College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
11-26-2017, 12:50 PM,
#11
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
ऐसे ही बातें करते करते वो 2-4 दिन में ही काफ़ी घुल गये. लेकिन इश्स घुलने मिलने का ज़रिया बनी वाणी. अब मामा का शक भी पूरी तरह दूर हो गया था और वो बच्चों के उपर नीचे रहने से परेशन नही होते थे. उन्होने शमशेर को अपने परिवार का हिस्सा मान लिया था. सिर्फ़ शमशेर और दिशा ही एक दूसरे से घुलमिल नही पाए तहे, क्यूंकी दोनों के मॅन में पाप था..... या शायद प्यार!
शनिवार का दिन था. शमशेर लॅबोरेटरी में बैठा 10थ क्लास के प्रॅक्टिकल के लिए केमिकल्स तैयार कर रहा था. उसके दिमाग़ से दिशा निकलने का नाम नही ले रही थी. करीब 10 दिन बीत जाने पर भी उसको दिशा की तरफ से कोई ऐसा सिग्नल नही मिल सका था जिससे वा उसको अपनी बाहों में ले सके. वो तो उससे बात ही खुलकर नही करती थी. उसने सोचा था की वाणी के आगे कुम्भ्कर्न वाली आक्टिंग करने के बाद शायद दिशा उसके सोते हुए कोई ऐसी हरकत करे. जिससे वा उसके मॅन की बात जान सके. पर अभी तक ऐसा कुच्छ नही हुआ था.
अचानक लॅब के बाहर से आवाज़ आई," मे आइ कम इन सर?"
"यस,प्लीज़!" शमशेर ने अंदर बैठा बैठे ही कहा. वो लॅब में अलमारियों के पीछे कुर्सी पर बैठा था.
नेहा ने अंदर आकर पूचछा,"सर आप कहाँ हो"
"अरे भाई यहाँ हूँ." शमशेर के हाथों में रंग लगा हुआ था.
नेहा उसके पास जाकर खड़ी हो गयी,"सर, अभी से होली खेलने की तैयारी कर रहे हैं. अभी तो 5 दिन बाकी हैं" नेहा ने चुटकी ली. लड़कियाँ उससे काफ़ी घुल मिल गयी थी.
शमशेर ने रंग उसके गालों पर लगा दिया ओरबोला" लो खेल भी ली".
नेहा ने नज़रें झुका ली. बाकी लड़कियों की तरह उसके मंन में भी अपने सर के लिए कुच्छ ज़्यादा ही लगाव था. अल्हड़ मस्त उमर में ऐसे छबिले को देखकर ऐसा होना स्वाभिवीक ही था.
"बोलो! क्या बात है नेहा"
नेहा: सर, प्लीज़ गुस्सा मत होना! मुझे दिशा ने भेजा है.
शमशेर की आँखें चमक उठी," बोलो!"
नेहा," सर वो कह रही थी की.... की आप उससे अभी तक नाराज़ हो क्या?"
शमशेर: नाराज़!.... क्यों?
नेहा: सर... वो तो पता नही!
शमशेर ने साबुन से हाथ धोए और जाने उसके मॅन में क्या सूझी उसने नेहा के कमीज़ से अपने हाथ पोच्च दिए.
नेहा की सिसकी निकल गयी. सर के हाथ उसकी गॅंड के उभारों पर लगे थे. ये स्पर्श उसको इतना मधुर लगा की उसकी आँखे बंद हो गयी," सर ये आप क्या कर रहे हो?"
उसने आँखें बंद किए किए ही पूचछा.
शमशेर: होली खेल रहा हूँ. दिखता नही क्या. वो हँसने लगा. नेहा की तो जैसे सिटी बज गयी. हालाँकि दिशा के सामने वो यौवन और सुंदरती में वो फीकी लगती थी पर उसको हज़ारों में एक तो कहा ही जा सकता था.
नेहा. ना हिली ना बोली. बस जड़ सी खड़ी रही. उसका एक यार था गाँव में. केयी बार मौका मिलने पर उसकी चुचियाँ मसल चुका था, पर सर के हाथों की बात ही कुच्छ और थी.
शमशेर ने फिर उसके चूतदों पर थपकी दी, ये थपकी थोड़ी कड़क थी, नेहा सिहर गयी और उसके मुँह से निकला,"आ सस्स..इर्ररर!"
शमशेर: क्या मेडम? उसको पता था हौले हौले जवानी को तडपा तडपा कर उसका रस पीने का मज़ा ही अलग है.
नेहा: सर.. कुच्छ नही. उसका दिल कर रहा था जैसे सर उसके सारे शरीर में ऐसे ही सूइयां सी चुभोते रहे.थे
शमशेर: कुच्छ नही तो जाओ फिर!
नेहा कुच्छ ना बोली, एक बार तरसती निगाहों से शमशेर को देखा और वही खड़ी रही.
शमशेर समझ रहा था की अब इसका पानी निकलने ही वाला है. वो चाहता तो वहाँ कुच्छ भी कर सकता था, पर उसको डर था की ये दिशा की सहेली है, उसको बता दिया तो उसकी मदमस्त जवानी हाथ से निकल सकती थी.
शमशेर ने कहा," दिशा से कह देना, हां में उससे नाराज़ हूँ!
नेहा का जाने का मॅन तो नही था पर इश्स बार वा नही रुकी...
नेहा शमशेर की आँखों में वासना देख चुकी थी. कुच्छ भी हो उससे कुच्छ भी बुरा नही लगा था. लॅब से निकलते हुए उसकी आँखो की खुमारी को सॉफ सॉफ पढ़ा जा सकता था. उसकी चुचियाँ कसमसा रहा थी बुरी तरह. उनका हाल ऐसा हो रहा था जैसे बरसों से पिंजरे में क़ैद कबूतर आज़ाद होने के लिए फड्फाडा रहे हों. वह बाथरूम में गयी और अपनी चूत को कुरेदने लगी. वो बुरी तरह लाल हो रही थी. नेहा ने अपनी उंगली चूत में घुसा दी."आ...आह" उसकी आग और भड़क उठी. वह दिशा को सिर की कामुक छेड़छाड़ के बारे में बताना चाहती थी. पर उसको पता था दिशा को ये बातें बहुत गंदी लगती थी. कहीं उसकी सहेली उससे नाराज़ ना हो जाए. यही सोचकर उसने दिशा को कुच्छ भी ना बताने का फ़ैसला कर लिया. चूत में घुसी उंगली की स्पीड तेज होती चली गयी और आनंद की चरम सीमा पर पहुच कर वो दीवार से सत्कार हाँफने लगी.


क्लास में गयी तो उसका बुउरा हाल था. नेहा को बदहवास सी देखकर दिशा के मॅन में जाने क्या आया," कहाँ थी इतनी देर?"
नेहा: बाथरूम में गयी थी
दिशा: इतनी देर?
नेहा: अरे यार, फ्रेश होकर आई हूँ, सुबह नही जा पाई थी.
दिशा: सर के पास गयी थी?
नेहा: हां, पर वहाँ से तो 1 मिनट में ही आ गयी थी. नेहा ने झहूठ बोला!
दिशा: क...क्या सर.... क्या बोले सर जी
नेहा: हां वो नाराज़ हैं!
दिशा: पर क्यूँ?
नेहा: मुझे क्या पता, ये या तो तू जाने या तेरे प्यारे सर जी! नेहा ने आखरी शब्दों पर ज़्यादा ही ज़ोर डाला.
दिशा: एक बात बता, तेरा फॅवुरेट टीचर कौन है?
नेहा: क्यूँ?
दिशा: बता ना... प्लीज़
नेहा: वही जो तेरे हैं... सबके हैं... सभी की ज़ुबान पर एक ही तो नाम है आजकल!
दिशा जल सी गयी," क्यूँ मैने कब कहा! मेरा फॅवुरेट तो कोई नही है.
नेहा: फिर मुझसे क्यूँ पूचछा.
चल छोड़ छुट्टी होने वाली है.


छुट्टी के बाद दिशा ने देखा वाणी सर की गाड़ी के पास खड़ी है. दिशा ने उसको चलने को कहा.
वाणी: मैं तो गाड़ी में आउन्गि सर के साथ!
दिशा: चल पागल! तुझे शरम नही आती.
वाणी: मुझे क्यूँ शरम आएगी. अपनी....
तभी शमशेर गाड़ी के पास पहुँच गया.
वाणी: सर दीदी कह रही है तुझे सर की गाड़ी में बैठते हुए शरम नही आती. इतनी अच्च्ची गाड़ी तो है....
शमशेर: जिसको शरम आती है वो ना बैठें! गाड़ी को अनलॉक करते हुए उसने कहा.
वाणी खुश होकर अगली सीट पर बैठ गयी.
शमशेर ने गाड़ी स्टार्ट की और दिशा की और देखा. वा मुँह बना कर गाड़ी की पिच्छली सीट पर बैठ गयी. नेहा भी उसके साथ जा बैठी. और वो घर जा पहुँचे.

घर आकर नेहा ने सर से कहा," सिर मुझे कुच्छ मेथ के सवाल समझने हैं. मेडम ने वो छुडा दिए. आप समझा सकते हैं क्या?
शमशेर: क्यूँ नही, कभी भी!
नेहा: सर, अभी आ जाउ!
शमशेर:उपर आ जाओ!
दिशा को सर के लिए चाय बनानी थी. पर नेहा को अपने सर के पास अकेले जाने देना ठीक नही लगा. वो वाणी से बोली," वाणी तू चाय बना देगी क्या? मैं भी समझ लूँगी सवाल!
हां दीदी क्यूँ नही!
बॅग से अपना मेथ और रिजिस्टर निकाल कर दोनों सीधी उपर गयी. ये क्या? सर ने तो कमरे को बिल्कुल शहरी स्टाइल का बनवा दिया था. कमरे में ए.सी. लगवा दिया था.
दिशा के मुँह से निकला,"ये कब हुआ?"
शमशेर ने उसकी तरफ ना देखते हुए कहा," घबराओ मत बिजली का बिल मैं पे करूँगा!" मैने अंकल से बात कर ली है.
दिशा ने अपनी बात का ग़लत मतलब निकलते देख मुँह बना लिया और सर के सामने बेड पर बैठ गयी.
नेहा पर तो दिन वाली मस्ती च्छाई हुई थी. वा सर के बाजू में इश्स तरह बैठी की उसकी जाँघ सर के पंजों पर रखी हुई थी. दिशा को ये देख इतना गुस्सा आया की वो नीचे जाकर 2 कुर्सियाँ उठा लाई. और खुद कुर्सी पर बैठकर बोली," नेहा यहाँ आ जाओ! यहाँ से सही दिखेगा."
नेहा को उससे बड़ा डर लगता था. वा समझ गयी की उसने जाँघ को सिर के पंजे के उपर देख लिया है. वा चुप चाप उठी और कुर्सी पर जाकर बैठ गयी.
शमशेर ने अजीब नज़रों से दिशा को देखा और उन्हे सवाल समझने लगा.

टू बी कंटिन्यूड....
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11-26-2017, 12:51 PM,
#12
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गर्ल'स स्कूल --5

वाणी जब चाय लेकर आई तो कमरे की ठंडक देखकर उच्छल पड़ी!,"वा, सर ए.सी." मैं भी अपनी किताबें लेकर उपर आती हूँ. कहकर वा दौड़ती हुई नीचे चली गयी! उसने स्कूल ड्रेस निकाल कर स्कर्ट और टॉप पहन लिया था. नव यौवन कयामत ढा रहा था. जाने अंजाने वो शमशेर की साँसों में उतरती जा रही थी.

थोड़ी देर बाद वह आई और बेड पर बैठकर पढ़ने लगी. ए.सी. की ठंडक में नींद आना स्वाभाविक था. वाणी बोली," सर जी, मुझे नींद आ रही है. थोड़ी देर यही सो जाउ."

"हां हां क्यूँ नही! अपना ही घर है. शमशेर ने चुटकी ली.

वाणी जल्द ही गहरी नींद में सो गयी. दिशा ने देखा उसका स्कर्ट जांघों पर काफ़ी उपर तक चढ़ गया है. पर सर से शरमाने के कारण वो कुच्छ नही बोली.

शमशेर ने एक एक्सर्साइज़ पूरी करवाने के बाद बोला. आज बहुत हो गया. इनकी प्रॅक्टीस कर लेना. बाकी कल करेंगे.

दिशा का वहाँ से जाने का मॅन नही कर रहा था. सच कहें तो दिशा को वो सारे सवाल आते थे. पर सर के साथ बैठने का आनंद लेने के लिए और अपने सर की नेहा से रखवाली करने के इरादे से वो वहाँ आई थी. पर अब क्या करती. वो वाणी को उठाने लगी. पर वाणी नींद में ही बोली," नही दीदी, मुझे यहीं सोना है! और उसने पलटी लेकर एक हाथ सिर की गोद में रख लिया.

शमशेर: सोने दो इसको! उठ कर अपने आप आ जाएगी.

फिर दिशा क्या बोलती. दिशा और नेहा अनमने मॅन से नीचे चली गयी.

शमशेर ने देखा, वाणी गहरी नींद में सो रही है, उसका स्कर्ट पहले से भी ज़्यादा उपर उठ गया है.


उसकी कोमल गोल गोल जन्घे और यहाँ तक की उसकी सफेद कच्च्ची भी सॉफ दिख रही थी. शमशेर ने उसके हाथ को आराम से उठाया और बेड पर उसके नज़दीक ही सीधा लेट गया....

सेक्सपेर ऐसे ही नही बना जाता. अगर आप चूत में लंड घुसाकर पानी निकालने को ही सेक्स समझते हैं तो ये तो 5 मिनिट की बात है, ना तो कोई उपर आएगा और ना ही शमशेर किसी दूसरी बात को सोचेगा. मेरे लिखने भर से ही वा सब कुच्छ भूल कर, वाणी की कछि निकाल कर उससमें अपना लंड पेल देगा. बस 4-5 मिनिट का रोना धोना और फिर वाणी की सिसकियाँ. लंड से चुड़वा कर वाणी भी बाग बाग हो जाएगी. ऐसे ही दिशा और एक एक करके स्कूल की सारी लड़किया. किसी को कुच्छ पता नही चलेगा. और अगर पता चल भी गया तो मेरे बाप का क्या जाता है. साले के साथ जो होगा सो होगा और कहानी ख़तम

पर मेरे प्यारे भाइयो और उनकी भाभियो, ज़रा दिमाग़ पर ज़ोर डालो. जितना मज़ा सेक्स के इंतज़ार का है क्या उतना मज़ा सेक्स में है? अगर नही है तो पढ़ते रहिए ना! क्या टेन्षन है.

एक बात और आज 4थ डे है इश्स थ्रेड का और मैने अभी तक किसी को मौका नही दिया है ये कहने का की भाई और लिखो, अपडेट करो! पर जो कॉंप्लिमेंट मुझे मिले हैं वो कहानी को देखकर कॅमल की गॅंड में मिर्ची के समान हैं.

एक लेखक को बदले में चाहिए ही क्या होता है. प्रेज़ और सजेशन्स... बस, उसमें भी आप कंजूसी कर रहे हैं...

अम्मा दिल नही टूटेगा मेरा! कुच्छ तो रहम करो मुझपर और अगर अच्छि लगे तो एक आध लाइन में गुणगान कर दो, बुरी लगे तो कोई सलाह दे डालो

ठीक कही ना मेने, अब बगैर लिखे अपने लंड को तननाए हुए या अपनी चूत को खुजलाते हुए बाथरूम में मत घुसना. बुरी बात है, क्यूँ हैं ना सर जी!

दिशा नेहा को छोड़ने गेट तक आई. वो विचलित सी थी. कही वाणी जानबूझकर तो सर के .... छ्हि छि, वह भी क्या सोचने लगी अपनी छ्होटी बहन के बारे में; वो तो कितनी नादान है. और मुँहफट इतनी की अगर उसके मॅन में कुच्छ भी होता तो मुझे ज़रूर बताती. अभी 2 महीने पहले जब एक लड़का उसको इशारा करके खेत के कमरे में बुला रहा था तो वो तो उस्स इशारे का मतलब भी ना समझी थी. घर आते ही सारी रामायण सुना दी थी मुझे. फिर मैने ही तो उसको मना किया था किसी को कुच्छ बताने के लिए. वो तो क्लास में ही अनाउन्स करने वाली थी. कितनी भोली है बेचारी...

उसकी मामी पड़ोस से नही आई थी. कहीं आने के बाद वो उसको ना दांते वाणी को उपर सोने देने के लिए, पर सर के सामने तो उसकी ज़ुबान ही ना खुलती थी, फिर वो इतनी बड़ी बात सर के सामने वाणी को कैसे कहती!

फिर भी उसको डर सा लग रहा था.

उधर शमशेर के हाथ में वाणी के रूप में ऐसा लड्डू आया हुआ था जिसको ना खाते बन रहा था ना छोड़ते. उसने वाणी के चेहरे की और देखा. दुनिया जहाँ की मासूमियत उसके चेहरे से झलक रही थी. कितने प्यारे गुलाबी होंट थे उसके. दूध जैसी रंगत उसके बदन को चार चाँद लगा रही थी. वह बैठ गया और वाणी की तरफ प्यार से देखने लगा. वा अपने सर के पास ऐसे सोई हुई थी जैसे उसका अपना ही कोई सगा हो. कुच्छ ही दिनों में कितना अधिकार समझ लिया था उसने शमशेर पर. उसकी नज़र वाणी की चुचियों पर पड़ी, जैसे दिशा की चुचियों का छ्होटा वर्षन हो. बंद गले का टॉप होने की वजह से वो उनको देख तो नही पाया, पर उनके आकर और कसावट को तो महसूस कर ही सकता था. केले के तने जैसी चिकनी टाँगे उसके सामने नंगी थी. कितनी प्यारी है वाणी.... अफ... शमशेर के अंदर और बाहर हलचल होने लगी. उसने लाख कोशिश की कि वाणी से अपना दिमाग़ हटा ले. पर आगे पड़ी कयामत से उसका ईमान डोल रहा था. लाख कोशिश करने के बाद भी जब उससे रहा ना गया तो उसने धीरे से वाणी को पुकार कर देखा,"वाणी!" पर वा तो सपनों की दुनिया में थी. शमशेर ने दिल मजबूत करके उसकी छतियो पर हाथ रख दिया. क्या मस्त चुचियाँ पाई हैं. जो भी इश्स फल को पकने पर खाएगा, कितना लकी होगा. शमशेर ने चुचियों पर से हाथ हटा लिया और धीरेधीरे करके उसके स्कर्ट को उपर उठा दिया. शमशेर का दिमाग़ भनना गया. पतली सी सफेद कच्च्ची में क़ैद वाणी की चिड़िया जैसे जन्नत का द्वार थी. शमशेर से इंतज़ार नही हुआ और उसने लेट कर उसकी प्यारी सी चूत पर अपना हाथ रख दिया. ऐसा करते हुए उसके हाथ काँप रहे थे. जैसे ही उसने वाणी की चूत पर कछि के उपर से हाथ रखा वो नींद में ही कसमसा उतही. शमशेर ने तुरंत अपना हाथ वापस खीच लिया, वाणी ने एक अंगड़ाई ली और शमशेर के मर्डाने जिस्म पर नाज़ुक बेल की तरह लिपट गयी. उसने अपना एक पैर शमशेर की टाँगों के उपर चढ़ा लिया.. इश्स पोज़िशन में शमशेर का हाथ उसकी चूत से सटा रह गया. शमशेर की हालत खराब होने लगी. हालाँकि शमशेर मानता था की वा आखरी हद तक कंट्रोल कर सकता है. इसी आदत से वा तडपा तडपा कर औरतों को अपना शिकार बनाता था. यही उसमें छिपि कशिश का राज थी. पर वाणी के मामले में कंट्रोल की वह हद मानो मीलों पिछे छूट गयी थी. अचानक सीढ़ियो पर आती आवाज़ ने उसको वही का वही जड़ कर दिया. वाणी को अपने से दूर हटाने का मौका भी उसके पास नही था. वा जैसे था उसी पोज़िशन में आँखें बंद करके लेटा रहा.

उपर आने वाले कदम दिशा के थे, उसकी मामी अब आने ही वाली होगी, ये सोचकर वो वाणी को


उठाने आई थी. अंदर का सीन देखकर दिशा का दिल धड़कने लगा. वाणी शमशेर से लिपटी मज़े से सो रही थी. एक पल के लिए उसके दिल में आया, काश.... और सोचने भर से ही वो शर्मा गयी. फिर सोचने लगी, इसमें सर की क्या ग़लती है. वो तो सीधे सो रहे हैं. वाणी की ही ये आदत है, मेरे साथ भी यह ऐसे ही कुंडली मार कर सोती है.

पर सर तो मर्द हैं; उनके साथ तो... कितनी बड़ी हो गयी है; इसमें तो अकल ही नही है. वह वाणी की तरफ बेड पर गयी, पहले प्यार से उसका स्कर्ट ठीक किया फिर उसके चुतदो पर हाथ मारा," वाणी!"

वाणी आँख मलते हुए उठी और दिशा को देखने लगी जैसे पहचानने की कोशिश कर रही हो.

"वाणी, चल नीचे!"

नही दीदी मैं यहीं रहूंगी, सर के साथ. शमशेर सब सुन रहा था.
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11-26-2017, 12:51 PM,
#13
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दिशा ने धीरे से वाणी को झिड़का, "चलती है या दू एक कान पे.." कहकर वो वाणी को ख्हीचने की कोशिश करने लगी. वाणी शमशेर के उपर गिर पड़ी और उसे कसकर पकड़ लिया." ताकि दिशा उसको खीच ना सके.

वाणी की चुचियाँ शमशेर की छति पर लगकर टेन्निस बॉल की तरह पिचाक गयी. शमशेर को जैसे भगवान मिल गया हो.

दिशा की हालत अजीब हो गयी, क्या करे? सर जाग गये तो तमाशा होगा.

उसने वाणी के कान में कहा, तुझे सर की बहुत अच्छि बात बतानी है, जल्दी आ!"

"सच" सर की तो वो फॅन थी! रूको मैं सर को उठा दूं. वाणी फिर से सर के लगभग उपर लेटी और ज़ोर से कान में कहा," सर जी!"

आज वाणी ने दिशा को ये दिखाने के लिए की वो सच कह रही थी की सर को कुंभकारण की तरह उठाना पड़ता है; बहुत ज़ोर से चीखी. शमशेर को लगा उसके कान का परदा फ़ान्ट जाएगा. वा एक दम चौंक पड़ा, फिर उठ बैठा.

सर के उठने का ये तरीका देखकर दिशा खुद को खिलखिलाकर हँसने से ना रोक पाई.

उसकी मधुर हँसी पर शमशेर फिदा हो गया. पहली बार उसने दिशा को इश्स तरह हंसते देखा था. सर को अपनी और एकटक देखता पाकर वा शर्मा गयी.

" सर, मैं वो वाणी को उठाने आई थी. दिशा के चेहरे पर अब भी मुस्कान थी.

शमशेर: और मुझे किसने उठाया.

वाणी: मैने सर जी, और वो शमशेर के गले से लिपट गयी.

दिशा सोच रही थी की कास कम से कम एक बार वो भी ऐसे ही सर से लिपट सके.

शमशेर ने प्यार भारी पप्पी वाणी के गालों पर दी और बोला "जाओ वाणी!" और मेरे लिए तुम ही चाय लेकर आना.

शमशेर का मूड तननाया हुआ था वह अंजलि के पहलू में जाने का रात तक का वेट नही कर सकता था. उसने कपड़े बदले और अंजलि के पास पहुँच गया.

उधर दिशा वाणी को नीचे ले गयी. वाणी ने कहा "दीदी उपर कितनी ठंड थी. इतनी मीठी नींद आई की बस पुछो ही मत. मैं तो रात को वहीं सोऊ गी""तू पागल है क्या?" "देख मामा मामी को बिल्कुल पता नही चलना चाहिए की तू उपर सो गयी थी. वरना वो हमें कभी उपर नही जाने देंगे" दिशा ने उसको समझाते हुए कहा.

"क्यूँ दीदी?" वाणी ने अचरज से पूचछा.

"देख मैं तुझे डीटेल में तो बता नही सकती. लेकिन इतना समझ ले की बड़ी होने पर लड़की को अपना ख्याल रखना चाहिए. लड़कों के साथअकेले नही रहना चाहिए" दिशा ने कहा.

वाणी: पर तुम तो हमेशा कहती हो की अभी मैं छ्होटी हूँ. तो मैं बड़ी कैसे हुई.

दिशा: हां वैसे तो तुम छ्होटी हो पर... दिशा को समझ नही आ रहा था वो वाणी को कैसे बताए की वो किस लिहाज से बड़ी हो गयी है." बस तू इतना समझ ले की मैं हम दोनों के भले के लिए कह रही हूँ"

वाणी के मॅन में अपराध बोध आ गया," तो दीदी मैने कुच्छ ग़लत कर दिया" वा रॉनी सूरत बनाकर बोली.

दिशा: नही वाणी, तूने कुच्छ ग़लत नही किया. बस इतना समझ ले घर वालों को बाहर के लड़कों के साथ हमारा रहना बुरा लगेगा.

वाणी: लेकिन दीदी! सर कौनसा बाहर के हैं, वो तो अपने हैं ना!

दिशा ने वाणी को अपनी छति से चिपका लिया. शमशेर का चेहरा उसके सामने घूम गया," हां च्छुटकी, सर तो अपने ही हैं." उसकी आँखों से आँसू टपक पड़े.

शमशेर के आने के बाद दिशा में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ आ गया था. लड़के रूपी मक्खियों को अपनी नाक पर ना बैठने देने वाली दिशा आज शमशेर की दासी हो चली थी. उसके भी मॅन में था की वो शमशेर को वाणी की तरह ही सिने से चिपका ले. दिनों दिन उसका खुमार बढ़ता ही जा रहा था. उसको अब भी ये महसूस होता था कि सर उससे नाराज़ हैं और उसको गुस्सैल लड़की समझते हैं. इसीलिए तो मुझसे इश्स तरह बात नही करते जैसे औरों से करते हैं. उसको क्या मालूम था शमशेर भी उसी की माला जप रहा है आजकल.

निर्मला के आने के बाद जब वाणी सर को. चाय देने गयी तो सर वहाँ नही मिले. वाणी का भी सर के बगैर दिल नही लगता था. पर जिस बात को उसको मम्मी पापा से च्छुपाना था, वही बात उसके मॅन में बैठ गयी. वा जान-ना चाहती थी की ऐसा क्यूँ है कि बाहर के लड़कों के पास नही जाना चाहिए. पर किसी ने उसको नही बताया. ये तो मानव का स्वाभाव है की जिस बात से उसको रोका जाए, वही करने में उसको आनंद मिलता है.

रात को करीब 7:00 बजे शमशेर वापस आया. अंजलि की तो वा खुजली मिटा कर आया था पर उसकी भूख बढ़ती ही जा रही थी. रोटियों की भूख मिठाई खाने से कम नही होती. वो तो अब दिशा का भूखा था. थोड़ी देर नीचे मामा मामी के साथ बैठकर वा उपर चला गया. वाणी भी साथ ही चली गयी. उसके मम्मी पापा को अब किसी बात की चिंता नही थी. शमशेर की तरफ से तो वो दिशा का लिए भी निश्चिंत थे. दिशा शायद इसीलिए घबराती थी क्यूंकी उसके मॅन में चोर था...प्यार का चोर.....शमशेर!

नीचे से जब वाणी को खाने के लिए आवाज़ आई तो शमशेर ने कहा जा वाणी मेरी रोटी उपर ही भेज देना और तू जाकर पढ़ाई कर ले.

वाणी: नही! आज में पढ़ूंगी नही; कल सनडे है, खूब सोऊगी!

शमसेर: ठीक है सो जाना; पहले मेरा खाना तो दे जा.

वाणी: ओके सर!

वाणी ने नीचे जाकर कहा,"सर खाना उपर मॅंगा रहे हैं! उनकी तबीयत खराब है."

निर्मला: वाणी तू खाना खा ले! जा बेटी दिशा! तू सर को खाना दे आ.

दिशा: ठीक है मामी जी, और वो खाना लेकर उपर चली गयी.


"सर, मे आइ कम इन?"

शमशेर कपड़े बदलने की तैयारी में था. उसके शरीर पर पॅंट के अलावा कुच्छ नही था. दिशा की आवाज़ सुनकर उसने कहा," आ जाओ! अपना ही घर है."

दिशा अंदर घुसी तो थोड़ी सकुचा गयी, शमशेर को ऐसे देखकर, उसका कसरती बदन उसको लुभा रहा था.

वह खाना रखकर जाने लगी तो शमशेर ने उसको कलाई के पास से पकड़ लिया. "आ..आ!" वा जड़ हो गयी, उसके अंदर तूफान जैसी हलचल थी, पर बाहर जैसे पत्थर. उसको हल्का सा इशारा मिलते ही वा शमशेर की बाहों में क़ैद हो जाती, हमेशा के लिए! सिर्फ़ हूल्का सा झटका अगर उसको शमशेर दे देता तो. पर हाय री दोनों की किस्मत; शमशेर ने वो झटका ही नही दिया.

दिशा घूम गयी और नीचे देखने लगी.

" क्या नाम है तुम्हारा?" शमशेर ने उसी अंदाज से पूचछा जैसे उसने पहले दिन स्कूल में पूचछा था.

दिशा कुच्छ ना बोली; कुच्छ ना बोल सकी.

शमशेर ने उसकी गालों पर हाथ लगाकर उसका चेहरा उपर उठा दिया, दिशा की आँखें बंद हो गयी," तुमने आज तक मुझे अपना नाम नही बताया है जो मैं पहले दिन से पूच्छ रहा हूँ"

दिशा ने कप कपाते अधरों से कहा," ज.जी... दिशा"

शमशेर ने उसको छ्चोड़ दिया," दिशा को उसका सब कुच्छ टूट-ता सा लगा. वो जाने लगितो शमशेर ने उसको टोका," सुनो दिशा"

वा पलट गयी, एक बार और जी भर कर देख लेना चाहती थी; बाकी रात यही चेहरा तो याद रखना था," जी सर"

" मैं तुमसे नाराज़ नही हूँ! तुम बहुत...अच्च्ची हो!" शमशेर सुंदर कहना चाहता था पर निकल ही नही पाया.

दिशा सुनकर नीचे भाग गयी.

दिशा जब नीचे गयी तो वहाँ एक अलग ही कोहराम मचा हुआ था, वाणी रो रही थी!

दिशा ने जाते ही पूचछा," क्या हुआ छ्होटी." जब वह उसके लाड लड़ाती थी, तो च्छुटकी ही बुलाती थी.

निर्मला: हुआ क्या है. बेवजह की ज़िद लगा रही है; कह रही है सर के पास जाकर सोएगी

दिशा सुन्न रह गयी. दिन में उसको कितना समझाया था. अकल की दुश्मन! घर वाले अब शायद शमशेर को यहाँ रहने ही दें.

" तू पागल है क्या वाणी. यहाँ मेरे पास सोना. चल उठ जा!

वाणी और ज़ोर से रोने लगी. सर के बिना तो अब वा रहना ही नही चाहती थी. शमशेर कभी भी किसी चीज़ को मेरा या हमारा नही बोलता था. हर चीज़ में वह सबको शामिल करता था. हर चीज़ को अपना कहता था. शमशेर के उसी 'अपनेपन' को वाणी ने मेरा मॅन लिया था.

दिशा को लगा सब ख़तम हो जाएगा. मुश्किल से आज सर खुश हुए थे. अगर आज घर वालों ने कुच्छ कह दिया तो फिर कभी बात ही नही करेंगे.

निर्मला: अरे सोच बेटी! किराया देते हैं वो, फिर उन्हे काम भी बहुत रहता है. क्या सोचेंगे. कहेंगे इस्सको और साथ बाँध दिया. परेशान हो जाएँगे. आख़िर उनकी भी तो अपनी जिंदगी है. हर पल तुझे कैसे सहन करेंगे वहाँ. और फिर 2 दिन पहले क्या हमारे पास ए.सी. था. तब भी तो सोती थी नीचे ही. मान जा बेटा, नही तो वो नाराज़ होकेर चले जाएँगे."

दिशा को लगा; मामला उतना गंभीर नही है. यहाँ तो सर के परेशान होने की बात चल रही है.

" अच्च्छा तू सर से पूच्छ ले, वो मान जाए तो चली जाना, बस!" दिशा को विस्वास था वो तो मान ही जाएँगे. कहकर वो मामा मामी की और देखने लगी की क्या रिएक्शन होता है. वाणी झट से उठ खड़ी हुई," मैं पूच्छ कर आती हूँ"

दयाचंद : ठहर वाणी!

वाणी और दिशा दोनो ने मायूस होकर पापा की और देखा.

दया चंद: हम बात करके आते हैं; अगर हमें लगा की सर को तुम्हे साथ रखने में कोई दिक्कत नही है तो हम तुम दोनो को उपर भेज देंगे. अब तो खुश हो ना!

"दोनो को" दिशा को लगा वो सपना देख रही है! उसको सच में विस्वास नही हो रहा था, कि उसके रूढ़िवादी मामा उसको तो दूर; वाणी को भी उपर भेज सकते हैं.

वाणी खुश हो गयी. वा पापा की उंगली पकड़कर तैयार हो गयी.

"नही अभी तुम नही मैं और तुम्हारी मम्मी जाएँगे."

और वो दोनो उपर चले गये शमशेर के पास.

उनके जाते ही दिशा वाणी को घूर्ने लगी, फिर उसको पकड़कर अपनी छति से लगा लिया. उसीकि हिम्मत से यह सब संभव हो सका था. उसने वाणी के गालों को चुंबनों से भर दिया. वाणी अपना बॅग तैयार करने लगी. जैसे अब उसको कभी वापस आना ही ना हो," दीदी, एक ड्रेस भी ले लूँ"

दिशा ने उसको एक प्यार भारी चपत लगाई फिर दोनो हँसने लगी.
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11-26-2017, 12:51 PM,
#14
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
उपर जाकर दया चंद ने दरवाजा खटखटाया. शमशेर लॅपटॉप पर काम कर रहा था. उसने दरवाजा खोला, आइए अंकल जी.

अंदर जाते ही दोनों को यकीन हो गया की वाणी उपर रहने की ज़िद क्यूँ कर रही है. बिल्कुल ठंडा माहौल था कमरे में.

बैठने के बाद डायचंद ने बोलना शुरू किया; उसको समझ नही आ रहा था बात कहाँ से शुरू करे," बेटा कोई तकलीफ़ तो नही है ना!"

"जी नही तकलीफ़ कैसी, मैं तो यहाँ अपने घर की तरह से रह रहा हूँ!"

डायचंद: फिर भी बेटा.... वो वाणी है ना, बहुत ही शरारती है! परेशन तो कर देती होगी आपको.

शमशेर: अरे नही अंकल जी! वो तो गुड़िया जैसी है; उसने ही तो मेरा दिल लगाया है यहाँ पर. शमशेर ने हद से ज़्यादा मीठा होते हुए कहा. उसकी अब तक ये समझ नही आ रहा था की माजरा क्या था.

निर्मला: वो भी ना मस्टेरज़ी, आपसे बहुत घुलमिल गयी है. नीचे भी आप ही की बात करती रहती है.

शमशेर: आंटिजी, वो तो है ही ऐसी. कितनी प्यारी है गुड़िया जैसी.

डायचंद: (थूक निगलते हुए) बात ऐसी है बेटा; वो वाणी ज़िद किए बैठी है की मैं तो सर जी के साथ रहूंगी. खाना भी नही खाया; रो रही है जबसे नीचे गयी है( ए.सी. वाली बात को बताने में उन्हे शरम आ रही थी)

शमशेर की समझ में नही आया इश्स बात पर कैसे रिएक्ट करे! वो कुच्छ नही बोला.

डायचंद: मुझे तो बहुत गुस्सा आया था बेटा, बच्चों की इतनी ज़िद ठीक नही. पर इसकी मम्मी कहती है एक दो दिन...... अगर आपको कोई दिक्कत ना हो तो यहाँ... इश्स दूसरे कमरे में दोनों बच्चियाँ रह लेंगी. ....अगर आपको ऐतराज ना हो तो... 1-2 दिन में अपने आप दिल भर जाएगा; अपनी मम्मी के बिना भी तो नही रहती ना... देख लो... उसको समझा कर देख लो... मास्टर जी!

"ओ..ओह अंकल जी( शमशेर के मॅन में लड्डूओं की बरसात हो रही थी. 'दोनो' सुन-ने के बाद और कुच्छ उसको सुनाई ही नही दिया... क्या किस्मत दी है भगवान ने!) भला मुझे क्या दिक्कत हो सकती है उस्स बेचारी से! आपका ही घर है.... वैसे भी वो कमरा तो में यूज़ करता ही नही... प...पढ़ा... मेरा मतलब है पढ़ाई में भी कोई दिक्कत होगी तो पढ़ा दूँगा. वैसे भी में तो खाली ही रहता हूँ... बाकी आपकी मर्ज़ी!... मैं तो उस्स कमरे में जाता ही नही"

शमशेर ने इतना लंबा भासन दिया ताकि इनको विस्वास हो जाए उसको कोई प्राब्लम नही है.

निर्मला: तो मास्टर जी उनकी चारपाई लगवान दे उपर?

शमशेर: जी मुझे तो कोई दिक्कत है नही... आपकी मर्ज़ी... शमशेर ख़ुसी में हकला रहा था.

निर्मला: तो ठीक है बेटा, हम उन्हे उपर भेज देते हैं. कोई दिक्कत हो तभी बता देना. तभी ले जाएँगे हम दोनों को!

शमशेर: जी अच्च्छा!

बाहर निकल कर डायचंद बोला," बड़ा भोला है बेचारा. इतना पैसा होने पर भी किसी बात का घमंड नही; भगवान ऐसी औलाद सबको दे!"

कुच्छ देर बाद दोनो अपनी अपनी चारपाई लेकर उपर आ गयी और दूसरे कमरे में डाल लिया. दिशा तो किताब लेकर पढ़ने बैठ गयी पर वाणी दौड़ी आई और सर से लिपट गयी. दिशा ने एक बार उनकी और देखा पर शमशेर को अपनी और देखता पाकर शर्मकार नीचे चेहरा कर लिया. वाणी की आँखें रोने की वजह से और भी मोटी मोटी हो गयी थी. शमशेर ने उसके गाल पर प्यार से किस किया तो बदले में वाणी ने भी एक चुम्मा सर के गाल पर दे डाला.

सच में वाणी तो एक प्यारी गुड़िया ही थी.

शमशेर पालती मारे बैठा था; वाणी उसकी गोद में आकर बैठ गयी और उसकी गालों के नीचे अपना सिर फँसा लिया. उसने अब भी स्कर्ट पहन रखा था

वाणी की गॅंड शमशेर की गोद में होने की वजह से ना चाहते हुए भी शमशेर गरम होता जा रहा था. उसने लाख कोशिश की अपना ध्यान बताने की पर उसकी दुनिया की सबसे हसीन कन्या जब उसके सामने हो और उसकी 17 साल की अनच्छुई बहन उसके लंड पर अपने मस्त चूतदों को टिकाए बैठी हो तो उस्स जैसे गरम खून वाले का कंट्रोल कहाँ तक टिकता. स्कर्ट और एक पतली सी कच्च्ची उसके शेर की टक्कर कहाँ तक सहन करते. वैसे भी वाणी उसके लंड के ठीक बीच में बैठी थी. उसको अपने चूतदों में कुच्छ चुभता सा महसूस हुआ, पर वो उसको समझ नही पाई. उसने सोचा वा सर की टाँग पर बैठी है. नासमझ थी तो क्या हुआ फिर भी थी तो वह लड़की ही, उसको बेचेनी सी होने लगी. ऐसी बेचैनी जिसमें उसको मज़ा आ रहा था. धीरे धीरे उसकी चूत में गर्मी बढ़ने लगी. अजीब सा खुमार च्छा गया था उस्स पर. धीरे धीरे उसने बोलना बंद कर दिया. बस हां हूँ में ही जवाब देने लगी. शमशेर की 'टाँग' पर अपनी चूत की रगड़ से उसको अजीब सा आनंद मिल रहा था. वो आराम आराम से आगे पीच्चे होने लगी, उसको पता नही था ऐसा क्यूँ हो रहा है. शमशेर उसकी हालत को ताड़ गया था. उसने अपनी दोनों बाहें आगे ले जाकर वाणी को कसकर पकड़ लिया; बातें करते करते. शमशेर की कलाई का दबाव उसकी छतियो पर बढ़ गया, इसमें उसका आनंद और बढ़ गया. हिलने की वजह से अब शमशेर का लंड उसकी चूत के दाने पर दबाव बढ़ा रहा था, जिससे वाणी की आँखें बंद हो गयी और उसका आगे पीच्चे हिलना और तेज़ हो गया. अचानक वो काँपने लगी. उसने सिर के हाथों को काशकर पकड़ लिया और अपनी चुचकों पर दबाव बढ़ने लगी. करीब 10-15 सेकेंड के बाद उसको हल्की सी हिचकी आई और वो निढाल हो गयी. जब उसका होश संभला तो उसको लगा जैसे उसका पेशाब निकल आया हो. वो बिना कुच्छ कहे बाथरूम में भाग गयी. पहली बार उसने यौवन सुख के साम्राज्य में परवेश किया था. इतना सब हो जाने के बाद भी दिशा को अहसास भी नही हुआ की उसकी छ्होटी बेहन ने उससे पहले ही किसी पुरुष की सहायता से ष्क्लन का चरम आनंद प्राप्त कर लिया है, बेशक यह संभोग नही था.


बाथरूम में जाकर वाणी ने देखा उसकी कच्च्ची भीग गयी है. उसने निकाल कर देखा, यह पेशाब तो नही था, इतना गाढहा पेशाब हो ही नही सकता. वा काँपने क्यूँ लगी थी? उसको इतना मज़ा कैसे आया. और उसने सर के हाथ को अपनी छति पर क्यूँ दबाया? वह विचलित सी हो गयी थी. उसको शरम आ रही थी. पूच्छे तो किस-से पूच्छे! बताए तो किसको बताए. उसने झुक कर अपनी चूत की फांकों को दूर करके देखा. वा अंदर से अजीबोगरीब तरीके से लाल हो चुकी थी. एक पल के लिए तो जब उसका ष्क्लन हुआ तहा उसको लगा की शायद वह मर रही है. पर अब उसके मॅन में थोड़ी शांति थी. लेकिन उस्स आनंद को जो अंजाने में सर की गोद में उसको मिला; भूल नही पा रही थी.

उसकी कच्च्ची तो गीली हो गई थी. अब वो पहनेगी क्या. नीचे तो जा नही सकती, कहीं मा उसको वहीं ना रख ले. दिशा को बताती तो क्या बताती. आख़िर में उसने कच्च्ची को धोकर टाँग दिया और ऐसे ही स्कर्ट को टाँगो से चिपकाए बाहर आकर अपनी खाट पर बैठ गयी.

नीचे मामा मामी को चोद रहा था. बहुत दिनों बाद उसको प्यार करने लायक अकेला पन मिला था. मामी निढाल सी अपनी टांगे चौड़ाए पड़ी थी और मामा उसकी खुली चूत में अपना 'जैसा भी था' लंड पेले जा रहा था. पर वो चुदाई मामी को फॉरमॅलिटी भर लग रही थी. जैसे बस करवाना ही है. उसको मामा के 4 इंची लंड से कोई खास लगाव नही था. अब मामा की उमर भी तो हो गयी थी ना. ऐसा नही है की वो दूश्‍रों की और देखती थी अपनी सेक्स की पूर्ति के लिए. बस वा 'जो मिला' से ही संत्ुस्त थी.

अपनी टांगे फाडे फाडे ही वो कहने लगी," सुनो जी, दिशा के लिए शमशेर जैसा रिश्ता मिल जाए तो....' हमारी बेटी लाखों में एक है... और शमशेर भी तो....! मामा उसके उपर निढाल होकर गिर पड़ा," कैसी बात करती हो निर्मला! वो कहाँ और हम कहाँ! कहने से पहले कुच्छ सोच तो लिया करो." उसने अपना लंड मामी की चूत से निकल लिया और बोला," अब वो बात नही रही निर्मला! बुढ़ापा दस्तक देने लगा है" वा हाँफ रहा था.

उपर वाणी का बुरा हाल था. जो कुच्छ भी थोड़ी देर पहले हुआ वा तो जैसे स्वर्ग में जाकर आने जैसा था. उसको चुपचाप देखकर दिशा ने धीरे से पूचछा," क्या हुआ वाणी!?"

वाणी ने भी उसी टोने में जवाब दिया," कुच्छ नही दीदी?"

दिशा: नींद आ रही है क्या?

वाणी: नही तो... दीदी!

दिशा: फिर सर के पास से उठ क्यूँ गयी?

वाणी: ऐसे ही दीदी! क्यूँ?

दिशा: कुच्छ नही, ऐसे ही! वो सर की कुंभकारण वाली बात तू सच कह रही थी ना!

वाणी: हां दीदी! बेशक तुम उठा के देख लेना, बिना बोले; नही उठेंगे.

दिशा: तू झूट बोल रही है!

वाणी पिच्छली बात और अपने नंगेपन को भूल गयी! वा उठकर सर के पास भागी चली गयी," सर, आपकी नींद कुम्भकरण जैसी है ना!

शमशेर: क्यूँ वाणी?

वाणी: मैने दीदी को बताया था; वो कह रही हैं मैं झूठ बोल रही हूँ!

शमशेर हँसने लगा," नही, अपनी दीदी को बता दो हम झूठ नही बोलते!"

वाणी ने जीभ निकल कर दिशा को चिडा दिया!

दिशा गुस्सा थी की उसने सर को क्यूँ बताया की वो उनके बारे में पूच्छ रही थी. उसने खिज में अपनी चप्पल उठाई और वाणी की और आराम से फंकी. चप्पल वहाँ तक पहुँची ही नही. वा शर्मिंदा होकर लेट गयी और आँखें बंद कर ली.
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11-26-2017, 12:51 PM,
#15
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
"सर आप क्या कर रहे हो?"

शमशेर नेट पर चेटिंग कर रहा था," कुच्छ नही वाणी!"

"मैं यहीं सो जाउ क्या!"वा पिच्छली बात भूल गयी थी.

शमशेर को पता था दिशा सुन रही होगी," फिर तुम्हारी दीदी को डर नही लगेगा क्या?"

वाणी: दीदी! तुम भी यहीं आ जाओ ना; हमारे पास! तीनों मज़े से सोएंगे!

दिशा सर के पास सोने की बात सुनकर शरम से लाल हो गयी और करवट बदल कर मुँह छिपा लिया.

शमशेर उठा और बाथरूम में घुस गया. वाणी की जवानी ने उसका बुरा हाल कर दिया था. बहुत दिनों बाद उसको लगा, मूठ मारे बगैर नींद नही आएगी. उसने अपनी पॅंट निकाल दी. उसको टाँगने लगा तो उसको हॅंगर पर वाणी की कछि तंगी दिखाई दी.

उसने उसको उतार कर देखा; उसमें से योनि रस की स्मेल आ रही थी. " कितनी प्यारी खुश्बू है; एकद्ूम मदहोश कर देने वाली! उसने अपने लंड को आज़ाद किया, उसकी एक एक नस चमक रही थी. आँखें बंद करके वा अपने हाथ से लंड पर घेरा बनाकर आगे पिच्चे करने लगा.

उधर दिशा सिर के बाथरूम में जाते ही वाणी के पास दौड़ी हुई आई और वाणी का प्यार से गला पकड़ लिया," सर की चमची, सर को सारी बातें बतानी ज़रूरी हैं क्या!"

वाणी: दीदी! आप सर से इतनी जलती क्यूँ हैं.

वाणी, दिशा की शरम को उसका जलना मान रही थी; कितनी नादान थी वो!

दिशा: चल वही सोएंगे, मुझे तुमसे बात करनी है!

वाणी: नही दीदी; सुबह बता देना और उसने पलटी मार कर आँखें बंद कर ली.

दिशा उठकर चली गयी और अपनी खाट पर जाकर लेट गयी. "काश! सर मुझे ज़बरदस्ती अपने बेड पर ले जाते. वाणी कितनी खुसकिस्मत है." सोचते सोचते उसने आँखें बंद कर ली. उसके दिमाग़ में कुच्छ चल रहा था.

शमशेर आया और वाणी के पास ही लेट गया. उसको पता था वो नीचे से नंगी है! पर शमशेर ने अपनी सोच को हटाकर दिशा पर लगा लिया. अब दिशा ही उसका टारगेट थी. उसके बारे में सोचते सोचते उसको ना जाने कब नींद आ गयी....

रात के करीब 2 बजे का टाइम था. शमशेर मीठी नींद में दिशा के सपनों में खोया हुआ था. अचानक उसको अहसास हुआ, कोई साया उसके पास खड़ा है, कहीं ये दिशा ही तो नही. उसने ध्यान से देखा; अरे हां, वही तो है. उसने आँखे बंद कर ली.

शमशेर के दिल की धड़कन तेज हो गयी. क्या दिशा भी उससे...! सहसा उसको अपनी छति पर एक कोमल हाथ लहराता हुआ महसूस हुआ. दिशा ने उसको धहेरे से पुकारा," सस्स...इर्ररर!"

शमशेर ने कोई जवाब नही दिया. वो जानता था कि दिशा चेक करना चाहती है; कहीं सर उठ तो नही जाएँगे! शमशेर क्यों उठता भला.

दिशा शमशेर की छति पर हाथ फेरने लगी. शमशेर के दिल में आया की उठकर उसकी जवानी को दबोच ले, पर उसको लगा, पहले देखना चाहिए दिशा किस हद तक जाती है.

फिर दिशा ने उसको ज़ोर से हिलाया. पर शमशेर सोता रहा. दिशा एक पल के लिए रुकी, फिर उसकी कमीज़ के बटन खोलने लगी, धीरे धीरे."अफ...!"

शमशेर की छति नंगी हो गयी. दिशा उसकी च्चती के बालों को प्यार से सहलाने लगी. फिर वह झुकी और शमशेर के गालों पर अपने लरजते होंट रख दिए.

शमशेर को मज़ा आने लगा था. बड़ी मुश्किल से वा खुद की सांसो पर काबू पा रहा था. दिशा झुकी और शमशेर के मर्दने होंटो को अपने लबों में क़ैद कर लिया. शमशेर तो जैसे आसमान में उड़ रहा था. वा मज़े लेता रहा. नेहा उसके कानों को चबाने लगी. शमशेर को उसकी तनी हुई चुचियाँ अपनी च्चती में चुभाती महसूस हुई. इतनी सख़्त....आ...आ!

अचानक दिशा सर की चादर में घुस गयी और उससे लिपट गयी. चादर में घुसने के बाद उसने अपनी कमीज़ उतार दी.

शमशेर आँखें फाडे उसकी चुचियों को देखने लगा. चुचियाँ मानो भगवान ने मॉडल के रूप में ढली हों. वैसी जैसे मानो 'राफियेल' ने अपनी तुलिका से उनको मान चाहा रूप दिया हो, उनमें मनचाही मस्ती भरी हो! कैसे सीना ताने अपनी उचाई और गोलाई पर घमंड कर रही हों जैसे. शमशेर का लंड बेकाबू होता जा रहा था.

दिशा ने सर के हाथ को अपने हाथ में लिया और उसको अपनी छति पर दबा दिया.

आ! शमशेर की लाख कोशिश के बावजूद खुदकी सिसकी निकल पड़ी. दिशा सर के हाथ से अपनी चूची दबाने लगी; जैसे उसका रस निकलना चाह रही हो.

दिशा सर के उपर आ गयी. दोनों की छतिया आमने सामने थी. ऐसा लगा अभी महासंग्राम होगा!

दिशा ने शमशेर के होंटो को अपनी जीभ से ज़बरदस्ती खोल दिया और जीभ उसके मुँह में घुसा दी. शमशेर को उसकी सिसकियाँ साफ सुनाई दे रही थी.

दिशा सर के उपर से उतरी और अपना हाथ नीचे ले गयी, वहाँ जहाँ जाँघ रूपी दो पुन्जो का मिलन होता है, और औरत का मकसद; एक पोल खड़ा होता है.

दिशा ने शमशेर की पॅंट का बटन खोला और उसकी जीप नीचे कर दी.

शमशेर से रहा ना गया, उसने अपना अंडरवेर खुद ही नीचे खिसका दिया, मगर ऐसे की दिशा को आभास ना हो.

शमशेर के शेर ने करवट बदली और स्प्रिंग की तरह उच्छल कर दिशा के हाथ से जा टकराया! दिशा उसपर हाथ फेर कर उसकी सखता ई और मोटाई का अंदाज़ा लगाने लगी. उसकी साँसे उखाड़ गयी थी, बाल बिखर गये थे.

दिशा अपना मुँह शमशेर के लंड के पास ले गयी और उसकी जड़ों पर जीभ फिराई. क्या मस्त स्टाइल था. शमशेर को पता था. असली सकिंग वहीं से शुरू होती है...


शमशेर के लंड से जीभ सताए उपर की और खींच लाई, अपनी जीभ को, और सुपादे पर प्यार से चुम्मि देकर उसको इज़्ज़त बखसी!

ऐसा लग रहा था अब दिशा को किसी बात का डर नही है, ना सर का ना जमाने का; जैसे वा जान गयी हो कि सर भी तो यही चाहते हैं.

असचर्यजनक रूप से पहली बार ही उसने अपने होंटो को पूरा खोल कर लंड के सुपारे को क़ैद कर लिया. वह उस्स पर जीभ फिराने लगी; मुँह में सुपारे को लिए लिए ही. शमशेर सोच रहा था अब तक तो दिशा को पता चल जाना चाहिए की वा जाग रहा है. तभी दिशा ने शमशेर का पूरा लंड अपने गले की गहराइयों तक उतार लिया. शमशेर कुत्ते की तरह सिसक रहा था पर उसकी हिम्मत ही ना हुई उठने की. वह निढाल पड़ा रहा; जैसे बेहोश हो.

पहली बार में ही कोई लड़की 8 इंच लंबे लंड को अपने मुँह में पूरा कैसे उतार सकती है; ज़रूर खेली खाई है साली. शमशेर सोच रहा था. वह उठना चाहता था पर उठ ही ना पाया, वा बेबुस था.

दिशा तेज़ी से लंड को अपने मुँह में अंदर बाहर करने लगी, बिल्कुल खेली खाई लड़की की तरह. शमशेर हैरान तहा. उसका अब च्छुटने ही वाला था की अचानक दिशा ने लंड को अपने मुँह से निकाल दिया. और उसके उपर जा चढ़ि. आज वो किसी के वश में नही थी.

दिशा बेकाबू हो चुकी थी. उसने अपनी सलवार का नाडा खोल दिया और सलवार को उतारकर नीचे डल दिया. वह इतनी जल्दबाज़ी में थी की शमशेर के रोड जैसे शख्त हो चुके उसके लंड को पनटी के उपर से ही रगड़ने लगी. शमशेर का स्टॅमिना उसको जवाब दे रहा था. दिशा ने कुच्छ देर बाद अपनी चूत के उपर से पनटी को हटाकर उस्स रोड के लिए जगह बनाई और लंड को अपने योनिद्वार से सटा कर उस्स पर बैठ गयी. 'फ़चक' की आवाज़ के साथ पूरा का पूरा लंड उसकी चिकनी चूत में समा गया. दिशा शमशेर की छति पर धम्म से गिर पड़ी और पागलों की तरह उसके कंधों को, गालों को अपने दातों से काटने लगी. वह उपर से धक्के लगा रही थी और शमशेर नीचे से. 2-3 मिनिट में ही शमशेर दिशा से हार गया. उसके लंड से तेज पिचकारी निकल पड़ी. दिशा फिर भी उसस्पर कूदती रही. अब शमशेर से सहन नही हो रहा था. वा बड़बड़ाने लगा," प्लीज़्ज़ दिशा मुझे छ्चोड़ दो, मैं और सहन नही कर सकता. मुझे माफ़ कर दो प्लीज़्ज़ज्ज्ज.

वाणी चौंक कर उठ बैठी," सर जी! उठिए...." और शमशेर चौंक कर उठ बैठा. वा पसीने से तर बतर था. ए.सी. की ठंडक भी उसके सपने की गर्मी को दबाने में नाकाम रही थी. उसकी साँसे अब भी तेज चल रही थी. उसने देखा," दिशा वाणी के साथ ही बेड पर बैठी है. पूरे कपड़े पहने..... उतनी ही शांत जितनी वो उसको छ्चोड़ कर सोया था....वह हल्का हल्का मुस्कुरा रही थी. शमशेर शर्मिंदा हो गया!

टू बी कंटिन्यूड....
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11-26-2017, 12:51 PM,
#16
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल'स स्कूल --6

"सर, कोई बुरा सपना आया था क्या?", वाणी ने मासूमियत से पुचछा. वो और दिशा शमशेर को ध्यान से देख रही थी. शमशेर ने वाणी की जाँघ पर थपकी लगाई,"हां वाणी! बहुत बुरा सपना आया था"शमशेर संभाल चुका था. दिशा शमशेर के लिए पानी ले आई," लीजिए सर! पानी पीने से बुरे सपने नही आते!" वाणी शमशेर के और नज़दीक आ गयी," क्या सपना आया था सर!?" शमशेर ने कहानी बनाते हुए कहा," एक राक्षस का सपना था! आजकल वो मुझे बहुत डरा रहा है." "पर सर! आप तो दीदी का नाम ले रहे थे!" शमशेर परेशान हो गया, कहीं सारा सपना उसने लाइव टेलएकास्ट ना कर दिया हो!,"क्या कह रहा था मैं" वाणी: आप कह रहे तहे, दिशा मुझे माफ़ कर दो; मैं और सहन नही कर सकता. दिशा मुझे छ्चोड़ दो; वग़ैरा वग़ैरा...." शमशेर: तो राक्षश इसके रूप में आया होगा. चलो सो जाओ. अभी रात बाकी है." वाणी: सर, पहले सपना सुनाए ना! शमशेर: देखो वाणी अच्च्चे बच्चे ज़िद नही करते सो जाओ! कहकर वा बाथरूम में गया और अपना अंडरवेर चेंज करके आया. उसके आने के बाद वाणी ने उसकी जॅफी भरी और अपनी टाँग शमशेर के पेट पर रखकर सो गयी. मामला ख़तम जान कर दिशा भी सोने चली गयी. करीब एक घंटा बीट जाने के बाद भी शमशेर की आँखों में नींद नही थी. सच में ही बुरा सपना था ये. जिस रूप में दिशा उसके सपने में आई थी, अगर वो सच्चाई होती तो उसको वाकई बुरा लगता. सपने में तो दिशा ने बेशर्मी की हद ही तोड़ दी थी. खैर दिशा के लिए उसका खुमार बढ़ता ही जा रहा था. वैसे लड़कियों की उसकी कमज़ोरी को छ्चोड़ दें तो वा निहायत ही सुलझा हुआ और दिल का सॉफ आदमी था. बढ़ती ठंड के कारण वाणी उससे और ज़्यादा चिपकती जा रही थी. शमशेर के मॅन में खुरापात घर करने लगी, वह जानता था की वाणी अंजाने में ही सही; उसके हाथों सेक्स का मज़ा ले चुकी है. वह पलटा और अपना मुँह वाणी की तरफ कर लिया. 

वाणी गहरी नींद में थी. वाणी की छति उसके हाथ से सटी हुई थी. उसने वाणी पर अपने शरीर का हल्का सा दबाव डालकर उसको सीधा कर दिया. शमशेर ने वाणी की छति के उपर हाथ रख दिया. उसकी चुचियाँ उसके सांसो के साथ ताल मिला कर उपर नीचे हो रही थी. उसके होंट और गाल कितने प्यारे थे! और एक दम पवित्र. शमशेर ने वाणी के होंटो को च्छुआ. मक्खन जैसे मुलायम थे.... शमशेर ने आहिस्ता आहिस्ता उसके टॉप में हाथ डाल कर उसके पेट पर रख लिया. इतना चिकना और सेक्सी पेट आज तक शमशेर ने नही च्छुआ था. शमशेर ने हाथ थोड़ा और उपर किया और उसकी उँच्छुई गोलाइयों की जड़ तक पहुँच गया. उसने उसी पोज़िशन में हाथ इधर उधर हिलाया; कोई हरकत नही हुई, वह हाथ को उसकी बाई चूची पर इश्स तरह से रख दिया जिससे वो पूरी तरह धक गयी. उसने उन्हे महसूस किया, एक बड़े अमरूद के आकर में उनका अहसास असीम सुखदायी था. शमशेर का जी चाहा उन मस्तियों को अभी अपने हाथों से निचोड़ कर उनका सारा रस निकाल ले और पीकर अमर हो जाए. पर वाणी के जागने का डर था. उसने वाणी के निप्पल को च्छुआ, छोटे से अनार के दाने जितना था. हाए; काश! वो नंगी होती और वा उन्हे देख पाता. इश्स ख़याल से ही उसको ध्यान आया की वाणी तो नीचे से नंगी है..... उसने नीचे की और देखा, वाणी का स्कर्ट उसके घुटनों तक था. शमशेर ने उसको उपर उठा दिया पर नीचे से दबा होने की वजह से वो उसकी जांघों तक ही आ पाया. शमशेर ने वाणी को वापस अपनी तरफ पलट लिया. वाणी ने नींद में ही उसके गले में हाथ डाल लिया. वाणी की होंट उसकी गालों को छ्छू रहे थे. शमशेर ने दिशा के कमरे की और देखा, वहाँ से दिशा के पैर और उसकी गंद तक का हिस्सा ही दिख रहे थे. निसचिंत होकर शमशेर ने वाणी के स्कर्ट को पिच्चे से भी उठा दिया. वाणी की चिकनी सफेद जाँघ और गोल कसे हुए चूतड़ देख कर शमशेर धन्य हो गया. उसके चूतदों के बीच की दरार इतनी सफाई से तराशि गयी थी की उसमें कमी ढ़हूँढना भगवान को गाली देने के समान था. शमशेर कुच्छ पल के लिए तो सबकुच्छ भूल सा गया. एकटक उसके चूतदों की बनावट और रंगत को देखता रहा. फिर उसने उनपर हाथ रख दिया; एकद्ूम ठंडे और लाजवाब! वह धीरे धीरे उनपर हाथ फिराने लगा. शमशेर ने उसके चूतदों की दरार में उंगली फिराई; कही कोई रुकावट नही. शमशेर का लंड अब तक अपना फन उठा चुका था; डसने के लिए. उसने वाणी के चेहरे की और देखा, वा अपनी ही मस्ती में सो रही थी. शमशेर ने उसको फिर से पहले वाले तरीके से सीधा लिटा दिया. उसकी टाँगें फैली हुई थी; स्कर्ट जांघों तक थी, मोक्षद्वार से थोड़ा नीचे तक. स्कर्ट उपर करते वक़्त शमशेर के हाथ काँप रहे थे. आज से पहले ऐसा शानदार अनुभव उसका कभी नही रहा...... शायद किसी का भी ना रहा हो...... स्कर्ट उपर करते ही शमशेर के लंड को जैसे 440 वॉल्ट का झटका लगा. शमशेर का दिमाग़ ठनॅक गया, ऐसी लाजवाब चूत... नही! उसको चूत कहना ग़लत होगा. वो तो एक बंद कमाल की पंखुड़ीयान थी; नही नही! वो तो एक बंद सीप थी, जिसका मोती उसके अंदर ही सोया हुआ है. शमशेर का दिल उसकी छति से बाहर आने ही वाला था. क्या वो मोती मेरे लिए है! शमशेर ने सिर्फ़ उसका जिस्म देखने भर की सोची थी, लेकिन देखने के बाद वा उस्स मोती को पाने के लिए तड़प उठा. उस्स सीप की बनावट इश्स तरह की थी की सेक्सपेर को तो क्या, सर शेक्स्पियर को भी शायद शब्द ना मिले. नही मैं एक्सप्लेन नही कर सकता. उस्स अमूल्या खजाने को तो सिर्फ़ महसूस ही किया जा सकता है; और वो...शमशेर कर ही रहा था. शमशेर ने उसकी जांघों के बीच भंवर को देखते ही उसको चोदने की ठान ली.... और वो भी आज ही....आज नही; अभी. उसने वाणी की सीप पर हाथ रख दिया. पूरा! जैसे उस्स खजाने को दुनिया से च्छुपाना चाहता हो. उसको खुद की किस्मत और इश्स किस्मत से मिलने वाली अमानत पर यकीन नही हो रहा था. उसने बड़े प्यार से, बड़ी नाज़ूक्ता से वाणी की सीप की दरार में उंगली चलाई, वाणी कसमसा उठी! अचेतन मॅन भी उस्स खास स्थान के लिए चौकस था; कही कोई लूट ना ले! शमशेर ने अपना हाथ तुरंत हटा लिया. वाणी के चेहरे की और देखा, वह तो सोई हुई थी. फिर से उसकी नज़र अपनी किस्मत पर टिक गयी. शमशेर ने अपने शरीर से वाणी को इश्स कदर धक लिया की उस्स पर बोझ भी ना पड़े और अगर वो जाग भी जाए तो उसको लगे सर का हाथ नींद में ही चला गया होगा. इश्स तरह तैयार होकर उसने फिर कोशिश की....वाणी का मोती ढूँढने की, उसकी दरार में उंगली चलाते हुए उसको वो स्थान मिल गया जहाँ उसको अपनाखूट गाढ़ना था. ये तो बिल्कुल टाइट था, इसमें तो पेन्सिल भी शायद ना आ सके! शमशेर को पता था आने पर तो इसमें से बच्चा भी निकल जाता है... पर वो उसको दर्द नही दे सकता था. बदहवास हो चुके शमशेर ने अपनी छ्होटी उंगली का दबाव उसके च्छेद पर हल्का सा बढ़ाया; पर उस्स हल्के से दबाव ने ही वाणी को सचेत सा कर दिया. वाणी का हाथ एकद्ूम उसी स्थान पर आकर रुका और वो वहाँ खुजलाने लगी. फिर अचानक वो पलटी और शमशेर के साथ चिपक गयी. शमशेर समझ गया 'असंभव है' ऐसे तो बिल्कुल कुच्छ नही हो सकता. मायूस होकर उसने वाणी का स्कर्ट नीचे कर दिया और उसके साथ उपर से नीचे तक चिपक कर सो गया..................

अगली सुबह करीब 6 बजे दिव्या, वाणी की क्लासमेट उसके घर आई. दिशा घर में सफाई कर रही थी. उसके मामा मामी सूरज निकलने से पहले ही खेत चले गये थे. "दीदी! वाणी कहा है?", दिव्या ने दिशा से पूचछा. दिशा: उपर सो रही है, सनडे को वो कहाँ जल्दी उठहति है! दिव्या उपर चली गयी. उपर जाते ही वा सर को कसरत करते देख शमा गयी," ससर्र! गुड मॉर्निंग, सर!" "गुड मॉर्निंग दिव्या!", शमशेर ने मुस्कुरा कर कहा. पसीने की बूंदे उसके ताकतवर जिस्म पर सोने जैसी लग रही थी! दिव्या: सर! वाणी कहा है? शमशेर: वो रही! कमरे की और इसरा करते हुए उसने कहा. दिव्या ने वाणी को उठाया," वाणी! चल; मेरे घर पर! मैं अकेली हूँ. घर वाले शहर गये हैं. हम वहीं खेलेंगे! वाणी ने जैसे ही शमशेर को पसीना बहाते देखा, वो दिव्या की बात को उनसुना कर बाहर भाग आई," सर आप पहलवानी करते हैं?" शमशेर: नही तो! वाणी: फिर...! ये सब तो पहलवान करते हैं ना! शमशेर हँसने लगा, बिना कुच्छ कहे ही वा उठा और अंदर चला गया. दिव्या: आ वाणी; चल ना मेरे घर. वाणी ने भोलेपन से कहा," नआईईई, मुझे तो अभी स्कूल का काम भी करना है. मैं दोपहर बाद आ जवँगी; ओके!" दिव्या उससे दोपहर बाद आने का प्रोमिसे लेकर चली गयी....... दिव्या, वाणी की बेस्ट फ्रेंड; उसी की उमर की थी. उसका बदन भी गदराया हुआ था. चेहरे से गाँव का अल्हाड़पन भोलापन साफ झलकता था. उसका घर सरपंच की हवेली से सटा हुआ था....छत से छत मिलती थी. सरपंच का बिगड़ा हुआ बेटा; छत से दिव्या को अकेला देखकर कूद आया! जाहिर है उसकी नियत ठीक नही थी...! "राकेश तुम छत से कूदकर क्यूँ आए हो!", दिव्या उसकी आँखों में छिपि वासना को नही समझ पाई. राकेश करीब 21 साल का नौजवान लड़का तहा. एक तो उसका खून ही खराब था; दूसरे उसके बाप की गाँव में तूती बोलती थी; फिर बिगड़ता कैसे नही," दिव्या में तुझे एक खेल सिखाने आया हूं. खेलेगी!" "नही, मुझे अभी पढ़ना है; शाम को वाणी आएगी तो मैं उसके साथ खेलूँगी, तब आ जाना" राकेश: सोच ले इतना मस्त खेल है की हमेशा याद रखेगी. इश्स खेल को सिर्फ़ दो ही खेल सकते हैं. फिर मत कहना की सिखाया नही. मैने सरिता को भी सीखा दिया है. दिव्या: ठीक है 5 मिनिट में सीखा दो! राकेश ने झट से अंदर आकर दरवाजा बंद कर दिया! दिव्या: तुम ये दरवाजा क्यूँ बंद कर रहे हो! राकेश: क्यूंकी ये खेल अंधेरे में खेला जाता है,पागल! दिव्या: अच्च्छा! .....वो खेल सीखने के लिए उत्सुक हो उठी. राकेश: अब तुम आँखे बंद कर लो, देखो आँखे नही खोलना. दिव्या: ठीक है!... और उसने आँखें बंद कर ली. राकेश ने उसके गालों की पप्पी ले ली... दिव्या ने आँखें खोल दी,"छ्हीईइ! बेशर्म, ये कोई खेल है?" राकेश: अरे खेल तो अब शुरू होगा, बस तुम आँखें नही खॉलॉगी! दिव्या ने अनमने मंन से आँखें बंद कर ली. राकेश ने पिछे से जाकर उसकी दोनों अधपकी चुचियाँ पकड़ ली.. दिव्या: हटो राकेश, ये तो गंदी बात है. तुम यहाँ हाथ मत लगाओ!..... उसके दिल में एक लहर सी उठी थी. राकेश उसकी छतियोन को मसलता रहा. दिव्या ने छुड़ाने की कोशिश की पर उसका विरोध लगातार कम होता गया.
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11-26-2017, 12:51 PM,
#17
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उसकी आँखें बंद सी होने लगी. उसके सारे शरीर में हलचल शुरू हो गयी; जांघों के बीच भी गुडगुसी सी हो रही थी. उसको वश में आता देख राकेश आगे आ गया. उसके होंट चूसने लगा और उसके कमीज़ में अपना हाथ घुसा दिया. अब उसकी चुचियों और राकेश के हाथों के बीच कोई परदा ना था. दिव्या पर जवानी का नशा हावी होता जा रही था. वा आँखें बंद किए किए ही खाट पर बैठ गयी उसके मुँह से अजीब से आँहें निकल रही थी. राकेश ने उसको हाथ का हूल्का सा इशारा दिया और वो चारपाई पर पसर गयी. उसको नही पता था उसकी सहेलिया जिसे गंदी बात कहती है. उसमें दुनिया भर का मज़ा है. "राकेशह!" "क्या?" राकेश उसका कमीज़ उतहकर उसकी चुचियों को बता रहा था की ये सिर्फ़ दूध पिलाने के लिए नही बल्कि चूसने के काम भी आती हैं. दिव्या: बहुत मज़ा आ रहा है राकेश! आहह....ये तो बहुत अच्च्छा खेल है. राकेश ने उसका अधमरा सा करके छ्चोड़ दिया. वह उससे अलग हो गया! " और करो ना प्ल्स, थोड़ी देर और" मानो दिव्या उससे भीख माँग रही थी! राकेश: नही ये खेल तो यहीं तक है. अब इसका दूसरा हिस्सा शुरू होगा.... वह अपने पॅंट में छिपे लंड को मसल रहा था. दिव्या: नही, मुझे यही खेलना है! इसमें मज़ा आता है. राकेश: अरे वो खेलकर तो तुम इसको भूल ही जाओगी. राकेश समझ गया था की अब दिल्ली दूर नही है. दिव्या: अच्च्छा! तो खेलो फिर....... राकेश जानता था; दिव्या उँच्छुई कली है, खेल के अगले भाग में उसको दर्द भी होगा. आँसू भी निकलेंगे...और वो चिल्लाएगी भी," दिव्या, अगला खेल बड़ा मजेदार है. पर वो थोड़ा सा मुश्किल है" "कैसे?" वो और मज़ा लेने को व्याकुल थी. वो समझ नही पा रही थी की जो मज़ा अभी तक के खेल में उसको आया था, उससे ज़्यादा मज़ा... कितना होता होगा! राकेश: अब मैं तुम्हे एक कुर्सी से बाँध दूँगा. तुम्हारा मुँह भी कपड़े से बाँध दूँगा! फिर शुरू होगा आगे खेल! दिव्या: नही तुम चीटिंग करोगे, मुझे कुर्सी से बाँध कर भाग जाओगे.....हालाँकि वो ऐसा करने को तैयार थी. राकेश: मैं पागल हूँ क्या, मुझे ऐसा करना होता तो मैं पहले यही खेल खेलने को कहता. टाइम बर्बाद क्यूँ करता.... दिव्या: हूंम्म! ओके...! राकेश ने दीवार के साथ एक कुर्सी सटाई और उस्स पर दिव्या को इश्स तरह बैठा दिया जिससे उसके चूतड़ कुर्सी से थोड़ा बाहर निकले थे. उसके पैरो को उसने कुर्सी के हत्थो के उपर से ले जाकर बाहर की और बाँध दिए. इश्स पोज़िशन में वो तंग हो गयी. दिव्या: पैरो को आगे ही एक साथ करके नही बाँध सकते क्या? राकेश: नही, ये खेल का रूल है! दिव्या अपनी गॅंड को हिलाकर अड्जस्ट करने की कॉसिश करती हुई बोली," अच्च्छा ठीक है! अब जल्दी सिख़ाओ, मुझे दर्द हो रहा है. राकेश मंन ही मंन मुस्कुराया, सोचा ये इसी को दर्द कह रही है तो आगे क्या होगा. उसने दिव्या के मुँह पर कपड़ा बाँध दिया. अब वो बोल नही सकती थी; ज़्यादा हिल नही सकती थी... अब राकेश ने देर नही की. वा दिव्या की सलवार खोलने लगा. दिव्या ने कुच्छ बोलने की कोशिश करी, उसको शर्म आ रही थी.... राकेश ने दिव्या की सलवार का नाडा खोलकर उसके पीच्चे हाथ लेजकर सलवार को नी चे से आगे की और खींच लिया, उसके अंडरवेर समेत... और सलवार को उपर घुटनों तक उठा दिया. पैर बँधे होने की वजह से वो पूरी नही निकल सका. दिव्या कसमसा रही थी; राकेश के सामने उसकी नंगी चूत थी.... पर वो तो हिल भी ना सकती थी, बोल भी ना सकती थी, उसने ज़्यादा कोशिश भी नही की, उसने शर्म से आँखे बंद कर ली. राकेश नीचे बैठा और उसकी गांद को जितना आगे कर सकता था कर दिया. उसने अपने होंट उसकी सलवार के नीचे से ले जाकर चूत से सटा दिए. दिव्या सकपका गयी. उसकी आँखें मारे उत्तेजना के बंद हो गयी. असीम आनंद का अनुभव हो रहा था. उसने सोचा; राकेश सही कह रहा था. इसमें तो और भी मज़ा है, लेकिन पैर बाँधने की क्या ज़रूरत थी! अब राकेश जैसे उसकी चूत को चूस नही खा रहा था, कभी उपर, कभी नीचे, कभी ये फाँक, कभी वो फाँक; कभी दाना तो कभी च्छेद. दिव्या बुरी तरह छटपटा रही थी. हाए, इतना मज़ा दे दिया. उसकी चुचियों में कसमसाहट सी हो रही थी. इनको क्यूँ खाली छ्चोड़ रखा है, उसका दिल किया वा राकेश को अपने उपर खींच ले; पर उसके तो हाथ भी बँधे हुए थे. अब दिव्या की टाँगों का दर्द जाता रहा! अचानक उसको मिलने वाला मज़ा बंद हो गया था. उसने आँखे खोली, राकेश अपनी पॅंट उतार रहा था. राकेश ने अपनी पॅंट और अंडरवेर उतार कर ज़मीन पर फेंक दी, दिव्या की आँखें फटी की फटी रह गयी. इसका इतना लंबा कैसे है! अब ये इसका क्या करेगा.. जल्द ही उसको इसका जवाब मिल गया. राकेश अब ज़्यादा टाइम लगाने के मूड में नही था. उसने कुर्सी के हत्थे पर अपना एक हाथ रखा और दूसरे से अपने 6 इंची को उसकी गीली हो चुकी चूत से सटा दिया. दिव्या डर गयी! ये तो शादी के बाद वाला खेल है, उसकी दीदी ने बताया था; जब पहली बार उसके पति ने इसमें घुसाया था तो उसकी जान ही निकल गयी. वह जितना हिल सकती थी, उतना हिल कर अपना विरोध जताने लगी. "बट इन वान्ट"

राकेश ने अपने लंड का दबाव उसकी चूत पर दबाया पर वो खुलने का नाम ही नही ले रही थी. दिव्या की चीख उसके मुँह में ही दबकर रह जाती थी. राकेश भी नादान नही था. वो किचन से मक्खन उठा लाया. अपनी उंगली से दिव्या की चूत में ही मुट्ठी भर मक्खन ठुस दिया, दिशा की चूत से सीटी जैसी आवाज़ आने लगी, ये सिग्नल था की अब की बार काम हो जाएगा. राकेश ने अपने लंड पर भी मक्खन चुपडा और टारगेट को देखने लगा. उसने दिव्या की चीखों की परवाह ना करते हुए अपने औज़ार का सारा दम उसकी चूत के मुहाने पर लगा दिया!....सॅटटॅक और सूपड़ा अंदर. उसने दिव्या की जांघों को अपने हाथों से दबा कर एक बार और हुंकार भारी, दिव्या बेहोश सी हो गयी. उसने इतने गंदे लड़के की बात पर विस्वास करके अपनी मौत बुला ली. दर्द को कम तो होना ही था सो हुआ, दिव्या को धीरे धीरे मज़ा आना ही था सो आने लगा. अब उसकी आँखों से पानी सूख गया और उनमें आनंद की चमक आ गयी. वह अपने आपे में नही रही, कहना चाहती थी मुझे खोल दो और खुल कर खेलो ये खेल. पर वो तो बोल ही नही सकती थी, वो तो खेल ही नही सकती थी.... वो तो बस एक खिलौना थी; राकेश के हाथों का.... राकेश उसको चोद्ता ही चला गया.... उसने ये भी परवाह ना की दिव्या की मछ्लि घायल है; खून फाँक रही है.... मक्खन में लिपटा हुआ.... अचानक राकेश का काम होने को आ गया और उसने ज़ोर की दहाड़ लगाई.... वह शिकार में कामयाब जो हो गया था, लंड निकाल कर उसकी गोद में गिर पड़ा.... दिव्या का तो पता ही नही कितनी बार उसकी योनि ने रस उगला..... खून में लिपटा हुआ.... खैर राकेश ने दिव्या को खोल दिया. दिव्या खून देखकर एक बार तो डरी, फिर उसको दीदी की बात याद आ गयी....पहली बार तो आता ही है. जब दोनो नॉर्मल हो गये तो राकेश ने कहा," मज़ा आया मेरी जान" दिव्या: हां पर तुमने चीटिंग की,.... मुझे आइन्दा कभी बांधना मत!

...दिशा सर के लिए दूध लेकर गयी. शमशेर बस नाहकार ही निकला था. दिशा उसको बहुत कुच्छ कहना चाहती थी पर पता नही क्यूँ, उसके सामने जाते ही जैसे उसके होंट सील जाते थे; वह शमशेर के जिस्म पर नही बल्कि उसकी पर्सनॅलिटी पर मरती थी. रात की बात को याद करके वह बार बार खुश हो जाती थी, उसको पता था की सर के सपने में वो आई थी..... पर वो ये नही समझ पा रही थी की सर बार बार उसका नाम लेकर माफी क्यूँ माँग रहे थे.... जो भी था सर का सपना तो डरावना ही था.... वरना वो पसीने में क्यूँ भीगे होते! उसने दूध का मग टेबल पर रख दिया और झाड़ू लेकर वहाँ सफाई करने लगी. शमशेर: रहने दो, मैं कर लूँगा! दिशा: आ..आप कैसे करेंगे सर!... वो बड़ी हिम्मत करके बोल पाई. शमशेर: करनी ही पड़ेगी... और कौन करेगा? दिशा: मैं कर तो रही हूँ! शमशेर: तुम कब तक करोगी? दिशा के दिल में आया कहदे सारी उमर; पर लबों ने साथ नही दिया," सर! आप शादी क्यूँ नही करते? शमशेर: कोई मिलती ही नही..... शमशेर आगे कहने वाला था....'तुम्हारे जैसी' पर उन्न खास शब्दों को वो दूध के साथ पी गया! दिशा: आपको कैसी लड़की चाहिए.... ? अब की बार उसने 'सर' नही लगाया. शमशेर को शीधे बोलते हुए उसको बड़ा आनंद आया. तभी शमशेर का सेल बज गया; अंजलि का फोन था. 'हेलो' उधर से आवाज़ आई,"शमशेर!" "हां!" "तुम मेरे पास अभी आ जाओ", बहुत खास बात करनी है." शमशेर ने दिशा की और देखा,"क्या खास बात है भला? "तुम आओ तो सही; आ रहे हो ना" "हां" कहकर उसने फोन काट दिया. उसने जल्दी से कपड़े बदले और नीचे उतर गया. नीचे जैसे वाणी उसका ही इंतज़ार कर रही थी," सर, आपने मुझे प्रोमिसे किया था की मुझे गाड़ी चलाना सिखाएँगे. आज सनडे है; चलें..." शमशेर: आज नही वाणी, फिर कभी...! वाणी: प्लीज़ सर, चलिए ना. शमशेर: वाणी, अभी मुझे काम है, शाम को देखते हैं! ओक; बाइ वाणी मायूस होकर सर को जाते देखती रही...... टू बी कंटिन्यूड....
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11-26-2017, 12:51 PM,
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गर्ल'स स्कूल --7

अंजली उसका ही इंतज़ार कर रही थी. शमशेर के अंदर आते ही उसने दरवाजा बंद कर दिया. उसने अजीब सा सवाल किया," शमशेर, तुम्हे में कैसी लगती हूँ?" शमशेर ने उसको खींच कर अपने से सटा लिया और उसके होंटो को चूम कर बोला,"सेक्सी!" अंजली: मैं मज़ाक नही कर रही; आइ'एम क्वाइट सीरीयस. बोलो ना! शमशेर रात से ही प्यासा था, उसने अंजलि को बाहों में उठा लिया और बेड पर ले जाकर पटक दिया. अंजलि कातिल निगाहों से उसको देखने लगी. शमशेर भी कुच्छ सोचकर ही आया था," मेरा तुम्हारे साथ नहाने की बड़ी इच्छा है. चलें! वो तो शमशेर की दीवानी थी; कैसे मना करती," एक शर्त है?" "बोलो!" "तुम मुझे नहलाओआगे!" उसकी शर्त में शमशेर का भी भला था. "चलो! यहीं से शुरुआत कर देता हूँ" कहकर शमशेर अंजलि के शरीर को एक एक कपड़ा उतार कर अनावृत करने लगा. अंजलि गरम हो गयी थी. नंगी होते ही उसने शमशेर को बेड पर नीचे गिरा लिया और तुरंत ही उसको भी नंगा कर दिया. वा उसके उपर जैसे गिर पड़ी और उसके होंटो पर अपनी मोहर लगाने लगी. शमशेर को रह रह कर दिशा याद आ रही थी. जैसे अगर उसको पता चलेगा तो वह बहुत नाराज़ होगी. "क्या बात है? मूड नही है क्या," अंजलि ने उसके होंटो को आज़ाद करते हुए कहा. शमशेर संभाल गया और पलट कर उसके उपर आ गया, उसने उसकी छति को दबा दिया....क्या दिशा को भी वा ऐसे छू पाएगा. अंजलि की सिसकी नकल गयी. उसने शमशेर का सिर अपनी चुचियों पर दबा दिया. शमशेर उस्स पल बाकी सबकुच्छ भूल गया. शमशेर उस्स पर भूखे शेर की तरह टूट पड़ा, और जिस्म को नोचने लगा, वा सच में ही बहुत सेक्सी थी. शमशेर उठा और अपना लंड उसको चखने के लिए पेश किया. अंजलि भी इश्स कुलफी को खाने की शौकीन हो चुकी थी. उसने झट से मुँह खोलकर अपनी चूत के यार को अपने गरम होंटो में क़ैद कर लिया. कमरे का टेम्परेचर बढ़ता जा रहा था. रह रह कर अंजलि के मुँह से जब उसका लंड बाहर लिकलता तो 'पंप' की आवाज़ होती. कुच्छ ही दिनों में ही वा ओरल सेक्स में परफेक्ट हो चुकी थी. अंजलि ने चूस चूस कर शमशेर के लंड को एकद्ूम चिकना कर दिया था; अपनी कसी चूत के लिए तैयार! शमशेर ने अंजलि को पलट दिया. और उसके 40" की गॅंड को मसालने लगा. उसने अंजलि को बीच से उपर किया और एक तकिये को वहाँ सेट कर दिया. अंजलि की गांद उपर उतह गयी.....उसकी दरार और खुल सी गयी. 

अंजलि को जल्द ही समझ आ गया की आज शमशेर का इरादा ख़तरनाक है; वा गेंड के टाइट च्छेद पर अपना थूक लगा रहा था.... "प्लीज़ यहाँ नही!" अंजलि को डर लग रहा था... फिर कभी कर लेना...!" अभी नही तो कभी नही वाले अंदाज में शमशेर ने अपनी उंगली उसकी गांद में फँसा दी, ऐसा तो वो पहले भी उसको चोद्ते हुए कर चुका था! पर आज तो उसका इरादा असली औजार वहाँ उसे करने का लग रहा था. अंजलि को उंगली अंदर बाहर लेने में परेशानी हो रही थी. उसने अपनी गांद को और चौड़ा दिया ताकि कुच्छ राहत मिल सके. कुच्छ देर ऐसे ही करने के बाद शमशेर ने ड्रेसिंग टेबल के ड्रॉयर से कोल्ड क्रीम निकाल ली," इससे आसान हो जाएगा" जैसे ही कोल्ड क्रीम लगी हुई उसकी उंगली अंजलि की गांद की दरारों से गुज़री, अंजलि को चिकनाई और तहंडक का अहसास हुआ, ये अपेक्षाकृत अधिक सुखदायी था. करीब 2 मिनिट तक शमशेर उंगली से ही उसके 'दूसरे च्छेद' में ड्रिलिंग करता रहा, अब अंजलि को मज़ा आने लगा था. उसने अपनी गांद को थोड़ा और उँचा उठा लिया और रास्ते और आसान होते गये; फिर थोड़ा और....फिर थोडा और..... थोड़ी देर बाद वह कुतिया बन गयी.....! इश्स पोज़िशन में उसकी गॅंड की आँख सीधे छत को देख रही थी, उंगली निकालने पर भी वह थोड़ी देर खुली रहती थी. शमशेर ने ड्रिलर का साइज़ बढ़ा दिया; अब अंगूत्हा अपने काम पर लगा था. शमशेर झुका और अंजलि की चूत का दाना अपने होंटो में दबा लिया, वह तो 'हाइयी मर गयी' कह बैठी. मरी तो वा नही थी लेकिन शमशेर को पता था वा मरने ही वाली है. शमशेर घुटने मोड़ कर उसकी गांद पर झुक गया, टारगेट सेट किया और 'फिरे!'..... अंजलि चिहुनक पड़ी, पहले ही वार में निशाना शतीक बैठा था..... लंड आधा इधर.... आधा उधर.... अंजलि मुँह के बाल गिर पड़ी, लंड अब भी फँसा हुआ था.... करीब 3 इंच "बुसस्स्सस्स.... प्लीज़.... रुक... जाओ! और नही" अंजलि का ये कहना यूँही नही था... उसकी गांद फैल कर 4 इंच खुल चुकी थी...... 4 इंच! शमशेर ने सेयिम से काम लिया; उसकी छतिया दबाने लगा..... कमर पर किस करने लगा.... वग़ैरा वग़ैरा! अंजलि कुच्छ शांत हुई, पर वा बार बार कह रही थी," हिलना मत....हिलना मत!" शमशेर ने उसको धीरे से उपर उठाया.... धीरे.... धीरे और उसको वापस चार पैरों वाली बना दिया......कुतिया! शमशेर ने अपना लंड थोड़ा सा बाहर खींचा.... उसकी गांद के अन्द्रुनि हिस्से को थोड़ी राहत बक्शी और फिर जुलम ढा दिया... पूरा जुलम उसकी गांद में ही ढा दिया. अंजलि को काटो तो खून नही.... बदहवास शी होकर कुच्छ कुच्छ बोलने लगी, शायद बताना ज़रूरी नही! शमशेर ने काम चालू कर दिया.... कमरे का वातावरण अजीबोगरीब हो गया था. अंजलि कभी कुच्छ बोलती.... कभी कुच्छ. कभी शमशेर को कुत्ता कहती.... कभी कमीना कहती.... और फिर उसी को कहती.....आइ लव यू जान.... जैसे मज़ा देने वाला कोई और हो और सज़ा देने वाला कोई और. आख़िरकार अंजलि ने राहत की साँस ली.... उसका दर्द लगभग बंद हो गया.... अब तो लंड उसकी गंद में सटाक से जा रहा था और फटाक से आ रहा था.... फिर तो दोनों जैसे दूध में नहा रहे हो.... सारा वातावरण असभ्या हो गया था.... लगता ही नही था वो पढ़े लिखे हैं.... आज तो उन्होने मज़े लेने की हद तक मज़ा लिया..... मज़े देने की हद तक मज़ा दिया.... और आख़िर आते आते दोनों टूट चुके थे....... हाई राम! 

अंजलि ने नंगी ही शमशेर के साथ स्नान किया. शमशेर ने अंजलि को खूब रगड़ा और अंजलि ने शमशेर को ... फिर दोनों अपना शरीर ढक कर बाहर सोफे पर बैठ गये. "डू यू लव मी जान?" अंजलि ने बैठते ही सवाल दागा. " तुम्हे कोई शक है?" "नही तो!" अंजलि ने उसकी गोद में सिर रख लिया," क्या तुम मुझसे शादी करोगे?" "नही!" शमशेर का जवाब बहुत कड़वा था. "क्यूँ?" अंजलि उठ कर बैठ गयी! शमशेर: क्या मैने कभी ऐसा कोई वाडा किया है? अंजलि: ना! शमशेर: तो ऐसा सवाल क्यूँ किया? अंजलि मायूस हो गयी " मैने तो इसीलिए पूचछा था..... चाचा का फोने आया था; मेरे लिए एक रिस्ता आया है" "कंग्रॅजुलेशन्स!" क्या करता है" शमशेर को जैसे कोई फ़र्क नही पड़ा. अंजलि: कुच्छ खास नही, उमर करीब 40 साल है. एक बच्ची है पहली बीवी से! और मुझे इतना ही पता है की वो पैसे वाला है... बस! शमशेर ने उसको बाहों में भर कर माथे पर चूम लिया..... उसे लगा शायद ये आखरी बार है.... राकेश के जाने के बाद, दिव्या बहुत बेचैन हो गयी... वो वोडेफोन की एड आती है ना टी.वी. पर; अब सबको बताओ सिर्फ़ 60 पैसे में; की मोटी की तरह ही उसका हाल था, सबको तो वो बता नही सकती, पर वाणी; वो तो उसकी बेस्ट फ्रेंड थी. दिव्या ने वाणी को ये खेल सिखाने की सोची और बिना देर किए उसके घर पहुँच गयी. "वाणी", घर जाकर उसने आवाज़ लगाई. "हां दिव्या, आ जाओ! मैं यही हूँ!" दिव्या की आवाज़ में हमेशा रहने वाली मिठास थी. दिव्या: अब चलें हमारे घर! वाणी: सॉरी दिव्या! सर के आने के बाद मुझे गाड़ी सीखने जाना है! मैं नही चल सकती. दिव्या: अच्च्छा एक बार बाहर आना! वाणी उसके साथ बाहर आ गयी," बोल!" दिव्या: तू चल ना प्लीज़. मुझे तुझे एक खेल सिखाना है. वाणी उत्सुक हो गयी. खेलने में उसको बहुत मज़ा आता था!," कैसा खेल!" दिव्या: नही, यहाँ नही बता सकती, अकेले में ही बता सकती हूँ! वाणी: तो चल उपर! उपर बता देना! दिव्या: उपर तो सर रहते हैं, वो आ गये तो? वाणी: नही, वो तो 5 बजे की कहकर गये हैं, अभी तो 2 ही बजे हैं! चल जल्दी चल! दोनों भागती हुई उपर चली गयी. उपर जाकर उन्होने दरवाजा बंद कर लिया, एक खिड़की खुली थी. दिव्या: ये भी बंद कर दे! वाणी: अरे इसकी कोई ज़रूरत नही है, कोई आएगा तो सीढ़ियों से ही दिख जाएगा; फिर ऐसा भी क्या खेल है जो तू इतना डर रही है. दिव्या: देख बुरा मत मानना, ये च्छूप कर खेलने का ही खेल है, पर मज़ा बहुत आता है. वाणी: ऐसा कौनसा खेल है? दिव्या: शादी के बाद वाला खेल! वाणी को पता ही नही था की शादी के बाद कोई खेल भी खेला जाता है. उसको किसी ने बताया ही नही आज तक! वो उत्सुक हो उठी, ऐसा खेल खेलने के लिए," चल जल्दी सीखा ना" दिव्या: देख वैसे तो ये खेल लड़के के साथ खेला जाता है पर..... वाणी ने बीच में ही टोक दिया," तो सर को आने दो!" दिव्या उसकी बात पर हँसी," धात! ऐसा फिर मत कहना.... पर में तुझ खेल सीखा सकती हूँ...." वाणी: तो सीखा ना, इतनी बातें क्यूँ कर रही है........ वाणी ने आँखें बंद कर ली; दिव्या ने राकेश की तरह से ही वाणी के पीच्चे जाकर उसकी मदभरी च्चातियों को हल्के से दबा दिया. वाणी उच्छल पड़ी," ये क्या कर रही है तू" हां, मज़ा तो उसको आया था; ये मज़ा तो वो ले चुकी थी सर के हाथो से! दिव्या: तू बस अब टोक मत, यही तो खेल है! वाणी हँसने लगी, उसके बदन में गुदगुदी सी होने लगी,"ठीक है" और उसने फिर आँखें बंद कर ली. दिव्या ने इश्स बार उसके टॉप में हाथ डाल दिया और उसको खेल का पहला भाग सिखाने लगी. वाणी मारे गुदगुदी के मरी जा रही थी. वह रह रह कर उच्छल पड़ती! उसको बहुत मज़ा आ रहा था; उसका चेहरा धीरे धीरे लाल होने लगा! अब दिव्या उसको छ्चोड़ कर बोली," अब तू इधर मुँह कर ले; तू मुझसे खेल और में तुझसे खेलूँगी." अब लेज़्बियेनिज़्म अपने चरम पर था. दोनों एक दूसरे की चुचियों को मसल रही थी. एक दूसरे के लबों से लब टकरा रही थी; दोनों ही मस्त हो चुकी थी, बीच बीच में दोनों सीढ़हियों की और भी देख लेती. वाणी: तू तो कह रही थी की ये खेल लड़के के साथ खेला जाता है; इसमें लड़के की क्या ज़रूरत है.... वो साथ साथ 'खेल' भी रही थी. दिव्या: पहला भाग तो चल जाता है, पर दूसरा भाग लड़के के बिना नही हो सकता. वाणी: वो कैसे? दिव्या: चल बताती हूँ; बेड पर लेट जा...... और वाणी लेट गयी..! दिव्या ने वाणी का स्कर्ट उपर उठा दिया और उसकी कछि को नीचे कर दिया.... वाणी को अजीब सा लग रहा था पर वो ये खेल पूरा खेलना चाहती थी.... दिव्या वाणी की चूत देखकर जल सी गयी; उसकी क्यूँ नही है ऐसी......वैसी तो शायद दुनिया में किसी की नही थी. दिव्या ने वाणी की चूत पर अपने होंट सटा दिए ...वाणी भभक उठी.... उसको कल रात की याद ताज़ा हो गयी जब वो....... सर की 'टाँग' पर बैठी थी... वाणी की आँखों में मस्ती भरती जा रही थी.... उसने मस्त अंदाज में पूचछा....," तूने कहाँ सीखा री ये खेल!" "सरपंच के लड़के से!" "राकेश से" वाणी बहकति जा रही थी" "हां वो आज 4 बजे फिर आएगा....तुझे भी खेलना है क्या पूरा खेल? चलना मेरे साथ.....3:30 बजे चलेंगे....घर पर कोई नही है... रात को आएँगे! हां मुझे भी खेलना है पूरा खेल मैं भी चालूंगी तेरे साथ......." टू बी कंटिन्यूड....
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11-26-2017, 12:52 PM,
#19
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अपनी मस्ती में सिर से पैर तक डूबी नवयौवनाओं को शमशेर के सीढ़ियाँ चढ़ने की आवाज़ भी सुनाई नही दी. शमशेर ने खिड़की से उनके प्रेमलाप को सुना; वा वापस जाने ही वाला था की जाने क्या सोचकर उसने दरवाजा खोल दिया ..........? शमशेर को देखते ही दोनों का चेहरा फक्क रह गया. वाणी तो इतनी डर गयी की अपने को ढ़हकना ही भूल गयी........ यूँ ही पड़ी रही! शमशेर उन दोनों को बिना किसी भाव के देख रहा था. वाणी को अहसास हुआ की जैसे उनकी दुनिया ही ख़तम हो गयी.... करीब एक मिनिट बीत जाने पर दिव्या को वाणी के नंगेपन का अहसास हुआ और उसने वाणी की स्कर्ट नीचे ख्हींच दी. वाणी को पता चल चुका था वह जो भी कर रही थी, बहुत ग़लत था. दिव्या तो सिर्फ़ पकड़े जाने के डर से काँप रही थी, वो भी उनके सर के द्वारा!.... पर वाणी का तो जैसे उस्स एक पल में ही सब ख़तम हो गया..... उसके सर..... उसके अपने सर ने उनको ग़लत बात करते देख लिया.. वो अब भी एकटक सर को ऐसे ही देखे जा रही थी.... जैसे पत्थर बन गयी हो! शमशेर ने दिव्या की और देखा और कहा जाओ!.... पर वह हिली तक नही! शमशेर ने फिर कहा," दिव्या, अपने घर जाओ" उसने अपना सिर नीचे झुकाया और जल्दी जल्दी वहाँ से निकल गयी. अब शमशेर ने वाणी की और देखा..... ऐसे तो कभी सर देखते ही ना थे उसको..... वो तो उनकी अपनी थी..... उनकी अपनी वाणी! "वाणी" नीचे जाओ! वाणी उठी और अपने भगवान से लिपट गयी...... उसकी आँखों में माफी माँगने का भाव नही था.... ना ही उसको पकड़े जाने की वजह से मिल सकने वाली सज़ा का डर..... उसको तो बस शमशेर के दिल से दूर हो जाने का डर था..... उसने 'अपने' सर को कसकर पकड़ लिया! शमशेर ने वाणी की बाहों के घेरे से खुद को आज़ाद कर कहा " वाणी, नीचे जाओ!" वाणी इश्स तरह रो रही थी जैसे उसका बच्चा मर गया हो... वा पीच्चे देखती देखती.... रोटी बिलखती नीचे चली गयी! नीचे जाते ही दिशा ने उसको इश्स तरह रोते देखा तो भाग कर बाहर आई,"क्या हुआ च्छुटकी!" वाणी कुच्छ ना बोली.... बस रोती रही...... एकटक उपर देखती रही. दिशा ने उसको कसकर अपने सीने से भीच लिया और उपर देखने लगी....... दिशा वाणी को अंदर ले गयी...." बता ना च्छुटकी क्या हुआ?" वाणी ने और ज़ोर से सुबकना शुरू कर दिया. दिशा ने उसके गालों पर बह रही मोतियों की धारा को अपनी चुननी से सॉफ किया, पर वो बरसात रुकने का नाम ही नही ले रही थी....," बता ना वाणी; ऐसा क्या हुआ जो तू मुझे भी नही बता सकती. मैं तो तेरी दीदी हूँ ना!" दिशा के मंन में तरह तरह के ख्याल आ रहे थे.... जिस तरह से वाणी रो रही थी, उसके शक़ को और हवा मिल रही थी.... च्छुटकी सर से कुच्छ ज़्यादा ही चिपक के रहती थी. कहीं सर ने उसकी मासूमियत का फ़ायदा तो नही उठा लिया.... ," च्छुटकी, मुझे सिर्फ़ ये बता दे की कोई 'ग़लत बात है क्या, जो तू मुझे बताने से हिचक रही है!" वाणी ने सुबक्ते हुए ही अपना सिर हां में हिला दिया. दिशा का पारा गरम हो गया, जिसस आदमी को वो 'अपने के रूप में.......," क्या सर ने...." वाणी ने दिशा की बात को पूरा ही नही होने दिया.... सर का नाम सुनते ही उसने दिशा के मुँह पर अपने कोमल हाथ रख दिए और चीत्कार कर उठी. वह अपनी दीदी से बुरी तरह लिपट गयी. अब दिशा....'सब कुच्छ समझ चुकी थी!.... उसके चेहरे पर नफ़रत और कड़वाहट तैरने लगी.... अब उसे 'सर; सर नही बल्कि एक सुंदर रूप धारण किए हुए कोई बाहरूपिया शैतान लग रहा था...... वह अपने दिल में हज़ारों.... लाखों.... गालियाँ और बददुआयं भर कर उपर चली गयी.... वाणी का भी उसके साथ ही जाने का मॅन था.... पर अब उसके सर 'अपने नही रहे!' दिशा ने उपर जाकर धक्के के साथ दरवाजा खोल दिया.... शमशेर आराम से तकिये पर सिर टिकाए कुच्छ सोच रहा था.... हमेशा की तरह एक दम शांत... एक दम निसचिंत! "कामीने!" दिशा ने सिर को उसकी औकात बताई. शमशेर ने उसकी और देखा, पर कोई प्रतिक्रिया नही दी, वह ऐसे ही शांत बैठा रहा. उसकी यही अदा तो सबको उसका दीवाना बना देती थी... पर आज दिशा उसकी इश्स 'अदा' पर बिलख पड़ी," हराम जादे, मैं तुझे......" दिशा उसके पास गयी और उससे कॉलर से पकड़ लिया..... उसके मुँह से और कुच्छ ना निकला... "क्या हुआ?" शमशेर ने शांत लहजे में ही उत्तर दिया.... उसका कंट्रोल जबरदस्त था... उसके चेहरे पर दिशा को पछ्तावे या शर्मिंदगी का कोई चिन्ह दिखाई नही दिया.... "निकल जा यहाँ से! मेरे मामा मामी के आने से पहले... नही तो तुझे.... तुझे जान से मार दूँगी..." दिशा ने उसकी आँखों में आँखें डाल कर ज़मीन पर थूका और पैर पटकते हुए नीचे चली गयी..... वह चाँदी जैसी दिख रही थी. शमशेर ने अपना लॅपटॉप खोला और काम में लग गया.... नीचे जाकर दिशा ने अब तक रो रही वाणी को अपने दहक रहे सिने से लगाया," बस कर च्छुटकी, उस्स हराम जादे को मैने.....! वाणी उसको अवाक देखती रह गयी. उसके आँसू जैसे एकद्ूम सूख गये.... वा सोच रही थी दीदी किस 'हराम जादे' को गाली दे रही है,"क्या हुआ दीदी?" दिशा की आँखों में जैसे खून था," मैने उसको घर छ्चोड़कर भाग जाने को कह दिया है!" "मगर...."वाणी हैरान थी, ये क्या कह रही हैं दीदी 'अपने सर ' के बारे में," उन्होने क्या कर दिया दीदी?" अब की बार निशब्द होने की बारी दिशा की थी...." वो तुझे.... सर ने तेरे साथ कुच्छ नही किया.....?" "नही दीदी.... उन्होने तो मेरे को धमकाया भी नही....." सारा गेम ही उलट गया.... अब दिशा सूबक रही थी और वाणी उससे पूच्छ रही थी,"क्या हुआ दीदी? तुमने सर को क्या कह दिया?" दिशा के पास वाणी को बताने लायक कुच्छ नही था. ये उसने क्या कर दिया! जिसकी तस्वीर वो अपने दिल के आईने में देख रही थी... उसी के दिल में उसने हज़ारों काँटे चुबा दिया; अपमान के..... ज़िल्लत के.... और नफ़रत के! "मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ होता है?", दिशा के मन में विचारों का तूफान सा उसको अंदर तक झकझोर रहा था...! पहले उससने स्कूल में सर की बेइज़्ज़ती की.... और जब....अब मुस्किल से उसको लगने लगा था कि सर उस्स बात को भूल चुके हैं तो....," ये मैने क्या कर दिया वाणी!" "दीदी, बताओ ना क्या हो गया!?" वाणी अब उसके आँसू पोच्च रही थी....! दिशा की आँखें लाल हो चुकी थी.... लाल तो पहले से ही थी मारे गुस्से के! अब तो बस उनका भाव बदल गया था... अब उन्न मोटी मोटी आँखों में पासचताप था..... ग्लानि थी.... और शमशेर के दिल से लग कर आँसू लुटाने की प्यास थी.... एक तड़प थी उसकी छति से चिपक कर देखने की और एक भ्ूख भी थी...... वो औरत की तरह सोच रही थी; लड़की की तरह नही.... दिशा ने वाणी का हाथ पकड़ा और उसको उपर ले गयी.... खिड़की से उन्होने देखा शमशेर आँखें बंद किए दीवार से सटा बैठा था.....बिल्कुल शांत......बिल्कुल निसचिंत..... उसके चेहरे पर झलक रहे तेज़ का सामना करने की दोनों में से किसी में हिम्मत नही थी..... दोनों ने एक दूसरे को देखा..... और उल्टे पाँव लौट गयी..... नीचे.... अब दोनों रो रही थी.... एक दूसरे से चिपक कर.... अब कोई किसी से वजह नही पूच्छ रहा था... हां आँसू ज़रूर पोंच्छ रही थी.... एक दूसरे के!.... सुबक्ते हुए ही वाणी ने दिशा से कहा," दीदी! अब सर हमसे कभी बात नही करेंगे ना!" "तू चुप कर च्छुटकी; आजा, सोजा!", दिशा ने वाणी को अपने साथ खाट पर लिटा लिया, वाणी ने अपनी टाँग दिशा के पेट पर रख दी और आँखें बंद कर ली. ना जाने कब वो सर के ख्यालों में खोई खोई सो गयी.... दिशा सीधी लेटी हुई सुन्य में घूरे जा रही थी. वो दिशा से पूच्छना चाहती थी की असल में हुआ क्या था! पर वो वाणी को अभी और दुखी नही करना चाहती थी.... थ्होडी देर बाद ही उसके मामा मामी आ गये," आ! दिशा बेटी आज तो सारा बदन टूट रहा है! इतना काम था खेत में....ला जल्दी से खाना लगा दे. खाकर लेट जायें, ... ये वाणी अभी से कैसे सो गयी...." "मामा, इसकी तबीयत थ्होडी खराब है... मैने गोली देकर सुला दिया है...." "आज उपर नही गयी ये!, उतर गया ए.सी. का भूत" " नही....वो सर ने ही बोल दिया की बुखार में ए.सी. ठीक नही रहेगा"... आज इसको नीचे ही सुला दो!" "और तुम?" मामा ने उसकी मॅन को परखने की कोशिश की!" जैसे उसको पता हो; इनका कोई चक्कर है... "म्‍म्म...मैं भी नीचे ही सोऊ गी... और क्या में अकेली जाउन्गि"..... मॅन में वो सोच रही थी.... काश में अकेली जा सकती! "हूंम्म... तुम समझदार हो बेटी"..मामा ने कहा. "खाना खा लिया इसने!" मामी ने दिशा से पूचछा. दिशा: हां मामी, और मैने भी खा लिया.... दिशा झूठह बोल रही थी... उसको पता था उसकी तरह वो भी खाना नही खा पाएगी... "और सर तो 8:00 बजे खाते हैं"... तू उन्हे खाना दे आना... हम तो अब सो रहे हैं" मामा ने उठते हुए कहा... दिशा सोचने लगी "मैं उपर कैसे जाउ?".... 

करीब 8:00 बजे; दिशा सोच सोच कर परेशान थी की अब उसको 'सर' के सामने जाना पड़ेगा... उसने टूटे हुए पैरों से सीढ़िया चढ़ि... शमशेर ने उसको खाना लेकर आते खिड़की से देख लिया था शायद! जैसे ही वा दरवाजे के सामने जाकर रुकी; अंदर से सर की आवाज़ आई," आ जाओ दिशा!" दिशा की पहली समस्या तो हल हुई....वो सोच रही थी वो अंदर कैसे जाएगी? वो अंदर चली गयी... सिर झुकाए! उसने टेबल पर खाना रखा और जाने लगी...."दिशा!" वह कठपुतली की तरह रुकी और पलट गयी....उसकी नज़रे झुकी हुई थी...शर्म के मारे! शमशेर: उपर देखो! मेरी तरफ.... दिशा ने जैसे ही उपर देखा.... उसकी आँखें दबदबा गयी... वो छलक उठी थी.... एक आँसू उसके गालों से होता हुआ उसके होंटो पर जाकर टिक गया; जैसे कहना चाहता हो,"मैं प्यार का आँसू हूँ, मुझे चखकर देखो......वो आँसू शमशेर के लिए थे.... शमशेर के चखने के लिए... दिशा ने शमशेर को देखा, वो अब भी मुस्कुरा रहा था...," इधर आओ, मेरे पास!" दिशा उसके करीब चली गयी... आज वो जो भी कहता वो कर देती....जो भी माँगता....वो दे देती! शमशेर ने उसकी कलाई पकड़ ली.....और तब शमशेर को कुच्छ कहने की ज़रूरत नही पड़ी.......वो घुटने मोड़ कर .... उसकी गोद में जा गिरी.... "सॉरी!" दिशा ने आगे 'सर' नही कहा. उसकी आँखों में अब भी नमी थी... वो निस्चय कर चुकी थी.... अब शमशेर के प्रति अपनी भावना नही छिपयेगि....चाहे उसका यार उसको जान से मार डाले... उसने शमशेर की आँखो में आँखें डालकर दोहराया....."सॉरी!"... उसके लब थिरक रहे थे....प्यार में...
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11-26-2017, 12:52 PM,
#20
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
शमशेर को भी पता नही क्यूँ पहली बार किसी के उससे प्यार के बारे में इतनी देर से पता चला... शायद पहले'प्यार'...'प्यार' नही सिर्फ़ वासना थी... " लगता है तुम्हे मुझसे प्यार हो गया है?" "यस, आइ लव यू!" दिशा ने एलान कर दिया.... इश्स बार उसके होंट नही कांपे, सच्चाई पर जो अडिग थे! शमशेर ने अपने होंटो से उसके होंटो पर ठहरे 'उस्स' आँसू को चखा.... वो सच में ही प्यार का आँसू था. दिशा ने अपने आपको शमशेर के अंदर समाहित कर लिया.... उसको अब कोई डर नही था... कुच्छ देर वो निशब्द एक दूसरे में समाए रहे....फिर शमशेर ने कहा," कल रात को यहीं आ जाना.... सोने के लिए....मेरे साथ" दिशा को उससे अलग होते हुए अजीब सा लग रहा था... एक दिन का इंतज़ार मानो सालों का इंतज़ार था... पर उसका दिल उच्छल रहा था... सीढ़ियों से उतरते हुए... उसकी छतियो के साथ..... अगले दिन जब वाणी उठी..... उसको सच में ही बुखार था... वो स्कूल नही गयी... दिशा भी नही! सोमवार को शमशेर लॅबोवरेटरी में बैठा था. रिसेस से पहले उसके 2 पीरियड 'प्रॅक्टिकल सेशन' थे, 10थ क्लास के लिए. शमशेर ने उनकी क्लास नही ली... क्यूंकी इश्स टाइम पर उसने दिव्या को अपने पास बुलाया था...लॅब में. उसने 10थ वाले बच्चों को उनकी क्लास में ही काम दे दिया था; याद करने के लिए. 4थ पीरियड की बेल लगने के 5 मिनिट बाद दिव्या उसके पास पहुँच गयी. शमशेर वहीं बैठा था, अलमारियों के पीछे, चेअर् पर. दिव्या की जान सूख्ती जा रही थी," ससिररर...आपने मुझे 4थ पीरियड में बुलाया था!" दिव्या सहमी हुई थी! "हां बुलाया था!" शमशेर सीरीयस होने की एकदम सही आक्टिंग कर रहा था.. जबकि उसके मॅन में दिव्या को प्यार का वही खेल; अच्छे तरीके से सीखने की इच्च्छा थी.. जो वो कल वाणी को सीखा रही थी. "ज्ज्जिई; क्या काम है ससररर!" शमशेर: वो कल क्या चल रहा था... मेरे कमरे में दिव्या: क्क्याअ. ..सर! शमशेर: वाणी के साथ! दिव्या: आइ आम सॉरी सर; मैं आइन्दा कभी ऐसा नही करूँगी.. शमशेर: क्यूँ दिव्या कुच्छ ना बोली.. शमशेर ने कड़क आवाज़ में कहा," तुम्हे सुनाई नही दिया!" दिव्या: सीसी..क्योंकि...क्योंकि ज़ीर वो.....ग़लत काम है. वो डर के मारे काँप रही थी. शमशेर: क्या ग़लत काम है! दिव्या फिर कुच्छ ना बोली. शमशेर: देखो अगर अब की बार तुमने मेरे एक भी सवाल का जवाब खुल कर नही दिया तो मैं तुम्हारे मा बाप को बुल्वाउन्गा.. और तुम्हे स्कूल से निकलवा दूँगा; समझी! दिव्या: जी सर! उसने तुरंत जवाब दिया. शमशेर: तो बोलो! दिव्या: क्या सर? शमशेर: कौनसा काम ग़लत है? दिव्या: सर वो जो हम कर रहे थे! उसके जवाब अब जल्दी मिल जाते थे. शमशेर: क्या कर रहे थे तुम? दिव्या: सर... वो खेल रहे थे... शमशेर: अच्च्छा, खेल रहे थे! दिव्या ने नज़रें नीची कर रखी थी शमशेर: किसने सिखाया तुम्हे ये खेल? दिव्या: सर... वो सरिता के भैईई ने; वो जो सरपंच का बेटा है... शमशेर: सरिता को बुलाकर लाओ! दिव्या चली गयी.... थोड़ी देर बाद; सरिता और दिव्या दोनो शमशेर के पास खड़ी थी. शमशेर: सरिता, तुम्हारे भाई ने दिव्या को एक खेल सिखाया है... पूछोगि नही कौनसा? सरिता ने नज़रें नीची कर ली... उसको पता था वो लड़कियों को कौनसा खेल सिखाता है. दिव्या ने मौका ना चूका; अपराध शेर कर लिया, सरिता के साथ," सर उसने इसको भी वो खेल सीखा रखा है! राकेश बता रहा था कल" सरिता सिर झुकाए खड़ी रही, उसको बदनामी का कोई डर नही था...अब कोयले को कोई और कला कैसे करेगा! है ना भाई! शमशेर: तो क्या तुम दोनो को स्कूल से निकाल दें? सरिता: सॉरी सर, आइन्दा ऐसा नही करेंगे! उसकी 'सॉरी' इश्स तरह की थी की जैसे उसको किसी ने नकल करते पकड़ लिया हो! शमसेर: तुम क्लास में जाओ, थोड़ी देर में बुलाता हूँ शमशेर सरिता के जाते हुए उसकी गांद को जैसे माप रहा था... बहुत खुली है... सरिता! शमशेर: हां दिव्या, अब बोलो उसने क्या सिखाया था! दिव्या: सर उसने इनको दबाया था... शमशेर: किनको? तुम्हे नाम नही पता? दिव्या: (अपना सिर झुकते हुए) जी पता है... शमशेर: तो बोलो! दिव्या: जी चूचियाँ.. वा अपने सर के सामने ये नाम बोलते हुए सिहर उठी शमशेर: हां तो उसने क्या किया था? दिव्या: सर उसने मेरी चूचियों को दबाया था... वह सोच रही थी.. सर मुझे ऐसे शर्मिंदा करके मुझे सज़ा दे रहे हैं... शमशेर: कैसे? दिव्या ने अपनी चूचियों को अपने हाथ से दबाया... पर उसको वो मज़ा नही आया. शमशेर: ऐसे ही दबाया था या कमीज़ के अंदर हाथ डालकर... दिव्या हैरान थी... सर को कैसे पता( उसको नही पता था सर इश्स खेल के चॅंपियन हैं) दिव्या: जी अंदर डालकर भी... शमशेर: कैसे? दिव्या अब लाल होती जा रही थी... उसने झिझकते हुए अपना हाथ कमीज़ के अंदर डाल दिया... उसके पेट से कमीज़ उपर उठ गया और उसके पेट का नीचे का हिस्सा नंगा हो गया... उसकी नाभि बहुत सुंदर थी... और पेट से नीचे जाने वाला रास्ता भी. शमशेर: फिर? दिव्या ने सोचा, वाणी से सर ने सबकुच्छ पूच्छ लिया है, च्छुपाने से कोई फायडा नही.... दिव्या: सर फिर उसने इनको चूसा था! शमशेर: नाम लेकर बोलो! दिव्या हर 'कैसे' पर जैसे अपने कपड़े उतारती जा रही थी," जी उसने मेरी चूचियों को चूसा था.... शमशेर का फिर वही सवाल," कैसे" अब दिव्या चूस कर कैसे दिखाती, उसकी जीभ तो उसकी छतियो तक पहुँच ही नही सकती थी, फिर भी उसने एक कोशिश ज़रूर की अपनी जीभ निकाल कर चेहरा नीचे किया अपना कमीज़ उपर उठा कर अपनी चूचियों को सर के सामने नंगी करके उनको छूने की कोशिश करती हुई बोली,"सर, ऐसे!" उसकी चूचियाँ बड़ी मस्त थी, वाणी की छतियो से बड़ी... उनके निप्पल एक अनार के मोटे दाने के बराबर थे. शमशेर उन्हे देखकर मस्त हो गया... ऐसा अनुभव पहली बार था और सूपरहिट भी था... शमशेर ने कल ही ये प्लान तैयार कर लिया था," इन्हें चूस कर तो दिखाओ..." दिव्या भी गरम होती जा रही थी," सर मेरी जीभ नही जाती" शमशेर: तो मैं चूसूं क्या? दिव्या को जैसे करेंट सा लगा; क्या उसके सर उसके साथ गंदा खेल खेलेंगे!.... वा खामोश खड़ी रही... उसकी कच्च्ची गीली हो गयी! शमशेर ने सरिता को बुलाकर लाने को कहा...! 

दिव्या ने अपने आपको ठीक किया और सरिता को बुला लाई.. दोनों आकर खड़ी हो गयी... शमशेर: यही बात सरिता को बताओ और उससे कहो राकेश की तरह वो करके दिखाए. दिव्या: सरिता, राकेश ने मेरी चूचियों को चूसा था. अब तुम चूस कर सर को दिखाओ!.... जब सर के सामने ही बोल चुकी थी तो सरिता से क्या शरमाना!... वो कहते हुए मस्ती से भरी जा रही थी... डरी हुई मस्ती से! सरिता ताड़ गयी, सर रंगीले आदमी हैं, उसने दिव्या का कमीज़ उपर उठाया और उसकी एक चूची को मुँह में ले लिया और आँख बंद करके चूसने लगी... जैसे उनका दूध निकाल रही हो! वो पर्फेक्ट लेज़्बीयन मालूम हो रही थी. दिव्या सिसक उठी... ऐसा करते हुए सरिता की गांद सर के बिल्कुल सामने थी, उसके तने हुए लंड से बस 1 फुट दूर.... शमशेर ने उसके एक चूतड़ पर अपना हाथ रख कर देखा... वो मस्त औरत हो चुकी थी. शमशेर: बस...!.... उसके ऐसा कहते ही सरिता ने अपने होंट हटा लिए.... जैसे शमशेर ने कोई रिमोट दबाया हो...! सरिता इश्स तरह से सर को देखने लगी जैसे बदले में उससे कुच्छ माँग रही हो... दिव्या अब भी डरी हुई थी. शमशेर: ऐसे ही! दिव्या:" जी," उसकी साँसे तेज हो गयी तही..... उसकी छातिया उपर नीचे हो रही थी! शमशेर: इतना ही मज़ा आया था? दिव्या: जी सर सरिता ने विरोध किया," नही सर, जब कोई लड़का चूस्ता है, असली मज़ा तो तभी आता है" उसके हाथ अपनी मोटी मोटी चुचियों पर जा पहुँचे थे; जो ब्रा में क़ैद थी. शमशेर: झहूठ क्यूँ बोला, दिव्या! दिव्या: सॉरी सर!.... उसका डर अब कम होता जा रहा था... और पूरा खेल खेलने की इच्च्छा बढ़ती जा रही थी... शमशेर: तो बताओ, कितना मज़ा आया था? दिव्या: सर कैसे बताओन, यहाँ कोई लड़का थोड़े ही है? शमशेर: मैं क्या 'छक्का' हूँ! दिव्या: पर सर... आप तो 'सर' हैं... शमशेर इश्स बात पर ज़ोर से हंस पड़ा... उसको एक चुटकुला याद आ गया. दो औरतें शाम ढले सड़क किनारे पेशाब कर रही होती है... तभी एक आदमी को साइकल पर आता देख दोनो सलवार उठा कर अपनी चूत ढक लेती हैं... जब वो पास आया तो उनमें से एक बोली," अरी ये तो 'बच्चों का मास्टर था; बिना बात जल्दबाज़ी में अपनी सलवार गीली कर ली पर उसने दिव्या से कहा," मैं चूस के दिखाउ तो बता देगी कितना मज़ा आया था. दिव्या: जी सर! .... उसकी नज़र नीचे हो गयी. शमशेर ने दिव्या को अपनी बाहों में इश्स प्रकार ले लिया की उसके पैर ज़मीन पर ही रहे... शमशेर का दायां हाथ उसकी गांद को संभाल रहा था और बयाँ उसके कंधों को संभाले हुए था... उसने पहले से ही नंगी एक चूची पर अपने होंटो को फैला दिया... दिव्या बहक रही थी... वो पूरा खेल खेलना चाहती थी! सरिता को ये 'ड्रामा' देखते काफ़ी वक़्त हो गया था... वो और वक़्त जाया नही जाने देना चाहती थी... वा शमशेर के पास घुटनो के बल बैठ गयी और शमशेर के आकड़े हुए 8" को आज़ाद कर लिया.. यह शमशेर के लिए अकल्पनिया दृश्या था... थ्रीसम सेक्स! सरिता एक खेली खाई लड़की थी और शमशेर को पहली बार पता चला... सेक्स में एक्षपेरियँसे की अलग ही कीमत होती है... वह तो नयी कलियों को ही खेल सीखने का इच्च्छुक रहता था... और आज तक उसने किया भी ऐसा ही था... पर आज..... सरिता के मुँह में लंड को सर्ररर से जाता देख वा 'सस्स्स्शह' कर उठा. सरिता सच में ही एक वैसया जैसा बर्ताव कर रही थी... सरिता का भी 'बिल्ली के भागों छ्चीका टूटा' वाला हाल था.... वा इश्स वक़्त अपना सारा पैसा वसूल कर लेना चाहती थी... वा कभी सर के सुपारे पर दाँत गाड़ा देती तो शमशेर भी अपने दर्द को अपने दाँत दिव्या के निप्पल पर गाड़ा कर पास कर देता... इश्स तरह से तीनों का एक ही सुर था और एक ही ताल.... अचानक तीनों जैसे प्यासे ही रह गये जब बाहर से पीयान की आवाज़ आई," सर आपको मॅ'म बुला रही हैं... तीनों बदहवास थे... सर ने अपनी पेंट को ठीक किया.... दिव्या ने अपना कमीज़... और.... सरिता अपनी सलवार का नाडा बाँध रही थी... वो अपनी चूत में उंगली डाले हुए थी.... "छुट्टी होते ही यहीं मिलूँगा, लॅब में; दोनो आ जाना, अगर किसी को बताया तो..." .....दोनो ने ना में सिर हिला दिया... शमशेर को पता था वो नही बताएँगी! 

छुट्टी से पहले ही शमशेर ने पीयान को कह दिया था की लॅब की चाबी मैने रख ली है... चोवकिदार 7 बजे से पहले आता नही था... कुल मिलाकर वहाँ 'नंगा नाच' होने का फुल्लप्रूफ प्लान था... छुट्टी होते ही दोनो लड़कियाँ लॅब में पहुँच चुकी थी; अलमारियों के पीछे! सरिता: थॅंक्स; तूने मेरा नाम ले दिया दिव्या; वह कुर्सी के डंडे पर अपनी चूत रखकर बैठी थी... इंतज़ार उसके लिए असहनिया था. दिव्या: दीदी, तुम्हे डर नही लगता. सरिता: अरे डर की मा की गांद साले की; ये तो मैं पहचान गयी थी की ये मास्टर रंगीला है... पर इतना रंगीला है; ये पता होता तो में पहले ही दिन साले से अपनी चूत खुद्वा लेती... बेहन चोद... उसने सलवार के उपर से ही अपनी चूत में उंगली कर दी...हाए! दिव्या: तो क्या दीदी, सर अब कुच्छ नही करेंगे? सरिता: अरे करेंगे क्यो नही! इब्ब तेरी भी मा चोदेन्गे और मेरी भी... देखती जा बस तू अब... पिच्चे हट जाइए. पहले मई करूँगी, फेर तेरा. नंबर लाइए.. इब्बे तो यो मास्टर काई जगह काम आवेगा. बस एक बात का ध्यान राखियो, इश्स बात का किटे बेरा ना पटना चाहिए... ना ते यो म्हारे हाथ से जाता रवेगा. इससके पिच्चे तो पुर गाम की रंडी से... दिव्या: ठीक है दीदी, मैं किसी को नही बतावुँगी! तभी वहाँ सिर आ पहुँचे. पुर 3 पीरियड से उसका लंड ऐसे ही खड़ा था; सरिता ने उसकी ऐसी सकिंग की थी. आते ही कुर्सी पर बैठकर बोला: जो जहाँ था वहीं आ जाओ! सरिता: सर जी सज़ा बाद में दे लेना, पहले एक रौंद मेरे साथ खेल लो! मेरी चूत में खुजली मची हुई है... शमशेर उसके बिंदास अंदाज का दीवाना हो गया, सकिंग का तो रिसेस से पहले ही हो गया था. उसने सरिता को कबूतर की तरह दबोच लिया... ये कबूतर फड़फदा रहा था... 'जीने' के लिए नही....अपनी मरवाने के लिए... सरिता पागल शेरनी की भाँति टेबल पर जा चढ़ि, और कोहनी टेक कर अपना मुँह खोल दिया, सर के लंड को लेने के लिए... शमशेर ने भी सरिता के सिर को ज़ोर से पकड़कर अपना सारा लंड एक ही बार में गले तक उतार दिया..... दिव्या दोनों को आँखें फाडे देख रही थी... दोनों इश्स खेल के चॅंपियन थे, एक पुरुष वर्ग में दूसरी महिला वर्ग में.... सरिता ने अपनी गांद उची उठा रखी थी, शमशेर ने जोश में बिना गीली किए उंगली उसकी गांद में फँसा दी... वा पिच्चे से उच्छल पड़ी... पर वा हारने वाली नही थी... उसने एक हाथ में शमशेर के टेस्टेस पकड़ लिए, के तू दर्द देगा तो में भी दूँगी... सरिता कभी सर के लंड को चाट-ती कभी चूमती और कभी चूस्टी... शमशेर का ध्यान दिव्या पर गया; वह भी तो खेलने आई थी.. उसने दिव्या को टेबल पर चढ़ा दिया; सरिता के सिर के दोनो और टाँग करके... सरिता को कमर से दबाव देकर चौपाया बना दिया..... अब दिव्या का मुँह सरिता की चूत के पास; और दिव्या की चूत ... सर के मुँह के पास... अजीब नज़ारा था...(आँख बंद करके सोचो यारो; दिखाई देगा!), सर की जीभ दिव्या की चूत में कोहराम मचा रही थी, नयी खिलाड़ी होने की वजह से उसको उंगली में ही इतना मज़ा आ रहा था की वो झाड़ गयी... एक ही मिनिट में... पर शमशेर ने उसको उठाने ही नही दिया...वह कभी उंगली चलाता कभी जीभ... कुल मिलकर उसने 2-3 मिनिट में ही उसको खेलने के लिए फिट बना दिया, वो फिर से मैदान में थी... क्या ट्रैनिंग चल रही थी उसकी!... बिंदास! दिव्या का मुँह सरिता की चूत तक नही पहुँच रहा था.. व्याकुलता में उसने सरिता के चूतदों को ही खा डाला... सरिता बदले में सर के लौदे को काट खाती... और सर दिव्या की चूत पर दाँत जमा देते... कभी सिसकियाँ... कभी चीत्कार... कभी खुशी कभी गुम... सरिता को भी पता चल चुका था की सर मैदान का कच्चा खिलाड़ी नही है... वो उसके रूस को पीना चाहती थी पर 20 मिनिट की नूरा कुस्ति के बाद भी वह उसको नही मिला... वह थक चुकी थी... और दिव्या तो हर 5 मिनिट बाद पिचकारी छ्चोड़ देती! टू बी कंटिन्यूड....
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