Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 01:52 AM,
#81
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
थोड़ी देर तक उसकी पीठ पर मुँह टिकाए मे पड़ा रहा जैसे भैंस को चोदने के बाद भैंसा उसके उपर अपनी तूतडी रखे पड़ा रह जाता है.

हम दोनो की साँसे बहुत तेज चल रही थी, मानो मीलों दौड़ कर आए हों.

बहुत देर तक उसकी पीठ पर लंड गान्ड में ही डाले मे पड़ा रहा, जब उठा और अपना लंड गान्ड से खींचा…पुकच्छ.. की आवाज़ करके वो बाहर आ गया,

उसकी गान्ड से मेरा घी रिस-2 कर निकल रहा था, और उसकी चूत के रास्ते टपक रहा था.

कुछ देर उसकी बगल में पड़े रहने के बाद उसके होठों को चूमते हुए पुछा.. भाभी..!

वो खुमारी मे पड़ी थी.. मेरी आवाज़ सुन कर बोली…हमम्म..!

मे- कैसा लगा गान्ड मराने में ..? मज़ा आया..? 

वो- हॅम.. मज़ा तो आया पर अब दर्द हो रहा है.. उसमें, लग रहा है जैसे किसी ने बहुत पिटाई की हो.. और हँसने लगी.. ! तुम खुश हो.. पुछा उसने..

बहुत..! मे बोला… ! और आप..?

तो वो बोली- तुम खुश तो मे भी खुश हूँ.

ऐसे ही थोड़ी देर पड़े-2 बात-चीत करने के बाद मे उठा, कपड़े पहने और अपने हॉस्टिल लौट आया…..!!!

हमारे एग्ज़ॅम ख़तम हो चुके थे, सभी स्टूडेंट्स अपने-2 घरों को जा रहे थे. हमारा अभी तक कोई प्लान नही बना था कहीं भी जाने का.

तभी ऋषभ बोला- अरे दोस्तो ! एक काम करें..? हमरे गाँव के पास एक नदी है, वहाँ जेठ दशहरा के पर्व पर एक मेला लगता है, 

ऐसी मान्यता है कि दशहरे के दिन सूर्योदय के समय उस नदी में स्नान करके सुर्य देव को अर्घ्य देने से मनोकामना पूरी होती है..

जगेश- ऋषभ..! फिर तो तेरे इलाक़े में कोई दुखी नही होगा.. क्यों ?

ऋषभ- ऐसी बात नही है यार…! पर ऐसा बताते हैं, कि बनवास के दौरान भगवान राम वहाँ गये थे और कुछ दिन रुक कर, वहाँ के लोगों को दुष्ट असूरों से मुक्ति दिलाई थी..

मे- जगेश हर बात को मज़ाक में मत लिया कर भाई ! हो सकता है, जिनकी भावनाएँ शुद्ध हों उनकी मनोकामना पूरी हो जाती हो. ये दुनिया स्वार्थ से भरी है, अब स्वार्थ सिद्धि को मनोकामना तो नही कह सकते ना..?

धनंजय- अरुण तेरी यही ख़ासियत मुझे बहुत अच्छी लगती है, तू किसी भी बात को नेगेटिव तरीक़ा से में नही लेता. मनोकामना तो बाद की बात है, एक उत्सव मान कर ही हमें वहाँ चलना चाहिए.. ! क्या बोलते हो तुम लोग..?

मे- हां बिल्कुल चलना चाहिए..!

ऋषभ- तो फिर कल ही निकल लेते हैं, मेरे ख्याल से दो दिन बाद ही मेला शुरू हो रहा है, आज से 5-6 दिन बाद दशहरा है.

ऋषभ का घर इलाहाबाद से कोई 50-60किमी दूर पूरव की ओर स्थित एक बड़े से *** गाँव में था.

दूसरे दिन सुबह ही हम चारों ने ट्रेन पकड़ी इलाहाबाद तक, वहाँ से स्टेट ट्रांसपोर्ट की बस जाती थी उसके गाँव तक.

शाम होते-2 हम ऋषभ के गाँव पहुँच गये, उसके घरवाले हमें देख कर आती-प्रशन्न हुए, बड़े मिलनसार लोग थे उसके परिवार के लोग.

ऋषभ के घर में उसके पिता जी राम किशन शुक्ला जो खेती वाडी करते थे, माँ गायत्री देवी, दो छोटी बहनें (ट्रिशा और नेहा) और एक सबसे छोटा भाई (सोनू), और एक ऋषभ की विधवा दादी, कुल मिलाकर ऋषभ समेत 7 सदस्यो का परिवार था उसका.

ऋषभ के तीनो बेहन भाई पढ़ते थे, ट्रिशा कॉलेज पहुँच गयी थी, निशा 12थ में थी और सोनू 9थ क्लास में पढ़ रहा था.

सबसे मिल मिलकर रात का खाना खा पीकर दिन भर की यात्रा से थके हारे जल्दी बिस्तर पकड़ कर सो गये.

जैसा कि उस जमाने में गाँव के लोग सौच के लिए जंगल में या खेतों में ही जाते थे, तो सुबह उठकर, लोटे पकड़े और सौच के लिए निकल गये एक साथ. 

घर आकर फ्रेश हुए, चाइ नाश्ता किया, और फिर प्लान बनाया मेले वाली जगह घूमने का.

जहाँ मेला लगना था, वो जगह ऋषभ के घर से कोई 2 किमी दूर एक नदी के किनारे बना शिव मंदिर था वहीं मेला लगता था. 

मेले की तैयारी चल रही थी, कल से मेला शुरू होना था. 5 दिन चलने वाले मेले के लिए, झूले वग़ैरह, दुकानों का बन्दोवस्त ये सब हो रहा था.

जगह बड़ी रामदिक थी वो, छोटी-2 पहाड़ियों से गुजरती नदी किनारे पर उँचे-2 पेड़ों से घिरा मंदिर चारों ओर हरियाली दिखाई दे रही थी गर्मी के दिनों में भी ठंडक रहती थी उस मंदिर के आस-पास. 

थोड़ी देर नदी के पानी में उतर कर नहाए, जून के महीने में ठंडे-2 पानी में नहाने से मज़ा आ गया. नहा धो कर मंदिर में भगवान भोले नाथ के आगे माथा टेका और घर लौट लिए.

दूसरे दिन से मेले की सरगर्मियां शुरू हो गयी, गाँव में सब लोग अति-उत्साहित थे मेले को लेकर. 

पहला दिन था तो ज़्यादा लोगों के आने की उम्मीद तो नही थी, फिर भी बच्हों का शौक, नेहा और सोनू मेला घूमने की ज़िद करने लगे तो उनके साथ जगेश और धनंजय को भी भेज दिया. 

मेरा मन नही हुआ आज जाने का, तो मेरी वजह से ऋषभ भी नही गया.

मेले में नेहा और सोनू के स्कूल फ्रेंड्स भी मिल गये, वो दोनो बेहन-भाई अपने दोस्तों के साथ घुल-मिलकर मेला एंजाय करने लगे, धनंजय और जगेश बच्चों को बोल कर मंदिर के पास पेड़ों की छाया में बैठ कर बातें करने लगे.

लगभग एक घंटा ही बीता होगा, कि सोनू और उसका एक दोस्त दौड़ता हुआ आया और हान्फते हुए बोला….. !!


भैया चलो ना वहाँ कुछ लोग नेहा और उसकी सहेलियों को छेड़ रहे हैं.

वो दोनो उन बच्चों को लेकर दौड़े उस तरफ जहाँ वो सब वाक़या हो रहा था. वहाँ जाके उन्हें जो नज़ारा देखने को मिला वो कुछ इस तरह था,

नेहा और उसकी दो सहेलियाँ जो उसकी क्लास मेट थी, उनके साथ और दो उनकी छोटी बहनें जो लगभग सोनू की एज की होंगी और दो छोटे बच्चे.

वो 7 लड़के थे, 3 ठीक ठाक शरीर के, 4 दुबले पतले लंबे-2 बाल आवारा किस्म के देहाती मजनू टाइप लौन्डे 22 से 25 की उमर के.

तीन लड़कों ने उन तीनों लड़कियों की कस्के कलाई पकड़ रखी थी, वो बेचारी दूसरे हाथ का सहारा देकर छुड़ाने की भरपूर कोशिश कर रही थी, वाकी के लड़के उनके नाज़ुक और कोमल अन्छुए अंगों के साथ छेड़-छाड़ कर रहे थे.

कोई उनके बूब दबा देता, कोई गान्ड तो कोई गाल काट लेता. बच्चे उनको छुड़ाने की कोशिश तो कर रहे थे लेकिन सफल नही हो पा रहे थे.

कुछ लोग तमाशा भी देख रहे बस खड़े-2 लेकिन मदद के लिए कोई आगे नही आया… 

ऐसी ही है ये दुनिया, जब अपनी बात आती है तभी बोलते हैं, और तब कोई दूसरा नही आता साथ देने.
Reply
12-19-2018, 01:53 AM,
#82
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
यही कारण है कि बुराई का कभी भी किसी भी युग में अंत नही हो पाया, क्योंकि उसका हमने कभी एक जुट होकर मुकाबला ही नही किया.

धनंजय उन लड़कों पर गुर्राते हुए बोला- आए छोड़ो इन्हें, क्यों छेड़ रहे हो..?

1- क्यों..? तेरी बेहन लगती है ये..?

धनंजय- हां मेरी बेहन है ये, लेकिन तेरी भी तो कुछ लगती ही होगी..?

2- इसकी तो ये होने वाली लुगाई है.. अब बोल..

जगेश- अपनी होने वाली लुगाई से ज़ोर ज़बरदस्ती कॉन करता है.. बे.

3- आए… तुम लोग फुट लो यहाँ से वरना …!!! इतना ही बोल पाया था वो, कि धनंजय का वो झन्नाटेदार हाथ पड़ा उसकी कनपटी पर कि उसका उस तरफ का वो कान सुन्न पड़ गया. 

दूसरा लड़का जो शरीर में ठीक ठाक था, अपनी बाजू चढ़ाता हुआ जगेश की ओर लपका, जैसे ही वो उसपे अटॅक करनेवाला था, जगेश ने उसकी बाजू पकड़ी, पलटा, अपनी पीठ पे लिया और वो धोबी पछाड़ मारा कि उसकी कमर ही बोल गयी.

उधर धनंजय ने दो लड़कों के सिर आपस में कड़क कर दिए..

वो तीनों लड़के जो उन लड़कियों को पकड़े हुए थे छोड़ कर उन दोनो की ओर लपके दोनो की टाँगें एक साथ हवा में उठी और धड़ाक से उन दोनो के मुँह पर उनके जूतों की किक पड़ी, लड़कों की नाक से खून बहने लगा.

तीसरा अभी कुछ समझ पाता कि धनंजय का एक जबर्जस्त ठकुराटी घूँसा उसकी कनपटी पर पड़ा और चक्कर खाकर वहीं ढेर हो गया..

जब तक वो लौन्डे उठके खड़े होते कि फिर से उनके कहीं ना कही पड़ जाता, फिर से कोई खड़ा हो फिर पड़े और वो धूल चाटते दिखाई देते. जगेश और धन्नु के हाथ और पैर इतनी तेज़ी से चल रहे थे कि उन लड़कों को संभलने तक का मौका नही मिल पा रहा था, उन सातों लड़कों को लात घूँसों पर ही रख लिया दोनो ने.

10 मिनट में ही वो सभी ज़मीन पर पड़े-2 कराह रहे थे. भीड़ लग गयी वहाँ तमाशा देखने के लिए.

वो तीनों लड़कियाँ और बच्चे उन दोनो से रो कर लिपट गये. उन्हें अपने से लिपटाए हुए धनंजय भीड़ पर गरजा.

क्यों.? क्या देख रहे हो आप सब लोग ? यहाँ कोई तमाशा हो रहा है ? अरे कुछ तो शर्म करो, इतनी भीड़ में कोई भी मर्द नही जो इन बच्चों की मदद को आगे आ सकता हो, क्या सब के सब हिज़ड़े हैं यहाँ पर..?

भीड़ से एक आदमी बोला- आए लड़के ज़ुबान संभाल कर बात कर..

तभी एक बुजुर्ग बोले - क्या ग़लत कहा है उसने, तुम लोग हिज़ाड़ों की तरह खड़े-2 तमाशा ही तो देख रहे थे..! शायद इंतजार कर रहे होगे कि कब इन बच्चियों के कपड़े फटें और इनके नाज़ुक अंगों को देख सको..

अच्छा सबक सिखाया बेटा तुम लोगों ने इन हराम जादो को, और फिर उस आदमी की तरफ घूम कर वो बुजुर्ग बोले - इतना ही मर्द है तो करले दो-दो हाथ इनके साथ.

वो आदमी चुप-चाप वहाँ से खिसक गया और भीड़ में कहीं खो गया.
थोड़ी देर में सब लोग फिर मेला एंजाय कर रहे थे..!

लेकिन अब मेले का एंजाय्मेंट कुछ बदल गया था, नेहा की सहेलियाँ उन दोनो से इतनी इंप्रेस हो चुकी थी कि उनकी नज़रें उनसे हट ही नही रही थी और अब वो तीनो में जगेश और धनंजय से चिपकने की होड़ सी लग गयी. 

वाकी बच्चे अपने-2 में मस्त थे.. और आगे-2 मेले में इधर से उधर घूमते फिर रहे थे. कभी कुछ खाने लगते, तो कभी किसी शो में घुस जाते.

उन दोनो को भी लड़कियों की फीलिंग का आभास हो रहा था, लेकिन वो नेहा से बचना चाहते थे, आख़िर वो थी तो उनके जिगरी दोस्त की छोटी बेहन ही.

पर नेहा के कोमल मन को इससे क्या..? वो तो बस अपनी दोस्तों को फॉलो कर रही थी और सोच रही थी कि इनसे ज़्यादा तो उसका हक़ बनता है इन पर.

नेहा ने धनंजय का हाथ पकड़ रखा था और यथासंभव अपनी बगल में सटा लिया था और चलते-2 बोली- थॅंक यू भैया आप दोनो की वजह से आज हम बच गये, वरना वो बदमाश हमारे साथ ना जाने क्या करते..

धनंजय- अरे नेहा इसमें थॅंक यू बोलने की क्या ज़रूरत है,… तू तो हमारी प्यारी बेहन है, भला हम अपनी गुड़िया को क्यों कुछ होने देते..?

नेहा का चेहरा ये सुन कर कुछ लटक सा गया, लेकिन फिर भी वो उसके बाजू को और अपनी ओर दबाते हुए बोली- ओह्ह्ह.. मेरे प्यारे भैया… आप कितने अच्छे हो..और जानबूझकर उसका बाजू अपनी अमरूद साइज़ की चुचि के साथ टच करा ही दिया.

धनंजय उसकी मासूम हरकतों को समझ रहा था, उसकी नाज़ुक अन छुइ गोलाईयों के स्पर्श से उसके शरीर में भी झुरजुरी सी दौड़ गयी, लेकिन उसने अपने को संभाला और उसके माथे पर एक किस कर दिया.

उधर उसकी वो दोनो सहेलिया भी जगेश के दोनो साइड में चिपकी हुई कुछ ऐसी ही हरकतें कर रही थी. एक ने तो उसे थॅंक यू साथ-साथ गाल पे किसी भी चिपका दिया. 

उन दोनो के चिपकने से जगेश का लंड पेंट के अंदर फनफनाने लगा. इस सिचुयेशन से अभी कैसे बचा जाए, ये सोच रहे थे वो दोनो की तभी सोनू बोला..

भैया चलो झूला झूलते हैं..! उसकी हां में हां मिलाते हुए वाकी बच्चे भी बोलने लगे. 

धनंजय बुदबुदाते हुए बोला- सोनू के बच्चे मरवा दिया ना तूने..!

सोनू – भैया ! कुछ कहा आपने..?

धनंजय - कुछ नही, अब चल झूला झूलते हैं..

झूले की सीटे ब्रेंच टाइप थी, एक सीट पर 3 लोग से ज़्यादा नही बैठ सकते थे..!

जैसे ही बैठने का नंबर आया, दो सीटो को 6 बच्चों ने लपक लिया, एक सीट पर नेहा की दोनो सहेलियाँ बैठ गयी और साथ में जगेश को हाथ पकड़ कर खींच लिया.
Reply
12-19-2018, 01:53 AM,
#83
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
अब धनंजय की मजबूरी हो गयी नेहा के साथ बैठने की, बेचारा मरता क्या ना करता. फँस गये मियाँ जुंमन शेख. 

झूला चलना स्टार्ट हुआ, जगेश बीच में बैठा था, दोनो कबुतरि आजू बाजू में थी, डरने के बहाने वो उसके दोनो कंधों से चिपक गयीं. जगेश के दोनो ओर दो-दो अमरूद साइज़ की चुचियाँ उसे गुदगुदाने लगी.

उधर नेहा भी मौका हाथ से जाने देना नही चाहती थी, उसने धन्नु की बाजू कस्के पकड़ली और अपनी चुचियों के उपर कस ली.

जैसे-2 झूले की रफ़्तार तेज होती जा रही थी लड़कियों की आँखें बंद हो चुकी थी, लेकिन उनके हाथ और वाकी शरीर पूरी तरह खुल चुके थे. जगेश के एक बाजू वाली लड़की ने तो उसकी कमर ही पकड़ ली और धीरे-2 अपना दूसरा हाथ उसके तन्तनाये लंड पर सरका दिया. 

दूसरी भी कहाँ पीछे रहने वाली थी उसने उसके कान में फुसफुसा कर कहा- भैया मुझे बहुत डर लग रहा है, प्लीज़ मुझे पकड़ लो ना.. और उसका हाथ पकड़ कर अपनी चुचियों पर रख दिया.

जगेश भी आख़िर एक जवान मर्द था, वो क्यों पीछे हटे, जब खरबूजा खुद कटने के लिए छुरि पर कुद्दि लगा रहा हो तो इसमें बेचारी छुरि चाह कर भी कुछ नही कर सकती.

मसल दिया उसने कस के उसके मुलायम कच्चे अमरूदो को.. लड़की की चीख निकल गयी आआययईीीई….आहह… जो औरों के लिए डर की थी लेकिन उसकी सहेली के लिए मज़े की.

मेले का दूसरा दिन : आज मेले में कल के मुकाबले ज़्यादा भीड़-भाड़ थी, ऋषभ, ट्रिशा और मे भी आज मेला एंजाय करने आए थे.

ट्रिशा एक सुलझी हुई गंभीर स्वाभाव की समझदार लड़की थी. 

आज भी नेहा की दोनो सहेलियाँ मेला देखने आई हुई थी वाकी बच्चों के साथ. लेकिन आज ट्रिशा और ऋषभ के होने की वजह से खुल नही पा रही थी, नेहा तो बिल्कुल ही शांत थी.

ट्रिशा उन सभी को साथ लिए मेले में घूम रही थी, कल जैसी कोई घटना ना हो इसके लिए हम चारो भी उनके साथ ही रहे लेकिन बच्चा पार्टी से थोड़ा दूरी बनाए हुए.

थोड़ा बहुत घूमने फिरने के बाद, हमने सभी को आइस्क्रीम वग़ैरह और जिसे जो खाना था खिलाया..! बच्चे बड़े खुश हो गये, वैसे भी गाँव के बच्चों को कब, कहाँ बाहर खाना नसीब होता है..?

वो लड़कियाँ बेचारी कुछ बैचैन सी नज़र आरहि थी, ट्रिशा ने पुछा भी तो उन्होने गोल-मोल जबाब देकर उसे टाल दिया.

ऐसे ही पूरा दिन निकला जा रहा था लेकिन जगेश को आज मस्ती करने का मौका नही लग रहा था..! उसकी बैचैनि देख कर धनंजय ने मेरे कान में कहा..!

अरुण जगेश की इन लड़कियाँ के साथ कल सेट्टिंग हो गयी है, लेकिन आज उसको कोई मौका नही मिल पा रहा, कुछ कर ना यार..!

मे- ऐसा क्या..? पहले बोलना चाहिए था ना यार..! 

मैने ट्रिशा को बोला..! ट्रिशा एक काम करो तुम सब लोग झूला क्यों नही झूल लेते.. ?

ट्रिशा- हां ! हां ! चलो झूलते हैं, मेरा भी मन कर रहा था कब से..!

मे- तो बताया क्यों नही ? एक काम करो तुम सब झूला झूलो, जगेश तुम लोगों के साथ रहेगा.. क्यों जगेश क्या बोलता है.. ?

जगेश मन ही मन खुश होता हुआ बोला… हां—हां ठीक है.. लेकिन तुम लोग नही झुलोगे..?

मे- हमें थोड़ा टाय्लेट आ रही है, तो थोड़ा जंगल की ओर घूम कर आते हैं.. क्यों ठीक है ना..!

उसने भी झट से जबाब दिया – हां बिल्कुल ठीक है, तुम लोग बिल्कुल चिंता मत करो, मे यहाँ सब संभाल लूँगा.

बस फिर क्या था ? जगेश का मन मयूर नाच उठा, मैने उसको इशारा किया कि वो सबसे बड़े वाले झूले में बैठे.

हम तीनों वहाँ से खिसक लिए, और जगेश ने अपने मन मुताबिक सेट्टिंग कर ली. उन दोनो बालाओं को लेकर बैठ गया एक सीट पर, ट्रिशा, नेहा और सोनू एक सीट पर वाकी बच्चे कल की तरह सेट हो गये...

इनको लेने देते हैं झूले के मज़े और हम निकल पड़ते है जंगल की ओर, वास्तव में टाय्लेट तो आ ही रही थी, सो मेले निकल कर झाड़ियों की ओर निकल पड़े.
Reply
12-19-2018, 01:53 AM,
#84
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
शाम होने को थी, सूर्य देवता पस्चिम की ओर अपनी चिरपरिचित गति से प्रस्थान कर रहे थे.. कोई 5.30-6 का समय होता.

मेला काफ़ी एरिया में फैला था, तो मेले की भीड़ भाड़ से निकल कर हम थोड़ा जंगल की ओर बढ़ चले.. और मेले की भीड़ से करीब एक फरलॉंग दूर जाके घनी झाड़ियाँ थी जंगली बबूल वग़ैरह खड़े थे. 

हम लाइन से पेंट की जीप खोल कर खड़े हो गये झाड़ियों की ओर मुँह करके और अपना-2 समान निकाल कर प्रेशर रिलीस करने लगे.

मे जहाँ खड़ा था उसके सामने झाड़ियाँ कुछ कम उँचाई की थी, झाड़ियों के बाद दो बड़े-2 पत्थरों की शिलाए खड़ी थी. मुझे कुछ ऐसा लगा मानो उन पत्थरों के पीछे कोई है.. 

चूँकि शाम का वक़्त था तो सूरज की धूप में किसी की भी छाँव लंबी दिखने लगती है शाम के वक़्त, तो मुझे ऐसी ही कुछ परच्छाइयाँ जैसी उन पत्थरों पर दिखी.

गौर से देखा तो वो परच्छाइयाँ चलती-फिरती नज़र आईं. मुझे यकीन हो गया कि वहाँ कोई तो है..!

टाय्लेट से निपटने के बाद मैने ऋषभ और धनंजय को तेज ना बोलने का इशारा किया और अपने पीछे-2 आने का इशारा करके मे उधर को बढ़ने लगा.

वो दोनो भी मेरे पीछे-2 आने लगे, हम पूरी कोशिश कर रहे थे कि उधर से हमें कोई देख ना सके और हमारी उपस्थिति पता ना लगे. 

झाड़ियाँ क्रॉस करने में नानी याद आ गई, काँटों भरी झाड़ियों ने कई जगह खरोंच के निशान बना दिए. जैसे-तैसे करके हम उन चट्टानो तक पहुचे.

मैने उन दोनो को वहीं रुकने का इशारा किया, और मे पत्थरों के दूसरी ओर से घूमते हुए वहाँ का जायज़ा लेने निकल पड़ा. 

झाड़ियाँ चट्टान से सटी हुई थी, पत्थर भी चिकना था साइड में झाड़ियाँ, जैसे-तैसे ढलु पत्थरों पर पैर जमा-जमा कर झाड़ियों से बचता बचाता मे जब घूम के दूसरी साइड पहुँचा और मुँह निकाल कर उधर झाँक कर देखा..

वो चार लोग थे जिनमें एक तो पहलवान टाइप का अधेड़ उम्र का बड़ी-2 मूँछे काला गेन्डे जैसा आदमी शक्ल से ही राक्षस जैसा था, वाकी तीन एवरेज कद के थोड़े कम काले, लेकिन मजबूत शरीर वाले..

वो गेन्डे जैसा व्यक्ति एक पत्थर पर बैठा था, वाकी तीनो उसके पास खड़े आपस में कुछ बात-चीत कर रहे थे जो मुझे दूर से सुनाई नही पड़ रहा था.

घेन्डे के बगल में एक राइफल रखी थी, वाकियों के कंधे पर पौने (देशी सेमी राइफल). मुझे पहली नज़र में ही लगा कि ये आम लोग नही हैं.

मैने पत्थरों की आड़ लेते हुए उनके और नज़दीक पहुँचने की कोशिश की…! पत्थरों से पीठ सटाये जैसे-तैसे मे कुछ नज़दीक पहुँचा, अब कुछ-2 उनकी बातें मुझे सुनाई देने लगी.

गेंडा- देखो हम लोगों को ये काम बड़े एहतियात से करना होगा, इस बार किसी भी सूरत में नाकाम नही होना है.

परसों सुबह-2 के स्नान के समय जब नहाने वालों की भीड़-भाड़ ज़्यादा होगी उसी समय हमें ये धमाके करने हैं जिससे ज़्यादा से ज़्यादा लोग मारे जाएँ.

इस बार इस गान्डू सरपंच को दिखा देना है कि गोंदिया सरदार से पंगा लेने का क्या नतीजा होता है.

फिर उसने पास पड़े एक बोरे की ओर इशारा करके कहा- इसमें इतना बारूद है कि कम-से-कम 5-6 ऐसे धमाके हो सकते हैं कि धमाके की जगह के आस-पास कुछ भी सबूत नही बचेगा.

इस बारूद को कल रात को ही तुम्हें नदी के किनारे-2 इस तरह से लगाना है कि किसी की नज़र में ना आ सके और किनारे पर मजूद भीड़ के परखच्चे उड़ जायें.

और ये काम रात के 1 से 3 बजे के बीच होना चाहिए जिससे किसी को भनक भी ना हो, उस समय पर सब कुछ शांत होता है. लगे तो और दो-चार लोगों को और ले लेना साथ मैं जल्दी काम निपट जाएगा.

अब तुम लोग जाओ और कल रात से पहले किसी की नज़र में मत आना, मे जाके सरदार को खबर देता हूँ.

वो तीनों उस बोरे को लेकर पहाड़ियों की ओर बढ़ गये और थोड़ी ही देर में पहाड़ियों के पीछे गायब हो गये, अब वो मुझे नज़र नही आ रहे थे.

वो गेंडा भी अपनी राइफल उठाके एक तरफ को चल दिया.. ! मे अब दूबिधा में फँस गया, क्या करूँ..? क्या ना करूँ..? दोस्तो को बुलाता हूँ तो इतनी देर में ये गायब हो सकता है, ज़्यादा सोचने का समय भी नही था मेरे पास.

मैने एक छोटा सा पत्थर उठाया और उसे अपने दोस्तों की तरफ उछाल दिया. सोचा अगर उनके आस-पास गिरा तो वो समझ सकते हैं कि मे उन्हें अपने पास बुलाना चाहता हूँ.

मे उस गेन्डे जैसे आदमी के पीछे-2 उससे छुप के चल दिया, थोड़ा आगे जाके मैने पीछे मूड के देखा तो ऋषभ और धनंजय भी उस जगह खड़े दिखे जहाँ पहले मे था.
Reply
12-19-2018, 01:53 AM,
#85
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मैने एक पत्थर उठा कर के फिर से उनकी ओर फेंका, पत्थर उनके ठीक पास में गिरा, फ़ौरन धन्नु की नज़र मेरी ओर हुई, मैने इशारे से अपने पीछे-2 आने को कहा और आगे बढ़ गया उस गेन्डे का पीछा करते हुए......!!

चलते-चलते वो एक पहाड़ी के पीछे मूड गया, मे उससे कोई 100 कदम पीछे ही था, मे भी उसके पीछे जैसे ही मुड़ा, सामने मुझे दो बंदूक धारी खड़े दिखे मे फ़ौरन आड़ में हो गया.

वो गेंडा उनसे कुछ देर खड़ा बात करता रहा फिर आगे बढ़ गया. मे अब और आगे नही जा सकता था, मैने अपने पीछे आरहे धनंजय और रिसभ को रुकने का इशारा किया और मे भी उनके पास लौट गया.

मैने उन्हें पूरी बात बताई, उनकी तो हवा ही निकल गयी..! अभी हमारे पास ज़्यादा बातों का वक़्त नही था, हम फ़ौरन उस पहाड़ी पर चढ़ने लगे जिसके पीछे से वो गेंडा गया था.

जैसे ही हम उसके शिखर पर पहुँचे..! सीन देखते ही फ़ौरन हम पत्तरीली पहाड़ी पर लेट गये..!

वो जगह चारो ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ एक दर्रा जैसा था, जहाँ एक छोटा सा मैदान जैसा बना हुआ था. लगभग 20 आदमी हथियारों से लेस इधर-उधर छोटी-2 चट्टानों पर बैठे थे. 

ज़्यादा क्लियर करने के लिए यहाँ शोले के गब्बर का अड्डा याद कर लीजिए, ऐसा ही कुछ-2 था ये भी.

हम जिस पहाड़ी पर थे उसके ठीक नीचे एक चौकोर सी समतल चट्टान पर एक भारी भरकम शरीर वाला व्यक्ति बैठा था, उसकी पीठ हमारी ओर थी तो उसका चेहरा नही देख पा रहे थे.

वो गेन्डे जैसा व्यक्ति उसके सामने खड़ा था और उसे कुछ बता रहा था, उसके हाव भाव से ही लग रहा था कि वो बैठा हुआ आदमी ही गोंदिया होगा.

उनकी बातें तो हमें सुनाई नही दी, तो अब यहाँ रुकने का कोई मतलब भी नही था.. सो हम लौट लिए मेले की तरफ.

मेले में आते-2 दिन छिप गया था, अंधेरा फैलने लगा था, दुकानदारों ने अपने-2 गॅस केरोसिन के हांडे जला रखे थे लाइट के लिए.

जगेश और टीम हमारा ही इंतजार कर रही थी. उन्हें साथ लेकर घर लौट लिए.

घर पहुँच कर हमने एकांत में ऋषभ के पिता को ये सब बातें बताई तो वो हड़बड़ा गये, उनसे तो कुछ बोलते ही नही बन पा रहा था. 

जब मैने उनसे सरपंच के बारे में पुछा तो वो बोले- हां ये सही विचार है, उनसे ही बात करते हैं, और हमें लेकर सरपंच के घर पहुँचे. 

जगेश भी अब अपनी मेले की मस्ती से बाहर आकर सीरियस्ली हमारे साथ हो लिया था. 

मे- सरपंचजी ये गोंदिया कॉन है..?

सरपंच - क्या..???? तुम क्यों पुच्छ रहे हो उसके बारे में..? वो तो एक ख़तरनाक डाकू है. लेकिन तुम लोग… हुआ क्या है..? उसके बारे में क्यों पुच्छ रहे हो..?

मे- आपकी उसके साथ कोई दुश्मनी है..?

सरपंच- कुछ समय पहले उसका गिरोह यहाँ सक्रिय था, बहुत लूट-पाट मचाता था वो, पोलीस थाना भी यहाँ से काफ़ी दूर है तो पोलीस के यहाँ तक पहुँचने तक वो लूट-पाट करके भाग जाता था.

एक बार हम सभी गाँव वालों ने फ़ैसला किया कि अब जो करना है वो हमें ही करना है, एक बार हम सबने मिलकर उसका जो भी साधन उपलब्ध हुए उसी के सहारे हमने उसका विरोध किया, जिसमें 4-5 गाँव वाले भी मारे गये लेकिन चूँकि हम गाँव वालों की संख्या बहुत ज़्यादा थी, और सब एक साथ उन पर टूट पड़े, हमारे एक साथ हमले से हमने उसके भी 10-12 लोगों को मार डाला और उसको खदेड़ दिया, गोदिया मुश्किल से अपनी जान बचा कर भाग गया, तब से फिर उसकी हिम्मत नही हुई हमारे गाँव में घुसने की.

मे- अब वो उसी बात की खुन्दस निकालने के लिए एक बहुत बड़े हमले की योजना बना चुका है, और अगर ये सफल हो जाती है तो कम-से-कम 150-200 लोगों की जाने जा सकती हैं. उसके बाद हमने उन्हें सारी बातें डीटेल में बता दी.

सुनकर सरपंच सकते में आ गये..! उनके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी. वो समझ नही पा रहे थे कि इस समस्या से कैसे निपटा जाए. कुछ सोच कर वो बोले.

सरपंच- हमें लगता है, ये मेला अब कल ही ख़तम कर देना चाहिए, हम जानते-बुझते इतने लोगों को ख़तरे में नही डाल सकते, सुबह होते ही मेला ख़तम होने का एलान करवा देता हूँ.

मे- ऐसा करके आप लोगों की धार्मिक भावनाओं को ढेस पहुँचाएगे, और लोगों का भविष्य में भी आपसे विस्वास उठ जाएगा.

सरपंच- तो तुम्ही बताओ क्या इतनी जानो को बचाने का और कोई रास्ता है इसके अलावा..?

मे- बिल्कुल है.. !! और ऐसा रास्ता है कि गोंदिया का हमेशा के लिए ख़तरा मिट जाएगा इस इलाक़े से. सब मेरे मुँह की ओर देखने लगे…

सरपंच- कुछ देर मेरी ओर देखते रहे फिर जब नही रहा गया तो बोले- क्या रास्ता है तुम्हारे पास..?

मे- वो मे आपको बाद में बताउन्गा, पहले आप पोलीस थाने चलिए..!

हम सभी सरपंच को लेके पोलीस स्टेशन पहुँचे जो करीब गाँव से 10-12 किमी दूर एक कस्बे में था.

सारी बातें डीटेल में बताने के बाद मैने वहाँ के इंचार्ज से कहा. 

मे- इनस्पेक्टर साब, हम चार लोग ये सुनिश्चित करेंगे कि उसके आदमी रात को वहाँ बारूद ना बिच्छाने पायें, यही नही वो जिंदा वापस गोंदिया से ना मिल सकें.

इंस्पेक्टर- वो कितने लोग होंगे जो बारूद बिच्छाने का काम करेंगे..?

मे- यही कोई 5-6 लोग ही ये काम करेंगे..!

इंस्पेक्टर- उन्हें मेरे आदमी कवर करेंगे, मे किसी आम नागरिक की जान जोखिम में नही डाल सकता..

मे- उससे वो सावधान हो सकते हैं..! और हमारी आप चिंता ना करो.. हमने इससे भी बड़े-2 कामों को अंज़ाम दिया है.. 

फिर हमने उसे हकीम लुक्का के ख़ात्मे वाला वाक़या बताया, वो बहुत देर तक हमें प्रशंसा भरी निगाहों से देखता रहा, अब उसे हमारे उपर विस्वास हो चुका था.

इंस्पेक्टर- फिर.. पोलीस का क्या रोल रहेगा..?

मे- कल की पूरी रात आपके कुछ आदमी गोदिया गॅंग की निगरानी करेंगे, उसके हर मूव्मेंट की जानकारी आप तक पहुँचाएंगे, सुबह होने से पहले ही कोई 4 बजे आपकी पोलीस फोर्स उसके अड्डे को चारों ओर से घेर लेगी वो भी कुछ दूर रह कर.

आशंका इस बात की भी हो सकती है कि गोंदिया अपना गॅंग नदी के दूसरे किनारे पर भी ले जाए, उसके आदमियों द्वारा की गयी तैयारियों में कोई गड़बड़ी होने की सूरत में वो स्नान करने वालों पर सीधे अटॅक भी कर सकता है.

उस सूरत में आपकी पोलीस उन्हें पीछे से घेर लेगी, आगे नदी होगी पीछे पोलीस वो फँस जाएँगे.

अगर वो नदी के किनारे तक नही आता है, उस सूरत में जैसे ही हम सुनिश्चित करेंगे कि हमने उसका प्लान फैल कर दिया है, हम चारों उसके अड्डे पर पहुँच जाएँगे और इशारा कर देंगे उसपर एक साथ चारों ओर से अटॅक करने का. 

अचानक हुए हमले को वो झेल नही पाएँगे और जल्दी हम उनपर काबू पा लेंगे.
Reply
12-19-2018, 01:53 AM,
#86
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
इंस्पेक्टर- लेकिन आप लोगों को उसके अड्डे पर जाने की ज़रूरत क्या है..?

मे- एक तो हमें ये नही पता कि उनका काम कब तक पूरा होगा, दूसरा अगर पोलीस ने उससे पहले ही हमला कर दिया तो वो लोग चोन्कन्ने हो जाएँगे और हड़बड़ी में वो बारूद को उड़ा सकते हैं, जिससे कुछ तो नुकसान जान माल का हो सकता है.

इंस्पेक्टर- प्रभावित होते हुए बोला- बहुत अच्छा प्लान बनाया है.! वाकई तुम्हारी योजना अच्छी है, मुझे नही लगता कि अब गोंदिया बच के निकल पाएगा.

मे- वो भी मे सुनिश्चित करता हूँ सर, गोंदिया आपको जीवित नही मिलेगा जब भी मिले. बस आप एक फेवर और कर दीजिए, हमें चार गन्स जो आपके पास दो नंबर की होती हैं वो दे दीजिए कुछ राउंड्स के साथ.

वो बहुत देर तक मेरे मुँह की ओर देखता रहा, फिर उसने अपने एक सब इनस्पेक्टर को इशारा किया और 4 सिक्स राउंड रिवॉल्वार फुल मेगज़ीन के साथ और कुछ एक्सट्रा बुलेट के साथ हमें दे-दी.

पोलीस के साथ पूरी प्लॅनिंग करने के बाद हम अपने गाँव लौट आए, लौटते-2 हमें आधी रात हो चुकी थी, घर पर सभी हमारा बेसब्री से इंतजार कर रहे थे.

मैने रास्ते में ही सबको हिदायत दे दी थी कि अभी इस बात का जिकर कोई भी अपने सगे से सगे के साथ भी नही करेगा जब तक ये मिशन पूरा नही हो जाता वरना लोग खंखाँ डर जाएँगे.
मेले का तीसरा दिन-

आज मेले में बहुत भीड़-भाड़ थी, जिधर देखो लोग ही लोग सर ही सर दिखाई देते थे. ग्राम पंचायत की तरफ से पूरी कोशिश की गयी थी उचित व्यवस्थाओं की जिससे लोगों को ज़्यादा तकलीफ़ ना उठानी पड़े.

आज भीड़ को देखते हुए पोलीस प्रशासन की ओर से भी एक सब इनस्पेक्टर के साथ 8-10 कॉन्स्टेबल भेजे गये थे, जो की रात के एक्शन में भी सम्मिलित होने थे.

मेला कमिटी ने भी अपनी तरफ से कुछ लोग व्यवस्था के लिए लगा रखे थे, स्वच्छ पीने के पानी की व्यवस्त जैसी और सहुलितें मुहैया करने की कोशिश की गयी थी.

आज हमने ऋषभ के माँ-पिता जी को बच्चों के साथ मेले में भेज दिया और हम चारों घर पर रह कर अपनी योजना के बारे में डिसकस करते रहे, और फिर 2-3 घंटे की नींद मारली क्योंकि रात को जागना जो था.

शाम को हम जल्दी मेले में चले गये, अभी दिन छिपने में समय था. ऋषभ के माँ-बापू को हमने घर भेज दिया, बच्चों का अभी मेले में घूमने का मन था तो वो सब नही गये.

कुछ देर साथ रहने से ही ऋषभ को जगेश की सेट्टिंग के बारे में पता चल गया, वो भी जगेश के आगे-पीछे घूमने लगा तो जगेश ने उसको अपनी सेट्टिंग के साथ शेयर कर लिया, उसको भी थोड़ा रिलॅक्स हो गया, अब वो एक के साथ खुल कर मज़ा ले सकता था.

ऋषभ भी उन दो में से एक के साथ एंगेज हो गया. अपने भाई को सहेली के साथ मज़े करते देख नेहा फिर चिपक गयी धनंजय के साथ. अब हमारे 4 ग्रूप बन गये, और सब अलग-2 मेला एंजाय करने लगे 

ट्रिशा को थोड़ा अटपटा लगा ये सब, और दबी ज़ुबान में उसने एतराज भी किया तो मैने उसे समझा दिया, कि देखो ये दिन बार-2 नही आते, जिसको जैसे खुशी मिलती है लेने दो, तुम भी एंजाय करो जैसे तुम्हें ठीक लगे.

मेरी बात उसे कुछ -2 समझ में आ गई और हम दोनो भी बच्चा पार्टी के साथ मिलकर मज़े करने लगे. लेकिन कहावत है ना ! आग फूंस कभी एक साथ ज़्यादा देर नही रह सकते आग जला ही देती है उसको.

बच्चों के साथ मौज मस्ती करते-2 हम दोनो के बीच ऐसे कई मौके आए जिससे हमारे शरीर आपस में टच हुए.

ट्रिशा की भावनाएँ भी उन तीनों को देखकर अंगड़ाई लेने लगी, मेरे प्रति उसकी नज़रें कुछ अलग सी होने लगी, अब वो मेरे अधिक से अधिक नज़दीक रहने की कोशिश करने लगी, कभी मेरा हाथ पकड़ लेती, कभी अपने अन्छुइ गोलाईयों को मेरे बदन से टच करा देती. 

बच्चों को पकड़ने के बहाने मेरे उपर गिरने लगती और फिर सॉरी बोल देती…!

मैने कुछ देर उसमें अचानक आए बदलाव को समझने की कोशिश की, वो अब और आगे बढ़ना चाहती थी, मैने भी अपनी तरफ से उसे खुली छूट देने का मन बना लिया था, कि चलो इसको एंजाय करने देते हैं, अपना क्या बिगड़ने वाला है. 

अपना तो दिल ही कुछ ऐसा है, दूसरों की खुशी में अपनी खुशी ढूढ़ ही लेता है.

एक बार ऐसे ही जब वो मेरे उपर गिरने को हुई, मैने उसकी कमर में हाथ डाल दिया और उसके चेहरे के एकदम पास अपना चेहरा ले गया, इतना पास की मेरी नाक से निकली हवा उसके पलकों पर गयी और उसकी पलकें बंद हो गयी. उसके उभार मेरे सीने में दब गये.

कितनी ही देर वो मेरे बाजू में झूलती रही आँखें बंद किए शायद इस इंतजार में कि मे कुछ और आगे करूँ..? थोड़ी देर बाद मैने उसको सीधा खड़ा कर दिया और उसे आवाज़ दी..…!!

वो जैसे खवाब से जागी हो… हुउंम्म… और जैसे ही उसने पलकें उठाई मेरे चहरे को अपने इतने करीब देख कर वो शरमा के मुझसे अलग हो गई.

उसके चेहरे पर शर्म की लाली के साथ-2 मुस्कराहट भी खिली हुई थी. उसका एक हाथ अभी भी मेरे हाथ में था.

क्या सोच रही हो..? मैने पुछा उसे, तो वो सिर्फ़ ना में अपनी गर्दन ही हिला सकी. 
Reply
12-19-2018, 01:54 AM,
#87
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
कुच्छ देर चुप रहने के बाद मैने फिर उससे पुछा.. ! मेरा साथ तुम्हें अच्छा लगा..? तो उसने अपनी गर्दन नीची करके शर्मीली मुस्कराहट के साथ हां में हिला दी.

मे- क्या गूंगी हो..? झट से उसने मेरी ओर देखा और बोली, नही तो आपको में दो दिन से गूंगी लगी..?

मे- तो मेरी बात का जबाब मुँह से क्यों नही दे रही…

वो- क्या जबाब दूँ..? मुझे लाज आती है..!

मैने उसके चेहरे को अपनी हथेलियों के बीच में लिया और एक चुंबन उसके माथे पर कर दिया, उसकी आँखें बंद हो गयी.

मे- ट्रिशा तुम्हें पता है कि तुम कितनी सुंदर हो..?

वो- मे क्या जानू..?

मे- आईना नही देखती हो कभी..? 

वो- हुउंम्म.. देखती तो हूँ, पर …

मे- पर क्या..? अच्छा चलो ! मेरी आँखों में झाँक कर अपनी सुंदरता को देखने की कोशिश करो..!

वो मेरी आँखों में झाँकने लगी..! थोड़ी देर बाद मैने पुछा- दिखाई दी..? मेरे पूछते ही वो शरमा कर मेरे सीने से चिपक गयी..! मे कितनी ही देर उसकी पीठ को सहलाता रहा.

बच्चे अपने में मगन हमारे आगे-2 चल रहे थे, अब हम एक-दूसरे का हाथ थामे चल रहे थे.

मे- कभी किसी से प्यार किया है तुमने..? मैने पुछा उसे.. तो उसने मेरी ओर देखते हुए ना में सर हिलाया.. 

मैने फिर सवाल किया- क्यों अभी तक कोई पसंद नही आया क्या..?

वो – नही ! मैने इश्स बारे में कभी सोचा ही नही..! 

मे- वैसे किस तरह के जीवन साथी के बारे में सोचती हो..? मेरा मतलब है, हर लड़की का एक ख्वाब होता है कि उसका जीवन साथी ऐसा होना चाहिए, वैसा होना चाहिए, इश्स तरह का तुम्हारा भी तो कोई ख्वाब होगा, कुछ सपने होंगे..?

वो- सच कहूँ..!

मे बोला- हां बिल्कुल सच कहो, झूठ से ना तुम्हें कुछ मिलने वाला है, और ना ही मेरा कोई वास्ता. 

वो- मेरे सपनों का राजकुमार बिल्कुल आपके जैसा होना चाहिए..!

मे उसकी ओर देखने लगा..! जब कुछ देर तक मे नही बोला, तो वो कुछ घबरा गयी और बोली- आ.आ.आपने सच बोलने को कहा तो मैने सच बोल दिया बस… और मेरी ओर देखने लगी.

मे- क्या अच्छा लगा मुझमें तुम्हें..!

वो- आप एक धीर गंभीर और एक समझदार, सुलझे हुए इंसान लगे मुझे, पर्सनलटी भी किसी फिल्मी हीरो से कम नही है, मेरी नज़र में आप एक कंप्लीट मॅन हो और क्या..?

मे- क्या जानती हो मेरे बारे में..?

वो- जो मुझे लगा वो मैने बोल दिया, इससे ज़्यादा और जानने की ज़रूरत ही नही है. मेरे लिए इतना ही काफ़ी है.

मे- ट्रिशा ! मे भी तुम्हें कुछ बताना चाहता हूँ.., तो वो मेरी ओर सवालिया नज़रों से देखने लगी.. 

मे ! एक तुम्हारी जैसी ही बहुत प्यारी सी लड़की से प्रेम करता था, हम एक दूसरे के साथ बहुत दूर तक निकल चुके थे…, इतना दूर की फिर वहाँ से वापस आना हमरे लिए संभव नही था.

वो उत्सुकता वस बोली- फिर..!

मे- वो जैन थी और में ब्राह्मण, सामाजिक असमानताओं की वजह से हम एक नही हो सके, उसके पिता ने जबर्जस्ती उसकी शादी करदी, और ससुराल पहुँचने से पहले ही…!!! मेरी आवाज़ भर्रा गयी और मे आगे नही बोल पाया.

वो – मेरी आँखों में झँकते हुए… बोलो..! क्या हुआ उसके ससुराल पहुँचने से पहले…?

मे- उसकी लाश ही पहुँच पाई वहाँ.. इतना बोलते-2 मेरी आँखों से दो आँसू टपक पड़े..!

वो- ओह्ह्ह्ह… सॉरी !! मैने आपका दिल दुखाया..! कैसी थी वो..?

मे- बिल्कुल तुम्हारे जैसी ! तन से ही नही.. मन से वो इतनी सुंदर थी कि मेरे पास शब्द नही हैं. उसको भूल पाना शायद इस जीवन में तो संभव नही होगा मेरे लिए.

वो- शायद मे आपके गम को कुछ कम कर सकूँ, अगर आप मुझे इस काबिल समझें तो ?

मे- ट्रिशा ! तुम एक बहुत ही अच्छी लड़की हो, मे नही चाहता कि तुम मेरे गुनाहों का बोझ जीवन भर मेरे साथ ढोती रहो.

वो- दोस्ती के काबिल भी नही हूँ..?

मे उसे अपनी बाहों में भरते हुए उसके होठों पर चुंबन लेके बोला – ओह्ह ट्रिशा.. तुम एक बहुत अच्छी दोस्त हो मेरी. आइ लव यू..

वो- आइ लव यू टू अरुण..!! मे आपका इंतजार करूँगी..!

मे- नही ! प्लीज़ ऐसा भूल कर भी मत करना..! मैने शादी ना करने की कसम ली है, मे नही चाहता कि मेरी वजह से तुम और तुम्हारे घरवाले दुखी हों.

वो – यू डॉन’ट वरी अरुण ! मेरी वजह से कभी भी किसी को कोई प्राब्लम ना अभी तक हुई और ना आगे कभी होगी.

इस बारे में भी मे किसी को कोई फोर्स नही करूँगी, ना अपने मम्मी-पापा को और ना आपको. 

किसी का इंतजार करना दुख पहुँचाना तो नही हुआ ना अरुण..!! जो मेरे बस में होगा वो मे करूँगी, वाकी उपरवाले के हाथ में है…

मे उस दीवानी को देखता ही रह गया, जिसने चन्द पलों में ही अपना दिल मेरे हवाले कर दिया और अब जीवन भर इंतजार करने की बात कर रही थी.
Reply
12-19-2018, 01:54 AM,
#88
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मे जानता था, कि ट्रिशा कितनी धृड इक्षा शक्ति वाली लड़की है, जो ठान लिया वो करके ही रहती है जैसा उसकी मम्मी ने बताया था, इसलिए मैने बात को आगे नही बढ़ाया और उसके माथे को चूम कर बच्चों के पीछे-2 चलने लगे….!
रात काफी हो चुकी थी , फिर भी देर रात तक लोग मेला एन्जॉय करना चाहते थे , क्योंकि कल के पर्व के स्नान के बाद मेला उखाडना शुरू हो जाने वाला था .

करीब रात 11 बजे हम सभी इकठ्ठा हुए और एक झूले पर झूलने चले गए ..
में आज अपना बाइनाक्यूलर साथ लेकर आया था जो काफी दूर की छीजों को भी अचे से दिखा सकता था .

हमने सबसे ऊँचे झूले को चुना , लोगों की भीड़ -भाड़ काफी हद तक कम हो गयी थी . अब ज्यादातर वही लोग बचे थे , जिनकी या तो सेटिंग थी , या सेटिंग के चक्कर में थे .

मेने झूले वाले को बोल दिया की झूले की स्पीड थोड़ा स्लो ही रखना , मुझे थोड़ा प्रॉब्लम होती है i स्पीड में , चूँकि लोग कम ही थे और शायद ये उसका लास्ट रॉउंड ही होगा सो उसने मेरी बात मान ली .

में धनञ्जय को अपने साथ लेकर बैठ गया और तृषा नेहा को लेकर बैठ गयी .. वाकी सब अस इट इस एन्जॉय कर रहे थे .

झूला घूमना शुरू हुआ .. जैसे ही हम ऊपर जाते , मेरे हाथों में पकडे बाइनाक्यूलर से में उसी दिशा में देखने की कोशिश करता जिधर हमें कल वो डाकू मिले थे .

एक दो चक्करों तक तो कुछ नज़र नहीं आया , लेकिन जैसे ही तीसरे चाकर में हम ऊपर गए और तब तक आँखें भी अँधेरे में देखने की अभ्यस्त हो गयी थी , तो मुझे वहाँ कुछ हलचल सी नज़र आयी , मेने धनञ्जय को इशारा किया .

उसने भी बाइनोकुलर लेकर देखा , एक -दो चक्करों के बाद ही उसको भी दिखने लगा और कन्फर्म हो गया की कुछ न कुछ तो हो रहा है उधर .

हमने झूले वाले को जल्दी रोकने का इशारा किया , और 4-6 चक्करों में ही झूला रुक गया , नीचे उतर कर मेने ऋषभ और जागेश को बोला , की तुम लोग जल्दी से इन सभी बच्चों को घर छोड़ कर आजाओ .

जब वो घर को निकल गए तो हम दोनों सबकी नज़रों से बचते -बचाते उधर को चल दिए . अब हमारा काम था सिर्फ उन पर नज़र बनाये रखना और समय आने पर एक्शन लेना .

वो 6 लोग थे , और वहाँ बैठ कर बारूद बिछाने के लिए सेट तैयार कर रहे थे , ये कोई दारु गोला टाइप का स्यतेम था , जो पत्थर तोड़ने में काम आता है .

5-6 दारू गोला टाइप के करीब 6-8” व्यास के गोले जैसे थे और उनमें से sulphur मिक्सिंग लेप लगी हुई तार (wire) सी निकली हुई थी , करीब 10-10 मीटर की तार की लंबाई के अंतर से उन्होंने सभी गोलों को आपस में जोड दिया और कोई 100 मीटर का अतिरिक्त तार भी रख छोड़ा

इतना सेट करने के बाद अब वो मेले की हलचल शांत होने का इंतज़ार करने लगे हम भी उनसे छिपकर ऋषभ और जागेश का इंतज़ार करने लगे !

रिवाल्वर हमारी कमर में खोंसी हुयी थी मेरा खंजर भी मेरे पास ही था कोई 2 घंटे के बाद ऋषभ और जागेश वापस हमें मेले में नज़र आये !

अब तक मेले में लगभग शांति छ चुकी थी इक्का दुक्का चाय पान की दुकान ही खुली थी जिसपर इक्का दुक्का लोग बैठे चाय बीड़ी सिगरेट पी रहे थे !

ऋषभ और जागेश भी सबसे लास्ट वाली दुकान जो हमारी साइड में थी उसपर बैठ गए !

फिर जब सब लोग थोड़ा बहुत आराम करने के लिए इधर उधर लुढ़क गए तो वो दोनों भी सोने के बहाने से हमारी ओर आने लगे , हमने दूर से ही इशारा करके उनको वहीँ कही एकांत में लेट जाने को कहा !.

धनञ्जय फुफुसकार बोला - हम उहें इस काम से पहले ही क्यों नहीं निपटा देते ..?

में - नहीं !.. इनमें से कोई तो काम ख़तम करके अपने आड़े पर सरदार को खबर देने जरूर जाएगा , और हमने पहले ही इन्हें लप्पेट लिया तो वहाँ से कोई न कोई आ धमकेगा तो जो हमने सोचा है वैसा नहीं हो पायेगा !

धनञ्जय मेरे थोबड़े को देखने लगा ..! मेने कहा - ऐसे क्या देख रहा है भाई ..?

D- तेरा दिमाग है या साला कोई सोचने की मशीन (computer)… हर बारीकी को सोच लेता है .. में बस मुस्करा दिया !

करीब ढाई बजे वो लोग अपना सामान लेकर निकले , चारों ओर गहन शांति छायी हुई थी !

जहा उन्होंने अपना हैण्ड ब्लास्टिंग यूनिट रखा था वहां से कोई 150 मीटर दूर तक नदी के किनारे -2 उन्होंने गीली मिटटी को खोदना शुरू कर दिया , वो लोग १फ़ॆत गहरी पतली सी नाली जैसी बनाते जा रहे थे .

नाली जैसी बनाने के बाद उन्होंने अंतिम छोर पे पहले गोले को दवा दिया और फिर उसकी तार जो सल्फर मिक्सिंग थी उसको उसमें डालते जा रहे थे , दो आदमी उसको मिटटी में दबाते जा रहे थे और मिटटी को समतल करते जारहे थे जिससे किसी को पहली नज़र में दिखे न !
इसी तरह 10-10 मीटर के अंतर से 6 गोले नदी के किनारे लगा दिए ! वाकी बच्चि तार को ब्लास्टिक पंप तक ले गए !

सारा काम इत्मिनान से निपटने के बाद उन्होंने उसे एक बार फिर से चेक किया और जैसा मेने सोचा था , उनमें से एक आदमी वहां से चला गया अपने सरदार को रिपोर्ट देने !

वो 5 लोग बड़े इत्मिनान से अँधेरे में ब्लास्टिंग पंप के पास थोड़े छिप कर बैठ गए और सुबह के स्नान का इंतज़ार करने लगे !

स्नान कोई 4:30 - 5 बजे से शुरू होना था . अभी एक -ढेड़ घंटा और वाकी था !
Reply
12-19-2018, 01:54 AM,
#89
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
सारी रात के जगने के कारण उनमें से एक -दो को झपकी सी आने लगी ! ये मौका सही था हमारी तरफ से उन्हें दबोचने के लिए !

हम बड़े इत्मिनान से एक दम जिन्न की तरह उनके सामने प्रकट हो गए , हमें अपने एकदम सामने देख कर वो लोग हड़बड़ा गए और एकदम खड़े हो गए ..!

में - कौन हो तुम लोग ..?

एक - तुमसे मतलव ..?

में - मतलव है तभी तो पूछा है , यहां छिप कर क्यों बैठे हो ..?

वो लोग खतरे को भांप गए और अपने -2 हथियार इधर -उधर ढूंढने लगे !

में - क्या ढूंढ रहे ..? ये इधर हैं .. और हम चरों की गन उनकी कनपटी पर चिपक गयी !
अब वो हिल भी नहीं सकते थे , लेकिन उनमें से एक फ्री था सो वो होश्यारी दिखने की कोशिश करने ही वाला था की मेरा खंजर उसके पेट में घुस गया !

वो डकारता हुआ धड़ाम से वहीँ ढेर हो गया ! उसका ये हश्र देख कर वाकी चारों की घिग्गी बंध गयी ! और आँखें फाड़ -फाड़ के हमें देखने लगे !

हमने पहले ही ये तै किया हुआ था की जरूरत न हो तब तक फायर नहीं करना है !

में अपने शिकार से बोला - आँखें फाड् -2 के क्या देख रहा है हरामी .. तुम लोग ही जान लेना जानते हो हम नहीं , और उसके साथी के खून से सना खंजर मेने उसके गले में घुसेड़ दिया , थोड़ी देर तक उसके गले से घर्रर —2 की सी आवाज आयी और फिर वो भी शांत हो गया !

इसी तरह हमने बड़ी शांति से उन पांचों का काम तमाम कर दिया और किसी को कानों कान खबर भी नहीं हुई !

उन पांचों को खिंच कर झाड़ियों में पटका , और तेजी से अपने काम में लग गए !

फटाफट सभी बारूद को उखाड़ा , समेटा और वहीँ उनकी लाशों के पास छिपा दिया ! एक बहुत बड़ा संकट टल गया था !

अब हमारे पास सिर्फ 15-20 मिनट ही थे , स्नान शुरू होने वाला था , हम फ़ौरन वहाँ से गोंदिया के अड्डे की तरफ भागे , झाड़ियों ने हमारा रास्ता मुश्किल कर दिया था , ऊपर से अँधेरा , लेकिन कुछ कर गुजरने का जूनून , किसे परवाह थी इन मुश्किलों की , बढ़ते रहे !

अड्डे से बहार पहुँच कर ऋषभ को इशारा किया की वो इंस्पेक्टर का पता करके उसके पास पहुंचे , और जैसे ही फायर की आवाज हो पुलिस एक्शन में आ जानी चाहिए !

फिर में धनञ्जय और जागेश को बोला , तुम दोनों मुझसे 50 कदम दूर रह कर मुझे कवर दो , चारो ओर से सतर्क रहना !

में आगे बढ़ा , मेने अपने मुह पर कपडा लपेट लिया ! थोड़ा आगे बढते ही एक डाकू ऊँघ रहा था , उसे जगाया और उससे बोला - सरदार कहाँ है ? वो बोला क्यों ? सरदार से क्या काम है ? तो मेने कहा - अरे भाई कुछ मत पूछो गजब हो गया , हमारा सारा प्लान चौपट हो गया है और ये बात सरदार को बताना जरुरी है , अभी !

उसने उंगली से इशारा करके जगह बताई , में उस तरफ को बढ़ गया, पीछे से आरहे धनञ्जय और जागेश ने उसको अंतिम यात्रा पर रवाना कर दिया !

में उस डाकू की बताई जगह पर पंहुचा , तो गोंदिया निरदुन्द पड़ा ऊँघ रहा था ! जैसे मेने कद कंठी के हिसाब से उसको पहचान , तुरत रिवाल्वर से फायर कर दिया !

रिवाल्वर के फायर की आवाज सुनते ही पुलिस दल हरकत में आगया गया और पहले से ही तय किये हुए अपने -2 टारगेट को निशाना बनाने लगे !

फायर की आवाज ठीक अपने सर के ऊपर सुन गोंदिया हड़बड़ा कर उठा , और इधर -उधर देखने लगा ! कुछ देर तो उसकी कुछ समझ मैं ही नहीं आया की आखिर हुआ क्या ..? जब तक वो समझ पता की मेरी गन उसकी कनपटी पे टिक चुकी थी !

हिलना भी मत गोंदिया , वार्ना इसकी एक गोली तुझे जहन्नुम पहुंच देगी ..!

वो चोंकते हुए बोला - के के कोन है तू ? क्यों अपनी मौत के मुह में चला आया ..?

मौत तो अब तेरे सर पर नाच रही है गोंदिया , तेरा नदी वाला प्लान तो हमने उखाड़ फेंका , अब तेरी बारी है ! पुलिस ने चारों ओर से तेरे अड्डे को घेर लिया है ..!!

इतना ही बोल पाया में , की चारोँ ओर से फायरिंग की आवाज़ें सुनाई देने लगी , मरने वालों की चीखें गोलियों की आवाजों में दब कर रह गयी !

में थोड़ा असावधान हो गया था ,उसका फायदा उठा कर गोंदिया ने मुझे पीछे को धक्का दे दिया और वहां से भागने लगा !

में इतना भी असावधान नहीं हुआ था , फ़ौरन उठ खड़ा हुआ और तुरंत एक फायर उसके ऊपर कर दिया , गोली उसकी जांघ को चीरती हुई पार हो गयी , वो कुछ देर चीखता हुआ बैठा रहा लेकिन जल्दी ही उठ खड़ा हुआ और लंगड़ाते हुए भागने ही वाला था की में फिरसे एक बार उसके सर पर खड़ा था !

बचने का कोई रास्ता नहीं है हरामजादे , लोगों की जान को खेल समझने वाले नरपिशाच आज तुझे दिखाता हूँ , मौत का दर्द क्या होता है , और रिवाल्वर का भरपूर बार उसकी नाक पर किया !

गोंदिया घायल भैंसे की तरह डकार मारता हुआ जमीन पर गिर पड़ा , फिर मेने उसे लात घूसों पर रख लिया !

इधर पुलिस का घेरा चारों तरफ से तंग होता जा रहा था ! डाकुओं के हौसले पस्त हो चुके थे !
पिटते -2 गोंदिया बिलकुल अनाज के बोरे की तरह जमीन पर पड़ा रह गया , चीखता रहा , चिल्लाता रहा पर कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं था , और ना ही उसका कोई साथी उसकी मदद के लिए आनेवाला था !

10-15 मिनट की कार्यवाही के बाद ही पुलिस टीम और मेरे दोस्तों ने वहाँ मौजूद लगभग सारे गिरोह को ख़तम कर दिया , जो हाथ उठाये समर्पण कर रहे थे उन्हें अरेस्ट कर लिया गया !
ऋषभ के साथ इंस्पेक्टर और दूसरे पुलिस वालों को मेने अपनी ओर आते देखा , तभी मेने एक गोली गोंदिया के सीने में उतार दी और उसे हमेशा के लिए मौत की नींद सुला दिया ….!

हम लोगों की थोड़ी सी सतर्कता और विवेक ने एक बहुत बड़े संकट को ही नहीं टाला जिसमें सैकड़ों जानें जाने का अंदेसा था , अपितु उस पुरे इलाके को एक दुर्दांत हत्यारे डाकू के जुल्मों से हमेशा के लिए मुक्ति दिला दी थी !

पर्व का स्नान शांति पूर्वक संपन्न हुआ , उसके बाद ये बात गांव वालों को बताई गयी , सारे गांव के लोग ख़ुशी से झूम उथे , चारों ओर हर्षो -उल्लाश का माहौल पैदा हो गया था !

SP, DSP, पुलिस के और तमाम आला अफसरों ने हमारी खूब तारीफ़ की और एक बहुत बड़े इनाम का एलान भी सरकार की ओर से कराया जो हमने अपनी ओर से मंदिर के आस -पास नदी के घाट बनाने के लिए दान कर दिया !

एक -दो दिन ऋषभ के घरवालों के साथ व्यतीत किये , इस दौरान जागेश और ऋषभ ने उन दोनों बालाओं के साथ जम कर मस्ती की ! मेरा ये व्यवहार देख कर तृषा और ज्यादा प्रभावित हुयी ! फिर एक दिन हम चरों दोस्त अपने कॉलेज वापस लौट आये अपने फाइनल ईयर की पढ़ाई करने !

लौटते समय तृषा की बोलती नज़रें बहुत कुछ कहना चाहती थी , लेकिन समाज और बड़ों के लिहाज ने उसके होठ सिल दिए और उसके मनोभाव दब कर ही रह गए ! पर उसने मेरा एड्रेस रख लिया , जो मेने रति के घर का लिखवा दिया था !

ऋषभ और जागेश, अपने -2 लंड महाराज की खासी सेवा करवा चुके थे , कच्ची कलियों का रसपान करके , और उन दोनों कन्याओं ने भी कामसूत्र का अच्छा खास ज्ञान प्राप्त कर लिया था !

नेहा बेचारी प्यासी ही रह गयी , धनञ्जय ने अपने मित्र धर्म का पालन पूरी निष्ठां से किया था . वर्ना अगर चाहता तो वो भी उसकी सील को तोड़ चुका होता ! ऐसे आदर्शवादी मित्र आज के ज़माने में कम ही देखने को मिलते हैं !

खैर कुल -मिलाकर हमारा ये वेकेशन एक यादगार वेकेशन रहा जिसमें हमने ये ऐतिहासिक काम किया था !

जब हमने अपनी दास्ताँ प्रिंसिपल को सुनाई तो वो हँसते हुए बोले - जहां -जहां चरण पड़े संतान के तहाँ -तहाँ बंटाधार …है है है लेकिन बुराई का !

Well done my boy's, तुम लोग एक मिसाल हो इस कैंपस के लिए . बहुत दिनों तक तुम्हारी बातें यहां होती रहेंगी, खासकर अरुण की !

ऐसी ही सब बातें करने के बाद प्रिंसिपल बोले - देखो बच्चो ! ये साल तुम लोगों का आखिरी साल है , में चाहता हूँ की, इस साल का प्रेजिडेंट का चुनाव तुम में से ही कोई जीते , जिससे छात्रों में एक नयी जाग्रति आये , आने वाले कुछ सालों के लिए !

कॉलेज प्रशासन और छात्र लीडर जब मिलकर काम करते हैं , तो बहुत कुछ अच्छा कर सकते है आनेवाले भविष्य के लिए !

में - ठीक है सर ! इसमें कोन सी बड़ी बात है , अपना धन्नू सेठ बन जायेगा प्रेजिडेंट ! धनञ्जय मन करने लगा तो प्रिंसिपल सामने से ही बोले !

प्रिंसिपल- में जानता हूँ ! धनंजय , तुम अरुण के रहते प्रेजिडेंट का चुनाव नहीं साधना चाहते , है ना ! पर बेटे, प्रेजिडेंट से ज्यादा उसके कामों को गति देने वाले की इम्पोर्टेंस रहती है , जो पद पर रहते हुए नहीं हो सकती !

और एक बात अरुण ! इतना सरल भी मत समझना चुनाव को ! पूरी तबज्जो देनी होगी तुम्हें , कॉलेज का चुनाव किसी निकाय चुनाव से काम इम्पोर्टेन्ट नहीं होता है ! ये जब तुम लोग इसमें उतारोगे तब पता चलेगा तुम्हें !

बहुत सारे स्टूडेंट्स हैं , जो पूरी ताक़त झोकने को तैयार है ! लोकल लीडर्स का भी सपोर्ट रहता है, उन्हें . मेरी बातें धयान में रखना ! 

अब जाओ और आज से ही तैयारियां शुरू करदो ! बहुत मेहनत करनी होगी तुम लोगों को , ये चुनाव जीतने के लिए !

बैच शुरू हो चुके थे ! नए स्टूडेंट्स , पुराने स्टूडेंट्स … रैगिंग, इन्ही सब में महीना निकल गया . 

हमने धनंजय को प्रेजिडेंट कैंडिडेट प्रोजेक्ट करके न्यूज़ स्प्रेड करदी थी पुरे कैंपस में . वैसे तो कोई सक्षम स्टूडेंट नहीं था जो हमारे ग्रुप को पॉपुलैरिटी में मात देता , फिर भी प्रिंसिपल की अनुभवी बातों ने हमें सोचने पर विवस कर दिया था !

इधर हमारी समिति से 3 लोग कम हो गए थे , वो भी अपडेट करनी थी , तो कुछ उत्सुक लड़कों को ले लिया जिसमें ज्यादातर SY और TY के स्टूडेंट्स थे ! कुल -मिलाकर 12 मेंबर हो गए थे अब समिति में !

सिविल डिपार्टमेंट से एक मंजीत सरदार नाम का कैंडिडेट बड़ी मजबूती से दावा पेश कर रहा था स्टूडेंट्स के बीच !

उसका बाप शहर का जाना मन बिल्डर था , अपनी शानदार गाड़ी से कॉलेज आना , दोस्तों के साथ मौज मस्ती करना , पैसे का घमंड दिखाना ! उसको शहर के कुछ पॉलिटिशियन और बिल्डर लॉबी फुल सपोर्ट कर रही थी !

हम ठहरे फक्कड़ सज्जन टाइप के लोग , पैसा तो हमारे पास था नहीं बस अपनी सादगी और नेक नीयत के दम पर ही चुनाव जीतना चाहते थे ! 

वैसे पैसे का सपोर्ट हमें भी मिल सकता था , लेकिन अपनी तो अलग ही स्टाइल थी ! खामोखाँ किसी का एहशान क्यों लिया जाये ?
Reply
12-19-2018, 01:54 AM,
#90
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
इलेक्शन पूरे जोरों पर था , बस कुछ ही दिन शेष थे ! मंजीत अपनी पूरी ताक़त से लगा हुआ था ! लेकिन फिर भी जो रुख था स्टूडेंट्स का वो हमारी अच्छाई की ओर ज्यादा लगता था !

वैसे तो एक -दो कैंडिडेट्स और भी थे लेकिन वो सिर्फ नाम मात्रा के लिए या फिर कह सकते हैं उसके डमी कैंडिडेट्स थे !

जैसे -2 इलेक्शन की डेट नजदीक आती जा रही थी मंजीत की उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी ! अब तो वो जानबूझकर हमसे टकराने के भी बहाने ढूढने लगा था ! पर हम किसी तरह टालते रहते थे !

धनंजय का ठाकुरैती खून कभी -2 उबाल लेने लगता था , पर में उसको शांत करता रहता था !
अब सिर्फ एक हफ्ता ही रह गया था इलेक्शन को, और मंजीत को उसके सूत्रों ने पक्का कर दिया था की उसकी हार निश्चित है ! और वो भी करारी , तो उसके धैर्य का बांध टूट गया और वो .., वो कर बैठा जो एक फाइनल के स्टूडेंट के लिए कतई उचित नहीं था ! 

एक दिन हम सभी समिति मेंबर मीटिंग कर रहे थे , अपने रूम में बैठ आपस में विचार -विमर्श में लगे हुए थे , की एक लड़का भागता हुआ रूम में दाखिल हुआ और आते ही बोला ! सर वो मंजीत सरदार 20-25 गुंडों को लेकर हॉस्टल की तरफ आ रहा है , ज्यादातर उनमें सरदार ही हैं और सबके हाथों में नंगी तलवारें हैं !

हम सबके होश उड़ गए !… आनन फानन में हॉस्टल में बात फैलाई तो जिसको जो हाथ लगा उठाके चल दिया गेट की तरफ ! चूँकि हम सबको मच्छरदानी लगाने के लिए 4-4 लोहे की सरिया (rod) मिलती थी , तो ज्यादातर वो ही सबके हाथों में लगीं थी !

हम 25-30 लड़कों ने अपनी -2 सरियाएं जो 4-4.5 फ़ीट लंबी थी , संभाल ली और गेट पर खड़े होकर उन लोगों का इंतज़ार करने लगे ! वो सभी वास्तब में ही हाथों में नंगी तलवारें लिए बढे चले आरहे थे हमारी ओर …!

इधर जैसे ही प्रिंसिपल को इस बात की भनक लगी , उन्होंने फ़ौरन फ़ोन खटखटा दिया SP ऑफिस में ! लेकिन पुलिस की मदद तो कम -से -कम आधे घंटे से भी ज्यादा समय लगना था , तो जो भी करना था हमें ही करना था !

में ये भी जानता था , की जब तक हम दो -चार को गिरा नहीं देते , हमारे साथ के लड़कों की हिम्मत आगे बढ़ने की नहीं होगी ! सो बस बढ़ गए आगे को हर -हर महादेव बोलकर !

वो लोग बीच ग्राउंड से थोड़ा ही आगे बढे थे की हमने उनकी ओर दौड़ लगादी , और हॉस्टल से पहले ही उन्हें रोक लिया , और भिड़ गए लेकर प्रभु का नाम !

तड़ाक ! तड़ाक ! ताड !-ताड !… सरिया की मार जैसे ही तलवारों पर पड़ती , या तो तलवार बन्दे के हाथ से छूट जाती या नाकाम हो जाती !

आगे की लाइन में हम 8-10 ही थे जो ट्रेंड थे और इस तरह की परिस्थितियों का सामना भली भांति कर सकते थे !

तलवारों की तुलना में हमारी सरियाएं ज्यादा लंबाई तक मार कर रहीं थी ! विरोधी पार्टी के हाथों से उनकी तलवारें छूटती जा रही थी , और हम लोग उन पर हावी होते जा रहे थे !

मंजीत की पार्टी को जल्दी ही ये एहसास हो गया की उनकी ये बहुत बड़ी भूल साबित हई है , 5 मिनट में ही आधे से ज्यादा वो लोग निहत्थे हो गए और उनके पेअर उखाड़ने लगे !

आवेश में धनंजय और कुछ स्टूडेंट्स भागने वालों के पीछे -2 उनका पीछा करते हुए दौड़ाने लगे !

में उन्हें आवाज देकर रोकना ही चाहता था की तभी , मानो मेरे शरीर में किसी ने आग भरदी हो …! मंजीत की तलवार मेरी पीठ में घुसती चली गयी और में हाथ ऊपर किये हुए जो उन्हें रोकने के लिए उठा था , उठा ही रह गया …! मेरे मुह से बस इतना ही निकला .-. ओ .. माँ आ आ आ …………!

मुझे पता नहीं चला की कब मंजीत मेरे पीछे आया , और कब उसने पीछे से बार कर दिया , उसकी तलवार का बार इतना शक्तिशाली था की तलवार मेरी पीठ को चीरती हुयी आगे से निकल गयी ! मेरे पुरे शरीर में मानो आग भरदी हो किसी ने !

में अपने घुटनों पर झुकता चला गया , दाया हाथ ऊपर किये मेरे मुह से बस ओ .. माँ आ आ .. ! ही निकला और जैसे ही उसने अपनी तलवार मेरी पीठ से खिंचा , में औंधे मुह जमीन पर गिर पड़ा , मेरी आँखें बंद होती चलीं गयी , और में अंधेरों में डूबता चला गया ….!!

क्या मार सकेगी मौत उसे, औरों के लिए जो जीता है !

मिलता है जहाँ का प्यार उसे, औरों के जो आँसू पीता है !! . 

क्या मार सकेगी मौत उसे….

होना होता है जिनको अमर, वो लोग तो मरते ही आए हैं…! 2..

औरों के लिए जीवन अपना, बलिदान वो करते ही आए हैं…!!

धरती को दिए बदल जिसने, वो सागर कभी ना रीता है…

मिलता है जहाँ का प्यार उसे, औरों के जो आँसू पीता है..!! 

क्या मार सकेगी मौत उसे…!!! सन्यासी… बाइ मानदेय.
……………………………………………………………………………
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,571,793 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 552,402 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,263,234 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 955,124 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,694,104 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,114,869 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 3,010,003 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 14,253,324 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 4,101,618 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 291,670 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 3 Guest(s)