त का फालूदा क्यूँ निकाल रहा है.." राज दोनो हाथ जोड़कर गिड़गिदाने की मुद्रा में आ गया...

"क्यूँ जब मुँह काला करने गया था तब नही निकला इज़्ज़त का फालूदा..." वीरू और स्नेहा ज़ोर ज़ोर से हंस रहे थे.. राज का चेहरा देखने लायक हो गया था...

"ठीक है तो फिर.. तेरी भी बात मैं बताउन्गा वापस आकर.. जितना भोला बन रहा है.. उतना नही है ये.. स्कूल में एक भी लड़की इस'से बात नही करती.. सब को डरा के रखता है.." और राज की बात दोनो की जोरदार हँसी में दब कर रह गयी.. राज को कुच्छ बोलते ना बना तो वापस बाथरूम में घुस गया...

नहा धोकर मुँह फुलाए हुए ही राज स्कूल चला गया...

"चलो.. बताओ.. अब कैसे बनेगा.. नाश्ता..?" स्नेहा ने बटर और ब्रेड उठाए और वीरू के पास आ गयी

"राज! तुम्हे सर बुला रहे हैं..!"

राज आवाज़ से ही पहचान गया.. यह प्रिया थी.. उसकी आवाज़ में एक अजीब सी मिठास थी... जबकि रिया की आवाज़ में अल्हाड़पन झलकता था....

राज क्लास से बाहर निकला.. प्रिया पहले से ही बाहर थी.. प्रिया को उनदेखा करते हुए वा कुच्छ कदम आगे बढ़ा पर फिर प्रिया की और मूड गया," कौन्से सर?" राज की आवाज़ में रूखापन था...

"ववो.. सॉरी राज.. रियली..!" प्रिया उस'से नज़रें नही मिला पा रही थी..

"कौन्से सर बुला रहे हैं..?" राज ने उसकी बात को अनदेखा करने का दिखावा किया...

"क्या तुम मुझे माफ़ नही करोगे राज? तुम्हे पता है.. मुझे एक पल के लिए भी नींद नही आई... प्लीज़ माफ़ कर दो... कर दो ना.." प्रिया इधर उधर देख रही थी.. कहीं कोई देख तो नही रहा...

"माफ़ तो तुम मुझे कर दो.. मैं भी दूसरों के जैसा हूँ ना.. बदतमीज़..!" राज का गुस्सा तो उसकी पहली रिक्वेस्ट पर ही पिघलने लगा था.. अब तो वह सिर्फ़ दिखावा कर रहा था.. प्रिया को अपने लिए तड़प्ता देख राज को बहुत सुकून मिल रहा था...

"म्मेरा वो मतलब नही था राज.. मैं डर गयी थी.. तुम्हारी कसम... आज के..."

प्रिया ने अपनी बात पूरी की भी नही थी की वहाँ रिया आ धमकी," तुम्हे पता है राज.. ये सारी रात सुबक्ती रही.. मैं भी नही सो सकी.. इसके चक्कर में.. अब इसको माफी दे भी दो..." रिया ने अपना वोट प्रिया के पक्ष में डाला...

"अगर तुम नही बता रही की कौन्से सर बुला रहे हैं.. तो मैं वापस जा रहा हूँ..!" राज ने रिया की बात का कोई जवाब नही दिया...

"मैने झूठ बोला था.. तुमसे बात करने के लिए.. मैं तुम्हारी कसम...." और प्रिया की बात अधूरी ही रह गयी.. राज वापस मूड कर क्लास में चला गया...

" तू चिंता मत कर प्रिया... ये कहीं नही जाने वाला.. मैं सब समझ रही हूँ.. ये तुमसे बदला ले रहा है बस.. चल आ क्लास में चलते हैं.. आ ना!" रिया ने प्रिया का हाथ पकड़ कर क्लास की और खींच लिया...

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" अजीब आदमी है यार तू भी.. उस लड़की को ऐसे ही छ्चोड़ आया.. अंजान लड़कों के पास?" शमशेर को विकी की बात पर बहुत गुस्सा आया...

"चिंता मत कर भाई.. निहायत ही शरीफ लड़के हैं.. उसको प्यार से रखेंगे.. 2-4 दिन की तो बात है.. तब तक मैं मुरारी को निपटा लूँगा..." विकी फोन पर शमशेर से बात कर रहा था," वैसे भी तो उसको लोहरू छ्चोड़कर ऐसा ही करने का प्लान था.. लोहरू छ्चोड़ने पर बाद में टेन्षन आ सकती थी.. उसकी समझ में कुच्छ नही आएगा.. मैने उसको समझा रखा है की मेरी जान को ख़तरा हो सकता है.. अगर कुच्छ हो जाए तो तुम किसी भी सूरत में अपने बयान मत बदलना..."

"यार तुझे बयानो की पड़ी है... वो लड़के स्कूल में पढ़ते हैं यार.. डर जाएँगे.." शमशेर ने विकी से गुस्से में कहा...

"तू चिंता क्यूँ कर रहा है भाई.. स्नेहा बहुत समझदार है.. वो संभाल सकती है अगर कुच्छ उल्टा सीधा हुआ तो..! और मैने अपना एक आदमी भी आसपास जमा रखा है.. अगर कुच्छ होने भी लगा तो वो स्नेहा को मेरा नाम लेकर ले उड़ेगा..." विकी ने शमशेर को तसल्ली देने की कोशिश की..

"पर मान लो तुझे मल्टिपलेक्स मिल भी गया.. बाद में क्या होगा... उस बेचारी का!" शमशेर स्नेहा को लेकर चिंतित था...

"होना क्या है.. ज़्यादा से ज़्यादा उसका बाप उसका खर्चा नही देगा ना.. मैं दे दूँगा.. और बोल?" विकी ने जवाब दिया...

"यार.. तेरी यही बात ग़लत है.. तू सब चीज़ों को पैसे से तोल कर देखता है.. आख़िर वो तुझसे प्यार करती है.." शमशेर के मंन में अभी भी काई सवाल थे..

"तो मैं उस'से प्यार करता रहूँगा ना.. टाइम निकाल कर.. बहुत मस्त है साली.. ऐसी बाला मैने आज तक नही देखी..." विकी ने बत्तीसी निकालते हुए कहा...

"तेरा कुच्छ नही हो सकता भाई.. तू तो पॉलिटिशियन्स से भी एक कदम आगे बढ़ गया है.. खैर जैसा तू ठीक समझे...!" शमशेर ने टॉपिक पर बात करना व्यर्थ समझा..,"वैसे कहाँ रहते हैं.. वो लड़के..?"

"एस.एच.ओ. विजेंदर के घर के ठीक सामने... तू ये बता.. टफ से बात की या नही..."

"हां.. कर ली.. वो तो कह रहा था.. इतनी सी बात मुझे नही बोल सकता था क्या? खैर.. आज रात 8:00 बजे सीधा थाने चला जाना.. टफ और मुरारी वहीं मिलेंगे.. कर लेना जो बात करनी है.. खुलकर.. मैने सब समझा दिया है..." शमशेर ने बुझे मंन से कहा...

"थॅंक यू बॉस! तुस्सी ग्रेट हो.." कहकर विकी ने खुशी खुशी फोन काट दिया था.. वो मन ही मन उच्छल रहा था.. उसके एक ही तीर ने जाने कितने शिकार कर लिए थे... पर हाँ.. एक मासूम भी उसकी चपेट में आ गयी थी... स्नेहा!

" चलो! जनाब बुला रहे हैं?" सी.आइ.ए. थाना भिवानी के एक सिपाही ने ताला खोलते हुए सलाखों के अंदर मुरझाए से बैठे मुरारी से कहा.. शाम के करीब 5 बजे थे..

"देखा.. मैने कहा था ना.. तुम्हारा जनाब ज़्यादा देर तक मुझे ऐसे नही बैठा सकता.. कोई छ्होटा मोटा आदमी नही हूँ मैं.. बाद में उस'से निपाटूंगा भी... ये 'क़ानून' छ्होटे लोगों के लिए बनते हैं... हमारे लिए नही.. आ गया होगा फोन.. उपर से उसके किसी 'बाप' का...." मुरारी ने रुमाल से अपनी गर्दन पर छलक आए पसीने और मैल की पपड़ी सॉफ करते हुए कहा और चौड़ी छाती करके बाहर निकल लिया...

"अब हमें क्या पता साहब.. हम तो हुक़ुम के गुलाम हैं.. जैसा आदेश जनाब करेंगे, मान'ना पड़ेगा.. वैसे मेरी पूरी हुम्दर्दि आपके साथ है.. अगली बार भगवान की दया से जब आप मंत्री होंगे तो मैं आपसे ज़रूर मिलूँगा.. याद रखिएगा मेरा चेहरा..." सिपाही ने मासूमियत से कहते हुए अपने नंबर. बदवा लिए.. मुरारी की नज़र में..

मुरारी ने खुश होकर उसकी पीठ ठोनकी," यहाँ कुच्छ लेन देन नही चलता क्या रे?"

"सब चलता है साहब.. हर जगह चलता है ये तो... पर ना किसी को कुच्छ उपर मिलता.. ना नीचे.. जनाब डीजीपी हरयाणा के भतीजे हैं ना... हम तो बस इंतज़ार ही करते रहते हैं.. की कब दीवाली आएगी और कब बोनस मिलेगा.. साला तनख़्वाह के अलावा एक कप चाय भी नही नसीब होती फोकट में तो... इस थाने में... मेरी बदली ज़रूर करवा देना साहब...." सिपाही ने फिर से लाइन मारी...

"तुम चिंता मत करो बेटा.. मुझे कुर्सी मिलते ही तुम्हारी प्रमोशन पक्की.. पर ये बताओ.. बात किस'से करनी पड़ेगी.. लेन देन की.." मुरारी उसके कान में फुसफुसाया...

सिपाही ने कोई जवाब नही दिया.. टफ के ऑफीस के सामने पहुँच गये थे दोनो..," चलो साहब.. बाकी बातें बाद में..."

मुरारी अंदर घुस गया.. अंदर चल रहे ए.सी. की ठंड में मुरारी को अपना ऑफीस याद आ गया.....

टफ अपनी गद्देदार कुर्सी पर आराम से टेबल के नीचे पैर फैलाए हुए अढ़लेटा सा बैठा था.. उसके सामने 30 की उमर के आसपास के 2 पहलवान से दिखने वाले अच्छे घरों के लोग खड़े थे..

"मुझे बुलाया इनस्पेक्टर?" मुरारी ने गर्दन टेढ़ी करते हुए पूछा.. रस्सी जल चुकी थी.. पर बल अभी तक नही गये थे..

टफ ने जैसे मुरारी को सुना ही नही.. वह टेबल पर आगे की और झुका और सामने खड़े लोगों से बोला," बैठो!"

जैसे ही उन्न दोनो ने बैठने के लिए टेबल के सामने खड़ी कुर्सी खींची; टफ उबाल पड़ा...," सालो.. बैठने के लिए कुर्सी चाहिए तुम्हे.. हां? उधर बैठो.. नीचे!"

"जनाब हमारी भी कोई इज़्ज़त है.. बाहर गाँव वाले आए हुए हैं.. क्यूँ नाक कटवा रहे हो..?" उनमें से एक ने हाथ जोड़कर कहा...

"हूंम्म.. इज़्ज़त.. तुम्हारी भी इज़्ज़त है.. सालो.. जब गाँव की लड़कियों को खेतों में पकड़ते हो तो तब क्या तुम्हारी इज़्ज़त गांद मरवाने चली जाती है... तुम इज़्ज़त की बात करते हो.. बहनचो..." टफ खड़ा हो गया..," कपड़े निकालो... देखता हूँ तुम्हारी इज़्ज़त कितनी गहरी है..!"

"नही.. जनाब.. ये तो पागल है.. लो बैठ गये.. आप तो माई बाप हैं.. आपके सामने नीचे बैठने में भला कैसी शरम..?" कहते हुए दूसरा टपाक से दीवार के साथ साथ कर ज़मीन पर बैठ गया.. और पहले वाले को भी खींच कर बिठा लिया...

"राजेश!" टफ ने सिपाही को आवाज़ लगाई...

"जी.. जनाब.." राजेश तुरंत दरवाजे पर प्रकट हो गया...

"लड़की के बाप को बुलाकर लाओ...!"

"जी जनाब.." राजेश तुरंत गायब हो गया और जब वापस आया तो उसके साथ एक अधेड़ उम्र का आदमी था...

"नमस्ते जनाब!" आदमी ने कहा और अंदर आ गया.. उसकी आँखें भरी हुई थी..

"बोलो ताउ! क्या करना है इनका..?" टफ ने बड़े ही नरम लहजे में बात की..

उस आदमी ने नफ़रत और ग्लानि से ज़मीन पर बैठे दोनो की और देखा और अपनी नज़रें हटा ली..," सब कुच्छ आप पर छ्चोड़ दिया है जनाब.. अब हम तो किसी को मुँह दिखाने लायक रहे नही.. हमारी बेटी.." कह कह कर बुद्धा फूट फूट कर रोने लगा.. उसका गला भर आया...

"ठीक है.. आप जाकर मुंशी के पास बिटिया के बयान दर्ज करवा दो...! मैं कल इनको कोर्ट में प्रोड्यूस कर दूँगा..."

"एक मिनिट जनाब.. क्या हम अकेले में इनसे एक बार बात कर लें... इधर आना ताउ!" दूसरे वाले आदमी ने कहा...

"आप बात करना चाहते हो ताउ?" टफ ने पूचछा..

बुड्ढे ने कोई जवाब ना दिया.. उनके बुलाने पर वो इनकार नही कर सका और बरबस ही उनकी और चला गया....

कुच्छ क्षण दोनो आदमी उसके कान में ख़ुसर फुसर करते रहे.. बुड्ढे के अंदर का स्वाभिमान जाग उठा और कसकर एक तमाचा उनमें से एक को जड़ दिया.. दोनो टफ की वजह से खून का घूँट पीकर रह गये....

"क्या हुआ ताउ? क्या कह रहे हैं ये..." टफ ने दोनो को घूरते हुए कहा..

बुद्धा फफक पड़ा..," कह रहे है.. केस वापस ले लो वरना तुम्हारी छ्होटी बेटी को भी......" इस'से आगे वो ना बोल पाया....

टफ कितनी ही देर से अपने खून में आ रहे उबाल को रोके बैठा था..," कपड़े फाडो इन्न बेहन के लोड़ों के... और नगा करके घूमाओ बाहर.. तब आएगी इनको अकल..!"

टफ के मुँह से निकालने भर की देर थी.. राजेश अपने साथ दो और अपने ही जैसे हत्ते कत्ते पोलीस वालों को लेकर अंदर आ गया...

"हमें माफ़ कर दो साहब.. हमने तो खाली चुम्मि खाई थी.. और चूचियाँ दबाई थी बस..... प्लीज़.. जनाब.. इश्स बार छ्चोड़ दो.. नही.. प्लीज़ फाडो मत.. हम निकाल रहे हैं ना.." टफ का रौद्रा रूप देखकर दोनो अंदर तक दहल गये... और साथ में मुरारी भी.. उसके चेहरे पर पसीना छलक आया था.. और रौन्ग्ते खड़े हो गये थे...

सिपाहियों के कान तो बस अपने जनाब की आवाज़ ही जैसे सुनते थे... 2 मिनिट के बाद ही वो दोनो सिर्फ़ कcचे बनियान में खड़े थे...

"इतनी बे-इज़्ज़ती सहन नही होती जनाब.. हमारी भी पहुँच उपर तक है.. सेंटर में मिनिस्टर है हमारा मौसा...!" पहले वाले आदमी झक मार रहा था..

"एक मंत्री तो ये खड़ा.. तुम्हारे सामने.. इसको भी नंगा करके दिखाऊँ क्या?" टफ ने कहा तो मुरारी को झुर्झुरि सी आ गयी.. उसकी टाँगें काँपने लगी थे खड़े खड़े...

दोनो के मुँह अचानक सिल गये.. अब तक मुरारी पर तो उनका ध्यान गया ही नही था.. मुरारी को इश्स तरह भीगी बिल्ली बने खड़ा देख उनको अपनी औकात का अहसास हो गया....

"दोनो को हवालात में डाल दो.. शाम को इनकी गांद में मिर्ची लगानी है.... चलो ताउ जी.. आप बयान दर्ज करवा दो.." टफ ने कहा और फिर मुरारी की और घूरते हुए बोला..," बैठो.. मैं आता हूँ...!

साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,

मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..

मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,

बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
Reply
11-26-2017, 02:01 PM,
#85
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --45

हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा हाजिर हूँ नेक्स्ट पार्ट लेकर

टफ जैसे ही वापस ऑफीस में आया, मुरारी की हालत देखकर वो अपनी हँसी नही रोक पाया.. वो मुरारी को बैठने को बोलकर गया था.. और मुरारी ठीक उसी जगह जाकर नीचे बैठा हुआ था जिस जगह पर कुच्छ मिनिट पहले वो दो आदमी बैठे थे.. बिल्कुल उसी अंदाज में.. शरीफ आदमियों की तरह... उसके दोनो हाथ घुटनो पर रखे हुए थे..

" यहाँ आ जाओ.. उपर.. कुर्सी पर.." टफ ने अपनी कुर्सी पर जमाते हुए कहा....

मुरारी की जान में जान आई.. वो तो ये सोच रहा था कि उसके साथ भी अब कुच्छ ऐसा ही होने वाला है.. पर अभी भी उसके दिल को पूरी तसल्ली नही हुई थी..," आप कहो तो मैं तो नीचे भी बैठ जाउन्गा.. इनस्पेक्टर........ साहब! मैं तो ज़मीन से जुड़ा हुआ आदमी हूँ.." मुरारी ने थूक गटका....

"हां.. तुम्हारी ज़मीन कल देख ली थी.. रही सही.. आज रात को देख लेंगे.." टफ ने मुस्कुराते हुए कहा..

"कककक.. क्या मतलब...?" मुरारी सिहर उठा...

"कुच्छ नही.. किसी आदमी का फोन आया था.. कह रहा था..."

मुरारी की आँखें चमक उठी..," देल्ही से आया था क्या फोन????"

"देल्ही वालों को भूल जाओ मुरारी.. दरअसल उनके कहने पर ही आपकी हवा टाइट की गयी है.. पार्टी आपकी वजह से अपनी छवि बदनाम नही करना चाहती.. खैर जिसका भी फोन आया था.. कह रहा था की उसको पता है की इस वक़्त तुम्हारी बेटी कहाँ है..?" टफ ने वहाँ रखे एक गिलास पानी से अपना गला तर किया.. .

"प्लीज़ इनस्पेक्टर साहब.. मुझे उस आदमी से मिलवा देजिये.. मैं भी परेशान हूँ.. अपनी बेटी के लिए... चाहे आप जो भी खर्चा पानी कहें.. मैं देने को तैयार हूँ...

टफ ने उसकी बात को नज़रअंदाज करके अपनी बात जारी रखी...," उसका नाम विकी है.. मैने उसको बुलवाया है.. वो बस आने ही वाला होगा..."

"विकी कौन.. रोहतक वाला.. जो विरोधी पार्टी में वहाँ से टिकेट का दावेदार है..?" मुरारी के दिमाग़ में खलबली मच गयी...

"वो मुझे नही पता.. पर हां.. है वो रोहतक से ही.." टफ ने अंजान बनते हुए कहा..

"वही होगा ज़रूर.. उसकी ही साजिस है ये.. किसी ने मेरी बेटी को उसके साथ देखा भी था.. वारदात वाले दिन.. इनस्पेक्टर साहब.. उसने मेरी बेटी को बहला रखा है.. आप यकीन कीजिए..." मुरारी कुर्सी पर बैठा बैठा हाँफने लगा.. एक ही साँस में वो ये सब बोल गया था....

"मैं तो यकीन कर भी लूँ.. पर कोर्ट तो सबूत माँगेगा.. और तुम्हारी बेटी के बयान तुम्हारे खिलाफ है.. फिर भी चलो.. आने दो.. देखते हैं बात करके..." टफ ने कहा ही था की दरवाजे पर राजेश प्रकट हुआ," जनाब.. कोई विकी आया है.. कह रहा है.. आपसे मिलने का टाइम माँगा है...

"भेज दो उसको अंदर...!" टफ ने कहा... मुरारी का चेहरा तमतमा उठा...

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"नमस्कार जनाब!" विकी ने ऑफीस में दाखिल होते हुए कहा...

"नमस्कार! क्या तुम ही...."

"जी हां जनाब.. मैं ही विकी हूँ.. ये मुझे अच्छि तरह से जानते हैं..! क्यूँ नेता जी..?" विकी ने मुरारी की और आँख दबा दी..

"इनस्पेक्टर साहब..! मुझे 100 प्रतिशत विस्वास है कि यही आदमी मेरी बर्बादी के पिछे ही है.. आप इसको अभी गिरफ्तार कर लीजिए.. मैं बेकसूर हूँ.." रो ही तो पड़ा था मुरारी....

"तुम फ़ैसला सुना रहे हो की राय दे रहे हो...?" टफ ने दीवार के साथ कुर्सी सरकाते हुए कहा.....

"नही इनस्पेक्टर साहब.. मैं फ़ैसला कैसे सुना सकता हूँ.. फ़ैसला करने वाले तो आप हैं.. फिर भी मैं यकीन के साथ कह सकता हूँ की इसके पीछे इसीका हाथ है.. इसने मेरी बेटी बहका ली.. मुझे बदनाम कर दिया...." मुरारी को टफ ने बीच में ही टोक दिया...

"और शालिनी.. उसके कपड़े भी इसी ने फ़ाडे थे क्या?"

"ववो.. मैं बहक गया था.. गुस्से मैं था मैं.. मुझे माफ़ कर दो इनस्पेक्टर साहेब.. मैं शालिनी बिटिया से भी माफी माँग लूँगा.." मुरारी ने कहा..

विकी मुरारी का ये दब्बु रूप देखकर मुश्किल से अपनी हँसी रोक पा रहा था.. इनस्पेक्टर साहिब को इज़्ज़त जो बख्सनि थी..

"हाँ तो विकी जी.. क्या कहना है आपका..?" टफ विकी से मुखातिब हुआ...

"यही की मुझे पता है की इसकी लड़की इस वक़्त कहाँ है.. वो पोलीस के पास और कोर्ट में अपने बयान देना चाहती है.. इसी सिलसिले में किसी ने मुझसे कॉंटॅक्ट किया था..." विकी बोल ही रहा था की मुरारी बीच में टपक पड़ा..

"नही इनस्पेक्टर साहब.. इसकी सारी बातें झूठी हैं.. इसने खुद ये ड्रामा रचा है और अब यहाँ मुझे ब्लॅकमेल करने आया है..."

"तुम चुप हो जाओगे या मुझे तुम्हे हवालात में भेजना पड़ेगा...?" टफ ने रूखी आवाज़ में मुरारी से कहा," मैं कोई पागल तो नही हूँ.. मैं पूच्छ रहा हूँ ना सब कुच्छ.."

"जी!" मुरारी भीगी बिल्ली बन गया...

"हां तो विकी जी... ये ब्लॅकमेलिंग का क्या फंडा है.." टफ ने विकी से पूचछा...

"कुच्छ नही है जनाब! मैं इसको ब्लॅकमेल क्यूँ करूँगा.. इस जैसे लोगों की तो मैं शकल भी देखना नही चाहता.. मैं तो सिर्फ़ आपको जानकारी देने आया था.. वो भी इसीलिए की खुद इसकी बेटी ऐसा चाहती है..." विकी ने सहज भाव से कहा...

"हूंम्म.. तो कहाँ है लड़की.. चलिए उसके बयान लेकर कोर्ट में पेश कर देते हैं.. ये अपने आप भुगतेगा..!" टफ ने विकी से कहा.. कार्य वाही एक तरफ़ा चल रही थी.. हर तरफ से मुरारी को दबाया और डराया जा रहा था..

"चलिए.. मैं तो इसी काम से आया हूँ..!" विकी खड़ा हो गया...

"एक मिनिट.. दारोगा जी.. क्या मैं विकी से अकेले में बात कर सकता हूँ.." मुरारी को कुच्छ समझ नही आ रहा था.... उसका दिमाग़ खिसक चुका था...

"कर लीजिए.. मुझे क्या है.. हम तो दिलों को जोड़ने का ही काम करते हैं.. बशर्ते.. विकी जी को कोई ऐतराज ना हो तो..." कहकर टफ ने विकी की और देखा...

"नही.. मुझे इस घटिया इंसान से कोई बात नही करनी.. मैं तो रोज दुआ करता था की इसका असली चेहरा दुनिया के सामने आए... इसको 10 साल से कम तो क्या सज़ा होगी अब.. है ना जनाब?" विकी ने तिर्छि नज़रों से मुरारी का चेहरा देखते हुए कहा...

"हां.. अगर इसकी बेटी ने और शालिनी ने कोर्ट में इसके खिलाफ बयान दे दिए तो ये नही बच सकता.. हाँ अगर...!" टफ ने बात अधूरी छ्चोड़ दी...

"अगर क्या.. इनस्पेक्टर साहब.. मैं कुच्छ भी करने को तैयार हूँ.. मुझे बचा लीजिए प्लीज़.. मैं आपके पाँव पड़ता हूँ.. मैं कोई भी कीमत देने को तैयार हूँ..!" मुरारी कुर्सी से उठ गया...

"मैं ना तो आपको सज़ा से बचा सकता हूँ और ना ही सज़ा दिलवा सकता हूँ.. वैसे मेरी आपसे पूरी हुम्दर्दि है.. आख़िर आपके नीचे रहकर ही तो हमें काम करना है सारी उमर.. पर सब कुच्छ उन्न लड़कियों के ही हाथों में है..." टफ ने नकली सहानुभूति दर्शाते हुए कहा...

"पर एक तो आपके पास ही है ना.. कम से कम उसको तो समझा दीजिए.." मुरारी गिड़गिदा उठा था..

"एक से क्या होगा.. सज़ा तो दोनो की एक साथ ही मिलनी है.. अगर तुम्हारी लड़की वाला मामला सुलझता है तो मैं कोशिश कर सकता हूँ.. पर वो मामला तभी सुधार सकता है जब आपकी लड़की बयान ना दे.. या मीडीया को दिए बयानो से मुकर जाए.." टफ ने उसको इस उलझन से बाहर निकालने का रास्ता सुझाया.. और बाहर निकालने की चाबी सिर्फ़ विकी के पास ही थी..

"मैं अपनी बेटी को कैसे भी करके चुप करा दूँगा.. आप मुझे उस'से मिलवा दीजिए.." मुरारी हाथ जोड़कर गिड़गिडया..

"मिलवा दीजिए विकी जी.. अगर आप ठीक समझे.. बेचारे का भला हो जाएगा.. वैसे मुझे कोई दिक्कत नही है...." टफ ने चुटकी ली...

इस'से पहले विकी कुच्छ बोलता.. मुरारी उसके पैरों में गिर पड़ा..," विकी भाई.. एक बार बात कर लो प्लीज़.. मैं तुम्हे कभी हुल्के मैं नज़र नही आउन्गा.. और बोलो..."

विकी अपना मन सा बनाने की आक्टिंग करता हुआ टफ से बोला," ठीक है जनाब.. अगर आपको भी यही सही लगता है तो मैं बात कर लेता हूँ.. अकेले में...!"

"ठीक है.. तुम यहीं बैठो.. मुझे किसी काम से बाहर जाना है.. मैं आधे घंटे में आता हूँ.. " कहकर टफ बाहर निकल गया..

मुरारी भिखारी की तरह विकी के चेहरे को ताकने लगा...

"हां.. बोल मुरारी!" विकी ने मुरारी को घूरा...

"तू तो मुझसे भी बड़ा कमीना निकला रे.. सीधे मतलब की बात पर आजा.. बता.. मेरी बेटी मुझे सौंपने का क्या लेगा?" मुरारी की आवाज़ में गुस्सा और बेबसी सॉफ झलक रही थी...

"वो मल्टिपलेक्स!" विकी ने दो टुक जवाब दिया..

" जा ले ले... बदले में स्नेहा मुझे मिल जाएगी ना...." मुरारी ने कहा..

"मैने क्या उसका आचार डालना है? जहाँ चाहे चली जाए.. मुझे क्या? वैसे भी मैं तो लड़की को एक बार ही यूज़ करता हूँ...." विकी ने सिगरेट्टी निकाल कर सुलगा ली...

"ना.. ना.. मुझे चाहिए.. वो हरम्जदि... मंजूर हो तो बोलो..." मुरारी का चेहरा नफ़रत और कड़वाहट से भर उठा...

" तुझे मैं बता दूँ कि वो तेरे पास रहना नही चाहती.. नफ़रत करती है तुझसे.. तेरी शकल भी देखना नही चाहती... .. बयान में नही होने दूँगा.. मेरी गॅरेंटी..फिर तू क्या करेगा उसका ?" विकी ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा..

मुरारी की आँखें लाल हो गयी.. नथुने फूल गये और किसी भेड़िए की तरह गुर्राने लगा," उसका वही करूँगा जो उसकी मा का किया था.. साली कुतिया... बेहन चोद.. उसको नंगी करके अपने सामने चुदवाउन्गा... फिर जंगली कुत्तों के आगे डाल दूँगा.. उसने सारी दुनिया को बता ही दिया की वो मेरी औलाद नही है... एक बार मुझे सौंप दे बस.. बोल मंजूर है की नही...?"

विकी के जहाँ से एक लंबी साँस आह के रूप में निकली.. कैसा है मुरारी? आदमी है या भेड़िया.. कुच्छ मिनिट के मौन के बाद बोला..," मजूर है.. लड़की तुम्हे मिल जाएगी.. मुझे मल्टिपलेक्स के कागज मिलने के बाद..."

"तो फिर मिलाओ हाथ.. तुम अपना फोन दो.. मैं अभी उसके मलिक को फोन करता हूँ.. तुम चाहो तो कल ही उसको पैसे देकर मल्टिपलेक्स अपने नाम करवा सकते हो..." मुरारी ने विकी का हाथ अपने हाथ मैं पकड़ लिया...

विकी ने अपना हाथ च्छुडवाया और ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा...," तू क्या समझता है.. मैने इतनी मेहनत सिर्फ़ तुझसे नो ऑब्जेक्षन सर्टिफिकेट लेने के लिए की है.. नही! वो तो मैं कभी भी उसकी कनपटी पर रिवॉल्वेर रखकर खरीद सकता था... अब वो मल्टिपलेक्स तू खरीद कर मुझे देगा.. यानी पैसे तेरे होंगे.. और माल मुझे मिलेगा..!"

"मतलब तू समझता है की मैं अपने पास से तुझे 8 करोड़ रुपैया दूँगा... ?" मुरारी ने हैरत से उसकी और देखा...

"8 नही 10 करोड़.. और मुझे पता है की तू देगा.. क्यूंकी 10 करोड़ गँवाने 10 साल जैल में काटने से कहीं ज़्यादा आसान है तेरे लिए.. 10 सालों में तो तू पता नही कितने 10 करोड़ कमा लेगा...!" विकी ने कातिल मुस्कान मुरारी की और फैंकी...

मुरारी ने अपना सिर टेबल पर रख लिया और कुच्छ देर उधेड़बुन में पड़ा रहा... फिर अचानक उठकर बोला," मैं सिर्फ़ 8 करोड़ दूँगा.. और मुझे वो लौंडिया हाथ के हाथ चाहिए.. बोल कब दे सकता है...?"

"जब तुम चाहो.. पर अभी तो तुम्हारी 14 दिन की पोलीस कस्टडी है ना?" विकी ने मुरारी से सवाल किया...

"तुम्हे जब चाहे पैसे मिल जाएँगे.. तुम बताओ.. कब ला सकते हो स्नेहा को..?" मुरारी ने सवाल पर सवाल मारा...

" मैं बांके को बता दूँगा...! सोचकर.." विकी ने अजीब से अंदाज में बांके का नाम लिया...

"बांके... तुम बांके को कैसे जानते हो?" मुरारी चौंक कर उच्छल पड़ा....

"क्यूँ हैरानी हुई ना... मुझे किडनॅप करने कुच्छ चूजो को साथ लेकर आया था.. अभी मेरे गुसलखाने में क़ैद हैं तीनो.. अगर तुम आज नही मानते तो तुम पर एक केस और लगना था.. " विकी ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा....

तभी टफ ने ऑफीस में प्रवेश किया..," लगता है कुच्छ सौदेबाज़ी हो गयी तुम दोनो की...?"

"नही.. इनस्पेक्टर साहब.. हम दोनो में कुच्छ ग़लतफ़हमियाँ थी.. जो आज साथ बैठने से दूर हो गयी.. वैसे विकी जी कह रहे हैं की ये स्नेहा को मनाने की कोशिश करेंगे... अपने बयान वापस लेने के लिए.. क्यूँ विकी जी?" मुरारी ने बात सपस्ट की...

"हां मुरारी जी.. " और कहते हुए विकी ने टफ की और आँख मारी...

"राजेश!" टफ ने आवाज़ लगाई....

"जी जनाब.."

"नेता जी को पूरी इज़्ज़त से हवालात में छ्चोड़ आओ.. सुबह मिलते हैं इनसे.. इनका ख़याल रखना..." टफ ने व्यंग्य किया...

"इनस्पेक्टर साहब.. अगर बुरा ना मानो तो.. मैं यहीं सो जाऊं... वहाँ मच्छर और गर्मी जान निकल देते हैं..."

"आप चिंता ना करें नेता जी.. सरकार कुच्छ ही दिनों में हवालात में भी एसी लगवाने पर विचार कर रही है... तब तक प्लीज़.. किसी तरह से काट लें...!" टफ ने मुस्कुराते हुए कहा...

"कब.. ये कैसे हो सकता है..? मुरारी को विस्वास नही हुआ..

"हो क्यूँ नही सकता नेता जी.. आजकल हवालात में आते ही नेता लोग हैं.. फिर कुच्छ ना कुच्छ तो सरकार को सोचना ही पड़ेगा.." टफ ने कहा और राजेश को उसे वहाँ से ले जाने को कहा....

"तू बुरा फँसेगा किसी दिन..!" मुरारी के जाते ही टफ ने विकी को आगे बढ़कर गले लगा लिया...," हो गया तुम्हारा काम?"

विकी कुच्छ ना बोला.. आँख बंद होते ही उसको स्नेहा का मासूम सा चेहरा दिखाई दिया.. वो बिल्कुल नंगी पड़ी थी.. जंगली कुत्तों के बीच.....

टफ और विकी दोनो थाने से निकल कर टफ के घर की और चल पड़े.. लगभग सारे रास्ते विकी चुप ही रहा...

"क्या बात है.. तुम्हे मल्टिपलेक्स मिल तो गया ना? या कुच्छ अड़चन है.. ?" टफ ने उसको गुम्सुम बैठे देख कहा....

"हूंम्म... हां.. मिल जाएगा!.......... कोई अड़चन नही है..अब!" विकी ने लंबी गहरी साँस छ्चोड़ी...

"फिर भी तू परेशान लग रहा है.. क्या बात है यार...? बता तो!" टफ ने उसका चेहरा देखते हुए पूचछा...

"नही... कुच्छ नही है... कुच्छ भी तो नही.. बस मुरारी का चेहरा देखकर ही उल्टियाँ सी आने लगती हैं.. बहुत कमीना है साला.. सौ कुत्ते मारकर ये 'एक' पैदा हुआ होगा..." विकी के जबड़े भिच गये.. पर वो आधी बात मन में ही पी गया.. कैसे बताता की वो भी इस बार 'उसके' कामीनेपन में हिस्सेदार होने वाला है... स्नेहा को उसे सौंपकर...'" बस! बहुत हो गया.. ये आख़िरी बार है..!" अचानक विकी के मुँह से निकला...

"क्या बहुत हो गया? क्या आख़िरी बार है? कहाँ अटका हुआ है भाई...?" टफ ने गाड़ी रोक दी...

"बस यार.. ये पॉलिटिक्स.. बहुत ही कुत्ति चीज़ है.. सोच रहा हूँ.. छ्चोड़ दूं.. जाने क्या क्या करवाती है साली... बस ये मल्टिपलेक्स मिल जाए.. उसके बाद में अपने बारे में सोचूँगा..." विकी की तबीयत सी खराब हो गयी थी.. उसको अपना शरीर टूट'ता हुआ लग रहा था...

"एक बात तो बता यार.. स्नेहा बयान नही देती ... ठीक है... पर क्या तू उसको सच्चाई बताएगा? क्यूंकी आज नही तो कल उसको वापस जाने पर पता लग ही जाएगा.. सच्चाई का... फिर क्या वो तुझ पर उल्टा केस नही ठोंक देगी....?" टफ को पूरी बात का ज्ञान नही था...

"तू छ्चोड़ ना यार.. स्नेहा को.. गाड़ी चला.. मेरे सिर में दर्द है..." विकी का सिर पहले ही स्नेहा के बारे में सोचकर फटा जा रहा था...

"ऐसे सिर दर्द करने से काम थोड़े ही चलेगा..? आगे का सोचकर तो चलना ही पड़ेगा... तूने सोचा है की अगर उसके बयानो का मुँह तेरी तरफ घूम गया तो क्या होगा? मुरारी की जगह तू मेरे थाने में बैठा होगा.. और मैं कुच्छ कर भी नही पाउन्गा......." टफ ने पते की बात कही थी...

"ऐसा नही होगा याआआर.. तू समझता क्यूँ नही है.... वो कभी ऐसा नही करेगी..?" विकी झल्लाते हुए बोला.. टफ उसको बार बार अंजाने में ही याद दिला रहा था की स्नेहा के साथ क्या होने वाला है...

"क्यूँ.. क्यूँ नही करेगी..?" टफ ने फिर उसके दिल के तारों को छेड़ा..

"हेययय भग्वाआअन... वो मुझसे प्यार करती है.. मेरे लिए मर सकती है.. मर जाएगी...! प्लीज़ तू ये बात बंद कर दे यार..." विकी का अंतर्मन उसको कचोट रहा था...

"और तू..??? तू नही करता क्या उस'से प्यार? तुझे अच्छि नही लगती क्या वो...? अगर तू जिंदगी के बारे में सोच ही रहा है तो वो क्यूँ तेरी जिंदगी का हिस्सा नही हो सकती...? तू ही तो कह रहा था भाई के सामने.. कि ऐसी लड़की तूने आज तक देखी ही नही..." टफ टॉपिक बंद करने को तैयार ही नही था.. उल्टा बात को और ज़्यादा कुरेद रहा था..

विकी झल्लाते हुए गाड़ी से उतर गया.. टफ भी उतर कर उसके पास चला गया...," किस'से भागने की कोशिश कर रहा है तू.. मुझसे? या अपने आप से..? कहाँ तक भाग सकता है भाग ले..

"विकी प्यार नही करता.. बस! मेरी लाइफ में प्यार के कोई मायने नही हैं.. मैं अपने लिए जीता था.. जीता हूँ.. और जियूंगा... ! मुझे वापस छ्चोड़ दे.. मुझे गाड़ी लेकर कहीं जाना है.. अभी.." विकी बिफर उठा.. अपने आप से ही..

"ठीक है.. नो प्राब्लम! चल आ.. वापस छ्चोड़ देता हूँ.." टफ ने उसको एक बार भी रुकने के लिए नही बोला... गाड़ी में बैठे और वापस थाने पहुँच गये..

" एक बात मानेगा?" विकी ने टफ से कहा..

"हां बोल!"

"मुझे एक बार और मुरारी से मिलने दे... अकेले में.. मुझे कुच्छ ज़रूरी बात करनी हैं.. आख़िरी बार.." विकी ने कहा..

"तू एक मिनिट यहीं ठहर.. मैं आता हूँ.." कहकर टफ ऑफीस में गया और कुच्छ देर बाद वापस आया," चल तू ऑफीस में बैठ.. मैं मुरारी को वहीं भेजता हूँ.."

"ठीक है.." कहकर विकी ऑफीस में जाकर बैठ गया...

कुच्छ देर बाद बदहाल मुरारी भी वहीं आ पहुँचा," क्या यार.. तूने मेरी मा चुदवा दी.. देख कितने मच्च्छार काट चुके हैं.."

"काम की बात कर.. स्नेहा तुझे कल ही मिल जाएगी.. बोल पैसे कहाँ दे रहा है..?" विकी ने कहा...

"जहाँ तू मुझे स्नेहा देगा.. वहीं.. टाइम भी तेरा.. जगह भी तेरी..." मुरारी ने दाँत पीसते हुए कहा....

"ठीक है.. कल शाम 6 बजे.. पानीपत से देल्ही की और जो दो नहरें जाती हैं.. बवाना से कुच्छ पहले उन्न दोनो नहरों के बीच मिलते हैं... कैसे करना है.. ये तुम बता दो.." विकी ने कहा..

"ओके! मेरे पास ऐसा प्लान है जिसमें हम में से कोई चीटिंग नही कर सकता.." और मुरारी प्लान बताने लगा...

सच में ही प्लान फुलप्रूफ था.. कहीं चीटिंग करने की गुंजाइश ना थी.. या तो दोनो पार्टियों को अपना अपना 'माल' मिल जाएगा.. या किसी को भी कुच्छ नही...," लाओ.. तुम्हारे फोन से अभी फोन कर दूं.. अपने किसी खास को.. बांके को तो तुम छ्चोड़ ही दोगे ना..." मुरारी ने कहा...

"हां.. जाते ही.."

विकी ने फोन ऑन करके मुरारी को दे दिया......

मुरारी ने फोन करके अपने किसी आदमी को सबकुच्छ समझा दिया.. और बाद में कहा," याद रखना.. मेरी जमानत होने तक किसी को भी खबर नही होनी चाहिए की स्नेहा हमारे पास है.. उसको क़ैद करके रखना है... समझ गये ना...!"

"यस सर..!"

"लो.. हो गयी बात!" मुरारी ने विकी को फोन दे दिया....

विकी बिना कोई शब्द बोले ऑफीस से बाहर निकल गया.. वह जाते हुए टफ से भी नही मिला....

विकी मुश्किल से 5 मिनिट ही चला था की उसका फोन बज उठा..

"ओह! फोन ऑफ करना तो भूल ही गया था.. उसने फोन उठाकर देखा.. कोई अंजान नंबर. था.. विकी ने फोन वापस डॅशबोर्ड पर रख दिया... कॉल स्नेहा की हो सकती थी...

बेल बंद हो जाने के बाद वह फोन को उठाकर ऑफ करने ही वाला था कि फिर से उसी नंबर. से कॉल आ गयी... कुच्छ सोचते हुए उसने फोन उठा लिया," हेलो!"

स्नेहा फोन लेकर बाहर भाग आई," जान! कहाँ रह गये तुम? मैं मर जाती तो?"

अचानक विकी को कुच्छ सूझा ही नही," मैं आकर बतौन्गा सानू.. तुम्हे नही पता मेरे साथ क्या हुआ..?"

"है राम! क्या हुआ.. तुम ठीक तो हो ना..?" स्नेहा ने अपने दिल पर हाथ रखकर पूछा... उसकी धड़कने बढ़ गयी थी...

"हां, अभी मैं बिल्कुल ठीक हूँ.. तुम चिंता ना करो..!"

"अब आ रहे हो ना मेरे पास..?" स्नेहा का दिल खुशी के मारे धड़क रहा था...

" तुम ठीक तो हो ना..?" विकी को ताज्जुब हुआ.. यूँही उसकी आँखें नम हो गयी थी..

"हां मैं बिल्कुल ठीक हूँ.. वीरू और राज भैया बहुत अच्छे हैं.. पता है.. मैने अपनी जिंदगी मैं पहली बार रक्षाबन्धन मनाया है.. मैने दोनो को राखी बँधी..... कितनी देर में आ रहे हो...?" स्नेहा फूली नही समा रही थी..

"अब नही आ सकता मैं.. कल आउन्गा.. बहुत दूर हूं.. और गाड़ी भी नही है मेरे पास..." विकी ने झूठ बोला..

स्नेहा मायूस हो गयी," हां.. गाड़ी तो मेडिकल में ही खड़ी है ना..?"

"हां.. अब रखूं..?" विकी ने कहा..

"नआईईई.. कुच्छ देर और बात करो ना... प्लीज़.. तुम्हे पता है.. तुमसे बात करते ही 'तुम्हारी चिड़िया' उच्छलने लगी है.. इसका क्या करूँ..?"

"मेरी चिड़िया..? क्या मतलब?? " विकी की कुच्छ समझ में नही आया..

"इसको तुमने चिड़िया ही तो कहा था.. छ्होटी सी..?" स्नेहा ने अपनी जांघें कस ली और उस 'चिड़िया' को फुदकने से रोकने की कोशिश करने लगी..

"श.. अच्च्छा.. हा हा हा" विकी फीकी सी हँसी हंसते हुए बोला..," कल आ रहा हूँ. ना.. अब फोन रख दो... मैं बहुत परेशान हूँ.. इस वक़्त.."

"अच्च्छा.." स्नेहा ने मुँह बना लिया... पर अचानक उसके चेहरे की रौनाक़ लौट आई," याद है ना तुमने क्या वादा किया था..?"

विकी का चेहरा मुरझा गया," हां याद है.. अब रख दो फोन.."

"हां हां रखती हूँ.. पहले बोलो.. आइ लव यू!" स्नेहा फोने रखना ही नही चाह रही थी...

" रखो ना यार फोन.. कह तो रहा हूँ.. कल आ जाउन्गा.." कहकर विकी ने फोन काट दिया....

स्नेहा कुच्छ देर यूँही फोन को देखती रही.. फिर अंदर जाते ही बोली," मोहन बहुत परेशान है.. वो किसी प्राब्लम में है.. अच्छे से बात भी नही कर पाया... आज आएगा भी नही..."

"तुम्हे यहाँ कोई दिक्कत है?" वीरू ने पूचछा...

"नही तो.. मैं तो यहाँ बहुत खुश हूँ.." स्नेहा ने चहकते हुए कहा..

"फिर क्यूँ चपर चपर लगा रखी है... चल आजा शतरंज खेलते हैं.." वीरू ने कहा.. एक ही दिन में वो कितना घुलमिल गये थे...

"अभी लाई.. दिन वाली बाज़ी का बदला भी लेना है मुझे.." कहते हुए स्नेहा ने चेस-बोर्ड उठाया और वीरू के पास बेड पर बाज़ी जमा दी... उसका अहसास तक नही था.. कि कोई उसको भी ऐसे ही चल चुका है.. जिंदगी की बिसात पर.. और वहाँ हारते ही मौत है.. सिर्फ़ मौत...

"जब से मैं स्कूल से आया हूँ.. तुम लोगों ने एक भी अक्षर पढ़ने नही दिया है.. तुम दोनो चाहते क्या हो आख़िर?" राज अपने बिस्तेर पर खीजा हुआ बैठा था.. स्कूल से आने के बाद दोनो ने उसके खूब मज़े लिए थे... प्रिया का जिकर कर कर के!

"ओहो.. राज भैया.. हमें पता है.. आजकल आप पढ़ तो यूँ भी नही रहे.. यहाँ आकर मेरी मदद करो ना.. आपका दिल भी लग जाएगा.." स्नेहा के साथ मिलकर वीरू ने भी ज़ोर का ठहाका लगाया...

"आख़िर तुम लोग चाहते क्या हो यार..? ठीक है.. लो! बंद कर दी किताब.." राज ने किताब बंद करके टेबल पर रखी और उनके साथ ही बेड पर आ बैठा," चल घोड़ा चल... घोड़ाआ चल चुहिया.. मरवाएगी क्या रानी को!!!!!"

स्नेहा को ग़लती का अहसास हो गया," थॅंक यू भैया.. तुम कितने अच्छे हो.. तुम साथ बैठे रहे तो मैं जीत ही जाउन्गि.. पर अपना ध्यान सामने वाली खिड़की मैं मत लगा लेना.." राज को छेड़ने का कोई मौका दोनो हाथ से नही जाने दे रहे थे...

"मैं तुम्हे कितनी बार बता चुका हूँ कि ऐसा कुच्छ नही है... अगर थोडा बहुत कुच्छ था भी तो वो कल ख़तम हो गया.. अब बंद करो यार इश्स टॉपिक को.. और कुच्छ नही है क्या बात करने को..?" राज ने कहा..

"जब तक तुम सच सच नही बता देते की कल रात तुम्हारी कितनी पिटाई हुई, हम तुम्हारा पीछा नही छ्चोड़ने वाले.. क्यूँ स्नेहा?" वीरू ने कहा...

"सही बात है भाई.. बिल्कुल सही बात है ये तो हो हो... हा हा.. और ये गयी तुम्हारी रानी... मैं जीत गयी.. वाउ.." स्नेहा खड़ी होकर कूदने लगी...

"जा मुँह धोकर आ पहले.. हाथी भी कभी टेढ़ा चलता है..?" वीरू ने हंसते हुए कहा...

"मैं नही खेलती.. बकवास गेम है..!" कहते हुए स्नेहा ने सारे प्यादे बिखरा दिए," बताओ ना राज.. क्या हुआ तुम्हारे साथ कल.. प्लीज़ बता दो.. हम हँसेंगे नही.. प्रोमिस! है ना भैया!" स्नेहा ने वीरू की और देखा और दोनो एक बार फिर खिलखिला पड़े...
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11-26-2017, 02:01 PM,
#86
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --46

हेलो दोस्तो उधर रिया ओर प्रिया की बात सुनते है वह दोनो इस टाइम क्या कर रही हैं

" रिया?"

"हूंम्म्म.." रिया ने किताब से नज़र हटा कर प्रिया की और देखा..

"मैने राज के साथ बहुत ग़लत किया ना?" प्रिया सारा दिन उदास बैठी रही थी.. स्कूल में भी.. घर में भी..

"अब भूल भी जा बात को.. कुच्छ नही होगा.. एक दो दिन में सब ठीक हो जाएगा.." रिया ने उसको दिलासा दी...

"मुझे नही लगता! वो मुझसे नफ़रत करने लगा है.. आज मेरी और क्लास में एक बार भी नही देखा.." प्रिया पागल सी हो गयी थी.. राज के लिए..

"अच्च्छा.. तुझे कैसे पता..?" रिया ने सवाल किया....

प्रिया उठकर रिया के पास आकर बैठ गयी," मैं आज सारा दिन उसी को देख रही थी.. एक अक्षर भी नही पढ़ा स्कूल में आज!"

" वीरेंदर आज स्कूल क्यूँ नही आया..?" रिया ने अपने वाले की बात छेड़ दी..

"अब मुझे क्या पता? राज से पूच्छ लेती.." प्रिया ने कहा...

"वो तो तुझे पूच्छना चाहिए था.. एक बात बटाओ?" रिया ने इस अंदाज में अपने होंटो को गोल करके कहा मानो वह बहुत बड़ा राज खोलने वाली है...

"क्या?" प्रिया गौर से उसके चेहरे को देखने लगी...

"वो लड़की जिसको हुमने आज सुबह खिड़की से देखा था... इनमें से किसी की भी बेहन नही हो सकती..!" रिया ने खुलासा किया..

"क्या कह रही हो.. तो फिर कौन हो सकती है..?" प्रिया के दिल पर साँप सा लेट गया..

"ये तो मुझे नही पता.. पर बेहन तो इनमें से किसी की है ही नही.. मुझे आज फॅमिली रेकॉर्ड वाला रिजिस्टर ऑफीस में रखकर आने को बोला था, सैनी सर ने.. मैने दोनो का रेकॉर्ड चेक किया था.. दोनो में से किसी की कोई बेहन नही है..!" रिया ने अपने विस्वास की वजह बताई....

"तुम कहना क्या चाहती हो? प्लीज़ मुझे डराव मत.." प्रिया जाने क्या सोचकर डर गयी थी..

"अच्च्छा हुआ.. जो मैं कहना चाहती हूँ.. तुम बिना कहे ही समझ गयी... जमाना बहुत खराब है प्रिया.. आज कल ये लड़के रूम्स पर गंदी लड़कियों को लाते हैं.." रिया ने तो प्रिया की साँस ही रोक दी..

"पर वो तो बहुत ज़्यादा सुंदर थी?" प्रिया ने भोलेपन से कहा...

"अरे मैं कॅरक्टरवाइज़ 'गंदी' बोल रही हूँ.. शकल सूरत से क्या होता है..? आज कल अच्छे घरों की लड़कियाँ भी उपर के खर्चे के लिए 'ग़लत काम' करती हैं.. तुमने कभी सुना नही क्या?" रिया अपने मन में जाने क्या क्या ख़याली पुलाव पका रही थी...

प्रिया ने सहमति में सिर हिलाया," हां... सुना तो है!... पर राज ऐसा नही हो सकता.. नही.. मैं नही मानती...मेरा राज ऐसा नही हो सकता!" प्रिया ने खुद को दिलासा देने की कोशिश की... पर उसका दिल बैठ गया था..

"तुम क्या कहना चाहती हो? वीरेंदर है ऐसा.. वो तो बिल्कुल नही हो सकता.. वो तो लड़कियों की तरफ देखता भी नही.." रिया ने अपने वाले का पक्ष लिया.. बातों ही बातों में वो भूल चुकी थी की उनकी बात सिर्फ़ शक और कल्पना पर शुरू हुई थी...

" तो राज भी ऐसा नही हो सकता.. उसकी गॅरेंटी मैं लेती हूँ..." प्रिया ने ताल ठोनकी..

"क्यूँ नही हो सकता.. वो इतना शरीफ भी नही है.. जितना तुझे लगता है.. तुझे एक बात बताऊं.. कल रात उसने मुझे चुटकी काटी थी.. यहाँ पर.. मैने तुझे ऐसे ही नही बताया..." रिया ने अपने पिच्छवाड़े पर हाथ लगाकर बताया...

प्रिया ये भूल गयी की कल रात उसने खुद को राज के सामने रिया बताया था..," नही.. तू झूठ बोल रही है.. हो ही नही सकता.. झूठ बोल रही है ना.. सच सच बता प्लीज़!"

रिया ने प्रिया के सिर पर हाथ रख दिया," सच्ची.. तुम्हारी कसम.. काटी थी..!"

"यहीं पर?" प्रिया ने अपने नितंबों को छ्छू कर कहा..

"हां!"

"तो तूने उसको थप्पड़ क्यूँ नही मारा.. मैं उसको छ्चोड़ूँगी नही.." प्रिया जलन के मारे उबल पड़ी....

"मम्मी बाहर खड़ी थी.. मैं बाथरूम में कपड़े लेने गयी.. तब की बात है.. बोल! मैं क्या बोलती..?" रिया ने तो प्रिया को रुला ही दिया... प्रिया बेड पर उल्टी लेट गयी.. और सूबक'ने लगी.. 4 दिन पहले का प्यार जाने कितने मोड़ ले चुका था.. कच्ची उमर का प्यार ऐसा ही होता है!

"चल आ खिड़की में से देखते हैं.. वो अभी भी यहाँ है की नही?" रिया ने प्रिया को उठाते हुए कहा...

"मुझे नही देखना किसी को.. अब क्या देखना रह गया है.. मैं उसको कितना अच्च्छा समझती थी..." प्रिया ने रिया का हाथ झटकते हुए कहा...

"मैं तो देख कर आउन्गि.. तुझे नही चलना तो मत चल..!" रिया ने कहा और ज़ीने में जाकर खड़ी हो गयी.. पर सामने वाली खिड़की बंद थी.. रिया वापस लौटने वाली थी की तभी प्रिया भी पीछे पीछे आ गयी..

"खिड़की बंद है.." रिया ने प्रिया की और मुड़ते हुए धीरे से कहा..

"रुक जा.. मैं खुल्वाति हूँ खिड़की.." गुस्से मैं जली भूनी आई प्रिया उपर से एक मोटा सा पत्थर का टुकड़ा लेकर आई और उसको धुमम से खिड़की पर दे मारा...

अंदर बैठे तीनो इस आवाज़ को सुनकर चोंक गये.. स्नेहा खिलखिलते हुए बोली," लो राज! तुम्हारा फिर से बुलावा आ गया.. आज नही जाओगे क्या..?" राज ने छेड़ छाड़ की बातें छ्चोड़कर सब कुच्छ उनको बता दिया था..

"देखो प्लीज़.. अब तो मेरा मज़ाक मत बनाओ.. तुमको बता दिया सब कुच्छ तो इसका मतलब ये तो नही..." राज उनके मज़ाक सुन सुन कर पक चुका था... वीरू की आँख लग गयी थी...

"सॉरी.. पर मैं देख तो लूं.. कैसी है तुम्हारी गर्लफ्रेंड.." कहते हुए स्नेहा बिस्तेर से उठी और खिड़की के सामने जाकर खिड़की खोल दी...

स्नेहा की दोनो लड़कियों से नज़र मिली.. एक बिना कोई भाव अपनी आँखों में लिए खड़ी थी.. और दूसरी फुफ्कार रही थी.. जैसे ही प्रिया ने स्नेहा को देखा.. उसने खिड़की में से गली की और थूका और उपर भाग गयी.. रिया भी उसके पिछे पिछे निकल ली..

"तुम बिल्कुल सही कह रहे थे राज.. दोनो हूबहू एक जैसी हैं.. तुम्हारी गर्लफ्रेंड कौनसी है.. गरम वाली.. की नरम वाली!" स्नेहा ने खिड़की बंद करते हुए राज से कहा...

"कोई नही है.. मेरी छ्चोड़ो.. तुम अपनी बात पूरी बताओ... गाड़ी बदल'ने के बाद क्या हुआ?" राज बड़े गौर से स्नेहा की कहानी सुन रहा था...

"ठंड रख यार.. ये सिर्फ़ हमारा वहाँ भी तो हो सकता है.. कल पूच्छ लेंगे उस'से..!" रिया ने सुबक्ती हुई प्रिया को दिलासा देते हुए कहा," मैं पूच्छ लूँगी कल.. वैसे भी अगर वो कोई ऐसी वैसी लड़की होती तो सामने थोड़े आती..."

"मैं एक बार चली जाउ?" प्रिया उठ कर बैठ गयी...

"कहाँ?"

प्रिया ने अपने आपको शांत करने की कोशिश करते हुए कहा," राज के पास... उनके कमरे पर.."

"व्हाट.. तुझे पता है तू क्या कह रही है?" रिया बिस्तेर से उच्छल पड़ी...

" हां पता है... वो इसी बात की धोंस जमा रहा है ना की वो मुझसे प्यार करता है... इसीलिए जान जोखिम में डाल कर रात को हमरे घर आ गया... मैं क्या उस'से प्यार नही करती.. मैं क्या जा नही उसके पास.. हिसाब बराबर हो जाएगा.. उसके बाद भी अगर उसने मुझे माफ़ नही किया तो मैं भी कभी उस'से बात नही करूँगी... मैं जाउ ना?" प्रिया ने रिया का हाथ अपने हाथों में लेते हुए पूचछा...

रिया से कुच्छ देर तो कुच्छ बोलते ही ना बना.. वा आँखें फाडे प्रिया को देखती रही.. फिर अचानक संभाल कर बोली," तू पागल है क्या? थोड़ी बहुत भी अकल नही बची क्या अब.. रात को दरवाजे से बाहर पैर रखने का मतलब पता है ना तुझे... काट के रख देंगे पापा.. तुझे भी.. और राज को भी.. ऐसी पागल बातें मत कर.. और आ चल कर सोते हैं.. मम्मी भी आने वाली ही होगी.. चल आजा.." रिया ने प्रिया का हाथ पकड़ कर उसको उठाया और अपने साथ बाहर खींच लिया.. दरवाजे को ताला लगाया और उसको हाथ पकड़े पकड़े ही नीचे ले गयी....

" आ गयी तुम.. मैं बस उपर आने ही वाली थी.. ज़्यादा शोर मत करना.. तुम्हारे पापा कल रात से सोए नही हैं.. उठ गये तो गुस्सा करेंगे...! जल्दी से अपना दूध ख़तम करो और सो जाओ!" मम्मी ने कहा और अपने बेडरूम में चली गयी... उनके पापा के पास!

"देख रिया.. आज पापा भी गहरी नींद में होंगे.. प्लीज़ जाने दे ना! ... मैं बस 5 मिनिट मैं आ जाउन्गि..." प्रिया ने उसके कान में धीरे से कहा...

"तू है ना.. अपने साथ साथ मुझे भी मरवाएगी.. देख प्रिया.. मेरे सामने ऐसी बात मत कर.. मुझे डर लग रहा है... सो जा चुपचाप!" कहकर रिया ने अपना दूध ख़तम किया.. और बिस्तर पर लेट गयी... प्रिया भी क्या करती.. बेचारी.. प्यार का भूत उसके सिर पर बुरी तरह सवार हो चुका था.. वह लेट तो गयी.. पर नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी.. उसकी आँखों में तो अब राज बस चुका था..

-------------------------------------

करीब एक घंटा बीट गया.. घर की सब लाइट्स बंद थी.. प्रिया ने अपना सिर उठाकर रिया को देखा.. वह दूसरी और मुँह किए सो रही थी.. नींद में उसका नाइट स्कर्ट उसकी जांघों से कहीं ज़्यादा उपर उठा हुआ था.. पॅंटी उसके नितंबों से बुरी तरह चिपकी हुई थी.. ,"नालयक!" कहते हुए प्रिया ने उसका स्कर्ट नीचे खींच दिया.. प्रिया को राज के द्वारा रिया के नितंबों पर काटी गयी चुटकी याद आ गयी... वह बेचैन हो उठी.. खड़ी होकर बाथरूम में गयी और फिर बिना कुच्छ किए ही वापस आ गयी.. मम्मी पापा के बेडरूम का दरवाजा आराम से खोल कर देखा.. वो अंदर से बंद था..

प्रिया वापस लौट आई.. वह गहरी असमन्झस में थी.. समझ नही आ रहा था की करे तो क्या करे... अंतत: उसके ज़ज्बात उसके भय पर हावी हो गये.. चुपके से मैं गेट की चाबी उठाई और दबे पाँव बाहर निकल गयी...

आँगन में जाने के बाद उसने आँगन की लाइट्स ऑफ कर दी.. धीरे से ताला खोला और ताला दरवाजे में ही टँगे रहने दिया.. उसके हाथ पैर बुरी तरह काँप रहे थे.. एक पल को वापस मूडी.. राज और फिर भगवान को याद किया.. और सारे समाज और घर वालों के डर को दरकिनार कर देहरी लाँघ गयी.. इज़्ज़त की देहरी..

प्रिया ने घर से बाहर कदम रखा ही था की उसकी मम्मी जमहाई लेते हुए अपने बेडरूम से बाहर निकली... बाथरूम में जाकर आई और फिर प्रिया और रिया के बेडरूम में चली गयी.. देखा बेड पर अकेली रिया ही सो रही है..

"रिया... आ रिया.." मम्मी ने रिया को पकड़कर हिल्या.. रिया गहरी नींद में थी...," उम्म्म्मममममम.. क्या है?" वह कसमसाई और करवट बदलकर फिर से चित्त हो गयी...

"ऱियाआअ!" मम्मी ने उसको ज़ोर से झकझोरा...

" क्या है मम्मी.. सोने दो ना!" रिया ने नींद में ही कहा...

"प्रिया कहाँ है?" उसकी मम्मी चिंतित सी हो गयी थी..

"होगी.. बाथरूम में.. मुझे क्या पता..?" और अचानक ही रिया चोंक कर उठ बैठी.. उसको सोने से पहले की प्रिया की बात याद आ गयी... कहीं..?," बाथरूम में होगी मम्मी.. आप सो जाओ जाकर.." रिया काँप सी उठी.. अब क्या होगा.. अगर... उसने मन ही मन सोचा..

"बाथरूम की तो कुण्डी बंद है बाहर से.. कहाँ गयी कारामजलि.. मुझे तुम्हारे लक्षण अच्छे नही लग रहे कुच्छ दीनो से.. तुम फोन वोन तो नही रखती हो ना..?"

रिया ने मम्मी की बातों पर ध्यान ही नही दिया..," मम्मी.. वो उपर चली गयी होगी पढ़ने.. उसका काफ़ी काम बाकी था.. मैं देखकर आती हूँ.." कहकर रिया उपर भाग गयी.. मम्मी ने उसको रोकने की कोशिश भी की.. पर तब तक तो वो सीढ़ियों पर जा चुकी थी...

" इनको भी पढ़ने का टाइम ही नही पता.. जब देखो किताब खोलकर बैठ जाती हैं... अब देखो ना.. ये भी कोई पढ़ने का टाइम है भला...?" अंगड़ाई लेकर बाहर निकले अपने पति को देखकर वो बोली.... विजेंदर की नींद पूरी हो गयी थी.. शाम 6 बजे से ही सोया हुआ था वो...

"अरे भाई.. आजकल कॉंपिटेशन का जमाना है.. टाइम देखकर पढ़ेंगी तो पिछे नही रह जाएँगी भला....." विजेंदर ने कहा और अपनी बीवी के पास आकर बेड पर बैठ गया," पर इनको कह दो.. रात को उपर पढ़ने की कोई ज़रूरत नही है... अगर पढ़ना है तो यहीं पढ़ें.. नीचे...!"

" मैने तो जाने कितनी बार कहा है जी.. पर माने तब ना! कहती हैं.. टी.वी. की आवाज़ में डिस्टर्ब होती हैं.." मम्मी ने सफाई दी...

" तुम कभी पिछे जाकर देखती भी हो क्या? पढ़ती भी हैं या... चलो उपर चलते हैं..." विजेंदर यही समझ रहा था की दोनो अभी तक उपर पढ़ रही हैं.. उसको ये अहसास भी नही था की प्रिया सोने के बाद गायब हुई है.. और अब रिया उसको देखने गयी है...

" मेरे तो घुटनो में दर्द है जी.. मुझसे नही चढ़ा जाता बार बार उपर...." मम्मी ने कहा ही था की रिया नीचे आ गयी.. और पापा को वहीं बैठा पाकर सहम गयी..," व्व वो.. उपर ही ... है.. मम्मी.. अपना काम कर रही है.. अभी आ जाएगी.. 10 -15 मिनिट में..." रिया ने हकलाते हुए कहा.....

विजेंदर के पॉलिसिया दिमाग़ में रिया की बातों में गड़बड़ की बू आई..कुच्छ सोचते हुए.. वो खड़ा हुआ और बोला," आइन्दा से तुम दोनो नीचे ही पढ़ा करो.. टी.वी. नही चलेगा... और कहकर वापस अपने कमरे में चला गया," कुच्छ खाने को है क्या? भूख लगी है!"

" है जी.. अभी लाती हूँ.. आप बैठो.." कहकर उसकी मम्मी किचन में चली गयी...

"रिया बिस्तर पर बैठी बैठी काँप रही थी.. और दुआ कर रही थी की प्रिया जल्दी आ जाए.. और उसके मम्मी पापा को पता ना चले...

"अरे.. आज मैने दरवाजा खुला ही छ्चोड़ दिया..! किचन से आँगन का बल्ब जलते ही उसकी नज़र दरवाजे पर टँगे ताले पर पड़ी... वह बाहर गयी और दरवाजा लॉक करके वापस आ गयी.. रिया का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा...

उसकी मम्मी ने अंदर आकर चाबी स्लॅब पर रख दी थी.. रिया ने हिम्मत करके चाबी उठाई और मम्मी के बेडरूम में जाते ही ताला फिर खोल आई.. भाग कर...

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उधर राज और वीरू सो गये थे.. स्नेहा अपने मोहन के ख़यालो में खोई हुई थी और जल्दी से सुबह होने का इंतजार कर रही थी.. दरवाजे पर हुई दस्तक से वह चौंक गयी.. बिस्तर से उठी और राज को उठाने की सोची...," इश्स वक़्त यहाँ मोहन के अलावा और कौन आ सकता है.." ये सोचकर वा खिल उठी और एकदम से जाकर दरवाजा खोल दिया....

सामने अपने सिर और चेहरे को चुननी से ढके प्रिया खड़ी थी.. दरवाजा खुलते ही वह भाग कर अंदर आ गयी और चुननी उतार दी... स्नेहा ने पहचान लिया..," प्रिया?"

प्रिया ने सहमति में सिर हिलाया और कमरे में नज़रें दौड़ाई.. राज ज़मीन पर बिस्तर बिच्छाए चैन से सोया पड़ा था..

"तुम कौन हो?" प्रिया सोचकर आई थी की जाते ही उस लड़की तो खबर लेनी ही है.. पर यहाँ तो डर के मारे उसकी आवाज़ ही मुश्किल से निकल पा रही थी...

"मैं इनकी बेहन हूँ.." स्नेहा ने मुस्कुराते हुए कहा...

"किसकी..?" प्रिया ने कांपति हुई आवाज़ में पूचछा..

"दोनो की.. क्या तुम यही पूच्छने के लिए आई हो.. इतना डरी हुई क्यूँ हो.. आओ बैठहो..." स्नेहा ने प्यार से अपनी होने वाली भाभी के चेहरे को उसकी थोड़ी पर हाथ लगाकर उपर उठाया...

" पर ये तो सगे भाई नही हैं ना.. फिर तुम दोनो की बेहन कैसे हुई..?" प्रिया ने भोलेपन से पूचछा...

"क्या खून का रिश्ता ही रिश्ता होता है... सग़ी तो मैं इनमें से किसी की भी नही हूँ.. पर दोनो मेरे लिए अपनो से कहीं बढ़कर हैं... तुम बैठो ना.. मैं राज भैया को जगाती हूँ..!" स्नेहा ने उसका हाथ पकड़ कर अपनी और खींचा...

प्रिया के दिल को बड़ी तसल्ली मिली.. ये सब सुनकर.. उसने तो यूँही जान आफ़त में डाल ली थी..," नही.. अब मैं जा रही हूँ.. घर वाले जाग गये तो..."

"प्लीज़.. सिर्फ़ एक मिनिट.." और स्नेहा जाकर राज को जगाने लगी... ," राज.. राज! देखो ना कौन आया है..?

राज हड़बड़ा कर उठ बैठा और जैसे ही उसने प्रिया को अपने कमरे में खड़े देखा वा उच्छल पड़ा.. एक बार को तो उसको अपनी आँखों पर विस्वास ही नही हुआ," तूमम्म????? यहाँ क्यूँ आई हो.. मतलब.. कैसे आ गयी? डर नही लगा..." राज ने खड़े होते हुए अपने कपड़ों को ठीक किया...

प्रिया अपने हाथ बाँधे.. सिर झुकाए.. खड़ी थी.. वह अभी भी काँप ही रही थी.. जाने घर से निकलते हुए उसमें कहाँ से इतनी हिम्मत आ गयी थी..

"बेचारी पहले ही डरी हुई है.. तुम और डरा दो इसको.. तुम्हारे लिए इतनी हिम्मत करके आई है.. अब तो प्यार से बात कर लो..." स्नेहा ने तुनक्ते हुए कहा...

सहमी हुई सी प्रिया राज को इतनी प्यारी लग रही थी की उसका दिल चाह रहा था.. अभी के अभी उसको बाहों में भरकर उसका हर अंग चूम डाले.. उसके रोम रोम को महसूस कर ले.. पर ये सब करना सोचने से कहीं ज़्यादा मुश्किल था...," पूच्छ ही तो रहा हूँ.. घर वाले जाग गये तो क्या होगा?"

" मैं बस सॉरी बोलने आई थी...!" प्रिया ने नज़रें उठाकर रात भर के लिए अपने मन में राज का प्यारा चेहरा क़ैद कर लिया...

"ओहो.. कितनी बार सॉरी बोलॉगी.. बोल तो दी थी.. स्कूल में..!" राज उसके सामने आकर खड़ा हो गया...

प्रिया को लगा राज की नज़रें उसके शरीर में गड़ रही हैं.. उसका बदन अकड़ने सा लगा था.. डर के बावजूद," पर तुमने माफ़ कहाँ किया था!" उसने राज की नज़रों से नज़रें मिलाई.. दिल किया की कल रात की अधूरी हसरत अभी पूरी कर ले.. लिपट जाए राज से.. और अपने बदन को ढीला छ्चोड़कर उसमें समा जाने दे.. पर हिम्मत दोनो में से किसी में नही थी.. स्नेहा जो पास खड़ी थी..

"पागल.. माफ़ क्या करना था.. मैं नाराज़ नही था.. मैं तो यूँही बस..." राज के हाथ प्रिया के चेहरे की और बढ़े.. पर बीच में ही रुक गये... अचानक दरवाजा खुला और रिया बदहवास सी कमरे में घुस आई.. वह इतनी हड़बड़ाहट में थी की उनके उपर गिरते गिरते बची... उसके पैरों में खड़े रहने की हिम्मत बची ही नही थी.. वह अंदर आते ही बेड पर बैठ गयी...," सब कुच्छ ख़तम हो गया प्रिया.. सब कुच्छ ख़तम हो गया... समझ लो मारे गये... ओह माइ गॉड!"

प्रिया उसकी बात का मतलब समझ कर धदाम से ज़मीन पर आ गिरी.. राज ने उसको संभाला और रिया से बोला," क्या हुआ रिया?"

स्नेहा को तो बोलने का भी अवसर नही मिला....

"सब कुच्छ ख़तम हो गया राज.. मैने इसको माना किया था.. पर फिर भी ये आ गयी.. इतना सा भी नही सोचा इसने... पापा जान से मार डालेंगे... छ्चोड़ेंगे नही..." रिया ने हानफते हुए कहा...

प्रिया ने तो ज़ोर ज़ोर से रोना शुरू कर ही दिया था.. अगर राज उसके मुँह पर हाथ रखकर.. उसको चुप रहने के लिए ना कहता तो," साफ साफ बताओ ना रिया.. बात क्या है...?"

कमरे में इतनी फुसफुसाहट सुनकर वीरेंदर की नींद खुल गयी.. आँखें खोलकर उपर देखते हुए जैसे ही उसने प्रिया और रिया को वहाँ देखा.. वह भी चौक पड़ा..," ये क्या तमाशा लगा रखा है? क्या मुसीबत आ गयी आख़िर.. रात को तो चैन से सो जाया करो.. ये कोई इश्क़ फरमाने का टाइम है.."

"चुप हो जाओ वीरू भैया.. बाहर कोई सुन लेगा.." स्नेहा जाकर वीरू के पास बैठ गयी...

"क्या आफ़त आ गयी.. बताओ तो सही..?" वीरू ने इश्स बार धीरे से कहा...

प्रिया ने जैसे तैसे करके अपने आपको संभाला और उठकर रिया के पास जाकर खड़ी हो गयी,"पापा जाग गये क्या..?"

"हां! पापा भी जाग गये और मम्मी भी.. मम्मी ने मुझे उठाया था.. ये पूच्छने के लिए की तुम कहाँ हो.. मैने उपर आकर देखा और वापस जाकर झूठ बोल दिया.. की तुम उपर पढ़ रही हो.. फिर मम्मी पापा के लिए खाना बनाने लगी.. मैने तुम्हारा कितना इंतजार किया.. मम्मी ने वापस ताला लगा दिया था.. वो भी खोला.. पर तुम नही आई प्रिया.." कहते हुए रिया रोने लगी...

" फिर उनको पता लग गया क्या?" प्रिया का दिल बैठ गया...

" खाना खा कर पापा और मम्मी तुम्हे बुलाने उपर चले गये.. अब तक तो उनको पता लग ही गया होगा..." रिया ने रोते रोते ही बताया...

"पर तू क्यूँ यहाँ आई पागल.. अब तू भी फँसेगी.." प्रिया के चेहरे पर मायूसी और डर ने डेरा डाल रखा था...

तीनो उनके बीच हो रही बात को ध्यान से सुन रहे थे....

" तो मैं अब और क्या करती.. तुझे पता नही चलता तो तू वापस चली जाती.. और फिर तेरा क्या होता.. पता है ना...

वीरेंदर काफ़ी देर से चुपचाप बातें सुन रहा था.. जो कुच्छ हुआ.. उस पर वह भी दुखी था.. पर अब किया ही क्या जा सकता है...,"वापस तो अब भी जाना ही पड़ेगा..!"

" नही.. मैं घर वापस नही जाउन्गि..!" प्रिया ने नज़रें उठाकर राज के चेहरे की और देखा...

राज की तो कुच्छ समझ में आ ही नही रहा था.. "अब क्या किया जाए..?"

"एक आइडिया है...!" स्नेहा ने कहा....

"क्या.. जल्दी बताओ ना.." राज तुरंत बोला...

"यहाँ से सभी भाग चलते हैं.... अभी के अभी..." स्नेहा को तो जैसे भागना ही सबसे अच्च्छा लगता था.. स्वच्छन्द आकाश के नीचे खुली हवा मैं.. जहाँ कोई बंधन ना हो.. उसको अहसास नही था शायद की हमारे समाज में लड़की के 'भागने' का क्या मतलब होता है... कहकर उसने चारों के चेहरे की और देखा.. प्रिया और रिया की तरफ से कोई रिक्षन नही आया.. राज भी मुँह बनाए खड़ा रहा.. पर वीरेंदर से ना रुका गया," क्यूँ नही.. बस इसी बात की कमी रह गयी है.. भाग चलो...!" उसने मुँह पिचकाया...

"अरे मैं कोई हमेशा के लिए भागने को थोड़े ही कह रही हूँ.. इनके मम्मी पापा का गुस्सा शांत नही होता.. तब तक.. बाद में फोन करके माफी माँग लेंगे... क्यूँ राज?"

"वैसे हम साधारण लोगों के लिए ये सब इतना आसान नही होता स्नेहा.. जितनी आसानी से तुमने कह दिया.. भागने का मतलब अपने घर परिवार और सारे समाज से कट जाना होता है.. हमेशा के लिए... वापस आना मुमकिन नही.. और कुच्छ सोचो..." राज ने कहा..

"और कुच्छ तो तुम्ही सोचो फिर.." स्नेहा भी मुँह बनाकर रिया और प्रिया की लाइन मैं बैठ गयी...

"जो कुच्छ सोचना है.. ये दोनो सोच लेंगी.. इसको ही फितूर सवार हुआ था ना.. रात में घर से निकलने का.. तुम क्यूँ परेशान हो रहे हो..?" वीरू ने लेटे लेटे ही कहा...

वीरू के मुँह से ऐसी बात सुनकर रिया को रोना आ गया..," ठीक है प्रिया.. चल कहीं और चलें.. अब हमें ही भुगतना पड़ेगा.. ग़लती भी तो हमने ही की है.. "

"रूको! मैं भी साथ चलूँगा..." राज ने रिया का हाथ पकड़ लिया....

" मैं रिया हूँ.. प्रिया नही.." रिया ने सुबक्ते हुए मासूमियत से कहा..

"पता है मुझे..!" राज ने कहा...

स्नेहा ने विचलित होकर वीरू की और देखा... वह भी कहने ही वाली थी.. "मैं भी चालूंगी.." पर वीरू को ऐसे छ्चोड़कर कैसे जाती..?

"राज.. इधर आकर खड़ा होने में मदद कर ज़रा.." वीरू ने हाथ का सहारा लेकर बैठते हुए कहा...

राज उसके पास गया और उसको सहारा देकर खड़ा कर दिया.. वीरू ने चोट वाली जाँघ पर एक दो बार...वजन बना कर देखा," चलो.. 'भाग' कर देखते हैं..."

मुरझाए हुए सभी के चेहरे वीरू के इस अंदाज पर खिलखियाए बिना ना रह सके.. खास तौर से रिया का चेहरा.. वह तो वीरू पर फिदा ही हो गयी थी...

"तुम्हे चोट लगी है क्या? इसीलिए स्कूल में नही आए क्या तुम आज.." रिया ने वीरू को पहली बार टोका...

वीरू ने उसकी बात का कोई जवाब नही दिया," सोच लो.. हम चार लोग हैं.. बाहर का खर्चा बहुत होगा....

" उसकी चिंता मत करो.. मैं हूँ ना.." स्नेहा चाहक उठी थी," और फिर मोहन आकर फोन करेगा ही.. उसको भी वहीं बुला लेंगे.... क्या कहते हो..?"

"फिर ठीक है.. पर निकलेंगे कैसे?" वीरू ने बाहर निकलने की तैयारी शुरू कर दी...

खामोश खड़ी रिया ने सब लोगों को गिना.. वो तो 5 हैं.. फिर वीरू 4 की बात क्यूँ कर रहा है.. हिचकिचाते हुए बोली," मैं भी हूँ!"

" तुम क्या करोगी? तुम तो वापस जा सकती हो ना..." राज ने कहा...

" मैं कैसे जा सकती हूँ अब.. वापस आकर घर वालों ने मुझे भी तो ढूँढा होगा... वैसे भी प्रिया के बिना मैं नही रह सकती.. वो जब वापस आएगी.. मैं भी आ जाउन्गि...!" रिया ने वीरू की और देखते हुए कहा.. उसको विश्वास था की वीरू पक्का टाँग अड़ाएगा...

" फिर तो मम्मी पापा को भी बुला लो ना... उन्होने क्या जुर्म कर दिया ऐसा.. वो भी तुम दोनो के बगैर कैसे रहेंगे.. आख़िर!" वीरू ने टेढ़ी नज़र से रिया पर व्यंग्य किया.. रिया राज के पिछे छिप गयी..

"ले चल यार.. जब उखल में सिर दे ही लिया है तो मूसल से क्या डरना...!" राज ने वीरू से रिक्वेस्ट सी की.....

"अरे मैं तो तेरे भले के लिए ही कह रहा हूँ.. तू कन्फ्यूज़ रहेगा.. कौनसी रिया है और कौन प्रिया? तुझे प्राब्लम नही है तो मुझे क्या.. मुझे कौनसा इसको पीठ पर बैठकर ले जाना है.." वीरू की बात पर सभी मुँह पर हाथ रख कर हँसने लगे...

"तेरी पीठ पर तो चढ़कर रहूंगी बेटा!" रिया मन ही मन सोचकर खिल उठी...

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फिर वही बात, होनी टाली ही नही जा सकती.. वरना भगवान ने तो रिया की कारून फरियाद सुन ही ली थी.. जीने मैं चढ़ते हुए.. विजेंदर का पैर फिसल गया और वो स्लिप करता हुआ 3 स्टेप्स नीचे आकर रुका.. उसका घुटना ज़ख्मी हो गया था...

पिछे पिछे उपर चढ़ रही उनकी मुम्मी ने पहले अपने आपको बचाया और फिर बैठकर विजेंदर को," आप ठीक तो है ना..?"

"आ.. मुझे नीचे ले चलो.. मर गया री मा..!" विजेंदर अपना घुटना पकड़ कर सीढ़ियों पर ही बैठ गया था...

उसकी बीवी उसको सहारा देकर नीचे ले गयी और वापस ले जाकर बेड पर लिटा दिया और रिया को आवाज़ लगाई," रिया.. जल्दी आ.."

रिया वहाँ थी कहाँ जो आती..

" उसको क्यूँ परेशान कर रही हो.. सोने दो बेचारी को.. बेवजह परेशान होगी.. कुच्छ खास चोट नही है.. एक दो दिन में ठीक हो जाएगी.. तुम बस यहाँ पर थोड़ी मालिश कर दो.. बहुत दुख रहा है.." विजेंदर ने पिच्छवाड़े को हाथ लगाते हुए इशारा किया...

"प्रिया को तो बुला लाऊँ.. पहले..?"

"रहने दो.. वो वहीं सो गयी होगी क्या पता.. सुबह अपने आप आ जाएगी..." विजेंदर का पूरा ध्यान अब अपनी चोट पर था...

"ठीक है.." उसने कहा और 'मूव' उठाकर लाई और दरवाजा बंद करके विजेंदर की पॅंट निकाल कर मालिश करने लगी...

"बस बहुत हो गया.. सो जाओ अब..!" विजेंदर ने कहा..

" ठीक है जी.. कुच्छ दिक्कत हो तो उठा लेना.." कहकर उसकी बीवी ने लाइट बंद करी और साथ लेटकर सो गयी.................

वो सब एक एक करके बाहर निकालने की तैयारी कर ही रहे थे की अचानक किसी ने उनका दरवाजा खटखटाया.. लड़कियों समेत सभी सहम गये..," अब क्या करें?" इशारों ही इशारों में सब ने एक दूसरे से पूचछा...

दोबारा फिर दस्तक हुई.. इस बार कुच्छ ज़्यादा ही जोरदार.. डर कर प्रिया और रिया एक दूसरी से चिपक गयी..

"तुम सब बाथरूम में घुस जाओ.. मैं देखता हूँ..!" राज ने तीनो को बाथरूम में बंद कर दिया और नींद में होने का नाटक करता हुआ दरवाजे के पास गया," कूऊउउउन्न है भाई?"

"दरवाजा खोलो!" बाहर से आई आवाज़ एकद्ूम कड़क थी..

"पर बताओ तो तुम हो कौन?" राज आवाज़ सुनकर ही डर गया था...

" मैं विकी.. सॉरी.. मोहन का दोस्त हूँ.. दरवाजा खोलो जल्दी.." बाहर से आवाज़ आई..

मोहन का नाम सुनकर राज को थोड़ी राहत पहुँची.. पर दरवाजा खोलते हुए डर अब भी उसके दिल में कायम था.. कुण्डी खोलकर उसने दरवाजा हूल्का सा खोल दिया.. बाकी काम टफ ने खुद ही कर दिया.. बिना देर किए टफ कमरे के अंदर था..

"स्नेहा तुम्हारे पास है ना!" टफ ने सीधे सीधे सवाल किया...

टफ के डील डौल और उपर से उसकी रफ आवाज़ ने राज को झूठह बोलने पर

विवश कर ही दिया..," क्क्कौन स्नेहा..? हम किसी स्नेहा को नही जानते... क्क्कौन है... आप?"

" देखो भाई.. डरने की कोई ज़रूरत नही है.. मैं मोहन का दोस्त हूँ.. अजीत! उसने ही मुझे स्नेहा को यहाँ से ले जाने को बोला है.. बता दो.. कहाँ है वो..?" टफ ने अपना लहज़ा निहायत ही नरम कर लिया.. फिर भी राज को तसल्ली ना हुई.. वीरू चुपचाप बेड पर बैठा सब कुच्छ देख सुन रहा था...

" ववो.. मोहन का फोन आया था.. वो तो चली गयी.. मोहन ने ही बुला लिया उसको.." राज ने फिर झूठ बोला...

" देखो.. मुझे पूरा यकीन है कि तुम झूठ बोल रहे हो.. पर अगर ये सच है तो स्नेहा की जान ख़तरे में है.. ये जान लो! अगर तुम उस लड़की की जान बचना चाहते हो तो प्लीज़ बता दो.. वो है कहाँ..?" टफ ने कमरे में छान बीन शुरू करने से पहले उस'से आख़िरी बार पूचछा...

राज की नज़रें झुक गयी.. स्नेहा की जान ख़तरे में होने की बात कहकर टफ ने उसको असमन्झस में डाल दिया था... उसको समझ नही आ रहा था.. कि वो क्या करे!

वीरू आख़िरकार बोल ही पड़ा," राज! स्नेहा को निकल लाओ बाथरूम से.." कहते हुए उसने अपने पैर से बेड के नीचे रखी बेसबॉल की स्टिक को आगे सरका लिया.. किसी अनहोनी का मुक़ाबला करने के लिए...

दरवाजा खोलो स्नेहा.. मोहन का दोस्त है कोई.. बाहर आ जाओ!" राज ने बाथरूम का दरवाजा थपथपाया...

स्नेहा दरवाजा खोलकर बाहर निकल आई.. रिया और प्रिया अभी भी बाथरूम में ही छिपि हुई थी..

"तुम्ही हो स्नेहा..?" टफ ने स्नेहा से सवाल किया..

स्नेहा ने अपनी नज़रें उठाकर जवाब दिया," जी.. आप मोहन के दोस्त हैं..?"

"हाँ.. और मैं तुम्हे लेने आया हूँ.. अभी तुम्हे मेरे साथ चलना होगा!"

" पर मैं कैसे मान लूँ.. आप उनके दोस्त हैं.. उनसे बात करा दीजिए मेरी.." स्नेहा ने कहा..

" देखो ज़िद करने का वक़्त नही है.. मैं तुम्हारी बात करा देता.. पर उसका फोन फिलहाल ऑफ है.. ये देखो.. ये उसी का नंबर. है ना.. देखो कितनी बार बात हुई हैं उस'से आज मेरी.. अभी कुच्छ घंटे पहले तक वो मेरे ही साथ था... वो आ नही सकता था.. इसीलिए मुझे भेज दिया.. अब जल्दी चलो.. वरना अनर्थ हो जाएगा..." टफ ने उसको अपनी कॉल डीटेल दिखाई..

" पर इसमें तो आपने नंबर. विकी नाम से सेव किया हुआ है.." स्नेहा ने आशंकित नज़रों से टफ की और देखा

"हां.. वो मैं उसको विकी ही बोलता हूँ.. प्यार से..." टफ को भी टेढ़ी उंगली इस्तेमाल करनी पड़ी...

स्नेहा के पास विश्वास करने के अलावा कोई और चारा बचा ही नही था... मोहन ने एक बार उसको बोला भी था.. की लोहरू छ्चोड़ने के बाद वो उसको लेने के लिए किसी दोस्त को भी भेज सकता है..

[color=#800080][size=large]" हम कहाँ जाएँग
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11-26-2017, 02:02 PM,
#87
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
" Riya?"

"Hummmm.." Riya ne kitab se najar hata kar Priya ki aur dekha..

"maine Raj ke sath bahut galat kiya na?" Priya sara din udas baithi rahi thi.. School mein bhi.. ghar mein bhi..

"ab bhool bhi ja baat ko.. kuchh nahi hoga.. ek do din mein sab theek ho jayega.." Riya ne usko dilasa di...

"mujhe nahi lagta! wo mujhse nafrat karne laga hai.. aaj meri aur class mein ek baar bhi nahi dekha.." Priya pagal si ho gayi thi.. Raj ke liye..

"achchha.. tujhe kaise pata..?" Riya ne sawaal kiya....

Priya uthkar Riya ke paas aakar baith gayi," main aaj sara din usi ko dekh rahi thi.. ek akshar bhi nahi padha school mein aaj!"

" virender aaj school kyun nahi aaya..?" Riya ne apne wale ki baat chhed di..

"ab mujhe kya pata? Raj se poochh leti.." Priya ne kaha...

"wo toh tujhe poochhna chahiye tha.. ek baat bataaon?" Riya ne iss andaj mein apne honto ko gol karke kaha mano wah bahut bada Raj kholne wali hai...

"kya?" Priya gour se uske chehre ko dekhne lagi...

"wo ladki jisko humne aaj subah khidki se dekha tha... inmein se kisi ki bhi behan nahi ho sakti..!" Riya ne khulasa kiya..

"kya kah rahi ho.. to fir koun ho sakti hai..?" Priya ke dil par saanp sa late gaya..

"ye toh mujhe nahi pata.. par behan toh inmein se kisi ki hai hi nahi.. mujhe aaj family record wala register office mein rakhkar aane ko bola tha, saini sir ne.. maine dono ka record check kiya tha.. dono mein se kisi ki koyi behan nahi hai..!" Riya ne apne visvas ki wajah batayi....

"tum kahna kya chahti ho? pls mujhe darao mat.." Priya jane kya sochkar darr gayi thi..

"achchha hua.. jo main kahna chahti hoon.. tum bina kahe hi samajh gayi... jamana bahut kharaab hai Priya.. aaj kal ye ladke rooms par gandi ladkiyon ko late hain.." Riya ne toh Priya ki saans hi rok di..

"par wo toh bahut jyada sunder thi?" Priya ne bholepan se kaha...

"arey main characterwise 'gandi' bol rahi hoon.. shakal soorat se kya hota hai..? aaj kal achchhe gharon ki ladkiyan bhi upar ke kharche ke liye 'galat kaam' karti hain.. tumne kabhi suna nahi kya?" Riya apne man mein jane kya kya khayali pulaav paka rahi thi...

Priya ne sahmati mein sir hilaya," haan... suna toh hai!... par Raj aisa nahi ho sakta.. nahi.. main nahi maanti...Mera Raj aisa nahi ho sakta!" Priya ne khud ko dilasa dene ki koshish ki... par uska dil baith gaya tha..

"tum kya kahna chahti ho? Virender hai aisa.. wo toh bilkul nahi ho sakta.. wo toh ladkiyon ki taraf dekhta bhi nahi.." Riya ne apne wale ka paksh liya.. baaton hi baaton mein wo bhool chuki thi ki unki baat sirf shak aur kalpana par shuru huyi thi...

" toh Raj bhi aisa nahi ho sakta.. uski guarantee main leti hoon..." Priya ne taal thonki..

"kyun nahi ho sakta.. wo itna shareef bhi nahi hai.. jitna tujhe lagta hai.. tujhe ek baat bataoon.. kal rat usne mujhe chutki kati thi.. yahan par.. maine tujhe aise hi nahi bataya..." Riya ne apne pichhwade par hath lagakar bataya...

Priya ye bhool gayi ki kal rat usne khud ko Raj ke saane Riya bataya tha..," Nahi.. tu jhooth bol rahi hai.. ho hi nahi sakta.. jhooth bol rahi hai na.. sach sach bata pls!"

Riya ne Priya ke sir par hath rakh diya," Sachchi.. tumhari kasam.. kati thi..!"

"yahin par?" Priya ne apne nitambon ko chhoo kar kaha..

"haan!"

"toh tune usko thappad kyun nahi mara.. main usko chhodungi nahi.." Priya jalan ke mare ubal padi....

"mummy bahar khadi thi.. main bathroom mein kapde lene gayi.. tab ki baat hai.. bol! main kya bolti..?" Riya ne toh priya ko rula hi diya... Priya bed par ulti late gayi.. aur subak'ne lagi.. 4 din pahle ka pyar jaane kitne mod le chuka tha.. kachchi umar ka pyar aisa hi hota hai!

"chal aa khidki mein se dekhte hain.. wo abhi bhi yahan hai ki nahi?" Riya ne Priya ko uthate huye kaha...

"Mujhe nahi dekhna kisi ko.. ab kya dekhna rah gaya hai.. main usko kitna achchha samajhti thi..." Priya ne riya ka hath jhatakte huye kaha...

"main toh dekh kar aaungi.. tujhe nahi chalna toh mat chal..!" Riya ne kaha aur zeene mein jakar khadi ho gayi.. par saamne wali khidki band thi.. Riya wapas loutne wali thi ki tabhi Priya bhi peechhe peechhe aa gayi..

"khidki band hai.." Riya ne priya ki aur mudte huye dheere se kaha..

"Ruk ja.. main khulwati hoon khidki.." gusse main jali bhuni aayi Priya upar se ek mota sa patthar ka tukda lekar aayi aur usko dhumm se khidki par de mara...

andar baithe teeno iss aawaj ko sunkar chowk gaye.. Sneha khilkhilate huye boli," lo Raj! tumhara fir se bulawa aa gaya.. aaj nahi jawoge kya..?" Raj ne chhedchhad ki baatein chhodkar sab kuchh unko bata diya tha..

"Dekho plz.. ab toh mera majak mat banao.. tumko bata diya sab kuchh toh iska matlab ye toh nahi..." Raj unke majak sun sun kar pak chuka tha... Viru ki aankh lag gayi thi...

"sorry.. par main dekh toh loon.. kaisi hai tumhari girlfriend.." kahte huye sneha bister se uthi aur khidki ke saamne jakar khidki khol di...

Sneha ki dono ladkiyon se najar mili.. ek bina koyi bhav apni aankhon mein liye khadi thi.. aur dusri fufkaar rahi thi.. jaise hi Priya ne Sneha ko dekha.. usne khidki mein se gali ki aur thooka aur upar bhag gayi.. Riya bhi uske pichhe pichhe nikal li..

"tum bilkul sahi kah rahe thhe Raj.. dono hubahu ek jaisi hain.. tumhari girlfriend kounsi hai.. Garam wali.. ki naram wali!" Sneha ne khidki band karte huye Raj se kaha...

"koyi nahi hai.. meri chhodo.. tum apni baat poori batao... gadi badal'ne ke baad kya huaa?" Raj bade gour se Sneha ki kahani sun raha tha...

"thhand rakh yaar.. ye sirf hamara waham bhi toh ho sakta hai.. kal poochh lenge uss'se..!" Riya ne subakti huyi Priya ko dilasa dete huye kaha," main poochh loongi kal.. waise bhi agar wo koyi aisi waisi ladki hoti toh saamne thhode aati..."

"main ek baar chali jaaun?" Priya uth kar baith gayi...

"kahan?"

Priya ne apne aapko shant karne ki koshish karte huye kaha," Raj ke paas... unke kamre par.."

"whhaaat.. tujhe pata hai tu kya kah rahi hai?" Riya bister se uchhal padi...

" haan pata hai... wo isi baat ki dhons jama raha hai na ki wo mujhse pyar karta hai... isiliye jaan jokhim mein daal kar raat ko hamre ghar aa gaya... main kya uss'se pyar nahi karti.. main kya ja nahi uske paas.. hisab barabar ho jayega.. uske baad bhi agar usne mujhe maaf nahi kiya toh main bhi kabhi uss'se baat nahi karoongi... main jaaun na?" Priya ne Riya ka hath apne hathon mein lete huye poochha...

Riya se kuchh der toh kuchh bolte hi na bana.. wah aankhein faade Priya ko dekhti rahi.. fir achanak sambhal kar boli," tu pagal hai kya? thhodi bahut bhi akal nahi bachi kya ab.. Raat ko darwaje se bahar pair rakhne ka matlab pata hai na tujhe... kaat ke rakh denge papa.. tujhe bhi.. aur Raj ko bhi.. aisi pagal baatein mat kar.. aur aa chal kar sote hain.. mummy bhi aane wali hi hogi.. chal aaja.." Riya ne priya ka hath pakad kar usko uthaya aur apne sath bahar kheench liya.. Darwaje ko tala lagaya aur usko hath pakde pakde hi neeche le gayi....

" aa gayi tum.. main bus upar aane hi wali thi.. jyada shor mat karna.. tumhare papa kal raat se soye nahi hain.. uthh gaye toh gussa karenge...! jaldi se apna doodh khatam karo aur so jao!" mummy ne kaha aur apne bedroom mein chali gayi... unke papa ke paas!

"dekh riya.. aaj papa bhi gahri neend mein honge.. pls jaane de na! ... main bus 5 minute main aa jaaungi..." Priya ne uske kaan mein dheere se kaha...

"tu hai na.. apne sath sath mujhe bhi marwayegi.. Dekh Priya.. mere saamne aisi baat mat kar.. mujhe darr lag raha hai... so ja chupchap!" kahkar Riya ne apna doodh khatam kiya.. aur bistar par late gayi... Priya bhi kya karti.. bechari.. pyar ka bhoot uske sir par buri tarah sawaar ho chuka tha.. wah late toh gayi.. par neend uski aankhon se koson door thi.. uski aankhon mein toh ab Raj bas chuka tha..

-------------------------------------

Kareeb ek ghanta beet gaya.. ghar ki sab lights band thi.. Priya ne apna sir uthakar Riya ko dekha.. wah dusri aur munh kiye so rahi thi.. neend mein uska night skirt uski jaanghon se kahin jyada upar utha hua tha.. panty uske nitambon se buri tarah chipki huyi thi.. ,"nalayak!" kahte huye Priya ne uska skirt neeche kheench diya.. Priya ko Raj ke dwara Riya ke nitambon par gadi gayi chutki yaad aa gayi... wah bechain ho uthi.. khadi hokar bathroom mein gayi aur fir bina kuchh kiye hi wapas aa gayi.. Mummy papa ke bedroom ka darwaja aaram se khol kar dekha.. wo andar se band tha..

Priya wapas lout aayi.. wah gahri asamanjhas mein thi.. samajh nahi aa raha tha ki kare toh kya kare... antat: uske jajbaat uske bhay par hawi ho gaye.. chupke se main gate ki chabi uthayi aur dabe paanv bahar nikal gayi...

aangan mein jane ke baad usne aangan ki lights off kar di.. dheere se tala khola aur tala darwaje mein hi tange rahne diya.. uske hath pair buri tarah kaanp rahe the.. ek pal ko wapas mudi.. Raj aur fir Bhagwan ko yaad kiya.. aur sare samaj aur ghar walon ke darr ko darkinar kar dehri laangh gayi.. ijjat ki dehri..

Priya ne ghar se bahar kadam rakha hi tha ki uski mummy jamhayi lete huye apne bedroom se bahar nikli... bathroom mein jakar aayi aur fir Priya aur Riya ke bedroom mein chali gayi.. Dekha Bed par akeli Riya hi so rahi hai..

"Riya... A Riya.." mummy ne Riya ko pakadkar hilya.. Riya gahri neend mein thi...," ummmmmmmmm.. kya hai?" wah kasmasayi aur karwat badalkar fir se chitt ho gayi...

"Riyaaaaa!" Mummy ne usko jor se jhakjhora...

" kya hai mummy.. sone do na!" Riya ne neend mein hi kaha...

"Priya kahan hai?" uski mummy chintit si ho gayi thi..

"hogi.. bathroom mein.. mujhe kya pata..?" aur achanak hi Riya chowk kar uthh baithi.. usko sone se pahle ki Priya ki baat yaad aa gayi... kahin..?," bathroom mein hogi mummy.. aap so jao jakar.." Riya kaanp si uthhi.. ab kya hoga.. agar... usne man hi man socha..

"Bathroom ki toh kundi band hai bahar se.. kahan gayi karamjali.. mujhe tumhare lakshan achchhe nahi lag rahe kuchh dino se.. tum fone vone toh nahi rakhti ho na..?"

Riya ne mummy ki baaton par dhyan hi nahi diya..," mummy.. wo upar chali gayi hogi padhne.. uska kafi kaam baki tha.. main dekhkar aati hoon.." kahkar Riya upar bhag gayi.. Mummy ne usko rokne ki koshish bhi ki.. par tab tak toh wo seedhiyon par ja chuki thi...

" inko bhi padhne ka time hi nahi pata.. jab dekho kitab kholkar baith jati hain... ab dekho na.. ye bhi koyi padhne ka time hai bhala...?" angdayi lekar bahar nikle apne pati ko dekhkar wo boli.... vijender ki neend poori ho gayi thi.. sham 6 baje se hi soya hua tha wo...

"arey bhai.. aajkal competition ka jamana hai.. time dekhkar padhengi toh pichhe nahi rah jaayengi bhala....." Vijender ne kaha aur apni biwi ke paas aakar bed par baith gaya," par inko kah do.. raat ko upar padhne ki koyi jarurat nahi hai... agar padhna hai toh yahin padhein.. neeche...!"

" maine toh jane kitni baar kaha hai ji.. par maane tab na! kahti hain.. T.V. ki aawaj mein disturb hoti hain.." Mummy ne safai di...

" tum kabhi pichhe jakar dekhti bhi ho kya? padhti bhi hain ya... chalo upar chalte hain..." Vijender yahi samajh raha tha ki dono abhi tak upar padh rahi hain.. usko ye ahsaas bhi nahi tha ki Priya sone ke baad gayab huyi hai.. aur ab Riya usko dekhne gayi hai...

" mere toh ghutno mein dard hai ji.. mujhse nahi chadha jata baar baar upar...." mummy ne kaha hi tha ki Riya neeche aa gayi.. aur papa ko wahin baitha pakar saham gayi..," ww wo.. upar hi ... hai.. mummy.. apna kaam kar rahi hai.. abhi aa jayegi.. 10 -15 minute mein..." Riya ne haklate huye kaha.....

Vijender ke policiya dimag mein Riya ki baaton mein gadbad ki boo aayi..kuchh sochte huye.. wo khada huaa aur bola," aaindaa se tum dono neeche hi padha karo.. T.V. nahi chalega... aur kahkar wapas apne kamre mein chala gaya," kuchh khane ko hai kya? bhookh lagi hai!"

" hai ji.. abhi lati hoon.. aap baitho.." kahkar uski mummy kitchen mein chali gayi...

"Riya bistar par baithi baithi kaanp rahi thi.. aur dua kar rahi thi ki Priya jaldi aa jaye.. aur uske mummy papa ko pata na chale...

"arey.. aaj maine darwaja khula hi chhod diya..! kitchen se aangan ka bulb jalate hi uski najar darwaje par tange taale par padi... wah bahar gayi aur darwaja lock karke wapas aa gayi.. Riya ka dil jor jor se dhadakne laga...

uski mummy ne andar aakar chabi slab par rakh di thi.. Riya ne himmat karke chabi uthayi aur mummy ke bedroom mein jate hi tala fir khol aayi.. bhag kar...

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Udhar Raj aur viru so gaye the.. Sneha apne mohan ke khaylon mein khoyi huyi thi aur jaldi se subah hone ka intjaar kar rahi thi.. Darwaje par huyi dastak se wah chounk gayi.. bistar se uthi aur Raj ko uthane ki sochi...," iss waqt yahan mohan ke alawa aur koun aa sakta hai.." ye sochkar wah khil uthi aur ekdum se jakar darwaja khol diya....

Saamne apne sir aur chehre ko chunni se dhake Priya khadi thi.. darwaja khulte hi wah bhag kar andar aa gayi aur chunni utar di... Sneha ne pahchan liya..," Priya?"

Priya ne sahmati mein sir hilaya aur kamre mein najrein doudayi.. Raj jameen par bistar bichhaye chain se soya pada tha..

"tum koun ho?" Priya sochkar aayi thi ki jaate hi uss ladki toh khabar leni hi hai.. par yahan toh darr ke mare uski aawaj hi mushkil se nikal pa rahi thi...

"main inki behan hoon.." sneha ne muskurate huye kaha...

"kiski..?" Priya ne kaanpti huyi aawaj mein poochha..

"dono ki.. kya tum yahi poochhne ke liye aayi ho.. itna dari huyi kyun ho.. aao baithho..." Sneha ne pyar se apni hone wali bhabhi ke chehre ko uski thodi par hath lagakar upar uthaya...

" par ye toh sagey bhai nahi hain na.. fir tum dono ki behan kaise huyi..?" Priya ne bholepan se poochha...

"kya khoon ka rishta hi rishta hota hai... sagi toh main inmein se kisi ki bhi nahi hoon.. par dono mere liye apno se kahin badhkar hain... tum baitho na.. main Raj bhaiya ko jagati hoon..!" Sneha ne uska hath pakad kar apni aur kheencha...

Priya ke dil ko badi tasalli mili.. ye sab sunkar.. usne toh yunhi jaan aafat mein daal li thi..," nahi.. ab main ja rahi hoon.. ghar wale jaag gaye toh..."

"pls.. sirf ek minute.." aur Sneha jakar Raj ko jagane lagi... ," Raj.. Raj! dekho na koun aaya hai..?

Raj hadbada kar uthh baitha aur jaise hi usne Priya ko apne kamre mein khade dekha wah uchhal pada.. ek baar ko toh usko apni aankhon par visvas hi nahi hua," Tummm????? yahan kyun aayi ho.. matlab.. kaise aa gayi? Darr nahi laga..." Raj ne khade hote huye apne kapdon ko theek kiya...

Priya apne hath bandhe.. sir jhukaye.. khadi thi.. wah abhi bhi kaanp hi rahi thi.. jane ghar se nikalte huye usmein kahan se itni himmat aa gayi thi..

"bechari pahle hi dari huyi hai.. tum aur dara do isko.. tumhare liye itni himmat karke aayi hai.. ab toh pyar se baat kar lo..." Sneha ne tunakte huye kaha...

sahmi huyi si Priya Raj ko itni pyari lag rahi thi ki uska dil chah raha tha.. abhi ke abhi usko bahon mein bharkar uska har ang choom daale.. uske rom rom ko mahsoos kar le.. par ye sab karna sochne se kahin jyada mushkil tha...," poochh hi toh raha hoon.. ghar wale jaag gaye toh kya hoga?"

" main bus sorry bolne aayi thi...!" Priya ne najrein uthakar Rat bhar ke liye apne man mein Raj ka pyara chehra kaid kar liya...

"oho.. kitni baar sorry bologi.. bol toh di thi.. school mein..!" Raj uske saamne aakar khada ho gaya...

Priya ko laga Raj ki najrein uske shareer mein gad rahi hain.. uska badan akadne sa laga tha.. darr ke bawjood," par tumne maaf kahan kiya tha!" usne Raj ki najron se najrein milayi.. dil kiya ki kal raat ki adhuri hasrat abhi poori kar le.. lipat jaye Raj se.. aur apne badan ko dheela chhodkar usmein sama jane de.. par himmat dono mein se kisi mein nahi thi.. Sneha jo paas khadi thi..

"pagal.. maaf kya karna tha.. main naraj nahi tha.. main toh yunhi bus..." Raj ke hath Priya ke chehre ki aur badhe.. par beech mein hi ruk gaye... achanak darwaja khula aur Riya badhawaas si kamre mein ghus aayi.. wah itni hadbadahat mein thi ki unke upar girte girte bachi... uske pairon mein khade rahne ki himmat bachi hi nahi thi.. wah andar aate hi bed par baith gayi...," Sab kuchh khatam ho gaya Priya.. sab kuchh khatam ho gaya... samajh lo maare gaye... oh my God!"

Priya uski baat ka matlab samajh kar dhadam se jameen par aa giri.. Raj ne usko sambhala aur riya se bola," kya huaa Riya?"

Sneha ko toh bolne ka bhi awsar nahi mila....

"sab kuchh khatam ho gaya Raj.. Maine isko mana kiya tha.. par fir bhi ye aa gayi.. itna sa bhi nahi socha isne... papa jaan se maar daalenge... chhodenge nahi..." Riya ne haanfte huye kaha...

Priya ne toh jor jor se rona shuru kar hi diya tha.. agar Raj uske munh par hath rakhkar.. usko chup rahne ke liye na kahta toh," Saaf saaf batao na Riya.. baat kya hai...?"

kamre mein itni fusfusahat sunkar Virender ki neend khul gayi.. aankhein kholkar upar dekhte huye jaise hi usne Priya aur riya ko wahan dekha.. wah bhi chouk pada..," ye kya tamasha laga rakha hai? kya museebat aa gayi aakhir.. Raat ko toh chain se so jaya karo.. ye koyi ishq farmaane ka time hai.."

"chup ho jao viru bhaiya.. bahar koyi sun lega.." Sneha jakar viru ke paas baith gayi...

"kya aafat aa gayi.. batao toh sahi..?" viru ne iss baar dheere se kaha...

Priya ne jaise taise karke apne aapko sambhal aur uthkar Riya ke paas jakar khadi ho gayi,"papa jaag gaye kya..?"

"haan! papa bhi jaag gaye aur mummy bhi.. mummy ne mujhe uthaya tha.. ye poochhne ke liye ki tum kahan ho.. maine upar aakar dekha aur wapas jakar jhooth bol diya.. ki tum upar padh rahi ho.. fir mummy papa ke liye khana banane lagi.. maine tumhara kitna intjaar kiya.. mummy ne wapas tala laga diya tha.. wo bhi khola.. par tum nahi aayi priya.." kahte huye Riya rone lagi...

" fir unko pata lag gaya kya?" Priya ka dil baith gaya...

" khana kha kar papa aur mummy tumhe bulane upar chale gaye.. ab tak toh unko pata lag hi gaya hoga..." Riya ne rote rote hi bataya...

"par tu kyun yahan aayi pagal.. ab tu bhi fansegi.." Priya ke chehre par mayusi aur darr ne dera daal rakha tha...

teeno unke beech ho rahi baat ko dhyan se sun rahe the....

" toh main ab aur kya karti.. tujhe pata nahi chalta toh tu wapas chali jati.. aur fir tera kya hota.. pata hai na...

Virender kafi der se chupchap baatein sun raha tha.. jo kuchh huaa.. uss par wah bhi dukhi tha.. par ab kiya hi kya ja sakta hai...,"wapas toh ab bhi jana hi padega..!"

" nahi.. main ghar wapas nahi jaaungi..!" Priya ne najrein uthakar Raj ke chehre ki aur dekha...

Raj ki toh kuchh samajh mein aa hi nahi raha tha.. "ab kya kiya jaye..?"

"ek idea hai...!" Sneha ne kaha....

"kya.. jaldi batao na.." Raj turant bola...

"yahan se sabhi bhag chalte hain.... abhi ke abhi..." Sneha ko toh jaise bhagna hi sabse achchha lagta tha.. swachhand aakash ke neeche khuli hawa main.. jahan koyi bandhan na ho.. usko ahsaas nahi tha shayad ki hamare samaj mein ladki ke 'bhagne' ka kya matlab hota hai... kahkar usne charon ke chehre ki aur dekha.. Priya aur Riya ki taraf se koyi reaction nahi aaya.. Raj bhi munh banaye khada raha.. Par virender se na ruka gaya," kyun nahi.. bus isi baat ki kami rah gayi hai.. Bhag chalo...!" usne munh pichkaya...

"arey main koyi hamesha ke liye bhagne ko thode hi kah rahi hoon.. inke mummy papa ka gussa shant nahi hota.. tab tak.. baad mein fone karke maafi maang lenge... kyun Raj?"

"waise hum sadharan logon ke liye ye sab itna aasan nahi hota Sneha.. jitni aasani se tumne kah diya.. bhagne ka matlab apne ghar pariwar aur sare samaj se kat jana hota hai.. hamesha ke liye... wapas aana mumkin nahi.. aur kuchh socho..." Raj ne kaha..

"aur kuchh toh tumhi socho fir.." sneha bhi munh banakar Riya aur Priya ki line main baith gayi...

"jo kuchh sochna hai.. ye dono soch lengi.. isko hi fitur sawaar hua tha na.. Rat mein ghar se nikalne ka.. tum kyun pareshan ho rahe ho..?" Viru ne latey latey hi kaha...

Viru ke munh se aisi baat sunkar Riya ko rona aa gaya..," Theek hai priya.. chal kahin aur chalein.. ab hamein hi bhugatna padega.. galati bhi toh humne hi ki hai.. "

"ruko! main bhi sath chaloonga..." Raj ne Riya ka hath pakad liya....

" main Riya hoon.. Priya nahi.." Riya ne subakte huye maasumiyat se kaha..

"pata hai mujhe..!" Raj ne kaha...

Sneha ne vichlit hokar Viru ki aur dekha... wah bhi kahne hi wali thi.. "main bhi chaloongi.." par viru ko aise chhodkar kaise jati..?

"Raj.. idhar aakar khada hone mein madad kar jara.." Viru ne hath ka sahara lekar baithte huye kaha...

Raj uske paas gaya aur usko sahara dekar khada kar diya.. viru ne chot wali jaangh par ek do baar...wajan bana kar dekha," chalo.. 'bhaag' kar dekhte hain..."

Murjhaye huye sabhi ke chehre Viru ke iss andaaj par khilkhiaye bina na rah sake.. khas tour se Riya ka chehra.. wah toh Viru par fida hi ho gayi thi...

"tumhe chot lagi hai kya? isiliye school mein nahi aaye kya tum aaj.." Riya ne viru ko pahli baar toka...

Viru ne uski baat ka koyi jawaab nahi diya," Soch lo.. hum char log hain.. bahar ka kharcha bahut hoga....

" uski chinta mat karo.. main hoon na.." Sneha chahak uthi thi," aur fir mohan aakar fone karega hi.. usko bhi wahin bula lenge.... kya kahte ho..?"

"fir theek hai.. par nikalenge kaise?" Viru ne bahar nikalne ki taiyari shuru kar di...

khamosh khadi Riya ne sab logon ko gina.. wo toh 5 hain.. fir viru 4 ki baat kyun kar raha hai.. hichkichate huye boli," main bhi hoon!"

" tum kya karogi? tum toh wapas ja sakti ho na..." Raj ne kaha...

" main kaise ja sakti hoon ab.. wapas aakar ghar walon ne mujhe bhi toh dhoondha hoga... waise bhi Priya ke bina main nahi rah sakti.. wo jab wapas aayegi.. main bhi aa jaaungi...!" Riya ne viru ki aur dekhte huye kaha.. usko vishvas tha ki viru pakka taang adaayega...

" fir toh mummy papa ko bhi bula lo na... unhone kya jurm kar diya aisa.. wo bhi tum dono ke bagair kaise rahenge.. aakhir!" Viru ne tedhi najar se Riya par vyangya kiya.. Riya Raj ke pichhe chhip gayi..

"le chal yaar.. jab ukhal mein sir de hi liya hai toh moosal se kya darna...!" Raj ne Viru se request si ki.....

"arey main toh tere bhale ke liye hi kah raha hoon.. tu confuse rahega.. kounsi riya hai aur koun priya? tujhe problem nahi hai toh mujhe kya.. mujhe kounsa isko peeth par baithakar le jana hai.." Viru ki baat par sabhi munh par hath rakh kar hansne lage...

"teri peeth par toh chadhkar rahungi beta!" Riya man hi man sochkar khil uthi...

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fir wahi baat, honi taali hi nahi ja sakti.. warna bhagwan ne toh riya ki karun fariyaad sun hi li thi.. jeene main chadhte huye.. vijender ka pair fisal gaya aur wo slip karta hua 3 steps neeche aakar ruka.. uska ghutna jakhmi ho gaya tha...

pichhe pichhe upar chadh rahi unki mummi ne pahle apne aapko bachaya aur fir baithkar vijender ko," aap theek toh hai na..?"

"aah.. mujhe neeche le chalo.. mar gaya ri maa..!" Vijender apna ghutna pakad kar seedhiyon par hi baith gaya tha...

Uski biwi usko sahara dekar neeche le gayi aur wapas le jakar bed par lita diya aur Riya ko aawaj lagayi," Riyaaaa.. jaldi aa.."

Riya wahan thi kahan jo aati..

" usko kyun pareshan kar rahi ho.. sone do bechari ko.. bewajah pareshan hogi.. kuchh khas chot nahi hai.. ek do din mein theek ho jayegi.. tum bus yahan par thodi malish kar do.. bahut dukh raha hai.." vijender ne pichhwade ko hath lagate huye ishara kiya...

"Priya ko toh bula laaoon.. pahle..?"

"Rahne do.. wo wahin so gayi hogi kya pata.. subah apne aap aa jayegi..." vijender ka poora dhyan ab apni chot par tha...

"theek hai.." usne kaha aur 'move' uthakar layi aur darwaja band karke vijender ki pant nikal kar malish karne lagi...

"bus bahut ho gaya.. so jao ab..!" Vijender ne kaha..

" theek hai ji.. kuchh dikkat ho toh utha lena.." kahkar uski biwi ne light band kari aur sath latekar so gayi.................

wo sab ek ek karke bahar nikalne ki taiyari kar hi rahe the ki achanak kisi ne unka darwaja khatkhataya.. ladkiyon samet sabhi saham gaye..," ab kya karein?" isharon hi isharon mein sab ne ek doosre se poochha...

Dobara fir dastak huyi.. iss baar kuchh jyada hi jordaar.. dar kar Priya aur Riya ek dusri se chipak gayi..

"tum sab bathroom mein ghus jao.. main dekhta hoon..!" Raj ne teeno ko bathroom mein band kar diya aur neend mein hone ka natak karta hua darwaje ke paas gaya," koooouuunn hai bhai?"

"darwaja kholo!" bahar se aayi aawaj ekdum kadak thi..

"par batao toh tum ho koun?" Raj aawaj sunkar hi darr gaya tha...

" main vicky.. sorry.. Mohan ka dost hoon.. darwaja kholo jaldi.." Bahar se aawaj aayi..

mohan ka naam sunkar Raj ko thodi rahat pahunchi.. par Darwaja kholte huye Darr ab bhi uske dil mein kayam tha.. kundi kholkar usne darwaja hulka sa khol diya.. baki kaam tough ne khud hi kar diya.. bina der kiye tough kamre ke andar tha..

"Sneha tumhare paas hai na!" Tough ne seedhe seedhe sawaal kiya...

Tough ke deel doul aur upar se uski rough aawaj ne Raj ko jhoothh bolne par

vivash kar hi diya..," kkkoun Sneha..? hum kisi Sneha ko nahi jaante... kkkoun hai... aap?"

" Dekho bhai.. darne ki koyi jarurat nahi hai.. main Mohan ka dost hoon.. Ajeet! usne hi mujhe Sneha ko yahan se le jane ko bola hai.. bata do.. kahan hai wo..?" Tough ne apna lehja nihayat hi naram kar liya.. fir bhi Raj ko tasalli na huyi.. viru chupchap bed par baitha sab kuchh dekh sun raha tha...

" wwo.. Mohan ka fone aaya tha.. wo toh chali gayi.. Mohan ne hii bula liya usko.." Raj ne fir jhooth bola...

" Dekho.. mujhe poora yakeen hai ki tum jhooth bol rahe ho.. par agar ye sach hai toh Sneha ki jaan khatre mein hai.. ye jaan lo! agar tum uss ladki ki jaan bachana chahte ho toh pls bata do.. wo hai kahan..?" Tough ne kamre mein chhanbeen shuru karne se pahle uss'se aakhiri baar poochha...

Raj ki najarein jhuk gayi.. Sneha ki jaan khatre mein hone ki baat kahkar tough ne usko asamanjhas mein daal diya tha... usko samajh nahi aa raha tha.. ki wo kya kare!

Viru aakhirkar bol hi pada," Raj! Sneha ko nikal lao bathroom se.." kahte huye usne apne pair se bed ke neeche rakhi baseball ki stick ko aage sarka liya.. kisi anhoni ka muqabala karne ke liye...

Darwaja kholo Sneha.. Mohan ka dost hai koyi.. bahar aa jao!" Raj ne bathroom ka darwaja thapthapaya...

Sneha darwaja kholkar bahar nikal aayi.. Riya aur Priya abhi bhi bathroom mein hi chhipi huyi thi..

"tumhi ho Sneha..?" tough ne Sneha se sawaal kiya..

Sneha ne apni najrein uthakar jawab diya," Ji.. aap Mohan ke dost hain..?"

"haan.. aur main tumhe lene aaya hoon.. abhi tumhe mere sath chalna hoga!"

" par main kaise maan loon.. aap unke dost hain.. unse baat kara dijiye meri.." Sneha ne kaha..

" Dekho jid karne ka waqt nahi hai.. main tumhari baat kara deta.. par uska fone filhaal off hai.. ye dekho.. ye usi ka no. hai na.. dekho kitni baar baat huyi hain uss'se aaj meri.. abhi kuchh ghante pahle tak wo mere hi sath tha... wo aa nahi sakta tha.. isiliye mujhe bhej diya.. ab jaldi chalo.. warna anarth ho jayega..." Tough ne usko apni call detail dikhayi..

" par ismein toh aapne no. vicky naam se save kiya hua hai.." Sneha ne aashankit najron se tough ki aur dekha

"haan.. wo main usko vicky hi bolta hoon.. pyar se..." tough ko bhi tedhi ungali istemaal karni padi...

Sneha ke paas vishvas karne ke alawa koyi aur chara bacha hi nahi tha... Mohan ne ek baar usko bola bhi tha.. ki loharu chhodne ke baad wo usko lene ke liye kisi dost ko bhi bhej sakta hai..

" hum kahan jayenge..abhi..!" Sneha ne aakhiri sawaal kiya...

"kahan jana chahti ho..?"

"Loharu! wahan Mohan ke dost shamsher ki sasural hai.." Sneha ne kaha..

tough ne rahat ki saans li..," Shamsher se baat karwaaun kya abhi?"

" nahi rahne do.. waise bhi main unhe nahi jaan'ti.. par..." kahkar Sneha ne Viru ki aur dekha...

" par kya? .... bolo?" Tough ne kaha..

" mere sath meri 2 saheliyan bhi jayengi.." Sneha ne jhijhakte huye kaha...

" kahan hain tumhari saheliyan? le chalo.. mujhe kya problem hai bhala? Tough ne kamre mein najar doudakar bathroom ke darwaje par najar tika di..

" ek minute.." Sneha ne kaha aur bathroom se dono ko bahar nikal layi.. dono line mein khadi thi.. Priya Riya ke pichhe chipki khadi thi...

"wah bhai wah.. ye toh ek dusri ki photocopy hain.. chalo.. jaldi chalo..!" Tough ne dono ko gour se dekhte huye kaha...

" aap dono rahne do bhaiya... khamkhwah pados walon ko shak hoga.. ab hum chale toh jayenge hi.." Sneha ne Viru aur Raj ki aur dekhte huye kaha..

Raj ka sath chalne ka bahut mann tha.. uske toh sare armaan hi dhare ke dhare rah gaye.. usne Viru ki aur dekha...

"Nahi Sneha! hum bhi sath hi chalenge..!" Viru ne stick uthayi aur uske sahare khada ho gaya.. Sneha ko kisi bhi jokhim mein wo akela nahi chhodna chah raha tha....

Raj ke toh bin bole hi vare nyare ho gaye...

" bhai.. jisko bhi chalna hai.. jaldi se neeche chalkar gadi mein baitho.. hamare paas time nahi hai itna.." Tough ne jhallate huye kaha...

Uske baad kisi ne der nahi lagayi.. wahan se nikalne ki jaldi toh unhe bhi thi.. kismat se ab unko raaston par bhatakna nahi padega.. sabhi jakar Gadi mein baith gaye..

Tough ne road par nikalte hi Shamsher ke paas fone kiya..," haan bhai.. le aaya hoon.. sneha ko.. Shukra hai.. abhi tak pahuncha nahi tha wo..!"

"koun hai.. Mohan hai kya?" Sneha ne aage gardan nikalte huye kaha..

" Nahi shamsher hai.. lo bhai.. ek baar baat karna..."

" namastey Sir!" Sneha ne jhijhakte huye kaha.. Vicky ne Sneha ko bata rakha tha ki Shamsher teacher hai..

" Namastey beta..! kisi baat ki fikar mat karna.. theek hai na..." Shamsher ne pyar se kaha...

" Ji.. ab sab theek hai.. main toh darr gayi thi.." Sneha ne bhi utni hi vinamrata se jawab diya..

" O.K. mera no. bhi le lena.. koyi dikkat ho toh fone kar dena.. waise tough bhi hamara bhai hi hai.. usko fone dena jara.." Shamsher ne kaha...

" ye lo Sir!" Sneha ki aankhein chamak uthi.. ab usko koyi fikar nahi thi.. wo sahi aadmi ke sath the...

" vicky kahan hai ab?" Shamsher ne tough se poochha..

" pata nahi bhai.. uska toh fone off aa raha hai..mere paas se toh nikal gaya tha.. 7 8 baje ke aaspaas..." Tough ne jawab diya..

" pata nahi yaar.. wo kaise line par aayega.. chal achchha.. rakhta hoon..!" kahkar shamsher ne fone kaat diya....
Reply
11-26-2017, 02:02 PM,
#88
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
girls school-47

Tough unn sabko lekar Loharu pahuncha toh subah ke teen baj chuke the.. sabhi neend mein ludhak chuke the..

Tough ne anjali ke ghar ke saamne roki aur unko sota hua chhodkar angan se hota hua darwaje tak ja pahuncha aur jate hi bell bajai..

Anjali unka hi wait kar rahi thi.. usne turant darwaja khola," Aa gayi...?"

"Aa gayi nahi bhabhiji.. Aa gaye! Gadi mein poore 5 hain..!"

"matlab?.. Tum... wo kya naam hai... Sneha ko lene gaye the na?" Anjali ne Gadi ki aur dekhte huye kaha..

"haan.. lene toh Sneha ko hi gaya tha.. par kya karta? wo apne sath do aur ko le aayi aur unn do ke sath do aur aa gaye?" Tough ne tapak se uttar diya," Sneha ko har haal mein lana jaruri tha.. kya karta?"

"par yahan.. itne sare adjust kaise honge?... mera matlab sirf living room hi khali hai!" Anjali ne kuchh sochte huye kaha...

"Mujhe nahi pata Bhabhi ji.. Shamsher ne mujhse kaha tha ki main Sneha ko aapke paas chhod doon.. mera kaam khatam.. ab aap unse hi baat karein!" Tough ne rukha sa uttar diya...

"arey maine aisa bola hai kya?.. tum toh iss tarah se kah rahe ho jaise main khush nahi hoon.. inko apne paas rakhkar.. mera matlab tha ki....." Anjali ne safai dene ki koshish ki toh tough beech mein hi bol pada..," aap ek baar bhai sahab se baat kyun nahi kar leti...? wo hi kuchh raasta nikalenge ab..."

"chalo theek hai.. main unse baat kar leti hoon.. aap unko andar toh le aayiye..."

"nahi.. pahle aap baat kar lo.. main bachchon ki wajah se khulkar baat hi nahi kar paya.. raaste mein.." kahkar Tough ne fone milakar Anjali ko de diya...

"utha hi nahi rahe!" Anjali ne kaha..

"ek baar fir se try karo na.. so rahe honge..!" Tough ne kaha...

iss baar shamsher ne fone utha liya," haan tough.. pahunch gaye kya?"

"haan.. Pahunch gaye!" Jawaab Anjali ne diya..

"koun.. anjali?" Shamsher ne poochha..

"shukra hai.. aawaj nahi bhoole!.. aa.. tum toh kah rahe the.. yahan koyi Sneha Aane wali hai...?" Anjali ne ek taraf hote huye kaha.. Shamsher ki aawaj bhar se uske armaan khil se gaye..

"toh.. Sneha nahi aayi kya?" Shamsher ne choukte huye kaha...

"aayi hai.. aayi hai.. par uske sath char aur hain...!" Anjali ne jawab diya..

"char aur??? wo koun?" Shamsher ka matha thanaka...

" lo.. Ajeet se hi poochh lo..!" kahkar Anjali ne wapas aakar fone tough ko pakda diya..

"haan.. bhai..!"

" ye tu aur kisko utha laya bhai?" Shamsher ne poochha..

" Mujhe nahi pata bhai.. maine toh Raaste bhar koyi poochh tachh bhi nahi ki.. kahin darr na jayein.. 2 ko toh apni saheliyan bata rahi hai.. aur do wo hain.. jinke paas vicky usko chhodkar gaya tha... tumne bola tha.. Sneha ko har haal mein lekar aana hai.. so main le aaya..." Tough apni jagah par sahi tha...

" chal.. koyi baat nahi.. tu ladko ko apne sath le jayega na..?" Shamsher ne kaha...

"haan.. mujhe toh koyi problem nahi hai.. par agar unko wapas jana hi hota toh wo wahin par na rah jaate..?" Tough ne kaha...

"fir tu aisa hi kar.. subah unko Rohtak wali bus mein baitha dena.. chale jayenge.. aur 'wo' ladkiyan?? wo koun hain..? unko bhi aajkal mein wapas bhej de yaar.. wo yahan koyi picnic manane thhode hi aaye hain.. baki tu dekh lena.." Shamsher ne kaha...

"theek hai bhai.. main dekh loonga.. aur kuchh..?" Tough ne kaha...

" wo recording suna dena Sneha ko.. vicky aur murari wali.. usko aise visvas na ho shayad.. Pyar ka maamla hai..." Shamsher ne kaha...

"wo main subah hi sunaaunga.. ab toh so lene do bechari ko.. sach mein yaar.. bahut masoom hai bechari..!"

" wo toh mujhe vicky ne hi bata diya tha.... main subah vicky se baat karke usko samjhane ki koshish karoonga.. chal theek hai.. subah mujhe bhi wapas chalna hai.. ab so leta hoon.." Shamsher ne kaha...

"OK bhai.. mujhe bhi neend aa rahi hai.. Main toh Bhabhi ke paas jakar sounga.." Tough ne majak kiya...

"tujhe laat padegi.. tab akal aayegi.." Shamsher ne hanste huye kaha..

"main wo nahi kah raha bhai.. jo tu samajh raha hai.. mera matlab tha.. unke ghar jakar..." Tough jor jor se hansne laga...

"chal ab rakh de.. sala!" kahkar Shamsher ne fone kaat diya...

"kya kah rahe hain", Tough ki baat khatam hote hi Anjali ne use toka.

" subah main baki logon ko wapas bhej doonga... par ab raat bhar ke liye toh kuchh na kuchh karna hi padega..." tough ne afsos jahir karte huye kaha..

" Theek hai.. main dekhti hoon.. tum lekar toh aao sabko!" Anjali ne jawaab diya...

Tough ne jakar Raj ko jagaya.. ek baar tokte hi wo unghata hua uth baitha," aa gaye kya?"

"haan.. Aa gaye.. sabko utha kar andar le aao!" kahkar tough wapas chala gaya...

Raj ki najar sabse pahle Priya par padi.. chand ki chandni mein wo uska hi pratiroop lag rahi thi.. gol gol chhota sa pyara chehra; kitni nischint hokar soyi huyi thi.. Raste bhar wo Raj ki side mein baithkar hi aayi thi.. Raj ka mann kayi baar usko chhoone ka hua tha.. par har baar uske dimag mein wo baat koundh jati..," main tumhe achchha ladka samajhti thi.. aur wo apna hath wapas kheench leta.. yunhi sochte sochte kab usko neend ne apne aagosh mein le liya, usko pata hi nahi chala tha. usko yakeen hi nahi ho raha tha ki Priya ab har pal uske sath hi rahne wali hai... usko wo itna tadpa dega ki wo khud uski baahon mein aane ke liye tadpegi.. aur fir wo usko ek baar jaroor kahega," main tumhe aisi ladki nahi samajhta tha..". Raj man hi man khil utha..

Raj ne bade pyar se uske gaalon par hath lagaya," Utho Priya!"

Priya par uske chhoone ka koyi asar dikhayi nahi diya..

"Priya.. utho.. gaanv aa gaya hai.. andar chalna hai..!" iss baar uski aawaj bhi kuchh tej thi aur sparsh bhi kuchh sakht.. par nateeja wahi.. Priya gahri neend mein thi..

Priya ke rasile hont barbas hi usko apni aur kheench rahe the... uske honton ko.. ek rasile chumban ke liye.. Raj ne badi mushkil se khud ko control kiya par wah apni hatheli ko na rok paya.. unn najuk gulabi honto ki chhap usspar lene se.. Raj ne iss tarah uska chehra apne hath mein liya ki honton ne hatheli ko choom liya.. uske liye ye ek avismarneeya anubhav tha.. honto se honton ko chhoo lene ki kalpana jaisa hi madak.. Priya neend mein hi uski aur ludhak gayi.. uska ek hath Raj ke kandhe par tha aur uska sir Raj ki chhati par tika hua tha.. Raj ki saanse tej ho gayi.. Priya ke komal par sudoul vaksh Raj ki baanh se sate huye thhe...

"Priya! uthho na.." Raj aur sahan karne ki sthiti mein nahi tha.. kisi bhi pal uska man sharaarat karne ko machal sakta tha..

" Ummmm.. abhi toh soyi thi.. thoda aur sone do na mummy..!" kahkar Priya ne Raj ko apni aur kheench liya.. mano apne takiye ko apne sir ke neeche lagane ki koshish kar rahi ho.. sparsh aur adhik aanandkari ho gaya.. aur adhik kamuk.. Priya ka chehra Raj ki Gardan ke sath chipka hua tha.. honton ne bus Raj ko chhoo hi liya tha..

Priya ke shareer mein huyi hulchal se uske sath baithi Sneha jaag gayi.. Jaagte hi jab iss manmohak drishya ko dekha toh wo apni hansi na Rok payi.. usne hath lagakar Riya ko jaga diya.. Riya aankhein masalte huye uth baithi aur wo bhi Raj aur Priya ko dekhkar 'Haaye Ram' kah baithi...

Raj ko laga ki jaise wo bina kuchh kiye hi Rangey haathon pakda gaya hai.. usne tapak se Priya ko Sneha ki taraf uchhalne ki koshish ki.. par Priya toh jaise us'se chipki huyi thi.. Raj usko apne se alag na kar paya..

Raj ne Riya aur Sneha ko dekha aur khisiaaya hua sa sharmakar mushkurane laga," Neend mein hai.. he he!"

"haye Ram.. tum dono sare raaste aise hi aaye ho..?" Riya ne sharaarat se kaha aur Priya ko jor se jhakjhor diya..

Priya hadbadakar uthi toh sabse pahle Raj ki aur aascharya se dekha.. uski baanhe Raj ki gardan se lipati huyi thi.. aur Raj na hans raha tha.. na ro raha tha.. aisi haalat mein tha..

Wah sambhal bhi nahi payi thi ki apne pichhe se usko Priya aur Sneha ki khilkhilati aawaj sunayi di.. wo hadbadakar uth baithi.. uski chunni Raj ki janghon par padi thi.. usne jhat se usko sambhalte huye najar neeche kare huye hi kaha..," pahunch gaye kya..?"

"hum toh pahunch gaye.. tumhara pata nahi?" Sneha ne khilkhilate huye gadi se utarte huye kaha.. Riya pahle hi utar chuki thi..

Priya iss tarah gadi se utarkar Riya ke pichhe bhagi jaise pahle Raj ne usko jabardasti pakad rakha ho," kya hai.. neend mein thi.. bata nahi sakti thi kya..?"

Raj ne aage aakar khidki kholi aur Viru ko hilaya," uthh le bhai; aa gaye..!"

Viru ne uthte hi peechhe dekha," Sneha kahan hai?"

"gayi wo andar yaar.. itni fikar mat kar.. aaja!" Raj ne neeche utarne mein uski madad ki...

"pata nahi yaar.. mujhe sab gadbad lag raha hai.. Isko lene mohan bhi toh aa sakta tha.. aur fir itni Raat ko wahan lene jane ki kya jarurat thi.. Subah bhi toh aa sakta tha.. kuchh na kuchh toh baat jaroor hai.. tu Sneha ka dhyan rakhna...! main toh uske sath ghoom nahi paaunga jyada.." Virender ko khatre ki boo aani shuru ho gayi thi...

"chinta kyun karta hai yaar..? wo mohan ka hi dost hai.. Fir Sneha bhi koyi pagal toh nahi hai na..." Raj ne kaha...

"hummm.." Kahte huye Viru Raj ke sath andar ghus gaya..

" kitni pyari pyari ladkiyan hain sari..... lag raha hai jaise koyi soundarya pratiyogita hone wali hai ghar mein..." Anjali ne sabhi ko dularte huye kaha...," Mere paas bhi hai ek.. tumhare hi jaisi.. andar soyi padi hai.. subah milawaaungi.. abhi so jao... neeche hi sona padega.. sorry.. maine bister laga diye hain andar.. Ladke bahar so jayenge.. living room mein!"

"theek hai didi.. neeche toh aur maja aayega... hai na Priya?" Sneha anjali ka dular dekh kar baag baag ho gayi...

"haan.." Priya aur Riya ek sath bol padi...

"achchha bachcho.. main toh chalta hoon.. subah milenge..!" Tough ne nikalte huye kaha...

Raj aur viru bahar latekar so gaye....

"Ye sab koun hain didi?" Neend se jaagte hi Gouri ne Anjali ke paas kitchen mein akar poochha.

"Munh toh dhole pahle! Uthte hi tahqiqat shuru ho gayi teri.. Dekh mujhe school mein deri ho jayegi.. Tu jaldi se fresh hokar sabko jaga de.. Tab tak mein Nashta taiyaar kar deti hoon.. Jaldi karna.. Tu aisa kar aaj school se chhutti kar le.." Anjali ne kaam karte huye hi kaha...

"par batao toh Sahi... Aur kab aaye ye sab?" Gouri ne anjali ko peechhe se bahon mein bharte huye kaha..

"chhod mujhe.. Bata doongi.. Pahle mere kaam mein madad kar jara..!" Anjali ne apne aapko chhudate huye kaha..

Gouri living room mein aayi.. Raj aur viru ko gour se dekha aur bathroom mein ghus gayi...

"Arey Anjali di.. Mujhe na bula liya hota.. Lao chaku mujhe do!" Shivani Anjali ki baatein sunkar apne bedroom se aa gayi...

"Maine socha tumhe vicky ko bhi taiyaar karna hai school ke liye.. Isiliye.." Anjali kuchh kah hi rahi thi ki Shivani beech mein hi bol padi..," Main bhi subah dono ko dekhkar hairan rah gayi thi.. Ye kab aaye?"

"Raat ko 3 baje ke aaspaas aaye the.. Ajeet ke sath.. Meri toh abhi inse jaanpahchan bhi nahi huyi hai dhang se...!" Anjali ne aata goonthte huye jawab diya...

Bathroom se nikal kar Gouri ne Sneha ko jagaya," GudMorning!"

"Hi!" Sneha uth baithi!

"Kya naam hai tumhara?" Gouri ne uske paas baithte huye kaha..

"Sneha; aur aapka?"

"Gouri! Uthkar Fresh ho lo jaldi.. Mummy khana laga rahi hain..." Gouri auron ke Saamne Anjali ko mummy hi bolti thi...

"OK!" Sneha ne bathroom ka raasta poochha aur andar chali gayi...

"oye didi.. Ye dekho... Same to same!" Ek dusri ki aur munh kiye so rahi Priya aur Riya ko dekhkar Gouri khilkhilakar hans padi...

Riya ki aankh khul gayi.. Kabhi usko aur kabhi so rahi Priya ko abhi tak aascharya se dekh rahi Gouri ko dekhkar Riya ne khulasa kiya," Hum dono judwa bahne hain.. Main Riya aur ye priya.. Mujhse 8 minute chhoti.."

"ye toh kamaal ho gaya.. Judwan toh maine pahle bhi dekhe hain.. Par bilkul ek jaise kabhi nahi dekhe.. Waise main Gouri hoon..." Gouri ne apna parichay diya..

"aur wo jo bahar so rahe hain wo?" Gouri unke baare mein jaan'ne ko jyada utsuk thi...

"wo.. Wo toh Sneha ke bhai hain..Viru aur Raj..!" Riya ne unka parichay diya...

"aur tumhare?" Gouri ne yunhi poochh liya...

"hamare..? Hamare kuchh nahi.." kahkar Riya ne batteesi nikal di...

"Fir theek hai.. Ek baat toh hai.. Dono bahut sexy hain!" Gouri par masti chadhi huyi thi.. Jane kitne dino se.. Usko uski masti utaarne wala koyi mila hi nahi tha.. Dhang

ka...

"ek baat bolun?" Riya ne dheere se kaha..

"haan! Bolo?" utsuktavash gouri ne uski taraf kaan kar liye..

"uss.. Motu ko ye baat mat bolna..!" Riya ne darwaje mein se dikhayi de rahe virender ki taraf ungali karke kaha..

"kyun?" Gouri ne poochh hi liya...

"pagal hai.. Chappal nikal kar tumhare pichhe bhag lega.. he he he"

"hain... Sach mein..?" Gouri bhi hansne lagi...

"yakeen nahi aata toh karke dekh lena...."

tabhi Sneha bathroom se bahar aa gayi aur Riya chali gayi...

Sneha ne aakar Priya ko uthaya aur teeno idhar udhar ki baat karne lage...

Tabhi tough wahan aa gaya...," uth gaye tum log.. Maine socha intzaar karna padega.." Fir usne priya aur gouri ki aur ishara karke kaha," jao; jakar unko bhi utha do.. Mujhe Sneha se kuchh baat karni hai.. Bahar hi rahna.. Kuchh der..!"

dono chali gayi toh tough ne andar se kundi band kar li.. Sneha saham si gayi," Kya baat hai.. Ssir?"

"tumhe ye toh visvas ho hi gaya hoga ki main Mohan ka dost hoon..?"

"haan.. Par..!"

"par kya?"

" par aap aise kyun poochh rahe hain? Kahan hain wo.. Kab tak aa jayenge?" Sneha ne ek hi saans mein kayi sawaal poochh dale...

"dekho.. Meri baat dhyan se sun'na.. Kisi bhi pichhli baat ko yaad karke mayoos hone ki jarurat nahi hai.. Humne.. Jo kuchh bhi kiya hai.. Sab tumhari bhalayi ke liye..." Tough ne bhumika baandhni shuru ki...

"aap mujhe dara kyun rahe hain..? Sahi sahi bataiye na Mohan kab tak aa jayenge..." Sneha ko tough ki baaton ke andaj se bechaini si hone lagi...

"main kah tih raha hoon.. Tumhe jaan pyari hai ki nahi.." Tough jhunjhla utha..

Sahmi huyi Sneha ne 'haan' mein sir hila diya...

"jeena chahti ho na..?"

"jji.. Haan.. Magar Mohan..."

"koun Mohan? Kiska Mohan.. Tum meri baat hi nahi sun rahi ho.. Kab se kah raha hoon ki meri baat suno.. Meri baat suno.. Akal hai ya nahi.. " darasal tough samajh hi nahi pa raha tha ki vicky ka Raj Sneha ke saamne khole toh kaise khole.. Sneha khud itni najuk thi.. Uska dil kaisa hoga.. Kya sah payegi wo? Isi baat ne sari raat Tough ko sone nahi diya tha..," Dekho.. Thande dimag se suno.. Pls!" Tough ne yatha sambha samanya hone ki koshish ki...

"ji.... " Sneha bilkul chup ho gayi...

"darasal.. Wo.. Wo Mohan nahi hai... Jise tum mohan samajh rahi ho.."

sneha kuchh samajh hi nahi payi.. Mohan wo hai ya koyi aur.. Iss baat se usko kya lena dena... Wo toh uska intzaar kar rahi thi jisne uske jeewan ko ek nayi disha di.. Ek nayi roshni dikhayi.. Naam mein kya rakha hai.. Par jo koyi bhi wo tha, uska apna tha..," kahan hai wo...? Mujhe uske paas le chalo.. Pls main aapke hath jodti hoon..."

boukhla se gaye tough ne turant apni jeb se mini recorder nikala aur usko on kar diya.. Har wo baat jo vicky aur Murari ne thane mein ki thi.. Doharayi jane lagi:

"haan.. bol Murari!" Vicky ne Murari ko ghoora...

"tu toh mujhse bhi bada kamina nikla re.. seedhe matlab ki baat par aaja.. bata.. meri beti mujhe sounpne ka kya lega?" Murari ki aawaj mein gussa aur bebasi saaf jhalak rahi thi...

"wo multiplex!" vicky ne do took jawab diya..

" ja le le... badle mein Sneha mujhe mil jayegi na...." Murari ne kaha..

"maine kya uska aachar daalna hai? jahan chahe chali jaye.. mujhe kya? waise bhi main toh ladki ko ek baar hi use karta hoon...." Vicky ne cigarettee nikal kar sulga li...

"na.. na.. mujhe chahiye.. wo haramjadi... manjoor ho toh bolo..." Murari ka chehra nafrat aur kadwahat se bhar uthha...

" tujhe main bata doon ki wo tere paas rahna nahi chahti.. nafrat karti hai tujhse.. teri shakal bhi dekhna nahi chahti... .. bayan mein nahi hone doonga.. meri guarantee..fir tu kya karega uska ?" Vicky ne uski aankhon mein jhankte huye kaha..

Murari ki aankhein laal ho gayi.. nathune fool gaye aur kisi bhediye ki tarah gurrane laga," Uska wahi karronga jo uski maa ka kiya tha.. sali kutiya... behan chod.. usko nangi karke apne saamne chudwaaunga... fir jangli kutton ke aage daal dunga.. usne sari duniya ko bata hi diya ki wo meri aulad nahi hai... ek baar mujhe sounp de bus.. bol manjoor hai ki nahi...?"

Vicky ke jahan se ek lambi saans aah ke roop mein nikli.. kaisa hai Murari? Aadmi hai ya bhediya.. kuchh minute ke moun ke baad bola..," majoor hai.. ladki tumhe mil jayegi.. mujhe multiplex ke kagaj milne ke baad..."

"to fir milao hath.. tum apna fone do.. main abhi uske malik ko fone karta hoon.. tum chaho toh kal hi usko paise dekar multiplex apne naam karwa sakte ho..." Murari ne vicky ka hath apne hath main pakad liya...

vicky ne apna hath chhudwaya aur jor jor se hansne laga...," tu kya samajhta hai.. maine itni mehnat sirf tujhse no objection certificate lene ke liye ki hai.. nahi! wo toh main kabhi bhi uski kanpati par rivolver rakhkar khareed sakta tha... ab wo multiplex tu khareed kar mujhe dega.. yani paise tere honge.. aur maal mujhe milega..!"

"matlab tu samajhta hai ki main apne paas se tujhe 8 karod rupaiya doonga... ?" Murari ne hairat se uski aur dekha...

"8 nahi 10 karod.. aur mujhe pata hai ki tu dega.. kyunki 10 karod ganwane 10 saal jail mein kaatne se kahin jyada aasan hai tere liye.. 10 saalon mein toh tu pata nahi kitne 10 karod kama lega...!" Vicky ne katil muskaan Murari ki aur fainki...

Murari ne apna sir table par rakh liya aur kuchh der udhedbun mein pada raha... fir achanak uthkar bola," main sirf 8 karod doonga.. aur mujhe wo loundiya hath ke hath chahiye.. bol kab de sakta hai...?"

"jab tum chaho.. par abhi toh tumhari 14 din ki police custody hai na?" vicky ne Murari se sawaal kiya...

"tumhe jab chahe paise mil jayenge.. tum batao.. kab la sakte ho Sneha ko..?" Murari ne sawaal par sawaal mara...

" main baanke ko bata doonga...! sochkar.." Vicky ne ajjeb se andaj mein baanke ka naam liya...

"baanke... tum baanke ko kaise jaante ho?" Murari chounk kar uchhal pada....

"kyun hairani huyi na... Mujhe kidnap karne kuchh chooson ko sath lekar aaya tha.. abhi mere gusalkhane mein kaid hain teeno.. agar tum aaj nahi maante toh tum par ek case aur lagna tha.. " Vicky jor jor se hansne laga....

tabhi tough ne office mein pravesh kiya..," lagta hai kuchh soudebazi ho gayi tum dono ki...?"

"nahi.. inspector sahab.. hum dono mein kuchh galatfahmiyan thi.. jo aaj sath baithne se door ho gayi.. waise vicky ji kah rahe hain ki ye Sneha ko manane ki koshish karenge... apne bayan wapas lene ke liye.. kyun vicky ji?" Murari ne baat sapast ki...

Recording khatam hote hote Sneha ke aansuon ka dariya bhi sookh chuka tha. Apne ghutno ko mod kar unn par apna sir rakhe Sneha shunya ko ghoor rahi thi. Wah samajh hi nahi pa rahi thi ki ab kiski chhati par sir rakhkar roye. Uske armaan uski siskiyon mein dafan hote ja rahe the, pal bhar ko mili khushiyan umar bhar ke liye uske nadan aur tanha dil par kahar ban kar toot padi thi. Ab na kuchh sapno ka karwan sajane mein rakha tha, aur na hi na-ummedi ko darkinar kar nayi kiran dhoondhne mein. Chand minute pahle tak mohabbat ke noor se khila khila sa chehra ab apne wajood ko talash raha lagta tha.. Na wo Murari ki beti hai, Na wo Vicky ki mahbooba.. Mohan ka toh khud ka hi astitav nahi hai, uss'se ummeed kare bhi toh kya kare.....?

"ab ho gaya yakeen? Vicky ne shamsher bhai ke saamne apni mansha jahir kar di thi, isiliye maine ye baatein record kar li.. Par hamein iss baat ka guman tak nahi tha ki ye bhi ho sakta hai.. Shukra hai humein pahle hi pata lag gaya; tum bach gayi...." Tough ne uske kandhe par hath rakh diya.

"Sneha achanak hi fat padi," Kahan bach gayi main? Kya bach gayi? Kiske liye? .. Ye toh maine kabhi bhi nahi manga tha.. Bhagwan se... Aisa bhi hota hai kabhi..?" Sneha ki karah uski aawaj ke jariye tough ka kaleja cheer rahi thi..

"darasal... Vicky kaisa bhi hai.. Par dil ka utna bura nahi hai.. Ek baar uske sir se multiplex ka bhoot utar jane do.. Main khud bhi uss'se baat karunga.. Koshish karenge ki tum jindagi ke iss dorahe mein apna bhavishya nirdharit kar sako...."

Sneha bahut kuchh bolna chahti thi..Kahan hai doraha..? Wo toh ek aise gol ghere mein lakar khadi kar di gayi hai jiske charon aur aag hai.. Ab uske liye ek hi rasta bacha hai.. Uss aag mein koodkar khud ko swaha kar dena.. Haan.. Yahi ek rasta hai..

Par jaise uski juban par tala lag gaya ho... Bina kuchh bole hi hajaron sawalon mein ulajhi Baithi Sneha sivay subakne ke aur kar hi kya sakt thi..

Na.. Kuchh nahi!
Reply
11-26-2017, 02:02 PM,
#89
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --47

टफ उन्न सबको लेकर लोहरू पहुँचा तो सुबह के तीन बज चुके थे.. सभी नींद में लुढ़क चुके थे..

टफ ने अंजलि के घर के सामने रोकी और उनको सोता हुआ छ्चोड़कर आँगन से होता हुआ दरवाजे तक जा पहुँचा और जाते ही बेल बजाई..

अंजलि उनका ही वेट कर रही थी.. उसने तुरंत दरवाजा खोला," आ गयी...?"

"आ गयी नही भाभिजी.. आ गये! गाड़ी में पूरे 5 हैं..!"

"मतलब?.. तुम... वो क्या नाम है... स्नेहा को लेने गये थे ना?" अंजलि ने गाड़ी की और देखते हुए कहा..

"हां.. लेने तो स्नेहा को ही गया था.. पर क्या करता? वो अपने साथ दो और को ले आई और उन्न दो के साथ दो और आ गये?" टफ ने तपाक से उत्तर दिया," स्नेहा को हर हाल में लाना ज़रूरी था.. क्या करता?"

"पर यहाँ.. इतने सारे अड्जस्ट कैसे होंगे?... मेरा मतलब सिर्फ़ लिविंग रूम ही खाली है!" अंजलि ने कुच्छ सोचते हुए कहा...

"मुझे नही पता भाभी जी.. शमशेर ने मुझसे कहा था की मैं स्नेहा को आपके पास छ्चोड़ दूँ.. मेरा काम ख़तम.. अब आप उनसे ही बात करें!" टफ ने रूखा सा उत्तर दिया...

"अरे मैने ऐसा बोला है क्या?.. तुम तो इस तरह से कह रहे हो जैसे मैं खुश नही हूँ.. इनको अपने पास रखकर.. मेरा मतलब था कि....." अंजलि ने सफाई देने की कोशिश की तो टफ बीच में ही बोल पड़ा..," आप एक बार भाई साहब से बात क्यूँ नही कर लेती...? वो ही कुच्छ रास्ता निकलेंगे अब..."

"चलो ठीक है.. मैं उनसे बात कर लेती हूँ.. आप उनको अंदर तो ले आइए..."

"नही.. पहले आप बात कर लो.. मैं बच्चों की वजह से खुलकर बात ही नही कर पाया.. रास्ते में.." कहकर टफ ने फोन मिलाकर अंजलि को दे दिया...

"उठा ही नही रहे!" अंजलि ने कहा..

"एक बार फिर से ट्राइ करो ना.. सो रहे होंगे..!" टफ ने कहा...

इस बार शमशेर ने फोन उठा लिया," हां टफ.. पहुँच गये क्या?"

"हां.. पहुँच गये!" जवाब अंजलि ने दिया..

"कौन.. अंजलि?" शमशेर ने पूचछा..

"शुक्र है.. आवाज़ नही भूले!.. आ.. तुम तो कह रहे थे.. यहाँ कोई स्नेहा आने वाली है...?" अंजलि ने एक तरफ होते हुए कहा.. शमशेर की आवाज़ भर से उसके अरमान खिल से गये..

"तो.. स्नेहा नही आई क्या?" शमशेर ने चौक्ते हुए कहा...

"आई है.. आई है.. पर उसके साथ चार और हैं...!" अंजलि ने जवाब दिया..

"चार और??? वो कौन?" शमशेर का माथा ठनका...

" लो.. अजीत से ही पूच्छ लो..!" कहकर अंजलि ने वापस आकर फोन टफ को पकड़ा दिया..

"हां.. भाई..!"

" ये तू और किसको उठा लाया भाई?" शमशेर ने पूचछा..

" मुझे नही पता भाई.. मैने तो रास्ते भर कोई पूच्छ ताछ भी नही की.. कहीं डर ना जायें.. 2 को तो अपनी सहेलियाँ बता रही है.. और दो वो हैं.. जिनके पास विकी उसको छ्चोड़कर गया था... तुमने बोला था.. स्नेहा को हर हाल में लेकर आना है.. सो मैं ले आया..." टफ अपनी जगह पर सही था...

" चल.. कोई बात नही.. तू लड़को को अपने साथ ले जाएगा ना..?" शमशेर ने कहा...

"हां.. मुझे तो कोई प्राब्लम नही है.. पर अगर उनको वापस जाना ही होता तो वो वहीं पर ना रह जाते..?" टफ ने कहा...

"फिर तू ऐसा ही कर.. सुबह उनको रोहतक वाली बस में बैठा देना.. चले जाएँगे.. और 'वो' लड़कियाँ?? वो कौन हैं..? उनको भी आजकल में वापस भेज दे यार.. वो यहाँ कोई पिक्निक मनाने थोड़े ही आए हैं.. बाकी तू देख लेना.." शमशेर ने कहा...

"ठीक है भाई.. मैं देख लूँगा.. और कुच्छ..?" टफ ने कहा...

" वो रेकॉर्डिंग सुना देना स्नेहा को.. विकी और मुरारी वाली.. उसको ऐसे विस्वास ना हो शायद.. प्यार का मामला है..." शमशेर ने कहा...

"वो मैं सुबह ही सुनाउन्गा.. अब तो सो लेने दो बेचारी को.. सच में यार.. बहुत मासूम है बेचारी..!"

" वो तो मुझे विकी ने ही बता दिया था.... मैं सुबह विकी से बात करके उसको समझाने की कोशिश करूँगा.. चल ठीक है.. सुबह मुझे भी वापस चलना है.. अब सो लेता हूँ.." शमशेर ने कहा...

"ओके भाई.. मुझे भी नींद आ रही है.. मैं तो भाभी के पास जाकर सोऊगा.." टफ ने मज़ाक किया...

"तुझे लात पड़ेगी.. तब अकल आएगी.." शमशेर ने हंसते हुए कहा..

"मैं वो नही कह रहा भाई.. जो तू समझ रहा है.. मेरा मतलब था.. उनके घर जाकर..." टफ ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा...

"चल अब रख दे.. साला!" कहकर शमशेर ने फोन काट दिया...

"क्या कह रहे हैं", टफ की बात ख़तम होते ही अंजलि ने उसे टोका.

" सुबह मैं बाकी लोगों को वापस भेज दूँगा... पर अब रात भर के लिए तो कुच्छ ना कुच्छ करना ही पड़ेगा..." टफ ने अफ़सोस जाहिर करते हुए कहा..

" ठीक है.. मैं देखती हूँ.. तुम लेकर तो आओ सबको!" अंजलि ने जवाब दिया...

टफ ने जाकर राज को जगाया.. एक बार टोकते ही वो उंघता हुआ उठ बैठा," आ गये क्या?"

"हां.. आ गये.. सबको उठा कर अंदर ले आओ!" कहकर टफ वापस चला गया...

राज की नज़र सबसे पहले प्रिया पर पड़ी.. चाँद की चाँदनी में वो उसका ही प्रतिरूप लग रही थी.. गोल गोल छ्होटा सा प्यारा चेहरा; कितनी निसचिंत होकर सोई हुई थी.. रास्ते भर वो राज की साइड में बैठकर ही आई थी.. राज का मंन कयि बार उसको छ्छूने का हुआ था.. पर हर बार उसके दिमाग़ में वो बात कौंध जाती..," मैं तुम्हे अच्च्छा लड़का समझती थी.. और वो अपना हाथ वापस खींच लेता.. यूँही सोचते सोचते कब उसको नींद ने अपने आगोश में ले लिया, उसको पता ही नही चला था. उसको यकीन ही नही हो रहा था की प्रिया अब हर पल उसके साथ ही रहने वाली है... उसको वो इतना तडपा देगा कि वो खुद उसकी बाहों में आने के लिए तडपेगी.. और फिर वो उसको एक बार ज़रूर कहेगा," मैं तुम्हे ऐसी लड़की नही समझता था..". राज मन ही मन खिल उठा..

राज ने बड़े प्यार से उसके गालों पर हाथ लगाया," उठो प्रिया!"

प्रिया पर उसके छ्छूने का कोई असर दिखाई नही दिया..

"प्रिया.. उठो.. गाँव आ गया है.. अंदर चलना है..!" इश्स बार उसकी आवाज़ भी कुच्छ तेज थी और स्पर्श भी कुच्छ सख़्त.. पर नतीजा वही.. प्रिया गहरी नींद में थी..

प्रिया के रसीले होंठ बरबस ही उसको अपनी और खींच रहे थे... उसके होंठो को.. एक रसीले चुंबन के लिए.. राज ने बड़ी मुश्किल से खुद को कंट्रोल किया पर वह अपनी हथेली को ना रोक पाया.. उन्न नाज़ुक गुलाबी होंटो की छाप उसस्पर लेने से.. राज ने इस तरह उसका चेहरा अपने हाथ में लिया की होंठो ने हथेली को चूम लिया.. उसके लिए ये एक अविस्मरणीया अनुभव था.. होंटो से होंठो को छ्छू लेने की कल्पना जैसा ही मादक.. प्रिया नींद में ही उसकी और लुढ़क गयी.. उसका एक हाथ राज के कंधे पर था और उसका सिर राज की छाती पर टीका हुआ था.. राज की साँसे तेज हो गयी.. प्रिया के कोमल पर सुडौल वक्ष राज की बाँह से सटे हुए थे...

"प्रिया! उठो ना.." राज और सहन करने की स्थिति में नही था.. किसी भी पल उसका मन शरारत करने को मचल सकता था..

" उम्म्म्म.. अभी तो सोई थी.. थोडा और सोने दो ना मम्मी..!" कहकर प्रिया ने राज को अपनी और खींच लिया.. मानो अपने तकिये को अपने सिर के नीचे लगाने की कोशिश कर रही हो.. स्पर्श और अधिक आनंदकारी हो गया.. और अधिक कामुक.. प्रिया का चेहरा राज की गर्दन के साथ चिपका हुआ था.. होंठो ने बस राज को छ्छू ही लिया था..

प्रिया के शरीर में हुई हुलचल से उसके साथ बैठी स्नेहा जाग गयी.. जागते ही जब इस मनमोहक दृश्य को देखा तो वो अपनी हँसी ना रोक पाई.. उसने हाथ लगाकर रिया को जगा दिया.. रिया आँखें मसल्ते हुए उठ बैठी और वो भी राज और प्रिया को देखकर 'हाए राम' कह बैठी...

राज को लगा की जैसे वो बिना कुच्छ किए ही रंगे हाथों पकड़ा गया है.. उसने तपाक से प्रिया को स्नेहा की तरफ उच्छालने की कोशिश की.. पर प्रिया तो जैसे उस'से चिपकी हुई थी.. राज उसको अपने से अलग ना कर पाया..

राज ने रिया और स्नेहा को देखा और खिसियाया हुआ सा शर्मकार मुश्कूराने लगा," नींद में है.. हे हे!"

"हाए राम.. तुम दोनो सारे रास्ते ऐसे ही आए हो..?" रिया ने शरारत से कहा और प्रिया को ज़ोर से झकझोर दिया..

प्रिया हड़बड़कर उठी तो सबसे पहले राज की और आस्चर्य से देखा.. उसकी बाँहे राज की गर्दन से लिपटी हुई थी.. और राज ना हंस रहा था.. ना रो रहा था.. ऐसी हालत में था..

वह संभाल भी नही पाई थी की अपने पिछे से उसको प्रिया और स्नेहा की खिलखिलाती आवाज़ सुनाई दी.. वो हड़बड़कर उठ बैठी.. उसकी चुननी राज की जांघों पर पड़ी थी.. उसने झट से उसको संभालते हुए नज़र नीचे करे हुए ही कहा..," पहुँच गये क्या..?"

"हम तो पहुँच गये.. तुम्हारा पता नही?" स्नेहा ने खिलखिलाते हुए गाड़ी से उतरते हुए कहा.. रिया पहले ही उतर चुकी थी..

प्रिया इस तरह गाड़ी से उतरकर रिया के पिछे भागी जैसे पहले राज ने उसको ज़बरदस्ती पकड़ रखा हो," क्या है.. नींद में थी.. बता नही सकती थी क्या..?"

राज ने आगे आकर खिड़की खोली और वीरू को हिलाया," उठ ले भाई; आ गये..!"

वीरू ने उठते ही पीछे देखा," स्नेहा कहाँ है?"

"गयी वो अंदर यार.. इतनी फिकर मत कर.. आजा!" राज ने नीचे उतरने में उसकी मदद की...

"पता नही यार.. मुझे सब गड़बड़ लग रहा है.. इसको लेने मोहन भी तो आ सकता था.. और फिर इतनी रात को वहाँ लेने जाने की क्या ज़रूरत थी.. सुबह भी तो आ सकता था.. कुच्छ ना कुच्छ तो बात ज़रूर है.. तू स्नेहा का ध्यान रखना...! मैं तो उसके साथ घूम नही पाउन्गा ज़्यादा.." वीरेंदर को ख़तरे की बू आनी शुरू हो गयी थी...

"चिंता क्यूँ करता है यार..? वो मोहन का ही दोस्त है.. फिर स्नेहा भी कोई पागल तो नही है ना..." राज ने कहा...

"हूंम्म.." कहते हुए वीरू राज के साथ अंदर घुस गया..

" कितनी प्यारी प्यारी लड़कियाँ हैं सारी..... लग रहा है जैसे कोई सौंदर्या प्रतियोगिता होने वाली है घर में..." अंजलि ने सभी को दुलारते हुए कहा...," मेरे पास भी है एक.. तुम्हारे ही जैसी.. अंदर सोई पड़ी है.. सुबह मिलाववँगी.. अभी सो जाओ... नीचे ही सोना पड़ेगा.. सॉरी.. मैने बिस्तेर लगा दिए हैं अंदर.. लड़के बाहर सो जाएँगे.. लिविंग रूम में!"

"ठीक है दीदी.. नीचे तो और मज़ा आएगा... है ना प्रिया?" स्नेहा अंजलि का दुलार देख कर बाग बाग हो गयी...

"हां.." प्रिया और रिया एक साथ बोल पड़ी...

"अच्च्छा बच्चो.. मैं तो चलता हूँ.. सुबह मिलेंगे..!" टफ ने निकलते हुए कहा...

राज और वीरू बाहर लेटकर सो गये....

"ये सब कौन हैं दीदी?" नींद से जागते ही गौरी ने अंजलि के पास किचन में आकर पूचछा.

"मुँह तो धोले पहले! उठते ही तहक़ीक़ात शुरू हो गयी तेरी.. देख मुझे स्कूल में देरी हो जाएगी.. तू जल्दी से फ्रेश होकर सबको जगा दे.. तब तक में नाश्ता तैयार कर देती हूँ.. जल्दी करना.. तू ऐसा कर आज स्कूल से छुट्टी कर ले.." अंजलि ने काम करते हुए ही कहा...

"पर बताओ तो सही... और कब आए ये सब?" गौरी ने अंजलि को पीछे से बाहों में भरते हुए कहा..

"छ्चोड़ मुझे.. बता दूँगी.. पहले मेरे काम में मदद कर ज़रा..!" अंजलि ने अपने आपको छुड़ाते हुए कहा..

गौरी लिविंग रूम में आई.. राज और वीरू को गौर से देखा और बाथरूम में घुस गयी...

"अरे अंजलि दी.. मुझे ना बुला लिया होता.. लाओ चाकू मुझे दो!" शिवानी अंजलि की बातें सुनकर अपने बेडरूम से आ गयी...

"मैने सोचा तुम्हे विकी को भी तैयार करना है स्कूल के लिए.. इसीलिए.." अंजलि कुच्छ कह ही रही थी की शिवानी बीच में ही बोल पड़ी..," मैं भी सुबह दोनो को देखकर हैरान रह गयी थी.. ये कब आए?"

"रात को 3 बजे के आसपास आए थे.. अजीत के साथ.. मेरी तो अभी इनसे जानपहचान भी नही हुई है ढंग से...!" अंजलि ने आटा गूँथते हुए जवाब दिया...

बाथरूम से निकल कर गौरी ने स्नेहा को जगाया," गुडमॉर्निंग!"

"हाय!" स्नेहा उठ बैठी!

"क्या नाम है तुम्हारा?" गौरी ने उसके पास बैठते हुए कहा..

"स्नेहा; और आपका?"

"गौरी! उठकर फ्रेश हो लो जल्दी.. मम्मी खाना लगा रही हैं..." गौरी औरों के सामने अंजलि को मम्मी ही बोलती थी...

"ओके!" स्नेहा ने बाथरूम का रास्ता पूचछा और अंदर चली गयी...

"ओये दीदी.. ये देखो... सेम टू सेम!" एक दूसरी की और मुँह किए सो रही प्रिया और रिया को देखकर गौरी खिलखिलाकर हंस पड़ी...

रिया की आँख खुल गयी.. कभी उसको और कभी सो रही प्रिया को अभी तक आसचर्या से देख रही गौरी को देखकर रिया ने खुलासा किया," हम दोनो जुड़वा बहने हैं.. मैं रिया और ये प्रिया.. मुझसे 8 मिनिट छ्होटी.."

"ये तो कमाल हो गया.. जुड़वाँ तो मैने पहले भी देखे हैं.. पर बिल्कुल एक जैसे कभी नही देखे.. वैसे मैं गौरी हूँ..." गौरी ने अपना परिचय दिया..

"और वो जो बाहर सो रहे हैं वो?" गौरी उनके बारे में जान'ने को ज़्यादा उत्सुक थी...

"वो.. वो तो स्नेहा के भाई हैं..वीरू और राज..!" रिया ने उनका परिचय दिया...

"और तुम्हारे?" गौरी ने यूँही पूच्छ लिया...

"हमारे..? हमारे कुच्छ नही.." कहकर रिया ने बत्तीसी निकाल दी...

"फिर ठीक है.. एक बात तो है.. दोनो बहुत सेक्सी हैं!" गौरी पर मस्ती चढ़ि हुई थी.. जाने कितने दीनो से.. उसको उसकी मस्ती उतारने वाला कोई मिला ही नही था.. ढंग

का...

"एक बात बोलूं?" रिया ने धीरे से कहा..

"हां! बोलो?" उत्सुकतावश गौरी ने उसकी तरफ कान कर लिए..

"उस.. मोटू को ये बात मत बोलना..!" रिया ने दरवाजे में से दिखाई दे रहे वीरेंदर की तरफ उंगली करके कहा..

"क्यूँ?" गौरी ने पूच्छ ही लिया...

"पागल है.. चप्पल निकाल कर तुम्हारे पिछे भाग लेगा.. हे हे हे"

"हैं... सच में..?" गौरी भी हँसने लगी...

"यकीन नही आता तो करके देख लेना...."

तभी स्नेहा बाथरूम से बाहर आ गयी और रिया चली गयी...

स्नेहा ने आकर प्रिया को उठाया और तीनो इधर उधर की बात करने लगे...

तभी टफ वहाँ आ गया...," उठ गये तुम लोग.. मैने सोचा इंतज़ार करना पड़ेगा.." फिर उसने प्रिया और गौरी की और इशारा करके कहा," जाओ; जाकर उनको भी उठा दो.. मुझे स्नेहा से कुच्छ बात करनी है.. बाहर ही रहना.. कुच्छ देर..!"

दोनो चली गयी तो टफ ने अंदर से कुण्डी बंद कर ली.. स्नेहा सहम सी गयी," क्या बात है.. सर?"

"तुम्हे ये तो विस्वास हो ही गया होगा की मैं मोहन का दोस्त हूँ..?"

"हां.. पर..!"

"पर क्या?"

" पर आप ऐसे क्यूँ पूच्छ रहे हैं? कहाँ हैं वो.. कब तक आ जाएँगे?" स्नेहा ने एक ही साँस में काई सवाल पूच्छ डाले...

"देखो.. मेरी बात ध्यान से सुन'ना.. किसी भी पिच्छली बात को याद करके मायूस होने की ज़रूरत नही है.. हमने.. जो कुच्छ भी किया है.. सब तुम्हारी भलाई के लिए..." टफ ने भूमिका बाँधनी शुरू की...

"आप मुझे डरा क्यूँ रहे हैं..? सही सही बताइए ना मोहन कब तक आ जाएँगे..." स्नेहा को टफ की बातों के अंदाज से बेचैनी सी होने लगी...

"मैं कह तो रहा हूँ.. तुम्हे जान प्यारी है की नही.." टफ झुंझला उठा..

सहमी हुई स्नेहा ने 'हां' में सिर हिला दिया...

"जीना चाहती हो ना..?"

"ज्जई.. हां.. मगर मोहन..."

"कौन मोहन? किसका मोहन.. तुम मेरी बात ही नही सुन रही हो.. कब से कह रहा हूँ की मेरी बात सुनो.. मेरी बात सुनो.. अकल है या नही.. " दरअसल टफ समझ ही नही पा रहा था कि विकी का राज स्नेहा के सामने खोले तो कैसे खोले.. स्नेहा खुद इतनी नाज़ुक थी.. उसका दिल कैसा होगा.. क्या सह पाएगी वो? इसी बात ने सारी रात टफ को सोने नही दिया था..," देखो.. ठंडे दिमाग़ से सुनो.. प्लीज़!" टफ ने यथा संभव सामानया होने की कोशिश की...

"जी.... " स्नेहा बिल्कुल चुप हो गयी...

"दरअसल.. वो.. वो मोहन नही है... जिसे तुम मोहन समझ रही हो.."

स्नेहा कुच्छ समझ ही नही पाई.. मोहन वो है या कोई और.. इस बात से उसको क्या लेना देना... वो तो उसका इंतज़ार कर रही थी जिसने उसके जीवन को एक नयी दिशा दी.. एक नयी रोशनी दिखाई.. नाम में क्या रखा है.. पर जो कोई भी वो था, उसका अपना था..," कहाँ है वो...? मुझे उसके पास ले चलो.. प्लीज़ मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ..."

बौखला से गये टफ ने तुरंत अपनी जेब से मिनी रेकॉर्डर निकाला और उसको ऑन कर दिया.. हर वो बात जो विकी और मुरारी ने थाने में की थी.. दोहराई जाने लगी:

"हां.. बोल मुरारी!" विकी ने मुरारी को घूरा...

"तू तो मुझसे भी बड़ा कमीना निकला रे.. सीधे मतलब की बात पर आजा.. बता.. मेरी बेटी मुझे सौंपने का क्या लेगा?" मुरारी की आवाज़ में गुस्सा और बेबसी सॉफ झलक रही थी...

"वो मल्टिपलेक्स!" विकी ने दो टुक जवाब दिया..

" जा ले ले... बदले में स्नेहा मुझे मिल जाएगी ना...." मुरारी ने कहा..

"मैने क्या उसका आचार डालना है? जहाँ चाहे चली जाए.. मुझे क्या? वैसे भी मैं तो लड़की को एक बार ही यूज़ करता हूँ...." विकी ने सिगरेट निकाल कर सुलगा ली...

"ना.. ना.. मुझे चाहिए.. वो हरम्जदि... मंजूर हो तो बोलो..." मुरारी का चेहरा नफ़रत और कड़वाहट से भर उठा...

" तुझे मैं बता दूँ कि वो तेरे पास रहना नही चाहती.. नफ़रत करती है तुझसे.. तेरी शकल भी देखना नही चाहती... .. बयान में नही होने दूँगा.. मेरी गॅरेंटी..फिर तू क्या करेगा उसका ?" विकी ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा..

मुरारी की आँखें लाल हो गयी.. नथुने फूल गये और किसी भेड़िए की तरह गुर्राने लगा," उसका वही कर्रून्गा जो उसकी मा का किया था.. साली कुतिया... बेहन चोद.. उसको नंगी करके अपने सामने चुदवाउन्गा... फिर जंगली कुत्तों के आगे डाल दूँगा.. उसने सारी दुनिया को बता ही दिया की वो मेरी औलाद नही है... एक बार मुझे सौंप दे बस.. बोल मंजूर है की नही...?"

विकी के जहाँ से एक लंबी साँस आह के रूप में निकली.. कैसा है मुरारी? आदमी है या भेड़िया.. कुच्छ मिनिट के मौन के बाद बोला..," मजूर है.. लड़की तुम्हे मिल जाएगी.. मुझे मल्टिपलेक्स के कागज मिलने के बाद..."

"तो फिर मिलाओ हाथ.. तुम अपना फोन दो.. मैं अभी उसके मालिक को फोन करता हूँ.. तुम चाहो तो कल ही उसको पैसे देकर मल्टिपलेक्स अपने नाम करवा सकते हो..." मुरारी ने विकी का हाथ अपने हाथ मैं पकड़ लिया...

विकी ने अपना हाथ च्छुडवाया और ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा...," तू क्या समझता है.. मैने इतनी मेहनत सिर्फ़ तुझसे नो ऑब्जेक्षन सर्टिफिकेट लेने के लिए की है.. नही! वो तो मैं कभी भी उसकी कनपटी पर रिवॉल्वेर रखकर खरीद सकता था... अब वो मल्टिपलेक्स तू खरीद कर मुझे देगा.. यानी पैसे तेरे होंगे.. और माल मुझे मिलेगा..!"

"मतलब तू समझता है की मैं अपने पास से तुझे 8 करोड़ रुपैया दूँगा... ?" मुरारी ने हैरत से उसकी और देखा...

"8 नही 10 करोड़.. और मुझे पता है की तू देगा.. क्यूंकी 10 करोड़ गँवाने 10 साल जैल में काटने से कहीं ज़्यादा आसान है तेरे लिए.. 10 सालों में तो तू पता नही कितने 10 करोड़ कमा लेगा...!" विकी ने कातिल मुस्कान मुरारी की और फैंकी...

मुरारी ने अपना सिर टेबल पर रख लिया और कुच्छ देर उधेड़बुन में पड़ा रहा... फिर अचानक उठकर बोला," मैं सिर्फ़ 8 करोड़ दूँगा.. और मुझे वो लौंडिया हाथ के हाथ चाहिए.. बोल कब दे सकता है...?"

"जब तुम चाहो.. पर अभी तो तुम्हारी 14 दिन की पोलीस कस्टडी है ना?" विकी ने मुरारी से सवाल किया...

"तुम्हे जब चाहे पैसे मिल जाएँगे.. तुम बताओ.. कब ला सकते हो स्नेहा को..?" मुरारी ने सवाल पर सवाल मारा...

" मैं बांके को बता दूँगा...! सोचकर.." विकी ने अजीब से अंदाज में बांके का नाम लिया...

"बांके... तुम बांके को कैसे जानते हो?" मुरारी चौंक कर उच्छल पड़ा....

"क्यूँ हैरानी हुई ना... मुझे किडनॅप करने कुच्छ चूजो को साथ लेकर आया था.. अभी मेरे गुसलखाने में क़ैद हैं तीनो.. अगर तुम आज नही मानते तो तुम पर एक केस और लगना था.. " विकी ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा....

तभी टफ ने ऑफीस में प्रवेश किया..," लगता है कुच्छ सौदेबाज़ी हो गयी तुम दोनो की...?"

"नही.. इनस्पेक्टर साहब.. हम दोनो में कुच्छ ग़लतफ़हमियाँ थी.. जो आज साथ बैठने से दूर हो गयी.. वैसे विकी जी कह रहे हैं की ये स्नेहा को मानने की कोशिश करेंगे... अपने बयान वापस लेने के लिए.. क्यूँ विकी जी?" मुरारी ने बात सपस्ट की...

रेकॉर्डिंग ख़तम होते होते स्नेहा के आँसुओं का दरिया भी सूख चुका था. अपने घुटनो को मोड़ कर उन्न पर अपना सिर रखे स्नेहा शुन्य को घूर रही थी. वह समझ ही नही पा रही थी की अब किसकी छाती पर सिर रखकर रोए. उसके अरमान उसकी सिसकियों में दफ़न होते जा रहे थे, पल भर को मिली खुशियाँ उमर भर के लिए उसके नादान और तन्हा दिल पर कहर बन कर टूट पड़ी थी. अब ना कुच्छ सपनो का कारवाँ सजाने में रखा था, और ना ही ना-उम्मेदि को दरकिनार कर नयी किरण ढूँढने में. चंद मिनिट पहले तक मोहब्बत के नूर से खिला खिला सा चेहरा अब अपने वजूद को तलाश रहा लगता था.. ना वो मुरारी की बेटी है, ना वो विकी की महबूबा.. मोहन का तो खुद का ही अस्तिताव नही है, उस'से उम्मीद करे भी तो क्या करे.....?

"अब हो गया यकीन? विकी ने शमशेर भाई के सामने अपनी मंशा जाहिर कर दी थी, इसीलिए मैने ये बातें रेकॉर्ड कर ली.. पर हमें इस बात का गुमान तक नही था कि ये भी हो सकता है.. शुक्र है हूमें पहले ही पता लग गया; तुम बच गयी...." टफ ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया.

"स्नेहा अचानक ही फट पड़ी," कहाँ बच गयी मैं? क्या बच गयी? किसके लिए? .. ये तो मैने कभी भी नही माँगा था.. भगवान से... ऐसा भी होता है कभी..?" स्नेहा की कराह उसकी आवाज़ के ज़रिए टफ का कलेजा चीर रही थी..

"दरअसल... विकी कैसा भी है.. पर दिल का उतना बुरा नही है.. एक बार उसके सिर से मल्टिपलेक्स का भूत उतर जाने दो.. मैं खुद भी उस'से बात करूँगा.. कोशिश करेंगे की तुम जिंदगी के इस दोराहे में अपना भविश्य निर्धारित कर सको...."

स्नेहा बहुत कुच्छ बोलना चाहती थी..कहाँ है दोराहा..? वो तो एक ऐसे गोल घेरे में लाकर खड़ी कर दी गयी है जिसके चारों और आग है.. अब उसके लिए एक ही रास्ता बचा है.. उस आग में कूदकर खुद को स्वाहा कर देना.. हां.. यही एक रास्ता है..

पर जैसे उसकी ज़ुबान पर ताला लग गया हो... बिना कुच्छ बोले ही हज़ारों सवालों में उलझी बैठी स्नेहा सिवाय सुबकने के और कर ही क्या सकती थी..

ना.. कुच्छ नही!
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11-26-2017, 02:03 PM,
#90
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --48

"जब तक कोई रास्ता नही निकल जाता, तुम यहीं रहना.. किसी बात की चिंता मत करो.. हम सब तुम्हारे साथ हैं.. ये लो.. मेरा और शमशेर भाई का नंबर. ! कोई भी ज़रूरत पड़े तो फोन कर लेना.. ठीक है?" कहकर टफ वहाँ से उठ गया.. और वो कर भी क्या सकता था.. इस'से ज़्यादा!

बाहर निकल कर टफ वीरेंदर के पास जा बैठा और बाकी तीनो को अपने पास बुलाया.. राज आकर वीरू के साथ ही बैठ गया जबकि दोनो लड़कियाँ खड़ी थी... किसी को भी अब तक स्नेहा पर पहाड़ टूट पड़ने की भनक नही थी..

टफ प्रिया और रिया से मुखातिब हुआ," तुम दोनो स्नेहा के पास कैसे आई?"

"व..वो हम उसकी सहेलियाँ हैं.. उस'से मिलने आई थी.." रिया ने तपाक से झूठ बोला...

"मिल ली?" टफ का अगला सवाल था...

"हाँ.. मगर..!" रिया ने कुच्छ बोलना चाहा..

"मगर क्या? क्या तुम्हारे घर वालों को खबर है कि तुम इस वक़्त कहाँ हो..?" टफ ने दोनो से सवाल किया..

इस बात पर प्रिया चिंतित होकर बगले झाँकने लगी.. पर रिया ने हिम्मत ना हारी..," हां.. पता है उनको.. सब पता है.. और क्या हम भाग कर आए हैं..?" रिया ने बत्तीसी निकाल कर टफ की बात का जवाब दिया..

" लाओ.. मुझे उनका नंबर. दो.. मैं उनसे बात कर लूँ ज़रा.. अगर उनको कोई ऐतराज ना हो तो तुम कुच्छ दिन और स्नेहा के पास रुक जाना.." टफ ने अपना मोबाइल निकालते हुए कहा..

" नही.. वो.. हमने बात कर ली थी.. उनको कोई ऐतराज नही है.. चाहे हम कितने भी दिन रुकें.. स्नेहा के साथ.." रिया ने वीरू की ओर मुँह चिढ़ाते हुए कहा.. वीरू काफ़ी देर से उसी को घूर रहा था...

" मुझे नंबर. तो दे दो! मैं बात कर लेता हूँ.. क्या हर्ज़ है.." टफ ने फिर उस'से कॉंटॅक्ट नंबर. माँगा..

" पर घर का नंबर. तो है ही नही.. मम्मी ने तो एसटीडी से बात करी थी.. शाम को.." रिया तब तक संभाल चुकी थी...

"तुम चलने की तैयारी करो.. मैं तुम्हे भिवानी से बस मैं बैठा देता हूँ.." टफ ने राज और वीरू से कहा," यहाँ सबके रहने में दिक्कत आएगी... सॉरी!"

राज और वीरू एक दूसरे का मुँह ताकने लगे.. अब दूसरे के घर पर ज़बरदस्ती रहते भी तो कैसे.. राज ने अपना चेहरा घूमाकर प्रिया की ओर देखा.. वो आँखों ही आँखों में उस'से वहीं रुक जाने की प्रार्थना कर रही थी.. पर राज भी क्या करता बेचारा...

वीरू ने स्टिक के सहारे खड़ा होते हुए कहा," ठीक है.. मैं ज़रा स्नेहा से बात कर लूँ.. कहाँ है वो..?"

" अंदर है.. ठहरो.. मैं यहीं बुलाकर लाता हूँ.. " कहकर टफ अंदर चला गया...

स्नेहा यूँही बैठी थी.. जैसा टफ उसको बाहर निकलते हुए छ्चोड़कर गया था.. शुन्य को निहारते हुए..," देखो स्नेहा.. यहाँ किसी के सामने कुच्छ भी जाहिर मत करना.. बात पता नही कहाँ की कहाँ निकल जाती है.. तुम्हारी सहेलियाँ अभी वापस जाने से मना कर रही हैं.. उन्हे यहीं रहने दूँ.. एक आध दिन..? तुम्हारा मंन भी लग जाएगा..!"

स्नेहा ने कोई जवाब नही दिया.. बस पलकें उठाकर एक बार टफ को देखा और फिर से नीचे देखने लगी...

" दोनो लड़के जा रहे हैं.. आज ही.. अपना मुँह धो लो और एक बार बाहर आकर उनसे बात कर लो.. ऐसे मुँह क्यूँ लटकाए बैठी हो.. मैं कह रहा हूँ ना.. तुम्हे कुच्छ नही होगा.. आओ.. उठो" कहते हुए टफ ने उसको खड़ी कर दिया.. वह ऐसे बाथरूम क़ी ओर चल दी जैसे उसके पैरों में जान बची ही ना हो...

स्नेहा अपना चेहरा धोकर बाहर आई.. गालों पर आसुओं के निशान मिट गये पर दिल पर लगे घावों की परच्छाई और गाढ़ी हो गयी.. वह यूँ ही चलते चलते बेडरूम से बाहर निकली.. और वीरू और राज को देखते ही फिर से फुट फुट कर रोने लगी.. क्या ये भी कुच्छ 'पल' के ही भाई थे?

"क्या हुआ स्नेहा?" वीरू का ऐसा बोलना था की स्नेहा का करूँ क्रंदान और तेज हो गया.. सभी बेचैनी से उसकी और देखने लगे... टफ ने उसको ऐसा क्या बता दिया?

स्नेहा रोती हुई वीरू के सामने जाकर खड़ी हुई.. एक पल के लिए उसकी निगाहों में झाँका.. और फिर उसकी छाती से जा लिपटी," भैयाअ!"

वीरू की निगाहों में उसके लिए अब भी वैसा ही लावण्य था.. वैसा ही प्रेम! वो बादल की तरह पल पल रूप बदलने वालों में से नही था..

"पगली.. रो क्यूँ रही है..? हम फिर आ जाएँगे मिलने.. मिलते रहेंगे.. मोहन को बोल देना.. हर हफ्ते हमसे मिलाने लाया करे.. चुप हो जा.. पागल!" वीरू ने उसके गालों से आँसू पौंचछते हुए कहा...

मोहन का नाम वीरू की ज़ुबान पर आते ही स्नेहा यूँ बिलख पड़ी जैसे किसी ने उसकी वीना के तारों को बेदर्दी दे तोड़ दिया हो..," तुम मत जाओ भैया.. मैं मर जाउन्गि.. प्लीज़.. तुम तो मत जाओ छ्चोड़कर...!" स्नेहा ने नज़रें उठाकर वीरू से गुहार लगाई..

"हम स्नेहा को अपने साथ ही ले जाएँगे.. इसको कुच्छ नही होगा.. मेरा वादा है आपसे..." वीरू ने टफ की और देखते हुए कहा...

टफ बिना कुच्छ बोले बाहर निकल गया.. उसकी समझ में कुच्छ नही आ रहा था.. उसने शमशेर का नंबर. मिलाया..

"हां.. टफ.. बोलो..!" शमशेर ने फोन उठाते ही कहा..

"भाई.. यहाँ तो.. मेरी समझ में कुच्छ नही आ रहा.. ना तो वो लड़कियाँ जाने को तैयार हैं.. और ना स्नेहा उन्न लड़कों को जाने देना चाहती.. बताओ मैं क्या करूँ.. मुझसे स्नेहा का रोना भी देखा नही जा रहा.. कहो तो मैं इन्न सबको भिवानी ले जाउ? वही कर देता हूँ.. सबका रहने का...." टफ वाकई में परेशान लग रहा था...

"हूंम्म.. एक मिनिट.. अंजलि कहाँ है..?" शमशेर ने पूचछा...

"किचन में होगी..!" टफ ने अंदर की और झाँकते हुए कहा..

"बात कराना एक बार..." शमशेर ने टफ से कहा...

"एक मिनिट.." कहकर टफ अंदर गया...," भाभी जी.. एक मिनिट बाहर आना.."

अंजलि बाहर आ गयी..

"लो बात करो.. शमशेर भाई से.." कहकर टफ ने फोन अंजलि को दे दिया..

"हां शाम...." अंजलि नाम लेते लेते बीच में ही रुक गयी...

"तुम आज कल में कोई स्कूल का टूर अरेंज नही कर सकती; 5-7 दिन के लिए...?" शमशेर ने अंजलि से पूचछा..

" आज-कल में? पर अगले महीने से बच्चों के टर्म एक्षाम हैं.. ऐसे में कौन जाएगा...? पर ये टूर का विचार कैसे आया..?" अंजलि ने सफाई देते हुए सवाल पूचछा...

" कोई जाए.. ना जाए.. पर बहुत ज़रूरी है.. इन्न बच्चों के लिए.. स्नेहा का मंन भी लग जाएगा.. बेचारी बहुत परेशान है.. दिशा और वाणी हो जाएँगी.. गौरी है.. बच्चे तो हो जाएँगे.. तुम किसी भी तरह से ये काम कर लो.. प्लीज़!" शमशेर ने विनयपूर्ण अर्थों में अंजलि से कहा...

" क्यूँ शर्मिंदा कर रहे हो..? हो जाएगा.. और बोलो..!" अंजलि ने शमशेर से कहा...

" थॅंक्स अंजलि.. अब सब ठीक हो जाएगा...! रियली थॅंक्स.." शमशेर ने अंजलि का धन्यवाद किया...

"थॅंक्स से काम नही चलेगा.." अंजलि ने एक तरफ होते हुए कहा..," तुम्हे भी चलना पड़ेगा.. आज आ रहे हो ना...!" अंजलि ने मुस्कुराते हुए कहा...

" मैं क्या करूँगा.. चलकर.. टूर से ही तो लौट रहा हूँ..!"

"तुमसे कुच्छ हिसाब किताब बाकी है.. पुराना.. चलना तो तुम्हे पड़ेगा ही.." कहकर मुस्कुराते हुए अंजलि ने फोन काट दिया और वापस आते हुए टफ को दे दिया," तुम फिकर ना करो.. आराम से खाना खाओ और चले जाओ.. मैं संभाल लूँगी...!" अंजलि ने मुस्कुराते हुए कहा...

स्कूल-ट्रिप की बात सुनकर सभी के चेहरे खिल गये... सभी खुशी से झूम उठे.. सिवाय एक चेहरे के.. उसकी मुस्कान तो अब मोहन ही वापस ला सकता था.. जिसका वजूद ही इश्स दुनिया में नही था कहीं...

टफ ने सभी के साथ नाश्ता किया.. स्नेहा को भी ज़बरदस्ती एक आध टुक खिलाया और सबको बाइ बोलकर चला गया...

सुबह उठते ही प्रिया की मम्मी की चीख निकल गयी.. उसने पूरा घर छान मारा था पर दोनो में से कोई भी दिखाई नही दी.. उपर ताला लगा हुआ था.. वह हड़बड़ाई हुई बेडरूम में आई," वो दोनो कहाँ हैं जी?"

"कौन दोनो?" विजेंदर ने लेटे लेटे ही पूचछा..

"पप्रिया.. और रिया?"

जवान बेटियों के बारे में ऐसा सुनते ही विजेंदर अपने घुटने के दर्द को भूल कर बिस्तेर से उच्छल पड़ा और खड़ा हो गया," कहाँ हैं? .. क्या हुआ?"

" दोनो में से कोई भी घर पर नही है जी.. कहाँ गयी मेरी बच्चियाँ..?" मम्मी दहाड़ मारकर रोने लगी..

"चुप करो.. सारे मोहल्ले को सूनाओगी क्या अब? ढॉनढो उनको.. नही तो कहीं मुँह दिखाने के लायक नही रहेंगे.. मैं पहले ही कहता था.. इन्न पर नज़र रखा करो..! बाथरूम में देखा है?" विजेंदर ने उसको चुप रहने का इशारा करते हुए कहा...

"देख लिया जी.. हर जगह देख लिया.. मैं तो उपर भी देख आई.. कहाँ गयी मेरी बच्चियाँ...?" मम्मी का रोना कम ना हुआ...

"ये सब तुम्हारे ही लाड़ प्यार का नतीजा है.. भुग्तो अब..!" विजेंदर ने झल्लाते हुए कहा...

"लाड प्यार से कोई घर से दूर नही जाता जी.. तुमने ही हर जगह उन्न पर पहरा लगवा दिया था.. जाने कहाँ चली गयी.. आपसे इतना डरती थी.. " मम्मी रोती रही...

"अब चुप भी करो.. आस पड़ोस में जिकर मत करना.. इज़्ज़त के चिथड़े ऊड जाएँगे हमारी.. फोन वोन आए तो प्यार से बुला लेना उनको.. मैं कुच्छ नही कहूँगा... पता नही आजकल के बच्चे.. कहाँ गयी होंगी हरामखोर..?" विजेंदर की कुच्छ समझ में नही आ रहा था.. क्या करें.. क्या ना करें.. वो अपना सिर पकड़ कर बेड पर बैठ गया.......

----------------------------------------

विकी सुबह करीब 9 बजे वीरू और राज के कमरे पर पहुँचा.. कमरे पर टला लगा देख उसका माथा ठनक गया.. कुच्छ सोचते हुए वह बाहर निकला और रोड पर खड़ी अपनी गाड़ी में बैठ गया और बैठते ही उसने राज का नंबर. डाइयल किया..

"हेलो.. मोहन भाई साहब?" राज ने फोन उठाते ही पूचछा...

" हां.. कहाँ हो यार? तुम्हारे रूम पर तो ताला लगा है!" विकी ने पूचछा...

"हम तो यहाँ आ चुके हैं... लोहरू! आप वहाँ क्यूँ गये?" राज ने सहज भाव से पूचछा..

"लोहरू????? वहाँ क्या लेने गये हो यार तुम.. मैने कहा तो था.. मैं सुबह अपने आप ले जाउन्गा..." विकी झल्ला उठा.. वह पहले ही लेट हो रहा था.. डील का टाइम होने वाला था..

"पर आपने ही तो अजीत भाई साहब को भेजा था.. स्नेहा को लेने.. हम भी आ गये साथ ही..." राज ने जवाब दिया...

"अजीत?? कौन अजी.. ओह शिट.. टफ?" विकी को सब किए कराए पर पानी फिरता नज़र आने लगा..

"कौन टफ?" राज की आवाज़ उभरी...

" खैर छ्चोड़ो... अभी कहाँ है वो?.. अजीत?" विकी ने बात को संभालते हुए पूचछा...

"वो तो चले गये.. अभी आधा घंटा पहले ही निकले हैं..."

"कोई बात नही.. स्नेहा कहाँ है...?" विकी ने पूचछा...

"वो अंदर लेटी है.. उसकी तबीयत ठीक नही है..." राज ने जानबूझ कर ये नही बताया की वो बहुत रोई है.. वो किसी भी हालत में स्कूल ट्रिप मिस नही करना चाहते थे...

"वैसे तो सब ठीक है ना.. मतलब.. !" विकी बोलता हुआ अचानक रुक गया.. उसके फोन पर बांके की कॉल आ रही थी..

" हां.. सब ठीक है.." राज की तरफ से जवाब आया..

"अच्च्छा.. मैं 2 मिनिट के बाद फोन करता हूँ.. तुम स्नेहा को फोन दे आओ.. मुझे उस'से कुच्छ बात करनी है.. अकेले में..!" विकी ने कहा..

"अच्च्छा भाई साहब!" कहकर राज ने फोन काट दिया...

विकी ने बांके के पास फोन मिलाया..," हां बोल!"

"माल तैयार हैं.. कब आना है?" उधर से आवाज़ आई...

" कितने हैं?" विकी ने पूचछा...

" पूरे हैं.. 8! लड़की साथ लाना...." बांके ने कहा...

" हूंम्म.. पर मैने जगह बदल दी है... पहले वाली जगह कॅन्सल!"

"क्यूँ?" बांके ने सवाल किया..

" लड़की वहाँ नही है जहाँ थी.. अब मुझे उसको लाना पड़ेगा.. तुम भिवानी के पास पहुँचो... मैं 3 घंटे बाद.. उसके आस पास ही कहीं बुलाउन्गा.."

"ठीक है.. पर वो जगह तो फाइनल होगी ना..." बांके ने फिर पूचछा...

विकी ने बिना सुने ही फोन काट दिया और राज का नंबर. डाइयल किया...

साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,

मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..

मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,

बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ

आपका दोस्त

राज शर्मा

(¨`·.·´¨) ऑल्वेज़

`·.¸(¨`·.·´¨) कीप लविंग &

(¨`·.·´¨)¸.·´ कीप स्माइलिंग !

`·.¸.·´ -- राज

girls school-48

"Jab tak koyi rasta nahi nikal jata, tum yahin rahna.. kisi baat ki chinta mat karo.. hum sab tumhare sath hain.. ye lo.. mera aur Shamsher bhai ka no. ! koyi bhi jarurat pade toh fone kar lena.. theek hai?" Kahkar tough wahan se uth gaya.. aur wo kar bhi kya sakta tha.. iss'se jyada!

Bahar nikal kar tough Virender ke paas ja baitha aur baki teeno ko apne paas bulaya.. Raj aakar viru ke sath hi baith gaya jabki dono ladkiyan khadi thi... kisi ko bhi ab tak Sneha par pahad toot padne ki bhanak nahi thi..

Tough Priya aur Riya se mukhatib hua," tum dono Sneha ke paas kaise aayi?"

"w..wo hum uski saheliyan hain.. uss'se milne aayi thi.." Riya ne tapak se jhooth bola...

"mil li?" Tough ka agla sawaal tha...

"Haan.. magar..!" Riya ne kuchh bolna chaha..

"Magar kya? kya tumhare ghar walon ko khabar hai ki tum iss waqt kahan ho..?" Tough ne dono se sawaal kiya..

Iss baat par Priya chintit hokar bagle jhankne lagi.. par Riya ne himmat na hari..," haan.. pata hai unko.. sab pata hai.. aur kya hum bhag kar aaye hain..?" Riya ne batteesi nikal kar tough ki baat ka jawaab diya..

" Lao.. mujhe unka no. do.. main unse baat kar loon jara.. agar unko koyi aitraaj na ho toh tum kuchh din aur Sneha ke paas ruk jana.." Tough ne apna mobile nikalte huye kaha..

" Nahi.. wo.. humne baat kar li thi.. unko koyi aitraaj nahi hai.. chahe hum kitne bhi din rukein.. Sneha ke sath.." Riya ne viru ki aur munh chidhate huye kaha.. Viru kafi der se usi ko ghoor raha tha...

" Mujhe no. toh de do! main baat kar leta hoon.. kya harz hai.." Tough ne fir uss'se contact no. manga..

" par ghar ka no. toh hai hi nahi.. mummy ne toh STD se baat kari thi.. Sham ko.." Riya tab tak sambhal chuki thi...

"tum chalne ki taiyari karo.. main tumhe bhiwani se bus main baitha deta hoon.." tough ne Raj aur viru se kaha," yahan sabke Rahne mein dikkat aayegi... sorry!"

Raj aur viru ek dusre ka munh taakne lage.. ab dusre ke ghar par jabardasti rahte bhi toh kaise.. Raj ne apna chehra ghumakar Priya ki aur dekha.. wo aankhon hi aankhon mein uss'se wahin ruk jane ki prarthna kar rahi thi.. Par Raj bhi kya karta bechara...

Viru ne Stick ke sahare khada hote huye kaha," theek hai.. main jara Sneha se baat kar loon.. kahan hai wo..?"

" andar hai.. thahro.. main yahin bulakar lata hoon.. " kahkar Tough andar chala gaya...

Sneha yunhi baithi thi.. jaisa tough usko bahar nikalte huye chhodkar gaya tha.. shunya ko niharte huye..," Dekho Sneha.. yahan kisi ke saamne kuchh bhi jahir mat karna.. baat pata nahi kahan ki kahan nikal jati hai.. tumhari saheliyan abhi wapas jane se mana kar rahi hain.. unhe yahin rahne doon.. ek aadh din..? tumhara mann bhi lag jayega..!"

Sneha ne koyi jawab nahi diya.. bus palkein uthakar ek baar tough ko dekha aur fir se neeche dekhne lagi...

" dono ladke ja rahe hain.. aaj hi.. apna munh dho lo aur ek baar bahar aakar unse baat kar lo.. aise munh kyun latkaye baithi ho.. main kah raha hoon na.. tumhe kuchh nahi hoga.. aao.. utho" kahte huye tough ne usko khadi kar diya.. wah aise bathroom ki aur chal di jaise uske pairon mein jaan bachi hi na ho...

Sneha apna chehra dhokar bahar aayi.. gaalon par aasuon ke nishan mit gaye par dil par lage ghavon ki parchhayi aur gadhi ho gayi.. wah yun hi chalte chalte bedroom se bahar nikli.. aur Viru aur Raj ko dekhte hi fir se foot foot kar rone lagi.. kya ye bhi kuchh 'pal' ke hi bhai the?

"kya hua Sneha?" Viru ka aisa bolna tha ki Sneha ka karun krandan aur tej ho gaya.. sabhi bechaini se uski aur dekhne lage... tough ne usko aisa kya bata diya?

Sneha roti huyi viru ke saamne jakar khadi huyi.. ek pal ke liye uski nigahon mein jhanaka.. aur fir uski chhati se ja lipti," bhaiyaaa!"

Viru ki nigahon mein uske liye ab bhi waisa hi lawanya tha.. waisa hi Prem! wo badal ki tarah pal pal roop badalne walon mein se nahi tha..

"Pagli.. ro kyun rahi hai..? hum fir aa jayenge milne.. milte rahenge.. Mohan ko bol dena.. har hafte humse milane laya kare.. chup ho ja.. pagal!" Viru ne uske gaalon se aansoo pounchhte huye kaha...

Mohan ka naam Viru ki juban par aate hi Sneha yun bilakh padi jaise kisi ne uski vina ke taaron ko bedardi de tod diya ho..," Tum mat jao bhaiya.. main mar jaaungi.. pls.. tum toh mat jao chhodkar...!" Sneha ne najrein uthakar Viru se guhar lagayi..

"Hum Sneha ko apne sath hi le jayenge.. isko kuchh nahi hoga.. mera wada hai aapse..." Viru ne tough ki aur dekhte huye kaha...

Tough bina kuchh bole bahar nikal gaya.. uski samajh mein kuchh nahi aa raha tha.. usne Shamsher ka no. milaya..

"haan.. tough.. bolo..!" Shamsher ne fone uthate hi kaha..

"bhai.. yahan toh.. meri samajh mein kuchh nahi aa raha.. na toh wo ladkiyan jane ko taiyaar hain.. aur na Sneha unn ladkon ko jane dena chahti.. batao main kya karoon.. mujhse Sneha ka rona bhi dekha nahi ja raha.. kaho toh main inn sabko bhiwani le jaaun? wahi kar deta hoon.. sabaka rahne ka...." Tough wakai mein pareshan lag raha tha...

"hummm.. ek minute.. Anjali kahan hai..?" Shamsher ne poochha...

"kitchen mein hogi..!" Tough ne andar ki aur jhankte huye kaha..

"baat karana ek baar..." Shamsher ne tough se kaha...

"Ek minute.." kahkar tough andar gaya...," bhabhi ji.. ek minute bahar aana.."

Anjali bahar aa gayi..

"lo baat karo.. Shamsher bhai se.." kahkar tough ne fone Anjali ko de diya..

"Haan Sham...." anjali naam lete lete beech mein hi ruk gayi...

"tum aaj kal mein koyi School ka tour arrange nahi kar sakti; 5-7 din ke liye...?" Shamsher ne anjali se poochha..

" aaj-kal mein? par agle mahine se bachchon ke term exam hain.. aise mein koun jayega...? par ye tour ka vichar kaise aaya..?" Anjali ne safayi dete huye sawaal poochha...

" koyi jaye.. na jaye.. par bahut jaroori hai.. inn bachchon ke liye.. Sneha ka mann bhi lag jayega.. bechari bahut pareshan hai.. Disha aur vani ho jayengi.. Gouri hai.. bachche toh ho jayenge.. tum kisi bhi tarah se ye kaam kar lo.. pls!" Shamsher ne vinaypoorn arthon mein Anjali se kaha...

" kyun Sharminda kar rahe ho..? ho jayega.. aur bolo..!" Anjali ne Shamsher se kaha...

" Thanx Anjali.. ab sab theek ho jayega...! Really thanx.." Shamsher ne anjali ka dhanyawad kiya...

"thanx se kaam nahi chalega.." anjali ne ek taraf hote huye kaha..," tumhe bhi chalna padega.. aaj aa rahe ho na...!" Anjali ne muskurate huye kaha...

" main kya karoonga.. chalkar.. tour se hi toh lout raha hoon..!"

"Tumse kuchh hisab kitab baki hai.. purana.. chalna toh tumhe padega hi.." kahkar muskurate huye Anjali ne fone kaat diya aur wapas aate huye tough ko de diya," tum fikar na karo.. aaram se khana khao aur chale jao.. main sambhal loongi...!" anjali ne muskurate huye kaha...

School-Trip ki baat sunkar sabhi ke chehre khil gaye... sabhi khushi se jhoom uthe.. sivay ek chehre ke.. uski muskaan toh ab Mohan hi wapas la sakta tha.. jiska wajood hi iss duniya mein nahi tha kahin...

Tough ne sabhi ke sath nashta kiya.. Sneha ko bhi jabardasti ek aadh took khilaya aur sabko bye bolkar chala gaya...

Subah uthte hi Priya ki mummy ki cheekh nikal gayi.. usne poora ghar chhan mara tha par dono mein se koyi bhi dikhayi nahi di.. upar tala laga hua tha.. wah hadbadayi huyi bedroom mein aayi," wo dono kahan hain ji?"

"koun dono?" Vijender ne latey latey hi poochha..

"Ppriya.. aur Riya?"

jawan betiyon ke bare mein aisa sunte hi Vijender apne ghutne ke dard ko bhool kar bister se uchhal pada aur khada ho gaya," kahan hain? .. kya hua?"

" dono mein se koyi bhi ghar par nahi hai ji.. kahan gayi meri bachchiyan..?" mummy dahad maarkar rone lagi..

"chup karo.. Sare mohalle ko sunaogi kya ab? dhoondho unko.. nahi toh kahin munh dikhane ke layak nahi rahenge.. Main pahle hi kahta tha.. inn par najar rakha karo..! bathroom mein dekha hai?" Vijender ne usko chup rahne ka ishara karte huye kaha...

"Dekh liya ji.. har jagah dekh liya.. main toh upar bhi dekh aayi.. kahan gayi meri bachchiyan...?" mummy ka rona kum na hua...

"ye sab tumhare hi laad pyar ka nateeja hai.. bhugto ab..!" Vijender ne jhallate huye kaha...

"laad pyar se koyi ghar se door nahi jata ji.. tumne hi har jagah unn par pahra lagwa diya tha.. jane kahan chali gayi.. aapse itna darti thi.. " Mummy roti rahi...

"ab chup bhi karo.. aas pados mein jikar mat karna.. ijjat ke chithde udd jayenge hamari.. fone vone aaye toh pyar se bula lena unko.. main kuchh nahi kahoonga... pata nahi aajkal ke bachche.. kahan gayi hongi haramkhor..?" Vijender ki kuchh samajh mein nahi aa raha tha.. kya karein.. kya na karein.. wo apna sir pakad kar bed par baith gaya.......

----------------------------------------

Vicky subah kareeb 9 baje Viru aur Raj ke kamre par pahuncha.. kamre par tala laga dekh uska matha thanak gaya.. kuchh sochte huye wah bahar nikla aur road par khadi apni gadi mein baith gaya aur baithte hi usne Raj ka no. dial kiya..

"hello.. Mohan bhai sahab?" Raj ne fone uthate hi poochha...

" haan.. kahan ho yaar? tumhare room par toh tala laga hai!" Vicky ne poochha...

"hum toh yahan aa chuke hain... Loharu! aap wahan kyun gaye?" Raj ne sahaj bhav se poochha..

"Loharu????? wahan kya lene gaye ho yaar tum.. maine kaha toh tha.. main subah apne aap le jaaunga..." Vicky jhalla utha.. wah pahle hi late ho raha tha.. deal ka time hone wala tha..

"par aapne hi toh Ajeet bhai sahab ko bheja tha.. Sneha ko lene.. hum bhi aa gaye sath hi..." Raj ne jawaab diya...

"Ajeet?? koun ajee.. oh shit.. Tough?" Vicky ko sab kiye karaye par pani firta najar aane laga..

"koun tough?" Raj ki aawaj ubhari...

" khair chhodo... abhi kahan hai wo?.. Ajeet?" Vicky ne baat ko sambhalte huye poochha...

"wo toh chale gaye.. abhi aadha ghanta pahle hi nikle hain..."

"koyi baat nahi.. Sneha kahan hai...?" Vicky ne poochha...

"wo andar leti hai.. uski tabiyat theek nahi hai..." Raj ne jaanboojh kar ye nahi bataya ki wo bahut royi hai.. wo kisi bhi halat mein school trip miss nahi karna chahte the...

"waise toh sab theek hai na.. matlab.. !" Vicky bolta hua achanak ruk gaya.. uske fone par baanke ki call aa rahi thi..

" haan.. sab theek hai.." Raj ki taraf se jawab aaya..

"achchha.. main 2 minute ke baad fone karta hoon.. tum Sneha ko fone de aao.. mujhe uss'se kuchh baat karni hai.. akele mein..!" Vicky ne kaha..

"achchha bhai sahab!" kahkar Raj ne fone kaat diya...

Vicky ne baanke ke paas fone milaya..," haan bol!"

"maal taiyaar hain.. kab aana hai?" Udhar se aawaj aayi...

" Kitne hain?" Vicky ne poochha...

" poore hain.. 8! ladki sath lana...." Baanke ne kaha...

" hummm.. par maine jagah badal di hai... pahle wali jagah cancel!"

"kyun?" baanke ne sawaal kiya..

" ladki wahan nahi hai jahan thi.. ab mujhe usko lana padega.. tum bhiwani ke paas pahuncho... main 3 ghante baad.. uske aas paas hi kahin bulaaunga.."

"theek hai.. par wo jagah toh final hogi na..." Baanke ne fir poochha...

Vicky ne bina sune hi fone kaat diya aur Raj ka no. dial kiya...
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