Bhabhi ki Chudai भाभी का बदला
03-31-2019, 05:32 PM,
RE: Bhabhi ki Chudai भाभी का बदला
मैं और दीदी मेरी शादी के रिसेप्षन के लिए बुक, उस 5 स्टार होटेल के दीदी के रूम में सोफे पर बैठे हुए बातें कर रहे थे, और दीदी मुझे अपने ससुराल में बीते पिछले 6 महीनों के दौरान जो कुछ उनके साथ हुआ था, उसके बारे में बता रही थी.......
दीदी ने आगे बताना शुरू किया.....

मैं इस सब को देख कर, इतना ज़्यादा एग्ज़ाइटेड हो गयी थी, मुझे मेरे और तेरे बीच जो कुछ हुआ था, वो सब कुछ याद आने लगा था, मुझे थोड़ी शरम भी आ रही थी, इतनी शरम कि मैं ना तो कुछ बोल ही पाई, और ना ही उन दोनो को रोक ही पाई. सब कुछ देखते हुए, मेरा हाथ अभी भी पैंटी के अंदर घुसा हुआ था, और मेरी चूत को सहला रहा था..... 

धीरज अब भी अपनी बेहन की जांघों को किस किए जा रहा था, और आगे बढ़ते हुए, वो संध्या की शेव्ड चिकनी चूत तक पहुँच गया. धीरज ने धीरे से उस चूत की दरार पर एक छोटा सा किस किया, और अपने मूँह की गर्माहट से उसकी नंगी चूत को पिघलाने की कोशिश करने लगा. धीरज अपनी सग़ी छोटी बेहन की चूत की दरार पर धीरे धीरे, प्यार से हर किस के साथ, उसकी चूत के होंठों को चूम रहा था. धीरज धीरे से उसकी दोनो टाँगो के बीच झुक गया, और फिर संध्या की चूत को नीचे से उपर तक चाटने लगा, और फिर अपनी मुलायम, गीली जीभ को, अपनी सग़ी बेहन की चूत में घुसाने लगा, और फिर बाहर निकाल कर संध्या की चूत के दाने को अपनी जीभ को पायंटेड कर बार बार छेड़ देता. ये सब देखते हुए, मेरा ध्यान धीरज के फूँकार मारते हुए लंड की तरफ गया, मैं पहले की तरह उतनी ही ज़्यादा एग्ज़ाइटेड हो गयी और मेरी चूत उतनी ही गीली हो गयी, जितनी जब संध्या को कपड़े उतारकर नंगा होता हुआ देख कर हुई थी.

धीरज ने धीरे से संध्या की चूत पर से अपना मूँह दूर किया, अपने हाथ की बीच वाली उंगली को मूँह में डाल के थोड़ा सा चूसा, और फिर अपनी बेहन की चूत में उसको हल्के हल्के घुसाने लगा. संध्या अभी भी अपनी आँखें बंद कर के ऐसा नाटक कर रही थी मानो सो रही हो. मैं धीरज के हाथ को आगे पीछे होते हुए देख रही थी, ये जानते हुए कि वो अपनी उंगली संध्या की चूत में अंदर बाहर कर रहा है.संध्या अब ज़ोर ज़ोर से साँसें लेने लगी, और उसकी भारी छाती नाइट लेम्प की रोशनी में उपर नीचे होने लगी. तभी मेरे कानों में एक हल्की सी फॅक की आवाज़ सुनाई दी. ये संध्या की गीली हो चुकी चूत की थी, जो अपने सगे भाई की उंगली का अपनी चूत में स्वागत कर रही थी. मुझे विश्वास ही नही हुआ, कि उसकी चूत भी इतनी जल्दी इतनी ज़्यादा चिकनी हो चुकी है.

धीरज, बिना रुके अपनी सुंदर सी सग़ी छोटी बेहन की चूत को उंगली से चोदे जा रहा था, और फिर वो जल्दी से बेड की साइड पर हो गया. और दान्यें हाथ से, संध्या की चूंचियों की गोलाईयों को अपने हाथ की उंगलियों से गोल गोल सहलाने लगा, और उसके कड़े होते हुए निपल्स को देखने लगा, जिसके सब तरफ से रोंगटे खड़े हुए थे. फिर धीरज ने संध्या के गालों को एक हाथ से सहलाया, और फिर अपनी बेहन के होंठों पर एक प्यार भरी किस ले ली. ये किस शुरू में तो थोड़ी छोटी और सादा ही शुरू हुई थी, लेकिन ये आगे बढ़ती गयी, और गहरी होती चली गयी. मैं संध्या की छाती और उभारों को अचरज से हर सेकेंड और ज़ोर से उपर नीचे होते देख रही थी, जैसे जैसे धीरज, संध्या को चूमते हुए, अपनी उंगली की उसकी चूत में अंदर बाहर करने की रफ़्तार को बढ़ाता जा रहा था.

संध्या ने ऐसे नाटक करते हुए जैसे कि कोई सपना देख रही हो, अपना हाथ बढ़ा कर, धीरज के सिर पर रख दिया, और मूँह खोलकर उसके किस का जवाब देने लगी. मुझे अच्छी तरह से पता था कि वो जाग रही है. और फिर वो थोड़ा आधा सा बैठते हुए, अपने बड़े भाई की गर्दन को चूमने लगी. वो किसी भूखी शेरनी की तरह, धीरज की छाति और फिर कमर को चूमते हुए, उसके फूँकार मार रहे लंड तक पहुँच गयी. धीरज समझ गया, और उसकी बाजू में लेट गया, उसके लेटते ही संध्या ने धीरज के लंड को पकड़ लिया, और फिर नीचे से उपर तक लंड को किस किया, हर किस के साथ धीरज का लंड थोड़ा फडक जाता. संध्या ने फिर से लंड को नीचे से शुरू करते हुए उपर तक चाटना शुरू कर दिया. वो लंड को नीचे की तरफ से चाट रही थी, धीरज के टट्टों की गोलियों से लेकर उपर सुपाडे तक, और हर बार उपर पहुँचने पर सुपाडे के छेद को अपनी जीभ से छेड़ देती. संध्या ने एक पल, सिर उपर उठा कर अपने भैया की तरफ देखा, और फिर उसके लंड को पूरा अपने मूँह में भर लिया, जितना अंदर ले जा सकती थी, वो लंड को उतना अपने मूँह के अंदर ले गयी. फिर वो लंड के सुपाडे को चूसने लगी, शुरुआत में धीरे धीरे, और फिर रफ़्तार पकड़ते हुए. संध्या ने एक हाथ से धीरज के लंड को नीचे से पकड़ रखा था, जिस से लंड को अपने गरम गरम मूँह में घुसने में आसानी हो, और अपना दूसरा हाथ चूत के दाने पर ले जाकर उसको घिसने लगी, ऐसा करते हुए वो घुटनों के बल, अपने पैर चौड़ा कर उसके बगल में घोड़ी बन गयी. और फिर एक लंबी आआहह भरते हुए अपने भैया के लंड को ज़्यादा से ज़्यादा अपने मूँह में अंदर ले गयी. मुझे लगा, ऐसा करने से धीरज को भी अच्छा लगा था, क्योंकि उसने अपनी गान्ड उँचका दी, और अपना लंड अपनी छोटी बेहन के और ज़्यादा अंदर, गले तक पेल दिया.

मुझे लगा कि मैं भी अब झड्ने के करीब पहुँच चुकी हूँ, इसलिए मैने ना चाहते हुए भी अपनी उंगली की चूत पर घिसने की रफ़्तार को थोड़ा धीमा कर दिया. मैं भी धीरज और संध्या के साथ ही झड्ना चाहती थी, एक पल भी उन्दोनो से पहले नही. मेरा एक हाथ मेरी चूंचियों को दबा रहा था, और उन भाई बेहन के चूत लंड के खेल को देख कर मैं गरम हुए जा रही थी. मैं सब कुछ देख रही थी, संध्या ने अपने भाई के पास बैठते हुए, अपनी दोनो टाँगें चौड़ी कर ली, और मुझे उसकी गीली हो चुकी चूत सॉफ दिखाई दे रही थी, जिस को संध्या अपनी उंगली से घिस रही थी. साध्या के कराहने की आवाज़ अब तेज होने लगी थी, लगता था वो अब एक दूसरे के साथ के फोरप्ले से आगे बढ़ना चाहती है. संध्या ने अपने भैया की छाति पर झुकते हुए, धीरज को बेड पर सीधा लिटा दिया, और अपनी चूत की तरफ एक हाथ ले जाकर, अपने भैया के फुन्फनाते हुए गीले लंड को पकड़ के अपनी चुदने के लिए बेकरार चूत के मूँह पर लगा लिया.

"मुझे अब प्लीज़...छोड़ दो भैया" वो फुसफुसाई.

मैं चुप चाप रूम के बाहर खड़ी, दरार में से सब कुछ देख और सुन रही थी, इतना सुनकर धीरज के चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी. और धीरज ने अपनी छोटी बेहन की गान्ड को कस के पकड़ लिया, और उसको वैसे ही पकड़ कर, अपने लंड के उपर नीचे आने से रोक लिया. 

"प्लीज़, भैया , मुझे इसे अंदर डाल लेने दो ना! मैं अच्छे से करूँगी." संध्या फिर से रीरियाते हुए फुसफुसाई.

धीरज उसको वैसे ही पकड़े रहा, और अपने लंड के सुपाडे को उसकी फुदक रही चूत को छूते हुए उसे चिढ़ाने लगा. 

"प्लीज़... चोद दो भैया..." संध्या और कुछ नही बोल पाई, तभी उसके बड़े भाई ने अपना पूरा लंड उसकी चूत में घुसा दिया. ये इतना जल्दी हुआ, कि संध्या के मूँह से एक ज़ोर से दर्द भरी आहह निकल गयी.

"ष्ह, तुम्हारी भाभी सुन लेगी" धीरज फुसफुसाया, और उसकी छोटी बेहन का मूँह चुदाई का आनंद लेते हुए अपने आप खुल गया, और उसमे से परम सुख की आहें निकलने लगी.

कुछ देर ऐसी ही घुटि घुटि आहें निकालने के बाद , वो फिर से फुसफुसाई, “भैया, अब मुझसे बर्दाश्त नही होता, तुम्हारा लंड मेरी चूत में घुसता है, तो मुझे बहुत अच्छा लगता है. प्लीज़, अब भाभी जो सुने, वो सुनती रहे और जो सोचे, वो सोचती रहे.

"नही, उसको इस बारे में कुछ पता नही चलना चाहिए, वो उठ गयी तो सब गड़बड़ हो जाएगा." धीरज फुसफुसाया, लेकिन उसकी आवाज़ में इस बार आदेश था.

संध्या ने अपनी आँखें बंद किए हुए ही, बस अपनी गर्दन हिला दी, और अपने होंठों को दाँतों से काटते लगी, उसको अपने भैया का लंड अपनी चूत में गहराई तक लेकर अपार आनंद में खोई हुई थी. धीरज धीरे धीरे लंड को अपनी छोटी बेहन की तड़प रही चूत में पेलने की गति को बढ़ाए जा रहा था. वो अभी भी उसकी गान्ड को हाथ में उठाए हुए था, और बीच बीच में नीचे उसको अपने लंड के उपर खींच लेता. संध्या अब अपने भैया के उपर थोड़ा सा झुक गयी, जिस से उसकी चूंचियाँ, धीरज की छाती से घिसने लगी. हर झटके के साथ, संध्या के कराहने की आवाज़ तेज होती जा रही थी, ये देखते हुए, धीरज ने उसको शांत करने के लिए उसके होंठों को किस करना शुरू कर दिया, और नीचे धीरे धीरे झटके मार के उसकी चुदाई करने लगा. 

कुछ देर बाद, झटके मारने की स्पीड बढ़ने लगी, और उस दरार में से मुझे सॉफ दिखाई दे रहा था, कि हर झटके के साथ, उन दोनो के शरीर भी आपस में रगड़ रहे थे. तभी बड़ी सफाई के साथ, धीरज ने अपनी छोटी बेहन को नीचे चित्त बेड पर लिटा दिया, और उसके पास अपने घुटनों पर बैठ गया. फिर संध्या की गान्ड को घुमा कर अपनी तरफ किया, जिस से संध्या घुटनों और हथेलियों के बल, घोड़ी बन गयी. उनके इस पोज़ में दोनो का चेहरा मेरी तरफ था, लेकिन अंदर ज़्यादा रोशनी और गॅलरी में अंधेरा होने के कारण वो दोनो मुझे देख नही पा रहे थे. संध्या के काले काले बाल उसके चेहरे को ढक कर नीचे लटक रहे थे, बालों के पीछे संध्या की नीचे झूलती हुई चूंचियाँ नज़र आ रही थी, और उसके पीछे मैने देखा धीरज ने, संध्या की दोनो टाँगों के बीच, अपने लंड को हाथ में पकड़ रखा था, और संध्या की गीली चूत की दरार के उपर लंड के सुपाडे को घिस रहा था, और फिर उसने पूरा लंड संध्या की चूत में पेल दिया. धीरज ने संध्या को हिप्स की साइड से पकड़ा हुआ था, और पीछे से उसकी मस्त चुदाई कर रहा था. हर झटके के साथ उसकी स्पीड बढ़ती जा रही थी, और वो ज़्यादा से ज़्यादा अंदर पेल रहा था. उसको बिल्कुल याद नही था, की उसकी बीवी अपने बेडरूम में अकेली सो रही है. वो तो बस अपनी छोटी बेहन को घोड़ी बना कर पीछे से उसकी चूत मारने में खोया हुआ था, और अब उसके हर झटके के साथ, पलंग के चरमराने की आवाज़ भी सुनाई देने लगी थी.

उन दोनो को इस तरह से चुदाई देख कर, मैं भी गरम हो गयी थी, और अपनी चूत में उंगली डाल के ये कल्पना कर रही थी, मानो धीरज मुझे चोद रहा हो. जैसे ही धीरज ज़ोर का झटका मारता, उसकी गोलियों की गीली चूत के नीचे टकराने की आवाज़ सुनाई दे जाती. उन दोनो को इस बात का बिल्कुल होश नही था, कि वो कितनी ज़्यादा आवाज़ कर रहे हैं, वो तो बस चुदाई की मस्ती में खोए हुए थे. जैसे ही धीरज ने हाथ नीचे लेजाकर, संध्या की लटक रही चूंचियों के निपल्स को अपनी उंगली और अंगूठे के बीच लेकर, थोड़ा सा घुमाया, संध्या की घोड़ी बनाकर पीछे से चुदाई करवाते हुए, मूँह से एक गहरी आहह निकल गयी. धीरज भी अब ज़ोर ज़ोर से साँसें ले रहा था, और लंड को संध्या की चूत में पेलते हुए, उसने उसकी गान्ड को इस कदर ज़ोर से पकड़ रखा था, कि उसके नाख़ून भी संध्या की गान्ड की गोलाईयों में गढ़ रहे थे. 
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03-31-2019, 05:32 PM,
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मुझे पता चल गया था कि वो दोनो अब झड्ने ही वाले हैं. मैं भी अपने दोनो टाँगों को चौड़ी कर, अपनी गीली चूत के दाने को ज़ोर ज़ोर से मसल कर झड्ने की तय्यारी करने लगी. धीरज ने संध्या की गान्ड को एक बार फिर से अपने लंड के उपर ज़ोर से नीचे की तरफ किया. और एक बार फिर से, ज़ोर से कराहते हुए, कुछ इंच और ज़्यादा लंड को संध्या की चूत में पेलते हुए, उसकी गान्ड को अपने लंड पर नीचे किया. और फिर आख़िर में संध्या की चूंचियों को हाथों से दबाते हुए, और निपल्स को मींजते हुए धीरज ने एक एक जोरदार झटका अपनी कमर को उछालते हुए लगाया, और लंड जितना ज़्यादा से ज़्यादा अंदर जा सकता था, उतना अपनी छोटी बेहन की चूत में पेल दिया. धीरज का शरीर झडते हुए, अकड़कर काँपने लगा, उसके चेहरे पर आ रहे एक्सप्रेशन्स बता रहे थे कि उसकी टट्टों की गोलियों में से वीर्य चढ़कर, लंड की लंबाई में उपर तक चढ़ने लगा है, और उसकी छोटी बेहन की गरमा गरम चूत में उसको वो उंड़ेल रहा है.

अपने भैया के लंड से निकल रही गरम वीर्य की धार ने संध्या को भी झडने पर मजबूर कर दिया. संध्या की बाहों में से मानो दम निकल गया हो, वो निढाल होकर,अपनी गान्ड को उठाए हुए ही उसने अपना सिर बेड पर टिका दिया, और वो अपनी चूत से निकल रहे रस, और अपने भैया के वीर्य के मिश्रण को अपने टाँगों पर टपकते हुए महसूस करने लगी. तभी मैं भी झड गयी, और मैं संध्या के आहह ऊओ के साथ चेहरे पर आ रहे संतुष्टि के एक्सप्रेशन्स को देखने लगी. मुझे उन दोनो को चुदाई देखते हुए अपनी चूत में उंगली करके झड्ने में बहुत मज़ा आया था, और मेरी चूत ने ढेर सारा पानी छोड़ा. इस चरम सुख के अपार आनंद में मेरी आँखें बंद हो गयी. 

आँखें बंद किए हुए ही मेरे दिमाग़ ने चेतावनी की घंटी बजाई, और मैं तुरंत वहाँ से अपने रूम में आकर बेड पर आकर लेट गयी, और गहरी नींद में सोने का नाटक करने लगी. कुछ देर बाद धीरज भी बेड पर आकर लेट गया, और सो गया. उसके कुछ देर बाद, मैं शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत ज़्यादा थकने के कारण, जल्द ही सो गयी.
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03-31-2019, 05:32 PM,
RE: Bhabhi ki Chudai भाभी का बदला
मैं और दीदी मेरी शादी के रिसेप्षन के लिए बुक, उस 5 स्टार होटेल के दीदी के रूम में सोफे बैठे हुए बातें कर रहे थे, और दीदी मुझे अपने ससुराल में बीते पिछले 6 महीनों के दौरान जो कुछ उनके साथ हुआ था, उसके बारे में बता रही थी.......

दीदी ने आगे बताना शुरू किया.....

अगली सुबह, जब नहाने के बाद मैं अपने रूम में अपने बाल सूखा रही थी, तभी संध्या चाइ के दो कप लेकर मेरे रूम में आ गयी. धीरज नीचे ड्रॉयिंग रूम में क्रिकेट का मॅच देख रहा था, और संध्या पहले ही नहा चुकी थी, और हम दोनो चेयर पर बैठ कर चाइ की चुस्कियों का आनंद लेने लगे.

“भाभी, एक बात पूछूँ... “ संध्या ने कहा, “कैसा लगा कल रात जो कुछ आपने देखा?”

मुझे समझ में नही आया कि क्या जवाब दूं, और मेरे दिल मानो गले तक आ गया. लेकिन शादी से पहले जो कुछ मैं तुम्हारे साथ कर चुकी थी, उसको सोचकर मुझे ज़्यादा शॉक नही लगा था. 

संध्या : “ऐसा होता है भाभी... और मैं चाहती थी कि आपको जल्दी ही इस के बारे में पता चल जाए, मैं और धीरज पिछले एक-दो सालों से एक दूसरे को ऐसे ही प्यार करते हैं.”

मैने झेन्पते हुए कहा, “ वो तो ठीक है..... पर....हां, तुम दोनो को देखने में मज़ा तो मुझे भी आया.”

”क्या आपने हम दोनो को देखते हुए, आपने भी उंगली से अपने आप को शांत किया या नही?”

"हां, किया तो था," ऐसे कहते हुए शरम के कारण मेरे गाल लाल हो गये.

"ह्म, चलो अच्छा है. मुझे पहले ही पता था, आपको अच्छा लगेगा, और आप उंगली ज़रूर करोगी. तो फिर मज़ा आया हम दोनो भाई बेहन की चुदाई देखकर, सच्ची बताओ भाभी?"

"हां बाबा... बोला तो" मैने झेन्पते हुए बोला.

"अगर वो आपको ऐसे ही मेरे रूम में मेरे ही बेड पर अपनी छोटी बेहन समझ के चोदे, तो कैसा रहेगा? बाकी सब का इंतज़ाम मैं कर दूँगी, उसकी आप चिंता मत करो, बस आप एक बार हां कह दो, अगर आप को मेरा आइडिया अच्छा लगा हो तो."

मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा, "क्या धीरज को पता है कि मैं कल तुम दोनो को देख रही थी?"

"ओह, नही भाभी, मैने ऐसा कब कहा. लेकिन ये मेरी बहुत पुरानी फॅंटेसी है, मैने पहले कभी भैया को किसी और के साथ सेक्स करते हुए नही देखा है, और जब वो आपको अपनी छोटी बेहन समझ के चोदेगे तो बहुत मज़ा आएगा, लेकिन ये तभी संभव है, जब आप भी हेल्प करो."

मुझे कुछ कुछ समझ में आने लगा "तो तुम आज रात, हम दोनो की सोने की जगह को स्वप करना चाहती हो?"

"हां भाभी, बस एक रात के लिया अगर आप चाहो तो. भैया आज रात जब दोस्तों के साथ बियर पीकर लौटने वाले होंगे, तो मैं उनके मोबाइल पर कह दूँगी कि भाभी सो चुकी हैं, और वो सीधे मेरे रूम में ही आ जाएँ. हम पहले से ही मेरे रूम में कर्टन्स डाल देंगे और लाइट ऑफ रखेंगे, धीरज को बियर के नशे में पता ही नही चलेगा कि वो किस को चोद रहा है."

"लेकिन, क्या वो अपसेट नही होगा, जब उसको सच्चाई पता चलेगी?" मैने पूछा.

"नही भाभी, उसको पता नही चलेगा, मैं भैया को अच्छी तरह जानती हूँ."

"लेकिन तुम इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकती हो, कि वो आज रात तुम्हारे साथ चुदाई करना चाहेगा ही?" मैने पूछा.

"कैसी बात करती हो भाभी, भैया तो हर रात मेरे साथ चुदाई करते हैं, भैया को तो मेरे रूम का डोर थोड़ा सो खुला दिखना चाहिए बस, ये हमारा सीक्रेट सिग्नल है." मुझे थोड़ी शरम आ गयी, और सोचने लगी, कल रात कैसे मैने संध्या के रूम का डोर थोड़ा सा खुला देख उन दोनो भाई बेहन की चुदाई देखी थी. 

"ओके," मैं बोली, बोलते हुए मुझे खुद विश्वास नही हो रहा था, "लेकिन मुझे ये कैसे पता चलेगा कि मुझे क्या बोलना है, क्या करना है, जिससे की धीरज को पता ना चले की जिसको वो चोद रहा है, वो मैं नही हूँ."

"ये तो बहुत आसान है भाभी, ये देखो मैं आपको कुछ दिखाती हूँ" संध्या ने मेरा हाथ पकड़कर अपने रूम में लेजाते हुए कहा. संध्या ने अपनी एक आल्मिराह खोली, और उसमे से एक बॅग निकाला, और उसको बेड पर फेंक दिया. जैसे ही उसने उस बॅग की ज़िपर को खोला, उसमे भरे हुए सेक्स टाय्स को देख कर मैं हैरान रह गयी.

"अम, वाउ!" मेरे मूँह से अचरज में अपने आप निकल गया, जैसे ही मैने उन सब अजीब सी चीज़ों को देखा, जो पहले मैने सिर्फ़ तुम्हारी उन पॉर्न वीडियोस में ही देखी थी, और कुछ चीज़ें तो ऐसी थी, जिनको मैं पहचान या समझ भी नही पाई.
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03-31-2019, 05:32 PM,
RE: Bhabhi ki Chudai भाभी का बदला
"हां भाभी, ये सब हम बाद में देखेंगे" संध्या बोली, और उसने सिर्फ़ रस्सी के कुछ छोटे छोटे टुकड़े बाहर निकाल लिए. "ये रस्सी देखने में ही मोटी लगती है, लेकिन होती बहुत मुलायम है, और इससे चोट भी नही लगती है" वो मुस्कुराते हुए बोली. "बस हम को तो आपको बेड से बाँधना है. मैं ऐसा पहले भी एक दो बार कर चुकी हूँ. मैं अपने आप को ठीक तरह से बेड से बाँध लेती थी, और फिर भैया आकर जो वो चाहते मेरे साथ करते. लेकिन आज हम आपको बेड से बांधेंगे. इस तरह आपको कुछ भी करने की ज़रूरत नही पड़ेगी, जो कुछ करना है, भैया ही आप के साथ करेंगे. “

"लेकिन तुम अपने आप को अपने ही हाथों से कैसे बाँध लेती हो?" मैने आश्चर्य के साथ पूछा.

"तीन रेग्युलर नाट्स, और एक स्लिप नाट अपने आख़िरी फ्री हॅंड के लिए." संध्या ने किसी एक्सपर्ट की तरह समझाते हुए कहा.

हम दोनो दिन भर प्लॅनिंग करते रहे, संध्या ने मुझे कुछ ऐसी बात बताई जो धीरज चुदाई के टाइम सुनना पसंद करता था. रात के 10 बजे हम दोनो ने तैयारी शुरू कर दी, मैने और संध्या ने एक दूसरे के पुर कपड़े उतार कर एक दूसरे को पूरा नंगा कर दिया, और ये सब करते हुए हम दोनो ही बहुत एग्ज़ाइटेड हो रही थी. संध्या ने मुझे बेड से बाँध दिया, बीच बीच में वो मुझे किस करते हुए छेड़ भी रही थी. मेरे चारों हाथ और पैर, बेड के चारों किनारों से बाँध दिए थे, और मैं हाथ और टाँगें फैला कर, बेड पर सीधे पीठ के बल लेट कर, बेड से बँधी हुई थी.

"देखा भाभी, क्या मस्त सीन है!" संध्या गहरी साँस लेते हुए बोली, मानो अपने किए हुए काम को सर्वे कर रही हो. "मेरा तो मन कर रहा है, कि मैं भी थोड़ा सा आप के साथ खेल लूँ, भाभी."

"हे ऐसा कुछ मत करना!" मैने अपने आप को असहाय पाते हुए बोला, मैं दोनो बाहें और टाँगें फैलाए हुए बेड से बँधी पड़ी हुई थी, लेकिन मेरा शरीर किसी के अटेन्षन की मानो भीख माँग रहा हो, और कह रहा हो.... प्लीज़... मेरे साथ कोई तो खेलो... और जो चाहे मेरे साथ कर लो.

संध्या एक झपट्टा मारते हुए मेरे नंगे शरीर के उपर आ गयी, और मानो किसी बादल की तरह, कुछ दूरी रखकर, अपने शरीर से मेरे शरीर को धक लिया. हम दोनो एक दूसर को निहारने लगे. मैने पहली बार संध्या का चेहरा इतने करीब से देखा था, उसके गुलाबी होंठ, मुलायम गाल, पटकी सुंदर नाक, और उसकी बड़ी गोल आँखें. माइ गॉड, क्या आँखें हैं उसकी. मैं तो मानो उसकी आँखों में डूब ही गयी, मानो कोई अप्सरा हो. ज़्यादातर सभी के चेहरों पर एक टाइम पर एक एक्सप्रेशन ही रहता है, खुशी का या दुख का. लेकिन संध्या की आँखों में तो एक्सप्रेशन्स का समंदर था, वो बस एक नज़र से दुनिया भर के सारे एक्सप्रेशन बयान कर सकती थी, परम आनंद, हिफ़ाज़त, इबादत, हसरत, वासना और सब कुछ. जैसे ही संध्या बेड पर नीचे झुकने लगी, उसके निपल्स मेरे निपल्स से, किसी तितली की तरह नाज़ुक और मुलायम, हल्के से स्पर्श करने लगे. संध्या मेरी आँखों में एकटक नज़र मिला कर देख रही थी....

नही, संध्या, प्लीज़ अभी मत जाओ. मुझे लग रहा था कि संध्या मेरी लाचारी और हवस की भूख देख कर थोड़ा झिझक रही थी. संध्या का चेहरा मेरी फुदक रही चूत की तरफ झुका हुआ था, और उसकी हाथ की उंगलियाँ मेरी छाती और कमर की साइड पर फिसल रही थी. जहाँ जहाँ उसकी उंगलियाँ मुझे छूती, मेरी स्किन को ना जाने क्या होने लगता, थोडा गरम, थोड़ा ठंडा और फिर मेरे सारे शरीर पर रोंगटे खड़े होने शुरू हो गये, और मेरे निपल्स टाइट होकर खड़े हो गये, ये सब कुछ माहौल को और ज़्यादा सेक्सी बना रहा था. संध्या का शायद इस सब का ज़्यादा असर नही हो रहा था, उसकी आँखों में वासना भरी हुई थी, और वो मेरी उपर नीचे हो रही चुचियों को एक टक देख रही थी. मानो बस एक ही बात कर रही हों, बस एक बार कर लेने दो..... मेरा शरीर उसकी निगाहों का जवाब देने लगा था, मानो मुझे संध्या की आँखों ने अपने मोहज़ाल में फँसा लिया हो. एक पल को मुझे लगा, कि कहीं संध्या, बिना मेरी चूत को टच किए ही, मुझे झड्ने पर मजबूर ना कर दे. संध्या की आँखें मानो कोई दैविय गृह हों, जिन्होने मेरी दोनो टाँगों के बीच मानो आग लगा दी हो. 

संध्या धीरे से, ना चाहते हुए, मुझसे दूर हट गयी, और एक गहरी साँस लेते हुए मेरे सामने खड़ी हो गयी. संध्या के शरीर पर भी रोंगटे खड़े हो गये थे. ये सब कुछ देख कर, मेरे मूँह से शब्द नही निकल रहे थे. जितनी कामुक वो मुझे लग रही थी, उसके लिए अदभुद भी सही शब्द नही है. फिर मेरे मूँह से वो शब्द निकल ही गया, जिस की मुझे तलाश थी, पर्फेक्ट... संध्या बिल्कुल पर्फेक्ट थी. 

संध्या ने अपने मोबाइल से धीरज को फोन मिलाया, और मेरे सो जाने की बात कही, और बोला, “मेरे रूम का दूर थोड़ा सा खुला हुआ है, सीधे मेरे पास ही आ जाना, मैं वेट कर रही हूँ, आज कुछ अलग करेंगे, भैया.” 

संध्या ने अपनी आल्मिराह में से एक सॉफ धूलि हुई पिंक कलर की चादर निकाली और मेरे शरीर को पूरा उस चादर से ढक दिया.

"भैया को आज बहुत मज़ा आएगा... और आपको भी भाभी, चुदि तो आप भैया से काई बार होंगी, लेकिन आज जैसा मज़ा आपको पहले कभी नही आया होगा, मुझे तो इस तरह बहुत मज़ा आता है भाभी" संध्या खिलखिला कर खुश होते हुए बोली, मानो किसी चीज़ का अड्वर्टाइज़्मेंट कर रही हो.

संध्या, अपने भाई के लंड और चुदाई की प्रशंसा करते हुए मानो कहीं खो गयी. फिर उसने एक गहरी साँस ली, और एक पल को मानो भूल ही गयी कि वो वहाँ पर क्यों खड़ी हुई है.

"चलो तो ठीक है, मुझे पूरा विश्वास है, आपको मज़ा आएगा भाभी."

कुछ मिनिट्स के बाद धीरज के कार की आने की आवाज़ सुनाई दी. संध्या ने अपने कपड़े उठाए, सारे घर की लाइट्स ऑफ कर दी, और अपने बेडरूम का दरवाजा आधा खोलकर, जल्दी से मेरे रूम में भाग गयी.

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03-31-2019, 05:33 PM,
RE: Bhabhi ki Chudai भाभी का बदला
मैं और दीदी मेरी शादी के रिसेप्षन के लिए बुक, उस 5 स्टार होटेल के दीदी के रूम में सोफे बैठे हुए बातें कर रहे थे, और दीदी मुझे अपने ससुराल में बीते पिछले 6 महीनों के दौरान जो कुछ उनके साथ हुआ था, उसके बारे में बता रही थी.......

दीदी ने आगे बताना जारी रखा.....

कुछ मिनिट्स के बाद धीरज के कार की आने की आवाज़ सुनाई दी. संध्या ने अपने कपड़े उठाए, सारे घर की लाइट्स ऑफ कर दी, और अपने बेडरूम का दरवाजा आधा खोलकर, जल्दी से मेरे रूम में भाग गयी.

जैसे ही मुझे डोर के खुलने की आवाज़ सुनाई दी, मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा. ये मैने क्या मुसीबत मोल ले ली थी? संध्या की छेड़खानी ने वैसे ही मुझे मूड में ला दिया था, लेकिन अब क्या होगा, इसी एग्ज़ाइट्मेंट ने मेरी जान ले रखी थी. मेरे शरीर का हर भाग मानो किसी के टच करने के लिए भीख माँग रहा हो, और वो चादर जिसने मुझे ढक रखा था, वो मेरी हर साँस के साथ चूंचियों और जांघों पर, हल्के से हिल कर सहला रही थी. 

और फिर मुझे धीरज के घर में दाखिल होने की आवाज़ सुनाई दी, फिर मेन डोर को लॉक करने की, और फिर उसके किचन में जाने की. मैं चुप चाप लेटे हुए इंतेजार कर रही थी, जैसे ही मुझे धीरज के रूम में दाखिल होने का एहसास हुआ, मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा. कुछ पलों बाद, धीरज अपनी शर्ट उतारने लगा, और फिर जिस बेड पर मैं बँधी हुई थी, उसके पास खड़े होकर अंधेरे में अपनी आँखों को देखने का अभ्यस्त करने का प्रयास करने लगा, और पॅंट के उपर से ही अपने लंड को सहलाने लगा. और फिर उसने अपनी पॅंट और अंडरवेर को उतार के फेंक दिया, मेरी नज़र उसके लंड पर जमी हुई थी. फिर धीरज ने पास आकर, मेरी चादर को हटाना शुरू किया, और मेरा नंगा बदन फिर से उजागर हो गया. मुझे उसकी नज़र मेरे शरीर के उपर घूमती हुई महसूस हो रही थी, मेरी धड़कन और ज़्यादा तेज हो गयी थी. मैं अपने आप को समझा रही थी, कि रिलॅक्स, उसको पता नही है कि मैं उसकी बेहन नही, उसकी बीवी हूँ. धीरज ने मेरी टाँगों को चूमना शुरू कर दिया, उसकी हर किस के साथ मेरी चूत और ज़्यादा फुदक रही थी. मेरे शरीर के टच करवाने की चाहत, धीरज के होंठों के छूने के बाद और ज़्यादा बढ़ गयी थी. फिर, धीरज किस करते हुए मेरी जांघों तक पहुँच गया, और फिर बेड पर आते हुए, झुककर मेरी चूत को उसने किस कर लिया. धीरज की गरम गरम साँसें जैसी ही मेरी चूत की फांकों पर पड़ी, ऐसा लगा जैसे मैं स्वर्ग में पहुँच गयी हूँ. 

धीरज ने धीरे धीरे नीचे से उपर तक , मेरी चूत के नरम होंठों को चाटना शुरू कर दिया, और सावधानी के साथ मेरी चूत को अपने थूक से गीला करने लगा. मुझे बहुत मज़ा आ रहा था, लेकिन सच कह रही हूँ राज, मुझे उस समय भी तेरा मेरी चूत को सबसे पहली बार, प्यार से चाटना याद आ रहा था. फिर धीरज ने अपनी उंगली को मूँह में डाल कर चाट कर गीला किया, और फिर आराम से मेरी चूत में घुसा दिया. अब तक मेरी चूत चुदने को इतनी ज़्यादा बेकरार हो चुकी थी, कि धीरज की उंगली किसी लंड से भी ज़्यादा मज़ा दे रही थी. फिर धीरज ने दो उंगलियाँ मेरी चूत में घुसा दी, और मेरी गीली चूत में अंदर बाहर करने लगा, जैसे ही उसकी उंगली मेरे चूत के उपरी भाग के दाने को छूती, मैं जन्नत में पहुँच जाती. 

धीरज फिर ठीक से मेरे पास, अपनी साइड लेट गया, और मुझे अपनी बेहन समझकर अपनी उंगली से मेरी चुदाई करने लगा. और दूसरे हाथ से मेरी चूंचियों को अपनी हथेली में भर कर मसल्ने लगा. और फिर, धीरज ने थोड़ा नीचे झुक कर मेरे होंठों को किस कर लिया. मेरे भी सब्र का बाँध टूट गया, और बेड पर बँधे हुए ही, मैं उपर होते हुए उसको किस करने लगी. मेरे मूँह में जीभ घुसाकर, धीरज मस्त किस कर रहा था, और उसकी साँसें भी अब तेज होने लगी थी. उसकी उंगली मेरी चूत में तेज़ी से गहराई तक अंदर बाहर हो रही थी, और मेरी गान्ड भी उछल उछल कर उसकी उंगली के अंदर बाहर होते हुए ताल से ताल मिला रही थी. हम दोनो की जीभ एक दूसरे में लिपट कर अठखेलियाँ कर रही थी. मैं अब चुदने को बेसब्र हो चुकी थी. धीरज ने जैसे ही किस को तोड़ा, मैने एक गहरी साँस ली, मुझे लगा कि वो मेरी ज़रूरत समझ गया है. धीरज ने नीचे होकर, मेरे निपल को पहले किस किया, और फिर ज़्यादा से ज़्यादा अपने मूँह में भर कर निपल को चूसने लगा. मैने फिर से एक गहरी साँस ली, और अपने मूँह से निकल रही आहह ऊहह की आवाज़ों को दबाने का असफल प्रयत्न किया. मैं नही चाहती थी, कि धीरज को पता चले कि ये सब वो अपनी बेहन के साथ नही, बल्कि अपनी बीवी के साथ कर रहा है. लेकिन अब बर्दाश्त करना मुहकिल होता जेया रहा था.

धीरज ने अब चूत में उंगली घुसाना बंद कर दिया, और बस मेरी चूत के दाने को अपनी गीली उंगलियों से घिसने लगा. फिर वो उठा और 69 के पोज़ में होते हुए, अपने फूँकार मार रहे लंड को अपने हाथ में पकड़ा, और मेरे चेहरे और मेरे मूँह के पास ले आया. मैं उसका इशारा समझ गयी, और अपना मूँह पूरा खोल दिया, जिस से धीरज अपना लंड थोड़ा थोडा कर के उसमे पूरा घुसा सके. जितना ज़्यादा हो सकता था, मैं धीरज के लंड को अपने मूँह में अंदर ले गयी, और उसको अपनी जीभ से साइड से चाटने लगी. एक बार जब उसका लंड थोडा ठीक से गीला हो गया, तो धीरज उसको मेरे मूँह के अंदर बाहर करने लगा, और मेरे मूँह की चुदाई करने लगा, उसकी उंगलियाँ अब भी मेरी चूत के दाने से खेल रही थी. और दूसरे हाथ से उसने मेरा सिर पकड़ रखा था, जिस से लंड को अंदर बाहर करने में गाइड कर सके. कुछ ही सेकेंड में मेरे मूँह लंड के घुसे होने के कारण ऊओनह आनह की अजीब घुटि हुई आवाज़ें निकलने लगी.

"हां, मेरी बेहन संध्या." धीरज फुसफुसाया, "तुमको अपने भैया का लंड चूसने में बहुत मज़ा आता है ना?" आज से पहले, और किसी गंदी बातों ने मुहे इतना एग्ज़ाइट नही किया था, जितना उसके ये कहने के बाद मैं एग्ज़ाइटेड हो गयी थी, और मैं उसकी बात का जवाब, उसके लंड को और ज़्यादा अपने मूँह में अंदर तक,भरकर देने लगी.

"उःम्म्म-ह्म" हे भगवान, हां. मैं कुछ कुछ बक रही थी, और उसकी बेहन बनकर चुदने में बहुत मज़ा आ रहा था.

"क्या चाहती हो अब, तुम कहो तो चोद दूँ?"

"म्म्महममम्म" मैने ज़ोर से आवाज़ निकाली, मैं झडने के करीब पहुँचने ही वाली थी.

धीरज ने अपने आप को मेरे होंठों से दूर कर लिया, और मेरी बँधी हुई टाँगों के बीच आ गया. 

"तुम्हारी चूत को चाहिए मेरा लंड?" धीरज ने छेड़ते हुए कहा, और अपने लंड के सुपाडे को मेरी पनिया रही चूत के उपर घिसने लगा. 

"ओह हां, छोड़ दो भैया. डाल दो इसको मेरी चूत के अंदर." मैने धीरे से कहा, जिस से की वो पहचान नही पाए, कि मैं संध्या नही हूँ.

धीरज ने अपने लंड के सुपाडे को मेरी चूत पर घिसना जारी रखा, और अब उसको चूत के छेद की रिम पर घुमाने लगा, ये सब मुझे वासना की आग में जलाकर पागल कर रहा था. मैं अपनी गान्ड उछालने लगी थी, और उसके लंड को जल्दी से अपने अंदर घुसाने के प्रयास कर रही थी, लेकिन वो मुझे कामयाब नही होने दे रहा था, और हर बार बस लंड को चूत के छेद पर टच कर के दूर हटा लेता. मैं बेड पर बँधी हुई थी, और लाचार थी, और बस अपने उपर छाये हुए उस व्यक्ति के रहम पर निर्भर थी. वो जो चाहता मेरे साथ कर सकता था, और मैं उसको रोकने के लिया कुछ नही कर सकती थी. ये सब सोच के ही मैं उत्तेजित हुए जा रही थी.


"प्लीज़, चोद दो" मैने गिडगिडाते हुए कहा, उसके लंड के सुपाडे के मेरी चूत पर घिसने के कारण मेरी टाँगों के बँधे होने के बावजूद, मेरे घुटने उपर उठाने की कोशिश कर रहे थे.

धीरज ने धीरे से मेरी पानी छोड़ रही चूत के छेद में अपने लंड के सुपाडे को थोड़ा अंदर घुसाया. और फिर धीरे धीरे मेरी चूत में अपने लंड को घुसाने लगा. मुझसे अब बर्दाश्त नही हो रहा था, और जैसे ही उसके लंड का सुपाड़ा मेरी चूत में घुसा, मैं ज़ोर से कराह उठी. धीरज एक पल को रुका, और फिर आराम से लंड को मेरी चूत में घुसाने लगा, थोड़ा थोड़ा कर के. मैं उसके लंड के घुसते हुए हर इंच को महसूस कर रही थी, उसके लंड की हर नस को, और मेरी चूत धीरज को अपने अंदर निगलते हुए उसके लंड के बनावट का पूरा आनंद ले रही थी. धीरज ने लंड को मेरी चूत में घुसाना जारी रखा, और मेरी गीली चूत में अपने लंड की पूरी लंबाई को घुसा दिया, उसके लंड का सुपाड़ा मेरी चूत की सामने की दीवार से टकराने लगा. चूत और लंड का खेल ही निराला है, चुदाई के उस पल को मैं बता नही सकती, मुझे कितना मज़ा आ रहा था. धीरज जैसे ही झटके मार के अपने लंड को मेरी चूत में अंदर बाहर करने लगा, मुझे लगा कि उसको अपनी बेहन को चोदने में कितना मज़ा आ रहा है, ऐसा ही तुमको भी आता होगा, जब तुम मुझको चोदते थे, राज.

कुछ मिनिट्स के बाद, धीरज मेरे उपर आकर मेरे पास आ गया, और लंड को ज़ोर से गहराई तक, अंदर बाहर करते हुए, मुझे एक ज़ोर्से किस करना लगा. उसने मेरे गालों को किस किया, फिर मेरी गर्दन को, और फिर धीरे से मेरे कान में फुसफुसाया...

"तुम को तो मेरी बेहन संध्या से भी ज़्यादा मज़ा आ रहा होगा."
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03-31-2019, 05:33 PM,
RE: Bhabhi ki Chudai भाभी का बदला
मैं एक दम चौंक गयी, लेकिन धीरज ने चोदना जारी रखा. क्या उसको पता चल गया था? क्या उसने ये बोला था, कि उसको संध्या की चुदाई से भी ज़्यादा मज़ा आ रहा था? मेरा दिमाग़ कन्फ्यूज़ होकर इन सवालों में घूमने लगा था. 

धीरज ने चुदाई की स्पीड थोड़ी धीमी कर दी, और फिर थोड़ा रुक रुक कर धक्के मारने लगा, और बाहर निकालते हुए जैसे ही चूत के छेद पर लंड का सुपाड़ा पहुँचता, वो थोड़ा रुक जाता.

"प्लीज़, रूको मत, चोदते रहो. आइ'म सॉरी," मैं ज़ोर से चीखी. "प्लीज़, मुझे झड जाने दो" मैं हताश होते हुए बोली.

"ना... अभी नही" धीरज बोला, " पहले, तुमको मुझे धोखा देने का प्रयास करने की सज़ा मिलेगी."

मेरा दिल अंजाने की आशंका में ज़ोर से धड़कने लगा, लेकिन धीरज के लंड के लगातार मेरी चूत में अंदर बाहर होते रहने के कारण, घबराहट थोड़ी कम थी. धीरज ने आगे झुक कर नाइट बल्ब ऑन कर दिया. रूम के लाइट से रोशन होते ही, मैं अपने आप को बेड से नंगा बँधे हुए, अपने आप को और ज़्यादा असुरक्षित महसूस करने लगी. जैसे ही मैने धीरज की तरफ देखा, मैने उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुकुराहट देखी, ये देख कर मुझे थोड़ा चैन आया. मैने नीचे देखा, उसका लंड मेरी चूत में घुसा हुआ था. ये देख मेरी साँस में साँस आई, लेकिन तभी मुझे एक आवाज़ सुनाई दी. मैने साइड में गर्दन घुमा कर डोर के तरफ देखा, वहाँ संध्या डोर और चौखट के बीच, दरवाजे का सहारा लेकर खड़ी हुई थी, और एक हाथ से अपनी चूत को सहला रही थी, और दूसरे से अपनी छाती को सहला रही थी. संध्या आँखों में वासना भरे हुए धीरे से बोली, “आइ’म सॉरी.” मेरी नज़रें जो नंगी संध्या को डोर पर खड़े देख रही थी, उनका पीछा करते हुए धीरज की नज़रें भी वहाँ जा पहुँची. 

"संध्या, यहाँ आओ" धीरज हक़ के साथ बोला.

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03-31-2019, 05:33 PM,
RE: Bhabhi ki Chudai भाभी का बदला
मैं और दीदी मेरी शादी के रिसेप्षन के लिए बुक, उस 5 स्टार होटेल के दीदी के रूम में सोफे बैठे हुए बातें कर रहे थे, और दीदी मुझे अपने ससुराल में बीते पिछले 6 महीनों के दौरान जो कुछ उनके साथ हुआ था, उसके बारे में बता रही थी.......

दीदी ने आगे बताना जारी रखा.....

"संध्या, यहाँ आओ" धीरज हक के साथ बोला.

संध्या ने वैसा ही किया जैसा उसके भैया ने कहा था, लेकिन उसने अपने आप को छूना और सहलाना जारी रखा.

"मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी मदद करो, मैं तुम्हारी भाभी को सबक सिखाना चाहता हूँ. आओ, बेड पर आ जाओ, और भाभी के मूँह पर घुटनों के बल झुक जाओ. और जब तक मैं इसकी चुदाई करूँ, तुम अपनी चूत इस से चटवाती रहो."

ये सोच कर ही मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी, और मैं संध्या की आँखों में देखने लगी. मैने मन ही मन सोचा, हे भगवान, ये सब क्या हो रहा है! संध्या ने वैसा ही किया,जैसे उसके भैया ने उसको करने के लिया कहा था, और वो सावधानी से मेरे चेहरे के उपर आ गयी, इस तरह से कि वो मेरी आँखों में आँखें डाल के देख भी सके, और उसने अपनी चिकनी गीली चूत मेरे मूँह के उपर रख दी. मैं देख रही थी, कैसे संध्या अपने निपल्स को दबा और मसल रही थी, मानो आगे होने वाले कार्यक्रम के लिए तायारी कर रही हो. हम दोनो एक दूसरे की आँखों में आँखें डाल कर एक दूसरे को निहार रहे थे, और मैने संध्या की चिकनी चमक रही चूत को चाटना शुरू कर दिया.

"ऊ, हां. ऐसे ही" संध्या कराहते हुए बोली, जैसे ही मैने अपनी जीभ उसकी चूत के उपर घुमानी शुरू की.

बस कुछ ही देर में, संध्या मेरे मूँह पर अपनी चूत का नंगा नाच करने लगी, और अपनी गान्ड को आगे पीछे हिलाने लगी, और मेरे मूँह को भी अपने चूत के लिसिलीसे पानी से चिकना करने लगी. धीरज ने मेरी टाँगें इतनी ज़्यादा उठा कर उपर कर दी, जिस से वो आराम से उनके बीच बैठ कर मुझे चोद सके. उसने फिर से अपना लंड मेरी चूत में घुसा दिया, और चूत के दाने को छूते हुए इस तरह मेरी चूत में घुसाया, जिस से वो ज़्यादा से ज़्यादा चूत के दाने को हर धक्के के साथ घिस सके, और अपनी बेहन की ताल के साथ ताल मिलाने लगा. फिर धीरज ने अपना हाथ का अंगूठा अपने मूँह में डाल कर गीला किया, और मेरी चूत के दाने को अंगूठे से चोदने के साथ साथ घिसने लगा. मेरा दिल मेरी छाती को फाड़ कर मानो बाहर निकलने वाला था. मैं बड़ी मुश्किल से साँसें ले पा रही थी, और बड़ी मुश्किल से संध्या की चूत में अपनी जीच घुसा रही थी, और किसी तरह उसकी चूत की पूरी लंबाई को अपने मूँह से घिस रही थी. 

"ओह चोद दो भैया, भाभी मुझे चूस के ही झाड़ देंगी!" संध्या ज़ोर से बोली.

मुझे अपने आप पर प्राउड फील हुआ, मुझे नही मालूम था कि संध्या इतना जल्दी झड्ने को तयार हो जाएगी.

"संध्या, मेरी बेहन, छोड़ दे इसके मूँह पर अपने चूत का पानी” धीरज बोला. ओए बस इतना सुनते ही, संध्या ने अपने मूँह से एक ज़ोर की कराह निकाली आआआहह.

"ऑश शिट! .." उसका शरीर अकड़ने लगा, और उसने मेरे बालों को अपने एक हाथ में भर कर पकड़ लिया और दूसरे हाथ से अपने निपल्स को मसल्ने लगी.

संध्या जैसे ही झडि, उसने अपने आप को मेरे चेहरे पर से उठा लिया, और बस उसकी चूत से झड्ति हुई पानी की एक बूँद मेरे खुले हुए मूँह के अंदर गिर पड़ी.

"पी लो इसको, डॉली !" धीरज ने आअदेश पूर्वक कहा.

मैने उसके आदेश का पालन किया, संध्या के अपनी चूत में उंगली डाल ने वजह से, चरम पर पहुँचने के बाद, निकल रहे पानी को, मैने अपना मूँह खोलकर उसमे टपकने दिया. संध्या के अपनी गीली चूत में घुस रही उंगली के अंदर बाहर करने से निकल रही आवाज़ सुनकर, धीरज और ज़्यादा एग्ज़ाइटेड हो गया, और उसने अपने एक हाथ के अंगूठे से मेरी चूत के दाने को सहलाना शुरू कर दिया, और दूसरे हाथ से मेरी चूंचियों को दबाने लगा, और ज़ोर से तेज़ी के साथ, मेरी चुदाई करने लगा. मेरी दोनो टाँगों के बीच भी आग बढ़ती जा रही थी, धीरज के लंड ने मेरी चूत में आग लगा दी थी, और संध्या की चूत से अभी भी पानी टपक रहा था, मैं मानो काँपने लगी थी.

"चोद दो धीरज, ज़ोर से!" मेरे मूँह से अपने आप निकल गया.

इतना सुनते ही धीरज अपने प्रयासों में दोगुनी तेज़ी ले आया, और मेरी चूत में घुसते धीरज के फुन्कार्ते हुए लंड के हर धक्के के साथ, मेरे मूँह से आहह ऊओह की आवाज़ें निकलने लगी. धीरज और संध्या दोनो के नीचे लेटे हुए, जैसे ही मैं झडि, मेरा शरीर बीच में से उठकर धनुष की तरह हो गया, धीरज ने मुझे जब तक पकड़े रखा, जब तक कि मैं पूरी तरह झड नही गयी. मुझे इस तरह झड्ने में बहुत मज़ा आया था. मेरी आँखे अपने आप बंद हो गयी, और मेरे पूरे शरीर में इस चरम पर पहुँचने का अपार आनंद मिल रहा था. साँस लेने के लिए, मैने संध्या की चूत में से मेरे मूँह में टपक रहे पानी को निगल लिया, और फिर मेरे मूँह से परम सुख से भरी हुई एक आहह निकल गयी. वो आहह इतना ज़ोर से निकली, कि मेरे मूँह के उपर संध्या की चूत भी फुदक उठी. मेरी चूत ने धीरज के लंड को निचोड़ना शुरू कर दिया, और फिर कुछ सेकेंड के बाद ही वो भी मेरे साथ कराहने की आवाज़ निकालने लगा. उसने अपने लंड को मेरी चूत में अंदर तक पेल दिया, और दोनो हाथों से मेरी चूंचियों को अपनी हथेलियों में भर लिया. और मेरे निपल्स को उंगली और अंगूठे मे बीच दबाकर घुमाने लगा, और अपने लंड से वीर्य के पानी की गाढ़ी धार मेरी चूत में छोड़ने लगा. जैसे ही धीरज ने मेरी चूत को वीर्य के पानी से भरा, मुझे लगा मैं दूसरी बार झड गयी थी, और मेरी चूत के वीर्य मिश्रित पानी की बूंदे मेरी गान्ड के छेद तक टपक कर आ गयी थी. 



"हे भगवान! हां!" मेरे मूँह से अजीब अजीब आवाज़ें निकल रही थी, जब धीरज अपने लंड से वीर्य की धार पर धार मेरी चूत में छोड़े जा रहा था. जैसे ही अपने लास्ट झटकों तक पहुचा उसके शरीर काँप उठा. उसके वीर्य के गरम गरम पानी की गर्माहट मैं अपनी चूत में महसूस कर पा रही थी, और जो बाहर निकल कर बह रहा था उसकी गर्माहट मेरी त्वचा महसूस कर रही थी.

"ओके संध्या, मुझे लगता हाँ, इसको एक किस की ज़रूरत है. तुम ही टेस्ट करो," धीरज ने मेरी चूत में से लंड को निकालते हुए संध्या को ऑर्डर दिया.

संध्या ने वो ही किया जो उसको बोला गया था, वो मेरे उपर से उतर गयी, और मुझे एक कामुक वासना से भरा हुआ किस किया, और फिर मेरे मूँह पर लगे अपनी चूत के पानी को चाट लिया. संध्या मेरे तरफ देख कर मुस्कुराने लगी.

"थॅंक यू" संध्या फुसफुसाई.

मैं भी वासना के नशे में डूबी हुई, संध्या की तरफ देख कर मैं भी मुस्कुरा दी, मानो कह रही हूँ, नही थॅंक यू तो मुझे बोलना चाहिए.

"बस एक लास्ट बात डॉली," धीरज बोला "तुमको ये सभी चाटना पड़ेगा" वो अपने लंड को हाथ में पकड़ते हुए बोला, लंड के सुपाडे के छेद में से वीर्य की एक बूँद निकल कर टपकाने को तय्यार थी.

"तुम को भी चैन नही है?" मैने पूछा.

"बस जो कह रहा हूँ, करती रहो, कोई सवाल नही" धीरज ने शांति से ऑर्डर दिया, और मेरे मूँह में अपने लंड को एक बार फिर से घुसा दिया. मैने वैसे ही किया जैसे मुझ से करने को बोला गया था, और मुझे भी अभी कुछ देर पहले झड्ने के बाद मज़ा आ रहा था. मैने उसके लंड से वीर्य की आख़िरी बूँद निचोड़ कर चूस ली, और मुझे दोनो बेहन भाई के चूत और लंड के पानी का स्वाद आज मिल गया था. 

जब धीरज को लगा कि अब उसके वीर्य की आख़िरी बूँद भी नीचूड़ चुकी है, तो वो उठ कर खड़ा हो गया, मानो बाथरूम में शवर लेने के लिए जाने वाला हो.

"अब तुम दोनो, मेरे हाथ पैर खॉलोगे भी या नही?" मैने पूछा.

संध्या ने घूम कर धीरज को देखा, मानो पूछ रही हो, "खोल दूँ?", लेकिन धीरज ने बस गर्दन हिला दी.

मेरी बात को सुन कर, दोनो भाई बेहन सहमति से गर्दन हिलाने लगे. धीरज ने संध्या को कुछ इशारा किया, और फिर शवर लेने के लिए बाथरूम में चला गया, और बस मैं और संध्या ही रूम में रह गये. 

संध्या ने एक कुटिल मुस्कान से मेरे को देखा और बोली, "ओके भाभी, अब मुझे तुमको खोल देना चाहिए." और फिर संध्या मेरे हाथ पाँव से बँधे उन रस्सी के टुकड़ों को खोलने लगी. और जब उसने मुझे खोल कर आज़ाद कर दिया, उसके बाद फिर से एक बार मेरे गाल पर एक प्यार भरा किस कर लिया.

"अब हम ननद भाभी ही नही, अच्छे दोस्त भी हैं, क्यों सही है ना?" संध्या ने हंसते हुए पूछा.

मैने एक पल एक लिए सोचा और फिर बोला, "नही... अब हम दोस्ती और ननद भाभी के रिश्ते से बहुत आगे निकल चुके हैं. बस कुछ मिनिट पहले ही तो तुम्हारी चूत को अपने मूँह से चूस रही थी... याद है ना."

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03-31-2019, 10:44 PM,
RE: Bhabhi ki Chudai भाभी का बदला
मैं और दीदी मेरी शादी के रिसेप्षन के लिए बुक, उस 5 स्टार होटेल के दीदी के रूम में सोफे बैठे हुए बातें कर रहे थे, और दीदी मुझे अपने ससुराल में बीते पिछले 6 महीनों के दौरान जो कुछ उनके साथ हुआ था, उसके बारे में बता रही थी.......

दीदी ने आगे बताना जारी रखा.....

"अब हम ननद भाभी ही नही, अच्छे दोस्त भी हैं, क्यों सही है ना?" संध्या ने हंसते हुए पूछा.

मैने एक पल एक लिए सोचा और फिर बोला, "नही... अब हम दोस्ती और ननद भाभी के रिश्ते से बहुत आगे निकल चुके हैं. बस कुछ मिनिट पहले ही तो तुम्हारी चूत को अपने मूँह से चूस रही थी... याद है ना."

संध्या के चेहरे पर चमक आ गयी और बोली, "हां, मुझे लगता है अब हम दोनो लवर बन चुके हैं. अगर मैं आपको अपने लवर कहूँ भाभी, तो आपको बुरा तो नही लगेगा ना?"

"हां, हां क्यों नही!" मुझे भी पहली बार किसी लड़की का लवर बन कर अच्छा लग रहा था, और असलियत में भी मुझे अब संध्या अच्छी लगने लगी थी.

उसी समय, धीरज बाथरूम से निकल कर गॅलरी में आकर डोर के अंदर झाँक कर बोला, “बाथरूम खाली है, अब तुम दोनो नहा लो, और सो जाओ, तुम दोनो से कल रात में फिर से मिलता हूँ.”

"क्या कहना चाहता है धीरज?" मैने फुसफुसाते हुए संध्या से पूछा.

"ओह, कल भैया तो ऑफीस जाएँगे और मुझे कल से एमबीए की कोचैंग क्लासस में जाना है."

"लेकिन, धीरज कल रात के बारे में क्या कह रहा था?"

"मुझे कहना तो नही चाहिए " संध्या थोड़ा झिझकते हुए बोली, "लेकिन भैया ने ज़रूर कुछ स्पेशल मस्ती का प्लान किया होगा, कल ही देख लेना. वैसे आप को एक बात बता दूँ भाभी, कल रात जो कुछ हम तीनों ने किया उसकी फोटोस मैने और भैया ने डिजिटल कॅमरा में क़ैद कर ली हैं. हम को इस तरह की फोटोस लेना और फिर बाद में उनको अकेले में देखना अच्छा लगता है."

मैने और संध्या ने एक साथ शवर लिया, और नहाते हुए बीच बीच में एक दूसरे को किस भी किया और सहलाया भी. जब तक हम दोनो नहा कर, नाइट्गॉन्स पहन कर बाहर निकले, रात का एक बज चुका था.संध्या ने मुझे अपने रूम में उसके पास ही सोने के लिया बुला लिया.

मैने संध्या का इन्विटेशन आक्सेप्ट कर लिया, और फिर हम दोनो उसके बेड पर चढ़ कर, एक ही ब्लंकेट में घुस गये, और अठखेलियाँ करने लगे. संध्या ने मुझे पीछे से अपनी बाँहों में प्यार से भर लिया. एक पल को मुझे लगा कि काश वो धीरज होता. मेरे दिमाग़ में तो बस एक ही बात घूम रही थी, कि कल रात ना जाने क्या होगा. मैं ये ही सोचती हुई संध्या की नरम बाँहों के आगोश में सो गयी.

अगली सुबह जब मैं उठी, तो मुझे अपने होंठों पर किसी के नरम नरम होंठों के स्पर्श का एहसास हुआ. जैसे ही मैने आँखें खोली, मैने संध्या को मेरी तरफ प्यार से देखते हुए पाया, और तभी मुझे एहसास हुआ, कि संध्या जीन्स टॉप पहन कर तय्यार हो बाहर जाने को तय्यार हो चुकी है. जैसे ही संध्या वहाँ से जाने को हुई, मैने उसको बाँह पकड़ कर उसको रोक लिया. 

"प्लीज़ मत जाओ संध्या." मैने संध्या को रिक्वेस्ट भरे अंदाज में कहा.

"आइ'म सॉरी, लेकिन मेरी सारे दिन कोचैंग क्लासस हैं भाभी," संध्या बोली.

"लेकिन, तुम बहुत अच्छी हो, क्या तुम बेड में मेरे पास नही आ सकती?"

संध्या ने एक गहरी साँस ली और बोली, "आ तो जाती, लेकिन भैया बाहर वेट कर रहे हैं..." इतना कहकर वो मेरी तरफ देखती हुई रूम से बाहर निकल गयी, और मैं उसे बस निहारते हुए देखती रही. कुछ देर बाद मुझे मेन डोर के बंद होने की आवाज़ सुनाई दी, और फिर यकायक पूरा घर सूना सूना हो गया.

मैं वैसे ही बेड पर बहुत देर तक सोती रही, और फिर बहुत देर बाद, बेड से उठकर लिविंग रूम में सोफे पर जाकर बैठ गयी. कुछ देर बैठ कर टीवी देखा, और फिर उन दोनो भाई बेहन के द्वड कलेक्षन को देखने लगी, जिसमे ज़्यादातर अमिताभ बच्चन, शाहरुख और सलमान ख़ान की मूवीस थी. मेरा बाहर घूमने जाने का मन हो रहा था, लेकिन अकेले जाने का मन नही कर रहा था. मैने फिर उस सारे दिन घर पर ही आराम करने का प्लान बनाया.

जब मैं द्वड पर एक मूवी को देखते हुए भी बोर होने लगी, तभी मुझे कल रात को जिस कॅमरा से संध्या ने मेरी फोटो ली थी उसको चेक करने का आइडिया मेरे दिमाग़ में आया. मैं चाहती थी, कि उसमे से मेरी फोटोस डेलीट कर दूं, पर पहले मैं ये देखना चाहती थी फोटोस आई कैसी हैं.

मैने संध्या के रूम में, आल्मिराह में और बाकी सब जगह उस कॅमरा को ढूँढा, लेकिन जब वो संध्या के रूम में कहीं नही मिला, तो मैने धीरज के रूम में चेक करने का सोचा. 

धीरज के बेड के ड्रॉयर में मैने सोचा पॉर्न की डीवीडी और गंदी किताबें मिलेंगी, लेकिन ऐसा कुछ नही मिला. मैं बोर होने लगी. तभी मैं धीरज के कपड़े वाली आल्मिराह की तरफ बढ़ चली, उसको खोल कर मैने ढूँढना शुरू किया, तो उसके बॉक्सर्स के नीचे मुझे एक लकड़ी का छोटा सा बॉक्स दिखाई दिया. जैसे ही मैने उस बॉक्स को बाहर निकाला, मेरी धड़कन तेज होने लगी. जब मैने उस बॉक्स को खोला, तो उसके अंदर वो ही कॅमरा था जिस से संध्या ने कल रात मेरी फोटोस ली थी, और साथ में एक पेन ड्राइव भी थी. ये देख कर मेरी आँखें खुली की खुली ही रह गयी.

"लो मिल ही गया खजाना!" मैने अपने आप से कहा. मैने उस पेनड्राइव को तुरंत अपने लॅपटॉप में लगाया, तो उसमें केवल फोटोस ही फोटोस थी. शुरूवात में संध्या की पूरी तरह कपड़े पहने हुए, अलग अलग पोज़ में, अलग अलग ड्रेस में फोटोस थी. जब मैने गौर से देखा, तो इन फोटोस में संध्या थोड़ी छोटी नज़र आ रही थी, शायद ये दो तीन साल पुरानी फोटोस थी. उसकी चूंचियाँ के उभार भी अभी से थोड़े छोटे थे. मेरे दिमाग़ में आया, ना जाने कितने सालों से दोनो भाई बेहन ये सब कर रहे हैं. एक फोटो में संध्या ने एक छोटी से ब्लॅक ड्रेस पहन रखी थी, और वो ज़मीन पर झुकी हुई थी, और गर्दन उठा कर कॅमरा की तरफ देख रही थी, उसकी आँखों में मासूमियत थी. उस फोटो को देख, एक बार को मेरे पूरे शरीर में करेंट सा दौड़ गया.

अगली कुछ फोटोस दोनो संध्या आंड धीरज की थी, एक दूसरे को पकड़े हुए, और कॅमरा की देख कर मुस्कुराते हुए, वो सभी फोटोस धीरज ने कॅमरा को पकड़े हुए, अपना एक हाथ आगे बढ़ा कर अपनी और संध्या की अपने आप ही फोटोस ली थी. अगली कुछ फोटोस में वो दोनो किस कर रहे थे, और संध्या धीरज की शर्ट उतार रही थी. मैं किसी तरह अपने आप पर कंट्रोल कर के धीरे धीरे उन फोटोस को नेक्स्ट का बटन दबा रही थी. मैं उन सबा फोटोस को एक साथ देख लेना चाहती थी, लें हर एक फोटो का आनंद भी पूरा लेना चाहती थी. मुझे अब एहसास होने लगा था, कि ये फोटोस बस खेल खेल में ली गयी फोटोस नही है, लेकिन ये पोर्नॉग्रॅफिक भी नही थी, उन फोटोस को देख कर मेरे उपर एक अजीब सा असर होने लगा था, और तुम्हारे साथ बिताए हुए वो दिन मुझे याद आने लगे, और वो शादी से पहले हमारा वीडियो बनाना.

अगली कुछ फोटोस और ज़्यादा उत्तेजक थी, नेक्स्ट फोटो धीरज ने क्लिक की थी, वो नीचे संध्या की तरफ देख रहा था, और संध्या टॉपलेस होकर उसके पैरों के बीच बैठी थी, और संध्या ने धीरज का लंड अपने मूँह में भर रखा था. और अगली फोटो में धीरज का लंड संहीा की कच्ची नाज़ुक चूत में घुसा हुआ था, और संध्या की खुद की उंगलियाँ चूत के दाने को सहला रही थी. अगली फोटो संध्या के फेस की थी, इसमे उसका मूँह पूरी तरह खुला हुआ था, और उसकी आँखें ऐसे खुली हुई थी, जैसे अभी अभी उसकी चूत में लंड घुसा ही हो. ये सब देख कर मैं भी पागल होने लगी थी, मैने गाउन उठा कर देखा, मेरी पिंक पैंटी पर भी गीला धब्बा बन चुका था, मुझे अब कुछ करने की ज़रूरत थी. लेकिन तभी दिमाग़ बोला, बस एक फोटो और फिर कुछ करेंगे..... जैसे ही मैने अगली फोटो देखी, मैं ईक गहरी साँस ली. ये फोटो संध्या ने क्लिक की थी, इसमे वो खुद तो लेटी हुई थी, और उसका भाई उसकी चूत में अपना लंड घुसा रहा था, और धीरज ने उसकी दोनो चूंचियों को कस के अपनी हथेलियों में भर कर दबा रहा था, धीरज की आँखें कॅमरा को घूर रही थी.

तभी मेरे दिमाग़ में एक विचार आया, और मैं अपने लॅपटॉप को उठाकर संध्या के रूम की तरफ चल पड़ी. संध्या की आल्मिराह में से मैने वो बॅग निकाला, जो मैने कल रात देखा था. उसको खोल के देखा, उसमे कुछ रस्सी के टुकड़े थे, हॅंडकफ्स थे, कुछ लेदर की चीज़ें थी, और कुछ ऐसे खिलोने जो मेरी समझ में ही नही आए, और कुछ अलग अलग तरह के वाइब्रटर्स. मैने उनमे से एक वाइब्रटर निकाला, जो पिंक कलर का था, और उसके बीच में गोल गोल मोती थे. मुझे इन सब चीज़ों की कभी ज़रूरत ही महसूस नही हुई, तुमने राज मेरी सारी ज़रूरतें बिना इस तरह की खिलोनों के ही पूरी कर दी थी. 

जैसे ही मैने उसके नीचे लगे एक बटन जैसी चीज़ को दबाया, वो हरकत में आ गया, और वाइब्रट करने लगा, और वो लंड नुमा चीज़ आगे पीछे होते हुए गोल गोल घूमने लगी. पहली बार ऐसी चीज़ देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा. मैने उसको बटन से ऑफ किया, और फिर से लॅपटॉप पर फोटोस देखने लगी.

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03-31-2019, 10:44 PM,
RE: Bhabhi ki Chudai भाभी का बदला
मैं और दीदी मेरी शादी के रिसेप्षन के लिए बुक, उस 5 स्टार होटेल के दीदी के रूम में सोफे बैठे हुए बातें कर रहे थे, और दीदी मुझे अपने ससुराल में बीते पिछले 6 महीनों के दौरान जो कुछ उनके साथ हुआ था, उसके बारे में बता रही थी.......
दीदी ने आगे बताना जारी रखा.....

जैसे ही मैने उसके नीचे लगे एक बटन जैसी चीज़ को दबाया, वो हरकत में आ गया, और वाइब्रट करने लगा, और वो लंड नुमा चीज़ आगे पीछे होते हुए गोल गोल घूमने लगी. पहली बार ऐसी चीज़ देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा. मैने उसको बटन से ऑफ किया, और फिर से लॅपटॉप पर फोटोस देखने लगी. 

बस एक ही पल में, मैने अपनी पैंटी उतार कर नीचे फर्श पर फेंक दी, और अपने एक हाथ से अपनी चूत को सहलाने लगी, और चूत के दाने को अपनी एक उंगली से गोल गोल कर मसल्ने लगी, मुझे अपनी चूत से निकल रहे चिकने पानी से सहलाने के बाद निकल रही आवाज़ सॉफ सुनाई दे रही थी. मैं अपने राइट हॅंड से पिक्चर व्यूवर में लॅपटॉप पर नेक्स्ट का बटन दबाए जेया रही थी, अगली फोटो में संध्या अपनी बाहों को नीचे टिका कर, घोड़ी बनी हुई थी, और धीरज उसको पीछे से चोद रहा था. मैं उस फोटो में सॉफ देख रही थी, कैसे संध्या की नाज़ुक सी चूत से पानी निकल रहा था, और वो अपने भैया से डॉगी स्टाइल में चुदवा रही थी. संध्या के चेहरे पर आ रहे एक्सप्रेशन्स को देख कर, मुझ से भी अब बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था. मेरे शरीर में भी गर्मी बढ़ी जा रही थी, मेरे कान गरम होने लगे थे, मेरी पीठ, और मेरे सारे शरीर में एक आग सी लग गयी थी. 

मैने फिर उस वाइब्रटर को अपने हाथ में लिया, और अपनी चूत के पानी से गीली हुई उंगलियों को उस वाइब्रटर की लंडनुमा चीज़ पर घुमाया, और फिर आराम से अपने अंदर घुसा लिया. उस वाइब्रटर को चिकना और गीला करने में, और फिर पूरा अपनी चूत में घुसाने में, मुझे कई बार मेहनत करनी पड़ी. मुझे उन गोल मोतियों की फाय्दे का जब मालूम पड़ा, जब वो वाइब्रटर मेरी चूत में पूरा घुस गया, और वो मोती मेरी चूत के दाने की मसाज करने लगे. वाइब्रटर के कान जैसी चीज़ों ने मेरी चूत के दाने को जकड लिया, और नीचे एक निकली हुई चीज़ ने मेरी गान्ड का सहारा ले लिया. मैं उस वाइब्रटर को अपनी चूत में अंदर बाहर करने लगी, और लॅपटॉप पर अगली फोटो का आनंद लेने लगी. इस प्रकार झड्ने में ज़्यादा देर नही लगती, लेकिन मेरी लॅपटॉप पर अगली फोटो देखने में ज़्यादा दिलचस्पी थी.

अगली फोटो में जो मैने देखा, वो अविश्वसनीय था. ये संध्या की फोटो थी, इसमे संध्या के दोनो हाथ पैर बेड से बँधे हुए थे, और कॅमरा को उसकी फैलाई हुई दोनो टाँगों के बीच रखकर उसकी चूत की मस्त फोटो ली गयी थी, इसमे फोटो लेते धीरज के लंड का सुपाड़ा भी नीचे दिखाई दे रहा था . मुझे विश्वास नही हो रहा था, ये दोनो भाई बेहन ना जाने क्या कुछ, और किन अजीब तरीकों से चुदाई कर चुके हैं. संध्या के हाथ जिन रस्सी के टुकड़ों से बँधे हुए थे, वो रस्सी वो ही थी जिस से कल रात मेरे हाथ पैर बाँधे गये थे. संध्या के चेहरे पर लाचारी नज़र आ रही थी, लेकिन एक संतुष्टि का भाव भी था. मुझे कल रात संध्या की चूत का चाटना, और मेरा इसी तरह बाँध कर धीरज से हुई चुदाई याद आ गयी. मैने वाइब्रटर को बटन दबा कर ऑन कर लिया.

वाइब्रटर का लंड मेरी चूत में आगे पीछे होकर गोल गोल घूमने लगा, और मेरी चूत के दाने को बीच बीच में छेड़ने लगा. वाइब्रटर की लंड नुमा चीज़ को मैने पूरा अपनी चूत में घुसा लिया, और उसमे से कान जैसे निकली हुई चीज़ मेरे चूत के दाने को अब बराबर सहलाने लगी. और नीचे से एक अलग ही चीज़ मेरे गान्ड के छेद को छेड़ने लगी, मुझे लग रहा था, कि इतना सब एक साथ होने के कारण, मैं जल्द ही झड जाउन्गि.

मैने वाइब्रटर के बटन को पूरा दबा दिया, मेरी चूत को ऐसा आनंद पहले कभी नही मिला था, ऐसा लगा मानो मैं किसी और ही दुनिया में पहुँच गयी हूँ. मेरा ध्यान अब लॅपटॉप की फोटोस पर से हट गया था, और मेरी गान्ड और कमर अपने आप उछलने लगी थी. मैने अपने नाइट्गाउन उपर खींच कर गले तक उठा लिया, और अपनी चूंचियों को दोनो हाथों से दबाने लगी, और निपल्स को मसल्ने लगी, नीचे चूत में वाइब्रटर अपना काम कर रहा था. मेरे मूँह से अपने आप अजीब अजीब ओह शिट, आहह, बेहनचोद और ना जाने क्या क्या आवाज़ें निकलने लगी. मेरे मूँह से फिर कराह निकली... चोद दो... मेरे दिमाग़ में धीरज और संध्या की चुदाई की फोटोस घूम रही थी, उस समय मुझे चूत लंड और चुदाई के सिवा और कुछ नही सूझ रहा था, और मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था. मैं अब पूरी तरह बेड पर लेट गयी थी, और कमर उछाल उछाल कर छत की तरफ देख रही थी, हालाँकि सब कुछ धुंधला धुँधला दिखाई दे रहा था. मेरा मूँह खुला हुआ था, मानो ज़ोर से चीख निकलने ही वाली हो, लेकिन बस वाइब्रटर की चूत में घुस कर निकल रही आवाज़, और मेरी ज़ोर ज़ोर से चल रही साँसों की आवाज़ ही सुनाई दे रही थी. मैने अपने शरीर पर कंट्रोल करने के लिए, वाइब्रटर को दोनो हाथों से पकड़ लिया, लेकिन उसके वाइब्रेशन्स इतने तेज थे कि मैने फिर से हाथ हटा लिए. मैने उस वाइब्रटर को बाहर निकालने की कोशिश की, लेकिन उस की किसी चीज़ ने मेरी चूत के दाने को इस तरह सहलाया, कि मेरे पूरे शरीर में एक खुशी की तरंग दौड़ गयी. मेरा चेहरा लाल हो चुका था, मेरी आँखें बंद थी, और झड्ते हुए मेरी चूत इस तरह पानी छोड़ रही थी, जैसा मेरी याददाश्त में उसने पहले कभी नही छोड़ा था.

कुछ मिनिट्स के बाद, मुझे होश आया, और मैने उस वाइब्रटर को अपनी टाँगों के बीच से निकाला, जो कि अभी भी चूत के दाने पर अपनी हरकत करना जारी रखे हुए था, लेकिन चूत में से वाइब्रटर को निकालते हुए, उसकी नीचे वाली चीज़ ने मेरी गान्ड के छेद पर दबाव बना दिया और फिर जब मैने उसे थोड़ा उपर किया तो फिर से उसने मेरी चूत के दाने को छेड़ दिया, इस सब के बीच मैं दोबारा झड्ने के करीब पहुँच गयी, मेरे मूँह से फिर से कुछ आंट शन्ट बातें निकली, और मेरा शरीर झड्ते हुए काँपने लगा. मुझे इस तरह इतना जल्दी दो दो बार झडने की आदत नही थी, और मेरी चूत ने फिर से ढेर सारा पानी छोड़ दिया.

फिर मैने किसी तरह, उस वाइब्रटर को अपनी चूत और गान्ड में से निकाला, जैसे ही वो बाहर आया, मेरा शरीर ना चाहते हुए भी, एक बार फिर से काँप गया. मैं वहीं बेड पर लेट कर अपनी चूंचियों को सहलाती रही, जब तक कि मेरा शरीर पूरी तरह झड्ने के बाद शांत नही हो गया. 

मैने बाकी सभी फोटोस बाद में देखने का फ़ैसला किया, और उस पेन ड्राइव में जो कुछ था, उसको अपने लॅपटॉप की एफ ड्राइव पर सेव कर लिया. अभी दोपहर के 2 ही बजे थे, और संध्या के आने में अभी 3 घंटे बाकी थे. मैने वाइब्रटर को धोकर सॉफ किया, और उस ख़ुफ़िया बॅग और बॉक्स को पहले की तरह उसी जगह रख दिया, मैने उस बॅग का नाम ख़ुफ़िया बॅग रख दिया था.

उसके बाद मैं नहाने चली गयी, फिर लंच किया, और फिर टीवी देखते हुए संध्या के लौटने का इंतेजार करने लगी.

उस रात डिन्नर संध्या ने बनाया, और हम तीनों डाइनिंग टेबल पर एक साथ बैठ कर जब डिन्नर कर रहे थे, तो एक दूसरे को कुटिलता भरी नज़रों से देख रहे थे, और बीच बीच में मुस्कुरा भी जाते. मुझे उन दोनो भाई बेहन का प्यार और चुदाई से कोई गिला नही था , और सच कहूँ तो मैं तो खुद इस सब से गुजर चुकी थी, तो मुझे तो थ्रीसम में और ज़्यादा मज़ा रहा था. 

मुझे भी हम दोनो भाई बेहन के वो दिन याद आने लगे, जब शुरूवात में राज, कैसे तुम केवल मेरी चूंचियाँ देखकर ही मूठ मार लिया करते थे, फिर मुझे केवल पैंटी में देखना ही तुम्हारे मूठ मारने के लिए बहुत था, फिर उसके बाद मेरी नंगी चूत देखकर तुम अपना माल निकालते थे, उस सब के बाद मैं भी तुम्हारे सामने अपनी चूत में उंगली डालने लगी थी, फिर मैने तुम्हारे लंड को पहली बार चूसा था, फिर हम ने पहली बार चुदाई की थी, और वो लोंग ड्राइव पर खेतों के बीच बारिश में चुदाई तो हमेशा याद रहेगी. थॅंक यू राज, उन दिनों को मैं कभी नही भुला पाउन्गि. मैं धीरज और संध्या के बीच जो कुछ हुआ था, और जो कुछ चल रहा था, उसको अपनी स्वीकृति दे चुकी थी. 

डिन्नर के बाद उस रात, और लगभग हर रात को हम तीनों मिलकर वासना का नंगा नाच नाचते, और खूब चुदाई करते. ये सब पिछले महीने तक चलता रहा, जब तक कि संध्या के एमबीए मे अड्मिशन होने के बाद, वो बंगलोर नही चली गयी. 

ये सब बताते हुए, मुझे और दीदी को टाइम का पता ही नही चला, जब मैने घड़ी की तरफ देखा, तो सुबह के तीन बज रहे थे. मैने पूछा, दीदी ये तो ठीक है, लेकिन आपने संध्या से पूछा नही, कि उन दोनो भाई बेहन के बीच ये सब शुरू कैसे हुआ?

दीदी ने धीरज की तरफ देखा, और बोली हां....

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03-31-2019, 10:44 PM,
RE: Bhabhi ki Chudai भाभी का बदला
मैं और दीदी मेरी शादी के रिसेप्षन के लिए बुक, उस 5 स्टार होटेल के दीदी के रूम में सोफे बैठे हुए बातें कर रहे थे, और दीदी मुझे अपने ससुराल में बीते पिछले 6 महीनों के दौरान जो कुछ उनके साथ हुआ था, उसके बारे में बता रही थी.......
दीदी ने आगे बताना जारी रखा.....

ये सब बताते हुए, मुझे और दीदी को टाइम का पता ही नही चला, जब मैने घड़ी की तरफ देखा, तो सुबह के तीन बज रहे थे. मैने पूछा, दीदी ये तो ठीक है, लेकिन आपने संध्या से पूछा नही, कि उन दोनो भाई बेहन के बीच ये सब शुरू कैसे हुआ?

दीदी ने धीरज की तरफ देखा, और बोली हां, उसकी भी एक रोचक कहानी है, जो मुझे संध्या ने सुनाई थी... 
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संध्या की कहानी संध्या की ज़ुबानी....

धीरज के घर भी हमारे घर की तरह ही ड्यूप्लेक्स बना हुआ है. ग्राउंड फ्लोर के बेड रूम में धीरज के मम्मी पापा सोते हैं, और फर्स्ट फ्लोर पर धीरज और संध्या के अलग अलग रूम हैं. दोनो फ्लोर्स पर एक एक टाय्लेट कम बाथ रूम है. सभी के रूम्स और लिविंग रूम में टीवी लगे हुए हैं. 

मम्मी पापा कुछ 4-5 दिनों के लिए, किसी फंक्षन को अटेंड करने लिए, बाहर दूसरे शहर गये हुए थे. 

उन दिनों, एक रात जब मैं (संध्या), टाय्लेट यूज़ कर के अपने रूम में लौट कर आ रही थी, तब मैने देखा कि धीरज के रूम में टीवी चल रहा है, और उसका डोर थोड़ा सा खुला हुआ है. 


टीवी पर शायद अनिमल प्लॅनेट का कोई एपिसोड चल रहा था, धीरज ने टीवी की आवाज़ बहुत कम कर रखी थी. संध्या ने जब अंदर झाँक कर देखा, तो धीरज अपने बेड पर सो रहा था, उसका ब्लंकेट ज़मीन पर गिरा पड़ा था, और उसका बड़ा भाई सिर्फ़ बॉक्सर पहन कर सो रहा था. 

कुछ मिनिट्स ऐसे ही देखते रहने के बाद, मेरी आँखें भी नींद से भारी हो रही थी, मैने रूम में घुसकर टीवी के रिमोट से उसको ऑफ करने का फ़ैसला लिया, लेकिन तभी भैया की तरफ से कुछ आवाज़ सी सुनाई दी. मैने सोचा वो मुझ से कुछ कह रहे है, मैने पूछा, “क्या हुआ भैया?”

लेकिन मुझे भैया की तरफ से कुछ भी आन्सर नही मिला, भैया का एक हाथ अपनी छाती पर रखा था, और दूसरा अपनी कमर के नीचे दबा हुआ था. मुझे लगा कि कहीं भैया नींद में तो कुछ नही बोल रहे. जैसे ही मैने टीवी को रिमोट से ऑफ किया, पूरे रूम में अंधेरा हो गया.

भैया ने फिर से एक आवाज़ की. इस बार मुझे यकीन हो गया, कि वो मुझसे कुछ नही कह रहे हैं, बस सोते हुए आवाज़ें निकाल रहे हैं. मैने भैया के उपर कंबल डाला, और उनको सोते हुए देख उनके रूम से बाहर निकल आई.

जैसे ही मैं रूम से बाहर निकल कर गॅलरी में आई, मुझे फिर से एक और आवाज़ सुनाई दी, उस आवाज़ ने मुझे वहीं पर रोक दिया. वो आवाज़ किसी के..... कराहने की थी. मैं अपनी साँसें रोक कर सुनने लगी. हां.... ये कराहने की ही आवाज़ थी. हे भगवान, भैया सपने में ना जाने क्या सोच रहे हैं? मुझे एक बार तो थोड़ी हँसी आई, लेकिन मैने उसको रोक लिया. भैया, भी ना... इनकी कोई गर्लफ्रेंड तो कोई थी नही... और सही कहूँ तो मेरा भी कोई बाय्फ्रेंड नही था. ये सोच कर मुझे थोड़ी सी हँसी आ ही गयी, मैने अपने मूँह पर हाथ रख कर, हँसी की आवाज़ को दबाने की कोशिशी की.

तभी भैया के रूम से एक और कराहने की आवाज़ सुनाई दी और फिर “म्म्म्ममम...”. मेरी उत्सुकता और ज़्यादा बढ़ गयी, मैं समझ नही पा रही थी, की ये बस उत्सुकता थी या फिर मैं भैया के कराहने की आवाज़ से खुद भी एग्ज़ाइटेड होने लगी थी, कहना मुश्किल था. लेकिन सब कुछ मुझे अंदर ही अंदर हँसने पर मजबूर कर रहा था.

मैं साँस रोक कर, चुप चाप खड़े होकर, ध्यान से सुनने लगी. और एक बार फिर से आवाज़ सुनाई दी ! भैया के करहाने की, और उनके करवट बदलने की. मैने मूँह में आए हुए थूक को अंदर सटक लिया. भैया के कराहने की आवाज़, और तेज तेज साँस लेने की आवाज़ मैं सॉफ सॉफ सुन रही थी.

मैने मन ही मन सोचा, “क्या भैया, मूठ मार रहे हैं?”

बस ये ख्याल आते ही मेरे दिमाग़ में भैया के अपने लंड के साथ खेलते हुए की तस्वीर मेरे दिमाग़ में घूमने लगी. कुछ साल पहले मैने भैया को अपने लंड के साथ खेलते हुए देखा था, तब मैं बहुत छोटी थी, उस के बाद भैया ने मेरे साथ पूरे एक सप्ताह तक बात नही की थी. वो सब याद आते ही मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी. भैया के इस तरह सोते हुए कराहने की आवाज़ सुन कर मुझे बहुत मज़ा आ रहा था, और मैं भी एग्ज़ाइटेड हो रही थी.

मैं चाहती तो वहाँ से जा सकती थी, लेकिन मैं वहाँ से खुद ही नही जाना चाहती थी. भैया की फिर से एक कराहने की आवाज़ आई, और मैं फिर से भैया के रूम की तरफ बढ़ चली. मैने अपने आप को संभालते हुए, अपनी साँसों को संयत करने का प्रयास किया. भैया के रूम के अंदर झाँक कर देखा, तो अंधेरे में भैया के बेड पर लेटे होने की धुंधली से तस्वीर दिखाई दी, वो उस वक़्त बिल्कुल हिल डुल नही रहे थे.

मैने रूम के अंदर जाकर, अंधेरे में फिर से टीवी के रिमोट को ढूँढना शुरू किया, जहाँ मैं उसको रख कर थोड़ी देर पहले गयी थी. जैसे ही मुझे रिमोट मिला, मैने टीवी ऑन कर दिया. टीवी के ऑन होते ही एक आवाज़ आई, मैं थोड़ा घबरा गयी, और चेयर के पीछे चुप गयी. मैं नही चाहती थी कि भैया को पता चले कि मैं उनको देख रही हूँ. 

टीवी के ऑन होते ही रूम में रोशनी हो गयी, चेयर के पीछे छुपे हुए ही, मैं देखने लगी कि कहीं भैया जाग तो नही गये हैं. भैया एक बार फिर से कराहे, और इस बार उनकी आवाज़ थोड़ी अलग तरह की थी. मानो वो करहाने की आवाज़ को दबाने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन फिर भी वो निकल ही गयी हो. मुझे इस तरह चुप कर देखते हुए एक अलग ही मज़ा आ रहा था.

मैं थोड़ा उपर हो गयी. मेरे दिमाग़ में ख्याल आया, कि कहीं यदि भैया जागे हुए हो और उन्होने मुझे इस तरह चुप कर देखते हुए पकड़ लिया तो फिर क्या होगा. भैया बस एक पल में समझ जाएँगे की मैं वहाँ क्या कर रही हूँ. मैं तुरंत सीधी खड़ी हो गयी, मानो मैं पहले से वहाँ पर ऐसे ही खड़ी थी.

भैया सो रहे थे, या फिर कम से कम उनकी आँखें तो बंद थी. मैं सब कुछ भूल कर भैया को खड़े होकर देखने लगी, वो वैसे ही पहले की तरह सो रहे थे, जैसे मैने कुछ मिनिट्स पहले देखा था. बस उनका हाथ अब उनकी छाती पर नही था, और उनका मूँह खुल गया था. उनके मूँह से फिर एक कराह निकली, मेरी साँसें तेज होने लगी.

मेरी आँखें भैया के बदन को उपर से नीचे तक निहारते हुए उनकी कमर पर आकर रुक गयी, मेरा मूँह खुला का खुला ही रह गया जब मैने देखा, भैया के बॉक्सर में उनका लंड पूरी तरह खड़ा होकर, उसने बॉक्सर में टेंट बना रखा था. वो बिल्कुल सीधा नही खड़ा था, लेकिन फिर भी बहुत कुछ सीधा ही था. तभी भैया के मूँह से आवाज़ निकली, और उनके हिप्स थोड़ा सा हिले. उनके लंड में भी हलचल हुई, और भैया थोड़ा सा हाँफने लगे.

ये सब मैं मन्त्र मुग्ध होकर देख रही थी.

अब बहुत देर हो चुकी थी, अब वहाँ से जाना असंभव था, ये मेरी समझ में आ चुका था. और मुझे अब अपने शरीर पर भी काबू रखना मुश्किल हो रहा था. मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था. मैं अपने आप को समझाने की कोशिश कर रही थी, कि मेरा दिल डर की वजह से जोरों से धड़क रहा है. मुझे अब भी दिल के किसी कोने में ये डर था, कहीं मैं पकड़ी ना जाऊं. लेकिन ये भी सच था कि मैं बहुत गरम हो चुकी थी.
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