College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
11-26-2017, 01:14 PM,
#71
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल--32

हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा आपके लिए गर्ल्स स्कूल पार्ट 32 लेकर आपके सामने हाजिर हूँ दोस्तो जिन दोस्तो ने इस कहानी के इस पार्ट को पहली बार पढ़ा है उनकी समझ मैं ये कहानी नही आएगी इसलिए आप इस कहानी को पहले पार्ट से पढ़े

तब आप इस कहानी का पूरा मज़ा उठा पाएँगे आप पूरी कहानी मेरे ब्लॉग -कामुक-कहानियाँब्लॉगस्पॉटडॉटकॉम पर पढ़ सकते है अगर आपको लिंक मिलने मैं कोई समस्या हो तो आप बेहिचक मुझे मेल कर सकते हैं अब आप कहानी पढ़ें.दोस्तो जैसा की मैं पहले पार्ट मैं बता चुका हूँ अमित गोरी को सपने मैं चोदने के लिए बाथरूम मैं ले जाता है ओर जैसे लाइट जलता है उसकी नींद खुल जाती है अब आगे की कहानी

रात के करीब 11:30 बज चुके थे.. आसमान में फैली सावनी घटायें अपनी ज़िद छ्चोड़ने को कतयि तैयार नही दिखाई दे रही थी.. ऐसे में बूँदों का च्चामच्छां संगीत तड़पति जवान धड़कानों को कैसे ना भड़काने पर मजबूर करता.. वाणी के सपने भी अब मनु-मिलाप से ही जुड़े हुए थे.. सो रही वाणी को अहसास हुआ जैसे किसी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा हो.. मनु के अलावा और हो ही कौन सकता था.. वाणी अपने में ही सिमट गयी.. मनु का हाथ उसके सिर से फिसल कर उसके माथे पर आया और उसने वाणी की शरमाई कुम्हलाई आँखों को अपने हाथ से ढक दिया.. बंद आँखों में हज़ारों सपने जीवंत हो उठे.. होंठों पर मुस्कान तेर उठी.. धड़कने तेज होना शुरू हो गयी..

अचानक मनु झुका और वाणी के सुर्ख गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठों की नज़ाकत को अपने तड़प रहे होंठों से इज़्ज़त बक्श दी.. होंठों से होंठों का मिलन इतनी सुखद अनुभूति देने वाला था की वाणी के हाथ अपने आप ही उपर उठ कर मनु के सिर को बलों से पकड़ कर अपनी सहमति और समर्पण प्रकट करने विवश हो गये.. हाथ कुच्छ ना आने पर वाणी बेचैन हो गयी और हड़बड़कर जाग गयी.. क्या ये सिर्फ़ सपना था.. नही.. कैसे हो सकता है.. अगर ऐसा था तो फिर कैसे उसके होंठों में अब तक चुंबन की मिठास कायम थी.. उसकी मांसल चूचियों में कसाव का कारण क्या था..

वाणी ने अपनी आँखें खोली और अपने दाई तरफ चारपाइयों पर निसचिंत होकर सो रही दिशा और गौरी को देखा.. दबे पाँव उठी और बिना चप्पल पहने ही अंदर कमरे के दरवाजे के पास जाकर खड़ी हो गयी.... अंधेरे के कारण कुच्छ भी दिखाई ना दिया..

दरवाजे पर उभर आए साए को देख कर अमित की बाँछे खिल गयी.. उसने अपनी आँखें एक पल को भी झपकाई नही थी.. दिल-ए-गुलजार गौरी के आने की उम्मीद में...

वाणी को काफ़ी देर तक वहीं खड़ी देख कर अमित उसको गौरी समझ कर खुद को रोक नही पाया," आ जाओ ना.. जाने मॅन.. और कितना तदपाओगि.."

बात धीरे से ही कही थी.. मगर वाणी को हर अक्सर सपस्ट सुनाई दिया.. वो सकपका गयी.. आवाज़ अमित की थी.. मनु तो इतना बेशर्म हो ही नही सकता की अपने दिल के अरमानो को यूँ सीधे शब्दों में डाल कर बोल सके.. तो क्या????

पकड़ी जाने की ज़िल्लत सी महसूस करते हुए वाणी उल्टे पाँव दौड़ गयी और वापस अपनी चारपाई पर जाकर चादर ओढ़ ली...

अमित को पक्का यकीन था की आने वाली और कोई नही बुल्की गौरी ही है जो उसको बताने आई है की वो भी उसके लिए अब तक जाग रही है.. ये निमंत्रण नही तो और क्या है? अमित का रोम रोम खुशी से पागल हो उठा..," मनु.. देखा मैने कहा था ना.. गौरी ज़रूर आएगी...!"

"मनु!.... मनु? अबे ये सोने की रात नही है.. उठ"

मनु आँखें मलते हुए उठ बैठा..," क्या हुआ?"

"गौरी आई थी यार.. वापस भाग गयी.. अगर तू नही होता तो.. आज पक्का.."

"क्या??? सच...!"

"और नही तो क्या.. मैने कोई सपना देखा था.. अरे एक पल के लिए भी पलकें नही झपकाई.. मुझे विस्वास था.. मैने उसकी आँखों में वो सब देख लिया था.. उसकी आँखों में प्यार की तड़प थी.. वासना की महक उसके बदन से आ रही थी.... यार एक काम करेगा..???"

"क्या?" मनु की नींद खुल गयी थी..

"तू बाहर चला जा यार.. मुझे यकीन है.. वो तेरी वजह से ही अंदर नही आई.. वरना.....!!! मुझे यकीन है.. वो फिर आएगी!"

"पर यार रात में अब बाहर कैसे जाऊं... बारिश भी हो रही है.. अभी भी..!"

"प्लीज़ यार.. मान जा.. तू उपर चला जा घंटे भर के लिए.. उपर बरामदा भी है.. " अमित ने मनु की और अनुनय की द्रिस्ति से देखा...

"ठीक है यार.. चला जाता हूँ.. पर मुझे डर लग रहा है.. अगर दिशा दीदी जाग गयी तो मुँह दिखाने के लायक नही

रहूँगा मैं.. देख लेना..!" मनु बेड से नीचे चप्पल ढ़हूँढने लगा..

"नही जागेगी यार.. मैं तेरा अहसान भूल नही पाउन्गा...

मनु एक पल के लिए वाणी की चारपाई के पास रुका.. मुँह पर चादर नही होने के कारण उसको हल्क अंधेरे में पहचान'ने में मनु को कोई दिक्कत ना हुई..

वाणी ने भी मनु को देख लिया था.. अब आँखें बंद करके अपनी सदाबहार मुस्कान को चेहरे पर ले आई थी.. वो समझ रही थी की मनु उसको देखकर ही बाहर आया है.. ऐसे में प्यार की तड़प से भरे अपने दिल को काबू में रख पाना उसके बस का कहाँ था..

मनु ने वाणी का चेहरा गौर से देखा.. सोने का नाटक कर रही वाणी के चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश करता हुआ मनु दोनो पर नज़र डालने के बाद उसके पास बैठने को हुआ.. पर उसको पता था की गौरी जाग रही है.. मन मसोस कर अपनी हसरत को दिल में दबाया और टहलते हुए उपर चला गया..

वाणी सोच में पड़ गयी.. क्या मनु उसको उपर आने का इशारा करके गया है... या फिर यूँ ही... बाथरूम तो बरामदे के साथ ही है.. फिर उपर जाने का मतलब इसके अलावा और क्या हो सकता है... मुझे उपर जाना चाहिए या नही.. कहीं किसी ने देख लिया तो.. कहीं दीदी जाग गयी तो..

वाणी अभी तक इसी उधेड़बुन में थी की अमित को कमरे से बाहर आते देख वह चौंक गयी.. अधखुली आँखों से वो ये देखने में जुट गयी की आख़िर ये सब हो क्या रहा है...?

अमित दरवाजे पर ही खड़े होकर माहौल का जयजा लिया.. अंधेरे में वो समझ नही पा रहा था की कौन कहाँ लेटा है.. कुच्छ पल उसने वहीं खड़े होकर इश्स बात के लिए इंतज़ार किया की गौरी खुद ही उसको देख कर उठ जाए.. पर गौरी कहाँ उठती.. चोरों की तरह वो दो चार कदम चल कर उनके पास आया..

पहली चारपाई पर जब वह झुका.. वाणी ने अपनी आँखें बंद करके साँस रोक ली..

वहाँ वाणी को देखकर वह दूसरी चारपाई की और चला.. गौरी को वहाँ पाकर वह उसके सिर की तरफ ज़मीन पर बैठ गया.. क्या मस्ती से सोने का नाटक कर रही है.. सोचकर अमित ने माथे पर रखे उसके हाथ को हुल्के से पकड़ा और धीरे से आवाज़ निकाली..," गौरी!"

गौरी नींद में हड़बड़कर उठ बैठी.. गनीमत थी की अमित ने उसके मुँह पर हाथ रख लिया वरना वा चिल्ला ही देती शायद..

"आवाज़ मत निकलना.. दीदी जाग जाएँगी.. अंदर आ जाओ.."

"क्यूँ???" गौरी पर अभी भी नींद की खुमारी च्छाई हुई थी.. उसने 'क्यूँ' कहा और फिर से लेट गयी...

वाणी बड़े गौर से अमित को देख रही थी.. अमित उसके कान के पास अपने होंठ लेकर गया और फुसफुसाया..," अंदर आ जाओ.. सब बताता हूँ.."

अबकी बार ही जैसे असलियत में गौरी की नींद खुली.. उसका एक बार फिर चौंक कर बैठना और अजीबो ग़रीब प्रतिक्रिया देना इसी बात की पुस्ती कर रहा था.. हालाँकि वा भी बहुत ही धीरे बोली थी..," क्या है.. मरवाओगे क्या.? भागो यहाँ से..!"

"प्लीज़ एक बार अंदर आ जाओ.. मुझे बहुत ज़रूरी बात करनी है.. अभी तुम आई तो थी दरवाजे पर.. क्यूँ आक्टिंग कर रही हो.." अमित की दिलेरी देखकर वाणी सच में हैरान थी.. उस बात पर तो उसने मुश्किल से अपनी हँसी रोकी की गौरी दरवाजे पर गयी थी..

"क्या बकवास कर रहे हो.. मैं तो सो रही हूँ.. अभी भाग जाओ अंदर वरना में दिशा को जगा दूँगी ." गौरी ने अपनी शर्ट को ठीक करते हुए कहा...

"मैं नही जाउन्गा.. चाहे किसी को जगा दो.. तुम्हे एक बार अंदर आना ही पड़ेगा.." अमित को यकीन था की गौरी सब नाटक कर रही है..

"प्लीज़.. मुझे नींद आ रही है.. सोने दो ना!" हालाँकि अब तक नींद गौरी की आँखों से कोसो दूर जा चुकी थी...

"प्लीज़ सिर्फ़ एक बार आ जाओ.. मुझे तुमसे कुच्छ कहना है...."

"नही.. यहीं कह लो.. अंदर मनु होगा..!" गौरी लाइन पर आती दिखाई दी...

"मनु अंदर नही है.. और मैं अंदर जा रहा हूँ.. दो मिनिट के अंदर आ जाना.. नही तो मैं वापस आ जाउन्गा.." कहकर बिना गौरी की बात सुने अमित अंदर चला गया...

"अजीब ब्लॅकमेलिंग है!" नींद की खुमारी से निकल कर 'अब क्या होगा?' की सुखद जिगयसा में गौरी ने दोनो तरफ करवट ली; ये सुनिसचीत किया की कोई जाग तो नही रहा है..... और उठकर बाथरूम में चली गयी..

करीब 5 मिनिट बाद चौकसी से दिशा और वाणी पर एक सरसरी नज़र डाल कर गौरी अंदर वाले कमरे के दरवाजे से 2 फीट अंदर जाकर खड़ी हो गयी,"क्या है? जल्दी बोलो...

"ज़रा इधर तो आओ!" बेड पर बेताबी से गौरी के आने की उम्मीद में बैठे अमित की ख़ुसी का ठिकाना ना रहा...

"नाहही.. मैं और अंदर नही आउन्गि!" गौरी को भी तो नखरे आते थे आख़िर.. हर लड़की की तरह..

"सुनो तो... सुनो ना एक बार.. प्लीज़.. यहाँ आओ!" अमित उसको हासिल करने के लिए अधीर हो रहा था...

"क्या है? यहाँ आने से क्या हो जाएगा.... लो आ गयी.. बोलो!" अमित की मंशाओं से अंजान और नादान बन'ने का नाटक करती हुई गौरी बेड के करीब जाकर खड़ी हो गयी...

"बैठो तो सही.. मैं तुम्हे खा तो नही जाउन्गा!" अब दोनो को एक दूसरे का चेहरा कुच्छ कुच्छ दिखाई दे रहा था...

"तुम बता रहे हो या मैं जाउ.. मुझे डर लग रहा है...!" गौरी ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए कहा..

"मुझसे? .... मुझसे कैसा डर... बैठो ना प्लीज़!" अमित बेड पर उसकी तरफ सरक आया.. गौरी ने पिछे हट'ने की कोई कोशिश नही की...

"तुमसे नही.. मुझे डर लग रहा है की कहीं दिशा जाग ना जाए..." बीत'ने वाले हर पल के साथ गौरी पिघलती जा रही थी... ,"कहीं मनु ना आ जाए.. वो किसलिए गया है उपर..."

अमित ने आगे बढ़कर उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया," तुम सच में बहुत सेक्सी हो गौरी... तुम जैसी लड़की मैने आज तक नही देखी..!"

"आज तक कितनी लड़कियों को बोली है ये बात..!" गौरी ने अपना हाथ छुड़ाने की आधी अधूरी सी कोशिश की... पर सफल ना हुई...

"सिर्फ़ तीन को.. तुम्हारी कसम.. पर मैं भी क्या करूँ.. तब तक मैने तुम्हे नही देखा था..." अमित ने उसका हाथ दबाते हुए खीँसे निपोरी....

गौरी अमित का जवाब सुनकर हँसे बिना ना रह सकी...,"मैने तुम्हारे जैसा पागल आज तक नही देखा..."

"बैठो ना.. अभी सारी रात पड़ी है.. मेरा पागलपन देखने के लिए..." कहते हुए अमित ने उसका हाथ दबाया तो अपने कपड़े ठीक करती हुई गौरी बेड के कोने पर बैठ गयी..," तुम कुच्छ कह रहे थे.. जल्दी बोलो ना.. मुझे नींद आ रही है.."

"तो यहीं लेट जाओ.. सुबह उठा दूँगा.. दिशा के उठने से पहले!" अमित मुस्कुराया..

"तुम तो सच में ही पागल हो.. मैं यहाँ तुम्हारे साथ सोऊगी.." गौरी ने बन'ने की कोशिश की...

"क्यूँ?.. मुझमें से बदबू आती है क्या?" अमित कौनसा कम था..

"मैं ऐसा नही कह रही..... तुम सब समझ रहे हो..." ज़रूर गौरी इश्स वक़्त तक पसीज चुकी होगी.. अंधेरे की वजह से अमित उसके चेहरे के भाव पढ़ नही पा रहा था...

"समझती तो तुम भी सब कुच्छ हो.. है ना..."

गौरी ने इश्स बात पर सिर झुका लिया.. शायद वो मुस्कुरा रही थी...

"बताओ ना.. सब समझती हो ना...!"अमित धीरे धीरे करके उसके और करीब आता जा रहा था...अब अमित ने उसका दूसरा हाथ भी अपने हाथ में पकड़ लिया..

"तुम बोलो ना .. क्या कह रहे थे.. क्यूँ बुलाया मुझे.." गौरी जानती तो सब कुच्छ थी.... तैयार भी थी.. पर पहल कैसे करती...

"वो तुमने सोने जाते हुए मुझसे हाथ मिलाकर एक बात कही थी.. याद है?" अमित ने उसकी उंगलियों को अपने हाथों में लेकर दबाना शुरू कर दिया था.. गौरी की साँसों में तीव्रता आना स्वाभाविक था...,"क्या?"

"यही की जो कुच्छ मैने रास्ते में किया.. वो तुम्हे बुरा नही लगा था..."

"हां.. उस वक़्त लगा था.. पर बाद में नही...!" गौरी ने अपना चेहरा एक तरफ कर लिया...

"क्क्या मैं एक बार तुम्हे छू सकता हूँ..!" अमित का कहने का तरीका निहायत ही रोमॅंटिक था...

"छ्छू तो रखा है.. और कैसे च्छुओगे..!" गौरी ने अमित द्वारा पकड़े दोनो हाथों की तरफ इशारा करते हुए कहा..

"नही.. ज़रा और करीब से.. ज़रा और मर्दानगी से... ज़रा और दीवानगी से!" अमित ने हाथों को छ्चोड़ कर उसका चेहरा अपने हाथों में ले लिया.. अमित के अंगूठे गौरी के लबों पर जाकर टिक गये...

"वो कैसे?" शर्म और उत्तेजना की अग्नि में तप रही गौरी अपनी सुध बुध खोती जा रही थी.. अब उसकी साँसे सीधे अमित के नथुनो से टकरा रही थी... क्या मादक गंध थी गौरी की...

"ऐसे..." अमित ने कोई ज़बरदस्ती या जल्दबाज़ी नही की... हौले हौले से अपने होंठों को उन्न बेमिसाल होंठों के पास ले गया.. हालाँकि गौरी की नज़रें झुक गयी और वो काँपने सी लगी थी.. पर किसी तरह का प्रतिरोध उसने नही किया.. और अमित ने आँखें बंद करके अपने होंठों से उसकी गरम साँसे अंदर ही दफ़न कर दी.. दोनो के शरीर में अजीब सी लहर उठी.. गौरी की आँखें बंद थी.. हाथ अब तक नीचे ही टीके हुए थे... और वो अपनी तरफ से कोई हरकत नही कर रही थी.. यहाँ तक भी उसके होंठ तक उसने नही हिलाए...

करीब 3-4 मिनिट बाद जब अमित अमृतपान करके हटा तो गौरी का बुरा हाल था.. लंबी लंबी साँसे ले रही थी.. मदमस्त चूचियों के आकर में हूल्का सा उभार आ गया था.. और बदहवास सी नीचे की और देख रही थी..

गौरी के लबों को चूसने से अमित को इतना आनंद आया था की जब हटा तो पागलों की तरह उसके होंठ ही देखता रहा..

गौरी ने ही चुप्पी तोड़ी," छ्छू लिया हो तो मैं जाउ..!"

"अभी कहाँ.... अभी तो पता नही क्या क्या छ्छूना बाकी है.... मैं लाइट जला देता हूँ.. दरवाजा बंद करके....

"लाइट मत जलाओ प्लीज़....!"

"कुच्छ नही होता! एक मिनिट..." कहते हुए अमित ने दरवाजा बंद करके लाइट ऑन कर दी...

"गौरी का सुर्ख लाल हो चुका चेहरा दूधिया रोशनी में नहा गया.. उसकी आँखें झुकी हुई थी.. छ्चातियाँ फेडक रही थी.. दिल के ज़ोर ज़ोर से धड़कने के साथ ही....

अमित आकर उसके सामने बैठ गया और भगवान की दी इस नियामत को सच में ही पागलों की तरह निहारने लगा........

गौरी के अंदर जाने के बाद वाणी खुद को ज़्यादा देर तक रोक नही पाई.. अमित ने किए तरह बेबाक तरीके से गौरी को अंदर आने को कह दिया.. दोनो को एक दूसरे से मिले अभी चाँद घंटे ही तो हुए थे.. फिर वह और मनु तो एक दूसरे के जज्बातों से वाकिफ़ हैं.. वो ही क्यूँ दूर दूर तड़प्ते रहें.. वाणी ने दम साध कर दिशा की साँसों का मुआयना किया.. वो घर में चल रही हलचलों से निसचिंत दूसरी और मुँह करके सो रही थी...

वाणी को अपनी चारपाई पर पड़े दोनो तकियों को तरीके से चारपाई पर लिटाया और उन्न पर चादर ढक दी.. अगर ध्यान से नज़र ना डाली जाए तो यही आभास होता था की कोई सो रहा है..

एक बार फिर उसने अपनी दीदी पर सरसरी नज़र डाली और दो चार कदम सावधानी से बरामदे से बाहर की और रखे.. और सीधा उपर की और रुख़ कर लिया...

"कौन है...?" सीढ़ियों में दिखाई दे रहे मानव धड़ को देख को देख कर मनु चौंक गया..

"मैं हूँ... तुम.... उपर क्या कर रहे हो?" वाणी की कशिश भारी आवाज़ भी उस वक़्त मनु को उत्साहित ना कर पाई...

".. मैं तो बस ऐसे ही आ गया था.. नींद नही आ रही थी.. पर तुम.. तुम कैसे जाग गयी..?"

"मैं भी बस ऐसे ही आ गयी.. जैसे तुम आ गये.. मुझे भी नींद नही आ रही थी! मैं तुम्हे देखने अंदर भी गयी थी.. पर वो अमित अजीब तरीके से मुझे अंदर बुलाने लगा" वाणी अब मनु के करीब आकर बरामदे में खड़ी हो गयी थी.. दो दिलों के बीच अब दो कदम का ही फासला था.. और कोई अड़चन भी नही थी.. दूरियाँ कभी भी जवानी की रो में बह सकती थी.. मिट सकती थी..

"क्या कब आई थी तुम अंदर... तो क्या वो तुम थी..? हे भगवान.."

"क्या हुआ? क्या तुम भी जाग रहे थे.. तब.. जब में दरवाजे पर आई थी.." दिल में जाने कितने अरमान धधक रहे थे.. पर वाणी औपचारिकताओं से आगे बढ़ नही पा रही थी..

"न..नही.. पर मुझे नीचे जाना होगा.. नही तो अनर्थ हो जाएगा...!" मनु को याद आया की दरवाजे पर खड़ी वाणी को अमित ने गौरी समझ लिया था.. कहीं वो उसको जाकर च्छेद ना दे और कोई पंगा ना हो जाए..

वाणी ने कदम बढ़ा रहे मनु के हाथ को अपने दोनो हाथों की हथकड़ी बना कर पकड़ लिया.. उसकी इश्स अदा पर कौन ना कुर्बान ना हो जाए,"क्या अनर्थ हो जाएगा.. मैं इतनी भी मनहूस नही हूँ.." वाणी की आँखों में आज की रात को 'पहली रात' बना देने की बेकरारी को समझना कोई बड़ा काम नही था...

"न..नही.. वो ऐसी बात नही है...तुम नही समझोगी.. मुझे जाने दो.." मनु को लग ही रहा था की आज तो बचना मुश्किल है.. बड़ी किरकिरी होगी..

"क्यूँ नही समझूंगी.. मैं कोई बच्ची हूँ क्या..?" वाणी ने कहते हुए अपनी कातिल मस्तियों की और झुक कर देखा.. सबूत बहुत ही सॉलिड था की वो अब बच्ची नही बल्कि बड़े बड़ों के होश ख़स्ता करने का दम रखती है...

"न्नाही.. दर-असल.. ववो अमित कह रहा था की दरवाजे पर.. गौरी आई थी.. उसके लिए..कहीं वो.... " मनु वाणी की दिलफैंक अदा से अपनी आवाज़ पर काबू सा खो बैठा..

"वो तो गौरी को उठा कर ले भी गया.. अंदर!" वाणी की आँखों में सम्मोहित करने की ताक़त थी.. उसको भी उठा ले जाने का निमंत्रण था..

"उठा ले गया.. मतलब?" मनु को अमित की जानलेवा दिलेरी पर एक पल को यकीन नही हुआ..

"अमित ने उसको बुलाया और वो अंदर चली गयी.. इश्स'से ज़्यादा मुझे कुच्छ नही पता.. मतलब..!" वाणी मनु को इधर उधर ही दिमाग़ को पटकते देख नाराज़ हो गयी.. मुँह फूला लिया और जाकर बारिश में खड़ी हो गयी...

"वहाँ कहाँ जा रही हो.. भीग जाओगी..!" मनु ने बरामदे से ही उसको हल्क से पुकारा...

"भीगने दो.. तुम्हे क्या है? तुम्हे तो बस अमित की पड़ी है.. मैं तो पागल हूँ जो दीदी का डर छ्चोड़ कर बिन बुलाए तुम्हारे पास आ गयी.." नखरे में अपनेपन की मिठास थी.. और बारिश में भीग रहे कुंवारे बदन की प्यास भी..

"तुम तो नाराज़ हो गयी... मैं... हां क्या कह रही थी तुम.. तुम बच्ची नही हो!" मनु भी बाहर निकल कर छत की मुंडेर पर हाथ रखे खड़ी वाणी से एक कदम पिछे खड़ा हो गया.. वाणी की टी-शर्ट भीग कर उसकी कमर से चिपक गयी थी.. हल्क अंधेरे में जैसे वाणी के बदन से प्रकाश फुट रहा हो.. पतली कमर जैसे बहुत ही नाज़ुक रेशे की बनी थी.. कमर से उपर और नीचे की चौड़ाई समान लगती थी.. 34" की होंगी.. पिच्छली गोलाइयों का तो कोई जवाब शायद अब भगवान के पास भी नही होगा.. मानो नारी-अंगों की श्रेष्टा मापने के पैमाने की सुई भी

उनको मापने की कोशिश में टूट जाए.. इतनी गोल.. इतनी मादक.. इतनी चिकनी... इतनी उत्तेजक.. और इतनी शानदार की अगर 'रस' का कोई कवि कल्पना में उनका वर्णन करे तो आप कह उठे.. 'असंभव है..'.... पर्फेक्ट आस.. टू ... टू टच.. टू लीक.. टू लव... टू फक!!!!!

मनु वाणी के इश्स काम रूप को देख कर पागल सा हो उठा.. अंदर वाली 'बात' बाहर निकल आने को फड़कने लगी.. पॅंट में मनु के 'मन' का दम निकालने लगा.. अगर कुच्छ और देर वाणी इसी स्थिति में खड़ी रहती तो 'कुच्छ और' ही हो जाना था..

मनु को अपने पास खड़े होने का अहसास पाकर वाणी पलट गयी,"और नही तो क्या.. दिखाई नही देता.. मैं कोई बच्ची हूँ...?"

उफफफ्फ़.. क्या कयामत ढा गयी थी वाणी पलटने के साथ ही.. मनु का बचा खुचा संयम भी दम तोड़'ने वाला था.. हुल्की रिमझिम बारिश आग में घी डाल रही थी.. मुलायम सा कपड़ा उसके रोम रोम से चिपका हुआ था.. 'रोम-रोम' से.. मनु की नज़र वाणी के योवन की दहलीज से आगे निकल जाने का प्रमाण बने दोनो वक्षों की धारदार गोलाइयों पर जाकर जम सी गयी.. यूँ तो वाणी को बिना कपड़ों के भी मनु देख चुका था.. पर वो सब विवस'ता वश हुआ था.. आज कपड़े के झीने आवरण से ढाकी वाणी का अंग अंग फेडक रहा था.. भीगे हुए उसके गुलाबी होंठों से लेकर चौड़े कुल्हों तक.. गोल लंबी जांघों तक.. और जांघों के बीच उनके मिलन बिंदु पर फुदाक रही चिड़िया तक.. वाणी का क़तरा कतरा छ्छूने लायक था... चूमने लायक

था.. और उन्न पर पागलों की तरह च्छा जाने लायक था.. मंतरा मुग्ध सा मनु कुच्छ भी बोल ना सका.. हुष्ण के मारे आशिक की तरह घूरता ही रहा.. घूरता ही रहा.. घूरता ही रहा...

मनु को मजनू की तरह एकटक उसकी और देखते पाकर वाणी बाहर से शर्मा गयी और अंदर से गद्रा गयी.. वापस पिछे घूम कर वाणी ने अपनी छातियों को देखा.. लग रहा था मानो उन्न पर कपड़ा हो ही ना.. कसमसा रही गोलाइयाँ घुटन सी महसूस कर रही थी.. छातियों के बीच में 'मोती' अपना सिर उठाए खड़े थे.. उनका पैनापन बढ़ गया था.. वाणी अपनी ही 'अनमोल जागीर' को देखकर सिहर सी गयी.. फिर कब से उनको पाने की हसरत लिए मनु का क्या हाल हुआ होगा.. ये समझना वाणी के लिए कोई कठिन काम नही होगा.. काम-कल्पना के सागर में ही मनु को इश्स कदर डूबा देखकर वाणी 'गीली' हो गयी... उसने अपनी जांघों को ज़ोर से भींच लिया.. मानो मनु के कहर से अभी बचना चाह रही हो.. पर ऐसा हो ना सका.. हो कैसे सकता था.. पिच्छवाड़ा पागलपन को और बढ़ा गया.. मनु एक कदम आगे बढ़ा और वाणी के दोनो और से अपने हाथ सीधे करके दीवार पर टीका दिए...," सचमुच! ...... तुम... बच्ची नही रही वाणी.." कहते हुए मनु के होंठ काँप उठे.. शरीर की अकड़न बढ़ गयी.. दोनो के बीच जो झिर्री भर का फासला रह गया था; उसको मनु की बढ़ती 'लंबाई' ने माप लिया..

"आआह.." इश्स 'च्छुअन' से वाणी अंजान नही थी.. महीनों पहले अंजाने में ही सही.. पर वो शमशेर की 'टाँग' से मिलने वाले इश्स अभूतपूर्व अहसास को महसूस कर चुकी थी...

आसमनझास में खड़ी वाणी ने कुच्छ समझ ना आने पर अपने अंगों को इसी हालत

में तड़प्ते रहने के लिए छ्चोड़ दिया.. 'मनु' को महसूस करते रहने के लिए..

"एक बात पूच्छू..?" मनु ने वाणी की मादक 'आह' को सुन'ने पर कहा..

"हूंम्म्म.." वाणी तो जन्नत की सैर कर रही थी.. आधी होश में थी.. आधी मदहोश.. लगातार उसकी 'दरारों' से छ्छू रहे 'मनु' के कारण वा पल पल उत्तेजित होती जा रही थी.. उपर से बरस रहे बादल उसकी हालत को और बिगड़ रहे थे...

"डू यू लव मी?"( दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा ये समझता हूँ ये आशिक भी बिल्कुल पागल होते हेँ अब इस मनु को ही लीजिए अँग्रेज़ी में पूच्छने सेशरम शायद कुच्छ कूम हो जाती होगी.. नही तो हिन्दी में ही ना पूच्छ लेता..)

वाणी कुच्छ ना बोली.. पूछते हुए मनु थोड़ा आगे की और झुका था.. 'रगड़' अति आनंदकरी थी.. शायद इसी 'रगड़ को वह फिर महसूस करना चाहती थी...

"तुमने जवाब नही दिया!" एक बार फिर मनु आगे की और झुका.. इश्स बार कुच्छ ज़्यादा..

वाणी की जांघों का कसाव बढ़ गया.. हूल्का सा खोलने के बावजूद...

"जवाब देना ज़रूरी है क्या?" वाणी ने गर्दन उपर उठाकर अंगड़ाई सी ली.. अंग अंग चटक उठा.. अंग अंग 'हां' कह उठा.. वाणी की कमर मनु की छाती से चिपक गयी...

"हां.. बहुत ज़रूरी है.. तुम नही जानती.. मैं..." मनु ने अपने हाथों से दीवार पर रखी वाणी की हथेलिया दबा ली.. थोड़ा सा और आगे होकर..

और वाणी की आवाज़ निकल ही गयी..,"मैं मर जाउन्गि!" वह अब प्रोक्श चुभन को सहन करने की स्थिति में नही थी...

बारिश की बूँदें मनु के बालों से होकर वाणी के गालों पर टपक रही थी.. जैसे कोई संदेश दे रही हों.. मिलन का.. जैसे वो भी इश्स 'उत्सव' का आनंद उठाने के लिए तरस कर बरस रही हों...

"बुरा लग रहा है क्या?" मनु थोड़ा पिछे हट गया.. कितना नालयक था 'प्रेम-गेम' में.. समझ ही नही पाया.. वाणी ने क्यूँ कहा की वो मर जाएगी...

मनु का पिछे हटना वाणी की जवानी को नागवार गुजरा.. यहाँ तक आने के बाद पिछे हटना.. सच में ही जानलेवा हो सकता था..

तुम..? तुम करते हो हमसे प्यार?" मनु के पिछे हटने से बेकरार वाणी ने अपने को और आगे की और झुका लिया.. प्रेमरस और सावन की फुहारों से वाणी की जांघें तर होकर टपक रही थी...

ये सुनकर मनु के दम तोड़ रहे हौसलों में फिर से जान आ गयी,"हां.. बहुत प्यार करता हूँ.. जब से तुम्हे देखा है.. कुच्छ और देखने का मॅन ही नही करता.. समझ नही आता.. क्या करूँ?"

जज्बातों और अरमानों के भंवर में भी ऐसा चुलबुलापन वाणी ही दिखा सकती थी..,"फिर तो पढ़ाई के 12 बज गये होंगे..!" कहकर वाणी हौले से खिलखिला पड़ी...

वाणी को 'मूड' में पाकर मनु के हौसले बढ़ गये..," आइआइटी हूँ.. समझी!" कहते हुए मनु ने अपना एक हाथ दीवार से उठा कर वाणी के कमसिन पेट पर ला रखा..

वाणी उच्छल पड़ी,"ओई मम्मी.. गुदगुदी होती है.." इसी च्चटपटाहट में मनु का हाथ उपर उठ गया.. वाणी को अपने सन्तरेनुमा अंगों में झंझनाहट सी महसूस हुई.. ये झंझनाहट का असर उसके सुगढ़ नितंबों और उनमें च्चिपी बैठी छ्होटी सी अद्भुत तितली तक अपने आप पहुँच गया.. राम जाने क्या कनेक्षन होता है.. इनमें!

मनुको लगा उस'से कोई ग़लती हो गयी.. आख़िर बिना पर्मिशन के 'नो एंट्री ज़ोन तक जो पहुँच गया था..," सॉरी! वाणी.. मैं वो..!"

"अपने आशिक की इश्स अदा पर वाणी बिना शरारत किए ना रही.. बेकरार तो वो थी ही..," तुम्हारे जितना तो लड़कियाँ भी नही शरमाती...!" कहकर वो पलट कर खड़ी हो गयी..

सच ही तो था.. लड़कियाँ भी कहाँ शरमाती हैं इतना.. वरना जिस वाणी के चेहरे भर की एक झलक पाने को लाखों दीवाने कतार में रहते थे.. वो खुद उसके आगोश में आना चाहती थी.. छ्छूने पर भी कोई शिकायत नही की.. फिर वो इंतजार किस बात का कर रहा था.. मैं होता तो..

बरसात में टपक रही वाणी का अंग अंग जैसे पारदर्शी हो चुका था.. ऐसे में वाणी से ज़्यादा लाल मनु का चेहरा था.. पर मर्दानगी का ढोल अभी भी हकलाए स्वर में पीट रहा था..,"म्म..? मैं कब.. शर्मा रहा हूँ...!"

"और नही तो क्या.. फिर सॉरी किसलिए बोला..?" वाणी को मनु की आँखों से बेताबी टपकती दिखाई दे रही थी..

"व... वो.. ग़लती से वहाँ छ्छू गया था..." मनु वाणी से नज़रें नही मिला पा रहा था...

लज्जा तो वाणी की आँखों में भी थी.. पर इतनी नही की उस लल्लू को प्यार का सबक ना सीखा सके..," तो इसमें क्या है.. लो मैने छ्छू ली.. तुम्हारी!" वाणी ने अपना हाथ उठाकर मनु की छाती पर रख दिया.. मनु का दिल ज़ोर से धड़क रहा था.. वाणी के हाथ की आँच से और तेज़ हो गया.. मनु को लगा.. अब वा अपने छिपे हुए शैतान को मैदान में कूदने से रोक नही पाएगा.. पॅंट की सिलाई उधड़ने वाली थी..

"तुझमें और मुझमें फ़र्क़ है वाणी..."

"क्यूँ क्या फ़र्क़ है? लड़कियों की तो ऐसी ही होती हैं.." नज़रें नज़ाकत से नज़रें झुकाए वाणी ने कहा... वह भी शर्मा गयी थी.. 'उनके' बारे में बोलते हुए...

"हां...... पर..... क्या मैं फिर से छ्छू लूँ?" मनु के मुँह में पानी आ गया.. नज़र भर कर उनको देखते ही...

वाणी के हाथ अनायास ही उपर उठ गये.. और दोनो संतरों को अपने ही हाथों में च्छूपा लिया.. तब जाने कैसे वह बोल गयी थी..,"इनमें क्या है?"

संसार भर का सुरूर इन्ही में तो छिपा हुआ है...

"बोलो ना वाणी.. एक बार और छ्छू लूँ क्या..?" अजीब जोड़ा था.. एक तैयार तो दूजा बीमार... अब वाणी पानी में थी...

वाणी क्या बोलती.. ये भी कोई कहने सुन'ने की बातें होती हैं...

"बोलो ना प्लीज़.. बस एक बार.." मनु ने वाणी को कंधों से पकड़ा और हूल्का सा उसकी और झुक गया..

वाणी को लगा वो अभी टूट कर गिर जाएगी.. मरती क्या ना करती.. जब मनु ने कोई पहल नही की तो अपने हाथ नीचे सरका दिए.. अपने पेट पर.. और नज़रें झुकाए साँसों को काबू करने का जतन करने लगी..

कमसिन उमर की वाणी के दोनो संतरे साँसों की उठापटक के साथ हुल्के हुल्के हिल रहे थे.. उपर.. नीचे... उपर... नीचे.. क्या मस्त नज़ारा था..

आख़िरकार मनु ने शर्म का चोला उतार ही फैंका.. अपना एक हाथ उपर उठाया और वाणी के गले से थोड़ा नीचे रख दिया जहाँ से उनकी जड़ें शुरू होती थी...," अया!"

यकीन मानिए.. ये सिसकी मनु के मुँह से निकली थी.. जितने आनंद की वह कभी कल्पना तक नही कर सकता था.. इतना आनद उसको कपड़ों के उपर से ही वाणी को छूने से मिल गया... वानिकी तो ज़ुबान जैसे जम ही गयी थी... सीने को महसूस हुई इतनी ठंडक को पाकर...

"थोड़ा और नीचे कर लूँ.. अपना हाथ!" मनु ने मनमानी जैसे सीखी ही ना थी..

वाणी ने छिड़ कर हूल्का सा घूँसा उसके पेट में मारा..,"मुझे नही पता.. जो मर्ज़ी कर लो..."

"जो मर्ज़ी!" मनु को ऐसा लगा मानो जन्नत की पॉवेर ऑफ अटयर्नी ही उसको मिल गयी हो...

वाणी के ऐसा कहने के साथ ही मनु का हाथ जैसे वरदान साबित हो रही उन्न बूँदों के साथ ही फिसल कर धक धक कर रहे बायें वक्ष पर आकर जम गया.. अब की बार सिसकी वाणी की ही निकलनी थी.. सो निकली,"आआआः.. मॅन्यूयूयूयुयूवयू"

'बड़ी' होने का अहसास होने के बाद पहली बार किसी ने उन्न फड़कते अंगों के अरमानो की अग्नि को हवा दी थी.. कामग्नी जो पहले ही सुलग रही थी; अब दहकने लगी..

वाणी के दोनो हाथ बिना एक भी पल गँवायें मनु का साथ देने पहुँच गये.. एक हाथ मनु के हाथ के उपर था.. ताकि और कसावट के साथ वो आनंद के अतिरेक में डूब सके.. दूसरा हाथ 'दूसरे' को सांत्वना दे रहा था.. ताकि उसको वहाँ सूनापन महसूस ना हो...

"हाए.. तुम तो कमाल हो वाणी.. कितना मज़ा आ रहा है.. इनको छूने से.." मनु ने यूयेसेस हाथ की जकड़न को कुच्छ और बढ़ाते हुए दूसरा हाथ वाणी की कमर में पहुँचा दिया...

वाणी का सख़्त हो चुका 'दाना' मनु के हाथों में गुदगुदी सी कर रहा था..," सच में वाणी.. मुझे नही पता था.. चूचियाँ छ्छूने में इतनी प्यारी होती हैं..

[color=#8000bf][size=large]"छ्हि.. छ्ही.. इनका नाम मत लो.. मुझे शर्म आती है.." क्या बात कही थी वाणी ने.. मनु का खून उबाल खा ग
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11-26-2017, 01:14 PM,
#72
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --33

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा गर्ल्स स्कूल पार्ट 33 लेकर आपकी अदालत मैं हाजिर हूँ ।दोस्तो जिन दोस्तो ने इस कहानी के इस पार्ट को पहली बार पढ़ा है उनकी समझ मैं ये कहानी नही आएगी इसलिए आप इस कहानी को पहले पार्ट से पढ़े

तब आप इस कहानी का पूरा मज़ा उठा पाएँगे आप पूरी कहानी मेरे ब्लॉग -कामुक-कहानियाँब्लॉगस्पॉटडॉटकॉम पर पढ़ सकते है अगर आपको लिंक मिलने मैं कोई समस्या हो तो आप बेहिचक मुझे मेल कर सकते हैं अब आप कहानी पढ़ें प्रिय पाठाको पार्ट 33 मैं गौरी की चुदाई तो सपने मैं पूरी हो गयी ।उसने तो अमित का गन्ना चूस लिया था लॅकिन अपनी वाणी की कहानी अधूरी रह गयी थी ।अब आगे ...............

"कपड़े... नही.. मैं कपड़े नही निकालूंगी...." वाणी की साँसें हर गुजरें पल के साथ बहकति ही जा रही थी.. उसका पूरा बदन थरथराने वाला था..

"क्यूँ..? क्या प्यार करने का मंन नही करता.." मनु ने उसको और सख्ती के साथ जाकड़ लिया.. अपनी बाहों में..

"करता है.. बहुत करता है.. जाने कितने दीनो से मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी.. जाने कितने युगों से.." वाणी कसमसाते हुए अपनी जाँघ मनु के शरीर से रगड़ने लगी..

"तो फिर शरम कैसी.. कपड़े निकल दो ना.." मनु झुक कर उसकी गर्दन पर अपने दाँत गाड़ने लगा..

"तुम्ही निकल दो ना.. कह तो रही हून.... सब कुच्छ तुम्हारा ही है.." वाणी ने अंगड़ाई लेते हुए अपनी बाहें उपर उठा दी.. वाणी के दिल के उपर उठने के साथ ही मनु का कलेजा बाहर निकालने को हो गया... वाणी का यौवन छलक्ने को बेताब था.. अपने यार के पहलू में...

"ओह.. हमें अंदर चलना पड़ेगा.. बारिश तेज़ हो गयी है.." मनु ने वाणी को कहा..

"नही.. मैं कहीं नही जाउन्गि.. लेकर चलना है तो उठा लो.. मुझे तो यहीं मज़ा आ रहा है.." वाणी पूरी मस्ती में थी.. आँखें चाह कर भी खुल नही पा रही थी..

"वाणी! उठो जल्दी.. बारिश तेज़ हो गयी है.. फुहारें तुम तक आ रही है.. उठो अंदर चलो.." दिशा ने ज़बरदस्ती उसको उठा कर बैठा दिया..

"दीदी.....???????.. व्व.. वो.. मैं तो सो रही थी.. गौरी.. दी...."

"तो कौन कह रहा है.. की तुम नाच रही थी.. जल्दी चलो.. देखो सारी भीग गयी हो.."

"ओह्ह्ह.. म्‍म्म.. मैं सपना......"

"हां.. हाँ.. सपने अंदर लेटकर देख लेना.. ओह्हो.. अब उठो भी.."

"कितना अच्च्छा सपना आ रहा था दीदी.. ख्हाम्खा जगा दिया.. पैर पटकते हुए वाणी नींद में ही जाकर अंदर सोफे पर पसर गयी... इश्स उम्मीद में की सपना जारी रहे....

उसके बाद सारी रात वाणी सो ना सकी.. सपने के मिलन की अधूरी प्यास वह पल पल अपनी छ्होटी सी अनखुली योनि की चिपचिपाहट में महसूस करती रही.. गीली हो होकर भी वह कितनी प्यासी थी... मनु-रस की..

मनु अपनी जान की हालत से बेख़बर किन्ही दूसरे ही सपनो में खोया हुआ था.. उसको तो ये अहसास भी नही था की किसी को आज उसकी बड़ी तलब लगी हुई थी..

अमित का भी यही हाल था.. कोई आधा घंटा इंतज़ार करने के बाद ही वह सोया था.. पर गौरी को उसके दिए इशारे का आभास नही हुआ था.. नही तो.. क्या पता?

अगली सुबह वाणी की आँखें लाल थी.. कम सोने के कारण.. सभी इकट्ठे बैठकर चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे... अमित और गौरी में शुरू हुई नोक झोंक उठते ही फिर से जारी हो गयी,"ऐसे क्या देख रहे हो? कभी लड़की देखी नही क्या?" गौरी ने माथे पर लटक आई जुल्फ को हाथ का इशारा दिया..

"देखी क्यूँ नही.. पर तुम्हारे जैसी..." तभी कमरे में दिशा आ गयी और अमित के होंठ सील गये...

"क्या मेरे जैसी.. बोलो ना.. बात पूरी क्यूँ नही करते...?" गौरी को दिशा से क्या शरम.. उनमें तो बहुत से राज सांझे हुए थे...

"नही कुच्छ नही.... मैं कह रहा था.. तुम्हारे जैसी झगड़ालु लड़की आज तक नही देखी..." अमित ने बात का रुख़ पलट दिया..

"ओये.. मुझे झगड़ालु मत कहना.. खा जाउन्गि..!" गौरी कुच्छ और ही सुन'ना चाहती थी..

"ये लो! प्रत्यक्ष को प्रमाण कैसा.. देख लो दीदी.. कह रही है.. मुझे खा जाएगी.." अमित दिशा से मुखातिब हुआ..

दिशा हँसने लगी..," एक अच्च्ची खबर है.. गौरी पढ़ने के लिए भिवानी आ रही है.. और हमारे साथ ही रहेगी... क्यूँ गौरी?"

अमित की आँखें चमक उठी..

"अभी क्या पता.. मम्मी इश्स बार पापा से मिलकर आएँगी तभी फाइनल होगा..." कहते हुए गौरी ने एक नज़र अमित को देखा.. उसके हाव भाव जान'ने के लिए.. अमित ने

उसकी ओर आँख मार दी..

"तूमम्म!" गौरी एक पल के लिए लपक कर उसकी और बढ़ी.. पर तुरंत ही उसको अपने लड़की होने की मर्यादायें याद आ गयी... और वह शर्मकार वापस सोफे पर जा बैठी..

"अब हम चलेंगे दीदी.. जल्दी ही पहुँचना होगा...." मनु उठते हुए दिशा से बोला..

"ठीक है.. मिलते हैं फिर भिवानी में.. आज कल में हम भी आ ही रहे हैं..." दिशा भी उसके साथ ही खड़ी हो गयी...

"पर.... मम्मी पापा को तो आने दो!" कुच्छ देर ही सही.. पर वाणी का दिल मनु को अपने से जुदा होते नही देखना चाह रहा था...

"सॉरी.. वाणी.. मुझे थोड़ी जल्दी है.. " अमित ने जवाब दिया.. मनु तो वाणी की दबदबाई हुई आँखें भी देख नही पाया...

दोनो ने मोटरसाइकल स्टार्ट की और उन्न तीनो की आँखों से ओझल हो गये...

दोस्तो मैं यानी आपका राज शर्मा .दोस्तो मेरा मन भी इस कहानी इस कहानी मैं दुबारा एंट्री लेने को कर रहा है

आप तो जानते हैं जहाँ आपका राज शर्मा हो उस कहानी का मज़ा कुछ ओर बढ़ जाता है दोस्तो मैने सोचा मैं भी कुछ दीनो के लिए अपने दोस्त सुरेश के गाँव जाकर उससे मिल आउ .इस समय हम दोनो सुरेश के बाग मैं बैठे थे . अब आगे आप खुद ही देखिए यहाँ क्या हो रहा है .

"आ लौंडिया!" सड़क के साथ सटे बाग में शहर से आए अपने दोस्त के साथ बैठकर दारू गटक रहे सुरेश ने सड़क पर जा रही दो लड़कियों में से एक को टोका.. मौसम था भी पीने लायक..

सुर्सेश राकेश और सरिता का बड़ा भाई था.. ताउ का लड़का!!

"जी बाबू जी!" लड़कियों में से एक ने सड़क किनारे सिड्दत से खड़े होते हुए कहा.. कमसिन उमर की उस लड़की का रंग ज़रूर सांवला था.. पर नयन नक्स इतने काटिले की खड़ा करने के लिए 'और कुच्छ' देखने की ज़रूरत ही ना पड़े.. शीरत से भोली लगती थी.. और सूरत से 'ब्लॅकबेरी'; चूचियाँ अभी उठान पर ही थी... पर बिना 'सहारे' के नाच सी रही थी.. हिलते हुए! वस्त्रा फटे पुराने ही थे.. यूँ कह लीजिए.. जैसे तैसे शरीर को ढक रखा था बस!

"तू तेजू की छ्छोकरी है ना?" दोनो को टुकूर टुकूर देखते हुए सुरेश ने पूचछा...

"जी बाब..उ!" अपने शरीर में घुसी जा रही नज़रों से सिहर सी उठी लड़की ने मारे शरम के अपना सिर झुका लिया..

"तेरे बापू को कितनी बार बोला है हवेली में आने को.. आता क्यूँ नही है साला हरामी!" सुरेश की आँखों में उस भेड़िए

के समान वहशीपान छलक उठा जो मासूम मेम्ने के शिकार के लिए कोई भी रास्ता ढूँढ लेना चाहता है..

लड़की ने नज़रें झुका ली.. अब उसको बड़ों के लेनदेन का क्या पता..!

"तू तो पूरी जवान हो गयी है..कल तक तो नंगी घुमा करती थी.. क्या नाम है तेरा?" सुरेश ने अपने बोलने को पूरा 'गब्बरी' अंदाज दे दिया था..

"ज्जई.. क्कामिनी!" इश्स बात ने तो उसको पानी पानी ही कर दिया था..

उसके साथ खड़ी दूसरी लड़की को सब नागनवार लग रहा था.. उसने कामिनी का हाथ पकड़ कर खींचा," चल ना.. चलते हैं!"

"ये छिप्कलि कौन है?" सुरेशको इतनी बेबाकी से बोलते देख उसका दोस्त हैरान था..

"बाबू जी ये मेरी मासी की लड़की है, चंचल!.. हूमें देरी हो रही है.... हम जायें..?" कामिनी को ऐसी नज़रों की आदत पड़ी हुई थी.. वो कहते हैं ना.. ग़रीब की बहू.. सबकी भाभी!

"ज़रा एक मटका पानी तो लाकर रख दो.. उस ट्यूबिवेल से.. फिर चली जाना..!" सुरेश ने खड़ा होकर अपनी जांघों के बीच

खुजलाते हुए कहा..

"चल ला देते हैं.. नही तो बापू धमकाएँगे बाद में.." कामिनी ने हौले से चंचल को कहा और सड़क से नीचे उतर गयी.. चंचल ने उनको देखते हुए अपनी कड़वाहट प्रदर्शित की और कामिनी के पिछे चल पड़ी.. टुबेवेल्ल करीब आधा कीलोमेटेर दूर था...

"यार.. तुमने तो हद कर दी.. क्या गाँव में ऐसे बोलने को सहन कर लेती हैं लड़कियाँ.." अब तक चुप बैठे दोस्त ने सुरेश को ताज्जुब से देखा..

"ये ज़मीन देख रहे हो राज.. जहाँ तक भी तेरी नज़र जा रही है.. सब अपनी है.. आधे से ज़्यादा गाँव हमारे टुकड़ों पर पलता है.. यहाँ के हम राजा हैं राजा...! इसके बाप ने एक लाख रुपए लिए थे बड़ी लौंडिया की शादी में.. अब तक नही चुकाए हैं साले ने.. इसको तो मैं चाहू तो हमारे सामने सलवार खोलकर मुतवा सकता हूँ.. चल छ्चोड़.. एक पैग लेकर तो देख यार.." सुरेश ने अपना सीना चौड़ा करते हुए राज की तरफ गिलास बढ़ाया..

"तुझे पता है ना यार.. मैं नही लेता..!" राज ने रास्ते में ही सुरेश का हाथ थाम दिया..

"कोई बात नही प्यारे.. तेरे नाम का एक और सही.." कहकर अकेले सुरेश ने अद्ढा ख़तम कर दिया.. अकेले ही..

"एक बात तो है यार.. गाँवों में अब भी बहुत कुच्छ होना बाकी है..." राज को शायद सब कुच्छ पसंद नही आया था..

सुरेश को उसकी बात समझ नही आई..,"तेरे को एक तमाशा दिखाऊँ...?"

"कैसा तमाशा?" राज समझ नही पाया..

"आने दे.. इंतज़ार कर..."

"कमाल है कामिनी.. वो तुझसे इतनी बेशर्मी से बात कर रहा था और तू पानी भरने चली आई उनका.. तेरी जगह अगर मैं होती तो.." चंचल गुस्से से उबाल रही थी...

"तुझे नही पता.. एक बार मुम्मी ने इनका कोई काम करने से मना कर दिया था.. बापू ने इतनी पिटाई की थी की.. बस पूच्छ मत.. वैसे भी पानी पिलाना तो धरम का काम है.." कहते हुए कामिनी ने जैसे ही घड़े का मुँह ट्यूबिवेल के आगे किया.. पानी की एक तेज़ बौच्हर से दोनो नहा गयी...

"ऊयीई.. ये क्या किया..? सारी भिगो दी..मैं भी.." टपकती हुई चंचल ने कामिनी को देखा...

"क्या करूँ.. बातों में सही तरह से घड़े का मुँह नही लगा पाई.. कोई बात नही.. घर जाते जाते सब सूख जाएगा..

"हूंम्म कोई बात नही.. अपनी छाती तो देख ज़रा.. तूने क्या नीचे कुच्छ भी नही पहना..?" चंचल ने कामिनी को कमीज़ में से नज़र आ रहे चूचियों पर चवँनी जैसे धब्बे से दिखाते हुए कहा...

"ओई माआ.. अब क्या करूँ..? इसमें से तो सब दिख रहा है...

"तू क़ोठरे ( खेतों में बना हुआ कमरा) में चल.. और मेरा समीज़ पहन ले.. मेरी छाती सूखी हुई है..." चंचल ने रास्ता निकाला...

"हाँ ये ठीक रहेगा.. चल.. अंदर आजा..!" कहकर कामिनी चंचल को लेकर ट्यूबिवेल के साथ ही बने एक कोठरे में चली गयी...

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उधर पता नही कौनसा तमाशा दिखना चाह रहे सुरेश से इतना इंतज़ार सहन नही हुआ..," चल यार.. ट्यूबिवेल पर ही चलते हैं.."

"छ्चोड़ ना यार.. सही बैठहे हैं यहीं.." राज ने कहा..

"आबे तू उठ तो सही.. वहाँ और मज़ा आएगा.. चल" कहकर सुरेश ने राजका हाथ पकड़ कर खींच लिया...

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"पर.. मैं तेरे सामने कपड़े निकालू क्या?" कामिनी ने अपने साथ कोठरे में खड़ी चंचल से कहा..

"और क्या करें.. मजबूरी है.. तू मेरी तरफ कमर करके निकाल दे.. मैं तुझे अपना समीज़ निकाल कर देती हूँ.." चंचल थोड़ी सी खुले विचारों की थी..

"नही... मुझसे नही होगा.. मैने तो कभी मम्मी के सामने भी नही बदले.." कामिनी शर्मकार हँसने लगी....

"ओये होये.. बड़ी आई शरमाने वाली.. ठीक है.. तू बाहर जा.. मैं समीज़ निकाल कर यहाँ रख देती हूँ.. फिर पहन लेना.. अब तो ठीक है ना मेरी शर्मीली.."

"हां.. ये ठीक है.. कहते हुए कामिनी बाहर निकल कर खड़ी हो गयी..

"अरे.. इसमें तो कोई कुण्डी ही नही है.." चंचल ने दरवाजा अंदर से बंद करने की सोची थी..." खैर तू जा बाहर.. ध्यान रखना.."

"ठीक है.. जल्दी कर.." कहकर कामिनी बाहर निकली ही थी की मानो उसको साँप सूंघ गया.. उसकी ज़ुबान हिली तक नही.. दरवाजे के बाहर खड़े सुरेश और राज शायद सब सुन रहे थे..

"वववो... कपड़े..." बड़ी मुश्किल से कामिनी इतना ही बोल पाई थी की सुरेश ने दरवाजा खोल दिया.. चंचल अचानक हुए इश्स 'हादसे' के कारण सहम गयी.. वह अपना समीज़ निकाल चुकी थी और कमीज़ डालने की तैयारी में थी.. घुटनों के बल बैठ कर उसने अपनी सौगातों को छिपाने की कोशिश की.. इस'से उसके उभार तो छिप गये पर उनके बीच की खाई और गहरी होकर सुरेश को ललचाने लगी.. शराब के साथ ही शबाब का सुरूर भी उस पर छाने लगा..

झट से अपना मोबाइल निकाला और चंचल की 2-4 तस्वीरें उतार ली....

"याइयीई.. क्क्या कर रहे हो?.. कामिनियैयियी...." चंचल बुरी तरह सहम गयी थी.. रोने लगी....

राज जो अब तक मौन ही खड़ा था.. अपने आपको 'नारी-दर्शन' से रोक ना सका.. वा भी अंदर आ गया.. चंचल का शरीर देखने लायक था भी...,"ये क्या कर रही हो तुम?"

"लड़की लड़की खेल रहे थे.. और क्या?" कहकर सुरेश ने दाँत निकाल दिए..," अरे कामिनी.. तू तो सच्ची में ही जवान लौंडिया हो गयी रे..." कामिनी के उभारों के उपर नज़र आ रहे नन्हे उभारों पर नज़र गड़ाए सुरेश बोला..," कोई लड़का नही मिल रहा क्या तुम्हारे को.. हम हैं ना.." कहते हुए सुरेश ने चंचल से उसके दोनो कपड़े झपट लिए....

"नही नही.. प्लीज़.. हमारे कपड़े दे दो.. वो इसका कमीज़ भीग गया था.. इसलिए.." कक्कर चंचल बिलख पड़ी...

"देख लौंडिया.. कपड़े तो माखन चोर भी चुराते थे... देखने के लिए.. फिर ये कोठरा किसी के बाप की जागीर नही.. हमारा है... यहाँ मेरी मर्ज़ी चलेगी.. मैं अभी गाँव वालों को इकट्ठा करता हूँ.. यहीं पर.. और उनको बताता हूँ की तेजू की छ्छोकरी यहाँ 'लड़की-लड़की' खेल रही थी.." कहते हुए सुरेश का जबड़ा भिच गया..

"नही नही.. बाबूजी..ऐसा ना करो.. हम आपके पाँव पकड़ते हैं.." मासूम कामिनी घुटनो के बल आ गयी...

"क्यूँ ना करूँ छ्होरी.. तुझे याद है ना.. 2 साल पहले कीही बात हैं.. गाँव का एक लड़का रात में तुम्हारे घर घुस गया था.. याद है ना.. तब क्या हुआ था..!" सुरेश गुस्से का झूठहा दिखावा कर रहा था..

"याद है बाबू जी.. हमें माफ़ कर दो.. कपड़े दे दो हमारे.. हम चले जाएँगे.."

"उस बख़त (वक़्त) तू कौनसी क्लास में थी..?" सुरेश ने उसकी बात पर ध्यान नही दिया..

"जी सातवी (सेवेंत) में.." कामिनी सूबक रही थी..

"अब नवी 9थ में होगी...है ना?"

"जी..."

"क्या कुसूर था.. उस लड़के का.. तेरी मा बेहन ने बुलाया होगा.. तभी गया होगा ना.... और पंचायत ने उसको 5 जूते मारे.. क्यूँ? तेरी मा बेहन को क्यूँ नही मारे..? क्यूंकी लड़का तुम्हारे घर फँस गया था.. वैसे ही जैसे ये हमारे यहाँ फँस गयी है.. मैं अभी गाँव वालों को बुलाता हूँ.." कहते हुए सुरेश ने बिना कॉल किए ही फोन कान से लगा लिया..

ये सब देख कर चंचल अपना नन्गपन भूल कर खड़ी हुई और सुरेश से फोने छ्चीन'ने की नाकामयाब कोशिश करने लगी.. उसका बदन कमाल का था..एक दम छरहरा बदन पर चूचियाँ काफ़ी सुडौल और मस्ती भरी थी.. फोने छ्चीन'ने की कोशिश में जब वो रह रह कर सुरेश की छाती से टकराई तो वो निहाल हो गया.. खून उबाल खाने लगा..

अलग थलग खड़े राज को अब इसमें मज़ा आने लगा था...

"ठीक है.. नही बुलाउन्गा.. पर एक शर्त पर.." चंचल से अलग हट कर उसने 2-4 बार और कैमरे का बटन क्लिक कर दिया.. और चंचल फिर से घुटनो के बल आ गयी..

"क्कैसी शर्त.. बाबूजी.. बताइए..." किसी उम्मीद में कामिनी भी खड़ी हो गयी..

"मैं तुमसे कुच्छ पूच्हूंगा.. बताउन्गा?" सुरेश के मॅन में जाने क्या सूझा..

"पूच्हिए बाबूजी.. हम बताएँगे.. पर किसी को ना बुलाना.. हुमारी बड़ी बेइज़्ज़ती होगी.....

"वो लड़का तुम्हारे घर में किसके पास आता था.. तुम्हारी बेहन के.. या तुम्हारी मा के..?" सुरेश शायद अब भी सीधे मतलब की बात पर आने से हिचक रहा था..

"किसी के पास नही आता था.. वो तो चोरी करने आया था.. हमारे घर.." कामिनी ने नज़रें चुराते हुए कहा..

"तू मुझे चूतिया समझती है क्या?" सुरेश ने बालों के नीचे उसकी गर्दन में हाथ फेरा... कामुकता की अंजनी सी तरंग एक दम से कामिनी के पूरे बदन में दौड़ गयी.. संभवतया सर्वप्रथम!

चंचल ने अपने आपको एक कोने में दुब्का लिया था.. शर्म से और अनहोनी के डर से...

"बुलाऊं अभी फोने करके.. गाँव वालों को.. ?" सुरेश ने बंदर घुड़की दी...

"मेरी बेहन के पास..." चंचल के आगे इश्स स्वीकारोक्ति से लज्जित सी हो गयी कामिनी अपने दोनो हाथ आगे बँधे सिर झुकाए खड़ी थी..

"रहने दो ना यार.. बहुत हो गया.. अब जाने दो बेचारियों को.." राज से उनके आँसू देखे नही जा रहे थे...

"तुम बीच में मत बोलो राज.. तुम्हे नही पता.. वो लड़का मेरा गहरा दोस्त था.. आज मौका मिला है मुझे.. कुच्छ साबित करने का.. मैं तुम्हे बाद में समझा दूँगा..."

"पर यार.. कम से कम उस बेचारी के कपड़े तो दे दो.. उसका क्या कुसूर है..?" इन्ही अवसरों पर पहचान होती है.. इंसान की.. और हैवान की.. मर्द तो सभी होते हैं.. राज भी था

"चलो.. दे देता हूँ.. पर याद रखना.. मैने फोटो खींच ली हैं.. ज़्यादा नखरे किए तो.. समझ गयी ना.." कहते हुए सुरेश ने उसकी और कपड़े उच्छल दिए..

चंचल की नज़रों में राज के लिए अतः क्रितग्यता झलक रही थी.. जाने कैसे वह बदला चुका पाएगी....

सुरेश फिर से कामिनी की और घूम गया," वहाँ आ जाओ दोनो..." और कहकर दीवार के साथ लगे फोल्डिंग पर बैठ गया.. दोनो चुपचाप जाकर उसके सामने खड़ी हो गयी..

"मैं बाहर बैठता हूँ यार.. तू कर ले अपनी इन्वेस्टिगेशन.. जल्दी जाने देना यार.." कहकर राज बाहर निकल गया...

"हां तो किसके पास आता था सन्नी.." सुरेश फिर से टॉपिक पर आ गया..

".... बेहन!" कामिनी ने हौले से बुदबुडाया.. इश्स वक़्त चंचल को इश्स बात पर चौंकने से ज़्यादा अपनी जान के लाले पड़े हुए थे..

"क्यूँ आता था..?"

"पता नही बाबूजी.. हमें जाने दो ना प्लीज़.. मम्मी बहुत मारेंगी.." कामिनी ने गिडगीडा कर एक आख़िरी कोशिश की.. पिच्छा छुड़ाने की..

सुरेश ने पास पड़ी एक लुंबी सी च्छड़ी उठाई और उसकी नोक को कामिनी के गले पर रख दिया.. फिर धीरे धीरे उसको उसकी चुचियों के उपर से लहराता हुआ उसके पाते और फिर जांघों पर जाकर रोक दिया," नही पता..?"

"ज्जई.. गंदा काम करने....... आता था.." बिल्कुल सही जगह के करीब च्छड़ी रखने से उत्तेजना की जो लहर कामिनी के बदन में उपजी.. उसने सवाल का जवाब देना थोड़ा आसान कर दिया..

"क्या गंदा काम करने...? सीधे जवाब नही दोगि तो मैं सवाल पूच्छना बंद करके फोन घुमा दूँगा..." सुरेश इश्स हथियार को अचूक मान रहा था.. और बदक़िस्मती ये की.. लड़कियाँ भी!

"जी.. वो कपड़े निकाल कर...." आगे कामिनी बोलने की हिम्मत ना जुटा पाई....

"जैसे अभी तुम निकाल रही थी.. है ना..!" सुरेश ने फिर से उनको याद दिलाया की उनको उसने क्या करते पकड़ा था...

"नही बाबू जी.. हम तो बस... बदल रहे थे..." आगे कामिनी का बोल अटक गया.. सुरेश ने च्छड़ी का दबाव उसकी जांघों के बीच बढ़ा दिया था.. चुलबुलाहट सी हुई.. कामिनी के बदन में.. और वो पिछे हट गयी..

"वहीं खड़ी रहो.. हिलो मत.. आगे आओ.. क्या कह रही थी तुम..?"

"कामिनी ने अक्षरष: सुरेश की आग्या का पालन किया.. वो आगे आ गयी.. च्छड़ी उसकी सलवार और पॅंटी पर अपना दबाव बढाने लगी...," जी.. हम तो बस कपड़े बदल रहे थे...

"तो वो क्या करते थे.. कपड़े निकाल कर.. बोलो..?" सुरेश च्छड़ी को वहीं पर टिकाए घुमा रहा था.. कामिनी को अजीब सा अहसास हो रहा था.. उसकी पॅंटी के अंदर.. पहली बार.. चीटियाँ सी रैंग रही थी.. और लग रहा था..च्छड़ी में से वो चीटियाँ निकल निकल कर उसके 'वहाँ' से उसके सारे शरीर में फैल रही हैं...

"ज्जई.. वो.. प्यार करते थे.." जाने कहाँ से कामिनी ने सुना था.. ' इसे प्यार कहते हैं..

"अच्च्छा.. और कैसे करते हैं प्यार..?" सुरेश के 'औजार' को शायद अहसास हो गया था की उसका इस्तेमाल होने वाला है.. रह रह कर वो पयज़ामे में फुनफना रहा था.. और इश्स फंफनहट से हुई बेचैनी चंचल को अपने शरीर में भी महसूस होने लगी थी..

"ज्जई... वो कपड़े निकाल कर... " कामिनी फिर अटक गयी..

"हां हां.. बोलो.. कपड़े निकाल कर.. क्या करते थे बोलो!" सुरेश ने उकसाया..

"जी.... वो.. सू.. सू.. में.." लगता था जैसे किसी ने कामिनी की ज़ुबान को बाँध रखा हो.. हर शब्द अटक अटक कर बाहर आ रहा था....

"आख़िरी बार पूचहता हूँ.. सीधे सीधे बता रही हो या नही.." अब सुरेश से भी ये अनोखा साक्षात्कार सहन नही हो रहा था..

" ज्जजई.. वो च.. चुदाई.. करते थे.." बोलते हुए कामिनी का अंग अंग सिहर उठा...

"अच्च्छा चुदाई करते थे.. ऐसे बोलो ना.. इसमें मुझसे शरमाने की क्या बात है.. मैने भी बहुतों की चुदाई की है.. अपने लंड से.. जब चूत में लंड डालता है तो लड़कियाँ पागल हो जाती हैं.. तुमने डलवाया है कभी लंड.." जाने क्या क्या सुरेश एक ही साँस में बोल गया था..

दोनो लड़कियाँ सिर नीचे झुकायं ज़मीन में गाड़ि जा रही थी.. शर्म के मारे..

"बताओ ना.. तुम्हे चोदा है कभी.. किसी ने... तुम्हारी चूत को फाडा है कभी..?"

चंचल का सिर ना में हिल गया.. पर कामिनी तो जैसे सुन्न हो गयी थी...

"इसका मतलब कामिनी को चोदा है.. कामिनी.. तू तो छुपि रुस्तम निकली.. तू तो सच में ही जवान है रानी.. किसने चोदा है तुझे.." सुरेश को इश्स कामुक वार्तालाप में अत्यधिक आनंद आ रहा था..

अनायास ही कामिनी के मुँह से निकल पड़ा,"मैने तो आज तक देखा भी नही बाबूजी.. देवी मैया की कसम..!" फिर ये सोचकर की क्या बोल गयी.. शरम से हाथों में अपना मुँह छिपा लिया..

"चूचूचूचु.. आज तक देखा भी नही.. आजा.. इधर आ .. दिखाता हूँ...... आती है की नही..." सुरेश ने जब धमकी सी दी तो कामिनी की हिम्मत ना रही की उसके आदेश का पालन ना करे.. वह आगे आकर उसकी टाँगों के पास खड़ी हो गयी...

"बैठ जा..." सुरेश के कहते ही वह घुटनों के बल ज़मीन पर आ गयी..

"ले..! मेरा नाडा (स्ट्रिंग टू होल्ड पयज़ामा) खोल.." सुरेश ने अपनी टाँगें चौड़ी करके अपना कुर्ता उपर उठा दिया... पयज़ामा जांघों के बीच में एक पोल की तरह उठा हुआ था..,"जल्दी खोल.." सुरेश के इश्स आदेश में उत्तेजना और अधीरता दोनो थे..

मरती क्या ना करती.. अभागन मासूम कामिनी ने नाडे को पकड़ा और आँखें बंद करके खींच लिया.. अंदर बैठा अजगर शायद इसी इंतज़ार में था.. कामिनी की आँखें बंद थी.. लेकिन चंचल जो इश्स सारे घटनाक्रम को बड़ी उत्सुकता से देखने लगी थी.. उसका कलेजा लंड का आकर देखकर मुँह को आ गया.. हैरत से उसने अपने होंठों पर हाथ रख लिया.. नही तो शायद चीख निकल जाती..

सुरेश का ध्यान चंचल की और गया.. जिस तरह की प्रतिक्रिया चंचल ने दी थी.. उस'से सपस्ट था की उसको बहकाना कामिनी के मुक़ाबले ज़्यादा आसान है..

"तुम भी इधर आकर बैठ... इसको हाथ में लो.."

चाहते हुए या ना चाहते हुए.. पर चंचल को 'उस' के करीब आने में कामिनी से कम समय लगा... आहिस्ता से डरती सी हुई चंचल ने अपना एक हाथ आगे बढ़ाया और उसको एक उंगली से च्छुने लगी.. मानो चेक कर रही हो.. कहीं गरम तो नही..

"ऐसे क्या कर रही हो.. मुट्ठी में पाकड़ो ना.." सुरेश उत्तेजना के मारे अकड़ सा गया था...

और चंचल ने अपने हाथ को सीधा करके लंड पर रखा और मुट्ही बंद करने की कोशिश करने लगी.. बहुत गरम था.. बहुत ठोस था.. और बहुत मोटा भी.. मुट्ही बंद नही हुई..

चंचल बड़े गौर से 'उसको' देख रही थी.. जैसे कभी पहले ना देखा हो.. देखा भी होगा तो ऐसा नही देखा होगा.. जाने अंजाने जीभ बाहर निकाल कर उसके होंठों को तर करने लगी..

"तुम भी पाकड़ो ना.. देखो इसने पकड़ लिया है.. मज़ा आ रहा है ना" नशे और उत्तेजना में रह रह कर सुरेश की आँखें बंद हो रही थी..

कामिनी ने धीरे से पलकें खोली.. आधे से थोडे ज़्यादा लंड पर अपनी बेहन के कोमल हाथों का घेरा देखा.. और फिर तिर्छि नज़रों से सम्मोहित सी हो चुकी चंचल को देखा.. कामिनी को पता हो ना हो.. की लंड बहुत कमाल का है.. पर उसकी चूत एक नज़र देखते ही समझ गयी.. एक दम से पानी छ्चोड़ दिया.. आनंद के मारे.. एक बार फिर कामिनी ने आँखें बंद करके अपनी जांघें भीच ली..

सुरेश तो निहाल हो गया था," इसको अपने मुँह में लेकर देखो.. सच में बड़ा मज़ा आता है.. सारी लड़कियाँ लेती हैं.." सुरेश के आदेश अब प्रार्थना सी में तब्दील होते जा रहे थे..

पहल चंचल ने ही की.. अपने गुलाबी होंठ खोले और झुक कर उसके सूपदे पर रख दिए.. सुरेश आनंद के मारे सिसकार उठा..

समा ही कुच्छ ऐसा बन गया था.. डर की जगह अब उत्सुकता और आनंद ने ले ली थी.. कामिनी का हाथ अपने आप उठकर चंचल के हाथ के नीचे लंड पर जाकर जाम गया.. अब भी सूपड़ा बाहर झाँक रहा था.. दो कमसिन कलियों के पाश में बँधा हुआ..

चंचल तो अब इश्स काद्रा बदहवास हो गयी थी की अगर उसको रोका भी जाता तो शायद वह ना रुकती.. अपना हाथ नीचे सरककर उसने कामिनी के हाथ को हटाया और पूरा मुँह खोल कर सूपदे को निगल गयी.. आँखें बंद की और किसी लोलीपोप की तरह मुँह में ही चूसने लगी.. सुरेश पागल सा हो गया.. अपने हाथों को चंचल के सिर पर रखा और नीचे दबाने लगा.. पर जगह थी ह कहाँ.. और अंदर लेने के लिए..

"मुझे भी करने दो..!" और कामिनी का संयम और शर्म एक झटके में ही बिखर गये..

चंचल ने अपना मुँह हटा कर लंड को कामिनी की और घुमा दिया..

अजीब नज़ारा था.. ब्लॅकमेलिंग से शुरू हुआ खेल ग्रुप सेक्स में तब्दील हो जाएगा... खुद सुरेश को भी इतनी उम्मीद ना थी.. रह रह कर तीनों की दबी हुई सी आनंदमयी लपड चापड़ और सिसकियाँ कमरे के माहौल को गरम से गरम करती रही.. इसका पटाक्षेप तब हुआ जब सुरेश दो कलियों के बीच शुरू हुए इश्स आताम्चेट युध को सहन नही कर पाया और छ्चोड़ दिया... ढेर सारा.. दोनो के चेहरों पर गरम वीरा की बूंदे और लकीरें छप गयी.. दोनो तड़प रही थी.. लेने को.. डलवाने को!

दोनो जाने कितनी देर तक ढहीले पड़ गये लंड को उलट पलट कर सीधा करने की कॉसिश करती रही.. पर सुरेश शराब के कारण अपने होश कायम नही रख पाया था.. एक बार के ही इश्स चरमानंद ने उसको गहरी नींद में सुला दिया..

जब कामिनी ने सुरेश के खर्राटे भरने की आवाज़ को सुना तो वो मायूस होकर चंचल से बोली..," पता नही क्या हो रहा है.. मैं मर जवँगी.. कुच्छ करो.."

"जाओ.. बाहर उस दूसरे लड़के को देखकर आओ.. तब तक मैं इसका पयज़ामा उपर करती हूँ..." चंचल का भी यही हाल था..

"वो यहाँ नही है दीदी..! मैं बाहर सड़क तक देख आई.." वापस आकर कामिनी ने बदहवासी सी अपनी जांघों के बीच उंगलियों से खुरचते हुआ कहा..

"तुम एक काम करो.. कपड़े निकालो जल्दी.." चंचल के पास एक रास्ता और था..

जिन कपड़ों को वापस पाने की खातिर वो इतना रोई थी.. इतना गिड़गिडाई थी.. उनकी दुर्गति पूच्छने वाला अब कोई नही था.. दोनो के कपड़े यहाँ वहाँ कमरे में बिखरे पड़े थे..

चंचल ने कामिनी की छ्होटी छ्होटी चुचियों को मुँह में दबाया और उसकी गांद की दरार में अपनी उंगलियाँ घुमाने लगी.. कामिनी आनंद के मारे रह रह कर उच्छल रही थी.. आँखें बंद करके ज़्यादा से ज़्यादा चूची उसके मुँह में घुसेड़ने का प्रयास कर रही थी..

"मुझे कौन करेगा?" चंचल ने अचानक हट'ते हुए गुस्से से कहा..

"क्या?" कामिनी समझी नही...

"वही जो मैं कर रही हूँ बेवकूफ़.. मेरी गांद को सहला.. और ये ले.. अब मेरी चूची को तू चूस.."

बड़ा ही अनोहारी दृश्या था.. पास ही बेड पर सुरेश सोया पड़ा था.. और अब तक इज़्ज़त बचाने की जद्दोजहद से जूझ रही लड़कियाँ एक दूसरी को सांत्वना देने की होड़ में भिड़ी हुई थी.. एक दूसरी की 'इज़्ज़त' को दोनो हाथों से.. और होंठों से चूम रही थी.. चूस रही थी.. फाड़ रही थी.. नोच रही थी और लूट रही थी....

कुच्छ देर बाद चंचल ने कामिनी को ज़मीन पर लिटा और उल्टी तरफ होकर उसके उपर चढ़ गयी.. कामिनी की चूत पड़ी प्यारी थी.. हल्क हल्क बालों वाली.. छ्होटी सी.. चंचल ने अपनी जीभ निकाली और कामिनी की चूत की पतली सी दरार को अपनी उंगलियों से चौड़ा करके उसमें अपनी जीभ घुसेड दी.. कामिनी आनंद के मारे लाल हो उठी..," आआआआअहह मम्मी मैं मरी..."

"अकेली क्यूँ मर रही है रंडी? मेरी भी मार ना.. तेरे मुँह पर रखी है मेरी चूत.. चाट इसको.. उंगली घुसा के पेल.." चंचल की वासना ने रौद्रा रूप धारण कर लिया था.. उसकी साँसे उखड़ी हुई थी.. पर हौंसले बुलंद थे..

कामिनी को अब बारबार सीखने की ज़रूरत नही पड़ी.. बस जैसे जैसे चंचल उसको कर रही थी.. वैसे वैसे ही कामिनी भी करती जा रही थी.. दोनो अब तेज तेज आवाज़ें निकाल रही थी...

अपने भाई को घर बुलाने आया राकेश काफ़ी दीनो के बाद इतना प्यारा मादक संगीत सुनकर भाव विभोर हो गया..

दरवाजे की दरार से झाँक कर देखने की उसने कोशिश की पर सफल ना हुआ.. शब्र का बाँध टूट ही गया तो उसने एक झटके के साथ दरवाजा खोल दिया..

शुरू में लड़कियाँ चौंकी नही.. उनको राज के आने की उम्मीद थी.. पर राकेश को देखकर उनकी घिग्गी बाँध गयी..," वववो.. म्‍म्माइन.... हूंम्म्म.."

"ष्ह.. कुच्छ मत बोलो.. ऐसे ही लेटी रहो.. शोर मचाया तो दोनो को ऐसे ही घसीट'ता गाँव ले जाउन्गा.." और एक दूसरी ब्लॅकमेलिंग शुरू हो गयी.. पर इश्स वक़्त उन्न दोनो को इसकी ही सबसे अधिक ज़रूरत थी...

"इस्सको कहते हैं बिल्ली के भागों छ्चीका टूटना.." राकेश को पका पकाया माल खाने को मिल गया..
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11-26-2017, 01:14 PM,
#73
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --34



मोटी सी एक करीब 40 साल की औरत गुस्से से तमतमाति हुई अपने घर से बाहर निकली

"तुम लफंगों को शरम नही आती... भला ये भी कोई तरीका है?"

"सीसी..क्या हुआ आंटी जी?" राज ने जब उस औरत के शब्डबानो को खुद की और आते देखा तो विचलित सा हो गया..

"हुउऊउ.. क्या हो गया आंटी जी?" आंटी जी ने मुँह फुलाते हुए राज की नकल उतारी," यहाँ हमारे घर के बाहर बैठहे तुम्हे आधा घंटा हो गया है.. घर में कोई काम नही है क्या? बेशार्मों की तरह दूसरों के घरों में झाँकते हो....."

"पर.... पर मैने तो कुच्छ नही किया आंटी जी.. आप खामखाँ नाराज़ हो रही हैं..." राज को कुच्छ समझ ना आया...

"तुम चुपचाप यहाँ से दफ़ा होते हो की नही.. अब अगर यहाँ खड़े रहे तो मुझसे बुरा कोई ना होगा... मेरे पति थानेदार हैं.. एक फोन करूँगी ना..!" औरत का गुस्सा शांत होने का नाम नही ले रहा था...

"आ..आप क्या बकवास कर रही हैं... क्या मैं अपने रूम के बाहर भी नही बैठ सकता...!" राज के सब्र का बाँध भी टूट'ता जा रहा था...

सुनकर औरत एक पल के लिए सकपका गयी," तुम्हारा कमरा?"

"हाँ.. कल ही किराए पर लिया है...!" राज ने मुँह फूला लिया...

"तो कमरा ही किराए पर लिया होगा ना.. पूरी कॉलोनी तो नही खरीद ली.. यहाँ बाहर आकर इश्स... नेकर में बैठ गये... कमरा लिया है तो कमरे में ही रहा करो.. यहाँ बेहन बेटियाँ भी रहती हैं.. समझे" हालाँकि औरत को अपनी ग़लती का अहसास हो गया था.. उसने तो सोचा था की कहीं से कोई लफंगा आकर उसकी बेटी पर लाइन मार रहा है.. पर थानेदारनी 'सॉरी' कैसे बोलती...

राज ने गुस्से से पैर पटका और अंदर चला गया..

"यार.. ये कहाँ पागल लोगों के बीच फँसा दिया यार.. ये कोई जगह है.. अब बाहर भी नही बैठ सकते.. हुउन्ह!" राज ने अंदर लेते हुए वीरेंदर को अपना बरमूडा दिखाते हुए कहा..

"क्या हुआ?" वीरेंद्र ने चौंकते हुए कहा...

"हुआ क्या यार.. ये सामने वाली आंटी......." राज ने सारा किस्सा वीरेंद्र को सुना दिया....

"हाहहः... हाहहाहा... हाहहाहा.... तू उसके सामने ऐसे चला गया... " कहकर वीरेंदर पेट पकड़ कर हँसने लगा...

"अब इसमें हँसने वाली क्या बात है..." राज का पहले से ही खराब मूड और खराब हो गया...

"बुरा मत मान'ना यार.. पर इश्स औरत से सम्भल कर रहना.... पर उसकी भी क्या ग़लती हो.. जिसकी पटाखे जैसी 2-2 जवान बेटियाँ हों.. उसका ऐसा व्यवहार लाजिमी ही है.. दोनो मस्त माल हैं यार.. जुड़वा हैं... देखते ही बेहोश ना हो जाओ तो कहना.. एक दम मक्खन के माफिक बदन है.. तू देखना उनको.. पर टोकने की गुस्ताख़ी मत करना.. और आइन्दा ऐसे बाहर मत बैठना कभी..." वीरेंद्र ने सीरीयस होते हुए कहा...

"पर यार.. बेटियाँ हैं तो हैं.. इसमें हमारी नाक में दम कर देना.. ये कहाँ जायज़ है..." राज को बात हजम नही हुई...

"कह तो तू ही ठीक रहा है.. पर एक तो थानेदारनी की चौधर.. दूसरा शक्की मिज़ाज.. बाप भी ऐसा ही है... हालत यहाँ तक है की लड़कियों को स्कूल लाने ले जाने तक के लिए एक बुड्ढे सिपाही की ड्यूटी लगा रखी है.. चल छ्चोड़.. आ खाना खाकर आते हैं....

"क्या हुआ मम्मी..?" बाहर शोर शराबा सुनकर मुम्मी के घर के अंदर आते ही प्रिया ने सवाल किया...

"क्या बताऊं..? आज कल के लड़के भी इतने लुच्छे लफंगे हैं... तेरे पापा देख लेते तो उसकी तो खाल ही खींच लेते.. और ज़ुबान इतनी चलाता है की बस.. हे राम!"

"पर हुआ क्या मम्मी.. कौन था?" प्रिया को जानने की जिगयसा हो उठी..

"अरी.. यहीं.. सामने वाले मकान में रूम लिया होगा.. बाहर बैठा था.. कच्च्छा पहने.. चल तू पढ़ाई कर ले.. छुट्टियों का काम रहता होगा.. देख रिया पढ़ रही है की नही...

"क्या..???? कच्च्छा पहनकर.." प्रिया ने अपने मुँह पर हाथ रखकर अपनी शरम छिपाइ.. बड़ा बदतमीज़ होगा कोई.."

"चल तू अपना काम कर ले.. तेरे पापा आते ही होंगे... उनको मत बताना.. याद है ना.. पिच्छले लड़के को कितना मारा था....

राज की आँखों में कल गाँव वाला मंज़र जीवंत हो उठा.. वो लड़की कैसे अपनी देह को छिपाने की कोशिश कर रही थी.. ना चाहकर भी रह रह कर राज का ध्यान यहाँ वहाँ से छलक रही छातियों पर जा रहा था.. नंगा बदन देख कर कैसे उसके दिलो दिमाग़ में उथल पुथल सी होने लगी थी.. और जब वो अचानक अपने आपको मोबाइल में क़ैद किए जाने पर खड़ी हुई थी... अफ.. कैसे मैस्तियों का जाम सा उसकी नशों को नशे में तर कर गेया था.. भगवान ने भी क्या चीज़ बनाई है.. 'नारी'.. अगर वा वहाँ से बाहर नही जाता तो शायद ज़ज्बात इंसानियत पर हावी हो जाते.. और वह भी अपनी पौरुष्टा को उस लड़की के 'खून' में रंग चुका होता.. उसका कुन्नवारापन भंग हो गया होता...

राज ने अभी तक की अपनी पढ़ाई हिंदू बाय्स स्कूल, सोनीपत में होस्टल में की थी.. इसीलिए लड़कियों के 'सुरूर' से अभी तक अंजान ही था.. पर अब 12थ में उसके दोस्त वीरेंदर ने उसको रोहतक बुला लिया था.. घर वाले भी मान गये.. क्यूंकी होस्टल से कोचैंग क्लासस के लिए बाहर जाने की अनुमति नही थी.. यहाँ का स्कूल को-एड था..

"कहाँ खो गये भाई?" वीरेंद्र ने राज के कंधे को दबाया...

"उउउन्ह.. कहीं नही.. बस ऐसे ही.. यार में कभी लड़कियों के साथ नही पढ़ा हूँ.. हम तो वहाँ खुल कर हंसते खेलते थे.. यहाँ पर तो बड़ी बंदिशें होंगी...." राज ने अपनी किताब निकालते हुए पूचछा....

"अरे यार.. तू भी ना.. खामखाँ की टेन्षन क्यूँ ले रहा है.. को-एड के अपने ही मज़े होते हैं... पढ़ने में भी मज़ा आता है... और.."

"यार.. वो देख.. सामने वाले घर से कोई झाँक रहा है.. खिड़की में से.." राज ने वीरेंद्र को बीच में ही रोक दिया....

"कौन?.. अरे उधर मत देख यार.. नज़रों में चढ़ गये तो बेवजह टेन्षन हो जाएगी.. इधर आ जा... लगता है ये रूम छोड़ना ही पड़ेगा.." वीरेंदर ने राज को खींचने की कोशिश की...

पर राज तो जैसे जड़ सा हो गया था.. सम्मोहित सा.. सामने वाली खिड़की से उन्ही की और देख रहा चेहरा इश्स कदर हसीन था की राज वहाँ से अपनी नज़रें ना हटा पाया.. एक दम ताजे गुलाब जैसी नज़ाकत उस चेहरे से टपक रही थी.. रसीलापन इतना की फलों का राजा 'आम' भी शर्मा जाए.. आँखों में तूफान को भी अपने अंदर समा लेने की तड़प थी.. होंठ ऐसे की जैसे गुलाबी रंग की लिपस्टिक लगा रखी हो...

"आई मम्मी!" कहकर वह नीचे भाग गयी..

आवाज़ भी इश्स कदर सुरीली थी जैसे सातों सुर स्वारबद्ध होकर अपना जादू बिखेरने लगे हों.. वह करीब 10 सेकेंड खिड़की पर रही.. इतने में ही जाने सुंदरता के जाने कितने अलंकरण राज ने अपने दिल से उसको दे दिए..

"यह लड़की तो बड़ी प्यारी है यार..!" राज ने खिड़की पर से नज़र हटा'ते हुए कहा. उसकी की आँखों से सौंड्राया दर्शन की तृप्ति झलक रही थी..

"तो मैं क्या दोपहर को बीन बजा रहा था.. बताया तो था.. दोनो बहनें लाखों में एक हैं..." वीरेंदर किताब उठा कर पढ़ने बैठ गया..

"ये कौनसी थी..? बड़े वाली की छ्होटी.."

"यार.. दोनो जुड़वा हैं.. मैं तो आज तक पहचान नही पाया हूँ.. तू पहचान सके तो पहचान लेना.. पर यहाँ नही.. कल स्कूल में.. अब पढ़ने दे..!" वीरेंदर बोला..

"सच... क्या ये हमारे ही स्कूल में प्पढ़ती हैं.. यकीन नही होता यार.. यकीन नही होता..."

"अरे ओ भाई.. माफ़ कर.. ये लड़किया दूर से ही प्यारी दिखाई देती हैं.. तू कभी साथ रहा नही ना.. धीरे धीरे सब समझ आ जाएगा.. कम से कम इनके चक्कर में मत पड़ना.. लेने के देने पड़ जाएँगे..."

"मैं तो बस ऐसे ही पूच्छ रहा था यार..." राज ने मायूस होते हुए जवाब दिया..

"चल ठीक है.. आजा.. अब खिड़की बंद कर... और पढ़ ले!"

और उस रात राज पढ़ ना पाया.. दिमाग़ में खिड़की में खड़ी होकर झाँक रही वही दो आँखें घूमती रही.... खुमारी भर देने वाली आँखें....

नये स्कूल का पहला दिन... राज बहुत रोमांचित था पर अंदर ही अंदर झिझक की एक हुल्की सी मेहराब उसको उसके फुदकते दिल को काबू में रखने की नसीहत दे रही थी... जैसे ही उसने स्कूल के गेट से प्रवेश किया.. हज़ारों की संख्या में यहाँ वहाँ मंडरा रही 'तितलियों' के हृदयस्पर्शी दृश्यों ने उसका स्वागत किया.. 'आ.. लड़कियाँ कितनी प्यारी होती हैं.. कितनी स्वप्निल, कितनी कातिल.. नज़र के ही एक वार से घायल कर दें.. '

पर राज की आँखें तो उसी चेहरे को ढ़हूंढ रही थी जो उसको कल खिड़की में से नज़र आया था.. और फिर सारी रात निकल ही नही पाया.. उसके ख़यालों से..

"चल यार.. क्या ढूँढ रहा है..? आरती मेडम की क्लास है प्रेयर से पहले.. अगर आ गयी होंगी तो दरवाजे पर ही क्लास ले लेंगी..." वीरेंद्र ने राज के बॅग को पकड़ कर खींचा...

"आन....हाँ.. चल!" राज की नज़रें फिर भी उसके कदमों का साथ नही दे रही थी...

"श.. लगता है मेडम आ गयी.. अब देखना..."

"मे आइ कम इन मेडम?" वीरेंद्र ने एक हाथ में राज का हाथ पकड़े दूसरा हाथ आगे बढ़ाया...

"ये लो भाई... हाइह्कोर्ट ने 'गे ऑर्डर' क्या पास कर दिया.. लोगों ने तो हम लॅडीस को नोटीस करना ही छ्चोड़ दिया.. अब तक कहाँ रंगरलियाँ माना रहे थे..?" और क्लास में ठहाका गूँज उठा... आरती मेडम की तीखी आवाज़ वीरेंद्र के कानों में मिर्ची की तरह पड़ी...

"नही.. मेडम.. वो.. इसने अभी अड्मिशन लिया है.. आज पहला दिन था.. सो...." वीरेंद्र ने बच्चों के ठहाकों पर ध्यान नही दिया..

"ओह्ह्हो.. नया लड़का...! गॅल्स.. देखो..! नया लड़का आया है.... तो क्या आरती उतारें इसकी.. स्कूल के टाइम का नही पता क्या तुम लोगों को.." आख़िरी लाइन बोलते बोलते आरती मेडम चीख सी पड़ी थी..

"सॉरी मेडम.. वो.. आगे से ऐसा नही होगा..! प्लीज़ लेट अस कम इन..!"

"नो! नो वे.. जस्ट स्टे आउटसाइड..!" कहकर आरती ने क्लास की और रुख़ कर लिया..

मायूस वीरेंदर और राज कॅंटीन में आकर बैठ गये...

"यार यहाँ तो बड़ा स्ट्रिक्ट माहौल है.. पहले ही दिन किरकिरी हो गयी.." राज ने भावपूर्ण तरीके से वीरेंदर की और देखा...

"नही यार.. सब ऐसे नही हैं.. बस यही एक खड़ूस मेडम है जो बच्चों की नाक में दम रखती है.. पता नही कब रिटाइर होगी... " वीरेंदर ने उसको दिलासा दी...

"यार.. वो लड़की भी इसी स्कूल में है.. तू कह रहा था..?" राज मतलब की बात पर आ गया...

"यार तू आदमी है की बंदर.. एक बात के पिछे ही चिपक गया.. इसी स्कूल में ही नही.. इसी क्लास में भी है.. पर यार.. तू उसका चक्कर छ्चोड़ दे.. मरवा देगी.. देखा नही.. कैसे दाँत निकल कर हंस रही थी अभी.. क'मिनी!"

"क्या? अपन ही क्लास में है.. " और राज की आँखें चमक उठी....

प्रेयर की बेल होते ही सभी ग्राउंड में जाकर कक्षानुसार पंक्तिबद्ध होना शुरू

हो गये.. लड़कियाँ एक तरफ खड़ी थी.. लड़के दूसरी तरफ.. राज और वीरेंद्र कक्षा के सबसे लंबे लड़के थे सो वो दोनो सबसे पिछे खड़े थे...

"ओये राज.. वो देख प्रिया!" वीरेंदर ने अपनी कोहनी से राज के पेट पर टच किया..

"कहाँ?" राज के दिल में घंटियाँ सी बज उठी..

"वहाँ... सामने मंच पर.. पाँचों लड़कियों के बीच में खड़ी है.. अब जी भर कर देख लेना... " वीरेंदर हल्क से फुसफुसाया...

"ओह... " सिर्फ़ यही वो शब्द थे जो राज के मुँह से प्रतिक्रिया के रूप में निकले.. उसका मुँह खुला का खुला रह गया.. धरीदार स्कर्ट और जगमगाती हुई सफेद शर्ट पहने प्रिया को सिर से पाँव तक देखकर राज की साँसे सीने में ही अटक गयी..

प्रिया हाथ जोड़े नज़रें झुकाए प्रेयर करने लगी.. नख से सिख तक उसके शरीर का कतरा कतरा शरबती मिठास संजोए हुए था.. कपड़ों में से झाँकते संतरी उभारों में मानो नयन चुंबक लगा हो.. नज़रें चिपक जायें.. जैसे राज की चिपकी हुई थी.. लंबा छरहरा वक्राकार बदन किस को पागल ना बना दे.. सो राज भी हो गया.. पहली नज़र में ही घायल... उसकी आँखें बंद ही ना हुई.. प्रेयर के लिए.. उसको लगा जैसे प्रिया उसी के लिए गा रही है.. 'प्रेम-गीत'

उसका ये सुखद अहसास प्रेयर के ख़तम होने के बाद भी जारी रहा और उसकी नज़रें प्रेयर के बाद अपनी लाइन में जाकर खड़ी हुई प्रिया का पिच्छा करते हुए लगभग 90 डिग्री पर घूम गयी.. उसके चेहरे के साथ...

"हे यू! लास्ट बॉय इन 12थ.. वॉट'स अप?" आगे खड़ा एक टीचर गुस्से में गुर्राया..

वीरेंद्र ने कोहनी मार कर राज का ध्यान भंग किया..," तू तो गया यार...!"

"सस्स्सोररी सर.." कहकर राज ने सीधा खड़ा होकर नज़रें झुका ली...

प्रेयर के बाद राज क्लास में घुसा ही था की एक लड़की ने उसका रास्ता रोक लिया," नये हो..?"

"हाँ.." जब आगे जाने का रास्ता नही मिला तो राज ने वही खड़े होकर एक शब्द में उत्तर दिया....

"सुनो! सुनो! सुनो! ये नया है.. अभी बनकर आया है.." लड़की के ऐसा कहते ही क्लास में हँसी का ठहाका गूँज उठा...

"आ स्वाती! माइंड उर लॅंग्वेज.. जस्ट श्युटप आंड पुट डाउन युवर..." वीरेंदर का रुतबा ही ऐसा था की लड़कियाँ तो उसके नाम से ही बिदक्ति थी.... शानदार गठीले बदन का जवान होने के कारण लड़कियाँ उस पर जान तो छिदक्ति थी पर जान जाने का डर भी उनके मॅन में रहता था.. सुनते हैं की एक लड़की के प्रपोज़ करने पर वीरेंदर ने उसको खींच कर एक तमाचा दे दिया था.. पाँचों उंगलियाँ उसके चेहरे पर छप गयी थी.. तब से ही लड़कियाँ.. बस दूर से ही आ भर कर काम चला रही थी..

"मैं तुमको क्या कह रही हूँ.. " और लड़की की आँखों में आँसू उतर आए.. वह वापस अपनी बेंच पर जा बैठी..

"यार... लड़की को ऐसे नही डांटना चाहिए.." राज ने वीरेंदर के साथ अपनी बेंच पर

बैठते हुए कहा..

"हाँ.. नही कहना चाहिए.. मैं भी मानता हूँ.. पर लड़की को भी तो अपनी मर्यादायें याद रखनी चाहियें...

"यार.. उसने मज़ाक ही तो किया था.. मैं सॉरी बोलकर आता हूँ.." इससे पहले की वीरेंद्र कुच्छ बोलता.. राज उसके बेंच तक पहुँच गया था..

उसने वहाँ जाकर 'सॉरी' बोला ही था की दरवाजे से वही सुरीली आवाज़ आई जो उसने रात को सुनी थी.."नया लड़का कौन है?"

और एक बार फिर पूरी क्लास में ठहाके गूँज उठे... 'नया लड़का!'

"इसमें हँसने वाली क्या बात है.. मैने कोई जोक सुनाया है.." प्रिया को एक मिनिट पहले हुए तमाशे की जानकारी नही थी...

राज पलट गया.. उसका दिल एक बार फिर धड़कना भूल गया..,"मैं हूँ.. राज!" राज का हाथ अपने आप ही उसकी तरफ बढ़ गया..

"तुम्हे गौड़ सर बुला रहे हैं.. स्टाफ रूम में..!" प्रिया ने बढ़े हुए हाथ को नही थामा..

"पर ... मुझे स्टाफ रूम का पता नही है..!" राज ने शर्मकार हाथ वापस खींच लिया...

"चलो.. मैं लेकर चलती हूँ.." कहकर प्रिया बाहर निकल गयी.. राज की आँखों में पनप रहे अपने पन को उसने कोई तवज्जो नही दी.. शायद सुन्दर लड़कियों को इसकी आदत होती है..

बिना एक भी शब्द बोले दोनो स्टॅफरुम पहुँच गये...

"कम इन सर?" प्रिया और राज पर्मिशन लेकर गौड़ सर की चेर के पास जा पहुँचे.. ये वही थे जिन्होने राज को प्रेयर में टोका था...

"क्या बात है सर..?" राज को लगा प्रिया के सामने ही उसकी किरकिरी होगी..

"हूंम्म...! मिस्टर. हॅंडसम, यहाँ पढ़ने आए हो की तान्क झाँक करने..?"

"सर.. मैं समझा नही.. " राज ने भोलेपन से कहा..

"समझ तो तुम सब गये हो बेटा.. तुम दिखने में सुंदर हो.. इसका मतलब ये नही की.. खैर छ्चोड़ो.. 10थ में कितने मार्क्स आए हैं..?"

"सर.. 95%!" बोलते हुए राज की आँखों में चमक थी.. गर्व था.."

"हाउ मच?!!!!" प्रिया ने ऐसा रिक्ट किया मानो उसको विस्वास ना हुआ हो..

"95%!"

"हूंम्म.. थ्ट्स लाइक ए गुड बॉय.. शायद मुझसे ही कोई चूक हो गयी होगी.. जाओ.. एंजाय युवर स्टडीस!" और गौड़ सर ने राज की कमर पर थ्हप्कि देकर उसको वापस भेज दिया..

क्लास की और जाते हुए राज मन ही मन उच्छल रहा था.. प्रिया ने उसकी स्कोरिंग पर आसचर्या व्यक्त किया था.. प्रभावित ज़रूर हुई होगी.. उसने साथ चुपचाप चल रही प्रिया के मॅन को सरसरी नज़र से पढ़ने की कोशिश की.. पर कुच्छ खास अब लगा नही..,"आ.. आपके कितने मार्क्स हैं.. 10थ मैं.."

"अच्च्चे हैं.. पर तुम्हारे आगे कुच्छ नही.. बस यूँ समझ लो की तुमसे पहले मैं ही स्कूल की टॉपर थी..

"श.." राज ने ऐसे रिक्ट किया मानो प्रिया का रेकॉर्ड खराब करने पर उसको बहुत अफ़सोस हुआ हो.. इश्स'से पहले वो कुच्छ और बोलता.. उसकी आँखें आसचर्या से फट गयी.. वह एक बार सामने से आ रही रिया को देखता तो एक बार साथ चल रही प्रिया को...

"ये मेरी बेहन है.. रिया! मुझसे 8 मिनिट छ्होटी.. रिया! ये हैं मिस्टर..??" प्रिया की प्रशंसूचक नज़रों ने राज के दिल पर कहर सा ढाया..

"मुझे राज कहते हैं.. !"

"तूमम.. तो हमारे घर के सामने ही रहते हो ना...?" रिया ने तपाक से पूचछा...

"क्या???" प्रिया ने आसचर्या व्यक्त किया..

"जी.. मुझे नही पता आप कहाँ रहती हैं.. मैं तो मॉडेल टाउन 82-र मैं रहता हूँ.." राज ने अंजान बन'ने की कोशिश की...

"अच्च्छा.. तो वो तुम्ही हो.. जो..." कुच्छ सोचकर प्रिया आगे की बात खा गयी..

"जी क्या?" राज असमन्झस में पड़ गया..

"कुच्छ नही.. क्लास का टाइम हो रहा है.. " कहकर प्रिया रिया का हाथ पकड़ कर क्लास की और आगे बढ़ गयी..

राज उनके पीछे पीछे चलता हुआ उनको घूरता रहा.. क्या समानता थी.. उनकी हाइट में भी.. उनकी हँसी में भी.. उनकी चाल में भी.. और चलते हुए लचक रहे उनके मादक कुल्हों में भी... 'आ! किस किस को.... '

राज मॅन ही मन मुस्कुराया और क्लास में घुस गया...

"क्या बात थी.. अंदर घुसते ही वीरेंदर ने चिंता से पूचछा " डाँट पड़ी क्या?"

"नही.. शाबाशी मिली.. " राज ने मुस्कुराते हुए कहा..

"सच! किसलिए?

"अब मैं स्कूल का टॉपर हूँ.. इसलिए..!" राज ने सीना तान कर कहा...

---------

"आ तुझे पता है.. राज के 10थ में 95% मार्क्स हैं.." प्रिया ने साथ बैठी रिया के कान में कहा..

"सच... दिखने में तो एकद्ूम भोला.. स्वीट सा लगता है.. इसने चीटिंग कर ली होगी क्या???" रिया शरारत से राज की और देखकर मुस्कुराइ...

"अच्च्छा.. तो तेरे कहने का मतलब ये है की मेरे 91 चीटिंग की वजह से आए हैं.. हे भगवान.. जब टीचर्स को पता चलेगा तो मेरी तो हवा ही खराब हो जाएगी..." प्रिया को अपनी कुर्सी हिलती नज़र आई....

..........

"हे वीरेंद्र! देख.. प्रिया मुझे देखकर मुस्कुरा रही है..." राज ने रिया को अपनी और मुस्कुराते देख वीरेंदर से कहा...

"वो रिया है.. चक्कर में मत आना.. शिकायत करने में भी सबसे आगे रहती है.. मुस्कुराती है बस! सबको पता है..." वीरेंदर ने अपने हाथ से राज की उनकी ओर निकली हुई बतीसि बंद करके उसको सीधा कर दिया..

"पर तुझे कैसे पता.. दोनो एक जैसी हैं.. बिल्कुल! और तूने कहा भी था.. की तू भी उनको नही पहचान पता!" राज ने उत्सुकता से पूचछा..

"ऐसे तो उनकी मा भी उनको नही पहचानेगी.. रिया कान में बाली डालती है.. पर प्लीज़ यार.. ये सब मुझे अच्च्छा नही लगता.. तू पढ़ाई में ध्यान लगा.. बस!" वीरेंद्र ने उसको नसीहत दी...

"बस एक आख़िरी बात.. इनमें से किसी का बाय्फ्रेंड है क्या?"

"क्यूँ? मैं इनका असिस्टेंट हूँ क्या? अब कुच्छ पूच्छना है तो सीधा जा और उनसे पूच्छ ले..."

"बुरा क्यूँ मानता है यार.. मैं तो.." तभी क्लास में सर आ गये और सारी क्लास खड़ी हो गयी....

"क्या हाल हैं.. थानेदार साहब!" विकी घर के अंदर घुसते ही ड्रॉयिंग रूम में पड़े सोफे पर फैल गया...

"कौन?" पर्दे के पिछे से कड़क आवाज़ आई...

"आप कहाँ याद रखेंगे हमें.. हमें ही आकर बार बार आपको शकल दिखानी पड़ती है..." कहकर विकी हँसने लगा....

"ओह विकी भाई.. कैसे हो?" खिसियाए हुए से विजेंदर ने अंदर आकर बैठते हुए कहा..," सुनती हो? कुच्छ ठंडे वनडे का इंतज़ाम करो.."

"इतनी मेहरबानी का शुक्रिया.. वो सेक 4 वाला मल्टिपलेक्स आप कब बिकवा रहे हैं.. हमें जल्द से जल्द कब्जा चाहिए.. झकास जगह है!" विकी ने खिड़की से बाहर झाँकते हुए कहा..

"इतना आसान नही है भाई... मुरारी की भी पहुँच उपर तक है.. अब अगर सरकार नही बदली तो मेरे गले में फाँसी लटक जाएगी.. पर में देख रहा हूँ..." विजेंदर ने लुंबी साँस छ्चोड़ी.....

"मुरारी की मा का... साला उसके बाप का माल है क्या..?तो पहले मुझे उसकी मा बेहन करनी पड़ेगी पहले.. ये बोल ना.... साले की...." तभी अचानक विकी चुप होकर ड्रॉयिंग रूम में अचानक घुस आए जलवे को निहारने लगा...

"पापा! मुझे स्वेता के घर नोट्स लेने जाना है.. ज़ाउ क्या..?" रिया ने विकी पर धान नही दिया...

"कितनी बार कहा है की ये लेन देन स्कूल में ही किया करो.. चलो! कहीं जाने की ज़रूरत नही है.." विजेंदर ने पसीने के रूप में माथे पर छलक आया अपना गुस्सा पोंच्छा... रिया सहम कर अंदर चली गयी....

"ये... तुम्हारी बेटी है खन्ना?" विकी ना चाहकर भी उस हसीन काली के बारे में पूच्छ ही बैठा..

"यार.. कितनी बार कहा है की इन्न कामों के लिए ऑफीस में ही आ जाया करो.. घर में ऐसे बात करना अच्च्छा नही लगता.."

"कौनसा ऑफीस.. थाना?"

"हां!"

"पर आप वहाँ मिलते ही नही तो क्या करें.. मुझे भी जवान बेटियों वाले घरों में जाना वैसे अच्च्छा नही लगता.." विकी ने अपने होंठों पर जीभ फेरी...

"खैर छ्चोड़ो.. लाला 10 करोड़ माँग रहा है.. कहता है.. इससे कम पर बात ही नही करेगा..." विजेंदर ने बात पलट'ते हुए कहा..

"और मैं उसको 8 करोड़ से ज़्यादा नही दूँगा.."

"पर मुरारी 10 देने को तैयार है..."

" पहले कहे देता हूँ.. खो दूँगा मुरारी को.. इश्स दुनिया से.. बाद में मत कहना बताया नही था.. और बॉडी भी यहीं डाल कर जाउन्गा.. तेरे घर के सामने! चलता हूँ.. जै हो!" कहकर विकी घर से बाहर खड़ी सफ़ारी में जा बैठा..

"यार.. तुम पॉलिटिशियन्स का मैं क्या करूँ.. वो कहता है तुम्हे टपका देगा और तुम कहते हो...." विजेंदर अपनी बात पूरी नही कर पाया.. गाड़ी का शीशा उपर चढ़ा और विजेंदर पिछे हट गया.. गाड़ी सड़क किनारे की धूल उड़ाती हुई वहाँ से गायब हो गयी.....

"यार.. थानेदार की बेटी ने खड़ा कर दिया.. कोई ताज़ा माल है क्या...?" विकी ने जाने किसको फोन मिलया....

"कल तक खड़ा रख सको तो हो जाएगा विकी.. आज कोई चान्स नही है.. नयी का.. कहो तो......." सामने वाले की बात को विकी ने बीच में ही काट दिया...

"मुरारी की भी एक बेटी है ना...."

"तू पागल तो नही हो गया है विकी... क्या बक रहा है? बिज़्नेस अलग चीज़ है.. मस्ती अलग!"

"अरे बिज़्नेस को मारो गोली.. साला मुझे टपकाने की कह रहा है.. तू जल्दी उसका डाटा बता..." विकी के चेहरे पर मुस्कान आ गयी...

"मान जा विकी.. उलझ जाएँगे.. मंत्री भी साथ नही देगा.."

"जो साथ नही देगा उसकी मा की चूत.. तू जल्दी बता.. नही तो.."

"ठीक है भाई.. पर मैं अब इश्स मामले में नही हूँ.. याद रखना.. और ये भी की सरकार आजकल उसी की है... लिख!"

"पेन नही है भोसड़ी के.. मेसेज कर दे.. और सुन.. तूने पक्का सोच लिया है ना तू मामले में नही है..."

"यार! तू समझता नही है.. पंगा हो जाएगा.. अगर उसको ज़रा भी भनक लग गयी तो वो इसका भी राजनीतिक फ़ायदा उठाने की सोचेगा.. फिर मीडीया हमें बकषेगी नही.. करियर चौपट हो जाएगा भाई... मान जा.."

"तू ऐसा कर.. उसकी लड़की की हिस्टरी मेसेज कर और मेरा रेसिग्नेशन लेटर.. टाइप करवा के रख..." कहकर विकी ने फोन काट दिया...

"हेलो!"

"जी मुरारी जी हैं?"

"तू कौन बे?"

"नमस्ते मुरारी जी.. मैं सिटी थाना इंचार्ज विजेंदर बोल रहा हूँ.." विजेंदर की आवाज़ घिघियाई हुई थी...

"हां... खन्ना! तेरी बक्शीश मिली नही क्या..." मुरारी ने लहज़ा नरम किया..

"वो बात नही है भाई साहब.... ववो.. विकी आया था.. काफ़ी बुकबुक करके गया है.. कह रहा था.." विजेंदर की बात अधूरी ही रह गयी...

"उस साले का नाम मेरे सामने मत ले.. अगर उस तरफ नज़र उठा कर भी देखा तो मार दूँगा साले को.. समझा चुका हूँ.. अगर वो ऐसे ही धमकी गिरी करता रहा तो जान से जाएगा.. मैं एलेक्षन्स की वजह से चुप हूँ.. वरना उसकी.. में ठुकवा देता.. समझा उसको.. कल का लौंडा है.. ज़्यादा गर्मी दिखाएगा तो महनगा पड़ेगा.."

"मैने उसको बोल दिया है.. बाकी आप देख लेना... कुच्छ ज़्यादा ही बोल रहा था.. मेरे तो दिल में आया था की उठाकर साले को अंदर कर दूँ.. पर आपकी वजह से ही चुप रहा.. कहीं आप पर बेवजह आरोप ना लगें..."

"तूने ठीक ही किया खन्ना.. एक बार एलेक्षन हो जाने दे.. फिर तू देखना.. मैं उसका क्या करता हूँ... अच्च्छा अब फोन रख.. कोई फोने आ रहा है वेटिंग में..." कहकर मुरारी ने दूसरी कॉल रिसीव की," हां मेरी गुड़िया रानी.. कैसी है मेरी बच्ची...."

"कितनी बार बताउ पापा.. मुझे गुड़िया नाम अच्च्छा नही लगता.. अब में बच्ची नही रही.. 19 की हो चुकी हूँ....!" उधर से कोमल सी आवाज़ आई..

"पर मेरे लिए तो तू गुड़िया ही रहेगी ना.. बोल कैसे याद किया.. पापा को अभी बहुत काम है....

"क्या पापा! मेरी सारी छुट्टियाँ ख़तम हो गयी... आप मुझे घर क्यूँ नही आने देते.. अब फिर स्कूल से बच्चे टूर पर चले गये हैं.. आपने मुझे वहाँ भी नही जाने दिया....मैं यहाँ अकेली बोर हो रही हूँ..."

"बेटा.. तू समझती नही है.. मुझे अक्सर बाहर ही रहना पड़ता है.. और फिर यहाँ भी तुम अकेली बोर ही होवॉगी... चल मैं तेरा पर्सनल तौर का इंतज़ाम करता हूँ.. अब तो खुश!"

"ओह थॅंक्स पापा.. यू आर सो ग्रेट.. उम्म्म्ममचा! कब भेज रहे हो गाड़ी..."

"कल ही भेज देता हूँ.. मेरी बच्ची.."

"ओकी पापा.. बाइ!"

"बाइ बेटा!"

मुरारी ने एक और फोने मिलाया..," हां मोहन!"

"येस सर!"

"कल ही मर्सिडीस लेकर होस्टल पहुँच जाओ.. 5-7 दिन...जहाँ भी वह कहे.. उसको घुमा लाना.. हर तरह का ख्याल रखना..

"ओके सर!"

मुरारी ने कॉल डिसकनेक्ट करते ही वहाँ निर्वस्त्रा लेती उसकी बेटी की ही उमर की लड़की की

चुचियों में सिर घुसा दिया....
Reply
11-26-2017, 01:15 PM,
#74
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
विकी खिड़की में खड़ा होकर घूमड़ आए बादलों को देख रहा था.. किसी गहरी सोच में.. जो प्लॅनिंग वह कर रहा था.. वह घातक थी.. खुद के लिए भी और उसके करियर के लिए भी.. हालाँकि राजनीति में उसकी गहरी पैठ थी... पर इसकी गलियाँ कितनी बेवफा और हरजाई होती हैं.. विकी को अहसास था.. मुरारी की बेटी को अगवा करना खुद सीयेम को चोट पहुँचाने के बराबर था.. पर नफ़रत की आग होती ही ऐसी है.. इसमें खुद के नुकसान या फ़ायदे के बारे में नही सोचा जाता.. बल्कि दुश्मन की तबाही ही अहम होती है.. फिर चाहे जान ही क्यूँ ना चली जाए..

मुरारी का चेहरा जहाँ में आते ही जैसे उसका मुँह कड़वा हो गया.. अधजाली सिगेरेत्टे को बाहर फैंका और थूक दिया," साला भड़वा! कितनी कुत्ती चीज़ है.."

विकी ने बुदबुडाया...

"भाई.. अगर तू मज़ाक कर रहा है तो बता दे.. वरना मेने तो स्विट्ज़र्लॅंड का टूर प्लान कर लिया है.. मैं ख़ुदकुशी नही कर सकता.. सच्ची बोलता हूँ..." काफ़ी देर से सोफे पर खामोश बैठे माधव ने कहा...

"अबे जा साले! तू भाग जा.. ये गेम तुझ जैसे गांडुओं के लिए नही है.. अब मुरारी 10 करोड़ देगा और मल्टिपलेक्स का मालिक मैं बनूंगा... अब की बार पिच्छला सारा हिसाब चुकता हो जाएगा..." ,विकी ने हंसते हुए कहा...

"पर यार .. तू करेगा कैसे.. क्या तू उसको खुला चलेंज देगा.... किडनॅपिंग की खबर देगा..." माधव अभी तक डिसाइड नही कर पाया था की वो क्या करेगा....

"तुझे अब इस बात से कोई मतलब नही होना चाहिए.. चल फुट ले.."

"मतलब है भाई.. तुझे पता है.. मैं तुझे नही छ्चोड़ सकता.. बता ना.. कैसे करना है..?"

"बैठकर तमाशा देखना है.. और ताली बजानी है.. छक्का कहीं का.. अब तक क्यूँ गान्ड फटी हुई थी साले..." विकी ने उसके कंधे पर हाथ मारा....

"वो बात नही है भाई.. मुझे पता है.. तू दिमाग़ से कम और दिल में उफान रहे जज्बातों से ज़्यादा काम लेता है.. बस इसीलिए.. सिर्फ़ इसी वजह से अपना 'बल्लू' मुरारी से मात खा गया.. तुझे पता है...." माधव के इतना कहते ही विकी की मुत्ठियाँ और जबड़े भिच गये.. आँखों में खून उतर गया..," इश्स बार मुरारी की गाड़ उसके ही हथियार से मारूँगा.. तू देखता रह माधो.. मैं बल्लू भाई का बदला लूँगा.. देखता रह.. अबकी बार दिल नही दिमाग़ चलेगा.. तुझे एक खुशख़बरी मिलने वाली है.. बस थोड़ी देर रुक जा..." विकी ने अपनी बात पूरी भी नही की थी की दरवाजे के पास गेट्कीपर आया," साहब! कोई मोहन आया है..!"

"यस! जल्दी भेज उसको.. " विकी के चेहरे पर कामयाबी की ख़ुसी लहरा गयी.....

"ये मोहन कौन है भाई..?" माधव भी विकी के साथ ही खड़ा हो गया...

"अभी बताता हूँ.. 2 मिनिट सब्र कर..."

"नमस्ते सर..!"

"आओ आओ मोहन कैसे हो..?" विकी ने मोहन की कमर थपथपाई...

"ठीक हूँ साहब.. ये लो गाड़ी की चाबी...! हमें बहुत डर लग रहा है साहेब.." मोहन के बिना बताए ही ये बात झलक रही थी की वो कितना डरा हुआ है...

विकी ने ड्रॉयर से निकाल कर एक थैला उसको थमा दिया..," पैसे गिन ले.. और अपना फोने मुझे दे.. पैसे घर पहुँच जाएँगे तो माधव तुम्हारी बात करा देगा.. जब तक काम पूरा नही होता.. तू यहीं रहेगा... समझा.."

"ठीक है साहब.. पर मेरे घर वालों पर कोई आँच..."

"तू परवाह मत कर.. मैं देख लूँगा.. पीछे वाले कमरे में जा और दारू शारू गटक जी भर कर.. मलिक की तरह रह..! ऐश कर..."

"ठीक है साहब.." बॅग में 500 की गॅडडीया देखकर मोहन की आँखें चमक उठी," साहब.. वहाँ आज ही जाना है.. मॅ'म साहब को लेने..."

"यार.. मेरा एक काम कर देगा..प्लीज़!"... राज ने स्कूल आते हुए वीरेंदर से कहा...

"अगर उन्न छिपकलियो से रिलेटेड कोई काम है तो बिल्कुल नही...." वीरेंदर ने राज को शंका की द्रिस्ति से देखा...

स्कूल का तीसरा दिन था... प्रिया के करारे हुष्ण का सुरूर राज पर चढ़ता ही जा रहा था.. वीरू भी समझा समझा कर पक गया था.. पर ढाक के तो वही तीन पात...

"यार कोई ऐसा वैसा काम नही है... ज़रूरी है.. पढ़ाई से रिलेटेड..." राज के चेहरे पर गिड़गिडाहट सी उभर आई...

"बोल!" रूखा सा जवाब दिया...

"आ.. वो क्या है की.. छुट्टियों से पहले के प्रॅक्टिकल्स कॉपी करने हैं मुझे... अगर तू.... प्रिया से माँग दे तो... प्लीज़.."

"क्यूँ? प्रिया से क्यूँ.. मैं क्या मर गया हूँ साले..." वीरेंदर की आँखों से प्रतीत हो रहा था कि वो भी उस अचानक बने आशिक से हार मान चुका है... मन ही मन मुस्कुरा रहा था..

"समझा कर यार.. उसने अच्छे से लिखा होगा... माँग देगा ना यार.."

"अच्च्छा.. इश्क़ तुम फरमाओ.. और बलि पर मैं चढ़ु.. ना भाई ना.. अगर बोलने तक की हिम्मत नही है तो छ्चोड़ दे मैदान.." वीरेंदर ने राज का मज़ाक ही तो बना लिया...

"अच्च्छा .. तो तू समझता है की मैं खुद नही कर सकता..." राज ने बंदर घुड़की दी...

"तो कर ले ना यार.. मुझ पर क्यूँ चढ़ रहा है.. जा कर ले..!" वो क्लास में घुसे ही थे की वीरेंदर की करतूत ने राज का चेहरा पीला कर दिया," प्रिया! इसको तुमसे कुच्छ चाहिए...."

राज को काटो तो खून नही.. वो इसके लिए कतयि तैयार नही था.. और कोई लड़की होती तो वो बेबाक ही कह देता.. पर यहाँ तो दाढ़ी में तिनका था.. वह कभी अपनी सीट पर जा बैठे वीरेंदर को तो कभी दरवाजे की और देखने लगा....

आकर्षण की आग दूसरी तरफ थी या नही ये तो पता नही.. पर तिनका तो वहाँ भी मिल ही गया.. उठते बैठते रिया प्रिया को याद दिलाती रहती थी की राज उनकी ही और घूर रहा है.... मतलब तो वो भी समझती ही होगी.. पागलों की तरह एकटक देखते रहने का...

प्रिया ने एक बार राज की और देखा.. नज़रें झुकाई.... फिर उठाई और झुका ली... झुकाए ही रही...

"हां.. क्या चाहिए?" रिया बोल पड़ी.. हालाँकि आवाज़ बहुत मीठी थी पर राज के सीने में तीर की तरह चुभि...

"ववो.. केमिस्ट्री क्की.. प्रॅक्टिकल फाइल... एक बार चाहिए थी... एक बार.. बस!" राज को एक लाइन बोलने में इतनी मेहनत करनी पड़ी की पसीने से तर हो गया...

रिया ने प्रिया का बॅग खोला और उसमें से फाइल निकल कर देदी...

राज ने काँपते हाथो से फाइल पकड़ी और अपनी सीट की और रुख़ कर लिया...

"तूने.. मेरी फाइल क्यूँ दी.. अपनी दे देती.." प्रिया रिया के कान में फुसफुसाई...

"मुझसे थोड़े ही माँगी थी.. प्रिया से चाहिए थी ना!" कहकर रिया खिलखिला पड़ी...

राज का चेहरा देखने लायक था.. हालाँकि उसकी मंशा कामयाब हुई.. पर बे-आबरू सा होकर...

फाइल के एक एक पन्ने को राज इश्स तरह पलट रहा था.. जैसे वह गीता हो... बड़े प्यार से.. बड़ी श्रद्धा से..

ना तो प्रिया अपनी फाइल को वापस माँग पाई और ना ही उस दिन राज उसको वापस कर पाया...

चमचमाती हुई मर्सिडीस होस्टल के गेट के बाहर रुकी.. जानबूझ कर विकी ने ड्राइवर वाली ड्रेस नही डाली थी.. ब्लॅक जीन और कॉलर वाली वाइट टी-शर्ट में सरकार बदले बदले नज़र आ रहे थे.. वरना तो सफेद कुर्ता पाजामा उसकी शख्शियत की पहचान बन चुके थे.. बॅक व्यू मिरर को अड्जस्ट करके उसने एक सरसरी सी नज़र अपने ही चेहरे पर डाली.. 'वह क्या लग रहा है तू' ...विकी मॅन ही मॅन बुदबुडाया और कमर के साथ टँगी माउज़र निकाल कर सीट के नीचे सरका दी...

रेबन के पोलेराइज़्ड गॉगल्स पहने जब नीचे उतरा तो गेट्कीपर बिना सल्यूट किए ना रह सका.. वरना तो वहाँ अगर गार्जियन आते भी थे तो बॅक सीट पर बैठकर....

"सलाम साहब! गाड़ी अंदर ले जानी है तो गेट खोल दूं?"

"नही.. मिस स्नेहा को बोलो ड्राइवर आ गया है.. उसको लेने..!" विकी ने बाहें फैलाकर आसमान को निहारते हुए अंगड़ाई ली...

"ड्राइवर?????.... आप?" गेट्कीपर आसचर्या से जूतों से लेकर गॉगल्स तक पॉलिटीशियन विकी से जेंटलमेन विकी में तब्दील हुए शक्ष को घहूरता चला गया...

" 6 फीट 1 इंच!" विकी ने उसकी आँखों में आँखें डालकर कहा...

"क्या?"

"मुझे लगा मेरी हाइट माप रहे हो.." विकी मुस्कुराया...

"रूम नंबर. क्या है..?

"247! जल्दी करो..." विकी को जल्दी थी.. चिड़िया को लेकर उड़ जाने की...

गेट्कीपर ने एक नंबर. डाइयल किया..," हेलो मॅ'म! रूम न. 247 से स्नेहा जी को नीचे भेज दो... ड्राइवर जी... सॉरी.. आ.. उनका ड्राइवर लेने आया है.." वह अब भी फटी नज़रों से विकी को निहार रहा था....

"ओ तेरी.. क्या पीस है???" दूर से एक लड़की को आते देख विकी की हड्डियाँ तक जम गयी.. 'नही नही.. ये तो स्नेहा हो ही नही सकती.. कहाँ वो बदसूरत मुरारी.. और कहाँ ये हुश्न की परी... वो तो शायद अपने दोनो हाथ उठाकर भी इसकी उँचाई को नही छ्छू सकता... पर विकी खुदा की उस हसीन कृति से नज़रें ना हटा सका...

ज्यों ज्यों लड़की करीब आती गयी.. उसके छ्होटे कपड़ों में छिपे अनमोल खजाने को विकी अपनी पारखी नज़रों से परखने लगा..

करीब 5'8" की हाइट होगी.. कमर तो मानो थी ही नही.. 26" की कमर भी कोई कमर होती है.. उसकी जैसे दूधिया रंग में पूती जांघों पर फँसी हुई गुलाबी रंग की मिनी स्कर्ट पीछे से उसको मुश्किल से ही ढक पा रही होगी... उपर सफेद रंग की चादर सी सिलवटों से भरी पड़ी थी.. उसको क्या कहते हैं.. विकी को अंदाज़ा नही था.. पर वो सिलवटें भी शानदार उभारों का साइज़ च्छुपाने में सक्षम नही थी.. वहाँ से कपड़ा टाइट था.. एकद्ूम.. चलने के साथ ही उसके लूंबे बॉल इधर उधर लहरा रहे थे.....

अचानक विकी का कलेजा मुँह को आ गया जब उस लड़की की मीठी सी आवाज़ उसके कानो में पड़ी...,"कहाँ है.. ड्राइवर?"

गेट्कीपर बिना कुच्छ बोले विकी की और देखने लगा..

"ड्राइवर??? आप.." लगभग वही प्रतिक्रिया स्नेहा की थी.. जो कुच्छ देर पहले गेट्कीपर प्रदर्शित कर चुका था... फिर संभालते हुए उसने अपनी गाड़ी को पहचाना और बोली," गाड़ी अंदर ले आओ..!"

विकी ने गाड़ी स्नेहा के बताए अनुसार ले जाकर रोक दी और बाहर निकल कर खड़ा हो गया...

"समान कौन रखेगा..??"

"क्या ? ओह सॉरी.." विकी को बात सुनकर एकबार गुस्सा आया पर अगले ही पल वो संभाल गया..," कहाँ है..?"

"लगता है.. एक्सपीरियन्स नही है.. आओ.." और कहकर स्नेहा अंदर से लाकर समान रखवाने में उसकी मदद करने लगी....

"आ.. तुमने कब से नौकरी जाय्न की है..?" स्नेहा ने चहकते हुए पूचछा...

"पैदाइशी नौकर हूँ...!" विकी ने तल्ख़ लहजे में जवाब दिया.... दोनो हॉस्टिल से करीब 5 कि.मी आ चुके थे.. जब स्नेहा से चुप ना रहा गया...

"शकल से लगते नही हो.. अब तक तो पापा खूसट ड्राइवर रखा करते थे...!"

"हूंम्म!" विकी ने उसी रफ़्तार से गाड़ी चलाना जारी रखा...

"वैसे हम जा कहाँ रहे हैं.." स्नेहा ने आगे वाली सीट की और झुकते हुए कहा...

"जहाँ कहो...!" विकी अपने प्लान पर काम कर रहा था.. मंन ही मंन.. उसको यकीन नही हो रहा था की वो इतनी आसानी से पहली सीढ़ी पार कर लेगा...

"माउंट आबू चलो.. हमारे स्कूल की ट्रिप वहीं गयी है.."

"नही.. मुझे वो जगह पसंद नही है... कहीं और बोलो..." विकी भला उसके स्कूल की ट्रिप में उसको शामिल कैसे करता...

"व्हाट डू यू मीन बाइ तुम्हे पसंद नही है.. डोंट फर्गेट यू आर ए ड्राइवर... चलो! हम वहीं चलेंगे..."

"नही.. जहाँ मेरा मॅन नही मानता; वहाँ में नही जाता.. कहो तो वापस हॉस्टिल छ्चोड़ दूं...." विकी ने अपने कंधे उचका कर अपना इरादा बता दिया...

"बड़े ईडियट किस्म के ड्राइवर हो.. अगर पापा कहते तो भी नही जाते क्या..?" स्नेहा के माथे की थयोरियाँ पर बल पड़ गये...

"उस.. उनकी बात और है... मैं उनका ड्राइवर हूँ.." कहते हुए विकी का जबड़ा भिच गया था..

"तो मेरे क्या हो?"

"मोहन... मेरा नाम है.... बाकी जो तुम कहो..!" विकी ने रेस पर से दबाव हटाते हुए बोला....

"हे! तुम्हे नही लगता तुम कुच्छ ज़्यादा ही बोलते हो..... एर्र्ररर.. ये गाड़ी क्यूँ रोक दी..?" स्नेहा को अब हर बात अजीब लग रही थी....

"पेशाब करना है.. तुम भी कर सकती हो.. सुनसान जगह है...!" विकी ने खिड़की खोली और बाहर निकल गया....

स्नेहा निरुत्तर हो गयी.. उस'से इतनी बदतमीज़ी से बात करने की हिम्मत आज तक किसी में नही थी..

विकी सड़क किनारे चलता हुआ करीब 10 ही कदम आगे गया होगा... उसने अपनी ज़िप सर्काई और अपना 'लंबू' बाहर निकाल लिया.. वो तो तब से ही बाहर आने को तड़प रहा था.. जब उसने गेट की तरफ मादक अंदाज में मटकती आ रही स्नेहा को देखा था.. बाहर आते ही 2-3 बार उपर नीचे हुआ..

विकी ने जानबूझ कर अपने आपको इश्स पोज़िशन में खड़ा किया था की अगर चाहे तो आसानी से स्नेहा उस भारी भरकम 'जुगाड़' को देख सके...

विकी वापस आया तो स्नेहा का चेहरा तपते अंगारे की तरह लाल हो चुका था.. मानो उसने कोई अनोखी चीज़ देख ली हो.. नज़रें लजाई हुई थी.. जांघे एक दूसरी के उपर चढ़ि थी.. और होंठ तर हो चुके थे.. शायद जीभ घूमकर गयी

होगी...

विकी ने वापस आने पर हर एक चीज़ नोट की थी.. पर रेप उसके प्लान में नही

था.. स्नेहा को इश्स कदर पागल कर देना था की वो कुँवारी हो या रंडी बन चुकी हो.. पके हुए फल की तरह उसकी गोदी में आ गिरे....

"तो बताया नही.. कहाँ चलें...?" विकी ने सीट पर बैठकर गाड़ी स्टार्ट करते हुए कहा...

"जहन्नुम में..." कहकर स्नेहा ने अपना मुँह बाहर की और कर लिया....

"वो भी मुझे पसंद नही... मैं तो जन्नत में रहता हूँ.. ऐश करता हूँ!"

विकी की इश्स हाज़िरजवाबी पर स्नेहा मुस्कुराए बिना ना रह सकी... ," ठीक है फिर.. वहीं चलो!"

"कहाँ?"

"जन्नत में.. और कहाँ..."

"नही.. तुम अभी उस लायक नही हो...!"

"आ तुम पागल हो क्या? एक भी बात का सीधा जवाब नही देते.. मैं तो खुश हो गयी थी.. तुम्हे देखकर.. की पहली बार कोई ढंग का ड्राइवर भेजा है.... तुम हो की.......," ओईईईई मुंम्मी.... ये यहाँ कैसे...?"

विकी ने गाड़ी रोक दी.... पलटा तो चौंक गया..," ययए मुझे दो..!"

"पर ये गाड़ी में कैसे रह गयी... इसको तो पापा के पास होना चाहिए..." स्नेहा हैरत से माउज़र को देख रही थी...," मैं पापा के पास फोन करती हूँ.."

"न्नाही.. कोई ज़रूरत नही है.. ये मेरी है.. पर तुम्हे कैसे मिली.." विकी ने उसके हाथ से माउज़र ले ली...

"ववो.. मैने अपनी टाँग सीधी की तो मेरी सेंडल सीट में फँस कर निकल गयी.. उसको निकाल रही थी तो... पर तुम्हारे पास माउज़र.. तुम सच में अजीब आदमी हो.. इतने महँगे शौक!" स्नेहा उसको अजीब तरीके से देख रही थी....

"वो दरअसल मैं ड्राइवर नही हूँ.. एस.ओ. हूँ तुम्हारे पापा का...!" विकी तब तक सँभाल गया था...

"श.. ई सी!" स्नेहा के भाव विकी के लिए अचानक बदल गये...," सॉरी.. मैने आपसे ग़लत सुलूक किया हो तो..."

"कहाँ चलें...?" विकी ने सवाल किया...

"कहीं भी.. जहाँ तुम चाहो.. बस मुझे खुली हवा में साँस लेनी है.. आप सच में ही कमाल के हो... उ हूऊऊऊऊओ.." स्नेहा ने शीशा नीचे करके बाहर मुँह निकाला और ज़ोर की चीख मारी.. आनंद और लापरवाही भरी चीख....

विकी कुच्छ ना बोला... उसके प्लान का दूसरा हिस्सा कुच्छ ज़्यादा ही जल्दी कामयाब हो गया... स्नेहा का विस्वास जीतने वाला हिस्सा...

गाड़ी सड़क पर एक बार फिर तेज़ गति से दौड़ पड़ी....

"एक मिनिट रोकोगे प्लीज़.. "

"क्या हुआ..?"

"ओहो.. रोको भी..."

"बताओ तो सही.. हुआ क्या है आख़िर..."

"लड़कियाँ लड़कों की तरह बेशर्म नही होती... जल्दी रोको प्लीज़.." स्नेहा के चेहरे पर बेचैनी सॉफ झलक रही थी...

"श.." कहते हुए विकी ने ब्रेक लगा दिए....

स्नेहा गाड़ी से नीचे उतरते ही तेज कदमों से पास की झाड़ियों की तरफ चल दी.. उसकी गान्ड की लचकान देखकर विकी आह भर उठा.. पर कंट्रोल ज़रूरी था... दिमाग़ से काम लेना था इश्स बार!

नज़रों से औझल होते ही विकी ने उसके पर्स में हाथ मारा.. मोबाइल उपर ही मिल

गया.. विकी ने उसको साइलेंट करके अपनी पॅंट की जेब में डाल लिया...

स्नेहा की पेशाब करने की प्यारी आवाज़ ने विकी की धड़कने और बढ़ा दी.. स्नेहा कुँवारी थी.. बिल्कुल कुँवारी.. विकी पेशाब करने की आवाज़ से ही इश्स बारे में कन्फर्म्ड हो गया.. हाथ के इशारे से उसने पॅंट में कुलबुला रहे यार को शांत रहने की नसीहत दी....

स्नेहा वापस आई तो उसकी आँखों में लज्जा सी थी.. एक अपनापन सा था.. एक चान्स था!

"मैं आगे बैठ जाउ?" पेशाब करके वापस आई स्नेहा के मंन में अब आदेश नही.. आग्रह था...

"क्यूँ नही..!" कहकर विकी ने अगली खिड़की खोल दी..

"श थॅंक्स... एक बात बोलूं?" स्नेहा ने अपने आपको अगली सीट पर अड्जस्ट किया...

"हूंम्म... बोलो!" विकी ने हुल्की सी मुस्कान उसकी और फैंकी.. दरअसल वो उस अधनंगे कमसिन बदन को देखकर बड़ी मुश्किल से अपनी बेकरारी छिपा पा रहा था.. चिकनी जांघें बेपर्दा सी उसकी नज़रों के सामने थी.... एक दूसरी से चिपकी हुई!

"मुझे शुरू में ही शक़ था की तुम ड्राइवर तो कम से कम नही ही हो.. तुम तो एकदम हीरो लगते हो...!" स्नेहा अपनी शर्ट को नीचे खींचती हुई बोली.. जो सिमट कर उसकी नाभि तक पहुँच गयी थी...

"हूंम्म.. बिना हेरोयिन के भी कोई हीरो होता है भला..." जाने विकी बात को कहाँ घुमा रहा था...

"मतलब!" क्या सच में वो मतलब नही समझ पाई होगी...?

"कुच्छ नही.. बस ऐसे ही...!"

"मतलब तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नही है.. है ना?" स्नेहा ने हुल्की सी मुस्कान उसकी तरफ फैंक दी...

गर्ल फ.... सुनते ही अनगिनत सुंदर चेहरों की कतार सी विकी की आँखों में घूम गयी.. पर प्रत्यक्ष में वो कुच्छ और ही बोला..," कुच्छ ऐसा ही समझ लो..! कोई मिलती ही नही...!"

"उदास क्यूँ होते हो.. जब तक हम हैं.. हूमें ही समझ लो.." स्नेहा ने कातिल मुस्कान उसकी और फैंकते हुए कहा...

"सच!" मानो विकी को बिन माँगे ही मोती मिल गया हो.. इतनी देर से उस पर टूट पड़ने को बेताब विकी का हाथ एक दम से उसकी जांघों पर जाकर चिपक गया...

"आएययी.. ऊउउउउ..." स्नेहा ने एक दम से उसका हाथ दूर पटक दिया," स्टॉप दा कार... आइ सेड स्टॉप दा कार...!" अचानक से स्नेहा का चेहरा तमतमा उठा...

विकी के दिल में आया की गाड़ी रोक कर अभी उसको अपनी गोद में बैठकर झूला दे.... उसको लगा मामला तो बिगड़ ही गया है.. पर फिर भी उसने संयम रखा और गाड़ी रोक दी....

"तूमम.. तुम बहुत बदतमीज़ हो.. तुमने किस बात का क्या मतलब निकाल लिया.." कहते हुए स्नेहा ने गुस्से से खिड़की पटकी और पीछे जाकर बैठ गयी... उसकी आँखों में आँसू थे....

उसके बाद करीब 2 मिनिट तक गाड़ी में कोई हुलचल नही हुई... आख़िरकार विकी को ही चुप्पी तोड़नी पड़ी..," चलें?"

स्नेहा कुच्छ ना बोली... अपनी आँखें मसल मसल कर वो लाल कर चुकी थी...

विकी किसी भी तरह बात को संभाल लेना चाहता था..," सॉरी... वो... मैं समझा की........"

"क्या समझे तुम... हां.. क्या समझे..? यही की मैं कोई आवारा लड़की हूँ... यही की लड़की के लिए उसकी इज़्ज़त.. उसकी आबरू कोई मायने नही रखती.. बोलो!" स्नेहा का ये रूप विकी के लिए किसी आठवे अजूबे से कम नही था.. उसकी आँखों से विकी के प्रति क्षणिक घृणा और ग्लानि भभक रही थी," सारे मर्द भेड़िए होते हैं.. मैने हंसकर दो बात क्या कर ली... तुम जैसे लोगों के लिए गर्लफ्रेंड का एक ही मतलब होता है....!" स्नेहा का हर अंग एक ही भाषा बोल रहा था.. तिरस्कार तिरस्कार और तिरस्कार....

विकी की तो बोलती ही बंद हो गयी.. हालाँकि उसकी शरारती आँखें पूच्छ रही थी..," देवी जी! ऐसे कपड़ों में कोई नारी को पूज तो नही सकता!" पर मामला और बिगड़ सकता था.. इसीलिए आँखों की बात ज़ुबान तक वो लेकर नही आया..," मैने बोला ना सॉरी! आक्च्युयली तुम ऐसी... हो की मैं रह ना सका.. मेरे ज़ज्बात काबू में ना रहे.. अब तो माफ़ कर दो...!"

नारी की सबसे बड़ी कमज़ोरी.. खुद को शीशे में देखकर इतराना और खुद की प्रसंशा सुनकर सब कुच्छ भुला देना.. स्नेहा भी अपवाद नही थी.. विकी की इश्स बात से उसके कलेजे को अजीब सी ठंडक पहुँची जिसकी खनक उसके अगले ही बोल में सुनाई दी," अब चलो भी... अंधेरा हो रहा है.. रात भर यहीं पड़े रहोगे क्या...?" स्नेहा ने अपने आँसू पोंच्छ दिए या हुश्न की तारीफ़ की लेहायर उन्हे उड़ा ले गयी.. पता ही नही चला.. आँखों में आँसुओं का स्थान अब चिरपरिचित चमक ने ले लिया था... गाड़ी फिर दौड़ने लगी....

"अब मौन व्रत रख लिया है क्या? कुच्छ बोलते क्यूँ नही..." लड़की थी.. भला चुप कैसे रहती... 10 मिनिट की चुप्पी ने ही स्नेहा को बोर कर दिया...

विकी कुच्छ नही बोला.. नारी की हर दुखती राग को वह पहचानता था...

"श गॉड! लगता है फोन हॉस्टिल में ही रह गया...! मुझे पापा को फोन करना था...!" स्नेहा अपने पर्स को खंगालने लगी... पर फोन मिलना ही नही था.. वो तो विकी की जेब में पड़ा था.. साइलेंट!

"एक बार अपना फोन देना...!" स्नेहा ने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया...

विकी ने मोहन वाला फोन निकल कर स्नेहा को पकड़ा दिया.....

करीब 3 बार फोन करने के बाद मुरारी ने फोने उठाया," साले.. पिल्ले के बच्चे.. कितनी बार बोला है..... रंग में भंग मत डाला कर...!"

स्नेहा को उसके पापा के पास दो लड़कियों के हँसने खिलखिलाने की आवाज़ सुनाई दी..," ओह डार्लिंग! यू आर सो हॅंडसम.. मुऊऊउऊन्हा!"

स्वेता का दिल बैठ गया," पापा! ... मैं हूँ...!" अपने पापा का रंगीलापन देख उसका नरित्व शर्मसार हो गया....

"ओह्ह्ह.. मेरी बच्ची! कैसी हो.. मोहन पहुँच गया ना...!"

"हां पापा.. मैं फोने रखती हूँ..." कहकर उसने फोन काटा और गुस्से से पटक दिया....

"क्या हुआ?" विकी ने अचरज भरी नज़रों से मिरर में देखा...

"कुच्छ नही.. बस बात मत करो.. मेरा मूड खराब है!"

"हुआ क्या है?... अगर मुझे बताने लायक हो...." विकी ने गाड़ी की रफ़्तार धीमी कर दी...

"बोला ना, कुच्छ नही.. पर्सनल बात थी.... तुम बताओ.. तुम कहाँ के हो.. इश्स'से पहले कहाँ थे.. वग़ैरह वग़ैरह...." स्नेहा ने बात को टालते हुए कहा...

"हमारा क्या है मेडम..! रोटी के लिए आज यहाँ कल वहाँ... जिंदगी तो तुम जैसे बड़े लोगों की होती है.. ऐश ही ऐश.. ना कोई चिंता.. ना फिकर.. !" विकी ने अपने पत्ते फैक्ने शुरू कर दिए थे.....

"ऐसा क्यूँ कहते हो...? क्या मेरी एक भी बात से तुम्हे लगा की मुझ में बड़े होने का कोई गुमान है.. मैने तो जब से होश संभाला है.. बस इश्स अनाथाश्रम जैसे हॉस्टिल में ही रह रही हूँ... पापा कभी मुझे घर लेकर ही नही जाते.. ले भी गये तो दिन के दिन वापस..." स्नेहा की आँखें सूनी हो गयी.. मानो अपनेपन की तलास में भटक भटक कर थक गयी हों...

"पर... ये तो बहुत जाना माना हॉस्टिल है.. अनाथाश्रम कैसे?.. और आप भी तो.. एक्दुम परियों के जैसे रहती हो.. बेइंतहा कर..." विकी ने बात को आगे बढ़ाया!

"अनाथ उसी को कहते हैं ना... जो बिना मा-बाप के रहता हो! मम्मी को तो कभी देखा ही नही.. बस पापा हैं... वो भी.." कहते हुए स्नेहा का गला रुंध गया... जिसके अपने 'अपने' नही होते... वह सबको अपना मान'ने लगता है.. किसी को भी!

"आप ऐसा क्यूँ कह रही हैं मॅम साहब!.. आप तो...."

"ये मेमसाहब मेमसाहब क्या लगा रखा है.. मैं स्नेहा हूँ.. मुझे मेरे नाम से बुलाओ!"

विकी जानता था.. लड़कियाँ ऐसा ही बोलती हैं.. जब कोई उनको अच्च्छा लगने लग जाए..," पर मॅम.. सॉरी.. पर मैं तो आपका नौकर हूँ ना!"

"नौकरी गयी तेल लेने... मुझे अब और घुटन नही चाहिए.. मैं जीना चाहती हूँ.. कम से कम.. जब तक तुम्हारे साथ हूँ.. ओके? कॉल मी स्नेहा ओन्ली.. वी आर फ्रेंड्स!" कहकर स्नेहा ने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया.. फ्रेंडशिप का प्रपोज़ल देकर...

विकी ने स्नेहा का कोमल हाथ अपने बायें हाथ में लपक सा लिया,"मैं.. अब क्या कहूँ.. आप को समझ ही नही पा रहा.. इतनी जल्दी गुस्सा हो जाती हैं.. तो उतनी ही जल्दी फिर से...!"

"सच बताओ.. मैं तुम्हे गुस्सैल दिखती हूँ... वो.. उस समय तो... खैर.. हम चल कहाँ रहें हैं.. ये तो बताओ..." स्नेहा धीरे धीरे लाइन पर आ रही थी...

"एक मिनिट..." कहते हुए विकी ने गाड़ी रोकी और बाहर निकल गया.. घना अंधेरा असर दिखाने लगा था... रात हो गयी थी...

"हेलो.. माधव!"

"हां भाई..? सब ठीक तो है ना.. कहाँ हो.. तुम्हारा फोन भी ऑफ आ रहा है..." माधव चिंतित लग रहा था...

"अरे मैं बिल्कुल ठीक हूँ.. और वो मेरे साथ ही है.. सब तरीके से हो रहा है.. किसी बूथ से फोन करवा मुरारी को.. बोल दे की उसकी बेटी किडनॅप हो गयी है.. जल्दी करना.. अब रखता हूँ.. हां.. मोहन को संभाल कर रखना.. उसको टी.वी से दूर रखना...." कहकर विकी ने फोन काट दिया.... और ऑफ कर दिया...!

वापस आया तो स्नेहा बेचैनी से उसकी राह देख रही थी...," कहाँ चले गये थे.. मुझे डर लग रहा था.."

विकी अपनी अनामिका (छ्होटी उंगली) खड़ी करके मुस्कुराया और गाड़ी में बैठ गया...

"तुम भी ना.. इतनी जल्दी!" कहकर स्नेहा खिलखिलाने लगी.. विकी ने भी हँसने में उसका साथ दिया.. सुर मिलने लगे थे.. दूरियाँ कम होने लगी.. एक अपनापन सा अंगड़ाई लेने लगा.....

गाड़ी फिर चल दी.... पता नही कौन्से रोड पर गाड़ी चल रही थी.. स्नेहा को जान'ने की कोई जल्दी नही थी.. पर विकी को फिकर थी.. अब गाड़ी जल्द से जल्द बदलना ज़रूरी हो गया था.....

साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,

मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..

मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,

बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ

आपका दोस्त

राज शर्मा
Reply
11-26-2017, 01:15 PM,
#75
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --36

हेलो दोस्तो मैं यानी आपका राज शर्मा गर्ल्स स्कूल पार्ट 36 लेकर आपके लिए हाजिर हूँ

ये पार्ट आपको कैसा लगा लिखना मत भूलना

" स्नेहा जी.. हमें आगे से दूसरी गाड़ी लेंगे!" विकी ने सहज भाव से कहा...

"क्यूँ?" स्नेहा के पल्ले बात नही पड़ी...

"आपके पापा का आदेश है..." विकी ने बिना कोई भाव चेहरे पर लाए कहा...

"पर क्यूँ.. व्हाई दा हेल वी.... दिस कार इस सो कंफर्टबल यू नो..." स्नेहा को सौ सौ कोस तक भी अंदाज़ा नही था की फिलहाल कुच्छ भी उसके पापा की मर्ज़ी से नही हो

रहा है....

" अब मैं तो पॉलिटिक्स में नही हूँ ना.. स्नेहा जी! उनकी बातें.. वही जाने.."

" तुम्हारी कितनी उमर है....?"

"27 साल!"

"मैं तुमसे 8 साल छ्होटी हूँ.. ये नाम के साथ आप और जी लगाना बंद करो.. नही तो में तुम्हे अंकल जी कहना शुरू कर दूँगी.. समझे!" शरारती मुस्कान पल भर के लिए स्नेहा के कमनीया और मासूम से चेहरे पर दौड़ गयी..

" ओके! तो फिर क्या बोलूं..? तुम ही बता दो..." विकी ने भी स्टाइल मारने में देर नही लगाई...

"स्नेहा! ... चाहो तो सानू भी बोल सकते हो.. मेरी फ्रेंड्स मुझे यही कहती हैं.. मुझे बड़ा अच्च्छा लगता है..." स्नेहा अगली सीट के साथ सर टिका कर विकी को निहारने लगी...

"ओक.. सानू! बहुत प्यारा नाम है.. सच में..." विकी ने नज़र भर कर सानू की और देखा.. और तुरंत गाड़ी एक इमारत के साथ रोक दी...

"क्या हुआ... ?" स्नेहा की आवाज़ में अब कुच्छ ज़्यादा ही मिठास आ गयी थी...

तभी अंधेरे को चीरती हुई एक लंबी सी गाड़ी वहाँ आकर रुकी.. कौनसी थी.. ये दिखाई नही दिया...

स्नेहा के लिए वो जगह बिल्कुल अंजानी थी.. और वो चेहरे भी.. जो गाड़ी से उतरे.. एकद्ूम काले कलूटे.. बेढंगे से.. स्नेहा उनको देखकर सहम सी गयी.. वो तीनो उन्ही की और बढ़े आ रहे थे...

"ये कौन हैं.. ये सब क्या है..?" भय के मारे स्नेहा खिड़की से जा चिपकी...

पर विकी के बोलने से पहले ही स्नेहा को जवाब मिल गया..

उन्न तीनो में से एक ने विकी की खिड़की खोली...," लड़की को उतार दो... तुम्हारा काम ख़तम हुआ..."

स्नेहा को काटो तो खून नही.. इसकी तो उसने कभी कल्पना भी नही की थी...

"सोनू! तुम्हे अब इनके साथ जाना होगा... साहब का यही आदेश था...!" विकी ने पिछे देखते हुए कहा...

"नही.. मैं नही जाउन्गि.. मुझे नही जाना कहीं... मुझे वापस छ्चोड़ आओ.. हॉस्टिल में.." स्नेहा के दिल में उन्न चेहरों को देखकर ही इतना डर समा गया था की उसने अपने दोनो हाथ प्रार्थना की मुद्रा में जोड़ लिए...

" ठीक है.. मैं बात करके देखता हूँ.. " कहकर विकी नीचे उतर गया...

" स्नेहा तुम लोगों के साथ नही जाना चाहती.. मैं उस गाड़ी में ले जाता हूँ.. स्नेहा को.. तुम लोग ये ले जाओ..." विकी की ये बात सुनकर स्नेहा के दिल में हुल्की सी ठंडक पहुँची.. पर वो ज़्यादा देर तक कायम ना रह सकी...

" तुम अपनी नौकरी करो.. और हमें हमारा काम करने दो... हमें लड़की को उठाकर ले जाने के पैसे मिले हैं.. गाड़ी को ले जाने के नही.. अब चलो फूटो यहाँ से..." तीनो में से एक ने कहा...

स्नेहा थर थर काँप रही थी... क्यों हुआ.. कैसे हुआ.. इसकी उसको फिकर नही थी.. बस जान बच जाए; बहुत था.. उसने खिड़की खोली और विकी से जाकर चिपक गयी.. ," नही.. प्लीज़.. मुझे मत भेजना.. छ्चोड़कर मत जाना... मैं मार जाउन्गि..." स्नेहा ने अपनी आँखें बंद कर ली थी...

आआअह... विकी के लिए ये सब किसी हसीन सपने से कम नही था.. स्नेहा के जिस्म का कतरा कतरा अपनी महक विकी में छ्चोड़ रहा था.. सब कुच्छ विकी के प्लान के मुताबिक ही हो रहा था.. पर ये वक़्त कुच्छ करने का था..," नौकरी गयी भाड़ में... अगर सानू कह रही है कि उसको तुम्हारे साथ नही जाना.. तो मैं इसको नही भेजूँगा.. जाकर साहब को बता देना.... कि स्नेहा ने मना कर दिया... चलो अब भागो यहाँ से...."

" ऐसे कैसे भाग जायें.. अभी तो सिर्फ़ पैसे लिए हैं... इसकी भी तो लेनी है अभी.. 7 रातों की बात हुई है हमारी.. इसको कुँवारी थोड़े रहने देंगे.. चोद..." कहते हुए जैसे ही उनमें से एक आदमी ने अपना हाथ स्नेहा की और बढ़ाया.. विकी ने अपनी दाहिनी तरफ सानू को अपने आगोश में समेटे बायें हाथ की मुठ्ठी कसी और ज़ोर से एक दमदार घूँसा उसकी ओर लपक रहे आदमी को जड़ दिया...

नाटक चल रहा था.. पर शायद घूँसा असली था.. उस आदमी के पैर उखड़ गये और अपनी नानी को याद करता हुआ वो शक्श पीठ के बल ज़मीन पर जा गिरा..," आयाययू!"

स्नेहा अब और भी डर गयी.. क्या छाती क्या जांघें.. सब छुप जाना चाहते थे.. विकी में समा जाना चाहते थे..

गिरा हुआ आदमी उठ नही पाया... दूसरे ने चाकू निकाल लिया.. लूंबे फन वाला... धारदार!

"ओह्ह्ह..." ये क्या हुआ.. रिहर्सल की कमी थी.. उस आदमी को चाकू मारना था और विकी को उसको बीच में ही लपकना था... पर बायें हाथ की वजह से वो चूक गया और चाकू करीब एक इंच विकी के कंधे में जा बैठा.....

"साले.. तेरी मा की.. मुझे चाकू मारा.." दर्द से बिलबिला उठा विकी कुच्छ पल के लिए नाटक वाटक सब भूल गया.. स्नेहा को झटके के साथ अपने से दूर किया और उन्न दोनो पर पिल पड़ा.. तीन चार मिनिट में ही उनको इतने ज़्यादा लात घूँसे जमा दिए की उनको लगा अब भाई के सामने ठहरना बेकार है.. तीनो ने अपनी लंगोटी संभाली और नौ दो ग्यारहा हो गये.. गाड़ी वाडी सब वहीं छ्चोड़कर.....

अब जाकर विकी को स्नेहा का ख़याल आया.. वो आँखें फाडे विकी के इश्स प्रेपलन्नेड़ कारनामे को देख रही थी... जैसे ही विकी उसकी और घूमा.. वो दौड़ कर उस'से आ लिपटी.. इश्स बार डर से नही.. खुशी से..!

" जल्दी करो स्नेहा.. हमें अपना सारा समान दूसरी गाड़ी में डालना है...."

"पर... ये सब क्या है मोहन..? मेरी कुच्छ समझ नही आ रहा..."

" बताता हूँ.. अब तो सब कुच्छ बताना ही पड़ेगा... तुम जल्दी उस गाड़ी में बैठो...." विकी ने उसकी कमर सहलाते हुए बोला...

" नही.. मुझे डर लग रहा है.. तुमसे दूर नही जाउन्गि... एक पल के लिए भी....

"ओक.. तुम मेरे साथ ही रहो.." विकी ने स्नेहा के गालों पर हाथ फेरा और उसको बगल में दबाए.. गाड़ी से समान उतारने लगा...

"चलो बैठ जाओ...!" विकी ने पिच्छली खिड़की खोलते हुए स्नेहा को इशारा किया...

स्नेहा की जांघों में चीटियाँ सी रेंग रही थी.. उसको पता नही था की क्यूँ बस दिल कर रहा था की एक बार फिर से वैसे ही अपने 'मोहन' से चिपक जाए.. एक दम से वो उसकी पुजारीन सी बन गयी थी.. कुच्छ पहले तक उसको अपने बाप की जागीर समझने वाली स्नेहा अब खुद को उसकी जागीर बना बैठी थी.. और उसको अपनी तकदीर.. लड़कीपन ने अपना रंग दिखाना शुरू किया..," नही.. मैं भी आगे ही बैठूँगी.. मुझे डर लग रहा है पिछे बैठते हुए..." मानो विकी का साथ अब सबसे सुरक्षित था दुनिया में....

"ओ.के. सोनू मॅ'मसाहब! आ जाओ.." विकी मुस्कुराया...

विकी की मुस्कुराहट का जवाब सानू ने जीभ निकाल कर दिया.. और आगे जा बैठी...

गाड़ी चल चुकी थी.. प्लान के अगले पड़ाव की ओर..

"बताओ ना.. ये सब क्या था.. मुझे तो चक्कर आ रहे हैं... सोचकर ही.." स्नेहा सीट से उचकी और उसकी जांघों को नितंबों तक अनावृत करके पिछे सरक गयी अपनी मिनी स्कर्ट को दुरुस्त किया...

विकी संजीदा अंदाज में इश्स कपोल कल्पित रहस्या पर से परदा उठाने लगा," देखो सानू.. मैने जो कुच्छ भी कर दिया है.. उस'से मेरी नौकरी ही नही..जान भी ख़तरे में पड़ गयी है... और अब में जो कुच्छ बताने जा रहा हूँ.. उस'से पहले तुम्हे एक वादा करना होगा..."

"वादा किया!" सानू ने गियर पर रखे विकी के हाथ पर अपना हाथ रख दिया...

"पहले सुन तो लो.. क्या वादा करना है..?"

"नही.. मैने अभी जो कुच्छ भी देखा है.. उसके बाद तुम पर विस्वास ना करना.. मैं सोच भी नही सकती.. इतना तो कोई किसी अपने के लिए भी नही करता.... मैने वादा किया.. जैसा कहोगे.. वैसा करूँगी.. पर प्लीज़.. मुझे छ्चोड़ कर ना जाना.. अब!" स्नेहभावुक हो गयी...

"कभी भी?" वी की के दिल में गुदगुदी सी होने लगी... उसने एक पल के लिए स्नेहा की और देखा...

स्नेहा की आँखें झुक गयी.. पर झुकने से पहले बहुत कुच्छ कह गयी थी.. विकी के हाथ पर बढ़ गयी उसके हाथ की कसावट आँखों की भाषा को समझने की कोशिश कर रही थी....

"सब तुम्हारे पापा ने करवाया है....! तुम्हारी किडनॅपिंग का नाटक..!" विकी ने एक ही साँस में स्नेहा को बोल दिया...

अजीब सी बात ये रही की स्नेहा को इश्स पर उतना अचरज नही हुआ.. जितना होना चाहिए था," हाँ.. एक पल को सारी बातें मेरे जहाँ में घूम गयी थी.. पापा ने खुद ही मुझे घूम कर आने को कहा.. जबकि उन्होने मुझे स्कूल की लड़कियों के साथ भी जाने नही दिया.. 2 दिन पहले.. मुझसे ढंग से बात तक नही की.. फिर पापा ने गाड़ी बदलने की बात कही.. फिर ये लोग....!"

"... पर ऐसा किया क्यूँ उन्होने.... क्या चाहते हैं वो.. ऐसा करके.."

"पता नही.. पर जहाँ तक मेरा ख़याल है.. वो ऐसा करके एलेक्षन में लोगों की सहानुभूति बटोरना चाहते होंगे.. क्या पता मरवा भी देते..." विकी ने अपना नज़रिया उसको बताया...

सानू का चेहरा पीला पड़ गया... मुत्ठियाँ भिच गयी," पर इश्स'से उनको मिलेगा क्या..? लोगों की सहानुभूति कैसे मिलेगी...?" वो विकी के मुँह से निकली हर बात को पत्थर की लकीर समझ रही थी...

"ये राजनीति चीज़ ही ऐसी है सानू.. जाने क्या क्या करना पड़ता है...! हो सकता है की विरोधी पार्टी के लोगों पर आरोप लगायें.... एक मिनिट.. आगे पोलीस का नाका लगा हुआ है शायद.. तुम कुच्छ भी मत बोलना.. बस अपने चेहरे पर मुस्कान लाए रखना.. ध्यान रखना.. कुच्छ भी मत बोलना...."

"ओके! " कहकर सानू मुस्कुराने लगी.....

पोलीस वाले ने बॅरियर रोड पर आगे सरका दिया. विकी ने गाड़ी पास ले जाकर रोक दी... ," क्या बात है भाई साहब?"

"कुच्छ नही...! कहकर वो गाड़ी के अंदर टॉर्च मार कर आगे पिछे देखने लगा...," ये लड़की कौन है?"

"मेरी बीवी है.. क्यूँ?" विकी ने सानू को आँख मारी.. सानू को अहसास हुआ मानो आज वो सच में ही दुल्हन बन'ने जा रही हो.. अपने 'मोहन' की....

"सही है बॉस.. चलो!" पोलीस वाले ने हाथ बाहर निकाल लिया...

"अरे बताओ तो सही क्या हुआ...?" विकी ने अपना सिर बाहर निकाल कर पूचछा...

"क्या होना है यार.. वो ससुरे मुरारी की लड़की भाग गयी होगी.. कह रहे हैं किडनप हो गयी है.. है भला किसी की इतनी हिम्मत की उस साले की लौंडिया को उठा ले जाए.. हमारी नींद हराम करनी थी .. सो कर रखी है..."

स्नेहा का मुँह खुला का खुला रह गया.. वो बोलना चाहती थी.. पर उसको 'मोहन' की इन्स्ट्रक्षन्स याद आ गयी...

विकी ने गाड़ी चला दी....," सच में.. पॉलिटिक्स बड़ी कुत्ति चीज़ है.. कहकर विकी ने स्नेहा का फोन निकाल कर उसको दे दिया....

"ययए.. तुम्हारे पास...???" सानू चौंक गयी...

"क्या करें सानू जी.. साहब का हुक़ुम जो बजाना था.. उनको लगा होगा की कहीं तुम फोन करके उनकी प्लांनिंग ना बिगाड़ दो.. उन्होने ही बोला था.. तुमसे लेकर फैंक देने के लिए.. पर मैने चुरा लिया.. अब जो तुम्हारे पापा चाहते थे.. वो मेरे दिल को अच्च्छा नही लगा.. भला कोई कैसे अपनी बेटी को बलि की बकरी बना सकता है...!" विकी का हर पैंतरा सही बैठ रहा था..

"मैं उनको अभी मज़ा चखाती हूँ.... कहकर वो पापा का नंबर. निकालने लगी....

"नही सानू.. प्लीज़.. मैने वादा लिया था ना.. यही वो वादा है की मेरे कहे बिना वहाँ फोन नही करोगी... मेरे घर वालों की जान पर बन आएगी.. उनको यही लगना चाहिए की तुम्हे कुच्छ नही पता.... बस.. मेरे कहे बिना तुम किसी को कोई फोन नही करोगी...." विकी ने अपनी बातों के जाल में सानू को उलझा लिया...

"ठीक है.. पर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है...!"

"तुम्हारा गुस्सा जायज़ है.. सानू.. पर उनको सबक सीखना ज़रूरी है.. उनकी इश्स चाल को नाकामयाब करके तुम उन्हे रास्ते पर ला सकती हो.." विकी ने किसी दार्शनिक के अंदाज में कहा...

"सही कहते हो.. पर कैसे.. मैं कैसे नाकामयाब करूँ... आइ हेट हिम!" जाने कब की दबी कड़वाहट सानू के मुँह से निकल ही गयी...

"मेरे पास एक प्लान है.. पर उस'से पहले ये जान'ना ज़रूरी है कि वो अब करते क्या हैं..... फिर देखते हैं...."

सानू ने सहमति में अपना सिर हिलाया... उसको विस्वास हो चुका था.... हर उस बात पर जो विकी के मुँह से निकली थी.....दोस्तो इस पार्ट को यहीं ख़तम करता हूँ फिर मिलेंगे अगले पार्ट के साथ

आपका दोस्त

राज शर्मा

--

साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,

मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..

मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,

बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ

आपका दोस्त
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11-26-2017, 01:15 PM,
#76
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --37

हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा फिर हाजिर है पार्ट 37 लेकर

"पर्रर.. हमें कैसे पता लगेगा की अब पापा क्या करेंगे..?" स्नेहा ने ठीक ही पूचछा था.. वो ना भी पूछती तो विकी उसको बताने वाला था...

"सिर्फ़ एक ही तरीका है... हूमें किसी होटेल में रुकना पड़ेगा... वहाँ टी.वी. पर हम सब कुच्छ देख सकते हैं.. हरयाणा न्यूज़ पर तो ये खबर च्छाई होगी... क्यूंकी पोलीस वाले की बातों से साफ है कि तुम्हारे पापा ने नाटक शुरू कर दिया है...!" विकी ने तिर्छि नज़रों से उसके मंन के भाव पढ़ने की कोशिश की...

स्नेहा व्यथित थी.. जैसा भी था.. था तो उसका बाप ही.... क्यूँ उसने अपनी ही बेटी को घटिया राजनीति के लिए प्रयोग किया.. रही सही कसर उसने सानू को उन्न दरिंदों के हवाले करने की बात सोच कर पूरी कर दी... 7 दिन! वो 7 दिन उसकी जिंदगी के सबसे बदनसीब दिन होते.. अगर 'मोहन' उसको ना बचाता तो...

"कहा खो गयी सानू!" अब विकी को भी सानू के बदन से ज़्यादा इश्स खेल में मज़ा आने लगा था.. सच में दिल कभी दिमाग़ से नही जीत सकता.. दिल जीत कर भी हमेशा हारता ही है....

"कुच्छ नही.. पर आसपास होटेल कौनसा है..? जहाँ हम रुक सकें.....!" सानू ने रिश्तों के भंवर से निकलते हुए विकी की और देखा....

"होटेल तो बहुत हैं.. पर समस्या ये है कि इन्न कपड़ों में......" विकी ने उसकी स्कर्ट की और देखा....

और सानू शर्मा गयी.. पहली बार उसको अपने जवान होने का और अपने कपड़ों के छ्होटे होने का अहसास हुआ.. नज़रें नीची करके उसने अपनी नंगी जांघों को अपने हाथों से ढकने की कोशिश की... और साथ ही अपनी जांघें भीच ली...

आज तक स्नेहा गर्ल'स हॉस्टिल में रहकर ही पढ़ती आई थी.. और वहाँ रहकर स्वच्छन्द सी हो गयी थी... पर विकी की नज़रों ने उसको नारी होने की मर्यादाओं से अवगत करा दिया था.. और अब उसके इन्न कपड़ों के बारे में सीधे कॉमेंट ने तो उसको सोचने पर मजबूर कर ही दिया था... क्या 'मोहन' के उसकी जांघों पर हाथ रखने में अकेले 'मोहन' की ही ग़लती थी...

"अरे.. मेरे कहने का ये मतलब नही था.. मतलब हम वहाँ अपना रिश्ता क्या बताएँगे..." विकी ने उसके भावों को पढ़ते हुए अपनी बात सपस्ट की...

कुच्छ देर की चुप्पी के बाद स्नेहा बोल ही पड़ी," वही कह देना.. जो वहाँ.. पोलीस वाले को कही थी..." सानू कहते हुए लजा गयी...

"क्या?"

"अंजान मत बनो.. तुमने ही तो कही थी..." सानू सिर नीचे किए मुस्कुरा रही थी...

"कि तुम मेरी वाइफ हो.. यही?"

सानू शर्म से लाल हो गयी... बच्ची थोड़े ही थी जो 'वाइफ' होने का मतलब ना समझती हो... पर उसने 'हाँ' में सिर तो हिला ही दिया...

"वहाँ हम कार में थे.. पर होटेल में लोग किसी की वाइफ को इन्न कपड़ों में दिखने को हजम नही करेंगे.... वैसे भी तुम इन्न कपड़ों में 'वाइफ' नही.. गर्ल फ्रेंड ही लगती हो.." कहकर विकी मुस्कुरा दिया...

"मेरे बॅग में एक डिज़ाइनर सलवार कमीज़ है.... वो चलेंगे?" स्नेहा ने उत्सुकता से विकी की और देखा...

"बिल्कुल.. तुम कपड़े बदल लो.." कहकर विकी ने गाड़ी रोक दी... और स्नेहा के मासूम और कमसिन चेहरे को निहारने लगा...

"उतरोगे तभी तो बदलूँगी.. चलो बाहर निकल कर गाड़ी लॉक कर दो.. मैं बस 10 मिनिट लगाउन्गि..!" कहकर स्नेहा विकी की छाती पर हाथ लगाकर उसको बाहर की और धकेलने लगी...

एक झुरजुरी सी विकी के बदन में दौड़ गयी.. शहद जैसा मीठा हुश्न उसके सामने था.. और वह...

खैर विकी बाहर निकल गया.......

बाहर जाते ही विकी ने अपना फोन ऑन किया और माधव से बात करने लगा," हां.. क्या चल रहा है..?"

"सब ठीक है भाई.. पर उनमें से एक की हालत खराब है.. आपने उसकी जांघों में लात जमा दी.. बेचारा कराह रहा है.. अभी तक!" माधव बोला..

"अरे.. बहनचोड़ ने मुझे असली में ही चाकू बैठा दिया... पता नही कितना खून बह गया है... मैने तो देखा भी नही.. खैर रेस्पॉन्स क्या रहा...?"

"पागला गया है साला..! मुखिया पर इल्ज़ाम लगा रहा है... साला सब टीवी वालों को इंटरव्यू दे रहा है.. उसने तो ये भी कह दिया की 50 करोड़ माँगे हैं.. फिरौती

के...!"

"तू छ्चोड़.. अभी मुखिया को कुच्छ मत बताना.. और सुन.. सूर्या होटेल में फोन करवा दे.. कोई मुझे पहचाने ना.. साला जाते ही पैरों की और भागता है.."

"तू अभी तक यहीं है भाई.. बाहर निकल जा.. प्राब्लम हो सकती है.. तेरा भी नाम ले सकता है साला...!"

"तू चिंता मत कर छ्होटे.. उसकी मा बेहन एक हो जाएगी.. तू एक दो दिन बाद झटका देखना....!" विकी के जबड़े भिच गये...

"ले ली या नही.. उसकी लड़की की!" माधव ने दाँत निकाले होंगे ज़रूर.. कहकर...

"नही यार.. दिल ही नही करता.. बेचारी बहुत भोली है.. मासूम सी.. और तुझे तो पता ही है.. मैं रेप नही करता!" विकी मुस्कुराया..

"क्या हुआ.. थर्ड क्लास आइटम है क्या? आपका दिल नही करता तो मुझे ही चान्स दे दो.. यहाँ भी सूखा पड़ा है..!"

"साले की बत्तीसी निकाल दूँगा.. ज़्यादा बकवास की तो.." विकी खुद हैरान था.. वह ऐसा कह कैसे गया... जाने कितनी ही लड़कियाँ उन्होने आपस में बाँटी थी...

"सॉरी भाई.. हां एक बात और.. सलीम और इरफ़ान पर पोलीस ने 7/15 और 420 लगा दी है... अंदर गये.. उनकी भी जमानत करवानी पड़ेगी.."

"क्यूँ.. उन्होने क्या किया..?"

"वो साले आपकी गाड़ी जाने के बाद वहीं बैठकर दारू पीने लगे.. नाका लगाए हुए.. और असली पोलीस आ गयी.. उनको भी रोक लिया नशे में...."

"चल कोई बात नही.. राणा को फोन कर देना.. अपने आप जमानत करवा लेगा..."

"कर दिया है भाई.. 2 दिन लगेंगें..."

"चल रखता हूँ अब... होटेल में याद करके बोल देना.." कहकर विकी ने फोन काटा और वापस गाड़ी के पास पहुँच गया..

वापस आकर विकी ने स्नेहा को देखा तो उसका मुँह खुला का खुला रह गया," सानू! ये तुम हो?"

और स्नेहा मुस्कुरा पड़ी," क्यूँ? जाँच नही रहा क्या?"

"जाँच नही रहा..? तूने तो मेरी फाड़ ही दी.... " ये क्या बोल गया विकी.. खुद वो भी समझ नही पाया.. अब स्नेहा के कपड़े उसके व्यक्तिताव को सही परिभासित कर रहे थे.. एक दम सौम्या.. अद्भुत रूप से मासूम और एक भारतिया आदर्श लड़की की छवि में.. जिसको कोई भी अपनी जिंदगी से जुदा ना करना चाहे.. अब उसके चेहरे का भोलापन और निखरकर आ रहा था.. हालाँकि खुले कपड़ों में उसके कामुक उतार चढ़ाव और गोलाइयाँ छिप सी गयी थी...

"कैसी लगी.. बताओ ना.. मैने पहली बार ऐसे कपड़े पहने हैं.. मेरी सहेली ने गिफ्ट किए थे..."

विकी ने हाथ बढ़कर उसके गले में लटकी चुननी को सरकाकर उसके सिर पर कर दिया और फिर अंगूठे और उंगली को मिलाकर छल्ला बनाते हुए बोला," पर्फेक्ट! मैने तुम्हे पहले क्यूँ नही देखा!"

"क्या मतलब?" अपनी तारीफ़ सुनकर भावुक हो उठी स्नेहा के अधरों पर आई मुस्कान दिल को घायल करने वाली थी...

"कुच्छ नही.. चलते हैं..." विकी ने गाड़ी स्टार्ट कर दी....

"बताओ ना.. ऊई मा.. ये क्या है.." जैसे ही स्नेहा ने उसके कंधे को पकड़ कर उसको हिलाने की कोशिश की.. वो काँप उठी.... उसकी उंगली कटी शर्ट में से बाहर निकल आए माँस के लोथडे पर जा टिकी... और खून से गीली हो गयी...

"आउच.. कुच्छ नही.. हूल्का सा जखम है.. ठीक हो जाएगा.." स्नेहा की उँगली लगने से उसका दर्द जाग उठा.. पर विकी ने सहन करते हुए उसका हाथ हटा दिया...

"नही.. दिखाओ.. क्या हुआ है..? " कहते हुए स्नेहा ने कार की अंदर की लाइट ऑन कर दी.. और उसके हाथ उसके मुँह पर जा लगे..," ओ गॉड! ये कब हुआ..? तुमने बताया भी नही.. " घाव काफ़ी गहरा प्रतीत होता था.. शर्ट के उपर से ही देखने मात्रा से स्नेहा सिहर उठी...

"कुच्छ नही है.. होटेल में चलकर देखते हैं...!" विकी ने गाड़ी की रफ़्तार और तेज कर दी...

स्नेहा फटी आँखों से विकी के चेहरे और घाव को देखती रही.. विकी के चेहरे से पता ही नही चलता था की उसके शरीर का एक हिस्सा इश्स कदर घायल है.. विकी की मर्दानगी का जादू स्नेहा के सिर चढ़कर बोलने लगा... उसके प्रति स्नेहा के भाव पल पल बदलते जा रहे थे...

करीब 15 मिनिट बाद गाड़ी सूर्या होटेल पहुँच गयी... विकी ने गाड़ी पार्किंग में पार्क की और स्नेहा ने अपना बॅग संभाल लिया..," चलें!" विकी का घाव देखकर उसके चेहरे पर उभरी व्याकुलता अभी तक ज्यों की त्यों थी...

विकी की बाई बाजू खून से सनी पड़ी थी.. हालाँकि वो अब सूख चुका था.. जैसे ही मॅनेजर की नज़र विकी की इश्स हालत पर पड़ी वा दौड़कर उसके पास आने से खुद को ना रोक सका..," ययएए क्या हुआ.. भा.. मतलब... बाहर कुच्छ हुआ क्या.. सर?" वो माधव की दी हुई इन्स्ट्रक्षन को भूल ही गया था.. पर विकी ने जब उसको घूरा तो उसने भाई साहब से बदल कर बाहर कह दिया!

"कुच्छ नही.. हमें सूयीट चाहिए.. रात भर के लिए...!" विकी ने अंजान बनते हुए कहा...

"देखिए सर.. हम आपको रूम प्रवाइड नही करा सकते.. जब तक की साथ आने वाली लड़की आपके फॅमिली रीलेशन में ना पड़ती हो... सॉरी..!" कहते हुए मॅनेजर ने आँखें दूसरी और घुमा ली थी.. भाई की आँखों में आँखें डाल कर नखरे करने की उसमें हिम्मत ना थी...

"ये मेरी वाइफ है...!"

"बट.. हम कैसे माने.. ना इनके मान्थे पर सिंदूर है... ना गले में मंगल सुत्र.. और ना ही....."

"चलो.. हम कहीं और रह लेंगे..!" स्नेहा ने पकड़े जाने के डर से विकी को बोला...

"एक मिनिट.... आप मेरे साथ एक तरफ आएँगे मिस्टर. मॅनेजर...!" गुस्से को छिपाने की कोशिश में विकी एक एक शब्द को दाँत पीस पीस कर बोल रहा था...

"पर्र.....!" मॅनेजर आगे कुच्छ बोल पता.. इश्स'से पहले ही विकी ने उसकी बाँह पकड़ी और लगभग खींचते हुए उसको बाहर ले गया....," साले..!"

"पर भाई साहब.. मैने सोचा लड़की को शक नही होना चाहिए कि हम आपको जानते हैं..." कहकर मॅनेजर ने बतीसि निकाल दी... उसको उम्मीद थी की विकी उसकी पीठ थपथपाएगा..

"तेरी मा तो मैं चोदुन्गा साले.. डरा दिया ना उसको.. अब क्या तेरी मा की चूत में लेकर जाउ उसको..."

"स्स्सोररी.. भाई.. सह.. आप ले लीजिए रूम..."

"ना ना.. मत दे.. चुपचाप चल और एंट्री कर.. मोहन नाम है मेरा.. अपना दिमाग़ मत लगाना फिर से..."

"ओ.के. सिर.. !"

-----------

"अब वह कैसे मान गया...?" लिफ्ट से उपर आते हुए स्नेहा ना विकी से पूचछा...

"कुच्छ नही.. थोड़ी टिप देनी पड़ी..!"

उपर पहुँचे तो वेटर उनकी जी हजूरी के लिए दरवाजे पर खड़ा था... जैसे ही दोनो रूम में घुसे विकी का माथा ठनका गया... अंदर बेड को किसी सुहाग की सेज़ की तरह सजाया हुआ था.. पूरा कमरा फूलों की प्राकृतिक खुश्बू से महक रहा था.. टेबल पर जोह्नी वॉकर की बोटेल, दो गिलास और आइस क्यूब्स रखे थे.. स्नेहा सजावट को देखकर खिल सी गयी थी...

"एक मिनिट.. तुम फ्रेश हो लो.. मैं अभी आया..." कहकर गुस्से से भनभनाया हुआ विकी नीचे चला गया...

"साले.. कुत्ते की पूच्छ.. तुझमें दिमाग़ है या नही.. मेरा बॅंड बजा दिया तूने.." विकी ने 2 झापड़ मॅनेजर को मारे और सोफे पर बैठकर अपना सिर पकड़ लिया....

"पर हुआ क्या भाई साहब.. क्या कमी रह गयी..? मैने तो अपनी तरफ से जी जान लगाई है..."

"यार तू अपन तरफ से जी जान क्यूँ लगाता है.. जितना बोला गया उतना क्यूँ नही करता... तू आदमी है या घंचक्कर... साला.."

"ववो.. माधव भाई ने बोला था की आपको पहचान'ना नही है.. और कोई लड़की साथ आएगी.. तो मैने सोचा खास ही होगी..."

"तू अब दिमाग़ मत खा.. मेरे साथ चल और सॉरी बोल की रूम ग़लती से दे दिया.. और 2 मिनिट में दूसरी अड्जस्टमेंट कर..."

"ठीक है.. भाई साहब.. मैं अभी चलता हूँ..!" मॅनेजर के चेहरे पर 12 बजे लग रहे थे....

"सॉरी.. मेडम.. वो ग़लती से आपको ग़लत नंबर. दे दिया.. आक्च्युयली ये किसी वेड्डिंग कपल के लिए है.. आइए.. आपका सामान शिफ्ट करा देता हूँ..." विकी मॅनेजर के साथ नही आया था.... जानबूझकर!

"वो कहाँ हैं..?" स्नेहा सुनकर मायूस सी हो गयी...

"वो कौन..?" मॅनेजर का दिमाग़ भनना रहा था...

"वो.. मेरे पति! और कौन?" कहते हुए स्नेहा का दिल धड़क रहा था.. कितना प्यारा अहसास था स्नेहा के लिए.. विकी जैसा पति!

"ववो.. आते ही होंगे.... लीजिए आ गये...!"

"क्या बात है..?" विकी ने अंजान बनते हुए कहा...

"आक्च्युयली सर....." और मॅनेजर को स्नेहा ने बीच में ही टोक दिया...," देखिए ना मोहन! ये हमारा रूम नही है.. मुझे भी बिल्कुल ऐसा ही चाहिए.... कह रहे हैं.. ये तो किसी वेड्डिंग कपल के लिए है.. जैसे हम बूढ़े हो गये हों.. जैसे हमारी शादी ही ना हुई हो... मुझे नही पता.. मुझे यही रूम चाहिए..."

विकी को उसकी बातों पर यकीन ही नही हुआ.. वो तो ऐसे बोल रही थी जैसे सचमुच की पत्नी हो.. बिल्कुल वाइफ वाले नखरे दिखा रही थी..

"तुम्हारी प्राब्लम क्या है मॅनेजर.. हमें यही कमरा चाहिए.. समझ गये.." विकी ने तुरंत पाला बदल लिया....

"जी सर.. समझ गया.. सॉरी!" कह कर मॅनेजर स्नेहा की और अदब से झुका और बाहर निकलगया.. जैसे मंदिर से निकला हो!"

"ये हुई ना बात.. हमें निकाल रहा था.. कितना प्यारा रूम है... जैसे...." आगे स्नेहा शर्मा गयी...

"तुम्हे सच में यहाँ कुच्छ ग़लत नही लगा..?" विकी का ध्यान रह रह कर टेबल पर साज़ी बॉटले और गिलासों पर जा रहा था....

"यहाँ क्या ग़लत है..?" स्नेहा ने एक बार और जन्नत की तरह सजे कमरे में नज़रें दौड़ाई....

"ये शराब...?????" विकी ने ललचाई आँखों से बोतल की और देखा.. बहुत दिल कर रहा था....

"नही तो.. आदमी तो पीते ही हैं..." स्नेहा किंचित भी विचलित ना हुई.....

"अच्च्छा.. तुमने किसको देखा है..?"

"पापा को.. वो तो हमेशा ही पिए रहते हैं..... अरे हां.. टी.वी. ऑन करो.. देखें पापा क्या नाटक कर रहे हैं...." स्नेहा एक बार फिर मुरझा गयी....

"तुम तब तक टी.वी. देखो.. मैं इसका कुच्छ करके आता हूँ.." विकी स्विच ऑन करने के लिए टी.वी. की और बढ़ा...

"ओह माइ गॉड! मैं तो भूल ही गयी थी.. सॉरी.. पर इश्स वक़्त डॉक्टर कहाँ

मिलेगा...?" स्नेहा ने सूख चुके खून से सनी शर्ट की और देखते हुए कहा...

"अरे डॉक्टर की क्या ज़रूरत है... नीचे फर्स्ट एड पड़ी होगी.. सफाई करके पट्टी बँधवा लेता हूँ... मैं अभी आया 5-7 मिनिट में..."

"वो तो मैं कर दूँगी.. तुम फर्स्ट एड बॉक्स मंगवा लो.. यहीं पर... तुम्हारे बिना मेरा दिल नही लगेगा... डर सा भी लगता है..." स्नेहा ने प्यार भरी निगाहों से विकी की और देखा...

विकी जाकर बेड पर स्नेहा के पास बैठ गया..," इसमें डरने की क्या बात है..? तुम क्यूँ परेशान होती हो... ज़्यादा टाइम नही लगाउन्गा.. ठीक है..?" विकी को माधव के पास फोन करना था..

स्नेहा ने घुटनो के बाल बैठते हुए विकी की बाँह पकड़ ली..," अच्च्छा.. मैं परेशान हो जाउन्गि.. तुमने जो मेरे लिए इतना किया है.. वो? नही तुम कहीं मत जाओ.. मत जाओ ना प्लीज़.. मुझे ये सब करना आता है.."

इश्स हसीन खावहिश पर कौन ना मार मिटे... विकी ने रूम सर्विस का नो. डाइयल

करके फर्स्ट एड बॉक्स के लिए बोल दिया.. स्नेहा की और वो अजीब सी नज़रों से देख रहा था.. नज़रों में ना तो पूरी वासना झलक रही थी.. और ना ही पूरा प्यार ही..

"मैं तब तक कपड़े चेंज कर लेती हूँ.. कहकर स्नेहा ने बॅग से कुच्छ कपड़े निकाल कर बेड पर फैला दिए..," कौनसा पहनु?"

विकी असमन्झस से स्नेहा को घूर्ने लगा.. जैसे कह रहा हो..' मुझे क्या पता...'

"बताओ ना प्लीज़.. नही तो बाद में कहोगे.. 'ये ऐसे हैं.. ये वैसे..' "

"नही कहूँगा.. पहन लो.. कोई भी.." विकी स्नेहा को देखकर मुस्कुराया और बेड पर रखे एक पिंक कलर के सिंगल पीस स्कर्ट टॉप पर नज़रें जमा ली.. यूँ ही.

"ये पहनु? .. पर ये तो पूरा घुटनो तक भी नही आता.. बाद में बोलना मत..." स्नेहा ने विकी की द्रिस्ति को ताड़ लिया.... कहते हुए लज्जा का महीन आवरण उसके चहरे पर झिलमिला रहा था...

"मुझे नही पता यार.. कुच्छ भी पहन लो..." हालाँकि विकी ये सोच रहा था कि उस ड्रेस में वो कितनी सेक्सी लगेगी...

"ठीक है.. मैं यही डाल लेती हूँ..." स्नेहा ने बोला ही था कि वेटर ने बेल बजाई...

"लगता है.. फर्स्ट एड आ गयी.. ले लो.. मैं बाद मैं चेंज करूँगी.. पहले तुम्हारी पट्टी कर देती हूँ..."

--------

"शर्ट तो निकाल दो... पहले.." स्नेहा ने बॉक्स खोलते हुए विकी से कहा...

विकी का दिमाग़ भनना रहा था.. आज तक वो लड़कियों को निर्वस्त्रा करता आया था.. पर आज उसकी जिंदगी की सबसे हसीन लड़की उसको खुद शर्ट निकालने को बोल रही है.. क्या वो झिझक रहा था? हां.. उसके चेहरे के भाव यही बता रहे थे...

"तुम तो ऐसे शर्मा रहे हो.. जैसे तुम कोई लड़की हो.. और मैं लड़का..!" कहकर स्नेहा खिलखिला उठी.. अपने चेहरे की शर्म को छिपाने के लिए उसने हाथों से अपना चेहरा ढक लिया.. हंसते हुए.. हमेशा वो ऐसा ही करती थी..

विकी की नज़र उसके हिलने की वजह से फड़फदा रहे कबूतरों पर पड़ी.. बिना सोचे हाथों में पकड़ कर मसल देने लायक थे.. फिर जाने वो क्या सोच रहा था.. और क्यूँ सोच रहा था...

"निकालो!" स्नेहा के बोल में अधिकार भारी मिठास थी.. और कुच्छ नही...

"निकलता हूँ ना...!" कहते हुए विकी ने एक एक करके अपनी शर्ट के सारे बटन खोल दिए.. जैसे ही वो बाई बाजू से शर्ट निकालने की कोशिश करने लगा.. दर्द से बिलबिला उठा..," अयाया...!"

"रूको.. मैं निकलती हूँ.. आराम से..!" कहकर एक बार फिर स्नेहा उसके सामने आ गयी... घुटनो के बल होकर.. बड़ी नाज़ूक्ता से एक हाथ विकी के दूसरे कंधे पर रखा और दूसरे हाथ से धीरे धीरे शर्ट को निकालने लगी," दर्द हो रहा है?"

दर्द तो हो रहा था.. पर उतना नही.. जितना मज़ा आ रहा था.. विकी आँखें बंद किए अपनी जिंदगी के सर्वाधिक कामुक क्षनो को अपनी साँसों में उतारता रहा.. सच इतना मज़ा कभी उसको सेक्स में भी नही आया था.. स्नेहा के कमसिन अंगों की महक निराली थी.. जिसे वो गुलबों की तेज खुश्बू के बीच भी महसूस कर रहा था.. उसकी 'मर्दानगी' अकड़ने लगी... दिल और दिमाग़ में अजेब सा युद्ध छिड़ा हुआ था..

इश्स बार भी दिमाग़ ही जीत गया.. विकी ने अपने तमाम आवेगो को काबू में रखा.. हालाँकि 'काबू' में रखने की इश्स कोशिश में उसके माथे पर पसीना छलक आया.. ए.सी. के बावजूद...

"उफफफफफ्फ़.. घाव तो बहुत गहरा है... मुझसे देखा नही जा रहा.." स्नेहा ने शर्ट निकालते हुए घाव को देखते ही आह भरी...

"लो निकल गयी... ! चलो बाथरूम में.. इसको धो देती हूँ..." स्नेहा का दूसरा हाथ अब भी उसके कंधे पर ही था.. और वो यूँही विकी के चेहरे को एकटक देख रही थी.. प्यार से...

------

पट्टी करने के पूरे प्रकरण के दौरान जहाँ भी स्नेहा ने उसको स्पर्श किया.. मानो वही अंग खिल उठा.. आज तक कभी भी विकी को इश्स तरह की अनुभूति नही हुई थी.. वो तो बस आनंद के सागर में गहरी डुबकी लगाकर अपने हिस्से के मोती खोजता रहा....

प्यार और वासना में सदियों से मुकाबला होता आया है.. कुच्छ लोग 'प्यार' होने को सिर्फ़ 'आकर्षण' और 'वासना' मानते हैं.. पर सच तो ये है की वासना प्यार के अनुपम अहसास के आसपास भी कभी फटक नही सकती.. वासना आपको 'खाली' करती है.. वहीं प्यार आपको तृप्त... जहाँ लगातार 'सेक्स' भी हरबार आपको एक सूनेपन और बेचैनी से भर देता है, वहीं आपके यार का प्यार भरा एक हूल्का सा स्पर्श आपको उमर भर के लिए ऐसी मीठी यादें दे जाता है.. जिसके सहारे आप जिंदगी गुज़ार सकते हैं.. यार के इंतज़ार में..

विकी शायद आज पहली बार 'प्यार' के स्पर्श को महसूस कर रहा था.. हॅव यू एवर?

ओके दोस्तो इस पार्ट को यहीं बंद करता हूँ फिर मिलेंगे नेक्स्ट पार्ट के साथ तब तक के लिए विदा

साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,

मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..

मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,

बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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11-26-2017, 01:16 PM,
#77
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --38

दोस्तो आपका दोस्त राज शर्मा पार्ट 38 लेकर हाजिर है . अब ये तो आप ही बताएँगे की ये पार्ट आपको कैसा लगा दोस्तो कमेंट देना मत भूलना

स्नेहा बाथरूम से नहा धोकर निकली.. विकी भी फोन करके लगभग तभी कमरे में आया था...इश्स नये अवतार में स्नेहा को देखते ही विकी की आँखें उस पर जम सी गयी.. चाहकर भी वो अपनी नज़रों को इश्स कातिल नज़ारे से दूर ना कर सका.. स्नेहा ने शायद अब ब्रा नही पहनी थी.. इसीलिए उसकी सेब जैसी चुचियाँ हल्का सा झुकाव ले आई थी.. पर तनी अब भी हुई थी.. सामने की और.. स्कर्ट नीचे घुटनो से कुच्छ उपर तक था.. मांसल लंबी जांघों का गोरापन और गड्रयापन विकी की सहनशीलता के परखच्चे उड़ाने के लिए काफ़ी था..

स्नेहा ने विकी को घूरते देख एक बार नीचे की और देखा," क्या हुआ.. ? आच्छि नही लग रही क्या..?"

विकी जैसे किसी सपने से बाहर निकला..," श.. नही.. ऐसी बात नही है.. मैं तो बस यूँही.. किसी ख़याल में खोया हुआ था...!"

"सपनो से बाहर निकलो जी और खाने का ऑर्डर दे दो.. बहुत भूख लगी है.." कहकर स्नेहा ने टी.वी. ओन कर दिया और 'हरयाणा न्यूज़' सर्च करने लगी....

जिस बात का अंदेशा विकी ने जताया था.. वही हुआ.. 'हरयाणा न्यूज़' की टीम मुरारी के बंगले के बाहर का कवरेज ले रही थी.. करीब 500 के करीब कार्यकर्ता विरोधी पार्टी के खिलाफ नारे लगाने में अपना पसीना बहा रहे थे... तभी स्क्रीन पर न्यूज़ रीडर की तस्वीर उभरी....

"जैसा की हम आपको बता चुके हैं.. आज शाम पार्टी के वरिष्ठ नेता श्री. मुरारी लाल की इकलौती बेटी का कथित रूप से अपहरन हो गया.. पोलीस से मिली जानकारी के मुताबिक उस कार को बरामद कर लिया गया है जिसमें स्नेहा जी सवार होकर जा रही थी... घटनास्थल के आसपास खून बिखरा पाया गया है.. इश्स'से पोलीस अंदाज़ा लगा रही है की खून ड्राइवर मोहन का हो सकता है.. पोलीस को आशंका है की कहीं ड्राइवर की हत्या ना कर दी हो.. क्यूंकी उसकी भी अभी तक कोई खबर नही है... इसके अलावा पोलीस इश्स मामले में कुच्छ नही कर पाई है.. श्री मुरारी लाल जी ने आरोप लगाया है की ये

विरोधी पार्टी में उनके कट्टर प्रतिद्विंदी श्री. माखन लाल' और उनके दाहिने हाथ

माने जाने वाले विकी की शाजिस है.... उन्हे तोड़ने के लिए.... ताकि वो आगामी

लोकसभा चुनावों में ना खड़े हों.. कहा ये भी गया है की उनसे 50 करोड़ की

फिरौती माँगी गयी है......"

विकी मामले में अपना नाम सुनकर एक पल को सकपका गया... शुक्रा है उसने अपना नाम 'मोहन' ही बताया था... स्नेहा बेचैनी से खबर में डूबी हुई थी...

रीडर का बोलना जारी था...," हमारे संवाद-दाता ने श्री. मुरारी लाल से संपर्क करने की कोशिश की.. पर वो अवेलबल नही हुए.. हालाँकि फोन पर उनसे बात हुई.. आइए आपको सुनते हैं.. उन्होने क्या कहा:

स्नेहा ने रिमोट फैंकर अपने कान पूरी तरह से टी.वी. पर लगा लिए..

"देखिए.. मैं सबको बार बार बता चुका हूँ कि इश्स घृणित कार्य में माखन और विकी जैसे घटिया आदमी का हाथ है.. विकी ने खुद मुझे फोन करके 50 करोड़ की फिरौती माँगी है... वो लोग मुझे अगले एलेक्षन से हटने की धमकी भी दे रहे हैं.. पर मुझे प्रसाशन पर पूरा यकीन है..मेरी बेटी मुझे जल्द से जल्द वापस मिलेगी.. और जनता इन्न चोर लुटेरों, उठाईगीरों को एलेक्षन में सबक ज़रूर सिखाएगी.."

स्नेहा का सिर फट पड़ने को हो गया... उसके पापा उस वक़्त भी नशे में ही थे.. बातों से सॉफ पता चल रहा था.. अब स्नेहा को यकीन हो गया था की सिर्फ़ अपने राजनीतिक लालच के लिए ही उन्होने इतना घटिया गेम खेला है.... वो सुबकने लगी.. आँखों से अविरल आँसू बहने लगे... विकी ने पास बैठकर उसके कंधे पर हाथ रख दिया...," तुम रो क्यूँ रही हो.. तुम तो सही सलामत हो ना!"

"क्या सबके पापा ऐसे ही होते हैं...? उन्हे मेरी कोई फिकर नही... सिर्फ़ अपने और अपनी अयाशियों के लिए जीने वाले बाप को क्या 'बाप' कहलाने का हक़ है..." स्नेहा रोती हुई विकी से अपने सवाल का जवाब माँग रही थी...

"हमनें श्री मुररीलाल जी से मिलने की कोशिश की.. पर उन्होने बताया की वो किसी ज़रूरी मीटिंग में व्यस्त हैं... अभी नही मिल सकते...."

"मुझे पता है.. उनकी ज़रूरी मीटिंग क्या होती है.." कहते हुए स्नेहा का क्रंदन और बढ़ गया....

"अब चुप भी हो जाओ.. सब ठीक हो जाएगा..." विकी से स्नेहा का रोना देखा नही जा रहा था..

"क्या ठीक हो जाएगा, मोहन.. क्या? क्या मैं सिर्फ़ इश्स बात की सज़ा भुगत रही हूँ की मेरे पिता एक बड़े पॉलिटीशियन है.. ना मैं घर जा सकती हूँ.. ना मैं खुलकर घूम सकती हूँ.. ना मैं जी सकती और ना ही मर सकती... "

टी.वी. की और देख कर रो रही स्नेहा को अचानक विकी ने अपनी बाजुओं में समेत कर अपनी छाती से चिपका लिया.. और उसके बालों में हाथ फेरता हुआ उसको सहलाने, दुलार्ने लगा...

सहानुभूति की शरण में जाकर स्नेहा और भी भावुक हो गयी और उसकी छाती से चिपक कर ज़ोर ज़ोर से रोने लग गयी....

कारण ये नही था की विकी के ज़ज्बात बहक गये थे.. या कुच्छ और.. बुल्की कारण था.. अचानक टी.वी. की स्क्रीन पर माखन और उसकी तस्वीर का आना... अगर स्नेहा वो तस्वीर देख लेती तो किया धारा सब बेकार हो जाता.....

"हमने इश्स बारे में माखन जी से संपर्क करने की कोशिश की तो उन्होने अपने उपर लगे सभी आरोपों को खारिज करके इसको राजनीति से प्रेरित बताया.. हालाँकि वो इश्स बात का जवाब नही दे पाए की आगामी विधानसभा एलेक्षन

में उनकी पार्टी के उम्मीदवार अचानक विदेश क्यूँ चले गये..."

यही वो पल था जब स्क्रीन पर विकी की क्लोसप फोटो दिखाई गयी थी... जान बची सो लाखों पाए....

विकी ने टी.वी. बंद कर दिया.. तभी खाना आ गया... और स्नेहा को अपने आँसू खुद ही पोंच्छ कर सामानया होना पड़ा... वह विकी की छाती से चिपकने का एक बहुत ही सुखद अहसास लेकर बाथरूम में चली गयी.. और विकी ने दरवाजा खोल दिया....

"मैं क्या करूँ मोहन? कहाँ जाऊं?.. क्या मेरा अलग संसार नही हो सकता...?" हालाँकि खाना खाने के बाद स्नेहा काफ़ी हद तक सामानया हो चुकी थी.. पर वो अपने बदन में विकी की चौड़ी छाती से अलग होने के बाद रह रह कर उठ रही कसक को एक बार फिर से मिटा लेना चाहती थी.. अपनी मनभावनी आँखों से विकी के सीने में अपना संसार ढूँढने की कोशिश कर रही थी... वहीं नज़र गड़ाए हुए...

"सब ठीक हो जाएगा.. सानू! मेरा भी दिमाग़ खराब हो गया है.. तुम कहो तो.. थोड़ी सी पी लूँ?" विकी ने झिझकते हुए स्नेहा से पूचछा...

"क्या?" स्नेहा समझ नही पाई थी.. विकी क्या पीने की इजाज़त माँग रहा है...

"वो..!" विकी ने टेबल पर साज़ी बोटेल की और इशारा किया...

"नहिईए.. तुम बहुत अच्छे हो.. मेरे पापा जैसे मत बनो.. प्लीज़!" सानू ने प्यार से कहा...

"ओके!" पूरे भगत बने विकी ने मुस्कुरकर अपने कंधे उचका दिए....

"मुझे नींद आ रही है.. तुम कहाँ सोवोगे..?" स्नेहा के इश्स प्रशन ने तो विकी को हिला ही दिया.. अगर वो ना पूछती तो बिना सोचे ही विकी को बेड पर ही सोना था.. बिना कहे....

"म्म्मै..? मैं कहाँ सोउंगा..? मतलब यहाँ सो जाउन्गा..." हड़बड़ाते हुए विकी ने टेबल की तरफ हाथ कर दिया...

स्नेहा खिलखिला उठी.. ज़ोर का ठहाका लगाया..," तुम इश्स टेबल पर सोवोगे? काँच की टेबल पर...?"

"नही.. मेरा मतलब है कि इसको एक तरफ करके.. नीचे सो जाउन्गा...!" विकी को कुच्छ बोलते ना बन रहा था..

स्नेहा अभी तक हंस रही थी.. एक दम संजीदा हो गयी," तुम ऐसे नही हो 'मोहन' जैसा मैं लोगों को समझा करती थी... तुम बहुत अच्छे हो.. एक दम पर्फेक्ट!" स्नेहा ने वैसा ही उंगली और अंगूठे का घेरा बनाकर कहा.. जैसा गाड़ी में विकी ने उसको देखकर बोला था...

"थॅंक्स...!" विकी ने ज़बरदस्ती मुस्कुराने की कोशिश की...

"व्हाट थॅंक्स..! हम दोनो यहीं सो सकते हैं.. बेड पर.. काफ़ी चौड़ा है.... आइ मीन.. मुझे कोई प्राब्लम नही है.. तुम्हारे साथ सोने में...!" स्नेहा के बदन में कहते हुए गुदगुदी सी हो रही थी...

"देख लो!" विकी ने चेतावनी दी...

"उम्म्म...देख लिया.. आ जाओ.. सो जाओ!" स्नेहा एक तरफ को हो गयी...," पर चादर तो एक ही है.."

विकी ने बेड पर रखा तकिया ठीक किया और स्नेहा के बाजू में लेट गया.. ," कोई बात नही.. तुम्हारा इतना ही रहम बहुत है..... गुड नाइट!"

"पर मुझे नींद नही आ रही..." स्नेहा उसकी और करवट लेकर लेट गयी...

"अभी तो कह रही थी.. अब क्या हुआ...?"

"हां.. तब आ गयी थी.. अब चली गयी.." ये सब तो होना ही था... पहली बार किसी मर्द के साथ बिस्तेर सांझा हुआ था.. नींद तो भागनी ही थी...

सो तो विकी भी कैसे सकता था.. कयनात का हुश्न जब बाजू में बिखरा पड़ा हो.. समेटने के लिए...

"एक बात पूच्छू.. सच सच बतओगि ना..!" विकी ने भी उसकी तरफ करवट ले ली.. दोनो आमने सामने थे..

"पूच्छो..!"

"तुम्हारा कोई बाय्फ्रेंड नही है क्या..?"

"नही.. उसका क्या करना है...!" स्नेहा शरारत से बोली.. बदन में अरमान अंगड़ाई लेने लगे थे.. बाय्फ्रेंड के लिए...

विकी कुच्छ ना बोला.....

"क्यूँ पूच्छ रहे हो...?"

"बस ऐसे ही पूच्छ लिया... और कोई बात ही नही सूझी....

"क्या अब भी दर्द है!" स्नेहा ने था सा आगे सरक कर विकी के दायें कंधे पर अपना हाथ रख दिया...

विकी की समझ में नही आ रहा था की वह अब अपने दिल की सुने या दिमाग़ की.. घायल होने को बेकरार हुश्न उसकी पहुँच में था.. सिर्फ़ करीब एक फुट का ही फासला था.. दोनो के बीच.. कसंकस में उलझा हुआ बेचारा दिल को लाख समझाने की कोशिश बार बार कर रहा था.. पर सानू के 'हाथ' ने सारी कोशिशों को सरेआम कतल कर ही दिया था.. उसके हाथ की च्छुअन उसको अपनी जांघों के बीच तक महसूस हुई.... पर प्लान की कामयाबी के लिए ज़रूरी था की उन्न दोनो में कोई संबंध ना बने.. क्यूंकी अगर बाद में अगर स्नेहा के विचार सच का पता लगने के बाद बदल जाते हैं.. तो उसका मेडिकल एग्ज़ॅमिनेशन हर झूठह से परदा उठा सकता है..," सोने दो स्नेहा.. नींद आ रही है...!"

"अरे.. यहाँ मेरा किडनॅप हो गया है.. और तुम्हे सोने की पड़ी है..." शरारती स्नेहा ने अपना हाथ कंधे से आगे सरका कर उसकी छाती पर रख दिया...

झटके तो विकी को पहले से ही लग रहे थे.. इश्स बार वाला 440 वॉल्ट का था.. स्नेहा थोड़ी और आगे की और झुक गयी थी.. और उसका हाथ विकी की छाती पर किसी नागिन की तरह रेंग रहा था... उसकी मर्दानगी को चुनौती देता हुआ.. स्नेहा की साँसों में रमाइ हुई उसकी कुंवारेपन की बू.. विकी के फेफड़ों से होती हुई सारे शरीर में हुलचल मचा रही थी..

विकी ने अचानक उसकी कमर में हाथ डालकर उसको अपनी तरफ खींच लिया..," आख़िर चाहती क्या हो अब.. सोने भी नही दोगि क्या..? प्राब्लम क्या है?..... सोने दो ना यार.. प्लीज़!"

विकी द्वारा रूखी आवाज़ में कही गयी पहले वाली पंक्तियाँ स्नेहा के दिल में गहरे तक चुभ गयी.. उसने आख़िर ऐसा किया ही क्या था.. सिर्फ़ छाती पर हाथ ही तो रखा था.. उसके चेहरे के भाव अचानक बदल गये.. खुद को बे-इज़्ज़त सा महसूस करके स्नेहा की आँखें नम हो गयी.. उसकी छाती में धड़क रहे 'कुंवारे' दिल की धड़कन विकी को अपनी छाती में महसूस हो रही थी.. स्नेहा की छातियाँ विकी की छाती में गढ़ी हुई थी.. उस बेचारी को कुच्छ और ना सूझा.. सिवाय अपने को छुड़ाकर करवट बदलने और रोना शुरू कर देने के..

"सॉरी सानू! मेरा ये मतलब नही था.. सच में....!" विकी ने करवट लेकर रो रही सानू के हाथ पर हूल्का सा अपने हाथ से स्पर्श किया...

स्नेहा ने झटका मार कर अपना हाथ आगे कर लिया.. और और तेज़ी से सूबक'ने लगी.....

"ये क्या है स्नेहा.. मैने तो बस सोने के लिए रिक्वेस्ट्की थी.... सॉरी बोला ना..." विकी का दिल पिघल रहा था.. और जांघों के बीच वाला 'दिल' जम कर ठोस होता जा रहा था.. और अधिक ठोस...

"हाँ हाँ.. तुमने तो बस सोने की रिक्वेस्ट की है.. अगर सोना ही था तो जाने देते मुझे.. उन्न दरिंदों के साथ.. तब क्यूँ बचाया था.." स्नेहा अपनी आँखें पोंचछते हुए फिर से करवट लेकर सीधी हो गयी.. उसके कातिल उभार कपड़ा फाड़ कर बाहर छलक्ने को बेताब लग रहे थे... और खास बात ये थी की अपनी दाई और करवट लेकर कोहनी के बल सर रखकर अधलेटे विकी के 'खूनी' जबड़े से सिर्फ़ इशारा करने भर की दूरी पर थे... उसके उभार..

"वो.. दरअसल.. स्नेहा.. बुरा मत मान'ना.. पर जब तुम्हारा हाथ.. मेरी छाती पा लगा तो पता नही अचानक मुझे क्या हुआ.. लगा जैसे मैं बहक रहा हूँ.. सॉरी..!"

"अच्च्छा! तुमने जो मेरे यहाँ पर हाथ रख दिया था... गाड़ी में.. सिर्फ़ तुम्ही बहक सकते हो क्या..?" स्नेहा ने रोना छ्चोड़ खुलकर बहस करने की ठान ली...

"पर... हाँ.. पर मुझे तुम बहुत अच्च्ची लगी थी यार..." सानू ने उसके रेशमी बालों में हाथ फेरा....

"मुझे भी तो तुम अच्छे लगते हो.... तो क्या मैं तुम्हे नही छ्छू सकती...!" स्नेहा ने कहते हुए.. झिझक के मारे अपनी आँखें बंद कर ली...

स्नेहा के मुँह से ऐसी बात सुनकर विकी का सारा खून उबाल खा गया..," सच.. तुम्हे में अच्च्छा लगता हूँ क्या...?"

अब की बार स्नेहा बोल ना पाई.. जाने कैसे बोल गयी थी...

"बोलो ना सानू.. प्लीज़!" विकी ने स्नेहा की दूसरी और वाली बाजू अपने हाथ में पकड़ ली.. उसका हाथ सानू के पेट को हल्का सा छ्छू रहा था.. जो आग भड़काने को काफ़ी था...

कुच्छ देर बाद की चुप्पी के बाद अचानक स्नेहा पलटी और लगभग उसकी पूरी जवानी विकी की बाहों में समा गयी...," और नही तो क्या.. अगर अच्छे नही लगते तो क्या मैं किडनॅपिंग का खुलासा होने के बाद भी तुम्हारे साथ आने को राज़ी होती.... तुम बहुत अच्छे हो 'मोहन' बहुत अच्छे... दिल करता है.. हमेशा तुम्हारी छाती से लिपटी रहू.. मैं वापस नही जाना चाहती.. मुझे अपने घर ले चलो... अपने पास..." कहते हुए स्नेहा अपने बदन में हुलचल महसूस कर रही थी.. वह विस्मयकारी थी.. उसकी जांघों के पास.. कोई ठोस सी चीज़ उसके बदन में गढ़ी जा रही थी.. पर हैरानी की बात ये थी की ये चुभन स्नेहा को बहुत अच्च्ची लग रही थी.. वह सरक कर विकी के और ज़्यादा करीब हो गयी.. उसकी साँसें धौकनी के माफिक चल रही थी.. तेज तेज... गरम गरम....

शब्र रखने की भी तो कोई हद होती है ना.. विकी की हद टूट चुकी थी.. स्नेहा का चेहरा अपने हाथों में पकड़ा और होंठो पर एक रसीला चुंबन रसीद कर दिया...," तुम.. तुम मुझे छ्चोड़ कर तो नही जाओगी ना..."

रठाने मनाने तक तो सब ठीक था.. पर इश्स चुंबन की गरमाहट कच्ची उमर की स्नेहा सहन ना कर सकी.. बदहवास सी होकर अचानक पलट गयी और दूसरी और मुँह करके और लंबी साँसे लेने लगी... उसके गुलाबी होंठ खुले थे.. शायद विकी की दी हुई छाप को एक दूसरे से चिपक कर मिटाना नही चाहते थे...

मुँह फेर कर लेटी स्नेहा के नितंबों का उभार वासना की चर्बी चढ़कर इतना उभर चुका था की बीच रास्ते वापस लौटना किसी 'ब्रह्मचारी' के लिए भी असंभव था.. सारा प्लान विकी को ध्वस्त होता नज़र आने लगा... विकी को लगा ... अगर 2 और पल दूरी रही तो वह फट जाएगा... जांघों के बीच से...

बिना देर किए विकी थोड़ा खुद आगे हुआ और थोड़ा सा स्नेहा की कमर से चिपके पेट पर हाथ रखकर उसको अपनी और खींच लिया.. रोमांच और पहले अनुभव के कामुक धागे से बँधी स्नेहा खींची चली आई.. और दोनो अर्धनारीश्वर का रूप हो गये.. बीच में हवा तक को स्थान नही मिला.. अंग से अंग चिपका हुआ था..

"अब क्या हुआ..?" विकी ने उसके गालों पर जा बिखरे बालों को अपने बायें हाथ से ही जैसे तैसे हटा कर उसके गालों को च्छुआ...

अपने नरित्व में मर्दानी चुभन को महसूस करके स्नेहा पागल सी हो गयी थी.. आँखें जैसे पथरा सी गयी थी.. आधी खुली हुई... लगता था.. वह यहाँ है ही नही.. मॅन सांतवें आसमान में कुलाचें भर रहा था......

हसीन अदाओ का जब जाल बिछ जायेगा

तेरा पूरा वजूद जलवों के जाल में फस जायेगा

कातिल निगाहों का जादू काली घटा बन कर

तेरी अखियों के रस्ते तेरी रग-रग में असीम नशा भर जायेगा

बाहों की सलाखों का मखमली पिंजरा जब बदन पे कब्जा जमायेगा

शरीर का कतरा-कतरा भूकम्प के झटके खायेगा

तू लाख कोशिश कर ले मर्दानगी का हर जज्बा दम तोड़ जायेगा

हर लम्हा अरे पगले वही दफन हो जायेगा

कब्र में दफन एहसास को केवल यही याद आयेगा

जान मेरी कर दो रहम इस बीमार पर

ये उबलता ज्वालामुखी बिना फटे नही रह पायेगा

जिन्दगी वीरान है बिन तेरे

हूँ गुलाम तेरे प्रेम का तेरे अहसासों के सजदे करता चला जायेगा

--

साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,

मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..

मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,

बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
Reply
11-26-2017, 01:17 PM,
#78
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --39
स्नेहा की जगह उसकी मादक साँसों से जवाब मिलता देख विकी बेकाबू हो गया," अगर मैं तुम्हे छू लूँ तो तुम्हे कोई दिक्कत तो नही है.....

छ्छू तो रखा था.. और कैसे च्छुना चाहता है.. सुनकर स्नेहा का अंग अंग चरमरा उठा... बोली कुच्छ नही; बस अपने हाथ से उपर सरकती जा रही स्कर्ट की सिलवटें दूर की और शरम से निहाल होकर अपना चेहरा तकिये में च्छूपा लिया... ये अदा... इशारा ही तो था!

"बोल ना... अब क्यूँ शर्मा रही है... मैं तुम्हे पसंद हूँ ना?" सब कुच्छ जानते हुए भी विकी अभी तक भी संयम का परिचय दे रहा था...

"मुझे नही पता... गुदगुदी हो रही है...!" लज्जा और शुकून की गहरी साँस छ्चोड़ते हुए सानू एक दम सिमट सी गयी और अपनी उपर वाली टाँग घुटने से मोड़ कर आगे की तरफ खींच ली...

उफफफफ्फ़... ऐसा करने से एक अच्छे ख्हासे तरबूज के बीच की एक फाँक निकाल देने जैसे आकर के उसके गोलाकार नितंब उभर आए... 2 मिनिट पहले ही खींच कर ज़बरदस्ती नीचे की गयी उसकी स्कर्ट फिर से सिकुड गयी... विकी का दमदार हथ्हियार सही जगह से थोड़ा सा पिछे बुरी तरह तननाया हुआ तैनात था...

विकी उसकी गोरी जांघों से और उपर का दीदार करने को लालायित हो उठा... तरीका एक ही था.. अपना तकिया उठाया और स्नेहा के पैरों की और रखकर लेट गया..," मैं उस तरफ लेट रहा हूँ... इधर बाजू में दर्द हो रहा है..."

उस वक़्त विकी के दूसरी और सिर करके लेटने का असली कारण स्नेहा ना समझ पाई... चुभन का मीठा सा अहसास अचानक गायब होने से स्नेहा तड़प सी उठी.. सिर उठाकर एक बार विकी को घूर कर देखा; फिर गुस्सा सा दिखाती हुई अपने सिर को झटक कर वापस लेट गयी.....

स्कर्ट के नीचे से लुंबी, गड्राई, गोरी और मांसल जांघों की गहराई में झाँकते ही विकी के चेहरे पर जो भाव उभरे वो अनायास ही किसी अंधे को दिखने लग जाए; ऐसे थे.. आँखें बाहर निकल कर गिरने को हो गयी..," उम्म्म्म.. मैं इसको छ्चोड़ने की सोच रहा था.. हे राम!" विकी मंन ही मंन बुदबुडाया...

घुटना मुड़ा होने की वजह से स्नेहा की स्कर्ट के नीचे पहनी हुई सफेद पॅंटी का सपस्ट दीदार हो रहा था.. जांघों से चिपकी हुई पॅंटी पर बीचों बीच एक छ्होटा सा गुलाबी फूल बना हुआ था.. जो गीला होकर और भी गाढ़ी रंगत पा चुका था.. निचले हिस्से में पॅंटी योनि की फांकों का हूबहू आकर प्रद्राशित कर रही थी... उत्तेजना के कारण दोनो फाँकें आकड़ी हुई सी थी... और पॅंटी उनके बीच हुल्की सी गहराई लिए हुए थी...

" स्नेहा!" विकी लरजती हुई सी आवाज़ में बोला...

स्नेहा ने कोई उत्तर ना दिया...

विकी पॅंटी के उतार चाढ़वों में इतना उलझा हुआ था की दोबारा पुकारना ही भ्हूल गया....

"क्या है?" विकी की तरफ से फिर आवाज़ आने की प्रतीक्षा करके करीब 3-4 मिनिट के बाद अचानक स्नेहा बैठ गयी," बोलो ना.. क्यूँ परेशान कर रहे हो...

"क्कुच्छ नही... क्या..." विकी को लगा जैसे उसकी चोरी पकड़ी गयी हो.... जैसे अभी डाँट पड़ेगी... प्यार भरी...

"क्यूँ.. अभी तो पुकारा था.. मेरा नाम...!" थोड़े से झिझकते हुए स्नेहा ने भी अपना सिर विकी की और ही कर लिया और लेट गयी.......

"बोलो ना! क्या कह रहे थे मोहन?" स्नेहा ने अपना हाथ विकी के हाथ पर रख दिया..

"कुच्छ नही... बस... पता नही क्यूँ बेचैनी सी हो रही है... नींद नही आ रही.." विकी ने अपने हाथ को छुड़ाने की इस बार कतई कोशिश नही की..

"हूंम्म्म.. मैं कुच्छ करूँ...?" विकी की नज़रों को अपने अंदर घुसने की कोशिश करते देख स्नेहा बाग बाग हो गयी..," आइ मीन... सिर दबा दूं.. या कुच्छ और"

बातों ही बातों में स्नेहा ने अपना घुटना आगे करके विकी की जाँघ से सटा दिया... घुटने से करीब 4 इंच उपर स्नेहा की जाँघ पर काला सा तिल था...

"नही.. कुच्छ नही.. एक बात बोलूं सानू!" विकी की आवाज़ में अजीब सी खुमारी भर गयी थी...

"पुछ्ते क्यूँ हो? कुच्छ भी बोलो ना...!" स्नेहा की हालत भी बस डाँवाडोल ही थी.. बस इशारा करने की देर थी...

"उम्म्म्मम..." विकी ने बात कहने से पहले पूरा समय लिया," तुम्हारी जांघें बहुत सुंदर हैं... अब मेरी क्या ग़लती है जो मैं वहाँ इनको छ्छूने से अपने आपको रोक नही पाया...

दिल में तो स्नेहा के भी कुच्छ ऐसे ही अरमान थे.. पर विकी को सीधा हमला करते देख वो हड़बड़ा गयी... बिना वक़्त गँवायें हाथ नीचे ले जाकर अपनी स्कर्ट को नीचे खींचने की कोशिश की.. पर वह तो थी ही छ्होटी... अपनी अमानत को च्छूपा पाने में सफल ना होने पर स्नेहा ने अपना हाथ उपर लाकर विकी की आँखों पर रख दिया," ऐसे क्यूँ देख रहे हो! मुझे शरम आ रही है..." और अपना हाथ वहीं रखे रही.. विकी ने भी हटाने की कोशिश ना की.. उसके होंठो पर अजीब सी मुस्कान तेर गयी.....

"क्या है?" विकी को हंसते देख स्नेहा पूच्छ बैठही," अब हंस क्यूँ रहे हो?"

"मैं तुम्हे समझ नही पाया सानू.. एक तरफ तो तुम इतनी बोल्ड हो.. और दूसरी तरफ इतनी शर्मीली.. इतनी....." विकी बोला....

"आए.. मैं कोई शर्मीली वारमीली नही हूँ.. हाआअँ! मैं तो बड़ी मुँहफट हूँ.. जो जी मैं आए कह देती हूँ.. जो जी मैं आए कर लेती हूँ... मैं किसी बात से नही डरती... समझे मिस्टर्र्र्ररर..!"

"अच्च्छा.. ऐसा है तो मेरे लिप्स पर किस करके दिखाओ... मान लूँगा की तुम शर्मीली नही हो..!" विकी ने पासा फैंका...

स्नेहा को तो मानो मॅन माँगी मुराद मिल गयी.. कितनी देर से उसके होंठ अपनी मिठास बाँटने को व्याकुल थे.. प्यासे थे.. पर उसके लिए पहल करना आसान भी नही था....," यूँ मैं इतनी बेशर्म भी नही हूँ...!" विकी की आँखों पर उसके कोमल हाथो का परदा होने के बावजूद वह अपनी आँखें खुली ना रख पाई.. पर आवेश में उसके दाँतों ने नीचे वाले होंठ को काट खाया....

"इसमें बेशरम होने वाली क्या बात है.. अगर मैं तुम्हे अच्च्छा लगता हूँ.. और तुम इतनी बोल्ड हो तो इतना तो कर ही सकती हो.." विकी के होंठो पर अब भी शरारती मुस्कान तेर रही थी....

"तूमम्म.... तुम कर लो.. बात तो एक ही है..!" कहकर स्नेहा ने विकी के चेहरे से हाथ हटाया और शरम से गुलाबी हो चुके अपने चेहरे को ढक लिया...

"मैं.. मैं तो कुच्छ भी कर सकता हूँ.. मेरा क्या है.. मैं तो मर्द हूँ...!" विकी ने कहा और अपने हाथ से पकड़कर उसके हाथो को चेहरे से जुदा कर दिया...

स्नेहा की साँसों में गर्मी आनी एक बार फिर शुरू हो गयी थी... आँखें बंद थी.. और होंठ धीरे धीरे काँप रहे थे," तो कर के दिखाओ ना.."

अब विकी कहाँ शरमाता.. झट से अपना चेहरा आगे किया और स्नेहा का उपर वाला होंठ अपने होंठो में दबा लिया.. और चूसने लगा.. स्नेहा की हालत खराब हो गयी.. साँसे धौकनी की तरह चलने लगी.. आख़िर में जब शरम और संयम की सारी हदें पार हो गयी तो स्नेहा के हाथ अपने आप विकी के चेहरे पर चले गये और उसने विकी के नीचे वाले होंठ को अपने होंठो में दबा लिया... और अपनी पकड़ मजबूत करती चली गयी...

बहुत ही रसभरा दृश्या था.. होंठो को एक दूसरे की क़ैद में लिए विकी और स्नेहा हर पल पागल से होते चले गये.. जैसे सब कुच्छ आज ही निचोड़ लेंगे.. स्नेहा की टाँग किसी अनेइछिक मांसपेशी की तरह काम करती हुई विकी की कमर पर चढ़ गयी.. दोनो एक दूसरे से जोंक की माफिक चिपके हुए थे.. स्नेहा की चूचियाँ विकी की ठोस छाती में गढ़ी हुई थी.. पर इश्स वक़्त किसी को होंठों से ही फ़ुर्सत नही थी...

अचानक स्नेहा को लगा जैसे वह कहीं उँचाई से नीचे गिर रही है.. उसका सारा बदन सूखे पत्ते की तरह काँप उठा और महसूस हुआ जैसे उसका पेशाब निकल गया...

कहीं दूसरे लोक की सैर करके वापस आई स्नेहा एकदम से ढीली पड़ गयी और एक झटके के साथ विकी से दूर हो गयी...

वह सीधी हो गयी थी.. टाँगों को एक दूसरी के उपर चढ़हा लिया था.. और अपनी चूचियों पर हाथ रखकर उनको शांत करने की कोशिश कर रही थी...

वह कुच्छ ना बोली.. 4-5 मिनिट के असीम लूंबे इंतज़ार के बाद विकी को ही चुप्पी तोड़नी पड़ी..," क्या हुआ..?"

"कुच्छ नही..एक मिनिट" स्नेहा ने कहा और उठकर बाथरूम में चली गयी...

विकी इसी ताक में था.. झट से अपना फोन वीडियो रेकॉर्डिंग पर सेट किया और बेड की तरफ अड्जस्ट करके टेबल पर अश्-ट्रे के साथ रख दिया...

स्नेहा करीब 7-8 मिनिट बाद वापस आई... बाहर निकली तो विकी उसको देखकर मुस्कुरा रहा था...

"क्या है.. ? क्यूँ हंस रहे हो?" स्नेहा ने अपने बॅग को टटोलते हुए पूचछा...

बॅग से 'कुच्छ' निकल कर वापस जा रही स्नेहा का विकी ने हाथ पकड़ लिया," क्या ले जा रही हो.. यूँ छुपा कर"

"कुच्छ नही.. छ्चोड़ो ना.." स्नेहा ने दूसरा हाथ अपनी कमर के पिछे छुपा लिया..," छ्चोड़ो ना.. प्लीज़!"

"बताओ तो सही.. ऐसा क्या है..?" विकी ने उसको अपनी तरफ खींच कर उसके दूसरे हाथ को पकड़ने की कोशिश की...

"आआह.." सिसकारी स्नेहा के मुख से निकली थी.. विकी ने उसके हाथ को पकड़ने की कोशिश में अंजाने में ही नितंब पकड़ लिया.. पहले से ही कमतूर स्नेहा के नितंब थिरक उठे.. वासना उसके चेहरे पर उसकी आ के साथ छलक उठी.. गीली हो चुकी पॅंटी को वो बाथरूम में निकल आई थी.. इसलिए स्पर्श और भी अधिक आनंदकारी रहा... हाथों में जैसे जान बची ही नही और पहन-ने के लिए लेकर जा रही 'दूसरी' पनटी उसके हाथ से छूट कर फर्श पर जा गिरी...

"श.. सॉरी!" कहकर विकी ने अपना हाथ एक दम वापस खींच लिया.. पर करारे नितंब की गर्मी उसको अब भी महसूस हो रही थी... फर्श पर पड़ी पॅंटी को देखते ही उसको माजरा समझने में देर ना लगी..," सॉरी.. वो.. मैं..."

आगे स्नेहा ने उसकी कुच्छ ना सुनी.. शरमाई और सकूचाई सी स्नेहा ने झुक कर अपनी पॅंटी उठाई और बाथरूम में भाग गयी...

वापस आने पर भी वह लज़ाई हुई थी.. दोनो को पता था.. अब सब कुच्छ होकर रहेगा.. पर विकी इन्न पलों को रेकॉर्ड कर रहे होने की वजह से स्नेहा की पहल का इंतजार कर रहा था... और स्नेहा शर्म की चादर में लिपटी विकी का इंतजार करती रही... अपना 'घूँघट' उठ वाने के लिए.. यूँही करीब 15 मिनिट और बीत गये...

"तुमने आज से पहले किसी लड़की को ऐसे किया है?" स्नेहा से ना रहा गया...

"कैसा?" विकी ने भोला बनते हुए कहा..

"ऐसा.. जैसा आज मेरे साथ किया है...!" स्नेहा ने अपना चेहरा दूसरी और घुमा लिया...

"उम्म्म.. नही..! कभी नही.." क्या झूठ बोला विकी ने!

"पता नही.. मुझे कैसा लग रहा है.. शरीर में कुच्छ अजीब सा महसूस हो रहा है.." स्नेहा अब भी नज़रें च्छुपाए हुए थी...

"कैसा.. कुच्छ गड़बड़ है क्या.. ? क्या हो गया सानू..?" विकी ने भोला बनते हुए कहा..." कहते हुए विकी ने उसके कंधे पर हाथ रख लिया...

" पता नही.. पर जब भी तुम मुझे छूते हो तो पता नही कैसा महसूस होता है....?"

"कहाँ..?"

"हर जगह... जहाँ भी छूते हो.. कहीं भी हाथ लगाते हो तो लगता है जैसे..." स्नेहा बीच में ही चुप हो गयी..

"कैसा लगता है? बताओ ना.. मुझे भी बहुत मज़ा मिलता है तुम्हे छ्छू कर.. तुम्हे भी मज़ा आता है क्या..?" विकी ने उसके कहने के मतलब को शब्द देने की कोशिश की....

"हूंम्म..." दूसरी और मुँह किए लेटी स्नेहा ने अपनी चिकनी जांघों के बीच जैसे कुच्छ ढ़हूंढा और अपनी जांघें कसकर भीच ली...

"छुओ ना एक बार और..! मज़ा आता है.. बहुत!"

"कहाँ पर.. बताओ...... बोलो ना..?" विकी ने कंधे पर रखा अपना हाथ सरका कर उसकी कमर पर रख दिया...

"जहाँ तब लगाया था...!"

"कब..?"

"अब बनो मत... जब मैं खड़ी थी.. अभी.. बाथरूम जाने से पहले..!" स्नेहा के मुँह से एक एक शब्द हया की चासनी में से छन कर बाहर निकल रहा था..

"यहाँ..?" कहकर विकी ने अपना हाथ कमर से उठाकर उसके गोल नितंब पर जमा दिया... उसकी हथेली स्नेहा की पॅंटी के किनारों को महसूस कर रही थी.. और उंगलियाँ हाथ लगते ही कस सी गयी उसकी मस्त गान्ड की दरारों के उपर थी...

"आआआः.... हाआँ.. " स्नेहा एकद्ूम से उचक कर कसमसा उठी...

"तुम्हारी 'ये' बहुत प्यारी है सानू!"

"क्या?" मुस्किल से अपने को संभालती हुई स्नेहा पूच्छ बैठी.. पता होने के बावजूद...

विकी समझा नाम पूच्छ रही है..," तुम्हारी.. गान्ड!"

"छ्ह्ही.. क्या बोल रहे हो..? मैने कोई नाम लेने को थोड़े ही बोला था..." नाम में भी क्या जादू था.. सुनते ही स्नेहा पिघलने सी लगी...

"सॉरी.. ये.." कहते हुए विकी ने उसके मोटे खरबूजे जैसे दायें नितंब पर अपने हाथ की जकड़न बढ़ा दी... रसीले आनंद की मीठी सी लहर स्नेहा में दौड़ गयी.. आनंद से दोहरी सी होकर उसने अपने नितंबों को कस लिया.. और ढीला छ्चोड़ दिया...

"अयाया.. बहुत मज़ा आ रहा है.. और करो ना..!" स्नेहा धीरे धीरे खुलती जा रही थी....

"मज़ा तो मुझे भी बहुत आ रहा है... तुम लोग इसको क्या बोलते हो???

"नही.. में नही लूँगी.. मुझे शरम आ रही है....!"

"शरम करने से क्या मिलेगा.. अगर नाम लोगि तो और मज़ा आएगा.. लेकर तो देखो.." विकी ने पॅंट के अंदर फदक रहे अपने 'यार' को मसल कर 'प्लान' की खातिर कुच्छ देर और सब्र करने की दुहाई दी..

"नही.. मुझसे नही होगा.. तुम ले लो.. मैं नही रोकूंगी.."

"क्या ले लूँ... इसका नाम?" कहते हुए विकी ने उंगलियों को कपड़ों के उपर से ही उसकी गांद की दरार में फँसा सा दिया.. और वहाँ पर हल्क हल्क कुच्छ कुरेदने सा लगा...

"अयाया.. बहुत मज़ा आ रहा है.. मैं तो मर ही जाउन्गि.. " कहते हुए स्नेहा ने अपनी गांद को और बाहर की और निकाल दिया.. लग रहा था जैसे वह बिस्तेर से उठाए हुए है...

"नाम लेकर तो देखो.. कितना मज़ा आएगा.." अब विकी का हाथ शरारत करते हुए स्कर्ट के नीचे घुस गया और पॅंटी के उपर से बारी बारी 'दोनो' को सहलाने लगा.. रह रह कर उसका हाथ स्नेहा की नंगी रानो को स्पर्श कर रहा था...

"ले लूँ..?" स्नेहा की साँसें फिर से तेज हो चली थी..," हँसना मत..!"

"हँसूँगा क्यूँ.. देखना फिर तुम्हे मैं एक सर्प्राइज़ दूँगा...!"

"उम्म्म.. हम होस्टल में इसको वो नही कहते.. हम तो......" स्नेहा की साँसे तेज होती जा रही थी...

"तो क्या कहती हो...?"

"बट्स!" स्नेहा ने बावली सी होकर अपनी गांद को पिछे सरका दिया.. विकी की तरफ.. वह हाथ को और भी अंदर महसूस करना चाहती थी...

"नही.. हिन्दी में बताओ..!" विकी का हाथ अब खुल चुकी जांघों के बीच खुला घूम रहा था.. पर पॅंटी के उपर से ही...

"वो.. हम बोलते नही हैं.. पर मुझे एक और नाम पता है.... हाई राम!" स्नेहा की जांघों में लगातार हुलचल हो रही थी...

"बताओ ना.. मज़ा आ रहा है ना..?"

"हां.. बहुत! इनको चू.. ताड़ भी कहते हैं ना...." स्नेहा नाम लेते हुए उस हालत में भी हिचक रही थी....

"हाए सानू.. मज़ा आया ना.. तुम्हारे मुँह से नाम सुनकर मुझे तो बहुत आया.." कहते हुए विकी अपनी एक उंगली को पॅंटी के उपर से ही योनि पर रगड़ने लगा...

"आ.. बहुत.. मज़ा आ रहा है... करते रहो.... आअहह.. मुंम्म्मी!"

"पर मज़ा तो आगे है.. अगर तुम इजाज़त दो तो!" विकी अपना हर शब्द नाप तौल कर बोल रहा था...

"हां.. करो ना.. प्लीज़.. मुझे और भी मज़ा चाहिए... कुच्छ भी करो.. मेरी जान ले लो चाहे.. पर ये तड़प सहन नही होती.. आआअहह.. तेज नही.. सहन नही होती.." स्नेहा बावरी सी हो गयी थी.... अचानक पलट कर विकी की छाती से चिपक गयी...

"चलो.. निकालो कपड़े..." विकी ने लोहा गरम देखकर चोट की...

"पर...........!" स्नेहा सब समझती थी.. हॉस्टिल में लड़कियों में अक्सर ऐसे किससे बड़े चाव से सुने सुनाए जाते थे.. पर ये राज उसने ना उगला,".. पर कपड़े निकाल कर क्या करोगे.. मुझे शरम आ रही है...!"

"शरमाने से क्या होगा?",विकी ने स्नेहा का हसीन चेहरा अपने हाथो में ले लिया," जब उपर से इतना आनंद आ रहा है तो सोच कर देखो... जब हमारे बदन बिना किसी पर्दे के एक दूसरे के शरीर से चिपकेंगे तो क्या होगा... शरम करोगी तो बाद में हम दोनो पछ्तायेन्गे... ना ही तुम्हे और ना ही मुझे फिर कभी ऐसा मौका मिलेगा... सोच लो.. मर्ज़ी तुम्हारी ही है...!"

स्नेहा पलकें झुकाए विकी की हर बात को अपने दिल के तराजू में तौल रही थी..," पर कुच्छ हो गया तो??"

"क्या होगा? कुच्छ नही.. तुम खम्ख्वह घबरा रही हो....!"

"बच्चा...!" कहते हुए स्नेहा की धड़कन तेज हो गयी...

"अरे.. बच्चा ऐसे थोड़े ही हो जाता है... तुम भी ना सानू....!" विकी मरा जा रहा था....

"पर मैने तो सुना है की जब लड़का और लड़की नंगे होकर 'कुच्छ' करते हैं तो बच्चा हो जाता है..." स्नेहा ने एक बार अपनी पलकें उठाकर विकी की आँखों के भाव परखे...

"हे भगवान.. कितनी भोली है तू... जब तक हम नही चाहेंगे.. बच्चा थोड़े ही होगा.. वो तो 'करने' से होता है..."

"क्या करने.. ओह.. लगता है मेरा मोबाइल बज रहा है... बॅग में..!" स्नेहा ने उतने की कोशिश की तो विकी ने उसको पकड़ लिया," रहने दे सानू.. बाद में देख लेंगे...

"नही... पापा का फोन हो सकता है.. मैं एक बार देखती हूँ..." कहकर स्नेहा उठकर टेबल के पास चली गयी," अरे हां.. पापा का ही है... क्या करूँ...?"

"फोन मत उठाना.. देख लो सानू.. मैने पहले ही कहा था.."

पर असमन्झस में खड़ी स्नेहा ने फोन उठा ही लिया और कान से लगा लिया," पापा...!" उसकी आँखों में कड़वाहट भरे आँसू आ गये.... उसने मुँह पर उंगली रख कर विकी को चुप रहने का इशारा किया.... और रूम से बाहर निकल गयी....

विकी का तो एकदम मूड ही ऑफ हो गया.. अब उसकी पोल खुलनी तय थी... ' साली का रेप ही करना पड़ेगा अब तो..' मन ही मन विकी उबल पड़ा.. जल्दी जल्दी में एक पटियाला पैग बनाया और अपने गले में उतार लिया...

"बेटी... कहाँ हो तुम... ठीक तो हो ना... मेरी तो जान ही निकाल दी तूने बेटी....." मुरारी की आवाज़ लड़खड़ा सी रही थी.. दारू के नशे में....

"जहाँ.. आपने भेजा है.. वहीं हूँ पापा... आपने एक बार भी ये नही सोचा...." स्नेहा की आवाज़ में रूखापन भी जायज़ था.. और गुस्सा भी....

"क्या??? तुम मोहन के साथ हो..... सच!" मुरारी के आसचर्या का ठिकाना ना रहा..

"मुझे 'किडनॅप' करने वालों ने तो बहुत कोशिश की.. पर मेरा 'मोहन' ही था जो मुझे सही सलामत बचा लाया..." स्नेहा ने 'किडनॅप' और 'मेरा मोहन' शब्दों पर ज़रूरत से ज़्यादा ज़ोर दिया.. पर मुरारी उसके व्यंगया को समझ ना पाया...

अपनी जवान बेटी के मुँह से ड्राइवर के नाम के साथ 'मेरा' शब्द जोड़ना मुरारी को गंवारा नही हुआ... किसी भी बाप को ना होता.. अपने दाँत पीसते हुए गुर्राया," कहाँ है वो हरामजादा.. बात कराना मेरी.. फोन भी ऑफ कर रखा है... मादार.. तू मेरी बात करा उस'से..."

स्नेहा खून का घूँट पीकर रह गयी.. उसको अपने पापा का गुस्सा अपनी असफलता पर खीज का परिणाम लगा..," वो इश्स वक़्त यहाँ नही है...? उसके फोन की बॅटरी ऑफ है..."

"पर तुमने भी फोन नही उठाया बेटी.. मैं यहाँ कितना परेशान हो रहा था.. "

"हां.. मेरा फोन साइलेंट पर था..." स्नेहा ने रूखा सा जवाब दिया...

"मेरी तो जान में जान आ गयी बेटी.. पर जो होता है अच्छे के लिए ही होता है.. तू कहाँ है अभी..?" मुरारी के दिमाग़ में भी इश्स 'किडनॅपिंग' की झूठी खबर से फ़ायदा उठाने की उठापटक चल पड़ी... उसने मीडीया को दिए अपने बयानों में मुखिया और विकी पर जो अनाप-शनाप आरोप लगाए थे.. अब उसकी किरकिरी होने वाली थी... अगर ये बात सामने आ गयी की किडनॅपिंग हुई ही नही...," बता ना बेटी.. कहाँ है अभी तू..."

"जहाँ पर भी हूँ... ठीक ही हूँ.. आप चिंता ना करें.. आपकी बेटी अब बड़ी हो गयी है.. सब समझती है..." स्नेहा के हर बोल में बग़ावत थी...

मुरारी को स्नेहा का अंदाज अजीब सा लगा.. पर इश्स वक़्त तो वो किन्ही और ही ख़यालों में खोया हुआ था...," ओके बेटा.. जहाँ भी है.. ऐश कर... बस एक बात का ध्यान रखना.. जब तक मैं ना कहूँ.. वापस मत आना.. और अपनी पहचान च्छूपा कर रखना..."

"आपने ऐसा क्यूँ किया पापा.. अपनी अयाशियों के लिए मुझे हमेशा घर से दूर रखा और अब कुर्सी के लिए मुझे ही दाँव पर लगा दिया..." स्नेहा कहते हुए भभक कर रो पड़ी...

मुरारी एक पल के लिए शर्मिंदा हो गया... पर राजनीति के उल्टे घड़े पर शरम का पानी कब तक ठहरता....," बेटी.... मैं तुम्हे सब समझा दूँगा.. बस ध्यान रखना मेरे कहे बिना वापस मत आना.. कहीं दूर निकल जा...!"

"मैं वापस कभी नही आउन्गि पापा..!" स्नेहा ने रोते हुए कहा और गुस्से में अपना फोन ज़मीन पर दे मारा... फोन टूट गया....

अपने आँसू पौंचछते हुए स्नेहा अंदर घुसी ही थी की विकी को देखकर चौंक पड़ी," ये... ये क्या कर रहे हो...?"

विकी जल्दी जल्दी आधी बोतल गटक चुका था.. अब वो अपना प्लान बदलने की तैयारी में था.. फोन से की गयी रेकॉर्डिंग उसने डेलीट कर दी थी...," दिखता नही क्या? शराब पी रहा हूँ..." स्नेहा को अब वह ऐसे घूर रहा था जैसे भाड़े पर लाया हो.....

स्नेहा को लगा वो नशे में बहक गया है.. ऐसा में उसको विकी का अजीबोगरीब जवाब भी बड़ा प्यारा लगा.. वह अपने आपको खिलखिलाकर हँसने से ना रोक सकी...

"हंस क्यूँ रही है...?" विकी को अब उस'से किसी अपनेपन की उम्मीद ना थी.. इसीलिए हैरान होना लाजिमी ही था... वह गिलास रखकर खड़ा हो गया...

"तुम्हारी शकल देखकर हंस रही हूँ.. लग ही नही रहा की तुम पहले वाले 'मोहन' हो.. ऐसे क्या देख रहे हो अब...? मैने पापा को नही बताया की हम कहाँ है.. और ना ही ये की मुझे तुमने सब कुच्छ बता दिया है... नाराज़ क्यूँ हो रहे हो.." कहते हुए स्नेहा अपने दोनो हाथ बाँधकर उसके सामने जाकर खड़ी हो गयी...

"क्या?.. बात हो गयी तुम्हारे पापा से... क्या कह रहे थे...?" विकी की जान में जान आ गयी..

स्नेहा मायूस हो गयी.. कुच्छ देर चुप रहकर बोली," कहना क्या था.. कह रहे थे.. जब तक मैं ना कहूँ.. वापस मत आना... तुम्हारा सोचना सही निकला मोहन.. वो मुझे 'यूज़' कर रहे हैं...."

" तो... तुमने क्या सोचा है फिर...?" विकी मॅन ही मॅन उच्छल पड़ा...

" मैं कभी वापस नही जाउन्गि... ?" स्नेहा ने अपने इरादे जता दिए....

" तो फिर?..... और कहाँ जाओगी..?" विकी ने उसको हैरानी से देखा...

स्नेहा कुच्छ ना बोली.. बस पलकें उठाकर विकी की आँखों में आँखें गढ़ा ली.. और जाने किस गहराई में उतर गयी... जैसे वहीं अपना संसार ढ़हूंढ रही हो...

काश विकी उसके दिल के इरादे जान गया होता," अब क्या हुआ...?"

" कुच्छ नही...!" स्नेहा ने हौले से कहा और आगे बढ़कर विकी की छाती से लिपट गयी.. अपनी दोनो बाहें उसकी कमर में डालकर...

शराब और शबाब से मस्त हो चुका विकी अब कहाँ चुप रहने वाला था.. अपने हाथो को स्नेहा के पिछे ले जाकर उसकी मस्त गांद को सहलाने लगा... स्नेहा ने सिर उठाकर विकी की आँखों में आँखें डाल ली... विकी भी बिना पालक झपकाए स्नेहा को देखते हुए उसकी गांद को दबाता हुआ उसको अपनी तरफ खींचने लगा... स्नेहा की साँसे विकी के फैफ़ड़ों से होती हुई उसके खून को गरम करने लगी.. स्नेहा पर एक बार फिर से मस्ती छाने लगी.. आँखें बंद होने लगी... जैसे ही विकी ने अपना सिर थोड़ा सा नीचे झुकाया; स्नेहा अपनी आइडियों के बल खड़ी हो गयी और होंठो के बीच की दूरी को नाप दिया....

अपने रसीले होंठों को विकी के होंठों में और 38" की उन्छुयि गांद को उसके हाथो बेदर्दी से रगडे जाने पर स्नेहा ज़्यादा देर तक आपे में ना रह सकी," उम्म्म्मम... आआआआहह!" अपने होंठों को बड़ी मुश्किल से विकी की 'क़ैद' से आज़ाद करा स्नेहा ने लुंबी और गहरी सिसकारी ल्ली.. विकी के हाथ उसकी स्कर्ट को उपर उठा उसकी पॅंटी में घुस चुके थे.. और विकी लगातार अपनी उंगलियों का जादू उसकी गांद की दरार में गहराई तक दिखा रहा था.. स्नेहा की टाँगें अपने आप ही खुल गयी थी..

अगले हिस्से में विकी के हथ्हियार की लंबाई को अपनी जांघों के बीच महसूस करके तो स्नेहा फिर से सातवें आसमान पर जा बैठही... वह उस'से 'खुद को बचाना भी चाहती थी.. और दूर भी नही होने देना चाहती थी.. विकी ने जैसे ही पिछे से उसकी गांद की फांकों में अपने हाथ फँसा कर उसको उपर खींचा तो वह फिर से एडियीया उठाने को मजबूर हो गयी... साँसों की गर्माहट और सिसकियों की कसमसाहट बढ़ती ही जा रही थी... विकी ने उसको इसी हालत में उपर उठा लिया और ले जाकर बेड पर लिटा दिया.. स्नेहा की आँखें खुल ही नही पा रही थी.. बेड पर गिरते ही उससने अपने हाथ पीछे फैला दिए .. स्कर्ट उपर उठी हुई थी और नीले रंग की पॅंटी में छिपि कामुक तितली का मादक आकार उपर से ही स्पस्ट दिखाई दे रहा था...

"मज़ा आ रहा है ना.." विकी अपने हाथ से स्नेहा की जांघों को सहलाने लगा..

बदहवास सी स्नेहा के होंठों पर तेर गयी कमसिन मुस्कुराहट ने जवाब दिया.. स्नेहा ने टाँगें चौड़ी करके जांघें खोल दी.. खुला निमंत्रण था....

विकी उसकी जांघों पर झुक गया और अपने होंठ पॅंटी के किनारे जाँघ पर टीका दिए....

"उफफफफफ्फ़... क्या.. कर्रहे.. हो.. मैं मर जाउन्गि..." स्नेहा तड़प उठी... स्नेहा बीच भंवर में फाँसी हुई थी... हर पल में इतना आनंद था की पिछे हटने के बारे में सोचा ही नही जा सकता था... और पहली बार के इश्स अनोखे आनंद को समेटना भी मुश्किल था... स्नेहा ने सिसकते हुए अपनी जांघें कसकर भींच ली....

पर विकी कहाँ मान'ने वाला था.. हूल्का सा ज़ोर लगाकर उसने स्नेहा की जांघों को पहले से भी ज़्यादा खोल दिया.. पॅंटी फैल गयी और उसके साथ ही स्नेहा की चिकनी पतली उँच्छुई चूत के आकर में भी परिवर्तन सा आ गया.. चूत के होंठ थोड़े से फैल गये लगते थे...," आह मम्मी.. मर गयी.."

लगभग मर ही तो गयी थी स्नेहा.. जालिम विकी ने पॅंटी के उपर से ही चूत के होंठों पर अपने होंठ रख कर जैसे उसके शरीर के अंग अंग को फड़कने पर मजबूर कर दिया... स्नेहा की साँसे जैसे रुक सी गयी.. आँखें पथ्राने सी लगी.. पर जांघें और ज़्यादा खुल गयी... अपनी मर्ज़ी से! और एक लुंबी साँस के साथ उसके होंठों से निकले," हयीईएय्य्ये मोहाआन्न्न्न्न्न.. मार गेयीयियीयियी मुम्म्म्म्म..."

आँखों और होंठों से पहले विकी की उंगली ने उस लज़ीज़ रसीली और हुल्के बालों वाली रस से सराबोर योनि को छुआ... विकी ने एक उंगली पॅंटी में घुसा दी.. स्नेहा की चूत गीली होकर भी प्यासी लग रही थी.. मर्द की च्छुअन से स्नेहा के रौन्ग्ते खड़े हो गये.. इतना आनंद.. !

"निकाल दूं..?" विकी ने उपर उठकर स्नेहा के चेहरे की और देखा..

नेकी और पूच्छ पूच्छ.. स्नेहा तो कब से नंगी होने को तैयार हो चुकी थी.. बिना कुच्छ बोले ही उसने अपनी फैली हुई जांघों को समेटकर अपने 'चूतड़' उपर उठा दिए.. इस'से बेहतर जवाब वो क्या देती..

विकी ने भी एक पल की भी देरी ना की.. दोनो हाथों से पॅंटी को निकल कर उसको अनावृत कर दिया...

लड़कियों के मामले में रेकॉर्ड बना चुके विकी के लिए यह पहला अनुभव था.. स्नेहा को बाहर से देखकर उसने उसके अंगों की जो कीमत आँकी थी.. उस'से कयि गुना लाजवाब थी.. स्नेहा की.....! इतनी करारी चूत को देखते ही विकी मर मिटा. स्नेहा को आगे खींच कर उसकी जांघों को बेड के किनारे लेकर आया और फर्श पर घुटने टेक दिए और वहाँ..... अपने होंठ!

स्नेहा का तो बुरा हाल पहले ही हो चुका था.. अब तो उसकी होश खोने की बारी थी... नीचे की सिहरन उसकी रसीली चुचियों तक जा पहुँची.. मस्त मस्त आवाज़ें निकालती हुई स्नेहा अपनी चूचियों को अपने ही हाथो से मसल्ने लगी...

"हाए.. मैं इनको कैसे भ्हूल गया..." कहते हुए विकी ने स्नेहा को फर्श पर खड़ी कर दिया और पूरी 10 सेकेंड भी नही लगाई उसको जनम्जात जैसी करने में.. अपने पैरों पर स्नेहा उतने टाइम भी खड़ी ना रह सकी... विकी की बाहों में झहूल गयी...

"ओह्ह्ह.. कितनी प्यारी हैं..." विकी के मुँह से अनायास ही निकल गया.. जब उसने स्नेहा की चूचियों को छ्छू कर देखा.... उनका आकार नागपुरी संतरों जैसा था.. मोटी मोटी.. नरम नरम.. तनी तनी!

विकी ने स्नेहा को फिर से उसी अंदाज में लिटा दिया.. लिटाने पर भी उभार ज्यों के त्यों थे.. अपने हाथो से उन्न फलों को हूल्का हूल्का मसल्ते हुए वो उस कच्ची कली का रस चूसने लगा...

सब कुच्छ स्नेहा के बर्दास्त से बाहर हो चुका था.. वह रह रह कर अपनी गांद को उचका रही थी.. और रह रह कर अपनी जांघों को भींच लेती.. जब सहन करना मुश्किल हो जाता...

जी भरकर जीभ से चूत को चाटने के बाद विकी फिर से उंगली को उसकी फांकों के बीच लेकर आया.. और उनके बीच उंगली को आगे पिछे करके योनि छिद्रा तलाशने लगा...

हर पल स्नेहा को एक नया अनुभव हो रहा था.. पहले से ज़्यादा मीठा.. और पहले से ज़्यादा मस्ती भरा.. अचानक स्नेहा हूल्का सा उच्छली.. उसने सिर उठाकर देखा.. उंगली ने 'ओम गणेशाय नमः:' कर दिया था.. आधी उंगली बाहर थी.. आनंद के मारे पागल सी हो चुकी स्नेहा कोहनी बेड पर टीका कर उपर उठ गयी और बड़े चाव से उंगली को धीरे धीरे आते जाते देखने लगी... उसका सारा बदन साथ ही झटके खा रहा था.. चूचियाँ..दायें बायें और उपर नीचे हो रही थी.. स्नेहा की आँखों में उसके बदन की बढ़ती प्यास आसानी से महसूस की जा सकती थी..

चूचियों को इश्स कदर मस्ती से झ्हूम्ते देख विकी खुद को रोक ना पाया.. उंगली को 'अंदर' ही रखते हुए वह आगे झुका और उसकी बाई चूची के नन्हे से गुलाबी निप्पल को अपनी जीभ से एक बार चाटा और होंठो में दबा लिया...

"आआआअहह... मुझे... इतने.. मज़े क्यूँ. आअ रहे हैं... मोहन.. तुम्हे भी आ रहे हैं क्या... मुझे पता नही क्या हो रहा है.. "

" हाँ जान.. मुझे भी हो रहा है... तुम सच में सबसे निराली हो... सबसे प्यारी.." विकी ने अपनी उंगली निकाल ली.. और अपनी शर्ट निकाल कर अपनी पॅंट उतारने लगा...

[color=#8000bf][size=large]स्नेहा शर्मा गयी और लेट कर अपनी आँखें बंद कर ली.. उसको पहली बार उसका दीदार होने वाला था.. जिसके बारे में अक्सर लड़कियों में चर्चा ह
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11-26-2017, 01:18 PM,
#79
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --40

अब आगे .....

थोड़ा सा हिचकते हुए स्नेहा ने अपने हाथ में पकड़े लंड को नीचे झुकाया और अपने होंठो से छुआ दिया.. और फिर होंठों पर जीभ फेरते हुए उसको दूर कर दिया...

"क्या हुआ?" विकी तड़प सा उठा और खुद ही नीचे झुक कर वापस उसके होंठो से भिड़ाने की कोशिश करने लगा..

"कुच्छ नही.. अजीब सा लग रहा है..." अब स्नेहा खुल गयी थी.. पूरी तरह...

" अच्च्छा नही लग रहा क्या..?" बेचैनी से विकी ने पूछा...

बिना कोई जवाब दिए.. स्नेहा ने अपने होंठो को आधा खोला और सुपादे के अगले भाग को होंटो में दबा लिया.. और विकी की और देखने लगी..

विकी को पहली बार इतना आनंद आया था की उसकी आँखें बंद हो गयी..," अयाया.. "

"अच्च्छा लग रहा है...?" अब की बार स्नेहा ने पूचछा...

"हाआँ..." जीभ निकाल कर चाटो ना.. प्लीज़..." विकी कराह उठा.. आनंद के मारे..

स्नेहा को कोई ऐतराज ना हुआ.. उसको ये जानकार बहुत खुशी हुई की विकी को अच्च्छा लग रहा है.. अपनी जीभ निकाली और लंड की जड़ से लेकर सुपादे तक नीचे से चाट'ती चली गयी...

"आआहह.. मार डालोगी.. तुम तो.. ऐसे ही करो.. और इसको मुँह के अंदर लेने की कोशिश करो..."

स्नेहा तो मस्त होती जा रही थी... उसको भी बहुत मज़ा आ रहा था..

विकी ने देखा स्नेहा अपने हाथ को उसकी टाँगों के बीच से निकालकर नीचे ले जाने की कोशिश कर रही है.. विकी को समझते देर ना लगी... वो भी तो तड़प रही होगी," एक मिनिट.. कहकर विकी घूम गया और झुकते हुए अपनी कोहनियाँ स्नेहा की जांघों के बीच टीका दी.. स्नेहा की चिकनी चूत अब उसकी पहुँच में थी..

स्नेहा के लिए भी अब आसान हो गया.. लंड उसके मुँह के उपर सीधा लटक रहा था.. उसने अपने होंठ जितना हो सकता था उतने खोले और सूपदे को मुँह में भर लिया...

दोनो 69 की स्थिति में थे.. स्नेहा तो स्नेहा; विकी भी मानो आनंद के असीम सागर में तेर रहा हो.. बड़ी ही नाज़ूक्ता से उसने स्नेहा की जांघों को अपने हाथो से दबाया.. और एक हाथ की उंगली से उसकी चूत की कुँवारी फांकों को अलग करके उनके बीच छुपे हुए छ्होटे से दाने को देखा.. मस्ती से अकड़ा हुआ था.. चूत का रंग अंदर से स्नेहा के होंठो जैसा ही था.. एकद्ूम गुलाबी रंगत लिए हुए.

वह झुका और स्नेहा के 'दाने' को चूसने लगा..

स्नेहा एकद्ूम उच्छल सी पड़ी और इस उच्छलने में लंड सूपदे से कहीं ज़्यादा दूर उसके मुँह में हो आया...

स्नेहा इतनी उत्तेजित होने के बावजूद उसके सबसे अधिक संवेदनशील अंग के साथ छेड़ छाड सहन नही कर पा रही थी.. मस्ती से वा अपनी गांद को इधर उधर मटकाने लगी.. विकी ने भी उसको कसकर दबोच लिया.. और एक मुश्त कयि मिनूटों तक स्नेहा को जन्नत के प्रॅथम दर्शन कराता रहा...

दोनो ही बावले से हो चुके थे.. दोनो एक दूसरे का भरपूर साथ दे रहे थे.. की अचानक एक बार फिर स्नेहा के साथ वही स्थिति एक बार फिर उभर आई.. उसकी टाँगें काँपने लगी.. सारा बदन अकड़ सा गया और अपनी जांघों में उसने विकी का सिर जाकड़ लिया..

विकी को भी हटने की जल्दी ना थी.. स्नेहा की बूँद बूँद को वह मदहोशी के आलम में ही अपने गले में उतार गया...

उधर स्नेहा भी उसके लंड के साथ अब तक बुरी तरह व्यस्त थी... चाट चाट कर, चूस चूस कर... काट काट कर उसने सूपड़ा लाल कर दिया था...

स्नेहा के ढीली पड़ते ही विकी 'अपना' हाथ में लेकर घुटनो के बाल उसके मुँह के पास बैठ गया," तुम्हे भी पीना पड़ेगा...?"

"क्या?" स्नेहा के चेहरे से असीम तृप्ति झलक रही थी...

"यही.. इसका रस.. जो अभी निकलेगा..." विकी का हाथ बड़ी तेज़ी से चल रहा था..

"नही... रहने दो ना... प्लीज़.." स्नेहा ने रिक्वेस्ट की..

" रहने कैसे दूँ.. मुझे भी तो पीला दिया.. ज़बरदस्ती.. टाँगों में सिर भींच कर.."

उन्न पलों को याद करके स्नेहा बाग बाग हो गयी.. फिर शरारत से मुँह बनाते हुए बोली.. "ठीक है... लाओ पिलाओ.." कह कर उसने अपना मुँह खोल लिया...

उसके बाद तो 2 ही मिनिट हुए होंगे.. अचानक विकी रुका और स्नेहा के खुले होंठो में लंड जितना आ सकता था फँसा दिया.. रस की धारा ने स्नेहा का पूरा मुँह भर दिया.. आख़िर कार जब बाहर ना निकल पाई तो मुस्कुराते हुए गटक लिया...

विकी धन्य हो गया... हटा और बेड पर धदाम से गिर पड़ा.. स्नेहा उठी और अपनी चूचियों को विकी की छाती पर दबा कर उसके होंठों को चूमने लगी.. अजीब सी क्रितग्यता उसके चेहरे से झलक रही थी...

इतनी हसीन और कमसिन लड़की को अपनी बाहों में पाकर नशे में होने के बावजूद तैयार होने में विकी को 3-4 मिनिट ही लगे... वह अचानक उठा और स्नेहा को अपने नीचे दबोच लिया.. उसकी आँखों में फिर से वही भाव देखकर स्नेहा मुस्कुराइ," अब क्या है..?"

"अब अंदर..." कहते हुए. विकी ने फिर उसकी जांघें खोल दी.. और हौले हौले टपक रही चूत पर नज़र गढ़ा दी... और एक बार फिर उसको तैयार करने के लिए उंगली और होंठो को काम पर लगा दिया...

स्नेहा भी जल्द ही फिर से फुफ्कारने लगी... लुंबी लुंबी साँसे और योनि छिद्र में फिर से चिकनाई उतर आना इस बात का सबूत था की वो उस असीम आनंद को दोबारा पाने के लिए पहली बार होने वाले दर्द को झेल सकती है...

विकी पंजों के बल बैठ गया और स्नेहा के घुटनो के नीचे से बेड पर हाथ जमकर उसकी जांघों को उपर उठा सा दिया... चूत हूल्का सी रास्ता दिखाने लगी.. विकी ने सूपड़ा 'सही' सुराख पर सेट किया और स्नेहा के चेहरे की और देखने लगा..," एक बार दर्द होगा.. सह लोगि ना...?"

"तुम्हारे लिए...." स्नेहा हमला झेलने के लिए तैयार हो चुकी थी.. अपने पहले प्यार की खातिर...

विकी के भी अब बात बर्दास्त के बाहर थी.. ज़्यादा इंतज़ार वो कर नही सकता था.. सो स्नेहा की जांघों को पूरी तरह अपने वश में किया.. और दबाव अचानक बढ़ा दिया...

स्नेहा के मुँह से तो चीख भी ना निकल सकी.. एक बार में ही सूपड़ा अपना रास्ता अपने आप बनाता हुआ काफ़ी अंदर तक चला गया था.. स्नेहा ने पहले ही अपने मुँह को अपने ही हाथो से दबा रखा था... लंड सर्दियों में जमें हुए मक्खन में किसी गरम चम्मच की तरह घुस गया था.. कुच्छ देर तक विकी ना खुद हिला और ना ही स्नेहा को हिलने दिया.. और आगे झुक कर स्नेहा की छातियो को दबाते हुए उसको होंठो को भी अपने होंठों की गिरफ़्त में ले लिया..

धीरे धीरे 'चम्मच' की गर्मी से 'चूत' का जमा हुआ 'मक्खन' पिघल कर बहने सा लगा.. इश्स चिकनाहट ने दोनो के अंगों को तर कर दिया.. स्नेहा को लगा.. अब हो सकता है तो उसने अपनी गांद उचका कर विकी को सिग्नल दिया...

विकी ने थोड़ा पिछे हट'ते हुए एक बार और प्रहार किया.. इश्स बार अंदर लेने में स्नेहा को उतनी पीड़ा नही हुई..

करीब 5 मिनिट बाद स्नेहा सामान्य हो गयी और अजीब तरह की आवाज़ें निकालने लगी.. ऐसी आवाज़ें जो कामोत्तेजना को कयि गुना बढ़ा दें...

अब दोनो ही अपनी अपनी तरफ से पूरा सहयोग कर रहे थे.. विकी उपर से आता और आनंद की कस्ति पर सवार स्नेहा की गांद नीचे से उपर की और उच्छलती और दोनो की जड़ें मिल जाती.. दोनो एक साथ आ कर बैठते...

आख़िरकार स्नेहा आज तीसरी बार 'आ' गयी... विकी भी आउट ऑफ कंट्रोल होने ही वाला था.. उसने झट से अपना लंड बाहर निकाला और फिर स्नेहा के मुँह के पास जाकर बैठ गया.. जैसे वहाँ कोई स्पर्म बॅंक खोल रखा हो...

स्नेहा ने शरारत से एक बार अपने कंधे 'ना' करने की तरह उचकाए.. और फिर मुस्कुराते हुए अपने होंठ खोल दिए.. उसकी आँखों में अजीब सी चमक थी... पहले प्यार की चमक!

सुबह विकी उठा तो स्नेहा उसके कंधे पर सिर रखे उसके बलों में हाथ फेरती हुई उसकी ही और देख रही थी.. अपलक!

"तुम कब जागी?" विकी ने हुल्की सी मुस्कान उसकी और फैंकते हुए पूचछा...

"मैं तो सोई ही नही.. नींद ही नही आई..?" नींद और पहले प्यार की खुमारी उसकी आँखों में हुल्की सी लाली के रूप में चमक रही थी.. और उसके चेहरे पर कली से फूल बन'ने का बे-इंतहा नूर था.. विकी ने उसकी आँखों में आँखें डाली तो स्नेहा ने पलकें झुका ली..

"कैसा रहा रात का अनुभव?" विकी ने उसकी और करवट लेते हुए स्नेहा की कमर में हाथ डाल कर अपनी और खींच लिया.. और स्नेहा मुस्कुरा कर उस'से चिपक गयी.....

" हम कहाँ रहेंगे मोहन?" स्नेहा ने उसके गले में अपनी गोरी बाँहें डाल दी..

" मतलब? " विकी ने नज़रें चुरा ली...

"मैं वापस हॉस्टिल नही जाना चाहती.. यहीं रहना चाहती हू.. तुम्हारे साथ.."

विकी ने बात टालने के इरादे से अपने एक हाथ से उसकी चूची को दबाया और उसके होंठो को अपने होंठो में लेने के लिए अपना चेहरा उसकी तरफ बढ़ा दिया..

कामुकता भरे आनंद की लहर स्नेहा के पुर बदन को दावादोल सा कर गयी.. पर वह अगले कदम के बारे में जान'ने को चिंतित थी.. उसने अपना चेहरा सिर झुका कर विकी की छाती में छुपा लिया," बताओ ना मोहन.. अब हम क्या करेंगे.. मुझे वापस तो नही भेजोगे ना? मुझे अब तुमसे दूर नही जाना.."

विकी एक पल के लिए असमन्झस में पड़ गया.. इश्स वक़्त उसको स्नेहा को वादों के जाल में उलझाए ही रखना था.. पर जाने क्यूँ.. स्नेहा के सीधे सवाल का टेढ़ा जवाब देने से वह कतरा रहा था..," पर तुम्हारे पापा.. उनका क्या करोगी..? विकी ने सवाल का जवाब सवाल से ही दिया...

स्नेहा का उम्मीदों से भरा मॅन क्षणिक कड़वाहट से भर उठा..," पापा! हुन्ह... उनकी पैदाइश होने के अलावा हमारा रिश्ता ही क्या रहा है.. मैं 8 साल की तही जब उन्होने मुझे हॉस्टिल में डाल दिया.. आज 11 साल होने को आ गये हैं.. और मुस्किल से 11 बार ही मैने उनका चेहरा देखा है.. मैं उनसे बहुत प्यार करती थी.. हमेशा उनसे मिलने को.. घर जाने को तड़पति रहती थी.. पर उन्होने.. पता नही क्यूँ.. मुझे प्यार दिया ही नही.. कभी हॉस्टिल से घर लेने भी आता तो उनका ड्राइवर.. घर जाकर पता चलता.. देल्ही गये हैं.. बाहर गये हैं.. और मुझे तकरीबन उसी दिन शाम को या अगले दिन वापस भेज हॉस्टिल में फैंक दिया जाता" स्नेहा की आँखों में अतीत में मिली प्यार के अभाव की तड़प के छिपे हुए आँसू जिंदा हो उठे..," सब फ्रेंड्स के मम्मी पापा.. उनसे मिलने आते.. उनको घर लेकर जाते और वो लड़कियाँ आकर घर जाकर की गयी मस्ती को सबको बताती.. सोचो.. मेरे दिल पर क्या बीत-ती होगी.. लड़कियाँ मुझे 'अनाथ' तक कह देती थी.. अगर पापा ऐसे ही होते हैं तो सबके क्यूँ नही होते मोहन.. हम अपने बच्चे को हॉस्टिल नही भेजेंगे.. अपने से कभी दूर नही करेंगे मोहन... मैने महसूस किया है.. बिना अपनों के साथ के जिंदगी कैसी होती है.. फिर भी मैं हमेशा यही सोचती थी की पापा बिज़ी हैं.. पर प्यार तो करते ही होंगे... पर कल तो उन्होने दिखा ही दिया की... मैं सच मैं ही 'अनाथ' हूँ.." कहते हुए स्नेहा का गला बैठ गया.. और दिल की भादास विलाप के रूप में बाहर निकालने लगी...

विकी से उसका रोना देखा ना गया.. चेहरा उपर करके उसके आँसू पौंच्छने लगा... पर दिल उसका भी ज़ोर से धड़क रहा था.. उसके रोने के पिछे असली कारण वही था," अब.. रोने से क्या होगा सानू? सम्भालो अपने आपको... " विकी ने उसको अपनी छाती से चिपका लिया....

" बताओ ना.. हम कहाँ रहेंगे.. कहाँ है अपना घर?" स्नेहा पूरी तरह से विकी के लिए समर्पित हो चुकी थी.. उसके घर को अपना घर मान'ने लगी थी...

" उस'से पहले तुम्हे मेरी मदद करनी पड़ेगी... सानू..!"

" मैं क्या मदद कर सकती हूँ..? मैं खुद अब तुम्हारे हवाले हूँ..!"

" वो तो ठीक है.. पर अगर तुम्हारे पापा को पता चल गया तो मेरी जिंदगी ख़तरे में पड़ जाएगी.. अब तक तो फिर भी हो चुकी होगी... ये पता चलते ही की मैं ठीक ठाक हूँ और तुम मेरे साथ हो.. पोलीस मुझे उठा लेगी.. उसके बाद तुम फिर अकेली हो जाओगी... मुझे जैल मैं भेज देंगे.. और तुम्हारे पापा कभी सच्चाई को सामने नही आने देंगे...." विकी ने अपनी अगले प्लान की भूमिका बाँधी....

स्नेहा सुनकर डर गयी.. उसके पापा 'पॉवेरफूल थे.. और सच में ऐसा कर सकते थे.. स्नेहा के लिए तो विकी उसके बाप का एस.ओ. ही था..," फिर.. अब हम क्या करें मोहन!"

"सिर्फ़ एक ही रास्ता है.. तुम पहले मीडीया में जाकर सच्चाई बता दो.. की तुम्हारे बाप ने ही ये सब किया है.. और ये भी कहना की तुम अब वापस नही जाना चाहती.. फिर कुच्छ दिन तुम्हे छिप कर रहना पड़ेगा..!" विकी ने स्नेहा को वो रास्ता बता दिया जो उसको मंज़िल तक ले जाने के लिए काफ़ी था..

"उसके बाद तो सब ठीक हो जाएगा ना?"स्नेहा को अब भी चिंता सता रही थी..

"हाँ.. उसके बाद हम साथ रह सकते हैं.. खुलकर.." स्नेहा की सहमति जानकर विकी खिल उठा और उसने अपना हाथ स्नेहा की जांघों के बीच फँसा दिया...," पर याद रखना.. तुम्हे मेरा कहीं जिकर नही करना है.. यही कहना की मैं किसी तरह उनके चंगुल से बचकर अपनी किसी सहेली के घर चली गयी थी.. अगर मेरा नाम आया तो वो मुझे ढ़हूंढ लेंगे...!"

"आआहह.. ये मत करो.. मुझे कुच्छ हो रहा है.." अपनी पॅंटी में विकी की उंगलियाँ महसूस करके तड़प उठी...

"तुमने सुन लिया ना..." विकी ने अपना हाथ बाहर निकाल लिया..

"हां.. बाबा! सुन लिया.. कब चलना है.. मीडीया के सामने..?"

"मैं नही जाउन्गा.. तुम्हे किसी दोस्त के साथ भेज दूँगा.. चिंता मत करो.. मैं आसपास ही रहूँगा.." कहकर विकी उठ गया...

"अब कहाँ भाग रहे हो.. मुझे छेड़ कर..!" स्नेहा ने विकी को बेड पर वापस गिरा लिया और उसके उपर आ चढ़ि... अपनी टाँगें विकी की जांघों के दोनो तरफ रखकर 'वहाँ' बैठ गयी और सामने की और झुक कर अपनी चूचियों विकी की छाती पर टीका दी....

नया नया खून मुँह लगा था.. ये तो होना ही था...

कुच्छ ही देर बाद दोनो के कपड़े बेड पर पड़े थे और दोनो एक दूसरे से 'काम-क्रीड़ा' कर रहे थे.. स्नेहा की आँखों में अजीब सी तृप्ति थी.. 'अपनी मंज़िल' को प्राप्त करने की खुशी में वो भाव विभोर हो उठी थी.. प्यार करते हुए भी उसकी आँखों में नमी थी... खुशी की!

"रिया.. आज वो लड़का नही आया ना...!" क्लास में बैठी प्रिया की नज़रें किसी को ढ़हूंढ रही थी...

"ओहूओ... क्या बात है.. आजकल...."

"ज़्यादा बकवास मत्कर.. पहले तो मेरी फाइल दे दी उस घंचक्कर को .. अब मज़ाक सूझ रहे हैं... आज प्रॅक्टिकल है.. केमिस्ट्री का.. अगर नही आया तो मैं क्या करूँगी.." प्रिया ने मुँह बनाकर अपने चेहरे पर उभर आए शर्मीलेपान को छिपाने की कोशिश की...

"हमारे सामने ही तो रहता है.. घर जाकर माँग लाना..!" रिया ने चुटकी ली.. उसको पता था की उसके घर में ये सब नही चलता....

"तू पागल है क्या..? मैं उसके घर जाउन्गि? मरवा दे मुझे!....... तू ले आना अगर हिम्मत है तो!" प्रिया ने रिया को झिड़कते हुए कहा...

"मैं तो कभी ना जाउ? हां.. वीरेंदर को कह सकती थी पर आज तो वो भी नही दिख रहा..

तभी क्लास में सर आ गये और उनकी गुफ्तगू बंद हो गयी

दोस्तो इधर मुरारी का क्या हाल हो रहा है ज़रा इसे भी देंखे ......

" मे आइ कम इन सर?" 22-23 साल की चुलबुली सी एक छर्हरे बदन की युवती ने मुरारी से अंदर आने की इजाज़त माँगी...

"आओ जान ए मंन.." मुरारी खुश लग रहा था..

" सर.. देल्ही से पांडे जी का फोन है.." कहकर वो वापस चली गयी..

"नशे में होने के बावजूद मुरारी खुद को रिसीवर उठाकर खड़ा होने से ना रोक पाया," जैहिन्द सर..!"

" ये क्या तमाशा है मुरारी..? तुम्हारी बेटी तो सही सलामत है..?" उधर से गुर्राती हुई आवाज़ आई..

मुरारी चौंके बिना ना रह सका.. उसने तो स्नेहा को मना किया था.. किसी को भी कुच्छ भी बताने से.. फिर बात देल्ही तक कैसे पहुँच गयी...," हां.. हां सर.. मैं अभी आपको फोन करने ही वाला था.. ववो स्नेहा का फोन ..आया था.. अभी अभी.. बस उस'से ही बात कर रहा था.. वो.. किसी ने अफवाह फैलाई थी.. सर... मैं आपको बताने ही वाला था.."

"अच्च्छा.. अफवाह फैलाई थी.. ज़रा एक बार टीवी ऑन करके इब्न7 देखो.. तुम्हारी अकल ठिकाने आ जाएगी.. हाउ मीन यू आर!" कहकर पांडे ने फोन काट दिया..

टी.वी. तो पहले ही ऑन था.. बस चॅनेल ज़रा दूसरा था.. एफटीवी! मुरारी ने हड़बड़ाहट में चॅनेल सर्च करने शुरू किए.. जैसे ही इब्न& स्क्रीन पर आया.. उसकी आँखें फटी की फटी रह गयी.. उसकी बेटी जैसी लड़की टीवी पर थी... अर्रे हाँ.. वही तो थी..!

मुरारी को एकदम ऐसा अहसास हुआ मानो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गयी हो... वो खड़ा ना रह सका और धम्म से सोफे पर आ गिरा...

स्नेहा बार बार टीवी स्क्रीन पर वो बातें कह रही थी.. जिनको वो 100% सच मान रही थी.. उसके बाप का उसको घूमकर आने के लिए कहने से लेकर बाप के गुण्डों से बचकर वहाँ तक आने की.... कुच्छ ही बातों में मिलावट थी.. जैसे उसको नही पता की ड्राइवर कहाँ है.. और वो अब अपनी किसी पुरानी सहेली के पास रह रही है..

"अब मैं आपको वो रेकॉर्डिंग सुनाती हूँ.. जो मेरे फोन में डिफॉल्ट सेट्टिंग होने की वजह से सेव हो गयी.... मेरे पापा ने मेरे पास कॉल की थी.." कहते हुए स्नेहा बीच बीच में सूबक रही थी.. और न्यूज़ रीडर बार बार उसको धैर्य रखने की गुज़ारिश कर रही थी..

रेकॉर्डिंग सुनकर मुरारी का चेहरा लाल हो गया.. उसके द्वारा कही गयी बातें जाने अंजाने मुरारी की और ही उंगली उठा रही थी.. बेशक उसके दिमाग़ में ये ख़याल बहुत बाद में.. विरोधी पार्टियों की तरफ से धमकी भरे फोन आने के झूठे आरोपों को सच साबित करने के उद्देश्या से आया था...

चॅनेल वाले टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में बाल की खाल उतारने में लगे थे.. टीवी स्क्रीन पर नीचे लगातार फ्लश हो रहा था.. " मुरारी या दुराचारी! एक्सक्लूसिव ऑन इब्न7"

" स्नेहा जी.. कहीं इसमें आपका ड्राइवर भी तो शामिल नही है..?" आंकर ने सवाल किया...

"नही.. मैं आपको बता ही चुकी हूँ की उन्होने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी.. मुझे बचाने की.. पर वो उसको भी मेरे साथ ही डाल कर ले गये.. फिर उसने वहाँ से निकालने में भी मेरी मदद की... बाकी रेकॉर्डिंग से सब कुच्छ सॉफ है.."

आंकर ने नहले पर दहला ठोंका..," पर रेकॉर्डिंग मैं तो आप कह रही हैं कि आप ड्राइवर के साथ ही हैं... और अब आप कह रही हैं की आपको ड्राइवर के बारे में नही पता.. वो कहाँ है.. इसकी वजह?"

स्नेहा एक पल को सकपका गयी.. पर जल्द ही संभालते हुए बोली...," वो.. वो मैने तब झूठ बोला था.. ताकि पापा मेरी लोकेशन के बारे में आइडिया ना लगा पायें..!"

" पर अगर गुंडे आपके पापा ने ही भेजे थे.. तो उनको तो मालूम होना चाहिए था कि ड्राइवर उनके गुण्डों के ही पास है.. फिर उन्होने आपसे पूचछा क्यूँ?" आंकर ने एक और बआउन्सर मारा...

ये सवाल सुनकर मुरारी के चेहरे पर हूल्का सा सुकून आया.. ," इश्स लौंडिया को तो सीबीआइ में होना चाहिए.." उसके मुँह से निकला..

" ये सवाल आप मेरे पापा से ही करें.. उन्होने क्यूँ पूचछा..? या फिर हो सकता है.. वो भी मेरे बाद बच निकलने में कामयाब हो गये हों.. इसीलिए उन्होने फोन किया हो..?"

" तो देखा आपने.. हमारे देश की राजनीति किस कदर गिर चुकी है.. चंद वोटों की खातिर जो नेता.. अपनी इतनी प्यारी बेटी तक को दाँव पर लगाने से नही चूकते.. उनके लिए आप और हम जैसे इंसानो की क्या कीमत है.. आप अंदाज़ा लगा सकते हैं.. बहरहाल.. हम मुरारी से कॉंटॅक्ट करने की कोशिश कर रहे हैं.. तब तक लेते हैं एक छ्होटा सा ब्रेक.. आप देखते रहिए.. आज की सबसे सनसनीखेज वारदात.. ' मुरारी या दुराचारी ' सिर्फ़ और सिर्फ़ इब्न पर.. जाइएगा नही.. अभी और भी खुलासे होने बाकी हैं.. मिलते हैं ब्रेक के बाद!"

पागल से हो उठे मुरारी ने टेबल पर रखी बोतल टीवी पर दे मारी.. स्क्रीन टूट कर टीवी से धुंवा निकलने लगा.. हड़बड़ाहट में मुरारी ने पांडे के पास फोन मिलाया...

" प्पंडे जी.. सब बकवास है.. झूठह है.. मेरे खिलाफ बहुत बड़ी साजिस हो रही है.. विरोधियों की और से..."

" व्हाट दा हेल आर यू टॉकिंग अबौट.. ये मुहावरा बहुत पुराना हो गया मुरारी.. मत भूलो की स्क्रीन पर तुम्हारी अपनी बेटी है.. जो तुम्हारे शड्यंत्रा का खुलासा कर रही है... अब हो सके तो जल्दी से अपनी बेटी को अपने कंट्रोल में लो.. वरना आप कल से पार्टी में नही हैं.. आप जैसे आदमी की वजह से हम पार्टी की छवि को नुकसान नही पहुँचा सकते..!" पार्टी आलाकमान का गुस्सा सातवें आसमान पर था..

"सर.. सुनिए तो.. वो.. वो मेरी बेटी नही है... मैं ये बात प्रूव कर सकता हूँ.. मैं वो डीएनए पीएनए के लिए भी तैयार हूँ. सर.. वो मेरी बीवी की नाजायज़ औलाद है.. साली कुतिया.. अपनी मा पर गयी है.. मादर चोद.. बिक गयी! वो मेरा खून नही है सर.." मुरारी अनाप शनाप जाने क्या क्या उगले जा रहा था..

"माइंड उर लॅंग्वेज.. मुरारी! वी हॅव नतिंग टू डू व्ड उर पास्ट ऑर वॉटेवर यू आर टॉकिंग अबौट.. जस्ट ट्राइ टू टेक बॅक उर चाइल्ड इन उर फेवर ओर बी रेडी टू बी किक्ड आउट...!" कहकर पांडे ने पटाक से फोन काट दिया..

काफ़ी देर से वो दरवाजे पर खड़ी मुरारी की कॉल के ख़तम होने का इंतज़ार कर रही थी... जैसे ही कॉल डिसकनेक्ट हुई.. उसने अंदर आने की इजाज़त माँगी," मे आइ कम इन,सर?"

"तू.. साली कुतिया.. यहाँ खड़ी होकर क्या सुन रही है..? बेहन्चोद.. अंदर आ.."

शालिनी डर के मारे काँपने लगी.. 2 दिन पहले ही उसने मुरारी के ऑफीस को जाय्न किया था.. यूँ तो ऑफीस के हर एंप्लायी को मुरारी की चरित्रहीनता का पता था.. पर नौकरी का लालच और सुन्दर और कुँवारी लड़कियों को अच्च्ची तनख़्वाह देने का मुरारी का रेकॉर्ड लड़कियों को वहाँ खींच ही लाता था.. वैसे भी मुरारी ऑफीस में 5-6 महीनों से ज़्यादा किसी लड़की को रखता नही था...," सर्र.. वो.. इब्न7 से बार बार आपके लिए कॉल आ रही है.." शालिनी सूखे पत्ते की तरह थर थर काँपती थोडी सी अंदर आकर खड़ी हो गयी...

" उन्न बेहन के लोड़ों को तो मैं बाद में देख लूँगा.. पहले तू बता.. क्या सुन रही थी.. छिप कर..!" मुरारी खड़ा होकर शालिनी के पास गया और उसका गिरेबान पकड़ कर खींच लिया.. शर्ट का एक बटन टूट कर फर्श पर जा गिरा.. शालिनी की सफेद ब्रा शर्ट में से झलक उठी..

" कुच्छ.. नही सर्र.. मैने कुच्छ नही सुना.. म्म्मै तो अभी आई थी.. प्लीज़ सर.. मुझे माफ़ कर दीजिए.. आइन्दा ऐसी ग़लती नही होगी..." शालिनी ने मुरारी के मुँह से आ रही तेज बदबू से बचने के लिए अपना चेहरा एक तरफ करके अपना हाथ उपर उठाया और.. उसके और मुरारी के चेहरे के बीच में ले आई...

मुरारी ने शालिनी का वही हाथ पकड़ा और उसको मोड़ दिया.. दर्द के मारे वो घूम गयी.. उसकी गांद मुरारी की जांघों से सटी हुई थी..," आ.. छ्चोड़ दीजिए सर.. प्लीज़.. मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ...

अब तक शालिनी के कुंवारे और गरम खून की महक पाकर मुरारी की आँखों में वासना के लाल डोरे तैरने लगे थे..," छ्चोड़ दूं.. साली.. कुतिया.. तुझे छ्चोड़ दूँगा तो क्या तेरी मा को चोदुन्गा... च्छुपकर बात सुन'ने की सज़ा तो तुझे मिलेगी ही.." कहते हुए मुरारी ने उसको ज़ोर से धक्का दिया और संभालने की कोशिश करती हुई सी शालिनी बेड के कोने पर जा गिरी..

तुरंत ही उठते हुए उसने जहाँ से बटन टूटा हुआ था.. वहाँ शर्ट को अपने हाथ से पकड़ लिया.. और गिड़गिदाने लगी..," मैं बर्बाद हो जाउन्गि सर्र.. मुझे नही करनी नौकरी.. आप मुझे जाने दीजिए प्लीज़.. जाने दीजिए.." जो कुच्छ होने वाला था.. उसकी कल्पना करके ही शालिनी सिहर उठी.. और फफक कर रोने लगी...

"चुप कर कुतिया.. ज़्यादा नाटक मत कर.. नही तो कभी वापस नही जा पाएगी... तू मेरी बातें सुन्न'ने की हिम्मत करती है.. मुरारी की बातें.." मुरारी ने कहते हुए उसके बालों को पकड़ कर उपर की और खींच लिया.. असहाय सी हो उठी शालिनी की आइडियान दर्द को कम करने की खातिर उपर उठ गयी.. तब भी बात नही बनी तो उसके हाथ उपर उठकर अपने बालों को नीचे की और खींचने लगे...," प्लीज़.. सर.. मैं मर जाउन्गि.. मुझे जाने दो...!"

मुरारी ने एक बार फिर उसकी शर्ट को पकड़ कर खींचा और शर्ट पर उसकी इज़्ज़त के रखवाले बटन दम तोड़ गये.. फटी हुई शर्ट में शालिनी का कमसिन बदन दारू के नशे में और इज़ाफा कर रहा था... बाल खींचे होने की वजह से वो बैठकर अपने आपको छुपा भी नही सकती थी.. असहाय खड़ी थी.. बिलबिलाते हुए.. बिलखते हुए...

"इसको खोल साली..! वरना इसे भी फाड़ दूँगा.." नशे में टन मुरारी ने शालिनी की ब्रा में हाथ डाल दिया... उसकी चूची पर उभरा हुआ मोटा दाना मुरारी की उंगलियों से टकरा कर सहम गया... मुरारी अपनी बेटी का गुस्सा उस बेचारी पर निकाल रहा था....

"प्लीज़ सर.. मेरे बाल छ्चोड़ दीजिए.. बहुत दर्द हो रहा है..." शालिनी चीख सी पड़ी...

"ब्रा निकल पहले.. नही तो उखाड़ दूँगा सारे..?" मुरारी ने बालों को और सख्ती से खींच लिया..

"अया.. निकालती हूँ.. सर.. भगवान के लिए.. प्लीज़.. एक बार छ्चोड़ दीजिए बाल.. अया.."

मुरारी ने झटका सा देते हुए उसके बालों को छ्चोड़ दिया... और जाकर दरवाजा बंद कर दिया..

शालिनी ने एक बार अपनी नज़रें उठाकर मुरारी की तरफ इस तरह देखा जैसे कोई मासूम हिरण शेर के पंजों से घायल होकर उसके पैरों में पड़ा हो और अपनी जिंदगी की भीख माँग रहा हो.. पर मुरारी पर इसका कोई फ़र्क़ नही पड़ा.. वह शेर थोड़े ही था.. वह तो भेड़िया था.. जो बिना भूख लगे भी शिकार करते हैं.. सिर्फ़ शिकार करने के लिए.. अपनी कुत्सित राक्षशी भावनाओ की तृप्ति के लिए..," निकालती है साली या खींच कर फाड़ दूं..."

और कोई रास्ता बचा भी ना था... शालिनी ने पिछे हाथ लेजाकार ब्रा के हुक खोल दिए.. ब्रा ढीली होकर नीचे सरक गयी.. उसने झुक कर 50 साल के राक्षस के सामने नंगे खड़े अपने जिस्म को देखा और फूट फूट कर रोने लगी...

" क्या री शालिनी तेरी चूचियाँ तो बड़ी मस्त हैं.. क्या मसल्ति है इन्न पर!" शालिनी के क्रंदन से बेपरवाह मुरारी ने आगे बढ़कर ब्रा को खींचकर निकाल दिया और उसकी मस्त कबूतरों जैसी गोरी चूचियों को बारी बारी से मसालने लगा... शालिनी को चक्कर आ रहे थे.. मुरारी इतनी कामुकता से उनको मसल रहा था की यदि उसकी जगह उसका 'रोहित' होता तो नज़ारा ही कुच्छ और होता.. जिसको उसने आज तक खुद को उनके पास फटकने तक नही दिया था... शालिनी के लगातार बह 5रहे आँसुओं से उसकी चूचियाँ गीली हो गयी थी...

"चल जीन्स खोल..! तेरी चूत भी इनकी तरह करारी होगी.. शेव कर रखी है या नही.... अगर..." मुरारी का वाक़या अधूरा ही रह गया.. दरवाजे पर जोरों से खटखट होने लगी...

"कौन है मदर्चोद.. किसने हिम्मत की दरवाजे तक आने की.." उसने फोन उठाकर गार्ड को फोन मिलाया.. पर किसी ने फोन नही उठाया..!

" आबे... कहाँ अपनी मा का.. कौन है बे.. चल फुट..." पर दरवाजे पर खटखट की आवाज़ बढ़ती ही गयी...," तू रुक एक बार.. साले बेहन के..." दरवाजे के खुलते ही मुरारी का सारा नशा उतर गया.. उसकी आँखें फटी की फटी रह गयी...... अधूरी बात उसने अपने गले में थूक के साथ गटक ली.. और दरवाजा बाहर से बंद करते हुए निकल गया...

" वी आर फ्रॉम सी.आइ.ए. भिवानी मिस्टर. मुरारी, दुराचारी और वॉटेवर.. यू आर अंडर अरेस्ट.." 3 सिपाहियों और एक ए.एस.आइ. के साथ खड़े इनस्पेक्टर ने उसका स्वागत किया...

मुरारी फटी आँखों से उसको देखता रहा.. फिर संभालते हुए बोला..," तू जानता तो है ना मैं कौन सू!" मुरारी ने बंदर घुड़की दी...

" हां.. कुच्छ देर पहले टी.वी. पर देखा था.. कुत्ते से भी गया गुजरा है तू.. लानत है 'बाप' के नाम पर.. पर तू शायद मुझे नही जानता.. मुझे टफ कहते हैं.. टफ.. चल थाने.. बाकी की कुंडली वहाँ सुनता हूँ.. डाल लो इसको.." टफ ने सिपाहियों की और इशारा किया....

"एक मिनिट.. तुम तो भिवानी से हो.. तुम मुझे कैसे अरेस्ट कर सकते हो..?" मुरारी उसकी टोन से बुरी तरह डर गया था..

"अबबे चुतिये.. हिन्दी समझता ही नही है.. सालो.. इतने क्राइम करते हो.. तो थोड़ा सा जी.के. भी रखा करो.. किडनॅपिंग वाला नाटक तूने वही रचाया था ना.. तो क्या पोलीस लंडन से आएगी.. भूतनि के..." कहकर टफ ने उसको सिपाहियों की और धकेला.. और जाने के लिए वापिस मूड गया....

"मुझे बचाओ प्लीज़.. मुझे यहाँ से निकालो.." दरवाजा अंदर से थपथपाया गया तो टफ चौंक कर पलटा.. एक पल भी बिना गँवाए उसने दरवाजा खोल दिया.. और अंदर का द्रिस्य देखकर चौंक पड़ा..

फर्श पर शराब की बोतल टूटी पड़ी थी.. टीवी का स्क्रीन टूटा हुआ था... और टफ की आँखों के सामने आँखें झुकाए अपनी फटी हुई शर्ट को अपने बदन पर किसी तरह लपेटे खड़ी शालिनी भी जैसे टूटी हुई ही थी.. उसके बॉल बिखरे पड़े थे और बदहवास सी लगातार बह रहे अपने आँसुओं को अपनी आस्तीन से पौंच्छने की कोशिश कर रही थी..

"ओह्ह्ह.. एक मिनिट.." टफ लगभग भागते हुए अंदर गया और बेड की चादर खींच कर शालिनी के बदन को ढक दिया...

"ये सब क्या है?" टफ ने सिपाहियों के साथ जा रहे मुरारी को आवाज़ लगाकर वापस बुला लिया," अंदर लाओ इसको!"

मुरारी विकी के बिच्छाए जाल, अपनी नियत और नियती के चक्रव्यूह में बुरी तरह से फँस गया था.. हमारी मीडीया आजकल एकमात्र अच्च्छा काम यही कर रही है कि वो मुद्दों को इस तरह उठाती है जैसे इस-से पहले ऐसा कभी नही हुआ... और उनके द्वारा दिखाई गयी खबर पर अगर प्रसाशण तुरंत कार्यवाही नही करता तो वे प्रायोजित करना शुरू कर देते हैं की सब मिले हुए हैं.. बड़ी मछ्लियो के मामले में तो वो खास तौर पर ऐसा करते हैं.. बेशक ऐसा वो अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए करते हैं.. पर आज उनके दिखाए टेलएकास्ट से कम से कम जो एक अच्च्छा काम हुआ वो ये.. की बेचारी शालिनी की इज़्ज़त तार तार होने से बच गयी.. देल्ही में बैठे पार्टी के आला नेताओ ने पार्टी की छवि बचाने के लिए अधिकारियों पर तुरंत कार्यवाही का दबाव बनाया और उसका ही नतीजा था.. की भिवानी पोलीस डिपार्टमेंट में हाल ही में प्रमोशन पाकर इनस्पेक्टर बने सबसे काबिल और दबंग टफ को ये काम सौंपा गया....

"ये क्या है मुरारी..?" टफ को लगा शालिनी बात करने की हालत में नही है... इसीलिए मुरारी से ही पूच्छ लिया...

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11-26-2017, 02:00 PM,
#80
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल--42

हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा पार्ट 42 लेकर हाजिर हूँ अब आप कहानी का मज़ा लीजिए

विकी ने फोन काट-ते ही शमशेर को फोन लगाया," कहाँ हो भाई? कितने दिन से आपका फोन नही लग रहा..." विकी की आवाज़ में बेचैनी सी थी...

"मैं आउट ऑफ स्टेट हूँ यार.. और मेरा सेल गुम हो गया था.. आज ही नंबर. चालू करवाया है.. दूसरा सेल लेकर.. क्या बात है..?"

"मुझे तुझसे मिलना था यार.. कब तक आ रहे हो वापस..?"

"मुझे तो अभी कम से कम 8-10 दिन और लग जाएँगे.. तू बात तो बता..!" शमशेर ने कहा..

"बात ऐसे बताने की नही है.. मिलकर ही बतानी थी.. बहुत टाइम लग जाएगा... तू बता ना.. कहाँ है? मैं वहीं आ जाता हूँ..."

"ऊटी!... आजा!" शमशेर ने मुस्कुराते हुए कहा....

"भाभी जी साथ ही हैं क्या?"

"ना.. वो तो गाँव में है.. !"

"चल छ्चोड़.. मैं कुच्छ और देखता हूँ... अच्च्छा!"

"अरे तू बता तो सही.. मैं फिलहाल बिल्कुल फ्री हूँ..." शमशेर ने गाड़ी सड़क किनारे रोक ली... उस वक़्त वो अकेला ही था..

"अच्च्छा सुन.. पर लेक्चर मत देना.. बस कुच्छ मदद कर सको तो..."

"अबे तू बोल ना यार.. बोल!"

विकी ने शुरू से आख़िर तक की सारी रामायण सुना दी.. इस दौरान शमशेर कयि बार चौंका.. केयी बार मुस्कुराया और केयी बार कहीं और ही खो जाता.. जब विकी की बात बंद हो गयी तो शमशेर बोला," तू भी ना यार.. पूरा घंचक्कर है.. वो तो तेरी किस्मत साथ देती चली गयी.. वरना.. खैर अब प्राब्लम क्या है?"

"प्राब्लम ये है कि उसको मुझसे प्यार हो गया है.. मुझसे अलग होने को तैयार ही नही है.. कह रही है मर जाएगी..." विकी ने बेचारा सा मुँह बनाया..

विकी की इश्स बात पर शमशेर ज़ोर से हंसा.. ," आख़िर फँस ही गया तू भी..!"

"तुझे पता है यार.. ये 'प्यार व्यार' मेरी समझ से बाहर की बात है.. पर जब तक मुरारी से सौदा नही होता.. तब तक तो इसको ढोना ही पड़ेगा...." विकी ने अपने दिल की बात कही..

"तो उसके बाद क्या करेगा?" शमशेर ने लंबी साँस ली..

"उसके बाद मैने क्या करना है.. वो मुझे मोहन के नाम से जानती है.. एक बार मल्टिपलेक्स मिल गया तो दोनो बाप बेटी कितना ही रो लें.. मेरी सेहत पर कोई असर नही पड़ेगा.. मेरे पास इश्स बात का सॉलिड प्रूफ है की उस दौरान में आउट ऑफ कंट्री था....."

शमशेर ने उसको बीच में ही टोक दिया..," वो सब तो सही है.. मैं पूच्छ रहा हूँ स्नेहा का... उसका क्या करेगा?"

"वो मेरी टेन्षन नही है यार... उसके बाद वो भाड़ में जाए.. तब तक बता ना.. क्या करूँ?"

"देख मुझे पता है.. तू किसी की सुनेगा तो है नही.. पर सब ग़लत है.. किसी के दिल पर चोट नही करनी चाहिए.. तूने वादा किया है उसको..!" शमशेर उसकी बात से आहत था..

"यार.. तू सिर्फ़ मुझे ये बता की तब तक मैं इसका क्या करूँ?" विकी ने सारी बातें गोलमोल कर दी...

"घुमा ला कहीं.. ऊटी लेकर आजा.. फिर साथ ही चल पड़ेंगे.." शमशेर ने राई दी..

"यही तो नही हो सकता यार.. आगे का सारा काम मुझे ही करना है अब ... किसी तरह इस-से पीछा छुड़ाओ यार.."

"मैं क्या बताऊं..? या फिर लोहरू छ्चोड़ दे.. वाणी उसको अपने आप सेट कर लेगी.. पर बाद में लोचा हो सकता है.. अगर तूने उसको छ्चोड़ दिया तो.. उसके बाप के पास!"

"ग्रेट आइडिया बॉस.. गाँव में तो कोई शक करेगा ही नही... और उसका दिल भी लग जाएगा.. वाणी और दिशा के पास... तू बाद की फिकर छ्चोड़ दे.. मुझे पता है मुझे क्या करना है... वो कभी वापस नही जाएगी.. मैं एक तीर से दो शिकार करूँगा...!" विकी स्नेहा का भी शिकार ही करना चाहता था.. काम पूरा होने के बाद...

"ठीक है.. जैसा तू ठीक समझे. मैं दिशा को समझा दूँगा.. तू बेशक आज ही उसको वहाँ छ्चोड़ दे...."

"थॅंक यू बॉस! मुझे यकीन है.. स्नेहा वहाँ से वापस मेरे साथ आने की ज़िद नही करेगी.. मैं उसको समझा दूँगा.. और हां.. टफ से तुझे ही बात करनी पड़ेगी.. ये पोलीस वालों का कुच्छ भरोसा नही होता..."

"ओके, मैं कर लूँगा...." शमशेर हँसने लगा और फोन काट दिया....

"रिया.. यार अब मैं क्या करूँ? तूने तो मेरी ऐसी की तैसी करा दी..!" प्रिया ने राज के ना आने का सारा दोष रिया पर मढ़ दिया..

"क्यूँ? मैने ऐसा क्या किया?" रिया ने हैरान होते हुए पूछा... दोनो पहली मंज़िल पर पिछे की और बने अपने कमरे में पढ़ रही थी..

"मैने ऐसा क्या कर दिया..!" प्रिया ने मुँह बनाकर रिया की नकल की..," तूने ही तो उस ईडियट को फाइल दी थी.. लेते वक़्त तो इतना शरीफ बन रहा था... अब कल 'सर' को क्या तेरा तोबड़ा (फेस) दिखाउन्गि कल..."

"दिखा देना! क्या कमी है... सर दिल दे बैठेंगे.. बुढ़ापे में.. जान दे बैठेंगे अपनी" रिया ने चुलबुलेपन से कहा..

"तू है ना.. बिगड़ती जा रही है... मम्मी को बोलना पड़ेगा.." प्रिया ने रिया को प्यार से झिड़का..

" बोल दे.. वो भी तो कहती हैं.. 'कितनी क्यूट है तू!' रिया ने स्टाइल से अपने लूंबे बलों को पिछे की और झटका दिया...

"ज़्यादा मत बन.. शकल देखी है आईने में कभी...?" प्रिया अपनी किताब को बंद करते हुए बोली....

"हां.. देखी है.. बिल्कुल तेरे जैसी है.. अब बोल" रिया ने भी अपनी किताब बंद कर दी और हँसने लगी...

"तू यार.. ज़्यादा फालतू बातें मत कर... बता ना.. अब मैं क्या करूँ?" प्रिया ने मतलब की बात पर आते हुए बोला...

"यहीं.. खिड़की के पास चिपका बैठा होगा... छत से माँग ले..." रिया ने शरारती मुस्कान फैंकते हुए कहा..

" तू जाकर माँग ले ना.. बड़ी हिम्मत वाली बन'ती है.. छत से माँग लून.. वो भी रात के 9:00 बजे.. पिच्छली बात भूल गयी क्या..?"

रिया एक पल को अतीत में चली गयी...," मुझे उस लड़के की बड़ी दया आई थी.. पापा ने सही नही किया प्रिया..."

"सही नही किया तो कुच्छ खास ग़लत भी नही था.. दिन में हमारे घर के इतने चक्कर लगाता था.. पागल था वो..." प्रिया ने अपना नज़रिया उसको बताया..

" गली में ही घूमता था ना.. हमें कुच्छ कहा तो नही था.. इतना मारने की क्या ज़रूरत तही.. वैसे समझा देते.. देख भाई.. मुझे तो बहुत बुरा लगा था.. उस रात खाना भी नही खा सकी थी.. बेचारे के चेहरे पर कैसे निशान पड़ गये थे..." रिया का मूड ही ऑफ हो गया...

उस दिन को याद करके प्रिया भी सिहर उठी... कोई काला सा लड़का था.. उनकी ही उम्र का.. गली में लगभग हर एक को यकीन हो गया था कि इसका थानेदार की बेटियों के साथ कुच्छ ना कुच्छ चक्कर तो ज़रूर है.. इन्न दोनो की भी आदत सी हो गयी थी.. उसको खिड़की से आते जाते उनकी और चेहरा उठाकर देखते हुए देखना और फिर उसका मज़ाक बना कर खूब हँसना... उस दिन पापा ने उस्स्को खिड़की में से झाँकते देख लिया था.. लड़का मुस्कुराता हुआ आगे बढ़ गया.. पर उसकी किस्मत खराब थी.. पापा लगभग भागते हुए उसके पिछे गये थे और उसको घसीट'ते हुए घर के सामने ला पटका... सारी कॉलोनी के लोग बाहर निकल आए.. पर कोई कुच्छ नही बोला तहा.. सब चुपचाप खड़े तमाशा देखते रहे.. उनके पापा ने उसको मार मार कर अधमरा कर दिया था.. बाद में पोलीस जीप उसको ले गयी थी.. दोनो लड़कियाँ अपने दिल पर हाथ रखकर खिड़की से सब कुच्छ देख रही थी... वो दिन था और आज का दिन.. लड़कियाँ कभी भी पैदल स्कूल नही गयी... पोलीस की जीप ही उनको लाती ले जाती थी.....

"कहाँ खो गयी प्रिया...!" रिया ने उसके चेहरे के सामने हाथ हिलाया...

"कहीं नही यार.. सच में; पापा ने सही नही किया था.. मारना नही चाहिए था उसको..." प्रिया ने चेर से उठहते हुए कहा...

"कहाँ जा रही हो..?" रिया ने कमरे से बाहर निकल रही प्रिया को आवाज़ लगाई....

"अभी आती हूँ.. ठंडा पानी ले आऊँ.. नीचे से..." प्रिया ने अगले रूम में जाकर खिड़की से बाहर की और झाँका.. राज खिड़की के सामने ही बेड पर बैठा हुआ पढ़ रहा था.. उसको देखकर प्रिया को जाने क्यूँ.. शांति सी मिली! कुच्छ देर वह यूँही खड़ी रही.. करीब 1 मिनिट बाद ही राज ने चेहरा खिड़की की और उपर उठाया.. और खिड़की में खड़ी प्रिया को देखकर खिल सा गया.. प्रिया उसके बाद वहाँ एक पल के लिए भी ना रुकी.. नीचे भाग गयी.. पता नही क्यूँ?

"ए... रिया.. वो तो खिड़की के पास ही बैठा हुआ है..!"

"अच्च्छा.. उसको ही देखने गयी थी.. मैं सब समझती हूँ डार्लिंग.." रिया खिलखिलाकर हंस पड़ी...

" नही यार.. बाइ गॉड.. मैं पानी लेने ही गयी थी.. वो तो बस ऐसे ही दिख गया...." फिर कुच्छ हिचकिचाते हुए बोली," इधर ही देख रहा था..."

"ये कोई नयी बात है.. मुझे तो वो हमेशा इधर ही सिर उठाए मिलता है..." रिया ने बत्तीसी निकालते हुए कहा...

"तो इसका मतलब तू भी उसको देखती रहती होगी.. है ना.." प्रिया ने उसकी और उत्सुकता से देखा.. राज के बारे में बात करते हुए उसके दिल को अजीब सी तसल्ली मिल रही थी...

"मैं क्यूँ देखूं.. भला उस बंदर को.. मुझे भी ऐसे ही दिख जाता है.. जैसे आज तुझे दिख गया..." रिया बेड पर आकर पालती मारकर बैठ गयी...

"हूंम्म.. बंदर.. तुझे वो बंदर दिखता है.. कितना स्मार्ट तो है.. और कितना इंटेलिजेंट भी.." प्रिया अपने आपको रोक ना पाई..

"देखा.. मैं कह रही थी.. ना.. कुच्छ तो बात ज़रूर है.. मैने तुम्हारे मॅन की बात जान'ने के लिए ही ऐसा कहा था.."

प्रिया ने तकिया उठाकर उसके सिर पर दे मारा..," ज़्यादा डीटेक्टिव मत बन.. मुझे उस'से क्या मतलब.. पर सच तो कहना ही पड़ेगा ना.."

" सबके बाय्फरेंड्स हैं प्रिया.. हमारा क्यूँ नही... कितना मज़ा आता ना अगर कोई होता तो..?" रिया ने ये बात पुर दिल से कही थी.. इसमें कोई शरारत नही थी.. प्रिया भी समझ गयी...

" आचार डालना है क्या?... बाय्फ्रेंड का.. मुझे तो कोई अच्च्छा नही लगता.. सब के सब एक जैसे होते हैं... श्रुति का पता है तुझे.. उसको उसका बाय्फ्रेंड बहलाकर अपने कमरे पर ले गया...." दरवाजा बंद करके वापस आई प्रिया अचानक चुप हो गयी...

"फिर क्या हुआ... बता ना..?" रिया आँखें फाड़ कर उसको देखने लगी... पहली बार प्रिया ने उसके सामने इस तरह की बात की थी...

"होना क्या था... बेचारी रोती हुई वापस आई थी..." प्रिया बीच की बात खा गयी.....

"क्यूँ... तुझे कैसे पता..... बता ना प्लीज़..." रिया उसका हाथ पकड़ कर सहलाने लगी....

"उसी ने बताया था... क्यूँ का मुझे नही पता... अब इश्स टॉपिक को बंद कर... पढ़ ले..." कहकर प्रिया ने किताब उठा ली...

कुच्छ देर दोनो में कोई बात नही हुई.. फिर अचानक खुद प्रिया ही बोल पड़ी.. जाने उस पर आज कैसी मस्ती च्छाई हुई थी," किसी को बताएगी नही ना...?"

"प्रोमिस.. बिल्कुल नही बताउन्गि.." रिया का चेहरा खिल उठा... उस उमर में ऐसी बातें किस को अच्छि नही लगती...

"उसने उसके साथ ज़बरदस्ती.. 'वो' कर दिया..." प्रिया ने बोल ही दिया.. रिया को भी यही सुन'ने की उम्मीद थी...

" वो क्या? मैं समझी नही..." रिया कुरेदने लगी....

" अच्च्छा.. इतना भी नही समझती.. जो शादी के बाद करते हैं..." इतनी सी बात कहने से ही प्रिया का चेहरा लाल हो गया था..

"ऊऊऊऊऊ.." रिया ने अपने चेहरे पर आई लालिमा को अपने हाथ से ढक लिया...,"रेप कर दिया?"

"श्ष.... पापा आ गये होंगे.. धीरे बोल.." प्रिया ने अपने मुँह पर उंगली रखकर उसको धीरे बोलने का इशारा किया....

"पर.. वो रोती हुई क्यूँ आई.. मैने तो सुना है की बड़े मज़े आते हैं... पायल बता रही थी... उसने भी किया था... एक बार!" रिया ने धीरे धीरे बोलते हुए कहा...

अंजाने में ही पालती मारकर बैठी प्रिया का हाथ उसके जांघों के बीच पहुँच गया.. और 'वहाँ' दबाव सा बनाने लगा... उसको ऐसा लगा जैसे उसका पेशाब निकलने वाला है...," सुना तो मैने भी है.. पर उसने ज़बरदस्ती की थी.. शायद इसीलिए... मैं बाथरूम जाकर आती हूँ..." कहकर प्रिया उठकर बाथरूम में चली गयी..

वापस आई तो उसके माथे पर पसीना झलक रहा था.. तृप्त होकर भी वह और 'प्यासी' होकर आई थी.. रिया ने अंदाज़ा लगा लिया.. पर बोली कुच्छ नही...

"एक बात बताऊं प्रिया.. अगर किसी से ना कहो तो..?"

" हां बोलो..." प्रिया आज पूरे सुरूर में थी..

" नही.. पहले प्रोमिसे करो...!"

"प्रोमिस किया ना.. बोल तो सही..." प्रिया ने जान'ने के लिए दबाव बनाया...

"मुझे..... वीरेंदर बहुत अच्च्छा लगता है...?" एक बात कहने के लिए रिया को दो बार साँस लेनी पड़ी...

"व्हाट..? और तूने आज तक नही बताया.. कभी बात भी हुई है क्या?" प्रिया को सुनकर बड़ी खुशी हुई.. अब वह भी अपने दिल का राज बता सकती थी...

" कहाँ यार.. बात क्या खाक होंगी.. वो तो सिर उठाकर भी नही देखता किसी की और.. और लड़कियों से तो वो बात ही तभी करता है जब उसको लड़ाई करनी हो....... इसीलिए तो अच्च्छा लगता है.." रिया अपने दिल में करीब एक साल से छिपाइ हुई बात को अपनी बेहन के साथ शेअर करके राहत महसूस कर रही थी.. उसके चेहरे पर सुकून सा था...

"हां यार.. ये तो सच है.. सभी लड़कियाँ उस'से बात करते हुए डरती हैं... बाइ दा वे.. तुम्हारी चाय्स बहुत अच्छि है.. पर इश्स खावहिस को दिल में ही रखना.. पापा का पता है ना...." प्रिया ने बिन माँगे सलाह दे डाली...

रिया मायूस सी हो गयी...," तुम बताओ ना.. क्या तुम्हे कोई अच्च्छा नही लगता..? सच बताना..."

"पता नही...." कहते हुए प्रिया लजा सी गयी.. उसके गुलाबी होंठ अपने आप तर हो गये.. और आँखों में एक अजीब सी चमक उभर आई.....

"ये तो चीटिंग है.. पता नही का क्या मतलब है.. बताओ ना...!" रिया ने उसके कंधे पकड़कर उसको ज़ोर से हिला दिया...

"अब दो दिन में मुझे क्या पता.. आगे क्या होगा.. अगर इसी तरह फाइल माँग माँग कर गायब होता रहा तो मेरी नही बन'ने वाली.." प्रिया ने मुस्कुराते हुए रिया को अपनी बाहों में भर लिया.. छातियो के आपस में टकराने से दिल के अरमान जाग उठे...

"ओह माइ गॉड! इट्स राज.. मैं जानती थी.. वो बिल्कुल तुम्हारे टाइप का है प्रिया.. झेंपू सा.. हे हे हे..!" रिया उस'से अलग होते हुए बोली...," अगर तुम्हारी फाइल अभी मिल जाए.. तो तुम उस'से नाराज़ नही होवॉगी ना...!"

"अभी?.... कैसे...?" वो मेरा काम है.. पर शर्त ये है की कल स्कूल में तुम खुद उस'से बात करोगी... बोलो मंजूर है.." प्रिया की हन से ही तो रिया के रास्ते खुलने तहे.. राज के मद्धयम से वह वीरेंदर के दिल तक जा सकती थी...

"पर बताओ तो कैसे..? आज फाइल कैसे मिल सकती है...?"

"वो मुझ पर छ्चोड़ दो.. तुम सिर्फ़ हां बोलो"

"हां" प्रिया ने बिना सोचे समझे तपाक से हां बोल दिया... आख़िर उसको भी तो बहाना मिल रहा था... 'शर्त' के बहाने तीर चलाने का...

"बस एक मिनिट..!" रिया एक दम से उठकर गयी और एक कॉपी और पेन उठा लाई..

"इसका क्या करोगी...?" प्रिया ने हैरान होते हुए पूचछा..

"तुम अब बोलो मत.. मेरा कमाल देखो.." और रिया लिखने लगी...

"हाई राज!

आप जो फाइल लेकर गये थे.. मुझे उसकी सख़्त ज़रूरत है... वो मुझे चाहिए.. तुम आज स्कूल भी नही आए.. सारा दिन तुम्हारी राह देखती रही... प्लीज़ उसको गेट के नीचे से अंदर सरका देना.. मैं उठा लूँगी...

आज स्कूल क्यूँ नही आए.. कल तो आओगे ना...

तुम्हारी दोस्त,

प्रिया!"

"हे.. तुमने मेरा नाम क्यूँ लिखा.. अपना लिखो ना.. और इसका करोगी क्या अब..?" प्रिया का दिल जोरों से धक धक कर रहा था.. किसी अनहोनी की आशंका से...

"डोंट वरी डार्लिंग.. बस मेरा कमाल देखती जाओ... एक बार पापा को देख आओ.. सो गये या नही......

प्रिया नीचे जाकर आई...," पापा तो आज आए ही नही.. मम्मी कह रही थी.. आज थाने में ही रहेंगे.. वो मुरारी पकड़ा गया है ना..."

"श.. थॅंक्स मुरारी जी! अब कोई डर नही.." रिया खुशी से उच्छल पड़ी....," तुम भी आ रही हो क्या? खिड़की तक..."

"ना.. मुझे तो डर लग रहा है.. तुम्ही जाओ..." प्रिया का दिल गदगद हो उठा था.. कम से कम बेहन से तो अब वो दिल की बात कर सकती है...

रिया करीब 2 मिनिट खिड़की के पास खड़ी रही.. जैसे ही राज ने उसकी और देखा.. रिया ने अपना हाथ हिला दिया..

राज का तो बंद ही बज गया.. उसको अपनी आँखों पर विस्वास ही नही हुआ.. आँखें फाड़ कर खिड़की की और देखने लगा...

रिया वापस छत पर गयी.. एक पत्थर ढूँढा और कागज को उसपर लपेट दिया.. राज को सिर्फ़ रिया दिखाई दे रही थी जिसको वो प्रिया समझ रहा था.. उसके हाथ में पकड़ी चीज़ उसको नज़र नही आई...

रिया ने खिड़की से हाथ बाहर निकाला और निशाना लगाकर दे मारा.. इसके साथ ही वो पिछे हट गयी..

किस्मत का ही खेल कहेंगे.. हवा में फैंकने के साथ ही पत्थर पर लिपटा कागज हवा में ही रह गया और पत्थर जाकर राज वाली खिड़की से जा टकराया...

रिया उपर भाग गयी....

"ओये वीरू.. देख.. प्रिया ने पत्थर फैंका..." राज खुशी से नाच उठा..

"क्यूँ? तेरा सिर फोड़ना चाहती है क्या वो..? तू पागल हो गया है बेटा.. ये तुझे कहीं का नही छ्चोड़ेंगी.. पिच्छली बार टॉप किया है ना.. लगता है अगली बार ड्रॉप करेगा.. चुप चाप पढ़ ले.. तुझे लड़कियों की फ़ितरत का नही पता.. बहुत भोला है..!" वीरू ने फिर से किताब में ध्यान लगा लिया...

"यार, तू तो हमेशा ऐसी बात करता है जैसे दिल पर बहुत से जखम खाए बैठा हो.. इतना भी नही समझता.. वो मुझे परेशान कर रही है.. मतलब वो भी....." राज को वीरेंदर ने बीच में ही टोक दिया," हां हां.. वो भी.. और तू भी.. दिल के जखम तुम्हे ही मुबारक हों बेटा.. ऐसी कोई लड़की बनी ही नही जो मुझे जखम दे सके.. तुम जैसे आशिकों की हालत देखकर ही संभाल गया हूँ.. मैं तो...

राज और वीरेंदर में बहस जारी थी.. उधर प्रिया रिया को 2 बार नीचे भेज चुकी थी.. फाइल देखकर आने के लिए.. एक बार खुद भी आई थी.. पर हर बार राज उन्हे वहीं बैठा मिला.. उसका ध्यान अब भी बार बार खिड़की पर लगा हुआ था..

"ओहो यार.. एक ग़लती हो गयी.. हमने ये लिख दिया की कल तो आओगे ना.. कहीं उसने ये तो नही समझा की अगर कल ना आए तो रखनी है..." रिया ने आइडिया लगाया..

"हां.. मुझे भी यही लगता है.. नही तो अब तक तो रख ही देता.." प्रिया ने भी सुर में सुर मिलाया...

"ठहर.. एक और कागज खराब करना पड़ेगा.. डोंट वरी.. मोहब्बत और जुंग में सब जायज़ है.. हे हे.." और रिया उठकर एक बार फिर से कॉपी और पेन उठा लाई... आज उसकी आँखों में नींद थी ही नही... नही तो कब की लुढ़क चुकी होती...

"राज!

यार मुझे बहुत...."

"आ.. यार काट दे.. दोबारा लिख..." प्रिया ने कहा...

"ओक.. नो प्राब्लम.." रिया ने फिर से लिखना शुरू किया...

"राज!

अभी आ जाओ ना प्लीज़.. बहुत ज़रूरी है.. मैं रिया को नीचे भेज रही हूँ.....

आइ आम वेटिंग

तुम्हारी दोस्त

प्रिया

"पर यार.. तू समझता क्यूँ नही है.. वो ऐसी नही है.. बाकी लड़कियों की तरह... कितनी प्यारी है..!" राज वीरेंदर को किसी भी तरह से सहमत कर लेना चाहता था.. इश्स तनका झाँकी को दोस्ती के रास्ते पर ले जाने के लिए.. ," कुच्छ भी हो जाए.. मैं कल उस'से बात करके रहूँगा.. देख लेना!"

"उस दिन तो तेरी फट रही थी.. फाइल माँगते हुए.. कल कौनसा तीर मारेगा..? फिर कह रहा हूँ.. ये ......"

"ओये.. फिर आ गयी.. लगता है अब फिर पत्थर उठा कर लाई है... आज तो मेरा काम करके रहेगी.." अब की बार राज ने भी खिड़की की ओर हाथ हिला दिया.. बहुत ही खुस था वो...

अब की बार पत्थर सीधा उनके कमरे के अंदर आया.. शुक्रा था राज चौकन्ना था.. वरना सिर पर ही लगता..," अरे.. इससपर तो कागज लिपटा हुआ है.."

"उठा ले.. आ गया लव लेटर.. तेरे लिए... हो गयी तमन्ना पूरी.. अब तू गया काम से...." वीरू ने पत्थर पर लिपटे कागज को गौर से देखा...

तब तक राज कागज को पत्थर समेत लपक चुका था.. जैसे ही उसने कागज को खोला.. उसका दिल धड़क उठा... ये तो कमाल ही हो गया.. उसने तो सीधे सीधे घर पर ही बुला लिया था.. वो भी अभी.. रात को.. ओह माइ गॉड! मुझे नही पता था की 'वो' ऐसी लड़की है.. राज मॅन ही मॅन सोच रहा था...

"क्या हुआ..? ऐसा क्या लिखा है उसने..? कहाँ खो गया?" वीरेंदर ने उत्सुकता से पूचछा...

"क्कुच्छ नही.. ऐसे ही.. ये तो वैसे ही है.. कुच्छ पुराना लिखा हुआ है..!" राज उसको उलट पुलट कर देखने का नाटक करते हुए बोला...

"फिर उसको बीमारी क्या है..? कल स्कूल में देखता हूँ..." वीरेंदर को उसकी बात पर विस्वास हो गया था..

"क्यूँ तुझे क्या प्राब्लम है..? मदद नही कर स्सकता तो कम से कम रोड़ा तो मत बन.." राज ने वीरेंदर को बोला...

"ठीक है बेटा.. ये गधे के दिन सबके आते हैं.. तेरे भी आ गये.. पर रोड़ा मैं नही.. वो रोड़ा फैंकने वाली बन रही है... 2 घंटे से देख रहा हूँ.. तू किताब के उसी पेज को खोले बैठा है....

"तू तो बुरा मान गया यार.. मेरा ये मतलब नही था.. चल ठीक है.. मैं थोड़ा बाहर घूम आता हूँ.. माइंड फ्रेश हो जाएगा.. उसके बाद पढ़ता हूँ..." राज ने बेड से उठहते हुए कहा...

"माइंड फ्रेश तो ठीक है.. पर ये रात को कंघी.. ये क्या चक्कर है..?" वीरू ने उसको घूरते हुए पूचछा....

"थोडा आगे तक जाकर अवँगा.. कोल्डद्रिंक्स भी ले आता हूँ.." शर्ट डालते हुए राज वीरेंदर की और मुस्कुराया....

"चल ठीक है.. दूध भी ले आना.. जल्दी आना.." वीरेंदर को उसकी बात से तसल्ली हो गयी...

"तू कितना प्यारा है यार..? दिल करता है तेरी चुम्मि ले लूँ.. हे हे हे.." राज ने मज़ाक में कहा तो वीरेंदर खिल खिलाकर हंस पड़ा," अब मक्खानबाज़ी मत कर.. जल्दी आना.. सच में यार.. तूने तो पढ़ना ही छ्चोड़ दिया है..."

"डोंट वरी भाई.. मैं सब संभाल लूँगा.." कहकर राज कमरे से बाहर निकल गया...

"ए प्रिया.. वो अब वहाँ नही है.. तेरी फाइल आने ही वाली है.. कल के लिए तैयार हो जाना.. याद है ना.. क्या शर्त थी..." रिया उपर जाकर चहकते हुए प्रिया से बोली...

"हाँ हाँ.. सब याद है.. खाँमखा प्रोमिस कर दिया.. छ्होटी सी बात के लिए.. ये तो मैं ही ना कर देती..." प्रिया मुस्कुराइ... वो बहुत खुश लग रही थी....

रूम से बाहर निकल कर राज ने 'वो' कागज निकाल लिया जिसमें प्रिया ने उसको अपने पास आने का निमंत्रण भेजा था.. वो भी अभी.. रात को... राज के लिए सब कुच्छ सपने जैसा था.. ऐसा सपना जिसमें कोई ना कोई तो 'कड़ी' थी ही.. जो बीच से टूटी हुई थी.. और वहीं पर राज का दिमाग़ अटका हुआ था..

'अगर वो शरीफ लड़की है तो मुझे क्या किसी को भी यूँ बुला नही सकती.. और फिर मेरी और उसकी जान पहचान ही क्या है.. सिर्फ़ 'फाइल' ही तो माँगी थी..' उधेड़बुन में फँसे राज ने वो कागज का टुकड़ा.. एक बार फिर निकाल लिया और दोबारा पढ़ने लगा...

"राज!

अभी आ जाओ ना प्लीज़.. बहुत ज़रूरी है.. मैं रिया को नीचे भेज रही हूँ.....

आइ आम वेटिंग

तुम्हारी दोस्त

प्रिया

'कमाल है.. इसमें ना तो कोई काम ही लिखा हुआ है.. और ना ही कोई वजह बताई गयी है.. फिर वो मेरा इंतजार कर किसलिए रही है.. क्या उसको किसी ने बता दिया है की मैं उसपर मरता हूँ... नही! ये कैसे हो सकता है..? वीरेंदर के अलावा कोई ये बात जानता ही नही.. फिर?????' राज का दिमाग़ चकरा रहा था पर दिल उच्छल रहा था.. दिमाग़ उसको धैर्या रखने को कह रहा था तो दिल कुच्छ कर गुजरने को बावला हुआ जा रहा था...

'क्या किया जाए?' अपने मकान के दरवाजे पर खड़ा होकर राज प्रिया के घर की छत को निहारने लगा... वहाँ काफ़ी अंधेरा था.. इसीलिए वह किसी को भी खड़ा दिखाई नही दे सकता था... प्रिया के घर दरवाजे से अंदर घुसना तो लगभग असंभव ही था.. पर साथ सटे हुए घर की सीढ़हियाँ उसके आँगन से शुरू होकर छत तक जाती थी.. पर उस घर के आँगन में लाइट जल रही थी.. दीवार फांदकर घुसना ख़तरनाक हो सकता था.. 'नही.. नही जा सकता' ऐसा सोचकर राज ने कागज के टुकड़े टुकड़े करके वही फैंक दिया और कोल्डद्रिंक लाने के लिए चल दिया.. एक लंबी गहरी साँस छ्चोड़कर....

हालाँकि राज ने ना जाने का पूरा मॅन बना लिया था.. पर फिर भी जाने क्यूँ वा बार बार पिछे मुड़कर देख रहा था.. छत तक जाने का रास्ता...

कहते हैं.. 'जहाँ चाह; वहाँ राह..' और राह मिल गयी.. थोड़ा सा रिस्क ज़रूर था.. पर मोहब्बत में रिस्क कहाँ नही होता...

साथ वाले घर से आगे निकलते हुए राज को उस घर की चारदीवारी के साथ खाली प्लॉट में एक भैंसा दिखाई दिया.. वो बैठा हुआ मस्ती से जुगली कर रहा था.. उसको क्या पता था की वो आज रात को दो प्यार करने वालों के बीच की 'दीवार' लाँघने का साधन बन'ने वाला है.. उसके उपर बैठ कर राज सीधा 'ज़ीने' में कूद सकता था.. और प्रिया के साथ वाले घर की छत तक बिना किसी रुकावट के पहुँचा जा सकता था... यानी आधी प्राब्लम सॉल्व हो जाने थी...

"चल बेटा.. खड़ा हो जा.." राज ने उसको एक लात मारी.. और बेचारा भैंसा.. बिना किसी लाग-लपेट के खड़ा होकर दीवार के साथ लग गया...

"शाबाश.. आ हैईन्शा.." और राज उसके उपर जा बैठा...

अब तक बिल्कुल शांत खड़े भैंसे को राज की ये हरकत गंवारा नही हुई.. और लहराती हुई उसकी पूंच्छ.. राज के चेहरे पर आ टकराई..

"अफ.. साले.. गोबर चिपका दिया.. क्या जाता है तेरा.. एक मिनिट में.." और फिर एक पल भी ना गँवाए राज ने उच्छल कर अपने हाथो से 'ज़ीने' की दीवार थाम ली.. फिर लटकते हुए उसने ज़ोर लगाया और अगले ही पल वो 'ज़ीने' में था...," श..! राज का दिल कूदने के साथ ही धक धक करने लगा.. यहाँ से अब अगर वो किसी को भी दिख जाता तो बड़ी मुसीबत आ जानी थी...

साथ वाले घर में उपर कोई कमरा वग़ैरह नही था.. राज बिना देर किए फटाफट छत पार करके प्रिया के घर के साथ जा चिपका.. उसकी साँसे बुरी तरह उखड़ गयी थी.. जिस तरह और जिस हालत में वो यहाँ था.. ऐसा होना लाजिमी ही था.. अपनी धड़कनो पर काबू पाना उसके लिए मुश्किल हो रहा था...

यहाँ से उसको प्रिया और रिया के धीरे धीरे बोलने की आवाज़ें आ रही थी.. वहाँ से आगे करीब 6 फीट ऊँची दीवार को लाँघना 6 फीट के ही राज के लिए कोई मुश्किल काम ना था... राज ने कुच्छ देर ऐसे ही खड़ा रहकर अपनी साँसों को काबू में किया.. और आख़िरी दीवार भी लाँघ गया.. वहाँ से साथ वाले कमरे में ही प्रिया और रिया उसकी ही बातों में व्यस्त थी...

पर बातें सुन'ने का टाइम किसके पास था.. उसका तो 'बुलावा' आया था ना; फिर वो क्यूँ और किस बात का इंतज़ार करता.. बिना एक भी पल गँवायें राज तपाक से कमरे में घुस गया...

अपने सामने यूँ अचानक 'लुटेरों' की शकल बनाए राज को देखकर प्रिया सहम गयी.. डर के मारे उसकी तो साँस ही गले में अटक गयी.. रिया की तो चीख निकल गयी... हंगामा हो जाना था.. अगर प्रिया समय से पहले ही स्थिति भाँप कर उसके मुँह को अपने हाथ से ना दबा देती तो..

"तूमम.. यहाँ.... यहाँ क्या करने आए हो?" सहमी हुई प्रिया के गले से अटक अटक कर बात निकल रही थी...

"तुमने ही तो बुलाया था..." राज गले का थ्हूक गटक कर अपनी शर्ट की आस्तीन नीचे करते हुए बोला.. डरा हुआ वह भी था..

"भाग जाओ जल्दी.. सब मारे जाएँगे.. मम्मी जाग रही है.." प्रिया धीरे से हड़बड़ाहट में बोली...

"अजीब लोग हो तुम भी.. पहले बुलाते हो.. फिर बेइज़्ज़ती करते हो.. पता है कितना जोखिम उठा के आया था.." राज खिसिया सा गया था.." अजीब मज़ाक किया तुम दोनो ने आज मेरे साथ.." कहकर वो वापस पलटा तो अब तक चुपचाप खड़ी रिया बोल पड़ी...," नही, रूको राज... एक मिनिट.. तुम यहीं ठहरो.. मैं मम्मी को देखकर आती हूँ..." कहकर रिया कमरे से बाहर निकली और तुरंत ही वापिस पलटी," इस बेचारे का चेहरा तो धुल्वा दो..!" कहकर अपनी बत्तीसी निकाली और नीचे भाग गयी...

"क्यूँ? मेरे चेहरे को क्या हुआ.." कहते हुए राज ने अपने चेहरे को हाथ लगाया तो चिपका हुआ गोबर उसके हाथो को लग गया..," ओह्ह... वो.. भैंसे की पूंच्छ..." फिर रुक-कर अचानक इधर उधर देखने लगा....

"बाथरूम इधर है.. प्रिया उसकी शकल देखकर मुश्किल से अपनी हँसी रोक पा रही थी.. इश्स कोशिश में उसने अपने निचले होंठ को ही काट खाया था.."

"ओह्ह.. थॅंक्स.." कहकर वह बाथरूम में घुस गया....

बाहर आते ही उसने सीधा सा सवाल किया..," मुझे क्यूँ बुलाया था यहाँ..?"

"हमने?... हमने कब बुलाया था.." सामान्य होने के बाद भी प्रिया की आवाज़ नही निकल पा रही थी.. वह अभी तक एक तरफ खड़ी थी.. अपने हाथ बाँधे हुए.. और लगातार राज से नज़रें चुरा रही थी.. कभी इधर देखती.. कभी उधर.. ना खुद बैठही और ना ही राज को बैठने को कहा...

"तो?.. वो पत्थर क्यूँ मार रहे थे.. तुम.. मेरा सिर फोड़ने के लिए..?" प्रिया को हिचकिचाते देख राज 'शेर' हो गया.. खैर उसका गुस्सा जायज़ भी था.. बेचारा कितने बॉर्डर पार करके जो आया था..

"वो.. वो तो.. हमने फाइल माँगी थी.... गेट के नीचे से डालने को बोला था.. ले आए फाइल..?" प्रिया ने आख़िरी शब्द बोलते हुए एक बार राज को नज़र उठाकर देखा.. पर उसको अपनी ही और देखते पाकर तुरंत ही नज़र फिर से झुका ली...

"कब बोला था.. फाइल के लिए...? मुझे तो यहाँ आने के लिए बोला था... और वो भी अभी!" वैसे तुम रिया हो या प्रिया..?" राज तो प्रिया के लिए ही आया था........

"प्रिया..... तुम्हे कौन चाहिए..?" जाने कितनी हिम्मत जोड़ कर प्रिया ने ये व्यंग्य कर ही दिया...

"मुझे कुच्छ नही चाहिए.. बस ये बताओ.. यहाँ बुलाया क्यूँ?" राज भी अब तक सामान्य हो गया था..

"कहा नाअ..." प्रिया ने अब की बार सीधा उसकी नज़रों में झाँका था.. इसीलिए आगे बोल नही पाई...

[color=#8000bf][size=large]राज भी अपने मंन की बात कह ही देना चाहता था.. और आज मौका भी था.. और मौसम भी..," एक बात बोलूं.. प्रिया.. मैने आज तक किसी लड़की से बात तक नही की है.. पर.. तुमने बुलाया तो खुद को रोक ही नही पाया.. तुम मुझे बहुत अच्छि लगती हो.. मेरा तो पढ़ना लिखना ही छ्छूट गया है.. जब से तुम्हे देखा है... कहते हुए राज
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